Vivekabhāskarah - Jan 2018

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उदद्घा ट कक­ ननरर्दे श कक­

नवनद्घारद्घायण वनन्द्योपद्घाधद्घायक न ङ्कटरमणभटक, पद्घाधद्घापकक ससंसस्कृतनवभद्घागस्य। नवदद्घान वव

समद्घा र कक­

पङ्कजरद्घाउलक, सद्घातकन्द्योत्तरनदततीयवरर्षीयक।

आलसं क द्घा न रकक­ र :­न वर म

ब वघन्द्योरक, सद्घातकदततीयवरर्षीयक। बद्धरव

अङ्कक­

ब १२(चतच न्यमहद्घापभक)

पकद्घा श ननरनद्घा ङ्क क­

१६/०१/२०१८

वद्घा स रक­

मङ्गलक

समद्घारकतीयम न भद्घारततीयवद्घाङ्मयव दृश्यनव रड न अद्घानस्तिकरशरनद्घानन।रट ट आनस्तिकरशरनरव ब ववरद्घानरशरनमवव अन्यतमम।न तस्य ववरद्घानरशरनस्य सनन अवद्घानरभवरद्घाक। तवर ब अनचनद्घाभरव द्घाभरव वद्घारक ब सद्घानमनधिकरन्द्योनत। तस्य अनचनद्घाभरव द्घाभरव वद्घारस्य पवतरकन्द्योऽयमtन चतच न्यमहद्घापभक। ब पमख ब कनवर ब अन्यतमक महद्घापभकब वचष्णवधिमरस्य भनक्तियन्द्योगस्य परमपवक्तिद्घा तथद्घा भनक्तिकद्घालस्य पमख

ब रण व शतीच चतन्यरववक।च चतन्यचनरतद्घामत स्कृ द्घानसद्घा भगवतक शतीचतच न्यस्य जन्म रडनशत्यनधिक­

ब सस्य शक्ल ब परब णमद्घायद्घा सं पनश्चिमबङ्गस्य नवदतीपव र शततमव ईशवतीयद्घाब व (१४८६)फलनमद्घा चतरब श न अभभत।यद्यनप बद्घालद्घावसद्घायद्घा सं अस्य नद्घाम नवश्वम्भर आसतीत न तथद्घानप ननमद्घाई गगौरद्घाङ्ग ब नयनक तसं भगवतक शतीकस्कृ ष्णस्य अवतद्घारसं इत्यद्घानरनद्घामवच तस्य पनसनद्धक जद्घातद्घा। तस्य अनयद्घा मन्यनव। भगवतक शतीगगौरद्घाङ्गद्घावतद्घारस्य शवष्ठत्वपनतपद्घारकद्घाक चतच न्यचनरतद्घामत स्कृ म,न चतच न्य­

व व ग्रनद्घाक नवद्यनव।अष्टनभक ससंसस्कृतशन्द्योकचकनवरनचतसं भद्घागवतम,न च चतन्यमङ्लम न इत्यद्घारयक अनक ब कतीतरनमवव तनस्मिन न नशकद्घाष्टकम न इत्यवकद्घा एव कस्कृ नतक अस्य पद्घाप्यतव।भगवतक शतीकस्कृ ष्णस्य गण न नवनहतम।तन्मतव जगनत अनस्मिन न कस्कृ ष्णलतीलद्घा एव शद्घाश्वतती ।भनक्तिपवम एव तस्य मभलशनक्तिक, स चव आनन्दकद्घारणम न इनत।शतीच चतन्यपवरततस्य हरव कस्कृ ष्ण हरव रद्घाम इनत महद्घासक सं तीतनर स्य मद्घाहद्घात्म्यम न अस्मिद्घाकसं हृनर लभतद्घा सं पनतष्ठद्घाम न इनत ससंपद्घार र भगवद्घान न शतीचतच न्यमहद्घापभकब इनत

न नवरयम न आधिद्घारतीकस्कृ त्य इरसं ननववरनम न अस्मिद्घानभक नवनहतम।तनररसं सहृरयहृरयवर ब पतीतत जनयवत न इत्यद्घाशद्घा।


व सद्घा कसं वल्लभद्घाचद्घायरक शतीच तच न्यरवव न व अनधिकद्घारती ,सद्घातकतस्कृततीयवरर्षीयक रद्घाजश

वन्दव शतीकस्कृ ष्णच चतन्यसं कस्कृ ष्णभद्घावद्घामत स्कृ सं नह यक। न न मरतीकद्घामनशकयत।। न आसद्घाद्यद्घासद्घारयन भक्तिद्घा न पव ब सनसं चवत्यभयसं ब व्यनतनरच्य शवयन्द्योमद्घागगर मनसं दुष्करमवव इत्यतक शद्घासन्द्योक्तिसं मतसं नशष्टद्घानशद्घा पद्घाचतीननसद्धद्घानरव ब नशष्टव्यवहद्घाररव ब च शतीचतच न्यरववस्य महतती पतीनतक अद्घासतीत।न स यतचव गच्छनत

ततचव पनणडत चक सद्घाकसं शद्घासद्घाथनर नरतन्द्यो भवनत। एवमवव पयद्घाग व एकरद्घा वल्लभभटद्घाखनव पनणडतवन सद्घाकसं तस्य सद्घाकद्घातद्घारन्द्यो जद्घातक। तत चतच न्यरववस्य भतक्ति भगवत्ततद्घावबन्द्योधि सं तरतीयद्घालगौनककक भद्घावद्घावसद्घा सं

ब द्घाश्चि ब नशनभक समद्घाकस्कृष्टन्द्यो जद्घातक शद्घासद्घालन्द्योचनकगौशलद्घानरगण सं पवक सं पवक सं तरतीयगणरद्घा

वल्लभभटक।

ब र रथयद्घातद्घावसरवऽनप च चतन्यरववस्य सङ्गक पद्घापन्द्योऽननव । तरद्घानतीम न अयसं पनणडतक पयद्घा

ब रसं स शतीमदद्घागवतन्द्योपनर चतच न्यरववस्य समकसं सयसं नकमनप स्रष्टब सं कस्कृ तसङ्कलक। अतस्तिरनसद्घा

टतीकद्घा सं रचयद्घामद्घास। परन ब अतचव समस्यद्घा जद्घातद्घा। चतच न्यरववक शतीधिरसद्घानमनद्घा कस्कृ तद्घा सं टतीकद्घा सं ब पद्घामद्घाणयरूपवण सतीचकद्घार। तन्मतव शतीधिरसद्घानमनद्घा एव शतीमदद्घागवतसद्घान न सकनठिन­

शबपटलद्घान न सरलतीकबवरतद्घा शनब तस्मिस्कृनतभद्घा सं सन्द्योरद्घाहरणसं रुनचपभणद्घार टतीकद्घा व्यरनच। न तवद्घारमवव समद्घानशत्य पवरततवय सं टतीकद्घा। अतक च चतन्यरववक सयसं र गवतद्घारद्घानद्घाम अदच शङ्करद्घाचद्घायभ ब नरतद्घा सं मवननरव।अपरत वल्लभद्घाचद्घायण तरतीयनशषद्घाक अनप एनद्घामवव टतीकद्घा सं सम्प्ररद्घायद्घानमन्द्यो र्दे शद्घाङ्करक

अदचतवद्घारन्द्यो न सतीचकव । अयसं त ब शतीधिरक टतीकद्घा सं खणडयनवव समतद्घानन पस्तन्द्योत सं ब पवस्कृत्तक। अत एव

ब वब कब । तरद्घा सटतीकद्घा सं पचद्घारनयतमब ननव र टतीकद्घा सं न चव शश शतीच चतन्यरववक तनच्छषद्घाश्चि वल्लभद्घाचद्घायस्य उपद्घायद्घानरसं समद्घानशतम।न ग्रनमद्घाहद्घात्म्य सं यद्यनप सवरक नतरसस्कृ तसं तथद्घानप शतीचतच न्यरववनव तनच्छषचश्चि सद्घाकसं समद्घारबव भगवत्प्रसङ्गव वल्लभद्घाचद्घायकर सतीयग्रनपनतपद्घाद्यद्घानन ततद्घानन पचद्घारनयतमब चवष्टत। नकन ब हद्घा, तरनप यनब क्तिवद्घानरपवद्घाहव तस्कृणद्घायमद्घान सं बभभव।

ब सवरतवच सद्घावमद्घाननसं पवक्ष्य तवन चतच न्यभक्तिक गरद्घाधिरपनणडतक तद्ग्रनशवणद्घायद्घानरुद्धक ।

महद्घापनणडतन्द्योऽनप नवनयती कन्द्योमलसभद्घावन्द्योऽयसं गरद्घाधिरक शतीचतच न्यरववस्य नवरुद्धमवतनरनत

ब धि सं पत्यद्घाखद्घातनब मच्छननप, भटचवतक समद्घाश्वद्घासनयत सं ब नवजद्घानननप, वल्लभभटस्य अननमद्घानरन्द्यो ब द्घाव। परन ब नवजद्घातसवरस व कबद्धव शतीच चतन्यरवव व गरद्घाधिरक बल्लभद्घाचद्घायर तत्यद्घाज। ग्रनसं शश उपद्घायद्घानरमपद्घाप्य शतीच चतन्यरववमवव समद्घाननसकतीम न अवसद्घा सं पद्घाकटयरयम।न तरद्घा शतीच चतन्यरववनव

समद्घाश्वद्घानसतन्द्योऽयसं

पनणडतक

''पनणडतवर ब अहङ्कद्घारन्द्यो

ब तव। यज्य

ब त्य नशष्टद्घानशद्घा ब सनसं च खणडनयत्वद्घा सच्छन्दसं शद्घासव्यद्घाखद्घान सं सगौद्धत्यस्यवच सम्प्ररद्घायमननसस्कृ


न पकद्घाशकम।''इनत। एवमवव सभद्घातन नवजद्घानन नवल्लभद्घाचद्घायकर शतीचतच न्यरववस्य वचनद्घामत स्कृ सं पद्घाय सं पद्घायम न एकरद्घा चतच न्यरववद्घार न रतीकद्घाग्रहणवचक सञद्घातक। परमकद्घारुनणकद्घात न चतच न्यरववद्घात न र च सनमतद्घानणक अयसं नशषक यगब लनकशन्द्योरमनव नरकद्घा सं पद्घाप्य ननष्कद्घामपवमक भनक्तिमद्घागस्य

उपद्घासकन्द्यो बभभव। एवमवव भटसदृशद्घाक अन्यवऽनप बहवक पनणडतद्घाक शतीचतच न्यरववस्य शरणद्घापनद्घाक न सनक ऐनहकपद्घारलगौनककदुकखरचन्यद्घारतीन अपसस्र कब ।

च चतन्यस्य शतीकस्कृ ष्णन्द्योपनर पभणद्घार शद्धद्घा आसतीत।न भगवतक कस्कृ ष्णस्य भजनसं कबवरन न

भनक्तिनचनननव एकद्घाग्रनचत्तन्द्यो भवनत स्मि।कस्कृ ष्णलतीलयद्घा भनक्तिसद्घाधिनद्घायद्घा सं तस्य वरच द्घाग्यक कमवण वरद्धतक सन न सन्यद्घासग्रहणव तस्य इच्छद्घा पबलद्घा जद्घातद्घा।सन्यद्घासग्रहणकद्घालव गरुब णद्घा तस्य नद्घाम

शतीकस्कृ ष्णच चतन्य इनत परत्तम,न अग्रव यर न चतच न्यमहद्घापभकब इनत नद्घामवच पनसद्धसं जद्घातम।न चतच न्यरववक सवद्घारन न भक्तिद्घान न वरनत स्मि यर न शतीकस्कृ ष्णस्य नद्घामस्मिरणमवव अस्मिद्घाकम न न ष्णभनक्तिरवव पद्घारमद्घारथकद्घा इनत। सवर्देरद्घामनप शद्घासद्घाणद्घा सं सद्घारक एकमद्घातजतीवनद्घावसद्घानम।कस्कृ शतीकस्कृ ष्णभगवद्घान वव अस्य चरद्घाचरनवश्वस्य अद्घाधिद्घारक इनत ।शतीचतच न्यभनक्तिपवद्घाहक बङ्गरवश व पनतकन्द्योण सं पवद्घानहतक सन न जद्घानतधिमरवणरननरवशवर सं सवर्देरद्घा सं चवतनस अमस्कृतवद्घानर नसरवच। अत एव

खलु शतीरद्घामकस्कृ ष्णपरमहसंसनव द्घानप भनणतम­न चतच न्यरवव भनक्तिर अवतद्घार, जतीवकव भनक्ति नशखद्घात व एसवनछिलवन। (चतच न्यरववक भक्तिवरवतद्घारक, जतीववभक भनक्तिमपब रवष्टबवततीणरक) ।। शनब तस्मिस्कृनतनवनहतसं

ब न सं तत्प्रचद्घारसं च नवधिद्घाय चतच न्यरववक धिरद्घायद्घा सं सनद्घातनवचजयनद्घाक उड्डयन व सनद्घातनवचनरकधिमद्घारनष्ठद्घा आजतीवनसं चवष्टयद्घामद्घास। समद्घाज व नसत्वद्घाऽनप सक भगवदद्घाव व एव सरद्घा नवरद्घाजतव। भद्घावस्य न एव सगगौरवमद्घाह – परमसतीनम रद्घाजमद्घानन्द्योऽयम अत

ब न धिनसं न जनसं न सन्दरक कनवतद्घा सं वद्घा जगरतीश कद्घामयव |

ब ती त्वनय || मम जन्मनन जन्मनतीश्वरव भवतद्घार न भनक्तिरहचतक

भक्तिरूपन्द्यो भक्तिवत्सलक पतीतमबवरद्घा,सद्घातकदततीयवरर्षीयक सभक्तिनचत्तनन्दनद्घाय भक्तिचवतकसकल्मरहरणद्घाय उन्मद्घागगर द्घानमभक्तिद्घानद्घा सं सन्मद्घाग र्दे पत्यद्घावतरनद्घाय सत्ययगब द्घात न नवनवधिरूपवण मत्यरधिद्घानम अनस्मिन न अवतवततीयरत भगवद्घान।न र नव भक्तिस्य हृरयसरनस पभण र्दे सनत तनस्मिन न भक्त्यरनवन्दसं कस्कृ पद्घाजलधिरभगवतक कस्कृ पद्घावद्घानरवरण

ब रवत न भक्तिवत्सलक भगवद्घान न हृरयकमलस्य पवममधि ब नपपद्घासकब पसबटनत, तरद्घा लन्द्योलुपमधिक न कलनभधिवय व तभरतीययगब ऽव नस्मिन न ब मत्यरधिद्घानम अवतरनत। परमरद्घानममद्घाम न अनसरन ससंसद्घारसद्घागरतटसं

ब र ब पनचचनररकब पद्घापकच कन्द्योडबप सं भतक्ति नननखलमनषव

वङ्गपरवशस्य


नरतीयद्घानभधिवयनगरव जगनद्घाथनमशमहन्द्योरयद्घात न शचतीमद्घातकब गभर्दे भक्तिवत्सलक भगवद्घान न सयसं भक्तितनमब न आनशनशयव। नपतस्कृपरत्तनद्घामद्घा नवश्वम्भरक अयसं मद्घातद्घा सद्घाररसं ननमद्घाइ­इत्यद्घाखयद्घा ब गद्घात नअयसं चतरब वशनतवत्सरवयनस वस्कृद्धमद्घातकब शचतीरवव्यद्घाक आहूयतव स्मि। भगवनत ननकसद्घाथद्घारनरद्घा पतद्घाक नवष्णनब पयद्घायद्घाश्चि पवमपद्घाशसं नछिरन न सनद्घासद्घाशम न अङ्गतीचकद्घार। सनद्घासद्घाननरसं स शतीच चतनरववनद्घामद्घा भक्तिचक अनभधितीयतव स्मि।

ब वणर्षीयद्घानद्घा सं जद्घात्यनभमद्घानक पद्घानणडत्यगवरक वस्कृथद्घातकर्दे ण पभववर ङ्गव भमणकद्घालव बद्घाह्मणद्घाद्यच्च ब यक, अनप च शभदद्घानरननमवणर्षीयद्घानद्घाम न अजद्घानम न असस्कृश्यतद्घा­इत्यद्घाकद्घानरकद्घा सं समद्घाज­ आयक न च नवजद्घाततीयद्घानद्घाम नअनप सनद्घातनधिमद्घारग्रहसं च अवलन्द्योक्य च चतनरववस्य दुरवसद्घा सं रशर रशरम एवसं

अनकणती बद्घाषद्घावत स्कृ व ससंवत्त स्कृ ।व हनरनद्घामसङ्कतीतरनमवव समद्घाजव्यद्घाधिरव स्य परमगौरधिनमनत नननश्चित्य

ब नमत्तक भभत्वद्घा समधिरब कणठिव न सभक्तिगणसं नग्नचरणक पनथर ब अटन न हनरनद्घाममधिपद्घा ब हनरनद्घामपचद्घारम न आरवभ।व पभरतीधिद्घानम ननवद्घासकद्घालव महद्घापभकब पणयधिद्घा मक अस्य मनहमद्घानम न ब तवद्घान।न पत्यहसं पद्घातक उपद्घालभत। शतीशतीजगनद्घाथरवव सं स सवष्टरववतद्घादद्घारकद्घानद्घाथरूपवण अनभभ र म न आसतीत।न सद्घानयद्घातद्घायद्घाक परसं जगनद्घाथमनन्दरगमनसं तस्य पथमसं पधिद्घान सं च कतव्य मनन्दरदद्घारनपधिद्घानद्घाननरसं जगनद्घाथरववस्य अरशरनद्घात न पभरतीवद्घासक तस्मि च अनधिकसं व्यथयनत स्मि। जगनद्घाथरववन्द्योपनर

तरतीयद्घायद्घाक

ब तीभक्तिवक अहचतक

पनरचयक

वयसं

तनदरनचतजगनद्घाथद्घा­

ष्टकस्तिन्द्योतद्घाधयन वन उपलभद्घामहव।

ब पद्घावरस्कृ द्घानयतम।न "यगब द्घानयतसं नननमरवण चकरद्घा शभन्यद्घानयतसं जगत्सवर गन्द्योनवन्दनवरहवण मव।।" ब भ एव। भक्तिवक भगवनदरहवण एवसं व्यद्घाकबलतद्घा शतद्घानरव णवनद्घानप अत्यनसदुलर

ब चरमपयद्घारयस्यद्घानभवक तस्मिच पनतकणसं पतीडयद्घाञ्चकद्घार। सनद्घासग्रहणस्य आनरमदद्घारशवत्सरसं

पनरवद्घाजकरूपवण जनद्घानद्घा सं दद्घाररव ब भमणवन हनरनद्घामनवतरणवन च व्यततीतद्घानन अननव , र चरमसद्घाधभभत सं गन्द्योपतीपवम सयम नआसद्घाद्य अननमदद्घारशवरर्देर ब अयसं भक्तितल्लजक भनक्तिमद्घागस्य

नननखलजगनत पचद्घारयद्घाञ्चकद्घार। शतीकस्कृ ष्णरववस्य मथरब द्घागमनद्घाननरसं शतीमततीरद्घाधिद्घायद्घाक चवतनस न दृशक भद्घावक सम्प्रनत चतच नपभन्द्योक मद्घानसव असबरत।न यद्घादृशती व्यद्घाकबलतद्घा समनब रतद्घा आसतीत, तद्घा महद्घापभकब भद्घावनवह्वलन्द्यो भभत्वद्घा शतीशतीजगनद्घाथरववम न आनलनलङ्ग्य तनस्मिनवव नवलतीनन्द्यो

जद्घातक इनत।।


बङ्गजनमनणक शतीच तच न्यमहद्घा प भ कब बभद्धरववघन्द्योरक,सद्घातकदततीयवरर्षीयक

ब ब कनकद्घावरद्घातगौ आजद्घानलनम्बितभ जगौ ससंकतीतरन चकनपतरगौ कमलद्घायतद्घाकगौ। ब धिमरपद्घालगौ नवश्वम्भरगौ नदजवरगौ यग

वन्दव जगनत्प्रयकरगौ करुणद्घावतद्घारगौ।। न तच न्यरववक एव शवष्ठबङ्गतीयक इनत। महद्घामहन्द्योपद्घाधद्घायकच हरपसद्घारशद्घानसनभक पन्द्योक्तिमद्घासतीत ­ च अनस्मिन न कद्घालव बङ्गभभमकव बहुत शबबनक एकक पचनतलक "न्यद्घाकद्घाच चतन्यक" इनत। वस्तितब क ब स्य परुरन्द्यो ब नचतशगौयद्घारनरनवहतीनस्य यवब कस्य कस्कृ तव व्यङ्गसं नद्घारतीजनन्द्योनचतलजद्घानम्रतद्घासभद्घावयक्ति न नउच्यतव। तत महद्घापभच ब तच न्यस्यवच नद्घाम गस्कृहतीतमनस्ति।बहूनद्घामवव मवव अनभमतमनस्ति कबवनर एवम

ब द्घाच्छनद्घान न अपद्घापयत।न एवमवव यत न शतीच चतन्यस्य भगवदजनरूपधिमरक तद्धमरग्रद्घानहणक तमन्द्योगण

बहुनभक आकवपद्घाक नकयनव अस्य महद्घामद्घानवस्य नवरयव। पथमतक­ स त ब आजतीवनम न अनतभद्घावपनरवस्कृतकन्दनरूपधिमरमवव पचद्घानरतवद्घान न इनत नव्ययवब कद्घानद्घाम न आकवपक। नदततीयतक­ न नप सक सम्प्ररद्घायमतम न र स्कृ तरशनद्घामतीसम्प्ररद्घायसक सनद्घासती आसतीत तथद्घा यद्यनप सक शङ्करद्घाचद्घायक आचरणनवतधि च असतीकस्कृ त्वद्घा समतमवव अपचद्घारयत।न तस्कृततीयतक­ ससम्प्ररद्घाय व सतीपरुब रद्घाणद्घा सं समवरद्घा सं ग्रहणसं कस्कृ त्वद्घा सक त ब समद्घाजनवनधिम न उल्लनङ्घितवद्घान।न अधिनब द्घा अस्मिद्घानभक तस्य महजतीवनसं न ब यतव। कन्दनरूपधिमरक इत्यक्ति ब व च चतन्यमहद्घापभन्द्योक भद्घावपवणतयद्घा पनठित्वद्घा त ब अन्यत नकमनप अनभभ

ब ईश्वरस्य नद्घामद्घा जद्घानरद्घानहत्यमववद्घात आनकपम,न इरमननचतम ।न यतन्द्यो नह एतत न धिमरजतीवन व न न अपवनकतमवव। अस्यवच नद्घामद्घानस्ति व्यद्घाकबलतद्घा। न कव वलसं धिमरजतीवन व अनप त ब यनस्मिन कतस्मिनश्चित सद्घाधिनकवत व तस्य सद्घाधिनस्य सभक्ष्मभद्घावक यरद्घा पनरपकक भवनत तरद्घा हृरयदवत्वद्घात नएवसं भवत्यवव इनत त ब जद्घायतव एव। अतक सक वतीरक एव आसतीत।न पद्घाठिसमयव पद्घानणडत्यव नपतकब जतीवनद्घावसद्घानद्घात न परसं ससंसद्घारकद्घायनर नवद्घारहव सनद्घासग्रहणद्घात न परसं बङ्गरवशस्य ततद्घालतीनमवच्छशद्घासकद्घानद्घा सं अत्यद्घाचद्घारसं

पनत आन्दन्द्योलनसमयव भगवनद्घामन्द्योच्चद्घारणसमयव हृरयद्घाकबनलतनननद्घार व अनप तस्य शगौयद्घारनरमतसं भ म।न सक त ब तयन्द्योक पनतफलनत। अधिनब द्घा सतीमद्घातन्द्योक पनतपद्घालननवरयव अनप यदुच्यतव तरनप वस्कृथद्घाभत ब अनमतत सतीकस्कृ त्य एव जननहतद्घाय सनद्घासम न अग्रहतीत।न नदततीयतक सक बद्घाह्यतक एव सनद्घासती न न र म्प्ररद्घायस्य मतमनप स्व्यकरन्द्योत।न नकन ब अत एवसं वक्तिव्यम आपतनत आसतीत।न आचद्घायस यत स

र म्प्ररद्घायस्य सनद्घानसनभक सद्घाकसं यद्यनप मवलनद्घानरकसं न कस्कृ तवद्घान न तथद्घानप आजतीवनसं आचद्घायस र नद्घासजतीवनम न अयद्घापयत।न ननत्यद्घाननत्यवस्तिनब वववकवद्घान न इहद्घा­ व नभकद्घानमद्घातण यथद्घाथस ब क मतब फलभन्द्योगवचरद्घाग्ययक्ति

ब तद्घासमनक शमरमद्घानररट­समनत्तवद्घान न ममब क

आसतीत।न


सन्द्योऽनपशङ्करद्घाचद्घायवर त न जगतद्घारणपसङ्गव

'अदयजद्घानततवस्ति'ब इत्यवव

अङ्गतीकरन्द्योनत।

भक्तिभगवतन्द्योक अयसं दचतसद्घाधिनपसङ्गस्ति ब लगौनककजतीवन व धिमरपवद्घाहसं नवकद्घासयनत। यतन्द्यो नह ब जतीवद्घानद्घा सं त ब बह्मततजद्घानद्घात न पभवर शरणद्घागनतक अपवनकतद्घा भवनत। तस्मिद्घारवव गतीतद्घायद्घाम न भन्द्योगयक्ति उक्तिसं­

न व सं शरणसं वज। सवरधिमद्घारन पनरत्यज्य मद्घामक

ब क।। इनत। व न्द्यो मन्द्योकनयषद्घानम मद्घा शच अहसं त्वद्घा सवरपद्घापभ ब अनप च इरसं रशरन सं समवरद्घा सं लन्द्योकद्घानद्घा सं कस्कृ तव सलभमनप वतरत।व यतन्द्यो नह तस्य मतमद्घासतीत न­ "अदयततवस्ति,ब कस्कृ ष्णसरूपसं, बह्मद्घात्मभगवत्तत्वम न इनत रूपतयसं तस्यवच

न रूपद्घानरमद्घातम”(शतीच तच न्य.आनरलतीलद्घा.नदततीयक)। अत नद्घारतीभक शदब वभन्द्योऽनप यथवच्छ­ पववशद्घानधिकद्घारसं परत्तवद्घान न शतीचतच न्यरववक। अनप च सत्यनमरसं यत न महद्घापभकब धिमरपचद्घारसमयव

जद्घानतधिमरवणद्घारनद्घा सं भवरसं न कस्कृ तवद्घान।न तस्मिद्घारवव ससम्प्ररद्घाय व कठिन्द्योरननयमकद्घारणद्घात ननशषवण एकव न नसयद्घा सं पनत कद्घामपभणरर शरन व कस्कृ तव सनत सक त ब तसं नतरष्कस्कृ तवद्घान न इनत जद्घायतव। तस्य धिमरमतव न न ब नद्घासतीत उच्छृङ्खलतद्घा उरद्घारतद्घा आसतीत नकन । धिमरपचद्घारसमयव बङ्गरवश व शृङ्खलद्घाबन्द्योधिक, ससंसस्कृतवक ब उन्मवरक, गतीतसद्घानहत्यद्घानद्घाम न उदवनसं, सवरमवव तस्य महदद्घान सं वतरत।व यवन रद्घाननव पनरपष्टबङ्गक

अधिनब द्घानप नशलकस्कृ नरससंसस्कृनतसभतद्घारुनचबन्द्योधिरव ब भद्घारतशवष्ठक जद्घातक। अनप च ननमजद्घाततीनद्घामनप पववशद्घानधिकद्घारसं परद्घाय सक त ब तस्य उरद्घारतद्घायद्घाक पनरचयमवव पद्घाकद्घाशयत।न यतन्द्यो नह समवरद्घा सं हृरयव एव भगवद्घान न अनस्ति तवन जद्घानतवणरनवचद्घारक कथम।न गतीतद्घायद्घामनप

एवमवव उक्तिम ­न ईश्वरक

भ द्घानद्घा सं हृदवशज व नरब नतष्ठततीनत। तन्मतव त ब कमरनभरवव जद्घानतनवभद्घागक, धिमर्दे त ब समवरद्घा सं ग्रहणम न सवरभत इनत। यनर च पद्घाप सं तवरद्घामनस्ति तरह जपनद्घामदद्घारवच तस्य पनरहद्घारक तवन तव अनप भगवच्चरणद्घानशतद्घाक भववयकब इत्यवव तस्य आशयक आसतीत।न शद्घासस्य पयन्द्योनगकमभरतरद्घासतीत न सक न धिब चव कटबम्बिकनमनत। यद्यनप अननव चव कद्घारणवन ब भद्घारततीयससंसस्कृतवक मभलमवव आसतीत वस महद्घापभक।

न नष्टव बहुधिमरभद्घानद्घाक वचष्णवसं पनत कटद्घाक सं कबवरनन यत न­'जद्घात खन्द्योयद्घालव वचष्णव हय' (अथद्घारत धिमर्दे ववष्णवक भवनत) इनत।।


ब द्घारसं शतीच तच न्यचनरतम न च तच न्यभद्घागवतद्घा न स शभब ङ्कररद्घासक,सद्घातकतस्कृततीयवरर्षीयक

ब वनयत सं ब व सरन्द्योरुहव लन्द्योकद्घाननस्रद्घा अशवरलन्द्योकशन्द्योकनद्घाशद्घाय कनलमलगौघनवनद्घाशद्घाय रद्घाधिद्घापम जगत्यवततद्घार सहृरयहृरयव

जगरतीश्वरक रससम्भद्घारसं

ब ण। चतच न्यमहद्घापभरूपव

ब पस्तितव

तनद्ध

तजतीवनद्घालन्द्योकद्घालन्द्योनकतसं ग्रनदयसं च चतन्यभद्घागवतम,न चतच न्यचनरतद्घामत स्कृ ञ्च।

ब सं भजतव च चतन्यद्घावतद्घारस्य बद्घाललतीलद्घारसरञन।व तत ततवस्कृन्दद्घावनरद्घासस्य च चतन्यभद्घागवतसं पद्घामख बद्घाहुलवन भगवतक च चतन्यरववस्य चतरब वशनतवर रपयरन सं वणरनद्घा नवनहतद्घा। ब वद्घात्सलद्घानरभद्घावद्घाक सम्यग न पनरसबट्यनव भगवतन्द्यो जतीवन।व मद्घातद्घा रद्घास्यसखमद्घाधियर न रद्घा ब तगौ ब नरगपवब न सह पनरहद्घास,व रतीनजनद्घानद्घा सं सहद्घानभभ सह वद्घात्सलसवहव, अग्रजवन सह पतीत्यद्घाम, म

च तस्य मद्घानवतीयरूपसं पसबनटतसं च चतन्यभद्घागवतव। पकस्कृ तव च चतन्यभद्घागवदरणतसं बद्घालचतच न्यचनरतसं सलशन्द्यो नवनवयतव।

बद्घाल व सक ननमद्घाईनद्घामद्घा पखद्घातक आसतीत।न यरद्घा पद्घाठिशद्घालद्घायद्घाक गस्कृहसं पत्यद्घायद्घानत

न म्यनशशन्द्योक नचतसं पनतभद्घानत स्मि। तथद्घानह उक्तिसं चतच न्यभद्घागवतव ­ तनस्मिन ग्रद्घा

ब धिभलद्घाय धिभसर पभ ब शतीगगौरसन्दर। नलखन कद्घानलर नकछु शन्द्योभ व मनन्द्योहर।। इनत। न ष्टत। तरद्घा सक एकरद्घा स बद्घालद्घावसद्घायद्घा सं कनन्दतमब द्घारभत। बहवक तसं शद्घाननयतमब अचव भ द्घाय च ननरमतसं न चववद्य सं सतीकतमबर न आनभलरत।न च चतन्यरववक शद्घासचचद्घारयद्घामनप अत्यनसं नवष्णपब ज न व सकतद्घान न ननष्णद्घात आसतीत।न अत एव छिद्घातद्घान दृषच न शद्घासन्द्योक्तिद्घान नवरयद्घा न पस्कृन च्छनत स्मि। ततक छिद्घातद्घाक तसं दृषद्घा दूरद्घातलद्घायनव -

ब ब न्द यद्घाइववन गङ्गद्घा सद्घान कनरवद्घार।व मक पभ ब रवनख आडव पलद्घाइल कत दूरव।। रवनख पभ ब नजजद्घासनव पडबयद्घार गणव।

ए ववटद्घा आमद्घारव रवनख पलद्घाइल कव नव।। इनत। ब ब न्दमरब द्घायरक उपनर ननमद्घाइपनणडतस्य आकन्द्योशक। गङ्गद्घारद्घासपनणडतस्य अनप चद्घासतीत न मक टन्द्योलव ननमद्घाइमरब द्घायरक अत्यनसं कलहक आसतीत।न

ब नगर ब शक्ल ब द्घाम्बिरबह्मचद्घानरणक शतीधिरस्य च नसग्धिसं हृद्यञ्च वणनर द्घा वतरत व शतीच चतन्यद्घानरद्घा वस्कृन्दद्घावनरद्घासस्य वणरनद्घायद्घाम।न


ब द्घाम्बिरबह्मचद्घारती रनरदन्द्यो बह्मण आसतीत।न एकरद्घा महद्घापभकब बलद्घात नतद्धस्तिद्घात ननभकद्घान सं शक्ल न ङ्क्त। ब सतीकबवरन अभ नकयद्घामधव शतीगगौरद्घाङ्गक मधव मधव कद्घानजरलनस्य गस्कृहसं गत्वद्घा तस्य पद्घातनव जलसं पतीतवद्घान।न गन्द्योनवन्दरद्घासक पमद्घाणयनत ­

भक्ति पवम वन्द्योझद्घाइतव शतीशचतीनन्दन। लगौहपद्घात तनब ल लइलवन ततकण।।

ब आपनद्घार। जल नपयव महद्घापभ ब सखव कद्घार शनक्ति आछिव तद्घाहद्घा नय कनहवद्घार।। इनत। न व सक जद्घानतभवरसं न्यकस्कृ तवद्घान।। एवम्प्रकद्घारण


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