सवभाव का वह अलौिकक दशरन िजसे हम पशानत मन कहते है, पितिकया रिहत वह कमर है िजसका जीवन पुषप है और आतमा, फल। यही मूलयवान धरोहर िजसे िवदा या िववेक (उिचत-अनुिचत िनणरय की शिक) भी कहते है सोने से भी बहत कीमती है। धन कमाना उसके िलए िकतना अथरहीन होगा िजसका जीवन िनमरल और मन शानत हो गया हो। और उसकी आतमा सतय के अदभुत समुद (जहां भी देखे सतय ही िदखे) के बीच मे िसथत है जो उन तरं गो के नीचे हो रहे कोलाहल और पितिकयातमक कमर से परे है, और यही है अनंत शािनत। िकतनो को हम जानते है जो अपने जीवन की मृद ु और अदभुत सुंदरता से अपिरिचत है और उस जीवन को कटुता से भर िलया है, और वे अपने भयावह ववहार से अपने सवभाव को नष कर ले रहे है और कही भी वे शािनत नही चाहते। यह पश अब हमारे सामने आ खड़ा है िक कै से अथाह मनुषयो को यह समझाया जा सके गा िक वे अपने जीवन को नष न करे और अपने आतम बोध की इस कमी के चलते, पसनता के अवसर को और न खोएँ। िकतने कम लोग बाकी बचे है िजनहोने जीवन मे संयम बचा कर रखा है और उनके पास अलौिकक शािनत है जो उनके सवोतम सवभाव का लकण है।
32