खिड़की आवाज़
10 मई 2017
अंक #3
12 पन्ने
मौसम
10 मई 2017
बगदाद, इराक
तस्वीरें:मालिनी कोचुपिल्लै
शहरी आवास का विशेषांक
हमारे उड़ने और रेंगने वाले पड़ोसियों के रेखाचित्र
खिड़की की एक ईमारत के 72 गुम्बद
3
सहयोगी संस्थान जहाजी परदादी की आगे की कहानी
पुर्तगाल की छतरियों वाली गली
4
11
नए दौर का नया
जामुन पार्क
तेज़ धूप
सालों तक नकारे जाने और कूड़ाघर बना दिए के बाद, जामुन पार्क में आये अचानक बदलाव से खिड़की और हौज़ रानी के लोग बहुत खुश है।
डेमेरारा, गुयाना
थोड़ी बारिश काबुल, अफ़ग़ानिस्तान
गर्म, बढ़ते हुए बादलों के साथ खारर्तूम,सूडान
धूप और थोड़े बादल मोगादिशु, सोमालिया
ज़्यादातर धूप नई दिल्ली, भारत
थोड़ी धूप पटना, भारत
रूक-रूक कर आं धी
जामुन पार्क 2015 में
स
मालिनी कोचुपिल्लै
लेक्ट सीटीवॉक मॉल के सामने प्रेस एन्क्लेव रोड से बिलकुल सटी हुई एक खुली जगह है जहाँ एक समय जामुन के हरे भरे पेड़ होते थे। लगभग 15 साल पहले इन पेड़ों को विकास के नाम पर काट दिया गया और इसे पार्किंग की जगह की तरह इस्तेमाल में लाया जाने लगा । अलग-अलग महकमे जो इसके स्वामित्व का दावा करती हैं, की खींच तान के कारण इस पर ध्यान नहीं गया, कई विवेकहीन बिल्डरों ने इसे कूड़ा ढोने की जगह बना दिया, जिसमें निर्माण का मलबा यहाँ ढोया जाने लगा। खिड़की और हौज़ रानी के बच्चे इस कूड़े में क्रि केट और गिल्ली डंडा खेलते, शाम होने पर जब युवाओं की भीड़ का इस जगह को जुआ खेलने और शराब पीने की जगह बना देने के कारण महिलाएं इस तरफ आने से डरती थीं। यह सब 11 मार्च 2017 को बदला जब नए जामुन पार्क के किवाड़ खिड़की और हौज़ रानी के हर्षोल्लास से भरे हुए लोगों के लिए खोल दिए गए।यह सामुदायिक परियोजना सलेक्ट सिटवाक मॉल द्वारा एक सी.एस.आर प्रोजेक्ट है, जिन्होंने एस.डी.एम.सी. के साथ मिलकर इस बहुत ही आवश्यक सार्वजनिक सुविधा का निर्माण खिड़की और हौज़ रानी के निवासियों के लिए किया। ये रोज़ सुबह 6 बजे से रात के 11 बजे तक लोगों के लिए खुलता है और इसके भीतर ऐसे जोन हैं जिनमें दो सीमेंट की छतरियां टीलों के ऊपर हैं, जिनसे घुमावदार रास्तों का एक मनोरम दृश्य दिखता
जामुन पार्क 2017 में सलेक्ट सीटीवॉक द्वारा सी.एस.आर. के तहत बनाया गया है ।
है, वहॉं कोने में कसरत करने के चटकीले रंग के झूले हैं। शांति जी, एक कंधे की कसरत की मशीन पर कसरत कर रही हैं । वे कहती हैं, “मैं यहाँ दिन में दो बार आती
पु र ाने ज़माने के रोचक किस्से
हूँ, सुबह और शाम।मुझे अरथीरिट्स है और हाल ही में मेरा गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन हुआ है। डॉक्टर ने मुझे सलाह दी है कि लगातार कसरत करने से पाचन और जोड़ो के दर्द से आराम मिलेगा। इस
जगह के निर्माण से बहुत मदद मिली है ।” आलम और हरीश राजन खिड़की के नौजवान लड़के हैं, वे यहाँ एक-दो बार ही आये हैं। उनका मानना 2
तस्वीरें: महावीर सिंह बिष्ट
इतिहास में इस दिन 10 मई 1994 नेल्सन मंडेला को साउथ अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया । पते की बात “मैंने अपनी आत्मा से पूछा कि दिल्ली क्या है ? तो उसे जवाब दिया कि दुनिया जिस्म है और दिल्ली ज़िन्दगी।” -मिर्ज़ा ग़ालिब
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 1
राम सुधीर झा, अपनी चाय की दुकान में
प्रदीप सचदेवा, आया नगर के अपने दफ्तर में
“यह कहा जाता है कि खिड़की मस्जिद या सतपुला से एक सुरंग तुगलकाबाद किले तक जाती है। एक बार तुगलकाबाद में खोयी हुई एक बकरी यहाँ मिली, हो सकता सकता है भटकते हुए सुरंग के रास्ते यहाँ आ गई हो।”
“मैं लोगों को अक्सर कहता हूँ कि यही असली भारत है। यहाँ लोगों में विवधता है, गरीब हैं, लैंडलॉर्ड हैं, यहाँ कम इं फ्रास्ट्रक्चर है, इसलिए लोग शालीन हैं। यहाँ रहने की अपनी चुनौतियाँ हैं । अच्छी बातें भी हैं, हम जिस तरह की जगह यहाँ चलाते थे।”
झा जी, अपनी किराने कि दुकान पर
“मॉल आने के बाद प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं। अस्पताल की वजह से भी किराया बढ़ा है । पहले ज़मीन 2,000 रुपये गज़ के हिसाब से बिकती थी, अब सवा लाख रुपये गज़ के हिसाब सी बिकती है। लेकिन यह बहुत बढ़िया जगह है, गरीब आदमी भी आसानी से एक अच्छी ज़िन्दगी जी सकता है ।”
मूलचंद महरा, नए जामुन पार्क में
“लगभग 20 साल पहले यहाँ जामुन के पेड़ होते थे, दूर तक घना जंगल और खेत। मीलों तक कुछ नहीं दिखता था। मुझे अब बढ़िया लगता है, लोग हैं, सामाजिक ज़िन्दगी है, ज़्यादा चहलपहल है, सुविधाएं हैं, ज़िन्दगी आसान है।”
03/08/17 10:42 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
खिड़की का जिया हुआ अनु भ व हम बड़े ही हर्षोल्लास के साथ खिड़की आवाज़ का तीसरा अंक ला रहे हैं ।गर्मि याँ अपने पूरे जोश पर हैं जिसका लुफ्त उठाने के लिए हमारे मोहल्ले में एक नया पार्क बना है! इस अंक में हम खिड़की को एक शहरी आवास की तरह देख रहे हैं, उसके भोगे हुए अनुभवों के रास्ते भूतकाल, वर्तमान, भविष्य और बहुत सी अनंत संभावनाओं को खोजने का प्रयास करेंगे।
पार्क में निरंतर कसरत से शांति जी को बहु त फायदा हु आ है।
जामुन पार्क / पृष्ठ 1 से
है कि इस जगह के लिए यह बहुत बड़ा सुधार है । वे मॉल की इस पहल की तारीफ करते हैं, लेकिन स्पष्टता की बात करते हुए कहते हैं,”हम इस बात की सराहना करते हैं कि मॉल ने पार्क में सुविधाओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाये हैं, लेकिन यह जगह सभी के लिए खुली होनी चाहिए, किसी को मना करना, जैसे मॉल में किया जाता है, सही नहीं है ।” वे खुश हैं कि अभी पार्क सभी के लिए खुला है । खिड़की और हौज़ रानी की घनी आबादी के बीच खुले सार्वजानिक स्थानों की कमी है, ना बच्चों के खेलने की जगह है, ना ही अलग-अलग समुदाय के लोगों के लिए एकत्रित होने, उत्सव मनाने और मनोरंजन की कोई जगह है। इस कमी के चलते, जामुन पार्क का फिर से बनकर तैयार होना खिड़की के लिए एक नयी उम्मीद की तरह है ।
तत्व पीते और जुआ खेलते थे । ये कांटे की तार बहुत ज़रूरी थीं क्योंकि दीवार पर लड़के और आदमी लाइन लगाकर खड़े हो जाते थे और पार्क में घूरते थे, औरतें असहज महसूस करतीं।अब तार की वजह से ये सब नहीं होगा ।” जबकि प्रेस एन्क्लेव रोड की तरफ से पार्क दो सतहों वाली जालीदार दीवार से घिरा हुआ है, वहीं खिड़की गाँव की तरफ डरावनी सी दिखने वाली कंटीली तार दीवार के ऊपर लगी हुई है । इस अंतर को समझने के लिए हमने कुसुम कौशिक से बात की, जिनके घर के पीछे की दीवार से पार्क बिल्कु ल सटा हुआ है। वे कहती हैं, “ पीछे की तरफ से कोई रास्ता नहीं है। अगर पार्क गाँव के लिए है तो गाँव की तरफ से रास्ता क्यों नहीं है? उन्हें सोचना चाहिए था । मेरे घर से बस तार नज़र आती है ।”
का शक सही है ? क्या खिड़की का समुदाय इस जन सुविधा की बिना किसी कंटीली तार के सुरक्षा और रख-रखाव कर सकता है ? मिर्ज़ा सलाउद्दीन, जो पिछले 17 सालों से हौज़ रानी के निवासी हैं, का मानना है कि लोग बदल रहे हैं। वे कहते हैं,” अब इस जगह को साफ़ कर दिया गया है और इस्तेमाल लायक बना दिया गया है, तो लोग इसे खराब नहीं करेंगे। लेकिन अब थोड़ा सावधानी से काम लेना पड़ेगा, कुछ नियम तो होने ही चाहिए। नियमों और प्रतिबंधों की बात ना करें, तो पार्क एक बहुत बड़ी सफलता है और खिड़की और हौज़ रानी के समुदाय में लोग बहुत खुश हैं । जैसे ही हम पार्क में पानी से खेल रहे बच्चों से बचते बचाते बाहर जा रहे थे तो हमने फुटबॉल खेल रहे कुछ लोगों का झुण्ड देखा। अली मेहदी, जो की मूल रूप से इराक से हैं, खिड़की में
एक रहने की जगह के तौर पर, खिड़की के पक्ष में कई बातें हैं :यह कई सुख-सुविधाओं के आसपास है, लगभग 2 किलोमीटर के भीतर अस्पताल,स्कूल, कॉलेज, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, दुकानें, खेलकूद और मनोरंजन की जगहें, मौजूद हैं । यह काफी सस्ती भी है, जिसके फलस्वरूप, हर वर्ग के लोगों के लिए घर मुहय् ै या कराती है- यह एक खासियत जो इसके सामाजिक ढाँचे को सांस्कृतिक रूप से विविध और दिलचस्प बनाता है। इस तेज़ गर्मी में इसकी गुथी हुई गलियाँ भरपूर छाँव देती है और इसकी एक दूसरे से सटी हुई छतें घुटन भरे कमरों से शाम को राहत देती है। हमारी कुछ कहानियाँ खिड़की के भविष्य की परिकल्पना हैं कि रहने, सीखने, कुछ नया बनाने, खेलने की जगह के तौर पर इसका विकास कैसे होगा। साथ ही यह प्रदूषण, बढ़ते तापमान, ख़राब होते पर्यावरण और क्षत-विक्षत समाज की वजह से लोगों का गुस्सैल व्यवहार सरीखे विषयों को कैसे संभालेगी । इस अंक में हम खिड़की के पुराने निवासियों से कहानियाँ लाये हैं, जो हमें बताएं गे कि पिछले बीस सालों में खिड़की कितनी बदली है, साथ ही कुछ नए आगुन्तक के किस्से भी लाये हैं, जो इसके भविष्य के लिए बहुत सी कल्पनायें करते हैं, जिनमें से एक खिड़की की जुडी हुई छत्तों पर शहरी कृषि करना शामिल है। कितना सुन्दर होगा क आसमान में जुडी हुई छत्तों पर पार पथ होंगे और लहरदार बगीचे होंगे।इस अंक में जगह-जगह हमारे पंख और फर वाले जंतुओं के अंश बिखरे हुए हैं, जो यहाँ हमारे बसने से पहले से रहते हैं और हमारे इस बदले हुए घर को हमारे साथ बाँटते हैं । इनके रेखाचित्र बताते हैं कि यह भी हमारी ही तरह शहर को भरपूर जीना चाहते हैं, रोज़ कि जद्दोजहद में जीने और छत्त ढू ंढ़ने का प्रयास करते हुए। हम समाज की भागीदारी और जिम्मेदारियों से जुड़े हुए कई सवाल उठायेंगे, उनकी कमियों का विश्लेषण करेंगे, जनसुविधाओं के बनने और रख-रखाव के सन्दर्भ में। जामुन पार्क के पुनर्निर्माण से यह बात सामने आती है कि समानाधिकार से, सुगमता से परिपूर्ण और साफ़ सुथरे सार्वजनिक स्थान से समाज को बहुत फायदा होगा।हम उम्मीद करते हैं कि इससे बंटा हुआ समाज एक साथ आएगा और एक बेहतर सार्वजानिक जीवन के निर्माण में भागीदार बनेगा।छोटे-छोटे बदलाव निजी और सामूहिक स्तर पर हमारी गलियों में बड़ा बदलाव ला सकते हैं, जिससे हमारी ज़िन्दगी पर भी अच्छा असर होगा। हम खोज इं टरनेशनल आर्टि स्ट एसोसिएशन को उनके सहयोग द्वारा प्रकाशित इस अख़बार को निकालने के लिए धन्यवाद देना चाहते हैं ।
गाँव की तरफ और सड़क की तरफ, दोनों में बहु त अंतर है ।
हमने चंदा से बात की जो खिड़की में पिछले 38 सालों से रह रही हैं; जब वे कसरत कर रही थीं। वे कहती हैं,” यह अच्छी बात है कि इसका फिर से निर्माण हुआ है, मैं रोज़ यहाँ आती हूँ।पहले इसमें सिर्फ मलबा और कूड़ा होता था और यहाँ गैर-सामाजिक बच्चे और व्यस्क कसरत के झूलों का फायदा उठाते हु ए ।
जबकि कुछ को यह कंटीली तार सही लगती है, बाकी लोग इससे सहमत नहीं हैं। उसका गाँव की तरफ से होना और दस ू री तरफ ना होना दर्शाता है कि गाँव वालों पर पूर्ण विश्वास नहीं है, जिनके लिए यह पार्क बनाया गया है । क्या इस तरह
पिछले नौ महीनों से हैं । वे अपने दो बेटों और एक सूडानी मित्र अब्दुल वहाब के साथ फुटबॉल खेल रहे थे। अब्दुल हैदराबाद में एक छात्र है और यहाँ थोड़े समय के लिए आया है। वह कहता है, “ पिछले साल जब मैं यहाँ आया था तो यह एक कूड़ाघर
था, यह देखकर ख़ुशी होती है कि कितना सुधार हुआ है, इन्होने इसे बहुत सुन्दर बना दिया है ।मुझे जब भी वक़्त मिलता है तो यहाँ के बच्चों के साथ खेलने आ जाता हूँ ।”
हैं, लेकिन यह देखकर ख़ुशी होती है कि यहाँ इतनी चहल-पहल और गतिविधियाँ हैं, उम्मीद है यह वक़्त से साथ और बेहतर होगा।
यहाँ अब जामुन के पेड़ तो नहीं आदिल मेहदी अपने बेटों और अब्दुल वहाब के साथ फुटबॉल खेलते हु ए ।
2
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 2
03/08/17 10:42 PM
10 मई 2017 . खिड़की आवाज़
खिड़की और दरवाज़ा
का प्यार हो, वह जगह खिड़की की कुछ पुरानी हवेलियों में से एक थी, सुन्दर धनुषाकार दरवाज़ा, उठा ह खिड़की और दसरवाज़े हुआ चबूतरा या दीऊरी, बड़ा सा की छोटी सी कहानी है। एक गाँव आँ गन और लकड़ी और पत्थर के जिसका नाम खिड़की है और भीतर टु कड़ी वाली छत। कुछ बदलाव एक हवेली जिसमे सुन्दर दरवाज़ा करने के बाद लगभग एक दशक तक है । मेरा खिड़की से जुड़ाव 1999 हम वहाँ रहे । में हुआ जब अपनी आर्किटेक्चर प्करै ्टिस के लिए मैं एक स्टूडियो हमें जल्द आभास हो गया कि तलाश रहा था ।मेरे एक मित्र ने खिड़की शहर की अन्य जगहों के एक दर्ल ु भ सी दिखने वाली जगह मुक़ाबले बिल्कु ल अलग है। मॉल का सुझाव दिया; मानो पहली नज़र के आने से पहले खिड़की एक सुप्त अनुपम बंसल
य
खिड़की हवेली का सजा हुआ दरवाज़ा हमें अपनी ओर आकर्षित करता हुआ।
हमनाम गाँव “
श्वेता केशरी
मुझे दिल्ली के बारे में यह बात अच्छी लगती है कि यह दनि ु या के सबसे ऐतिहासिक शहरों में से एक है । इमारतों और स्मारकों की विविधता के मामले में तो सबसे बेहतरीन। इस्तांबुल, रोम और कैरो तो इसके सामने दस ू रे दर्ज़े के हैं। आप गोल्फ कोर्स में हाथ आजमा सकते हैं, आप लोधी गार्डन में टहलने निकल सकते हैं, आप किसी भी ट्रैफिक सर्किल पर तुगलक और लोधी द्वारा बनाये गए किसी मध्यकालीन स्मारक को देखे बिना वापस नहीं लौटेंगे। इतने इमारतों की बहुतायत के कारण हुआ ये है कि लोग इनके महत्व को भूल गए हैं ।”ऐसा मानना है इतिहासकार और लेखक विलियम डालरिम्पल का, जिन्होंने दिल्ली को समर्पित किताब ‘सिटी ऑफ़ जींन्स’ (1994) लिखी है, जिस शहर में वे पिछले तीन दशक से रह रहे हैं। डालरिम्पल की पीड़ा को समझा जा सकता है, क्योंकि इनकी तरफ आते-जाते दिल्ली के लोगों ने
अनुपम बंसल
और नज़र न आने वाली जगह थी। खिड़की मस्जिद इसकी एकमात्र चर्चित इमारत थी। इसकी पतली गालियाँ और गुथे हुए घर, एक 18 वीं और १९ वीं शताब्दी के किसी पुराने शहर की याद दिलाते थे । आगुन्तकों को इस जगह के बारे में समझाना बहुत मुश्किल होता था। अक्सर लोग हमारे स्टूडियो को ‘तबेले के सामने वाला घर’ के नाम से पुकारते थे, जो हमारे पड़ोस के ‘ताऊजी’ का था
और अंतर्मुखी होता, जो भीतर बिल्कु ल शांत और स्थिर थी। आप हवेली के जितना भीतर जाते उतनी ही शान्ति और आनंद का आपको आभास होता। आसमान और सूरज की रौशनी जैसे ही प्रकृति के कुछ अंश आपको दिखाई देते। पार्क और बगीचे होते ही नहीं थे। जैसे ही आप हवेली के भीतर घुसते एक अलौकिक जुड़ाव महसूस होता ।
व्यंजन खिड़की के विचित्र चरित्र का एक ख़ास हिस्सा था। आप आस-पास के ढाबों और ठे लों से खाना मंगाते। हम बड़ी ही तत्परता से टिक्कीवाले की ‘टक-टक’ की प्रतीक्षा करते। आपकी आँ खों के सामने ताज़ा-ताज़ा दही और चटनी के साथ परोसी जाती । मैं इसे रोज़रोज़ खाने से परहेज़ करता लेकिन हम दिन में काम में व्यस्त रहते मेरे नौजवान सहकर्मी खरीद कर और रात को हवेली में हम पार्टियां इसे मुश्किल बना देते । और छोटे-मोटे कार्यक्रमों का जैसे ही सामने माल बना, गाँव के आयोजन करते। मैं उन राजनयिक के चेहरे के भाव नहीं भूल सकता चरित्र में भी तेज़ी से बदलाव आया। जो एक संगीत की शाम के लिए यहाँ की आबादी कई गुना बढ़ गई आये थे। लगभग एक घंटे तक और माहौल शहरी होता गया ।मुझे खिड़की की गलियों में घूमने के बाद हमेशा हैरानी होती है कि बिना सुरक्षा उनके चेहरे की हवाईयाँ उड़ी हुई को ध्यान में रखते हुए इमारतें बनायीं थी।चाणक्यपुरी जैसी जगह से आने और तोड़ी जाने लगीं। खोखली नींव के बाद मानो वे किसी बस्ती में आ वाली ऊँची-ऊँची इमारतें धड़ल्ले गए हों। लेकिन एक दो बार आने के से बनायीं जा रही थीं। आर्किटेक्ट बाद लोगों को यहाँ की विविधता का होने के नाते इन इमारतों को देखकर हमें डर लगता था।बहुत जल्द हमें पता चलता। एहसास हुआ कि गाँव के लोगों की खिड़की की पार्टियाँ तेज़ संगीत तरह ही इमारतें एक दस ू रे को सहारा के साथ सुबह तक चलती। गाँव के देते हुए खड़ी रहती हैं ।वे एक दस ू रे पड़ोसी छोटी-छोटी पोषक वाली के झटकों को सहन कर लेती हैं । लड़कियों, हवेली के बहार धूम्रपान जबसे हमने अपने दफ्तर को और गाँव की संस्कृति पर पार्टियों के बुरे प्रभाव की शिकायत करते। हमे डीडीए कॉलोनी में शिफ्ट किया, अक्सर साउं ड सिस्टम और डी.जे जिन्हें आधुनिक प्लांनिग का शीर्ष की जब्ती के कारण थाने जाना माना जाता है, तबसे खिड़की के फर्क को समझा जा सकता है।डीडीए की पड़ता । प्लानिंग खिड़की के जैविक विकास हवेली का माहौल चिंतनशील और भीड़भाड़ वाली ज़िन्दगी का
बिलकुल उल्टा है ।बिना किसी बाधा के खिड़की की गालियाँ रीढ़ का काम करती हैं, कम सुविधाओं के भी; जगह के लिए लड़ती हुई,ं खिड़की का वातावरण अपने ही सिद्धांतों पर चलता है, जो किसी बहार वाले को आसानी से समझ नहीं आ सकता । खिड़की में आपको एक गाँव के अवशेष और उभरते हुए शहर के लक्षण नज़र आएं गे जो आपको किसी प्लान किये हुए शहर में नहीं दिखेंगे।आपको यहाँ हर प्रकार के लोगों से मिलने का मौका मिलेगा। मुझे लगता है यह बहुत ही निजी और ख़ास अनुभव होता है। खिड़की जैसे गाँव आर्किटेक्ट और प्लानर्स को गलतियां करने और उनसे सीखने का मौका देते हैं।जबकि खिड़की जैसे गाँव पूरी तरह या तो शहरों में मिला लिए गए या शहर से घिर चुके होते हैं, लेकिन तब भी ये अलग होते हैं, क्यूंकि ये हमेशा से अलगथलग थे और इन्हें प्लानिंग से दरू रखा गया था। खिड़की और दरवाज़े को इतिहास का एक मूर्त रूप कहा जा सकता है, लेकिन ये समावेशी और टिकाऊ शहरी जीवन के लिए उपयुक्त उदहारण पेश करती है ।खिड़की की भौतिक संरचना में बहुत कमियां हैं, लेकिन यह हम जैसे आर्किटेक्ट को, अपनी जीवंत चहल-पहल वाली गलियों से कल्पनाशील होने की प्रेरणा देतें है।
सलेक्ट सीटीवॉक की तरफ से, खिड़की गाँव की दहलीज़ पर, दिल्ली की अन्य पुरानी इमारतों की तरह ‘खिड़की मस्जिद’ यहाँ की संपन्न धरोहर और इतिहास की याद दिलाती है।जबकि यह साफ़ नहीं है कि यह मस्जिद है या किला, लेकिन यह खिड़की गाँव को पहचान देती है । मानो आँ ख मूँद ली हो। खिड़की के छोर पर ‘खिड़की मस्जिद’ की भी मानो यही नियति है। मैं खुद को संस्कृति और विरासत की हिमायती मानती हूँ, लेकिन 550 मीटर चलकर मुझे इस छिपे हुए खूबसूरत हीरे तक पहुँचने के लिए चार साल और एक संपादक का मनाना लग गया ।
इस्लामी और भारतीय शैली का मिश्रण है । इसका नाम मस्जिद की दीवारों पर जालीनुमा छिद्रों वाले सुराखों के लिए उर्दू के शब्द ‘खिड़की’ से लिया है।” यह उत्तर भारत की अकेली मस्जिद है जो पूरी तरह ढकी हुई है” बृजेश कुमार तिवारी कहते हैं । वे पिछले छः वर्षों से यहाँ ए.एस.आई. के केयर टेकर हैं ।
जब हमने खिड़की मस्जिद तक के रास्ते को पूछा तो खिड़की गाँव की संकरी गलियों में, इसकी गुमनामी साफ़ दिख रही थी। मैं एक केमिस्ट की दक ु ान पर रुकी, तो उसे मस्जिद के बारे में मालूम ही नहीं था, जबकि वह सिर्फ 50 मीटर दरू थी।
अपनी खिड़कियों और आँ गन में आने वाली रौशनी से दीप्त, यहाँ के 400 स्तम्भ बहुत ही आकर्षक और आमंत्रित करने वाले प्रतीत होते हैं।तिवारी बड़े ही गर्व के साथ बताते हैं कि इस ईमारत की ख़ास बातों में से एक इसकी योजनाबद्ध तरीके से बनायीं गई जल निकासी व्यवस्था है।कुछ मेहराबें दस ू रों से अलग हैं, जो मरम्मत की कोशिशों की तरफ इशारा करती हैं । तिवारी जी बताते हैं “ कुछ वक़्त पहले ए.एस.आई. ने मरम्मत का काम शुरू कराया था, परन्तु उन्होंने मेहराबों में गुलाबी रंग के बदलाव आने के कारण काम रोक दिया”। पूर्वी दीवार की तरफ से दो सीढ़ियां छत्त की तरफ जाती हैं, जहाँ 72 गुम्बद 9 - 9 के गुच्छों में है ।
क्या ख़ास है ? तीन मीटर ऊँचे चबूतरे पर उठी हुई, लगभग 87 वर्ग मीटर में फैली हुई यह इमारत एक किले जैसी लगती है।इसे फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ (1351 - 1388) के वज़ीर खान-ए-जहाँजूनह शाह ने 14 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बनवाया था। इसकी वास्तुकला में
खिड़की गाँव की पृष्ठभूमि में यह नज़ारा बहुत सुन्दर दिखता है ।
किला या मस्जिद ? हालाँकि इसे मस्जिद कहते हैं, लेकिन खिड़की निवासियों का एक
हिस्सा इसे किला मानता है ।वर्ल्ड मोन्यूमेंट फण्ड और इंटैक की एक रिपोर्ट के अनुसार,” मस्जिद की तीव्र ढलान वाली रोड़े की दीवार, किनारों की मीनारें और कठिन अगवाड़ा इस मस्जिद कम, किला ज़्यादा बनाता है ।” खिड़की के मुस्लमान यहाँ कभी नमाज़ पढ़ने नहीं जाते । श्वेता केशरी
खिड़की के क्षितिज पर 72 गुम्बदों का अद्भुत नज़ारा
3
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 3
03/08/17 10:42 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
खास पेशकश बलपूर्वक समुद्र में ले जाया गया एक कलाकार की अपनी परदादी के जबरन प्रवास की गाथा की तीसरी किश्त।
प..चप..चप.. एक सुस्त च इगुआना घने जंगल में चल रहा है,
डेमेरारा के रास्ते
शब्द+कलाकृ तियाँ
एं ड्रू आनंदा वूगेल
चप..चप...चप... वह पत्तियों और फ़र्न से लबालब झुकी हुई टहनियों पर अजीब तरीके से हमले कर रहा है । जब गुजरता है तो झाड़ियों में छुपी हुई एक छोटी लड़की नज़र नहीं आती । वह अचानक से निकलकर उसे दम ु से पकड़ लेती है ।वह सुबह-सुबह की अपनी इस जीत से बहुत खुश है ।उसके नन्हें हाथ चटकीली हरी दम ु को पकडे हुए हैं और घबराया हुआ इगुआना छूटने की कोशिश कर रहा है ।माला मिट्टी के रास्ते पर चलते हुए अपनी माँ की आवाज़ की तरफ बढ़ रही है- “माला वक़्त हो गया है। अपना बस्ता उठाओ और स्कू ल जाओ।” माला तेज़ी से अपनी माँ की तरफ बढ़ती है, जो चूल्हे पर रोटियाँ बना रही है। उसकी माँ बुधनी, जो आराम से चूल्हे पर बैठी हैं,
ऊपर देखती हैं, रुक जाती हैं, जैसे ही उनकी नज़र घबराई हुई छिपकली की भ्रमित नज़रों से मिलती है। बिना प्रभावित हुए, सिर उठाकर वे अपनी बेटी की तरफ देखतीं हैं और जल्दी
से दो रोटियाँ और दाल उसके हाथ में थमा देती है।माला दाल के बर्तन की तरफ बढ़ती है तो डरे हुए इगुआना से उसकी पकड़ छूट जाती है, वह दौड़कर जङ्गले की तरफ भाग जाता है ।”तुम्हें
इन चीज़ों के साथ नहीं खेलना चाहिए माला” बुधनी शांत तरीके से अपनी मंझली बेटी को समझाती है ।” हाँ माँ” माला स्वीकृति में कहती है ।लेकिन उस भागी हुई छिपकली के लिए उसके
4
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 4
03/08/17 10:42 PM
10 मई 2017 . खिड़की आवाज़
मन में बदले की भावना है, उसने वादा किया है कि वह उसे जंगल के हिस्से में फिर पकड़ के दम लेगी ।”अब आगे बढ़ो और स्कू ल जाओ, समझ आया” बुधनी गंभीर भाव में कहती है।माला अपनी माँ की चमकदार पीली साड़ी की तरफ देखती है,कि किस तरह फीकी मिट्टी के रंग के विपरीत है, एक पल के लिए वह अपनी आँ ख को ऐसे कोण में लाती है कि जंगल और साड़ी एक साथ दिखें ताकि पीली साड़ी के मेल की कोई चीज़ ढू ँ ढ सके, लेकिन उसकी कल्पना को माँ का स्कू ल भेजने वाला एक थप्पड़ विराम लगा देता है ।वह अपने गाँव से बाहर निकलने पर चोखा के कॉफ़ी के बागान कि तरफ देखती है, वह कल्पना करती है कि शाम को चुपके से बागान से कॉफ़ी के कुछ दाने चुराएगी।ये सोचते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है । कैनाल नंबर २, भारतियों के एक गाँव का नाम है ।वह एक घुमावदार नदी के किनारे है, जिसके काले बुलबुले वाले पानी के कारण उसका नाम ‘कोला क्रीक’ पड़ गया ।सप्ताह के अंत में बच्चे लकड़ी के बड़े टु कड़े इकठ्ठा करते, फिसलते हुए नीचे आते और कुछ पल हवा में उछलकर क्रीक के धीमे पानी में उतरते।कैनाल नंबर 2 के पन्नो में चकराने वाली कहानियाँ और रहस्यमय इतिहास है जिसे यहाँ लिखा नहीं जा सकता ।अगर आप इस यात्रा में मेरे साथ हैं तो में आपसे बहुत कुछ साझा करूँ गा । कैनाल के किनारों पर लगभग एक दर्जन नावें है जिनमें बाहर की तरफ
ओर आकर्षित करती हैं, फिर आपको बहार उछाल देती हैं, बिना चुम्बन और अलविदा कहे । अगर आप हिम्मत करके ‘कोला क्रीक’ से सही सलामत बाहर निकल जाते हैं तो आप तेज़ धाराओं वाली एसेक्विबो नदी में पहुँच जायेंगे, जो अमेज़न की भाई है, कई उपनिवेशी कप्तानों और बंधकों की आरामगाह है, एक खाली आकर्षित करने वाले चौड़े रास्ते की तरह जिसमें वास्तविकता के लक्षण धुध ं ले होने लगते हैं, और एक डरावनी सी दस ु या का आभ्यंतर ू री दनि रास्ता शुरू हो जाता है । मैं यहाँ रुक जाता हूँ। क्योंकि यह महत्वपूर्ण है कि हम विचार करें यहाँ से किधर जाना है । हम कोला क्रीक के पानी में सुरक्षित हैं, माला स्कू ल जा चुकी है, बुधनी अब भी चूल्हा कर रही है । जैसा की आप ने सुबह देखा माला के पिता उर्फ़ लिफ्ता मान पोलो के नाम से मशहूर ने कोला क्रीक छोड़कर एसेक्विबो नदी जाने की सोची। ज़ाहिर है उसने अपनी पत्नी और परिवार को नहीं बताया, रम शायद इसकी वजह हो सकती है, या शायद चाय, कोई धारणा नहीं बनाते हैं । लिफ्ता मान पोलो एक लिफ्ट चालक है, वह एक ईस्ट डेमेरारा गन्ने के बागान की सबसे बड़ी लिफ्ट को चलाता है।उसके पिता भोज 1908 में उत्तर प्रदेश से यहाँ आये थे। एक धोकेबाज़ आदमी चालाकी से उन्हें अपने गाँव से कलकत्ता के बंदरगाह ले आया था। एक तेज़ ब्रिटिश जहाज उन्हें
सामने के पृष्ठ में, ऊपर: कैनाल न.2 सिल्वर जिलेटिन प्रिंट; 2007 सामने के पृष्ठ में, निचे: डेमेरारा ड्रीमिं ग; 2011 नीचे: पूजा की जगह, गुयाना, सिल्वर जिलेटिन प्रिंट; 2007
मे र ी गली का शोर-शराबा
चित्रण: इता मेहरोत्रा
पुण्यासील योनजोँ
पने बिस्तर में लेटे हुए, जैसे अ ही मैं बाहर खिड़की से झाँकती हूँ,
सामने का पहाड़ अपनी भव्यता दिखाता हुआ नज़र आता है। मैं दार्जीलिंग चाय की एक चुस्की लेती हूँ तो चहकती हुई चिड़ियाएँ दिन के उगने की घोषणा करती हैं।एक आल्टो कार की तेज़ आवाज़ इस सुन्दर स्वर को चीरती है, साथ ही मेरी नींद भी उड़ जाती है। एक लम्बी उबासी और अंगड़ाई के साथ मैं खुद को आरामदायक बिस्तर से बाहर खींचती हूँ
सत्र इतने गंभीर और ऊँची आवाज़ में होते हैं कि आपको लगता है, आप भी उनके समूह का हिस्सा हैं ! वे रात को परफॉरमेंस देते हैं, जिसमें काफी भीड़ जुट जाती है । उनकी परेशान करने वाली परफॉरमेंस बूढ़े लोगों के चीखनेचिल्लाने और सिर पकड़कर बैठ जाने पर ख़त्म होती है ।अपने फैंस से लुकछिप कर बचने के लिए वे अपने वाहन पीछे छोड़ जाते हैं । अगले दिन की सुबह तेज़ शोर से भरी हुई होती है, जिसमे अपनी ड्यूटी कर रहा वैन ड्राइवर बाधा के सामने आने पर तेज़ हॉर्न बजा
हाल ही में सामने रहने वाला एक मुर्गा मानो अलार्म बन गया “मैंने इन आवाज़ों में शांति हो। वह रोज़ सात बजे मुझे उठा देता है और इस तरह मेरे दिन की ं ना सीख लिया है । इस कोलाहल शुरुआत होती है । अपनी कुर्सी ढू ढ़ पर बैठे हुए मैं दनि या भर की खबरें ु पढ़ने लगती हूँ और कुछ ही पन्नों में मुझे आराम मिलता है। इस तरह बाद, गलियों की आवाज़ें मुझे गली के कोलाहल में एकांत ढूँ ढ़ने का में झाँकने पर मज़बूर करती हैं।
मोटर लगी हुई है, जिसका इंजन निरंतर चलता रहता है, इंसानो और सामानों का बागानों में ले जाने का इंतज़ार करते हुए ।कैनाल के किनारों पर लगभग एक दर्जन नावें है जिनमें बाहर की तरफ मोटर लगी हुई है, जिसका इंजन निरंतर चलता रहता है, इंसानो और सामानों का बागानों में ले जाने का इंतज़ार करते हुए । सुबह, दिन में और रात को जहाजी पुरुष अपनी नाँव के आसपास चाय और रम पीते, अपनी देहाड़ी का इंतज़ार करते और भरी दोपहरी में क्रि केट खेलते हैं ।मंज़िल इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितना उद्देश्य ज़रूरी था।अगर आप गुयाना की किसी भी नदी में उतरना चाहते हैं तो आपके पास अच्छी-खासी वजह होनी चाहिए। क्योंकि एक तरफा प्यार की तरह ये नदियां आपको अपनी
यहाँ भारत से दरू ले आया, वे कभी वापस नहीं लौटे। बात को जल्दी आगे बढ़ाते हैं, आप बुरा न मानें, बीच बीच में फ़ास्ट फॉरवर्ड और रिवाइंड होता रहेगा, हम उस सुबह में जाते हैं जब लिफ्ता मान पोलो रम के नशे में ( या चाय के ), एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए कोला क्रीक से एस्क्विबो में अंदर की तरफ जाने की सोची ।
हर सुबह एक नई ध्वनि होती है। एक दिन समझ ना आने पर, मैं बालकनी में गई तो कुछ लोग नाली की मरम्मत कर रहे थे।आज भी यहाँ हाथ से सफाई होती है । उनकी ऊँची और सुरीली ‘नाSSSल’ की आवाज़ अब समझ आती है। इनमें से कुछ सुबह -सुबह चक्कर लगाते हैं और सुबह 8 बजे तक भीड़ में गुम हो जाते हैं । मैंने किसी को इनके साथ बात और मोलभाव करते हुए नहीं देखा है । अब शायद होगा भी नहीं क्यूंकि, नई नालियाँ बिछाई गई हैं, जो कम ही अटकेंगी और आराम से बिना लम्बे वक़्त तक काम करेंगी। लेकिन एक आवाज़ जो सबका ध्यान खींचती है, वो है, स्कू ल जाते हुए बच्चों की वैन। जब मैं अपनी बालकनी से देखती हूँ तो इमरजेंसी जैसे हालात होते हैं । अक्सर मिसिज़ चौहान का लड़का अपनी गाडी लापरवाही से पार्क करता है और बच्चों को अपने स्कू ल वक़्त पर पहुँचने में बाधा बनता है ।कभी-कभी उनके किरायेदारों का दपु हिया वाहन गड़बड़ी फैलता है।उनके किरायेदार प्रतिभाशाली युवा संगीतकार हैं, जो कार्यक्रमों में संगीत बजाते हैं और उनके अभ्यास
अपना ही मज़ा है ।”
रहा होता है ।वह ज़िम्मेदार और दृढ सोच वाला व्यक्ति है, जो लोगों को सुबह-सुबह उठाकर मसले को बहुत ही आसानी से सुलझा लेता है। इस बात से प्रेरणा लेकर, मैं काम के लिए निकलती हूँ । काम से वापस आकर शामें सबसे बढ़िया होती हैं । गौरी शंकर मंदिर से आती हुई धीमी आवाज़ मन को शांति से भर देती है । कॉफ़ी की चुस्की लेते हुए मैं बाकी का अखबार पढ़ती और सडकों पर मरदाना जोश दिखाने वाले लोगों की प्रतीक्षा करती। मैं कभी भी नहीं भूलती जिस तरह से अपनी तेज़ साईरन की आवाज़ करती हुई बाइक पर वह गली से गुजरता है कि सब बात करने लगते। इस बात से मुझे याद आता है कि रात के खाने का वक़्त हो गया है। मुझे किचन में खाना बनाने में बहुत मज़ा आता है, जब ऊपर मेरे पडोसी अपने हारमोनियम के साथ हिंदसु ्तानी राग बजाते हैं। दःु ख की बात यह है कि यह बस खाने तक
बजता है ।धीरे-धीरे वक़्त बीतता है और मैं आगे की घटनाओं की प्रतीक्षा करती हूँ, जो कभी-कभी एक जंगली रूप ले लेती हैं। यह सब शुरू होता है, मेरे पसंदीदा कुत्तों के झुण्ड का सिर उठाकर गलियों में आती-जाती तेज़ मोटर साइकिलों से ऊँची आवाज़ करने से। वे सब यह पूरी रात करते हैं। हाल ही में उनका एक नया प्रतिद्वंदी आया है । वह एक प्रतिभाशाली मुर्गा है, जो रात को गाता है। उसका सुर अलग से सुनाई पड़ता है और रात होने पर धीरे-धीरे शांत हो जाता है।जिस सुर पर मुर्गे ने ख़त्म किया, उसी से उठाते हुए, कुत्ते भोंकते और बिलखते हैं, एक तान में गाने का प्रयास करते हुए। यह सब रात के तीन बजे तक चलता है और फिर दर्शक घर जाने लगते हैं । उनकी मुस्कराहट और हंसी बताती है कि परफॉरमेंस काफी पसंद किया गया ।लेकिन कभी-कभी वे लोग कुछ और देर पार्टी का मज़ा लेना चाहते हैं । उनके सैंडल की हील की आवाज़ और हंसी मुझे जिज्ञासु बना देती हैं और में बाहर देखती हूँ ।बालकनी से देखने पर सुन्दर लुभावने कपड़ों में सुन्दर आकृतियां नज़र आती हैं, मानो कपड़ो के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन कर रही हों। मैंने बहुत से आदमियों को इन्हें खुद की तरफ आते हुए देखकर भागते हुए देखा है। ये सुन्दर और निर्भीक हैं, ये स्त्रीत्व और पौरष से युक्त हैं । शायद मध्य में होना ही इन्हें ख़ास बनाता है, अक्सर इन्हें तीसरा लिंग कहा जाता है । थोड़ी पार्टी के बाद ये घर चले जाते हैं और मैं सोने चली जाती हूँ । मैंने इन आवाज़ों में शांति ढू ंढ़ना सीख लिया है । इस कोलाहल में मुझे आराम मिलता है । एक शांत पहाड़ी शहर में पैदा होने और खिड़की जैसी जगह में रहना, मेरे लिए एक बहुत बड़ा बदलाव है । कोलाहल में एकांत ढू ंढ़ने का अपना ही मज़ा है। मैं सामने अपने पडोसी को गर्मी की धूप में कपडे सुखाते हुए देखती हूँ । 5
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 5
03/08/17 10:43 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
जामुन पार्क की प दुनिया भर के पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों की यह भविष्यवाणी है कि हम अगर एक स्थायी भविष्य चाहते हैं तो जो भी आहार हम खाते हैं उन्हें घरों में उगाया जाए। ना सिर्फ निजी स्तर पर, बल्कि सामुदायिक स्तर पर भी। जामुन पार्क भी एक सामुदायिक बगीचे की तरह हो सकता है, जो लोगों द्वारा लोगों के लिए होगा।
ये कु छ तरीके हैं जिनसे जामुन पार्क भविष्य म होशियारी से बनाये हुए घनी इमारतों के बीच पैदल यात्रीपथ, मोहल्ले से अंदर-बाहर जाने के शार्ट कट हो सकते हैं।साथ ही जामुन पार्क तक गतिविधि और संचार का माध्यम बन सकते हैं ।
खिड़की और हौज़ रानी के लोगों के पास उत्सवों और त्योहारों के लिए कोई जगह नहीं है। पार्क के अंदर ही शामयाना आदि लगाने के लिए एक फ्लेक्सिबल जगह हो तो परेशानी हल हो जाएगी ।
कितना अच्छा होगा अग पेड़ हों। बैठने और आराम
6
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 6
03/08/17 10:43 PM
10 मई 2017 . खिड़की आवाज़
पार्क की पुनर्क ल्पना
मुन पार्क भविष्य में विकसित हो सकता है।
गली में ठे ले वाले एक सुरक्षा और गतिविधि का माहौल बनाते हैं । वे मोहल्ले की ज़िन्दगी का अभिन्न अंग होते हैं, जामुन पार्क में उनके लिए खास जगह हो सकती है। उन्हें जगह का हिस्सा बनाने से वे इसे साफ़ और सुरक्षित रखने में मदद करेंगे।
कितना अच्छा होगा अगर जामुन पार्क में जामुन के चौखट वाले पेड़ हों। बैठने और आराम करने के लिए ।
भविष्य का जामुन पार्क समावेशी और फ्लेक्सिबल होगा जिसमें साप्ताहिक मार्किट और कभी-कभी मेलों के आयोजन और एक्ससीबीशन के साथ-साथ नाटक आदि परफॉरमेंस भी होंगे। खिड़की जैसे बहुसंस्कृतिय समाज के लिए फ्लेक्सिबल होना बहुत ज़रूरी है।
एक शहरी फार्म हो जिसमें गाय, भैंस, बकरी और घोड़ों के लिए अलग से बाड़े हों। जहाँ वे चर सकें और बच्चों के लिए मौके हों, जहाँ वे सीख सकें की जानवरों की देखभाल और रखवाली कै से की जा सके ।कु छ शोधों के अनुसार जो बच्चे जानवरों के साथ रहते हैं, वे सहानुभूति और धैर्य से भरे हुए होते हैं ।
7
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 7
03/08/17 10:43 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
आसमान में खे त ों का सपना
एक परिस्तिथितंत्र बनाने के लिए । हाल ही में खिड़की की छतों पर मॉल के सामने दक्षिण की तरफ मैं मुआयने के लिए गया तो एक काल्पनिक नक्शा बनाने की कोशिश की ।अगर मिसेज़ रिज़वाना थोड़ी प्रेरणा और प्रोत्साहन के साथ अपने 5 लोगों के परिवार के लिए आहार उगा सकती है तो बाकी लोग भी कर सकते हैं । मैं अपनी आखें बंद करके कल्पना करता हूँ कि 2035 की एक दोपहरी में खिड़की के लगभग 500 घरों की छतों पर खाये जा सकने वाले पौधों का आधे वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ जंगल है।
चित्रण: दिति मिस्त्री
2
कुश सेठी
014 में खोज स्टूडियो के माध्यम से मैं एक सामुदायिक आर्ट प्रोजेक्ट ‘अर्बन फार्मिंग’ का हिस्सा बना।कलाकारों ने शहरी खेती के अलग-अलग पहलुओं की संभावनाओं को खोजने की कोशिश की, आहार की राजनीती और शहरी आहार-श्ख रृं ला को समझा और खाई जा सकने वाली कलाकृतियाँ बनाई।एक गैर कलाकार और रसायन विज्ञान का छात्र होने के नाते मेरी रूचि खाद्यान्नों को उगाने, समुदाय से साझीदार इकठ्ठा करने, बेकार सामग्री को दोबारा इस्तेमाल करने और आहार और बेकार खाने के
आस-पास एक अर्थव्यवस्था के चक्र की कल्पना करने की थी । हमारी बातचीत का अड्डा बना पड़ोस का एक पार्क , जो किरायेदार और खिड़की निवासियों के घरों से घिरा हुआ है, जिसके किनारों पर दक ु ानें हैं। वहाँ ऊपर देखने पर बालकनियों और छतों पर आपको गमलों से लटकते हुए मनी प्लांट दिख जाएं गे। हर दस ू रे घर में आपको तुलसी और कढ़ी-पत्ते के पौधे दिख जायेंगे।स्थानीय लोगों ने बातचीत में बताया कि यहाँ हमारे क़दमों के नीचे हरे-भरे खेत, फल-वाटिका और पानी से भरे हुए तालाब होते थे । हर कोई एक हरे भरे इतिहास कि बात कर रहा
था। यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि लोग खुली हरी जगह चाहते हैं, आहार उगाने के लिए और पेड़-पौधों से लगाव के कारण । घरों में जाकर आहार उगाने के बारे में बात करते मेरी मुलाकात मिसेज़ रिज़वाना से हुई, हम उनके शौहर की पीली वेस्पा पर बैठकर पास की नर्सरीयो में शुरूआती सामान- बोने की मशीन, मिट्टी का मिश्रण, मौसमी सब्ज़ी और मसालों के पौधे- लेने गए। इससे प्रेरित होकर और लोगों ने मुझे अपनी बालकनियों में पौधे लगाने संबध ं ी सुझाव के लिए बुलाया, आसपास के दक ु ानदार भी पूछताछ करने लगे।मानो
आहार उगाने और खेती का आं दोलन शुरू हो गया हो।यह मद्देनज़र रखते हुए कि समीक्षा, चर्चा और प्रयोग से जो भी हम सीख रहे थे, उससे खिड़की में एक समान्तर हरे-भरे मोहल्ले कि कल्पना करना आसान हो गया था। कम परखी और इस्तेमाल की हुई छतें समुदाय के इस्तेमाल के लिए उपयोगी हो सकती हैं ।जुडी हुई छतें आसानी से आने-जाने के लिए एक समान्तर रास्ते की तरह प्रयोग में लाई जा सकती हैं, बच्चों के खेलने और घूमने के लिए एक वैकल्पिक गली की तरह, लोगों के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए, समुदाय में छतों को जोड़कर
मेरी कल्पना में, सामने सैनी जी के घर की 20 फुट ऊँची दीवार बेलों और लताओं से लबालब है ।सैनीजी ने 5000 लीटर की पानी की टंकी को अपने बगीचे में इस्तेमाल किया और वे लताएं और बेलें उगाकर जगह का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं- जिसमें बीन्स, लौकी, अंगूर और खरबूजे शामिल हैं, जो जालीनुमा दीवारों पर ऊपर बढ़ रही हैं । ये इतनी घनी हो गयी हैं कि हरी पत्तियों और लटकते हुए फल और फूलों से सफ़ेद दीवार नज़र ही नहीं आ रही है।मधुमक्खी और तितलियों के झुण्ड फूलों के ऊपर मंडराते हुए नज़र आ जाएं गे । वहीँ दस ू री तरफ नीचे 400 वर्ग फुट की छत पर, कुछ कृषि के छात्र ड्रि प सिंचाई, जल संग्रहण और एक्वापोनिक तकनीक पर प्रयोग कर रहे हैं। वे सीख रहे हैं और साथ ही लोगों को सीखा रहे हैं कि किस तरह अपने घरों में तुलसी, पुदीना, लेटिष, पालक, पाक छोई आदि खाने लायक सब्ज़ियां और पौधे उगाये जा सकते हैं ।
घर के माहौल और काम के माहौल में ज़मीन आसमान का फर्क देविका मेनन
.के. की गलियों में चलने जी में एक ही परेशानी है, गाड़ियां और
बहुत सी गाड़ियां! और बीच-बीच में आवारा कुत्ते जिनसे सब पीछा छुड़वाना चाहते हैं। खिड़की के गली कूचों में कहानी थोड़ी अलग है। यहाँ परेशानियां; चाय पीते हुए मर्दों के झुण्ड, हर रंग और आकर के कुत्ते (जिनकी कोई परवाह नहीं करता), फल और सब्ज़ी बेचनेवाले, कान सफाई वाले, सिगरेट बेचनेवाले, बर्गर और मोमोस बेचनेवाले, जादगू र और कलाबाज़, बन्दर, अंडे वाला और न जाने कितनी चीज़े जो मैं सोच भी नहीं सकती। मैं कल्पना करती हूँ कि खिड़की में रहने वाले लोग एक दिन जी.के. में रहने का सपना देखते होंगे। और जो लोग जी.के में रहते हैं, उन्हें इस मोहल्ले के बारे में तभी पता चलता होगा जब उन्हें मॉल के सामने अपनी गाडी पार्क करनी पड़ती होगी।
मैं जी.के. में पली और बड़ी हुई और पिछले एक साल से मैं खिड़की के एक कैफ़े में काम कर रही हूँ। जबकि मैं बहुत अंदर तक नहीं घूमी, पर मॉल के सामने की सड़क से खिड़की की तरफ चलने पर मैंने महसूस किया है कि खिड़की बहुत ही नायाब है, सभी यहाँ के समुदाय से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
कहना अगर शुरू करूँ , तो यहाँ गलियों में ही जाद ू है। जी.के. की गलियां बिल्कु ल सुनसान होती हैं, आपको मुश्किल से कभी कभार बच्चे बैडमिंटन खलेते नज़र आ जाएं गे। लेकिन खिड़की की गलियों में आपको बातचीत करते हुए और चाय पर मिलते-जुलते
हुए लोग नज़र आ जाएं गे। आपको सिर्फ भारतीय ही नहीं, बल्कि अलग-अलग समुदाय के लोग चहल-कदमी करते दिख जाएं गे। वहीँ दस ू री तरफ जी.के में आपको पृष्ठभूमि में उबाऊ समानता नज़र आ जाएगी।
को कसकर पकड़ लिया। शुरूआती हिचकिचाहट से उबरने के बाद, आस पास नज़ारे को हैरानी से देखने लगी। आख़िरकार मुझ जैसे अजनबी को खिड़की घर जैसा लगने लगा। मुझे ‘केरल स्टोर’ दिखने पर एहसास हुआ कि यहाँ काफी केरल वासी रहते हैं।मैंने एक औरत को अपने कुत्ते से बहुत ही आराम से बात करते हुए देखा। जबकि वहाँ औरतों से ज़्यादा मर्द थे पर मुझे बिलकुल भी खतरा महसूस नहीं हो रहा था।
हाल ही में, रात के लगभग 8 बजे में खिड़की में टहलने के लिए निकली। मैं हैरान थी कि इतने सारे लोग बाहर गलियों में घूम रहे हैं ! जी.के में इस वक़्त लोग अपने घरों में मानो छुप जाते हैं और गलियों में जो लोग नज़र आते हैं वो या तो घरों मुझे महसूस हुआ कि जी.के. में काम करने वाले लोग या पी.जी. जैसी जगहों में कभी भी इस तरह में रहने वाली लड़कियाँ होती हैं। की विविधता न तो हो सकती है न ही वे देख पायेंगे । खिड़की में जैसे-जैसे खिड़की की गलियां समुदाय की विविधता के कारण पतली होती गई, मुझे डर लगने इमारतों में खंडर, एक कमरे के लगा। मैं बाहर क सड़क के बारे मकान से लेकर पूरे बी.एच.के. हैं। में सोचने लगी जहाँ से मैं ऑटो पिछले साल यहाँ आने से पहले लेकर घर जाती हूँ। मैं इस तरह दनि ु या को देखने का मेरा नज़रिया सावधानी से आगे बढ़ रही थी कि बहुत ही सीमित था और मुझे किसी का ध्यान मेरी तरफ न जाये मालूम नहीं था कि मैं यहाँ कितने क्योंकि मैं अलग से नज़र आ रही वक़्त तक आऊंगी। लेकिन मैंने थी।चोरी के डर से मैंने अपने बटु ए खिड़की को इस तरह से महसूस
किया है, जो मेरे जैसे रहन-सहन और समाज से आने वाला व्यक्ति कभी कल्पना भी नहीं कर सकता।
अगर जी.के. खिड़की से कुछ सीख सकता है, तो वह होगा कि समुदाय में मेल-जोल कैसे साधा जाए। यह मोहल्ला आपको लोगो से मिलने और बातचीत करने के लिए मज़बूर करता है, आपको कोई विकल्प नहीं देता और शायद यह गलत भी नहीं है।जी.के. निवासियों को किसी से संपर्क साधने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती और यह एक बड़ी कमी है। कुएं में रहना एक वक़्त तक ही अच्छा है। मैंने अभी खिड़की में रहने के लिए तैयार नहीं हूँ, पर मैं इसे और अनुभव ज़रूर करना चाहूगं ी। यहाँ के दृश्यों और आवाज़ों से, रंगों और सुंगध ं ों से यह जी.के. को सीखने के लिए बहुत कुछ दे सकता है ।
8
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 8
03/08/17 10:43 PM
10 मई 2017 . खिड़की आवाज़
अगली छत से एक सैरगाह गुजरती है जो 500 छतों को जोड़ती है । इसमें पुल, पगडंडियां जो रिसाइकिल की हुई टाइल्स और कंस्ट्रक्शन साइट्स के बचे हुए काँच से किनारों पर धातु और लताओं से ढके हुए हैं । इन रास्तों को रोज़ आने-जाने वाले लोग, रिक्शा खींचने वाले, टू रिस्ट, बर्डर, छात्र और यहाँ के प्रसिद्ध पार्कोर फ्री रनर्स इस्तेमाल करते हैं । और तो और, गार्डन एसोसिएशन ने ‘पेरनि े यल खिड़की’ नाम से एक एप्प भी लॉन्च किया है, जिसमें लोगों को रूट मैप, कैफ़े रीवीउस, विकरे् ता सूची और खरीदे जा सकने वाली वस्तुओं और सेवाओं का वस्तु-विनियम सेक्शन के अंतर्गत जानकारी दी गई होगी । इसी रास्ते पर चलते हुए आप सीधे अहमद अंकल की छत पर पहुँच जाते हैं । उन्हें फूलों में बहुत रूचि है, खासतौर खाये जा सकने वाले । चमकदार संतरी रंग वाले नस्तृतीयम फूल फर्श पर रेंगते हुए कड़ीपत्ता के पौधों तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं । उसी के बगल में मैलो के फूल हैं, वे कहते हैं ये चाय के लिए बहुत बढ़िया हैं, साथ ही गेंदे, गुलाबी परिविंकले, बैंगनी देथुस, नीले बोरेज और हर तरह के पैन्सी फूल हैं । आज शाम वे अपनी बेटी के साथ इन फूलों को बेचने के लिए एक छोटी सी दक ु ान लगा रहे हैं ।उनकी बेटी शीना एक बहुत अच्छी बेकर हैं और इनसे स्वादिष्ट मिठाइयाँ बनाने की सोच रही हैं ।हवा में फैली वैनिला की सुगध ं से यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा है ।हर आने-जाने वाला केक का एक टु कड़ा और अंकल के फूलों का डब्बा चाहता है । यह एक सुन्दर सपना है कि हर छत का माली, प्रयोग कर, सुधार कर समुदाय से ज्ञान बाँटे ।अच्छा होगा अगर मैं भविष्य में आपको इन छतों की सैर कराने ले जाऊँ, जिसमें भविष्य के शहर और समुदाय अपना आहार खुद उगा रहे होते।
खिड़की आवाज़ आपकी आवाज़ सुनना चाहता है
नई दक ु ान संगीत प्रेमियों का अड्डा बन गई है स्वाति जानू
न रिचार्ज की दक ु ान, ट्रेवल फ़ो एजेंसी या चाय का स्टाल, भारत
के किसी भी शहर में आज के समय में सबसे ज़्यादा मुनाफे वाला बिज़नेस है, जिसमे ज़्यादा निवेश भी नहीं लगता ।अपनी रिचार्ज की दक ु ान का शटर खोलने के मिनटों बाद ही, रिचार्ज और डाउनलोड के लिए ग्राहकों की भीड़ काग जाती है ।खिड़की के बदलते हुए माहौल में दक ु ानें खुलती और बंद होती है, उनकी जगह नई दक ु ान आ जाती है ।बिल्कु ल यहाँ के अलग-अलग संस्कृतियों, देशों और धर्मों के लोगों की तरह जो यहाँ आते है और जो खिड़की छोड़कर चले जाते है। दिल्ली प्रवासियों से भरा हुआ है और खिड़की उसका छोटा प्रारूप है। हमारे शहरों में छोटी-छोटी दक ु ानें गलियों की पृष्टभूमि का निर्माण करती हैं। आप यहाँ से सिर्फ सब्ज़ियाँ और फ़ोन रिचार्ज नहीं लेते, स्थानीय खबरें, गपशप और राजनैतिक विचार भी घर लाते हैं।उसी तरह मेरी दक ु ान से खिड़की की गलियाँ एक मंच की तरह नज़र आती हैं । पृष्भूमि में ईटं की दीवार होती है, और रोज़ बदलता हुआ दृश्य इस पर निर्भर करता है कि वहाँ क्या पार्क किया हुआ है-
स्वाति की दुकान पर भोजपुरी फिल्म की स्क्रीनिंग पर जमा भीड़।
मोमोस का ठे ला या ट्रेक्टर। रोज़ नए-नए लोग सामने से गुजरते हैं और कुछ पुराने चेहरे भी नज़र आ जाते हैं ।शोर करते हुए स्कू ल से घर आते हुए हँसमुख अफगानी बच्चों से लेकर, नाश्ते के ठे लों के इर्दगिर्द इकठ्ठा बिहारी मज़दरू और स्थानीय टेलर बाबू, अपने सुन्दर सुन्दर बुर्खे में चहल-कदमी करती हुई सोमालियाई औरतें, चटाईयां और झाड़ू बेचनेवाले, गिटार बजाते हुए युवा, अपनी पूरी ज़िन्दगी यहाँ बिताने वाले बूढ़े लोग और किराए के लिए घर ढू ंढ़ने वाले नए लोग तकइस गली में कोई भी पल उदासीन नहीं रहता।
वह यहाँ 15 साल से रह रहा है और यहाँ सड़क के उस पार मॉल की जगह जंगल होता था । मुझे मॉल के सामने बन रहे नए पार्क के बारे में भी पता चला जिसे बच्चे बहुत पसंद करते हैं, जबकि उनके परिवार को अपनी भैंसों और घोड़ों को उस जगह से हटाना पड़ा। मैंने पाया कि मेरी दक ु ान के आगे की जगह काफी प्रतिष्ठित है, मुझसे सब्ज़ी वालों ने आगे रेहड़ी लगाने के लिए मोलभाव किया। कुछ कपडे बेचनेवाले भी यहाँ एक अस्थायी दक ु ान लगाना चाहते हैं ।
क्या मोबाइल रिचार्ज की दक ु ानें कहानियाँ बनाने की जगहें बन सकती फ़ोन रिचार्ज की यह दक ु ान, हैं ? जिस तरह से हम मेमोरी कार्ड कहानियों के आदान-प्रदान का के ज़रिये नई फिल्में और गाने बांटते अड्डा है । किसी ने मुझे बताया की हैं, क्या हम कहानियाँ, चुटकुले और
रेसिपी बाँट सकते हैं ? अब फ़ोन की मदद से हम चुटकी में वीडियो भी बना सकते हैं । क्यों न हम इस माध्यम की मदद से कुछ महत्वपूर्ण और अनोखे विषयों के बारे में बात करें । हो सकता है आपके पास कोई रेसिपी या या कहानी या गाना हो जिसे आप बाँटना चाहते हो? फ़ोन रिचार्ज की दक ु ान के माध्यम से हम यही करना चाहते हैं, हम समुदाय को देखने वाली खिड़की बनना चाहते हैं । तो आईये मेरी इस दक ु ान में, अगर आप खिड़की की कहानियाँ और गपशप का हिस्सा बनना चाहते हैं । आपकी अपनी दक ु ानदार- स्वाति जानू
पसंदीदा
खिड़की का रास्ता । इता मेहरोत्रा द्वारा
हम युवा पत्रकार ढू ढं रहे हैं, जो हमें खिड़की और हौज़ रानी से रोचक किस्से और कहानियाँ लाये । साथ ही भाषा की बारीकियाँ को समझने वाले युवा भी खोज रहे हैं जो अंग्रेजी-से-हिंदी और हिंदी-से-अंग्रेजी में अनुवाद कर सके । अगले अंक से, हम एक नए कॉलम, ‘खिड़की के पत्र’ की शुरुआत कर रहे हैं । आप अपना ‘प्यारी खिड़की’ के नाम पत्र ज़रूर भेजें, हम उत्साह के साथ आपका पत्र छापेंगे । ज़्यादा जानकारी, सुझाव, प्रतिक्रिया या सवालों और ऊपर दी गई जॉब पर अप्लाई करने के लिए हमें KhirkeeVoice@gmail.com पर ई-मेल करें हम फेसबुक पर भी हैं। लाइक करें: www.facebook.com/ KhirkeeVoice/
9
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 9
03/08/17 10:43 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
10
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 10
03/08/17 10:43 PM
10 मई 2017 . खिड़की आवाज़
वर्ल्ड वाइड वे ब से द ुनि याभर की झलकियाँ
1
क्रिस्टोफर मेक्डीज़ी
2
गुडमुण्ड लीन्डबैक
3
गेटी इमेजेस
सु न्द र गलियाँ विश्व के चार शहरों से निक माफ़ी के लिए मशहूर हैं ।1471 में बसाया गया है । यहाँ की ऐतिहासिक स्ट्रीट को
स
भी स्ट्रीट एक सी नहीं होती। कुक प्राकृतिक रूप से बहुत सुन्दर होत्ती हैं, जैसे बोन की चेरी ब्लॉसम टनल या स्पेन की हरी-भरी बेलों वाली स्ट्रीट। हम आपको दनि ु या भर की चार सबसे बेहतरीन स्ट्रीट से रूबरू करायेंगे। 1- चेचेन्या, मोरोक्को मोरोक्को के उत्तर पश्चिम में चेचेन्या की गालियाँ अपने नीले रंग की गलियों
तं ज़ानि या में एक भारतीय की चाय की दक ु ान सं स्कृ तियों को जोड़ रही है
यह शहर, स्पेन से निर्वासित लोगों के लिए एक किले के रूप में बनाया गया। सदियों से यहाँ यहूदी लोग आते रहे और अपने साथ यह मान्यता लाये कि नीला रंग लोगों को ईश्वर की शक्ति याद दिलाएगा।
दीवारों से उगते हुए अंगूरों के पत्तो और लटकती हुई बेलों से छाँव मिलती है । 3-चेरी ब्लॉसम एवेन्यू, बोन, जर्मनी
अन्दलूसा, स्पेन में स्थित यह शहर अपनी खास वाइन के लिए जाना जाता
हर बसंत में दो तीन हफ्ते के लिए, मन मोह लेने वाले पेड़ों की एक कतार से चेरी ब्लॉसम एवेन्यू की टनल बहुत से टू रिस्टों और फोटोग्राफरों को आकर्षित करती है । HH
एल्सपेरथ देहनेर्ट
एल्सपेरथ देहनेर्ट
2- जेरज़ े द ला फ्रोन्टेरा, अन्दलूसा, स्पेन
www.munchies.vice.com में छपे हुए आर्टिकल से लिया गया है पको सबसे बेहतरीन आ कबाब और चाय, देर एस
समोसे, सलाम, तंज़ानिया की इस नज़र ना आने वाली चाय की दक ु ान मिल जाएगी।यहाँ पहुँचने के लिए आपको पहले किसुतु की तरफ जाना पड़ेगा, ऐतिहासिक रूप से यह इलाका भारतीय मोहल्ला है, फिर आपको छग्गा स्ट्रीट की तरफ जाना पड़ेगा। अगर रात है, तो आधे-टेढ़े रास्तों पर जलते हुए कनस्तरों को देखते हुए जाते रहें, जब तक आपको लोगों की छाया आकृति ना दिख जाये ।या अगर दिन है तो, उस दक ु ान को ढू ंढिए जहाँ- हिन्दू, मुस्लमान, ईसाई, काला, गोरा, भूरा- हर तरह का तंजानियाई मिल जाये। आपको पता चल जायेगा की आप पहुँच गए हैं, जब आपको कई तली हुई लोई और मीठे दध ू की महक आ जाये। इस दक ु ान को के.टी. शॉप के नाम से जाना जाता है। यहीं से स्थानीय लोगों को सन 1968 से अपना पसंदीदा भारतीय नाश्ता मिलता है।
अग्वेदा अम्ब्रेला स्काई प्रोजेक्ट की शुरुआत 2011 में सालाना अगीतागुवेद फेस्टिवल के साथ हुई। हर गर्मी में जब तापमान बढ़ जाता है, तब अग्वेदा की पतली गलियों में राहगीरों के लिए, लोग छतरी लगा कर खड़े होते हैं। WWW.ARCHITECHTURALDIGEST COM में छपे लेख से लिया हु आ
4
साउथ अफ़्रीकी युवती के संतरों के छिलके से बने आविष्कार ने गूगल प्राइज जीता ए
मंसूर अहमद कादरी, के.टी. शॉप के मालिक;
ग्राहक अपनी चाय का इं तज़ार करते हुए
तंज़ानिया को आज़ादी मिलने के बाद, बहुत से भारतीय परिवारों ने उनके प्रति बढ़ते रोष की वजह से पलायन कर लिया।लेकिन के.टी. शॉप चलाने वाले परिवार ने अपने अपनाये हुए घर को छोड़ने से मना कर दिया। उन्होंने कई दशक अपनी जड़ें ज़माने में लगाए थे । एल्सपेरथ देहनेर्ट
4- अग्वेदा, पुर्तगाल
यहाँ सिर्फ भारतीय और अफ़्रीकी ही नहीं आते, हर तरह के ग्राहक आते हैं।59 साल के इस दक ु ान के सह-भागीदार मंसूर अहमद कादरी कहते हैं, “हर तरह के लोग आते और आनंद लेते हैं।”वे अपने दो बेटों के साथ पिछले 12 सालों से यह दक ु ान चला रहे हैं। उन्हें यह दक ु ान अपने पिताजी से मिली थी और उनके पिताजी को उनके पिता से। वे अपने मसालों को पहले एक मिल में पीसते हैं, फिर अपने हाथों से स्नैक्स में मिलाते हैं ।कादरी कहते हैं कि चाय के स्वाद का राज़ बनाने के तरीके में है ।कादरी के दादाजी ने वही हूबहू नुस्खा 1968 में के.टी. शॉप खोलते समय इस्तेमाल किया था।उससे लगभग 30 साल पहले वे अपने परिवार के साथ ब्रिटिश तंज़ानिया में एक उपनिवेशी रेलवे सिस्टम में काम करने के लिए कोंकण, भारत से आये थे।लेकिन कादरी परिवार की कहानी अलग नहीं है। लगभग 50000 भारतीय मूल के तंजानियाई निवासियों की ( फरे् ड्डी मरकरी उनमें से एक हैं ) यही कहानी है । 1961 में तंज़ानिया की आज़ादी के बाद, कई भारतीय मूल के लोगों ने बढ़ते रोष की वजह से पलायन कर लिया।इसकी
एक वजह उनकी आर्थिक तरक्की भी थी। कादरी परिवार की तरह कुछ के लिए, उनके अपनाये हुए घर से निकालने के लिए यह डर नाकाफी था। कादरी के लिए, जो सुन्नी मुसलमान है और घर पर हिंदी और कोंकणी बोलते है, यह जगह विविधता के बगीचे की तरह है ।यह तंजानियाई समाज का दर्पण है जिसमें 100 से ज्यादा जनजातियां है, कुछ अरबी लोग हैं, कुछ एशियाई हैं ( मुख्य रूप से भारतीय और पाकिस्तानी), कुछ यूरोपीय और अन्य हैं । यूँ तो के.टी. शॉप भारतीय पकवानों के लिए मशहूर है, लेकिन उनके मेनू में स्वाहिली और हिन्दू ग्राहकों के लिए बहुत से शाकाहारी पकवान भी हैं । और मुसलमानों के लिए सारे व्यंजन हलाल होते हैं । साफतौर पर यह जगह हर प्रकार के लोगों को न्योता देती है, सिर्फ भोजन के लिए नहीं। कादरी के परिवार का प्रवासी होने के कारण इस जगह की बात थोड़ी अलग है । के.टी. शॉप में आपको कभी बाहरी महसूस नहीं होगा।
क 16 साल की स्कू ल जाने वाली लड़की ने गूगल विज्ञान मेले में संतरे के छिलके से पानी को सोखनेवाले पदार्थ से मिटटी में पानी की मात्रा बनाये रकने के लिए बड़ा पुरूस्कार दिया गया। किआरा निर्घिन ने दनि ु या भर के छत्रों को हराकर 50,000 डॉलर की छात्रावृति अपने नाम की । उसके प्रोजेक्ट का नाम था ‘सूखे से लड़ने के लिए बायोडिग्रेडेबल सुपर अब्सॉर्बेंट पॉलीमर जो संतरे के छिलके से बना है। उसके काम की प्रेरणा हाल ही में साउथ अफ्रीका में पड़ा सूखा था। 1982 तक से यह सबसे भयावह सूखा है, जिससे फसलें बर्बाद हो गई ं और मवेशी मर गए । मिस निर्घिन, जो जोहानसबर्ग के एं ग्लिकन चर्च द्वारा स्थापितसंत मार्टिन हाई स्कू ल में पढ़ती हैं, ने बताया कि 45 दिन के तीन प्रयोगों में उसने यह ‘संतरे के छिलके का मिश्रण’ को महंगे अब्सॉर्बेंट नॉनबायोडिग्रेडेबल पॉलीमर के विकल्प
गेटी इमेजेस
के रूप में बनाया । यह जूस कंपनियों के बचे हुए कूड़े से बनाया जाता है। इसे संतरे के छिलके में मौजूद अणुओं और अवाकाडो के छिलके के तेल से तैयार किया जाता है । मिस निर्घिन ने अपने ऑनलाइन सबमिशन में लिखा,”यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है, कम खर्चे और कमर्शियल अब्सॉर्बेंट से बेहतर जल को सोखने की क्षमता वाला है । इस ‘संतरे के छिलके के मिश्रण’ को बनाने में अन्य संसाधन बिजली और समय है, इसमें कोई और उपकरण और वस्तु नहीं चाहिए।”कैलिफ़ोर्निया के सालाना मेले में इस पुरस्कार को पाने पर, वे उम्मीद करतीं हैं कि यह किसानो का पैसा और फसलें बचाने में मदद करेगा। यह कम्पटीशन 13 से 18 साल के बच्चों के लिए था । सौजन्य:- बी.बी.सी. अफ्रीका डायेने राईल
“सभी का स्वागत है’, वे कहते हैं । गूगल साइं स फेयर में किआरा अपने मॉडल के साथ
11
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 11
03/08/17 10:43 PM
खिड़की आवाज़ . 10 मई 2017
महावीर सिंह बिष्ट खुद पे न रहा इख्तियार जब भी सोचा तुझे उन बेक़रारियों में इस दिल ने पुकारा तुझे हर पल हर लम्हा सिर्फ चाहा तुझे अक्सर तन्हाईयों में इस दिल ने पुकारा तुझे… ख़ौफ़ के माहौल में सुबह घर से निकलने पर, ज़हन में आख़िरी विदाई की सी ख़ामोशी होती। रूमानी ख्याल बम के धमाकों को सहजता से टालते हुए काबुल की गलियों में आवारगी करते। राजा हिंदसु ्तानी के गीतों से समीर के दिल में इश्क़ के बीज फूटते। गुलज़ार की फ़िल्में दिल में विदरो् ह का उफान लातीं। ऐसे में किताबों के पन्ने बाँध का काम करते। इन्हीं पन्नों में इश्क़ ख़त बनकर लुकाछुपी खेलता। काबुल का माहौल बद से बददतर होने लगा, ऐसे में इश्क़ कहाँ टिक पाता। समीर अपनी प्रियतमा से बात करने की कोशिश करता और उम्मीदों के परे ख़तरों को टालते हुए घर सही सलामत पहुँच जाता। शाम को रेडियो और टीवी के हिंदी गीत उसके भीतर के आशिक़ को चुनौती देते। अपने प्यार से बात न कर पाने और रूबरू न हो पाने की कश्मकश में इन गीतों की चुनौती स्वीकार करते हुए, उसने कलम रूपी तलवार का सहारा लिया। अफगानी भाषा से हिंदी का रुख करना अपने आप में एक विदरो् ह था। भाषा का अंतराल मानो एक चाबी थी उसके सपनों के संसार की। ख़ामोशी की कोई आवाज़ नहीं होती लेकिन दिल का दर्द छु पा भी नहीं सकते...
अफगानी कवि
की प्रेरणा गीतकार गु ल ज़ार हैं
कई सालों बाद समीर खिड़की के एक छोटे से कमरे में शालीनता से भाषा के भंवर को लांघकर सच्चाई और सपनों के संसार के फर्क को खारिज करता हुआ नज़र आता है । नज़्में बसंत के फूलों की तरह उसकी आँ खों से फूटतीं हैं। भाषा क्या है ? मन की एक स्थिति या एक आयना ।खिड़की की भीड़भाड़ में उसने अपने लिए शांत कोने ढू ँढ लिए । जहाँ वह अपने पीछे छूटे हुए घर को कविता का आकर देने का निरंतर प्रयास करता है । शुरू में उसकी कलम से आधे अधूरे शब्दों में कच्चे पक्के गीत निकलते। धीरेधीरे उसके इश्क़ की तरह उसकी हिंदी शब्दावली परिपक्व होती गई । उसके इन प्रयासों और प्यार की कश्मकश को किसी ने देखा ही नहीं ।जहाँ रोज़ीरोटी मुश्किल हो रही थी। ऐसे में प्यार की किसको परवाह थी।
समीर की फ़ारसी और रोमन लिपि में हिंदी की कवितायेँ। उसकी पसंदीद लाल डायरी में उसकी एक तस्वीर।
आपके दिमाग की प्रतिक्रि या भी बदल जाती है। अब समीर का दिल यहाँ के शांत माहौल में बगीचों, गलियों और खुले आसमान में आवारगी करता । दोस्त उसकी रूमानी कहानियों और कविताओं को चाव से सुनते। रह रहकर घर की याद आती। इन यादों को वह अपने गीतों में सहेज लेता। हिंदी लिखने में बहुत मेहनत थी। कठिनाई यह थी कि वह हिंदी समझ तो लेता था, पर लिख नहीं पाता था। व्याकरण की छोटी मोटी त्रुटियों को उसने आड़े नहीं आने दिया। पर कविताओं में व्याकरण थोड़े चाहिए होता है। कविता भावनाओं और अनुभवों में अपना सार ढू ँ ढ लेती हैं।समीर फ़ारसी और उर्दू के शब्दों को हिंदी के वाक्यों में एक कारीगर की तरह पिरोता और बार-बार दोहराकर उन्हें सुंदर बनाता। वह अंगरेज़ी ् और फ़ारसी लिपि में अपनी हिंदी की कविताओं को
अमेरिका के हस्तक्षेप से अफ़ग़ानिस्तान खंडरो का शहर बनता जा रहा था। खंडरों और इंसानों में फ़र्क़ कर पाना मुश्किल होने लगा। कोपलों की छांव में किताबों के सहारे, बदलते बिगड़ते हालात में, जर्मनी की बजाय उसने भारत को चुना। वह दरू जाने की चाह में, भाषा के अपने लगाव में यहाँ आ गया । हर बात शब्दों के सहारे कही नहीं जाती दिल के जज़्बातों को अल्फ़ाज़ बयाँ नहीं कर सकते... गुजरात विश्वविद्यालय के बगीचे उसके गीतों की छावनी बने। माना जाता है कि एक नई भाषा सीखने पर
लिखता। फिल्में व्याकरण और भाषा सीखने का सबसे आसान तरीका होती हैं। यहाँ ख़ाली समय में वह ‘धड़कन’ फ़िल्म के गीतों को सुनता। उसका परिवार भी भारत आ गया। कॉलेज ख़त्म होने पर समीर अपने परिवार के साथ दिल्ली के खिड़की गाँव में बस गया। यहाँ बहुत से अफगानी रहते हैं। वह बताता है कि उसकी माँ की बहुत सी सहेलियाँ बन गई हैं। कभीकभी जमातखाने में हमउम्र अफ़ग़ानी लड़कों से मुलाक़ात हो जाती है। पर उसके ज़्यादा दोस्त नहीं हैं। वह अपनी कविताओं के संसार में खोया रहता है। गुजरात से कॉलेज ख़त्म होने पर उसे खिड़की के एक फ़ार्मा कम्पनी में नौकरी मिल गई। ज़िन्दगी यहाँ स्थिर तो है, पर कश्मकश बहुत है।शाम होते ही लिखने की तीव्र इच्छा में वह कागज़ के टु कड़े में
शाही रहन सहन
अपनी भावनाएं उकेरने लगता। उसकी ज़्यादातर कवितायें इश्क़ और ज़िंदगी की कश्मकश के इर्द गिर्द घूमती हैं । कुछ नज़्में दोस्ती की सड़क तय करती हुई नज़र आतीं हैं । कुछ घर को पीछे छोड़ आने सरीखे विषयों को छूती नज़र आती हैं । उसका रहन सहन बहुत ही सरल है। यह सादगी उसकी कविताओं में नज़र आती है। बहुत से कविताएँ सटीक, अनगिनत सतहों पर गूँजती हुई सुनाई देती हैं। सारे छं द मानो उसकी ज़िंदगी के अलग पन्ने हों। नहीं है ज़ोर इतना कि अपनी क़िस्मत को बदल दें वरना तेरे हर दुःख को हम ख़ुशी में बदल देते...
कविता के अंश समीर शहज़ाद अमीरी द्वारा
मीलों फै ले बं ज र में
2/3/4 बी.एच.के. लक्ज़री ए.सी. अपार्टमेंट दिल्ली से 100 कि.मी. से कम दरू ी
जिम! स्पा! पूल! कहीं जाने की ज़रुरत नहीं
पास ही लेक व्यू मॉल
200 रूपये प्रति वर्ग मी. की शुरूआती छू ट लेआउट और डिज़ाइन: मालिनी कोचुपिल्लै
.
जानवरों के रेखाचित्र: इता मेहरोत्रा
.
संपादन: मालिनी कोचुपिल्लै और महावीर सिं ह बिष्ट [khirkeevoice@gmail.com]
.
सहयोग और प्रकाशन: KHOJ International Artists Association
12
Khirkee_awwaz_Hindi_Pages.indd 12
03/08/17 10:43 PM