सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 09)

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12 - 18 फरवरी 2018

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स्वच्छता

कचरापुर की पहचान अब सफाईपुर

दिल्ली का पुराना इलाका निजामुद्दीन सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के लिए मशहूर है, पर यहां हाल तक कचरे का अंबार था। स्थानीय बच्चों के प्रयास से इलाके में अब सफाई की नई बयार बह रही है

खास बातें

मलिन बस्तियों के बच्चों ने स्वच्छता का बीड़ा उठाया बच्चों की पहल को एकेटीएफसी के समर्थन से काफी बल मिला शौचालय निर्माण से लेकर रंगरोगन को लेकर अभियान

दे

मुदिता गिरोत्रा

श की राजधानी दिल्ली की एक मलिन बस्ती के बच्चों ने सामूहिक प्रयास से स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक परिवेश बनाने व आर्थिक रूप से सबल बनने के प्रति लोगों में जो जागरूकता फैलाई है, वह अन्य क्षेत्रों के लिए मिसाल बन सकती है। मुस्लिम बहुल इलाका हजरत निजामुद्दीन सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की पवित्र दरगाह के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन यहां स्थित मलिन बस्ती के पास कचरे का अंबार लगने के कारण इसे बाहर से आनेवाले लोग कचरापुर कहने लगे थे। लेकिन बच्चों के प्रयास से इलाके में ऐसा जादुई बदलाव आया कि कचरापुर की पहचान अब सफाईपुर से होने लगी है। इस जादुई बदलाव के बारे में बस्ती में रहने वाली 10 वर्षीय चांदनी कहती है कि कचरापुर के नाम से इलाके के बच्चे आहत थे, इसीलिए उन्होंने इसका कायापलट करने का व्रत लिया। यहां गंदी बस्ती के दक्षिणी छोर पर जर्जर व खस्ताहाल मगर पक्की ईंटों के मकानों के साथ एक खुला नाला है, जिसे बारापुला कहा जाता है। आंरभ में यह यमुना की सहायक नदी थी, जो कालांतर में गंदे नाले में तब्दील हो गई है। यह नाला घुमावदार रास्ते से मध्य दिल्ली से चलकर पूर्वी दिल्ली तक आठ किलोमीटर का सफर तय करता है। मल-मूत्र और कचरों से आनेवाली बदबू और उसमें अवारा सूअरों की मटरगस्ती से पूरा इलाका बदहाल था। लेकिन आज यहां कूड़े का ढेर नहीं, बल्कि हरा-भरा पार्क है, जहां तंग गलियों और

संकुल मकानों में निवास करने वाली औरतें और बच्चे खुली हवा मंू सांस ले पाते हैं। खास बात यह है कि यहां स्वच्छता व हरियाली लाने में इनकी अपनी मेहनत ही रंग लाई। वह जगह, जहां कभी लोग कूड़ा-कचरा फेंकते थे और वह बीमारी का घर था, वह अब बच्चों के लिए खेल का मैदान और बुजुर्गों के लिए सैरगाह व सुस्ताने का मनपसंद ठिकाना बन गया है। इस जादुई बदलाव में बस्ती के बच्चों का महत्वपूर्ण योगदान रहा और इनकी मदद में खड़ा हुआ आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीएफसी)। एकेटीएफसी की पहल और मलिन बस्तियों के बच्चों की मेहनत रंग लाई और सामूहिक प्रयास से आया यह मौन बदलाव न सिर्फ भौतिक रूप से देखने को मिल रहा है, बल्कि इसमें आर्थिक व सांस्कृतिक पहलू भी शामिल है। 11 वर्षीय अब्बास ने बताया, ‘कचरापुर या मलबापुर में कोई रहना नहीं चाहता है। इसीलिए सफाईपुर हमारी ट्रेन का अंतिम पड़ाव है।’ वह अपनी सफाई एक्सप्रेस के बारे में बता रहा था, जो इलाके के बच्चों के लिए हर सप्ताह खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल है। एककेटीसी के कार्यकर्ताओं ने इनके बीच खेल के रूप में सफाई अभियान की शुरुआत की है, जिसे निमामुद्दीन बस्ती अर्बन रिन्युअल इनिशिएटिव कहा जाता है। यह परियोजना 2007 में आरंभ हुई, लेकिन बारापुला फ्लाईओवर निर्माण के कारण इसे रोक दिया गया। दोबारा 2012 में इसे शुरू किया गया। अब्बास ने कहा, ‘यह इलाका पहले गंदा हुआ करता था और यहां मच्छर पलते थे। लोग घरों का कचरा यहां जमा करते थे। अब यह साफ-सुथरा

2008 में यहां एक आधारभूत सर्वेक्षण करवाया गया था, इसके मुताबिक यहां 25 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है

है और हम यहां लुकाछिपी, आइस वाटर, गिल्ली डंडा, क्रिकेट व अन्य खेल खेलते हैं।’ अब्बास को लगता है कि यहां और सफाई की जरूरत है और यहां के निवासियों को इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। नाले के साथ लगे घरों का बाहरी हिस्सा पहले बिखरे खंडहर-सा मालूम पड़ता था, लेकिन अब रंग-रोगन हो जाने से उनका सौंदर्यीकरण हो गया है। एकेटीसी की कार्यक्रम निदेशक ज्योत्सना लाल ने कहा, ‘रंग-रोगन इस परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। कंगूरों अर्थात मकान के बाहरी हिस्सों के रंग-रोगन के पीछे कई अनकही कहानियां हैं।’ लाल ने कहा, ‘बस्ती के सभी 144 घर मुख्य सीवर से जुड़े हुए थे, जो क्षतिग्रस्त हो गया था और दिल्ली जल बोर्ड की मदद से उसे बउला जाना था। घरों के पास कोई कूड़ेदान नहीं था और लोग नाले के पास कचरा डालते थे।’ लेकिन अब यहां घर-घर से कचरा जमा किया जाता है और नाले को भी चार फुट गहरा करके उसकी सफाई की गई है। बच्चों ने यहां लोगों को इस कार्य के लिए तैयार किया। उन्होंने लोगों से वचन लिया कि वे कचरा नाले के पास नहीं डालेंगे। चांदनी ने बताया, ‘हमने कचरा नहीं फैलाने का संकल्प लिया और अपने माता-पिता व अन्य लोगों से भी कोई कचरा यहां नहीं डालने का आग्रह किया है। अनेक लोग इससे सहमत हैं, जबकि कई सहमत नहीं भी हैं, लेकिन हम उनको स्वच्छता के महत्व के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं।’ वर्ष 2008 में यहां एक आधारभूत सर्वेक्षण करवाया गया था, जिसमें यहां के लोगों की बदहाली उजागर हुई थी। लाल ने कहा, ‘सर्वेक्षण के नतीजे चौंकाने वाले थे। इसमें यह बात प्रकाश में आई कि इन लोगों की अनदेखी हो रही है और यहां 25 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं हैं।’ इसके बाद यहां नवीनीकरण परियोजना के तहत

मौजूदा सुविधाओं की मरम्मत व नवीनीकरण का काम शुरू हुआ। नए शौचालय बनाए गए, जिनका उपयोग अब दरगाह में आने वाले पर्यटक भी करते हैं। शौचालय का प्रबंध रहमान निगरानी समूह के द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत बस्ती के सभी भागों में ठोस कचरे का प्रबंधन किया जाता है, जिसमें समुदाय की महती भूमिका है और दक्षिण दिल्ली महानगर निगम की भी इसमें भागीदारी है। नवीनीकरण व आकर्षक नजारे और स्वास्थ्यवर्धक माहौल के साथ-साथ यहां आए बदलाव के अन्य पहलू भी हैं, जिनमें सांस्कृतिक व आर्थिक आयाम भी जुड़े हैं। आजीविका कार्यक्रम के तहत आगा खां ट्रस्ट निजामुद्दीन निवासी महिलाओं को सशक्त बना रहा है। यहां एक संसाधन केंद्र खोला गया है, जिसमें लोगों को विविध सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए उनकी पात्रता सुनिश्चित करने और उन योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इंशा-ए-नूर, आकर्षक कढ़ाई, सांझी चित्रकारी और क्रोशिया से कढ़ाई की मिसाल है। जायकाए-निजामुद्दीन, एक महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से चलाई जाने वाली रसोई है, जिसमें स्वास्थ्यवर्धक व पोषक तत्वों से भरपूर स्नैक्स व लजीज मुगलई व्यंजन तैयार किए जाते हैं और ऑर्डर लेकर उसकी डिलीवरी की जाती है। रहनुमाई नामक संसाधन केंद्र लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का हक दिलाने के लिए उनसे जोड़ने का काम करता है। यहां इलाके के लोगों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज व कागजात तैयार किए जाते हैं, जिससे उनका सशक्तीकरण हो रहा है। रहनुमाई में लोगों को नौकरियों व उच्च शिक्षा हासिल करने संबंधी जानकारी मिलती है। सैर-एनिजामुद्दीन नामक एक और स्वयं सहायता समूह है, जिसमें निजामुद्दीन की सांस्कृतिक विरासत का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस समूह के सदस्य 700 साल पुरानी विरासत से पर्यटकों व स्कूली विद्यार्थियों को रूबरू कराते हैं।


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