VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2022

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संरक एवं

मुख संपादक

सुधा ओम ढगरा

संपादक

पंकज सुबीर

क़ानूनी सलाहकार

शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट)

तकनीक सहयोग

पाल िसंह, सनी गोवामी

िडज़ायिनंग

सुनील सूयवंशी, िशवम गोवामी

संपादकय एवं यवथापकय कायालय

पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7

साट कॉलैस बेसमट

बस टड क सामने, सीहोर, म.. 466001

दूरभाष : +91-7562405545

मोबाइल : +91-9806162184

ईमेल : vibhomswar@gmail.com

ऑनलाइन 'िवभोम-वर' http://www.vibhom.com/vibhomswar.html

फसबुक पर 'िवभोम वर’ https://www.facebook.com/vibhomswar

एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)

सदयता शुक

3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)

11000 पये (आजीवन सदयता)

बक खाते का िववरण-

Name:VibhomSwar BankName:BankOfBaroda, Branch:Sehore(M.P.)

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संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अयवसाियक।

पिका म कािशत सामी लेखक क िनजी िवचार ह।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj1
संपादक तथा काशक का उनसे सहमत होना आवयक नह ह। पिका म कािशत रचना म य िवचार का पूण उरदाियव लेखक पर होगा। पिका जनवरी, अैल, जुलाई तथा अटबर माह म कािशत होगी। समत िववाद का याय े सीहोर (मयदेश) रहगा। DhingraFamilyFoundation 101GuymonCourt,Morrisville NC-27560,USA Ph.+1-919-801-0672 Email:sudhadrishti@gmail.com वैक िहदी िचंतन क अंतराीय पिका वष : 7, अंक : 27, ैमािसक : अटबर-िदसबर 2022 RNINUMBER:MPHIN/2016/70609 ISSNNUMBER:2455-9814 आवरण िच पंकज सुबीर बािलका शी जो जहाज़ महल माडव क बाहर छोटी सी दुकान लगाती ह।

हो

पाजामा

13

16

आपौधा

सरदाना22

का

िसहा27

काशराठी 30

तुमआओगेन सदीपतोमर33

मजबूर

डॉ.चुमनसादीवातव38 भाषांतर

दूसराहादसा उदूकहानी

मूललेखक:तारकछतारी

अनुवादकःपंकजपराशर43 अजनबी मलयालमकहानी

मूलकथाकार:अहाममैयू अनुवादक:डॉ.षीनाईपन46 लिलतिनबंध रामकौन?

डॉ.वंदनामुकश 49

शहरकह

नीलांजलमॉरीशस

चौधरीमदनमोहन"समर"53

यंय

गूगलबाबाकजय

डॉ.दलजीतकौर58

पनीऔरधमपनी

ललनचतुवदी60

लघुकथा

आवाज़

सुभाषचंलखेड़ा12

ािलटीटाइम

डॉ.मधुसंधु21 राखसेपहले

योसनािसंह61

िविशकिव वसंतसकरगाए62

किवताएँ

'मीनू'मीनािसहा64 रखाभािटया65 हमतशमा66

लालदेवेकमारीवातव67 ितभाचौहान68 गीत

कलाशमनहर69 ग़ज़ल डॉ.आरतीकमारी70

जयचवत71

आिख़रीपा 72

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj2 संपादकय3 िमनामा5 कथाकहानी लडीकोठी िदयामाथुर8 हािकमका
नीरजनीर
िनणयसहीथा अचनािम
बूढ़ा
गया
सतीश
सुखिवदाई
शेफािलका
अगोचर हर
िवभोम-वर सदयता प यिद आप िवभोम-वर क सदयता लेना चाहते ह, तो सदयता शुक इस कार ह : 3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष) 11000 पये (आजीवन सदयता)। सदयता शुक आप चैक / ाट ारा िवभोम वर (VIBHOMSWAR) क नाम से भेज सकते ह। आप सदयता शुक को िवभोम-वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरणNameofAccount:VibhomSwar,AccountNumber:30010200000312,Type:CurrentAccount,Bank: BankOfBaroda,Branch:Sehore(M.P.), IFSCCode:BARB0SEHORE(FifthCharacteris“Zero”) (िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा करटर अंेज़ी का अर 'ओ' नह ह बक अंक 'ज़ीरो' ह।) सदयता शुक क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पिका भेजी जा सकः 1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सदयता शुक, 4- चैक/ाट नंबर, 5- ांज़ेशन कोड (यिद ऑनलाइन ांफ़र ह), 6-िदनांक (यिद सदयता शुक बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।) संपादकय एवं यवथापकय कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, साट कॉलैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म.. 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com इस अंक म वष : 7, अंक : 27, अटबर-िदसबर 2022

किठतकरजातीह,इसकाएहसासभीउसेनहहोता।प

कम लोग क होती ह और दूरदश भी वे ही बन पाते ह। स 2009 म मने फ़सबुक औरटरकायोगशुिकयाथा।उन िदनलेखककाएकगुट फ़सबुकपरअमेरकाक िख़लाफ़िलखरहाथाऔरयहाँरहरहभारतीययानीवासीभारतीयकोभीअपनीपोसम नीचा िदखा रह थे। तक़रीबन सभी वासी भारतीय ने, जो फ़सबुक पर थे, उनक िलखे को नज़रअंदाज़ िकया। समझ गए थे िक किठत मन और िबना जानकारी क वे िलखी ग बात थ। कछभीसमझानेकाअथिववादशुकरवानाथा। वासी भारतीय भारत से ही तो आए ए ह, और इस मानिसकता को भी अछी तरह से समझतेह,िकरलकसामायिडबेमबैठायाीअमेरकाकेिज़डटजोबाइडन

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj3 सुधा ओम ढगरा 101, गाईमन कोट, मोरवल नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए. मोबाइल- +1-919-801-0672 ईमेल- sudhadrishti@gmail.com संपादकय दोहरीमानिसकतामनुयको
सोच बत
कोदेशको कसे चलाना चािहए, क सीख देने से नह चूकता और वयं क वोट को छोट-मोट लालच म ग़लतनेताकोदेदेताह।दूसरकोिशादेनीतोजमिसअिधकारसमझाजाताह। गतिदनअमेरकाकअलग-अलगशहरसेआभासीदुिनयाककईलेखकिमकफ़ोन कॉस आए, जो अमेरका अपने ब से िमलने आए ए ह। उनम वे लेखक भी थे; िजहने कभीअमेरकाऔरयहाँरहरहभारतीयकिख़लाफ़िलखाथा।उहलेखकनेजबअमेरका क तारीफ़ क पुल बाँधने शु िकये और बड़ गव से कहा िक अब यह सैटल हगे तो यूक क एक लेखक क कही बात याद आ गई। ऐसे लोग दोहरी मानिसकता वाले, दोहर मापदंड क होते ह, कहते कछ ह और करते कछ ह। दूसर क िलए अमेरका क बुराइयाँ बताई जाती ह, अपने ब को अमेरका म थािपत करने क कोिशश क जाती ह, तब यह बेहतरीन देश हो जाताह।समाजऔरजनजीवनमयहमानिसकताबतगहरघरकरचुकह। राजनीित म दोहरी मानिसकता हर देश म पाई जाती ह, सा पाट क आलोचना तो िवरोधी पाटकरतीहीह,बेशकिलंगपाटदेशऔरजनताकिहतकिलएकायकररहीहो।अपनी साकसमयिवरोधीपाटनेचाहिकतनीहीग़लितयाँयनकह,उहभुलािदयाजाताह। खैर पूर िव म राजनीित एक धंधा बन चुक ह। अंतर इतना ह अमेरका म दो पािटय क तनातनीमदेशकाअिहतनहहोनेिदयाजाताऔरआमजनकापूरायानरखाजाताह... दोहरी मानिसकता रा और समाज क िलए अिहतकर ह

और उलझन का ऐसा वातावरण

िनिमतकरदेतेह;िजससेपताकभीनहआती,अगलीपीिढ़याँभीनकउरतलाशती अप ही रहती ह, चाह धम हो या दशन, जीवन मूय हो या फलसफा अपरभािषत ही रह जातेह।

आजदेशमजोअसंतोषऔरअशांितकामाहौलह,सामािजक,आिथक,राजनीितकऔर अय अनेक कारण क साथ-साथ दोहरी मानिसकता और दोहर मापदंड भी कारक ह। समय रहतेसचेतहोनाअिनवायह। उसव का माहौल सज रहा ह। दशहरा, दीपावली, थसिगिवंग और नववष क िवभोमवर और िशवना सािहयक टीम क ओर से आप सबको ब बधाई और ढर सारी मंगलकामनाएँ!!! आपक, सुधा ओम ढगरा

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj4 संपादकय िजसकारआकाशपरइधनुषिखंचता ह उसी कार मन क आकाश पर भी इधनुष सात रग को समेट ए िखलता ह।मगरउसकिलएमनमसंघषकधूप तथा आनंद क बरसात दोन का होना बत ज़री ह। िकसी भी एक क अनुपथितमसातरगभीअनुपथतहो जातेह। इस दोहरी मानिसकता क चलते कई मुे तक अप रह जाते ह। उदाहरण ी िवमश। इस पर चचा बत होती ह, िलखा भी बत जाता ह, पर परभाषा, वप, िदशा कछ भी गोचरनह।िवदेशकीिवमशसेभािवतहोकरबतकछकहाऔररचागया,जोदेश क य पर लागू ही नह होता। ी िवमश क अवधारणा देश, हालत, परथितय क अनुसारसंगिठतहोनीचािहए।परइसकओरयानदेनेकािकसीकपाससमयनह। िहदीभाषाभीइसदोहरयवहारकहीिशकारहोरहीह।कोरोनानेवचुअलगोयक भरमारलादी।वहसमयकज़रतथी।बड़-बड़िवषयपरिवाननेचचाएँक,परचचाएँ ,कईभाषािवशेषनेवयिदएपरइससेिहदीभाषाकोयालाभआ?िकसीनेयह नहसोचाकभाषाकचार-सारऔरयुवापीढ़ीमइसेलोकियबनानेकिलएज़मीनीतर पर काम करना होता ह। एक पूरी पीढ़ी िहदी से िवमुख हो चुक ह। सेिमनार, कांफिसज़ होनी चािहएपरसाथहीसाथअयिबंदुपरभीयानदेनाचािहए।िजनअंेज़ीकलमचको िहदीसेअिधकमहविदयाजाताह,वहाँिहदीकोभीउसीतरपररखनेकिलएकायकरना चािहए। अपनी भाषा का समान ब देखगे तो उसक ओर आकिषत भी हगे। जब ब क सामने ही िहदी को दोयम दज पर रखा जाएगा तो वे उस भाषा को य सीखगे ? पहले समाज औरमाँ-बापकोइसबातकमहवकोसमझनाज़रीहिकचाहअंेज़ीरोटी-रोज़ीकभाषा ह,परिहदीकोभीकमतरनहमाननाचािहए,तभीसहीअथमिहदीकािवकासहोगा।ऐसे मिहदीिदवसकभीआवयकतानहहोगी। समाज और य क दोहर मापदंड अिवसनीयता

पर भारी पड़

रही ह। सहज मानवीय संबंध क ऊणता

तेज़ी से उदासीनता म बदलती जा रही ह।

आपाधापी क इस माहौल म िनजता क चाह

औरपरायापनआजकजीवनकअिनवायता

सी बनती जा रही ह। जीवन क यह अिनवायता आज पारवारक और सामािजक

जीवनमहरजगहघुलतीजारहीह।धीर-धीर संवेदन शूयता और जड़ता बढ़ रही ह जो 'टक-टक कलेजा' कहानी म सहज ही परलित हो रही ह। गभ म रखने से लेकर खून से सच भिवय बनाने वाली माँ हो या िपता आज क दौर म अपनी वाथिसी क िलएसबरतेहािशएपरह।कहानीपढ़मेरा भी कलेजा टक-टक हो गया। मािमक, संवेदनशील कहानी क िलए बत-बत बधाई!

शमा

टक-टककलेजा

हसा दीप क छोटी सी कहानी 'टक-टक

कलेजा' मानवीय

िचण िकया गया ह ट-पथर क मकान को

वह घर म तदील करती ह, मकान चाह

िकराये का हो या वयं का हम अपनी देख-

रख से उसे घर बनाते ह, गृह वेश कबाद

साफ सफाई से लेकर, उसक एक-एक

दीवार को सजाना, घर क कोने-कोने से हम

यारहोताह।नाियकाभी12वषएकछोटसे

घर मरहती ह, जहाँ का कण-कण उसक

दय मबसा ह, अपने ब को सुिवधा देने

क िलए वह बड़ मकान मआती ह, िजसे वह

बड़ यार व देखभाल से उसक साज-सा करती ह। पर समयानुसार बे अपनी सुिवधा

को देखते ए,और बड़ा घर देखते हऔर माँ कोछोड़करअपने-अपनेघरबनानेलगतेह, तबनाियकाबड़भावुकहोकरकहतीह-मने िजनक िलए उस यार से घर को छोड़ा, वे आज मुझे यहाँ छोड़ गए। बड़ा भावुक पल ह परसमयानुसारबदलावभीिनतह। -उमाचौर,इदौर 000 शीषककोसाथककरतीकहानी

कहानी 'टक-टक कलेजा' अपने नाम

को, शीषक को साथक करती ई तीत होती

ह। घर को इसान क भावनाएँ य करते बताना, उसका मानवीकरण अछा बन पड़ा

ह। लेखक ने आज क समाज क बड़ी

समया ब को माता-िपता क िचंता न

होना, अपनी दुिनया म ही रहना, पालक का

एकाकपन बड़ी बी से दशाया ह। पाठक

एक बार म िबना क पढ़

िवगत

धुँधलक

पर

और

मन म दबी कई बात उभर कर आती ह। ब क सुिवधा क िलए छोट घर को छोड़ने का अपराधबोध भी नाियका क मन म दबी ई एकऐसीहीअवचेतनमदजईदुिवधाहजो सुिचपूण ढग से सजाए गए घर का साय नाियकावयंसेअनुभूतकरतीह। -गरमाचवर,रतलाम 000 मानवीयेमपरआधारतकहानी कहानी 'टक-टक कलेजा' मानवीय ेम पर आधारत कहानी ह। ेम, मोह, लगाव, अपनव कवल सजीव ािणय

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj5 जुलाई-िसतबर 2022 अंक म छपी हसा दीप क कहानी 'टक-टक कलेजा' पर खंडवा म सािहय संवाद तथा वीणा संवादनेचचाक।इसचचाकसंयोजक ी गोिवद शमातथा समवयक ी शैलेशरणथे। यह मािमक,संवेदनशीलकहानी आधुिनककरण क इस दौर म रत क बीच अब अजनबीपन बढ़ता ही जा रहा ह। वाथ और संवेदनहीनता रत
-उपमा
000
संवेदना से सराबोर कहानी ह। एक घर क तीकामक मायम से दो पीिढ़य क अंतराल को रखांिकत करती ह। आज क आपसी रत क पड़ताल पूण तटथता क साथ करते ए कट सय को उजागर िकया ह। माँ और बेट क कोमल, संवेदनशील रत क ारा आज जीवन म आएबदलाव,रतकखोखलेपनकोप िकयाह। -मनोहरिसंहराठौड़ 000 दयपशकहानी कहानी 'टक-टक कलेजा' दय पश कहानी ह जो हम िसखाती ह, क इसान व मकान दोन एक समान ही होता ह जैसे बे क बालवथा से बुढ़ापे तक का सफ़र, वैसे ही मकान क नव डलने से जजर तक का सफ़र एक समान ही होता ह, कहानी क नाियका ारा अपने घर का बत सुदर
जाता ह। सच म नाियका का ब क परवरश जैसे घर क देखभालकरना,छोटघरकोछोड़बड़घरम जाना िफर उसे सजाना उसक कलामक िच को भी दशा रह ह, और माँ अपने ब कपरवरशएककलाकारकतरहकरतीह, कहकोईकमीनहछोड़ती,परबे....? -संयापारसाके 000 वाहसेभरीभाषा कहानी 'टक-टक कलेजा' गृहथी को सवपर समझने वाली और अंततः अकली रह जाने वाली नाियका पर कित ह। कहानी क भाषा वाह से भरी और कसाव िलए ए ह। कहानी क ारभ से, जीवन क अंितम पड़ाव पर वयं का आमावलोकन करती नाियका,अपनीतुलनापीछछटगएपुरानेघर से करती ह। जीवन म नए पड़ाव क आने पर पुराना पीछ छट जाता ह यह एक सविविदत तयहिकतुएकसमयमकमरहताइसान जबहािशयेपरधकलिदयाजाताह,तोबधा
मृितय क
म िवचरण करने
िववशहोजाताह,
तबअवचेतन
से ही नह होता अिपतु मनुय क जीवन मशािमल सभी सजीव, िनजव वतु से हो जाता ह। बारह साल तक उस घर मरहने क बाद उसे छोड़ते समय नाियका को घर मिबताए सभी पल चलिच क तरह याद आते ह। ब क बड़ होनेपरघरछोटालगताहपरउसिनजवघर कािबछोहनाियकाकमनकोिवतकरदेता ह। कहानी पढ़कर मुझे 25 बरस पहले क मेरीकॉलोनीकघटनायादआतीहजबएक ग़रीब आदमी को क़ज़ भरने क िलए अपना घरचालीसहज़ारमबेचनापड़ाथाऔरउसी कॉलोनीमिकराएसेरहनापड़ा,परजब-जब वहआदमीअपनेघरकसामनेसेगुज़रताथा घर को णाम करक कछ बड़बड़ाता आ िमनामा

िवतार

अहसास

ज़रत नह ह। कहानी अछी ह

कहानीकारहसादीपकोबधाई। -सौरभलाड़,इदौर 000

िदलकोछलेनेवालीकहानी 'टक-टककलेजा'कहानीिजसमकानम कहानी क नाियका रहती ह, उस छोट मकान

कोछोड़नेसेमनमउपजेनऔरबेचैिनय को उहने बत ही सूमता से िचित िकया ह।ट,सीमट,गारा,िमीसेबनामकानतो मकान होता ह, िकतु उसम रहने वाल क सुिचयाँ उस मकान को घर बना देती ह। िजसमकानमदशकरहनेसेउसकहरट, दीवार, छत, फश, रग जो आपक िचय और भावना का रग ही होता ह। वह थान जहाँमकानथतह,उसकाघरहोजाना,यह सबआपकयवमसमािहतहोजाताह। मनुय का मन ही ऐसा ह िक वष का साथ

बेजानसीलगनेवालीचीज़सेभीउसकित

आमीयताऔरलगावमतदील

कहानी संवेदना क

तर पर दय को छ जाती ह, भाषा वाहमयी

ह।

-अणसातले 000

पाठकपरकहानीभावछोड़तीह

कहानी अयत संवदेनशील और भावुक

करने वाली ह। ेम िसफ़ सजीव से ही नह

अिपतु िनजव वतु से भी होता ह। अपनी माटी, अपने जमथान, अपनी वतु और अपने घर से ेम हो जाना मानवीय वभाव होता ह, उस पर यिद य, संवदेनशील सािहयकारहतोइसेमककोईसीमानह होती। तुत कहानी म मुय पा को अपना पुराना घर छोड़ना पड़ता ह। अपने िलये नह, अपनेबकिलये।िजसघरमवोबारहवष रही िजसे उसने अपने परम और याग से मकान से घर बनाया, सजाया, सँवारा,

भी ह, िजस मकान से

अपनवजोड़करबातकरतीथी।उसीमकान

को ब क कारण छोड़ना पड़ा। नए और

बड़ मकान म नए िसर से सजाने सवँारने म पुराने मकान को भूल जाती ह। यह एक सामाय मानवीय गुण ह। एक अंतराल क बाद िफर वही समय आता ह, जब ब को यहनयाघरभीपुरानाऔरछोटालगनेलगता हऔरवेअपनेनएआिशयानेमचलेजातेह। नाियका अपने टक-टक होते कलेजे को लेकर दरवाज़े पर खड़ी उह जाते देखती रहती ह। अब नाियका को पुराना मकान याद आता ह, उससे जुड़ा अपनापन, ममव याद

आता ह, यहाँ नाियका क मनोभाव क साथ

पूरा याय करते ए हसा दीप ने बत सही

िचणकरिदयाह।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj6 िनकलजाताथा।पतानहयाबोलताथापर हम लोग इतना तो समझ सकते ह िक उसक दय म िकतनी वेदना रही होगी उस समय। कहानी म आगे बताया गया नए घर ममाँ को छोड़कर बे अपने-अपने नए घर म चले गए, मुझे लगता ह यहाँ लेिखका को थोड़ा
देना था। ख़रै जब द क बे नाियका को छोड़कर चले गए तब उह
आ िक वह भी उस िनजव मकान कतरहहोगई,जोसमयकसाथखताहाल हो गया ह, कमज़ोर हो गया ह िकसी को अब उसक
होजाताह। इसी भावभूिम पर उहने संवेदना क तर पर िदल को छ लेने वाली कहानी रची ह। िवणु खर क भी िदी म बने बड़ अहात वाले घर को लेकर एक उदा किवता ह, िजसम किव क नाकलता ह िक इन घर म रहने वाल को आवाज़ देकर, पुकारा कसे जाए। कहा भी जाता ह िक घर छोटा होता ह िकतु उसम रहने वाल क िदल बड़ होते ह। हम अपने पुराने बने पैतृक मकान से इसीिलए लगावहोजाताह। कहानी म एक वाय आता ह िक नई तकनीक से बने घर म घर बोलते ह, इसान नह। भौितक सुख सुिवध से लैस मकान, अयाधुिनक जीवन शैली म जीवन जीते ब कोपसंदआतेह।उहपुरानेघरमरचा-बसा भावना का वह संसार जो िदन-रात आपसे बितयाताह,रासनहआता।इहज़रतक चलते नाियका जब पुराना घर बदल कर सामान सिहत नए घर म रहने लगती ह। उस पुरानेघरकोछोड़तेसमयवहघरमूकदशक क तरह उसे देखता रहता ह, उसक पुरानी दीवार से झड़ते लाटर क परत से वह आहत हो जाती ह, उसे लगता ह, वह वयं एक पुराने घर क तरह ह। यह भाव उसक कलेजे को छ जाता ह।
उसी घरकोछोड़नापड़ाथा,अपनेबकिलये। िजस वतु से भावनामक जुड़ाव हो गया हो उसे छोड़ना िकतना कदाई होता ह, इसे हर संवेदनशीलयसमझसकताह। "पुरानी तकनीक, आउट डटट" -इस वायक साथ कहानीपाठक को भावुक कर देती ह। जब पा पुराने घर से अपनी तुलना करते ए, अपने आप को पुराने घर क तरह यय मान लेती ह। बे उसे छोड़कर जा रह ह। ठीक उसी तरह िजस तरह से उहने पुराने घर को छोड़ा था। बे जा रह ह, अपनी माँ कोछोड़कर।बग़ैरमाँकओरएकबारदेखे। बग़ैरहाथिहलाये।कहानीबतछोटीहिकतु पाठक पर बड़ा भाव छोड़ती ह। वाहमयी कहानीलेखनहतुलेिखकाकोबधाई। -वैभवकोठारी 000 अयंतरोचककहानी 'टक-टक कलेजा' कहानी एक अछते िवषय पर िलखी अुत कहानी ह। िनजव टपथरकबनेमकानभीसजीवहोजातेह, जब उनसे गहरा अपनव जुड़ जाता ह और यहायःहरमिहलाकसाथहोताह।यिक वह उस मकान को सजाने, सवँारने और खुशहाल बनाने म अपना िवशेष योगदान देती ह। िकतु वह मिहला भी साधारण मानव होने क साथ एक माँ
उसकयथाकोशददे िदए ह और कहानी मािमक हो गई। दुखांत होते ए भी कहानी मन को छ लेती ह, सवथा नवीन िवषय पर आधारत इस कहानी म नाियका क अलावा कोई पा य प से नह आता। नाियका को भी कोई संा नह दी गई ह, िफर भी कहानी अयंत रोचक, भावपूण,मािमकह। -शिशशमा,इदौर 000 मकानबोलताह कहानीकार हसा दीप इस कहानी क मायमसेपाठकवगकदयमथानपानेम सफल ई ह। िनत ही िजस पुराने मकान

कहानीकार

मकान

कहानीकार

मकान

पुराने

मालिकन

मायम

सामान

क चल देनेही पूरी कहानी को जम िदया

यहसचभीहिकनईतकनीक

घरबोलतेह

इसाननही। -सुनीलचौर"उपमयु",खडवा 000 िमीसेजुड़ावककहानी

यह कहानी अपनी िमी से जुड़ाव क कहानी ह। जब कोई य अपने मन का रशा-रशा जोड़कर घर बनाता ह। उसे उस घर सेअपनकतरहहीेमहोजाताह।इसमोह म िलपटा वह उसम जीवंतता क अनुभूित करताह।कहानीकनाियकाभीअपनेघरसे एक जीवंत जुड़ाव महसूस करती ह। लेिकन ब क बड़ होने क साथ ही उह वह घर

छोटा और पुराना लगने लगता ह। िजसम वे

पले, पढ़ और बड़ ए। अंततः नया बड़ा

मकान ले िलया जाता ह। कहानी क नाियका

भीजड़कोछोड़,जानेकोतैयारहोजातीह।

जाते समय घर अपना लाटर का टकड़ा

सँवारता ह जो समय नह िबताता वण जीवन

जीताहरतकोपालतापोताह।

थान क कमत िसफ और िसफ

अनुभूितयसेहोतीह।लेिखकानेट,दीवार,

छत, दरवाज़े और रखे ए िनजव सामान म

जान डाल दी। जीवंत रत क कहािनयाँ तो बत गढ़ी ग और पढ़ी ग ह। लेिकन घर म

एकित िकया गया सामान कभी बेवफ़ा नह हो सकता। आप उह समय दो, वह आपको समान देते ह। परवार क िलए, वत क आवयकता अनुसार थान परवतन मजबूरी बन जाना, लेिकन कित से दूर होने क पीड़ा को हसा दीप न द िजया ही होगा, िजसे कहानी क मायम से हम तक संेिषत करने रचनामकता शंशनीय ह। बत ही सुंदर

तरीक से एक िवचार, एक अनुभव, एक

परवतन को भीतर तक गहर महसूस करना।

वाकई एक अछा उदाहरण ह। अिधक फलावनाकरतेएआमकितपरवतनको

टक-टकहोतेएकलेजेकािवशेषणदेते

अपने

ह। 'टक-टक

कलेजा'भीभावनाकसमंदरकगहराईम िछपे सीप सी ह। भावना धान शैली म िलखी गई कहानी संवदे ना को उकरने क कहानी ह। -सतोषचौर'चुभन' 000

िवचारकसघनता हसा दीप क इस कहानी 'टक-टक कलेजा'कोपढ़करलगताह-लेखनसंवेदना क माँग करता ह। यह संवेदना िवचार क गहराई हो। आलंबन या िवषय से इतना भावनामक लगाव हो िक वह सहजता से पाठक को कणा तक ले आए।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj7 म हमार कई साल यतीत ए ह,उसक एक एक ट से हमारा जीवंत सपक हो जाता ह।
ने कथन क मायम से पुराने
क ित अथाह ेम य िकया ह।
को यह अहसास भी आ ह िक
बोलता ह। नए मकान म जाते समय
मकान को अलिवदा कहना भी
भूल गई, िजसे बबी कथन क
से बताया ह। कहानीकार क सफलता ह िक कहानी पढ़ने वाला यह समझता ह िक यह मुझ पर ही िलखी गई ह। बकाबगैरहाथिहलाए
भर
ह।
िगरा कर िबछड़ने क दुःख का इज़हार करते ए उसे रोकने का असफल यास करता ह। लेिकन वह समझ नह पाती। अब नए मकान कअकलेपनमउसेवहसबयादआताहिक कसे उसने अपने हाथ से घर को सवँारा था। लेिकन िनयित, परथित और ब का वाथ उसे अपने घर से दूर कर मकान म ला पटकता ह। जहाँ अकलेपन से िनरतर लड़ने क अितर और कछ नह बचा था। भले ही मकानबतबड़ाथालेिकनवहघर नहथा। कहानी भावनामक और आकषक िशप म गूँथी गई ह। लेिकन कहानी थोड़ा सा और िवतारमाँगतीहऔरकहानीकाअंतयादा पता क माँग करता ह। शेष सुदर कहानी ह। -यामसुंदरितवारी,खडवा 000 िनजवसामानमजानडालदी घर चाह बड़ा हो या छोटा घर िसफ घर होता ह। लड़क जब घर म ब क प म वेशकरतीहतोसपनसेसजासंसारसबसे यारा होता ह। कहानी क शुआत भी इसी भावना से ई ह। छोटा सा आिशयाना िजसम आमा का वास होता ह उससे िवलग होने का दद सभी को नह होता। जो सहजता ह
उस
जुड़ाव को अिभय करना अछ लेखन क ेणी म ह। ब का िनमूल यवहारऔरजैसेेमकायालगावनाहोना, अचानक चले जाना। लेिखका का अकले रह जाना, जैसे खाली मकान जो खड़ा तो ह लेिकन िनजव सीमट क पपड़ी का िगर कर आिलंगन दनेा जैसे पल सामाय न हो कर िविशता क ण बन गए ह। िकतु जाते समयिवमुखहोकरिनकलजानेजैसेयवहार से आहत हो जाना अितसंवेदनशीलता का उदाहरणह। -डॉ.रमदुधे 000 भावनाधानशैली सरसरीतौरपरहीमइसकहानीकोपढ़ने को उसुक था लेिकन कछ पंयाँपढ़कर मेरीउसुकताबढ़तीगईऔरमबधँ सागया। िकसी कहानी क िच म थािपत हो जाना ही कहानीकार का मुय उेय होता ह और िफर वही पाठक क मानस पटल पर अंिकत हो जाता ह। हसा दीप क कहानी 'टक-टक कलेजा' मानस पटल पर अंिकत िच सा दतावेज़ ह। लगाव, मोह अपनेपन का भाव मानव को िमली असाधारण भट ह जो न कवल मानव को बक सजीवता क परभाषा िलए हर ाणी म होती
िशप, कय,कथानकआपसमइसतरहजुड़जाएँ िकआपिवषयसेहटनपाएँ। इसकहानीकोपढ़तेएऐसाभीलगािक िवषय बत सामाय भी हो सकता ह, साधारण भी, छोटा भी हो सकता ह, िबना जीिवतचरकभी।वहवृभीहोसकताह और घर भी। यानी मानव क साथ िशत से जुड़ीकोईभीचीज़कहानीरचसकनेकिलए काफ ह। शेष लेखक क मता, उसका अययन, भावनामकता और िवचार क सघनता रचना को रचना बना देती ह। कहानी कतवतोअयंतज़रीहही। -शैलेशरण 000

से कम माँ क सामने उसे ऐसा नह कहनाचािहएथा।

'ममी जी, आप इनक बात को िदल से न लगाइए। ये इनक नह, चाची जी क शद ह। चाचा-चाची क बात म आकर कह हम आपस क यार-मुहबत ही न खो बैठ, सुिमत।' सानवीकबातखरीथीिकतुसुिमतिफरिचढ़गया। 'चाचा-चाची ठीक ही तो कहते ह, अिमत और आिष को ममी ने हद से यादा िसर पर चढ़ा रखा ह।' ितरछी नज़र से देखती ई सानवी जैसे पित को बताना

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj8 िदया माथुर 83 ए, डीकन रोड, लंदन एन डलू-2 5 एन एन, यू.क. ईमेल- vatayanpoetry@gmail.com कथा-कहानी ‘चोरभीदोघरछोड़करडाकाडालताह,ममी।'बड़बेटसुिमतकबातसुनकरमानसी कािदलदहलगया;अपनेहीछोटभाईकिलएयहयाकहगयासुिमत?उसकपितअिभनव कमृयुकोअभीएकहताहीतोआथा;बेऔरसंबंधीतोया,उसेलगािकहतेभरम जैसेसारीदुिनयाहीबदलगईथी। 'यह आप या कह रह ह?' सास क िदल पर लगी ठस को महसूस करते ए बड़ी ब सानवीकनभरीपितकओरउठी। 'तूयेअछ-अछमुहावरकहाँसेसीखआया,सुिमत?'सेममानसीनेपूछातोसुिमत ने नज़र चुरा ली, मन ही मन वह भी पछता रहा था िक कम
चाह रही थी िक कम से कमउसेसमयऔरथानदेखकरबातकरनीचािहए। 'अजीबबातह;अिमतऔरआिषकहतेहिकमतुमदोनकोयादाचाहती।'मानसी एकठडीसाँसलेतीईबेट-बकपाससेउठगई। अपनेकोिकतनाभायशालीसमझतीआईथीमानसीिकउसकापरवारएकसुखीपरवार था;िकसीकघरमकोईकमीनहथी,िकसीमलड़ाई-झगड़ानह,कोईतेरी-मेरीनह।सुिमत औरसानवीयूयॉकमरहतेथेऔरबेटीमहकऔरउसकापितडिनयलऑिलयाम।साल म एक ही बार तो आना होता था उनका िकतु जब भी आते, तोहफ़ से लदे-फ़दे। बस एक ही कमीरहगईथी;सुिमतऔरसानवीकअपनीकोईऔलादनहथीिकतुवेअिमत-आिषक बअणवऔरअनयापरजानिछड़कतेथे। मानसीकोसमझनहआरहाथािकअिभनवकमरतेहीघरऐसेकसेिबखरनेलगा।या अिभनवकपासकोईजादूथायािफरउनकडरसेकोईबोलतानहथा।बेटनेतोअिभनवक तेरहव का भी इतज़ार नह िकया और लड़ने लगे। सुिमत िदी पचा तो तैश म था। वह चाचा-चाचीककहमआकरतोअिमतताऊ-ताईकबहकावेमआकरअपनेहीघरकशांित न करने पर तुले थे। ससुराल वाल को तो जैसे मौका ही िमल गया था मानसी क घर म हतेप करने का और उहने घर को के का मैदान बनाने म कोई कसर नह छोड़ी थी। या मानसी क ही आँख बद थ जो वह देख नह पाई िक उसक बेट-ब को पी पढ़ाई जा रही थी? वह जानती थी िक अिमत-आिष ताऊ-ताई क साथ बत िहल-िमल गए थे िकतु लडी कोठी िदया माथुर

बार

जब वे

को बढ़ा-चढ़ा

कर बताते तो उह लगता िक वे यहाँ कवल

झक

रह

जानते ए भी िक देवर-

देवरानी उसक परवार म मन-मुटाव पैदा

करने का यन कर रह थे, मानसी ने

वह जानती थी िक सानवी

चाचा-चाचीकबातमआनेवालमसेनह

थी।िकतुयहाँतोउसकाअपनाबेटाहीबहक

गया था। अिभनव क होते ए उसने कभी

िकसी क परवाह ही नह क थी और न ही

कभीिकसीकिहमतईिककोईचूँभीकर

जाए।

'शांित-पाठकिलएमदरबुककरिदया

था न तूने अिमत?' मानसी ने तय िकया िक

वह तेरहव क सप हो जाने तक अपने

ऊपरअंकशरखेगी।

'हाँ ममी, पंिडत जी कह रह थे िक हम

तीन बजे तक हॉल ख़ाली कर देना होगा।'

अिमतनेख़ेवरमजवाबिदया।

'आिष, सुबह तुम िबज़ी थ, हलवाई

आया था। ज़रा उसे फ़ोन पर मेयू बता देना।'

मानसीनेकहा।

'मने उसे दोपहर

तोनह।' 'जब वे यहाँ रहते ही नह तो उह या

ऑबजैशन हो सकता ह? ख़ाली पड़-पड़

कोठी का जो हाल होता...' आिष ने दलील

पेशकरनीचाही।

'उनक जायदाद से नबे हज़ार पये

महीना िकराया आ रहा था अब तक। इसी लडी कोठी क िकराए क वजह से मज़े

उड़ाते रह हो तुम सब।' मानसी बोलती ही चलीगई,'अणवऔरअनयाकऊपरिशट

हो जाने क बाद भी तुह चालीस हज़ार तो

िमल ही रह ह। नीचे वाली मंिज़ल क

रीफ़िबशमट क बाद सर-असी हज़ार और

िमलने लगगे। इस लडी कोठी म मज़े

उड़ाओ तुम

पाँच िमनट भी नह ए थे िक अचानक अिभनव क तबीयत िबगड़ने लगी; वे सीधे एमजसी म पचे। डाटर ने बताया

िक उह िदल का दौरा पड़ा था। जब मानसी औरअिमतकोउनसेिमलनेिदयागयातोवह बतकमज़ोरलगरहथेिकतुख़तराटलगया था। रात क बारह बजे क क़रीब अिभनव ने अिमत से घबराई ई मानसी को घर ले जाने

कोकहा,जोवहाँसेटससेमसहोनेकोतैयार

नह थी। डॉटर क इस आासन पर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj9 उसनेइसेअयथानहिलयाथा। अभी हाल ही म तो चाचा-चाची पूरा एक महीना अमेरका म सुिमत और सानवी क साथ रहकर लौट थे; उनक पाँव ज़मीन पर नह पड़ रह थे। सुिमत-सानवी क महल जैसे घर और उसम सजे आधुिनक उपकरण
अिमत-आिष
मार
थे।
उनसे कभी यह भी जानने का यन नह िकया िक वे अमेरका म सुिमत को या पाठ पढ़ा कर आए थे; यिक
को ही फ़ोन पर बता िदयाथा।'आिषभीमुँहसुजाएबोली। 'कर-धर सब हम और भैया-भाभी चले आतेहअपनाहक़जमाने।'अिमतफटपड़ा। 'कसी बात कर रहा ह तू अिमत?' चाहकर भी मानसी चुप न रह सक। मन ही मन सोचने लगी िक बड़ िमयाँ तो बड़ िमयाँ, छोटिमयाँसुभानअाह! 'ठीक ही तो कह रह ह ये, मम। कभी इलेिशयन को बुलाओ तो कभी गैस वाले को,कभीटॉयलेसबदतोकभीछतटपकने लगी। इस लडी कोठी को सँभालने क िलए अिमत ही को तो भागते रहना पड़ता ह। तब कहाँ होते ह आपक यार बेटा-ब?' अिमत से िचपक कर खड़ी आिष ने सास को उलाहनािदयातोमानसीकसेकापारावार नरहा। 'आिष, तुही लोग रहते हो इस लडी कोठी म तो इसे ठीक कराने या कोई और आएगा?' 'सालमएकबारभैयाऔरमहकआतेह और सब उनक गुण गाते नह थकते। कभी उहने पूछा हमसे िक घर क अपकप कसे करतेहहम?'अिमतबोला। 'सुिमतयामहककजायज़ादकोिकराए पर उठाने से पहले तुमने तो उनसे झूठ को भी नहपूछािकउहकोईएतराज़तोनहयािक जो िकराया आ रहा ह, कह उह उसक ज़रत
और इसक अपकप कर िवदेश म बसे तुहार भाई-बहन, भई वाह!' माँ को से म देखकर वे दोन चुप लगा गए। उह अदेशा नह था िक मानसी उह यूँ लताड़ भी सकतीथी। घर म एक ख़ौफ़नाक साटा छा गया, िजसम अणव और अनया क आवाज़ आसमान म िघर काले बादल म कभी-कभी िबजली क सी कध छोड़ जात। बजाय पित का शोक मनाती, मानवी ब क झगड़ सुलझाने म लगी थी। अिभनव िज़ंदा होते तो मजाल थी िकसी क िक वे मानसी से इस बतमीज़ीसेपेशआते! अिभनव क आकमक मृयु को मानसी क िलए झेलना ही बत किठन था, उस पर ब क यह तू-तू म-म। उसने कभी सपने म भी नह सोचा था िक कोई ऐसे अचानक उठकरचलाजाएगा।िपछलेरिववारकशाम क ही तो बातह। रोज़क तरह,हक भोजन कबादअिभनवसामनेहीबागमटहलरहथे िक उनक सीने म जलन होने लगी; लौटकर वह लेट गए। मानसी ने का दूध पीने को िदया, िफर पुदीनहर क दो गोिलयाँ भी द िकतु जलन थी िक बढ़ती ही चली गई। दतर से अिमत लौटा तो वह िपता को अपताल ले चलनेकिज़दकरनेलगा। 'डॉटर से मज़ाक उड़वाना ह तो चलो।' मानसी और अिमत उह ज़बरदती कार म बैठाकर ेटर कलाश थत एक ाइवेट अपतालकओरचलिदए। अभी
िक अिभनव अब ख़तर से बाहर थे और उह आराम क आवया थी, वे दोन ही घर लौटआए। रातकक़रीबडढ़बजेफ़ोनपरसूचनादी गई िक अिभनव को िदल का एक भारी दौरा पड़ा और इस बार वे उह बचा नह सक। पड़ौिसय और अिभनव क िम ने ियाकम संबंधी सब काम सँभाल िलए थे। मानसी, अिमत-आिष एवं अणव-अनया सभी एक सकते क सी हालत म थे। सुबहसुबह िनगम बोध घाट पर अिभनव का अंितम संकारकरिदयागया। मानसी को घर ऐसा ख़ाली लग रहा था िकजैसेवहाँसेकवलअिभनवहीनह,बत सार लोग अचानक चले गए थे। सुिमतसानवी कह जाकर तीसर िदन ही पच पाए थे।उनकरहनेकयवथाऊपरअणवऔर

एक फ़ोन ही कर देता...' सुिमतभाव-िवलहोउठा।

'वी वर रंग लाइक हडलैस िचकस, डमइट...'अिमतकोभीसाआगया। 'मोबाइस क ज़माने म भागते-दौड़ते भी फ़ोन िकया जा सकता ह, अिमत, पर तुम तो चाहते ही नह थे िक हम लोग समय पर पच पाते।'

'वाट ड यू मीन?' मेज़ पर घूँसा मारते ए अिमतबोला।

'मदस डािलग, यू वेरी वेल नो वाट आई मीन।'

'चुप हो जाओ, बत हो गया, अभी तुहारडडकतेरहवभीनहईहऔरतुम दोन भाई चूह-िबी क तरह लड़ रह हो।' मानसीकािदमाग़भारहाथा।कहवह

था, िजसे जीवन भर क कमाई

लगाकर अिभनव

मानसी

बड़ यार से

बनवाया था अपने तीन ब क िलए। बीच

क खन म अिभनव-मानसी क साथ अिमत-

आिष और अणव-अनया रहते थे। सुिमत

किलएनीचे

बाद, महक

वाले लैट को भी िकराए पर चढ़ा िदया गया

था। अिमत क तनवाह पूरी क पूरी बक म

जमा हो जाती थी; आिष एक महारानी क

तरह रहती और ख़च करती थी। घर म दो

नौकरािनय क अलावा उसने झा-पछऔर

कपड़ धोने-इी करने वाली अलग लगा

रखी थ। माली और ाइवर तो थे ही। मानसी

कोयहसमझनहआरहाथािकअिमतऔर आिषकोऔरयाचािहए?

अणव-अनयाजबपाँचऔरछहवषक ए तो आिष ने ऊपर क मंिज़ल पर बने दो शयन-क उनक िलए और ख़ाली करवा िलए। बाक़ क बचे दो शयन-क, बैठक, रसोईघर और बाथम-टॉयलेट अब भी िकराए पर चढ़ थे। सुिमत ने कोठी म कोई िदलचपीनहिदखाईथीऔरकरोड़पितमाँ-

बाप क इकलौती बेटी सानवी को भी पैसे क

कोई कमी नह थी; िकतु चाचा और चाची ने

चाचा ने बड़ भाई का हवाला िदया तो सुिमत को लगा िक एक कवल चाचा-चाची थे, िजह उसक सचमुचपरवाहथी।

इस िवषय को लेकर सुिमत और सानवी म जब तब बहस िछड़ने लगी। अिभनव क मौत का तो नह िकतु कोठी क हर िहसे म मातमहोरहाथा।

मानसीकोिफ़हीनहख़ौफ़थािकइन हालात म उसक पित क तेरहव कवल एक

तमाशानबनकररहजाए।

अगलीहीसुबहबेटीमहकऔरडिनयल भी आ पचे, िजह हवाईअ

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj10 अनया क कमर म क गई थी, पोता-पोती नीचेदादीककमरमवािपसआकरआत थे। समय क नाकता को देखते ए िकराएदार साहनीज़ अपना बाथम-टॉयलेट शेयरकरनेिकिलएराज़ीहोगएथे। 'िदसलडीकोठीइज़आवसएंडवीहव ट शेयर टॉयलेस!' सुिमत िफर भड़क उठा था,साहनीज़अपनासामुँहलेकररहगए। 'कोई बात नह बेटा, कछ ही िदन क तो बात ह। हम पता होता िक ऐसा होगा तो...' अशांतमानसीनेसुिमतकोशांतकरनाचाहा। 'आपको तो कछ नह पता था मॉम, डड इतनेिदनसेबीमारथे,आपनेहमबतायातक नह, अिमत हम
बुरा सपनातोनहदेखरहीथी? 'मुझेतोबसआपयहबतादीिजए,ममी, िक हम डड क डथ क बाद ही ख़बर य दी गई?' 'सबइतनाअचानकआ,सुिमत,िक.?' 'एक लडी कोठी क िलए ये लोग इतना िगरगएिकआिख़रीवहमडडसेिमलभी न सक।' माँ क सीने से लगा सुिमत सुबकने लगातोमानसीघबरागईिककहअिमतयह न सोचे िक वह सुिमत क तरफ़दारी ले रही थी। 'वाट िद हल इज़ ही टौिकग एबाउट, मॉम?' कहता आ अिमत भाई क ओर लपका तो आिष उसे ज़बरदती घसीटती ईनीचेलेगई। अणव और अनया अवाक खड़ थे; ताऊ-ताई जी पहले जब भी अमेरका से आते थे, इस ितमंज़ली कोठी म िशय का गदर मच जाता
और
ने
वालालैटथा।महककोदूसरी मंिज़ल ही पसद थी, िजसक छत पर एक पोस-म भी था। िववाह क
अपने अमेरका-वास क दौरान सुिमत को न जाने या पी पढ़ाई िक वह बात-बात म भड़कनेरहाथा। 'हमने तो सुना ह िक तुहार िहसे म आिष अपना बुटीक खोलने जा रही ह।' यूयॉकपचतेहीचाचीनेसुिमतऔरसानवी कोएकनईख़बरसुनाई। 'घरिकराएपरउठानेसेयहबेहतररहगा, ह न सुिमत?' सानवी ने पित को सावधान करना चाहा िक घर क मामले म वह चाचाचाचीकबातनहीसुनेतोअछाथा। 'सानवी, तुम तो बत ही गिलबल हो। ' चाचाबोलेथे। 'सचमुच सानवी, आिष धीर-धीर पूरी कोठी पर अिधकार कर लेगी और तुह कछ पता भी नह चलेगा, ऊपर क मंिज़ल तो उसनेपहलेहीहिथयालीह।'चाचीनेहमदद िदखातेएकहा। 'चाची जी, हम तो िदी लौटना नह ह, आिष को करने द जो वह करना चाहती ह, यसुिमत?' 'सानवी क माँ-बाप ने तो अपनी सारा धन-जायदाद उसक नाम कर दी ह। तुहारा अपना या ह?' सानवी को डर लगा िक मंथरा सी चाची का जाद कह सुिमत पर चल हीनजाए। 'घर-जंवाई बनकर न रह जाना, सुिमत। भैया ने कछ सोच समझकर ही ाउड लोर तुहार नाम िकया होगा, ह क न?'
से िलवाने क िलएकनालमामाऔरजयीमामीपच ेथे, जोहालहीमऑिलयामउनकमेहमानरह चुक थे। कम से कम डिनयल क तो वे िवास-पाबनहीचुकथे। 'अर, तुम दोन िकतनी मेहनत करते हो, घर क सफ़ाई से लेकर बतन माँजने तक, कपड़ धोने और इी करने से लेकर भोजन पकाने तक सार काम द करते हो और वहाँ देखो अिमत और आिष क या ठाठ ह। दोदो ल टाइम नौकरािनय क अलावा माली, ाइवर और दो पाट-टाइमस ह उनक पास। यहसबतुहारलैटकिकराएकबलपरही तो हो रहा ह।' महक क तो नह िकतु डिनयल ककानअवयखड़होगएथे। महकऔरडिनयलकरहनेकयवथा

जाकर

हम लोग होटल

सानवीबोली।

अिमत-आषी

उनक बात को

बड़यानसेसुनरहाथा। 'बट दे शुड हव ऐट लीट इफ़ौड अस,

डािलग।'डिनयलनेमहकसेकहा।महकक िदमाग़ म आया िक उसक िनजी मामले म डिनयल य टागँ अड़ा रहा था? िपछले चार साल म डिनयल एक बार भी अपनी मज़ से िदीआनेकोराज़ीनहआथा।ससुरक अकमा मृयु का समाचार सुनकर वह झटपट िदी चलने को तैयार हो गया था; याउसेअपनीपनीकिहसेकजायदादम सचमुच िदलचपी थी? महक को यह बात अछीनहलगी।

'डिनयल, वाए ड वी नीड पापाज़ हडआउस?'महकनेउससेपूछहीिलया। 'वाए नौट? यू वर िहज़ डािलग डौटर, ही हज़ लैट इट फ़ौर यू. अवर िकस िवल

औफ़देयरइहरटसवनड,हनी।'

तक

ठीक

महक

लगा

िधकार। होटल

तो चाहते

तािक

जाओगे तो

लोगभीयहीकहगेनिकबापकतेरहवतक

भी नह क सक। ' चाची घबराई िक कह

उनकाबनाबनायाखेलनिबगड़जाए। 'तुह िकसका डर ह सुिमत? यह तुहारी

कोठी ह, कम से कम जब तक भैया क िवल नहपढ़ीजातीतबतकको।'चाचानेकहा।

उधरमाँिबखरएअिमतकोसँभालरही

थ,जोआिषपरअपनीझाहटउताररहा था।

'ऊपरनीचेसबजगहपाँवफलाकरतुमने ही उन सबको बोलने का मौका िदया ह, आिष। भैया और महक दोन मुझे ही दोषी ठहरारहह।' 'अिमत, तुम अपना सारा सा मुझ पर उतारनाचाहतेहोतोठीकह।माँनेतुमसेकहा

थानिकभैयाऔरमहककोफ़ोनपरबतादो िकडडकोअपताललेजारह

पर कनाल डिनयल क गलेमहाथडालेबाहरिनकलगयातािकवह महकसेअकलेमबातकरसक।

पीछ वाली बिगया म एक हते क िलए हलवाई बैठा िदए गया था; इतने बड़ परवार का चाय-नाता, दोपहर और रात का भोजन घर क दो नौकरािनयाँ तो अकले सँभाल नह पात। घर क सभी सदय बत यत थे; बेचारकोनहाने-धोनेकाभीहोशनहथा। दोपहर क भोजन क िलए परवारजन बिगयामइकए।थािलयमकते-सूतसे चेहरकोिनहारतेएलोगएकदूसरसेनज़र िमलाने को भी तैयार न थे। हाथ म छरी-काँट

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj11 ाउड-लोर पर क गई थी, जहाँ इन िदन िलपाई-पुताईकाकामचलरहाथा। 'अपना िहसा लेकर चाह तुम िकसी िभखारी को दे दो पर ऐस क िलए य छोड़ो जो अपने ही बड़ भाई और बहन का िहसा हड़पनेकसोचरहह।' कनालमामाउहसमझारहथे। 'हाँ, तुहार िहसे म अणव और अनया को सैटल करने से पहले उह तुमसे कम से कमपूछतोलेनाचािहएथा।'मामीनेआगम घी डाला। महक ने उनक बात अनसुनी करनी चाह िकतु डिनयल
बी सोाउड
डिनयल का
सुनकर
को
िक शायदवह
हीकहरहाथा। कोठी म अब सचमुच मातम मनाया जा रहा था - ऊपर क मंिज़ल पर सुमीत-सानवी
साथ चाचा-चाची, पहली मंिज़ल पर अिमत-आिष क साथ ताऊ-ताई जी और ाउड लोर पर महक-डिनयल क साथ मामा-मामी, सब क सब लडी कोठी और िकराएकोलेकरपरशानथे। तन और मन से थक ई िवधवा मानसी को तीन-मंिज़ला कोठी म एक कोना भी नह नसीब नह आ जहाँ वह पित का शोक ठीक सेमनासकती। 'अिमत ने तुह समय पर ख़बर कर दी होती तो कम से कम तुम अपने िपता से आिख़री बार िमल तो लेते।' चाची ने अपनी बातिफरदोहराई। 'या जाने अिमत और आिष का लैन सफ़ल हो ही गया हो। उनक कहने म आकर शायद तुह जायदाद से बेदखल कर िदया हो।'चाचाबोले। 'जो भी हो, हम नह चािहए इस कोठी का एक भी कमरा। चलो सुिमत,
रहतेह।'तंगआकर
'नह नह,
यही
ह िक तुम से म उठकर चल दो
मानसी तुह
चले
ह।' 'मने सचमुच नह सोचा था िक डड...' अिमतकलाईछटगई। 'सुबहहीतोफ़ोनकरिदयाथाअिमतने। कछ घंट क देरी क िलए सुिमत न जाने य इतनाशोरमचारहाह।' 'चाचा-चाची ने उह न जाने या-या बताया ह िक वे हमसे इतने ख़फ़ा ह।' आिष बोली। 'जोभीहो,अभीतोशांितरखो।लोगक आँख-कान इन िदन हमारी कोठी पर ही लगे ह,' मानवी ने उनसे चुप हो जाने क ाथना क। 'लडी कोठी, मुझे अपना िहसा भी नह चािहए, मॉम। जैसे ही पापा क तेरहव हो जाएगी, हम दुबई चले जाएँगे। आिष क ममी-पापा हम कब से वहाँ सैल होने क िलएकहरहह।' नीचेडिनयलऔरमहककोसमझायाजा रहा था िक इस दुिनया म नादान बनकर नह िजया जा सकता। यह कोई छोटी मोटी बात नह थी, इस समय कोठी क क़मत कम से कम बीस करोड़ तो होगी ही। वैसे बात पैस कनह,उसूलकथी। 'अिमत-आिष ने तेरा एक बाल भी बाँका िकया न महक, तो म उनक ऐसी क तैसी कर दूँगा।' गोल-मटोल मामा अपने फले एगालबजातेइधरसेउधरलुढ़कनेलगे। 'डोट वरी, वी आर िवद यू, 24/7।' जयी मामी क इशार
न ए तीर-तलवार हो गए; सबक आँख म गोला बाद भरा था। मानसी को लगा िक जैसे अिभनव का िय बगीचा के म बदल गया हो। सफ़द साड़ी म िलपटी मानसी भगवासेमनहीमनपूछरहीथीिकअिभनव कजीवनभरककमाईऔरउसकजी-तोड़ मेहनत का या यही िसला िमलना था उसे? यकायकवहफट-फटकरोनेलगी। 'दादी, या आ? आप रो य रही हो?' अनयाआकरदादीसेिचपटगई। ‘आप सभी दादी का िदल दुखा रह ह।' से म सबक ओर देखता आ अणव बोला। पोता-पोती दादी को लेकर बैठक म चलेगए। देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी और भाई-

िहचिकयाँ

िक

होजाएगा। 'दे िडड नौट नो हाउ ट एसैस देयर ीफ़।' सानवी ने अपना फ़लसफ़ा झाड़ा, िजससेसबसहमतथे।

'ममी, मेर नाम तो बस आप अपना यार करदीिजए।िज़ंदगीभरआपनेमुझेकोईकमी नह होने दी। मने जो कछ भी एचीव िकया ह, आपक वजह से ही तो िकया।' महक भी माँ सेआिचपक।

'महक ठीक कह रही ह। वादा किजए

िक हमार जीते जी अब आप कभी नह रोएँगी।'अिमतबोला। 'आप नाहक रो रही

ए थे। मुझे भी कछ वष उनक साथ काय करने का मौक़ा िमलाथालेिकनबादममिकसीदूसरसंथानमांसफरहोगयाथा। ख़ैर,उनकयहाँमेरातीज-यौहारपरआना-जानाहोतारहा।हाँ,िपछलेसवादोसालक कोरोनाकालमउनकयहाँमकभीनहगया।इधरजबसेक़ोरोनाकसंमणदरमिगरावट ईहऔरसरकारीपाबंिदयाँहटीह,मभीलोगसेिमलने-जुलनेलगा। बहरहाल, िम ने जैसे ही मुझेदुयंत बाबू क अवथ होने क ख़बर बताई, मने तय कर िलयािकमउनकहालचालपूछनेज़रजाऊगा। कल मौक़ा िमला और म उनसे िमलने चला गया। उनका िनवास थान मेर लैट से लगभग डढ़ िकलोमीटर दूर यह ारका, िदी म ह। उनका बेटा िववािहत ह और वह आजकलअपनेपरवारकसाथगुामम

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj12 भाभी ने बारी-बारी आकर मानसी क कधे थपथपाए िक वह अपने को नह सँभालेगी तो कसे चलेगा? घर लौटने से पहले सभी ने एक दूसरसेबचेएभोजनकपैकसलेजानेका आह िकया और िफर पैकस उठाए वे सब अपनेअपनेघरलौटगए;खेलख़महोचुका था। जदीहीमानसीकापूरापरवारबैठकम उसकइद-िगदइकाहोगया;सबअवसाद से भर थे। जादगूर क चुटक बजाते ही जैसे बेहोश को होश आ जाए, कछ ऐसी ही हालत थीउनसबक। 'सौरी ममी, पापा क डथ ने मुझे पागल करिदयाथा।'सुिमतऔरकछनकहसका। उसने माँ को सीने से िचपटा िलया, जो
ले लेकर एक बार िफर रोने लग
जैसेउनकािदलचूर-चूर
ह, आपक तीन-तीन कमाऊ बे ह, दो यार-यार पोता-पोती और...'सानवीनेकहा। 'औरयहलडीकोठी।'दीवारऔरछत परनज़रदौड़ातीईमानसीबोली। 'नह, हमारी यह यारी-यारी कोठी, जो हरसालहमपनाहदेतीह।'सुिमतनेकहा। 'यह न होती तो हम सालाना पंछी कहाँ आकरबैठगे?'महकबोली। कछ ही देर म सबने अपने-अपने िगलेिशकवे दूर कर िलए थे, एक दूसर से 'सॉरी' कहते ए सब क सब सुबक रह थे और मानसी एक बार िफर उह ढाढस बधँाने म जुटीथी। 000 आवाज़ सुभाष चं लखेड़ा लघुकथा दुयंत बाबू आजकल अवथ चल रह ह - यह ख़बर मुझे एक िम से िमली। इससे पहले िक म आपको आगे कछ बताऊ, यह बताना उिचत होगा िक दुयंत बाबू स 2007 म िनदेशक क पद से सेवा-िनवृ
रहताह।हाँ,दुयंतबाबूकसाथआजकलउनक पनीकअलावाउनकतीसरभाईकाबेटारहताहजोआईएएसकतैयारीकररहाह। उनक यहाँ जाने से पहले मने उह फ़ोन कर िदया था। म पचा तो वे दरवाज़ा खोले मेरा इतज़ार कर रह थे। मने उह णाम िकया और िफर उनका इशारा िमलने पर उनक सामने क सोफपरबैठगया। मने जैसे ही उनसे उनक तबीयत क बार म पूछा, वे बोले, "मामूली बुख़ार या बदन दद होनाइसउमवाभािवकहलेिकनमेरीतोआवाज़हीचलीगई?" उनसे यह सुनते ही म उह अचरज से देखने लगा। अछी भली आवाज़ ह उनक और वे कहरहहिकमेरीआवाज़चलीगई।मेरचेहरपरउपजेसवालकोसमझतेएवेगंभीरवर मबोले,"पवन !तुमनेतोवह वबदेखा हजबमेरीआवाज़कोसुनतेहीघरयाबाहर, सभी जगह लोग भागते ए आते थे। सेवा-िनवृ होने क बाद सब कछ बदल गया और अब तोऊचीआवाज़मबोलनेपरभीमेरीकोईनहसुनता।" 000 सुभाष चं लखेड़ा सी-180, िसाथ कज, सेटर-7, लाट नंबर-17, ारका, नई िदी- 110075 ईमेल- subhash.surendra@gmail.com

इसिलए

उमस भरी सुबह म िबजली नदारद थी। घर क भीतर से

आ, ठडी हवा क िलए म बाहर बरामदे म आकर बैठ गया और यारय म लगे फलकोिनहारनेलगा।पौधेकहलाएएिदखरहथे।उहपानीकसतज़रतथी।लेिकन जबतकिबजलीनआजाए,पानीखचकरनासमझदारीनहथी।िबजलीकाकोईभरोसानह

जब से कोयले क आपूित कम ई थी, िबजली लंबे समय तक ग़ायब रहती

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj13 हािकम का पाजामा नीरज नीर नीरज नीर आशीवाद, बु िवहार, पो ऑ अशोक नगर, राँची – 834002, झारखंड मोबाइल- 8789263238 ईमेल- neerajcex@gmail.com कथा-कहानी वह एक बत ही गरम सुबह थी। िबजली घर म कोयले क कमी क कारण िबजली क आपूित कम हो रही थी,
उस
अकलाया
था।
थी। पीने और खाना बनाने क िलए पानी क यादा ज़रत थी। यही सोचकर पौध म पानी देना मने मुतवी करिदया। सहसा मने देखा िक फल क यारय क बीच एक सफद चमकली चीज़ पड़ी ह। म लपक कर वहाँ गया और उसे उठा लाया। मेर आय का कोई िठकाना नह रहा। वह एक रशमी पाजामा था, उसम बेल-बूट जड़ थे। इतना सुंदर पाजामा िकसका होगा और यह मेर अहाते म कसे आ गया? पाजामा देखने से बत कमती लग रहा था। मने उसे सहलाया, वह बत ही मुलायम था। उतना सुंदर और मुलायम रशमी कपड़ा मने अपनी िज़ंदगी म कभी नह देखा। वह आयजनक प से आम कपड़ क तुलना म ठडा भी था। मुझे उसे पहनने क बड़ी ही ती इछा ई। म फौरन ही भीतर गया और उसे पहन िलया। मुझे ठडक महसूस ई। अहा! अगर ऐसा ही ऊपर का कता भी रहता तो िकतना अछा होता! थोड़ी देर म इधर-उधर बरामदेमहीटहलतारहािफरऊपरएकपुरानीकमीज़डालकरघरकबाहरसड़कपरिनकल आया।उसपाजामेकोपहनकरमेरीचालमएकअजीबसीअकड़आगईथी,मऊटकतरह गदन ऊची करक चल रहा था। म अपने भीतर एक बदलाव अनुभव करने लगा था। म आम िवास से भरा आ था। राह चलते कछ लोग मेर पाजामे को गौर से देख रह थे। उनका इस तरह देखना मुझे अछा लग रहा था। जो लोग मुझे नह देख रह थे, उह म बेवकफ़ और

िलया

अख़बार

ख़बर थी, वह

का पाजामा चोरी हो गया

बड़ हािकम

एवं बड़ हािकम

किसपाहीउसपाजामेकोढढ़रहहऔरचोर

को पकड़ते ही फासँी पर लटका िदया जाने

का म आ ह। यह पढ़ते ही मुझे करट सा

लगा। कह यही तो हािकम का पाजामा नह ह?मनेअपनेपैरकओरदेखा।पाजामामेर

पैर म ब फ़ब रहा था। ऐसा लगता था िक दज़ ने मेरी ही नाप से इसे िसला था। शायद हािकम का शरीर मेर ही बराबर हो। आिख़र

हािकम भी तो आदमी ही ह। ऐसा मने सोचा।

मने हािकम को कभी नह देखा था। लेिकन

हािकम का पाजामा मने पहना आ ह, यह

सोचकरहीमेरदेहमभयसेझुरझुरीहोनेलगी

थी। कह मुझे ही चोर न समझ िलया जाए!

पहलेतोमवहपरपाजामाखोलनेकायन

करने लगा िफर मुझे एहसास आ िक

का

सोचने

सोचने

बार म अब तक मुझे

पूरायकनहोगयाथािकयहपाजामाहािकम

का ही था। पाजामे म लगा रशम, उसक

अछी िसलाई और उसपर लगे चमकले

बेल-बूट, इस बात क बराबर तसदीक कर

रह थे िक यह कोई मामूली पाजामा नह था।

मुझे पहले ही समझ जाना चािहए था लेिकन

मने इतनी दूर क बात नह सोची थी। हािकम

कापाजामाभीहािकमकतरहिविशथा। मने इधर-उधर देखा और उस पाजामे को

पड़ोसीकअहातेमफकिदया।िफरिनंत

होकरमघरकभीतरचलागया।घरकभीतर

जाकर मने चाय बनाई, चाय पी और कमर म

लेटकर टीवी देखने लगा। पाजामे का रशमी

एहसास अभी तक मेर शरीर को सहला रहा

था। साथ

गई थी। घर क भीतर घुटन और उमस महसूस हो

रही थी। इसिलए म ताज़ा हवा लेने क िलए

घरसेबाहरबरामदेमआगया।बाहरआकर

मने देखा मेरा पड़ोसी अपने आँगन म पौध

कछटाईकररहाह।मेरआनेकआहटहोते

ही, ककर उसने कमर सीधी क, मेरी ओर

गौर से देखा और धीमे से मुकरा िदया।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj14 बदमाशसमझरहाथा।जबकछलोगनेमुझे सलामभीिकयातोमुझेबड़ाअछालगा। थोड़ी देर बाद जब म घर लौटा तब तक अख़बारआगयाथा।अख़बारवालारोज़क तरह अख़बार को रोल करक बरामदे म फक कर चला गया था। मेरी चाय पीने क इछा ई। लेिकन िफर सोचा पहले अख़बार पढ़
जाए। म वह लगी कस पर बैठकर
पढ़ने लगा। मने रोज़ क तरह अख़बार म सबसे पहले खेल क ख़बर देखी और िफर सूडोक बनाने लगा। उसक बाद जब मने मुय समाचार क िलए मुय पृ देखातोचकपड़ा। अख़बार म जो पहले ही पे पर सबसे महवपूण
यह िक
मने पाजामा क भीतर कछ नह पहना ह। सड़क िकनारखुलेबरामदेमयूँनंगाहोनाउिचतनह ह, कोई देख ले तो पागल समझेगा, यही सोचकर म दौड़कर भीतर गया और पाजामा खोलिदया। मने पड़ोस क घर म झाँककर देखा, उनक घर म अभी तक कोई चहल-पहल नह थी। वे लोग शायद अभी सोकर नह उठ थे। मेरापड़ोसीभीअजीबआदमीथा।वहशराबी था और असर शराब पीकर देर से घर आता था। घर आने क बाद देर तक उनक घर म आपसमलड़ाइयाँहोतीथी,इसीिलएवेलोग देरसेहीसोकरउठतेथे।मुझेवेलोगज़राभी पसंद नह थे। मने उह कई बार समझाया था िक इस तरह से देर रात झगड़ा करना और देर सेसुबहउठनाअछीबातनहह,परउहने मेरीबातपरकभीयाननहिदया,उटउह मेरी बात अछी नह लगती थी और मुझे सबकिसखानेकधमकदेतेथे।एकबारतो उनक झगड़ और शोर-शराबे से ऊबकर मने पुिलसभीबुलालीथी।लेिकनपुिलसभीया करती, आपस म पित -पनी का मामला था। पुिलसकआनेकबादपनीभीपितकपम बोलने लगी और उलट मुझ पर ही परशान करनेकाआरोपलगािदयाथा। ख़ैर, यह समय उनक बार म
का नह था। अभी इस पाजामे क बार म
समय था, िजसक
ही एक सुकन भी था िक गले पड़ी मुसीबत से जदी ही छटकारा िमल गया था। कछ घट क बाद जब िबजली आई तो मने सोचा िक पौध को पानी दे दूँ। मुझे यह भी उसुकता थी िक पड़ोसी ने आिख़रकार उस पाजामे को देखा या नह और देखा तो या िकया।मिनंतथािकचूँिकपड़ोसीकघर मअख़बारनहआताहतोउसेइसपाजामेक पीछककहानीपतानहचलेगी। लेिकन बाहर आकर म यह देखकर आय म पड़ गया िक वह पाजामा मेर ही बरामदेम,मेरीआरामकसपरपड़ाथा।यह मेर िलए बड़ी हरत क बात थी। मेरी आँख फटी क फटी रह ग। यह कसे आ? मने पड़ोसी क घर म झाँक कर देखा, वहाँ कोई नह था, न कोई हलचल थी। वे लोग शायद अभी तक सो कर नह उठ थे। िफर इस पाजामे का या जादू ह? यह बार-बार मेर ही घर म य आ जा रहा ह? म परशान होकर इधर-उधरटहलनेलगा। तभी मने देखा िक राते से दो िसपाही गुज़र रह ह और सभी घर क भीतर उचकउचक कर देख रह ह। वे शायद हािकम क पाजामे को खोज रह थे। वे मेर घर क सामने आते, उससे पहले ही पाजामे को उठाकर म घर क भीतर तेज़ी से भाग गया। अब तो मेरी टाँगे काँप रही थी। मुझे लगा मने पाजामा नह बककोईजहरीलासाँपपकड़ाआह।मने पाजामेकोदसेदूरफकिदया। अगरिसपाहीघरकभीतरआगएतोया होगा? म तो इसे पहनकर सड़क पर घूम भी आया । कई लोग ने मुझे देखा भी ह। मेरा िसर चकराने लगा। िबजली िफर से चली
मुझे उसकमुकानअजीबलगी। ओह! तो या उसे मालूम हो गया था िक यहहािकमकापाजामाहऔरउसेमनेउसक आँगनमरखाथा?यापता,होसकताहउस समयवहजगाआहोऔरकहसेमुझेदेख रहा हो। हो सकता ह उसने कल रात शराब नहपीऔरसबेरजदीउठगयाहो।महीतो उसे सबेर जदी उठने क िलए कहता था। हो सकता ह, उसे पहले से ही मालूम हो िक हािकमकापायजामाचोरीगयाह। कस पर रखे अख़बार पर िफर से मेरी नज़र पड़ी। पाजामा चुराने वाले क िलए मोट अर म फासँी क बात िलखी ई थी। हािकम क िलए फासँी आम बात थी। वह िजसेचाहफासँीदेसकताथा।मुझेअपनेगले पर दबाव सा महसूस होने लगा। फासँी क

पड़।रातेममुझेचायकतलबलगी

तो एक दुकान पर ठहरकर म चाय पीने लगा।

मुझे समझ म आया िक भूख और यास मृयु

क भय से भी बड़ ह। वहाँ कछ लोग हािकम

क चोरी गए पाजामे क चचा कर रह थे। म

यानसेउनकबातसुननेलगा।वेकहरहथे

िकहािकमइसबातसेबतहीयादानाराज़

ह। अगर उसे पाजामा नह िमला तो वह सभी िसपािहय को दंिडत करगा और पूर शहर को भीसज़ादेगा। लेिकन ऐसा या था उस पाजामे म?

सहसा मेर मुँह से िनकल गया। मुझे डर भी

लगा िक कह ये हािकम क जासूस

न पच जाएँ। यह सोचकर म बत

परशान हो उठा। म घर क अंदर गया पाजामे

को जहाँ छपाकर रखा था, वहाँ से िनकाल

लाया।पहलेसोचािकउसेजलादूँ,िफरलगा

िकजलानेसेधुआँउठगा,कहइससेहािकम

किसपािहयकोयािकसीऔरकोशकनहो

जाए। बत सोच -िवचार कर उसे अछ से

एककागज़मलपेटिलया।मनेतयिकयािक

अब चाह जो भी हो, इस पाजामे को हािकम

को दे आऊगा और उसे सारी वातिवकता

बता दूँगा। हािकम इतना बड़ा आदमी ह या वहसचकोसमझेगानहभला।यहीसोचकर

मघरसेचला। अभीकछदूरहीगयाथािकदेखाहािकम

किसपाहीरातेमएकआदमीकोपकड़कर

लगभग घसीटते ए ले जा रह ह, पता चला

पाजामेकाचोरिमलगयाह,इसीकपास

हािकमकापाजामाबरामदआह।

अपने

अपनी दुकान लगा िलए। चार तरफ उसव

सा माहौल हो गया। मेरा पड़ोसी भी तमाशा

देखने पचा। मने उसे पास बुलाया और उसे बताया िक यह य िजसे फासँी दी जा रही ह,उसकपासकोईपाजामाबरामदनहआ

ह, वह चोर नह ह। वह िनदष ह। मने उसे

पाजामािमलनेकसारीकहानीसुनाई।

मुझे यह देखकर बत खुशी ई िक मेर

पड़ोसीनेमेरीबातगौरसेसुनी।आजमुझेवह

एकअछाआदमीलगाथा।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj15 समय झटक से गदन क ही टट जाती ह। मनेअपनेगलेपरहाथफरा।आजमुझेपहली बार लगा िक मेरी गदन िकसी सुंदर ी क तरह लंबी ह। म आईने क सामने खड़ा होकर अपनी गदन देखने लगा। मेरी टटी ई गदन कसी लगेगी? लेिकन मने तो पाजामा नह चुराया ह। यह तो मेर अहाते म फका आ िमला।परऐसाकहनेसेयाकोईमेरायकन करगा?शायदकोईनह।यायकआँखपर तो पी बंधी ह। लेिकन एक पाजामे क िलए इतनी सत सज़ा! बात मेरी समझ से पर थी। लेिकन हािकम कछ भी कर सकता था। िजसे चाहसज़ादे,िजसेचाहइनामबशदे। यही सब सोचते ए मेर कदम घर से िनकलकरहािकमकघरकतरफअनायास हीचल
न ह, कह मुझे ही चोर न समझ िलया जाए। चोरी कापाजामाअभीतकमेरघरमपड़ाथा। अपनी बातचीत म पड़इस ख़लल से पहले तो वे अकचकाये िफर मुझे भी अपने करीब िबठाकर अपनी बातचीत म शािमल कर िलया। वे िसगरट पी रह थे। उहने मुझे भी एक िसगरट दी और चुपक से फसफसा कर बताया "जब पाजामा चोरी गया तब हािकम महल से बाहर िकसी परायी ी क साथ सहवास कर रहा था, इतने म चोर ने उसका पाजामा चुरा िलया। हािकम को वहाँ सेनंगेअपनेमहलमजानापड़ा।" अब मुझे हािकम क से क वातिवक वजहसमझमआगईथी।मवापसअपनेघर आ गया और पाजामे को िठकाने लगाने क तरकब सोचने लगा। लेिकन कोई भी तक़ब कारगरसमझमनहआई।इसीतरहपूरािदन गुज़र गया। कल क अख़बार म िफर हािकम कपाजामेकहीख़बरमुखथी।लेिकनइस बार ख़बर का सुर ज़रा बदल आ था। अख़बार ने िलखा था िक हािकम क िसपाही अभी तक चोर को नह पकड़ पाए। जब हािकम ही सुरित नह तो जा का या होगा? यह भी ख़बर थी िक हािकम इस बात से बत ोिधत ह िक अभी तक चोर नह पकड़ गए एवं िसपािहय पर चोर को पकड़ने का बत दबाव ह। ख़बर पढ़कर मेरी घबराहट बत बढ़ गई। कह िसपाही मेर घर तक
िक
से
मने
हाथ म िलए पैकट क ओर देखा। पाजामा वहाँ सही सलामत था। जब पाजामा मेर हाथ म ह तो िफर इसक पास से कौन सा पाजामा बरामद आ? म सोच म पड़गया। अिधकारय क ारा अख़बारवाल को रपोट दे दी गई िक चोर पकड़ा गया और हािकम का पाजामा भी बरामद हो गया। अब चोर को फासँी दे दी जाएगी। म दौड़ा-दौड़ा अिधकारी क पास गया और उसे बताया िक हािकमसाहबकापाजामातोयहह,मेरहाथ म, िफर आपने या बरामद िकया? मने उसे पाजामा िमलने क पूरी कहानी सुना दी। अिधकारी ने पाजामे को देखा, उसक आँख चौड़ी हो ग। लेिकन उसने मेरी बात सुनने म कोई िच नह िदखाई। उसने कहा अब चोर नह बदला जा सकता ह, इससे हमारी बदनामी होगी। उसने िसपािहय को आदेश िदया िक इसक हाथ से पैकट िछन लो और इसे मारकर दूर भगा दो। िसपािहय ने वैसा ही िकया। मबुरीतरहघायलहालतमसबकोबताने क चेा कर रहा था िक िसपािहय ने िजसे पकड़ िलया ह, वह चोर नह ह, उसक पास से हािकम का पाजामा बरामद नह आ ह। लेिकन िकसी को यह सुनने म िच नह थी। सब चोर क फासँी का तमाशा देखने जा रह थे।शीहीवहाँमेलेसायउपहोगया। कछ ठले-खोमचे वाले भी वहाँ पच कर
मख़ामवाहही इससेिचढ़ताथा,मनेसोचा। िफर उसने मुझे देखा और धीमे से मुकराया। उसने मेर कान क पास आकर कहा-"म जानता वह चोर नह ह। पर तुम भायशाली हो जो बच गए। उस पाजामे को दरअसलमनेहीचुरायाथा।" यह कहकर मेरा पड़ोसी वहाँ से चला गया। मुझे काटो तो खून नह। म हतभ सा उसेजातेएदेखतारहा। संया समय शोर का एक बार उठा। लोग खुश होकर तािलयाँ बजा रह थे। पकड़ गएआदमीकोफासँीदेदीगईथी। उस िदन मेले म ब िब ई। वहाँ से लौटती ई भीड़ हािकम का गुणगान कर रही थीिकयायहोतोऐसाहो। 000

ह?"मनेमैसजरसेपूछा।

"मुझेनहपतामैडम।''कहवोचलागया।

मचकगई,पतानहउहनेमुझेघूरतेएतोनहदेखिलया?

मेराचेहराहीऐसाहिककोईभावछपनहपाता।सोचतेएममनहीमनअपनेकोकोसने लगी।

अपनेकोसंयतकरमनमडरते-डरतेउनककिबनमदािखलई।

"जीसर!"

"आइएमैडम,बैिठए।"सुनकर,मउनकटबलकसामनेरखीकसपरबैठगई।

"पहचानामुझे?''

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj16 अचना िम बी-3/401, फाचून िसगनेचर, ओरओन कल क पास, बाविड़या कलाँ, भोपाल 462026, म मोबाइल- 9893423095 ईमेल-archanamishra0507.am@gmail.com कथा-कहानी बक क आंचिलक कायालय म आए ए मुझे एक साह ही आ था िक आज नए उप महाबंधक को देखकर ऐसा लगा िक इह म पहचानती । िदमाग़ पर ज़ोर देने क बावजूद भी कछयादनहआया।दोिदनमेरइसीउधेड़बुनमबीतगए।िकआजअचानकमुझेबड़साहब नेबुलायाह,बतानेकिलएमैसजरआया। "यबुलाया
उहनेदूसरानदागा। मने िफर नज़र उठाकर उनक चेहर पर एक िनगाह डाली। आँख अंदर धँसी ई, मोट म कचमेसेढ़क,अपचेहरकसाथ-साथहाथमकछ-कछदूरीपरसफददाग़जैसेिदख रह थे। गले क वचा थोड़ी सी नीचे लटक सी थी। साँवला रग, वचा ऊबड़-खाबड़ सड़क जैसीलगरहीथी। "सॉरीसर!नहपहचानपाई।"अपराधबोधसेभरकरमनेकहा। "तुमवहीरमहो?जोपहलेभोपालमुयशाखामथी।" "जीसर।" "आपकसेजानतेहमुझे?'' अबमेरावरमुखरआ। "मिवनयजोशी।"सुनतेहीमेरीचीख़िनकलते-िनकलतेबची। िवास नह आ िक शाखा का सबसे बसूरत जवान कवारा लड़का, वह भी ोबेशनरी ऑिफ़सर। पद क साथ-साथ उनका यव बत भावशाली था। उस पर उनका स सस याग़ज़बकाथाजोहमेशामुझेआकिषतकरता। मिजसिवभागमथी,उसीमउनकपहलीपोटगईथीऔरकामिसखानेकाअिधभार मुझेिमला।सबलोगकहते"वाह!रम...तेरीतोिकमतखुलगई।िदनभरतेरपासबैठारहता िनणय सही था अचना िम

ह।

म संकोच से भर जाती। कहाँ एक किशयरकम-क और कहाँ एक ोबेशनरी

ऑिफ़सर िजसका शानदार, उवल भिवय ह।

आज तकरीबन तीस साल बाद उह देखकर िवास ही नह आ, िक वह वही हडसम िवनय जोशी सर ह। म जब तक कछ पूछतीिकतभीिकसीआगंतुककआजानेसे म उठ खड़ी ई। उहने भी कहा-"ठीक ह मैडम!बादमबातकरता।" कहकरवेयतहोगए।

बककनौकरीहीऐसीह,िजसमाहक िकसी भी समय आ सकता ह, आिख़र

भगवाकादजाजोउसेाह।

दो िदन बाद ऑिफ़स ऑडर िमला िक

शिनवार को बड़ साहब ने कायकाल समा

कपामीिटगरखीह।सभीटाफसदय

काकनाज़रीह।मीिटगकउपरांत

और

पर

देखकर

कया ने उनक

छकरअपनेसंकारी

होनेकाभीसबूतदेिदयाथा। लड़क क िपता ने अित िवन वर म

आहिकयािकअभीसगाईकरदेतेह।आप

दोन को एक साथ छी िमलना इतनी जदी

संभव नह होगा। बाक शादी आपक सुिवधानुसारतयकरलगे।

उह लड़क वाल क जदबाज़ी पर हरानी ई थी पर पनी का तक था-''हर लड़ककमाता-िपताकोऐसीहीजदीहोती ह।'' िफर बेट का खुशी से िखला मुख देख

वह भी तैयार हो गए। तय आ िक सगाई,

शादीदोनभोपालमहोगी।

रटायरमट क बाद

लड़क िमल जाएगी। हम यह सगाई

देते ह। ख़ामवाह िकसी जोिख़म म अपने को डालना ठीक नह। पर जवानी का जोश और लड़क क यार म सराबोर उनक बेटकमनमकोईखौफ़नहथा। उसने कहा, "म नह डरता िकसी से ममी।"

कछ िदन बाद बेट को पुनः

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj17 ह।" सुनकर म कहती "कोई फायदा नह काश!मकवारीहोती।" मेराजवाबसुनसबहसनेलगते। हमारी अछी दोती हो गई थी। उहने बात ही बात म बताया िक उनक सगाई हो चुक ह। मेर िवभाग का कायकाल समा होने पर उनका ांसफर दूसरी शाखा म हो गया। जब भी वह हमारी शाखा म आते, िजस भी सीट पर म बैठी होती मुझसे िमलने ज़र आते। कभी-कभी िचढ़ाते भी िक तुम मेरी थमगुहो।मुझेबिकगतुमनेहीिसखाई
उहने मुझे कने का इशारा िकया। मुझे शिनवार क िदनयादादेरकनािबकलपसंदनहथा।
सब कछ जानने क चरम उसुकतावश मेरा यान उस ओर गया ही नह। मुझे कता
बाकसभीलोगउठखड़ए। उनका एक ही बेटा ह। िजसने मैिनट भोपाल से इजीिनयरग क पढ़ाई क ह। उहने भोपाल म अपना घर बनवा िलया था; यिक उनक मोशन क साथ-साथ हर बार ांसफरिनतथा। जब बेट का मैिनट म दािखला हो गया तो तय िकया िक पनी उसक साथ भोपाल म रहगी। घर अपना था सो िचंता नह थी। बेट क पढ़ाई पूरी होते ही उसका जॉब लग गया। पहले वह अहमदाबाद म था। िफर दूसरी कपनी से अछा ऑफर िमला तो बेटा मुंबई चला गया। उन िदन वे जयपुर म पोटड थे। जैसे ही अगला मोशन उप महाबंधक का आ उहने पोटग मुबई करा ली। अब वे, पनीऔरबेटासाथरहनेलगेथे। उन िदन बेट क शादी क िलए बत से रते आ रह थे। भोपाल का एक रता बत हीधनापरवारसेथा।वहलोगभोपालक ही थे और लगातार लड़क देखने का आह कररहथे।बेटकोलड़कफ़ोटोसेपसंदआ गई तो बेटा और वे एक साथ छी लेकर भोपाल पच गए। लड़क सभी को जँच गई। पैसे क साथ प भी था। और
उनकपनीकपैर
वह भी भोपाल म रहगे। उनक यादातर रतेदार मयदेश म ह। इतनी जदी सगाई ई िक कई करीबी रतेदारनहआपाए। लड़क वाल ने काफ तामझाम क साथ सगाई क। पंिडत जी ने छह महीने बाद का मुतिनकाला।सभीलोगकाफखुशथे। लेिकन सगाई क कछ िदन बाद बेट को धमकभराफ़ोनिमला। ''तुमयहसगाईतोड़दो।'' शु म बेट ने िकसी िसरिफर का मज़ाक समझा। लेिकन जब कछ िदन क अंतराल से िकसी भी समय फ़ोन आने लगे तो बेट ने उह सारीबातबताई। ''पापा! कोई मुझे धमक दे रहा ह िक इस लड़क से शादी तोड़ दो। अयथा गंभीर परणाम भुगतने को तैयार रहना। कहता हवहिसफमेरीह।'' मने समझाया-"तुम लड़क से बात करो औरपूछो;याउसकािकसीकसाथअफयर ह?" "ठीकहपापा।" लड़क ने प इकार कर िदया। कहा िकउसकिज़ंदगीमकोईनहह। िफर भी फ़ोन का िसलिसला थमा नह। पनीनेबतायातोमथोड़ािचंिततहोउठा। या पता सच म कोई हो। इस सगाई को तोड़ देना ही एकमा िवकप लग रहा था। पनीभीमुझसेसहमतथी।वहभीडरगईथी। मने कहा- ''इकलौता बेटा ह हमारा। उसे समझाओ।" उसक माँ ने समझाया भी िक इससे अछी
तोड़
धमक भरा फ़ोनिमलापरइसबारउसनेिहमतसेकहा"म उसी से शादी कगा। जो करना ह कर लो।" उस िदन क बाद उसे फ़ोन आने बंद हो गए। बेट ने अपनी िहमत क बात अपनी माँ कोबताई।सुनकरमआशंिकतहोउठा। मने तय िकया िक म लड़क क िपता से बातकरतातािकसाईकापताचले।सब सुनकर उसक िपता ने अपनी अनिभता जािहरक। ''हम सब िनंत होकर शादी क तैयारी मजुटगए।सभीबतउसािहतथे।तभीउह एक िदन बक क लडलाइन फ़ोन पर एक धमकभराफ़ोनआया।" "मेरी बात यान से सुनो। यह पहला और आिख़री फ़ोन ह मेरा। अगर अपने बेट क जान बचाना चाहते हो तो यह शादी तोड़ दो।

बताई।

दूसर

फ़ोन

िचंिततहोउठी।

"अबयाकर?"पनीनेपूछा।मनेकहा

मसोचता।

मने सोच समझ कर लान बनाया िक हम

सबकछिदनकिलएभोपालचलतेह।शादी

को मा तीन महीने बचे ह तो शॉिपंग करनी

ह। उहने लड़क क िपता को भी सूिचत कर िदया।

समयानुसार हम सभी भोपाल पच गए। दूसर िदन से शॉिपंग शु हो गई। बेटा और उसक माँ क तैयारी ज़ोर-शोर से चल रही थी।

जब तक यह लोग शॉिपंग करगे

िपता

बदनामी

और उसक

लड़क क िपता

लत

कोई किठन काम नह था।

फ़ोन िकया तो पता चला िक अभी भोपाल म

पोटड ह। म समझ गया िक उसक पित क

पोटगभीभोपालमहोगी।यिकजहाँ-जहाँ

उसक पित क पोटग होती ह तुरत वे ऊपर

सेनीिलमाकपोटगअपनेसाथकरवालेते ह।

शाम को उसक घर म खाने पर आमंित

था।सारीबातसुनउसकपितनेमुझेआत

िकया िक शादी अभी मत करएगा। म पता करकजदीबताऊगाआपको।

बगैर कछ ज़ािहर िकये दूसर िदन वे और

पनीहोनेवालीबकपसंदकैलरीऔर

कपड़लेआए।

सगाई क

से

उसकनदखुली।

देखा तो नीिलमा क पित का फ़ोन था।

उहने बताया िक तीन साल पहले लड़क क िपता ने पुिलस म रपोट दज करायी थी िक दो लड़कउनकबेटीकाघरतकपीछाकरतेह, और छड़ते ह। एक बाइक चलाता ह और दूसरा पीछ बैठा होता ह। एक िदन उसने उनक बेटी का दुपा कॉलेज क बाहर सब कसामनेखचिलयाथा। तबसेबेटीडरगईऔरकॉलेजजानाबंद कर िदया। पुिलस ने कॉलेज क चार ओर

सुरा यवथा बढ़ा दी थी। कई मजनूं

पकड़ाए। उनक बेटी को गुंड पहचानने क

िलए थाने

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj18 अयथा म या कर सकता तुमने सोचा भी नहोगा।" "अगर शादी नह तोड़ोगे तो तुहार बेट कायाहहोगाउसकतुमकपनाभीनह करसकते।"कहउसनेफ़ोनरखिदया। वहतोअछाआिकउसवतवहाँमेर पासकोईनहथा।नंबरपताकरवायातोपता चलावहभोपालमुयटशनकपासकएक एस टी डी पीसीओ का नंबर था। ऐसे म फ़ोन करने वाला अपराधी ह या उसका िम, कछ समझ नह आया। परतु एकबारगी म डर गया। यह बात मने उस िदन घर पर नह
िदन पनी को बताया और कहा इस
का िज़ बेट से न करना। पनी भी
तब तक म लड़क क िपता से साई जानने क कोिशशकरता। "बक म फ़ोन आने क बात सुनकर लड़क क माँ- िपता ने कहा िक उनका कोई दुमन नह ह। न ही उनक लड़क का चाल चलन ख़राब ह। उह इस तरह क फ़ोन का सुनआयहोरहाह।" जोशी जी ने आगे बताया िक उहने लड़क क िपता से कहा- "हम यह कस पुिलसमदेदेतेह।" वह बेबसी से बोले- "इससे मेरी बेटी क बदनामीहोगी।" अलबा लड़क क िपता ने एक सुझाव ज़र िदया िक आप कह तो हम शादी जदी करदेतेह। जदीशादीकाफ़सलामअकलेनहले सकता।मुझेघरपरबातकरनीहोगी।कहकर म वहाँ से चला आया। पता नह य मेर मन मकछखटकनेलगाथा। "या क ?" अगर पुिलस म देता , औरकछिनकलताहतोशादीतोड़नीपड़गी। अगर नह तो बेकार म लड़क
होगी िफर
सामने मेरा मन हमेशा अपने को
महसूसकरगा। अचानक से उह याद आया। उनसे दो सालजूिनयरोबेशनरीऑिफ़सरनीिलमाक शादी आईपीएस ऑिफ़सर से ई थी। पता करताअभीकहाँहवहऔरयामददकर सकतेहमेरीवे। पता ढढ़ना
बाद ही मने और बेट ने अपना सूट िसलने डाल िदया था। उस दोपहर मुझे और बेट को सूट का ायल करने जाना था। तोहमदोनतैयारहोकरपहलेयूमाकटगए। िफर रतेदार को देने क िलए सािड़याँ खरीदनीथीथोकम।तोबेटकोघरमछोड़म और पनी बैरागढ़ जाने वाले थे। समय कम था और शादी का काम बत यादा। यू माकट से लौटने क बाद मुझे कछ थकान अनुभवहोरहीथी। "आज बैरागढ़ का ोाम रहने द?" मने पनी से कहा। सुनकर पनी का मूड उखड़ गया।उसनेसुनािदयामुझे। "काम इतना यादा ह, िसफ सािड़याँ ही नह खरीदनी ह। उसक पैिकग भी करनी पड़गी।एक-एकिदनकमतीह।" मने अपने मन को समझाया और पनी से कहा- "ठीक ह, आधे घंट बाद चलगे।'' बेटा हमारी बात सुन रहा था। वह बोला, "पापा आप आराम करो। ममी को लेकर म चला जाऊगा। वहाँ कम से कम दो तीन घंट लग जाएँगे। बेकार म आप और थक जाओगे। आजआपआरामकिजये।" पनी क आवाज़ थी-"घर क एक चाभी रख ले, तेर पापा को नद आ गई तो उठाना मुकल होगा।" कह-सुन दोन हसते ए बाहरिनकलगए। सुनकरवहभीमुकराउठा।कबनदक आग़ोश म चला गया और िकतनी देर सोया पता नह चला। लगातार मोबाइल क घंटी
बुलाया गया पर िपता ने बताया वह बाहर पढ़ने लगी ह। उसक फफाजी सब इपेटरह।आपइसकसकोयहख़मकर दीिजए। उसक बाद फ़ाइल बंद कर दी गई। अछा आ, उस समय बेटा और पनी घर परनहथे। लड़क का िपता होकर झूठ बोल रहा ह। मन सुलगने लगा। जैसे ही पनी और बेटा लौट। मने सारी बात पनी को बताई। उसका भीमतथािकसगाईतोड़दीिजए। "इसबारमबातकगाबेटसे।" मनेपनीकोकहा-"मेरीपूरीबातसुनकर बेट ने कहा िक पापा ! हम सब अभी उनक घरचलकरवहाँसारीबातकाखुलासासबक

िदखे।परवरकोसंयत

रखिवनतापूवकअिभवादनिकया।

मने बगैर िकसी भूिमका क तुरत कहा

आपने हमसे झूठ य कहा? हम यह सगाई

तोड़ने आए ह। और पुिलस जाँच क सयता

उह बताई। सुनकर लड़क क माँ रोने लगी। लड़ककिपतानेबतायािकजबउनकबेटी यहाँ कॉलेज म पढ़ रही थी तभी से यह बदमाशलड़कउसकापीछाकरतेथे।पुिलस मिशकायतदज़कराईतोउसकअपहरणक धमक क फ़ोन मुझे िमलने लगे। मन आननफानन उसे अपनी बहन क घर पटना िभजवा िदया।उसकपितपुिलसमसबइपेटरथे। बेटी ने आगे क पढ़ाई वह से क। जब एम .ए. फाइनल म थी तभी मेरी बहन और जीजाजी क सड़क दुघटना म मौत हो गई।

गाड़ी उनका इकलौता बेटा चला रहा था। वह

भी दो िदन अपताल म

लेलूँगा।सुनकर

दस

अंदरचलीगई।

ए हग िक डोरबेल

बजी। मुझे लगा लड़क क िपता ह। तुरत

दरवाज़ाखोलािकदोनकाबपोशपहनेयुवक

सामनेथे।

''बत समझाया था, तुझे और तेर िपे

को।परतुमेरीबातनहमानीतुमदोनने।"

"अबभुगतो।"

जब तक वह कछ समझते उसी पल उन

परएिसडकबोतलफकभागगएदोन।

उह लगा जैसे जलती

मयदेशमछपकररहरहथे।

"याआपनेसीबीआईकोयहकससपा था?"

''नह,रम।"

"अभीबेटाकहाँहसरआपका?"

"मुंबईम।"

"शादीहोगईउसक?"

''हाँ।''

"पाँचसालबाद,उसीलड़कसे।"

"या...?"रमचकगई।

"सर! िजस लड़क क वजह से आपको

और आपक परवार को यह सब तकलीफ

उठानीपड़ी;उसीलड़कसेआपनेअपने

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj19 सामने करगे। अगर सच िनकला तो म सगाई तोड़ दूँगा। जो भी सामान उहने िदया ह उसे भीलौटादगे।" उसकआवाज़सेमुझेऐसालगािकभले ही उसने मेरा कहना मान िलया हो, पर उसक अंदर िवास क एक ीण रखा अभी तक मौजूद ह। वह मन से सगाई तोड़ने क िलए तैयारनहह। "जवानी का जोश था या मोबाइल क दुिनया का भाव। रोज़ घंट बात करने से लगावहोनावाभािवकहीथा।" हम रात म अचानक आया देख लड़क किपताथोड़िचंितत
रहा पर डॉटर उसे बचा नह पाए। तब मेर पास अपनी बेटी को वािपसिलवालानेकअितरकोईमागशेष नहथा।इसीिलएमनेशादीकजदीकथी। उहनेयहभीबतायािकउनबदमाशनेबेटी क बत ही गंदे फ़ोटो उह भेजे थे। और इटरनेटपरडालनेकधमकदेरहथे। "देखते ह, उस से अब कौन शादी करगा?"बदनामीकडरसेमसबछपागया। सोचा था, इसक शादी हो जाएगी तो सब झंझट ख़म। मेरी ग़लती क सज़ा जोशी जी आप मेरी बेटी को न द। कह फट-फटकर रो पड़थेवह।मेरपैरपरिगरकरनजानेिकतनी बारउहनमाफ़माँगीहोगी। "मुझसे माफ़ माँगने क बजाए आप पुिलस म जाकर सुरा माँिगए।" कह म उठ खड़ा हो गया। पीछ -पीछ पनी और बेटा भी आगए। रम! पूरी रात सब का मूड ख़राब था। लान िकया िक कल इदौर जाकर अपनी बहनकोभीबतादूँगायिकसगाईमवहभी आईथी।होसकताहवहाँजाकरसबकामूड थोड़ाठीकहोजाए।िफरवहसेमुंबईिनकल जाएँगे। सुबहजबमऔरपनीाइगममबैठ चाय पी रह थे, तभी लड़क क िपता का फ़ोन आया िक वह आ रह ह। उह सामान लौटाना ह। बेटा अभी सो रहा था। मने पनी से कहा उसेनौबजेतकउठादेना।तबतकतुमतैयार हो जाओ। लड़क क िपता आ रह ह तो म सामान
पनी
मुझे बैठ
िमिनट
ई आग उन पर आ िगरी ह। आँख, मुँह, चेहरा, गला, सीना, बाँह सब झुलस रह थे। वे तुरत िगर पड़ और छटपटाने लगे। आँख झुलस रही थ। न कछ िदखाईदेरहाथानहीकछसमझआरहाथा। गलाबंदहोगयाथा।आवाज़देनाचाहरहथे, परमुँहसेकछनहिनकला। उह जब होश आया तो दोन आँख पर पी बँधी थी। कछ िदख नह रहा था। िसफ कराह िनकली। तभी दूर बेट क आवाज़ सुनाईदी। "डॉटर!पापाकोहोशआरहाह।" उसक बाद कछ भी सुनाई नह िदया। िसफअहसासआिकवहिज़ंदाह। जाने िकतने िदन बाद आँख क पी खुली। उह कछ िदखाई नह दे रहा था। िकतनीजाँचचली।जानेिकतनेऑपरशनक यातनाएँ सह। उनक एक आँख नकली ह औरदूसरीआँखसेबतसाफनहिदखता। तकरीबन साल भर बाद वह बक िसफ ाइन कर पाए। न जाने िकतनी लाटक सजरी का दद उहने भोगा ह। बोलते ए उनक चेहर पर दद क रखाएँ प िदख रही थ।ीटमटअभीतकचलरहाह। रम को अब समझ आया िक वह य नह पहचान पाई सर को। यिक उनक चेहर कसाथ-साथउनकआवाज़भीबदलचुक ह। पुिलस कस आ। पर वह बता नह पाए िक वह दोन लड़क कौन थे। न ही वे पहचान सकते थे; यिक उहने नाक और चेहर को कपड़सेबाँधरखाथा। वे दोन अपराधी बाद म पकड़ गए। उरदेश क शाितर बदमाश थे और
बेट कशादीकरदी?" "तुमनेसहीपूछा,रम।" िजन अपरािधय क कोई िशनात करने का साहस नह कर पा रहा था। उनका इतना खौफ़ या था लोग म, िक सरकार ारा इनाम घोिषत करने क बावद वे हाथ नह आरहथेपुिलसक। ऐसे म सगाई टटने और इस खौफ़नाक मंज़रकबादवहलड़कबेख़ौफ़होगईथी। "अबबचायाहपापा!मेरजीवनम?" कह उसी भी लड़क ने बत आमिवास क साथ िहमत िदखाते ए अपने पापा क

जाएगा।

ही

पर

करनी।''

उसे शादी नह

इस हादसे को चार साल हो चुक थे। एक

बारमअपनेकछकागज़ातढढ़रहाथा। नह िमला तो सोचा िक कह बेट क पास तो नह। उसक फाइल म सर खपा ही रहा था िक अचानक एक अंेज़ी पेपर क किटग िदखी िजसम मेर साथ ए हादसे क साथ-साथ उस समय मेरी होने वाली ब क तारीफ़ िलखी

थी। िजसने बड़ी िहमत से ाइम ांच क

मदद से उन गुंड क पहचान कर पकड़वाने

म मदद क। गवाही देते समय वह िकसी से

भी नह डरी। यिक उन बदमाश का चेहरा

िसफ उसी ने देखा था। साथ ही

िजसक कारण यह दुघटना ई हमने

घर से िफर

जोड़ िलया। लोग

िक हमने उनका पैसा देखकर शादी क।''

"न बाबा। म उस लड़क को अपनी ब नह बना सकती।'' पनी ने कसैले वर म

कहा।

"या राग आलाप रही हो तुम? तुह दुिनया क नह, अपने बेट क परवाह करनी

ह।"

"तुम औरत नह एक माँ क नज़रए से

देखो और िफर बताओ मुझे।" मेरा वर भी

तख़होउठाथा।

सुनकर पनी ने कहा जब आप क साथ

यह हादसा आ था तो उसक िपता आपको

देखने मुबई आए थे। बेट ने उनसे बात नह

क। मने समझाया भी िक िसफ नमते कर

लो।तबबड़ीमुकलसेवहमानाथा।

"मने पनी से कहा- िक उस समय घाव

ताज़ा था तो गुसा वाभािवक था। लेिकन

तुहार बेट को अगर उस लड़क से नफ़रत

होतीतोसगाईतोड़ने

यही सोच ह, तो ठीक ह अब तुम रहने दो। म बेट से वयं बातकरलूँगा।''

शाम को इस रते क िलए मन बेट से बातकपरवहतैयारनहआ।

"उसकोमअपनानहसकतापापा।''

"य?"

"आपक साथ जो हादसा आ ह पापा, उसकिज़मेदारवहीह।"

"नहबेटा!"

"तुम उसक पापा को दोषी ठहरा सकते हो। यिक अगर वह पहले बता देते तो बात

यहाँ तक न पचती। इसम उस लड़क क

या ग़लती थी ? कोई ज़बरदती

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj20 साथ ाइम ांच से संपक कर उन अपरािधय क िशनात क। िजससे वह िगरतारए।कोटमउसनेवहफ़ोटोिदखाए जो उन लोग ने उसक घर भेजा था। और िनडरता से गवाही दी। उसी क कारण उन बदमाश को आजीवन कारावास क सज़ा ई। इस हादसे से हम सब उबरने क कोिशश कर रह थे। सोच रहा था अब रटायरमट को यादा समय नह ह। ांसफर लेकर भोपाल चला जाऊ। जगह बदलने से मन बदल
अपने बदलाव क नाम पर बेट क शादी
एकमा राह थी, जो राता रोक रही थी।
बेटा तो "अंगद क पैर क तरह एक ही
वाय पर अिडग था।
उसका वह फ़ोटो भी था, िजसे पसंद कर बेट ने शादी क िलए अपनी मोहर लगाई थी। बेटा तो ऑिफ़स गयाथा,मनेपनीसेबातक। फ़ोन कर पता िकया तो मालूम आ िक उस लड़क क भी शादी नह ई ह। वह नौकरी कर रही ह। इस हादसे ने उसक भी परवारकोतोड़कररखिदयाथा। सुनकर मन िवत हो गया। वह भी तो बीहीह। "जब तक हम दूसर का दुःख नह जानते, हम हमारा ही दुःख भारी लगता ह।'' पनीसेचचाक।वोदुिवधामपड़गई। "आप टर से लौट आइए, िफर बात करग।"कहपनीनेबातटालदी।जातेसमय मिहदायतदेगयािकबेटसेकछनाकहना। टर से वापस आने क दो-तीन िदन बाद मनेिफरपनीसेबातक। "या सोचा ह तुमने? पनी तपाक से बोली।सोचनाया?मेरीतोनह।" "लेिकनय?" "लोग या कहगे? आपने सोचा ह? लड़िकय क कमी पड़ गई ह या हमार लड़क को? म िकस-िकस का मुँह बंद कगी।
उसी
रता
कहगे
कबादभीउसकफ़ोटो य नह फाड़ कर फक ? यह पेपर क किटगवहअबतकसँभालेयरखाह?" "जोभीहोमबेटकमज़जानेबगैरकछ न कगी; यिक िजस रात हम उसक िपता से बात करने जा रह थे, मने उसक आँख क कोर भगे देखे थे। उसक बाद कई िदन तक उसकामोबाइलबजतारहता,देखकरभीवह नहउठाताथा।बड़ीमुकलसेउबरपायाह मेराबेटाउसलड़कसे।मुझेनहलगताअब वहमानेगा।" "एक डर मेर मन म और ह।" वह भी आपसुनलो। "या ह ?" मने पनी क ओर देखते ए कहा। "अगर कभी वे अपराधी जेल से छटकर बाहर आ गए तो या उस लड़क को वे लोग छोड़गे?" मने पनी को समझाया िक यही एक कस नहहउनपर।दजनहयाएँभीवहकरचुक ह। कईय को अगुआ कर चुक ह। बत ही शाितर अपराधी ह वे। बामुकल पुिलस क हथे चढ़ पाए ह। अब बाहर आना आसान नह। ''हमारी होने वाली ब बत बहादुर ह। उस समय या होगा हम आज से बुरा य सोच।तुहारिहसाबसेिकसीभीमाँ-बापको अपनेलड़ककोफौजमनहभेजनाचािहए। यह सोच िक कब यु म जाना पड़ जाए और जान गवँानी पड़ तब..?तुहारी
एकतरफा यार कर तो...? उसने तो उन गुंड से यार नह िकया था? उनक भय से उसे अपना घर छोड़कर बुआ क यहाँ जाना पड़ा था। इसका दद एक भुभोगी ही समझ सकता ह। तुम हम नह समझ सकते। तुहारी माँ और मने तुमसेउसवतसगाईतोड़नेकोकहाथा,पर तबतुमतैयारनहएथे?नहन।इसकिलए तुम भी कह दोषी हो। बेटा! जो हादसा तुहार साथ होना था, वह मेर साथ आ तो उसक िलएयामतुहदोषीकरारदूँ?" "लीज़पापा!मुझेकछसमयदीिजए?" "ठीकह,िजतनासमयचािहएलेलो।" अगर तुम लड़क से जानना चाहते हो तो

गया।

''मेर आने का मकसद तो तुम जानती हो। लेिकन मुझे िसफ इतना जानना ह िक इसम तुहारी मज़ शािमल ह िक नह? सच कहना िबिटया?"

''अंकल! जब आप लोग ने सगाई तोड़ी थी, तो म बत अपमािनत महसूस कर रही थी। लेिकन सगाई तोड़ने क बाद भी उन अपरािधयनेजोआपकसाथिकया,वहमेरी बदात क बाहर था। जो दुघटना ई उसका

कारण म थी। बस अंदर क इसी आग ने

मुझम उन अपरािधय क िलए ितशोध क

ालादहकादीथी।जबपापाआपकोदेखने

मुंबई गए थे और वािपस आकर उहने

आपका जो हाल

पैकटकसाथबैडटीली और हाई वायूम पर टी. वी. क यू ूब से िसनेमाई गीत लगा िलए। यारह बजते-बजतेवेसपाटिसरपरलैपवालीटोपीरखचलिदए। बीते दो-तीन िदन से वे काफ एटव ह। उनक कमर से उठापटक क आवाज़ आती ह। रोज़ बाज़ार से खरीददारी करक आते और शॉिपंग बैस अपनी गाड़ी म रख कर अंदर आ जाते। जब पनी ऊपर क मंिज़ल पर हो, दोपहर क नैप ले रही हो, या लैपटॉप पर अितर यत हो, वह चुपकचुपक और दबे पाँव शॉिपंग बैग उठाकर अपने कमर तक ले आते। पूर ठाठ और संवेगाितरक क साथ िदी, मुंबई, कोलकाता ािलटी टाइम िबताना उहअछालगता। पनीकोपूवाभासहोजाता।यााबोधउसककमरतकसरकनेलगता। एक हाउसवाइफ- दूसर दज क हिसयत-

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj21 मबतादूँ।मउसकिपतासेबातकरचुका। सोचा, कह लड़क क मज़ जाने बगैर यह रता मजबूरी म तो वीकार नह कर रह वे। इसीिलए म लड़क से िमलने उसक ऑिफ़स गयाथा।मुझेदेखतेहीउसनेमेरपैरछएऔर कहा। "नमतेअंकल!कहखड़ीहोगई।" ''तुमऑिफ़ससेकबहोतीहो?" समय जानकर मने कहा, "तो ठीक ह बेटा! तुम अभी अपना काम करो,म तब आऊगा।'' कहकर,मबाहरआगया। शाम को मुझे बाहर खड़ा देख वह सीधे मेरपासआगई। "जीअंकल?" ''चलो कह बैठकर बात करते ह।'' और म उसे अपने साथ पास क कॉफ़ शॉप पर ले
बताया था। उसक िलए म अपने को कभी माफ़ नह कर पाई थी। कसे इसका ायत क? सूझता ही नह था। कसे आपक पूर परवार को खुशी दे सक, सबक मुकराहट वािपस ला सक, हमेशा सोचती थी। आज ईर ने मेरी यह इछा भी पूरीकरदी।" यह सब सुनकर म उठ गया। उसक िसर पर हाथ रखा तो देखा उसक आँख क कोर नमथे। सबसुनकरबेटािनरहोगया। 000 ािलटी टाइम डॉ. मधु संधु लघुकथा आज वे काफ सिच और मोबाइल थे। उहने सुबह-सुबह अपने कमरममशनरकाेिकया,भुिजएकछोट
िदन-रात एक ही बात-यह िकया तो य िकया, यह नह िकया तो य नह िकया? छी क िदन जैसा उासरगमदौड़नेलगता।साँसतकउफहोआती।पहलेिदनपालर जाएगी तीन घंट। दूसर िदन शॉिपंग मॉल म समय बीतेगा। तीसर िदन िकसी सहली को बुला ािलटी टाइम यतीत करना उसे बत-बत अछा लगता। 000 डॉ. मधु संधु 12, ीत िवहार, ारा आर. एस. िम, िनकट िसमरन हॉपटल, जी.टी. रोड, अमृतसर- 143104, पंजाब ईमेल- madhu_sd19@yahoo.co.in

क बाद िदी मेर नाना क

पासपचेथे।नानाकवेरतेदारथे।यारताथामालूमनह।निकसीनेजाननेककोिशश क।बादमवेउनकदामादजोबनगएथे।उनकसबसेबड़ीबेटीवैदेहीकपित! मौसा मुचुकद लाल दुबे लाहौर म पैदा ए और काशी म पढ़ने भेजे गए। देश िवभाजन क ख़बर पर लाहौर वािपस भेज िदए गए। जब लाहौर पचे उनका घर जलकर राख हो चुका था। नकोईसगाउधरथानसबंधी!बसभागतेएलोगकजूमथेऔरदंगाइयलुटरकलकर! धावाबोलदतोइज़त,गहनासबलूटलऔरछराघपकरफकद। 1950 म नाना बाड़ा िहदू राव क इलाक म िकराए क घर म रहते थे। दो बेिटय और तीन बेट क बड़ परवार क साथ छोटी जगह म रहने क वजह से बड़ी तकलीफ़ म थे िक एक रतेदार

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj22 सतीश सरदाना 103 टावर 3, सार होस हाई राइज अपाटमस, सेटर 92,गुाम- 122001 मोबाइल- 9911956389 ईमेल-satishsardana976976@gmail.com कथा-कहानी असी साल क पोपले मुँह वाले मौसा जी! मौसा जी को उनक ब रोटी दे गई थी। हका सानमकऔरदेसीघीडलीरोटीकचूरीबदेगईथी,मुँहमरोटीकनरमकणचुभलातेए बोलेथे,"तुहारीमाँमैिथलीबड़ीहोिशयारलड़कथी।मेरीशादीकवदसबरसकथी।" 1937 म पैदा ए मौसा जी कई रयज़ूी कप म धक खाने
और आ धमका। घर ज़र छोटा था मगर िदल बड़ा था। परवार से िबछड़ा बालक कहाँजाता?उसकदुःखभरीकहानीसुनकरमायूसएऔरउसेशरणदी।िदलासािदया।गम भोजनऔरशीतलजलिदया! नाना दूर क सोचते थे। साल भर का काशी-वास और िशा का खच पचास पये,तीसर दज का रल िटकट और दो जोड़ी कता-धोती माल और ज़री सामान देने से पहले वैदेही मौसीकाउससेसनातनीिववाहसंपकरािदया। वैदेही मौसी यारह बरस क थी और मेरी माँ मैिथली दस बरस क! तीन मामा नौ, आठ औरचारबरसकथे।नानापोथी-पा,भिवयबाँचनेकसाथ-साथपरचूनकछोटीसीदुकान भीचलातेथे।दुकानपरपेटटआयुविदकदवाएँ,शितयालड़काहोनेकनुखे,नपुसंकताऔर भीषण ी-रोग क दवाएँ समेत जड़ी-बूिटयाँ िमलती थी। परिचत म वे बैद जी क नाम से िस थे। बैद बाँक िबहारी शमा 'अज'क नाम से वे छदब किवता करते थे और भगव म लीन रहते थे। कण कथा कहते-कहते भाविवभोर होकर 'राधे-राधे'कह उठते थे।एकहीऐबथाउनम!साहमएकबारगारटीनबाटयनरोडकाचकरलगाकरआते थेऔरउसिदनमिदरा-सेवनकरकलौटतेथे।नानािजसपरलथेवहकोईिशयामुसलमान कोठवालीथीऔरबतहीज़हीनऔरबसूरतथी। मेरी नानी गुणसीता देवी भी कोई कम सुंदर नह थी। मगर अपने पित क इस कायम पर कोई आपि न उठाती थी। तब भी वह अपनी िजा पर एक शद भी रज का न लाती थी जब बूढ़ा हो गया आ पौधा सतीश सरदाना

मुझेसुखदमालूमहोताह।म

उनिदनकोबड़ीआसानीसेयादकरपाता

जब म पहले-पहल तुहार नाना क घर आया

था। यह स 1950 था और म तेरह साल का

था। तीन साल कप क खाक छानने क बाद

भीमुझेमेरपरवारकएकसदयकाभीपता नचलातोमनेसमझिलयािकवेदंगकभट चढ़ गए। तुहारी मौसी से शादी होने क पातजबमकाशीपचातबमुझेवहाँतीन साल पुराना पोट िकया आ काड िमला जो बबई क िकसी पते से पोट िकया गया था। मेरा पूरा परवार वह था िजसे म िदी और पंजाब क कप म पागल क तरह ढढ़ता िफराथा।" मौसा जी का भोजन सप हो चुका था। भोजन क पा पचास-साठ के करक वहअपनेआसनपरआिवराजे। म उनक इतज़ार म उनदा सा हो गया था। इन पुराने लोग को िकसी भी काम म

कछ

तुह

िनकल

मेरा समत परवार देवािददेव महादेव

का दय से आभारी ह और कत होकर

साादंडवतकरताह।

इसक साथ ही यह भी सुझाव ह और

िवनती भी ह िक आप िदी आकर यहाँ से आयुमती वैदेही को साथ लेकर ही अपने

परवार से िमलने बबई जाइयेगा। यिक

लड़क का शादी क बाद वातिवक घर

उसका ससुराल ही होता ह और वह ससुराल

क रहते ए अपने िपता क घर रह इससे अिधकिवषादऔरिचंताकबातउसकिलए

कोईनहहोसकती। आपसे पुनः िनवेदन ह। िनवेदन या

करब ाथना ह िक आप आयुमती वैदेही

तो म अपने

ही तो कहा था। इसम या अनुिचत था?

"मौसा!आप बुरा मानो या भला!आपको शरण देने वाले मेर नाना क िवषय म इस तरह हक शद का योग करने का कोई अिधकार नह ह। यह तो आपक कतनता ह।"

मने तखी से कहा तो मौसा हो-होकर हसनेलगे।जबहसीकतोहठतकआया आ थूक बाहर थूकने गए। जो खंखार ह जो िपनिपनाये ह और जो िसनक-िसनक कर आवाज़ िनकाली ह, उससे मेर मन म उनक ितघृणा

ऋण

सकगा दूसर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj23 उनकपड़ोसनचुहलकरनेकमारपूछबैठती थी,"ऐ पंिडताइन!तुहारी वो मुसलमान सौत कसीह?यावहबतसुंदरह!" वह बस पीड़ा से मुकरा भर रह जाती थी औरघबराहटमज़ोर-ज़ोरसेसवरराधे-राधे रटाकरतीथी। अब न तो नाना थे न नानी! न माँ थी न मौसी।कवलअसीसालकपोपलेमुँहवाले मौसा जी थे और उनक कहािनय क तजुब थे। "मैिथलीसचमहोिशयारथी।यहबातम तुह खुश करने क िलए नह कह रहा। वैसे तुम मेर अज़ीज़ हो यिक तुहारी शल म मैिथली क भाँवर पड़ती ह और तुहार चेहर कतरफदेखना
जदी करने क आदत नह ह। दूरयाँ इनक ज़माने म दूरयाँ थी जो धैय क साथ हत,महीन म तय क जाती थी। भोजनान करना हमार िलए फटाफट िनपटा िलए जाने वाला अिय काय था उनक िलए य जैसापिवकम! काशी-वास तीन माह का आ। उसक बाद बबई जाना तय आ। इस आशय क िचीतुहारनानाकोिलखभेजीथी।लौटती डाक से उनका प आया। प का मजमून
यूँथा,"आयुमानमुचुकदजीदुबे!
तुहारसुरऔरसासकतरफ़से कोिट आशीवाद तथा बालक क तरफ़ से चरण-वंदना! जब सेआपगए हआप किचंता थीऔर कशलता क समाचार क िवषय मे उकठा और िचंता थी। आज आपका प िमला तो िदलकोकरारऔरआमाकोसंतोषिमला! यह जानकर अयत हष आ िक आपका परवार लाहौर से सकशल
आया था और िफलहाल मुंबई म ह। इस समाचार से आयुमती वैदेही अयत स और हिषत ह। भगवती माँ क असीम कपा ई।साथहीआपकोिवनाथबाबाकदशन करते ही यह शुभ समाचार िमला इसक िलए म और
को साथ िलवा जाएँ। इससे एक
कयादान क
से मु हो
आयुमती वैदेही भी अपनी ससुराल क तौरतरीकसीखलेगी। पुनःकोिट-कोिटआशीवाद आपकाअिकचन वैदबाँकिबहारीशमा'अज' किवराज "प पढ़कर म िचंता म डब गया। बूढ़ा हद से यादा चालू और चालाक था। हो भी य न! िदी का पानी पीते ए इतने वष हो गए। अब तक उरांचल क भोले पूवज क िकतनीएकतासीरबचीरहती।बूढ़कोख़तरा था िक लड़क क परवार वाले िमल गए ह। या पता िवपि म िकए गए इस संबंध को मंजूर कर या न कर। यिक िवपि का या ह?िवपि म पड़ा आ का भी िवा खाता ह और िवपि म पड़ा आ मनुय गधे को बापबनाताह।" मुझे अपने िय नाना जो अब वगय थे, जो मुझे लाड़ से भारतदु (यिक भारतदु हरं उनक िय किव थे) बुलाते थे जबिक मेरी दादी ने मेरा नाम भारत रखा था, को मौसा ारा चालाक और चालू बूढ़ा बुलाना खला। वह भी तब जब उहने इस िनराितबालकको,जोअबअसीसालका पोपले मुँह वाला फत-फत करता घृिणत बूढ़ा हो गया था, शरण दी थी। अपनी संतान का शुभ कौन िपता न चाहगा। नाना ने इह अपनी पनी, यानी मेरी मौसी को िवदा करवा क ले जाने को
मदसगुणाइज़ाफ़ाहोगयाथा। लौटकर बोले, "तुहारा इस तरह िधकारना मुझे अछा लगा।" वे देसी साबुन क छोटी चीचिक से हाथ साफ़ कर रह थे, "इससे मुझे तुहारी माँ क याद आ गई। वह भी तुहारी तरह क ोधी और मुँहफट थी। लेिकन मतक क बड़ी तेज़ थी। लाटक किनकरपहनकरदुकानपरतुहारनानाका हाथ बटँाती थी। पुिड़या बाँधना और सौदा तौलकरदेना।रोज़नामचेमसाफ़-साफ़हफ़ म उधार दज करना। लेिकन बान क बड़ी तीखी थी। कोड़ जैसी फटकारती आवाज़ थी उसक। कमज़ोर बंदे का तो पेशाब िनकल जाए!" पतानहमौसानेमाँकतारीफ़कथीया

क।

से आशा क गाल को छने क कोिशश

आशामुझेदेखतीईपरहटगई।मेरमन

म यूँ ही एक ख़याल आया िक अगर म नह

होता तो या आशा मौसा को गाल छ लेने

देती। िफर अपने ख़याल क ुता द ही

शमआई।

आशा अब कोई जवान ी नह थी।

पचासपारकरचुकथी।

मौसाजीचायपीतेएचुपरह।लगताथा

िकसी

उधेड़बुन म थे।

बैठाचायपीतारहा।

चाय

भी उनक

मौसाजीउठ।अपनाऔर

किवय

वातालाप और किवता रचने

क िया क साी बनती। छदब किवता

म एक नाियका होती िजसका नख-िशख

वणन करते ए नाना कोठवाली सहली क

अंग-अंग िनहारने पच जाते। वह युवक,जो

कालांतर म मेरा िपता बना मेरी माँ क प का

वणनकरनेलगता।

"िदन एक पूरी रात क-क कर चलने

वाले मीठ वपन क भाँित बीत रह थे तभी

मौसा क एक िची ने वपात सा कर

िदया।" माँ बताती थी। िची डािकया देकर गयाथा।यापारयऔरऔषिधकपिनयक िचय क बीच वह एक टीन िची क तरह मने खोली थी और उसे पढ़ने लगी थी,"आदरणीयशमाजी, मेरी तरफ से आपको और सासू जी को चरण-वंदना। शेष परवार जन को यथायोय अिभवादन! दो महीने पहले म सकशल बबईपचगयाथा। यह प म आपको अचानक आ पड़ी समया से अवगत कराने क िलए और आपक अमूय राय लेने क िलए िलख रहा । आशा ह िक आप जैसा िवान व गुणी

य जो धमशा और यायशा म िनणात ह साथ ही साथ कणा, दया और

सामािजक कतय-बोध

वजहसेअनेकदुखझेलेह।संासऔरपीड़ा

क ण म तुमने जाने-अनजाने म जो ाप

िदए ह वह मेरी बेिटय पर फलीभूत हो रह ह! मुझे मा कर दे!" कहकर नाना बालक क तरह रोने लगे थे। उनका रोना इतना ती और दयिवदारक था िक नानी ने घबराकर दोन बेिटयकोआवाज़लगाईथी। छोटीबेटीनेबड़ीबहनकोनदसेजगाया

और दोन बहन रोते ए िपता क पास पची थी।

"या आ? या आ?" बड़ी बेटी

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj24 बुराई! लेिकन उनक कथन से मेर सीने म आगसीलगगईथी। म उनसे कोई कड़ी और चुभती बात कहनाचाहताथाजोउनकिदलकोधकसी लगे।मगरवेवहाँहोतेतोकहता।वेतोपेशाब िनकलने क बात कहकर पेशाब करने चले गए थे। लौट तो उसी चीचिक से रगड़-रगड़ करहाथधोनेलगे। "दुबे जी!चाय िपएँगे?" यह उनक ब आशा थी जो मौसा जी क पु क िनधन क बाद उनक साथ ही रहती थी। मौसा जी का पु मेरा हमउ था लेिकन जदी ही गुज़र गया था। आशा तबसे अपने सास-ससुर क साथथी। "बना लो िबिटया!" कहकर उहने गीले हाथ
गहरी
िनकट
पीक
मेरा कप धो िदया। अंदर कप धरने गए और बत देरमलौट। म तब तक बैठा आ मौसा क कमकहानीकबारमसोचतारहा। मौसानानाककहनेकबावजूदमौसीको बबई न लेकर गए। बत िदन तक उनक कोईख़बरनलगी।िदनयूँहीसरकतेरह। िदी शरणािथय से भर गई थी। चौड़चौड़ फटपाथ शरणािथय क तहबाज़ारी का बाज़ार बन गए थे। नाना क दुकान पर हर समय भीड़ लगी रहती। नाना का हाथ बँटाने क िलए मेरी माँ यानी मैिथली नाना क छोटी बेटीपूरािदनदुकानपररहती।दुकानपरएक शरणाथ युवक रोज़ आता। लोग उसे माटर जीकहते।रोज़आनेकवजहजािहरातौरपर तो किवता-कम थी अंदनी वजह दूसरी थी। यहतोनानाको बतबादमपताचली।नाना एक समया पूित क िलए देते िजस पर वह आशु किव छदब किवता तुत कर देता। माँमुकरातीईसामानतोलतीरहतीऔरदो
क मय
से ओत-ोत ह ही मुझेइसदुिवधासेछटकारािदलासकताह। बबई पचने क पा, मने अपने माता-िपता और परवार क दूसर बड़ को अपनेिववाहसेअवगतकराया।मनेसोचातो यह था िक इतने िवान और गुणी य क पुी से संबंध जुड़ने पर वे कतता और अनुकपा से ग-ग हगे और वयं मेर साथ अपनी ब को ससमान िवदा करवा लेने क िलए उतावले हो जाएँगे।" माँ एक ण क िलएकथी। इसक बाद शायद दुकान पर कोई ाहक आ गया था उसका सामान देने और पैसा लेने म यत हो गई थी इसिलए िची को आगे पढ़नेकासमयहीनहिमला। नाना क पास आने वाला रोज़ का किविशयआपचाथा।उसकिलएठडाईबनवा लानेकिलएउहनेमाँकोघरभेजिदया। रात को नौ बजे दुकान बंद करने का समय था। भाई-बहन सब सो गए थे। दुकान का िहसाब रोज़नामचे से बही म चढ़ाती ई मेरी माँ बैठी ई थी। यह उनका रोज़ का टीनथा। िपता ने मेहनती बेटी क िसर पर ेह का हाथ फरा और छत पर जा लेट। नानी पानी लेकर उनक पास पची और पानी देकर उनकपैरदबानेलगीथी। "वैिदही क माँ!म तेरा अपराधी । मुझे मा कर दे!" नाना उदास होकर बोले थे, "मनेतेरसाथबतअयायिकयाह।तूनेमेरी
वैदेही ने माँ से पूछा था, "माँ तुम ने कछ कहा या?" "न !" माँ ने आँचल मुँह म दबाते ए मुकल से लाई रोक थी, "कोई बत ही बुरा समाचार िमला ह। नह तो पक मन क तुहार िपता ऐसे ब क तरह िबलखिबलखनरोते!" छोटी बेटी मैिथली ने िपता को अपने आँचल म ऐसे छपा िलया मान िपता न होकर उसका अपना िशशु हो! िपता अपनी बेटी क मानसपुहोकरउससेिलपटगएथे। "बेटी वैदेही! म तेरा अपराधी ण-भर कलालचनेमेरीबुिहरलीथी।मुचुकदको अपने दरवाज़े पर दीन-हीन आयहीन देखकरमउसकाभाय-िवधाताबनबैठाथा।

"आ या ह िपताजी! आप रोईए मत!

आपक बेिटयाँ हर बुरा समाचार कलेजे पर

पथर रखकर सुन लगी। लेिकन आपका रोना

देखकर हमारा कलेजा दहल रहा ह।" वैिदही

मौसी ने कहा तो नाना उसे गले लगाकर रोने लगेथे। "तुहारा पित वह नीच मुचुकद पहले से ही िववािहत िनकला! मुझसे बड़ी भूल ई

बेटी! बड़ी भूल ई! तुहारी माँग म िसंदूर क

जगह मने अंगार भरवा िदए उसक हाथ

हाय!" माँ ने मुझे बताया था उस रात यह

अशुभ समाचार हमने धड़कते िदल से सुना

था। परवार क तीन औरत पर

गया

मौसा

िमलकरयहपुतकछपवाईथीऔर

मुत िवतरत क थी। इस इकलौती पुतक

क बदौलत मेर िपता को सरकारी नौकरी

िमल सक थी जहाँ से वह मोटी पशन लेकर

रटायर ए थे। इसक अलावा उह जीवनभर

भर गया था। माँ जब तक

जीिवत रही उनम उनक ाण बसते थे। सब

चीज़ क सही कमत और थान वही जानती

थी। मौसा को भी उनका थान मेरी माँ ने ही

िदखायाथा।

इसिलए मौसा माँ का नाम बड़ी ही कटता

सेलेतेथे।

"मौसा! आपक उस िची क बार म अलग-अलग लोग से अलग-अलग बात

सुनता रहा जीवन भर! आप उस िची क लेखक थे या िलखा था आपने उसम ऐसा िकमेरनानाकघरभूचालआगयाथा।"

मौसा ने अपना चमा उतारकर रख िदया

था।वहआँखबंदकरकसोचनेलगेथे।

"मने िलखा था जब म नासमझ था तब

मेरी शादी हो गई थी यह बात मुझे तब पता

चली जब मने तुहारी मौसी से ए िववाह क

बार म बंबई

जीवन और ऊजा होमकरदीथीवहदुकानयािसफदोहज़ार

क थी। तरस खाकर उस दुकान को मेर िपता ने नाना क ही हवाले कर िदया था। बीस पये महीना मािसक वेतन पर नाना उसी दुकान को सँभालते रह थे जब तक जीिवत रह। माँ उस

दुकानकअवैतिनककमचारीथीपहलेनाना

क तरफ से। शादी क बाद पित क तरफ़ से। उनका वेतन िकसी ने भी देना ज़री न

समझा। उसक बावजूद नाना मेर िपता को

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj25 मने अपनी सुशीला गऊ सी बेटी को उससे याहकरकसोचाथामानमनेयुकामैदान मार िलया ह। न दान-दहज़ देना पड़ा न बारात-वागतकाखचहीिज़मेपड़ा,"नाना अबसुबकरहथे,"भूलगयाथािकमभायिवधाता नह भाय िलखने वाला तो कोई और ह!" िपता क बात मैिथली को कछ-कछ समझ आने लगी थी। जहाँ तक उसने िची पढ़ीथीउसेलगरहाथािकआगेकछअशुभ समाचार ही िलखा होगा। लेिकन यतता म वह पूरी िची पढ़ ही न पाई थी। अब िपता क दुःख से कातर होकर रोने से लग रहा था िक समाचार उसक कपना से भी अिधक बुराथा।
वपात हो
था। इससे भी अशुभ संसार म कछ होता
या?माँनेकहाथा।
लौट तो मुझे पुकारा! म पुराने ढग क सोफ क सत शीशम क पुत पर िसर िटकाएएऊघरहाथा। "सो गए या भारत!" मौसा ने मुझे िहलाकरजगायाथा। "नह!सोनहरहाथा।जागरहाथा!कछ सोचतेएआँखबंदकरलीथीमने!" मौसा ने नज़र का चमा लगा िलया था। उनक हाथ म एक िक़ताब थी। िक़ताब काफ़ पुरानीथी।उसकपेपीलेपड़चुकथे। िफर भी उस पर छपे ए अर पढ़ जा सकते थे। पुतक का नाम 'किवता-संगम' बड़ काले अर म िलखा था। नीचे छोट अर म किव-य वैद बाँक िबहारी शमा 'अज' और उनक सुयोय िशय िचरजीव मुरलीधरयास'आशुकिव'िलखाथा। मुरलीधर यास मेर िपता थे। दोन ससुरदामादने
किव-समेलनसेिनमंणिमलतेरह।किवसमेलन म ओढ़ाई गई शाल और िमले ए शत-प से घर
पचकर बताया। मेरी वह ससुराल लाहौर म हमार घर क पड़ोस म थी। बंबई म भी वे लोग मेर परवार क साथ आ िनकलेथे।" मौसा इस तरह बोल रह थे मानो थक गए ह और कभी भी सो सकते ह। उनक थकान नद म जाने का बहाना थी तािक वे िज़ंदगी क उस सवाल क -ब- होने से बच सक िजससेवहउभरबचतेआएथे। वह दीवान पर अधलेट हो गए थे। मने सोफ पर पड़ा आ तिकया उनक हवाले िकयाऔरबोला,"मौसा!तिकयालेलो!" "अहाँ!मेरीउसतथाकिथतपनीकएक आँख चेचक म जाती रही थी। चेहर समेत पूर शरीरपरभीचेचककदागथे।मउसलड़क से पीछा छड़ाकर तुहारी मौसी को घर लाना चाहता था। मुझे चार हज़ार पय क दरकार थी उस बेमेल शादी से छटकार क िलए। िबरादरीनेयहीफसलािदयाथा।" "चारहज़ारपयेसपचास-इयावनम बतबड़ीरक़मथी।मनेसुनाहउसरक़मम से दो हज़ार मेर िपता ने िदए थे।" मेर इस कथन पर मौसा ने तुरत आँख खोली और तमककरबोले,"यामुतमउठाकरदेिदए थे तेर िपता ने दो हज़ार पये। तेर नाना क चलीचलाईदुकानखरीदीथीउसने।तेरनाना उसी दुकान पर मािलक से नौकर हो गए थे। ह!" नफ़रत से कही गई मौसा क इस बात से मुझे ोध आना चािहए था। आिख़र तोहमत मेर िपता पर लग रही थी, िपता इस दुिनया म नहथे।बेटातोथा। मगर म शांत बैठा था। ोध तो दूर, मुझे एतराज़ उठाना भी सही नह लगा था। िजस दुकान म मेर नाना ने अपना
महा य समझते और उनक गुण गाते न थकते। िपता ने यह महानता इस तरह से ओढ़ लीथीजैसेउहनेनानासेसीखीईकिवताई किव-समेलन म गा-गाकर बत सी शाल ओढ़ ली थी जो अब मेर घर क टोर म क िकसीपुरानेकमयकयधरीथी। चारहज़ारमसेदोहज़ारमेरिपतानेिदए थे। बचे ए दो हज़ार जैसे आए थे उस बात कािज़कोईदबीबानसेभीनकरताथा। मान अलादीन का कोई जादुई िचराग़ हाथ लगा था िजसका राज़ खुल जाने पर िचराग़ चोरीहोजानेकाख़तराहो। "मौसा! वैसे मुझे पता ह िफर भी आपक मुँह से सुनना चाहता िक बाक क दो हज़ार

होकर

यह

नानाकउसिशयामुसलमानरखैलनेिदयेथे जो परवार क िलए बदनामी और दुख का

कारणसमझीजातीथी।"

कहकर मौसा ने मेरी तरफ मुँह िकया। मौसाकआँखमआँसूथे।

"मौसा! या वगय मौसी क याद आ गई?"

"नह! मुझे अपनी नीचता और कतनता कईबारकचोटतीह।तुहारीमौसीनेमुझेवह राज़भीिवासकएककमज़ोरणमबता िदया जो वह जी-जान से छपा कर रखना चाहती थी। मगर मने अपना राज़ उसे

थे।" मने माँ क जम भर

क िहक़ारत और नफ़रत अपनी आवाज़ म

भरने क कोिशश क। मगर मेरी आवाज़ म तरसथा। "चार हज़ार पये उस समय बत बड़ी रकम होती थी। मेर मन म लालच आ गया था। तुहार नाना ने अपनी बेटी का वैवािहक

जीवन िनकटक रखने क िलए जो याग िकया था उस वैवािहक जीवन क नव मने

धोखे और लालच पर रखी थी।" मौसा का

गलाभराआयाथा।

"मुझे एक बात समझ नह आई थी। मेरी

माँको

जुएऔरशराब

मउड़ादी।जबमुझपरयहबातखुलीतोमेर बेट ने मेरा सामना करने क बजाय दकशी

कर ली। जैसा मने िकया वैसा अंजाम मने भुगत िलया। मगर तुहारी मौसी क या ग़लती थी। उसने अपना बेटा य खोया?"

िफरसेरोनेलगेथे।

ब आशा ने उनको आकर डाँट

चुप कराया,"दुबे

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj26 िकधर से आए थे।" मने कहा तो मौसा ने मेरी तरफमुँहभीनिकया।मनेसोचामौसासोगए ह। "तुहारी मौसी ने इस बात पर बत िदन तक चुपी साधे रखी थी। तुहार िपता क दो हज़ार पए देने का िज़ बाक़ायदा ढोल बजाकर करने वाली तुहारी मौसी दूसर दो हज़ार क बार म चुपी साध जाती थी।" मौसा बग़ैरमुँहमेरीतरफ़घुमाएएबोले। "िफरआपकोपताकसेचला?" "पनी पित क साथ हज़ार रात अकले गुज़ारतीह।इनरातमनेह,यारऔरिवास कफसलभीपैदाहोतीहखालीबेहीपैदा नह होते। ऐसी ही िकसी भावना क वशीभूत
तुहारी मौसी ने िकसी कमज़ोर ण म
राज़ खोल िदया था। वे दो हज़ार तुहार
नह बताया। कसा रास मनोवृित का य था म!" "चुप हो जाओ मौसा! वह राज अगर दुिनया म िकसी य को मालूम था तो वह मेरीमाँथी।यिकवहएकसाधारणीहोने क बजाय िहसाब-िकताब रखने वाली मुनीम थी। कहाँ से पैसा आया और कहाँ गया यह जान लेना उनक िलए आसान सा काम था। इसिलए वह आपका राज़ जानती थी िजसने आपने बड़ी कोिशश से मौसी से िछपाकर रखा।" "हाँ! मुझे तुहारी माँ से बत डर लगता था। वह जीवन भर मुझे इतनी िहक़ारत और नफ़रत से देखती थी। जब भी मुझसे बात करती उसका वर भसना-पूण होता। वह सबक सामने कह देती थी,"दुबे अगर तू मेरी बहन का पित न होता तो तुझे जेल क चक िपसवा देती! मने तुझ जैसा नीच य नह देखा।" मुझसे जवाब न बनता। मेरी ससुराल क लोग इसे साली-जीजा क बीच क नोकझक समझकरटालदेते। "वे चार हज़ार पये जो तुहार नाना ने अपनी दुकान बेचकर और अपना समान तजकर उस कोठवाली से लेकर इका िकए! उनक ज़रत ही न रही थी। मेरी उस पहली ससुराल का राज़ मुझ पर अचानक िकसी ने खोल िदया था। मेरी वह पनी तो बचपनमहीगुज़रगईथी।वहचेचककानी लड़क िजसक नाम क चार हज़ार पये का दंड म भरने क िलए तैयार हो रहा था वह तो मेरीसालीथी।" "िफर भी आपने वे चार हज़ार पये नाना को वािपस न िकये
कसेपताचलािकआपनेवेचारहज़ार पयेउनकोनहिदए?जबिकमौसीकोपता नह चला जो िदन-रात आपक साथ रहती थी।"मनेसवालिकयाथा। "तुहारी मौसी एक भोली औरत थी। िवासकरकचलतीथी।ईरउसेवगम थान दे। तुहारी माँ चालाक थी। मेर बक खाते म चार हज़ार पये य का य पड़ थे। मने उन पय को बत साल तक हाथ नह लगाया। िफर चीज़ क दाम बढ़ने लगे। मुझे लगा िक बाज़ार म इन पय क कछ भी कमत न रहगी। मने िहसार िजले म पंह एकड़ ज़मीन खरीद ली थी। बहाना यह बनाया िक मने बबई म अपने िहसे क जायदाद बेच दी ह। जबिक ऐसी कोई जायदाद थी ही नह। लेिकन यह बात तेरी माँ क पारखी नज़र से छपी नह रही। मेरा बक खाता कनॉट लेस क पंजाब नेशनल बक म था। तेर नाना क दुकान का करट एकाउट भी उसीबकमथा।तुहारीमाँहीउसमलेन-देन करने जाती थी। उसने मेर एकाउट का लेज़र चेककरिलयाथा।चारहज़ारकरकमउसी तारीख़ क जमा मेर एकाउट म यूँ क यूँ पड़ी थी! उस पर याज और जुड़ गया था। वही रकम मने ज़मीन क खरीद म इतेमाल क थी। बबई क जायदाद बेची होती तो कोई ताज़ाएँीबकखातेमआती!" मौसा ने बताया था। यह राज़ बताकर वे कछहकहोगएथे।मगरइसबातकािज़ मेरी माँ ने मुझसे बत साल पहले कर िदया था। "मगर वह धोखाधड़ी मेर कछ काम नह आई!मेरबेटनेवहजायदादमेरझूठदतखत करकबेचदीऔरसारीरकम
मौसा
उनक
कर
जी! चुप कर जाओ भगवाकवाते!सासूमाँकदुखकाख़याल आया आपको। मेरा नह आया। मने िकस नाम का रडापा काटा। ह! रहने दो फरब! करकोईभरकोई!" बकडाँटसुनकरमौसाआँखपछकर हसने लगे थे,"ह!ह!!मेरी बेटी नाराज़ हो गई थी।यूँहीथोड़ािदलभरआयाथा।" मुझे बेबसी से हसते ए पोपले मुँह वाले असी वषय मौसा बड़ वीभस और घृणापद लगे। शाम िघर रही थी। म उठकर चला आया। आशा भाभी पुकारती रह गई,"भैया!खाना बन गया ह। खाकर चले जाते!"लेिकनमकानह। 000

परयानिदया

अभीतकतोउनकायानहमेशाकागज़िकताबपरहीरहताआयाह।अपनेछोटबेटऔर

ब क साथ रहने क उनक वािहश पूरी होने वाली ह। इस बार वे लोग वहाँ पूरा एक महीना साथ रहगे, अपने छोट बेट क साथ। वह बगलु म नौकरी करता ह, वष म एक बार सपरवार अपनेघररांचीआताह। छोटाबेटाभाकरजबरांचीसेजानेलगताहतोअपनीमाँसेज़रिशकायतकरताहिक वेलोगअबउसेबेटानहमानते,इसीिलएकभीसाथआकरनहरहते।छोटीबतोजातेसमय इतनी भावुक हो जाती ह िक उसक आँसू िनकल पड़ते ह। वह भी अपनी सास से ज़र कहती ह, "अमा जी, िकतने वष से हम लोग आपका इतज़ार कर रह ह, देिखए आप कब आते ह? शांतऔरिनशांतभीतोआपलोगकसाथरहनाचाहतेह,अपनेदादा-दादीकायारचाहते ह।"

कईमहीनेपहलेसेहीयहोामबनाहिकरटायरमट

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj27 शेफािलका िसहा लैट नं. 5 सी, फ़ज 3, शुभाी अपाटमट, बरयातु, रांची-834009 (झारखंड) मोबाइल- 9955346566 ईमेल-shefalikaa.sinhaa@gmail.com कथा-कहानी यामाचरणबाबूआजअपनीनौकरीसेरटायरहोगएपरइससेउनकजीवनमकोईख़ास अंतरनहहोनेवाला।वहजानतेह,अपनीसेवासेिनवृएह,अपनेकामसेनह।वहगिणत क इतने अछ िवान और जानकार ोफ़सर ह िक उनसे ूशन पढ़ने क िलए छा लाइन लगातेह।शहरकदोइजीिनयरगकोिचंगसंथानवालेतोपहलेसेहीचकरलगारहहिकवे उनक संथान से जुड़ जाएँ। अब यामाचरण बाबू को न कमाने क चाहत ह और ना ही ज़रत। पारवारक िज़मेदारी सब पूरी कर चुक ह, दो बेट ह, दोन ही यवथत ह। अपने पित-पनीकिलएपशनबतहोगी।िफरभीउनकपूरीिज़ंदगीतोपठन-पाठनसेहीजुड़ीरही ह,इसकिबनावहनहरहसकते।उनकपुरानीयोजनाह,छाकिलएएकउपयोगीिकताब िलखनेक,िजसेवेअबपूराकरगे। उनक इछा ह िक उनका टीन भंग न हो और वह पठन-पाठन से जुड़ रह, लेिकन अभी परवारमसबकाऐसादबावहिकएकमहीनेकाआरामउनकलाचारीहोगईह।हालाँिकवे जानते ह िक उह काम करने से,पढ़ाने से िजतना आराम िमलेगा, उतना बैठने से नह, पर वह कसेसमझाएँ? उनकपनीउमाखुशहिकिज़ंदगीमपहलीबारउनकपितनेउनकबात
ह।
इसिलए
कबादवेदोनअपनेछोट बेट-ब क पास बगलु जाएँगे। लाइट का रज़वशन तो एक महीना पहले ही हो चुका ह। हालाँिक उनक िदली इछा ह िक अभी भी ोाम किसल हो जाए। यहाँ इनक िम ह, पढ़ाईिलखाई का एक माहौल ह, िजसक वे अयत हो चुक ह। वे चाहते ह िक कोई उनक प म कहदेिकवहकहनहजाएँगे।वेजानतेह,उमाकतोनहकहनेकासवालहीनह। बड़ाबेटासुधाकरऔरबड़ी बरािगनीजोयहाँ उनकसाथरहते ह,दौड़-दौड़कर उनक जाने का इतज़ाम कर रह ह। चपल, धोती, तौिलया सब ज़रत क चीज़ को वे जमा कर रह ह। वे तो ऐसी तैयारी कर रह ह, जैसे साज़ो-सामान क साथ बेटी को ससुराल िवदा करना हो। ऐसी बात नह िक उनको समझ नह आ रहा, िफर भी पनी को लगता ह िक वह कछ नह समझते।वहउनसेबार-बारकछऐसाकहरहीहतािकवेअपनीबातसेमुकरनजाएँ"देिखएइसबारनमतकिजएगा,देखरहहसुधाकरऔररािगनीिकतनेखुशह।उहभी तोअपनेबाल-बकसाथआज़ादीसेरहनेकाहक़ह।" इनसबबातसेउहबतिचढ़होतीह,जैसेवहीसबकआज़ादीकाहननकररहह। उनकाअपनामकानहयहाँ,वेिकसीकसाथनहरहरह।बेटकनौकरीयहाँह,इसिलए वहअपनेपरवारकसाथयहाँरहरहाह।वेअपनाहीनहबाकलोगकभीज़रतपूरीकर रह ह। साथ रहने से तो बड़ बेटा का ही बक बैलस बढ़ रहा ह। उसक बाद भी समय से चाय, सुख िवदाई का शेफािलका िसहा

खाना

वे

रही

एकदम

और

उमड़ रहा ह। इस

बड़ी ब रािगनी से जो पह वष से उनक

साथह,आजकलउसकदोषहीनज़रआरह

ह।

रािगनी ऊपर से तो कछ कह नह रही ह, िनिल भाव से अपना टीन पूरा कर रही ह पर भीतर ही भीतर उनक जाने क बाद क यवथा सोच कर खुश हो रही ह। एक बार सुबह नाता-खाना सब बना कर रख देगी और िदन भर ब घूमेगी। एक ही सज़ी बनाकर तीन टाइम सबको िखलाएगी। अभी तो तीन टाइम अलग-अलग चीज़ बनानी पड़तीह।सबसेकतोउसेहोताहजबगम रोटी सक कर िखलाना पड़ता ह। मन ही मन सोच-सोच कर खुश होती ह िक वहाँ जाकर

अमाजीदेखतोिदमाग़िठकानेलगजाएगा।

आय क बात ह िक अमृत

संकोच हो रहा ह। सोचती ह वह बनाकर अपने बेट को िखला देगी। उसे ये सब चीज़

बत पसंद ह। पता नह छोटी ब मृित

बनातीहयानह।

आजरांचीएयरपोटपरसुधाकर,रािगनी,

अमृत और अनु आए ह उह छोड़ने। लौटते

समय सुधाकर अपने बेट क फरमाइश पर

एकमॉलमघूमतेहऔरिफरअंबरहोटलम

िदनकाखानाखाकरघरलौटतेह।िजतनीदेर

म वे घर पचते ह, उतने ही समय म लाइट

बगलुपचजातीह। यहाँ एयरपोट शहर से बत दूर ह, िफर

भी छोटा बेटा भाकर आया ह, अपनी अमा

बाबूजीकोरसीवकरने।रातेभरमाँसोचती

आ रही ह, घर पचते ही अपनी ब क गले

लग जाएगी, ब यार करगी। दोन पोते

और िनशांत ज़र उह देखते ही

जाएँगे।

िलया ह, िजसे

वह अपने पित क सामने कट नह करना चाह रही, इसिलए वह चुप रही। वह सोचने

लगीजबएकदोमहीनेपहलेसेहीयहाँआने

का ोाम था तो मृित ने अभी कल य ाइन िकया? वह दो महीने बाद भी कर

सकती थी। उसने अपनी सोचने क िदशा बदली और अपने पित से पूछा, "आपको नाता

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj28 नाताऔरखानादेनाइहभारीलगरहाह? उनक पनी जानती ह िक यही साई ह, बेटा-ब, पोता-पोती सब को उनक दखलअंदाज़ी पसंद नह। कोई भी ेम-ेह सेउनकितअपनाकामनहकरता।इधरक कछ वष म तो िकसी तरह समय पर नाता-
देकरूटीिनभानेवालीबातहोगईह।
अपनी छोटी ब क साथ अकले कभी नह
ह, पर उह लगता ह िक वह बत संकारी और सुशील ह। यहाँ आती ह तो 'अमा जी, अमा जी' कहते नह थकती।
यार क भूखी लगती ह। जब से उसकपासजानेकबातईहतबसेउमाको
अिधक उस पर यार
और अनु अपने दादा-दादी से बत जुड़ ए ह और दादा- दादी िचंितत भी ह िक उनक यहाँ नह रहने से वे कसे रहगे? उनक पढ़ाई कौन देखेगा? वहीअमृतऔरअनुअपनेदादा-दादीक नह रहने पर, या-या करगे, मन ही मन उसक िलट बना रह ह। कौन से सीरयल पूरा देखना ह, कौन से िसनेमा को मटीलेस म जाकर देखना ह। अमृत एक संड अपने दोत क साथ िपकिनक ज़र मनाएगा। अनु अपनी सहिलय को घर पर बुलाएगी। दादा-दादी िकसी बात क िलए मना नह करते, लेिकन दादा बत अनुशासन म देखना चाहतेह।बात-बातपरयहाँतकिकदोतक सामने भी टोक देते ह। वे दसव और बारहव म पढ़ते ह, दादा समझते ह िक वे छोट बे ह। यही बात अमृत और अनु को पसंद नह। यामाचरणबाबूकरटायरहोनेऔरबगलु जाने क ोाम से यहाँ सभी खुश ह। अब तो उनक जाने म दो ही िदन बचे ह। उमा भी अपने छोट बेट-ब, उनक ब क िलए उपहार और कपड़ खरीदने म लगी ह, खाली हाथ जाएगी या? उसे तो मन ह िक गुिझया और मठरी कम से कम बनाकर ले जाए, लेिकन बड़ी ब से बनाने क िलए कहने
शांत
िचपक
अपने सामान क साथ वे िलट से ऊपर चढ़ते ह। भाकर दोन हाथ का सामान रखकरबाहरकदरवाज़ेमलगेतालेमचाबी लगाताहतोउमाचौकपड़तीह, "यकोईनहह?मृितकहाँह?" "अर अमा वहाँ क हाल-चाल पूछने म म यह बताना भूल ही गया, एक महीना ए मृित ने कल म पढ़ाना शु िकया ह, बत अछी सैलरी ह। शांत और िनशांत भी बड़ होगएह।वहचाहतीथीिककछकरतोवही उसनेाइनकरिलयाह।" अपने अमा बाबूजी क दो बड़ सूटकस, एकबैगसबकोजगहपरसेटकरताजारहाह औरबोलताभीजारहाह, "लेिकन वह दो बजे तक आ जाएगी। आप नहा धोकर श हो जाइए, डाइिनंग टबल पर नाता रखा आ ह। म अभी नह क सकता, अभी फी जा रहा बस आप लोगकोलेनेकिलएआयाथा।बेभीतीन बजेतकआजाएँगे।" भाकर को इतनी हड़बड़ी थी िक उनक बात को सुनने का भी समय नह था। वह जदी से उह समझा कर िनकल गया। भाकरकजातेहीयामाचरणबाबूनेअपनी पनी उमा पर यंय िकया,"तो ीमती जी छोटबेट-बकलैटपरआपकावागतह, इतने वष क बाद यह अवसर िमला ह, आप खुशतोह?" पित क इस यंयबाण ने उमा क दुखती रग को छड़ िदया। लैट म घुसते ही एक अजीब सी उदासी ने उसे घेर
देदूँयाआपनहाकरकरगे?" "नह आता नहाकर, बत गम लग रहीह।" वेनहानेचलेगएतोउसनेकसरोलखोल कर देखा, आलू क सज़ी। मन म सोचा िक आलू क सज़ी तो ये खाते नह, सबको पता ह। दूसर म परवल क भुिजया और तीसर म सूखी रोिटयाँ, तो यही ह उनक आने क खुशी म बना खाना। वहाँ रांची म रािगनी को न भी बनानेकामनहोतोकमसेकमदालभरीई पूरी और खीर तो ज़र बनाती ह, िकसी क आने पर। िफर सोचने लगी िक वहाँ टबल पर रखा खाना अपने से िनकाल कर खाना उसे अपमानलगताथा।उसकआँखनमहोग। यामाचरण बाबू टबल पर आकर बैठ और िफर जड़ िदया-"तो ब ने अपनी सास

कमरा

ब का ही ह, वहाँ तो कोई

सवाल ही नह ह। िलिवंग पेस म सोफा

दीवान सब लगे ह, पर यहाँ लेटना ठीक रहगा

या नह। तब तो बस वही एक कमरा बचता

ह। यह दोन पोत का लग रहा। उसम दोन

तरफ दो पलंग लगे ए ह। वे वह पर जाकर लेट जाते ह। उमा भी नाता करक उसी कमर म दूसर पलंग पर लेट जाती ह। लैट म पितपनी क बीच भी एक मौन छा जाता ह। कभी िदन म नह सोने वाले दोन ाणी आज सो जातेह।

कॉल बेल क आवाज़ पर उमा दरवाज़ा खोलती ह, ब मृित उह पैर छकर णाम करतीअंदरघुसती

आप अपने और बाबूजी क

िलए रात का खाना बना लीिजएगा। शांत,

िनशांत तो अपने से बना कर मैगी भी खा लेते

ह।"

ऐसेवागतसेआठघंटमहीयामाचरण

बाबू और उमा उबने लगे। कम से कम घर

खुला हो, आँगन हो, लोग बाग िदखते ह तो थकान कछ वैसे ही कम हो जाती। पर चार ते लैट म बैठ-बैठ उनका दम घुटने

लगा।उहने साफ मना कर िदया िक रात को खाना नह खाएँगे। उमा अपने िलए या बनाती,मृितजोमैगीकपैकटरखकरगईथी उसेउहनेबनाकरदोनपोतकोदेिदया। दो-चारिदनमहीपताचलगयािकशाम

को पाट ब म जाना रोज़ क बात ह, वीकडपरबेभीजातेह।मृितकलजाने

कपहलेसज़ी,नाते,खानेकाइतज़ामकर

टबल पर रख जाती ह, रात तक वही चलता

रहता ह। पर

उनका बेटा भाकर आँख चुराते ए अपने िपता से कहता ह, "बाबूजी आप तो एकदम घबरा गए, इतनी जदी य जा रह ह? आप लोग का तो एक महीने का ोाम था, इसिलए म भी िनंत था, कह आपको घुमा भी नह पाया।" यामाचरण बाबू ने अपने को नामल रखने क कोिशश करते ए कहा, "रांची से ाईट कोिचंग वाले वमा जी

रोज़ फ़ोन कर रह ह िक आ जाइए, नए सेशन

को शु करना ह। वैसे भी अब म रटायर हो

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj29 क वागत म या बनाया ह, ज़रा हम भी िखलाओ।" उमा क चेहर का रग उड़ गया, चेहर पर उदासी छा गई। और िदन होता तो वह कभी चुप नह रहती। उसने कसरोल से नाता िनकाल कर रख िदया, नाता देखकर यामाचरण बाबू भी अचकचा गए, वे तो सचमुच मज़ाक कर रह थे, उह ऐसे नाते क उमीद नह थी। अब वे चुप हो गए, बस उमा से इतना ही पूछ पाए, "तुम नह करोगी?" आप किजए, म भी आती नहा कर। यामाचरण बाबू नाता कर यह सोचने लगे िक कहाँ आराम कर ? बेटा तो इतनी हड़बड़ी म था िक उसने तो कछ बताया ही नह। एक
तो बेट
ह, "कोई िदकत तो नह ई अमा जी, आपलोगनेनातातोकरिलया?" शायद बाहर से आने क कारण मृित क वाणी क िमठास भी कम हो गई ह, ऐसा उमा कोलगा।वहकपड़बदलकरआईऔरगैस पर दोन तरफ उसने दो ककर चढ़ा िदया। उमा क पूछने पर उसने सफाई दी िक दाल और चावल ह, पहले से ही डाल कर जाती ह और टबल पर सज़ी भुिजया तो बची ई ह ही।उमासमझगईिकिफरवहीसज़ीखाना पड़गा। उमा को समझ नह आया क मृित को कसे याद नह िक उसक बाबू जी उसी सज़ीकोदोबारानहखाते।वहभीआलूक सज़ीयािफरवहयादनहोनेकानाटककर रही ह। मन तो आ िक वह उसे कछ कह, लेिकनउसनेअपनेऊपरकोलिकया। शांत िनशांत क आने क बाद सब ने िमलकर खाना खाया। मृित अपने कमर म आराम करने चली गई, शांत, िनशांत वीिडयोगेसखेलनेलगे।उमाकभीसोफपर तोकभीदीवानपरबैठकरसमयकाटनेलगी। मनमयहीसोचरहीथीिकशामकोऑिफ़स से बेट क आने पर बात हगी। पर पाँच बजे बेटका फ़ोन आया, उसने कहा िक शाम को बॉस क यहाँ पाट ह, मृित को बोल दीिजएगा,वहतैयाररहगी। बेटा आया, मृित तैयार थी। उसने अपनी सास से कहा, "अमा जी बड़ी हड़बड़ी हो गई, जो मन होगा
यह अिधक समय तक नह चला यिकयामाचरणबाबूकजीभउसेबदात नह कर पा रही थी। उमा को मृित से रसोई क िज़मेदारी लेनी पड़ी। मृित को अब और आराम हो गया, फरमाइश करक द िनकल जाती। अब उमा रसोई म और यामाचरण बाबू जोअपनीिकताबलेकरआएथे,उसीमडब गए। सुबह शाम पाक म जाकर बैठते, दोन पोत को तो अपने दादा-दादी से कोई ख़ास मतलबनह था।ब का भीया दोष,जम से ही उहने अपने ममी-पापा क अलावा िकसी तीसर को यहाँ देखा ही नह। वे तो अपने आप म ही यत रहते ह, खेलते ह, लड़ते ह, पढ़ते ह। उह िकसी तीसर क ज़रत नह महसूस होती। समझदार भी हो गए ह, शांत आठव म और िनशांत छठी ास म ह। इसिलए दो िदन म ही दादादादी क लाड़ यार से संतु हो गए और वे अपनीदुिनयामखोगए। उमा क इछा थी िक इतनी दूर आई ह, इतना नाम सुना ह शहर का, वह घूम लेगी, लेिकनबेटकोफसतहोतबन।आजकलतो संड को भी ऑिफ़स जाता ह। यामाचरण बाबू को मैसूर का वृंदावन गाडन और मैसूर महल को देखने का मन था, पर मन क बात मनमहीरहगई;यिकआजअपनेआनेक सोलहव िदन ही वे लौट रह ह। उनका मन आरामकरते-करतेउचटगयाह।
हीगया,जबमनहोगािफरआजाऊगा।" इधर उमा जब से आई ह, अपनी ब मृित क मीठी आवाज़ क िलए तरस गई ह। आज उसी ब क िमी घुली आवाज़ सुनाई पड़तीह, "अमाजीआपअचानकयजानेलगे, िबकल रहा जैसा नह लग रहा, इतने िदन पर आ, अब पता नह कब आइएगा।" और आँखसेआँसूझलकपड़। आँख से आँसू िनकले या आवाज़ से शहद, उमा को इतना तो समझ आ रहा ह िक आज बेटा ब क चेहर िखले ए ह। आज सबफसतमभीह,सबकपाससमयह,सब एयरपोटचलरहह,उहिवदादेने। 000

िलएभीशहर

मउनकागुणगानहोताह,वहयहिकवेयायकगुहारमखड़ग़रीबआदमीसेपैसानहलेते। इतना ही नह उसे याय िदलाने का भरसक यन करते ह। परोपकार क सुगंध परयूम क तरहफलतीह।ेटसकरतेबारहवषहोनेकोआए,उनककरयरमजीतकजड़ीलगीह। उसकमेलेपरअजमेरमवाजामोईनुीनिचतीकदरगाहपरदुआमाँगनेहज़ारलोग आते ह। कहते ह वे एक सूफ फ़कर थे। या िहदू, या मुसलमान, हर िफरक क लोग यहाँ आकर उस फ़कर क क़ क आगे अपनी इछा का आँचल फलाते ह, िजसक वयं क पास दाए नूर क िसवा कछ न था। इछा क असंय धागे दरगाह क दीवार से बधँे ए िदख जाते ह। िकतने अरमान यहाँ मरघट हो गए, पर अनंत आकाश क तरह मनुय क आर का कोई अत नह ह। दाता हज़ार हाथ से लुटाता ह, िफर भी लाख मनुय हर िदन हाथ पसार खड़ िमलते ह। इसान सिदय से इछा क अनंत नागपाश म जकड़ा ह। सारा का

संसार जैसे एक फ़कर क दरबार

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj30 हर काश राठी सी-136 थम िवतार, कमला नेह नगर, जोधपुर (राज) मोबाइल- 9414132483 ईमेल-hariprakashrathi@yahoo.co.in कथा-कहानी एडवोकटसतीशशमाकोअजमेरशहरमकौननहजानता।यायकेमवेएकजानामाना नाम ह। जो भी उनक संपक म आता ह, चाह वह जज हो अथवा मुवकल, पुिलस अिधकारी हो अथवा अय साथी एडवोकट, सभी उनक ितभा का लोहा मानते ह। मुवकल शमाजीकोकसदेकरहीआधीजीतमानलेतेह।एकअयिविशबातिजसक
सारा
म आकर खड़ा हो जाता ह। कहते ह, यहाँ जो मुराद माँगो,पूरीहोतीह।उसकिदनमशहरएकअजीबचहल-पहल,शोर-शराबेसेभरजाताह। सतीशशमाआजरलवेटशनपरअपनेपुरानेसहपाठीनंदिकशोरउपायायकसाथखड़ ह। उ म दोन चालीस पार ह। नंदिकशोर वाजा क भ ह एवं हर साल अजमेर आते ह। टशनपरसतीशकपनीउषाएवंचारवषयपुमयंकभीसाथआएह।नंदिकशोरकोटाम सीिनयरमिजटह।दोनदोतनेजयपुरसेकानूनकिडीसाथ-साथपहवषपहलेपास क थी, एक का याियक परीा म चयन हो गया। शमाजी ने अपने ही शहर अजमेर आकर वकालात करना उिचत समझा। दोन क शादी ए भी बारह वष होने को आए। नंदिकशोर क एकपुहएवंइसबारउसकपरीाहोनेककारणवहअकलेअजमेरआएह।सतीशकोपु रन शादी क कई साल बाद िमला ह। मुकल से िमले धन को जैसे साकार सँभाल कर सेता ह,वैसेहीिमयाँबीबीमयंककोरखतेह।मयंकदोनकआँखकाताराह।इसबारनंदिकशोर िडटजजबननेकासपनालेकरवाजाकदरबारमआएह। रलवेटशनपरअजीब-साकोलाहालह।कोटाकगाड़ीलेटफामपरअभी-अभीआकर खड़ी ई ह। टाल वाले, फरी वाले ज़ोर-ज़ोर से िचा रह ह। कोई रज़वशन चाट म अपन का नाम देखकर ज़ोर से कह रहा ह, सभी इधर से आ जाओ। िकसी को अपना नाम नह िमल रहा ह तो वह टीटी क इद-िगद अथपूण मुकराहट क साथ घूम रहा ह। कली सामान लादे अगोचर हर काश राठी

यािय

परवाह िकये बगैर धका-मुक

कर इधर-उधर घुस रह ह। सतीश एवं

नंदिकशोर कॉलेज क िदन को रह-रह कर

याद कर रह ह। वे अहड़पन क बात, वे

उमंग, वे सपन क िदन क बात करते दोन

नह थक रह ह। ायापक का

उड़ाना,

और

िवदा

कह

मयंक

िज़ंदगी

दान-पुय

? सारी

कभी

हमेशा दीन-

ितफल?

अपनेबेकदुदशाकबारमसोचते-सोचते

वे ईर क ित िवोह से भर उठ। उनक

दशा चेतनाशूय हो गई। यह कसा ईर ह?

सुख िदखाकर उसने मुझे दुःख य िदया?

जत िदखाकर मुझे दोज़ख़ म य डाल

िदया? मने तो कभी िकसी का कछ नह

नंदिकशोर

अब गाड़ी ने ख़सत ले ली ह। सबक हाथ उपर उठ ह। बारात क आने क पहले एवं न क जाने क समयएकअजीब-सामाहौलबनजाताह। गाड़ी अब लेटफाम छोड़ चुक ह, लेिकन यह या? सतीश एवं उषा एकदम भौचक ह, मयंक कहाँ गया? सतीश ने कहा, ''यह कह होगा।'' टशन पर इधरउधर छानबीन क, िफर पूरा टशन बेतहाशा ढढ़ा पर मयंक का पता नह चला। अगले टशन पर टशन माटर को फ़ोन कर नंदिकशोर क माफत सारी गाड़ी कवाकर चेककगई,परमयंकउसमभीनहथा।सार शहर क पुिलस को इला दी गई, जगहजगह नाकबंदी क गई, पर मयंक का कह

नह चला। हताश शमा दंपित अपने घर

गए।

िबगाड़ा। ईर अपने भ को इतना दुःख

यदेताह?यहसंसारिकसीईरकसृ नह हो सकती। िजस संसार म इतनी घृणा, अपहरण, चोरी, बेईमानी ह, उसका कसा ईर? इसका सृजक तो कोई शैतान ही हो सकताह।इजालकायहमायावीकोईबत शाितर ठग ह। चाह जीसस हो या सुकरात, मीरा हो या नानक, संसार से इह घृणा एवं नफ़रत ही िमली। िकसी को सूली पर लटका िदया, िकसी को ज़हर दे िदया। िसफ भय से लोग ईर को पुकारते ह। ऐसा िवधाता मेरा

ईरनहहोसकता।उनकवछचैतयपर

िवोहएवंघृणाकधूलचढ़गई।उहनेण

कर िलया, अब वे

दूसर िदन

कभी

ही उहने पूजा-पाठ

िदया। उनक भीतर दया का

वाला से िदल से दाई को पुकारता ह तो दाई उसक पुकार क साथ ही खड़ी हो जाती ह। अपने भ क रग म एकरस हो जाताहईर। उनकिवलतातभीहटीजबसामनेघर पर काम करने वाली महरी आकर खड़ी हो

गई, ''बाबूजी, अदर आने दीिजए, आज काम करक जदी जाना ह, मेर बेट क वषगाँठ ह।'' वे तुरत वहाँ से हट। महरी क दो

पु थे, एक का िनधन चार वष पूव तपेिदक

क बीमारी से हो गया था।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj31
मखौल
ासछोड़-छोड़करकटीनमघंट बैठ रहना, िमस कणा क आगे-पीछ घूमना
ऐसे ही कई वाक़ये याद कर-करक दोन िम का हसी से बुरा हाल हो रहा ह। सतीश क पनी उषा भी इह बात का लुफ़ ले रही ह। देखते ही देखते गाड़ी ने सीटी दी, न म हलचल और भी बढ़ गई। कोई अपन से िमलन क उमंग म उम ह, कोई अपन से
क ग़म म ग़मगीन ह। पल भर म
गाड़ी म चढ़ गए एवं
पता
रात दोन क आँख से नद ओझल थी। दोनकटवृकतरहिनजव-सेपड़थे,जैसे िकसी क सार जीवन क पूँजी, चोर चुरा ले गया हो। उषा रो-रो कर बेहाल हो चुक थी, मानकोईिनदयी,गायसेउसकाबछड़ाछीन लेगयाहो।सतीशभीहताशहोकरपथरबनी आँख से िखड़क से आसमान म झाँक रहा था,जैसेआकाशहीउसकाएकमाअवलंब हो। उसे कछ भी नह सूझ रहा था। हाय! मेरा मयंक कहाँ होगा? उसने दूध पीया होगा या भूखा ही होगा, िकसी ने उसक खाने क सुिध ली होगी या नह? उट िवचार उसक िदमाग़ मपहलेआरहथे।कहउसेकोईभीखमाँगने वाला तो नह उठा ले गया? कहते ह ये लोग ब को अपंग बनाकर भीख मगँवाते ह।
कोई उसे डाक तो नह ले गया? मेर
क साथ या होगा िवधाता
उहने ईर क भ क,
म कमी नह क,
दुःिखय क मदद क, उसका यह
ऐसे ईर को
नह पुकारगे।
से
छोड़
ोत सूख गया, अब वे िकसी पर रहम नह करते थे। चादर,अहकारएवंितशोधकबवंडरमिगर गई। समय का मरहम हर घाव को भरने लगता ह। इस बात को अब एक वष होने को आया। आज शाम कोट से आकर शमाजी अपने बरामदे म बैठ िवाम कर रह थे। तब से अब तक वे बत गंभीर हो गए थे। मयंक क मृितयाँउनकमनकोकरदनेलग।जैसेशांत एवंथरपानीमिकसीनेककरीडालदीहो। पु-िवरहकवेदनासेमनिवकलहोउठा।न जाने वह कहाँ एवं िकस हाल म होगा? या िज़ंदा ह या मर गया? यह ख़याल आते ही उनका कलेजा काँप गया। ईर क ित उनकामनिवोहसेभराथापरतुनजानेकहाँ से पुराने संकार आज िफर जागृत हो गए। सूयबादलकओटसेिफरबाहरआया,मन एक िविच आम-आलोक से भर गया, उनकपलक सजल हो गई, वेिवल होकर बोलउठ,''हभु!यहमेरिकनपापकाफल ह?''ारकतरहएकपुकारउनकदयसे उठी।अनायासउनकदोनहाथआसमानक तरफउठगए।आम-िवमृित,आम-जागृित म बदल गई, शीशे से अहकार एवं िवेष क धूलहटगई।भरीआँखसेउहनेदुआमाँगी, ''ह भु! मुझे मेर पाप क कठोर से कठोर सज़ा दे पर मेर पु क दुगत मत करना। ह दीनदयाल! उस िनपाप पर रहम कर।'' शु दयसेशरणागतहोगएवे।भावावेशमउह कछ भी यान नह रहा। जब कोई पुकारने
यकायक शमाजी कोकछयादआया।उसिदनकसीिनरीह-सी हमारघरपरयहइलाजकहज़ारपयेमाँगने आई थी। म और उषा दोन िकसी बारात म जाने क जदी म थे। मेर पास पये थे भी, मेरामनभीआ,परउषानेमहरीकोिझड़क िदया, ''आज चार रोज़ से आई हो और वो भी पये माँगने? कभी बा बीमार ह, कभी ये कभी वो।'' उषा का चार िदन का दबा सा िनकला। उसक िवरोध क आगे मने महरी को कछभीदेनाउिचतनहसमझा।मजबूरमहरी तकती रह गई। हमारा घर उसक आशा का अतम छोर था। दरता संसार का सबसे बड़ाअिभशापह।दरसबकओरदेखताह पर उसक ओर कोई नह देखता। महरी ने

शमा जी

कअंतेतनानेदतकदी,होनहोयहइसी

ग़रीब क हाय ह। िनधन क हाय ईर क

दरबार म तुरत पचती ह, तभी तो वह रहीम

कहलाताह।

सतीश शमा क दय म िबजली-सी

कड़क। महरी काम करक िनकल गई। उस

िनराितिवधवाकाकोईसहारानथा।पितदो

ब को छोड़कर शादी क पाँच वष बाद ही

परलोकिसधारगया।यहाँवहाँएक-दोघरम

झाड, बतन कर अपना एवं ब का गुज़ारा

करती थी। शमा दंपित उसक एकमा अवलबथे।

शमाजी ने अदर आकर अपनी ितज़ोरी खोली एवं बैग नोट से भर िलया। िकतने थे उह द नह मालूम। चेतना क काश म गिणत िवमृत हो गई। वे तुरत महरी क घर को चले। आज उह कोई नह रोक सकता था।ायतकाएकतेजपुंजउनकमनपर सवार था। वे सीधे महरी क घर गए। सभी चकउठ।महरीएवंबेऐसेतकनेलगेजैसे उनक घर साा नारायण आए ह। सच म आज दर-नारायण हो गए थे वे। यार से

उहने बे क िसर पर हाथ फरा एवं थैला

उसक हाथ म दे िदया,

आया ह।'' जैसे

गाय खटूँ से छटकर आए बछड़ से िमलतीह,

यही दशा उषा क थी। दोन क दय आनद

सेपुलिकतहोरहथे।

शमाजी ने प खोला और िवमय से

पढ़नेलगे।

आदरणीयशमाजी, आपका पु मयंक आपको लौटा रहा ।

आज से दो वष पूव अजमेर रलवे टशन से

मनेहीआपकाबाउड़ायाथा।इसदरयान

बे को मने कलेजे क टकड़ क तरह पाला ह।आपकोएवंमयंककमाँकोईपीड़ाक िलये मााथ । िविध-िवधान को शायद

यहीमंरथा।

पुनः अपने अपराध क िलये आपसे मा

चाहता।

आपका

िवशंभर

बताया

अपने

बे को

बा िवशंभर और उसक पनी दोन क मन को भा गया। दोन

लाड़-यार से उसका लालन-पालन करने लगे। थोड़ िदन तो बा रोया पर बे का िदमाग़ तो की िमी होता ह। समय बीतने क साथ वह उह का होकर रह गया। दोन कोबेसेइतनायारहोगयािकउहअपने बा न होने का अहसास ही नह रहा। वीणा क ममता क तार झंकत हो गए, उसका वासय जाग उठा। संयोग से एक सुखद आय घिटत आ। कछ िदन पूव उनक घर एक नई िकलकारी गूँजी। अपना पु होने क

बाद उह पता चला िक इसान अपने बे से

िकतना यार करता ह, उसक िलए कसे तड़फता ह,

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj32 बत िवनती क पर उस िदन हम दोन िनुर हो गए। वह चुपचाप चली गई। उसक पह रोज़बादतकनहआई।बादमपताचलािक उसक पु का िनधन हो गया। दरता एवं िनुरता क रास ने उसक बे को लील िलया। पुरानी बात मरण करते-करते
''अब तुह आगे पढ़ने म कह कोई िदकत नह आएगी। इसम इतना धन ह िक तुह अपना करयर बनाने म कोईतकलीफ़नहहोगी।''महरीनेसतीशजी क पाँव पकड़ िलए, ''बाबूजी, आप भगवा ह, ईर आपक सब मुराद पूरी कर। हमारा मयंक भी एक िदन लौट आए।'' आज उसक दय और परमामा क बीच कोई फासला नहथा।अनतकिवतारनेउसकदुआको अपनेआग़ोशमलेिलया।नेकवहफसलह िजसक एक बीज से हज़ार बाल फटती ह, बदीखड़ीफसलभीचौपटकरदेतीह। इस बात को भी एक वष बीत गया। परवतन कित का शात िनयम ह। यहाँ कछ भी नह ठहरता। समय-च िनबाध गितमानह।ऋतुनेअपनेरगबदले।इसान का जीवन भी ऋतुच जैसा ही ह। कभी गम क भीषण तपन, कभी सद का कठोर कपन एवं कभी बंसत क सुरिभ। शमा जी सुबहसुबह रोज़ क तरह मोिनग वॉक क िलए बाहर आए तो देखकर हरान रह गए। उनक खुशी का पारावार नह रहा। मयंक घर क बाहर खड़ा था एवं उसक हाथ म एक िलफाफा था। कछ बड़ा ज़र हो गया था पर खून ने खून को पहचानने म कोई ग़लती नह क। उसक साथ एक आदमी खड़ा था पर इसक पहले िक वह कछ कहते वह तुरत वहाँ से भाग गया। उहने आय से उषा को पुकारा, ''देखो, मयंक लौट
शमा जी ने प खोला। प से अनुमान लगाना मुकल था िक प िकसने िलखा ह। दरअसल प िलखने वाला देहरादून का एक टसी चालक 'िवशंभर' था। शादी क बीस वष बाद भी उसक बा नह आ। उसक पनी 'वीणा' को एक पंिडत ने कह िदया था िक अगर िकसी भले घर क बे को अपने बे क तरह पालोगे तो शायद तुह भी बा नसीब हो। वीणा ने यह बात िवशंभर से कही। पनी िदन-रात उसको बा लाने क िलए टोका करती थी, तरह-तरह क ताने भी देती रहती थी। पनी क बात सुन-सुनकर उसक कानपकगए।वहतंगआचुकाथा।िवशंभर, अजमेर,वाजाकदरगाहपरपुकामनासे ही आया था। शाम टशन पर घूम रहा था। एकाएक मयंक पर उसक नज़र पड़ी एवं न जाने िकस कसत वृि ने उसे घेर िलया। िहमतकरवहअंदरगयाएवंगाड़ीचलनेक कछ समय पूव जब शमाजी, उषा व नंदिकशोर बात म मशगूल थे, बे को ले उड़ा। सबक नज़र बचाकर मुतैदी से देहरादून ले आया। बाद म अख़बार म छपी ख़बर से उसे पता भी चल गया िक बा रामगंज अजमेर म रहने वाले शमाजी का बेटा मयंक ह। अपने पड़ोिसय को उसने यही
िक वह
दूर क रतेदार क
गोद ले आया ह।
िवशंभर ने चुपचाप मयंक को शमाजीकोलौटानेकसोचली। शमाजी ने प पढ़ा एवं न जाने या सोचकर उसे फाड़ िदया। बसंत क ठडी बयार उनक मन को नई उमंग एवं फित से भर रही थी। उनक सजल आँख एवं आभार भरहाथउसयायािधपितकतरफउठथेजो कणा का सागर ह, जो ितपल हर आमा को बोध देता ह। हज़ार आँख से सबको देखता ह लेिकन वह नह िदखता। उस ाणपित, 'अगोचर' को कौन समझ सकता ह? 000

शाितर लगता था उसका हर यवहार, एकदम बनावटी य, िकतने उपम करता था वह मेरा ेम पाने क िलए, िकतने पुतातरीकसेजताताथा-'सुजातातुमसेबेइतहामोहबतह।’ सुजाता ने अपना बासठवाँसाल पूरा िकया ह। वह, यानी राजशेखर उससे पूर आठ साल बड़ाथा।"अर,आजचौबीसअूबरहयानीराजकाजमिदन,सरबरसकाहोगयाआज। ओह उसे रटायर ए भी दस साल हो गए।"- वह मन ही मन बुदबुदाई। उसक आँख डबडबा आई,राजकाचेहराआँखकसामनेतैरनेलगा। हनीमूनपरउदासहीरहीथीसुजाता।ओलीगएथेवे।राजकोओलीऑिफ़सकतरफसे जाना था, पहाड़ पर पली-बढ़ी सुजाता को पहाड़ िबलकल भी आकिषत नह करते थे। बफ िगरतेदेखनाउसकबचपनकखेलसरीखेथे।मैदानीलड़कसेशादी-वहभीतोतंगआगईथी पहाड़ककठोरजीवनसे,बफलेइलाकमहोकरभीपानीकसमया,दूर-दूरपानीकसोते, िसरपरमटकरखपानीलेकरआना,घरतकया,गाँवमभीपाइपलाइननहआईथी।सोचा

शादीकबादकरलकजंगलघूमगूँीयािफरगोवाबीच,औरवहहोगाहनीमून।ओलीका

उसकिदमाग़कापाराचढ़गयाथा।

का दूसरा साह, जब ओली म ब बफ िगरती ह। राज खुश

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj33 सदीप तोमर डी 2/1, जीवन पाक, उम नगर, नई िदी- 110059 मोबाइल- 8377875009 ईमेल-gangdhari.sandy@gmail.com कथा-कहानी तुम आओगे न सदीप तोमर वह जानती ह वह सब ेम तो कतई नह था, लेिकन वह ेम से इतर उस सब म कछ और चाह कर भी तलाश नह पाती। उसका आिलंगन करना, कमती उपहार लाकर देना, लुभावन बात करना और बात-बात म सखी-ओ-सखी कहना, िकतना
था-
नामसुनतेही
जनवरी
था, सुजाता का उखड़ामूडउसेअजीबलगाथालेिकनवहकारणनहसमझपायाथा। होटल म ही राज क सहकम वाित िमल गई। मटीनेशनल कपनी म जॉब करते ए राज काफकछआधुिनकथा,ऑिफ़सकाकचरहीथािकलड़का-लड़ककाकोईफ़कउनक िदमाग़मनहथा।वाितसेहाथिमलानासुजाताकोनाग़वारगुज़रालेिकनवहकछकहनेक थितमनहथी। राज को नए रटमट क िलए इटरयू लेने थे, िबज़ी शेुल क चलते उसने वाित को सुजाताकसाथशॉिपंगपरजानेकोबोलातोउसकयोरयाँचढ़ग-जनाबहनीमूनपरआएह औरअपनीसहलीकसाथशॉिपंगपरजानेकोबोलरहह।हालाँिकवाितनेतुरतसहमितजता दी थी। शॉिपंग करते ए सुजाता ने बार-बार वाित को टटोलने क कोिशश क- कह दोन क बीचदोतीऔरनौकरीसेयादातोकछनहह,लेिकनउसेिनराशाहीहाथलगी। छह िदन उसने छह जम क तरह काट। उखड़ मूड म ही वािपस लौटने क पैिकग क। वापसीमराजनेसोचा-"सुजातासेउसेअभीबतसीबातकरनीह,हनीमूनऔरऑिफ़सक काम क बीच सामजय बैठाकर भी वह सुजाता को अिधक समय नह दे पाया। हनीमून का

गरज

अपने

िववािहत

करने

टसी ाईवर

पहचान िलया िक यह नव-

कस

परबैठगए।

बैराचायटबलपररखगया।राजनेकछ

ेसलानेकाबोलबैरकोभेजिदयाथा।

राज ने कमीज़ क जेब से मालबोरो

िसगरट का पैकट िनकाला। एक िसगरट िनकालहोठमदबाई।लाइटरिनकालाज़र

था लेिकन िबना सुलगाए िसगरट एक हाथ म पकड़ दूसर हाथ क अँगुिलयाँ उस पर िफरातारहा।ऐसावहतबकरताहजबतनाव उस पर यादा हावी हो जाता ह। वेटर चाय रख गया था, उसने िसगरट को वािपस पैकट मरखचायकाकपबाँएहाथमपकड़ा।

"या-याबातईवाितसे?"-िसपलेते एराजनेपूछा।

"या बात करती, हम या एक-दूसर को जानते ह?"- उसने माथे पर िगर गई लट को सँभालतेएजवाबिदया।

"तुहारी स सेस को लेकर, तुहारी िटयन घड़ी, तुहारी इपोटड ेलरी को लेकरतोकछबातईहीहगी,ऑटरआल शीइज़मायकलीग।"

"कछ ख़ास नह, बस वही सब कॉमन

तो खुश होना चािहए, ाकितक छटा को देखकर।"

"बचपन से इह छटा को ही तो देख

रही , या मेर जीवन म कछ भी नया नह होना?औरअबयहलसडाउन?"

"ओह, तो उखड़ िमजाज़ क यह कहानी

ह,पहलेबोलदेतेतोकछऔरकायमबना लेते, अछा सुनो, पता ह कल मेरा जमिदन ह,24अटबर,यहाँलसडाउनकिफज़ा मजमिदनमनाएँगे,बमतीकरगे।" चालीस साल पुरानी याद से बाहर आ सुजाता क चेहर पर एक हक ग़म क मुकानउभरआई।मानवहदसेबितयाने लगीथी-"बतयारजताताथावहमुझपर। िदखाता िक बत ख़याल रखता ह मेरा। बत

घुमायाउसने,लगभगहरऑिफ़िशयलटरपर

साथ ले जाता, एक

होताहआपचायपीलीिजए।" जलतेइलेकलपसेकमराजगमगाया ह, आगंतुक आराम-कस पर बैठा सुता रहा ह।चेहरसेवहभीपहाड़ीलगताथा,हालाँिक शहरीकरण क चलते अब िकसी को वेशभूषा सेतोनहपहचानाजासकतालेिकनचेहरसे काफ कछ अंदाज़ा हो ही जाता ह। उसने ितपाई मेज़ पर चाय का कप रखा, अचानक आगतुकबोलउठा-"सु...जा...ता..?" "आ..प....?"- अजनबी तुम मुझे जानेपहचाने से लगते ह.. उसक मतक म अचानकयेपयाँगूँजउठी। "सुजाता, तुमने मुझे नह पहचाना, म... िदवाकरभंडारी..

दुबली-पतली

िनकाल बाल को एकदम

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj34 मतलब ही एक-दूसर को यादा से यादा जाननाह।” टर क थकान क बात कह उसने ऑिफ़ससेदोिदनकाऑफलेिलया।ओली से कोटार ाइवेट टसी लेकर आया। वहाँ से लसडाउन क िलए दूसरी टसी हायर क। रातेमितराहपरकथोड़ाआराम
से टसी कवाई।
ने
अनुभव से
जोड़ा ह। गाड़ी रोक उसने सीधा िकचन का ख़ िकया। राज और सुजाता बड़ छाते क एक टबल पर आमने-सामने
बात जो एक यूली मैरड से कोई भी जानपहचान वाला या वाली करता ह।"-सुजाता बातकोटालनाचाहतीथी। "तुम इतना नपा-तुला जवाब य देती हो हरबातका?पताहघरमइकलौताहोनेऔर बचपन म ही िपताजी क चल बसने क चलते म घर म बात करने को तरसता था, तुम भी यूँ चुपी साधोगी या इतना कम बोलोगी तो कसे चलेगा?" "िसफचलानाह?"-सुजातातुनकगई। "मेरा मतलब वह नह था, देखो हम नई गृहथीशुकररहह,बसमुझेतुहारासाथ चािहएऔरकछभीनह।मघंटतुहारसाथ बितयाना चाहता । हम साथ बैठकर िबना िकसी टॉिपक क बेवजह भी बात कर सकते ह।हमएक-दूसरसेज़राभीकोतनहहोनी चािहए।" चाय ख़म करते ए कप को सामने क मेज़ पर रखते ए सुजाता उसी िमजाज़ म बोली-"तभी काम क साथ हनीमून िप बनाया,वहभीइनपहािड़यम?" "पहािड़य म तुहारा बचपन बीता, तुह
ऐसा यार हम दोन क बीच था जो मानिसक दूरी बनाता गया, मगर वह सब यार ही नह था, शादी क बाद कभी बैठकरतसीसेबातनहक।" वह का-पका सा कॉटज था, तकरीबन पह साल से सुजाता इसी कॉटज म रहती ह- िटहरी डम, झील और हाल ही म बने लंबेपुल का आनद उठाने आए सैलािनय को कॉटज का एक िहसा बतौर पेइग गेट देकर वह अपनी गुज़र-बसर कर रही ह। अँधेरा हो चला था, सुजाता ने खाना बनाने क सोच अदर का ख़ िकया, तभी कॉटजकगेटपरआहटई।"इसवकौन हो सकता ह?"- सुजाता मन ही मन सोचती ह।उसनेकभीिकसीरते-नातेवालेकोयहाँ का पता नह िदया। माँ कब क चल बसी ह, परवारमचचेरभाइयनेउसकागाँवमरहना वीकार नह िकया। डब-े से उसक िपता क जो ज़मीन बची- उसम उसने कॉटज बनवाया और गुज़र करने लगी। आहट सुन वह बाहर आई। उसी काहमउ कोई सैलानी ह। रहने क शततय होने क बाद वह सैलानी को अदर ले आई। हक अँधेर क चलते उसने सैलानी का चेहरा ठीक से नह देखा। चाय का पानी चढ़ा वह साथ-साथ खाना बनानेकतैयारीमभीजुटगई। चाय तैयार ई तो कप म रख वह आगंतुक क कमर क ओर बढ़ी, बाहर से आवाज़ दी- "साहब, जब तक खाना तैयार
यादहहमबारहवकाम साथपढ़तेथे।तुम
सी..बीचम माँग
माथे पर दोन तरफ करक कसकर चोटी बाँधती थ.. लेिकन भाला फकने म तुमसे िकसी का मुकाबलानथा।तुमवहीसुजाताहोन..?" "ओह, हाँ िदवाकर... तुम तो बारहव करतेहीदुबईचलेगएथे?" "बारहव भी कहाँ क थी, फल हो गया था म।" -कहकर िदवाकर ने एक ठहाका लगाया। "लेिकन िदवाकर तुमने मुझे ब पहचाना।"-सुजातानेउसुकतासेकहा। "हाँ, सुजाता! कछ ख़ास लोग होते ह जो भुलाये नह भूलते।" -िदवाकर ने सामने लगे

ने उसे

बैठने का इशारा िकया- मान वह बत से

रहयजाननेकोउसुकह।

"िदवाकर तुम हाथ-मुँह धोकर तैयार हो

जाओ म खाना बनाती ।" -कहकर सुजाता

चलनेकोई।

"जानती हो सुजाता, दुबई म बरस कक

का काम िकया, खाना बनाना म अछ से

जानता । िकचन का राता िदखाओ, खाना

मबनाता।”

"नह,आजतुममेरमेहमानहो,आजभर

मुझे ही बनाने दो, िफर िजतने िदन इधर रहना

ह रोज़ मेरा, अपना और सलै ािनय का तुम ही बनाना।मभीपंहबरसखानाबनातेएथक गई।”

सुजाता खाना बनाने चली गई, िदवाकर तैयारहोकरछोटसेडायिनंगहॉलमआयातो वहखानाटबलपरलगाचुकथी। साज-सजावट देख िदवाकर ने कहा"बतअछसेसजायाहतुमनेपूराकॉटज।”

"यह न हो तो सैलानी यहाँ रहना पसद नह करगे।"-खाने क दो थाली लगाते ए उसनेकहा।

"अछा,आजकोईसैलानीनहह?"

"दशहरा

था, वही

ही सपने

लगी थी

दुबई

से बुदबुदाया- "कहाँ याद

कभंवरमखोगई?"संशयऔरआयका

िमितभावउसकचेहरपरउभरआया।

सुजाता ने गहरी िनःास छोड़ते ए

कहा- "कहाँ खोना िदवाकर, अब तो यह

कॉटज ही मेरी दुिनया ह और इतज़ार ही मेरी मंिज़ल।”

"इतज़ार ! िकसका इतज़ार?" -वह और अिधकिवमतहोगया।

अटबरकमयमरािमसदमौसमम

भी उसे इतनी तिपश महसूस ई िक वह असहज हो गई। एक फक हसी हसते ए

उसने कहा- "मेरी कहानी जानना चाहते हो, सुनो!यहएकलंबीकहानीह।”

िदवाकर सामने टगी ई सुजाता क

मुकराती तवीर देखता ह िजसम एक

अजीब सा तेज िलए पुष का चेहरा भी ह, उसे लगा

अपनीदाताँ?"

से बाहर आओ तो म

िदवाकर को अपनी ग़लती का अहसास

वहसुजाताको

औरअब िज़ंदगी क इस पड़ाव पर तुहारा िमलना यह

कहता ह िक इसे ख़म भी तुम पर ही हो जाना

ह, जब तुम अचानक मेरी दुिनया से ग़ायब हो गए तो मुझे लगा- चाहत को जािहर होने क

पल से पहले ही मेरी दुिनया वीरान हो गई।

मेरी दुिनया बसने से पहले ही उजड़ गई।

िज़ंदगी को सपन क दुिनया से बाहर िनकालकर वातिवकता क समतल पर बसर

करनाथा। इधर िपताजी क िशकार खेलने क शौक

कचलतेबंदूककझािड़यमफसनेसेउनक

गले म गोली धँसी तो उह बचाने म घर क

सब संपि वाह

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj35 आदमकदशीशेमअपनेबालकसफदीको देखते ए हौले से कहा और एक लंबी साँस छोड़ी, िजसक आवाज़ सुनसान जगह बने कॉटज क उस कमर म गूँज गई, जहाँ वह आरामकसपरबैठाथाऔरसुजातापासक ितपाई क करीब खड़ी थी। िदवाकर
और दीवाली क बीच क समय सैलानी कम हो जाते ह, उसक बाद झील का आनदलेनेवालकभीड़बढ़तीहतोकॉटज मभीठहरनेवालेआतेह।” खाना खाते ए दोन कभी हालात पर तो कभी पुराने िदन क बात कर रह ह। खाने का आिख़रीकोरखातेएिदवाकरनेपूछा-"बुरा नमानतोएकबातपूछ?" "िदवाकर एक तुम ही तो थे जो कल म मेर सबसे करीबी दोत थे, िजससे िबना कछ कह भी आँख म सब कछ कह जाती थी, शायद तुम यही पूछना चाहते हो िक म यहाँ इस हाल म कसे?" -सुजाता ने धारा-वाह म वह सब भी कह िदया जो वह बरस पहले न कहपायी।िदवाकर उसकआँखकनमी म दूरतैरतेसपनकोतलाशनेककोिशशकरने लगा। सुजाता का मन कहता था िक राज ज़र आएगा। उसक आँख झील देखने आए सैलािनय म उसे तलाशती थी। लेिकन यह या संयोग था िक राज क बजाय आज इतने अरसे बाद िदवाकर उसक पास
िदवाकर िजसक िलए उसने िकतने
सजाएथे,िजसेवहअपनेजीवनसाथी
प म अपने यौवन क िदन म ही देखने
और िदवाकर एक िदन चुपचाप
चला गयाथा। िदवाकर हौले
िक हो न हो यही वही य ह िजसक साथ सुजाता ने शादी क हो, उसे वह तवीर और वे दोन बत ही मोहक लगे, मानवेएक-दूसरकपूरकह। गुज़री िज़ंदगी क पे िदवाकर क मृितय म आकर फड़फड़ाने लगे। सुजाता उसक बचपन क उन िदन क दोत थी जब वह हसने और लतीफ़ सुनाने को ही िज़ंदगी समझता था। दोन एक-दूसर क संग गाँव से कलतककासफ़ररोज़तयिकयाकरतेथे, यहसाथइतनाखुशनुमाथािककभीदोनको अहसास ही नह आ िक कसे िबछड़कर अकला रहा जा सकता ह? अपने पढ़ाई क िदन को आनंद से गुज़ारते रह। बारहव क परीा से चद िदन पहले ही उसक िपताजी कादेहांतआतोपरीाख़महोतेहीपरवार क खच क बोझ क चलते वह दुबई चला गया, दुबई से वह पैसे ज़र भेजता रहा लेिकनवतऔरअिधककमानेकचाहतने उसेवािपसनआनेिदया। सुजातानेदेखा-उसककहानीजाननेक इछा जताने वाला िदवाकर द एक अबूझ कहानी ह, जो कह खो गया ह, उसने कहा"जनाब, अगर िवचार
सुनाऊ
आ,
कछअयमनकहोकर देखनेलगा। सुजाता ने कहना शु िकया- "मेरी कहानीतुमसेशुहोतीहिदवाकर
हो गई। िपताजी अब एक तरह से अपािहज हो चुक थे। माँ ने मेरी जमपी को शादी क िलए भेजना शु कर िदया, म तो यह कहने तक क थित म भी नहथीिकमुझेिदवाकरकाइतज़ारकरनाह, ेम क अहसास को मने मन म सहज िलया। समय अपनी मंथर गित से िनरतर चलता रहा। जहाँभीमेरीकडलीभेजीजातीवहसेवािपस लौटा दी जाती। दोष था मेरी कडली म, िफर मेरा साँवला रग भी कडली क साथ-साथ पचजाताजोशादीठीकनहोपानेकवजह बनता। एक वजह घर म भाई का न होना भी था,जहाँभीरतेकबातहोती,वहाँयहबात भीपचजाती-िकसीनेकहा-वहाँरतेदारी

मानने न मानने

सेसचतोनहबदलजाता।अछासुनो,िफर

मेरा रता कौसल आ, तब तक हम भी नह

पता था िक पहले रते वाल ने हम पर देवता

लगा िदया ह, म काफ बीमार ई, देवता का

पता चला तो वह रता भी टट गया, कौसल वालनेभीमनाकरिदया।”

"कौसल और जौनपुर गाँव क लोग म इसतरहकअंधिवासअिधकह।”

"लेिकन वह लड़का तो कमरादा का था िजहने देवता लगाया, साल ने मेरी िज़ंदगी कोकसामोड़िदया,कसारगिदया?"

"तुम िकसी को गाली कसे दे सकती हो?"

"मतलब िजहने यह सब िकया,

"हाँ,

"टीखोन

जीवनकफसलेलेनेका।जबहमबड़होतेह

तब तक ये सब बात बत पीछ चली जाती

ह।"

"हाँ,परकभी-कभीउटाभीहोताह।"

"िदवाकर, म िसफ अपनी ही बात नह

कर रही , उस समय क सभी लड़िकय क बात कर रही । हम शादी जैसे बड़ फसल कोघरवालपरछोड़देतेह,अपनेआपकछ नहबोलतेहजबिकआजकसमयकोदेखो लड़िकयाँिकतनाआगेतकिनकलगईह।" "बात तो ठीक ह लेिकन इन सब बात से

तुहारी शादी का या ताुक ह, यह बात मेरीसमझसेबाहरह।" "वहाँ देखने म यूँ तो सब कछ यवथत

जीवन से

एक नए परवार

रत

डोरी

वतमान को

सुलझाने

और उलझती जाएगी। कहते ह- बत सी गाँठ िसफ़ समय ही

सुलझाता ह, लेिकन वह जानती ह िक वह समयअबशायदहीउसकिज़ंदगीमआए। सुजाता क जीवनसाथी क प म राज सरलेिहलवभावकबावजूदकोईछापन छोड़सका।उनकपरपरबातचीतहमेशाही झगड़ म बदल जाती, और सुख-दुःख म भी दोनकयवहारमतनावझलकनेलगा।राज

का दशन इतना समृ था िक हर य उसका कायल हो जाता, िकसी भी य को वह आसानी से नसीहत दे िदया करता। िकसी

भी किठन से किठन परथित म अथवा

िकसी समया का समाधान उपलध न होने

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj36 कसेबनेगी,भाईतोहनहलड़कका,िकसी ने कहा िक उनक पास तो लड़क क अलावा कछ ह नह देने को। एक जगह बात पक ई भी लेिकन हमारी तरफ से ही मना कर िदया गया, िसफ कडली ही भेजी थी, लड़का देखने आया, हमने मना कर िदया तो उहने मेरऊपरदेवतालगािदया।" "अर, इस ज़माने म ये या देवता लगाने कबातकररहीहो?" "म सच कह रही िफर यह आज क ज़माने िक नह तब क बात ह, और यह सब मनभीमानतीअगरमेरसाथनआहोता।” "मनहमानतायहसब।” "तुम द गढ़वाली होकर कह रह हो िक म नह मानता, िफर िकसी क
उह गालीभीनदूँ?"
शायद िज़ंदगी िसखाने क िलए ही बनतीह।”
भी जुड़ गई थी कडली, िपताजी देखने गए, वहाँ भी िकसी ने देवता लगने क बातपचादी।” "ययादकररहीहोयहसब?" "भूलने क भी तो कोई वजह नह ह, आज सब कछ िफर याद हो आया। कहाँकहाँसेवािपसनहआईमेरीजमपी।" "लेिकन मने तो सुना था िक िदी म िकसीलड़कसेतुहारीशादीईऔरलड़का भी बत आदशवादी था, िजसने दहज और बारातदोनकिलएदसेमनािकयाथा?"िदवाकर मान िकसी अवसाद से बाहर आना चाहताहो। "हाँ, यह सही बात ह िक राज बत ही आदशवादी थे, मुझे भी सुनकर अछा लगा था- िपताजी को तो सब समया से मु ही िमल गई थी यह सब सुनकर िक लड़का बतहीसामायतरीकसेशादीकरनाचाहता ह।सभीतोखुशथे,बसएकमहीथीिजसक मनकथाहलेनेकिकसीनेनहसोची।" "तुह इस सब से िदकत थी?"िदवाकरनेजाननाचाहा। "मुझे पछतावा िसफ इस चीज़ का ह िक हम बड़ तो हो जाते ह पर उस समय िकतना बचपनारहताह,अपनेदकफसलेनहले पाते हम, जबिक हम पूरा हक होता ह अपने
और सामाय था, पर कह न कह
वह उमंग अनुपथत थी जो
मादक और भिवय को आशावान बनाए रखती ह। कोई अय सा कहासा था जो छट नह रहा था। राज क आदशवादीबातऔरउसकाअपनेसाथजॉब करने वाली लड़िकय क साथ इतना दोताना यवहार मुझे या िकसी भी नविववािहता को गवारानहहोता।ख़रै छोड़ोयेसब,रातबत गहरा गई ह, तुम अब आराम करो, म भी जाकर सोती , बाक बात सुबह नाते क टबल पर हगी।" कहकर सुजाता उठकर अपनेकमरकोओरमुड़गई। नदआजउसकआँखसेकोसदूरथी। सुजाता सोच रही ह- जब कभी वह मायक जाती, उसक वभाव म एक अलग उास और रौनक आ जाती। जबिक राज क साथ रहते ए वह घुटन महसूस करती, उन िदन कभी जब वह मायक होती राज न ही कोई संपक करता, न ही उसे लेने ही आता। शादी क बाद से कभी राज ससुराल गया हो ऐसा कोई िदन उसे याद नह आया। इस बात पर सोचकर उसे बड़ा आय होता। एक अलग तरहकखीजिलएउसकाचेहरादकिलए भी िनतात अजनबी सा होता। जब भी उसने इस बार म बात करने क कोिशश क तो राज से सहयोग नह िमला। उसका उदासीन यवहारदेखकरवहभीधीर-धीरअयतसी होती गई। उसे यह एहसास हो चला था िक
अब इतनी उलझ चुक ह िक
क फर म
पर, सामने वाले को िदलासा देने क िलए उसक पास बत कछ होता। उसने न जाने िकतनी ही बार सुजाता को भी समझाना चाहा लेिकन हर बार वह समझने को तैयार ही नह होती। वेजबकभीघूमनेभीजातेतोपुरानीबात को याद करक उलझ जाते, आज इतने वष बाद पुरानी बात को नई टीस क साथ याद करक वह पुनः यिथत हो गई। आँख म ही रात कटी, वह िदवाकर द को तरोताज़ा महसूस कर रहा ह। सुजाता ने चूह पर चाय चढ़ा दी, िदवाकर भी सीधे रसोई म ही चला आया। भाव यह था िक सिदय से सुनसान

सिदय

तो पूरी िज़ंदगी तकलीफ़

दूँगा तुमको।" अचानक िदवाकर ने कहा।

सुनकरसुजाताअचकचागई।

"म तुहारा आशय नह समझी?" सुजाता

क आवाज़ कछ धीमी थी, मान वह कह

खोई ई ह और अचानक िदवाकर ने कछ

कहकर उसे अवचेन से अपनी दुिनया म

खचनाचाहाहो।

"तुमको तकलीफ़ नह दूँगा... बस इन

वािदय म अब िफर से जीने क तमा ह, दुबई क िज़ंदगी से थक जो गया ।" वह उसाहमह।

सुजातानेकोईजवाबनहिदया।बसवह मौनहोगई।

"ज़रा भी तकलीफ़ नह सुजाता, जो भी तुमबनाओगी,बसखालूँगा,अबइछाएँभी

तोहमारीतरहहीबूढ़ीहोचलीह।"

सुजाता कछ असहज अवय ई, पर

कछ ख़ास नाराज़ नह

म जो भूल

कह,तुहसबबताती।आजयादआताह

िक िकतनी वाथ हो चली थी म। उसक हर

काम, हर यवहार को मने शक क िनगाह से

देखा।" सुजाता ने वर म असता घोलने

काभरसकयासिकया।

सुजातानेिदवाकरकोबताया-"िदवाकर

तुह याद होगा, हमार साथ मेर ही पड़ोस का लड़का राज पढ़ता था, तुहार जाने क बाद जब म बत टट गई, तब राज ने मुझे सहारा िदया, शाम को छत पर आ जाता और म घंट उसक कधे पर िसर रखकर बैठ जाती, हम दोन एक-दूसर से ेम करने लगे, शादी क कछ ही िदन ए थे िक राज ने िमलने क

िज़ क, म वहाँ क रात और जगह क

बार म यादा नह जानती थी। राज घर पर

नहथेतोमनेउसेघरपरहीबुलािलया,राज

ऐनवतपरटरसेआगएथे,राजकोदेखम

और राज दोन

पराया सा लगने लगा। जब तक म उस

घर म रही, एक अय झुँझलाहट हम

महसूस करते रह। यह झुँझलाहट गम क

रात म अलाव तापने जैसी लगती। राज को

छोड़ आने क बाद िफर सपक नह िकया।

मने अपनी ओर से कभी कोई पहल भी नह क राज से संपक करने क लेिकन उसने भी तो कभी मेरी सुध नह ली।" सुजाता अनायास

ही मृितय क जाले साफ करने क चेा करनेलगी।

"अब पुरानी बात को याद करने से कोई

लाभ नह ह, सुजाता।" -िदवाकर ने आगे कहा- "समय से काफ पहले ही तुम उसका साथछोड़चुकहो,ऐसेदेवतुयजीवनसाथी

कािमलनाएकसंयोगसेकमनहहोता,एक

बात सुखद ह- आज तुमने द से

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj37 राते पर चलता रहा िदवाकर सुजाता क मन क अँधेर को काश देने का सोच से फत ह। उसे सोते समय लगा िक इस अँधेर को दोन उजाले से ख़म कर सकते ह। पर उसे इस बात का भी इम ह िक िजस हसती-िखलिखलाती लड़क क कलेजे म
पुराना दद समाया आ ह, उसे इतनी आसानीसेदूरभीनहिकयाजासकता। "सुजाता, अब
लग रही ह इस बचपन क साथी से। चाय छान, दो कप म डाल वह रसोई से बाहर आ गई। िदवकर भी पीछ-पीछ चलाआया।दोनकहाथमचायककपह। कछ देर दोन क बीच मौन रहा, िदवाकर ने ही चुपी को तोड़ा- "अछा सुजाता, रात क अधूरी कहानी पूरी करो, जानना चाहता िकयाकछगुज़रातुहारीतहािज़ंदगीम?" "िदवाकर, आज म जहाँ खड़ी वहाँ से मेरमनमजोख़यालआतेहउनसेमुझेलगता ह िक मने जीवन भर बस खोया ही खोया ह पाया कछ भी नह, आज मुझे एक अपराधबोध होता ह, बत लािन होती ह, आज म द से कनफस करना चाहती , अपने सब गुनाह को बूल कर लेना चाहती , लेिकन अफसोस! यह सब सुनने क िलए राज यहाँ नहह,काशएकबारराजसेमुलाक़ातहोतो म अपने सब गुनाह बूल कर उससे माफ माँगलूँ।" िदवाकर सुनकर आयचिकत आ, उसनेकपनाभीनहकहोगीिकजीवनक कहानी सुनाते-सुनाते वह गुनाह, माफ जैसी बात करने लगेगी, उसे लगा िक सुजाता क मानिसकथितसहीनहह। उसनेसुजातासेकहा-"सुजी,अगरतुह लगता ह िक वाक़ई तुह लािन ह और तुम राज से माफ माँगना चाहती हो तो या तो तुह राजकपासलौटजानाचािहएयािफरिची िलख उसे यहाँ बुला लेना चािहए। लेिकन मेर सवालकाजवाबतुमनेअभीभीनहिदया।" "िदवाकर! मने अपने जीवन
घबरा गए, राज िबना कछ कह टॉयलेट म चले गए, राज चुपचाप वहाँ से चला गया लेिकन न जाने राज ने इस बातकोकसेिलया,मकईिदनतकइसबात सेअसहजरही,मनेग़लतीयहकिकराजसे अपने उसका परचय नह कराया। राज क अिधकांश टर पर रहने क चलते म सोशल मीिडया पर सिय रहने लगी थी। तभी एक फौजी से मेरा संपक आ, इेफाकन उसक पनी क मौत हो चुक थी, बातचीत क बाद पता चला िक वह हमारी ही कॉलोनी म रहता ह, पता ही नह चला िक कब बातचीत ेम म बदल गई, हाँ, िदवाकर! उस फौजी से आ ेह ेम म परणत हो चुका था, उसने कई बार राज को छोड़ उसक पास चले आने का आह िकया। म कई बार उसक लैट पर भी गई। लेिकन जदी ही अपनी ग़लती का अहसास आ, लेिकन शायद तब तक देर हो चुक थी, िकसी िदन फौजी क लैट से िनकलते ए राज मुझे से टकरा गया था। राज नेकभीकछनहकहालेिकनअबहमारबीच अबोलाबढ़गया।" अपने और राज क बीच घट लगभग हर संग को सुनाकर सुजाता ने कहा– "राज क सरलता या अपनापन, पता नह य मुझे अिचकर लगता, वह या था िजससे वह मुझे
अपनी ग़लितय को न िसफ माना बक तुह आमलािन भी ई, म दुआ कगा िक राज एक िदन तुह खोजते ए यहाँ तक ज़र पचे।" िदनबोिझलहोरहाथाऔरवेदोनआशा भरी नज़र से एक-दूसर को देख रह थे। दोन ही चुप हो गए थे, परतु नज़र म एक अय तलाश हर ण दोबाला होती जा रही थी। िदवाकर अपने चेहर पर फक हसी लाने का यास कर रहा ह। सुजाता का चेहरा नम हो गया ह, वह िदवाकर से पर शूय म देख रही ह। 000
अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj38 "रम!लोआगयाहड-ाटससेअटीमेटम।21माचकोिशपरवानाहोगा।अका, दिणअमेरका,उरीअमेरका,कनाडाहोतेएिटन,ांसआिदयूरोपीयदेशकाचकर लगा कर 26 िसतबर को मुंबई आएगा।'' रिवकांत ने मोबाइल क हासएप पर आए मैसेज कोपढ़करकहा। "चलो इस बार थोड़ा कम िदन का िप ह। िपछली बार तो सात महीने का था।'' रम ने लंबीसाँसछोड़तेएकहा। "ऐसा करते ह इस बार होली घर पर मनाते ह। वहाँ से आकर अिमत का एल.क.जी. म एडिमशनकरादगे।तुहाराभीतोइटरयूअछाआह।यहीहिकथोड़ादूरहकॉलेज।पहले होतोजाए।तुहारभारी-भरकमपढ़ाईकाकछउपयोगतोहो।''रिवकांतकवरमआशाका भावथा। यूँ तो रिव को जब अकले आना होता था तो बसर टशन उतरने क बाद बस से ही 30 िकलोमीटर अपने गाँव क बाज़ार तक आता, जहाँ उसक िपता खड़ िमलते थे। इस बार सपरवार आ रहा था। उसने फ़ोन कर बता िदया था िक वह बसर से ही जीप या बुलेरो लेकर घर आ जाएगा। बुलेरो दरवाज़े पर पची। राघव लाल जी दरवाज़े पर कस लगाए बैठ िदखाई िदएमानराहदेखरहह।रिव,रमऔरअिमतनेिपताजीकपाँवछए।घरमवेशकरनेक बाद दोन चािचय क चरण-पश िकए। आधे घट बाद मँझले चाचा रनेश लाल भी आ गए डॉ. चुमन साद ीवातव सहायक आचाय, िहदी िवभाग, भवंस मेहता महािवालय, भरवारी, कौशाबी, यूपी - 212201 मोबाइल- 7972465770,7767031429 ईमेल chummanp2@gmail.com लबी कहानी मजबूर डॉ. चुमन साद ीवातव

तक

ब को पढ़ाना ह। महीने क पीस

हज़ारिमलगे।''बगल

बाँह

लेटीरमकोअपने

भरतेएरिवनेकहा।

"यह सब तुहारी ही दौड़-धूप का असर

ह, माई िडयर।'' रिव क बाँह म समाती ई

रमबोली।

दस बजे क करीब रिव अपने अज़ीज़

िम अण काश से िमलने क िलए पड़ोस

क गाँव जाने क िलए जूते पहन रहा था। गाँव मनातानहोकरसीधेभरपेटभोजनहीदसयारहबजेकआस-पासहोताह।राघवलाल जी ार पर ही खाना खा रह थे। खाने म भात, अरहर क दाल और करला क कलजी थी। उहनेदीपकोआवाजलगाया"बेटा!एक और कलजी हो तो लाना साथ म थोड़ा भात औरदालभीलेतेआना।'' दीपउठकरभीतरगया।पाँचिमनट

वह नह आया तो राघव लाल

हाथ

थाली

पड़ोस क बैठका म गप-शप

राघवलालजीने

कोईहष-िवषादकटनहिकया।ऐसातीत

हो रहा था िक उनका सारा हष-िवषाद रिव क

माँ क साथ ही चला गया हो। रिव क शादी क

सात महीने बाद ही वह सप-दंश से चल बसी

थी।तबसेवेवीतराग-साजीवनजीनेलगेथे। लेिकन इस वीतराग को पोते अिमत ने तोड़

िदया था। अिमत अपने दादा जी से इतना जुड़ गया था िक पूर िदन दादा जी क साथ रहता कवल रात को सोते समय ही रम क पास जाताथा।

मुंबई पचने क चौथे िदन रिव ने अिमत

का नाम पास क कॉवेट 'बाल िवकास

मंिदर' म एल.क.जी. म िलखवा िदया था।

'बाल िवकास मंिदर' ाटस से मा 300350 मीटर क दूरी पर था। पहली अैल से

क एक

महीना बाद ही रमेशचं जी चल बसे थे। अब

सपूण भार बबुआ जी क कधे पर आ गया

था।कॉलेजमधीर-धीररमकाभावजमने लगाथा।रमकपढ़ानेकाअंदाज़बको बत भाता था। िंिसपल क पास ब क रपोट पचती रहती थी। िंिसपल से बंधक बबुआजीकोभीफडबैकिमलतारहताथा। कॉलेज म वािषक ड़ा महोसव का आयोजन था। एंकरग का दाियव अंेज़ी म इलश टीचर भुवन सर को एवं िहदी म िमसेज़ रम को िमला ह। मुय अितिथ ह कॉलेज क बंधक बबुआ जी। रम क मन म एंकरग को लेकर अजीब-सी घबराहट हो

रही ह, हालाँिक उसने अपने कॉलेज क

वािषकोसव म ऐंकरग

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj39 थे। रम दोन चािचय से बात म मशल हो गई और अिमत रिव क छोट चाचा पेश लालकइकलौतेबेटदीपकसाथखेलनेम मनहोगया। फागुनकामहीना।गमपड़नीशुहोगई थी, लेिकन रात को पतला कबल या मोटा सूती चादर ओढ़ना ही पड़ता था। रात को अिमतदूधपीकरसोगयाथा। "रम ! तुमने िजस कॉलेज म अलाई िकया था वहाँ क िंिसपल का फ़ोन आया था। तुह टी.जी.टी. (सोशल साइस) क पद पर रख िलया गया ह। छठ से लेकर दसव
तक
जी
म ही
धो
करने चले गए। रिव ने यह सब देखा लेिकन कछ बोलनहसका। रात को सोते समय रिव ने रम से कहा "ऐसा करते ह िपताजी को भी अपने साथ ले चलते ह। वहाँ तो म चला जाऊगा िशप पर, तुम चली जाओगी अपने कॉलेज। आिख़र अिमत को कॉवट से ले आने और तुहार आने तक यान रखने वाला भी तो चािहए। वैसे भी मुंबई म जहाँ हम लोग ह कामवाली बाईयाआयाकहाँिमलतीह?'' "वाकई तुम दूर क सोचते हो, रिव।'' मुकराते ए रम ने अपना दािहना हाथ रिव ककमरपररखिदया। होली क सातव िदन रिव का मुंबई वापसी का रजवशन था। उसने एजट क मायम से िपता जी क िलए भी एक कफम लीपर िटकट क यवथा क। मुबई से आते व भी बड़ी मुकल से लीपर िटकट का ही जुगाड़ हो पाया था। वापसी का भी रजवशन उसनेमुंबईमहीकरािलयाथा। अगले िदन सुबह दस बजे क न थी। रात म लगभग दस बजे रिव सोने क िलए अपनेकमरमजारहाथािकमँझलीचाचीक कमर से छोटी चाची क आवाज़ सुनाई दी "अछा ह, बुढ़वा जा रहा ह मुंबई। बोझ टला।''रिवकसमसाकररहगया। मुंबईचलनेकबातपर
रमकोभीकॉलेजाइनकरनाथा। िपता जी सुबह साढ़ आठ बजे अिमत को कॉवट छोड़ आएँगे िफर एक बजे जाकर ले आएँगे। रम भी अपने कॉलेज से तीन साढ़ तीन बजे तक आ ही जाएगी। रिव िपता जी क आनेसेिनंतहोगयाथा। शु-शु म दो-तीन िदन तो अिमत को कल छोड़ जब राघव लाल आने लगते तो रोता था िफर धीर-धीर सब ठीक हो गया। रम सुबह-सुबह उठकर नाता और खाना बनालेतीह।अिमतकोकॉवटकिलएतैयार करती ह। िफर कटी से सात िकलोमीटर दूर कॉलेजकिलएिनकलती। रमनेिजसकॉलेजकोाइनिकयाथा वह इस े का सबसे ितत इटर कॉलेज था। वतमान बंधक ी रमेशचं मेहता क िपता ी शैलचं मेहता जी इसे बनवाया था। शैलचं जी इस े क सबसे बड़ दाल यापारी थे। उनक एक चटकल फी कलकामऔरदोसूतीसाड़ीकमीलमुंबई म थ। उनका िसका चलता था पूर े म। अब वो आब तो नह लेिकन शान म कोई कमीनहआईह।रमेशचंजीभीअसीपार करचुकह।अबकभी-कभीहीकॉलेजआते ह। इसािलए सारी यवथा उनक इकलौते पु पेशचं यानी बबुआ जी सँभालते ह। सब लोग उह बबुआ जी क नाम से ही पुकारतेह। रम क कॉलेज ाइन करने
िकया था। लेिकन एक िशिका क प म उसका यह पहला अवसर था। ड़ा महोसव क िदन सुबह आठ बजे जब वह कॉलेज पची तो नीले रग क साड़ी और मैच करता आ सडल पहने िबकलहीरोइनलगरहीथी।रिवारापेरस से लाया गया िवदेशी े उसक पास आने वालो को भीनी-भीनी सुगंध से सराबोर कर रहाथा। कॉलेज क बे ड़ा-परड क िलए कतारब खड़ थे। मंच पर भी सारी तैयारी हो चुक थी। बबुआ जी क कार आते ही एंकर रमनेअपनेमधुरझंकारयुवरमउनका

बाँकपन

देखे तो बार-बार

देखना चाह। सफद चूड़ीदार पाजामा, म

कलर का िचकनवाला कता। उसी रग

रशमी अंगोछा।

दमकता

रह

कायम चलता रहा। बबुआ जी

िकसी न िकसी बहाने उधर ज़र देख लेते थे

िजधर रम बैठी एंकरग

का

जैसे

िकए जा रहा हो। कॉलेज क बेट िखलाड़ी

का अवाड देते समय िंिसपल क साथ-साथ

रम भी खड़ी थी। रम ने ॉफ उठाकर

बबुआजीकोथमाई।अचानकबबुआजीक

उगली ने उसक उगली को पश कर िलया

था। फल को िकसी सजीले भँवर ने छ िदया था।

रमरातभरबबुआजीकबारमसोचती रही। अपने मन को उधर से हटाने का िजतना हीवहयासकरतीउतनाहीख़यालमखोती जाती।नह...नह...

वह रिव क पनी ह िफर उसक मन म िकसी और क ित ऐसा ख़याल यूँ ? िदल

को बार-बार समझाती-दबाती लेिकन कोई

(िही),बी.एड.ह।"

ए.

उहनेहाथ

जोड़करबबुआजीकाअिभवादनिकया।

"अगले स से रम जी को पी.जी.टी. (िही) क पद पर रख लीिजए। अपने यहाँ एक पी.जी.टी. (िही) का पद र ह न।'' िंिसपल क ओर देखते ए बबुआ जी ने कहा।

"हाँ, ह तो लेिकन िमसेज़ ेहलता, टी.जी.टी. (सोशल साइस) यारहव और बारहव का ास ले लेती ह। काम चल जाताह।''

"कामचलजाताहनह।अगलेससेये रहगी पी.जी.टी. (िही)।'' बबुआ जी क वरमआदेशथा।

"हाँ,ठीकरहगा।रममैडमकबेभी बत शंसा करते ह।'' िंिसपल ने हाँ म हाँ िमलातेएकहा। "मैम, ऐसा किजए

रमबोली।

"म आपक कॉलेज का बंधक बबुआ जीबोलरहा।''ेिहलवरथा।

"हाँ सर ! हाँ सर ! नमत,े नमत.े..।'' रमकवरमघबराहटथी।

"अर ! आप तो घबरा रही ह। कॉलेज क िलए बंधक , मैनेजर , आपक िलए तो िसफ पेश पेश....।'' बत ही मुलायम वरउभरा।

"या म आपसे कछ अनुरोध कर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj40 वागत िकया। एकाएक बबुआ जी का यान एंकर क ओर िखंच गया। साइस साल का युवा िदल नील परधान म सजे मोहक सदय कोदेखतेहीज़ोर-ज़ोरसेधड़कनेलगा।रम नेभीपहलीबारबबुआजीकोदेखाथा।या
ह ? कोई भी युवती
का
सजीली मूँछ। ताँबे-सा
गोरारग।रमभीउहबरबसदेखते
गई।
कर रही थी। रम
खनकता मधुर वर ऐसा लग रहा था िक
कोई बाँसुरी बजाकर उनको मदहोश
वश नह चल रहा था। आकषण क आँच से तप रह शरीर को संयम क ठड झोक से वह शांत करने का यास कर रही थी लेिकन बबुआ जी हवा का झका बन कर उस दबी आग को सुलगा दे रह थे। उधेड़-बुन म पड़ी वहदोराहपरखड़ीथी। कॉलेज म सोशल साइस एज़ीिबशन क तैयारी चल रही थी। रम को कट कराना ह।वहसोचरहीथीिकसादाियकसाव परकटतैयारकरवाए।वहिंिसपलमैमसे इस िवषय पर बात करने क िलए गई। िंसीपलमैमनहथ।सामनेसोफपरबबुआ जी बैठ कछ सोच रह थे। रम ने दोन हाथ जोड़ कर नमकार िकया। देखते ही बबुआ जीखड़होगए। "बैिठए-बैिठएरम जी !या आवाज़ह आपक ? बत ही दमदार एंकरग करती ह भई। आपने तो मेरा िदल जीत िलया।'' मुकरातेएबबुआजीबोले। "थैक यू,सर ! आपको पसंद आया, मेर िलए बड़ी बात ह।'' रम ने सकचाते ए कहा। "आपयहाँपाँचमहीनेसेह?'' "हाँसर!'' "िकसपोटपर?'' “टी.जी.टी.(सोशलसाइस)'' "आपका ािलिफकशन तो एम.
"हाँसर!'' तबतकिंिसपलभीआगई।
इनका नौव वाला ास ेहलता मैम को दे दीिजए और इह ेहलता वाला बारहव का ास दीिजए। म बारहव क िलए यंग एनजिटक टीचर चाहता । वैसे भी ेहलता मैडम का दो साल बाद रटायरमटभीह।''बबुआजीअपनेरौमथे। "बत सही और दूर क सोचते ह आप सर।'' िंिसपल क वर म खुशामद का भाव झलकरहाथा। रम चुपचाप हो रही बात को सुन रही थी। "मैम!मसोचरहीिकइसबारसोशल साइस एज़ीिबशन क िलए सादाियक साव पर कट करवाऊ। आपका या िवचार ह ?'' िंिसपल क ओर मुखाितब हो रमनेकहा। "ठीकरहगा।” "रमजी!हमभीआपकाकटदेखना ह।'' बबुआ जी ने रम क तरफ देखते ए मुकराकरकहा। "हाँसर!ज़र।” रमदोनकाअिभवादनकरऑिफ़ससे बाहरआगई। दबी ई आग अब सुलगने लगी थी। कॉलेज से आने क बाद खाना खाकर, अिमत को सुला वह द आराम कर रही थी। शाम को लगभग पाँच बजे मोबाइल बजा। नया नबरथा। "नमतेरमजी!कसीह?'' "मनेपहचानानह।''
सकता ।''अनुनयभरावरथा। "हा.ँ..हा,ँ किहए।''रमनेघबराहटको सँभालतेएकहा। "परस रिववार को आप हमार साथ होटल एलिफटन म लंच कर तो यह मेरी खुशनसीबीहोगी।” "न... न.... ह... ह... हा.ँ.. हा.ँ.. ठीक...ठीकह,सरसोचती।''घबराहटक कारणहकलातेएरमनेधीरसेकहा। "पेश, आपका पेश पलक पाँवड़ िबछाए ए आपका इतज़ार करगा। ज़र आइएगा।'' बबुआ जी क वर म णययाचनाथी। दबी आग जो धीर-धीर सुलग रही थी, हवाकतेज़झकसेिलतहोउठी।

आते-आते

उठगा

आप

रहा

सजा-सजीला

जाएगा। अिमत

िखला दीिजएगा

खोल

दी। भँवरा फल का रस लेने लगा। पंखुरयाँ

िखलिखलाउठी।

अिमतडढ़बजेजगा।ममी!ममी!क

आवाज़ सुनकर राघव लाल जी ने उसे गोद म

उठािलया।

"दादाजी!दादाजी!ममीकहाँह?''

"ममी कॉलेज गई ह, बाबू, ज़री

मीिटग ह।'' राघव जी उसे अपने सीने से िचपकातेएकहा।

अिमत और राघव जी दोन ने साथ-साथ

खाना खाया। खाना खाने क बाद दोन ॉइग म म टी. वी. देखने लगे। अिमत अपना काटन चैनल पर 'डोरमॉन' देखने म मन हो गया। 'डोरमॉन' ख़म होने क बाद अिमत करकरकिलएिज़दकरनेलगा। शाम क साढ़ चार बज रह थे। राघव जी अिमत को साथ िलए पास क शॉिपंग

कॉलेस चल पड़। राते म रम क ही कॉलेज क पी.जी.टी. (िफिजस) रमन ीवातव जी िमल गए। रमन ीवातव ने

राघवलालजीकोनमकारिकया।

"अर ! आप नह गए कॉलेज, आज

ज़रीमीिटगहनआपककॉलेज

अपने

चली

भूल गया।

टॉवेल

काखानाबनानेक

बादटी.वी.देखरहअिमतऔरराघवजीको

उसनेखानाखानेकिलएबुलाया। रम ने अभी खाने का लेट डाइिनंग

टबलपररखाहीथािकराघवजीबोले"ब!

शॉिपंग कॉलेस म रमन जी िमले थे। वे बोल

रह थे िक आज कोई मीिटग नह थी तुहार

कॉलेजम।”

"पापा!उनकोनहबुलायागयाथा।कछ

ख़ास टीचर को ही बुलाया गया था।'' िकचेन

से पानी का लास लाते ए रम बड़ ही

साफ़गोईसेकहा।

राघव जी ने चुपचाप खाया और हाथ धोकर दाँत म नीम का खरका करने लगे।

रम को आभास हो

भागी-भागी कॉलेज पची। ख़रै, मॉिनग असेबली अभी शु नह ई थी। टॉफ म म जा बाल ठीक करने क िलए

कघी िनकालने क िलए बैग खोला तो याद आया िक मोबाइल तो घर म डिसंग टबुल पर हीछटगया।

रसेस क घटी बजी, वह टॉफ म म जा रही थी िक िंिसपल मैम ऑिफ़स क सामनेिमलग।

"आप बंधक सर क यहाँ जाइए। उनक बुआ क बेटी आई ह। उसे चीन इितहास म कछ जानना ह। अभी-अभी

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj41 रिववार सुबह उठते ही रम ने अपने चेहर का लिचंग िकया। तंबई रग दमकने लगा। अिमत को नाता कराकर सुला िदया। िफरोज़ीरगकसलवारसूटमवहपूरीिततली लग रही थी। दुपा डालते ए राघव जी से बोली "िपता जी ! कॉलेज म आज मीिटग ह।
6-7 बज
सोकर
तो उसे खाना
और
भीखानाखालीिजएगा।”
भँवराबार-बारफलकोछ
था।फलनेआिख़रअपनीपंखुरयाँ
म।''राघव जीकानथा। "नह-नह, कोई मीिटग नह ह।'' रमन जीनेसफाईपेशकरतेएकहा। "लेिकन ब तो गई ह। बता रही थी ज़रीमीिटगह।''राघवजीकवरमढ़ता थी। "नह-नह अंकल ! म तो कल देर तक का था कॉलेज म। िंिसपल मैडम से आते समय बात भी ई थी। नह, कोई मीिटग नह ह... पका।'' रमन जी ने पूर िवास से कहा। "हो सकता ह ब को िवशेष काम क िलएबुलायागयाहो।"राघवजीनेसुरामक लहज़ेमकहा। करकरिदलाकरआतेसमयराघवजीक पाँवबतहीधीर-धीरबढ़रहथे।उनकबूढ़ी आँख म रम का चेहरा धुँधला-धुँधला–सा लगनेलगाथा। रमकोघरआते-आतेसातबजगएथे। आते ही उसने अिमत को अमूल डयरी का बड़ा-सा चॉकलेट थमा िदया। अिमतसे म था लेिकन चॉकलेट पाकर सब
वेिनटीबैग
कमरमरखरम
ले बाथमम
गई।रात
गया था िक बूढ़ राघव लालकअनुभवीआँखसबताड़गईह।उसे रात म नद नह आ रही थी। दस बजे रात को वहसोनेकिलएिबछावनपरआईथी।बाक िदन उसे िबछावन पर आते ही नद आ जाती थी।लेिकनआजबार-बारउसकमनम'रमन जी ने कहा था िक आज कोई मीिटग नह ह' ससुर जी ारा कही गई बात घुमड़ रही थी। वह कभी बाँए तो कभी दाएँ करवट सोने का यास कर रही थी। रात क साढ़ यारह बज गए। शाम को छ: बजे रिव का फ़ोन आया था िक वह 26 िसतंबर को आ रहा ह। आज 7 िसतंबर ह। उीस िदन क बाद वह आ जाएगा। कह बूढ़ ने सब बता िदया तो ? या कर कछ समझ म नह आ रहा था ? पसीनापसीनाहोगईवह। एकाएक उसक मन म आया िक रिव को यिद ऐसा बताया जाए तो सब ठीक हो जाएगा। बाँस को ही हटा िदया जाए, न रहगा बाँसनबजेगीबाँसुरी। सुबह उठी तो आठ बज चुक थे। वह घबरा गई। जदी-जदी अिमत को तैयार िकया और नाता करा उसका िटिफ़न पैक िकया। जदी- जदी सूट पहना। तब-तक साढ़ आठ हो चकु थे। अिमत क पीठ पर बैग टाँगते ए बोली "पापा ! अिमत को कॉवट छोड़ने क बाद चावल–दाल बना लीिजएगा, भुिजया बनी ई ह।" इसक साथ ही अपना बैग झपट कर उठाया और कटी टाट कर तेज़ीसेिनकलगई। रम
सर का फ़ोन आयाथा।” "ठीक ह मैम !'' रम ने मुकराते ए कहा।उसकचेहरपरआईचमकबतारहीथी िकवहिततलीकभाँितउड़नेकोआतुरह। खाना खाने क बाद राघव जी लेट ही थे िकअिमतमोबाइलिलएआगया। "दादू ! दादू ! देखो न मेरा िविडयो गेम नह िमल रहा ह, कल ही मने डाउनलोड िकया था।'' अिमत मोबाइल दादा जी को देते एकहा। "लाओ देखते ह। बेटा यह तो तुहार ममी का मोबाइल ह।'' राघव जी ने मोबाइल हाथमलेतेएकहा। “हाँ!हाँ!दादूममीकाहीह,इसीमही मने लोड िकया था।'' अिमत ने अपनी उगली मोबाइलपररखतेएकहा।

नीचे एक फ़ोटो

थी, िजसम रम उस य क साथ

िबकल िचपक ई थी। राघव जी ने कछ

और पोट पढ़ने क कोिशश क लेिकन

यादा पढ़ नह पाए। 'जानू', 'डािलग',

'जानेमन'कसबोधनसेभराथासारापोट।

उनका िसर चकराने लगा। उहने मोबाइल

अिमत को दे िदया और िसर पकड़ कर बैठ

गए।

रिव26िसतंबरकशामकोआगयाथा।

िपताजीकापाँवछनेकबादउसनेअिमतको

गोद म उठा िलया। अिमत भी अपने पापा को पुी लेने लगा। रम वह खड़ी थी। वह

अपने कमर म चली गई। पीछ-पीछ रिव भी कमर म आ गया। अिमत पापा क लाए चॉकलेट खाने म मन था। रिव ने रम को आग़ोश म भर िलया। रम भी उससे िलपट गई थी, लेिकन इस बार रिव को पहले जैसी तड़परममनहिदखाईपड़रहीथा। सुबह-सुबह रिव राघव जी से बात म मशल हो गया। अलग-अलग देश क अलग-अलग कहािनयाँ थी। एक बड़ी िदलचप कहानी थी िजसे वह सुनाना चाहता

था। "पापा!िपछलीबारजबमलंदनगयाथा

तो एक दंपित से जुड़ाव हो गया

आज मैम

कहरहीथीिककबसेआयाचािहए?”

"चलो, अछा आ। आया िमल जाएगी

तो बिढ़या रहगा।'' रिव ने िनंतता कट

क।

"रिव ! िपताजी को आए ए सात महीने

हो गए ह। गाँव को हमेशा याद करते रहते ह।

उहघरभेजदो।अछारहगा।आयाकिमल

जाने से अब अिमत को सँभालने का तो झंझट

ह नह और तुम भी तो चार महीने क बाद ही

िप पर जाओगे।'' रम ने रिव क छाती क

बालमअपनीउगिलयाँफरतेएकहा।

"चलो, तुम कहती हो तो देखते ह।'' रिव

नेसाँसभरतेएकहा।

रम क कॉलेज जाने क बाद रिव राघव

से बात क िसलिसले म गाँव जाने का

िकया तो वे बोले "बेटा ! मेरा भी मन

पापा ! आप रोरह ह ?'' रिव ने आँख म उमड़ रह आँसु को पछते ए कहा।

"नह र ! न म इसिलए ऐसा लग रहा होगा।'' राघव जी ने उमड़ आए आँसु क सैलाबकोरोकतेएकहा।

"पापा ! म आपको अपने से अलग नह करना चाहता लेिकन पापा.... म... मजबूर ...पापा...पापा।''रिवका वरिहचिकय सेभराथा।

“बेटा!एकिपताकमजबूरीयाहोतीह

तुझे या बताऊ? बस इतना ही िक सच को

सामने रख कर म तुह और दुखी

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj42 मोबाइल लेकर राघव जी देखने लगे िक कह गैलरी म तो नह गया। गैलरी खोल कर देख ही रह थे िक एक हासएप इमेज िदख पड़ा। एक मैसेज था "जानू ! आज का िदन मेर जीवन का सबसे बसूरत िदन रहा। िफर कब इनायत होगी।'' उसक
था, यिक उस दंपित म पनी भारतीय मूल क थी। इस बार गया तो वह भारतीय मिहला नह िमली कवल िबिश पित िमला। बातचीत क दरयाँ पता चला िक उस मिहला ने एक धना अमेरकन से शादी कर ली और अमेरका चली गई। या बताऊ पापा ! वहाँ यह आम बात ह। इस मामले म अपना भारत बत अछाह।” "हाँ, लेिकन यह बुराई अब यहाँ भी धीरधीर पैर पसार रही ह। खुल कर नह तो छपछपकरऐसाहोहीरहाह,बेटा।''गहरीसाँस लेते ए राघव जी ने कहा। उहने एक असहाय क भाँित रिव को देखा। उनक आँख म गहन पीड़ा थी। रिव कछ बदलाबदला-सा महसूस कर रहा था। रात को सोते समय रम अपना मोबाइल बंद कर देती थी। िदन म जब भी घंटी बजती वह दौड़कर मोबाइल उठाती। रात म बेड पर भी पहले जैसाआकषणनहथा।जैसेकोईटीनवक िकयाजारहाहोऐसालगता। वह पहले वाली रम नह थी। रिव को आए ए सात िदन हो गए थे। रात को यारह बज रह थे। अिमत गहरी नद म सोया था। रमरिवकबाँहमिसमटतीईबोली"रिव! कॉलेज ाइन करते समय ही मने िंिसपल मैम को आया क िलए कहा था।
जी
िज़
गाँव जाने को कर रहा ह लेिकन वहाँ भी मुझे तुहारीिचंतारहगी।" "कोई बात नह पापा ! यहाँ सब सँभल जाएगा।'' रिव ने आिहते से कहा। नौ िदन बाद का रज़वशन िमला था। रात साढ़ आठ बजे क न थी। लेटफॉम सात पर न लगी थी। नीचे वाला बथ था। रिव ने सारा सामान सीट क नीचे लगा िदया। पानी का दो बोतल खरीद लाया। रात और कल िदन क िलए रम ने सू-पराठा और आलू क भुिजया बनाकर रख िदया था। मगूँफली और िचउरा भी तेल म भून कर रख िदया था रम ने राते क िलए। आठ बजकर पीस िमनट आ था। 'चलो, चलते ह, अब न सीटी दे रही ह।'' कहते ए रम न से उतर गई। िडबे क सामने लेटफॉम पर खड़ी वह मोबाइल से बातकरनेलगी। रिव अपने िपता क आँख म झलक रही अथाह पीड़ा को देख रहा था, लेिकन कारण नह समझ पा रहा था। न धीर-धीर सरकने लगी। उसने िपताजी क चरण म िसर रखकर णाम िकया। राघव जी ने उसे अपने सीने से िचपका िलया। दो बूँद आँसू उसक कधे पर िगर पड़ थे। वह जदी से अलग हो न से उतरगया। घर आते-आते साढ़ नौ बज गए। उसने िपताजीकोरगिकया। "हलो!कसेहपापा?'' "म ठीक , बेटा ! तुम अपना ख़याल रखना।''भरायाआवरथा। "यह या
नह देखना चाहता।भगवातुहारपारवारकजीवनको बनाए रख। अब रखो बेटा, रखो।'' राघव जी फटपड़। उहनेमोबाइलकाटिदयाथा। रिव क बहते आँसु ने सब कछ साफ कर िदया था। रम का िखंचा-िखंचा रहना, आयाकइतज़ामहोनेकबात,अगलेससे पी.जी.टी. होने क बात, रात म मोबाइल को ऑफ कर देना, बेड पर रम अदायगी, सब कछ उसक आँख क सामने िफम क तरह गुज़ररहथे। 000
अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj43 शहरकबाहरचुंगीवालेपेोलपंपकक़रीबदयालुजाटएकपंजाबीढाबेमबैठकरअपने कछ ाइवर दोत क साथ चाय क चुकयाँ ले रहा था। ढाबे क मािलक सरदार जी कछ कहनाचाहरहथेिकइसीबीचाइवरकबीचनेताकपममशररामदासनेनेतावाले अंदाज़ म कहा, 'सरदार जी कछ जोड़ी ई रकम ढाबे म लगा दो। यह दो पू छपर कमर झुकईबुिढ़याकतरहमुँहबाएएखड़ाह।' सरदार जी ने मुकरा िदया और करछ से भी म जल चुक कोयले क राख बाहर खचने लगे। राख म अपने ऊपर भूरी परत चढ़ाए ए अभी कछ ऐसे दम तोड़ते अंगार भी थे, जो पूरी तरह राख बनने से रह गए थे-जैसे अपने बूढ़ वद को िछपाने क कोिशश कर रह ह। दयालु जाट ने ढाबे म काम करने वाले छोकर को पुकारा, 'ओए लड, ला एक चमच चीनी और डाल,औरदेखएकचायउधरमंगलुआकोदेआ।कधोरहाहोगा।'हालाँिकउसेशहरआए एतकरीबनपाँचसालहोगएथे,मगरथाअबभीवहीदेहातीजाट।ाइवरीकधंधेनेयादा पीककड़कचायपीनातोिसखािदया,मगरचीनीअबभीसाढ़तीनचमचहीडालताथा। िमज़ाजमदेहातीअहड़पन,बुिऐसीमोटीिकहरिकसीसेिबगाड़खाताऔरदयालुभीऐसा िकअगरिकसीपरदयाआजाए,तोअपनासबकछयोछावरकरदे।शायदइसीिलएलोगने दयासादकबजायउसकानामदयालुजाटरखिदयाथा।छोकरािगलासमएकचमचचीनी पंकज पराशर सहायक ायापक, िहदी िवभाग,अलीगढ़ मुलम िविवायल, अलीगढ़, उ- 202002 मोबाइल- 9634282886 ईमेल- pkjppster@gmail.com भाषांतर दूसरा हादसा उदू कहानी मूल लेखक : तारक छतारी अनुवादकः पंकज पराशर तारक छतारी ोफ़सर एवं अय, उदू िवभाग, अलीगढ़ मुलम िविवायल, अलीगढ़- उ 202002 मोबाइल- 9358257145

मुझे

पाला-पोसा। पाठशाला भेजा, िफर मेरा याह

रचाया और पूरी गृहथी लेकर यहाँ शहर म

आन

यहाँ बैठा ह! बाहर एक

बुिढ़या क कार से टकर हो गई!' उसने

बेपरवाहीसेचायकाघूँटलेतेएकहा,'जाने

दो, अंधी-धुंधी बुिढ़या को िकसने कहा िक

सड़कपरचले।'इतनेमढाबेकाछोकरापास

आया, 'दयालु काका, डकरया (बुिढ़या) क

सब अँतिड़याँ बाहर आ ग। मर गई बेचारी।'

उसने चाय का िगलास ितपाई पर रखा और

भीड़ को चीरता आ सड़क पर पड़ी बूढ़ी

औरत क लाश क क़रीब जाकर खड़ा हो

गया। औरत बत बूढ़ी थी। उसने झुककर

देखा,पेटकऊपरसेपिहयागुज़रगयाथा।

'अब या धरा ह इसम! मौत आनी थी सो आ गई। कोई ाइवर ने जान क थोड़ मारा होगा। तुम सब खड़ या कर रह हो। िसपाही को बुलाओ और चीरघर भेज दो। सवेर-सवेर डकरयानेसारासगुनिबगाड़िदया।' 'दयालु काका, धुलाई हो गई।' मंगलुआ नेपीछसेआकरकहा। 'हाँ-हाँ, इतनी जदी काह क ह, चाय तो पी लूँ।' यह कहता आ अंदर आया और

ितपायी से िगलास उठाकर बची ई चाय पीने

लगा। चाय ठडी हो चुक थी और बड़ी

मुकलसे

मथुरा जाएगा। मने

कटोरदान म परांठ और अचार क फाकँ रख

दी ह। देख समय से खा िलयो और कण

भगवासेाथनाकरयोिकमुझेचलतेहाथपाँव उठा ल। मेरा िया-कम अछ ढग से करयो। कह देती ।' मने अमा क पोपले मुँह पर हाथ रख िदया था। 'अरी अमा, तू कसी बात कर रही ह! अभी तो भले िदन आए ह।' िफरअमानेकटोरदानदेतेएकहाथा, 'ला तेर पास कछ पैसे ह तो देता जा। तेरा

बालक दो िदन से जाड़-बुखार म पड़ा ह।

सड़क पार वाले डागडर बाबू से दवा लाऊगी। तुझे तो िफकर ह न।' सरदार जी ने

िगलास धोकर पानी फका तो भी क बाहर

पड़ अधबुझे कोयले बेजान-सी आवाज़ क

साथ

उसक बदन म उतरती जा रही ह। वह भागता आ क क पास पचा तो उसका ीनर मंगलुआ भी दौड़ कर वहाँ पच गया। दयालु जाट ने उसे धका देकर िखड़क बंद कर ली, 'पर हट, पहले हरामज़ादे कार वाले क मुंडी तोँगा िफरचलूँगामथुरा।तूयहठहर।' उसने तेज़ी से क वापस शहर क ओर मोड़ा और पूरी रतार से सड़क पर दौड़ाने

लगा। दूर तक कार नज़र न आई तो रतार

और तेज़ कर दी, 'शायद रल का फाटक बंद

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj44 डाल कर घोलने लगा िक बाहर एक बूढ़ी औरत क चीख़ क साथ ही 'पकड़ो, पकड़ो, भाग गया। नंबर देख लो। काली कार ह, काली,'कआवाज़गूँजनेलगी।उसकसाथी दौड़कर बाहर पच गए, मगर वह चुपचाप बैठाचायपीतारहा। 'दयालु जाट, तू
घूँटहलककनीचेउतररहथे। 'यह बुिढ़या तो कछ-कछ अमा क शकल ह!' उसने बाहर झाँक कर देखा, भीड़ छटतीजारहीथी। 'इस िबचारी का तो कोई रोने वाला भी नह ह। िया-कम कौन करगा। कोई तो होगा-बेटा नह तो बेटी। दुिखयारी बत बूढ़ी थी। नाती-पोते भी हगे। अमा भी अब बत बूढ़ी हो गई ह। पंसारय क िमच कटतेकटते िदखाई भी कम देने लगा ह। बाबा तो मुझे अमा क पेट म ही छोड़कर मर गए थे। अमा ने खेत म नलाईयाँ क। बोहर क चौका-बासन िकये। ईख क ठठ उखाड़उखाड़ कर धन इका िकया। घर-घर चक पीसकर दो चुटक आटा लायी। खेत म बचे-खुचे आलू बीने। तब जाकर
बसी। मुझे लाला रघुवीर क क पर ीनर क जगह िमल गई। कई साल तक क क पिहये उतार और चढ़ाये। बाटय म पानी भर-भर कर क धोए। िफर भगवा क दयासेचलानाभीसीखिलया। लाइसस भी बन गया और ाइवरी भी िमलगई।अबतोअमाबतसुखीह।अपनी ब को िकतना यार कर ह और पोते को तो हर समय कलेजे से िचपकाए रहवे ह। चलते समय िकतने यार से बोली थी, 'अर दयालु, आज तो तेरा ठला
बुझकररहगए। 'अमा...अमा...' उसे लगा िक उसक भीतर से िकसी ने पुकारा ह। वह उठा और जैसे ही पुराने छपर से बाहर िनकला, िसर बी से टकाराया और िबकल काला पड़ चुका छपर का सड़ा-गला फस उसक कध पर आकर िगरा। कपकपाती नज़र से उसने ऊपर क ओर देखा, जगह-जगह हो चुक छद से सुबह क पीली धूप झाँक रही थी। वह जदी से बाहर िनकलगया।बुिढ़याकलाशअबतकबाहर ही पड़ी थी। अब वहाँ िसफ चार-छह आदमी खड़रहगएथे।उसनेबुिढ़याकोछकरदेखा। उसका िजम ठडा पड़ चुका था। वह भरायी ई आवाज़ म बोला, 'िकसी ने कार का नंबर भीिलखायासबउुकतरहदेखतेरह। यहाँआरलड।कारकारगकसाथा?' लड़का सहम कर बोला, 'काला, िबकलकाला...दयालुकाका।' 'हरामज़ादे कार वाले समझत ह िक उह का राज ह। िजसे चाह कड़-मकोड़ क तरह कचलिदयाऔरिनकलगए।अगरकाररोक िलया होता तो कौन-सी मौत आ जाती। अपताल ले जाता तो बुिढ़या बच जाती। नह तो कछ पये ही तो देने पड़ते, बेचारी का िया-कम हो जाता। अब जलेगी भी तो चंदे क लकिड़य से।' उसने अपने क क ओर देखा।उसकऊपरसूरजकागोलाएकअंगार क तरह दहक रहा था। उसे लगा गोले म से आग क लपट िनकल कर
हो',उसनेसोचा। सड़क लगभग खाली थी, मग़र उसे जगह-जगहभीड़नज़रआती,बूढ़ीऔरतको घेर ए एक भीड़। उसने आँख क कोर को साफ िकया और दूर तक नज़र दौड़ा कर देखा। रल का फाटक बंद था और काले रग क एक कार भी खड़ी थी। एक अज़ीब-सी किफ़यत क साथ टाँग कपकपाने लगी। गाड़ी क रतार कछ धीमी हो गई। उसने मज़बूत हाथ से टीयरग को कस कर दबा िलया, जैसे कार वाले क गदन दबा रहा हो, 'अभी साले क मुंडी पकड़ कर दो लात जमाऊगा। गाड़ीमडालकरबुिढ़याकलाशकपासले जाऊगा। लोग जुितयाएँगे, ही-पसली एक करदगे।पुिलसमारगीसोअलग।अमीरजादा कह का।' मगर उसने देखा िक फाटक खुला

रोक

अचानक

इसक पहले भी कई के उसक क क नीचे

कचलकरमरचुकथे।मगरआजपहलीबार

उसक जानदार होने का एहसास आ और

िसटिपटाकर टयरग घुमा िदया। गाड़ी

सड़क क नीचे उतर गई। का तो बच गया

मगर गाड़ी को पक सड़क पर लेते वत

एक हक-हक चीख़ उसक कान म रग

गई। पूरी ताक़त से उसने ेक लगाया।

िखड़क खोल कर बाहर झाँका तो देखा एक

बूढ़ी औरत िपछले पिहये क नीचे आ गई थी।

उसने देखा िक अभी साँस बाक ह और वह गदन िहला-िहला कर कराह रही ह। िसर पर काफ चोट आई थी और न बहकर सड़क

पर फलने लगा था। उसक हाथ म एक दवा क शीशी थी जो उसने अब भी मज़बूती से पकड़ रखी थी। उसने पहचाना, यह उसक

माँ थी। आँख म अँधेरा छा गया, 'अमा!'

चीख़ना चाहा मगर उसका गला ध गया। अब वह न तो कछ कह पा रहा था और न ही

उसे कछ िदखाई दे रहा था, न कछ सुनाई दे

रहा था। बस एक ही वाय बार-बार उसक कान क पद से टकरा रहा था, 'मेरा ियाकरमअछढगसेकरयो,कहदेती।'

उसने गाड़ी से

बदनठडापड़गया।आवाज़आई,'खचलो

नीचे।' वह थरथरा गया। िफर शरीर क सारी

श समेट कर गाड़ी टाट क और आगे बढ़ादी।

‘तेरा बालक दो िदन से जाड़ बुखार म पड़ाह।सड़कपारवालेडागडरबाबूसेदवा लाऊगी।'गाड़ीएकरतारसेआगेबढ़तीजा रही थी, 'अमा ने दवाई क बोतल िकतनी कसक....'

गाड़ी क रतार धीमी क, िखड़क से मुँह िनकाल कर पीछ पलट कर देखा। कछ नज़र न आया, बस एक लाश थी जो सड़क

पर पड़ी थी, उसक अपनी लाश। वह मर चुका था। आँख बंद क िफर खोल तो देखा उसक लाश सड़क पर दौड़ रही ह। उसने ग़ौर िकया िक एक खुली जीप थी जो क क

पीछ तेज़ी से दौड़ी चली आ रही थी। जीप

ािलटी परमा, इिदरा

कॉलैस,

1,एमपीनगर,भोपाल,म462011

नागरक

:हाँ।

(यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का

नामिलख):लागूनह।

4.काशककानाम:पंकजकमारपुरोिहत।

पता:पी.सी.लैब,शॉपनं.3-4-5-6,साट कॉलैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर,म,466001

याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का नामिलख):लागूनह।

5.संपादककानाम:पंकजसुबीर। पता : रघुवर िवला, सट एस कल क सामने,चाणयपुरी,सीहोर,म466001 याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का

नामिलख):लागूनह।

4. उन यय क नाम / पते जो समाचार

प / पिका क वािमव म ह। वामी का

नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj45 औरकारवहाँसेफरहोगई। 'ध तेर क।' उसने मन मसोस कर रतार और बढ़ा दी। अब क पूरी गित क साथ सड़क पर दौड़ रहा था। गाड़ी शहर म दािखल हो चुक थी, मगर उसक रतार म कोई कमी न आई। उसने अंदाज़ा लगाया िक पाँच िमनट म कार से आगे िनकल कर उसे
लेगा। नज़र कार पर जमी ई थी।
एक का क क सामने आ गया।
उतरने क िलए पैर लटकाया ही था िक कछ आवाज़ सुनाई द, 'मारो, अर पकड़ो। कह भाग न जाए, िज़ंदा मत जाने देना, अंधे होक चलाते ह।' पैर दब-दवहकगया। 'ह भगवा।' इन आवाज़ क साथ ही उसक ज़ेहन म एक आवाज़ और सरसरायी, 'िकशन भगवा से ाथना करयो िक मुझे चलते हाथ-पाँव उठा ल।' उसने बाहर झाँका, लोगउसकतरफ़भागेचलेआरहथे।जदी से पैर अंदर िकया और िखड़क बंद कर ली। सूरज क िकरण आगे शीशे क पास रखे पीतलककटोरदानपरकछइसतरहपड़रही थ जैसे कटोरदान क वद से न क धार फटरहह। 'मने कटोरदान म परांठ और अचार क फाँक रख दी ह। देख समय से खा िलयो।' िदल म आया िक िखड़क से कदकर अमा कचरणमअपनािसररखदे। 'अमा, अभी तो भले िदन आए ह!' िखड़क खोली मगर देखा िक भीड़ िबकल क़रीबआचुकहऔरलोगकहाथमडड, लोह क छड़ और हलवाइय क करछ ह। चाहा िक उह बता दे िक यह उसक माँ ह। मगर सुनेगा कौन? हाथ-पाँव फलने लगे,
म कछ लोग 'पकड़ो, पकड़ो' क आवाज़ लगा रहथे। िसर अंदर िकया तो ऊपर लगे आईने पर नज़रपड़ी।वहचकगया।यहवहनह,कोई औरथा,जोउसकजगहाइवरकसीटपर बैठा था। अब वह गाड़ी रोक कर नीचे कद जाना चाहता था। उसने गाड़ी रोकने क िलए एसीलेटर से पाँव हटाने क कोिशश क, लेिकन एसीलेटर पर पाँव का दबाव बढ़ता ही गया और उसक गाड़ी बत तेज़ी से सड़कपरदौड़नेलगी। 000 फाम IV समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा 19-डी क अंतगत वािमव व अय िववरण (देखिनयम8)। पिकाकानाम:िवभोमवर 1.काशनकाथान:पी.सी.लैब,शॉपनं. 3-4-5-6, साट कॉलैस बेसमट, बस टडकसामने,सीहोर,म,466001 2.काशनकअविध :ैमािसक 3.मुककानाम:बैरशेख़। पता : शाइन िंटस, लॉट नं. 7, बी-2,
ेस
ज़ोन
याभारतक
िवला, सट एस कल क सामने, चाणयपुरी,सीहोर,म466001 याभारतकनागरकह:हाँ। (यिद िवदेशी नागरक ह तो अपने देश का नामिलख):लागूनह। म,पंकजकमारपुरोिहत,घोषणाकरतािक यहाँ िदए गए तय मेरी संपूण जानकारी और िवासकमुतािबकसयह। िदनांक 21 माच 2022 हतार पंकज कमार पुरोिहत (काशक क हतार)

अाहम मैयू

मलयालम क जाने माने पकार एवं

कथाकार। मुित मायम 'मातृभूिम 'म उहने अपना पकार जीवन ारभ िकया, िफर करली टलीिवजन मायम म

उहने एसोिसएट एिडटर क प म कई

साल तक काम िकया।

'अ' आिख़र उधर पच गया। परतु पचने पर पता चला िक गािड़याँ आज नह िनकलगी, दूकानबंद ह। एक भी आदमी उधर िदखाई न पड़ा। एक पेड़क छाया म खड़ होकर वह चार ओर देखने लगा। पास ही एक खुला मैदान िदखाई पड़ा। वहाँ सूखे घास, गंदेघर, इतेमाल करक फक गए बत सार सामान को भी देखा, शायद वह एक मडी हो सकती ह। काली कलूटी मडी या काला बाज़ार। वैसे ही वह तध खड़ा था, तभी दूर उस मोड़ से िकसी को आता आ देखा। आनेवाला ढीला पतलून एवं कसा आ कता पहना आ था। वह नाटा और गोररगकादीखपड़ा। सामायतया अजनिबय से दूर रहने क आदत थी। परतु अकलेपन महसूस होने क कारण पूछा"याबंगालीह?''

"जी

अटबर-िदसबर

2022foHkkse&Loj46
हाँ''।उसनेभीपूछा-"यामलयालीह?'' "यािदखतानह?'' बड़ी आसानी से मलयालम म बंगाली ने उर िदया- "देखने पर आजकल िकसी को पहचाननाबतमुकलह।'' 'अ'नामकयाीनेहरानहोकरकहा-"दूधकतरहसाफ-साफमलयालम''। बंगालीनेयुरिदया-"मदूधनहपीता''िफरवहहड़तालकबारमकहनेलगा-"सुबह हीहड़तालशुहोगईथी।कलराततककोईगड़बड़ीनहथी''। "हड़तालकिलएकरलयादामशरह।बंगालकायाहालह?'' "बंगालदलतोायःख़महोगयाह,यहीतोपूछनाचाहतेथेन?'' दोनअपनी-अपनीभाषामहसनेलगे।दोनकोएकहीजगहपरजानाथा। "औरयाकरगे?'' "देखलगे,चिलए'',बंगालीनेकहा। दोनधीर-धीरचलनेलगे।बंगालीकसाथउसीतेज़रतारमचलनाथोड़ामुकलथा। दुगध से भर उस लंबे राते क एक छोर पर पचा तो मुग, गाय और सुअर को लाटक थैलेमपाया।मखयकाअपनादेश।"आपकमरकिनरीणकतहतह''पढ़तेएबंगाली हसनेलगा। "सबपढ़सकतेहो?" डॉ.षीना ईपन हाऊस नंबर २, अलफ़ोनसा िमडोस, थेकमला पी.ओ., कोषंचेरी, पनंिता िपन- 689654, करल मोबाइल- 9249932946 भाषांतर अजनबी मलयालम कहानी मूल कथाकार: अाहम मैयू अनुवादक : डॉ.षीना ईपन

कअर

मज़ाक

"िजसक यादा

सब''

धूपथी,उसकशरीरसेपसीनािनकलनेलगा,

बंगालीनेथोड़ासेमपूछा-

"जी, आप लोग को अपनी भाषा पसंद

नहया?''

"कसेपताचला?''

"अनुभवकआधारपर''।

"मतलब....''

बंगाली उस िदशा क ओर इशारा करते

ए कहने लगा-उधर तीस बंगाली परवार रहतेह।बाकरायवालेउससेभीयादाह। दूसर राय क ब क िलए मलयालम पढ़ने

का क द शु कर िदया। पचास से यादाबेभतहोगए।परतुमलयालीलोग मदद नह करते। बाँगला एवं मलयालम एक साथ पढ़ाता । शिनवार और रिववार को

का चलाता । जी, मलयालम वणमाला म

िकतनेअरहोतेह।

'अ'नेमौनसाधा।

"म ब को सरल मलयालम पढ़ाना

चाहता । ऐसी कोई िकताब

मतलब

बंगाली

पच सकते ह। उस तहसील म

हड़ताल नह ह'' -कहते ए बंगाली आगे

लगा, पीछ-पीछ मलयाली भी।

हड़तालवालेपूविदशाकओर,औरिवपी

दल वाले पम क ओर चलते ए िदखाई

पड़। उस नुकड़ पर हड़ताल वाले मोटर

साइिकलसेआएपित-पनीकोरोककरकछ

पूछ रह थे। उस ओर यान िदए िबना हम

चलने लगे। परतु उनक बीच का वाद-िववाद

ज़राबढ़नेलगा।

"िकधरजारहह?''

"िगरजाघर''

एक हड़ताल प वाले ने पूछा- "इस

समयमिगरजाघर।''

पित ने उर िदया, "हाँ, हर समय वहाँ पूजाहोतीह,अतःखुलारहताह।''

"या चौबीस घंट िगरजाघर खुला रहता

ह''। हड़ताल पधर आपस म इस बात क चचा करने लगे। िकसी ने कहा हो सकता ह।

जो भी हो उसक बार म यादा जानकारी न

होने क कारण वह वाद-िववाद

आफ द पेियारक''पढ़ाभीह।

सुनकर'अ'सचमुचहरानहोगया।

अगलानयाहोगा,वहसोचनेलगा।

"या रलीिजयस हो''? सुनकर उसने हामीभरी।

"औरतुम''?

"लेिनन ने कहा िक सोशिलम इज़ माई रलीयन।''

'अ' ने चुपी साधी। टालीन और लेिनन ने या-या कहा था, ऐसे िकतन ने िकतनी बात कही हगी, सब तो चले गए। उन बात का पालन करक जीने वाल क परशानी या मृत लोग जानते ह? मृत ही संतु ह। उसने

िफरसोचाबंगालीसेज़रादूररहनाहीअछा ह। इतनी दूर चल कर भी मंिज़ल पर नह

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj47 "जोभीिलखाजाताह''? 'अ'नेपूछा-"यहसबकसेआ?'' करीब दस साल पहले आया था। पाँच साल पूव मलयाली से शादी ई। िफर मलयालम से रता बढ़ गया। 'अ' ने अपनी बात भी बाँट ली। दस साल तक मने बाहर काम िकया। उधर ही पढ़ाई क। पाँच साल पहलेएकिदीवालीसेशादीभी क।िफर इधरआया। बंगालीनेतबपूछा-याआपअपनीभाषा
तकभूलगए।
म मलयाली ने उर िदया
ज़रत नह वह
कड़ी
दुकान म उपलध नह ह। दूसर शहर म भी जाकर देखा,परिमलीनह।'' एक अयापक क नाते उसक जो समयाएँह,उसनेबाँटल। 'अ' ने बंगाली से माफ माँगते ए कहाकल म मलयालम सीखना अिनवाय नह था।इसिलएनहसीखसका। 'अ' खुश होकर सोचने लगा िक और िकसीबातपरबातचीतकरनाहीसहीलगेगा। 'अ' ने िफर पूछा- "राजनीित म िच ह?
ख़ास िकसी दल म िदलचपी ह''।
ने राते पर रखे बड़-बड़ लाल रग क लेस क ओर इशारा िकया। तब "अ' ने पूछा"अबभी''? "हमेशाकिलए।'' "सबसेबड़ादुमनकौनह''? "मुयमंी...आपकानह,हमारा''। "दूसर राते पर जाकर घाट पार करक उस ओर
चलने
समा आ, मोटरसाइिकलरवानाहोगई। हड़ताल पधर एक पुिलया पर बैठकर सोडा पीने लगे। उनम से कछ लोग राते क बीच अपने दल क िच का िच पट से खचने लगे। कछ मोबाइल पर खेल रह थे और एक बाल ठीक करक सेफ खचकर फसबुकमडालनेकतैयारीमथा। मलयाली और बंगाली चलते-चलते थक गए। 'अ' क पास एक थैला ह, वह उसम से पानी का बोतल िनकालकर पीने लगा। आिख़रदोनसंतपीटरकिगरजाघरकसामने पचे। िगरजाघर खुला था। जलती मोमबियाँ हवा क झक से बुझ रही थ। हड़ताल वािदय से परशान पित-पनी उधर मोमबी जला रह थे। 'अ' घुटन पर खड़ होकर ाथना करने लगा। िफर उधर से राख को लेकर अपने माथे पर उसने सूली का संकत खचा। बंगाली संत पीटर क मूित क आगे य खड़ा रहा, परिचत न होने क कारण उसनेवंदनानक। उधरसेचलपड़तोबंगालीनेपूछा"याकथोिलकहो?'' "नहपाियारकस''। "मतलब?'' "पेियारकआँफएटयोक'सुनाह?" "ज़र सुना ह, ओटम
पचाह। अचानक एक पेड़ क छाया से हड़तालवादी छलाँग मारकर आए। राते क बीच खड़ हो गए। बंगाली ने मदद क। वह जदी 'अ' क पास आकर कछ कहने क बहाने उसक माथे पे जो सूली का संकत था, उसेपछिलया। "िकधरजाते''? 'अ'नेजगहकानामबताया। हड़ताल वाला उपहास क सुर म कहने लगा-"उधरकसेजासकताह?'' "घाट क उस पार पचने पर गाड़ी िमलेगी'। "िकसनेकहा?'' बंगालीआगेआकरिहदीमकहनेलगा-

िदया। ऐसे बंगाली ने मलयाली को

बचाया।

मलयालीने"थयू"कहा।

बंगाली लोग आमतौर पर बातूनी होते ह।

वह िफर पूछने लगा- जी बताइए "एक ही

समय दो िव अथ- देनेवाला मलयालम

अरकौन-साह?"

"बोलोभाई।''

"बुरामतमान,यहसबमेरबसकबात

नह।''

बंगालीनेतुरतकहा-'अ'अर।

उदाहरणकिलएकोईईरकअतव

पर न करता ह, और उस पर उतना भरोसा न करने वाला 'अ...' कहगा। िकसी को पूरा भरोसाहतोतुरत'अ'कहगा। 'अ'सचमुचअवारहगया। बंगाली ने अपनी बात जारी क। 'अ' दद का अर भी ह। परशान मनुय क हठ से पहले िनकलने वाले शद भी 'अ' ही ह। दुिनया का सबसे े शद भी 'अ' से ही शु होता ह - 'अमा'। दोन और भी बात करनेलगे।धूपयागमकाकोईअसरउनपर नहपड़ा।

लगा। ज़र उस पार गािड़याँ

हगी। इधर तो सब सूना-सूना ह। पुराने ज़माने

क खेत आज खेल क मैदान ह। कसे सूखे

औरजंगलीहोगएह।उधरचार-पाँचमकान

कखंडहर।

एक काले घड़ पर सफद पट से "काले

नयन वाले इधर मत देख''िलखकर टका गया

था। "यह काले नयन वाला कौन ह?'' वह

सोचने लगा। िकनार पर ही नाव खड़ी थी।

मुकरातेएहासएपपरकछदेखरहाथा। उसने हम देख िलया था, परतु अनदेखा कर िदया।

"अर,उसपारजानाहभाई।''

कवट सुने िबना िफर से हासएप देखने लगा।एकसाथनौसंदेश।

फ़ोन पर चेहर को दबाकर उसने कहा-

"उसओरनहचलेगा।''

"य?''

"हड़ताल''

"हड़ताल

ह?''

उसनेहामीभरी।

"बतअछानाम।''

बंगाली

क बार

पूछा-"या कानू

सुना ह?

फ़ोनपरबोलरहाथा।जल मिलनहोगयाथा।

बंगालीनेआगेजाकरपीछमुड़करदेखा।

'अ'उधरहीकछसोचकरखड़ाथा।

िफर ज़ोर से बंगाली से पूछने लगा-"या कानूसयालकोदेखाह?''

"मेर िपताजी उनक साथ थे, उनक िशय थे। िसलीगुड़ी म िकसी ने उन पर गोली मारी, िफरउहिकसीनेदेखानह।''

सुनकर 'अ' दुखी हो गया। कानू सयाल क परपरा म आनेवाले क साथ उसने सेफ खचा।

"मलयाली और

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj48 "भाई ! म उस राते को अछी तरह जानता ।'' बंगाली क दािहने हाथ म तीन तावीज़ बाँधी ई थ। उसने हड़ताल वािदय को हाथ उठाकरवहिदखाया। "अजनिबय को देखकर ही राता रोक िलयाथा।ठीकह।''कहकरहड़तालवािदय ने जाने
तुम अछ अयापक हो, कहते ए मलयाली ने बंगाली का अिभनंदन िकया। बंगाली क ारा मलयालम पढ़ाने क जो संथा ह, उस जगह से तो मलयाली परिचत था,परतुवहाँऐसीएकसंथाहउसकबारम उसेकछपतानहथा। 'अ' कहने लगा- "मेरी बेटी आठ साल क ह, मलयालम अर ठीक तरह से जानती नह,मउसकमददभीनहकरसका''। मलयाली को एक तरह का अपराध बोध महसूसआ। मलयाली क बात सुनकर बंगाली ने उस दाियवकोखुशीकसाथवीकारिकया।वह कहने लगा-"अगले हते का शु होगी। ारभकता क साथ िबठाएँगे। दो महीने क अंदरसबठीकहोजाएगा।'' "इस धूप म य िनकल?'' िफर बंगाली नेपूछा "िलखनेकिलए।'' "यािलखनेकिलए?'' "इधर दो हयाएँ ई न, उसका रपोट तैयारकरनेकिलए।'' "कौन-सेपमकामकरतेह?'' "पकिलएनह,साािहककिलए।'' दोनघाटकिनकटपचे। 'अ' सोचने
म तो गािड़याँ ही नह चलती न?'' "यानावगाड़ीनहह?'' 'अ'परशानहोगया।"अबयाकरगे?'' बंगाली ने मलयाली क िलए मलयाली से याचनाक।"ज़राउसपारपचाइए।'' खेवटनेकहा-"उधरभीहड़तालह।'' "कबसे?'' "अर ! हड़ताल क िलए कोई समय होता या?'' बंगालीनेवापसचलनेकाफसलािलया। परतु 'अ' वापस नह जा सकता था; यिक इस पार और उस पार दो हयाएँ, दो दल, संघष,कसेवहवापसजासकताह! बंगाली ने िवदा लेते ए कहा-"िफर िमल।'' 'अ'नेकहा-''अगलेहतेबेटीकोलेकर आऊगा।'' "बड़ी खुशी क बात ह, ज़र आइएगा।'' जाते वत बंगाली से नाम पूछा। तो उसने कहा-"कनू” "याइसकामतलबकपालु
ने िफर
सयाल
ांितकारी... िफर फाँसी लगाकरमुयु।'' बंगाली ण भर क िलए सकपकाया, िफरचलनेलगा। कवटज़ोरसे
बंगाली" - संगीत का जैसा दूसर का वर शीषक देखकर फसबुक परडालनेकोसोची।बंगालीनेआिख़रीिवदा ली। 'अ' िबलकल अकला हो गया। वह सोचने लगा जो मार गए दो ह एक इधर दूसरा उसपार।पहलेइधरिफरितशोधमउधर। 'अ' ने संपादक को फ़ोन िकया- "दोन जगहहड़ताल।दोनजगहपरएक-एकमारा गया।'' उसकबातसुनकरसंपादकनेपूछा-"तो फ़रयादीकौनह?'' 000
अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj49 डॉ. वंदना मुकश 35 ुकहाउस रोड, वॉलसॉल, WS5 3AE, इलड मोबाइल- +447886777418 ईमेल- vandanamsharma@hotmail.co.uk लिलत िनबंध राम कौन? डॉ. वंदना मुकश कोरोना काल हमार जीवन का अयंत चुनौतीपूण काल था। कोिवड क भयावहता से डरसहमहम अपने ही घर म क़द हो गए। बत कछ दुखद, अीितकर और अवािंछत थितय कासामनाकरनापड़ा। उस िदन मन बत उदास हो रहा था। न जाने िकतने िवचार मन म िनरतर चलते रहते ह। रामचरत मानस क अंितम कछ पे पढ़ने रह गए ह। िनराशा म हम भगवा याद आते ह और मुझे भगवा क साथ-साथ मेर गुजी डॉ. कशव थमवीर, मेर पीऍच.डी गाइड। लगभग दो साह हो गए थे सर से बात नह हो सक थी। तो, सुबह 10 बजे सर को फ़ोन लगाया यह सोचकरिकसरकउसाहभरी,िजासाभरीआवाज़सुनकरऔरिफरउनसेबातचीतकरक मेर उिन मन को शांित िमलेगी और दूसरी बात यह थी िक वे कोरोना महामारी क इस आपद काल म आगरा क िनकट अपने पैतृक गाँव िदगरौता म अकले थे। लॉकडाउन क कारण पुणे वापस नह लौट सक। य तो गाँव म भी उनका परवार, ियजन भरपूर ह िकतु उनक िनयिमत उनका खोज-ख़बर लेना मेरी आदत म शुमार ह। वैसे भी कभी सर से मेरा रता एकडिमक गाइडवालानहरहाह।तोमनेसोचािकसरकहाल-चाललेलूँ,उनसेरामकिवषयमचचा कगी तो मन को शांित िमलेगी । फ़ोन लगाने पर दूसरी ओर से बड़ी कमज़ोर-सी 'हलो' क आवाज़ सुनाई दी। म डर गई , कोरोना-काल म घर से दूर सर अकले ह... मने पुनः फ़ोन लगाया।िफरवहीकमज़ोर–सीआवाज़। मनेपूछा,'सरयाआ,कसेहआप?' 'अर बेटी या बताऊ, कल रात से पेट ख़राब ह, कल से कछ नह खाया ह और कमज़ोरी बतयादामहसूसहोरहीह।अभीलेटा,लेिकनतुमबातकरसकतीहो।'

सहभािगता

अमेरका

तुलसीकत

का सािहयक

से अयन कर रही , इसिलये राम पर

चचामभागलेनाअछालगताह।

तो अपने वभाव क अनुसार उहने

िजासा दशाई और उसी ीण आवाज़ म

मुझसेबड़ेहसेपूछा,'तोिफरबेटीबताओ

मुझेिकरामकौनह?'

म इस अकमक न क िलये तैयार

नहथीतोबोली,'यासरआपभी..आपतो

सुबह-सुबह मेरी परीा ले रह ह? (इलड म सुबहथी)'

'अरबताओतोसही,िकतुमयासोचती

हो?'उहनेपुनःपूछा।

मने सोचा, िक बू अब तो तुम फस ही

गई हो तो उतर ही पड़ो मैदान म। ग़लत उर

हठा

सेयारा'

सुनो'-

राम दशरथ का बेटा, एक राम इन

राम

जग पसारा, एक राम इन

'तोबेटी,वहकौनसेरामह,दशरथवाले िकदूसर,तीसरयाचौथे।हमारगाँवम'रामराम' कर अिभवादन करते ह, राम-नाम से अंितम िवदा करते ह। दरअसल, यह उस दशरथ क बेट राम म जो राम ह, वही रामनामहमारतन-मन,हमारीसाँसमबसाह।' 'वाह, वाह! सर, या बात कह दी आपने!' म गग हो गई। मने मंमुध भाव

से कहा, 'सर या बात ह, वाह! म कहाँ से लाऊ आपका-सा ान और आपक-सी

पढ़ना-समझना तो चुटिकय का खेल ह। लगभगछःसौवषपुरानीभाषाकबारीिकय को जनाना-समझना और याद रखना कोई सरल बात नह ह। और तो और उसे सरल बनाकर बड़ आमीय ढग से समझाना ही सर का वैिश ह। िफर एक याया नह, अनेक नए-पुराने संदभ से संयु कर बताते हतोसमझमयहनहआतािकिकसबातपर ंशसा क- उनक िवश अययन क या उनक रसीली सहज ा शैली क। सर अपनी मृित और अपने संिचत अनुभव-कोष

से आपको मालामल कर देते ह। मुझे उस आनंद-सागर म फ़ोन

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj50 उहने बत ही ीण-सी आवाज़ म बताया। िफर मने िवतार से उनक हाल-चाल िलए, खाने-पीने संबंिधत िनदश िदये। िफर उहने मेरी गितिविधय क िवषय म पूछा, तो मने उह बताया िक िपछले तीन साह से म ित शिनवार 'म' ारा दो संगोय म
कर रही - एक यूयॉक,
से सॉटवयेर इजीिनयर ी अशोक िसंह ारा संयोिजत मुशायर म और दूसरी ी ओम जी गुा ूटन अमेरका ारा संयोिजत'रामकौन'परचचाम।साथहीमने यह भी मने बताया िक म िपछले एक माह से
रामचरतमानस
हो या सही, अपने तो दोन हाथ म ल ही रहगे। सो मने मन ही मन जय ी राम कहा और अपने 'राम' क बल पर 'राम' क अपनी परभाषासरकसमुखरखी। 'हमम.. तो सर मेरी म राम हमार जीवन का वह तव ह जो हम जीवन म जो कछ सुंदर , कयाणकारी और लिलत ह वह करने क ेरणा देता ह, उसािहत करता ह। एक साधारण भारतीय क िलये राम भगवा ह, और यही वह राम ह िजनक कथा क मायम से महाकिव तुलसीदास ने भारतीय संकित को यायाियत करनेवाला सवे महाकायिलखडाला।जो....' म आगे बोलती िकतु मेर उर को सही िदशामजातेदेख,वेसंतुथे।लेिकनउनक पास राम क िवषय बताने क िलये बत कछ था सो वे सहज ही मुझे टोकते ए बोल उठ, 'हाँ..., और तु ह पता ह कबीर ने राम क िवषयमयािलखाह,
'एक
से
एक
का
अिभय? मज़ा आ गया, आपने िकतने संि, सुंदर और सटीक शद म अपने मेर और सबक राम क याया कर दी, जय हो गुजीआपक।' अपने िचर-परिचत, िकतु अभी-भी, कमज़ोरहसीकसाथबोले,'िकसीनेकहाह न'कहाँ से लाएगा क़ाितल, ज़बाँ मेरी, बयाँ मेरा' और हसने लगे। मने भी उनक हसी म हसी िमलाते ए एक और दाद दी। तब तक उहनेएकऔरचौकालगािदया। 'अर, बृज म कहावत भी तो ह- गीत लै जायगी,रागकहाँसेलावेगी।' थमवीर सर बृज भाषा क कांड िवान ह। वैसे तो उनसे जीवन और जग संबंधी कोईभीचचाकरनेपरआपसमृहीहोतेह। लेिकनमयकालीनकायकअथ–छटा को वे िजस कार यायाियत करते ह, वह िकसीभीयकोआपकसमुखसजीवकर देनेकसामयरखताह।इसकाकारणिसफ बृज े से उनका संबंिधत होना मा नह ह। वे गहन अययनशील ह यह तो हम सभी जानते ह िकतु उनक भीतर जो गाँव जीिवत ह उसक कारण िकसी बात पर उनक िटपणी पांिडय से बोिझल न होकर इतनी सहज और रसमय होती ह िक उस पल तो आप को भी यह म होने लगता ह िक मयकालीन काय
पर ही जब-तब सराबोर होनेकासुखाह। हमारी बात म रवानी आ रही थी, उनक वर क ीणता भी िकिचत कम ई थी और म तो मत हो ही रही थी। अब तो तार िछड़ चुक थे। अब तो अमृत ही अमृत झरना था। वे कहरहथे'देखो बेटी, मृयु होने पर हमार लोक म कहते ह न, राम िनकर गया; अथा हमारी ाण-श चली गई। हमारा आमिवास ही हमारा राम ह िकतनी भी किठन परथित हो, यह राम हम यह िवास िदलाता ह िक यहिनराशा,यहहताशाजीवनकाएकपड़ाव ह। यह िनकल ही जाएगा। ऐसी बात हम धैय बँधाती ह। यह राम हम उस मनोभूिम म पँचाताहजहाँइिय-धमसेऊपरआमक

छोड़ता, अपने पंजे उसम गड़ाए

रखता ह। उसे लगता ह िक उसने छोड़ा और

वह िगरा। तो सरूदास कहते ह िक तुझे िकसने

पकड़कररखाहतूवयंहीनहछोड़रहाह, छोड़ देगा तो भी तो बच सकता ह... यही थित हम सबक ह। समया को हम पकड़करबैठह,हमहीनहछोड़नाचाहते।' 'वाह, सर वाह! इस पं को इस तरह आज कौन-सा िहदी का िशक समझा सकगा ? किव ने जो सुंदर िबंब रखा ह यिद आप नह समझाते तो म इस पं क इस सदय को समझने से वंिचत रह जाती। आपने वातिवकिचखचिदया।' सर क ीण

िपताजी

हीकहने

क आदत ह िकतु अब कभी-कभी बातचीत

म अचानक म भी उह िपताजी कहकर

संबोिधत कर दूँ, तो मुझे पहले -सा संकोच

नहहोता।

अपने िपताजी को म पापा कहती थी। मेर

पापा म भी एक उक सािहयकार क गुण

थे। पापा क हण-श भी अुत थी। वे

बत पढ़ते थे, बत अछी किवताएँ िलखते

थे, आशुकिव थे, लेिकन उनक िज़मेदारय

और परशािनय क कारण उनका सािहयक

प दब कर रह गया। और संकोची वभाव

क कारण कह उनक मन म यह था िक

सािहयकार एक अलग जाित होती ह। सच

बाततो

धािमकसेकभीनहपढ़ीहऔरपढ़ीभी

हतोवहिसफएम.एमकछाकोपढ़ानेक

िलये। लेिकन देखो, इससे भाषा समृ होती

ह। और आप तो वयं भाषा िवान क छाा

रही ह। मने कहा, इसिलये तो सर, और भी आनंद आ रहा ह िक कालांतर म शद क अथ िकस कार बदल जाते ह। एक बार गु जीपुनःमुझपरसहोगएथे।

'जी, हाँ, तो सर म कह रही थी िक, आज

करामचरचमानसपाठमउरकांडकावह

संग

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj51 आनंद क अवथा म पँचा जा सकता ह। बेटी हमने ही वयं को इस माया-जाल म उलझारखाह।सूरदासकहगएहनिक'सूरदास निलनी क सुअना तोये कौन पकरयो।' मइसकाअथनहलगासक।मनेकहा, 'सर मुझे मतलब नह समझ म आया, अथ समझाइए।' 'अर वह पुराने समय म बहिलया तोते को पकड़ने क िलये एक नली से अमद और िमच बाँध कर वृ क डािलय म अटका देता।उसेदेखकरतोतायहसमझतािकफल उसीवृकाहऔरउसपरअपनापंजाजमा देता।जैसेहीवहउसपरबैठतातोनलीपलट जाती लेिकन उलटा आ तोता उस अमद को नह
आवाज़ अब कछ बलवती हो चुक थी वे बड़ सहज और न भाव से बोले , 'बेटी तुम तो जानती हो पीस साल क आयु तक तो मने हल चलाया ह। तो िशक बनने पर, का म छा का सामना करने क िलये बत पढ़कर, तैयारी से जाता थािककहऐसाकछनहकहदूँिजससेबाद मछामेरीिखीउड़ाएँ।' उहने अंजाने म एक अछ िशक का गुर बता िदया था। सर क समुख िजासा पी एक छोटी-सी िचंगारी छोड़ दीिजये और िफरान-पीअनकतापसेअपनीसंशय पी ठड का पूण िनवारण कर लीिजए। सर जब तक मेर पीऍच.डी गाईड थे तब तक तो िसफअपनीथीिससपूरीकरनाहीमुखयेय था। िकतु पीऍच.डी क बाद जब वे हमार ब क िय नानाजी बन गए, आंटी क कारण आमीयता बढ़ती गई और अपने पापा क देहांत क बाद तो मने उह मन ही मन गु से पापा बना िलया। सर क बे सर को
कहतेह।परमुझेसरकोसर
यहीहिकतबसािहयकारऔरआज कसािहयकारमज़मीन-आसमानकाअंतर ह। सािहय म यापी मूयहीनता पर अलग चचा हो सकती ह। ख़रै, मेर पीऍच.डी करने कदौरानमेरापापाआयकरअिधकारीकपद सेरटायरहोकर,ममीकसाथमेरबको सँभालनेआतेथेऔरमेरिलयेएककबन करमेरिनदशमकामकरतेथे।थमवीरसर से जब उनका परचय आ तो शुआत से ही उनम एक िविश कार का िम-भाव उप हो गया जो समय क साथ गाढ़ होता गया।पापावािलयरसेथेऔरसरआगरासे, दोन लगभग एक ही देश-बृज से संबंध रखते थे। इसिलये वहाँ क बोली-बानी, भाषायी मुहावर और वोय आिद का साथ-साथ आनंद लेना, हसी-ठा करना मुझे परम सुख देता था और कभी-कभी आयमडालदेताथा। सर, मने रामचरचमानस म ऐसे पतीस –चालीस शद पाये िजनका अथ अब बदल गयाहजैसे-मंिदर,नाग,खेद,......इयािद, मनेएकसूचीमसेकछशदउहसुनाए। वे गग हो गए, बोले,-बेटी रामचरत मानस पर इस तरह क बत से काम ए ह, कई शोध ए ह, तुह जानकर आय होगा िक रामचरतमानस पर पहला शोध भी िकसी भारतीय ने नह, बक िकसी यूरोिपयन ने िकया था। हालाँिक मने पूरी रामचरतमानस
हिजसमरामरायथािपतहोनेपरराम संत और संत का भेद लमण,भरत, शुन औरहनुमानकोबतातेह।मुझेतोचौपाईयाद नह थी लेिकन मेर कहाड़ी और चंदन वृ... कहते ही सर ने मूल चौपाई ही सुना दीसंत असंत क अिस करनी। िजिम कठार चंदनआचरनी।। काटई परसु मलय सुनु भाई। िनजगुन देइ सुगंधबसाई।। मने िफर चमकत होते ए िटपणी क, िक वाह, सर, रामचरतमानस पढ़ म रही औरचौपाईआपकोयादह।आपतोकहतेह िकआपनेपूरीरामचरतमानसकभीनहपढ़ी िकतुमकहसेभीकछबोलूँयाबताऊ,आप मूल पाठ क साथ उसे इस कार यायाियत

ानकाकोईलाभनह।

िफर हसते ए सर

वरना

िक

मुबोध क कहानी 'रास' पढ़ी ह

या? मने कहा, नह, पढ़ लूँगी । िकतु आप

सुनाइयेन।िफरसरनेसंिम'रास'

का सार बताया और हसते ए बोले िक भाई, मुझे बरास नह बनना ह और इधर म भी साथ-साथ बोल पड़ी, िक म आपको रासनहबननेदगूँी।हमखूबहसे। दरअसलउनकिक़सागोईककलाम तो मज़ा आता ही ह, लेिकन उससे भी यादा

मज़ा इस बात म आता ह िक अब म उनका मंतय बात शु होने क साथ ही समझ जाती

और सर क साथ मु कठ से हसती , ठीक वैसे ही जैसे, म अपने पापा क साथ जी भर कर हसती थी। एक पल क िलये मेर मन

म एक वाथ सोच पैदा ई, िक यिद सर

रास बन और बस मेर पास ही रहतो

ान क अज

ई।

लोक म चिलत यह कहानी सुनाता

मसजगहोगई,हाँ,सुनाइए।कहानीशु

एक गाँव म एक साधु रहता। वह देशाटन

पर जाना चाहता था। साधु क पास कछ

सामान तो होता नह ह, सो उसक पास भी

िवशेष कछ सामान तो था नह, बस एक िबतरथा,सोउसनेबाँधकरगाँवकहीएक

य क घर यह कह कर रख िदया िक छः माह बाद जब लौटगा, तब ले लूँगा। उस यनेवहिबतरउसीभाँितछतसेलटका िदया। िबतर लटक-लटक डढ़ वष से यादाकासमयबीतगया।तबउसयने आसपास गाँव क जो साधु थे उनसे पूछताछ

क िक वे साधु महाराज कहाँ ह अब तक नह लौट, उनका कछ सामान मेर पास रखा ह ।

तबतीथकरकलौटिकसीसाधुनेबतायािक

उन साधु महाराज का तो कछ माह पूव ही

देहांत हो गया। अब यह आदमी

मेरा मन वाह, वाह बोल उठा।

मुझे लगा िक सर से अवथता क बाद भी कछ लंबी चचा हो गई। मुझे लािन ई। मनेकहा,-सरमाचाहती।दरअसल.....

बेटी, बीमार तो म ही, लेिकन तुमसे बातकरकमुझेअछालगा,फ़ोनकरिलया

आवाज़तोकमज़ोर

थीलेिकन

और सता का पुट

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj52 करदेतेहजैसेपूरापाठकठथहो। वेसहजतासेकहगए,'औरहमनेजीवन भरिकयाहीयाह?' िफर मने उह अपने नए ा ान क आधारपरबतायािकसररावणकअंतसमय पर हम लोग सुनते थे िक राम, लमण को रावण क पास बोधन क िलये भेजते ह लेिकनतुलसीरामायणमनहह। अछाबेटी,तोसंभवहिकवहवामीिक रामायण म होगा। िफर बोले, बेटी, हमार शा म यही कहा गया ह िक अपने संिचत ान को जीवन रहते आगे बढ़ा दो
उस
ने पूछा
तुमने
धारा सतत बहती रह, यह बात का िसलिसला चलता रह। उसे झटका। वयं को मन ही मन डाँट लगाई िक यही पढ़ रहीहोवंदनारामचरतमानसम....। और सर, अंत म रावण भी राम कहकर जाताह,इसीाकरमारीिच,कभकणइयािद भी राम –नाम लेकर ही देह क बंधन से मु होते ह। मने सर से कहा िक अगले ंसग म पावती क कागभुशुंिड क संदभ म शंका का िनवारण होगा। िजसम पावती जी शंकर भगवा से पूछती ह िक यिद मनुय काल, गुण, धम और वभाव क अनुसार चौरासी लाख योिनय म भटकता रहता ह और बत मुकल से उसे दुलभ मनुय योिन िमलती ह िफर उसम से भी करोड़ म से िकसी एक को राम भ िमलती ह तो कौए जैसे िनक ाणीकोरामभकसेिमली? सर बोले, तुमने लोक क यह कहावत सुनीह,'अंतमतासोगता'। मने कहा, 'नह, मुझे पता था िक अब बाबा क पोटली से कछ और िनकलने वाला था।' वेबोले,अर,'अंतमतासोगता'काअथ ह िक अंत म जैसी मित होगी वैसी गित होगी। अछा
बड़ असमंजसमपड़गया।तबउसनेसाधुक जमात को कहा िक महाराज उन महाराज का िबतर मेर पास ह म चाहता िक आप उसे ले जाएँ । तब साधु ने कहा िक वह तुह दे गए तो सामान अब तुहारा ही ह, तुम उसे खोलो और देखो िक या ह उसम? तब उस आदमी ने उस िबतर क रसी खोली तो उसम एक चादर म िलपटा कछ था। िफर चादर खोली तो एक बाँध क रखी ई थैली िनकली। िफर उस थैली को खोला गया तो उसम से एक छोटा बटआ िनकला, िफर उस बटए को खोला गया तो उसम एक छोटी- सी िडबीिनकली। मेरी िजासा भी बढ़ रही थी, यिक म अबतकनहसमझपारहीथीिकइसकहानी कअंतमकौनसीसीखहोगी। 'तो बेटी, जब उस िडबी को खोला गया तो उसम से दो चीज़उछल क िगर। एक तो कछ मटमैला सा, गोल-गोल सोने का िसका,औरदसूरासफदरगकाएकछोटासा सँपोला (साँप का बा)। वहाँ खड़ सभी साधुबोलेअर,मरतेसमयसाधुकायानइस िसक पर था इसिलये उसक यह गित ह िक मर कर वह उसक रा करने आ गया। यही तोह'अंतमतासोगता'। सो बेटी, रावण हो, मुबोध का रास हो या वह साधु, अंत समय िजसका मन जहाँ अटका हो उसी क अनुसार उसक गित होती ह। यही ह 'अंत मता सो गता'। एक बार िफर
करो। सरक
ही
उसम उसाह
आ गया था। फ़ोन पर ए इस वातालाप से म मयकालीन काय क बारीिकय, कई कहािनय, िक़स और दोह चौपाइय से समृ हो कर िनकली थी। मुझे लगा यही वह रामतवह।जोहमारिनराशमनकोआशासे भरदेताह,उसेआािदतकरदेताह।जीवन म सय, सुंदरता, ेम और कणा का संचार करानेवालेहराम। रामचरतमानस क पारायण क बाद और सर ारा पूछ गए न से म इसी िनकष पर पँची िक मनुय जम क साथकता उसी दशरथ क बेट, राम म बसे राम को पाने क ह...। 000

तरह। हर यायावर भारतीय क मन म एक बार मॉरीशस देखने का भाव उसी तरह पल रहा होता ह जैसे वह गंगा जाकर उसक िनमल धारा को छने क लालसा रखता ह। हो भी य न। हम भारतीय को पता ह िक मॉरीशस क धरती म भारत क सुगंध रची-बसी ह। मायताएँ, भाषा, रहन-सहन, खान-पान सब भारतीय। िफर समु क अठखेिलय क साथ गे क खेती क िक़सेिजहहमबचपनसेसुनतेआएह। अभी कछ िदन पहले ही तो पुवधु ुित अपने यावसाियक दौर पर मॉरीशस गई थी। वहाँ किचवहलगातारहमभेज

से

बताया

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj53 चौधरी मदन मोहन "समर" 16, ीहोस चूनाभी कोलार रोड भोपाल (मयदेश)-462042 मोबाईलः 9425382012,7000479808 ई-मेल- shabdupasna@gmail.com शहर क ह नीलांजल मॉरीशस चौधरी मदन मोहन "समर" मॉरीशस का नाम आते ही एक छोटा सा, िकतु बेहद बसूरत देश जहाँ भारत का िदल बसता ह, मतक म कध जाता ह। िहद महासागर क अक छोर पर बसा यह ीप अपनी संकितऔरिहदीककारणछोटाभारतह।कभीडचिफरचऔरिफरअंेज़ककज़म रहने क बाद स 1968 म यह आज़ाद आ। गे क खेती क िगरिमिटया मज़दूर क प म िबहार से गए भारतीय ने इस ीप पर अपने पसीने को ऐसा सचा िक यह धरती महक उठी, अपने घर से दूर ले जाने क िलए अंेज़ ने उह बरगलाया था िक मॉरीशस का जो पथर पलटोगेउसकनीचेसोनािनकलेगा।पथरकनीचेसोनािमलनातोवनहीथा,लेिकनधरती कआँचलपरशकरकिमठासमइनिगरिमिटयामज़दूरनेअपनीमेहनतबोदी।उनमज़दूर कसंताननेआजमॉरीशसकोअकमहाीपकासबसेअिधकितयआयवालादेश बनािदयाह,पथरकनीचेसेसोनािनकालकरनहबकअपनेपसीनेसेिमीकोतरकर। आज यह सोने क िचिड़या ही तो ह। दोन ीप मॉरीशस क, सेट डन, रॉीगज़ व अगालेगा ीप िमलकर मॉरीशस गणराय होता ह। िजसम मॉरीशस ीप मुय और सबसे बड़ा ीप ह। िबकलहमारअंडमानिनकोबारक
रहीथी।मुझेलगताथािकजैसेवहधरतीमुझेटररहीहऔरकह रहीहएकबारयहाँआकरदेखोतुहसमुकबीचबसायहभारतयादकररहाह। भारतीय सांकितक सबंध परष क ओर
जब मुझे
गया िक मेरा चयन 18 से 20अगत,स2018तकमॉरीशसमहोनेवालेयारहविविहदीसमेलनमकिवतापाठ क िलए िकया गया ह, तो मेर िलए यह अयािधक फता का छण था। एक तो िव िहदी समेलन म भाग लेना, और दूसरा मॉरीशस क याा, दोन ही मेर िलए महवपूण थे। हालािँक भोपालमआयोिजतदसविविहदीसमेलनमभागलेनेकाअवसरभीमुझेिमलाथा,िकतु वहमेरअपनेशहरमथाऔरहमलोगमेज़बानकभूिमकामअिधकथे।समेलनकअंितम िदन जब किव समेलन होना था तो मयदेश क झाबुआ िजले म पेटलावद क़बे म ई िवफोट क दुःखद घटना क कारण किव समेलन िनरत होने से हम किवय का कायपाठ नह हो सका था। अब पुनःिवतर पर, वह भी अपने देश से बाहर देशकितिनिधकप मचयिनतहोनामेरिलएसमानकािवषयथा।मेरिमलने-जुलनेवालममेरीिताकवृि होनावाभािवकहीथा। हर भारतीय क तरह मॉरीशस मुझे सदा से आकिषत करता रहा ह। म जब कली िवाथ था मॉरीशस क धानमंी सर िशवसागर रामगुलाम भारत आए थे। तब अख़बार म इस याा को बत समान क साथ थान िमला था। मेर मन म तभी मॉरीशस क ित समानजनक भाव जातहोगएथे।इसकारमेरदोिदवावनसाकारहोरहथे। लेिकनयहाँभीिविधकािवधानसामनेआगया।िविहदीसमेलनकसंथापकआधार व देश क लोकिय धानमंी रह िहदी किव ी अटल िबहारी वाजपेयी जी क वगवास का

िदी से चेई 16 अगत

क रात 11 बजे ही पच गए थे। यहाँ पर

आजबतभीड़थी।मॉरीशसजानेवालेयाी

यादाथे।अनेकितिनिधअपने-अपनेसमूह

म िव िहदी समेलन म जाने क िलए

चेई म एक ए थे। भारतीय क साथ अनेक अय देश क ितिनिध भी वहाँ मौजूद थे,जहाँसेमॉरीशस कसीधीउड़ाननहथी। हमारा परचय अनेक िवभूितय से हो रहा था। िहदी और िहदी क थित पर बात करना कीयिवषयथा।हमचेईहवाईअपर साढ़आठघंटकालबाऔरथकादेनेवाला इतजार करना था। ऐसे म सरता शमा जी क यु बत काम आई और हम सभी ने अिभजायता याग कर एक सुरित थान तलाशबेहतरीन

बसूरत

पहािड़या,ँ नीलांजल सागर क जलिध तरग, धवल रत क चमचमाते ए सागर क िकनार, सदय क इस धनवान अनुपम कित को हम योम से िनहार रह थे। हम मॉरीशस क समय अनुसारकरीबसाढ़दसबजेसुबहपोटलुईस उतर। मॉरीशस का समय भारतीय समय से एकघंटातीसिमनटपीछह।पोटलुईसहवाई अ पर िहदी क समान म जगह-जगह िव िहदी समेलन म भाग लेने आए ितिनिधय क वागत क िलये होिडस लगे

ये थे। लेिकन िजस बात ने भािवत िकया

वह थी हवाई अ पर थाई प से िदशा िनदश अंेज़ी च व िहदी म िलखे थे,

अथा यह प था िक िहदी वहाँ क

अिधकत

बड़-बड़ खेत, उनम लहराती ई गे क

फसलतथावहाँकामकरतेएलोग,जोढाई सौ साल पहले भारत से यहाँ आए िगरिमिटया मजदूर क पसीने क कहानी क विणम पृ सहजे ए थे। सड़क िबकल साफ-सुथरी व िफकपूरीतरहसेअनुशािसत।मेरमनमजो कोतुहलजागावहवभािवकथा।मॉरीशसम 68ितशतभारतीयह,िकतुिजसअनुशासन क साथ उहने वयं को वहाँ थािपत िकया ह, भारत म हम य नह कर सकते? वाहन

कासंचालनिनबाधथाऔरिनयमअटटथे।

माग म हमने महामा गाँधी उतर

मायिमक िवालय का बड़ा सा भवन देखा,

जो हम बता रहा था िक, हमार गाँधी जी का

यहाँ िकतना समान ह।

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj54 दुःखद समाचार हम हवाई अ पर ा आ।पूरदेशया,िवभरमशोकलहरछा गई।अबसमेलनकापूराआयोजनशोकक सायेमहोनेवालाथा। हमार दल म ी बलवीर िसंह कण जी, आचाय देवे देव जी, ी ुवे भदौरया जी, भाई गजे सोलंक जी, सुरश अवथी जी,ीमतीसरताशमाजी,ीमतीमधुमोहनी जी, व ीमती सुमन दुबे जी सिहत दस लोग थे। ी सुर दुबे जी छीसगढ़ क दल क साथ जाकर हम पोट लुईस म ही िमलने वाले थे। हमारी अतराीय उड़ान चेई से 17 अगत को सुबह सात बजे मॉरीशस क िलए थी। जबिक हम
नदिनकालली। भारतीय समय अनुसार सुबह 7 बजे चेई से हमारी एयर मॉरीशस से पोट लुईस
िलए उड़ान भरी। मेबर ने जब यह घोषणा क िक हम कछ ही समय म पोट लुईस म उतरने वाले ह और हवाई जहाज़ बादलकतहकोहटानीचेआनेलगातोमेरी नज़र बरबस उस धरती क तरफ चली ग िजसेदेखनामेरिलएउसुकताकािवषयथा। चार तरफ नीले समुंदर से िघर इस ीप क हरितमा ने गगन म ही हम सूिचत कर िदया िक यह धरती िकसी दुयंत क शकतला से कमतर नह होगी। िस लेखक माक ेन ने कहा था िक- "ईर ने पहले मॉरीशस बनाया और िफर उसम से वग क रचना क"गेकखेत,छोटीिकतुखड़ी
भाषाह। आगमन क समत ज़री अतराीय औपचारकता क पा हम एयरपोट से बाहर आए तो वहाँ भारतीय सांकितक एवं सबंध परष क ओर से दल क वागत व मागदशक क प म तुलसी देवी जी जो मॉरीशस ियोल ह व वंदना गौतम जी जो भारतीयसांकितकपरषिदीसेिवगत6 माह पूव थानातरत होकर मॉरीशस आई थ, उपथत थ। हमारी मुलाकात सहयाी को प म िफजी क िशमंडल म शािमल ेताजी,अशोकबालगोिवंदजीऔरनेमानी जी से ई। नेमानी जी िफजी मूल क िहदी क िवान ह। इस तरह पूरी दुिनया म िहदी को चाहनेवालेमॉरीशसकमेहमानबनेथे। तुलसी जी व वंदना जी ने हम बताया िक हम सबसे पहले इिदरा गाँधी सांकितक क चलना ह, जहाँ हमार िलए वागत भोज का आयोजन ह। हमारी आरामदायक िमनी बस हवाई अ से िनकलकर मॉरीशस क सड़क पर दौड़ रही थी, मेरा मन-मतक इनसड़कसेदूरतकिबछीईभारतीयताको देखआनंिदतहोरहाथा।अटलजीकदेहात क कारण भारत म राीय शोक था। िजसक वजहसेितरगागमगीनहोकरआधाझुकाथा। मॉरीशस क हर चौराह पर ितरगा व मॉरीशस का वज लगाया गया था। ितरगे क झुक होने क कारण मॉरीशस ने अपना वज भी आधा झुकाकरहमारशोकमअपनीसंवेदनाकट कथी। हम सड़क पर चलते ए देख रह थे,
म यह देखकर चक गया िक मॉरीशस म इिडयन ऑयल और िहदुतानपैोिलयमकपैोलपपिबकल भारतीय तरीक से कायरत ह। राते म पड़ने वालेगाँवकबारमतुलसीजीबतातीजारह थी, गाँव भी िवकिसत व वछ थे। जबिक वहाँ वछ मॉरीशस जैसा कोई नारा या लोगन िलखा आ िदखाई नह दे रहा था अथावेरणासेवछताथाईथी। लगभगपतालीसिमनटमहमइिदरागाँधी भारतीय सांकितक क, वामी िशवानंद एवेयू, फिनस, पोट लुईस, मॉरीशस पच

सहारनपुर

सहज

भाव

थापनास

1987 म क गई थी। यह भवन भारतीय

वातुकलाकाअनूठानमूनाह।मुयारपर

वगयइिदरागाँधीजीकितमाथािपतह।

कला व योग क िलय क सिय भूिमका म

ह। इस क का िवशाल पुतकालय ह िजसमभारतीयकला,संकितवइितहासक दस हजार से भी अिधक पुतक मौजूद ह।

एक हजार से भी अिधक छा क क साथ सबह। भारतीय उायोग, मॉरीशस ारा हमार ठहरने क यवथा होटल िहटन म क गई थी। यह होटल माहबग म ह। हम क से होटल क ओर चले तो हमारी बस म िहदी रिडयो बजने लगा। हमार िलये यह सुखद अहसास था, मॉरीशस म िहदी रिडयो क अनेक चैनल अपना सारण करते ह। समु क िकनार सुरय थान पर यह होटल थत

ह। लबी याा क थकान थी िकतु मन आनंिदतथा।लगभग

बजे

पूवज?

अवासी

भारतीय

परगम

होता ह लेिकन उरी मॉरीशस क इस थान

पर नम सद थी। गंगा तलाब मॉरीशसवािसय

किलयेमहवपूणतीथह।इसेडबेिसनभी

कहते ह। यह मॉरीशस क सावे िजले क

पहाड़ी े म ह। जनुित क अनुसार कहा

जाता ह िक स 1897 म दो पुजारय को वनमिदखाईिदयािकडबेिसनकझील

का जल जावी से उप आ ह तथा गंगा जी का एक भाग बन गया ह। यह बात पूर मॉरीशस म फल गई, लोग ने वहाँ तक पैदल

याा क। महािशवराि क िदन इस झील का

जल भगवा िशव को अिपत िकया गया। तब

सेयहपिवतीथकपमिसहोगयाव

आज मॉरीशस का गंगासागर कहलाता ह।

इसका संचालन व बंधन

कररहाह।ईरारासुंदरताक िजतने भी ितबब रचे गए ह वे हमार सामने िचवत घूम रह थे। राि म तो पूिणमा क धवल चाँदनी को जल क साथ तरिगत होते ए अपनी किवता म किवय ने उतारा ह, लेिकन सूय क ध िकरण सुनहरी होकर यहाँ क सागर म ान कर जब बाहर आ रही थ तो यूँ लगता था जैसे सौदय क सुरा से

म होकर देवदास अपनी पारो क कलाई

थामइनलहरपरदौड़रहाहो।हमसभीएक

साथ रटोरट म पचे। रटोरट म देखा हमार

घर म चहकने वाली गोरया, कबूतर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj55 गए, जहाँ संतु भोजनशाला म हमार िलए िवशेष प से भोजन क यवथा थी। पहले तो हम सभी ने भोजन का आनंद िलया, िफर हमारी भट पूव िनधारत कायम क अनुसार क िनदेिशका आचाया िता देवी जी से ई। िता जी योगाचाया ह व मूलप से
क ह। मुख मडल पर तेज व गहन-गभीर वैचारक आभा-मडल, िकतु
यव क धनी िता जी ने इस
व भारतीय संकित का मॉरीशस म
परचचाक।इसकक
3
हमहोटलपचे। पहली बार कहाँ आए हगे हमार
पता चला वह
घाट क नाम से िवयात, यूनेको क िव िवरासत सूची म शािमल ह। यही वह घाट ह जहाँ फटहाल और महीन क समुी याा का क सहकर सर रामगुलाम िशवसागर और ी अिन जगाथ जी क िपतामह क िपतामह यहाँ आए थे। आज गव क साथ उनक चरणिच इस अवासी घाट पर अपनी संतान क एयकोदेखरहह। 17 अगत क कायम क अनुसार सभी अितिथय का रािभोज उरी मॉरीशस थत गंगा तलाब मंिदर परसर म आयोिजत था। होटल से गंगा तलाब क दूरी करीब 60 िकलोमीटर थी। कछ आराम करने क उपरांत जब हम गंगा तलाब पचे तो साँझ ढलकर अंधेरा हो चुका था। अगत माह भारत म बरसातीहोकरठडाऔरधूपिनकलने
मॉरीशस सनातन धममंिदरसंथानविहदूमहासभाारािकया जाता ह। िपछले िदन भारत क धानमंी ी नर मोदी जब मॉरीशस याा पर गए तो अपने साथ गंगाजल लेकर गए थे। उहने गंगा तालाब म गंगाजल अिपत िकया। अब यह गंगा क पावन धारा का तीक बन गया ह। तालाब क िकनार पर भय मंिदर ह, जहाँ ितिदन गंगा आरती होती ह। समत देवीदेवताकसुंदरितमाएँयहाँथािपतह। गंगातालाबपचनेतकहकबारशभी होने लगी थी, िजसक पहले कोई संभावना नह थी। यहाँ अनेक लोग से मुलाकात ई। ी अशोक चधर जी, ी दीप गांधी जी, नाव क ी सुरश चनसुखी जी आिद थे। पंडाल म वािद भोजन क यवथा थी और उसम जो कू क सज़ी बनाई गई थी उसका तो वाद अिवमरणीय था। गंगा तालाब क दशन व भोजन क बाद हम वापस होटल आ गए। अगले िदन िविधव समेलन का उाटन होना था। बेहतर था िक सभी आराम कर व सुबह तैयार होकर आठ बजे होटलकरटोरटमनातेपरिमल। अठारहअगतकासूयजबिनकलातब तक हम लोग अपना िबतर छोड़ चुक थे। बालकनी से देखने पर पाया िक िहद महासागर का यह छोर वछ नीलांजल और उस पर उठती सफद फिनल लहर क साथ अठखेिलयाँ
और अय परिचत िचड़य क साथ कछ नए पी भी चहकते ए अपना िहसा माँगकर लुभा रह थे। आधुिनक वैभव से सप यह होटल मन मोहक था। होटल क सामने उसक मुयार क सामने से झाँकती ई पहड़ी का य इतना लुभावना और सुंदर था, िक जब मने उसका फोटो मेर मोबाइल म क़द िकया तो उसक सुंदरता और अिधक बढ़ गई। मेर एक हासएप क डीपी क प म वह य अबतकथाईह। आज 11 बजे यारहव िव िहदी समेलन का िविधव उाटन था। हम होटल म ही वेश-प व उपलध आवयक सािहय दान कर िदया गया। होटल से

बगीचे

सजयाँ

म काम

करने वाले िकसान क देखकर हम ऐसा लग

रहा था िक जैसे पटना से बेगूसराय क राते

अथवादरभंगासेपूिणयाकयएवंवहाँक

उपजाऊखेतऔरमेहनतीिकसानह।

आज मॉरीशस म िव क एक हज़ार से अिधक ितिनिध िहदी क िदशा व दशा पर चचा हतु एक हो रह थे। अनेक िवदेशी राजनाियक एवं अितिविश य वहाँ पचरहथे,िकतुमॉरीशसिबकलसहजव सरल था। कोई हड़बड़ी नह थी। रापित और धानमंी का आगमन समेलन म होना था। िफर भी न कोई बैरीकस थे, न कोई सुरा क अितर वीवीआईपी इतजाम। अथा मॉरीशस िनभय ह, शांित का ीप ह। यहाँ कोई दहशतगद नह ह। िवकास ह, भाईचाराहऔरसहकारह। आयोजन थल वहाँ क भयत वामी िववेकानंद अंतराीय सभागार म आयोिजत

था। छोटी-छोटी सुरय पहािड़य क तलहटी

म िनिमत यह सभागार िव क िवशालत

सभागार

ह।

भारत क पूव धानमंी एवं िहदीजग

क दय साट ी अटल िबहारी वाजपेयी जी

का महायाण होने से सभी शोक संत थे। इसका भाव उाटन म देखने को िमला। उाटन क अवसर पर वहाँ धानमंी ी वीण जगाथ, िशा मंी सुी लीला दुखन लमण, भारत क िवदेश मंी ीमती सुषमा वराज सिहत अनेक नेतृवकता उपथत थे। यह कहना समीचीन होगा िक ीमती सुषमा वराज व सुी लीला दुखन

लमण पूर समेलन क परखा व संचालन

नेतृवदेरहीथ।

समय पर मॉरीशस क धानमंी

भावी था, िजसम लु होते

डोडो को मोर ारा बचाने का संकप झाँक रहा था। िजसे िहदी भाषा को बचाने से जोड़ा

गया था। 10वा िव िहदी समेलन भोपाल

म सप आ था और यह यारहवा आयोजनथा।इनतीनवषकिवगतवआगत काययोजना क ियावयन पर अशोक चधर जी ने बत ही सलीक से "भोपाल से मॉरीशस" पुतक क प म जो दतावेज़ संपािदत िकया वह उपयोगी तो ह ही संहणीयभीह।

अनेकिवान ने अपनी बात रखी। लीला

जी क बाद सुषमा वराज जी ने िहदी

कोयूएनओममायतािदलाए

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj56 आयोजन थल पाई क़बे क दूरी करीब चालीस िकलोमीटर थी। जब हम बस म बैठ तो बस म माँ दुगा क आरती क वर सुनाई िदये।गजेसोलंकजीपूणमनोयोगसेसभी काख़यालरखरहथे।वंदनाजीवतुलसीजी ने हम सामाय िनदश िदए िजनका हम पालन करना था। हम पुनः मॉरीशस क सदय का दशन करते ए समेलन थल क ओर चल पड़। छोटी-छोटी पहािड़याँ और उनक बीच उपजाऊ मैदान, िजनम या तो गा लहरा रहा था या कट चुका था। लीची और कले क
लहलहा रह थे। खेत म कई जगह
भी हरया रह थ। इन खेत
म से एक ह। मॉरीशस सरकार ने िहदी सािहय क समान म आयोजन थल का नाम गोवामी तुलसीदास नगर रख िदया था। इसक िविभ सभागार का नाम भी िहदीकमनीिषयकनामपररखेगएथे। मुय सभागार म हम अपने िनधारत थान पर बैठ गए। तभी मेर पास वाली सीट परबैठीमिहलानेबड़हीिशलहजेमकहा ीमान जी आप कहाँ से पधार ह। मने उह बताया िक म भारत क एक राय मयदेश कराजधानीभोपालसेआया।िफरपरचय का िसलिसला आ। वे मॉरीशस क एक कल म िहदी िशिका ीमती वीणादेवी िशवरानी थ। वीणा जी से मुलाकात बेहद आमीयईऔरहमअबअछपरिचतिम
को
िनधारत
ी वीण जगाथ व भारत क िवदेश मंी ीमती सुषमा वराज सिहत अय अितिथ मंच पर पधार। पहले मॉरीशस का रागान व िफर भारत का रागान आ। मेर िलये यह गौरवशाली पल था जब म भारत क बाहर जन-गण-मनकशदगारहाथा। दीपवलनकपासरवतीवंदना का गायन िकया गया यह गायन इिदरा गाँधी सांकितक क मॉरीशस क कलाकार ारा िकया गया। इस तरह िहदी क गौरवशाली इितहास म यारहव िव िहदी समेलन का यहविणमपृऔरजुड़गया। इस समेलन का तीक िच भारत क राीय पी मोर तथा मॉरीशस म लु हो रह डोडो पी को साथ रखकर यारह क आकित क प म बनाया गया था। यह लोगो भारत क रिचत यादव ने तैयार िकया ह। जैसा िकिविदतह,अटलजीकअवसानकाअसर समेलन पर था, समेलन म उह भावभीनी ांजिल अिपत क गई। िव का हर वा जो समेलन म अपने उार य कर रहा था,नेउहांजिलदी। मॉरीशस क िशामंी सुी लीला दुखुन लछमन को बेहतरीन िहदी बोलते देख कर सुखद लगा। आयोजन क लोगो िनमाण को लेकर अशोक चधर जी क िफम का दशन काफ
दुखुन
जानेकयास क सबंध म जो महवपूण जानकारी दी वह खच क िनयम को लेकर थी। असल म यूएनओ म िकसी भाषा को मायता िदये जाने क िलए िनयम ह िक समथक देश को खच का बराबर भाग देना होगा जो सबसे बड़ी समया ह। उहने बताया िक भारत अकले पूरा खचा उठाने को भी तैयार ह, लेिकन िनयम से यह भी संभव नह हो पा रहा। इसिलए यह बत ज़री ह िक िमरा जो िहदीकासमानकरतेहउनकसुिवधाऔर सहायता ली जाकर िहदी को यूएनओ म मायता िदलाने का काय भारत सरकार पूर संकपकसाथपूणकर। िहदी क बेहतरी क िलए समेलन का

"भोपाल

सांकितक

"गगनांचल"

चांग जी क बात

ने बत भािवत िकया। उहने कहा िक वे

भारतवंशीभीनहहविहदीभाषीभीनहह,

लेिकन वे वातिवक प म िहदी ेमी ह। ऐसे ही वातिवक िहदी ेिमय को ोसाहन

क आवयकता ह। ोफ़सर जावेद पोलोसोव, यूँग ली आिद ने भी अपनी बात कही। जो मुयतः िहदी और िहदी क समयाकोलेकरथी। भोजन क बाद क स म हमने मृदुला िसहा जी क अयता म होने वाले स को चुना िजसम "लोकभाषा व लोक संकित का िहदी क िवकास म योगदान" िवषय था। मृदुला जी गोवा क रायपाल ह, लेिकन सरल व सहज, उहने अपने उोधन म अनेकलोकगीतकोमीठीआवाजमसुनाया।

उनक गीत से मंच और ोता सभी आनंिदत

होकर झूम रह थे। आज क कायम सप

होनेकबादहमवापस

जी, ीमती सुषमा वराज जी, जनरल वीक

िसंह जी एवं ी सतपाल िसंह जी, पूर समय

कायम म उपथत थे। मृदुला जी, कसरीनाथ जी व समाननीय अशोक चधर जी का सािनय कायम को उक बनाने ममहवपूणथा।

मने"राकआराधना"किवताकापाठ िकया, िजसक भूिमका म मने सभी को अपने-अपने रा क आराधना करने हतु

अनुरोधिकया,िजसकापरणामयहआिक आराधना िसफ भारत क न होकर वैक हो

गई,तथारचनाकोसभीकािवशेषेहा आ। अब अंितम िदवस अथा 20 अगत, समापन स क प म आयोिजत

उदयनारायण गंगू, ी हनुमान दुबे िगरधारी, ी कशन बद, ी ऊल गुली, ी गोपाल ठाकर, सुी िसलेद मचानूक, नेमाली तुकबू बाययली िफजी, ीमती सुनीता नारायणन, कजुितको मचीजदी, रनाकर नराले, ईमादे धमयश, िहदी चारणी सभा मॉरीशस, टोिकयो िविवालय जापान, आयसभा मॉरीशस, डॉ.जोरम अमततारा, ी सून जोशी, सुरश ऋतुपण, इनाथ चौधरी, ेमशंकर िपाठी, चमनलाल, रीता शुा, ीधर परारकर,

डॉ.अा

िहदी क िलये वैक

यास का सुखद भिवय सजँोए हम पंडाल

सेबाहरआरहथे।

हमारी चेई क िलए उड़ान शाम क

समयथीइसबीचहमारपासकरीबपाँच-छः

घंट का व था। अतः हमने पूव तट पर

मणकािवचारबनाया।साथहीमॉरीशसक बाज़ार और कछ गाँव भी देखना थे, सो िनकलगएपूवतटपर।यहाँएकगाँवतोहम पूरी तरह भारतीय क़बे क तरह िमला, िजसका साािहक हाट भरा आ था। हमने पैदल घूमकर

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj57 िवषय "भारतीय लोक संकित से िहदी का िवकास" महवपूण िवषय था। यह सौ फसदी सही ह िक लोक संकित और लोकभाषा िहदी क ाण ह। यिद इह िहदी से पृथक करने का यास िकया गया, तो िहदी को अपूणय ित होगी तथा हमारी यह यारीभाषाकमज़ोरहोजाएगी।धानमंीी वीणजगाथकाउोधनबतहीसाथक एवं सारगिभत था। धानमंी जी क उोधन
पाअशोकचधरजीारासपािदत
से मॉरीशस" पुतक व भारतीय
संबंध परषद क पुतक
कािवमोचनआ। मुझे चीन क ी िझयाँग
होटलचलेगए। अगले िदन अथा 19 अगत को हमने सून जोशी जी क साथ स चुना। िजसका िवषय "िफम क मायम से भारतीय संकित का संरण" था। यह काफ गरमागरम स था, ितभागी िफम म िहदी और संकित क दुदशा पर अिधक िचंितत थे। सून जी को उर देने म किठनाई का सामना करना पड़ रहा था, लेिकन वे धैयपूवक सभी ोताकशंकाकासमाधानकररहथे। शाम को हमारा किवसमेलन था। हम दस किव भारतीय सांकितक संबधं परष क ओर से कायपाठ क िलए आमंित थे, साथ म मॉरीशस क थानीय किवगण और िव क अय किवय को भी कायपाठ का अवसर िदया गया। सुी लीला दुखुन लमण
आ। समापन क िलए मॉरीशस क रापित ी परमािशवमिपैवैयापुरीवपूवरापिती अिन जगाथ पधार। यहाँ यूएनओ का िहदी बुलेिटन सारत िकया गया। िहदी क िलए जीवनभर काम करने वाले िहदी सेवी यय व संथा को समािनत िकया गया। िजनम मरणोपरांत सवी बृजलाल धनपत, अिभमयु अनत मॉरीशस से, सवी ोफ़सर जावेद पोलेसोव, डॉ.रामसाद परसराम, डॉ.ईनेस फोरवेल,
चेनोकोवा,ोफसरगेिलनसोकोलोवाज़ी,ी
ी एन तमसब टोबर, सुभाष कयप,सीभाकरराव,कसीअजयकमार, अजय कमार पटनायक, दिण भारत िहदी चारणी सभा व मॉरीशस क िहदी िशक को समािनत िकया गया। समापन क बाद एक नया अनुभव व
उसे िनहारा। समय क मयादा थी सो एयरपोट पचना था। हम वापस हवाई अ पच कर अपनी लाइन म लग गए व ातः चैई म भारत क धरती पर वापस आ गए। अपनी आँख म नीले आकाश क साथ नीलांजलमॉरीशसिलए।िहदीकिलएिव क मानव सयता को एकजुट देखा था मने। यह भी तो िहदी और सरवती का आशीवाद हमुझपर। हाँ एक बार पुनः यहाँ आना होगा। अब कवल नीलांजल मॉरीशस क िलए, वहाँ क िहदी समाज क बीच िफर से िहदी म बात करने। उसे जी भरकर िनहारने क िलए, पूरी तरह मन भरकर मॉरीशस को देखने। लेिकन देखोकब..........। 000

दवाइय

नाम बानी याद नह। िकसी िवशेष क तरह

िटपणीनहकरसकतेतोआपनाहकअनपढ़-गवँारह।अपनीया अपने परवार क सदय क बीमारी क जानकारी आपको डॉटर से अिधक होनी चािहए। बीमारीकापूरािनबंधआपकोबानीरटाहोनाचािहए।बीमारीकाकारण,िनवारण,परभाषा, बीमारी क कौन -सी टज, कौन -सी दवाई, दवाई क परणाम आिद -आिद। अथा इस पर पीऍच.डीकरनािनतांतअिनवाय

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj58 डॉ. दलजीत कौर 2571/40 सी, चंडीगढ़ 160036 मोबाइल- 9463743144 ईमेल-drdaljitkaurthind@icloud.com यंय आपको चिलत बीमारी क
यिदआपिकसीबीमारीपर
ह।इसकिलएआपकोिकताबकआवयकतानहह।बस गूगलदेवताकाआशीवादचािहए। हमारएकिमकोिभंडीबतपसंदह।उहबसबाज़ारमिभंडीिदखनीचािहए।कसीभी, िकसी भी मौसम म। पुराने समय म हम मौसम क िहसाब से ही सज़याँ खाते थे। परतु आज िबन मौसम भी महगी सज़ी खाना अमीरी क िनशानी ह। सद क मौसम म महाशय ने िभंडी खाई। जाने उसपर कौन -सी दवाई लगाई गई थी िक िम का पेट दद होने लगा। पेट दद ऐसा शुआिककनेकानामहीनहलेरहाथा।दो-तीनडॉटरकोिदखाया।लगभगदोमहीने हो गए। अब द डॉटरी करने का वत आ गया। गूगल पर रसच शु ई और बढ़ते -बढ़ते पेट क कसर तक पच गई। उह यक़न हो गया िक अंत समय िनकट ह। कछ महीने बाद उनकबेटकशादीथी।उहलगनेलगावेशादीनहदेखपाएँगे।उहनेअपनेिमसेकहायिदमनरतोशादीउसीतारीख़कोहोनीचािहए। उनक नद ख़म हो गई। भूख-यास िमट गई और वे िडेशन क िशकार हो गए। बत समझा-बुझा कर मानिसक िचिकसक क पास ले गए और बत यन क बाद उहने सच बताया। डॉटर ने सब से पहले उह गूगल बाबा से नाता तोड़ने को कहा। इस बात को दसबारहसालहोचुकऔरवेपूणत:वथह। कोरोना काल म दूसरी लहर क समय जब चार ओर मौत का तांडव हो रहा था। एक गूगल बाबा क जय डॉ. दलजीत कौर

पैसा

कछ

मेहमान।िमलनेआजाओ।"

उसने मुझे बताया। मने कहा -"जदी

जाओ।कछभीज़रतहोतोबताना।"

बेटनेजाकरमैसेजिकया-"सबठीकह। घबरानेकज़रतनह।"

शाम को बेट ने आकर बताया -"उसे दो िदन से उटयाँ हो रही थ। उसक ममीपापा कछ िदन क िलए शादी म गए ह। िकसी कोबतायानह।गूगलपरदेखकरसोचिलया िककसरसेऐसाहोताह।महाशयकातोरोरोकरबुराहाल।घरमउसकाकोईऔरदोत भी आया आ था। उसने बताया -दो िदन पहले दोन ने पहली बार शराब पी। इसे कहा भी िक कम

वैािनक

म उनक पनी ने खाना लगा िदया।

खाने क मेज़ सजी ई थी। खाना देखने म

वािद लग रहा था। पर इतना भाषण सुन

कर हम िकस मुँह से खाना खाएँ। मेर व मेरी

िमकपितनेखानाखानेसेइकारकरिदया।

उहने साफ़ झूठ बोल िदया -हम रात को

खानानहखाते। अबमेरीिमसेनहरहागया।वहअपने

पित से बोली -थोड़ी रोटी खा लो। नह तो घर

जा कर कहोगे। भूख लगी ह। उनक देखा

देखी मेर पित ने भी एक रोटी खाई। मेज़बान

िफर मेरी िम से बोले -आप बस एक महीना

मेर कह अनुसार डाइट फ़ॉलो कर। आपक

डायिबटीज़ िबलकल ठीक हो जाएगी। मेरी

गारटी। वे िकसी पेशिलट क तरह बोल रह

कॉपी नह भेज, उसे कािशत करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार िलएसंभवनहहोगा।रचनाकसाथपूरानाम व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़री ह। आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा संि सा परचय भी भेज। पुतक समीा का वागत ह, समीाएँ अिधक लबी नह ह, सारगिभत ह। समीा क साथ पुतक क कवर का िच, लेखक का िच तथा काशन संबंधी आवयक जानकारयाँ भी अवय भेज। एक अंक म आपकिकसीभीिवधाकरचना(समीाक अलावा)यिदकािशतहोचुकहतोअगली रचनाकिलएतीनअंककतीाकर।एक

बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज, एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न

रचनाएँ

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj59 परवारमसभीकोकोरोनाहोगया।डॉटरसे दवाई ली गई और नबे साल क बीमार माता जी से लेकर घर क नौकरानी तक कछ िदन म ठीक हो गए।परतु घर क मािलक जो वयं कोबतसमझदारमानतेथे।उहनेगूगलपर ानवृिकरतेएकोईदवानहली।उहने छानबीन कर पता लगाया िक िकस दवा का या नुक़सान ह और दवा लेने से इकार कर िदया। उहने सारी जानकारी जुटा ली। यिद उह ICU क ज़रत भी पड़ती ह तो वे घर परहीसबइतज़ामकरवालगे।यिकउनक पास पैस क कमी नह ह। परतु उनका अंत समय बत ककारी रहा। वे बच नह पाए।
वगूगलकाानधराकाधरारहगया। मेर बेट क दोत का मैसेज आया -"म
िदनका
पी। कहने लगा -ममी-पापा घर परनहह।इायकरतेह।ले-लेमज़ा।" बेटाउसेहमारफ़िमलीडॉटरकपासले गया।उहसारीबातबताई।वेहसनेलगेऔर कहा -इसे नबू पानी िपलाओ। इसका कसर ठीकहोजाएगा। िपछले साह मुझे व मेरी िम को िकसी ने खाने पर सपरवार बुलाया। पाट शु ई। उहनेहमअंडविचकनसविकए।मेरीिम ने कहा -"म शाकाहारी । मुझे डायबटीज़ (मधुमेह)भीह।" उनका इतना कहना था िक मेज़बान ने उहपूरदोघंटकाभाषणडाईट,डायिबटीज़, लाइफ़ टाइल पर िदया। उह बार -बार, बत बार समझाया। गूगल पर उह डॉटर,
क जानकारी खोलकर िदखाई। उह िलंक िदए। उहने वयं यह से सारी जानकारी ली थी। उहने बताया -आपको कवल और कवल अड व िचकन खाना चािहए।ोटीन!बसोटीन। चायिबलकलबंद। सभीसफ़दचीज़बंद। सज़ीखाइए। सुबहदोअड।शामकोदोअड। मुीभरकरबादामखाएँ। पानीबतपीनाह।यासलगेयानलगे। रोटी िबलकल नह खानी। चपाती नह। ेड नह। िबकट नह। रोटी बत नुक़सान करतीह। इतने
थे-मीठािबलकलनहखाना। आमभीनह। मीठातोसबकिलएज़हरह। इतने म उनक ीमती जी वीट िडश म गुलाब जामुन लेकर आ ग। गुलाब जामुन देखकर जैसे हम साँप सूँघ गया। मुझे लगा गुलाबजामुनबोलरहह।पूछरहहज़हरखाओगेया? उनम से एक गुलाब जामुन नार लगाने लगा-गूगलबाबाकजय! गूगलबाबाकजय! हम िबना गुलाब जामुन खाए जय -जय करतेघरलौटआए। 000 लेखक से अनुरोध 'िवभोम-वर' म सभी लेखक का वागत ह। अपनी मौिलक, अकािशत रचनाएँ ही भेज। पिका म राजनैितक तथा िववादापद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह क जाएँगी। रचना को वीकार या अवीकार करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का होगा।कािशतरचनापरकोईपारिमक नह िदया जाएगा। बत अिधक लबे प तथा लबे आलेख न भेज। अपनी सामी यूिनकोड अथवा चाणय फॉट म वडपेड क टट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना क साट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक ारा हाड
भेज।
भेजनेसेपूवएकबारपिकाम कािशत हो रही रचना को अवय देख। रचनाभेजनेकबादवीकितहतुतीाकर, बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पिका ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो सकताह। धयवाद संपादक vibhom.swar@gmail.com

जूसिपयोऔरसेहतकोबुलंदरखो।िफरभीयिदकोईमसलाहतोबतलाओ।हरसमयाका समाधान ह।'' यारलाल जी ने लंबी साँस लेकर बतलाना शु िकया- ''मेरी पनी का नाम माधुरीह।''

''इसमकौनसीनईबातह।हरयकपनीकाएकनामहोताह।यहअलगबातहिक कछलोगयारदिशतकरनेकिलएपनीकोअलग-अलगनामसेभीपुकारतेह।''

''तुमतोमज़ाकहीशुकरदेतेहो।पहलेपूरीबाततोसुनिलयाकरो।असलमकलरात

पाट

लौटने

बाद माधुरी

िदखने लगी ह। घर म उदासी पसरी ई ह। वह जब बोलतीहतोलगताहिकघरबोलरहाह।उनकउदासीमबदात

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj60 ललन चतुवदी मोबाइल- 9431582801 ईमेल- alancsb@gmail.com यंय पनी और धमपनी ललन चतुवदी सुबहकसैरकअनेकफायदेआपसुनचुकह।इसेमिचंतन-कालमानता।ऐसेहीएक सुबह यारलाल जी से मुलाक़ात हो गई। उनक चेहर पर मेले क उसरने वाली उदासी पसरी ई थी।मनेउनसेउलाहनाभरवरमकहा-''यायार,सुबह-सुबहयमुँहलटकायेएहो।'' ''या क। आँख म रात कटी ह। एक धमसंकट म फस गया । मसला गंभीर ह। चिूँक समया पनी से संबंिधत ह इसिलए इसे म गु-गंभीर मानता । घर म पनी क पुकार और ऑिफ़समसाहबकघंटीपरिकसककानखड़नहहोते?शायदऐसेवीर-बहादुरकसंया धरतीपरनगयहीहजोपनीऔरसाहबकबातपरतकालकाननहदेते।'' मने उनक अनुभव पर मुहर लगाते ए कहा-''या पते क बात कहते हो! आठ घंट साहब और बारह घंट पनी को देने क बाद जो समय बचे उसे म अमृत काल मानता । अब ात क वेला को पनी और ऑिफ़स क गितिविधय क िचंतन पर यथ मत करो। चलो,मौसबी का
से
गुम-सुम
नहकरसकता।'' ''आिख़रआयाउह?मभीतोजानूँ।'' ''बात िबलकल मामूली सी ह। पाट म लोग अपनी-अपनी पनी का एक-दूसर से परचय करारहथे।लोगअपनीपनीकोीमती,धमपनी,अधािगनी,वािमनीआिदिविभकणिय नाम से परचय करा रह थे। कछ लोग वाइफ और वीटहाट वाले भी थे। इसम िकसी को या आपि?आप अपनी पनी को जो कह। दाल म िजतना घी डाल, वाद उसी क अनुसार िमलेगा। म तो सीधा-सादा आदमी ठहरा। एक सन से माधुरी का मने भी परचय कराते ए कहा-येमाधुरीजीह,मेरीपनी।''उनकबतठडीितियारही। ''ख़रै खाने-पीनेकबादहमदोनघरलौटआए।रातासाटमहीकटा।संवादहीनताक थितभयावहहोतीह।'' ''तोतुहाराचेहराइसिलएउतराआह।'' ''नहभाई!बातदरअसलऐसीहिकमाधुरीमुझसेसतनाराज़ह।कहतीहिकसारायार घरमहीटपकताह।यहाँिदन-राततरह-तरहकउपमाऔरिवशेषणसेनवाज़तेरहतेहो। महिफलमतुहारकठसूखजातेह।यिदयारसेएकबारधमपनीकहदेतेतोतुहारीइज़त मबालगजाता।'' ''अबतुहबताओ,मउहयाऔरकसेसमझाऊ?वाणीऔरअथतथाजलऔरलहर कबीचतुलसीदासजीभीअंतरबतलानेमअसमथहोगएथे।मकसेबतलाऊिकपनीऔर धमपनीदोनएकहीह।तुमतोिहदीकोफ़सरहो।बतलाओ।''

कछज़रीिटसदेरहा।''

''बतलाओ भी भाई ! माधुरी क चाय का

भी टाइम हो गया ह। िदन दो पहर चढ़ चुका ह। सूरज क बढ़ते ताप क साथ मेरी भी िचंताकााफबढ़नेलगाह।''

''देखो,पहली माक क बात यह ह िक ी से बात करते समय अधैय नह होना चािहए।जाकरेमसेभाभीकोसमझाओिक पनी संा ह, िवशेषण ह, िया िवशेषण ह, अयय ह। इसीिलए पनी क पहले कछ भी जोड़ना न कवल याकरिणक प से बक नैितक प से भी ग़लत ह। अब तुह बतलाओ पनी से पहले कोई ह? पनी वयं म पूण ह। उसको िकसी िवशेषण से िवभूिषत

करनेकज़रतहीनहह।यहदयकबात

ह। िवजन पनी क संदभ

जले ए िनशान देखकर ही मुझे पता चल गया था। ेम क नाम पर भी माँ को घुटते ही देखा, हाँ उस िदन वह मुकरा रही थ, जब उहने

करलीऔरमुझेघुटनेकिलएउसजलेएटोटकपासछोड़गई।

लेखनीने

बार मुझसे िज़ंदगी क इसी िहसे को िलखने क िलए कहा पर मने मन म ठान ली थी िक

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj61 मने माथा पकड़ िलया। म कसे क िक तुहारी पनी क िलए म ोफ़सर नह और अपनी पनी क िलए तो माटर भी नह। पनी क सामने पित को हमेशा अनुशािसत िवाथ क भूिमका म रहना चािहए। मने मन ही मन इन बात का गंभीरतापूवक मनन िकया। मुझे थोड़ी देर तक मौन देखकर यारलाल जी ने कहा''पनी का नाम आते ही तुहारी भी बोलतीबंदहोगईोफ़सर।'' ''पनी अतय होती ह, मन-बुि से पर यार! तुम घर जाओ ेम से भाभी क साथ चाय पर चचा क दौरान मन क बात बतलाओ। गृहथी म अछ िदन बनाए रखने किलएमतुह
म िविध,िवान औरशाकाकभीहवालानहदेते।'' अब यारलाल जी मेरी बात से पूण प से आत िदखे रह थे। उनक चेहर पर चमक और संतोष का भाव उभरने लगा था। वह अचानक उठ कर चल पड़। मुझे कोई ख़ास आय नह आ। ान ा हो जाने परिशयगुकोछोड़देताह।मेरीिचंताकछ अलग थी। समाधान म मने भी तेज़ कदम से घर का ख़ िकया। अनावयक िवलंब से मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। िनत प से चंचला आज चाय क बदले कारण बतलाओ नोिटससवकरनेकिलएतैयारबैठीहोगी। 000 राख से पहले योसना िसंह लघुकथा "िसगरट क आदत आपको कब से लगी?" मने अपना लैपटॉप खोलतेएइटरयूकनामपरपहलानिकया।वहयंगामकप ममुकरातेएबोली-"आपकचैनलनेमेरीरचनापरकामकरने किलएआपकोभेजाहयामेरीिसगरटपर?" "ऐसा नह ह मैडम,आपक ऐ भरी ई देखी तो पूछ िलया। अगलानआपकरचनासेहीह।" टाइमरऑनकरकिसगरटसुलगातेएउहनेनपूछनेकआादेदी।मनेिटक-िटक करतीउसघड़ीपरएकनज़रडालीऔरनिकया-"आपेमिलखतीहिफरभीयावजह हिकआपअपनीहरनाियकाकोमारदेतीह?" "जबमेरीनाियकामरतीहतबमिज़ंदाहोती।" "ओह!आपनेेमभरीइतनीकहािनयाँिलखीह।िनतहीआपनेयारिकयाहोगा।िफर आपकिज़ंदगीमइतनाअकलापनयह?" एकलंबाकशलेतेएउहनेकहा-"सचसुनसकोगे?"हाँमिसरिहलातेएमनेकहा"ज़रसुननाचागा।""सचयहहिकतुमबसमेरीिज़ंदगीमझाँकनाचाहतेहो;यिकअगर तुम मसालेदार नह िलखोगे तो तुहारी टी.आर.पी. िगर जाएगी और तुहारा यह ोाम िकसी कचरकिडबेमफकिदयाजाएगा।जाओमेरावमतबबादकरोमतलोमेराइटरयू।जो तुमचाहतेहोवहमजीतेजीबतानहसकतीऔरकछपूछनेसेतुहलाभनहह।" राख हो चुक िसगरट को म रखते ए उहने कहना शु िकया- "बाबू जी को िसगरट िकतनी पसंद थी यह बात माँ क बदन पर गोल
आमहया
िजनगिलयसे गुज़रकरमयहाँतकआई,उनगिलयमभीयहीधुआँऔरऐसाहीेमदेखा।मेरी
कई
िज़ंदारहतेनतोयेसबिलखूँगीनहीिकसीसेकगी।तभीमनेअपनेजीवनमसबकछपलट िदया। िसगरट से दोती कर ली और यार से नफ़रत। नाियका मरने लगी और म धुआँ उड़ाने लगी।" चुपचाप उह शूट करते ए म एक और न करने ही वाला था िक तभी टाइमर बज गया। व क िलए िदए ए वादे क अनुसार मने अपना पैकअप करते ए उह धयवाद िदया। परवहवहाँसेजाचुकथ।तभीकमरमउनकासहायकआयाऔरबोला“साहब, दीदी जी ने बताया था िक इटरयू क िलए आप आओगे पर वह रात ही वग िसधार ग, जाते व बोल िक जब टाइमर बजे तब म सबको उनक जाने क ख़बर दूँ। बस इसीआवाज़कोसुनकरमफ़ोनकरनेकिलएउठातोआपकोटडीमपाया।" हतभमबोला-"अभीतोउहनेमुझसेबातकऔरतुमकहतेहो!"वहमुझेउनककमर मलेगया,ऐमआधीजलीिसगरटवैसेरखीथीऔरवहसंतुभरीिनामलीनथ। 000 योा िसंह, अबरोिसआ, बी-1701, ओमे रिसडसी ट, सेटर-7, गोमती नगर एटशन, लखनऊ, उ 226010 मोबाइल- ९८३८६००४६ ईमेल- singhjyotsana1968@gmail.com

वसंत सकरगाए क किवताएँ

िपता सा सुंदर

वह अपने िपता से कह यादा सुंदर था

चाकलेटी िफ़मी अिभनेता सा नवनीत सा

चेहरा

क मािनंद मुलायम हाथ चाँदी जैसे

उजले पाँव

सेबफल बोल द तो कोई हज़ नह ऐसे

कपोल

घर से कार और कार से दतर तक वातानुकिलत

मगर एक फाँस थी जो उसे चुभती थी

हरदम

िक िपता से उसक नाक-नश यूँ तो िमलते

ह बत कछ

और क़द भी िपता से ऊचा

लेिक़न अपने िपता सा

वह हो न सका सुंदर

समझाया

ने उसे िकतनी ही बार

िक बाप से बढ़कर होता ह बेटा

िक वह उसक िपता से सुंदर ह कह यादा लेिकन वह बार-बार उसाँस भरता और

कहता पपीते का बीज पपीते का बीज होता ह और काली िमच का दाना काली िमच का 000

ऐसी-वैसी

जैसे; लू से हलकान कान पर सूँड का मफलर

लपेट

ठड से काँपता

ही जुमले

कह क ट कह का रोड़ा

मा करना

पूवज-पुरख-वतमािनय मुझको मा

करना

कोई चमकारी किवता म िलख नह

सकता कभी! 000 यह मेर नहाने समय ह

रोज़-रोज़ नहाते हो और थोड़ी बारश ई

नह िक सर छपाने

मेर पास चले आते हो

मुझसे दूर चले जाओ कह

म िफर कहता

ढढ़ लो कोई बस-टॉप

तलाश लो

आमहया क बाद

िकसी छोट यापारी क उखड़ शटरवाली

कोई दूकान

जा कर देखो तो

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj62
मसलन, पैदल चलते िपता को करया िदया था आग़ उगलते सूरज ने पर सूरज को उहने कभी उलाहना नह िदया उट सर झुकाकर नमकार करते रह जीवन भर सिदय म बिनयान, बुशट और फटी वेटर का पीठ का िहसा कर लेते थे छाती पर और बड़ी गमजोशी से कहते ठड का वार कभी नह चलता ढक छाती पर गोदड़ी यादा गम होती ह तीन-तीन रजाइय क बिनबत पुराने छाते क सूराख़ से सलग आती बारश क धार िकतु तरबतर िपता इस बात पर खुश रह सदा िक कछ न होने से बेहतर ह, कछ होना िसटी बस क पायदान पर पाँव रखते-रखते हर बार द को रोक लेते और हाथ म मैथी या पालक क गी िलए चपल फटकारते िपता घर लौट आते मुकराते ए पर उसे बार-बार खोट नज़र आती अपनी सुंदरता म भाई-बहन, दोत
समझाया
लेिशयर पर बैठा हाथी पी रहा ह कोडिक जूते का सूराख़ एक अँधेरी सुरग िजसम गुज़रती ह साँस क रल समय क दीवार क खूटी,खूँटी पर टाँगता बदबूदार संवेदना क उतरने ऊट बैठा ठठ पर िजसक कबड़ पर टगा ह अयमनक एक बादल अमनो आकाश क देह पर चाँद एक फोड़ा ह बरसात िजसका फटा मवाद धरती क लोह म लापता ह ारहीन घर क चािबयाँ अयक क वािदय म िवचरते ह धातु क साँप इधनुष क गुलेल म फसाकर जब आकाश धरती क तशरीफ़ पर मारता ह ओले आकाश क ेम म ठडी आह भरती ह धरती िसहरती ह मेरी किवता क गमले म उगते ह ऐसे गुठलीहीन फल क िकतने
मेर
ऐसी
सही सर छपाने को तुह िमल सकता ह िकसी क सपन का उजड़ा आ मकान पर तुम चले जाओ मेर साए से दूर िक मेर तन-बदन पर िलथड़ी ई ह धूलमाटी पिय का शुक मल-मूत कछ उजार घसले रखे ए ह मेरी डगान पर िजनम जाते-जाते अपने पंख छोड़ गए ह पाँखी िविश किव

बारश

पड़ा और मुड़ गई दाँए पाँव क

उह शायद नह पता िक याही

िसफ़ समय क इबारत िलखने क काम

आती ह

काग़ज़ पर िलखी जाए

अथवा दीवार पर

फक जाए िकसी क चेहर पर

िक िछड़क दी जाए िकसी क उजली

कमीज़ पर

यािक उड़ल दी जाए ज़मीन पर

याही गढ़ ही लेती ह अपना मुहावरा अपनी

भाषा

भाषा को दरकार होती ह

याही क

लेिकन याही

कभी मोहताज नह होती िकसी भाषा क

उह शायद नह पता िक एक किव

नमक क खोज म िनकला था

और रात ने उसे िगराया

याही क ताल म

और उह तो शायद यह भी पता नह

िक एक अय

दोत

राता

तलाशता

ऐड़ी

ऐसे म बड़ा मुक़ल होगा कार का

एसीलेटर दबा पाना

तुझम सबसे बड़ी ख़ामी यह ह िक तू घुटन

भर

रत क मुय-माग पर चलता ह और

जाम म फस जाता ह

तुझे िफर भी यक़न न हो तो,आज़मा कर

देख लेना कभी

पलटकर तुझसे

राते

बार

कोई नह पूछगा

अब कसी ह तेरी पनी क तबीअत

माँ ने आँख खोली िक नह

िपता को लगा कछ आराम

अब कसी ह तुहार पाँव क मोच

म दोत को उसका चमा लौटाता

और कहता

िनकट और दूर दोष से बुरी तरह त

ह मेरी आँख

तुहार चमे का नबर

कई िफट नह बैठ रहा ह

मेरी आँख पर 000

वसंत सकरगाए

ए/5 कमला नगर

कोटरा सुतानाबाद

भोपाल-462003

मोबाइल- 99774 49467

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj63 इनक दाग़-छबे उभर आएँगे तुहार उजले व पर म िसफ़ बारश म नहाता और यह मेर नहाने-धोने का समय ह
म मुझसे एक पेड़ ऐसा कहता ह 000 याही
किव बत कछ कहना चाहता ह लेिकन समय और याही नह ह उसक प म बावजूद इसक वह बेइितहा यार करता ह समय और याही से 000 हीरा-जीरा किवता छोटी हो और बात बड़ी तो किवता क जात बन जाती ह पर बन नह पाती किवता क जात किवता बड़ी हो और छोटी सी भी न हो बात गिमय म असर मेरी नकबाल फट जाती थी और थोड़ा सा जीरा पीसकर मेर मुँह म डालते ए कहती थी आजी; गम जाए जीर से पर सद न जाए हीर से किवता म म हीर क चध नह वाद क मौज़
... 000 बीच का
बीच क
म कई बार समझाता ह मुझको असर कॉफ हाउस ले जाता ह और पूर इमीनान से समझाता ह जब वह समझा रहा होता ह तब असर कॉफ क याले से उठती भाप उसक चमे पर जम जाती ह िजसे पेपर-नेपिकन से साफ़ करते ए वह कहता ह सबसे मुफ़द होती ह भाप चमे क दाग़-धबे पछने क िलए साफ़ िकया आ चमा मेरी ओर बढ़ाता ह और कहता ह इसे लगाकर देखो थोड़ी देर िबकल साफ़ नज़र आएगा बीच का राता तुह िकतने ही संवेदनशील बहाने और छपने को आढ ह बीच क इस राते पर; िक रात से बत ख़राब ह पनी क तबीअत िक बुखार से तपती माँ ने आँख नह खोली ह तीन िदन से िक अभी-अभी दयाघात आ ह िपता को और बत ज़री ह तकाल मेरा गाँव िनकलना िक घर से िनकल ही रहा था िक सीिढ़याँ उतरते िफसल

'मीनू' मीना िसहा क किवताएँ

िवधवा

लाचार, मजबूर, िनरीह, कातर, िववश बात-बात म आँसू पछती, बेबस दया क आतुर, सभी का मुँह जोहती

अपन क बेरहम बेख़ी झेलती दीन-हीन, ीहीन, मुझाया चेहरा

माँगिलक काय से अछत-दूर मनिसयत क काया-छाया सुबह-सवेर सफद कफ़न ओढ़ नारी-सुलभ शौक-गंार से वंिचता घर-बाहर क उपेिता, अरमान क िचता

या तुमने िकसी िवधुर को देखा ह िलबास म फ़क करते ए ेत-धवल धारण करते ए घर क यवथा गड़बड़ा गई ठीक ह, दूसरी आ जाएगी दंतिवहीन को िमल जाती नवयौवनाएँ

पुनः वैधय ढोने क िलए

यवथा का यह र चेहरा

युग से िवधवा को हद म रखने क

कोिशश

पायल, कगन-टीका, िबछए उतारते ए

नरभिता क उपािध

सौभायिवहीना दोिषता, पीिड़ता

घर

सूनी

हसने-बोलने

आँसु को अंदर घुटकती ग

समझती सार कच

नासमझ बन सहती रह

हाँ, हमार समाज क एक

सूरत, िवधवा औरत ! 000

छल

देखो..."छल" चली जा रही ह

सहमी, िसमटी, िसकड़ती, सकचाई

नज़र झुकाए

दाएँ-बाएँ नह देखती

नाक क सीध म चलती

तेज़ कदम से

अपने ही िजगर पर पाँव रख रही हो जैसे

आना-जाना पड़ता ह उसे नौकरी पर

सफद कौव-िग क चच से बचते ए

"छल" जा रही ह

छल यानी छोड़ी ई औरत!

चेहर पर अपमान क काली याही

लािन-ोभ से िववण िहया

घर म रोिटयाँ सकती

गाय-गो करती

बतन, गंदा घर, बाटीभर कपड़, बची-खुची रोिटयाँ

तीारत रहती ह

कोई तो ह घर म तीारत

जो देती ह गित उसक पाँव को

यिद कभी नज़र उठाकर

िकसी क आँख म झाँक कर

बात कर वह तो सफद कौवे-िग

िफर उसे एक नया नाम दगे

तीसर नाम से "छल" भयभीत ह बत ! 000

'मीनू' मीना िसहा

'मीनूछाया', कसुम िवहार रोड नं 4ए, मोराबादी, राँची, झारखंड- 834088 मोबाइल- 9835551769 ईमेल- meenasinha35@gmail.com

लेखक से अनुरोध सभी समाननीय लेखक से संपादक मंडल का िवन अनुरोध ह िक पिका म काशन हतु कवल अपनी मौिलक एवं अकािशत रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक,

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj64
क चारदीवारी म क़द
क खोट क वजह वैधय
माँग, शेष िज़ंदगी का उपहार
पर टढ़ी नज़र ितपल असमानजनक यवहार मौक क ताक म भेिड़ए तैयार िवूप चेहरा झेलती इह िवधवा से बस कई गृहथी अवांिछता ने पाले कई बे यिक कोई अपना नह था आसर क ओट म शोिषत
िदन-दुिनया से बेख़बर रहती अपनी छोटी-सी दुिनया म रमण करती उसे या पता "शिनचरा" का फरब ऑिफ़स म याय-ड बना 'लंच' म साथ बैठ खाना- पीना आ फटफिटया पर घुमाया कछ अपन ने अवय आगाह िकया पर ेम म अंधी-बहरी थी बाबुल का घर छोड़ भागी लेिकन.. वह न नौका था न ही नािवक कौमाय का पंख कतर कर छोड़ िदया िशला क गोद म एक फल देकर अब गदन झुकाए पाषाण अिहया को इतजार नह िकसी राम का.... दुधमुँही िबिटया क िलए जीती नौकरी से घर पचने क जदी होती जहाँ रात क जूठ
हासएप आिद पर कािशत हो चुक ह, उह पिका म काशन हतु नह भेज। इस कार क रचना को हम कािशत नह करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ रचनाकारअपनीपूवमअयिकसीपिकाम कािशत रचनाएँ भी िवभोम-वर म काशन क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न भेज।अपनीमौिलकतथाअकािशतरचनाएँ ही पिका म काशन क िलए भेज। आपका सहयोग हम पिका को और बेहतर बनाने म मददकरगा,धयवाद। -सादर संपादक मंडल

रखा भािटया क किवताएँ

उदास नदी

बेचैन मन आज यूँ ही नह मचल रहा

पवत क आग़ोश से िनकलती नदी

उदास पूछ रही या म सोच बदलूँ

आषाढ़ क बादल जब बरसे थे झूमकर

गीली िमी पर पैर रख पहली बार

बही थी यौवना धरती पर बल खाकर

बहती रही उमु िनमल उसक धार उमड़-घुमड़ मेघ क रस धार साथ बदला मौसम, धरती क छटा िनराली

पेड़-पौधे िखल उठ िमली अमृत धार जीवन आ जंगल-मंगल चार िदशा मीठी नदी समा जाती खार सागर म

उजली धूप-सी पनपी सयता वहाँ

थी िना नदी क परम अतुयनीय

िवकास क मची होड़ म छलती

िगरिगट-सा

मेघ

पेड़

चेहर

जाने कौन-से चेहर परछाइय क श म

उदासी बन उतर आए ह पानी क सतह पर

कह दूर अतीत म भटक रही थी आज यूँही

बहती याद क नदी िकनार वतमान से दूर

आज याद से िनकल नज़र आ रही ह मुझे कई परछाइयाँ जानी-पहचानी मूक घूर रही

देख रही अपना चेहरा पानी म अजनबी अजनबी मेरा चेहरा पहचाना नह जा रहा

कछ अहड़, बेपरवाह, हसीन यौवना

मुकराती ई एक परछा, दूसरी, तीसरी

एक ने एक िततली बंद कर दी बोतल म एक ने मोर पंख िकताब म िछपा िलया एक परछा गंार करती इतराती िफरती

एक परछा भाग रही ह कोई पुकारता ह

िबो, बेटा, गुिड़या, रानी, लाडो, परी

यह परछा सुना-अनसुना कर भाग रही

सुनो िये, ब, भाभी, दीदी, मैडम, माँ

यह परछा अब भी भाग रही ह

जाते

महल िज़ंदगी क, जीवन और मृयु

दो िकनार ह बीच कम क याा

यही तो ह िज़ंदगी, िनिहत उमीद पर कायम ह हौसले िज़ंदगी क अपार पार लगती कम क गित ढ़ म से ेरणा भी ह, ेरणादायक भी ह, वन भी ह, म भी ह, योय भी, दुलभ भी, इसक मता अपार ह एहसास और अनुभूितय का अबार िज़ंदगी, ेम का अमृतदान िज़ंदगी पॉपकॉन क तरह पकाओ तो कभी पकती, कभी न पकती िज़ंदगी, सच सरल भी,किठन भी, सम और िवषम िज़ंदगी, अनुभव का खा-मीठा आचार िज़ंदगी से सभी क उमीद होती ह

सभी को अपने िहसे का आसमान

चािहए, ऊचाइय पर उठ गए बत

लेिकन पैर ज़मीन से छट गए

िज़ंदगी

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj65
रही
रग बदला दुिनयावाल ने
का दम घुटने लगा, मौसम चकराया
ने माँगी रहम क दुआ दुिनयावाल से मरते जंगल, िकसी को तरस न आया दोहन नदी का सारी सीमाएँ लाँघ चुका बेबस-मरती नदी, घायल-बीमार नदी अचेत पची ह िकसी तरह सागर तक पूछ रही सागर से मेरा उम तुझसे होता सोच बदल लूँ म अपनी, तब या होगा िनमल सोच वाली नदी िज़द पकड़ बैठी मुझे दूिषत कर दुिनया ने या पाया म चाहकर भी अपनी सोच बदल न पाऊगी देख नदी का स दय फटा ह सागर का बाह चौड़ी कर भर रहा नदी को आगोश म हाहाकार मची दुिनया म सागर ने तट छोड़ रत क भी कछ ऐसी दशा जीवन म िजनक सोच और मन नदी-सा िनमल दुिनया वाल का छलावा घायल मन सहते! 000 जाने कौन-से
हाँफती पीछ से अब कोई भी तो नह पुकार रहा िफर भी भाग रही, य भाग रही ह बेदम अपनी ही आवाज़ से घबरा भागी शायद अपने ही चेहर से अनजान उसी क पीछ एक पथर ज़ोर से दे मारा परछाइय को पानी क सतह पर गूढ़-मूढ़ छमंतर हो गए परछाइय क श म जाने कौन-से चेहर उदासी बन उतर आए ह पलक क पीछ आँख िटक रहती ह उन चेहर पर पथरीली-सी कभी इह आँख से यार का पानी बहा था! 000 िज़ंदगी म तु सपल-पल बदलती िज़ंदगी रत क कण म पड़ते ह जब व क कदम सरक जाती ह समय क हाथ जब ह संवारते महल क आकर ले लेती ह कभी हवा क झक से यहाँ-वहाँ बहने लगती ह, लहर म बह
क मुझसे उमीद ह िकतनी चलती रहती ह अपनी रतार से समिपत रहती ह आगे बढ़ती सदा नर ह उसम राते द ही बना लेती िज़ंदगी म तु , म सीख रही ! 000 रखा भािटया 9305 िलंडन ी लेन, शािलट, नॉथ करोलाइना- 28277, अमेरका मोबाइल- 704-975-4898 ईमेल- rekhabhatia@hotmail.com

हमत शमा क किवताएँ

िनयते वाथ

टहिनयाँ रोक लेती हमुझे झुककर जब म कोिशश करता

िकसी पेड़ क तने तक पचने क, काँट फसा लेते ह मेर व िवरोध म! जैसे बुलडोज़र देख खड़ हो जाते ह अधनंगे बे, औरत, बूढ़ दादा दादी हाथ पसार अपनी झपड़ी क िहफाज़त क िलये, सहमे सहमे ितरोध म। शायद पे, काँट, टहिनयाँ भाँप लेती ह मेरी िनयत म छपी धारदार कहाड़ी क बढ़ते कदम क आहट!

000

म रोग

आँख म मोितया

उगिलय म िशिथलता

िदमाग़ी िनयता

और जीभ पर

तफरीही वाणी िवलास

बढ़ाता जा रहा

वह

बेचार

जानता िकसी

लावारस अिनयंित फॉरविडग को आगे

सरकाना

यानी

पिव पहाड़ी दुगम राते को

जाँचे िबना

चढ़ िबना, हाँफ िबना

याा पूरी करने का

झूठा

मुती

िभखमंगा अहसास।

या िबना पढ़ समझे िव क सव

िदमाग म से एक हो जाने का म।

मेरा यह खोखलापन

यह बौिक िदवािलयापन

यह गुर, यह म और अभी और

गहरा होता जा रहा ह िदन िदन मुझम

िकसी म रोग क तरह। सरवती क तरह 000

पुनमूयाँकन

चलो

फला द खुले म खुली छत पर

आथा, अनाथा

िवास, अिवास

परपरा, जाितयाँ

मज़हब

पढ़ ए, ओढ़ ए, लादे ए

ान क

चादर

कबल

कालीन को, कई वष गुज़र गए ह,

सड़ाधँ हो गई ह, धूप िखला द चलो फला द। 000

अकलापन

हाँ, म कई बार अकला होता

पर अकला नह होता! मेर िवचार क नह िशशु

मुझसे आगे

मुझसे दूर

''पापा हम छ लो'' कह

डगमगाते कदम से

भागते होते ह

और म उह मेर बराबर म चलती

िचंतन ेयसी क हाथ म

थमा देने

सहज देने म आतुर होता ।

तुहार राह रोक

''य अकले''

पूछने पर

तुह अय को न िदखा पाने क

मेरी िववशता पर मुकरा

आगे चल िनकलता !

हाँ,

म कई बार अकला होता

पर अकला नह होता....

000

हमत शमा

27, हटग रोड, कडल पाक, यूजस08824, यू एस ए

मोबाइल- 8482191875

ईमेल-hemantsharman@gmail.com

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj66
म। हाँ, जाने-अनजाने!! पंगु िकये जा रहा वयं को हौले-हौले।
पोट जो िकसी अजनबी ने बनाई थी िकसी ग़रै ने लगाई थी िकसी तीसर ने फ़ोटो शॉप म सजाई थी हाँ वही पोट म धीर से सरका देता , िकसी चौथे बेगाने
बेहाल सोशल सेटअप पर अपने नाम का लेबल िचपका।

लाल देवे कमार ीवातव क किवताएँ

हम बनना चाहते ह मुंशी ेमचंद...

हम बनना चाहते ह मुंशी ेमचंद..

सािहय म हम बनना चाहते ह भारतदु

हरं

िलखना चाहते ह ग़रीब और शोिषत क

दातान

बनाना चाहते ह सािहय म एक नई पहचान

पर आिख़र यूँ नह वह कथानक ला पाते

यूँ! नह वह कहानी िलख पाते ह

महादेवी वमा क तरह नारय क पीड़ा

और दद को

य! नह दे पाते ह ऐसे शद

यूँ! नह न ला पाते वे संवाद

जो वष तक लोग रख याद...

यूँ! नह ांितकारी रचना का करते ह

सृजन

िजससे समाज क दशा एवं िदशा

बदलने क िलए शद म हो वजन

हमारा िलखा आ लोग नह रखते याद

और िलखने क िलए यूँ! नह करते लोग

इससे

कर हम िवचारना होगा

समाज व देश क िनमाण क िलए सोचना

होगा

करीितय एवं आडबर क ख़ामे क िलए

आगे बढ़ना होगा

ाचार, आतंकवाद, िनज वाथवाद क

िव

तेज़धार शद से नीित िनयंता को

सोचने क िलए मजबूर करना होगा

नारी अमता का सवाल उठाना होगा

िशा, संकित, सयता, संकार आिद क

िलए

अपने शद से हम ताना-बाना बुनना होगा

तब हम पढ़ने क िलए लोग हगे मजबूर..

हम याद करगे ज़र...! 000

उमीद का इक टकड़ा...

िदल क िकसी कोने म उमीद का इक

टकड़ा

चाँदनी रात म छत पर अभी भी तुहारा इतज़ार कर रहा ह...

मुझे तो िबकल उमीद नह ह तुहार आने क

पर मेर िदल को अभी भी उमीद ह िक

तुम मेर जीवन म वापस आओगी

यिक िदल अभी भी तुह यार कर रहा ह

मुझसे सवाल भी

आममुधता

उड़ान भरने दो...

हम इह ब संकार िसखाए, पढ़ा-िलखाकर योय बनाएँ। ये चहचहाएँ और िखलिखलाएँ, हर घर को वग-सा सुंदर बनाएँ। बेिटय को नई िदशाएँ तय करने दो...

हर घर क आन-बान-शान होती ह, ये कल क पहचान होती ह। येक े म कर रह ह नाम, थािपत कर रह नए आयाम। इह भी अपने सपने सजाने दो...

बेिटय पर बंिदश क बेिड़या मत डाल, ये बेट से कमतर नह, हम मान ल। भू से लेकर नभ तक ेता क ितमान, बेिटय से अलोिकत ह सारा जहान। इह लय पर िनशान लगाने दो...

इह भी कछ कर िदखाने क होते अरमान, इनक ितभा को द िवतृत आसमान। सफलता पर इनका कर गुणगान,

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj67
फरयाद हम अगर कर मनन और िचंतन अपने सािहय का कर िवेषण... हम पता चलता ह िक हम तो वतमान म बस!
क िलए िलख रह ह सािहय क िलए नह बस! अपने िलए ही जी रह ह
आगे बढ़
करता ह तुमने उमीद य छोड़ दी ह मेरा जबाब न पाकर िनराश हो जाता ह लेिकन आशा का दीप जलाए ए ह उसे िवास ह िक एक न एक िदन तुम मेर जीवन म रोशन करोगी खुिशय से जीवन जगमग कर दोगी सच म ऐसा कछ हो रहा ह ेम संपूण आकार ले रहा ह... मुझे भी िदल क बात सच लग रही ह मुझे भी अपने पिव ेम पर िवास जग रहा ह सृजन अब शद म साकार हो रहा ह िदल क बात पर मुझे भी ऐतबार हो रहा ह सच म मेरा यार वापस आ रहा ह... 000 बेिटय को उड़ान भरने दो... सृ म सूय भा फलाती ह, घर को गुलाब-सा महकाती ह। निदय क कल-कल सा बहती ह, वण अर म इितहास िलखती ह। बेिटय को ब
बेिटयाँ भी घर, समाज औ रा क शान। इह उमु गगन म िवचरने दो... 000 लाल देवे कमार ीवातव ाम-कतहा, पोट- भवानीपुर, िजला-बती 272124 (उ. .) मोबाइल- 7355309428 ईमेल-laldevendra204@gmail.com

ितभा चौहान क यु िवषय पर किवताएँ

यु पर किवताएँ

यु म जीवन

वे सप देते ह

अनजान हाथ म

अपनी अकली दुधमहुँ ी बी

उसक लंबी उ क कामना करते ए

तिनक भी नह डरते अंजान हाथ से

उस व

शायद उसक अछ जीवन क कामना से

कह यादा होती ह

िसफ जीिवत बने रहने क कामना

000

एक वािहश

एक आम इसान

तुहार बड़ बड़ नापाक यु को

िसर से ख़ारज करता ह

वही आम इसान

िजसने राजा को राजा बनाया

सूरमा को सप िदया देश क भिवय का

नशा

कमत को दी आज़ादी

मानता रहा िनयम िविनयम

राजा रजवाड़ का फ़रमान

कानून

सबसे

संवेदना र म बहती ह

क तरह

यु से अभािवत, पर व शु।

उमीद

पतझड़ क बाद

पेड़ क उमीद ख़म नह होत

पर यु ख़म कर देता ह उमीद क भी उमीद। 000

या आप जीिवत ह?

यु क बीच

बचता ह िसफ साटा और अंतहीन कािणक दन

संवेदनहीनता क हद तक

कोई दीवार ढहती जाती ह ेम और िवास क देहरी पर

उपजता ह चीकार उगता ह भयावह साट का जंगल वे जो

िमलकर लड़ते ह िमलाते

समय को

मात देना चाहते हो यु से

पा लेना चाहते हो सब कछ

समय से पूव ही

सुनो

समय से पूव सब कछ पाने क चाहत म

पाने जैसा कछ नह िमलता

बक बढ़ती जाती ह

अिधक खोने क संभावना

और अंततः

तुम खो देते हो वह सब कछ

जो भी ह तुहार पास 000 एक बी क डायरी

एक डायरी म

िलखती ह एक बी

घर क सामने ए दंग क याह संमरण

िजनक याही क बीच-बीच म कह पर

पड़ ह कछ धुँधले से धबे

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj68
क पगडिडय पर
यादा दतक देने वाला आम आदमी नह चाहता यु क नाम पर संवेदना का यापार 000 यु से पर यु म अपने दोन हाथ खोने वाले बे को अब भी िफ़ ह डबती ई चटी को बचाने क यिक
संकार
000
ह हाथ िमलते ह गले बचे रह जाते ह शेष मार जाते ह 000 सीमा म ये सीमा क दावेदार करते ह बड़-बड़ वायदे और जनता क सुरा क लेते ह शपथ करते ह वाताएँ बड़-बड़ संवाद और इसी तरह कभी-कभी हो जाते ह िहसक िजसका असर युग तक बहता रहता ह जनता क धमिनय म 000 या बचेगा इसक बाद या
उन धब म उसक आँसु क भीतर िछपी आह को सुनना शायद समझ आ सक कछ यादा यिक िजतना सह लेता ह आदमी उतना िलख नह पाता। 000 ितभा चौहान ईमेल-cjpratibha.singh@gmail.com

कलाश मनहर क गीितकाएँ

याद जवानी क

सूखी नदी क रत म

शबूह पानी क अभी

उसक बुढ़ापे म भी ह

याद जवानी क अभी

छाये तो ह बादल िक शायद

आजकल म बरसगे

लेिकन हवा क ह हालत

खचा-तानी क अभी

जमुहाई मत लो ऊब कर

पकड़ो न माथा दद से

पूरी सुनो शुआत ह

यह तो कहानी क अभी

माना िक उसको तोड़ डाला

ह ग़म ने बेतरह

लेिकन झलकती ह चमक

कछ शादमानी क अभी

य तो ह मंर उसको

वत का हर फसला

िदल म मगर होती

अपने अपने

हरक गाँव-ओ-शहर

राते-ओ-सड़क पर, भीड़ क िदल म भी अज़ीब उदासी िदखी।

तुहारी बात पे यक़न

कसे

कसी उफ़त ह

कसा इक़ ह

िवरह क आग

हर

जल हम

दुबारा िमलने क

उमीद रख कर

दुिनया वाल क

नज़र म खल हम

000

िछपा ख़ंजर ह

िजधर भी देिखये

ललुहान मंज़र ह

मुख पे ह राम पर हाथ म िछपा ख़जं र ह

बताया जाता ह जनतं मुक म अपने मगर धान द को मानता िसकदर ह

तलाशते ह वे लड़ने को

रोज़ मुे नए न जाने िकतना भरा ज़हर उनक अदर ह

चेला गोरख का जब से

बैठा राजगी पे

धुन रहा िसर उधर धूणी पे

अब मछदर ह

000 कलाश मनहर

मनोहरपुर, जयपुर, राजथान, 303104

मोबाइल- 9460757408

ईमेल- manhar.kailash@gmail.com

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj69
ह िहमत आना-कानी क अभी 000 मरघट नह दहकती आग क रग म भी नमी िदखी। मुझको कए क हलक़ म भी ितनगी िदखी। देखने क िलये बहती नदी गया था म, दूर तक िसफ़ मगर रत ही िबछी िदखी।
करते हम, हरक बात म साई क कमी िदखी। लो िक अब देख लो कमाल हमारा भी तुम, हवाएँ रग-ओ-बू हम से ही ले चली िदखी। 000 य गल हम डर क साये म रह कर य पल हम सूखी लकड़ी क जैसे य गल हम तुम हो तुम और म म आिख़र तो अपने आप को ही य छल हम बत िमलना-िमलाना हो चुका अब चलो िफर
घर चल हम
यह
पल
गीत
अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj70 डॉ. आरती कमारी शिश भवन आज़ाद कॉलोनी, रोड 3 माड़ीपुर, मुज़फ़रपुर, िबहार 842001 मोबाइल-8084505505 ईमेल-artikumari707@gmail.com ग़ज़ल ग़ज़ल डॉ. आरती कमारी ग़म से जब िमलना िमलाना हो गया कम शी का आना जाना हो गया िमलते ही परवाज़ पंछी उड़ गए पेड़ का िक़सा पुराना हो गया सह िलए इक बार जो उनक िसतम िफर तो हर िदन का फ़साना हो गया इक ज़रा िततली हवा म या उड़ी उसका तो दुमन ज़माना हो गया दद, आहट, ज़म, लहज़ा और ख़त याद का मेरी ख़ज़ाना हो गया नेिकयाँ, तहज़ीब, रते, चाहत इनको देखे तो ज़माना हो गया 000 तेरी याद म जो गुज़ारा गया ह वही वत अछा हमारा गया ह तुहमेरी हालत पता या चलेगी मेरा जो गया कब तुहारा गया ह तुहइक़काआइनामानकरही मुक़रकोअपनेसवँारागयाह अजब ह मुहबत का मैदान यार न जीता गया ह न हारा गया ह िलखा रत पर नाम मने तुहारा नदी म भी चेहरा िनहारा गया ह ह मेरी भी आदत तुहार ही जैसी हर इक रग मुझपे तुहारा गया ह 000 ये पलक भीग जाती ह नमी से तेरा जब िज़ करती िकसी से मुहबत म फ़ना कसे ई ह समंदर से नह, पूछो नदी से तेरी ही याद क जुगनू पकड़ने गुज़र जाती म तेरी गली से िहदायतमाँनेजोबशीहमुझको क़दम मुड़ जाते ह द ही बदी से तुह पाकर मेरा िदल झूमता ह िशकायत अब नह ह िज़दगी से 000 लेक हाथ म हाथ करते ह हम िनगाह से बात करते ह िज़ से तेर सुह होती ह तेरी याद से रात करते ह िसफ़काग़ज़क़लमनहकछभी यूज़ संग म दवात करते ह साँस लेने से धड़कन तक हम काम सब साथ-साथ करते ह पास दौलत नह ह अपने सो नाम तेर हयात करते ह 000 तेर बग़ैर मेरा घर उदास रहता ह मेरा सुकन बराबर उदास रहता ह हर इक मक़ाम पे िकमत भी आज़माती ह हरक मोड़ पे मुक़र उदास रहता ह ये फड़फड़ाये तेर आने क ख़बर सुनकर िक और िदन तो कलडर उदास रहता ह क िसंगार म द को सवँार लूँ िकतना जो तू न देखे तो ज़ेवर उदास रहता ह सताया याद ने तेरी सो िदल ये रोया ह कहाँ ये सोच समझकर उदास रहता ह 000 आँधी चली थी शअ बुझाने तमाम रात जलते रह थे वाब सुहाने तमाम रात यूँ मेर दद -िदल क दवा बन सक न तुम रसते रह ह ज़म पुराने तमाम रात तोड़ा था िजसक िदल को िसतार ने बेसबब आये थे जुगनू उसको मनाने तमाम रात िजनकिलएथीिदलकवोमहिफ़लसजीई आए नह वो रम िनभाने तमाम रात आई नह न आँख लगी सुह हो गई करती रही ह नद बहाने तमाम रात 000 तुम आए याद हमेशा ही रौशनी क तरह येऔरबातिकिमलतेहोअजनबीकतरह न कोई फल न िततली न कोई रगे हयात ह आज ज़ीत भी तवीर-बेकसी क तरह तुहारी याद म सावन क तरह रोती न सूख जाएँ ये आँख िकसी नदी क तरह म घर को लौट रही िक शाम ढलने लगी िक िदल म बढ़ने लगी याद तीरगी क तरह कब आओगे िक उता तुहारा सदक़ा म िकजलरहीशबो-रोज़'आरती'कतरह 000

िबछाऊ

सुनाऊ

म तेर सामने य िगड़िगड़ाऊ

भड़कने दे ये शोला आज िफर से

कहाँ तक और सीने म दबाऊ

मुझे भी झूठ पर झुकना था, लेिकन

कहाँ िकरदार अपना छोड़ आऊ

म शायर मुझे तू कल कर दे उठाऊगा नह

तरह क भी जा दो-चार पल कछ सोच भी,कछ देख भी िज़ंदगी- भर दौड़ता ही रह न घोड़ क तरह मुकल क ही तरह कर मुकल का सामना मुकल से भाग मत हरिगज़ भगोड़ क तरह तय करो, लाख करोड़ मबनोगे एक, या एक िदन मर जाओगे लाख–करोड़ क तरह रख न पाये साथ यिद ितरोध क िचनगारयाँ रोज़ कचले जाओगे कड़-मकोड़ क तरह जो पृथाएँ-मायताएँ रोज़ डसत ह तुह काट कर फको उह अब ज़द फोड़

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj71 जय चवत एम.1/149, जवाहरिवहार, रायबरली उर देश 229010 मोबाइल- 9839665691 ईमेल- jai.chakrawarti@gmail.com ग़ज़ल ग़ज़ल जय चवत द युिधर कर रह ह सािज़श क पैरवी जाएगी लेकर कहाँ ये वत क आवारगी? िजस जगह इसािनयत क लाश पर जलसा आ धम क वजवाहक क थी वहाँ मौजदूगी धम जीतेगा िक जीतेगी यहाँ इसािनयत चल रही ह बीच दोन क यही रसाकशी ह नह इस दौर म गाँधी, चलो अछा आ िकस तरह सहते यहाँ वो हर कदम शिमदगी एक िदन यह भी आ आिख़र हमार सामने रत म डबक लगाकर क नदी ने दकशी एक समोहन बुना ह जादूगर ने इस तरह बेबसी पर थाप देकर नाचती द बेबसी ह बत िज़ी अँधेर, कम मगर हम भी नह हम जलगे रात पर बाँटने को रोशनी 000 चोट कर अयाय पर हरदम हथौड़ क तरह और नंगी पीठ पर दस-बीस कोड़ क
क तरह 000 शम लहजे म न आँख म नमी ह ये हमार दौर पर लघु िटपणी ह िफर जगे ितरोध क कछ शद छछ िफर कह पर रप से बी मरी ह मर चुक ह िकस कदर संवेदनाएँ तीन िदन से लाश रते म पड़ी ह रोज़ लड़ता ह ग़रीब क िलए ये राम जाने िकस तरह का आदमी ह आ गए ह लोग कछ खाये-अघाये अब बहस होगी िक दुिनया य बनी ह आदमी क दोती ह भेिड़य से आदमी क आदमी से दुमनी ह जी रह हम एक लाागृह मुसलसल आपको हसने हसाने क पड़ी ह 000 म अपने ज़म सार भूल जाऊ तेरी लफ़ािज़याँ ओँ –
सुनेगा तू नह फरयाद मेरी बता! जाऊ कहाँ िकसको
मुझे मालूम ह तेरी हक़क़त
तेरी खड़ाऊ 000 भूख, ग़रीबी, क़ज़ से सबंध पुराना ह तो ह घर म मेर लाख दुख का आना-जाना ह तो ह िचता, डर, धोखा, दहशत, जीने क हर सू दुारी इतने सार मेहमान का आना-जाना ह तो ह रोज़समयफरमानसुनाता–'येकरनािफरवोकरना' िज़दा रह पाने का ये भी एक बहाना ह तो ह िदल तोड़ हगे हमने, कछ भूल क हगी हमने चुकता करने को इतना सारा हजाना ह तो ह रखे ह इसम जीवन-भर क दुख–सुख क अफ़साने याद क पीछ याद का एक खजाना ह तो ह 000

तवीरडालीगई।यहआममुधताकमय

अवथा ह, यह िम आममुध तो ह लेिकन दीन-दुिनया से बेख़बर नह ह। यह आपक तरफ़ भीपूरायानदेगा।अपनेआपकोसामनेरखेगामगरआपकोभीइनोरनहकरगा। 4अिनलकपूरलेवल-(200से299ोफाइलतवीर)200सेअिधकोफाइलिपस, मतलब हर साल बीस क लगभग तवीर ोफइल पर डाली ग। यह लेवल माइड लेवल ह। इसे हम आममुध नह कह सकते, बस यह िक यह जब अकला होता ह तो अपने आप को दपणमबार-बारदेखनापसंदकरताह।मुधानाियकाकतरहहीआपइसकोसमझसकतेह। 5इसानलेवल-(100से199ोफाइलतवीर)100सेअिधकोफाइलिपस,मतलब बारहसालमअमूमनदसतवीरहरसालोफाइलपरडालीग।यहएकदमइसानटाइपका िमह।अचानककभी

आकरतवीरडालदेताहिफरकईिदनतकचुपरहताह।

संतलेवल-(50से99ोफाइलतवीर)100से

अटबर-िदसबर 2022foHkkse&Loj72 आममुधता नापने का पैमाना पंकज सुबीर पी. सी. लैब, शॉप नंबर 3-4-5-6, साट कॉलैस बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म, 466001 मोबाइल- 9977855399 ईमेल- subeerin@gmail.com आिख़री पा वैसे तो आममुधता को नापने का कोई पैमाना नह ह, लेिकन फ़सबुक को यिद पैमाना बनाएँ तो इसे नापा भी जा सकता ह। फ़सबुक हमार यहाँ ठीक-ठाक प से 2010 म ारभ आ,अथाबारहसालपहले।यिदइनबारहवषकोहीपैमानामानाजाएतोआपनापसकते ह िक आपक िम सूची म अलग-अलग कटगरी क िकतने आममुध िम ह। इस नाप क िलए आप अपने िम क "फोटोज़" सेशन म जाकर "ोफाइल िपस" पर क कर संया देिखए िक आपक िम ने िपछले बारह साल म िकतने ोफाइल िपर अपलोड िकए ह।संयाकोनीचेिदएफामूलेपरकिसएऔरजानजाइएिमकआममुधताकालेवल। 1नमोलेवल-(600याउससेअिधकोफाइलतवीर)600सेअिधकोफाइलिपस मतलब बारह साल म हर साह एक तवीर ोफाइल पर डाली गई। यह एक ख़तरनाक अवथा ह, यिद िकसी क ोफाइल पर छह सौ से अिधक तवीर ह तो समझ लीिजए िक वह िमआममुधताकिशखरपरिवराजमानह।(मुझे1500तवीरतककिमिमले।) 2 नारिससस लेवल- (400 से 599 ोफाइल तवीर) 400 से अिधक ोफाइल िपस मतलब बारह साल म हर माह कम से कम तीन बार अपनी ोफाइल तवीर को बदला गया। और इस कार 400 से अिधक ोफाइल िपस वहाँ उपलध ह। यह ीक माइथोलॉजी क पानारसीससकतरहअवथाह।नारसीससकोअपनेअलावािकसीऔरसेेमहीनहथा, वहपानीमअपनीछिवदेख-देखकआममुधहोतारहताथा। 3पलेवल-(300से399ोफाइलतवीर)300सेअिधकोफाइलिपस,मतलब यहिकहरदोसाहमएकबारोफाइलपरनई
जोशम
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कमोफाइलिपसकामतलबह िकबारहसालमबंदेनेसौतवीरभीनहडालीहअपनेोफाइलपर।एकदमसंतलेवल। 7बुलेवल-(25से49ोफाइलतवीर)50सेकमोफाइलिपसमतलबसालभर मचारतवीरभीनहडालीह,हमेशापरमानऔरपरमयानकअवथामरहताह। 8मोलेवल- (12से24ोफाइलतवीर)25सेभीकमोफाइलिपसकामतलब वह िम जीते जी ही मो क अवथा म ह। िपछले बारह साल म उसने हर साल लगभग दो तवीरयूँहीबसलोगकामनरखनेकोलगादीह।बाक़उसेइनसबसेकोईमतलबनहह। 9देवदूतलेवल(2से11ोफाइलतवीर)12सेभीकमतवीरयिदबारहसालमलगी हतोमानलीिजएिकवहइसाननहहबकिकसीदेवदूतनेअपनाएकाउटबनायाआह। 10 ईर लेवल (कवल 1 ोफाइल तवीर ) 1 तवीर..... यिद बारह साल से एक ही तवीर ोफाइल म लगी ई ह, तो उसे हम ईर ही कहगे, यिक ईर ही थर रहता ह, कभीबदलतानहह।इसिमकोतलाशकिजएऔरिफरकिहएिकमनेईरकोपािलया ह।याआपकसूचीमहकोईिमजोईरह,िमलेतोबताइयेगा? सादर आपका ही पंकज सुबीर
ॉबेरी इटरटनमट िएशंस िशवना िएशंस और ढगरा फ़िमली फ़ाउडशन क िफ़म “तुम लोग” को तीन इटरनेशनल अवाड
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