Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2018 = 6.371, www.srjis.com PEER REVIEWED JOURNAL, NOV-DEC, 2018, VOL- 6/48 योजनमूलक हंद क संक पना एच. ए. हु नगुंद , Ph. D.
सहायक
ोफेसर, भाषा व ान एवं भाषा
ौ यो गक
वभाग, महात ्मा गांधी अंतरराष ् य हंद
वश ्व व यालय, वधा Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com भाषा एक सामािजक यथाथ है । इसका वकास मानव के सामािजक जीवन के व भन ्न योजन के सं ेषण के लए हु आ है । यह सामान ्य सं ेषण नह ं होता वरन ् दै नक जीवन के व भन ्न योजन को साधने के लए होता है । सामािजक जीवन म इन व भन ्न संदभ , ि थ तय और काये
म भाषा का योग होने से उसके कई प उभरने लगते ह। वस ्तुत: भाषा अपने आप म सम पी
होती है, परं तु योग म आने से वह वषम पी बन जाती है । इन ्ह ं योगगत भेद के कारण कई भाषा भेद दखाई दे ते ह। इसका कारण यह है क मनुष ्य का मि तष ्क इनता सृजनशील होता है क व भन ्न ि थ तय , संदभ और उ ेश ्य के अनु प वह भन ्न- भन ्न भाषा शै लय का योग करता है और ये शै लयां सामािजक, सांस ्कृ तक और योजनपरक संदभ म नयं त होती ह। इसी संदभ म भाषा के मुख ्य प से दो प है , और दूसरा प
ह- एक का संबंध मानव क सौन ्दयपरक अनुभू तय के आलंबन से होता
भाषा के योजनपरक आयाम से जुड़ा रहता है ।
‘ योजनमूलक हंद ’ म युक्त ‘ योजन’ शब ्द का कोशीय अथ है , उ ेश ्य। योजनमूलक शब ्द अं ेजी के फंक् शनल का पयाय है । योजनमूलक हंद का अथ ऐसी वशेष हंद िजसका उपयोग कसी वशेष योजन के लए कया जाए। योजनमूलक शब ्द हंद क उस वशेषता क ओर संकेत कर रहा है, जो हंद म कसी व शष ्ट योजन का उ ेश ्य क पू त के लए योग स ्तर पर वतमान होती है । िजस भाषा प का योग कसी व शष ्ट योजन क पू त हेतु कया जाता है, उस भाषा प को योजनमूलक भाषा कहा जाता है । फंक् शनल लग ्वेज के समानाथ शब ्द के प म हंद म इस Copyright © 2017, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies