सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 07)

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पुस्तक अंश

29 जनवरी - 04 फरवरी 2018

राजनीति और समाज के लिए गहरी प्रतिबद्धता

देश और समाज को समर्पित एक चुनौतीपूर्ण यात्रा शुरू करते हुए,नरेंद्र मोदी के कई आदर्श प्रेरणास्रोत थे, जिनका उनके व्यक्तित्व और राजनीतिक जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इनमें स्वामी विवेकानंद, जयप्रकाश नारायण, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अनुभवी भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी थे तक ऐसा ही था। उनके बड़े भाई सोमभाई के अनुसार, नरेंद्र मोदी हमेशा अलग होने के लिए उत्सुक थे। आरएसएस में शामिल होने के बाद, उन्होंने इसे देश और समाज की जीवनपर्यंत सेवा के लिए उपयुक्त अवसर के रूप में देखा। आरएसएस में शामिल होने के बाद, मोदी ने सिर्फ एक बार, पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए वडनगर का दौरा किया। अपने शुरुआती दिनों से ही, नरेंद्र मोदी ने आत्मानुशासन को बहुत महत्व दिया। एक प्रतिबद्ध शाकाहारी और मद्यत्यागी होने के अलावा, उन्होंने समय-प्रबंधन का महत्व शुरुआत में ही सीख लिया था।

नवनिर्माण आंदोलन

भा

रत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद नरेंद्र मोदी औपचारिक रूप से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हुए। संघ परिवार में पले-बढ़े हुए ज्यादातर लोगों के लिए, शाखा प्राथमिक पोषण स्थल है। बालकों, किशोरों और युवाओं को संघ का स्वयंसेवक बनाने का प्रयास सर्वाधिक किया जाता है। स्वयं सेवक बने किशोर और युवा शाखाओं में ही प्रशिक्षण और

मूल्य प्राप्त करते हैं। शाखा में युवाओं को आकर्षित करने केलिए कई तरह के खेलों को भी शामिल किया गया गया। शरीर के साथ मन और विचार का सौष्ठव हर स्वयंसेवक में हो, इस बात का विशोष रूप से ध्यान रखा जाता है। वरिष्ठ और मित्र ही किशोरों को स्वयं सेवक बनाने और शाखाओं से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नरेंद्र मोदी के लिए भी संघ तक पहुंचने का रास्ता कुछ हद

नरेंद्र मोदी ने 1968 से 1973 तक अहमदाबाद में पांच बेहद साधारण साल बिताए। उन्होंने अपने चाचा की कैंटीन में काम किया और संघ के स्वयंसेवक के रूप में कर्मठतापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन किया। 1973-74 का नवनिर्माण आंदोलन, उनके लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ। 1973 के दिसंबर महीने में, मोरबी के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ छात्रों ने भोजन के बिलों में भारी वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। यह आंदोलन जल्द ही जंगल की आग की तरह, गुजरात के दूसरे हिस्सों में फैल गया और एक राज्यव्यापी जन आंदोलन में तब्दील हो गया, जिसे अब नवनिर्माण आंदोलन के रूप में जाना जाता है। गुजरात के इस आंदोलन ने ही जयप्रकाश नारायण को बिहार में भी ऐसे ही एक आंदोलन को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन दिनों में, 'गुजरात का अनुकरण' नामक वाक्य बिहार में एक लोकप्रिय उक्ति बन गई थी। इस आंदोलन ने समाज के सभी वर्गों को आकर्षित किया। नरेंद्र मोदी भी इस आंदोलन की तरफ आकर्षित हुए। भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयोद्धा के रूप में जाने जाने वाले, प्रतिष्ठित समाजवादी और जनवादी जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी और समर्थन की वजह से यह आंदोलन, राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया। जब जयप्रकाश नारायण अहमदाबाद आए, तो युवा नरेंद्र को उनसे मुलाकात करने और उनके भाषणों को सुनने का अवसर मिला। जय प्रकाश

नारायण और आंदोलन के अन्य नेताओं ने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा। यही वह समय था जब आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं और जयप्रकाश नारायण जैसे राष्ट्रीय नायक मोदी की शानदार संगठनात्मक क्षमता से परिचित हुए। नरेंद्र मोदी के नवनिर्माण आंदोलन में योगदान को देखकर, लक्ष्मणराव इनामदार ने उन्हें अहमदाबाद के हेडगेवार भवन में रहने के लिए आमंत्रित किया। एमवी कामथ द्वारा उनके जीवन पर 2009 में लिखी गई जीवनी “नरेंद्र मोदी: एक आधुनिक राज्य के वास्तुकार” के अनुसार, हेडगेवार भवन में मोदी ने स्वेच्छा से पूरे कामकाज की जिम्मेदारी ली थी, जैसे प्रचारकों को चाय और भोजन देना, इमारत में सभी कमरों की सफाई करना और यहां तक कि उनके संरक्षक लक्ष्मणराव इनामदार के कपड़े धोना भी।

नरेंद्र मोदी हमेशा से अलग दिखने के लिए उत्सुक थे। आरएसएस में शामिल होने के बाद, उन्होंने इसे देश और समाज की जीवनपर्यंत सेवा के लिए उपयुक्त अवसर के रूप में देखा। आरएसएस में शामिल होने के बाद, मोदी ने सिर्फ पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए वडनगर का दौरा किया।

सोमभाई, नरेंद्र मोदी के बड़े भाई


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