Environment booklet hindi

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श्री गणेशाय नमः धम्मम शरणम ् गच्छािम, संघम शरणम ् गच्छािम, बुद्धम शरणम ् गच्छािम कपिपिल वस्तु मे जन्मे , िसिद्धार्थ र गौतम, िजन्होंने धर्मर (प्रार्कपृितकप ज्ञार्न) और सिंघ (प्रेम कपे सिार्थ

सिह अस्तिस्तत्व) और बद्ध ु त्व (सित्य कपी प्रार्िप्त, यार् िनवार्रण) कपार् सिन्दे श िदयार्, बद्ध ु कपी िस्थ ित प्रार्प्त कपी।

वैज्ञार्िनकप सिोच आत्म-बल है जो सिवर-सिुलभ, सिरल, सिंवेदनशील, िनभरय और िवश्वव्यार्पिी है । जबिकप कपोई भी रार्जनैितकप सिंगठन, जो अस्तसिुरक्षार् कपे कपार्रण बनते है, िस्थ रतार् कपे िलए िनयंत्रण

कपे कपार्नून और सित्तार् पिर िनभरर रहते है। इन अस्तसिुरों कपार् सिंगठन मजबूत तो होतार् है िकपन्तु उनमे आत्म-बल नहीं होतार्। एकप सिमूचार् पिवरत, आत्मबल कपार् प्रतीकप है जबिकप ईंटों और गार्रे सिे जुड़ कपर बनी इमार्रत एकप सिंगठन है । रार्जनीित, पिवरत कपे आत्मबल कपो तोड़ उसिे पि​िहले ईंट

बनार्ते है और िफिर उसिे अस्तपिने ही कपार्नूनी गार्रे सिे जोड़, एकप इमार्रत बनार्ई जार्ती है । सिंगठन

इसि तोड़-जोड़ कपी िक्रियार् सिे ही िस्थ र है । इन इमार्रतों यार् सिंगठनों कपी रक्षार् यिद न कपी जार्य तो ये िबखर सिकपते है। ये रार्जनैितकप िसिद्धार्न्त, जो भय, अस्तसिुरक्षार् और शत्रत ु ार् कपे भार्व पिर

आधर्ार्िरत होते है, स्ट्रटे िजकप (रण-नीित, शत्रत ु ार्, अस्तसिुरक्षार्, िरस्कप यार् भय पिर आधर्ार्िरत) व्यवस्थ ार् कपहलार्ते है। स्ट्रटे जी यार् रणनीित, िकपसिी भी कपार्यर यार् व्यवस्थ ार् कपो, यद्ध ु -कपलार् और शत्रु-भार्व सिे कपरने कपी एकप िवस्मयकपार्री सिोच है ।

योद्धार्, शार्सिकप यार् व्यवसिार्यी वे उदार्हरण है जो शत्रु कपो िमत्र सिे अस्तिधर्कप महत्व इसि​िलए दे ते है

क्योंिकप वे शत्रु कपो हरार् कपर ही शिक्तशार्ली बन सिकपते है। उनकपे िवचार्र मे , कपेवल शत्रु ही इसि योग्य है जो उनकपी कपमजोिरयों कपो ठीकप-ठीकप जार्न सिकपतार् है जबिकप िमत्र तो उन कपमजोिरयों

कपो ढ़कप ही दे गे। शत्रत ु ार् कपार् लार्भ तभी है जब उसिसिे, िनष्पिक्ष िविधर् सिे बल कपी तल ु नार् कपर अस्तपिनी कपमजोरी कपार् पितार् चले और उसिे दरू िकपयार् जार्य। शत्रत ु ार् यार् प्रितरक्षार्त्मकप अस्तहं कपार्र … मन कपी वह अस्तशार्ंत िस्थ ित है जो िकपसिी कपे उकपसिार्ने यार् जीवन पिर सिंकपट होने सिे ही पिैदार् होती

है । यही सिफिलतार् है । यार्द रहे , सिफिलतार् कपार् कपोई भी नशार् शत्रु यार् प्रितस्पिधर्ी कपे िबनार् िस्थ र

नहीं रहतार्। यह नशार् जब तकप चार्य-कपार्फिी कपी तरह रहे तब तकप यह हार्िनकपार्रकप नहीं है िकपन्तु शरार्ब यार् हार्ड-र-ड्रग बन जार्य िजसिकपे िबनार् जीिवत रहनार् सिंभव न हो तब यह बीमार्री है । आत्मार् कपी िस्थ ित िनिश्चंत और गहरे जल कपी तरह शार्ंत है । तप्ृ त आत्मार् कपे सिमक्ष मन कपी

अस्तशार्ंत तरं गे, जल मे लहरों कपी तरह उठती है और प्रितिक्रियार् कपर वार्पिसि आ शार्ंत हो जार्ती है। बहुत बड़ी रार्हत यह है िकप मन कपी शार्ंित कपो नष्ट कपरने वार्ले िवचार्र , अस्तहं कपार्र यार् िनयंत्रण कपे कपार्नन ू यार् अस्तन्य शत्रु-भार्व, कपभी स्थ ार्यी नहीं रहते और इनकपी गित अस्तंततः आत्मार् कपे सिार्श्वत सित्य और प्रार्कपृितकप धर्मर मे ही िवलय हो जार्ती है । आत्म-ज्ञार्न स्थ ार्यी है िजसिे कपोई भी बुद्ध

यार् वैज्ञार्िनकप, अस्तपिने आपि खोजने मे सिमथ र है और िजसिकपे िलए िकपसिी शत्रत ु ार्, अस्तशार्ंित यार् अस्तसिुरक्षार् सिे बने सिंगठनों कपी आवश्यकपतार् कपभी नहीं होती।

िसिद्धार्न्त यार् िनयम कपभी बनार्ए नहीं जार् सिकपते क्योंिकप ये पि​िहले सिे ही प्रार्कपृ ितकप रूपि मे मौजूद होते है और कपेवल उनकपार् खोजार् जार्नार् ही बार्कपी है । ईसिार्कप न्य ूटन

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013

कपे गरु ु त्वार्कपषणरण कपे


2 िसिद्धार्न्त, जबिकप एकप व्यिक्त कपी खोज है िकपन्तु उसिसिे

सिंसिार्र कपे सिभी प्रार्णी लार्भार्िन्वत है।

इसिकपे िवपिरीत, सिंगठनों यार् रार्ष्ट्र कपे रार्जनैितकप कपार्नन ू , जो चन ु े हुये प्रितिनिधर् यार् योद्धार् यार् व्यवस्थ ार् कपे अस्तिधर्कपार्री िमल कपर बनार्ते है, कपी उपियोिगतार् सिीिमत होती है । यही कपार्रण है िकप स्ट्रटे जी यार् रण-नीित कपभी िस्थ र नहीं होती और इसिकपे कपार्यार्रन्वयन मे सिरकपार्रों और उनकपे अस्तिधर्कपार्िरयों कपी एकप फिौज भी कपम है । कपार्नन ू कपे बल पिर, एकप छोटार् सिार् घर भी नहीं चलार्यार्

जार् सिकपतार्, तब वह रार्ष्ट्र यार् दे श िजसिमे मनुष्यतार् कपार् िवकपार्सि हो चकप ु ार् हो, कपब तकप सिफिल होगार्? रार्ष्ट्र यार् सिरकपार्रे जो धर्न छार्पितीं है, शार्सिन कपरतीं है, भ्रष्टार्चार्र कपे िलये कपुख्यार्त भी है

और, इसिकपे बार्वजद ू वे आिथ रकप घार्टे मे रहतीं है। यिद सिंसिार्र मे मनष्ु यतार् कपार् िवकपार्सि हो गयार् तब सिरकपार्रों कपार् अस्तिस्तत्व ही नहीं होगार्। महार्भार्रत मे , रार्ष्ट्र यार् िकपसिी भी सिंगठन कपो धर्ार्रण

कपरने वार्ले कपो नेत्र-हीन ‘धर्त ृ -रार्ष्ट्र’ कपी सिंज्ञार् दी है जो कपमर -फिल सिे मोिहत हो उसिकपी रक्षार् कपे

िलए यद्ध ु कपार् कपार्रण बनते है। धर्त ृ -रार्ष्ट्र, िबनार् सिंयम (सिम्यकप दृष्टिष्ट, सिंजय कपी दृष्टिष्ट) कपे महार्भार्रत कपे सित्य कपो दे ख भी नहीं सिकपार् थ ार्।

प्लेटो कपे िवचार्र िरपि​िब्लकप नार्म कपे पिुस्तकप मे पिढ़े जार् सिकपते है। पिार्िलिटक्सि, अस्तसिभ्य सिमार्ज कपे शार्सिन-िविधर् कपी रचनार् है । भार्रतीय िजसिे म्लेक्ष यार् अस्तिवकपिसित सिभ्यतार् कपहते थ े प्लेटो ने उसिे इम्पिरफ़ेक्ट सिोसिार्इटी कपहार्। इम्पिरफ़ेक्ट सिोसिार्इटी मे पिार्िलिटक्सि कपार् लक्ष्य जार्नवरों (अस्तसिुरित क्षत िकपन्तु स्वतंत्र) यार् अस्तिनयंित्रत व्यिक्तयों कपो ... पिशु (पिार्श मे बंधर्े िकपन्तु सिुरित क्षत)

यार् िनयंित्रत व्यिक्तयों मे बदलार् जार्नार् थ ार्। िनयम और कपार्नन ू सिे बंधर्े इन पिशुओं कपो अस्तँग्रेजी मे पि​िब्लकप कपहते है और िजनकपे लड़ने वार्ले गुण कपे कपार्रण ही शार्सिन कपी आवश्यकपतार् पिड़ती है । पिशु-व्यवस्थ ार् यार् पि​िब्लकप-िसिस्टे म कपो आज भी िरपि​िब्लकप कपहते आ रहे है, और पिॉलिलिटक्सि

उसिकपे ही शार्सिन िविधर् कपार् नार्म है । मनष्ु य िजसिकपार् मन सिंयिमत हो, कपभी पिशु नहीं होतार् क्योंिकप उसिमे लड़ने कपार् स्वभार्व नहीं होतार् इसि​िलये, पिॉलिलिटक्सि सिे वे दरू रहते है। अस्तसिभ्य

सिमार्ज मे इसि िरपि​िब्लकप यार् सिंगठन सिे िनयंत्रण कपी स्थ ार्पिनार् कपर, जार्नवरों कपो पिशु बनार्ने कपी

प्लेटो कपी सिोच अस्तित सिरार्हनीय है िकपन्तु यह व्यवस्थ ार् पिशु यार् पि​िब्लकप बनार्ये गये जीवों कपो, मनुष्य बनार् पिार्ने मे िबल्कपुल भी सिमथ र नहीं है । आशार् बार्कपी है िकप इन पिशुओं कपो रक्षार्, प्रजनन और जीिवकपार् चलार्ने सिे िजतने भी लार्भ होते हों, आत्मार् कपी पिुकपार्र इनकपो कपभी न कपभी मनुष्य बनने पिर िववश अस्तवश्य कपरे गी।

सिोक्रिार्टीसि (बीसिी -469 सिे -399) कपे अस्तनुयार्इयों, प्लेटो–एिरस्टॉलटल-आलेक्सिेद्र ने, रण कपे िलए

िवख्यार्त, ग्रीकप मे रार्जनैितकप सिंगठन बनार्, कपार्नून कपे भय पिर आधर्ार्िरत, िरपि​िब्लकप कपी स्थ ार्पिनार् कपी। इसि सिंगिठत सित्तार् यार् सिरकपार्रों ने , िनयंत्रण मे रखे उन जीवों िजसिे पि​िब्लकप

कपहार् गयार् कपो सिशतर जीने कपी स्वतन्त्रतार् कपार् अस्तिधर्कपार्र िदयार्। उनकपे ही सिमकपार्लीन, भार्रत मे गौतम बद्ध ु (बीसिी -563 सिे -483) कपे अस्तनय ु ार्यी सिम्रार्ट अस्तशोकप ने, शार्ंित कपी स्थ ार्पिनार् कपे िलए,

धर्मर कपी नींव पिर मनुष्योिचत सिंघ कपार् िनमार्रण िकपयार्। भार्रत, जब िवश्व कपार् महार्न दे श थ ार्, तब वहार्ँ यह मार्न्यतार् थ ी िकप धर्मर (प्रार्कपृितकप ज्ञार्न) सिे

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3 सिंघ (प्रेम कपे सिार्थ सिह अस्तिस्तत्व) और, इसि भयमुक्त सिमार्ज सिे ही बुद्धत्व (सित्य कपी प्रार्िप्त, यार् िनवार्रण) सिंभव है ।

म्लेच्छों मे सिंगठन कपे कपार्नूनों कपार् उद्देश्य, प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपी खोज नहीं, बिल्कप उनकपे द्वार्रार्

बनार्ए गए कपार्नन ू कपी सिफिलतार् कपे अस्तहं कपार्र , और स्ट्रटे जी (रण-नीित) कपार् प्रदशरन है । कपार्नन ू ,

भय कपार् ही एकप उपिकपरण है और दं ड- व्यवस्थ ार् कपे द रु ु पियोग सिे ही, सिरकपार्रों कपे बल कपी विृ द्ध होती है । रार्जनैितकप कपार्नन ू , प्रितिक्रियार् कपरते है और िबनार् अस्तपिने स्वभार्व कपो बदले सिंसिार्र कपो

बदलनार् चार्हते है। सिंगठन मे आत्म-बल मे हुये िनरं तर हार्िन कपार् पियार्रप्त प्रमार्ण यही है िकप शार्सिन िबनार् धर्न-बल, और धर्न-बल िबनार् शार्सिन, नहीं चल सिकपते। धर्त ृ -रार्ष्ट्र कपी तरह सिंवेदनहीन हुये िबनार् यार् िबनार् धर्न, सिंगठन मे शार्सिन चलार्यार् ही नहीं जार् सिकपतार्। िसिद्धार्न्त रूपि मे, जनतार् और शार्सिकप, अस्तच्छे व्यार्वसिार्ियकप शत्रु होते है और यही शत्रत ु ार् ही सिंगठन यार्

रणनीित कपार् आधर्ार्र है । िबनार् िकपसिी शत्रु-भार्व, सिंगठन कपार् बननार् सिंभव ही नहीं है क्योंिकप अस्तसिरु ों पिर भरोसिार् तभी िकपयार् जार् सिकपतार् है जब वे अस्तसिरु ित क्षत हों। यिद अस्तसिरु ों मे एकप दसि ू रे

अस्तसिुर सिे प्रितस्प्रधर्ार् कपार् ड-र न हो तब सिंगठन कपे शिक्त सिे अस्तसिुर शार्सिकप और भी िनरं कपुश हो

सिकपते है। िरपि​िब्लकप कपी व्यवस्थ ार् मे सिेनार् (defense), शार्सिन (executive), सिंिवधर्ार्न (parliament) और कपार्नन ू -सिम्मत दं ड--नार्यकप (judiciary) एकप दसि ू रे कपो पिैनी नजर सिे दे खते रहते है। अस्तिवश्वार्सि और स्वार्थ र कपे बलों मे टकपरार्व सिे बने शार्सिन कपो दश्ु शार्सिन इसि​िलए ही कपहते है। धर्न यार् बल, कपो दय ु ोधर्न (दिू षणत धर्न/बल) इसिीिलए कपहते है।

कपार्यर कपो रणनीित कपी तरह कपरते रहने सिे जीव कपी ब िु द्ध कपंु िठत हो जार्ती है और उनकपार् हर

एकप िदन बरार्बर अस्तिनिश्चत रहतार् है । िबनार् िनभरयतार् यार् िनिश्चंत हुये िबनार्, क्यार् कपोई िवकपार्सि हो सिकपतार् है ? व्यवस्थ ार् (व्यय कपे िलए िस्थ त) सिे बने सिंगठन, इसि तरह, अस्तसिरु ित क्षत होने कपे सिार्थ ही िनबरल हो, व्यय हो जार्ते है। सिंगठन स्वयं ही अस्तपिनार् शत्रु भी है जो यार् तो उसिे नष्ट

कपर दे तार् है यार् शार्सिकप कपो बदलते रहने कपे िलए यत्न कपरतार् है । महार्भार्रत मे कपौरव कपार् इितहार्सि यह िसिखार्तार् है िकप सिंगठन, व्यिक्त कपे स्वभार्व कपो नहीं बदल सिकपार् बिल्कप उसिे और भी िनबरल और लार्लची बनार्, शार्सिन कपे तंत्र कपो मजबूत कपरतार् रहार्। आज भी यह स्पिष्ट है िकप िनरं कपुश सिंगठन जैसिे

बैकपो

कपार् आिथ रकप िनयंत्रण, और सिरकपार्रों कपार् कपार्नन ू ी भय और

भ्रष्टार्चार्र, और व्यवसिार्िययों और बड़े उद्योगों कपार् नैितकप वचरस्व लगार्तार्र कपम ही हो रहार् है ।

अस्तमरीकपार् और भार्रत जैसिे दे श जो प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न और ज्ञार्न सिे भरे है , नार्हकप ही बैकपो सिे

िनिमरत आिथ रकप मंदी, धर्न पिर िनभरर मार्ँग-आपिूितर, सिट्टार् बार्ज़ार्र कपी अस्तिस्थ रतार्, और कपार्नूनी-

तंत्र कपे भ्रष्टार्चार्र कपे भ्रम कपो लेकपर िचंितत है। व्यवस्थ ार् मे उथ ल-पिुथ ल तो होगार् ही। ध्यार्न रहे िकप सिंगठन जैसिे सिरकपार्रे, बैकप और व्यार्वसिार्ियकप सिंस्थ ार्एं, मनष्ु य कपार् सिार्थ कपभी भी छोड़ सिकपती है, िकपन्तु आत्मार् कपार् प्रेम, प्रार्कपृितकप िनयमों कपार् ज्ञार्न और पियार्व र रण ही उनकपे जीवन कपो बचार्एगार्।

भय यार् अस्तसिुरक्षार् ही, सिंगठन कपो जोड़ कपर रखती है । आिथ रकप बल और प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपार्

पिार्रंपि​िरकप उपियोग, अस्तस्त्र शस्त्र और यद्ध ु कपे िलए ही हुये थ े। पिथ् ृ वी कपे अस्तिधर्कपतर भार्गों मे ,

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


4 िमिलटरी कपार् आदशर ही व्यवसिार्य और शार्सिन कपार्यर मे अस्तपिनार् िलए गए। दष्ु टों कपार् सिंगठन छोटार् होने पिर भी, बहुत मजबूत होतार् है , इसि​िलए वे बहुसिंख्यकप, िकपन्तु प्रार्कपृितकप जीवन शैली पिर िनभरर अस्तसिंगिठत और िनिश्चंत , लोगों पिर आसिार्नी सिे िनयंत्रण कपर लेते है। आत्मार् जो सिभी प्रार्िणयों मे अस्तिभन्न है, कपार् ज्ञार्न यार् सित्य ... लोगों कपो स्वार्भार्िवकप प्रेम और दयार् सिे जोड़ दे तार् है । इसिे कपुल यार् सिंघ कपहते है जो िनिश्चंत और अस्तसिंगिठत रहने पिर भी नष्ट नहीं

िकपयार् जार् सिकपतार्। जोड़ कपे यह दो ही प्रकपार्र है... पि​िहलार्, िनयंत्रण और िनदर यतार् सिे मजबूत िकपयार् गयार् िकपन्तु अस्तस्थ ार्यी; और दसि ू रार्, अस्तित-सिंवेदनशील िकपन्तु स्थ ार्यी।

ध्यार्न रहे िकप सिंगठन कपे कपार्नन ू , तब तकप ही कपार्रगर है, जब तकप शत्रत ु ार् यार् प्रितस्प्रधर्ार् यार् लार्लच कपार्यम है । क्योंिकप इसि शत्रत ु ार् कपे भार्व सिे, उन कपार्नूनों कपो शिक्त िमलती है जो उनकपे

बीच सिमझौतार् कपे आधर्ार्र बनते है। पिंचतंत्र कपी वह गार्थ ार् कपभी नहीं भूलनी चार्िहए िकप कपैसिे दो िबिल्लयों कपे बीच रोटी कपे बरार्बर बँटवार्रे कपे िलए, बंदर ने वह सिार्री रोटी इसि​िलए खार् ली क्योंिकप रोटी कपो जब भी तोड़ कपर तरार्जू पिर रखार् जार्तार्, कपोई न कपोई िहस्सिार् बढ़ ही जार्तार्

थ ार्। पिरु ार्तन कपार्ल सिे, सिरकपार्रे मनष्ु यों कपी स्वार्भार्िवकप लार्लच और उनकपे बीच कपी शत्रत ु ार् कपार् लार्भ उठार्ती है, और वे जनतार् पिर कपार्नून और मुद्रार् (धर्न कपे प्रतीकप) द्वार्रार् शार्सिन कपरती आयी है। कपार्नून कपार् भय, मनष्ु यों मे पिरस्पिर िवश्वार्सि कपे न होने कपी दशार् मे, और शत्रत ु ार् कपो

सिमझौते मे बदलने कपे िलए और उसिे बनार्ये रखने कपे िलए , एकप आवश्यकप व्यवस्थ ार् है । जबिकप िकपसिी भी सिमस्यार् कपार्, यह, सिमार्धर्ार्न नहीं है ।

व्यवसिार्य और रार्ष्ट्र-िहत मे ये सिमझौते कपे रार्जनैितकप कपार्नून कपार्रगर हो भी सिकपते है, िकपन्तु पियार्रवरण कपे धर्मर प्रार्कपृितकप और सिनार्तन है। इसि​िलए,

ध्यार्न रहे , िकप व्यवसिार्ियकप यार्

रार्ष्ट्रीय शत्रत ु ार् िनवार्रह कपी व्यवस्थ ार् हे तु बने कपार्नन ू , अस्तथ र-शार्स्त्र, लेखार् और गिणत, तकपनीकप यार् बल द्वार्रार् िनयंत्रण कपे सिार्धर्न, उन प्रार्कपृितकप पियार्रवरण कपी सिंवेदनशील

व्यवस्थ ार् सिे िभन्न

होते है। पियार्रवरण व्यवस्थ ार्, कपार्नन ू कपार्, कपोई रार्ष्ट्रीय खेल, यार् प्रितस्प्रधर्ार्, नहीं है और, इसिे

िबनार् सिंवेदनशील और वैज्ञार्िनकप सिमझ कपे, कपभी नहीं िकपयार् जार् सिकपतार्। पियार्व र रण व्यवस्थ ार् मे हमार्री सिोच उसि तरह नहीं होनी चार्िहए जैसिे िकप व्यवसिार्ियकप, रार्जनैितकप

यार् रण-नीितकप

शत्रु-व्यवस्थ ार् (strategic approach of management) मे। इसि​िलए इसि व्यवस्थ ार् शार्स्त्र

कपो सिरल, सिंवेदनशील और बोधर्गम्य बनार्यार् जार्नार् (self and system awareness) ही उिचत है । इसि शार्स्त्र कपार् उद्देश्य, मनष्ु यों कपे सिोच मे बदलार्व कपार् है , िजसिसिे वे प्रार्कपृितकप िवज्ञार्न

मे रूिच ले , और उनकपे द्वार्रार् िकपये जार्ने वार्ले कपार्यर प्रार्कपृितकप धर्मर कपे अस्तनुकपूल बने । यिद यह नहीं होतार् है , तब, उनकपी रक्षार् िकपसिी भी रार्जनैितकप कपार्नन ू यार् न्यार्यार्लय सिे नहीं हो सिकपती । अध्याय के क्रम (Index of Content)

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5

1। प्राथनर्थना, परिरभाषा और शब्द ज्ञान िजसि तरह अस्तशुद्द जल पिीने सिे पिीिलयार् कपार् रोग हो जार्तार् है , उसिी तरह शब्द और वार्णी कपे अस्तशुद्ध बोलने, िलखने, और सिमझने सिे मनष्ु य कपी आत्मार् पिीिड़त हो जार्ती है । मनुष्य कपार्

शरीर ही वीणार् है और प्रार्थ न र ार् कपे कपमर उनकपी वार्णी है। बिु द्ध (श्री गणेश), शरीर रूपिी वीणार् कपो झंकपृत कपरती है और वार्णी (सिरस्वती), आत्मार् (श्री रार्म) कपे िवचार्रों कपो सिंसिार्र मे व्यार्पिकप

कपरने कपार् मार्ध्यम है । वार्णी कपी िनमरलतार् (मल-रिहत अस्तथ र, शुद्द, िनिश्चत) िजतनी अस्तिधर्कप

होगी, सिंसिार्र मे वह उतने ही दरू तकप जार् सिकपेगी। इसि वार्णी कपार् उद्देश्य (लक्ष्य, लक्ष्यमी), जीवों मे पियार्व र रण व्यवस्थ ार् कपे प्रित आध्यार्ित्मकप रुिच है । इसि िवज्ञार्न कपी सिमझ और िवश्वसिनीयतार् कपी हार्िदर कप प्रेरणार्, भगवार्न िशव है।

1.1

परयार्थवरण = पि​िर+आवरण। 'पि​िर' अस्तथ ार्रत िवशेषण यार् अस्तसिार्धर्ार्रण और, 'आवरण' अस्तथ ार्रत सिुरक्षार् कपवच।

पि​िरश्रम, पि​िरत्यार्ग आिद शब्दों मे 'पि​िर' शब्द कपार् अस्तथ र 'िवशेषण' ही है । पियार्रवरण, वह िवशेषण सिरु क्षार् कपवच है , िजसिे हम दे ख नही सिकपते जबिकप, वह अस्तसिार्धर्ार्रण है । यिद यह प्रार्कपृितकप कपवच हट जार्ए तो सिभी प्रार्णी िजसिमे मार्नव जार्ित भी है , वह सिमार्प्त हो जार्यगार् और लोग बीमार्री, भूख और प्रकपृित कपी आपिदार् सिे मर जार्यग े े।

1.2 शास्त्र = सि + अस्तस्त्र । िवज्ञार्न कपी उसि पि​िवत्र िस्थ ित कपो कपहते है जो उसि अस्तस्त्र सिे युक्त हो िजसिकपे मार्ध्यम सिे उसिकपी अस्तपिनी अस्तशुिद्ध यार् प्रदषण ू ण लगार्तार्र दरू होती रहे | धर्मर (प्रकपृित कपे िनयम), सिनार्तन है जो कपार्यर कपरते ही रहते है चार्हे लोगों कपो इसिकपार् ज्ञार्न हो यार् नहीं। िकपन्तु जो इन िनयमों कपो जार्न लेते है उनकपे िनणरय उनसिे िभन्न हो सिकपते है िजन्हे इसिकपार् ज्ञार्न नहीं होतार्। यही ज्ञार्न, मनष्ु यों

मे स्वभार्व, अस्तथ ार्रत िनणरय कपी दृष्टढ़तार्, कपार् कपार्रण

है । यिद खोज कपार् उद्देश्य, िविधर् यार् प्रार्प्त ज्ञार्न कपे प्रकपार्शन दोषणपिूणर होंगे , तो उसि ज्ञार्न पिर

िनभरर, उनकपे िनणरय कपभी दृष्टढ़ और सिंवेदनशील हो ही नहीं सिकपते और इसिे , चिरत्र यार् स्वभार्व कपार् पि​ितत होनार् कपहते है। िकपसिी भी प्रार्णी मे अस्तपिनार् बल नहीं होतार्। स्वभार्व कपार् िवकपार्सि ही बल है । बल, प्रार्कपृितकप िनयमों कपे ज्ञार्न सिे प्रार्प्त

िनणरय कपी क्षमतार् सिे उत्पिन्न होते है। ट्रे न कपार् चार्लकप इसिकपार्

उदार्हरण है िकप वह िबनार् श्रम िकपए, िकपसि तरह, ट्रे न पिर बैठे हजार्रों यार्ित्रयों कपो, हजार्रों िकपलोमीटर कपी यार्त्रार् कपरार् दे तार् है । गार्ंधर्ी कपार् बल उनकपार् सिार्मियकप रार्जनैितकप ज्ञार्न और आत्म िवश्वार्सि ही थ ार् िजसिकपे द्वार्रार् उन्होने भार्रत कपे कपरोड़ों लोगों कपो, जो गल ु ार्मी कपी अस्तसिह्य पिीड़ार्

सिे ग्रस्त थ े, प्रेिरत िकपयार् और भार्रत मे जन-तंत्र बन सिकपार्। और, यिद प्रार्कपृितकप िनयमों कपार् ज्ञार्न न हो, यार् अस्तशुद्ध ज्ञार्न हो, तो कपठोर सिे कपठोर शार्सिन, भय यार् श्रम इसिकपार् िवकपल्पि नहीं है ।

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


6 1.3

सन्यास = सि न्य । यह कपत्तरव्य कपमर कपे िनधर्ार्ररण, मन कपी शार्िन्त कपार् उद्योग अस्तथ ार्रत

लक्ष्य पिर ध्यार्न और है ।

तकपर द्वार्रार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपी शुद्धतार् कपे सिार्थ िनणरय लेने, कपी िविधर्

सिन्यार्सि, न्यार्सि और न्यार्यार्लय मे भी 'न्य' कपार् अस्तथ र 'शोधर्' कपार्यर ही है । धर्मर कपी खोज ही शार्स्त्र यार् सिन्यार्सि कपार् लक्ष्य है ।

धर्मर , कपार्रण और उसिकपे प्रभार्व कपार् दृष्टढ प्रार्कपृितकप सिम्बन्धर्

(involuntary network of cause and effect) है , और इसिकपे िवशेषण ज्ञार्न (अस्तथ ार्रत िवज्ञार्न, science or system) कपे बल पिर ही मनुष्य तरह तरह कपे सिार्हिसिकप िनणरय ले सिकपतार् है ।

धर्मर, प्रार्कपृितकप, अस्तव्यय यार् सिनार्तन है , और यह कपभी नष्ट नहीं िकपयार् जार् सिकपतार्। इसि​िलए

बुिद्धमार्न मनष्ु य, धर्मर कपी खोज और उसिकपे शुद्ध ज्ञार्न कपे िलए सिदै व ही प्रयत्न कपरते है। प्रकपृित कपे िनयमों कपार् ज्ञार्न, रार्ित्र मे दीपिकप कपी लौ है जो तब तकप ही उपियोगी है जब तकप

सित्य, सिूयर कपार् प्रकपार्श नहीं िमलतार्। सित्य कपी इसि खोज मे प्रार्प्त कपमर-फिल, प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपे वैसिे प्रमार्ण है जैसिे यार्त्री कपे पिद-िचन्ह। पिद-िचन्हों कपो िगनने वार्लार् यार्त्री, कपभी आगे नहीं बढ़ सिकपतार्। कपमर-फिल सिे मोह

कपार् त्यार्ग , सिन्यार्सि है ; क्योंिकप ज्ञार्न कपी यार्त्रार् और कपमर -फिल कपार्

मोह सिार्थ -सिार्थ नहीं हो सिकपते। भौितकप शार्स्त्र कपे एकप ऋषिषण न्यूटन ने गरु ु त्वार्कपषणरण कपे िसिद्धार्ंत यार् धर्मर कपी खोज कपी, जो उनकपे जन्म सिे पि​िहले भी थ ार्, और उनकपी मत्ृ यु कपी बार्द आज भी

है । ज्ञार्न, ज्ञार्नी कपार् स्वभार्व बन जार्तार् है । प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपी ठीकप-ठीकप सिमझ यार् शुद्धतार्, सिे

स्वभार्व िनरं तर िवकपिसित होतार् रहतार् है ; और आत्मार् कपे सित्य कपी प्रार्िप्त पिर वह स्वभार्व , शार्ंत (सिंत यार् अस्तंितम) हो जार्तार् है । उसिकपे कपमर-फिल भी कपहीं नहीं जार्ते िफिर उसिसिे मोह क्यों? ज्ञार्न कपार् दरू ु पियोग कपेवल वही कपर सिकपतार् है , िजसिकपार् स्वभार्व िवकपिसित नहीं हो सिकपार् और वह कपमर फिल सिे आसिक्त है । कपमर-फिल कपे मोह कपार् त्यार्ग और सित्य कपे मार्गर पिर िनरं तर यार्त्रार् ही सिन्यार्सि है , इसि सिे ज्ञार्नी, स्वभार्व यार् चिरत्र सिे, पि​ितत नहीं होतार्। 1.4 सत्य, सिभी प्रार्िणयों मे अस्तिभन्नतार् कपार् स्वतः बोधर् है । जबिकप प्रार्कपृितकप ज्ञार्न, प्रार्िणयों मे िभन्नतार् कपार् कपार्रण है । प्रेम और अस्तिहंसिार्, सित्य कपे ही अस्तनुभव है।

गुलार्ब कपार् फिूल लार्ल रं ग कपार् इसि​िलए िदखतार् है क्योंिकप कपोई दो दे खने वार्ले उसिे सिमार्न प्रकपार्श मे दे खते है। रं ग गुलार्ब मे नहीं है वह सिूयर कपार् प्रकपार्श कपे सिार्त रं गों मे सिे एकप है । यिद उसि

गल ु ार्ब कपो अस्तलग अस्तलग प्रकपार्श मे दे खे तो गल ु ार्ब कपार् रं ग िभन्न हो जार्यगार्। प्रकपृित कपे प्रभार्व अस्तथ ार्रत प्रकपार्श कपे कपार्रण ही गुलार्ब, लार्ल रं ग कपार् िदखतार् है , और प्रकपार्श कपे न रहने पिर यार्

बदलने सिे उसिकपार् रं ग वह नहीं होतार्। गल ु ार्ब और वह व्यिक्त दोनों ही सित्य है िकपन्तु प्रकपार्श

यार् प्रार्कपृितकप प्रभार्व कपे रहने व न रहने सिे , दे खने और िदखने वार्ले दोनों कपो, िस्थ ितयार्ँ िभन्न

िभन्न लगे गी। एकप मार्ँ, अस्तपिने पिुत्र कपो पि​िहचार्न ही लेती है जबिकप उसिकपे पिुत्र कपार् शरीर, आयु, उसिकपे बार्ल कपे रं ग, व्यवहार्र, और वेश-भूषणार् कपैसिे भी हों। मार्ँ, अस्तपिने पिुत्र कपे सित्य कपार् वणरन

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7 नहीं कपर सिकपती और िभन्नतार् िजसिकपार् वणरन सिंभव है वह, गल ु ार्ब कपे लार्ल रं ग कपी तरह, सित्य नहीं है ।

प्रकपृित कपे प्रभार्व और ज्ञार्न यद्यिपि िभन्नतार् कपार् भ्रम पिैदार् कपरते है िकपन्तु सित्य अस्तथ ार्रत

आत्मार्, सिभी प्रार्िणयों मे अस्तिभन्न है । ब्रह्मार्ंड- मे ग्रहों कपी दरू ी यार् सिमीपितार्, यार् सिमय कपे नार्पि, भार्षणार् और इितहार्सि कपी िभन्नतार् भी प्रार्कपृितकप प्रभार्व ही है, सित्य नहीं। सित्य सिे प्रकपृित कपे सिभी प्रभार्व अस्तथ ार्रत,

तीनों गण ु ो (सित रज तम ) कपार् क्षय हो जार्तार् है , और इसि तरह अस्तन्वेषणी

क्षित्रय (क्षय ित्र) योग द्वार्रार् िनगुण र –सित्य अस्तथ ार्रत ब्रार्ह्मण बनतार् है । सित्य, सिंवेदनशीलतार् कपी चरम अस्तवस्थ ार् है ।

जो सित्य कपो नहीं जार्नते और िजन्हे िकपसिी न िकपसिी प्रार्कपृितकप प्रभार्व ने अस्तपिने ज्ञार्न सिे भ्रिमत

कपर िदयार् है वे, अस्तहं कपार्र कपे कपार्रण महार्न उद्योग, यद्ध ु और घोर कपमर कपरते है। आत्मार् कपे सित्य कपी प्रार्िप्त, सिभी प्रार्कपृितकप प्रभार्व िजसिमे जीवन-मत्ृ यु कपे शार्रीिरकप और

मार्निसिकप

अस्तनभ ु व भी है, सिे मक् ु त िस्थ ित है । 1.5

व्यवस्थना = व्य + स्थन । अस्तथ ार्रत व्यय कपे िलए िस्थ त यार् अस्तस्थ ार्यी।

व्यवस्थ ार्, मनुष्यों द्वार्रार् धर्मर कपे ज्ञार्न कपे उपियोग यार् दरू ु पियोग कपो कपहते है । उदार्हरण कपे िलए, भौितकप शार्स्त्र कपे िनयम यार् प्रार्कपृितकप धर्मर यद्यिपि नहीं बदलते , िकपन्तु मशीन जो उसिसिे

बनी एकप व्यवस्थ ार् है , कपभी स्थ ार्यी नहीं रह सिकपती और उसिकपी मरम्मत और बदलार्व जरूरी है । धर्मर यार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपे प्रयोग यार् दरू ु पियोग कपे िलए, कपेवल मनष्ु य कपार् िववेकप ही िजम्मेवार्र

है , प्रकपृित यार् सिनार्तन धर्मर नहीं । आग यार् पिार्नी कपार् भी अस्तपिनार् अस्तपिनार् एकप धर्मर है जो जीवन कपे िलए आवश्यकप है, िकपन्तु वे िवपिदार् कपार् कपार्रण भी है।

धर्मर और व्यवस्थ ार् मे िभन्नतार् कपार् यह ज्ञार्न बहुत आवश्यकप है । जीव िवज्ञार्न और िचिकपत्सिार् व्यवस्थ ार् िभन्न िभन्न है। अस्तथ र शार्स्त्र और अस्तथ र-व्यवस्थ ार् (धर्न िनयंत्रण व्यवस्थ ार्, बैिकपं ग) िभन्न िभन्न है । भौितकप िवज्ञार्न और तकपनीकप भी िभन्न िभन्न होते है। धर्मर कपी स्वार्भार्िवकप िदशार् सित्य कपी ओर उन्मख है , जबिकप व्यवस्थ ार् कपार् उद्देश्य, धर्मर कपी िदशार् कपो मोड़, उसिे ु

उपियोिगतार् तकप सिीिमत कपरनार् है । व्यवस्थ ार् इसिी िलए, अस्तस्थ ार्यी रहती है और उसिकपी लगार्तार्र

मरम्मत

कपी जार्ती है , जबिकप धर्मर, स्वतंत्र और सिनार्तन यार् स्थ ार्यी है ।

1.6 तापर व्यवस्थ ार् मे धर्मर कपे अस्तसिंतिु लत होने सिे तार्पि यार् पियार्व र रण मे मल िजसिे प्रदषण ू ण कपहते है, उत्पिन्न होते है। उदार्हरण कपे िलए, स्टीम-इंिजन एकप तकपनीकपी व्यवस्थ ार् है जो मेटलजी (धर्ार्तु कपे गुण), मकपेिनक्सि (भौितकप बल) और थ मोड-ार्इनार्िमक्सि (ऊष्मार् कपे िसिद्धार्न्त) जो प्रार्कपृितकप

िनयम यार् धर्मर है, सिे िमल कपर बनार् है । स्टीम इंिजन कपे दघ र नार् कपे सिभी कपार्रण, इन धर्मों कपे ु ट

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


8 अस्तसिंतुलन सिे ही हो सिकपते है। यही तार्पि यार् व्यवस्थ ार् कपार् िवघटन है । अस्तवगुण, मार्निसिकप अस्तसिंतुलन और उसिसिे होने वार्ले दै िहकप रोग, अस्तपिरार्धर्, दधर् र नार्ओं कपे कपार्रण कपो कपहते है। ु ट पियार्रवरण मे बदलार्व सिे रोग, अस्तपिरार्धर्, दघ र नार्एं, और व्यवस्थ ार् कपी अस्तसिंवेदनशीलतार् कपार् सिीधर्ार् ु ट सिम्बन्धर् है ।

धर्मर कपे ज्ञार्न (यार्, प्रार्कपृितकप िवज्ञार्न) द्वार्रार्, जब मनष्ु य अस्तपिने गण ु मे हो रहे शभ ु और अस्तशभ ु पि​िरवतरन िजसिे वह बदल नहीं सिकपतार्, कपे कपार्रण कपो जार्न लेतार् है

तब, वह पियार्रवरण कपो बदल

कपर अस्तपिने गण ु ों मे पि​िरवतरन कपर सिकपतार् है और इसिसिे, तार्पि और उसिकपे दष्ु प्रभार्व सिमार्प्त हो जार्ते है। पियार्रवरण कपी प्रार्कपृितकप रचनार् ही, प्रकपृित है । प्रार्णी कपे गण ु भी पियार्रवरण पिर ही िनभरर होते है ।

मनुष्य कपे स्वभार्व मे शार्ंित, आश्रम (श्रम रिहत), आत्म बल, और स्थ ार्यी पि​िरवतरन, िकपसिी

भी कपार्यर कपार् मूल उद्देश्य है । तार्पि कपार् होनार् इसिकपे िवपिरीत है , और यह अस्तसिह्य है । मार्निसिकप

तार्पि यार् धर्मर मे अस्तसिंतुलन कपे अस्तभ्यस्त शार्सिकप, औद्योगी और व्यवसिार्यी, सिमय बचार् कपर, अस्तपिने िवश्रार्म (श्रम कपार् िवकपल्पि) कपे िलए प्रयत्न

कपरते है, और पियरटन कपे िलए प्रार्कपृितकप

स्थ ार्नों कपी खोज कपरते है। इसिकपे िवपिरीत कपुछ लोग स्वभार्व सिे ही उद्योग और व्यवसिार्य कपे उद्देश्यों मे ही अस्तपिने

िवश्रार्म, आश्रम (श्रम कपार् न होनार्), और प्रसिन्नतार् और प्रार्कपृितकप

पियार्रवरण कपो जीवन पिद्धित मे अस्तपिनार् लेते है।

यह दे खार् गयार् है , िकप कपुछ कपार्यर, स्वमेव ही आत्म-बल कपे श्रोत होते है और िजतनार् कपार्यर

िकपयार् जार्तार् है , उतनार् ही उत्सिार्ह और आत्मबल बढ़तार् है (work is source of energy), जबिकप इनकपे िवपिरीत िकपन्ही अस्तन्य सिंतार्पि जनकप कपार्यों कपे कपरने सिे थ कपार्वट यार् आलसि यार् आत्मबल कपार् ह्रार्सि होतार् है (work is sink of energy) और िजसिे बार्हर सिे पिूितर कपे िलए अस्तवकपार्श और मनोरं जन यार् नशे कपी आवश्यकपतार् होती है ।

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2। परानी ‘प्राणी’ का गण ु स्वभाव, आत्मा की मन में ितिस्थितितिति है। ितिजितिना ही ितिवश्वास बढ़तिा जिायगा, स्वभाव (character) अर्थितार्थाति ितिनणयर्थाय लेने की क्षमतिा (stability of decision) उतिनी ही सटीक होगी। ज्ञान की शुद्धतिा द्वारा ही पूर्वार्थानुमान ितिवश्वास में बदलतिा है। ितिजितिना ही ितिवश्वास बढ़ेगा, मन अर्पने आप बदलने लगतिा है ितिजिससे जिीव का स्वभाव बदल जिातिा है। इसी तिरह प्रकृत ितिति अर्पने तिीन गुणयों से , आत्मा को मन और शरीर के नाव पर बैठा कर भव सागर या संभावनाओं के सागर को पार करा देतिी है। नानक और कबीर, सतिो गुणयी संति हैं। वैज्ञाितिनक और उद्योगी, रजिो गुणयी हैं। और ितिहटलर और रावणय, अर्सुर या तिमो गुणय स्वभाव के हैं। सति गुणय में के वल आत्मा की ही पितिहचान बाकी बचतिी है और जिो के वल एक है। जिीवों के स्वभाव में इस पिरवतिर्थान का कारणय पूर्वार्थानुमान के ज्ञान और आत्म-ितिवश्वास का ितिवकास है। तिम गुणय से जिीवों के नाम या उनके ऐतितितिहाितिसक और अर्हंकािरक तिथ्यों की पितिहचान होतिी है। एक इितितिहासकार या पत्रकार की दृतितिष्टि में नानक, कबीर, ितिहटलर और रावणय चार अर्लग अर्लग व्यक्तितिक्ति होंगे और उनके महत्व की उसकी पिरभाषा उनके ख्याितिति के कारणय अर्लग अर्लग ितिलखा जिायगा। िकन्तिु रजिो गुणयी, जिीवों को उनके उपयोितिगतिा से जिानतिा है। सतिो गुणयी, जिीव को उसके एक आत्म-तित्व से ही जिानतिा है।

1. सति गुणय वह गुणय है जिो जिीव को तित्व से जिानतिा है। लोहे को लोहा ही खींचतिा है। उसे लोहे के बने चमचे या कील या पानी में चलने वाले ितिवशाल जिहाजि में कोई ितिभन्नतिा नहीं लगतिी और उनमें के वल लोहा ही ध्यान आतिा है। सीतिा का चिरत्र सति गुणय का उदाहरणय है। उन्होने द्वार पर आये ितिभक्षुक को खाने के ितिलए ितिभक्षा देने के ितिलये , लक्ष्मणय रे खा भुला दी और उससे ही रावणय ने उनका अर्पहरणय िकया। सतिोगुणयी कष्टि सह कर भी अर्पना गुणय त्याग नहीं करतिे।

2. रजि गुणय जिीव के तित्व को नहीं, उसके स्वभाव या उपयोितिगतिा को जिानतिा है। और, इस कारणय उसे चमचे, कील और जिहाजि में ितिभन्नतिा िदखतिी है। रजिो गुणयी उसे पितिहले बचायेगा जिो उपयोगी हों भले ही वह उसका न हो। निदयों का जिल सभी जिीवों के ितिलए उपयोगी है और सभी का होतिे हुये भी उसका कोई माितिलक नहीं है। उन निदयों की पितिवत्रतिा की रक्षा करने वाले, रजिोगुणय हैं।

3. तिम-गुणय उपयोितिगतिा को नहीं, स्वाथितर्था को देखतिा है और उसके ितिलए के वल वही वस्तिुयें तिभी महत्व रखतिी हैं जिब वे उसकी अर्पनी हों। तिम गुणय यह अर्पने–पराये का भेद है जिो देन -लेन के भाव या मूर्ल्यांकन का कारणय है। तिमो गुणयी का चमचा यिद बच जिाय तिो पानी में चलने वाला जिहाजि जिो उसका नहीं है उसके डूर् बने से उसे कोई िचतिा न होगी। जिल के आिथितक महत्व को देखतिे हुये जिो बोतिल-बंद पानी बेचतिा है उसको निदयों के जिल के उपलब्ध होने से हाितिन होगी। तिमोगुणय कभी िकसी उपयोगी पदाथितर्था को सभी के मुक्ति उपयोग के ितिलये छोड़ नहीं सकतिे और वे के वल उसी की रक्षा करतिे हैं जिो उनके अर्ितिधकार में हो।

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10 लकड़ी वृतक्ष का भाग है। वृतक्ष जिंगलों में पाये जिातिे हैं। वह िकसी का नहीं है और सभी का है। सभी उसका ध्यान रखतिे हैं और अर्पनी अर्पनी आवश्यकतिानुसार लोग उस लकड़ी को घर बनाने के ितिलये या फर्नीचर बनाने में काम में लेतिे हैं। जिंगल से अर्लग हो जिाने से उसी लकड़ी से बने फर्नीचर और घर की उपयोितिगतिा अर्लग अर्लग हो गयी। सतिो गुणय जिो लकड़ी की तिरह फर्नीचर और घर दोनों में एक है िकन्तिु उसके रजिोगुणय , लकड़ी का घर या फर्नीचर या उसके अर्लग अर्लग उपयोग हैं। रजि, धूर्ल या प्रकाश के िकरणयों को भी कहतिे हैं और इसितिलए सति-गुणय का धूर्ल ही रजि-गुणय है। अर्ंितितिम में, जिब वही फर्नीचर िकसी व्यक्तितिक्ति के अर्ितिधकार में आ जिातिा है तिब उसकी उपयोितिगतिा और भी सीितिमति हो जिातिी है, और यही अर्ंधकार या तिमो गुणय (अर्पना पराया) है। कोई भी गुणय अर्नुितिचति नहीं है। िकन्तिु , यह अर्वश्य ध्यान रखना चाितिहये िक फर्नीचर की मांग बढ्ने से कहीं जिंगल ही न समाप्त हो जिाय, और इस मांग के कारणय हुये परस्पर युद्ध से कहीं यह संसार ही नष्टि न हो जिाय। अर्थितार्थाति तिीनों गुणयों का संयम में रहना आवश्यक है। यही संयम ही ितिनगुर्थाणय है क्योंिक ितिवद्युति तिरं गों के तिीनों दृतितिस्टकोणय, गुणय या फर्ेजि जिब ितिमलतिे हैं तिब वही न्यूर्ट्रल या ितिनगुर्थाणय हो जिातिा है। जिब गुणय अर्संतिुितिलति हो जिातिे हैं तिब यही दुघर्थाटना या अर्वगुणय है और यही अर्सुर (सुर या ितिनितिश्चितितिा से रितिहति) तित्व है। इस तिीन गुणय के ितिसद्धान्ति के उपयोग और दुरुपयोग के उदाहरणय से ही हम सभी का जिीवन भरा है। निदयों का जिल उपयोगी है िकन्तिु वे दूर्ितिषति इसितिलए हैं िक उनमें तिमो गुणय नहीं है और वे िकसी से अर्पनी रक्षा नहीं कर सकतिीं। निदयां िकसी की संपितित्ति नहीं हैं इसितिलए उपयोगी (रजिो गुणयी) होतिे हुये भी उनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है। बोतिल बंद पानी िकसी की संपितित्ति होतिी है इसितिलए तिमो गुणय उसकी रक्षा करतिा है। जिल जिो प्राकृत ितितिक निदयों या बोतिल-बंद पानी दोनों में है अर्पने अर्पिरवतिर्थानीय स्वभाव से सतिो गुणयी है। समस्ति अर्थितर्था-शास्त्र इन तिीनों गुणयो का ही रहस्य है। बाज़ार या शासन की व्यक्तवस्थितायेँ, तिमो गुणयी हैं क्योंिक ये िकसी भी वस्तिु का ितिनमार्थाणय नहीं करतिे बितिल्क उनके अर्ितिधकार से जिुड़े ितिनयम बनातिे हैं, और उनके लेन-देन और उनसे हुयी लड़ाई का ितिनपटारा करतिे हैं। वैज्ञाितिनक या कलाकार, रजिो गुणयी हैं जिो उपयोगी वस्तिुओं का ितिनमार्थाणय करतिे हैं और उन तिकनीक या उपकरणयो के बाजिारी दुरुपयोग से सदैव िचितितिति रहतिे हैं और इसितिलए उन वस्तिुओं का वे ितिनरं तिर सुधार करतिे रहतिे हैं। सृतजिनकारी व्यक्तितिक्तियों का जिीवन चिरत्र रजिो गुणय से ितिवख्याति हो जिातिा है। अर्पने -पराये या धन संग्रह के भेद से दूर्र, ये जिीव के वल ितिनरापद सृतजिन कायों से ही संतिुष्टि होतिे हैं। सतिो गुणयी, उपयोितिगतिा से परे हैं। वे ितिवज्ञान की खोजि करतिे रहतिे हैं और सभी वस्तिुओं और प्राितिणययों में उस ितिवज्ञान को ही देखतिे हैं। न्यूर्टन या आइन्स्टाइन ने कभी िकसी उपयोगी वस्तिु की रचना नहीं की। वे ितिवज्ञान या प्राकृत ितितिक धमर्था के साधक थिते और तिकनीकी से बचतिे थिते क्योंिक वे जिानतिे थिते िक तिकनीक या टेक्नॉलजिी के उपयोग और दुरुपयोग पर उनका कोई ितिनयंत्रणय नहीं है। ितिनगुर्थाणय सभी गुणयों का श्रोति है , यहाँ सभी गुणय ितिमल कर एक हो जिातिे हैं। ितिजिस तिरह साति रं ग ितिमल कर पारदशी प्रकाश बनतिे हैं, उसी तिरह आत्मा ितिनगुर्थाणय है। सति, रजि और तिम गुणय का मूर्ल, ितिनगुर्थाणय है। ितिनगुर्थाणय को वैज्ञाितिनक प्रतिीकों से भी समझा जिा सकतिा है। ितिबजिली के तिीन फर्ेजि जिब जिुडतिे हैं तिब ही न्यूर्ट्रल या ितिनगुर्थाणय बनतिा है। भगवन ितिशव के ितित्रशूर्ल (तिीनों गुणयो) का मूर्ल या आधार ितिनगुर्थाणय है। गंगा, सरस्वतिी और यमुना का ितिमलन स्थितल प्रयोग (प्र-योग, ितिवशेष योग, या प्रयाग ) ही ितिनगुर्थाणय, ब्रह्म है।

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11 श्री राम, ितिनगुर्थाणय हैं। उनमें तिम, रजि, और सति गुणय अर्पने पूर्री मात्रा में और संतिुितिलति हैं। समस्ति जिगति उनका अर्पना है अर्थितार्थाति कोई भी जिीव उसने अर्लग या पराया नहीं हो सकतिा। यही अर्पने पराए का भेद ही उनका तिमो गुणय है। श्री राम का स्वभाव या अर्योध्या (जिहां युद्ध न हो) जिैसा उनका जिगति है ितिजिसकी उपयोितिगतिा का वणयर्थान करना तिो संभव ही नहीं। यही उनका रजि गुणय है जिो रजि या धूर्ल की तिरह काल की सभी सीमा के पार ितिनबार्थाध रूप से जिाना और सुना जिातिा रहेगा। श्री राम का सति गुणय , उनका सरल और आितित्मक प्रेम है। वे जिीवों में कमर्था या स्वभाव या अर्हंकार के ितिभन्न ितिभन्न कपड़े पर ध्यान िदये ितिबना ही उनकी आत्मा से एक हैं।

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3। प्राकृितक िसद्धांतों के ज्ञान से प्राप्त बल के उपरयोग और दरू ु परयोग का रहस्य

मार्नव, प्रकपृित कपार् एकप मार्त्र ऐसिार् जीव है जो अस्तन्य प्रार्िणयों कपी तरह अस्तपिनी रक्षार् कपे िलए शार्रीिरकप बल, गित यार् घार्तकप िवषण पिर नहीं, बिल्कप बुिद्ध पिर िनभरर है ।

जबिकप प्रकपृित कपार्

यह प्रयोग यार् चन ु ार्व, अस्तित श्रेष्ठ है ; िकपन्तु मनष्ु य इसि िवशेषण बिु द्ध कपे द्वार्रार् प्रकपृित कपे सिनार्तन िनयमों कपी खोज कपर, उसिी कपे ज्ञार्न सिे, उसिी प्रकपृित कपे सिंसिार्धर्न और पियार्रवरण कपो

भी नष्ट कपर सिकपतार् है । इसि तरह, यह ज्ञार्न, मनुष्य, प्रकपृित कपे प्रित प्रेम, श्रद्धार् यार् िवश्वार्सि

कपी प्रेरणार् कपे बजार्य, उसिकपार् दरू ु पियोग अस्तपिने ज्ञार्न कपे अस्तहं कपार्र कपो बढार्ने कपे िलए कपरतार् है , और वही उसिे पि​ितत कपर दे तार् है ।

मनष्ु यों कपार् इितहार्सि यह िसिखार्तार् है िकप, ज्ञार्न पियार्रप्त नहीं है और कपेवल ज्ञार्न सिे मनष्ु य कपार् स्वभार्व यार् चिरत्र नहीं बदल सिकपतार्। जार्नवरों कपी तरह, प्रार्कपृितकप िनयमों कपे ज्ञार्न कपे

दरू ु पियोग सिे मनुष्य आपिसि मे , भय, अस्तसिुरक्षार् और िनयंत्रण मे जीते है, और मर जार्ते है । बुिद्ध कपे इसि भयंकपर दरू ु पियोग कपे कपार्रण, सिभी प्रार्िणयों मे मनष्ु य ही सिबसिे खतरनार्कप भी है ।

और वह प्रार्णी, मनष्ु य होने पिर भी, अस्तन्य जार्नवर कपी तरह मनोभूत 'कपिल्पित' सिंसिार्र मे , प्रकपृित कपे िनयम सिे अस्तसिहार्य हो कपर बंधर्ार् ही रहतार् है । आत्मार् कपे सित्य और सिभी जीवों मे एकप आत्मार् कपार् अस्तनुसिंधर्ार्न ही इष्ट है िजसिकपे िलए ज्ञार्न एकप सिार्धर्न।

3.1 प्रार्कपृितकप-ज्ञार्न कपे फिल मे आसि​िक्त कपार् कपार्रण, िनमार्रण व्यवस्थ ार् और िनयंत्रण व्यवस्थ ार् मे िभन्नतार्, और व्यवस्थ ार्ओं कपे अस्तसिंत ु लन सिे क्लेश

1. एकप पिार्रंपि​िरकप धर्ार्रणार् है िकप प्रार्कपृितकप िनयमों कपे ज्ञार्न सिे श्रम कपम िकपयार् जार् सिकपतार्

है । जैसिे, भार्री वस्तुओं कपो ढोने मे पि​िहये कपे प्रयोग सिे आसिार्नी होती है । इसिी कपार्रण, लोगों कपी प्रार्कपृितकप िनयमों कपी खोज मे, रुिच हुयी और, उनकपे प्रयोग सिे मशीन बनार्ए गए। यह व्यवस्थ ार्, िनमार्रण कपार्यर यार् वैज्ञार्िनकप व्यवस्थ ार् है ।

2. चंिू कप, मशीन यार् तकपनीकप कपे आिवष्कपार्र सिे श्रम कपम होतार् है , इसि​िलए इनकपी मार्ग ं भी

बढ्ने लगती है । और इसि तरह, अस्तिधर्कप सिे अस्तिधर्कप लोग, मशीन पिर िनभरर हो जार्ते है, और, िजसिकपे िबनार् जीवन कपिठन सिार् हो जार्तार् है । जो प्रकपृित कपे उसि कपार्रण कपो नहीं

जार्न पिार्ते िजसिसिे जीव कपो आरार्म तो िमलतार् है िकपन्तु वह क्यार् है िजसिसिे उसिकपी स्वतन्त्रतार् िछन जार्ती है । जीव कपे कपमर कपी िदशार् यिद सित्य कपी ओर है तब प्रकपृ ित श्रम भी हर लेती है और स्वतन्त्रतार् भी बढ़ती है िकपन्तु अस्तसित्य कपी िदशार् मे बढ़ने पिर

प्रकपृित कपे िनयम िबरोधर् मे खड़े हो जार्ते है , िजनसिे श्रम बढ़तार् है , स्वतन्त्रतार् कपम होती है , और शत्रत ु ार् और िबरोधर् बढ़तार् है ।

3. प्रार्कपृितकप ज्ञार्न, जब िकपसिी तकपनीकप यार् वस्तु कपार् रूपि ले लेतार् है तब उसिकपे उपियोग

और दरु ु पियोग पिर उसि वस्तु यार् तकपनीकप कपे िनमार्रण-कपतार्र कपार् वश नहीं होतार्। अस्तस्त्र कपे आिवष्कपतार्र कपार् उसि अस्तस्त्र कपे उपियोग यार् दरु ु पियोग पिर िनयंत्रण नहीं होतार्। इसि​िलए

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13 यह ध्यार्न दे नार् चार्िहए िकप मनुष्यों कपी मशीन यार् िकपसिी भी व्यवस्थ ार् पिर अस्तत्यिधर्कप िनभररतार् सिे उनकपे स्वतन्त्रतार् मे कपमी यार् उनकपार्

स्वभार्व नष्ट न हो। िनभरर प्रार्णी,

कपभी चिरत्रवार्न नहीं होतार् क्योंिकप उसिकपे िनणरय मे प्रार्कपृितकप स्वतन्त्रतार् और दृष्टढ़तार् अस्तपिेित क्षत नहीं होती।

4. तकपनीकप कपी एकप और सिमस्यार् यह भी है िकप िकपसिी भी वस्तु , मशीन (िवशेषण रूपि सिे

बड़े उद्योग) और अस्तथ र-व्यवस्थ ार्, मे जड़तार् (inertia) होती है , और वे कपभी भी ठीकपठीकप उतनार् नहीं बनार् सिकपते िजतनी आवश्यकपतार् (just-in-time) है , और वे यार् तो मार्ंग सिे अस्तिधर्कप, यार् कपम उत्पिार्दन कपरते है। जब मार्ंग, आपिूितर सिे अस्तिधर्कप होगार् तब

लोग क्रिुद्ध (conflict) होंगे और यिद आपि​िू तर, मार्ंग सिे अस्तिधर्कप है तब बरबार्दी (waste) होगी। घर मे ठीकप ठीकप िजतनी और जब आवश्यकपतार् होती है तभी खार्नार् बनतार् है

इसि​िलए खार्नार् बरबार्द नहीं होतार् जबिकप उद्योग, होटल कपी तरह होतार् है जहार्ं मार्ंगआपिूितर मे सिंतुलन न रहने सिे मूल्य भी अस्तिधर्कप होतार् है , खार्नार् भी बरबार्द होतार् है और व्यवस्थ ार् कपो सिंभार्लने कपी भी मुसिीबत।

5. आत्मिनभररतार् मे अस्तसिफिलतार्, और मार्ंग-आपिूितर मे अस्तसिंतुलन कपे कपार्रण, सिंसिार्धर्नों कपी बरबार्दी, आपिसिी भरोसिे मे कपमी कपे कपार्रण आिथ रकप गित मे हतोत्सिार्ह और अस्तिधर्कप

लार्भ कपमार्ने कपे कपार्रण भंड-ार्र कपरने सिे मार्ग ं -आपिूितर कपी अस्तिस्थ रतार् और भी बढ़ती है ।

व्यवस्थ ार् कपे यही दोषण है। व्यवस्थ ार् अस्तपिनी रक्षार् कपरने मे और भी अस्तसिंवेदनशील हो जार्ती है और उन मूल कपार्रण पिर ध्यार्न नहीं दे ती िजसिकपे कपार्रण यह दग ु िर त है ।

6. बार्ज़ार्र मे लेन-दे न कपी िक्रियार्, ठीकप वैसिे ही होती है जैसिे िकपसिी सिुचार्लकप धर्ार्तु कपे तार्र

(conductor) मे िवद्युत कपार् प्रवार्ह (electric conduction, supply)। मार्ग ं कपार् कपार्रण अस्तसिमार्नतार् (voltage difference, demand) है जो

आपि​िू तर (current,

supply) सिे पिरू ी होती है । वस्तु कपे लेन-दे न कपे इसि कपार्यर मे रे गुलेशन, व्यवधर्ार्न यार् प्रितरोधर् (resistance) कपो ही मूल्य (price) कपहते है। जब मार्ंग (demand) और आपि​िू तर (supply) सिमार्न होते है तब मल् ं ू य िस्थ र (fixed price) रहेगार्। जब मार्ग (demand) और आपिूितर (supply) सिमार्न नहीं होंगे तब वही मूल्य मार्ंग कपे बढ्ने सिे

बढ़े गार् और आपिूितर बढ्ने सिे मूल्य कपम हो जार्एगार्। जब आपिूितर यार् मार्ग ं कपी मार्त्रार्, अस्तनंत हो जार्यगी तब मूल्य यार् तो अस्तमूल्य हो जार्यगार्, यार् शून्य हो जार्यगार्। यही

कपार्रण है िकप प्रार्कपृितकप पिदार्थ र यार् वस्तु यार् कपार्यर , दोषण-मुक्त (zero defect) होते है वे अस्तमल् ू य है।

7. मल् ू य कपेवल उसिी वस्तु कपार् हो सिकपतार् है िजसिकपे मल् ू यार्ंकपन कपे िलये कपोई िविधर् हो। िजसि वस्तु कपार् मूल्यार्ंकपन ही नहीं हो सिकपतार् है उसिकपार् मूल्य भी नहीं होतार्। मार्ँ -िपितार् यार् प्रेम सिम्बन्धर्ों कपार् मूल्य नहीं हो सिकपतार् िकपन्तु िकपसिी शीषणर व्यार्वसिार्ियकप यार्

शार्सिकपीय पिद पिर सिदै व बनार् रहनार् कपभी सिरल नहीं होतार्। म ल् ू यार्ंकपन कपी आवश्यकपतार्

कपेवल तभी होती है जब उसि वस्तु यार् व्यिक्त कपो बदलनार् हो। अस्तवमूल्यन कपार् यह

भार्व ही मूल्यार्ंकपन, है । वस्तु यार् व्यिक्त कपो बदलने कपार् अस्तथ र है िकप वह, मार्ंग कपे अस्तनुरूपि अस्तब नहीं रह गयी। बार्ज़ार्र कपे लेन -दे न मे अस्तनुपियक् ु त वस्तु यार् व्यिक्त कपो बदलार् जार् सिकपतार् है और लेनदार्री यार् दे नदार्री कपी यह मार्त्रार् ही मूल्य है । बार्ज़ार्र मे

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


14 मूल्यार्ंकपन कपी इसि िविधर् सिे लोगों मे यद्ध ु नहीं होते और मूल्य यार् मूल्यार्ंकपन िविधर् ही सिमझौते कपार् आधर्ार्र है । त्रिु ट-रिहत वस्तु यार् व्यिक्त िजसिे बदलने कपी कपोई आवश्यकपतार् नहीं होती, वह अस्तमूल्य है । मूल्य उसिी कपार् होतार् है िजसिकपे त्रिु टपिूणर पिार्ये जार्ने पिर उसिे बदलार् जार् सिकपे और बार्ज़ार्र मे मूल्य यार् दे नदार्री इसिी सिे तय होती है ।

वस्तु यार् उसिकपी उपियोिगतार् कपुछ भी हो, मूल्य (price) कपार् िनधर्ार्ररण, उसि अस्तथ र-व्यवस्थ ार् कपी िस्थ रतार् पिर िनभरर है । मल् ू य यार् आिथ रकप-प्रितरोधर् कपे मल् ू यार्ंकपन कपे 5 िसिद्धार्न्त है।

1. व्यवस्थ ार् मे िनिहत जड़तार् (inertia) सिे मार्ग ं -आपि​िू तर कपार् बरार्बर होनार् सिंभव नहीं है ।

एकप मशीन एकप िदन मे एकप िनिश्चत मार्त्रार् मे ही कपार्यर कपरती है जबिकप मार्ग ं कपी मार्त्रार् िनिश्चत नहीं होती। इसि अस्तसिंतुलन कपो बरबार्दी (waste) कपहते है। यह िजतनी अस्तिधर्कप होगी, मूल्य, उसिी कपी भरपिार्ई कपे िलए, उतनी ही बढ़े गी। मूल्य कपार् उतार्र चढ़ार्व बरबार्दी कपो रोकपने मे सिहार्यकप है।

2. जो कपार्यर प्रसिन्नतार् और िबनार् िकपसिी मार्निसिकप दबार्व मे िकपए जार्ते है , उनकपो कपरने मे श्रम (effort) नहीं होतार्। श्रम कपे कपार्रण कपष्ट यार् दार्म (cost) बढ़तार् है । महार्न कपार्यर, श्रम सिे कपभी नहीं हो सिकपते। िकपन्तु वे कपार्यर जो मनुष्य कपी इच्छार् यार् प्रकपृित कपे

िनयमों कपे िवरुद्ध होते है, उनकपे मूल्य कपार् आधर्ार्र श्रम, भय, लार्लच, िदखार्वार् यार्

प्रितस्प्रधर्ार् होते है। एकप भार्रतीय अस्तसिहार्य मजदरू कपे जीवन और िवश्व-िवख्यार्त अस्तमेिरकपी नतरकप और गार्यकप मार्इकपेल जैक्सिन कपी मत्ृ यु कपे उदार्हरणों मे मूल्य कपी िभन्नतार् होते हुये, व्यार्वसिार्ियकप िलप्सिार् और शोषणण कपी यही सिैद्धार्ंितकप सिमार्नतार् है ।

3. वस्तु कपार् मूल्य, उसि वस्तु सिे होने वार्ली िबपि​ित्त कपी सिंभार्वनार् (potential risk) और

भरपिार्ई (risk liability, hostility) कपार् नार्पि है । इसिी िसिद्धार्न्त कपे कपार्रण, अस्तस्त्र और िवषणैले पिदार्थ र, कपार् मूल्य अस्तिधर्कप होतार् है । यह मूल्य विृ द्ध, िबपि​ित्त कपो रोकपने मे

सिहार्यकप है। हवार्ई यार्त्रार् महं गी इसि​िलए होती है िकप एयर लार्इंसि कपे पिार्सि , दघ र नार् होने ु ट पिर मरने वार्लों कपे क्षित कपी भरपिार्ई कपे िलए धर्न होनार् चार्िहए। िचिकपत्सिकपों पिर

िवश्वार्सि नहीं रहार् इसि​िलए क्षितपिूितर कपी िचंतार् ने िचिकपत्सिार् कपो महं गी कपर दी। सिरकपार्रों कपे स्वार्िमत्व वार्ले रे ल मे रे लयार्त्री कपे यार्त्रार् कपार् मल् ू य बहुत कपम होतार् है क्योंिकप वहार्ँ यार्ित्रयों कपे मरने पिर भरपिार्ई नहीं दे नार् होतार्।

4. मूल्य िकपसिी वस्तु यार् उसिकपी उपियोिगतार् कपी नहीं , बिल्कप भूख कपी होती है । जो िजतनार्

भूखार् होगार्, अस्तिधर्कप मूल्य दे गार्। जल उपियोगी है िकपन्तु उसिकपी सिुलभ प्रार्िप्त, मार्ग ं कपो

बढ्ने नहीं दे तार्; जबिकप दल र हीरे कपार् मूल्य उसि जल सिे अस्तिधर्कप होतार् है । इसिी तरह, ु भ जो लोग हमेशार् नए नए वस्तु कपार् प्रयोग कपरते है, वे मार्ग ं इसि​िलए बढार्ते है क्योंिकप उनकपो अस्तपिनी आवश्यकपतार् कपार् सिही-सिही ज्ञार्न नहीं होतार्। इसिकपे िवपिरीत, भार्रत मे िनिश्चत वेतन पिार्ने वार्ले व्यिक्त यार् खेितहर िकपसिार्न कपी मार्ग ं िनिश्चत होती है और वस्तुओं कपे मूल्य कपार् िस्थ र रहनार् उनकपे िलए आवश्यकप है । मुद्रार् कपे िगरने यार् अस्तन्य कपार्रणों सिे हुयी मूल्य विृ द्ध, इन पि​िरिस्थ ितयों मे अस्तिधर्कप िचंतार् जनकप है । मूल्य, वस्तु कपे मार्ंग-आपिूितर मे अस्तसिमार्नतार् यार् अस्तसिंतुलन (demand-supply mismatch) कपो

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15 िनयंित्रत कपरने कपार् एकप सिार्धर्न है । प्रार्कपृितकप आवश्यकपतार्ये सिीिमत है और इन्हे पिरू ी

कपरने कपे िलये बार्ज़ार्र यार् सिरकपार्रे नहीं बनतीं। बार्ज़ार्र बनने कपार् कपार्रण अस्तसिुरक्षार्, अस्तनार्वश्यकप भूख, अस्तसिमार्नतार् यार् तुलनार् यार् िनयंत्रण कपी भूख है जो अस्तन्तहीन है।

5. भूख, अस्तसिमार्नतार् और िबपि​ित्त और चार्िरित्रकप पितन (अस्तिवश्वार्सि) कपो सिंभार्लने कपे िलए, िनयंत्रण कपी एकप नयी रण-नीितकप व्यवस्थ ार् बनती है । यह िनयंत्रण व्यवस्थ ार्, कपार्यर, सिज ृ न यार् वस्तु कपे िनमार्रण कपी व्यवस्थ ार् सिे िबलकपुल िभन्न होती है । और इसिमे अस्तिवश्वार्सि, भय-लार्लच-प्रितस्प्रधर्ार् कपी िचंतार्एँ मुख्य है। यहार्ँ मूल्य कपार् आधर्ार्र मार्ग ं यार्

आपिूितर नहीं होते, बिल्कप उसिकपार् कपार्रण िनयंत्रण व्यवस्थ ार् कपी रक्षार् है । कपार्नून-दं ड-, तार्पि-तौल,

दे न-लेन

measurement

मे

मद्र ु ार्

कपे

चलन,

और

सिरकपार्री

तंत्र

(monetary

or

regulation and law enforcement) बार्ज़ार्र मे िबचौिलये है।

इनकपे पिार्रदशी और िनश्छल रण-नीितकप व्यवस्थ ार् न रहने सिे अस्तथ रव्यवस्थ ार् कपार्

खेल

उन लोगों सिे सिंचार्िलत होतार् है जो पि​ितत (चिरत्र हीन) ज्ञार्नी और महत्वार्कपार्ंक्षी अस्तपिरार्धर्ी है। शार्सिन इसिीिलये दश ु ार्सिन कपहलार्तार् है । इसिी ड-र सिे , गार्ंधर्ी, भार्रत मे और अस्तल्बटर आइन्स्टार्इन इसिरार्ईल कपे रार्ष्ट्रपि​ित बनने कपे प्रस्तार्व कपो स्वीकपार्र न कपर सिकपे।

इसि िनयंत्रण व्यवस्थ ार् कपी िस्थ र सिफिलतार् कपो क्वार्िलटी कपहते है। व्यार्वसिार्ियकप अस्तथ ों मे , क्वार्िलटी, इसि कपमर-क्षेत्र यार् धर्मर-यद्ध ु मे, मूल्य पिर आिश्रत सिमझौते कपी सिफिलतार् है ।

1. वस्तु यार् कपार्यर कपे क्वार्िलटी कपार् अस्तथ र अस्तब अस्तमूल्य होनार् यार् दोषण-मुक्त होनार् नहीं रहार्

बिल्कप मूल्य (उपिरोक्त पिार्ंचों िसिद्धार्न्त कपे जोड़) दे कपर ही वस्तु कपी भूख, िनमार्रतार्भोक्तार् कपे पिरस्पिर अस्तिवश्वार्सि और िबपि​ित्त सिे रक्षार् हो सिकपती है ।

2. वस्तु कपे महं गे होने कपार् कपार्रण उपियोिगतार् नहीं होती बिल्कप रक्षार् होती है । बोतल-बंद पिार्नी कपार् मूल्य िकपतनार् भी बढ़ सिकपतार् है क्योंिकप जब जल कपे प्रार्कपृितकप श्रोत न होंगे

तब यही जल महं गी दवार् सिे भी अस्तिधर्कप मल् ू यवार्न होगार्। महं गी कपार्र इसि​िलए आवश्यकप नहीं होती िकप यार्तार्यार्त मे सिुख हो, बिल्कप यह व्यिक्त कपे आिथ रकप यार् शार्सिकपीय पिद कपे अस्तहं कपार्र कपी रक्षार् है । शौकप यार् शत्र त ु ार् यार् प्रितस्प्रधर्ार् मे सिफिलतार् कपार्

नशार् कपी रक्षार् कपी मार्ंग और आपि​िू तर, प्रार्कपृितकप नहीं होते और उनकपे मल् ू य कपो िनधर्ार्रिरत कपरनार् भी सिरल नहीं होते।

3. अस्तमूल्य कपार्यर यार् वस्तुएं, यार् प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न जो इसि िनयंत्रण व्यवस्थ ार् सिे अस्तलग है, इसि​िलए लूट यार् बबार्रद कपर िदये गए क्योिकप उनकपार् मूल्य लेने वार्लार् कपोई नहीं थ ार्।

पियार्रवरण कपे नष्ट होने सिे अस्तथ र -व्यवस्थ ार् कपे खचे और श्रम िनरं तर

बढ्ते रहते है , और िजन्हे

कपम कपरनार् इसि​िलए सिंभव नहीं है , िकप मनुष्यों कपार् प्रार्कपृितकप सिंवेदनशील स्वभार्व और सिंसिार्धर्न नष्ट हो गए और वे पिूरी तरह अस्तथ र-व्यवस्थ ार् और मशीनों पिर िनभरर है।

इसि अस्तवस्थ ार् मे , प्रार्िणयों कपार् न तो क्लेश कपम हो सिकपतार् है , और न िनयंत्रण व्यवस्थ ार् सिे उन्हे कपभी स्वतन्त्रतार् ही िमल सिकपती है । कपुशार्सिन, आतंकप, दघ र नार्एँ, आत्म-हत्यार् आिद, ु ट व्यवस्थ ार् कपे दष्ु पि​िरणार्म है। बीमार्र अस्तथ र-व्यवस्थ ार् कपे िवकपार्सि सिे कपोई भी अस्तनथ र सिंभव है ।

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िजसि िवज्ञार्न कपो मनुष्यों ने कपभी अस्तपिनार् िमत्र सिमझार् थ ार्, और श्रम सिे बचार्व कपे िलए उसिकपार् उपियोग िकपयार्, अस्तब वे अस्तपिने ही कपमर-फिल कपे बंधर्न मे बन गए। इसिसिे उसिकपार् श्रम भी

बढ़

गयार्, अस्तसिमार्नतार् और द्वेषण बढ़ गयार्, और यद्ध ु कपी िस्थ ित आ गयी। इन अस्तप्रार्कपृितकप बंधर्नों और अस्तसिह्य िनयंत्रण व्यवस्थ ार् सिे मनुष्यों मे उत्सिार्ह, बुिद्ध, बल और प्रेम कपार् ह्रार्सि होतार् है । 3.2

ज्ञार्न कपी पिूणत र ार्, ज्ञार्न प्रार्िप्त सिे अस्तिधर्कप महत्वपिूणर है ।

1. जब कपार्यर सिम्पिूणर होकपर शार्ंत नहीं हो जार्ते तब तकप कपार्यर अस्तधर्रू ार् रहतार् है , और यह ही प्रदषण ू ण है ।

2. फ्लार्यी-व्हील कपी तरह, प्रकपृित कपे वही िनयम तब, उलटे यार् प्रितकपूल िदशार् मे चलने लगते है, और िफिर, मनष्ु य कपो प्रकपृित कपी िवपिदार् कपार् अस्तनुभव होतार् है ।

3. यिद, इसि िवपिदार् कपार् पिूवार्न र ुमार्न नहीं िकपयार् गयार्, और मनुष्य कपार् स्वभार्व शुद्ध नही हो

सिकपार्, तब यही प्रदषण ू ण सिे बनी िवपिदार्, पियार्रवरण कपे िलए खतरार् बन सिकपती है , और िजसिसिे सिभी प्रार्णी नष्ट भी हो सिकपते है।

4. इसि सि​िृ ष्ट अस्तथ ार्रत ब्रह्म कपो मनुष्य अस्तपिने ही बुिद्ध और ज्ञार्न कपे दरू ु पियोग सिे प्रकपृित

कपे बल द्वार्रार् ही सिमार्प्त कपर सिकपतार् है , और इन प्रितकपूल पि​िरिस्थ यों कपो रोकपनार् चार्िहए।

मनुष्यों कपी सिोच मे यही बदलार्व, पियार्व र रण कपी व्यवस्थ ार् कपार् एकप मार्त्र लक्ष्य है । 3.3

तकपनीकप यार् उद्योग, िवज्ञार्न कपार् एकप मजबूरी मे िकपयार् गयार् प्रयोग है । मनुष्य कपे

बिु द्ध कपे िवकपार्सि मे यह, एकप बड़ी बार्धर्ार् है ।

1. िजसि तरह, एकप अस्तंग-हीन व्यिक्त कपो व्हील-चेअस्तर िदयार् जार्तार् है , उसिी तरह िवज्ञार्न, दयार्लुतार् यार् मोह कपे कपार्रण, बुिद्ध-हीन व्यिक्तयों कपो तकपनीकप यार् उद्योग द्वार्रार्, उनकपे कपष्टों कपो दरू कपरतार् है । यह िवकपार्सि नहीं है , बिल्कप एकप कपृपिार् है ।

2. श्रेष्ठ वैज्ञार्िनकप, उद्योग यार् व्यवसिार्य यार् गोपिनीय रण-नीित कपे िलए ज्ञार्न कपार् प्रयोग कपरने सिे बचते है । और

सित्य कपार् आभार्सि प्रार्प्त होते ही

वे

दार्शिर नकप यार् सिरल

हृदयी कपिव यार् िशक्षकप बन, प्रार्कपृितकप जीवन कपे अस्तनभ ु व और ज्ञार्न कपो यथ ार् शिक्त बार्ँटते है।

3. िकपन्तु वे वैज्ञार्िनकप, जो ममतार् वश दयार्लु होते है, वे मनुष्यों कपे िलए तकपनीकप कपार् िवकपार्सि इसि​िलए कपरते है, िजसिसिे लोग िवज्ञार्न यार् प्रकपृित कपे िनयमों कपी सिरार्हनार् कपरे

और प्रकपृित सिे प्रेम और उसि कपी शिक्तयों पिर िवश्वार्सि कपरनार् सिीखे। और प्रकपृित कपे िनयमों सिे प्रार्प्त उसि बल कपार् प्रयोग अस्तपिने अस्तहं कपार्र कपो बढार्ने मे न कपरे ।

4. दभ ु ार्रग्य सिे, जब, मनष्ु य कपो तकपनीकप यार् उद्योग पिर िनभरर बनार् िदयार् जार्तार् है , तब उसिे बुिद्ध कपे िवकपार्सि कपी आवश्यकपतार् नहीं रहती। और तब, उसिसिे क्रिूर, अस्तसिंवेदी, और

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17 लार्लची सिमार्ज बन जार्तार् है । धर्मर कपार् ज्ञार्न , शार्स्त्र यार् िवज्ञार्न, मनुष्य कपी बुिद्ध कपो

तीव्र और सिंवेदनशील बनार् दे तार् है ; िकपन्तु उसिकपार् दयार्लु पिुत्र, तकपनीकप, मनष्ु य कपो अस्तप्रार्कपृितकप सिुरक्षार् दे , उसिे और भी अस्तिधर्कप अस्तसिुरित क्षत और मूखर बनार् दे तार् है ।

5. तकपनीकप कपे प्रयोग कपी अस्तबार्धर् स्वतंत्रतार्, हार्िन-रिहत नहीं हो सिकपती, क्योंिकप वह एकप व्यवस्थ ार् है , धर्मर नहीं। वह िदन दरू नहीं, जब कपम्पिट ु र यार् कपल्कपुलेटर कपे िबनार् लोग िगनती नहीं कपर सिकपेगे , और िबनार् कपलैड-र यार् घड-ी कपे उन्हे रोज कपी ऋषतुएं और ितिथ कपार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न भी नहीं होगार्।

िबजली कपे िबनार्, जीवन कपी कपल्पिनार् भी नहीं कपी जार् सिकपेगी । इसिी तरह, मनष्ु यों कपार् सिार्रार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न और िवज्ञार्न, तकपनीकप और उद्योग और िकपित्रम व्यवस्थ ार् सिे ढकप जार्येगार् और वे सिदार् कपे िलए उसि पिर िनभरर बन जार्यग े े।

बुिद्ध कपे प्रयोग कपी यह िस्थ ित, अस्तप्रार्कपृितकप व्यवस्थ ार् और अस्तसिंतुलन कपार् कपार्रण है । व्यिक्त

िजसिकपे पिार्सि बन्दकप ू है , क्यार् उसिे िवकपिसित कपहनार् उिचत होगार्? बन्दकप ू कपो बनार्ने वार्ले ने दयार्लुतार् कपे वशीभूत, िवज्ञार्न कपार् प्रयोग कपर, बन्दकप ू तो बनार् िदयार्, िकपन्तु, इसिकपे उपियोग यार्

दरू ु पियोग कपे िलए वह िनणरय नहीं ले सिकपतार्। ज्ञार्न कपार् यह अस्तधर्रू ार् कपार्यर ही प्रदषण ू ण है , जो

प्रकपृित कपे िनयम कपो इसि तरह बार्ँधर् दे तार् है , िकप वही शिक्त, प्रकपृित यार् सि​िृ ष्ट कपे प्रितकपूल भी हो सिकपती है । आज पिरमार्णु बोम्ब सिे ड-रने वार्ले वही दे श है , िजन्होंने कपभी उसिकपार् उत्पिार्दन िकपयार् थ ार्। उद्योग कपे िवकपार्सि कपे कपार्रण हुए दधर् र नार्ओं कपी सिंख्यार्, प्रार्कपृितकप मत्ृ य,ु यार् यद्ध ु मे ु ट हुए मत्ृ यु सिे अस्तिधर्कप है । उद्योग और मल द्वार्रार् निदयों कपार् दिू षणत जल, मनष्ु यों और अस्तन्य प्रार्िणयों कपे जीवन कपो नष्ट कपर रहार् है । पिथ् ृ वी पिर शुद्ध जल कपे प्रार्कपृितकप श्रोत सिमार्प्त हो रहे

है, और जल कपे बँटवार्रे कपो लेकपर िववार्द और यद्ध ु कपी सिंभार्वनार् बढ़ गयी है । वार्यु मण्ड-ल मे तार्पिमार्न विृ द्ध सिे, प्रार्कपृितकप ऋषतुएं बदल रही है, और मनुष्य उन िवपिदार्ओं कपार् िशकपार्र है ।

व्यवसिार्य (िजसिकपार् नार्म व्यय सिे ही बनार् है ) और धर्मर (िजसिकपार् अस्तिस्तत्व सिनार्तन और जो अस्तव्यय है ), िकपसि तरह पिरस्पिर सिहयोगी बन सिकपते है, व्यवस्थ ार् कपे शार्स्त्र कपी आज यही चन ु ौती है । िजन दे शों मे पिरु ार्तन कपार्ल सिे ही प्रार्कपृितकप ज्ञार्न (धर्मर) द्वार्रार् मनष्ु य सिंवेदनशील और प्रकपृित कपे िनयमो कपो सिमझ कपर, िनरार्पिद जीवन पिद्धित िवकपिसित कपर ली थ ी, उनमे भी अस्तज्ञार्नतार् कपे कपार्रण, उद्योग और तकपनीकप कपो िवकपार्सि कपार् प्रमार्ण मार्न िलयार् है , और वे भी अस्तधर्मर यार् अस्तप्रार्कपृितकप औद्योिगकप-मार्नसि कपे रोगों सिे पिीिड़त हो रहे है।

िवज्ञार्न कपी खोज और उद्योग

द्वार्रार् प्रार्कपृितकप िवपिदार् कपे अस्तनुभव द्वार्रार्, जार्पिार्न यार् योरोपि कपे दे शों मे , प्रार्कपृितकप जीवन दशरन

कपे िवकपार्सि कपी अस्तिधर्कप सिम्भार्वनार् है , क्योंिकप वे उद्योग, व्यवसिार्य, तकपनीकप कपे भयार्वह रहस्यों सिे अस्तब पि​िरिचत है। आज भी, भार्रत कपे बचे-खुचे पिार्रंपि​िरकप ज्ञार्न और िनरार्पिद जीवन पिद्धित उनकपे िलए सिुखद आश्चयर है।

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4। परयार्थवरण के ५ तत्व, उनका लक्ष्य और तापर 4.1 परयार्थवरण के ५ तत्व पियार्रवरण कपे ५ तत्व होते है , प्रदषण ू ण िकपसिी एकप यार् सिभी मे हो सिकपतार् है । हमार्रार् शरीर भी

प्रकपृित कपार् ही एकप उद्योग है । शरीर िनमार्रण कपी तकपनीकप मे प्रकपृित कपे पिार्ँच तत्व ित क्षित, जल, अस्तिग्न, आकपार्श और वार्यु िजनकपे धर्मर िभन्न िभन्न है शरीर कपे उद्योग कपो िमल कपर चलार्ते है। शरीर मे एिसिड-, क्षार्र, लवण, और शकपररार् आिद कपार् िनरं तर उत्पिार्दन और उपियोग होतार् है

और अस्तनुपियोगी पिदार्थ र, िवष्ठार् बन शरीर सिे िनकपल जार्ते है। शरीर कपार् तार्पिमार्न , ब्लड--प्रेशर, हृदय-गित उसिी तकपनीकप सिे, सिार्रे जीवन-कपार्ल मे िनयंित्रत रहती है । सिदी, बख ु ार्र, पिीिलयार् कपार्

रोग, मत्ृ यु इन्हीं तत्वों कपे अस्तसिंतुलन सिे ही होतार् है , और यही प्रदषण ू ण है । स्वस्थ शरीर, पियार्रवरण मे प्रार्कपृितकप तत्वों कपार् सिंतुलन और अस्तनपि ु योगी पिदार्थ ो कपे िनष्कपार्शन कपी िविधर् सिे

हम सिभी दे ह-धर्ार्री पि​िरिचत है। इसिी तरह, उद्योग मे तरह तरह कपे कपेिमकपल, ऊजार्र और मशीनों कपे उपियोग कपो इसि तरह सिंतुिलत िकपयार् जार् सिकपतार् है िजसिसिे प्रदषण ू ण न हों। िछित जल परावक गगन समीरा, परञ्च रिचत यह अधम शरीरा || तुलसी दास

1. िछित -> मदृ ार् यार् जमीनी प्रदषण ू ण, रार्सिार्यिनकप यार् अस्तिनयंित्रत जैवीय तत्व जो पिथ् ृ वी कपे जीवनी शिक्त कपो नष्ट कपर दे ती है िजसिसिे तरह तरह कपे प्रार्णी और वनस्पि​ितयार्ँ नष्ट हो जार्ती है।

2. जल -> जल कपार् प्रदषण ू ण, पिार्नी कपे श्रोत कपो पिीने और खेती यार् अस्तन्य जीवनोपियोगी कपार्यों कपे िलए अस्तनुपियोगी बनार् दे ती है और उसिकपी उपिलब्धर्तार् कपम हो जार्ती है ।

3. सिमीरार् -> वार्यु प्रदषण ू ण, िजसिसिे सिार्ँसि लेनार् सिम्भव नहीं होतार् और, गैसिों कपे वार्तार्वरण मे

फिैलने सिे पिथ् ू र सिे प्रार्प्त गमी वार्पिसि नहीं जार् सिकपती, और पिथ् ृ वी कपो सिय ृ वी गमर हो जार्ती है ।

4. गगन -> ध्विन यार् हार्िनकपार्रकप िविकपरण, िजसिसिे मनुष्य सिुन नही सिकपतार् और बहरार् हो सिकपतार् है ।

ध्विन यार् िवद्युत ् चम् ु बकपीय तरं गे, शरीर कपे अस्तंगों पिर बरु ार् अस्तसिर ड-ार्लते है,

और ध्यार्न सिे कपोई कपार्म नहीं िकपयार् जार् सिकपतार् ।

5. पिार्वकप -> ऊष्मार् - आग, िजसिकपे कपे िनयंित्रत न रहने सिे आपिार्तकपार्ल कपी िस्थ ित हो जार्ती है । 4.2 परयार्थवरण व्यवस्थना का लक्ष्य - प्राकृितक शियोक्तयों का संतुलन पियार्रवरण व्यवस्थ ार् शार्स्त्र कपार् मूल उद्देश्य तकपनीकप, व्यवसिार्य यार् उद्योग कपी व्यवस्थ ार् कपी सिुचार्रू दे ख भार्ल है , िजसिसिे वह अस्तिनयंित्रत दशार् मे न रहने पिार्ए।

1. धर्ार्िमरकप अस्तथ ार्रत प्रार्कपृितकप िनयमों मे यद्ध ु स्वार्भार्िवकप है । आग और जल कपार् िवपिरीत

स्वभार्व उन्हे एकप सिार्थ नहीं रहने दे नार्। इसिी तरह, पियार्रवरण कपे तत्व (िछित - जल पिार्वकप - गगन - सिमीर) धर्मर ही है, जो अस्तपिने-अस्तपिने िनयम नहीं तोड़ सिकपते इसि िलए पिरस्पिर युद्ध कपरते है।

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19 2. िकपन्तु उन पिार्ँच तत्व िजनकपे धर्मर िभन्न िभन्न है, उनसिे बनी व्यवस्थ ार् अस्तथ ार्रत शरीर, सिभी धर्मर कपो िनयंित्रत िस्थ ित मे रखती है। क्योंिकप, शरीर अस्तथ ार्रत व्यवस्थ ार् कपे लक्ष्य मे ही धर्मों कपार् भी िहत है ।

3. प्रकपृित द्वार्रार् मनुष्य कपार् शरीर और उसिकपी बिु द्ध, उन धर्मो कपे भी मूल कपार्रण कपी खोज कपे

िलए ही बनार् है । इसिी मजबूरी मे , सिभी धर्मर, उसि पिरम सित्य कपो प्रार्प्त कपरने कपे िलए, व्यवस्थ ार् सिे बंधर् जार्ते है। मनष्ु य कपार् शरीर भी एकप व्यवस्थ ार् है िजसिकपार् मख् ु य लक्ष्य सित्य कपी प्रार्िप्त है और धर्मर उसिकपे सिार्धर्न।

4. ध्यार्न रहे , िकप धर्मर अस्तथ ार्रत प्रार्कपृितकप िनयम यार् उनकपी शिक्तयों कपो कपभी भी बार्ंधर्ार् नहीं

जार् सिकपतार् िकपन्तु यिद व्यवस्थ ार् कपार् उद्देश्य सित्य हो, तब व्यवस्थ ार् और धर्मर कपार् लक्ष्य अस्तलग अस्तलग नहीं होतार् और

यह सिमस्यार् नहीं आती; क्योंिकप, सिभी धर्मर स्वतः ही

अस्तनुकपूल हो जार्ते है।

5. श्रेष्ठ वैज्ञार्िनकप यार् सिंत यद्यिपि शत्रत ु ार्, आतंकप यार् कपार्नून पिर िनभरर नहीं होते; िफिर भी, उनकपार् जीवन सिंतष्ु ट और प्रसिन्नतार् सिे भरार् होतार् है , और यह प्रार्कपृितकप (मार्निसिकप और शार्रीिरकप) पियार्रवरण कपी दे न है ।

6. इसिकपार् अस्तथ र है , िकप सिफिलतार् कपे िलए दष्ु ट होनार्, और तकपनीकप यार् धर्न कपे लार्लच मे , प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न और उसिकपी िक्रियार् कपार् दरू ु पियोग कपरनार्

आवश्यकप नहीं है ।

धर्मर यार् प्रकपृित, िक्रियार् और प्रितिक्रियार् (network of cause–effect) कपार् िसिद्धार्ंत है ।

1. भौितकप, मनोिवज्ञार्न, जीव िवज्ञार्न, अस्तथ रशार्स्त्र इत्यार्िद, मार्त्र इसिकपे उदार्हरण है। िकपसिी भी प्रभार्व कपो बल पिूवकप र रोकपनार् अस्तत्यंत कपिठन कपार्यर है , िकपन्तु (cause of effect) यिद उनकपे कपार्रण मे बदलार्व िकपयार् जार्य, तो प्रभार्व कपो तुरंत और सिरलतार् सिे बदलार् जार् सिकपतार् है ।

2. िवज्ञार्न कपे सिार्धर्कप, कपभी भी, प्रभार्व कपो दे ख कपर िवचिलत नहीं होते , क्योंिकप वे उसिकपे कपार्रण कपो खोज कपर, उसिकपार् सिमार्धर्ार्न कपरनार् जार्नते है।

3. हर एकप कपार्रण भी िकपसिी अस्तन्य कपार्रण कपार् प्रभार्व है , इसि​िलए, कपार्रण कपे कपार्रण कपी िनरं तर खोज कपरने कपी िजज्ञार्सिार् और िनणरय कपी दृष्टढ़तार् (analysis for determining the root cause) सिे उसि मूल कपार्रण कपो प्रार्प्त िकपयार् जार् सिकपतार् है , िजसिे जार्न कपर, सिार्रे दष्ु प्रभार्व सिमार्प्त हो जार्ते है।

4. मूल कपार्रण (root cause, causeless cause, truth of self) स्वयं िसिद्ध है , उसिकपार् कपोई कपार्रण नहीं होतार्, इसि​िलए, वह प्रार्कपृितकप िनयमों यार् धर्मर सिे पिरे है , और सिभी धर्मों कपे िलए एकप ही है । अस्ततः इसिे सित्य कपहते है।

5. सित्य, कपो अस्तिहंसिार् (non-violation of natural laws) भी कपहते है, क्योंिकप यह (अस्तथ ार्रत मल ू कपार्रण), एकप यार् अस्तद्वैत ही हो सिकपतार् है ; और जो सिभी धर्मों (कपार्रण -कपमरफिल सिे बने द्वैत ) कपो िमलार्ने सिे ही

बनार्

है । और जब

यार् िहंसिार् यार् दघ र नार् कपी सिम्भार्वनार् कपहार्ँ सिे होगी? ु ट

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013

दसि ू रार् हो ही नहीं सिकपतार्, तो टकपरार्व


20 यिद व्यवस्थ ार्एं, सित्य कपे खोज कपे प्रित सिपि​िपिरत नहीं है , तो धर्मर यार् प्रकपृित कपे िनयम और

बल, उन व्यवस्थ ार्ओं कपो नष्ट कपरने कपे िलए सिदै व ही स्वतंत्र है। प्रदषण ू ण, प्रकपृित कपी ही वे

शिक्तयों है जो व्यवस्थ ार् कपे दरू ु पियोग यार् उसिकपी अस्तिनयंित्रत िस्थ ित मे , उसिे नष्ट कपरने कपे िलए बनी होती है।

उदार्हरण कपे िलए, गंदगी सिे मच्छर पिैदार् होते है , मच्छर सिे मलेिरयार्, मलेिरयार् िमटार्ने कपे िलए, औषणिधर् िनमार्रतार्। औषणिधर् िनमार्रतार् तभी बनार् जार् सिकपतार् है , जब जीव िवज्ञार्न और रसिार्यन िवज्ञार्न कपी खोज कपी जार्य।

इसि तरह, प्रार्कपृितकप िनयमों कपे ज्ञार्न कपे बढ़ने सिे भी, सिमस्यार् दरू

नहीं कपी जार् सिकपती । एकप िवद्वार्न कपे रोगी बनने कपी सिम्भार्वनार् अस्तिधर्कप होती है , क्योंिकप उसिकपी रुिच रोग कपी पि​िरभार्षणार् बनार्ने और िचिकपत्सिार् ज्ञार्न मे व्यार्वसिार्ियकप रूिच, उसिे स्वयं कपे स्वस्थ होने सिे अस्तिधर्कप होती है । स्वस्थ होने कपे िलए, गंदगी कपो दरू कपरनार् सिरल भी है , और श्रेष्ठ भी, क्योंिकप यह मच्छर, रोग, औषणिधर्, और वैद्य, कपार् मूल कपार्रण (सित्य) है । धर्मर सिे

लड़ कपर जीतनार् कपभी सिंभव नहीं। मच्छर (सिन्दे श वार्हकप) मार्रनार्, औषणिधर् कपार् खोज और प्रयोग, रसिार्यन शार्स्त्री यार् िचिकपत्सिकप कपी व्यवस्थ ार्, आिद .. रोग कपो िमटार्ने कपार् सिमार्धर्ार्न नहीं है।

औषणिधर् सिे मनष्ु य कपो रोग कपे प्रित अस्तसिंवेदनशील बनार् िदयार् जार्तार् है , जो रोग कपो रोकपतार्

नहीं, बिल्कप, जीवन कपी स्वार्भार्िवकप प्रणार्ली कपो नष्ट कपर हमे , उसिकपार् ज्ञार्न नहीं होने दे तार् ।

4.3 प्राकृितक बलों मे असंतल ु न, प्रदष ू ण के श्रोत: दैह िहक, दैह िवक और भौतितक तापर पिार्पि (सित्य कपे िवरुद्ध कपार्यर) कपे प्रभार्व कपो तार्पि (अस्तसिहनीय अस्तवस्थ ार् ) कपहते है। व्यवस्थ ार् कपे धर्मर कपे अस्तनुकपूल न होने सिे तार्पि बढतार् है । तार्पि कपी मार्त्रार् बढ़ने कपी शार्रीिरकप और मार्निसिकप

श्रेणी कपे अस्तनुसिार्र,

दःु ख कपो दै िहकप, सिंगठन और व्यवस्थ ार् मे अस्तिनिश्चततार् कपे दःु ख कपो

दै िवकप तार्पि, और धर्मर कपी क्षित अस्तथ ार्रत प्रार्कपृितकप रोषण कपो भौितकप तार्पि कपहते है। दैह िहक दैह िवक भौतितक तापरा, राम राज निह काहुिह व्यापरा || तुलसी दास

रार्म रार्ज अस्तथ ार्रत सित्य और स्नेह द्वार्रार् पिोिषणत व्यवस्थ ार्, मनुष्यों कपे द्वार्रार् धर्मर कपे ज्ञार्न कपे दरू ु पियोग कपो रोकप लेती है , और िजसिकपे कपार्रण, धर्मर कपार् बल मनष्ु यों कपार् अस्तिहत नहीं कपरतार्। तार्पि अस्तथ ार्रत प्रदषण ू ण भी तीन तरह कपे होते है। 1. दैह िहक तापर: उद्योग, तकपनीकप यार् व्यवसिार्य कपे प्रदषण ू ण सिे हुए शरीर कपे मार्निसिकप और जैिवकप रोग और दधर् र नार्, जैसिे जार्पिार्न मे हुए नक् ु लेअस्तर प्लार्ंट कपी क्षित यार् भोपिार्ल गैसि त्रार्सिदी, ु ट ही दै िहकप तार्पि है। [व्यिक्तगत जीवन यार् स्वार्स्थ्य मे प्रदषण ू ण कपार् प्रभार्व ] उपिार्य

सिुरक्षार्, बचार्व और स्वार्स्थ्य (security, safety and health)

मल िनयंत्रण और दिू षणत पिदार्थ ों कपो वार्तार्वरण मे अस्तिनयंित्रत न छोड्नार् (reducing waste, controlled disposal)

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21 2. दैह िवक तापर: प्रार्कपृितकप िवपिदार् जैसिे सिुनार्मी, बार्ढ़, भूकपंपि, यद्ध ु , दै िवकप तार्पि है। प्रार्कपृितकप िनयम कपे तार्त्कपार्िलकप अस्तसिंतुलन ही दै िवकप तार्पि है। [ व्यवस्थ ार् और सिंगठन कपे दरू ु पियोग सिे प्रार्प्त सिार्मूिहकप स्तर पिर हुए दष्ु पि​िरणार्म ] उपिार्य

पिथ् ु बकपीय तरं गे और वार्यु कपे प्रार्कपृितकप सिंतुलन कपार् िवज्ञार्न ृ वी, जल, ऊजार्र, िवद्युत-चम् और चैतन्यतार्

प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न, निदयार्ं, पिवरत, जंगल और जैव िविवधर्तार् कपी सिमिृ द्ध

3. भौतितक तापर: यह वह तार्पि है िजसिसिे िवश्व कपे सिभी प्रार्णी नष्ट हो सिकपते है। उदार्हरण कपे िलए, ग्रीन हॉलउसि गैसि द्वार्रार् पि​िृ थ वी कपे तार्पि कपार् सिंग्रह, िजसिसिे पिथ् ृ वी कपे प्रार्णी हार्िनकपार्रकप

िविकपरण, तार्पि और जलवार्यु पि​िरवतरन सिे िवचिलत हो जार्ते है। [ प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न और िनयम कपे रुष्ट होने पिर, िवश्वव्यार्पिी सिंहार्र कपी िक्रियार्] उपिार्य

ऊष्मार् अस्तवरोधर्ी गैसिों कपे कपार्रण पिथ् ृ वी कपे वार्तार्वरण मे तार्पि बढ्ने सिे जल-वार्यु पि​िरवतरन कपी िक्रियार् कपो होने सिे रोकपनार्

प्रार्कपृितकप कपार्रण और उसिकपे प्रभार्व कपे सिम्बन्धर् कपे ज्ञार्न कपो ही िवज्ञार्न कपहते है । िवज्ञार्न यार् प्रकपृित कपे िनयमों कपी खोज और उपियोग, मनुष्य कपे श्रम मे कपमी लार्ने और कपष्ट सिे बचार्ने

कपे िलए है । पि​िहये कपी खोज इसिकपार् उदार्हरण है । मशीनों कपार् िनमार्रण भी िवज्ञार्न कपे प्रयोग है। जब व्यिक्त प्रकपृित कपे िनयम कपे िवरुद्ध कपार्यर कपरतार् है , उसिकपार् श्रम बढ़तार् है , और िवज्ञार्न कपे

इसि खोज सिे मनष्ु यों कपो प्रकपृित कपार् धर्न्यवार्द दे नार् चार्िहए िकप उसिकपे ही ज्ञार्न सिे , प्रकपृित कपो िमत्र बनार्,

श्रम कपैसिे कपम िकपयार् जार्य। प्रकपृित कपे कपुछ िनयम जार्न, प्रकपृित कपो नष्ट कपरनार्

यार् उसि पिर िनयंत्रण सिंभव नहीं है बिल्कप उसि कपार्यर कपो कपरने वार्लार् ही नष्ट हो जार्एगार्।

जब तकप िवज्ञार्न कपार् उपियोग सित्य कपी िदशार् मे नहीं होतार् वह िवज्ञार्न, जीवों कपो तकपनीकप पिर िनभरर बनार्, उनकपी स्वतन्त्रतार् छीन लेते है। और उनकपी वही तकपनीकपी उपिलिब्धर् उन्हे आलसिी और उत्सिार्ह-रिहत बनार् दे ती है िजसिसिे वे बलहीन और बुिद्धहीन बन, आपिसि मे ही लड़ कपर सिमार्प्त हो जार्एंगे।

िकपन्तु जो वैज्ञार्िनकप, प्रकपृित कपे िनयम कपो मौिलकप िविधर् सिे जार्न लेते है

उनकपी प्रकपृित मे श्रद्धार् हो जार्ती है और उसिे वे मार्ँ कपी तरह प्रेम कपरते है। उनसिे प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न कपार् ह्रार्सि होनार् कपभी सिंभव नहीं। प्रकपृित स्वरूिपिणी मार्ँ सिे कपुछ, कपभी भी मार्ंगनार् नहीं पिड़तार् और सिभी जीव उत्सिार्ह कपे सिार्थ बल और बुिद्ध सिे युक्त हो उसि पिरमार्त्मार् कपे सित्य कपी

अस्तनभ ु िू त कपर प्रसिन्न हो जार्ते है। यही रार्म रार्ज्य है िजसिमे दै िहकप, दै िवकप और भौितकप तार्पि नहीं होते।

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


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5। परयार्थवरण का प्रदष ू ण से बचाव 5.1 श्रद्धा : मनष्ु यों मे प्राकृितक ज्ञान के अभाव के कारणों परर ध्यान प्रार्कपृितकप चक्रि मे कपभी मल नहीं होतार्, क्योंिकप इसिकपार् ज्ञार्न प्रार्िणयों कपे स्वभार्व मे िनिहत है

और वह मल िकपन्ही अस्तन्य प्रार्िणयों कपे द्वार्रार् उपियोग मे लार्ने कपी वस्तु होती है । इसि तरह हर

एकप प्रार्णी यार् प्रार्कपृितकप वस्तु और उसिकपे द्वार्रार् िकपये गए कपार्यर और उत्सि​िजरत मल कपार् अस्तिस्तत्व और उनकपार् उपियोग एकप वैिश्वकप प्रणार्ली यार् जीवन-मत्ृ यु कपे चक्रि पिर िनभरर है । ज्ञार्न प्रार्िप्त कपी पिार्रंपि​िरकप िविधर् मे कपुछ दोषण है।

1. मनुष्यों ने ज्ञार्न, भौितकप और मार्निसिकप अस्तस्त्रों कपे प्रयोग यार् प्रार्कपृितकप िनयमों सिे , प्रितिक्रियार् कपरकपे उन्हे सिीखार्। इसि​िलए जब िकपसिी सिे , कपोई जार्नकपार्री, बल पिव र यार् ू कप चार्लार्कपी सिे िलयार् जार्तार् है , तब दे ने वार्लार् उसिे पिरू ी जार्नकपार्री कपभी नहीं दे तार्।

2. श्रद्दार् (श्री कपो धर्ार्रण कपरने): प्रार्कपृितकप ज्ञार्न (यार् धर्मर), जीव कपे कपल्यार्ण, यार् श्री

प्रार्िप्त,

कपार् मार्ध्यम है । पिरमार्त्मार् पिर जीव कपे सिमपिरण ‘श्रद्धार्-भिक्त’ कपे िबनार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न (धर्मर कपे पिण ू र ज्ञार्न) कपी प्रार्िप्त अस्तसिंभव है ।

3. इसिकपे िवपिरीत, मनष्ु यों ने प्रितिक्रियार् यार् प्रयोगों द्वार्रार् प्रार्कपृितकप ज्ञार्न कपे अस्तंशों कपो थ ोड-ार्थ ोड-ार् कपर, सिार्ंकपेितकप भार्षणार् मे िलख कपर अस्तध्ययन कपरने कपी वह िविधर् ढूंढ ली, िजसिसिे उनकपार् सिम्पिूणर प्रार्कपृितकप चक्रि सिे सिम्बन्धर् सिीधर्ार् नहीं रहार्।

4. ज्ञार्न कपी शार्खार्एँ बहुत बढ़ गयी है, और उनकपे एकप मूल कपार् ज्ञार्न न होने सिे वे आपिसि मे

टकपरार्ती है। ज्ञार्न कपी पिूणत र ार् कपे अस्तभार्व मे , सिार्ंसि​िरकप ज्ञार्नी, पि​ितत हो जार्ते है और िभन्न

िभन्न ज्ञार्िनयों कपार् अस्तहं कपार्र उनकपार् सित्य सिे िबमुख होने कपार् प्रमार्ण है । जबिकप श्रेष्ठ ज्ञार्नी ... बद्ध ु , आइन्स्टार्इन और अस्तन्य दार्शिर नकप यह कपहते पिार्ये गए कपी ज्ञार्न िजतनार् बढ़्तार् है

उतनार् ही उन्हे अस्तपिनी अस्तज्ञार्नतार् कपार् बोधर् होतार् है । ज्ञार्न कपी पिूणत र ार्, और सित्य (आत्मार्) कपे अस्तनुभव कपो श्रद्दार्–भिक्त कपहते है।

5. अस्तधर्रू े ज्ञार्न कपो िवषणय (िवषण यक् ु त) यार् सिबजेक्ट (आधर्ीन होनार्) कपहते है जो एकप सिीमार् मे

बंधर्ार् हो। बंधर्े हुये जल ही कपी तरह, ज्ञार्न जब स्वतः शुद्ध होने, यार् आत्मार् कपी स्वतंत्र िस्थ ित मे नहीं होतार् है , तब उसिकपार् उपियोग नहीं कपरनार् चार्िहए। यह िवषण है । ज्ञार्न मे त्रिु ट कपे भयार्नकप पि​िरणार्म होते है और प्रार्कपृितकप शिक्तयार्ं, अस्तपिने द्वार्रार् पियार्व र रण कपी रक्षार् कपे उत्तर दार्ियत्व कपो छोड़ने लगती है।

6. सिार्ंकपेितकप भार्षणार्, जैसिे शब्द, गिणत यार् तकपर कपे सिार्धर्न, प्रयोग कपे प्रमार्णों द्वार्रार् िसिद्ध िकपये जार्ते है और इसिी सिे अस्तस्वार्भार्िवकप िवज्ञार्न कपार् जन्म होतार् है ।

7. इसि व्यवसिार्ियकप यार् अस्तपिूणर िवज्ञार्न सिे कपोई भी अस्तप्रार्कपृितकप सि​िृ ष्ट कपी जार् सिकपती है , और इसि ज्ञार्न मे त्रिु ट कपे कपार्रण हार्िन कपार्रकप प्रभार्व भी होते है। इसि व्यव्सिार्न्मख ु ी ज्ञार्नोद्योग सिे प्रार्प्त ज्ञार्न कपभी पिण ू र नहीं होतार् और उसि अस्तपिूणर ज्ञार्न सिे बने वस्तु यार् व्यवस्थ ार् मे

प्रार्कपृितकप चक्रि कपभी स्वतः िक्रियार्शील नहीं हो सिकपते , और उन व्यवस्थ ार्ओं (व्यय कपे िलए िस्थ त) कपो बनार्ये रखने कपे िलए श्रम (यार् सित्य कपे िवरुद्ध अस्तपि​िवत्र कपार्यर यार् मल) कपरनार् पिड़तार् है ।

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ज्ञार्न, सिंवेदनशील जीिवत िवचार्र कपी सित्तार् है । प्रार्िणयों कपे श्रद्धार्हीन सिार्धर् नार् सिे प्रार्प्त अस्तधर्रू े

ज्ञार्न यार् िवषणय मे त्रिु ट कपो दरू कपरनार् कपिठन है । क्योंिकप दै िहकप, दै िवकप और भौितकप तार्पि प्रार्कपृितकप शिक्तयार्ँ ही है, जो ज्ञार्न कपी इसि सिार्धर्नार् िविधर् कपे िवरुद्ध है। इसिकपार् उदार्हरण

है िकप

िकपसि तरह जैव-िविवधर्तार् (यार् बार्यो- ड-ार्ईविसिरटी) कपी क्षित, पियार्रवरण कपी प्रार्कपृितकप चक्रि कपो तोड़ दे ती है , िजसिे व्यवसिार्ियकप

ज्ञार्नोद्योग सिे पिरू ार् कपरनार् सिंभव नहीं। उद्योग यार् तकपनीकप सिे

प्रदषण ू ण फिैलने कपार् कपार्रण भी, उसिकपार् यही अस्तिनयंित्रत मल है जो प्रार्कपृितकप प्रार्णी-चक्रि मे स्वतः

नहीं बदलार् जार् सिकपतार्। तकपनीकपी िशक्षार् कपार् व्यवसिार्य, िवज्ञार्न और तकपनीकप कपे सिदपि ु योग तकप

ही सिीिमत नहीं रहार्। आज अस्तिधर्कपतर युद्ध, शब्द और अस्तथ र और ज्ञार्न कपे प्रार्रूपि कपो लेकपर है, और एकप ही बार्त कपो अस्तलग अस्तलग लोग अस्तलग अस्तलग कपहते है , और अस्तपिनी भार्षणार् यार् शब्द कपो लेकपर झगड़ते

है और ज्ञार्न कपी इसि पिार्रंपि​िरकप िविधर् सिे मार्निसिकप प्रदषण ू ण कपी िवभीिषणकपार् बढ़ने

कपी सिम्भार्वनार् कपम नहीं हो सिकपी।

5.2 प्रकृित का अपरना प्रयास और श्रम-रिहत प्रसन्नता प्रकपृित, पियार्व र रण कपो बनार्ये रहने कपे िलए, प्रदषण ु ू ण कपो सिार्फ़ कपरने कपी क्षमतार् रखती है । सिमद्र

कपे सिूक्ष्म जीव, जंगल, जंगली पिशु पिक्षी और पिार्नी कपी निदयार्ँ, पियार्व र रण कपो प्रदषण ू ण और

सिंतार्पि कपो बचार्ती है। इन प्रार्कपृितकप तत्वों कपे िबनार्, प्रदषण ू ण कपी सिमस्यार् कपार् िनवार्रण, िकपसिी भी उद्योग द्वार्रार् सिंभव नहीं है । लेिकपन इन प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्नों कपार् नार्श, उद्योग, िनवार्सि, और भूख मे इस्तेमार्ल होने कपे कपार्रण, बचार्यार् नहीं जार् सिकपार्। प्रदषण ू र सिच ू नार् है। ू ण कपी पिव

और प्रार्कपृितकप आपिदार्, पियार्व र रण मे

कपार्यर कपार् अस्तमूल्य (zero defect) होनार् तभी सिंभव है जब वे कपार्यर , प्रसिन्नतार् और प्रकपृित कपे िनयमों कपे अस्तनुकपूल होने सिे श्रम-रिहत (effortless) हों। अस्तथ र-व्यवस्थ ार् यार् व्यार्वसिार्ियकप

पि​िरिस्थ ितयों मे मूल्यार्ंकपन कपे जो पिार्ँच िसिद्धार्न्त अस्तध्यार्य 2.1 मे विणरत है, उनसिे सिार्वधर्ार्न रहनार् चार्िहए।

कपमरफिल पिर आसि​िक्त सिे सिुख-सिुिवधर्ार् कपी प्रार्िप्त सिंभव है िकपन्तु प्रसिन्नतार् और िनभरयतार् नहीं। प्रकपृित कपे प्रभार्व कपार् ज्ञार्न और सित्य मे सिार्मंजस्य ही ... पियार्व र रण कपी आध्यार्ित्मकप व्यवस्थ ार् है ।

5.3 व्यवस्थना के द्वारा ही व्यवस्थना के प्रदष ू ण परर िनयंत्रण पियार्रवरण कपो प्रदषण ू ण सिे बचार्ने कपे िलए, मनुष्यों कपे िलए कपेवल ५ िनम्निलिखत रार्स्ते है। 1. प्रदषण ु ं ू ण पिैदार् कपरने वार्ले कपार्यर न िकपए जार्ए। उसि िवकपल्पि कपी खोज कपरे िजसिसिे उन वस्तओ कपी खपित ही न हो यार् कपम सिे कपम हो, िजसिसिे प्रदषण ू ण पिैदार् होते है। [ AVOID DOING]

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


24 2। वह तकपनीकप प्रयोग हो, िजसिसिे प्रदषण ू ण न हो । इसि िलए इसि लक्ष्य सिे नए तकपनीकप कपो

िवकपिसित कपरे और अस्तनुपियोगी तकपनीकप कपो इस्तेमार्ल न कपरे । [ DO BUT PREVENT ALL WASTE] 3। प्रदषण ू ण पिैदार् होने कपे बार्द, उसिकपे हार्िनकपार्रकप तत्व कपो िनयंित्रत िकपयार् जार्य और उसिकपो

फिैलने सिे रोकपार् जार्य। रोकप कपर उसि तत्व कपो िनष्प्रभार्वी कपर, उसि जगह ड-ार्ले जहार्ँ खतरार् कपम सिे कपम हो। जैसिे रार्सिार्यिनकप तत्त्व, जैिवकप कपचरार्, यार् मल। [ALLOW WASTE BUT CONTROL HARMFUL DECAY ] 4। प्रदषण ू ण सिे िनकपले हार्िनकपार्रकप तत्व कपार् िकपसिी अस्तन्य उद्योग मे इस्तेमार्ल हो, िजसिसिे वह

एकप चक्रि मे बार्र-बार्र घूमतार् हुआ, िस्थ र रहे । दीघरकपार्ल तकप नष्ट न होने वार्ले पिदार्थ र जैसिे िवषणैले धर्ार्तु, प्लार्िस्टकप, खिनज आइल यार्, ग्लार्सि, मशीन कपे पिुजे, यार् पिैिकपं ग बार्र-बार्र इस्तेमार्ल िकपए जार् सिकपते है। [ RECYCLE / REUSE IT]

5। प्रदषण ू ण और गमी कपो सिोखने वार्ले प्रार्कपृितकप व्यवस्थ ार् जैसिे जंगल, निदयार्ँ, वक्ष ृ ों, और मत ृ

शरीर कपो खार्कपर सिफिार्ई कपरने वार्ले प्रार्णी जैसिे िगद्ध, सिक्ष् ू म जीव, अस्तन्य प्रार्णी कपो नष्ट न कपरे , और उसिे बढार्ये। [ ALLOW NATURAL HEALING]

उद्योग कपी व्यवस्थ ार् कपी वे ५ प्रार्थ िमकपतार् िजसिमे प्रदषण ू ण कपी सिम्भार्वनार् होती है । 1। कपच्चे मार्ल कपे बनने मे होने वार्ले प्रदषण ू ण, 2। बने हुए मार्ल कपी िबक्रिी और ग्रार्हकपों कपो उसिकपे इस्तेमार्ल सिे होने वार्ले प्रदषण ू ण, और 3। िनमार्रण यार् ग्रार्हकप सिेवार् कपे कपार्यर जो उसिकपे अस्तपिने िनयंत्रण मे है । 4। िनमार्रण कपे दौरार्न उत्सि​िजरत कपचरार्/ अस्तनपि ु योगी पिदार्थ र, 5। भण्ड-ार्रण और मशीनों कपे रख रखार्व मे अस्तसिार्वधर्ार्नी। प्रदषण ू ण कपो दरू कपरने कपे िलए इन पिार्ँचों पिर अस्तलग अस्तलग ध्यार्न दे नार् होगार्। 1. उद्योग यार् कपार्यर मे जो वस्तुएं इस्तेमार्ल कपे िलए खरीदी जार्ती है , उनकपे बनार्ने मे जो भी प्रदषण ू ण होतार् है , उसिकपी मार्त्रार् खरीद कपे मार्त्रार् सिे बढे गी। इसि​िलए, उसि वस्तु कपी खरीद नही यार्

कपम कपरनी चार्िहए िजसि सिे प्रदषण ू ण कपे बढ़ने और पियार्रवरण कपो हार्िन पिहुंचार्ने मे योगदार्न न दे । जैसिे िबजली जो कपोयले कपो जलार् कपर प्रार्प्त कपी जार्ती है , उसि िबजली कपे अस्तिधर्कप इस्तेमार्ल सिे वार्यु मे प्रदषण ू ण बढे गार्। कपार्गज कपार् इस्तेमार्ल कपरने सिे जंगलों कपो खतरार् होतार् है , इसि​िलए, इन वस्तुओं कपे इस्तेमार्ल मे कपमी यार् वैकपिल्पिकप व्यवस्थ ार् सिे पियार्व र रण बचार्यार् जार् सिकपतार् है ।

2। जो वस्तु बेचीं जार्ती है , और िजसिकपे इस्तेमार्ल सिे प्रदषण ू ण होतार् है , उसिे कपम कपरनार् चार्िहए। पिेट्रोल ड-ीज़ल सिे चलने वार्ली गार्िड़यों कपे िनमार्रतार् बेहतर तकपनीकप कपे प्रयोग सिे पियार्व र रण कपो

कपम नक् ु सिार्न पिहुँचार् सिकपते है। जो लोग इन वस्तुओं कपो वार्पिसि ले लेते है वह ठीकप है । बैटरी यार् पिैिकपं ग कपे सिमार्न, उपियोग कपे बार्द िनमार्रतार् इन्हे वार्पिसि लेते है।

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25 3। िनमार्रण कपे िविभन्न कपार्यों मे होने वार्ले प्रदषण ू ण कपे श्रोत, उसिकपी मार्त्रार् और पियार्रवरण मे उसिकपे प्रभार्व कपो नार्पि कपर दे खे। इसि अस्तध्ययन सिे हो रहे प्रदषण ू ण कपो हार्िनरिहत कपरने कपी एकप योजनार् बनार् कपर, उसिे व्यवस्थ ार् मे लार्कपर सिही िकपयार् जार्य।

4। रख-रखार्व और भण्ड-ार्रण मे अस्तसिार्वधर्ार्नी सिे मशीनों सिे कपच्छार् मार्ल पिूरार् इस्तेमार्ल नहीं हो पिार्तार् है, और यह प्रदषण ू ण पिैदार् कपरतार् है। गार्िड़यों मे सिमय सिमय पिर प्रदषण ू ण कपी जार्ंच कपी

जार्ती है, और यिद रख रखार्व मे कपमी होगी तो प्रदषण ू ण बढ़तार् है। बोइलर मे अस्तिधर्कप ऊजार्र कपी खपित होती है। भण्ड-ार्रण मे अस्तसिार्वधर्ार्नी सिे मार्ल खरार्ब हो जार्तार् है और यिद वे पिदार्थ र ज्वलनशील हो, तो वह प्रदषण ू ण कपे सिार्थ ही खतरे कपार् कपार्रण भी बन जार्तार् है। ख़रार्ब हुए दवार्एं, ड-ीज़ल कपे भंड-ार्र इसिकपे उदार्हरण है। 5। कपचरार् यार् उत्सि​िजरत पिदार्थ र जो उद्योग कपार् मल है। यह ध्यार्न दे नार् चार्िहए िकप औद्योिगकप कपचरार् फिैले नहीं, और उसिे ध्यार्न पिूवकप र वैज्ञार्िनकप ढं ग सिे उसिकपे दग ुर कपो दरू कपर, पिुनः िकपसिी ु ण उपियोग मे लार्यार् जार्यार्।

यिद यह सिंभव न हो सिकपे, तो इसिकपे उत्पिार्दन पिर रोकप लगनी

चार्िहए क्योंिकप इसि सिे बीमार्री और अस्तन्य नए दष्ु प्रभार्व हो सिकपते है िजसिकपे िलए कपोई भी

मुआवजार् दे नार् सिंभव नहीं है । न्यूिक्लयर प्लार्ंट कपे मल कपो सिंभार्लने कपी िजम्मेवार्री कपी सिमस्यार् ही इसि ऊजार्र कपे श्रोत कपे व्यार्पिकप न होने कपार् कपार्रण है ।

जहार्ं वस्तु कपार् उपियोग होतार् है वहार्ँ उसि वस्तु कपी उपियोिगतार् नष्ट हो जार्ने सिे वह बेकपार्र हो जार्तार् है । िकपन्तु वह उनकपे िलये बेकपार्र नहीं है जो उसि वस्तु कपार् िनमार्रण कपरते है। लोहे कपो िपिघलार् कपर वही लोहार् दब ु ार्रार् कपार्म मे आ सिकपतार् है । सिभी धर्ार्तुओं कपे सिार्थ यही िनयम है । चंिू कप धर्ार्तुओं कपार् स्क्रिैपि मूल्यवार्न होतार् है इसि​िलये आिथ रकप लार्भ कपे िलये उसिकपार् एकप बार्ज़ार्र

है । बेकपार्र प्लार्िस्टकप यार् पिार्िलथ ीन कपो इकपट्ठार् कपरनार् आिथ रकप रूपि सिे लार्भकपार्री नहीं है इसि​िलए उसिकपार् मल अस्तिनयंित्रत रह जार्तार् है ।

पिार्नी, कपार्गज और वनस्पि​ित जो प्रकपृित मे सिड़ गल

जार्ते है वे भी अस्तिनयंित्रत रहते है। हर एकप तरह कपे कपचरे यार् मल कपो अस्तलग अस्तलग इकपट्ठार् कपरने सिे छँ टार्ई कपार् सिमय बच जार्तार् है ।

एकप बार्र उपियोग कपरकपे वस्तु कपो फिेकप दे ने कपार् यह िसिद्धार्न्त उत्पिार्दन और व्यवसिार्य कपे िलये

लार्भकपार्री है िकपन्तु इसिसिे पियार्व र रण पिर बुरार् अस्तसिर पिड़तार् है । पिार्नी कपे खार्ली बोतल यार् पिैिकपं ग मे लगने वार्ले पिार्िलथ ीन कपभी नष्ट नहीं

होते। पिीने कपार् पिार्नी यिद सिरलतार् सिे िमल सिकपे तब

इसिकपी क्यार् आवश्यकपतार्? पिैिकपं ग कपे कपार्रण पियार्व र रण मे कपपिड़े, कपार्गज, प्लार्िस्टकप कपे कपचरे बढ़ जार्ते है। जहार्ं तकप सिंभव हो वस्तु और उसिकपी पिैिकपं ग कपार् उपियोग बार्र-बार्र कपरनार् चार्िहये। मल कपो दब ु ार्रार् प्रोसिेसि कपर उसिकपी उपियोिगतार् वही बनार्ई जार् सिकपती है । सिीवर, गंदे पिार्नी कपो सिार्फि कपर दब ु ार्रार् उपियोग मे लार्ने सिे अस्तिनयंित्रत गंदगी कपे कपार्रण बदबू और बीमार्िरयार्ँ नहीं फिैलतीं और पिार्नी भी उपियोगी बन जार्तार् है ।

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


26 कपेिमकपल, पिरमार्णु ऊजार्र कपे कपचरे , जैिवकप यार् अस्तन्य खतरनार्कप कपचरे िजनकपार् दब ु ार्रार् प्रयोग कपरनार् सिरल नहीं है उसिकपे सिंग्रह कपरने मे सिार्वधर्ार्नी आवश्यकप है । इन प्लार्ंटों कपे िनमार्रण कपे सिमय ही यह सिोचनार् आवश्यकप है िकप उनकपे कपचरे कपार् क्यार् होगार् और वही तय िक्रियार् कपरनी चार्िहये िजसिसिे हार्िनकपार्रकप कपचरार् सिंगिठत रहे और उसिकपो अस्तिनयंित्रत रहने सिे रोकपार् जार्य। 5.4 जल-वायु परिरवतर्थन की ियाक्रया का रहस्य और उसे रोकने के सरल उपराय पिथ् र कपे जलने यार् ृ वी पिर ऊजार्र कपे दो श्रोत है। सिूयर कपी नार्िभकपीय ऊजार्र यार् प्रकपार्श और कपार्बन

सिड़ने सिे प्रार्प्त ऊजार्र। सिय ू र कपार् प्रकपार्श जैिवकप िक्रियार् और वनस्पि​ित उत्पिन्न कपरने कपे िलये

आवश्यकप है । उसिी वनस्पि​ित यार् कपार्बन र कपो जीव खार्ते है , अस्तिग्न उसिे जलार्ती है , और इसि तरह कपार्बन र चक्रि कपी िनरं तरतार् जीवन कपी आवश्यकप ऊजार्र कपी पिूितर कपरती है । इसि तरह जो ऊजार्र कपार्बन र -वनस्पि​ित कपे इसि चक्रि द्वार्रार् िनरं तर चलती रहती है उसिमे ऊजार्र उत्पिन्न भी होती है और शोिषणत भी हो जार्ती है िजसिसिे

वार्युमंड-ल कपार् कपुल तार्पि नहीं बढ़तार्।

िकपन्तु, वनस्पि​ित जो इसि चक्रि सिे बार्हर है अस्तथ ार्रत पिथ् ृ वी कपे भीतर जमार् हो गईं थ ीं वे ही

पिेट्रोिलयम है। उद्योग और मशीनों मे इसि पिेट्रोिलयम कपे उपियोग सिे जो ऊजार्र कपार् अस्तितिरक्त श्रोत जुड़ जार्तार् है उसिसिे पिथ् र ृ वी मे वार्यु-मण्ड-ल कपार् तार्पिमार्न बढ्ने लगतार् है । कपार्बन

ड-ार्इओिक्सिड- और मीथ ेन कपी यह अस्तितिरक्त मार्त्रार्, पिथ् ृ वी कपे चार्रों ओर एकप घेरार् बनार् लेते है

िजसिसिे वह तार्पि बंद कपमरे कपी तरह, पिथ् ु ंड-ल मे कपैद हो जार्तार् है । पिथ् ृ वी कपे वार्यम ृ वी कपे िलए, यह कपार्बन र ड-ार्इऑक्सिार्इड- कपी अस्तितिरक्त मार्त्रार् मोटे आदिमयों कपी चबी कपी तरह अस्तन ुपियोगी है । हार्लार्ंिकप पिथ् र ड-ार्इऑक्सिार्इड- कपी यह अस्तिधर्कपतार् वनस्पि​ित कपे िलये भोजन भी है ृ वी पिर कपार्बन

इसि​िलये यिद जंगल उगने कपे िलए पियार्प्र त स्थ ार्न ही न हों तब वे वनस्पि​ितयार्ँ उसिे खार् कपर कपैसिे कपम कपरे ? एकप तरफि जब उद्योग कपे बढ़ते मार्ंग कपो पिरू ार् कपरने कपे िलये पिेट्रोिलयम जलार्ने सिे जब कपार्बन र ड-ार्इऑक्सिार्इड- कपी मार्त्रार् बढ़ती है और दसि ू री तरफि उसिकपो

खार्ने वार्ले

वनस्पि​ितयों और जंगल भी कपट जार्ते है तब यही पिथ् ृ वी कपे तार्पिमार्न कपो बढ़ार् दे तार् है । अस्तब

नयार् प्रश्न यह है कपी पिथ् र ड-ार्इऑक्सिार्इड- कपे वार्तार्वरण मे ृ वी कपार् जल-वार्यु, अस्तितिरक्त कपार्बन जमार् होने और तार्पिमार्न-विृ द्ध सिे िकपसि तरह प्रभार्िवत होते है?

पिथ् ृ वी कपार् वार्तार्वरण िजसि िनयम सिे चलतार् है उसिे थ मोिड-नार्िमक्सि कपहते है। सिूयर कपी गमी सिे

जब सिमुद्र कपार् जल, वार्ष्पि यार् बार्दल बन जार्तार् है तब वार्यु मे नमी यार् उमसि कपार् अस्तनुभव होने

लगतार् है । वार्यु भी सिूयर कपी उसिी गमी सिे फिैलते है और इसि तरह जल सिे भरे बार्दल, फिैलते

हुये वार्यु कपे दबार्व सिे, एकप िनिश्चत मार्गर पिर आकपार्श मे उड़ते है। ये बार्दल जलीय हवार्ई जहार्जों कपी तरह पिथ् ृ वी कपे वार्यु मण्ड-ल मे ऊपिर उड़ते दे खे जार् सिकपते है। ये बार्दल अस्तपिनी गित और जल कपे भार्र कपो एकप वैज्ञार्िनकप िविधर् सिे सिंभार्लते रहते है। प्रकपृित कपे इसि िनयम मे कपभी कपोई त्रिु ट नहीं हो सिकपती।

जब वे बार्दल, पिवरतों कपे ऊपिर सिे गज ु रते है तब वही पिवरत ही हवार्ई अस्तड्ड-ार् है क्योंिकप वहार्ँ

वनस्पि​ितयों सिे िनिमरत ठं ड-ार् वार्तार्वरण उन्हे अस्तपिने जल होने कपी यार्द पिन ु ः िदलार्तार् है । और वे

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27 वार्ष्पियुक्त जलीय हवार्ई जहार्ज, वषणार्र बन बरसि जार्ते है। इसि तरह पिवरतों पिर, जहार्ं सिमुद्र कपार् पिार्नी बह कपर नहीं पिहुँच सिकपतार् है बार्दलों सिे उड़ कपर आ जार्तार् है । वनस्पि​ित सिे भरे जंगल

और पिवरत कपी ऊंचार्ई दोनों िमल, उन उड़ते हुये बार्दलों कपो वहार्ँ िनमंित्रत कपर वषणार्र कपरार्ते है। वषणार्र होने कपे िलए बार्दलों कपी शतर कपेवल यही है िकप उन पिवरतों कपार् तार्पिमार्न एकप मार्त्रार् सिे कपम हो। यिद पिवरत पिर वनस्पि​ित न हों और वहार्ँ कपार् तार्पि बढ़ जार्य तब वे बार्दल वहार्ँ नहीं रुकपे गे और वषणार्र न होगी। पिवरतों पिर पियार्प्र त वनस्पि​ितयों कपार् होनार् उसिकपे तार्पि कपो कपम कपरतार् है िजसिकपे कपार्रण ही वषणार्र कपे िलए बार्दल वहार्ँ आते है। पिवरतों कपे नष्ट होने यार् उनकपी ऊंचार्ई पियार्प्र त न होने सिे बार्दल वहार्ँ िटकप ही नहीं सिकपते। पिवरतों सिे वनस्पि​ित और जंगल कपे नष्ट होने और उन स्थ ार्नों पिर औद्योिगकप कपार्यर सिे उनकपार् तार्पि बढ़तार् है िजसिसिे फिैलते वार्यु, उन बार्दलों कपो ऊपिर धर्कपेलते है और वहार्ँ बार्दल नहीं ठहरते

और वषणार्र नहीं हो सिकपती। अस्तब वे सिभी बार्दल आगे जार्, उन बड़े पिवरत तकप पिहुँचते है जहार्ं उन्हे ठं ड-ार् वार्तार्वरण िमलतार् है । जब भार्रत मे ठं ड-े पिवरतों कपी कपमी सिे वषणार्र नहीं होती तब

िहमार्लय मे अस्तित विृ ष्ट होती है । यही भीषणण बार्ढ़ और निदयों कपे द्वार्रार् पि थ् ृ वी कपे िमट्टी कपो सिमुद्र मे बहार् लार्तार् है । उत्तरार्खंड- मे कपेदार्र नार्थ कपार् भीषणण जल विृ ष्ट और उसिसिे प्रार्प्त तबार्ही कपार् कपार्रण बार्दलों कपार् पिरू े भार्रत मे सिमार्न जल िवतरण न कपरने सिे ही उत्पिन्न हुयी।

सिूखार् और बार्ढ़, अस्तित गमी और अस्तित सिदी, बढ़ते रे िगस्तार्न और निदयों कपार् रार्स्तार् बदल दे ने

कपार् कपार्रण यह जल-वार्यु पि​िरवतरन ही है । कपृिषण कपे िलए जल और भूगभीय जल कपे श्रोत सिमार्प्त हो रहे है। जल कपे िवतरण कपार् प्रार्कपृितकप चक्रि िकपसिी रार्जनैितकप यार् आिथ रकप व्यवस्थ ार्

सिे कपर पिार्नार् अस्तसिंभव है । जल कपी बढ़ती मार्ंग कपे कपार्रण, रार्जनैितकप और आिथ रकप यद्ध ु होने आरं भ भी हो गये है।

जल-वार्यु पि​िरवतरन कपो रोकपने कपे िलए िनम्न िलिखत उपिार्य कपरने होंगे । 1। भग ू भीय वनस्पि​ित जो पिेट्रोिलयम यार् कपोयलार् (कपार्लार् धर्न) कपहलार्तार् है उसिकपे उपियोग सिे ऊजार्र बनार्ने मे कपमी लार्यी जार्य। यह कपार्लार्-धर्न वह अस्तितिरक्त कपार्बन र है जो पिन ु जीिवत कपार्बन र यार् िनरं तर चल रहे वनस्पि​ित-चक्रि सिे अस्तलग है । इसि अस्तितिरक्त जोड़े गए कपार्बन र कपे

िलए जंगल उगार्ये जार्एँ िजसिसिे वह अस्तितिरक्त कपार्बन र जो पिेट्रोल कपी तरह धर्रती मे अस्तब तकप दबार् थ ार् वह पिन ु जीिवत वनस्पि​ित बन जार्य। 2। ऊजार्र उत्पिार्दन कपी उन िविधर्यों कपी खोज कपी जार्य िजसिसिे कपार्बन र ड-ार्इऑक्सिार्इड- उत्पिन्न न हों। सिोलर ऊजार्र, वार्यु यार् जल कपे द्वार्रार् प्रार्प्त िवद्यत ऊजार्र िजसिमे कपार्बन र ु ड-ार्इऑक्सिार्इड- उत्पिन्न नहीं होतार् उसिसिे वार्तार्वरण मे गमी नहीं बढ़ती।

3। मीथ ेन गैसि जो जैिवकप पिदार्थ ों कपे सिड्ने सिे पिैदार् होती है उसिे रोकपनार् होगार्।

इसिी तरह,

उद्योग यार् कपृिषण मे हार्िनकपार्रकप गैसि जो वार्तार्वरण मे इकपट्ठार् होते है और तार्पिमार्न बढ़ार्ते है उनकपो रोकपार् जार्य यार् उतनी ही मार्त्रार् मे उन गैसिों कपो खार्ने कपे िलए वनस्पि​ित यार् जंगल उगार्ये जार्एँ।

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


28 4। जल-िवतरण मे बार्दल, वार्यु कपे दबार्व, वनस्पि​ित सिे भरे और ऊंचे पिवरत कपे वैज्ञार्िनकप िविधर् कपार् ज्ञार्न मनुष्यों कपो आवश्यकप है । पिवरत पिर उद्योग न लगार्ये जार्य और उसिकपे

पित्थ र कपो िनकपार्ल कपर उसिकपी ऊंचार्ई भी कपम न कपरे । पिवरतों पिर वनस्पि​ित और जंगल कपे रहने सिे वे ठं ड-े रहते है और िजसिकपे कपार्रण वषणार्र सिमय पिर और पियार्प्र त मार्त्रार् मे होती है । 5.5 सुरक्षा, बचाव और स्वास्थ्य (security, safety and health) 1। जिीवन सुर क्षा : जिीवन अर्मूर्ल्य है। सुरक्षा, बचाव और स्वास्थ्य का मूर्ल्यांकन धन से हो ही नहीं सकतिा। ज्ञान, साहस और प्रेम ही जिीवन की रक्षा करतिे हैं। जिीवन की रक्षा करने वालों का सदैव सम्मान होतिा है। व्यक्तवसाय ितिजिसका मूर्ल्यांकन धन से हो सकतिा है उसका महत्व के वल तिात्काितिलक है। उपरोक्ति तिथ्य को सभी जिानतिे हैं िकन्तिु िफर्र भी भय, लोभ (धन) और प्रितितिस्प्रधा के कारणय औद्योितिगक दुघर्थाटनाएँ या अर्पराध, जिीवन को ही अर्सुरितिक्षति बनाये रखतिे हैं। ितिनयंत्रणय की आवश्यकतिा इन्हीं कारणयों से होतिी है। िकन्तिु, इन अर्पराधों को कम करने का उपाय दण्ड नहीं हो सकतिा। दण्ड, अर्पराध का वह कानूर्नी व्यक्तवसाय है ितिजिसका अर्थितर्था है िक धनवान या समथितर्था व्यक्तितिक्ति जिो उस दंड को भर सके अर्पराध कर सकतिा है। दुभार्थाग्य है िक यूर्ितिनयन काबार्थाइड ने धन के कारणय ही भोपाल के अर्सहाय नागिरकों के अर्मूर्ल्य जिीवन की हत्या की। भोपाल गैस कांड में हजिारों अर्सहाय लोग मारे गये। यह दैितिहक तिाप है ितिजिसे रोका जिा सकतिा थिता िकन्तिु धन की लोभी यूर्ितिनयन काबार्थाइड कं पनी ने धन के खचर्था को बचाने के ितिलये प्लांट के मरम्मति के कायर्था की उपेक्षा की, और सरकारी तिंत्र ितिजिसका उद्देश्य, नागिरकों की रक्षा ही है वह अर्सफर्ल रही। मनुष्यों के जिीवन को धन और व्यक्तितिक्तिगति स्वाथितर्था से अर्ितिधक महत्व देना, यह सीखना क्या अर्भी बाकी है? 2। सुर क्षा व्यक्तवस्थिता: खतिरे की चेतिावनी, सुरक्षा-व्यक्तवस्थिता और उसका ज्ञान देना संगठन का कतिर्थाव्यक्त है। सुरक्षा व्यक्तवस्थिता वे ितिवितिध हैं ितिजिसके ज्ञान और उपयोग के होतिे, िकसी भी दुघर्थाटना का होना संभव नहीं। 3। बचाव: सुरक्षा एक व्यक्तवस्थिता है, िकन्तिु बचाव स्वयं से ही िकया जिा सकतिा है। िकतिनी भी सुरक्षा क्यों न हो जिब तिक जिीव अर्पने बचाव की ितिजिम्मेवारी स्वयं नहीं लेगा, उसका बचना संभव नहीं है। जेल यार् सिुरक्षार् पि​िरसिर भी बचार्व कपी िजम्मेवार्री नहीं लेते। सिरु ित क्षत िकपन्तु लार्पिरवार्ह और आलसिी जीव अस्तिधर्कप मरते है जबिकप सिजग लोग कपिठन और जोिखम भरार् कपार्म सिरलतार् सिे कपरते है और बचार्व कपे सिार्थ ही सिुरक्षार् व्यवस्थ ार् कपार् भी ध्यार्न रखते है। 4। स्वास्थ्य : शरीर और मन प्रकृत ितिति से ितिनयमों से चलने वाले यंत्र हैं जिो सक्षम तिो हैं िकन्तिु स्वयं ितिनणयर्थाय नहीं कर सकतिे और इस इनेिशया या जिड़तिा के कारणय वे अर्पने काम को ितिजितिना और जिैसा जिानतिे हैं वैसा ही करतिे रहतिे हैं। उनमें, कोई भी ितिनणयर्थाय के वल जिीवात्मा पर ही ितिनभर्थार है जिो इन मन और शरीर को धारणय करतिा है। वातिावरणय में प्रकृत ितिति में भौतितितिक कारणयों से बदलाव होतिा रहतिा है इसितिलए जिीव को मन और शरीर की ितिनयितिमति मेंटीनेंस या रख-रखाव उसी तिरह करनी चाितिहये जिैसे िकसी महान और बहुमूर्ल्य तिकनीकी यंत्र की।

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29 मन और शरीर को आत्मा के लक्ष्य के अर्नुसार कायर्था करने से श्रम नहीं होतिा। श्रम या थितकावट न होने से आत्मा की ऊर्जिार्था का सदुपयोग होतिा है और कमर्था से लक्ष्य ितिबना िकसी श्रम के प्राप्त हो जिातिा है। तिनाव रितिहति मन, पौतितिष्टिक और साितित्वक भोजिन, शौतच के ितिनत्यकमर्था और अर्नुशासन से ही स्वास्थ्य बना रह सकतिा है। दैितिहक तिाप के पाँच लक्षणय हैं। 1। भय यार् मार्निसिकप तनार्व 2। शार्रीिरकप थ कपार्वट 3। कपष्ट , क्षमतार् मे कपमी यार् बीमार्री 4। दघ र नार् यार् अस्तसिहार्य होनार् 5। मत्ृ यु ु ट सिरु क्षार् व्यवस्थ ार् मे िनम्निलिखत 6 दुघर्थाटना के कारणय ध्यार्न मे रखने चार्िहये। सुरक्षा व्यक्तवस्थिता वे ितिवितिध हैं ितिजिसके ज्ञान और उपयोग से िकसी दुघर्थाटना का होना संभव नहीं। िकसी भी दुघर्थाटना के ितिनम्न ितिलितिखति कारणय होतिे हैं।

1. बेचन ै और अस्तसिार्वधर्ार्न होनार् (absent mind and unprepared individual) 2. अस्तिधर्कपृत तकपनीकप कपार् उपिलब्धर् न होनार् (risk of Technology) 3. अस्तिनिधर्कपृत कपार्यर यार् ठहरनार् (working without necessary licence and required arrangement)

4. कपार्यर कपी मार्त्रार् कपी अस्तिधर्कपतार् यार् आरार्म न िमलने सिे तनार्व और थ कपार्वट (Work Load)

5. व्यिक्तगत और सिार्वज र िनकप स्वच्छतार् यार् क्षमतार् कपी कपमी यार् रोग (lack of personal fitness and public hygiene)

6. इलार्ज और दवार्, क्षित पिूितर और पिुनवार्रसि कपी सिमस्यार् (Inadequate facilities of Medical Treatment, Compensation and Rehabilitation)

बेचन ैह और असावधान होना (absent mind and unprepared individual) िकपसिी भी दघ र नार् कपार् कपार्रण मन, शरीर और वतरमार्न पि​िरिस्थ ितयों मे सिंयम कपार् िबगड़ जार्नार् ु ट है । िवषणम पि​िरिस्थ ित उसिे कपहते है जब िनणरय न ले पिार्ने कपी िस्थ ित मे मन घबरार्ने लगतार् है

और वहीं दघ र नार् कपी सिंभार्वनार् होती है । यिद बचार्व कपार् रार्स्तार् खुलार् है और उसिकपार् ज्ञार्न है ु ट तब मन नहीं घबरार्तार् और सिार्हसि सिे आगे बढ़नार् तभी सिंभव होतार् है ।

जब दो यार् अस्तिधर्कप लोग हों और उनमे सिे कपोई एकप भी दे ख न सिकपे तभी लोग टकपरार्ते है और, दघ र नार् कपेवल तभी होती है । िकपन्तु यिद कपोई एकप भी उसि पि​िरिस्थ ित कपो दे ख लेगार् तब ु ट

दघ र नार् नहीं हो सिकपती। दघ र नार् कपार् कपार्रण मन कपार् कपार्यर पिर कपेिन्द्रत नहीं होनार् है । लोग कपुछ ु ट ु ट

सिोचते हुये और बड़े आरार्म सिे जब आटोमोबार्इल चलार्ते है तब उनकपार् ध्यार्न बंट जार्तार् है और वे सिमय रहते िवषणम पि​िरिस्थ ितयों कपो दे ख नहीं सिकपते। सिार्इिकपल चलार्ते हुये यार् पिवरत पिर चढ़ते हुये दघ र नार् नहीं होती क्योंिकप उसि सिमय मन और शरीर कपार् ध्यार्न उसि कपार्यर मे लगार् ु ट रहतार् है । सिड़कप यार्त्रार्, उद्योग, यार् आलसिी जीवन शैली मे दघ र नार् कपी सिंभार्वनार् कपहीं अस्तिधर्कप ु ट होती है ।

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013


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भार्रत मे धर्ैयर यार् धर्ीमे धर्ीमे , िनयंित्रत और त्रिु ट रिहत कपार्यर कपरनार्, श्रेष्ठ जीवों कपे लक्षण मार्ने जार्ते है। तीव्र यार् अस्तिनयंित्रत गित, अस्तसिुरों कपे लक्षण है।

अिधकृत तकनीक का उपरलब्ध न होना (risk of Technology) यह आवश्यकप है िकप तकपनीकप यार् मशीनों सिे होने वार्ले कपार्यर सिरु क्षार् कपे िलए िनिश्चंत हों।

तकपनीकप यार् मशीनों कपे िनमार्रण और उनकपे उपियोग कपी िविधर्यों कपार् बड़ी ब ुिद्धमार्नी सिे दे ख पिरख कपर ही, एकप िनिश्चत अस्तविधर् कपे िलये , उसिे अस्तिधर्कपृत कपरनार् चार्िहये। मशीनों कपी अस्तनपि ु यक् ु त िस्थ ित यार् जब उनकपार् उपियोग अस्तसिरु ित क्षत है तब उसिकपार् ज्ञार्न और पि​िहचार्न सिरलतार् सिे हो िजसिसिे अस्तनजार्ने मे उसिकपे उपियोगकपतार्र कपो क्षित न हो।

उन सिभी सिंभार्वनार्ओं कपी पि​िहचार्न कपर ली जार्नी चार्िहये िजसिकपे कपार्रण द घ र नार् हो सिकपती है , ु ट और उसिकपे रोकप थ ार्म, और मरम्मत कपी िविधर् और कपब मरम्मत यार् जार्ंच कपी जार्नी चार्िहये

तय हो। भोपिार्ल गैसि कपार्ंड- मे तकपनीकप और मशीन कपी मरम्मत ठीकप नहीं थ ी। भार्रत और अस्तमेिरकपार् मे उसिी कपंपिनी कपे द्वार्रार् चलार्ये जार् रहे कपेिमकपल प्लार्ंट कपे सि ुरक्षार् कपे िनयम अस्तलग अस्तलग थ े।

अिनिधकृत कायर्थ arrangement)

या

ठहरना

(working without necessary licence and required

िशक्षार् कपी पिरीक्षार् क्यों आवश्यकप है और क्यों नहीं , इसिकपार् िचंतन और मनन कपरनार् होगार्। आटोमोबाइल चलाने के ितिलये व्यक्तितिक्ति को परीक्षा देनी पड़तिी है और उसके बाद ही उसे उस कायर्था के ितिलये एक सीितिमति अर्वितिध के ितिलए अर्ितिधकार पत्र ितिमलतिा है। डाक्टर या सजिर्थान भी ितिबना िकसी परीक्षा के नहीं बना जिा सकतिा। आटोमोबाइल चलाने का यह अर्ितिधकार या सजिर्थान का पद, जिन-ितिहति में एक सावर्थाजि​ितिनक उत्तिरदाितियत्व है। यह िकसी की िकसी से अर्नुमितिति या हीनतिा का पिरचय नहीं है बितिल्क श्रेष्ठतिा और योग्यतिा का प्रमाणयपत्र है। उस व्यक्तितिक्ति का यह उत्तिर दाितियत्व है की वह सुरक्षा के ितिनयम, पितिहनावे और उपकरणयों के उपयोग की आवश्यक जिानकारी से तिैयार रहे और उसे यह भी ज्ञाति हो िक आपातिकाल में वह िकससे सहायतिा की मांग करे गा और उसका कतिर्थाव्यक्त क्या है। ितिशक्षा एक पितिब्लक ितिसस्टेम या रक्षा पद्धितिति है। इसका ितिसद्धान्ति यह है िक ितिजिन भी कायों से जिन साधारणय को क्षितिति की संभावना होतिी है या हो सकतिी है के वल उसके ितिलए ही अर्ितिधकृत ति ितिशक्षा व्यक्तवस्थिता आवश्यक है। परीक्षा ितिवितिध या ितिडग्री के वल उसी कायर्था के ितिलये दी जिातिी है ितिजिससे जिन-क्षितिति की संभावना कम हो या कम की जिा सके । िकसी भी खतिरनाक कायर्था (ितिजिनके ितिलए ितिशक्षा या परीक्षा पास करना आवश्यक हो) को ितिबना ितिशक्षा द्वारा मान्यतिा ितिलये, करना अर्पराध है। ितिशक्षा या परीक्षा-ितिवितिध या ितिडग्री (खतिरे का ितिनशान), कभी भी उन कायों के ितिलए नहीं होतिी ितिजिससे मनुष्यतिा का ितिवकास हो बितिल्क यह एक सुरक्षा ितिवितिध है ितिजिससे कायर्था करतिे समय, स्वयं को या उनसे अर्न्य िकसी को क्षितिति न पहुंचे। यही वह कारणय है िक छोटे बच्चों को ितिजिन्हें जिीवन में प्रसन्नतिा और ितिवकास की आवश्यकतिा है , उन्हें इस तिरह की ितिशक्षा और परीक्षा की कठोरतिा से बचाना आवश्यक है। पुराने समय से ही ितिवश्वितिवद्यालय की ितिशक्षा का उद्देश्य िहसक पशुओं या योद्धाओं के योग्यतिा के हाितिनरितिहति प्रदशर्थान के ितिलये थिता। एक शस्त्रधारी पुितिलस या सैितिनक की तिरह ितिशितिक्षति जिीव भी

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31 खतिरनाक हैं िकन्तिु वे उस ितिशक्षा का उपयोग, रक्षा या औद्योितिगक कायों में सावधानी से करने के ितिलये ही बने हैं। तिकनीक और नीितिति के ितिवषय के ज्ञातिा वे अर्स्त्र की तिरह, ितिनयंितित्रति उपयोग के ितिलये ही बने मनुष्य हैं। ितिशक्षा की कठोर परीक्षा, लाइसेन्स या ितिडग्री (खतिरे का ितिनशान), उस तिकनीक के दुरुपयोग या भय पर ितिनभर्थार है। कोई भी ितिनयंत्रणय या सुरक्षा व्यक्तवस्थिता कभी भी सफर्ल नहीं हो सकतिी जिब उन कायों को करने वाले व्यक्तितिक्ति अर्योग्य हों। सड़क दुघर्थाटनाएँ तिभी रोकी जिा सकतिीं हैं जिब आटोमोबाइल को चलाने का अर्भ्यास, हमारी पारं पिरक ितिशक्षा-ितिवितिध का एक भाग हो। खाने -पीने या दवा बनाने वाली संस्थिताओं, सेना, या बैंक में काम करने वालों की ति​ितिनक भी गलतिी से बहुति बड़ी क्षितिति हो सकतिी है। जिो कायर्था तिकनीक, संगठन या मशीनों द्वारा होतिीं हैं उनके दुरुपयोग के रोकथिताम के ितिलये, उनमें कायर्था करने वालों की ितिडग्री (खतिरे के ितिनशान) आवश्यक है। ितिशक्षा व्यक्तवस्थिता में दी गयी ितिडग्री कोई सम्मान पत्र नहीं होतिी बितिल्क खतिरनाक कायर्था के ितिलये िदया गया सीितिमति अर्ितिधकार है। देश की सरकारें ही ितिडग्री दे सकतिीं हैं क्योंिक उन पर ही नागिरकों की रक्षा का संवैधाितिनक उत्तिर-दाितियत्व है। ितिबना ितिडग्री या लाइसेन्स के उन व्यक्तितिक्तियों को उस कायर्था के ितिलए ितिनरापद नहीं माना जिातिा। इसके ितिवपरीति िकसान जिो उद्योग या तिकनीक पर ितिनभर्थार नहीं हैं या कितिव या साितिहत्यकार या जिहां घर में भोजिन बनाने के ितिलये प्राकृत ितितिक ज्ञान पयार्थाप्त है , उनके ितिलये कोई ितिडग्री, लाइसेन्स, या ितिशक्षा आवश्यक नहीं है। सरकारी ट्राितिफ़्फ़िक ितिनयम जिो दण्ड पर आधािरति एक ितिनयंत्रणय व्यक्तवस्थिता एक व्यक्तवसाय है ितिजिनका उद्देश्य, दुघर्थाटना कम करने से कहीं अर्ितिधक, सरकारों के ितिलये धन जिमा करना है। और इसी ितिलए, आिथितक दंड से, सड़क दुघर्थाटनाएँ कभी रोकी नहीं जिा सकतिीं। और जिब भ्रष्टिाचार आपसी समझौततिे से होतिा है तिब वही अर्परोक्ष रूप से कानूर्नी सम्मितिति है। संसार में अर्पराध का व्यक्तवसाय आपसी समझौततिे से ही होतिे रहे हैं क्योंिक दण्ड द्वारा ितिनयंत्रणय या शासन से वे कभी रुक सकतिे ही नहीं। उद्योग या व्यक्तवसाय में भी ितिशक्षा और ितिडग्री के लाइसेन्स की आवश्यकतिा है। तिकनीक के उपयोग का ितिनणयर्थाय हाितिनकारक और लाभकारक दोनों है। इसितिलये, तिकनीकी क्षेत्र में हाितिन की संभावनाओं को ध्यान रख ही ितिशक्षा और जिन-ितिहति में समय समय पर ितिवश्वसनीय परीक्षा ितिवितिध द्वारा ितिडग्री (या खतिरे के ितिनशान) दी जिानी चाितिहये। जिीवन अर्मूर्ल्य है इसितिलये इसकी तिुलना एक व्यक्तितिक्ति का दूर्सरे व्यक्तितिक्ति से नहीं की जिा सकतिी। जिो भी कानूर्न सभी जिीवों को समान समझतिे हैं या ितिनयंत्रणय या िकसी को िकसी पर ितिनभर्थार न बनतिे हैं और न ही बनातिे हैं , उनका पालन करने में लोगों को स्वाभाितिवक रुितिच होतिी है। स्वेच्छा और रुितिच से अर्पनाने जिाने वाले कानूर्न दीघर्था-जिीवी होतिे हैं। ितिनयंत्रणय और ितिनभर्थारतिा के कानूर्न जिन-तिंत्र में ितिस्थितर नहीं रह पातिे। सुरक्षा के ितिलये बने कानूर्न वैज्ञाितिनक और परखे हुये होने चाितिहये। यह कोई राजिनैितितिक या शासकीय ितिनणयर्थाय नहीं है। ितिजिन देशों में उद्योग के कानूर्न शासक या राजिनीितितिज्ञ बनातिे हैं वहाँ दुघर्थाटनाएँ अर्ितिधक होतिीं हैं। जिहां ितिनयम और कानूर्न वैज्ञाितिनक होतिे हैं वे उपयोगी होने के कारणय स्वेच्छा से अर्पना ितिलये जिातिे हैं और वहाँ दुघर्थाटनाएँ नहीं हो सकतिीं। कायर्थ की मात्रा की अिधकता या आराम न िमलने से तनाव और थनकावट (Work Load) लगार्तार्र िबनार् आरार्म िकपए कपार्म कपरने सिे तनार्व और थ कपार्वट होती है । कपार्म मे मन लगनार् आवश्यकप है । कपार्यर कपी मार्त्रार् और कपिठनार्ई कपी मार्त्रार् कपे अस्तनुसिार्र मनष्ु य कपो आरार्म िमलनार्

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32 चार्िहये। योजनार् बन जार्ने और उसिकपार् सिभी कपो सिमार्न ज्ञार्न होने सिे भिवष्य पि​िहले सिे ही तय हो जार्तार् है इसि​िलये कपार्म कपरने सिे जीव पिर मार्निसिकप तनार्व नहीं होतार् और उसिकपार् शरीर थ कपतार् नहीं। भय और तनार्व मार्निसिकप होते है जबिकप थ कपार्वट और भूख-प्यार्सि, गमी-सिदी शार्रीिरकप होते है िजनकपे ध्यार्न न दे ने सिे सिुरक्षार् व्यवस्थ ार् सिफिल नहीं हो सिकपती।

व्यियोक्तगत और सावर्थजिनक स्वच्छता या क्षमता की कमी या रोग (lack of personal fitness and public hygiene) जिीवन शैली में सुधार करने से स्वभाव, व्यक्तवहार, अर्नुशासन, स्वच्छतिा और कायर्था क्षमतिा बढ़तिी है। यह ितिसद्धान्ति व्यक्तितिक्तिगति अर्नुभव से सरलतिा से समझा जिा सकतिा है। व्यक्तितिक्तिगति रूप से क्षमतिा में कमी या रोग की अर्वस्थिता में वे कायर्था कभी नहीं करने चाितिहये ितिजिससे अर्पने व दूर्सरे की जिीवन को या शरीर को क्षितिति हो। उद्योग में मनुष्यों को बीमारी की अर्वस्थिता में , काम करने के ितिलए मजिबूर्र नहीं िकया जिाना चाितिहये। यह करना सुरक्षा के ितिसद्धांतिों के ितिवरुद्ध है। नशा न करना भी सुरक्षा के व्यक्तितिक्तिगति ितिनयम हैं। गाड़ी चलातिे समय या कायर्था स्थितल पर, शराब या िकसी अर्न्य ितिवष के नशे से दूर्र रहना चाितिहए। सावर्थाजि​ितिनक बीमारी या अर्स्वच्छतिा से फर्ैलने वाले रोग उद्योग के ितिलये जिहां कायर्था करने के ितिलए मनुष्यों का एक समूर्ह चाितिहये किठन पिरितिस्थितितिति है। इसके ितिलए सावर्थाजि​ितिनक स्वच्छतिा और उपचार की व्यक्तवस्थिता करनी आवश्यक है। इलाज और दवा, क्षित परूितर्थ और परुनवार्थस की समस्या (Inadequate facilities of Medical Treatment, Compensation and Rehabilitation) दघ र नार् कपे बार्द इलार्ज और दवार् कपार् प्रबंधर् कपरनार् भी सिुरक्षार् कपार् िसिद्धार्न्त है । आिथ रकप और ु ट भार्वनार्त्मकप क्षितपिूितर और नये जीवन शैली मे पिन ु ः स्थ ार्पिनार् कपरने पिर ही जीव सिुरित क्षत हो

सिकपतार् है । पि​िब्लकप हार्िस्पिटल, आपित्कपार्लीन आिथ रकप बचत, शार्रीिरकप अस्तसिमथ रतार् मे जीवन िनवार्रह, और दघ र नार् बीमार् कपी व्यवस्थ ार्एं आवश्यकप है। ु ट औद्योिगकप रार्ष्ट्रों कपो िवकपिसित कपहे जार्ने कपार् यही कपार्रण है । यह भी एकप तरह कपार् िवकपार्सि है क्योंिकप उन रार्ष्ट्रों ने औद्योिगकप कपार्यर कपी मार्निसिकप अस्तवसिार्द , दघ र नार् कपे भय और अस्तिस्थ रतार् ु ट कपो आिथ रकप सिुरक्षार् सिे कपम कपर िदयार् गयार् है । हार्लार्ंिकप यह िवकपार्सि िनयंत्रण कपे िबनार् िस्थ र नहीं रह सिकपतार्।

6। परयार्थवरण व्यवस्थना परर जन-तंत्र की िवश्वसनीयता 6.1 संगठन की िवश्वसनीयता पियार्रवरण व्यवस्थ ार् और उसिकपे सिंरक्षण हे तु बनार्ये गए सिंगठन कपी िवश्वसिनीयतार्, प्रार्कपृितकप अस्तथ ार्रत धर्मर- चक्रि कपो स्वतः और सिच ु ार्रू रूपि सिे चलने मे िसिद्ध होतार् है ।

धर्मर अस्तथ ार्रत प्रकपृित

कपी शिक्तयार्ं ही दै िहकप, दै िवकप और भौितकप तार्पि िमटार्ने मे सिफिल हो सिकपती है , व्यवस्थ ार् और सिंगठन उसिकपे मार्ध्यम है जो उन प्रार्कपृितकप शिक्तयों कपो उसि उद्देश्य कपी पि​िू तर कपे िलए एकपित्रत कपरतार् है ।

व्यवस्थ ार् यिद िकपसिी व्यिक्तगत स्वार्थ र यार् प्रकपृित कपे िनयमों कपे िवरुद्ध यार्

व्यार्वसिार्ियकप उद्देश्य कपे िलए बनार्यी जार्एगी

तब, उसिकपे द्वार्रार् प्रार्कपृितकप धर्मर-चक्रि टूटने कपार्

भय रहतार् है , और प्रार्िणयों कपार् दै िहकप, दै िवकप और भौितकप तार्पि दरू नहीं हो सिकपतार्।

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33 व्यवस्थ ार् (व्यय स्थ ) पिर भरोसिार् कपरनार् इसि​िलए भी कपिठन होतार् है क्योंिकप यह प्रकपृित यार् धर्मर कपी तरह अस्तव्यय नहीं होती।

व्यवस्थ ार् पिर भरोसिार् तभी िकपयार् जार् सिकपतार् है , जब वे सिंगठन

जो व्यवस्थ ार् कपी दे खभार्ल कपरते है , िकपसिी भय, लार्लच यार् प्रितस्प्रधर्ार् सिे प्रभार्िवत न हों । अस्तथ ार्रत, सिंगठन मे लगे मनुष्यों कपे चिरत्र कपी पि​िवत्रतार् पिर भरोसिार् कपरनार् व्यवस्थ ार् पिर भरोसिार्

कपरने कपी एकप शतर है । सिंगठन कपेवल तभी व्यवस्थ ार् कपे उद्देश्य कपी पि​िू तर, और सिमार्ज कपे भरोसिे कपो बनार्ये रख सिकपतार् है । इितहार्सि यह िसिखार्तार् है , िकप सिंगठन कपार् स्वयं कपो सिंभल पिार्नार् ही

अस्तपिने आपि मे ही एकप चन ु ौती है , और इसि कपार्रण, व्यवस्थ ार् कपे उद्देश्य कपभी पिरू े नहीं होते और अस्तपिने नार्म कपे अस्तनसि ु ार्र ही वह व्यय हो जार्ती है ।

1. सिंगठन सिे चलने वार्ली व्यवस्थ ार्, एकप औटोमोबील कपार्र कपी तरह है जो यार् तो अस्तच्छे गित सिे चलती है , यार् उसिकपार् कपोई एकप पिुजार्र भी खरार्ब हो तो पिरू ी बंद पिड़ जार्ती है । जबिकप, अस्तसिंगिठत और भयमुक्त सिमार्ज, उसि वक्ष ृ कपी तरह है , िजसिकपी एकप टहनी जहार्ं कपहीं टूट कपर िगर जार्ए, तो वहार्ँ धर्ीरे धर्ीरे एकप नयार् वक्ष ृ ,

उग कपर तैयार्र हो जार्तार् है । इसिकपार्

उदार्हरण है िकप औद्योिगकप रार्ष्ट्र कपार् कपोई भी सिंकपट िवश्व-व्यार्पिी होतार् है जबिकप आत्मिनभरर प्रार्कपृितकप दे श िकपसिी कपे िलए कपभी कपोई सिमस्यार् नहीं होते।

2. दसि ू री सिमस्यार् यह भी है िकप, पियार्रवरण मे सिुधर्ार्र कपरने सिे प्रकपृित कपी शिक्त बढ़ती है ।

उत्पिार्दन कपे प्रार्कपृितकप ढं ग सिे बढ्ने सिे लोगों मे अस्तसिमार्नतार् कपम होगी, और अस्तमूल्य प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न कपी इसि उपिलब्धर्तार् सिे, जीवनोपियोगी वस्तुओं कपे मूल्यों मे कपमी

आएगी, िजसिसिे लार्भ और आिथ रकप िवकपार्सि, जो सिंगठन और व्यवस्थ ार् कपे मार्पिदं ड- है, उन पिर बरु ार् अस्तसिर पिड़ेगार्। सिार्रे िवश्व मे , औद्योिगकप रार्ष्ट्र, पियार्व र रण कपे खतरे

कपो जार्नते हुये भी, इसि आिथ रकप क्षित कपे भय सिे आगे नहीं आ रहे है। जो रार्ष्ट्र अस्तभी तकप औद्योिगकप प्रगित मे पिीछे है, वे भी पियार्रवरण कपी रक्षार् मे सिंकपोच कपरते है क्योंिकप उनकपे पिार्सि उपिलब्धर् अस्तमूल्य प्रार्कपृितकप सिंपिदार् कपो मूल्यवार्न बनार्, उसिकपार् सिौदार् कपरने सिे उन्हे लार्भ होगार्। 6.2 तकनीकी नापर तौतल, िवश्वसनीयता का ज्ञान और अनभ ु व तकपनीकपी नार्पि-तौल और आंकपड़े, व्यवस्थ ार् कपे अस्तपिेित क्षत मार्नदं ड-ों

पिर सिफिलतार् कपी पिरीक्षार् कपे

िलए होते है , िकपन्तु िवश्वसिनीयतार् कपी कपसिौटी कपे िलए पियार्प्र त नहीं है। जब पियार्व र रण कपे प्रभार्व कपो जन-तंत्र अस्तपिने अस्तनुभव सिे जार्न लेतार् है , कपेवल तब, उसिे व्यवस्थ ार् और उसिकपे

उद्देश्यों कपी पिूितर हे तु बने सिंगठन कपी िवश्वसिनीयतार् कपार् ज्ञार्न होतार् है । यह िसिद्धार्ंत महत्व पि ूणर है , और इसिकपार् प्रयोग पियार्व र रण व्यवस्थ ार् कपो जन-तंत्र सिे प्रमार्िणत कपरने कपार् एकप सिरल मार्गर है । पियार्व र रण व्यवस्थ ार्, सिंगठन जैसिे सिरकपार्र यार् व्यवसिार्ियकप सिंस्थ ार्न द्वार्रार् बनार्यी तो जार् सिकपती है , िकपन्तु उद्देश्य कपी पिूितर कपे मार्पिदं ड-, सिमार्ज कपो ही बनार्ने चार्िहए। यह सिरल होनार् चार्िहए और प्रमार्िणत भी।

प्रातकाल सरयू किर मज्जन, बैहठे सभा संग िद्वज सज्जन || तल ु सी दास जन-तंत्र मे, सिरयू नदी कपे जल कपार् हर िदन प्रयोग श्री रार्म कपे द्वार्रार् रिचत पियार्रवरण व्यवस्थ ार्

कपे उद्देश्य कपी पिूितर कपार् प्रमार्ण है । उसिी पिरं पिरार् कपे कपार्रण, निदयों कपार् जल भार्रत मे, आज भी पि​िवत्र मार्नार् जार्तार् है , और प्रार्कपृितकप धर्मर और, वैज्ञार्िनकप सिंगठन द्वार्रार् कपी गयी व्यवस्थ ार् पिर

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34 लोगों कपी आज भी आस्थ ार् है । यिद भार्रत मे , श्री रार्म और उनकपे सिभार्सिद कपी तरह पियार्व र रण व्यवस्थ ार् मे लगे व्यिक्त और सिंगठन अस्तपिनी वैज्ञार्िनकप बिलदार्न कपी मयार्रदार् कपार् िनवार्रह कपरे और जल कपार् सिार्वज र िनकप प्रयोग पिीने और स्नार्न मे हो, तो निदयों मे जल कपार् प्रदषण ू ण तरु ं त रुकप जार्येगार्। इसि तरह, बोतल बंद पिार्नी जो पिैसिार् दे कपर खरीदार् और बेचार् जार्तार् है , और जो कपेवल

धर्नवार्न व्यिक्त कपो ही जल कपे प्रदषण ू ण सिे बचार् सिकपतार् है , उसिकपी क्षित होगी, और जल श्रोतों कपी स्वार्भार्िवकप पि​िवत्रतार् सिे, दे श कपी आिथ रकप प्रगित कपे कपम होने कपार् भी भय है । रार्म रार्ज्य मे , इसि तरह कपी आिथ रकप प्रगित, दे श कपार् आदशर नहीं थ ार् । जन-तंत्र कपी िकपसिी भी व्यवस्थ ार् पिर िवश्वसिनीयतार्, प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न कपी विृ द्ध और सिमार्नतार्

कपी भार्वनार् सिे पिैदार् होती है , अस्तसिमार्नतार् और आिथ रकप गित कपे आंकपड़ों यार् व्यवस्थ ार् पिर हुए खचर सिे नहीं । आिथ रकप बल पिर खड़ी सिरकपार्रे तब यह पिूछती है , िकप आपि प्रदषण ू ण कपे प्रभार्व सिे बचने कपे िलए धर्नवार्न क्यों नहीं बन सिकपे, और वे ही सिमार्ज मे लोगों कपो धर्न कपे िलए, पियार्व र रण कपो नष्ट कपरने कपे िलए उत्सिार्िहत कपरती है। यह खोज कपार् िवषणय नहीं है िकप िकपसि तरह सिरकपार्री यार् व्यवसिार्यी व्यवस्थ ार्ये, िबनार् कपुछ िकपये, जंगल, पिहार्ड़, निदयों कपो उन्ही लोगों सिे

नष्ट कपरार् दे ती है, जो पिरु ार्तन कपार्ल सिे उनकपी पिूजार् कपरते थ े, और िजनसिे उनकपार् पिार्लन पिोषणण होतार् थ ार्।

भार्रत कपे पिवरतीय क्षेत्र इसिकपे उदार्हरण है िकप जब स्थ ार्नीय लोग जलार्ने कपे िलए और घरों कपे िनमार्रण कपे िलए वक्ष ृ ों पिर िनभरर थ े। वक्ष ृ ों सिे उनकपार् सिंबंधर् पिरस्पिर प्रेम कपार् थ ार्, क्योंिकप वे एकप दसि ू रे पिर िनभरर थ े। वक्ष ृ ों कपार् पिोषणण और रक्षार् उनकपार्, पिवरतीय िनवार्िसियों कपार्, पिरम धर्मर थ ार् और वे सिरल और स्वतन्त्रतार् िप्रय प्रार्णी, िकपसिी अस्तथ र-व्यवस्थ ार् यार् बार्ज़ार्र यार् सिरकपार्रों पिर िनभरर न थ े। सिरकपार्रों ने, पियार्व र रण कपी रक्षार् कपे नार्म पिर, स्थ ार्नीय लोगों कपो वक्ष ृ ों कपी लकपड़ी

कपार्टने और उसिकपे घरे लू प्रयोग पिर पिार्बंदी लगार् दी। उन्हे , खार्नार् पिकपार्ने और गमी कपे िलए, भूगभीय गैसि, जो िवदे शों सिे आयार्त कपी जार्ती है , उसिकपे व्यार्पिार्र पिर िनभरर बनार् िदयार् गयार्। घर बनार्ने कपे िलए, उनकपो लकपड़ी कपे स्थ ार्न पिर, सिीमेट और कपार्ंक्रिीट जो पियार्व र रण कपे िलए हार्िनकपार्रकप है, उन पिर िनभरर बनार्यार् गयार्। िकपन्तु, गैसि यार् सिीमेट कपे िलए उनकपे पिार्सि धर्न कपहार्ँ सिे आएगार्? उन पिवरतीय लोगों कपो धर्न कपे िलए, उन्हे उन्हीं वक्ष ृ ों कपो मशीन सिे कपार्टने कपार् कपार्म िदयार् गयार् िजसिकपी वे पिूजार् कपरते थ े और उनकपे हर कपोपिल और उनकपी ऊंचार्ई बढ्ने

सिे, उन्हे कपभी खश ु ी होती थ ी। पिवरतीय िनवार्सिी अस्तब लकपड़ी कपे कपार्रखार्ने मे मजदरू है यार्

लकपड़ी यार् पियरटकपों कपो ढोने कपे िलए वार्हन चलार् कपर, दे श कपी अस्तथ रव्यवस्थ ार् कपे भार्ग है। पियार्रवरण कपी क्षित कपे सिार्थ ही वे, उसि व्यवस्थ ार् पिर िनभरर हो गए, जो आिथ रकप िवकपार्सि कपी ऊंची गित कपे आंकपड़े कपो, प्रगित कपहते है। अस्तब यह कपोई रहस्य नहीं है , िकप बल यार् धर्न कपार् प्रयोग प्रार्कपृितकप पियार्व र रण कपो नहीं बचार् सिकपतार्, क्योंिकप यह एकप िवज्ञार्न है व्यवस्थ ार् यार् सिंगठन नहीं। सिरकपार्र कपे अस्तरबों रूपिये खचर हो गए, िकपन्तु

गंगार् कपी सिफिार्ई मे भार्रत

वह प्रदिू षणत होने सिे न बचार्यी जार् सिकपी ।

प्रार्कपृितकप सिंसिार्धर्न और वैज्ञार्िनकप बिलदार्न, मनष्ु यों कपे स्वस्थ िवकपार्सि कपे िलए बहुत आवश्यकप है। आिथ रकप व्यवस्थ ार्एं जो लार्लच, शत्रत ु ार् और रक्षार् पिर आधर्ार्िरत है, उनसिे अस्तसिमार्नतार्, यद्ध ु

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35 और प्रदषण ू ण बढ़ते है । तकपनीकप कपार् ज्ञार्न तभी उपियोगी है , जब वह सिवर सिुलभ हो, और उसिकपे खतरे और बचार्व कपे सिार्धर्न कपे प्रयोग मे, सिभी स्वतः सिमथ र हों ।

भार्रतीय पिरम्पिरार् मे, जन-तंत्र कपी धर्ार्रणार्, वैज्ञार्िनकप यार् प्रार्कपृितकप-धर्मर पिर आधर्ार्िरत सिंगठन और व्यवस्थ ार् कपी एकप आश्चयरजनकप और िस्थ र सिोच है जो जन-तंत्र कपी उसि धर्ार्रणार् सिे िभन्न है जो ग्रीकप पिरम्पिरार् मे रण-नीित यार् पिोिलिटकपल सिंगठन कपी अस्तिस्थ र सिोच सिे बनी है । भार्रत मे, निदयों कपे जल कपी पि​िवत्रतार् कपे आधर्ार्र पिर ही रार्जार् और उसिकपे प्रशार्सिन पिर श्रद्धार् बनती है । भार्रत कपार् एकप नार्म िहंदस् ु तार्न यार् इिण्ड-यार् भी है िजसि मे , िहन्द ू यार् इंड-ी जो िसिन्धर्ु (अस्तथ ार्रत जल कपे अस्तथ ार्ह सिार्गर यार् सिमद्र ु ) शब्द कपार् अस्तपिभ्रंश है । 6.3 प्राकृितक संसाधन और उनका

िवकास

भार्रत मे कपुएं, तार्लार्ब, पिवरत, जंगल, पिशु-पिक्षी

और सिार्मार्िजकप सिदभार्व न कपेवल प्रार्कपृितकप

सिंसिार्धर्न है, बिल्कप जन-तंत्र कपी वे वैज्ञार्िनकप उपिकपरण भी है, िजसिसिे सिार्मार्िजकप व्यवस्थ ार् और प्रशार्सि​िनकप सिंगठन कपी िस्थ ित कपी सिार्वज र िनकप पिरीक्षार् होत्ती है । कपुएं मे घटतार् हुआ जल, सिमार्ज कपे िलए खतरे कपी धर्ंटी है , और इसि ज्ञार्न कपी प्रमार्िणकपतार् कपे िलए आत्म िनभरर है। सिूचनार् कपार् प्रमार्िणत होनार्, उसिकपे प्रार्िप्त मे सिरलतार् और शीघ्र प्रार्िप्त सिे ही व्यवस्थ ार् मे सिुधर्ार्र सिंभव है ।

यिद कपुए यार् तार्लार्ब न होंगे तो, जन-तंत्र कपो भूगभीय जल कपार् सिहज और

प्रमार्िणकप ज्ञार्न कपैसिे हो सिकपतार् है ? िबनार् वक्ष ृ ों कपे, वार्तार्वरण मे वार्यु कपी जीवनी शिक्त कपैसिे स्थ ार्िपित रह सिकपती है ?

रिहमन परानी रािखिये िबनु परानी सब सून| परानी शुद्ध जल कपे प्रार्कपृितकप श्रोत

िबना न ऊबरे मोती, मानुस, चन ू ||

जो सिभी प्रार्िणयों कपो सिभी सिमय मे उपिलब्धर् हों, पियार्व र रण कपी

व्यवस्थ ार् मे िवश्वसिनीयतार् कपे प्रमार्ण है। पिवरत, जंगल, निदयार्ँ, तार्लार्ब, और कपुओं कपे दे ख रे ख

कपार् ध्यार्न रखनार् उन प्रार्कपृितकप िनयमों यार् धर्मर कपी आरार्धर्नार् है , िजसिकपे िबनार् शुद्ध वार्यु और जल सिंभव नहीं होतार् । दिु नयार् कपे िवकपिसित क्षेत्र, जल कपे न होने सिे, दिरद्र हो गए। भार्रत कपे शहरों मे जल िबकपतार् है क्योंिकप वहार्ं प्रार्कपृितकप श्रोत सिे प्रार्प्त

जल अस्तब पिीने योग्य ही नहीं

रह गयार्। जल कपी अस्तथ रव्यवस्थ ार् कपे आंकपड़े और इसिकपे आिथ रकप िवकपार्सि कपी गित, पियार्रवरण पितन कपे सिंवेदी सिूचनार्ंकप है। अस्तथ र व्यवस्थ ार् कपे आंकपड़े , अस्तमूल्य वस्तु कपो मूल्यवार्न बनार् दे ते है िजसिसिे मनुष्य कपो धर्न कपार्

दार्सि बननार् पिड़तार् है । जल जबिकप अस्तमूल्य है , और इसिकपार् मूल्य इसिकपे न होने पिर जार्न पिड़तार् है । वस्तु यार् व्यिक्त कपार् जब कपोई मूल्य यार् कपीमत तय होतार् है तो यह उसिकपार् अस्तपिनार् िनणरय

नहीं होतार्, और इसिसिे उसिकपी गिरमार् और प्रार्कपृितकप धर्मर, नष्ट हो जार्तार् है । इसिकपे िवपिरीत, पियार्रवरण व्यवस्थ ार्, िकपसिी भी मल् ू यवार्न वस्तु कपो उसिकपी प्रार्कपृितकप और िनरार्पिद अस्तमूल्य बनार् दे ती है , िजसिसिे धर्न और उसिकपे आंकपड़े महत्वहीन हो जार्ते है । 6.4 धमर्थ और व्यवस्थना का टकराव अनुिचत

© कपृष्ण गोपिार्ल िमश्र 2013

उपिलब्धर्तार् सिे


36 प्रार्कपृितकप धर्मर द्वार्रार् भोजन, वार्यु, जल, प्रकपार्श और पिथ् ृ वी पिर िनवार्सि, सिदै व ही उपिलब्धर् है

और ये बार्ज़ार्र यार् व्यवसिार्ियकप प्रितस्प्रधर्ार् कपे खेल यार् रण-नीित कपी वस्तुएं िबलकपुल नहीं है। अस्तथ र व्यवस्थ ार् यार् शार्सिन व्यवस्थ ार् व्यय होने कपे िलए ही िस्थ त है, अस्ततः प्रार्कपृितकप/ सिनार्तन

धर्मर ही व्यवस्थ ार्ओं कपे पिरीक्षार् कपार् श्रेष्ठ आधर्ार्र है , इसिकपार् उल्टार् सिंभव नहीं है । धर्मर और व्यवस्थ ार् कपार् टकपरार्व उिचत नहीं है । व्यवस्थ ार्ओं कपे अस्तसिफिलतार् कपार् मल् र नार्, ू य, बेरोजगार्री, दघ ु ट यद्ध ु और बीमार्री द्वार्रार् चकप ु ार्ए जार् सिकपते है, िकपन्तु प्रार्कपृितकप धर्मर-चक्रि जैसिे जल-वार्यु यार् भोजन-चक्रि कपे दष्ु पि​िरणार्म पिथ् ृ वी कपे जीवनी शिक्त कपो ही नष्ट कपर सिकपते है।

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