जी.एस. टी. की आलोचनात्मक व्याख्या - सुधीर हालाखंडी

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भभारत मम लगनने वभालने जज.एस.टट. ककी आललोचनभात्मक व्यभाख्यभा

– ससधजर हभालभाखखंडज-

पप्रिय ममितत्रों आप सभज कलो

एवखं आपककी सम्मिमाननीय एववं अग्रणनी सवंस्थमा

“भमारतनीय उध्ययोग एववं व्यमापमार मिवंडल”

कयो इस वरर्ष कके व्यमापमाररी ददिवस ककी हमाददिर्ष क बधमाई एववं शशभकमामिनमाए . इस ददिवस कके

सन्दिभर्ष मिम

मिशझके भमारत मिम प्रिस्तमापवत “गसड्स एवखं सरवर्विस टटै क्स” ककी आलयोचनमात्मिक व्यमाख्यमा करनके कयो कहमा गयमा हह . यहमाहाँ दिके खखियके जनी.एस.टरी. कके गशणत्रों ककी व्यमाख्यमा तयो आपनके कई पवशकेरजत्रों सके एववं कई मिवंचत्रों पर

कमाफकी समिय सके सशन रखिनी हयोगनी लकेककन यह भनी सच्चमाई हह कक ककसनी भनी प्रिणमालरी मिम मसफर्ष गशण हरी

गशण हयो ऐसमा शमायदि हरी सवंभव हह और जनी.एस.टरी. कके गशणत्रों कके बमारके मिम इतनमा अधधक मलखिमा जमा चशकमा हह कक इसके दियोहरमानमा शमायदि हरी यहमाहाँ आवश्यक हयो.

एक रवशनेष बभात और हटै यहमाहाँ कक सबसके पहलके सन 2006 मिम जब भमारत मिम जनी.एस.टरी. ककी चचमार्ष प्रिमारम्भ ककी गई थनी तब इसककी एक “एकल” कर कके रूप मिम इस तरह सके व्यमाख्यमा ककी गई थनी जजसकके तहत कर ककेवल एक हरी जगह अथमार्षत “कमद्र” मिम एकत हयोनमा थमा जजसके “कमद्र और रभाज्ययों” कके बनीच मिम बवंटनमा थमा .लकेककन

हमिमारके दिके श मिम शमासन कमा सवंघनीय ढमावंचमा हह जजसकके तहत कमद्र एवखं रभाज्य

दियोनत्रों कयो कर लगमानके कमा सवंवहधमाननक अधधकमार प्रिमाप्त

हह और इसनी कमारण

कम द्र और रमाज्यत्रों कके

हयो चशकम हह कक यह अब “दलोहरभा जज.एस.टट. कर” बन चशकमा हह और

आपकयो यह जमानकमार

बनीच कर लगमानके कके अधधकमार कयो लकेकर इस “एकल जनी.एस.टरी.” कके समाथ अब तक इतनके अधधक समिझझौतके

आश्चयर्ष हयोगमा कक जनी.एस.टरी. कके जयो फमायदिके भमारतनीय अथर्ष व्यवस्थमा, करदिमातमाओवं तथमा उपभयोक्तमाओवं

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