Kalayatra Magazine | Ayodhya - Shri Raam | Special Edition 3 | September - October 2022 Issue

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खंड - 3 • राम स्तुति • हनमानजी की दिव्य उधारी • प्रभ राम की बाल लीला • भारि वर्ष पंच महापव्ष के रंग में • राम जानकी तववाह • नारि मतुतन की खबर • श्ीराम हनमान भेंट • पथराई अदहल्ा को िारा • रघपति राम रघराई • रघराई मैं क्यों तबसराई • कलयग में रामायण • राम परुराथ्ष हैं • अधजले ि शानन
संपादक मंडल सचिन ितुववेदी संस्ापक (नई ददल्ी) डॉ. तरुणा माथुर मुख्य संपाददका (गुजरात) ववनीता पुंढीर ननदवेशक, अनुराग्यम(नई ददल्ी) मीनू बाला संपाददका (पंजाब) दूरभार : +91 - 9999920037 पता : मालवीय नगर, नई ददल्ी (110017) वेबसाइट : www.anuragym.com ईमेल : anuragyam.kalayatra@gmail.com उपरोक्त सभी पद मानद तथा अवैतननक हैं। पवरिका डडजाइनर : सचिन ितुववेदी मुख्य पृष्ठ आवरण : सचिन ितुववेदी कॉपीराइट : अनुराग्यम् (संपादक मंडल) **पवरिका में बहुत से चिरि गूगल से नलए गए है. MSME Reg. No. : UDYAM-DL-08-9070 अनुराग्यम् के सोशल मीडडया प्टफोम्ष से जुड़ने के नलए नीि ददए गए आइकॉन पर क्लिक कर के जुड़ सकते है | खंड - 1 / 2 / 3 कलायात्ा पत् त्का अयोध्ा तवशेरांक में उपलब्ध वर्ष : 2, अंक : 2 2
वर्ष : 2, अंक : 3 3 सचिन ितुववेदी, प्रधान संपादक एवं संस्ापक, अनुराग्यम् रमणे कणे कणे इति रामः || जो कण - कण म बसे, वही राम है। भगवान श्रीराम को कौन नहीं जानिा मरायादा परुषोत्तम श्री राम श्री हरर ववषण के 10 अविारों म से सािव अविार प्रभ श्री राम ह। भगवान राम का जरीवन संघषयामर होके भरी लोक कलराण के हहि को दरायािा है िथा आदरया प्रसिि करिा है। राम नाम मात्र नाम ही नहीं.. सर, चंद्रमा एवं अग्न से ब्रहमांड की उतपवत्त हई है, इसरीललए राम परब्रमहा है। राम नाम की उतपवत्त कछ इस प्रकार हई है : र : अग्न (र अग्न का बरीज मंत्र है) आ : सरया (आ सरया का बरीज मंत्र है) म : चंद्रमा (म चंद्रमा का बरीज मंत्र है) राम की गाथा को कछ रबदों म समाहहि करना असमभव है। उनका संघषयामर जरीवन जगजाहहर है, उनके जरीवन का कोई भरी हहससा देख लें, पणया रूप से प्रेरणातमक व अथयापणया है। प्रभ राम बचपन से ही ववनरररील थे और अपने जरीवन म इिने उिार चढाव के पशचाि भरी कभरी वववेक नहीं खोरा। आजकल की रवा परीढ़ी के ललए श्री राम से उत्तम मागयादरक हो ही नहीं सकिा, िलसरी जरी ने रामचररिमानस व वालमरीकक जरी ने रामारण म प्रभ श्री राम की अनेक गाथाओं का उललेख ककरा है। राम बचपन से ही दराल और सनेही थे। उनके अंदर मनोरम लरष्ाचार की भावना क्-क् कर भरी हई थरी। राम अतरनि ही सरल सवभाव वाले महापरुष थे, गजिना कहा जाए प्रभ श्री राम के बारे म, कम होगा। राम कैसे मरायादा परुषोत्तम श्री राम बने, कैसे उनहोंने अपने सभरी संघषषों का वववेकबद्धि से हसि हसि सामना ककरा और कभरी अपना सवभाव नहीं बदला। अपने वपिा के चहे ि थे श्री राम, पर जब उनको पिा चला कक उनकी माँ कैकई ने राजा दररथ से वचन ललरा ह, कक श्री राम को 14 वषषों के ललए वनवास भेजा जाए, श्री राम ने अपने वपिा के वचन का परा मान रखा और सहषया वनवास जाना सवरीकार ककरा। राजा दररथ ने प्रभ श्री राम को मना भरी ककरा और वह सवर इस बाि से ्् चके थे कक श्री राम को उनके वचनों का पालन करना पड़ रहा, प्रभ श्री राम ने अपने पत्र होने का कियावर तनभारा और चल पड़े अपनरी पतनरी सरीिा और भाई लक्मण के साथ। राजपा् और अपनरी सभरी सववधिाओं को तराग कर, अपने वपिा के वचन का मान रख कर वनवास की ओर प्रसथान कर हदरा। एक पत्र का कत्तयावर, प्रजा का हहिैषरी, पति धिमया तनभाने वाले राम ने सथान ले ललरा मरायादा परुषोत्तम प्रभ श्री राम का। र पत्त्रका एक प्ररास है, प्रभ श्री राम की महहमा को रचनाकारों ने अपने भग्ि व प्रेम भाव को रबदों म समाहहि कर पाठकों के हृदर िक पहचारा जा सके। अनरा्रम की पत्त्रका ‘कलरात्रा’ के दीपावली ववरेषांक आप सबके समक्ष है। आप सभरी अपना प्रेम अवशर दीगजरेगा और अ्धिक से अ्धिक इस पत्त्रका को साझा कीगजरेगा, गजससे सभरी लोगों को प्रेरणा लमले व अपने जरीवन चनौतिरों का सामना करने म सहरोग लमले। जब प्रभ श्री राम के भ्िों दवारा राम नाम ललखा पतथर भरी समद्र म िैर सकिा है, िो प्रभ श्री राम नाम से जनजरीवन और वरग्ितव को जो पररभाषा लमलेगरी, जो सभरी मनम्ावों को लम्ाकर सही हदरा म एक संदर और प्रेममर भारि का तनमायाण अवशर करेगरी। श्ी राम नसफ्ष नाम नहीं आधार है जीवन पथ का

1. हनमानजरी की हदवर उधिारी, त्त्रलोकी नाथ रार, गाजरीपर, उत्तर प्रदे र 6

2. मरायादा परुषोत्तम श्रीराम एक आदरया वरग्ितव, एस के नरीरज, रारपर, छिरीसगढ़ 10

3. रामलीला एक संसमरण, वनदना लसंह, वाराणसरी, उत्तर प्रदे र 12

स्चन कमार लसंघल, बलंदरहर, उत्तर प्रदे र 38 • कवविाएँ

11. अरोधरा नगरी म, अतनल गपिा, कोिवाली रोड़, उजजैन 9 12. राम सिति, म्िा रमाया त्त्रपाठी, ब्ाला, गज़ला गरदासपर, पंजाब 13

13. दररथ नंदन रघपति का रग, वतियाका अग्रवाल, वाराणसरी, उत्तर प्रदे र 16

14. िमह समे् कौन भवन म?, पललवरी लमश्ा, त्बहार 17

15. राम जानकी वववाह, सवविा ‘समन’ सहरसा, त्बहार 17

16. घरी के दीपक जलाएं, गगनप्ररीि सपल, ग्राम घाबादान, पंजाब 22

17. हे राम, िेरा चहंओर गणगान, अजर कमार, अररररा, त्बहार 23

18. नारद मतन की खबर, अलका जैन, इंदौर, मधरप्रदे र 23

19. रामारण-सार, रेखा मलहान “कषणा” दवारका, नई हदलली 28

20. श्रीराम हनमान भ्, मधिकर वनमाली, मजफ्फरपर, त्बहार 32

21. पथराई अहहलरा को िारा, ररद लसंह, लखनऊ, उत्तर प्रदे र 33

22. जनक दलारे, गारत्ररी पांडे, रुद्रपर, उत्तराखंड 36

23. राजा राम को हम बलाएं, ममिा वैरागरी , धिार, मधरप्रदे र 37

24. ग़ज़ल - राम कपरा, ववज्ान व्रि, नोएडा, उत्तर प्रदे र 40

25. आलहा छंद , वनदना नामदेव , अकोला, महाराषट्र 41

26. गरीतिका - श्रीराम, वनदना नामदेव , अकोला, महाराषट्र 41

27. रघपति राम रघराई, ममिा रादव, मंबई, महाराषट् 42 28. रघराई म ्रों त्बसराई, हहमॉर रमाया, रारा, मथरा, उत्तर प्रदे र 43 29. मरायादा परुषोत्तम राम, डा० भारिरी वमाया बौड़ाई, देहरादन, उत्तराखंड 44 30. आ गर मेरे राम, डा० भारिरी वमाया बौड़ाई,

वर्ष : 2, अंक : 3 4
• आलेख प सं.
4. भगवान श्री राम को 14 वषया का वनवास, नवनरीि चौधिरी, झंझनं, राजसथान 14 5. प्रभ राम की बाल लीला, राहल रंजन, प्ना, त्बहार 18
राम,
नारारण,
रामारण की कथा, रलरलिा
6. भारि भलम पर
अलभनव
देहरादन, उत्तराखंड 24 7.
पाणडेर, बललरा, उत्तर प्रदे र 26 8. वो राम है, नेहा जैन अजरीज़, लललिपर, उत्तर प्रदे र 30 9. भारि वषया पंच महापवया के रंग म, रामद्र नारक, बालोद, छत्तरीसगढ़ 34 10. धिैरया नहीं खोना चाहहए,
देहरादन, उत्तराखंड 44 31. कलरग म रामारण, अतनल कमार केसरी, नैनवाँ, बंदी, राजसथान 45 32. भगवान राम, लरवरंकर लोधि राजपि, नांगलोई, नई हदलली 46 33. जर रघनंदन जर लसराराम, गोमिरी लसंह,
छत्तरीसगढ़ 47 34. राम परुषाथया ह, रमेरचंद्र रमाया, कषणा नगर, इंदौर, मधरप्रदे र 47 35. पतिि पावन, भावना भारदवाज, दवारका, नई हदलली 48 36. मेरे राम घर आए, भावना भारदवाज, दवारका, नई हदलली 48 37. अधिजले दरानन, गोलडरी लमश्ा, गागज़राबाद, उत्तर प्रदे र 49 38. श्रीराम - रावण संग्राम, लोकद्र कमभकार, राजापर, मधरप्रदे र 50 39. श्रीराम गाथा (ववधिािा छंद), लोकद्र कमभकार, राजापर, मधरप्रदे र 50 40. हे राम िमह आना होगा, समिा कमारी, समसिरीपर, त्बहार 52 41. राम का तराग, ओम प्रकार नागर, को्ा, राजसथान 53 42. राम - नाम आसथा है मेरी, अंज श्रीवासिव, देहरादन, उिराखंड 54 43. राम वनवास, रंजना त्बनानरी “कावरा” गोलाघा्, असम 55 44. देवासर संग्राम कैके ररी का
47. धिरिरी की पकार, गजिनद्र रार , वपमपरी, पण 59 48. अरोधरा जनम है भमरी, रगशम र्ल, रीवा, मधर प्रदे र 60 अनक्रमणणका
कसमणडा, कोरबा,
वरदान, अमरनाथ सोनरी, सरीधिरी, मधर प्रदे र 56 45. म समझरी वो सरीिा, आरा बैजल, ्वाललरर, मधर प्रदे र 57 46. राम – सरीिा गणगान, मोना चनद्राकर मोनाललसा, रारपर, छत्तरीसगढ़ 58

नेपाल, बाली, समात्रा, जापान, कोरररा, चरीन, कंबोडडरा, मलेलररा, लाओस, क्फललवपंस, श्रीलंका, लसंगाप र, बमाया, मंगोललरा और ववरिनाम म भरी श्री राम और उनकी कथाओं का वणयान

वर्ष : 2, अंक : 3 5 डॉ तरुणा माथुर, मुख्य संपाददका, अनुराग्यम् अपनरी बाि का प्रारंभ म गगल के ववककपरीडडरा से करना चाहंगरी जहां ववशव म अगर कोई भरी श्रीराम के बारे म जानना चाह िो,और अथषों के साथ-साथ कबरीर दास जरी के”आदी राम” की पररभाषा का गज़क्र भरी वहाँ आिा है गजसम “आदी राम” की पररभाषा बिाि हए वे कहि ह कक “आदी राम “वह अववनाररी परमातमा ह, जो सम्ादकीय सबका सजनहार ,पालनहार ह। गजसके एक इरारे पर धिरिरी और आकार काम करि ह,गजसकी सिति म 33 कोह् देवरी- देविा निमसिक रहि ह और जो पणया मोक्षदारक व सवरंभ ह। एक राम दररथ का बे्ा, एक राम घ् घ् म बैठा, एक राम का सकल उगजरारा, एक राम जगि से नरारा। रहाँ इस िरह अपनरी बाि रखने की वजह रह है कक भारि के अलावा भरी श्री राम को जगि का पालनहार माना जािा है और ना केवल भारि म बगलक इंडोनेलररा,
कई िरह से होिा है और बहि संदर प्राचरीन मंहदर भरी वहाँ सथावपि ह। इससे रह िो पिा ही चलिा है कक श्री राम जगि परुष जगि पालनहार के रूप जाने जाि ह और उनके बारे म दसिावेजों की कोई कमरी नहीं है जो प्रमाणणि भरी है और प्रमाणों के आधिार पर इसकी पगष् भरी हो चकी है कक, रह लस्फया आधरागतमक कहानरी नहीं बगलक जरीवन कथा है गजसके प्रमाणों
और त्रेिा रग म इनहीं के वंरज प्रभ राम थे। इसललए प्रमाणों की आवशरकिा उनह ही होिरी है जो भारि के प्राचरीन इतिहास के जानकार नहीं है, वरना प्रभ राम के होने को मानना हर भारिवासरी का खली आँखों से देखे जाने वाला सबसे संदर सपना है। ईक्वाक वंर इिना प्रबल है कक गजस का ना रस समापि होिा है ना रर समापि होिा है। प्रभ राम की कथा संपणया जरीवन वत्त म पाररवाररक संबंधिों का संदर िाना-बाना है, कहीं गरु लरषर परंपरा, कहीं सखा भाव िो कहीं वरवहाररक रूप से कौरल धिारा। असतर पर सतर की जरीि के ललए श्री राम अरोधरा से गए िब राजकमार राम थे ककि जब लौ् िो जो काम उनहोंने ककरा वह दे र को एक करने के ललए था और इस ववजर रात्रा से हम इसरीललए इिने दीपि, उतसाहहि, उतप्रेररि और सममोहहि होि ह। श्रीराम के चररत्र के अगर ककसरी एक भरी कड़री को हम अपने जरीवन म उिार लें िो सवयाश्षठ मनषर बनने की हमारी रात्रा आरंभ हो जाएगरी। अनरा्रम की कलारात्रा पत्त्रका के हदवाली ववरेषांक म लस्फया राम की बािों को इसरीललए पाठकों के समक्ष लाने का प्ररास ककरा गरा ्रोंकक राम की जरीि लस्फया राम की नहीं बगलक एक प्रेरणातमक जरीि थरी ,कक हम सतर का अनसरण करि हए धिमया के मागया पर चलि हए मनषर जरीवन के ररशिेनािों व कमषों को ककस िरह जरीना चाहहए। इस बार लेखक लेणखकाओं ने भरी जरी भरकर रामकथा को अपनरी गदर, पदर, दोहा, ग़ज़ल, म्िक आहद रैललरों म उिारा कक हम इसे िरीन खंडों म ववभागजि कर आपके समक्ष लाना पड़ रहा है। हम बहि-बहि धिनरवाद देना चाहगे हमारे रचनाकारों और पाठकों से उममरीद करगे कक अ्धिक से अ्धिक पढ़ और अपने पररवारजनों व बचचों िक भरी इसे अवशर पहंचाएं िाकक श्रीराम की बाि साथयाक हो सक।
थाईलैंड,
पर ककिनरी ही चचायाएं हों, पर आप उनह नकार नहीं सकिे। भारि के कालखंड म इक्वाक वंर ने सिरग से कलरग िक राज ककरा है। राजा सलमत्र अंतिम इक्वाक वंर के राजा रहे। ऐसा माना जािा है कक ब्रहमा के 10 मानस पत्रों म से एक मरीचरी थे, जहाँ से सिरग का प्रारंभ माना जािा है
वर्ष : 2, अंक : 3 6 हनमानजरी की हदवर उधिारी त्त्रलोकी नाथ रार गाजरीपर, उत्तर प्रदे र रामजरी लंका पर ववजर प्रापि करके आए िो, भगवान ने ववभरीषण जरी, जामवंि जरी, अंगद जरी, सग्ररीव जरी सब को अरोधरा से ववदा ककरा। िो सब ने सोचा हनमान जरी को प्रभ बाद म त्बदा करगे, लेककन रामजरी ने हनमानजरी को ववदा ही नहीं ककरा,अब प्रजा बाि बनाने लगरी कक ्रा बाि सब गए हनमानजरी नहीं गए अरोधरा से! अब दरबार म काना ्फसरी ररू हई कक हनमानजरी से कौन कहे जाने के ललए, िो सबसे पहले मािा सरीिा की बारी आई कक आप ही बोलो कक हनमानजरी चले जाएं। मािा सरीिा बोलीं म िो लंका म ववकल पड़री थरी, मेरा िो एक एक हदन एक एक कलप के समान बरीि रहा था, वो िो हनमानजरी थे,जो प्रभ महद्रका लेके गए, और धिरीरज बंधिवारा कक.!
वर्ष : 2, अंक : 3 7 कछक दिवस जननी धरु धीरा। कत्पन्ह सदहि अइहदह रघ बीरा।। तनससचर मारर िोदह लै जैहदहं। तिह पर नारिादि जस गैहदहं॥ मै िो अपने बेटे से तबल्ल भी नहीं बोलूंगी अयोध्ा छोड़कर जाने के सलए,आप त्क सी और से बलवा लो। अब बारी आई लक्षमण जी की िो लक्ष्मण जी ने कहा, मै िो लंका के रणभूतम में वैसे ही मरणासन्न अवस्ा में पड़ा था, पूरा रामिल तवलाप कर रहा था। प्रभ प्रलाप सतुतन कान तबकल भए बानर तनकर। आइ गयउ हनमान सजतम करुना महँ बीर रस।। ये जो खड़ा है ना, वो हनमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, त्क स मंह से बोलूं त्क हनमानजी अयोध्ा से चले जाएं! अब बारी आई भरि जी की, अरे! भरि जी िो इिना रोए, त्क रामजी को अयोध्ा से तनकलवाने का कलंक िो वैसे ही लगा है मझ पर, हनमान जी का सब तमलके और लगवा िो! और िसरी बाि ये त्क.! बीि अवधध रहदह जौं प्राना। अधम कवन जग मोदह समाना॥ मैंने िो नंिीग्ाम में ही अपनी चचिा लगा ली थी, वो िो हनमानजी थे सजन्हयोंने आकर ये खबर िी त्क.! ररप रन जीति सजस सर गावि। सीिा सदहि अनज प्रभ आवि॥ मैं िो तबल्ल न बोलूं हनमानजी से अयोध्ा छोड़कर चले जाओ, आप त्क सी और से बलवा लो। अब बचा कौन.? ससर शत्घ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी िरर िेखा, िो शत्घ्न भैया बोल पड़े मैंने िो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, िो आज ही क्यों बलवा रहे हो, और वो भी हनमानजी को अयोध्ा से तनकालने के सलए, सजन्हयोंने ने मािा सीिा, लक्षमण भैया, भरि भैया सब के प्राणयों को संकट से उबारा हो! त्क सी अच् काम के सलए कहि िो बोल भी ििा। मै िो तबल्ल भी न बोलूं। अब बचे िो मेरे राघवेन्द्र सरकार, मािा सीिा ने कहा प्रभ ! आप िो िीनयों लोकयों ये स्ामी है, और िेखिी ह आप हनमानजी से सकचाि है।और आप खतुि भी कहि हो त्क.! प्रति उपकार करौं का िोरा। सनमख होइ न सकि मन मोरा॥ आखखर आप के सलए क्ा अिेय है प्रभ ! राघवजी ने कहा िेवी कज्षिार जो हं, हनमान जी का, इसीसलए िो सनमख होइ न सकि मन मोरा िेवी! हनमानजी का कजजा उिारना आसान नहीं है, इिनी सामर् राम में नहीं है, जो “राम नाम” में है। क्योंत्क कजजा उिारना भी िो बराबरी का ही पड़ेगा न.! यदि सनना चाहिी हो िो सनो हनमानजी का कजजा कैसे उिारा जा सकिा है। पहले हनमान तववाह करें, लंकेश हरें इनकी जब नारी। मतुि री लै रघनाथ चलै,तनज पौरुर लांघघ अगम्य जे वारी। अाघय कहें, सधध सोच हरें, िन से, मन से होई जाएं उपकारी। िब रघनाथ चकाघय सकें, ऐसी हनमान की दिव्य उधारी।।
वर्ष : 2, अंक : 3 8 िेवी! इिना आसान नहीं है, हनमान जी का कजजा चकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था त्क.! “सन सतुि िोदह उररन मैं नाहीं” मैंने बहि सोच तवचार कर कहा था। लेत्कन यदि आप कहिी हो िो कल राज्य सभा में बोलूंगा त्क हनमानजी भी कछ मांग लें। िसरे दिन राज्य सभा में सब एकत् हए,सब बड़े उत्क थे त्क हनमानजी क्ा मांगेंगे, और रामजी क्ा िेंगे। रामजी ने हनमान जी से कहा! सब लोगयों ने मेरी बहि सहायिा की और मैंने, सब को कोई न कोई पि ि दिया। तवभीरण और सग्ीव को क्रमशः लंका और त्कष्कन्ा का राजपि ,अंगि को यवराज पि। िो ितुम भी अपनी इच्ा बिाओ.? हनमानजी बोले! प्रभ आप ने सजिने नाम घगनाए, उन सब को एक एक पि तमला है, और आप कहि हो.! “ ि मम त्प्रय लचछमन ि िना” िो त्र र यदि मै िो पि मांगू िो.? सब लोग सोचने लगे बाि िो हनमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहि खश हए त्क आज हनमानजी का कजजा चकिा हआ। हनमानजी ने कहा! प्रभ जो पि आप ने सबको दिए हैं, उनके पि में राजमि हो सकिा है, िो मझे उस िरह के पि नहीं चादहए, सजसमे राजमि की शंका हो, िो त्र र.! आप को कौन सा पि चादहए.? हनमानजी ने रामजी के िोनयों चरण पकड़ सलए, प्रभ .! हनमान को िो बस यही िो पि चादहए। हनमि सम नहीं कोउ बड़भागी। नहीं कोउ रामचरण अनरागी।। जानकी जी की िरर िेखकर मस्राि हए राघवजी बोले, लो उिर गया हनमानजी का कजजा! और अभी िक सजसको बोलना था, सब बोल चके है, अब जो मै बोलिा ह उसे सब सनो, रामजी भरि भैया की िरर िेखि हए बोले.! “हे! भरि भैया’ कत्प से उऋण हम नाही”. हम चारयों भाई चाहे सजिनी बार जन्म लेे लें, हनमानजी से उऋण नही हो सकिे.!! रामराजर आगाज़ हआ है आज अरोधरा नगरी म ! घर घर वंदनवार सजे है आज अरोधरा नगरी म ! हहनद रह उदघोष करे हम मंहदर रहीं बनाएंगे और मौलवरी की रह ह् हम मगसजद नई बनाएंगे पारसपररक दवंद म भरी नही कोई समाधिान तनकला अरोधरा नगरी म
वर्ष : 2, अंक : 3 9 अतनल गपिा कोिवाली रोड़, उजजैन माह नवमबर सखद संदे रा लारा रघकल नगरी म रामराजर आगाज़ हआ है आज अरोधरा नगरी म कंकम हलदी, चंदन से रामारण का पजन होगा िलसरी बाबा की मानस का हर घर पारारण होगा गंगा की पावन धिारा प्रभ वर के पाँव पखारेगरी लरखर धवजा भगवा लहराई आज अरोधरा नगरी म रामराजर आगाज़ हआ है आज अरोधरा नगरी म दरन को केव् वराकल श्दधिा के बेर चने रबरी अवधि ववकल हो राम पकारे दररथ नंदन आ जाओ देवों ने अमि बरसारा सवगयालोक भरी पलककि है सरर ि् को राम लमलेंगे आज अरोधरा नगरी म रामराजर आगाज़ हआ है आज अरोधरा नगरी म !
वर्ष : 2, अंक : 3 10 मरायादा परुषोत्तम श्रीराम एक आदरया वरग्ितव एस के नरीरज रारपर, छिरीसगढ़ वैसे िो भगवान श्रीराम का जरीवन ही आदरया और संबंधिों की प्रगाढ़िा,मरायादा और जरीवन मलर को दरायाने के ललए का्फी है परं ि हद्कि र है कक हम भगवान राम को मानि ह लेककन उनकी नहीं मानि रावण की बाि जरादा मानि ह। प्रभ श्रीरामचनद्र जरी को र ही मरायादा परषोत्तम राम नहीं कहा गरा है। एक क्षण के ललए मान ललरा भगवान और देविा रबद से ह्कर हम उनह लस्फया एक अविारी परुष रा महापरुष के रूप म देख िो वे सदगणों के भंडार से पररपणया थे। और म रहां उनके जरीवन दरन से संबं्धिि कछ पहलओं पर आप सभरी का धरान आकवषयाि करना चाहंगा।ं
वर्ष : 2, अंक : 3 11 वैसे िो वे गणयों के खान थे लेत्कन मैं उनके कछ तवसशष्ट गणयों के बारे में बाि करना चाहंगा जो उनको औरयों से बहि ऊपर तवसशष्ट और आराध् बनाि हैं। सजसमें पहली तवशेरिा हैआज्ाकारी :- प्रभ श्ीराम चन्द्र जी एक आज्ाकारी पतुत् और सशष्य थे। गरु ने जो भी कहा उन्हयोंने शीश नवाकर उसका पालन त्कया। और जब वे अपनी सशक्षा पूरी कर राजगद्ी संभालने के जैसे ही योग्य हए उनके मािा त्पिा की आज्ा हई त्क भरि को राजगद्ी और उन्हें 14 वर्ष का वनवास हो। तबना एक पल सोचे उन्हयोंने अपने मािा त्पिा की आज्ा पालन कर वनवास जाने के सलए िैयार हो गए। अगर आज के संिभ्ष में हम बाि करें िो क्ा कोई पतुत् अपने त्पिा की इस िरह के आिेश का पालन करेगा। कछ लोग कर भी सकि हैं मगर ज्यािािर मना कर िेंगे। बड़ी पीड़ा होिी है जब हम आज सनि हैं त्क बच् अपने मािा त्पिा का भरण पोरण और बढापे में सेवा से बचने के सलए वद्ाश्म में छोड़ आि हैं। कहीं मैंने पढा था त्क एक तविेश में रहने वाला पतुत् अपने तवधवा मां को लेने भारि आया और सब संपधति बेचकर मां को एयरपोट्ष में छोड़कर तविेश भाग गया। और िो और िख इस बाि को सनकर हआ त्क एक अमेररकी प्रवासी अपने बूढी बीमार को िेखने 6 महीने बाि आया और जब िाला िोड़ा गया िो अन्दर उसके मां का कंकाल पड़ा तमला। उसे मेरे हए 3 महीने से ऊपर हो चके थे और िाज्ब इस बाि का होिा है त्क पड़ोससययों को भी इस बाि की जानकारी नहीं थी। आज के यवाओं से मेरा एक प्रश्न है त्क जीि जी यदि हमने अपने मािा त्पिा को एक घगलास पानी के सलए नहीं पूछा और उनके मरने के बाि यदि उनके कब्र पर िाजमहल भी खड़ा कर ि िो उसका क्ा औचचत्य। मां बाप का त्क सी के जीवन में क्ा महत्व होिा है ये बाि उन लोगयों से पूचछए सजन्हयोंने बचपन में ही मां बाप की छत्छाया खो िी हो। और जब िक हमारे अधभभावक जीतवि हैं िब हमें अपने काम और बीवी बच्यों से रतुस्षि ही नहीं है। यही आिश्ष हमारे समक्ष प्रभ रामचंद्र जी रखकर गए हैं त्क सजनके ससर पर मां बाप का आशीवजाि हो उनके सामने चाहे त्किनी भी बड़ी मसीबि रावण बनकर आए हमारा कछ नहीं तबगाड़ सकिी। भगवान राम के जीवन के अध्यन करने से और जो मख्य मख्य बाि आिी है उनमें प्रमख उनका त्याग, धैय्ष, संयम, तवनम्रिा,सहयोग की भावना, न्ायत्प्रय इत्यादि कई हैं। यदि हम उनके लीला को ससर एक कहानी की िरह आनंि ना लेकर उनके आिश्षवादििा से त्क सी एक गण को भी जीवन में धारण कर लेि हैं िो प्रतिवर्ष हमारा तवजयाि शमी और िीवाली मनाना साथ्षक हो जाएगा।
वर्ष : 2, अंक : 3 12 रामलीला एक संसमरण वनदना लसंह वाराणसरी, उत्तर प्रदे र राम हमारे आराधर ही नही हमारे जरीवन की आधिारलरला है। वह हमारे जरीवन को नररी हदरा व दरा देने म सक्षम ह बस हम अपने नजररर को सही हदरा देना है। रारदीर नवरात्त्र के साथ रामलीला का मंचन भारि के ववलभनन क्षेत्रो म खासकर ग्रामरीण इलाको म बहि ही उतसाह से ककरा जािा है। इसम राम के चररत्र का नाट्र दवारा बहि ही प्रभावराली मंचन ककरा जािा है। राम भारतिरों के रोम -रोम म बसे हए ह। प्राचरीन काल से ही रामलीला का मंचन होिा आरा है। आज से चार पाँच दरक पहले ्ी वरी व अनर प्रसार माधरमों का प्रसार व प्रचलन जब धिरीरे - धिरीरे बढ़ा िो रामलीला का मंचन ्ीवरी पर सरीरररल के रूप म प्रसाररि होने लगा और अब िो इस ्ग्नकल व आधितनक रग म धिरीरे-धिरीरे रामलीला मंचन कम होने लगा है।

राम की राम मरायादा परुष ह, राम गण सवरूप ह। वन म, रण म, राम नाम, जग का कमभकार है। लहर-लहर, मंझधिार म, राम से सब पार है। भाव से ि, नाम भज ले, राम का, नाम जप ले, भल जा अं्धिरारे को , हर िर्फ उगजरार है। हमको लमला, नर जनम म, राम का उपहार है। राम के आदरया म िो, बस तछपा उपकार है। अगले जनम के गभया म, ्रा पिा है ्रा रचा, देख, हृदर मंहदर म ही, राम का दरबार है।

वर्ष : 2, अंक : 3 13 ऐसा लोगो के जरादा आधितनक होने से हआ। पहले लोग किारबदधि होकर सवंर ही आरोजन म उतसाह पवयाक उसकी गररमा का धरान रखि हए भाग ले ि थे, एकिर्फ गसत्ररों की ्ोली िो दसरे िर्फ परूषों की ्ोली बैठिरी थरी वो भरी आराधर के प्रति श्दधिा से नि होकर। आजकल लोग रामलीला मंचन करि ह और उसम आकसट्रा और अनर भददे डांस करके रामलीला की गररमा को ठेस पहचाि ह। आज भरी राद है मझे जब म आठ दस साल की थरी नानरी के रहाँ बनारस रामलीला देखने जारा करिरी ्रा! रामलीला होिरी। प्रभ के रूप को देखने हर हदन सैकड़ो- हजारो की भरीड़ लगिरी और कहीं भरी कोई लापरवाही नही होिरी सब अपने घरों से राि म बैठने के ललए दरी व बोरे रा कछ भरी सहारा लेकर आि जमरीन पर बैठकर राम के चररत्र को देखि व जरीवन को उसके अनसार सलभ बनाने की कोलरर करिे। पर आजकल िो लोग हर कड़री हर चरीज को उल्े नजररर से देखि ह,और ऐसे म आसथा का डगमगाना लागजमरी है। पर आसथा के डगमगाने से प्रभ को कछ थोड़री होने वाला है। वह िो िब भरी सहज व सरल थे और अब भरी वैसे ही रहगे। उनहोने िब भरी सेबरी के जठे बैर खार थे, केव् को गले लगारा था और परओं की सहारिा से सरीिा माँ को छड़ारा था। उनहोने हर प्राणणरों को एक बराबर समझा उनहोने अपने रत्र रावण को भरी श्षठ ज्ानरी मानकर लक्मण से उससे दीक्षा लेने को कहा। कहने का िातपरया है आपको जहाँ से भरी अचछी व सचचरी लरक्षा, ग्रहण करने रो्र व जरीवन को स्फल व उत्तम बनाने का मंत्र लमले आपको ले लेना चाहहए। एक छो् से बचचे से भरी आप प्रेम वातसलर व परओं से दराभाव की भावना का सरीख ले सकि ह। म्िा रमाया त्त्रपाठी ववशवास की इक आस से, राम अपरंपार है। लेन-देन के ्लेर म, त्बक रहा बाज़ार है। परीर अपने हृदर की ि, राम को बस सौंप दे, राम नाम के जप म ही, बस तछपा उदधिार है। राम मिया, अमिया राम, राम के सब रूप ह। वणया जो उल् भरी जप ले, राम आप अनप ह। थककि, िवपि द्धि हृदर म, छाँव मेरे
राम सिति ब्ाला, गज़ला गरदासपर, पंजाब

?.समणझए कक आपसे रह प्रशन आपका अनज नहीं, अरोधरा का एक सामानर नागररक कर रहा है। (राम गमभरीर हो गए).कछ क्षण के मौन के बाद कहा, “अपने सगे-समबगनधिरों के ककसरी अपराधि पर कोई दणड न देना ही इस सगष् का ‘कठोरिम दणड’ है, भरि !!” मािा कैकई ने अपनरी एक भल

वर्ष : 2, अंक : 3 14
संग ्हलि श्री
ललए (सामानर तनरमों के अनसार) िो मतरदणड हदरा जािा है, क्फर आपने मािा कैकई को दणड ्रों नहीं हदरा ? राम मसकराए…. बोले, “जानि हो भरि !! ककसरी कल म एक चररत्रवान और धिमयापरारण पत्र जनम ले ले, िो उसका जरीवन उसके असखर परीढ़ी के वपिरों के अपराधिों का प्रारगशचि कर दे िा है। गजस “माँ” ने िम जैसे - महातमा को जनम हदरा हो, उसे दणड कैसे हदरा जा सकिा है, भरि ?” (भरि सनिष् नहीं हए) कहा, “रह िो मोह है भईरा ; और “राजा_ का_ दणडववधिान” मोह से म्ि होिा है। कपरा एक राजा की िरह उत्तर दीगजर कक आपने मािा को दणड ्रों नहीं हदरा
का बड़ा - कठोर दणड भोगा है। वनवास के (14) चौदह वषषों म हम - चारों भाई अपने - अपने सथान से पररगसथतिरों से लड़ि रहे ह ; पर मािा कैकई हर क्षण मरिरी रही ह। (अपनरी एक भल के कारण) उनहोंने अपना पति खोरा, अपने चार - बे् खोए, अपना समसि सख - सममान खोरा, क्फर भरी वे उस “अपराधि बोधि” से कभरी म्ि न हो सकीं। वनवास समापि हो गरा. िो पररवार के रेष - सदसर प्रसनन और सखरी हो गए ; पर वे कभरी प्रसनन न हो सकीं। कोई ‘राजा’ ककसरी “सत्ररी” को इससे कठोर - दणड ्रा दे सकिा है ? भगवान श्री राम को 14 वषया का वनवास नवनरीि चौधिरी, झंझनं, राजसथान
एक हदन (संधरा के समर) सरर के ि् पर.िरीनों भाइरों
राम से भरि भैरा ने कहा, “एक बाि पछ” ? भईरा !! मािा कैकई ने आपको वनवास हदलाने के ललए मथरा के साथ लमल कर जो ‘षडरंत्र’ ककरा था, ्रा वह राजद्रोह नहीं था ? उनके ‘षडरंत्र’ के कारण.एक ओर राजर के भावरी महाराज और महारानरी को (14) चौदह वषया का वनवास झेलना पड़ा.िो दसरी ओर वपिा महाराज की द:खद मतर हई। ऐसे ‘षडरंत्र’ के
वर्ष : 2, अंक : 3 15 म िो सदैव रह सोचकर दखरी हो जािा ह कक “मेरे कारण (अनारास ही) मेरी माँ को इिना कठोर - दणड भोगना पड़ा।” राम के नेत्रों म जल उिर आरा था, और भरि - आहद भाई मौन हो गए थे। (राम ने क्फर कहा). “और उनकी भल को अपराधि समझना ही ्रों भरि !!.[रहद मेरा वनवास न हआ होिा], िो संसार ‘भरि’ और ‘लक्मण’ जैसे भाइरों के अिलर भ्ाि - प्रेम को कैसे देख पािा ? (मने) िो केवल अपने मािावपिा की आज्ा का पालन मात्र ककरा था, पर (िम - दोनों) ने िो मेरे - सनेह म (14) चौदह वषया का “वनवास” भोगा। “वनवास” न होिा िो
गए थे। (वे अनारास ही बड़े भाई से ललप् गए) !! राम कोई नारा नहीं ह। राम एक आचरण ह, एक चररत्र ह, एक जरीवन “जरीने की रैली” ह। अपने जरीवन म श्रीराम के चररत्र को उिारे रही ववजरादरमरी पवया हम लसखािा है। भगवान श्री राम को 14 वषया का वनवास हआ िो उनकी पतनरी माँ सरीिा ने भरी सहषया वनवास सवरीकार कर ललरा। परनि बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्मण जरी कैसे राम जरी से दर हो जािे! मािा सलमत्रा से िो उनहोंने आज्ा ले ली थरी, वन जाने की. परनि जब पतनरी उलमयाला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे िो सोच रहे थे कक माँ ने िो आज्ा दे दी, परनि उलमयाला को कैसे समझाऊंगा!! ्रा कहंगा!! रहद त्बना बिाए जाऊंगा िो रो रोके जान दे देगरी और रहद बिारा िो साथ जाने की गज़दद करने लगेगरी और कहेगरी कक रहद सरीिा जरी अपने पति के साथ जा सकिरी ह िो म ्रों नहीं!! रहीं सोच ववचार करके लक्मण जरी जैसे ही अपने कक्ष म पहंचे िो देखा कक उलमयाला जरी आरिरी का थाल लेके खड़री थरी और बोलीं- “आप मेरी ्चिा छोड़ प्रभ की सेवा म वन को जाओ। म आपको नहीं रोकंगरीं। मेरे कारण आपकी सेवा म कोई बाधिा न आरे, इसललर साथ जाने की गजदद भरी नहीं करूं गरी।” लक्मण जरी को
उसके मन की बाि जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे! पतनरी का इिना तराग और प्रेम देखकर लक्मण जरी भरी रो पड़े। उलमयाला जरी ने एक दीपक जलारा और ववनिरी की कक मेरी इस आस को कभरी बझने नहीं देना। लक्मण जरी िो चले गर परनि 14 वषया िक उलमयाला जरी ने एक िपगसवनरी की भांति कठोर िप ककरा। वन म भैरा-भाभरी की सेवा म लक्मण जरी कभरी सोर नहीं परनि उलमयाला ने भरी अपने महलों के दवार कभरी बंद नहीं ककर और सारी राि जाग जागकर उस दीपक की लौ को बझने नहीं हदरा।
रह संसार सरीखिा कैसे.कक भाइरों का समबनधि होिा कैसा है ?” भरि के प्रशन मौन हो
कहने म संकोच हो रहा था। परनि उनके कछ कहने से पहले ही उलमयाला जरी ने उनह संकोच से बाहर तनकाल हदरा। वासिव म रहीं पतनरी का धिमया है। पति संकोच म पड़े, उससे पहले ही पतनरी
वर्ष : 2, अंक : 3 16 दररथ नंदन रघपति का रग दररथ नंदन रघपति का रग, रामराजर कहलारा। पणया ककए सि वपि वचनों को, लसंहासन ठकरारा ।। हए राम हसकर बैरागरी, सरीिा सह वनवासरी। भ्ाि लखन वप्रर,दख के संगरी, हए सदा ववशवासरी।। महलों
मख से रघवर परीर न कहिे, रज-कानन हषायारा । दररथनंदन रघपति का रग, रामराजर कहलारा।। भा्र जगि के जाग उठे र्च, रामचंद्र अविारी। मरायादा परुषोत्तम श्रीपति, मोह नहीं संसारी ।। संग लसरा धिरिरी पर आरे, पावन धिरा बनारा । दररथ नंदन रघपति का रग, रामराजर कहलारा।। वतियाका अग्रवाल वाराणसरी, उत्तर प्रदे र
के रहने वालों ने, वन से ररशिा पारा । दररथनंदन रघपति का रग, रामराजर कहलारा।। आतम ्लातन से भरि जझिे, घना हआ अँ्धिरारा । कमलनरन के पद-पंकज ने, भरा ज्ान-उगजरारा।। प्ररीति भरि लेकर लौ् िब, ्गन-्गन वषया त्बिारा । दररथननदन रघपति का रग, रामराजर कहलारा।। भरि सदा भ से नरीचे सो, हहर का रासन दे िे। तरागे मािा अरु सख सारे, खद से बदला ले ि ।।
वर्ष : 2, अंक : 3 17 सवविा ‘समन’ सहरसा, त्बहार सजरी हई आज लम्थला नगरररा दलहा बने श्री राम दलहन बनरी वैदेही लम्थला कमारी देख रहे चारो धिाम गंज रही मंत्रोचचारण सणखरां गाए गरीि भाग जागे लम्थला के पाहन ऐसा पाए ह िरीनों भवन देखो हवषयाि मंगल गरीि सनाए देख देख सब नैना जड़ाए सनदर चारो राजकमार कोरलरा माँ परछन की करे िरारी आज डोली म जाएगरी लम्थला की चारो कमारी ररद्धि लसद्धि दे िरी आलरष गणपति करि स्फल जग सारे करे मंगलकामना आज सब लम्थला के दवारे राम जानकी वववाह पललवरी लमश्ा त्बहार ककसकी क्षमिा है श्रीराम आप सब भपतिरों के माललक िमह भवन कौन दे सकिा है श्रीराम ।। कण-कण हर रज म आप ह ववराजमान। आप म ही लसम्ा है सारा अणखल ब्रहांड ।। भल क्षमा कर हे ईशवर कर सबकी राचना सवरीकार सबकी राचना सवरीकार ।। कर जोड़े ररीर झका कर कर बारमबार प्रणाम ।। करुं म रही ववनिरी िझसे आप पधिारो सवर तनजधिाम (अरोधरा) हे श्रीराम है श्री प्रभ राम ।। अपने जरोतिपंज से सदा कर ववशव का कलराण । सदा ववददमान रहे, मनज का मान हे श्री राम जर श्री राम - जर श्री राम ।। िमह समे ् कौन भवन म?
वर्ष : 2, अंक : 3 18 प्रभ राम की बाल लीला राहल रंजन प्ना, त्बहार बहि भावक ज्ानवधियाक कथा है, जब भगवान रंकर को पिा चलिा है, कक रामाविार हो चका है, िो वह प्रभश्रीराम के बालरूप के दरन करने के ललर कागभरगणड जरी के साथ मनषर को रूप बना के अरोधरा आि ह, आगे पढ, बंदउँ बालरूप सोइ राम। सब लस्धि सलभ जपि गजस नाम॥ मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अगजर त्बहारी॥ भावाथया:- म उनहीं श्री रामचनद्रजरी के बाल रूप की वंदना करिा ह, गजनका नाम जपने से सब लसद्धिराँ सहज ही प्रापि हो जािरी ह। मंगल के धिाम, अमंगल के हरने वाले और श्री दररथजरी के आँगन म खेलने वाले (बालरूप) श्री रामचनद्रजरी मझ पर कपा कर॥
वर्ष : 2, अंक : 3 19 सजस समय भगवान राम का जन्म हआ िो चारयों और उत्व मनाया जा रहा है। भगवान सशव भी भगवान राम के बाल रूप का िश्षन करने गए थे। वही कथा पाव्षिी माँ को सना रहे है। भगवान सशव कहि हैं पाव्षिी सजस समय भगवान का अविरण हआ था उस समय मझसे रहा नही गया। मैं अपने मन को रोक नही पाया और ितुरं ि अवधपरी पहंच गया। मेरी चोरी ये थी की मैंने ितुमको नही बिाया। भगवान ये कहना चाह रहे हैं की जब भगवान का बलावा आये िो त्क सी का इं िजार मि करना। और एक मानव रूप धारण कर सलया। पाव्षिी बोली की आप महािेव हो। और मानव बनकर क्यों गए? भगवान सशव बोले हैं की जब महािेव के िेव भी मानव बनकर आ सकि हैं िो मैं मानव ना बनूँ िो ये कैसे हो सकिा हैं? जैसे ही अयोध्ा में पहंचा हईं बहि भीड़ लगी हई हैं। भोलेनाथ बहि प्रयास कर रहे हैं राम जी के िश्षन करने का। लेत्कन नही जा पा रहे हैं। सशव ने थोड़ी िाकि लगाई हैं। और थोड़ा धक्ा दिया हैं। जैसे ही सशव ने धक्ा दिया हैं िो अंिर से ऐसा धक्ा आया हैं की भोले नाथ िर जाकर मंदिर के एक सशवसलंग के पास टकराकर घगर गए हैं। भोलेनाथ बोले की ये लो, हो गए िश्षन। राम के िो हए नही पर मेरे खतुि के हो गए। भोलेनाथ ने सोचा की ऐसी भीड़ में िश्षन कैसे हो? िब भोलेनाथ को याि आई मेरा एक चेला हैं वो दिखाई नही ि रहा हैं। यहीं कहीं ही होगा। वो चेला हैं काकभशण्डि जी महाराज। सोच रहे हैं की भगवान का िश्षन करने जरूर आये हयोंगे। जैसे ही भोलेनाथ ने इन्हे याि त्कया हैं िो काकभशण्डि जी ितुरं ि आ गए हैं। क्योंत्क कौवे के रूप में हैं। भोलेनाथ को कहि हैं महािेव कैसे बलाया हैं। जल्ी बिाइये। भोलेनाथ बोले की जल्ी बिाऊ। पर क्? कहाँ जाना हैं? काकभशण्डि जी बोले की ितुम्ारे पीछे उत्व छोड़ कर आया हँ। सशव जी बोले की ितुम कहाँ थे? उसने कहा की प्रभ मैं िो अंिर ही था। ि शरथ जी खूबआनन्द लूटा रहे हैं। बड़ा आनंि हो रहा हैं। भगवान सशव बोले की बत्ढया हैं। मानव को िो भीड़ के कारण रोक सकि हैं पर कौवे को कौन रोकेगा। वाह! चेला आनंि ले रहा हैं और गरु यहाँ बैठा हैं। भोलेबाबा कहि हैं की चेला जी कोई यतुघति बिाइये, हमे भी िश्षन करवाइये। काकभशण्डि जी ने कहा की महाराज चलो कोई यतुघति बनाि हैं। काकभशण्डि ने भी मानव रूप धारण कर सलया। बहि बार प्रयास त्कया हैं लेत्कन इन्हे अंिर नही जाने दिया। अब जब कारी समय हआ िो भगवान राम ने भी रोना शरू कर दिया। इनके मन में भी भोले बाबा के िश्षन करने की िड़प जाग गई हैं। अब राम जी िःख में िड़प कर रो रहे हैं। और जब ये पीड़ा भरी पकार मैया के कानयों में गई हैं िो कौसल्ा जी तबलख पड़ी हैं। की मेरे लाल को आज क्ा हो
वर्ष : 2, अंक : 3 20 गया हैं। इधर भोले बाबा ने भी पूरा नाटक त्कया है। भोले बाबा एक 80 साल के ज्योतिर बन गए हैं। गोस्ामी जी ने गीिावली में इस भाव को बिाया हैं। और स्यं ज्योतिरी बन कर काकभशण्डि जी को अपना सशष्य बना सलया है और सरयू जी के त्कनारे बैठ गए है। सजिने भी लोग रस् से आ-जा रहे है भगवान सशव सबके हाथ िेख रहे है। और भतवष्यवाणी कर रहे हैं। अब अवधपरी में चचजा शरू हो गई हैं कोई बहि बड़ा ज्योतिरी आ गया हैं। गोस्ामी जी कह रहे हैं। अवध आज आगमी एक आयो। जब भगवान राम ने रोना शरू त्कया हैं िो माँ बहि परेशान हैं। गरु वसशष्ठ जी को खबर की गई हैं। लेत्कन वसशष्ठ जी व्यस् हैं। इिने में एक नौकर आकर बोला की मैया,” मझे खबर तमली हैं की एक बहि बड़ा ज्योतिरी अवध पूरी में आया हैं। आपकी आज्ा हो िो उसे बला लाऊँ।” माँ िो परेशान थी। मैया ने कहा- की जाओ और जल्ी बला कर लाओ। बस मेरे लाल का रोना बंि हो जाये। िौड़ िौड़ सेवक गए हैं। भोले बाबा सरयू निी के त्कनारे बैठे हए हैं। नौकरयों ने कहा की आप ही वो ज्योतिरी हैं सजसकी चचजा हर जगह रैली हई हैं। भोले बाबा बोले ितुम लोग कहाँ से आये हो? वो बोले की हम राजभवन से आये हैं। ये सनि ही भोले नाथ का रोम-रोम पलत्कि हो गया हैं। समझ गए हैं की मेरे राम ने ही इन्हे धभजवाया हैं। भगवान सशव बोले की क्ा करना हैं बोलो? वो सेवक बोले की महाराज जल्ी चसलए, सबह से लाला आज बहि रो रहे हैं। रानी ने आपको बलाया हैं। भोले नाथ जैसे ही चलने लगे िो काकभशण्डि जी करिा पकड़ सलया हैं। की महाराज मैं भी िो आपके साथ में हँ। मझे भी साथ लेके चलो। भोले नाथ बोले की ितुमने िश्षन िो कर सलए हैं। ितुम जाकर क्ा करोगे? काकभशण्डि जी कहि हैं की मैंने िश्षन िो त्कया हैं पर स्पश्ष नही त्कया हैं प्रभ का। यदि ितुम स्पश्ष करवाओगे िो ठीक नही हैं नही िो अभी पोल खोलिा ह ितुम्ारी। सजिनी भी कपा होगी उस पर हमे भी िो तमलनी चादहए। भोले नाथ बोले की ठीक हैं आपको भी िश्षन करवा िि हैं पर आप पोल मि खोलना। जब राजभवन पर पहंचे हैं िो पहरे िारयों ने रोक सलया हैं। हाँ भैया कौन हो और कहाँ जा रहे हो? नौकर बोले की इन्हे रानी ने बलाया हैं। ये ज्योतिरी हैं। इन्हे अंिर जाने िो। अब भोले बाबा राजभवन में अंिर प्रवेश करने लगे हैं पर काकभशण्डि जी को रोक सलया हैं। पहरे िार बोले ठीक हैं ये ज्योतिरी हैं िो अंिर जा रहे हैं पर ये साथ में कौन हैं जो अंिर चला जा रहा हैं। इनके अंिर जाने का क्ा काम? ि शरथ जी का आिेश हैं की त्क सी अनजान को अंिर नही आने िेना हैं। भोले बाबा मस्रा कर अंिर जाने लगे हैं िभी
वर्ष : 2, अंक : 3 21 काकभशण्डि बोले की प्रभ साथ लेके जाओ नही िो पोल खोलिा ह अभी। भोले बाबा बोले की ठीक हैं मैं कछ करिा हँ। भोले बाबा कहि हैं की भैया बाि ऐसी हैं। मैंने 80 साल का बूढा हो गया हँ। ज्योतिरी िो पक्ा ह पर आँखयों से कम दिखाई ििा हैं। ये मेरे चेला हैं। इनके तबना मेरा काम चलेगा। मैया बोली की करो महाराज अब जो आपको अपना झाड़ - रूँक करना हैं। भोले नाथ बोले की मैया- इिनी िर से कछ नही होगा। ना िो ि मँह दिखा रही। ना ि स्पश्ष करवा रही। तबना मँह िेखा और तबना स्पश्ष करे मैं कछ नही कर सकिा हँ। मझे एक एक अंग िेखना पड़ेगा की नजर कहाँ लगी हैं। नाक को लगी हैं या आँख को लगी हैं। मैया बोली की िर से कछ नही होगा? भोले नाथ बोले-मैया िर से कछ भी नही होगा। आज मैया ने अपनी साडी का पल् उठा सलया और जो राम जी अब िक रो रहे थे भगवान सशव को िेख कर खखलखखलाकर मस्राने लगे हैं। मैया बोली-महाराज आप िो कमाल के ब्राह्मण हो। आपने ससर लाला को िेखा ही हैं और लाला का रोना बंि कर दिया हैं। भगवान सशव बोले की मैया अभी िो नजर पड़ी हैं और रोना बंि हो गया हैं अगर ि गोिी में ि ि िो हमेशा के सलए आनंि आ जाये। अब मैया ने ितुरं ि राम जी को लेकर भोले नाथ की गोिी में ि दिया हैं। जैसे ही भगवान, भगवान सशव की गोिी में आये हैं। मानो साक्षाि सशव और राम का तमलान हो गया हैं। भगवान सशव की नेत्यों से आंसू बहने लगे हैं। अब िक सजस बाल छतव का मन में िश्षन करि थे आज साक्षाि िश्षन हो गए हैं। भोले नाथ कभी हाथ पकड़ि हैं, कभी गाल छू ि हैं और माथा सहलाि हैं। भगवान राम भी टकर-टकर अपनी आँखयों से सशव जी को िेख रहे हैं। जब थोड़ी िेर हो गई िो काकभशण्डि जी ने पीछे से करिा पकड़ा हैं। और कहि हैं हमारा दहस्ा भी िो िीसजये। आपने आनंि ले सलया हैं िो मझे पर भी कपा करो। अब भगवान सशव जब राम को काकभशण्डि की गोि में िेने लगे िो मैया ने रोक दिया हैं। की इनकी गोि में लाला को क्यों ि रहे हो? भगवान सशव बोले की मैया मैं बूढा हो गया ह ये मेरे चेला हैं। ये हाथ िेखेंगे और मैं भतवष्य बिाऊंगा। काकभशण्डि जी की गोि में लाला को ि दिया हैं। अब काकभशण्डि जी भी भगवान का िश्षन पा रहे हैं। और भोले नाथ ने भगवान का सारा भतवष्य बिाया हैं। सब बिा दिया हैं की आपके लाला कोई साधारण लाला नही हयोंगे आपका लाला का जग में बहि नाम होगा। आपके लाला के नाम से ही लोग भव सागर िर जायेंगे। मैया बोली की ये सब ठीक हैं पर ये बिाओ की लाला की शािी कब होगी? भोले नाथ बोले की इिना बिा सकि हैं आगे चलकर आप थोड़ा ध्ान रखना। एक बूढ बाबा आपके लाला को

घरी के दीपक जलाएं

परमेश्र राम जरी अरोधरा आर भगवान राम अरोधरा आर लसिा मािा और बचचे दर ककरा परमेशवर राम जरी अरोधरा आर सरीिा को वन म रहने को मजबर ककरा लव और कर का जनम हआ जवा अवसथा म कथा वाचक गनवान हऐ परमेशवर राम जरी अरोधरा आर लव और कर को जब ज्ान हआ सरीिा मािा की पववत्रिा पर सवाल हरा सरीिा मािा ने दी जब अ्नरी परीक्षा परमेशवर राम जरी अरोधरा आर धिरिरी मािा का आवहान हरा लव और कर को सोप कर सरीिा मां धिरिरी की गोद म समा गई परमेशवर राम जरी अरोधरा आर घरी के दीपक गगन ने जलाऐ।

वर्ष : 2, अंक : 3 22 आपसे मांगने के सलए आएंगे। और जब वो मांगने आये िो ितुम ितुरं ि दिलवा िेना। मना मि करवाना। क्योंत्क आपके लाला उनके साथ चले जायेंगे िो वहां से बह लेकर ही आएंगे। कौसल्ा जी बोली की आप चचिा मि करो महाराज ये बाि मेरे दिमाग में नोट हो गई हैं। मैं इसे हमेशा याि रखूंगी। इस प्रकार भोले बाबा ने सब बिाया हैं। मैया ने बोला की आपने बड़ी कपा की हैं मेरे लाला का रोना बंि करवा दिया हैं। मेरे लाला का भतवष्य बिा दिया हैं। अब मेरे लाला को आशीवजाि भी ि िीसजये। भगवान सशव ने खूब आशीवजाि दिया हैं। हे राम! आप जग-जग सजयो। सबको आनंदिि करो। इस प्रकार से भोले नाथ बड़ी मस्ी में राम जी को आशीवजाि िेके अपने धाम पधारि है। भोले नाथ जी ने ये भी कहा है की इस चररत् को सब लोग नही जान सकिे। बस सजस पर राम की कपा होगी वो ही लोग इस चररत् को जान सकि है। पाव्षिी जी कहिी है महाराज हम पर राम जी की कपा बनी हई है िभी हम ये सब जान पाये है। इष्टिेव मम बालक रामा। सोभा बपतुर कोत्ट सि कामा॥ तनज प्रभ बिन तनहारर तनहारी। लोचन सतुर ल करउँ उरगारी॥ भावाथ्ष:- बालक रूप श्ी रामचंद्रजी मेरे इष्टिेव हैं, सजनके शरीर में अरबयों कामिेवयों की शोभा है। हे गरुड़जी! अपने प्रभ का मख िेख- िेखकर मैं नेत्यों को सरल करिा हँ॥ गगनप्ररीि सपल ग्राम घाबादान, पंजाब परमेशवर राम जरी अरोधरा आर घरी के दीपक जलाऐ मन म नरा जोर जगाऐ परमेश्र राम जरी अरोधरा आर सरीिा मािा के आचरण पर ? उठाए प्रजा धिमया तनभाऐ
वर्ष : 2, अंक : 3 23 अजर कमार अररररा, त्बहार िेरा िो सारा जग है, िम हीं हो िारणहार । िम हीं हो हर कण कण म िजया, िेरा बसारा सारा संसार । जगि म वरापि अतराचारों को, रावण वधि कर समल नष् ककरा । प्रेम रस धिारा बहारा, सबों को अमिपान करारा । िम मानव के आदरया हो, ऊंच नरीच से पड़े थे िम । वनवासरी जरीवन जरीकर, राम राजर सथावपि ककए
कलम म इिनरी रग्ि नहीं, म
हे देव सवरूप कौरलरा नंदन, ककन रबदों से बरान करुं । हे राम, िेरा चहंओर गणगान अलका जैन इंदौर, मधरप्रदे र नारद मतन एक खबर ले कर आर खबर सन िरीनों लोक हषायारा भ्िों नाच रहे हनमानजरी नाचे ववभरीषण अरोधरा म राम लला का मंहदर बनेगा मेनका रंभभा सारी अफसरा नाच रही भ्िों ने पांच अगसि को हदवाली मनाई दीप दवार जलाि लमठाई भरी बां्ी खब औरिों ने खररी म रंगोली बनाई रंगरीन दादा बरसों बाद लाठी ले नाचे गाि रे नानरी लाल चनरी लहराि भजन गार नर ललबास पहने मंगल गरीि गार लोग ढम ढम ढोल मंजरीरे बजे गलल गलल भ्िो पांच सौ बरस म रभ घड़री आई भ्िों रे मंहदर लाने भ्िों ने जान कबायान कर दी भागरीरथरी प्ररास करने पड़े मेरे भाइरों
कर जाि रोम रोम हषया रहा खररी के आंस आि बौलो श्रीराम जर राम जर जर राम राम राम लला का मंहदर बनेगा मंहदर बनेगा बोलो लसरावर रामचनद्र की जर जर जर नारद
थे िम ।
कैसे िेरा गणगान करुं ।
रे ऐसे भा्र लेकर जनमे हम िम साक्षरी बने दान पणर म कमरी ना करना आज भ्िों राम लला का मंहदर बनेगा मंहदर बनेगा मोदी ने ईं् रख दीं अरोधरा म दीप जरार प्ाखे की आवाज हषषोललास
मतन की खबर
वर्ष : 2, अंक : 3 24 भारि भलम पर राम अलभनव नारारण देहरादन, उत्तराखंड भारि भलम पर राम एक नाम नहीं बगलक हर वरग्ि के गले का कंठ धिार ह।राम मेरी आसथा है, राम मेरे जरीवन का आधिार है। राम के नाम से ही मेरे संपणया दखों का अंि होिा है। राम मेरे मन प्राण है,राम से अलग भारि की पररभाषा हो ही नहीं सकिरी ्रोंकक जो मलर जो ववचारधिाराएं राम के दवारा इस समाज को प्रापि हए ह। उनह भारि से अलग करके नहीं देखा जा सकिा हमारे भारि को संपणया वरग्ितव अगर ककसरी ने प्रदान ककरा है िो श्रीराम ने प्रदान ककरा है। भारि का हर सदसर उनकी बनाए मलरों को ही अपना आधिार मानकर इस संसार को देखिा है। हम जब भरी जरीवन के ककसरी भरी पररगसथति म अपने आप का आकलन करि ह,िो हम पाि ह कक राम हर उस सथान पर हम उन पररगसथतिरों से लड़ने और अपना मलरांकन करने का अवसर प्रदान करि ह। शूप्षणखा
वर्ष : 2, अंक : 3 25 राम ने संपूण्ष समाज को त्याग बसलिान और न्ाय का एक संपूण्ष ज्ान प्रिान त्कया है।भारि में जाति प्रथा का सिैव तवरोध त्कया है उन्हयोंने शबरी के मीठे बेर को खाकर इस समाज की प्रत्येक व्यवस्ा पर कठाराघाि त्कया है।राम इस भारि की आत्ा है आत्ा के शरीर का कोई अस्स्त्व नहीं होिा बचपन से ही मैंने अपनी मां से राम के संपूण्ष जीवन चररत् को सना और समझा है। मैं राम की प्रत्येक तवचारधारा में स्यं को प्रस्तुि करके अपने जीवन को तनम्षल करना चाहिा हं।राम के सख में राम के िख में भारि का जन-जन अपने आप को प्रस्तुि पािा हं।जब भी राम की तनम्षल अतवरल धारा बहिी है िो कोई भी मानव मात् उससे अपने आप को वंचचि नहीं कर सकिा है।सही अथथों में कह एक अद्ि चररत् है राम सजसे मैंने अपने मािात्पिा की मख वाणी से सना और उसका रसपान जीवन भर त्कया। मझे जब भी अवसर प्राप्त हआ िो मैंने रामलीला में इसको अधभनीि करने वाले चचत्यों के साथ स्यं के रूप में अपने आप को प्रस्तुि त्कया राम की प्रसन्निा जब होिी है िो संपूण्ष तवश्व हंसिा है और जब राम त्क सी िख में अश् धारा के साथ होि हैं िो पूरा संसार तवराि में आ जािा है। मैं जीवन के प्रारंभ से लेकर अंि िक राम के प्रेम को शब्यों में व्यति नहीं कर सकिा।मेरे प्रभ श्ी राम मािा त्पिा की आज्ा मानने वाले एक पतुत् हैं भाई के प्रेम को जीवन में सव्षश्ष्ठ बनाने वाले भाई हैं। मािा सीिा के प्रति उनका अंधतवश्वास अनन् भघति नारी जाति के सलए एक वरिान है।त्याग के सलए बसलिान करने वाली श्ी राम न्ाय के सलए यतुद् करने वाले जीवन को नई राह दिखाने वाले श्ी राम को मैं अपने शब्यों की भावांजसल से कोत्ट कोत्ट प्रणाम करिा हं। मेरा जीवन जब भी आरंभ हो और मेरा जीवन जब भी समाप्त हो मैं श्ी राम की मख ध्वतन से अपना शब् का गणगान क रूं मेरी राम मेरी आत्ा है जो मेरे अंिर समादहि है मेरे कमथों में मेरे धमथों में राम ही हर वति मझे दिशा प्रिान करि हैं।राम की मदहमा का गणगान शब्यों में नहीं है यह शब्यों से िर कदहए जीवन है,जो हमें राह दिखािा है।और जीने का मकसि भी प्रिान करिा है राम के सलए मेरी श्द्ा मेरा तवश्वास मेरे जीवन का बहमूल् तवचारधारा को पररतमि करने का एक अवसर है और मैं इस अवसर को कभी भी अंि िक नहीं पहंचाना चाहिा,जब िक यह जीवन है मझे श्ी राम की भघति में ही जीवन जीने का अवसर प्रिान करने के सलए प्रभ श्ी राम का कोत्ट -कोत्ट वंिन और धन्वाि अत्पि करिा हं।
वर्ष : 2, अंक : 3 26 रामारण की कथा रलरलिा पाणडेर बललरा, उत्तर प्रदे र रामारण के अनसार, इक्वाक कल म जनमे रघवंररी राजा दररथ ने अपनरी राजधिानरी के रूप म अरोधरा के साथ कोरल (उिरी अवधि) पर रासन ककरा था। गजनकी िरीन रातनरां सलमत्रा,कौरलरा और कैकई थरी। उन रातनरों से उनके चार पत्र थे,जरे षठ राम कौरलरा के लक्मण और रत्रघन सलमत्रा के और सबसे छो्ी रानरी कैकररी के पत्र भरि हए। जब राजा दररथजरी वदधिावसथा की ओर अग्रसर हो चले िो अपने जरे षठ पत्र राम को अपना राजरपा् सौपने का तनणयार ककरा। और उनह सही समर देखकर रवराज घोवषि कर हदरा,जो की उनकी सबसे छो्ी रानरी कैकररी को नागवार गजरा,्रोकक वो अपने पत्र भरि को उत्तरा्धिकारी बनाना चाहिरी थरी। वह सबसे छो्ी और राजा दररथ की वप्रर रानरी थरी। एक बार रदधि के दौरान रथ पर दररथजरी के साथ कैकररी भरी थरी। रदधि के दौरान रथ का पहहरा ््कर अलग होने के कगार पर था।महाराज दररथ को रदधि के दौरान बाधिा उत्तपनन होने से बचाने के ललए कैकररी रथ के तछद्र म अपनरी अंगली डालकर रथ के पहहर को अलग होने से बचार रखा।
वर्ष : 2, अंक : 3 27 यतुद् की समाप्प्त पर राजा ि शरथ ने कैकयी को खश होकर बरिान मांगने को कहा। इसपर रानी ने कहा, वो जब भी मझे आवश्यकिा होगी वरिान मांग लंगी। और त्र र उसी वचनयों के अनसार कैकयी ने राम के सलए चौि ह वरषो का वनवास और अपने पतुत् भरि के सलए राज्याधभरेक की मांग की।राजा ि शरथजी को अपने ही वचनयों के द्ारा तववश होकर कैकयी की बाि माननी पड़ी। एक आज्ाकारी और कि्षव्यतनष्ठ पतुत् होने के नाि राम पत्ी सीिा और कतनष्ठ भ्ािा लक्ष्मण के साथ बनवास को प्रस्ान कर गए। वनवास के िौरान राम नाससक के पास पंचवटी में रह रहे थी। एकदिन लंकाधधपति रावण की बहन सूप्षनखा लक्ष्मणजी से तववाह के सलए प्रणय-तनवेिन करने लगी। लक्ष्मणजी के समझाने के बाि भी वह नही मानी,िो लक्ष्मणजी ने उसके नाक-कान काट दिए। अपनी बहन के अपमान का बिला लेने हेितु लंकाधधपति रावण ने साध भेर में कतुत्टया में अकेली सीिाजी का कपट से अपहरण कर लंका ले गया। सीिाजी को रावण से मतुति कराने की सलए राम-लक्ष्मण ने लंका की ओर प्रस्ान त्कया। रास् मे वनराधधपति सग्ीव का उसके बड़ भाई बाली द्ारा छीने गए राज्य को वापस दिलाने में मिि की सजसके रलस्रूप किज्िा के रूप में सग्ीव ने अपनी शघतिशाली और सक्षम सेना और सेनाधधपति वीर हनमान के द्ारा राम की रावण से यतुद् मे मिि की और इसप्रकार राम ने रावण पर तवजय प्राप्त की और रावण परासजि होकर राम के हाथयों मारा गया। अन्ाय पर न्ाय की महान तवजय हई। पत्ी सीिा को रावण की कै ि से मतुति कराया। इन सबके बीच चौि ह वरषो की अवधध समाप्त हई और राम अयोध्ा लौट आये और उनके छोटे भाई भरि द्ारा उनका राज्याधभरेक त्कया गया और राम ने वरषो िक अयोध्ा पर न्ायपूण्ष शासन त्कया। इसी िौरान एक धोबी के िानयों पर सजसके द्ारा कहे गए वाक् जो अपनी पत्ी को प्रिादड़ि करि हए कहिा है,”मैं राम नही ह रावण के पास रही सीिा को आिरपूव्षक अपना सलया”। वैसे तवष् अविार श्ीराम को मािा सीिा की पतवत्िा पर शक नही था पर सांसाररक मयजािा का पालन करि हए सीिाजी को महल से तनष्कात्रि करि है। मािा सीिा को भरिजी वन में छोड़ आि है, और त्र र उन्हें महत्रपि वाल्ीत्क के आश्म में आश्य प्राप्त होिा है जहाँ वह लव-कश नाम िो पत्यों को जन्म ििी है।

भरी चले वन की राह म। केव् राज तनषाद ने की सेवा, ककरा ववश्ाम उनकी गहा म।। पहच प्ररागराज लक्मण सरीिा संग पहचे ्चत्रक्। पहचा रावण लभक्षुक बन कह्रा म वह कालक्।। ककरा रावण ने मािा जानकी को छदम वेर म हरण। मािा लक्मण रेखा को लांँघ गई ककरा रावण हरण।। संिपि राम भर वराकल पेड़ -पौधि से पछ रहे प्रशन । करि रामववलाप सरीिा त्बन म जरीववि ना रह लक्मण।। वन- वन ढढ़ि सरीिा को, सग्ररीव ने िरं ि हसि बढ़ार। कबंधि राक्षस की अननर, श्री राम मम अंतिम संसकार आप ही करार।। हहरण भरी उठाए तनज लसर भागे दक्क्षण की ओर । घारल

वर्ष : 2, अंक : 3 28 रामारण-सार िमहारी कमया भलम हे वपि भ्ि राम िमह पकारिरी है। ज्ान देना होगा वियामान रग के पत्र को वह भारिरी है।। आना होगा क्फर इस धिरा पर हे मरायादा परुषोत्तम सरीख देने। मरायादा की खातिर माि -वपिा पतनरी राजर म लमत्र सभरी िज देने।। हे कौरलरा नंद िलसरी की रामारण के आदरया बन। जनक नंहदनरी सरीिा- लक्मण संग भ्के वन वन।। रघकल रीि सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई । रघकल की परम रह रीति राम ने सदा ही तनभाई।। गरु ववशवालमत्र संग दररथ नंदन आश्म रक्षा हे
राजरीव लोचन राजा जनक की लम्थला पधिारे। बरीच राह म पाषाण बनरी अहहलरा मांँ को भरी उदधिारे।। जनक प्रतिज्ा की जो भपति लरव धिनष को िोड़ेगा। जनक सिा वरमाला उसरी के गले म डालेगरी।। गरु वलरष् की आज्ा से राम सरीिा वववाह बंधिन बधिे। भरि मांडवरी, लक्मण उलमयाला, रत्रघन कीतिया भरी सत्र बंधिे।। राम के हाथों ही तनगशचि रावण का वधि होना था। मंथरा की बद्धि को सरसविरी जरी र ही बदला था।। मंथरा की प्रपंचा से केकै ररी को कोप भवन म जाना था। हदए वचन केकै ररी को दररथ ने राम को िो वन म जाना था।। राम के संग सरीिा लक्मण
ज्ार ने हदरा बिार रावण गए दक्क्षण ओर।। अमावसरा ति्थ लमले हनमान श्री राम को । अंजनरी पवयाि पर था उनका डेरा वहीं लमले श्री राम को।। जब देखा सग्ररीव ने, श्री राम गए हनमान की ररण म। बाहबली सग्ररीव बोल उठे है, खिरा हमको ले ररण म।। जब देखे हनमाना प्रभ राम को साष्ांग ककए प्रणाम। अकलाकर हनमाना प्रभ चरणों हए नि ककए प्रणाम।। हृदर लगाए प्रभ राम ने, हनमाना कहे मन ्लातन मि लाना।
ि वन पधिारे । जहांँ राम ने िाड़का सबाह राक्षस मार जरीवन संहारे।। धिनष रज् हे ि

कर कालनेलम का वधि हनमान, लाए संजरीवनरी सषेण ककरा उपार।। जरीववि देख सौलमत्र को राम अति हषायार सवहृदर लगार। सषेण को सकरल पहचाए, राम हनमान को तनज उर लगार।। लक्मण करल मंगल भरे, मेघनाद को रदधि म वधि कर हदरो। राम हाथ कंभकरण भरी परम गति पद को पार।। राम भ्ि ववभरीषण ने रावण की मतर को भेद हदरो बिार। रावण रदधि ककरो, रावण वधि ककरा, लसंहासन ववभरीषण को त्बठार।। सरीिा लक्मण संग हनमाना पषपक ववमान बैठ आए अरोधरा। अमावसरा पर दीपक दालमनरी-सरी सजरी-धिजरी नगरी अरोधरा।। अरोधरा वालसरों संग भरि अति हषायार ककए राम को प्रणाम। आकल हो बोले भरि, अग्रज संभालो राज आपको प्रणाम।।

वर्ष : 2, अंक : 3 29 रेखा मलहान “कषणा” दवारका, नई हदलली हो िम मोहह अति वप्रर लक्मण सम वप्रर िमको अति वप्रर माना।। पहचे हनमाना अरोक वाह्का ढढन सरीिा मैरा को। तनहारा जब मैरा को, मन ही मन ककरा प्रणाम मैरा को। देखे हनमान दासरी संग पहचे लंके र मािा को समझाने को। ककए बह प्ररास लंके र, मािा पर प्रभाव पढ़ो ना समझाने को।। उ्चि समर पर हनमान ने महद्रका राम की मैरा को दी। भई प्रसनन मैरा चड़ामणण मैरा भरी हनमान को दी।। लगरी अति भख हनमान देखे मधिर ्फल सधिा रांति की। राम नाम जपि ववभरीषण हनमान को रावण के भेद की बाि की।। आए हनमान साि समद्र लांँघ कर बिाएं सब राज । हए आकल राम जानने को सव भ्ारा का
वानर
तनमायाण लंका जाने
लगे पाँच हदवस, पाँच सौ रोजन रामसेि िब हआ िरार।। भगवान रंकर की पजा कर उिरे सेना सहहि पार डाले डेरा। सनरी जब रावण ने खबर, ्चिा की रेखाओं ने माथे को घेरा।। मंदोदरी की बह रतन, हे प्रभ ना लेवे वैर प्रभ राम से। लौ्ा दे उनकी भ्ारा प्रेम से, हसि जोड़ मांँगे क्षमा राम से।। पहचे अंगद बने दि राम के, समझाने को रावण को। अलभमान म चर रावण, अंगद की बािों का नहीं असर उसको ।। हआ भरंकर रदधि मेघनाद ने चलारा रग्िबाण। हए लक्मण मतछयाि वराकल राम अनज नहीं कोई रामबाण।। लार हनमान सषेण वैदर को, बिार संजरीवनरी एकमात्र उपार।
राज।।
सेना संग राम सेि
को िरार।
वर्ष : 2, अंक : 3 30 वो राम है नेहा जैन अजरीज़ लललिपर, उत्तर प्रदे र “राम “ वो रबद ज़री ररीिलिा से पररपणया है। जब हम इसका उचचारण करि है िो एक ऐसरी छवव हमारे सामने आिरी है जो मसकरा रही है गजसके चारों ओर प्रेम है।राम का अथया ही प्रेममर होना है।कलवषि हृदर से दर भेदभाव से परे समपयाण का भाव राम है राम एक वरग्ि होना नहीं है अवपि नैतिकिा को धिारण करना राम है है जो अनकरणरीर है वंदनरीर है। जब हम राम को धराि है िब वहाँ उनके गणों को आतमसाि करना ही उनका पजन है।जो अनस्चि जाति, जनजाति, गरीब, का मरीि है वो राम है। जो रत्र की रो्रिा की भरी प्ररंसा कर, जो रत्र को भरी नमसकार कर वो राम का ही परार है। पररवार को ््ने न द उसे हर हाल म जोड़े रखे वो राम है।
वर्ष : 2, अंक : 3 31 सजसका प्रेम वासना से रदहि है उस प्रेम में राम है। मानव जन्म लेकर ितवक होना, गहस् होकर भी काम, क्रोध, लोभ से तवमतुति होना राम है।राम का चररत् धारण करना आसान नहीं सव्षप्रथम अहं को मारना होिा है। सजसमें परदहि की कामना प्रबल हो तनज का अंश शून् हो वह राम है। तमत्िा हृिय से तनभाना त्र र चाहे वह सग्ीव से हो या तवभीरण से सबको गले लगाना चाहे शबरी, केवट हो या तनरािराज। राम होने त्क यही पररभारा है त्क “न कोई अछू ि न कोई तनध्षन सब से तमले राम का मन “ परस्ती को माँ, बदहन क़े रूप में िेखे जो आँखे वे आँखे तनसचिि रूप से राम की है। क्ा तबना इन गणयों को धारण त्कए कोई राम बन सकिा है? अयोध्ा में िीपावली पर चाहे लाखयों िीप जला ले िो भी क्ा हम राम की कपा का पात् बन सकेंगे या अपने आप को राम भति कह सकेंगे किात्प नहीं आज हमारा जो आचरण है वह रावण से गया गजरा है। छल हमारे अंिः में वास करिा है। सजससे राम का िो कोई लेना िेना ही नहीं वो िो भोले भाले है, त्पिा की आज्ा पर वनवास स्ीकार कर सलया, भाई को गद्ी ि िी। कैकई को िंड िो िर रहा उसका अपमान भी नहीं त्कया. क्ा हम ये कर सकि है? हम िो एक िो इंच की जमीन क़े तववाि पर हत्या कर िि है। राम का चररत् हमें संिेश ििा है त्क सरल बनो, तनम्षल बनो, ऐसी संिान बनो सजसे जन्म िेकर माँ गव्ष महसूस करे। आओ त्क हम राममय हो जाए न त्क मँह में राम बगल में छरी रखें. जब हम राम को धारण करेंगे िब अनंि शांति को प्राप्त कर लेंगे क्योंत्क जो धैय्षवान, तवपधतिययों से डगमगािा नहीं वो राम है।
वर्ष : 2, अंक : 3 32 मधिकर वनमाली मजफ्फरपर, त्बहार प्रभ कंठ समाए जाि थे जलधिार नरन बह बोल रही हनमान िमहारी बाि सब कानों म लमश्री घोल रहीं। हे पवन पत्र ्लातन ्रों कर थे प्रशन उ्चि सब हीं िेरे म वप्रराहीन भ्क वन म हए ऋषरमक के िब ्फेरे ववपदा म लमत्र लमले िम हो दख से पारा रह मोल सही। हनमान िमहारी बाि सब कानों म लमश्री घोल रही। श्रीराम नहीं लगजजि कररए म नहीं सखा बस सेवक ह चरणों का दास हआ अब से सवरीकार कर जो लारक़ ह दरन का सख जो मझे हदरा उपकार बड़ा अनमोल रही। मािा का गजसने हरण ककरा कहो चरण िमहारे ला प्क इिना िो ओज हदरा िमने कहीं भाग नहीं सकिा बच के राक्षस ने पाप ककरा ऐसा प्राणों का उसके मोल नहीं। रह ववनर समपयाण देख िो आिरी है भरि की राद मझे िम खोज सकोगे सरीिा को होिा है बड़ा ववशवास मझे िन अपना अलग है कवप मगर मन एक हआ कछ खोल नहीं। हनमान िमहारी बाि सब कानों म लमश्री घोल रहीं। श्रीराम हनमान भ्
वर्ष : 2, अंक : 3 33 ररद लसंह लखनऊ, उत्तर प्रदे र सांस सांस म समाए हए है भारि की आतमा म छाए हए है संक्ों म खब आजमाए हए है राम जरी दे र को बचाए हए है सबह का नहीं है जो वो राम का नहीं राम का नहीं वो ककसरी काम का नहीं। राम प्रतिमा नहीं है प्रतिमान है नभ म चमकि हए हदनमान है वालमरीकक िलसरी का वरदान है एक आदरया है वो भगवान है राम आसथा है, कोई नारा नहीं है राम गंगाजल है अंगारा नहीं है चलि क्फरि रोज रही काम कीगजए जो भरी लमले उसको राम राम कीगजए बेरकीमिरी भरी ककसरी दाम का नहीं राम का नहीं वो ककसरी काम का नहीं। पथराई अहहलरा को िारा राम ने अतराचारी असरों को मारा राम ने सग्ररीव की राह म भरी राम लमलेगे राम जरी तिजोरी म कबेरों म नही रबरी के बेरों म भरी राम लमलेगे राम दररथ की पकार म लमले केव् के संग मझधिार म लमले राम भग्ि भाव से ही जरीने म लमले राम हनमान जरी के सरीने म लमले राजा का है ककससा गलाम का नहीं राम का नहीं वो ककसरी काम का नहीं। एक पतनरी का व्रि धिारा राम ने रावण से दष् को भरी िारा राम ने वचन वपिा का तनभारा राम ने जो भरी लमला गले से लगारा राम ने। राम कोल भरीलों म ककराि म लमले राम सग्ररीव वाले साथ म लमले राम पाने के ललए धिन न चाहहए राम को समझ ले वो मन चाहहए पणर गंगा सनान चार धिाम का नहीं राम का नहीं वो ककसरी काम का नहीं। पणर गजनह करना था पाप कर रहे जरीवन का वरदान राप कर रहे साँस का भरी अपनरी पिा नहीं गजनह देखों राम का हहसाब कर रहे है राम को न जाने ऐसा नर ना लमला. पथराई अहहलरा को िारा
वर्ष : 2, अंक : 3 34 भारि वषया पंच महापवया के रंग म रामद्र नारक बालोद, छत्तरीसगढ़ आज समपणया भारि वषया पंच महापवया के रंग म रंगरीन हो चला है! धिनिेरस, नरक चौदस, दीपावली, गोवधियान पजा एंव भाई दज का पवया हम सभरी बहि ही धिम धिाम से मनाि आ रहे ह,सदैव मनाि रहेग! दीावली दीपो का पवया है, गजसे कातियाक मास के आमावशरा को मनारा जािा है! भगवान श्रीराम जब लंका पर ववजर प्रापि कर आरोधरा नगरी लौ्ा िब समसि आरोधरा वासरी दीप जलाकर भगवान श्री रामचंद्र जरी का सवागि ककरा, उस हदन से आज प्ररनि भगवान श्री रामचंद्र की राद म दीपावली का पवया दीप जलाकर बड़े ही उतसाह एंव उमंग के साथ मनारा जािा है!
वर्ष : 2, अंक : 3 35 इस पव्ष को असत्य पर सत्य की जीि के रूप में भी मनाया जािा है, अंधकार को िर कर प्रकाश में बिलने का ससख ििा यह पव्ष तनसचिि रूप से हमारे सलए गौरव का तवरय रहा है,िथा सिैव गौरव का तवरय रहेगा! आज हमें प्रभ श्ी राम की वन गमन से बहि कछ ससखने की आवश्यकिा है,खास कर प्रकति के प्रति जो नजररया भगवान का रहा उसे हमें अपने जीवन में अमल करना चादहए! प्रभ श्ी राम की जीवन का बारह वर्ष वन में ही व्यतिि हआ, वनवास काल के समय अपना जीवन प्रकति से प्राप्त कं ि मूल, रल रूल से ही अपने जीवन को व्यतिि त्कया प्रन्तु कहीं पर भी प्रकति के तनयमो का उलंघन नहीं हआ! रावण के द्ारा सीिा माई का जब अपहरण त्कया गया िब रावण के चंगल से सीिा को छडाने के सलए वानर िलो का सहारा सलया, वानर राज सग्ीव से मैत्ी की ! और अपना तवजय श्ी का रास्ा अखतियार त्कया! प्रन्तु आज हम सब कछ उलट िेख रहे हैं! तवकास के नाम पर हमारे हजारो वनवासी आदिवासी बंधओ के साथ कही न कही अन्ाय होिा नजर आ रहा है! सजन आदिवासी लोगो का समझ प्रकति के प्रति प्रकति की िरह उिार रहा है,उसे ही जंगल जमीन से िर करना कहॉ िक न्ाय हो सकिा है हमे इस बारे मे तवचार करना चादहए! तवकास के नाम पर सजस गिी से, प्राकतिक संसाधनयों का िोहन हो रहा वह वास्व में सोचतनय है! हमे भी वनवासी आदिवासीयो के साथ मैत्ी करके तवकास का रास्ा अखतियार करना चादहए, िभी सही मायने में तवकास को तवकास माना जाएगा ! औरो के घर को अंधेरा कर, खतुि के घर को कबिक रौशन करोगे! हवा का रूख कभी भी बिल सकिा है! प्रकति की संरक्षण एंव संवध्षन का ग्यान उनमे जन्म जाि होिा है वह प्रकति के गोि में जन्म लेिा है, पलिा बढिा है प्रकति के मम्ष को वह अचछी िरह से जानिा है! उसे उसके जमीन जंगल से िर नहीं करना चादहए, माना की तवकास संसाधन घने जंगलो पहाडो में छपा है लेत्कन उनके सजवन जीने की साधन को चछनकर उन्हें जीवन जीने का साधन उपलब्ध न कराकर उनमें तनसचिि रूप से उसके मन में असिोर व्याप्त करना है! सजससे वह व्यवस्ा के खखलार सरकार के प्रति आकोश प्रकट करिे, रहि हैं इस तवरय में सरकार को सोचना चादहए ! भगवान श्ी राम की वन गमन भी शायि यही ससख ििा है, त्क सी की अधधकार को चछन कर नहीं अत्पितु अधधकार की रक्षा करके उसे अपने पक्ष में रख के उसके असंिोर को िर त्कया जा सकिा है! राम ने भी अपने वनवास काल में वानर राज सग्ीव से मैत्ी की सग्ीव की खोये हए मान सम्ान को वापस लौटाकर तमत्िा की साथ्षकिा को भी परा त्कया! इस प्रकार से वह सभी का तवस्ास पात् बनकर पश पक्षी ररछ वानर सभी को अपने पक्ष में रखकर सब की अधधकारो की रक्षा की और अपना अधधकार को प्राप्त करने में सरल रहा िथा रावण से तवजय प्राप्त करके अपने मान सम्ान के साथ अपने अयोध्ा नगरी लौटा! उसी खशी में हम समस् भारिवासी िीपावली का पव्ष मनाि हैं, सजससे सभी के घर ऑगन में िीपक रौशन जगमगािा है भाई चारा और शांति का संिेश िि हए! हम सभी को अपना तवकास करना चादहए औरो के तवकास को अवरूद् त्कए तबना सजससे हम सभी का िीपावली मनाना साथ्षक हो!
वर्ष : 2, अंक : 3 36 हे जनक दलारे मेरे राम, करूं मै िमहे तनि प्रणाम! िमह कषण कह रा कह राम, ्फकया ना पड़े हो कोई भरी नाम। जपि िमहारा नाम सब नर नार, सबकी करि हो नैरा बेड़ा पार। अंिमयान से जरकारा सबह राम, जनक दलारे तनि करूं म प्रणाम। आपने संभाला है जग का हर काज, वंदन कर भगवान को चढ़ाई सब साज। हदल पर राज ककरा सबको भ्ि बनारा। धिनर हई देखा सबने जनक दलारे गण गरा। रबरी के झठे बेर को खारा प्रभ के उसने दरन पारा। महल को छोड़ बनवास को जाए, मरायादा म रहकर जरीना लसखलाए, वपिा के वचन का मान बढ़ाएं, िभरी िो मरायादा परुषोत्तम राम कहलाए! आज्ा का पालन सब आपसे सरीखे, मन म ना कोई बैर का भाव है सरीच, मख पर ललए मसकान की मोिरी, है भ्ािा लक्षमण भरी साथ खड़े इनके परीछे! आप की छारा म दतनरा पली, हर आर है आप से जड़री, कर दो कपा अब मेरे राम, हर मनोकामनाएं होगरी आपसे परी! हे लसरावर मेरे रघवर, पकारे है जग जनक नंहदनरी के वप्ररवर! जनक दलारे गारत्ररी पांडे रुद्रपर, उत्तराखंड
वर्ष : 2, अंक : 3 37
कमया उत्तम,
हनमान से
है।। लक्मरी, सरीिा दर रही थरी, इलजाम उनपर लगारा है िम हम िो नहीं करि रह पर नारी को बिारा है। उसके संग िो ईशवर रहगे, िमह रहां पर मरना बस है। इसललए आज हम सब एक रही पर प्रण कर। हर नारी देवरी की प्रतिमा, बचचों को राम सा बन धिरे। क्फर जगि म दीपावली, घर घर म बहारों मास है। राजा राम को हम बलाएं ममिा वैरागरी धिार, मधरप्रदे र
संदर महल रहां पर था, राम का उसम वास है एक मंथरा के कारण देखो, क्फर उनह वनवास है सरीख रहां पर रह लेना है, साथ नहीं ऐसो का करना है। कचचे कान के बनकर परारो, ईशवर से ना दर रहना है। प्रेम जहां रहिा है, सख रांति का तनवास है। हर िरह की खलररां लमलिरी, वहां ददया का नार है। राम राम र्न करने से लमलि नहीं राम है।
साथ नेक मन बोला िब नाम है
सरीख लें सभरी, सचचे सेवक दास
वर्ष : 2, अंक : 3 38 धिैरया नहीं खोना चाहहए स्चन कमार लसंघल सागर बलंदरहर, उत्तर प्रदे र और हम म से कोई भरी उनके जैसा नहीं बन सकिा, मरायादा के प्रिरीक थे मरायादा परुषोत्तम श्री राम, गजनहोंने अपनरी मरायादा को हमे रा म धरान रखा और अपने वपिा के वचन को तनभाने की खातिर वन जाने को िरार हो गए। आज के इस रग म रारद ही ऐसा देखने को लमले। भगवान श्री राम ररू से ही अपने सभरी भाइरों को साथ लेकर चले और कभरी भरी उनके साथ भेदभाव नहीं ककरा उनहोंने अपने जरीवन को एक आदरया बना हदरा जो सबके ललए एक प्रेरणा है म श्री राम के रुप म अपने भाई को देखिा ह गजसने मेरा सदा साथ हदरा।
वर्ष : 2, अंक : 3 39 मां कैकई सजनकी खातिर श्ी राम वन को गए उन्हयोंने कभी उनके खखलार भी एक शब् नही कहा, मां सीिा के साथ जब उनका तववाह हआ और उसके कछ समय बाि जब उनका राज तिलक होने वाला था िो िो उस समय उनके त्पिा ने उनको वन जाने को बोल दिया और श्ी राम ितुरं ि ही वन जाने को िैयार हो गए क्ा बीिी होगी उन पर कभी त्क सी से ने नहीं सोचा और जो उमर हमारी राज काज की होिी है उस समय श्ी राम वन को गए वो भी चौि ह वर्ष के सलए इसे हम त्क स्मि का लेख भी कह सकि हैं और एक बाि और सोचने की है जब भगवान त्क स्मि के लेख से नहीं बच पाए िो हम कैसे बच सकि हैं इससलए हमे भी चादहए त्क हम भी अच् कम्ष करें और अपने जीवन को सधारें धरिी पर आकर प्रभ श्ी राम ने त्किने लोगयों का उद्ार त्कया उनको उनके धाम पहंचाया ऋत्र मतुतनययों को राक्षसो के भय से मतुति त्कया धन् है अयोध्ा नगरी जहां भगवान श्ी राम ने जन्म सलया भगवान राम के चररत् की बहि सारी कथाएं हैं उनमें से एक कथा मैं आपको सनािा ह ये उस समय की बाि है जब सीिा मािा का पिा हनमान ने लगा सलया था और लंका पर चढाई की िैयारी चल रही थी िो श्ी राम जी की सेना समद्र पर पल बना रही थी लंका पर चढाई के सलए इसके सलए नल और नील को चना गया था और उन्हें ये वरिान भी प्राप्त था त्क उनके हाथ से छोड़े गए पत्थर पानी में िैरेंगे, िो नल और नील राम सेितु की िैयारी कर रहे थे और सभी उनकी मिि कर रहे थे िभी श्ी राम जी ने सोचा क्यों ना मैं भी कछ क रूं और अगर ऐसा कछ होगा िो पल भी शीघ्र बन जाएगा िो उन्हयोंने पत्थर को हाथ में लेकर पानी में छोड़ दिया लेत्कन ये क्ा पत्थर पानी में डूब गया भगवान श्ी राम को यह िेखकर आचिय्ष हआ उन्हयोंने िेखा कोई उन्हें िेख िो नहीं रहा क्यों के अगर उनके हाथ से भी पत्थर डूब गए िो उनका क्ा होगा ये सब नजारा श्ी हनमान जी िेख रहे थे भगवान श्ी राम ने उनसे इसका कारण पूछा िो श्ी हनमान जी ने बिाया त्क हे प्रभ सजन पर आपका नाम सलखा है उनको िो आपका सहारा है और वो आपके नाम से ही िैर रहे हैं पर सजसको आपने खतुि छोड़ दिया वो कैसे िैरेगा अथजाि जो शघति आपके नाम में है वो त्क सी और नाम में नहीं ये सब आपके नाम की ही मदहमा है जो पत्थर िैरि हैं, राम नाम की मदहमा अपार है िभी िो कहा है कलयग केवल नाम आधरा सतुतमरी सतुतमरर नर उिरही पारा। एक और प्रसंग सामने आिा है उसी समय का के एक घगलहरी थी जो अपनी पूंछ को गीला करिी और उसमें बालू भरकर समंिर में डाल ििी ये सब हनमान जी िेख रहे थे उन्हें डर था कहीं ये घगलहरी पैर के नीचे ना आ जाए िो वे उसे श्ी राम जी के पास ले गए और बोले ये घगलहरी िंग कर रही है िो श्ी राम जी ने इसका कारण पूछा के वो ऐसा क्यों कर रही है उसने बिाया सजिनी मेरी हैससयि है उिना सहयोग मैं कर रही ह मैं पत्थर िो उठा नहीं सकिी िो अपनी पूंछ में बालू को लपेट कर उसके कंकड़ पत्थर को िबा रही ह िात्क वो चभें ना आपके पैरयों में, जब आप चलें, ये सनकर श्ी राम को बहि खशी हई और उन्हयोंने अपना उसे अपना आशीवजाि दिया ये जो धाररयां घगलहरी के शरीर पर हैं ये श्ी राम जी की तनशानी है एक छोटी सी घगलहरी हमें ये सीख ि जािी है त्क हमें सिा पररश्म करना चादहए और सजिनी हैससयि है उसी दहसाब से काम करना चादहए घगलहरी के सलए एक पंघति प्रस्तुि है राम जी की लीला महान राम से सबकी शान मैं िो पत्थर उठा नहीं पाई मैं बालू ले आई अिः श्ी राम जी के चररत् से हमे यह सशक्षा तमलिी है त्क चाहे त्किनी भी तवपरीि पररस्स्तियां हो हमें धैय्ष नहीं खोना चादहए।
वर्ष : 2, अंक : 3 40 ववज्ान व्रि नोएडा, उत्तर प्रदे र आज समनदर है बेहाल ्फक मछेरे अपना जाल थम जाएगा र भचाल ऐसा कोई वहम न पाल गजसको दतनरा पहचाने अपनरी वो पहचान तनकाल खद भरी ढढ़ न पारा ि अपने जैसरी एक लमसाल मेरे वापस आने िक रखना मेरी साज - सभाल -- x -पास आना चाहिा ह बस बहाना चाहिा ह आप से ररशिा नहीं िो ्रा तनभाना चाहिा ह लसर्या मझसे ही रहे जो वो ज़माना चाहिा ह कार खद भरी सरीख पािा जो लसखाना चाहिा ह जो मझे ह राद उनको राद आना चाहिा ह -- x -आप कब ककसके नहीं ह हम पिा रखि नहीं ह जो पिा िम जानि हो हम वहाँ रहि नहीं ह ग़ज़ल - राम कपरा जानि ह आपको हम हाँ मगर कहि नहीं ह जो िसववर था हमारा आप िो वैसे नहीं ह बाि करि ह हमारी जो हम समझे नहीं ह x म जब खद को समझा और मझम कोई तनकला और रानरी एक िजरबा और क्फर खारा इक धिोखा और होिरी मेरी दतनरा और ि जो मझको लमलिा और मझको कछ कहना था और ि जो कहिा अचछा और मेरे अथया कई थे कार ि जो मझको पढ़िा और
वर्ष : 2, अंक : 3 41 हदन-राि जप, म नाम जप। हदल म ह बसे, श्री राम जप।। िम मरायादा परुषोत्तम हो। गरीिों म प्रभ सबह राम जप।। हो जार स्फल र जरीवन भरी, कण-कण म बसे, म धिाम जप।। श्रीराम ववजर के प्रिरीक सदा। ले राम का नाम म काम जप।। रहि ह प्रभ, भ्िों के हृदर। माँ सरीिा संग आठों राम जप।। गरीतिका - श्रीराम वनदना नामदेव अकोला, महाराषट्र आलहा छंद लरलप- 16-15 पर रति अंि गाल कौरलरा-दररथ के नंदन, मरायादा परुषोत्तम राम, जनमभलम है नगर अरोधरा, पतिि पावनरी है श्रीधिाम । सतर सनािन धिमया ववजेिा,
है ववजरादरमरी, इस हदन हआ झठ का अंि , झम रहे जन-जन अलभलाषरी, खलरराँ छाररी हृदर अनंि। अलभमानरी के ररीर क् दस, दंभरी रावण का मद चर , धिमया पिाका लहरारा नभ, ्फैल रही जग कीतिया सदर।। मन म वरापक दगण सारे, करो दहन इनका ही आज , सतर धिमया का मागया चने जो, सभरी उसरी के पणया सकाज ।। झठ कप् पाखंड छलावा, मानविा का करे ववनार। साहस ररील धिैरया संरम िप, भरि मानव हृदर प्रकार ।।
संसकति के अनपम परार, भारि के जन-जन के नारक, अिललि अदभि सवयाहहिार । ववजर हदवस
वर्ष : 2, अंक : 3 42 रघपति राम रघराई रघकल रीति समपणया जग को अति भाई। दसरथ के जरे षठ पत्र रघपति राम रघराई। त्त्रमािा के थे राजदलारे सरवंर की परछाईं। त्बन कोई भेद ककए जठे बेर रबरी की खाई। धिनष िोड़ जनकपरी म भरी बहि प्रलसद्धि पारा। जनकनंहदनरी सरीिा संग राजा राम ने बराह रचारा। ढोल-मदंग बाजे चारों िर्फ जगमग दीप जलारा। अवधिपरी ने पनः बड़री भवरिा से उतसव मनारा। प्रभ श्री राम ने इस पावन धिरा पर अविार ललरा। रघवंररी ने अपनरी लसदधि रणनरीतिरों से वार ककरा। दष्, नरीच, पापरी, असरों पर तनः संकोच प्रहार ककरा। आिािाररी एवं अहंकारी रावण का संहार ककरा। ममिा रादव मंबई, महाराषट्
वर्ष : 2, अंक : 3 43 हहमॉर रमाया ‘रववसिा’ रारा, मथरा, उत्तर प्रदे र पणया हआ वनवास, अवधि म लौ्गे अब राम, घर घर दीप जले चह ओर, बधिाई बाज रही अववराम। खलररॉ छाई ह हर ओर, अरोधरा लागे सवगया समान, चौदह बरस रहे वन म, माि वपिा की आज्ा मान।
बरस समान। हे राम सना है वन म ककिने, असरों को िमने िारा, मेरे अवगण रूपरी असरों को, अब िक ्रों नहीं संहारा। पतथर को नारी कर दीना, िारी रबरी माई। मझ जड़मति की सधि ना लीनरी, ककस कारण त्बसराई। रबरी सा धिरीरज ना भग्ि ना ज्ानरी वैरागरी, म तनबद्धि अहम पो्ली ढ़ोकर जग म भागरी। अंिरिम की राह बहारू, वाणरी के ्फल अवपयाि। हे नाथ नहीं कछ पास मेरे, म खद ही सवर समवपयाि। िम मरायादा परुषोत्तम हो, िम धिरीरज के आधिार त्बंद , रघराई म ्रों त्बसराई ककस वव्धि करुणा का पात्र बन, करुणासागर हे कपा लसधि। सबसे छो्ा सबसे परारा दो अक्षर का नाम, राम कहे से मन वाणरी को लमलिा अति आराम। राम नाम ्फलदाई जैसे िरीरथ चारों धिाम, मरायादा और संदरिा की अलम् तनरानरी राम। राम िमहारे आदरषों पर चलकर अब हदखलाना है, बाबा िलसरी के रामराजर को क्फर से जग म लाना है। गर कर लें संकलप सभरी, अवगण हर एक लम्ाना है। रामराजर होगा एक हदन, बस खद को राम बनाना है।
हे राम िमहारे त्बना अरोधरा, जल त्बन मरीन समान, बरस गजारे रग जैसे, एक हदन एक

आ गर मेरे राम

अपने राम अरोधरा म िो अब हर हदन होगरी दीवाली।

चलो जलार घरी के दीपक घर म बनार संदर सरी रंगोली, सरर भरी खर हो कल-कल बहिरी सबकी बदल गररी बोली। िेरा मेरा इसका उसका सबका ही सपना आज हो गरा परा, जरीवन स्फल हआ लो हर जन का अब कछ भरी रहा न अधिरा। श्री रामराजर आरंभ हआ बधिाई लो झम उठी चारों हदराएँ, आ गर िेरे मेरे सबके परारे परारे राम! गनगनाने लगरी ह हवाएँ।

वर्ष : 2, अंक : 3 44 डा० भारिरी वमाया बौड़ाई देहरादन, उत्तराखंड रघवंररी मरायादा परुषोत्तम राम ने बिारा जरीवन का आधिार, कियावर तराग के त्बना कभरी ककसरी को लमलिा नहीं अ्धिकार। हर अपने के वे सखा बने, उनसे सदा तनभाई लमत्रिा, अपने इस वरावहाररक गण से सवयात्र ्फैलाई समरसिा। सकारातमक सोच के धिनरी राम दख म भरी सख ढढ ले ि थे, अपने मन, वचन और कमया से कभरी ककसरी को दख नहीं दे ि थे। अपनरी भारा के भरी सखा बने वे एक पतनरी व्रि पर रहे, राजधिमया के पालन के ललए सदा अपने धिमया पर अडडग रहे। दैवरी रग्ि पररपररि धिमायातमा राम भ्ि हृदर म ह, हर सथान बन गरा पावन जहाँ राम की कह्रा है। धिमयातनषठ और कमयातनषठ बन कर अपना कियावर तनभारा है, देवों ने भरी राम की सेवा करके प्रचर पणर कमारा है। धिनर ह दररथ धिनर है अरोधरा गजनह पत्र-राजा राम लमले, धिनर ह उनकी मािाएँ गजनह ऐसे पत्र रूप म राम लमले। मरायादा परुषोत्तम राम राम मंहदर म राम धवज ्फहरेगा हवषयाि है अरोधरा नगरी, देव बधिाई लमल गार मंगल गरीि उलललसि अरोधरा सगरी। रबरी तनषाद की परी हई प्रिरीक्षा ऋवष मतनरों म खरहाली, आर ह
वर्ष : 2, अंक : 3 45 अतनल कमार केसरी नैनवाँ, बंदी, राजसथान कलरग म रामारण न रामचंद्र है, न रावण की लंका है, सकल जगि म बजिा, कलरग का डंका है। अब सरीिा-सरी नारी कहाँ बचरी है? रावण के त्बन ‘अपहरण की रामारण’ ककसने रचरी है? न मरायादा
रखा है? वपिा की आज्ा पाकर कौन राज-पा् तराग दे िा है? न वपिा दररथ, न राम पत्र होि है, महावरीर-से परमभ्ि के अब कहाँ दरन होि है? ‘रामराजर’ अब कोरी कलपनाएँ होिरी है, रासन के गललरारों म चलिरी केवल बालल की नरीति है। कमभकणया अब भ्ािा को नहीं समझािा, वपिा की खातिर कोई मेघनाद अब मरना नहीं चाहिा? सग्ररीव-सा लमत्र कलरग म कौन है? कौन कैकेई मनोरथ पाकर पशचात्ताप म मौन है? कलरग म भरि ही राजगददी छीन ले िा है, ककसरी को बचाने की खातिर ज्ार अब कहाँ प्राण दे िा है? ‘रामारण’ अब ककिाबों म अचछी लगिरी है, न कोई राम होिा है? न कोई रावण की लंका होिरी है? कबजा से अब मरायादा की लरक्षा ले ि है, सब अपने-अपने अपराधि छपाकर कलरग को दोष दे ि है।
परुषोत्तम बचाने आि है, कलरग म मरायादा के धिमया को कौन तनभाि है? लक्मण-से भ्ािा अब जनम नहीं ले िे, छोड़कर उलमयाला को महलों म सख का ववरह न दे िे। उलमयाला का तराग अब कहाँ

दररथ के परारे राम, अरोधरा मे जनमे राम

मे बड़े थे राम, धिनष

थे राम

अविारी थे राम, सरीिा को सवरंबर मे जरीि थे राम माि-वपिा के वचनों का, पालन करि थे राम वपिा वचन का रखा मान, चले गए सरीिा, लक्मण संग, चौदह वषया का वनवास केव् के दवारा गंगा उिरे पार, ककरा तनषाद राज का कलराण पतथर लरला बनरी थरी आहहलरा, लमला था पति से राप, अपने चरण सपरया से ककरा राम ने उदधिार वन मे कह्रा बनाकर रहि

की कह्रा मे, जो राह देख रही थरी वषषो से श्री राम की, खार चखे जठे बैर प्रेमवर श्री राम ने दरन हदए भ्ि हनमान को, सग्ररीव से हई लमत्रिा, बाली का ककरा वधि, ज्ार लमला घारल अवसथा मे, ककरा परा बरान वो लड़ा था रावण से, सरीिा मािा को बचाने लमला सतर प्रमाण, ककरा वानर सेना संग, लंका पर आक्रमण, जरीि हई राम की, हआ अंि अतराचारी रावण का, ववजर पिाका है ्फहराई, राजर अलभषेक ककरा ववभरीषण का, सारे कारया ककर मरायादा मे रहकर, िभरी िो मरायादा परषोत्तम श्री राम कहलारे, लंका से वापस आकर अरोधरा मे, राम राजर सथावपि ककरा, कहलार अरोधरा राजा श्री राम

वर्ष : 2, अंक : 3 46 लरवरंकर लोधि राजपि नांगलोई, नई हदलली भगवान राम
थे, खाि कंद मल मनमोहक हहरण को देख, सरीिा ने हदरा आदे र पति को, जाओ और इसे पकड़ कर लाओ, राम चल पड़े उसके परीछे, कछ देर बाद सहारिा के ललए आवाज़ आई, लक्मण ने लक्मण रेखा खरींचरी, कह्रा के चारों ओर, चल पड़े सहारिा के ललए, दष् रावण की थरी चाल, मौका देख सरीिा का ककरा हरण, ले गरा लंका नगरी, जो थरी समनद्र के उस पार, राम लक्मण भ्के वन वन, सरीिा के ववरोग मे, पहचे रबरी
राजा
चारों भाइरों
ववदरा मे तनपण
ववषण के
वर्ष : 2, अंक : 3 47 रमे रचंद्र रमाया कषणा नगर, इंदौर राम कमया राम परुषाथया ह ! राम धिमया राम परमाथया ह ! राममर संपणया जग चराचर राम सगम राम प्रभाि ह ! ऋवष मतन ज्ानरी धरानरी राम ममया राम रासत्राथया ह! मरायादा परुषोत्तम परमेशवर राम ब्रहमा राम ब्रहमांड ह ! जगि तनरिा करुणासागर राम तनरिा राम लसदधिांि ह! सगष् सागर पवयाि आकार राम अणमर राम ब्रहमांड ह! दीनदराल परम उपकारी राम बंदमर राम प्ररांि ह ! राम साधिन राम परम साधर राम अणखल ववशव सम्ा् ह! राम परुषाथया ह गोमिरी लसंह कसमणडा, कोरबा, छत्तरीसगढ़ जर रघनंदन जर लसराराम, कैसे करू िेरा गणगान। लाख वेदना मन म रखकर, अधिरों पर अनपम मसकान। जर रघनंदन जर लसराराम, कैसे करू िेरा गणगान। िेरे नाम की
कैसे करू िेरा गणगान। ववनिरी एक करू म भगवन , मेरी आतमा छोड़े जब िन । अंि:मन म हो िेरा नाम । जर रघनंदन जर लसराराम, कैसे करू िेरा गणगान। जर रघनंदन जर लसराराम
महहमा इिनरी, परासे को लमल जाए पानरी । गजवहा ले ले जब िेरा नाम । जर रघनंदन जर लसराराम,

लक्मण जरी भरी आए, भरि, रत्रघन, ्फले न समाए, मािा सरीिा को देख सब हषायाए रे, मेरे राम घर आए.. दष्ों,दानवों का अंि ककरा है, भर म्ि सारा दे र ककरा है, पापरी रावण का वधि कर आए रे मेरे राम घर आए.. सवागि म अरोधरा सजरी हई है, दीपों से जगमग रौरन हई है, जैसे दलहन कोई नवर नवेली रे मेरे राम घर आए.. अंधरारी राि अमावस की देखो, उजली हई जलि दीपों से देखो,

वर्ष : 2, अंक : 3 48 भावना भारदवाज दवारका, नई हदलली मेरे राम घर आए आज दीपों से जगमग संसार रे, मेरे राम घर आए.. आज अरोधरा म बज रही रहनाइरां, मािा कौरलरा को सब दे रहे बधिाईरां, का् चौदह बरस का बनवास रे, मेरे राम घर आए.. राम घर आए संग
लगे चांदनरी पनम की राि रे मेरे राम घर आए.. रघपति राघव राजा राम, पतिि पावन सरीिा राम. पतिि पावन दोनों ही राम और सरीिा, क्फर ्र अग्न परीक्षा दे िरी जनक सिा. साि ्फेरो और
देवरी को, खद से अलग करना पड़ा श्रीं राम को. राजधिमया तनभाने को, क्घरे मे खड़री कर हदरा अपने पववत्र ररशिे को सात्बि करने को कह हदरा. रगो रगो से चलिरी आ रही ्रा रही है प्रथा, परीक्षाओ से गज़रना है नारी की वरथा. है एक सवाल मन मगसिषक र उभरा, ्रा परुष सदा ही पातिि पावन ही रहा. है कौन सा ्फल सगष् पर गजसको खा कर, परुष नहीं होगा अपववत्र, ककिने ही दषकमया कर.. पतिि पावन
कसमों का अ्् बंधिन, एक वरग्ि (धिोबरी)के कहने पर हआ भंजन. रंका का बरीज बो कर पतिव्रिा

हर रग म दस नए मख ललए दरानन जनमा था, उस रग म दस मख का रावण था, इस रग म हर मखौ् के परीछे रावण था, अब बाण ललए रघवर ना आएंगे, इस रग म पिले के रावण ही झलस पाएंगे, ककिने बाकी ह रावण देखो, पिले के रावण ्फंकि खद रावण देखो, वही कथा ह पर ककरदार नएं ह, एक ना राम और रावन कई ह, िरकर म बाण नहीं ह, इस कथा म रावन परा जला नहीं ह।।

वर्ष : 2, अंक : 3 49 गोलडरी लमश्ा गागज़राबाद, उत्तर प्रदे र िरीर िरकर म पड़े रह गए, गली चौराहों पर दरानन अधिजले रह गए। राख म कछ अगसितव बाकी रह गए, अपने भरीिर के रावण पर डाल पदाया हम रंग और िरीर से रावण सजाने म ज् गए, पिला जल जाएगा, साक्षाि जरीववि दरानन रह जाएगा, भख भरी रह जाएगरी, भखा भरी सांसे भरिा रह जारेगा,
त्बन बाण धिनष के रदधि एक सरीिा ने भरी खेला था, अरोक वाह्का की धिरा पर इतिहास सरीिा ने भरी ललखा था, र जरीि राम की थरी ना कहना, सरीिा थरी अबला र ना कहना, आतम संरक्षण ना करिरी िो रदधि म पराजर तनगशचि थरी, वधि कर के भरी रावण का जरीववि झलकी रावण की थरी, अग्न परीक्षा म पववत्र हई सरीिा पर झलसरी सोच परुषाथया की थरी, अधिजले दरानन रावण धिरा पर मि पसरा था, भावरी समाज के ललए रावण प्रशन्चनह था, सिरग म दस मख धिारी वो हारा था,
सतर की लीपापोिरी और ककिनरी, नज़र उठा कर देखो ककिनरी सरीिा ककिने रावण ने ह घेरी,

ललख िो रबद ही कम ह, कह कैसे भला गौरव?

लमली जैसरी मति मझको, उसरी से गा रहा वैभव ।।१।।

खले थे भा्र दररथ के, अवधि म राम जब जनमे।

गर लेकर मनरी कौलरक, ककरा वधि िाड़का वन म।। जनकपर को चले रघवर, गर गौिम मनरी आश्म।

वर्ष : 2, अंक : 3 50 हई प्रिरीक्षा सबकी परी, संि धिेन सर अति हषायार। कष् लम्गे तनगशचि मेरे धिरनरी मन ही मन मसकार।। रघकलमणण को देख पदाथरी, इंद्र िरि मािलल पठार। रथ पर चढ़कर धिनष ्कारे रोदधिा दोनों लभर-लभर जार।। हर हर महादेव इि बोले, रजनरीचर उि जर लंके र। समर भलम का दृशर सहाना, लगे देखने रूके हदनेर।। कमरी नहीं दोनों म बल
दोनों ही ह अिललि वरीर। एक सवर ही धिमया धवजा
उड़िरी है, हदन म हो गररी जैसे राि।। रावण ने मारा हदखलाई, ककए प्रक् तनज रूप हजार। नारारण को कौन हराए, एक बाण से हदर ववडार।। रघवर ने सारे ही का्े, उग जाि धिड़ पर पतन ररीर। भजा उखाड़री बार अनेकों, मरा नहीं पर लंकाधिरीर।। अवसर जाना उ्चि हृदर म, गरा ववभरीषण हरर के पास। हदरा ववरंचरी ने जो वर था, कथा कही उर रख ववशवास।। -- x -श्रीराम - रावण संग्राम झके ह ररीर चरणों म, कर सादर नमन िमको। ररण म ह सभरी आरे, करो भव पार िम हमको।।
की,
ह, एक अधिममी और अधिरीर।। अगणणि भाले चक्र चले ह, बाणों की जैसे बरसाि। बाल धिलल ऐसे
गम ।।२।। धिनष िोड़ा सवरंवर म, लमलीं धिरनरीसिा सरीिा। हए ह धिनर पररधिर, ववनर से था हृदर जरीिा।। रहेगरी आन रघकल की, रह चौदह बरस वन म। बने राजा भरि मेरा, मझे है हषया ही मन म ।।३।। श्रीराम गाथा (ववधिािा छंद)
लरला पर पाँव धिारा िो, अहहलरा के लम् सब
वर्ष : 2, अंक : 3 51 जगार भा्र केव् के, ज्ार को हदर दरन। हरी जब सरीर रावन ने, दखा श्रीराम जरी का मन।। लसरा की खोज म चलिे, गर रबरी जहाँ रहिरीं। कपा की आस म प्रभ की, बहि ही कष् थरी सहिरी ।।४।। लमले सग्ररीव पवयाि पर, हदरा था लमत्रपद उनको। पवनसि सरीर सधि लारे, हदर आररीष हनमन को।। गर पल बाँधि लंका म, चनौिरी दी दरानन को। हरार कौन श्री हरर को हदरा तनजधिाम रावण को ।।५।। सभरी गण ही समाहहि ह, बड़े रालीन रघराई। धिरे ह धिैरया अति उर म, जप म नाम सखदाई।। लसखाई रीति मरायादा, हम अलभमान है उन पर। बहि ही वरीर बलराली, करू गणगान जरीवनभर ।।६।। -- x -लोकद्र कमभकार राजापर, मधरप्रदे र
वर्ष : 2, अंक : 3 52 हे राम िझे कलरग म क्फर आना होगा अरोधरा जैसरी नगरी क्फर से, इस धिरा पर बसाना होगा। मरायादा परषोत्तम राजा हो राज म, क्फर से रामराज िमह लाना होगा।। हे राम िझे कलरग म क्फर से आना होगा। सतरतनषठ, कमयावरीर हो रासक जग म, जो सख दःख समझ दीनहीनों का। सनेह अनराग हो लोगों के मन म, ऐसरी राह पर सबको लाना होगा।। हे राम िझे कलरग म क्फर से आना होगा। जैसे त्रेिा म िारा अहहलरा को, सबरी के मरीठे ्फल खाए। कलरग म भरी िेरी जरूरि है, िारणहारी िमको आना होगा।। हे राम िझे कलरग म क्फर से आना होगा। वपिा का वचन तनभाने वाला, एक पतनरी व्रि धिारण करने वाला। गरु की आज्ा पालन करने वाला, मानव को बनाना होगा।। हे राम िझे कलरग म क्फर से आना होगा। -- x -हे राम िमह आना होगा समिा कमारी समसिरीपर, त्बहार
वर्ष : 2, अंक : 3 53 रघनंदन कछ ह् कर ले ि केकई की मिरी को हर ले ि केकई की दासरी मंिरा को िो दे र तनकाला दे ि l राजा दररथ के वचनों को इधिर-उधिर कर जाि राम वन को कभरी न जाि राम l पर वव्धि को होना ही कछ था राम - लखन सरीिा को वन था धिरिरी पर जब पाप बढ़ा िो दररथ के घर आए राम सबको प्रेम लसखाएं राम l गजसको राजपा् लमलना था वह वन म प्रसथान करेगे सौिेली मां के वचनों का ना कोई प्रतिकार करेगे रह सबको लसखलाि राम खररी खररी वन जाि राम l राम का तराग ओम प्रकार नागर को्ा, राजसथान दानव - मानव पर हावरी थे ऋवष रों ने जब करी िपसरा कौरलरा के जार राम धिरिरी पर बहि सिाए राम क्फर भगवान कहलाए राम l रह कलरग आरा है बंदे राम के रसिे कौन चलेगा भाई हो िो लक्मण जैसा इस कलरग म नहीं लमलेगा सरीिा जैसरी नारी की हर कोई चाहि रखिा है जंगल जंगल भ्क भ्क कर जरीवन कौन त्बिाना चाहहए ll
वर्ष : 2, अंक : 3 54 राम-नाम आसथा है मेरी, राम अंिरातमा की आवाज है। राम प्रतिमा नहीं पणया प्रतिमान है।। राम राशवि है सदा राम जन मन के नारक ह। राम गंगा जल की िरह पावन है।। राम सतर ह जरीवन म राम अहहलरा को िारने वाले ह। राम हनमान की भग्ि म है।। राम जरीवन की राह ह। राम रबरी के मरीठे बेर ह। राम हर दणखरा के िारणहार ह।। राम मािा-वपिा की आसथा है, राम दष्ों के हर पल नारक ह। राम रावण के अलभमान का अंि है।। राम लसरा दजरी कोई भग्ि नहीं है, राम जरीवन मरण का सतर है। राम जरीवन को सतरहदखाने वाले ह।। राम के प्रति मेरी आसथा सवयासव है, जब िक जरीवनराम ही मेरी पजा है। राम मेरे जरीवन का अंतिम रबद होगा।। x राम - नाम आसथा है मेरी अंज श्रीवासिव देहरादन, उिराखंड

की कर दो भरपाई।

वचन राम को 14 सालों का, वनवास जाना होगा, दवविरीर वचन, मेरे पत्र भरि का, राजर अलभषेक करना होगा।

सन राजा दररथ मतछयाि हो, धिरा पर बेसधि हो ्गर पड़े, प्राणों से परारे,राम से दरी को, वो ना सह सके।

राम को जब पिा चला, मािा का वचन तनभाने तनकल पड़े, संग राम के,लक्मण और सरीिा भरी, सहषया चल पड़े। जैसे ही राजा दररथ को रह पिा चला, राम लखन सरीिा का वनवास गमन हआ, सनि ही राजा दररथ ने अपने प्राण तराग हदए, अरोधरा नगरी सारी रोकाकल हई। राम गमन को,राजा दररथ ना सह सके, उसरी पल प्राण पखेरू,िन से तनकल पड़े।

वर्ष : 2, अंक : 3 55 रंजना त्बनानरी “कावरा” गोलाघा्, असम आज सनािरी ह रामलीला की, राम वनवास की कहानरी, सन के सबकी आंखों म, आ जाएगा पानरी। राजरालभषेक कक अरोधरा म, जब चल रही थरी िरारी, राम के राजा बनने से,हवषयाि थे, अरोधरा के
जो वरदान देने को बोले थे, भल िो नहीं गए,र मन म आई। कैकई को कोपभवन म, जाकर बैठने की बाि समझाई, जब राजा दररथ को पिा चला कोप भवन म बैठी है कैकई। जाकर पछा ्रा कारण है, ्रों रूठी हो िम रानरी, कैकई िब बोली, ्रा आप को राद है, मझको हदर दो वचनो की। राजा दररथ िब बोले सब राद है, मांगो िम रानरी, रघपति रीि सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई। सन राजा दररथ की वाणरी, राम वनवास कैकेई मन ही मन मसकाई, झ् बोली,आज समर आ गरा, मेरे दो वचनों
सब नर नारी। िभरी,भरि राजा ्रों नहीं,ऐसरी मंथरा ने, कैकई की मिरी घमाई, कैकई ने भरी मंथरा की बािों म आ, बाजरी सारी पल्ाई। मंथरा ने राजा दररथ के, दो वचनों की कैकई को राद हदलाई,
प्रथम

भरि राज पद के जगाड़ म, रग्ि बिाई चेरी||

म, जो वर था आरक्क्षि|

वर्ष : 2, अंक : 3 56 अमरनाथ सोनरी ”अमर” सरीधिरी, मधर प्रदे र देव असर रण रभमति बतनिा, रदधि ककरा रण जरीिरी| जरीि हार का हआ ्फैसला, देखा नप करििरी|| मांग-मांग वर मांग वप्ररा अब, खर ह म अति परारी| िम सम वरीर नही है जग म, ककरा रदधि है झारी|| कहठन-काल रणचंडरी देवरी, बनकर िमही समहारी| नही हार तनगशचि था मेरा, ककरा बहि उपकारी|| कैके ररी का बोल रही था, रणखए आप सरक्क्षि| कभरी - काल जब आए मेरा, रह वर है आरक्क्षि|| राजकाज सब ठीक चल रहा, बडे हो गए बचचे| राम, लक्मण, भरि, रत्रहन, सब सवभाव के अचछे || पररणर-पत्रों एक साथ म, जनक राज गह कीनह| चारों बह राज गह आई, परार सभरी को दीनह|| परार प्रेम कैके ररी तनशछल, बह-पत्र दलरािरी| नही कभरी भरी ख्प् करिरी, देवासर संग्राम कैके ररी का वरदान माँ का गौरव पािरी|| गरु वलरषठ,नप,मंत्ररी लमलकर, ककए ्फैसला भारी| राजाभार राम को देकर, गजरो आर अब सारी|| कैके ररी की दास मंथरा रानरी की मति ्फेरी|
नार
दो वर मांगन के हहि रानरी,
चौदह वषया राम लसर वन
िब नप हए बेहोर धिरा
कभरी होर नहह जागरी||
देवासर संग्राम-समर
वही वरद से ले वर रानरी, राज भरि हो रक्क्षि||
चररि की कोप भवन म, राम - रपथ णखलवाई|
राजा पास बलाई||
मे, भरि राज वर मांगरी|
पर,
वर्ष : 2, अंक : 3 57 उपवन से नरनों म, नरनों से अंिमयान म जा बसरी लम्थला कनरा, सहधिमयातन बन राम की आई अरोधरा जनकसिा परछाई बन, रही, चौदह वषया वनवास अलंकार तराग पहने गेरुए पररधिान मग मरी्चका से हरण ककरा रावण ने हृदर से तनकला हे राम िन मन म बसे थे बस श्रीराम र् रही थरी राम नाम, जप रही थरी प्रभ श्रीराम श्रीराम जर राम, जर जर राम अरोक वाह्का पहचे राम भ्ि हनमान कर प्रणाम मािा को, हदरा धिैरया बलवान लगाई पंछ म आग, ककरा लंका दहन से सवयानार वानरों की सेना सह ककरा लंके र वधि, श्रीराम ने ववजरादरमरी को दीप जलार पधिारे अरोधरा, सह सरीिा राम ऊंगली उठी चाररत्र पर पनः वनवास मािा को पहले साथ थे सवर प्रभ रही अकेली अब आश्म म म समझरी वो सरीिा आरा बैजल ्वाललरर, मधर प्रदे र साथ हदरा उन छोनों ने, थे जड़वाँ पत्र श्रीराम के थामा अशव, अशवमेघ का गाकर गणगान राम का जरीिा मन श्रीराम का अधिा्गनरी, मरायादा परुषोत्तम राम की सहिरी रही ब्रमहा र्चि ब्रमहाणड को ्रकक रचना था एक महाग्रंथ सथावपि करना था सत्ररी पराण समझना है सरीिा के सवालभमान, सहनररीलिा, संघषया और प्रेम समपयाण भाव
साथ म कियावर तनषठ प्रभ श्रीराम को सरीिा बसरी थरी राम म,राम बसे थे सरीिा म सथावपि ककरा उदाहरण जगि म लमलकर सरीिाराम ने र िो मन-नजरों का खेला है कोई कहे जरीिा, िो कोई कहे हारा है..
को,
वर्ष : 2, अंक : 3 58 भलम से जनमरी है देवरी सरीिा ववषण अविार ललए श्री राम जर लसराराम जर लसराराम सौ गणों से आई देवरी सरीिा मरायादा गण ललए श्री राम जर लसराराम जर लसराराम लरव धिनष पजे देवरी सरीिा लरव धिनष िोड़ बराहे श्री राम जर लसराराम जर लसराराम अरोधरा नगरी पधिारी देवरी सरीिा वपिा के दो वचन तनभाए श्री राम जर लसराराम जर लसराराम चली वनवास रघवर संग देवरी सरीिा कत्तयावर तनभाने लक्मण संग श्री राम जर लसराराम जर लसराराम संदर सवणया मग देखरी देवरी सरीिा मनोकामना पणया करने गए श्री राम जर लसराराम जर लसराराम बड़री देर भर अकलाइ देवरी सरीिा लक्मण को लाने भेजे श्री राम जर लसराराम जर लसराराम रावण उठा ले गरो देवरी सरीिा वराकल मन भरो श्री राम राम – सरीिा गणगान मोना चनद्राकर मोनाललसा रारपर, छत्तरीसगढ़ जर लसराराम जर लसराराम लंका पर चढ़ाई की लाने देवरी सरीिा रावण के संहार ककर श्री राम जर लसराराम जर लसराराम अरोधरा प्रसथान ककर राम संग देवरी सरीिा धिोबरी के प्रलाप पर छोड़ हदरो श्री राम जर लसराराम जर लसराराम ऋवष आश्म म लवकर जनमरी देवरी सरीिा लवकर गरो दरबार श्री राम जर लसराराम जर लसराराम अरोधरा आई पल् कर देवरी सरीिा अग्न परीक्षा ललरो श्री राम जर लसराराम जर लसराराम धिरिरी मां म समाई देवरी सरीिा सरर नदी म समा्धि ललरो श्री राम जर लसराराम जर लसराराम

बल और प्रिाप।। हो ववकल पकारा भगवन को, हे नाथ!बचालो उपवन को। पापों का भार असहनरीर है, हर लो मेरे इस क्रं दन को।। नारारण ने क्फर सपथ ललरा, वसधिा को िब आसवसि ककरा। पापों का नार करुगा म, ्चंति ि ना हो हे देववप्ररा।। दररथ के लाल ने जनम ललरा, असरों के काल ने जनम ललरा। धिरिरी के मानव रक्षण को, देखो महहपाल ने जनम ललरा।। क्फर लीलाओं का दौर चला, मानव हहि वो कई ठौर चला। जब आरा समर सकल सख का, भारा संग वव्प कक ओर चला।। रबरी को िार हदरा िमने,

वर्ष : 2, अंक : 3 59 गजिनद्र रार , वपमपरी, पण बनवास राम को जाना था, तनद्रामररी ववशव जगाना था। आरायाविया की धिमया धवजा, रगों रगों लहराना था।। सहदरों से भ करिरी अलाप, कैसे लम्िा परीड़ा व िाप। कोई भरी काम नही आरा, जो हदखलािा
बाली को मार हदरा िमने। बाधिा सागर पर धिमया सेि, रावण संहार ककरा िमने।। करिा रह जगि िमहारी जर, भारि को कर दो अरुणोदर। हदनों के रक्षक नमन िमह, मेरा भरी जरीवन हो सखमर।। हे मरायादापरुषोत्तम राम, रघकलननदन सवषोत्तम राम।। रामराजर का सवपनन ललए, करिा है “जरीि “र वंदन राम।। धिरिरी की पकार
वर्ष : 2, अंक : 3 60 रगशम र्ल रीवा, मधर प्रदे र अरोधरा जनम है भमरी, रही नगरी सजाना है, सहानरी राम है आई, हम दीपक जलाना है। खररी के गरीि गाएंगे, भजन सबको सनाएंगे, बजाओ ढोल लमल कर सब, हम उतसव मनाना है। नरन खोलें मगन होलें,
लम्ाई िरीरगरी सबकी
भणडार ह सारे, दरा करि सभरी पर रे, हम ववनिरी सनना है। रख जब हाथ सर पर ह, बदलि भा्र िारे भरी, करु गणगान प्रभ का म, नरन िमको बसाना है। उिारूं आरिरी प्रभ की, तनहारूं मोहनरी सरि, ललए म रा्चका आई, हम अरजरी लगाना है। सनो जन जन के िम परारे, दरातन्धि बन िमहीं िारे, हदखाई राह जो िमने, हम चलकर हदखाना है। अरोधरा जनम है भमरी
दरर श्री राम के पार, ररण हम आ गर इनके, नहीं दजा हठकाना है।
भरे

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