Khirkee Voice (Issue 2) Hindi

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खिड़की आवाज़

1 फरवरी 2017

अंक #2

क्या स्ट्रीट आर्ट भ्रष्टाचार से लड़ सकती है?11

खिड़की की रसोई से

2

मौसम

1 फरवरी 2017

केप टाउन, साउथ अफ्रीका

12 पन्ने

सांस्कृतिक विविधता का विशेषांक www.khojworkshop.org

अफगान लड़की

जहाजी दादी की गाथा जारी है 4

भारत दर्शन पर

3

डिज़ाइनर टी-शर्ट और हिप-हॉप

सोमालिया से कविता

11

5

कला और खे ल लोगों को जोड़ सकता है, ऐसा खिड़की के उभरते हुए कलाकार का कहना है तस्वीर: सुरेश पांडे

डेमेरारा, गुयाना

काबुल, अफगानिस्तान

से जूझते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। वे अपनी निजी ज़िन्दगी के बारे में ज़्यादा बात नहीं करते। पर यह ज़रूर कहते हैं कि हालात ने उन्हें ताकत दी है। उनका यह दिलचस्प सफर 2008 में खिड़की में ‘खोज’से जुड़ने के बाद शुरू हुआ। उन्हें एक कलाकार के साथ लाइब्रेरी में काम करने का मौका मिला। इससे पहले वे गुडगाँव के ‘इंफिनिटी टावर’ में काम करते थे। मानो आने वाले भविष्य की सूचना दे रहा हो। बचपन से ही उन्हें कला में रूचि थी। खोज उनके लिए एक नयी दुनिया का

मोगादिशु, सोमालिया

आदिल, खोज दस्तक की विजेता फुटबॉल टीम को मैडल देते हुए

नई दिल्ली, भारत

महावीर सिंह बिष्ट

दिल अपने जीवन के सफ़र का उदाहरण एक लिफ़्ट से देते हैं, जो तीन तलों पर ऊपर नीचे आती जाती रहती है। सबसे ऊपर का तल है जहाँ वे ख़ुद को आने वाले समय में एक कलाकार के

पटना, भारत

रूप में देखते हैं। वे कला और समुदाय के बीच एक पुल बनाना चाहते हैं। वे इस तरह के प्रोजेक्ट्स करना चाहते हैं, जिसमें वे लोगों को साथ लेकर चल सकें। दस ू रा,उनकी वर्त मान स्थिति है। जहाँ वे समुदाय के साथ मिलकर अलगअलग रुचि के लोगों को साथ लाकर

अफगानिस्तान

.06

US$ 38 गुयाना

.01

US$ 38 भारत

.08

US$ 38

सोमालिया

.01

US$ 38

साउथ अफ्रीका

8

.0 US$ 38

मोहम्मद सहाबुद्दीन एक गंभीर व्यक्ति हैं, लेकिन शिबि बोलते ही उनका चेहरा खिल उठता

खिड़की के दस्तकार ने अफ़्रीकी कलाकार के साथ अनू ठ ी भागीदारी शु रू की

है। जिस प्रोजेक्ट के बारे में वे हमें बताएं गे, तभी से उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। पिछले पांच वर्षों से वे खिड़की के निवासी हैं। खिड़की की बहुत से गलियों में से एक में उनकी वर्कशॉप है। वर्कशॉप में हर वक़्त कु छ न कु छ काम हो रहा होता है, मशीनें चलती रहती हैं और बहुत से कारीगर कपडों पर सुन्दर कढ़ाई कर रहे होते हैं। एक अरबी के ग्रेजुएट के लिए रोज़गार के बहुत से साधन न होने और व्यापार के कु छ असफल प्रयासों के बाद उन्होंने 2012 अपने भाई के साथ इस वर्कशॉप में काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने लिए एक ऐसा कौशल खोज निकाला जिससे वे पैसे भी कमा सकते थे। शिबि की कला में रूचि और ज़िन्दगी में कु छ बड़ा और सार्थक करने की चाह ने उन्हें खोज में हो रहे कार्यक्रमों की ओर आकर्षित किया। खोज की टीम से उनका परिचय होने के बाद वे रेजीडेंसी में आने वाले कलाकारों से भी मिलते थे। ऐसी ही एक रेजीडेंसी के दौरान उन्हें बड़ा ब्रेक मिला।सितंबर 2016 में, खोज की टीम ने उन्हें लिज़ा ग्रोइबेर से मिलाया। लिज़ा साउथ अफ्रीका के केप टाउन से है। वे एक पेंटर हैं, जिन्हें अलगअलग विधाओं और सामग्रियों में काम करना अच्छा लगता है, वे किसी स्थानीय कढ़ाई के कारीगर को ढू ं ढ रही थीं, जो उनकी पेन्टिंगों को कढ़ाई में उकेर सके।

द्वार था। पहला मौका 2010 में आया जब उन्हें, रेजीडेंसी के कलाकारों से रूबरू होने का मौका मिला। दो कलाकारों से उनकी गहरी दोस्ती भी हो गई। उन्हें बहुत जल्द समझ आ गया कि कला समाज के अलग-अलग वर्गों की दरू ियों को भेदकर नई संभावनाएं पैदा कर सकता है। खोज ने उसकी कल्पना 9

तंग गलियों में कला का ले न -दे न

मालिनी कोचुपिल्लै

सोने के दाम 24 क2ै रे7 टज न/व र ीप्रति 2 0 1 7 ग्राम

एक सार्थक बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। मौजूदा दौर में वे कलाकारों के साथ मिलकर एक कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करते हैं और उसे सार्वजनिक कला के रूप में प्रस्तुत करते हैं। तीसरा, उनका भूतकाल है, जिसमें वे बहुत ही जिज्ञासु हैं। वे अनगिनत कठिनाइयों

तस्वीर: मालिनी कोचुपिल्लै

9

शिबि बड़े गर्व के साथ लिज़ा को अपनी दस्तकारी दिखाते हुए

1


खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

खिड़की इतना ख़ास क्यों है ?

#चखना-चखाना

सदफ हुसैन और मालिनी कोचुपिल्लै

तस्वीरें: मालिनी कोचुपिल्लै हाजी हाजिब अहमद को लस्सी परोसना इसलिए पसंद है क्योंकि, यह प्यास बुझाने के साथ-साथ पेट भी भर देता है। हाजी साहब सर्दि यों में समोसा और कचोरी बेचते हैं। अफगानी तंदरू कार्नर अफगानी डोनट, रोटी और घर का बना अचार परोसता है। हाफिज़ जी पंद्रह सालों से खिड़की के निवासी हैं, उनकी तीन दुकानें हैं,एक में बिरयानी, दूसरे में मुगलई खाना और तंदरू ी रोटियाँ और तीसरे में निहारी और कीमा परोसते हैं। इस मोहल्ले में तरह-तरह के स्ट्रीट फूड मिल जायेंगे। सबसे ख़ास है गरम बिरयानी और हलीम, ताज़ा कटे प्याज और नींबू की गार्नि श के साथ। शेख शब्बीर चिकन, आलू पकौड़ा और झालमुरी परोसते हैं। ये बिहारी भोजन के मुख्य व्यंजन हैं। अफ़्रीकी किचन अपने-अपने देशों के ख़ास व्यंजन परोसते हैं। शर्लि न के किचन का बकरे का स्टू , कासवा, फ्राइड फिश, प्लैनटन और सलाद बहुत मशहूर है।

2

हम खिड़की आवाज़ के इस अंक को बहत ु ही उत्साह और े संभावनाओं क साथ ला रहे हैं; खोज, जहाँ पिछले साल सितंबर में इसका जन्म हआ ु , ने हमें इसे एक तिमाही पत्रिका के रूप में लाने की जिम्मेदारी दी है, हम इस ख़ास जगह के जीवन और गलियों की बहत ु सी कहानियां आपसे बाँटने के लिए बहत ु ही उत्साहित हैं। आखिर खिड़की इतना ख़ास क्यों है ? इस गाँव को अपने एक अखबार की ज़रूरत क्यों है ? जेन जेकब, अमरीकी-कनाडियाई पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जो शहरी अध्ययन पर अपनी पकड़ और ‘द डेथ एंड लाइफ ऑफ़ ग्रेट अमेरिकन सिटीज़’ जैसी चर्चित किताब लिखने के लिए जानी जाती हैं, ने कहा है ‘ शहर अपने स्वभाव में वो देता है, जो भ्रमण में महसूस होता है, जिसे कहेंगे ‘अजीब’। खिड़की के बारे में इससे ज़्यादा सच हो ही नहीं सकता, जहाँ आप विभिन्न संस्कृतियों, जातियों, व्यंजनों, दक ु ानों और गलियों में विचित्र कलाकृतियों से रूबरू होते हैं। शायद दिल्ली में कु छ ही ऐसी जगहें होंगी जो रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इस तरह के विविधता पूर्ण माहौल को देखने और अनुभव करने का दावा करते हैं। खिड़की एक सूक्ष्म शहर की तरह है, शहर के भीतर एक और शहर। कु छ तो है इसमें जो पूरे देश और दनि ु या के लोगों को अपना घर बनाने के लिए आकर्षित करता है, चाहे थोड़े समय के लिए। शायद सड़क के पार मॉल और अस्पताल की वजह से। या माहौल में ही कु छ ऐसा है, या गलियों की हैरान करने वाली गतिविधियां, जो शहर में आये नए लोगों को अपनी ओर बुलाता है। दक ु ानों और रेहड़ियां से भरी हईु गली में चलना सुकून भरा होता है। जिन लोगों से गलियों में आप रोज़ टकराते हैं, उनसे दोस्ती हो जाती है। पड़ोसियों, दक ु ानदारों और राहगीरों से इस तरह की क्षणिक और रोज़ाना की अभिस्वीकृति, वक़्त के साथ एक अपनेपन और घनिष्टता का एहसास कराते हएु समुदाय की भावना और अल्पकालिक रिश्तों को प्रमाणित करती हईु दिखाई देती है । शहर जिन्हें विकास और व्यापार का वाहक कहा जाता है,जहाँ सभी दस ू रों की परवाह किये बिना अपने अस्तित्व को भुनाने में लगे हएु हैं,अकेलेपन का घर बन जाते हैं। शहर में नए आये हएु व्यक्ति के लिए, सब्ज़ीवाले या मोची का एक ‘नमस्ते’ शहर में आने का न्योता और आगे के सफर की शुभकामनायें हो सकता है। खिड़की अपने आस पास के इलाकों से अपनी पतली सड़कों और संकरी गलियों की वजह से भी अलग है। कई लोग शिकायत करते हैं कि संकरी गलियों की वजह से उनके पास अपनी गाड़ियों को पार्क करने की जगह नहीं है, लेकिन गाड़ियां न होने के कारण ही खिड़की हर वक़्त लोगों की चहल-पहल से जीवन्त रहता है और यहाँ के निवासियों और राहगीरों के लिए आरामदायक और सुरक्षित बन जाता है। ज़्यादातर शहर जो गाड़ियों के लिए विकसित किया जाता है, वहाँ लोगों की सुविधा को अक्सर भुला या नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। क्या एक शहर जो गाड़ियों के लिए बनाया गया है, वहाँ रहने वाले बूढ़े, बच्चे, गरीबों, विशेष रूप से सक्षम, साईकिल चलाने वालों और कई उन लोगों को जो ट्रैफिक में नहीं फसना चाहते हैं, को ख़ुशी दे सकता है ? इस शहर में उनके लिए जगह कहाँ है? उन सब के लिए खिड़की एक्सटेंशन में जगह है, जहाँ गलियां सबको स्वीकार करती हैं और हर किसी को घूमने की आज़ादी है। इस संस्करण में हम खिड़की को एक गुलदस्ते की तरह देखेंगे और यहाँ के निवासियों, यात्रियों, पर्यटकों, प्रवासियों और कामगारों की कहानियां आपको बताएंगे। खिड़की की सांस्कृतिक विविधता इसे बहत ु ख़ास बनाती है। इस अंक में हम इस विवधता के अलगअलग रूपों को एक सामूहिक सोच को विकसित करने का प्रयास करते हएु यहाँ के निवासियों को खिड़की के बारे में गर्वान्वित महसूस कराने का प्रयास करेंगे।


1 फरवरी 2017.खिड़की आवाज़

मरियम सफी

कॉस्मोपॉलिटन मोहल्ला

साक्षात्कार इता मेहरोत्रा

खिड़की

का

एक

मरियम एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जो लिन्नेऔस, वाक्सजो, स्वीडन से शांति और विकास के कोर्स में मास्टर्स की छात्रा हैं । मैं उनसे पिछले साल एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान के दौरान मिली थी। हमें पता चला कि हम दोनों ने खिड़की और हौज़ रानी में बहुत सा वक़्त बिताया है।

इ:हाँ यह सच है। क्या तुम परिवार के साथ आई ? तुम कहाँ रही ? म:मेरी माँ, छोटी बहन और मैं ही थे। हमने एक दो कमरों वाला घर 2000 रोज़ के किराए पर लिया। अच्छी बात यह थी कि हमारा मकान मालिक भारतीय था पर वह हमारी भाषा दरी बोल सकता था। पूछे जाने पर उसने बताया कि अफगानी लोगों को वह कई सालों से घर किराये पर दे रहा है तो उसने भाषा सीख ली। हमारे यहाँ ठहरने के दौरान उसने टीवी पर अफगानी चैनल भी लगा दिए, जिससे मेरे मेरी माँ बहुत खुश हुई। इ:वाह क्या बात है ! क्या खिड़की में रहना आरामदायक था? जो आपको चाहिए मिल जाता था ? म:हाँ, कई अफगानी लोगों ने यहाँ दक ु ाने चला रहे हैं। हमें अफगानी लोगों द्वारा चलायी जा रही फार्मेसी भी मिल जाती हैं, ज़्यादातर साइनबोर्ड भी हमारी ही भाषा में थे। इ:साइनबोर्ड से आपको काफी मदद मिली होगी। आप खाने का कैसे करते थे ? म:हम अक्सर रेस्टोरेंट में खाते थे, अफगानी रेस्टोरेंट की प्रचुरता से मेरी बहन को बहुत ख़ुशी होती थी। जो रेस्टोरेंट अफगानी लोग चलाते थे उनका खाना बहुत ही स्वादिष्ट होता था, उनकी बेकरी में बिल्कुल हमारे देश जैसी ब्रेड भी मिलती थी। इ:मैं भी वहीँ खाती थी। आप खिड़की में कितने वक़्त रही ? म:बस कुछ ही दिन के लिए, फिर हम आगरा और अन्य जगहों पर गए और होटलों में रहे। मैंने कई बार पढाई और काम के लिए इंडिया आई हूँ पर दोबारा खिड़की में नहीं रही। इ:क्या आप बताएं गी कि अपनी यात्राओं से यहाँ के लोगों और संस्कृति के बारे में क्या सोचती हैं ? म:मुझे यहाँ के लोग और देश दोनों अच्छे लगे, यहाँ के लोग बहुत ही दयालु, मेहमाननवाज़ और मददगार हैं। आप यहाँ सामाजिक बदलाव और महात्मा गाँधी जैसे बदलाव के निमार्ताओं के बारे में जानते हैं। आप बदलाव के लिए संघर्ष और बदलाव के जीते जागते उदहारण भी देखते हैं। एक देश

के अलग-अलग इमारतों से उसके इतिहास के बारे में जानना कितना दिलचस्प होता है, जैसे कि ताज महल। यहाँ के संपन्न इतिहास को समझने के लिए बहुत से ऐतिहासिक स्थल और स्मारक हैं, जैसे कि लाल किला, इंडिया गेट, क़ुतुब मीनार, प्रसिद्ध मंदिर, जमा मस्जिद और बगीचेजैसे कि लोदी गार्डन, यह किसी के भी द्वारा देखे गए सबसे सुन्दर बगीचों में से एक हैऔर अन्य बहुत सी सुन्दर जगहें। मैं यह दावे के साथ कह सकती हूँ कि यहाँ हर स्त्री और पुरुष का दिल बहुत बड़ा है, क्योंकि हर कोई ख़ुशी से एक दस ु रे के साथ मिलजुल कर रहता है। भारतीय सभी का स्वागत सत्कार बहुत ही दयालुता के साथ करते हैं। मुझे यह बात तब समझ आयी जब मेरी बहन के जिद्द करने पर हम एक शादी के हॉल में घुस गए। ज़ाहिर था कि हम टू रिस्ट थे और किसी को जानते नहीं थे। हमने बिना अजनबी महसूस किये हुए खूब खाया, पिया और खूब आनंद लिया।

“.....मकान मालिक भारतीय था

पर

वह

हमारी

भाषा

दरी........ उसने टीवी पर अफगानी चैनल भी लगा दिए, जिससे मेरे मेरी माँ बहुत खुश हुई।”

इ:इंडिया आने वाले किसी नए व्यक्ति को आप कोई सुझाव देना चाहेंगी ? अगर आप यहाँ आकर असल भारत को देखना और अपनी यात्रा का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो यहाँ के आम लोगों के साथ रहिये और वो जो करते हैं कीजिये, और सार्वजनिक यातायात के साधन जैसेरिक्शा और लोकल ट्रैन का इस्तेमाल करेंसड़कों पर खाना खाएं और यहाँ की वेशभूषा पहनें। आप गलियों में किसी भी भारतीय से पता या कोई जानकारी मांगेंगे तो वे बड़े ही दयालु और धैर्य से आपकी मदद करेंगे। अगर आप थोड़ी उर्दू बोलते हैं तो उसे अंगरेज ् ़ी के साथ मिलाएं गे तो कोई भी आपकी बात समझ जायेगा। यहाँ आप गरीबी और गरीब लोगों की स्थिति से भी रूबरू होंगे, दखी ु होंगे, पर जिस जोश और गर्व के साथ वे इन समस्याओं से लड़ते हैं, मेहनत और गुजर-बसर करते हैं, आपको हैरान करेगा। अगर आप गौरवशाली इतिहास, मजबूत सांस्कृतिक मूल्यों और राष्ट्र के प्रति प्यार की बात करें और जिस ख़ुशी से वे ज़िन्दगी जीते हैं तो यही सबसे अमीर होने का सबूत है।

दिल्ली का सोफिया टाउन मेलिसा तांदीव मयंबो

दि

सम्बर 2016 में, खिड़की की टेढ़ी-मेड़ी गलियों में, एक बेसमेंट के सैलून में, मैं अपने बाल कटवाने गई। मैंने दरवाज़ा खटखटाया और अफ्रीकी हेयर सैलून के एक अनूठे माहौल में पहुँच गई। भीतर, मेरी नाइजीरियाई हेयरड्रेसर अपने टेबलेट में जेनिफ’स डायरी देखने में व्यस्त है,यह एक नाइजीरियाई हेयरड्रेसर पर आधारित वेब सीरीज है, जो अपनी ड्रामा से भरी ज़िन्दगी को लेगोस में खूब मज़े से काट रही है, इसके विपरीत हम साउथ दिल्ली में हैं जहाँ मेरी हेयरड्रेसर कुछ पैसे कमाने और परिवार चलने के लिए रोज़ मेहनत करती है। जैसे ही मैं कुर्सी पर बैठती हूँ, तभी बुर्के में एक मालदीव की औरत अपने सूडानी पति के साथ प्रवेश करती है। वे अपनी दो छोटी बेटियों को लाये हैं ताकि हेयरड्रेसर उनके बालों की महिम चोटियां गूथ सके। उनकी बड़ी बेटी हेयरड्रेसर की बेटी के साथ ग्रीन पार्क के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पड़ती है। आज उसका जन्मदिन भी है, जब उनकी पसंदीदा यूगांडाई आं टी आती हैं तो जश्न का माहौल हो जाता है। दस ू री हेयरड्रेसर जो साउथ दिल्ली के एक चर्च के क्वायर में गाती है,”हैप्पी बर्थडे” गाना शुरू कर देता है। फिर हम सब उस बच्चे के अच्छे भविष्य की कामना करने वाली क्रि स्चियन प्रार्थ ना सुनते हुए सर झुकाकर खड़े हो जाते हैं। साथ वाली मुस्लिम औरत प्रार्थ ना ख़त्म होते ही ‘आमीन’ कहती है और केक बांटने लगती है। मैं सोचने लगी कि क्या साथ वाले सिख परिवार के लिए कुछ बचेगा, वे अक्सर यहाँ आते जाते रहते हैं।

जैसा नहीं है? खिड़की एक्सटेंशन दिल्ली के बाकि मोहल्लो की तरह प्रवासियों से भरा हुआ है। पर खिड़की में सिर्फ बिहार से मणिपुर तक के प्रवासी नहीं हैं, बल्कि बहुत से लोग अफगानी, सोमाली, नाइजीरियाई, नेपाली, यूगांडाई, कंगोली आदि भी हैं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ मुस्लिम लोग, हिन्दू और ईसाई लोगों के साथ रहते हैं। आमतौर पर यह बहुआयामी मोहल्ला है: बहुभाषी, बहु सांस्कृतिक, बहुमुखी, बहुजातीय और बहु धार्मिक। लेकिन ज़्यादातर लोग ‘कॉस्मोपॉलिटन’ शब्द खिड़की के सन्दर्भ में प्रयोग नहीं करते हैं, क्योंकि यह आकर्षक, धनी और पाश्चात्य नहीं है। वे कॉस्मोपॉलिटन और इंटरनेशनल शब्द लक्ज़री मॉल्स के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो खिड़की के बिल्कुल सामने सड़क के पार है। उदाहरण के तौर पर, मेरी हेयरड्रेसर के सैलून में सिंक टू टा हुआ है, मुझे अपने बाल धुलवाने के लिए सेलेक्ट सिटीवॉक के फिटनेस फर्स्ट जिम में जाना पड़ेगा, जहाँ कभी भी गर्म पानी की कमी नहीं होती। मैंने ठण्ड होने के कारण अपने बालों को कपडे में बांधकर ढका और ट्रैफिक से भरी सड़क में अपनी जान जोखिम में डालकर प्रेस एन्क्लेव मार्ग को क्रॉस करने के लिए मॉल की तरफ बढ़ी।

कॉस्मोपॉलिटन:शहर का ऐसा

हिस्सा जो देश की सांस्कृतिक विविधता के पहलुओं को दिखाए।

अगर आप खिड़की की सामयिक सांस्कृतिक तंत्र में इस सैलून को खोजेंगे तो यह आपको नहीं मिलेगा। मेरी हेयरड्रेसर अपने सैलून की तरफ ज़्यादा ध्यान आकर्षित नहीं करवाना चाहती क्योंकि अफ़्रीकी बिज़नेस मालिकों को पुलिस और रंगभेग करने वाले लोगों से अक्सर प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। अगर आप खोज पाएं , तो आप क्या सोचेंगे ? क्या खिड़की साउथ अफ्रीका के 1950 के दशक सबसे दर्ल ु भ कॉस्मोपॉलिटन शहर सोफिया टाउन

1956 में सोफिया टाउन, ढहाये जाने से पहले

अचानक आकर एक ऑटो ने मानो जान ही ले ली। जैसे-जैसे मैं खिड़की की तंग, टू टी-फूटी, गड्ढों से भरी हुई सड़क में एक मरे हुए चूहे से बचकर, लोगों की भीड़ में से आने वाली मोटर साईकिल से बच-बचाकर आगे बढ़ रही थी, तब ‘कॉस्मोपॉलिटन के अर्थ के बारे में सोच रही थी। खिड़की इस मॉल और इसके भीतर एचएनएम और ज़ारा, मैक्डोनल्स और

क्रि स्पी करे् म, बुरबुरी और शॉपर’स स्टॉप से ज़्यादा कॉस्मोपॉलिटन और इंटरनेशनल है। इन पश्चिमी दक ु ानों के भीतर लोग सिर्फ अंगरेज ् ी और पैसे की भाषा बोलते हैं। ये पश्चिमी पूँजीवाद की जगहें हैं। वहीं दस ू री तरफ अलग-अलग समुदाय के लोग एक साथ रहते हैं। अपनी-अपनी भाषा बोलते हैं। अपनीअपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हैं। यह एक जैसी जगह है जहाँ रंगभेद और जातिवाद है; टकराव और मतभेद अक्सर हिंसा का रूप ले लेता है। लेकिन यह अफ्रीका के सोफिया टाउन की तरह है, जिसने क्रन्तिकारी तरीके से रंगभेद करने वाली सरकार को 1950 में धराशायी कर दिया था। सोफिया टाउन ने श्वेत और रंगभेदी सरकार के खिलाफ खड़े होकर साउथ अफ्रीका के सही रूप को प्रस्तुत किया। हाँ, वह एक गरीब और अपराध में लिप्त मोहल्ला था, लेकिन इस वजह से सरकार उनसे नहीं डरती थी। सरकार वहाँ की विवधता से डरती थी। बहुत सी जाती, वर्ग और मान्यताओं के लोग वहाँ एक साथ रहते थे, जैज़ म्यूजिक सुनते और साथ बैठकर सेसोथो, इसीज़ुलू, अंगरेज ् ी और अन्य भाषाओँ में प्रगतिशील विचारों पर चर्चा करते। अपनी सभी समस्याओं

www.gauteng.net

इता :तो तुमने भारत आने की कैसे सोची ? मरियम: मैं भारत जनवरी और फरवरी की छोटी-छोटी यात्राओं में सर्दियों में आती थी, जब हमारे देश में बहुत ठण्ड होती थी। खिड़की में हमारे कुछ दोस्त रहते थे, जिन्होंने हमें यहाँ आने का न्योता दिया। मेरी दोस्त यहाँ पढ़ती थी, उसके पिता बीमार थे, जिन्हें लगातार इलाज की ज़रूरत पड़ती थी। बहुत से अफगानी मैक्स अस्पताल के आस पास रहते हैं।

राजू परमार

के बावजूद वे सही मायनों में एक समुदाय था और साउथ अफ्रीका के सबसे बेहतर रूप की झलक दर्शाता था। खिड़की भारत का सोफियाटाउन हो सकता है।अधिक संसाधनों और अधिकारियों के हस्तक्षेप से और इस अखबार जैसे सामुदायिक प्रयासों द्वारा खिड़की पूरी दनि ु या को दिखा सकता है कि सही मायनों में कॉस्मोपॉलिटन कैसा होता है।

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खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

के जबरन प्रवास की कहानी की दस ू री किश्त

कैरिबियाई जंगलों में जहाजी की गाथा शब्द और कलाकृ तियां

एं ड्रू आनंदा वुगेल

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औपनिवेशिक कोड़ों के डर ने कईयों को घने जंगलों में खदेड़ा है। उन्होंने थोपे हुए बागानों की इस भुला दी गयी निर्वासित ज़मीन को छोड़कर खोये हुए ख़ज़ानों और प्राचीन पिचाशों के साथ घने जंगल में रहना बेहतर समझा। बहती हुई धाराओं के साथ सहारा की रेत के कुछ कण भी इस नयी दनि ु या में बहकर आ जाते हैं। मानो पीछे छूटे हुए घर की आखिरी निशानी हो, जिनकी जड़ों को काट दिया गया है और जहाँ से लोगों को सीलन भरे जहाजों में लादकर हज़ारों मील दरू इस प्रतिकूल ज़मीन पर फेंक दिया हो। जंगल में धुएं की धाराएं उठती नज़र आती हैं। सुबह-सुबह की आग जंगलों में फैलती है, और थोड़ी खुली जगहें भाग कर आये हुए लोगों की आरामगाह बन जाती

दिन फूटने पर, उनकी दो ही सच्चाइयाँ थी- फ़सल काटना और सोना। भारतीय जिनको जहाजी कहा जाता है, जिन्हें हाल ही में भागे हुए अफ्रीकियों के बदले लाया गया है, को सूरज के उगने से डू बने तक कमरतोड़ काम करना पड़ता है। एक निरंतर हलचल, अनंत हरे बग़ानो के बीच दाएँ -बाएँ , आगेपीछे , आड़े-टेढ़े अनंतकाल तक चलती रहती थी। साँवले भारतीयों के हाथों पर कटार होती थी। न

किसी गाँववाले को बख़्शा गया, न किसी जाति को भुलाया गया। हर किसी को यहाँ बंधक बनाया गया है, हर शख़्स इतिहास की कहानी कहता है। कटार ने सबको एक बना दिया है। सबका बस एक ही काम है, एक ही पूजा है, एक ही नियति, एक याद और एक ही जात है: ग़ुलामी।

छोड़ के ना जाएँ ।

यह पीली रंग की आँ खों के बारे में है, जो दरू जंगल से झाँकती रहती हैं। रात को वे हल्के सुनहरे रंग में चमकती हैं। दिन में उन्हें पहचानना मुश्किल है। इन आँ खों की काली पुतली ढू ँ ढे जाने से बचती रहती हैं और अगर आप की नज़र उनपर पड़ जाएँ तो आप हमेशा के लिए इस नज़ारे को साँवली रंग की उस घने जंगल में खो जाएँ गे। कभी जलधाराएँ तोड़ती है। वे आती हैं, वापस नहीं आयेंगे। रुक जाती हैं और ठहरे हुए पानी में मैंग्रोवों की कतारों के बीच, दबु क कमल के झुड ं ों को जन्म देती हैं। उनकी कोमल कोपलें यहाँ की नहीं एक लड़की लताओं और पेड़ों की परछाइयों से क्षितिज की ओर देख हैं। रही है। उसके पीछे की तरफ हरे जहाँ खेत ख़त्म होते हैं, दो ही रंग की अनंत भूल भुलयै ्या है। सच्चाइयाँ रह जाती हैं: एक तरफ इसके लिए शब्द या कवितायेँ नहीं सागर और दस ू री तरफ घना जंगल। लिखी गयी हैं, बल्कि धरातल पर दर्गु म रेत, जहाँ समुद्र होना चाहिए कहानियाँ उलटे पाँव अपने आप था, जो उसकी तरफ़ बढ़ता है, नज़र आ जाती हैं। फीका नीला उसके लिए बस एक चारा छोड़ता आसमान उगते सूरज को रास्ता देता है। वह लड़की अपनी साँवली है: भुला दिया जाना। त्वचा से खून चूसते एक मच्छर को समुद्र की तरह, जंगल की भी मारती है।ऊपर एक टहनी लटकती है, तभी जंगल से एक आवाज़ एक कहानी है। आती है;”माला, वक़्त हो गया है, जंगल की एक ऐसी कहानी है जो अपना सामान उठाओ और स्कूल दादियाँ अपने पोतों और पोतियों जाओ।” को सुनाती हैं, ताकि वे बाग़ान Ø जुम्बी मन II, आयल ऑन पेपर, 2014 सीवेल, सिल्वर जिलेटिन प्रिंट, 2007 क्रोसिं ग, सिल्वर जिलेटिन प्रिंट, 2007

कास्ट, आयल ऑइल ऑन पेपर, 2014 सुगरकेन, सिल्वर जिलेटिन प्रिंट, 2007 कट्लेस्स, सिल्वर जिलेटिन प्रिंट, 2007

Ø

Ø

एक कलाकार की अपनी दादी

रा

त गहरी है और जंगल घना है। पलक झपकाते ही कई दशक बीत गए। कई सौ सालों से त्रिकोणीय व्यापर तंत्र की निचली समान्तर रेखा, अटलांटिक महासागर को पार कर पश्चिमी अफ़्रीकी तट से अनगिनत गुलामों को पुरानी दनि ु या के जंगलों में पहुँचाती रही। जो दनि ु या आज वजूद में नहीं है, लेकिन अँधेरे में लिप्त मैंग्रोवों की धुध ं ली स्मृति में बसी हुई है।

है। बागानों में भूख से तड़पते व्यक्ति के लिए घने जंगलों के दर्गु म किनारे एकमात्र मुक्ति का साधन हैं, जो बागान मालिकों के कोड़ों की पहुँच से दरू हैं। समुद्र में जहाजों में भरे हुए भारतीय: विवश किये हुए ,लूटे गए, बेवकूफ बनाये गए, जबरन लाये गए और मारे-पीटे गए लोगों की स्थिति बहुत भयावह है। भूख और बिमारी से तड़पते हुए वे नई दनि ु या में कदम रखते हैं। एक ज़मीन जिसे समुद्र ने भी छोड़ दिया हो, उससे निकल पाना बहुत दर्गु म है, जहाँ क्षितिज तक मीलों रेत ही रेत नज़र आती हो। मानो समुद्र भी इस धरती पर न आना चाहता हो। एक निर्दय और क्रूर सूरज आसमान में उगता है। वह उस क्रूर मालिक का सहायक बन जाता है जिसकी माँगे मानव शरीर की क्षमता से परे हैं।

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समुद्र में जबरन धकेला गया

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विशेष श्रृंखला


1 फरवरी 2017.खिड़की आवाज़

विमुद्रीकरण का स्थानीय मजद रू ों पर बु र ा असर महावीर सिंह बिष्ट

लेक्ट सिटी मॉल के रास्ते साई स मंदिर की तरफ से खिड़की में प्रवेश करते ही

बाँए हाथ मुड़ने पर थोड़ी दरू ी पर इंडिकैश का एक ऐटीएम है, जिसमें 8 नवम्बर के विमुद्रिकरण के बाद लगभग दो बार पैसा डाला गया। उसकी निरंतर जलती हरी बत्ती सामने अहाते में रह रहे मज़दरू ों और कामगारों का उपहास करती नज़र आती है। ऐटीएम के सामने एक बड़ा दरवाज़ा है जो चौलनूमा अहाते में खुलता है। शाम के समय वहाँ काफ़ी चहल-पहल रहती है। छोटे-छोटे झुड ं ों में लोग अक्सर घरपरिवार, रोटी-पानी की बात करते सुनाई देते हैं। यह एक अलग ही संसार है जहाँ ‘डिजीधन’ जैसे शब्द गाली की तरह हैं। हनान, बंगाल के एक छोटे से गाँव से हैं और लगभग पिछले 20 सालों से प्लमबर का काम करते हैं। वे बताते हैं कि 8 नवम्बर के बाद से मानो ज़िंदगी रुक सी गयी है। कांट्रैक्टर उनका पैसा रोक के बैठा हुआ है। कांट्रैक्टर कहता है कि ऊपर से पैसा नहीं आ रहा। ऐसे देश में जहाँ एक ओर ज़्यादातर लोग गाँव और क़स्बों में रहते हैं, जो शहरों में दैनिक मजदरू ी पर काम कर रहे अपने बेटों और पतियों पर निर्भर है। वहीं दस ू री ओर डिजी कैश, कैशलेस, ब्लैक मनी जैसे बड़े-बड़े शब्दों की बातें की जा रही है। केंदरी् य बैंक डाटा की माने तो 6 करोड़ लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। जिनमें से ज़्यादातर लोग गाँव के हैं। जन-धन योजना के तहत खोले गए खातों का, पैसे के होने या ना होने से कोई लेना देना नहीं है । भारत (नाम बदला हुआ), 28 साल का उत्तर प्रदेश से आया हुआ एक मज़दरू है, जो दीहाडी पर रोज़ के 300-400 रुपए कमाता लेता है। वह बहुत ही विनम्रता से पूछता है ‘भैय्या, ये फ़ोन से पैसा कैसे भेजते हैं?’ उससे फ़ोन मांगने पर उसने

एक पुराना सा फ़ोन दिखाया। मैंने उसे बताया कि एक ऐप डाउनलोड करना होता है,जिससे झट पैसा भेजा जा सकता है, पर शर्त है कि स्मॉर्टफ़ोन होना चाहिए। वह अपना पुराना फ़ोन वापस लेकर अचरज में मेरी तरफ़ देखता है। खिड़की के इस अहाते में लगभग 100200 लोग रहते है, जो आस-पास के रिहायशी इलाक़ों में गार्ड, प्लमबर, सहायक, पेंटर, कढ़ाई-बुनाई और साफ-सफाई का काम करते हैं। यह पूरा एक वर्ग है जो गाँव में नौकरी के अभाव और सुविधाओं की कमी

500 के नोट के 300-400 रुपए और 1000 के 700-800 रुपए मिल जाते हैं। के चलते दिल्ली जैसे शहरों का रूख करते हैं। पर शहर आधुनिक होते हैं जिनकी नब्ज़ पकड़ पाना मुश्किल होता है। वे ख़ुद को यहाँ पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं। ऐसे में अपने जैसे बोलने और दिखने वाले लोग ही सहारा होते हैं। मिलकर वे शहर में एक छोटा सा गाँव बसा लेते हैं। जिसके नियम और मूल्य गाँव जैसे हैं पर भागदौड़ और कश्मकश शहर जैसी। सफ़दर (नाम बदला हुआ), बिहार के एक छोटे से गाँव से हैं। पिछले कुछ दिनों में मेहनत-मज़दरू ी से कमाए हुए 5001000 के नोटों को उन्हें कम पैसों में बदलना पड़ा ताकि कुछ राशन ख़रीद सकें। 500 के नोट के 300-400 रुपए और 1000 के 700-800 रुपए मिल जाते हैं। उन्होंने जनधन योजना के तहत का खाता खुलवाया था पर वह बंद कर दिया गया है। वे कहते हैं कि वे ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं, स्मार्ट फ़ोन कैसे चलाएँ गे।

उनमें से एक मजदरू भाई ने कहा कि मौजूदा सरकार कहती है कि वो ‘गरीबों कि सरकार’ लेकिन उनकी इस तरह की नीति गरीबों के हित में नहीं है। उनके लिए यह दोहरी मार है, जहाँ एक ओर यहाँ उनके लिए गुजारा कर पाना मुश्किल है, वहीं दस ू री ओर गाँव में उनका परिवार पैसों की तंगी की वजह से रबी फसल के बीज नहीं खरीद पा रहा है। ऐसे में वे खुदको लाचार महसूस कर रहे हैं। मज़दरू और मजबूत शब्द सुनने में एक जैसे हैं। अगर समाज के ढाँचे को दरू से देखा जाए तो यह वर्ग सबसे नीचे है, मानो ऊपर के सभी वर्गों को मजबूती से अपने कंधे पर उठाये हो। पर जब भी इस वर्ग को दबाया गया है, तो उन्होंने मिलकर आवाज़ उठाई है। वह भी एक दौर था। आज के ज़माने में क्रांतियां सोशल मीडिया पर होती हैं, पर मज़दरू तो सोशल मीडिया पर है ही नहीं। ऐसे में इस वर्ग की आवाज़ का ऊँचे महकमे तक पहुच ं पाना मुश्किल है। जहाँ उन्हें रोज़ की दिहाड़ी के लिए ज़द्दोज़हद करनी पड़ती हैं, वहाँ इनके इस हक़ के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसे में वे खुद को मजबूर महसूस करते हैं। गुलाटी जी की खिड़की में पेंट की एक दक ू ान चलाते हैं। वे बताते हैं कि आजकल बिक्री भी 30% रह गई है। उन्हें अपने बचत खाते से पैसे निकालने के लिए रोज़ दरू -दरू जाना पड़ता है। उनकी माने तो आस-पास लगभग हर बैंक का एटीएम है, पर पैसा किसी में नहीं है, ऐसे में क्या किया जाए। सब लोग एक आवाज़ में सरकार तक अपनी बात सरकार तक पहुँचाना चाहते हैं। जब भी इंडिकैश के उस एटीएम में पैसा होता है और लोगों की लंबी लाईन लगती है तब ये लोग हैरानी और नाराज़गी से आते जाते लोगों को देखते हैं।

हिप-हॉप क्रू ने आर्ट टी-शर्ट डिजाईन किये दे

सी बीबॉय क्रू खिड़की 17 कला के बड़े मंचो पर नाम कमा रहा है। पिछले तीन महीनों से: हरि फुल करे् जी, अक्षय टशन और एम.सी. फरे् ज़ेक किरण नादर म्यूजियम ऑफ़ आर्ट में एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिसमें उनकी कला और कौशल निखर के सामने आ रहा है। म्यूजियम ने उन्हें जयराम पटे ल की कला से प्रेरित एक टी-शर्ट लाइन डिजाईन करने के लिए कमीशन किया है। लड़के उनसे जुडी बहुत सी ड्राइंग बना रहे हैं। के.एन. एम.ए की टीम लड़कों को ऐब्स्ट्रैक्ट कला को समझने में मदद कर रही है। महीनों की मेहनत तब सफल हुई जब गैलरी ने टी-शर्ट रेंज की लांच के लिए एक बड़ा आयोजन किया, जिसमें खतरनाक, सर्वाइवल क्रू, स्ल्मडॉगस और खिड़की 17 ने भी परफॉर्म किया। म्यूजियम के बड़े ढांचे में, जयराम

सलमगौडस के.एन.एम.ए में परफॉर्म करते हुए खिड़की 17 की स्क्रीन प्रिंट टी-शर्ट

पटे ल की पेंटिंगों की पृष्टभूमि में, परफॉर्मेस उभर के आ रहे थे। वहाँ मौजूद दर्शकों में कलाकार, दोस्त,समर्थक,परिवार, बीट बॉक्सर्स, रैपर और हिप-हॉप डांसर्स मौजूद थे, जिन्हें इन्होंने अपनी धुनों पर थिरकने पर मजबूर कर दिया। लड़को के जोश और जूनून से प्रभावित होकर म्यूजियम ने उनके साथ आगे भी काम करने का मन बनाया है। मौजूद परिवार उनकी सफलता से बहुत ही गर्वान्वित और प्रसन्न महसूस कर रहा है।

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खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

जब आप खिड़की को चित्रित करते हैं, तो एक हैर ान करने वाली बात साने आती है कि जितने क्षेत्रफल में सामने मॉल बना है, लगभग उतने की क्षेत्रफल में खिड़ आता है। यहाँ आपको अफ़्रीकी पोशाक वाले टे ल र जै स ी अनोखी दुक ानें नज़र आ जाएँ गी। आपको शाम को घू म ते हुए रे ह ड़ियों पर बिकती हुई व्यं ज नों की महक आ जाएगी, जै से गु प् ता के फ्राइड बर्गर और अफगानी ब्रे ड।

खिड़की मस्जिद सतपुला के पास है, जो जहाँपनाह

(मध्यकालीन भारत का चौथा शहर ) की दक्षिणी दीवार के पास है, जिसे फ़िरोज़ शाह तु ग लक के प्रधान मं त्री खान-ए- जहाँ जू न न ने बनवाया था। इस चकोर मस्जिद को मु स् लिम और हिन्दू वास्तु क ला के मिश्रण से बनाया गया था। उत्तर भारत की यह अके ली मस्जिद है जो ज़्यादातर ढकी हुई है, इसमें 89 गु म्ब द हैं और सर्दि यों में धू प से क ने के लिए यह उत्तम जगह है।

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1 फरवरी 2017.खिड़की आवाज़

ड़की के सै क ड़ों घर भी बसे हुए हैं। वहाँ की सं क री गलियों में चलते हुए आपको एहसास होगा कि गलियाँ इतनी तं ग हैं कि आसमान सिर्फ खु ल ी जगहों पर नज़र

खिड़की का नक्शा इता मेहरोत्रा द्वारा

इस नक़्शे के चिन्ह और जगहें सटीक नहीं हैं। 7


खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

ब्रोकर बहनें किस्मत ने बहनों को खिड़की बुलाया, एक को कैंसर ने लील लिया, दस ू री को अकेले आगे बढ़ना होगा

तस्वीरें मालिनी कोचुपिल्लै

मालिनी कोचुपिल्लै बड़े अदब से कुर्सी पर बैठती वे हैं और बताने लगती हैं कि उनके मूल

निवास स्थान मुजफ्फरनगर से कौन चुनाव जीतेगा। उनका मानना है कि इस बार यूपी पर बीजेपी राज करेगी। बीजेपी की पॉलिसियों ने पिछले दो सालों में उनके रियल स्टेट बिज़नेस को बहुत हानि पहुच ं ाई है लेकिन फिर भी उन्हें लगता है कि उसी की जीत होगी। चाय की चुस्कियों के साथ वे खिड़की आने के अपने अप्रत्याशित सफर के बारे में बताने लगती हैं। वे शुरू से बताती हैं जब उन्होंने और उनकी बहन ने एक जानकार व्यक्ति को 50000 रुपये उधार दिए थे। कुछ महीने बीतने के बाद जब वह उधार लौटने का नाम नहीं ले रहा था तब उन दोनों ने

खिड़की में उस आदमी की दादी से मिलने की सोची, ताकि वो कोई उपाय निकल सके। दादी ने बताया कि वह स्वयं उसकी दारु पीने की आदत से परेशान है। उसने जुए में खिड़की एक्सटेंशन में लगभग सारी प्रॉपर्टी खो दी है। उसने कहा कि अब भी उसके पास खिड़की में एक घर है। चाहे तो वे उधार के बदले इस प्रॉपर्टी को ले सकती है। दोनों बहनों ने फैसला लिया कि वे यह प्रॉपर्टी कुछ और पैसे देकर खरीद लेंगी, क्योंकि वे निवेश करने का सोच रहीं थी। उन्होंने ये डील पक्की कर ली। बाद में उन्हें पता चला कि दादी ने प्रॉपर्टी बेचकर कमाया हुआ सारा पैसा गुरूद्वारे को दान में दे दिया। ‘माम्मा’ की आवाज़ सुनकर वह बीच में रुक जाती है। एक जवान यूगांडाई औरत अपने मकान मालिक से जुडी समस्या के लिए मदद मांगने आयी है।

माम्मा अंगरेज ् ी में आस्वासन देती है कि वह मकान मालिक से बात कर लेगी, फिर वापस मुड़कर अपनी कहानी सुनाने लगती है। बूढी औरत की मदद से वे अपने खिड़की के मकान की मरम्मत करवा लेती हैं। घर के आगे के भाग में वे एक नास्ते की दुकान खोलती हैं । उस हिस्से को गली के अंत में होने की वजह से दुकन की तरह बनाया गया था। नास्ते की दुकान खूब चलने लगती है। शुरूशुरू में उनका पड़ोसियों और आस-पास के लोगों के साथ अनबन रहती थी, पर वक़्त के साथ सब सही हो गया। लोगों ने उस दुकान को स्वीकार कर लिया। कहते हैं, हर अच्छी चीज़ की उम्र लम्बी नहीं होती है। कांट्रेक्टर से मतभेद होने के कारण उन्हें नया रास्ता खोजना था। दुकान का उनका सहायक भी बहुत

अच्छा था। वह जुगाड़ू था और किसी भी ग्राहक को न नहीं कहता था। उनकी सफलता की उम्र छोटी थी। गाँव से कुछ लोगों के आने की खबर पर, यह सोचते हुए कि मिठाई की दुकान

अच्छी नहीं लगेगी, उन्होंने अपना रास्ता बदलने की सोची। आने जाने वाले लोग उनसे खिड़की में रहने की जानकारी मांगते, तो उन्हें रियल स्टेट बिज़नेस खोलने का आईडिया आया। अब यह चहल-पहल और बातचीत का अड्डा बन गया है, दुनिया भर के प्रवासियों को खिड़की एक्सटेंशन में घर बनाने के लिए, एक मुस्कराहट के साथ स्वागत करते हुए। वह बीच में एक अफगानी व्यक्ति के आने पर रुक जाती है। वह जानना चाहता है कि क्या वहाँ से वेस्टर्न यूनियन से पैसा भेज जा सकता है, जिसका जवाब वह ना में देती है। वह कहती है कि किल्लत के चलते सब बंद है। वह बताती है कि आजकल प्रॉपर्टी बिज़नेस मंदा चल रहा है और ज़िन्दगी होती ही ऐसी है। वह अपनी बहन को याद करते हुए बताती है कि उसका कैंसर से देहांत गया। पर ज़िन्दगी रूकती नहीं है, आगे बढ़ती रहती है।

खिड़की में मे ड िकल टू रिज्म 27

शेरिल मुखर्जी

साल के अर्श, अपनी टू टी-फूटी अंगज रे् ी और हिंदी में सामने बैठकर खिड़की के अपने सफर के बारे में बताने लगते हैं।”मैं 2011 में इंडिया टू रिस्ट वीसा पर आया। मजेदार बात तो यह है कि मैं काम से दिल्ली से बाहर कभी नहीं गया। पहले मैं लाजपत नगर में रहता था, फिर किसी ने मुझे बताया कि मालवीय नगर में सस्ते में घर मिल जाता है। 2012 में, मैं खिड़की आ गया।”

अर्श खुद को कंसलटेंट और गाइड कहता है, जो दस ू रे देशों से आये कैंसर, दिल और किडनी की बिमारी से पीड़ित मरीजों को अच्छा इलाज करवाने में मदद करते हैं। वे कहते हैं “ लोग अफगानिस्तान,इराक, उज़्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और सीरिया से साल के पहले 3 महीनों में आते हैं, क्योंकि तब मौसम अच्छा होता है, ज़्यादा गर्मी नहीं होती। मैं हर महीने काम से काम 10-15

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इलाज कराने आये लोगों से मिलता हू।ँ ” पूछे जाने पर कि इतने सारे लोग इलाज़ कराने यहाँ क्यों आते हैं, वह मेरी तरफ हैरानी से देखता है कि कह रहा हो कि ज़ाहिर सी बात है: उन देशों में डॉक्टर ही नहीं हैं, दवाईयाँ उपलब्ध नहीं हैंख़ास तौर पर अफगानिस्तान में- जहाँ कोई ढाँचा ही नहीं है। वे आगे बताते हैं,”लगभग 80 % लोग यहाँ इलाज कराने आते हैं। वे गरीबी की वजह से रिस्तेदारों से पैसा उधार लेकर आते हैं।”

बढ़कर है। वह एक अनजाने देश में लोगों की अज्ञानता का फायदा नहीं उठता। वह कहता है कि वे लोग पहले ही इतना कुछ खो चुके होते हैं, और खोने को कुछ बचता ही नहीं। वह कहता है,”कम से कम मैं उन्हें सही रास्ता तो दिखा ही सकता हू,ँ ताकि अस्पताल उनसे ज़्यादा पैसे न ऐंठे।” कुछ चुनिंदा देशों के लोगों को भारत में 30 दिन रुकने के लिए मेडिकल कारणों से वीसा-ऑन-अरराइविल मिलता है। े 1000 मरीज़ों को कमरे-छोटे और गंदरुपये रोज़ के हिसाब से किराये पर मिलते

बढ़ जाता है।”अर्श मरीजों की मजबूरियों और परेशानियों को समझता है। जब किसी के पास रहने के लिए पैसे नहीं होते तो वह अक्सर या तो अपने घर में उन्हें रहने की जगह दे देता है या किसी दोस्त के पास भेज देता है।”हम उनसे पैसा नहीं मांगते, बस चाहते हैं कि इलाज के दौरान उन्हें कोई परेशानी न हो।” वह कहता है,”मुझे यह काम आरामदायक लगता है। मैं इसके अलावा और कुछ नहीं करता। मैं अकेले न तो कोई दुकान चला सकता हूँ और न ही कोई

या मदद करता है। यह भी दर्ज नहीं है कि उसे कितना पैसा मिलता है। अस्पतालों को मरीज़ लाने पर लाभ का हिस्सा उसे नहीं मिलता। वह बीमारों के दिए हुए पैसा से गुजारा करता है, जो जितना दे सके। मेडिकल टू रिज्म भारत में उभरता हुआ क्षेत्र है। भारतीय सर्कार ने गल्फ देशों के लिए वीजा नियमों में ढील दी, जिससे मेडिकल टू रिज्म बढ़ेगा।वह एक हल्की मुस्कराहट के साथ कहता है,”कभीकभी मुझे लगता है कि अस्पातल को मरीज़ की ज़्यादा ज़रूरत होती है, न कि

अर्श अपने परिवार के साथ खिड़की एक्सटेंशन में रहता है, लेकिन अक्सर अफगनिस्तान के अपने घर को याद करता है। उसका मानना है कि शायद अपने देश के लोगों की मदद करके, वह घर के करीब महसूस करता है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में हालात अच्छे न होने की वजह से वह वापस नहीं जा सकता। पूरी बातचीत के दौरान वह ज़ोर देता रहा कि वह जो करता है, उसके लिए काम और पैसे से

हैं। जिन मरीजों को गंभीर रोगों के इलाज़ के लिए बार-बार यहाँ आना पड़ता है, उनके लिए रहने की जगह की व्यवस्था भी अपने आप में बहुत बड़ा खर्च है। अर्श कहता है, “वे अपने परिवार के साथ नहीं आते, क्योंकि खर्चा बढ़ जाता है। एक मरीज़, एक गाइड।”वह आगे बताता है,”जब उन्हें पता चलता है कि मैं उनके ही देश से हूँ तो उनका डर ख़त्म हो जाता है।एक सी भाषा बोलने पर, उनका विश्वास

बिज़नेस खोल सकता हू।ँ ” वह इसलिए भी नहीं कर सकता क्योंकि यहाँ की सरकार इज़ाज़त नहीं देगी।इन सब बातों के बीच उसे एहसास होता कि 6 साल यहाँ रहने के बावजूद वह आज भी बाहरी व्यक्ति है। उसके पास कोई वैधानिक पद नहीं है। जबकि, वह मरीजों को दिल्ली के बड़े-बड़े अस्पतालों में रेफर करता है, पर किसी से उसका अनुबध ं नहीं है। इसका कोई प्रमाण नहीं है की वह लोगों को गाइड

मरीज़ को अस्पताल की।” वह शायद सही है। ऐसे में अर्श मध्यस्था करता हुआ नज़र आता है, साथ ही एक बड़े शहर में खुद के लिए संघर्ष करते हुए। वह बातचीत को ख़त्म करते हुए कहता है,”मैं प्रार्थ ना करता हूँ कि कभी किसी को मेरी ज़रूरत न पड़े, कभी कोई इतना बीमार ही न पड़े कि मेरी ज़रूरत पड़े।”


1 फरवरी 2017.खिड़की आवाज़

पर मानो पँ ख लगा दिए हों, तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। खोज से जुड़ने के बाद आदिल ने सिर चकरा देने वाले अनगिनत प्रोजे क्टो पर दुनिया भर के कलाकारों के साथ काम किया है। यहाँ आदिल को समझ आया कि कला में अनंत संभावनाएं हैं और इसके माध्यम से समाज तक एक सन्देश पहुँचाया जा सकता है। खोज के साथ अपने काम को जारी रखते हुए, आदिल कलाकार के रूप में खुद को नए कौशल सिखा रहा है और खुद के नए विचार सामने ला रहा है। उनका पसंदीदा प्रोजे क्ट खिड़की के 10 साल पूरे होने के जश्न के रूप में शुरू हुआ। आदिल ने मोहल्ले के बच्चों को इकठ्ठा कर फुटबॉल के मैच कराये । शायद बाद में वे क्लब भी बनाएं । शुरुआती सफलता के बाद, भविष्य के प्रयासों में खे ल के मैदानों की कमी के कारण निराशा का सामना करना पड़ा। आदिल उम्मीद करते है कि मॉल द्वारा जामुन पार्क के विकास से खे लने की कोई जगह बने गी, जिससे बंटे हुए समाज में नयी उम्मीद आएगी।

मोहल्ले की विचित्रता ने मे ने ज र को चौंकाया

मालिनी कोचुपिल्लै

मैं

ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं एक कैफ़े मैनेज करुँ गी। वह भी खिड़की जैसे शहरी गाँव में, खोज जैसी जगह के भीतर। पिछले साल मेरे इस सफर की शुरुआत हुई, जो मेरी ज़िन्दगी के सबसे संतोषजनक वर्षों में से एक है। मेरा पिछला अनुभव गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ काम करने का रहा है, जो मैंने पढाई के बीच लगभग तीन साल

कला का लेन-देन / पृष्ठ 1 से भेजती और वे रिकॉर्ड टाइम में काम ख़त्म करके वापस भेजते। लिज़ा के पति नार्मन,जो कि पेंटर और कलाकार हैं, उनके काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी एक पेंटिंग कढ़ाई के लिए भेजी।

चुनौतियों न घबराने वाले शिबि ने बहुत ही उत्सकता से लिज़ा के इस काम को लिया, ताकि वे कुछ नया और रचनात्मक बना सकें। एक छोटी समयसीमा में, बिना दुभाषिये की मदद के उन्हें काम करना हाल ही में लिज़ा और नार्मन, पड़ा। शिबि ने काम पूरा करने पर सभी कलाकारों से खूब वाह अपने काम के नमूने लेने नई दिल्ली आये और इस भागीदारी वाही बटोरी। से संतुष्ट होकर गए। वे आने लिज़ा उनके काम की क्वालिटी वाले समय में भी शिबि और और बारीकी की वजह से संतुष्ट उनकी टीम के साथ काम करेंगे। थीं। यह भागीदारी इतनी सफल रही कि केप टाउन वापस जाने पर भी लिज़ा उन्हें अपनी पेंटिंग

शिबि बड़े गर्व के साथ लिज़ा को अपनी दस्तकारी दिखाते हुए

तक किया। मुझे हमेशा से अपना छोटा सा कैफ़े खोलना था, मौका मिलते ही मैंने झट से लपक लिया। पर मेरे संशय से भरे दिमाग को खिड़की में काम करने के ख्याल से डर लगता था। एक सुरक्षात्मक पृष्टभूमि से आने की वजह से मैंने समाज के अलगअलग वर्गों के इतने सारे लोगों को एक साथ आमने-सामने कभी नहीं देखा था। शुरू शुरू में साई मंदिर से खोज तक आना एक संघर्ष की तरह होता था। लोग आपको घूरते और आप बहुत असहाय महसूस करते। लेकिन अब, मैं सधी हुई चाल में आती-जाती हूँ।

शुरू में खिड़की आने से हिचकिचाने वाली कैफ़े मेनेजर देविका मेनन, एक साल के भीतर, इस मोहल्ले की तारीफ करते नहीं थकती

28°31’51.80”N / 77°13’3.06”E

कला और खेल / पृष्ठ 1 से

मैंने बहुत से स्थानीय सब्जीवालों से दोस्ती कर ली है। मैं जब भी सब्ज़ी खरीदती हूँ, वे मुझे मुफ्त में माचिस दे देते हैं। यहाँ का स्थानीय सब्ज़ीवाला बहुत ही मददगार है। जब भी कैफ़े में काम करने वाले लोगों की कमी होती है, वो कहीं न कहीं से कोशिश करके थोड़े समय के लिए काम करने के लिए किसी को ढू ंढ ले आता है। मुझे इस बात से हैरानी होती है कि पूरे देश और विश्व से लोग खिड़की में रहने आते हैं। मैं खुशनसीब हूँ कि, कई लोगों से मुझे कैफ़े में काम करते हुए मिलने का मौका मिला।

कुछ लोगों से मेरी दोस्ती भी हुई है जिनसे मैं जीवन के हर पहलू के बारे में चर्चा करती हूँ। जब भी वक़्त मिलता है तो हम व्हाट्सएप्प पर बात करते हैं। बाकियों से भी हल्की-फुल्की बात होती है। मुझे यह बात सोचकर हैरानी होती की आप दस ू रे देश से आये हुए लोगों से अनगिनत विषयों पर चर्चा कर सकते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप किस मुल्क से हैं, मानवीय रिश्ते ही सबको एक साथ लाते हैं। खिड़की मैं काम करने के अनुभव ने मुझे यह सिखाया है और मैं हमेशा इस बात को याद रखूग ं ी। कभीकभी कैफ़े में आने वाले मेहमान मुझसे कहते हैं कि कैफ़े बहुत ही अजीब जगह में है। एक आदमी ने मुझे बताया कि वह चैक करने आया है कि यह जगह उसकी बहन के लिए सुरक्षित है या नहीं। कुछ ने घूरे जाने की शिकायत की। मैं अपने अनुभव को मुस्कराहट के साथ बताती हूँ और उन्हें आश्वासन देती हूँ कि यह सुरक्षित है। शायद अन्य मोहल्लों से ज़्यादा क्योंकि यहाँ सड़क पर हर वक़्त लोग होते हैं। शायद मेरा सबसे अच्छा अनुभव तब होता है, जब लोग मेरे अच्छे काम की तारीफ करते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैफ़े में आना बहुत अच्छा लगता है। अगली बार जब भी खोज आएं तो आकर ‘हेलो’ ज़रूर कहें। मैं आपके कैफ़े के अनुभव को यादगार बनाने की पूरी कोशिश करुँ गी।

डांस क्लासेज से सामाजिक मतभेद कम होंगे सु कै ना हु सैन है जो स्कू ल और ट्यूशन के बीच यहाँ आता है। और द स ू रा, र रोज़ ठीक चार बजे हौज़ छोटी लड़कियों का समू ह है रानी और खिड़की से लड़कियों जिन्होंने हाल ही में साई मंद िर का एक समू ह खोज में आता के पास भीख मां ग ना छोड़कर है। वे इधर-उधर ताकते हु ए , स्कू ल जाना शुरू किया है। सीढ़ियों से ऊपर नीचे जाते हु ए , शुरू में दोनों समू हों के बीच भोहें चढ़ाकर खोये हु ए समय की किसी भी तरह की बातचीत; भरपाई करती हु ई ,ं एक कॉपी और पेंसि ल अपनी छाती से चिपकाये हु ए अपनी आर्ट और ये एक घंटे खेल और डांस के लि डां स क्लास की प्र तीक्षा करती समुदायों से आकर नज़र आती हैं। 2015 में रेवू मिल पाना, अलग दूसरे को समझ आर्टिस्ट सरीजता रॉय और बात करना और एक ता है। पाना, नए आयाम खोल मृ त ्युंजय चटर्जी के ‘ने ट वर्क एं ड ने इ बरहू ड ’ नाम के सामुदायिक कला प् रो जे क ्ट की समाप्ति के बाद इन लड़कियों को एक जगह स्वभाव,भाषा और रहन-सहन की ज़रुरत थी जहाँ ये खुद को के अं त र की वजह से करा पाना रचनातत्मक ढं ग से व्यक्त कर अपने आप में एक चु न ौती था। सकें । जिसके फलस्वरूप, खोज ने नैन ा भान और जु ई दे ओ गां क र लेकि न दोनों समू हों से बात को यहाँ आर्ट और डां स क्लास करके पता चला कि दोनों को ले ने के बु ल ाया, जहाँ लड़कियों स्कू ल और घर की ज़िम्मेदारियों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के बोझ से जू झ ना पड़ता हो। इस समू ह में अलग-अलग है। दोनों को अपनी व्यस्त समुदाय की लड़कियां हैं- दिनचर्या से मनपसं द शौक के ज़्यादातर अफ़ग़ानिस्तान से लिए वक़्त निकाल पाना बहु त हैं, पर पिछले कु छ वक़्त से ही मुश्किल है - और मौज आस-पास की झुग्गियों से भी मस्ती कर पाना एक इनाम है, लड़कियां जु ई दे ओ गां क र से आम ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं। भरतनाट्यम सीखने आती हैं। खे ल और डां स के लिये एक इन क्लासे ज में आने वाले घंटे मिल पाना, अलग समुदायों से मु ख ्यरूप से दो समू ह हैं -एक आकर बात करना और एक द स ू रे अफगान लड़कियों का समू ह को समझ पाना-बातचीत के नए

आयाम खोलता है। खिड़की ऐसी जगह है, जहाँ अलगअलग समुदाय के लोग अं त र को आसानी से अपना ले ते हैं। यह अक्सर बोला जाता है कि खिड़की एक ऐसी जगह है जहाँ विविधता है, विश्वभर के लोग यहाँ एक साथ रहते हैं। लेकि न रंग भे द और नस्लवाद भी यहाँ होता है, छोटी बहस बड़ी लड़ाई का आकार ले ले ती हैं और दोनों समुदाय एक द स ू रे को समझना नहीं चाहते । ऐसे में समाज के अलग-अलग हिस्सों से आने वाली ये लड़कियां , हर शाम एक साथ आकर मौज-मस्ती और डां स करती हैं, कदम से कदम मिलाकर एक साथ थिरकती हैं। ये अलग-अलग लोगों के बीच अनजाने में एक पु ल बना दे ती हैं। ऐसे सघन वातावरण में जहाँ प्र व ासी और शरणार्थी अपने मुश्किल अतीत को भु ल ाकर एक सरल ज़िन्दगी बनाने की जद्दोजहद में लगे हु ए हैं, खे ल ने की जगहें , ख़ास तौर पर युव ाओं के लिए, खिड़की जैसी विविधता से परिपू र्ण जगह में भविष्य के लिए बातचीत की जगहें बनकर एक मजबू त समाज का निर्माण कर सकती हैं।

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खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

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1 फरवरी 2017.खिड़की आवाज़

अफगानी आर्ट ग्रुप को भ्रष्टाचार विरोधी अवार्ड से सम्मानित किया गया द्वारा शुरू किया गया ज़मीनी आं दोलन है। उन्होंने करप्शन के खिलाफ जागरूकता फैलाई है, साथ ही जीरो टॉलरेंस और ईमानदारी की बात स्ट्रीट आर्ट और मुराल पेंटिंग्स के द्वारा व्यक्त की है। इस ग्रुप ने दीवार पर आँ खों वाली पेंटिंग की सीरीज बनाई है, जिसके नीचे ‘आई सी यू’ लिखा है। इसे भ्रष्ट अधिकारियों के लिए चेतावनी की तरह प्रस्तुत किया गया है। ‘आई सी यू’ में काबुल के प्रेजिडेंट पैलेस को मिलाकर 70 जगहों पर तीस वर्ग फ़ीट ऊँचे मुराल बनाये गए हैं। कैंपेन का मुख्य वाक्य यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार

भगवान और लोगों की नज़र से नहीं छुप सकता।भ्रष्टाचार को सामने लाने और इससे लड़ने के लिए इस अवार्ड की स्थापना है। इसे देने का असल मकसद है इस कुरीति से लड़ने के लिए आधुनिक तकनीकें अपनायी जाएँ । आर.ओ.एल.ए.सी.सी. ने एं टी करप्शन इनोवेशन अवार्ड की स्थापना की। स्त्रोत: http://www.sada-eazadi.net/

अफ़ग़ानिस्तान के एक आर्टिस्ट और एक्टिविस्ट का ग्रुप को पहले ‘शेख तमीम बिन हम्माद अल थानी के पहले एं टी करप्शन अवार्ड’ के लिए चुना गया है। लार्ड ऑफ़ काबुल, आर्ट अफ़ग़ानिस्तान का एक आर्टिस्ट और एक्टिविस्ट का ग्रुप है, जिसे पहले ‘शेख तमीम बिन हम्माद अल थानी के पहले एं टी करप्शन अवार्ड’ के लिए चुना गया। 9 दिसम्बर को विएना, ऑस्ट्रि या के होफ़्बुर्ग पैलेस में; यूरोप, एशिया, नार्थ

व साउथ अमेरिका और अफ्रीका से लोगों, दलों और संस्थानों को एं टीकरप्शन एक्सीलेंस अवार्ड के लिए मनोनीत किया गया। अंतरराष्ट्रीय एं टी करप्शन डे के दिन संयक्त ु राष्ट्र

आर्टलॉर्ड

के जनरल सेकरे् टरी बान-की-मून और क़तर के अमीर, शेख तमीम बिन हम्माद अल थानी ने परस्कारों से सम्मानित किया। अफगानिस्तान एं टी करप्शन इनोवेशन आर्टलॉर्ड कलाकारों

उमेद शरीफ /आर्टलॉर्ड

आई सी यू (ऊपर) आदमी पेंसिल और गन के साथ (दाएं ) ठे ले में दिल (नीचे)

जानिए

आपका देश किसमें नंबर एक है ?

मैं सोमाली औरत हूँ कवि : साहरो अहमद कोशिन

मैं एक शहीद की बहन हूँ मैं बाज़ार में आलू बेचनेवाली की बुआ हूँ मैं स्थानीय शेख की बेटी हूँ मैं क्रांति की घायल हूँ।प्रदर्शनकारी।बंदी। हिरासत में ली हुई। मैं सताई हुई हूँ। निर्वासित।अपरहण की हुई। रेप पीड़ित। मैं परदे में हूँ। बेपर्दा हूँ। मैं सुन्दर हूँ। मैं सोमाली औरत हूँ। मेरी त्वचा आबनूस और हाथी-दाँत के रंग की है। मैं दिल से जवान हूँ। अनुभव से बूढ़ी हूँ। मैं गर्भवती हूँ। पत्नी। अकेली माँ। विधवा। गोदोबाटेर और गोड़ोबरीब का साधन हूँ। मुझे दस ू रे कुलों के शांति निबटारे पर शादी के लिए मजबूर किया जाता है। मैं सोमाली औरत हूँ। लेकिन मैं पीड़ित नहीं हूँ। मैं एक नेता हूँ। एक महिला नेता नहीं। लेकिन एक औरत जो नेता है। मैं अपने देश की सड़कें साफ़ करती हूँ। मैं इतिहास से उठती हूँ। आज और आने वाली पीढ़ियों से। मैं सोमालिया के लिए नोबेल पुरस्कार लाई। मैं सोमाली औरत हूँ। मैं स्कूल में अपने बेटे के लिए बोलती हूँ। मैं मदरसे में अपनी बेटी के लिए बोलती हूँ। मैं अपने पूर्व जों और जेल में कैद अपने बड़े बेटे के लिए प्रार्थ ना करती हूँ। अस्पताल में अपनी माँ के लिए। उन कलाकारों के लिए, जिन्हें मंचों और सडकों पर मार दिया जाता है। मैं सोमाली औरत हूँ। मैं अपने मन की बोलती हूँ। मैं लोगों की आवाज़ हूँ। मैं शहर में रहती हूँ। नगर मैं। गाँवों में। बस्ती में। पहाड़ पर। सरहद पर। मैं ग्रोवे में हूँ। मोगदिशु । अफगोई। एरिगबो । हरगैस । गलकायो। बोसासो। बेलेटवीन। बड़हन।बोब्कम। और हर उस कोने में जहाँ ज़िन्दगी और आवाज़ है। मैं सोमाली औरत हूँ। मुझे ताकत और जीत का प्रतीक माना जाता है। मैं बहन होने का उल्लास मनाती हूँ। मैं मातृत्व का उल्लास मनाती हूँ। मैं देश को आगे बढ़ाती हूँ। मैं तकनीक को उन्नत करती हूँ। मैं समुदाय में सांस फंू कती हूँ। क्या मैं तुम्हारी बराबरी के लायक हूँ ? हाँ। क्योंकि मैं एक औरत हूँ। मैं सोमाली औरत हूँ। स्त्रोत: http://allthingssomali.com/

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खिड़की आवाज़.1 फरवरी 2017

युवा बिहारी म

संगीतकार अरिजीत सिंह जैसा बनने का सपना देखता है

महावीर सिंह बिष्ट

नोज मालिक छोटे कद के ऊर्जा से भरे हुए युवक हैं। उन्हें बचपन से ही संगीत सुनने और सुनाने का शौक रहा है। उनके भोले चेहरे पर न जाइये। बचपन से ही कुछ अलग करने की चाह में वे बिहार के अपने छोटे से गाँव को छोड़कर भाग आये। उन्हें पढ़ने-लिखने का भी बहुत शौक था।लेकिन संगीत का कीड़ा सबसे प्रबल था। वे बचपन में हिंदी के गाने रामलीला और अन्य मंचों पर गाते थे। वे 90 के दौर में कुमार सानु, उदित नारायण और बाबुल सुप्रियो के गाने सुनकर बड़े हुए। उनकी हमेशा से इच्छा थी कि वे संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ें। घर से भाग आने के बाद उनका वास्तविकता से सामना हुआ। उनके लिए दिल्ली आसान शहर नहीं था। उन्हें जो भी काम मिला,किया । शुरू-शुरू में सब मुश्किल था। अंततः उन्हें द्वारका में ‘तानसेन संगीत महाविद्यालय’ में काम करने का मौका मिला। वे नौकरी करते थे पर संगीत से जुडी हर जानकारी को ध्यान से सुनते । धीरे-धीरे उन्होंने गिटार, वायलिन और अन्य वाद्य यंत्रों को बजाना सीखा। ये सब वे अपने खाली वक़्त में करते थे। एक दिन हिम्मत जुटाकर उन्होंने इंस्टिट्यूट के मालिक से कहा कि वे सिर्फ सीखना चाहते हैं।मालिक ने उनके जज़्बे को देखते हुए पूरी आज़ादी दे दी। धीरे-धीरे उन्हें लोगों के कार्यक्रम में संगीत प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाने लगा।इंस्टिट्यूट द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में वे बतौर गिटारिस्ट जाते और खूब तालियां बटोरते। साथ ही उन्हें बड़ी-बड़ी

हस्तियों से मिलने का भी मौका मिला। वे बड़े उत्साह के साथ बताते हैं कि एक बार उन्हें जतिन पंडित के साथ गिटार बजाने का मौका मिला। उन्होंने अपना सबसे बेहतरीन परफॉरमेंस दिया। पुरस्कार स्वरुप उन्होंने जतिनजी के साथ पूरा दिन बिताया। वे इस पल को अपना सबसे बड़ा ब्रेक मानते हैं। आजकल वे खिड़की में ‘रॉक एन रोल’ नाम से अपना एक इंस्टिट्यूट चलाते हैं। उनके छात्र उन्हें बहुत पसंद करते हैं। अब उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। दो-

तीन महीने में पैसा बचाकर वे अपने माँबाप को भेजते हैं। वे आज के दौर में अरिजीत सिंह को सबसे बड़ा गायक मानते हैं। वे रोज़ अरिजीत के गानों को सुनते और कार्यक्रमों में परफॉर्म करते हैं। वे अपने संगीत को निखारने के लिए रोज़ योग और रियाज़ करते हैं। साथ ही उनका मानना है कि सिखाने से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। एक ऊँचा मुकाम पाने की इच्छा में वे रोज़ दिल लगाकर मेहनत करते हैं।

मनोज योग को लेकर उतने ही अनुशासित हैं, जितना गाने और संगीत के रियाज़ को लेकर हैं।

फार्च्यून प्रिंट सर्वि स, ओखला इं डस्ट्रियल एरिया, नई दिल्ली द्वारा मुद्रित . संपादकीय डिजाईन डैमेज कण्ट्रोल द्वारा . मालिनी कोचुपिल्लै और महावीर सिं ह बिष्ट द्वारा सम्पादित [khirkeevoice@gmail.com] . खोज इं टरनेशनल आर्टि स्ट्स एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित

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