सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 12)

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शिक्षा

05 - 11 मार्च 2018

मेवात में शिक्षा की लहर

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

महिला-शिक्षा के क्षेत्र में देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक मेवात भी है। लेकिन करीब 36 प्रतिशत महिला शिक्षा के दर वाले इस जिले में परिवर्तन की एक नई लहर देखी जा रही है 2012-13 में सरकारी स्‍कूलों में 5वीं तक 1,60,057 छात्र ​​थे पांच प्रतिशत से ज्‍यादा लड़कियां उच्‍च कक्षाओं तक नहीं पहुंच पाती थीं आज शिक्षा को लेकर गंभीरता व स्कूलों में छात्राओं की संख्या बढ़ी

खास बातें

सरि‍ता बरारा

ब मैं देखती हूं कि आज भी मेरे गांव में बहुत-से अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने से मना करते हैं या बड़े-बूढ़े मेरी जैसी लड़कियों के लड़कों की तरह घर से बाहर खुले में खेलने पर एतराज जताते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। यह कहना है 12 साल की छोटी-सी बच्ची नादिया का। हरियाणा के मेवात जिले में रहने वाले मुस्लिम समुदाय की नादिया नई नंगल गांव के स्कूल में सातवीं कक्षा की छात्रा है। सामुदायिक रेडियो 'रेडियो मेवात' के एक कार्यक्रम में एक महिला ने बतौर कॉलर बातचीत करते हुए सवाल पूछा कि जब हमारे समुदाय की एक लड़की रेडियो पर कार्यक्रम पेश कर सकती है तो हमें रेडियो पर संगीत कार्यक्रम का मजा लेने जैसी मामूली-सी बात के लिए भी क्यों रोका जाता है। रेडियो मेवात के लिए काम करने वाली वारीसा, समुदाय की उन कुछ गिनी-चुनी लड़कियों में से हैं, जो समुदाय के लोगों के तमाम सख्त विरोधों के बावजूद अपने पिता के सहयोग से अपनी शिक्षा को जारी रख पाई। सरकारी स्कूल से पढ़ी वारीसा बताती हैं कि आठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते, उसके साथ की सभी लड़कियां स्कूल छोड़कर जा चुकी थीं।

हरियाणा का मेवात जिला महिला-शिक्षा के क्षेत्र में देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक महिला-शिक्षा की दर यहां 36 प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक है, जबकि लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर काफी अधिक है। सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि जहां वर्ष 2012-13 में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से 5वीं कक्षा तक पढ़ने वालों छात्रों की संख्या 1,60,057 थी, तो वहीं कक्षा 6 से 8 में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या केवल 42,605। जहां तक लड़कियों का सवाल है, तो 5 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां उच्च कक्षाओं तक नहीं पहुंच पातीं। पर, इन निराशाजनक आंकड़ो के बावजूद यह बात उम्मीद की लौ जलाती है कि मेवात जैसे पिछड़े क्षेत्र के गांव की साधारण-सी नादिया जैसी लड़की आज लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव पर सवाल खड़े करने की हिम्मत करने लगी है। यह बात साबित करती है कि परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि मेवात जैसे शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाके के एक गांव में कुछ अभिभावकों ने अपनी लड़कियों को निजी क्षेत्र के सहशिक्षा (को-एड) स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है। नई नंगल का स्कूल इसका उदाहरण है। ऐसे स्कूलों में पढ़ाने के लिए अभिभावक अपनी जेब से पैसे खर्च करने में भी पीछे नहीं हैं। रेडियो मेवात के लिए काम करते हुए आज वारीसा लड़कियों की शिक्षा के महत्त्व और उनके साथ किए जाने वाले भेदभाव के खिलाफ प्रचार में जुटी हुई हैं। वारीसा कहती है कि रेडियो पर मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित करने के अलावा मैं रेडियो मेवात पर मियो समुदाय से संबंधित महिला अध्यापकों को रेडियो कार्यक्रमों में आमंत्रित करती हूं ताकि उनसे प्रेरणा पाकर अन्य अभिभावक भी अपनी लड़कियों को स्कूल भेजें और माध्यमिक स्कूलों की प्राथमिक कक्षाओं में ही अपनी लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर न करके उन्हें आगे और भी पढ़ने दें। वह कहती हैं कि खुशी की बात तो यह है कि आज

अब ग्रामीणों को यह महसूस होने लगा है कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने से युवाओं को अपने आस-पास के क्षेत्रों में ही आसानी से नौकरियां मिल सकती हैं। इसके लिए उन्हें दूरदराज के इलाकों में जाने की जरूरत नहीं

विवाहित महिलाएं भी भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं। वारीसा का कहना है कि कम से कम आज महिलाओं में इतना साहस तो आ ही गया है कि वे अपने खिलाफ होने वाले भेदभाव को लेकर सवाल खड़े करने लगी हैं। कुछ साल पहले तक यह सब संभव नहीं था। इस क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार, गैर सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र द्वारा पिछले कई सालों से प्रयास किए जा रहे हैं। वर्ष 1982 में हरियाणा सरकार ने झिरका और नूंह में सहशिक्षा (कोएड) वाले अंग्रेजी माध्यम के दो स्कूल शुरू किए थे ताकि मेवात क्षेत्र के इस परंपरागत संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने वाले इलाके के बच्चों को अच्छी‍गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान की जा सके। इसके दो साल बाद ही इन स्कूलों को सीबीएसई से संबंद्ध कर दिया गया। आज, ऐसे सात सहशिक्षा वाले स्कूल मेवात मॉडल स्कूल सोसाइटी (एमएमएसएस) द्वारा चलाए जा रहे हैं जिनमें लड़कियों से कोई ट्यूशन फीस नहीं ली जाती। इनमें से छह स्कूल उच्चतर माध्यमिक स्तर के और एक माध्यमिक स्तर का है। इन मॉडल स्कूलों में 40 प्रतिशत से अधिक संख्या लड़कियों की है, जिनमें से 57 प्रतिशत से अधिक लड़कियां मियो समुदाय की हैं। मेवात के इस इलाके में 6 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय भी चलाए जा रहे हैं जिनमें 1,400 लड़कियां पढ़ रही हैं। इनमें से 64 प्रतिशत मियो समुदाय की हैं।140 लड़कियों को नूंह के मेवात मॉडल स्कूल में पढ़ाई के अलावा मुफ्त रहने और खाने की सुविधा भी प्रदान की गई है। खास बात यह है कि शिक्षा ने नादिया जैसी लड़कियों को आत्मविश्वास, साहस और समाज में भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद करने का दृढ़निश्चय दिया है। नादिया एक संवेदनशील लड़की है जो समाज में फैले भेदभाव और अन्याय को लेकर


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