वर्ष : 1, अंक : 9 3 संपादक मंडल सचिन ितुववेदी संस्ापक (नई ददल्ी) डॉ. तरुणा माथुर मुख्य संपाददका (गुजरात) ववनीता पुंढीर ननदवेशक, अनुराग्यम(नई ददल्ी) मीनू बाला संपाददका (पंजाब) 3 दूरभार : +91 - 9999920037 पता : मालवीय नगर, नई ददल्ी (110017) वेबसाइट : www.anuragym.wordpress.com ईमेल : anuragyam.kalayatra@gmail.com अनुराग्यम् के सोशल मीडडया प्टफोम्ष से जुड़ने के नलए नीि ददए गए आइकॉन पर क्लिक कर के जुड़ सकते है | उपरोक्त सभी पद मानद तथा अवैतननक हैं। पवरिका डडजाइनर : सचिन ितुववेदी मुख्य पृष्ठ आवरण : सचिन ितुववेदी कॉपीराइट : अनुराग्यम् (संपादक मंडल) **पवरिका में बहुत सी इमेजजस गूगल से ली गई है. MSME Reg. No. : UDYAM-DL-08-9070 माि्ष 2022 होली ववशेरांक वर्ष 1 अंक 11 अप्ल 2022 धानमक स्ल ववशेरांक वर्ष 1 अंक 12
वेषभषा - रीता खरे 36 9. रािी की वाव - प्रधाि संपािक की कलम से 38 10. हमारा गजरात - डॉ गलाब चंि पटेल 40
11. िरसी मेहता (गजरात के प्रशसदध कवव) - सिी सकसेिा 44
12. संसमरण (गजरात)- अचिा श्ीवासतव 46 13. सीधपर (उत्तर गजरात जजला पाटण) - कमला मलािी 50 • कववताएँ 1. ज्य - ज्य गरवी गजरात - अि
वर्ष : 2, अंक : 1 4 • गजरात राज्य पर आलेख प सं. 1. लोथल सभ्यता, - डॉ. तरुणा माथर, मख्य संपादिका 6 2. हसतशिलप - पारुल शमत्तल 11 3. रास गरबा वाला िहर - डॉ मीरा रामनिवास 12 4. आओ जाि गजरात को - रमेि ठककर 16 5. गजरात की कला - प्रवीणा मदहचा 20 6. लौह परुष (सरिार वललभभाई पटेल) - मीि बाला 24 7. रि आफ कच्छ और पतंगोतसव - डॉ. ध्व नतवारी 28 8. गजरात की पारंपररक
मेहता 15 2. बेशमसाल गजरात - महावीर प्रसाि वैषणव 23 3. गजरात अदहंसा का मा ग्चििशी - रमाकांत िमा्च 23 4. अववसमरणी्य ्याि - मंज िमा्च 33 5. मेरे कषण - मध प्रसाि 48 6. क्या कहि गजरात क - रवव िंकर िमा्च 49 • रे शसपी 1. आम का ्छिा , कमला मलािी 18 2. गजराती “थेपला” (परांठे), कमला मलािी 19 3. मदठ्या बिाि की ववधध, िीतल िमा्च 34 4. रे शसपी - ऊंधध्यो बिाि की ववधध, िीतल िमा्च 35 • निरोगी का्या 1. आ्यवि चीज़ों से जड़ी निरोगी का्या - वविीता पंढीर 26 अनुक्रमणिका
नसतम्बर 2021 गोवा ववशेरांक वर्ष 1 अंक 5 अगस्त 2021 ददल्ी ववशेरांक वर्ष 1 अंक 4 जुलाई 2021 वबहार ववशेरांक वर्ष 1 अंक 3 जून 2021 मध्यप्देश ववशेरांक वर्ष 1 अंक 2 मई 2021 राजस्ान ववशेरांक वर्ष 1 अंक 1 अक्बर 2021 छत्ीसगढ़ ववशेरांक वर्ष 1 अंक 6 नवंबर 2021 पंजाब ववशेरांक वर्ष 1 अंक 7 ददसंबर 2021 यारिा वृरिांत ववशेरांक वर्ष 1 अंक 8 वपछले संस्करण जनवरी 2022 हडरयाणा ववशेरांक वर्ष 1 अंक 9 फरवरी 2022 दहमािल प्देश ववशेरांक वर्ष 1 अंक 10
डॉ. तरुणा माथुर, मुख्य संपाददका सम्ादकीय
" गिरनार " पर्वत को हिमालय पर्वत का दादाजी किा जाता ि यि अद्त बात मुझे यिां आकर पता चली। आप जानते ि कक " रानी की रार " पुरातात्विक स्थल अिमदाबाद के पाटन जजले में स्स्थत िै। आज के ₹100 के नोट पर "रानी की रार " का रिी चचत्र देखने को ममलता ि जो मरश्व धरोिर ि और इससे भी अनमोल अद्त बात यि ि कक जजस "कस्कि देरता" कक िम कलयुि में अरतार की बात को मानते ि रि इसी पाटन की " रानी की रार "में एक मूमत में हदखाई देता ि और उस कस्कि ने िम बूट पिने िए िैं। आज से 5000 रर पूर्व इतना रोचक पूि्व तरीके से उसे बनाया िया कक देखकर अचंभभत िो जाते िो। आप ऐसे िी ककतनी सुंदर सुंदर पुरातात्विक मिवि के स्थल िुजरात में देख सकते िैं। आज आप के साथ अपनी मररासत को साझा कर रिी िँ। गजरात वह अदभत भारत की भशम है जहाँ “धगरिार पव्चत, जिागढ़” म संतों ि अपिी तपस्या के बल पर परे गजरात को अपि ओज से भरा हआ है। भारत का एक ऐसा राज्य जो जजतिा समदध प्राचीि काल म था वत्चमाि म भी उति ही समदध राज्यों म उसकी धगिती होती है। अरब सागर से लगती उसकी तटी्य सीमा म कई सिर समद्ी तट ह। मंदिरों से पटे िहर, वन्य- जीवि प्राकनतक सौंि्य्च से पररत गजरात राज्य ववशव म समसामन्यक पषठभशम म महातमा गांधी के कारण प्रशसदध रहा। गजरात का वत्चमाि और इनतहास बराबर रूप से अपिी पहचाि बिाि म समथ्च रहे। वत्चमाि प्रधािमंत्ी श्ी िरद् मोिी जी की कम्चभशम रही गजरात की धरती ि िि को सवतंत्ता संग्ाम के के कई परवाि दिए। गजरात प्य्चटि के व्यवसान्यक ववज्ापि म” क्छ दिि तो गजारो गजरात म” गजरात के शलए घमि के फैसले से आपको एहसास हो जाता है कक आपि ककतिा सही फैसला शल्या क्योंकक जब मझे गजरात घमि का मौका शमला तो म इसकी सचचाई को महसस कर पाई। सबसे पहले तो धन्यवाि ििा चाहंगी वहाँ की “साजतवकता“ को। गजरात िसरों पर कम निभ्चर रहि की कोशिि करता है और सव्यंबदध कारोबार से जीववका कमािा बेहतर समझता है। जीवि िैली म बहत ही साजतवक है।
वर्ष : 2, अंक : 1 8 लोथल सभ्यता रि स्थान जिाँ आहदम युि के िमारे पूर्वजों का सुंदर और ईमानदार इमतिास जजस पर भारत को ि िर्व। लोथल एक सुरम्य झरोखा िमारे इमतिास का जजसे सर्वप्रथम 1920 में सर जॉन मारल ने जो एक मरिकटर पुरातवि रादी थे, खोजा था। जब रि ि ड़प्ा मोिनजोदड़ो के पुरातन इमतिास की खोज कर रि थे। उसके बाद 1954- 63 के बीच सर श्ी एस. रार ने अपनी टीम के साथ इस पर काय्व करना रुरू ककया क्ोंकक रि ि ड़प्ा संस्मत के अरररों की खोज कर रि थे, तब सरकारी रूप से इसे पुरातात्विक स्थल घोकरत ककया िया। ि ड़प्ा सभ्यता के सुंदर अरररों की खोज प्रारंभ करने पर िी उन् लोथल जैसी उत्ष्ट सभ्यता को जानने का अरसर ममला जिाँ व्ापार पानी के माि्व से िोता था। इस तरि से लोथल पिली "पोट्व जसटी" के नाम से भारत के इमतिास के पन्ों में दज्व िआ। मेरा सौभाग्य रिा कक इस दि्वम और मरििम दृश्य के अरररों को मैंने स्वयं देखा। और अपनी उस रोचक यात्रा के अनुसार आप लोिों को भी लोथल की पररक्रमा कराना चाििी। भारत की आजादी के कुछ साल बाद जब भारत के पुरातवि मरभाि ने, पजचिम र उत्तर भारत की छुपी िई सभ्यताओं की खोज की अपनी यात्रा प्रारंभ की और करीब 100 अलि -अलि साइटस जो राजस्थान, हदल्ी , िररयािा और िुजरात के मरभभन् हिस्ों में प्राप्त िई। जसंधु घाटी सभ्यता जो घघ िर नदी जो प्राचीन काल में
सरस्वती नदी के नाम से जानी जाती रिी िोिी जो अब मरलुप्त िो िई िै, के साथ-साथ मरकजसत िई उसमें लोथल को एक मररर दजजा ममला। अिमदाबाद िुजरात से 85 ककलोमीटर दर और खंभात की खाड़ी से मिज 30 ककलोमीटर दर लोथल की सभ्यता का पटाक्प िआ और सबसे अच्ा यिी था कक आज से िजारों साल पिले िमारे पूर्वज पानी के रास् अपने व्ापार को बढाने की कला को सीख चुके थे। यि िुजरात के अिमदाबाद जजले में 'भोिारा नदी' के ककनारे 'सरिराला' नामक ग्ाम के समीप स्स्थत िै। इस स्थल से समकालीन सभ्यता के पांच स्र पाए िए िैं। यिाँ पर दो भभन् -भभन् टीले निीं ममले िैं, बस्कि पूरी बस्ी एक िी दीरार से गघरी थी। यि छि खण्ों में मरभक्त था। लोथल का ऊपरी निर था निर दि्व मररय चतुभु्वजाकार था जो पूर्व से पजचिम 117 मी. और उत्तर से दजक्ि की ओर 136 मी. तक फैला िआ था। लोथल निर के उत्तर में एक बाजार और दजक्ि में एक औद्ोगिक क्त्र था। मनके बनाने रालों, तांबे तथा सोने का काम करने राले जरस्पियों की उद्ोिरालाएं भी प्रकार में आई िैं। यिाँ से एक घर के सोने के दाने, सेलखड़ी की चार मुिरें, सींप एर तांबे की बनी चूहड़यों और बित ढं ि से रं िा िआ एक ममट्ी का जार ममला िै। लोथल से रंख के काय्व करने राले दस्कारों और ताम्रकममतियों के कारखाने भी ममले िैं। करीब 3700 साल पुरानी इस सभ्यता में ि ड़प्ा की ममलती-जुलती परंपराएं देखने को ममली जैसे कस्ों को दो भािों में बांटा िया िै, पिला श्ष्ी रि्व के जलए थी दसरा आमजन के जलए। लोथल में िढी और निर दोनों एक िी रक्ा प्राचीर से गघरे िैं। अन्य अरररों में धान (चारल), फारस की मुिरों एर घोड़ों की लघु मण्ूमततियों के अररर प्राप्त िए िैं।
वर्ष : 2, अंक : 1 10 - डॉ. तरुणा माथुर, मुख्य संपाददका इसके अमतररक्त अन्य अरररों में लोथल से प्राप्त एक मदभांड पर एक मररर चचत्र उकेरा िया ि जजस पर एक कौआ तथा एक लोमड़ी उत्ीि्व िै। इससे इसका साम्य पंचतंत्र की कथा चालाक लोमड़ी से ककया िया िै। यिाँ से उत्तर अरस्था की एक अगनिरेदी ममली िै। नार के आकार की दो मुिरें तथा लकड़ी का अन्ािार ममला िै। अन् पीसने की चक्ी , िाथी दांत तथा पीस का पैमाना ममला िै। यिाँ से एक छोटा सा हदरा मापक यंत्र भी ममला िै। तांबे का पक्ी , बैल, खरिोर र कु त्ते की आकमतयां ममली िै, जजसमें तांबे का कु त्ता उल्खनीय िै। यिाँ बटन के आकार की एक मुद्ा ममली िै। लोथल से 'मोसोपोटाममया' मूल की तीन बेलनाकार मुिरे ममली िै। आटा पीसने के दो पाट ममले ि जो पूरे जसन् का एक मात्र उदािरि िै। साथ िी इस समय की एडरांस टेक्ोलॉजी की टाउन प्ैमनि देखने को ममलती ि रिर की दीरारों को 12 से 21 मीटर तक लंबा बनाया िया था तो रायद बाढ की स्स्थमत से बचाने के जलए रिा िोिा जब आज आप रिां जाएं ि तो रिर के पास एक पानी की मररालकाय व्रस्था देखने को ममलेिी जो सभ्यता िाई टाइड से रायद रिर को बचाने के जलए कक िई व्रस्था िोिी क्ोंकक पुरातवि मरभाि ने उसे कक सी खेती के जलए बनाया िआ िो ऐसी कोई मनरानदेिी निीं देखी, जबकक व्ापार करने के जलए जिाज के अररर , स्ोन एंकर, और सील जरूर ममले जो आज भी रिां बने सरकारी म्युजजयम में देखने को ममल जाएं िे। पजरतियन जामत से संबंभधत ममले अंकन से संबंभधत सील से ये अनुमान सिज िी लिाया जा सकता ि कक संभरत व्ापाररक आदान-प्रदान के जलए उनका इस्माल ककया जाता रिा िोिा ,और एक " रेयरिाउस "का ममलना भी इस बात की पुकष्ट करता ि कक लोथल एक "व्ापाररक बंदरिाि " था। लोथल में ममले पुरातात्विक मिवि के अरररों से यि भी पाया िया कक रिां बेितरीन रिर बसा िोिा जिां से सीरर के जलए अलि से व्रस्था रिीं िोिी क्ोंकक 4 मीटर की ऊंचाई की दीरारें , चबूतरा सुमनयोजजत तरीके से सजा ममला। चौड़ी सड़क पर पानी के मनकास की उचचत व्रस्था रिां थी। ईटों का सिी रं ि -रूप, आकार प्रकार ,िर एक जैसा िोना, लोथल राजसयों के बेितरीन िणितीय ज्ान का िोना जसद्ध करता ि और बेितरीन कारीिरी की ममसाल भी। ईंटों पर पॉजलजरि के भी सुराि ममलते िैं। धातु के उपकरि , भार ,नापतोल के उपकरि ,सील र ििने ममट्ी के बत्वन आहद बित िी सलीके और उत्ष्ट कोकट के बने प्रतीत िोते िैं। कच् की खाड़ी में रंख और उससे बने उपकरि र आभूरिों का ममलना इस ओर संकेत देते ि कक र लोि व्ापार में सोने के जसक्ों सहित इनका भी बितायत से प्रयोि करते िोंिे। मनसंदेि लोथल ि ड़प्ा सभ्यता का एक मिविपूि्व कें द् रिा िोिा। बित संयममत जीरनरैली जीने राले सकक्रय और बुणद्धमान पूर्वजों की इस सभ्यता के आि िम नतमस्क िए निीं रि सकते। ककन् "लोथल" जिाँ आहदम युि के िमारे पूर्वजों के मनरान िैं,उस समय में भी उनके पास ककतनी दर दृकष्ट और कौरल था,पर मरश्व धरोिर िोने के बारजूद भी सरकारी उपेक्ा की जरकार िै। अनुराग्यम इस अनमोल मररासत को नमन करता ि और अपील करता ि कक पूर्वजों की इस भूमम का संरक्ि िो।
हसतशिलप पारुल शमत्तल गजरात म ववशभनि सथािों से उतपनि होि वाली एक िाििार कला और शिलप है। आपको प्रत्येक िहर के भीतर हसतशिलप की एक वविाल ववववधता शमल जाएगी। हम असीशमत ववववधताओं म भी शिलपकारों को ऊपर उठाि और शिलप के ला्यक सममाि िि के उदिे श्य से पारंपररक शिलप को िशमिा करि और िाशमल करि का प्र्यास कक्या है। गजरात के इि शिलपकारों से हम जो काम शमलता है, वह काबबले तारीफ है। जजि कलाकनत्यों ि परे िि म लोकवप्र्यता हाशसल की है उिम बंधिी, बीड वक्च , पटोला, हड बलॉक वप्रंदटंग, एमब्ा्यडरी, खट वक्च , जरी कम, शमरर वक्च और टाई एंड डाई आदि िाशमल ह। बंधेज ्या बंधिी के रूप म जािी जाि वाली टाई-डाई ड्स सामग्ी चोककडल जैसे पैटि्च म बिाई जाती है जजसम हाधथ्यों जैसे जािवरों के ज्याशमती्य डडजाइि और वप्रंट होते ह। हम असीशमत ववववधता म इस अदभत तकिीक का उप्योग करके क्छ हाथी, मोर आदि डडजाइिों के साथ संपण्च संग्ह दि्या है। गजरात मिके की कला म मादहर है और इसका उप्योग कपड़ों को सजाि के शलए कक्या जाता है क्योंकक ्यह इसकी अपील को बढ़ाता है। बीडवक्च का उप्योग हधगंग चकला, इंधोनिस, मंगल कलि, िारर्याल आदि बिाि के शलए भी कक्या जाता है। हमि अपि क्छ डडज़ाइिों म, ववववधताओं के असीशमत लेबल को बेहतरीि रूप िि के शलए बीडवक्च जोड़ा है। पटोला रे िम से बिी बिी हई साडड़्याँ ह जजिम डबल इकत रंगाई तकिीक का उप्योग करके बिाए गए पैटि्च होते ह। ्य गजरात म बिी बेहतरीि हाथ से बिी हई साडड़्यों म से एक ह। अहमिाबाि, गजरात
वर्ष : 2, अंक : 1 12 रास गरबा वाला िहर डॉ मीरा रामनिवास आई. पी. एस. (ररटा्यड्च), गांधीिगर, गजरात (संसकार िगरी वडोिरा) वड़ोिरा िहर की अपिी पहचाि, अपिी ठसक है जो इस िहर की संसकनत, कला, खाि-पाि और रहि-सहि म पण्चरूपेण झलकती है। ्यह
मंदिर, ्यवतेशवर महािेव, सवामी िारा्यण मंदिर, इसकॉि, अरवविो आश्म, वड़ोिरा वाशस्यों का आध्याजतमक पथ प्रिसत कर रहे ह। ्य िहर बरगि के पेड़ों की बहता्यत होि से बड़ौिा कहलाता था पर आज वड़ोिरा के िाम से प्रशसदध है। रडोदरा एयरपोट्व रोड
गजरात की संसकार िगरी है, जो शिक्ा, धाशम्चक और सामाजजक गनतववधध्यों के शलए अग्णी है। तलसी वववाह, रास गरबा, गणपनत ववसज्चि और ताजज्या से वड़ोिरा का हृि्य धड़कता है। िरशसंह
रास गरबा के शलए प्रशसदध वड़ोिरा का िाम धगिीज बक ऑफ वलड्च ररकॉड्च म िज्च है। वप्छले 31 साल से आ्योजजत ‘्यिाइटेड वे गरबा’ सववोत्तम गरबा है, जजसम एक साथ 25,000 लोग गरबा करते ह। गरबा खखलै्या ्यवक-्यवनत्यां परंपरागत, रंग-बबरंगे सिर पररधािों म सजजजत होकर जब गरबा खेलते ह तो ग्ाउंड की िोभा िेखते ही बिती है और 10,000 िि्चकगण गरबा िेखि का आिि उठाते ह। गा्यि मंडली कषण, राधा और गोवप्यों के वतांत पर गरबा गीत गाकर माहौल कषणम्य बिा िेती ह। गरबा के मध्यांतर म करीब 35,000 लोग ससवर मां अंबे की आरती गाकर गजरात के अंबाजी और पावागढ़ िजकतपीठों को गंजा्यमाि कर िेते ह। गरबा मैिाि म परी िौ रातों तक करीब 35,000 लोगों की उपजसथनत होि के बावजि कभी कोई अवप्र्य प्रसंग िहीं हआ। ऐनतहाशसक ववरासत साधारण पररवार के बालक को गा्यकवाड़ वंि ि गोि शल्या, जो महाि िासक स्याजीराव गा्यकवाड़ के िाम से प्रख्यात हआ। उनहोंि मदहला शिक्ा को निःिलक कक्या और महाराजा स्याजीराव ्यनिवशस्चटी की सथापिा की, जो वासतकला और फैकलटी ऑफ परफॉशमिंग आर्चस के शलए ववशवववख्यात है। िहर म लक्मी ववलास, मकरपरा व िजरबाग तीि महल ह। चांपािेर गेट, मांडवी गेट और गड़ी गेट सथापत्य के ऐनतहाशसक िमि ह। कमाटी बाग, सरसागर लेक, कीनत्च मंदिर जैसे िि्चिी्य सथल भी ह। िाशलग्ाम-तलसी वववाह की भशम िेवउठिी एकाििी को तलसी और भगवाि ववषण के िाशलग्ाम रूप के वववाह की परंपरा है और तलसी वववाह की िोभा निराली होती है। िरशसंहजी मंदिर से व वषण भगवाि की बारात िाम को गाजे-बाजे
रास गरबा का िगर
व्यंजि है, जो रगड़े के ऊपर आल, गाजर, प्याज, चटिी डालकर बिता है और चटकारे लेकर खा्या जाता है। तमतम भी खास व्यंजि है, जो धचवड़ा, बिी, सेव चिा आदि 26 फरसाणों {िमकीि} के शमश्ण
के साथ निकलती है। िलहे ववषण जी के िि्चिाथ्च िहरवासी सड़क ककिारे खड़े होते ह। बारात िहर की पररक्रमा करते हए मांडवी गेट और चांपािेर गेट से गजरती हई तलसी वाड़ी पहंचती है, जहां बारात का सवागत-सतकार कक्या जाता है। ववषण जी और तलसी का वववाह ववधधवत संपनि करा्या जाता है और ब्हममहत्च म ववषण जी िारशसंह मंदिर वापस लौट जाते ह। एक महल है ्यािों का लक्मी ववलास पैलेस से सिर ्याि जड़ी ह। ववशिषट अनतधथ्यों के वहां आि पर उिको हम ्यह महल अवश्य दिखाते ह। वड़ोिरा म मेरे उप- पशलस आ्यकत रहि के िौराि राषट्रपनत के. आर. िारा्यणि भी वहां पहंचे थे। लक्मी ववलास पैलेस बेहतरीि सांसकनतक का्य्चक्रमों का भी साक्ी रही है। तबला वािक जाककर हसैि, बांसरी वािक हररप्रसाि चौरशस्या, संतर वािक शिवकमार िमा्च जैसे ववशवववख्यात कलाकारों ि वहां लोगों
िाटक िेखे, जजिम बा ररटा्यर था्य ्छ की ्याि ताजा है। वड़ोिरा का आधनिक ववसतार अलकापरी है, जहां सरकारी अधधकारर्यों के आवास, सकक्च ट हाउस, िावपंग मॉल और एक सप्रेस, वैलकम जैसे होटल ह। अलकापरी म सवादिषट कलफी की एक िकाि थी, जहां हम पैिल जा्या करते थे। कमाटीबाग बहत वविाल बाग है, जहां िहरवासी ्छरटी के दिि बचचों के साथ वपकनिक का आिि लेि जाते ह। झील के इस पार सरसागर लेक िहर के मध्य म मख्य आकष्चण है, जजसम 120 फट ऊंची शिव की खड़ी हई प्रनतमा जसथत है। ्यहां गणपनत उतसव भी बहत श्दधा और भजकतपव्चक मिा्या जाता है। प्रनतमाओं
2001 के अपि का्य्चकाल िौराि के जब गणपनत ववसज्चि सरसागर लेक म कक्या जाता था तो लेक के चारों तरफ क्रेि लगी रहती थीं, जो रात भर गणपनत प्रनतमाओं को उठा कर पािी म ववसजज्चत करती
थे। सभी जलस मांडवी गेट से गजरते थे तो तलसी वववाह, गणपनत और ताजज्या के िौराि सभी पशलसवालों
थी। सेव उसल, तमतम, हांडवो का सवाि सेव उसल
से बिता है और शसफ्च वड़ोिरा िहर म ही शमलता है। हांडवो, खमण, फाफड़ा, जलेबी ्यहां के वप्र्य व्यंजि ह और ्य सट्रीट फड के मख्य आकष्चण ह। वड़ोिरा जेल के कैदि्यों के बिाए िालवड़े भी िहरवाशस्यों की खास पसंि ह। बशम्या बत्कमिास की िकाि के असली घी म बि बिी के लडड, मावे को भि कर बिा्य ग्य िलीराम के सवादिषट पेड़े और जगिीि के धचवड़े की भी ्यहां भारी मांग रहती है।
को मंत्मगध कक्या है। वड़ोिरा जसथत महातमा गांधी िार्य प्रेक्ागह म मि ि जाि ककति गजराती
की लंबाई, थीम और पंडाल की सजावट को लेकर आ्योजकों के बीच बड़ी सपधा्च रहती है। 1995 से
थीं। ककतिी भी रात हो जा्य पर समसत प्रनतमाओं के ववसज्चि के उपरांत ही हम घर वापस लौटते
की ड्यटी मांडवी गेट पर रहा करती
सथािी्य
पजशचम भारत का सिर-सरम्यी, मिोरम सोलह शसंगार है, िांनत, सौहाि्च , और प्रेम की होती सिा ररमखझम बौ्छार है.. रंग- उमंग, उतसाह, उललास का उतसव और त्यौहार है, प्रथम ज्योनतशलिंग सोमिाथ का अदववती्य अपव्च संसार है.. कषण कनहै्या की दवारका िगरी की गंजी ज्य- ज्यकार है, जगजििी मां जगिंबा का सिोशभत सिर ऊंचा िरबार है.. धम्च, अध्यातम, आसथा, श्दधा- भजकत से धरती सरोबार है, ज्य श्ी कषण - से होता सबका सिैव सवागत सतकार है.. वविाल कच्छ के सफे ि रण का फैला ववपल ववसतार है, ऊंचा - उनित, उतंग-उतकषट दृढ़ खड़ा धगररवर धगरिार है.. िम्चिा, साबरमती, मही और तापी की निझ्चर बहती धार है,
के सामि हरेक आपिा माि लेती हार है.. कम्चभशम गजरात की पावि धरा की मदहमा अपरंपार है, इस ्यिगाथा म कम पड़ जाती उपमाएं और अलंकार है.. ्य गवशीला, रंगीला, अलबेला गजरात मेरा गलज़ार है, भारत की पषपवादटका का मािो ्य सिर हरशसंगार है.. ऐसा कौि है भला जजसे गजरात से हआ िहीं प्यार है, गजरात की पण्य भशम! तझे सािर िमि औरआभार है।
समंिर, िरर्या, वि और पव्चतों किरती संपिा अपार ह साबरमती के संत का परम पावि सिोशभत आगार है, लौह परुष सरिार की चह ओर गंजती जहां ललकार है.. समनित सफल समदध होता वैजशवक वाखणज्य-व्यापार है, गजराती भाषा और सादहत्य की भव्यता जहां असरिार है.. िरशसंह- िम्चि, गोवध्चि-मििी, कलमवीरों की भरमार है, रंग कसंबी, रात रदढ्याली और जहां सौराषट्र की रसधार है.. ज्य - ज्य गरवी गजरात अि मेहता आचा्य्च, आणंि इंसटीर्यट आफ पी. जी सटडीज इि आर्चस आणंि, गजरात खाि-पाि, पहिावे की धम िि - वविि म परबहार है, जजसके पावि गरबे की धि पर मोदहत सारा संसार है.. ित्य-गीत-संगीत म आदििजकत का जहां होता िीिार है, सत्ी िजकत-सरक्ा और अजसमता हेत हर किम तै्यार है.. आज जजसके सिकत िेततव का लोहा माि रहा संसार है, बलंि हौसलों
वर्ष : 2, अंक : 1 16 आओ जाि गजरात को.. रमेि ठककर जी. ए. एस. (ररटा्यड्च), ओ. एस. डी. (टररजम), गजरात 1 मई 1960 को गजरात एक अलग राज्य बिा। इसकी पहली ईंट पज्य रवविंकर महाराज जैसे धम्चपरा्यण सेवक ि रखी थी... 18 अगसत 1960 को, पहली ववधािसभा बैठक शसववल असपताल अहमिाबाि पररसर म हई थी। मिभाई पालकीवाला का्य्चरत थे। अध्यक्..कल ववधा्यक थे 132..िरुआत म अहमिाबाि इसकी राजधािी बिी..डॉ जीवराज मेहता को पहले मख्यमंत्ी के रूप म चिा ग्या था..उिके मंबत्मंडल म 13 कैबबिेट और 8 उप मंत्ी थे.. दहतद् के िौराि गांधीिगर को 1971 ईसवी म राजधािी का िजा्च शमला था िेसाई का सम्य पकड़ा िरू म 17 जजले और 185 तालक थे.. आज 62 व जनमदिि पर गजरात परे िि म सभी क्त्ों म सबसे आगे है..
वर्ष : 2, अंक : 1 18 सीधपर, जजला पाटण 1kg - राजापुरी कच्चे आम 1kg - चीनी (रिर) एक चम्मच नमक एक चम्मच लाल ममच्व पाउडर एक चम्मच भुना जीरा पाउडर आधा चम्मच िल्ी आधा चम्मच काला नमक एक चौथाई चम्मच िींि कच्चे आम धोकर छील कर कद्कस कर लें, अब इसमें नमक, काला नमक और िल्ी डालकर अच्ी तरि से मसल कर ममक्स करें। पानी छूटने लि तो चीनी ममला लें उसे भी ठीक तरि से घुल जाने दें अब ये बत्वन िैस पर चढाकर पकने रख दें। बीच बीच में चलाते रि ताकक तलिटी में आम जलने न पाएं।जसम िैस पर लिभि आधे पौने घण् में एक तार की चारनी िोने तक पकाएं। अब िैस से िटा कर थोड़ा ठंडा िोने पर इसमें लाल ममच्व पाउडर जीरा पाउडर और िींि ममलाकर पूरी तरि ठंडा िोने पर कांच के बत्वन में मनकाल कर रख लें। नोट : िुजरात में इसे धूप में बनाया जाता ि जजसे बनने में १०-१२ हदन लि जाते िैं। ये छुंदा आप साल भर रख सकते ि ये रोटी पूरी, थेपला कक सी भी चीज के साथ खाने में बेिद स्वाहदष्ट लिता ि । कमला मलािी सामग्ी बनाने की मरभध
रे शसपी सभी सामग्ी को एक प्रांत में िाथ से मसलकर ममक्स कर लें रोटी के आटे की तरि पानी ममलाकर िूंथ लें। जजस प्रकार परांठे सेंकने ि दोनों तरफ घी लिाकर सुनिरे िोने तक धीमी आंच पर सेंक लें। ये थेपला चाय, द िी या छुंदा और अचार सभी के साथ अच् लिते िैं। ये बेिद स्वाहदष्ट िोते ि इसे आप सफर में भी ले जा सकते ि ये दो तीन हदन तक खराब निीं िोते िैं। दो कटोरी आटा आधा कटोरी बेसन एक कटोरी बारीक कटा मेथी पत्ता (कसूरी मेथी बारीक मसल कर डालें) एक चम्मच सफेद मतल एक चम्मच लाल ममच्व पाउडर आधा चम्मच अजरायन आधा चम्मच िल्ी नमक स्वादानुसार आधी कटोरी तेल मोयन के जलए सामग्ी बनाने की मरभध िुजराती “ थेपला ” (परांठे)
वर्ष : 2, अंक : 1 20 गजरात की कला प्रवीणा मदहचा धचत् शिक्क (केवी सेट वसत्ापर) अहमिाबाि, गजरात गजरात अपिी उत्तम कला के शलए ववशव म प्रशसदध है। गजरात की बांधिी, पटोला, रोगाि आट्च , मड एंड शमरर वक्च , माता िी प्छेडी, बिाई एवं कढ़ाई म एक लमबा परािा परंपरागत कलाओं का इनतहास है उतिा ही अजसततव आज भी बरकरार है। आज हम ्यहां पर गजरात की बांधिी एवं पटोला की बात करगे जो एक टाइ एंड डाई टे जकिक है। जजसे रजजसट तकिीक भी कहा जाता है।
बांधिी गजरात की बांधिी ्यह एक लोकवप्र्य टाई एंड डा्य की टे जकिक है, जजसम कपड़े पर डडजाइि बिाई जाती है, जजसे ्छोटी्छोटी गांठो से डडजाइि को बांधते ह एवं उसको रंगते ह, रंगाई के बाि उस गांठो को खोलि पर एक भव्य डडजाइि का कपड़ा तै्यार होता है। वह साड़ी, कतशी ्या सलवार कमीज की तरह हम बाजार म िेखते ह। पहले के जमाि म इसम प्राकनतक रंगों का उप्योग कक्या जाता था, जजसम मख्यत वे पीला, लाल, हरा, िीला एवं काला होता है। गजरात के पेठापर, मांडवी, अंजार, भज जैतपर, जामिगर एवं राजकोट िहर म इसका काम प्रमख होता है। बांधिी का मतलब बंधि म आिा जो संसकत िबि बंि से जड़ा है। इसम बंधि अलग-अलग रंगों से जड़े होते ह, सबसे पहलेपहले सफे ि रंग के बंि को बांधा जाता है, बाि म पीले को कफर लाल को साथ म िीला हरा बगिी जैसे ववववध रंगों का उप्योग कक्या जाता है। तोता, हाथी, गडड़्या, मोर, ज्योमैदट्रकल डडजाइि, फल पत्ती मखख्या डडजाइि के रूप म हम िेखि को शमलती है। पटोला पटोला ववशव म अपिी एक अिोखी पहचाि बिाए हए ह। पटोला टाइ एंड डाई की टे जकिक है, जजसे हम इकत के िाम से जािते ह। इककत एक बिाई कई टे जकिक है, जजसम धागों को बांधकर रंगा जाता है और डडजाइि बिाई जाती है जजसम शसंगल इकत एवं डबल इकत मख्य है। डबल निकट ्यािी तािा और बािा िोिों म धागों म एक ही डडजाइि को बिा्या जाता है, एवं रंगा जाता है और हाथसाल पर धागों को चढ़ा्या जाता है और
वर्ष : 2, अंक : 1 22 कफर उसे बिा जाता है, तािा और बािा िोिों की डडजाइि एक साथ शमलिी चादहए ्यह पाटि का पटोला डबल इकत म बिा जाता है। ्यह रे िम के धागों म बिा्या जाता है साथ म प्राकनतक रंगों का उप्योग कक्या जाता है कहा जाता है साड़ी फट जाएगी परंत रंग िहीं जाएंगे। पटोला 11वीं िताबिी म महाराषट्र की जालिा जजले से गजरात म आ्या। सोलंकी वंि के राजा कमारपाल ि पाटि िहर म पटोला बिवा्या जो मख्यत वे िाही पोिाक है। ्यह धि एवं ववशवास के साथ सवास्थ्य जिक भी है। ्यह साड़ी बिाि म करीब 6 से 7 महीि लगते ह जो पाटि िहर म सालवी पररवार दवारा बिा्या जाता है। साथ ही शसंगल इकत की सा ड़ी गजरात की सरद्िगर एवं राजकोट जजले म भी बिाई जाती है। जजसम ताि म डडजाइि होती है बािा शसंगल कलर का होता है ज जससे उसकी लागत कम होती है। पटोला िाम संसकत िबि परटकलला से शल्या ग्या है और ्यह पटोल िबि का बहवचि रूप है। पटोला म आमतौर अमत डडजाइि और जाशमत्य पेटनस्च होती है, हाथी, मािव
पत्ती) िवरति
डडजाइि
मख्य प्राकनतक रंग प्राकनतक ्यािी विसपनत जन्य रंगों का उप्योग कक्या ग्या है। जजसम कतथा, हलिी, रतिज्योंत, मजीठा, अिार के न्छलके, मेहं िी, गिा के फल, इंडडगो िील का रंग मख्य है।
आकनत्यां, कलि, फल पाि, तोता, शिखर एवं गजरात की वासतकला से प्रेररत डडजाइि प्रमख पाई जाती है। जजिका िाम क्छ इस तरह भी है िारी कंज (मदहला और हाथी की पैटि्च) पाि भात (पीपल की
भरट (चौकोर आकार की पैटि्च) रतिा चौक भरट जैसे ववववध
प्रमख ह। इिम
गजरात अदहंसा का मा ग्चििशी, जजसि दि्या गाँधी सा वरिाि है.. निरंकि सत्ता के ववरुदध असह्योग, गांधी की तपोभशम, भारत का माि है.. अिेकता म एकता का सत्, सरिार पटेल की सववोचच पहचाि है.. सत्य, िांनत, जसथरता का बत्भज, भारत की आि, बाि, िाि है.. ्यहाँ दवाररका कषण की राजधािी, कषण सिामा का शमलि सथाि है.. सबल, निब्चल की अदभत शमत्ता की, ्यह धरती अिम्य क्मता, ऊजा्च वाि है.. जैनि्यों के प्रमख तीथ्च सथल ्यहाँ, मां अमबा के िि्चि अनत पण्यवाि है.. सरत, अहमिाबाि से वाखणजज्यक कद्, कोदट कोदट जिों के जीवि प्राण है..
मोिी जी,
की
समचे ववशव मंच पर जजिका, निवव्चवाि िेता के रूप माि-सनमाि है.. गजरात अदहंसा का मा ग्चििशी रमाकांत िमा्च डांडेली, किा्चटक कच्छ के रण की िाि निराली, चारो तरफ फैली है खिहाली.. बाप की धरती है निराली, लौह परुष की जनमभशम है.. भारत की जो िाि है, बबि गजरात के अधरा दहनिसताि है.. गरबा डांडड्या पहचाि ्यहां की, सोमिाथ अशभमाि है.. सत्य अदहंसा की य़ह धरती, भारत की ्यह िाि है .. इसकी गाथा सागर गाता, खमि ढोकला सबको भाता.. मोरारजी, पटेल, बाप से लाल हए ह, मोिी से सपत बेशमसाल हए ह.. महावीर प्रसाि वैषणव सीकर, राजसथाि बेशमसाल गजरात
बदधध, वववेक, कम्च से मिीषी, है गव्च
गजरात
संताि है..
वर्ष : 2, अंक : 1 24 लौह परुष मीि बाला जालंधर, पंजाब जी हां बात गजरात की हो और इसके लौह पत् सरिार वललभभाई पटेल का जजक्र िा कक्या जाए तो क्छ अधरा ही लगेगा। चशलए आज हम ्याि करते ह राषट्री्य एकता के सत्धार सरिार वललभ भाई पटेल जी को जजनहोंि अपि अथक प्र्यास से बबखरे हए भारत को पिः एकता के सत् म वपरो्या था। उिका त्याग और बशलिाि आज भी हर भारती्य हृि्य म धधकता है। इिका जनम 31 अकटबर 1875 ई. म गजरात के िडड्याि म हआ था। लंिि जाकर इनहोंि अपि वकालत की पढ़ाई की थी। महातमा गांधी जी के ववचारों से ्यह बहत प्रेररत थे इसीशलए उनहोंि सवतंत्ता संग्ाम म बढ़ चढ़कर भाग शल्या। (सरिार वललभभाई पटेल)
सन 1928 के बारदोली सत्याग्ि में कक सान आंदोलन का नेतवि अपने आप में एक ममसाल िै। जब प्रांतीय सरकार ने कक सानों पर 30 फीसदी लिान की रणद्ध कर दी थी तो कक सान बित परे रान िए, उस समय सरदार रल्भभाई पटेल एक प्रमुख क्रांमतकारी के रूप में आि आए उन्ोंने इस का सख्त मररोध ककया । प्रांतीय सरकार ने इस मररोध को दबाने का बित प्रयास ककया लेककन इनकी दृढता के आि उन को झुकना पड़ा और लिान 30 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी कर हदया। इनकी बिादरी को देख कर िी उस प्रांत की महिलाओं ने इनको "सरदार" की उपाभध दी। इसके साथ िी अपनी दृढ इच्ा रगक्त एर नेतवि के कौरल से स्वतंत्रता के पचिात 600 देरी ररयासतों का भारतीय संघ में मरलय कर राष्टीय एकता को स्थाकपत ककया । अपने आप में यि एक बित बड़ा सरािनीय काय्व था। अपने इसी मिान काय्व के जलए इन् "लौि पुरुर " की उपाभध भी दी िई। अहिंसा के बारे में उनके बड़े व्रिाररादी मरचार थे उनका मानना था जो लोि तलरार चलाना जानते िए भी अपनी तलरार म्यान में रखते ि रिी सच्चे मायने में सच्चे अहिंसारादी िैं। भारत की मरभभन्ताओं को लेकर िए टकरार एर संघर पर अक्सर उनके द्ारा लोिों को यि संदेर देते सुना जाता था"यि िर एक नािररक की जजम्मेदारी ि कक रि यि अनुभर करें कक उसका देर स्वतंत्र ि और उसकी स्वतंत्र स्वतंत्रता की रक्ा करना उसका कत्वव् ि िर एक भारतीय को यि भूल जाना चाहिए कक रि एक राजपूत िै, एक जसख या जाट ि उसे यि याद िोना चाहिए कक रि एक भारतीय ि और उसे इस देर में िर अभधकार ि और कुछ जजम्मेदाररयां भी िैं।" उनकी आभथतिक एर मरदेर नीमतयों से सभी बित प्रभामरत थे। इसके संबंध में अनेक पुस्कें भी जलखी िई जो आज भी बुणद्धजीमरयों का माि्वदरन करती ि मिान एर प्रजसद्ध व्गक्तवि के िोते िए भी रि सादा जीरन व्तीत करते थे। किा जाता ि कक उनके पास खुद का कोई अपना मकान निीं था। अिमदाबाद में रि कक राए के मकान में रिते थे। उन्ोंने 15 हदसंबर सन 1950 में अपनी अंमतम सांसे ली थी। मरिोपरांत उन् भारत के सरवोच्च सम्मान "भारत रत् " से भी सम्मामनत ककया िया । आज बेरक में रि िमारे बीच निीं रिे। लेककन उनका राष्टीय एकता का जो संदेर ि रि सदा िमारे हदलों में रििा। "स्चू ऑफ यूमनटी" इसका साक्ात प्रमाि िै। यि िमारे भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री एर प्रथम िि मंत्री रल्भ भाई पटेल जी को समकपतित एक मिारक ि जो भारतीय राज्य िुजरात में स्स्थत िै। इसका जरलान्यास िुजरात के तत्ालीन मुख्यमंत्री नरें द् मोदी जी ने 31 अक्बर 2013 को उनके जन्म हदरस के उपलक्ष्य पर ककया था। इसे बनने में पूरे 5 साल लिे। सन 2018 में जाकर यि अप्रमतम काय्व पूरा िआ। यि मरश्व की सबसे ऊंची प्रमतमा मानी जाती िै। आज बेरक सरदार रल्भभाई पटेल िमारे बीच निीं रि लेककन उनका राष्टीय एकता का जो संदेर ि रि सदा िमारे हदलों में रििा। रि एक सच्चे राष्टभक्त थे। उन्ोंने अपने देर की राष्टीय एकता एर अखंडता के जलए कभी झुकना निीं सीखा। उनका यि मानना था" िमारे देर में अनेक धम्व एर अनेक भाराएं ि लेककन िमारी संस्मत एक िी ि और इसे बनाए रखना िमारे अखंड भारत का सपना िै। "आरा करती ि कक उनका हदया संदेर िम कभी निीं भूलेंि और उनके अखंड भारत के सपने को अरश्य साकार करें िे। 31 अक्बर को "राष्टीय एकता हदरस" मना लेना उनके प्रमत एकमात्र श्द्धांजजल निीं बस्कि उनके अखंड भारत के संदेर को व्रिार में लाना िी सच्ची श्द्धांजजल िोिी।
वर्ष : 2, अंक : 1 26 वविीता पंढीर, निििक, अिराग्यम हजारों वषषों से आ्यवि हम सभी को सवसथ जीवि की राह दिखा रहा है। प्राचीि भारत म आ्यवि को ही रोगों के उपचार और सवसथ जीवि िैली व्यतीत करि का सववोत्तम तरीकों म से एक मािा जाता था और आज भी अच्छे सवास्थ्य को बिाए रखि के महतव के कारण, हमि आधनिक ववशव म भी आ्यवि के शसदधांतों और अवधारणाओं का उप्योग करिा िहीं ्छोड़ा है, पर हम कहीं िा कहीं भल कर रहे ह आ्यवि को िज़रअंिाज़ करके। इसम जड़ी बदट सदहत अन्य प्राकनतक चीजों से उतपाि, िवा और रोजमरा्च के जीवि म इसतेमाल होि वाले पिाथ्च तै्यार ककए जाते ह। ्य एक ऐसी पदधनत इसतेमाल से जीवि सखी, तिाव मकत और रोग मकत बिता है। बीते 75 साल से ‘केरल आ्यवि’ भी आ्यवि पर आधाररत सामाि उपलबध करा लोगों के जीवि को सगम बिाि का काम कर रहा है। आ्यवि व प्राकनतक चीज़ों से जड़ी निरोगी का्या
आपकी अच्ी सेित, स्वस्थ रिन-सिन और स्वस्थ जीरन- रैली का ममश्ि िै। चुस् र तंदरुस् रिने के जलए व्गक्त के रारीररक स्वास्थ्य के साथ िी मानजसक स्वास्थ्य का भी स्वस्थ रिना आरश्यक िै। िमें रारीररक रुप से स्वस्थ रिने के जलए मनयममत स्वास्थ्यरध्वक भोजन करना चाहिए और रारीररक व्ायाम करना चाहिए िालांकक, िमें मानजसक रुप से स्वस्थ रिने के जलए सकारात्मक सोचने की आरश्यकता िोती िै, िम अत्यभधक तनारग्स् ना रिें। जीरन की मररर पूँजी ि 'मनरोिी काया' और िम अक्सर अपनी व्स्ताओं के चलते अक्सर अपना स्वास्थ्य दरककनार कर देते िैं, जो कक ठीक निीं िै। अनुराग्यम कलायात्रा पकत्रका के माध्यम से आपके साथ मैं ऐसे आसान सुझार साझा करना चाििी जजनको उपयोि में लाकर आप अपने स्वास्थय को और अभधक फु ततीला र सेितमंद बना सकते िैं, कुछ ऐसी बातें िैं, जजन् िम पीछे छोड़ आि बढ तो रि िैं, पर िम में से अभधकतम लोि कक सी ना कक सी रारीररक या मानजसक परे रानी से जूझ रि िैं। िमारे घर में, रसोई में, छत पर लि पौधों में, आसपास के पाक्व या बािरानी में आपको ककतनी चीज ऐसी ममल जाएं िी, जजन पर िमारा ध्यान भी निीं जाता और जो िमारे ररीर के जलए रामबाि का काम करती िैं। सबसे पिला काम स्वयं से रुरू करते िैं, आप कभी स्वयं को मिसूस कीजजये, मन को टटोजलए, आप किीं तनार में या कक सी पीड़ा में तो निीं िै, तो सबसे पिले उस तनार से खुद को आजाद कीजजये। तनार के मनकलते िी आप अब ममजलए खुद से, एक नई ऊजजा का संचार िोिा, मरचारों में सकारात्मकता को जिि दीजजये। देखा, आपने कैसे स्वयं को रोक रखा था, आप िमेरा िी तरो-ताजा मिसूस करें िे। अपनी नींद के बारे में सोचा ि कभी, हदन के 24 घंटे में आप ककतनी देर सोते िैं, मानजसक स्वास्थ्य के जलए भरपूर नींद लेना भी अमनराय्व िै। चलते कफ रते ररीर को और अभधक ऊजजारान बनाने के जलए राित के पल देने िी चाहिए। तंदरुस् ररीर के जलए मनयममत रूप से व्ायाम, योिा, ध्यान जैसी िमतमरभधयों का भी पालन करना आरश्यक िै। इन सबके साथ िी संतुजलत र स्वस्थ आिार का भी खास ख्याल रखना चाहिए। बेरक समय की कमी के कारि ऑनलाइन फूड आड्वर करना बित आसान िो िया िै, लेककन इस सुमरधा के साथ ये िमारे स्वास्थ्य के जलए घातक भी िो सकते िैं। ये सब बातें बित छोटी िैं, पर सोचा जाए तो िमारी दैमनक हदनचयजा का आधार िम स्वयं िी बना चुके िैं, इस रजि से िी कम उम्र में भी बीमाररयों का आिमन िोने लिा िै। छोटे छोटे बच्चों को नजर का चश्ा , बालों में सफेदी, सिी तरीके से ररीर का मरकास ना िोना, अमनयममत रिर और बी पी और भी अनेक ऐसे रोि ि जजनसे िर तीसरा व्गक्त जूझ रिा िै। बित कुछ ऐसा िै, जजनका मनयममत रूप से पालन ककया जाए, तो िम रारीररक समस्ाओं से बच सकते ि और सब आपके आसपास िै, बस जरूरत ि तो जसफ्व ध्यान देने की। अमूमन िल्ी तो िर कक सी की रसोई में िोती िै, बस एक गिलास दध में थोड़ी सी िल्ी ममलाकर पी लीजजए और घर में सबको कपलाइये, िल्ी में आंतररक क्मता बढाने की असीममत क्मता तो िोती िी ि बस्कि साथ िी ररीर के कक सी भी दद्व को ठीक भी कर देती िै। िरम पानी में तुलसी का अक्व डालकर पीने से सदती , खांसी में आराम ममलता िै, बच्चे - बड़ सभी पी सकते िैं। एलोरेरा का प्रयोि भी विचा और बालों की ख़ूबसूरती के साथ स्वास्थ्यरद्ध्वक भी िै, मसाले िी लीजजये, उनका उचचत उपयोि भोजन में जायके के साथ साथ ररीर के जलए मरभभन् रूपों में लाभदायी िोता िै। ऐसे िी अनेक जड़ी-बूकटयां र प्राकमतक चीज िैं, जो िमारे स्वस्थ जीरन का आधार िैं। प्रकमत ने अनगिनत नायाब तोिफ हदए िैं, प्राकमतक पदाथथों को उपयोि अपनी आदतों में रुमार करें और घर के सभी सदस्ों र अपने सभी जानकारों जािरूक करें, ताकक सभी को ममले एक स्वस्थ जीरन र स्वस्थ मानजसकता।
वर्ष : 2, अंक : 1 28 रि आफ कच्छ और पतंगोतसव डॉ. ध्व नतवारी रा्यपर, ्छतीसगढ़ रंग बबरंगी पतंगों से पटे आकाि को िेखि का मि ककसका िहीं करेगा। स्य्च िेव के उत्तरा्यण होते ही भारत के एक प्रांत के उत्तर पवशी दहससे म आप 14 जिवरी को अभतपव्च दृश्य िेख सकते ह। ्यहाँ िि के कक िहीं ववििी सैलािी भी आििम्य इस आ्योजि का रसपाि करि को चले आते ह। इस महाि उतसव का िाम “रि ऑफ कच्छ पतंगोतसव“ है जो गजरात प्रांत के रे धगसतािी इलाके म जिवरी के महीि म िेखा जा सकता है रि ऑफ कच्छ महोतसव म रंग-बबरंगी पतंगों का आकाि म उड़ािा और कफर आपसी प्रनतदवंदववता की सिर झलकक्याँ मि को रोमांच से भर िेती ह।
रंग बबरंगी पतंगों से पटे आकाि को िेखि का मि ककसका िहीं करेगा। स्य्च िेव के उत्तरा्यण होते ही भारत के एक प्रांत के उत्तर पवशी दहससे म आप 14 जिवरी को अभतपव्च दृश्य िेख सकते ह। ्यहाँ िि के कक िहीं ववििी सैलािी भी आििम्य इस आ्योजि का रसपाि करि को चले आते ह। इस महाि उतसव का िाम “रि ऑफ कच्छ पतंगोतसव “है जो गजरात प्रांत के रे धगसतािी इलाके म जिवरी के महीि म िेखा जा सकता है रि ऑफ कच्छ महोतसव म रंग-बबरंगी पतंगों का आकाि म उड़ािा और कफर आपसी प्रनतदवंदववता की सिर झलकक्याँ मि को रोमांच से भर िेती ह। पतंगों का इनतहास अत्यंत प्राचीि है और उसी परंपरा का निवा्चह गजरात म मकर सक्रांनत के सम्य पर कक्या जाता है इस सम्य ्यहां गजरात की सांसकनतक व कलातमक गनतववधध्यों को भी िेखि का अवसर शमलता है लगभग 38 दििों तक चले इस उतसव म चांििी रात म गजराती गरबा ित्य म गजराती थाली का रसासवािि आप एक साथ कर सकते ह।
वर्ष : 2, अंक : 1 30 रण उतसव अरब सागर से नघरे सफे ि रे धगसताि म आ्योजजत होता है, जजसका महतव भौगोशलक पररवत्चि के कारण प्रमख है। ऐसा मािा जाता है कक लगातार आए भकंप की वजह से अरब सागर का क्छ भाग अपि तल से काफी ऊंचा हो ग्या होगा, और सम्य के साथ-साथ समद् के खारे पािी ि िल -िल का सवरूप लेकर एक वीराि रे धगसताि को जनम दि्या होगा। िनि्या का ्यह सबसे बड़ा सफे ि रे धगसताि है जो करीब 30000 वग्च मील तक फैला हआ है इसीशलए कच्छ के क्ेत् को िमक का रे धगसताि कहते ह जो चांििी रात म िधध्या दिखाई िेता है। मािो ज़मीि ि चांिी ओढ़ ली हो और िर तक शसफ्च सफे िी फैली दिखाई िेती है। ्य तो रे धगसताि को हम भरे रंग की रेत से जािते ह पर गजरात का रे धगसताि सफे ि आभा से आच्छादित बहत ही सिर जाि पड़ता है। वहाँ ककतिी भी िर तक आप जाएं ककसी कीड़े मकोड़े को आप िहीं पाते क्योंकक िमकीि जलवा्य म वे पिप ही िहीं पाते। प्य्चटकों के शलए बिाए रि ऑफ कच्छ के क्छ प्रमख बबिओं म एक जगह ऊंचाई से िर तक फैले सफे ि रे धगसताि का आिि दिखाि के शलए जो टावर बिा्या ग्या वह िमक के रासा्यनिक प्रकक्र्या से बि NHCL का रासा्यनिक रूप के आकार म बिाकर इंजीनि्यरस ि सबका मि मोह शल्या है। प्य्चटि के रूप म क्ेत् का ववकास करि से
ववििों म भी ्यह जगह काफी लोकवप्र्य हई है क्योंकक दिि म पतंगबाजी और रात को सांसकनतक संध्या का आिि लेते हए प्य्चटक ्यहां टट म रहि के रोमांच को भी अिभव करते ह। “शलपपि लोक- कला” से ससजजजत टट के प्रांगण म खड़े प्य्चटक आतममगध हो वहाँ की कला से आतमसात होते रहते ह। भज के पास हमीरपर लेक के ककिारे आ्योजजत कारनि्चवाल की सैर से प्य्चटक ्यहांँ की संसकनत को समझते ह। ्यहां के कबड़ वाले ऊंट जजसे “खारोई” िाम से जािा जाता है कक सैर करिा मि को आिंदित करता है। ्यहां भजोड़ी िामक गांव है जहां के लगभग 1200 “वािकर” समिा्य शिलपकार ्यहाँ रहते ह। ्य लोग कपड़ा और हसतशिलप के शलए प्रशसदध ह। कच्छ की कढ़ाई,व बलॉक वप्रंट ववशव प्रशसदध ह। कच्छ म बाजरी व गड़ का खाि म बहता्यत से प्र्योग कक्या जाता है। ्यहीं रेबारी, अरी, अहीर, मतवा और बनिी समिा्यों दवारा बिाए कच्छ की कड़ाही जजसम कांच का इसतेमाल होता है भारत म कहीं और इतिा उतकषट का्य्च िेखि को िहीं शमलेगा। लौटते- लौटते वहाँ की पलेट म िी गई चा्य का अदभत सवाि और एक अिोखी सी मोटरसाइककल से बिी सवारी गाड़ी की सिरता को िेखे बबिा रि ऑफ कच्छ की ्यात्ा अधरी है।
वर्ष : 2, अंक : 1 32
ममलो मेरे िुजरात से
आकष्चक, मिमोहक, िाििार मेरा गजरात, चार धाम म एक धाम दवारका है गजरातl प्रथम अलौककक ज्योनतशलिंग सोमिाथ गजरात, ‘पजशचम का गहिा’ िेखो घमलो गजरातl सतपड़ा, गांधीिगर, चंपािेर िेखों गजरात, थककर अमल कल पीओ, सबको पीलाता है गजरातl गज्चरों ि िाम दि्या, सवा िेर गजरात, िमक उतपािक, अधधक िककर खाता, मीठा है गजरातl हररत राजधािी एशि्या खंड की
िलपतराम से शमल लो िरशसंह मेहता है ग जरात, ्योगेशवर, राजद् से शमलो सादहत्य की भशम गजरातl खाि म मत प्छो क्या, ववशव प्रथम डोशमिोज गजरात, लार टपकाता प्रथम वपज़ज़ा हट बसा मेरे गजरातl
खांडवी, खमि, खाखरा खालो तम मेरे गजरात, िाबेली, फापड़ा, पात्ा शमलता है मेरे गजरातl
सवच्छ, समप्चण त्याग की भशम है मेरी गजरात, िेर दिल है िेर पालती पर िाकाहारी गजरातl खंड खंड भारत को जोड़ा लौह परुष मेरे गजरात, गनत दिलाि ववशव पटल पर हर हर मोिी है गजरातl
मोहिजोिड़ो का कद् रही है ज्य ज्य गरवी गजरात, वविेशि्यों के व्यापारी्यों का कद् रही गजरातl 17 ए्यरपोट्च राज्य म, प्रथम पोट्च गजरात, 17000 होटल के माशलक, अमेररका म गजरातl अडािी, अंबािी, प्रेमजी, मद्ा खिके है गजरात, िाि पण्य म सबसे आगे अववसमरणी्य ्याि मंज िमा्च सरत, गजरात है
गांधीिगर गजरात, ववशव पटल पर चमचमाती डा्यमंड शसटी ह गजरातl
मेरा गजरातl िम्चि,
वर्ष : 2, अंक : 1 34 ए्यरफोस्च मककारपर, वडोिरा, गजरात िीतल िमा्च रे शसपी कढाई में एक लीटर तेल डालें और उसे मध्यम आँच पर िरम िोने दें। तब तक मुहठया का आटा तैयार कर लें। बेसन में बारीक कटे िए मैथी और मूली के पत्ते डालें। इसमें स्वाद अनुसार मसाले डाल लें। अब इसमें तेल डालकर धीरे धीरे पानी डालें और आटा िूंथ लें। अब इस ममश्ि को िाथ में लेकर मुठ्ी में बंद कर मुहठयाँ बना लें और आखखर में इसमें कांटे की मदद से िर तरफ छेद कर दें ताकक रि अच् से जसक जाए। तैयार मुहठयाँ को िरम िए तेल में िकिा भूरा िोने तक सेक लें। जसकने पर इन् कढाई से मनकालकर कक सी थाली में अलि रख लें। िरर मैथी - 100 g मूली के पत्ते - 100 g बेसन - 300 g मतल - 1 बड़ा चम्मच लाल ममचती पाउडर नामक धमनया पाउडर िल्ी िींि मोइन के जलए तेल मुहठया `सामग्ी बनाने की मरभध
मुहठया सुरन आलू रकरकंद कच्चा केला िरर मैथी सेम फली बीन्स बलोर छोटी पपड़ी (फली) मटर मूली के पत्ते ऊं भधयो सामग्ी मूंिफली दाना पालक उं भधया मसाला मतल िरर ममचती नाररयल पाउडर नामक तेल सारी सब्जियों को चौकोर काट कर मुहठयाँ के जलए जलए िए तेल में तल लें। इसी में से थोड़ा सा तेल लेकर कुकर में डालें, इसमें िींि , िरर ममचती , जीरा, नामक, िल्ी और थोड़ी से पानी डालें और इसमें सारी बीन्स और
को
लें और एक
लें। उं भधये कक ग्ेरी के जलए रिी मुहठए राला तेल लेकर उसमें िरर ममच्व, अदरक का पेस् , नाररयल पाउडर, कपसी िई मूंिफली, बारीक कटी िई मैथी और पालक डालकर इसे एक बार चला लें अजर कफ र इसमें करीब 100 g उं भधया मसाला डालें। ऊपर से नामक, लाल ममच्व, िरा धमनया डालकर ममश्ि को अच् से चला कर कढाई से मनकाल लें। कढाई में अब मुहठए के जलए जलया िआ 1 छोटा चम्मच तेल लें और उसमें डालें िींि , िरर ममच्व, कड़ी पत्ता। इसके ऊपर तली िई सब्ज़ियों की एक एक परत डालें, उसके ऊपर तैयार की िई ग्ेरी और मुहठया डालें। आखखर में बित ध्यान से इस सब को कढाई के अंदर िी ममक्स कर लें। आपका उं भधया तैयार िै। बनाने की मरभध
छोटी पापड़ी
छोंक
सीटी
वर्ष : 2, अंक : 1 36 गजरात की पारंपररक वेषभषा रीता खरे मंबई, महाराषट्र महिलाओं की पोराक - िुजरात की महिलाएं चमनया चोली या घाघरा चोली पिनती िैं। चोली एक प्रकार का ब्ाउज और चमनया एक स्ट्व जैसा रस्त्र िोता िै। जजसके साथ जोड़ों, चोली या कु तजा पिना जा सकता िै। इसके साथ ओढनी ( दपट्ा ) भी डालती िैं। महिलाएं चोली के बजाय एक प्रकार का कु तजा भी पिनती ि जजसे झोबो भी किा जाता िै। इसके अलारा महिलाएं साड़ी भी पिनती िैं। परन् अब आधुमनकता के चलते उन्ोंने सलरार कमीज भी पिनना रुरू कर हदया िै। महिलाएं एक मररर प्रकार की चोली पिनती ि जजसे आभा या कंजरी किा जाता िै. आभा ब्ाउज रीर के काम और सोने और चांदी के धाि के काम से बनाया जाता िै। ्य तो आजकल सभी जगह सभी लोग लोग सब क्छ पहिते ह। परनत सभी जगह की एक पारंपररक पहिावा होता है। जजसे लोग खास उतसवों और त्यौहारों म पहिते ह। जजसम गजरात की पारंपररक पहिावा और पोिाक इस प्रकार ह।
पुरूरों की पोराक िुजरात में पुरुर कु तजा और धोती पिनते िैं। जजसे के कडयो और चोनवो किा जाता िै। चोनवो एक प्रकार का सूती पैंट िोता िै। यि जसली िई धोती की तरि हदखाई देता ै। के कडयो फ्ाक की तरि का कु तजा िोता भी किा जाता िै। पुरूर सर पर पिड़ी भी प फेंटो किा जाता िै, यि ज्यादातर िांर में र पिनते िैं। िरबा पोराक िुजरात में सबसे ज्यादा धूमधाम से िरबा म जाता िै। िरबा जोड़ी में ककया जाने राला लोकन नररात्र, उत्सरों या रादी के मौके पर कक उत्सर में ज्यादातर इसी तरि के पररधान प देते ि िुजराती लोि। इसमें महिला चमनया चोली या घाघरा चोली पिनती िैं। साथ में रं िीन कमरबंद अलारा दपट् को उड़ने से रोकने के जल के ऊपर बांधा जाता िै। और पुरुर के कड पाजामा पिनते िैं। के कडयो लंबा सा फ् कोट िोता िै। रादी मरराि की पो रादी के मौके पर पिने जाने राली पो दल्हन रादी समारोि के जलए साड़ी प ‘पानेतर’ साड़ी या ‘घरचोला’ िो सकती सफेद साड़ी ि जजसमें लाल बांभधनी बॉ िै. घारचोला एक पारंपररक लाल बांभधनी सा चारों ओर बुने िए चकोर पैटन्व िोते िैं। दल्हा एक कडजाइन राला कु तजा पिनता या जरी का काम िोता िै. इसके अलारा धोती और पिड़ी िोती िै। िालांकक, आजकल दल्हे धोती के बजाय कु त नीचे चूड़ीदार पिनने लि िैं।
वर्ष : 2, अंक : 1 38 रािी की वाव भारत के गजरात राज्य के पाटण म जसथत प्रशसदध बावड़ी (सीढ़ीिार कआँ) है। इस धचत् को जलाई 2018 म RBI (भारती्य ररज़व्च बक) दवारा ₹100 के िोट पर धचबत्त कक्या ग्या है तथा 22 जि 2014 को इसे ्यिेसको के ववशव ववरासत सथल म सजममशलत कक्या ग्या। रानी की रार पाटण को पहले ‘अजनहलपर’ के िाम से जािा जाता था, जो गजरात की पव्च राजधािी थी। कहते ह कक रािी की वाव (बावड़ी) वष्च 1063 म सोलंकी िासि के राजा भीमिेव प्रथम की प्रेशमल समनत म उिकी पतिी रािी उि्यामनत ि बिवा्या था। रािी उि्यमनत जिागढ़ के चड़ासमा िासक रा’ खगार(खंगार) की पत्ी थीं। सोलंकी राजवंि के संसथापक मलराज थे। सीढ़ी ्यकत बावड़ी म कभी सरसवती ििी के जल के कारण गाि भर ग्या था। ्यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। ्यह भारत म अपिी तरह का अिठा वाव है। वाव के खंभे सोलंकी वंि और उिके वासतकला के चमतकार के सम्य म ले जाते ह। वाव की िीवारों और सतंभों पर अधधकांि िककाशि्यां, राम, वामि, मदहषासरमदि्चिी, कजलक, आदि जैसे अवतारों के ववशभनि रूपों म भगवाि ववषण को समवप्चत ह।
साभारमर क क पी कड या
वर्ष : 2, अंक : 1 40 डॉ गलाब चंि पटेल गांधी िगर, गजरात गजरात राज्य की सथापिा 1 मई 1960 मे हई थी। इससे पहले महाराषट्र राज्य के साथ जड़ा हआ था। आज गजरात राज्य के 33 जजले है। गजरात के कल शमलाकर २५२ तहसील है। गांवो की संख्या 18618 है और कल शमलकर 22 िहर है। गजरात राज्य की जिसंख्या 2013 के अंतग्चत 6.27 करोड़ है गजरात के लोग ि्याल और उिार होते है। गजरात मे बहत सारे धाशम्चक सथाि आए ह्य है। प्रमख धम्च सथाि इस तरह है। गजरात के सरत िहर मे हीरा उद्योग ववकशसत है। डा्यमंड की निकष वविि मे ज्यािा होती है, ्यहाँ की केसर केरी प्रशसदध है। गजरात मे बड़े िहरो मे मेट्रो ट्रेि की सववधा बड़े पैमाि पर होि लगी है। ्यहा के रोड रासते बहत ही अच्छे है। भारत का मॉडल सटे ट धगिा जाता है। म भी कहगा अशमताभ बचचि की तरह की एक बार गजरात की मलाक़ात जरूर लेिा है। एक बार तो गजरात पधाररए। हमारा गजरात
द्ाररका जो भिरान कष्ण की निरी किी जाती थी। किा जाता ि कक रो सोने की निरी थी। कालक्रम रो दररया मे डूब िई। द्ाररकाधीर का मंहदर 72 स्म्भ द्ारा समकपतित 5 मंजजला इमारत िै। पुरातात्विक के अनुसार ये 2300-2500 साल पुराना िै। द्ाररका मंहदर ये पुकष्ट माि्व मंहदर िै। द्ारका रिर का इमतिास सहदयो पुराना िै। इसका उल्ख मिा भारत मिाकाव् मे ममलता िै। िोमती नदी के तट पर रीट िै। मंहदर का ऊपर का ध्वज सूरज और चंद्मा हदखाता िै। यि माना जाता ि की कष्ण तब तक रिि जब तक पथ्ी पर मौजूद, सूय्व चन्द्र मौजूद रििे। दसरा ि सोमनाथ मंहदर अत्यंत रैभरराली िोने से इसे कई बार तोड़ तथा पुनः मनममतित ककया िया िै। ये मंहदर भिरान जरर के बारि ज्योमतजलि मे से एक गिना जाता िै। इसे 17 बार नष्ट ककया िया िै। सोमनाथ मंहदर को रर 1024 मे मिमूद िजनमर ने तिस निस कर हदया था। कफ र भी ये मंहदर बरकरार िै, अरब सािर के तट बने इस मंहदर का उल्ख स्न्द पुराि मे ममलता िै। श्ीमद भिरद िीता और जरर पुराि ग्थो मे उसका उल्ख ममलता िै। मिाकाली मंहदर जजसका अभी जजरनोधधर िआ ि और अभी अदरिीय प्रधान मंत्री श्ी नरें द् मोडीजी ने उदघाटन ककया िै। ये मंहदर पंचमिाल जजले मे स्स्थत िै। ये हिन्द देरी का मंहदर िै। रडोदरा से िलोल नजदीक िै। मंहदर मे तीन छमरया िै, काजलका माता की छमर केंद्ीय मे, दाई ओर काली और बाई ओर बिचर माता की छमर िै। ये मंहदर एकारन रगक्त पीठो मे गिना जाता िै। 18 जून को मोदीजी की माँ का जन्म हदन िै। इनिोने ये मंहदर पर 500 साल बाद पताका फिराया िै.कई सालो से मंहदर का जरखर खंकडत था। ये मंहदर सोने से मढा िआ िै। 150 मे मुिल बाद राि मोिमद बेिड़ा ने मंहदर पर आक्रमि ककया था और पारािढ खंकडत ककया िया था। मंहदर की ऊपर मे इसने सदनरि पीर की दरिाि भी बना हदया था। उसे िटकर अभी मंहदर को नया रूप दे हदया िै। एक साथ तकरीबन्द 2000 श्द्धालु दरन कर सकते िै। जिा पर एक साथ 500 श्द्धालु भोजन कर सकते िै। िरबा िुजरात का लोक नत्य िै। नरराकत्र मे नौ हदन िरबे खेले जाते िै। रानाडे और लोरी िीत िुजरात के संिीत िै। िुजरात पजचिम भारत का ििना किा जाता िै। ये अनूठा और समद्ध राज्य िै। भारतीय स्वत्रंता आंदोलन दौरान राजकीय चढार उतार भी रिा िै। मिात्मा िांधीजी की भूमम िै। जजन् राष्टकपता के नाम से जाना जाता िै। सरदार रल्भभई और मिात्मा िांधी एर साहित्यकारो ने भी आजादी के जलए अपना मिवि पूि्व योिदान हदया िै। िुजरात मे हिन्दी संस्त, िुजराती सुरमत चरोटरी कहठयाराडी भारा बोली जाती िै। अंतरजाष्टीय पतंि मिोत्सर मकर सक्रांमत मे यिा मनाया जाता िै। कच् मिोत्सर राकरतिक रूप से पय्वटन मरभाि की और से िर साल मनाया जाता िै। िुजरात की राजधानी िांधीनिर िै, जिा िम स्स्थत िै। उतरी िुजरात मे अंबाजी माता सुप्रजसद्ध मंहदर िै। बनासकांठा जजले मे स्स्थत िै। साबर कांठा जजले मे रामलाजी का प्रख्यात पौराणिक मंहदर िै। अंबाजी मंहदर एकयारन रगक्त पीठो मे से एक िै। राजस्थान की सीमा ररती आरसुर पर्वत की टेकरी पर 1600कफट ऊपर स्स्थत िै। इस मंहदर मे कोई मूमत निीं ि ककन् रीसायंत्र की पूजा िोती िै। अंबाजी माता का मूल स्थान िब्बर पर्वत पर िै। भादों मास की पूणितिमा को यिा दरन का बड़ा मिवि िै। लोि पैदल मंहदर दर दर से दरन के जलए आते िै। यिा मटा सती का ह्रदय गिरा था, ये सुप्रजसद्ध मंहदर िै। बनासकांठा जजले मे पालन पुर से 65 ककलोमीटर की दरी पर स्स्थत िै। भिरान श्ी राम ये मंहदर की पुजा करने आए िये थे, भिरान श्ी रामायि काल मे श्ी राम सीता की रोध मे माउंट आबू आए थे और इनिोने
वर्ष : 2, अंक : 1 42 िब्बर की टेकरी पर माताजी की पुजा की थी। श्ी कष्ण ने यिा मुंडन करराया था। दांत कथा ि की माताजी ने श्ी राम को अजय बन हदया था। जजससे रारि ककया था। भादों मास मे करीबन 15 लाख भक्त माताजी के दरन के जलए आते िै। िुजरात ने हिन्दी भारा और साहित्य की अभभरणद्ध मे प्ररंसनीय योिदान हदया िै। यिा के रैष्ण कमरयों ने रिज भारा मे साधू सेंटो ने साधुककड़ी हिन्दी मे राजचश्त चारिों ने कडिल मे और सूफी सेंटो ने हिन्दी या िज्वरी हिन्दी मे साहित्यका सुंदर सजन ककया िै। िुजरात के सूफी कमरयों की हिन्दी कमरता –अंबारंकर निर ने जलखा िै। राष्ट भारा हिन्दी प्रचार समममत अिमदाबाद मे स्स्थत िै। इसके अध्यक् पूरजा कुलाभधपमत चंद्कांत मेिता जी िै। ये जलखने राले हिन्दी कमर काय्वकाररिी सदस् के रुपमे सेरा प्रदान कर रि िै। राष्ट भारा हिन्दी मिामरद्ालय, अिमदाबाद मे स्स्थत िै। केंद्ीय हिन्दी मरश्वमरद्ालय, िांधीनिर िुजरात की राजधानी मे अिमदाबाद से 30 ककलोमीटर की दरी पर िै। प्रेमानन्द भट् हिन्दी िुजराती के कमर 17 री सदी मे भगक्त साहित्य के सरवोच्च कमर माने जाते थे। र बौदौड़ा के निर रििमीन परररार मे जन्मे थे। झरेरचंद मेघानी, दायराम दलपत राम, दलाभाया काि , नसती मेिता, नरिरी पररख, चचनू मोदी थे। मिात्मा िांधी, मोिमद मंकड, योिेश्वर राम नारायि पाठक राजेंद् राि , राजेंद् रुक्ल राजेंद् जोरी, रघुरीर चौधरी, लाभरंकर इ त्याहद थे। िुजरात सूती कपड़ा का सबसे अभधक ममले राला अिमदाबाद कपड़ उधयोि का मांचेस्र था. िुजरात के अिमदाबाद मे मिात्मा िांधी का साबरमती नदी के ककनारे सुंदर आश्म देखने लायक िै। आजादी के समय स्वत्रंता की लड़ाई समय ये आश्म बनाया िया िै। िुजरात मे सबसे लंबा दररया ककनारा िै। िुजरात मे प्रजसद्ध नरें द् मोदी स्ेकडयम मोटेरा अिमदाबाद मे स्स्थत िै। जजस के जमीन माजलक ये लेख जलखने राले कमर डॉ िुलाब चंद के कपताजी नरजसिभाई पटेल की थी। िुजरात मे पाटि मे पौराणिक रानकी रार सुप्रजसद्ध िै। अदलज अिमदाबाद से करीब पौराणिक रार भी बित सुप्रजसद्ध िै। जूनािढ जजले मे पर्वत पर
जाने के जलए रोप र लिाया िया िै। ऐमतिाजसक घटना के साथ ये जुड़ा िआ िै। िुजरात की राजधानी चंडीिढ की कडजाइन के अनुरूप बनाई िई िै। यिा मिात्मा मंहदर, अक्र धाम मंहदर, िरिोध्यान, िोटल लीला देखने लायक िै। मरधान सभा का मबस््डंि सरदार पटेल भरन के नाम से जाना जाता िै। सरदार रल्भ भाई पटेल जजन्ों ने आजादी के समय मे भारत के 562 रजराड़ा ओको एककत्रत करके अखंड भारत का मनमजाि ककया िै। िुजरात के संत मोरारी बापू कथाकार िै। मिात्मा िांधीजी की जन्म भूमम पर साहदपानी सुंदर आश्म िै। इसके संत इंटरनेरनल कथा कार रमेरभाई ओजा िै। जजनके करकमलों से लेखक को िोने का सुंदर अरसर िुरु पूणितिमा के पारन अरसर पर प्राप्त िआ िै। िुजरात मे मुख्य मंत्री श्ी भूपेंद् भाई पटेल ि और राज्यपाल श्ी देरव्रत सािब िै। िुजरात मे िांधीजी ने दारुबंदी की हिमायत आजादी के समय मे की थी तब से दारुबंदी लाि िै। एक ओर देखते दारुबंदी अच्ी िै, जजससे युरा धन को बचा सकते िै। ककन् सरकार की कमी के कारि तंत्र की उपेक्ा किो या मनजी रारस्ा के कारि दारुबंदी सफल निीं िो पा रिी िै। िुजरात के कुछ इलाकों मे लट्ा कांड िोते िै। अभी - अभी िुजरात के एक इलाके मे लट्ा कांड िआ िै, जजस के कारि करीब 57 लोिो की मौत िई ि और 85 से अभधक लोि िॉस्स्पटल मे भतती िै, जजनकी तबीयत नाजुक िै। देरी रराब के कारि रराब के व्सनी कैसे भी रराब पी लेते िै। अभी जो कांड िआ उसमे केममकल से बनी देरी रराब लोिो ने पी ली थी। जजसमे काफी लोिो ने मौत की चद्र ओढ ली िै। इस लेख के लेखक नरा बंदी अभभयान 14 सालो से चला रिा िै, 350 से अभधक स्ल कॉलेज मे व्सन मुगक्त काय्वक्रम ककए िए िै। मरद्ाभथतियो की जािरूकता के जलए काय्व कार रि िै। िुजरात मे नम्वदा की पाणि की सुंदर निर फैलने के कारि खेती अच्ी िोती िै। िुजरात मे कपास, िि , मूँिफली, बाजरा और चारल की फसल ज्यादा िोती िै।
वर्ष : 2, अंक : 1 44 िरसी मेहता सिी सकसेिा इंिौर, मध्यप्रिि (गजरात के प्रशसदध कवव) गजरात के प्रशसदध कवव्यों म िरसी मेहता सबसे प्रशसदध एवं प्रमख कवव ह। इनह आदि कवव भी कहा जाता है। ्यह गजराती सादहत्य के प्रथम एवं श्षठतम कवव ह। इिके व्यजकततव को महतव म रखते हए गजराती सादहत्य के इनतहास म। “िरशसंह - मीरा - ्यग “ िाम से एक काव्यकाल का काल निधा्चरण कक्या ग्या है। जजसका उदिे श्य कषण भजकत से प्रेररत पिों का निमा्चण करिा है। पि सादहत्य म िरसी मेहता को कवव सरिास जी जैसा समाि सथाि दि्या जाता है। िरसी की उिार भजकत का प्रभाव गजरात म मख्य रूप से पड़ा है। उनह कषण की रासलीला वविेष वप्र्य थी। िरसी मेहता गजरात के सबसे लोकवप्र्य कवव थे।
जीरन पररचय नरसी मेिता का जन्म िुजरात के भारनिर के पास तलाजा नामक िांर में िआ था। उनके बचपन में िी उनके कपता का देिांत िो िया था, इसजलए उन् अपना बचपन बित िी कष्टमय िुजारना पड़ा।किा जाता ि कक र बचपन में आठ रर की आयु तक िि रिे। कक सी कष्ण भक्त साधू के ररदान से उन् बोलने का सौभाग्य प्राप्त िआ। बेरोजिारी के कारि उन् घर में बित सारी परे रामनयों का सामना करना पड़ा। और घर में अंत छोड़ना। उनकी पत्ी का नाम मणिकबाई था। किा जाता ि कक मिादेर की कपा से उन् कष्णलीला का दरन भी िआ, जजसने उनके जीरन को एक नई हदरा की तरफ मोड़ हदया। र जामत -पामत और भेदभार निीं मानते थे। र रद् जामत के लोिों को भी बराबर का सम्मान और िक देते थे। नरसी मेिता कष्ण जी के भक्त थे। र छुआछूत निीं मानते थे। और रद् जामत के लोिों के बीच जाकर भजन िाया करते थे। इससे उनके समाज के लोिों ने उनका बहिष्ार कर हदया था। र नीची जामत के लोिों को भी अपनी भगक्त का िक हदया करते थे। जजस रजि से उनके समाज के लोि उनसे नाराज िो िये थे। परंतु नरसी मेिता जी ने अपने मन की रगक्त को इन बािरी दष्प्रभारों से प्रभामरत निीं िोने हदया। यि उनके जीरन की सबसे बड़ी मरररता थी। साहित्त्यक योिदान नरसी मेिता जी की समस् रचनाओं को दो रिथों में रखा िया िै। प्रथम रि्व में कमर ने अपने जीरन की अलौककक घटनाओं का रि्वन ककया िै। और दसरे रि्व में कष्ण चररत्र को आधार मानकर रची िई रचनाएं िैं। जजनमें सुरत संग्ाम, िोंमरद िमन, दाि लीला, सुदामा चररत, श्ंिार माला आहद इनकी प्रमुख कमतयां िैं। जो एक काव् संग्ि िै। नरसी मेिता बित अच् भजन भी जलखते थे। उनके एक प्रजसद्ध भजन की कुछ लाइनें इस प्रकार िमुगक्त का कोई तूँ जतन करले रे, रोज थोड़ा थोड़ा िरी का भजन करले । मुगक्त का कोई तूँ जतन करले रे, रोज थोड़ा थोड़ा िरी का भजन करले । नरसी मेिता जी को िुजराती साहित्य में मररर रूप से सम्मामनत ककया जाता िै। नरसी मेिता जी के काव् संग्ि ज्यादातर कष्ण के प्रमत भजन के रूप में िै, जो राधा और कष्ण के प्रेम का रि्वन करती िैं। इनकी रचनाएं
मेिता जी ने आत्मकथात्मक रचनाएं र मरमरध कथाएं भी जलखी िैं। मिात्मा िांधी जी ने भी अपने भारिों में नरसी मेिता जी के काम का काफी रि्वन ककया िै। श्ीकष्ण र नरसी मेिता दमनयां के रिरों में ममयां, जजस जजस जिि बाजार िैं। कक स कक स तरि के ि िनर, कक स कक स तरि के कार िैं॥ ककतने इसी बाजार में, जर के िी पेररार िैं। बैठें ि कर कर कोहठयां, जर के लि अम्ार िैं॥ सब लोि किते ि उन् , यि सेठ सािकार िैं॥१॥ साभार - भक्त नरसी मेिता मराठी ककताब ( िीता प्रेस िोरखपुर) का हिंदी अनुराद
दार्वमन क या नैमतक िैं। इनके भजन लोककप्रय िुजराती रैली में िाए जाते िैं। नरसी
वर्ष : 2, अंक : 1 46 जीवि की क्छ ऐसी रोमांचकारी ्या डराविी भी ऐसी घटिा होती ह, जजसकी ्याि जजिा तसवीर मािस पर पटल पर धचबत्त हो जाती है कक उनह वकत के साथ धशमल कक्या जा सकता है, पर शमटा्या िहीं जा सकता। बात उि दििो की है जब मै एक ििक पहले मै िािी के तरंत बाि ही UAE के िबई अपि पनत के पास गई थी। ककतिा भी डडग्ी हो आपके पास, लेककि जजनिगी जो अिभव िेती है, उसकी पहले से आपि कोई तै्यारी िही की होती। वो सबक्छ अचािक ही आपकी परीक्ण करि और क्मता का आकलि करि के शलए आ जाता है। संसमरण अचिा श्ीवासतव मलेशि्या
म उस िहर मे ि्यी थी और अिभवहीि थी, साथ थोडे खले ववचार थे मेरे... िनि्या की कठोर सचचाइ्यों और लोगों की वासतववकता के प्रनत पण्च रूप से वाककफ िही थी। वहां के मल वाशिि अरबों के व्यवहार और चररत् के बारे मे मेरी जािकारी बेहि अलप थी। मै अपि सरक्क्त और सीशमत िनि्या से एकबारगी बबलकल ि्यी और अिजािी िनि्या म चली आई। सबक्छ मेरे शलए अजिबी-सा था। लेककि मै खि पर ्यकीि कर चलि का साहस रखती थी। एक बार मेरे पनत ि एक बडे माँल मे जो मेरे शलए काफी बडा था, खरीिारी के शलए वहां ्छोडा.. और उनह ककसी काम से बाहर निकलिा था और म अकेले उस माल मे घमि लगी.. थोडा संभलकर - 2 खि को सहज करती गई उस अजिबी वातावरण से। म धीरे-धीरे घमते हई अपि शलए क्छ खरीिि लगी... तभी एक अरबी बजग्च सा आिमी मेरे पास आ्या और मझसे हंसकर बात करि लगा.. म परा्य िि म एक अच्छे भले दिखि वाले अजिबी रईस अरबी को सहजता से बात करते हए िेख थोडा रोमांधचत हो गई। वो बडे अपिेपि से मझसे बाते कर रहा था.. हाल-चाल प्छ रहा था। म भी खि होकर बात करि लगी कक चलों कोई इति अच्छे से बात कर रहा है। उसि अपिेपि से सब सवाल प्छ.. कैसा लगा ्य िि.. क्छ कमी तो िहीं है... क्छ चादहए तो िही.. कोई जरूरत है तो बोलों.. और ्य सारी अपिेपि की बात उनहोंि दहनिी मे मेरे साथ की.. मै दिल से अशभभत होकर परी सहजता और आिि से उिकी मि ही मि मे इजज़त करके बात कर रही थी। उसि अपनि मोबाइल िंबर भी दि्या और कोई भी जरूरत होि पर बात करि को कहा.. मै खि का अहो भाग्य मािकर चल रही थी कक इस परा्य िि मे कोई मििगार तो शमला.. तभीं उसि एक ऐसी बात बोली कक मै सनिाटा मे आ गई। उसि कहा कक ‘तम मझे खि कर िो’.. तो म तमह क्छ कमी िहीं होि िही िंगा.’!! समझी भारती्य प्यारी लडकी.. अब तो ्य सिकर पहले तो क्छ मझे समझ िहीं आ्या.. पर जब उसकी कही बातो और लहजे पर ध्याि दि्या तो एकबारगी सकते मे आ गई। उसकी गलत नि्यत और गंि ववचार का झट से मझे अिांजा हो ग्या कक ्य गंिी मािशसकता और खराब ही सोचकर इतिी िेर तक मेरे से अपिेपि की बात कर रहा है, जजसमे मै अिजाि मे कोई िर के ररशतेिारी सा चाचा, मामा आदि की ्छवव िेख रहीहं। मेरे ्यािाशत मे ्यह एक बात थी कक अरबी िेख बहत अय्याि होते है और पैसो के बल पर सब क्छ खरीि लेते है.. लेककि सामि मे बजग्च अरबी िेख को िेखकर ्यह बात म भल गई क्योंकक ऐसा कोई अिभव पहले िहीं हआ था। जाते-जाते वो एक प्रकार से चेताविी भरे प्यार के लहजे मे बोल कर ग्या कक.. ’तम 1 घंटे मे मझे फोि जरूर करिा। भलिा िहीं....। मै ह तो कोई गम िहीं है..’ उसके जाते ही मेरा दिल बेदहसाब जोर से धडकि लगा। मै थरा्चि लगी डर से।कही ्य अरबी मेरे पी्छ तो िहीं पड जा्येगा। कफर तो मेरे पनत भी मझे उसके चंगल से िहीं बचा पा्यगे.. मै क्या करु। ्य तो सब बहत क्रर और वहिी होते है.. मैि सिा था। घबराहट से उस एसी माल मे मै पसीि से तरबतर हो गई। मझे चारों तरफ उसके ही ऐजट दिखि का भ्रम होि लगा।मझे लगा कक अब इस परा्य िि मे मेरी जजनिगी गई। तभीं पनत को आते िेखकर जाि मे जाि आई और म उिसे जलिी से घर चलि को कहा, क्योंकक मझे वहां अज्ात खतरा दिख रहा था,
तरफ। पनत को भी क्छ िही कहा क्योंकक मेरे
पर डांट ही पडि वाली थी। घर
िंबर तो िही दि्या। अब वो फोि िहीं कर सकता और मझे तो करिा िही.. कफर तो समस्या अपि आप खतम हो ग्या।हां बस मै उस माँल मे िबारा कभी जाि की दहममत िहीं कर पाई.. जो मेरे निवास काफी िर था.. जजतिा दिि भी मै UAE मे निवास की। ककसमत से मै सरक्क्त बच गई लेककि ्य सबक मझे कभी िही भलता.. ककसी अजिबी पर भरोसा ककतिा असावधािी पण्च हो सकता है और सतक्च ता एक लडकी के शलए ककतिा जरूरी है, जजसे अपिािा जरूरी होता है। मझे इस घटिा को ्याि रखिा इसशलए अच्छा लगता है कक उस दिि अपि भोलेपि और िािािी से मैि चाहे जो आघात मि पर झेला हो लेककि ईशवर के प्रनत एक दृढ आसथा भी जागत हो ग्या कक हम िनि्या के ककसी कोि मे हो, सचचे और मासम दिल की रक्ा भगवाि बडी बारीकी से करता है। वो जलती आग से भी बबिा खरोच के बचा लेता है। एक िम्रता के साथ आतमववभोर की लहर से मै अशभभत हो गई.. अटल भरोसे के साथ।
चारो
िासमझी
आकर ्यही एक इतमीिाि आ्या कक मैि तो उसको अपिा मोबाइल
वर्ष : 2, अंक : 1 48 कषण पण्च अवतार ह,
प्रेम के
गीता जैसे ज्ाि से, मत्य हई अशभराम। प्रेम िाम राधा
भाव समप्चण हो ग्या,
से
बाहर भीतर श्याम की, ्छवव ही
मि तो काशलिी हआ,
रही
प्राण। आँख खोज श्याम को, अधर कर गणगाि।। रास रचै्या, सारधथ, विमाली, ्योगेि। पतिारर उदधारक ह, गोवविा गोपेि।। ‘भ्रमर गीत’ से हो गए, सरिास ववख्यात। उदधव ि पा्या सहज, मोक्धाम अज्ात।। श्याम मिोहर, सांवशल्या, ्योगेशवर श्ी िाथ। कशती मेरी भंवर म, पकड़े रहिा हाथ।। मध प्रसाि अहमिाबाि, गजरात मेरे कषण ऊधो मि संिेह क्यों, रहता आठों ्याम। जाि सकी अब तक िहीं, म राधा ्या श्याम।। राधा को राधा कहो, कहो श्याम को श्याम। दिखते िो पर एक ही, अदभत है ब्ज धाम।। ववष का प्याला पी शल्या, सली ऊपर सेज। मीरा जैसा जो बिे,लेता सभी सहेज।। ऊधो अंतर ब्हम ह, राधा अंतर श्याम। वेि जजसे ह ढढते, वे बैठे ब्ज धाम।। राधा कानहा हो गईं, खोकर मि का चैि। प्रेम धार म बह रहे, आठ पहर दिि रै ि।। निकरौसी जब हो ककिि, पकड़े रहिा हाथ। पीड़ा से मजकत शमले, औ चल तमहारे साथ।। धन्यवाि प्रभ का कह, औ माि आभार। िबिों को पर लग गए, अथ्च हए साकार।।
कषण
धाम।
रहा, हआ अतल ववसतार।
मीरा
साकार।।
मेरा गेह।
िेह
कब िेह। कषण िाम से अिगंजजत, जैसे हो हर घाट, राधा रािी जोहतीं, लहरों के संग बाट।। उँगली ऊपर धर शल्या, पव्चत हआ महाि। ऐसे अपि कानह िे, कक्या जगत कल्याण।। माि िहि करि हेत, कक्या ित्य अशभराम। ्यििाथ की लीलाएँ, हर ्यग म अववराम।। सली ऊपर सेज है, और समवप्चत
रवव िंकर िमा्च गजरात क्या कहि गजरात क आज भी राजा महाराजाओ जैसा रहिा खािा पीिा है सर पर पगडी हाथ म लाठी चाल िेरों जैसी होतीं है बोलें तो सैि टपक रहां हो क्या कहि गजरात क ऐसी मीठी बोलीं है सभ्यता स रहिा सभ्यता का पाठ पढािा ्यहीं सीखा शसखा्या है क्या कहि गजरात क कपडों की तो खाि है अपिी भी एक िाि है हर तरफ बोल बाला है गजरात हमारा निराला है क्या कहि गजरात क खशि्याँ जैसे बरसती है मोहबबत इसकी शमरटी म बसती है क्या कहि गजरात क
वर्ष : 2, अंक : 1 50 सीधपर कमला मलािी सीधपर, जजला पाटण (उत्तर गजरात जजला पाटण) अहमिाबाि िहर के उत्तर की ओर लगभग १०३ कक. मी. पर बसा एक ऐनतहाशसक महतव का पववत् सथल जो कक सरसवती ििी के ककिारे पर बसा हआ प्यारा सा सिर िहर है। १९७२ म पहली बार इस िहर से मेरा पररच्य हआ था। आज़ािी के बाि सभी शसंधी पर रवार िरणाथशी बिकर परे दहिसताि म ्यहां से वहां पिाह लेि के शलए िरबिर भटक रहे थे, उनहीं दििों हमारे पररवार को ्यहां कलेम म एक तीि मंजजला बंगला शमला था जहां ५०० वोरा पररवारों के बीच म एक शसंधी पर रवार आकर बसा था। हमारे जैसे ककति ही पररवारों को ्यहां आकर िरण शमली थी। मेहित मजिरी करके हमारी कौम ि शसंध प्रांत ्छट जाि के बाि भी अपिा जीवि ्यापि कक्या कभी ककसी के सामि हाथ िहीं फैला्या। इसी मेहित के भरोसे उनहोंि अपिा व सीधपर िहर का िाम रौिि कक्या। ्यहां के परे टावर बाजार पर शसंधी ही जाए ह ए ह। मेरी खििसीबी है कक मझे ्यहां १९७३ से १९८९ तक रहि का सौभाग्य प्रापत हआ।
ऐसी मान्यता है कक सरसवती ििी ्यहां गपत रुप से निवास करती है। ग्ीषम काल म ्य परी तरह ववलपत हो जाती है और चतमा्चस के बाि ्य परे उफाि पर होती है। कानत्चक महीि म प्रनत वष्च ्यहां पखण्चमा पर कानत्चक मेले का बड़ी धमधाम से आ्योजि होता है। ऐसी मान्यता है कक कानत्चक पिम की राबत् को ्यहां िगध धारा के िि्चि होते ह। इस मेले की तै्यारी काफी पहले ही िरू हो जाती है। पण्चमासी से गणेि चतथशी तक ्यह मेला अपिी पराकाषठा पर होता है। सबसे पहली डबकी आसपास के गांव से आि वाले लोग लगाते ह। इि दििों ्यहां नतल भर जगह भी खाली िहीं दिखती। चारों तरफ गनिा ही गनिा होता है इनहीं दििों म गनिे की ि्यी फसल आती है। फाफड़ा जलेबी कचौड़ी खमण और गोटा (एक प्रकार के खास मेथी और मोटे बेसि से बि पकौड़े) की खिब परे वातावरण को और भी महकिार बिा िेती है। ्यहां का शमलक केक शमलक िेक अपिा अलग ही सवाि रखते ह। ्यहां की खारी सींग (मंगफली) भि चि और तरबज के मसाले वाले बीज िर िर तक प्रशसदध ह। वोरा लोगों की ्यहां काफी जिसंख्या है। उिकी मजसजि व राधा सवामी जी का डेरा भी काफी प्रशसदध है। वपतरों की पजा के शलए बबहार का “ग्या” िहर जजतिा प्रशसदध है उतिा ही महतवपण्च सीधपर िहर मात श्ादध के शलए है। ्यही वह ऐनतहाशसक सथाि है जहां श्ी परिराम जी ि अपिी माता रेणका िेवी का श्ादध कक्या था। कवपल मनि ि सव्च प्रथम अपिी माता का श्ादध ्यहां कक्या था, जजसके बाि से ्य मातग्या तीथ्च सथल मािा जाता है। ्यहां केवल एक रुप्य म अंनतम संसकार भी होता है। जनम िि वाली माता जो गभपीड़ा बहती है ,अपि बालक का पालि पोषण करती है और उचच कोदट के संसकार िेती है उि सभी से उऋण होि के शलए मातग्या सीधपर म आकर श्ादध तप्चण कक्या जाता है। प्रत्येक वष्च हजारों लोग श्ादध पक् म आकर वपणड िाि करते ह। मात मजकत माता के मोक् की ्य पजा दहि धम्च म माता के महतवपण्च सथाि की भी द्योतक है। ्यहां वविेष प्रकार के अिषठाि भी ककते जाते ह। परे भारतवष्च म ५ मख्य सरोवर है : १) कैलाि मािसरोवर २) िारा्यण सरोवर ३) पषकर सरोवर ४) पापा सरोवर (जहां िबरी ि श्ी राम की प्रतीक्ा की थी) ५) बबि सरोवर सीधपर िहर म ही ्य बबि सरोवर पा्या जाता है। कवपल मनि के वपता ि ्यहां हजारों वष्च तक तपस्या की थी। ्यहां उिका आश्म था। ्य भी मान्यता है कक भगवाि ववषण व माता लक्मी का भी ्य निवास सथाि हआ करता था। गजरात की प्रशसदध गोकल गलोबल ्यनिवशस्चटी और वोहरा वाड बीिपर की वविेषताएं ह : सीधपर के आसपास ऊंझा, पाटण, पालिपर, िहर बसे हए ह। अमबा जी का प्रशसदध मंदिर आंस रोड व माउंट इसके पास के ववशभनि आकष्चक सथल ह।