मै आसमां पे बहु त दे र रह नही सकता मै आसमां पे बहु त देर रह नही सकता मगर यह बात ज़मी से तो कह नही सकता िकसी के चेहरे को कब तक िनगाह मे रक्खूं सफ़र मे एक ही मंज़र तो रह नही सकता यह आज़माने को फ़ुसर्ना त तुझे कभी िमल जाये मै आं खों-आं खों मे क्या बात कह नही सकता सहारा लेना ही पडता है मुझको दिरया का मै एक क़तरा हू ं तनहा तो बह नही सकता लगा के देख ले, जो भी िहसाब आता हो मुझे घटा के वह िगनती मे रह नही सकता यह चन्द लमहों की बेइियाख़्तयािरयां है 'वसीम' गुनाह से िरश्ता बहु त देर रह नही सकता
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