उं गली से शीशे पर ललखती हूँ नाम तुम्हारा उं गली से शीशे पर ललखती हूँ नाम तुम्हारा और घबरा कर लमटा दे ती हूँ तुम क्या जानो मैं अपने लदल को तसल्ली लकस लकस तरह दे ती हूँ एक तुम हो लक मेरा ख्याल भुलाए बैठे हो आूँ खों से दू र हो गए हो मगर लदल में समाये बैठे हो चाहती हूँ मेरी गोदी में सर रख तुम मुझे ललख ललख कर कलिता सुनाते रहो मैं प्रेम मगन झूमती रहूँ मुस्कुराती रहूँ नयनों में ललए जल और बार बार तुम्हें चूमती रहूँ चाहती हूँ मैं, मैं होने का एहसास भुला दू ूँ तुम हो मुझे से दू र, अपना यह लिश्वास लमटा दू ूँ चाहती हूँ मैं, श्वास बन तुम में समा जाऊूँ तुम नहीं आ सकते मुझे लमलने तो चलो मैं ही आ जाऊूँ प्राण बन के कण कण िायु का रगों में दौड़ तुम्हारे लदल तक जाऊूँ और जानूं कहाूँ रहता है तुम्हारा मन मैं तो तुम्हारी न होकर भी