रश्मियों का राग दरबारी

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रि#मय& का राग दरबारलघक ु था सं4ह-2

ल-ला 8तवानी


रि#मय& का राग दरबारलघक ु था सं4ह-2 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9.

10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25.

रि&मय) का राग दरबार/ अमर 2वाला हसरत जीवन क= सबसे बड़ी स@चाई चट ु क= भर गुलाल खIु शय) क= अहIमयत मेहरबानी क= मेहरबानी MेIमल Nकनारे का गुर सबसे पास का Qर&ता मासम ू अनभ ु व रब क= इनायत Uव&वास के पंख आर/ कुक=ज़ मां-बाप का Zदल मZु हम Uवकास क= सलोनी डगर अहसास) क= अनमोल पंज ू ी िज़ंदाZदल/ द/वार) क= आंख] भी होती ह^ मानव तम ु महान हो! और वaडb Qरकॉडb बन गया सेवा और समपbण इंसाeनयत का अनोखा संबंध ये बरतन र/ते नह/ं ह^


26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. 35. 36. 37. 38. 39. 40. 41. 42. 43. 44. 45. 46. 47. 48. 49. 50. 51.

नई पीढ़/ का hवागत आइiडया से आइiडया और राह] सरल हो गj Uवhतत ृ दायरा नानी, मझ ु े मत भेजो मेर/ आnमhवीकृeत सारा जहां हमारा है नवीन उजास का संबल सेवा और समपbण से संतिु qट समUपbता hमeृ तय) क= नौका खश ु नसीबी कमाल का आइiडया और राह] सरल हो गj Uवhतत ृ दायरा

''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो'' उलझन आज का सावन मासम ू कलमबंद/ अंतःMेरणा ऊंची छलांग म^ भी लाठy भांजंग ू ी फ़{ लक=र) का खेल जार/ था पज ु ाQरन

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1.

रि&मय) का राग दरबार/

नोटबंद/ का दःु खदाई माहौल चल रहा था. िजनके पास खर/दार/ के Iलए वािजब धन का अभाव था, वे तो नोट बदलवाने क= लाइन म] लगकर भी Uववशता से ह/ एक-दस ू रे को दे खकर सांnवना दे ने के Iलए मh ु कुरा रहे थे, पर िजनके पास परु ाने नोट) का अंबार था, उनक= Uववशता तो दे खते ह/ बनती

थी. Nकतनी मिु &कल) से tया-tया जग ु ाड़

लगाकर उ•ह)ने धन जमा Nकया था. अब Nफर जग ु ाड़ लगाकर बदलवाए नए नोट) को न eनगलते बनता था, न उगलते. सेठ द/नानाथ कल कई धन के कई बोरे ब^क के लॉकर) म] रखकर आए थे. सन ु ा है , ब^क के खNु फया कैमरे म] छायांNकत उनक= छUव आई.ट/.

Uवभाग के हnथे चढ़ गई है . इसIलए वे अपने घर के एक खNु फया कमरे के घ‚ु प अंधेरे म] कैद हुए बैठे ह^. दो Zदन ऐसे ह/ बीत गए. इस बीच उनका मन-मंथन चल रहा था, पर रोशनी क= कोई Nकरण Zदखाई नह/ं दे रह/ थी. अचानक दरवाज़े के ताले के सरु ाख़ से सय ू -b रि&मय) का एक समह ू चमकता हुआ Zदखाई Zदया. सेठ को लगा मानो वे रि&मय) का राग दरबार/ सन ु रहे ह). उन रि&मय) के राग म] न जाने tया जाद ू था, Nक जग ु ाड़

लगाकर जमा Nकए गए धन से उनका अनरु ाग …खसकने लगा. उनको लगा, आम जनता क= लाइन हमारे जैसे जग ु ाड़ुओं के कारण ह/ eनरं तर लंबी होती जा रह/ है . खश ु तो हम Nफर भी नह/ं ह^, सरकार भी नाहक परे शान हो रह/ है . tय) न ‡बना कर वाल/ काल/

कमाई को घोUषत करके, उस पर कर दे कर सफेद Nकया जाए. कुछ रकम भी हाथ लगेगी और संतोष भी. वे खNु फया कमरे से eनकल ब^क को चल Zदए.


2.

अमर 2वाला

eनभbयपरु गांव क= सरपंच मeनता ने एक ‰चŠ दे खा था. मोमब‹ी क= तेज होती लौ को

घरू ती हुई एक hŠी. tया मeनता अपना ह/ अtस दे ख रह/ थी उसम] ? शायद हां, उसके मन ने कहा. उसका पQरचय माŠ सरपंच ह/ था. गांव क= उ•नeत के Iलए tया नह/ं Nकया था उसने? सरपंच बनते ह/ उसने सबसे पहले नाबाIलग ब@च) के Uववाह के Iलए कठोर eनयम घोUषत Nकए थे. ये कठोर eनयम केवलमाŠ घोषणा के Iलए नह/ं थे, उनका कठोरता से पालन भी करवाया जा रहा था. गांव वाल) क= सहायता से उ‹म Iश•ा के Iलए कई hकूल भी खल ु चक ु े थे. ‰चNकnसा-सUु वधाएं,पीने के पानी क= सUु वधा, ‡बजल/ और इंटरनेट आसानी से सबको Iमल रहे थे. यह सब पैदल घम ू -घम ू कर नIमता क=

Žयिtतगत कोIशश) से संभव हो सका था. eनभbयपरु गांव को eनभbयता के Iलए सरकार से अनेक परु hकार Iमल चक ु े थे. आज सरपंच को स•माeनत करने मंŠी जी आ रहे थे.

चौपाल खचाखच भर/ हुई थी. अपनी सरपंच साZहबा को स•माeनत होते हुए दे खना परू े गांव का सपना था. मंŠी जी ने मeनता को स•मeनत करने से पहले गांव वाल) से पछ ू ा”tया आप इनके बारे म] जानते ह^?

”हां जी, ये हमार/ सरपंच ह^. इ•ह)ने हमारे गांव को वे सब सUु वधाएं द/ ह^, जो शहर) म] भी Iमलनी नामम ु Nकन ह^.”

”म^ Uवकास के Meत इनके मन म] जलने वाल/ अमर 2वाला के बारे म] पछ ू रहा हूं.” मंŠी जी बोले. स•नाटे जैसी खामोशी के बीच मंŠी जी ने कहा- ”आज से 14 वषb पव ू b 16 वषb क= उ‘ म] eनभbयता से

12 Nकलोमीटर पैदल चलकर इ•ह)ने पIु लस चौक= म] Qरपोटb दज़b

करवाकर अपना बाल Uववाह ’कवाया था. मेरा वह भाई आज भी मeनता क= राह दे ख रहा है , अगर इ•ह] मंज़रू हो तो. मेरा भाई आज भी उस अमर 2वाला को पज ू रहा है .” सबने मeनता के चेहरे क= ओर दे खा. सचमच ु वह अमर 2वाला से द/Uपत हो उठा था.


3.

हसरत

आज नी“ और रमेश के Iलए खास Zदन था, वे बहुत खश ु थे. उनक= ख़ास अपनी सद ु ेश आंट/ क= हसरत परू / हो गई थी. आज उनक= शानदार नौकर/ का पहला Zदन था. उ•ह] याद आ रहा था 17 साल पहले का वह सौभा”यशाल/ Zदन जब सद ु े श आंट/ से उनक=

मल ु ाकात पहल/ बार हुई थी. आज सद ु े श आंट/ Uवदे श म] ह^, फेसबक ु पर उन से स•पकb बराबर बना हुआ था. वे भी बहुत खश ु थीं. उस Zदन भी पहल/ अMैल का Zदन था. hकूल) का समय बदल चक ु ा था. सद ु े श रोज़ से आधा घंटा पहले hकूल जा रह/ थी. वह संhकृत क= अ•याUपका थी. उसी समय उसके

आगे-आगे hकूल क= यन ू ीफॉमb पहने, पीठ पर बhता लेकर एक लड़का और एक लड़क=

hकूल जा रहे थे. उसी समय सामने से एक लड़का और एक लड़क= कूड़ा बीनने के Iलए कई झोले लादे आ रहे थे और hकूल जा रहे उन ब@च) को हसरत भर/ eनगाह) से दे ख रहे थे. सद ु े श क= पैनी नज़र से उनक= पढ़ाई क= हसरत भर/ नज़र eछप न सक=. वह

ब@च) को अपने पीछे आने का इशारा करके चलती रह/. hकूल के गेट पर उसने गॉडb से

कहा- ”इन ब@च) के झोले अपने कमरे म] रख दो और Mाथbना के बाद मेरे पास एडमीशन “म म] ले आना.” ”जी मैडम,” कहकर गॉडb ने उनक= आ–ा का पालन Nकया. एडमीशन श’ ु होने के उस पहले Zदन नी“ और रमेश का ह/ एडमीशन सबसे पहले हुआ था. पढ़ने म] होIशयार वे Meतभाशाल/ ब@चे तभी से हर क•ा म] छाŠवUृ ‹ लेकर पढ़ते रहे , आगे बढ़ते रहे . एम.बी.ए के पQरणाम म] नी“ ने Mथम hथान हाIसल Nकया था और रमेश ने —Uवतीय. कै•पस Qर˜ूटम] ट के ज़Qरए अ@छy-अ@छy क•पeनय) म] दोन) क= नौकर/ लग

गई थी. दोन) सबसे पहले सद ु े श आंट/ को Iमठाई …खलाना चाहते थे. उनके Iसवाय उनका

अपना था भी कौन? नाम भी उनका Zदया हुआ था. म• ु नी और छोटू क= जगह वे नी“ और रमेश जो हो गए थे. आज उनक= वह हसरत भी परू / हो गई, सद ु े श आंट/ ने फेसबक ु पर उनका संदेश पढ़ Iलया था और उनक= खश ु ी म] शाIमल होने म] असमथbता जताई थी. उनका आशीवाbद तो उनके साथ था ह/. सद ु े श आंट/ क= स™दयता रं ग लाई थी.


4.

जीवन क= सबसे बड़ी स@चाई

मनीषा का बचपन खेल-कूद म] कम और घर का काम करने म] šयादा बीता. घर म]

सदhय šयादा- कमाने वाले कम, खाने वाले šयादा- खाना कम, ऐसे ह/ समय बीतता गया. Nकसी तरह पढ़ने का मौका Iमला, उसका लाभ उठाया और मैZ›क, बी.ए, एम.ए कर ल/. अ•याUपका क= नौकर/ क=, साथ म] œयश ू •स भी. Uववाह हुआ, ब@चे हुए, नौकर/ और घर-पQरवार को समUपbत िज़ंदगी के साथ •लड क^ सर क= भयंकर पीड़ा भी. दवाइय) क= सहायता से डॉtटर क= ओर से जीने को Iमले महज 6 मह/ने. मनीषा तeनक नह/ं घबराई. उसने इन 6 मह/न) का सदप ु योग करने के Iलए क^ सर सोसाइट/ से संपकb कर

Iलया और क^ सर-पीiड़त लोग) क= तन-मन-धन से सहायता करती रह/. डॉtटर क= बताई हुई सभी सावधाeनयां खद ु भी रखती और बाक= पीiड़त) को भी रखवाती. इसी बीच उसने पढ़ा, Nक खाना खाने के बाद पानी पीने से क^ सर के क=टाणु सN˜य हो जाते ह^. ऐसी और अनेक बात] भी वह सबको बताती रह/ और जाग’क करती रह/. उसे अपने दःु ख क= याद ह/ नह/ं रह/. एक साल बाद डॉtटर के पास से उसके पास से चेक अप के Iलए फोन

आया. वह चेक अप के Iलए गई, डॉtटर यह दे खकर है रान रह गये, Nक उसके •लड म] क^ सर का नामोeनशान तक नह/ं रहा. मनीषा के जीवन का Mेरणा मंŠ था”िज़ंदगी चलती जाएगी, यह तीन श•द नह/ं, बिaक जीवन क= सबसे बड़ी स@चाई है .” जीवन क= इसी सबसे बड़ी स@चाई के आगे उसके महा भयंकर रोग क^ सर को हार माननी पड़ी थी.


5.

चट ु क= भर गुलाल

होIलया म] उड़े रे गुलाल’ लोकगीत पर झूम उठने वाले पQरवार का संगीत बेसरु ा हो गया था. बात ह/ ऐसी थी. कहां तो नीता और परे श आने वाले नए मेहमान क= तैयार/ म]

हषbम”न थे, Nक नीता क= सार/ दeु नया के रं ग बेरंग हो गए थे. परे श के Uवयोग के साथ आने वाले नए मेहमान को Uपता के बारे म] वह tया जवाब दे गी? यह M&न उसे सताए जा रहा था. नीता के दे वर सरु े श के ज•म से पव ू b ह/ उसके Uपता क= मnृ यु के

पQरणामhव“प उसे मनहूस समझकर सभी उसे हाथ तक लगाने से भी गरु े ज करते थे. इसी बात को लेकर नीता और उसक= सास मानIसक और शार/Qरक Žयथा से अnयंत Žय‰थत थीं. होल/ वाले Zदन नीता क= सास को न जाने tया हुआ, Nक उसने सरु े श को बल ु ाया और लाल गुलाल का पैकेट दे ते हुए कहा, ”नीता क= मांग म] चट ु क= भर गुलाल भर दे .” उनक= बात सन ु कर एक •ण को तो नीता और सरु े श दोन) हtके-बtके रह गए.


6.

खIु शय) क= अहIमयत

नीरा क= शाद/ को दो साल हो चले थे. नया साल श’ ु होते ह/ उसके अंगना म] एक नए

मेहमान का आगमन हुआ था. उसका नामकरण उसके दादा ने Nकया था. पहल/ बार ह/ उसक= ‚यार/-सी,भोल/-सी सरू त दे खकर उनको अंदाजा हो गया था, Nक वह शीतल hवभाव वाला होगा, दादा क= तरह MचŸड सरू जमल नह/ं, इसIलए उसका नाम Uवभु रख Zदया था. अhपताल से घर आते ह/ दाद/ ने अपने लाड़ले Uवभु क= पहल/ लोहड़ी क= तैयाQरयां श’ ु

कर द/ थीं. पर उसक= पहल/ लोहड़ी तो मन ह/ नह/ं पाई, उसी Zदन तो Uवभु के दादा का अंeतम संhकार हो रहा था. लोहड़ी क= हषbमय अि”न से पहले सबके मन म] Uवषाद क=

अि”न जल चक ु = थी. Uवभु क= दाद/ को जहां पeत के Uवयोग क= Uवषम पीड़ा से “-ब-“ होना पड़ रहा था, वह/ं सप ु Š ु क= शाद/ के बाद घर म] पहल/ खश ु ी म] भंग पड़ जाने का शोक भी कम नह/ं था.

eनमेश के Uपता के hवगbवास के दो मह/ने बाद ह/ होल/ का रं गीला पवb सामने था. घर के &वेत-&याम माहौल म] नीरा और उसके पeत eनमेश तो रं गरं गील/ होल/ के बारे म] सोच भी नह/ं सकते थे,लेNकन Uवभु क= दाद/ के मन म] कुछ और ह/ चल रहा था. Uवभु क= पहल/ लोहड़ी तो मन नह/ं पाई, अब tया पहल/ होल/ भी य) ह/ जाने द/ जाय!

”नह/ं”, उनके मन ने कहा. Uवभु क= दाद/ ने नीरा-eनमेश से तो कुछ नह/ं कहा, पर

सोसाइट/ के जनरल से˜ेटर/ से Iमलकर सार/ योजना बना ल/ थी. बस उस Zदन नीराeनमेश को ऑNफस से ज़रा जaद/ वाUपस आने को कह Zदया था. नीरा-eनमेश जaद/ आ भी गए, Uवभु को तो दाद/ ने पहले ह/ तैयार कर Zदया था, नीरा-eनमेश को भी जaद/ से नहा-धोकर तैयार होकर पज ू ा म] चलने को कहकर दाद/ Uवभु के साथ हं सी-Zठठोल/ म]

अपने को Žयhत रखे हुए थी. नीरा-eनमेश Uवभु और मां के साथ होल/ क= पज ू ा म] गए. Uवभु क= दाद/ के hनेZहल eनमंŠण से परू ा Mांगण खचाखच भरा हुआ था. जजमान क= जगह नीरा-eनमेश बैठने को कहा गया, तो दोन) है रान होकर मां को दे खने लगे. मां ने

Uवभु को नीरा क= गोद/ म] दे ते हुए कहा- ”बेट/, त• ु हार/ पीढ़/ क= खIु शय) क= भी अपनी अहIमयत है . जीवन म] सजीले रं ग) क= महNफ़ल सजी रहनी चाZहए.”


7.

मेहरबानी क= मेहरबानी

आज वह सोने के पंख वाला हं स न रहकर, एक सामा•य हं स हो गया था. रह-रहकर उसे यह बात याद आ रह/ थी. सोने के पंख वाले हं स को अपने Uपछले ज•म क= बात याद थी. तब वह बचपन से ह/ अnयंत मेधावी था. महल जैसे बड़े-से घर म] उसक= पिnन और तीन प‡ु Šयां थीं. कमाने वाला न रहने के कारण वे eनधbनता म] जी रह/ थीं. मजबरू / म] पिnन और प‡ु Šयां मजदरू / करके बड़े कqट से जीवन ‡बता रह/ थीं. उसने सोचा, अगर

वह उ•ह] सोने का एक-एक पंख दे ता रहे , तो इससे वे सभी गज ु ारा कर सक]गी. यह सोच वह उनके घर क= द/वार पर जा बैठा. बेZटय) के पछ ू ने पर उसने अपना पQरचय दे ते हुए उनको एक सोने का पंख Zदया. बीच-बीच म] भी वह आकर अपना पंख Zदया करता, तो

वे सब धनी हो गj. एक Zदन उसक= पव ू b पिnन ने लालच के कारण बेZटय) के मना करने पर भी उसके सारे पंख एक साथ नोच Zदए. अब वह उड़ने से भी लाचार था. कुछ Zदन) के बाद उसके पंख उगे, पर वे सोने के न होकर सामा•य थे. यह सब मेहरबानी क= मेहरबानी थी. उसे बहुत पहले सन ु ी हुई बात याद आई”हम उ•ह/ं से आहत होते ह^, िजनसे šयादा Mेम करते ह^.” अब उसने सबक भी सीख Iलया था, Nक बेतहाशा मेहरबानी करते समय मेहरबानी लेने वाल) के मनोभाव) को समझना भी बहुत ज़“र/ है .


8.

MेIमल Nकनारे का गुर

सरु े खा को इस वैल]टाइन डे पर Uपछले साल का वैल]टाइन डे याद आ रहा था, िजसने

सहसा उसक= िज़ंदगी को एक MेIमल Nकनारे का गरु दे Zदया था. उससे पहले न जाने

tय) ऐसा होता था,Nक सबके Iलए मधQु रम और MेIमल छUव वाल/ सरु े खा के बोलने का

ढं ग उसके पeत को ह/ “खा और कटु लगता था. सरु े खा जान-बझ ू कर ऐसा कुछ भी नह/ं करती थी, Nफर भी न जाने कैसे पेच उलझ जाता था. उसे समझ ह/ नह/ं आ रहा

था, Nक ऐसा tय) है ? उस Zदन भी उसने सब ु ह-सब ु ह पeत —वारा बरामदे का नाइट लै•प बंद करने पर सहज भाव से कह Zदया था- ”अभी तeनक अंधेरा है , इतनी जaद/ नाइट

लै•प tय) बंद कर Zदया?” यह तो अ@छा था, Nक धीरे -से कह/ हुई बात उसके पeत ठyक से सन ु नह/ं पाए और पास आकर दब ू ा. तब तक सरु े खा को अपनी ग़फ़लत का ु ारा पछ अंदेशा हो चक ु ा था. उस Zदन वैल]टाइन डे था, सो उसने बहुत ‚यार से कहा- ”है ‚पी वैल]टाइन डे”. पeत ने भी उसी ‚यार से जवाब म] – ”है ‚पी वैल]टाइन डे” कहा. सरु े खा को लगा, Nक उसे MेIमल Nकनारे पर पहुंचने का गुर Iमल गया है .


9.

सबसे पास का Qर&ता

मांगेलाल के बहुत मांगने पर भी उ•ह] पŠ ु -रnन क= Mाि‚त नह/ं हो सक= थी. इसका मलाल होते हुए भी, उ•ह)ने स¤ करना सीख Iलया था. इसके अeतQरtत वे कर भी tया सकते थे! बेZटय) क= शाद/ हो गई थी. वे अपने-अपने घर खश ु थीं. मांगेलाल भी समयच˜ के अनस ु ार चल रहे थे. एक Zदन उनका समय-च˜ ’क गया. घर म] हाहाकार मच

गया. तरु ं त बेZटयां-दामाद, भाई-भतीजे एक‡Šत हो गए. सबको उ•ह] अंeतम Uवदाई दे ने क= जaद/ थी, पर मख ु ाि”न कौन दे ! दामाद को कोई यह हक नह/ं दे रहा था. भाई-भतीजे

12 Zदन के बंधन के कारण ना-नक ु ु र कर रहे थे. मांगेलाल के गांव के एक Žयिtत का बेटा आगे आया. Qर&ता भले ह/ दरू का था, पर इंसाeनयत का तकाज़ा तो था ह/. सबने पछ ू ा- ”tया 12 Zदन काम पर नह/ं जाओगे?”

”आजकल काम पर जाने का बंधन ह/ कहां होता है ? लैपटॉप और फोन से कभी भी, कह/ं भी रहकर काम कर लो. दरू के Qर&ते के कारण कोई ऐतराज़ न हो, तो म^ हािज़र हूं.” ”यह/ तो सबसे पास का Qर&ता है .” N˜याकमb कराने वाले पंiडतजी का कहना था.


10.

मासम ू

आज मासम ू खश ु ी से फूला नह/ं समा रहा था. सात साल म] पहल/ बार कल उसका

ज•मZदन इतने ज़ोरशोर से जो मना था. आज सब ु ह ममी ने उसे उसी तरह झ‚पी दे कर

उठाया था, जैसे गुiड़या को उठाती ह^. आज पापा ने भी उसी तरह गुड मॉeन¥ग का जवाब इतने ‚यार से Zदया था, Nक वह eनहाल हो गया. अभी वह बहुत šयादा हUषbत नह/ं होना चाहता था, कह/ं उसक= Nकhमत को Nफर से नज़र न लग जाए, वह Nफर से मासम ू न बन जाए. इसी सोच म] वह अतीत म] खो गया.

न जाने Nकसने उसका नाम मासम ू रख Zदया था और वह Nकतनी बार मासम ू बना था. उसक= भी ‚यार/-सी मां थी, िजसने उसे ज•म Zदया, पाला-पोसा, खाना-पीना-चलना-

बोलना Iसखाया. तीन साल बाद वह न जाने कौन सी दeु नया म] चल/ गई! लोग कहने लगे- 'मासम ू बेचारा मासम ू हो गया'. Nफर पापा ने नई शाद/ क=, तब भी लोग कहते

थे- 'बेचारे मासम ू का tया होगा!' श˜ ु है , नई मां अ@छy थी, उसने ‚यार से उसे अपना

Iलया. एक Zदन पापा इस दeु नया से Uवदा हो गए. एक बार Nफर लोग कहने लगे- 'बेचारे मासम ू क= Nकhमत भी उसके नाम क= तरह मासम ू ह/ eनकल/!'Nफर आगमन हुआ नए पापा का. अब पापा भी सौतेले, मां भी सौतेल/. मासIू मयत को तो बढ़ना ह/ था! तभी

आई घर म] न•ह/-सी गुiड़या. hवभावतः उसके लाड़-‚यार म] मासम ू को बेचारा तो बनना ह/ था.

तीन साल बाद इसी गुiड़या ने उसको मासIू मयत के कूप से eनकाला था. हर साल गुiड़या का ज•मZदन बड़ी धम ू धाम से मनता था. इस बार वह समझदार गुiड़या िज—द पर अड़ गई- ''िजस तरह मेरा ज•मZदन ठाठ-बाठ से मनाया जाता है , भै¦या का भी मनना चाZहए.'' गुiड़या क= उसी िज—द ने कल उसे इतनी खIु शयां Mदान क= थीं, Nक उसे लगा- 'अब वह मासम ू नह/ं रहा'.


11.

अनभ ु व

य) तो हर बीता हुआ पल बहुत कुछ Iसखा जाता है , Nफर बीता हुआ एक वषb तो बहुत बड़ी तोप सा‡बत होता है . अIमता के Iलए बीता हुआ वषb वह सब कुछ ले आया, िजसक= कमी उसे Uपछले 50 वष§ से खल रह/ थी. उसके पास सब कुछ था, Nफर भी Nकसी कोने से कुछ चाह तो eनकल ह/ आती है . अIमता को कई सास) और कई बहुओं के Nकhसे सल ु झाने का मौका Iमला था,लेNकन वह पहले सास के साथ और Nफर बहू के साथ नह/ं रह पाई थी.

50 वषb पहले जब उसक= शाद/ हुई थी, उसक= सास पहले ह/ भगवान को ‚यार/ हो गई थी, 16 साल पहले जब बेटे क= शाद/ हुई, वह Uवदे श म] रहता था, सो बहू को तो वहां जाना ह/ था. सास-बहू के बीच ‚यार क= कमी नह/ं थी. वे एक दस ू रे के पास आतेजाते, बात करते रहते थे, पर लंबे समय तक दोन) को साथ रहने का मौका नह/ं Iमल

पाया. बीता हुआ वषb उनके Iलए यह मौका ले आया. अब तक Nकताबी बात)-दाव) को अमल/ जामा पहनाने का समय आ चक ु ा था. अIमता ने इसके Iलए अपने मन को तैयार कर रखा था, बहू भी पीछे नह/ं थी.

अIमता ने बहू क= हर बात को समझने क= कोIशश क= थी, बहू ने हर हाल म] बड़) क= इšज़त करने म] कसर नह/ं छोड़ी. परू े साल बाद जब अIमता के जाने का समय आया, दोन) क= आंख] Mेमा¨ुओं से Iसtत थीं. अब एक के पास बहू के साथ सhनेह eनभाव करने का अनभ ु व था, तो दस ू र/ के पास सास के मन म] सMेम बसने का.


12.

रब क= इनायत

अeनता सैर करके आई ह/ थी, Nक जीवन ने जाल/ के दरवाज़े क= आवाज़ सन ु कर पद© से

झांककर दे खा. अeनता मh ु कुराहट से चहक रह/ थी. उ‘दराज होने के बावजद ू बहुत संद ु र अeनता मh ु कुराहट से और अ‰धक खब ू सरू त लग रह/ थी. गल ु ाबी टॉप के साथ चांद/-से सफेद बाल) से मैच करती मोती-माला, घड़ी, कंगन, ¤ेसलेट उसक= खब ू सरू ती म] हज़ार चांद लगा रहे थे. जीवन ने भी चहककर कहा-

”भागवान आज सब ु ह-सब ु ह इतनी मक ु ु राहट का रहhय जान सकता हूं?” ”tय) नह/ं?” अeनता ने हं सते हुए कहा, ”आपने ह/ तो कल कUवता म] एक मंŠ Zदया था”मh ु कुराते रZहए, Nक मh ु कुराहट खद ु ा क= इबादत है ,

वह/ मh ु कुरा सकता है , िजस पर रब क= इनायत है .” ”सह/ कहा” जीवन बोला, ”लेNकन tया सब ु ह-सब ु ह रब ने इनायत कर द/ है tया?” ”रब क= इनायत तो हम पर हर पल बरसती है , पर तड़के-तड़के क= बात भल ू गए

tया? तम ु तो कहते हो, Nक उ‘दराज होने पर भी तम ु भल ु tकड़ ‡बलकुल नह/ं हो!” ”अर/ भागवान, भल ू ा कुछ नह/ं हूं, बस त• ु हार/ ज़बानी सन ु ना चाहता हूं.” जीवन ने कहा. ”अरे भाई आज म^ बZु ढ़या से ब@ची जो बन गई हूं.” अeनता ने चह ु ल क=, ”त• ु ह] पता ह/ कहां होगा, तम ु तो नींद के खम ु ार म] थे. म^ जैसे ह/ जगी, रोज़ क= तरह अंगड़ाई लेकर, एक और नया सख ु भरा-सन ु हर/ Zदन Zदखाने के Iलए परमाnमा के शक ु राने करते

हुए ”हQर ओम तेरा आसरा, हQर ओम तेर/ ओट” बोल/. आज ज़रा आवाज़ ज़ोर से हो गई थी, सो बहू अपने दोन) ब@च) को छोड़कर भागी आई और बोल/- ”ममी जी, आप ठyक तो ह^ न!” म^ने कहा- ”हां-हां ‡बZटया म^ ‡बलकुल ठyक हूं.” तम ु तो Nफर भी कहने लगे, ”सोने दो ना, भई.” बस वह/ बहू क= बात याद करके सैर करते हुए भी अपने ब@ची होने का अहसास मझ ु े हं साता रहा. यह रब क= इनायत ह/ तो थी.


13.

Uव&वास के पंख

ऑh›े Iलया से कUव स•मेलन म] धम ू मचाकर Iमनी अपनी मां सUवता के साथ पेQरस

कUव स•मेलन म] भाग लेने के Iलए ªलाइट म] बैठy कUवता Iलखने म] Žयhत थी. सUवता उसे Žयhत दे खकर बहुत खश ु भी थी और भावUवभोर होकर अतीत क= याद) म] खोई हुई भी. Iमनी को कUवता Iलखने का शौक भी था और उसम] ज•मजात यह Meतभा भी थी, यह सUवता को तब पता चला, जब Iमनी को hकूल म] •ेŠीय Meतयो‰गता म] Mथम परु hकार से नवाज़ा गया. उस Zदन सUवता के आंसू थमने को ह/ नह/ं आ रहे थे. आंसू आने का

कारण थी, दघ b ना के कारण Iमनी क= चल पाने म] असमथbता. hकूल भी वह Žह/ल चेयर ु ट पर जाती थी, िजसम] Iमनी क= सहे ल/ ‰ग•नी उसक= सहायता करती थी. कल को बेट/

को कUव स•मेलन) म] जाना पड़ा, तो कैसे आया-जाया करे गी? तब Iमनी ने ह/ मां को हौसला Zदलाते हुए कहा था-”मेर/ अ@छy मां, तम ु ‰चंता मत करो, दे खना जो कUव स•मेलन के Iलए बल ु ाएगा, वह/ लाने-ले जाने का भी Mबंध करे गा.” ”बेट/, रे त के महल मत बना, जो हaक=-सी फंू क से भरभराकर ‰गर जाएं.” ”मां, ये रे त के क@चे महल नह/ं ह^, Uव&वास के खंभ) पर Zटके हुए पtके महल ह^, य) ह/ नह/ं टूटने वाले.” आज सचमच ु उसके Uव&वास को पंख लग गए थे. दे श-Uवदे श से उसको कUव स•मेलन) के eनमंŠण आते थे. श’ ु से आ…खर तक Mबंध क= िज•मेदार/ आयोजक eनभाते थे.

सहाeयका के “प म] सUवता भी उसके साथ अनेक दे श) म] «मण कर सक= थी. Uवशेष एIलवेटेड गाड़ी उनको घर से ले जाती थी और घर तक छोड़ जाती थी. कUवता परू / करके Iमनी ने मां के Uवचार) क= तं¬ा भंग करते हुए पछ ू ा- ”मां, कहां खो गई हो?” ”कुछ नह/ं, बस Uव&वास के पंख) पर सैर कर रह/ थी.


14.

आर/ कुक=ज़

नीIलमा मकड़जाल को परू / तरह से तोड़ने म] कामयाब हो गई थी. हुआ य) था, Nक उसके बेटे के दो साल का होते-होते नीIलमा को पता चल गया था, Nक उसका बेटा आZटb 2म--hत और कुछ समय का मेहमान है . घर म] और कोई कुछ भी सोचे, वह तो

मां थी, अपने िजगर के टुकड़े को आ…खर/ सांस तक अ‰धक-से-अ‰धक खश ु ी दे ना चाहती थी, सो वह दे रह/ थी. भारत म] रहते हुए उसने कथा म] भगवान द‹ाŠेय के 24 ग’ ु ओं म] से एक मकड़ी के बारे म] भी सन ु ा था. द‹ाŠेय ने दे खा, Nक मकड़ी जब अपने ह/

—वारा eनIमbत जाल म] फंसने वाल/ थी, तो वह उस जाल को ह/ खा गई थी. नीIलमा भी आZटb 2म--hत बेटे को ज•म दे ने के कारण सबक= ऊल-जल ु ल ू बात) और तान) के जाल

म] फंस गई थी, आज उसी जाल को वह खाकर नई शिtत पा गई थी. अमेQरका म] लगीलगाई शानदार नौकर/ को छोड़कर बेटे के साथ समय ‡बताने म] Žयhत हो गई. उसके बेटे को मां के हाथ) क= बनी ®ाइ ¯ूट कुक=ज़ बहुत पसंद थीं. वह तरह-तरह क= कुक=ज़ बनाकर उसे …खलाती और धैय-b hनेह-Mेम से बेटे के साथ परू े पQरवार क= सेवा करती. वीआर.एस. क= धनराIश से उसने कुक=ज़ बनाने क= छोट/-सी बेकर/ खोल ल/. उसम] वह

आZटb 2म -hत लोग) को ह/ काम पर रखती थी. हर आZटb 2म -hत Žयिtत म] उसे अपने बेटे का अtस Zदखाई दे ता था. बेटा िhवIमंग और अनेक खेल) म] पQरवार का नाम रोशन कर रहा था. उसके स—Žयवहार से घर के सब लोग भी हर काम म] उसके सहयोगी बन गए थे. आज बेटा 12 साल का हो गया था, ''आर/ कुक=ज़'' क= Meतqठा भी बल ु ंद/ पर थी.


15.

मां-बाप का Zदल

कहते ह^ Nक, एक Iमनट म] िज़ंदगी नह/ं बदलती पर, एक Iमनट म] सोचकर Iलया हुआ फैसला परू / िज़ंदगी बदल दे ता है . ऐसा ह/ Nकhसा एक शहर म] रहने वाले नर] ¬ के

पQरवार के साथ हुआ. वे मेले म] गए और एक घंटा घम ू े. अचानक उनका बेटा मेले म] खो गया. दोन) पeत-पिnन मेले म] उसे बहुत ढूंढते ह^, पर उनका बेटा नह/ं Iमलता. ब@चे क= मां ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी. बाद म] वे पIु लस को सच ू ना दे ते ह^. आधे घंटे बाद ब@चा Iमल जाता है . ब@चे क= मां उसे बहुत ‚यार-दल ु कारती है और सीने से ‰चपका लेती ु ार से पच है . है .ब@चे के Iमलते ह/ उसके Uपताजी ने एक Iमनट कुछ सोचा और गांव के ZटNकट

लेकर आए और वे सभी बस म] बैठकर गांव को चल पड़े. तभी पिnन ने पछ ू ा Nक, “हम

गांव tय) जा रहे ह^? अपने घर नह/ं जाना tया?” पeत ने जवाब Zदया, ” तू मेर/ औलाद के ‡बना आधा घंटा नह/ं रह सकती, तो मेर/ मां (भावक ु होकर ’आंसा-सा हो गया)

Uपछले दस साल) से मेरे ‡बना कैसे जी रह/ होगी? आज तक मां-बाप का Zदल दख ु ाकर कोई सख ु ी नह/ं हुआ.”


16.

मZु हम

मेले म] झूल)-वल ू ) के साथ लोक कलाकार भी आए हुए थी. ‰चŠकार)-गायक) के साथ टै टू बनाने वाले भी अपनी कला का Mदशbन कर रहे थे. गाiड़या लह ु ाQरन लोहे क= छलeनयां बना रह/ थी. एक छोट/-सी ब@ची उसके पास खड़ी होकर उसका काम दे खती रह/. आगे चलकर वह टै टू बनाने वाले के पास खड़ी हो गई. टै टू बनाने वाला अपनी कला को

eनखरता हुआ दे खकर खश ु हो रहा था और टै टू बनवाने वाला अपना मनचाहा टै टू उभरता हुआ दे खकर ग—गद हो रहा था. ब@ची को बहुत अ@छा लगा. वह िज—द करने लगी- ''मां, मझ ु े टै टू बनवाना है .'' मां के मना करने पर वह हमेशा क= तरह ‡बफरने लगी- ''tया मां, हर चीज़ के Iलए मना करने लगती हो! tया हो जाएगा टै टू बनवाने पर? बताओ तो.''

''तम ु दे ख तो रह/ हो, Nक Nकतनी नक ु =ल/ सई ु से टै टू बन रहा है ? बहुत ददb होगा.'' ''अ@छा जब डॉtटर के पास सई ु लगवाने ले चलती हो, तब तो आपको मेरे ददb क= ‰चंता नह/ं होती?'' ब@ची का ‡बफरना जार/ रहा.

मां ने ‚यार से समझाया- ''वह तो त• ु हार/ भलाई के Iलए होता है न! तम ु ने दे खा

होगा, Nक डॉtटर हर बार नई सई ु का Mयोग करते ह^, टै टू बनाने वाले तो एक ह/ सई ु से न जाने Nकतने लोग) के टै टू बनाते ह^. उनसे इंफैtशन भी हो सकता है . सं˜Iमत सई ु से सं˜मण हो जाता है , और तो और इससे AIDS जैसी भयानक बीमार/ भी हो सकती है . Nफर तम ु टॉNफय) म] से eनकले टै टू लगवाती हो, तो थोड़ी दे र बाद त• ु हारा मन बदल

जाता है , वह साफ करके दस ू रा टै टू लगा लेती हो. यह तो बन गया, सो बन गया, मन भर जाने पर tया करोगी?'' ''बनवादो न मां, ‚ल/ज़!'' ''अ@छा, तम ु अभी तो टै टू बनवा लो, कोई हज़b नह/ं, पर बड़ी होने पर जब त• ु हार/ शाद/ होगी, तब त• ु हारे पeत या ससरु ाल वाले ऐतराज़ कर] गे, तो tया करोगी? और Nफर तम ु तो सेना म] भत· होना चाहती हो न! एक बार टै टू बनवा Iलया तो त• ु हार/ यह इ@छा कभी परू / न हो सकेगी.'' मां उससे बात] करती आगे ले गई, ब@ची गु•बारे वाले को

दे खकर रं ग-‡बरं गे गु•बार) म] खो गई, लेNकन टै टू के बारे म] सोचना उसने छोड़ा नह/ं था.

समय के साथ-साथ Uवचारधाराएं बदलती ह^, ब@ची क= Uवचारधाराएं भी बदल/ं. आज उसी ब@ची ने समाजसेUवका बनकर दे श-Uवदे श म] टै टू के …खलाफ मZु हम छे ड़ रखी है . उसने

अपनी थीIसस भी ''टै टू'' पर Iलखी थी, िजसम] उसने टै टू के दqु Mभाव) के बारे म] बताते हुए Iलखा था, Nक Nकतनी ह/ लड़Nकय) को टै टू के कारण ह/ समाज म] अनेक मिु &कल) का सामना करना पड़ा था. •यांमार म] रहने वाल/ मZहलाओं को तो ज़बरदhती अपने


चेहरे पर टै टू बनवाना पड़ता था, िजससे उनको जीवनभर उसी चेहरे के साथ रहने को

मजबरू होना पड़ता था. उसने सेना म] टै टू क= पाबंद/ पर भी शोध करना जार/ रखा था.


17.

Uवकास क= सलोनी डगर

परू े 25 साल बाद ह/रालाल उसी कोठy के सामने खड़ा था, IमhŠी के “प म] िजसक= हर jट को उसने खद ु अपने हाथ से लगाया था. हां, आज वह IमhŠी के “प म] नह/ं, एक कॉ•›ै tटर और उस ‚लॉट के माIलक क= है Iसयत से वहां खड़ा था और उसके साथ

”साथी हाथ बढ़ाना” कहते हुए jट-गारा उठाने वाले मज़दरू नह/ं थे, उसका आNकbटै tट और IसUवल इंजीeनयर बेटा अ…खले&वर था. आज वह मकान जोड़ने-तोड़ने नह/ं, तड़ ु वाने क=

मज़दरू / का अंदाज़ा लगा रहा था. अंदाज़ा लगाने क= बजाय वह उन Zदन) क= याद) म] खो गया था.

तब वह अपने जीवन के 21 बसंत दे खकर यौवन के परू े eनखार पर था. अभी उसका

Uववाह भी नह/ं हुआ था. इसी कोठy को बनाने के IसलIसले म] उसक= मल ु ाकात मज़दरू के “प म] काम करती गदराए यौवन क= मिaलका कमल/ से हुई थी. शी¸ ह/ वह मल ु ाकात Uववाह के “प म] पQरवeतbत हो गई थी. कोठy क= मालNकन ने ह/ दोन) के Uववाह का जोड़ा उनको उपहार hव“प Zदया था. ह/रालाल ने उसे कहा था-

”मालNकन, आज तो म^ कोठy का eनमाbण कर रहा हूं, आप मेरे Iलए इतना कुछ कर रह/ ह^, कुछ साल बाद म^ आपसे Iमलने आऊंगा, तो आप मझ ु े पहचान]गी? tया मझ ु े अंदर ‡बठाकर पानी पीने को कह] गी?”

”ऐसा tय) पछ ू रहे हो?” मालNकन ने कहा था.

”मेरा छः साल का अनभ ु व यह/ कह रहा है .” ह/रालाल का सहज उ‹र था.

”भाई, यह तो समय ह/ बता सकता है . हां, सब लोग एक जैसे नह/ं होते, यह तो सब लोग जानते ह^.” आज मालNकन ने कोठy को चार मंिज़ला मकान बनवाने के Iलए सबसे पहले ह/रालाल और उसके बेटे अ…खले&वर को ह/ बल ु ाया था. चाय-पानी पीते-पीते कुछ ह/ समय म] बात तय हो गई थी. इसी बेटे का ज•म होने क= खश ु ी बांटने के Iलए जब ह/रालाल ल¹डुओं का iड•बा मालNकन को दे ने आया था, तब मालNकन ने ह/ कहा था- ”इसका नाम

अ…खले&वर रखना. अ…खले&वर का अथb होता है - ”सारे संसार का ई&वर अथाbत माIलक.” आज अ…खले&वर ह/ नह/ं, ह/रालाल भी ऐसे कई Mॉजैtœस का माIलक था. वह Uवकास क= सलोनी डगर पर कदम बढ़ा चक ु ा था.


18.

अहसास) क= अनमोल पंज ू ी

लावŸया आज घर पर अकेल/ थी. उसे ऐसा लग रहा था, Nक उदासी ने उसे बरु / तरह से अपने घेरे म] जकड़ Iलया था. आज उसके पeत के दे हावसान क= पहल/ वस· थी. सब ु ह पंiडत जी को बल ु वाकर हवन करवाया गया था, उसके बाद उसके बेटे-बहू अपने-अपने काम पर चले गए थे. Uवचार) म] खोई-खोई वह न जाने कब केरल से लाया हुआ एक संद ु र-सा मीनेवाला छोटा-सा बॉtस ले आई. उसी बॉtस म] ह/ तो उसक= सबसे पहल/

सन ु हर/ याद] कैद थीं. इसIलए वह उसे सबक= नज़र) से बचाकर रखती थी. सबसे पहले ‚यार क= पहल/ ‰चœठy eनकल/. उस पहले पŠ के एक गाने क= पंिtतयां आज भी उसे याद थीं“जलते ह^ िजसके Iलए मेर/ आंख) के Zदए, ढूंढ लाया हूं वह/ गीत म^ तेरे Iलए.” इन पंिtतय) को उसके पeतदे व ने रं गीन प^Iसल से सजाया भी था. Nफर और-और पŠ जो, कई-कई बार पढ़े गए थे, Nफर से कई-कई बार पढ़े गए. उस बॉtस के साथ न जाने Nकतने घंटे Žयतीत हो गए. अचानक उसका •यान घड़ी पर चला गया और उसने पोतेपोती के hकूल से आने के समय हो जाने के कारण शी¸ता से उस बॉtस को अ@छy तरह बंद कर, अपने आंचल से प)छकर Nफर से eछपाकर रखा, उदासी को झाड़

Zदया, मh ु कुराहट ओढ़ ल/ और ब@च) के खाने-पीने क= तैयार/ म] जट ु गई. तभी उसके अंतमbन से आवाज़ आई-

”लावŸया, शाद/ के ल¹डू ह/ आज अहसास) क= अनमोल पंज ू ी म] पQरवeतbत हो गए ह^.”


19.

िज़ंदाZदल/

आज वसध ु ा िजस मक ु ाम पर पहुंच गई है , Nक हर एक को उस पर गवb होता है . वसध ु ा गवb या Nक कZहए घमंड से कोस) दरू रह/ है . उसके रहन-सहन म] कोई त•द/ल/ नह/ं आई है . उसके अतीत का हर प•ना हर समय उसके सम• न‹bन करता है .

आज से साठ साल पहले वसध ु ा के सामने दो राhते थे- सबके तान) से हताश होकर

घट ु न भर/ िज़ंदगी जीना, या Nफर धैयb से हर बाधा से पार पाना. वसध ु ा ने दस ू रा राhता

चन ु ा था था. उस समय उसने अपने आप से वादा Nकया था, मामल ू /-से बख ु ार से अपनी

पोIलयो से लगभग eनqMाण-सी हो गई बांj भज ु ा को अपनी िज़ंदगी क= घट ु न का कारण

नह/ं बनने दे गी, उसी वादे को अपना संबल बनाकर वह िज़ंदाZदल/ से जीवन को खश ु बहार बना दे गी. उसी िज़ंदाZदल/ ने वसध ु ा को सबका चहे ता बना Zदया है .

मां के मन क= घट ु न इन श•द) म] eनकलती- ''वस,ु तेरो के होएगो. कुण करे गो तेरे से शाद/?''

वसु मां को तसaल/ दे ते हुए कहती- ''दे …खयो अ•मा, मेरो वर-घर ऐसो दमदार होएगो, Nक सब बZहन] कह] गी- ''वर होवै तो वसु जैसो.'' हुआ भी यह/. अपनी Uवकलांगता को भल ु ाकर वसध ु ा उसी तरह पेड़) पर चढ़ती-लटकती बड़ी हो गई. धैयb और िज़ंदाZदल/ उसके गहने थे. घर-बाहर के हर काम म] सबसे आगे.

उसके इ•ह/ं गुण) से MभाUवत होकर उसके ससरु ने उसक= Uवकलांगता को दरNकनार कर अपने आई.ए.एस बेटे से उसक= शाद/ करवा द/ थी. वसध ु ा ने पहनने-ओढ़ने का तर/का ऐसा बनाया हुआ था, Nक सहसा उसक= Uवकलांगता पर Nकसी क= नज़र जाती ह/ नह/ं थी. ससरु ाल वाले उसक= कायbकुशलता और ‚यार के मरु /द हो गए थे और परू े शहर म]

वह नेक बहू के “प म] MIस—ध थी. आज वह बड़ी शान से एम.एल.ए के गQरमामय पद पर आसीन थी.


20.

द/वार) क= आंख] भी होती ह^

आज हQरया जेल म] बैठा-बैठा ‚लािhटक क= eनवाड़ से टोकQरयां बना रहा था. कल पnथर तोड़ने का काम Iमला था, उं गIलयां घायल हो गई थीं, सो आज ‚लािhटक क= eनवाड़ से टोकQरयां बनाने म] भी पीड़ा हो रº/ थी. हाथ धीरे चलने पर जेलर क= एक घड़ ु क= से हाथ तो तेज़ी से चल पड़े, पर उसक= आंख) के सामने अतीत के ‰चŠ) को जेलर भी रोक नह/ं पाया. उसे याद आया”हQरया, ओ हQरया, कहां हो?” सेठ द/नानाथ ने हQरया के घर से गज़ ु रते हुए उसको आवाज़ लगाई. ”आइए, आइए सेठ जी, आपक= पोटल/ तैयार है .” ”Nकतने ह^ भाई?” ”परू े पांच सौ. ”

”हQरया, Iसtक) क= तंगी के चलते भी त• ु ह] इतने Iसtके कहां से Iमल जाते ह^?” ”बहुत मेहनत करनी पड़ती है , सेठ जी.” ”पज ु ार/ से ले आते होगे, कौन-सा पहाड़ तोड़ते होगे Iसtक) के Iलए?” ”छोiड़ए, आप नह/ं समझ]गे.”

”अरे भाई, समझाओगे तो tय) नह/ं समझ]गे?” ”तीथbhथान म] रहते ह^ न हम लोग! तीथbयाŠी अपनी मरु ाद परू / करने क= इ@छा से Iसtके »•Mा नद/ म] फ]कते ह^, म^ वह/ं से लाता हूं.” ”तब तो तम ु भी सारा Zदन नद/ म] hनान करके पŸ ु य कमाते होगे?”

”अजी काहे का पŸ ु य, राम भजो. म^ तो छोटे गर/ब ब@च) से eनकलवाता हूं, उनक= रोज़ी हो जाती है , मेर/ रोट/.” ”हQरया, छोटे ब@च) से काम करवाना तो जम ु b है , Nफर कोई डूब जाए तो.”

”आपको Iसtके लेने ह^ तो लो, वरना बहुतरे े -ाहक Iमल जाएंगे.” हQरया तन ु ककर बोला. ”हQरया, ज़रा धीरे बोल, द/वार) के भी कान होते ह^.” ”द/वार) के Iसफ़b कान ह/ नह/ं द/वार) क= आंख] भी होती ह^.” पIु लस थानेदार गोपे&वर ने तरु ं त उसके सामने वीiडयो िtलप चला द/. हQरया को काटो तो खन ू नह/ं.


21.

मानव तम ु महान हो!

अभी म^ सोया ह/ था, Nक सपने म] खो गया. सपने का tया है , कब आ जाए, कैसा आ जाए, कहां ले जाए, कुछ कहा नह/ं जा सकता. आज सपने म] एक बड़ा-सा पेड़

आया, िजसक= पU‹यां तेज़ी से झर रह/ थीं और पेड़ ‘अपत कंट/ल/ डार’ जैसा लग रहा था. वह/ कह रहा था, ‘मानव तम ु महान हो!’ इतनी अ@छy बात, पर उसक= बात के आगे Uवhमयकारक ‰च½न tय)? इस tय) का जवाब तो पेड़ ह/ दे सकता है , उसने Zदया भी”मेरे प‹े तो पतझड़ ऋतु के कारण झर रहे ह^, पर तम ु ने तो अपना hवाथb Iस—ध करने

के Iलए परू / Mकृeत को परू ा-का-परू ा ऐसे न)च Iलया है , जैसे Nकसी प•ी के पर न)च लेते हो. तeनक भी दया-माया-ममता शेष नह/ं रह/ है तम ु म] .” ”अब हम भी tया कर] ?…….” ”तम ु tया करोगे?” पेड़ ने मेर/ बात काटते हुए कहा- ”हम तो ह^ ह/ परोपकार के Iलए. त• ु हारे परु खे भी हमसे बहुत कुछ लेते रहे ह^, लेNकन उनका तर/का कुछ और था. वे

पहले हाथ जोड़कर अनम ु eत लेते थे, िजतनी ज़“रत होती थी उतना ह/ लेते थे, एक के बजाय दस पेड़ लगाते थे. हम दस गुना हं सकर दे ते थे.”

म^ने कुछ कहना चाहा, लेNकन….., लेNकन पेड़ ने मौका ह/ कब Zदया?” ”याद है त• ु ह] ? इसी व• ु हार/ बेट/ क= शाद/ हुई थी. शाद/ के बाद ससरु ाल ृ के नीचे त• वाल) ने उसे आज तक केवल इसीIलए त• ु हारे घर नह/ं आने Zदया, तम ु से Iमलनेबeतयाने नह/ं Zदया, Nक Nफर लेन-दे न चलता रहे गा. Nकतना छटपटाए थे तम ु और

त• ु हारा पQरवार! त• ु हारा एक अंश जो तम ु से हमेशा के Iलए ‡बछुड़ा था! 25 साल से अब तक छटपटा रहे हो. हमार/ छटपटाहट तम ु ने कभी महसस ू क=? नह/ं, ज़“रत ह/ नह/ं समझी न! महान जो हो!”

बस Nफर tया था, सार/ रात छटपटाता ह/ रहा, अगले Zदन कुछ पयाbवरण के Iलए कुछ कर Zदखाने के संकaप के साथ.


22.

और वaडb Qरकॉडb बन गया

आज सम ु ेधा बहुत खश ु थी. म— ु दत से पाल/ हुई हसरत आज परू / हो सक= थी. पर कैसे? सम ु ेधा के सामने अतीत का चल‰चŠ चल रहा था.

सात सहे Iलय) के Mगाढ़ बंधन म] वह बंधकर रह गई थी. उ•ह] छोड़ भी नह/ं पाती थी. हर वtत उनके साथ रहने से वह तैराक= का अपना शौक परू ा नह/ं कर पा रह/ थी, tय)Nक उनको पानी से डर लगता था.

एक Zदन रे iडयो पर वह सन ु पाई- ''जैसे ह/ मकड़ी जाले म] फंसने लगती है , जाले को ह/ खाकर मt ु त हो जाती है ''.

सात) सहे Iलय) के Mगाढ़ बंधन से मिु tत के Iलए सम ु ेधा ने इसी राह हो चन ु ा और पानी से डरने वाल/ अपनी सात) सहे Iलय) से अलग-अलग रहने लगी थी. hकूल से सीधी

पहुंचती तैराक= क= tलास म] . वह hथानीय चैि•पयन तो बन ह/ गई थी, यह सात) सहे Iलय) को भी –ात था. एक Zदन सब ु ह उसने अपनी सात) सहे Iलय) को तैराक= पर

चलने को कहा. आठ) सजधज कर eनकल पड़ीं. एक नाव म] चढ़कर वे पहुंचीं ठाठ] मारते हुए पानी के बीच. सम ु ेधा ने तैराक= श’ ु करने को कहा और कूद पड़ी पानी म] . दस ू र/ भी

छलांग लगाने को तैयार हुई, तभी सम ु ेधा ने ''बाइ-बाइ'कहा और नज़र) से ओझल हो गई. छलांग न लगाने का बहाना Iमलते ह/ सब वाUपस हो ल/ं. सम ु ेधा का कोई अता-पता नह/ं था.

चार घंटे बाद पापा के मोबाइल पर तैराक= वाले सर का मैसेज आया- ''मब ु ारक हो, तैराक= म] सम ु ेधा का वaडb Qरकॉडb बन गया''.

पापा ने सबको शभ ु समाचार सन ु ाया और कहा- ''सम ु ेधा ने मंिज़ल पा ल/ है .''

सम ु ेधा ने घर आकर बताया- ''म^ परू े चार घंटे तैराक= करती रह/ थी. मेरे हाथ म] बंधे hपीडोमीटर ने मेरे इंh›tटर और वaडb Qरकॉडb के अ‰धकार/ को बता Zदया, Nक म^ने

लगातार चार घंट) म] Nकतनी तैराक= क= है . बस, वaडb Qरकॉडb बन गया. पापा, आज म^ बहुत खश ु हूं, आसमान) क= ऊंचाइय) को छूने को तैयार हूं, अब मेर/ नई सहे Iलयां ह)गी, जो तैराक= के Iलए मेर/ Mेरणा बन]गी.


23.

सेवा और समपbण

डॉ. सIमधा अपने अhपताल म] अभी-अभी एक ऑपरे शन करके अपने कमरे म] आई थी और एक कुस· पर बैठ गई. रात म] तीन घंटे का ऑपरे शन उसके Iलए भी कम थकाऊ नह/ं था. उसने मेज पर Iसर रखकर आंख] मंद ू ल/ं और पहुंच गई थी अतीत म] . बचपन म] उसने दाद/ से पछ ू ा था- ''दाद/ जी, आपने मेरा नाम सIमधा tय) रखा? सIमधा का tया अथb है ?''

''बेटा, सIमधा का मतलब है - ''लकड़ी, Uवशेषतः य–कंु ड म] जलाने क= लकड़ी, हवन, य– आZद क= साम-ी.''

''ये सब तो य–कंु ड म] जल जाने के Iलए ह^, तो tया मझ ु े भी ऐसा ह/ करना पड़ेगा?''

''बेटा, जो सIमधा बनने के Iलए तैयार होता है , उसका जीवन ह/ स@चा जीवन है . सेवा और समपbण हमारे जीवन का लÀय होना चाZहए?'' दाद/ क= इस बात को •यान म] रखते हुए ह/ उसने डॉtटर बनकर सेवा और समपbण अपने जीवन का लÀय बना Iलया था. डॉtटर क= iड-ी पाने पर ल/ जाने वाल/ Zहपो˜ेZटक ओथ (मर/ज क= जान बचाने क= शपथ) को उसने न Iसफb िजया, बिaक अपनी िज़ंदगी का मल ू मंŠ बना Iलया.

आज अपने पोते के साथ जो बज ु ग ु b मZहला इलाज के Iलए आई थी, उसम] सIमधा को

दाद/ क= झलक Zदखाई द/. ज़“र/ जांच के बाद उसने पांच लाख का खचb बताया था. यह सन ु ते ह/ पोता उदास हो गया था. सIमधा ने पांच लाख का नाम सन ु ते ह/ उसक= उदासी को ताड़ Iलया था और उसे eनि&चंत करते हुए कहा था- ''आप ‰चंता न कर] , यह आपक= ह/ नह/ं मेर/ भी दाद/ जी ह^,इनको कुछ नह/ं होगा.'' अब जब ऑपरे शन के बाद जब मZहला को होश आ गया था, सIमधा ने खद ु पोते के

पास जाकर उसको बधाई दे ते हुए कहा था- ''दाद/ जी का ऑपरे शन सफल हो गया है , अभी आप उनको दरू से दे ख ल/िजए, थोड़ी दे र बाद आप उनसे मल ु ाकात कर बात कर पाएंगे.''

दाद/ जी क= कामना परू / हुई थी और सIमधा को सेवा और समपbण से संतिु qट Iमल/ थी.


24.

इंसाeनयत का अनोखा संबंध

काIमनी को कहां पता था, Nक मौसी जी क= तेरहवीं पर ऐसी अनहोनी हो जाएगी. अपने पeत के साथ काIमनी काइनैZटक हÁडा पर बैठy बस मौसी जी के घर पहुंचने ह/ वाल/ थी. अचानक एक eतराहे पर एक गाड़ी ने रे ड लाइट जंप करके उनको टtकर मार द/. काIमनी और उसके पeत एक ओर ‰गरे , hकूटर दस ु है कोई और तेज़ गाड़ी ू रे ओर. श˜ आने से पहले ह/ तीन) को वहां से हटा Iलया गया. एक हœटे -कœटे स2जन ने पहले काIमनी को उठाकर एक Nकनारे एक मZहला को संभला Zदया. काIमनी होश म] थी, इसIलए अ‰धक Zदtकत नह/ं हुई. उसके पeत तो मानो खन ू के तालाब म] नहाए हुए थे. स2जन Žयिtत ने अपने सफेद कपड़) क= भी परवाह नह/ं क= और उ•ह] गोद/ म] उठाकर Nकनारे कर Zदया. दो यव ु क) ने hकूटर को Nकनारे कर Zदया. एक Žयिtत ने 100 नं. पर फोन कर Zदया था. तरु ं त ह/ पIु लस क= जीप भी आ गई थी. तभी एक कार से एक स2जन उतरे और काIमनी से बोले- ''बZहनजी, आपको पता है Nक आपको Nकसने टtकर मार/?'' काIमनी ने कहा- ''कोई सफेद बड़ी-सी गाड़ी थी.'' ''नह/ं बZहनजी, शायद आपको चtकर आ जाने के कारण ऐसा लगा होगा. म^ 3 Nकलोमीटर तक जाकर उसका पीछा करके उसका न•बर नोट कर आया हूं, पकड़ नह/ं पाया.'' उसने एक कागज़ पर टै tसी का न•बर Iलख Zदया और पIु लस को भी बता Zदया, Nफर काIमनी से बोला-''म^ आपके साथ चलता, पर म^ अपनी पिnन को खन ू

चढ़वाने जा रहा था. भगवान आपका भला करे .'' वह भी चल Zदया और पIु लस क= जीप भी साइरन बजाती पास के सरकार/ अhपताल को चल द/.

तीन घंटे बाद पeत को होश आया, तब उ•ह)ने मौसी जी के घर अपने भाई को फोन Nकया. तब सभी लोग वहां दौड़े आए. काIमनी क= भी खोज क= गई. पता चला, Nक उसके पैर क= एक उं गल/ काटनी पड़ी थी. टै tसी वाले का न•बर Iमल गया था, वह भी वहां पहुंच गया था और काIमनी और उसके पeत से •मायाचना कर रहा था. पeत से Iमलकर उनक= खैQरयत जानने के बाद काIमनी सोचने लगी- ''tया टे ढ़े समय को सीधा बनाने वाले वे सब कौन थे? tया उनके अपने थे? शायद यह इंसाeनयत का अनोखा संबंध था.


25.

ये बरतन र/ते नह/ं ह^

''धनो बZहन, र/ते बरतन लेकर सब ु ह-सब ु ह कहां चल द/ं.'' कमल/ ने अपनी टोकने क= आदत से मजबरू होकर कहा.

''कमल/ जीजी, आपको ये बरतन खाल/ लग रहे ह^?'' ''खाल/ ह^ तो खाल/ ह/ तो लग] गे न?'' ''ये सब ु ह-सब ु ह र/ते-फ=ते tया लगा रखी है ?'' सरु े खा बीच म] बोल/ ''चल धनो दे र हो रह/ है .''

''तम ु चार) चलो, म^ जीजी को समझाके आऊंगी, Nक ये बरतन र/ते नह/ं ह^ .''

''हम] ऐसी tया जaद/ है , Nक हम दो Iमनट नह/ं ’क सकतीं. हम भी तो तेर/ बात सन ु ]समझ].''

''लो तम ु भी सन ु ो, इन बतbन) म] , भाईचारे क= भावना, ममता क= Iमठाई, मेहनत क= मलाई, खश ु ी क= खरु ाक है ''.

''बात तो बड़ी अ@छy कह/ है , धनो तन ू े, पर मेरे को समझ नह/ं आई.'' कमल/ बोल/. ''दे खो जीजी, हम सब ु ह-सब ु ह बतbन लेके इतनी दरू जाती ह^, तो इसम] हमार/ मेहनत

लगती है , Nफर भी हम हं सती-गाती खश ु ी से जाती ह^, ताNक हमारे अपन) को पानी ‡बन

‚यासा न रहना पड़े. यह Zह•मत ममता और भाईचारे के ‡बना आ नह/ं सकती, इसIलए मेरा कहना है - ''ये बरतन र/ते नह/ं ह^.'' ''तeनक ’क धनो, म^ अभी अपनी कलIसयां लेकर आती हूं, आज से म^ भी तम ु से इतनी अ@छy बात] सीखने के Iलए तम ु सबके साथ चला क“ंगी.'' कमल/ ने घर जाते हुए कहा.


26.

नई पीढ़/ का hवागत

आज उसका ज•मZदन है । जैसा Nक होता है ज•मZदन वाले Zदन सब ु ह से ह/ बधाई दे ने वाल) का तांता लग जाता है , आज भी ऐसा ह/ हो रहा था. सब उसे ज•मZदन मब ु ारक

कह रहे थे और कई अतीत क= बात] याद Zदला रहे थे. उ•ह/ं बात) के बीच वह सहज ह/ अपने अतीत म] खो गयी थी. सास-ससरु , जेठ-िजठानी, उनके ब@चे और अपने तीन ब@च) वाला पQरवार। सब खीर-खांड क= तरह Iमले हुए. दोन) भाइय) के लहलहाते खेत और अपना-अपना फला-फूला Žयापार. अचानक एक रात घर म] डकैती का पड़ना और एक गोल/ का पeत को लग जाना. पल भर म] सब कुछ hवाहा हो गया था.

बचपन से एक हाथ से अपाZहज को पल भर के Iलए लगा था Nक जैसे आज दोन) हाथ चले गए ह), लेNकन जaद/ ह/ वह संभल गई थी. छोट/-सी उ‘ लेNकन खद ु के भरोसे पर उठ खड़ी हुई थी. "न सरपंच जी, न चाZहए कोई टे ल/फोन बथ ू का परIमट या कोई और मदद." मदद के

Iलये आगे आए हाथ को जवाब दे ती हुयी बोल/ थी वह. "Nकसी क= ज“रत नाZहं हम] , वे ह/ तो गए ह^ न! काम थोड़े ह/ ले गए ह^." और उसने एक हाथ से ह/ आटा-चtक= क= दक ु गई ब@च) का जीवन ु ान संभाल/ और जट संवारने म] . बड़ी बेट/ फैशन iडज़ाइनर, छोट/ सी.ए. और बेटा अनाज का माना हुआ Žयापार/...... tया नह/ं था आज उसके पास! संhकार/ बहुएं, दामाद और ‚यारे से नातीपोते.......सभी कुछ तो था उसके पास.

"नानी Iमठाई …खलाइये न," अचानक नाeतन क= हषbमय आवाज़ से वह लौट आई अपने वतbमान म] . "मेरा Qरज़aट आ गया, म^ वक=ल बन गई हूँ नानी." ... और वह उठ खड़ी हुई अपने भरोसे के …खलते हुए उपहार) के साथ नई पीढ़/ का hवागत करने के Iलये.


27.

कमाल का आइiडया

कमाल को अपने आइiडया पर भी भरोसा था और मेहनत पर भी. इसी मेहनत के भरोसे पर कमाल ने एमबीए म] टॉप Nकया था और फॉरन एजक ु े शन क= इ@छा रखने वाल) के

Iलए कंसaट] सी चलानी श’ ु क=. अपने भरोसे पर मेहनत, नफ़ा-ह/-नफ़ा और Nकसी क= जी हुज़रू / भी नह/ं. काम करने म] मज़ा आ रहा था. शाद/ के बाद फैशन iडज़ाइनर 2योnसना के साथ ऑनलाइन फुटवेअर शो“म क= श’ ु आत क=. इस ऑनलाइन ‚लैटफॉमb का नाम

रखा गया पादt ु स डॉट कॉम. कमाल क= बात यह है Nक इस ‚लैटफॉमb पर Iसफb बेकार हो चक ु े टायर से बने फुटवेअर ह/ Iमलते ह^. कई अलग रं ग और iडजाइन म] बने इन जत ू -े

च‚पल) क= मांग भी काफ= बढ़ गई. वे जत ू ) के सोल के Iलए टायर कबाड़ी क= दक ु ान से लेते थे और जत ू े के अंदर और बाहर के iडजाइन के Iलए कपड़ा और दस ू र/ चीज] लोकल माक©ट से खर/द ल/ जाती थीं. इन जत ू ) क= क=मत 399 ’पये से 1100 ’पये तक रखी

गई. ये जत ू े भारतीय पारं पQरक वेश के साथ तो अ@छे Zदखते ह/ ह^, उ•ह] कैजअ ु ल ®ेस के साथ भी पहना जा सकता है . अब कमाल का आइiडया का नया कमाल Zदखाने क=

तैयार/ म] है . लोग परू / तरह से œयब ू और टायर) से बने अनेक iडज़ाइन के स^डaस क= बेस¤ी से Mती•ा कर रहे ह^, िजसका बेस बना होगा टायर से और h›े प œयब ू से बनी होगी.


28.

और राह] सरल हो गj

अ•य सभी इंसान) क= तरह रामरखी भी कभी-कभी Uवचार) म] खो जाया करती थी. य) आमतौर से रामरखी ने अपने जीने क= राह] सरल कर रखी थीं. अं-ेज़ी के एक भार/भरकम सUु वचार को उसने सहज करके आnमसात कर Iलया था- होइ ह^ सोई, जो राम

र‰च राखा. ई&वर के हर “प क= छUव म] उसे राम क= छUव Zदखाई दे ती थी, तभी तो वह रामरखी थी! उसे याद आता था- पeत,दो बेट), बहू-पोते वाला भरा-परू ा पQरवार Uपकeनक पर गया था. वह पोते को संभाल रह/ थी, बहू और दोन) बेटे िhवIमंग पल ू म] िhवIमंग कर रहे थे. अचानक एक हादसा और छोटे को बचाते-बचाते, बड़े बेटे का डूब

जाना, अकhमात बहू को मायके वाल) का ले जाना, hवभावतः पोते का भी साथ म] जाना, चार Zदन बाद पeत का परलोक Iसधार जाना, उªफ़! भरे -परू े पQरवार म] बस रामरखी और छोटा!

Uवचार करवट बदलते ह^. जेठ क= तपती लू वाल/ दप ु हर/ म] रामरखी हाथ म] ‚लाhटर

बंधवाए एक नIस¥ग होम के बाहर ऑटो क= Mती•ा कर रह/ थी. अचानक एक कार उसके सामने से eनकल जाती है , Nफर पीछे आती है . ''आंट/ जी, आपको सवार/ चाZहए? आइए, म^ आपको आपके गंतŽय पर पहुंचा दे ती हूं.'' एक अजनबी यव ु ती ने कार से उतरकर उसे सहारा दे कर आगे क= सीट पर ‡बठा Iलया. जेठ क= गम·, ठं डक म] पQरवeतbत हो गई थी. यह शीतलता महज कार क= ए.सी. क= ह/ नह/ं, रे वती क= सह ु ानी

सीरत क= भी थी. यह ठं डक रामरखी के Zदल क= अंदर क= परत) तक को शीतल कर गई थी. रे वती उसे घर पहुंचाकर, चाय Uपलाकर चल/ गई थी. उसे अपना फोन नं. भी दे गई थी, ताNक ज़“रत पड़ने पर वह उसे बल ु ा सके. शाम को रामरखी उसका ध•यवाद करने छोटे के साथ उसके घर गई थी. वहां जाकर पता चला, रे वती अभी अUववाZहत थी.

रामरखी ने उसक= मां से छोटे के Iलए मांग ल/. उसी समय उसे बहू बनाकर घर ले गई. राम जी के इसी “प से रामरखी क= राह] Nफर सरल हो गj थीं.


29.

Uवhतत ृ दायरा

आज सख ु वंती क= दे सी रं ग म] रं गी Uवदे शी बहू वाUपस ऑh›े Iलया चल/ गई थी. सख ु वंती Uपछले कुछ अ—भत ु Zदन) क= याद) म] खोई हुई थी. उसके इकलौते बेटे द/पक क= पोिhटं ग ऑh›े Iलया म] हो गई थी. माता-Uपता ने द/पक को कह Zदया था- ''वहां कोई कुड़ी पसंद आए, तो बेशक उससे शाद/ कर लेना. हम यह/ं से आशीवाbद दे द] गे.''

ऐसा हो भी गया था. द/पक को ऑh›े Iलयन बाला माग· Iमल गई थी. बचपन से ह/ खल ु े Zदल से बात करने वाले माता-Uपता ने द/पक क= बात सन ु कर खश ु ी ज़ाZहर क=. दोन) क= कोटb मैQरज हो गई थी. हनीमन ू के Iलए द/पक और माग· भारत आए थे. Zदaल/

एयरपोटb पर माता-Uपता उनको Iलवाने गए थे. माग· ने साड़ी पहनी हुई थी और चरण छूकर सास-ससरु का आशीवाbद Iलया था. माथे पर ‡बंद/ और मांग म] Iसंदरू ने उनका मन मोह Iलया था.

माग· ने सास-ससरु यानी नए माता-Uपता से अपनी शाद/ भारतीय Uव‰ध-Uवधान से भी करवाने का अनरु ोध Nकया. सख ु वंती क= मनचाह/ बात हो गई. आनन-फानन भारतीय

Uव‰ध-Uवधान से द/पक-माग· क= शाद/ के साथ Qरसे‚शन भी हो गया. माग· अब द/पक क= रोशनी हो गई थी. सख ु वंती क= खश ु ी का पारावार नह/ं था. इतना ‚यार, इतना मान-

स•मान उसने Uवदे शी बहू से पाया था, िजसक= उ•मीद शायद उसे तो tया, Nकसी को भी न हो! सख ु वंती ने ह/ उसको मनह ु ार करके आगरे का ताजमहल दे खने भेजा था. द/पकरोशनी दो Zदन वहां लगाकर आए थे.

रोशनी ने सास-ससरु क= परू / मेडीकल Zहh›/ hकैन कर ल/ थी और सभी डॉtटसb के नाम फोन नं. सेव कर Iलए थे. ऑh›े Iलया वाUपस जाते समय रोशनी सासू मां को एक

hमाटb फोन दे गई थी,ताNक ज़“रत पड़ने पर सासू मां को रोशनी से बात कर सके. सासू

मां eनहाल हो गई थीं. वह सोच रह/ थीं, शायद इसी को सास-बहू के Qर&ते का Uवhतत ृ दायरा कहते ह)गे. इतने म] रोशनी का फोन आया- ''ममी, हम Iसंगापरु पहुंच गए ह^, अब ऑh›े Iलया क= ªलाइट म] बोडb कर Iलया है .'' सख ु वंती ने सपने म] भी नह/ं सोचा था, Uवदे शी बहू इतनी अ@छy Zहंद/ बोलेगी.


30.

नानी, मझ ु े मत भेजो

›े न म] बैठना सा•ी को बहुत अ@छा लगता था, पर आज क= बात कुछ और थी. आज उसका मख ु मंडल मरु झाया हुआ था. आज उसे ›े न म] बैठना नह/ं सह ु ा रहा था. उसे तो

नानी क= गोद सह ु ाती थी. उसके मन म] थीं Uवचार) क= झiड़यां और आंख) म] आंसओ ु ं क= लiड़यां.

इतने वष§ बाद वह नानी से ‡बछुड़ रह/ थी और वह भी हमेशा के Iलए. अब शायद Nफर कभी नानी के पास नह/ं आ सकेगी. नानी ने ह/ उसे कहाeनयां सन ु ा-सन ु ाकर भावनाओं

और Uवचार) से समझदार बनाया था. वह खद ु भी छोट/-छोट/ कहाeनयां Iलखने लगी थी. नानी क= म] हद/ दरू -दरू तक मशहूर थी. जाने Nकतनी-Nकतनी दरू से लोग उनसे म] हद/ लगवाने आते थे. वह भी म] हद/ रचाना सीख गई थी. गाती भी थी- म] हद/ राचणी

रे , •हारे नानके स) आई. नानके क= म] हद/ उसके हाथ) म] रची थी, शायद यह नानके क= आ…खर/ म] हद/ थी. आंख] अभी भी नानी को ढूंढ रह/ थीं,जो hटे शन पर छोड़ने आई थीं. नानी के साथ ह/ समझदार/ भी उसका साथ छोड़ गई थी. वह लगातार कहती जा रह/

थी- ''नानी, मझ ु े मत भेजो''. नानी tया करती? उनका बस चलता, तो कभी न भेजती.

पर, दाद/ लेने आई थी. कह रह/ थी- ''सम‰धन जी, इब सा•ी ने •हारे साथ खंदाय Zदयो. छोर/ को गौनो करणो सै. टे म कमती है , म] हद/ भी रचाय Zदयो छोर/ के. सासरे वाले छोर/ को भेजण क= जaद/ मचा र½या सै.''


31.

मेर/ आnमhवीकृeत

बार-बार मेर/ आnमhवीकृeत सन ु कर बहुत-से लोग) ने लाभ उठाया है . सच है , इंसान Iसफ़b अपनी ठोकर से ह/ नह/ं, दस ु ] मेर/ ू रे क= ठोकर से भी सीखता है . आप भी सन आnमhवीकृeत.

''आज जब तम ु एक मह/ने बाद डॉtटर को आंख] Zदखाने (डराने नह/ं, इलाज कराने) गj

तो घर आकर तम ु ने अपने आप से बात क=, जैसा Nक हर ग़लती के बाद करती हो. आज भी डॉtटर ने Nफर से आंख) म] इंजt ै शन लगवाने को कहा. आज Nफर तम ु ने कहा- ''काश, तम ु ने ऐतबार Nकया होता!'' अब ऐतबार करना भी tया सबके बस म] होता है !

अtसर हम ऐतराज ह/ करते ह^. तम ु ने ऐतराज Nकया, भले ह/ जताया नह/ं!

tया कभी तम ु ने Uवचार Nकया, Nक दोन) श•द ऐत से श’ ु होते ह^, ऐतबार म] होता है ‚यार-दल ु ार- अंत म] आशीष) का उपहार, ऐतराज म] होता है - दरु ावा-eछपावा-अंत म] पछतावा.

यह/ ऐतराज त• ु हारे Zहhसे म] आया.

त• ु ह] याद होगा- जब तम ु बड़ी-सी च—दर पर बहुत भार/ कढ़ाई करने लगी थीं, तब त• ु हारे ससरु ने अपने पैने अनभ ु व से कहा था- ''बहू, इतनी भार/ कढ़ाई मत करो, इसी भार/ कढ़ाई के कारण त• ु हार/ सास क= आंख] खराब हो गई थीं, आंख) पर च&मा चढ़ गया था.''

तम ु ने उनक= बात को कब माना! सार/ दeु नया कढ़ाई करती है , यह/ समझकर सन ु ाअनसन ु ा कर Zदया.

बंद कमरे म] लाइट जलाकर eछप-eछपकर भार/ कढ़ाई करती रह/ं, बड़ी-बड़ी पh ु तक] पढ़ती रह/ं. अब दरु ावे-eछपावे का नतीजा पछतावे के Iसवाय और tया हो सकता है !

अब भग ै शन. Zदन म] चार बार खाना भले ह/ ु तो नतीजा. लगवाओ रोज़ आंख) म] इंजt

खाओ-न-खाओ, रोज़ चार बार आंख) म] ®ॉ‚स अव&य डालो, दवाइयां खाओ. अब तो त• ु ह] भी लगने लगा होगा-

''काश, तम ु ने ऐतबार Nकया होता''!


32.

सारा जहां हमारा है

''राम-राम छIमया मौसी.''सन ु ील ने काठगाड़ी पकड़कर हौले-हौले चलती छIमया मौसी को दे खकर कहा.

''आयqु मान, ब— ु ‰धमान, सेवामान बेटा.'' छIमया मौसी ने हमेशा क= तरह खश ु होते हुए आशीवाbद क= झड़ी लगा द/. ''छIमया मौसी, आपके आशीवाbद से मझ ु े न जाने कैसी अजीब शिtत Iमल जाती है ?'' इतने बZढ़या आशीवाbद, वो भी संhकृत म] , कहां से सीखीं भला?''

''बेटा, बचपन से हम जो दे खते-सन ु ते ह^, वह/ तो हमार/ जमा पंज ू ी हो जाती है न! हमारे Uपताजी हम] इसी तरह से आशीवाbद दे ते थे.''

''मौसी, आज हौले-हौले tय) चल रह/ ह^?'' सन ु ील बोला. ''आज आपने बाल भी नह/ं संवारे !''

''बेटा, आज तeनक बदन गरमा रहा है , ह¹iडयां भी दख ु रह/ ह^.''

''छIमया मौसी, मेरे साथ चIलए, मेर/ मां त• ु ह] दवाई भी दे गी, चाय भी Uपलाएगी और आपके बाल भी संवारे गी.''

''रहने दे बेटा, तन ू े कह Zदया, मझ ु े सब Iमल गया. दे खो मेरे शर/र क= गम· तeनक ठyक भी हो गई.''

''चलो न मौसी!'' सन ु ील ने अपनेपन से एक हाथ से उनक= काठगाड़ी पकड़ ल/, दस ू रे हाथ से छIमया मौसी को थामकर घर ले गया.

थोड़ी दे र म] छIमया मौसी सन ु ील के घर से eनकल/ं, तो उनको पहचानना ह/ मिु &कल था. सन ु ील क= डॉtटर मां ने उ•ह] नहला-धल ु ाकर …खलाया-Uपलाया, दवाई द/ और बाल भी संवार Zदए थे.''अब कहां जाएंगी मौसी जी?'' सन ु ील क= मां ने पछ ू ह/ तो Iलया. ''बस ज़रा पIु लस चौक= तक.''

''मौसी, पIु लस चौक= से ज़रा बचकर रहा कQरए. पIु लस आपके इस मैले-कुचैले झोले क= भी तलाशी ले लेगी.''

''बेट/, इ•ह/ं पIु लस वाल) क= मेहरबानी से तो हम सब चैन से रहते-सोते ह^.''

''बात तो ठyक ह/ कह रह/ ह^ मौसी जी.'' डॉtटर साZहबा ने छIमया मौसी क= बात से सहमeत जताते हुए कहा. ''अ@छा, तeनक जaद/ चल,ंू वे मेर/ राह दे ख रहे ह)गे, जब तक म^ नह/ं जाऊंगी, वे चाय नह/ं Uपएंगे. उनके eन&छल Mेम को दे ख लगता है , सारा जहां हमारा है .''


33.

नवीन उजास का संबल

आज ऑलराउं डर N˜केटर रहे मन ु ीष का बेटा नरे श पहल/ बार राq›/य hतर पर N˜केट

खेलने जा रहा था. वह वेतन लेने गए Uपताजी क= Mती•ा कर रहा था. 1000 ’पaल/ लेकर मन ु ीष कुछ सोचते-सोचते घर पहुंच ह/ गया और मासम ू बेटे से बeतयाने लगा-

''बेटा, मेर/ मां ने न जाने Nकतनी बार मझ ु े वह कहानी सन ु ाई थी. पहल/ बार एक प] Iसल चोर/ करने पर एक ब@चे को मां ने रोका नह/ं, शाबाशी द/. जब चोर/ करने पर उसे

फांसी पर लटकाया जाने लगा, तो आ…खर/ इ@छा के नाम पर वह मां से Iमला. उसने ज़ोर से मां का कान काट खाया और कहा- ''तू मेर/ मां नह/ं, मेर/ सबसे बड़ी द&ु मन है . अगर, पहल/ बार चोर/ करने पर मझ ु े रोकती और एक थ‚पड़ मारती, तो आज मझ ु े

फांसी क= सजा नह/ं होती. म^ने मां क= उस कहानी को महज कहानी समझा, कोई सीख नह/ं ल/. यह तो तझ ु े पता ह/ है , Nक म^ कभी ऑलराउं डर N˜केटर रहा था. मेरा खेल तो सबके

सामने था, उसम] तो कह/ं कोई झोल-पोल संभव ह/ नह/ं था, Nफर भी न जाने कैसे मझ ु े मैच Nफिtसंग क= लत लग गई. सबको कुछ-कुछ गड़बड़ लगती थी, पर म^ पकड़ा नह/ं

गया. मेर/ लत पड़ी और यह लत बढ़ती गई, एक Zदन म^ पकड़ा गया और सीसीट/वी के खNु फ़या कैमर) ने गवाह/ भी दे द/,िजसको नकारा या झुठलाया नह/ं जा सकता. मझ ु े

N˜केट से तो eनकाल ह/ Zदया गया था, भार/-भरकम जम ु ाbना भी भरना पड़ा. इसी कलंक के चलते मझ ु े कोई स•मानजनक नौकर/ भी नह/ं Iमल रह/. आज मझ ु े ›क) और बस)

क= सफाई करने के Iलए Uववश होना पड़ रहा है . परू ा मह/ना खन ू -पसीना एक करने के

बाद Iमल रह/ ह^, एक हज़ार ’पaल/ और िज़aलत क= िज़ंदगी. मेर/ इस बात को महज कहानी मत समझना और हर काम ईमानदार/ से करना. हां, एक बात और, मेरे कारण तझ ु े बहुत कुछ सन ु ना-झेलना पड़ेगा, उसे कटु सnय मानकर चलना और इसी कटु सnय क= सीढ़/ बनाकर eनरं तर Uवकास और Uवजय क= मंिज़ल पर पहुंचना. यह/ मेरे जीवन का सारांश भी है और मेरा आशीवाbद भी''. मन म] नवीन उजास का संबल Iलए नरे श Uव&वास के साथ N˜केट खेलने चल पड़ा.


34.

सेवा और समपbण से संतिु qट

डॉ. सIमधा अपने अhपताल म] अभी-अभी एक ऑपरे शन करके अपने कमरे म] आई थी और एक कुस· पर बैठ गई. रात म] तीन घंटे का ऑपरे शन उसके Iलए भी कम थकाऊ नह/ं था. उसने मेज पर Iसर रखकर आंख] मंद ू ल/ं और पहुंच गई थी अतीत म] . बचपन म] उसने दाद/ से पछ ू ा था- ”दाद/ जी, आपने मेरा नाम सIमधा tय) रखा? सIमधा का tया अथb है ?”

”बेटा, सIमधा का मतलब है - ”लकड़ी, Uवशेषतः य–कंु ड म] जलाने क= लकड़ी, हवन, य– आZद क= साम-ी.”

”ये सब तो य–कंु ड म] जल जाने के Iलए ह^, तो tया मझ ु े भी ऐसा ह/ करना पड़ेगा?”

”बेटा, जो सIमधा बनने के Iलए तैयार होता है , उसका जीवन ह/ स@चा जीवन है . सेवा और समपbण हमारे जीवन का लÀय होना चाZहए?” दाद/ क= इस बात को •यान म] रखते हुए ह/ उसने डॉtटर बनकर सेवा और समपbण अपने जीवन का लÀय बना Iलया था. डॉtटर क= iड-ी पाने पर ल/ जाने वाल/ Zहपो˜ेZटक ओथ (मर/ज क= जान बचाने क= शपथ) को उसने न Iसफb सच म] िजया, बिaक अपनी िज़ंदगी का मल ू मंŠ बना Iलया.

आज अपने पोते के साथ जो बज ु ग ु b मZहला इलाज के Iलए आई थी, उसम] सIमधा को

दाद/ क= झलक Zदखाई द/. ज़“र/ जांच के बाद उसने पांच लाख का खचb बताया था. यह सन ु ते ह/ पोता उदास हो गया था. सIमधा ने पांच लाख का नाम सन ु ते ह/ उसक= उदासी को ताड़ Iलया था और उसे eनि&चंत करते हुए कहा था- ”आप ‰चंता न कर] , यह आपक= ह/ नह/ं मेर/ भी दाद/ जी ह^,इनको कुछ नह/ं होगा.” ऑपरे शन के बाद जैसे ह/ मZहला को होश आ गया था, सIमधा ने खद ु उसके पोते के पास जाकर उसको बधाई दे ते हुए कहा था- ”दाद/ जी का ऑपरे शन सफल हो गया है , अभी आप उनको दरू से दे ख ल/िजए, थोड़ी दे र बाद आप उनसे मल ु ाकात कर बात कर पाएंगे.”

दाद/ जी क= कामना परू / हुई थी और सIमधा को सेवा और समपbण से संतिु qट Iमल/ थी.


35.

समUपbता

य) उसका नाम अUपbता है , लेNकन अब उसको कोई भी अUपbता नह/ं कहता. अब वह सबके Iलए समUपbता ह/ है . अUपbता का पहला Mेम योग था और इसी को उ•ह)ने बतौर कQरयर अपनाया. योग और मेiडटे शन म] कई तरह के कोसb करने के बाद अUपbता अपना योग hटूiडयो चला रह/ थीं, लेNकन 22 साल क= उ‘ म] एक हादसे ने उसको हमेशा के Iलए वील चेयर का

मोहताज कर Zदया. हार मानना उसक= Nफ़तरत नह/ं थी. इस हादसे के बाद पहल/ बार वह दोhत) के साथ आउZटंग के Iलए वील चेयर पर eनकल/ं. उ•ह)ने दे खा Nक लोग अजीब eनगाह) से दे ख रहे थे. अUपbता को यह दे खकर काफ= खराब लगा, लेNकन तभी एक बज ु ग ु b ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कान म] धीरे से कहा Nक बेट/, आप बहुत मजबत ू हो, Nक इस हालत म] भी दeु नया का सामना करने के Iलए बाहर आई हो. ये

श•द जाद ू कर गए और अUपbता िजंदगी को लेकर बेहर पॉिजZटव हो गj. इ•ह/ं Mेरक व

सकाराnमक श•द) के जाद ू से आज वह इंiडयन hपाइनल इंजर/ स]टर म] बतौर Nफिजकल

›े नर और योग इंh›tटर काम कर रह/ ह^. वह सफल एथल/ट ह^ और योग व काउं IसIलंग के जQरए दस ू र) क= िजंदगी भी रोशन कर रह/ ह^.


36.

hमeृ तय) क= नौका

आज सरु ] ¬ जी क= खIु शय) का Zठकाना ह/ नह/ं था. आज उ•ह] 'रचनाकार स•मान' से नवाज़ा जाना था. स•मान से स•माeनत होने के Iलए उ•ह] थोड़ी दे र म] सभागार म]

पहुंचना था. तैयार होते-होते वह hमeृ तय) क= नौका म] Uवहार कर रहे थे. ये hमeृ तयां उ•ह] तीन साल पीछे ले गj. तब उ•ह] पता भी नह/ं था, Nक उनम] लेखन-Meतभा कूट-कूटकर भर/ है और वह कभी लेखक भी बन सकते ह^, अलब‹ा उ•ह] समाचार, लेख आZद पढ़ने और नई-नई बात]

सीखने का शौक बहुत था, इसIलए वे खाल/ समय म] लैपटॉप खोलकर सNफ¥ग करके नवीन जानकार/ वाले लेख पढ़ने और उन पर MeतN˜या Iलखने म] Žयhत रहते थे. वह तो MeतN˜या Iलखते थे, लेNकन उनक= MeतN˜या पर कभी भी कोई MeतN˜या नह/ं आई थी. एक Zदन वह भी हो गया. MeतN˜या tया थी, एक तरह का Mशिhत पŠ ह/ था. लेखक ने Iलखा था- ''आपक= MeतN˜या पढ़कर ऐसा लग रहा है , मानो आपम] लेखनMeतभा कूट-कूटकर भर/ है , सचमच ु आप महान लेखक बन सकते ह^. कोIशश

क=िजए.'' उसी Zदन से सरु ] ¬ जी ने अपनी Meतभा के पौधे को सींचना Mार•भ कर Zदया था. आज उनक= झोल/ म] ढे र) रचनाएं और 11 ई.बt ु स ह^. सरकार/ अनद ु ान से उनक= आnमकथा ''नZदया के उस पार'' छपकर साZहnय जगत म] धम ू मचा चक ु = है . एक

साZहnय संhथान —वारा उ•ह] इस साल के ''रचनाकार स•मान'' के Iलए चयeनत Nकया गया है . उ•ह] लग रहा है - ''आज से तीन साल पहले तक वह माŠ कागज़ क= क&ती से खेल रहे थे, आज उनक= क&ती क= नZदया के उस पार तक पहुंच हो चक ु = है .


37.

खश ु नसीबी

गंग ू े-बहरे रमेश को माता-Uपता-भाई-बZहन) से ‡बछुड़े पांच साल हो गए थे. उसके पQरवार वाले भी उसे ढूंढ-खोजकर eनराश हो चक ु े थे. अब रमेश को अपने पQरवार से Iमलने क= कोई उ•मीद भी नह/ं Zदखाई दे रह/ थी. हो भी कैसे? अपनी Žयथा वह Nकसको

बताए, कैसे बताए? वह अपने पQरवार के साथ जयपरु के गनगौर मेले म] गया हुआ था. वह/ं से Nकसी ने उसका अपहरण कर Iलया था. तब से वह Zदaल/ के भीड़ भरे बाज़ार) म] भीख मांग रहा था. उसे Zदन भर भीख से जो कुछ Iमलता, उससे छyन Iलया जाता, कम भीख Iमलने पर उसे Iमलती Uपटाई क= रोट/ और पानी के Iलए तरसने क= ‚यास. उस

Zदन उसे “खा-सख ू ा खाना भी नसीब नह/ं होता. एक Zदन इसी भीख मांगने क= मजबरू /

उसक= खश ु नसीबी बन गई. उसने एक सट ू े ड-बट ू े ड Žयिtत के सामने हाथ फैलाया. Žयिtत शायद दQरयाZदल था, उसने उसे दस ’पए का नोट Zदया. तभी रमेश ने उसक= शtल दे खी, अरे ! वह तो उसके ‚यारे चाचू थे! रमेश ने अपनी टूट/-फूट/ ‰चर-पQर‰चत भाषा

म] ''चाSSचS ू S'' कहा. चाचू ने भी उसको •यान से दे खा. ''रमेश, तू यहां कैसे?'' और उसे गले से लगा Iलया. सार/ बात समझकर चाचू ने तरु ं त एक ऑटो Qरtशा म] उसे ‡बठाया और रे डीमेड कपड़) क= एक दक ू े ु ान से उसके कपड़े खर/दकर बदलवाए, नए जत

पहनवाए, एक होटल म] खाना …खलाया और अपने घर ले गए. रात को ह/ चाचू ने अपनी भाभी को फोन लगाया- ''भाभी, घर को दिु aहन क= तरह सजाकर रखना, कल टै tसी से Nकसी को Iमलवाने ला रहा हूं. शाम को छः बजे पहुंचंग ू ा.'' भाभी ने सोचा दे वर जी ने शाद/ कर ल/ है , नई दa ु हeनया को लेकर आ रहे ह^.

घर को दa ु हeनया क= तरह सजा Zदया गया था. खाने-पीने का Mबंध भी चाक-चौबंद था. शाम को छः बजते ह/ घर के बाहर एक टै tसी आकर ’क=. दे वर जी उतर गए, भाभी आरती लेकर टै tसी के पास आ गj. टै tसी म] रमेश को दे खकर वह भÁचक रह गई. रमेश भी मां को दे खकर है रान था. अगले ह/ पल दोन) क= हषbIम‰¨त अ¨ुधाराओं का सि•मलन हो रहा था.


38.

कमाल का आइiडया

कमाल को अपने आइiडया पर भी भरोसा था और मेहनत पर भी. इसी मेहनत के भरोसे पर कमाल ने एमबीए म] टॉप Nकया था और फॉरन एजक ु े शन क= इ@छा रखने वाल) के

Iलए कंसaट] सी चलानी श’ ु क=. अपने भरोसे पर मेहनत, नफ़ा-ह/-नफ़ा और Nकसी क= जी हुज़रू / भी नह/ं. काम करने म] मज़ा आ रहा था. शाद/ के बाद फैशन iडज़ाइनर 2योnसना के साथ ऑनलाइन फुटवेअर शो“म क= श’ ु आत क=. इस ऑनलाइन ‚लैटफॉमb का नाम

रखा गया पादt ु स डॉट कॉम. कमाल क= बात यह है Nक इस ‚लैटफॉमb पर Iसफb बेकार हो चक ु े टायर से बने फुटवेअर ह/ Iमलते ह^. कई अलग रं ग और iडजाइन म] बने इन जत ू -े

च‚पल) क= मांग भी काफ= बढ़ गई. वे जत ू ) के सोल के Iलए टायर कबाड़ी क= दक ु ान से लेते थे और जत ू े के अंदर और बाहर के iडजाइन के Iलए कपड़ा और दस ू र/ चीज] लोकल माक©ट से खर/द ल/ जाती थीं. इन जत ू ) क= क=मत 399 ’पये से 1100 ’पये तक रखी

गई. ये जत ू े भारतीय पारं पQरक वेश के साथ तो अ@छे Zदखते ह/ ह^, उ•ह] कैजअ ु ल ®ेस के साथ भी पहना जा सकता है . अब कमाल का आइiडया का नया कमाल Zदखाने क=

तैयार/ म] है . लोग परू / तरह से œयब ू और टायर) से बने अनेक iडज़ाइन के स^डaस क= बेस¤ी से Mती•ा कर रहे ह^, िजसका बेस बना होगा टायर से और h›े प œयब ू से बनी होगी.


39.

और राह] सरल हो गj

अ•य सभी इंसान) क= तरह रामरखी भी कभी-कभी Uवचार) म] खो जाया करती थी. कभी दःु ख क= बो…झल परत] उसके Uवचार) क= लय क= गeत धीमी कर दे ती थी और समय

काटे नह/ं कटता था, कभी सख ु और शक ु राने क= सख ु द परत] उसको हaका कर हवा म]

उड़ा ले जाती थीं, तब समय भी पंछy-सा उड़ जाता था. य) आमतौर से रामरखी ने अपने जीने क= राह] सरल कर रखी थीं. अं-ेज़ी के एक भार/-भरकम सUु वचार को उसने सहज करके आnमसात कर Iलया था- होइ ह^ सोई, जो राम र‰च राखा. ई&वर के हर “प क=

छUव म] उसे राम Zदखाई दे ता था, तभी तो वह रामरखी थी! उसे याद आता था- पeत, दो बेट), बहू-पोते वाला भरा-परू ा पQरवार Uपकeनक पर गया था. वह पोते को संभाल रह/ थी, बहू और दोन) बेटे िhवIमंग पल ू म] िhवIमंग कर रहे थे. अचानक एक हादसा और छोटे को बचाते-बचाते, बड़े बेटे का डूब जाना, अकhमात बहू को मायके वाल) का ले जाना, hवभावतः पोते का भी साथ म] जाना, चार Zदन बाद पeत का परलोक Iसधार जाना, उªफ़! भरे -परू े पQरवार म] बस रामरखी और छोटा! लेNकन िज़ंदगी म] tया इतना ह/ होता है ? रात के घनघोर अंधकार के बाद सय ू b उदय

होता है , नया सवेरा आता है , सबके Uवदा हो जाने के बाद रे वती भी Iमलती है . कौन थी रे वती? अनजानी यव ु ती. जेठ क= तपती लू वाल/ दप ु हर/ म] रामरखी हाथ म] ‚लाhटर

बंधवाए एक नIस¥ग होम के बाहर ऑटो क= Mती•ा कर रह/ थी. अचानक एक कार उसके सामने से eनकल जाती है , Nफर पीछे आती है . ''आंट/ जी, आपको सवार/ चाZहए? आइए, म^ आपको आपके गंतŽय पर पहुंचा दे ती हूं.'' यव ु ती ने कार से उतरकर उसे सहारा दे कर आगे क= सीट पर ‡बठा Iलया. जेठ क= गम·, ठं डक म] पQरवeतbत हो गई थी. यह शीतलता महज कार क= ए.सी. क= ह/ नह/ं, रे वती क= सीरत क= भी थी. यह ठं डक रामरखी के Zदल क= अंदर क= परत) तक को शीतल कर गई थी. रे वती उसे घर पहुंचाकर, चाय Uपलाकर चल/ गई थी. उसे अपना फोन नं. भी दे गई थी, ताNक ज़“रत पड़ने पर वह उसे बल ु ा सके. शाम को रामरखी उसका ध•यवाद करने छोटे के साथ उसके घर गई थी. वहां जाकर पता चला, रे वती अभी अUववाZहत थी. रामरखी ने उसक= मां से छोटे के Iलए मांग ल/. उसी समय उसे बहू बनाकर घर ले गई. रे वती क= सह ु ानी सीरत से अब रामरखी क= राह] Nफर सरल हो गj थीं.


40.

Uवhतत ृ दायरा

आज सख ु वंती क= दे सी रं ग म] रं गी Uवदे शी बहू वाUपस ऑh›े Iलया चल/ गई थी. सख ु वंती Uपछले कुछ अ—भत ु Zदन) क= याद) म] खोई हुई थी. उसके इकलौते बेटे द/पक क= पोिhटं ग ऑh›े Iलया म] हो गई थी. माता-Uपता ने द/पक को कह Zदया था- ''वहां कोई कुड़ी पसंद आए, तो बेशक उससे शाद/ कर लेना. हम यह/ं से आशीवाbद दे द] गे.''

ऐसा हो भी गया था. द/पक को ऑh›े Iलयन बाला माग· Iमल गई थी. बचपन से ह/ खल ु े Zदल से बात करने वाले माता-Uपता ने द/पक क= बात सन ु कर खश ु ी ज़ाZहर क=. दोन) क= कोटb मैQरज हो गई थी. हनीमन ू के Iलए द/पक और माग· भारत आए थे. Zदaल/

एयरपोटb पर माता-Uपता उनको Iलवाने गए थे. माग· ने साड़ी पहनी हुई थी और चरण छूकर सास-ससरु का आशीवाbद Iलया था. माथे पर ‡बंद/ और मांग म] Iसंदरू ने उनका मन मोह Iलया था.

माग· ने सास-ससरु यानी नए माता-Uपता से अपनी शाद/ भारतीय Uव‰ध-Uवधान से भी

करवाने का अनरु ोध Nकया. ''यह तो मेर/ मनचाह/ बात हो गई.'' सख ु वंती ने मन म] सोचा था.

4-5 Zदन) म] यह भी हो गया. भारतीय Uव‰ध-Uवधान से द/पक-माग· क= शाद/ के साथ Qरसे‚शन हो गया. माग· अब द/पक क= रोशनी हो गई थी. सख ु वंती क= खश ु ी का पारावार नह/ं था. इतना ‚यार, इतना मान-स•मान उसने Uवदे शी बहू से पाया था, िजसक= उ•मीद शायद उसे तो tया, Nकसी को भी न हो! 15 Zदन के भारत-Mवास म] रोशनी तो सासू मां को छोड़कर कह/ं जाने को तैयार ह/ नह/ं थी. सख ु वंती ने ह/ उसको मनह ु ार करके आगरे का ताजमहल दे खने भेजा था. द/पकरोशनी दो Zदन वहां लगाकर आए थे.

द/पक को तो भारत के कई छोटे -मोटे काम eनपटाने थे, रोशनी ने सास-ससरु क= परू /

मेडीकल Zहh›/ hकैन कर ल/ थी और सभी डॉtटसb के नाम फोन नं. सेव कर Iलए थे. ऑh›े Iलया वाUपस जाते समय रोशनी सासू मां को एक hमाटb फोन दे गई थी, िजसम]

ज़“रत पड़ने पर सासू मां को रोशनी से बात करने के Iलए बस एक नं. पर िtलक करके Iमस कॉल करना था, बाक= सब रोशनी संभाल लेगी. सासू मां eनहाल हो गई थीं. वह

सोच रह/ थीं शायद इसी को सास-बहू के Qर&ते का Uवhतत ृ दायरा कहते ह)गे. इतने म] रोशनी का फोन आया- ''ममी, हम Iसंगापरु पहुंच गए ह^, अब ऑh›े Iलया क= ªलाइट म]

बोडb कर Iलया है .'' सख ु वंती ने सपने म] भी नह/ं सोचा था, Uवदे शी बहू इतनी अ@छy Zहंद/ बोलेगी.


41.

''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो''

अ•नमा ने भी ''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो'' वाल/ क= आवाज़ सन ु ी थी, पर अनसन ु ी कर द/. उस आवाज़ ने उसके पeत Mद/पम के Zदल क= ब‹ी जला द/

थी. ''अ•नमा, उस ''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो'' वाल/ को आवाज़ दे दे ना. चtकू-छुQरयां तेज़ करवा ल]गे.''

अ•नमा ने न चाहते हुए भी उसे आवाज़ दे द/. उसके Zहसाब से काम अ@छा चल रहा था, लेNकन पeत क= बात भी तो रखनी थी न! जब तक ''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो'' वाल/ आई, वह चtकू-छुQरयां-क^ ‰चयां eनकाल लाई. ''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा

लो'' वाल/ ने काम श’ ु कर Zदया. अ•नमा के पeत ने कहा- ''अ•नमा, वह बड़ी वाल/ छुर/ तो तम ु लाई ह/ नह/ं, वह भी ले आओ.''

बरस) से उस बड़ी वाल/ छुर/ का उपयोग हुआ ह/ नह/ं था, Nफर भी अ•नमा ले ह/ आई. पहले वाले चtकू-छुQरयां-क^ ‰चयां तेज़ हो गए, तो Mद/पम ने पिnन से कहा- ''भागवान, ये तम ु लेकर अंदर जाओ, म^ यह बड़ी वाल/ छुर/ तेज़ करवाकर इसका Zहसाब करके आता हूं.'' Mद/पम ने उस बड़ी वाल/ छुर/ को अ@छy तरह जांचकर दब ु ारा तेज़ करवाया. ''साहब इस बड़ी वाल/ छुर/ से आपको Uवशेष Mेम है tया?''

''ऐसा ह/ समझो!'' Mद/पम ने बात समेटते हुए कहा. रात को दो बजे Mद/पम ने उसी बड़ी वाल/ छुर/ से घट ु ने से नीचे अपनी टांग काट ल/. जब खन ू बहुत बहने लगा, तो अचेत होने से पहले उसने अ•नमा को जगाकर कहा- ''मझ ु े इमरज]सी म] ले चलो.''

''तम ु ने इस बड़ी वाल/ छुर/ से ये tया Nकया?'' खन ू से सनी बड़ी वाल/ छुर/ दे खकर उसने पछ ू ा.

''मेर/ टांग के कारण तम ु बड़ी परे शान थीं न! तीन मह/ने म] ज़हर सारे शर/र म] फैल

जाता और म^ मर जाता. तम ु यह नह/ं चाहती थीं और टांग कटवाने के हमारे पास पैसे नह/ं थे. अचानक बड़ी वाल/ छुर/ टांग पर ‰गर गई, टांग कट गई, अब इमरज]सी म] मÅ ु त म] इलाज हो जाएगा.''

''इसIलए तम ु ने ''चtकू-छुQरयां तेज़ करवा लो'' वाल/ को बल ु ाया था?'' कहती हुई अ•नमा ऐ•बल ^ वाले को फोन करने लगी.'' ु स Mद/पम अपने संबंध को इस तरह Mगाढ़ करके बहुत खश ु था.


42.

उलझन

आज बाज़ार जाते समय अंNकता ने जैसे ह/ अपना पसb उठाया, उसे दो Zदन पहले का Nकhसा याद हो आया. उस Zदन वह अपने पeत के साथ कार म] बाज़ार गई थी. Nकसी ख़ास चीज़ क= तलाश म] उनको ऐसी जगह जाना पड़ा,जहां कार क= पहुंच मिु &कल होती, इसIलए कार एक मॉल म] छोड़कर वे एक फोर सीटर म] सवार हो गए. थोड़ा आगे आकर राhते म] एक मZहला भी अपनी 8-10 साल क= बेट/ के साथ फोर सीटर म] बैठy और सामने वाल/ सीट पर बैठ गई. उसने इतनी बड़ी बेट/ को सीट पर नह/ं, बिaक गोद म] बैठाया. अंNकता है रान हुई. मZहला के हाथ म] एक मोट/ बैनरनम ु ा चीज़ को ऐसे फैलाकर रखा, Nक अंNकता को भी छूने लगी. अंNकता को यह भी अजीब लगा. थोड़ी दे र म] बेट/ ने अपने पैर को ज़ोर से

अंNकता के पैर पर रख Zदया, अंNकता ने हaका-सा Uवरोध ज़ाZहर Nकया. मZहला ने इशारे से बताया, Nक बेट/ पागल है , उसे कुछ समझ नह/ं आता, पता नह/ं लगता. बेट/ को इस

बात का पता ह/ नह/ं चला. इधर बौ—‰धकता से संप•न अंNकता उसक= बेट/ क= मानIसक हालत क= और मZहला क= बेचारगी क= उलझन म] उलझी रह/, मZहला अपना काम करती रह/. अंNकता का पसb ऐसा था, Nक उसे खद ु कोई चीज़ eनकालने म] ह/ 2-चार Iमनट लग

जाते. पहले चब ंु क वाला ªलैप हटाती, Nफर इतनी बड़ी िज़प खोलती, तब कह/ं जाकर

चीज़ eनकलती, Nफर िज़प बंद करना, ªलैप बंद करना आZद होता. मZहला को तeनक भी दे र नह/ं लगी. उसने ªलैप को खोले ‡बना, जाने कैसे, िज़प को चीर Zदया, अंदर क= पॉकेट क= िज़प खोल/ और अंNकता के80 ’पए पार कर Zदए. अंNकता को इस बात का ज़रा-सा अहसास हुआ. उसने पसb हटाकर दे खा, बाहर क= िज़प खल ु / बीच म] से ‰चर/ हुई, अंदर क= िज़प खल ु / हुई, ’पए नदारद. अंNकता tया करती! ’पय) पर उसका नाम तो Iलखा नह/ं था. ’पए तो उसके ह/ होते ह^, िजसक= जेब म] होते ह^. अपना गंतŽय आने पर अंNकता पeत के साथ उतर गई. वह मन-ह/-मन सोच रह/ थी. वह ह/ तो कई बार लेख) म] Iलख चक ु = है -

''हर Zदन खास होता है . वह या तो कोई खश ु ी दे कर जाता है या कोई सबक Iसखाकर जाता है ''.

आज अhसी ’पय) म] उसे सबक Iमल गया था. उलझन उसे अब भी घेरे हुए थी.


43.

आज का सावन

सावन का मह/ना आज से श’ ु हो गया. आज सावन का पहला सोमवार है . 50 साल

पहले भी ऐसे ह/ हुआ था. तब भी सोमवार के Zदन से ह/ सावन मास का Mार•भ हुआ था. सरोज ने वह सावन भी दे खा था और आज का सावन भी दे ख रह/ है . Nकतना अंतर है दोन) म] ! आज उसे बरबस 50 साल पहले का सावन याद आ रहा था. सरोज शाम को स…खय) के संग बरगद के पेड़ पर झल ू ा झल ू रह/ थी. उस Zदन सब उसे झल ू ा झल ु ा रह/ थीं. वह उस Zदन क= ह/रोइन जो थी! उसने सब ु ह hकूल आते ह/ सबको बता Zदया था,Nक आज उसका Iसंजारा आएगा. बहुत) को तो Iसंजारे का मतलब भी मालम ू नह/ं था. खद ु सरोज को भी परू ा पता कहां था? वह तो उसने माता-Uपता, दादादाद/ को बात करते सन ु Iलया था-''छोर/ क= सगाई कर द/ है . कल उसक= सासू उसका Iसंजारा लावेगी.''

शाद/ लायक छोर/ तो घर म] सरोज ह/ थी. उसके दादा ह/ लड़के को दे खकर उसक= शाद/ पtक= कर आए थे. बाक= Nकसी को दे खने क= ज“रत ह/ tया थी? eछप-eछपकर उसने लड़के का नाम भी सन ु Iलया था. वह खश ु थी. कमल क= सरोज. अरे वाह! पयाbयवाची श•द! उस Zदन सबको उससे पछ ू ना था- ''Iसंजारे म] tया-tया आया? इसIलए वह उस Zदन ह/रोइन थी.

आज सब ु ह उसने पोती 2योeत से कहा था- ''छोर/, आज सावन का पहला सोमवार

है , Æत रख ले. पांच सोमवार Æत रख लेगी, तो मनचाहा वर Iमलेगा.'' वह ‡बना जवाब Zदए चल द/ थी. थोड़ी दे र पहले 2योeत अपने दोhत द/पक के साथ आई थी. हाथ म] बड़ा-सा केक भी था. आते ह/ उसने द/पक को अपनी ममी से Iमलवाया- ''मॉम, यह मेरा बॉय ¯^ड द/पक है .

हम दोन) शाद/ कर रहे ह^. हम अभी सगाई कर रहे ह^. ‚ल/ज़ ज़रा सबको यहां बल ु ा दो.'' सगाई क= रhम के समय सरोज भी कमल के साथ मौजद ू थी. 2योeत और द/पक अपनीअपनी अंगठ ू y भी पसंद करके ले आए थे. सबक= मौजद ू गी म] दोन) ने एक-दस ू रे को अंगठ ू y पहनाई, केक काटा और दोन) सेल/¤ेट करने eनकल पड़े.


44.

पहचान

19 Iसतंबर का Zदन MोIमला कभी नह/ं भल ू पाती. वह चाहती है , Nक 19 Iसतंबर कभी

आए ह/ न! लेNकन Uपछले दस साल) से हर साल क= भांeत 19 Iसतंबर आ ह/ जाता है . यह/ तो वह Zदन था, जब MोIमला क= हं सती-खेलती िजंदगी म] -हण लग गया था. सारा Zदन भाग-दौड़ करती MोIमला हर बात के Iलए मोहताज हो गई थी. अचानक उसका बोलना-खाना-पीना-चलना-Nफरना बंद हो गया था. मंह ु ं टे ढ़ा हो गया था, बांयां हाथ लटक गया था, परू ा बांयां Zहhसा लकवे से MभाUवत हो गया था. तरु ं त ऐ•बल ^ आ गई ु स

थी, ऐ•बल ^ म] ह/ उसका इलाज श’ ु स ु हो गया था, उसक= Nकhमत अ@छy थी, Nक आठ Zदन) म] ह/ वह ठyक हो गई और अhपताल से घर आ गई, लेNकन यह अपंगता इतनी जaद/ उसका पीछा कहां छोड़ने वाल/ थी! लकवे ने उसे खद ु से भी पहचान करा द/ थी, और) से भी.

अब न वह अपना कोई काम खद ु कर पाती थी, न घर का. चाय-दध ू भी उसे च•मच से Uपलाया जाता था, वह भी टे ढ़े मंह ु ं से इधर-उधर ‡बखर जाता. सारा Zदन वह अपने म]

खोई रहती और खद ु को पहचानने लग गई, जो गु’ओं के कहने पर अब तक न कर पाई

थी. पeत का स@चे सहयोगी का “प भी सामने आ गया था. िजन बि@चय) को वह eनपट नादान समझती थी, उ•ह)ने घर को कैसे संभाल Iलया, यह वह अब तक नह/ं समझ पाई थी. वह न जाने कब तक ऐसे ह/ सोचती रहती, अगर छोट/ ‡बZटया 'ममीSSSS-' पक ु ारती हुई कमरे म] न आ जाती.


45.

कलमबंद/

रा2यमंŠी जी जैसे ह/ पŠकार स•मेलन को संबो‰धत करके वाUपस जाने के Iलए कार म] बैठे, आज के स•मेलन के ‰चŠ उनक= आंख) के आगे घम ू रहे थे. ऐसा भी हो सकता है , यह उ•ह)ने कभी सोचा भी नह/ं था.

''अ•ना, आप कहना tया चाहते ह^?'' एक पŠकार ने पछ ू ा था. ''वह/ जो आप सन ु रहे ह^.'' मंŠी का छोटा-सा उ‹र था.

''आज आपका सरु कुछ बदला हुआ है .'' एक और पŠकार ने भड़ांस eनकाल/ थी. ''ऐसा tया बोल Zदया म^ने?'' मंŠी जी भी तन ु क म] थे.

''आप सब समझ रहे ह^ सर, Nफर भी हमसे साफ-साफ सन ु ना चाहते ह^, तो हम कह भी सकते ह^, पर आपको सन ु कर शायद अ@छा नह/ं लगेगा.'' ''कहो-कहो, डरते tय) हो?''

''डरना कैसा सर! डरते तो ऐसी बात हम कहते ह/ tय)?'' अ•य पŠकार भी मख ु र हो चले थे.

''आप द»•ण भारत म] बोल रहे ह^ सर. तIमल और तेलग ु ू म] 'अ•ना' का मतलब बड़ा

भाई होता है . हम आपको स•मान दे ने के Iलए अ•ना कह रहे ह^ और आप ह^, Nक हमार/ कलमबंद/ करने पर तल ु े हुए ह^.'' ''यह सब नह/ं चलेगा. हमार/ कलम आपको अ•ना भी Iलख सकती है तो ग•ने क= तरह eनचोड़ भी सकती है . हम स@ची बात कह सकते ह^, दे श-Zहत क= बात Iलख सकते ह^, Žयिtत Uवशेष के Zहत क= बात हमार/ कलम को कतई मंजरू नह/ं है .''

Nफर सारे पŠकार उठकर चले गए थे. मंŠी जी भी ‡बना खाए-Uपए बैरंग वाUपस जा रहे थे.


46.

अंतःMेरणा

कुछ दे र पहले ह/ Uवदे श से सरु ] ¬ का फोन आया था. फोन सन ु कर नीIलमा फूल/ नह/ं समा रह/ थी. भावाeतरे क से उसक= आंख] छलक आई थीं. सरु ] ¬ ने समाचार ह/ ऐसा सन ु ाया था. उसने कहा था-

''मां, आप सबको यह जानकर अnयंत हषb होगा, Nक आज मझ ु े क•पनी का सबसे ऊंचा

पद Iमल गया है . अभी-अभी यहां के बहुत-से समाचार पŠ) के पŠकार मझ ु से सा•ाnकार लेकर गए ह^. समाचार छपने पर म^ उनका Iलंक भेजंग ू ा. हो सकता है , भारत के समाचार पŠ) म] भी मेरे बारे म] समाचार छप] .''

नीIलमा को बीस साल पहले के Ç&य याद आ रहे थे. वह अपने दे श म] इंिजeनयर अ@छे पद पर eनयt ु त था. उसने Uवदे श जाने के बारे म] कभी सोचा भी नह/ं था. उसक=

Nकhमत म] Uवदे श जाना Iलखा था, सो Nकसी अ•य इंिजeनयर ने उनक= Meतभा से MभाUवत होकर उसका बॉयो डेटा Uवदे श क= क•पनी को भेज Zदया था. माता-Uपता को अकेला छोड़ वह Uवदे श जाना नह/ं चाहता था. एक साल तक उस क•पनी का तकाज़ा चलता रहा, आ…खर उसका दाना-पानी वहां Iलखा था, सो जाना पड़ा. जाने से पहले उसने क•पनी से साल म] दो Zटकट भारत के hवीकृत करवा Iलए थे,ताNक वह साल म] दो बार अपने दे श आ सके. वह आता भी था. नीIलमा को कभी लगा ह/ नह/ं, Nक उसका बेटा Uवदे श म] रह रहा था. सरु ] ¬ क= ऊंची छलांग पर नीIलमा को हषbIम‰¨त गवb था. तभी दरवाजे पर घंट/ बजी. नीIलमा ने दरवाजा खोला. उसके मंह ु ं से अचानक eनकल गया- ''द/द/, इस समय आप!''

'' हां, नीIलमा म^ हूं. कोई खश ु ी क= खबर है tया, खश ु ी से चहक रह/ है !'' ''हां द/द/, आज सरु ] ¬ को क•पनी का सबसे ऊंचा पद Iमल गया है . अभी थोड़ी दे र पहले उसका फोन आया था.''

''मझ ु े अंतःMेरणा हुई थी, Nक नीIलमा बहुत खश ु है और वह अपनी खश ु ी Nकसी से बांटना चाहती है , बस, म^ चल/ आई.'' नीIलमा से गले Iमलते द/द/ बोल/ं. ''सच कह रह/ ह^ द/द/, वाhतव म] म^ अपनी खश ु ी Nकसी से बांटना चाहती थी, पर फोन पर नह/ं और सरु ] ¬ के पापा को घर आने म] तो अभी कई घंटे लग] गे. आज वो अपना मोबाइल भी घर भल ू गए ह^.''

दोन) बZहन] खश ु ी क= परु ानी याद) म] म”न हो गj.


47.

ऊंची छलांग

कुछ दे र पहले ह/ Uवदे श से सरु ] ¬ का फोन आया था. फोन सन ु कर नीIलमा फूल/ नह/ं समा रह/ थी. भावाeतरे क से उसक= आंख] छलक आई थीं. सरु ] ¬ ने समाचार ह/ ऐसा सन ु ाया था. उसने कहा था-

''मां, आप सबको यह जानकर अnयंत हषb होगा, Nक आज मझ ु े क•पनी का सबसे ऊंचा

पद Iमल गया है . अभी-अभी यहां के बहुत-से समाचार पŠ) के पŠकार मझ ु से सा•ाnकार लेकर गए ह^. समाचार छपने पर म^ उनका Iलंक भेजंग ू ा. हो सकता है , भारत के समाचार पŠ) म] भी मेरे बारे म] समाचार छप] .''

नीIलमा को बीस साल पहले के Ç&य याद आ रहे थे. वह अपने दे श म] इंिजeनयर अ@छे पद पर eनयt ु त था. उसने Uवदे श जाने के बारे म] कभी सोचा भी नह/ं था. उसक=

Nकhमत म] Uवदे श जाना Iलखा था, सो Nकसी अ•य इंिजeनयर ने उनक= Meतभा से MभाUवत होकर उसका बॉयो डेटा Uवदे श क= क•पनी को भेज Zदया था. माता-Uपता को अकेला छोड़ वह Uवदे श जाना नह/ं चाहता था. एक साल तक उस क•पनी का तकाज़ा चलता रहा, आ…खर उसका दाना-पानी वहां Iलखा था, सो जाना पड़ा. जाने से पहले उसने क•पनी से साल म] दो Zटकट भारत के hवीकृत करवा Iलए थे,ताNक वह साल म] दो बार अपने दे श आ सके. वह आता भी था. नीIलमा को कभी लगा ह/ नह/ं, Nक उसका बेटा Uवदे श म] रह रहा था. सरु ] ¬ क= ऊंची छलांग पर नीIलमा को हषbIम‰¨त गवb था.


48.

म^ भी लाठy भांजंग ू ी

आज UMया को अपने अपहरणकताb को उसी क= हॉक= िhटक से अधमरा कर पकड़वाने क= बहादरु / Zदखाने के उपल• म] एक समारोह म] स•माeनत Nकया जाना था. समारोह म] जाने के Iलए तैयार हो रह/ UMया अतीत के पल) म] खो गई थी.

चौधर/ खेलाराम क= Nकशोर/ बेट/ UMया eनत Meत दे श म] लड़Nकय) क= हो रह/ अवमानना से बहुत ‰चंeतत थी. कई Zदन) से वह खद ु ह/ कुछ उपाय करने के बारे म] सोच रह/ थी. कुछ Zदन पहले ह/ चौपाल म] भर/ सभा के सामने उसने संकaप Iलया था- ''म^ भी लाठy भांजंग ू ी.''

सभी पंच) और सरपंच ने उसे ऐसा करने से रोकना भी चाहा था, लेNकन UMया अपने Çढ़ संकaप पर अUवचIलत थी. असल म] UMया ने hव‚न म] दे खा था, Nक राq›Uपता महाnमा गांधी उसको अपनी लाठy दे रहे थे. ''बाप,ू म^ इस लाठy का tया क“ंगी?'' UMया ने आ&चयbचNकत होकर पछ ू ा था.

''बेट/, म^ त• ु हारे मन मे चल रहे मंथन से भल/भांeत पQर‰चत हूं. यह केवल त• ु हारे ह/ मन का मंथन नह/ं है , दे श के हर िज•मेदार नागQरक के मन का मंथन है . यह लाठy त• ु हारा संबल बन सकती है . एक बार इसे भांजना सीख जाओ, Uवजय त• ु हारे साथ होगी.'' बापू ने कहा था.

UMया ने Iसर-माथे लगाकर लाठy ले ल/ थी. सपना टूट जाने पर जब वह जगी, तो उसे

अपने Iसरहाने हॉक= िhटक Zदखी. UMया ने उसे ह/ बापू क= लाठy मानकर उसे भांजने क=

कला सीखनी श’ ु कर द/ थी. इसी हॉक= िhटक “पी बापू क= लाठy ने उसका स•मान भी बचाया था और समाज के सामने स•माeनत भी Nकया था. उसके पQरवार सZहत परू े समाज को उस पर गवb है और रहे गा.


49.

फ़{

सब ु ह-सब ु ह लैपटॉप खोलते ह/ कल क= घटना का मंज़र मोeनका के सामने साकार हो उठा.

कल उसके एक IमŠ उसके •लॉग वाल/ वेबसाइट पर Nकसी कUव क= एक कUवता दे खकर है रान हो गए. उस कUवता के भाव, भाषा, शैल/ ‡बलकुल मोeनका क= तरह. कUवता का

शीषbक बदला हुआ था और अंत म] अपने नाम का Mयोग करते हुए दो पंिtतयां जोड़ी गई थीं, यानी सीधे-सीधे कUवता क= चोर/. hमeृ त पर थोड़ा जोर लगाकर उ•ह)ने eनqकषb eनकाला, Nक यह कUवता वह इसी साइट पर पढ़ चक ु े ह^ और इस पर अपनी MeतN˜या भी दे चक ु े ह^. उ•ह)ने झट से फोन Iमलाकर मोeनका से बात क=. मोeनका भी यह

दे खकर है रान रह गई. मोeनका के IमŠ ने झट से उस कUवता पर MeतN˜या Iलखकर कUव महोदय को बहुत लताड़ा. तरु ं त कUव महोदय ने ल/पापोती करते हुए नेट क= गलती बताई और माफ= मांग ल/. रात को जaद/ सोने वाल/ मोeनका तो eनि&चंत हो सो गई थी, पर उसके Zहतैषी IमŠ) क= आंख) म] नींद कहां! लैपटॉप खोलते ह/ उसे तीन IमŠ) क= तीन मेaस Iमल/ं. एक IमŠ ने Iलखा था''चोर महाशय ने माफ=नामा मांग Iलया है .'' दस ू रे IमŠ ने वेबसाइट से आई हुई मेल फॉरवडb क= थी''नमhते, आपक= Iशकायत पर nवQरत कारb वाई करते हुए वेबसाइट से यह •लॉग हटा Iलया गया है . अगर आगे भी कोई •लॉगर इस तरह से Nकसी दस ू रे क= रचना कॉपी करे तो कृपया हम] स‰ू चत कर] .''

''चोर कUव ने माफ= मांग ल/ है . उसे आपक= कUवता बहुत पसंद थी. उसे माफ कर दे ना चाZहए. वैसे भी आपको तो फ़{ होना चाZहए, Nक आपक= रचना पाठक) को इतनी पसंद आती है , Nक वे इसे चरु ाने पर मजबरू हो जाते ह^.'' तीसरे IमŠ ने Iलखा था.

मोeनका को सचमच ु फ़{ महसस ू हो रहा था, चोर/ क= गई उस कUवता क= बेहतर/ पर नह/ं, बिaक उसके ज2बात) को समझकर रात)-रात वेबसाइट से उस •लॉग को हटवाने वाले उन नेक IमŠ) पर.


50.

लक=र) का खेल जार/ था

शाम के साढ़े पांच बज गए थे. सारा Zदन सीम] ट-गारे से ‰चनाई करके लखनलाल अपने सीम] ट से सने खरु दरु े हाथ) को साफ करते हुए अपने अतीत म] खो गया था. एक समय था, वह एल आइ सी एज]ट था. सब ु ह-सवेरे नहा-धोकर पज ू ा-पाठ से eनव‹ ृ

होकर धल ु े-Mेस Nकए हुए कमीज-प^ट पहनकर वह काम पर eनकल जाता और अtसर Uवजयी मh ु कुराहट Iलए लौटता. हाथ क= लक=र) के बदलते ह/ वह ठाठ जाता रहा. वह तeनक नह/ं घबराया.

उसने सन ु रखा था- ''हाथ क= लक=र] पल-पल पQरवeतbत होती रहती ह^''. उसी के मत ु ा‡बक उसने स•ज़ी का ठे ला लगाना श’ ु कर Zदया. कमीज-प^ट का hथान कुत©-पजामे ने ले

Iलया था, लेNकन धल ु े-Mेस Nकए हुए. यहां बेट/ क= शाद/ के Iलए बीस हजार क= स•ज़ीफल खर/दने वाले एक -ाहक ने उसक= उधार/ चक ु ाने से इंकार कर Zदया. उसक= दादा‰गर/ लखनलाल क= फाका‰गर/ बनने लगी. यहां Nफर उसे सnसंग म] सन ु ी हुई बात याद आ गई- ''म^ हाथ क= लक=र) का मोहताज नह/ं, हाथ क= लक=र] मेर/ मोहताज ह^.'' उसने कोई भी काम करने का मन बना Iलया. हाथ क= लक=र) का मोहताज न होने के संकaप का ह/ सप ु Qरणाम था, Nक काम खद ु

चलकर उसके पास आया. ठे केदार चमनलाल ने उसके पास आकर कहा- ''लखनलाल, मझ ु े एक बड़ी ‡बिaडंग बनाने का ठे का Iमला है , मेरे साथ काम करोगे?'' ''मझ ु े यह काम कहां आता है भला!'' लखनलाल ने कहा था.

''कुछ काम तो त• ु हारे Iलए eनकल ह/ आएगा.'' लखनलाल कंधे पर लटके गमछे को Iसर पर पटके क= तरह बांधकर उसके साथ मजदरू / करने eनकल पड़ा था.

न जाने कब तक वह Uवचार) खोया हुआ हाथ रगड़ता रहता Nक बलू ने आवाज लगाई- ''भगतजी, कब तक हाथ क= लक=र) को सहलाते रहोगे? सnसंग म] सब त• ु हार/ राह दे ख रहे ह)ग!. आज त• ु ह] पत ू ना-वध का नया पद सन ु ाकर ¨ोताओं के मन क= लक=र) को भी तो सहलाना है न!'' लक=र) का खेल जार/ था.


51.

पज ु ाQरन

आज कला-मंच का एक ‰चŠ Meतयो‰गता का पQरणाम आने वाला था. अपनी बड़ी-बड़ी कजरार/ आंख) को अपने छोटे -से घर क= …खड़क= के पास कला-मंच क= ओर से आने वाल/ राह पर ‡बछाए खड़ी थी. उसके मन म] अनेक Uवचार उमड़-घम ु ड़ रहे थे.

वह कभी मंZदर नह/ं गई थी. आस-पास के सब लोग रोज मंZदर क= दे हर/ पर माथा रगड़ते और वहां से लौटते समय उसक= बात] करते हुए कहते- ''इसक= मां तो ऐसी न थी, यह न जाने Nकस पर गई है ?'' वह सन ु ती, पर कोई MeतN˜या नह/ं दे ती. MeतN˜या दे ती भी कैसे? हर उसके मन से

टकराकर परावeतbत जो हो जाती थी. इधर कुछ Zदन) से वह भी पज ु ाQरन हो गई थी. एक Zदन मेले से चiू ड़यां,नथनी, बाIलयां और ‡बंZदया ले आई थी. मeनहार/ ने िजस अखबार म] चiू ड़यां लपेटकर द/ थीं, वह उसी Zदन का अखबार था. अखबार के उस टुकड़े पर कला-मंच का एक ‰चŠ Meतयो‰गता का Uव–ापन था.

एक मह/ने के अंदर एक &वेत-

&याम संद ु र-साथbक ‰चŠ बनाकर भेजना था. उसने कभी कोई ‰चŠ बनाया नह/ं था, पर उसे Meतयो‰गता म] Meतभागी तो बनना ह/ था.

''एक मह/ने म] यह सब कैसे संभव होगा?'' उसने खद ु से M&न Nकया था.

''एक मह/ने म] तो भगवान राम ने सीता क= खोज कराई, रामे&वरम पल ु का eनमाbण

करवाया, लंका पार करके रावण को मारा और सीता को बचा भी Iलया.'' जवाब भी उसने खद ु ह/ ढूंढ eनकाला था.

उसी Zदन से वह कला क= पज ू ा म] लग गई थी. कई ‰चŠ बने, पर उसक= संतिु qट नह/ं

हो पाई थी. आ…खर/ Zदन उसक= पज ू ा रं ग लाई थी. उसे अपना बना ‰चŠ ह/ बोलता-सा लगा था. उसे लगा संद ु र-साथbक ‰चŠ बन गया था. बड़े जतन से वह अपना ‰चŠ जमा कर आई थी.

''जाने Nकसक= Nकhमत खल ु ेगी?''

''बड़े-बड़े धरु ं धर) के सामने उसक= भला tया ‡बसात है !'' ''Uवजय¨ी Nकसके कंठ को मेडल पहनाएगी?''

ऐसे ह/ अनेक M&न उसके सामने आते-जाते रहते, अगर सामने वाले बजरं गी चाचा उसको आवाज लगाकर उससे न पछ ू ते- ''जानक= ‡बZटया, तम ु ने Nकसी ‰चŠ Meतयो‰गता म] भाग Iलया था tया?''

''जी हां चाचाजी, आपको कैसे पता लगा?'' ''अर/ ‡बZटया, तेरा फोटू दे खकर सच ू ना बोडb पर दे खा- तेरे ‰चŠ को Mथम परु hकार Iमला है .''


''सच कह रहे ह^ चाचाजी?'' कहने को तो बाहर से वह इतना ह/ कह पाई थी, पर उसका अंतमbन कह रहा था- ''आज पज ु ाQरन क= पज ू ा कुबल ू हो गई.''


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