खंड - 2 • रामायण की कुछ अनकही बातें • रामचररतमानस एक मनोवैज्ाननक नवश्लेषण्षण • करुणकानन की सीता मरी दृणटि में • दशरत क घर राम पधार • अग्ी परीक्ा • श्ी राम कवट प्रसंग • युग बीत अब राम पधार • गीत - छनव अंणकत प्रभु आपकी • राम एक कथा अनक
संपादक मंडल सचिन ितुर्वेदी संस्ापक (नई ददल्ी) डॉ. तरुणा माथुर मुख्य संपाददका (गुजरात) वर्नीता पुंढीर ननदवेशक, अनुराग्यम(नई ददल्ी) मीनू बाला संपाददका (पंजाब) दूरभाष : +91 - 9999920037 पता : मालर्ीय नगर, नई ददल्ी (110017) र्ेबसाइट : www.anuragym.com ईमेल : anuragyam.kalayatra@gmail.com उपरोक्त सभी पद मानद तथा अर्ैतननक हैं। पवरिका डडजाइनर : सचिन ितुर्वेदी मुख्य पृष्ठ आर्रण : सचिन ितुर्वेदी कॉपीराइट : अनुराग्यम् (संपादक मंडल) **पवरिका में बहुत से चिरि गूगल से नलए गए है. MSME Reg. No. : UDYAM-DL-08-9070 अनुराग्यम् के सोशल मीडडया प्टफोम से जुड़ने के नलए नीि ददए गए आइकॉन पर क्लिक कर के जुड़ सकते है | खंड - 1 / 2 / 3 कलायात्ा पणत्का अयोध्ा नवशषांक में उपलब्ध र्ष्म : 2, अंक : 2 3
र्ष्म : 2, अंक : 3 4 माि्म 2022 होली वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 11 अप्ल 2022 धानमक स्ल वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 12 मई - जून 2022 गुजरात वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 1 जुलाई - अगस्त 2022 महाराष्ट्र वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 2 नसतम्बर - अक्बर 2022 अयोध्ा वर्शेषांक र्ष्म २ अंक 3 अनुराग्यम् की र्ेबसाइट से पुस्तक खरीद सकते है.. अनुराग्यम् पुस्तकालय अनुराग्यम् की र्ेबसाइट पर पुस्तक पढ़ सकते है..
र्ष्म : 2, अंक : 3 5 नसतम्बर 2021 गोर्ा वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 5 अगस्त 2021 ददल्ी वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 4 जुलाई 2021 वबहार वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 3 जून 2021 मध्प्देश वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 2 मई 2021 राजस्ान वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 1 अक्बर 2021 छत्ीसगढ़ वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 6 नर्ंबर 2021 पंजाब वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 7 ददसंबर 2021 यारिा र्रिांत वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 8 जनर्री 2022 हडरयाणा वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 9 फरर्री 2022 दहमािल वर्शेषांक र्ष्म 1 अंक 10 वपछले संस्करण
प्भु श्ी राम की यारिा.. लेख, आलेख एर् कवर्ताओं क साथ..
र्ष्म : 2, अंक : 3 7 सचिन ितुर्वेदी, प्धान संपादक एर् संस्ापक, अनुराग्यम् रमणे कणे कणे इति रामः || जो कण - कण म बसे, वही राम है। भगवान श्रीराम को कौन नहीं जानिा मरायादा परुषोत्तम श्री राम श्री हरर ववषण के 10 अविारों म से सािव अविार प्रभ श्री राम ह। भगवान राम का जरीवन संघषयामर होके भरी लोक कलराण के हहि को दरायािा है िथा आदरया प्रसिि करिा है। राम नाम मात्र नाम ही नहीं.. सर, चंद्रमा एवं अग्न से ब्रहमांड की उतपवत्त हई है, इसरीललए राम परब्रमहा है। राम नाम की उतपवत्त कछ इस प्रकार हई है : र : अग्न (र अग्न का बरीज मंत्र है) आ : सरया (आ सरया का बरीज मंत्र है) म : चंद्रमा (म चंद्रमा का बरीज मंत्र है) राम की गाथा को कछ रबदों म समाहहि करना असमभव है। उनका संघषयामर जरीवन जगजाहहर है, उनके जरीवन का कोई भरी हहससा देख लें, पणया रूप से प्रेरणातमक व अथयापणया है। प्रभ राम बचपन से ही ववनरररील थे और अपने जरीवन म इिने उिार चढाव के पशचाि भरी कभरी वववेक नहीं खोरा। आजकल की रवा परीढ़ी के ललए श्री राम से उत्तम मागयादरक हो ही नहीं सकिा, िलसरी जरी ने रामचररिमानस व वालमरीकक जरी ने रामारण म प्रभ श्री राम की अनेक गाथाओं का उललेख ककरा है। राम बचपन से ही दराल और सनेही थे। उनके अंदर मनोरम लरष्ाचार की भावना क्-क् कर भरी हई थरी। राम अतरनि ही सरल सवभाव वाले महापरुष थे, गजिना कहा जाए प्रभ श्री राम के बारे म, कम होगा। राम कैसे मरायादा परुषोत्तम श्री राम बने, कैसे उनहोंने अपने सभरी संघषषों का वववेकबद्धि से हसि हसि सामना ककरा और कभरी अपना सवभाव नहीं बदला। अपने वपिा के चहे ि थे श्री राम, पर जब उनको पिा चला कक उनकी माँ कैकई ने राजा दररथ से वचन ललरा ह, कक श्री राम को 14 वषषों के ललए वनवास भेजा जाए, श्री राम ने अपने वपिा के वचन का परा मान रखा और सहषया वनवास जाना सवरीकार ककरा। राजा दररथ ने प्रभ श्री राम को मना भरी ककरा और वह सवर इस बाि से ्् चके थे कक श्री राम को उनके वचनों का पालन करना पड़ रहा, प्रभ श्री राम ने अपने पत्र होने का कियावर तनभारा और चल पड़े अपनरी पतनरी सरीिा और भाई लक्मण के साथ। राजपा् और अपनरी सभरी सववधिाओं को तराग कर, अपने वपिा के वचन का मान रख कर वनवास की ओर प्रसथान कर हदरा। एक पत्र का कत्तयावर, प्रजा का हहिैषरी, पति धिमया तनभाने वाले राम ने सथान ले ललरा मरायादा परुषोत्तम प्रभ श्री राम का। र पत्त्रका एक प्ररास है, प्रभ श्री राम की महहमा को रचनाकारों ने अपने भग्ि व प्रेम भाव को रबदों म समाहहि कर पाठकों के हृदर िक पहचारा जा सके। अनरा्रम की पत्त्रका ‘कलरात्रा’ के दीपावली ववरेषांक आप सबके समक्ष है। आप सभरी अपना प्रेम अवशर दीगजरेगा और अ्धिक से अ्धिक इस पत्त्रका को साझा कीगजरेगा, गजससे सभरी लोगों को प्रेरणा लमले व अपने जरीवन चनौतिरों का सामना करने म सहरोग लमले। जब प्रभ श्री राम के भ्िों दवारा राम नाम ललखा पतथर भरी समद्र म िैर सकिा है, िो प्रभ श्री राम नाम से जनजरीवन और वरग्ितव को जो पररभाषा लमलेगरी, जो सभरी मनम्ावों को लम्ाकर सही हदरा म एक संदर और प्रेममर भारि का तनमायाण अवशर करेगरी। श्ी राम नसफ्म नाम नहीं आधार है जीर्न पथ का
पनम
चंडरीगढ़ 40 9.
नरीलम नारंग, मोहाली, पंजाब 44 • कवविाएँ 10. ररणागि आि सखसागर, मरीना भट् लसदधिाथया, जबलपर, मधर प्रदे र 16 11. अरोधरा सथल, अंलरिा दबे, लंदन 17 12. आओ मेरे राम, हरप्ररीि कौर, कानपर, उत्तर प्रदे र 17 13. बसि ह श्रीराम, अलका लमश्ा, कंकड़बाग, प्ना, त्बहार 20 14. नहीं संभव है इस कलरग म,
र्ष्म : 2, अंक : 3 8 • आलेख प सं.
रामारण की कछ अनकही बाि,
वास, उदरपर, राजसथान 10
रामारण ववरेष,
राम कथा, ्चत्तरंजन,
राम
उत्तर प्रदे र 24 5. करुणकानन की सरीिा मेरी दृगष् म, सररीला जोररी, मजफ्फरनगर, उत्तर प्रदे र 30 6. राममर होने का अथया, राजकमार अरोड़ा, बहादरगढ़, हररराणा 33 7. अरोधरा के राम, अलका लमश्ा, कंकड़बाग, प्ना, त्बहार 36 8. रामचररिमानस एक मनोवैज्ातनक ववशलेषण,
15. अ्नरी परीक्षा, तनककिा रमाया,
16. चौपाई : इं िजार सरीिा का, जरश्रीकांि जर, लसंगरौली, मधर प्रदे र 27 17. चौपाई छंद : कथा तनराली राम की, जरश्रीकांि जर, लसंगरौली, मधर प्रदे र 27 18. राघव, तन्धि माथर, ममबई, महाराषट्र 28 19. त्बछड़ाव, हेमलिा भारदवाजा , इंदौर, मधरप्रदे र 29 20. राम सा िम बनके हदखाओ, जरोति महाजन, गाग़िराबाद, उत्तर प्रदे र 32 21. गरीि - छवव अंककि प्रभ आपकी, प्रो. ववशवमभर र्ल, लखनऊ, उत्तर प्रदे र 34 22. इनके राम, उनके राम, सबके राम, ववनोद अग्नहोत्ररी, बरेली, उत्तर प्रदे र 34 23. श्री राम केव् प्रसंग, सररी स्सेना, इंदौर, मधरप्रदे र 35 24. श्री राम जरी देखो, सररी स्सेना, इंदौर, मधरप्रदे र 35 25. सब प्राणरी से उत्तम श्री राम, मधि कशरप, हमरीरपर, उत्तर प्रदे र 38 26. रग बरीि अब राम पधिारे, तन्धि सहगल, आगरा, उत्तर प्रदे र 39 27. राम - राजर (कंडललरां) / राम नाम (दोहा - छंद), उमा वैषणव, भारि 42 28. राम एक कथा अनेक, मधि प्रसाद, अहमदाबाद, गजराि 43 29. दररि के घर राम पधिारे, गोपाल गपिा “गोपाल “ नई हदलली 46 अनुक्रमणणका
1.
नपर
2.
दास अरूण रमाया, मालाड, मंबई 18 3.
पगशचम बधियामान, बंगाल 21 4.
भ्ि, बरीना र्ला अवसथरी, कानपर,
वमाया,
अरोधरा रात्रा मेरा संसमरण,
कंवर आनंद श्रीवासिव, सलिानपर 22
वडोदरा, गजराि 23
र्ष्म : 2, अंक : 3 9 सुश्ी मीनू बाला, संपाददका, अनुराग्यम् है प्ररीि जहां की रीि सदा म गरीि वहां के गािा हं, भारि का रहने वाला ह भारि की बाि सनािा हं... रह गरीि अ्सर मझे अपने भारिरीर होने पर गौरवागनवि महसस करवािा है मझे गवया होिा है कक म उस दे र की वासरी ह जहां की संसकति एवं साहहतर कालजररी है। महवषया बालमरीकक जरी सम्ादकीय की रामारण हो रा गोसवामरी िलसरीदास जरी का रामचररिमानस आज भरी र घर-घर म आदरया रामराजर की पररकलपना का स्ोि बने हए ह। जरीवन की इस आपाधिापरी म जब दरहरा एवं दीवाली का तरौहार आिा है, िो अनारास ही हम श्री रामचंद्र का ववरा् आदरया रूप समरण हो आिा है। आज के संदभया म जहां संर्ि पररवार ्् रहे ह एकल पररवार म भरी आपसरी कलह वह असंिोष हदखाई दे रहा है िो ऐसे समर म श्री राम के आदरया वरग्ितव की पररकलपना तनगशचि रूप से हमारा मागयादरन करेगरी। हम अपने पररवार म उनके आदरषों पर चलकर अपने जरीवन को सखरी एवं रांतिमर बना सकि ह। श्री रामचंद्र जरी ना केवल आदरया पत्र के रूप म बगलक आदरया भ्ािा, आदरया पति, आदरया राजा, आदरया लम त्र, आदरया र ोदधिा एवं आदरया सवामरी के रूप म भरी हमारे सामने नजर आए। तनगशचि िौर पर श्री रामचंद्र जरी का ववरा् वरग्ितव हम सबके ललए अनकरणरीर है। ववपरीि पररगसथतिरों म ककस प्रकार अपना मानलसक संिलन एवं धिैरया बनाए रखना है रह उनके आदरया वरग्ितव से झलकिा है। समरण हो आिा है कहां एक राि पहले उनके राजर अलभषेक की िरारररां चल रही थरी, हर िर्फ खररी का माहौल था, प्रजा की खररी का कोई हठकाना नहीं था, परी अरोधरा एवं राज महल म चहल पहल थरी, हर कोई राम को राजा के रूप म देखने के ललए उिावला था पर वव्धि का ववधिान कछ और ही था एक काली राि ने सारा पररदृशर ही बदल हदरा। राजा दररथ को हदए रानरी कैके ररी के दो वचनों ने सबके चेहरों की रौनक को छीन ललरा। अगली सबह राज लसंहासन की जगह 14 बरस का बनवास लमल जाने पर श्री
अपने भाई लक्मण एवं भरि के प्रति उनका जो तनसवाथया प्रेम था वह आज भरी अनकरणरीर है अपने भाई भरि के ललए राज लसंहासन छोड़ि हए उनको एक पल भरी नहीं लगा। लंका रदधि के दौरान लक्मण के मतछयाि होने पर उनका एक आम मानव की िरह ्चंति ि होकर ववलाप करना देविाओं िक को द्रववि कर गरा। श्री हनमान एवं वानर सेना के सेवा भाव के प्रति उनका जो प्रेम एवं अपनापन था हमेरा के ललए अमर हो गरा। “श्री राम ना चले हनमान के त्बना !! हनमान न चले श्री राम के त्बना !!” रह पंग्ि आज भरी सभरी भ्िों के हृदर एवं होठों से सनाई दे िरी है। उस समर म जब जाति प्रथा चरम सरीमा पर थरी ऐसे समर म रबरी के जठे बेर खाकर उनहोंने जातिवाद के नाम पर होने वाले भेदभाव को लम्ाने का आदरया प्रसिि ककरा। केव् की कशिरी म बैठकर उसके सेवा भाव से प्रसनन होकर उसे भवसागर से पार लगा हदरा। नारी सममान, नारी सरग्िकरण एवं नारी सविंत्रिा का जो आदरया श्री राम जरी ने प्रसिि ककरा है वह तनगशचि िौर प्ररंसनरीर है। सरीिा हरण के पशचाि सरीिा जरी को रावण से बचाने के ललए, लंका पार कर राक्षसों का वधि करना नारी की अगसमिा एवं अगसितव की सरक्षा की आदरया प्रतिसथापना है। आज जब हर नारी हर पल अपने आपको हर जगह चाहे घर हो रा बाहर असरक्क्षि महसस कर रही है, ऐसे समर म श्री राम जैसे आदरया परुष की पररकलपना ही नारी को अपना खोरा हआ सममान एवं सरक्षा लौ्ा सकिरी है। आज के समाज की ववषमिा म श्री रामचंद्र जरी की उपरया्ि सारी ववरेषिाएं अपनाकर हम अपने जरीवन को धिनर कर सकि ह। “हरर अनंि हरर कथा अनंिा” श्री रामचंद्र जरी के आदरया वरग्ितव की प्ररंसा म ककिना भरी कहो कम है और हम इस रो्र भरी नहीं कक उनके ववरा् वरग्ितव को अपनरी लघ लेखनरी दवारा कछ रबदों म वरणयाि कर सक। आज के घोर कलरग म जब हम दरहरा एवं दीवाली जैसा तरोहार मनाि ह िो मात्र प्ाखे बजाकर रा दीए जलाकर ही मनोरंजन न कर बगलक तनगशचि िौर अपने पररवार एवं आने वाली परीढ़ी के हृदर म “आदरया रामराजर “की पररकलपना का दीपक प्रजवललि कर समाज म वरापि भ्ष्ाचार, बेईमानरी, धिोखाधिड़री, जातिगि एवं धिालमयाक भेदभाव, आपसरी से न्फरि एवं घणा के अंधिकार को अवशर लम्ाएं। हमारे राषट्रवपिा महातमा गांधिरी जरी से लेकर आज हमारे प्रधिानमंत्ररी श्री नरद्र मोदी जरी का भरी रही सपना एवं आहवान है। आरा करिरी ह कक आप सभरी “आदरया रामराजर” की पररकलपना को साथयाक करने म अपना बहमलर रोगदान अवशर दगे : जाि पाि धिमया भेद सब भलकर सवरणयाम दे र बनाना है, अपने परारे से भारि को आदरया राम राजर बनाना है।
रामचंद्र जरी वपिा के आदे र को सहषया सवरीकार ककरा। दखरी एवं क्ो्धिि होने की बजार उनहोंने इसे अपना सौभा्र माना कक वह वपिा की आज्ा का पालन करने, एवं “रघकल रीि सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाई” की अनपालना का तनलमत्त मात्र बनने जा रहे ह। अपने वपिा दररथ एवं मािा कैके ररी के प्रति उनके मन म रत्तरी भर भरी घणा नहीं आई। उनका रही तराग, बललदान और सहहषणिा उनको देवतव की लसंहासन पर रगों रगों िक प्रतिगषठि करिा है।
र्ष्म : 2, अंक : 3 10 रामारण की कछ अनकही बाि नपर वास उदरपर, राजसथान लमत्रों आप सभरी ने ्ीवरी पर रामारण अवशर ही देखरी होगरी गजसम प्रभ श्री राम के जनम से लेकर उनके सरर म जल समा्धि लेने िक की लीला को ्ीवरी पर हदखारा गरा था। लेककन आपको बिा द कक इसके अलावा भरी रामारण के ऐसे बहि से रहसर ह जो ्ीवरी पर नहीं हदखारा गरा। म आपको रामारण से जड़री ऐसे ही कछ बािों के बारे म बिाऊंगरी गजनके बारे म आप को जानकर आशचरया होगा।
र्ष्म : 2, अंक : 3 11 रामायण की रचना सबस पहल श्ी हनुमान जी न की थी ऐसा माना जाता है णक मूल रामायण की रचना “ऋणष वाल्ीणक ” द्ारा की गई थी, बाद में अन्य कई संतों और वद पंणडतों द्ारा भी ललखी गई थी। जैसतुलसीदास, संत एकनाथ इत्ादद न भी इसक अन्य संस्करणों की रचना की है। हालांणक प्रत्क संस्करण में अलग-अलग तरीक स कहानी का वण्णन णकया गया है, ललेणक न मूल रूपरखा एक ही है। ऐसा माना जाता है णक रामायण की घटना 4थी और 5वीं शताब्ी ई पू की है। ललेणक न क्ा आपको यह पता है णक बाल्ीणक स भी पहल रामायण हनुमान जी न ललखी थी। सच है णक प्रभु श्ीराम क अनन्य स्वरूपों का उल्लेख हनुमान जी न रामकथा की रचना कर अपन नाखूनों स एक शीला पर की थी। इस बात का पता जब वाल्ीणक जी को चला तो उन्ोंन उस
रह गए। णिर उन्ोंन हनुमान जी स कहा है -पवन सूत, आपस अच्ा राम की कथा का वण्णन और कोई नहीं कर सकता है और आपकी रचना मरी रचना क सामन तो कुछ भी नहीं है। यह सुनकर हनुमानजी न सोचा णक यह भी तो भक्त है प्रभु श्ी राम की उनक अनुसार अगर उनकी रचना को मरी रचना क समान सौंदय्ण नहीं है तो भी क्ा हआ उसमें भी तो मर प्रभु श्ी राम की मदहमा का ही वण्णन है। इसक बाद हनुमान जी न अपनी ललखी हई राम कथा की शीला उठाई और उस समुंदर में िेंक ददया और इनतहास में रामायण ललखन क ललए वाल्ीणक जी का नाम अमर हो गया। रामायण क हर 1000 श्ोक क बाद आन वाल पहल अक्र स गायत्ी मंत् बनता है गायत्ी मंत् में 24 अक्र होत हैं और वाल्ीणक रामायण में 24,000 श्ोक हैं। यह मंत् इस पनवत् महाकाव्य का सार है। गायत्ी मंत् को सव्णप्रथम ऋग्द में उल्ल्खखत णकया गया है। राम और उनक भाइयों क अलावा राजा दशरथ एक पुत्ी क भी णपता थ श्ीराम क माता-णपता एवं भाइयों क बार में तो प्रायः सभी जानत हैं, ललेणक न बहत कम लोगों को यह मालूम है णक राम की एक बहन भी थीं, लजनका नाम “शांता” था। व आयु में चारों भाईयों स कािी बड़ी थींl उनकी माता कौशल्ा थीं। ऐसी मान्यता है णक एक बार अंगदश क राजा रोमपद और उनकी रानी वणषषिणी अयोध्ा आए। उनको कोई संतान नहीं थी। बातचीत क दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हई तो उन्ोंन कहा, मैं अपनी बटी शांता आपको संतान क रूप में दंगा। यह सुनकर रोमपद और वणषषिणी बहत खुश हए। उन्ोंन बहत स्ह स उसका पालन-पोषण णकया और माता-णपता क सभी कत्णव्य ननभाए। एक ददन राजा रोमपद अपनी पुत्ी स बातें कर रह थ , उसी समय द्ार पर एक ब्ाह्मण आए और उन्ोंन राजा स प्राथ्णना की णक वषषा क ददनों में व खतों की जुताई में राज दरबार की ओर स मदद प्रदान करें। राजा को यह सुनाई नहीं ददया और व पुत्ी क साथ बातचीत करत रह। द्ार पर आए नागररक की याचना न सुनन स ब्ाह्मण को दख हआ और व राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चल गए। वह ब्ाह्मण इन्द्र क भक्त थ। अपन भक्त की ऐसी अनदखी पर इन्द्र दव राजा रोमपद पर क्रु द्ध हए और उन्ोंन उनक राज्य में पयषाप्त वषषा नहीं की। इसस खतों में खड़ी ि सलें मुरझान लगी। इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद ऋष्यशग ऋणष क पास गए और उनस उपाय पूछा। ऋणष न बताया णक व इन्द्रदव को प्रसन्न करन क ललए यज् करें। ऋणष न यज् णकया और खत-खललहान पानी स भर गए। इसक बाद ऋष्यशग ऋणष का नववाह शांता स हो गया और व सुखपूव्णक रहन लग। बाद में ऋष्यशग न ही दशरथ की पुत् कामना क ललए पुत्कामलेणटि यज् करवाया था। लजस स्ान पर उन्ोंन यह यज् करवाया था, वह अयोध्ा स लगभग 39 णक मी पूव्ण में था और वहाँ आज भी उनका आश्म है और उनकी तथा उनकी पत्ी की समाधधयाँ हैं।
शीला यानी णक पत्थर को जाकर दखा और उस पर हनुमान जी द्ारा राम कथा का वण्णन द खकर वह हैरान
र्ष्म : 2, अंक : 3 12 राम नवष् क अवतार हैं ललेणक न उनक अन्य भाई णक सक अवतार थ राम को भगवान नवष् का अवतार माना जाता है ललेणक न आपको पता है णक उनक अन्य भाई णक सक अवतार थ ? लक्ष्मण को शषनाग का अवतार माना जाता है जो क्ीरसागर में भगवान नवष् का आसन है। जबणक भरत और शत्घ्न को क्रमशः भगवान नवष् द्ारा हाथों में धारण णकए गए सुद श्णन-चक्र और शंख-शैल का अवतार माना जाता है। सीता स्वयंवर में प्रत्क् भगवान लशव क धनुष का नाम? हम में स अधधकांश लोगों को पता है णक राम का सीता स नववाह एक स्वयंवर क माध्म स हआ था। उस स्वंयवर क ललए भगवान लशव क धनुष का इस्माल णकया गया था, लजस पर सभी राजकुमारों को प्रत्चा चढ़ाना था। ललेणक न बहत कम लोगों को पता होगा णक भगवान लशव क उस धनुष का नाम “णपनाक” था। क्ा था सीता क स्वयंवर का कारण ? एक बार बचपन में माता सीता न लशव धनुष णपनाका को उठा ललया था। यह दख नमधथला नरश राजा जनक न उसी समय यह तय कर ललया था णक वह अपनी पुत्ी का नववाह ऐस ही णक सी वीय्ण स करवाएंग जो इस लशव धनुष को मरी पुत्ी की तरह बड़ी आसानी स उठा सकें। यही कारण था सीता क स्वयंवर में यही शत्ण रखी गई थी और जो उस लशव धनुष को उठा पाया उसी न माता सीता स शादी की थी। और हम जानत हैं णक इसी लशव धनुष को श्ी राम न बड़ी आसानी स एक हाथ स उठा ललया था णिर बाद में जाकर उनकी माता सीता स नववाह हआ था। रावण भी पहंचा था सीता जी क स्वयंवर में, उस समय कई राजा सीता जी क स्वयंवर में भाग लन पहंच थ उनमें स लंका क महाराजा रावण भी पहंच था। और कहा जाता है णक मंदोदरी क रोकन क बावजूद भी लंका नरश सीता जी क स्वयंवर में पहंचा था। परंतु उस समय क सबस शक्क्त शाली योद्धा क रूप में जान वाल रावण भी बाकी राजाओं की तरह लशव धनुष को उठान में असमथ्ण रह। लक्ष्मण को “गुदाकश” क नाम स भी जाना जाता है ऐसा माना जाता है णक वनवास क 14 वषषों क दौरान अपन भाई और भाभी की रक्ा करन क उद्श्य स लक्ष्मण कभी सोत नहीं थ। इसक कारण उन् “गुदाकश” क नाम स भी जाना जाता है। वनवास की पहली रात को जब राम और सीता सो रह थ तो ननद्ा दवी लक्ष्मण क सामन प्रकट हईं। उस समय लक्ष्मण न ननद्ा दवी स अनुरोध णकया णक उन् ऐसा वरदान दें णक वनवास क 14 वषषों क दौरान उन् नींद ना आए और वह अपन णप्रय भाई और भाभी की
की पत्ी और सीता की बहन “उनमषिला” क पास पहंची। उनमषिला न लक्ष्मण क बदल सोना स्वीकार कर ललया और पूर 14 वषषों तक सोती रही। उस जंगल का नाम जहाँ राम, लक्ष्मण और सीता वनवास क दौरान रूक थ रामायण महाकाव्य की कहानी क बार में हम सभी जानत हैं णक राम और सीता, लक्ष्मण क साथ 14 वषषों क ललए वनवास गए थ और राक्सों क राजा रावण को हराकर वापस अपन राज्य लौट थ। हम में स अधधकांश लोगों को पता है णक राम, लक्ष्मण और सीता न कई साल वन में नबताए थ , ललेणक न कुछ ही लोगों को उस वन क नाम की जानकारी होगी। उस वन का नाम दंडकारण्य था लजसमें राम, सीता और लक्ष्मण न अपना वनवास नबताया था। यह वन लगभग 35,600 वग्ण मील में िैला हआ था लजसमें वत्णमान छत्ीसगढ़ , उड़ीसा, महाराटि और आंध्रप्रदश क कुछ दहस् शानमल थ। उस समय
रक्ा कर सक। ननद्ा दवी इस बात पर प्रसन्न होकर बोली णक अगर कोई तुम्ार बदल 14 वषषों तक सोए तो तुम् यह वरदान प्राप्त हो सकता है। इसक बाद लक्ष्मण की सलाह पर ननद्ा दवी लक्ष्मण
र्ष्म : 2, अंक : 3 13 यह वन सबस भयंकर राक्सों का घर माना जाता था। इसललए इसका नाम दंडकारण्य था जहाँ “दंड” का अथ्ण “सजा दना” और “अरण्य” का अथ्ण “वन” है। यहां श्ी राम न 11 साल वनवास क काट थ। माना जाता है की वनवास क दौरान यहीं पर वह अपन दरबार भी लगाया करत थ लजसस आसपास क लोगों की सहायता और दख को दर करत थ। राक्स क उत्ाद क कारण वहां कािी हाहाकार मचा हआ था लजसक कारण श्ी राम न क्णत्य धम्ण एवं कत्णव्य को ननभान क उद्श्य स वहां स प्रस्ान हो गए ताणक वह इस उत्ाद क कारण का जड़ स खात्ा कर सक। उनका कहना था णक अगर राक्स को मारना है तो लसि्ण यहां उत्ात मचात राक्सों को मार कर बात समाप्त नहीं होगी उन् इसक जड़ को ढूंढ कर वहीं स काय्ण की लसणद्ध करनी है। इसीललए मैं वहां स आग ननकल पढ़ले थ। लक्ष्मण रखा प्रकरण का वण्णन वाल्ीणक रामायण में नहीं है पूर रामायण की कहानी में सबस पचीदा प्रकरण लक्ष्मण रखा प्रकरण है, लजसमें लक्ष्मण वन में अपनी झोपड़ी क चारों ओर एक रखा खींचत हैंl जब सीता क अनुरोध पर राम दहरण को पकड़न और मारन की कोलशश करत हैं, तो वह दहरण राक्स मारीच का रूप ल लता हैl मरन क समय में मारीच राम की आवाज में लक्ष्मण और सीता क ललए रोता है। यह सुनकर सीता लक्ष्मण स आग्रह करती है णक वह अपन भाई की मदद क ललए जाए क्ोंणक ऐसा प्रतीत होता है णक उनक भाई णक सी मुसीबत में िंस गए हैं। पहल तो लक्ष्मण सीता को अकल जंगल में छोड़कर जान को राजी नहीं हए ललेणक न बार-बार सीता द्ारा अनुरोध करन पर वह तैयार हो गए। इसक बाद लक्ष्मण न झोपड़ी क चारों ओर एक रखा खींची और सीता स अनुरोध णकया णक वह रखा क अन्दर ही रह और यदद कोई बाहरी व्यक्क्त इस रखा को पार करन की कोलशश करगा तो वह जल कर भस्म हो जाएगा। इस प्रकरण क संबंध में अज्ात तथ्य यह है णक इस कहानी का वण्णन ना तो “वाल् ीणक रामायण” में है और ना ही “रामचररतमानस” में है। ललेणक न रामचररतमानस क लंका कांड में इस बात का उल्लेख रावण की पत्ी मंदोदरी द्ारा णकया गया है। रावण एक उत्टि वीणा वादक था रावण सभी राक्सों का राजा था। बचपन में वह सभी लोगों स डरता था क्ोंणक उसक दस लसर थ। भगवान लशव क प्रनत उसकी दृढ़ आस्ा थी। इस बात की पुख्ा जानकारी है णक रावण एक बहत बड़ा नवद्ान था और उसन वदों का अध्यन णकया था। ललेणक न क्ा आपको पता है णक रावण क ध्वज में प्रतीक क रूप में वीणा होन का कारण क्ा था? चूंणक रावण एक उत्टि वीणा वादक था लजसक कारण उसक ध्वज में प्रतीक क रूप में वीणा अंणकत था। हालांणक रावण इस कला को ज्यादा तवज्ो नहीं दता था ललेणक न उस यह यंत् बजाना पसन्द था। इन्द्र क ईष्यषालु होन क कारण “कुम्भकण ्ण” को सोन का वरदान प्राप्त हआ था रामायण में एक ददलचस्प कहानी हमशा सोन वाल “कुम्भकण ्ण” की है। कुम्भकण ्ण, रावण का छोटा भाई था, लजसका शरीर बहत ही नवकराल थाl इसक अलावा वह पटू (बहत अधधक खान वाला) भी था। रामायण में वणणषित है णक कुम्भकण लगातार छह महीनों तक सोता रहता था और णिर लसि्ण एक ददन खान क ललए उठता था और पुनः छह महीनों तक सोता रहता था। ललेणक न क्ा आपको पता है णक कुम्भकण को सोन की आदत कैस लगी थीl एक बार एक यज् की समाप्प्त पर प्रजापनत ब्ह्मा कुन्भकण क सामन प्रकट हए और उन्ोंन कुम्भकण स वरदान मांगन को कहा। इन्द्र को इस बात स डर लगा णक कहीं कुम्भकण वरदान में इन्द्रासन न मांग ल , अतः उन्ोंन दवी सरस्वती स अनुरोध णकया णक वह कुम्भकण की लजह्ा पर बैठ जाएं लजसस वह “इन्द्रासन” क बदल “न नद्ासन” मांग ल।
र्ष्म : 2, अंक : 3 14 इस प्रकार इन्द्र की ईष्यषा की वजह स कुम्भकण को सोन का वरदान प्राप्त हआ था। नासा क अनुसार “रामायण” की कहानी और “आदम का पुल” एकदसर स जुड़ हए हैं रामायण की कहानी क अंनतम चरण में वणणषित है णक राम और लक्ष्मण न वानर सना की मदद स लंका पर नवजय प्राप्त करन क ललए एक पुल का ननमषाण णकया था। ऐसा माना जाता है णक यह कहानी लगभग 1,750,000 साल पहल की है। हाल ही में नासा न पाक जलडमरूमध् में श्ीलंका और भारत को जोड़न वाल एक मानव नननमषित प्राचीन पुल की खोज की है और शोधकतषाओं और पुरातत्वनवदों क अनुसार इस पुल क ननमषाण की अवधध रामायण महाकाव्य में वणणषित पुल क ननमषाणकाल स नमलती है। नासा क उपग्रहों द्ारा खोज गए इस पुल को “आदम का पुल” कहा जाता है और इसकी लम्ाई लगभग 30 णकलोमीटर है। रावण को पता था णक वह राम क हाथों मारा जाएगा रामायण की पूरी कहानी पढ़न क बाद हमें पता चलता है णक रावण एक क्रू र और सबस नवकराल राक्स था, लजसस सभी लोग घणा करत थ। जब रावण क भाइयों न सीता क अपहरण की वजह स राम क हमल क बार में सुना तो अपन भाई को आत्समप्णण करन की सलाह दी थी। यह सुनकर रावण न आत्समप्णण करन स इनकार कर ददया और राम क हाथों मरकर मोक् पान की इच्ा प्रकट की। उसक कहा णक “अगर राम और लक्ष्मण दो सामान्य इंसान हैं, तो सीता मर पास ही रहगी क्ोंणक मैं आसानी स उन दोनों को परास् कर दंगा और यदद व दवता हैं तो मैं उन दोनों क हाथों मरकर मोक् प्राप्त क रूूँगा। आखखर क्ों राम न लक्ष्मण को मत्दंड ददया रामायण में वणणषित है णक श्ी राम न न चाहत हए भी जान स प्ार अपन छोट भाई लक्ष्मण को मत्दंड ददया था। आखखर क्ों भगवान राम न लक्ष्मण को मत्दंड ददया था? यह घटना उस वक़्त की है जब श्ी राम लंका नवजय क बाद अयोध्ा लौट आय थ और अयोध्ा क राजा बन गए थ। एक ददन यम दवता कोई महत्वपूण च चषा करन क ललए श्ी राम क पास आत हैं। चचषा प्रारम्भ करन स पूव्ण उन्ोंन भगवान राम स कहा की आप मुझ वचन दें णक जब तक मर और आपक बीच वातषालाप होगी हमार बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उस आप मत्दंड देंगें। इसक बाद राम, लक्ष्मण को यह कहत हए द्ारपाल ननयुक्त कर दत हैं
ही समय बीतन क बाद वहां पर ऋणष दवषासा का आगमन होता है। जब दवषासा न लक्ष्मण स अपन आगमन क बार में राम को जानकारी दन क ललय कहा तो लक्ष्मण न नवनम्रता क साथ मना कर ददया। इस पर दवषासा क्रोधधत हो गय तथा उन्ोन सम्ूण अयोध् ा को श्ाप दन की बात कही। लक्ष्मण न शीघ्र ही यह ननश्चय कर ललया णक उनको स्वयं का बललदान दना होगा ताणक वो नगरवालसयों को ऋणष क श्ाप स बचा सकें और उन्ोन भीतर जाकर ऋणष दवषासा क आगमन की सूचना दी। अब श्ी राम दनवधा में पड़ गए क्ोंणक उन् अपन वचन क अनुसार लक्ष्मण को मत्दंड दना था। इस दनवधा की स्स्नत में श्ी राम न अपन गुरू वलशष्ठ का स्मरण णकया और कोई रास्ा ददखान को कहा। गुरूदव न कहा णक अपनी णक सी णप्रय वस् का त्ाग, उसकी मत् क समान ही है। अतः तुम अपन वचन का पालन करन क ललए लक्ष्मण का त्ाग कर दो। ललेणक न जैस ही लक्ष्मण न यह सुना तो उन्ोंन राम स कहा की आप भूल कर भी मरा त्ाग नहीं करना, आप स दर रहन स तो यह अच्ा है की मैं आपक वचन का पालन करत हए मत् को गल लगा लूl ऐसा कहकर लक्ष्मण न जल समाधध ल ली।
णक जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो णक सी को भी अंदर न आन द , अन्यथा वह उस मत्दंड द देंग। लक्ष्मण भाई की आज्ा मानकर द्ारपाल बनकर खड़ हो जात हैं। लक्ष्मण को द्ारपाल बन कुछ
र्ष्म : 2, अंक : 3 15 रीच राज जामवंत भी भगवान प्रभु श्ीराम स करना चाहत थ द्द युद्ध ऐसा माना जाता है णक उस समय ररजवान जानवर स अधधक शक्क्त शाली और युद्ध कोई भी ना था परंतु जब जामवंत को यह बात पता चली णक राम स शक्क्त शाली इस सणटि में कोई भी नहीं है तो वह मन ही मन सोचन लगा णक अब अपनी पारंगत आ को सानबत करन क ललए उन् कोई अच्ा नमल गया है और वह मन ही मन कामना करन लगा णक प्रभु श्ीराम क साथ एक बार युद्ध कर सक। परंतु जब वह युद्ध णकच्ा स जब प्रभु श्ी राम क पास पहंचा भगवान राम न यह कहत हए युद्ध करन स मना कर ददया णक अभी उनक पास युद्ध करन का समय नहीं है क्ोंणक वह अपनी पत्ी सीता की तलाश कर रह हैं परंतु रीच राज जामवंत जब युद्ध क ललए बार-बर श्ी राम को ललकार न लगा भगवान राम वचन ददया णक वह अगल जन्म में उनकी इच्ा पूरी करेंग और णिर अगल जन्म में यानी श्ी कष् रुपी अवतार में उन्ोंन यह जामवंत की इच्ा पूरी भी की। ब्ह्मचारी होन क बावजूद हनुमान जी का एक बटा भी था हनुमान जी क पुत् का नाम मकरध्वज है। हनुमान जी का यह बटा एक शक्क्त शाली मछली स पैदा हआ था। यह तब हआ जब लंका को पूरी तरह जलान क बाद भगवान हनुमान अपनी पूछ को समुंदर में दबाव डूबा रह थ। कहा जाता है णक उसी समय मकरध्वज नाम की मछली न हनुमान जी का पसीना ननगल ललया था। लजसक बाद ही उनक पुत् मकरध्वज का जन्म हआ। दवराज इं द् क कारण कुंभकरण को 6 महीन सोन का वरदान प्राप्त हआ कैस कुंभकरण रावण का छोटा भाई था जो ददखन में बहत ही भयानक था रामायण में इस बात का लजक्र नमलता है णक कुंभकरण 6 महीन सोता था ललेणक न क्ा आप जानत हैं णक वह 6 महीन तक णक स कारण स सोता था। रामायण में वणणषित कथा क अनुसार एक बार कुंभकरण की तपस्ा स प्रसन्न होकर ब्ह्माजी उसक सामन प्रकट हए और उन्ोंन उस स वरदान मांगन को कहा। उधर दवराज इं द् इस बात स डरन लग णक कहीं कुंभकरण वरदान में इंद्ासन ना मांग ल। अतः उन्ोंन दवी सरस्वती स अनुरोध णकया की व कुंभकरण की जीवा पर बैठ जाए लजसस व इंद्ासन की वह ननद्ासन मांग लें। इसक बाद जैस ही कुंभकरण वरदान मांगन क ललए अपना मुंह खोला तो सरस्वती दवी उनकी जीवा पर जाकर बैठ गई और वह ब्ह्मा जी स इंद्ासन की जगह ननद्ासन मांग बैठा और इस प्रकार ब्ह्मा जी न कुंभकरण को ननद्ासन का वरदान द ददया। राम न सरयू नदी में डुबकी लगाकर पथ्ीलोक का पररत्ाग णक या था ऐसा माना जाता है णक जब सीता न पथ्ी क अन्दर समादहत होकर अपन शरीर का पररत्ाग कर ददया तो उसक बाद राम न सरयू नदी में जल समाधध लकर पथ्ीलोक का पररत्ाग णकया था। पंचमुखी हनुमान लंका युद्ध क दौरान रावण का भाई अदहरावण राम और लक्ष्मण का अपहरण कर उन् पाताल लोक ल गया था। णिर उस खोजत हए हनुमान जी भी पाताल लोक जा पहंच ललेणक न द्ार पर उनको अपन ही पुत् मकरध्वज स युद्ध करना पड़ा। जो उस समय पाताल लोक क द्ार पर पहरा द रह थ। अपन पुत् को हरान क बाद जब वह पाताल लोक पहंच तब उन् पता चला की अदहरावण की जान 5 दद शाओं में रखी हई दीपू में बसती है और उसका वध करन क ललए इन 5 ददनों को एक साथ बुझाना जरूरी है और उसी समय हनुमान जी न अपना पंचमुखी रूप धारण णकया। लजसमें स एक सर वराह का एक नलसंहा का एक गरु ड़ का एक हग का और एक हनुमान जी का खुद का था। इस पंचमुखी हनुमान स हनुमान जी न एक साथ पांचों दीपों को बुझा ददया और णिर वहां स भगवान राम और लक्ष्मण जी जान बचाई।
र्ष्म : 2, अंक : 3 16 ररणागि आि सखसागर सतकमषों के ह ज्ान -पंज, रघकल दीपक श्रीराम नमन। ररणागि आि सखसागर, करि ह आठों राम नमन।। घ्-घ् वासरी पालनकत्ताया, हनमि साधिक अंिरायामरी। अवगणहिाया जरीवनदािा, मरायादा परुषोत्तम सवामरी।। हे ज्ानवान हे रग्िमान, रघकल-भषण सखधिाम नमन। उर है ववराल िम दीनबंधि, जगिारक मानस बललहारी। हो रोक तनरिा जग रक्षक सरीिापति राघव रभकारी।। अरखलेशवर अलभनंदन करिे, हे भवर -हदवर हरर नाम नमन। िारी ऋवष गौिम की नारी वैभवदाररी महहमा नरारी। अलभमानरी रावण संहारा, ह रौरवान प्रभ धिनधिारी।। त्रेिा रग म ह अविारे, जपिा मन है अववराम नमन। मानविा का पोषण करिे, हरि ह जन -जन की परीरा। िम धिमया परारण रग गौरव, अिललि बलराली रघवरीरा।। मतनजन संिन के हहिकारी, उर बसिरी छवव अलभराम नमन। मरीना भट् लसदधिाथया जबलपर, मधर प्रदे र
र्ष्म : 2, अंक : 3 17 हरप्ररीि कौर कानपर, उत्तर प्रदे र आकलिा मन की हो अब रांि कलवषि धिरा को दो अब ववश्ाम अविार धिर क्फर आओ मेरे राम हर लो परीड़ा हआ वर्थि संसार। रतनाकर म मगशकल मोिरी को पाना अलसमरीि अंबज के िारे ्गन पाना आसान नहीं है मेरे राम िमह पाना जन जन के कष् लम्ाने िमह आना। प्रजा की सदा सनरी िमने पकार सरीिा को अग्न परीक्षा पररतराग अहहलरा का भरी ककरा िमने उदवार अपने भ्िों का भरी बेड़ा करों पार। त्राहह त्राहह मचरी चह हदरा रोर है मनज हआ बेबस और कम़िोर है पालनहार बसे प्रभ िम रोम रोम मेरे खैवेरा ले चलो सही छोर। आओ मेरे राम अंलरिा दबे लंदन अरोधरा सथल क्फर से मनभावन हआ, श्री राम के जरकारे से रोम रोम पावन हआ, रामराज के अदभि लरलानरास से वराकल, भलम का कण-कण अब सावन हआ। रंखनाद से आंगन-आंगन धिमया का प्रमाण हआ, ऐतिहालसक रोजना का जो भवर तनमायाण हआ, खन के रंगो से सनरी लारों का समापन होकर, अनेक वववाहदि मिभेदों का कलराण हआ। संिो की लमबरी साधिना का सपना साकार हआ, भग्ि की भ् भ्िों का सववोपरर उपहार हआ, राजनैतिक मददों की जलिरी लप् बझ कर, भाईचारे का जनिा म प्रगाढ़
प्रभ राम
प्रिरीि होिा तनि रोज भ्िों
अरोधरा सथल
सरोकार हआ।
दरन का खतम अब इं िजार हआ, चरणों म ररीष झका अंिमयान से आभार हआ, अलौककक सथापना से अरोधरा नगरी म,
का तरोहार हआ।
र्ष्म : 2, अंक : 3 18 रामारण ववरेष दास अरूण रमाया, मालाड, मंबई सौय्ण रामायण इसमें 62000 श्ोक हैं। यह हनुमान एवं सूय्णका संवाद है। इस कख समय वैवस्वत मन्वन्तर का बीसवाँ त्ता है। इस म हनुमान जन्म, शुकचररत् , शुक क रजक होन का कारण और उसक द्ारा जानकी ननस्ारण दण्ड नवशष बताया है। लोटत समय इन्द्रावलपुर का उतरना, महारानी अंजनी और हनुमान जी का संवाद, अंजनी का हनुमान जी क प्रनत मात धधक्ार, पश्चात प्रसन्नता एवं सीता नमलन और उनपर भी बौछार, प्रसन्नता, महाराज का सम्मिलन, उन पर भी छींट, पुन लक्मण नमलन, उनकी यथाथ्ण सराहना, ऋक्राज - जामवन्त बल पराक्रम वण्णन, उनका आ नतथ्यसत्ार, प्रयाग आगम नादद नवशष वण्णन है। चान्द्र रामायण इसम 75000 श्ोक है। यह हनुमान चन्द्रमा संवाद है। इसका समय श्वलेत मन्वन्तर का 32वाँ त्ता है। इसमें नारदतप, इन्द्र काम प्रलेरणा, नारद मोह, भरत चचत्कूट यात्ा , कवट संवाद का नवशष वण्णन है। कवट का पूव्ण जन्म संस्कार, भारद्ाज समागम, नवशष ददखाया गया है। इसमें जनक नन्दनी शोध म नववर प्रवश और एक स्ती का सनममलन, सम्ानत तररत् का नवशष वण्णन है। चन्द्रमा ऋ णष का आगमन कारण, सम्ाती पर दया, वानर सना नमलन प्रकरण, पक् अंकुरण, जटायु पर नवलाप, गध्र की दरदलशषिरता व दर दृणटि नवचचत्रुप स वणणषित है।
नवजयकी अहनमनत ,शीलननधधका चररत् उनका स्वयंवर, कन्यासोन्दय्ण, नारद नवभ्रम, सोन्दय्ण याचना, महाराज क न दन का हतु, रुद्गण का पररहास, छलका हतु, नारद क्रोध वण्णन, शाप व ण्णन, शाप ग्रहण कारण, अनुग्रह-उद्धार, नवशष वण्णन पूव्णक सोपान बद्ध ललखा गया है। शूप्णणखा आगमन, काम वलशत्वछलन नवधध , नालसका कण नवपात खरदषण युद्ध नवशष ददखाया गया है। रावण मारीचसंवाद, कपट कुरंग व्यवहार, हम कुरंग म जानकी महारानी का आलोम, महाराज का उसम प्रवधत् का कारण, लक्ष्मण का आह्ान करना, लक्ष्मण और महारानी का मम्ण वचन, धनुष रखा करण, उसकी
र्ष्म : 2, अंक : 3 19 सौपद्ध रामायण इसम 62000 श्ोक हैं। इसको अणत् ऋणष न रैवत मन्वन्तर क सोलवें त्ता म बनाया। यह भी सप्त सोपान बद्ध है। इनमें जनक वाणटका ननरूपण माली राम संवाद अद्त नीनत प्रीनत भक्क्त रस सानी वाणी नवलास ललखा है। नगर द श्णन व्यापाररयो क प्रलेम कथन, मैथलल नाररयो क नह कथन बालक प्रलेम स्ह नवभावना नववाह तरंग हास नवलास नवशष रूप स वणणषित है। जनक नप्न्दनी नवदा वण्णन नववाह कोशल,
कथन,
तररत् , नारद नमलन, सुग्रीव मैत्ी , संकारण प्रयोजन सबीज द शषाया गया है। सीता का अक्ग् अथषात पर पुरुष क सहाँ सुपुद्णगी, अक्ग् का भगवत नवश्ास, अक्ग् को क्ो सौपा? यह बहत स्पटि रूप म द शषाया गया है। रामायण महामाला इसम 56000 श्ोक हैं। इसका समय तामस मन्वन्तर दशम त्ता है। इसम लशव पाव्णती संवाद है। यह भी सप्त सोंपान बद्ध है। शंकर जी का नीलक्गरर पर मराल वष स ननवास, मराल होन का कारण, काकस कथा श्वण, गरुड उपदश, गरुड व्यामोह, भक्त क ग्ान होन पर भी मोह बद्ध होन का कारण और शंकर स मुलाकात होन पर भी उनक न समझान का हतु और तत्व, भुशण्ण्ड क प्रनत भैजना, वहाँ मोह ननवनत का कारण आदद नवशष रुप स द शषाया गया है। इसमें नवभीषण शरणा गनत , सुग्रीव शरणा गनत , कौशल्ा नवश् रुप द श्णन, सती नवश् रूप द श्णन का नवशष प्रकार और हतु और महाराज क रामलेश्र आलम्का नवशष कारण और प्रयोजन द शषाया गया है। सौहाद््ण रामायण इसमें 40000 श्ोक हैं। इसको शरभंग ऋणष न वैवस्व मन्वन्तर क नवम त्ता में बनाया। इस में दण्डकारण्य की उत्नत , दणडकारण्य शाप, वहाँ महाराज क जान का हतु, नारद व्यामोह णक कारण,काम
जा
थ। यहाँ धनुष नवद्धा का महत्व पूण रुप स ददखाया गया है। रावण का ब्ाह्मण रूपान्तर, धभक्ा माँगन का कारण महारानी का उसक छल में आजान का हतु, रखा क बाहर ननकलन का हतु, रावण द्ारा हरण और नवलाप, जटायु युद्ध ननरूपण, उसका आहत होना उसकी गनत और मोक् , महाराज का आश्ासन णिर महाराज का वैकल् , पशु पक्ी जंगम स्ावर का संभाषण, नवरह स अथवा आनन्द स एक ऐस स्वरुप में मनुष्य स्स्र हो सकता है णक लजसम इन सब स भी सम्भाषण कर सकता है और सुन सकता है। वही अवस्ा इसम नवशषरुप म वणणषित है। महाराज और
नाररयों क स्ह
हास नवलास एवं बन यात्ा काल में ग्राम वधूटी नह कथन, ग्राम वधूटी नवलास वण्णन तथा हरण काल में जनक नप्न्दनी नवलाप, रघुनन्दन नवलाप नवशष रूप म एक् , शबरी
शक्क्त वण्णन णक लजसक भीतर त्लोक्त्र क वीर नही
सकत
कारण, चचत्कूट महत्व, कामद लशखर वण्णन, कामद महत्व, च चत्कूट रास स्ान, वालमीणक सम्मिलन, ननवास स्ान, प्रश्नोतर समीक्ा , दवाश्म, अणत् नमलन, अनुसूया नारी धम्ण लशक्ा नवशष रूप स ददखलाया गया है। अयोध्ा रासस्ान, चन्द्रोदय उि्ण चनखव वण्णन, प्रमोद बन नवहार, श्ावण उत्ाह, वसन्तोत्व, िाल्न उत्व (नमधथलोत्व और अयोध्ा उत्व) चचत्ादद , (सखीन)
घ्-घ् कवप की सेनाओं से ववचरि ह श्रीराम। सतसंगरी कथावाचको के उर से उचरि ह श्रीराम। हनमान गढ़ी के श्री हनमि म रमि ह श्रीराम। दररथ महल के दर-दीवारों म रचि ह श्रीराम। करबदधि संसकारों संग गगजि धवतन ह श्रीराम। मरायादाओं से बंधि नर-नारी के सवामरी ह श्रीराम। िषणा िज जो बने अनरागरी उसके ह श्रीराम। राम रिन की गजसे धिन ला्ग उसके ह श्रीराम।
र्ष्म : 2, अंक : 3 20 लक्मण जी को बानरी भाषा समझना और बोलना पडा है। एवं इसी प्रकार राक्सो की भाषा पैश्य भाषा आददकी नवशष श्खला बनाई गयीं है। रामायण मणणरत् इसम 36000 श्ोक हैं। इसका समय ताम समन्वन्तर का 14वाँ त्ता है। यह वलसष्ठ अरुन्धती का संवाद है। सप्त सोपान बद्ध रामायण मात् हआ करत हैं। इसकी सहतु व्याख्ा , पंचवटी की उत्नत , पंचवटी की संग्ा , गोदावरी तट ननवास कारण, गोदावरी की उत्नत , चचत्कूट ननवास
सखखयो क साथ रंग स्पधषा , सखाओं को, व्यमोह, महाराज का ननवारण पंचमी, शीतला अटिमी, इत्ादद नवशष रुप स वणणषित है। सीता राम नमलन लंका म नवशष रुप स वणणषित है। वदस्ुनत , शम्भुस्ुनत , इन्द्रस्ुनत , ब्ह्मास्ुनत एवं गंगास्ुनत आदद अनक स्ोत् इस रामायण क अन्तग्णत है। अम्न्तम राज्य लसंहासना सीन महाराज का सत्ग, उस म गुरु गीता, दव गीता, भक्क्त गीता, ग्ान गीता, कम्ण गीता, लशव गीता, वद गीता (सात गीता) इस रामायण म ननबद्ध है। अलका लमश्ा कंकड़बाग, प्ना, त्बहार अरोधरा के कण-कण म बसि ह श्रीराम। नगरवालसरों के िन-मन म हसि ह श्रीराम। सरर नदी की जल धिारा संग बहि ह श्रीराम। घा् लगे नावों के पा्ों संग सजि ह श्रीराम।
बसि ह श्रीराम
र्ष्म : 2, अंक : 3 21 राम कथा ्चत्तरंजन पगशचम बधियामान, बंगाल यह कहानी है राम की लजनक दहंद धम्ण में पूजा की जाती है, अयोध्ा क राजा दशरथ की तीन राननयां थी, पर पुत् एक भी नहीं राजा बड़ले दखी रहत थ , पुत् प्राप्प्त हतु राजा न यज् णकया और उन् चार पुत् रत् प्राप्त हए| राम लक्ष्मण भरत शत्घ्न, चारों पुत् बन में रहकर गुरुकुल में लशक्ा प्राप्त णकए| वन में उन्ोंन युद्ध कला आदद का प्रलशक्ण प्राप्त णकया| तत्श्चात राम न बड़ले होन क बाद, परशुराम का लशव धनुष तोड़ कर सीता स नववाह णकया| जब अयोध्ा में राम क राज्याधभषक की बात आई तो ककई की दासी मंथरा न ककैयी णक मनत भ्रनमत की और भरत को राम क स्ान पर आजा बनान क ललए कहा| कैकई न दशरथ स भरत को राजा बनान और 14 वषषों क ललए राम को बनवास भजन की मांग की| अब दशरथ बहत नवचललत हए मनोबल स टूट पड़ले , सुध बुध खो बैठ और वह बीमार पड़ गए| इस कहानी को ललखन का मरा अधभप्राय बस इतना है णक लोग कहत हैं, राम न सीता की अक्ग् परीक्ा ली यह अच्ी बात नहीं स्ती पर अत्ाचार णकया पर मैं स्स्नत को स्पटि करना चाहती हं| राम न सीता को वनवास क समय अक्ग् दवता को समणपषित णकया था क्ोंणक वन में जाना था, और वहां नाना प्रकार क कटि और राक्सों क अत्ाचार का सामना होता, अब आप कहेंग णक अक्ग् को समणपषित करत समय सीता मैया को नुकसान क्ों नहीं पहंचा, तो यहां मैं स्पटि करना चाहंगी णक राम नवष् क अवतार थ और सीता मैया लक्ष्मी की अवतार थी और दवताओं में अक्ग् को सहन करन की शक्क्त होती है,
सीता मैया को अक्ग् स नुकसान नहीं पहंचा| बाद में जब सीता मां रावण क कैद स आजाद होकर आई तो सीता मैया को अक्ग् दवता स वापस उस शाया रूपी शरीर में प्रवश करान हतु राम न लीला रची| सीता मैया की अक्ग् परीक्ा क समय, अक्ग् स सीता ननकलकर अपन शरीर में प्रवश की| एक और प्रश्न मर नवचार स लोगों क मन को कटोचती है णक, रावण क वध क पश्चात राम जब वापस अयोध्ा आए और वहां क राजा बन तत्श्चात राम न सीता को वनवास क्ों ददया| यहां सीता मैया को बनवास दन का कारण है णक राम चाहत थ णक उनक पुत् वन में लशक्ा प्राप्त करें ऋणष क संस्कार प्राप्त करें अतएव सीता पर पूण नवश्ास होत हए भी उन्ोंन सीता को गभ्णवती होन क बावजूद बनवास णकया| राम की लीला सहज नहीं संघष्णपूण है|
अतएव
र्ष्म : 2, अंक : 3 22 कंवर आनंद श्रीवासिव सलिानपर नहीं संभव है इस कलरग म, कोई राम बन जाए। न गंगापत्र सा बे्ा न ही घनशराम बन जाए। न दवायासा सा क्ोधिरी है, न कोई कणया सा दानरी। कहां िप तराग म कोई, भागरीरथ का है सानरी। वपिा की आज्ा को मानकर, ऐसा कहां कोई। जो का् ररीर मािा का, और पररराम बन जाए। नहीं संभव है इस कलरग म कोई राम बन जाए। न लक्मण सा कोई भ्ािा, जो तनद्रा चैन को तरागे। न भरि सा कोई भाई जो लसंहासन को भरी तरागे। नहीं जनमे गा इस कलरग म, कोई लाल अब ऐसा, नहीं संभव है इस कलरग म वपिा की आज्ा को मानकर, वन को चला जाए। नहीं संभव है इस कलरग म कोई राम बन जाए। सरज जरी का तनमयाल जल अरोधरा की धिरा पावन। जहां प्रभ राम जनमे थे चंहकिा आज भरी आंगन। नहीं है इस धिरा पर आज अब ऐसरी जगह कोई, जो सबके हदल म बस करके, पावन धिाम हो जाए। नहीं संभव है इस कलरग म कोई राम बन जाए। न गंगा पत्र सा बे्ा न ही घनशराम बन जाए।
र्ष्म : 2, अंक : 3 23 म दररथ की पत्र वधि कल की मरायादा गौरव ह म ही जननरी म ही मािा पर सबसे पहले एक औरि ह। मैने देखा था राजमहल म खलररों का अमबार कभरी क्फर देखा मैन ्् रररोिों का होि हए अपमान वहीं। दख से बेिल थरी, छलनरी थरी पर अपना फ़़िया तनभाना था बन अधियागनगनरी मेरे श्री राम की मझको िो वन मे जाना था जो ललर थे मैने साि वचन हर वचन मझे तनभाना था चाहे दगयाम हो राह सभरी उस राह पे चलि जाना था रावण ने छल से हरण ककरा म रोई थरी कर ववरोग-ववलाप सनना् ने कचला था मझे पर हृदर म मेरे था राम लमलाप अपनरी रक्षा करने की खातिर घास उठाई अपने हाँथ रहद लांगिा रावण उसको क्फर होिा ववधवंस अपार जब म अपनरी रक्षा के ललर कर सकिरी ह तिनका िलवार ्रा अब भरी मझे देना होगा अपनरी रधििा का प्रमाण? ्रकक म एक औरि ह? ्रा दोर मेरा ही होिा है? ्रा सच को देख सामने भरी रह सारा जग र सोिा है? मने र अपमान सहा अ्नरी परीक्षा तनककिा रमाया वडोदरा, गजराि ्रा इसका नरार कर पाओगे? ना कोई सरीिा दे अ्नरी परीक्षा ्रा रह सतनररीि कर पाओगे? नही रहा अब मझे भरोसा इस धिरिरी के वरीरों पर म अपनरी गाथा से करूं गरी इस धिरिरी पर नरार अमर जब जब िमसे कोई मांगेगा िमहारी रधििा का प्रमाण पत्र रह समरण रहे र कलरग है ना राम का है र राजिंत्र ना राम सा कोई ज्ानरी है ना उन जैसा परुषोत्तम है जो मांग रहे ह आज प्रमाण ्रा उनमे कोई उत्तम है? जब राम की राज सभा म भरी परखा गरा था गरा था जानकी को ्रों मौन रहे सारे ररशिे ककसका साथ लमला था वैदेही को जब इसका उत्तर लमल जार िब अपना मि िम रख देना खोल सभरी ररशिों की बेड़री क्फर अ्नरी परीक्षा िम लेना।
र्ष्म : 2, अंक : 3 24 राम भ्ि बरीना र्ला अवसथरी कानपर, उत्तर प्रदे र सबह भ्मण के ललर जाि समर लससककरों के साथ अट्हास का सवर सनकर मेरे कदम रुक गरे। आशचरया का िो प्रशन ही नहीं उठा। पावन गंगाजल से लस्चि, रहीदों के र्ि से रं गजि, मनरीवषरों के ज्ान से मंडडि इस महान, गौरवराली एवं सनदर दे र का कलेवर िो दंगों की ववभरीवषका के कारण ववदवेष, घणा एवं सामप्रदातरकिा की प्रलंरकारी लप्ों को पहले ही समवपयाि कर हदरा गरा है। अि: करुणा और क्रिा, वेदना और नरंसिा, लससककरों और अट्हास के अतिरर्ि रेष ही ्रा रहा।
र्ष्म : 2, अंक : 3 25 सुख, शाम्न्त , त्ाग, प्रलेम एवं खुशी नवलुप्त होती जा रही है। सुंदरतम कहलाई जान वाली अट्ाललका की कुरूप, वीभत् , अधजली, जार जार रोती दीवारों क समीप जान पर मैंन पाया णक यह कोई खूबसूरत भवन नहीं है यह तो दव मंददर है। यहॉ तो लोग ईश्र का ननवास बतात हैं। कोणट कोणट जनों की आस्ा क प्रतीक की ऐसी दद्णशा? दखकर नलेत् छलक उठ। अंदर झॉक कर दखा तो स्म्म्भत रह जाना पड़ा। राम सीता की युगल मूनतषि क समक् उपक्ा एवं नतरस्कार स अट्हास करता रावण खड़ा था- “ मैंन तो कवल एक सीता का हरण णकया था राम परन्तु जानकी स्वयं साक्ी है णक कभी स्वप्न में भी मर हृदय में जानकी क अपमान या उसक नाररत्व क खंडन का कु नवचार तक नहीं आया था। नवलासी रावण क महल में जानकी का हृदय क्षुब्ध न हो, उसकी मयषादा एवं पावनता पीदड़त न हो इसललय उस मैंन अशोक वन में रखा। चौदह वषषों क ललय वनवासी राम की अधधांक्गनी यदद अवधध पूण होन स पहल महल में रहगी तो राम का णपता को ददया वचन भंग हो जायगा क्ोंणक सीता ही राम है और राम ही सीता है। मैंन तो अनुजा क अपमान क प्रनतकार हतु, राखी की मयषादा हतु हरण णकया था सीता का। युद्ध क्लेत् क अनतररक्त एक भी वानर या भालू का रक्त लंका की भूनम पर नहीं क्गरा था। परन्तु तुमन मुझ दं णडत णकया थापराकाष्ठा की सीमा तक। समूल नाश णकया था तुमन मरा और मैंन भी हृदय स अपन को तुमस अधधक सीता का अपराधी अनुभव करक तुम्ारा दंड स्वीकार णकया था। वास्व में प्रनतकार क ललय नारी को साधन मानना मरी भूल थी, नारी को वस् मानना मरा अपराध था। मुझ प्रनतकार हतु तुम् युद्ध क ललय आमंणत्त करना चादहय था, यही मरा अपराध था परन्तु आज न जान णकतनी सीताओं का न कवल हरण हो रहा है बस्कि उनकी अम्स्मता को खण्ड खण्ड करन वाल तुम्ार भक्तों को स्वयं ही उनकी क्गनती याद नहीं है। तुम्ार नाम पर न जान णकतन जीवन सॉसों स वंचचत कर ददय गय हैं। बोलो न क्ा तुम् अपनी ही संतानों का क्रं दन सुनाई नहीं दता? रावण की दहाड़ गूंज रही थी। “क्ा दंड ददया है उन् तुमन यह सब करन क कारण? उनस क्ों नहीं पूंछत णक व यह सब क्ों कर रह हैं? या तुमन ही उन् सब कुछ करन की स्वतंत्ता दी है क्ोंणक तुम् आवास चादहय ,तुम् अपनी जन्मभूनम पर मंददर चादहय और तुम्ार य भक्त तुम्ार ललय ही तो यह सब कर रह हैं। य तुम्ार भक्त हैं, परम न्यायी राम क भक्त। “ एक बार णिर रावण का व्यंग् भरा अट्हास गूंज उठा। क्रोध स उसक नलेत् आरक्त हो रह थ , घणा स उसका मुख नववण था। सीता क नत्ों स आसुओं की धारा बह रही थी। लससणकयों क बीच राम क दोनों हाथ अपन शत् क समक् जुड़ गय। उनका पीदड़त स्वर गूंज उठा। “ मुझ पर इतना बड़ा कलंक मत लगाओ दशानन। मैं क्ा मंददर में रहता ह ? क्ा मैं सचमुच ताल में बंद णकया जा सकता ह ? मरा तो कण कण में आवास है, जन जन क हृदयों में ननवास करन वाला मैं क्ा अपन ही पुत्ों क शवों पर खड़ी इन रक्तरं लजत दीवारों की कामना क रूं गा? मैं तो स्वयं लम्ज्त ह तुम्ार समक्। “ राम का लम्ज्त स्वर वदना स कॉप रहा था - “ मरा बस चलता तो मैं इन स्वाधथषियों, लोधभयों एवं हत्ारों का अम्स्त्व ही नमटा डालता जो मर नाम की ओट में अपनी वासना और स्वाथ्ण की दावानलीय तष्ा शान्त कर रह हैं। य मर भक्त नहीं है, इन् तो शत् कहना भी शत् का अपमान करना है। मरी तो पशु
र्ष्म : 2, अंक : 3 26 सना भी इतनी मयषाददत एवं संयनमत थी णक तुम्ारी पुत्वधू सुलोचना ननभ्णय होकर मर लशनवर तक चली आई थी। शत् होत हय भी मुझ पर तुम् इतना नवश्ास था णक रामलेश्रम की स्ापना क समय मर पुरोदहत बनकर तुम स्वयं आय थ। लंका नवलजत करक भी मैंन नवभीषण को ही राजा बनाया था।”, “बोलो रावण कहॉ दोषी ह मैं? क्ा क रूं इन पाखण्ण्डयों न मुझ इतना कलणकत कर ददया है णक मैं अपन शत् को भी मुह ददखान योग् नहीं रहा। मरी युगों युगों की कीनतषि को मललन कर ददया है इन्ोंन। कभी मर नाम मात् स पापों एवं कटिों का नाश होता था परन्तु इनक कारण अब मरा नाम इतना कलंक और पाप की दग्णम्न्धत दलदल में समा चुका है णक णक सी का उद्धार करना तो दर स्वयं अपना उत्थान नहीं कर पा रहा है। वह ददन दर नहीं जब मर ऐस ही भक्तों क कारण मरा नाम सदैव क ललय धरती स नमट जायगा। यह सब दखकर हृदय इतना क्षुब्ध होता है णक अपन इस कलंणकत नाम का अम्स्त्व ही इस धरती स नमटा द।” “ नहीं राघव, तुम्ारा नाम इस धरती स कभी नहीं नमटगा। युगों युगों तक अक्षुष् तुम्ारी कीनतषि कभी धूनमल नहीं होगी। मैं ऐसा नहीं होन दंगा क्ोंणक राम क साथ रावण का नाम जुड़ा है। लोग राम क साथ रावण का भी स्मरण करत हैं। जब राम का नाम न होगा तो रावण को कौन स्मरण करगा? रावण क स्वर में आज भी उसी नवश् नवजता का संकल्प था। “ इस धरती स नमटना तो इन मानवता क शत्ओं को है। एक बार तुमन प्रनतज्ा की थी पाणपयों क नाश क ललय अवतार लन की परन्तु अब तुम् अवतार लन की आवश्यकता नहीं है। मुझ राम द्ोही, राघव शत् , सीताचोर, दटि रावण को एक बार आज्ा दो, मैं तुम्ार नाम को कलंणकत करन वाल इन दटिों और स्वाधथषियों स प्रनतशोध लकर रहगा। मुझ घणा की दृणटि स दखा गया, दटि , पापी, रामशत् कहा गया मैन कभी कुछ नहीं कहा। युगों युगों तक अपकीनतषि को अंगीकार णकया है मैंन ललेणक न लशकायत का एक शब् भी नहीं कहा। क्ोंणक मैंन तो सचमुच राम स द्ोह णकया था, युद्ध णकया था। “ रावण का स्वर पीड़ा स भर उठा- “ सीता और राम का नवछोह करवाया था मैंन। यही नहीं गभ्णवती सीता क त्ाग और ननष्ाशन का भी यह रावण ही कारण था। अपनी करनी को नमटा नहीं सकता मैं। अपन हर कत् क ललय जब मै स्वयं उत्रदाई ह तो णिर लशकायत कैसी?” रावण का स्वर गज्ण उठा “ तुम्ारी सौगन्ध खाकर कहता ह णक मुझ सार आरोप स्वीकार हैं ललेणक न इनका “राम भक्त” कहलाया जाना मुझ स्वीकार नहीं। इनक मुखों स “ जय श्ी राम “ का घोष मर हृदय को जला कर रख दता है। तुम भल ही इन् क्मा कर दो पर मर हृदय में तुम् अपमाननत करन वाल , तुम्ारी पावनता को अपावन करन वालों क प्रनत धधकती प्रनतशोध की ज्ाला इन् क्मा नहीं कर सकती। तुम मुझ शत् मानत रहो, संसार मुझ कुछ भी कहता रह परन्तु तुम एक बार मुझ आज्ा द दो.. मैं इन पाणपयों का समूल नाश करक तुम्ार नाम की उज्ज्वलता को णिर वैस का वैसा कर दंगा। मरा धैय्ण अब समाप्त हो गया है। मैं राम भक्त न सही। “ राम न सीन स लगा ललया रावण को। सीता न स्ह,ममता और वात्ल् का अभय हस् रख ददया उसक लसर पर - “ तुम ही वास्व में राम भक्त कहलान क अधधकारी हो दशानन, तुम ही। “
र्ष्म : 2, अंक : 3 27 जरश्रीकांि जर लसंगरौली, मधर प्रदे र राम नाम की कथा तनराली। सनि ही जगमग हदवाली।। अजर अमर इतिहास हमारा। सवरणयाम गान जगि म सारा।। नरन पदमजा बाह ववराला। जनक सिा डाली वर माला।। चाप बाण धिर रावण मारा। रत्र
रहे प्रासाद िमहारा। राम नाम तनज हृदर हमारा।। रामारण वणयान अति पावन। सरीिा राम चररि मन भावन।। िलसरी ववर्चि कथा सनाई। जन मानस मन रु्चर सहाई।। चौपाई छंद कथा तनराली राम की रावण की लंका म सरीिा। राम त्बना पल रग सम बरीिा।। जपिरी रहिरी हदन भर माला। कब आओगे दीन दराला।। इं िजार करि है नैना। दरन करने प्रभ हदन रैना।। आकर मेरी लाज बचाना। मेरे रघवर जलदी आना।। आंँख अब पथरा सरी जािरी। बैरन परवइरा िड़पािरी।। डर म जरीवन बरीिा जािा। कोई िो संदे रा आिा।। िन अचेि मन बेसधि रामा। तनर हदन वराकल िम त्बन भामा।। साँझ सवेरे क्ि ऐसे। त्बन बािरी के दीपक जैसे।। आस रख िेरे आने की। जान बचरी बस अब जाने की।। ववनिरी है अब नाथ हमारे। प्राणसखा मेरे प्रभ परारे।। राम नाम म होकर िनमर। बैठी सरीिा खोकर भव भर।। इं िजार होगा कब परा। लमल जाएगा साथ अधिरा।। चौपाई इं िजार सरीिा का
सैनर पर ककए प्रहारा।। मंद हासर गसमि जन मन जरीिे। गारन महहमा रग रग बरीिे।। सदा
र्ष्म : 2, अंक : 3 28 तन्धि माथर ममबई, महाराषट्र कौरलरा दररथ नंदन बन मनज ललरो अविार ववषण सवरूप राम आए िारन रह संसार नवमरी पर जनम भरो अवधि म हषया अपार नगरवासरी धिनर भए लख ननह चार कमार।। वलरषठ मतन के गरुकल म बढ़न लगे कमार ज्ानाजयान , रसत्र ववदरा पारो राजरो्चि संसकार ववशवालमत्र संग बन बन भ्क ककरो दैतर संहार ऋवष के आदे र सों पहंचे राजा जनक के दवार।। सवरंवर को भरो भवर आरोजन, जामे नप आए वरीर जनक दलारी लसरा दरस हे ि, भए सबहह अधिरीर लरवजरी को धिनष न कोऊ उठाए, जनक मन भरीर प्रतरंचा दए चढ़ाए, धिनष ्ंकारे, ववजररी भए रघवरीर।। वपि आज्ा सों गए बनवास लसर, लखन, रघराई रावण ककरो लसरा हरण, ववपदा तनक् बलाई बन बन क्फरि राघव लई वानर सेना ज्ाई हनमान सों भ्ि पारो, जा ने लंक जराई।। रावण संहारे, अवधि पधिारे लसर अरु दोऊ भाई प्रजा भई मगन, मंगल गावि, दीपावली मनाई प्रजा हहि म लसर बन भेजरो, हहर परीर समाई मरायादा परुषोत्तम कहाए, जन की देखरी भलाई।। जन जन के कष् हरे, ककरो मानव उदधिार जाि पांि को भेद लम्ारो, प्रजा भई सखरी अपार रामराजर ही सब जन मानरो सखरी जगि आधिार प्रभ राम की सदा ही करौं म जर जरकार।। राघव
र्ष्म : 2, अंक : 3 29 हेमलिा भारदवाजा इंदौर, मधरप्रदे र त्बछड़ाव होिा जब संसार म प्रेम का पड़ाव प्रेम म पढ़कर िब होिा है लगाव कभरी लमलन के बाद होिा त्बछड़ाव रे मन द:ख होिा बहि है जब होिा त्बछड़ाव । राम जरी को वनवास लमला जब आहि हए दररथ जरी जब हआ राम से त्बछड़ाव। मां कौरलरा के हदल के ्कड़े जा रहे थे वन म हदल पर पतथर रखकर मां ने झेला दख अपार हआ राम जरी से मां का त्बछड़ाव। उलमयाला भरी हई ववरह से वराकल हआ लक्मण जरी से त्बछड़ाव। राजा जनक का जानकी से जब हआ त्बछड़ाव मािाएं भरी रोक न पाई अपने दख का भाव । धिमया प्रेमरी दे र हमारा , गजसकी रक्षा के ललए धिमया परारण महापरुष सह ले ि त्बछड़ाव ।
र्ष्म : 2, अंक : 3 30 करुणकानन की सरीिा मेरी दृगष् म सररीला जोररी, ववदरोत्तमा मजफ्फरनगर, उत्तर प्रदे र है। म ककसरी अदृशर रग्ि ने ववलरष् रूप म गसथति से समपणया मानव जाति को उबार एक नवर उदाहरण उपगसथि ककरा। क्फर चाहे वह कोई जानवर, अधिया जानवर रा मानव रूप ही ्रों न हो। भारि का रह धिालमयाक इतिहास “सवयाहहिार, सवयालाभप्रदार रा आतमवतसवयाभिेष “ जैसरी उग्िरों को प्रमारणि करिा है। कचछप, वराह, मतसर, जैसे जानवर भरी कहठन पररगसथतिरों म संक्मोचन लसदधि हए है और मानव रूप म राम व कषण अविारी लसदधि हए है।
र्ष्म : 2, अंक : 3 31 ललेणक न अवतार होत हए भी णक सी की प्रवधत् में कोई अंतर नही आया। यदद कहीं अंतर ददखाई पड़ा तो मानव अवतार की वधत् में ही अंतर ददखाई पड़ा। राम और कष् दोनो ही पुरुष थ लजनमें पौरुष हमशा दमकता रहा। ललेणक न जहाँ कष् नारी रूप राधा क प्रलेम में अनुरक्त ददख वहीं अन्य नाररयों क दहताथ्ण भी नजर आए, द्ौपदी जैसी नारी की दद्णशा स नवह्ल भी नजर आए वहीं राम अपन पौरुष व मयषादा में पुरुषोत्म बन रहन क प्रनत सचत व स्ती जानत क प्रनत उग्र, क्रू र व उदासीन नजर आए। शायद इसीललए वह न तो सुपण्णखा क प्रनत न्याय कर पाए और न ही स्वयं अपनी पत्ी क प्रनत , कुब्ा क जैसी षड्ंत् कारी को भी दण्ड द पाए और न ही भरत की पत्ी मांडवी की वदना जान पाए। सीता क प्रनत तो उनका नजररया सव्णदा क्रू र,कठोर और अन्याय पूण ही रहा। सीता राम की शक्क्त थी ललेणक न वह शक्क्त भी उनकी दास थी। उचचत अनुचचत जो भी कहा सीता आख बंद करक उस करती चली गयी। उसन एक महाराजा की बटी,एक महाराजा की बह और एक अवतारी पुरुष की पत्ी होत हए भी अपन ददद्णन में स्वयं को हमशा अकला ही खड़ा पाया। सीता क ददद्णनों में न णक सी अवतार का चमत्ार काम आया और न ही णक सी राजघरान की आन या परम्रा। अन्य कत्णव्यों क ललए वैयक्क्तक कत्णव्यों को अनदखा नही णकया जा सकता। राजा को भी प्रजा में अपनी वैयक्क्तकता बनाय रखनी पड़ती है। उस प्रजा की भेंट नही चढ़ाया जाता। यदद कोई राम जैसा राजा या पनत ऐसा करता है तो सीता जैसी नारी का दखी होना स्वाभानवक है। उग्र हो कर अपन मन की वदना को सरआम करना उचचत है। उसका अपनी वदना को स्वर दना उपयुक्त है। यदद कोई पनत णक सी अन्य क शब्ों पर अपनी पत्ी स भी अधधक नवश्ास करक उस जंगल म छोड़ द तो उस पनत को क्ा संज्ा दी जानी चादहए ? यदद कोई पनत पत्ी की अपनी मनमानी परीक्ा या परखन क बाद भी शंणकत रह तो उस क्ा नाम ददया जाना चादहए ? उसक बाद भी यदद पत्ी स स्वानमभक्त रहन की अपक्ा रखी जाए तो ऐस पनत को क्ा कहा जाय? मानव हो कर भी हर समय मोम की गुदड़या या पत्थर की लशला बन कर रहना पड़ तो उस स्स्नत में क्ा व्यवहार णकया जाय ? सीता भल ही णक सी अवतारी पुरुष की पत्ी थी ललेणक न उसस पहल वह एक नारी थी लजसम व सभी प्रवधत्यां नवद्यमान हैं जो प्रजा की णक सी भी नारी में होती है। सुख दख उस भी सालत थ। नवचार वक्तव्य उसक भी मन म जन्म लत थ। पनत की आवश्यकता उस भी महसूस होती थी। अभाव उस भी अखरता था। पनत की गलनतयां उस भी ददखाई दती थी। हर पररस्स्नत को वह भी महसूस करती है ललेणक न पनत क तीख तवरों क कारण व्यक्त नही कर पाती। पुस्क - करूण - कानन में आप सीता क इसी रूप को दखेंग लजसमें वह खुल कर अपन पनत की गलनतयों को उजागर करती है,उलाहना दती है, अपनी संवदना को स्वर दती है, रोष प्रकट करती है लशकायत भी करती है और अपनी हठ पर भी कायम रहती है और एक आम स्ती की भांनत हालातों स तंग आ कर आत्हत्ा करन को नववश हो जाती है। इसक साथ साथ आप इसमें राम का भी वहरूप दखग लजस वह तब तक दबात रह जब तक भयावह स्स्नत उनक सामन नही आई और जब स्स्नत हाथों स णिसलती नजर आन लगी तब स्वयं में वदना स िूट पड़।
र्ष्म : 2, अंक : 3 32 बन सको अगर जरीवन म िो राम सा िम बनकर हदखाओ चलो मरायादा की पररपा्ी पर चेहरे से सहज भाव झलकाओ राम सा िम.. अगर कर सको िो करो कोलरर रोको चलि मन के िम अंिदयावंद रांि सरल भाव रख हृदर म आंखों से ररीिलिा बरसाओ राम सा िम.. जरीवन एक समर भलम है संघषषों से हर िार जड़री है संरमररील बन मग पर चल हर बाधिा पार करके हदखाओ राम सा िम.. खररी को अंिस म भर लो हर जन की परीड़ा को हर लो रूहातनरि के नर म बहि हए अलख की प्रेम जोि जलाओ राम सा िम.. रावण िो जगह-जगह लमलेंगे अट्हास लगा अनहहि वे करगे दजयान बनने की भावना को िज सजजनिा का चोला अपनाओ राम सा िम.. संदर सखमर संसार बनाओ परार ही परार हरस ्फैलाओ संदर चररत्र तनमायाण करि हए जरीवन अववरल धिारा सा बहाओ हां राम सा िम बन के हदखाओ। राम सा िम.. राम सा िम बनके हदखाओ जरोति महाजन गाग़िराबाद, उत्तर प्रदे र
ककरा। राम प्रसननिा का प्रिरीक है। राम बेहिर होना भरी लसखाि ह और बेहिरीन होना भरी! राम नारक है, लाइ् है, अंधिकार म प्रकार ह! कौरलरा, कैके ररी, भरि, लक्मण व लसरा के राम अलग है, सब के अपने अपने राम है, अपने ही िरीके से दे ि आराम ह। जरीवन को सही अथया म जरीना है िो राम को, राम के आदरषों को अपने भरीिर आतमसाि कर लें िब ही हम सही अथषों म राममर बन एक आदरया उदाहरण के रूप म अपनों के, सबके समक्ष गवया से, रान से, मान से, सममान से गववयाि होने का एहसास कर पारगे!
र्ष्म : 2, अंक : 3 33 राममर होने का अथया है मरायादा म रह कर ही नरारो्चि वरवहार करना। हमारे भरीिर जो अज्ान का िमस है, वह ज्ान के प्रकार से ही लम् सकिा है। ज्ान िो दतनरा का सबसे बड़ा प्रकार दीप है, जब र जलिा है िब भरीिर व बाहर दोनों आलोककि हो जाि ह। प्रकार के बल पर ही ज्ान को वासिववकिा लमलिरी है, इस ललर िो उसका अगसितव नहीं लम्िा और वह अंधिकार को चरीर बाहर आ जािा है!हम राममर बन उजाले की वासिववक पहचान करनरी है, अपने आप को ््ोल कर भरीिर के काम, क्ोधि, मोह, मद को दर कर मानविा के मागया पर चलना है, र मनषर जरीवन बहि दलयाभ है, बार बार नहीं लमलिा! सच को लस्फया आँख मंद कर नहीं मानना उसे परखना भरी है! अंधिकार का साम्ाजर सवर को ही राममर समझने से सविः ही समापि हो जािा है। सरीर राममर सब जग जानरी!करऊँ प्रणाम जेरर जग पानरी-परे ससार म श्री राम का तनवास है, सब म ही भगवान है और हम हाथ जोड़ प्रणाम करना चाहहरे। र ललखने के बाद िलसरीदास घर को चले िो रासिे म एक बालक बोला- रासिे म एक बैल त्बगड़ा हआ है, इधिर से मि जाना, िो वो उसे अनसना कर उसरी रासिे ही से चले िो बैल ने ्गरा कर चोह्ल कर हदरा!क्ोधि म आ वो इस चौपाई को वापस लौ् ्फाड़ने वाले ही थे कक िभरी सहसा हनमान जरी प्रक् हो गर और बोले र चौपाई िो रि प्रतिरि सही है, आपने बैल म राम को देखना चाहा पर उस बालक को नहीं देखा जो भगवान रूप म आपके पास आरे। िलसरीदास जरी ने हनमान जरी को गले लगा ललरा और बोले-वववेक से ही आगे बढ़ना चाहहरे, छो्ी छो्ी चरी़िों पर धरान नहीं दे ि िो क्फर बड़री समसरा का लरकार हो जाि ह और रह सब के साथ है। राम मनषरिा के सनदेर वाहक है। सब कछ खो देने पर ही िो सतर, दरा, क्षमा, कपा, परोपकार का अथया समझ म आिा है और राममर होने का अथया राजकमार अरोड़ा बहादरगढ़, हररराणा क्फर हमारी संसकति भरी िो रही है! िमसो मा जरोतिगयामर-मागया दरन वाला महावा्र है! र हम सदा राममर होने की ओर अग्रसर करिा है! तनरार, तनगषक्र व तनरुददे शर जरीवन रैली का ्रा लाभ?राम ही हम भाई, वपिा, पत्र, पति, लमत्र के रूप म कैसे जरीना है, लसखाि है, जब वन को गर िो रवराज राम थे, लौ् कर मरायादापरुषोत्तम राम थे, राम वन गर िो बन गरे! जब उननति के लरखर पर बाहर जाने का मौका लमले िो घर का मोह तराग जाना चाहहए। राम की गाथा प्रबनधिन भरी लसखािरी है, एक ही समर म अलग अलग रूपों म भली भांति वरवहार करना लसखािरी है। राम परुषाथया
का परार है, बल, बद्धि, ज्ान से ववभवषि रावण को परासि
इनके राम, उनके राम, सबके राम, मेरे राम, कैसे हो िम, कहाँ बसे हो, करि हो ्रा आराम । कैसे राम बलाऊं िमको, करिा श्म, पर ह नाकाम, ववपदार िो बहि बड़री ह, ्रा िम इनसे घबराि राम । अगर नही िम घबराि हो, लो कर मे चाप , िानो बान, दष्ों का िम दलन करो, सनिाप हरो िम जग का राम । परीडड़ि जन सब बला रहे ह, करो देर मि सबके राम, नेत्रों से ह अश् झर रहे, अब िम भरी द्रववि बनो हे राम । अपना िो िम भवन बना रहे, दीन जनों का कर लो धरान, इनके घर भरी िम बनबाओ, मान
र्ष्म : 2, अंक : 3 34 ववनोद अग्नहोत्ररी बरेली, उत्तर प्रदे र
। इनके राम, उनके राम, सबके राम प्रो. ववशवमभर र्ल लखनऊ, उत्तर प्रदे र छवव अंककि प्रभ आपकी नहह त्बसराई जार, बने भवन अब राम जरी ररीघ्र ववराजो आर ! मकललि ह्रदर मरर है , कब होंगे प्रभ पास, रामलला के हदवर पग पथ को
बाजे
, बरसे वरोम प्रसन, भोली सरि लाल की मैयरा रही लसहार । लीला है श्रीराम की, पावन कथा महान , जनम अरोधरा म ललरा ककरा सकल कलराण। लसराराम के सग अनज, आरगे हनमान , परुषोत्तम प्रभ धिनधियार दरन द मसकार। गरीि - छवव अंककि प्रभ आपकी
रहे जो िमको भगवान
कर उजास । शरामल अलक भाल पर, घघरारे ह के र, ठमकक ठमकक घमे लला , जग लसगरो हषायार।
पैजतनराँ मधिर, ननह.ननह पाँव, नैनों को ररीिल लगरी बालक प्रभ की छाँव। देख दृशर अलभराम रह
र्ष्म : 2, अंक : 3 35 सररी स्से ना इंदौर, मधरप्रदे र श्री राम केव् प्रसंग कभरी कभरी भ्िों से भरी, प्रभ को काम पड़े। जाना है गंगा पार, देखो केव् की नाव चले। श्री राम बोले केव् से, भईरा पार लगा दो। जाना है गंगा पार, जलदी से अपनरी नाव बला दो। केव् बोला म ह नाववक, िम भरी ठहरे रखवईरा। िमको गंगा पार लगाऊं िम पार लगाना जरीवन नईरा। सन कर केव् की बाि, प्रभ हदए मसकाए। चढ़ने को नौका पर अपने पावन चरण ललए उठाए। केव् बोला, र नौका हमारी है नहीं कोई रखलौना। सना है प्रभ, िेरे चरणों म है कोई
छकर िेरे चरणों को पतथर लरला भरी बन गई
पतथर न बन जाए
प्रभ र नाव भरी हमारी। चलिरी जरीववका इसरी से, पलिा है पररवार हमारा। सन लो प्रभ अरज हमारी, हो बड़ा उपकार िमहारा। इन पावन चरणों को, धिो धिोकर परीकर देखंगा। जो कछ न हआ मझको िब नाव म त्बठा कर देखंगा। जान कर केव् की मंरा, प्रभ चरण हदए बढ़ाए। धिोकर पावन चरणों को केव्, चरणामि वपए जाए। सारे जगि को संभालने वाले, प्रभ रहे लड़लखड़ाऐ। केवल बोला, रख लो प्रभ अब सर पर हाथ हमाए। एक पांव से खड़े हए, प्रभ ने रखा सर पर हाथ। इस िरह चालाकी से केव् ने ललरा प्रभ का आररीवायाद दोनों की इस लीला म सारे देविा गण गए बललहारी। ऊपर से कर रहे पषपों की बरसा, ललए आरिरी उिारी। लक्मन
हाथ सर पर हमारे, अहोभा्र हमारा। इस िरह केव् ने पारा प्रभ श्रीराम के हृदर म सथान। रामारण सहहि सारे जग म केव् का होिा गणगान। x श्री राम जरी देखो पत्ता पत्ता तिनका तिनका, जोड़ि जाि ह। श्री राम जरी देखो, बन म क्ी बनाि ह। मािा की आज्ा वपिा का बचन तनभाि ह। कष्ों को हरने वाले प्रभ खद कष् उठाि ह। अननदािा ह जग के, वो जग के ह पालनहार। छोड़ के सारा राज, प्रभ ्फल ्फल खाि ह। सरीिा और लक्मण के संग भेष मतनकमारों सा। देख कर संदर रूप उनका भ्ि भरी िर जाि ह।
जाद ्ोना।
थरी नारी।
कहीं,
और सरीिा सहहि, जब केव् ने पार उिारा। बोला हे प्रभ ह दीन हीन, भल न जाना ऋण हमारा। सन केव् की बाि, जानकी अगंठी हदरा उिारी केव् बोला न मईरा, नहीं चाहहए कोई ्चनहारी। वापस लौ् कर आना िम, प्रभ दरन देना दोबारा। िमने रखा
र्ष्म : 2, अंक : 3 36 अरोधरा के राम अलका लमश्ा कंकड़बाग, प्ना, त्बहार इतिहासकारों के कथनानसार ककसरी वरग्ि एवमं वसि को समझने के ललए उसकी उतपति के मल को समझना अतरंि आवशरक है। इस नवरात्त्र मझे भरी अवसर लमला मरायादा परुषोत्तम श्री राम चनद्र जरी को समझने का। गजसके ललए मने श्री राम जनमभलम अरोधरा जरी का रुख ककरा। इस भलम पर पग धिरि ही हनमान जरी की वानर सेना के रूप के दरन हए। उछलिे-कदि इन वानरों की क्ीड़ा देखि ही बन रही थरी। कभरी डर कर म सहमरी और कभरी हसिे-हसि पे ् म बल पड़ गए। राम राम की धवतन कानों म पड़री िब लगा श्रीराम को समझने की ररुआि हई।
र्ष्म : 2, अंक : 3 37 सव्णप्रथम हम पहच हनुमान गढ़ी अब भला परम भक्त की आज्ा नबना अयोध्ा द श्णन की पररकल्पना कोई कैस कर भला। प्रलसद्ध मंददर होन क बावजूद वहाँ पाखंणडयों का आडम्र नहीं ददखा। बाणक मंददरों की तरह चढ़ावा चढ़वान की मारा मारी स यह मंददर अछूता था। मंददर की ऊंची सीणढ़यों पर बढ़त हए द श्णनाधभलालसयों द्ारा जै श्ी राम व जै हनुमान जी क नारों स तन में सकारात्कता का संचार हो रहा था। लजसक पररणामस्वरूप शांत मन व मम्स्ष् स श्ीराम भक्त हनुमानजी क सुंदर रूप क द श्णन हय। मंददर की पररक्रमा कर मैंन दखा अलग अलग रंगों की छटा मंददर क दीवारों पर उकरी गईं कलाकनतयों स प्रदलशषित हो रही थी। वहां स मैंन दशरथ भवन का रुख णकया मूल ननवालसयों द्ारा बताया गया णक यह भवन राजा दशरथ द्ारा बनवाया गया था। जसमें मरमित का काय्ण चल रहा था। वहां खड़ी होकर रामचन्द्र जी की बाल लीलाओं की कल्पना करन स खुद को रोक नहीं पाई। अनायास ही मर मन में ‘ठुमुक चलत रामचन्द्र बाजत पैजननयां’ की पंक्क्तयां स्मरण हो उठीं। वहां स मैंन सीता माता की रसोई क द श्णन करती हई लक्ष्मण भवन स आग बढ़ी और पहच गई कनक भवन में जहां की सोन क मुकुट धारण णकय मूरत रूप में श्ीराम अनुज लक्ष्मण जी व सीता माता क संग नवराजमान हैं। उनक अनुपम श्गार क द श्णन हई। सिले द रंग क इस मंददर को भी स्वणणषिम रंगों स सजाया गया है। भक्तों की भीड़ व जै श्ी राम का जयकारा रामलला की उपस्स्नत का भान करातें हैं। वहां स लौटत वक्त मैंन कंदमूल िल का भी स्वाद चखा। लजस को श्ी राम चन्द्र जी व माता सीता द्ारा चौदह वषषों क वनवास में खाय जान क प्रमाण की पुणटि राह में कंदमूल कह जान वाल िल पर चक् णिरता हआ और चख कर जान की बात करता हआ बैठा था। लजस िल को मुंह में रखत ही जीभ का स्वाद नबगड़ गया और तब वनवास भोगत श्ीराम चन्द्र जी क ललए भी ह राम ननकल गया। पैदल यात्ा करती हई मैं पहच गई उस गली में जहां स कुछ ही मीटर की दरी पर राम मंददर क नवननमषाण का काय्ण प्रगनत पर था। रास् में सुरक्ात्क दृणटिकोण स प्रसाशन द्ारा की गई व्यवस्ा क अनुसार घड़ी,बटुय व मोबाईल िोन को लॉकर में रख कर आग बढी। कई जगहों पर जाँच करवाती हई मैंन राम लला क द श्णन णकय। शाम हो चुकी थी, नवराणत् की सजावट क साथ राम की पैड़ी का अनुपम सौंदय्ण दखत ही बन रहा था। सिले द भवनों का पंक्क्तबद्ध णकनारा और नीच बहती सरयू की पावन जल धारा उसक सुंदरतम कलाकनत में चारचांद लगा रह थ। घूमत हए मैं पहच गई सरयू नदी क णकनार नया घाट पर जहां लोग दीपक जला कर सरयू की पावन धारा में प्रवादहत कर रह थ। घाट पर बन मंददरों स राम धुन भजन क स्वर सुनाई द रह थ। नदी क णकनार लग नावों की साज सज्ा णक सी दल्हन की डोली स कम नहीं थी। इन नावों को दख मुझ रामायण में वणणषित उस कवट का स्मरण हो आया। लजसन अपनी नाव में श्ीराम चन्द्र जी को नबठान स पहल उनक चरणों क चमत्ार को सुनकर नाव क रूप पररवनतषित हो जान की आशंका जताई थी। शाम
ललया। ऐसा वणणषित है णक सरयू नदी में ही श्ी राम जी न जल समाधध ली थी। अब आप ही बतायें लजनक स्पश्ण मात् स कायाकल्प हो जाता था तो वो महापुरुष लजस नदी में समाधध ल लें उसक ननम्णल जल का स्पश्ण भी हमार अंदर क रावण रूप में सम्भवतः पररवत्णन कर द। अयोध्ा क कुछ लोगों में मैंन आज भी श्ीराम सी शालीनता व मदल स्वभाव का अनुभव णकया। चाह वो दकानदार हो या ऑटो ररक्ा चालक क व्यवहारों में अयोध्ा क संस्कार ददख। आज मुझ एहसास हआ णक अयोध्ा क कण-कण में ही नहीं वहां क लोगों क रोम-रोम में बसतें हैं श्ीराम। बस जरूरत है तो उनक नाम का जप करन क साथसाथ उनक नवचारों को अपन हृदय में धारण करन की। पत्थरों क पाटों स नननमषित भवनों में नहीं अणपतु अपन आचार-नवचार में उनकी प्रनतमूनतषि स्ाणपत करन की। तभी लसि्ण अयोध्ा में ही नहीं राम राज्य पुनः सबक हृदय में अधधपत् पाएगा।
में इस दृश्य को दखन क बाद नौका नवहार करन का अवसर कोई छोड़ना नहीं चाहगा। मैंन भी इसका आनन्द
र्ष्म : 2, अंक : 3 38 सब प्राणरी से उत्तम जो ह, धिरिरी से अंबर िक गजनका, गजा है गणगान, हमारे परुषोत्तम श्रीराम।। ना तनज सवाथया रहा उनके मन, सब सख तराग गए थे वो वन, राम वन गए, राम बन गए, िरीरथ ढंढ़े धिाम, हमारे परुषोत्तम श्रीराम।। मािा वपिा का मान अलग था, कमषों का सममान अलग
नारारण से नर के रूप
जनम खद भगवान, हमारे परुषोत्तम श्रीराम।। लमत्र लमत्रिा की पररभाषा, कहीं नहीं है ऐसरी गाथा, चाहे ज्ार, चाहे ववभरीषण, सेवक बने सजान, हमारे परुषोत्तम श्रीराम।। ररीिलिा की गागर ह जो, आदरषों का सागर ह जो, बस पगधिलल लगरी जा पहचा, पाहन म भरी प्राण, हमारे परुषोत्तम श्रीराम।। -- x -सब प्राणरी से उत्तम श्री राम मधि कशरप हमरीरपर, उत्तर प्रदे र
था,
म,
र्ष्म : 2, अंक : 3 39 तन्धि सहगल आगरा, उत्तर प्रदे र रग बरीि अब राम पधिारे दवार अरोधरा दमक रहा मंहदर रोभा हदखे तनराली कण कण देखो रमक रहा रग बरीिे... दवार दवार पर परीि वणया है परीि नगर लगिा परारा दीपमाल की रंगोली से जगमग हआ मंहदर सारा आज महोतसव अवधि मनाए दीवाली सा चमक रहा रग बरीिे... ककिनरी नहदराँ चल कर आईं पजन रीति तनभाने को नगर नगर लमट्ी लभजवाएँ मंहदर प्रबल बनाने को रंखनाद गगजि हआ िभरी प्रांगण तनमयाल झमक रहा रग बरीिे... बरसों की अनवरि िपसरा आज हई है ्फलदाररी रामलला की नगरी के मख क्फर से खलरराँ हरषाई परदेस बसे भारि जन का मन भरी हवषयाि गमक रहा रग बरीिे.. -- x -रग बरीि अब राम पधिारे
र्ष्म : 2, अंक : 3 40 रामचररिमानस एक मनोवैज्ातनक ववशले षण पनम वमाया चंडरीगढ़ रामचररि मानस के नारकों से बहि कछ सरीख सकि ह, हम सभरी। रामारण के नारक राम, लक्मण, भरि व रत्रघन आहद ने रहद लसखारा कक राषट्र के ललए जरीि कैसे ह, िो लनारकों, राक्षस कल ने लसखारा कक राषट्र के ललए मरि कैसे ह। कमभकणया लसखाि ह कक रहद राजा की नरीतिरां, उसके कारया पसनद न हों िब भरी राषट्रद्रोह नहीं करिे।
र्ष्म : 2, अंक : 3 41 जब तक तन में सांस, मन में हैं श्ी राम। पावन कर जीवन को, एक राम का नाम।। जब राटि नवपधत् में हो तो हर नागररक का कवल और कवल एक ही कत्णव्य होता है, राटि की रक्ा ! आंतररक असहमनतयों को बाद में भी सुलझाया जा सकता है, पर यदद राटि ही न रहा तो सहमनत और असहमनत का कोई मूल् नहीं रह जाता कुम्भकण लसखात हैं णक राजा स असहमनत क बाद भी राटि क साथ खड़ा रहना ही धम्ण है। मघनाद स सीखाया णपतभक्क्त कैस की जाती है। णपता की प्रनतष्ठा क ललए शीश कैस चढ़ात हैं। सीखा जा सकता है णक अपन दश, अपन समाज, और अपन कुल क प्रनत अपन उत्रदाक्यत्वों को पूरा कैस करत हैं। लंका क वैद्य सुषण की अपन वैद्यधम्ण का पालन करना बताता है णक वैद्य की प्रनतष्ठा क्ा है, और क्ों है। वैद्य यदद शत्दश का हो तब भी पूजनीय है। यदद आप वैद्यों क साथ दव्य्णवहार करत हैं, तो आप मनुष्य तो छोदड़य असुर या राक्स कहलान योग् भी नहीं हैं। हम लजन् राक्स कहत हैं, जो मनुष्यों का भक्ण करत थ , लजन् धम्ण का ज्ान नहीं था, उनका भी स्र यह था णक राटि क ललए पूरा पररवार बलल चढ़ गया। णक सी न रावण को गाली नहीं दी, णक सी न लंका का अदहत नहीं चाहा। इसललए इनतहास उन् अधममी भल कह , गद्ार नहीं कहता। लजस नवभीषण को समय न कुलद्ोही घोणषत कर ददया, वह भी बार-बार कहता रहा णक मुझ राज्य नहीं चादहए, महाराज रावण माता सीता को राम को सौंप दें और धम्ण क माग्ण पर आ कर शासन करें। माता क आग , भाई क आग , दत क आग नवभीषण युद्ध में भल राम क साथ खड़ रह , पर लंका क ललए रोत रह ,रोत रहें। असल में प्राचीन अखण्ड भारत ज्ान की भूनम रहा है। यहाँ क खलनायकों का भी अपना स्र रहा है। मानवीय दगु्णणों क वशीभूत हो कर उन्ोंन पाप भी णकया है, पर धम्ण स पूरी तरह नवमुख नहीं हए। राटि क साथ द्ोह की भावना नवद्ोह की भावना भारतीय मूल की नहीं है, पूण्णतः आया नतत है। भारत की परम्रा रही है सीखन की। बुजुगषों न लसखाया है णक ज्ान यदद कुकममी क पास भी हो तो उसस लन में कोई दोष नहीं। जो लोग णक सी भी व्यक्क्त, मान्यता, या समुदाय क बहकाव में आ कर राटि स द्ोह कर रह हैं, व इस योग नहीं हैं णक मयषादा पुरुषोत्म प्रभु श्ीराम को समझ सकें। हनुमान जी न भी लसखाया की जब डॉक्टरों की पचमी कोई नही पढ़ पाता तो कैस पूर दवा दकान को ही उठा लाना है। णक सी की जीवन बचाना ही सबस बड़ा धम्ण है। इस तरह स बहत सार अनकों प्रसंग रामचररतमानस में ददयें गयें हैं लजसस हर भारतीय को लशक्ा लनी चादहए।
र्ष्म : 2, अंक : 3 42 राम राजर म सब सखरी, खर थे सारे लोग। वही राजर क्फर से लमले, ऐसा हो संरोग।। ऐसा हो संरोग , इचछा है र ह मारी। जनमे क्फर से राम, हमारे पालन हारी।। ग़म का हो ना नाम, रहे ना जनिा भखरी। उमा जान ले र बाि,राम राजर म सब सखरी।। राम - राजर (कंडललरां) राम नाम र्ि रहे, सबह हो रा राम। हर मगसकल आसान हो, जपो राम का नाम।। राम नाम संदर बड़ा, सब वेदों का सार। मागया मग्ि का है रही, भजिा सब संसार।। राम राम जप मन सदा, हदन हो चाहे राि। इसम ही कलराण ह, बनिरी त्बगड़री बाि।। राम नाम की आस ह, जपे राम का नाम। मन म प्रभ का धरान ह, परे होगे काम।। राम राम ही बोललए, सबह राम हदन राि। लमलिा सचचा सख हमे, जाने सब र बाि।। राम नाम से प्ररीि ह, इसम ही है जरीि। सबह राम जपि रहे, गार प्रभ के गरीि।। x राम नाम (दोहा - छंद) उमा वैषणव भारि
र्ष्म : 2, अंक : 3 43 राम एक और कथा अनेकों रगों - रगों का है संदरन । कमया भलम के महा मंच पर िलसरी- प्रतिभा का संप्रेषण। त्रेिा का उजजवल अरुणोदर वालमरीकी की ववरल साधिना। धिनष-बाण राघव ले चलि कर वपि- आज्ा अनपालना। राम सलमर कर धिरी पादका अनज िरीन अग्रज के दरपन। अगन परीक्षा से पावन हो अगन हो गई सवर अलभराम। माि लसरा के चरणों म है ममिामररी सरर अववराम। हरर अनंि हरर कथा अनंिा साँसे तनि करिरी प्रतिवेदन। पार लगे रह कशिरी जजयार मोक्ष -धिाम पहंचाए नाम। लसरा राममर जग सारा है मरायादा के नारक राम। ज्ान, भग्ि, अनराग साथ ले चलो कर तनि -तनि अलभवंदन। -- x -राम एक कथा अनेक मधि प्रसाद अहमदाबाद, गजराि
र्ष्म : 2, अंक : 3 44 अरोधरा रात्रा मेरा संसमरण नरीलम नारंग मोहाली, पंजाब जब भरी हमारे जरीवन म कोई कहठनाई आिरी है रा कोई आस परी करवानरी हो हम भगवान से प्राथयाना करि है, हे ईशवर मेरी मनोकामना परी हो जाए मै आपके दरन करने आपके दवार आपके मंहदर आउंगरी| बरसों हम मननि मानि है अपने इष्देव के दरन करने के ललए| जब भरी ऐसरी जगह के बारे म सोचि ह पववत्र सोच, अचछे ववचार हमारे मन म आने लगि है| जब भरी ककसरी धिालमयाक जगह पर जाना होिा है घर से तनकलि ही मन असरीम श्दधिा से भरा होिा है|
र्ष्म : 2, अंक : 3 45 मरी भी बरसों पुरानी इच्ा थी अयोध्ा जान की| बचपन स ही रामजन्मभूनम और बाबरी मस्जिद क णक स् सुन | मस्जिद का ढहाया जाना और मंददर बनान की प्रनतज्ा और उसस जुड़ बहत स णक स्ों क बार में बहत कुछ सुना हआ था तो वहां जान को मन बड़ा ही उत्ादहत था| रामजी का जन्म, दशरथ महल, सीताजी की रसोई और खासकर अयोध्ा नगरी दखन की उत्ठा कब स मन में दबी हई थी| अब जब वहां भव्य मंददर बनाया जाना है तो उस जगह को दखन की उत्ठा ओर भी बढ़ती जा रही है| अप्रैल २०२२ में मुझ अयोध्ा जान का अवसर नमला| बड़ चाव स , और बड़ी श्द्धा स अयोध्ा नगर में प्रवश णकया| अगल ददन रामनवमी का बहत ही शुभ ददन था| इस पवन अवसर पर रामजी क द श्णन करन की इच्ा पूरी हो रही थी य अपन आप में बहत बड़ी बात थी| सुबह बहत जल्ी उठ कर तैयार हो गए मंददर जान क ललए| रामनवमी का ददन था इसललए सुबह चार बज स ही चारों ओर बड़ी चहल पहल थी| रामलला क द श्णन करन क ललए बड़ी लम्ी कतारें लगी हई थी| तीन चार घंट कतार में खड़ होन क बाद हमें अंदर जान का मौका नमला| बड़ी श्द्धा स रामलला क द श्णन णकए| बहत सारी पुललस भी वहां तैनात थी बड़ी मुस्दी स वो अपनी ड्टी संभाल रह थ | रामलला क द श्णन करक खुद को धन्य णकया| सब कुछ बहत अच्ा होन क बावजूद दो ऐसी बातें थी जो मुझ आज भी उद्ललत कर रही है| मंददर क प्रवशद्ार पर पुललस तलाशी ल रही थी कोई भी व्यक्क्त अपन साथ अंदर कुछ भी नहीं ल जा सकता था| मुझ स आग जो अधड़ औरत खड़ी थी उस सांस लन में ददक्त आती थी इसललए उसन अपन हाथ में दवाई ल रखी थी णक अगर जरुरत पड़ गई तो वह नबना पानी क उस दवाई को ननगल लगी| पुललस न उस दवाई को अपन पास रख ललया जो शायद कािी महंगी भी थी| अब वो औरत बड़ी असमंजस में थी णक या तो वो नबना दवाई क अंदर जान का ररस्क ल या णिर अपनी बरसों पुरानी रामलला क द श्णन की इच्ा को नतलांजलल द और वो दवाई को वहीँ छोड़ मंददर की ओर बढ़ गई| यहाँ नवचारणीय प्रश्न य उठता है णक आखखर दवाई अंदर ल जान में हज्ण ही क्ा था ? दसरा अगर दवाई क अभाव में उस कुछ हो जाता तो ? मंददर स बाहर ननकलन पर दखा बहत स बच् डम लकर बैठ है| डम बजा रह है और भीख की आशा रख हर आन जान वाल की ओर दख रह हैं| लोग भी उनक आग रख बत्णन में प्रसाद व कुछ रूपय डाल रह हैं| बच्ों क बचपन को इस तरह जाया होता दख मन नवतष्ा स भर गया| क्ा य हम सब की लजमिलेदारी नहीं है णक उनक बचपन को बचाया जाए और उन् बहतर भनवष्य ददया जाए| आन वाल समय में भव्य राम मंददर का ननमषाण हो जाएगा| इसस बहत स लोगों की आस्ा , नवश्ास और भावनाएं जुड़ी हई है| अंतरषाटिीय स्र पर अयोध्ा नगरी की अपनी अलग पहचान है| इस पहचान को बनाय रखन क ललए लोगों की सुनवधाओं का भी ध्ान रखना पड़गा| धभक्ावनत जैसी कुप्रथाओं को बंद करना पड़गा| लजसस अयोध्ा राज्य अपनी आद श्णवाददता पर खरा उतर | यह सब संभव होगा हम सब क साँझा सराहनीय प्रयासों स | रामराज्य का सपना तभी होगा साकार बचपन अच् भनवष्य का ल आकार
र्ष्म : 2, अंक : 3 46 दररि के घर राम पधिारे गोपाल गपिा “गोपाल “ नई हदलली
लोक म भय उजयार , दशरत क घर राम पधार , महलो म गए मंगल गाए, घर घर घी क दीय जलाए, हर ददन जैस इक उत्व हो, नगर का हर इक प्राणी खुश हो, रघुवर लीला रह ददखाए, समय गनत स बढ़ता जाए, लशक्ा पान गुरुकुल जाए, मुनन वलशष्ठ स ज्ान है पाए, सिल मनोरथ करत राम, बनत सब ही नबगड़ काम, नवश्नमत् महामुनन आए, दसरथ को य वचन सुनाए, असुर कर है यज् व्यवधान, मुझ को द दो तुम श्ी राम, पुत् मोह बस दशरथ बोल , चलू मुनन
आभा, दख दख हषषाय राम, जनक सुता का स्वरवर णकना, दश दश आमन्त्रण दीना, ऋणष मुनन आदर सदहत बुलाए, दश दश क राजा आए मुनन क संग आए श्ी राम, स्वलेत वण मनमो दहनी सूरत कमल नयन जय जय श्ी राम, संग लखन क नवराज राम, सोधभत होत चारो धाम, लशव धनुष उठा न कोई पाया, रावण भी लम्ज्त
संग मण्डवी नवहाई, सुतमी न शत्ध्न पाए, नगर लोट चारो है आए, रही अयोध्ा मंगल गाए, माथा चूम रही है माता घर आई खुलशयो की खान, राजनतलक की करो तयारी, दसरथ न हकुम सुनाया, भाग् अयोध्ा का है जागा, राम बन है भावी राजा, दासी मंथरा न समझाया, कैकयी कोप भवन म बैठी, दशरथ गए रानी य बोली, कैकयी न है याद ददलाया, उन क दो वरदान का वादा, दसरथ बोल हंम याद है माँगो रानी तुम वरदान, पहल वचन म इतना णकज राजपाठ सब भरत को दीज , दजा वन को जाए राम, चौदह वष्ण वनवास है मागा, व्याकुल दशरथ है हैरान, वचन राम तक जब य पहच , नमल णपता स है श्ी राम, आज्ा दो मुझ वन जान की
: 2,
: 3 47
को त्ागो राजन, करो जगत का तुम कल्ाण, यज् हो पूर नबन व्यवधान, पुत् तुम्ार है गुणधाम, साथ पठाओ लक्ष्मण राम, नवश्ानमत् जी आश्म आए, संग आय है लक्ष्मण राम, साधक हौम म लीन भए है, रक्ण करत है प्रभु राम, दण्ड असुर मारीच को
भजी
की सुंदर
हो
हआ नवदह मन दःख है
क्ा कन्या रह हमारी
नवश्ानमत् की आज्ा पाकर, धुनष
होत
लजस न धनुष है लशव का तोडा, महाप्रवल शत् वो मोरा, क्णत्य नवहीन धरा है णकनी, जीत जीत कर दान है दीनी, परम क्रोधी मम परशुराम, नवनय णकया हरर न समझाए, न मान तो शस्त उठाए, परशुराम का रखा मान रघुकुल नंदन जय श्ी राम, उनमषिल क संग लखन नवहाय , सीता क संग है प्रभु राम, भरत
कर वचन को पूरा राम नमल आप को है यश धाम, राम रलखन संग चली वैदही, णकया सभी को है प्रणाम, चल नगर स वन की ओर, छूट रही ररश्ो की डोर, अवध की सीमा पर रथ रोका, जन्मभूनम को माथा टका, संग ल चल अवध की माटी,
र्ष्म
अंक
मै संग तुम्ार , अभी है बालक मरा राम, कैस द द तुम को राम, मुनन नमद्ण भाषी है हस बोल , पुत् मोह
दीना,
ताड़का है सुर धाम, सुंदरवन
भगा,
भारी,
कुआरी,
उठात है श्ी राम, उठा धनुष महादव का लीना, खखंच प्रत् चा तोड़ है दीना, क्रोधधत
परशुराम,
सब नर नारी आय , जो सम्भव हो भट वो लाए, लसया राम को सीस नभाय , दख नह राम मुस्काए, नमत् को है यह वचन सुनाय , स्वागतं स है दहद्णय प्रिुललत, णकन्तु अब सब ही य बलजषित, लजयू मुनन का जींवन भाई, णपतभक्त म बचन ननभाई, गंगा पार कर की खानतर, प्रभु गंगा क तट पर आए, कवट बोला नबनय कर य , इस सागर हम पार उतार , तुम भव सागर पार उतारो, इतना करना दाता राम, नमट जाए जींवन स काम, ( वासना) तीरवणी स नमली तीरवणी, संगम पर तक पहच श्ी राम, भतद्ाज मुनन आश्म पहच , आग्रह
अंग हमार , लक्ष्मण क्रोध अनत णकन , नाक कान काट है ददन , खर दषण ददए मार क्गराए, सुपननखा लंका को जाए, क्रोधधत लंका पनत है बोला, प्रनतशोध लू बहना तरा, स्वण म ग्ण मारीछ पठाया, ख़ुद धभक्षुक का भष बनाया, स्वण म ग इक लसय न दखा चल पकड़न है रघुराई होनी तो हो कर रहती है करो चाह णकतनी चतुराई माया का मग हाथ न आया प्रभु राम न वाण चलाया मुख स ननकला सीता नाम जनक नंदनी कह लखन स जाओ वत् संकट म राम खखंची लखन न है इक रखा नाम पड़ा है लक्मण रखा
र्ष्म : 2, अंक : 3 48 धन्य धन्य जय जय श्ी राम, गंगा तट पर राम पधार , गोह कह खुल भाग् हमार , राजा राम चन्द्र है आए, गरह नगर म दो बतलाए, नमल की खानतर सब ही चल दहय , नगर णढ़ढोरा ददया णपटाय , ननषाद राज को गल लगाया, नमत् को हरर न पास नबठाया, नगर
कर यही मुनन ज्ानी, यही रहो श्ी रघुकुल राम, नवनय कर बोल श्ी राम, यहा ठहरना नहीं है सम्भव, बतालए उत्म स्ान, मन्द हस मुनन वचन य बोल , चचत्कूट को जाओ राम, सुन्दर यह अनुपम स्ान,
म कुटी
न
कम्ण प
चरण
भरत अवध की
पुत् नवयोग म प्राण है त्ाग , दशरथ भी सुर धाम चल है, वन म मुननयो स है नमलत , राम दंडकारण्य चल है, ददन बीत महीन है बीत , बीत गए दस साल, माता कौशल्ा खड़ी है, ल आरती का थाल, अगस्त्य ऋणष स भेंट है णकनी, राजनीनत की लशक्ा ललनी, जूठ िल सबरी क खाए, पञ्चवटी म कुटी बनाए, सुपननखा न राम ररझाए, राम वचन कह य समझाए, बसी
दर
लक्ष्मण
धभक्ा
वन म घोर
आई रावण न है लसया चुराई जनक नंदनी राम पुकार , आभूषण को क्गरती जाव , रुधन सुनी है जटायु आया, लंकलेश्र न खड़ग उठाया, काट ददय पर खग लहराया, क्गरा धरा पर बोल राम, कमल नयन जय जय श्ी राम, नवकल दहद्णय हय रघुराई,
चचत्कूट
बनाई, लखन सदहत रहत श्ी राम, भरत अवध म वापस आए, मण्डवी न सब हाल सुनाए, रोष बहत माता पर आया, पर होनी कोई टाल न पाया, सभी संग चल ददए भरत क , राम मनान की तैयारी, चल भरत है वन की ओर, पता नहीं है राम णक स ठौर, ननषाद राज भट है णकनी, कुशल छप भाई की ललनी, चचत्कूट भरत है आए, राम चन्द्र को लशश नभाय , हाथ जोड़ कर बंदन णकना, राम दहद्णय स भरत लगाए, बोल भरत स्लेदह ल वाणी, संग चलो प्रभु साथ हमार , मात तात सभी य चाह , प्रजा क नर नारी चाह , मुनन वलशटि
राह ददखाई,
पथ प चल रघुराई,
पादका सीस लगाई,
और चल है,
जानकी
पार न करना माता इस को नवनय कर रलक्ण समझाई, लक्ष्मण चल जहां प राम धभक्ा बना दशानन्द आया
पर उस न अलख जगाई
रखा पार कर आई
लाई जानकी माई
नवपधत्
लसय न पाई, वन वन ढूढ़ रह लसया राम, कमल नयन जय जय श्ी राम, खोजत जात बढ़त जात सीता पर पता न पात , माग्ण आग कदम् बध णकना, श्ाप मुक्त दव को णकना, राम नाम आबाज है आई घयाल जटायु पड़ा ददखाई, दख राम सब व्यथा सुनाई, अंनतम समय हमारा राम, दह छोड़ती है अब प्राण, अंतयोणष श्ी राम न णकनी, श्धांजलल खग राज को ददनी, ऋणषमूक पव्णत को आए, खबर सुनी सुग्रीव घबराए, हनुमान जी रह समझाए, जाकर पुछु में क्ों आए, भष बदल हनुमान है आए, राम भक्त क समिुख राम, लमल नयन जय जय श्ी राम, काँध पर दोउ भाई नवराज , ऋष्यमूक पर आए राम, सुग्रीव स नमत्ता णकनी, बाली का बध करत राम, कमल नयन जय जय श्ी राम, राज पाठ सुग्रीव न पाया, भोग नवलास म वचन भुलाया, लक्ष्मण णकप्ष्ं धा है आए, सुग्रीव
राम, स्वयंप्रभा
णकनी
तट सब को पहचाया, सम्ाती न पता बताया, सागर पार चल हनुमान, स्वण की लंका नगरी द खी, चणकत हो रह है हनुमान, संख चक्र चचन् दखा जो द्ार , हनुमान जी वहा पधार , द्ार वभीषण जी है आए, हनुमान को लसश नभाय , हनुमान न वचन सुनाय , लसय की खोज म लंका आए, बोल वभीषण सुनो नवप्रवर, अशोक वाणटका इक स्ान, लंका का है अनुपम धाम, बन्धी वहा पर है एक साध्वी , शायद वो हो सीता दवी, अशोक वाणटका हनुमत आए, लसय चरण म लसश नभाय , िल खान की आज्ा माँगी, उजाड़ अशोक वाणटका ददनी, अक्यकुमार को स्वग्ण पठाया, क्रोधधत
मणण ददखाए, दख प्रभु मन म अकुलाय , सैन्य सुसम्ज्त हई है भरी, लंका चलन की तैयारी, बढ़ चल सागर की ओर, सागर स नवनय हरर णकनी सागर पर राह न ददनी, क्रोधधत ही कर शस्त उठाए, सागर मन गया घबराए, हाथ जोड़ कर नवनय है णकनी, सतु की युक्क्त है ददनी, नल नील सतु है बनाय , राम ललख पत्थर तैराय , राम प्रभु लंका है आए, रावण माया रहा ददखाए, अम्र नबजली है कौंधाय तीर चलाया एक राम न , कुण्डल मुकुट है काट क्गराए, सत् वचन वभीषण बोल , राम है नारयण वो बोल , रावण हटधममी न माना, मार लात ददया नगर ननकाला, राम सरण म आए वभीषण, हरर न नमत् है ललया बनाय , शांनत दत आंगद को भजा, अंनतम बार रह समझाए, कामी कब बातों स माना, लंकलेश्र न युद्ध
र्ष्म : 2,
: 3 49 कु
को याद वच न कराए, चार दद शाओं म चल वानर, सीता का है पता लगाए, आंगद क संग चल हनुमान, सभी बनाए नबगड़ काम, भुख़ प्ास कणप है सार खोज खोज क सीता हार ललेणक न है दहमित न हार , बढ़
कमल
मघनाथ है आया, ब्म्पाश बंध हनुमान, रावण क समुख है लाया, लंकलेश्र न हकुम सुनाया, पूछ बहत प्ारी हो वानर, पूछ म इस की आग लगाओ, हनुमान न रूप बढ़ाया, सारा लंका नगर जलाया, लीना चचन् माता सीता स , चल हनुमत वन की ओर, दल म हष्ण हआ घनघोर, ऋष्यमूक पव्णत पर आए, श्ी राम को सब बतलाए, लसय
है ठाना बह रक्त की नदी है ऐस , काल खा रहा वीर है जैस , काल नमी गया और कम्न अनतकाय बलबान है आए, गय काल क गाल समाए, कोख है जान णकतनी उजड़ी, हटधममी पर मानत नाही, कुम्भकण असमय जगाया, रावण को उस न समझाया,
अंक
णटया में जब
सुनमर कर है श्ी राम
नयन जय जय श्ी
सहायता
सागर
की जुड़ा
णकन्तु सुन लो बात हामारी, यदद सभी कथन सत् है, जो रण मत् होए हमारी, तो समझो रघुश्लेटि राम ही मानव रूपी नारयण है, तब श्ी राम स सम्न्ध करना, कुल और राज अकण्टक करना, चला काल सम कुम्भकण है, भुजदण्डो में अतुललत बल है, पद भार कप्म्त धरा सकल है, भय स सना म भगदड़
र्ष्म : 2, अंक : 3 50 राम श्ी नारायण भईया सीता उन को वापस कीजो, अपना राज अकण्टक णकजो, रावण कटु वाणी म बोला, दो न आचाय्ण सा ज्ान, भाई भाई आए है काम, अगर तुम् पथ धूनमल लाग , जाओ महल म करो नवश्ाम, कुम्भकण ज् ानी हस बोला, आप न समझ मुझ को भाई, धम्ण कह वही कम्ण करू म , इस म नहीं संशय है भाई, समर की चचंता आप छोड़ द , उत्व की है कर तैयारी,
है, कुंभकण लग काल का स्वर है, अंगद और हनुमान है आए, णकन्तु न पीछ कदम हटाए, लक्ष्मण संग युद्ध हआ भारी, सुग्रीव को ललया उठाय , ओर नगर की बढ़ता जाए, रण म आय है रघुनंदन, शत् न णकना अधभनंदन, दख दवता भी अकुलाय , रहा शस्त प शस्त चलाए, ददव्य आस्त श्ी राम चलाय , कट कट अंग धरा पर आए, कुंभकण न वीरगनत पाई, आख वभीषण की भर आई, णकन्तु युद्ध नहीं रुक पाया, मघनाथ है रण म आया, अस्त शस्त स पार न पाया, नागपाश म उन् िंसाया, संकट म है दोनो भाई वन म घोर नवपधत् आई, हनुमान है गरुण को लाए, नागपाश स मुक्त कराए, लक्ष्मण को है शक्क्त लागी, नवकल हए है राम वैरागी, वैद्यराज सुषण बुलाए, मत्ण संजीवनी दवा वताय , राम काज को उड़ चल , पवन पुत् हनुमान, राम काज म आए, भी तो कैस व्यवधान, पव्णत हनुमत ललए उठाए, लाए संजीवनी लखन लजयाए, हष्ण है वानर दल म छाया, राम ही जान राम की माया, शत् प्रबल है जान कर, इं द्जीत बलबान, तन्त्र
ख़बर
संग है राम, यज् भंग की करी तैयारी, हर इक पल था सब पर भारी, सैना नायक मार भगाए, यज् भंग वानर कर आए, ललकारा रण को बलबान, कोई णक सी स मात न
समर ननरन्तर बढ़ता
यज् करन चला, धर ननकुव्ा का ध्ान, गुप्तचरो न बात बताई
वभीषण तक पहचाई, कर मन्त्रणा
खाए,
जाए,
स होत ननरुत्र है रघुकुल राम, बाल्ीणक मुनन है आए, लबकुश न णकना प्रणाम, हनुमान क बंधन खोल अश् ददया वापस राम, राज भवन मुनन बाल्ीणक आए णपता पुत् को ददया नमलाए, राम न है प्रमाण जो मागा, गई धरा लसय समाए, धरा उलटन चल रघुराई, मुननवलशटि है समझाई, होनी तो होती है राम, कमल नयन जय जय श्ी राम, चारो दद शा पुत्ो म बाटी राम हए गह सन्यासी, काल मुनन बन नमंलन आया, राम है आदश सुनाया, जो नबच में अंदर आया, मत्दण्ड का भागी होगा, उसी समय दभषाशा आए, लखन
र्ष्म : 2, अंक : 3 51 एक वाण सौनमत् चलाय , मघनाथ क्गरा धरा प आए, लंकलेश्र है रण म आया, परम सौय्ण उन न ददख लाया, दवराज न रथ है भजा, राम न रथ स्वीकार है णकना लड़ गगन म है सब ओर, सुर जन मुनन सब ही अकुलाय , युद्ध हआ ऐसा घनघोर, राम न रावण मार क्गराया, हई धम्ण की जय हर ओर, माल्वान न णकया समप्णण, लंका णकनी राम को अप्णण, राम सकल नमद्ण वाणी बोल , लंका है लकां बसीन की, राज नवभीषण को है दीना, मान सदहत सीता लौटाई, अक्ग् परीक्ा राम न ललनी सीता न हस कर वह ददनी, चल राम है अवध की ओर, राम चन्द्र घर वापस आए, घर घर घी क ददए जलाय , कौशल्ा आरती लाई, संग म माता कैकयी आई, भरत शत्ध्न आए, संग नगर क जब जन आए, स्वगतं है श्ी राम का णकना, राम राज ददन वापस आए, धौबी क कह त्ागी सीता, राज धम्ण रह राम ननभाए, वाल्ीक क आश्म आई, वनदवी हई सीता माई, राम क दो सूत लसय न लजयाए, लब कुश उन क नाम कहाए, अश्मघ यज् है णकना, दश दश क मुनन बुलाए, लसय की स्वण प्र नतमा है रखी, अश्मघ का यज् रचाए, लब कुश न है अश् को पकड़ा, ददए सभी है वीर हराए, हनुमान को बांध ललया है, रण आए है श्ी राम, लब कुश प्रश्नों
महल क भीतर आए, दश ननकला ददया लखन को, ख़ुद महा प्रयाण णकना, संग नगर क नर और नारी, सुनी हई अयोध्ा सारी, जैसी सुनी है कथा सुनाई, इस म कुछ नहीं मरा भाई कमल नयन जय जय श्ी राम,