Adhjal Gagri Chalkat Jaye

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सार्थक पत्रिका अधजल गगरी छलकत जाय


सार्थक पत्रिका अधजल गगरी छलकत जाय

जिज्ञासु पड़ोसन/डॉ उजमिला जसन्हा/१ सरु क्षा चक्र/ज्य़ोत्सना जसिंह/३ काजिल/प्रगजि जिपाठी/४ िडि़ोला/प्रगजि जिपाठी/५ देहरादनू वाली िआ ु /अश िं ु श्री सक्सेना/६ अधकचरा ज्ञान/इरा िौहरी/७ अधिल गगरी छलकि िाए/वीणा उपाध्याय/९ अधिल गगरी छलकि िाय/मीनाक्षी चौधरी/११ अध्यापक मह़ोदय/अि​िं जल व्यास/१२ मझु े सि पिा है/डॉ मधु कश्यप/१४ अधिल गगरी छलकि िाए/समु न जसिंह/१६ अधिल गगरी छलकि िाए/रत्ना िापल ू ी/१८ फन्टुश/रत्ना िापल ू ी/१९ टमरे ल !/जनरिंिन धल ु ेकर/२० िहस चिंद/डॉ सिंिीव िैन/२२ धधिंु ला जववेक/मधु िैन/२३ हम भी ऐम्मे हैं/िया यादव/२४ नाजतिक/आनदिं िैन/२७ छ़ोले/मि​िं ू जमश्रा/२९ अधरू ा ज्ञान/ज्य़ोत्सना पॉल/३० अधजल गगरी छलकत जाय


दिगिं /निू न गगि/३१ अधिल गगरी छलकि िाये/पनू म जसहिं /३३ ज्ञान की गागर/सनु ीिा जमश्रा/३६ फूल और पत्थर/नीिा सहाय/३७ अधिल गगरी छलकि िाये/नीिा सहाय/४० मऩोि/भवु नेश्वर चौरजसया 'भनु ेश'/४१ अधिल गगरी छलकि िाए/डॉ साके ि चौरजसया/४२ अधिल गगरी छलकि िाय/रजश्म भट्ट/४३ अधिल गगरी छलकि िाय/प्रकाश चन्र पाण्डेय/४४ वैशाली/डॉ प्रजिभा जिवेदी/४५ ज्ञान का सागर/डा​ाँ. कनक पाजण/४६ धारणा/दीपक कुमार/४७ सिंतकार/अलका िैन/४८ अधिल गगरी छलकि िाय/उिरा शमाि/४९ अधिल गगरी छलकि िाए/जि​िय िहादरु जिवारी/५० अधिल घघरी छलकि िाय/छन्या ि़ोशी/५२ िडि़ोली/हेमा जिवेदी/५३ सालसा क्लास/शाजलनी दीजक्षि/५४ ि़ोहरा की िािें/रे णक ु ा जसन्हा/५६ अधिल गगरी छलकि िाए/िं कल्पना यादव/५८/५९ सही राह/रजश्म िाररका/६० जदखावा/रजश्म लिा जमश्रा/६२ अधिल गगरी छलकि िाए/अि​िं ू खरि​िंदा/६४ ऑनलाइन वमु जनया-कहाजनया​ाँ अि​िं मिन की/अि​िं जल व्यास/६७

अधजल गगरी छलकत जाय


त्रजज्ञासु पड़ोसन डॉ उत्रमथला त्रसन्हा

डॉ उर्मिला र्िन्हा र्िक्षा--एम ए र्हन्दी पी एच डी अनेक पत्र-पर्त्रकाओ ं में कहानी, कर्िताएं, अन्य रचनाएं प्रकार्ित। िम्प्प्रर्त --स्ितंत्र लेखन मेरे र्लए घर पररिार,देि, िमाज ि​िोपरर ।

गर्मियों की उमि भरी िाम । पिीने िे तर-बतर । अचानक िेरोंिाली की बल ु ािे पर तैयारी करने की जल्दीबाजी कहते हैं जब िच्चे दरबार िे बल ु ािा आता है तभी भक्त दि​िन कर पाते हैं । यहां भी माता रानी ने तलब र्कया और जाने की तैयारी होने लगी । उत्िाह, उमंग िे ओत-प्रोत । ऊंचे पहाडों िाली के दि​िन की अर्भलाषा। मन मयरू नाच उठा। "जय माता रानी" रार्त्र दि बजे घर िे र्नकलना था । इन चंद र्मनटों में ही रार्त्र भोजन और रास्ते का कलेिा तैयार करना था । गृह कायि में अभ्यस्त हाथ तेजी िे कायि को अर्ं तम रूप दे रहा था । पर्त की यहां पोर्स्टंग र्पछले महीने ही हुई थी। न काम लायक बतिन थे और न खाद्य पदाथि । र्जद ऐिा 1 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

र्क पत्नी के हाथ का पका भोजन ही चार्हए । िादा भोजन खाने िाले पर्त र्नत्य र्किी प्रकार कच्चा पका बना खा लेते थे। पत्नी की उपर्स्थर्त में उनके हाथ का बना भोजन की अपेक्षा स्िाभार्िक ही था । इिी बीच एक पडोिन मेरे बगल में आ खडी हुई । भडकीले कपडे, होंठों पर लाली, परू ी मेकअप में िायद मझु िे र्मलने आई ं थीं । "आप र्मिेज र्िन्हा हो?" उन्होंने मझु े उपर िे नीचे तक घरू कर देखा । "मैं राधा ह,ं पडोि में रहती हं ।" "कोई िक !" मैं हिं पडी ।


मेरे उलझे अधपके के ि, िाधारण अस्त व्यस्त ितू ी िाडी, आटा, तेल, मिाले िे िने हाथ । िे आश्चयिचर्कत हुई।ं उन्हें र्िश्वाि नहीं हुआ इतने बडे अर्धकारी की पत्नी ऐिी? उन्होंने महंु र्बचकाया,"कुछ पढी र्लखी भी हो या यंहू ी... तुम्प्हारे पर्त तो बडे पोस्ट पर हैं ।" अब चौंकने की बारी मेरी थी, "बताती ह,ं आिन ग्रहण कीर्जए ।" मैंने हाथ िे इिारा र्कया । चंर्ू क मेरे पाि िमय की कमी थी। पर्त के आने का िमय हो रहा था । िफर की तैयारी भी करनी थी। हाथ जल्दी जल्दी चलने लगा । आगतं ुका कभी मेरी हडबडी देखती कभी मेरा िाधारण नाक नक्ि । िे र्नरंतर बोलती जा रही थी, "मैं तो दि​िीं तक पढी हं जी । मेरे बच्चे इर्ं ललि मीर्डयम में पढते हैं, ट्यि ू न लगा रखी है ।" पडोिन र्बदं ाि भाि िे अपने जीिन के तमाम अगोपन पक्षो को अत्यंत चटख रुप िे प्रस्तुत करती जा रही थी । मझु े उनकी बातों में आनदं आने लगा । उनकी धाराप्रिाह आत्मप्रिंिा िनु ती अपने अनभु िी हाथों िे कायि र्नपटाती, मंद मदं मस्ु कुराती रही ।

इिी बीच हमारी मकान मालर्कन र्मिेज अरोडा आ गई ं। िे मेरे पर्त का बहुत िम्प्मान करतीं थीं । "बहन जी, हम लोग माता रानी के दि​िन हेतु रार्त्र ट्रेन िे जा रहे हैं ।" "अरे िाह, और िे स्िंय राधा की ओर मख ु ार्तब हुई,ं "तम्प्ु हें मालमू है र्मिेज र्िन्हा र्कतना पढी-र्लखी हैं, डबल एम ए हैं । इन्होंने पी एच डी कर रखा है । कालेज में पढाती हैं । कई िोध प्रबंध और पस्ु तकें र्लख चक ु ी हैं ।" "क्या ये पढी र्लखी हैं ?" राधा का मंहु खल ु ा का खल ु ा रह गया । "और इनके बच्चे ऊंची र्िक्षा प्राप्त कर देि र्िदेि में पदास्थार्पत हैं । र्िर्क्षत, िंस्कारी माता र्पता की ितं ान िद्भािो िे पररपणू ि हैं ।" र्मिेज अरोडा की बातें िनु राधा भौंचकी रह गई । उिकी िारी अकड गमु ान, घमण्ड छू-मतं र हो गया । अभी तक िह मझु े बेचारी िमझ रही थी । हीन भािना िे देख रही थी । अब बोलती बंद हो गई थी । कहां दि​िीं फे ल और कहां........। राधा ने िहां िे र्खिकने में ही अपनी भलाई िमझी। आई थी मझु े जलील करने स्िंय लर्जजत होना पडा। "इिे कहते हैं अधजल गगरी छलकत जाय" र्मिेज अरोडा के इि महु ािरे पर मैं पनु ः हिं पडी ।

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सुरक्षा चक्र ज्य़ोत्सना त्रसहिं ग़ोमती नगर (लखनऊ) िारीररक िंरचना स्त्री की होने के बािजदू उिके व्यर्क्तत्ि में परु​ु षत्ति हािी था । और िह पहले ही र्दन भा​ाँप गया था की उिकी जीिन िंगनी का अहं उिके क़द िे बडा ही है । िख ु ी िैिार्हक जीिन को अजं ाम देने के र्लये िह उिकी र्ियाकलापो का मक ू दि​िक बन र्स्मत हाि को अपने िख ू े अधरों पर िजाये रखता । उिके इिी मैत्री भाि को उिने कमजोर और डरपोक िब्द िे निाज र्दया और जब- तब िाि​िजर्नक रूप िे उि पर कटाक्ष करने िे न चक ू ती ।

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आज िनु िान राह और बाररि िाली रात में दो काली छाया ने उिके स्त्रीत्ि को दबोचना चाहा ही था की िह उिकी मजबतू परछाई ं के रूप में उिका िरु क्षा चि िार्बत हुआ । अब िह अपने अहं िे बाहर र्नकल उिकी आगोि में जा िमाई ं और बोली । “िच ही कहा गया है । अध जल गगरी छलकत जाये, भरी गगररया चप्ु पे जाये ।”


कात्रिल प्रगत्रत त्रिपाठी

जमींदार िोहनलाल र्जतने िरल और र्िनम्र स्िभाि के थे उनका बेटा रमेि उतना ही घमडं ी और स्िाथी था । स्कूल में िारे बच्चों पर रोब जमाता और अपने चाटूकारों पर अपनी और अपने र्पता की पैिों का रौब र्दखाता । िोहनलाल उिकी इि आदत िे परे िान थे। उिे र्कतना भी िमझाते लेर्कन रमेि र्दन ब र्दन र्बगडते जा रहा था । कुछ दोस्तों के िलाह पर िोहनलाल ने उिे आगे की पढाई के र्लए िहर भेज र्दया । र्किी तरह दि​िीं पाि की और पॉर्लटेर्क्नक की पढाई के र्लए र्जद करने लगा ।

प्रगर्त र्त्रपाठी प्रगति तिपाठी बगं लोर में रहिी है, कालेज से ही लेखन की िरफ रुझान था पर िब शौकीया िौर पर तलखिी थी लेतकन धीरे -धीरे लेखन इनका पैशन बन गया । दो साल से मैं तितिन्न मचं ों पर कहानीयां तलखिी है । इनकी कहातनयां सामातजक मद्दु ों से जडु ी हुई होिी है । अपनी कहातनयों के द्वारा प्रगति तिपाठी समाज में बदलाि लाना चाहिी है । तशक्षा - बी एड, एम ए, तडतजटल माके तटंग

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िोहनलाल ने िोचा र्क चलो कुछ तो करना चाह रहा, उिे िहर भेज र्दया और हर महीने रमेि र्जतना पैिा मांगता िोहनलाल दे देते, िोहनलाल पढें - र्लखे नहीं थे तो रमेि उनिे कभी कोई प्रोजक्ट के नाम पर तो कभी कुछ और कारण बताकर पैिे ऐठं ता और उन पैिों िे पाटीयां करता, महं गे कपडे, िेंट खरीदता । र्किी तरह पॉर्लटेर्क्नक की परीक्षा पाि की लेर्कन बहुत ही कम नंबर िे लेर्कन उिने र्पताजी िे झठू बोला र्क फस्टि र्डिीजन िे पाि हुआ है, गांि में िभी उिकी िाह िाही करने लगे। रमेि िबिे अपनी प्रिंिा करता और कार्बर्लयत का बखान करता, गांि में िभी लोग उिको िम्प्मान देने लगे अब रमेि गांि में अकड कर घमू ता । दिू रे र्दन िोहनलाल के दोस्त ने कहा रमेि बेटा मेरा रे र्डयो खराब हो गया है, माला ने कहा र्क र्मस्त्री को बल ु ा लेते हैं तो मैंने कहा अपना रमेि देख लेगा और मैं यहां चला आया । ठीक र्कया ना? हां हां चाचाजी ये तो मेरे बारे हाथ का खेल है । रे र्डयो खोलकर देखते हुए उिे एक घटं े हो गए लेर्कन िमझ नहीं आया र्क क्या खराब है तभी पडोि का रर्ि आया िह थोडा बहुत ये काम िीख रहा था । उिने झट िे रे र्डयो बनाकर बोला चाचाजी इिका कै पीिीटर खराब हो गया था, मैं इिे दक ु ान पर ले जा रहा हं िाम को िापि ले आऊंगा । रमेि बगले झांकने लगा इि पर चाची जी ने टोंट किते हुए कहा, "अधजल गगरी छलकत जाए ।“ मझु े तो पहले ही पता था ये रमेि के बि की


बात नहीं लेर्कन आपने मेरी बात नहीं मानी। रमेि अपना िा महंु र्लए िहां िे चला गया और धीरे -धीरे उिकी कार्बर्लयत का िबको पता चल गया और बाद में उिके िारे झठू का र्चट्ठा खल ु गया ।

िडि़ोला प्रगत्रत त्रिपाठी हार्स्पटल के उद्घाटन के र्लए िार्मल दो िहेर्लयां एक - दिू रे िे "रीता ये रोहन है ना?" -िर्िता

िर्म्प्मर्लत लोग एक-दिू रे िे बातचीत कर रहे थे, उिमें िातािलाप करती है ने पछ ू ा।

"हां क्यों?" - रीता ने कहा । िह तब िे उन लोगों िे दो बार इजं ीर्नयररंग की परीक्षा देकर उिका एडर्मिन इजं ीर्नयर होने और पैिे "अधजल गगरी छलकत

अपनी कार्बर्लयत का बखान कर रहा है जबर्क में फे ल हुआ था तब उिके र्पताजी ने डोनेिन करिाया था। देखों कै िे िबिे अपने होने का दभं भर रहा है, इिे कहते हैं जाए ।"

"िबिे मजे की बात रहा है िह अर्मत है जो की अपने ब्ांच मैनेजर के पद पर कायिरत हैं िामाचार पत्र में इनके र्िषय में पढा घमडं नहीं बि चपु चाप िबकी बातें

ये है, रोहन र्जि​िे अपने गणु ों का बखान कर िमय में टापर रहे है और अभी स्टेट बैंक के और िमाज िेिा िे भी जडु े हुए हैं, कल ही मैंने था लेर्कन देखों चेहरे पर र्कतना िक ु ू न है कोई िनु रहे है ।" -िर्िता ने कहा ।

तभी िहां मेजबान िे आदरपिू क ि कहते हैं, रीबन काटकर इि अर्मत जी के बारे में लाल हो जाता है ।

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रमाकांत आते हैं और अर्मत जी िर चर्लए और अपने हाथों िे हार्स्पटल का उद्घाटन करीये। पता चलते ही रोहन िमि िे


देहरादून वाली िुआ अिंशु श्री सक्सेना मेरा नाम अंशु श्री सक्सेना है । मझु े अपनी अनिु तू ियों को कलमबद्ध करना पसन्द है । मैं तपछले कई िर्षों से कति​िायें तलख रही हूँ परन्िु मैंने कहातनयाूँ तलखना अिी कुछ समय पिू व ही आरम्ि तकया है । मैं िाराणसी की रहने िाली हूँ और मेरी तशक्षा बनारस तहन्दू तिश्वतिद्यालय में हुई है । मैं रसायन शास्त्र में परास्नािक हूँ । अिी मैं अपने पररिार के साथ एन.टी.पी.सी (नेशनल थमवल पॉिर कॉरपोरे शन ) की तिन्​्यनगर टाउनतशप में रहिी हूँ िथा मैंने कई िर्षों िक स्थानीय सेंट जोसेफ़ स्कूल में अ्यापन कायव तकया है । मैं सामातजक कायों से िी जडु ी रही हूँ । मैं तितिन्न सामातजक संस्थाओ ं के साथ जडु कर आस पास के गािों में अनेक सामातजक कायव करिी हूँ तजसमे मेरी अपनी पहचान है। मझु े यािाएूँ करने का िी बहुि शौक़ है । मेरी अपनी िेबसाइट िी हैanshusaxena.com तजस पर मैं कति​िायें, कहातनयाूँ, यािा संस्मरण ि अन्य लेख ब्लॉग के रूप में तलखिी हूँ और इस तदशा में प्रतितदन कुछ नया सीखने का प्रयास करिी हूँ । मेरी कहानी साझा संकलन ऑनलाइन िोमतनया पस्ु िक में प्रकातशि हो चक ु ी है।

चारों तरफ़ गहमा गरमी अि​िर था । दरू थे । र्जनमें हम िबके बनी हुई थीं । िे िार्डयों और करतीं ।जैिे कल बोलीं... “क्या कै िी िी पहने तो ऐिे कपडे पहनती

मेरी कोई भी हजार िे नहीं होती।“

थी । मेरी बहन मक्त ु ा के र्ि​िाह का दरू िे िारे ररश्तेदार आये देहरादनू िाली बआ ु जी बीच चचाि का र्िषय हर िमय अपनी गहनों का बखान र्कया हल्दी के िमय िे मा​ाँ िे भाभी िस्ती िाडी हो, मैं

ही नहीं.... िाडी दि कम की

उत्तर में मेरी िीधी िादी मा​ाँ र्िफि मस्ु कुरा कर रह गई थीं आज मक्त ु ा को र्ि​िाह ं । ऐिे ही में र्दये जाने िाले गहनों को देख कर बोलीं- “ये क्या इतने हल्के जेिर ? मक्त ु ा के ि​िरु ाल िाले क्या कहेंगे ? अरे भाभी....मैंने तो अपनी र्बर्टया को गहनों िे लाद कर र्िदा र्कया था।“ उनकी बातें िनु कर हम िभी को लग रहा था र्क िे मक्त ु ा को जरूर कोई अच्छी ही भेंट देंगी । 6 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


मक्ता ु ् की बारात आने का िमय हो रहा था, तभी देहरादनू िाले फूफाजी, बआ ु को िाथ लेकर कमरे में आये और मा​ाँ िे बोले- “ये हमारी ओर िे िगनु के एक िौ एक रुपये रर्खये, क्या बताऊाँ, र्पछले कई िालों िे व्यापार में लगातार घाटा होने के कारण हमारी र्ित्तीय र्स्थर्त अच्छी नहीं चल रही है ।" यह िनु ते ही बआ ु जी के चेहरे का रंग उड गया । िे अभी तक हम िब पर अपनी झठू ी िान का रोब गा​ाँठ रहीं थीं और फूफाजी ने उनकी पोल खोल दी थी । मझु े भी अब ‘अधजल गगरी छलकत जाए’महु ािरे का अथि भली भा​ाँर्त िमझ आ गया था।

अधकचरा ज्ञान इरा जौहरी

इरा जौहरी (स्ितन्त्र रचनाकार ि फे िबुक पर भोजन िम्प्बन्धी जानकारी देती ह)ाँ जन्मस्थान-प्रतापगढ (अिध) उत्तर प्रदेि र्िक्षा- परास्नातक (नृतत्ि, नृर्िज्ञान या मानि​िास्त्र) स्नातक ( र्हन्दी, िंस्कृ त, मानि​िास्त्र) अर्भरुर्चया​ाँ -फ़ोटोग्राफ़ी ,ड्राइगं एिं पेंर्टंग,िॉफ़्ट ट्रिायज बनाना,तारकोल ि प्लास्टर ऑफ पेररि िे मर्ू ति बनाना ि कलाकारी करना ,टीन पर ि ता​ाँबे िे कलाकृ र्त बनाने के िाथ प्रकृ र्त िे प्यार है। िार्हर्त्यक जीिन -जब हम नौंिी कक्षा में थे तब हमनें एक पहेली र्किी अख़बार में भेजी थी हमारी छपी हुई िह पहली रचना थी ।िार्हत्य िागर िमूह में र्पछले िषि दो िाझा िग्रं ह “मझु े छूना है आिमा​ाँ “और “स्त्री एक िोंच “में मझु े भी स्थान र्मला । अभी हाल मे ही काव्या िमहू के िाझा िंकलन “कथांजली” में हमारी लघक ु थाओ को स्थान र्मला है ।और अब “कारिा​ाँ “ नामक लघक ु था के िाझा िंकलन में भी हमारी लघक ु थायें छप रही ाँ हैं। कई लघक ु था िंगोर्िया​ाँ में हमें लघक ु था के पाठ करनें का अि​िर प्राप्त हुआ है । ईमेल irarakesh@gmail.com मोबाइल नंबर- 8858235001

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“मै िब कर लाँगू ा, मझु े िब मालमु है ।“ -कहते हुये का यिु ा बेटा उमािक ं र र्पता की पोथी पत्री यजमान के घर पाँहुच गया । िहा​ाँ पाँहुच कर तैयारी की और यज्ञ िरु​ु कर र्दया । उनका बेटा िास्ति में र्कतना ज्ञानी को िो भली भा​ाँर्त जानते थे । बेटे के पाँहुच गये और उिके पीछे ही बैठ कर िान्तर्चत्त िे बेटा जब यज्ञ र्िर्ध िे पिू ि अपनें बखान करनें लगा तो पर्ं डत जी नें कहतें हैं, अधजल गगरी छलकत बखान बन्द करो और हमारे िास्ति में यज्ञ िम्प्पन्न होता है

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बडी बडी डींगे हा​ाँकने के आदी पं रमािक ं र को िभं ाल कर थैले मे रख कर उिने अपनें ज्ञानानिु ार िारी पर्ं डत जी को मालमु था र्क है। उिके बडबोले पन की आदत जाने के बाद िो उिके पीछे पीछे िहा​ाँ उिकी गर्तर्िर्धया​ाँ देखनें लगे । ज्ञान के र्िषय का िबको बढ चढकर बेटे के कान में धीरे िे कहा- “बेटा इिी को जाये । यह अपनें अधकचरे ज्ञान का िाथ मन्त्रोंचार करो र्जनको करनें िे । िह कायि करो ।"


अधजल गगरी छलकत जाए वीणा उपाध्याय

िीणा उपाध्याय र्िक्षा- एम ए गृह र्िज्ञान िौक- पढना, र्लखना, गाना कुर्कंग, लोगों की िेिा करना । र्हन्दी िार्हत्य में कर्िता और कहानी िृजन करना । र्जला- मजु फ्फरपरु र्बहार ।

दोस्तों मेरे दादाजी अकिर कहा करते थेर्बन िोचे, र्बन िमझे करो ना कोई कायि, बोलने िे पहले है, िोचना अर्निायि । हल्के थोथे, जल उतराय अधजल गगरी छलकत जाय

िबनम, जेठानी िीमा और जेठजी अमन के , आिभगत में लगी हुई थी । मगर उिका र्दमाग कुछ और हीं िोच में तल्लीन था । जेठानी र्िदेि में रहती थी, मगर िाधारण कुती पाजामा और िर पे दपु ट्टा देख उिे अजीब िा महि​िू हो रहा था । इन्हीं र्िचारों में उलझी र्कचेन िे चाय और नाश्ता लेकर आई । िीमा चहकते हुए बोल पडी, आरे िबनम तझु पे ये ड्रेि तो बहुत जच रहें हैं, र्बल्कुल र्फट आया है, बहुत िंदु र लग रही हो। िबनम तपाक िे बोल पडी आप भी पहनेंगी, मेरे पाि बहुत िारे आधर्ु नक ड्रेि भरे पडे हैं । िीमा बोली हां हां क्यों नहीं, तम्प्ु हारे कपडे तो मझु े भी र्फट आ जाएगं ,े कहते हुए कप उठा हीं रही थी र्क अर्धक गमि के िजह िे हाथ िे छूट गया और फि​ि 9 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


पर र्बखर गया । चाय के कुछ छींटे िबनम के कपडे और चप्पल पे भी पड गया । िबनम गिु िा िे बोल पडी, भाभी आपने मेरे इतने अच्छे ड्रेि का ित्यानाि कर र्दया, भनु भनु ाती हुई िहां िे चली गई। िीमा

अफिोि जताते हुए कप के टुकडे िहेजने लगी । िीमा जबिे आई थी, िारा िक्त िािु मां के िेिा में हीं लगी रहती, उनके हर छोटीछोटी बातों का ध्यान रखती । िबनम अपने पर्त आलोक िे, बाद मे बोली, आपकी भाभी रहती तो र्िदेि में हैं, मगर उन्हें र्बल्कुल िलीका नहीं हैं, एक दम गिं ार जैिी हरकतें करती हैं, आपने देखा न आलोक? कै िे कप उठाई र्क मेरे कपडे चप्पल और डाइर्नंग हॉल का भी कबाडा बना र्दया । इतना िनु ते हीं आलोक गस्ु िा िे लाल होते र्चल्ला पडा, “खबरदार! जो जबु ां िे ऐिी बातें र्फर दबु ारा र्नकाली, तो मझु िे बरु ा कोई नहीं होगा िमझी तमु ? र्जि ड्रेि के र्लए तमु भाभी को खरी खोटी जो िनु ा रही थी, मालमु है िो ड्रेि उन्हीं का तो है? गनीमत कहो र्क भाभी ने मझु े आख ं ों हीं आख ं ों में उि िक्त

इिारा नहीं र्कया होता तो मैं तझु ,े तेरी औकात उिी िमय र्दखा देता, कहते हुए आलोक की आख ं ें छलक आई । र्जि ड्रेि की बात कर रही हो, िो िारे भाभी के हीं तो हैं । भाभी भैया आते तबतक देर हो जाती, इिर्लए भाभी ने हीं फ़ोन कर र्पताजी को अपने िारे जेिर, कपडे तम्प्ु हारे र्लए भेजी देने की आग्रह र्कया था । तमु को तो िब पता है र्क तेरी मेरी िादी इतनी जल्दी इिर्लए हई, तार्क मेरी मां देख ले अपनी आख ं ों िे । मां कें िर िे ग्रर्ित जीिन और मौत िे जझू रही है । हमारी िादी में दोनो िाइड का खचि र्पताजी ने हीं उठाया । िादी िे पहले हीं तम्प्ु हारे घर जेिर, कपडे र्भजिा र्दया गया तार्क िमाज में तम्प्ु हारे घर िालों को िर्मिन्दा नहीं होना पडे । िबनम तमु बहुत नीच, हरकत की हो, और अब भाभी िे माफी तमु को मांगनी पडेगी ।“ िबनम िमि िे गडी जा रही थी, मन हीं मन अपने द्वारा र्कए गए िलक ू पे पछतािा भी हो रहा था। िच हीं कहाित है की "अधजल गगरी छलकत जाय"

अधजल गगरी छलकत जाय 10 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


अधजल गगरी छलकत जाए मीनाक्षी चौधरी

मैं, मीनाक्षी चौधरी, एक अध्यार्पका हं, मनोर्िज्ञान और इर्तहाि में एमए तथा बीएड ह।ं मेरी दो बेर्टयां है, िादीिदु ा है, जो मेरा िबल िहारा है। मैं १९८७ िे गार्जयाबाद में रह रही थी, इिी िाल अपने जीिनिाथी के देहातं के बाद देहरादनू में अपना स्थायी र्निाि कर र्लया है। लेखन, पेंर्टग, गारडर्नगं, कढाई, और खाना बनाना बहुत पंिद है और िाफ र्दल लोगों को पिंद करती ह।ं कोई बडी उपलर्ब्ध यार्न र्क कोई पस्ु तक या िमाचार पत्र की प्रर्िद्ध लेर्खका नही हं लेर्कन कलम की ि​ि ु गुजार हं र्जिने मन के भािो को कागज पर उके रने में मेरा िाथ र्दया। कलम को लोगों के दख ु ो, परे िार्नयों, िामार्जक िमस्याओ ं की आिाज बनाने का दृढ र्नश्चय मन में िंजोये ह।ं

अल्पज्ञान पर मत घबराय, बि खामोिी ले अपनाय.. . िनु ओरो की ध्यान लगाय, कर मन्थन बातो का र्फर त.ु . और अपना ले ज्ञान बढाय, क्योर्क अधजल गगरी छलकत जाय.. ज्ञान का प्रकाि हर र्दिा चमकाये, फै ल िमु न की खश्ु बु िा जाय.. अंहकार और बडबोलापन िबको है खाय, िहनिीलता, दया,परोपकार ही िबके मन को भाय.. िहनिीलता, क्षमा रख र्दल में, और ज्ञान ले चमकाय.. क्योर्क गर भरी हो गगरी, तो िो ना िोर मचाय.. र्फर तेरी खामोिी भी िबका ह्रदय ले लुभाय, अधजल गगरी छलकत जाय.. 11 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


अध्यापक मह़ोदय अिंजत्रल व्यास

लेर्खका अजं र्ल व्याि मंबु ई िे MBA कर एक कंपनी मे कायिरत है ।र्पछले ६िालों िे अपने कॅ ररअर और पाररिाररक र्जम्प्मेदाररओ ं को बखबू ी र्नभाया है । बचपन िे र्नबधं लेखन िाद र्ि​िाद और कर्िता लेखन में काफी रूर्च रही है और िाथिक िार्हत्य मंच िे जडु ने के बाद अपने इि िौक को भी लेर्खका जी रही है । अपने िामार्जक िमारोह में भी लेर्खका को अच्छी िक्ता के रूप में कई बार िराहा जा चक ू ा है । हाल ही में इन्होंने ३१ मर्हलाओ ं के िाथ र्मलकर एक पस्ु तक "ऑनलाइन woमर्नया " प्रकार्ित की है र्जिे "इर्ं डया बक ु ऑफ ररकॉड्ि​ि " में भी स्थान र्दया गया है । इनके र्लए लेखन जीिन के ऐिे अनछुए पहलुओ ं को िामने लाने का जररया है जो कही गति में छुपे है ,लेखन इनके र्लए ऑक्िीजन का काम करता है र्दल को िक ु ू न देता है ..। लेर्खका का मानना है र्क कहार्नया​ाँ िमाज का आईना होती है र्जिे एक कहानीकार अपने पाठकों को पेि करता है लेर्खका खदु जीिन के िघं षो को जीतते हुए आज िबके िामने है और आज पाठकों िे अनिरत रूप िे र्मल रहे िम्प्मान िे िराबोर है ।आप anjalisanwara@rediffmail.com के माध्यम िे लेर्खका िे जडु िकते हैं ।

गांि के र्िद्यालय में ही मीना की र्िक्षा दीक्षा हुई, अपनी मेहनत और लगन िे ही िो १२िी कक्षा तक पहुचं ी । १२िी क्लाि में ही एक अध्यापक तबादला होकर आये थे र्िद्वान प्रिाद र्मश्रा, िफ़ारी िटू पहने हुए, बाल ऐिे र्क लग रहा था मानो भर-भर के तेल लगाया हो उनके कक्षा में आने के िाथ ही र्तल के तेल की खश्ु बू आने लगती मछू ें अधकचरी िफ़े द और उन पर ताि देते हुए आये । खदु पर बहुत ही नाज था उन्हें पहले ही र्दन कक्षा में आये और कहने लगे "मझु े तो प्राचायि बनाना चार्हए था, मझु े तो उच्च अर्धकाररयों ने चनु कर भेजा है यहा​ाँ इि र्िद्यालय में, र्हदं ी में तो मेरी कोई िानी नहीं र्कतना अच्छा पढाता हाँ मैं अब आपको पढाऊंगा" र्िद्यार्थियों िे कहा । र्हदं ी िार्हत्य के व्याख्याता होने का बहुत गरु​ु र था उन्हें । पहले र्दन ही िर ने र्हदं ी िार्हत्य की पस्ु तक को खोल कह र्दया "इि दोहे को दि बार अपनी कॉपी में र्लखो ।"

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दोहे र्लखने पर िन्ु दर, श्रेष्ट, उत्तम और ऐिे कई र्ि​िेषण हस्ताक्षर के तौर पर र्िद्यार्थियों को अभ्याि पर्ु स्तका में देने लगे कुछ र्दन तक यही चला र्फर र्हम्प्मत करके मीना ने एक र्दन एक पद्य का अथि पछ ू ा तो उिे ये कहते हुए चपु करा र्दया र्क "अपने अध्यापकों को िामने जिाब नहीं देना चार्हए ।" आधी छुट्टी में मीना भी गई प्राचायि जी के पाि गई और िारी बात बताई िर को अपने कक्ष में बल ु ाया प्राचायि जी ने । "र्िद्वानजी ये क्या िनु रहा हाँ आप १२ िीं के बच्चों को को पढाने की बजाय उन्हें िुलेख और श्रर्ु तलेख की तरह दोहें र्लखिा रहे हैं िो भी र्बना अथि िमझाये ।" "अरे िर! हमे तो उच्च अर्धकाररयों ने चनु कर भेजा हैं ।" प्राचायि जी के िामने भी यही राग अलापते रहे अध्यापक महोदय ।

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प्राचायि जी ने भी अध्यापक महोदय की परीक्षा लेने के र्लए उन्हें दो तीन दोहों का अथि पछ ू ा तो बेचारे महोदय जी के चेहरे पर बारह बज गए । "इिे कहते है अधजल गगरी छलकत जाय, र्िद्वानजी आपने खदु ने रटंत र्िद्या प्राप्त की है इिर्लए खदु को इतना महान और र्हदं ी िार्हत्य का र्िद्वान िमझते है आप आप खदु जब ऐिे है तो बच्चों को क्या र्िखाएगं े बच्चों को भी अधजल गगरी ही बनायेंगे आप कम िे कम र्िद्यालय आने िे पहले जो आपको पढाना है उिका पनु ः अभ्याि करके तो आते ।" प्राचायि जी गस्ु िे में बोले। अध्यापक महोदय की नजरें िमि िे नीचे झक ु गई ।


मुझे सि पता है डॉ मधु कश्यप

मेरा नाम डॉ मधु कश्यप है । मैं िाराणािी र्निािी हाँ । मैंने िस्ं कृ त में एम.ए तथा पीएचडी की र्डग्री पटना यर्ू निर्ि​िटी िे प्राप्त की है । घर में िार्हर्त्यक माहौल होने िे िरू ु िे ही िार्हत्य के प्रर्त रूर्च रही । डायरी र्लखने की आदत थी र्जिने अब कहार्नयों का रूप ले र्लया है । मामस्प्रेिो पर ब्लॉगर हाँ तथा अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉमि पर िर्िय हाँ ।

"आज खाने में क्या बनाया बहु? देख तू नईनई है तो तझु े कुछ पता नहीं है र्क हमारे यहा​ाँ क्या बनता है, क्या नहीं । िैिे भी तनू े ..क्या कहते हैं ..उिे र्किी एमबीए की पढाई की है । उिमें खाना बनाना तो नहीं र्िखाते हैं, मझु े पता है। इिर्लए तू मझु िे पछ ू र्लया करना । मझु े िब पता है। ऐिे थोडे धपू में बाल िफे द र्कए हैं ।" रमाजी अपनी नई निेली बहु पर अपना रोब जमाने में लगी थी । "ठीक है, मम्प्मी जी मैं आपिे पछ ू कर ही बनाऊाँगी । बताइए र्फर क्या बनाऊाँ? ररया ने कहा । 14 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

रमाजी को नई निेली बहु िे इि जिाब की उम्प्मीद नहीं थी । िे िकपका गई । "हा​ाँ, हा​ाँ, बताती हाँ न । घबरा क्यों रही है । मझु े िब पता है । रोटी, िब्जी, मीठे में िेिई ।" "पर, रोटी तो िबु ह बनी ही थी मम्प्मी जी । अभी नान, बटरनान, कुलचा या तंदरू ी रोटी बना दाँू । और ये इर्ं डयन र्डि हुई । आप कहें तो चाइनीज, कांर्टनेटल या िाउथ इर्ं डयन र्डि बना दाँू । एक ही तरह के खाने िे आप बोर हो जाएाँगी । िैिे भी आपको िब पता है ।" ररया ने मस्ु कुराते हुए कहा । रमाजी एक


पल के र्लए चकरा गई । मन ही मन बदु बदु ाने लगी । "पता नहीं कहा फाँ ि गई मैं । ये बहु कौन कौन िे खाने के नाम ले रही है । मझु े तो पता भी नहीं है । "िमझ गई, तझु े बहुत पता है। जो मन है बना । पर िलाद जरूर रखना। उिमें खीरा, टमाटर, प्याज और िलाद के पत्ते जरूर काटना ।" रमाजी ने अपने को मजबतू र्दखाते हुए कहा ।

हो तो मझु िे पछ ू ना। मझु े िब पता है ।" रमाजी ने अपनी चतरु ाई का पररचय देते हुए कहा । दरू बैठा रोहन जो र्हदं ी महु ािरे याद कर रहा था उिे अपनी मा​ाँ की बातों को िनु कर अधजल गगरी छलकत जाए की पररभाषा अच्छे िे याद हो गई । उिने रमाजी को छे डते हुए कहा, "मझु े भी िीखा दो मा​ाँ । तम्प्ु हें तो िब पता है ।"

"िलाद नहीं मम्प्मी जी उिे िैलड कहते हैं।"

"बि तू ही बचा था। परे िान करने के र्लए । आ बताती हाँ तझु े।" और रमा जी ने हाँिते हुए रोहन को गले लगा र्लया ।

"जो भी कहते हैं, खाना ही हैं न । जा, खाना बनाना िरू ु कर । नहीं तो देर हो जाएगी। कोई र्दक्कत

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अधजल गगरी छलकत जाए समु न त्रसहिं र्िया ने ध्यान र्दया र्क िबु ह िे ही पापाजी की तर्बयत जयादा र्बगडने लगी थी ।पापाजी को पांच िषों िे धडकन की र्िकायत थी और िो इिकी दिा भी ले रहे थे । इधर चार पांच र्दनों िे उन्हें भख ू नहीं लग रही थी, जी र्मतला रहा था, और कमजोरी बढ गई थी । मृणाल खदु उनका ख्याल रख रहे थे, बगल के डॉक्टर चाचा िे पछ ू कर गैि की दिा, उल्टी की दिा, खाने में परू ा परहेज भी रख रहे थे । कल िाम बी टेक की परीक्षा लेने उन्हें दिू रे िहर जाना पड गया । जाने िे पहले उन्होंने पत्नी र्िया को िारी दिाइयां और खान पान िमझा र्दया था । र्िया ने फोन कर उन्हें पापा की र्बगडती तर्बयत के बारे बताया । मृणाल ने पापा िे बात र्कया र्फर र्िया को िमझाया - "कुछ नहीं है ..गैि की एक और दिा दे दो ठीक ही जायेगा, अगर र्दक्कत लगे तो डॉक्टर चाचा को बल ु ा लेना ।" जब पापाजी को िािं लेने में र्दक्कत होने लगी तो र्िया घबडा गई, उिने र्फर पर्त को फोन कर अस्पताल ले जाने की जरूरत बताई। इतना िनु ते िो भडक उठे - "तमु याँहू ी घबडा जाती हो, इतनी पढाई का क्या फायदा, कम िे कम जो बता रहा हाँ िो तो िनु ो ..नहीं तो डॉक्टर चाचा को बल ु ा लो ।अस्पताल िाले तो िबको आई िी यू में भती कर लेते हैं, पैिा बटोरने का धधं ा है उन िबका ..दो र्दनों के बाद तो मैं आ ही रहा हाँ ।" डॉक्टर चाचा होम्प्योपैथी के ...ऐिी हालत में िो क्या करें गे र्िया ने मन मे िोचा । मा​ाँ ने र्चंर्तत 16 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

होकर पछ ू ा- "मृणाल ने क्या कहा बहु ?" हालात की नाजक ु ता देखते हुए र्िया ने दृढ कदम उठाया, उिने तरु ं त एम्प्बल ु ेंि को फोन र्कया, अपना मोबाइल बन्द र्कया और मा​ाँ िे कहा- "जल्दी कीर्जये मा​ाँ, हम पापाजी को लेकर हॉर्स्पटल चल रहे हैं अभी ।" हॉर्स्पटल में पापाजी को देखते ही िीररयि मरीज की तरह तेजी िे इलाज िरू ु कर र्दया गया, उन्हें आई िी यू में भती ले र्लया गया । दो घटं े बाद र्िया ने अदं र जाकर देखा, पापाजी नींद में थे, ऑक्िीजन लगा था, आई िी र्ड्रप चल रहा था, हाटि मिीन र्टक र्टक कर रही थी,..उिने गौर िे देखा नींद में भी पापा के चेहरे पर ददि झलक रहा था । िारी रात मा​ाँ और िो र्चंता में खडे ही रह गए । तीन घण्टे बाद पनु ः र्िया पापाजी को देखने अदं र गई, िबकुछ पिू ित ही था, उिने धीरे िे आिाज दी - "पापाजी ....." पापा ने धीरे धीरे आख ं े खोली, मस्ु कुराने की चेष्टा के िाथ हाथ िे इिारा र्कया- अब ठीक हाँ ! मृणाल और र्िया की िादी को दो िषि हो चक ु े थे । मृणाल बचपन िे ही कुिाग्र बर्ु द्ध के थे पढने र्लखने में बहुत रुर्च थी, र्किी भी र्िषय पर चचाि हो िो बात कर िकते थे, इिर्लए एम टेक के बाद उन्होंने कॉलेज में प्रोफे िर की नौकरी चनु ली । र्िया भी काफी होर्ियार थी, उिने बॉटनी िे एम एि िी र्कया था । पर मृणाल अपने आगे उिकी एक नहीं चलने देता, हमेिा र्कट-र्कट चलता रहता ...िब्जी में तेल


इतना क्यों डाला ..तेल िेहत के र्लए हार्नकारक है, ए िी र्दन में क्यों चला ..इि िे िािं में र्दक्कत होगी, मा​ाँ के खाने में ये क्यों र्दया ...पापाजी को िबु ह िैर िे मना क्यों र्कया आज ....! ऐिा नहीं र्क उन्हें र्किी की बात पिन्द नहीं पर हर बात िो अपनी तराजू िे तौलते, र्किी और की परे िानी िो िमझ नहीं पाते । र्िस्टर की आिाज िे र्िया का ध्यान भगं हुआ, उिने कुछ दिाइयां लाने के र्लए पजु ाि र्दया था । दो र्दनों के बाद पापाजी को आई िी यू िे रूम में र्िफ्ट कर र्दया गया । मृणाल िहर पहुचं ते ही िीधे अस्पताल पहुचं े । पापा को ठीक देखकर उन्हें चैन आया, लेर्कन ..आदत िे मजबरू ..र्िया की तरफ मडु कर चालू हो गए- "पापा तो ठीक हैं, थोडा उन्नीि बीि तो तबीयत में लगा ही रहता है, इतना तो डॉक्टर चाचा को बल ु ाकर काम चलाया जा िकता था, और .तमु ने फोन क्यों बन्द कर र्दया था ? अब देखो र्कतने र्दनों तक यहा​ाँ रखता है ।" र्िया की आख ं े भर आई,ं उिे पर्त िे िराहना की उम्प्मीद थी । तभी डॉक्टर िबु ह के राउंड पर आ गए । पापाजी का चेक अप करके कहा र्क कल िबु ह तक ये घर जा िकते हैं, मृणाल िे कहा र्क िो के र्बन में आकर आगे की दिाइयां और र्नदेि िमझ लें । मृणाल ने डॉक्टर िे ि​िाल र्कया- "डॉक्टर िाहब ..इन्हें हुआ क्या था ?" डॉक्टर ने जिाब र्दया- "हाटि फै र्लयर र्िथ एनीर्मया ...जी हा​ाँ ..इनका हाटि फे ल हो रहा था ..इनका खनू इतना कम खान पान की लापरिाही िे

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हो गया है ।" मृणाल का चेहरा र्चतं ा और भय िे कुछ क्षण में िफे द पड गया । मृणाल के जाते ही पापाजी ने र्िया को पाि बैठने का इिारा र्कया और

िमझाते हुए कहा "बहु.., मृणाल की बातों को र्दल िे मत लगाना, उिे र्कताबी ज्ञान बहुत है पर, होस्टल में रहने और पढाई में लगे रहने िे अनभु ि की कमी रह गई है । र्कताबी ज्ञान िे ज्ञान का गागर आधा भरता है, आधा िांिाररक जीिन के तजबु े िे उम्र के िाथ भरता है । जीिन की धपू छांि बहुत कुछ र्िखाती है। मृणाल र्नश्चय ही अच्छा पर्त िार्बत होगा बि ..उिे थोडा िक्त दे दो तमु । अभी उिका ज्ञान आधा भरा गागर है इि र्लए छलकता है, िमय के िाथ भरे गा र्फर िो िांत हो जाएगा ।" तभी मृणाल ने कमरे में प्रिेि र्कया, पाप के पाि बैठते हुए प्यार िे कहा- क्या बातें चल रही हैं ...!" "बहु को एक महु ािरा िमझा रहा था ।" मस्ु कुराते हुए पापा ने जिाब र्दया । र्िया के चेहरे पर भी एक दबी मस्ु कान आ गई । अर्िश्वाि भरी नजरों िे देखते हुए उिके महंु िे र्नकल पडा "महु ािरा ...अभी??..कौन िा ...?" पापा ने हिं ते हुए कहा - "अधजल गगरी छलकत जाए ।" ......


अधजल गगरी छलकत जाए रत्ना िापूली लखनऊ

ईष्या, द्वेष, और अहं कार, मानि मन का है आगार । मैने र्लया क्यो इिमे भाग जैिे आ बैल मझु े मार । लयान नही पर करे जो अपना ही हरदम बखान । ऐिे डाक्टर है भाई, जो नीम हकीम खतरे जान । खतरनाक यह अल्प लयान, जो िमझे खदु को महान । यह कहाित ित्य जान, बोये पेड बबल ू आम कै िे खाए । यही अहं कार है गोरी, अधजल गगरी छलकत जाए ।

18 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


फन्टुश रत्ना िापूली लखनऊ कहॉ जिानी मे िादी के िपने, और कहॉ बह फन्टुि । मेरा भी पाला पडा था, एक बार फन्टुि िे, राजकुमार की र्फल्मी फन्टुि िे नही जीता जागता फन्टुि िे । बेटी बडी क्या हुई, िादी का ख्याल र्जतना बेटी को नही आता उतना तो मॉ बाप को आता है, र्फर मै कै िे अपिाद बनती, लगी मेरी दीदी घर घर जाकर र्ढढोढा पीटने की मेरी बहन जिान हो गयी, मोहल्ले मे मेरी िन्ु दरता के चचे कोई कम न थे, ऊपर िे एम, ए, बीएड की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पाि । िभी चाहते मछली को फॉि ले, र्फर एकलौती लडकी दहेज मन भर र्मलेगा, इिका लालच भी कम नही था। खैर जाने पहचाने के घर िे एक ररश्ता आया, फन्टुि जैिे लडके के र्लए । लडका खदु आने िाला था, लडकी देखने। उत्िक ु ता ि​ि मैं ऊपर की मर्ं जल िे लडके का अिलोकन कर रही थी । र्िर पर हैट, दबु ला पतला, जैिे लगता था, एक फूक में बह उड जाएगा, चलाई तो घोडे जैिी थी, अलबत्ता दल ु त्ती नही मार रहा था । अर्भिादन के र्लए मेरी मॉ तथा फुफे री बहन मेरी दीदी खडी थी ।

19 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

जैिा र्फल्मो मे होता है, मेरी एनट्री चाय के िाथ होनी थी, पर उिके पहले ही फन्टुि जी ने फरमाया, लडकी को बल ु ाईए मैं उि​िे कुछ बात करना चाहता हाँ । जैिे ही मैने कमरे मे कदम रक्खा, अग्रं ेजी में अपनी हेकी हाकने लगे, मैने एम बी ए करके मगु ी पालन का व्यि​िाय कर रहा ह,ाँ मेरा र्बजनेि देिी र्िदेिी दोनो है, अथाित इन फोटि एक्ि फोटि, िमझ रही है न आप, अतः आपको अग्रं ेजी आना बहुत जरूरी है । मेरी दीदी िे न रहा गया बह बोल पडी, “िीमा ने ग्रेजएू िन अग्रेजी र्बषय िे ही र्कया था ।“ तब तक फन्टुि अपनी जेब िे कागज कलम र्नकाल कर मझु े अग्रं ेजी में र्लखने को कहता है, अपने बारे में कुछ र्लखो, मझु े िैतानी िूझी मैने अग्रं ेजी मे र्लखा, और मै यह चाहती ह र्क मेरे इि र्हन्दी महु ािरे का जो िही िही अथि िमझा देगा मैं उिी िे ही िादी करुंगी, महु ािरा है "अधजल गगरी छलकत जाए " मेरा स्िीकारोर्क्त पढकर बह कमरा छोड ऐिा भागा जैिे गधे के र्िर िे िींग । आज तक मैने यह र्किी को न बताया र्क मैं ने उिमे र्लखा क्या था। बिाल टल गया ।


टमरेल ! त्रनरिंजन धुलेकर ( चोरिडि : जब इि तरह के भारी भरकम िब्जेक् िामने आते हैं देन, आय गो बैक टू बेर्िक्ि इन डीटेल्ि ... तुम्प्ही ने मजि र्दया है अब ददि बदािश्त करना..! )

जमाना अग्रं ेजों के बाद िाला था ! अाँग्रेज खदु तो अखबारों के िौकीन थे उन्हें र्दक्कत नहीं थी, अखबारों के दो ही उपयोग पता थे उन्हें । परंतु भारतीयों को पढने के अलािा भी ढेर िारे उपयोग पता थे जैिे, रद्दी िे चार पैिे कमाना, रै क में र्बछाना, ना​ाँि हिाई जहाज बनाना, तीर बना कर अगले बेंच पर बैठी लडकी के बालों में मारना, पतगं की पछ ंू बनाना, बर्डया िख ु ाना, हाथ पोछना, भेलपरु ी खाना ..और भी न जाने र्कतने ।

एक ही होता और ... लैर्ट्रन, पा.... या, ट.... जो भी कह लो, (रुमाल नाक पर रख कर बरु ा महाँु बनाने की जरूरत नही ये मातृभाषा र्हदं ी है ) भी एक ही । िौचालय िस्ं कृ त िब्द है, र्हदं ी या देिी नही । जरा अग्रं ेजी क्या पढ र्लए गर्लयों का गीला पीला

यानी, िो िब र्जिके र्लए अख़बार बनाये ही नहीं गए । अखबार िे न हमे कुछ पढना आया, न ही उिकी मदद िे अर्िक्षा या कुछ और .... पोछना । बरतार्नया में अग्रं ेज, अख़बार अदं र बैठ कर पढते और र्फर उिी िे .... र्कये धराये को पोछ डालते, पानी बचाते ! एक बाल्टी प्रर्तव्यर्क्त, प्रर्त बार, प्रर्त र्दन, आप र्हिाब लगा लीर्जये ।

घर मे घिु ने के र्लए, िजे धजे दो पल्ले के कंु डीदार दरिाजे के ठीक बगल में, एक मनहि टूटा टाटा लटका दरिाजा भी अिश्य होता था । यानी िन एर्लजट और िन एट्रं ी ! कमोड पर बैठ कर फे िबक ु की कहार्नयों पर कमेंट्ि करने िालों को क्या पता र्क जब अदं र बैठा जरा देर कर देता था तब बाहर कै िी मारकाट मचती थी ।

यहा​ाँ परु ाना जमाना यानी लोटा ले कर ही जाना, आज कल िाला ... फुच फुच नहीं था ...! देि की जनिंख्या कम पर पररिार की ज़्यादा थी । र्कचन

खडे खडे कै िे कमेंट्ि र्कये जाते थे और तंग आने पर बाहर िे कंु डी चढा कर ब्लॉक भी कर र्दया जाता था की जा मर िहीं ।

20 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

इर्तहाि और प्रातःकालीन िस्ं कार और िस्ं कृ र्त ही भल ू गए िब के िब !


इट िाज अ प्रेिर गेम ! ताजजबु की बात ये थी र्क िबिे ज़्यादा र्घिा र्पटा और छे दीलाल लोटा ...र्जिे िब प्यार िे टमरे ल भी बोलते थे बेहद काला बेढब और .. र्बना हैंडल िाला ही होता, पर था िबिे जरूरी । टमरे ल अग्रं ेजी िब्द टम्प्बलर का परू ी तरह िाला र्िध्ि​िं है । टम्प्बलर का मतलब ही है जो टम्प्बल करे , यानी लढु के छलके और ऐन मौके पर छल करे ! पानी का एकमात्र स्रोत कभी भी उपयोग स्थल के पाि नही होता था । नल घरों में नही घिु े थे और गली के नक्ु कड पर ही रोज ि​िेरे के झगडे, गाली गलौज के गिाह बने लटके पडे थे । िो, इट िाज लाइक रर्नंग अगेंस्ट टाइम, स्पीड एडं प्रेिर, लाइट तो खैर आयी ही नही थी । इिर्लए रार्त्र िेिा हेत,ु मोमबत्ती, लालटेन या र्ढबरी रखी रहती । कभी उिकी बाती ख़त्म हो जाती, कभी तेल और िब कुछ िही होने पर मौके िे मार्चि गायब या मार्चि है तो तीली ख़त्म । परू ा ब्ह्ांड र्दख जाता,अधं ेरे में । उत्पन्न मल ू दबाि की गणना , इि दीपक की गतं व्य की ओर जाने की गर्त यानी स्पीड िे की जाती। चोरों को भी ज्ञात होता था र्क इि घर मे रार्त्र िेिा लोग अर्नयंर्त्रत िमय िाररणी िे करते हैं , िो ररस्क नहीं उठाते थे घर िरु र्क्षत रहता । कई बार अत्यंत तीव्र गर्त िे जाता दीपक ... हिाओ ं के छूटने िे घटु न के मारे बीच मे ही बझु जाता और जातक मझ धार में फंि जाता ! िेर्प्टक टैंक के ईजाद होने के बाद गली के िो टूटे दरिाजे बंद हो गए और ड्राइगं रूम में मजि हो गए । मेहमानों को अब उिी खडु ् डी के ऊपर पर लगे 21 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

इटार्लयन टाइल्ि पर बैिन के पकौडे, बडे, लस्िी, रबडी, कढी, राजमा, खीर ि​ि​ि होने लगे । बात टमरे ल की ! कुएं िे लेकर िेिा टट्टी यानी िर्ि​ि​ि लैर्ट्रन तक के िफ़र को टमरे ल में पानी भर कर दौडते हुए ही परू ा करना पडता । इतना ही नही, थ्रेि होल्ड तक पानी ररिने िे पहले ही िब कर कराकर बचे पानी को उपयोग में भी लाना पडता था। कुएं िे िहा​ाँ तक का िफ़र अपने पीछे पानी की एक गल ु जार िाली लकीर छोड जाता .. कोई तो गजु रा है अभी अभी, र्दल मे तडप र्लए ... यानी िीट ऑक्यपु ाइड है । तत्काल की कोई िर्ु िधा या व्यिस्था नहीं थी, नेचरु ल इमरजेंिी होर्ल्डंग और ररटेंिन कै पेर्िटी अच्छी थी । ब्ह् महु ति में घर के लोगों को उठने की प्रेरणा दी जाती , जो हाजमे िे हारे िो महाँु अधं ेरे उठ कर भागे । इि प्रेिर को कोई आज तक न रोक पाया बांधना तो दरू की बात । ये दर्ियों िाल परु ाना टमरे ल र्किी गगरी िे कम न था जो नीचे िे चनू े ररिने के िाथ िाथ उपर िे छलकता भी जाता था , यानी डबल ट्रबल छल छल ! एक तरह िे यह र्िपरीत पररर्स्तर्थ , मनष्ु य को अपनी इर्ं ियों को घट्ट करने की र्िद्या र्िखाती भी दीख पडती । अद्भुत धैयि रखने की र्िक्षा भी ख़दु ब ख़दु प्राप्त हो जाती । टमरे ल की ऑल्टरनेट थी र्मट्टी की गगरी ! आधी भरी या परू ी , फूटने का डर होता या लढु क कर इज़्जत पर पानी र्फरने का । हो चक ु ा था मेरे िाथ भी ये लडु कौआ गगरी खदु छलकी और मेरे िाथ .. छल की ।


अखबार पढने का िौच .. मेरा मतलब है िौक, मझु े िहीं िे लगा । उि एकातं िाि में अखबारों के अक्षर पढने का मौका भी होता और उिका कागज .. आकर्स्मक र्नजिला की र्स्तर्थ में एक िरु क्षा किच

भी बनता । मैं पढता उतना ही था र्जतने की डींगें हा​ाँक िकाँू । िमझ की गगरी कभी खदु िे छल करती कभी मझु को छलती, कभी परू ा छल की तो कभी आधी छलकी !

िहस चिंद डॉ सज िं ीव जैन

आज करना था िो

र्हगं र्लि बन जाय ।

कल पे टल जाय । रटते रटते ये देखो

ऑडी,मिेडीज

मेररट में आ जाय ।

की बात करे है, िाईकल भी इनके

पर्श्चम उगे िरू ज,

अब हाथ न आय ।

बहि ये कर जाय, दो और दो को ये गगू ल कर आय ।

ज्ञान फे ि बक ु पे ऐिे, ये बांटते र्फरते,

र्हदं ी इर्ं ललि को र्ि​िाह करा दे, र्मल के िो देखो 22 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

जानत है, अध जल गगरी छलकत जाय ।


धध ुिं ला त्रववेक मधु जैन जिलपुर गा​ाँि में राघि ही एक ऐिा था र्जिने बी.ए तक पढाई की थी । अर्धकांि तो आठिीं पाि ही थे। कुछ ही थे र्जन्होंने मेर्ट्रक पाि की थी । इिकी िजह गा​ाँि में आठिीं तक ही स्कूल का होना था । अधं ो में काना राजा िाली बात ही थी राघि के िाथ, एक तो ग्रेजएु ट ऊपर िे नगर पार्लका में क्लकि । िरकारी नौकरी का घमडं तो िर चढकर बोल रहा था । देखने में तो राघि िाधारण िा था पर ख्िाब िह एक खबू िरू त और पढी र्लखी पत्नी के देखता था।

अब राघि ने परू े पररिार के िामने िैदहे ी के हाथ में डायरी और पेन देते हुए कुछ िाक्य र्हन्दी में र्लखने को कहा, उिने िभी िाक्य िही र्लख र्दये, पर िैदहे ी को लडके का बताि​ि अपमानजनक लगा और बहुत ितही भी । उिने भी र्हम्प्मत जटु ाई और डायरी राघि को थमाते हुए कुछ र्हन्दी के िब्द जैिे पररश्रम,पारदर्ि​िता, िाम्प्प्रदार्यक आर्द र्लखने को कहा ।

राघि के र्लखे िब्दों में ितिनी की बहुत िी गर्ल्तया​ाँ थी, जो िैदहे ी के पकड में आ गई ।

िह िादी के र्लए माता र्पता के िाथ पाि के ही गांि में िैदहे ी को देखने आया है ।

िैदहे ी खीझ उठी । "क्या र्डग्री ही योलयता का पैमाना होती है?"

गा​ाँि में आठिीं तक ही स्कूल होने िे मेधािी होने के बािजदू िैदहे ी आगे न पढ िकी ।

राघि कुछ बोले इिके पहले ही िैदहे ी ने कहा,"िह ऐिे व्यर्क्त िे िादी नहीं करना चाहती, जो दिू रों को उि काम में परखना चाहता हो जो िो खदु नहीं जानता ।"

िैदहे ी हर कायि में दक्ष है। राघि के माता र्पता को िैदहे ी पिंद है । पर िाधारण िक्ल िरू त की िैदहे ी को देखते ही राघि ने र्पता के िामने नजरों िे र्िरोध र्कया, पर र्पता ने भी नजरों ही नजरो िे ही कहा बेटा िान्त रहो । 23 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

आर्खर राघि को श्रेिता िार्बत करने की इच्छा के िाथ ही िैदहे ी के घर िे बैरंग लौटना पडा। अधरू ा ज्ञान घातक र्िद्ध हुआ ।


हम भी ऐम्मे हैं जया यादव जीिन में अक्िर ऐिी घटनायें घट जाती हैं जो बहुत कुछ िोचने को मजबरू कर देती हैं। ऐिी ही एक घटना मझु े याद आ रही है जब हम नार्िक में थे । हमारे एयरफोि​ि िाईव्ि एिोर्िएिन (अफिा) क्लब में एक िमारोह की तैयारी चल रही थी । िमारोह का िभु ारंभ अफिा गीत िे होता था । हमारी मैडम चाहती थीं र्क िह गीत िबको मौर्खक याद हो तो जयादा अच्छा है । ईश्वर की कृ पा और मा​ाँ िरस्िती के आिीिािद िे र्हन्दी का ज्ञान होने की िजह िे ऐिे िमारोहों में मेरी पछ ू बढ जाती थी । अपनी अफिा िेिेटरी के कहने पर लयारह मर्हलाओ ं का चयन गाने के र्लए करना था । पर मझु े लगाकर दि ही हो रही थीं । तभी र्किी ने िझु ाि र्दया र्क रानी छुरट्टया​ाँ र्बता कर िार्पि आ गई है उिे बल ु ा लेते हैं । िह माँर्दर में भजन अच्छी तरह िे गाती है । हम िबने यह िझु ाि मान र्लया । तो आईये कुछ रानी के र्िषय में जान लेते हैं। उिका नाम रानी नहीं था । पर एक अक्षर कम करके मैंने रानी कर र्दया । क्योंर्क अगर िही नाम र्लखा और र्किी ने उिके पाि ये खबर भेज दी तो आज बाईि िाल बाद भी िो मेरी बैंड बजाने जरूर आ जायेगी । और हा​ाँ, मैं ये भी नहीं बताऊाँगी र्क िह कहा​ाँ की रहने िाली थी । क्योंर्क इिके बाद तो एफबी 24 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

पर भी मझु पर िडे अाँडे और टमाटर पडने लगेंगे । हा​ाँ तो र्फर आगे बढते हैं । अगले र्दन रानी क्लब आई हम िबने उिका स्िागत र्कया और बताया र्क िह हमारे िाथ एक कलाकार के रूप में माँच िाझा करे गी । यह जानकर रानी बहुत खि ु हुई । तभी मधु ने उि​िे पछ ू र्लया र्क "िह इतनी लम्प्बी छुरट्टयां र्बताने क्यों गई थी ।" रानी ने कहा र्क "उिे परीक्षा देनी थी। र्फर िोचा र्क ररजल्ट आने के बाद ही जायेंगे ।" मधु ने कहा "अच्छा, तमु ने कभी बताया नहीं । ररजल्ट कै िा रहा ।" रानी ने खि ु होकर कहा "हम ऐम्प्मे र्कये हैं िाँस्कृ र्त िे । गडु िेकंड र्डिीजन रहा । थोडी िी कमी रह गई, नहीं तो फस्टि रहते हम ।" हम िबने र्दल िे रानी को बधाई दी और उि​िे िादा र्लया र्क िह हमें जल्दी ही पाटी पर बल ु ाएगी । हमारी िर्ख रानी अब बहुत उत्िाह के िाथ िबको अपनी नई नई िफलता की िचू ना दे रही थी इिमें कोई बरु ाई भी नहीं थी । पर ऐिा तो कुछ था जो कुछ जयादा हो रहा था । र्प्रय पाठकों िाँिार में भा​ाँर्त भा​ाँर्त के लोग हैं और भा​ाँर्त भा​ाँर्त की िोच। िाथ ही भा​ाँर्त भा​ाँर्त की मिु ीबतें भी होती हैं । उनमें िे एक मिु ीबत होती है 'आ बैल मझु े मार' और मैंने उिी मिु ीबत को र्नमत्रं ण


दे र्दया था । जहा​ाँ हम ररहि​िल करते थे िहीं अफिा की अर्धकारी का ऑर्फि था और पाि में ही अफिा की ओर िे चलने िाला ब्यटू ी पालिर था । अभी मीर्टंग िरू ु भी नहीं हुई थी र्क ब्यटू ी पालिर िे जोर जोर िे बोलने की आिाजें आने लगीं । मैडम ने मझु े इिारा र्कया तो मैंने जाकर देखा िहा​ाँ मधु के िाथ रानी का िाक यद्ध ु चल रहा था । रानी चाहती थी र्क उिका काम पहले कर र्दया जाये । पर मधु र्नयम की पक्की थी उिका कहना था र्क "जो पहले िे प्रतीक्षा कर रही हैं । िह पहले उनका ही काम करे गी । इतना तो आप िमझती हैं न रानी दी । पढी र्लखी हैं, इतनी र्जद क्यों कर रही हैं ।" मधु का इतना कहना था र्क रानी भडक गई। "हा​ाँ पढे र्लखे हैं । हम भी ऐम्प्मे हैं । अनपढ जार्हल गाँिार िमझ ली हो क्या । र्क जींि पहन कर चली आई हो तो र्हरोईन हो गई हो । भल ू ो मत हम िीर्नयर हैं तमु िे । िीर्नयर की बेइजजती करोगी।"(यहा​ाँ िीर्नयर का मतलब था र्क रानी के पर्त का रैं क मधु के पर्त के रैं क िे कुछ िीर्नयर था) । बडी मर्ु श्कल िे रानी को चपु र्कया । मधु को िमझाया तो उिने कहा ।" दी इिका ऐम्प्मे कुछ जयादा ही छलक रहा है । आज पा​ाँच बार उिने दोहराया र्क िो ऐम्प्मे है । आप कहें तो र्नकालाँू क्या इिका ऐम्प्मे ।" मैंने चपु के चपु के हाँिते हुए उिे आाँखों िे चपु रहने का इिारा कर र्दया । एक घटं े बाद हम ररहि​िल हाल में इकट्ठे हुए। हमारी िेिेटरी और अफिा अर्धकारी मैडम को ररहि​िल पिन्द आई । पर उन्होंने कहा र्क िब अगर ये गीत जबानी याद कर लेंगे तो अच्छा है । उन्होंने मझु े अपनी फाईल िे र्नकाल कर गाने की एक कॉपी 25 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

देते हुए कहा र्क मैं िबको र्डक्टेट कर दाँू । िब नोट कर लेंगी । िबने अपनी अपनी डायरी खोलकर र्लखना िरू ु र्कया । अफिा के िाँग पायें हम िमृर्द्ध और.... । िभी अच्छे िे नोट करते जा रहे थे। पर रानी िमृर्द्ध पर ही अटक गई । "दीदी जरा धीरे धीरे बोर्लये... जरा एक बार र्फर िे बोल दीर्जए... िो दिू री लाईन का तीिरा अक्षर क्या है.... दी जरा िाफ िाफ बोर्लये न । कुछ िमझ तो आ नहीं रहा है ।" रानी की परे िानी र्किी को िमझ नहीं आ रही थी । दिू री मर्हलाएं अब जल्दी जल्दी नोट करके आगे बढ चक ु ी थीं । एक और िदस्या ने कहा र्क "दीदी आप हमें जल्दी जल्दी र्लखिा दीर्जए । रानी को आराम िे र्लखिा दीर्जए ।" इतना िनु ना था र्क रानी का पारा चढ गया, "मतलब क्या है तम्प्ु हारा । अनपढ नहीं हैं र्क र्लख नहीं िकते । हम थोडा धीरे -धीरे र्लखते हैं । दीदी हमारी िमस्या नहीं िमझ रही हैं । इतना जल्दी जल्दी बोल रही हैं र्क हम िनु नहीं पाते हैं, और तमु लोग दीदी के िाथ र्मलकर हमारे र्खलाफ लॉबी बना र्लए हो । बेिकूफ़ नहीं हैं िब िमझते हैं । आर्खर हम भी"... रानी ने इतना कहा ही था र्क िब बोल पडीं र्क....".... ऐम्प्मे हैं ।" िब कहकहा मारकर हाँि पडे । िबने गीत र्लख र्लया लेर्कन रानी आधा गीत भी नहीं र्लख पाई थी । हार कर मैंने उि​िे कहा र्क िह घर जाये मैं िाम तक उिे गाने की प्रर्त भेज दगाँू ी । रानी खि ु हो गई । लेर्कन जब मैंने उि​िे कहा र्क िह अपना नोट र्कया हुआ गीत मझु े दे दे । मैं इिे परू ा कर दगाँू ी । तो रानी ने कहा र्क आप मझु े दिू री कॉपी दे दीर्जए । मैंने तो कुछ नहीं कहा पर मधु ने कुछ िोच र्लया था । बाहर िबके िाथ जाते हुए


रानी ने कहा र्क "दी बहुत जयादा घमडं ी हैं बडी मैडम के िाथ रहती हैं न । एक गीत तो र्लखिा नहीं पाई।ं अरे थोडा आराम िे बोलना चार्हए न । पर िे तो स्पीड के िाथ बोलती हैं ।" रानी को िायद पता नहीं था र्क मैं भी पीछे पीछे िाथ में चल रही हाँ । मधु ने देख र्लया था । उिने र्तरछी नजरों िे मझु े देखा और रानी को जोर िे कोहनी मारी र्जि​िे रानी की डायरी नीचे र्गर गई। मधु िॉरी िॉरी कहते हुए नीचे झक ु ी और मैंने देखा र्क उिने बडी खबू िरू ती िे िह कागज का पजु ाि र्नकाल र्लया र्जि पर रानी ने नोट र्कया था । उिने डायरी उठा कर रानी को दे दी । जैिे ही रानी अपने घर की ओर मडु ी । मधु मेरे पाि आ गई, "दी आईये पहले मेरे घर चर्लये ।" घर पहुचाँ कर मधु ने िह कागज का पजु ाि खोला । हम दोनों देखकर दाँग रह गए। उिमें एक भी अक्षर एक भी मात्रा कुछ भी िही नहीं था। हम दोनों एक दिू रे का महाँु देख रहे थे । प्रायमरी में पढने िाले बच्चे भी इि​िे बेहतरीन र्लखते हैं । काि कोई अक्षर तो िही होता । र्फर रानी ने एमए कै िे र्कया होगा । उत्तरपर्ु स्तका में क्या र्लखा होगा । मधु ने कहा र्क दी ये तो अधजल गगरी छलकत जाये िाली जैिी बात है । िाँस्कृ त िे एम ए करने िाली लडकी र्हन्दी भी नहीं र्लख िकती । आश्चयि!!!.... मधु ने कहा र्क िह कल िबको ये बात बतायेगी । पर मैंने उिे रोक र्दया । "नहीं मध,ु हम र्किी िे कुछ नहीं कहेंगे । क्या

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बात है हमें नहीं पता । र्फर हम क्यों कुछ कहें ।" मधु गस्ु िा हो गई, "और िो जो आपके र्लए क्या कुछ कह रही थी । मझु िे भी र्भड गई थी ।" मैंने हाँिते हुए कहा, "मैं कभी न कभी इि र्िषय पर कहानी र्लखाँगू । तब पढना । अभी अपने महाँु िे कहकर हम र्निाना क्यों बनें ।" मधु मान गई। मैंने गीत की एक प्रर्त रानी को भेज दी । पर बडे दख ु की बात रही र्क िह उन िब्दों का िही उच्चारण नहीं कर पा रही थी हमने उिे कहा र्क िह िाथ में खडी होकर बि होंठ र्हलाये। रानी ने हमारी बात मान ली और मा​ाँ िरस्िती की कृ पा िे कायि​िम िम्प्पन्न हुआ । र्कन्तु इि अधजल गगरी का राज कई िाल बाद खल ु ा । जब एक राजय के तीन तीन टॉपर छात्रों की िच्चाई िामने आई । र्जन्हें ये भी नहीं पता था र्क प्रश्नपत्र में आया क्या था । र्किी ने उत्तर पर्ु स्तका र्लख दीं और र्किी ने अाँक बढिा र्दये । श्रेर्णयां भी खरीद लीं जाती हैं । र्कन्तु मेरा मानना है र्क "ऐिी अधजल गगरी छलकने की जगह फूट जानी चार्हए । क्योंर्क इनका छलकना हर र्किी के र्लए हार्नकारक है ।" िोच रही हाँ आज मैंने "हम भी ऐम्प्मे हैं" कहानी र्लख दी । पता नहीं मधु कहा​ाँ होगी । अगर िह पढती तो खबू हाँिती । कोई बात नहीं । हम और आप र्मलकर हाँिते हैं ।


नात्रततक आनदिं जैन "और िनु ाइए पजु ारी जी क्या हाल है, र्कतनी कमाई करिा र्दए आज आपकी, आपके भगिान ने" व्यंलयात्मक लहजे में मस्ु कुराते हुए चार्मि ने पजु ारी जी पर ि​िाल दाग र्दया । "क्यों हमेिा उल्टा िीधा बोलती रहती हो आप भगिान के बारे में, िे तो जगत के पालनहार है, िबका ख्याल रखते हैं ।" पजु ारी जी ने हमेिा की तरह िहज भाि िे उत्तर र्दया । "िाह रे जगत के पालनहार..! आलीिान मर्ं दरों की चारदीिारी में िोने चा​ाँदी के र्िंहािन पर बैठ कर जगत का पालन करते हैं, िाह क्या बात है िैकडों लोग भख ू िे मरते हैं हमारे देि में उनका पालन पोषण क्यों नहीं करते आपके भगिान, आप लोगों को नहीं लगता र्क ये बडे बडे भव्य आलीिान मर्ं दर, पत्थरों की मर्ू ति में पर्ू जत भगिान ये पजू ा पाठ िब ढकोिला है, आडम्प्बर है "चार्मि ने दिू रा ि​िाल दागा। "मैडम जीिन है तो मौत िर्ु नर्श्चत है, कोई आज कोई कल, फकि है िोच का, उि र्गलाि में पानी आधा भरा हुआ है ये मेरी िोच है, आप कहती हैं र्क र्गलाि आधा खाली है, ये आपकी िोच है उिमें कोई कुछ नहीं कर िकता।" पजु ारी जी ने उिी िहजता िे उत्तर र्दया । "बात घमु ाइए मत मेरी बातों का कोई जिाब नहीं है आपके पाि ।" आिेर्ित मिु ा में चार्मि बोली।

27 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

"जिाब है मेरे पाि लेर्कन पहले आप इतना बता दीर्जए इि मर्ं दर का इर्तहाि र्कतना परु ाना है।" पजु ारी जी बोले। "परु ाने होने िे लोगों के पालन पोषण का क्या िंबंध है ।" भडकते हुए चार्मि बोली । "िबं ंध है ये मर्ं दर और इिके जैिे हजारों मर्ं दर िैकडों िाल परु ाने हैं और इनके बनने में िषों लगे हैं, ईश्वर की आलोचना करने के अलािा कभी िोचा है इन मर्ं दरों की र्नमािण प्रर्िया में नींि खदु ाई िे लेकर इनके र्िखर के र्नमािण तक हजारों श्रर्मकों ने इिमें कायि र्कया है, ईटं भट्टों के मजदरू ों िे लेकर रे त, बजरी, मर्ू तिकार, रंग रोगन करने िाले और न जाने र्कतने लोगों के घर के चल्ू हे इन मर्ं दरों की बदौलत ही जलते रहे हैं और आज भी जल रहे हैं, ये मर्ं दर पररिर के आिपाि फूलों की, नाररयल अगरबत्ती, चाय नाश्ते की दक ु ानें, और भी तरह तरह की दक ु ानों के दक ु ानदारो के पररिार, िीर्ढयों में बैठे ये लाचार बेबि लोग इनके पररिार, दि​िनार्थियों को लाने ले जाने िाले िाहन चालकों के पररिार इन्हीं मर्ं दरों के कारण अपना भरण-पोषण करते हैं ।" पजु ारी जी ने िातं भाि िे कहा । "कण कण में भगिान हैं तो र्फर ये बलात्कार,ये हत्याएं क्यों नहीं रोकता भगिान...?" चार्मि पनु ः बोल पडी । "ईश्वर कताि नहीं कारक है जो अप्रत्यक्ष रूप िे िृर्ष्ट के कल्याण के र्लए लोगों को िदकमों के


र्लए प्रेररत करते हैं, कण कण में भगिान का भािाथि भी यही है र्क लोग बरु े कमों िे दरू रह कर िदकमों हेतु प्रेररत हों, लेर्कन ये िब बातें मानिों के र्लए हैं, दानिों के र्लए नहीं ।" पजु ारी जी ने जबाि र्दया ।

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लेर्कन...! चार्मि कुछ और कहना चाह रही थी । "हम जानते हैं आप नार्स्तक हैं मैडम, आपके मन में अनेक प्रश्न हैं, लेर्कन अभी आपकी गगरी परू ी नहीं भरी है र्जि र्दन परू ी भर जायेगी, छलकना स्ित: ही बदं हो जायेगी ।" जय श्रीराम कहते हुए पजु ारी जी मर्ं दर के गभिगहृ की ओर चल पडे ।


छ़ोले मज िं ू त्रमश्रा र्निा की मामी की बह र्नर्ध िादी होकर आयी तो महीने भर तो बडे लाड प्यार िे रखी गई पर एक र्दन तो रिोई में जाना ही था, और िो र्दन आया भी तो बहुत मर्ु श्कल िाला उि र्दन मामी को र्किी िादी में जाना था, और उिी र्दन नए नए पर्तदेि ने र्किी र्मत्र को खाने पर र्नमर्ं त्रत कर र्लया। और बडे प्यार िे बोले- "जो तुम अच्छा िा बन िको बना लेना ।" उिने छोले र्भगो र्दए और रायता िख ू ी र्भडं ी की तैयारी कर ली पर र्नर्ध ने तो मायके में कभी खाना बनाने की जरूरत ही नहीं िमझी थी । जब भी मां कहती बेटा कभी कभी रिोई में खडे होकर देख र्लया करो क्या कै िे बनता है तो उिका टका िे जिाब होता क्या मम्प्मी खाना बनाना कौन िा बडा काम है जब जरूरत होगी बना लाँगू ी यू ट्यबू है न िहा​ाँ िब होता है । पर आज मम्प्मी ही याद आयी उिने मम्प्मी को पछ ू ा र्क छोले कै िे बनते है मम्प्मी ने उिे र्िस्तार में बताया गमि पानी में थोडा खाने िाला िोडा डाल कर छोले र्भगो दो िबु ह उबाल लेना और पणू ि र्िर्ध िमझा दी । उिने िबु ह छोले बना र्लए पर खाकर देखा तो र्बल्कुल गले ही नहीं थे और स्िाद भी मम्प्मी के

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जैिा नहीं आया था, िो घबरा गई अब क्या करूाँ िो तो आने ही िाले होंगे । उिने मम्प्मी को फोन लगाया और लगभग रोते हुए ही बोली“मम्प्मी छोले तो र्बल्कुल आप जैिे नहीं बने अब मैं क्या करूाँ ।“ “तमु ने छोले लगता है ठीक िे उबाले नहीं र्कतनी िीटी लगाई ।“ “अरे , उबले कहा​ाँ िो गमि पानी में र्भगोये थे और र्फर मैंने छौंक र्दए ।“ “िही तो जब कहती थी िीख लो तब तो तमु मझु े ही ज्ञान दे देती थी र्क जब जरूरत होगी कर लोगी, आधा ज्ञान हमेिा नक ु िानदायक ही होता है, तम्प्ु हारे जैिों के र्लए ही कहा गया है र्क अधजल गगरी छलकत जाय ।“ “पर अब क्या करूाँ डाटं बाद में लगा लेना पहले उपाय बताओ ।“ “अरे , उिे दोबारा गैि पर रखो और 6- 7 िीटी लगाओ ठीक हो जाएगं े ।“ “और कल िे िािू मा​ाँ को रिोई में खडा कर उनिे िीखो खाना बनाना जब तक खदु नहीं बनाओगी ऐिे ही परे िान होती रहोगी बाकी तमु खदु िमझदार हो ।“


अधूरा ज्ञान ज्य़ोत्सना पॉल रुक्मणी प्रि​ि पीडा िे छटपटा रही है । गांि की दाई मां कमलाबाई आकर प्रि​ि कराने की भरिक प्रयाि कर रही है र्कंतु िह िफल नहीं हो पा रही है । जैिे-जैिे िमय बीतता जा रहा है रुक्मणी का प्रि​ि पीडा भी बढता जा रहा है । अब तो िह इि तरह छटपटा रही है जैिे अभी प्राण र्नकल जाएगं े । उिकी र्चल्लाहट िनु कर उिके पर्त र्दनेि और धीर नहीं धर पाया तो उिने िाइर्कल उठाई और गांि की र्डस्पेंिरी पहुचं गया । गांि के र्डस्पेंिरी में एक डॉक्टर तथा एक नि​ि है । डॉक्टर भपू ेंि कुमार ने नि​ि र्निा को एबं ल ु ेंि के िाथ मरीज के घर भेज र्दया । नि​ि र्निा ने आकर देखा रुकमणी की हालत बहुत गंभीर है । िह जोर जोर िे र्चल्ला चोट कर रही है और अिह्य पीडा िे तडप रही है । गािं की दाई मां कमलाबाई प्रि​ि कराने की कोर्ि​ि कर रही है परंतु उिकी कोर्ि​ि अिफल र्िद्ध हो रही है । "कृ पया आप जरा हर्टए दाई मा.ं . मैं देखती हं मरीज की क्या हालत है ।" र्िनम्रता िे नि​ि र्निा ने कहा । "अरे .. अभी थोडी देर में ही प्रि​ि हो जाएगा। बच्चा भर्ू मगत हो जाएगा । मझु े प्रयाि करने दो थोडा िा और । िारे गािं की औरतों का प्रि​ि मैं ही कराती हं आई हं िालों िे । गािं में र्डस्पेंिरी तो दो िाल पहले िरू ु हुई है । यहां र्जतने बच्चे देख रहे हो न िब मेरे ही हाथ िे जन्मे हैं ।" कमलाबाई के बातों िे अहक ं ार की बू आ रही थी । ऐिा लग रहा 30 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

था जैिे उिने िारा डॉक्टरी ज्ञान हार्िल कर र्लया है। इिी को कहते हैं.. अधजल गगरी छलकत जाए..!! नि​ि र्निा ने रुक्मणी को देखा तो िह परे िान हो गई । उिने रुकमणी की पर्त र्दनेि को आिाज लगाते हुए कहा "र्दनेि भाई.. आपकी पत्नी को अस्पताल ले जाना पडेगा और अस्पताल यहां िे 15 र्कलोमीटर दरू है । पेिटें को ले जाकर एबं ल ु ेंि में र्लटा दो । र्डस्पेंिरी िे डॉक्टर िाहब को भी िाथ ले लेंगे । मरीज की हालत अच्छी नहीं है । बच्चा उल्टा है और ऐिे के ि में ऑपरे िन कराना बहुत जरूरी है । ऑपरे िन के िल िहर के अस्पताल में ही हो िकता है ।" "क्या बात कर रही हो नि​ि र्बर्टया । र्कतने िालों िे मैं गािं के हर औरत का प्रि​ि कराती आ रही हं । बच्चा उल्टा हो, चाहे िीधा हो, िारे मेरे हाथ िे ही पैदा हुए हैं । बि.. थोडा िा िमय देना पडता है ।" कमलाबाई की बातों िे पनु ः घमडं की बू आ रही थी । "एक बात बताइए कमलाबाई। गािं में कभी र्किी औरत की या कोई बच्चे की मृत्यु हुई है क्या प्रि​ि कराते िमय?" नि​ि र्निा ने प्रश्न र्कया । "हां एक-दो औरत की मृत्यु हुई है और एक -दो बच्चे की भी हुई है ।" र्दमाग पर जोर डालते हुए कमलाबाई ने कहा।


"र्फर तो बच्चा जरूर उल्टा रहा होगा । उल्टा बच्चा होता है तो आिानी िे प्रि​ि नहीं होता है । ऑपरे िन करना ही पडता है, िरना.. पेिटें की जान जा िकती है या बच्चे की भी जान जा िकती है। कभी भी ऐिा खतरा नहीं लेना चार्हए । जब आपके पाि परू ा ज्ञान नहीं हो तो र्किी की र्जदं गी िे

आप खेल नहीं िकते । अब गािं में र्डस्पेंिरी खल ु गई है तो िारे गांि िालों का कतिव्य बनता है र्क िबिे पहले आकर डॉक्टर और नि​ि को खबर दे ।" थोडा िा गस्ु िा होते हुए नि​ि र्निा ने कहा और मरीज को लेकर िहर के अस्पताल की ओर रिाना हो गई..!!

दि​िंग नतू न गगथ लगातार एक र्िषय पर बोलते जाना और ब्लैकबोडि पर भी र्लखते जाना बि यही िम रोज रहता था िीमा मैम का । बाक़ी िब तो चपु चाप उनकी बात िनु ती जातीं और जो िो र्लखतीं िह नोट भी करती जातीं । परंतु िनु ैना जो हमेिा र्जला टॉप करती थी भला िह कै िे चपु रह िकती थी कोई गल्ती देखकर! िह तपाक िे मैम को बोल देती र्क यह ऐिे नहीं ऐिे होगा । “िनु ैना तमु अध्यार्पका हो या मैं?” िीमा मैम तेज स्िर में बोलते हुए । िारी कक्षा में िन्नाटा पिर जाता है थोडी देर के र्लए। िीमा मैम र्फर पढाना िरू ु कर देती परंतु िनु ैना िे यह िब देखा नहीं जाता । िह र्फर बीच में टोक देती और प्रश्न भी पछ ू लेती बीच-बीच में । प्रश्नों के उत्तर को िह कह देती र्क कल बताऊाँगी और अपने पढाने के 31 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

िम को जारी रखती । जब टॉर्पक परू ा हो जाता तो कक्षा िे बाहर चली जाती । िारी छात्राएाँ जैिा िह पढातीं िैिा ही याद भी कर लेती थीं क्योंर्क उन्होंने यही कह रक्खा था र्क जैिा मैं र्लखिाती हाँ िैिा ही उत्तर पर्ु स्तका में र्लखना । अगर जरा िा भी इधर-उधर पाया गया तो नम्प्बर काट लाँगू ी । अब परीक्षा भी हो गई और पररणाम आये। तब िभी की आाँखें फटी की फटी रह गई ं! अरे ! यह क्या? िनु ैना िीमा मैम के िब्जेक्ट में फ़े ल। िब यही कहते नजर आ रहे थे ऐिा मैम ने जानबझू कर र्कया है । िनु ैना चपु रहने िाली छात्रा नहीं थी । िह िीधे प्रधानाचायि जी के कमरे में गई और


उनको अपनी उत्तर पर्ु स्तका र्दखाते हुए कहा र्क िर बताइये क्या मैंने ग़लत जिाब र्दया है? प्रश्नपत्र भी िाथ लेकर गई थी । “नहीं तम्प्ु हारे जिाब र्बल्कुल िही हैं ।” प्रधानाचायि जी ने कहा “िर र्फर मझु े फ़े ल क्यों र्कया गया?” िीमा मैम को बल ु ाया जाता है और प्रश्न का जिाब पछ ू ते हैं तो िह िो ही रटा-रटाया उत्तर देतीं हैं। “आप यहा​ाँ र्किी की र्िफ़ाररि िे आई ंथीं ना । आपकी माकि िीट तो एक नामी र्िधालय िे है । र्फर यह कै िे र्क आप बच्चों के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे

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पा रहीं?” जरूर दाल में कुछ काला है प्रधानाचायि जी िोच में डूब गये! जा​ाँच पडताल के बाद पता चला र्क िीमा मैम को तो नक़ल करने की िजह िे कॉलेज िे र्नकाला गया था और यह िब र्डर्ग्रया​ाँ भी नक़ली हैं। अगले र्दन यह बात हिा की तरह कॉलेज में फै ल गई। तब हर छात्रा यही कहती हुई र्दख रही थी र्क ओह! यहा​ाँ तो एक ही लोकोर्क्त र्फ़ट बैठती है “अधजल गगरी छलकत जाय” और कॉलेज में आज रोज िे ज़्यादा हलचल बढ गई थी । िब िनु ैना को दबंग होने पर िाबािी दे रहे थे ।


अधजल गगरी छलकत जाये पूनम त्रसहिं िरगम और अतं रा जडु िा बहने देखने में हु- बहु और र्िचारों में अनरू ु पता भी िैिा ही। प्रेम इतना र्क मानो बहता था। पढने में भी दोनों अव्िल, एक िाथ उठना बैठना खाना पीना एक दिू रे की जान और िख ु दख ु की िच्ची िाथी । पिंद नापिंद एक जैिी कोई र्भन्नता नहीं थी । अगर थी तो र्िफि इतनी, की िरगम िांत स्िभाि की थी और अतं रा चंचल थी । बचपन के र्दन हिं ते खेलते गजु र गए । बचपन की दहलीज पार कर दोनों तरुणाई को प्राप्त हुए । िमय के िाथ अतं रा की पिंद नापिदं में धीरे धीरे बदलाि आने लगा । उिके ऊपर आधर्ु नक चकाचौंध की दर्ु नया का प्रभाि पडने लगा । ित्िगं बदल गया अतं रा का.. र्कताबों की बजाए अर्धकाि ं िमय आईने के िामने ही गजु रता । िो िमझती पढाई के िाथ िाथ दर्ु नया का र्दल जीतने के र्लए अच्छे दोस्त, क्लब पाटी इत्यार्द का होना भी उतना ही जरूरी है...। िो अक्िर िरगम को भी अपने िाथ िर्म्प्मर्लत होने को कहती ।

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"दीदी तमु भी चला करो ना पाटी में.. र्जदं गी बिती है िहां, र्जदं गी..! तमु भी थोडा जी लो ।" अतं रा ने िरगम के गले में अपनी बाहें डालते हुए कहा। "अतं रा पढाई में मन लगा ले ऐिा ना हो इि दमखम में पढाई अपना दम तोड दे..! अतं रा ने अपने आप को िीिे में र्नहारते हुए कहा "पढाई भी कर लंगू ी मेरी प्यारी दीदी.. र्फलहाल तो मझु े पाटी के र्लए देर हो रही है ।" ये कहते हुए िैंडल को ठक ठक करती हुई अतं रा बाहर र्नकल गई । िरगम अक्िर उिे अपनी र्जम्प्मदे ाररयों का एहिाि कराती.. उिे मन ही मन अफिोि और दख ु होता.. र्क इि बार अतं रा को िभं ालने में अिफल हो रही है । पर उिपर तो जैिे अज्ञानता का परदा पड चक ु ा था । नतीजा हुआ ये की चकाचौंध के प्रभाि में अतं रा पढाई में र्पछडने लगी। यहां तक की मेर्डकल में एडर्मिन लेने का ख्िाब भी जाता रहा। िरगम ने अच्छे नबं र िे उत्तीणि होकर मेर्डकल में दार्खला र्लया जबर्क अतं रा को एक छोटे िे कॉलेज िे ही ितं र्ु ष्ट करनी पडी । एक िाम क्लब में पाटी के दौरान अतं रा की मल ु ाकात एक "एन आर आई" अबं र िे हुई । जैिा नाम िैिा ही गणु ! अबं र देखने में िदंु र होने के िाथ


िाथ अबं र की भार्ं त एक र्ि​िाल हृदय एिं नेक खयालों िाला इिं ान था । अम्प्बर को अपने देि िे बहुत लगाि था । छुरट्टयों के दौरान उिका अर्धकाि ं िमय भारत भ्रमण में र्नकलता । अतं रा के एक र्मत्र ने उिे अबं र िे इट्रं ोड्यिू कराया । "हेलो मैं अतं रा!" "मैं अबं र!" दोनों ने हाथ र्मलाते हुए एक दिू रे का अर्भनदं न र्कया । "आप क्या इिी िहर में रहती हैं ? और क्या करती है ?" अबं र ने िालीनता पिू क ि पूछा। "जी मैं यही रहती ह.ं .।" पर र्िक्षा की बात को गोल मोल घमु ाकर बता र्दया । "और आप..?" "मैं तो मल ू र्निािी भारत का ही हं । पर पापा का र्बजनेि र्िदेि में रहा इिर्लए िही पला बढा हं ।" "ओह हो..! अभी आप र्कि प्रोफे िन में है.?" र्जज्ञािु होकर अतं रा ने पछ ू ा। "हारिडि यर्ू निर्ि​िटी िे एमबीए र्कया है । या र्फर यंू कर्हए र्क करना पडा, पापा का र्बजनेि िंभालने िाला मेरे र्ि​िा कोई नहीं था..! ..इच्छा तो थी आई ए एि अफिर बनकर भारत में रहकर िमाज िेिा करने की पर परू ा ना हो िका..!" "िैिे आपने िही र्डिीजन र्लया जो बात र्िदेिों में है िह भारत में कहां !" अतं रा ने उत्िक ु ता पिू क ि कहा..! 34 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

अबं र ध्यान िे अतं रा के र्िचारों को िनु रहा था और इि छोटी िी मल ु ाकात में ही िो उिके र्िचारों िे अिगत हो गया था । अतं रा का मन हर पल आह्लार्दत रहता था । उिे लग रहा था उिके आधर्ु नक व्यर्क्तत्ि के कारण ही ईश्वर ने अम्प्बर को उिके जीिन में भेज र्दया है । हर पल उठते बैठते अबं र के ख्िाबों में खोई रहती। एक िाम अतं रा उछलते हुए िरगम के पाि आई और एक ही िांि में उिने अपने और अम्प्बर के िंबंधों का िारा िृतांत िनु ा र्दया । िरगम को भी िनु कर अपनी बहन के र्लए अर्त प्रिन्नता हुई । "दीदी मै बहुत बहुत खि ु हं । अब तम्प्ु हे भी एक र्दन चलकर अम्प्बर िे र्मलना होगा ।" "हा हां क्यों नहीं..! जरूर चलंगू ी ।" िरगम ने मस्ु कुराते हुए कहा । कुछ िमय पश्चात अंबर का र्िदेि िापि लौटने का िमय आ गया अंतरा थोडी उदाि, पर उत्िार्हत भी थी क्यों र्क उिे आिा थी र्क आज अबं र जाते जाते उनके ररश्ते को नाम देकर जाएगा । "हेलो अम्प्बर! कै िे है आप?" "आप िनु ाइए!" "मैं ठीक हं ।" दोनों क्लब के लॉन में चहल कदमी करते हुए बाते करने लगे । कुछ पल बातों का र्िलर्िला जारी रहा..!


अतं रा ने अपने मन की बात को रखना चाहा ..! और थोडा िकुचाते हुए पछ ू ा.., "अम्प्बर.. आपने हमारे ररश्ते के र्लए कुछ िोचा होगा..!!"

रुक कर कहा..! "अतं रा आप जैिी मेधािी लडकी को दर्ु नया की चकाचौंध के पीछे भागने की बजाय उच्च र्िचार एिं र्िक्षा की ओर ध्यान देना चार्हए..!"

अम्प्बर िमझ गया र्क अतं रा इि ररश्ते िे क्या चाहती है..! इिर्लए उिने बात को ना घमु ाते हुए स्पष्ट बोलना ही उर्चत िमझा ।

"मैं िमझ रही हं अम्प्बर.. आप िायद ठीक कह रहे है ।" अतं रा ने िन्ू य में देखते हुए कुछ पल रुक कर कहा। दोनों के बीच कुछ पल िन्नाटा पिर गया ।

"अतं रा.. तमु एक बहुत ही अच्छी िच्चे हृदय िाली इिं ान हो । प्लीज तमु मेरी बातों को अन्यथा ना लेना, मैं तम्प्ु हें अधं ेरे में नहीं रखना चाहता..।"

अतं रा को आज िरगम के र्हदायतों का स्मरण हो आया। मन ही मन बदु बदु ा रही थी ।

"नहीं ..नहीं अम्प्बर प्लीज आप बोर्लए.. मझु े कोई आपर्त्त नहीं ।" अम्प्बर ने कुछ पल रुक कर कहा .. "अतं रा.. आपमें ..हमारे र्हदं स्ु तान की र्मट्टी की िह िोंधी िोंधी खि ु बू िाली बात नहीं है । आपके र्िचारों में एकरूपता नहीं है, िाह्य आडंबर के आिरण में आपने अपने आपको इतना ढक र्लया है र्क भारतीय िंस्कार कहीं छुप िे गए है ।" लॉन में बैठे लोगों की भीड में भी अतं रा आज अचानक अपने आपको अके ला महि​िू करने लगी । अतं रा गभं ीरतापिू क ि अम्प्बर की िारी बातें िनु रही थी । उिको अम्प्बर के फै िले का आभाि होने लगा था । "में कै िे िमझाऊं आपको..? अम्प्बर की आिाज में बेबिी झलक रही थी । अबं र ने कुछ पल 35 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

काि मैं तम्प्ु हारी बात िमय पर िमझ जाती दीदी.... ! " पर अतं रा अम्प्बर को खि ु देखना चाहती थी। इिर्लए उिने अपने मन को िंभालते हुए मस्ु कुराकर कहा.., "कोई बात नहीं अम्प्बर पर हम एक अच्छे दोस्त बन कर तो रह िकते हैं ना ?" अतं रा ने िजल नेत्रों िे अबं र की ओर देखते हुए पछ ू ा "क्यों नहीं अतं रा र्बल्कुल ।" -अम्प्बर ने अतं रा का हाथ थामते हुए कहा । दोनों ने मस्ु कुराकर एक दिू रे की तरफ देखा । अतं रा को आज एहिाि हो गया र्क अपने खोखले एिं अधरू े ज्ञान के कारण उिने अपने जीिन में एक अनमोल ररश्ते को गिा र्दया। आकाि में बादलों के बीच उडता हुआ जहाज अम्प्बर की दरू रयों का एहिाि करा रहा था। अतं रा की आख ं ें डबडबा गई ।


ज्ञान की गागर सनु ीता त्रमश्रा यिोधरा, मेरी देिरानी, कान्िेंट की पढी, िन्ु दर, नौकरी करती आधर्ु नक मर्हला । मेरी ि​िरु ाल आधर्ु नक नही तो परु ातन पन्थी भी नही थी । पररिार मे िभी िदस्य पररिार के र्लये िमर्पित भाि र्लये । यिो िबु ह आराम िे उठती, तैयार हो नाश्ता कर, अपना लंच पैक कर, स्कूटी उठा, अपने ऑर्फि चली जाती। कई बार मां जी ने कहा भी "यिु बेटा, थोडा मधु का हाथ बाँटा र्दया करो रिोई मे" उिका जिाब होता "मम्प्मी जी, मै कभी रिोई मे गई ही नहीं, हमारे यहा​ाँ तो खाना नौकर बनाते थे ।" मै और मां दोनो ही र्मलकर घर की व्यिस्था िंभालते थे । छोटी ननद की िादी थी । हम लोगो की व्यस्तता बहुत बढ गई । ररश्तेदारो की व्यिस्था देखना, िब मेहमानो की िर्ु िधा का ध्यान रखना । मा​ाँ और मै भीतर की जम्प्ु मदे ारी िभं ाले थे । यिु ने बाहर की िाज िजजा । िादी के िारे िैिार्हक रीर्त ररिाज होने लगे । यिु हर मगं ल कायि मे खदु को अलग अलग ढगं िे ि​िं ारती । कभी िाडी, कभी टॉप जीन्ि, कभी प्लाजो कुती । र्िर्िध के ि र्िन्याि,र्िर्भन्न आभषू ण, िबके आकषिण की कें ि र्बन्दु । बात-बात मे ये जरुर बताती की िो कान्िेंट र्िर्क्षत, नौकरी पेिा है । 36 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

र्िदाई का िक्त आया । ननद की िाि मां िे र्मलने आई । मां के गले लगकर बोली "बर्हन, आपकी बेटी को हमारे घर कोई तकलीफ नही होगी ।" र्फर हाँि कर बोली "पर घर के मगं ल कायों मे मै उिे भारतीय पररधान यानी िाडी मे ही देखना पिंद करुाँगी ।" "िो आपकी इच्छा का अनादर नही करे गी । मझु े र्िश्वाि है उिपर।" मां िे भरे गले िे कहा। िे ननद की िाि का इिारा िमझ गई थी । ननद को ि​िरु ाल िे र्िदा कराकर लाने के र्लये, देिर और यिु तैयार हुए, िादी की भागदौड मे मां थक गई थी, अस्िस्थ थी । ऐिे मे मै उन्हे अके ला नही छोड िकती थी । यिु मां के पाि आई, टॉप जीन्ि मे थी । र्िकायती लहजे मे बोली- "मम्प्मी जी देखो न मनोज(देिर का नाम)को; कह रहा है, िाडी पर्हनो । बताईये क्या बरु ी लग रही हाँ इि ड्रेि मे। मै कल ही खरीद कर लायी हाँ । र्कतना मन था इिे पर्हन कर दीदी(ननद)के यहा​ाँ जाने का" िायद देिर के कानो मे, ननद की िाि की बात कहीं िे पहुचं ी या उिे ही यिु का इि ड्रेि मे बर्हन के ि​िरु ाल जाना अच्छा न लग रहा हो। "यिु बेटा," मां ने प्यार िे उिे अपने पाि र्बठाया, बोली- "ये ड्रेि तम्प्ु हे अच्छी लग रही है। पर हर मौके का अपना एक महत्ि होता है । इि बात को िमझो। के िल पढने और नौकरी कर पैिा कमाने िे


आदमी ज्ञानी नही हो जाता । ज्ञान की गागर को, र्िनम्रता, िहयोग, िदभाि, िेिा, िमय अनक ु ू लता, प्रेम, िस्ं कार आर्द िे भी लबालब भरा होना चार्हये।

जीिन के रण क्षेत्र मे तभी आदमी िफल होकर यि और नाम कमा िकता है। जाओ र्बर्टया मनोज की बात मान लो ।"

फूल और पत्र्र नीता सहाय यह कहानी है एक फूल और एक पत्थर की। दोनों आिपाि रहते थे । फूल िन्ु दर था और उिका िारा पररिार भी । फूलों को िभी िराहते थे । इन्िान तो क्या, पि-ु पक्षी भी उिकी रंगर्बरंगी दर्ु नया में आकर मलु ध हो जाते थे । फूल के मां-र्पता, बाल-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, भाई-बहन, यार्न िारा खानदान िंयक्त ु रूप िे एक चमन में रहते थे । पिन उन्हें झल ू ा झल ु ाते थे, माली उन्हें िींचता था और िारा जमाना उनकी िर्ख्ियत को मानता था । कोई उन्हें तोड कर अपनी प्रेर्मका को भेंट करता, तो कोई उन्हें चनु -चनु कर बक ू े बना कर नेताओ ं को देता था । कभी कोई रमणी अपनी पिदं का कोई फूल बालों में िजा कर अपनी खबू िरू ती बढाती थी, तो कभी कोई गृहलक्ष्मी अपनी पजू ा की थाल में िजा कर उन्हें ईश्वर को िमर्पित करती थी ।

िहां िे गजु रने िाले लोग फूलों को बडे हल्के हाथों िे िहलाते हुए जाते थे, जबर्क पत्थर को ठोकर लगती रहती थी । अब फूल और उिके पररिार को अपने-आप पर बडा गमु ान हो गया। िे आत्ममलु धता, आत्मर्िभोरता और आत्मप्रिंिा में इतने र्लप्त हो गये र्क अपने िामने र्किी को कुछ िमझते ही नहीं थे । िे पाि िाले पत्थर का भी मजाक उडाया करते थे । बात-बात पर फूल और उिके पररिार िाले उिका अपमान र्कया करते । िे उिे िनु ाते हुए कहते,"तमु तो कुरूप हो पत्थर! कुछ भी तो नहीं है तम्प्ु हारे पाि िराहने लायक! हमें देखो, हमारी पहुचं तो ईश्वर के दरबार तक है । हम उनके माथे पर भी चढ जाते है । हमारे िारे पररिार को लोग िराहते हैं, िम्प्मान देते हैं और हमिे ही िमारोहों में िजािट होती है.., और एक ये जनाब है!! कुछ भी तो नहीं है इिके पाि िराहने लायक! हुहं ! लोग इन्हें लात मारते हुए र्नकल जाते हैं, हा, हा, हा, हा ।" फूल आपि में र्मल कर उि पर फर्ब्तयां किते और हिं ते थे। उनमें बहुत अहक ं ार आ गया था ।

इधर पत्थर एकदम बेडौल, कठोर और बदिरू त था । िह चपु चाप एक ओर रास्ते में पडा रहता था । फूल और पत्थर एक दिू रे िे एकदम अलग थे ।

पत्थर िब िनु कर भी चपु रहता । क्या जिाब देता िह। हां, उिका र्दल टूट जाता । उिके र्दल के र्कतने टुकडे हो गए, जो र्बखरते चले गए ।

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पर उिे कोई र्िकायत नहीं थी। उिे कम-िेकम इि बात का िंतोष था र्क जब कोई पर्थक थक जाता तो उिी की गोद में बैठ कर अपनी थकान र्मटा लेता । कभी-कभी कोई प्रेमी जोडा उिका िहारा लेकर बैठता, तो भी पत्थर को खि ु ी र्मलती । कभी बच्चे उि पर चढ कर खेल-कूद करते तो िह मस्ु करा देता। िह िोचता,"नहीं, िह बेकार नहीं है । र्किी न र्किी के काम आ ही जाता है । भले ही उिमें फूलों की तरह खि ु बू नहीं है, न उिमें नजाकत और नफाित है, न खबू िरू ती है और न नाजो अदा । पर उिमें िहनिीलता तो है, िह मौिम की मार िह लेता है और धपू में फूलों की तरह कुम्प्हला तो नहीं जाता है ।" यह िब िोच कर िह अपने आप को र्दलािा देता। एक र्दन पत्थर तराि कर मर्ु तियां बनाने िाला एक मर्ु तिकार उधर िे गजु र रहा था। िह भी थक कर उिी पत्थर पर बैठ गया । िह र्चर्न्तत था, क्यों र्क उिका एक कायि परू ा नहीं हो पाया था । दरअिल, उि नगर के अध्यक्ष ने उिे ईश्वर की एक बडी िी प्रर्तमा बनाने का ऑडिर र्दया था । िह उि क्षेत्र की िबिे ऊंची प्रर्तमा होगी और उिका लोकापिण अगले महीने के प्रथम र्दन को होना र्नर्श्चत हुआ था, यार्न ठीक दो र्दन बाद। प्रर्तमा तो बन गई थी, बहुत ही भव्य, पर मर्ु तिकार र्चन्ताग्रस्त इिर्लए था र्क इतनी र्ि​िाल प्रर्तमा को िह स्थार्पत कै िे करे । प्रर्तमा को बैठाने के र्लए उिे कोई माकूल पत्थर अभी तक नहीं र्मला था । यर्द काम िही िमय पर परू ा नहीं हुआ तो एक तो उिे पैिे नहीं र्मलेंग,े और दिू रा उिे अनपु यक्त ु र्िल्पकार िमझा जायेगा िो अलग। यह उिका पहला बडा काम था, जो िह 38 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

पणू ि नहीं कर पाया तो भर्िष्य में उिे िायद ही कोई काम र्मले! िह उधेडबनु में था, क्या करे िह! उिका हृदय रो पडा। काि िह यह काम हाथ में लेता ही नहीं । इधर पत्थर हृदय की तरंग, या कह लें टेर्लपैथी द्वारा, मर्ु तिकार के हृदय की बात िमझ गया। उिने कहा,"र्मत्र, मैं हं न! मझु े अपने िाथ ले चलो ।" अब पत्थर बोला या नहीं, पर मर्ु तिकार को कुछ अहिाि हुआ और िह िहिा उठ कर उि पत्थर का मआ ु यना करने लगा । उिने कहा,"अरे , मैं र्जि पर बैठा था, यहीं... ये पत्थर, ईश्वर की प्रर्तमा के र्लए... मझु े र्मल गया, यही िही है...। मझु े र्मल गया एकदम उपयक्त ु पत्थर ।" र्फर िह अपने आदर्मयों की मदद िे उि पत्थर को ले जाकर तराि कर उिे िही आकार र्दया और उि पर ईश्वर की स्थापना र्कया। पत्थर भी बहुत प्रिन्न हुआ र्क उिे अब लगातार अपने देिता का िार्नध्य र्मलेगा । इतनी िानदार प्रर्तमा देख कर नगराध्यक्ष भी बहुत खि ु हुआ। जैिा की तय था, महीने के प्रथम र्दन को ही भव्य िमारोह हुआ, पजू ा-पाठ, मत्रं ोच्चार, िख ं तथा घर्ं टयों की ध्िर्न िे िातािरण गजंु ायमान हो उठा । िमस्त नगरिािी मर्ु ति को देख कर दांतों तले उंगर्लयां दबा रहे थे । जब देिता के चबतू रे पर फूल चढाएं गये तो उनमें िो फूल भी थे जो पत्थर को र्नकृ ष्ट और अपने आप को श्रेि िमझते थे । फूल ने पत्थर को पहचाना और कहा, "आप यहां!" अब िर्मिंदा फूल था । र्जि पत्थर को िह हमेिा अपमार्नत करता रहा, िह अब देिता का आिन हो गया । िहां अब उि जैिे िैकडों


पष्ु प अर्पित र्कए जाते हैं । पत्थर ने तो िहां रह कर अमरता प्राप्त कर ली, और फूलों को अब जाकर अपनी औकात पता चल गयी । उनका िारा घमडं तब चरू -चरू हो गया जब पजु ारी जी ने एक झटके में फूलों को परे कर र्दया, नये फूलों को जगह देने के र्लए । िही कहा गया है- अधजल गगरी छलकत जाये ! भरी गगररया चप्ु पे जाये । इधर पजु ारी जी प्रिचन दे रहे थे- कंु ए में नीचे उतरने िाली बाल्टी भर कर ही बाहर र्नकलती है । जीिन में जो झक ु ता है, यार्न नम्र होता है िही प्राप्त करता है। फूलों की िदंु रता चंद र्दनों की ही होती है, मगर पत्थर र्जि र्दन तरािे गये, िह खदु ा बन िकता है ।

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र्जि प्रकार दीपक बोलता नहीं, उिका प्रकाि ही उिका पररचय देता है, ठीक उिी प्रकार श्रेि जन अपने बारे में र्बना कुछ कहे ही अच्छे कमों की बदौलत अपना पररचय दे िकते हैं । फूल अपना महंु र्मयां र्मट्ठ करता रहा, जबर्क पत्थर िरल और गम्प्भीर बना रहता था । िह र्दखािटीपन िे कोिों दरू रहता था, और अन्ततः िक ु ू न भरी मर्ं जल उिी को र्मला । तभी उि मर्ं दर के पजु ारी की बेटी ने लोगों के पीने के र्लए गागर में िद्ध ु जल भर कर लाई- र्बना आिाज के , क्यों र्क उिकी गगरी भरी हुई थी ।


अधजल गगरी छलकत जाये (एक सतिं मरण) नीता सहाय अभी हाल में ही हमलोग बनारि, अयोध्या और र्चत्रकूट का कायि​िम बना कर र्नकल पडे । ड्राइिरि ि लेकर कुल बारह लोग दो गार्डयों में थे । िषों बाद अपने ररश्तेदारों और कजन्ि िे र्मलना बेहतरीन अनभु ि रहा । हम िभी बचपन की र्कतनी भल ू ी-र्बिरी यादें याद र्कये । यात्रा बहुत अच्छी रही, बि एक र्दल दहला देने िाली घटना को छोडकर। बाद में अत्यार्धक गमी के कारण हमलोग र्चत्रकूट जाने का प्रोग्राम ड्रॉप कर र्दए। उि िमय परू े देि में चरू ु के बाद र्चत्रकूट ही िबिे गमि स्थान था । पर मैं यहां यात्रा िृत्तांत नहीं िनु ाने जा रही हं (िो र्फर कभी) । बनारि घमू ने के बाद हमलोग अयोध्या जी रिाना हुए। िहां िाम को हम िरयू में बोर्टंग का लत्ु फ उठा रहे थे, मिाले िाली चाय पीते हुए। धारा बहुत तेज थी। हां, याद आया उिी र्दन गगं ा दिहरा भी था । घटना उिी िमय की है । बहुत िारे लोग नाि की िैर कर रहे थे । हर उम्र के लोग थे-बच्चे, बजु गु ,ि जिान । कई छात्र भी थे । बहुत िारे लोग स्नान कर रहे थे ।

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हमारे बगल िाले नाि में इजं ीर्नयररंग के छात्रों का एक दल था । िे मोटर लॉन्च पर थे, पर उनकी नाि कुछ छोटी थी । िे िब खबू हल्ला-गल्ु ला कर रहे थे। खडे होकर िेल्फी भी ले रहे थे । और तो और, िे लोग उि पर नाचने भी लगे । नाि िाले और उिका एक िहयोगी ने उन्हें मना र्कया और कहा, "आप लोग बैलेंि बना कर रर्खए भइया लोगन ।" इि पर िे लोग हिं ने लगे और कहने लगे," अरे , तमु को पैिा दे रहे हैं न हमलोग । और ये जो लाइफ जैकेट तम्प्ु हारे नाि में रखा है, ये िब िो के र्लए है क्या !"(हां, िाकई में उनमें िे अर्धकांि खराब थे, जो बाद में पता चला) । कुछ और लोग भी छात्रों को िेल्फी लेने िे मना र्कए, पर िे माने नहीं । िे िब नाि िाले िे तरह-तरह के ि​िाल पछ ू रहे थे, जैिे--यहां िाटर स्कीइगं होता है क्या, र्िनेमा का िर्ु टंग होता है क्या, बाबरी मर्स्जद में क्या हुआ था, िनी देओल को देखें हो क्या, आकि र्मर्डज का र्िद्धांत जानते हो क्या, यहां घर्डयाल भी है क्या, राम जी की पजू ा करते हो क्या, रामजी को तम्प्ु हीं पार कराते थे न--इिी तरह के कई ि​िाल। नाि िाला अर्धकतर 'नहीं' में उत्तर दे रहा था । उिने र्फर कहा, यहां पानी गहरा है। या तो आप लोग दोनों तरफ िान्त हो कर बैर्ठए, या हम र्कनारे की तरफ लौटते हैं । पर िे कहां मानने िाले थे!


और ठीक उिी िमय िही हुआ र्जिका डर था । नाि अितं र्ु लत हो गया और िब चीखनेर्चल्लाने लगे । चारों ओर अफ़रा-तफ़री मच गई। आिपाि के र्जतने नाि​िाले थे, उनकी िहायता िे िबको र्कनारे लाया गया । र्किी र्किी को उल्टा िल ु ा कर उनके पेट िे पानी र्नकाला गया । ि​ि ु था र्क िबकी जान बच गई। उिके बाद तो िबकी बोलती बदं हो गई । कुछ िमय पहले जहां हिं ी-खि ु ी

का बिेरा था, िहीं अब िातािरण में तनाि व्याप्त हो गया । र्फर हमलोग िहां िे आ गये, पर िोच कर दहित होता है । आज ये घटना अचानक याद आ गई, और मन में यही आया र्क र्दखािटीपन और र्कताबी ज्ञान िे क्या होने िाला है!

मऩोज भुवनेश्वर चौरत्रसया 'भुनेश'

बात, उन र्दनों की है जब मैं और मनोज एक िाथ ही रहते थे । र्दन के महज बाईि रूपए कमाने िाला क्या िौक करते । र्किी तरह ले दे के र्जदं गी कट रही थी । मनोज को र्दखाबा बहुत पिंद था तो अच्छे कपडों के र्लए अक्िर फुटपाथ का रुख करता। उिका थैला हमेिा अच्छे परु ाने प्रेि र्कए कपडों िे भरा रहता । मझु े ये पिंद नहीं था । मैं हमेिा अपने दो जोडी पेंट िटि िे ही काम चला लेता । लेर्कन कभी परु ाने या र्किी का र्दया हुआ अथिा फूटपाथ के कपडे नहीं पहनता था । खाने में जो र्मल जाए िही ईश्वर का प्रिाद िमझ खि ु ी खि ु ी खा लेता। दर्ू नयादारी िे अलग अपने पस्ु तक पढने के मरु ीद अपने में मलन रहता। मनोज मेरे गांि िे िाठ र्कलोमीटर दरू का रहने िाला था। एक र्दन घर पररिार की बात चली तो िह अपने घर के िंबंध में खबू िारा झठू ी किीदे कह िनु ाया । 41 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

लेर्कन उिके हाि भाि िे मैं परू ी तरह िार्कफ था । अक्िर कजि में डूबे रहने िाला इिं ान क्या आख ं र्मलाएगा? एक बार मैं गांि जा रहा था । तब िह मझु े कुछ िामान र्दया जो र्क उनके मातार्पता और भाई बहन के र्लए था । जब मैं उिके गांि गया तो िारी िच्चाई बाहर आ गई । उिके पररिार के लोग घोर गरीबी में अपना जीिन यापन कर रहे थे । मैं गांि िे लौट कर जब पुनः उिके पाि आया तो, िह मेरे पाि आने िे फटकता था । जैिे मैं उिकी िच्चाई जान गया ह। और आर्खर उिे एक र्दन उिकी िारी िच्चाई उिके महंु पर बयां कर र्दया । िह फूट-फूट कर रो पडा ऐिे लग रहा था र्क उिकी गगरी फूट कर छलक रही हो । आज उिके हाथ में गगरी तो थी लेर्कन फुटी हुई जो र्क छलक रही थी। अपने जीिन में िच बोलने का हुनर हर र्किी के बि में नहीं ।


अधजल गगरी छलकत जाए डॉ साके त चौरत्रसया हररद्वार िे र्दल्ली जाने िाली बि में दो िहयात्री । मर्हला की उम्र लगभग तीि िषि, अर्भजात्य उिके पहनािे और बातचीत के तरीके िे झलक रहा था । परु​ु ष की उम्र िाठ पार । अर्त िाधारण िस्त्र, और पांिों में िस्ती चप्पलें । छह घटं े का िफर था । बातें चल पडीं। यिु ती डॉक्टर प्रज्ञा एक र्चर्कत्िक थी । देि के प्रख्यात मेर्डकल कॉलेज िे स्ियं के परास्नातक होने पर उिे बडा अर्भमान था । िह र्दल्ली में एक नेिनल कॉन्रें ि में अपना पेपर प्रेजटें करने जा रही थी । "मैंने यह आपरे िन र्स्कन टू र्स्कन आधे घटं े में कर र्दया ।" "मैं अब तक इतने मरीजों की जान बचा चक ु ी हाँ ।" "मैं अब तक इतने आपरे िन कर चक ु ी हाँ ।" "आज तक मझु िे कभी कोई कॉर्म्प्प्लके िन नही हुआ।" "मेरे पाि दिू रे िीर्नयर डॉक्टर भी अपने कॉर्म्प्प्लके टेड के ि भेजते हैं ।" "जब भी कोई िीर्नयर डॉक्टर र्किी के ि में फंि जाता है, तो मझु े कॉल र्कया जाता है ।" 42 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

"मैंने फलाना ऑपेरिन र्कया जो िररि िे िररि डॉक्टर करने में र्हचकते हैं ।" रास्ते भर िह बजु गु ि को अपनी दो िषि की प्रैर्क्टि के अनभु िों के बारे में बढ चढ कर बताती रही। िे बेचारे िांर्त िे िनु ते और मस्ु कुरा भर देते । डॉ प्रज्ञा हैरान रह गयी, जब उिने देखा र्क उिके िहयात्री की अगिानी के र्लए उिके र्िभागाध्यक्ष स्ियं उपर्स्थत थे । "प्रज्ञा इनिे र्मलो, ये हैं र्िश्वर्िख्यात र्चर्कत्िक डॉ पाररख.....इन्हीं के नाम पर िह मैन्यिू र है, र्जिे िारी दर्ु नया के डॉक्टर िजिरी करते िक़्त उपयोग में लाते है। कल ये ही हमारे मख्ु य िक्ता होंगे ।" अब झेंपने की बारी प्रज्ञा की थी । र्जि हस्ती का नाम र्चर्कत्िा र्िज्ञान की पाठ्य पस्ु तकों में िनु हरे अक्षरों में दजि है। जो भारत का ही नही दर्ु नया का जाना माना िल्यर्चर्कत्िक है; उनके िामने िह अपनी छोटी िी र्चर्कत्िकीय यात्रा की िेखी बघारते हुए आयी है । 'िही कहा है र्किी ने, अधजल गगरी छलकत जाये'....िर्मिंदा होते हुए प्रज्ञा ने िोचा ।


अधजल गगरी छलकत जाय रत्रश्म भट्ट

मा​ाँ और बापू का बेटा बडा महान

ओ मेरे भैया ओ मेरी बर्हनी ।

माफी मांगो मा​ाँ बापू पत्नी िे

िमझता था अपने को बडा

मझु े कुछ ना आता जाता

ज्ञानी और र्िद्वान

मै तो हाँ र्नपट बेकार, मै अज्ञानी

आधा अधरू ा ज्ञान का था भण्डार

माफ कर र्दया घर िालों ने

और करता रहता ,बखान ।

पत्नी ने भी दे र्दया िाथ

ओ मेरे भैया ओ मेरी बर्हनी ।

कहने लगा िो पत्नी िे, तुम ही हो

अधजल गगरी छलकत जाय ।।

इि घर की िरकार, बनोगी मेरे

िीख अधरू ी र्िधा अधरू ी मान लेते थे िब ,उिकी कथनी भोले भाले गा​ाँि के बन्दे करते रहते, उिपर र्िश्वाि ऐिे इतराता िो अपने पर

अधजल गगरी छलकत जाय ।। कर दी एकर्दन मा​ाँ बापू ने िादी बताया बेटे को र्िर्क्षत और र्िद्वान करता र्बजनेि बर्ढया काम इिके र्िचारो िे मा​ाँ बापू अन्जान

बच्चों की महतारी, करना िबके मन का नि र्नमािण ओ मेरे भैया ओ मेरी बर्हनी । अधजल गगरी छलकत जाय ।। रूपया पैिा और र्दखािा नहीं आता

पत्नी आई पढी र्लखी िौम्प्य आचरण

कुछ भी काम, आधा अधरू ा ज्ञान

मानो िीता मैया जैिी महान

आले में रखों, पढ र्लख कर कार्बल तुम बनो,

नहीं था पैिा नही थी कौडी

गागी जैिी, परमगणु ी और बर्ु द्ध महान

र्फर झाडो तमु िब पर अपना ज्ञान

लोन पर लोन र्लए रहता था

उिके आगे एक चली ना

ज्ञान िे बढकर नहीं है कुछ भी

र्दखाता िो िबको बडप्पन

र्नकल गया िारा ज्ञान

और अमीरी, भ्रम और मायाजाल के

र्िर पकड बैठ गया िो

िब थे ि​ि में, िमझ बैठे थे

मेरी पत्नी हम पर भारी मै लपटं अधम

इिके जैिा कोई नहीं िानी

अज्ञानी, पत्नी मेरी पढी र्लखी है

पढकर आया िहर िे दि​िीं

इिके आगे एक ना चलेगी

िमझते थे गणु ों की उिको खान

बता र्दया उिने काला र्चठ्ठा अपना

जैिे हो िो आई एि पाि ओ मेरे भैया ओ मेरी बर्हनी । अधजल गगरी छलकत जाय ।।

43 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

उिी िे िब बनते र्िद्वान पत्नी की बात गा​ाँठ बा​ाँध ली । करने चला िो अपनी पढाई, बनने चला िो भी महान िो भी र्िद्धान ओ मेरे भैया ओ मेरी बर्हनी । अधजल गगरी छलकत जाय ।।


अधजल गगरी छलकत जाय प्रकाश चन्र पाण्डेय चट्टानों िे गजु रे नर्दया, िोर िराबा र्छछली जाय। मैदानों में जब आ जाये, परम िान्त न हलचल पाय॥

िाधू हरदम मृदु ही रहते, व्यथि कबहु नहीं बडबडाय। मोल-तोल कर बोल बोलते, जरूरत पडने पर िहाय॥

गहन िाधना का यह फल है, काहे चंचलता र्दखलाय। र्कतना ज्ञान भरा है र्किमें, यह उिकी िाणी बतलाय॥

अन्दर िे तो रहे खोखला, र्नज महाँु र्मया र्मट्ठ बन जाय। ज्ञानीजन का यि फै लता, र्बना जग र्ढढं ोरा र्पटिाय ॥

आज नेता बढ-चढ बोले, कम्प्बल बा​ाँट स्ि गीत गिाय। झठू बोलकर प्रजाजनों में, तारीफों के पल ु बधं िाय॥

ऐिे काज िे का फायदा, जो अपना ही क्षय कर जाय। कहे ‘प्रकाि’ ऐिी करनी, अधजल गगरी छलकत जाय॥

44 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


वैशाली डॉ प्रत्रतभा त्रिवेदी ग्वात्रलयर िैिाली ने आज बहत्तर िषि की उम्र में अर्ं तम िांिें लीं । आज बेटे बहु बेटी दामाद नाती पोते िे घर भरा हुआ था। ममता की छलकती गागर रीर्त तो नहीं हुई थी बर्ल्क अनभु िों की पररपक्िता की गठरी का भार इतना जयादा था र्क िह गागर र्किी िागर िे कम नहीं थी । बरिों पहले जब उन्नीि​िें िाल की उमर में जब बहु बनकर आयी थी, तब अल्हडपन के कारण कभी रिोई घर में र्बल्ली दधू की हांडी चट कर जाती, कभी एक ही िब्जी में दो बार नमक पड जाता तो कभी एक बार भी नहीं पडता । कभी चल्ू हे पर दाल उबलती उबलती जल जाती तो कभी कढी परू ी उबलकर कढाई िे नीचे बह आती । लेर्कन िैिाली की िाि ममतामयी रि गागर थीं, उन्होंने दर्ु नया देखी थी । िेिाली का अल्हडपन उन्हें भा गया था । िे िमझ गयी थीं र्क उनकी बहु अभी कच्ची माटी के लौंदे के मार्नदं है और कुिल कुम्प्हार की तरह तरािने का काम उन्हें ही करना होगा । के िल रिोई ही नहीं बर्ल्क अन्य स्त्री िल ु भ व्यािहाररक बातों में भी िैिाली बहुत भोली और मािमू थी लेर्कन उनके बेटे की जैिे ही आर्फि िे घर आने का ियम होता, िह चाय का पानी चढाती, कभी जलपान का प्रबंध भी 45 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

करती। यह िब देखकर उन्होंने जान र्लया था र्क अभी उनकी बहु िैिाली "अधजल गगरी छलकत जाय" लोकोर्क्त के र्लए िाथिक है लेर्कन एक र्दन ऐिा आयेगा जब िह पररपक्िता को प्राप्त करे गी । िमय के िाथ बहुत कुछ बदला । छोटा िा घर बडा घर बना। पररिार का र्िस्तार हुआ । िमय के िाथ कदम िे कदम र्मलाते हुए िैिाली कुिल गृहणी कुिल अन्नपणू ाि की र्मिाल िे निाजी जाने लगी । अब हर काम परफे क्िन के िाथ होता । एक र्दन ऐिा भी आया बच्चों के िादी िबं धं भी बने और बखबू ी िारे कतिव्य र्नभानते हुए गररमामयी िािू मा​ाँ की पदिी उिे भी र्मली । इि बीच िािू मा​ाँ ने इहलीला खत्म की । अब िमझदार अनभु िी िैिाली पर आदि​ि गृहणी का ठप्पा लग चक ु ा था लेर्कन भागते िमय के िाथ उम्र अब आगे जरूर बढ रही थी र्कंतु िरीर थकने लगा था या यंू कहा जाय र्क अब र्घिटने िा लगा था। िह स्ियं िादी के अल्हडपन िाले र्दनों की याद करके मस्ु करा पडती। उि र्दन िबु ह िे ही िांि लेने में कुछ तकलीफ हो रही थी और जैिे ही नहाने के र्लए नल खोला बि आगे कुछ


याद नहीं । हास्पीटल में कुछ देर को होि आया लेर्कन िरीर के र्पजं रे को मन का र्पजं रा छोडने को आतरु था । बि देखते ही देखते भरे परू े पररिार की स्िार्मनी अपने पर्त की बाहों में अंर्तम नींद में चली गई । आज जो देखो िही िैिाली के गणु गान करते थक नहीं रहा था । बरिों पहले कभी िाि ने उिे अधजल गगरी की छलकती गागर कहा था लेर्कन आज

िह जाते जाते इि लोकोर्क्त की दिू री अर्ं तम पंर्क्त भी िाथिक र्िद्ध कर गयी थी । यानी जीिन का पिू ािद्धि एिं उत्तराधि इि लोकोर्क्त में र्िमट आया थाअधजल गगरी छलकत जाय, भरी गगररया चप्ु पे जाय ।

ज्ञान का सागर डा​ाँ. कनक पात्रण गा​ाँि के बीचों बीच एक मर्ं दर था जहा​ाँ प्रर्तर्दन भागित कथा होती रहती थी । िहा​ाँ गा​ाँि के एक बहुत ही प्रर्िद्ध व्यर्क्त पं रामानंद िक्ु ल जी कथा प्रारंभ होने िे पहले ही आकर बैठ जाते और िभी आनेजाने िालों के िमक्ष अपने अतुल्य ज्ञान का बखान करते रहते । कुछ लोग अदं र ही अदं र र्चढते रहते, परन्तु कोई कुछ नहीं बोलता, िब र्ि​ि​ि होकर चपु चाप िनु ते रहते । एक र्दन तो हद तब हो गई जब िे पीठािीन महापर्ं डत श्री आचायि बालकृ ष्ण िास्त्री जी िे एक प्रिगं पर अनािश्यक रूप िे उलझ गए । िास्त्री जी ने उन्हें हर दृर्ष्टकोण िे िमझाने की कोर्ि​ि की, परन्तु िारी कोर्ि​िें व्यथि गई ं । तभी श्रोताओ ं के बीच िे एक िाधारण िा र्दखने िाला व्यर्क्त र्जिका नाम श्रीधर था, उठ खडा हुआ और उिने आचायि जी िे करबद्ध र्िनती करके कुछ बोलने की अनमु र्त मा​ाँगी । आचायि 46 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

जी ने उिे अपने पाि मचं पर बल ु ाया और िस्नेह बोलने की अनमु र्त दे दी । श्रीधर ने अपने अिाधारण ज्ञान और िाक्पटुता िे िबको आश्चयिचर्कत कर र्दया । आज तक लोग उिे एक िरल गृहस्थ जीिन जीने िाले र्किान के रूप में जानते थे, बहुतों को तो उिका नाम तक पता नहीं था। आचायि जी तो इतने गदगद् हो उठे र्क श्रीधर को उन्होंने गले लगा र्लया और बोले- श्रीधर, तमु िचमचु ज्ञान का िागर हो, तम्प्ु हारे र्जह्वा पर िाक्षात िरस्िती का र्निाि है, तमु महान हो पत्रु ! िहा​ाँ उपर्स्थत िभी लोगों ने जोरदार तार्लयों िे उिका अर्भनदं न र्कया । पर्ं डत रामानदं िक्ु ल जी तो जल - भनु गए, िे र्नरूत्तर थे । िे जैिे ही उठकर जाने लगे तो आचायि जी ने चटु की लेते हुए कहा- “जरा िर्ु नए िक्ु ल जी, आप जैिे लोगों के र्लए ही कहा गया हैअधजल गगरी छलकत जाय । र्जि र्िषय का पणू ि


ज्ञान हो उिी र्िषय पर िाद-र्ि​िाद करना चार्हए, अन्यथा अधरू े और र्छछले ज्ञान का बखान व्यर्क्त को हाँिी का पात्र बना देता है ।“

श्रोतागण तार्लया​ाँ बजा - बजाकर हाँिने लगे और िक्ु ल जी महाँु लटकाए िहा​ाँ िे घर की ओर चल पडे ।

धारणा दीपक कुमार िेगूसराय िादी की तैयारी में िभी लोग व्यस्त हुए हैं । चौधरी जी के दरू -दरू तक ररश्तेदार आए हैं । आए भी क्यों ना, आर्खर इकलौती बेटी की िादी है। द्वार पर िभी मेहमान बैठे हैं । "लगता है िाले िाहब की काफी पहचान है गांि में बडे-बडे नेता और बर्ु द्धजीिी पधार रहे हैं।" चौधरी जी के बडे जीजा महेंि बाबू बोले । "हां िह तो है उन्होंने पैिों िे जयादा इजजत कमाई है, कमाकर करते भी क्या, एक ही बेटी है िह भी चली जाएगी, मगर मकान बहुत बर्ढया है ।" तभी चौधरी जी के िाले की बेटा र्ि​िम फोन पर बात करते हुए िहां िे गजु रा । "देखो तो लेखक महोदय को, उनकी दो चार रचनाएं क्या छप गये अपने आपको िार्हत्य का र्िरमौर िमझने लगा है ठीक ही कहा गया है "अधजल गगरी छलकत जाय" महेंि जी बोले ।

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"ऐिा बात नहीं है ।" चौधरी जी के छोटे भाई बोले। "िही तो कह रहा हं भाई कम िे कम बात तो करता ।" "आप नहीं जानते हैं र्कतना अच्छा लडका है, िभी िादी में आए हुए और ये अपने दादा के र्लए परे िान हैं क्योंर्क िो बीमार है, र्ि​िम अपने दोस्त को ख्याल रखने के र्लए कहा है और फोन पर जानकारी लेता रहता है, आजकल के लडके तो अपने मा​ाँ बाप का तो ख्याल नहीं करते दादा की बात ही छोड दीजीए । पबजी के यगु में हर महीने अनाथ आश्रम में जाकर बच्चों की िेिा करता है।" तभी र्ि​िम आया है, िभी िे बडे के पैर छुए और अच्छे िे बातचीत की, जैिे कुछ हुआ ही नहीं । महेंि बाबू अपने आप में िर्मिंदा हो गए। बेकार ही र्किी के बारे में जाने र्बना गलत धारणा बना र्लया।


सतिं कार अलका जैन र्मस्टर िमाि हमेिा िबिे नम्रता िे बात करते ि बडों को देखते ही उनके पैर छूते । यह उनकी आदत में िार्मल था। इिे कुछ लोग उनकी कमजोरी भी िमझते । उनके िस्ं कार ही ऐिे थे ।

र्फर िे प्रमोिन होने िाली है । िैिे भी उनका पहनािा और बोलचाल का तरीका बहुत ही िभ्य था । बहुत ही िाधारण तरीके िे रहते थे । दीप देखता रह गया । दीप िकपकाया और कहने लगा ।

दिू री तरफ उनका र्मत्र दीप बोलने में बेबाक छोटे -बडे का कोई र्लहाज न था । उिे पैिे का भी बहुत घमडं था । बारिीं क्लाि भी बडी मर्ु श्कल िे कर पाया । िामार्जक िमारोह हो रहा था र्जिमें िमाज के बहुत िे जाने-माने लोग खडे हुए बातचीत ि हाँिी मजाक कर रहे थे । तभी दीप भी िहा​ाँ आया ि िमाि जी को पैर छूते देख व्यंलय के रुप में बोलने लगा- “अब तो तम्प्ु हारी प्रमोिन हो गई । मैनेजर कब बन रहे हो ।“

बधाई हो! बधाई

िमाि जी तब भी मस्ु कुराए और बोले मैनेजर हाँ । दिू रे र्मत्र ने बताया ये चीफ मैनेजर पहले िे हैं ।

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हो! अपने एक र्मत्र िे कहने लगा । मैं तो िोच रहा था क्लकि या ऑर्फिर होंगे, क्योंर्क उन लोगों को िब की चापलिू ी करने की आदत होती है और पैर पकडने लगते हैं । दोस्त ने भी डा​ाँटकर दीप िे ही कहा“तेरे ऊपर तो "अधजल गगरी छलकत जाय" िाली कहाित लागू हो रही है । पता कुछ नहीं, अपने आप िे कुछ भी िोच लेता है ।“


अधजल गगरी छलकत जाय उतरा शमाथ गोमती ने बहु िे कहा- "बेटी पीढी ी़ ले कर बैठ पैर भार मत बैठ। बहु ने हाथ झटक कर झझंु ला कर कहा- "मझु े िब पता है !" गोमती तो इिर्लए ध्यान रख रही थी र्क बहु को बच्चा होने िाला था । िह भाग कर िीढीयां चढने लगी । गोमती ने टोका- "बेटी िीढी ी़ मत चढ, मैं ला देती हाँ जो तझु े चार्हये । उिने र्फर अगं ल ु ी िे मना कर र्दया बोली"क्यंू मझु े तगं कर रही हैं आप? मेरी मा​ाँ ने मझु े िब िमझा रखा है । गोमती चपु हो गई, िह भारी-चादरें धोने लगी । बेटा काम िे आया । बहु रोने लग गई- "मेरी तो कमर ददि कर रही है ।" बेटा मा​ाँ के ऊपर गस्ु िा होने लगा- "मा​ाँ तमु ने हटाया नहीं इिे काम करने िे देखो इिकी कमर ददि

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कर रही है । भर-भर बाल्टी छत पर कपडेी़ धो कर ले जाती रही ।" मा​ाँ बोली बेटा- "मैने इिे हटाया था, ये कहती मेरी मा​ाँ ने मझु े िब िमझा रखा है । हस्पताल िे दिाई ले कर आये । बडी मर्ु श्कल िे अबाि​िन होने िे रुका । बहु पछता रही थी । डा० ने बैड रै स्ट बोला, टीके दिाईया​ाँ। और िब िमझा रहे थे"देखो अगर बडों की बात मान लेती तो तुझे इतनी तकलीफ न उठानी पडती । बहु िर्मिंदा हुई । और िाि िे माफी मा​ाँगने लगी- "मा​ाँ जी मझु े तो िमझ नहीं थी, आप बडेी़ हो मझु े माफ कर दो । अब िे मैं आप का कै हना मानाँगू ी, आप को िब पता है, आप बजगु ि हो, मैंने आपका र्दल दख ु ाया, मझु े ज्ञान नहीं था । िाि ने छाती िे लगा र्लया । िह मन मे िोच रही थी- अधजल गगरी छलकत जाए ।


अधजल गगरी छलकत जाए त्रिजय िहादुर त्रतवारी ि़ोकाऱो

र्बजय बहादरु र्तिारी िरीय प्रबन्धक (र्ित ि लेखा) भारतीय इस्पात प्रार्धकरण(िेल) बोकारो इस्पात नगर, झारखंड एच एफ-11, र्िटी िेंटर माके ट िेक्टर -4,र्पन 827004 मोब 8986872854 िैक्षर्णक योलयता : एम एि िी (रिायन) एम बी ए(र्ित), स्नातकोत्तर र्डप्लोमा(एच आर) िार्हत्य ि लेखन : प्रकार्ित पस्ु तकें >A 1. श्रम ि िृजन (औद्योर्गक क्षेत्र िे जडु ी कर्ितायें) 2. पररित्यि (दोहे) 3. औगेर्नक थ्रु मेकर्नज़्म(औरगर्नक के र्मस्ट्री) B. 300+कर्ितायें अमर उजाला ि अन्य पटलो पर प्रकािीत C. र्िक्षा, प्रबंधन, िरु क्षा, गणु िता,पयाि​िरण, राजभाषा पर लेखन ि प्रकािन हेतु कई रार्ष्ट्रय िंस्थानों द्वारा परु स्कृ त। D भारतीय िार्हत्य पररषद, बोकारो का पदार्धकारी 50 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय


अर्तियोर्क्त का ढोल बजाए

हल्के , थोथे, जल उपलाए ।

करे कम, जयादा बतलाए

अधजल गगरी छलकत जाए ।।

अल्प ज्ञान पा खल इतराए अधजल गगरी छलकत जाए ।

अपने महंु , र्मयां र्मट्ठ स्िाथी, स्िा​ाँगी, र्मथ्यार्पठू

गरु​ु िगं कुतकि ,ित्य का खडं न

िैिाखनदं न गलतफहमी माने

स्ियं का झठू ा. मर्हमा मडं न

िख ु ी घाि चरा हुआ जाने

गलत स्रोत की, िहज कमाई

र्बन खाये ही जाय आघाए ।

छोटी नदी जल भरी उतराई

अधजल गगरी छलकत जाए ।।

थोडे धन पा, खल बौराए । अधजल गगरी छलकत जाए ।।

र्गरर-िम गभं ीर होते पणू ि ज्ञानी िांत- र्चत और मीठी िाणी

करे मख ू ति ा, िमझे चतरु ाई

िम्प्पणू ति ा, गरु​ु त्ि,नम्रता िाहक

थोथी दलील, बेिजह लडाई

झक ु ते िृक्ष, होके फल धारक

रचता झठू , प्रपंच, भौकाल

भरी गगररया चपु के जाए ।

स्िप्रचार, एकमात्र खयाल

अधजल गगरी छलकत जाए ।।

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अधजल घघरी छलकत जाय छन्या ज़ोशी

उक्त महु ािरा र्किी को देखकर, पढकर या िनु कर अपने-अपने र्हिाब िे िमीक्षा पर र्कया जाता है । मझु े थोडा र्लखना-पढना आता है । र्गनी-चनु ी पोस्ट भी इि मचं पर आ ई। आप िभी की रचना पढकर मन फुदक-फुदक करता र्क ऐिा तो मैं भी र्लख िकती हाँ । तीन-चार रचना मचं पर आ गई । कमेंट्ि भी र्गनेचनु े पर मैं स्ियं को "टाइप टेन" िमझती हाँ कारण र्क कुछ तो ज्ञानी हाँ .... ये िब तो ठीक है पर र्गने-चनु े कमेंट्ि का भी जिाब कै िे द.ंू ...यह आता नहीं ।

अच्छा, बर्ढया, िन्ु दर का जिाब तो आता है पर इिके अलािा हो तो.... आज ही िबु ह-िबु ह चाय का कप हाथ में र्लए कल की मेरी हास्यव्यंलय रचना पढ रही। एक र्िद्वान िजजन का कमेंट्ि पढा र्क- 'इिको परीक्षक की दृर्ष्ट िे देखें ।' अब मैं तो फंि गयी....परीक्षक की दृर्ष्ट िे कै िे देखंू .. मैं लेखक र्बलकुल नहीं । अब आप पाठक गण कुछ भी िमझो, मैं तो ज्ञानी बन गई । र्लखना तो आ गया भले ही प्रर्तर्िया का जिाब न आये.....मैं टाप टेन....मेरी िमीक्षा मैंने ही कर ली.... अधजल जल घघरी जो ठहरी....

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िडि़ोली हेमा त्रिवेदी नेहा मेरी बहुत परु ानी र्मत्र है..| लेर्कन लगता है र्क िेखी बघारना उिकी र्फतरत है, र्फर र्बना कुछ िोचे- िमझे कही भी कुछ भी िरू ु हो जाती है | िादी के बाद कल पहली बार र्मली..., िरू ु हो गई अपने ि​िरु ाल िालों की बडाई.. अपने िाि ि​िरु की तारीफ पर तारीफ.., बोली मेरे ि​िरू जी तो इतने पैिे िाले है र्क हमारे घर में दिदि नौकर चाकरी करते है..|मझु े र्बस्तर िे उतरने तक नही र्दया जाता..| रिोई में खाना बनाने के र्लए चार -,चार महारार्जन लगी है..|िािू मा​ाँ तो मझु े पलको पर बैठाती है..र्दन भर बह ये खा ले या ये पी ले..|मेरे ि​िरू जी की योलयता के तो क्या कहने..डबल एम.ए िो भी अग्रं ेजी जैिे र्िषय में..उनकी अग्रं ेजी के तो अग्रं ेज भी कायल थे | र्दल्ली जैिे िहर में चार चार कोर्ठयां है..| मैं उिे क्या बताती र्क कल ही उिकी मम्प्मी र्मली थी कै िे रो-रो कर. मझु े बता रही थी र्क नेहा ने तो अपनी र्जन्दगी बबािद कर ली..| अपने आप लडका पिदं करके खदु ही िादी कर ली | ि​िरू िदर

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बाजार में.एक अढार्तये के यहां गल्ला तौलने का काम करते है..| नेहा का पर्त तो बेरोजगार है..िाि बेचारी र्िलाई-कढाई करके कै िे अपना घर चलाती है..| िही जानती है | नेहा ने तो खदु अपने पांि में कुल्हाडी मार ली..| यह कह कर िो रोने लगी | मैने र्किी तरह उन्हें चपु कराया..| और आज ही नेहा मझु े र्मल गई, िो कै िे अपनी कमी को छुपा कर मझु िे िरािर झठु बोल रही थी | नेहा का हाल आज आधे भरे घडे के िमान था. ..| र्किी र्िद्ध परू ु ष ने र्कतनी गहरी बात कही है र्क "अधजल गगरी छलकत जाए" इि कहाित का जन्म र्किी ज्ञानी के कथन िे ही हुआ होगा|र्कतनी िटीक बात कही है र्क घडा आधा भरा होगा तो पानी तो छलकें गा ही िाथ में आिाज भी करे गा,िही घडा परू ा भरा होगी तो पानी र्स्थर पडा रहेगा और आिाज भी नहीं करे गा |


सालसा क्लास शात्रलनी दीत्रक्षत (लखीमपरु खीरी)

"परी बेटा मेरा मोबाइल ढूंढो देखो ररंग िनु ाई दे रही है, र्मल नही रहा " "लीर्जए मम्प्मा ये ।" "थैंक्यू बेटू ।" "ओह! यह तो हीना का कॉल आ रहा है ।" -र्निा फ़ोन देख खदु िे बोली । "हैल्लो र्डअर ! िरू ी िरू ी मैं भल ू गई थी, बरु ा मत मानो प्लीज आज आऊाँगी पक्का तम्प्ु हारा िालिा डांि क्लाि देखने ।" र्निा की मल ु ाकात हीना िे एयरपोटि के िेर्टंगलौंज में हुई थी | दोनों िहेर्लयां बन गई थी, क्योंर्क बातों बातों में पता चल गया था दोनो को डांि में रुर्च थी | 54 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

र्निा ने भरतनाट्यम में र्ि​िारद कर रखा था और भी िब र्फल्मी डांि िेस्टनि, क्लार्िकल स्टाइल न जाने क्या क्या िह करती रहती थी पर यह िब उिके िौक तक ही िीर्मत था कभी कोई क्लाि नही िरू ु करी थी उिने र्िखाने की, एक िालिा ऐिा था र्क उिको कम आता था तो उिके बारे में िोचती कभी यू ट्यबू में देखती उिको करती| हीना िालिा डांि की क्लाि चलाती थी | काफी बच्चे आते थे उिके पाि| र्निा और हीना बहुत बार फोन िे बातें करती िह र्निा को बताती की उिके क्लािेज र्कतने र्हट है उिको िालिा में बहुत कुछ आता एक बार उिके क्लाि में आ कर देखे तब जानेगी र्क कै िे ठीक िे उि डांि र्िधा को कर िकते है और चाहे तो उि िे िीख भी ले | र्निा को लालच भी आता र्क िह टाइम र्नकाल के कुछ र्दन उिकी क्लाि में िीख ही ले तो अच्छा रहेगा| हीना िे िह प्रभार्ित भी थी र्क िह अपने िौक को ही जररया बना कर इतने पैिे भी बना लेती है | आज िाम को जरूर जाएगी देखने उिकी डांि क्लाि ऐिा िोच कर िह काम मे लग गई | हीना बडे प्यार िे गले र्मली और बोली"मैडम अब


आप देखना मेरे जलिे और मैं आप को भी र्िखा दगाँू ी |" उिके र्िद्याथी आने लगे धीरे धीरे परू ा हॉल भर गया |

हीना अपने लैपटॉप पर यू ट्यबू चालू कर के बच्चों के िामने एक्िन करती और िह िब एक िाथ उिको देख कर करते | र्निा बोर हो रही थी र्क ये िब कै िे कर रही है |

पर यह क्या? यह तो िब र्कच्ची र्पच्ची हैं| र्निा िोच में पड गई िारे बच्चे चार िे िात या आठ िाल के बीच के थे |

िह बोली- "रुक मैं र्दखाती हाँ ऐिे करते है ये िाला एक्िन ।"

ऐिा लग रहा था माता र्पता को एक-दो घटं े का िक़्त िर्निार की िाम को खदु के र्लए चार्हए होगा तभी बच्चों को यहा​ाँ भेज र्दया हो |

हीना ने उि को चपु करा र्दया "नही र्डअर मझु े आता कै िे िीखाना इतने टाइम िे क्लाि चला रही मेरा नाम है | तुम अभी नही कर पाओगी |" र्निा चपु के िे र्नकल आयी मन ही मन बदु बदु ाते हुए-

नाको में र्जन बधं ु के नाक बडे है, पैंट र्गरी और र्जनके बाल खडे है।

होना जाना यहा​ाँ इनिे कुछ नही है, िनु ते कुछ नही कान पे इनके बाल पडे है।

राय चंद जी ये खबू देते िबको है राय, जैिे अध जल गगरी छलकत जाय।

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ि़ोहरा की िातें रेणुका त्रसन्हा 'धारा मर्हला िर्मर्त,' का आि पाि के क्षेत्रों में र्ि​िेष प्रभाि था। िहां आये र्दन मर्हलाओ ं द्वारा कोई न कोई कायि िम होता ही रहता था । कभी गरीब बच्चों में कौपी र्कताब बांटन कभी ठंड में कम्प्बल बांटना, तो कभी नजदीकी स्थानीय मेले में अपना स्टॉल लगाना । िर्मर्त में िदस्यों की िंख्या भी तीि िे जयादा ही थी । छोटे मोटे िामार्जक कायों में िर्मर्त की मर्हलाएं बढ चढ कर र्हस्िा र्लया करती थीं । एक र्दन एक नयी िदस्य िर्मर्त में िार्मल होने के र्लए आई।ं िर्मर्त के अध्यक्ष महोदया द्वारा उनका िाक्षात्कार र्लया गया । र्जि​िे पता चला र्क उनका नाम रीता बोहरा है । उनके पर्त स्टेट बैंक में मैनेजर हैं । चार मर्हना पहले उनका तबादला यहां हुआ था । रीता बोहरा के बात िे िहा​ाँ उपर्स्थत िभी मर्हलाओ ं को पता चल गया था र्क ये मर्हला जयादा पढी-र्लखी तो नहीं है लेर्कन एक दबगं र्मजाज की मालर्कन जरूर है । अध्यक्ष महोदया को हर बात का जिाब उंची आिाज में िमझा-बझु ा कर दे रहीं थीं जैिे- अदालत में के ि लड रहीं हों । नहीं चाहते हुए भी अध्यक्ष महोदया ने उन्हें िदस्यता फामि देते हुए कहा- "इि फामि को भरकर पाचं िौ रुपये िदस्यता िल्ु क के िाथ जमा कर दीर्जए । हर पन्िह र्दन में िर्मर्त की बैठक होती है उिमें आइएगा और कोई अर्तररक्त कायि​िम होने पर उिमें भी िार्मल होना जरूरी है । िमय - िमय पर िभी को कुछ अनदु ान भी देना पडता है ।" 56 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

रीता जी बैठक में आते ही िभी को जोर िे गडु मौर्निंग बोली । र्फर फामि पैिा जमा करने के बाद जैिे ही कुिी पर बैठी जोर िे हिं ने लगी । अर्नमा जो एक िदस्य थी पछ ू ी- "आप हिं क्यों रही हैं?" रीता जी ने जिाब र्दया- "अभी िाम के चार बज रहें हैं और मैं गडु मौर्निंग कह रही हाँ हिं ू नहीं तो क्या करूाँ ।“ अर्नमा जी ने उत्तर र्दया- "पहली बार र्मलने पर गडु मौर्निंग बोल िकती हैं ।“ रीता जी तरु ं त बोल उठी- "लेर्कन हमलोंग फस्र्ट बार थोडे ही र्मल रहे हैं। हम दिू री बार र्मल रहे हैं । रीता जी को िाक्य के बीच में अग्रं ेजी िब्द घिु ाने की आदत परु ानी थी । िाथ ही बोलतीं भी जयादा हैं । दिू री िदस्य िोमा ने पछ ू ा- "आपने पढाई कहािं े परू ी की है?” रीता जी बोलीं- "स्कूल कॉलेज िे और कहां िे । पढाई तो स्कूल कॉलेज में ही होती है ।“ िोमा जी धीरे िे जी हां कह कर चपु हो गई। िभी िदस्य चपू बैठे थें लेर्कन रीता जी कहां चपु बैठने िाली थीं । बोल उठीं- "जानती हैं मेरे र्मस्टर का बैंक में बहुत रोब है । उनके प्रमोिन (परर्मिन) के बीना िहां एक पता भी नहीं र्हलता है ।"


मोहनी जी बोल उठीं- "हिा चलती तब भी नहीं?" िभी मर्हलाएं हिं ने लगी । रीता जी िमझाते हुए बोली- "आप लोग मेरे बात का र्मनींग नहीं िमझीं ।“ इि तरह िे दो महीने बीत गए । एक र्दन िर्मर्त में खाने र्खलाने का कायि िम बनाया गया । यह तय हुआ र्क अगले बैठक में िभी मर्हलाएं अपने घर िे कुछ - कुछ बना कर लायेगी और िब र्मलकर खाएगं े । रीता जी को िब्जी बनाकर लाने का र्जम्प्मा िौंपा गया । र्नर्श्चत र्दन तय र्कए अनिु ार िब लोग जो लाना था लेकर आये । लेर्कन रीता जी खाली हाथ आयीं। अध्यक्ष महोदया के पछ ू ने पर उन्होंने कहा र्क मेरा यह पहला मौका है इिर्लए मैं पहले िबका लाया हुआ िमान देखगंू ीं र्फर लाउंगीं । आज के र्लए मैंने होटल िे िब्जी मंगिाया है । अभी लेकर आयेगा । जयादा टेंिनाए की जरूरत नहीं है ।“ िैिे अब िर्मर्त की िभी मर्हलाएं िमझने लगीं थीं र्क रीता जी "अधजल गगरीछलकत जाए" महु ािरे के चररताथि करने िाली मर्हला हैं । उनके उल्टे िीधे र्िचारों को लोग मनोरंजन का िाधन मान र्लया था । उनिे िर्मर्त में एक जान िी आ गई थी । र्बना िजह िबको हिं ने मस्ु कुराने का मौका र्मलजाता था। िातािरण हल्का और खि ु नमु ा बना रहता था । मर्हला िर्मर्त में कई तरह के िमान भी बनाया जाता था । जैिे- िॉल, स्िेटर, मफलर, गर्ु डया, गल ु दस्ता, पि​ि, बैग, कई तरह के पोस्टर और पेर्न्टंग आर्द । 57 | सार्थक पत्रिका/अधजल गगरी छलकत जाय

िर्मर्त कक्ष िे थोडी दरू पर एक मैदान था । जहा​ाँ हर िषि स्थानीय चीजों का मेला लगाया जाता था । उि मेले में मर्हला िर्मर्त भी अपना स्टॉल लगाती थी । िर्मर्त के िदस्यों द्वारा बनाया गया िमान स्टॉल लगाकर बेचा जाता था। लेर्कन दाम अर्धक होने के कारण कोई खाि िमान उनका नहीं र्बकता था । मेला लगा उिमें मर्हला िर्मर्त का स्टॉल भी लगा । मेला तीन र्दन के र्लए ही लगता था । आज मेले कादिू रा र्दन है और मर्हला िर्मर्त का कोई िमान नहीं र्बका है । उनी िमान बहुत जयादा था और तीन िाल िे उनका एक भी िमान नहीं र्बका है। इि बार भी र्बकने का आिार नहीं देखकर िभी िदस्य र्चंर्तत हैं । रीता जी को इि बात की जानकारी हो गई । िे िीधे अध्यक्ष महोदया के पाि गयीं और बोलीं र्क ऐिा क्या है िामानों में जो आप लोगों ने इतना दाम रखा हुआ है । िमान कै िे र्बके गा? और जयादा र्दन रखने िे िमान का चमक र्फका हो जायेगा । र्फर तो और भी नहीं र्बके गा । आप लोग कर्हए तो मैं आधे दाम में र्बकिाने का कोर्ि​ि करुं। बहुत र्िचार र्िमि​ि के बाद रीता जी को उनी िमान आधी दाम में र्बकिाने का इजाजत र्मल गया । अब रीता जी स्टॉल िे बाहर खडी होकर दि​िकों को बल ु ाने लगी । ऊन िे बना एक िे बढ कर एक िमान बि आधे दामों में ले जाईए । दक ू ान में ऊनी िमान लेने िाले आने लगे । देखते ही देखते आधा ऊनी िमान र्बक गया । िभी िदस्य रीता जी का प्रिंिा करने लगे ।


इि तरह िे तीन िाल बीत गये । रीता जी के पर्त की तबादला कहीं और हो गया । आज रीता जी िभी िे र्बदा लेने आयी हैं । उनके आने िे िर्मर्त में

एक खि ु नमु ा महौल बन गया था । आज उनके जाने िे िर्मर्त िनु ी और अधरु ी लग रही है । िभी िदस्यों ने अश्रपु णू ि भाि िे रीता जी र्बदाई दी ।

अधजल गगरी छलकत जाएिं कल्पना यादव ये टीिी िाले बढाने अपनी टी आर पी बना देते है र्किी को भी अपनी मनमजी िे भगिान र्किी को िैतान और र्किी को महान इिं ान और जब इि पर पढे र्लखे खदु को ज्ञानी ध्यानी िमझने िाले इिं ान भी र्बना परखे र्बना िोचे िमझे कर लेते है इि पर र्िश्वाि तब िो देते है अधजल गगरी छलकत जाएं िाले अपने ज्ञान की पहचान

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अधजल गगरी छलकत जाएिं कल्पना यादव

कहते है िो ईश्वर को एक

दािा तो करते है ईश्वर को जानने का

लर्कन हकीकत मे

पर हकीकत मे ना तो ये ईश्वर को

लडते है िो आपि मे ही

पहचानते है ना ही मानते हैं

ईश्वर के अनेक नामो पर

अधजल गगरी छलकत जाएं की तरह

रक्त तक बहा देते है िो

र्िफि िेिभषू ा पहनािे और नारो िे ही

अपनी पिंद के नाम को

छलक छलक कर ये अपनी आस्था र्दखलाते हैं

भगिान बतलाने के र्लए ईश्वर के बनाए इिं ानो का दरअिल मे ये िही लोग है जो

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सही राह रत्रश्म ताररका घर के िभी कायि िर्ु चता फुती िे र्नबटा रही थी । िोमेि ने फोन पर कहा था र्क मा​ाँ बाबू जी परे िान हैं तो र्मलने का रहे हैं । िर्ू चता िमझ गई थी र्क ननद की बेटी र्मताली के र्िलर्िले में आ रहे हैं। उडती उडती खबर र्मली थी र्क ि​िरु ाल में कुछ िमस्याओ ं के तहत िो मायके लौट गई है । "बह, तमु ही बताओ । र्मताली का भला क्या दोष जो ि​िरु ाल िाले उिे िार्पि लाने को तैयार नहीं ।" र्चंर्तत स्िर में ि​िरु जी ने पछ ू ा। "माफ कीर्जये बाबूजी, र्मताली का किरू तो है भी नहीं र्जतना आपका या ननद जी का है ।" र्हम्प्मत करके िर्ु चता ने अपनी बात रखी । "क्या मतलब तम्प्ु हारा ?" उखडे स्िर में बाबजू ी ने बह की ओर देखा । "बाबजू ी, के िल र्कताबी ज्ञान िे इिं ान िमझदार नहीं बनता । आपने अपनी बेटी िे िहानभु र्ू त तो र्दखाई लेर्कन हालातों िे िमझौता करना नहीं र्िखाया । िो आप पर इतनी र्नभिर हो गई ं र्क उनकी गृहस्थी आपके अनिु ार चलने लगी । यही र्नभिरता उन्होंने र्मताली में रोप दी । जब भी मायके आतीं तो उन्होंने न हमिे कभी लगाि रखा न ही र्किी और ररश्ते नाते िे । आप ने पररर्स्थर्तयों को िमझने की

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बजाए र्मताली को पढाना ही एक मात्र उद्देश्य बना र्लया ।" "तो बह इि में गलत क्या है ? तम्प्ु हारी ननद तो पढ नहीं पाई तो लगा र्क उिकी बेटी तो र्िक्षा ग्रहण करे । िक़्त का तक़ाजा तो यही कहता था ।" चाय का कप मेज पर रखते हुए ि​िरु जी ने कहा । "बाबजू ी, र्िर्क्षत होना गलत नहीं लेर्कन जीिन में व्यिहाररक ज्ञान भी अर्त आिश्यक है । र्मताली को अपनी र्िक्षा का गमु ान था और उिी के चलते उिने ि​िरु ाल में नौकरी करने की र्जद की जबर्क आपको मालमू है र्क उिके ि​िरु ाल िालों ने ररश्ता होने िे पिू ि ही कह र्दया था र्क दो िाल तक िो नौकरी करने नहीं देंगे ।" "अब इतनी पढाई र्कि काम की अगर उिे नौकरी करने की छूट न र्मले । ये भी कोई बात हुई भला ? तमु िीधा बताओ र्क हमारे िाथ र्मताली के यहा​ाँ बात करने चलोगी या नहीं?" "आप कहेंगे तो चलेंगे बाबजू ी । लेर्कन क्या कहेंग,े क्या पछ ू ें गे उनिे ?आप को याद है न र्क


र्मताली के पर्त ने कहा था र्क हमारे घर में नौकरी करने की मनाही नहीं लेर्कन उिकी बडी भाभी के गभि​िती होने और उिकी मा​ाँ की तबीयत खराब रहने की िजह िे उिे कुछ िमय प्रतीक्षा करनी होगी । तब तो आपने रजामदं ी र्दखाई और अब आप र्मताली के गलत कदम में उिका िाथ दे रहे हैं जैिे आपने दीदी की गलत बातों में िाथ र्दया ।" काफ़ी देर िे बाबजू ी की बातें िनु िोमेि ने अपनी खामोिी तोडी । "िोमेि ..तमु हम पर ही इल्जाम लगा रहे हो। िमि करो कुछ।" "इल्जाम नहीं बाबजू ी, हक़ीकत बता रहाँ हाँ जो िायद आपको कडिी लग रही है। इि उम्र में आकर अब दीदी को तो िमझा नहीं िकते लेर्कन ि​िरु ाल िालों िे िामंजस्य नहीं र्बठाया तो र्मताली का भी िही हाल होगा जो दीदी का ...! आगे आप िमझदार हैं ।" "िाह ये अच्छा है । हम मदद मा​ाँगने आये थे र्क बच्ची की गृहस्थी बनी रहे। नहीं जाना तो न िही । चलो िोमेि की मा​ाँ, हम ही चलते हैं ।"

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"बाबजू ी याद रर्खये, र्मताली को अपनी गृहस्थी िभं ालने की खदु कोर्ि​ि करनी होगी अपनी व्यथि की र्जद छोडकर । उिके ि​िरु ाल में उिका व्यिहार ही काम आएगा उिकी र्डग्री नहीं ।" िोमेि की बात िनु बाबजू ी र्फर िे बैठ गए। भीगी आख ं ों िे कभी बच्चों की तरफ देखते तो कभी पत्नी की तरफ । नार्तन के जीिन को ऊाँची र्िक्षा िे ि​िं ारने का प्रयाि र्कया था लेर्कन दर्ु नयादारी र्िखाना भल ू गए थे । एक दीघि र्नःश्वाि ले बेटे की ओर मख़ ु ार्तब हुए । "अत्यर्धक मोह में अपनी बर्च्चयों को िही राह न र्दखा पाया। एक ..बात कह िकता हाँ क्या तमु दोनों िे ?" भीगे स्िर में बाबजू ी ने पछ ू ा। "कर्हए न बाबजू ी.!" बाबजू ी के दोनों हाथों को थाम र्लया िोमेि ने । "जीिन के इि मोड पर आज मझु े िमझ आ रहा है र्क अधजल गगरी छलकत जाए। र्मताली को िही राह र्दखानी बहुत आिश्यक है बेटा और िो तम्प्ु हीं र्दखा िकते हो ।"


त्रदखावा रत्रश्म लता त्रमश्रा

रर्श्म लता र्मश्रा र्िक्षा-एम ए र्हदं ी प्रकािन दो भजन िग्रं ह एक कव्यिंकलन, 3 िाझा काव्य िंकलन प्रिारण आकाि िाणी िे दो कहार्नयां, 8 भजनों की िी डी िम्प्मान- काव्यगौरि, मत प्रेरणा, अरुर्णमा, बेस्ट इडं ीज अन्य । िम्प्प्रर्त : अिकाि प्राप्त र्िर्क्षका के िमाज मे उपाध्यक्ष, लायन, लायनेि क्लब में िहभार्गता, जी डी फाउंडेिन में प्रदेि अध्यक्ष

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अधजल गगरी छलकत जाए, भरी गगररया चपु के जाए । आधा ज्ञान खतरनाक कहाये, ज्ञानी िंयम छोड ना पाए । कागज तेरे पानी ऊपर, हल्के की र्निानी िा, पत्थर डूबे पानी भीतर, िजनदार अर्भमानी िा । नर्दया कूप उफ़न पडते हैं मयािदा िागर ना छोडे । देंन हार को और है िोच के , दानी नैना नीचे मोडे । िेखर्चल्ली ओ ं के र्कस्िे गजब हैं, बोतल में भी हाथी घिु ा दे अजब हैं । अहक ं ार रािण को हराए, दौडे खरगोि, कछुआ धीरे आए । आंर्धयां चले िीना तान कर, दीप भी जले र्हम्प्मत बांधकर । चोट खाकर पत्थर िोर मचाए, र्जतनी चोट खाए िोना र्नखर जाए । बडबोले कभी र्किी के काम ना आए, तभी तो कहते हैं"अधजल गगरी छलकत जाए"

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अधजल गगरी छलकत जाए अिंजू खरिदिं ा त्रदल्ली

अंजू खरबंदा अध्यार्पका, लेर्खका, रे र्डयो आर्टिस्ट जन्म र्तर्थ : 31 अक्तूबर जन्म स्थान : र्दल्ली िैक्षर्णक योलयता : स्नातक (कला) कायि : A+ एजक ु े िन िेंटर भाषा ज्ञान : र्हदं ी, इर्ं ललि, र्िरायकी रूर्चया​ाँ : िार्हत्य, पयिटन, पाककला िान्ध्य टाईम्प्ि, िार्हत्य एक्िप्रेि, गोस्िामी एक्िप्रेि िमाचार पत्र में कहार्नया​ाँ ि कर्िताएं प्रकार्ित यटू ् यबू चैनल: अंजू खरबंदा फे िबक ु पेज: पोएट्री लि फे िबक ु ग्रपु लघक ु था के पररंदे में िर्िय

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अधजल गगरी छलकत जाए अथाित् जब घडा आधा भरा होता है तो छलकता जयादा है और आिाज जयादा करता है परन्तु भरा हुआ घडा कम आिाज करता है । माने नादान व्यर्क्त र्दखािा जयादा करता है जबर्क र्िद्वान व्यर्क्त चपु चाप अपने कायि को अजं ाम देने मे जटु ा रहता है। अपने आि-पाि अक्िर हमे ऐिे व्यर्क्त आिानी िे र्मल जाते हैं जो र्दखािे को ही खि ु ी मानते है….. तो िरू ु करती हाँ पहले र्कस्िे िे"िैन्की ओ िैन्की ! कम हेअर ऐडं इट फूड !" -रानी ने पाकि में खेल रहे अपने बेटे को आिाज लगाई ।

र्िखा मस्ु कुराते हुए बोली और मन ही मन हाँिते हुए आगे बढ गई । "हुहाँ ! पता नही लोग मेरे मॉडनि होने िे क्यों जलते हैं ।" रानी झझंु ला उठी । ये था मेरे पडोि में रहने िाली "र्मिेज रानी िमाि" का र्कस्िा र्जन्होने गा​ाँि िे िहर आते ही टोटली अपनी काया पलट कर ली, र्जन्हें खदु को रानी कहलिाना र्बलकुल पिदं नहीं, बेटे का नाम भी "िैंकी" रखा भले ही खदु िे न बोला जाए, पर्त को "हनी हनी" कह जब गली िे र्नकलती है तो बेचारे िीधे िाधे िे पर्त महोदय इि र्दखािे िे र्खर्िया िे जाते हैं । लीर्जये हार्जर है दिू रा र्कस्िा हमारे िेर बहादरु आजकल के नौजिानों का ! भले ही अग्रं ेजी में हाथ टाईट हो पर र्दखािा तो करना ही है न…… अपना रौब तो झाडना ही हैं न! ऐिी ऐिी इगं र्लि बोलते हैं र्क पछ ू ो मत…..बंदा र्िर पकडकर बैठ जाए ।

"आया मम्प्मी!" -नन्हा िैंकी खेलते खेलते ही र्चल्लाया । "र्कतनी बार िमझाया तझु े 'आया मम्प्मी' नहीं बोलते । क्या इिर्लए तुझे इगं र्लि मीर्डयम स्कूल में डाला है । बोलते हैं - ओके मम्प्मा ! िमझा !" रानी ने डपटते हुए िैंकी को िमझाया । "ओके मम्प्मा !" मािूम िा िैंकी आाँखे झपकाता िा बोला । "अरे रानी! क्या बातचीत चल रही है मा​ाँ बेटे में!" -पाकि के पाि िे गजु रती र्िखा ने पछ ू ा तो रानी ने बरु ा िा महाँु बनते हुए कहा- "र्कतनी बार आपको कहा है र्क मझु े रानी न कहा करें , र्मिेज िमाि कहा करें ।" "ओहो! माफ करना आदत नहीं है न तो भल ू जाती ह,ाँ चलो आगे िे ध्यान रखगू ी ! अब खि ु !"

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"अरे ! तम्प्ु हें नही पता ? बट आई नो दैट र्क ये काम कै िे होगा । तमु डोंट िरी! मैं हाँ न !" र्हन्दी तो अपने हाल पर रोती ही है बेचारी अग्रं ेजी भी खनू के आिं ू बहाती होगी । अब र्कस्िा िर्ु नये रामप्रिाद जी का ! ऑर्फि के हेड, खदु को कताि धताि िमझने िाले! क्या मजाल र्क कोई उनके आगे चू चपड भी कर जाए। जेब गमि करके नौकरी तो लग गई । दादार्गरी करके नेता टाईप बन गए । ऑर्फि के काम काज का कोई ज्ञान नही है बि र्दखािा ही आता है इनको ।


"िर इि फाइल का क्या करना हैं?" अगर गलती िे इनिे पछ ू ा र्लया जाए तो ये बगले झा​ाँकने लगते हैं ।

आ धमकते है और र्िफि आराम िे खाना िाना खा कर और चाय िाय पीकर ही जाते हैं ।

"ये मेरा काम है क्या ! जाओ क्लकि िे पछ ू ो !" दहाडते हुए जिाब देते हैं ।

कुल र्मलाकर ये िीखा र्क जीिन में "I KNOW ALL" र्िंड्रोम िे दरू रहना चार्हए.... क्योंर्क.... इिी में भलाई है दोस्तों !

"पर िर िो तो जर्ू नयर.... !" "हम यहा​ाँ फाइलें देखने नही आते, िमझे या िमझाऊाँ!" दो चार गर्लयों के िाथ र्पच िे पान की पीक दीिार पर थक ू ते हुए बेरुखी िे उनका करारा जिाब कानों में पडता है । र्दखािे का र्कस्िा न0 4 भी इन्तजार में बैठा है नोि फरमाइए"अरे भई, एक लैटर आया है! िरकारी लगता है…… इगं र्लि में है…… जरा पढ के तो बताओ र्क क्या र्लखा है!" अपनी गली में खदु को िबिे हैंडिम और ग्रेजएु ट इन इगं र्लि कहने िाले र्मस्टर एक्ि अक्िर अपनी र्चटठी लेकर

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ऑनलाइन वुमत्रनया -कहात्रनया​ाँ अिंतमथन की अिंजत्रल व्यास

आमतौर पर यही कहा जाता है र्क "हर परु​ु ष की िफलता में एक मर्हला का योगदान होता है ।" लेर्कन आज मैं आपको एक ऐिी र्मिाल िे पररर्चत करिाना चाहती हाँ र्जिने उपयिक्त ु िाक्य को थोडा िंिोर्धत र्कया है । जी हा,ं मैं बात कर रही ह एक पस्ु तक के बारे में र्जिका नाम है "ऑनलाइन िमु र्नया" । एक पस्ु तक र्जिे अलग -अलग प्रांतों की मर्हलाओ ं ने ऑनलाइन माध्यम िे जडु कर अपने योगदान िे ि​िार कर र्िफि मर्हला ि​िर्क्तकरण को ही आगे ही नहीं बढाया बर्ल्क एक र्मिाल कायम की है र्क "एक मर्हला की िफलता में मर्हला का योगदान भी हो िकता है ।" िमाज और देि में इतने बदलाि के बाद भी आज भी कई मर्हलाएं िामार्जक बधं न एिं रूर्ढिादी र्िचारधारा में जकडी हुई है र्जन्हें कई बार कह र्दया जाता है की "तमु घर रहकर करती क्या हो ?" तो घर रहकर ही इन ३२ मर्हलाओ ं ने एक िपना देखा जो "ऑनलाइन िमु र्नया 'के रूप में िाकार हुआ और र्िफि इतना ही नहीं "इर्ं डया बक ु ऑफ ररकॉड्ि​ि में अर्धकतम मर्हलाओ ं के योगदान हेतु जगह बनाकर इर्तहाि में अपना नाम स्िणािक्षरों में अर्ं कत र्कया है ।

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"ऑनलाइन िमु र्नया" र्जिे िर्न्दता चौरर्िया, िर्ु भका गगि, िोमा िरु , कर्िता नागर, कायनात खान, कर्िता जयतं श्रीिास्ति, मजं ल ु ा दिू ी, प्रगर्त र्त्रपाठी, प्रीर्त र्मश्रा, अनार्मका अन,ु आयाि झां, र्तन्नी श्रीिास्ति, मनीषा पांडेय गौतम, िररता िक्ु ला, िर्िता िक्ु ला, र्िल्पा जैन िरु ाणा, श्वेता र्िहं , श्वेता आचायि व्याि, अमृता श्री, अि ु बू जैन, ं ु श्री िक्िेना, अनीता र्िहं , अर्ं तमा र्िहं , मोना पनु ीत कपरू , भारती अक ं ु ि िमाि, हषाि श्री, खि ऋतू र्िन्हा ऐश्वयिदा र्मश्रा, चेतना िमाि, मनीषा दबु े, र्स्मता िक्िेना और अजं र्ल व्याि ने अपनी ३२ कहार्नयों िे िजाया है । और इन ३२ कहार्नयों में नारी जीिन की झलक के िाथ-िाथ उन िामार्जक िमस्याओ ं को भी उजागर र्कया है र्जन्हें नक़ाब में छुपा र्दया गया है । िाथ ही जीिन का हर रंग, हर पहल,ू हर रूप बखभू ी उभारा गया है । पस्ु तक का नाम र्जतना आकषिक है ३२ कहार्नया भी आपको अपनी िी ही लगेगी और बहुत कुछ िोचने पर मजबरू कर देंगी कई ि​िालों के जिाब भी देती हुई ३२ आम मर्हलाओ ं के योगदान िे िजी ये ख़ाि पस्ु तक मर्हला ि​िर्क्तकरण और देि के मर्हला िगि को िाहि और उनके जज़्बे को िमर्पित ।

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