Bliss march 2018

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"सम्प्प्रदाय को धर्म न ीिं क ते“ '

साम्प्रदानयकता एक ऎसा भयंकर कीटाणु है जो आज भारत को आगे र्ढ़ने नह ं दे रहा है । जर्तक हम इसे नष्ट्ट नह ं करते तर्तक यह भारत को कभी भी एक शक्ततशाल राष्ट्र के रूप में पनपने नह ं दे गा । अर् तो र्ात-र्ात में जहा​ाँ-तहा​ाँ तनाव पैदा हो जाता है और साम्प्रदानयक दं गा नछड़ जाता है । यग ु परु ु िोिम परम ् प्रेममय श्रीश्रीठाकुर अनक ु ूल चन्द्र जी ने आज से १०८ विम पव ू म उनके ह श्रीहस्त सलणखत ग्रन्थ 'सत्यानस ु रण' में भारतवाससयों को सावधान करते हुए कहा था " भारत की अवननत (Degeneration) तभी से आरम्भ हुई जर् से भारतवाससयों के सलये अमि ू म भगवान असीम हो उठे - ऋवियों को छोड़ कर ऋविवाद की उपासना आरम्भ हुई । भारत ! यहद भववष्ट्यत ् कल्याण का आह्वान करना चाहते हो ,तो संप्रदायगत ववरोध को भल ू कर जगत के पव ू -म पव ू म गरु ु ओं के प्रनत श्रद्धासम्पन्न रहो - और अपने मि ू म एवं जीवन्त गरु या भगवान में आसतत ु (attached ) हो जाओ -एवं उन्हें ह स्वीकार करो - जो उनसे प्रेम करते हैं । कारण, पव म िी ू व को अचधकार करके ह परविी का आववभामव होता है । (सत्यानस ु ण ) हमें एक महामानव की आवश्यकता है क्जनमें हम ववगत सभी महमानवों का अनभ ु व कर सकें । साम्प्रदानयक भावनाओं से उध्वम में होगा प्रनत-प्रत्येक का समलन-केंद्र । आज हमलोग दे ख रहे हैं - परम प्रेममय श्रीश्रीठाकुर अनक ु ू ल चन्द्र जी की सतद क्षा लेकर हर एक मस ु लमान ने अपने हज़रत रसल ू का , हर एक ईसाई ने अपने प्रभु ईसामसीह का प्रेमस्पशम पाया है । भारत की एकता को र्नाये रखने के सलए श्रीश्रीठाकुर जी ने कहा -" एक दस ू रे के

-श्री राजेंद्र पुहाण, नई हदल्ल

सलए हम क्जतना करते हैं उतनी ह एकता र्ढ़ती है । हर सम्प्रदाय एक दस ू रे के सलए करे । ऐसी व्यवस्था करनी है क्जससे कोई ककसी को पराया न समझे । मैं वेद को मानता हूाँ , इसीसलये मैं कुरान , र्ाइबर्ल को भी मानता हूाँ । मैं तो चाहता हूाँ कक हहन्द ू केवल अपने शास्त्र की चचाम न करें र्क्ल्क अन्यान्य सम्प्रदाय अनस् ु यत ू शास्त्र की भी चचाम करें । इसतरह से सभी क्जतना ह परस्पर परस्पर की मूल र्ातों को समझेंगे उतना ह ववरोध कमता जायगा , सम्प्रीनत र्ढ़े गी । अज्ञानता ह मतभेद का कारण है । कुछ लोग ऐसे हैं जो ववरोध को कायम रखना चाहते हैं और र्ढ़ाना चाहत हैं । कानन ू के द्वारा उनके इन शैतानी-कायो को र्न्द करना होगा ।“ (आलोचना - प्रसंग , अष्ट्टम भाग ) श्रीश्रीठाकुर जी ने सत्यानस ु रण ग्रन्थ में वाणी द है – "क्जस पर सर् कुछ आधाररत है वह है धमम , और वे ह हैं परम परु ु ि। धमम कभी अनेक नह ं होता , धमम एक है और उसका कोई प्रकार नह ं । मत अनेक हो सकते हैं , यहा​ाँ तक कक क्जतने मनष्ट्ु य हैं उतने मत हो सकते हैं , ककन्तु इससे धमम अनेक नह ं हो सकता । मेरे ववचार से हहन्द ू धमम ,मस ु लमान धमम ,ईसाई धमम ,र्ौद्ध धमम इत्याहद र्ातें भल ू हैं र्क्ल्क वे सभी मत हैं । ककसी भी मत के साथ ककसी मत का प्रकृत रूप में कोई ववरोध नह ं , भाव की ववसभन्नता , प्रकार -भेद है -एक का ह नाना प्रकार से एक ह तरह का अनभ ु व है । सभी मत ह हैं साधना ववस्तार के सलए , पर वे अनेक प्रकार के हो सकते हैं और क्जतने ववस्तार में जो होता है वह है अनभ ु नू त , ज्ञान । इसीसलए धमम है अनभ न त पर ।" ु ू (सत्यानस रण ) ु

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