सदाबहार काव्यालय - 2

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सदाबहार का)यालय सं-ह-2

संकलन और 23त6ु तकरण – ल9ला 6तवानी


सदाबहार का)यालय सं-ह-2 1.

दर>त - सुदश@न खBना .................................................................................................................. 4

2.

पु3तकD - ल9ला 6तवानी ............................................................................................................... 5

3.

इBतजार - रHवंदर सूदन ................................................................................................................. 7

4.

मLनूं कुछ कहणा है - नOरंदर कुमार वाह9 ....................................................................................... 8

5.

सूय@ का 2भामंडल - ल9ला 6तवानी .............................................................................................. 13

6.

काश! - गौरव VHववेद9 ................................................................................................................. 16

7.

6नःशZद - सुदश@न खBना ............................................................................................................. 17

8.

इतना ज़]र मL चाहूँगा - रHवंदर सूदन.......................................................................................... 19

9.

नये साल का तराना - ल9ला 6तवानी ........................................................................................... 21

10.

bयc है मांगता? - सद ु श@न खBना ............................................................................................. 22

11.

नया साल - dीमती कैलाश भटनागर ..................................................................................... 24

12.

अहसास - ल9ला 6तवानी ......................................................................................................... 26

13.

रbत कgणका - सद ु श@न खBना ................................................................................................ 28

14.

म3 ु काएं खiु शयां-ह9-खiु शयां - ल9ला 6तवानी ......................................................................... 30

15.

एहसास कj अiभलाषा - अजय एहसास ................................................................................. 32

16.

3वlछ भारत गीत - राजीव गुmता .......................................................................................... 33

17.

मात सर3वती वंदना - ल9ला 6तवानी ..................................................................................... 35


18.

बसंती मन भाया (बसंत गीत) - ल9ला 6तवानी....................................................................... 36

19.

हम आतंक के साए मD जी रहे हL - ल9ला 6तवानी ..................................................................... 37

20.

तू ईpवर है या अqलाह - अZबास रज़ा अलवी ......................................................................... 39

21.

iमr! - पुsप राज चसवाल ....................................................................................................... 40

22.

लबc पर हो खुiशयc कj लाल9 - ल9ला 6तवानी ........................................................................ 42

23.

पv ृ वी कj 2कृ6त - डा० क6नका वमा@ ....................................................................................... 44

24.

mयार कj mयास - लखमी चंद 6तवानी ..................................................................................... 45

25.

सूरज, तुम xफर भी चमकते रहोगे (Hवzान गीत) - ल9ला 6तवानी ........................................ 47

26.

इंसान को भी कुछ इंसा6नयत iसखा - ल9ला 6तवानी ............................................................ 49

27.

खोल दो मु{ठ} - कुसम ु सुराणा ............................................................................................... 52

28.

बचपन याद आता है - इरा जौहर9 ........................................................................................... 53

29.

व~ ृ कj म•हमा अनमोल बड़ी (गीत) - ल9ला 6तवानी ............................................................ 55

30.

कोई तो व~ ृ c कj )यथा सुने! - रHवंदर सूदन ........................................................................... 56

31.

हो अभय हर शZद इसका (कHवता) - गौरव VHववेद9 .............................................................. 58

32.

नार9 तू नारायणी - डॉ. वंदना शमा@ ......................................................................................... 60

33.

नƒम - डॉ० अ6नल च„डा ........................................................................................................ 61

34.

पं6छयc कj सीख - सुदश@न खBना ........................................................................................... 62

35.

चलती रह9 िजंदगी - ल9ला 6तवानी ......................................................................................... 65

36.

लौट कर आजा / ऐ आँख! - ज़ह9र अल9 iसVद9क़j ................................................................. 66

37.

तीन बाल गीत - इंˆेश उ6नयाल .............................................................................................. 68


38.

Hवpवास के बीज को अंकुOरत होने दो - ल9ला 6तवानी............................................................ 70

39.

अलंकार (सr ू ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी ........................................................................ 71

40.

समास (सूr ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी .......................................................................... 73

41.

छं द (सूr ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी ............................................................................... 75

42.

धूप का टुकड़ा (कHवता) - ल9ला 6तवानी ................................................................................. 77

43.

दो मग ृ छौने (कHवता) - ल9ला 6तवानी .................................................................................... 79

44.

मत कहो xक ''कुछ नह9ं हो सकता'' - ल9ला 6तवानी .............................................................. 81

45.

“एक नBह9-मुBनी के 2pन” - डॉ० अ6नल च„डा ..................................................................... 82

46.

तीन ~gणकाएं - ल9ला 6तवानी ............................................................................................... 84

47.

ऐ सखी - गौरव VHववेद9 .......................................................................................................... 86

48.

मL हूं नटखट बचपन - चंचल जैन ............................................................................................ 88

49.

'उ‹मीद अभी बाकj है' - डॉbटर इला सांगा ............................................................................. 90

50.

बचपन - एक Hवषय - चार कHव ............................................................................................... 91

51.

चंद छोट9 कHवताएं - 1 ............................................................................................................. 94

52.

चंद छोट9 कHवताएं - 2 ............................................................................................................. 98


1. दर>त - सुदश@न खBना

तफ ू ान िज़ंदगी के इतने झेले <क तफ ू ान भी दो?त बन गए, पर िजसके Dलए दर-दर भटका वो <कसी और के हो गए,

सन ु ऐ िजंदगी कुछ तो करामात कर, सक ु ू न कL बरसात कर, वMत दरू नहNं जब कO मP सो जाऊंगा मR लSबी तान कर.

ऐ खुदा गुज़ाVरश है तुझसे, मुझे अगलN िज़Zदगी मP दर[त हN बनाना, \य]<क उ_दराज दर[त] के साये मP िज़Zद`गयां छांह पा लेती हR, एहसान फरामोश इंसान कभी <कसी के काम आए या न आए, दर[त तो कटने के बाद काटने वाल] के भी काम आ जाते हR. ये दर[त हN तो हR जो पतझड़ मP अपन] के cबछड़ने पर Dससकते नहNं, पdeयां झड़P, डाDलयां कटP <फर भी कहNं Dशकन का दNदार होने दे ते नहNं, जला दN जाएं इनकL पdeयां, झ]क दN जाएं आग मP इनकL डाDलयां, कोई Dशकवा नहNं इZहP <कसी से, <कसी से ये कोई Dशकायत करते नहNं. ज़मीं कL DमhटN, सूरज कL रोशनी, आसमां से पानी पाकर बड़े हुए ये दरiत, पjथर खाकर, लुट कर भी ये भरते हR झोDलयां, मगर कोई रं जो-गम नहNं, \या इंसान, \या जानवर, \या पVरंदे <कसी मP भी करते नहNं ये कोई फकl, ये ख़ुदा कL दस ू रN मूरत हR पर नहNं मांगते <कसी से भी सजदा-ए-शुकराना. कैसा अजीब है ये इंसान, सांसP दे ने वाले कL सांसP काटता जा रहा है, रोना रोता है ख़राब हवाओं का, दरiत] को ने?तनाबूद करता जा रहा है,

खुद को समझ कर इस धरती का खुदा, दरiत] को कर रहा उनकL जड़ से जुदा, इZहNं कL आबोहवा मP िज़Zदगी पाने वाले, उठ जाग, कर खुद को होश के हवाले. अरे ओ आज के इंसान, अपनी अ\ल का कुछ कर इ?तेमाल,

खद ु हN अपने हाल से न हो बेहाल, उ_दराज़ दरiत उ_ भी बांटा करते हR, यकLन आसानी से इस बात पर तो तझ ु े शायद कभी होगा नहNं, कभी दरiत] के साये मP बैठ के दे ख,

न हो जाये इqक दरiत] से तो मेरN ह?ती Dमटा देना. सदाबहार का)यालय

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2. पु3तकD - ल9ला 6तवानी प? ु तकP पढ़ने के सख ु का कोई जवाब नहNं

जो कुछ भी न Dसखा सके ऐसी कोई <कताब नहNं

महान लेखक] व महान dवचारक] कL रचनाएं हम तक पहुंचाती हR पु?तकP सहN समझ बनाती हR समझदारN से भरN पु?तकP हमारN जानकारN का uेv dव?तत ृ करती हR पु?तकP xान और मनोरं जन का असीम ?vोत हR पु?तकP जीवन को

सुसिyजत करने वाले गुण] का {न?सीम भंडार हR पु?तकP सबसे आगे रहने कL उjकट अDभलाषा जा-त करती हR पु?तकP

सफल होने का dवqवास मन मP जगाती हR पु?तकP सां?कृ{तक dवरासत को

गहनता से समझाती हR पु?तकP }ेरणा का अज?v ?vोत हR

अनभ ु व] से ओत}ोत हR प? ु तकP xान-dवxान का

अखंड भंडार हR प? ु तकP

वा?तdवक और का~प{नक कहा{नय] का dव`चv आगार हR प? ु तकP

हमारN जानकारN का uेv

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dव?तत ु तकP ृ करती हR प?

Dशखर तक पहुंचने के हे तु सीढ़N समान आवqयक होती हR पु?तकP नए-नए रा?त] को

अZवेdषत करती हR पु?तकP नए-नए रा?त] पर

€ढ़तापूवlक चलाती हR पु?तकP

दे श-dवदे श कL सैर कराती हR पु?तकP खुद से पहचान कराती हR पु?तकP

आनंद के झरने बहाती हR पु?तकP

}ेम का सागर लहराती हR पु?तकP सबसे अनमोल धन है

मानवता के Dलए पु?तकP मानवता का •ंगार हR

रोचक, मनोरं जक व xानव‚lधक पु?तकP.

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3. इBतजार - रHवंदर सूदन हर पल उसका इZतजार रहता है , „दल उसके Dलए बेकरार रहता है, इZतजार कभी खjम न हो, इस बात का हमेशा [याल रहता है . हालत कह रहे हR मुलाक़ात नहNं मुम<कन उSमीद कह रहN है थोड़ा इZतजार कर, कभी खjम न हो यह इZतजार, ऐसा कहती है „दल कL पुकार. कब रा?ता बन जाए मंिजल, उस „दन का है इZतजार, वो कौन है िजसका है इंतजार? वो कौन है जो कर रहा इंतजार? िजसका अंत न हो अंत तक, उसका है इंतजार, वो हN बताए आकर हमको, <कसका कौन करे इंतजार? <फर भी चाहत „दल मP बरकरार, भूले न भुलाये बार-बार,

एक बार तो हो जाए उसका दNदार, िजसका कर रहे इZतजार. आता नहNं „दल को करार, इZतजार मP बसता ˆयार, इZतजार को नम?कार, इZतजार बस इZतजार.

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4. मLनूं कुछ कहणा है - नOरंदर कुमार वाह9 (भाषा- पंजाबी, आगे •हंद9 अनव ु ाद) मR छोटा सी ते dपŠड dवच रहंदा सी घर कŒचे सन, ते ˆयार प\के सन dपŠड दे सारे चाचे-चा`चयाँ मैनूँ पुeर-पुeर कहंदे सन मR कदे <कसी दे घर खांदा सी ते कदे <कसी दे घर क„द क„द मR <कसे दे घर हN स] जांदा सी सारे इक दस ू रे „द <फकर करदे सन ते मदद वी करदे सन

कोई भेद भाव नहNं सी मुसीबतां वी कhठे झेलदे सन

ते खुDशयाँ वी कhठे मनांदे सन

अज cबि~डंगां उिŒचयाँ हो गइयां हन ˆयार डुब गये हन

ढूंढेयाँ ढूंढेयाँ ˆयार <कjथे=<कjथे Dमलदा है पड़ोसी दN गल छ•डो,

भैन=‘ा हN दरू हो गये हन

जे दरू नहNं होये तो Dसफl उपर] उपर] फाम’DलटN िज़Zदाबाद

कुछ कुछ पVरवारां dवच कुछ दे र वा?ते ˆयार नज़र आ जांदा है <कसे दा कसरू नहNं,

हवा हN ऐसी हो गई है

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हवा dवच पा~यश ू न, पानी dवच पा~यश ू न खान-पीन „दयां चीजां dवच पा~यूशन

ऐjथो तक <क „द~लां dवच भी पा~यूशन हो गया है सं?कार हN पा~यूशन वाले हन

सा•डे शरNर dवच एमएमआर Dस?टम ह]दा है (Dमसमैच Vरपेयर Dस?टम जेड़ा आपणे आप Vरपेयर करदा रहंदा है) Vरqतयां dवच वी एमएमआर Dस?टम ह]दा है पVर-ह, सामंज?य, संवाद, स„ह–णुता अजकल पVर-ह घट गया है

अपणे मुँह Dमयाँ Dमhठू बणना

ते अपणी पहचान yयादा ज—रN हो गयी है संवाद <कZना मज़बूत है,

कामयाबी इसदे उeे {नभlर करदN है स„ह–णुता मज़बूरN दा नां बण गया है „द~ल] नहNं {नभाई जांदN

ज़माना बहुत बदल गया है सा•डे वेले Vरqते सe जनम दे ह]दे सन अज इक जनम वी परू ा नहNं ह]दा फेरयाँ ते दो?तां ने पछ ु या ए\सपायरN डेट कL है ?

वेDल˜डटN पीVरयड <कZना है ? एह मज़ाक सी पर <कZनी व•डी सŒचाई बन गई है ले<कन <फर वी कुछ लोग चंगी भावना नाल दस ू रे याँ दN सेवा करदे हन सदाबहार का)यालय

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अनजान लोगां दN पढ़ाई ते ओना दे इलाज वा?ते झट पैसे दे न नँू तैयार हो जांदे ने कुछ लोग •मदान करदे ने

जद {तकन सूरज हर रोज चढ़दा रहे गा चाँद चमकेगा, तारे „टम„टमानगे, चंगाई खतम नहNं होवेगी चंगा ह]दा रहे गा, कदे चंगा ते कदे मंदा । पंजाबी कj इस कHवता का •हंद9 अनुवादमुझे कुछ कहना है मR छोटा था और अपने dपŠड मP रहता था घर कŒचे थे, पर ˆयार प\के थे dपŠड के सारे चाचे-चा`चयाँ मुझे पुeर-पुeर कहकर बुलाते थे मR कभी <कसी के घर खा लेता तो कभी <कसी के घर कभी-कभी तो मR <कसी और के घर हN सो जाता था सभी एक दस ू रे कL <फœ करते थे और मदद भी करते थे कोई भेदभाव नहNं था मस ु ीबतP भी इकhठे झेलते थे

और खDु शयाँ भी इकhठे मनाते थे आज cबि~डंगP ऊँची हो गई हR ˆयार डूब गए हR

ढूंढने से कभी-कभार ˆयार Dमल जाता है पड़ोDसय] कL बात छोड़ दो सदाबहार का)यालय

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भाई बहन हN दरू हो गये हR

अगर दरू नहNं हुए तो Dसफl „दखावटN ˆयार रह गया है फाम’DलटN िजZदाबाद कुछ-कुछ पVरवार] मP कुछ दे र के Dलए ˆयार नज़र आ जाता है

कसूर <कसी का भी नहNं है हवा हN ऐसी हो गई है

हवा मP पॉ~यूशन, पानी मP पॉ~यूशन खाने पीने कL चीज] मP पॉ~यूशन

यहाँ तक <क „दल] मP भी पॉ~यूशन हो गया है

सं?कार हN पॉ~यूटेड हो गए हR हमारे अZदर एमएमआर Dस?टम होता है (Dमसमैच Vरपेयर Dस?टम जो अपने आप Vरपेयर करता रहता है) Vरqत] मP भी एमएमआर Dस?टम होता है पVर-ह, सामंज?य, संवाद, स„ह–णुता आजकल पVर-ह घट गया है अपनी-अपनी तारNफ करते रहना और अपनी पहचान बनाना yयादा ज—रN हो गया है आपस मP बातचीत <कतनी मजबूत है कामयाबी इसी पर {नभlर करती है

सहनशीलता मजबूरN का दस ू रा नाम हो गया है „दल] से नहNं {नभाई जाती

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ज़माना बहुत बदल गया है हमारे टाइम मP Vरqते सात जZम के होते थे आज एक जZम भी पूरा नहNं होता फेर] के टाइम पर दो?त] ने पूछाए\सपायरN डेट \या है ?

वेDल˜डटN पीVरयड कब तक है ? यह मज़ाक था पर <कतनी बड़ी सŒचाई बन गई है! ले<कन <फर भी लोग अŒछŸ भावना के साथ दस ू र] कL सेवा करते हR

अनजान लोग] कL पढ़ाई और उनके इलाज के Dलए झट पैसे दे ने को तैयार हो जाते हR कुछ लोग •मदान करते हR जब तक सूरज हर रोज उगता रहे गा चाँद चमकेगा, तारे „टम„टमायPगे अŒछाई खjम नहNं होगी अŒछा होता रहे गा, कभी yयादा तो कभी कम । अनव ु ादक- सद ु शlन खZना

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5. सूय@ का 2भामंडल - ल9ला 6तवानी हर एक का एक औरा होता है, िजसे हम }भामंडल कहते हR, इसी }भामंडल मP उसके सभी स‚गण ु , {नवास करते हR.

}भामंडल खद ु कुछ नहNं कहता है, जो कुछ कहना होता है,

वह }भामंडल मP „दखता है, इसDलए तो हम उसे }भामंडल कहते हR. सूयl का भी एक }भामंडल होता है, जो अ{त जाyyव~यमान होता है, सूयl भी कभी कुछ नहNं कहता,

बस उसकL }yवDलत रिqमय] के ‚वारा, उसकL सभी dवशेषताओं का }ाकhय होता है. सूयl cबना <कसी भेदभाव के,

सबको समान —प से रोशन करता है, पर इस बात को सूयl ने कभी नहNं कहा, जो कुछ कहना होता है,

उसका }भामंडल कहता है. हम हN कहते रहते हR, आज सूयl फLका लग रहा है, असल मP सूयl कभी फLका नहNं होता है, वह अपने तेज को कभी नहNं खोता है ,

वह तो cबन बल ु ाए बादल] के सामने आने पर, उनका भी तहे „दल से ?वागत करता है,

अ{त`थ कL तरह बादल] के चले जाने पर, पन ु ः अपने तेजोमय ?व—प मP अवि?थत होता „दखता है.

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सय ू l <कसी के पीछे भागता नहNं है, धरा हN उसके चार] ओर च\कर लगाती रहती है , धरा अपना जो भाग उसके सSमुख ले आती है, उसी को सूयl कL रोशनी Dमलती रहती है .

सूयl अपने तेज से अन`गनत कLट] को {न?तेज कर, ?वतः हमP ?व?थ रखने मP सहायक होता है,

पर उसके मन मP कभी भी इसका अहंकार नहNं होता है, वह तो {न–काम भाव से अपने कमl-रथ पर आ¢ढ़ रहकर, गीता के इस सदप ु दे श के साकार —प को संजोता है. सूयl अपने {नqछल ?वभाव से

हमP अनुशासन कL सीख दे ता है, समय पर }कट होकर,

समय पर चं£मा को तेज दे ता है, तार] कL „टम„टमाहट मP भी तेज समा„हत है उसी का, अि¤न को भी वहN तो वा?तव मP सेता है. बताइए तो भला वu ू ¥Zमख ु होता है? ृ \य] सय

वह सय ू l से तेज को पाकर सय ू l को नमन करता है, यह सय ू l या वu ृ नहNं,

फलते-फूलते वu ृ का औरा कहता है.

सय ू l हN सागर से खारा पानी खींचकर बादल बनाता है, वहN <फर बादल] को बरसाकर न„दय] को,

मधु-स€श मीठे जल से आˆलाdवत करता है.

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सय ू l एक छोटे -से {छ£ से भी

हमP अपने मंगल-दशlन करवा दे ता है, ऐसे हN कुछ {छ£] के }काश से

अजंता-एलोरा कL गुफाएं बनी हR,

यह बात न तो सूयl ने बखानी है,

न अजंता-एलोरा कL गुफाओं कL ज़ुबानी है, ये तो गुफाओं के {नमाlण-हे तु

िजxासावश हमारे लगाए हुए कयास हR, इनमP भी सूयl का और

अजंता-एलोरा कL गुफाओं का औरा बोलता है. हरे क कL तरह, सूयl का भी एक औरा होता है , िजसे हम }भामंडल कहते हR,

इसी }भामंडल से सूयl कL आभा ‚वारा, हम }काDशत रहते हR.

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6. काश! - गौरव VHववेद9 काश मR कोई कdवता होता कोई कdव मझ ु े भी रचता

रोज नए-नए रं ग] मP रं गता कभी प–ु प-सा वन मP ¦खलता

बनकर गगन जगत को ढकता साहस और अ˜डगता बनकर वीर] के उर अलख जगाता हा?य-)यं¤य के श§द] से मR हंसी-„ठठोलN करता मौज मनाता dवरह-वेदना से }ेम-Dमलन तक भाव-भावना से आ„द-अंत तक मुझमP सब समा„हत होता

नए-नए श§द] से Dमलकर रोज नयी एक काया होता नयी भोर और नयी सांझ-सा साथ-साथ समय के चलता काश मR कोई कdवता होता! कोई कdव मुझे भी रचता!!

चलो कdवता न सहN कdव हN बना }भु-कृपा से मन मP उjसव मना इसी को मR कdवता समझ लूंगा पल-पल }भु को धZयवाद दं ग ू ा }भु का आशीवाlद लूंगा, }भु का आशीवाlद लंग ू ा, }भु का आशीवाlद लंग ू ा.

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7. 6नःशZद - सुदश@न खBना मR चप ु रहता था

मन मP कई अरमान थे पर मR उन अरमान] को अZदर हN अZदर पीता था िज़Zदगी से तो बेज़ार न था पर बोलता कम था सुनता अ`धक था दे खता yयादा था कुछ तो बोलो

सभी कहने लगे मR <फर भी चुप था बोलता कम था

श§द] का तोहफ़ा हरे क को Dमलता है मुझे भी Dमला था

लोग श§द बोलते थे मR श§द सुनता था श§द] का अSबार

इकhठा हो गया था अपन] ने कहा बोलते नहNं तो Dलखो Dलखने लगा इधर उधर cबखरे श§द पंि\तब‚ध होने लगे केश-dवZयास कL भाँ{त श§द-dवZयास होने लगे

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अलग अलग अDभक~प सजने लगे मR अभी भी नहNं बोलता श§द मेरे बोलने लगे लोग हैरान हR मR {नःश§द हूँ

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8. इतना ज़]र मL चाहूँगा - रHवंदर सूदन कdवता से मेरा कभी भी कोई नाता न था थोड़ा पढ़ना-Dलखना भले हN मझ ु े आता था

कभी खुशी मP तो कभी ग़म मP थोड़ा गुनगुनाता था

कोरे पZन] पर कुछ भी

Dलख कर मR रह जाता था. यहाँ पर आकर इतना समझा यह जो घमंड से भरपूर है अगले हN पल चूर-चूर है

कौन <कस पर इतरा रहा है भले हN जZनत कL हूर है आसमान यह आसमानी जो पता नहNं <कतना दरू है „दखP भले हN अलग-अलग सब मP इसी का नूर है. पढ़ने भेजा गया था मझ ु े

पता नहNं <कतना पढ़ पाया हूँ जाकर पता चलेगा वहाँ पर Dलया बहुत पर \या कुछ दे पाया हूँ पास हुआ या फेल हुआ हूँ िजसके Dलए मR आया हूँ. मां कL कोख से, खालN हाथ मR आया था

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पर खालN हाथ नहNं जाऊंगा इस जहां मP कमl करके कमª का हN खाऊंगा कमª और दआ ु ओं को हN संग अपने ले जाऊंगा

खालN हाथ नहNं जाऊंगा. जहां है मेरा जीवन बीता वहNं कL DमhटN मR बन जाऊं इतना ज़—र मR चाहूँगा इतना ज़—र मR चाहूँगा.

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सं-ह-2


9. नये साल का तराना - ल9ला 6तवानी नया है साल सद ंु र-सा तराना Dमलके गाना है

DमलN हR जो मधरु यादP उZहP संग लेके जाना हैन मं„दर-मि?जद के झगड़े मP अपनी ताकत खोएंगे पढ़ाकर पाठ मानवता का सारे जग को जगाना हैनहNं है भेद कोई भी सभी को एक मानPगे सभी का एक हN दाता उसी के गीत गाना हैकभी सुख है कभी दख ु है न यूं हN धीरज खोएंगे {नकालPगे कोई र?ता दःु ख] से \या घबराना हैभले छए घटा कालN, उजाल] को cबछा दP गे ये जीवन चलता जाएगा, घटाओं को बताना हैनया है साल सद ुं र-सा तराना Dमलके गाना है

DमलN हR जो मधुर यादP , उZहP संग लेके जाना है-

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


10.

bयc है मांगता? - सुदश@न खBना

\य] है मांगता दामन पसारकर ईqवर से त? ू दो हाथ „दये हR उसने तुझको

\या कम हR ये? दN हR दो भुजाएँ उसने तुझको

\या कम हR ये? दो आँखP दN हR उसने तुझको

\या कम हR ये? दो पैर „दये हR ता<क चलते रह सको \या कम हR ये? शि\त दN है उसने तुझको

\या कम है यह? ब‚ ु `ध दN है

उसने तझ ु को

\या कम है यह? <फर \य] रोते?

सदाबहार का)यालय

22

सं-ह-2


<फर \य] माँगते? <फर \या माँगते? दे खो ज़रा तुम

नज़र उठा कर उनकL ओर भी िजनके पास नहNं हR हाथ नहNं हR भुजाएँ नहNं हR आँखP नहNं हR पैर नहNं है शि\त नहNं है बु‚`ध <फर भी हR वे सदा म? ु कराते

हौसले से जीवन cबताते. एक तुम हो

सब कुछ पाकर भी सदा हN कुढ़ते.

अगर हो सच मP जीना दे खो उनको सीखो उनसे. <फर अपने आप कहोगे जो तुSहP „दया है िजतना „दया है उसी मP उसने पूरा Zयाय <कया है. सदाबहार का)यालय

23

सं-ह-2


11.

नया साल - dीमती कैलाश भटनागर

बेटे ने पछ ू ा- ‘’मां!

बाहर सब शोर मचा रहे हR, नए साल को बल ु ा रहे हR. \या शोर मचाने से नया साल आएगा? इस शोर से डर कर कहNं भाग तो न जाएगा?’’ मां उस कL बात] पर हंसी <फर सोच मP फंसी यह \या जाने \या नया साल है हमारा तो जो कल था वहN आज भी हाल है <फर भी, बŒचे को कुछ तो बताना था

उस के मन कL उjसुकता को बुझाना था “नया साल आएगा“

कह कर बŒचे को सुला „दया भdव–य के ?व¦णlम झल ू े पर झुला „दया

सुबह cब?तर से उठा बŒचा बोला- ‘’मां

कहां हR उमंगP? कहां हR खुDशयां?

यह तो वहN भोर है जो कल थी सब कुछ वहN है जो कल था

कुछ नया नहNं सब परु ाना है.’’ अपने को उSमीद] के, घेरे मP डाल कर

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


आज के वतlमान को भdव–य कL डोर मP बांधकर, पVरि?थ{तय] से करना है समझौता. इसDलए एक {निqचत तारNख पर dपछले पZने को पलटकर नए पZने पर करते हR ह?ताuर वरना, सच-सच बताना मेरे दो?तोकल कL सुबह

और आज कL सुबह मP कुछ अZतर पाया?

कुछ नया नज़र आया? नहNं

<फर भी सब करP गे }यास कुछ नया कर „दखाने को और संजोएंगे नई खुDशयां नए अरमान

<फर मचाएंगे शोर एक और नया साल बुलाने को

उमंग] भरा <फर एक नया साल आएगा– अZदर बाहर शोर मचाने से भाग नहNं जाएगा.

सदाबहार का)यालय

25

सं-ह-2


12.

अहसास - ल9ला 6तवानी

एक खब ू सरू त

अलसाई जी सब ु ह

सैर करने को बल ु ा रहN थी

बाVरश का अंदेशा है तो \या भीगने का डर {नकालकर घर से बाहर {नकलने को समझा रहN थी घर से बाहर {नकलने कL दे र थी <क अहसास हुआ झीनी-झीनी बौछार का ले<कन यह \या! सड़कP गीलN-गीलN सी बहारP सीलN-सीलN सी मन भीगा-भीगा सा ले<कन तन पर पानी कL बूंद का नामो{नशान नहNं केवल अहसास

झीनी-झीनी बौछार का. इस अहसास ने „दलाया एक और अहसास उस परमसeा का िजसका अहसास हमP हो-न-हो वह हरदम हमारे आस-पास है कोई दे श हो कोई भेष हो कोई ?थान हो रे ला-मेला हो या सन ु सान हो वह हमारे साथ है

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


<कसी-न-<कसी —प मP हमारे हाथ मP उसका हाथ है. वहN हर पल हमारN खबर लेता है ददl से पहले दवा भी दे ता है वह अंधकार भी „दखाता है ता<क हमP उजाले का अहसास हो सके दःु ख „दखाता है ता<क

सुख कL सुखद अनुभ{ू त हो सके धैयl कL ज—रत हो

वह धैयl बन जाता है सहानुभू{त कL ज—रत हो

वह सहानुभू{त बन जाता है साहस कL दरकार हो

वह साहस बन जाता है हरदम हमारा साथ {नभाता है. अपनी अहैतुकL कृपा से उसने कभी अटकने न „दया कभी भटकने न „दया कभी लटकने न „दया हर dवपदा से उबार Dलया. इस अनठ ू े अहसास के चलते 27 Dमनट कL सैर मP

72 साल का अहसास जी Dलया मानो परमसeा कL रहमत का मधुVरम पंचामत ृ पी Dलया. सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


13.

रbत कgणका - सुदश@न खBना

था फूल इक गल ु ाब का

डालN मP उसकL काँटा भी था तोड़ने लगा जब वह फूल

उं गलN मP जा लगा था शल ू

उं गलN —पी डालN पर ¦खला लाल रं ग का वह एक फूल. वह फूल था इक र\त क¦णका जैसे चमकती हो कोई म¦णका

गुलाब से सुगिZधत हुआ था जीवन क¦णका ने मानव को „दया था जीवन. सीमा पर गोलN चुभती कं„टका-सी

रि\तम आभा चमकती म¦णका-सी होने को मातभ ृ ूDम पर कुबाlन क¦णकाएँ बहा दे ता है जवान

ये जवान हR मातभ ृ ूDम कL शान

बहुत है कLमती इनकL जान बदले मP इZहP अ`धक न चा„हए बस कुछ रि\तम क¦णकाएँ चा„हएँ ता<क ये <फर से उठ खड़े ह]

मातभ ृ ूDम और दqु मन मP दNवार बनने को टूटने न दP कभी इस दNवार को हम दNवार खड़ी है तो सरु ¯uत हR हम

इस दNवार कL जान है रि\तम धाराएँ इन धाराओं को न सख ू ने दो तम ु

र\त अपना दे कर सींचो इZहP तम ु

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


र\त अपना दे कर सींचो इZहP तम ु आओ Dमलकर करP र\त दान उनके Dलए जो हR „हंद कL शान जब र\त हमारा बहे गा वीर] मP तब हम भी कहलायPगे जवान आओ Dमलकर करP र\त दान आओ Dमलकर करP र\त दान जय जवान ! जय जवान !

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


14.

मु3काएं खुiशयां-ह9-खुiशयां - ल9ला 6तवानी

उगता हुआ सरू ज हो, हVरयालN हो, मेरN इŒछा है दे श मP खश ु हालN हो,

हर एक कL आंख] मP चमकता नरू हो, हर चेहरे पर खDु शय] कL लालN हो. <कं तु यह सब कैसे होगा? महंगाई कL मार पड़ी है,

एक तरफ से °यान हटे तो, नई सम?या मुहं बाए खड़ी है. ‘–टाचार ने इतना सताया, आम जन] का Dसर चकराया, कहां सम?या का हल पाएं, कोई भी तो समझ न पाया! ?वाइन ±लू भी बनी सम?या, इसने फंदे मP जकड़ा है,

कहते हR सब डर मत इससे, डर इसका पर बहुत बड़ा है. समलR`गकता के सपª ने, अपनी सं?कृ{त को डस डाला, िजसका नाम न लेता कोई,

खल ु े आम पड़ा उससे पाला. अब कैसे बच पाएं इनसे, कोई बताए, कोई समझाए, कैसे जीdवत रहे स²यता, कैसे सं?कृ{त सांस ले पाए?

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


इŒछा मेरN कोई न रं िजत, खुश हो, बस खुश हो ये द{ु नया, सबके चेहरे ¦खले-¦खले ह],

मु?काएं खुDशयां-हN-खुDशयां.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


15.

एहसास कj अiभलाषा - अजय एहसास

तम ु प–ु प-से सक ु ु मार हो, तलवार कL भी धार हो।

तम ु हN भdव–य हो दे श का, मझधार मP पतवार हो। माँ भारती को मान दो, और बड़] को सSमान दो। जो द–ु टता करते यहां, उन द–ु ट] को अपमान दो।

कतl)य पथ पर बढ़ चलो, और जीत Dसर पर मढ़ चलो। जो सyजन] को सताता हो, द–ु ट] से जंग भी लड़ चलो। अपनी कहो सबकL सुनो, जो ठŸक हो तुम वो चुनो। O³मांड मP बस }ेम हो, तुम तार कुछ ऐसे बुनो। तुम हो भdव–य दे श के, उस ईश—पी वेश के

ममता दया क¢णा यहां, {नमाlण हो पVरवेश के। िजस तरफ हो तेरN नजर, द{ु नया चले बस उस डगर तू दांत `गनता Dसंह के, \या करे गा तेरा मगर!

तेरे आगे सारा जग झुके, तू चाहे तो द{ु नया ¢के। वो वीर भी धरती `गरे , तू मार दे िजसको मु\के।

तू वीर बन बलवान बन, तू भारत मां कL शान बन।

तू Dशuा दNuा दे जहाँ को, तू xान-गुण कL खान बन।

तज ?वाथl तू बन ?वाDभमानी, परमाथl कर बन आjमxानी। जो भी Dलखे इ{तहास को, वो गाये तेरN हN कहानी। तू लड़ जा अjयाचार से और Vरqत] के )यापार से।

य„द बात न बने बात से, समझा उZहP तलवार से। शेखर-सुभाष-अशफाक बन, तू वतन खा{तर खाक बन।

गीता-कुरान-गु¢ -Zथ सा„हब, इन सभी जैसा पाक बन।

तू dववेकानZद तू बु‚ध बन, और अधमl के तू dव¢‚ध तन। गंगा के {नमlल धार-सा, तू मन से अपने श‚ ु ध बन। तू गगन तू उपवन सम ु न, तू भोर कL पहलN <करण। एहसास कL अDभलाष ये, तू कर अमन अपने वतन।

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


16.

3वlछ भारत गीत - राजीव गुmता

?वŒछ बनायP भारत को हर ओर बढ़ाएं खश ु हालN

दे श हमारा सZ ु दर ब`गया हम सब हR इसके मालN.

?वŒछ हमारा घर-आँगन हो धरती का कोना-कोना धरती को हम ?वŒछ रखP तो धरती उगलेगी सोना. दे खो दdू षत होने न पाए गंगा कL अमत ृ धारा

आओ करP यह वादा हम सब करP गे इसकL रखवालN !! ?वŒछ बनायP भारत को हर ओर बढ़ाएं खुशहालN

दे श हमारा सुZदर ब`गया हम सब हR इसके मालN.

?वŒछ रहे तो ?व?थ रहP गे इन दोन] मP नाता है ?व?थ दे श कL संतान] से दqु मन भी घबराता है. सबको आगे बढ़ना होगा ?वŒछ दे श को रखना होगा उपदे श] और व\त)य] से बात नहNं बनने वालN !!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


?वŒछ बनायP भारत को हर ओर बढ़ाएं खश ु हालN

दे श हमारा सुZदर ब`गया हम सब हR इसके मालN.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


17.

मात सर3वती वंदना - ल9ला 6तवानी

हे मात सर?वती आय dवराजो मेरे कंठन मP क¢णा करके मां आज dवराजो मेरे कंठन मPतम ु हो dव‚यादा{य{न दे वी माता हम सबकL हो भा¤य-dवधाता

dव‚या दे ने आय dवराजो मेरे कंठन मPतुम हो xानदा{य{न दाती

शु‘ xान कL दे शुभ पाती

xान कL जोत जलाय dवराजो मेरे कंठन मPशु‘वसनधारN क~याणी

कमल का आसन मां वरदानी कमल-सा जग महकाय dवराजो मेरे कंठन मPशDश-सी चमके मोती-माला रdव सम जग दमकाए सारा वीणा कL ले झनकार dवराजो मेरे कंठन मPकंठ मधुर हो ऐसा वर दो

श§द मधुर भाव] से भर दो

मधुVरम हो संसार dवराजो मेरे कंठन मP-

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


18.

बसंती मन भाया (बसंत गीत) - ल9ला 6तवानी

रं ग बहुत-से दे खे, बसंती मन भाया रं ग] का सरताज, बसंती मन भायारं ग बसंती भगतDसंह का, मन को बहुत हN भाया बDल चढ़ा दN अपने तन कL, yय] हN मौका आया बसंती मन भायावीर हकLकत ने भी पहना, रं ग बसंती बाना माeभ ृ ूDम कL बDलवेदN पर, हंसते-हंसते जाना बसंती मन भायावीर शहNद] ने भी पहना, चटक बसंती चोला जोश दे खकर उन वीर] का, शvु का मन डोला बसंती मन भायाइसी रं ग से रं गा हुआ है , ऋतुओं का यह मेला चार] ओर हR फूल बसंती, बड़ी सुहानी वेला बसंती मन भायाआओ हम भी रं ग दP तन-मन, इसी रं ग से अपना दे श}ेम के रं ग के आगे, भाए कोई रं ग ना बसंती मन भाया-

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


19.

हम आतंक के साए मD जी रहे हL - ल9ला 6तवानी

आज हम आतंक के साए मP जी रहे हR सच पछ ू ो तो पल-पल

आतंक का dवष हN पी रहे हR घर] मP कलह का आतंक गDलय] मP छलावे का आतंक सड़क] पर इµज़त तक लुट जाने का आतंक न„दय] मP }दष ू ण का आतंक सागर मP सूनामी-नर`गस और

जहाज़] को बंधक बनाने का आतंक धरती पर भूकंप का

वu ृ ] कL सं[या कम होने और

ˆलाि?टक के उपयोग से होने वालN हा{नय] का आतंक अंबर से cबजलN `गरने से मरने वाल] कL बढ़ती सं[या का आतंक जो कभी सुना नहNं था

आज, रोज़-रोज़ बादल फटने से मjृ युदर बढ़ने का आतंक

रuक] के भuक बनने का आतंक अZदर आतंक बाहर आतंक ऊपर आतंक नीचे आतंक सद¶ मP „ठठुरने का आतंक

गम· मP झल ु सने का आतंक वषाl मP बाढ़ का आतंक

वसंत कL भनक तक न पड़ने का आतंक

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


अपन] मP आतंक गैर] मP आतंक „दल] मP आतंक यानी आतंक हN आतंक सबसे पहले „दल] मP आतंक का मुकाबला करना है

अपने को ईमानदार और मज़बूत बनाकर मानवता के संकट को हरना है तभी आतंकवाद dवरोधी „दवस का होगा सदप ु योग आइए

यह भी करके दे खP एक }योग.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


20.

तू ईpवर है या अqलाह - अZबास रज़ा अलवी

तू ईqवर है या अ~लाह मझ ु े एक नज़र हN आये

<फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP

हर „दशा „दखे तेरN झलकL , हर साँस `गने तेरN `गनती तेरN हN दN इन साँस] को \य] छŸना है हैवान] ने <फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP..... यह दं गे ख़ून ख़राबा माDलक तेरे नाम पे \य] हR

मि?जद मं„दर का झगड़ा माDलक तेरे नाम पे \य] हR ये Dससका सहमा आँगन \य] पाटा है हैवान] ने <फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP..... घर लुटे हुए और जले हुए माDलक तेरे नाम पे \य] हR िज़Zदा कटते मरते इZसाँ माDलक तेरे नाम पे \य] हR उजड़ी बेवा के आंचल को \य] खींचा है हैवान] ने <फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP..... लुटती माँ बहन] कL इµज़त माDलक तेरे नाम पे \य] हR इक नZहNं बŒची के आँसू माDलक तेरे नाम पे \य] हR इन बŒच] को बेदद¶ से \य] गोदा है हैवान] ने

<फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP..... धमª क़ौम] के ये झगड़े मझ ु े दरू दरू तक „दखते हR Dसंदरू सुहागन कL मांग] से नगर नगर मP छुटते हR बŒच] को इन

ह`थयार] से \य] लादा है हैवान] ने

<फर माDलक तेरN द{ु नयाँ मP \य] झगड़ा है इंसान] मP.....

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


21.

iमr! - पुsप राज चसवाल

Dमv! Dमले थे जब हम पहलN बार रचते थे तम ु ?वˆन एक हN बार-बार, अZयमन?क हो कहNं तम ु

ऊब न जाओ एकरसता से, मRने तुSहP Dसखा दN कला असं[य ?वˆन रचने कL,

तब कहNं जाकर हम दोन] थे कहलाए गु—-चेला! Dमv! Dमले थे जब हम अगलN बार, तुSहP xान था

एक हN शvु पर dवजय पाने का, िजxासा )य\त करने पर Dसखा दN कला मRने तुSहP

हज़ार] शvुओं पर dवजय पाने कL, तब थे हम दोन] कहलाए चाण\य और चZ£गुˆत! Dमv! Dमले थे जब हम अं{तम बार, )य\त कL िजxासा तम ु ने

'?वयं पर dवजय }ाˆत करने कL' अब तक परखी गई सभी कलाएँ {न–फल थी, •ीहNना, तभी कहNं अंततlम मP 'अनहद वीणा' बजी ¹दय मP

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


'ब‚ ु धं शरणं गŒछाDम' 'ब‚ ु धं शरणं गŒछाDम' 'बु‚धं शरणं गŒछाDम'

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


22.

लबc पर हो खुiशयc कj लाल9 - ल9ला 6तवानी

आज हम अटRड करने गए एक लेखक सेमीनार हमने जाने के Dलए हायर कL एक अदद टै \सी कार र?ते मP Dमला झुंड बंदर] का वे कर रहे थे र?ता पार

मुझे लगा <क शायद बंदर भी जा रहे हR अटRड करने कोई सेमीनार

वैसे भी उनका तो रोज़ हN चलता है <कसी dवषय पर सोच-dवचार उनमP से <कसी को भी कुछ खाने को Dमले तो एक-दस ू रे को बुलाकर कहते हR

आजा-आजा तू भी कुछ खाले यार <फर चलती है चुटकुल] कL बयार सुनाए जाते हR

नए-पुराने चटपटे समाचार

मनु–य] के अjयाचार और ‘–टाचार के <क?से अंत मP कूल होने के Dलए हंसी-ठºठ] कL बहार. वाdपस आते समय मै»ो कL cबजलN कL तार पर ढे र] कबूतर बैठे थे बैठने को इतनी लSबी जगह पाकर ऐंठे थे वे भी शायद ˜ड?कस कर रहे थे मन–ु य] का ?वाथ· )यवहार

वे तो सब ु ह-सब ु ह सबको बल ु ाते थे पाकर खाने के दान] का थोड़ा-सा उपहार.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


घर आए तो सब ु ह चाय बनाते हुए ?लैब पर `गर गया था चीनी का एक दाना एक दाने को खाने के Dलए लगा था बहुत सारN चीं„टय] का आना-जाना सबने एक-दस ू रे को बताया था <क चलो-चलो, Dमल गया है बहुत „दन] के बाद चीनी का एक दाना आज तो जी भरकर खा लो <फर पता नहNं कब Dमलेगा इस तरह का मीठा खाना. मRने सोचा <क बंदर], कबूतर] और चीं„टय] मP रह सकती है इतनी एकता तो अनेकता मP एकता के गीत गाने वाले मनु–य] कL कहां गई एकता {नः?वाथlता कL जगह

?वाथl का \य] Dमलता है पता! काश उनका ?वाथl हो जाए समाˆत जीवन मP आ जाए खश ु हालN

सबके मन मP हो आनंद कL झनकार लब] पर हो खDु शय] कL लालN, लब] पर हो खDु शय] कL लालN, लब] पर हो खुDशय] कL लालN.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


23.

पv ृ वी कj 2कृ6त - डा० क6नका वमा@

प¼ ृ वी कL इस }कृ{त ने „दया है हमP जीवन दान

प¼ ृ वी कL DमhटN के हर कण ने „दया है ये वरदान प¼ ृ वी ने सींच कर दN पौध] को असीस

प¼ ृ वी ने अपने £)य] से बनाया हमP रईस प¼ ृ वी के आंगन मP खेलते सागर और न„दयाँ प¼ ृ वी के सीने पे सजे पवlत और वा„दयाँ प¼ ृ वी कL कोख मP छुपे हR रह?य हज़ार

प¼ ृ वी के मौसम] से झूमती जीवन मP बहार प¼ ृ वी कL }कृ{त मP हR }ेम के अनेक रं ग फूल] का स½दयl और महक दे ता है उमंग प¼ ृ वी के सीने मP बोई जाती है कनक

प¼ ृ वी कL पेशानी पे ¦खल¦खलाता है धनक प¼ ृ वी ने „दल मP बसाया बाVरश कL बूँद] सा अपनापन प¼ ृ वी ने हN जुदाई मP „दखाया म¢?थल सा सूखापन प¼ ृ वी मP है ?वयंभू के {नमाlण कL बहार

प¼ ृ वी मP हN है Dशव के cvशूल सा संहार प¼ ृ वी के ˆयार मP <कसी को परखा नहNं जाता \य]<क परखने से कोई अपना नहNं रहता

प¼ ृ वी के राज मP तो अशतl हN }ेम बँटता है

सरू ज हो या चाँद, सहN वMत पे नभ मP उतरता है प¼ ृ वी कL }कृ{त मP कुछ भी ज़~दबाज़ी मP नहNं घटता

<फर भी हर }<œया और {नमाlण सहजता से परू ा होता प¼ ृ वी ने •म से }कृ{त के हर —प मP िज़Zदगी बसाई जीवन के हर कण मP है प¼ ृ वी के }ेम कL परछाई

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


24.

mयार कj mयास - लखमी चंद 6तवानी

ˆयार कL ˆयास है ˆयार से हN बझ ु ेगी

अभी कुछ „दन पहले कL हN तो बात है जब तम ु पास होती थीं \या समां होता था

\या उजास होती थी {नगाहP चमकती रहती थीं सूरत दमकती रहती थी

आवाज़ खनकती रहती थी सांसP महकती रहती थीं जब तुमसे Dमलने का समय नज़दNक आता था \या-\या बातP <कस तरह करनी हR

हर समय मन यहN सोचता रहता था जब तुम आती थीं,

जाने \या जाद ू चलाती थीं

कुछ भी कहना याद हN नहNं रहता था

तुSहारे जाने के बाद मन मसोसकर रह जाता था

मन बहलाने को <कसी तरह सोने का उपœम करता था अ)वल तो {न£ा दे वी आती हN नहNं थी भूले-भटके नींद आ हN गई तो तुSहारे हN iवाब भी आते थे तुमसे Dमलने कL तSमना पूरN हो-न-हो

सपने मन को सताते थे, आनंद का पैग़ाम भी लाते थे अब तो बात हN कुछ और है तुSहारे „दल मP मेरे Dलए

सचमच ु तो \या सपन] मP भी नहNं कोई ठौर है {नगाह] ने चमकना छोड़ „दया है

सरू त कL दमक ने मंह ु ं मोड़ Dलया है

आवाज़ कL खनक तो फ़ाiता हो हN गई सांस] ने भी महक से नाता तोड़ „दया है मायस ू ी कL मोहताजी ने मानो जकड़ Dलया है

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


Dमलने वाले समझते हR <क मR सावन मP भी बरखा रानी के न आने से तdृ षत हूं, संतˆत हूं जैसे हN एक बार झूमकर सावन कL झड़ी लगेगी मेरN तष ृ ा तˆृ त हो जाएगी, ˆयास अवqय बुझेगी पर, मेरा हN „दल जानता है

ˆयार कL ˆयास है ˆयार से हN बुझेगी.

सदाबहार का)यालय

46

सं-ह-2


25.

सूरज, तुम xफर भी चमकते रहोगे (Hवzान गीत) - ल9ला 6तवानी

वैxा{नक भले हN अनम ु ान लगाते रहP ,

<क एक „दन यंू हमेशा के Dलए 'अ?त' हो जाएगा सरू ज, हम भले हN आम भाषा मP कहते रहP ,

सरू ज अ?त हो गया, सरू ज उ„दत हो गया, तुम न अ?त हो, न उ„दत होते हो, तुम <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] का अनुमान है,

<क आने वाले 10 अरब साल बाद, तुम इंटर?टे लर गैर और धूल का एक चमकदार छ~ला बन जाओगे, तुम <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] का अनुमान है, -ह] और तार] के,

इंटर?टे लर गैर और धूल का एक चमकदार छ~ले बनने को, -ह] कL {नहाVरका (ˆलेनेटरN नेबुला) के तौर पर माना है,

जो सभी तार] कL 90 }{तशत स<œयता कL समािˆत का संकेत दे ता है, तुम <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] का अनुमान है,

जब एक तारा खjम होने कL कगार पर होता है , तो वह अंतVरu मP गैस और धूल का एक गुबार छोड़ता है, िजसे उसका एनवलप कहा जाता है,

यह एनवलप तारे के भार का करNब आधा हो सकता है, तम ु <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] का अनम ु ान है,

तारे के भीतरN गमl भाग के कारण हN, उसके ‚वारा छोड़ा गया एनवलप करNब 10,000 साल तक,

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


तेज चमकता हुआ „दखाई दे ता है, इसी से -ह] कL {नहाVरका साफ „दखाई पड़ती है, तुम <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] का अनुमान है,

एनवलप छोड़े जाने के बाद, तारे तीन गुणा yयादा तेजी से गमl होते हR,

इससे सूरज जैसे कम भार वाले तार] के Dलए,

चमकदार {नहाVरका बना पाना आसान हो जाता है, तुम <फर भी चमकते रहोगे. वैxा{नक] कL बात मान भी लP, तो आने वाले 10 अरब साल बाद, आज के ये वैxा{नक न ह]गे, हम न ह]गे, 10 अरब साल बाद अपना, एनवलप छोड़े जाने के बाद, चमकदार {नहाVरका के —प मP तुम रहोगे, तुम <फर भी चमकते रहोगे.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


26.

इंसान को भी कुछ इंसा6नयत iसखा - ल9ला 6तवानी

कल सब ु ह

मR दाDमनी के iयाल] मP खोई हुई थी जागते हुए भी मानो, सोई हुई थी

इतना तो पता है हN <क कोई भी आए या चला जाए द{ु नया <कसी के Dलए नहNं थम सकती मR भी मन मसोसकर चाय पी रहN थी

तभी कमरे कL ¦खड़कL के बड़े-से छyजे पर कबूतर] कL एक जोड़ी कL गुटरगूं सुनाई दN मRने दे खा <क

एक कबूतर कबूतरN के इदl-`गदl च\कर काट रहा था

शायद वह उसको ˆयार-दल ु ार के Dलए मान-मुनौवल कर रहा था

कबूतरN मानने के मूड मP नहNं थी

इसDलए कबूतर को घास नहNं डाल रहN थी कबूतर कL बहुत कोDशश] के बावज़ूद वह नहNं मानी आ¦खर तंग आकर बोलN मुझे दाDमनी-{नभlया-अनाDमका कL तरह दVरंदगी का Dशकार बनाने कL कोDशश मत करना कम-से-कम कुछ तो शमl-हया रखना वरना

मझ ु े भी हवस का Dशकार होने के साथ-साथ दाDमनी कL तरह

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


कई बार ऑपरे शन कL पीड़ा से गज़ ु रकर अपनी अंत˜ड़यां {नकलवानी पड़Pगी

और जीने के Dलए असफल ज़‚दोज़हद करनी पड़ेगी ख़ैर मुझे आई.सी.यू मP डॉ\टर] के ‚वारा

बार-बार बेहोश करके जाने \या-\या <कया जाएगा मुझे तो कुछ पता भी नहNं चल पाएगा <क

कौन \या-\या और \य] कह रहा है तुमको हN दे खना पड़ेगा <क

कैसे शहर कL नाकाबंदN करके उसे छावनी का —प „दया जा रहा है कैसे सारे दे श कL धड़कन] को रोका जा रहा है सामाZय लोग तो <फर भी सŒची हमदद¶ „दखाएंगे ले<कन नेता लोग तो अपनी ख़ुदगज़· को भी हमदद¶ के —प मP भुनाएंगे <फर तुम हN सुनोगे <क

कुछ लोग कहP गे <क

इसकL िज़Sमेदार तो कबत ू रN हN है \य]<क

अगर वह सरP डर कर दे ती तो कम-से-कम अपनी अंत˜ड़यां तो बचा सकती थी या <क इसमP <फ़~म] और सीVरयल] मP „दखाए गए कपड़] या बहशीपने से पूणl €qय] का कोई रोल नहNं है सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


कोई कहे गा <क रोज़ इतने-इतने बलाjकार होते हR इसी केस पर इतना बवाल \य] है अरे ! पाप का घड़ा जब भरे गा तो कभी-न-कभी तो फूटे गा न! और

य„द मR बच भी गई तो मेरा \या ह• होगा? सारN उ_ इसी दहशत के साथ {तल-{तल म—ंगी पल-पल म—ंगी न कुछ खा सकूंगी

न ढं ग से सुन-बोल सकूंगी

अपा„हज़ बनकर मौत से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर रहूंगी अगर मौत ने मुझे

अपने आगोश मP ले Dलया तो मR तो <फर भी चैन प जाऊंगी ले<कन तुSहP भी बiशा नहNं जाएगा तू भी अपनी बुरN करनी का बुरा फल पाएगा

इसDलए समय रहते संभल जा दो?त बनकर मेरे साथ हंसी-खश ु ी समय cबता

इंसान को भी कुछ इंसा{नयत Dसखा, इंसान को भी कुछ इंसा{नयत Dसखा, इंसान को भी कुछ इंसा{नयत Dसखा.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


27.

खोल दो मु{ठ} - कुसुम सुराणा

खोल दो मh ु ठŸ, cबखेर दो कंचे, उड़ा दो पतंगP, गगन मP ऊंचे! आसमां को छूना है,

बाजओ ु ं मP भरना है! समय के भाल पर,

कुमकुम {तलक लगाना है! पेल दो धनुष, }jयंचा खींच दो,

बाण से शहद भरे , ¹दय को बींध दो! तपती म¢धरा पर, चैvी गुलाब ¦खलाना है!

मग ृ मरN`चका से दो?ती कर, सौरभ फैलाना है!

आंख] कL पुतDलय] मP, ल¿य को उतार दो, उड़ान चील कL भर, सूरज को {नगल लो! हौसले बुलंद है!

फ़ौलादN पंख हR! कामयाबी के Dशखर पर, मजबूत कदम हR!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


28.

बचपन याद आता है - इरा जौहर9

अमवा कL छाँव तले वो सहे Dलय] संग गˆपे लड़ाना, <फर मौका पा कर नमक के साथ कŒची कैरN चबाना. „दन-दप ु हरN भाग कर घर के dपछवाड़े सहे Dलय] संग जाना, और पीपल कL छै यां मP वो झूले पर लSबी पींगP बढ़ाना.

बोल मेरN मछलN <कतना पानी कह घेरा तोड़ कर भाग जाना, <फर गुज़रे जमाने कL वो छुपन {छपाई व पकड़म पकड़ाई खेलना. दादN-नानी के वो <क?से-कहा{नयाँ और पहे लN बुझाना,

नटखट-नादां-भोलN बन यूँ हN सबकL नाक मP दम करना. सच मP वह बचपन याद आता है बहुत जब होती हूँ अकेलN, याद आती हR वो बचपन के खेल-¦खलौने और सखी-सहे लN. पर अब दे खा करती रोज बŒच] को जूझते अकेलेपन से,

बZद कमर] के घुटते दायर] मP आया कL गोद मP पलते हुए. सोचती हूँ हो कर उदास कहाँ से लायPगे वो cबZदास बचपन, कैसे पायPगे वो उZमु\त cबखरते रे त के घर½दे बनाने का सुख. कहNं हम इस अंधाधुंध बढ़ती आधु{नकता कL ?पधाl के दौर मP,

बŒच] का आनZददायक ?वभाdवक बचपन तो नहNं छŸन ले रहे . कभी-कभी सच मP बहुत याद आता है वो अ~हड़-चंचल बचपन, काग़ज़ कL नाव व बाVरश के Vरम¦झम पानी मP भीगकर नहाना. माँ कL ज़ोरदार डाँट खाने

के बाद बाबा-दादN कL गोद मP बैठ कर,

बआ ु -चाचा के हाथ] से गरम-गरम अदरक वालN गड़ ु कL चाय पीना.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


कहाँ तक Dलखूँ अZत हN नहNं है इन याद] के अनमोल <क?स] का,

बZद क—ँ आँख] को तो सचमच ु सपन] मP वो बचपन याद आता है.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


29.

व~ ृ कj म•हमा अनमोल बड़ी (गीत) - ल9ला 6तवानी

हे वu ु हारN म„हमा का \या कहना है अनमोल बड़ी ृ तS तेरN रचनाएं दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ी-

तम ु तेज धप ू सहकर भी हमP शीतलतम छाया दे ते हो हरदम हमP दे ते रहते हो, हमसे कुछ भी नहNं लेते हो तेरN ये अदाएं दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ी-

„दन मP हमP ऑ\सीजन दे कर जीवन को रवानी दे ते हो सीधे खड़े रह आनंद दे कर बूढ़] को जवानी दे ते हो

तेरN मु?कानP दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ीफल-फूल-अZन-दालP-{तलहन, जड़ी-बू„टयां तुमसे Dमलती है {नमाlण हे तु लकड़ी दे ते, Àधन भी तुSहNं से Dमलती है तेरN सौगातP दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ी-

पjथर मारे कोई तुमको, बदले मP उसे तुम फल देते आंधी-तूफां-पानी मP भी तुम सहनशील बनकर रहते

तेरN ये अदाएं दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ीफल से लदकर हे वu ृ हो तुम, हमP सीख न_ता कL दे ते हर हाल मP तुम मु?काते हो, कटने-`गरने से नहNं डरते तेरN Dशuाएं दे ख-दे ख है सारN द{ु नया च<कत खड़ी-

(तजl- „दल लट ू ने वाले जादग ू र अब मRने तझ ु े पहचाना है———)

सदाबहार का)यालय

55

सं-ह-2


30.

कोई तो व~ ृ c कj )यथा सुने! - रHवंदर सूदन

काश, वu ृ भी राuस] के जमाने जैसे होते! कट जाने पर एक, खड़े कई होते, पौध] से वu ृ बने,

आंधी-तफ़ ू ाँ से लड़कर,

दे ते छांव सभी को खुद कड़ी धूप मP तप कर, दे ते सभी को फूल फल और शु‚ध हवा, चुपचाप सह लेते हR सब,

लेते नहNं ¢पÂया एक या सवा. चाहे काटकर ठŠड भगाओ चाहे बना लो दवा, दdू षत हवा खाकर भी हमP दे ते है शु‚ध हवा. इZहP काट कर भले हN तुम बन रहे शैतान, उसे तो अगले जनम मP, बनना है इंसान. <कसी को काटकर मR रोजी-रोटN पाऊं, या उसे उजाड़ कर अपना घर बनाऊं. मानव के कमª को दे खकर कहता है भगवान, ‘’अभी भी नहNं समझा तो <फर, कब समझेगा इंसान! वu ृ कL म„हमा अपरSपार, इनके तुम पर बड़े उपकार, कोई इनका ममl न जाने,

बस उZहP तो फल हR खाने, बरस] मूक खड़े लाचार,

<फर भी कोई नहNं दरकार, कोई तो सुने इनकL पुकार,

वरना पड़ेगी }कृ{त कL मार, मानव करे इनका {तर?कार,

जीव-जंतओ ु ं को इनसे ˆयार, जीकर दे ते पयाlवरण सध ु ार,

मरके इनके शरNर से होता )यापार, कोई तो हमारN )यथा सन ु े!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


कहते ये बेचारे मक ू जब ु ां मP बारSबार, कोई तो वu ु े! ृ ] कL )यथा सन कोई तो वu ृ ] कL )यथा सुने!

कोई तो वu ृ ] कL )यथा सुने!’’

सदाबहार का)यालय

57

सं-ह-2


31.

हो अभय हर शZद इसका (कHवता) - गौरव VHववेद9

श§द गंिु जत हो रहे और रस }फुि~लत हो रहा क~पना के बादल] संग, मन उमंगP भर रहा

मन कL वीणा के सभी, जब तार झंकृत हो उठP भाव कL सरगम सहज हN, गन ु गन ु ाने तब लगे

मन का ˆयाला भाव] के, श§द] से yय] हN भर गया उŒछDलत हो श§द खुद हN, गीत बनने तब लगP }ेम का ˆयासा पपीहा, आज आतुर हो उठा

श§द] कL बाVरश को पीकर, कंठ अपना सींचता उस पपीहे को नहNं अब, चाह ?वा{त कL रहN भाव ?वा{त बन गए और, श§द बरखा बन `गरP श§द] कL ये आरती, जैसे <कसन कL बांसुरN

भाव] कL हर पंि\त मP, जैसे <क राधा हो बसी श§द मोती बन गए, अब चांदनी कL डोर लँ ू चांदनी कL डोर मP, इन मो{तय] को पोह लँ ू

चाँद तार] को बुलाकर, इन भाव] को •ंग ृ ार दँ ू जगमगाते गीत हR ये, जैसे <क पूनम रात हो माधुरN मधुमय सदा, इनसे बरसती हN रहे

अमत ृ बरसता हN रहे , जैसे शरद कL रात हो

मन के भाव] को चलो, इक —प अपlण अब क—ँ इस —प को •ंगार दे कर, नाम कdवता मR रखूं

हो कमल-सी लाDलमा, कdवता के पूरे िज?म मP

भोर का DसZदरू N सूरज, माथे कL cबं„दया बन सजे

मग ृ नयन इसके हो सुZदर, शवlरN (कालN रात) काजल करे और कपोल] को सजाने, अ¢¦णमा दे लाDलमा हो गल ु ाब]-से अधर, रस कL सदा बरसात हो

कंठ से बस मधु हN {नकले, जैसे <क कूके वनd}या हो गला जैसे सरु ाहN, हाथ जैसे मे„दनी

साथ •ो¦ण के हN जैसे.. आज सDलला मड़ ु रहN

हR कमल से पाँव कोमल, िजनको धरा पर ना ध—ँ हR अलक… घनघोर नीरद, जो गगन भी ढांक लP

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


है पन ु ीता, है अनप ू ा, मोदनी और •ीपदा

भाव] का ये DसZधु मेरा आज उमड़ा जा रहा

हो अभय हर श§द इसका, ऐसा इसे वरदान हो माँ शारदा के हाथ से इसको अभय वरदान हो माँ शारदा के हाथ से इसको अभय वरदान हो !!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


32.

नार9 तू नारायणी - डॉ. वंदना शमा@

नारN तू नारायणी नर से नहNं है कम

कर खद ु अपनी क£, मत कर आँखP नम मागl अव¢‚ध भले हो उZन{त का

ले<कन तम ु „दखा सकती हो साम¼यl अपनी य„द तुSहP अवसर „दया जाये इतनी uमता इतना बल है

नारN तू बहुत सबल है तेरN शि\त को जग पहचानेगा हो च<कत जय-जयकार तेरN करे गा हर uेv मP परचम तुझे लहराना है नारN शि\त है आज ये „दखाना है जग को रा?ता दे ना हN होगा अपना आसमां तुझे लेना हN होगा }{तभा के Dलए अवसर है ज़—रN नारN को अ`धकार दे ना होगा जब-जब नारN को अ`धकार Dमले dवकास व उZन{त के फूल ¦खले रचा है सदै व नारN ने इ{तहास

बस {नकाल दे अपने जीवन से एक श§द 'काश'!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


33.

नƒम - डॉ० अ6नल च„डा

अधरू N इŒछा साथ ले कर \य] चले?, अंधेर] कL सौगात ले कर \य] चलP?

मन मP सौ dवचार आते-जाते हR, सपन] कL बारात ले कर \य] चलP?

कौन Dमलता है यहां cबन ?वाथl के, ?वाथ· को साथ ले कर \य] चलP?

हर तरफ भरमार है दNवान] कL, पगल] से जजबात ले कर \य] चलP?

उठ नहNं पायPगे हम `गरने के बाद, „दल मP अपने मात ले कर \य] चलP?

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


34.

पं6छयc कj सीख - सुदश@न खBना

शीषlक और संदेश एक, कdवताएं दो पं6छयc कj सीख- 1 वu ु े, ृ ] का जो ददl सन

उनका जो हमददl बने, वहN है सŒचा Dमv वu ृ का, कहते हR ये वu ृ घने.

वu ृ खड़े हR बनकर मूक,

िजन पर रहN कोयDलया कूक, कहते पंछŸ ''सुन रे मानव, दानव बनने कL तज भूख.

इतना \य] खुदगज़l बना त,ू वार उसी पर करता है ,

जो दे ता है तुझको साँसP, छाँव भी तुझको दे ता है.

वषाl-जल से Dभगो धरा को, रखते DमhटN को ये नम, जल पहुंचाते धरा के नीचे, जल-?तर न होने दे ते कम. वu ृ ] कL सेना के समu,

}दष ू ण हार हो गया प?त,

फल, फूल, बीज, औष`धयाँ दे ते, जड़ी-ब„ू टय] „हत वरद-ह?त.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


अपने हN }हरN पर बोलो, \य] करते हो }खर }हार, यहN तुSहारे जीवनदाता, दे ते यहN तुSहP आहार. जो केवल दे ते-हN-दे ते, बदले मP कुछ नहNं हR लेते, िजसकL गोद मP बैठ कर,

बो`धसjव हुए गौतम बेटे. उनको हN तू समझे {नबlल, वu ृ महान हR वu ृ दे व हR,

पjथर खाकर भी फल दे ते, ऐसी गVरमा वाले वu ृ हR. हम भी वu ृ ] पर पलते हR,

उनको {नjय नमन करते हR, अगर कभी इक पेड़ को काटे , दस लगाने कL सीख दे ते हR. समझ नहNं 'गर तुझमP बंदे, हमसे हN तू जीना सीख,

खद ु के Dलए जीना \या जीना,

और] के Dलए भी जीना सीख.'' सद ु शlन खZना पं6छयc कj सीख-2 पंछŸ कलरव करते हR मन ये सभी का हरते हR अ‚भुत रं ग] से रं गे ये जीने का गुर दे ते हR

`च˜ड़या दे खो \या कहती है सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


थोड़ा-थोड़ा चग ु ती है

yयादा का नहNं लालच उसको है यह समझाती हम सबको कोयल बोलकर मीठŸ बोलN हमको यह समझाती है ऐसी बानी बोDलए, मन का आपा खोय औरन को सीतल करे , आपहु सीतल होय कांव-कांव करता है कौवा कुदरत का मेहतर है कौवा ?वŒछ रहो हे मानव तुम

दे ता बहुत बड़ी इक सीख. कबूतर करता है गुटर-गूं

}ेम से Dमल सब रहो तुम यूं चील-बाज उड़ ऊंचे नभ मP

जीवन मP तुम छू लो ऊंचाइयां उड़ते उड़ते दे ते सीख

गदlन उ~लू कL है {नरालN चार] ओर करे रखवालN

जीवन मP पल पल रहो चौकस घूम-घूम कर दे ती संदेश Dमhठू तोता टP -टP करता

हरN Dमच· से पेट है भरता हर जलन को तम ु भोज बनाओ तीखे को तम ु गले लगाओ रं ग-cबरं गा मोर नाचता

आंख] मP है सबकL भाता तुम भी ऐसा कुछ कर जाओ द{ु नया मP खुDशयां लुटाओ.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


35.

चलती रह9 िजंदगी - ल9ला 6तवानी

कभी धंध ु के साथ चलती रहN िजंदगी,

कभी अंधेरे के साये मP भी पलती रहN िजंदगी. कभी फूल] कL सेज पर करवटP बदलती रहN िजंदगी,

कभी कांट] कL शैÂया पर भी चैन से सोती रहN िजंदगी. कभी आतंक के आतंक से हN आतं<कत हो जलती रहN िजंदगी, कभी œूरता के दं श को शौयl से झेलकर भी उछलती-जीती रहN िजंदगी. कभी मानव-धमl को •े–ठ मानकर बढ़ती रहN िजंदगी,

कभी नै{तक मू~य] मP आ?था गंवाकर भी „हलती रहN िजंदगी. कभी सुdवधाओं से {घरN रहकर Dससकती रहN िजंदगी,

कभी अभाव] के गतl मP `गरकर भी म? ु काती रहN िजंदगी. कभी अनुकूल पVरि?थ{तय] मP आहP भरती रहN िजंदगी,

कभी }{तकूल पVरि?थ{तय] मP भी राहP ढूंढती रहN िजंदगी. कभी कमlठता के <œयाकलाप] से कूजती रहN िजंदगी, कभी अकमlŠयता के पाश मP भी फंसती रहN िजंदगी. कभी सुख के सािZन°य मP सरकती रहN िजंदगी,

कभी दःु ख के दा¢ण दं श से भी cबछलती रहN िजंदगी. कभी धुंध के साथ चलती रहN िजंदगी,

कभी अंधेरे के साये मP भी पलती रहN िजंदगी, अ\सर रोशनी को साथ लेकर सबको राह „दखाती रहN िजंदगी.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


36.

लौट कर आजा / ऐ आँख! - ज़ह9र अल9 iसVद9क़j

1 - लौट कर आजा... झरोखे से झाँका मासम ू बचपन „दखा

मन <कया गले लगा लंू

बनूं शासक उस जहान का जहाँ ना कोई टP शन, ना कोई बंधन

हो महज xानाजlन, मनोरं जन और खुशी का संचयन...

ˆयार,दल ु ार और लोरN से

परोसा हुआ बहु)यंजनीय बचपन बहन से लड़ाई, भाई को फंसाई मानो dवशेषx सभी dवषय] का \या, \य], कैसे रग] मP दौड़े मानो उसैन बो~ट सवाल] का इं£ धनुष याद आने पर

{ततDलय] के पंख] मP टटोलना खेत कL रखवालN के बहाने मटर कL फDलयां तोड़ना दो?त] से झगड़ा करना चोट लगने पर, माँ से छुपाना बुजुगª को `चढ़ाना और

पापा के सामने शरNफ बनना jयोहार] मP सभी के घर जाना नए कपड़] मP उछल-कूद मचाना लौट कर आजा बीता बचपन तरस रहा हूँ, तड़प रहा हूँ...

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


2 - ऐ आँख! तू है तो जहान मP उजाला है तेरे cबन द{ु नया गंवारा न है

हर लSहे का चqमदNद गवाह है तू है तो पल-पल से वा<कब मR हूँ।। चाँदनी-सी ठं डक तेरे वजूद से है

अŒछे काम] मP बरक़त तेरे वज़ूद से है तू है तो जqन-ए-<करदार मेरा

वरना मR उतना असरदार कहाँ? सरहद के मा<फ़क {नगरानी तेरN एक नज़र मP आते-जाते का मक़सद दे ख चेहरे को पढ़ता „दल के सारे राज तू है तो िजंदगी का एक नया अंदाज़।। तेरे होने से ग़रNबी-अमीरN दे खा भूख-ˆयास का हक़Lकत समझा

दाने-दाने पर खाने वाले का नाम दे खा ऐ आँख! कुदरत का द?तूर समझा।।

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


37.

तीन बाल गीत - इंˆेश उ6नयाल

1. महक-चहक फूल महक रहे ब`गया मP, पuी चहकP घर-आंगन मP,

फाग महNना जब भी आता होलN का हु~लड़ „दखलाता, ऋतु बंसत जब आती है , कोयल राग सुनाती है, अमराई मP झूले पड़ते,

मीठे आम ¦खलाती है. सावन आया भाद] आया, हVरयालN भर-भर लाया, माघ-पूस जब आएंगे, ठं ड से हमP कंपाएंगे.

2. बचाओ जंगल, मनाओ मंगल. भालू मामा जब भी आते,

ठुमक-ठुमककर नाच „दखाते, बाघ-बघेरे जब गुराlएं,

हाथी-„हरण सभी थराlएं, ये तो हR जंगल कL बातP, अब तो हR कंकरNट के जंगल, पयाlवरण-सध ु ार जो चाहो,

बचाओ जंगल, मनाओ मंगल.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


3. ‘बqल9-चह ू ा

cब~लN बोले Sयाऊँ-Sयाऊँ, चूहा कहे , ''कहाँ छुप जाऊँ?''

cब~लN बोलN, ''छुप न सकोगे, अब तो मेरा भोyय बनोगे.''

''तुम \या जानो मुझे पकड़ना, इतना भी आसान नहNं है,

यह लो मR तो दौड़ा-भागा'', cब~लN न समझी पीछा-आगा.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


38.

Hवpवास के बीज को अंकुOरत होने दो - ल9ला 6तवानी

dवqवास के बीज को अंकुVरत होने दो

आशाओं के त¢ को प~लdवत होने दोमाना है अभी चंहुं ओर अं`धयारा लगता नहNं है कभी होगा उिजयारा पर, त{नक ¢को, भोर को होने दो सूरज दे वता को त{नक स<œय होने दो

<फर अं`धयारे का वश नहNं चल पाएगा उिजयारा }सZनता से अपने पंख फैलाएगा समय अपनी सीमा से ग{तशील होता जाएगा dवqवास का बीज ?वतः अंकुVरत हो जाएगा. माना आज अमावस कL तमस भरN रात है लगता है चZ£मा का कभी अि?तjव था यह पुरानी बात है पर, त{नक ¢को, „दन को एक पग और ¦खसकने दो

चZ£मा को थोड़ा-सा dव•ाम कर \लां{त से मु\त होने दो <फर चZ£मा }ेम से अपनी झलक „दखलाएगा

धीर-धीरे बढ़कर पू¦णlमा को चांदN कL थालN-सा „दखकर हषाlएगा समय अपनी सीमा से ग{तशील होता जाएगा dवqवास का बीज ?वतः अंकुVरत हो जाएगा. माना आज चार] ओर घोर आतंक का साया है दे श-dवदे श मP, धरती-अंबर मP, घर के भीतर-बाहर भय का भूत समाया है पर, त{नक ¢को, पतझड़ जैसी पीड़ाओं को थोड़ा Dसमटने दो बहार जैसी म? ु कान] को म? ु कान] से Dलपटने दो

<फर आतंक का दानव <कसी कोने मP बैठकर आंसंू बहाने को dववश हो जाएगा आ?था का उपवन पिु –पत और प~लdवत होकर मन को महकाएगा समय अपनी सीमा से ग{तशील होता जाएगा dवqवास का बीज ?वतः अंकुVरत हो जाएगा.

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सं-ह-2


39.

अलंकार (सूr ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी

श§द और अथl को स½दयl दे जो, मन पर अ`धक }भाव डालती, सा„हjय कL वह वणlन-शैलN, ?वतः हN अलंकार कहलाती. श§द] मP हो रमणीयता और बा³य स½दयl मP व‚ ृ `ध करP ,

अनु}ास, यमक, qलेष आ„द, श§दालंकार के नाम खरे .

अथl मP हो स½दयl जहां पर, रचना का सौ–ठव {नखरे , उपमा, —पक, उj}ेuा आ„द, अथाlलंकार मोती बन cबखरे . ?वर मP चाहे DभZनता हो पर, )यंजन कL हो आवdृ e,

वाचन मP रस-धार बहे तो, अनु}ास कL हो सिृ –ट. श§द] कL हो आवdृ e और, अथl DभZन ह] श§द] के,

यमक अलंकार वह कहलाता, भाता है मन रDसक] के. एक श§द हN अनेक अथª का, बोध कराता qलेष मP, पानी हN मोती, मानस, चन ू का, बोध कराता qलेष मP.

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सं-ह-2


एक व?तु कL अZय व?तु से, होती समानता उपमा मP,

उपमेय, उपमान, साधारण धमl और, वाचक श§द हR उपमा मP. सा€qय अ`धक होता जब इतना, उपमेय मP उपमा का हो आरोप, —पक कL सिृ –ट तब होती, का)य का यह —प अनूप.

उपमेय मP उपमान कL संभावना हो, उj}ेuा अलंकार वहां होता, मानो, मनु, जनु आ„द श§द हR, उj}ेuा का सूचक होता.

खूब बढ़ाकर, खूब चढ़ाकर, बात कहP अ{तशयोि\त मP,

?वगl से धरती Dमलती है और, मेघ खड़े हR पंि\त मP. {नंदा के Dमस ?तु{त हो, ?त{ु त के Dमस {नंदा हो,

)याज?त{ु त अलंकार वहां है, ?त{ु त हो या हो {नंदा.

?vी कL शोभा गहने हR, का)य कL शोभा अलंकार, गहने अ`धक न स½दयl बढ़ाते, अलंकार-आ`ध\य बेकार.

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सं-ह-2


40.

समास (सूr ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी

दो या दो से अ`धक श§द] का, मेल समास कहलाता है, इससे बना नया श§द हN, ‘सम?त पद’ कहलाता है.

अ)ययी भाव, कमlधारय, तjपु¢ष, ‚वं‚व, ‚dवगु और बहुOी„ह, भेद समास के छः होते हR, )याकरण कL है यह रNढ़. पहला पद }धान हो अथवा, पद पहला अ)यय होता, कभी श§द पूरा अ)यय हो, अ)ययी भाव समास होता.

पद }धान हो दज ू ा िजसमP,

हो dवभि\त `च³न] का लोप, तjपु¢ष समास कहलाता, धनहNन मP ‘से’ का लोप.

पहले dवशेषण <फर dवशे–य हो, या उपमेय हो <फर उपमान, कमlधारय समास कहलाता, कमलचरण हR कमल समान. कमलनयन हR कमल समान. पहला पद हो सं[यावाचक, श§द समह ू का बोध कराए,

cvफला समह ू तीन श§द] का, वह ‚dवगु समास कहलाए.

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सं-ह-2


दोन] पद }धान ह] िजसमP, ‚वं‚व समास है वह कहलाता, ‘और,’ ‘तथा,’ ‘या’, ‘अथवा,’ ‘एवं’, dव-ह करने पर लग जाता. दो या दो से अ`धक वणª का, मेल सं`ध कहलाता है, दो या दो से अ`धक श§द] का, मेल समास कहलाता है. कोई पद }धान न हो िजसमP, पद वाचक हो अZय श§द का, बहुOी„ह समास कहलाता, पतझड़, dवषधर, कनकटा.

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सं-ह-2


41.

छं द (सूr ]प मD कHवता) - ल9ला 6तवानी

छं द कdवता का अDभZन अंग है, छं द से है कdवता कL शान, सरस और }भावशालN हो, ग{त और लय से बढ़ता मान. िजन छं द] कL गणना मP हR, लेते वणª का आधार, उनको व¦णlक छं द कहते हR, सम, अ‚lधसम, dवषम }कार. िजन छं द] कL )यव?था का, माvाएं हN ह] आधार, उनको माcvक छं द कहते हR, सम, अ‚lधसम, dवषम }कार. चौपाई सम माcvक छं द है, चार चरण सोलह माvाएं, अंत मP जगण-तगण {नdष‚ध हR, अंत मP वणl गु¢ हN आएं. चार चरण चौबीस माvाएं, ¤यारह और तेरह पर य{त हो, दोहा अ‚lधसम माcvक छं द है, सम चरण] मP तक ु Dमलती हो. चार चरण चौबीस माvाएं, तेरह और ¤यारह पर य{त हो, सोरठा अ‚lधसम माcvक छं द है, dवषम चरण] मP तक ु Dमलती हो.

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सं-ह-2


रोला सम माcvक छं द है, चार चरण चौबीस माvाएं, ¤यारह और तेरह पर य{त हो, एक-दो, तीन-चार मP तुक पाएं. दोहा-रोला छं द जोड़कर, कुŠडDलया कL कर पहचान, छः चरण चौबीस माvाएं,

}थम-अं{तम श§द समान. सम माcvक छं द हVरगी{तका, सोलह और बारह पर य{त हो, चरण पर?पर होते तुकांत हR, चरणांत मP लघु-गु¢ हो.

सवैया व¦णlक छं द कहाए, इ\कLस से छ§बीस तक वणl आएं, चार] चरण कL तुक Dमलती हो, सात सगण और दो गु¢ आएं. कdवe म\ ु तक व¦णlक छं द है, चार चरण इ\कतीस माvाएं,

सोलह और पं£ह पर य{त हो, अं{तम वणl ग¢ ु हN आएं. छं द cबना कdवता पंगु है,

कdवता से है छं द कL शान, दोन] के संयोग से होता, सरस मधुरता का रसपान.

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सं-ह-2


42.

धूप का टुकड़ा (कHवता) - ल9ला 6तवानी

आज सब ु ह

धप ू के टुकड़े से मल ु ाकात हुई कुछ बात हुई मRने कहा,

"¢ई के फाहे जैसे धूप के टुकड़े

तुम ¦झलDमल शाDमयाने जैसे बड़े आकषlक लग रहे हो पहले तो कभी तुSहारा इतना सुंदर —प कभी „दखाई नहNं „दया

आज फुरसत से सजे हो

बड़े खूबसूरत लग रहे हो!” धूप का टुकड़ा बोला,

"मR तो हमेशा से हN ऐसा हूं <फर खूबसूरती तो दे खने वाले कL

आंख] मP होती है शायद आज तुSहारN आंखP हN

खूबसूरती का पैमाना बनी हुई हR कजरारे काजल से सजी हुई हR तभी मR

खब ू सरू त शाDमयाना लग रहा हूं त{नक ¢को तS ु हारN यह उपमा सन ु कर

मR भी मन मP मंथन कर रहा हूं सच तो है मR तो हूं हN शाDमयाना

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सं-ह-2


आज तक मRने हN खद ु को नहNं पहचाना

मेरे आते हN आसमान मP एक {तरपाल-सा लग जाता है सारा संसार उसके नीचे सज जाता है आज तुमने मुझे अपने आप से Dमला „दया है जीवन को दे खने का

एक नया €ि–टकोण „दखा „दया है आओ हम तुम दो?ती कर लP एक दस ू रे को अंक मP भर लP

Dसखाएं एक-दस ू रे को खुश होने के गुर एक दस ू रे के क–ट हर लP, एक दस ू रे के क–ट हर लP,

एक दस ू रे के क–ट हर लP.

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सं-ह-2


43.

दो मग ृ छौने (कHवता) - ल9ला 6तवानी

दे ख के दो सद ंु र मग ृ छौने, मन ने पछ ू ा ये हR कौन?

मन उeर-}{तउeर करता, मग ृ छौने तो रहते मौन. एक है अलख, अलेप, अना„द (अतीं„£य), नाम है उसका O³म महान, एक Dलˆत होता है जग मP, जीव है उसका नाम {नदान. नहNं नहNं, यह ठŸक नहNं है , ये तो हR „दन-रात समान, एक „दवस कL <करणP लाता, एक „दवस का है अवसान. अथवा ये सुख-दःु ख साuात हR, साथ-साथ हरदम रहते हR,

दःु ख के पीछे सख ु आता है,

सुख मP सिSमDलत दःु ख रहते हR. शायद ये जीवन-मjृ यु ह],

कभी नहNं ये Dमल पाएंगे, तभी DभZन „दशा मP मख ु है, ऐसे हN ये रह जाएंगे.

ये हR Dस\के के दो पहल,ू

या <क नदN के हR दो छोर, अथवा दो Æव ु भम ू ंडल के, इनका कोई ओर न छोर.

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सं-ह-2


कोई भी ह] ये इससे \या है, सीख हमP लेनी है इनसे, DभZन „दशा मP मुख ह] तब हN, वाताl कर सकते हR सुख से.

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सं-ह-2


44.

मत कहो xक ''कुछ नह9ं हो सकता'' - ल9ला 6तवानी

\य] कहते कुछ नहNं हो सकता? चाहो तो सब कुछ हो सकता,

कोDशश तो करो मन से ˆयारो, मत कहो <क ”कुछ नहNं हो सकता”. तुम र\तदान कर सकते हो, तुम चuुदान कर सकते हो,

`चपको आंदोलन <फर से छे ड़, पेड़] को बचा तुम सकते हो. नारN अि?मता का बीड़ा ले, नारN-रuा कर सकते हो, पVरवार मP स‚भावना बढ़ा, उसको मधुVरम कर सकते हो. \य] कहते कुछ नहNं हो सकता? चाहो तो सब कुछ हो सकता,

कोDशश तो करो मन से ˆयारो, ये कहो <क ”सब कुछ हो सकता”.

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सं-ह-2


45.

“एक नBह9-मुBनी के 2pन” - डॉ० अ6नल च„डा

मR जब पैदा हुई थी मSमी, तब \या ल•डू बांटे थे? मेरे पापा खश ु हो कर,

\या झम ू -झम ू कर नाचे थे? दादN-नानी ने \या मुझको,

ˆयार से गोद ¦खलाया था? भैया के बदले \या तुमने, मुझको साथ सल ु ाया था?

ˆयार अगर था मुझसे माँ,

तो \य] न मुझे पढ़ाया था? मनता बथl-डे भैया का है, मेरा \य] न मनाया था? था करना मुझसे भेदभाव,

तो द{ु नया मP \य] बुलाया था?

\या मR तुम पर भार हूँ माँ? <फर तुमने \य] ये जताया था? तुम भी तो एक नारN हो,

\या तुमने भी यहN पाया था? गर तुमने भी यहN पाया था,

तो \य] न }qन उठाया था? अपने वजूद कL खा{तर माँ,

\य] मेरा वजूद झुठलाया था? तुमने अपने „दल का ददl,

कहो <कसकL खा{तर छुपाया था? मR तो आज कL बŒची हूँ, मझ ु को ये सब न सह ु ाता है, इस द{ु नया का ऊँच-नीच,

सब मझ ु े समझ मP आता है,

इसीDलए तो अब मझ ु को माँ,

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सं-ह-2


आँधी मP चलना भाता है, मेरN `चंता मत करना माँ, मुझे खुद हN संभलना आता है।

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सं-ह-2


46.

तीन ~gणकाएं - ल9ला 6तवानी

1. iसलवटD च‚दर कL Dसलवट] को तो ठŸक <कया जा सकता है, िजंदगी कL Dसलवट] का \या करP ? Dसलाई कL Dसलवट] को तो ठŸक <कया जा सकता है, Vरqत] कL Dसलवट] का \या करP ? ग़ैर] कL Dसलवट] को तो ठŸक <कया जा सकता है, अपन] कL Dसलवट] का \या करP ? दqु मनी कL Dसलवट] को तो ठŸक <कया जा सकता है, दो?ती कL Dसलवट] का \या करP ?

इनकार कL Dसलवट] को तो ठŸक <कया जा सकता है, इकरार कL Dसलवट] का \या करP ? मन ने पूछा.

सकाराjमकता अपनाएं ˆयार से सहलाएं मड़ ु P और मड़ ु ाएं

अपनापन बढ़ाएं dवqवास बढ़ाएं अंतमlन से जवाब आया. 2. ’अपनc' कj याद हर सुबह कL धूप, कुछ याद „दलाती है,

हर महकाती खुशबू , एक जाद ू जगाती है , िज़ंदगी <कतनी भी, )य?त \य] न हो, {नगाह] पर सुबह-सुबह,

'अपन]' कL याद आ हN जाती है . 'अपन]' कL याद हN

ज़—रत पड़ने पर धूप ¦खलाती है छांव „दलाती है

बाVरश कराती है „दन को रात सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


और रात को „दन का आभास कराती है मुिqकल] मP मदद बन जाती है पीड़ा से राहत „दखाती है बहुत बड़ी जादग ू र है 'अपन]' कL याद. 3. मLने मु3कुराना सीख iलया है मRने मु?कुराना सीख Dलया है मRने महसस ू <कया है

मु?कुराने से „दल का ददl ठŸक हो जाता है, ग़म कोस] दरू भाग जाते हR,

आंसुओं को कहNं छुपने के Dलए कोई कोना ढूंढना पड़ता है, मीठŸ याद] के बादल घहरा जाते हR,

मायूसी मेरे पास फटकने नहNं पाती,

रं ज का अि?तjव dवलुˆत हो जाता है, रोष <कसी कोने मP दब ु क जाता है,

Vरqत] कL Dमठास मन को मधुर कर जाती है,

िज़ंदगी और <क़?मत के हर इिSतहान का पVरणाम सुखद होता है, आनंद भी आनं„दत हो जाता है,

परमाjमा का वरद ह?त म?तक पर छांव बनकर छा जाता है, कोई बार-बार याद „दला जाता है, 'मRने म? ु कुराना सीख Dलया है',

फोटो ¦खंचवाने के Dलए कैमरे के सामने तो हर कोई म? ु कुराता है, न जाने परमाjमा कब मेरN फोटो खींच ले, इसDलए मRने म? ु कुराना सीख Dलया है, मRने मु?कुराना सीख Dलया है, मRने मु?कुराना सीख Dलया है.

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सं-ह-2


47.

ऐ सखी - गौरव VHववेद9

ऐ सखी तम ु से ये कैसा बंधन, ये कैसा Vरqता ?

ये कौन सी अ€qय डोर है, जो मझ ु े तम ु से बांधे है? ऐसा लगता है जैसे तम ु दरू होकर भी मेरे पास हो तS ु हारN वहN मासम ू हँसी, वहN चंचल `चतवन मेरे संग-संग पग भरती है

हे सखी तुम नहNं पर तुSहारे खयाल] का साया हर पल मेरे साथ है! ऐ सखी!!

ऐ सखी, तुम हN बताओ ये कैसी उलझन?

जो चाहे बहुत पर कह कुछ ना पाए „दल मP दबे ढे र] जyबात मगर जब ु ां खामोश

तुSहारे वो अन`गनत अनकहे श§द मेरे कान] मP गूंजते हR मेरN वो अनकहN कdवता, मगर कांपती उं गDलयां कैसे Dलखूं इस अजनबी बंधन पर कdवता?

जो तुSहारN अनकहN बात] से गढ़N है! ऐ सखी!! ऐ सखी, पल-पल याद आता है वो अं{तम Dमलन तुSहारN आँख] कL वो खामोशी, वो अनकहN बातP मचलते जyबात, सुलगते अहसास,

मु?कुराहट के पीछे कL Dससकती उदासी

कुछ कहना तुमको था कुछ सुनना मुझको था

ना तुम कुछ कह पायीं और ना मR कुछ सुन पाया दोन] बेचैन „दल बेचैन हN रह गए, ऐ सखी! ऐ सखी, आओ दो घड़ी पास तो बैठो कुछ अपनी कहो कुछ मेरN सन ु ो

उस बंद <कताब के पZने पलट लो मन के चांद को अहसास] के चकोर से Dमलने दो „दल कL धड़कन को ह]ठो कL `थरकन बनने दो मन मP टूटती आवाज़ को ?वर होने दो

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सं-ह-2


आओ सखी हाथ] को हाथ] मP आने दो दो पथ ु कर एक होने दो, ृ क अंश] को जड़

हे सखी, चलो इस बंधन को एक नाम दP , ऐ सखी!!

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सं-ह-2


48.

मL हूं नटखट बचपन - चंचल जैन

}कृ{त कL गोद मP,

ममता कL घनी छांव मP, मR हूं नटखट मासम ू बचपन हंसे-¦खल¦खलाये मेरा लड़कपन. झूम-झम ू कर, नाचूं-गाऊं

धूम मचाऊं, क—ं अठखेDलयां भेदभाव ना जानूं कोई,

}ेम-भाव से जीतूं द{ु नया. फूल] से लूं मR कोमलता जल से ले लूं {नमlलता,

सूरज कL <करण] से ले लूं

उ–मा, ताप, सीख-?वŒछता. xान भंडार से लूं मR कौशल धमl-°यान से शुभ सं?कार, मानवता-सेवा धमl है मेरा, दया-jयाग जीवन-आधार. हVरत धरा-सम }सZन रहूं मR, नील गगन-सम „दल है dवशाल, सागर-सम „दल गहरा मेरा, सबका मीत मR सबकL ढाल. पंछŸ जैसे पंख पसार के, ऊंची-ऊंची लूं

मR उड़ान,

नZहN चींटN से मR सीखूं ,

कण-कण जोड़ूं बनंू महान. मधम ु \खी है हमP Dसखाती

?व-अनश ु ासन कैसे रखना, फूल] से मR सीखंू हंसना,

बादल से मR Vरम¦झम बरसना. }कृ{त-संग गन ु गन ु ाऊं-गाऊं,

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सं-ह-2


}दष ू ण-म\ ु त हो सारा संसार, माता-dपता का मR हूं दल ु ारा, उनका भावी सबल आधार. सदा रहूं मR हंसता-गाता, यहN सजीला सुZदर [वाब, सदाबहार और रं ग-रं गीला,

yय] सिृ –ट का गुणी गुलाब.

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सं-ह-2


49.

'उ‹मीद अभी बाकj है ' - डॉbटर इला सांगा

चांद भी वहNं है, हम भी यहNं हR उSमीद अभी बाकL है \या हुआ जो गम ु हो गया इसरो पVरवार का दस ू रा बेटा नाम है िजसका चं£यान-2 होश अभी बाकL है जोश अभी बाकL है <फर नया इ{तहास रचेगा चZ£मा पर {तरं गा लहरे गा ये तो कुछ भी नहNं,

{तरं गे के साथ-साथ चZ£यान-3 चांद पर नया संसार बसाएगा \य]<क ........ चांद भी वहNं है, हम भी यहNं हR.

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सं-ह-2


50.

बचपन - एक Hवषय - चार कHव

1. हां मL बचपन हूं! - गौरव VHववेद9 मR अ~हड़ हूँ, मR कोमल हूँ, मR, हूँ एक पल ु <कत पंग-पराग, हाँ मR बचपन हूँ! मR बादल हूँ, मR बाVरश हूँ, मR हूँ इक ¦खलता सा सावन, हाँ मR बचपन हूँ! मR आतुर हूँ, मR उjसुक हूँ, मR हूँ िजxासा का एक पुंज, हाँ मR बचपन हूँ!

मR धरती हूँ, मR अSबर हूँ, मR हूँ O³माŠड का इक ?व—प, हाँ मR बचपन हूँ! मR उjसव हूँ, मR मेला हूँ, मR हूँ इस जग का इं£धनुष, हाँ मR बचपन हूँ! मR नटखट हूँ, मR नादाँ हूँ, मR हूँ इक आवारा बादल

हाँ मR बचपन हूँ! मR {नqछल हूँ, मR अdवरल हूँ, मR हूँ ईqवर का इक ?व¢प हाँ मR बचपन हूँ!

मR {नभlय हूँ, मR {नडर हूँ, मR हूँ „हम-¤लेDशयर जैसा हN dवराट हाँ मR बचपन हूँ! हाँ मR बचपन हूँ! \य]<क.... मR बेटN हूँ, मR बेटा हूँ, मR मात-dपता का जीवन हूँ मR उनकL आँख] का 'Æुव' हूँ, मR उनके म?तक का “ गौरव " मR माँ कL ममता का सुख हूँ, मR dपता के सीने कL ठं डक मR आँगन कL <कलकारN हूँ, मR घर का जलता दNपक हूँ मR मानवता का वाहक हूँ, मR रा–»धमl का हूँ रuक मR मझ ु मP हूँ मR तझ ु मP हूँ, मR हN हूँ हमसब का भdव–य

\य]<क…मR बचपन हूँ मR बचपन हूँ, मR हN हूँ सबका ?वणl काल हाँ मR बचपन हूँ!!

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सं-ह-2


2. बाqयकाल - ज़ह9र अल9 iसVद9क़j कणld}य, हे बा~यकाल! तुझमP बसता है ?वगlकाल

ईqवर ?व—प, हे dवकारमु\त अंधकार दरू , }काशयु\त।। िजxासा कL है उ‚गम dवxान xान तुमसे दमखम मत‘म नहN, तू तकlपूणl

गु¢xान सरNखा, त¼यपूणl।। ऊज़ाl का है अथाह }वाह तीÇ परZतु है साथlक बहाव dवxान xान है सवlकाDलक

हे dवxानी! तू दNघlकाDलक।। }कृ{त xान तुमसे आयी

खुल गया dपटारा जीवन का तुमसे हN dवxान बनी

समय चœ है बचपन का।।

3. पOरंदे घर लौट आए! - कुसम ु सरु ाणा

मौसम ने लN करवट, सोए मासम ू बŒचे-सी, }ाची ¦खल¦खलाई झम ू -झम ू , फूल गP दे-सी, सरू ज ने दौड़ाए घोड़े, राणा के चेतक-से!

गल ु ाल उŠडेलती सब ु ह आयी, हौले-हौले-से!

मन के कमल ¦खले, कपोलP हुई छुई मुई-सी! गीत गुनगुनाने लगे भंवरे , डाDलयाँ नाची पगलाई-सी! इv से महका जहां, पुल<कत रोम-रोम सारा! धरती का आंचल लहराया, फैला उिजयारा!

पVरंद] ने छोड़ा घ]सला, मखमलN पर फैलाए! सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


खोजने नZह] के Dलए दाना, आसमान नाप आए! तपती दोपहरN मP, cबछड़ते अपने हN साए. आंख] कL गहरN झील मP, उतर जब मु?कुराएं, थकान भूल अपनी, बादल] से मुंह मोड़ आए!

याद कर नZहN जान को, पVरंदे घर लौट आए! 4. मL आधु6नक बचपन हूं - ल9ला 6तवानी मोबाइल ने मझ ु को पाला, रोबॉट ने „हलराया-दल ु राया, गूगल ने मझ ु े पाठ पढ़ाया,

असीम xान कL मR कतरन हूं, मR आधु{नक बचपन हूं.

समय कL डोर पकड़कर चलना, सीखूं सबसे आगे बढ़ना,

छोड़ा मRने लकड़ी का पलना, }कृ{त कL मR अचकन हूं, मR आधु{नक बचपन हूं.

`च˜ड़या से सीखा है उड़ना, वायुयान से सीखा मुड़ना,

गगनयान से शDश को छूना, ये न समझना भटकन हूं, मR आध{ु नक बचपन हूं.

भत ू काल से सबक हूं लेता, वतlमान को जी भर जीता, नजर भdव–य पर रखता हूं, आनंद कL मR Dसहरन हूं,

मR आध{ु नक बचपन हूं. बाधाओं से त{नक न डरता, कभी cबछलता, कभी मचलता, साथ सभी के मR हूं चलता, कभी-कभी मR छलकन हूं, मR आधु{नक बचपन हूं. सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


51.

चंद छोट9 कHवताएं - 1

1. पार दOरया के xफर भी पहुँच जाता हूँ - इंˆेश उ6नयाल <कqती डोलती रहN भंवर मP मेरN पार दVरया के <फर भी पहुँच जाता हूँ हार से हताश नहNं हूँ असफलताओं से {नराश नहNं हूँ लड़खड़ाकर <फर संभल जाता हूँ

`गर कर <फर उठ खड़ा हो जाता हूँ संघषl व जीवटता हN संबल हR मेरे चुनौ{तय] के पथ पर चलकर

संघषl के रथ पर मR सवार हो जाता हूँ उतार-चढ़ाव भरे सफ़र का नाम हN है 'िज़Zदगी' खुद को और सबको बार-बार समझाता हूं, <कqती डोलती रहN भंवर मP मेरN पार दVरया के <फर भी पहुँच जाता हूँ. 2. और मुझे जीना है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!! - गुरमैल भमरा कहाँ था तब, कहाँ हूँ अब न सवाल सीधा न जवाब सीधा

शु— क—ँ कहाँ से dवराम लगाऊं कहाँ समय ने हN तो मुझे सींचा.

गाँव मP जZमा-पला, खेला-खाया खेत] मP काम <कया <फर शहर मP पढ़ा, इंकलाब आया जोर-शोर से, dवलायत ने मझ ु े कुछ और गढ़ा. धन भी Dमला, मज़े भी <कये,

शादN भी हुई, बŒचे और उन के भी बŒचे, यहN तो था सख ु ी संसार, जी भरकर हम िजए.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


<फर से याद आया बचपन संसार घम ू ने कL चाहत पलN,

खूब घूमे मज़े <कए, गवl था घर संसार पे , गवl था अपने आप पे, हो भी \य] न , चा„हए भी \या था अब! तूफ़ान नहNं चाहा था कभी, सोचा भी नहNं था, मन मP आया भी नहNं था,

ले<कन अपने वश मP तो नहNं होता ना ! <फर एक पल सागर कL लहर] से खेलना, दस ू रे पल (मझ ु े ) लहर] का दबोचना,

खेल खjम िज़ंदगी का साफ़ „दखाई „दया, ले<कन लहर] ने तरस <कया मझ ु पर, फRक „दया <कनारे अधमरा-सा.

समझ नहNं पाया था <क यह िज़ंदगी हN थी, या मेरा इिSतहान था, असा°य रोग दे „दया था लहर] ने, शारNVरक शि\त खjम हो गई, बोलना बंद हो गया, डॉ\टर से भी जवाब, जीने के तीन साल Dमल गए, इस के बाद! उदासीनता, चप ु -चप ु

बस और नहNं ! अरे और नहNं \या? अरे यहN तो, मझ ु े जीना है !!!,

बस, आज से हN )यायाम श— ु ,

दस Dमनट, बीस Dमनट, घंटा-दो घंटे और अब पं£ह साल, जीdवत हूं, जो भी हूं खुश हूं और मुझे जीना है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


3. xफर-xफर बचपन मचलता रहे गा. - सद ु श@न खBना चार] „दशाओं से गंज ू ा है बचपन,

¦खल¦खलाएं वो िजनकL उ_ है पचपन, याद] पर पड़े अ?तर हटे हR, झुVरlय] कL \याVरय] मP ख़ुशी के फूल ¦खले हR, जब cब„टया कL हंसी गूंजी है, सूखी आँखP भी छलक पड़ी हR,

बेटN कL भां{त dवदा हुआ है बचपन, यूँ हN Dमलने आता रह त,ू जैसे Dमलने आती बेटN,

सुनसान हवेDलय] को <फर से गुंजा जाती बेटN, तू Dमलने आता रहे गा,

आँख] का नीर नहNं सूखेगा बहता रहे गा, जीने कL कम होती इŒछा के दNपक मP, <फर से धधकेगी yवाला, <फर-<फर बचपन मचलता रहे गा.

4. xकताबc-सा iमr नह9ं - चंचल जैन दो?त बहुतेरे है हमारे छोटे -बड़े, मोटे -दब ु ले,

कोई मजा<कया लाया हँस-ग~ ु ले, कोई खवैया ले आया रसग~ ु ले, खब ू खेलते, उधम मचाते,

लड़ाई-झगड़े, —ठते-मनाते। Dमv हमारे हR बहुतेरे, <कताब]-सा नहNं Dमv है कोई, xान-भंडार कL {तजोरN जादई ु , कथा, कहानी, रचनाएँ अनूठŸ,

पढ़ लो मनभायी, सŒची-झूठŸ. कोई हंसाती,गुदगुदाती,

वीर-रस से सराबोर कराती, सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


जोश नया, उ~लास नया दे , राह नयी कोई, „दशा बदल दे . जादई ु कोई कथा-कहानी, कोई रचना, हमP चेताती,

कलम बड़ी तलवार से होती, बार-बार अहसास कराती. सŒची Dमv हR <कताबP हमारN, आनंद-उमंग कL पोटलN ZयारN, सदा अपने साथ रख सकते हम, छोटN-सी इक पु?तक ˆयारN,

\य]<क {नभानी है हमP इनसे यारN, <कताब] से हN Dमलती अनूठŸ जानकारN.

5. हुनर सीख लो - ल9ला 6तवानी बांटने से dव‚या बढ़ती है dव‚या को बांटने का हुनर सीख लो, अZन-धन को भी बांटने का हुनर सीख लो, मान-सSमान को बांटने का हुनर सीख लो, }ेम-ˆयार को बांटने का हुनर सीख लो,

दस ू र] कL खुशी मP खुद कL खुशी दे खने का हुनर सीख लो, सिृ –ट का एक {नयम है, जो बांटोगे वहN आपके पास बे„हसाब होगा, उसे बांटने का हुनर सीख लो.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


52.

चंद छोट9 कHवताएं - 2

1. इरादा - गौरव VHववेद9 इरादा कर Dलया मRने फ़क़त िजंदा नहNं रहना उडूँगा आसमां पर मR

फ़क़त पैदल नहNं चलना जमीं पर फूल \या चुनना Dसतारे नोच लाऊंगा

इराद] को हवा दN है बुलZदN मR भी पाऊँगा

यहN जµबा यहN आँधी िजगर मP मRने भर लN है नज़र भर गौर से दे खो उड़ानP मRने भर लN हR उड़ानP मRने भर लN हR!!

2. तो कोई बात बने - लखमी चंद 6तवानी पल-पल रं ग बदलती द{ु नया मP

`गर`गट बने cबना रह सको, तो कोई बात बने. कुदरत कL चहकती-महकती द{ु नया कL

चहक-महक बनाए रख सको, तो कोई बात बने. Dमटती इंसा{नयत के फलक मP सजीले-चटकLले रं ग भर सको, तो कोई बात बने. पयाlवरण को }दष ू ण कL मार से

बचाने मP सहायक बन सको, तो कोई बात बने. अपनी इµज़त के Dलए तरसने-लड़पने वालो अपने म~ ु क कL इµज़त बरकरार रख सको, तो कोई बात बने.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


3. हम न भल ू Dगे, हम हL •हBद3 ु तानी..... - अZबास रज़ा अलवी सपन] मP आता है अ\सर वो छोटा-ˆयारा गाँव हमP

िजसके बारे मP दादN से सुनते थे अब तक है याद हमP

कब से हमने न दे खा है पर <फर भी <कतनी चाह हमP आ¦ख़र कैसे भूलेगी उन cबछड़े Vरqत] कL याद हमP

हम न भूलPगे, हम न भूलPगे, हम हR „हZद? ु तानी..... सुनते थे बाVरश कL बूँदP स]धी DमhटN पर सजती थीं

सुनते थे बेले कL कDलयाँ ब`ग़या-ब`ग़या मP ¦खलती थीं सुनते थे नीम के पेड़] पर घर-घर मP झूले पड़ते थे सुनते थे बŒचे अSमा से लोरN सुनकर हN सोते थे

हम न भूलPगे, हम न भूलPगे, हम हR „हZद? ु तानी..... सुनते थे न„दया का पानी ˆयास] कL ˆयास बुझाता था सुनते थे वो नीला अSबर बेघर कL छत बन जाता था सुनते थे सोने कL धरती भूख] कL भूख Dमटाती थी

ख़ुशबू उस रात कL रानी कL मील]-मील] बस जाती थी हम न भूलPगे, हम न भूलPगे, हम हR „हZद? ु तानी.....

सुनते थे मि?जद कL आज़ॅा उस रब कL याद „दलाती थी

सुनते थे मं„दर कL जय-जय भगवन को शीश झुकाती थी सन ु ते थे `गरजा के घंटे पैग़ाम अमन का लाते थे सन ु ते थे ईद-„दवालN मP सब सबको गले लगते थे

हम न भल ू Pगे, हम न भल ू Pगे, हम हR „हZद? ु तानी..... शायद वो ब`ग़या कL कोयल कुछ कू कू करके गाती हो शायद सरस] के खेत] मP <फर रं ग लहर लस जाती हो शायद वो रात „दवालN कL सारे जग को चमकाती हो शायद वो ईद Dसवइय] कL मीठा-सा मुँह कर जाती हो हम न भूलPगे, हम न भूलPगे, हम हR „हZद? ु तानी.....

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


4. मौसम-2काश मौसम - कुसम ु सरु ाणा सीने से लगाकर, „दल मP cबठा कर, कभी नाम दे कर, अपना बनाकर, इसे अपने अनुकूल बना सका,

हर ददl मP भी मौसम सुहाना लगा।. कभी ज़ाDलम, कभी बेईमान, कहकर ज़माने ने <कया बदनाम, }काश संग मौसम,.. अब है मेरN पहचान. बाVरश कL कुछ बूंद] से,

मुरझाते फूल ¦खलने लगे,

गज़ब कL }{त<œयाओं से, मौसम भी बदलने लगे... }ेम और क¢णा भरे श§द, ऐसे मूसलाधार बरसे,

हर शहर का मौसम सुहाना लगे

हर ददl मP भी मौसम सुहाना लगे.

5. सदाबहार का)यालय का कारवां बहुत बहुत बधाई लNला जी! आपके }यास] का हN नतीजा है ... कदम]-से-कदम Dमले, राहN नए जड़ ु गए!

वMत के म?तक पर, अमत ृ कलश सज गए!

धूप-छाँव, रात-„दन, ल¿य कL ओर बढ़ते गए!

<फ़जा मP इv घोलकर, मंिज़ल कL ओर चल „दए! जन चेतना कL लौ से, दNप-से-दNप जला गए! अँधेर] को सुनहरे , उिजयारे पहनाते गए!

कलम को ह`थयार बना, अलख जगाते गए! सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


हमसफ़र कुछ नए, „दल मP जगह बना गए! बल ु ा„दय] को छूकर, सब के मीत बन गए!

िजंदा„दलN का पाठ, चलते-चलते Dसखा गए! कलम के जादग ू र, हमारN कलम का जाद ू जगा गए! पराय] को अपना बना, „दल] को जीत गए! उं गलN दबा ह]ठ] मP, वMत ताकता रहा! सदाबहार का)यालय का कारवां ठहर गया चलते-चलते हम आप सबको एक राज़ कL बात बताते चलP. आप सबको dव„दत हN है <क हम एक-एक श§द कL वतlनी को भलNभां{त जांचकर हN §लॉग }काDशत करते हR. हम भाई अ§बास रज़ा अलवी कL कdवता 'हम न भूलPगे, हम हR „हZद? ु तानी.....' के एक श§द

'आज़ॅा' कL वतlनी जांच रहे थे, तो हमP सोच और सं?कार] कL सांझी धरोहर लेखनीDसतंबर 2011 अंक के दशlन हुए, िजसमP अ§बास रज़ा अलवी जी कL यहN कdवता, िजसे हमने अपने सदाबहार का)यालय के Dलए चय{नत <कया है, }काDशत हुई है. आप लोग] को यह जानकर अjयंत हषl होगा <क इस अंक मP अ§बास रज़ा अलवी जी को 'माह के

कdव' कL उपा`ध से dवभdू षत <कया गया है. अ§बास रज़ा अलवी जी को हमारN तरफ से बहुत-बहुत बधाइयां व शुभकामनाएं. लNला {तवानी

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


सदाबहार काव्यालय - 2 : एक सुखद समारोह

सदाबहार का)यालय- 2 हम सबके Dलए एक सुखद समारोह रहा. सोच रहN हूं, §लॉग ”सदाबहार का)यालय- 2: एक सुखद समारोह” का }ारं भ शु¢ से क—ं या आ¦खर से!” चDलए इसका आग़ाज़ आंकड़] से हN कर लेते हR.

सदाबहार का)यालय- 1 कL तरह सदाबहार का)यालय- 2 भी वा?तव मP एक सुखद

समारोह रहा. इस समारोह मP 22 कdवय] ने अपनी }{तभा`गता दजl कL, 70 सदाबहार का)य-रचनाओं का दNदार हुआ. सदाबहार का)यालय कL यह •ंखला न केवल आंकड़] कL €ि–ट से £–ट)य रहN, अZय अनेक पहलुओं से भी उ~लेखनीय रहN. हमेशा कL तरह एक आ³वान से अनेक कdवताएं आती गÀ और •ंखला कL क˜ड़यां सजती गÀ.

इसमP िजन कdवय] कL कdवताएं सिSमDलत हुÀ, वे इस }कार हR1.सुदशlन खZना- 7 कdवताएं 2.रdवंदर सूदन- 3 कdवताएं

3.नVरंदर कुमार वाहN- 1 कdवता 4.गौरव ‚dववेदN- 5 कdवताएं 5.गरु मेल भमरा- 1 कdवता

6.•ीमती कैलाश भटनागर- 1कdवता 7.अजय एहसास- 1 कdवता 8.राजीव गˆु ता- 1 कdवता

9.अ§बास रज़ा अलवी- 2 कdवताएं 10.पु–प राज चसवाल- 1 कdवता 11.डा० क{नका वमाl- 1 कdवता

12.लखमी चंद {तवानी- 2 कdवताएं 13.कुसुम सुराणा- 3 कdवताएं 14.इरा जौहरN- 1 कdवता

15.डॉ. वंदना शमाl- 1 कdवता 16.डॉ० अ{नल च•डा- 2 कdवताएं 17.ज़हNर अलN Dस‚दNक़L- 3 कdवताएं 18.इं£ेश उ{नयाल – 4 कdवताएं सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


19.चंचल जैन- 2 कdवताएं 20.डॉ\टर इला सांगा- 1 कdवता 21.}काश मौसम- 1 कdवता 22.लNला {तवानी- 26 कdवताएं सदाबहार का)यालय- 2 कL कुछ मु[य झल<कयांइस सदाबहार का)यालय- 2 मP नए कdवय] मP सबसे पहले सुदशlन खZना आए. इसके

बाद वयोव‚ ृ ध कdव नVरंदर कुमार वाहN, गौरव ‚dववेदN, अ§बास रज़ा अलवी, पु–प राज चसवाल, डा० क{नका वमाl, कुसुम सुराणा. इरा जौहरN, डॉ. वंदना शमाl, डॉ० अ{नल

च•डा, ज़हNर अलN Dस‚दNक़L, इं£ेश उ{नयाल, चंचल जैन और डॉ\टर इला सांगा यानी लगभग सभी कdव सदाबहार का)यालय- 1 मP अपनी उपि?थ{त दजl नहNं करा सके थे. नए-पुराने सभी कdवय] कL का)य-रचनाएं एक-से-बढ़कर-एक धूम मचाने वालN रहNं. सदाबहार का)यालय- 2 का आग़ाज़ 24 नवंबर 2018 को सुदशlन खZना कL कdवता

दर[त से हुआ. सुदशlन खZना ने इसका िजœ वयोव‚ ृ ध कdव नVरंदर कुमार वाहN से <कया. वाहN जी ने भी अपनी पंजाबी कdवता ‘मRनूं कुछ कहणा है’ भेजी. इस कdवता मP

उZह]ने जीवन के बारे मP कुछ नहNं, बहुत कुछ या <क य] कहP सब कुछ कह „दया. य] तो कdवता सरल पंजाबी मP थी, पर सुदशlन खZना ने कृपापूवlक इसका सटNक „हंदN अनुवाद करके भी भेज „दया, िजससे पाठक] को कdवता को समझना और अ`धक आसान हो गया. रdवंदर सद ू न ने भी एक वयोव‚ ृ ध कव{यvी डॉ\टर इला सांगा को }ोjसा„हत करके उनकL खब ू सरू त कdवता ‘उSमीद अभी बाकL है’ से हमारा पVरचय कराया और उSमीद कL <करण को }yyवDलत <कए रखा.

ना-ना करते इं£ेश उ{नयाल ने भी कdवता मP कलम-आजमाइश कL और 4 कdवताएं Dलख भेजीं. अपने को कdवता से कोस] दरू मानने वाले इं£ेश उ{नयाल कL कdवता ‘पार दVरया के <फर भी पहुँच जाता हूँ’ के बारे मP तो आप लोग] ने \या-\या Dलखा था, आप लोग भूले नहNं ह]गे.

सदाबहार का)यालय

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हमेशा कL तरह ना-नक ु ु र करते गरु मैल भाई ने भी पलक झपकते बहुत खब ू सरू त कdवता ‘और मझ ु े जीना है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!-‘ Dलख भेजी. इस कdवता के बारे मP आप सब लोग जानते हN हR, <क गुरमैल भाई ने इस छोटN-सी कdवता मP बड़ी खूबसूरती से अपनी पूरN आjमकथा Dलख दN है. इस कdवता ने जय dवजय और पंजाबी जगत मP भी धूम मचा दN.

ऑ?»े Dलया के कdव अ§बास रज़ा अलवी कL कdवता ‘तू ईqवर है या अ~लाह’ ने जय dवजय कL मह<फल को लट ू Dलया और माDसक पcvका मP अपनी जगह बना लN.

चंचल जैन कL कdवता ‘मR हूं नटखट बचपन’ के साइड इफै\hस तो आपको पता हN हR, इस dवषय पर कामPhस मP हN <कतनी कdवताएं बन गÀ. ये सब हमारN-आपकL dवशेष उपलि§धयां हR. कुसुम सुराणा ले ‘खोल दो मh ु ठŸ’ से लेकर ‘.सदाबहार का)यालय का कारवां’ तक अपनी कdवताओं से अपनी लेखनी का लोहा मनवाया.

‘काश!’ के साथ आए गौरव ‚dववेदN कL ललक दे¦खए”समयाभाव के चलते मुझे पता नहNं चल सका <क <फर सदाबहार का)यालय-2 का यह

अं{तम भाग है. य„द मुझे त{नक भी xात होता तो मR भी <फर सदाबहार का)यालय-2 कL इस अdव?मरणीय कड़ी मP अपनी }{तभा`गता सु{निqचत करता. मR इस अं{तम भाग मP सहयोगी बनने से वं`चत रह गया िजसका मुझे हमेशा मलाल रहे गा.”

अपने सSमाननीय }{तभागी को भला मलाल कैसे रहने „दया जा सकता है! इसDलए हमने <फर सदाबहार का)यालय- 51 के भाग 2 का आयोजन <कया. गौरव ‚dववेदN कL ललक के साथ हN उनकL शभ ु कामनाओं का अंदाज़ दे ¦खए”<फर सदाबहार का)यालय-2 कL सफलता के Dलए आप सभी को ¹दय से को„टशः नमन स„हत धZयवाद. मुझे इस •ंख ृ ला मP ?थान देने के Dलए लNला दNदN को धZयवाद बोलने के मेरे पास श§द नहNं हR. मR बस यहN बोलँ ग ू ा <क आप अपना आशीष मुझे ऐसे हN दे ती

रहP और साथ हN एक अनुरोध <क <फर सदाबहार का)यालय कL तज़l पर हN आप एक नई •ंख ृ ला “का)य गंगा”, “का)य मंजरN” या “का)य मंथन” के नाम से }ारं भ करP . सादर नमन स„हत धZयवाद.” सदाबहार का)यालय

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गौरव भाई, हमारे पास आप सब लोग] कL रचनाएं }काDशत करने के Dलए बहुत-से उपाय हR, आपने भी अनेक उपाय सुझा „दए, इसके Dलए आप धZयवाद के पाv हR. चलते-चलते मौसम dवहार- „द~लN के {नवासी मौसम dवभाग से ता~लुकात रखने वाले }काश मौसम ने तुरंत ‘मौसम’ कdवता से अपनी उपि?थ{त दजl करवा दN.

यहां हम आपको बताते चलP, <क सदाबहार का)यालय-2 के आयोजन मP राजP£ {तवानी का सहयोग और दरू दDशlता भी उ~लेखनीय हR. हमने उनको ‘सदाबहार का)यालय’ कL

ई.बुक बनाने के Dलए कहा था. उZह]ने बनाई ”सदाबहार का)यालय-1”, यहNं से शु¢आत हो गई थी ”सदाबहार का)यालय-2” कL, िजसे हमने ”<फर सदाबहार का)यालय” के

संबोधन से शु¢ <कया था. हVर इŒछा रहN, तो सदाबहार का)यालय-3 मP हम आपको राजP£ {तवानी के कdव —प के दशlन भी करवाएंगे. एक dवशेष बातसुदशlन खZना के §लॉग कL सबसे पहलN रचना थी ”दर[त”. यहN रचना सदाबहार

का)यालय-2 कL पहलN रचना बनी. इसी तरह गौरव ‚dववेदN के §लॉग कL सबसे पहलN रचना थी ‘काश!’ इनके §लॉग का नाम भी है ‘काश!’ और यहN थी सदाबहार का)यालय-2 मP गौरव ‚dववेदN कL सबसे पहलN रचना. अभी कहां चल „दए! dप\चर अभी बाकL है. सदाबहार का)यालय- 2 कL समापन कड़ी आते हN चंचल जैन ने हमP सदाबहार का)यालय के Dलए कdवता भेज दN, इस कdवता को हम आपके Dलए }?तत ु कर रहे हR. नया साल जगमग-जगमग रोशनी होगी, ¦झलDमल-¦झलDमल आ{तशबाजी, लहरायPगे नभ मP गु§बारे ,

वो भी राजी, हम भी राजी. सुर-लय-ताल से सज जाए मह<फल, मीठŸ-मधुVरम तान {छड़ेगी, झूम-झम ू नाचP गे सारे , सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


नए साल कL भेरN बजेगी. बीती यादP मीठŸ-कड़वी, कुछ मनभावन, कुछ अनचाहN, भूले-cबसरे , खhटे -मीठे ,

<फर से DमलPगे अन`गन राहN. jयोहार हमP Dसखाते जुड़ना,

कभी मुड़ाना, कभी खुद मुड़ना, नेह-}ेम से महके हर „दल, रहP }ेम से, छोड़P कुढ़ना. वैर-भाव से दरू रहP हम,

स‚भाव] से ¦खल जाए ब`गया, }ेम-गीत से गूंजे कण-कण. सपन]-सी सद ुं र हो द{ु नया. मौज मनाएं, खुDशया पाएं,

?वागत कर लP नए साल का, आओ Dमल-जुल जqन मनाएं, ?वागत कर लP नए साल का. -चंचल जैन कहने को बातP बहुत हR, पर आज तो बस इतना हN कहकर हम dवराम लेते हR, िजZहP हम-आप कामPhस मP कहते रहP गे. आप सबको सहयोग के Dलए शु<œया और धZयवाद के साथ बहुत-बहुत शभ ु कामनाएं और बधाइयां.

सदाबहार का)यालय

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सं-ह-2


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