माहनामा अबक़री मैगज़ीन
के जून 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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करने का ख़याल हमारे क़दम काम्याबी की तरफ़ बढ़ाने में मदद दे गा इस तरह हम अपने स्ज़न्दगी के वक़्त को क़ीमती बना सकते हैं। दन्ु यापव नतजारत में नफ़ा के तरीक़े सोचे जाते हैं ता कक तरक़्क़ी हो मगर
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आख़ख़रत स्जस में नफ़ा की अशद्द ज़रूरत होगी एक एक नेकी की एहसमयत होगी बग़ैर स्ज़ि के गुज़रे एक एक लम्हे पर अफ़्सोस होगा उस वक़्त का ही एह्सास होगा, क्यूूँ क़दर ना की? मगर ससवाए अफ़्सोस के
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कुछ ना हो सकेगा हमारा ज़ेहन और सोच हर वक़्त इस तरफ़ होनी चाहहए कक स्ज़न्दगी ककधर जा रही जन्नत की तरफ़ या जहन्नुम की तरफ़। दफ़अ ग़फ़्लत का अमल: दफ़अ ग़फ़्लत के सलए अस्ट्तग़फ़ार का ज़्यादा करना बेहद्द ज़ोद असर और मज ु रत ब है , रोज़ाना आदमी को अपने ऊपर अस्ट्तग़फ़ार लास्ज़म कर
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लेना चाहहए, इस पर मदावमत से अजीब काम्याबी के असरात ज़ाहहर होते हैं।
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लच्चक भी ज़रूरी है
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(जो शख़्स यक्तरफ़ा तौर पर ससफ़त अपनी ख़्वाहहशों के पीछे दौड़े उस के सलए मोजूदह दन्ु या में नाकामी
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और बबातदी के ससवा कोई और चीज़ मुक़द्दर नहीिं।)
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(मौलाना वहीदद्द ु ीन ख़ान)
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दक ु ान्दार के यहािं एक आदमी आया। उस को कपड़ा ख़रीदना था। कपड़ा उस ने पसिंद कर सलया मगर दाम के सलए तक़्रीबन आधा घिंटा तक तकरार होती रही। दक ु ान्दार कम करने पर राज़ी होता था ना ख़रीदार
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बढ़ाने पर आख़ख़र दक ु ान्दार ने उस क़ीमत में कपड़ा दे हदया स्जस पर गाहक इस्रार कर रहा था। एक बुज़ुगत
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उस वक़्त दक ु ान में बैठे हुए थे, जब गाहक चला गया तो उन्हों ने कहा: जब तुम्हें गाहक की लगाई हुई
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क़ीमत पर कपड़ा दे ना था तो पहले ही दे हदया होता। आख़ख़र इतनी दे र तक उस का और अपना वक़्त क्यूूँ
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ज़ायअ ककया। हज़रत आप समझे नहीिं, दक ु ान्दार ने कहा: मैं उस को पका रहा था, अगर मैं उस की लगाई हुई क़ीमत पर फ़ौरन सौदा दे दे ता तो वो शुबा में पड़ जाता और ख़रीदे बग़ैर वापस चला जाता। इस के इलावा मैं ये अिंदाज़ा कर रहा था कक वो कहाूँ तक जा सकता है । मैं ने जब दे खा कक वो इस से आगे बढ़ने
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