ऋषभदे व शर्मा
जन्म - 4 जुलाई,1957, ग्राम गंगधाड़ी, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदे श। कार्यक्षेत्र – इं टेलीजेंस� ब्यूरो (1983-1990)। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिं दी प्रचार सभा (1990-2015)। प्रकाशन – 19 मौलिक और 43 संपादित पुस्तकें। संप्रति - स्वतंत्र लेखन।
अख़बार का दोहरा दायित्व होता है पाठक और जनतंत्र की ओर। ख़बरें लिखने वालों की जवाबदे ही उनके पाठकों की ओर होती है । वह संपादकीय ही है जो जनतंत्र का प्रहरी बन खड़ा होता है , डटा रहता है । वह पाठकों की ओर कम और सत्ता की, सरकार की तथा लोकतंत्र के बाकी लठधारियों की ओर अधिक उन्मुख होता है ।
सं पादकीयम्
संपादकीयम्
शायद यही कारण है कि रीडरशिप सर्वे बार-बार यह दिखाते हैं कि पाठक संपादकीयों को कम पढ़ते हैं । पर मुझे लगता है , यह बात ‘संपादकीयम्’ के लिए सच नहीं है । पाठकों की प्रतिक्रियाओं से यह साफ है कि वे इन्हें बहुत ग़ौर से पढ़ते हैं - उन्हें यह उम्मीद तो नहीं रहती कि लठधारी कुछ उत्तर भी देंग�े, पर वे इनमें उठाए प्र�नों के साथ खड़े हैं । ये उन्हीं के प्र�न हैं ।
- कुमार लव kummarluv@gmail.com
परिलेख प्रकाशन नजीबाबाद
ISBN :978-93-84068-79-0
ऋषभदे व शर्मा
और जब इन प्र�नों में कुछ तंज उभर आता है , कोई व्यंग्य चोट करता है , चुभता है – तो वह उन्हें भी उतना ही चुभता है जितना सत्ता या लठधारियों को। क्योंक�ि जनतंत्र का सबसे बड़ा गुंडा तो ‘जन’ ही है । उस ही के वोटों ने इस बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल (बच्चों के खेलने की जगह) को सलामत रखा है ।