खंड - 1 • राम शबरी प्रसंग • कैकेयी का पूर्वजन्म • सीता स्वयंरर / लंका दहन • दक्षिणपथ पर वरजय यात्ा • सरयू के तट पर • रारण क्िंदा है • मेघनाथ रध • श्ी राम के रट प्रसंग • माँ कौशल्ा
संपादक मंडल सचिन ितुर्वेदी संस्ापक (नई ददल्ी) डॉ. तरुणा माथुर मुख्य संपाददका (गुजरात) वर्नीता पुंढीर ननदवेशक, अनुराग्यम(नई ददल्ी) मीनू बाला संपाददका (पंजाब) दूरभाष : +91 - 9999920037 पता : मालर्ीय नगर, नई ददल्ी (110017) र्ेबसाइट : www.anuragym.com ईमेल : anuragyam.kalayatra@gmail.com उपरोक्त सभी पद मानद तथा अर्ैतननक हैं। पवरिका डडजाइनर : सचिन ितुर्वेदी मुख्य पृष्ठ आर्रण : सचिन ितुर्वेदी कॉपीराइट : अनुराग्यम् (संपादक मंडल) **पवरिका में बहुत से चिरि गूगल से नलए गए है. MSME Reg. No. : UDYAM-DL-08-9070 अनुराग्यम् के सोशल मीडडया प्टफोम से जुड़ने के नलए नीि ददए गए आइकॉन पर क्लिक कर के जुड़ सकते है | खंड - 1 / 2 / 3 कलायात्ा पत् त्का अयोध्ा वरशेषांक में उपलब्ध र्ष्म : 2, अंक : 2 3
र्ष्म : 2, अंक : 3 4 माि्म 2022 होली वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 11 अप्ल 2022 धानमक स्ल वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 12 मई - जून 2022 गुजरात वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 1 जुलाई - अगस्त 2022 महाराष्ट्र वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 2 नसतम्बर - अक्बर 2022 अयोध्ा वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 3 अनुराग्यम् की र्ेबसाइट से पुस्तक खरीद सकते है.. अनुराग्यम् पुस्तकालय अनुराग्यम् की र्ेबसाइट पर पुस्तक पढ़ सकते है..
र्ष्म : 2, अंक : 3 5 नसतम्बर 2021 गोर्ा वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 5 अगस्त 2021 ददल्ी वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 4 जुलाई 2021 वबहार वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 3 जून 2021 मध्प्देश वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 2 मई 2021 राजस्ान वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 1 अक्बर 2021 छत्ीसगढ़ वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 6 नर्ंबर 2021 पंजाब वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 7 ददसंबर 2021 यारिा र्रिांत वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 8 जनर्री 2022 हडरयाणा वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 9 फरर्री 2022 दहमािल वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 10 वपछले संस्करण
प्भु श्ी राम की यारिा.. लेख, आलेख एर् कवर्ताओं क साथ..
र्ष्म : 2, अंक : 3 7 सचिन ितुर्वेदी, प्धान संपादक एर् संस्ापक, अनुराग्यम् रमणे कणे कणे इति रामः || जो कण - कण म बसे, वही राम है। भगवान श्रीराम को कौन नहीं जानिा मरायादा परुषोत्तम श्री राम श्री हरर ववषण के 10 अविारों म से सािव अविार प्रभ श्री राम ह। भगवान राम का जरीवन संघषयामर होके भरी लोक कलराण के हहि को दरायािा है िथा आदरया प्रसिि करिा है। राम नाम मात्र नाम ही नहीं.. सर, चंद्रमा एवं अग्न से ब्रहमांड की उतपवत्त हई है, इसरीललए राम परब्रमहा है। राम नाम की उतपवत्त कछ इस प्रकार हई है : र : अग्न (र अग्न का बरीज मंत्र है) आ : सरया (आ सरया का बरीज मंत्र है) म : चंद्रमा (म चंद्रमा का बरीज मंत्र है) राम की गाथा को कछ रबदों म समाहहि करना असमभव है। उनका संघषयामर जरीवन जगजाहहर है, उनके जरीवन का कोई भरी हहससा देख लें, पणया रूप से प्रेरणातमक व अथयापणया है। प्रभ राम बचपन से ही ववनरररील थे और अपने जरीवन म इिने उिार चढाव के पशचाि भरी कभरी वववेक नहीं खोरा। आजकल की रवा परीढ़ी के ललए श्री राम से उत्तम मागयादरक हो ही नहीं सकिा, िलसरी जरी ने रामचररिमानस व वालमरीकक जरी ने रामारण म प्रभ श्री राम की अनेक गाथाओं का उललेख ककरा है। राम बचपन से ही दराल और सनेही थे। उनके अंदर मनोरम लरष्ाचार की भावना क्-क् कर भरी हई थरी। राम अतरनि ही सरल सवभाव वाले महापरुष थे, गजिना कहा जाए प्रभ श्री राम के बारे म, कम होगा। राम कैसे मरायादा परुषोत्तम श्री राम बने, कैसे उनहोंने अपने सभरी संघषषों का वववेकबद्धि से हसि हसि सामना ककरा और कभरी अपना सवभाव नहीं बदला। अपने वपिा के चहे ि थे श्री राम, पर जब उनको पिा चला कक उनकी माँ कैकई ने राजा दररथ से वचन ललरा ह, कक श्री राम को 14 वषषों के ललए वनवास भेजा जाए, श्री राम ने अपने वपिा के वचन का परा मान रखा और सहषया वनवास जाना सवरीकार ककरा। राजा दररथ ने प्रभ श्री राम को मना भरी ककरा और वह सवर इस बाि से ्् चके थे कक श्री राम को उनके वचनों का पालन करना पड़ रहा, प्रभ श्री राम ने अपने पत्र होने का कियावर तनभारा और चल पड़े अपनरी पतनरी सरीिा और भाई लक्मण के साथ। राजपा् और अपनरी सभरी सववधिाओं को तराग कर, अपने वपिा के वचन का मान रख कर वनवास की ओर प्रसथान कर हदरा। एक पत्र का कत्तयावर, प्रजा का हहिैषरी, पति धिमया तनभाने वाले राम ने सथान ले ललरा मरायादा परुषोत्तम प्रभ श्री राम का। र पत्त्रका एक प्ररास है, प्रभ श्री राम की महहमा को रचनाकारों ने अपने भग्ि व प्रेम भाव को रबदों म समाहहि कर पाठकों के हृदर िक पहचारा जा सके। अनरा्रम की पत्त्रका ‘कलरात्रा’ के दीपावली ववरेषांक आप सबके समक्ष है। आप सभरी अपना प्रेम अवशर दीगजरेगा और अ्धिक से अ्धिक इस पत्त्रका को साझा कीगजरेगा, गजससे सभरी लोगों को प्रेरणा लमले व अपने जरीवन चनौतिरों का सामना करने म सहरोग लमले। जब प्रभ श्री राम के भ्िों दवारा राम नाम ललखा पतथर भरी समद्र म िैर सकिा है, िो प्रभ श्री राम नाम से जनजरीवन और वरग्ितव को जो पररभाषा लमलेगरी, जो सभरी मनम्ावों को लम्ाकर सही हदरा म एक संदर और प्रेममर भारि का तनमायाण अवशर करेगरी। श्ी राम नसफ्म नाम नहीं आधार है जीर्न पथ का
(श्री राम आधिाररि)
1. श्िकीतिया, धिरीरज कमार र्ला, झालावाड़, राजसथान 11
2. ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम, उत्तर कननड़ गजला, कनाया्क 14
3. प्रभ दतनरा म एक ही जगह, मधि कशरप, हमरीरपर, उत्तर प्रदे र 15
4. आलहा छंद, नरीरू जैन तनरुपमा, मेरठ, उत्तर प्रदे र 16
5. जग म ऐसे राम, हेमलिा भारदवाज, इंदौर, मधरप्रदे र 17
6. िलार राम की / रावण गजंदा है, अचयाना अनवप्ररा, प्ना, त्बहार 20
7. अहहलरा-सरी िप-रग्ि, देवेनद्र प्रसाद लसंह, गागिराबाद, उत्तर प्रदे र 30 8. मेघनाथ वधि, इनद्रजरीि लसंह, नई हदलली 31
र्ष्म : 2, अंक : 3 8 • आलेख (श्री राम आधिाररि) प सं. 1. राम नाम सवर ही कावर है, तन्धि भागयाव मानवरी, नई हदलली 10 2. राम रबरी प्रसंग, पदमा दीवान, रारपर, छत्तरीसगढ़ 12 3. कैके ररी का पवयाजनम / मंथरा के पवयाजनम की कथा, तनमयाला मंदड़ा,
र 18
सरीिा सवरंवर / सरीिा हरण / राम सग्रीव लमत्रिा / लंका दहन / लक्मण मतछयाि रग्ि बाण 22 रमाकांि सोनरी सदरन, नवलगढ़ गजला झंझन , राजसथान 5. राम की दक्क्षणपथ पर ववजर रात्रा, रववनद्र ्गननौरे, छिरीसगढ़ 28 6. भगवान राम की मतर, रकिला
इंदौर, मधर प्रदे
4.
श्रीवासिव, भोपाल, मधर प्रदे र 32 7. मरायादा परुषोत्तम रामचनद्र की जरीवन गाथा, डॉ समन मलहोत्रा, मजफ्फरपर, त्बहार 34 8. सरर के ि् पर, नवनरीि चौधिरी, झंझन , राजसथान 44 9. सरीिा के जरीवन घ्नाक्रम, अचयाना श्रीवासिव, मलेलसरा 46 • कवविाएँ
9. धिनष रज्ञ / रामसेि, मनोरमा रमाया, हैदराबाद, िेलंगाना 33 10. रघकल के रघराई, अतनल कमार केसरी, बंदी, राजसथान 36 11. जर लसरा राम, अलभषेक ्चत्रांर, बरेली, उत्तर प्रदे र 37 12. श्री राम केव् प्रसंग, एकिा गपिा, उननाव, उत्तर प्रदे र 38 13. मरायादा परुषोत्तम राम, अलमिा गपिा, कानपर, उत्तर प्रदे र 39 14. राम! कहो कब आओगे?, देवेनद्र प्रसाद लसंह, गागिराबाद, उत्तर प्रदे र 39 15. राम हमारी मरायादा ह, अरोक प्सारररा नादान, ्ीकमगढ़, मधर प्रदे र 40 16. माँ कौरलरा, अचयाना लखोह्रा, अजमेर, राजसथान 41 17. श्रीरामचररि हर रग का आधिार है, परीरष राजा, नवादा, त्बहार 42 18. रामारण महाकावर, अलमि लसंहल, मेरठ, उत्तर प्रदे र 43 19. अवधि के राम, गजिनद्र रार, पणे, महाराषट् 51 अनुक्रमणणका
नेपाल, बाली, समात्रा, जापान, कोरररा, चरीन, कंबोडडरा, मलेलररा, लाओस, क्फललवपंस, श्रीलंका, लसंगाप र, बमाया, मंगोललरा और ववरिनाम म भरी श्री राम और उनकी कथाओं का वणयान
र्ष्म : 2, अंक : 3 9 डॉ तरुणा माथुर, मुख्य संपाददका, अनुराग्यम् अपनरी बाि का प्रारंभ म गगल के ववककपरीडडरा से करना चाहंगरी जहां ववशव म अगर कोई भरी श्रीराम के बारे म जानना चाह िो,और अथषों के साथ-साथ कबरीर दास जरी के”आदी राम” की पररभाषा का गज़क्र भरी वहाँ आिा है गजसम “आदी राम” की पररभाषा बिाि हए वे कहि ह कक “आदी राम “वह अववनाररी परमातमा ह, जो सम्ादकीय सबका सजनहार ,पालनहार ह। गजसके एक इरारे पर धिरिरी और आकार काम करि ह,गजसकी सिति म 33 कोह् देवरी देविा निमसिक रहि ह और जो पणया मोक्षदारक व सवरंभ ह। एक राम दररथ का बे्ा, एक राम घ् घ् म बैठा, एक राम का सकल उगजरारा, एक राम जगि से नरारा। रहाँ इस िरह अपनरी बाि रखने की वजह रह है कक भारि के अलावा भरी श्री राम को जगि का पालनहार माना जािा है और ना केवल भारि म बगलक
कई िरह से होिा है और बहि संदर प्राचरीन मंहदर भरी वहाँ सथावपि ह। इससे रह िो पिा ही चलिा है कक श्री राम जगि परुष जगि पालनहार के रूप जाने जाि ह और उनके बारे म दसिावेजों की कोई कमरी नहीं है जो प्रमाणणि भरी है और प्रमाणों के आधिार पर इसकी पगष् भरी हो चकी है कक, रह लस्फया आधरागतमक कहानरी नहीं बगलक जरीवन कथा है गजसके प्रमाणों
10 मानस पत्रों म
और त्रेिा रग म इनहीं के वंरज प्रभ राम थे। इसललए प्रमाणों की आवशरकिा उनह ही होिरी है जो भारि के प्राचरीन इतिहास के जानकार नहीं है, वरना प्रभ राम के होने को मानना हर भारिवासरी का खली आँखों से देखे जाने वाला सबसे संदर सपना है। ईक्वाक वंर इिना प्रबल है कक गजस का ना रस समापि होिा है ना रर समापि होिा है। प्रभ राम की कथा संपणया जरीवन वत्त म पाररवाररक संबंधिों का संदर िाना-बाना है, कहीं गरु लरषर परंपरा, कहीं सखा भाव िो कहीं वरवहाररक रूप से कौरल धिारा। असतर पर सतर की जरीि के ललए श्री राम अरोधरा से गए िब राजकमार राम थे ककि जब लौ् िो जो काम उनहोंने ककरा वह दे र को एक करने के ललए था और इस ववजर रात्रा से हम इसरीललए इिने दीपि, उतसाहहि, उतप्रेररि और सममोहहि होि ह। श्रीराम के चररत्र के अगर ककसरी एक भरी कड़री को हम अपने जरीवन म उिार लें िो सवयाश्षठ मनषर बनने की हमारी रात्रा आरंभ हो जाएगरी। अनरा्रम की कलारात्रा पत्त्रका के हदवाली ववरेषांक म लस्फया राम की बािों को इसरीललए पाठकों के समक्ष लाने का प्ररास ककरा गरा ्रोंकक राम की जरीि लस्फया राम की नहीं बगलक एक प्रेरणातमक जरीि थरी ,कक हम सतर का अनसरण करि हए धिमया के मागया पर चलि हए मनषर जरीवन के ररशिेनािों व कमषों को ककस िरह जरीना चाहहए। इस बार लेखक लेणखकाओं ने भरी जरी भरकर रामकथा को अपनरी गदर, पदर, दोहा, ग़िल, म्िक आहद रैललरों म उिारा कक हम इसे िरीन खंडों म ववभागजि कर आपके समक्ष लाना पड़ रहा है। हम बहि-बहि धिनरवाद देना चाहगे हमारे रचनाकारों और पाठकों से उममरीद करगे कक अ्धिक से अ्धिक पढ़ और अपने पररवारजनों व बचचों िक भरी इसे अवशर पहंचाएं िाकक श्रीराम की बाि साथयाक हो सक।
इंडोनेलररा, थाईलैंड,
पर ककिनरी ही चचायाएं हों, पर आप उनह नकार नहीं सकिे। भारि के कालखंड म इक्वाक वंर ने सिरग से कलरग िक राज ककरा है। राजा सलमत्र अंतिम इक्वाक वंर के राजा रहे। ऐसा माना जािा है कक ब्रहमा के
से एक मरीचरी थे, जहाँ से सिरग का प्रारंभ माना जािा है
र्ष्म : 2, अंक : 3 10 राम नाम सवर ही कावर है तन्धि भागयाव मानवरी नई हदलली “राम” रबद की असाधिारणिा का अनमान इस िथर से लगारा जा सकिा है कक एक कवव गजसकी कलपनाएं ऊंचरी और बहि ववसिि होिरी ह,वे कलपनाएं ऐसे सथान पर भरी पहंच जािरी ह, जहां सरया की ककरण भरी नहीं पहंच पािरी और दे णखए उन कलपनाओं को भरी छ ले िा है हमारा र “राम”रबद,छ ही नहीं ले िा अवपि वववर करिा है, इिना आकवषयाि करिा है कक कवव ललखने को आिर हो जािा है “राम” नाम की महहमा।
श्िकीतिया
छोड़ श्ि कीतिया को, राजमहल म करने सेवा भरि की, ददया नजरों का हदखा ना, श्ि कीतिया ने भरी ककरा इं िजार, बरस चौदह आणखर अपने वपरा का, जैसे गर लखन श्रीराम संग, वैसे गए रत्रघन भरि संग, लसरा, उलमया, मांडवरी संग श्ि कीतिया लमला त्बछोह वपरा से लसरा को वन से, रावण लेकर गरा लखन राम संग थे वहाँ रत्रघन भरि संग आर क्फर भरी इन िरीनों ने हर पल की सेवा, मािाओं की अपने हर ददया तछपाकर, ऑंखों से अशक आर न कभरी, बस तनभारा इनहोंने हर धिमया अपना, दरया का है नमन इनह इनहोंने रखा सबको, परार म बांधिकर अपने सबको
र्ष्म : 2, अंक : 3 11 राम तुम्ारा नाम स्वयं ही काव्य है कोई कवर हो जाए सहज संभाव्य है अपने में त्कतनी साथ्वकता और तत्यथा समेटे है कवरश्ष्ठ मैथथलीशरण गुप्त जी की उपयु्वक्त पंक्क्तयां। वनःसंदेह राम शब्द एक काव्य ही है। एक “राम” शब्द हृदय में आते ही त्कतनी मययादा, त्कतना मातप्रेम, त्कतना त्याग और त्कतनी श्द्ा हृदय वरथथका से गुजरने लगती है। “राम” क्जसका कोई शाब्ब्दक अथ्व नही है। परंतु अथभप्राय इतना वरस्त है त्क कणणों में प्ररेश करते ही जन समुदाय के समषि एक आद श्व आ जाता है। रह आद श्व जो मययादा का प्रतीक है। रह आद श्व जो त्याग का प्रतीक है। रह आद श्व जो रीरता का प्रतीक है और रह आद श्व जो न जाने त्कतने ही प्रतीक त्कतने ही वरश्षण युगों से लोगों के हृदय में आरक्षित त्कए हए है। राकई राम नाम की महहमा अपरम्ार है। हमेशा से ही ये राम नाम कानों में गूंजता हआ सा प्रतीत होता है। अथधक गहराई में जाऊं तो शायद ये क्लखना अथधक उचित होगा त्क कुछ साधारण सा प्रतीत हआ “राम” नाम। मात् कुछ रषणों का पररदृश्य देखा जाए तो लगेगा त्क “राम” राजनीवत के मंि पर अथभनय करने राले कलाकारों के संराद का कोई आरश्यक सा शब्द हो बस। हहंसा ह ई, हत्याएं हई, कर् लगे, सामान्य जनजीरन प्रभावरत हआ। देश की एकता पर आंि आई। दख हआ था जब राजनीवतक दलालों ने “राम” नाम को भी एक मोहरा बना क्लया था। “राम” तो अनाहद हैं अनंत हैं। पूज्य है, सर्वव्यापी हैं सर्वथा हैं, सदैर हैं। भगरान के नाम पर जंग लड़ना मेरी दृत्टि में एक क्घनौना कत्य है। मैं भारत में जन्मी हं, भारत अपने आप में अनेक धम्व और भाषाओं की जन्मस्थली है। रो त्क सी एक धम्व के अथधकार में नहीं है। भारत में जन्म लेकर, उसके अस्स्त्व का मान रखना ही सच्ी देशभक्क्त है,मैं ऐसा मानती हँ। आस्था , वरश्ास और प्रेम का अटूट पययाय हैं श्ी राम। धिरीरज कमार र्ला ’दर’ झालावाड़, राजसथान जब गर
म परीछे
भरि, छोड़ राज वन
परीछे चल हदए, भाई रत्रघन भरी
र्ष्म : 2, अंक : 3 12 राम रबरी प्रसंग पदमा दीवान रारपर, छत्तरीसगढ़ रह रबद है ललखने म पढ़ने म गजिना ह्रदर को भािा है, उिना ही मन को असरीम सख,रांति प्रदान करिा है। हहंद धिमया के प्रमख सिंभ है प्रभ श्री राम। प्रभ राम एक आदरया पत्र,आदरया पति,आदरया भाई,आदरया लम त्र और आदरया माललक का संबंधि इस समाज के सामने प्रसिि करि ह। हम सबकी मन के रा र कह हमारे दे र के हदल की धिड़कन है,प्राणवार मे बसे हए है श्री राम। जाि-पाि धिमया अधिमया से परे ह श्री राम।मां की आज्ञा मानकर उनहोंने
करिा है एक आज्ञाकारी पत्र का इस समाज म।हालांकक उनके वन गमन के बाद उनके वप्रर भाई भरि ने राज चलारा जरूर, प्रजा की भलाई को देखि हए पर एक कह्रा बनाकर जंगल म रहि हर एक वनवासरी की िरह और प्रभ के चरण पादका लसंहासन पर ववरागजि कर। एक आदरया भाई प्रभ राम िो थे ही साथ ही रही आचरण उनके भाईरों म भरी था कहि है न जैसा बड़ा करिा है वैसा ही कारया छो् भरी करि जाि है।
चौदह वषया का वनवास सहषया सवरीकारा था त्बना ककसरी पर दोष लगारे, रह एक आदरया सथावपि
र्ष्म : 2, अंक : 3 13 राम कथा बहत ही श्ष्ठ प्रसंगों से भरी हई है िाहे रह राम भरत वमलाप,राम के रट प्रसंग हो, िाहे भीलनी शबरी और राम का प्रसंग हो आइये दोस्ों हम भीलनी शबरी और मेरे प्रभु श्ी राम के शबरी की कु त्टया में बातिीत का प्रसंग को त्िर से अपने हृदय मे चित्त्त करे।उनका शबरी को मां कहना उनके प्रेम में डूबे हए झूठे बेर जो प्रभु ने बड़े िार से खाकर एक भक्त की भक्क्त, भगरान,गुरु की महानता का पररिायक है। त्कतने सरल मद प्रभु राम।शबरी गांर की महहला थी क्जसे धम्व का अथ्व जानने की घोर उत्ठा थी, आतुरता थी। उसका वरराह जब तय हआ तो पशु बक्ल देखकर बहत आहत हई और वरराह के एक हदन पूर्व भाग जाती है और पहि जाती है ऋत्ष मतंग के आश्म और बहत सेरा करती ऋत्ष मतंग की। जब ऋत्ष मतंग देह त्यागते हैं उसके पूर्व शबरी से कहते हैं त्क रह अपने आश्म में प्रभु श्ी राम की प्रतीषिा करें रह जरूर आएंगे और उसे श्ाप मुक्त करेंगे तब से शबरी रोज आश्म की वनत प्रवत साि सिाई करती थी, ताजे िूलों से आश्म को सजाती और साि सुथरा रखती और ताजे िल रोज तोड़ कर लाती और उनको िखकर रखती त्क शायद कोई कीड़ा ना रह जाए और राम अगर अिानक आ गए और उन्ोंने से खा क्लया तो घोर अनथ्व हो जायेगा। त्िर एक हदन राम जी माता सीता को खोजते हए लखन के साथ शबरी के आश्म में पहिे। प्रभु राम को सामने देख पहिान जाती है शबरी माँ। उसके भुख से कोई बोल नहीँ वनकल पा रहे थे और अपने प्रभु राम को एकटक वनहारती है और अपने िक्षुजल से उनके िरण पखारती है। त्िर प्रभु को रह कुछ िल तोड़ कर ला कर देती है और प्रभु को देने से पहले रह स्वयं उन् िखकर देखती है त्क िल मीठे हैं त्क नहीं और प्रभु ने बड़े प्रेम से भार वरभोर शबरी के झूठे िल भी ग्रहण त्कए, यह यही द शयाता है प्रभु भार के भूखे हैं उन् अनेक अनेक रंग वबरंगी पंि पकरानों की कोई िाह नहीं है प्रभु भक्तों की पुकार सुनकर दौड़े िले आते हैं। प्रभु ने शबरी के परोसे गए िलों में से िार िल उठाकर खाए अथयात धम्व अथ्व काम और मोषि को जलाकर सेरा का परम िल भक्त को प्रदान त्कया। ऐसा नहीं है त्क प्रभु राम को रारण का रध करना था इसक्लए र शबरी के आश्म पहिे, कदात्प नहीं,रारण का रध तो लखन भी अपने एक िूंक से उसे उड़ा कर कर सकता था पर श्ी राम को तपस्स्वनी
की लकीरों को तुच्छ द शयाया है।प्रभु राम की भीलनी शबरी को मां कहकर पुकारना आहा ! त्कतना मधुर त्कतना अलौत्कक दृश्य रहा होगा रह जब प्रभु शबरी को मां कहकर संबोथधत कर रहे हैं और शबरी प्रेम से उन् िल खखला रही है अनुपम प्रसंग। श्ी राम शबरी को अपनी नरधा भक्क्त कहते हैं क्जनमें : 1--संत सत्ग 2--प्रभु कथा प्रसंग 3--अथभमान रहहत हो गुरू सेरा 4--कपट छोड़ प्रभु गुणगान 5--राम मंत् का जाप और उनपर वरश्ास
शबरी, भक्त शबरी मां से वमलना था। समाज में भक्तों की भक्क्त की शक्क्त और उसके प्रतीषिा की परीषिा मे सिल स्वयं प्रभु ही करते है। प्रभु राम ने जात पात को, धम्व अधम्व
पर सबगधद की, ववजर के प्रिरीक ह, प्रभ राम. कप् पर क्षमा भाव की, ववकति पर सकति की, कदृगष् पर सदृगष् की, ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम. अवववेक पर वववेक की, उदवेग पर संवेद की, क पथ पर सपथ की, ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम. सवगि पर अन गि की, असंरम पर संरम की, अ तनरम पर तनरम की, ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम. अ ववनर पर ववनर की, िम पर प्रकार की, अनासथा पर आसथा की, ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम.
र्ष्म : 2, अंक : 3 14 6--इं हरियों का वनग्रह 7--राममय संसार देखना 8--संतोषी बनना 9--सरलता और कपट रहहत बतयार प्रभु को रही त्प्रय है जो सरल हो, कपट वरहीन हो, संतोषी हो,प्रभु की नरधा भक्क्त के अनुरूप हो। प्रभु से नरधा भक्क्त सुन और श्ाप मुक्त हो शबरी योगाक्नि से देह त्याग देती है और प्रभु िरणों में लीन हो जाती है जहां से कोई रापस नहीं आ पाते।प्रभु राम जात पात,धम्व भेद से परे थे र सभी में बसे हैं और सभी उनके हृदय में बसे हैं। जो उनके नाम का जाप करता है, रामिररत मानस की िौपाइयों को वनत प्रवत पढता है और श्रण करता है उसके जीरन से दख दर हो जाते हैं।प्रभु राम के िररत् के कुछ प्रवतशत अगर हम भी अपने में ढाल ले तो पवरत् सुगम सरल बन जाएंगे। हमेशा मात त्पता गुरु की आज्ा कारी रहे।कभी भी वरषम पररस्स्थवतयों में धैय्व नहीं खोया और नीवत के अनुरूप अपने आप को डालकर रह जीरन जीते रहे और वनर्वहन त्कया।हमेशा हर ररश् की मययादा को जानते समझते हये यापन त्कया। प्रभु राम का जीरन का चित्ण क्जतना भी क रूँ कम है।असीम अथाह वरशाल आसमान सा,सागर की गहराइयों सा उनके जीरन का हर भेद मुझ जैसे मूढ़ मवत मे अज्ानी मे इतनी सजगता कहाँ की उनका चित्ण कर सकूँ।कुछ भी भूल िूक हई हो तो मंदमवत समझ षिमा कर दीक्जये मेरे राम। रमाकांि रमाया अनरीति पर नरीति की, असतर पर सतर की, क बद्धि
ववजर के प्रिरीक ह प्रभ राम उत्तर कननड़ गजला, कनाया्क
र्ष्म : 2, अंक : 3 15 मधि कशरप हमरीरपर, उत्तर प्रदे र जहाँ जनमा है इनसान, र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान, खाने को धिरा ने अनन हदरा जल हदरा है हमको परीने को ्फल-्फल और ह जरीव हदए ह शवास हदए हम जरीने को, अपना सबको मान कर रहने को हदरा सथान र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान, मानव का है इतिहास रहाँ पढ़िा अब िक सारा जहां, रहाँ वरीरों की ह गाथाएं जनम ह रहाँ पर लोग महान, सबका एक ही लक्र था बस र मािभलम को लमले सममान र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान। जैसे जैसे रग है बदला बदल गए सब लोग बेईमानरी बस गररी रगों म मिलब का लग गरा है रोग, भल गए इंसातनरि सारी सब बन गए ह हैवान र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान। प्रभ दतनरा म एक ही जगह घोल रह है जहर र जल म कड़ा-करक् भर रहे ह थल म हवा हो रही है जहरीली त्बक रही है चरीज खब नररीली, सवगया बनाना था गजसको उसे बना रहे ह शमरान र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान। अब सबको र समझाना होगा इस धिरा को हमको बचाना होगा अगसितव बचाने को सनदेर र जन-जन िक पहचाना होगा, होगा िभरी रह संभव जब सबको होगा इसका ज्ञान र धिरिरी मािा है अपनरी और हम इसकी संिान।
भरि क्षेत्र के आरया खंड म, पावन नगर अरोधरा धिाम। चली कलम वह गाथा ललखने, गजसके नारक है श्री राम।। वपिा दररथ अरु िरीनों मािा, गरु वलरषठ से पारा ज्ञान। ववनरररील अरु आज्ञाकारी, सदगण गजनके है पहचान। पजों श्री ववषण अविारी, छोड़ जगि के सारे काम। चली लेखनरी गाथा ललखने, गजसके नारक है श्री राम। तराग समपयाण की मरि थे, अदभि उनका लरष्ाचार। तनडर बलवान और साहसरी, ह भ्िों
र्ष्म : 2, अंक : 3 16
के
प्राण जाए पर वचन
चली कलम वह गाथा
नारक है श्री राम। लसखलािा है जरीवन उनका, करो बड़ों का िम सममान। भ्िों के मन राम ववराज, जग के कण-कण म भगवान। राम नाम म छपरी है महहमा, जपों नाम िम आठों राम। चली कलम वह गाथा ललखने, गजसके नारक है श्री राम।। x आलहा छंद नरीरू जैन तनरुपमा मेरठ, उत्तर प्रदे र
ललए उदार।
ना जाए, मरायादा परुषोत्तम राम।
ललखने, गजसके
र्ष्म : 2, अंक : 3 17 हेमलिा भारदवाज “डाली” इंदौर, मधरप्रदे र कोई बिाए कहां लमलेंगे जग म ऐसे राम नाम गजनका ले ि ही लमलिा है आराम। ववनम्रिा न देखरी कहीं एसरी मखारववंद से बोली उनकी लगिरी कोमल ्फलों सरी। कोई बिाए कहां लमलेंगे अति ववनर से भरे राम। अदभि िेज मख पर ऐसा एक जरोतिपंज जैसा। नैनों से भरी जरोति तनकले पड़ जाए गजस पर भरी दर रहे िम उसका राम। कोई बिाए कहां लमलेंगे ऐसे कमलनरन राम। मािा वपिा गरु बड़ों का करि थे सदा सममान आज्ञा पालन वचन पालन उनका पहले था रह काम। कोई बिाए कहां लमलेंगे नवरग म आज्ञाकारी राम। रक्षा हे ि धिनष उठारा दष्ों को क्फर मार भगारा जग म ऐसे राम सबका ही उदधिार ककरा करि सब उनको प्रणाम। कोई बिाए कहां लमलेंगे रक्षक सबके उदधिारक राम। हनमान, सग्रीव,ववभरीषण केव् और मािा रबरी को प्रेम सममान हदरा अपार। िर गए सब हई उनकी जरीवन की नैरा पार। “डाली”का है नमन उनको लाखों लाख प्रणाम श्रीराम। कोई बिाए कहां लमलेंगे अनंि प्रेम के सागर राम। -- x --
र्ष्म : 2, अंक : 3 18 कैके ररी का पवयाजनम की कथा तनमयाला मंदड़ा इंदौर, मधर प्रदे र साहर पवयाि के तनक् कबरीरपर म एक ब्राहमण रहिा था। वह पजन करने गंगाजल आहद की सामग्री लेकर जािा था। एक बार रात्त्र म उसे एक कराल मखरी राक्षसरी लमली। िब उसने भर म्ि होकर िलसरी वाला गंगाजल उस राक्षसरी पर डाल हदरा। इससे वह पाप हीन होकर हाथ जोड़ कर कहने लगरी, सौराषट्र नगर म लभक्षु नाम के ब्राहमण की म पतनरी थरी। कला मेरा नाम था। म पति के प्रतिकल ही आचरण करिरी थरी। म सवर लमषठान खाकर उसे रुखा सखा णखलािरी थरी।
र्ष्म : 2, अंक : 3 19 मंथरा नाम वाली एक केकई की दासरी थरी। सरसविरी ने उसे अपरर की वप्ारी बना हदरा ह और उसकी बद्धि घमा दी। कैकेई के साथ मंथरा नाम की दासरी कशमरीर से आई थरी। एक समर केकई के वपिा ने लरकार करि समर एक मग का वधि कर हदरा। िब उसकी पतनरी रूदन करके अपनरी मािा के पास गई। उसकी परी बाि सनकर उसने कैकई के वपिा के तनक् आकर कहा रह मेरा जमािा है, िम इसे छोड़ दो। म इसको जरीववि कर लंगरी कारण कक म रक्क्षणरी हं। मेरे भर से रह तनभयार घमिा था। रह सनकर राजा ने उसे भरी िलवार मार दी। िब उसने मरि समर कहा - राजन जैसे िमने मेरे जामािा के प्राण ललए इसरी प्रकार म िमहारे जामािा के प्राण लंगरी। वही मगरी मंथरा बनरी। रामारण म ललखा है, रह धिधिभरी नामक गंधिरवरी है जो कक दवापर म कबजा बनरी थरी। अरोधरा कांड म रह प्रसंग है। मंथरा के पवयाजनम की कथा जो सवामरी कहि थे उसके ववपरीि ही करिरी थरी। िब सवामरी ने रह ववचार करना प्रारंभ ककरा कक जो काम उसे करवाना होिा वह उसे ना कहिा। म उसका उल्ा करिरी इससे उसका मनोरथ पणया होिा था। अंि म उसने दसरा वववाह कर ललरा। मने ववष खा कर प्राण तराग हदए। सवामरी से ववपरीि आचरण करने के कारण अनेक दष् रोतनरों म भ्रमण करिरी रही। कपरा कोई उदधिार का उपार कर। िब ब्राहमण ने अपने परे जनम के कातियाक सनान का आधिा पणर उसे दे हदरा। दवादर मंत्र से उसका अलभषेक ककरा ऐसा करने पर वह प्रेि रोतन से म्ि हई और ववमान ववमान पर चढ़कर सवगया लोक को चली गई। जो पणर क्षरीण होने पर राजा दररथ की रानरी बनरी। िलसरीकि रामारण म रह प्रसंग है।
र्ष्म : 2, अंक : 3 20 चारों ओर जगमगाह् हवाओं से लड़ि ्चरागों की क्फर भरी खोरा है चांद और प्रकार अंिमयान का खर हो रहे ह हम जलाकर पिले रावण के और गजर जा रहे ह अगसितव रावण का सरीिा छली जा रही और लमल नहीं रहे ह राम प्रकार के देविा मना रहे ह रदधि के बाद का रांति पवया रोरन िो है दतनरा मगर रोरनरी हदखाई नहीं दे िरी मानवरी गजजरीववषा बना रही है उजाला पर बढ़िा जािा है अंधिेरा िलार है उस रोरनरी की जो इंसातनरि की चमक को लौ्ा दे लौ् िो आए ह राम मगर राम जरीवन म हदखाई नहीं दे ि एक ही रासिा हदखिा है अंदर के राम के आधिार का कर ल़ अंिमयान की स्फाई रोरन कर बझे ्चरागों को िलार राम की
र्ष्म : 2, अंक : 3 21 अचयाना अनवप्ररा ले णखका, प्राधरावपका, अ्धिव्िा जद्रनगर, प्ना, त्बहार रावण गिंदा है गज रहा है अट््हास, हस रहा है रावण“पिले जला रहे ह लोग, म सबम जरी रहा ह जरीवन.. कई नाम ह मेरे कई ह मेरे चेहरे आिंकी, बलातकारी रा भ्रष्ाचारी सभरी िो मेरे ही मोहरे”.. रगों से जलाकर पिले हम जरीि ह भ्रम म अकारण पाप, बराई का अंि कहाँ है? सचमच, गिंदा है रावण... रावण मर भरी नहीं सकिा ककिने भरी कर लो प्ररास, रावण के त्बना अधिरी सरी है उस ‘राम’पर आसथा और ववशवास.. ह राम और रावण दोनों परक एक दसरे के त्बन रावण िो लोग भरी और जला लें एक छो्ा हदरा धरान का करोड़ों दीपों के प्रकार म अब िक िलार जारी है राम की. -- xराम को समझ नहीं सकिे... रावण के लसर अब दस कहाँ ह? बढ़ रही है उसकी रग्ि हर सवाथया म अब छपा है रावण, कम हई है मरायादा की भग्ि... आज भरी सोने की मग की चकाचौंधि, कह्रों की सरीिा छलिरी है जब भरी रावण हावरी होिा है “राम” की कमरी खलिरी है... पिलों के रावण को छोड़कर ्रों न अंदर के रावण को मार जगा लें अपने अंदर के राम को, िाकक नकारातमकिाएँ हार... मन के रावण से लड़कर ही, राम पर आसथा आिरी है आसरी ववत्तराँ जब लम्िरी ह िभरी सदववत्त प्रतिषठा पािरी है...।
र्ष्म : 2, अंक : 3 22
रमाकांि सोनरी सदरन नवलगढ़ गजला झंझन राजसथान र्ष्म : 2, अंक : 3 23 लेखक
र्ष्म : 2, अंक : 3 24 सरीिा सवरंवर सरीिा सवरंवर रचा जनक ने धिनष रज्ञ करवारा। भवर पावन था अनषठान महार्थरों को बलवारा दर-दर के राजा आए अब भा्र आजमाने सभरी। बली महाबली हर कोई बाणासर आए रावण िभरी। ववशवालमत्र महामतन ज्ञानरी पधिारे जनक परी धिाम। गरु संग हवषयाि होकर िब आए लक्मण श्रीराम। चढ़ा सका नहीं प्रतरंचा कोई धिनष को हहला ना सका। कामरी परुष जैसे कोई सिरी सिरीतव को हहला ना सका। जनक राज वर्थि हए लरव धिनष अब कौन िोड़ेगा। कौन है वो भा्रराली जनक सिा से नािा जोड़ेगा। राजा महाराजा सारे धिनष ितनक हहला ना पाए। ववशवालमत्र वंदन कर िब प्रभ राम सवर आए। मन ही मन प्रणाम गरु को झ् से धिनष उठा ललरा। प्रतरंचा कसरी राम ने जनकराज संिाप लम्ा हदरा। वरमाला सरीिा मािा ने डाली रामचंद्र रघराई को। मरायादा परुषोत्तम परारे भरि लखन के भाई को। दररथ नंदन राजदलारे मािा कौरलरा राघव परारे। अवधिपरी के सरवंररी आर सारे जग के पालनहारे। ढोल नगाड़े संग बाजे बज उठी रहनाई अब। मंगल गरीि गोरी गार जनकपरी हरसाई िब। आज बरािरी अवधिपरी के सज धिज लाए हाथरी घोड़े। झम झमकर हर कोई नाचे प्रभ श्रीरामचंद्र धिनष िोड़े। सरीिा हरण पंचव्ी म जा राघव ने नंदन क्ी बना डाली ऋवष मतन साधि-संिों की होने लगरी रखवाली रपयानखा रावण की बहना वन ववहार करने आई राम लखन का रूप देख वो खद को रोक नहीं पाई संदर रूप धिरा नारी का लक्मण बराह रचा लो िम मेरे भरी वप्ररिम बन जाओ हृदर बरीच बसा लो िम म श्री राम का सेवक ह िम सवामरी से इजहार करो जाओ रपयाणखा रघवर से मधिर प्रेम वरवहार करो
र्ष्म : 2, अंक : 3 25 लक्मण के िरीखे वचनों से सपयानखा ववकराल हई पंचव्ी नंदन कह्रा म बढ़कर बड़री बवाल हई नाक कान का्ी लक्मण ने िरीर पे िरीर चला डाले खरदषण त्त्रलसरा को पल म रपयाणखा ने मरा डाले लंका म जा रपयाणखा ने ऐसरी अजया सना दी है िेरे होि मेरे भैरा मने नाक क्ा दी है सवणया नगरी सोने की जो रावण की है लंका दसों हदराओं म दरानन का बजिा रहिा डंका धरान लगा लरवरंकर का रावण ने सबकछ जान ललरा आ गए मेरे िारणहार नारारण ने अविार ललरा श्रीराम अगर अविारी है िो उनसे रदधि करूं गा म रघवर के हाथों मरकर भवसागर पार करूं गा म रावण मारीच को संग लेकर पंचव्ी म आिा है मारावरी मारा मग बनकर माराजाल चलािा है बन लभखारी लभक्षा मांगे झोपड़री दवारे ्ेर लगािा है अलबेला बाबा बन रावण सरीिा सनमख जािा है लक्मण रेखा भरीिर मािा िाजा ्फल लेकर आई जैसे रावण कदम बढ़ािा पावक लप् तघर आई ठौर ठौर पर संि सराने पानरी नहीं वपरा करि रेखा भरीिर लसदधि रोगरी लभक्षा नहीं ललरा करि रघकल की आन मानकर मािा ने कदम बढ़ारा है कप्ी रावण छल से देखो सरीिा हर के लारा है सरीिा मािा की खोज म जब रघनाथ जरी आएंगे राम रावण िब रदधि होगा िरीरों से मार ्गराएंगे राम सग्रीव लमत्रिा सरीिा मािा की स्धि लेने चल पड़े राम लक्मण भाई। रबरी के मरीठे मरीठे बेर खाए चब चख श्री रघराई। आगे जाकर रघवर की जब भ्ि हनमान से भ् हई। सग्रीव से जाकर करी लमिाई और सभरी पहचान हई। ककगषकंधिा का राजा बाली सग्रीव भ्रािा बड़ा बलराली। कही कथा श्रीराम को बंधिक भ्राि भारा को कर डाली। बाली वानर मिवाला है भाई नहीं वो िरीखा भाला है। आधिा बल सारा ले ले िा महारथरी वरदानों वाला है। बोले रामचंद्र सखा सनो लमत्र धिमया तनभाऊंगा दष् बाली दमन होगा
र्ष्म : 2, अंक : 3 26 खोरा राजर हदलाऊंगा िम जाओ बाली से लड़ो म वक्षों की ओ् ले िा हं। तनलयाजज पापरी बाली के बाणों से प्राण हर ले िा हं। दोनों भाई समरूप र्ल राघव भरी ना जान सके। कौन बाली कौन सग्रीव रघवर भरी ना पहचान सके। श्रीरामचंद्र ने सग्रीव को जब समन हार पहनारा। जर लसराराम बोलो सखे बाली पनः लड़ने आरा। प्रभ श्री राम ने िरीर चला महाबली बाली को मारा है। लमत्रधिमया मरायादा धिर राम ने भलम का भार उिारा है । लंका दहन जामवंि ने राद हदलारा हनमि सब बल बद्धि समारा। सौ रोजन लसधि कर पार रामभ्ि है बजरंग अविारा। सरीिा मािा की स्धि लेने जब हनमान जरी धिारे। लंका म जा अरोक वाह्का मां सरीिा दरन पाए। महद्रका डाली सनमख लसरा राम नाम गण गाए। ववगसमि मािा सरीिा बोली कौन है सनमख आए। अंजनरी का लाल हनमि राम दलारा राघव परारा। रामभ्ि राम काज करने आरा रघनंदन परारा। संदर ्फल ्फल दरया वाह्का मझको भख सिािरी है। हलचल हई उपवन म िब राक्षस सेना दौड़री आिरी है। िरुवर िोड़े वाह्का उजाड़री अक्षरकमार को मारा है। बहमपार म बांधिने आरा घननाद लंकापति दलारा है। आग लगा दी पंछ म कहा वानर को पंछ बहि परारी। लप् लप् लंका दहकी जल उठी सवणया नगरी सारी। पंछ बझाई जा सागर म िब हनमान जरी वाह्का आरे। मािा दो कछ हमको तनरानरी हम भगवन िक ले जाए। चड़ामणण मािा सरीिा ने उिार हनमंि को जब दीनही। अष् लसद्धि नव तन्धिरां मां ने रामदि के नाम कीनही। जर श्रीराम जर श्रीराम हंकार भरी हनमान ने। सारे वानर सागर ि् आए चले राम दरबार म। लक्मण मतछयाि रग्ि बाण मेघ समान गजयाना करिा हआ मेघनाथ जब आरा।
र्ष्म : 2, अंक : 3 27 अ्फरा-ि्फरी मचरी क्क म रचिा मारावरी मारा। आरा इंद्रजरीि रणरोदधिा बाणों पर बाण चले भारी। नागपार बंधि राम लखन भरभरीि हई सेना सारी। देवलोक से आए नारद जरी गरूड़ राज को बलवाओ। रघनंदन नागपार बंधिन
परारे रामभ्ि ह्वाओ। महासमर म अिललि रोदधिा इंद्रजरीि पनः
लड़ रहे
राघव
हं। रामादल म खलबली मचरी संक् को अभरी लम्ािा हं। बोले राम रघकल रीति हम परीछे से वार नहीं करिे। ब्रहमासत्र का लेकर सहारा सचचे रणवरीर नहीं लड़िे। लक्मण के िरीखे बाणों से इंद्रजरीि भरी घबरारा। एक अमोधि रसत्र रग्ि का रग्ि बाण लेकर आरा। रग्ि की महहमा का वणयान से रेषनाग अविार ककरा। निमसिक हो गए लखन जब इंद्रजरीि प्रहार ककरा। मतछयाि होकर ्गरे धिरा पे रघकल राघव नरनिारे। बजरंगबली गोद म लाए सनमख जब रामचंद्र
संिाप। बोले ववभरीषण जा ले
िरं
वैदर सषेण आस
लक्मण के प्राण बचाओ। द्रोण्गरी पवयाि जाना है संजरीवनरी ब्ी को लाना है। रामभ्ि हनमान जरी धिार सरयोदर पहले आना
कालनेलम मारावरी असर चला रहा जब दांव। िरं ि आकारवाणरी हई चल पड़ा हनमि पांव। हदवर जरोति जगमग सरी दमक रही सारी पवयािमाला। बजरंगबली ना जान सके सारा पहाड़ ही उठा डाला। पवन वेग से पवन िनर ्गरी पवयाि को उठा लाए। संजरीवनरी ब्ी लक्मण को दे बजरंगरी प्राण बचाए। -- x --
को
आरा।
संग्ाम लक्मण जरी िरीरों पे िरीर बरसारा। कभरी गगन म कभरी मेघ म घननाद गजयाना करिा था। भरीषण चला समर दोनों म रेषनाग हंकार भरिा था।
भैरा आज्ञा दो मझको ब्रहमासत्र अभरी चलािा
सारे। भ्राि लखन की देख दरा करुणासागर करि ववलाप। ्रा जवाब द म मािा को कैसे लम् रघनंदन
आओ
ि लंका नगरी जाओ।
आज की
है।
र्ष्म : 2, अंक : 3 28 राम की दक्क्षणपथ पर ववजर रात्रा रववनद्र ्गननौरे छिरीसगढ़ आरया संसकति का दक्क्षण म प्रसार के ललए मरायादा परुषोत्तम राम की भलमका सवयोपरर है। ऋ्वेद म ववंध राचल के आगे क्षेत्रों का कोई उलले ख नहीं लमलिा ववंध र पवयाि से ही उत्तर व दक्क्षण भारि को ववभागजि ककरा गरा है। राम ने अपने चौदह वषया के वनवासरी जरीवन म दक्क्षण क्षेत्र से असरों को भगारा। वालमरीकक रामारण के ‘श्रीराम’ िलसरीदास के रामचररिमानस म ‘मरायादा परुषोत्तम राम’ बन गए। राम कथा के राम ने उन अनजान दगयाम क्षेत्रों म प्रवास ककरा जहां प्रकति को नष् करिरी आसरी संसकति पनप रही थरी। ऐसे ही राम की कथा मधर एलररा, तिबबि, कंबोडडरा, जावा, समात्रा, मंगोललरा, बाली आहद दे रों म आज भरी धिरोहर के रूप म सनरी सनाई जािरी है।
हई। आयणों ने दक्षिण भारत का नाम ‘दक्षिणा पथ’ रखा। रनरासी राम ने भी यही माग्व अपनाया जहां सुग्रीर ने उनकी सहायता की। राम ने लंका वरजय प्राप्त कर रारण के भाई वरभीषण को ही रहां का राजा बनाया। राम की वरजय यात्ा एक सांस्वतक तालमेल को उजागर करती है। आय्व और अनाय्व एक जावत वरशेष ना होकर वरक्शटि संबोधन था क्जसे बाद में जावतराद रािक बना हदया गया। अरण्य
र्ष्म : 2, अंक : 3 29 रनरासी राम का अथधकांश समय दक्षिणापथ की ओर ही व्यतीत हआ। यह षिेत् महाकौशल का कहलाता था क्जसमें रत्वमान उड़ीसा र उत्तर कोसल के भूभाग शावमल थे। राम के रनरास काल का लगभग बारह बरस दंडकारण्य में बीता। दंडकारण्य चित्कूट की पहाहड़यों से शुरू होकर बस्र के आगे तक िैला हआ है। रानर राज सुग्रीर ने सीता की खोज करने के क्लए अपनी सेना को दक्षिण की ओर जाने का वनददेश हदया सुग्रीर ने सेना को माग्व वनदक्शत करते हए कहा त्क र अपनी खोज वरध् से शुरू शुरू करें त्िर नम्वदा, गोदाररी, कष्ा नदी के साथ दक्षिण की ओर बढ़े । राम की दक्षिण यात्ा रत्वमान बुंदेलखंड तथा छत्तीसगढ़ के षिेत्ों से होकर पूरी हई। अयोध्ा से रन की ओर प्रस्थान करते हए राम ने तमसा, रेदश्ुवत , गोमती, स्ंहदका जैसी कई नहदयों को पार त्कया। सभी नहदयां दक्षिण पूरवी उत्तर प्रदेश के भूभाग में प्रराहहत होती हैं। इलाहाबाद क्जला के श्गरेरपुर के समीप गंगा नदी को पार कर राम भारद्ाज ऋत्ष के आश्म में पहिे। इसके बाद राम ने बांदा क्जले के चित्कूट तक पहिने के क्लए यमुना नदी को पार त्कया। चित्कूट में राम ने कुछ समय वबताया रहां अनेक ऋत्ष मुवन रहते थे। राल्ीत्क रामायण के अयोध्ा कांड तथा गोस्वामी तुलसीदास के रामिररतमानस में चित्कूट का वरस्त वरररण वमलता है। चित्कूट से िल कर राम रत्वमान मध्प्रदेश में प्रवरटि हए। पन्ा , सतना, जबलपुर, शहडोल, वबलासपुर, रायपुर और बस्र क्जलों से राम आगे बढ़े । शहडोल, अमरकंटक के बाद राम दक्षिण पूर्व की ओर मुड़े। वबलासपुर क्जले के खरौद, क्शररीनारायण, मल्ार, लरन, होते हए आगे बढ़े । क्सरपुर, राक्जम से गुजरते हए राम दंडकारण्य में प्रवरटि हए। यहां अगस्त्य, राल्ीत्क, अत्त् , शरभंग, सुतीक्ण आहद ऋत्ष के आश्म स्थात्पत थे। राम सभी ऋत्ष मुवनयों के आश्म में वमलने गए। दंडकारण्य के 124 स्थल खोजे गये जहां राम, लक्ष्मण, सीता ने वरश्ाम त्कया और रहां से अत्यािारी असुरों को मार भगाया। दंडकारण्य से श्ीराम लंका पहिे। महत्ष राल्ीत्क रराहवमहहर, काक्लदास, बाणभट्ट, भरभूवत , राजशेखर और तुलसीदास के ग्रंथों में हदए गए भौगोक्लक वरररण र पुरातात्त्वक प्रमाण से यह वनष्कष्व वनकाला गया त्क राम चित्कूट छोड़ने के बाद उपरोक्त माग्व होते हए दंडकारण्य पहिे। मध्प्रदेश तुलसी अकादमी ने भी इसी को राम की यात्ा का माग्व बताया। अस्मिता संस्थान छत्तीसगढ़ ने राम रन गमन माग्व का ऐसा ही नक्ा तैयार त्कया। छत्तीसगढ़ सरकार ने श्ीराम रन गमन स्थलों पर एक रहत्तर वनमयाण की शुरुआत की है। वरध् के दग्वम जंगलों र पर्वत मालाओं को पार करने का साहस अगस्त्य मुवन के नेतत्व में त्कया गया।राम का दक्षिण प्ररेश वरशेषता मैत्ी और सांस्वतक तालमेल की भारना से था। आय्व सभ्यता धीरे-धीरे दक्षिण भारत में पहिी और एकाकार ताल
संस्वत को वरकत करने राला रारण ब्ाह्मण ऋत्ष पुत् था। इसी तरह एक दृटिांत राम की पदयात्ा का वमलता है। राम क्जस माग्व से गुजरे रहां कटीले पेड़ नहीं थे, दंडकारण्य षिेत् कंटीले पेड़ों से रहहत था। छत्तीसगढ़ अंिल में राम की यात्ा के संदभ्व में कुछ प्रमाणणक अध्यन त्कया गया है। राम के कौशल प्ररास को लेकर डॉ. वमरासी, डॉ.धीरें रि रमया , प्रोिेसर कष् दत्त बाजपेई, डॉ. प्रभु लाल वमश्ा , डॉ. हीरालाल शुक्ा , पंत्डत सुंदरलाल त्त्पाठी, हरर ठाकुर, वरष् क्संह ठाकुर, प्ारेलाल गुप्त,हेमू यद जैसे लोगों ने तथ्ात्मक जानकारी प्रस्त की है। राम रनगमन माग्व के बाद रारण की लंका कहां थी? प्रोिेसर कष् दत्त बाजपेई ने पुरातात्त्वक आधार पर छत्तीसगढ़ में राम की यात्ा को प्रमाणणक मानते हए कहा है, “अब तक ज्ात पुरातात्त्वक प्रमाण से यह
र्ष्म : 2, अंक : 3 30 बात क्सद् नहीं होती त्क श्ी राम पन्ा राले चित्कूट से आगे दक्षिण पक्चिम की ओर गए। राल्ीत्क रामायण आहद ग्रंथों से यह भी पता नहीं िलता त्क उन्ोंने नम्वदा या रे रा नदी को कहां पर त्कया, यहद र रत्वमान नाक्सक की ओर जाते तो उन् नम्वदा अरश्य पार करनी पड़ती। महाराटि और कनयाटक होकर लंका ( रत्वमान लंका देश) तक राम के पहिने तथा रहां राम रारण युद् होने की बात उपलब्ध साहहत्य या पुरातात्त्वक प्रमाण से क्सद् नहीं होती।” रारण की लंका कहां थी! यह प्रश्न आज भी एक पहेली बना हआ है। त्पछले कुछ दशकों में अनेक भारतीय तथा पक्चिमी शोधाथथषियों के शोध सामने आए हैं। शोधों के अनुसार महाराटि के कुछ षिेत्ों में या मध्प्रदेश के रीरा अंिल के अमरकंटक तथा जबलपुर में अथरा क्शम्ला (अब श्ी लंका) में रारण की लंका हो सकती है! शोध के वनष्कषणों में बताया गया है त्क इवतहास के पहले भाग में इससे संबंथधत धुंधली तस्वीर
तत्ालीन संस्वत भारत में राज्यों के गठन की स्स्थवत और रामायण में उल्ख त्कए गए भौगोक्लक षिेत् के पाररस्स्थवतक अध्यन से यह संभारना व्यक्त की गई है त्क लंका गोदाररी नदी के पूर्व में थी! रारण की लंका के बारे में क्जतनी भ्ात्तियां हैं, राम के छत्तीसगढ़ प्ररास पर उतनी नहीं है। आधे अधूरे संदभ्व को लेकर छत्तीसगढ़ को रारण की लंका करार देने राले कथथत वरद्ानों की कमी नहीं है। तथाकथथत अथधकाररक वरद्ानों ने छत्तीसगढ़ की एक जावत वरशेष को रारण का रंशज बना हदया। मध्प्रदेश पाठ्य पुस्क वनगम की पांिरीं कषिा की पुस्क में प्रकाक्शत कर यही पढ़ाया जाता रहा क्जसे रवरन्द्र क्गन्ौरे ने अप्रमाणणक करार देते हए सरकार का ध्ान आकत्षषित त्कया तब पुस्क से ‘दशहरा’ पाठ वरलोत्पत त्कया गया। छत्तीसगढ़ राम के रनरास काल का साषिी रहा है। राम की यात्ा के साक्ष्य छत्तीसगढ़ में वबखरे पड़े हैं क्जनकी खोज अभी भी बाकी है। धावमषिक ग्रंथों, लोक कथाओं के साथ भौगोक्लक आधार पर गहन अध्यन की महती आरश्यकता है। राम रनरास काल में दक्षिण कोसल की ओर ही क्ों आए? इस संदभ्व में आयणों की हदत्विजय यात्ा को देखें क्जन्ोंने प्रािीन दवनया के लोगों को आय्व बनाया( सभ्य बनाया)। राम ने दक्षिण पथ में ऐसी ही सभ्यता नींर रखी। युद् में वरजय के बाद त्क सी भी राज्य में अपनी सत्ता नहीं रखी। तापस रेश धारण कर रनरास को वनकले राम रारण की लंका पर वरजय प्राप्त कर अयोध्ा लौटे तो उसी तापस रेशभूषा में दक्षिण को संस्वत के सूत् में त्परोकर। देवेनद्र प्रसाद लसंह गागिराबाद, उत्तर प्रदे र धिलल गजस पद की पाषाण को िार दे जग को तनवायाण पद-नख की जल-धिार दे परी के जो पाद - परीरष केव् िरे ्रों न “देवद्र”, उस पद प सब वार दे मि मझे िम अहहलरा-सरी िप-रग्ि दो भा्र केव्-सा, रबरी-सरी प्रभ-भग्ि दो मात्र इिनरी है करबदधि ववनिरी प्रभो! अपने चरणों म िम मझको अनरग्ि दो अहहलरा-सरी िप-रग्ि
वमली है लेत्कन बाद के हहस् में रारण की लंका की गुत्ी उलझी हई है। सांस्वतक इवतहास,
र्ष्म : 2, अंक : 3 31 इनद्रजरीि लसंह “इनद्र ” नई हदलली आज लखन ने मेघनाथ को, हदरा समर म है ललकार। मेघनाथ भरी गरज रहा है, भरिा आरा वो हंकार। है चेिारा मेघनाथ ने, करू पथक िेरे भजदणड। इंद्रजरीि ि बाण चला बस, नहीं बोल के हदखा घमणड।। भरे क्रोधि म लक्मण बोले, िझे न छोड़ कारर आज। अंग भंग कर दगा िेरे, ववलग मंड से कर द िाज। आज ववलरख मेरे इस रण म, बन कर आर िेरा काल। छपा नहीं पाएगा नभ भरी, गजिनरी मारा हदखा ववराल।। चले बाण पर बाण कमक के, देख रहे ह ववगसमि नेत्र। ल्क रहे ह ररीर देह से, लारों से भरि रण क्षेत्र। आरग अमोघ मेघनाथ के, आज हए ह सारे क्षरीण। रामानज ने आज रदधि म, करिब हदखला हदर प्रवरीण।। आन लरलीमख को रघवर की, देकर करि लक्मण वार। मानो रणभलम म दे णखए, लड़ि सवर रेषाविार।। मेघनाथ का ररीर िड़पिा, पड़ा धिरा पर खगणडि आज। लक्मण ने र ककरा मही पर, खलनारक को दगणडि आज।। मेघनाथ वधि
र्ष्म : 2, अंक : 3 32 भगवान राम की मतर रकिला श्रीवासिव भोपाल, मधर प्रदे र धरती पर भगरान राम ने अपने सारे काम कर क्लए थे, अब उनकी मत्यु का रक्त सामने आ गया था। ऐसे में यमराज ने एक साधू का रूप क्लया और राम के नगर पहि गए। रो राम के महल पहि और उनसे वमलने का रक्त तय त्कया। त्िर रो श्ी राम से वमलें और उन्ोंने उनके बीि होने राली बातों को सबसे छुपाकर रखने की शत्व रखी। साथ ही यह भी कहा त्क अगर हम दोनों की बातों के बीि कोई भी आएगा, तो दरराजे पर खड़ द्ाररषिक को मत्युदंड (यानी मरना पड़ेगा) हदया जाएगा। श्ी राम ने साधू रूप धारण त्कए यमराज की बात मान ली और हनुमान जी के न रहने के कारण राम ने भाई लक्ष्मण को द्ारपाल बना हदया। त्िर यमराज अपने असली रूप में आएं और बोले, “भगरान आपका पथ्ी पर जीरन पूरा हो िुका है। अब आपका अपने लोक लौटने का रक्त आ गया है।” यमराज और भगरान राम के बीि बातिीत िल ही रही थी त्क उसी रक्त दरराजे पर ऋत्ष दरयासा पहि गए। उन्ोंने लक्ष्मण को दरराजे से हटने को कहा और अंदर जाने की क्जद पर अड़ गए। लक्ष्मण ने मना त्कया, तो रह श्ीराम को श्ाप देने की बात करने लगे। लक्ष्मण कािी परेशान हो गए।
ने अपने भाई के रादे को वनभाने के क्लए सरयू नदी में जाकर जल समाथध (डूब गए) ले ली। लक्ष्मण के बारे में जानने के बाद राम बहत दखी हए। त्िर भगरान श्ी राम ने भी जल समाथध लेने का िैसला त्कया। श्ी राम भी सरयू नदी में जल समाथध लेने के वनकल पड़े। उस रक्त रहां भरत, शत्घ्न, हनुमान, सुग्रीर और जामरंत भी मौजूद थे। देखते ही देखते भगरान श्ीराम सरयू नदी में समा गए। कुछ ही देर बाद नदी के अंदर से भगरान अपने वरष् रूप में सबके सामने प्रकट हए। उन्ोंने अपने भक्तों समेत रहां मौजूद हर त्क सी को द श्वन हदए। इस तरह भगरान राम धरती पर अपने जीरन को पूरा कर स्वग्व लौट गए।
अगर श्ीराम की बात नहीं मानी, तो उन् मरना होगा और अगर ऋत्ष की बात नहीं मानी, तो श्ीराम को श्ाप लगेगा। इस स्स्थवत में उन्ोंने एक मुश्किल िैसला क्लया और ऋत्ष को अंदर जाने हदया। बातिीत के बीि ऋत्ष को देख भगरान श्ीराम चिंवतत हो गए त्क अब उनको लक्ष्मण को मारने की सजा देनी होगी। ऐसे में भगरान राम ने लक्ष्मण को नगर से वनकाल हदया। लक्ष्मण
हनमान, वानर सेना मे बढ़ा राम सममान, लंका कैसे पहचे,था बड़ा सवाल, ्रोंकक सामने था सागर ववराल। राम सागर से पथ माँगि रहे, अननर ववनर के छंद सजाि रहे, सागर अननर म बरीिा िरीन हदन, िब राम ने रग्ि की बजाई बरीन। त्राहह कर लसधि आरा राम ररण म, राम सेि पथ बिारा बैठ चरण म, िब एक लरला पर बैठ गए हनमान, प्रभ छवव को उर म रख ककरा धरान। हर रैल पर वो राम नाम ललखिे, वानर सेना उसे नल नरील के हसि दे
र्ष्म : 2, अंक : 3 33 मनोरमा रमाया ‘ मन ‘ हैदराबाद, िेलंगाना ववशवालमत्र संग लम्थला पहचे राम, राम के िेज से सरोलभि जनक धिाम। कोई भरी राजा धिनष को हहला न सका, िो राम ने धिनष िोड़ा ले लरव का नाम।। प्रभ राम ने बढ़ारा सवरंवर का मान, अपने हृदर म हदरा सरीिा को सथान। पतनरी रूप म लसरा को ककरा अंगरीकारलसरा को भरी हआ खद पर अलभमान।। िभरी पररराम पहचकर ककए
राम और लखन से हआ उनका
राम ने
पहचान, जब राम ने छोड़ा अहंकार नष् बाण। और लखन वरीरों की पहचान बिाईिो पररराम चले करके राम गणगान।। धिनष रज्ञ और हआ सरीिा राम वववाह, िब लम्थला म सवयात्र छा गरा उतसाह। नभ से देव ककननर सभरी ककए जर घोषलम्थला नगरी म खलरराँ आई अथाह।। धिनष रज्ञ सरीिा पिा बिाए
म भलमका तनभाई। वह आररीवायाद पाई प्रभ राम से, रामसेि िरार सबके रोगदान से, राम की महहमा से पतथर िैर गरा, राम नाम से असंभव संभव हो गरा। रामसे ि
वववाद,
संवाद।
खद को पररराम दास बिारालखन ककए वरं्र से पररराम प्रतिवाद।। पररराम की हई िब राम से
िे, एक छो्ी सरी ्गलहरी कंकर लाई, राम सेि तनमायाण
र्ष्म : 2, अंक : 3 34 मरायादा परुषोत्तम रामचनद्र की जरीवन गाथा डॉ समन मलहोत्रा मजफ्फरपर, त्बहार कवव लररोमणण िलसरी ने अपनरी रचनाओं से साहहतर कोष को भर हदरा है। उनकी प्रतरे क कति साहहतर प्रेलमरोंके ललए उनकी अनेकानेक समसराओं का समाधिान प्रसिि करिरी है। िलसरीदास की रचनाओं म सवाया्धिक महत्व प्रापिरचना रामचररिमानस है। रह रचना मरायादा परुषोत्तम रामचनद्र की जरीवन गाथा का आहद से अनि िक का ललवपबदधि इतिहास रूप है। राम का मरायादापणया जरीवन िथा लोक लरक्षा का आदरया इसकी कथा को बहि ही ममया सपरशी िथा भावपणयाबना दे िरी है। इसम गोसवामरी जरी नेराम की कथा के साथ ही साथ दारयातन क िथा धिालमयाक ितवों की बहि ही सपष् रूप से वराखरा की है। मानस का प्रमख उददे शर लोक मराम भग्ि की सथापना करना है।
र्ष्म : 2, अंक : 3 35 रामिररत प्रवतपादन में मौक्लकता है यह मौक्लकता - कथा-व रन्यास, भाषा, और शैली सभी षिेत्ों में हदखाई देती है। ‘रामिररत’ का जो स्वरूप उस समय समाज में प्रिक्लत था, गोस्वामी जी ने उसको अपने मूल उद्श्य समाज के उत्ान और कल्ाण के वरिार से गढ़ बनाकर तैयार कर क्लया। इस काय्व में उन्ों ने भाषा और शैली का भी नरीन प्रयोग त्कया। अरधी में रामिररत का प्रवतपादन सर्वप्रथम गोस्वामी जी ने त्कया। ऐसा करने का उनका उद्श्य था - रामिररत को जनसाधारण तक पहिा देना। शैली के वरिार से गोस्वामी जी ने अपने समय में प्रिक्लत सभी शैक्लयों के समत्वित रूप के माध्म से रामिररत का प्रवतपादन त्कया है। रामिररत प्रवतपादन के माध्म से समाज के हहत की कल्पना भी मौक्लक है। मययादा पुरुषोत्तम रूप में शक्क्त, शील, एर सौंदय्व तीनों का ही सुंदर सामंजस्य हआ है। तुलसी रामिररत के माध्म से भाई - भाई का प्रेम, पवत - पत्ी का प्रेम तथा उनका अपने से बड़ो के प्रवत क्ा कत्त्वव्य होना िाहहए आहद हदखाया है । हनुमान का सेरा भार सराहनीय है। लंका जाकर सीताका पता लगाना, लक्ष्मण के क्लए संजीरनी बूटी की खोज में संपूण्व पहाड़ ही ले आना उनकी अनुपम भक्क्त का पररिायक है। जब मनुष्य भंरर में िंसकर अपने बिार का प्रयास करता है तभी दैरी कपा से कोई - न - कोई उसकी रषिा को आ जाता है। इसी भांवत तुलसी ने समाज को लडख़ड़ाती हई स्स्थवत से बिाकर बड़े ही यश का काय्व त्कया। तुलसी भी बुद् की भांवत समवियकारी थे। तुलसी के समय भी भयानक एर वनस्ब्ध राताररण के कारण जन साधरण के हृदय कमल मुझयाये हए थे। अस् उन्ोंने धैय्व की अमत धारा से धावमषिक वरद्ष की अक्नि से जलते हए समाज को शीतलता प्रदान की। शैर और रष्रों का संघष भी तुलसी के समय बढ़ता जा रहा था। इसके क्लए तुलसी ने क्शर और राम को वनकट लाने का प्रयास त्कया और यह प्रमाणणत कर हदया दोनों एक ही शक्क्तयां हैं। तुलसी ने रष्र धम्व को इतना वरस्त बनाया त्क उसमें शैर , शाक्त, और पुत्टि मागवी आसानी से सम्मक्लत हो गये। ज्ान की अपेषिा उन्ोंनेे भक्क्त पर अथधक जोर हदया। तुलसी ने ज्ान, भक्क्त एर कम्व का परस्र संयोजन कर सामान्य धम्व की नींर डाली तथा भक्क्त का द्ार सभी के क्लए खोल हदया । उन्ोंने सजग प्रहरी की भांवत जन मानस के वरज्ान की खोज की और उसको प्ररथत्त के अनुकूल धम्व का लोक हहतकारी समत्वित रूप प्रस्त त्कया और यही है रामिररत मानस का प्रवतपाद्य वरषय।
रघकल
के रघराई
भानवंर के भान, है रघकल के रघराई, रघकल रीि सदा से-प्राण जारे, पर वचन न जाई। भरि, लखन, रत्रघन से अतिवप्रर भ्रािा, है दररथ िाि और कौरलरा गजनकी मािा। मरायादा के ररील-लरखर पर बैठे रघराई, वालमरीकक ने ललख ‘रामारण’, रामकथा सनाई। जनकपत्ररी सरीिा को रघपति वर लारे, आदरया परुष जग म, मरायादा परुषोत्तम कहलारे। माि-वपिा की आज्ञा पाकर रघराई, भ्के वन-वन, लेकर सरीिा और लखन-सा भाई। लंकापति सरीिामािा को वन से हर लारा, रावण का वधि कर रघपति ने सरीिा को
र्ष्म : 2, अंक : 3 36
म्ि करारा। है जन-समाज म आदरया परुष श्रीराम, रघपति बनाि इस जग म, सबके त्बगड़े सारे काम। पाप-पणर, मरायादा का सबको पाठ पढ़ािे, भानवंर के भान खद जलकर जग का िाप लम्ािे। ‘रामराजर’ की गजसने जरोति जलाई, जन-जन के मानस म बसि है, रघकल के रघराई। अतनल कमार केसरी नैनवाँ, बंदी, राजसथान
वनपथ, तराग क्ंब बनवास चले। प्रभ श्री राम, जर जर राम।। भरि ठकराए राज लसंहासन, चरण पादका राम हदए आसन, माि वपिा अग्ज अति पावन, अनज पत्र धिमया तनभार चले, प्रभ श्री राम, जर जर राम।। वपिा सम्रा् चक्रविशी दररथ, मािा िरीन देववरां मनरथ, भ्रािा चार मति वेद ज्ञानरथ, वंरज परुषाथया तनभार चले, प्रभ श्री राम, जर जर राम।।
र्ष्म : 2, अंक : 3 37 अलभषेक ्चत्रांर बरेली, उत्तर प्रदे र धिनष-वाण ललए हाथ चले, लक्मण भ्रािा साथ चले, वपिा के वचन तनभाने को, सह -पतनरी राम बनवास चले। प्रभ श्री राम, जर जर राम।। सरया वंर की रान बढ़ाने, मां कैकेई की आन
वैदेही राम बनवास
प्रभ श्री राम, जर जर राम।। नगर अरोधरा सरर अश्, पर-पक्षरी-मानव भ्ि प्रभ, सब परीछे परीछे हो ललए, जब लसरा -राम बनवास चले। प्रभ श्री राम, जर जर राम।। जर लसरा राम हई भ् सरर ि् केव्,
लगाई नौका
बचाने, पत्र-धिमया अनकरण कदम चले, जब सह-वप्ररा राम बनवास चले। प्रभ श्री राम, जर जर राम।। भरि अनज का मान बढ़ारा, वप्रर रत्रघन को साथ लगारा, श्री राम राज-धिमया तराग चले, जब
चले।
पार
वव्धिवि, राम लक्मण लसरा हए
र्ष्म : 2, अंक : 3 38 श्री राम केव् प्रसंग श्री राम िमहीं हो रघनंदन म करूं िमहारा ही वनदन। जग र सदा प्रभ िेरा ही गणगान करे करूं सिति म प्रभ जरी िेरी जब िक इस िन म प्राण रह अवपयाि करूं श्री चरणों म म अपने श्दधिा समन । श्री राम िम ही हो रघनंदन। महलों म रहकर भरी िमने भरीलों को गले लगारा था बन मािभ्ि और वपिभ्ि भािप्रेम लसखलारा था सरीिा मािा के साथ छवव िेरी अनपम । श्री राम िमहीं हो रघनंदन। बनकर मरायादा परुषोत्तम मरायादा को लसखलारा था जािपाि का भेद लम्ा रबरी मां के झठे बेरों खारा था िेरी महहमा का म वनदन श्री राम िमहीं हो रघनंदन। श्री राम िमहीं हो पालनहार करना जग का उदधिार रखना सदा अपनरी कपादृगष् सब ररशिों म रहे अलम् परार म करूं प्रभ जरी िेरा अलभनंदन श्री राम िमहीं हो रघनंदन। एकिा गपिा “कावरा” उननाव, उत्तर प्रदे र
अनराररी, अलभमानरी रावण का, रघनंदन ने दमन ककरा, राक्षसों का ववधवंस कर, ऋवष-मतनरों को भर म्ि ककरा। वपिवचन पालन करने को, चौदह वषषों का वनवास गजरा, कल का गौरव, मान बढ़ारा, चह हदस कीतियामान सथावपि ककरा।
राम! हमेरा पाओगे भा्र न पारा केव् जैसा, श्दधिा भरी रबरी जैसरी क्फर भरी मन कहिा है राघव! िम मझको अपनाओगे चरणों की रज छने भर से, पाहन िक िर जाि ह हे प्रभ! मझ जड़वि पतथर को, ककस हदन चरण लगाओगे? नाम ललखा था गजस पतथर पर, वह सागर म िैर गरा इस िरणरी पर भव सागर म, मझको कब िैराओगे?
र्ष्म : 2, अंक : 3 39 देवेनद्र प्रसाद लसंह गागिराबाद, उत्तर प्रदे र मास-हदवस पथ िकि
दरन के वराकल
प्राण-पखेरू उड़
अपलक
राम! कहो कब आओगे? अलमिा गपिा “नवरा” कानपर, उत्तर प्रदे र त्रेिारग म श्री राम ने, मराहदि जरीवन गजरा, मरायादा परुषोत्तम बनकर, जन-जन का कलराण ककरा।
श्री
मरायादा परुषोत्तम राम
बरीिे, राम! कहो कब आओगे?
नैनों को, कब िक र िरसाओगे?
जाएँगे, क्फर भरी आँखों को मेरी
अपनरी राह िकिे,
राम के पद ्चनहों पर चलकर, उनके आदरया अपनाए हम, कष् ना पहंचे ककसरी को हमसे, सभरी के मन म घर कर जाएं हम।।
र्ष्म : 2, अंक : 3 40 राम हमारी मरायादा ह, रान ह। राम हमारे सवालभमान, अलभमान ह।। राजाराम राम रघराई, ह सबके। रघनंदन सरीिापति, ककिने नाम ह।। उनके आदरषों पर चलना, सरीख हम। जन जन के प्रेरक ह, गौरव गान ह।। रग रग म उनका ही लह, समारा है। हम सब मानव उनकी ही, संिान ह।। रोम रोम म ब्रमहनाद का, गंजन है। सवांससवांस पर उनकाही, अहसान ह।। राम राजर का हमने देखा, है सपना। राम हमारे जरीवन प्राण, अपान ह।। राम ग्हसथों के संिों के, माललक ह। राम ववशव के ललए पजर, भगवान ह।। राम हमारा िन मन धिन,जरीवन जानो। राम ह्रदर म हदल म, हहंद सिान ह।। राम हमारे उदधिारक, पालन किाया। राम अनंि अनंि गणों, की खान ह।। रामकथा का रस लेकर, िम मसि रहो। चरणों म कलल के राजा, हनमान ह।। x राम हमारी मरायादा ह अरोक प्सारररा नादान ्ीकमगढ़, मधर प्रदे र
र्ष्म : 2, अंक : 3 41 अचयाना लखोह्रा अजमेर, राजसथान मेरी कलम म इिनरी िाकि नही कक कर सक िेरा गणगान। राजा सकौरल व अमिप्रभा की गोद मे आई ननही जान।। राजा दररथ संग बराही, राम की जननरी कहलाई। अवधि की महारानरी बन, अपने भा्र पर
हदखाई दे िरी राम की
राजपररवार उजड़ा,पति की मतर, पत्र वनवास, राजमहल सना। ऐसरी कहठन पररगसथतिरों म भरी की चौदह वषया की कठोर िपसरा।। राजा की पत्ररी, पतनरी व मािा होकर भरी पार हमेरा कष्। क्फर भरी रही मद,माितवभाव, उदार, धिैरवान, कियावरतनषठ।। ववषम पररगसथतिरों का सामना करने का लसखारा आपने सचचा ज्ञान। ऐसरी जगि जननरी “माँ कौरलरा” को रि रि करू म प्रणाम।। -- x -माँ कौरलरा
इठलाई।। होना था राजरालभषेक, लमला राम को वनवास। दररथ की गसथति त्बगड़री, धरान रखा पति धिमया का खास।। भरि रत्रघन की वापसरी पर, वातसलर म न आई कमरी। भरि म भरी हमेरा उसे,
छवव।।
जनमसथान, मरायादा म रहकर गजनहोंने, ककरा जन जन का उदधिार, भाव रबरी के वह जान, जठे बेर का ककरा पान, राम है भारिरीर संसकति के प्राण, वपिा बचन की रक्षा हे ि, ककरा राजरालभषेक इनकार, ककरा 14 वषषों का वनवास सवरीकार, रावपि अहहलरा का ककरा उदधिार, वनवास काल म राम ने, ककरा दष्ों
र्ष्म : 2, अंक : 3 42 श्रीरामचररि हर रग का आधिार है श्रीरामचररि हर रग का आधिार है, हर मानव के जरीवन का आधिार है, ववजर पथ पर गंजारमान है, जर श्रीराम जर श्रीराम, महादेव भरी जपे जो नाम, राम राम राम राम, कण कण म बसे है राम, अरोधरा है
पाकर, ककरा उनका भरी उदधिार, रावण से भरीषण रदधि कर, म्ि ककरा धिरिरी का भार, धिमया अधिमया की इस रदधि म, धिमया ववजर का हदरा उपहार, अरोधरा पहंचकर राम ने, रामराजर का ककरा तनमायाण, करल प्ररासन देकर सबको, जन-जन की भावना का ककरा उ्चि सममान! परीरष राजा नवादा, त्बहार
का संहार, सरीिा हरण के बाद राम ने, वानर सेना का ककरा तनमायाण, दललि वगया का प्रेम
से राम सरीिा लक्मण पर भारी मसरीबि आई। पररगसथतिवर लंके र रावण ने सरीिा का हरण ककरा। राम, लक्मण, वानरसेना ने लंका पर आक्रमण ककरा। श्रीराम और रावण का रदधि लंबे समर िक चलिा रहा। रदधि म रावण के पररवार का प्रतरे क सदसर मरिा रहा। अंििः राम ने रावण का वधि कर के रदधि ववराम ककरा। सरीिा को वहां से छड़ाकर अरोधरा को प्रसथान ककरा। िब राम और सरीिा का अरोधरा म राजतिलक हआ। अब अरोधरा म श्री राम का कई वषषों िक राज हआ।
र्ष्म : 2, अंक : 3 43 अलमि लसंहल “असरीलमि” मेरठ, उत्तर प्रदे र रामारण महाकावर संपणया रामारण प्रमख धिालमयाक महाकावर है हमारा। प्रतिहदन अधररन करने मात्र से सख लमलिा सारा। समपणया रामारण म वैसे िो ह कई कांड और अधरार। परं ि िचछ प्ररास ककरा कक रह कछ पंग्िरों म समार। अरोधरा नगरी म राजा दररथ के थे चार पत्र हए। जरे षठ पत्र का नामकरण राम हआ, सब प्रसनन हए। राम को भाइरों लक्मण, भरि व रत्रघन से प्रेमभाव था। अनजों के हृदर म बड़े भैरा के ललए सममान भाव था। चारों राजकमारों को लरक्षा दीक्षा पाने गरुकल भेजा। चारों लरषरों ने गरुओं से प्रापि ज्ञान को मन म सहेजा। ज्ञान, लरक्षा, दीक्षा प्रापि कर राजकमार वापस आए। वपिा और मािाओं को उनके वववाह की इचछा आए। राजा जनक की पत्ररी सरीिा का वववाह राम से हो गरा। परी अरोधरा म वववाह के उपलक्ष म उतसव हो गरा। छो्ी मां कैके ररी के वचन के कारण वन प्रसथान ककरा। उनका साथ पतनरी सरीिा और भाई लक्मण ने भरी हदरा। चौदह वषया के वनवास भगिने का कहठन जरीवन गजरा। अनेक
रपयाणखा
बस रहीं
कहठनाइरां आईं, परं ि अपना वचन परा ककरा।
राम पर मोहहि हई, लक्मण से नाक क्वाई।
र्ष्म : 2, अंक : 3 44 सरर के ि् पर नवनरीि चौधिरी झंझन , राजसथान
र्ष्म : 2, अंक : 3 45 एक हदन (संधरा के समर) सरर के ि् पर.िरीनों भाइरों संग ्हलि श्री राम से भरि भैरा ने कहा, “एक बाि पछ” ? भईरा !! मािा कैकई ने आपको वनवास हदलाने के ललए मथरा के साथ लमल कर जो ‘षडरंत्र’ ककरा था, ्रा वह राजद्रोह नहीं था ? उनके ‘षडरंत्र’ के कारण.एक ओर राजर के भावरी महाराज और महारानरी को (14) चौदह वषया का वनवास झेलना पड़ा.िो दसरी ओर वपिा महाराज की द:खद मतर हई। ऐसे ‘षडरंत्र’ के ललए (सामानर तनरमों के अनसार) िो मतरदणड हदरा जािा है, क्फर आपने मािा कैकई को दणड ्रों नहीं हदरा ? राम मसकराए…. बोले, “जानि हो भरि !! ककसरी कल म एक चररत्रवान और धिमयापरारण पत्र जनम ले ले, िो उसका जरीवन उसके असखर परीढ़ी के वपिरों के अपराधिों का प्रारगशचि कर दे िा है। गजस “माँ” ने िम जैसे - महातमा को जनम हदरा हो, उसे दणड कैसे हदरा जा सकिा है, भरि ?” (भरि सनिष् नहीं हए) कहा, “रह िो मोह है भईरा ; और “राजा_ का_ दणडववधिान” मोह से म्ि होिा है। कपरा एक राजा की िरह उत्तर दीगजर कक आपने मािा को दणड ्रों नहीं हदरा ?.समणझए कक आपसे रह प्रशन आपका अनज नहीं, अरोधरा का एक सामानर नागररक कर रहा है। (राम गमभरीर हो गए).कछ क्षण के मौन के बाद कहा, “अपने सगे-समबगनधिरों के ककसरी अपराधि पर कोई दणड न देना ही इस सगष् का ‘कठोरिम दणड’ है, भरि !!” मािा कैकई ने अपनरी एक भल का बड़ा - कठोर दणड भोगा है। वनवास के (14) चौदह वषषों म हम चारों भाई अपने अपने सथान से पररगसथतिरों से लड़ि रहे ह ; पर मािा कैकई हर क्षण मरिरी रही ह। (अपनरी एक भल के कारण) उनहोंने अपना पति खोरा, अपने चार बे् खोए, अपना समसि सख - सममान खोरा, क्फर भरी वे उस “अपराधि - बोधि” से कभरी म्ि न हो सकीं। वनवास समापि हो गरा. िो पररवार के रेष सदसर प्रसनन और सखरी हो गए ; पर वे कभरी प्रसनन न हो सकीं। कोई ‘राजा’ ककसरी “सत्ररी” को इससे कठोर - दणड ्रा दे सकिा है ? म िो सदैव रह सोचकर दखरी हो जािा ह कक “मेरे कारण (अनारास ही) मेरी माँ
होिा], िो संसार ‘भरि’ और ‘लक्मण’ जैसे भाइरों के अिलर भ्राि - प्रेम को कैसे देख पािा ? (मने) िो केवल अपने मािा-वपिा की आज्ञा का पालन मात्र ककरा था, पर (िम दोनों) ने िो मेरे सनेह म (14) चौदह वषया का “वनवास” भोगा। “वनवास” न होिा िो रह संसार सरीखिा कैसे.कक भाइरों का समबनधि होिा कैसा है ?” भरि के प्रशन मौन हो गए थे। (वे अनारास ही बड़े भाई से ललप् गए) !! राम कोई नारा नहीं ह। राम एक आचरण ह, एक चररत्र ह, एक जरीवन “जरीने की रैली” ह। अपने जरीवन म श्रीराम के चररत्र को उिारे रही ववजरादरमरी पवया हम लसखािा है।
को इिना कठोर - दणड भोगना पड़ा।” राम के नेत्रों म जल उिर आरा था, और भरि आहद भाई मौन हो गए थे। (राम ने क्फर कहा). “और उनकी भल को अपराधि समझना ही ्रों भरि !!.[रहद मेरा वनवास न हआ
र्ष्म : 2, अंक : 3 46 सरीिा के जरीवन घ्नाक्रम और भारिरीर समाज म सत्ररी जरीवन पर उसके वासिववक प्रभाव का ववशले षण अचयाना श्रीवासिव मले लसरा
हदये थे। रह धनुष अनेक लोग वमलकर भी हहला नहीं पाते थे। जनक ने घोषणा की त्क जो मनुष्य धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंिा िढ़ा देगा, उससे र सीता का वरराह कर देंगे। राजा जनक से यह रत्तांत जानकर वरश्ावमत् ने राम-लक्ष्मण को रह धनुष हदखलाने की इच्छा प्रकट की।
र्ष्म : 2, अंक : 3 47 रामकथा मानरीय इवतहास की एक ऐसी शाश्त और प्रमाणणक कथा है,क्जसे भारतरासी ही नहीं,पूरा वरश् अपनाता है और वरक्शटि सम्मान देता है।प्रभु श्ीराम का िररत् और संपूण्व जीरन दृत्टि अनुकरणीय और आद श्व है, संपूण्व मानरीय समाज और ररश्ों के क्लए।इसकी प्रासंक्गकता और लोकत्प्रयता तवनक भी कम नहीं हआ है, रत्वमान के कलयुग में,जहां श्ीराम का वमलना शायद असम्भर हो,मगर रारण कदम-कदम पर मुखौटा लगाये चछपे पड़े हैं। लेत्कन सबसे अहम पात् रामायण की अगर स्ती दृत्टि से वरिार त्कया जाए, तो बस माँ सीता का नाम आता है। श्ीराम के रामत्व में यहद सबसे बड़ा सारथी, साथी और साथ्वक भूवमका त्क सी ने वनभाई, तो रह एक नाम वनसंदेह सीता माँ का क्लया जा सकता है। उनके िररत् चित्ण से ही पूरी रामायण कथा का सार रूप में अतुलनीय पषि जाहहर होता
है। सीता के रास्वरक िररत् चित्ण त्कए वबना, रामायण की सारे घटनाक्रम प्राणवरहीन हो जाते हैं। माँ सीता की जीरनी के कुछ मुख्य घटनाक्रम के मुख्य कें रि वबन्ओं जानकारी लेते हैं : माँ सरीिा का जनम माता सीता के जन्म को लेकर अनेक त्करदं वतयां और पौराणणक कथाएं प्रिक्लत हैं। राजा जनक की गोद ली हई पुत्ी थी। कुछ ग्रंथों में क्लखा गया हैं। एक बार वमथथला नगर में भयंकर अकाल पड़ा और वनरारण हेतु ऋत्ष ने राजा जनक को यज् करने की सलाह दी। जब राजा जनक धरती पर हल जोतने लगे तो हल की नोंक पर एक सुन्र सोने का संदक वमला जब जनक ने उसको खोलकर देखा तो उसके अन्र एक छोटी कन्या थी। ित्क राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसक्लए उस कन्या को हाथ में लेकर त्पता प्रेम की अनुभूवत हई और उनको हमेशा के क्लए अपनी बेटी मान क्लया और महल लेकर िले गये, त्िर आगे िलकर उनका वरराह भगरान श्ी राम के साथ कर हदया। राजा जनक की पुत्ी होने के कारण इनका नाम जानकी रखा गया। सरीिा का सवंरवर अवत गुणरान सीता के क्लए योग्य रर प्राप्त करने के िुनौतीस्वरुप राजा जनक ने सीता का स्वयंरर रिा। एक बार दषि यषि के अरसर पर ररुण देर ने जनक को एक धनुष और बाणों से आपूररत दो तरकश
जनक ने कहा त्क क्जस धनुष को उठाने,
िढ़ाने और टंकार करने में देरता,
, दैत्य, राषिस, गंधर्व और त्कन्र भी समथ्व नहीं हैं, उसे मनुष्य भला कैसे उठा सकता है! राम ने अत्यंत सहजता से रह धनुष उठाकर िढ़ाया और मध् से तोड़ डाला। जनक ने प्रसन्चित्त सीता का वरराह राम से करने की ठानी। आज की लड़की हर तरह से योग्य होने पर भी अपनी पसंद का रर पाने से रंचित रह जाती है। क्ोंत्क वरराह के क्लए उसे वरथभन् परीषिाओं और कसौत्टयों पर परखा जाता है और उल्ा उसकी परेड करायी जाती रही है। मनरांचछत रर पाना अब भी टेढ़ी खीर है।उसे अपने वरराह बंधन को हठकाने के क्लए हर तरह के समझौते करने पड़ते
है। सीता के स्ती स्वरुप में मानरीय गुणों और उनके अद्त संयम, सहनशीलता, साहस और समप्वण की जो पराकाष्ठा देखने को वमलती है, रो आज के कक्लयुग में अवरमिरणीय प्रतीत होता
प्रत्यंिा
दानर
र्ष्म : 2, अंक : 3 48 हैं, उसके कुटुम्ब को पैसे खि्व होते हैं तथा शादी की कोई गारंटी भी नहीं होती। क्ोंत्क उससे अपेषिाएं रहीं सीता राली की जाती है, िाहे उसे राम जैसा रर और ससुराल वमले या ना वमले। सीता जी पवतव्रता नारी का प्रतीक मानी जाती है, जो पवत को परमेश्र स्वीकार कर उसके क्लए अपना सर्वस्व न्यौछारर करने में जरा भी संकोि नहीं करती। क्ोंत्क राम उनके पवत स्वरुप में देरता थे। रो भी अपनी अधधांक्गनी के क्लए त्क सी भी हद तक जा सकते थे। सीताजी ने अपने सारे सुख-ऐश्य्व, आराम और सुवरधा का त्याग कर अपने पत्ीधम्व का प्राणों से बढ़कर वनर्वहन त्कया। महलों की रानी ने 14 सालों का रनरास स्वीकार त्कया। रुखा-सूखा खाकर रन के एक छोटी-सी कु त्टया में अपने कुटुम्ब का सस्ह देखभाल त्कया। आज की नारी भी एकबार वरराह बंधन में जुड़ने के बाद अपना मन-तन और भला-बुरा अपने परररार के नाम कर जाती है, अपने सारे स्वप्न और िाहतों का दरत्कनार कर। अपनी क्जम्मेदाररयों के वनर्वहन में अपनी खुक्शयां और गम का भी पररत्याग कर देती, कुछ अपरादों को छोड़कर, जबत्क राम सा पवत वमलना वबल्ल ही संभर नहीं है। परायों को अपना बना लेना और अपनी खुक्शयां और पसंद,यहां तक त्क अपने संगे_संबंथधयों को भी गरां देने का क्सलक्सला अबतक कायम है।उसके बदले में समुचित, मान-सम्मान के क्लए उसे अब भी कािी संघष्वपूण्व होना पड़ता है। हरकदम पर एक द्द और घुटन रो सहज होकर सहती और कत्वव्यवनष्ठ रहती है। घर-बाहर की सारी क्जम्मेदारी का वनर्वहन करते हए,अपने सपने को टूटते हए खुद को अकेला देखकर भी हहम्मत साधती है। सरीिा हरण और लक्मण रेखा पंिरटी में लक्ष्मण से अपमावनत शूप्वणखा ने अपने भाई रारण से बदले की भारना से सीता के अप्रवतम सौन्य्व का बखान करते हए अपने अपमान का बदला लेने के क्लए उसके अपहरण को प्रेररत त्कया।रारण को उकसाते हए कहा “सीता अत्यंत सुंदर है और रह तुम्ारी पत्ी बनने के सर्वथा योग्य है”। रारण ने अपने मामा मारीि के साथ
सीता अपहरण की योजना रिी।
मारीि सोने के हहरण का रूप धर राम र लक्ष्मण
अनुपस्स्थवत
हैं। रारण एक ब्ाह्मण थभक्षुक के भेष में थभषिा के क्लए गुहार लगता है और एक प्रकार से सीता को पड़तात्डत करता है कैसे भी रो लक्ष्मण रेखा को पार कर कु त्टया के बाहर आ जाये। रहीं होता है, सीता का कोमल मन थभषिा देने को वररश होकर, लक्ष्मण रेखा पार कर थभक्षुक भेष के रारण के िंगुल में िंस जाती हैं। यावन त्क जैसे ही सुरषिा रेखा का उलंघन कर,अपनी मन की सुनती है,रारण उनका हरण को छद्म भेष में तैयार खड़ा वमलता है। आज का स्ती या लड़की समाज,परररार के द्ारा कदम-कदम पर खींिी गयी लकीरों और दायरों का जब भी अपनी इच्छा और िाहतों से पार करती है,तो उसे तरह तरह के रारण रूपी िुनौवतयां का सामना करना पड़ता है,जो उसके अस्स्त्व पर ही प्रश्नचिन् लगाना
वमलकर
इसके अनुसार
को रन में ले जायेगा और उनकी
में रारण सीता का अपहरण करेगा। राम की पुकार पर लक्ष्मण जो सीता माँ की वनगरानी तैनात लक्ष्मण को राम की सहायता के क्लए भेजने की यािना की। लक्ष्मण वररश होकर सीता की सुरषिा के क्लए ‘लक्ष्मण रेखा’ खींि कर उसे पार ना करने की हहदायत देकर रन की ओर िले जाते
र्ष्म : 2, अंक : 3 49 िाहता है। उसकी अपने मन आराज सुनकर कोई कदम उठाने पर, आज भी रो स्वतंत् नहीं हैं। हर तरि रारण रूपी राषिस उसकी मासूवमयत का िायदा उठाना के क्लए चछपे पड़े हैं िाहे रो त्क सी भी रूप में वमले। उसकी भारनाओं का गलत इस्माल के क्लए कोई कसर नहीं छोड़ने राले। उसकी सुरषिा का खतरा हर तरि है और उसका दायरा अब भी संकीण्व मान्यताओं और परम्राओं के अधीन है। रह अपने िुनार को लेकर हमेशा असमंजस की मनः स्स्थवत में रहती है त्क कहीं पररणाम गल्त ना सावबत हो जाय। अपहरण के बाद आकाश माग्व से जाते समय पषिीराज जटायु के रोकने पर रारण ने उसके पंख काट हदये। जब कोई सहायता नहीं वमली तो माँ सीता ने अपने पल् से एक भाग वनकालकर उसमें अपने आभूषणों को बांधकर नीि डाल हदया। नीि रनमे कुछ रानरों ने इसे अपने साथ ले गये। इस घटना से यही सीख अभी भी नारी अपनी सुरषिा और बिार का पूरा ख्याल रखती है तात्क कैसे भी खुद को हैरानों से बिार कर लें। रावण ने माँ सरीिा को ्रों नहीं छआ दरअसल रारन को श्ाप था की अगर उसने माँ सीता माता को स्श्व भी त्कया तो उसके सर के सौ टुकड़ हो जायेंगे। रामायण की घटना त्तायुग की हैं। रारन को नल कुबेर ने श्ाप हदया की अगर रह इस युग में त्क सी भी स्ती को दभयारना से स्श्व त्कया, तो उसका वरनाश हो जायेगा। रारण ने सीता को लंकानगरी के अशोक रात्टका में रखा और त्त्जटा के नेतत्व में कुछ राषिक्सयों को उनकी देखरेख का भार हदया। आज भी नारी जब मुसीबतों के क्घरार में खुद को अकेला पाती है, बेसहारा देखती है, तो क्सि्व मौन, संयम तथा दृढ़ संकल्पों का सहारा लेकर वरडम्बनाओं से सामना करती है। खुद को आस्था और वरश्ास का संबंल देकर, कोमल मन और नािुक मन की पीड़ाओं को झेलती है। खुद के बिार और सुरषिा में अपना पूरी शक्क्त लगा देती है, जबत्क रो तन से कोमल होती है। सरीिा की अग्न परीक्षा बहत सारी पौराणणक कथाओं में सबसे ज्यादा प्रिक्लत मान्यता यह है त्क प्रभु श्ी राम को मययादा पुरुषोत्तम के स्वरुप में अपनी प्रजा के क्लए एकवनटि समत्पषित राजा थे। ऐसे में जब लंबे समय तक रारण की कैद में रहने के बाद माता सीता, श्ीराम के साथ आयोध्ा लौटीं तब उनकी पवरत्ता
में संदेह होने लगा। इस पर एक रद्ा ने उन पर
करते हए ये भी कहा त्क ये भला कैसे मययादा पुरुषोत्तम हैं जो ऐसी माता सीता को अयोध्ा रापस ले आये जो तक रारण के पास थीं और उनकी पवरत्ता का कोई प्रमाण ही नहीं है। श्ी राम ने प्रजा में अपनी न्याय त्प्रयता को सरवोपरर मानते हए, अपने आद श्व के क्लए माता सीता को अक्नि परीषिा देकर अपनी पवरत्ता को क्सद् करने के क्लए कहा। प्रभु श्ी राम की आज्ा पालन करते हए माता सीता अक्नि में समा गयीं। और रापस भी आ गई, क्ोंत्क रो पवरत् और वनष्कलंक थी। आज सराल में यह संदभ्व उठता जा सकता है त्क राम भी सीता हरण के बाद अकेले थे और त्कतनी नाररयां और आसुरी शक्क्तयां उन् ररझाने-लुभाने की कोक्शश में वनरंतर सलंनि रही। त्िर उनकी पवरत्ता और वनष्पषिता का प्रमाण क्ों नहीं मांगा गया प्रजा की ओर से। आज भी शादी के बाद एक पुरूष को अथधकार है त्क रो अपनी निर और िाहत दसरी स्ती की ओर रख सकता है।
को लेकर समाज के एक रग्व
कटाषि
में पता लग जाने पर, लर -कुश
को स्वेच्छा पूर्वक, वबना क्शकायत और ग्ावन के त्पता के हराले कर, उनकी हर आज्ा का पालन
र्ष्म : 2, अंक : 3 50 सरीिा का पररतराग, लव-कर का जनम िथा धिरिरी म समाना संस्ारी माता के रूररूप में लर -कुश को संस्ारी पुत्ों के रुप में संसार के सामने रखा। अकेले रनरासी होकर गभ्वरती की अरस्था में अपने दो पुत्ों को ऋत्ष आश्म में जन्म लेकर, उनके पालन-पोषण की क्जम्मेदाररयों को अकेले बखूबी उठाया। कोई अच्छे संस्ार देने कमी_कसर नहीं रखी। उन् खूब पराक्रमी और साहसी बनने की क्शषिा दी। त्पता क्षी राम जी के बारे यहां तक कई लड़त्कयों से मनमात्िक संबंध बना सकता है। लेत्कन वरराह के बाद िाहे उसका पवत उसके योग्य हो या ना हो, उसके साथ बतयार भी बुरा करता हो, सताता हो, लेत्कन उसे त्क सी और पुरुष से दोस्ी करने का भी हक नहीं है। हंसना-बोलना भी लोगों को बदयाश् नहीं होता िाहे उसकी नीयत त्कतनी भी साि -सुथरी और दोस्ाना हो। यहद उसके साथ दसरे गलत करें, उसका मानक्सक, भारनात्मक और शारीररक शोषण करें, लेत्कन रो अगर सार्वजवनक आराज उठाये तो ज्यादातर लोग उसकी ओर ही ग़लत धारणा बना लेते हैं। सम्मान की दृत्टि से लड़की और नारी को सार्वजवनक रूप से देखना, समझना तथा उसकी भारना और वरिार की करि करने की मानक्सकता जबतक हमारे समाज में स्थात्पत नहीं होता, ये अक्नि परीषिा की जलन और
करने को मनाया। जब सीता को श्ीराम प्रभु ने रापस साथ अयोध्ा िलने की वरनती की तो अपने स्वाथभमान को प्रमुखता से ररण करते हए रो अपमावनत होने की पीडा से इंकार होते हए धरती में समाना उचित समझा। इसक्लये जब कभी भारतीय नारी के आद श्व िररत् की बात हई है, तब सीता माता का नाम सर्वप्रथम क्लया जाता है। शायद रामकथा सीता का िररत् सरवोपरर
पीड़ा झेलना नारी समाज की वनयवत बन गई है। समानता, स्वतंत्ता का अथधकार दोनों को बराबर हो तभी राम - कथा और रामराज्य के पररकल्पना की साथ्वकता होगी। और पूजनीय
आदरणीय
है, क्जसने क्सर् ररश् और समाज के आद श्व को स्थात्पत करने के क्लए हर सीमा और कसौटी से गुजरकर, अपने कटि और पीड़ा को मौन झेलकर अपनी पवरत्ता, कत्वव्य-वनष्ठा और संतुक्लत कर अपने स्वाथभमान को कहीं और कभीं क्गरने नहीं हदया। कमोबश यही मनोस्स्थवत आज की स्ती का भी है, जो स्वाथभमान और इज्जत पर अपने आंि नहीं आने देना िाहती, िाहे कैसी भी वरपदा और परीषिा हो।
र्ष्म : 2, अंक : 3 51 आ गर आ गर देखो राम आ गरे, दीप खद जल उठे उसके राम आ गए। मच गई धिम भरी, दवार सजने लगे, झम उठी अवधि, उसके शराम आ गए।। बरीिरी परी सदी होर भरी ना रहा, कैसे संभले प्रजा जोर भरी ना रहा। आंखे पथरा गई िन भरी अगसथर हआ, गम म डबा कक खद खोज भरी ना रहा।। एक पल म सभरी को मसकान आ गए।। आ गए आ गए मेरे राम आ गए।। आ गई एक खबर सब चमकने लगे, लग गए पंख भरी िन दमकने लगे। ववशव ववजररी हआ राि जगने लगरी, क्फर धिरा णखल उठी कल महकने लगे।। सोि हनमि जगाने को राम आ गए। आ गए आ गए मेरे राम आ गए।। है जगि गा रहा उनकी करनरी को भरी, पजि है सभरी उनकी जननरी को भरी। परा जरीवन समवपयाि ककर धिमया को, मग्ि लमल ही गई मेरे धिरनरी को भरी।। जरी उठा र हृदर रघराम आ गए। आ गए आ गए मेरे राम आ गए।। क्फर पकारे जगि ्रों नही आ रहे, धिमया संक् म है ्रों नही आ रहे। है ववक् जाल म देखो मानव तघरा, प्राणदािा मेरे ्रों नही आ रहे।। मन का कोना पकारे की राम आ गए। आ गए आ गर मेरे राम आ गए।। ््िरी जा रही शवास की अब लड़री, दे दो दरन प्रभ आणखरी है घड़री। एक ही आस प्रभ बस िमही पर ह्की, गाड़ दो क्फर प्रभ धिमया की वो छड़री।। जरीि के भरी हृदर म राम आ गए। आ गए आ गए मेरे राम आ गए।। अवधि के राम गजिनद्र रार पण, महाराषट्र