वर्ष : 2, अंक : 2 3 संपादक मंडल सचिन ितुववेदी संस्ापक (नई ददल्ी) डॉ. तरुणा माथुर मुख्य संपाददका (गुजरात) ववनीता पुंढीर ननदवेशक, अनुराग्यम(नई ददल्ी) मीनू बाला संपाददका (पंजाब) 3 दूरभार : +91 - 9999920037 पता : मालवीय नगर, नई ददल्ी (110017) वेबसाइट : www.anuragym.com ईमेल : anuragyam.kalayatra@gmail.com अनुराग्यम् के सोशल मीडडया प्टफोम्ष से जुड़ने के नलए नीि ददए गए आइकॉन पर क्लिक कर के जुड़ सकते है | उपरोक्त सभी पद मानद तथा अवैतननक हैं। पवरिका डडजाइनर : सचिन ितुववेदी मुख्य पृष्ठ आवरण : सचिन ितुववेदी कॉपीराइट : अनुराग्यम् (संपादक मंडल) **पवरिका में बहुत से चिरि गूगल से नलए गए है. MSME Reg. No. : UDYAM-DL-08-9070
वर्ष : 2, अंक : 5 4 माि्ष 2022 होली ववशेरांक वर्ष 1 अंक 11 अप्ल 2022 धानमक स्ल ववशेरांक वर्ष 1 अंक 12 मई - जून 2022 गुजरात ववशेरांक वर्ष २ अंक 1 जुलाई - अगस्त 2022 महाराष्ट्र ववशेरांक वर्ष २ अंक 2 नसतम्बर - अक्बर 2022 अयोध्ा ववशेरांक वर्ष २ अंक 3 अनुराग्यम् की वेबसाइट से पुस्तक खरीद सकते है.. अनुराग्यम् पुस्तकालय नवम्बर - ददसम्बर 2022 अनुराग्यम सालाना ववशेरांक वर्ष २ अंक 4
फरवरी 2022
दहमािल ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 10
जनवरी 2022
हडरयाणा ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 9
नसतम्बर 2021
गोवा ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 5
ददसंबर 2021
यारिा वृरिांत ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 8
नवंबर 2021
पंजाब ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 7
अक्बर 2021 छत्ीसगढ़ ववशेरांक वर्ष 1 अंक 6
अगस्त 2021
ददल्ी ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 4
जुलाई 2021 वबहार ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 3
जून 2021
मध्प्देश ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 2
मई 2021
राजस्ान ववशेरांक
वर्ष 1 अंक 1
वर्ष : 2, अंक : 5 5
वपछले संस्करण
वर्ष : 2, अंक : 5 6 • आलेख प सं. 1. लद्दाख की सैर, सीमदा वदाललयदा, जयपर, रदाजस्दान 12 2. चित्रकदारी, शयदाम मनोहर िवन, मंबई, महदारदाष्ट्र 17/18/19/44 3. रदाजमदा ! ब्रवदा डोंगरी सपेशल डडश, शीतल शमदामा, वडो्रदा, गजरदात 20 4. कशमीर की कररशमदाई संसकतत, मीन बदालदा, जदालंधर, पंजदाब 24 5. मखय तययौहदार और शोंडल नतय, रीतदा खरे, मंबई, महदारदाष्ट्र 28 6. मदानसर झील , ततलक गोसवदामी, मदानसर, जमम 32 7. लद्दाख के मेले और तययौहदार, शर् लसंह, लखनऊ, उत्तर प्र्ेश 34 8. कशमीर की यदात्रदा, सफियदा जै्ी, सहदारनपर, उत्तर प्र्ेश 38 9. मदातदा वैष््ो्ेवी : यदात्रदा वत्तदांत, कमलदा मलदानी, ठदा्े, महदारदाष्ट्र 42 • कववतदाएँ 10. जमम - कशमीर ्ेखखए, गगनप्रीत सपपल संगरूर, घब्दान, पंजदाब 14 11. कदाशमीरी हहन् यदातन पंडडत, अिमानदा श्ीवदासतव, मले लशयदा 15 12. वदाह्यदा बलदा रही है, मीन यदा्व, लशकोहदाबदा्, उत्तर प्र्ेश 16 13. धदारदा 370, वदाशी अरोरदा, बगलोर, क्दामाटक 21 14. मेरे मन कदा कशमीर कर ्ेनदा, रे ् जयसवदाल, कहटहदार, बबहदार 21 15. हदा ! कशमीर ह मै, नेहदा जैन अजीज, लललतपर, महदारदाष्ट्र 22 16. कशमीर कदा ््मा , धीरज कमदार शकलदा, झदालदावदाड़, रदाजस्दान 26 17. कशमीर की स्रतदा, मधकर वनमदाली, मजफिरपर, बबहदार 30 18. अद्त कशमीर, मयरदा मदा्के, इं ्यौर, मधयप्र्ेश 33 19. ्दासतदान-ए-कशमीर, रंजनदा वमदामा, तलमलनदाड 36 20. अखंड कशमीर, रमदाकदांत शमदामा, डदांडेली, कनदामाटक 37 21. हमदारदा कशमीर, सफियदा जै्ी, सहदारनपर, उत्तर प्र्ेश 39 22. कशमीर सवगमा कहलदातदा है, समतदा कमदारी, समसतीपर, बबहदार 40 23. पछतदा है कशमीर, अतनल कमदार केसरी, जजलदा ब्ी, रदाजस्दान 41 अनुक्रमणिका बायोग्ाफी : जीवनचरित यात्ा ववजय सरी - जमम कशमीर की एक अमर शजखसयत प सं. (8 - 11)
शजकत ्ी है और महदाबली ्ीम के पैर के तनशदान ्ी ह।
इतने झरने वहदा चगरते ह फक चगरने की उनकी शजकत के इसतेमदाल के ललए सरकदार ने वहदा टरबदाइन लगदा रखी है ,जो वहदा
वर्ष : 2, अंक : 5 7 डाॅ तरूणा माथुर, मुख्य संपाददका, कलायारिा पवरिका फकसी ्ी ्दारतीय कदा एक सपनदा जरूर होतदा है फक वे जीवन म एक बदार कशमीर घम कर आए और अपने जीवन के सबसे सख् और स्र सपने को सदाकदार कर सके। वह ्ी कयों नदा हो, बरसों ्दारतीय फिलमी ्तनयदा ने ्दारतीयों के सदामने कशमीर को पयदार करने वदालों की सवगगीक ्तनयदा के रूप म सम्ादकीय ह्खदायदा और जब तक जमम कशमीर पर आतंक की कदाली छदायदा नहीं पड़ी ्ी तब तक हर ्दारतीय के रोमदांस को कशमीर की वदाह्यों कदा सदा् लमलदा। हर ्दारतीय के धदालममाक उदगगदारों को मदा वैष््ो और ्ोले बदाबदा कदा आशीवदामा् ्ी लमलदा। अनरदागयम “कलदायदात्रदा” इस बदार धरती के सवगमा के ही ्शमान करदाने पहि गई है ,जहदा पलवदामदा के सेब के बदाग पहलगदांव की खबसरत घदाहटयदा सोनमगमा की बिमा से जमी झीलें, हरे-्रे खशगवदार पहदाड़ स्र स्र िलों से ्री लहर्दार वदाह्यदा गलमगमा, सोनमगमा, मतलब धरती कदा सवगमा मदा वैष््ो ्ेवी कदा आंगन जमम के कटरदा की पयौरदाख्क धरोहर और ्दारत के सवदामाचधक उचि लशखर पर ववरदालसत लद्दाख की अववसमर्ीय यदात्रदा सबकदा मन आहलदाह्त है। बिपन म जजन दृशयों की मनोरमतदा को ्ेखकर उन फिलमी गदानों और लोकेशन को ववसमत सदा अन्व कर हर फकसी की िदाह एक बदार ्दारत के सबसे स्र पहदाड़ी वदाह्यों को ्ेखने की होती है आज कलदायदात्रदा के मदाधयम से हम आपकी उपजस्तत वहदा करदाने जदा रहे ह। लद्दाख जहदा से गलेलशयर प्रदारं ् हआ और ्दारत ्ी। एक कहदानी वहदा प्रिललत है कहते ह फक लद्दाख के गदाँव-गदाँव म हमदारे सैतनकों की उन ्गमाम बिदामानी इलदाके म एक म््गदार वयजकत है जो ह्खदाई नहीं ्ेते ह वहदा ियौजजयों की म्् करते ह और ियौजी उनह बदाबदा मदानते ह। कहते ह वे पहले से होने वदाली घटनदाओं को ियौजजयों को सब कछ बतदा ्ेते ह और ियौजी उनह समझ कर ही अपनी र्नीतत बनदाते ह। वहदा पर एक िंबकीय
के इलदाकों के ललए बबजली बनदाती है। पववत्र केसर लसिमा कशमीर म ही लमलती है। परे ववशव म इसे ्दारत से ही ्ेजदा जदातदा है। सह्यों म झील जम जदाती है और वहदा खेल खेले जदाते ह। फकतनदा अनोखदा है सब कछ। खबसरत िलों को ्ेखकर हमदारदा मन वविललत होतदा है उनह पदा लेने की इचछदा करती है उन िलों को हर वकत मन ्ेखने कदा मन करतदा है। ऐसे खबसरत िल अगर हम लदाख कोलशश कर लें हम यहदा नहीं उगदा सकते। लेफकन वहदा पर वे खरपतवदार की तरह है वो िल ऐसे ही उग जदाते ह। इतनदा स्र वहदा कदा मयौसम है। ्दारतीय ग्ं्ों के अनसदार जमम को” डगगर प्र्ेश” कहदा जदातदा ्दा ,जमम म डोगरी ्दाषदा बोली जदाती है।इसके अलदावदा हहन्ी, उ्, उदधदाखी, बदाल्टी, पहदाड़ी, पंजदाबी, गजरी, और ््री बोली जदाती है। मल रूप से यहदा रदाजपत, गजमार, ब्दाहम्, पंडडत, जदाट और खत्री समह के लोग रहते ् बदा् म आजदा्ी के 72 सदाल बदा् जमम-कशमीर की पहिदान को ब्लने के ललए इततहदास फिर गढदा गयदा और खतम कर ह्यदा गयदा अनचछे् 370 और नयदा इततहदास रिने को तैयदार कशमीर एक बदार फिर आप स्ी कदा सवदागत करतदा है। ्दारत के उत्तर पजशिम क्त्र म मयौज् कशमीर घदाटी हहमदालय और पीर पंजदाल पवमात श्खलदा के बीि बसदा हआ है प्रमख धदालममाक स्लों और वैष््ो ्ेवी मंह्र के कदार् हर सदाल यहदा हजदारों ्दारतीय और वव्ेशी पयमाटक ती्मायदात्री आते ह। 2019 म जमम एवं कशमीर लद्दाख नदामक 2 कद्र शदालसत प्र्ेश के रूप म स्दावपत कर ् गए।आइये कलदायदात्रदा के सदा् आनं् लें।
वर्ष : 2, अंक : 5 8 बायोग्ाफी : जीवनचरित यात्ा ववजय सरी - जमम कशमीर की एक अमर शजखसयत फफल्म - भेद भाव (1998) - कादि खान ओि ववजय सूिी
वर्ष : 2, अंक : 5 9 ववजय सरी, जमम और कशमीर की लमटटी की जदानी मदानी शज्सयतों म से एक. जमम-कशमीर के एक बहआयदामी वयजकततव, एक कशल लेखक, तनमदामातदा, तन्शक और अल्नेतदा ्े। उनहोंने रंगमंि से लेकर लेखन, टेलीववजन और लसनेमदा तक म अपने ललए एक खदास जगह बनदाई। वह जहदा एक बेहतरीन अल्नेतदा ्े, वही एक बेहतरीन तन्शक और जदाने मदाने लेखक ्ी ् ! उनह रेडडयो की गोलडन वॉइस के रूप म जदानदा जदातदा ्दा। उनह जमम-कशमीर रंगमंि के ्ीष्म वपतदामह के रूप म ्ी जदानदा जदातदा ्दा। अभभनेता के रूप में उन्होंने अभभनय तब शुरू फकया जब वे 6वीं कक्ा में थे। उनका मानना था फक एक अभभनेता पैदा नहीं होता है क्होंफक अभभनय जन्मजात प्रवभति में होता है औि कडी मेहनत से इसे पॉलिश फकया जाता है। जम् औि कश्ीि किा संस्वत औि भाषाओं की अकादमी द्ािा आयोलजत नाटक उत्सवहों में उनके अभभनय क्मता के लिए जम् औि कश्ीि सिकाि से उन् िगाताि छह बाि सव्वश् ष्ठ अभभनेता का पुिस्ाि वमिा औि िाज्य के पहि व्यक्ति बने लजन्होंने िगाताि सव्वश् ष्ठ अभभनेता का पुिस्ाि प्राप्त फकया। िेखक के रूप में उन्होंने 18 सा ि की उम्र में लिखना शुरू फक या औि उद में अपनी पह िी कहानी लिखी।
किा संस्वत औि भाषा अकादमी द्ािा जम् में आयोलजत फकया गया था, इस नाटक समािोह में उन्होंने एक पंजाबी नाटक- नववयाँ िावा- में अभभनय फकया, इस नाटक में 20 साि की उम्र में उन्होंने 70 साि के वद्ध व्यक्ति का फकिदाि वनभाया औि िाज्य सिकाि द्ािा उन्ोने सव्वश् ष्ठ अभभनेता का पुिस्ाि जीता।
नाटक लजनमे उन्ोने सव्वश् ष्ठ अभभनेता का पुिस्ाि
प्राप्त फकया वो थे - नववयाँ िावा (पंजाबी नाटक), उत्सग्व (टैगोि
द्ािा), जानवि ( िाज्य के सादहत्य अकादमी पुिस्ाि ववजेता
प्रो . मदन मोहन शममा द्ािा, लिखा), सखािाम बाइं िि (व वजय
तेंदिक ि द्ािा लिखा), आि अिि (मोहन िाकेश द्ािा लिखा)
एवं बाकी इवतहास बाय (बादि सिकाि लिखा)। उन् नाटकहों के लिए जम् औि कश्ीि किा संस्वत औि भाषाओं की अकादमी द्ािा आयोलजत नाटक उत्सवहों में
वर्ष : 2, अंक : 5 10 फफल्म - ऊंची उडान (1984) - ववजय सूिी वह िाज्य के पहि िेखक थे लजनके उद उपन्ास पॉकेट साइज में प्रकालशत हए हैं। उन्होंने िफियो कश्ीि जम् (अब आकाशवािी जम् एवं आकाशवािी श्ीनगि ) के लिए 400 से अभिक नाटक लिखे जो आकाशवािी के िगभग हि केंद्र से प्रसारित हए ! तीन उद के उपन्ास : 1. आखखिी सौदा - 1960 में प्रकालशत 2. एक नाव कागज की - 1963 में प्रकालशत 3. कांच औि पत्थि - 1966 में प्रकालशत उन्होंने दिदश्वन केंद्र जम् , दिदश्वन केंद्र श्ीनगि औि दिदश्वन केंद्र ददल्ी के िाष्ीय नेटवक्व के लिए के लिए, उद , पहाडी औि िोगिी भाषाओं में 550 से अभिक टीवी िािावादहक, टेिी फफल्म्स, वतिचचत् , टीवी नाटक लिखे। वह िाज्य के पहि िेखक थे लजनकी टेिी फफल्म -मुझे जवाब दो - िाष्ीय नेटवक्व पि प्रसारित की गई थी औि यह टेिी फफल्म दिदश्वन द्ािा एक आभिकारिक प्रववफष् थी लजसे िाष्ीय फफल्म समािोह 1985 में चुना गया था। उन्होंने िफियो कश्ीि श्ीनगि के एक बहत िोकफप्रय िफियो काय्वक्रम की श्खिा लिखी थी– वादी की आवाज़ ! वो ऑि इं फिया िफियो औि दिदश्वन केंद्र श्ीनगि के ए ग्ेि नाटक किाकाि िहे ! उन्होंने 350 से अभिक िफियो नाटकहों में औि 950 से अभिक टीवी िािावादहक, टेिी फफल्म्स, औि टी.वी नाटकहों में अभभनय फकया। उन्होंने 700 से अभिक िंगमंच के नाटकहों में अभभनय फकया है औि अपनी नाट्य प्रस्ुवतयहों के साथ पूि भाित में यात्ा की है। उन्होंने छह फीचि फफल्महों में खिनायक के रूप में काम फकया ऊंची उडान, भेद भाव, मुद की जान खति में है, अक्नि, माटी मांगे खून औि कािका। पुिस्ाि औि उपिब्धियहों - 1965 में, जम् औि कश्ीि िाज्य का पहिा नाटक महोत्सव जम् औि कश्ीि
चाि बाि सव्वश् ष्ठ वनददेशक का पुिस्ाि भी वमिा - आि अिि (मोहन िाकेश द्ािा लिखा), फपंज िा (उनके द्ािा लिखखत औि वनदलशत एक िोगिी नाटक), दहिखे दी छाँ (उनके द्ािा लिखखत औि वनदलशत एक िोगिी नाटक), एक पिछामा बदिी दा ( िाज्य के सादहत्य अकादमी पुिस्ाि ववजेता प्रो . मदन मोहन शममा द्ािा, लिखा एक िोगिी नाटक)। किा औि संस्वत के क्ेत् में उनके उत्ष् योगदान के लिए िाष्ीय पुिस्ाि, लसिी फोट्व ऑफिटोरियम नई ददल्ी में सुि आिािना पुिस्ाि,
वर्ष : 2, अंक : 5 11 जम् औि कश्ीि का सव्वश् ष्ठ पत्काि पुिस्ाि। उद ववभाग, जम् ववश्वववद्ािय के छात् उनके िेखन पि शोि क ि िहे हैं क्होंफक वे मुख्य रूप से उद में लिखते थे। उन् जम्कश्ीि के ददग्गज किाकािहों में से एक माना जाता िहा है औि जम्-कश्ीि किा,संस्वत औि भाषा अकादमी ने जम्-कश्ीि के अन् ददग्गज किाकािहों के साथ अभभनव भथएटि में उनकी तस्ीि िगाई है। उन्होंने सूचना औि प्रसािि मंत्ािय के गीत औि नाटक प्रभाग में नाटक वनममाता के रूप में काम फकया। प्रशंलसत पत्काि के रूप में वे जाने-माने पत्काि थे। 1960 में वह प्रलसद्ध िेखक दति भािती के साथ जुड गए औि ददल्ी में मालसक उद पफत्का तखिीक के लिए सहायक संपादक के रूप में काम फकया, िफकन वापस जम् आक ि उन्ोने एक अन् समाचाि पत् ‘संदेश’ में संपादक के रूप में काम फकया। 1970 में एक संपादक के रूप में दैवनक उद समाचाि पत् ‘दैवनक उजािा’ उन्ोने शुरू फकया। वनदेशक के रूप में उन्होंने 600 सेअभिक टीवी िािावादहक, टेिी फफल्म्स, वतिचचत् , टीवी नाटकहों का औि िंगमंच के कई नाटकहों का वनददेशन फकया। वो हि साि टैगोि हॉि श्ीनगि कश्ीि में िामिीिा का वनददेशन फकया क िते थे। फपताजी एक उत्ष् कहानीकाि थे, मैं कहानी कहने की, उनकी योग्यता की एक घटना जोडना चाहंगी। फपताजी उद में ही लिखते थे औि लिखने में मेिी मदद क िने के लिए फपताजी ने मुझे किम औि कागज वनकािक ि लिखने को कहा, मैंने लिखना शुरू फकया औि अगि पांच घंटे तक वे बोिते िहे जब तक मैं लिख िही थी। वह कहते थे फक मेिी लजंदगी की सबसे अच्ी कहानी, मैंने बोिी है, लिखी नहीं। एक औि फक स्ा बताना चाहंगी, अपनी शादी के कुछ ददनहों के बाद अपने िंगमंच के ददनहों में, फपताजी गुरु िवीन्द्र नाथ टेगोि द्ािा लिखे गए एक नाटक का अभभनय औि वनददेशन क ि िहे थे, लजसका नाम उत्सग्व था। इस नाटक के लिए फपता को अपना लसि मुंिवाना पडा था, जो फक बहत ही अशुभ माना जाता है क्होंफक यह फक सी के माता-फपता के वनिन पि फकया जाता है, िफकन फपताजी ने फक सी की बात नहीं मानी औि नाटक के उस फकिदाि के लिए लजसको वो वनभा िहे थे उसके लिए अपना लसि मुंिवा लिया। यह भथएटि के प्रवत उनके समप्वि की हद थी। स्गगीय ववजय सूिी को याद क िने औि भथएटि, टेिीववजन औि लसनेमा में उनके योगदान को याद क िने के लिए 2016 में रुबरू भथएटि औि ववजय सूिी फाउं िेशन के सहयोग से जम् कश्ीि एके िमी ऑफ आट्व कल्चि एं ि िैंग्जेज द्ािा चाि ददवसीय ववजय सूिी नेशनि भथएटि फे ब्टिवि का आयोजन फकया गया था, जो एक बडी सफिता थी। ववजय सूिी फाउं िेशन औि रूबरू भथएटि ददल्ी के अिावा एक प्रशंलसत ऑनिाइन शो शफ्सयत प्रस्त क िता है, इस शो में ववभभन्न क्त्हों की हस्स्यां युवा किाकािहों के लिए अपनी जीवन यात्ा औि व्यक्तिगत अनुभव साझा क िती हैं। इस ऑनिाइन िाइव शो के िगभग 300 शो पूि हो चुके हैं। कदाजल सरी नदाटककदार, लेखखकदा, रंगकमगी पत्रकदार, प्रसदार् कमगी अल्नेत्री, तन्शक
वर्ष : 2, अंक : 5 12
की सैर
्रबीन से ्ेखने पर समद्र तल से 4500मीटर ऊपर जस्त लद्दाख अपनी खबसरती कदा जलवदा बबखेरतदा हआ नजर आतदा है। लद्दाख एक सदाहलसक और आधयदाजतमक गंतवय
संसकतत, प्रदाकततक स्रतदा, पहदाड़ी ्ररों म लसमटदा हआ ह्लिसप कहदातनयों कदा सदाक्ी है लदधदाख। सरसवती पवमात पर जस्त लदधदाख बेह् खबसरत है ।्दारतीय खगोलीय वेधशदालदा के अनसदार यहदा से ्रबीन दवदारदा तदारों को ्ेखने और िोटोग्दािी के ललए सववोत्तम स्दान है। रदात के पहर म पगगॉग झील कदा ववहंगम दृशय तदारों से ्रदा हआ प्रतीत होतदा है। ऊं िदाई पर हवदा प्र्ष् रहहत और शष्क होती है इसललए पयमाटक ्ी आकदाशीय वपंडों कदा सपष्ट दृशय ्ेख पदाते है और आनं् लेते है। ्तनयदा कदा सबसे ऊं िदा बेली बब्ज ्ी यही है।
लद्दाख
सीमदा वदाललयदा जयपर, रदाजस्दान
है, बयौदध
वर्ष : 2, अंक : 5 13 पुि द्रास औि सुरू नदी के बीच बना है लजसकी नीव 1982 में िखी गईं थी। पुि औसत समुद्र ति से 5,602 मीटि ऊपि स्थित है। सैन् बि का उपयोग महत्वपूि्व काययों के लिए क िते हैं। देश में उच्चतम अभिवास क्ेत् ज़ांस्ि औि सुरू घाटी के बीच स्थित क्ेत् देश का सबसे ऊँचा स्थित बसावट क्ेत् है। िंगदम समुदाय इस क्ेत् को आबाद क िता है। पेंसी- िा दवनया का उच्चतम स्थित कफष क्ेत् है। दि्वभ जुडवां कूबड वािा बैस्ट्यन ऊंट यही पाया जाता है नुब्ा घाटी क्ेत् में बैस्ट्यन ऊंट सफािी एक बहत ही आम गवतववभि है। ये ऊंट मंगोलिया के मूि वनवासी हैं औि िेशम व्यापाि युग के दौिान यहां आयात फकए गए थे। खाि पानी की सबसे ऊँची झीि जो जम जाती है, वो पैंगहोंग झीि है 4,350 मीटि की ऊंचाई पि स्थित है औि यह दवनया की सबसे ऊंची स्थित खाि पानी की झीि है। यह झीि भाित औि चीन के बीच बहती है। जीिोग्ववटी दहि भी यही है यह एक चढाई माग्व जैसा ददखता है, यह वास्व में नीचे की ओि है। इसलिए, यदद आप अपने वाहन को न्टट्ि में छोडते हैं औि इक्निशन को बंद क ि देते हैं, तो ऐसा िगेगा फक आपकी काि को ऊपि की ओि खींचा जा िहा है। इस िक्गस्ान में पलक्यहों की 225 प्रजावतयां िहती हैं, िद्ाख एक उच्च ऊंचाई वािा िक्गस्ान है। इसमें बहत कम वनस्पवत है औि बफ्व औि ऊबड -खाबड पहाडहों के बंजि नजाि ही ददखाई देते है। कुछ दि्वभ पक्ी जैसे हपो, िॉवबन्स, फ़च, ििटिाट्व औि अन् शावमि हैं। प्रवास के समय में आप प्रवासी पलक्यहों की कई प्रजावतयाँ भी यही देख सकते हैं। िद्ाखी वतब्बती कै ििि का पािन क िते हैं। इस कै ििि के अंदि, प्रत्येक वष्व में 30 ददनहों के साथ 12 महीने होते हैं। पिंतु यहां हि तीसि साि 13 महीने होते है। महीनहों का कोई नाम नहीं है औि ये केवि क्गने हए हैं। ददनहों का नाम पांच दृश्यमान ग्हहों , सूय्व औि चंद्रमा के नाम पि िखा गया है। मदहिाओं को कुंग-फू लसखाया जाता है िद्ाख भभक्षुओं औि ननहों को समान रूप से कुंगफू लसखाता है। मोटिेबि माउंटेन दवनया के शीष्व तीन मोटिेबि माउंटेन पास िद्ाख में स्थित हैं।इस माग्व पि माउंटेन बाइक की सवािी क िना सुवनलचित फकया जाता है। जम् कश्ीि का सबसे ऊँचा पठाि िद्ाख सबसे ऊंचा पठाि है। पठाि औसत समुद्र ति से 3000 मीटि ऊपि स्थित है। दवनया के सबसे कदठन टट्ेफकंग रूटस में से एक याफत्यहों के अनुसाि, चादि टट्ेक दवनया के सबसे कदठन टट्ेफकंग टल्स में से एक है। इस टट्ेफकंग रूट में जमी हई ज़ांस्ि नदी की पगिफियाँ शावमि हैं। इस प्रकाि, माग्व केवि ददसंबि के अंत औि फ िविी के बीच खुिा है। पूि टट्ेल्स में तापमान शून् से कम िहेगा। दवनया का सबसे ऊंचा आइस हॉकी रिंक िेह का क िजू आइस हॉकी रिंक दवनया का सबसे ऊंचा प्राकवतक रिंक है। रिंक एक लसंचाई ता िाब है।जो औसत इस रिंक में ववंट ि स्पोटस्व क्लब टू नमामेंट होते हैं। देश का सबसे बडा िाष्ीय उद्ान भी यही है। िद्ाख का हेवमस िाष्ीय उद्ान देश का सबसे बडा िाष्ीय उद्ान है, जो 4,400 वग्व फकमी के वन् जीवन को संजोए हए है लसि नदी के पलचिम में स्थित यह थिान दहम तेंदए, नीिी भेड , वतब्बती भेड , िद्ाखीउरियाि औि अन् के लिए प्रलसद्ध है। बि्ववॉचचंग का आनंद िेने के लिए भी यह सही जगह है। इस क्ेत् में ददखने वाि शीष्व पक्ी ब्ाउन एक्टि, िॉवबन एक्टि, िि -वबल्ड चॉ़ औि दहमाियन स्ोकॉक हैं। हम पहि ही देख चुके हैं फक पैंगहोंग झीि खाि पानी की सबसे ऊंची झीि है जो सदद्वयहों में भी जम जाती है। इसके बाि में एक औि िोचक तथ्य है। यह झीि सूय्व
था। यह समुद्र ति से 6000 मीटि की ऊंचाई पि दवनया
का सबसे
ट्रैफकग ट्रे ल पर घमने कदा अहसदास ्ेखखए
आयो जमम और कशमीर ्ेखखए
उस की खबसरत तसवीर ्ेखखए
वर्ष : 2, अंक : 5 14 की स्थिवत के अनुसाि अपना िंग बदिती है। सुबह झीि नीि िंग की होगी औि दोपहि में हिी औि शाम को िाि हो जाएगी। मक्खन से बनी गुिाबी चाय वमिती है लजसे भभक्षुओ द्ािा पिंपिागत तिीके से बनाया गया लजसे िोग बहत ही खुश होके पीते है। दवनया का सबसे ऊंचा बैटिग्ाउं ि भी यही है, लसयाचचन ग्ेलशयि एक भाितीय सैन् अड्ा है औि यह भाित को हमिावि ताकतहों से बचा िहा है। `1972 का भाित-पाफक स्ान युद्ध इसी क्ेत् में हआ गगनप्रीत सपपल संगरूर घब्दान, पंजदाब आयो जमम-कशमीर ्ेखखए उस की खबसरत तसवीर ्ेखखए बिमा से ढके पहदाड़ ्ेखखए खबसरत और मशहर तदाज ्ेखखए डल झील पर बनी हदाउसबोट ्ेखखए शदांत वपकतनक सपॉट गलमगमा ्ेखखए पहदाड़ी और िलों के खेत ्ेखखए
जमम - कशमीर ्ेखखए
ऊंचा युद्धक्ेत् लसयाचचन ग्ेलशयि बनाता है। इस जगह पि दवनया का सबसे ऊंचा टेिीफोन बूथ भी है। यदद आप िद्ाख का अनुभव क िना चाहते हैं, तो अपने बैग पैक क ि औि अपनी छु दटियहों की आनंद िेने चि पड िद्ाख की ओि यादहों के खूबसूित सफ ि को लिखने अपनी िायिी में।
सह्यों से प्रबल पोषक-संवदाहक, प्रदा् ् हम
उस जननत के असली धरोहर, उत्तरदाचधकदारी ् हम
धरती के सवगमा, ऋवषयों की पदावन ्लम पर
बदारु्-बम, गोली कदा ्हशत िंकदा धमदा् कटटरपं्ी, मजहबी जजहदा् ने ववष िैलदायदा
मदासम हहन्ओं कदा नशंस कतलकर लह बहदायदा
उन वहशी जजहदाह्यों कदा खयौि ऐसदा
हम अपने जड़ से, झटके से ववलग कर डदालदा हम अपनी, जननी जनम्लम से कटकर ्र-ब्-्र कयों ठोकर खदाने को वववश हो गये
बस कसर ्दा कयदा यही हम अपने
सनदातन - धममा पर, अडडग दृढप्रततज्ञ ्
कटटरपं्ी और ्ेशद्रोही की
वर्ष : 2, अंक : 5 15 अिमानदा श्ीवदासतव मले लशयदा कोई पछे तमदाम सवदाल जजसे पछने कदा हक ्ी हमसे वसततः तछनदा गयदा कदाशमीरी हहन् नहीं मदात्र पहिदान कर कदाशमीरी पंडडत नदाम से ही कयो पकदारदा गयदा सदाजजशतन स्ी ्दारतीयों से ववलग कर कयों हमदार संप्मा अजसततव ही, ्दारतीयों से छपदायदा गयदा हमपे बेइंतहदा जलमो-लसतम कदा तनशदांन लमटदायदा गयदा अजनबी-परदायों सदा बस ्र से ही पिकदारदा गयदा जजस लमटटी के पीहढयों से आह् संतदान ् हम सनदातनी गयौरवदाजनवत, संसकतत-परमपरदा के
आंखों मे इसललए ि्ते हए कदांटे-शल ् अब ्ी तो एक बडदा प्रशनचिनह है ्दारत-रदाष्ट्र के प्रजदातंत्र पर कयों अपने ही ्ेश के तनवदासी हम अमनदावीय अनयदाय के लशकदार हए नीज ्ेश म शर्दा्गी बनने को लदािदार हए हम कदाशमीरी हहन् यदातन पंडडत सब कदांततकदारी, बदचधजीवी, समदाजवदा्ी मयौन मदानवीय पक् के हहतैशी कदा मखयौटदा लगदाकर बैठे कयों नजरे िेरकर य अपनी िपपी सदाधकर हमदारी मदां-बहन के इजजत के सरेआम तनलदामी पर मीडडयदा वदाले अबतक छोटी हर घटनदा पर वव्ेशों तक बेवजह कोहरदाम मिदाते,शोर करते कदाशमीरी हहन् के सदा् अतयदािदार पर कयों अबतक तसवीर, सचिदाई छपदाते अपने जखम-घदाव जजन्दा ललए हम कयों आजतक इंसदाि के है मोहतदाज इसललए फक हमन अबतक नदा ह्ए धरने नदा की सडके जदाम, और नदा क्ी उठदाए हच्यदार हमदारे सब्-धीरज ही हए हमदारे कदाल चधककदार है.. आई गई फकतनी सरकदार.. कयों अबतक हम अपने पयदारे वतन को वदापसी नहीं कर पदाये, बबछडदा सवपनों कदा संसदार..
वदाह्यदा बलदा रही ह
कछ गनगनदा रही ह
शदांतत से तम ्ेखो
तमह ख् से लमलदा रही ह..
कहीं ह ऊं ि तरुवर
कहीं पर झरमट ह
प्रकतत कदा सौं्यमा
हर ओर ही लटे ह..
नह्यों की धदारदा ्ेखो
बहती ही जदा रही है..
वदाह्यदां..
्ंवरों की गंजनों
से गंजती ह फिजदाएं.. तततललयों की रंगीनी और म्मसत हवदाएं.. िलों से डदाललयदा ्ी वदाह्यदा बलदा रही ह ख् को सजदा रही ह.. वदाह्यदां.. सरज ्ी जदाकर छपतदा पवमातों के पीछे.. पक्क्यों कदा कलरव िहंओर ही ह्खे.. पवमात की श्खलदाएं बदाह िैलदा रही ह.. वदाह्यदां.. ह इनकी ्ी वय्दाएं ह इनकी ्ी क्दाएं.. जखम इनके के ्ी बहतेरे मरहम ये ्ी िदाह.. खदामोलशयदा सनो तम कछ है जो सनदा रही है.. मीन यदा्व लशकोहदाबदा्, उत्तर प्र्ेश वदाह्यदा बलदा रही ह कछ गनगनदा रही ह शदांतत से तम ्ेखो तमह ख् से लमलदा रही ह.. वदाह्यदां..
लद्ाख भारत के उत्री भाग में स्स्त एक केंद्र शानसत प्देश वर्ष : 2, अंक : 3 17 चित्रक दा र श यदा म मनोहर ि व हदा् , म ंबई, मह दा र दा ष्ट्र
जमम , कशमीर और लद्दाख की चित्रकदारी वर्ष : 2, अंक : 5 18 पुिाना कश्ीि || वाटि किि || 24X34 इंच ऑगदेवनक मॉवनिंग के लिए तैयाि कश्ीि || वाटि किि || 24X26 इंच
वर्ष : 2, अंक : 5 19 सवािी का इंतजाि || वाटि किि || 24X26 इंच पानी पि तैिता बाजाि || वाटि किि || 24X23 इंच चित्रकदार शयदाम मनोहर िवन मंबई, महदारदाष्ट्र
वर्ष : 2, अंक : 5 20 िाजमा - १ कटोिी टमाटि - २ प्ाज़ - २ अदिक - १ छोटी फपसी हई िहसुन - २-३ किी कश्ीिी िाि वमच्व - १ बडी चम्च िवनया पाउिि - १ बडी चम्च सौंठ पाउिि - आिी छोटी चम्च हिी वमच्व - २ से ३ तेजपतिा - २ से ३ इिाइची - २ बडी मेथी दाना - आिी छोटी चम्च फपसी हई सौंफ - १ बडी चम्च िौंग - २ से ३ हींग - १ छोटी चम्च सिसहों तेि/घी - २ बड चम्च नमक स्ादानुसाि सबसे पहि याद से िाजमा को ६ से ७ घंटे पहि पानी में भभगो दें। अब िाजमा को अच् से िो ि औि फफि ६ से ७ कप पानी एक कुक ि में िेक ि उसमें िाजमा, तेजपतिा , बडी इिाइची, मेथी दाना, िौंग, हींग औि नमक िाि दें औि कुक ि बन्द क ि दें। इसमें तेज़ आंच पि एक सीटी औि िीमी आंच पि २ से ३ सीटी िेक ि पका िें। कुक ि ठं िा होने के बाद उसे खोि औि िाजमा औि उसका पानी २ अिग बत्वन में वनकाि िें। अब प्ाज़, अदिक औि िहसुन को वबना पानी िाि ग्ाइं िि में पीस िें। एक कढाई में सिसहों का तेि गिम क ि ि औि उसमे शाही जीिा औि हींग िाि दें। अब इसमें ग्ाइं ि फकया हआ पेटि िाि क ि उसे अच् से भून िें। फफि इसमें टमाटि की प्ूिी िाि क ि अच् से चिाते िहें जब तक कढाई में तेि ऊपि ना आ जाए। अब इस वमश्ि में सौंफ पाउिि, कश्ीिी िाि वमच्व, िवनया पाउिि औि सौंठ पाउिि िािक ि दोबािा अच् से पकने दें। अब इसमें फैंटा हआ दही िािक ि पूि वमश्ि के साथ अच् से वमिा िें। अब इसमें उबिा हआ िाजमा िाि औि ३ से ४ में उसे भून िें। अब आखखि में िाजमा का पानी िािक ि इस तिह वमिा ि फक उसका टैक्चि उभि क ि आए। िाजमा तैयाि है! इसे िवनया पतिी से गावननिश क िके गिमा गिम पिोसें औि इसका िुफ्त उठाएं! सामग्ी बनाने की ववभि िाजमा! बदिवा िहोंगिी स्पेशि वडो्रदा, गजरदात शीतल शमदा
धदारदा 370
गर फिर्यौस बर रुए जमीं असत, हमीं असतो, हमीं असतो, हमीं असत
सि कह गए अमीर खसरो
जननत है तो यही है
370 की बेडड़यों से आजदा्
ततरंगे म लहरदाती
कशमीरी पंडडतों के मकदानों को
उनहीं कदा घर बनदाती
्दारत के एक हहससे को
्दारत से लमलदा ह्यदा 370 ये तने कयदा करके ह्खदा ह्यदा
जवदान के घर अब न मदातम मनदायदा जदाएगदा
जजहदा्ी बनने के ललए
अब कोई हदा् न आगे आएगदा
घसपैहठयों के हदा्ों से
अब बं्क छीनी जदाएंगी
घदाटी से आती िीख
अब और न सनी जदाएंगी
अब उनको ्ी हर बदात म
बरदाबर कदा अचधकदार होगदा
कयदा वो हमसे अलग ह
ये एहसदास न अबकी बदार होगदा
मेरे मन कदा कशमीर कर ्ेनदा
हर गम को अब खशी की जदागीर कर ्ेनदा! तम अपने मन को मेरे मन कदा कशमीर कर ्ेनदा!!
खखलते ह गल, हर गलशन के महकते छदाँव म!
ह पवमात, आसमदा से बदा्लों
तम अपने मन को मेरे
है!
ये इंतजदार की सब घडड़यदाँ, कदाटनदा ्ी कयदामत है!
न पछो वसल की रदात ्ी्दार-ए -यदार की कीमत; ्वदाबों के झरोखे से तेरदा आनदा ्ी तो इनदायत है!!
रदांझ्दा तम आलशकी म मझको बस हीर कर ्ेनदा!
तम अपने मन को मेरे मन कदा कशमीर कर ्ेनदा!!
वर्ष : 2, अंक : 5 21 रे ् जयसवदाल ‘रे ्कदा’ कहटहदार, बबहदार
जहदा
जहदा लमलते
के गदाँव म! जहदा रसते म बबछे रहते ह ्चधयदा बर्मा की िदा्र; जहदा झेलम म लशकदारे ह,
अपने
खखलते कवल से नदाव म!! लमले ् हम जहदाँ, वहीं चिनदार पर तहरीर कर ्ेनदा
मन कदा कशमीर कर ्ेनदा!! मेरे कत के ्दामन म, जो तमने की ्ी जर्ोजी! कर रही ्ीं सहेललयों सदारी, हमदारी ही सरगोशी! हो रही ्ी वदाह्यों म ह्लों की िोररयदा अकसर; तनगदाहों से बयदा हो रही ्ी, लबों की हर खदामोशी!! तम वर्दा-ए-इशक़ को ्आओं म नजीर कर ्ेनदा! तम अपने मन को मेरे मन कदा कशमीर कर ्ेनदा!! इन सरसब्ज वदाह्यों म, हवदाओं की जो लशरकत
वदाशी
अरोरदा बगलोर, क्दामाटक
हदा
हदाँ! कशमीर ह मै ्दारतीय उपमहदा्ीप कदा उत्तरी पजशिम क्त्र ह मै, हहमदालय की िदा्ी जैसी िमकीली िोहटयदा तनवदास है मेरदा।
िदारों ओर हररयदाली है, बिमा से ढकी घदाहटयदा श्गदार मेरदा करती है।
सतीसर मेरदा नदाम परदानदा, सीढी नमदा खेत यहदा और ्ेव्दार के लमबे वक् है।
कदायनदात कदा कोहहनर ह मै, हदाँ! कशमीर ह मै।
संतर, डकरदा, नदागरदा, सफियदानदा कलदाम पर
वर्ष : 2, अंक :
5 22
नेहदा जैन अजीज लललतपर, महदारदाष्ट्र
रबदाब लोक संगीत ह। पलवदामदा के सेब के बदाग, ! कशमीर ह मै
यदा पहलगदाम की बेतदाब घदाटी।
गलमगमा से सोनमगमा तक सयौन्यमा मेरदा
अमरनदा्, बैष््ो्ेवी और पटनीटॉप के
्चिगदाम ्ी बदाह िैलदाए है।
यसमगमा से लेह की बिमा बदारी, बदालटदाल की घदाटी म बबखरी
छटदा तनरदाली है।
डल झील महकी से बदात कोई करती
वलर झील ्ी नखरदा फकतनदा करती
मग़लगदाडमान यदा ्ेख मै, खमदानी िेरी आड़ अंगर की वदाहटक कहवदा की िदाय है, और सदा् म रो्।
लबदा् म
पर लगदाए टोपी , कदालीनों को बनते
पशमीनदा शदाले पयदारी पयदारी
ह्खती वहदा लहरदाती।
पेपर मेशी से तनलममात लशलप ्ी अद्
नतय ्ी रंगीले है।
“्दांड जशन” संवदा् करतदा, “क्” लोक्ेवतदाओं को प्रसनन करत
“नतय मखयौटदा” अद्त है, टयललप
्ड़, यदाक, बकरी और खचिर
यत्र तत्र, ई् और रमजदान पर होतदा “रउर्
“हदाफिजदा” के बबनदा अधरदा हर शदा्ी सम
“चिनहदा” ्ी च्रके पैर।
“बगी निन” ्लहन की वव्दाई होती नपरदा, हलदाकबं्, ्ेझोरी, गनस आ्ष् फक
मतवदाले है।
कोशर, डोगरी
सग हह्ी, उ्, अंग्जी है कढदाई कसी्दा ने ह्ल सबकदा जीत
लशकदारदा के बबनदा कहदा जजक है प
हहन् मजसलम लसख, बयौदध से बनदा ह मै धरती कदा सवगमा ह
श्ीनगर के र् पर सवदार हदाँ! कशमीर ह मै...
वर्ष : 2, अंक : 5 23
िदारों
केसर की है छदायी केसररयदा कोई, अखरोट की लकड़ी पर नककदाशी करती ढीले ढदाले टखने तक
लसर
तरह
कदारीगर,
महोतसव प्रलसदध है।
खदानकदाह-ए-मयौलदा
वर्ष : 2, अंक : 5 24 कशमीर की कररशमदाई संसकतत मीन बदालदा जदालंधर, पंजदाब
वर्ष : 2, अंक : 5 25 “गि फफिदौस बि रुये ज़मीं अस् हमीं अस्ो हमीं अस्ो हमीं अस्ो ” अथमात ििती पि अगि कहीं स्ग्व है तो यहीं है यही हैं यही हैं यह प्रलसद्ध पंक्ति फक सकी सुंदिता में कही गई है यह आप सब अच्ी तिह जानते हहोंगे। जी हां आपका अंदाजा सही है यह स्ग्व से सुंदि “कश्ीि ” के बाि में कहा गया है। कश्ीि कश्यप ऋफष के नाम पि थिाफपत फकया गया था। एक सुप्रलसद्ध कवव एवं इवतहासकाि कल्हन द्ािा िचचत िाजतिक्गिी में कश्ीि के इवतहास का बडा ही सुंदि वि्वन फकया गया है। कश्ीि जैसा सुंदि िाज्य आपने कहीं नहीं देखा होगा। यह अपनी अिौफकक सुंदिता के साथ-साथ अपनी अनूठी संस्वत के लिए भी सबके मन को मोह िेता है। यहां पि दहंद , लसक्ख, बौद्ध एवं इस्ाम िम्व का अनूठा संगम है। यहां के िोगहों की सादगी, सदहष्ता कावबि तािीफ है। अपनी अनुपम सुंदिता के साथ-साथ कश्ीि की सांस्वतक वविासत के भी क्ा कहने! यहां की फू िहों की वाददयां, घाफटयां, पव्वत पहाड , झिने नददयां, िि झीि सबको एकाएक अपनी औि खींच िेते हैं। जो एक बाि यहां पि आता है तो यहीं का होक ि िह जाता है। कश्ीि एक ऐसी जगह है जहां पि बड -बड कववयहों एवं िेखकहों ने अपनी िचनाओं को साकाि रूप ददया। इसकी सुंदिता के कािि ही यहां पि फफल्महों एवं सीरियिहों की शूफटंग की जाती है।द ि-दि से टूरिटि इसकी सुंदिता एवं अिौफकक वाताविि का आनंद उठाने के लिए आते हैं। यहां के िहन-सहन की बात क ि तो यहां के घि बड ही सुंदि एवं किात्मक ढंग से बनाए जाते हैं। अभिकति घि जो है वे िकडी के बनाए जाते हैं लजस पि बहत ही सुंदि मीनाकािी की गई होती है यहां पि फ शयों पि वबछे िंग-वबिंगे सुंदि कािीन शाही िहन-सहन का अनुभव क िाते हैं। ठं ि को भगाने के लिए लसगडी का प्रयोग फकया जाता है इस लसगडी की खास बात यह है फक इसे कंबि औि िजाई में िखक ि गममायश प्राप्त की जा सकती है। कश्ीिी खानपान की संस्वत भी बहत ही िजीज है। यहां पि शाकाहािी औि मांसाहािी दोनहों प्रकाि के व्यंजन का िुत्फ उठाया जा सकता हैं। मांसाहािी व्यंजनहों में मछिी, िोगन, गोश्त का कबाब, कोफ्ते , जोश यखनी, मांसाहािी कलियां, िोगन, सीक कबाब आदद खाने को वमिते हैं। शाकाहािी भोजन में शाकाहािी कलियां , िाजमा, दम आि , बैंगन आदद मुंह में पानी िाए वबना नहीं िह सकते। िट्ाई फ्ट में तो कश्ीि सबसे अभिक मशहि है यहां के काजू, बादाम अखिोट, अंजीि की पूि देश में फिमांि है कश्ीिी केसि की तो कोई साख ही नहीं, सबसे शुद्ध केसि कश्ीि में ही वमिता है। फिहों में कश्ीिी सेब, चेिी, आि कश्ीिी खजूि बहत ही स्ाददष् खाने को वमिते हैं। कश्ीि की भाषा भी अनुपम एवं अनोखी है। यहां की प्रलसद्ध भाषा कश्ीिी है इसके अवतरिति िोगिी, उद , दहंदी, अंग् जी आदद भाषाएं भी बोिी जाती हैं ।यहां के प्रलसद्ध कवव एवं िेखकहों में अब्ि िहमान िाही, अमीन कावमि , गनी कश्ीिी, िसूि मीि, लजंदा कॉ ि आदद प्रलसद्ध है । इनकी िचनाएं सादहब्त्यक परिदृश्य से ओतप्रोत है। इन्होंने कश्ीि की संस्वत को अपनी भाषा में बड ही मनोिम ढंग से प्रस्त फकया है। यहां के पहनावे की बात क िी तो यहां पि एक खास प्रकाि का पहिावा “फ फिन” पुरुष एवं मदहिाओं दोनहों द्ािा पहना जाता है यह एक िंबे कु तदे की तिह होता है लजसके ऊपि बहत ही सुंदि कढाई की गई होती है इसके साथ एक ढी िा सा पजामा पहना जाता है मदहिाएं अपने लसि पि िाि िंग की पटिी बांि क ि िखती है इसके अवतरिति पशमीना शॉि लसि औि कं ि पि िखा जाता है। मदहिाओं के आभूषि बहत ही सुंदि देखने को वमिते हैं। यहां पि अत्यभिक सदगी होने के कािि वस्त्र ऊनी एवं फ ि वाि होते हैं जो फक उन् ठं ि से बचा क ि िखते हैं । यहां के प्रमुख त्योहािहों में में ईद उि अजहा, ईद उि फफति, हैवमस महोत्सव, वैशाखी, टयूलिप फे ब्टिवि , लशकािा महोत्सव, गुिेज महोत्सव, िोहडी आदद बडी िूमिाम से मनाया जाते हैं। त्योहािहों के मौके पि बनने वािी मीठी सेवइयां सबको बहत िुभाती हैं ये सबको वमठास भि बंिन में बांि क ि िखती हैं। यहां के िोक नत्य में िमहि , रूफ, हाफफजा, कुद, वुगी नचुन बहत प्रलसद्ध है। कश्ीि का भूमिो नत्य तो सभी ने देखा ही होगा जो जबिन हमाि मन को िुभा िेता है। यहां का सूफी गायन बहत प्रलसद्ध है चक िी िोकगीत के तो क्ा कहने। अंततः कश्ीिी संस्वत के गुिगान की कोई सीमा नहीं है इसीलिए अभिक ना कहते हए बस यही कहना चाहंगी फक कश्ीि की सांस्वतक सुंदिता उस गुड के समान है लजसकी वमठास को लसफ्व महसूस फकया जा सकता बयान नहीं फकया जा सकता। इसलिए इसे एक गीत के द्ािा आपके साथ गुनगुनाना चाहंगी : फकतनी खूबसूित यह तस्ीि है मौसम बेवमसाि बेनजीि है यह कश्ीि है यह कश्ीि है...
कलम सखती है सयदाही
शब््ों म कैसे ललख पदायी
कशयप की धरती पर ्ेखो
नब्बे म त्रदास्ी ्ी आयी
शंकरदािदायमा ने जहदा
ज्ञदान गंगदा ्ी बहदायी
लललतदाह्तय ने जहदा
सयमा की आ्दा िमकदायी
84 खं्ों पर जजसने मदातमाणड मंह्र ्दा बनदायदा
मदात्लम छोड़ने के ललए
पंडडतों को आघदात पहिदायदा
िलो ललखने की कोलशश
करते ह एक हम ्ी
१९ जनवरी ९० को
्ेखदा ्दा नरसंहदार यहीं
पदाि लदाख पंडडतों कदा
उजड़दा ्दा संसदार यहीं
गज रहे ् नदारे ्ेखो
हर गली ियौबदारों म
नदारे
मोहमम् शदाह वहदा
कशमीर कदा वजीर कहलदायदा
मंह्र तोड़ वहदा पर उसने
मजसज् कदा तनमदा् करदायदा
वर्ष : 2, अंक : 5 26
लगते ् वहदा यहदा कयदा िलेगदा तनजदाम ए मसतिदा कशमीर म अगर रहनदा है अललदाह ह अकबर कहनदा है हम िदाहहए पदाफकसतदान कशमीर कदा ््मा हहन् महहलदा हो पर न हो म्वो कदा तनशदान िल रही ्ी तकरीर इसलदाम पदाफकसतदान की सड़कों पर ्दा हदाल यही ८५ से शरू हआ ्दा ्यौर ये कतले आम कदा ९० म ये खतम हआ छोड़ ह्यदा कशमीर जहदा ववस्दावपत पंडडतों ने लमल पनन कशमीर संघ गहठत फकयदा पंडडतों कदा ्दा बदाहलय पननन कशमीर म सन ८६ कदा ्ी आयदा गलदाम
१२
सत्तदा से
कदा यही तन्माय आयदा सन ८७ के िनदावों म कटटरपं्ी हदार गये शदांतत के खदाततर आखखर वहदा पर मत्दान हए इसलदाम खतरे म बतदाकर ्ंगे वहदा फिर से हए जेकेएलएि कदा गठन
मदािमा सन ८६ को
उसको हटदायदा रदाजयपदाल जगमोहन
फकयदा गयदा ८८
उद्शय मदात्र ्दा इसकदा
कशमीर अलग हो ्दारत से
१४ लसतमबर सन ८९
हतयदा हई इक नेतदा की
टीकदालदाल टपल नदाम से
वो प्रलसदध ् वहदा
कशमीरी पंडडतों को
तनकदाल ्गदाने के खदाततर
पहली हतयदा इनकी की
डेढ महीने बदा् वहदा
जज नीलकंठ को मदार ह्यदा
इस हतयदा के बदा् वहदा
वकील प्रेम्ट मदार ह्ए
जज सदाहब ने गनदाह फकयदा
मकबल ्टट को िॉसी ्
मयौत लमली जजससे उनको
१३ िरवरी सन ९०
श्ीनगर के लदासदा कयौल
मदार ह्ए गए यहदा
जलदाई से लेकर नवंबर तक
७० अपरदाधी ररहदा हए
सन ९० के समय
कोई जवदाब लमलदा नहीं
नेशनल कदांफ्स से फिर वहदा
सवदाल आज ्ी खड़दा हआ है
्ेखो जैसे कदा जैसदा
वर्ष : 2, अंक : 5 27 धीरज कमदार शकलदा’्शमा’ झदालदावदाड़, रदाजस्दान
म
वर्ष : 2, अंक : 5 28 जमम-कशमीर और लद्दाख के मखय तययौहदार और शोंडल नतय रीतदा खरे मंबई, महदारदाष्ट्र जमम कशमीर म ववल्नन परंपरदाएं संसकत ह ्दारतीय रदाजय के तीन प्रदांत जमम, कशमीर और लद्दाख यहदा लग्ग एक से ही तययौहदार मनदाते ह जमम कशमीर म लग्ग 10 तयोहदार मनदाए जदाते ह उनम से कछ मखय तयोहदारों के बदारे म आपको बतदाते ह।जजसम से हे लमस िजसटवल, वैशदाखी टयललप, लशकदारदा महोतसव, गरेज महोतसव, हेर्, पोंगल आह्, इसके अलदावदा ई्-उल-जहदा, ई् उल फितर इस प्रकदार मसलमदानों के ्ी तयोहदार मनदाए जदाते ह पोंगल वैशदाखी, लोसर डंगर और ्ी अनेक तययौहदार है।
वर्ष : 2, अंक : 5 29 इसी प्रकाि अनेक औि भी त्यौहाि हैं गुिेज महोत्सव, गुिदान नाम चोट भी इनके ही त्यौहाि है यह िोग त्योहाि मनाने के बड शौकीन होते हैं औि हि त्यौहाि को बड िूमिाम से सभी जावतयां एक साथ वमिक ि वमिजुि क ि खुशी से मनाते हैं सभी सदस्य एक साथ नाच गान क िते हैं अपने घिहों को खूब सजाते हैं फफि एक दसिहों के घि वमिने जाते हैं हेवमस फे ब्टिवि 30 जून से 1 जुिाई को मनाया जाता है। यह सबसे मायावी औि िंगीन तिीके से मनाया जाता है लजससे पूि कश्ीि को सजाया जाता है। जम्-कश्ीि का त्यौहाि हेिथ त्योहाि महालशविाफत् के रूप में मनाया जाता है यह कश्ीिी पंफितहों का सबसे बडा त्यौहाि है ठं ि के मौसम के परिणिवत क िने को हेिथ महोत्सव कहते हैं जो फ िविी या माच्व की त्योदशी को मनाया जाता है िोहडी जम् प्रांत का यह बह प्रलशलक्त त्यौहाि है। िूंगि त्यौहाि जम् कश्ीि में फपतिहों के नाम तप्वि के लिए मनाते हैं। यही सब त्यौहाि िद्ाख में भी मनाते हैं िद्ाख का मुख्य त्यौहाि िोसि है जो फक नए साि की शुरुआत में मनाया जाता है यह त्यौहाि काफी ददनहों तक चिता है इसकी तैयािी पहि से की जाती है इसमें तिह-तिह के मुखोटे िगाक ि अच्ी -अच्ी िट्ेस पहनक ि सामूदहक नत्य गान क िते हैं यहां के िोग खुश ददि होते हैं औि खुश वमजाज भी होते हैं पूिी मस्ी के साथ जीते हैं औि नत्य क िते हैं। इनके नत्य को शहोंिि नत्य कहा जाता है यह अपने िाजा के स्ागत में िाजा के लिए ही नत्य क िते हैैं। िोसि त्योहाि 3 से 5 माच्व में मनाते हैं इसमें तिह-तिह के मुखोटे िगाक ि ववववि प्रकाि से नई िट्ेस पहनक ि िांस क िते हैं औि बहत खुश होते हैं इनका एक औि मुख्य त्योहाि हेवमस महोत्सव भी बहत िूम िाम से मनाया जाता है यह 30 जून से 1 जुिाई तक मनाया जाता है। जम् कश्ीि में महालशविाफत् भी मनाई जाती है इसको दसि नाम से पुकािते हैं लजसे हेिथ महोत्सव कहते हैं। यह कश्ीिी पंफितहों का सबसे बडा त्योहाि है। यहां के कश्ीिी पंफित इसको बहत िूम से मनाते हैं उनका यह त्योहाि भी मुख्य त्योहाि होता है यह त्योहाि फ िविी या माच्व की त्योदशी को मनाया जाता है। यहां के िोग त्यौहाि मनाने में बहत शौकीन होते हैं जो भी मनाते हैं पूि ददि से मनाते हैं पूि उत्साह के साथ मनाते हैं यहां पि लशकािा महोत्सव भी मनाया जाता है ईद इ ि फफदि भी सभी मनाते हैं मैदानी भागहों जैसे कई त्यौहाि यहां पि मनाते हैं वास्व में यह थिान भाित का स्ग्व यही है।
म
सब गल ललखदाए आ गई
ये घदाहटयदा तक्ीर म।
इन वदाह्यों के बीि म
बहती हई डल झील है ्ेखोगे
वर्ष : 2, अंक : 5 30 वो सह्यदा वो ह्लकशी रंगीतनयदा तसवीर की जंजीर सी है बदाँधती आबोहवदा कशमीर की।
बड़ी जोर से ह ्दागती मजशकल है इन म तैरनदा जो ्ी लमलें उछदालती। जननत
तो बस यहीं कशमीर
लहर चिनदाब की सनो
कहीं पर है अगर
पनम रदात म पदानी वहदा कदा नील है। ्दारत के नकशे पर ह्खे सर पर जड़दा वो तदाज है बड़ी अलह्दा तहजीब यह कशमीररयत पे नदाज है। केसर की खखलती कयदाररयदा सेबो से ल्ते बदाग म कशमीर की स्रतदा ह्ल लग गयदा जो झील म बहतदा लशकदारदा यदा् म। गलमगमा कदा जो हसन है कहीं और ्ेखदा है कहीं खखलते गलों कदा ्ेवतदा ऊं ि चिनदारों कदा धनी। बेतदाब सी हो घदाहटयदा तमको बलदाए ्र से अरे घड़सवदारी लो मजदा जननत फिरो ्सतर से। जदाड़े के मयौसम म सनो होते अजब से खेल ह
जब बिमा पर जदाएं यहदा
फर्र्यौस ्ी बेमेल है।
लद्दाख कदा बंजर घनदा
धसर छतों सदा बन गयदा
कई मठ परदाने है बहत
आलमल जहदा पर रम गयदा।
जमम बलदावदा ् रहदा
शेरोंवदाली के ्र िलो
मधकर वनमदाली
मजफिरपर, बबहदार
वर्ष : 2, अंक : 5 31
मननत ्ी परी हो सके ववनती वहदा जो कर िलो। मजशकल िढदाई िढ सको तो ्ोले बिदामानी लमले फकसमत ्ी ले फकन िदाहहए ख् की रजदा ्दानी लमले। सोने कदा मगमा ्ेखकर य मन करे बसते वहीं िलों कदा बदानदा ओढकर जो ्ेवतदा हसते वहीं। तम ने सनदा है कदारचगल पदागल पड़ोसी यदध कदा फकत जगह यह प्रेम की पहले रहदा वो बदध कदा। ्तनयदा की छत पर िढ सको पवमात खड़े ह घेर कर हदाय लेह की वो सह्यदा पशमीनदा ओढ ्ेह पर। ्हशत के सदाए म रहदा घदाटी नहीं खशहदाल अब पर उममी् ह ह्खीं रयौशन हआ पंजदाल अब।
वर्ष : 2, अंक : 5 32 मदानसर झील ततलक गोसवदामी मदानसर, जमम
वर्ष : 2, अंक : 5 33 मदानसर झील ्दारत के जमम और कशमीर के नद्रशदालसत प्र्ेश के जमम mein udhampur जजले म जस्त एक झील है। यह जमम शहर से 50 फकमी ्र घने वनों और पवमातों से तघरे एक क्त्र म है। इस से लग्ग 16 फकमी ्र सररनसर झील जस्त है और मदानसर-सररनसर को क्ीक्ी जड़वदा झीलों के रूप से ्ेखदा जदातदा है। बभ्वाहन ने सुिंग साि में जमीन में एक तीि मािक ि पाताि िोक तक अपना िास्ा बनाया, जहाँ से एक झिना वनकिा, लजससे सुरिनसि झीि बनी। शेषनाग को हिाने के बाद, बभ्वाहन ने उसके ऊपि पथ्ी में एक औि तीि चिाया, मणि सि (अब मानसि झीि ) में मणि के साथ उभिा, औि अजु्वन को वापस जीववत क ि ददया। उतिि मानसि झीि में बहत सािी गवतववभियाँ आयोलजत की जाती हैं, जैसे फक नववववादहत जोड यहाँ झीि के पास के मंददिहों में अनुष्ठान क िने आते हैं, दहंद ओं के कुछ समुदाय वहाँ “मुंिन” भी क िते हैं, औि मानसि झीि भोजन औि लशल्प का थिान भी है। अप्रैि के महीने में त्योहाि, मई के महीने में िोगिा का त्योहाि। मानसि झीि के पूवगी तट पि एक शेषनाग को समफपनित मन्न्दि है, यह वो नाग है जो भगवान ववष् के लिये शेष शय्ा बनाता है औि इसके कई लसि कहिाते हैं। इस थिान पि एक बडा लशिाखण्ड है लजसके ऊपि कई िोहे की जंजीि बंिी हई हैं। ये संभवतः शेषनाग के स्ागत में प्रतीक्ाित छोटे सांपहों के प्रतीक हैं। मयरदा मदा्के इं ्यौर, मधयप्र्ेश कववतदा अद्त कशमीर अद्त नज़ािहों की यह पावन ििा यहां पव्वत को छू िहा फकििहों का वमिाप जैसे ही होता दहम से यह बसंती िंग में बदि िहा अद्त नज़ािहों की यह पावन ििा वाददयहों को, ऊंचे वक्ो को समेटे हए यह झीिहों की िहिहों को िपेटे हए इन झीिहों पि िहिाता सुंदि लशकािा अद्त नज़ािहों की यह पावन ििा इस सुंदि जगह को देख मोह है हो िहा तभी इसे ििती का स्ग्व कहा अद्त नज़ािहों की यह पावन ििा
वर्ष : 2, अंक : 5 34 लद्दाख के मेले और तययौहदार शर् लसंह लखनऊ, उत्तर प्र्ेश लद्दाख के मेले और तययौहदार, खबसरती से लसकनदाइज फकए गए नकदाबपोश नतयों, बयौदध अनष्ठदानों, ववल्नन प्रकदार के समदारोहों और जोर्दार समदारोहों दवदारदा चिजहनत, लद्दाख पयमाटन कदा एक अल्नन और महतवप्मा हहससदा ह। वे लद्दाख के लोगों की ववरदासत और संसकतत म एक अतयंत उपयोगी अंतदृमाजष्ट प्र्दान करते ह। इस क्त्र पर ततब्बती बयौदध धममा कदा प्र्दाव ववशेष रूप से मजबत है, और सवदा्दाववक रूप से, यह मनदाए जदाने वदाले तयोहदारों म पररलक्क्त होतदा है। बड़ी संखयदा म घरेल और अंतररदाष्ट्रीय पयमाटक लद्दाख म अपनी छटहटयों के ्यौरदान इन तयोहदारों म शदालमल होते ह, कयोंफक वे एक ऐसदा अन्व प्र्दान करते ह जो इस क्त्र के ललए ववलशष्ट है।
वर्ष : 2, अंक : 5 35 िद्ाख में त्योहािहों में भाग िेने से आपको िद्ाख की सांस्वतक वववविता का भी अंदाजा होता है।िद्ाख में आयोलजत होने वाि कुछ मेि औि त्यौहाि भाित औि ववदेश दोनहों से पय्वटकहों को आकफषनित क िते हैं। वे अपने भव्य समािोहहों , सांस्वतक महत्व औि इसलिए भी फक वे पूि क्ेत् के िोगहों को आकफषनित क िते हैं, के कािि बेहद प्रलसद्ध हैं। उनमें से कुछ यहां हैं। िोसि िद्ाख में सबसे बड त्योहािहों में से एक है, लजसकी उत्पभति 7वीं शताब्ी में हई थी, औि वतब्बती बौद्ध िम्व में नए साि के आगमन का प्रतीक है। यह िगाताि 15 ददनहों तक मनाया जाता है, इस दौिान पूव्वज हों , देवताओं औि जानविहों को भोजन क िाया जाता है। चांगकोि , या वतब्बती बीयि, इस दौिान िोग पीते हैं। इबेक् फियि िांस के साथ अच्ाई औि बुिाई की ताकतहों के बीच एक मंचचत िडाई इस उत्सव का मुख्य आकष्ववतब्बती बौद्ध िम्व के संथिापक फपताओं में से एक, गुरु पद्मसंभव के जन्म को चचवनित क िने के लिए हेवमस त्सेचु मनाया जाता है। हेवमस मठ में मनाया जाने वािा, िद्ाख में भभक्षुओं द्ािा पहने जाने वाि नकाबपोश नत्य औि िंगवबिंगी िेशमी पोशाकें इस उत्सव में अवश्य शावमि होती हैं। नत्य भी ववशेष हैं, क्होंफक वे बुिाई को हिाने के लिए अपने आठ रूपहों में गुरु पद्मसंभव द्ािा फकए गए ववभभन्न जादई काययों को द शमाते 1997 में शुरू हआ लसि द श्वन का त्योहाि, लसि नदी को सम्ान देने के लिए आयोलजत फकया जाता है, क्होंफक यह इस क्ेत् में सभ्यता का प्रतीक है। यह वरिष्ठ िामाओं द्ािा बौद्ध प्राथ्वनाओं औि प्रलसद्ध किाकािहों द्ािा कई सांस्वतक काय्वक्रमहों द्ािा चचवनित है। त्योहाि हमाि सैवनकहों को सम्ान देने के लिए भी आयोलजत फकया जाता है जो हमािी सुिक्ा औि सुिक्ा सुवनलचित क िने के लिए हि िोज अपनी जान जोखखम में िािते हैंिद्ाख हावदेटि फे ब्टिवि , जैसा फक नाम से पता चिता है, फसि के मौसम को चचवनित क िने के लिए मनाया जाता है। कटाई का मौसम िद्ाख में ववशेष रूप से ववशेष समय होता है औि जोिदाि उत्सवहों द्ािा चचवनित फकया जाता है। नकाबपोश नत्य, िोक संगीत, तीिंदाजी, संगीत काय्वक्रम औि िंगमंच उत्सव के दौिान की जाने वािी कुछ गवतववभियाँ हैं। त्योहाि के दौिान एक प्रमुख िावमनिक जुिूस भी आयोलजत फकया जाता है।शाक्मुवन (गौतम बुद्ध का दसिा नाम) के जन्म के प्रतीक के रूप में शक दावा महोत्सव मनाया जाता है, जब उन्होंने परिवनवमाि के बाद आत्मज्ान प्राप्त फकया। पूि क्ेत् में मंत् “ओम मणि पदमे हम” का जाप फकया जाता है। इस ददन फक सी भी जानवि को नहीं मािा या खाया जाता है, औि तािपोचे में एक नया झंिा स्भ खडा फकया जाता है, औि िोग उस पि नए झंि िटकाते हैं। वास्व में, त्योहाि समग् रूप से बौद्ध िम्व की भावना का प्रवतवनभित्व क िता है, औि हि कोई इसमें िूबा हआ देखा जा सकता है।
हो एक मसलदा बनके, बबख़री
छदाँव लमले जो एक घने शजर की गजरतदा खवदाब मककमल हो जदाए जो तदा-सहर ्ेखदा हमने ्ोसत-ए-क़मर बन के।
इबदा्त की अब जगह कहदा .... हहकदारत ही नजर आतदा ह कैसे जजक-ए-अजीयत करू
नीं् तदा-सहर गम हो गयी है एक िररयदा् बन के।
के अब रख कैसे
म रुमदानी यदा्ों
वर्ष : 2, अंक : 5 36 कहते हो जमीं म जननत है ये पर.... हैरदा ह ख़्दा ्ी तेरे हदालदात ्ेख के। यहदा बीतदा हर इक ह्न नयदा सबब लसखदा गयदा अलिदाजों म कयदा बयदा करू मेरदा ््मा ्ी कहीं न तनकले ह्खदावदा बन के। पछती ह एक स़वदाल ख़् ही से, इंशदा की मरदा् कब खतम होगीं? नजर ्क सी गयी ह ....सखे ्ऱखत को ्ेख के। जहन म आते
हई है जज्ंगी
यहदा हजदारों खवदाहहश बन के।
अरमदान ह्ल
्यौर-ए-हहज्र
के सदा् वदासतदा पड़ गयदा है मिलती रूहों से.... इंसदातनयत की तीमदार-्दारी करो ख्दा के बं् बन के। ्दासतदान-ए-कशमीर रंजनदा वमदा तलमलनदाड
्दारत ्लम सवगमा से ्ी स्र, कशमीर जजसकदा,अनपम लशखर.
वर्दान सवरूपदा धरती है यह, हरे ्रे वन,बदाग, सख कर.
सोनमगमा,गलमगमा,खखलन मगमा, िलों से सवदागत करते जी ्र.
अतलय छटदा है, िह ओर बबखरी, नैसचगमाक सौं्यमा ललए,ग्दाम _नगर.
डल, विर, अंिर सी झीलें यहदां, श्ी नगर की शो्दा है प्रीतत कर
अमरनदा् म सवयं सितमा,लशव ललंग, धनय हो उठते ,्कत वहदा जदा कर. मदातदा वैष््ो ्ेवी के जयकदारे लगदाते, श्दधदाल लमलदाते सवर म सवर केसर कयदारी,िलों,िलों की धरदा, पहलगदाम की छटदा है रुचिकर.
लेह _ल््दाक की ्लम है पयदारी, बदध की करु्दा _प्रसदा् पदा कर.
अखंड कशमीर ,हमदारदा अंततम लक्य, ववशव मंि पर गंजे हमदारदा ्दावदा प्रखर.
रमदाकदांत शमदा
डदांडेली, कनदामाटक
वर्ष : 2, अंक : 5 37
अखंड कशमीर, हमदारदा अंततम लक्य
कशमीर की यदात्रदा
वर्ष : 2, अंक : 5 38
कश्ीि की सुंदि वाददयाँ, खूबसूित पहाड , िि झीि , नौका ववहाि, कश्ीिी सेबहों के बागात, केसि के खेत, काँगडी, हाऊसबोट ये सब फकताबहों में पढा था। औि फफि कश्ीि को ििती का स्ग्व कहते हैं तो इस स्ग्व के द श्वन क िने का बहत मन था। िफकन एक िि भी था मन में फक वहाँ आए ददन आतंकी हमि होने से कश्ीिी िोग ही िि सहमे िहते तो हमािा क्ा होगा। फफि कोई अपना भी वहाँ नही था लजससे वहाँ के हािात का जाएज़ा लिया जाए। बस एक इच्ा थी मन में फक चाहे जैसे भी हािात हहों एक बाि तो कश्ीि जाना है। कई साि पहि एक कश्ीिी से ़ेसबुक के ज़रिये बातचीत हई। उन्ोने आतंकी हमि के बीच कैसे लज़दंगी गुज़िती है वो सब बताया। सुन क ि एक बाि तो कश्ीि जाने की इच्ा को मन में दबा लिया। िफकन जब उस वमत् ने हौंसिा बढाया तो फफि से इच्ा जागत हई। पहि िॉकिाउन से दो साि पहि परिवाि सदहत कश्ीि घूमने का प्रोग्ाम बनाया। अभी मैने घि पि फक सी को भी अपनी वमत् के बाि में नहीं बताया था। हम तीन ददन के लिये गए थे। श्ी नगि पहँच क ि मैने अपनी वमत् को मैसेज क ि ददया था औि अपनी फै वमिी फोटो उसको भेज दी थी ताफक उसको हमें पहचानने मे आसानी हो।हम अभी श्ीनगि टिेशन पि ही थे फक मेिी वमत् अपने पवत के साथ गाडी ि क ि आ गई। औि मेि पवत से लज़द क ि के अपने यहाँ ि गई 3 ददन तक उसने हमािी खूब आवभगत की औि खूब हम सब को कश्ीि ददखाया। जो कुछ भी कश्ीि के लिए फकताबहों में पढा था सब साक्ात देख क ि मन बहत प्रसन्न हआ। औि गव भी फक हमने ििती के स्ग्व की सैि की। संसमर् िि झीि में नौका ववहाि का अिग ही आनंद आया। लजस ददन हमे वापस आना था उस िात हम एक साथ बहत देि तक बैठ क ि बातें क िते िहे। मैने कहा फक इतना अच्ा वक़्त गुज़िा फक पता ही नही चिा। िफकन मैने नोफटस फकया फक यहाँ िोग िि सहमे िहते हैं। तब मेिी वमत् ने बताया फक यहाँ कुछ परिवाि ऐसे हैं लजन्ोने आतंकी हमि मे अपनो को खो ददया है। अब पहि जैसे
वर्ष : 2, अंक : 5 39 सफियदा जै्ी सहदारनपर, उत्तर प्र्ेश कववतदा हमदारदा कशमीर ये खूबसूित सी हँसीं वाददयाँ, ये ििी ििी सी क्ूँ घाफटयाँ। देखो ज़िा कश्ीि की सिज़मीं तिह तिह की हैं यहाँ जावतयाँ। ये पव्वत, ये झी िें,ये केसि के खेत, ये कहवा, लशकािा, ये दिख्त-ए-च चनाि भाते बहत हैं ये कश्ीिी सेब। कश्ीि की सुंदिता का क ि कैसे बखान, नम आँखहों में चछपी है मुस्ान। वबना खौ़ के मैं कश्ीि देखूँ है मेि ददि में यही अिमान। स्ग्व है ििती का कश्ीि हमािा, वनकिता है ददि से बस यही नािा। नज़ि न िगे कभी इसको फक सी की, कश्ीि भाित का ताज है प्ािा। हािात नही है िफकन जो चि गए वो वापस तो नही आ सकते। औि फफि कब क्ा हो जाए कुछ पता नही इसलिये कश्ीरियहों की सुंदिता खौ़ का आविि लिये होती है। कब सुबह हो गई पता ही नही चिा औि हम अपनी वमत् औि उसके परिवाि वािहों से ववदा िेक ि औि बहत सािी कश्ीि की सौगात ि क ि अपने घि वापस आ गए।
धरती पर जो सवगमा कहलदातदा है।
वह कोई और नहीं कशमीर हमदारदा है।।
जहदा झेलम सररतदा नीर बहदाती है।
जहदा मनमोहक छटदा बबखेरती स्र घदाटी है।।
ऊं ि पहदाड़ों पर बिरों की िदा्र है।
जहदा खबसरत वदाह्यों म
गम - गम करतदा केसर है।।
चिनदार की पवत्तयों पर शबनम खझललमलदातदा है।
जहदा क्रत ्ी अपनदा खजदानदा लटदातदा है।।
डल झील की खबसरती सबको ररझदाती है।
जहदा के गीत कदानों म लमश्ी घोलती है।।
, िेरन, कहवदा और झीलों
समसतीपर, बबहदार
: 2, अंक :
वर्ष
5 40
समतदा कमदारी
म लशकदार ह। म्होश कर ् ऐसे हसीं ये नजदारे ह।। जहदा मंह्र की ्जन और मजसज् के अजदान कदा ररशतदा परदानदा है। िररशते उतर आए जहदा पर ऐसदा कशमीर हमदारदा है।।
संतर
कशमीर सवगमा कहलदातदा है
कशमीर, हरदा-्रदा पयदारदा कशमीर
हदाँ, वही ‘कशमीर’
जजसे ‘धरती कदा सवगमा’ कहते है।
जहदा हहमदालय की बिमा
रंग-बबरंगी वदाह्यदा रहती है।
हदाँ, यह वही कशमीर है
जहदा आजदा्ी के बदा् क्ी मजसलम
तो क्ी हहन्-पजणड़त की हतयदा होती है।
क्ी शदासन, क्ी सरकदार
जजस पर रदाजनीतत करती
क्ी जहदा आतंक की बन्क तनती है।
यह वही कशमीर है
जो आज, अमन-िैन ढढतदा है
अपने ही घर, गली और ियौरदाहों पर।
क्ी सत्तदा के वदार से
क्ी बटवदारे की मदार से जो लहलहदान है।
यह वही कशमीर है
जो आज अपने सयौन्यमा से परेशदान है।
हदाँ,
अब अमन की गहदार लगदा रहदा है।
हदाँ, यह वही कशमीर है
जो ्दारत के मसतक पर लहरदा रहदा है। पर रकतरंजजत ्लम ललये
वही कशमीर
हदाँ, वही हरदा-्रदा, खशहदाल कशमीर
आज कछ सवदाल उठदा रहदा है..
वर्ष : 2, अंक : 5 41 अतनल कमदार केसरी जजलदा ब्ी, रदाजस्दान
और
वही कशमीर जो क्ी हसतदा-मसकरदातदा ्दा। सकन से बिमा के बदा्लों म बैठदा जो क्ी शदाजनत के गीत गदातदा ्दा। अब टकड़ों म बटकर बदारु् समेटे, मयौत कदा सदामदान है। पछतदा है कशमीर क्ी आंतकवदा् तो क्ी हहन्-पदाक के यदध कदा मै्दान है। आज यह कशमीर िीक-िीककर चिललदा रहदा है। कब तक जलगदा ? निरतों की आग म, बेगनदाहों की लदाशों पर रोतदा यह कशमीर..
वर्ष : 2, अंक : 5 42 मदातदा वैष््ो्ेवी : यदात्रदा वत्तदांत कमलदा मलदानी ठदा्े, महदारदाष्ट्र हम अद् है। है, ववल्नन खदान- पदान, रहन -सहन ्दाषदाओं कदा यहदा अनोखदा खजदानदा ्रदा पड़दा है, हर ्ोस कोस पर ्दाषदा खदान पदान पदानी कदा सवदा् ब्ल जदातदा है, फिर ्ी परे ्ेश को एक सत्र म बदांधने कदा श्य हमदारे अनेकदानेक मंह्रों को जदातदा है जहदा ्ेश के प्रतये क कोने कोने से श्दधदाल ्लमा् ्शमान करने आते रहते ह, ऐसे ही एक मंह्र है जमम जस्त मदातदा वैष््ो्ेवी कदा मंह्र जो पहदाड़ की िोटी पर स्दावपत है ्ेश के हर कोने कोने से अल्लदाषी श्दधदाल यहदा ्शमान करने आते ह।
वर्ष : 2, अंक : 5 43 ऐसी मान्ता है फक माता का बुिावा आता है तब ही हम यहां द श्वन क िने आते हैं। २००४ में हमें मां का बुिावा घि बैठे बैठे अचानक आया मानहों माता ने हमािा सौभाग्य जगाया था। हम सपरिवाि माता के द श्वन क िने वनकि पड मुम्बई - जम् तावी ििगाडी में हमािा रिजवदेशन हआ था यहां पहंच क ि थोड आिाम के बाद कटिा औि वहां से माता के िाम जा पहंचे। सव प्रथम माता के द श्वन के लिए अपना नाम िलजटिि क िना पडता है प्रत्येक यात्ी का लसक्ोरिटी चेक होता है फफि शुरु होती है असिी पैदि यात्ा। सीवनयि लसटीजंस के लिए खच्चि की सवािी, पािकी लजसे चाि िोग साथ होक ि उठाते हैं, अब तो हेिीकॉप्टि सेवा भी उपिधि है । सबसे सुखद औि कदठन है पैदि यात्ा ,जय माता की क िते जाइए आगे आगे बढते जाइये एक घंटे तक चिने के पचिात हमाि पवत देव काफी तक गये थे जैसे ही थोडा सा सुस्ाने के लिए रुके अचानक एक श्स उनके सामने आया अपने हाथ की छडी देक ि कहा इसके सहाि चिते िदहए माता की मेहि होगी जय माता दी । सचमुच इनको उसके बाद जिा भी तकिी़ या थकान नहीं हई िाख कोलशश की फक मैं उस अनजान व्यक्ति को िन्वाद दे द पिन् वह श्स पूिी यात्ा के दौिान हमें कहीं नहीं ददखाई ददया ये सोच िहे थे शायद माता स्यं रुप बदि मेिा माग्वद श्वन क िने आ गयी थीं। मन में उत्साह औि उमंग साथ में जय माता दी के हि कदम पि जयकाि मन मोह िेते हैं। िात ददन चौबीस घंटे माता के द श्वन क िने यात्ी गि सुवविानुसाि चढते िहते हैं, हि दो तीन फकिोमीटि की दिी पि चाय औि भोजन के टिाि िगाए जाते हैं कहीं छोि चावि तो कहीं िाजमा चावि वमिता ही है, थकावट महसूस हो तो भोजन के पचिात थोडी देि सुस्ा िीलजए फफि आगे बफढए। एक बाि आप पहाडी पािक ि ऊपि पहंच जाओ फफि पंक्ति बद्ध खड होक ि मुख्य द्ाि तक पहंच सकते हैं माता के जयकािहों से पूिा वाताविि गुंजायमान िहता है हमने भी मुख्य परिसि में पहंच क ि द श्वन फकए माता का शुक्र फकया फक बिसहों पुिानी द श्वन की हमािी िािसा अचानक पूि्व हो गयी । मंददि में प्रसाद में वमश्ी औि माता के लसक् पाक ि हम िन् िन् हो गये। चढाई लजतनी कदठन थी वापसी उतनी ही आसान सी िगी। कटिा वापस पहंच क ि एक िात आिाम फकया अगि ददन फफि हम पटनी टाप के लिए वनकि पड मई का महीना था फफि भी ठं ि बहत ज्यादा पिंतु प्राकवतक नजािहों ने मन पूिी तिह मोह लिया था। हमें अपने ही कमि में कैसिोि में भिक ि भोजन पिोसा गया ताफक ठं िा न हो जाए। अगि ददन सुबह हमने गुनगुनी िूप में बाहि बैठक ि वास्ा लिया गम्व चाय औि पिाठे मक्खन के साथ, अंि को क्ा चादहए दो आंखें हमें िूप औि नाश्ता दोनहों वमि गये। पूि सफ ि में हम इस स्ाद को याद क िते िहे। यहां से वापस कटिा वािी बस में हमाि साथी यात्ी के सामान में हमािा एक प्रसाद वािा बैग चिा गया बस सववनिस हमें कटिा से होटि वािहों ने प्रदान की थी जब लशकायत की तो उन्होंने उस यात्ी को फोन क िके बताया फक हमािा बैग उनके सामान के साथ गल्ी से चिा गया है वे िोग उस समय चंिीगढ के लिए वनकि चुके थे औि हम अमतसि जाने वाि थे हमने उनको चंिीगढ में अपनी बेटी को वह बैग देने के लिए कहा फफि बेटी दामाद को पूिी जानकािी दी माता की मेहि से हमें वह बैग सही सिामत चंिीगढ में वमि गया। हम स्ि्व मंददि के द श्वन क िके अमतसि घूमक ि चंिीगढ आ गये जहां से दो ददन बाद हम वापस मुम्बई जाने वाि थे ये िोमांचकािी सुखद यात्ा हमेशा जेहन में बसी िहेगी। जय माता दी ।
चित्रक दा र श यदा म मनोहर ि वन वर्ष : 2, अंक : 5 44
वर्ष : 2, अंक : 5 45 िद्ाख आिारित चचत्किा