LATER MECCAN SURAH
Later Meccans-1 [620-623 AD]
सरू ह 41 : फ़ुस्ससलत/अस-सज्दा [सपष्ट आयतें , Verses made distinct]
अल्लाह के नाम से शुरू जो सब पर मेहरबान है, अत्यंत दयावान है हा॰ मीम॰ (1) सब पर मेहरबानी करनेवाले, बेहद दयावान [रब] की ओर से यह (ककताब) उतारी [reveal] जा रही है ; (2)
अरबी में कुरआन के रूप में एक ऐसी ककताब, स्जसकी आयतों को सपष्ट और अलग पहचान वाली बनाया गया है , उन लोगों के ललए जो समझ-बझ ू रखते हैं,
(3)
जो अच्छी ख़बर दे नेवाली और सावधान करनेवाली (ककताब) है । किर भी उनमें से अधधकतर लोगों ने इससे मह ुुँ मोड़ रखा है , सो वे सन ु ते ही नहीं हैं। (4)
वे [रसूल से] कहते हैं कक "स्जस चीज़ (में ववश्वास कर लेने) के ललए तुम हमें
बुलाते हो, उसके ख़ख़लाफ़ तो हमारे ददलों पर परत चढ़ी हुई है; हमारे कान बहरे हैं; हमारे और तुम्हारे बीच (रोक के ललए) एक पदाा है । अतः तम ु जो कुछ चाहते हो करो, हमें जो अच्छा लगेगा वह हम करें गे।" (5)
[ऐ रसूल] आप कह दें , "मैं तो तुम्हारे जैसा ही एक इंसान हूुँ, (मगर) मुझ पर यह बात उतारी गयी है कक तुम्हारा ख़ुदा असल में एक ही ख़ुदा है। अतः तुम उसी (ख़ुदा) की ओर जानेवाले सीधे रासते को अपनाओ और उसी से (गुनाहों
की) माफ़ी माुँगो। बड़ी तबाही है उन [मश ु ररकों/Idolaters] की, जो एक अल्लाह के साथ (दस ू रों को) उसका साझेदार [Partner] ठहराते हैं, (6)