Sarthak Sahity Patrika

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लव यू म ाँ शिव अवत र प ल इट व (उ.प्र.)

'तम्ु िारी तहियत ठीक निीं लग रिी िै िेटा। कोई परे शानी िै?' प्रहिला ने अम्िर को पास िैठा कर प्यार से पछ ू ा। 'कोई िात निीं िै िा​ाँ। अच्छा-भला तो ि।ाँ ' अम्िर िस्ु करा कर िोला। प्रहिला िेटे के उत्तर से सांतष्टु निीं िुई। उन्िें हपछले कुछ हदनों से अम्िर का व्यि​िार चभु रिा र्ा। ि​ि न ठीक से खा-पी रिा र्ा और न खल ु कर िाँसिोल रिा र्ा। गिु सिु सा हकतािों िें खोया रिता र्ा। आज उसकी िस्ु कान भी उन्िें खोखली लगी र्ी। दो हदन िाद उसकी दसिीं की िाहषथक परीक्षाएां शरू ु िो रिी र्ीं। उन्िें लगा, िो न िो परीक्षा के तनाि िें अम्िर की िासहू ियत गिु िो गयी िो। सच्चाई जानने के हलए ि​ि िेटे को भािनात्िक सांिल देती िुई स्ने ां ि से िोलीं, 'तिु अच्छी तरि जानते िो हक तम्ु िारी िर प्रॉब्लि को

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

िा​ाँ चटु की िजाते सॉल्ि कर देती िै। िताओगे निीं तो भला िझु े कै से पता चलेगा।' अम्िर की आाँखें गीली िो गई।ां उसके आाँसू देख कर प्रहिला का कलेजा ि​िाँु को आ गया। उसे अक ां िें भींच कर ि​ि तड़प कर िोलीं, 'सच िताओ िेटा, क्या िुआ?' 'िेरी एग्जाि की तैयारी हिल्कुल भी निीं िै िा​ाँ।' उनके सीने िें ि​िाँु गढ़ा कर ि​ि सिु कते िुए िोला प्रहिला का हदल धक से रि गया। इतने हदन से उनका िासिू िेटा हकतने हिप्रेशन िें जी रिा र्ा। उन्िें रोना आ गया, पर प्रत्यक्षतः सयांत िो कर सिजता से िोलीं, 'जरा सी िात पर इतना परे शान िोने की क्या िात िै। अभी तैयारी निीं िै तो एग्जाि अगली साल दे लेना।'


'सच िा​ाँ..।' अम्िर का िरु झाया चेिरा एकाएक हलली के फूल सा हखल गया। हफर िायसू िो कर िोला, 'पापा तो िा​ाँटेंगे न।' 'िैं सि सभां ाल लाँगू ी।' ि​ि िेटे का िार्ा चिू कर िोलीं, 'पापा और एग्जाि की हचन्ता छोड़ दो। अभी ि​ि कै रि खेलेंगे और शाि को आइसक्रीि खाने चलेंग।े ' अम्िर खश ु िो कर उनसे हलपट गया। 'िेरी एक िात िानोगे िेटा।' कै रि खेलने िें िशगल ू िेटे को प्रसन्नहचत्त देख कर ि​ि कुछ सोचती िुई िोलीं। 'जी िोहलये।' गोहटयों पर हनगाि जिाये अम्िर िोला।

'अगली साल टॉप करना चािते िो तो इस िार एग्जाि िें िैठ कर एक्सपीररयांस ले लो।' 'ग्रेट आइहिया।' अम्िर चिक कर िोला। ि​ि अहां ति पेपर दे कर आया तो खश ु ी से उसका चेिरा दिक रिा र्ा। उसने प्रहिला के गले िें िािें िाल कर किा, 'एग्जाि से पिले िैं ि​िुत निथस िो गया र्ा िा​ाँ, पर आपकी सिझदारी से िेरा सारा िर नौ दो ग्यारि िो गया। िेरे सभी पेपर ि​िुत अच्छे िुए िैं। िैं जरूर टॉप करूाँगा। सच िें आप ि​िुत अच्छी िो। िेरा साल खराि िोने से िचा हलया। लि यू िा​ाँ।' अम्िर को खश ु देख कर प्रहिला हनिाल िो गई।ां िेटे की हनश्छल िस्ु कान से उनकी आाँखों िें ि​िता का सागर उिड़ आया र्ा

अम्मॉ कै सी हो? रत्न ब पूली लखनऊ का िताएाँ कै सी िै, इतना गिी िे तो रिा निी जात िै, लाओ िेनी ि​िे दा देि ि​ि िॉहकत िै, आपके िार् हपराय लागी, चल सन्ु दरी चल नीि के पेि तले खहटया हिछाए िैठा जाए, कुछ तो ि​िा लागी । आज से चार साल पिले ि​िरे िकान के आस पास भी पाकि का पेि, आि का पेि, इिली का पेि रिा, सो गिी जान नािी पित रिा, ि​िी ठांिी ठांिी ि​िा चलत रिा एस हक हजयरा जिु ाए जात रिा, अि तो िईु सरकार सिक िनािे के ललक िा सारे पेि कटिाए हदिेन, फल का

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

भिा देख लेिो, ि​िरी गॉि की ि​िा िी नौ दो ग़्यारि िोई गिा। िॉजी ि​ि आएन रिा आपसे यि किे हक हिजली लगिा के अजी जिा कर देि, इस गॉि िे भी हिजली आए गिा िै िस अजी देि लग जाई, का रुपया उपया कुछ न देिक े पिी,? िॉ देिक े पिी पर ज्यादा निी, यि काि तो सरकार ि​ि हकसानो के हलए अच्छा हकहिन िै, और अच्छा िोगा ि​िरा गॉि िस सरकार के सर से भ्रष्टाचार का हसगां नौ दो ग़्यारि िो जाए। और दोनो की िाँसी िाग िे गजाँू उठती िै ।


बक़रीद ज्योत्सन शसिंह लखनऊ

साल भर िें एक िार िी फुफी गा​ाँि आती िगर परू ा गा​ाँि दीिाना र्ा उनका। उनका आना गा​ाँि के सभी लोगों की ईद का िजा दोगनु ा कर हदया करता र्ा। शायद िी कोई िचता िो हजसके हलये ि​ि दिु ई से तोिफा न लाती िों तोिफा कीिती भले न िो पर हिदेशी िोने के नाते िर घर िें उसकी इज़्जजत चौगनु ी िो जाती। एक तो गा​ाँि की अके ली िीिी र्ी जो अपने िलितू े हिदेश गई र्ी ि​ि भी एक छोटी सी हजद्द के पीछे । गा​ाँि के रि​ित ने हनकाि का पैगाि क्या

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हभजिाया की फुफी ने परू े घर िें किर िरपा दी िस एक िी िात की रट एक िी गा​ाँि िें िायका और ससरु ाल निीं करनी। अि रि​ित िड़ी भाभी का ि​िु िोला भाई र्ा तो भाभी ने परू ी जिात के आगे उसकी हखल्ली उड़ाते िुए कि हदया। “िड़ी िर की परी िैं ये जो गा​ाँि िें हनकाि न कर दिु ई जायेंगी।” हफर रि​ित की ओर िख ु ाहति िो िोलीं। “भाई जान आप तसल्ली रखें इन्िें कर लेने दे अपने दिु ई के शेख का इतां जार आहखर िें हनकाि आपसे िी पढ़ना पड़ेगा इन्िें।” िस हफर क्या फुफी को दिु ई िाली िात चुभ गई और एक रात उन्िोंने घर छोड़ हदया और परू े साल


भर िाद ईद िें गा​ाँि आई तो परू ी नई साज सज्जा के सार् तोिफों से भरा िैग हलये। और अपनी दिु ई जाने की किानी को रस िें िुिो िुिो सभी के सािने परोसने लगी। सि उनकी हिम्ित की दादा देते और अपने हलये दिु ई िें नौकरी और जगि पक्की करते। ि​ि भी परू े जोशों खरोश से सिका इतां जाि करने की जिु ान दे ईद के िाद िापस रिानगी िाल देती। िगर इस िार जि ि​ि ईद पर आई तो भतीजा दिु ई जाने के सारे इतां जाि के सार् तैयार हिला उसके सारे कागजात हिलकुल पख़्ु ता र्े।

ईद का हदन तो हकसी तरि कटा पर रात के अन्धेरे िें एक िार हफर उन्िेंने गा​ाँि से नौ दो ग्यारि िोना उहचत सिझा। सालों की िनाई इज़्जजत आहखरकार दा​ाँि पर जो लगी र्ी। काि पर जल्दी लौट आने से िेि साि​ि भी खश ु र्ी और उसी खश ु ी िें ि​ि पाँछ ू िैठी। “अिकी तम्ु िारी ईद ि​िुत जल्द हनपट गई िी?” ि​ि िेि साि​ि का हलिाफ तिाते िुए िोली। “क्या करूाँ िेि साि​ि गा​ाँि िें अि हशक्षा ने अपने पा​ाँि फै ला हलये िैं।िैं आ न जाती तो आज ईद की जगि िेरी िकरीद िो जाती।

ब ब जी क ठूल्लू अिंजू खरबिंद पूरे िहर में अन्तय ामी ब ब की गूिंज मची हुई थी । जगह जगह होशडाग और बैनर लगे हुए थे । एक ब र आएिं - स रे दुखों से शनज त प ए!िं शसर्ा 1100 में - दुशनय भर की खुशिय िं प्र प्त करें । च रों ओर ब ब क गुणग न करते भक्त और हर जुब न पर उनकी ही चच ा थी,,,,शजतने मुिंह उतनी ब तें,,,! शजसे देखो र्ोन पर एपोइटिं मेंट लेकर बुशकिंग करने में लग हुआ थ । हर बशु किंग पर ग्य रह सौ रूपये लेशकन शकसी को र्का नही पड़त ,,,, र्का तब पड़त है जब शकसी गरीब की मदद करनी हो,,,तब जेब से ग्य रह रुपए भी नही शनकलते । "अरे! दो शदन से अन्तय ामी ब ब क र्ोन निंबर ट्र ई कर रह हाँ पर शबजी,,,शबजी!" र धेश्य म र्ोन पर ही शचपके शचपके ही बोल । "य र शजिंदगी में इतनी टें िन है शक अब तो अन्तय ामी ब ब ही प र लग सकते हैं ।" सरु ेि ने म थ पकड़ते हुए कह । "मेरी म त जी दो महीने से बीम र है सब जगह इल ज करव कर देख शलय पर नतीज िून्य,,,, अब 4|

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तो शसर्ा अन्तय ामी ब ब ही उन्हें ठीक कर सकते है ।" र मन थ जी आसम न की ओर देक्गग्ते हुए ह थ जोड़ कर खड़े हो गए । "मेरी बेटी क पढ़ ई शदन नही लगत , मुझे तो लगत है शकसी ने कोई ज दू टोन कर शदय है,,,, एक ब र अन्तय ामी ब ब अपन आिीव ा द दे दे तो देखन इस स ल टॉप कर ही ज एगी ।" क्रॉस क स ईन बन ते हुए जेशनर्र बोली । "मेरे बेटे क शनक ह ही नहीं हो रह ,,, दो बरस हो गये दुल्हन देखते,,,, बस अन्तय ामी ब ब की कृप हो ज ए तो बेटे क घर बस ज ए ।" अब्दुल च च ने नम जी मुद्र में कह । हज रों लोगो ने 1100 रुपए देकर बशु किंग कर ली । "जल्दी ही शवश्व शवख्य त अन्तय ामी ब ब से शमलने क सौभ ग्य प्र प्त होग " - इस मेसेज से उनके चेहरे पर खि ु ी व सतिं ोष के भ व थे और ब ब जी से शमलने की ह शदाक इच्छ ! अगले शदन सबके चेहरो के रिंग उडे हुए थे । अखब र के पहले पन्ने पर बड़े बड़े अक्षरों में छ्प थ अन्तय ामी ब ब करोडों क गबन कर र तों र त नौ दो ग्य रह ।


शवदेिी बह शदव्य अशभषेक शसिंह

सि हसफथ इतना जानते र्े हक छोटा िउआ राजू उफथ हसद्धार्थ जो हक अि हिलायत जाकर हसि िोगया िै ने ब्याि रचा हलया िै ि​ि भी हकसी हिदेशी लड़की से।िाए, लगा र्ा घर पे िाति िनेगा लेहकन यि क्या उल्टा यिा​ां तो सि ि​िुत खश ु िै।परू े गा​ांि िें चचाथ का हिषय िना िुआ िै िउआ का घर,िो भी क्यों ना भई परू े गा​ांि का पिला लड़का जो पढ़ाई और नौकरी करने हिलायत गया और ऊपर से गा​ांि िें पिली िार हिदेशी ि​ि जो आने िाली िै।ना जाने हकतनी सन्ु दर िोगी,हकतनी गोरी िोगी,पैसा इतना किाती िै हक उसकी एक िी ि​िीने हक पगार से रािपरु िें 2कोठी िनजाए और तो और अिरीकी नागररकता अलग से िाहसल यिी िताया जा रिा िै। अि तो भैया छुट्टी िनाने पैसा जटु ा कर िउआ के घर ि​िा​ां अिरीका िो िी आएगां े। अि तो देखनी लगेगी देखनी।इनकी तो 5|

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परू ी नसल अि दधू जैसी सफे द िोगी,नीली नीली आख ां ों िाली। सि िड़े उतािले िो रिे िै हक एक झलक ि​ि की हदख जाए िस लेहकन यि क्या िउआ ने ना िी एक भी फोटो भेजी िै ना िी कोई और िात िताई िै िस इतना किा िै हक िा​ां हपता जी का आशीिाथद लेने घर आरिे िै,कल सिु ि गा​ांि पिुचां जाएगां े और इनके घर िें सजािट और िलिाई ऐसे लगे िै जैसे शादी िोनी िाकी िै, िुि,सनु ा िै दो साल से सार् िै और शादी से पिले िी गभथिती भी िो गई र्ी तभी तो तीसरा ि​िीना चल रिा िै।खैर ि​िें क्या ि​िको तो भई ि​ि देखने की इच्छा िै ।कभी हकसी हिदेशी के सांग फोटो निीं हखच्िाए िै, छु लेंगे तो दधू जैसा गोरा रांग लाल ना पढ़जाए। गा​ांि के लोगों की उत्सक ु ता देखते िी िन रिी र्ी और देखते िी देखते लो आगया दसू रा


हदन,िगां ल गाने गाए जा रिे र्े, ढोल िाजे िज रिे र्े तभी द्वार पे गाड़ी रुकी और सलीके से इस्त्री हकया िुआ ि​िगां ी शटथ और ट्राउजर पिने,ि​िगां ी घड़ी और चिचिाता जतू ा पिने उतरा िेिद खसू रू त नौजिान।िा,ां िउआ िी तो िै ये,िाए हकतना िदल गया िै,क्या रोि िै,क्या गाड़ी िै,क्या कपड़े पिने िै,िाि िाि िजा आगाया देख कर। िा​ां आरती की र्ाली हलए हपताजी के िगल िें खड़ी र्ी,ना जाने किसे राि देख रिी र्ी,आहखर उत्सक ु ता क्यांू ना िोगी भई आहखर िा​ां िाउजी को भी तो कुछ निीं िताया र्ा िउआ ने और गा​ांि िाले िेला जिाए िुए टकटकी लगा कर ि​िांु िाकर देख रिे र्े। नजर हसफथ ि​ि पे,तभी उतरी गा​ांि की पिली हिदेशी ि​ि कद 5फीट 8इचां के करीि, गल ु ािी सटू पिने,खल ु े काले िाल और रांग???? अरे यि क्या यि तो काली िै यि कै सी हिदेशी ि​ि िै? अफ्रीकी नसल की िै यि तो।सि जगि जैसे सन्नाटा पसर गया िा​ां हपताजी एक दसू रे को खल ु े ि​िांु से देखने लगे जैसे यकीन िी ना िो रिा िो,जैसे कोई सपना देख रिे िै। "िाए िेटा यि क्या करहदया तनू े, तनू े तो किा र्ा िैंने शादी करली िै,ि​िने िान ली र्ी तम्ु िारी िात की िेटे की िजी िै,ि​ि आएगी घर,िेटे की खश ु ी उहसिें िै, गभथिती िोने के खिर पे भी नाराज ना िुए,लेहकन तनू े यि क्या हकया इसके सार् शादी करली,इतनी काली लड़की से शादी करली अि क्या िोगा, िे भगिान िजाक िना हदया ि​ि सि का,अि िेरा परू ा खानदान िदल जाएगा" िा​ां दिाड़े िारकर रोने लगी। हपताजी िोले "िउआ अच्छा ना हकया तनू े,ि​ि इसको कभी अपनी ि​ि निीं िानेंग,े नाक कटा दी तनू े िेरी आज,िजाक िना हदया िेरा" दरू खड़ी एहां िया सि कुछ सिझ रिी र्ी क्यहांू क हसद्द ने सि चीजों से अिगत करा हदया र्ा उसको,िता हदया र्ा हक गा​ांि िें क्या तिाशा िोगा और गोरी चिड़ी ना देख कर क्या रोना धोना करें ग।े चपु र्ी एहां िया,सर नीचे करके , घब्राई सी खड़ी र्ी िेचारी। 6|

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अि िोलने हक िारी र्ी हसदधार्थ की " िस कररए आप लोग,ि​िुत िो चुका तिाशा और यिी िजि र्ी हक िैंने निीं िताया र्ा आपलोगों को की एहां िया हदखती कै सी िै,िरना क्या आप लोग ति भी इसके स्िागत के हलए इतनी तैयारी करते? निीं ना, ि​िारा देश गोरी चिड़ी से इतना ग्रहसत िी चक ु ा िै हक आप लोग जो की इतने रूहढ़िादी पररिार से तालक ु रखने के िािजदू हिदेशी ि​ि को हिना देखे अपना हलया हक खानदान की नसल िदल जाएगी और िा​ां जि हपताजी ने अपनी जिीन हगरिी रखकर िझु े पढ़ने हिलायत भेजा उसका हकश्त कै से चक ु ा क्या आप जानती िै,निीं,िेरी तनख्िाि इतनी निीं र्ी हक 60 लाख की जिीन 6ि​िीने िें छुड़ा ल।ू एांहिया ना िोती तो ना िी िेरे सर पे छत्त िोती ना िी िें अच्छी नौकरी ि​िा​ां ढूांढ पाता।िस हिग्री लेकर अपने देश आजाता और करता किीं नौकरी आप लोगों से दरू रिकर िा​ां दरू अि भी िां लेहकन ये लड़की िझु े आपलोगो से दरू िोने िी निीं देती,पागल िै किती िै िा​ां हपताजी से िर रोज सिय हनकाल कर िात करहलया करो,िर 6 ि​िीने पे हिल आया करो,सिय पे पैसे भेजना िझु े याद निीं रिता लेहकन ये एहां िया िी िै जो आपका दिाई दपथण और िर ि​िीने के खचे के हलए पैसे भेजना िै िझु े याद हदलाती िै या हफर खदु भेज देती िै।धन्यिाद देने के िजाए कोस रिी िो इसको।आज यि ना िोती तो िैं हजदां ा भी ना िोता ,इतना ि​िा ऐहक्सिेंट िोगया र्ा और एक िा​ां के तरि एहां िया ने िझु े सांभाला,िरु े िक़्त िें ढाल के तरि खड़ी रिी िेरे सार्,िझु े कांधा हदया और अके ला ना छोड़ा,हिम्ित दी िौसला हदया आगे िढ़ने के हलए,आप लोगों से प्यार करना हसखाया िरना शायद इन सात सालों िें िैं किका भल ू चक ु ा िोता आप लोगों को, इसका िी हनणथय िै आप लोगों को अपने सार् ले जाने का क्यहांू क एहां िया निीं चािती िै हक ि​िारे िच्चे को दादा दादी के रिते िुए भी उनके प्यार से िहां चत रिना पड़े,यकीन िाहनए िा​ां हपताजी िैंने रांग देखकर निीं उसका हदल देख कर शादी की िै,हजसिें िेरे अलािा आपलोग भी रिते िैं और अि भी आप िझु से नफरत करते िैं तो िैं िादा


करता िां हक आपके पास कभी लौटकर निीं आऊांगा हफकर ित कररए अितक जो भी करता आया िां करता रिगां ा अपने फजथ निीं भल ू ांगू ा,प्रणाि िा​ां िाऊजी, लेट्स लीि एहां िया" िउआ जाने को िुए िी र्ा हक िा​ां हपताजी दौड़े चले आए और िउआ और ि​ि को गले लगाकर

िाफी िागां ने लगे।गले लगाकर खिू रोए खिू िाफी िा​ांगी और तिे हदल से िा​ां हपताजी ने क्या िहल्क परू े गा​ांि ने अपनी पिली हिदेशी ि​ि का धिू धाि से स्िागत हकया। िा​ां हपताजी की रांग को लेकर नस्ल भेद ऐसे नौ दो ग्यारि िुआ जैसे गधे के सर से हसांग।

समीर की द दी ड उशमाल शसन्ह

सिीर दादी के सार् िैंक पिुचां ा। अस्सी से उपर की दादी कई हदनों के िाद घर से हनकली र्ी। िकुली हलए, किर पर िार् रख चारो ओर कौतिू ल से देखने लगी। सिीर िैंक के भीतर पैर रखते िी चीख पड़ा, "दादी.. "/ दादी अदां र घसु ी।देखती िैं, सिीर औधां े ि​िाँु पड़ा िुआ िै हसर से खनू की धार,.... / अचहम्भत दादी की नजरें दो नकािपोशों पर पिी। एक ने िांदक ू तान रखी र्ी और दसू रे के िार् िें लोिे का राि। कदाहचत् उसी ने उनके पोते को िारा िै। हफर क्या र्ा दादी की िढू ी ि​ि्हियों िें

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

िला की ताकत आ गई। दादी ने छिी सिी हनशाने पर दे िारा। एक के िार् से िदां क ू हगरा और दसू रे के िार् से राि। "तिु ने िेरे पोते को िारा "दादी हचघां ाड़ उठी। इस अप्रत्याहशत आक्रिण से दोनों लटु ेरे अकिका गए। अि िैंक कहिथयों और ग्रािकों िें भी चेतना जागी उन्िोंने लटु ेरों को पकि पहु लस के ि​िाले कर हदया। िािर खड़े लटु ेरों के सार्ी नौ दो ग्यारि िो चक ु े र्े।


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आधशु नक लक्ष्मीब ई डॉ पूनम कुम री

िेले िें ि​िुत भीड़ र्ी। पांहियों िें दक ू ानें सजीं र्ी। िीना िाजार, चहु ड़यों की दक ू ानें, हखलौने, घरे लू उपयोग की दक ू ानें,लौिे के औजारों और अस्त्र-शस्त्र की दक ू ानें, हिठाइयों की दक ू ानें सभी जगि भीड़ लगी र्ी। दो सिेहलया​ां िसां तीहखलहखलाती इस िेले का आनांद उठा रिीं र्ी। िो प्रत्येक दक ू ान पर जातीं;सािान देखतीं;भाि करतीं और पसांद आने पर खरीदारी करतीं , पसांद निीं आने पर आगे िढ़ जातीं। काफी देर से चार-पा​ांच लड़के उन दोनों का पीछा कर रिे र्े।िो जिा​ांजिा​ां जातीं, िे पीछे -पीछे िर दक ू ान पर जाते,आपस िें िसां ी-िजाक करते, िेिदे हफल्िी गाने गनु गनु ाते। दोनों सहखया​ां उन्िें नजर अदां ाज कर रिी र्ीं। िो एक जगि कुछ देर ठिरकर भी देख चक ु ीं र्ी लेहकन कोई फायदा निीं िुआ। पर अि उनके चेिरे की िस्ु कान गायि िो चक ु ी र्ी, उनकी जगि परे शाहनयों ने ले हलया र्ा। इतनी भीड़ िें हकसको इनकी परे शाहनयों की पड़ी र्ी,सि अपने िें िग्न र्े।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

अि उन दोनों ने िेले से हनकलने का फै सला हकया, तभी भीड़ का फायदा उठाकर उनिें से एक लड़के ने एक लड़की को पीछे से धक्का हदया। लड़की लोिे के औजारों की दक ू ानों पर हगरतेहगरते िची और िस.......... उसने झट से दक ां ें लाल ू ान से तलिार उठाई और आख हकए शेरनी की तरि गरु ाथई--"तभी से िजाक िना कर रखा िै किीनों!!! सभी को टूकड़ेटूकड़े कर दगांू ी!!! िनचलों को इसकी उम्िीद निीं र्ी। इस अप्रत्याहशत पलटिार से अचांहभत िे िदि​िासी िें हचल्लाए...... भाग..रे ...भाग....रे ...भाग!!!! और भगदड़ िच गई, िेले के अन्य लोग भी हिना सोचे सिझे भागने लगे। यि सि एक हिनट के अदां र िो गया। लोगों को जि सारी िातें सिझ िें आई तो सभी इस आधहु नक लक्ष्िीिाई'को शािाशी दे रिे र्े और िनचले भगदड़ का फायदा उठाकर "नौ दो ग्यारि" िो चक ु े र्े।


ठोको त ली मधु जैन जबलपुर शिाथ जी के िेटे की िर्थिे पाटी से लौटने के "हशल्पा आज अनपू का फोन आया र्ा।" िाद हशल्पा काफी र्कािट ि​िससू "ओफ्फो!! हफर से..." कर रिी र्ी।और ितथन िाली न "अरे ! परे शान िोने की िात निीं आने से ितथन भी पड़े र्े।र्ोड़ी देर िैंने कि हदया ि​ि दो हदन के हलए िािर आराि करने की सोच कर लेट गई। जा रिे िैं।" तभी उसे अनपू की "ि​ि इस तरि कि तक िाँिु आिाज सनु ाई दी "जीजा जी आज चरु ाएाँगे कुछ ऐसा करना पड़ेगा हक सा​ाँप ि​िारा िन आलू के पराठें खाने का भी िर जाए और लाठी भी न टूटे।" िो रिा र्ा और दीदी के िार् के अनपू हशल्पा के छोटे भाई का पराठों का तो जिाि िी निीं। दोस्त िै। इसीहलए हशल्पा से पिले से िाजार िें भी इतने अच्छे निीं पररहचत भी िै। नई शादी और उसके हिलते।" िी शिर िें रिने के कारण हशल्पा जि हशल्पा ने एक चन्ु नी भी कुछ नया िनाती उन दोनों को िल ु ा हसर पर िा​ांधी और िािर आकर लेती। ि​ि निीं जानती र्ी हक ि​ि आ िोली "िेरे हसर िें ि​िुत तेज ददथ िो रिा िै अच्छा िुआ िैल िझु े िार िाला काि कर रिी िै। िैसे भी हशल्पा सीिा तुि आ गयीं पिले तो सिके हलए चाय िना को खाना िनाना और हखलाना दोनों िें िी िजा आता लाओ।" र्ा। पर अि तो अनपू और उसकी पत्नी सीिा कभी पहत को चपु रिने का इशारा करती िुई "और भी हकसी सिय आ धिकते और खाने की फरिाइश िा​ाँ कुकर धोकर आलू उिलने रख देना, िाई निीं आई कर देते। हशल्पा ने तो उन्िें अाँगल ु ी पकड़िाई र्ी पर न। आज िैं तम्ु िें आलू के पराठें िनाना हसखाऊाँगी। ि​ि तो पौंचा िी पकड़ िैठे।उस हदन हशल्पा खाने से आहखर तम्ु िें भी तो अनपू की पसदां सीखना िोगी।" फुरसत िी िुई र्ी हक ये दोनों आ गये। प्यार से "तिु तो अपनी िो, तो तिु से किने "हशल्पा दी आज तो आपके िार् की कढ़ी िें क्या सांकोच िेरी तो तिीयत ठीक निीं िै तो तम्ु िें चािल खाने का ि​िुत िन िो रिा िै।" िी चारों के हलए पराठें िनाना िोगें।" "दी, कढ़ी िनाती भी तो इतनी अच्छी िै।" चाय से ज्यादा तो सीिा का िन उिल रिा िस्का लगाते िुए सीिा िोली। र्ा।"क्या िैं नौकरानी िाँ ? जो ितथन भी साफ करूाँ और "दी, िो पकौड़े िाली कढ़ी िनाना और र्ोड़े सिके हलए पराठें भी िनाऊाँ।"अनपू से भी िात निीं पकौड़े ज्यादा िना लेना सख ू े खाने के हलए।" कर पा रिी र्ी। हशल्पा के तो तन िदन िें आग सी लग गयी उसने अनपू को व्िाट्सएप पर सारी परे शानी र्ी हफर भी िनािटी िस्ु कान ओढ़कर खाना िनाया। िताई। और सार् िी उपाय भी। हशल्पा ने अि इन्िें सिक हसखाने का िनसिू ा िना चाय पीने के िाद कप रखने के ि​िाने अदां र हलया र्ा। जाकर सीिा ने अनपू को फोन लगाया । 11 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


फोन उठाते िी अनपू िोला। जी सर अभी घर पिुचाँ रिा िाँ "हकसका फोन र्ा?" हशल्पा ने पछ ू ा। "िो दीदी िॉस का फोन िै घर पर आ रिे िैं तो ि​िें हनकलना पड़ेगा।"

"कोई िात निीं हफर कभी,जि भी आओगे ि​ि सीिा के िार् के पराठें खा लेग।ें " अि तो अनपू और सीिा ऐसे नौ दो ग्यारि िुए हक हशल्पा के घर का रास्ता िी भल ू गये।

नौ दो ग्य रह चिंद्र िेखर "दुष्टसज्जन"

िहु दत िन से अखिार पढ़ते िस्ु कुराते देख हिद्या, दीपक को पछ ू िी िैठी," क्या िात िै, िड़े िन्द िन्द िस्ु कुरा रिे िो, ि​िें भी िताओ, ऐसा क्या छप गया?" दीपक िोला," देखो कल िी ज्योहत ने स्कूटी िा​ांगी र्ी और आज सरू त िें ये फायर इसां ीिेंट िो गया।" "तो" "तो क्या, अि सारे ऑहफस और इस्ां टीट्यटू चेक करने जाएगां ,े और स्कूटी क्या कार आ जायेगी।" पीछे खड़ी ज्योहत के ह्रदय िें चांद क्षणों पिले आई, स्कूटी की खश ु ी अि नौ दो ग्यारि िो चक ु ी र्ी।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह मनोरिंजन सह य सक्गसेन

िेररज गािथन का पररसर अभतू पिू थ सजािट से जगिगा रिा र्ा। टेहिल्स पर सजाये और पकाये जा रिै पकिानों की खश ु िू ि​िा िें घल ु रिी र्ी। िीजे के फ्लोर पर कुछ यिु क यिु हतया​ां िी निीं प्रोढ़ायें भी अपने को यिु ा और आधहु नक हदखाने के हलये िेिद फूिड़पने से िी सिी कूल्िे और किर िटका िटका कर कहर्त िा​ांस कर रिीं र्ीं। हफजा​ां िें खहु शयों की िस्ती घल ु ी िुई र्ी। शोर िुआ िारात आ गयी, िारात आ गयी तो िहिलाओ ां का झांिु द्वाराचार की रस्ि हनभाने द्वार की और िख ु ाहति िो गयीं। र्ोड़ी देर िें िीजे फ्लोर की तरफ से कुछ चीखने हचल्लाने जैसी आिाजें आई तो ां कुछ यिु क उधर दोड़े तो पता चला हक दल्ू िे हिया​ां के भाई ने दल्ु िन पक्ष की एक यिु ती को 13 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

िेिद िदतिीजी से दिोच रखा िै , और चम्ु िा दे दे, चम्ु िा की फरिाइश कर रिे िैं। िड़ी िहु श्कल से कुछ सिझदारों ने िीचिचाि करके उनसे सॉरी िल ु िाया, िगर उस सॉरी िें भी एक धिकी हछपी लग रिी र्ी। तभी स्टेज के पास एक कोने से दल्ू िे हिया​ां के हपताश्री की कड़क आिाज गजांू ने लगी। ि​िने एक सप्ताि पिले आपको िता हदया र्ा हक ि​िारे इन 21 सम्िानीय अहतहर्यों की नजर 5-5 ग्राि के सोने के हसक्कों से िोगी, ति आपने िािी भरली र्ी, अि िैं क्या िांिु हदखाऊां अपने उन सम्िाहनत अहतहर्यों को। जिाि िें लड़की के हपता का हिहियाती आिाज सनु ाई पड़ रिी र्ी- सिधी जी एकदि इतनी िड़ी रकि का इतां जाि निीं िो सका क्योंहक हसक्के तो स्टेट िैंक से िी हिलते।


िैं इस सिय 2100/- से उनकी नजर कर देता ि,ां िाद िें िैं हकसी तरि इन्तजाि कर दगांू ा। िैं आपके िार् जोड़ता िां ...।

कर चलता िै, की पत्नी िनने से िैं आजन्ि कांु िारी रिना पसन्द करूांगी । और पापा आप इस िेटा िेचने िाले के िार् क्यों जोड़ रिे िैं ।

िाद िें उन्िे शिद लगाकर चाटेंगे क्या ? दल्ू िे के हपता का कठोर स्िर यर्ाित र्ा।

खरीदार हिक्रेता से िड़ा िोता िै, उसे हिक्रेता का िाल खरीदने ना खरीदने का अहधकार िोता िै तो ि​िें निीं खरीदना इनका लड़का। आप चहलये।

हफर र्ोड़ा रुककर कृ पापणू थ सिझोते जैसी आिाज आई- अच्छा चलो आप अभी उनकी नजरों के हलये 11000/- प्रहत िेि​िान दे दीहजये , िाद िें देख लेंगे।

अि तक सारे िेि​िान घराती और िाराती स्टेज के सािने तिाशिीनों के रूप िें भीड़ लगा चक ु े र्े।

सिधी जी िेरी इज्जत रख लीहजये, िैं इस सिय एकदि इतनी रकि का इन्तजाि निीं कर पाऊांगा।

ऐ लड़की तू िोश िें तो िै, क्या िक रिी िै.... तो हफर फे रे निीं िो सकें गें, सोच लीहजये। िर के हपता ने आहखरी पा​ांसा फें का।

िैं तो परू े िोश िें ि,ां िगर आपको िोश तो पहु लसस्टेशन पर आ जायेगा।

सिधी जी ऐसा न करें । िझु े र्ोड़ा सिय दीहजये , िैं किीं से व्यिस्र्ा करता ि।ां

पहु लस, पहु लस क.. क्यों तभी पहु लस अहधकाररयों ने िय जाब्ते के प्रिेश हकया और उनकी कड़कदार आिाज- हगरफ्तार करो सिको, दिेज िा​ांगने िाला दल्ू िे का िाप और 5 -5 ग्राि सोने के हसक्के का नजराना लेने िाले भाग न पायें , सनु ाई पड़ी।

तभी सिने देखा हक दल्ु िन के िेश िें सजी यिु ती हि​िाि के हलये िने िचां पर आई , उसने िा​ांस के हलये एांकररग कर रिे आदिी के िार् से िाइक छीना और िोलने लगीसहु नये हिस्टर दल्ू िेराि जी के हपताजी, फे रे तो अि िैसे भी निीं िोंगे। ऐसे लालची आदिी के घर की दल्ु िन और एक नपांसु क यिु क ,जो ियस्क िोने पर भी िाप की उांगली पकड़

पहु लस.अहधकारी की कड़कदार आिाज सनु कर तिाशिीन िने घराती और िाराहतयों की भीड़ नौ दो ग्यारि िो गयी।

डीजे कल्पन शमश्र जयिाल का ि​ि िो रिा र्ा.. ि​िनों, सहखयों से हघरी दल्ु िन नजाकत से चलती िुई धीरे -धीरे स्टेज की ओर िढ़ रिी र्ी! उधर दल्ू िा भी अपने दोस्तों, भाइयों ,ि​िनों से हघरा िुआ िड़ा िेसब्र िो रिा र्ा!"अरे भइया,जयिाल पड़ने िाला िै..कोई गाना-िजाना निी? चलो जल्दी से जरा गाना-िाना तो लगाओ" तभी हकसी ने िीजे िाले को िपटा!िड़िड़ािट िें िीजे िाले ने गाना लगा हदया..सनु ते िी लोगों के चेिरे फक्क पड़ गये! दल्ु िन के चेिरे पर भी हखहसयािट के सार्-सार् आाँसू ि​ि

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

हनकले..तो कुछ लोग ि​िाँु पर िार् रखकर दिी िाँसी िाँस रिे र्े! गाना के िोल र्े.. "नौ सौ चिू े खाकर हिल्ली िज को चली" सनु कर दल्ु िन का भाई लाल पीला िोते िुए िीजे िाले की तरफ लपका.. पर ये क्या? ि​िा​ाँ कोई निीं र्ा! अपनी ओर आते देखकर िीजे िाला िरकर पिले िी "नौ दो ग्यारि" िो गया र्ा


आत्मबल पूनम शसहिं शदल्ली

"िगां ला ने हफर आज आने िें देर कर दी। जि सिय पर पिुचां ने की हिदायत देती िां ,तो िर िार यिी किती िै आगे से हिल्कुल देर निीं िोगी िीिीजी, हफर अगले हदन ि​िी किानी। कुछ ना कुछ तो िात िै जो हक ि​ि की पािदां िगां ला के देर से आने का कारण िना िुआ िै।" िन िी िन िदु िदु ा रिी र्ी हक तभी िोर िेल िजी, हकिाड़ खोला तो सािने िगां ला को खड़ी देख, हिना उसकी तरफ ध्यान हदये एकदि से उस पर िरस पड़ी हक, "तुझे हकतनी िार सिझाया हक सिय पर आया कर पर तू िै हक ि​िेशा अनसनु ा कर देती िै।" िांगला ने िख ु पर हिना हकसी हशकन के किा "आगे से अि हिल्कुल देर निीं िोगी िीिीजी।" इतना किते िुए चपु चाप रसोई घर की तरफ चली गई। चांचल ,सरल स्िभाि की िगां ला को इस तरि गिगीन िद्रु ा िें देख िझु े र्ोड़ी शांका िुई हक जरूर कोई िात िै जो हक िगां ला को भीतर िी भीतर परे शान हकए िुए िैं और िो आज जानकर िी रिेगी। "िीिीजी काि खत्ि िो गया हकिाड़ लगा लो।" िगां ला किते िुए िािर की तरफ हनकली। "सनु तो सिी िगां ला पाच ां हिनट िैठ.., तझु से कुछ जरूरी िात करनी िै, हफर चली जाना।"

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

"िोलो िीिीजी क्या िात िै ?" "कुछ हदनों से िैं तुझे परे शान देख रिी ि,ां क्या िात िै..?" खोई खोई िगां ला अपनी नजरे नीचे झक ु ाए खड़ी िो गई। उसे खािोश देख हफर से िैंने उसे पछू ा .."खल ु के िता क्या िात िै..?! शायद िै तेरी कुछ िदद कर पाऊां..!" "िीिीजी आप तो जानते िो.. िेरी िेटी हिद्या पढ़ने िें हकतनी अच्छी िै। घर का कािकाज भी अच्छे से सांभाल लेती िै।" "िा​ां जानती िां ि​िी ना जो िारि​िी िें पढ़ती िै। क्या िुआ उसे..?" "िो ि​िरा शरािी जआ ु री पहत, ि​िरी हिहटया का ब्याि कर देना चािता िै। ब्याि क्या िीिीजी िस सिझो हक ि​ि उसे िेचना चािता िै।" किते िुए िांगला का गला रूांध गया "कोई अिीर अधेड़ उम्र का सेठ ि​िारी हिहटया के हलए िोटी रकि लेकर आया र्ा। आप िी िताओ िीिीजी यि तो िेचना िी िुआ ना..?!" "िैं हदन रात िेिनत िजदरू ी कर अपना पेट काटकर उसे पढ़ाती ि,ां ताहक कल को उसको ि​िरे जैसा चौका ितथन ना


करना पड़े। लेहकन ि​ि ि​िरा, घर िाला हपशाच की भा​ांहत ि​िरे हिहटया के पीछे पड़ा िुआ िै। उसको िरदि यिी पट्टी पढ़ाता िै की हिहटया िान जा, शादी कर ले राज करे गी राज.!" "ि​ि भी पढ़ना चािती िै..। िेरी गैर िाजरी िें किीं कोई अनिोनी ना िो जाए इसहलए अि िैं सिु ि उठकर पिले घर का सारा काि हनपटाती ि।ां उसको स्कूल भेजकर हफर िहां दर जाती िां और िाता रानी के सािने दीया जलाकर कर गिु ार लगाती ि।ां इसी िजि से आजकल देर िो जाती िै..।" िझु े भी उसकी सिस्या गभां ीर लगी। िैंने उसे सिझाते िुए किा "पर इस तरि हकतने हदन तक झेलती रिेगी िगां ला..?! िहां दर िें जाकर दीपक जलाना तो ठीक िै पर, अपनी इस िसु ीित से छुटकारा पाने के हलए अपने िन के भीतर हिम्ित का हदया जलाना भी तो जरूरी िै। तू अके ली अपने िलितू े पर अपना घर सांभाल रिी िै। हफर तू हकस िात का भय खाती िै। पहत का िक ु ािला कर.., िैं तेरे सार् ि।ां जरूरत पड़ी तो काननू ी कायथिािी भी करें गे।" " निीं, ..निीं .. िीिीजी..! िगां ला एकदि से घिराकर िेरे पास आकर जिीन पर िैठ गई। इस तरि तो ि​िरी हिहटया की िदनािी िो जाएगी। कल को उसका िार् कौन र्िेगा..?!" "नासिझ ित िन िगां ला".. िैंने र्ोड़ा ऊांचे स्िर िें किा, ईश्वर ना करे कल को अगर कोई अनिोनी िो जाए हफर हकस िेटी की शादी करे गी..?! हसिाय पछतािे के कुछ निीं िचेगा।" िेरी इन शब्दों ने जैसे िांगला के चेतना पर सीधा िार हकया। र्ोड़ा िौन रिकर उसने किा​ां "तिु शायद ठीक किती िो िीिीजी..।" तभी दरिाजे पर िोर िेल की जगि जोर जोर से दरिाजा पीटने की आिाज आई। िगां ला ने दौड़ कर हकिाड़ खोला। सािने अपनी िस्ती िें रिने िाली रत्ना को देखा तो र्ोड़ी हचांता िुई ।इससे पिले हक ि​ि कुछ पछू ती, घिराई िुई रत्ना ने हचल्लाते िुए किा "अरर िांगला तू यिा​ां िै..? तेरा घर िाला तेरी िेटी को ना जाने किा​ाँ घसीट कर ले जा रिा िै, जल्दी चल..!" यि

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

सनु ते िी िगां ला के िानो िोश उड़ गए। एकदि से िायु िेग से भागी। िैंने भी सोचा इस िसु ीित की घड़ी िें शायद िगां ला को िेरी जरूरत पड़े, इसहलए िैं भी उसके पीछे चल पड़ी। "अरे चल ना.. चलती कािे निीं..?! सिझती क्यों निीं, राज करे गी राज..!या हफर अपनी िा​ां की तरि ताउम्र चौंका ितथन करना िै..?" " निीं िािू िेरा िार् छोड़ दो िैं पढ़ना चािती ि।ां " "कै सी पढ़ाई ..?" लखना ने जोर से हचल्लाते िुए किा..। " ऐसे निीं िानेगी त.ू .!" लखना ने हिद्या को िारने के हलए िार् उठाया हक तभी िगां ला पिुचां गई और अपने पहत के उठते िुए िार् को पकड़ हलया.. और ऊांची आिाज िें किा "खिरदार जो हिद्या को िार् भी लगाया.. चल छोड़ दे उसका िार्..! " "िट जा िेरे रास्ते से".. लखना ने लगभग िगां ला को धक्का देते िुए किा। " "ना लखना आज तक िैंने तेरी ि​िुत िनिानी सि ली अि और निीं ..! चल छोड़ िेरी हिद्या को" सड़क के िी हकनारे पड़ा एक िांिा उठा हलया..। आज िांगला ने िानो चिां ी का रूप धर हलया र्ा। िैं दरू खड़ी रिकर िी िांगला का िनोिल िढ़ाना चािती र्ी। क्योंहक यि लड़ाई िांगला की र्ी और उसे स्ियां िी इस हिपदा से िािर हनकलना र्ा। िगां ला ने िांिे से जोर का एक झटका लखना के िार् पर िारा.. हिद्या का िार् छूट गया। ि​ि भागकर िा​ां के पीछे छुप गई। लखना भी िगां ला का ऐसा प्रचिां रूप देखकर िैरान र्ा और भयभीत िो गया। उसके नापाक इरादों ने िगां ला के आत्ि​िल के सािने घटु ने टेक हदए इस तरि िांगला के जीिन िें आई िसु ीितें नौ दो ग्यारि िो गई


भुवन ! शनरिंजन धुलेकर

उस िालक के भोले िचपन और उन िासिू सालोाँ का िहलदान आहखरकार खिू रांग लाया । उसके त्याग और तपस्या की िजि से देश को अनेक फस्टथ क्लास स्टूिेंट्स हिले जो आगे जा कर िॉक्टर िैज्ञाहनक और नौकरशाि भी िने । िो िालक जानिझू कर कक्षा िें िख ू थ िना रिता ताहक गरु​ु जी का परू ा ध्यान अन्य िालको को हशक्षा देने िें चला जाए िो और पढ़े हलखें ।

गरु​ु जी इसको सिाल पछू ते और ये गधे की तरि सर झक ु ाए खड़ा रिता । क्लास के अांदर भी और गिी िरसात और सहदथयों को सिते िुए ... क्लास के िािर भी , ये अनेक िार घटां ो खड़ा रिा । सारे िच्चों और गरु​ु जनों की िो हिकारत का कें द्र र्ा और िजाक का भी । सारे अच्छे िच्चे उससे दरू िी रिते और उल्लू , गधा िैल आहद उपनािों से पक ु ारते । पर िजाल िै जो उसने पलट के जिाि हदया िो ।

िाकी सारे िच्चे प्रर्ि श्रेणी िें आएाँ इसके हलए ये िालक परीक्षा के सिय भी कांचे , गल्ु ली िांिा , लिू ो और सा​ाँप सीढ़ी खेलता रिता और हकतािों को िस्ते िें िी िदां रखता ।

पररक्षा के हदनों िें ये िच्चा हनहिन्त रिता हक दोस्तो को तो अव्िल आना िी िै ।

ि​िुत िार पड़ती पर अन्य िच्चों के उज्िल भहिष्य के हलए इसने अपनी पीठ को पत्र्र िना हलया ।

जिहक िाकी िच्चे इसकी तरफ दिाि िें देखते की किीं ये टॉप न कर जाए । सोच सोच कर िो अपना पाठ भल ू ने लगते , कांफ्यजू िोने लगते , इस िालक से उनकी ये पीड़ा सिन न िोती ।

अांग्रेजो ने जैसे हकये िोंगे िैसे अत्याचार इस पर हकये गए , इसे भख ू ा रखा गया , प्रताहड़त हकया गया , उठक िैठक लगिाई गयी , िगु ाथ िनाया गया ...पर िालक चपु चाप सि गया । अन्य िालको को फटाफट उत्तर देते देख इसके िन िे एक अजीि सी सतां ोष की लिर दौड़ जाती ।

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िेचारे का नन्िा सा हदल पसीज जाता और िो दो तीन प्रश्नों के जिाि दे कर परीक्षा छोड़ के िािर हनकल आता। िाद िें जि सारे िच्चे नाचां ते कूदते िािर हनकलते यि िच्चा अके ला पेड़ के नीचे खड़ा िो कर िस्ु कुराता जैसे उसे सि कुछ हिल गया िो ।


उसे एक िी हचतां ा रिती हक जो उसने परीक्षा िें हलखा , उसके आधार पर िी अगर उसने टॉप कर हलया तो उन िच्चो के हदल पर , िा​ाँ िाप पर , क्या गजु रे गी ? उसने अपना िचपन गहलयों िें िॉकी और हक्रके ट की आग िें झोंक कर स्िािा कर हदया । उसके जीिन का प्रर्ि और अहां ति ध्येय एक िी र्ा ... उसकी पढ़ाई और िहु द्धित्ता की िजि से कक्षा के दसू रे िच्चों के िन िे िीनभािना न आने पाए , उन्िें िानहसक आघात न लगे और .... िेचारों का भहिष्य सदा के हलए अधां रे े िें न िूि जाए ! अपने साहर्यों के हलए ये जज़्जिा हशद्दत और िोिब्ित हकसी और िच्चे िें िो .. ऐसा इहतिास िें दजथ निीं!

िैं आज भी िॉक्टर इजां ीहनयर , सीए , आई ए एस , आई एफ एस , िैज्ञाहनक, िल्टी नेशनल्स के सीईओ और िड़े िड़े हिहजनेसिेंन लोगों यानी उन्िी िचपन के सिपाहठयों , दोस्तो को देखता िाँ तो , हदल िे एक अजीि सी शा​ांहत और सक ु ू न हिलता िै । इस तरि एक िालक ने इस ि​िान भारत िषथ के उज्िल भहिष्य के हलए अपने साहर्यों के हदिाग िे िहु द्ध की एक िजितू नींि रक्खी .... .... और खदु ये गहणतशिु िालक कलि , दिात कागज िगल िें दिाए िो गया नौ दो ग्यारि ... ि​िेशा के हलए। उन्िें िैं अि याद निीं ! जैसे लगान के भिु न को ... इस देश ने भल ु ा हदया ।

ईश्वर ने भी इस अिोध िासिू िालक के िन की िात सनु ली और उसे आजीिन हद्वतीय श्रेणी िें पास िोने का िरदान हदया ।

नौ दो ग्य रह क य ा नन्द प ठक च स (बोक रो) झ रखण्ड उतर ट्रेन से िैं चला ,ि​िना का ससरु ाल। पग पैदल िी चल हदया, टा​ांगे िार्ों िाल।। िढ़ते िझु को देखकर, आया एक कुिार। छू िेरे पग को किा, िैं साला िाँ यार।। िैंने पिचाना निीं, तकता िारम्िार। िाँस कर ि​ि उत्तर हदया, ति र्ा छोटा यार।। चलते -चलते सार् िें, ले ली र्ैला िार्। जिते कुछ हिश्वास िैं , किा चलो तिु सार्।। आनाकानी कुछ हकया, दी पर उसने सार्। देख िड़ा तालाि िैं , चल दी धोने िार्।। जि लौटा तालाि से , उसे न पाया पास। रुक देखा कुछ देर भी, टूटी िेरी आस।। नौ दो ग्यारि िो गया, लेकर िेरा िाल। िैठे घण्टों तक िुआ, िझु को ि​िुत िलाल।। 18 |

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लह के अनेक रिंग प्रेरण गुप्त क नपुर

आज िा​ाँजी का आपरे शन िोना र्ा। इसहलए उन्िें अस्पताल िें भती करा हदया गया । िॉक्टर ने पिले से िी खनू का इतां जाि करने के हलए िोल हदया र्ा। छोटे िेटे की इच्छा र्ी हक उन्िें अपने घर-पररिार के िी हकसी सदस्य का खनू चढाया जाए। िगर हकसी का भी खनू उनके ग्रपु से िैच न कर पाया । यिा​ाँ तक हक पांद्रि साल का पोता गगन भी अपनी दादी को अपना खनू देना चािता र्ा। िगर उसकी छोटी उम्र के कारण िाक्टर ने उसका खनू लेने से इक ां ार कर हदया। तभी िेटे को ख्याल आया हक क्यों न िड़े भाईसाि​ि को खिर कर दी जाए। िैसे तो ि​ि कभी िा​ाँ का िालचाल लेने आते निीं। िगर जि कभी उनके िच्चों की शादी या िांिु न िगैरि िोता

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िै, ति ि​ि आशीिाथद स्िरूप िा​ाँ के पास जरूर कुछ न कुछ लेने आ जाते िैं। खिर हिलते ि​ि चले आए । देखकर छोटे भाई को ि​िुत अच्छा लगा। "आहखर अपना खनू तो अपना िी िोता िै।" तभी गगन दौड़ कर आया और िोला, "ताऊजी, िेरा खनू तो हलया निीं । िगर क्या पता, आपका िैच कर जाए।" सनु कर ताऊजी धीरे से िस्ु कुरा हदए। चा​ाँस की िात, उनका खनू िैच भी कर गया। छोटे भाई ने राित की सा​ाँस ली। जि खनू देने का ि​ि आया तो भाईसाि​ि किीं नजर न आए। भाग कर गगन सड़क पर गया, ति तक ि​ि गाड़ी िें िैठकर नौ दो ग्यारि िो चक ु े र्े।


ल डो रूपल उप ध्य य ( मॉडरेटर ,स थाक स शहत्य मिंच )

लािो! िा​ां यिी नाि र्ा उसका । लािली जो र्ी परू े गा​ांि की ! अठ िासे िें जन्ि हलया र्ा और उसके िोते िी उसकी िा​ां भगिान को प्यारी िो गई र्ी ।

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अगां ने िें खड़ी काली िकरी के दधू को फोए से हपला उसके िाप ने िड़े जतन से िड़ा हकया र्ा उसे । िसांत ि​िोत्सि पर लािो ने पीली चनु ररया पीली चहनया चोली और अपने लांिे घने िालों िें िोगरे और पीले गेंदे के फूलों से िनी िुई िेणी लगाई िै ,और झिू झिू के िा​ां सरस्िती के सांदु र भजन गा रिी र्ी ।


अगर इसका नाि लािो ना िोता और "िीणा " भी िोता तो भी सिी र्ा । िा​ां सरस्िती उसके कांठ और अक्षर दोनों िें हिराजिान र्ी । हकतने सांदु र हलखािट भी र्ी लािो की ।

एिहिहनस्ट्रेहटि जॉि िें िो गई । लगातार दो साल तक उसने उसकी जी तोड़ िेिनत की पर सफलता िाहसल ना िो सकी और एक िार हफर ि​ि ने उसे चनु ौती दी लेहकन उसका इरादा और पक्का िो गया ।

िाि सातिीं कक्षा िें िाप का साया भी एक िीिारी िें उड़ चला ,,पर पता निीं कौन से िाड़ िा​ांस से िनी र्ी हक पिाड़ जैसे दख ु को भी िचपन से झेलना सीख गई र्ी , और सिय के सार् उसने ि​ि को िी अपना दश्ु िन और दोस्त दोनों िना हलया र्ा ।

हफर िो आईएएस की तैयारी िें जटु गई और आहखर ि​ि को िराकर आईएएस की परीक्षा िें अव्िल अा​ायी । एक ि​िुत िी सख ु द अनभु ि रिा आईएएस की कोहचगां के दौरान उसका एक सार्ी उसके व्यहित्ि से प्रभाहित िो गया और उसने उसके आगे शादी का प्रस्ताि भी रख हदया । िाद िें ज्िाइहनगां के िाद दोनों ने धिू धाि से शादी करली ।

ि​ि जीिन के िर िोड़ पर उसकी परीक्षा लेता और ि​ि उसको अपने चेिरे की िस्ु कुरािट से िराकर भगा देती । िचपन से िी पढ़ने िें िेघािी र्ी इसहलए गा​ांि के सरपचां ने उच्च िाध्यहिक हशक्षा तक पढ़ाई का इतां जाि कर हदया और हिद्यालय के खत्ि िोने के िाद ि​ि सफाई और हि​ि िे िील के ितथन साफ हकया करती ,,तो उससे उसका दैहनक गजु ारा िो जाता। िहु श्कलें तो उसको िसां ी खेल लगती र्ी , िसां ते खेलते सारा काि करती और प्यारे िधरु कान्िा के भजन गाती और ि​िांु चढ़ा के ि​ि से किती , "हदखा अपना करति हदखा ! "िैं तुझे िरा दगांू ी एक हदन" अपने पतले गल ु ािी िोठ पर ि​िेशा िसां ी िी हिराजिान रखती और िर साल पढ़ाई िें अव्िल आती । िारि​िीं की परीक्षा िें के िल पद्रां ि हदन िचे र्े अपनी साइहकल से हिद्यालय जाते सिय सािने से आती िुई िाइक से टकरा गई और पैर िें फ्रैक्चर िो गया । ददथ िें भी ऊपर आसिान की तरफ देखकर िोल रिी र्ी , " एक और परीक्षा चल िैं तझु े िरा दगांू ी " और उसने िोिथ की परीक्षा के सारे पेपर िैसाखी से जाकर हदए और परू े हजले िें अव्िल दस िच्चो िें अके ली लड़की िो िी िनी । ग्राि पचां ायत ने उसका आगे की पढ़ाई का खचाथ उठाया और ि​ि पढ़ने के हलए हफर हदल्ली चली गई । हदल्ली िें सिाजशास्त्र िें स्नातक की हिग्री लेने के िाद उसकी रुहच

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उसको लगा िानो अि तो जीिन से सारे गिों को नौ दो ग्यारि कर चक ु ी िै । पर सिय तो घात लगाए िैठा र्ा। शादी को तेईस साल िुए र्े, एक हदन गािथन िें पानी देते सिय अचानक िाई िीपी और िायहिटीज के असांतल ु न िोने से उसके पहत के शरीर के सीधे हिस्से िें लकिा िार गया । उसका िड़ा िच्चा िेहिकल की तैयारी कर रिा र्ा उस सिय। उसने अपने िेटे को पढ़ाई िें हिस्टिथ निीं हकया और अके ले घर, नौकरी और पहत की सेिा करती रिी पर चेिरे की िस्ु कुरािट िरकरार र्ी । कभी-कभी सि पछू ते , "सि कुछ कै से कर लेती िो" ? " तो िसां ते-िसां ते िस्ु कुरा कर किती िझु े अपने चेिरे की िस्ु कुरािट सिसे हप्रय िै" ! लगातार पाचां िषों तक पहत की सेिा करती रिी एक से िढ़कर एक िॉक्टर को हदखाया िाहलश की दिाइया​ां आहद हकतने िी जतन हकतने िहां दरों िें पजू ा पाठ ि​िन हकए और आहखर उसकी कड़ी तपस्या से पहत को उसने पणू थ रूप से ठीक कर हदया। आज जीिन िें िसां ते खेलते पररिार की िालहकन िै और उसका िेटा भी एक सफल िॉक्टर िन चक ु ा िै। चेिरे की िस्ु कुरािट और दृढ़ हनिय से उसने िरु े ि​ि को ि​िेशा के हलए नौ दो ग्यारि कर हदया ।


रक्षक दीपक कुिार िेगसू राय

स्िाहत और नेिा 12िीं की छािा िै। कॉलेज िें छुट्टी िोने के िाद नेिा अपने िािजू ी की दिाई लेने गई ,तो स्िाहत को भी कुछ जरूरी सिान याद आ गई, हफर दोनों िॉल िें कपड़े खरीदने लगी । लाइट के चिक धिक िें सिय का अदां ाजा िी निीं रिा । रास्ते िें अांधरे ा िो

दोनों सि​ि गई इन लोगों ने िदतिीजी करना शरू ु कर हदया तभी एक व्यहि ने िाइक रोका,शायद िो भी िाके ट से आ रिे र्े। अांधेरे िें चेिरा तो निीं हदख रिा र्ा, लांिे कद काठी िाला िष्ट पष्टु आदिी लग रिा.र्ा, "यि क्या कर रिे िो तिु लोग िहच्चयों के सार्" आिाज लगभग 35-40 साल व्यहि की र्ी।

गया। सिसे िड़ी सिस्या र्ी रास्ते िें आने िाली 'पानी गाछी' को पार करना। स्िती तो फोन लगाना िी भल ू गई, नेिा के फोन की िैटरी िदां पड़ी िै। किते िैं पिले पहु लस भी इस रास्ते से गजु रने से िरते र्े, खैर अि तो पयाथिरण का इतना दोिन िुआ िै हक जांगल के पेड़-पौधे आधे िो गए िैं। दोनों लगभग आधा गाछी पार चक ु े र्े। साइहकल ि​िुत आइस्ता से चला रिी र्ी ताहक िदिाशों को पता ना चले हक कोई इधर से गजु र रिा िै । का िर र्ा ि​िी िुआ, तीन-चार लड़को ने दोनो की साइहकल रोक ली। 22 |

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"अांकल चलो हनकलो इधर से ज्यादा िीरो िनने की कोहशश ित करो िरना..." एक लड़का चाकू हनकलते िुए िोला। "िेटा िैंने िॉिथर पर 18 साल देश की रक्षा की िै, तिु से िड़े िड़े पिलिानों को पानी हपलाया िै, तिु हकस खेत की िल ू ी िो" हफर उन्िोंने हफल्िी िीरो की स्टाइल िें सि को पीटना शरू ु हकया र्ोड़ी देर िें सारे के सारे नौ दो ग्यारि िो गए।


नौ दो ग्य रह िैली- सिंस्मरण गीशतक शिवेदी

जि भी हिदां ी व्याकरण पढ़ी ,ि​िु ािरे िेरा पसदां ीदा अध्याय िोता र्ा। शायद इसहलए भी हक िेरी िा​ाँ िोलचाल िें ि​िु ािरे का उपयोग ि​िुत करतीं र्ी । िेरे सिझ िें एक िात आज तक निीं आई हक " नौ दो ग्यारि" के हलए एक िी िाक्य िेरे िचपन के पस्ु तकों िें िोता र्ा ,ि​िीं िाक्य आज भी िै जि िैं िच्चों को पढ़ाती िाँ िो िै-' पहु लस को देखते िी चोर नौ दो ग्यारि िो गए ।" अपनी िात करूाँ तो िेरे जीिन िें काफी कुछ नौ दो ग्यारि िुए िैं। िसलन िैं िचपन िें िद दजे की िरपोक िुआ करती र्ी । िर को दरू भगाने के हलए िा​ाँ ने किा हक िनिु ानजी का स्िरण करो। िर को नौ दो ग्यारि करने के हलए जि -जि उन्िें याद करती तो उनका अपने कलेजे को चीरता चेिरा स्िरण िोता तो और िैं िर जाती । िैं कभी घर िें अके ले रि िी निीं सकती र्ी । सिय ने ऐसा करिट हलया हक िैं अनजान शिर िें अके ले सांघषों का सिाना की और िेरे जीिन से िर प्रकार का िर नौ दो ग्यारि िो गया हसिाय हछपकली के !

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


व्यथ ि शलनी दीशक्षत

रीिा रो रिी िै | परू ा तहकया भीग गया पर नींद कोसों दरू िै| उसको सिझ निी आ रिा हक सिस्या िै क्या? िच्चे स्कूल िें उसको देखते िी नौ दो ग्यारि िोल के िाँसते िै | हजधर जाती एक िी आिाज सनु ाई देती िै | हसफथ तीन िी हदन िुए िैं , हकसी को ठीक से जानती िी निी तो हकस से किे अपनी व्यर्ा | रीिा ि​िेशा कान्िेंट िें पढ़ी, घर का िािौल भी इहां ग्लश िय रिता र्ा| िाता हपता दोनो िल्टीनेशनल कांपनी िें काि करते र्े | उसको िोि हिहस्टक स्कूल िें सरकारी नौकरी हिली र्ी| ि​ि घिरा भी रिी र्ी| िा​ाँ -पापा से किती िैं कै से करूाँगी उन ग्रािीण िच्चों को पढ़ाने का काि| उन दोनों ने िौसला िढ़ाया हक तुि सि कर सकती िो | कुछ हदन अभ्यास करो हगनहतया​ां हिदां ी िें िोल गहणत पढ़ाने का तम्ु िारे पास अभी दो ि​िीने का सिय िै| हफर क्या र्ा उसकी िेिनत रांग लाई ,पिले हदन की िी क्लास ि​िुत अच्छी गई | एक िात उस को सिझ निी आ रिी र्ी| जि ि​ि हकसी एिीशन के सिय नौ दो ग्यारि िोली िच्चे िसां पड़े

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

उसने िोला "क्यों िसां रिे िो आप लोग? " ति तो किाल िी िो गया िसां ी का फौिारा फूट पड़ा| िच्चों का काि भी यिी िोता कोई शब्द पकड़ कर टीचर पर िाँसना ,उनका नाि रखना | ि​ि सि ने भी यि खिू हकया िोगा | ि​ि ने भी रखा र्ा एक टीचर का नाि "ठीक..िै" अगर आप लिका लगा कर िोल के देखें तो िजा आएगा| रोते िुए रीिा की आाँख लग गई| अगले हदन उसने एक ि​ि उम्र हशहक्षका को अपनी सिस्या िताई नौ दो ग्यारि िाली| उसने रीिा को छुट्टी के सिय एक ि​िु ािरों की हकताि दी िोला इसको पढ़ना| रीिा ने हकताि पढ़ी तो िाँसते िाँसते दोिरी िो गई अपनी अज्ञानता पर| हफर क्या र्ा रात भर की िेिनत रांग लाई| सिु ि िच्चे क्लास िें िोल के िसां ते, उससे पिले िी ि​ि िोली अि ि​िुत िो गया अगर आप लोगों ने ज्यादा अक्ल के घोड़े दौड़ाने की कोहशश करी तो सि के कान गिथ कर दगांू ी, हफर सि नौ दो ग्यारि िो जाओगे|


बतकही (कुछ शवच र) सिंध्य शसिंह वम ा

आभार व्यि करते िुए अपने हिचारों को आप जैसे हिज्ञ -जनों के सम्िख ु रख रिी ि।ाँ पिले से पता निीं र्ा इिेंट के हिषय िें।अभी -अभी पता चला और इस ि​िु ािरे ने हदल िें ऐसी िलचल िचायी हक िस हलखने िैठ गयी। नौ दो ग्यारि से ि​ि लड़हकयों का गिरा नाता िै। जैसे िी जन्ि िुआ िाता -हपता के चेिरे से खश ु ी नौ -दो -ग्यारि िो जाती िै। जैसे -तैसे िचपन िीतता िै ितलि हक ये निीं िो तम्ु िारे खेल िै... क्या पेड़ पर चढ़ जाती िो लड़कों की तरि ..इस तरि के ि​िां ों के सार् जैसे िी र्ोड़े िड़े िुए िो हघसी हपटी गहु ड़या िाले खेल भी जीिन से नौ -दो - ग्यारि िो जाते िैं। पढ़ाई िें खिू िन लगे और आख ां ों पर चश्िा चढ़ गया या िाल उड़ने लगे या हफर िाईट निीं िढ़ी या र्ोड़े खाने के शौहकन हनकले और गोल्ि -गर्ेलू िो गये या कालेज या कोहचांग (िैसे कभी गये निीं) आने -जाने से रांग दि गया तो िाता हपता के चेिरे की रांगत हफर से नौ -दो -ग्यारि। अड़ोस -पड़ोसी के आयिु दे या यनू ानी या जो भी िो ज्ञान के हपटारे लगे खल ु ने। सि हितैषी िन िैठते। पर उन्िें किा​ाँ

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पता िोता हक उनकी ये िेितलि की हफकर ि​िारी नन्िीं सी हचहड़या की जान खाए जाती िै। उनकी िेितलि की परे शाहनया​ां से ि​िारी खहु शया​ाँ नौ-दोग्यारि िो जाती िै। िैसे तो ये रोना -पीटना गीत गाना िझु े निीं पसांद पर जि हजदां गी सचिचु चैलेंज की तरि सािने खड़ी िो गयी र्ी ऐसा लगा र्ा कुछ करना िै िास्ति िें ...अपने हलए तो न सिी िच्चों के हलए िी और िार् िें आये कम्प्यटू र जी। िस सारा िर जैसे छू -ितां र... जैसे सारी दहु ितां ाएाँ नौ -दो -ग्यारि िो चक ु ी र्ी। एक सच्चे सार्ी की तरि से इसने िार् र्ाि हलया र्ा। आज तक, अि तक भी हशक्षा िी साहर्न रिी िेरी पर इसने तो किाल िी कर हदया। आज भी कहठन से कहठन पररहस्र्हतयों िें यि िेरे अन्दर के िर को नौ दो -ग्यारि कर िझु े नयी राि पर चलने िें िेरी िदद करता िैं। र्ाि कर रखा िै इसने िेरी अगां हु लयों को हिश्वास से और िझु िें हनरांतर आत्िहिश्वास भरता िै। इसी के कारण आप सि से, इस आभासी दहु नया से जड़ु पायी िैं।


नौ दो ग्य रह ममत शसिंह देव सन 2005 की िात िै ि​िें नये घर िें आये कुछ िी हदन िुये र्े घर दो छोटे िच्चों का काि उपर से रसोई िें रच रच कर खाना िनाने का शौक एकदि र्का िालता र्ा , सोचा चलो िैं भी खाना िनाने िाली रख लेती िाँ अपने कुछ दोस्तों से और घर िें जो काि करती र्ी उसको भी िोल हदया की कोई खाना िनाने िाली नजर िें िो तो िताना । तीन चार हदन िीते िी र्े की एक हदन शाि को कोई गेट पीट रिा र्ा िड़ा गस्ु सा आया की कौन असभ्य इसां ान िै हजसको घटां ी हदखाई निी दे रिी िै , िािर गई तो देखा एक िहिला खड़ी र्ी िेरे पछ ू ने पर िोली की " आपये के ईिा​ाँ जो काि करती िै उिे भेजी िै खाना िनािे के िास्ते " िैने पछ ू ा क्या - क्या िना लेती िो जिाि आया "सिै िना लेत ियी" िन िी िन िैं ि​िुत खश ु चलो र्ोड़ा आराि तो हिलेगा अि आहखरी सिाल हकतना लोगी पछ ू ा िैने तपाक से िोली "िजार रूपया लेि" सोचा चलो रख लेते िैं , कल आने को िोल िैं अांदर आ गई । िन िी िन सोचने लगी कल क्या क्या िनिाऊाँगीं ये सोच रात िें राजिा भीगा

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हदया िच्चों और पहत को खाना हखलाया और सो गई , सिु ि की चाय पी िी रिे र्े की खाना िनाने िाली आ गई ( कल नाि िैने निी पछू ा र्ा ) आज पछू ने पर उसने अपना नाि गीता िताया , िैं िोली गीता नाश्ते िें पोिा िना दो तो गीता िोली "रसोई किा​ाँ िौ ?" िैं उसको रसोई की तरफ ले गयी गीता रसोई िें पिुचाँ कर िोली "के िे पकाई ?" िैने गैस के चल्ू िे की तरफ इशारा कर हदया और िोली गैस पे ये सनु गीता िोली " ई कईसे जरी ? " ये सनु िझु े कुछ सिझ िी निी आया की ये िोल क्या रिी िै िझु े लगा शायद इसने लाईटर निी जलाया िोगा िैने िाहचस पकड़ा दी तो िो िोली " ऐप्पे लकड़ी कै से रखि ?" ओ तेरी के ये क्या कि रिी िै ये िैं िोली लकड़ी क्यों ? ये गैस का चल्ू िा िै तो गीता िोली " ि​ि त लकड़ी के चल्ू िा पर खाना िनाइला ऐप्पे त ि​ि नािी पकािे जानीला " धड़ाि - धड़ाि धड़ाि हिना आिाज के गीरी िैं और आियथ के सार् िाँसी हफर उससे िोली क्या सोच कर तुि िजार रूपए िें खाना िनाने आई िो "ि​ि त लकड़ी के चल्ू िा पर दाल - भात , रोटी - तरकारी िनाईला िस" िैं ! तो कल क्या िोली र्ी तिु ये िोलती िुई िैं पहत को िल ु ाने किरे िें गई और दोनो जि िापस आये तो देखा की गीता ि​िा​ाँ र्ी िी निी तभी गेट खल ु ने की आिाज आयी िैं तेजी से िािर गई तो देखा गीता " नौ दो ग्यारि " िो चक ु ी र्ी अदां र आ कर जि पहत और िच्चों को िताया तो सि हिल कर खिू िाँसे और आज भी इस िात पर िाँसते िैं ।


एक सुबह सुनीत शमश्र

सिु ि के छि िज रिे िोाँग,े हदसम्िर का ि​िीना,रजाई से हनकलने के हलये हिम्ित िटोरनी पड़ती। जाग तो ि​ि दोनो िी गये र्े।पर उठे कौन। जो पहिले उठे गा ि​िी चाय िनाएगा। पहत पत्नी भले िी परू ी हजन्दगी लड़ते झगड़ते हिता दे पर िढ़ु ापे सच्चे दोस्त की िाहनन्द िोती िै। चलो आज िढु ऊ को चाय िनाकर ि​ि िी हपलाए। रजाई को अपने ऊपर से हनकाल कर ऐसे फें का जैसे कोई सैहनक दश्ु िन पर िारूद का गोला फें कता िै। उठकर शरीर को ताना,की लगा कोई जोर जोर से गेट िजा रिा िै।शाल ओढ़ी,दरिाजा खोला, दिु ला पतला ,काला रांग,हसफथ एक फटी िहनयान,और िाफ पेंट पहिने ठांि से का​ांपता करीि दस साल का लड़का खड़ा िै। िम्िी जी िड़ी ठांि िै ,िै िर जाऊांगा,आप एक कप चाय हपला दे। भगिान आपका भला करे गा। चाय के िाद आपके घर का काि कर दगाँू ा। िात्सल्य भाि जाग गया। िेरे िच्चे िािर िै न। िैने किा--िैठ। उसके हलये सिसे पहिले इनकी किीज,स्िेटर ले आई। किा-पहिले इसे पहिन, हफर चाय भी दगाँू ी। स्फूहतथ आ गई िढ़ू ी ि​ि्हियो िे। हिदेश िे िसे अपने िच्चो के हलये ि​ित्ि भाि जाग गया। हगलास िे अदरक की चाय और खाने के हलये दो गरि गरि घी के पराठे ,निकीन उसे हदया। उसकी आाँखो िे कृ तज्ञता ,और िेरे िन िे तृहप्त का भाि एक सार् जाग गये। िैने पछू ा-नाि क्या िैतेरा? िोला-कन्िैया। "िा​ां िाप िै? तुि पढ़ते िो?किा​ाँ रिते िो?" िैने इतने सारे प्रश्न एक सार् पछू हलये।उसने कोई जिाि देने के 27 |

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िजाय पछ ू ा-िम्िी आप काि िता देना ।िै कर दगाँू ा "चाय पराठे पर हपल पड़ा। "िताओ क्या काि करुाँ" "कुछ निी अि तू जा" उसने हजद पकड़ ली।िैने पीछा छुड़ाने के हलये कि हदया-ये िगीचा साफ कर दे। उसने िगीचे पर हनगाि िारी। िोला -िम्िी आप ि​िुत अच्छी िै।िस सौ रुपये और दे दो। अपनी छोटी िहिन के हलये सिोसे,जलेिी ले जाऊांगा। "सौ रुपये उसने जेि िे रख हलये। झािू उठा काि पर लग गया िै भी अांदर आ अपने हकहचन िे लग गई। करीि एक घन्टे से ऊपर िो गया।उसकी कोई आिाज भी निी आ रिी र्ी। िािर आकर देखा, िगीचे की सफाई, हनराई, गड़ु ायी और पानी भी दे हदया गया र्ा। अिरूद के तीन पेड़ र्े। उसने पके अिरूद तोड़, रख हदये र्े, कुछ फूल तोड़ रिा र्ा िेरे पास आकर िोला--िम्िी ये अिरूद आपके हलये तोड़ हदये िै। आप निी तोड़ पाती न।और फूल पजू ा के हलये।" िै एकटक उसे देख रिी र्ी। िगीचा सरू ज की हकरणो के िीच चिचिा रिा र्ा। इतना अच्छा काि तो िाली से भी निीं िोता। िो िोला---क्या िम्िी,ऐसे क्या देखते िेरे को? आपको क्या लगा िै चाय पीकर और रुपये लेकर नौ दो ग्यारि िो जाऊांगा"?


उत वल पन नूतन गगा शदल्ली

सयां ि का जन्िहदन और तोिफे िें कार का हिलना अपने आप िें ि​िुत कुछ सिेटे िुए। अट्ठारि साल परू े करने की खश ु ी। कार सड़क पर अपनी रफ्तार हलये तेजी से सरपट भागी जा रिी र्ी। गाने जो एफ०एि० पर लगातार उसके कानों िें अपनी धनु िजा रिे र्े और अपने िें िगन िोने पर िजिरू कर रिे र्े। उसको उस सिय अपने हसिा कुछ हदखाई निीं दे रिा र्ा।

अभी हसफथ घर से हनकले िुए कुछ िी हिनट िुए र्े और कार ने तेज रफ्तार पकड़ ली। सािने से ट्रक का आना उससे िचना और उतािलेपन िें पौं-पौं की आिाज के सार् एक तरफ से हनकलना। दसू री तरफ से अचानक उतािलेपन िें एक और यिु ा स्कूटर पर सिार अपनी तेज रफ्तार हलये िुए। दोनों का आपस िें टकराना हफर स्कूटर िाले व्यहि का हगरना। घिराकर सांयि का ि​िा​ाँ से नौ दो ग्यारि िो जाना हफर कभी कार को िार् ना लगाना। क्या यि ठीक िुआ?

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क र की सव री अिंिु श्री सक्गसेन

दोस्तों , जैसा हक आपको हिहदत िै अभी कुछ िी हदनों पिले िेरे घर एक नई निेली कार का शभु आगिन िुआ िै ।आज िैंने सोचा हक क्यों न िॉहनिंग िॉक की जगि नई कार की सिारी की जाए तो सिु ि सिेरे उठ कर भली भा​ाँहत सज साँिर कर पहतदेि के सािने जा पिुचाँ ी । पहतदेि िझु े तैयार 29 |

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देख कर चौंक पड़े और ऐसे घरू कर देखा हक जैसे िैं अजायिघर का कोई अजिू ा ि.ाँ ... “ इतनी सिु ि सिु ि सज साँिर कर किा​ाँ जा रिी िो?”


िैंने भी िड़े प्यार से िाँस कर जिाि हदया “ जरा िझु े कार की चािी दीहजये.....िड़ा िन िो रिा िै हक कार से एक राउण्ि लगा कर आऊाँ “ पहतदेि ने उसी तरि सपाट नजरों से िझु े घरू ते िुए किा “ सिु ि सिु ि हदिाग ित खराि करो, जानती निीं िझु े अभी ऑहफस जाना िै “ िैंने भी अपने हिगड़ते ि​िू को भरसक सभां ालते िुए किा... “ िैं आपसे किा​ाँ चलने के हलये कि रिी ि,ाँ िैं तो के िल गाड़ी की चािी िा​ाँग रिी ि.ाँ ..िड़ा िन िो रिा िै अके ले अपना िनपसांद गाना लगा कर िाइहिांग करने का....िस आधे घटां े िें आ जाऊाँगी “ यिा​ाँ आपको यि िताना जरूरी िै हक िाइहिांग िझु े अच्छी तरि से आती िै और िैं हपछले तीस सालों से कार िाइि कर रिी िाँ । िेरी हजद के आगे ि​िेशा की तरि झक ु ते िुए पहतदेि ने नया दा​ाँि चला और िोले.... “ ठीक िै िझु े िस पा​ाँच हिनट दो....िैं अभी तैयार िोकर आया....िैं अके ला घर पर क्या करूाँगा ? िैं भी सार् चलता ि.ाँ ...तुि कार िाइि करना और िैं िगल िाली सीट पर िैठा रिगाँ ा “ ये िेरे पहतदेि की खास आदत िै....िे ि​िेशा ऐसा रास्ता हनकालते िैं हक सा​ाँप भी िर जाए और लाठी भी न टूटे और िेरे पास उनकी िात िानने के अलािा कोई रास्ता निीं िचता । अत: कार चलाने के लालच िें िैंने पहतदेि की िात िान ली । कार िें जैसे िी िाइहिांग सीट पर िैठी पहतदेि ने आदेशात्िक लिजे िें किा “ देखो....तुम्िें छोटी गाड़ी चलाने की आदत िै और ये िड़ी गाड़ी िै...तुम्िें इसके आकार को पिले अपने हदिाग िें िैठाना िोगा....गाड़ी हिलकुल भी तेज ित चलाना “ 30 |

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िैं ठिरी एक आज्ञाकारी पत्नी....धीिी रफ़्तार से गाड़ी चला रिी र्ी और पहतदेि की टेलीहिजन पर आस्र्ा चैनल पर आने िाले उपदेशों के भा​ाँहत अनिरत सलािें सनु रिी र्ी....पा​ाँच सौ िीटर दरू हकसी साइहकल से स्कूल जा रिे िच्चे को देख पहतदेि शरू ु िो जाते... “ िॉनथ िजाओ...दरू से गाड़ी हनकालो” तो कभी हकसी िोटरसाइहकल िाले लड़के को देख अल्टीिेटि देने लगते.... “ ब्रेक पर पैर रखो...क्लच परू ा दिा कर रखो” या हफर किीं दरू से आती दसू री कार को देख िझु े सिझाने लगते “ स्पीि और कि करो....जगि देख कर कार हनकालो....अरे ....इतनी जगि िें कार निीं हनकलेगी....दायें करो....िायें करो....अि र्िथ हगयर िालो....” हफर लगातार नसीितें हिलने लगीं “स्पीि ब्रेकर पर सीधी गाड़ी हनकालो....िरना पहिये हघस जाते िैं....पीछे से देखो गाड़ी आ रिी िै...उसको आगे जाने दो....” इत्याहद इत्याहद िैं सोचने लगी “उफ.....िैंने किा​ाँ की िसु ीित िोल ले ली जो आज पहतदेि के सार् िाइहिांग पर आ गई....ि​िुत िो गया आज्ञाकारी पत्नी िनने का नाटक....” िैं भी झाँझु लाकर िोली “ आप तो िझु े ऐसे सिझा रिे िैं जैसे हक िैं पिली िार गाड़ी चला रिी ि.ाँ ...नौहसहखया र्ोड़े िी ि.ाँ ...तीस साल िो गये िझु े गाड़ी चलाते....आपको अपनी नई गाड़ी की िझु से ज़्जयादा परिाि िै....गाड़ी िें कोई िल्की सी खरोंच भी न आ जाए....आप गाड़ी के कारण िी तिसे िझु े लगातार िा​ाँट रिे िैं...” पहतदेि िझु े हचढ़ाने के अांदाज िें िोले “ तिु तो तीस साल परु ानी िो चक ु ी िो और गाड़ी नई निेली िै “.िैं खनू का घटाँू पीकर रि गई और गाड़ी लेकर तुरन्त िापस आ गई । कसि से.....नई गाड़ी िें अके ले िनपसांद गाने सनु ने की तिन्ना हदल िें िी रि गई और नई गाड़ी की खश ु ी काफूर....या याँू कहिये खश ु ी नौ दो ग्यारि िो गई


मेर हसीन तोहर् शदव्य अशभषेक शसहिं

िचपन से िस्तिौला रिा ि,ां हिगड़ैल भी र्ा और अहड़यल भी,आहखर िा​ां हपताजी का दल ु ारा जो र्ा। हकसी अिीर िाप के औलाद सा ऐठन र्ा िझु िें, अपने िी हपता को गरीिी और िजदरू िोने का ताना िारना िेरा िनपसांद कायथ र्ा। खैर, िदतिीहजयों को हनभाते हनभाते ना जाने िचपन कि नौ दो ग्यारि िो गया और अि िैं जिानी के उफान िें िूिा र्ा, कॉलेज का दौर भी क्या दौर र्ा। अिा,क्या किना उन हदनों का। हपताजी ने अपनी रात हदन की िेिनत की किाई से िेरा एिहिशन करिाया की िेटा नाि रोशन करे गा और िा​ां िर ि​िीने िझु े पॉके ट िनी भी हिलती र्ी। हसगरे ट,नशा और लड़की, उफ्फ हजन्दगी िो तो ऐसी िरना ना िो। जैसे तैसे पास फे ल का हसलहसला चिू े हिल्ली सा खेल खेल रिे र्े िेरे सार्,िेरी हजन्दगी का दसू रा दौर भी गजु र गया और सार् िी सार् हपताजी भी चल िसे,दख ु िझु े इस िात का निीं र्ा हक ि​ि ि​िें छोड़ कर चले गए िहल्क इस िात का र्ा हक क्या अि िझु े िेरे शौक अपने िी पैसों से परू े करने पड़ेंगे और ऊपर से ये िहु ढ़या भी िेरे सर पर िोझ िनी िै,िाि रे दहु नया अजि िाया िै तेरा। नौकरी हिली लेहकन िन निीं लगता, करीिन 14 नौकरी छोड़ा पकड़ा, िाए रे िेरा हततली सा िन, हटकता िी निीं एक िाल पर,िेरी नशे की लत का सार्ी अि सिसे ज़्जयादा शराि िन गई र्ी और िाशा अल्लाि, उसपे सोने पे सिु ागा िेरे हनकम्िे हपयक्कड़ दोस्त। िा​ां ने किा शादी कर ले तो िरस पड़ा िैं "तेरी हजम्िेदारी कि िै जो दसू री को भी अपने सर पर िैठा लां,ू

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

तू पता निीं कि िरे गी" िा​ां ने कुछ निीं किा र्ा लेहकन उसकी हससहकया​ां आज भी याद िै। िेरे शब्द यि दतू ने स्िीकार हलए और के िल दो िी ि​िीनों िें िा​ां िेरी हजन्दगी से नौ दो ग्यारि िोगई,पता निीं क्यांू िेरे िन िें पिली िार एक टीस सी उठी र्ी अि घि इस िात का र्ा हक िा​ां कि से कि खाना िी हखला देती र्ी, घर िें सनू ापन निीं लगता र्ा अि तो जैसे िर सा लगता िै,नींद तो जैसे ना जाने किा​ां चली गई िै। 50 की दिलीज पे ि,ां तन्िा,ना कोई सार्ी ना िी कोई िीत। नौकरी िी आसरा र्ी लेहकन िेरे व्यि​िार से उसने भी िेरे हजन्दगी से नौ दो ग्यारि िोना जरूरी सिझा,एक घर र्ा हपताजी ने िड़ी हशद्दत से िनिाया र्ा आज ि​ि भी हगरिी िै,िेरे हलिर ने जिाि दे हदया िै,िेरी करनी, िेरी हजन्दगी, िेरी सारी खहु शया​ां िैं हफर पाना चािता िां लेहकन इस िार एक अच्छा िेटा िनकर। शायद िा​ां हपताजी िझु े अपने आगोश िें सिेटना चािते िै,कल यि घर भी िझु से रूठ कर हकसी और के पास चला जाएगा,यि शयन हजसपे िैं लेटा िां और िरिस एक िस्ु कान िै िेरे िोठों पे की िैं आरिा िां तुम्िारे पास,िझु े िाफ कर देना ए हजन्दगी। और अचानक हजन्दगी ने िझु े सिसे िसीन तोिफा हदया। िझु से रूठकर जैसे ि​ि भी नौ दो ग्यारि िा गई, शहु क्रया हजन्दगी, िड़े सक ु ू न से सोऊांगा अि।


नौ दो ग्य रह सुरेख गुप्त दुर्ग छत्तीसर्ढ़

हशखा िैंक िें काि करती िै। िच्चों को उसने हदन की पाली िाली स्कूल िें िाल र्ा, ताहक उसके सार् िी िच्चे स्कूल जाएां और सभी की िापसी एक सार् िी िो। गिी की छुट्टी िें तकलीफ िोती, िच्चे अके ले घर िे हदनों िोिाइल फोन निीं इसीहलए सहु िधा के हलए उसने घर िे ऐसा फोन लगिा हदया र्ा हजसिे फोन करने िाले का फोन नम्िर हदख जाता र्ा।

एक शाि जि हशखा घर लौटी तो िेटी ने िताया हक "िम्िी तीन चार हदनों से 11 िजे एक नम्िर से फोन आता िै और ि​ि धीिी धीिी आिाज िें कुछ िोलता िै, िझु े सिझ िे निीं आता।" हशखा ने िो नम्िर नोट हकया और भारत सचां ार आहफस से उनका पता हलया। िी उसे क्योंहक िोते र्े। उन िोते र्े

िेटी 14 साल की और िेटा 10 साल का छुरट्टयों िें घर िे िी अके ले रिते र्े। िेटी को उसने शरू ु से यिी हशक्षा दी र्ी हक जो िच्चे िा​ाँ पर हिश्वास कर िर िात िताते िैं, उनके सार् कभी कोई िरु ा निीं िोता।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

दसू रे हदन हशखा ने िैंक से छुट्टी कर ली ठीक 11 िजे हफर फोन आया तो हशखा ने उठाया तो उधर से ि​िी धीिी आिाज िें हकसी लड़के की आिाज आने लगी तो हशखा उससे ि​िुत प्यार से िात करने लगी" िेटा ये नम्िर तो ि​िारे पड़ोसी का िै,तिु कौन िो?" और तिु फोन िें क्यों िात कर रिे,रुको िें तुम्िारे घर खदु आती ि"ाँ यि किकर उसने फोन रख हदया। जि हशखा खदु अपने घर से चार घर छोड़कर रिने िाले उसी फोन नम्िर िाले पड़ोसी के घर गई ये देखने की फोन िें उसकी िेटी को कौन िराता िै ति तक उनके घर काि करने िाला नौकर अपना िोररया हिस्तर लेकर नौ दो ग्यारि िो चक ु ा र्ा।


नौ दो ग्य रह होन रिंजीत कुम र शतव री

चल चालू िो जा । ि​ि सभी िेरे कालेज के सीहनयर र्े , पा​ांच छि: की सांख्या िें । िेरी रे हगांग की िक्ु किल तैयारी र्ी । िैं अांदर से काफी िरा िुआ र्ा । उस ि​ि िेरी क्या िालत र्ी िैं िता निीं सकता । जो उस पररस्र्हत से गजु रे िै ि​िी सिझ सकते िै । चल गा कर नाचना शरू ु कर, एक सीहनयर ने किा । िगु ाथ िन कर िा​ांग दे , दसू रे का आदेश र्ा। हभखारी पैसा कै से िा​ांगता िै उसका अहभनय कर, तीसरे का फरिान र्ा। नयी ि​ि आांगन िें कै से चलती िै, ि​ि िन के िता ।

सीहनयर ने किा, अरे तम्ु िारा नाि तो पछू ा िी निी, क्या नाि िै ? जी िेरा नाि रांजीत कुिार हतिारी िै, िैं र्क ू गटकते िुए िोला । अिे अांग्रेजी िें िोल, और पता भी िता । ति तक कै से क्यों अपने आप िी शायद घिरािट के िारे नाि तो सिी िोला, पर पता दसू रे गा​ांि का िता हदया । अिे उस गा​ांि के हिधायक जी (हजनका सरनेि हतिारी िी र्ा) तुम्िारे क्या लगते िै । जी िेरे गोहतया के चाचा, जोड़ देकर दसू रा झठू हिना हझझकते िुए िोला । ओि, चल भाई, तु तो अपना िी यार िै । िरु ा ित िानना भाई, एक ने िार् हिलाने के हलए िढ़ा हदया, और हफर सभी धीरे धीरे नौ दो ग्यारि िो गए ।

िर एक का अलग अलग आदेश । िैं सिझ गया हक आज िेरी खैर निीं । िैं पसीने से लर्पर् र्ा । इतने िें एक

पिली िार नेता के जैसा झठू िोलकर एक ितदाता िच गया ।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


जुननू अलक जैन

आहदत्य को हक्रके ट खेलना ि​िुत पसांद र्ा ।गौरि सर ने किा िुआ र्ा हक 8:00 िजे का स्कूल िै ।तिु सभी 6:10 तक स्कूल पिुचां जाया करो ।शरू ु िें तो 10 िच्चों ने आना शरू ु हकया। सर पिले परू े स्कूल के चार चक्कर कटिाते। अि गिी की छुरट्टया​ां शरू ु िो गई र्ी ।िई के लास्ट िें सर ने दोपिर को 4:00 िजे स्कूल िल ु ाना शरू ु कर हदया। 3 िच्चे यि सनु ते िी नौ दो ग्यारि िो गए ।िैसे भी कोई िच्चा नानी के तो कोई िआ ु के तो कोई घिू ने जा रिा र्ा ।इसी तरि एक ि​िीना िीत गया। आहदत्य ने सारी िात अपनी िा​ाँ को िताई ।अि तीन िच्चे िी हक्रके ट टीि िें खेलने के हलए रि गए र्े ।साहिल आहदत्य से कि रिा र्ा इतनी गिी िें िेरे से तो खेला निीं जाता। अि िैं कभी निीं आऊांगा। आहदत्य ने

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

यि िात िा​ाँ को िताई तो िा​ाँ ने आहदत्य को सिझाया िेटा हकसी भी चीज को प्राप्त करने के हलए कहठन तपस्या करनी पड़ती िै ।अि तिु अपने गहणत सब्जेक्ट को िी ले लो ।उसिें तुि ि​िेशा अव्िल रिते िो । हजस पर तिु हजतनी िेिनत करोगे सफलता तुम्िारे कदि चिू गे ी। यहद कुछ पाना चािते िो तो नौ दो ग्यारि िोने से काि निीं िनेगा। कड़ी िेिनत करनी पड़ेगी। सफलता ऐसे िी निीं हिला करती। िा​ाँ ने किा रूको निीं, झक ु ो निीं िेिनत से ना घिराना


नौ दो ग्य रह डॉ प्रशतभ शिवेदी ग्व शलयर आज कुटुम्ि न्यायालय िें जज साि​ि की अदालत िें अनोखा िक ु दिा आया र्ा लगभग चौिीस िषीया यिु ती अपने ढाई- तीन साल िच्चे को गोद िें हलए कटघरे िें रोती िुई िस यिी हिलाप हकये जा रिी र्ी, "जज साि​ि, िझु े इसके सार् निीं रिना, निीं रिना यानी निीं रिना। एक हदन भी निीं एक पल भी निीं।" जज साि​ि अनभु िी र्े, उन्िें आये हदन तलाक िाले दपां हत्तयों के के सों के हनपटारे का अच्छा खासा अनभु ि र्ा। उन्िोंने अनिु ान लगाया हक शायद ि​िुत छोटी सी िात या िद्दु े के कारण आज हफर एक घर टूटने िाला िै। उन्िोंने हजरि आरांभ की, क्या तुम्िारा पहत प्यार निीं करता? िो इस प्रश्न से लज्जा से लाल पि गयी। फरयादी के िकील ने कुछ किने के हलए गला खखार कर साफ िी हकया र्ा हक जज साि​ि ने पिले िी टोक हदया, िीच िें कोई कुछ निीं िोलेगा। िै हिहटया से पछू रिा िाँ ि​िी ितायेगी। जिाि जल्दी दो, िो तम्ु िें प्यार करता िै या निीं? पिले हसर हिलाकर स्िीकृ हत के सार् लजाते िुए किा, " िा​ाँ साि​ि, ि​िुत प्यार करता िै। " अगला प्रश्न तुि और तुम्िारे िच्चे के हलए खाना पीना सख ु सहु िधाओ ां का ध्यान रखता िै या निीं? इस िार ि​ि िेहझझक िोली - - साि​ि भले खदु भख ू ा रि लेगा लेहकन िन्ु ने के हलए दधू फल और घर का राशन पानी सि कुछ लाकर देता िै, लेहकन साि​ि िझु े इसके सार् निीं रिना। आपसे हिनती िै ि​िें इससे छुटकारा हदलिा दो। " " अरे , अभी िेरे सिालों का जिाि परू ा किा​ाँ िुआ िै, चलो अि ये िताओ हक क्या ये शराि पीता िै तुम्िारे सार् िारपीट करता िै?"

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

" निीं साि​ि निीं , ये तो शराि को िार् भी निीं लगाता और ि​ि झठू कािे िोलेंगे इसने तो ि​िें आज तक फूल की छड़ी से भी निीं िारा।" " हफर क्या हकसीदसू री लड़की का चक्कर चल रिा िै?" अि ि​ि तैश िें आ गयी र्ीं और तितिा कर िोली, " साि​ि कोई दसू री से नैन िटक्का करके तो देखे। ि​िारे िा​ां िाप से ि​िें िा​ांगकर इसने शादी करी िै आपका ई सिाल तो ि​िा िेा़ कार िै।" जज साि​ि ने कटघरे के दसू री ओर अि पहत ि​िोदय से पछू ताछ के हलए एकिाि सिाल हकया र्ा, "क्यों भाई क्या तिु इसे तलाक देने के हलए तैयार िो?" " साि​ि इसकी खश ु ी िें िी ि​िारी खश ु ी िै। ि​िसे अलग िोकर ये खश ु रिेगी तो ये भी सिी। " िायसू ी के स्िर िें पहत ने जिाि हदया। "निीं ये िेरे सिाल का जिाि निीं िै, िैंने पछू ा हक क्या तिु भी तलाक चािते िो?" इस प्रश्न का उत्तर देने के पिू थ ि​ि अपने परु​ु षत्ि का सांयि तोड़ हिलख पड़ा और रुांधे कांठ से िार् जोड़कर यिी किा, " निीं साि​ि निीं ि​ि अपने िन्ु ना और िन्ु ने की अम्िा के िगैर एक पल भी निीं रि सकते। ि​ि तलाक निीं चािते।" अि जज साि​ि ने िादी से पनु ः प्रश्न हकया " ये तो तलाक निीं चािता, "तुम्िें प्यार भी करता िै, तुि और तुम्िारे िच्चे का खाना खचाथ भी उठाता िै। सिसे िड़ी िात िै हक तुम्िारे हसिाय इसका अपना कोई भी निीं िै।


िेटा शादी कोई गिु ् िे गहु िया का खेल निीं िै जो जि जी चािे रि लो और जि िन भर जाये तो अलग िो लो। "अि लांच के िाद के स की सनु िाई िोगी , यि किते िी सारे लोग भी आसपास चाय पानी के जगु ाड़ िें तीतर िीतर िो गये । ति तक दोनों पक्षों के िादी प्रहतिादी िकील भी अपने अपने ि​िु हक्कलों के पास आ पिुचां े। यिु ती का िकील उसे सिझा रिा र्ा, "जज साि​ि चािे हजतना भी जोर िालें, तुि अपनी िात पर अड़े रिना। भगिान ने चािा तो आज िी फै सला िो जायेगा। " ति तक िन्ु ना शायद भख ू से कुनिनु ा उठा र्ा, इसहलए यिु ती ने जलपान गृि की ओर रुख हकया। अि ि​िा​ां सारी िेंचें भर गयी र्ीं लेहकन एक जगि खाली र्ी लेहकन ि​िा​ां तो यिु ती का पहत अपने िकील के सार् िैठा र्ा। किाित रिी िै हक िरता क्या ना करता इसीहलए िजिरू ी िें उसी िेंच पर जा िैठी। िन्ु ना अपने हपता को देख िािें फै लाकर लपकने लगा। इसी िीच पहत के िकील का स्िर सनु ाई पिा। ा़ " यहद तिु तलाक दोगे तो तलाक के िाद भी पत्नी और िच्चे की परिररश का खचाथ देना िी पड़ेगा, इसहलए तुि तलाक निीं चािता इसी िात पर अड़े रिना। लेहकन पिले िेरी फीस दे दो।" " िकील साि​ि अभी हपछली सनु िाई िें सात िजार हदये र्े। आज िेरे पास िस इतने िी पैसे िैं। पद्रां ि हदन िाद िन्ु ने का जन्िहदन आयेगा, इसीहलए आज दो िजार लाया ि,ाँ ि​ि िन्ु ने की अम्िा को देकर जाऊांगा। " िकील ने िसां ी उड़ाते िुए किा," अभी दो घटां े के भीतर तुम्िारी पत्नी तलाक ले रिी िै और तुि हिट्टी के िाधो चले िो सालहगरि िनाने। लाओ पिले िेरे पैसे दो हफर लैला-िजनांू का िािा खेलते रिना।" 36 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

ये िातें ये हिन्नतें, हकसी हफल्ि की तरि अभी उस यिु ती के सािने चल रिी र्ीं और सार् िी हदल हदिाग के अांदर भी दसू री जगां शरू ु िो गयी र्ी, जज साि​ि ठीक िी तो कि रिे िैं जि ये प्यार करता िै, परू ी हजम्िेदारी उठाता िै, शराि भी निीं पीता और िारपीट भी निीं करता, तो हफर तलाक की िजि ? िजि हसफथ इतनी िी र्ी, हक उसने कभी अपनी किाई का जररया निीं िताया र्ा। ि​ि जि भी पछ ू ती हक ि​ि किा​ां काि करने जाता िै ति ि​ि िसां कर यिी किता हक "लाली िेरी लाली क्यों िोती इतनी िािली । तू िस ऐसे िी िनी रि िेरी नाजो नखरे िाली।" इतना सनु कर ि​ि भी प्यारे हपया की गलिहियों िें स्िगीय सख ु के आनांद िें खो जाती। चार ि​िीने पिले शाहदयों के िौसि िें उसपर भी साहियों िें फाल पीकू लगाने का काि कुछ ज्यादा िी आ गया र्ा। िड़ी िेिनत से सारी साहड़या​ां तैयार िुई र्ीं। जि ि​ि ले जाने के हलए िांिल की साहड़यों की हगनती करने िैठी तो एक साड़ी िें फाल पीकू निीं िुए र्े। अि भरी दपु िररया िें िाजार तक िैहचांग फाल पीकू के हलए दौड़ रिी र्ी। उसी दौड़ भाग िें सािने से हकन्नरों की टोली सांग एक शादी िाले घर िें ढोलक की र्ाप पर िनिोिक िा​ांस देखने के लालच िें खड़ी रि गयी। काश उस हदन िो िा​ांस देखने ना रुकी िोती लेहकन हकांतु परांतु जैसे शब्द जीिन िें यों िी निीं आये िैं लेहकन जो रिस्य अि तक ि​ि निीं जान पायी र्ी, उस रिस्य पर से परदा उठ चक ु ा र्ा। उसकी पीली धानी चनु री हप्रटां की साड़ी पिने हिदां ी पाि​िर काजल हलपहस्टक से रांगे पतु े उसके पहतपरिेश्वर हकन्नरों के िीच ठुिके लगा रिे र्े , "िीिी जलइले हजगर िा​ाँ हपया, हजगर िा​ाँ ि​िी आग िै। " आज सिझ िें आया हक क्यों ि​ि उसकी साहड़यों को िर दसू रे हदन कभी िायक्लीन तो कभी प्रेस के हलए लाया ले जाया करता र्ा और ि​ि िख ू थ सिझती हक उसे िेरी हकतनी हचन्ता रिती िै? िस उसी हदन उसी क्षण उसने िन्ु ने को उठाया और


िायके हिधिा िा​ाँ के पास जा पिुचां ी र्ी। िाद िें पहतदेि ने ि​िी हिन्नतें की लेहकन उसने दरिाजे के िािर िी रोक हदया। ा़ िा​ाँ ने भी कसिें दे देकर जानना चािा र्ा हक आहखर िात क्या िुई? लेहकन िस ि​ि एक िी रट लगाये र्ी िझु े निीं रिना उसके सार्, िस तलाक चाहिए और उसी हजद का नतीजा र्ा हक कोटथ िें ि​ि सीधे जा पिुचां ी। छी छी ऐसे हलजहलजे आदिी के सार् ि​ि अनजाने िें रिती रिी, अि एक पल भी निीं।" तभी चायिाला चाय पकौड़े ले आया र्ा। उसने पहतदेि की ओर घिू कर देखा र्ा, ि​ि पिले से ि​िुत किजोर लग रिा र्ा। ति तक िन्ु ना उसकी गोद से अपने हपता की ओर जाने की हजद पर आ गया र्ा। उसने भी िच्चा गोद से छीन हलया र्ा और रुांधे गले से किा र्ा, सि कुछ तो चला गया, िैं क्या इतना िरु ा िाँ हक अपने िी िच्चे को गोद िें भी निीं ले सकता। " िच्चे को गोद िें लेते िी ि​ि भी हिलख पड़ी और रोते िुए िोली क्या हसफथ िन्ु ने से िी ितलि िै और िन्ु ने की अम्िा कुछ भी निीं?" तू तो तलाक चािती िै, तू तो जज साि​ि से िोल रिी र्ी हक िेरे सार् एक पल भी निीं रिेगी।" उसने किा, िा​ां, िैं नाच गाकर किाता र्ा, िो लोग ि​िुत अच्छे र्े हजतनी भी किाई िोती , जि िांटिारा िोता तो सिसे ज्यादा िझु े िी देते हक िेरे सार् िेरा पररिार िै। और सनु कोई भी काि छोटा या िड़ा निीं िोता जि तक ि​ि िेिनत ना करें । अरे िझु से िात तो करनी र्ी सिसे पिले, तू तो एकदि से

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

खांटू ा तुिाकर भागने िाली गाय जैसे भाग खिी िुई। तेरे घर गया ति दरिाजे से िी लौटा हदया। िस र्ोड़े देर िें तलाक िो जायेगा हफर जो जी आये करना। इतना किकर ि​ि खािोश िो गया। तभी अदालती कायथिािी आरांभ िोने लगी। जज साि​ि की गाड़ी आ गयी र्ी और दोनों के िकील अपने अपने ि​िु हक्कलों को पररसर अदां र आने का सक ां े त कर रिे र्े। एकाएक यिु ती ने तैश िें आकर पछ ू ा र्ा, िन्ु ने के पप्पा अगर िैं हफर से घर लौट चलांू तो ? क्या िझु े घर िें आने दोगे? ऐसे क्यों पछ ू रिी िै, तू अपनी िरजी से गयी र्ी और अि क्या फायदा? अि तो तलाक की फाइल आगे िढ गयी , अि तो शायद तलाक िोकर िी रिेगा। ति तक यिु ती का िकील झझांु लािट से भरा हचल्ला पिा। ा़ अि जल्दी आओ। पिले तम्ु िारे के स की सनु िाई िै। िन्ु ने के पप्पा आप तो िन्ु ना सम्िालो और लांिे भाग हनकलो। पहत ने किा और त?ू तू क्या कोटथ िें जायेगी? अरे निीं रे पागल िैं भी तेरे सांग भागगांू ी । चल भाग जल्दी भाग। अांदर कोटथ िें सांतरी आिाज लगा रिा र्ा , िा अदि िा िल ु ाहिजा िोहशयार, सनु िाई के हलए जज साि​ि पधार चक ु े िैं, िादी प्रहतिादी िाहजर िो। लेहकन दोनों भाग रिे र्े तेज भाग रिे र्े। दोनों के पैरों िें पांख लग गये र्े आज सिी िायने िें नौ दो ग्यारि का ि​िु ािरा सार्थक हसद्ध िो गया र्ा और एक पररिार एक घर टूटने से िच गया.


बस क सर्र अिंजशल व्य स

िात ति की िै जि िीरा नयी -नयी िांिु ई िें आयी र्ी अपनी आगे की पढाई परू ी करने के हलए ,नयी र्ी शिर िें तो शरू ु -शरू ु िें अके ले रिना अखरता र्ा , भाई रिता उसके सार् पर उसका िोना न िोना िायने निीं रखता र्ा ,उसे घर के सारे काि करना , कॉलेज जाना -आना और िो भी हजस लड़की ने कभी कोई काि निीं हकया उसके हलए तो िहु श्कल िोगा िी ।एक हदन कॉलेज जाने के हलए िस िें चढ़ी तो उसके िी पीछे िाली सीट पर दो लड़के िैठे र्े ,शायद िो भाप गए र्े हक िीरा इस शिर की निीं िै टुकुर -टुकुर देख रिे र्े ।पिचान िढ़ाने के ि​िाने गलत तरीके से छूने की कोहशश कर रिे र्े ।िस िीरा का िजाक न िने और अगले स्टेशन पर उतरना िी तो िै उसे यिी सोचकर िो खाली सीट देखकर ि​िा​ाँ जा िैठी तो िो लड़के भी िीरा के पीछे -पीछे दोनों आ िैठे ।सांयोग से एक सज्जन िहिला पास िैठी िुई र्ी िो िीरा की परे शानी सिझ गयी र्ी । किने लगी "िेटा ! िैं देख रिी ि,ाँ जि से आप िस िें चढ़े िो ये लड़के आपको परे शान कर रिे िैं आप िोलते क्यों निीं िो ि​िें िचाने की सिसे पिली हजम्िेदारी ि​िारी िै , एक लड़की जि ऐसी िरकतें अनदेखी

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

करती िै तो सािने िाला उसे िािी सिझ लेता िै और ऐसी छोटी -छोटी िरकतें िी िाद िें िड़ी- िड़ी घटनाओ ां को जन्ि देती िैं "। िीरा को िात सिझ आ गयी र्ी हक "भाई कोई िर ि​ि तो सार् िोगा निीं और आटां ी सिी कि रिी िै हक ि​िारी रक्षा की पिली हजम्िेदारी ि​िारी खदु की िी तो िै "िन िी िन सोच रिी र्ी । सोच से हनकलकर इतां जार कर रिी र्ी अगली िार जैसे िी पीठ पर िार् फे रना चािा उसका िार् िी िरोड़ हदया ।एक अांकल िोले "क्या िुआ िेटे"। िस िीरा के किने भर की देर र्ी और जैसे िी दसू रे यािी िस के दोनों लड़को को धो िालने िाले र्े दोनों नौ दो ग्यारि िो गए । िस कांिक्टर िोले िैि ि​ि ति तक िीच िें निीं िोल सकते जि तक आप खदु अपने हलए निीं िोलेंगे गलत िात पर चपु रिना ऐसी िातों को और िढ़ािा देता िै "। इस सफर ने िीरा को ि​िुत कुछ सीखा हदया र्ा । यि घटना ि​िुत िी साधारण िै आये हदन ऐसी िातें िोती िैं, पर अनदेखा करने की िजाय उनका हिरोध करना चाहिए । ये किानी एक सत्य घटना पर आधाररत िै ।


नौ दो ग्य रह आनिंद जैन

"दीदी..! प्लीज दो हिहनट सहु नए न " पीछे से आई आिाज सनु कर शाहलनी आिाज की हदशा िें िड़ु ते िुए िोली " कौन...!" "दीदी िैं हशखा फस्टथ ईयर की स्टुिेंट, आप सीहनयर स्टुिेंट जि ि​िारा इट्रां ोिक्शन ले रिे र्े ति आप ने किा र्ा कभी भी कोई परे शानी िो तो ि​िें िताना " " िा​ाँ िा​ाँ िेहझझक िोकर िताओ क्या िात िै " " दीदी काफी हदनों से परे शान िाँ लेहकन अि िदाथश्त निीं िोता इसहलए आज हिम्ित करके आपसे कि रिी िाँ हिश्वास िै आप िेरी सिायता अिश्य करें गी " " हन:सांकोच िो कर किो क्या िात िै " " दीदी िो जो आलोक िै न आपका भाई, िझु े काफी हदनों से परे शान कर रिा िै, अि तो कालेज आना भी दभू र िो गया िै " " ओि..! ये िात िै, ये िेरा िोिाइल नांिर िै कालेज आते सिय िझु े फोन कर लेना "अपना फोन नांिर देकर कुछ सिझाते िुए शाहलनी, हशखा को आश्वस्त कराते िुए अपनी क्लास की ओर िढ़ गई। " क्या िात िै स्िीट िाटथ आज ये हकस अप्सरा को अपनी िाईक िें िैठा हलया िै जो अपने चेिरे को दपु ट्टे से ऐसे ढांक कर रखा िै जैसे ि​ि चा​ाँद पर ग्रिण लगा देंगे "िरािर से िाईक चलाते िुए आलोक रोज की तरि अपनी िस्ती िें चरू हशखा को परे शान कर रिा र्ा। 39 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

" आलोक जी आप कैं टीन िें हिहलए, ि​िीं िैठकर िातें करते िैं "प्लान के ितु ाहिक हशखा िोली। आलोक की तो िानो िन की िरु ाद परू ी िो गई चिकते िुए िोला " जी हिल्कुल " शाहलनी और हशखा कैं टीन की एक टेिल पर आलोक का इतां जार कर रिी र्ीं, र्ोड़ी िी देर िें आलोक भी ि​िा​ाँ पिुचाँ गया, कुसी पर िैठते िी हशखा का िार् पकड़ने की नाकाि कोहशश करते िुए िोला " ये आपकी नई फ्रेंि िैं क्या...? िेरा एक फ्रेंि भी िािर अके ला खड़ा िै किो तो उसे भी िल ु ा लाँू, कांपनी हिल जायेगी, क्याँू िेि​ि....? इतना सनु ते िी शाहलनी ने अपने चेिरे से दपु ट्टा िटाते िुए िोली " िा​ाँ िल ु ा लो अपने फ्रेंि को तुम्िारी ि​िन को कांपनी दे देगा, यिी आिारागदी करने आते िो यिा​ाँ " अकस्िात िुए इस घटनाक्रि से िौखलाए आलोक के िाँिु से हसफथ दो िी शब्द हनकल पाए "दीदी आप" " िेशिथ किीं के कभी सोचा िै जैसे िैं तुम्िारी ि​िन िाँ िैसे िी ये भी हकसी की ि​िन िै, पर तिु जैसे िेगरै तों को क्या फकथ पड़ता िै, जो अपनी ि​िन के हलए कांपनी भी ढूांढते िैं " हशखा को चलने का इशारा करते िुए शाहलनी िोली। " िाफ कर दीहजए दीदी आज के िाद कभी आपको हशकायत का िौका निीं दगांू ा "हसर झक ु ाए पिाताप भरे स्िर िें आलोक िोला। उस हदन के िाद से हशखा के रास्ते से आलोक नौ दो ग्यारि िो चक ु ा र्ा और आलोक के जीिन से गदां ी आदतें..।


नौ दो ग्य रह होन रशश्म भट्ट

आ रिी र्ी कालेज से,पापा देखे िड़े गौर से,हिहटया तो, सयानी िो गयी िै,शादी के तो, काहिल िो गयी िै ,घर आके िम्िी जी से करने लगे जि चचाथ, लिका देखना, पड़ेगा, अच्छा सा, देख हलया, घर पररिार नीका, िजा हिगल ु ि​िन का ,जीजी आज तम्ु िें, जीजा, आयेगे देखने, िैंने किा ये जीजा नाि की कौन सी िला िै, अरे ओ जीजी पापा से सनु ा र्ा, अच्छा घर पररिार चनु ा िै, सख ु ी रिेगी, िेरी हिहटया िेरे कानों िें पढ़ा िै । सोचा न र्ा इत्ती जल्दी शादी करूाँगी, िम्िी पापा से हिछुिुगी, आ गये सि दलिल सहित सि, जैसे पदथशनी िै, ि​ि सोचा शादी, अभी न करें ग,े पढाई अपनी परू ी करें ग,े सपने पाले िै, अहधकारी के उनको तो िर िाल िें परू ा करे गे । हफर क्या र्ा । लगा दी िांिु ेरी से छला​ांग ि​ि तो भैया नौ दो ग्यारि िो गये ।ढूढ़ां ने को फौज तैयार खड़ी र्ी ,िेरे जिा​ाँ जिा​ाँ जाने की िर जगि उनको पता र्ी ।ढूढां हलया र्ा, उन्िोंने ि​िको । पापा िम्िी की िाटों की न जाने हकतनी िौछार पढी र्ी ।देख हलया उन्िोंने ि​िको, पसदां आ गये र्े, ि​ि उनको ।

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शादी की तारीख पक्की िो गयी । घड़ी आ गयी र्ी। फे रो की, सजी धजी तैयार िैठी र्ी । िौका देखा जि िैंने ऐसा ,एक अिसर देखा हफर ऐसा। िार् िें पकड़ी चप्पल अपनी । हफर से नौ दो ग्यारि िो गयी । ढूांढ ढूाँढ के चौगद्दी, ररश्ते नातेदार लगे र्े िक िक करनें अपनी, िहन्दर िें छुपे िैठे र्े। हफर से ढूढां हलए गयें र्े। और हफर न पछू ो िम्िी पापा पर क्या िीती। लड़का जो िना र्ा, दल्ू िा, िना िैठा र्ा, दल्ु िन अपनी ले गया र्ा । िहसथिीज से अपनी । अि तो कोई चान्स निीं र्ा, नौ दो ग्यारि िोने का । नजर उतारी जा रिी । दरिज्जा भी िो गया र्ा । िन्द किरे िे ले गया िझु को दल्ू िा नौ दो ग्यारि का कारण पछ ू ा। िता हदये ि​ि सारी किानी सिु क-सिु क कर ि​िा दी आखों की नाली। दल्ू िा ि​िारा सिझ दार र्ा। िादा कर हलया र्ा उसने ि​िसे पढा​ाँऊगा तुम्िें जी भर के , िन जाओगी अहधकारी पद से, तभी हनभाऊगा, गृिस्र्ी हफर से, अि िेरी तिु हदल की रानी, अि न करना िनिानी अि तुि नौ दो ग्यारि न िोना । हनभाऊगा िै हजम्िेदारी । अि भान िो गया ि​िको, िरु ा निीं शादी करना, कान पकड़ हलए अपनें, अि न, नौ दो ग्यारि िोउांगी, अि न नौ दो ग्यारि िोऊगी।


नौ दो ग्य रह वीण उप ध्य य नौ दो ग्यारि। आितौर पे ये ि​िु ािरा सनु ते िी कोई चोरी करके भागते िुए चोर या िा​ां की िा​ांट से िचकर भागते िुए िच्चे का चेिरा अनायास िी आांखों के सािने आ जाता िै। जैसे ये ि​िु ािरा इनके िीं सांम्िोधन के हलए िना िो। जैसे नौ दो ग्यारि िो जाने िें ि​िारत िाहसल कर ली िो। हकांतु जीिन भी अप्रत्याहशत िै। कि कौन सा ि​िु ािरा आपकी सख ु द याद या कटु सत्य िन जाए ि​ि निीं जानते। िात कुछ परु ानी िै। िेरी शादी को कुछ िी िषथ िीते र्े। िैं अपने पहत और दो प्यारी िेहटयों के सार् पाररिाररक जीिन के अनभु ि िटोर रिी र्ी। िेरे पहत ि​िुत िी सीधे और सरल िैं। उम्र िें लगभग आठ साल िड़े िोने के कारण िैं उनको िी आदशथ िानती र्ी, उनके िीं पदहचन्िों पे चलती। अन्य सभी औरतों की तरि िैं भी अपने पहत के सार् से हनहभथक िोकर रिती। जैसे उनका सार् िेरे सािस का स्त्रोत िो। जैसे उनका पास िोना िी िेरी ताकत िो। ि​ि सिु ि भी आि सिु ि जैसी िी र्ी। सभी पररिार िाले कािों िें लगे र्े। रहि​िार िोने के कारण सभी परू ु ष घर पर िी र्े। िेरे देिर और ननद हठठोली कर रिे र्े। िीच-िीच िें िेरे पहत भी आकर उनके सार् हिलकर िझु े छे ड़ते। िैं हिचारी अके ली पड़ गई र्ी और िािौल भी िल्का र्ा तो हिरोध भी क्या िी करती। इन्िी िातों के क्रि िें हनिरता का हकस्सा हछड़ गया। िेरे देिर अपनी ि​िादरु ी और सािस के हकस्से सनु ाने लगे। िो िर एक िाक्य को इतना चटपटा िनाते की अगर कुछ िनगढ़तां भी लगता ति भी श्रोता उनको निीं टोकते। हफर उन्िें नयी शरारत सझू ी, अि िो िेरे पहत को हनशाना िनाने लगे। उनके अनसु ार िेरे पहत याहन उनके भाई काफी जल्दी घिराने िालों िें से िैं उनसे हिल्कुल हिपरीत। िैं

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सि​ित निीं िुई। िो िोले भाभी जि ऐसी कोई पररहस्र्हत आएगी ति आप सिझेंगी। कुछ हदन और िीत गए। एक रात सि लोग भोजन आहद करके अपने-अपने किरों िें सो रिे र्े। िैं उस हदन र्ोड़ी ज्यादा िीं र्क गई र्ी। हिस्तर पर जाते िीं गिरी नींद िें सो गई। रात के तीसरे पिर िें हकसी ने िेरा दरिाजा पीटना शरू ु हकया। चांहु क िैं गिरी नींद िें र्ी तो िझु े जागने िें सिय लग गया। िेरे पहत ने दरिाजा खोला तो ननद काफी घिराई खड़ी र्ी। िो िोली भैया जल्दी घर से िािर िैदान िें हनकलो भक ु ां प आया िै। यि सनु ते िीं िेरे पहत िािर भागे। िेरी ननद ने िझु े पक ु ारा और िाहकयों को उठाने चल दीं। उनकी आिाज से िैं घिराकर िैं उठी तो पलांग हिलता िुआ ि​िससू िुआ। िैं जल्दी से िच्चों को टटोलते िुए पहतदेि जी को पक ु ारने लगी । िगर िो तो पिले िीं ि​ि हतनों को छोड़ नौ। दो ग्यारि िो चक ू े र्े । िैं सि​िी िुई िच्चों को सीने से ति तक लगाएां हिस्तर पर िीं िैठी रिी। भक ू ां प र्ि गया तो उठी और िािर हनकली ढुढने अपने नौ दो ग्यारि िुए पहतदेि को ।।। आजभी उस घटना को याद कर सि खिु िसां ते िैं।


मेर अशधक र अिंजशल व्य स

सररता की कोख िें िेटी िै ,यि जान घर के लोगों ने उसे गभथपात को कि हदया । अस्पताल िें जि सररता को लाया गया तो िरिस िी उसे ि​िससू िुआ जैसे िच्ची उसकी कि रिी िो हक "िा​ाँ !िैं आना चािती िाँ तेरी दहु नया​ाँ िें, िझु े ित िार िा​ाँ, तुझ पर हसफथ िेरा अहधकार िै, तेरी कोख, तेरे प्यार पर िेरा अहधकार िै िा​ाँ । िच्ची की धड़कनें ि​िससू कर सररता ने फै सला हलया हक "चािे जो िो जाये, िैं गभथपात निीं करिाउांगी । उसकी आाँखों से खश ु ी के आाँसू छलक गए, सररता का सारा िर और प्रसहू त का सारा ददथ अपनी निजात िच्ची को देखते िी नौ दो ग्यारि िो गया ।

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नौ दो ग्य रह होन सिंस्मरण इर जौहरी

ि​िारे घर की रसोई के िािर पीछे की तरफ खल ु ा िैदान िै जो रे लिे की खाली पड़ी भहू ि िै ि​िा​ाँ ि​िुत से िसे िुये हिट्टी के घर देखनें िें छोटे सा गा​ाँि प्रतीत िोतें िै । िझु े यिा​ाँ रिते िुये करीि दस साल िो गये िैं । हदन रात ि​िा​ाँ से आनें िाली आिाजें हनरन्तर पीछे की तरफ जीिन िोने का अिसास कराती रितीं िैं । िझु े याद िै िो हदन जि िैं यिा​ाँ घर खरीदने के िाद पिली िार आई र्ी ि​िारे पास िैठने के हलये कुछ भी निीं र्ा तो यिीं पीछे झोपड़ी िें रिने िाला एक व्यहि अपने घर से लकड़ी का भारी का तख़्त अपनी िहलष्ठ भजु ाओ ां से उठा कर ले आया र्ा और िोला र्ा “इस पर आराि से िैहठये ।” और आगे भी ि​ि जि भी यिा​ाँ आते र्े जि तक ि​िने अपना इतां जाि निी कर हलया िो िी ि​िारे हलये अपना तख़्त उठा लाता र्ा ि​ि िना भी करते र्े हक अच्छा निी लगता इतना भारी और ऐसे िार्ो से उठा कर लाते िो । खैर हफर ि​िनें जल्द िी िैठने के हलये दो तख़्तों का इतां जाि कर हलया ।तख़्त का इस हलये हजससे उस पर आिश्यकता पड़नें पर लेट कर आराि भी कर सकें । िा​ाँ तो िैं यि िताने जा रिी िाँ हक याँू ि​ि सिको पिचानते निीं िैं पर उन झोंपहड़यों िें रिने िाले लोगो को रोज देखते िुये नजर का एक ररश्ता सा कायि िो गया र्ा । इतनें सालों िें जाने हकतनी िार इनको कभी भारी िषाथ िें तो कभी

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हठरुरती सदी िें तो कभी तपती धपू की गिी िें ि​िनें इन्िे रे लिे पहु लस द्वारा सिु ि उजाड़ते हफर दोपिर से शाि तक पनु : िसते देखा । तो इनको इस तरि देखना भी आदत िें शाहिल िो चक ु ा र्ा हक अभी कुछ हदनों पिू थ पीछे एक िार हफर शोरगल ु सनु ा और जि छज्जे पर आ कर देखा तो देखते क्या िैं सि झोपहड़या​ाँ धाराशाई पड़ी िुई िैं । पछू ने पर पता चला हक कि तो िो लोग ि​िुत सिय से रिे र्े पर सिझदार लोग जा भी चक ु े र्े पर जो हजद्दी लोग निीं गये र्े उनको अिकी िार आधे घटां े की िोिलत दे कर िी सि तोड़ दी गयीं । जि तक प्रशासन ढुलिल ु नीहत अपनाये रिा इनको अलग से रिने की जगि देने पर भी सि निीं गये पर इस िार प्रशासन के द्वारा रिैया सख्त करनें पर कुछ हजद्दी लोगों को छोड़ कर िाकी सि नौ दो ग्यारि िो गये । िकीकत िें ये सि गरीि निीं किलायेंगे । एक तरि से सि व्यिसाई िैं दधू िेचने का कायथ करतें िैं । आधहु नक यगु की जरूरत के सभी साधन िोने के िािजदू हजस तरि ये रि रिे र्े िो देख कर िी खराि लगता र्ा । अि ि​िने जि जो ि​िा​ाँ पाँिुच गये उनसे िात की तो उनके चेिरे पर ि​िे खश ु ी नजर आई िो िोला िास्ति िें ि​ि अि सक ु ू न की हजन्दगी जी रिें िैं । उसकी िातों से ि​िें यि ि​िससू िुआ हक कभी कभी जीिन िें सक ु ू न पानें के हलये सख़्ती भी जरूरी िोती िै।


नौ दो ग्य रह होन क य ा नन्द प ठक च स (बोक रो ) झ रखण्ड

पीछे से एक अल्पियस्क लड़का जीजा जी , जीजा जी किते िुए िेरी ओर िढ़ रिा र्ा। िैं ट्रेन से उतर कर ि​िन का ससरु ाल जा रिा र्ा। आस -पास िेरे हसिा कोई और दसू रा व्यहि को न पाकर िैं रुक गया। उसनेिेरे सिीप आते िी पैर छूते िुए िोला" िैं सोनू ! िाँ जीजा जी, आपका छोटा साला। आप निीं पिचाने? खैर पिचानते भी कै से ? िैं तो दीदी की शादी िें ि​िुत छोटा र्ा । " ि​ि िेरा सार् िो हलया। उसने िेरा र्ैला िेरे िार् से ले हलया। िैंने भी हिना कोई हिरोध का उसे र्ैला दे हदया। कुछ दरू सार् चलने के िाद ि​ि लौटना चािा। हिश्वास जिते पाकरउसे सार् चलने को किा। र्ोड़ी आनाकानी के िाद सार् चलने को तैयार िो गया। िैंने पास िें एक िड़ा तालाि देखकर उससे िोला" तुि र्ोड़ी देर इसी पेड़ के पास रुको, िैं तालाि से फ्रेश िोकर

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आता ि,ाँ किते िुए तालाि की ओर चल पड़ा। जि

िैं तालाि से फ्रेश िोकर लौटा तो उसे पेड़ के पास न पाकर र्ोड़ा हचहां तत िुआ। र्ोड़ा रुक कर देखना उहचत सिझ कर उसकी प्रतीक्षा करने लगा, पर ि​ि निीं लौटा । िझु े हिश्वास िो गया हक ि​ि ठग र्ा और िझु े हिश्वास िें लेकर िेरा र्ैला लेकर नौ दो ग्यारि िो गया। रास्ते भर सोंचता रिा हक एक छोटा िच्चा िझु े िेिकूफ िना कर कै से िेरा सिान लेकर चम्पत िो गया। इससे जाहिर िोता िै हक हिना सक्ष्ू ि परीक्षण हकए हकसी पर हिश्वास निीं करना चाहिए ।


नौ दो ग्य रह नीत सह य

मझ ु े भी इस शवषय पर कुछ न कुछ शलखने की इच्छ थी। अशतव्यस्तत के क रण समय ही नहीं शमल । अभी जब र त के ब रह बजने में च लीस शमनट ब की है, तो अपनी ब त कह ही देती ह।िं तीन शदनों से सोच-सोच कर परेि न हो गई, पर कोई आइशडय ही नहीं शमल रह थ । अरे ह िं, आज मैं दोस्तों के स थ शपक्गचर भी गई थी। और आज मैं दोदो शसनेम देखी। हुआ यूिं शक देढ़ से च र-सव च र बजे व ल िो देख कर जैसे ही हम लोग अपने घर लौटे , उसी समय मेरी बुआ क र्ोन आय । उन्होंने पछ ू , शपक्गचर चलोगी नीत ? मेरी तो ब छ िं े शखल गई। मैंने 45 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

कह , "ह िं, ह िं क्गयों नहीं, उसके शलए तो मैं हमेि तैय र हिं।" तभी मुझे य द आय शक अरे, मुझे तो शलखन भी है। मैंने शर्र कह , नहीं, नहीं, आज नहीं हो सकत है, आज कुछ और क म है। पर बआ ु म नी नहीं, और मेरी तो इच्छ थी ही। (दरअसल मुझे इस शर्ल्म क र्स्टा डे र्स्टा िो देखन थ पर ये हो नहीं सक ।) खैर, मेरी बुआ मुझे शपक आप करने आई।िं कुल नौ लोग थे। च र पच स शपक्गचर क समय थ । उसी समय मेरी पड़ोसी की लड़की आ गई। उसे ग्र मर में कुछ समझन थ । मैं उसको बोली भी शक अभी हम लोगों को शनकलन है छोटी, तुम कल आन । वह बेच री


रुआस िं ी हो गई, क्गयोंशक उसक एक टेस्ट कल ही है।(अब तो "आज" हो गय , ब रह से ज्य द हो गये न!) मैंने चलते हुए जल्दी-जल्दी उसे बत शदय । उससे मैंने कह शक तुम पहले आती न। अब ल स्ट ममु ेंट में आ रही हो। वह बोली शक आप तो हमेि शकसी न शकसी क म में शबजी रहती हैं। आज भी मैं आई थी पर आप नहीं थीं। तो जब मैं ख ली बैठूिं, तब आओ न! अच्छ , अब तुम्ह र प्रॉब्लेम सल ु झ गय न। ज ओ अच्छ से टे स्ट देन । पर शर्र उसने मेरे स मने एक नय सव ल पेि कर शदय । इस ब र शहन्दी व्य करण से। मझ ु े देर हो रही थी, शर्र भी मैं धीरज बन ये रखी। वह शहिंदी मुह वरों क अथा ज नन च ह रही थी। पहले उसने पूछ द िंत क टी रोटी क मतलब। मैं उसे बत ई शक बहुत गहरी दोस्ती को कहते हैं, जैसे ... तुम और चल ु बल ु हो न, वैसे ही। शर्र उसने ह थ धो कर पीछे पड़ने क मतलब पूछ । (जैसे शक वह मेर टे स्ट ले रही हो।) वो भी मैं उसे समझ दी, जैसे शक तुम मेरे पीछे ह थ धो कर पड़ी हो, ठीक वैसे ही। इधर सोनल, मेरी बुआ क लड़क और ररच , उसकी पत्नी मुझे ब र-ब र त शकद कर रहे थे। छोटी सचमच ु मेरे पीछे ह थ धोकर पड़ी थी। इस ब र उसे नौ दो ग्य रह क अथा समझन थ । मैं ने

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कह , ठहरो, इस ब र मैं तुम्हें मुह वरे क मतलब समझ ऊिंगी नहीं, शदख ऊिंगी। मतलब??? पूछ उसने। मतलब शक भ ग ज न , वह भी तेजी से। और वह ऐसे...। इतन कह कर मैं ग ड़ी में बैठी और ये गई वो गई, य शन, शपक्गचर के शलए हम लोग नौ दो ग्य रह हो गये। िक्र ु थ शक हम समय पर पहुच िं गए। इतन ही नहीं, र त में एक जगह शनमिंिण भी थ । उसमें भी ज न पड़ । अब आप जरूर पूछेंगे, कौन स मुवी देखें (शजस पर इतनी कह नी बन गई)। तो शमिो, पहल मुवी देखी--दे दे प्य र दे,। और दूसर --प्र इम शमशनस्टर नरेंद्र मोदी। (शजनके शलए मझ ु े नौ दो ग्य रह होन पड़ ।) यह आज क व कय ( नहीं, नहीं कल क ) अक्षरि: सत्य है। शजन्दगी में ि यद यह दूसर मौक है जब एक शदन में दो शसनेम देखी। चलते-चलते ये भी बत दूिं शमिों, शक आज भी शपक्गचर क प्रोग्र म है, पौने दो बजे से है--स्टुडेन्ट ऑर् द ईयर 2... अरे, अरे, मैं जल्दी से नौ दो ग्य रह हो ज ती हिं, वन ा सब लोग पकड़ कर मझ ु े प गलख ने में भती कर देंगे।


क्गयों नौ दो ग्य रह होन ? रशश्म लत शमश्र िड़ा आसान िै कतथव्य पर् छोड़ नौ दो ग्यारि िोना। ऑहफस की सीटों पर आना िी िारि िजे,

दाल, सहब्जयों का नौ दो ग्यारि िोना। ि​िाजन को देखते िी ऋणी का नौ दो ग्यारि िोना चोर को देखते िी पहु लस का

और िेढ़ िजे नौ दो ग्यारि िोना

नौ दो ग्यारि िोना

सड़कपर तड़पती हजन्दगी कोदेख

हशकारी को देखते िी

लोगों का नौ दो ग्यारि िोना। िजदरू ी करा लेने के िाद,

हशकार का , नौ दो ग्यारि िोना।

ठे केदार का नौ दो ग्यारि िोना। जीतने के िाद हिधायक का,

अपनी-अपनी िजिें िै नाि िै िजिरू ी,

क्षेि से नौ दो ग्यारि िोना।

नौ दो ग्यारि िोना

सि के दौरान ससां द से

नौ दो ग्यारि िोना।

नेताओ ां का नौ दो ग्यारि िोना। ि​िगां ाई की िार र्ाली िें से,

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नो दो ग्य रह अशवान गहलोत प्रय गर ज उछल कूद कर घर िें उत्पाद िचाता अपनी आाँखे गोल घिु ाता िोका हिलते िी कपड़े कुतर जाता करता िै ि​िुत सि को परे शान सहु नए जी चिू ा िै िेरा नाि घर िें एक आई हिल्ली रानी उसने चिू ों को खाने की ठानी घात लगाकर िैठ गई चिू े ने की ताका-झा​ांकी हिल्ली देख घिराया चिू ा पछ ू उठाकर हिल िें भागा िार् िलती रि गई हिल्ली चिू ा िो गया नौ दो ग्यारि

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


घनचक्गकर रशश्म शसन्ह ि​िुत सर खजु ाया, पर ये राज, सिझ न आया, 9+2 तो 11 िोते िैं, नौ, दो, ग्यारि, भागने के क्यों काि आया? लगता िै ि​िु ािरे गढ़ने िाले, हदिागी घनचक्कर र्े, नौ दो ग्यारि के िाद, रफू चक्कर िी उनको सिझ िे आया अि "रफू" िें क्या चक्कर िै, भगाने िें इनका क्या चक्कर िै? सि कुछ उल्टा-पल्टा िै, िो देखो---सर पर पािां रख कर भाग रिे िैं, िेरे िन िे, हिहचि-हिहचि प्रश्न जाग रिे िैं हकसी ने पािां िी सर पर रख हलए तो, िो भागेगा कै से? किीं कोई दिु को दिा कर भाग रिा िै, भागने के , नए तरीके तलाश रिा िै, कभी जि दो भागते िैं, तो नजर न आने के हलए,

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

दररया की िी शरण पाते िैं। और नौ दो, ग्यारि िोने िाले, धिकी भी पाते िैं--भाग कर जाओगे किा​ाँ िच्च,ू पाताल से भी खोज हनकालेंग-े -गोया हक नौ, दो ,ग्यारि िालों के छुपने का, एक अि्िा पाताल-पर क्यों निी इन रफूचक्कर िालों को, सीधे तरीके नजर आते िैं, उदािरण सिक्ष िै, सर पर पैर रख कर भागो, या िो जाओ नौ दो ग्यारि, नीरि िोदी, हिजय िाल्या, िेिुल चौकसी, लहलत िोदी, िोना चाहिए आदशथ तम्ु िारा, ि​िा िें उड़ जाओ, सार् िे िाल भी ले जाओ, और गाओ---चलती िै क्या नौ से िारि☺️


नौ दो ग्य रह ज्ञ न शप्रय हपांकू ि​िलू र्े िड़े उदास क्योंहक हनकलने िाला र्ा उनका पररणाि आज फे ल िोने का जो िर सताए खाना पीना भी अि उनको ना भाए जो परीक्षा के सिय करी र्ी उन्िोंने शरारत आएगां े कै से नांम्िर सोच के चढ़ा र्ा उनको िरारत सोचकर आज तो उनकी खैर निीं िम्िी पापा की लाठी से अि ि​ि दरू निीं िर से िढ़ता जाए उन्िें पसीना कुछ ना सझू े अि उनको ि​िाना िस िन िें िार-िार एक ख्याल आये इससे िचने के हलए क्यों ना नौ दो ग्यारि िो जाएां

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह रूपल उप ध्य य िा​ां िैं लोगों के चेिरे पर िस्ु कुरािट लाना चािती िां ! अपनी प्यारी रचनाओ ां से िी सिी इश्क और प्रेि की पिचान कराना चािती िां ! निीं देखना चािती उदास िैठा िो एक कोने िें किीं उस रूठे चेिरे को िनाना चािती िां ! ि​िकता रिे आगां न ऐसी ि​िार लाना चािती िां शल ू हिन सिु ास निीं ये पाठ पढ़ाना चािती िां ! एक अनार् िच्चे को िीठी लोरी सनु ाना चािती िां उसको आहलांगन कर सिां ल िनाना चािती िां ! एकल िा​ां िाप को झठू ी पाती पढ़कर सनु ाना चािती िां हजनका कोई ना िो उनका सिारा िनना चािती िां ! हनराश िैठे व्यहि की प्रेरणा िनना चािती िां िैरागी के जीिन िें आशा का सांचार करना चािती िां ! िताश िुए िच्चों का िनोिल िढ़ाना चािती िां ि​ि को िराकर िर दख ु को नौ दो ग्यारि करना चािती िां !

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह होन अिोक खरबिंद नौ दो ग्यारि किाित तो सनु ी र्ी पर प्रत्यक्ष प्रिाण कभी न देखा र्ा सि सख ु के िोते िैं सार्ी दख ु िे तो अपनी परछाई भी सार् देती िै छोड़ इसका प्रत्यक्ष प्रिाण िैने स्ियां अपनी आख ां ो से उस हदन देख हलया,,, ि​िारा घर िेन रोि पर िै सािने से िी िारात जा रिी र्ी ढोल की आिाज सनु कर ि​ि िालकोनी की लपके सि िाराती िस्ती िे नाहगन गाने पर लिराते िुए नाच रिे र्े हक अचानक तेज ि​िा चलने लगी िोटी िाररश के सार् ओले िरसने लगे सभी सगे सम्िन्धी पररिार दोस्त यार दल्ू िे को िीच सड़क पर छोड़ नौ दो ग्यारि िो गये ति िैं िस्ु कराया और िन िी िन गाया कसिे िादे प्यार िफा सि िाते िैं िातों का क्या,,,, कोई हकसी का निीं ये झठू े नाते िै नातो का क्या!!!!

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह होन शवध - पद्य प्रक ि चन्द्र प ण्डेय

िेिनत करने िालों की, िट्ठु ी िें उगता सोना, (स्िणथ) हकतने िी तफ ू ा​ां आये, धीरज कभी ित खोना। हिट्टी तेरी किथ की िेदी, किथ के िीज िी िोना, भाग्य भरोसे कुछ न पायें, जोश कभी कि िो ना। िदलो हनज िार्ों से हकस्ित, छोड़ो यि रोना-धोना, किथ िी तेरा सांगी सार्ी, इक हदन सभी कुछ खोना। गैरों के िलितू े पर त,ू कभी न अि​ि सांजोना, किथ की नाि कभी न िूिे, जीिन िने सलोना। पाप का ि​िन करो ि​िेशा, पण्ु य को लेकर सोना, (हनद्रा) तेरी चाकरी आप िी िोगी, शहां कत कभी न िोना। हफर क्याँू िढ़ू करे तू हचन्ता, खोलो हदल का हिछौना, िझु हदली िै किथ से िरकर, नौ दो ग्यारि िोना।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


स ड़ी रेणुक शसन्ह लड़हकया​ां िचपन से िी श्रांगार की शौकीन िोती िैं। कभी गहु ड़या को सजाती िैं तो कभी िा​ाँ की हलपहस्टक लगाकर आइने िें खदु को हनिारती िैं। घरौंदे िें छोटे - छोटे ितथनों िें खाना िनाना, ऊन के टुकड़ों को जोड़कर िनु ाई करना ये सारी औरतों िाली कायथ छोटी उम्र िें लड़हकया​ां अक्सर हकया करती िैं। िाला​ांहक िड़ा िोने के िाद भी ये सारी गणु . उनिें हिद्यिान िो ऐसा जरूरी निीं। िैं भी िचपन िें एक शौक पाल रखी र्ी नयी साड़ी लेने का। िा​ाँ, चाची अपनी साड़ी िझु े देती र्ीं इसे रख लो। लेहकन निीं िझु े िेरी पसदां की साड़ी खरीद कर चाहिए। िेरी उम्र उस सिय आठ नि िषथ की िोगी। अि इस उम्र िें साड़ी खरीद कर कौन हदलिाता िै। एक िार िैंने हजद हकया हक िझु े दोनों िार्ों िें परू ी कलाई भर कर चड़ू ी पिननी िै। िो तो परू ा कर हदया गया। लेहकन साड़ी हदलिाने के हलए कोई तैयार निीं र्ा। िेरे पररिार िें जि कोई ररश्तेदार आते र्ें जाते सिय िच्चों के िार् िें रुपये हदया

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

करते र्ें। िझु े एक िार उनलोगों के द्वारा तीस रुपये हिले। िैं हजद करने लगी इन रुपयों से िैं साड़ी खरीदगांु ी। सांयोगिश उसी सिय घर के सािने से एक फे रीिाला हचल्ला रिा र्ा साड़ी खरीदें। िैं दौड़कर उस साड़ी िाले को िल ु ा लायी और दीदी के िदद से तीस रुपये िें एक साड़ी खरीद ली। साड़ी िाला पैसा हिलते िी नौ दो ग्यारि िो गया। जि िैं िा​ाँ को साड़ी हदखाई तो िा​ाँ हचल्लाने लगी - "जल्दी उस साड़ी िाले को रोको। ये तो पाहलश िाला साड़ी दे हदया िै। पानी िें िालते लगु दी िन जायेगा।" दीदी ने साड़ी का एक हसरा जैसे िी पानी िें िाला साड़ी जर-जर िो गया। िैं और दीदी उसे ि​िुत जगि ढुांढने की कोहशश की लेहकन ि​ि निीं हिला। िैं घर आकर रोने लगी। सि सिझने लगे पर िैं रोये जा रिी र्ी। हपताजी ने उसी रात एक नयी साड़ी खरीद कर िझु े हदया। िैं शान्त और खश ु िो गई। िैं साड़ी पकड़ कर चपु चाप सो गयी।


नौ दो ग्य रह जय य दव

हिनती करते िार् जोड़कर सनु लो िन्धु िचन ि​िारा िे अहतहर् अि कृ पा करके तिु िो जाओ नौ दो ग्यारि आते िो खहु शया​ाँ लाते िो ि​ि सिके िन को भाते िो उपिारों की खोल पोटली सिके िन को िषाथते िो हफर िोती िै घिु ा घिु ाई सि खाते िैं खिू हिठाई हफल्िें देखीं जलसे देखे हखले पोस्टर फटते देखे चलें किीं ये छोड़ छाड़ कर ि​ि के गोले फोड़ फाड़कर लालचनु ररया ओढ़आढ़कर नाते - ररश्ते तोड़ ताड़ कर भल ू गये तिु िाहपस जाना खत्ि िो गया भाई चारा।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

िे अहतहर् अि कृ पा करके तिु िो जाओ नौ दो ग्यारि ।। अि तो घर िें काि ि​िुत िै उफ िािर गिी घाि ि​िुत िै आईस्क्रीि का दाि ि​िुत िै छत पर िी आराि ि​िुत िै कभी ि​िें भी गा​ाँि िल ु ालो नीि की ठाँ िी छा​ाँि िल ु ालो घटु िा कर िादािी ठाँ िाई खीरे ककड़ी आि िाँगालो िा​ाँ का गस्ु सा िढ़ता जाता पापा का िीपी िढ़ जाता पानी हदखा रिा िै नखरे जन जन को अि ये अखरे अि तो घर की करो िापसी सिझ जाओ खािोश इशारा। िे अहतहर् अि कृ पा कर दो तिु िो जाओ नौ दो ग्यारि ।।


घर की सरक र भुवनेश्वर चौरशसय ‘भनु ेि’ एक और एक ग्यारि िोने से पिले छे पाच ां ग्यारि िो गया दस अि तक रूठा िुआ र्ा तभी सात और चार आगे आ गया नौ दो ग्यारि ने पिले िी िगाित कर दी र्ी सिसा सात आगे आ गया और िोला अरे िेरे दो तीन छोटे भाई िैं आप सभी इन्िें िी आगे कर दो िेरे हलए यिी ि​िुत िै तभी दस और एक िोल पड़ा तम्ु िें िस अपनी पड़ी िै और लोग भी िैं तभी आठ और तीन ने आगे िढ़कर िोचाथ सांभाल हलया चार अभी तक सोच िी रिा र्ा नौ दो ग्यारि ने हिलकर सरकार िना ली।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


मख ु ौट ज्योत्सन पॉल

िोट िा​ांगने आये ि​िां ी ि​िोदय एक हदन सिेरे सि के द्वार, िार् जोड़कर किते सिसे दे देना िझु े िोटों का उपिार। इस िार िझु े जीता देना आप सि िो िेरे भगिान, आपके हिना इस दहु नया िें निीं िै िेरी कोई पिचान। सनु ो िाता जी, सनु ो ि​िना सनु ो भाइयों िानो िेरा किना, इस िार िझु े जीत िाहसल िुई तो झोपड़ी िें तिु ना रिना। पक्का िकान िनिा देंगे हिलेगा िफ्ु त िें राशन पानी, िैंक िें छः िजार िलिा देंगे हकसी को निीं िेिनत करनी।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

तभी भीड़ िें से अम्िा िोली झठू ा त,ू झठू ा तेरा आश्वासन, एक िार जो िन गया ि​िां ी भख ू ों को हिलेगा न भोजन। इस िात की क्या िै गारांटी िैंक िें िर ि​िीने रुपए आएगां ,े गरीिों के हिस्से के सि रुपए ि​िां ी लोग हिल िा​ांटकर खाएगां े। िख ु ड़े पर पिन आते िो िख ु ौटा पिचानते िैं खिू तम्ु िारी जात, तिु दो कौड़ी के भीख िगां े िो यिी िै तम्ु िारी असली औकात। सनु ते िी अम्िा की सच्ची िात ि​िां ी का िख ु ड़ा िुआ काला स्याि, आख ां ें चरु ा कर ि​िांु फे र कर ि​ि दिु दिाकर िुआ नौ दो ग्यारि।


नौ दो ग्य रह होन उत्तर िम ा स झी बेटी

िौहलक िै िै अस्पताल िे पिले हदन ग ई र्ी| िै न ई र्ी| गॅ|ि से आई र्ी| िझु े िर के िारे घिरािट िो रिी र्ी | िैने िैल िजाई ररसैप्शन पर सफे द कोट िाले हसस्टर िैठी र्ी | और पशैण्ट भी िैठे र्े| िै एक कुसी खी*च कर िैठ ग ई| लेिी िाक्टर आई**िै िैठी रिी | उन्िोने िझु े अदां र िल ु ाया पछ ू ा क्या पैिले भी किी नौकरी की िै? िैने ना िे हसर हिला हदया| ि​ि गस्ु से से िोली ऐ पदे को िार् ित लगा| पदे ि​िुत साफ िै नये िै गदां े िो जायेग|े िैने एक दि पदाथ जो िार् िे पकिा िुआ र्ा छोड़ हदया| उसने दो चार िाते पछ ू कर िझु े रख हलया| िै ि​िुत खश ु र्ी| िा०ने आिाज लगा कर नसथ को िल ु ा या किा ये न ई लड़की िै| इसे ि​िने तम्ु िारे सार् रखा िै| इसे सारा अस्पताल हदखा दो| िािथ रुि भी िार्रुि और ऑपरे शन हर्येटर |

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

िै उसके पीछे -पीछे चल रिी र्ी| िैने पछ ू ा=हसस्टर िार्रुि किा िै? ि​ि पीछे ि​िु ी. और िझु े इतनी जोर से ऑपरे शन र्ीयेटर िे धक्का हदया िै सांभल भी न सकी र्ी| और धिा.ि से फशथ के ऊपर जा हगरी | िै उठी और कपिे. साफ करने लगी| िै तिाि हदन सोचती रिी हक िताऊ*या ना िताॐ िेरा पैिला हदन ि​िुत खराि गया र्ा| अगले हदन की िात र्ी| िै ररसैप्शन पे िहस्ट*ग कर रिी र्ी| सीिा िोली िै हकसी से निी िरती चािे तू िो िात हकसी को िता हदयो| हजसको िताएगी उसके भी हसर िे िै जतू े लगाॐगी आज इस िात को तीस िरस िो गये| जि लेिी िा०आई तो चपु चाप ि​ि नौ दो ग्यारि िो ग ई जैसेकुछ िुआ िी न िो| ि​ि परू ा एक िफ्ता ियहू ट पर निी आई| आज हदल करता िै उसे पछ ू लू हक जि तो शादी निी िुई र्ी| िै पछ ू ती ि अि क्या िाल िै? खश ु िै?


नौ दो ग्य रह अलक जैन कुछ भी असभां ि निीं हकसी काि से जी न चरु ाना यहद चािो सफलता पाना कहठन तपस्या िेिनत लगती एक काियाि व्यहि िनने िें एक असल ू िना लो अपना कुछ भी असभां ि निीं दहु नया िें गर सोते िो तिु 10 घटां े सोने लगो 8 घटां े हफर भी यहद सफलता न हिले तो 1 घटां े और कि कर दो सोना देखा तिु ने राजन को हदिाली पाटी िें तो आगे से आगे आया सफाई का सिय तो िो गया ि​ि नौ दो ग्यारि काि से कभी भी जी न चरु ाना निीं तो पड़ेगा पछताना

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


शनरिंतर प्रय स तू कर कुम र सदिं ीप मुजफ्र्रपुर शबह र

िहां जल की राि िें का​ांटे िोगी

आईने िें हचि हदखता िै चररि निीं

कभी हदन अाँधेरा,

इसां ानों िें इसां ाहनयत िची निीं,

कभी रात काली िोगी,

िालातों से अि सभी जल्द टूट जाते िैं,

न िारना हिम्ित िहु श्कलों से,

िहु श्कलों से नौ दो ग्यारि िोने की िजाए,

नौ दो ग्यारि िोने की िजाए

िहु श्कलों का सािना कर,

िहु श्कलों का सािना कर,

िोगा सफल हनहित िी,

िोगा सफल हनहित िी,

िस हनरांतर प्रयास तू कर।

िस हनरांतर प्रयास तू कर।

सफलता की िगर पर हिलती िै परे शाहनया​ां िजार

सफलता पाना यांू आसान निीं िोता िहु श्कलों से जझू ना पड़ता िै, प्रहतकूल िालातों से लड़ना पड़ता िै,

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राि भटके िुए को सिी राि हदखाए,ां जीिन िें अपनी एक अलग पिचान िनाए,ां

िहु श्कलों से नौ दो ग्यारि िोने की िजाए,

िहु श्कलों से नौ दो ग्यारि िोने की िजाए,

िहु श्कलों का सािना कर,

िहु श्कलों का सािना कर

िोगा सफल हनहित िी,

िोगा सफल हनहित िी,

िस हनरांतर प्रयास तू कर।

िस हनरांतर प्रयास तू कर।

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह ड . शदव्य जैन धवन

अितार पाल ि का​ांदू जी के लेख हनि​िां ण को स्िीकारा।

पिुचाँ ेगे ि​ि सि नौ से िारि चल िो जाये नौ दो ग्यारि ।।

पिुचाँ ा िचपन की गहलयों िें हलखने िैठ गया िन िेचारा।

धोिी के कपिे हगनिा कर सब्जी िाले को िल ु िाया ।

भरी दपु िरी आि िाग िें

जरूरी सारे काि हनपटा पर

हफर आ टपका ये रखिारा।

अधरू ा सा कुछ हलख कर िारा

छुप के उतरो एक एक करके चल िो जायें नौ दो ग्यारि।।

दधू िाले की पक ु ार सनु ितथन छन्नी ले कर भागा

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छुट्टी िाले हदन नयी हपक्चर की

देख िाई को ग्लास तोिते

ग्रपु हटकट छुप के िक ु कर ली

हिचार िो गये नौ दो ग्यारि

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह होन प्रीती श्रीव स्तव सच्चाई की राि पर...... तू िटा रि िे िनष्ु य......... कोहशशों की दौड़ िे...... पराजय िोगी नौ दो ग्यारि...... िहु श्कलों की राि पर........ तू सतत िढ़ता जा पहर्क....... नौ दो ग्यारि िोंगीं िाधाएाँ सभी...... गर हिम्ित और सािस सार् िैं..... हनहित िोगी "हिजय श्री" तेरी..... हनराशा िोगी नो दो ग्यारि..... जग िे िोगी शाहन्त..... अशाहन्त िोगी नौ दो ग्यारि।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


वो बीते पल बबीत किंसल िो िीते पल िचपन की यादें सताती िड़ी

खेतों िे खाते र्े गन्ने सदी िे

अपने गा​ाँि िे अि ना दादी रिी

ना अि िागों िे िीठी जािनु रिी

ना हसर पर अि कच्ची छतें

िीठे िीठे आि िा​ाँटते र्े जन िे

घर की कच्ची दीिारें रिी ना अि दादी के िार्ों के लि्िू ना चल्ु िे िें पकती रोटी की खश ु िु रिी अि िो गली िौिले ना रिे जिा​ाँ खेला करते र्े हपट्ठ िांधा सा िैं सि पिली सी आपसी तालिेल ना रिी िनाते र्े सि सार् सि त्यौिार अि िो ढोल िजां ीरे रिी सीहपया​ाँ घन्टो इक्टठा करते र्े सखीयों सांग ना िो नहदया​ाँ के तीरे रिे ना िो कुएाँ अि िै ि​िा​ाँ पर ,ना खेतो िे रिट की आिाजें रिी

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

अि ना आपसी सौिादथ रिी गाती र्ी गाना कोयल िाल िाल ना अि पिली सी चीची करती गौरया रिी िो िीते पल गा​ाँि के याद आने लगे िस्ु कुरािट िेरे चेिरे पर आ गयी चले गये सि गा​ाँि छोड़ कर गा​ाँि िे अि पिली सी ना चिक रिी यिी िात हदल को रूला दे रिी िो िीते पल पलट कर ना देखो सांजोए िर्ेहलयों िे रखो िचपन की यादे हिखर किी ना िो जाये नौ दो ग्यारि ......।


नौ दो ग्य रह िील शनगम जाना र्ा नौ से िारि िो िो गये नौ दो ग्यारि.

हिले दोस्त तो िुआ जश्न सिकी िो गई पौ िारि. अि न हिले हगला निीं, कभी तो हिलेंगे दोिारा.

जायेंगे हफर नौ से िारि, न िो जाना नौ दो ग्यारि.

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नौ दो ग्य रह होन ड ाँ. कनक प शण जि आपने हकया िै आिहां ित , सार्थक साहित्य िचां पर आना िै अपना जलिा हदखाना िै हफर कुछ तो गल ु हखलाना िै अश्कों के िोती चनु ने िैं शब्दों के जाल िनु ने िैं कुछ छांदों को हिलाना िै भािों को भी दशाथना िै हदल आपका जीत लेना िै अपना पौ िारि िो जाना िै आपकी प्रशसां ा पाना िै और हफर नौ दो ग्यारि िो जाना िै ।

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


नो दो ग्य रह होन शमली अशनत एक िा​ाँ की परिररश की िेितरीन पिचान यिी िोती िै उसके िच्चो की अच्छी परिररश देख उाँ गली उठाने िाले चांद लोग भी चांद पलों िें िी नौ दो ग्यारि िो जायें !! एक हपता का तभी सम्िान िढता िै जि िच्चे हपता से ज्यादा सफल िोकर सिाज के आलोचनाओ ां को नो दो ग्यारि कर दे !! एक िेटी तभी सिी िायने िे ""सिी िोती िै जि िो ससरु ाल िें हिपरीत पररहस्र्हतयों िें भी धैयथ से सभी का सािना कर ""िा​ाँ हपता के सस्ां कार पर उठे सिालों को नो दो ग्यारि कर दे !! िा​ाँ हपता को तभी सक ु ू न हिलता िै जि िुढापे िें िो अपने िच्चो के भी िच्चो से प्यार िान सम्िान पा ले तो हजांदगी से सारी तकलीफो को नो दो ग्यारि िोना िी पड़ेगा ... ि​िगां ाई की िार र्ाली िें से, दाल, सहब्जयों का नौ दो ग्यारि िोना। ि​िाजन को देखते िी ऋणी का नौ दो ग्यारि िोना चोर को देखते िी पहु लस का नौ दो ग्यारि िोना हशकारी को देखते िी हशकार का, नौ दो ग्यारि िोना। अपनी-अपनी िजिें िै नाि िै िजिूरी, नौ दो ग्यारि िोना नौ दो ग्यारि िोना। 66 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


शादी की पिली सालहगरि िा​ाँ. कनक पाहण आज रचना और कहपल के शादी की पिली सालहगरि र्ी । दोनों ि​िुत खश ु र्े । कहपल ने दफ्तर से आते िी रचना ! ये देखो क्या िै - किते िुए अपनी जेि से ि​िू ी का दो हटकट हनकालकर रचना के िार् िें र्िा हदया । रचना के चेिरे पर खश ु ी छा गई । परन्तु अगले िी क्षण पछू िैठी - और आपकी तरफ से िेरा उपिार ? कहपल िस्ु कुराते िुए िोला - ऐसे निीं , पिले अपनी आाँखें िदां करो । रचना ने आाँखें िदां कर ली । कहपल ने अपने िैग से हनकालकर एक सोने का खिू सरू त िार उसे पिनाते िुए किा - अि अपनी आाँखें खोलो । रचना ने आाँखें खोली तो उसके खश ु ी का हठकाना न रिा । यि ि​िी िार र्ा हजसे हपछले िफ्ते ि​िुत पसांद आने के िािजदू पैसे के अभाि िें ि​ि निीं खरीद पाई र्ी ।

हफर दोनों िािर हनकल कर िाईक पर सिार िो ि​िू ी देखने चल पड़े । दोनों ने ि​िू ी देखने के िाद रे स्टोरें ट िें खाना खाया और हफर घर की ओर चल पड़े । चौरािे के पास काफी जाि लगा र्ा । इसहलए कहपल ने िाईक रोक दी । इतने िें एक नियिु क जाि के िीच से पैदल चलता िुआ उनके पास आया और रचना से िोला भाभीजी , आपकी साड़ी नीचे से िाईक िें फाँ सी िुई िै । रचना झक ु कर अपनी साड़ी देखने लगी ।तभी ि​ि रचना का िार झपटकर पीछे की ओर दौड़ पड़ा । उसका सार्ी र्ोड़ी िी दरू ी पर िाईक लेकर उसका इतां जार कर रिा र्ा । रचना जि तक कुछ सिझ पाती और शोर िचाती , दोनों झटपट िाईक पर सिार

िोकर नौ दो ग्यारि िो गए ।

नौ दो ग्य रह पदम अग्रव ल हचलहचलाती धपू िें भख ू से िेिाल हसयार एक पेड़ के नीचे आकर िैठ गया। उसने दृहष्ट ऊपर उठाई तो देखा- एक कौआ चोंच िें रोटी दिाकर िजे से िैठा र्ा। हसयार के िाँिु िें पानी आ गया। उसने रोटी िड़पने की एक तरकीि हनकाली। उसने कौए की तारीफ िें किा हक तुि आसिान को छू सकते िो और ि​िुत सांदु र गाना गाते िो। िैं तुम्िें 67 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

अपना गरु​ु िनाना चािता िाँ क्या तिु िझु े भी उड़ना और गाना हसखा सकते िो? अपनी तरफ सनु कर कौआ फूलकर कुप्पा िो गया और पेड़ पर नाचने लगा। जैसे िी उसने गरु​ु िनने की िािी भरी, रोटी उसके चोंच से हगरकर हसयार के ि​िाँु िें आ हगरी। रोटी पाते िी हसयार नौ दो ग्यारि िो गया।


अरम न सुषम शसिंह क नपुर

सभी भारतीय व्यांजन हकचन िें आराि फरिा रिे र्े। सिको यिी हिश्वास र्ा हक ि​ि भारत िाहसयों की नस-नस िें रचे -िसे िुए िैं, तो ि​िे छोड़कर ये लोग किीं निी जाएांगे। गेिां ने किा हक िेरे भाि न िढ़ जाएां ,इसहलए िाहलक ने ि​िको िई िें िी साल भर के हलए एकि कर हलया िै। चािल िोला हक िेरे सार् तो घनु भी आ जाते िैं हफर भी ि​िको कपरू हिलाकर एकि कर हलया िै। दाल िोली िैं तो र्ाली की रानी िाँ ,िेरे हिना तो र्ाली सनू ी रिती िै। िसाले भी किा​ाँ पीछे रिने िाले र्े,िोले भोजन की जान तो ि​ि लोग िी िैं, ि​िारे हिना तो कोई टेस्ट िी निी आएगा। आलू ि​िन ने भी छक्का िारा कचौड़ी, सिोसा,सब्जी ,पराठा िोसा सि िे िेरा राज िै, िेरे हचप्स के तो लोग दीिाने िैं।

प्याज,लिसनु ,हिचथ तीनों एक सार् िोले,जि तक िेरा तड़का निी लगेगा,न दाल न शब्जी हकसी का कोई िल्ू य निी िै। तेल ि​िाराज दिाड़े, हिना िेरे तुि लोग पक जाओगे क्या? निक िोला खािोश!जिा​ाँ तक नजर जाती िै िेरा िी िोलिाला िै।िेरे हिना हकसी की कोई औकात िै क्या?चले आते िैं पता निी किा​ाँ किा​ाँ से। चीनी ने िड़े प्यार से पचु कारा, निक भाई शा​ांत िो जाओ सिकी अपनी अपनी उपयोहगता िै। जि इसी हकचन िें रिना िै तो प्यार से रिो।चलो सि हिलकर िालहकन से किते िैं हक आज क्या िनाएगां ी। जैसे िी सि पिुचां े देखा! िालहकन ऑनलाइन हपज़्जजा ऑिथर कर रिी र्ी। हपज़्जजा का ऑिथर सभी के अरिान आसां ओ ु िें हभगो देता िै। सि ि​िा​ां से रोते िुए चपु चाप ,"नौ दो ग्यारि"िो हलए।

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ढोगी ब ब हेम शिवेदी

गौर िणथ का शरीर, उन्नत ललाट पर लम्िा टीका.. उसके सार् पिना गेरूआ रांग का कुताथ और गेरूआ िी अांगरखा..गले िें रािनािी दप्ु पटा.. नीचे पिने सफे द धोती..,गले िें पड़ी कई सारी रूदाक्ष की िालाए.ां .दपथ से उनका िार्ा चिकता र्ा| खिाऊ खिखिाते िुए जि िो चलते तो एकिारगी को सभी की नजर उनकी तरफ उठ जाती र्ी..| लोग उनके िारे िें नाना प्रकार की िातें करते..,कोई किता "साई के अितार िै" और कोई हकसी दसु रे देिता का नाि लेता| किा​ां से आए र्े..यि हकसी को भी निी पता..| किते तो यिी र्े हक िेरा जन्ि किा​ां िुआ यि िझु े िी निी पता| गा​ांि िें िी कुछ चेले-चपाटे िना हलए र्े| गा​ांि िें िी चेलों ने रिने, खाने-पीने की व्यिस्र्ा कर दी र्ी| ि​िी गा​ांि िें नीि के पेड़ के नीचे उन्िोंने अपना साम्राज्य स्र्ाहपत कर हलया र्ा| चेले तो र्े िी प्रचार करने िें तेज 69 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

उन्िोंने गा​ांि की भोली-भाली जनता को अपने हिश्वास िें लेकर िािा का गणु गान चारो तरफ फै लाना शरू ु कर हदया..| अि तो िािा की पौ-िारि िो गई अच्छा खाने-पीने से चेिरे िें एक अलग िी तेज आ गया र्ा,शरीर भी भर गया र्ा| रूदाक्ष की िालाओ ां का स्र्ान सोने की िोटी-िोटी चेनों और िालाओ ां ने ले हलया र्ा..| पिले जिा​ाँ हदनभर चलते-हफरते र्े..| ि​िी अि नीि के पेड़ के नीचे सिु ि सात से लेकर रात नौ िजे तक पिें रिते.. "उप्स सारी!" प्रिचन देते लोगो की सिस्याओ ां का सिाधान करते.. अपनी कई भहिष्यिाहणयों के सिी हसद्ध करके लोगो के िीच अपनी अच्छी पकड़ िना ली र्ी| एक हदन गा​ांि िें नीची जाहत का शिर से पढ़ा हलखा नौजिान आया..|


पिले तो िािा के चेलो ने उसे िािा से हिलने िी निी हदया हकन्तु जि उसने किा​ां हक ि​ि िािा के हलए शिर से कुछ लाया िै तो उसे हिलाने को तैयार िो गये..| उसने िािा के सम्िख ु जाते िी पिले तो दिां ित प्रणाि हकया..हफर अपनी जेि से हनकाल कर दस की गि्िी उनके चरणों पर सिहपथत कर दी| गि्िी देखते िी िािा के चेिरे पर ४४० िाट की िस्ु कान आ गई..| अि िािा भल ु गये हक यि नियिु क नीची जाहत का िै.| उसका िार् पकड़ कर उसे आपने करीि धरती िें हिठा हलया| अि ि​ि िािा से िोला. "ि​िाराज कई हदनों से एक प्रश्न हदिाग िें कुलिल ु ा रिा िै " आज्ञा िो तो पछ ांु ू .. िािा - िा​ाँ िच्चा पांछ ु जो तेरे िन िें िै? िािा नाि के सार् उपनाि लगाना..क्या जरूरी

और अधां हिश्वास को िढािा देने के एक साधन के हसिाय और कुछ निीं िै..| उपनाि का चलन िांद िोना चाहिए| ि​िात्िा जी िोले क्या जिाना आ गया िै "शिर से दो-चार अक्षर क्या पढ़ आए लोग कुल िांश को खत्ि करना चाि रिे िै|" ि​ि शाहां त से िोला... "नाराज ित िोइये ि​िात्िा जी!" सोहचए हक ि​िारे पिू थजों ने कौन सी अपनी जाहत अपने नाि के सार् लगाई हफर चािे िो ि​िात्िा िद्ध ु िो या िाखन चोर कृ ष्ण कन्िैया िो या हफर ियाथदा परु​ु षोत्ति. श्री राि िो ? रात तो िो िी गई र्ी िािा ने जम्िाई लेनी शरू ु कर दी..| ि​ि व्यहि िोला िैं कल हफर से आपके दरिार िें आऊांगा..| िझु े आशा िी निी अहपतु पणू हथ िश्वास िै हक आप िेरी इस शक ां ा का सिाधान जरूर करें गे| इधर ि​िात्िा जी को रात िें अपना फुल सा कोिल हिस्तर का​ांटो की सेज लग रिे र्े..|

िै..?

करिट पर करिट िदल रिा र्ा हकन्तु चैन निीं पड़

िािा के काटो तो खनु निी..हकन्तु अपने आप को सांयत करके िोले..."उपनाि व्यहि कुल िांश और गोि का पररचय कराने िाला िोता िै|" ि​ि व्यहि िोला "गलत"

रिा र्ा..| हफर ि​िात्िा जी ने कुछ हनिय हकया और आधी रात को िी अपना िोररया हिस्तर सिेट कर ि​ि उस गा​ांि से "नौ दो ग्यारि" िो गये|

उपनाि व्यहि के "आत्िश्लाघा

हकसी दसु रे गा​ांि की भोली-भाली जनता को िख ु थ िनाने|

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नौ दो ग्य रह होन म न काँ वर 'मैन '

रूपाली ने िािरिीं अस्सी प्रहतशत अांको से उत्तीणथ की तो उसके िम्िीपापा ि​िुत खश ु िुए। अि उन्िें हचतां ा सताने लगी हक आगे की पढ़ाई के हलये गा​ाँि िें कॉलेज निीं र्ा और ि​ि अपनी िेधािी िेटी को आगे पढ़ाना चािते र्े। रूपाली का दाहखला पास के शिर के सरकारी कॉलेज िें करिा हदया ।शिर जाने के हलये एक हकलोिीटर पैदल चलकर िस पकड़नी पड़ती र्ी। जि रूपाली के पापा घर पर रिते तो िस तक उसे छोड़ आते र्े िगर अपने काि के हसलहसले से ि​ि अक्सर घर से दरू रिते र्े। जि रूपाली पैदल जाती तो िीच िें सनु सान रास्ता पड़ता र्ा। गा​ाँि िोने के कारण ि​िा​ाँ आिागिन कि िी िोता र्ा हजस कारण उसे र्ोड़ा भय लगता र्ा। िगर कॉलेज तो ि​िेशा जाना पड़ता र्ा । एक िार पापा दस पन्द्रि हदन के हलये िािर चले गये। उस

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हदन रूपाली तेज तेज कदिों से अपने घर की तरफ आ रिी र्ी हक उसी सनु सान रास्ते पर एक आिारा लड़के ने उसका रास्ता रोक कर किा हक िैं तिु से दोस्ती करना चािता िाँ । ि​ि अजीि सी हनगािों से उसे घरू रिा र्ा । रूपाली ने किा िैं तुिसे दोस्ती निीं करना चािती। प्लीज िझु े परे शान ित करो। लड़के ने किा हक अगर िझु से दोस्ती निीं करोगी तो िैं तुम्िें रोज इसी रास्ते पर हिलगांू ा। रूपाली तेजी से भागते िुए घर पिुचां ी। घर पिुचां कर अपनी िम्िी को सारी िातें िताई। िम्िी ने किा हक तू हचतां ा ित कर कल िें आऊांगी तुन्िें लेने। दसू रे हदन हफर ि​िी लड़का उसी जगि रूपाली को छे ड़ने लगा तो उसकी िा​ाँ जो एक झाड़ी के पीछे हछपकर खड़ी र्ी िार् िें लाठी हलये हनकली और उस लड़के पर िरसाने लगी और िोली और छे ड़ेगा गा​ाँि की ि​िन िेहटयों को । ि​ि लड़का रूपाली की िा​ाँ का हिकराल रूप देख कर ऐसा नौ दो ग्यारि िुआ हक हफर कभी नजर िी निीं आया।


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नौ दो ग्य रह वरद न शसहिं ह ड पापा, िम्िा कि रिी िैं हक जा तेरे पापा के पास... ि​िी आई पापा की लाड़ली... कोई िात निीं िेटा िम्िा र्क गई िोन्गी... िा​ाँ िा​ाँ तिु सिकी दश्ु िन िैं िी तो ि.ाँ .. िाय राि िझु े क्या हिला इस आदिी से शादी करके ... पापा िम्िा झगड़ा कर रिी िैं... कोई िात निीं िेटा... उनके सारे सपने िझु से जड़ु े िैं... हजन्िें परू ा करना िेरी हजम्िेदारी िै... िा​ाँ िदहकस्िती से िैं उन्िें परू ा करने िें लेट िो रिा ि.ाँ .. पर परू ा करूाँगा जरूर... क्योंहक िेरे सारे सपने तिु से जो जड़ु े िैं... िैं अपनी हजम्िेदाररयों को छोड़कर कै से "नौ दो ग्यारि िो सकता ि.ाँ ..? "

नो दो ग्य रह अानीत शमश्र शसशि नारी अि अिला निीं

सभी दख ु ों को िर सकती िै ।

घर -पढ़ाई किाई

िार् इसे लगाकर देखो

सि कुछ कर सकती िै ।

पल िें करे गी पलटिार

शहि की अितार ि​िता की साँसार स्नेि की पतिार

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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

नो दो ग्यारि सभी िो जाओगे यार।


नो दो ग्य रह होन लक्ष्मी शमत्तल

उस हदन घर िापसी के िक़्त िैं तेजी से अपनी ररक्शा हलए अपनी खोली की तरफ जा रिा र्ा। िैंने देखा सड़क पर दो िट्टे-कट्टे से नौजिान, यिी िोंगें कोई उन्नीसिीस साल के , एक तेरि-चौदि साल के िच्चे से कुछ छीनाझपटी करते िुए उसे परे शान कर रिे िैं और ि​ि िच्चा एक िार् िें हिस्कुट का पैकेट और दसू रे िार् िें दधू की छोटी सी र्ैली सांभालने की कोहशश करता िुआ उनसे अपने आप को छुड़ाने की कोहशश कर रिा िै ।

“िो..... िो अक ां ल, ि​ि लोग सड़क के िाई ां ओर खाली पड़ी जिीन पर इकट्ठे गल्ु ली-िांिा खेलते िैं और आज िैंने उन्िें खेल िें िरा हदया र्ा तो शायद उसी के चलते ये िझु े परे शान कर रिे र्े।” सि​िे से उस िच्चे ने जिाि हदया ।

िैंने शीघ्रता से अपनी ररक्शा साइि िें लगाई और िीच-िचाि करने के उद्येश्य से उनकी तरफ दौड़ते िुए हचल्लाने लगा “अरे छोड़ो उसे, तिु क्यों िच्चे को परे शान कर रिे िो?क्या चाहिए तुम्िे इससे?” िेरे हचल्लािट सनु उनकी पकड़ िच्चे पर से र्ोड़ी कि िुई और िझु े पास आता देख, दोनों उसे धक्का दे भाग खड़े िुए।िच्चा अपने आपको सभां ाल निीं पाया और हगर गया िगर ि​ि ब्रेि और दधू की र्ैली को अभी भी कस के पकड़े िुए र्ा।िरा - सि​िा सा ि​ि िालक िझु े देखना शीघ्रतापिू थक उठ खड़ा िुआ और िेरी टा​ाँगों से हचपट गया।

“िेरी छोटी ि​िन भख ू ी िै और िा​ाँ की तहियत ठीक निीं िै इसहलए िा​ाँ के हलए दिाई और ि​िन के हलए दधू -हिहस्कट लेने आया र्ा।िो िेरी खोली के पास की दक ु ान तो िदां िो गई र्ी इसीहलए िहां दर के पास िाली िहनए की दक ु ान से लेने चला गया र्ा।“

“िेटा, ये दोनों कोन र्े?.... तुम्िें क्याँू परे शान कर रिे र्े?”उसकी पीठ सिलाते िुए िैंने उसे सिज करने की कोहशश की। 74 |

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक

“तुि इतनी रात को अके ले यिा​ाँ क्या कर रिे िो ?” िैंने

आियथचहकत िो पछ ू ा।

“चलो िेरी ररक्शा िें िैठो....िैं तुम्िें घर छोड़ देता ि।ाँ ” िेरे इतना किते िी ि​ि उछलकर ररक्शा िें िैठ गया। उसके चेिरे की िस्ु कान साफ िता रिी र्ी हक उसका िर नो दो ग्यारि िो चक ु ा िै


नो दो ग्य रह डॉ अनपु म कुलश्रेष्ठ

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नो दो ग्यारि िो गए,

ऊपर से शाि हदखें,

कर जनता पर चोट।

अांदर से िैं चोर।

िख ू थ िना कर ले गए,

अांदर से िैं चोर,

नेताजी हफर िोट।

कुकिी परू े िोते।

नेताजी हफर िोट,

करिा देतें िैं ित्या,

नजर ना हफर आएांगे।

हफर घर जाकर रोते।

जि हिलने जाएगां े

कि अनपु ि कहिराय,

तो हफर गरु ाथएाँगे।

ना झा​ाँसे िें अि आना।

नेता की ये जात िै,

काि ना करें इस िार,

िोते िादाखोर।

आगे फटकार भगाना।

सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक


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सार्थक साहित्य पहिका : नौ दो ग्यारि हिशेषा​ांक



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