PRACHIN BHARTIY SHIKSHA PADADHATI KI VARTMAN SAMAY ME NAIMITTIKATA

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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2018 = 6.371, www.srjis.com PEER REVIEWED JOURNAL, MAR-APR, 2019, VOL- 6/50

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धशत की वततमान समय में नैशमशिकता अतल ु कुमार1 & भरत कुमार पडं ा2, Ph. D. 1

(पी. एच. डी.शोधाथी) शशक्षाशास्त्र, शशक्षा शिद्यापीठ, महात्मा गा​ाँधी, ऄंतरराष्ट्रीय शहदं ी शिश्वशिद्यालय,

िधा​ा,महाराष्ट्र-442001 Email-id :-atulkumargupta00@gmail.com 2

(सहायक प्राध्यापक), शशक्षाशास्त्र, शशक्षा शिद्यापीठ, महात्मा गा​ाँधी, ऄंतरराष्ट्रीय शहदं ी शिश्वशिद्यालय,

िधा​ा,महाराष्ट्र-442001 Abstract

शशक्षा एक ऐसी प्रशकया है जो मनष्ट्ु य को अशदकाल से ही प्रभाशित करता अया है और मनष्ट्ु य ने शशक्षा के द्वारा ऄपने ही समाज और संस्कृ शत का शिकास शकया है। शजसका पररणाम अज का अधशु नक समाज है।शशक्षा समय , समाज, संस्कृ शत और देश की भौगोशलक पररशस्थशत के ऄनसु ार बदलती रही है। शकन्तु अज हमारी शशक्षा व्यिस्था ऐसी हो गयी है , जहा​ाँहम शशक्षा का ऄथा शकसी स्कूल ,कालेज या शिश्वशिद्यालय में जाकर शिशभन्न शिषयों की दस या बीस -तीस पस्ु तकें ऄध्यापकों से पढ़ लेना ही समझते हैं। शजस व्यशि ने आस शनयत पाठ्यक्रम के ऄनसु ार शजतनीऄशधक पस्ु तकें पढ़ी हैं और शजतनी उाँची परीक्षाएं पास की हैं िह हमारी दृशि में ईतना ही ऄशधक शशशक्षत या शिद्वान है। अजकल लोगों का यही शिचार है शक जो व्य शि ऄक्षरों से पररशचत नहीं है और एक या कइ भाषाओ ं को शलखने -पढ़ने की योग्यता नहीं रखता िह कदाशप शशशक्षत नहीं कहा जा सकता है। परन्तु हमारीप्राचीन भारतीयशशक्षा व्यिस्था ऐसी न थी ईसमें शिद्याशथायों को के िल शकसी एक शिधा की शशक्षा नहीं दी जाती थी बशकक ईन्हें शशक्षा शारीररक , मानशसक,बौशिक तथा अध्याशत्मक शशियों के शिकास की शशक्षा दी जाती थी। शजससे िे ऄपने जीिन में शकसी भी कशठनाइ का सामना कर सके शकन्तु अज की शशक्षा ऐसा करने में ऄसमथा है। बी . सरन ने कहा है की, “ चाहे शकतने भी ऄच्छे शदन क्यों न अये तब तक मातृभशू म का मख ु मण्डल न चमके गा जब तक की भारत की संस्कृ शत बोल न ईठे गी , जंगलों के गुरुकुलों में शनिास करने िाले ऊशषयों की भाषा में , जागकर न कहेगी की ईस ऄलौशकक संदेश और शशक्षा को फै लाओ , गुरुकल प्रणाली के शसिांत सदैि और सिात्र ग्रहणीय है –प्रत्येक देश और प्रत्येक पररशस्थशत में ” । अज हमारी शशक्षा शकसी ऄधं ेरी गफ ु ा में ऄपने रास्ते से भटक गयी है । ऐसा क्यों ? ऄत: हमें ऄपनी अधशु नक शशक्षा में कुछ शदशा एिं दशा पररितान करने की अिश्यकता है। शजसे हम आस लेख के माध्यम से दृशिपाशदत करने का प्रयत्न कर रहे है। Keywords:-प्राचीन भारतीय शशक्षा, अधशु नक शशक्षण,गुरुकुल प्रणाली, शिद्यालयी शशक्षा। Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com

प्रस्तावना:-प्राचीन भारत में शिक्षा की व्यवस्था के शिए गरु​ु कुि प्रणािी का शवकास शकया गया था। जहा​ां एक-एक ऋशि, महशि​ि सैकड़ोंशवद्याशथिय़ों को ाऄपने यहा​ाँ रख करजीवन जीनेके शिए ाअवश्यक शिक्षा प्रदान करते थे। ाईस समय कागज का ाअशवष्कार नहीं हुाअ था, ाआसशिए पस्ु तक़ों द्वारा शिक्षा देने वािा प्रश्न ही नहीं ाईठता । ाईस समय सब प्रकार की शिक्षा मौशखक या व्यवहाररक रूप में ही दी जाती थी। ाआसशिए ाईस समय के शवद्याथी जो कुछ पढ़ते थे ाईसे जन्म भर के शिए स्मरण िशि द्वारा सरु शक्षत बना िेते थे। मन, बशु ि, ाअत्मा, ाऄहक ां ार ाऄन्त: करण चतष्ठु य को प्रभाशवत कर स्वाभाशवक व्यवहार में पररवतिन कराया जाता था एवां ाअचारगत पररवतिन को ही ाऄशधगम की पररभािा के रूप में स्वीकार शकया जाता था “आचारों परमोंधमत:” । ाआस शिक्षा के द्वारा व्यशि की समस्त िशिय़ों का ससु ांगत शवकास होता था । ाअजकि के समान परीक्षा समाप्त होते ही पस्ु तक़ों से नाता तोड िेने और पढ़े हुए शविय़ों में से तीन चौथा​ाइ को कुछ ही महीऩों में भि ु ा देने वािी शिक्षा प्रणािी ाईस समय न थी। Copyright © 2017, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies

‘ाईस समय शिक्षा द्वारा


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