Vibhom Swar July September 2021

Page 1



संर क एवं मुख संपादक सुधा ओम ढ गरा संपादक पंकज सुबीर क़ानूनी सलाहकार शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट) तकनीक सहयोग पा ल िसंह, सनी गो वामी िडज़ायिनंग सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी

वै

क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का

वष : 6, अंक : 22, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021 RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609 ISSN NUMBER : 2455-9814

संपादक य एवं यव थापक य कायालय पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7 स ाट कॉ लै स बेसमट बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001 दूरभाष : +91-7562405545 मोबाइल : +91-9806162184 ईमेल : vibhomswar@gmail.com ऑनलाइन 'िवभोम- वर' http://www.vibhom.com/vibhomswar.html

फसबुक पर 'िवभोम वर’ https://www.facebook.com/vibhomswar

एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5) सद यता शु क 1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन) बक खाते का िववरणName: Vibhom Swar Bank Name: Bank Of Baroda, Branch: Sehore (M.P.) Account Number: 30010200000312 IFSC Code: BARB0SEHORE

आवरण िच राजे शमा

रखािच मािटन जॉन

संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक। पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म Dhingra Family Foundation 101 Guymon Court, Morrisville कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर NC-27560, USA होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत Ph. +1-919-801-0672 Email: sudhadrishti@gmail.com होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा। 1 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


इस अंक म

वै

क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का

वष : 6, अंक : 22, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2021 संपादक य 3 िम नामा 5 िव मृित क ार िश बन लाल क बहन, रोती नह उषा ि य वदा 6 कथा कहानी जूठा सेब

ा पा डय 12 उसक मौत िवकश िनझावन 17 अँधेर क बीच अ णा स बरवाल 20 कौन सुने ? काद बरी मेहरा 26 िमशन - एन.पी.ए. डॉ. रमेश यादव 30 सेहर का सगुन कामे र 34 वािभमान सेवक नैयर 39 देवता अ ण अणव खर 45 स ाटा छाया ीवा तव 48 भाषांतर यथाथ क र च (मलयालम कहानी) लेिखका - कमला दास अनुवादक - अनािमका अनु 52 शंख घोष क किवताएँ अनुवादक - रोिहत साद पिथक 85 यं य लोकापण ीकांत आ ट 54 सं मरण हम भी कमीने, तुम भी कमीने ज़ेबा अ वी 56 रामरतन अव थी जी मेर पहले सािह यक गु

वीर जैन 64 याद क झरोखे से रिडयो का देशी इलाज करते िपता गोिव द सेन 66 ज मा मी शोभा र तोगी 69 समाचार िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान 68 पहली कहानी आिख़री ख़त अिदित िसंह भदौ रया 72 लघुकथा खेती डॉ. वीर कमार भार ाज 74 िल यांतरण ग़ािलब अंड गोएट मूल रचना – हाजी लक़ लक़ अनुवाद – अखतर अली 75 किवताएँ खेमकरण 'सोमन' 77 एकता कानूनगो ब ी 78 काश मनु 79 ितभा चौहान 80 चंचला ि यदिशनी 82 दीपक शमा 'दीप' 83 ग़ज़ल दौलतराम जापित 85 धम गु 86 सुभाष पाठक 'िज़या' 87 आिख़री प ा 88

िवभोम- वर सद यता प

यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह : 1500 पये (पाँच वष), 3000 पये (आजीवन)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क नाम से भेज सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरणName of Account : Vibhom Swar, Account Number : 30010200000312, Type : Current Account, Bank : Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”)

(िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।) सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः 1- नाम, 2- डाक का पता, 3- सद यता शु क, 4- चैक/ ा ट नंबर, 5- ांज़े शन कोड (यिद ऑनलाइन ां फ़र ह), 6-िदनांक (यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।) संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com 2 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


संपादक य

जीवन जीने क एक िभ शैली सामने आने वाली ह

सुधा ओम ढ गरा 101, गाईमन कोट, मो र वल नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए. मोबाइल- +1-919-801-0672 ईमेल- sudhadrishti@gmail.com

अ य श ु कोिवड-19 से जूझते ए, आिथक संकट का सामना करते ए, अमे रका तेज़ी से इन चुनौितय और आपि य से उभर आया ह। अब हालत यह ह िक नौ िमिलयन नौक रयाँ उपल ध ह, और उ मीदवार नह िमल रह। ये नौक रयाँ सरकार ने नह िनकाल । यह सब ग़ैरसरकारी े क देन ह। सरकार इतनी नौक रयाँ िनकाल भी नह सकती। हर काम ऑन लाइन होने से सरकारी े म नौक रयाँ कम हो गई ह। अमे रका सबसे बड़ा लोकतांि क देश ह। इसे पूँजीवादी कह कर भड़ास िनकाली जा सकती ह, पर इसक काय- णाली उदाहरण ह, िवचारणीय ह। यहाँ ाइवेट कपिनय और िनजी े को बढ़ावा िदया जाता ह तािक देश को सुचा प से चलाया जा सक। साठ साल पहले नासा ने अंत र म उड़ान भरी थी। 11 जुलाई 2021 म एक उ ोगपित रचड ेनसन ने स ह वष क प र म क बाद अंत र पयटन क शु आत क ह। पहली उड़ान म एक भारतीय मिहला इजीिनयर ीशा भी थी। छह सौ पचास लोग ने अंत र म जाने क िलए अि म बुिकग भी करवा ली ह। सामा य जीवन जीने का य न िकया जा रहा ह... कोिवड-19 क पहली लहर क दौरान पूरा िव यही समझता था, िक इसक समा होते ही जन जीवन िफर से सामा य हो जाएगा। सामा य तो हो रहा ह, लेिकन अलग तरीक से। पहली लहर क नुक़सान क बाद दूसरी लहर जो ित प चा रही ह, िव अभी उसका सामना कर रहा ह, तीसरी लहर का डर बना आ ह। ऐसे म कोिवड से पहले जैसी थित होनी संभव नह ह। जान-माल क जो हािन ई ह, उसक पूित तो कभी संभव ही नह । यह माना जा रहा ह, कोिवड वायरस हर साल लू क तरह कट होगा। जहाँ अिधकतर लोग ने वै सीन लगवा ली होगी, वहाँ इसे मैनेज करना आसान होगा। 3 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


हाँ, लोग ने अब इस श ु क साथ जीना सीख िलया ह, पर इसका व प पहले से ब त अलग होगा। हर े म आक मक प रवतन आए ह, िजनसे सामंज य थािपत करने म समय लग रहा ह। तकनीक और बड़ी-छोटी िजन कपिनय ने अमे रका म अपने कमचा रय को घर से यानी ऑनलाइन क यूटर पर काम करने का िवक प दे कर े रत िकया ह, वे कमचारी महगे शहर म रहने क बजाए अब गाँव, छोट शहर या क ब क ओर मुड़ रह ह। जहाँ रहन-सहन स ता ह और वातावरण व छ। ाकितक थान म लोग थानांत रत हो रह ह। कभी-कभार मीिटग क िलए हवाई या ा कर िलया करगे। पर काम घर से हो रह ह, इसिलए या ाएँ कम हो गई ह। कल और कॉलेज क िश ा म भी ब त अंतर आ गया ह। ऑनलाइन िश ा िदए जाने से कल और कॉलेज शु होने क बावजूद भी कछ िवषय ऑनलाइन पढ़ाए जाएँगे। ल बे लॉकडाउन म कई िव िव ालय ने अलग-अलग े म ऑनलाइन कोसज़, ऑनलाइन िड ी क िलए दािखला देकर पढ़ाना शु कर िदया था; य िक वे समझ गए ह िक कोरोना जैसे अ य श ु अब पैदा होते रहगे और जीवन पहले जैसा कभी भी नह हो पाएगा। ऑनलाइन िश ा का चलन ब त बढ़ गया ह। घर बैठ कई मिहला-पु ष ने ऑनलाइन यावसाियक िश ण लेकर अपने काम शु कर िदए ह। अनिगनत घरलू मिहला ने इस समय का सदुपयोग िकया ह, और अपने छोट-छोट धंधे शु कर िलए ह; िजनक िब ऑनलाइन ही होती ह। ब क कल और अब कॉलेज खुलने क बाद ही पता चलेगा िक लोग का जीवन िकस िदशा क ओर मुड़ता ह; य िक पूरी सावधािनयाँ बरती जाएँगी, पूर ोटोकॉल फॉलो िकए जाएँगे पर अभी भी कोरोना का डर तो ह, देखते ह ऊट िकस करवट बदलता ह...िजन लोग ने वै सीन नह ली, वे यहाँ ड टा न क िशकार हो रह ह। मृ यु दर क आँकड़ बढ़ रह ह। जीवन जीने क एक िभ शैली सामने आने वाली ह। तकनीक और ऑनलाइन सिवसेज़ जीवन म एक अ यािशत प रवतन लाने वाली ह। खेती-बाड़ी और किषकम ोन से संप करवाए जाएँगे। पयावरण म घनघोर प रवतन आएगा, य िक आवाजाही कम हो जाएगी। बैटरी से चलने वाली कार और वचािलत कार को बनाने क होड़ लगी ई ह, तािक पयावरण क र ा क जा सक। पयावरण क बार म नह सोचा जाएगा तो कित बार-बार सबक िसखाएगी। कोरोना ने एक बात प कर दी ह, िव क हर य को तरह-तरह क चुनौितय क िलए तैयार रहना पड़गा। भिव य म कोरोना जैसे कई श ु आ मण कर सकते ह। अगर देश और जनता तैयार नह ह गे तो इससे भी अिधक किठनाइय का सामना करना पड़ सकता ह। िवभोम- वर और िशवना सािह यक प रवार क ओर से सािह यकार रमेश उपा याय, नर कोहली, रामरतन अव थी, मुशरफ़ आलम जौक़ , ज़हीर करशी, शंख घोष, मं र एहतेशाम, याम मुंशी, मह गगन, कवर बेचैन, भु जोशी, चंडीद शु , युगेश शमा, िदवाकर भ , राजेश झरपुर, राजकमार कसरवानी को भावभीनी ांजिल!! आपक , ब क अंदर क िन छलता क कारण ही जानवर उनक ब त ज दी िम बन जाते ह। जैसे-जैसे हम बड़ होते ह, वैसेवैसे यह िन छलता हमार अंदर से समा सुधा ओम ढ गरा होती जाती ह। मासूिमयत को भी कित पहचानती ह और रता को भी। कित क पास बने रहने क िलए आव यक ह अंदर से ब ा बने रहना। 4 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

संपादक य


िम नामा

तो अंतरमन से याद िकया ही लेिकन च मे क िकतने, कसे-कसे योग होते ह, आलेख क बहाने उनका भी रोचक अनुसंधान आपने तुत िकया ह। आपक लेखन म हा य यं य का भी अ छा खासा पुट ह जो इसे ब त पठनीय बनाता ह। िलखते समय आपने अ मी को अपनी याद म कछ ऐसे िज़ंदा िकया, जैसे च मा िकताब नह , आपको आपक अ मी ही िमल गई। सच क तो आपक इस भाषाई योग ने माँ को याद करते ए मेरी आँख से भी आँसु क कछ बूँद िनकाली, कछ धाराएँ बहा । -रितभान ि पाठी, लखनऊ 7905252032/9415225285 000

जून क धूप म शीतल हवा 'िवभोम- वर' जून क धूप म शीतल हवा ह जो मुझ मानुष मन को ब त सकन दान करती ह। कभी लगता ह िक आप पेड़ क भाँित चुपक-चुपक अपना काय कर रह ह या नदी बन, बहते ए अपने मुकाम पर प चनेप चाने क तैयारी म ह। आपक सबसे अ छी बात यह ह िक आप नए लेखक को छापते ब त ह। इस मानिसकता क पि काएँ ब त कम होती ह। बहरहाल... जनवरी-माच 2021 अंक िमला। एक साथ ब त कहािनयाँ और नए लेखक को पढ़ने का अवसर पा रहा । व थ जीवन क शुभकामनाएँ और लाख-लाख दुआ क साथ। -खेमकरण 'सोमन', ारा बुलक साहनी, अगले अंक का इतज़ार थम कज, अ बका िवहार, भूरारानी, वाडयह तो जानती थी िक उषा ि य वदा 3 2 , पुर, िजला- ऊधम िसंह नगर, अमे रका म ही कह रहती ह, पर उ ह ढढ़ने उ राख ड-263153, क कोिशश नह क , हालाँिक उनक लेखन मोबाइल: 09045022156 क शंसक । पचपन ख भे लाल दीवार, 000 कोगी नह रािधका, अंतवशी उप यास और वािपसी कहानी कौन भूल सकता ह। िवभोमिदलकश सं मरण अफ़रोज़ ताज का 'च मे क खोज' लेख वर का अ ैल-जून 2021 अंक खोला और पढ़ा। िदल बाग-बाग हो गया। बेहद खूबसूरत खोलते ही संपादक य क बाद अपनी ि य अंदाज़े-बयाँ। च मा छीनकर अ मी गायब हो लेिखका को देख कर हरान रह गई। गई, वे िकताब पढ़कर नह दुिनयावाल को िव मृितय क ार पढ़ कर उषा जी क बार म देखकर िलखते थे, इस बंदे ने दो श द क ब त कछ जानने को िमला। अंत म जब मशः(अगले अंक म जारी रहगा) पढ़ा, तो अथ ही बदल डाले। पहला 'बकवास' और दूसरा 'समझदार', प पर चूरन रखकर खा िदल ब य उछला। अब अगले अंक का चुक ह गे। सबसे आिख़र म िकताब का इतज़ार ह.... -सरोज ीवा तव, 1105 Sunset िमलना। ऐसा िदलकश सं मरण कम ही देखने म Hits, Columbus, Ohio 43202 000 आता ह। मुबारकबाद ! - ीकांत आ ट, जी-1/81, गुलमोहर उषा ि य वदा का सं मरण बोनस कालोनी, भोपाल, 462039 िवभोम- वर का अ ैल-जून 2021 अंक 000 िमला। कहािनयाँ एक से बढ़कर एक। उषा ि य वदा का सं मरण ऐसा बोनस िनकला, ब त पठनीय सं मरण अफ़रोज़ ताज का िलखा सं मरण 'च मे िजसक उ मीद शायद िकसी पाठक को नह क खोज' िवभोम- वर पि का म आज ही थी। इसक पहले से कोई प लिसटी भी नह पढ़ा। आपने च मे क बहाने अपनी अ मी को क गई थी। नई पीढ़ी जो पुराने लेखक को 5 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

भूलती जा रही ह, ऐसे िसलिसले से उ ह नए लेखक क साथ पुराने लेखक का भी पता रहगा। अगले अंक क ती ा ह... - ती ा माथुर, िवकासपुरी, िद ी 000 'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल श महोदय, 'िवभोम- वर' का अ ैल-जून २१ अंक िमला। आपका 'आिख़री प ा' पढ़ कर िदल श आ। आभारी िक आपने मेर ही नह , मेर जैसे अनेक लेखक क मन क बात कह दी। धमयुग, सा ािहक िह दु तान, सा रका आिद पि काएँ बंद , समाचार प ने भी सािह य से जी चुराना शु कर िदया। अब तो काद बनी और नया ानोदय भी बंद हो गए। ि ंट मीिडया ने तो सािह य को लंगड़ा घोड़ा समझ ताँग म जुतने को छोड़ िदया। कभी सािह यकार, संपादक बनते थे, अब एम.बी.ए. मैनेजर या प कार। आपने सही कहा- "यही तो म पूछ रहा िक जो िलख नह रहा, उसका यहाँ या काम ? मगर काम को तो छोिड़ये वह तो यहाँ सवसवा बना बैठा ह।" संभवतः आप पहले थािपत लेखक ह, िजसने इस कट स य को इस कार उजागर िकया ह। अंक का संपादक य ानवधक ह। और 'धीर र खुले िकवाड़' रोचक था। ' म', 'मा टरनी का जादूमंतर' और 'िच ा वीदू' कहािनयाँ ी िवमश से अिभ े रत तीत होती ह। 'छतरी', 'अनछआ' और 'क ज़े का मकान' सामािजक िवसंगितय को वर दान करती ह। 'पानी क परत' िकशोर मन और 'फटा आ ब ता' बालमन क कोमल भावना क मम पश कहािनयाँ ह। लघुकथाएँ और किवताएँ गागर म सागर समान ह। कल िमलाकर अंक सराहनीय व सं हणीय था। सादर -योगे शमा, 86, खि यान, िबजनौर उ 246701, मोबाइल 989741032 000


िव मृित क ार

िश बन लाल क बहन, रोती नह उषा ि य वदा

उषा ि य वदा 1219 शोर वुड बुलेवाड, मैिडसन , िव कॉ सन, 53705, यू एस ए मोबाइल-608-238-3681 ईमेल- unilsson@facstaff.wisc.edu

उ ीस सौ सतालीस म दादा भी अ य राजनीितक क़िदय क तरह जेल से छट- पाँच साल, फाँसी क सज़ा, िफर उसे बदल कर आज म क़द पर उसम सैिलटरी क फ़ाइनमट; या- या नह झेला होगा पर शायद उन साल ने और क यिन और कमठ बना िदया। जेल से छटकर कानपुर आए, िश बन लाल का वागत करने क िलए हज़ार क भीड़ उमड़ी। मने साल से दादा को देखा भी न था, उनक मुखाकित भी मृित म धुँधली पड़ गई थी। घर म उ साह का माहौल था- माँ ने चू ह पर दादा क िलए खीर बनाई और जाली क अलमारी म ठडी होने क िलए रख दी। मने भी अपनी खादी क सािड़य म सबसे पसंदीदा फालसई रग क साड़ी पहन ली, िजस पर पहला बॉडर था। माँ ने थाली सजा ली और छोटी दादी ने िनणय सुना िदया, िश बन लाल जब ऊपर क खंड म आएँगे तब म उनका रोली अ त से टीका क गी, बाद म अ य लड़िकयाँ और याँ। छोटी दादी का यह ताव भी सवस मित से पास हो गया और इस अवसर क मह ा समझते ए इ दो बुआ भी अपने स प नगर क बंगले से हमार घर परड आ ग । शायद दोपहर क तीन बज गए थे, सारा प रवार िबना खाए-िपये दादा क ती ा कर रहा था। तभी छोट चाचा, जो दादा क घर प चने क सूचना देने क िलए अि म ूटी पर तैनात िकए गए थे -बदहवास से घर म घुसे-और ब त नाटक य ढग से अनाउस करते ए बोले''िश बन लाल ने गोिवंद को गले लगा कर भट िलया....'' यह सुनकर घर क सभी याँ त ध रह ग । चाचा ने आगे बताया, ''जब िश बन लाल रल गाड़ी से उतर तो हम सब ने उ ह मालाएँ पहना । उनक गोिवंद और बनवारी पर पड़ी जो सबसे अलग, दूर माला िलये खड़ थे। वह आगे बढ़ और गोिवंद को गले लगा िलया, वह तो फट- फट कर रोने लगा। बनवारी तो भाग खड़ा आ िक कह उसे भी गले न लगा ल- बनवारी और उसका प रवार हमार घर का 6 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


शौचालय साफ़ करता था। इस सूचना म अंतिनिहत संकत था िक ह रजन गोिवंद को गले लगा कर दादा अपिव हो गए थे। यह महा मा गाँधी क िनयम का पालन करने वाले दादा से कौन कहगा िक पहले नहाओ िफर घर म घुसोछोटी दादी ब त पसो पेश म थ , बाक़ सार लोग मौन और त ध थे। तभी दादा घर म घुसे और बेिझझक हमार आगे आकर खड़ हो गए। मने थाली उठा ली, िफर दादी को देखा-वह अभी असमंजस म ही थ - मने माँ क ओर डाली उ ह ने आँख क इशार से कहा िक टीका करो। मने कई साल क र ा बंधन और भाई दूज क कसर िनकालते ए उनक श त ललाट पर रोली का ल बा सा टीका लगाया लगा िदया- िफर उसक ऊपर चावल िछड़क। दादा, चाचा क साथ चारपाई पर बैठ गए, मालाएँ उतार कर अलग रख द और ध से ि यजन का मुआयना िकया। मुंशी चाचा क ब े माला क िलए आपस म ख चतानी करने लगे- माँ ने जाली क अलमारी से ही खीर का कटोरा िनकालकर उ ह पकड़ा िदया, और उस ण म बरस से चली आई छआछत, जूठी, सकरी, क ीप क रसोई और ऊच- नीच, ह रजन और सवण पर परा ढह गई। मुझे महसूस हो रहा था िक अब हम सारी देह रय को पार कर एक नए समय म वेश कर रह ह, हमने नई, िव तृत, खुली ई दुिनया म क़दम रख िदया ह। 000 उस छह साल, नह साढ़ पाँच साल क लड़क को कोई य बताएगा िक यह सब या हो रहा ह। ढाई साल पहले पापा मर चुक ह, अब घर ख़ाली करना पड़ रहा ह। बड़-बड़ त त, िजस पर िपता क मुव कल आकर बैठते थे, पड़ोस क वक ल जगदीश माथुर उठवा कर ले जा रह ह। उनक लॉ क िकताब भी, िजनक लाल, एक सार िज द थ , शायद उ ह क घर जा रही ह। नीचे वाला कमरा ब त बड़ा ह, िजसम शीशे क ऊची-ऊची शीशम क आलमा रयाँ ह, एक म आदमक़द

शीशा ह। पास ही ऊपर जाने क सीिढ़याँ ह, िजन पर वह अँधेर से डरती ई लड़क साँस रोक कर ऊपर चढ़ने लगती ह। चार ओर िवघटन ह, पर उसे या मालूम, उसे कोई कछ य बताएगा। ब को ये बात नह बताई जात । पर वह देख रही ह क़तार क क़तार लोग कछ न कछ उठाकर ले ही जा रह ह, यहाँ तक िक वह नया चमचमाता सूटकस, जो उसका था, जो उसे लॉटरी क िटकट पर िमला था। बड़ मकान क इ दो बुआ का मुँह लगा नौकर बंसी कधे पर उठाकर ले जाता िदखाई देता ह- िखलौन वाला कमरा सब वैसे ही छोड़ िदया जाता ह। परड क रामलीला क दशहर क िदन एक चाँदी क पये म ख़रीदा िम ी का चू हाच क , तवा, करछी- और िसर पर मटक िलये लाल लहगे और हरी चुनरी वाली गुज रया, कधे पर काँवर उठाए ए वण कमार और दो डिलय म दो पुतले- उसक बाद क़तार क क़तार िम ी क गणेश, ल मी; िपछली कई िदवािलय क- यह सब उसने, उस पाँच, साढ़ पाँच साल क लड़क , ने सहज कर रखा ह, वह घंट उस छोट से, कोने वाले कमर म अपने इ ह िखलौन से खेलती रहती ह। कभी-कभी रमेश आ जाता ह, पड़ोस क बुिटयर बाबू का बेटा, उससे कई वष बड़ा, पर छोटी बहन ारा नीचे धकल िदए जाने क कारण वह थायी प से िदमाग़ी चोट से त ह, पर उसक मु कान िकतनी सरल ह, वह जब भी आता ह तो कमर क 7 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

आगे खड़ा होकर उसका नाम लेता ह, िझझकती आवाज़ म, असमंजस म-- और जब उसक पुकार सुनकर लड़क बाहर िनकलती ह, तो रमेश का चेहरा उसे पहचान कर एक मीठी, ध मु कान से भर उठता ह- ऊऽऽऽ षाऽऽऽ वह िझझकते ए कहता ह जैसे अपने को िव ास िदलाना चाहता हो िक वह सही जगह ह और यह लड़क वही ह जो उसक खेल क सािथन ह। वह घंट उन िम ी क िखलौन से खेलते ह। रमेश को चू हा-च क पसंद ह। वह चू ह म क पत आग जलाता ह, बटलोई रखता ह, िफर तवा, िफर त तरी म खाना परोस कर कहता ह-- लो -- िबलकल वैसे ही जैसे वह रोज़ अपनी माँ को देखता ह-लड़क चुप रहती ह, उसने शंसा करना या अिधक बात करना नह सीखा ह। दोन अलग-अलग त त रय म झूठमूठ का भोजन करते ह, बतन धोते ह और वापस रख देते ह। उसे कब, कहाँ, िकसक साथ खाना िमलता था, यह सब याद नह ह। ऊपर क खंड म न बैठक थी, न डाइिनंग म, बस एक क़तार म चार कमर थे, और सामने बरामदा, िफर खुला आँगन, उसक बाद घर का दूसरा दरवाज़ा, िजससे नौकर चाकर और बनवारी या उसक ब सफ़ाई करने आती थी, उस दरवाज़े से उतरो तो सामने खुला आ गैरज था िजसम ट पर पापा क हर रग क फ़ोड मोटर खड़ी रहती थी- उनक मरने क कई बरस बाद भीसबसे पहले जो कमरा था वह सबसे बड़ी बहन कमला का था, उसक बाद क दो कमर म माँ, म और मेरी मझली बहन क मन, चौथा कमरा सबसे बड़ा था, रसोई क पास, उसम दादी रहती थ , अपनी िदवंगत बेटी क सौत क साथ- उसक बाद रसोई थी और उसम भी एक दरवाज़ा पड़ोसी जगदीश बाबू क छत पर खुलता था- उसी दरवाज़े से हम ब े उन खुली -खुली छत पर खेलने जाते थे। उसी से पड़ोस क याँ अंदर आती थ -उसी दरवाज़े क चौखट पर िगरने से मेरा िसर फटा था और उसी दरवाज़े से माँ ने मरी ई महरािजन का भूत कमर म लु होते देखा था पर तब घर म िकसी को मालूम नह था िक


गाँव गई ई महरािजन मर चुक ह। उस घर म िसफ़ माँ को ही भूत ेत िदखाई देते थे, कभी छत पर, कभी अपने कमर म घुसते ए जो तुरत बड़- बड़ काले क म बदल जाते थे। अगर सामने से आना चाहो, उस दरवाज़े से मद ही आते थे, सीिढ़याँ चढ़कर छ े से गुज़र कर दरवाज़े क अंदर! और मद भी कौन? मामा जी या उनक बेट काश या ल ू, िजनसे र ता या था उस लड़क को ब त बरस तक पता नह चला, या खु ख या भैया होरीलाल, दादा, िश बन लाल कभी कभार; य िक वह वतं ता सेनानी होने क कारण अिधकतर जेल म रहते थे। बस, उसे वह िदन याद ह जबिक यामलाल क हाते म भयंकर सफ़ाई ई थी, त त बाहर िनकाले गए थे, यह जगदीश माथुर क घर जाने से पहले क बात रही होगी, िछड़काव आ था- लड़क को ख र क छ टदार नई ॉक पहनाई गई थी और कहा गया था िक जवाहर-लाल नेह को झुककर नम ते करना और तब माला पहनाना। ख र क उस मोटी खुरदुरी, छ टदार ॉक क मृित कभी उसक वचा से अलग नह ईकभी भी। रल क पिहय क खटर-खटर से वह जाग गई। हाथ म पैसा था- रल कानपुर छोड़कर गंगा क पुल से गुज़र रही थी। उसने हाथ से पैसा उछाल कर गंगा जी म फक िदया। उसे मालूम नह था िक यह उसक जीवन या ा का पहला चरण था और घर से बेघर होने का भी। 000 लखनऊ म हीबेट रोड, लाटश रोड, सुंदर बाग़ क घर बार-बार बदलने क बाद अब हम पाक रोड म थे, घर नए बने ए थे- सामने क सड़क अभी ठीक से बनी नह थी, क ी प क ग वाली- बरसात म घर क आगे काफ़ पानी भर जाता था और मुह े क ब े उसने कदते-फाँदते रहते थे, िसंह साहब क तीन लड़िकयाँ डज़ी, पै ज़ी और िडिलयाउसक साथ प ा, िजसे दूसर ब े िचढ़ाने क िलए प कह कर पुकारते थे। हमार घर क आगे लोह का जँगला था,

उसक बाद एक लंबी चौड़ी बारादरी, जँगले क साथ या रयाँ थ िजनम हरिसंगार और मधुमालती समय-समय पर फलती रहती थ उन िदन बड़ भाई िश बन लाल जेल से छटकर घर पर थे और चीनी िमल पर रपोट िलख रह थे। वह इलाहाबाद से एम.ए करक गोरखपुर ोफ़सर हो गए थे; वह उनक भट महा मा गाँधी से ई और उ ह ने दादा को महाराजगंज क िपछले इलाक़ और वहाँ चीनी िमल म काम करने वाले मज़दूर क दुखद थित को सुधारने का आदेश िदया। दादा उसी काम म लीन हो गए, वतं ता सं ाम म एक दम समिपत। घर म जो बात होती थ - हम ब े सुनते थे और जान गए थे िक हम पराधीन ह - अं ेज़ हमार शासक और शोषक ह- हम पड़ोस क िसंह साहब या प ा क ठकदार िपता क तरह उनक चाकरी नह करनी चािहए- हम छ टदार खादी क ॉक म ही स रहना चािहए, डज़ी या पै ज़ी क तरह मुलायम नरम मख़मल म नह । दादा ायः बाहर बरामदे क आगे खुली ज़मीन पर बैठ-बैठ रपोट िलखने म लीन रहते थे। कभी-कभी हरिसंगार क फल िगरकर उनक बाल म उलझ जाते थे पर उ ह पता ही नह चलता। तप यारत एक साधक क तरह। हम ब े चुप रहते थे, शोर नह मचाते थे, न हम, न हमार साथी। दादा का य व ही ऐसा था, उनक पूरी भावमु ा ब त सहज और ेिहल होती थी, उनक ने म मेधा और एक वैचा रक य क आँख म होने वाला 8 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

तेज रहता था-- कभी-कभी वह िलखना रोक कर, सर उठाकर सड़क पर खेलते हम ब को देखने लगते; तब उनक चेहर पर एक ब त ेिहल मु कान आ जाती थी। पाक रोड क घर म जो बात मुझे ब त अ छी लगती थी, वह थी उसक लखनऊ क िनकटता। िदन-रात समय- असमय हम हािथय क िचंघाड़ और शेर क दहाड़ सुनाई देती रहती थ । शायद उसी समय से मुझे पशुपि य से लगाव ारभ हो गया। िश बन लाल से छोट भाई होरी लाल, िज ह हम तीन बहन 'भैया' कहती थी, रोज़ सुबह हम क सैर कराने ले जाते थे हम- यानी मुझे, और मँझली बहन क मन। हम लोग िजस पगडडी से घुसते उसक समा होते ही पि य का घेरा आता था, सबसे पहले मोर, िजनम एक सफ़द मोर हमेशा पंख फलाए नाचता िमलता था, म देर तक वह क ई उसे देखती रहती थी, िजस व तु को न पा सको पर यार करते रहो, ऐसा ही कछ संबंध मेर और सफ़द मोर म बन गया था- वह हमार पास आते ही और घेर क बाहर खड़ होते ही पूर पंख फलाकर नाचने लगता था- और मुझे लगता था िक इतने आने वाल म शायद िविश - तभी तो मेर पास आते ही वह नाचने लगता ह। मोर क बाद रग िबरगे काकातुआ, तोते और तरह-तरह क प ी कलरव िकया करते थे, उसक बाद लकड़ब घे और ऊदिबलाव। इतना सब पार करने क बाद वह घेरा आता था जहाँ राजसी मु ा म बबर शेर बैठा रहता था, पास म दो शेरिनयाँ और उछलते कदते उनक ब े। शेर कभी-कभी मुँह खोल कर दहाड़ देता था- तब हमारा पूरा शरीर दहल जाता था और हम उस दहाड़ क ती ा करते रहते थे। आस-पास हर उ ान थे, मोर पंखी क झाड़ और रग िबरगे फल, जब कभी हमारी छोटी मौसी सौभा यवती, जो लखनऊ म ही रहती थ , ब सिहत माँ क पास आत तो हमारा जाना अिनवाय होता था। उनक बड़ बेट सुधीर से जो मुझसे तीन साल छोटा था, मेरी ब त पटती थी, जब तक घास पर चादर और बैड कवर िबछते, िटिफ़न क रयर से


पू रयाँ, आलू क कचौिड़याँ और तरकारी िनकलती हम दोन मोर पंख क झुरमुट क आस-पास दौड़ते, भागते, खेलते, हसते, िखलिखलाते रहते। कभी-कभी ब त बड़ पन से सुधीर का हाथ पकड़ कर हम शेर क बाड़ क ओर चले जाते। बाड़ क चार ओर ब गहरी और चौड़ी नहर थी, उसक बाद जंगले; यानी दशक सुरि त रहते थे- हम लोग खड़खड़ उस प रवार को देखते रहते जहाँ शेर क ब े उछलते, कदते- भागते, दौड़ते िदखाई देते थे। कभी-कभी शेर धूप से उठकर अपने कटघर क ओर चल देता तो हम उसक मंथर, शाही चाल को िबना पलक झपकाए देखते रहते- ब त वष बाद, डिनश लेिखका, इसाक डिनसन क 'आउट ऑफ़ अ का' पढ़ते ए मुझे अपने बचपन क उस बबर शेर क याद आ गई और जब मने उनका बंदूक लेकर अपने घोड़ क बाड़ म आए अ का क शेर को मारना पढ़ा तो मुझे ब त दुःख लगा पर जब उ ह ने अपने ेमी क क़ पर दो शेर को िनयिमत प से आते-जाते और रहते देखा, तो उस समय उ ह ने जो महसूस िकया, िबलकल वैसा ही उनक श द पढ़ते ए मने अनुभव करते पाया, यह उनक लेखनी का जादू था -इसी वष, िकतने वष बाद लखनऊ जाने का अवसर िमला- मेरी िसफ़ दो वािहश थ , पाक रोड का घर देखना और जाना। िजस िदन हम जाना था उस िदन बंद था और तुषार क िववाह समारोह क यव था म अगले िदन कोई साथी नह िमला -पाक रोड क उस घर क तलाश म हम इधर-उधर च कर लगाते रह पर वह सड़क नह िमली और पता मुझे याद नह था। पर पाक रोड क उस घर म िबताया बचपन कभी नह भुला पाई -और भुलाना भी नह , य िक वह तो -तारा भाभी ने मुझे वह महामं िदया था, िजसे संजोये मने पूरा जीवन काट िदया। तारा भाभी यार लाल अ वाल क दूसरी प नी थ , गोरी, हसमुख, वातालाप वीण! यार लाल अ वाल, मेर भाइय क िम थे, और कानपुर क कां ेस पाट क से टरीतारा भाभी ायः लखनऊ आती रहती थ और

उनक ारा भी हमार बा यजीवन म िकतनी नई-नई िखड़िकयाँ खुलती रहत , उनक क मीर म अमरनाथ या ा, दि ण म कां ेस पाट का अिधवेशन मगर सबसे रोचक वृ ा त होता था चं शेखर आज़ाद को पुिलस छापे से बचाने क साहसपूण रोमांचक कहानी, िजसे बार-बार सुनने पर भी हमारा जी नह भरता था- िकस कार इस नाट क़द क , एक दम गोरी, ी ने अं ेज़ क पुिलस को चकमा िदया- वह कहानी कभी बाद म-तो तारा भाभी हमार यहाँ लखनऊ आई ई थ - उस िदन शायद रिववार था- कल क छ ी थी, सार ब े िमल कर सड़क पर खेल रह थे, भाग-दौड़, ध का-मु क , शोरगुल करते ए- मने उस िदन एक नई ॉक पहनी थी, जो न जाने य खादी क नह थी, ॉक पर हर रग क नाव म छपी ई थ , आड़ीितरछी,उ टी-सीधी -उस कपड़ का नम-नम िचकनापन मेरा शरीर सहला रहा था -तभी िकसी ने मुझे ध का िदया और म सड़क पर िगर पड़ी -मेर घुटने िछल गए और तेज़ दद आ, उठकर खड़ होते ए मने देखा, मेरी ाक फट गई थी, उसम ए छद क पीछ से मेरा खून बहता घुटना िदखाई दे रहा था -मने दुख भरी चीख मारी, मेरी फ़वरट ॉक फट गई, घुटन म दद था वह अलग, उसक ऊपर से मेरा रोना सुन कर भाई होरी लाल हाथ म िटचर आयोडीन क शीशी और फरहरी लेकर आते िदखाई िदए -िटचर क छरछराहट और दद का यान आते ही मेरी चीख और बढ़ ग 9 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

उनक पीछ-पीछ तारा भाभी भ - पास आकर उ ह ने शांत वर म, मेरा हाथ पकड़कर कहा ‘'िश बन लाल क बहन रोती नह ---'' मेरा रोना बंद होने म कछ समय लगा, य िक भाई तो ज़ मी घुटन पर िटचर लगाने लगे थे, मेरी आवाज़ बंद हो गई थी, मगर िहचिकयाँ आ रही थ - तारा भाभी ने इस बार पुचकारते ए कहा, '' ांितका रय क घर क लड़िकयाँ रोती नह ।'' मने ह ठ भ च िलए, ा तकारी च शेखर आज़ाद - वतं ता सेनानी, िश बन लाल! 000 फा ट फॉरवड -बरस -बरस बाद, म अ पताल म , मृ यु और जीवन क बीच झूलती ई, मेर दय क िझ ी म पानी भर गया ह, िकसी समय हाट अटक हो सकता ह, दय धड़कना बंद कर सकता ह। तब ओपन हाट सजरी ने इतनी गित नह क थी-काफ़ र क थी, डॉ टर पानी धीर-धीर कम कर रह थे। समय लग रहा था- म अमे रका म अकली थी- िनतांत अकली। अ पताल म मुझसे िमलने मेर सहयोगी अवध िकशोर नारायण आए थे, साथ म प नी, पाँच ब क माँ‘'आप सब इतना अकले कसे झेल रही ह। '' ीमती नारायण ने कहा, ''न कोई संगी न साथ !'' तो नारायण जी ने यं य से कहा, '' आिख़रकार िश बन लाल क बहन ह ना !'' बात खट से सीने म जाकर लगी, सच ही तो ह न ! म मु करा दी- '' आप सही कह रह ह।-'' 000 दादा का काय े हम, प रवार को मालूम था, महराजगंज गोरखपुर- वह कहाँ रहते थे, कसे खाते-पीते थे, यह सब वह िद ी क पा रवा रक जीवन से अलग रखते थे। िद ी म मेरी माँ थ , छोट िवधुर भाई होरी लाल और उनक छोटी -छोटी तीन बेिटयाँ- सिवता, सबसे बड़ी िजसका नामकरण माँ ने िकया था, बीच क रखा- माता-िपता का िदया नाम, िजसम मने 'सु' जोड़ िदया था, और सबसे छोटी छाया, िजसक ज म क दो घंट बाद ही उसक माँ क र - ाव से मृ यु हो गई थी, और िजसे मेरी माँ ने दय से लगाकर ब त यार, दुलार और मम व से पाला था। जब


दादा पािलयामट क सद य होते तब प रवार िफ़रोज़शाह रोड क बंगले म रहता और जब दादा इले शन हार जाते तो इधर-उधर, भटकता रहता, कभी िकसी िम , या संबंधी क घर िटक जाता या िफर रामनगर या पटल नगर जैसे मोह म िकराये क घर म- म इलाहाबाद म पढ़ रही थी और हर छ ी घर आती थी, शाम को जनता ए स ेस क लकड़ी क बच पर कभी बैठकर, कभी सोते ए। जब रल जमना क पुल से गुज़रती तो मेरा पूरा शरीर पुलक उठता; य िक ेिहल भाई और ममतामयी माँ क साथ समय िबताने क िवचार से! भतीिजयाँ भी मुझे ब त यार करती थ , अपनी तरह से। िफ़रोज़शाह रोड क वह वष सुखद होते। जब िवभाजन क बाद पािक तान से आए शरणािथय को भूिम िमल रही थी, पड़ोसी ने दादा से लॉट ख़रीदने को कहा था- दादा ने साफ़ मना कर िदया, िक वह भूिम शरणािथय क िलए ह, उसे ख़रीदना अनैितक होगा। माँ ने हलक से कहा भी, िक िद ी म लॉट लेकर घर बना ल- तो भी दादा ने हसकर कहा, '' लॉट, िकस क िलए? मेर न बीवी ह, न बालब े-'' माँ हमेशा क तरह चुप रह ग । 1981 म वह ऐसी घटना ई िजस का कम से कम मुझे मान गुमान तक न था, पाँच बार लोक सभा क िलए सद य िनवािचत िश बन लाल अपने ही काय े म चुनाव हार गए थे। जब म िद ी प च तो वह िफ़रोज़ शाह रोड क ांगण म अकले बैठ ए थे, उनक चार ओर कागज़ और प का अ बार था''दादा'' म और कछ न कह सक । वर अव हो गया। दादा ने मुझे ख उठाकर देखा- ''गीता क वचन भूल गई। थत य सुखदुख म एक समान रहता ह''- दादा ने जेल क एकांत कारावास म गीता, उपिनषद आिद का गहन अ ययन िकया था। आपि काल म, न जाने य गीता क बु वचन मेरी याद से िफसल कर लोप हो जाते ह। घर का न शा यह था, दादा, छोट भाई होरी लाल और उनक तीन बेिटय क ित

अपना क य िनभा चुक थे- तीन िववािहत, पित ेम म आकठ िल , बाल ब े वाली थ , घर म बचे, बूढ़ी मेरी माँ और भाई होरी लाल- और दादा वयं। बड़ी पोती क पित महाराजगंज क एक कॉलेज क ि ंिसपल थे, मगर उ ह उस ामीण वातावरण क बजाए िद ी म िफ़रोज़शाह रोड पर सबसे बड़ दामाद क तरह रहना अ छा लगता था। और उनका वैसा स मान भी था। सबक राय से सिवता ने ग़ािज़याबाद म ज़मीन लेकर बड़ा सा घर बनवाया था, िजसम दादा ने साम ी और रािश दोन से पया मा ा म सहायता क थी, यह मानी ई बात थी िक वृ ाव था म ताऊ, िपता और दादी एक खंड म रहगे-जो तब िकराये पर चढ़ा आ था। घर का सामान बटोरा जाने लगा, तभी सिवता का संदेशा आया िक उसक पित वृ दादी को साथ रखने क िलए तैयार नह ह! उसक पित सामने से यवहार कशल और िमठ बोले थे, ऊपर से माँ क ित आदर, न िनरादर, मगर उनक मन म या चल रहा था ये कौन जानता! शायद वह तीन वृ संबंिधय को अपनी छत क नीचे रखने को तैयार नह थे, िज ह ने उनक प नी को पाल पोस कर बड़ा िकया था और घर क बड़ पौ दामाद होने क कारण महीन उनक ख़ाितरदारी क जा चुक थी और उ ह ने काफ़ बचत भी क थी। घर म यह परपरा थी, समथ य दूसर क ित अपनी पूरी िज़ मेदारी िनबाहता था, उदाहरण सामने था, अपनी प नी और ब े न 10 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

होते ए भी दादा िश बन लाल ने अपने मामा को उनक मृ यु काल म िदया वचन जीवन पय त िनबाहा था, मेरी माँ और हम तीन बहन क पूरी िज़ मेदारी सँभाली थी और छोट भाई होरी लाल क बेिटय को पढ़ा-िलखाकर उनक इ छा अनुसार सजातीय िववाह िकये थे। मेरी बड़ी बहन कमला क पित यदुपित सहाय ने भी, अपनी ले रर क तन वाह म कमला क छोटी बहन को बरस साथ रखकर पढ़ाया िलखाया था इसिलए यह अपे ा करना जो िवशाल ह िश बन लाल क सहायता से बना ह, उसम प रवार क तीन व र संबंधी रहगे सिवता क अपने िपता, दादी, िज ह ने छह वष क आयु से पाला पोसा था, और ताऊ, िजनक पु षाथ से सार प रवार को य िमला था। सिवता पित क अंधभ थी, उसने तोते क भाँित पित का संदेश सुना िदया। माँ गािज़याबाद जाकर रहने क िलए उ सािहत नह थ , पर िसर पर एक छत तो होती। मने सुना वह कई िदन तक रोती रह , - चुपचाप, जैसी उनक िज़ंदगी भर आदत रही, अंततः घर िबखर गया, िपता होरी लाल को भी उस घर म जगह नह िमली, गािज़याबाद म एक िकराये क घर म रहने लगे, अ सी साल क आयु म माँ एक बार िफर बेघर हो गई, जैसे बरस पहले होरी लाल क प नी ारा िन कािसत कर दी गई थी, उसी तरह सिवता और सतीश ारा मने माँ को अपने पास बुलाना चाहा, पर उ ह ने मना कर िदया। वह प रवार, बेिटय , उनक ब और छाया से इतना जुड़ी ई थ िक अकले मेर साथ, अनजान, ठड देश म, जहाँ क भाषा से वह सहज नह थ , न िवदेशी जमाता क उप थित से, जीवन क अंितम िदन िबताना उ ह ा नह आ। मने तभी माँ, दादा और भैया क रहने क िलए िद ी म लैट ख़रीदा पर जब तक वह बनकर तैयार आ तब तक उसम रहने क िलए तीन म से कोई जीिवत नह बचा था। माँ से दादा से कहा-''आप रोती य ह, म गोरखपुर म घर लेकर आपको बुला लूँगा।'' अंततः माँ अपनी मँझली बेटी कािमनी क


पास बड़ौदा चली ग । छट गई उनसे िद ी, संबंधी और िबछड़ गई छाया, िजससे उनक ाण जुड़ ए थे। इस कार हम सबक जीवन का एक लंबा अ याय समा हो गया। 000 दादा आँधी क तरह िद ी आते थे, हम सुबह चाय पी रह होते थे तो बरामदे क सीिढ़य पर उनक चढ़ने से उनक फट जूत क फटफट आवाज़ से माँ समझ जाती थ िक िश बन लाल आ गए ह। दादा क िबखर ए बाल, धूल भरा चेहरा, मटमैला, कभी-कभी जेब िवहीन खादी का कता और गाँव म धुली धोती, पर चेहर पर ध आभा और व सल 'मु कान'। ''आ गई आप?'' मुझसे कहत!े वह अपने कमर म चले जाते थे जहाँ पािलयामट क आए हर िलफ़ाफ और काग़ज़ का अ बार लगा रहता था, अख़बार, िकताब, प -माँ झटपट उनक पसंद का भोजन बनाने म लग जाती थ , उनक धुले, महीन खादी क कपड़ िनकालती थी और वह नए जूते भी- यह कपड़ उनक िद ी म पहनने वाले थे। पािलयामट म जाने क िलए वह हमेशा ऑटो र शा म पािलयामट जाते थे। वे दो तीन िदन से अिधक िद ी म नह रहते थे, उनका मन तो महराजगंज म अटका रहता था- बस दो तीन िदन बाद वह जाने को तैयार होते थे तो अपने िद ी वाले सफ़द, साफ़ सुथर कपड़ कमर म छोड़ जाते थे, माँ उ ह धुलवाकर ब से म रख देती थी- घर म स ाटा हो जाता था, म माँ क कमर म खाट पर बैठ कर पढ़तीिलखती थी। दादा क साथ हमेशा दो एक य रहते थे। वही, हसते-हसते खाने क मेज़ पर साथ बैठकर बताते थे -'' न म स सेना जी क जेब कट गई, '' या िफर मुझ से -''बिहनी, आपने जो अमे रका वाला वेटर ला कर िदया था, कछ घंट ही पहना, इटावा टशन पर एक िभखारी को ठड म िठठरते देखा तो उतार कर दे िदया- '' दादा सुनते रहते थे, मु कराते रहते थे,

कछ बोलते नह थे- उनका वभाव था, जहाँ भी िजसक जो मदद कर सकते थे, वह कर देते थे-- उनका िकतना मान था यह मने वयं देखा था, जब इिदरा गाँधी अपने बरामदे म िनकल कर उनका वागत करती थ ; जब रा पित भवन क समारोह म जवाहर लाल नेह उनको देखकर मु करा देते थे, '' कसे हो िश बन लाल ?'' वतं ता सं ाम क बड़बड़ नाम, 1947 क बाद हमार घर जो वा तव म दादा का था, िफ़रोज़शाह रोड पर आतेजाते रहते थे। पर दादा म कह अिभमान नह था, हमेशा एक मु कराता आ चेहरा और ऐसी क णामय धता जो बरस बाद मने दलाई लामा क मुख पर ही देखी। अ य सद य क तरह िद ी म रहकर उ ह ने कभी पैसे नह बटोर। पालते रह प रवार को, भाई- भतीिजय , भाभी और हम सब को- अपनी प नी और ब े न होते ए भी वे सब से जुड़ थे, अपने िपता क प रवार से, अपने निनहाल से और िफर उनक काय े म जो उनक साथी रह ह गे-उनसे ही मने ''वसुधैव कट बक '' का पहला पाठ सीखा- देख तो अब मेरा कोई भी नह ह, माँ, भाई, बहन सब िदवंगत हो चुक ह, यहाँ से िवभाग म भी, शहर क भी सब संगी साथी, िफर भी जुड़ी - तीसरी चौथी पीढ़ी से, पुराने िव ािथय से, पाठक, पािठका सेऔर अब सोशल मीिडया क ारा नए लेखक, लेिखका से- किवय और कलाकार से -11 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

''प प इवं भसा -'' यह तो मने दादा से ही सीखा। दादा क मृ यु क ख़बर मुझे कई िदन बाद िमली, तब फ़ोन िवदेश क िलए बुक िकये जाते थे। कई िदन कने शन िमलने म लग जाते थे, दादा क सािथय ने प रवार को उनक बीमारी क कोई सूचना नह दी। माँ हमेशा टीवी पर शाम क ख़बर सुनती थ , उसी पर उ ह सूचना िमली िक पाँच बार िनवािचत लोक सभा क सद य, िश बन लाल क मृ यु हो गई ह- वह तड़प कर रह ग , बड़ोदरा से या ा करक महराजगंज जाना संभव नह था। बाद म भारत जाने पर मने दादा क मृ यु क बार म कथाएँ सुनी, िक कसे वह लखनऊ क अ पताल म अकले पड़ रहते थे, कसे उस अध अचेताव था म उनक आस-पास क लोग ने कोर काग़ज़ पर उनक द तख़त करवा िलए थे, यहाँ तक िक िकसी ने उनक हाथ क घड़ी और पु पाथ क ी स य सा बाबा ारा दान क गई ा क माला भी उतार ली थी 000 िवदेश म रहकर मुझे प रवार क सद य क मृ यु क सूचना ऐसे ही िमलती थी, अंतररा ीय िलफ़ाफ़ पर भाई होरी लाल का िलखा प , िजसम बड़ी बहन क पित यदुपित सहाय क मृ यु क ख़बर थी, या सूचना पो टकाड, िजसम सिवता क तेरहव क , या बॉ टन से मेर पित का फ़ोन -''तुम तुरत भारत क िलए िनकलो, तु हारी माँ मरणास ह- '' फ़ोन कने शन उ ह िमल गया था, मुझे नह । पर तु अब फ़ोन क सुिवधा ह- मुंबई से सुबिकयाँ लेती अलका का - ''क मन मौसी चली ग ''--या िफर ''अ माँ चली ग ''- और अभी कछ ही समय पहले, यारह बजे रात को, '' रीता चली गई--'' अकले घर म रोना पीटना ? नह होता, बस कड़वे िवष क तरह सारा संताप, सारी यथा, संपूण दुःख घूँट लेनािश बन लाल क बहन नरोती नह -000 मशः (अगले अंक म जारी)


कथा-कहानी

जूठा सेब

ा पा डय

एक सुनसान सड़क पर बीस-बाईस साल का एक लड़का साइिकल चलाता चला जा रहा था, वह रा ता सुनसान था। उतरती जनवरी क दोपहर म भी ब त िनचाट था जबिक सड़क िचकनी और साफ़ थी। लड़क क जेब म एक मोबाइल फ़ोन था िजससे उसक पुरानी, फटी और खाली जेब क क मत ब त बढ़ गई थी। उस िबयाबान स ाट म साइिकल चलाते ए लड़क क छाती चौड़ी हो रही थी। तभी उसक सामने से आते एक मोटरसाइिकल सवार ने उसक बगल म आकर र तार धीमी क अपनी िफर मोटरसाइिकल रोक ली। नकाब पहने एक लड़क पीछ बैठी ई थी। वह भी नई उ क थी। मोटरसाइिकल चलाने वाला लड़का भी लगभग उसी क उ का था। पदानशीन लड़क ब त धीमी, कछ उदास सी आवाज़ म बोली –"मेरी बहन हॉ पटल म ह। ब त बीमार ह। बस एक नंबर िमला दीिजये, बड़ी मेहरबानी होगी।" साइिकल वाले लड़क ने तुरत अपनी जेब से एकदम नया ए ोएड फ़ोन िनकाला और त परता से नंबर पूछकर कछ गव से भरता आ फ़ोन िमलाकर उस नाज़नीन क हाथ म दे िदया। वह भूल गया िक फ़ोन िकतनी मश क़त क बाद उसक हाथ म ह और उसे इस तरह िकसी राह ा पा डय चलते क हाथ नह दे देना चािहए। अचानक उसको कछ भी समझ म नह आया य िक 467, 11 एवे य,ू गौर िसटी -2, िनयर मोटरसाइिकल क र तार अचानक बढ़ गई और बढ़ती ही चली गई। फ़ोन लेकर वह िकसान चौक, ेटर नोएडा -201301 पदानशीन, नाज़नीन यह जा और वह जा हो गई। मोबाइल- 6394419003 एक बार लड़क ने सोचा िक मोटरसाइिकल का पीछा कर। साइिकल, मोटरसाइिकल क ईमेल- pandepragya30@gmail.com पीछ नह दौड़ सकती सोचकर भी वह कछ दूर भागता रहा िफर ह का-ब का होकर खड़ा रह 12 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


गया। खड़-खड़ ही अपनी जगह पर नाच सा गया। उसने एक ट का अ ा उठाकर गु से म अपनी ही साइिकल पर दे मारा। साइिकल क हालत पहले से ही ख़राब थी और ख़राब हो गई। चुप रह जाने क अित र और कछ नह कर सकता वह। उसने ज़बान िसल लेना ही ठीक समझा। एक छोटी सी फ ी म काम करने वाली सुपरवाइज़र का बेटा हरीश, उस हसीना क नकाब से ढक खूबसूरत चेहर को याद कर उसम उलझता रहा। फ़ोन और चेहरा दोन एक दूसर म गडमड होते रह। उसक हसरत उसक आँख म उतर आई थी इस बात पर उसने यान ही न िदया था। शायद नाज़नीना क आँख ब त खूबसूरत थ । उसक आँख म काजल था। उन आँख क उसक पास अब एक ऐसी याद थी जो उसको रह-रहकर कचोटती थी। य पड़ गया उस हसीना क च कर म, मगर अब तो तोते उड़ गए थे। िकतने ही िदन से ए ोएड का एक फ़ोन उसक सपन म चाँद सा था और वह उसे उतार लाना चाहता था। अपनी चाहत म रग भरना चाहता था। हसरत पालना अपराध नह तो उनका पूरा होना ही कसे आ। यह फ़ोन तो चाँद क पास रहने वाले ने ही उसक झोली म डाल िदया था। उसक दो त क पास एक से एक फ़ोन थे। एक साधारण फ़ोन तो वह ले ही सकता था। बड़ी मु कल से एक छोटा सा फ़ोन उसने ढाई सौ पये म िलया था। उससे वह एक त वीर भी नह ले सकता था। िकसी काम का नह था। ए ोएड का नाम िकसी दो त क ज़बान से सुना था उसने और उसक बाद टीवी पर उसका िव ापन देखा था। वह िव ापन उसक मन म आधे खाए सेब क तरह सेब क महक बनकर समा गया था। सेब उसने यू ूब पर कई बार देखा था। उसक क मत भी मालूम क थी लेिकन वह ब त महगा था। सच क सेब क क मत पूछकर भी वह कई बार लौट आया था। जूठ सेब क उस त वीर क ित उसक मन म एक गहरी लालसा पैठ गई थी। रस छोड़कर वह उसक प और गंध से बाव ता

था। चाँद उसक सपने म था, चाँद पर बने ग नह । जूठा सेब भले ही न िमला। कछ तो िमला, ए ोएड ही सही। िमसेज़ शािलनी तनेजा, फ ी क मालिकन का फ़ोन आज से एक महीने पहले गायब आ था और सुपरवाइज़र क बेट का एक महीने बाद। मालिकन ने सुना तो बेबी से पूछा- "वह फ़ोन तु हार बेट क पास कहाँ से आया?" "मैडम, एक उसका दो त ह उसी ने उसको लाकर िदया था।” "कहाँ से लाया?" िमसेज़ तनेजा कछ स त होकर पूछ रह थ । "यह तो मालूम नह मैडम, लेिकन उसका फ़ोन चार सौ का था। मने ही उसका पैसा िदया था मैडम।" िमसेज़ तनेजा क मन म सच जानने क छटपटाहट समा गई थी। िमसेज़ तनेजा ने अपने ज़ री खच रोक कर ए ोएड का वह फ़ोन खरीदा था और जब पैसे कछ कम पड़ थे तब िम टर तनेजा ने बड़ी िम त क बाद उसे कछ पैसे िदए थे और वह फ़ोन खरीद सक थी। िमसेज़ तनेजा को जब यह खबर ई थी िक उसक सुपर वाइज़र बेबी क बेट ने कोई फ़ोन खरीदा ह तब उसने बेबी से कहा िक वह उसक बेट का फ़ोन एक बार देखना चाहती ह। बेबी ने झट से कहा-मैडम, वह तो बहन क घर चला गया ह एक ह ते बाद लौटगा 13 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

और जब लौटा तो इस घटना क साथ िक कोई नाज़नीन उसका फ़ोन ले उड़ी ह। उसक फ़ोन क गुमशुदगी उसक िलए िकसी रह य से कम नह थी। परद क महगी दुकान म बैठी िमसेज़ तनेजा क हाथ म नया चमचमाता आ ए ोएड फ़ोन ह िजसे हाथ म लेकर उसने अपना पुराना फ़ोन भुला िदया ह। िकतने ही रग-िबरगे, याह और सफ़द परदे उसक चार ओर ह। िमसेज़ तनेजा ख़याल क ऊबड़-खाबड़ रा त पर चल पड़ -अ सर लोग क पास कोई ऑ शन ही नह होता। जैसे वह पदानशीन। िन त प से उसक पास कोई िवक प नह रहा होगा..तभी तो वह वहाँ क , नह तो उस सुनसान सड़क पर भरी दोपहर म उसको आने क या ज़ रत भी। हाथ म परदे को देखते-देखते िमसेज़ तनेजा क िनगाह अपनी सोच पर अटक गई। वह ब त सद िदन था। िमसेज़ तनेजा या ा से लौट आई थी। उस क िदमाग म सुराजी क जवान ब घूम रही थी। सुबह अपनी फ ी प चते ही िमसेज़ तनेजा ने सुराजी को अपने ऑिफ़स म तलब िकया। बुिढ़या जानती थी िक उसक ऊपर गाज िगरने वाली ह। िमसेज़ तनेजा क पास आती उसक चाल म कभी न िमटने वाली थकान थी। िमसेज़ तनेजा उसी िदन से, जब से फ़ोन खोया था, आँख लाल िकए उसे घूर रही थी। सुराजी दोन हाथ जोड़ काँपती ई उसक पावँ पर िगर पड़ी थी। उसक ठड हाथ िमसेज़ तनेजा क पावँ से टकराए। िमसेज़ तनेजा का गम और मुलायम, कोट म िलपटा कोमल शरीर थरा गया लेिकन उस गमाहट से बूढ़ी सुराजी को शायद सुख िमल रहा था। वह िमसेज़ तनेजा क पाँव पर देर तक हाथ रखे रही। िमसेज़ तनेजा ने अजीब िनगाह से उसको देखा और अपने पैर ख च िलये। वह िमसेज़ तनेजा क फ ी म ब त िदन से थी लेिकन िमसेज़ तनेजा ने आज पहली बार उसक चेहर को गौर से देखा था। झु रय से भर चेहर पर, ठढ से वचा फटने क कारण पपड़ी सी जमी थी। उसका गहरा साँवला चेहरा, लालिमच क तरह सूखा था। उसक आँख म


जाने कसा पानी था। आँसू थे या ओस, िमसेज़ तनेजा समझ न पाई। अब तक तो वह उसे इतना ही देखती थी िक उसक िकतनी छ याँ कटगी और पगार कह उसक औक़ात से अिधक तो नह बन गई। इसक अलावा उसक ित अब तक तट थ िमसेज़ तनेजा को आज उस पर सा आया था। वह गुराई-"तुम अब यहाँ से िनकलो।" बूढ़ी सुराजी ने िमसेज़ तनेजा क पाँव ज़ोर से िफर पकड़ िलए -ऐसा न करो िबिटया। उसने उसे पहली बार िबिटया कहा था....इसक पहले तो वह मालिकन कहती रही होगी या शायद िमसेज़ तनेजा ने कभी उसक आवाज़ ही न सुनी थी, उसे याद नह । वह कहती जा रही थी–"िबिटया, तुम ही माई बाप हो अब। तुम जो पगार देती हो, उससे हमर आदमी कर दवाई का इतजाम इ जाता ह..न िनकारो, ..हम कहवां जाबे?" िमसेज़ तनेजा को जाने या आ ..थोड़ी देर क िलए वह मालिकन न होकर िबिटया बन गई, लेिकन अगले ही पल उसको अपना खोया आ फ़ोन िफर याद आ गया.. उसे यह एहसास आ िक वह िगड़िगड़ाती ई इस ी क झाँसे म नह आएगी। इस एहसास क आते ही िमसेज़ तनेजा चीख पड़ी- "तु हारी इतनी िह मत िक तुम मुझे आकर यह सब समझाओ? कल मेरा फ़ोन मेर सामने होना चािहए। नह तो!" सुराजी क साँस क गई .. या बोलगी मालिकन-उसने दम साध िलया- म तु ह जेल िभजवाऊगी। इस बार वह मालिकन न कहकर- माई- बाप, हमार भगवा और जाने या- या कहती रोने लगी। वह िमसेज़ तनेजा क पावँ को ज़ोर से पकड़ कर बैठ गई। ऐसा न करना िबिटया! उसक भीतर एक दया जागी लेिकन तभी बेबी ने इशार से कहा िक यह सब जानती ह। िमसेज़ तनेजा ने अपना चेहरा िफर स त कर िलया। बेबी ने मौका देख कर बाद म कहा"मैडम, इसम अपनी ब क करतूत बताने क िह मत नह ह। इसक बेटा-ब इसे ध क मार कर घर से िनकाल दगे.. ब बदमाश ह। िमसेज़ तनेजा ने सोच िलया िक वह िकसी

क मत पर नह िपघलेगी लेिकन उसका बारबार िबिटया कहना उसे भीतर तक छ रहा था। ब त िदन हो गए थे उसे खुद क िलए यह संबोधन सुने। हवाई जहाज़ से क गई अनेक या ा क दौरान, उन या ा म कई बार बड़-बड़ होटल म कने क और कपनी ारा आयोिजत बड़ी-बड़ी पािटय म भी जहाँ इतनी आवभगत होती ह, जहाँ बेयर दुहर हो-होकर सलाम करते ह वहाँ भी िकसी ने उसे कभी िबिटया नह कहा था। िबिटया तो उसको उसक माँ कहत थ जो बरस ए गुज़र चुक थ । आज अचानक िमसेज़ तनेजा को अपना बचपन याद आने लगा। वह ब त िदन क बाद भोली सी, छोटी सी ब ी बन गई। िमसेज़ तनेजा सबसे अिधक भरोसा बेबी क बात पर ही करती थी। बेबी माट और कछ नखरीली थी जो ब त कम समय म िमसेज़ तनेजा क िलए ख़ास हो गई थी। िफर भी बार-बार सुराजी को िनशाना बनाती बेबी उस क शक क घेर म कब आ गई यह िमसेज़ तनेजा भी न जान पाई।- या बात ह जो यह बेसहारा सुराजी को िकसी भी तरह नौकरी से हटा देना चाहती ह। उसका शक पु ता होने लगा। ताला-चाभी, उसक बाद फ ी पर पूरा क जा रखने वाली उसक सुपरवाइज़र क हिसयत से काम करने वाली यह आिख़र इतनी ई यालु य हो रही ह। वह सचेत हो गई थी। उसको लगा िक उसे इस तरह भी सोच लेना चािहए। उसको शायद सुराजी पर दया आई थी जब उसने अपने सद हाथ से उसक 14 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

पाँव पकड़ थे। वह उसक बफ ले हाथ क छअन से िसहर गई थी। उसक पाँव गम थे और सुराजी क हाथ बफ ले ठड थे। या उसको उसक गम पावँ को छकर गरमी िमली होगी! िजस तरह िबिटया यह संबोधन उसक मन म समा गया था। माँ ने तो उसका नाम ही िबिटया रख छोड़ा था, उसे याद आया िक जब भी वह उसे िबिटया बुलाती थी वह दौड़कर माँ क पास जाती थी। उस िदन उसका फ़ोन या खोया था िक उसक छोटी सी फ ी क याले म तूफ़ान ही आ गया था। वह बार-बार यही कहती चीख़ रही थी– मेरी ही ज़मीन पर पलने वाले तुम लोग? मेर नौकर और चाकर! मेरी ही फ ी से मेरा फ़ोन चोरी कसे हो गया? यह िहमाक़त िकसने क ? उस ने आपा खो िदया था और चीख-चीख कर देर तक लाप करती रही थी। मुझे फ़ोन चािहए नह तो म पुिलस को खबर क गी। माकिटग क लड़क को तो फ ी म पाँव रखने क ही अनुमित नह थी। वे भी िमसेज़ तनेजा क आवाज़ सुनकर काँप गए थे। उसक चहारदीवारी पर हाथ रख देना ही बड़ी बात ह िफर िकस क िह मत ह? िमसेज़ तनेजा को फ़ोन क खोने का संताप तो आ ही था उससे भी बड़ा उसका ोध था, उसक ही आि त ने यह िकया कसे? इतनी िहमाकत कसे ? िमसेज़ तनेजा ने ब त पैसे खच कर क अपनी एक बड़ी हसरत पूरी क थी। उसका वष का सपना था वह-फ़ोन। तब उसका काम इतना अ छा नह था िक वह अिधक पए ख़च कर दे लेिकन इ छा का या करती। िमसेज़ तनेजा फ ी से दुखी हो लौट आई। उसी िदन िमसेज़ तनेजा क िद ी क िलए लाइट थी। उसको एक ज़ री मीिटग म जाना था इसिलए उसक िलए संभव नह था िक वह वहाँ कती और फ़ोन को खोजती, उसने यह काम बेबी को स पा और समय से एअरपोट क िलए िनकल गई। सुराजी िजसको झुक कमर को सीधा करने म समय लगता था, वह कसे ऐसा कर सकत थी? फ़ोन का न ऑन होते ही पासवड डालने का


ािवधान था िजसे िसफ वह जानती थी। उस क मन म वह ितरािलस हज़ार का फ़ोन दहाड़ मारकर रोता था िजसको उसने अभी बस महीना भर पहले ही खरीदा था। िकतनी मु कल से िमसेज़ तनेजा ने उस फ़ोन को खरीदने का सपना पूरा िकया था दरअसल उसक मजबूरी थी। जब वह अपनी िम से िमलने जाती और एक-एक कर वे सब अपनी गािड़य से उतरकर िकसी जगमगाते ड टशन पर अपने महगे पस क बगल म महगे फ़ोन रख जगमग होत तब िमसेज़ तनेजा अपना फ़ोन अपने पस क भीतर ही रखती। उसका दस हज़ार का फ़ोन उनक हज़ार क फ़ोन क सामने घिटया िदखाई देता था। वह उस िदन क ती ा कर रही थी जब उसक हाथ म भी वैसा ही फ़ोन हो और वह भी अपना टटस मटन कर ल। फ ी से फ़ोन का गायब होना उसे ऐसा कचोट रहा था जैसे उसक पाली ई िब ी अचानक पंजे मारकर उसका ही चेहरा चोिटल कर दे। िमसेज़ तनेजा क कान म उसक अपने ही श द गूंजने लगे थे-मेरी ज़मीन। मेरा िदया आ खा कर मेरी ही थाली म छद िकया। मेरा िदया आ। वह रात म जागती। मेरी ज़मीन...हाँ ..उसने वह ज़मीन का टकड़ा खरीदा था सात हज़ार कवयर फट का। तब वह िम ी क मोल िमला था। उसक फ ी म एक चौदह साल क लड़क भी काम पर आती थी। उस पर िमसेज़ तनेजा ख़ास तौर पर दयालु थी। उसक माँबाप पहले भीख माँगते थे। अब बूढ़ थे। उसक दयालु होने क भी वजह थी वना बेमतलब तरजीह देना उसने कब सीखा था। एक तो आधी पगार दूसर काम पूरा। ग़ज़ब क तेज़ थी वह। बेबी ने अपनी गोल-गोल आँख नचाते उस से यह कहा था- "मैडम मोबाइल का क ड़ा ह यह। देखने को ह छटाक ँ भर क । कोई महगा से महगा मोबाइल इसक हाथ म आ जाए, मैडम, तो ऐसे उलटती पलटती ह जैसे कोई िखलौने को उलट-पलट, तुरत सब समझ लेती ह और खोलकर फ़ोटो-सोटो सब लेने लगती ह श ो।'' यह बात बताते समय बेबी क चेहर पर

लड़क क तारीफ़ से अिधक अपनी समझ का गव-भाव खेल रहा था, वह ह ठ गोलगोल कर मु करा रही थी। जब उस ने एक बार श ो पर संदेह िकया तो बेबी उसको बचा ले गई। उसको एक बार भी बेबी पर कोई शुबहा नह आ बेबी ने िफर उसका यान पूरी तरह से बुिढ़या पर ही क त करने का इशारा दे िदया। िमसेज़ तनेजा चाहती तो फ़ोन क गुमशुदगी क रपोट क िशकायत पुिलस म दज करा देती लेिकन तब और भी लफड़ थे। उसक यवसाय क बार म वे पूछताछ करते। मोटा असामी मान उससे कछ ऐंठते और फ़ोन भी उसे िमलता नह । वह दूसर पचड़ म पड़ना नह चाहती थी। इन सारी बात को िवचारने क बाद उस ने यही सोचा िक वह डरा धमका कर फ़ोन तो िनकलवा ही लेगी। वह फ़ोन ढढ़ िनकालने क िलए दुगनी क मत देने क बात का ऐलान करती रहती। परद क दुकान से िनकल कर िफर ख़याल म खो गई। उसक गाड़ी सड़क पर भागने लगी। फ ी से फ़ोन कौन ले गया होगा यह पता न चला। सुराजी सारी कसम खाने क िलए तैयार हो जाती। उसक बात से वह यह तो समझने लगी थी िक फ़ोन क चोरी म सुराजी का तो कोई हाथ नह ह। उस िदन उसक ब वहाँ आई ही नह थी। उस ने सुराजी से पूछा– 'उस समय तुमने मुझे य नह बताया िक उस िदन तु हारी ब फ ी म आई ही नह थी।' 15 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

बुिढ़या धार-धार रो पड़ी। िबिटया, बेबी से डर लगता रहा। आप से डर लगता रहा। 'तुम सबसे डरती रही?' उसने मासूम अचरज से पूछा। बेबी उसक काम म उसका दािहना हाथ थी। बेबी उससे भी अिधक खुश और उ सािहत रहती। समय से पहले ऑडर तैयार करती, रात म भी जागकर तैयारी करती, सुबह हो या शाम जब भी उसे आवाज़ देती वह हािज़र रहती, उसे लगता िक बेबी िमसेज़ तनेजा क ित पूण समिपत ह ब क जैसे वह उस क प रवार का िह सा ह। बेबी अपने ब पर ब त गव करती य िक वे ब त तेज़ थे। वह अपने ब का बखान करते न अघाती। वे िकतने माट ह िकतने तेज़ और िकतने शौक न भी। वह बताती िक तीन ब क पास महगे मोबाइल फ़ोन ह। वह बताती िक उनक सपने बड़ ह। एक को माकिटग म जाना ह और एक को पुिलस म ..वह बताती िक उसक बड़ी बेटी कोई िबजनेस करगी। तब तक वह पाट टाइम कपड़ क दुकान म काम करती ह और दुकान का मािलक उसक काम से ब त खुश ह बाक व त म मैनेजमट क पढ़ाई करती ह। बेबी बताती िक उसक पगार आठ हज़ार पये ह वह बताती िक बीच वाला बेटा सुबहसुबह अखबार बाँटने क नौकरी करता ह। अ छा पैसा पाता ह। यह भी बताती िक उसक तीन ब े हर इतवार को मॉल म घूमने जाते ह। मॉल को वह माल कहती। बेबी को तो उतने ही पैसे िमलते िजतने वह देती िफर भी उसक ब े महगे शौक क बात करते यह देख िमसेज़ तनेजा हरान भी होती। बेबी क चेहर पर धूल सी रगत िबखरी रहती और ह ठ क नीचे हरदम एक शरारती मु कराहट रहती। मालिकन अ सर सुनती कभी ब क फ स नह जमा हो रही, कभी घर म कवल चावल खाया जा रहा ह। मगर उसक बात ऐसी िक रईसी भुलाए न भूले। घर म भूजी भाँग नह और सराय म डरा। बेबी ब त आिशकाना िदखाई देती। उसक पतले ह ठ हरदम आ मिव ास से भरकर मु कराते। मगर वह अब उनक भीतर क


बेचैनी को देखने लगी थी। उसने दुिनया देखी थी। िमसेज़ तनेजा जानने लगी थी िक ये उसक वाब ह और बेबी को िव ास ह िक उसक ब क महगे मोबाइ स और ांड वाले कपड़ क शौक पूर ह गे..तीन ब क बोझ से टटती बेबी ने ब को नकली जीवन जीने और सपन को पालने क सं कार िदए थे। सुराजी ने ही बताया– पित से मार खाती ह लेिकन कोई जानता नह । सबक सामने मु कराती ह। सबक सामने उसका पित उसक कधे पर हाथ रख नाचने लगता, कभी-कभी जब शराब पीकर आता तब कान पर हाथ रखकर खूब गाता। वह कहती, मैडम उसको हर चीज़ अ छी ही चािहए। ज स हो चाह सरट। चाह जहाँ से लाओ लेिकन वह स ता नह पहनता मैडम। मेरा आदमी भी कम शौक न नह , मैडम। बेबी क ह ठ पान से लाल रगे होते। नया ले लेने क बाद भी उसका यान पुराने फ़ोन पर अटका होता। उसे यह सोचकर बुरा लगता िक उसका रौब शायद उतना नह ह िजतना वह सोचती ह वना कौन यह िहमाकत करा सकता था। वह चटक ले रग पर नज़र रखने लगी थी। जब से उसका फ़ोन खोया तब से। यिद कह रग और हसी िदखाई देती तो उसे शक होता वह मानती थी िक चटक ले रग पर सबका अिधकार नह । सबक सीमाएँ पहले से िनधा रत ह। उसने सुराजी को बेबी क पीछ लगा िदया था। एक िदन उसने बेबी को रगे हाथ पकड़ा। कछ देर तो बेबी मासूम और अनजान बनती रही लेिकन िमसेज़ तनेजा को न बता सक िक रात गए माल फ ी से बाहर य गया। उस िदन ही िमसेज़ तनेजा ने बेबी को फ ी से िनकाल िदया। उसक बाद ही सुराजी क आवाज़ कठ से बाहर ई। 'मैडम, उस िदन फ ी म उसक बेट क अलावा और कोउ न आवा। ऊ फ़ोन उठाय क हमार सामने लियगा। हम देख िलहा और को न देखा। तबह बेबी हम िनकार धावे। हम धमकावे। अब हम कहकर डर।' कहाँ तो वह सुराजी को गूंगी-बहरी मानती थी।

िमसेज़ तनेजा को बाद म पता चला िक उसक ब े ब त कम पैस म छटपुट म काम करते ह। अपनी पढ़ाई और फ स क पैसे िकसी तरह िनकालते ह। जहाँ बेबी बताती रहती िक उ ह आठ हज़ार पये महीने क िमलते ह वहाँ वे द तखत तो आठ हज़ार पर करते ह लेिकन हक कत म मा दो हज़ार पा रह होते। िमसेज़ तनेजा ने अपनी फ ी का िक सा अपनी एक सहली को भी सुनाया। िमसेज़ मथा बाज़ार और यव था पर शोध कर चुक थ । उ ह ने कहा-'जो बेबी क बान पर था वह सब तो उसका और उसक ब का सपना था। महगा फ़ोन, महगी गाड़ी, महगे कपड़ ..और जो कछ भी महगा हो सकता था उसका व न वे य न देख? आिख़र वे भी तो बाज़ार म ह। हाँ वे नह जानते िक बाज़ार उनका नह ..बाज़ार िसफ उनका ह िज ह ने बाज़ार बनाया ह। मगर सपने और चाहत तो उन सबक ह िजनक पास मन ह और आँख ह हर बात हिसयत से तय नह होती ह।" "तो या यह अपराध ठीक ह? या आप राहज़नी और ऐसी छोटी चो रय और अपराध क प म ह। देिखये समाज म अपराध िकस तरह बढ़ रह ह। ये ही छोट घर क ब े करते ह िजनक पास कोई सं कार नह ह।" िमसेज़ तनेजा ने िमसेज़ मथा से कहा। िमसेज़ मथा ने झ ाहट क साथ कहा – "तो या पैसे वाले अपराध नह करते ? यव था को चलाने वाले अपनी जेब भर रह ह 16 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

हर जगह कमीशनखोरी और चोरी बढ़ती जा रही ह। ट स क चोरी अलग से। वे सं कार कहाँ से आते ह। या आप िजतना कमाती ह उसका दस ितशत भी आपक मज़दूर कमाते ह? जब तक आदमी और आमदनी क बीच फासला होगा..कमज़ोर तबका गािड़य क नीचे कचला जाता रहगा। मेनहोल म िगरता रहगा तब तक।"...िमसेज़ मथा क बात पूरी भी न ई थी िक िमसेज़ तनेजा को कछ याद आ गया। वह आधी बात क बीच म ही उठी और चल दी ..िमसेज़ मथा उसको जाते ए देखत रह । उनक चेहर पर कछ सवाल थे लेिकन यह व त िमसेज़ तनेजा अपने िवदेशी क े क साथ िबताती ह। िमसेज़ तनेजा का फ़ोन बेबी क बेट हरीश क पास प चा और वहाँ से उस नाजनीन क हाथ म चला गया। सुराजी ने ही िमसेज़ तनेजा को बताया था िक मोटरसाइिकल क पीछ बैठी वह नाज़नीन उसक फ ी म काम करने वाली तेज़ खोपड़ी वाली श ो ही थी और मोटरसाइिकल सवार उसका ेमी राजू था। सुनकर वह च क पड़ी थी। इसक बाद या आ होगा। या उसका राजू श ो को धोखा देकर फ़ोन सिहत िकसी दूसर शहर िनकल जाएगा? वह िफर बाज़ार क सैलाब म िकसी दूसरी नाज़नीन क आँख क बेबसी म िदखाई देगा..जहाँ िकसी क हसरत िफर फलेगी और फलेगी! ल बोलुआब यह िक हसरत और ज़ रत क बीच का परदा भी िकसी हसीना क आँचल क तरह ही ह। आदमी स क बाज़ार म अिन त हो गया ह। मािकट आदमी क िदमाग से सोचता ह। और आदमी मािकट क। सोचती ई िमसेज़ तनेजा अपने घर िक ओर िनकल गई थी। बाज़ार क हाथ िफसलता आ वह फ़ोन िफर िकसी को तरसा देगा और कह और िनकल जाएगा। वह सब जानती ह लेिकन िववश ह। सुराजी ने बेबी क जगह ले ली ह। उसक तरह ही हसती ह और अब उसको उसक तरह ही मैडम कहती ह। आदमी सबसे कमीनी कौम ह। िमसेज़ तनेजा अपने बार म भी सोचती ह। कभी-कभी। 000


कथा-कहानी

उसक मौत

िवकश िनझावन

िवकश िनझावन पुिलस ाउड क सामने‚अ बाला शहर 134003, ह रयाणा मोबाइल- 9896100557 ‚ 8168724620

ईमेल- vikeshnijhawan@rediffmail.com

बाबूजी, आपको यह जानकर सदमा प चेगा िक आज मेर हाथ िकसी का खून हो गया ह। खून क इ ज़ाम म िकसी को या सज़ा िमलती ह, इससे आप भलीभाँित प रिचत ह। सजाएमौत न भी िमले तो उ -क़द तो िमलेगी ही और उ -क़द म आदमी घुट-घुटकर, गल-गलकर मर जाता ह। लेिकन सच क बाबूजी, यह खून मने नह िकया। आप पूछगे, यिद खून मने नह िकया तो िफर मुझे क़ाितल करार य िदया जा रहा ह? दरअसल िजस य का खून आ ह उसक िज म पर मेरी ही अँगुिलय क िनशान ह। लेिकन यक न मािनये बाबूजी, यह खून मने नह िकया। म आपको कसे िव ास िदलाऊ। आप मेरी पूरी बात सुनगे तो आपको अव य ही यक न आ जाएगा। आपको यक न आ जाएगा तो आप मेर गवाह बन सकते ह और हो सकता ह आपक गवाही से ही म इस इ ज़ाम क सज़ा भुगतने से बच जाऊ। इस खून क सािजश आज से सात रोज़ पहले शु हो गई थी। सच कहता , इस सािजश म म शािमल नह था। आप पूछगे यिद म इसम शािमल नह था तो मुझे यह सब कसे पता चला? मुझे कसे पता चला, यह तो म नह जानता, लेिकन म परमा मा क कसम खा कर कहता िक म इस सािजश म कतई शािमल नह था। और िफर आपको अ छी तरह याद होगा िक आज से सात रोज़ पहले तो म आपक पास ही था। सात िदन क छ याँ जो ली थ मने। इन सात िदन म या - या आ, म एक-एक बात िब कल सही सही बता दूँगा आपको, तािक आपक मन म मेर ित कोई स देह क भावना न बनी रह जाए। आज से सात रोज़ पहले म आपक पास प च गया था। अपने आने क सूचना मने आपको पहले से फ़ोन ारा दे दी थी। मेर आने क आपको िकतनी स ता ई थी, इसका अनुमान मुझे पूरा-पूरा हो गया था। और सच क , आपक यवहार से म कह से िपघल-िपघल गया था। म मानता िक म शु से ही कछ कठोर वभाव का रहा , जैसा िक आप कहा करते ह। लेिकन मेर इस कठोर वभाव ने आपक भावना को कभी न समझा हो, ऐसा कतई नह ह। 17 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


और मेरा यह कठोर वभाव इस क भी नह ह िक म िकसी का खून कर बैठ। पर तु आज जो खून आ ह, उस य क िज म पर मेरी ही अँगुिलय क िनशान ह। लेिकन बाबूजी, म आपको यक न िदलाता िक यह खून मने नह िकया। म आपक पास सात िदन रहा। इन सात िदन म ढर सारी बात ई थ हमार दरिमयान। आप उन िदन आिथक अभाव झेल रह थे। आपने बतलाया था िक िपछले िदन अतुल काफ बीमार रहा िजसक वजह से उसक आठ दस रोज़ क त वाह भी कट गई। आपक परशानी देख मने उसी व आपक हाथ म दो हज़ार पये थमाए थे तािक आप घर-भर का राशन पानी ला सक। म कवल सात िदन क िलये आया था और म नह चाहता था, इन सात िदन म िकसी तरह का बोिझल वातावरण इस घर म बना रह। आप भी सोच रह ह गे िक मेरी इन बात का उस खून से या वा ता। या आप मेरी उन बात से, उस यवहार से ऐसा जान पाए थे िक म िकसी का खून करने वाला । सच कहता , मने अपने चेहर पर, अपने श द पर, कोई लबादा नह ओढ़ा था। तीन िदन िकस तरह गुज़र गए, पता ही नह चला था। चौथे रोज़ पता नह कसे, मेरा यान घर क एक-एक चीज़ क ओर उठने लगा था। मुझे लगा था, इस घर क जीव और िनज व सभी व तुएँ कछ अ यव थत-सी ई पड़ी ह। माँ क टटी ई च पल, र ो क फटी ई कमीज़, अतुल क बेरौनी आँख, कछ भी तो नह समझ पाया था म। ऐसी हालत तो कभी नह थी इस घर क । आपका हर बात म यह कहना िक महगाई ब त बढ़ गई ह, मुझे अब सही लगने लगा था। यहाँ पर मुझे अपने अकले होने क वजह से शायद इस बात का अहसास नह हो पाया था। मेर हर माह कवल पाँच हज़ार भेजने से या बन सकता ह आप लोग का। शाम को म माँ और र ो को बाज़ार ले जाने वाला था। जाते-जाते मने आपसे पूछा था, 'बाबूजी, आपको कछ चािहए, हम बाज़ार जा रह ह।' आपने ज़रा सी िझड़क

लगाते ए कहा था, ' य पैसा ख़राब करते हो मुझ पर। मुझे कौन सा द तर जाना होता ह। जो दो पैसे मुझ पर खच करना चाहते हो, मुझे दे दो। कभी मुसीबत म काम आएँगे। मुझे एक बात अब भी नह भूल रही। माँ और र ो चीज़ खरीदते व इस कदर सकचा रही थ जैसे म उनक िलये िब कल अजनबी । उनका वो डरा-डरा, सहमासहमा चेहरा अब भी मेर ज़ेहन म उसी तरह छाया आ ह। पाँचव रोज़ र ो ने मुझे डरते -डरते बताया था िक वह ज दी ही कह नौकरी करने क सोच रही ह। शायद उसने सोचा होगा िक कह यह सुनकर मुझे बुरा न लगे। मुझे कतई बुरा नह लगा था। आज क व म सभी लड़िकयाँ वावल बी होना पसंद करती ह। लेिकन इस बात क िलये आप जैसा पुराने िवचार वाला य इजाज़त दे देगा, इसक सोच मुझे अव य पड़ गई थी और मने हसते ए र ो से कहा था, 'बाबूजी से तो पूछ िलया होता।' 'यह सलाह उ ह ने ही तो दी ह।' यह बात उसने इस ढग से कही थी जैसे वह आप पर कोई इ ज़ाम लगा रही हो। सा तो ब त आया था उस पर। लेिकन म ख़ामोश बना रहा। सच मािनए बाबूजी, आपक बदलते ए िवचार को देखकर मुझे ब त खुशी ई थी। बाबूजी, आपको मेरी इन बात से अव य ही ऊब और खीझ हो रही होगी। दरअसल, जब से उस य का खून आ ह, म कछ 18 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

बौखला -सा गया । कभी -कभी मुझे वाकई म खुद पर ही संदेह होने लगता ह। इसिलए म आपको सारी बात बताकर िकसी प ीकरण तक प चना चाहता । अगर ग़लती मेरी ह तो मुझे सज़ा िमलनी ही चािहए। आप मेर िपता ह, आप तो इ साफ कर सकते ह। मेर यहाँ लौटने म तीन िदन बाक रह गए थे। उस रोज़ बाज़ार से लौटा तो कदम दरवाज़े पर ही क गए। भीतर से आपक िकसी को डाँटने क आवाज़ आ रही थी। म तेज़ी से भीतर गया। र ो दीवार से िसर िटकाए सुबक रही थी। ' या बात हो गई बाबूजी?' मने भीतर वेश करते ही पूछा था। 'होना या था! अ छी भली दस हज़ार क नौकरी िमल रही ह, और इसे पस द नह ।' आप झुँझलाते ए बाहर िनकल गए थे। म र ो क िसर पर हाथ फरते ए बोला था, 'कसी नौकरी ह, मुझे भी तो पता चले।' 'भैया, आप इसे नौकरी कहते ह। यह तो मुझे बेचने क सािजश चल रही ह।' 'र ो!' म च का था। 'हाँ भैया! िजस य ने यह नौकरी िदलाई ह, बाबूजी उसक लड़क से मेरी शादी करना चाहते ह और वह लड़का।' 'तु ह यह सब कसे पता चला?' मने उसक बात लगभग काट दी थी। 'आज सुबह बस टॉप पर मेरा पीछा करता आ गया था। उसी ने सब कछ बताया।' उस व म यह नह समझ पा रहा था िक आप ग़लत ह या र ो। भला आप उसका बुरा य सोचने लगे। और मुझे र ो क नादानी पर हसी आ गई थी। अगले रोज़ शाम को म लौटने क तैयारी करने लगा था। अटची म कपड़ बगैरा डाल रहा था तो अतुल आ गया। मेर सामने ही बैठा वह कह शू य म ताकने लगा था। अटची म अपना गम कोट डालते ए मेर हाथ सहसा क गए। 'अतुल!' मने आिह ता से पुकारा था उसे। ' !' िकसी गहरी सोच म डबा था वह। 'यह कोट तो पहन ज़रा!' 'कोट!' वह च का था, 'आपका कोट मुझे


कसे पूरा आएगा?' 'पहन तो ज़रा। मुझे छोटा हो गया ह। वहाँ नया िसलने दे कर आया , जाते ही िमल जाएगा।' यह बात झूठ ही कही थी मने। लेिकन इतनी सद म अतुल को िबना कोट क देख मुझे अ छा नह लगा था। 'एक बात पूछ भैया?' उसने कोट पहनते ए कहा। 'हाँ हा,ँ पूछ तो!' 'आपको िकतनी तन वाह िमलती ह?' उसका यह पूछना मुझे ब त अजीब लगा था। ' य , तुझे या ज़ रत आन पड़ी यह सब पूछने क । कछ पैसे -वैसे चािहए या?' 'नह , मुझे कछ नह चािहए। आप जब से आए ह, हम पर पैसा ही पैसा खच करते जा रह ह। या वाकई म आपक इतनी तन वाह ह?' 'तो तू सोच रहा ह, कोई डाका मार कर लाया ।' म हस िदया था। 'नह , आप मेरी बात ग़लत समझ गए। दरअसल आप जैसा सोचते ह, यहाँ वैसा नह ह। िकसी चीज़ क कमी नह ह यहाँ।' 'सचमुच, यहाँ तो सब कछ नज़र आ रहा ह। रईस जैसा खाना-पीना, ओढ़ना।' मने यं य िकया। 'भैया, आप समझते य नह ।' मुझे लगा था, वह िकसी बात क िलये ब त होिशयार बनने क कोिशश कर रहा ह। 'तू कहना या चाहता ह? जो म नह समझा, तू ही समझा दे।' म गु से म आ गया था। 'म वही समझाना चाहता भैया। िपछले मास म कतई बीमार नह था। पूरा मास ऑिफ़स जाता रहा। पूरी त वाह िमली थी मुझे, जो मने बाबूजी क हाथ पर रख दी थी। बाबूजी ने सब झूठ कहा था आपसे।' 'झूठ कहा था!' म जड़-सा हो आया था। 'िकसिलए?' बड़ी िह मत करक पूछा था मने। 'इसिलए िक आप आओ और हमारी अ छी हालत देखकर कछ िदए िबना ही न लौट जाओ।' उसक आवाज़ काँप रही थी और वह पसीने से तर हो रहा था। बाबूजी, म नह चाहता िक आप अपने ब क नज़र म

ही इस कदर िगर जाएँ। थित को सँभालने क िलये मने कह िदया था, 'जानते हो, सब कछ तु हार िलये ही तो कर रह ह वे। दो पैसे जोड़ लगे तो इसम तु हारा ही भला होगा।' मने आपसे कोई िगला नह िकया था, य िक म समझ गया था िक आप िकसी न िकसी तरीक से भिव य क िलये कछ जोड़ लेना चाहते ह। पाँच बजे क गाड़ी पकड़नी थी मुझे। आपसे िवदा होते व मने आपसे कहा था,'बाबूजी, आप िकसी बात क िच ता मत िकया कर। र ो क िलये ज दी ही म कोई अ छा-सा लड़का ढढ़ लूँगा।' आपक आँख तरल हो आई थ । च मे को पगड़ी क प ू से प छते ए आपने कहा था, 'हो सक तो अगले मास पैसे थोड़ यादा भेजना।' टशन तक माँ और अतुल छोड़ने आए थे मुझे। गाड़ी आने म अभी कछ व था। अतुल कह भीड़ म टहलने लगा था। माँ ने िचंितत होते ए कहा था, 'अपनी सेहत का यान रखा कर।' 'अ छा -भला तो । तुझे मेरी िचंता यूँ होने लगती ह।' 'अ छा सुन!' माँ ने कछ उदासी भरी नज़र से मेरी ओर देखा था। ' या बात ह मा?ँ' म िकसी शंका से िघर आया था।' 'ये कछ गहने ह।' माँ ने अपनी धोती क बीच ठसी पोटली िनकाली, 'इ ह साथ ले जा।' 'िकसिलए?' म िव मय म पड़ आया था। 'ब क िलये बनवा कर रखे थे मने।' 'ब क िलय!े' म ठहाका मार कर हसा था, 'ब को तो आ लेने दे और िफर तू कह भागने क तैयारी म ह या?' 'भागने क तैयारी म होती तो साथ लेकर जाती। म अब इस घर म कछ नह रखना चाहती।' ' य ?' म लगभग िच ा उठा था। 'तुझे नह पता, तेर बाबूजी क ऐयाशी क आदत अभी भी नह छट । घर म जो कछ भी आता ह, िम ी म िमला कर आते ह।' एकाएक मेर सामने अतुल और र ो का चेहरा घूम गया था। 'इतने िदन रहा, पहले य नह बताया?' 19 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

'िह मत ही नह बंधी। और िफर तू या करता?' मन कड़वाहट से भर उठा था। तभी गाड़ी आने का शोर आ और टशन पर भाग -दौड़ मच गई। 'हम घर चलगे माँ।' मने आिह ता से कहा। ' य ?' 'पूछना चाहता बाबूजी से िक यह बबादी िकसिलए?' 'िजस बात का जवाब म सारी उ नह पा सक , तू दो घड़ी म या पा लेगा?' अतुल पास आ गया था। सामान उठाकर गाड़ी क तरफ जाने लगा तो मने उसे रोक िलया। 'मा,ँ हम घर चलगे।' मने पुनः अपनी बात पर ज़ोर देते ए कहा था। 'ज दी चल, खड़ा यूँ हो गया तू। गाड़ी थोड़ी देर कती ह, कोई अ छी सी जगह ढढ़ देना।' माँ ने अतुल को लगभग आगे धकल िदया था। अतुल कछ भी समझ नह पाया था हमारी बात। 'मा!ँ' म िच ाया था। 'पागल मत बन। िजतना भी सँभाला ह, बड़ी मु कल से सँभाला ह मने उ ह।' माँ चलते-चलते बोली, 'आगे से पैसे कम भेजा कर। पैसा नह होगा तो अपने आप आएँगे रा ते पर।' म गाड़ी म कब बैठा, गाड़ी कब चल पड़ी, अब कछ याद नह आता। अब तो इतना याद ह बाबूजी, मेर यहाँ प चते ही उस य का खून हो गया। खून क इ ज़ाम म िकसी को या सज़ा िमलती ह, आप अ छी तरह जानते ह। सजाए-मौत न भी िमले तो उ -क़द तो िमलेगी ही। और उ -क़द म आदमी घुटघुटकर, गल-गलकर मर जाता ह। लेिकन म मरना नह चाहता। पर तु एक िनद ष य तभी बच सकता ह यिद उसक पास कोई अ छा खासा सबूत हो या िफर वह असली काितल को ढढ़ िनकाले। बाबूजी, आप असली क़ाितल को ढढ़ िनकालने म मेरी मदद करगे? 000


कथा-कहानी

अँधेर क बीच अ णा स बरवाल

अ णा स बरवाल 2, र ट ज़, वे ट फ़ ड पाक, हच एंड, िप र HA5 4JF, यू क मोबाइल- 07557944220 ईमेल- Arun.sabharwal45@gmail.com

वह सुबह क मीठी-मीठी न द का आनंद ले रही थी। अचानक उसे लगा अभी तक अलाम यूँ नह बजा ? आज ूज़ का समय इतना ल बा कसे हो गया? उसने उन दी आँख से घड़ी देखी। साढ़ छः बज चुक थे। हरान थी, यह कसे हो गया ? उसने तो ूज़ का बटन दबाया था। घर म हाफड़ा - धापड़ी मच गई। रसोई से िच ाई रोहन, िच लीज़ ज दी करो। देर हो रही ह। ब क लंच क ड बे तो उसने रात को ही तैयार कर िलए थे। द वह लंच कल म ब क साथ ही करती ह। यह उसक ूटी का िह सा ह। सभी तैयार हो कर कार म बैठ गए। कार म बैठते ही उसे याद आया िक उसने टाइम- टबल तो देखा ही नह । भागी, भीतर जा कर देखा। आज वीिमंग सेशन था। फटा-फट उसने वीिमंग िकट उठायी और कार म बैठ गई। वीिमंग ..? वीिमंग का सोच कर, थोड़ा मुँह सा बनाया, गहरी साँस ली और बोली... "रोहन, तुमने अपनी वीिमंग तथा पी.ई िकट रख ली ह या ?" उसने उ र म िसर िहला िदया। िनकलते -िनकलते दस िमनट और लग गए। सड़क पर सुबह क िफ़क को कौन नह जानता। िनकलने म एक िमनट का अ तर पड़ जाए तो समझो आधा घंटा फ़ालतू लग जाता ह। कल क रा ते म तीन सुरग आती ह। उनम िफ़क का वाह बहता रहता ह। एक सुरग से तो िनकल गई, दूसरी सुरग म एक कार ख़राब खड़ी थी। इस कमब त को आज ही ख़राब होना था या ? वह बड़बड़ाई। रा ता बदलने क अित र उसक पास और कोई िवक प नह था। बड़ी मु कल से सटी-सटी कार क क़तार से िनकल कर चौराह तक प ची। वहाँ उस से भी बदतर हाल था। िफ़क बढ़ता जा रहा था बेलगाम-बेहताशा, दो रा ते बंद थे। बा रश ने भी आज ही बरसना ह। सुरग का िफ़क भी वह आ प चा था। रिडयो भी बार-बार समय बता कर परशानी और बढ़ा रहा था। िफ़क लाइट पर खड़-खड़ उसने कल फ़ोन िकया। थित बताई, िक उसे देर हो जाएगी पर पता नह िकतनी? श थी िक वीिमंग िमस हो जाएगी। ास म तो उसने शु वार को ही तैयार कर िदया था। अभी कार पाक कर ही रही थी िक उसे ब क ांसपोट आती िदखाई द । वैसे सभी ांसपोट दस- दस िमनट क अंतराल पर प चती ह। ांसपोट म से टी क सभी उपकरण लगे 20 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


होते ह। ब को उतारते-उतारते भी समय लग जाता ह। उसने देखा मागर ी और संगर क ब को सुर ा से ास म ले जा रह थे। यूँिक इस कल का येक ब ा अन य ह। एकमा ह। अपने आप म अनूठा ह। उसने कोट खूँटी पर टांगा, बैग लॉकर म रखा। जैसे ही ास म प ची तीन सह कम बड़ उ साह से बोले ..... "थक गॉड िसमरन, यू आर िहयर। ” तीन अपने-अपने ब को यव थत कर चुक थे। कल िमला कर क ा म दस ब े ह और पाँच टाफ़। हर ब ा अपने आप म िवशेष ह। सबक ज़ रत भी िवशेष ह। सभी ब े ' पेशल एजुकशनल नी स' क ह। यह कल लंदन क चेशर काउटी म ह। यहाँ ब े दूर-दूर से आते ह। दस बजने को थे। अभी तक उसे रोज़ी कह िदखाई नह दी। िसमरन क अधीरता बढ़ने लगी। उसने इधर-उधर देखा। उसक विमंग िकट वह टगी थी। वह टॉयलेट म भी नह थी। उसक उ सुकता ने उसे लगभग हर संभव थान पर देखने पर िववश कर िदया था। उसे िचंता होने लगी। वह पता लगाने वाली थी ही िक, रोज़ी क साथ आने वाले ब े आ गए ह िक नह ? ि सपल क ओर से संदेश आ गया, िक लू टार सिवस क ट सी ेक- डाउन हो गई ह। शायद देर हो जाएगी। िसमरन ने चैन क साँस ली। रह-रह कर िसमरन क नज़र कमर म लगी घड़ी पर जा रही थी। शायद उसे अभी भी रोज़ी क ती ा थी। उसका तो या रोज़ी क िबना िकसी का मन नह लगता। वह अ हड़ सी बेख़बर महकती-चहकती िखलिखलाती आते ही वातावरण म संगीत िबखेर देती ह। दोपहर क ढाई बज चुक थे। ज दी ही ब क घर जाने का समय हो गया था। िश क ने अगले िदन क िलए क ा को तैयार िकया। िसमरन को रा ते म रोहन को भी लेना था। "म मी, दो स ाह प ा हमारी पेर स ईविनंग ह। लीज़ आप बता देना िक कौन सा समय आपक िलए सुिवधाजनक रहगा। '' इतना कह कर रोहन िविडयो गे ज़ म म त हो गया।

पेर स ईविनंग का सुनते ही िसमरन क आँख क सामने कल क पहली पेर स ईविनंग घूमने लगी। िजसका िमसेज़ रॉबट (रोज़ी क म मी)को बड़ी बेचैनी से इतज़ार था। पेर स ईविनंग को िसमरन ने उ ह अपना प रचय देते कहा था"गुड ईविनंग िमसेज़ रॉबट, म िसमरन, रोज़ी क िशि का। बैिठए कछ पूछना चाहगी? " "जी, मुझे तो हर पल रोज़ी क िचंता लगी रहती ह। चौदह वष क हो गई ह िकतु, अभी तक दो, तीन वष क ब े भाँित बताव करती ह। िचंितत दो वष म एड ट िनंग सटर म चली जाएगी, वहाँ कसे िनवाह करगी ? कब समझ आएगी ? कब होगी बड़ी ? कब इसे अपने अ छ -बुर क समझ आएगी ?'' "िचंता न कर, आपको जान कर श होगी िक, रोज़ी क यवहार म धीर-धीर काफ़ सुधार आ रहा ह। ए टिवटी को बार-बार दोहराने से, िदखाने से समझने लगी ह। मूडी ह, मज़ क मािलक ह। एक बार जो बात उसक िदमाग़ म बैठ गई तो उसी पर अड़ जाती ह, बात को मनवा कर रहती ह। हाँ .... वीिमंग क ब त शौक न ह। हर व त वीिमंग िकट िलये घूमती रहती ह। वीिमंग का सुनते ही चेहरा िखल उठता ह, झट पट तैयार हो जाती ह। बड़ी यारी ब ी ह। इस ल बी, चंचल मोहक लड़क को देख कर लगता था मान भगवा ने उसे ख़ाली समय म तराशा हो। चेहरा सदा िखला-िखला रहता ह। 21 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

" अभी िसमरन ने बात समा ही नह क थी िक रोज़ी क माँ उसक बात काटते बोल "कहत तो आप ठीक ह, भगवा भी कभी-कभी बड़ी बेइसाफ कर देता ह। देखो न लगता ह रोज़ी को तराशते-तराशते उनक आँख लग गई होगी। " वह बोलती जा रही थी ....उसक आँसू िनरतर बह जा रह थे.. रोज़ी क ज म क प ा दो तीन वष तक तो हम पता ही नह लगा। रोज़ी और ब क तरह नह थी। चेहर पर भाव कम ही आते थे, कछ महसूस ही नह होता था। रोज़ी क िलए संबंध थािपत करना किठन था। बोलना भी शु नह िकया था। जब दूसर ब क तुलना म वह ब त पीछ रहने लगी। हम िचंता होने लगी। हर एक अ पताल छान मारा। ल ण को पहचानने म दो तीन वष और लग गए। उ ह ने बताया रोज़ी पैदाइशी ऑिट टक ह। यह श द हमार िलए िबलकल नया था। उ ह ने हम समझाया िक ऑिट म को वलीनता या आ मकि त भी कहते ह। िह दी म इसे लोग 'आ मिवमोह' और ' वपरायणता' भी कहते ह। जब उ ह ने बताया िक यह ज म क समय या उसक शी आर भ होने वाली एक जीवन भर क िवकलांगता ह। हर ब े क ल ण अलग -अलग होते ह। इतना सुनते ही मुझे लगा मान मेर कलेजे म िकसी ने घूँसा मार िदया हो। जो सुन रही थी, सोच से बाहर था। हमारी तो जान ही िनकल गई। जैसे-जैसे समय िनकलता गया, नए-नए ल ण का पता लगता गया। " रोज़ी क माँ, नह जानती थ िक िसमरन उसक कस िह ी पढ़ चुक थी। "िमसेज़ रॉबट, आप कछ और पूछना चाहगी ? "कपया मुझे जूली किहए, घर म रोज़ी अपनी बात समझाने का यास तो ब त करती ह िकतु बात शु नह कर पाती, उसक ह ठ पर श द आते-आते क जाते ह। ब त छटपटाती ह बोलने क िलए। अपनी बात न समझाने क कठा क कारण अ सर आपे से बाहर हो जाती ह, उस व त उसे क़ाबू करना या समझना ब त किठन हो जाता ह। न जाने कब समझने और समझाने क क़ािबल हो


पाएगी ? इसी बात क ती ा ह। '’ "जूली जी, ब त धैय चािहए। धीरता से उसका िदल जीतना होगा। उसक नज़ रये से देखना होगा। सोचती या ह ?, या चाहती या ह ? उसक िदमाग़ म चल या रहा ह ? उसका मूड कसा ह, ेह से उसक साथ सहजता से िव ास का संबंध थािपत करना होगा। कछ नया िसखाते व त ब त ेह से िदखा-िदखा कर दोहरा-दोहरा कर, समझाना होगा। धैय से ऐसे ब क यवहार को संचालनीय कर सकते ह।” जूली तो चली गई, रा ते भर िसमरन जूली क बार म ही सोचती रही। सोच म वह अपनी ाइव से आगे िनकल गई। "मॉम....मॉम कहाँ जा रही हो ?" रोहन िच ाया .... घर प चते ही उसने अपना बैग रखा और धड़ाम से सोफ़ पर बैठ गई। थोड़ी देर बाद उठी और घर क कामकाज म जुट गई। पित िवशाल का भी अ पताल से आने का भी समय हो गया था। तीनो रात का खाना खा रह थे। िसमरन क म त क म अभी तक जूली क बात घुम रही थ । िवशाल ने उसक सोच क ंखला तोड़ते कहा .... "िसमरन, ब त देर से देख रहा , तुम बैठी हमार पास हो, यान तु हारा कह और ह? या सोच रही हो ?" िसमरन सकपकाते बोली "कछ नह , कछ नह ," िफर गहरी साँस लेते बोली, "अब आपने पूछा ह तो, यह बताओ... या ऑिट टक ब े कभी पूण प से वावलंबी हो सकते ह ?" "अर तुम तो वयं िवशेष हो, जानती हो 'ऑिट म' एक इ धनुष क भाँित ह। सबक अपने-अपने अलग ल ण कह लो या िवशेषता कह लो, होते ह। येक ब ा अपने आप म अि तीय या अनोखा होता ह। येक ब े क ऑिट म का तर िभ -िभ होता ह। कोई दस ितशत कोई पचास और कोई सौ। अिधकतर लड़क म पाया जाता ह। कभी - कभी अमीर ब े िज ह सौ ितशत दायी पालती ह, या िफर माँ से दूर रह कर पलते ह उनक यवहार म प रवतन लाया जा सकता

ह, धीर-धीर, धीरज क साथ। हाँ पैदाइशी ऑिट टक ब म लगातार बार-बार उस ि या को दोहराते ए, या िफर व तु को िदखा -िदखा कर उ ह थोड़ा वाधीन बनाया जा सकता ह। " इस बात से िसमरन को याद आया, उस िदन कल म बाहर खेलने का समय हो चुका था। बीस िमनट क खेल क प ा सार ब े अपनी-अपनी क ा म जा कर बैठ चुक थे। आधे घंट क प ा कल म फ़ायर ि ल का अ यास करना था। फ़ायर ि ल क घंटी बजते ही सभी ब को ले ाउड म ले जाया गया। पाँच िमनट बाद क ा म अंदर जाने क घंटी बजी तो रोज़ी लड़खड़ाती ई सीधी डाइिनंग हॉल म कस पर आ कर बैठ गई। ब त यास िकया उसे क ा म वापस ले जाने का, िकतु वह टस से मस नह ई। उसने से म हाथ पाँव मारने आर भ कर िदए। उस पर क़ाबू पाना अस भव हो गया। अभी दोपहर क खाने म एक घंटा बाक़ था। मेज़ किसय को जकड़ कर टाँगे मारती रही। यूँिक कल म सदा पहली घंटी बाहर खेलने जाने क िलए बजती ह। दूसरी अ दर आने क िलए। तीसरी घंटी दोबारा बाहर जाने क िलए बजती ह। चौथी घंटी बाहर से सीधे खाने क कमर म जाने क िलए। यह उसक समझ से बाहर था। यूँिक यह उसक िन यचया से िभ था। रोज़ी क िहसाब से तो वह चौथी घंटी थी। देखते -देखते आज आकाश म न जाने कहाँ से झुंड क झुंड बादल िघर आए। बादल 22 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

क गुड़-गुड़ विन क साथ िदन म साँझ उतर आई। बा रश शु हो गई। पहले गुड़ -गुड़ िफर बूँदा-बाँदी, िफर मूसलाधार बा रश, बा रश का मतलब नो ले टाइम इन ले ाउड। कभी-कभी बा रश होना भी कल क िलए ब त िचंता का िवषय बन जाता ह। बाहर न जाने क कारण, उस िदन ब े ब त उ ेिजत हो कर क़ाबू से बाहर हो जाते ह। रा ते भर िसमरन को यही िचंता सताती रही। उस िदन, ब क सुर ा का यान रखते ए हॉल म मुलायम ग े और मुलायम िखलौने रखवा िदए। पूरा टाफ़ उनक साथ खेलने म लगा था। रोज़ी कह िदखाई नह दी। उसे ढढ़ते-ढढ़ते कल का कोना-कोना छान मारा। सबसे पहले अपने कमर म जा कर रोज़ी क वीिमंग िकट देखी, िकट वह थी। टाफ़ म, डाइिनंग हॉल, सभी ास म, बाथ म म देखा, रोज़ी कह नह थी। बाहर क सभी दरवाज को ताला लगा था। हरानगी क बात थी िक गई तो गई कहाँ ? सामने से ि ंिसपल ने िसमरन को इशार से बुलाते कहा"मेर वॉश म म जा कर देखो।" वहाँ रोज़ी ज़मीन पर बेसुध, बेख़बर शांत बैठी थी। वॉश म म पड़ सभी टॉयलेट रोल को उसने छोट-छोट टकड़ म फाड़ कर, तरतीब से ढ रयाँ बना रख थ । िसमरन को देखते ही उसक आँख म चमक छा गई। उसक आँख क चमक क उगने और िमट जाने क कारण का जान पाना िसमरन क िलए आसान नह था। रोज़ी उन काग़ज़ क टकड़ को िसमरन क िसर पर डाल-डाल कर, हसती-हसती गुनगुनाने लगी ...हयर क ज़ द ाइड...., मान जैसे कोई िक़ला जीत िलया हो। िसमरन का गंभीर चेहरा देख कर पहले तो रोज़ी ज़ोर से िखलिखला कर हसी। िफर अपना चेहरा दोन हाथ से ढक िलया। िसमरन ने रोज़ी को िदखाते ए काग़ज़ क टकड़ को बैग म डालने को कहा। ासम म जा कर रोज़ी मेज़ पर अपना िसर दोन बाह म से छपा कर बैठ गई। थोड़ी देर बाद, अचानक रोज़ी उठ कर िसमरन को चूमने लगी, शायद यह उसका माफ़ नामा था। अब तक बा रश थम चुक थी।


आज क घटना ने िसमरन को बेचैन कर िदया। उसक बेचैनी जब हद से गुज़र जाती ह तो वह कोट पहन कर सैर को िनकल पड़ती ह। रोज़ी क ओर एक िखंचाव था जो उसे पल-पल मासूम क बार म सोचने पर मजबूर कर देता ह। यह जानते ए भी िक उसक हाथ बँधे ह। वह कछ कर नह सकती। आज हवा म पतली सी धुँध थी, जो पतझड़ क आर भ म पेड़ क इद-िगद होती ह। मौसम साफ़ होता िदखाई दे रहा था। इतने म िसमरन ने देखा सामने से िन ल, िनमल, रोज़ी अपनी संगरि ता क साथ झूमती, शी िबखेरती चली आ रही थी। िसमरन को देखते ही न जाने उसे या हो गया िक वह वह िबफर गई, अड़ कर फ़श पर बैठ गई। िफर बेपरवाह पैर पटक-पटक कर से म वह लेट गई। यूँ ? यह जानना असंभव था। ब त कोिशश क उसे ास म लाने क , िज़ ी लड़क टस से मस नह ई। हार कर िसमरन को उसक वीिमंग िकट िदखानी पड़ी। उसे देखते ही रोज़ी िबजली क भाँित उठी और िसमरन से िलपट गई। वीिमंग रोज़ी क मनपसंद ऐ टिवटी थी। (हाई ोथैरपी) जल िचिक सा क पूल म तैरना रोज़ी क उपचार का भाग था। वीिमंग सूट को देखते ही, उनक चेहर पर मु कान िबखर गई। पूल म जाने को ही थे और रोज़ी ग़ायब थी। िसमरन ने अ दर देखा रोज़ी कमर म हाथ-पैर फलाए ज़मीन पर लेटी ई थी। मान स भोग क िलए तैयार हो। उठने को तैयार ही नह थी। ऐसा वह कई बार कर चुक थी। िसमरन जानती थी, िक वह चाहती या ह। ऐसा यवहार ब त िचंता का िवषय था। इस बार म िसमरन अपनी एक सहिशि का से िज़ भी कर चुक थी। इतने म संदेश आया िक आज पूल इ तेमाल नह हो सकता। इससे पहले सेशन म एक ब े ने इसम पाखाना कर िदया ह। िसमरन जानती थी िक रोज़ी अब तूफ़ान खड़ा कर देगी। उसे समझाना असंभव हो जाएगा। वही आ िजसका डर था। पूल म नह जा सकते, यह जान कर वह तो िबफ़र गई, जहाँ बैठी थी वह फनकार मारने लगी। दहाड़ -दहाड़ कर रोने लगी। उसका हलक -

हलक रोना देखा नह गया। वह नह जानती थी, िक वह या कर रही थी। आसानी से मानने वाली नह थी। रो-रो कर उसक नाक भी लाल हो गई थी। जो कछ हो रहा था उसक समझ क बाहर था। उसक क णामय चेहर ने िसमरन क भीतर एक चुभन सी ला दी। वह न क भँवर म िघर गई। एक बे बान क साथ कौन, कसे और यूँ कोई ऐसा ककम कर सकता ह ? कौन हो सकता ह इतना िनदयी ? उसक सोच से पर था। िन यकम से हट कर कछ भी करना रोज़ी क िलए नामुमिकन था। िसमरन ने ठान िलया था िक वह पता लगा कर रहगी। समय बढ़ता जा रहा था। उठते ही िसमरन ने पदा हटा कर िखड़क से बाहर देखा। आज सिदय क फ क -फ क सी धूप िखली थी। हवा म खुनक थी। थोड़ी -थोड़ी बफ़ पड़ रही थी। सड़क साफ़ करने वाल ने बफ़ एक तरफ़ कर क सड़क क िकनार बफ़ क गंदले ढर लगा िदए थे। िसमरन थोड़ी िचंितत थी, िक अगर बफ़ नह क तो या होगा ? फ़ य ना उसक सहायक भी कल आएगी या नह ? यूँिक शिनचर को उसक माँ का यूनरल था। कल प चने से पहले ही बफ़ पड़नी भी थम गई और फ़ य ना भी सामने खड़ी थी। अब तक सभी ब े आ चुक थे। फ़ य ना उदास थी। िसमरन ने उसे रोज़ी क साथ काम करने को कहा, अचानक कछ िगरने क आवाज़ आई, सभी च क पड़। िजन िखलौन से फ़ ओना रोज़ी को िसखा रही थी, वो सब 23 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

ज़मीन पर पड़ थे। रोज़ी ने हाथ मार कर सबको ज़मीन पर िगरा िदया था, और िफ़योना क गले म हाथ डाल कर िसर क साथ िसर जोड़ कर उसे यार कर रही थी। रोज़ी को एहसास हो गया था िक आज फ़ ओना उदास ह। दोपहर को वीिमंग सेशन था। जैसे ही िसमरन ने वीिमंग िकट िनकाल कर िदखाई, तीनो ब अपनी िकट िनकाल कर तैयार हो गए। पूल म जाने से पहले िसमरन ने सूज़न को समझाया "ब क पास कभी भी आगे से मत जाना, वह अपनी र ा क िलए तुम पर हमला भी कर सकते ह।" सूज़न एक स ाह क िलए कल म वक ए सपी रयंस क िलए आई थी। िसमरन पूल म रोज़ी क साथ वयं जाने वाली थी, पूल म आज रोज़ी अिधक मचलने लगी। बे दा सी हरकत करने लगी। बार-बार िसमरन का हाथ पकड़-पकड़ कर अपने गु अंग पर रखने क कोिशश करती। िसमरन ने उसका यान दूसरी ओर करने का ब त यास िकया, िवफल रही। रोज़ी क इस यवहार से िसमरन भीतर से असहज हो उठी। रोज़ी का ऐसा यवहार उसक म त क म हथोड़ क तरह बजने लगा। िसमरन ने ठान िलया था िक ि ंिसपल से ज़ र बात करगी। विमंग क बाद जैसे ही वह ास म प ची उसने अपनी सहकम िमस िविलयम से अकले म िव तार से बात क । उसने भी यही सुझाव िदया ह िक "जब तक यक़ न न हो तब तक िकसी से िज़ मत करना। हम नह पता घर म कौन-कौन ह, घर क हालात कसे ह ? िकतने बहन-भाई ह ? पैसे कमाने वाला कौन ह ?'' “िचंता मत करो, िमल कर सोचते ह। अगर अभी ि ंिसपल से बात क , तो वह यह मामला इसी पल सोशल सिविसज़ को स प दगी। सोशल सिविसज़ वाले रोज़ी को एक दम ले जाएँगे। मामला बेहद जिटल हो सकता ह। थोड़ा और िनरी ण करो। उसक म मी से सरसरी बात कर क पता करो िक घर पर कौन-कौन ह ? कौन आता जाता ह ? या उ ह ? इ यािद।" िमस िविलयम ने सुझाव देते कहा।


िसमरन क िलए रोज़ी अब अबूझ पहली बनती जा रही थी। उसक िलए इस र स ाई को जानना आव यक हो गया था। अब न यह उठता था िक रोज़ी क म मी को बुलाया कसे जाए ? इस बात को अभी दो िदन ही ए थे िक अचानक एक िदन रोज़ी क म मी का फ़ोन आया िक, वह िसमरन से िमलना चाहती ह। िसमरन ने िमसेज़ रॉबट को अगले िदन िमलने का समय दे िदया। जब वह प ची ब त परशान सी लग रही थी। िसमरन को देखते ही िमसेज़ रॉबट फट पड़ी और बोली "िमस समझ नह आता या क । आजकल रोज़ी ब त परशान करती ह। उसका यवहार ब त भी अजीब सा होता जा रहा ह। हर व त शरारत करती रहती ह। छड़खानी करती ह। चलते-चलते बहन को ध का दे देती ह। बड़ भाई जे ज़ क साथ ब पटती ह। सदा नोक-झ क चलती रहती ह। उस पर िनयं ण रखना असंभव हो गया ह। समझ नह आता या चाहती ह ? कभी-कभी घंट अपनी दुिनया म ही म त रहती ह।” "आजकल कल म भी यही हाल ह। स से हम पता लगाना होगा रोज़ी सोचती या ह ? कहना या चाहती ह ? घर और बाहर, उसक चार ओर या हो रहा ह, यह देखना होगा िक उसक िदमाग़ म चल या रहा ह ? ब त यार और धैय काम लेना होगा। आप उसक साथ अकले समय िबताएँ शॉिपंग ले कर जाएँ, उसे मूवी ले जाएँ इ यािद। रोज़ी क साथ िव ास का संबंध थािपत करना होगा। धैय ही इसक कजी ह। " िसमरन ने समझाते कहा। "संबंध कसे बना सकती ? खाने को पड़ती ह। ब त िज़ ी हो गई ह। कछ अिधक ही मचलने लगी ह। छोट बड़ बहन भाई को तंग करती ह। उ ह मार कर हसती ह। उसे एहसास ही नह िक या कर रही ह। शाम का खाना िखला कर म तो थोड़ी सी शांित क िलए तीन घंट अपनी पाट-टाइम सफाई का काम करने चली जाती । िफर उसक पापा यान रखते ह। अपने पापा क साथ ब त श रहती ह। उ ह क क़ाबू म आती ह। इतनी बड़ी हो गई ह अभी भी उनक गोद म बैठी रहती ह। बचपन से ही सोने क व त उसक पापा ही उसे

कहानी सुनाते आए ह। जब तक म घर प चती , रोज़ी सो चुक होती ह। िफर थोड़ी शांित िमलती ह।” "आपने ठीक कहा, बड़ी हो गई ह। आपको द उसका यान रखना होगा। जैसा मने कहा ह रोज़ी को आपका मनोयोग चािहए। यूँ न आप ही रोज़ी को कहानी सुनाने क िज़ मेदारी ले ल। हो सकता ह यह.... उसक आपक साथ समय िबताने क गुहार हो। '' िसमरन ने आ ासन देते कहा ... िसमरन ने रोज़ी क माँ से बात -बात म संकत देने का यास िकया और जूली समझ भी गई। िकतु, िसमरन क साथ अभी भी एक डर िचपका था। घर आने क बाद आज क बैठक ने उसक मन को अशांत कर िदया। िसमरन क बैचैनी जब हद से गुज़र जाती ह तो वह खुली हवा म टहलने लगती ह। रोज़ी को िलए िसमरन क मन म एक िखंचाव था, जो उसे पल-पल उस मासूम क बार म सोचने से मजबूर कर देता ह। सब जानते ए भी िक वह कवल ि ंिसपल को रपोट करने क अित र कछ नह कर सकती। रा ते भर िमसेज़ रॉबट जूली का िसर च करधानी क भाँित घूमता रहा। उसक िदमाग़ म अनेक न उभरने लगे यह हो कसे सकता ह ? यका-यक वह अपने अतीत म प च गई। जब वह बारह वष क ही थी िकसी दूर क र तेदार ने छड़-खानी क थी। उस व त कसे उसक शरीर का भार जाता रहा। शरीर सूखे प े सा हवा म तैरने लगा था। ऐसा 24 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

लगा मान ज़मीन मुझे अपनी ओर िखंच रही थी। उस व त मेर भीतर का तरल पल भर म सूख गया और मन म आया, काश उसक आँख म कमरा लगा होता ? वह शोर मचाने क िसवाय कछ नह कर सकती थी, उस से दूर रहने लगी थी। वह तो समझ सकती थी िक या हो रहा ह। शोर मचा सकती थी। यहाँ तो उसक िजगर क टकड़ रोज़ी क बात हो रही ह, जो लाचार ह। बे बान ह। कौन हो सकता ह ऐसा नीच द रदा ....लाचार ब ी क साथ ...? मेर िलए यह जानना चुनौती बन गया। ठीक ही तो कहती ह िसमरन। मुझे ही रोज़ी का यान रखना चािहए। मुझे उसे समय देना चािहए। आज उसे एहसास आ एक रोज़ी ही नह , उसक दो और बेिटयाँ भी ह। उ ह भी बचाना ह। उनक साथ कछ नह होने देगी, हरिगज़ नह । द को िध कारने लगी, पर कसे क गी ? ....यह तो अँधेर म तीर चलाने वाली बात हो गई, अब वह जैसे-तैसे पता लगा कर ही रहगी। उसने ठान िलया था। कमर का सोचते ए उसक मन म िवचार आया, यूँ न रोज़ी क सोने क कमर म कमरा लगा िदया जाए ? वह मौक़ का इतज़ार करने लगी। एक िदन जब बाप बेटा फटबॉल का मैच देखने गए थे। जूली ने छपा कर कमरा रोज़ी क कमर म लगा िदया। दो चार िदन तो कछ नह आ। शायद जे ज़ को शक हो गया था, िक जूली को भी शक हो गया ह। दो चार िदन तो कछ नह आ। शायद जे ज़ भाँप गया था। जूली ने िकसी को िबना बताये गु चर का काम आर भ िकया। उसक उ ीस वष बेट क कौन-कौन से दो त घर आते ह। कहाँ उठते-बैठते ह, रोज़ी उस व त कहाँ होती ह वग़ैरह-वग़ैरह। जूली ने कड़ी िनगरानी आर भ कर दी। बेट क दो त क घर आने पर ितबंध लगा िदए। कछ स ाह तक उसे कोई सुराग न िमला। एक िदन शाम को सभी टिलिवज़न देख रह थे। जैसे ही काम समा करक जूली कमर म आई। रोज़ी अपने पापा जे ज़ क गोद म बड़ यार से बैठी थी। जे ज़ का हाथ रोज़ी क


कमर म था। उस से कह रहा था ''दै स माई गल'' उसे देखते ही जे ज़ सकपका- सा गया। उसक जकड़न ढीली पड़ गई। अपने को सहज करते बोला "आओ जूली बैठो अपने साथ कस क ओर इशारा करते बोला।" जूली ने देखने से भी अिधक देख िलया था। "रोज़ी बेटा सोने का समय हो गया ह चलो।" जूली रोज़ी को वयं उसक कमर म ले गई। थोड़ी देर बाद पित क साथ आ कर बैठ गई। वह यह नह चाहती थी िक उसे शक हो। कल अचानक उसक िसर म ब त तेज़ िसर दद आ। वह दो पैरािसटामोल ले कर लेटी ही थी िक आँख लग गई। जे ज़ रोज़ी को कहानी सुनाने क बहाने उसक कमर म ले गया। दूसर िदन फटज देखते ही उसक िदमाग़ म धुँध सी फटने लगी, उससे रहा नह गया। जो उसने देखा उसक िव ास से बाहर था। किड़य पर किड़याँ जुड़ने लग , से म जूली क भीतर कछ कठोर सा होने लगा... उसक आँख क सामने ककम होता रहा ? वह अंधी बनी रही। उसक दो टक क नौकरी ने बे बान क अ मता को बिल चढ़ा िदया। उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। वह रोज़ी से िलपट कर क- क रो क मा माँगती रही। उसका दम घुटने लगा, बान पथरा गई। जे ज़ क काली अँधेरी करतूत ने उसे दबोच िलया था। दद ब त ही नुक ला था। वह िहल गई। कराह उठी, नह नह पापा तो सबक सुर ा का कवच होता ह। उसक िव ास क चीथड़ -चीथड़ हो गए थे। पित जे ज़ से लािन होने लगी। जूली समझ नह पा रही थी िक या क ? पुिलस को फ़ोन कर या िफर अपने भाई को बताये। नह नह ऐसे म बात समाज म फल जाएगी। उसे ब त मनोबल से काम लेना होगा। वह टज ले कर वह सीधी रोज़ी क कल क ओर चल दी। प चते ही उसने ि ंिसपल का दरवाज़ा खटखटाया... "जी....कौन ? अ दर आइये ..."। अंदर से आवाज़ आई। उसने एक गहरी साँस ली। अ दर प चते ही जूली ने कमर क फटज ि ंिसपल क मेज़ पर रखी और रोते-रोते,

बोलती गई, बोलती गई। इतने वष से वह जान ही नह पायी िक टोरी टाइम भी अिभशाप बन जाएगा। आज बाप क ेिहल सहलाने वाले हाथ काँट बन चुक थे। जो बे बान रोज़ी क साथ होता रहा, उससे वह अनजान कसे रही। उसे लगा मान िकसी ने उसक शरीर का ल िनचोड़ िलया हो, या िकसी ने पंजा डाल कर एक माँ का िदल ही चाक कर डाला। िदल तो िकया उसे गोली मार दूँ। दुिनया को एक बाप क करतूत बता दूँ। उसक गले म जूत का हार डाल कर समाज क सामने खड़ा कर दूँ। िफर सोचा यह तो कित का िनयम ह िक अ सर वही होता ह जो हम नह होना चाहते। वह क़ानून को अपने हाथ म नह लेना चाहती थी। वह अपनी बि य को खोना नह चाहती, रोज़ी क दो और छोटी बहन ह। " वह सुबकते-सुबकते बड़बड़ा रही थी। "उसने भी तो यही िकया। वाथ हो गई थी। तीन घंट क नौकरी क िलये। अपनी बे बान बेटी को िदन म कल और शाम को बाप क हवाले कर क पैसा कमाने क िलये। जूली को वयं पर लािन हो रही थी। उसक आँसू पलक क सीमा लाँघ गए। आज उसे एहसास आ िक हम अपने होने और िसफ़ होने को लेकर इतने िचंितत यूँ रहते ह ? हमारी सोच क क म हमेशा हमारी ज़ रत यूँ आती ह ? यूँ भटकते रहते ह अपने वाथ म, अपनी बेजान चीज़ क पीछ, जानदार चीज़ को यान नह देते। भटकते रहते ह एक ही दायर म अपनी वाथ क बैसािखयाँ अपनी 25 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

बग़ल म दबाए। " " या ....आप पुिलस से पहले सोशल सिवसेज़ को बीच म डालना चाहोगी ?" ि ंिसपल ने पूछा .... “नह , नह मुझे उसे सबक़ िसखाना ह। अब वह अपने पित को सफाई गोशी का मौक़ा नह देना चाहती। उसे अपने प म िववाद देने क सवाल क क़द म नह रखना चाहती ...वह ग़ैर ज़ री ह। इतना िघनौना काम इतने ल बे समय तक लगातार ...। इतने ल बे काल से दुःख-सुख का साथी अपनी बेटी क िलये हवान कब और कसे बन गया। इस द रदे से अपनी बि य का बचाव करना ह। कौन सा सुख िमला होगा उसे अपनी ही बे बान बेटी क साथ ककम कर क। ल बे काल क दुःख -सुख क साथी को समझ ही नह पाई। अथ क सारी ऊहापोह अब ख़ म हो गई ह। अपने ब को अँधेर क बीच से िनकालना चाहती । इसीिलए आपक पास आई । आप कपया पुिलस को बुलाएँ, िम टर रॉबट को ले जाएँ। हमारी मदद क िलए सोशल सिविसज़ से संपक कर। यह मेरा आिख़री फ़सला ह।'' 000 लेखक से अनुरोध सभी स माननीय लेखक से संपादक मंडल का िवन अनुरोध ह िक पि का म काशन हतु कवल अपनी मौिलक एवं अ कािशत रचनाएँ ही भेज। वह रचनाएँ जो सोशल मीिडया क िकसी मंच जैसे फ़सबुक, हा सएप आिद पर कािशत हो चुक ह, उ ह पि का म काशन हतु नह भेज। इस कार क रचना को हम कािशत नह करगे। साथ ही यह भी देखा गया ह िक कछ रचनाकार अपनी पूव म अ य िकसी पि का म कािशत रचनाएँ भी िवभोम- वर म काशन क िलए भेज रह ह, इस कार क रचनाएँ न भेज। अपनी मौिलक तथा अ कािशत रचनाएँ ही पि का म काशन क िलए भेज। आपका सहयोग हम पि का को और बेहतर बनाने म मदद करगा, ध यवाद। -सादर संपादक मंडल


कथा-कहानी

कौन सुने ?

काद बरी मेहरा

काद बरी मेहरा 35 िद एवे यू, चीम, सटन, सर, एसएम 27, यू ए, यू क मोबाइल- 447424736819 ईमेल- kadamehra@googlemail.com

सरोज सुबह उठी तो ताई जी गोमती नहा कर आ चुक थ । आँख मलते ए सरोज ने अल वर म पूछा, ताई जी आज हम य नह जगाया ? ताई जी गीली धोती अरगनी पर पसारती ई बोल , मुझे छइयो मत। जा ज दी से हार िपरो ले ठाकर क वा ते। िफर हमने जाना ह बीजी क घर। देवी मंदर क िलए गुलाब ले चिलयो। खबर सुनकर सरोज िखल गई। बीजी उसक दादी थ । उनक सबसे छोटी लड़क अंजू उसक हमउ थी और बड़ी म त। ढर िखलौने थे उसक पास -गुिड़या, गु और न जाने या या। अंजू जब अपनी नानी क यहाँ जाती तो सैकड़ छोट-बड़ साटन क टकड़ उठा लाती थी; य िक उसक मामा क कपड़ क दूकान थी। बीजी क पेट-पुंछनी लाड़ली अंजू क गुिड़या तो बस मालामाल। बीजी पूरी दोपहर गुिड़य क लहगे, सलवार-कमीज आिद काटती सीती रहती थ । सरोज क माँ क तो अपनी ही चार पुि याँ थ । चौथी अभी दस एक िदन क ही थी। िदन रात संयु प रवार क रोटी पानी से ही फसत नह थी। दोपहर को जब सब सो जाते तब सरोज क माँ का खटारा शु होता। पुरानी हाथ वाली िसलाई क मशीन खट-खट चलती रहती। मद क पैजामे, औरत क पेटीकोट, ाक, जाँिघए, नौकर क कत, अनेक झाड़न और भी न जाने या - या। सरोज कभी उनसे कछ नह कह पाती। कछ कहने पर कवल िझड़क ही िमलती। चतुर बीजी अंजू क सभी कपड़ सरोज क माँ से ही िसलवाती थ । सरोज क ॉक देखी नह िक धीरसे बान िहला दी, अंजू क वा ते भी ऐसी ही बना कर दे ब । मायक से आती बारी तो कभी न सोचती िक चार टकड़ सरोज और उसक बहन क िलए भी लेती चलूँ। पर चलो बड़ से तब कछ कहने का रवाज़ नह था। माँ वैसे भी सास -ससुर से घूँघट काढ़त थ बोलना तो दूर रहा। घर क मुिखया थ ताई जी। बाल िवधवा थ । घर पर उ ह क चलती थी। सरोज क घर म चाचा-चाची थे, कती बुआ थ । ऊपर से बीजी हमेशा छोट चचा को कती बुआ क पास पढ़ने भेज िदया करत थ । उनका नाम गु ु था। पढ़ाई का तो बहाना था। जब देखो तब बहसा बहसी। उन दोन क लड़ाई जग िव यात थी। सरोज क घर म बाईस कमर थे। आँगन था, बगीचा था, नौकर-चाकर थे। एक पूरा संसार इसक चारदीवारी म बंद था। पर सरोज एकाक थी उसे सबसे सतक रहना पड़ता था। इतने बड़ प रवार म उसक ह ती ही या थी। यूँ भी उस ज़माने म ब े अहिमयत ही कहाँ रखते थे। कसे पल जाते थे पता ही नह चलता था। यूँ तो सरोज क बहन उससे ब त छोटी नह थ मगर िफर भी सरोज उनसे ऊपर थी। सरोज कल जाती थी और वह दोन घर पर ही क, ख, ग, आिद सीख रही थ । कल म रोज अंजू िमलती और खाने क छ ी म रामिवलास गरम-गरम खाना लाता। फाटक क पास वाले नीम क चौतर पर दरी िबछाकर अंजू और सरोज खाना खात । ''बीजी नौकर य नह भेजत रामिवलास क जैसा? रोज़ हमार पापा का नौकर ही य खाना लाता ह ?'' सरोज ने ताईजी से पूछा था एक िदन। ताईजी कौन बड़ी अ छी थ । गुराक डाँट िदया था, ''छोट मुँह बड़ी बात ! खबरदार जो िफर कभी पूछा तो।'' ऊह, कौन पूछ डाँट खाने को। पर यह सवाल, जो सरोज क मन म आते थे, ग़लत थे। तो उसक ही मन म य आते थे ? बाक सब लोग य इतने तट थ थे ? या िफर जान बूझ कर बनते थे ? अ सर अंजू और बीजी भी आ जाती थ । िफर तो उनक ख़ाितरदारी नवाब क तरह होती थी। माँ िकवाड़ क पीछ ओझल-ओझल सी िफरती थ । चाची जान बूझ कर झाड़न उठा लेत और कमर क झाड़ प छ करक अपनी अप रिमत य तता का दशन करत । पर सरोज जानती 26 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


थी। दोपहर को जब माँ अपने कमर म जाकर ब क अनेक धंधे पेलगी तब बीजी चाची क कोठरी म जाकर िसंगार-पटार करगी और चाची से खुसुर-पुसुर करगी। चाची िनचली दराज़ खोलकर अपनी ख़ास म पाउडर िनकालगी। िसंग टबल क ऊपर तो िसफ एक कघी रखी रहती थी और एक िचपिचपी गीली िबंदी क शीशी िजसमे शीशे क डाट लगी थी िजसक साथ एक शीशे क सलाई जुड़ी थी। एक बार सरोज ने चुपक से इस रह यमयी कोठरी म वेश िकया था। चाची टबल फन लगाकर ठ ड नंगे फश पर पीठ क बल िच लेती ई थ । दोन हाथ छाती पर बंधे थे। मुँह खुला आ था। म खी से बचाव क कारण उ ह ने अपनी क ी वाली सफ़द धोती से चेहरा ढक रखा था। एकदम 'राम नाम स ' वाला मुदा लग रही थ । सरोज को हसी आ गई मगर उस समय उसक आने का योजन चाची क िसंगार मेज़ क खोल फरोल था। हौले से उसने एक-एक करक ऊपर क छोटी दराज़ को खोला। पहली म जूड़ क काँट आिद और दूसरी म सूई बटन आिद िनकले। धत तेर क । िफर बड़ी दराज़ को ज़रा सा ही खोल पाई थी िक चाची ने दीवार क तरफ करवट बदली। सरोज क साँस ऊपर क ऊपर और नीचे क नीचे रह गई। दो िमनट तक वह दम साधे खड़ी रही। खराट करवट लेने से बंद हो गए थे। जब चाची क थूलय म कोई हरक़त नह ई तो सरोज ने राहत क साँस ली और बड़ी दराज़ म झाँका। कागज़ ही कागज़ नज़र आये। या पता चाचा जी क ह । बंद कर दी। पर िबना कछ पाये लौट जाना उसक िज ासु वभाव को रास न आया। कघी उठाई। चाची क मश र िवलायती सैलोलाइट क कघी। ग दी थी। चौथाई इच तक उसक दरांते मैल से ठोस ए पड़ थे। ऊपर से उसम बाल लगे थे। छी छी ! सरोज क माँ जब तब सरोज को कघे तोिलये आिद क सफाई पर भाषण िपलाती रहती थ । हर दो महीने पर, अकारण, नीम क पि याँ पानी म उबालकर, बेिटय का सर धोती थ । कड़वा गम पानी बाल से उतरकर सरोज क मुँह म भर जाता

था। ब त रोती-िच ाती थी मगर माँ क जकड़ क आगे सरोज क एक न चलती। तब यही चाची कती बुआ क संग िमलकर उसक माँ का मज़ाक बनात । छी। यह भी कोई कघी ह। अर वाह पाउडर का लाल िड बा ! कसे खुलते ह इसक छक ? पर पाउडर तो उसे लगाना नह था। रख िदया। अब आई बारी िबंदी क । िचपक ई शीशी क डांट को जो ख चकर खोला तो शीशी उछलकर एक तरफ गई और िचपिचपाती शीशे क नली उसक हाथ म रह गई। टनटनाती ई शीशी फश पर िगरी और गाढ़ा लाल पट चार तरफ पुत गया। अभी वह अपनी ॉक और हाथ क धजा देख रही थी िक चाची द ाकर उठ और उसक दोन चोिटयाँ कसकर मरोड़ । ''प ो प ड़ी क हाथ दरल दे।'' कहते ए चाची ने उसका हाथ जकड़ िलया और इसक पहले िक सरोज कछ समझ सक उसे कमर क ंग वाले दरवाज़े क चूल म अटका कर ंग को रोकनेवाली साँकल हटा दी। झटक से दरवाज़ा उसक उगिलय पर बंद हो गया। दद से चीखकर रो पड़ी सरोज। दोपहर म सोये ए लोग क न द न हराम हो इसिलए चाची ने उसक मुँह पर हाथ रखकर भ च िदया। वह गािलयाँ देती, दातँ पीसती और हज़ार धमिकयाँ देती उसे घसीटकर उसक माँ क कमर म पटक आ । माँ िबना पंखे वाले कमर म पसीन-पसीना होती मशीन चला रही थ । सरोज को तो साँस नह आ रही थी नीली ई पड़ी थी। माँ सकते म आ ग । माँ कछ पूछत िक चाची गुरा , ''मरगी नह तु हारी ल िडया, यह खून नह ह मेरी िबंदी ह। लुिधयाने से मगँवाई थी। भवानी ने तोड़कर धर दी। नास पीटी ने सारा घर सर पर उठा रखा ह। माँ फक रनी, धी को महारानी बनना ह।'' अपनी ग़रीबी का ताना माँ सह न सक । सरोज को और मार पड़ी। चाची क कोठरी म जाने क मनाही हो गई। चार िदन क बाद माँ ने पूछा, ‘'यह अँगूठ का नाखून कसे काला हो गया ?'' सरोज चु पी मार गई। माँ पर से उसका िव ास उठ गया था। या पता िफर मार द। 27 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

िबना उ र िदए खेलने भाग गई। पर बात छपी न रही। ठाकर ार म ताई जी क पास बैठकर च दन िघसने लगी तो उ ह ने भी पूछा। सरोज ने बता िदया और रोने लगी। ताईजी ज़ोर- ज़ोर से मद क ना ते क व त िबना नाम िलए ‘'िकसी नाठी-िनगोड़ी'' को गािलयाँ द । --''िजसक भाई न बहन, न पेट फटा, वो या िकसी पराये पेट का दुःख दद करगी ?'' नतीजा ? आते-जाते, पास से गुज़रते, चाची ने सरोज को िचकोिटयाँ काट और डराया िक िकसी से कहगी तो तुझे शौचालय म बंद कर दूँगी। बंद होने से सरोज ब त डरती थी। मार-वार तो रोज़ मरा क बात थी। ताईजी कभी- कभी ब त अ छी हो जात थ । खासकर पूजा करते समय। सरोज को उ ह ने सुबह-सुबह उठकर फल चुनना, उ ह धोकर माला िपरोना, सु े कपड़ लगाकर नहाना, पूजा क थाली लगाना आिद सब िसखा रखा था। सरोज क ितभा िवल ण थी। हर एक म रटा था उसे। कोई कहानी अगर ताईजी उसे सुना देत तो वह हमेशा क िलए उसे याद हो जाती। पढ़ना उसने माँ से सीखा था, िगनती पापा से। रामिवलास जब साइिकल पर कल छोड़ने जाता तब र ते भर िफ़ मी गाने गाता जाता। सरोज को सब याद हो गए थे। जब गु ु चाचा और कती बुआ म अंता री होती, वह दोन उसे घूस देते। पर वह या उसक मीत थे ? सरोज को उनसे भी सावधान रहना पड़ता था। एक बार बहसा-बहसी म गाली -गलौज हो गई। पढ़ने क िलए िकताब लेकर दोन गोल कमर क एकांत म जा बैठ थे। मगर िब ी क सामने चूहा हो तो या रामायण पढ़गी ? लड़ाई हो गई। शोर सुनकर सरोज चुपक से झाँकने आई। देखा गु ु चाचा ने शीशे का फलदान उठाकर कती बुआ क ओर फका तो उ ह ने लकड़ी का हाथी उठा िलया। सरोज को देखकर दोन थम गए। ''तू यहाँ या कर रही ह छोकरी ?'' कहते-कहते चाचा ने उसक दोन चोिटयाँ पकड़कर मरोड़ द और िच ाये ''देखो मरी ने फलदान तोड़ िदया।'' यह भी चाची लुिधयाने से लाई थ । उस िदन भी सरोज को


मार पड़ी। रोते-रोते िबना खाना खाए ही सो गई। लाख चीखने पर भी िकसी ने िव ास नह िकया िक फलदान उसने नह तोड़ा था। ताई जी ने भी नह य िक कती बुआ उनक संतान समान थ । आज ताईजी अ छ मूड म थ । सरोज को अपने संग बीजी क घर ले जा रही थ । ना ते आिद से िनवृ होकर उ ह ने एक तागँा मँगवाया। सरोज ने पहले ही कह िदया ताईजी हम आगे िकशोर क गोदी म बैठगे। हालाँिक आगे बैठने म एक बड़ा नु सान था। ताँगे का घोड़ा जब बदबू मारता तो बड़ी को त होती, मगर िपछली सीट पर बैठने म वह नीचे िफसली जाती थी और ताईजी और कती बुआ क बीच म फसकर बैठने से वह न दािहने गदन घुमा पाती न बाएँ। दुकान देखने का उसे शौक था। पूरा ही न हो पाता। ताँगा दोपहर क खाने क समय तक बीजी क घर प चा। अंजू घर क सामनेवाले नीम क पेड़ पर झूला डलवा रही थी। िकशोर क प चने पर उसे भी इस काम म जोत िलया। आनन -फानन म झूला डल भी गया। बीजी ने ल सी िपलवाई। सरोज को छोट से िगलास म ल सी िमली। और माँगी तो ख म हो गई थी। सरोज ने अंजू से पूछा तूने ल सी पी ली ? अंजू ने दोन हाथ से बड़ िगलास क ओर इशारा िकया और अपने गोल पेट को थपथपाया। दोन लड़िकय ने िदन भर झूला झूला। शाम को जाने का समय आया तो अंजू पसर गई। ‘'सरोज को मत भेजो। हम िकसक साथ िसकड़ी खेलगे ?'' अंजू ठनठनाने लगी। लाडो क िज़द और बीजी पूरी न कर ? असंभव। बड़ मनुहार से बोल , ''इसे छोड़ जाओ 'बड़ी', अंजू उदास हो जाएगी।'' मन ही मन सरोज भी यही चाहती थी। अतः ताईजी मान ग । िकशोर से कहा चार िदन बाद साइिकल पर ले आईयो। ताईजी और कती बुआ घर चली ग । अगले िदन अंजू क कपड़ पहनाकर बीजी ने उसे भी नहलाया धुलाया। सरोज ल बी और पतली थी। अंजू क कपड़ उस पर झूलते थे। जांिघये लटकते थे, मगर सरोज खुश थी। दोन लड़िकयाँ घंट कच से खेलती रह । सहसा अंजू ने पूछा,

''तुझे जुआ खेलना आता ह ?'' सरोज भला या जाने। अंजू ने समझाया, ''अगर तू बंट (बड़ा कचा) को मार और तेरा िनशाना ठीक लग जाए तो मेर फक सब कचे तेर।'' लालच बुरी बला ह। या सचमुच वह जीत क कचे घर ले जा सकगी ? िकतना मज़ा आएगा। छोटी बहन को िदखाएगी। खेल शु आ। ''एक बार तेरी, एक बार मेरी।'' अंजू ने िनयम तय िकये। वाह-वाह या खेल था। घंट जीत हार होती रही। सरोज का िनशाना खूब सटीक बैठने लगा। झोली भर कचे जीत गई। तभी खाना खाने क िलए आवाज़ पड़ी। दोन अपनी-अपनी झोली म कचे समेट बीजी क पास ग । सरोज ने मक कर िदखाया, ''बीजी देखो हमने जीते। घर ले जाएँगे।'' बीजी खुश तो या होत , उ टा उसे डॉट कर सब कचे रखवा िलए। सरोज क पापा को गाली देकर बोल , ''बड़ा अपनी कमाई हम पकड़ा रहा ह न िक तू सब ले जाएगी।'' कमाई या होती ह मासूम सरोज क समझ म नह आया। बस इतना प े पड़ा िक वह कचे नह ले जा पाएगी। जैसे तैसे खाना खाकर सोने क कमर म फश पर पड़ी रही। मन कसैला हो गया था। मार तो पड़ी नह थी जो रोती-धोती। अंजु सो गई थी। बाबूजी और बीजी उठकर अंदर वाली ठडी बैठक म चले गए। सरोज मौका पाकर तपती धूप म बाहर आ गई। उसे ब दर से डर लगता था मगर छत पे या नीम क पेड़पर कोई ब दर नह िदखा। टट बारजे पर जाने क मनाही थी। सरोज चार बार चढ़ी-उतरी। दीवार म बने आल पर पैर रख-रख कर वह सबसे ऊची चाट पर भी हो आई। िफर भी मन न बहला तो सबसे भयानक काम िकया। गली म जाने वाले जीने से नीचे उतर गई। बीजी क पुराने भीमकाय मकान क कई रह य उसे उस िदन ात ए। जहाँ बीजी नहाती थ , वहाँ फश पर एक प थर था। यान से देखने पर उसे पता चला िक प थर क नीचे छलछलाता कआँ था। उसक मुहाने को प थर ने बीच म से इस कार ढक रखा था िक आस-पास से छोटी सी बा टी ख ची जा सक। गम क िदन म फश सूखा पड़ा था। काई 28 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

क पपिड़याँ िचटक ग थ । पर जब वह गीला होता वहाँ िफसलन होती थी, अतः ब को वहाँ जाना स त मना था। सरोज जान बूझकर प थर क पास तक गई। झाँककर पानी क िझलिमलाती सतह को देखा, िफर डरी। कह नीचे से कोई भूत उसे अंदर न ख च ले। डर कर बाहर भागी। ज दी म दालान क िजस दरवाज़े म घुसी वह बाहर गली म खुलता था। एक चौड़ी सीढ़ी वह से ऊपर क मंिज़ल पर जाती थी जहाँ बीजी का सोने का कमरा था। शु धवल संगमरमर क सीिढ़याँ तप रही थ । पैर रखने से छाले पड़ जाते। तभी सीढ़ी क नीचे सरोज को एक दरवाज़ा िदखा। सोचा थोड़ी देर यह छपा जाए। हलक-ध क से दरवाज़ा खुल गया। यह बाबूजी का गुसलखाना था। नलक सूँ -सूँ करते सूखे पड़ थे। ऊपर नज़र गई तो फ वारा िदखा। सरोज कद-कदकर उसे पकड़ने क कोिशश करने लगी। छठी छलांग म उसक दोन हाथ फ वार क नलक पर िटक गए। वह मज़े से झूला झूलने लगी। सामनी दीवार पर दोन पैर िटका कर छोड़ देती। कछ पल खूब मज़ा आया िफर बाह थकने लग । उतरना चाहा तो नीचे देखते ही उसक िह मत टट गई। धरती बेहद दूर लगी। घबराकर एक हाथ को मु िकया और सामने दीवार म जड़ी नलक पकड़ ली। पर नलक क जोड़ जंग खाए थे। वह उखड़ कर हाथ म आ गई। ऊपर से फ वारा टट कर उसक मुँह पर लगा। ठ ी और माथा फट गया। िगरी तो प थर क फश से बैठने क जगह ह ी पर चोट लगी। बाह िछल ग थ । खून देख कर सरोज दहाड़ मारने लगी। बीजी गािलयाँ देती अंदर से िनकल । बाबूजी उ ह डाँट रह थे, ‘' य रखा था पराया ब ा ? अब या जवाब देगी इसक माँ को ? सर क चोट, वह भी भारी लोह क छड़ से। अर पागल वागल हो गई तो जनम भर क मुसीबत।'' बीजी ने जैसे-तैसे िसर पर प ी बाँधी। ठ ी पर गरम घी का फाहा रखा। सरोज को आ य आ िक उ ह ने उसे डाँटा नह । शायद इसिलए िक बाबूजी क सामने वह हमेशा शांत रहती थ । तीसर िदन दोन को


बाहर जाने क मनाही हो गई। धूप ब त ह घर म बैठकर गुिड़या खेलो। बीजी ने कम िदया। सरोज का मन नह लगा। अंजु क गुिड़या क रग िबरगे कपड़ उसे जला रह थे। अंजु ने दया करक एक गुिड़या का ग ा उसे िदया। अगर एक चौरस सु दर कपड़ा हो तो वह उसक रजाई बनाएगी। अतः वह दराज को पूरा खोलकर फरोलने लगी। बीजी जाने कहाँ से आ ग । दोन क बेदद से कान ख चे। सरोज गोरी। कान दो िदन लाल रहा। चौथे िदन अंजु क सहली मन ीत ने बुलाया। उसका घर बन रहा था। अंजु और वह कचे खेलने लग । सरोज को बालू और ट िमल ग । वह घर बनाती रही। धूप तेज़ हो गई तो वह अंजु को ढढ़ती आँगन म आई। मन ीत क माँ िमसेज ब गा बान क मंझी पर बैठी महरी से तेल लगवा रही थ । महरी खुसुर पुसुर िकये जा रही थी। उसे देखकर चुप हो गई। िमसेज़ ब गा बोल , ''इधर आ। तेरी माँ ने नम ते करना नह िसखाया ?'' सरोज ह क ब क उ ह देखती रही। कछ बोल ना पाई। िमसेज़ ब गा िफर टराय , ''कब जाएगी वािपस अपने घर ? शैतािनयाँ करक सारा घर सर पर उठा रखा ह। लड़क या ह तूफ़ान दी ग ी (तूफ़ान क गाड़ी)। '' इसको िकसने कहा िक म शैतािनयाँ करती , सरोज अपना गु सा िछपा न पाई, ''तू तूफ़ान दी ग ी'', कह कर वह तीर क तरह भागी। घर प चकर साँस भी ना ली थी िक देखा िमसेज़ ब गा बाल िबखेर पीछ-पीछ उसे गािलयाँ देती आ प ची थ । सरोज डर क मार सु हो गई। उनक चीखती आवाज़ मान बीिसय डायनो क कठ वर आपस म िमलकर उसक कनपिटय पर हार कर रह थे। उसने दोन हाथ से अपने कान बंद कर िलए। दस िमनट तक लगातार बकबका क वह धम धम पैर पटकती वािपस चली ग । और उनक जाते ही उनक सर पर चढ़ी सारी डायन मान बीजी क सर चढ़ ग । थ पड़ और गािलयाँ िनकालती बीजी उसक दोन चोिटय से घसीटकर उसे ऊपर ले ग और बरसाती म बंद कर िदया। रो-रोकर सरोज थक गई। िकतना रोती ?

अपमान, झूठ इलज़ाम, माँ-बाप क बदनामी, ठोड़ी क टीसती चोट, माथे पर पड़ा लंबा नील, या - या सहती ? भूख से पेट दद करने लगा था। पानी ही पी लेती। दरवाज़ा पीटा। बरसाती क टीन क छत और दीवार तप रही थ । बीजी और अंजु ठडी बैठक म सो रही थ । उसे कौन सुन पाता ? दरवाज़े क दरार म से बाहर झाँका। बाहर मुँडर पर एक मोटा ब दर बैठा था। सरोज क िघ घी बंध गई। सहमकर, दम साधकर, एकदम िसमटकर, धरती से िचपक गई। जहाँ बैठी थी वहाँ उसी क पसीने से फश तर हो गया था। थोड़ा ठडा था। सरोज को डर था िक ज़रा भी िहली तो ब दर उसे खा जाएगा। पता नह कब उसक आँख लग गई। शाम को, जब आसमान लाल हो रहा था उसे बरसाती का दरवाज़ा खुलने का भान आ। महरी, जो सव ाता, सव यािपनी थी, उसक िलए बफ का दूध ले आई थी। सरोज ने लपक कर गटागट पी िलया एक साँस म। महरी बोली, '' चलो तैयार हो जाओ। मुँह हाथ धो लो। हमार ही कारण तु ह मार पै गई।'' उसका यह पछतावा भी सरोज क समझ से पर था। साफ़ सुथरी अपनी ॉक पहनकर सरोज तैयार ई तो िकशोर आ गया। बीजी वहाँ नह आ । अंजु कह खेलने गई थी। सरोज सीधी लपक कर साइिकल क डड पर बैठ गई। महरी िकशोर को चार िदन का यौरा सुनाती रही, सरोज क जानी पहचानी खुसुर पुसुर। िकशोर उसे जब घर लाया तो सबक चेहर का रग उड़ गया। ''नलक पर लटक रही थी। िगर पड़ी। इनक माँ कहाँ ह ? कछ कहना ह।'' माँ से िकशोर ने दबे श द म या- या कहा पता नह । माँ का चेहरा तमतमा क लाल हो गया। सरोज को उ ह ने अपने कमर म ले जाकर गले से लगाकर खूब यार िकया। ब से कछ पूछना उनक आदत नह थी मगर आज उनका धैय जवाब दे गया। आँसू बह िनकले। सरोज अपने घर वािपस आकर बहन क संग मगन हो खेलने लगी। पर घर म स ाटा छाया रहा। इतना या आ होगा ? 29 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

सरोज को मार पड़ना कोई नई बात तो थी नह । रात को जब पापा घर आये तब पहले तो चुपचाप मद को खाना परोसा गया। इसक बाद जैसे तूफ़ान आ गया। सब एक दूसर पर िच ाने लगे। ताईजी िकसी, ''बेऔलाद, नाठी िनगोड़ी'' को गािलयाँ देती रह रबत करने क िलए। माँ दुखी हो कह रही थ , ''चार पैदा क ह तो यह मतलब तो नह िक उ ह मार डालो ! पहले मुझे मार डालो सब िमलकर।'' आिद आिद 000 कती बुआ कसम खा रही थ - ''म घर से कॉलेज, कॉलेज से घर। मुझे या पड़ी ह िक म घर क बात ब से क । '' चाची अपनी िसंगार मेज़ वाली कोठरी म बंद होकर सुबक रही थ । उनक पित देर से घर आते थे दूकान बढ़ाकर। इसी शोर शराबे क बीच उसक माँ अपनी पुि य को पटक- पटककर उनक िब तर म सुला आ । उ ह ने खाना भी नह खाया। सरोज क पापा ताई जी से कह रह थे- ''यह सब उसी ज नी िमसेज़ ब गा क लगाईबुझाई ह भाभी। इतनी सी छ सात साल क ब ी या जाने सौतेली माँ या होती ह।'' अब िमसेज ब गा क श द प प से सरोज को याद आने लगे- ''ठहर तुझे िपटवाती । मुझे गाली दी। तूने कहा था न िक हमारी दादी सौतेली ह।'' आधी रात बीते सरोज को लगा वह नलक से लटक ह और पानी भर-भर चल रहा ह। माँ, पापा, कती बुआ सबको आवाज़ देती वह चीख कर उठ बैठी। हम उतारो कोई हम उतारो। ताई जी दौड़ी आ । उसे झकझोरा। देखा तो सब कपड़ पसीने से तर थे। अंक म लेकर कहा, ''गम ह। कपड़ उतार दे। चल मेर संग आक सो जा।'' ताईजी का ेह पाकर वह छाती से िचपक गई। ''मेरी सुघड़ सयानी ब ो, जो तुझ पर झूठ लगाए उसक क ड़ पड़।'' सरोज क िह मत वािपस आ गई। हौले से पूछा, ''ताईजी 'सौतेली' माने या ?'' ताई जी िन र हो उसे थपिकयाँ देती रह और रोती रह । 000


कथा-कहानी

िमशन - एन.पी.ए. डॉ. रमेश यादव

तेज़ गित से दौड़ रही न अचानक क । एक झटका–सा लगा और म अपनी त ा से बाहर आया। शायद कोई टशन आया था। मानसपटल पर बुलबुल क तरह उठ रह न को रोका। आँख को प छते ए म भारी कदम से लेटफाम पर उतरकर इधर-उधर झाँकने लगा। न देश क दि णी े को पार करक उ री े क सीमा म वेश कर गई थी। ताप क िदन, जलती धरती, झुलसते सपने। लेटफाम पर आते-जाते लोग को म िनहारने लगा। कछ देर तक मौन होकर सब कछ देखता रहा। सामने से चायवाला आ रहा था, उसे बुलाया और चाय क चु कयाँ लेते ए अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। सीटी बजी और लहराती ई न चल पड़ी। म पुन: याद क समंदर म गोते लगाने लगा। भीतर क सरगोिशयाँ बाहर आ गई। मेरी आँख क सामने वह य तैरने लगा जब मुझे बक ारा स मािनत िकया जा रहा था.... बक क धान कायालय क वह आलीशान गगनचुंबी इमारत। िल ट से प ीसव मंिज़ल पर जाते ए मेरी आख ँ डबडबा गई थ । आज मुझे बक क बंध िनदेशक क हाथ स मािनत िकया जाना था। प ीसवी मंिज़ल क साज़- स ा और रौनक देखकर म च िधया गया था। सब कछ भ य, सुंदर और आलीशान था, जैसे कोई पाँच िसतारा होटल हो। सामने वह त वीर थी िजसम बक क चेअरमने महोदय भारी भरकम रकम वाला चेक मं ी जी को स पते ए मु करा रह थे। तो देश क िव मं ी बड़ ही गमजोशी से उसे वीकार कर रह थे। हॉल म सजी यह त वीर लोग को आकिषत कर रही थी। बक जो मुनाफा कमाती ह उसका एक िह सा सरकार को िदया जाता ह, तािक देश क आिथक यव था मज़बूत हो सक। भले ही हम बोनस न िमलता हो, जो िनजी उप म म िमलता ह, पर देश क िवकास म हमारा योगदान ह। देश क आिथक यव था म हमारा भी अहम योगदान ह, इस बात का मुझे गव हो रहा था। डॉ. रमेश यादव यह त वीर िजतनी साफ– सुथरी नज़र आ रही थी, हक़ क़त म वैसी होती नह , इस बात क 481/161- िवनायक वासुदेव, एन.एम. गवाही मेरा अंतमन दे रहा था। चेक क रकम तय करती ह िक अगली पो टग कहाँ और िकस जोशी माग, िचंचपोकली (प म) पद पर होगी। गमजोशी से हाथ िमलाने और मु कराहट क पीछ एक ल बी राजनीित होती ह। मुंबई- 400011 मोबाइल-9820759088 / 7977992381 देश क िवकास म हम मजीिवय का िकतना बड़ा योगदान होता ह, इसका व द तो िसफ़ ईमेल- rameshyadav0910@yahoo.com श द तक ही सीिमत होता ह। खुश हो जाते ह हम साहब क वाह- वाही से। मगर इसम भी एक 30 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


अकड़न होती ह। आिख़र ये भी कहाँ आसानी से िमलती ह ! खैर, त वीर म मु करा रह चेअरमेन क खुशी म मने अपनी खुशी िमला ली और आगे बढ़ गया। कदम कछ आगे बढ़ ही थे िक सामने रशे सन पोच म लगे टीवी पर आँख गड़ गई। सामने मीिडया क वो सुिखयाँ दौड़ रही थ िजसम देश म फले ाचार क रपोट पेश क जा रही थी। ाचार और दलाली म िल नेता क खबर मन म लिन पैदा कर रही थ । रपोटर बता रहा था िक देशसेवा क नाम पर चुनकर आनेवाले नेता, संसद म आपसी भेद- भाव और रिजश िमटाकर िकस तरह एकज़ट होकर अपने वेतन, भ े, पशन, आवास और तमाम सुिवधाएँ मं र करा रह थे। इसक िलए उ ह हड़ताल करक वेतन कटौती करवाने क ज़ रत नह पड़ती। स य समाज क ये अस य त वीर। त ख हक़ क़त। मेर अंदर का एक ज बाती इसान िहसाब लगा रहा था। एक ओर वेतन क अित र लाख म बोनस और भ े पानेवाले कम ह, तो दूसरी ओर इसका आधा भी नह पाते, ऐसे लोग क भारी भीड़ ह ! दोन ेणी म सरकारी और िबन सरकारी लोग का समावेश ह। मुझे याद आ गया मेरा भतीजा जो आई.टी. से टर म ह, उसने टारगेट पूरा िकया तो उसे वेतन क बराबर लाख का बोनस िदया गया और पदो ित अलग से। महज़ तीस साल क उ म लाख क तन वाह पानेवाला आज वह कपनी का ए जी यूटीव ह और म, ख़ैर....... वागत क म मेरा बड़ी गमजोशी से वागत िकया गया। कछ ब त ही खूबसूरत, शोला और शबनम जैसी सुंदर, मिहला ने बड़ आदर से मेरा ितलक िकया, फल िदया और मुझे मंच तक ले ग । समारोह क औपचा रकता पूरी होने क बाद चेयरमने महोदय जी ने सुंदर स मान िच , श त प और गो ड मेडल (सोने क परत चढ़ा) देकर मुझे स मािनत िकया। स मान का जवाब देते ए मेरी आख ँ नम हो गई थी। मने इस तरह क स मान क बार कभी सोचा भी नह था। सरहद

पर शहीद होनेवाले जवान क िज़ंदिगयाँ याद आ गई और समचार प क वो सुख खबर भी। इस स मान से वा तव म मुझे बेहद खुशी हो रही थी पर िदल म एक कसक भी थी। जीवन क पाठशाला ने ब त कछ िसखा िदया था। इस बात को म महसूस कर रहा था। मेरी से यह स मान तो उन ामीण का था, िज ह ने मेरी आवाज़ से आवाज़ िमलायी थी और कड पा शाखा का टारगेट पूरा िकया था। आजकल टारगेट का ज़माना ह। जो टारगेट क खेल म मािहर ह, वही िसकदर ह अ यथा बरस क मेहनत पर पानी िफर जाता ह। टारगेट का झंडा म भी फहरा कर आया था जो िपछले दस वष म कभी नह आ था। बहरहाल मंच पर बैठ–बैठ मुझे घर प रवार क याद आ गई िक यह स मान तो मेरी प नी का भी ह, िजसने अकले घर क िज़ मेदा रय को सँभाला था। पाँच वष का अकलापन भोगा था। जीवन क अजूबेपन को झेला था। ब े क ी उ पार करक जवानी क दहलीज़ पर द तक दे रह थे। यही वह उ होती ह ब क , जहाँ उ ह सँभालने क और सँभलने ज़ रत अिधक होती ह। उनक िज़ंदगी जीवन क उस चौराह पर खड़ी होती ह, जहाँ से तमाम राह बनने, िबगड़ने, बहकने और िफसलने क ओर िनकलती ह। एक ओर मोशन क झंड तो दूसरी ओर घर - प रवार क िफ़ । मुझे याद ह िक कल वन का मोशन 31 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

प ीस साल क बाद िमला था। ांसफर क सदमे से सदैव परशान रहा। 25 – 30 साल क बाद पहला मोशन और वह भी गाँव – खेड़ म....! सरकारी महकम म इस ांसफर नामक सोच से िकतना नुकसान होता ह लोग का और देश क यव था का भी यह आज भी लोग ठीक से समझ नह रह ह इसका मन ही मन बड़ा इसका अफ़सोस हो रहा था ! ख़रै, चार साल बाद यह दूसरा मोशन था। महीने भर भी म प रवार क साथ नह रह पाया था िक अचानक एक िदन पुन: ांसफर ऑडर थमा िदया गया। शहर से सीधे गाँव – खेड़ म, उ र से सीधे दि ण देश म जाना पड़ा, वह भी प रवार क बगैर। प नी क नौकरी और ब क पढ़ाई क चलते उ ह साथ ले जाना संभव नह था। अत: खाने- पीने, उठने- बैठने, बोली- भाषा, रहने इ यािद तमाम तरह क परशािनय को झेलते ए मुझे तो नानी याद आ गई थी। मरता बेचारा या न करता ! सो जाना पडा़। सोच रहा था कमब त ये भी कोई मोशन ह ! बसी- बसाई दुिनया छोड़कर गाँव म जाओ। वेतन म इज़ाफा िसफ सैकड़ का और सामािजक साँ कितक नुकसान लाख का ! नई गृह थी बसाओ, वो खचा अलग से ! मगर या कर साहब, बिकग इड ी म तबादला, नौकरी का एक अिवभा य घटक होता ह, जो वष से चली आ रही एक लाईलाज बीमारी ह। इस बीमारी क चलते महानगर म रहनेवाले किमय और मिहला का िपछले तीन दशक म काफ नुकसान उठाना पड़ा ह। क यूटर और तकनीक क इस युग म अब तो इस बीमारी का इलाज होना ही चािहए ! मन ही मन कोसते ए मने अपने प रवार और शहर से िबदाई ली थी। कड पा शाखा म मने अपनी नई पारी आरभ क । एक ओर तमाम सम याएँ तो दूसरी ओर पदो ित क गरमी भी थी। भाषाई परशानी, गंवई तौर– तरीक, ामीण बिकग, लोकल लोग क दबंगई इ यािद सम या क चलते लोग मुझ पर हसते और म िदन काटने क च कर म मु करा देता। ख़रै पाँच वष से तक आं देश क इस क पा शाखा म बतौर बंधक अपनी सेवाएँ मने दान क ।


म सोच रहा था िक आिख़र इस सफलता क पीछ एक राज़ भी तो िछपा था िक, िकसी तरह ामीण सेवा क तीन वष पूर कर लूँ और िफर अपने होमटाउन को लौट जाऊ, पर आ कछ िवपरीत। टारगेट पूरा न होने क वजह से मेरा कायकाल उसी शाखा म दो वष क िलए और बढ़ा िदया गया। मुझे भय था िक यिद इस बार भी टारगेट पूरा नह आ तो.......! िकसी भी तरह मुझे वापस अपने प रवार क बीच लौटना था। मगर हाँ, म बक क िज़ मेदा रय से भागना भी नह चाहता था। करो या मरो क थित से म गुज़र रहा था उन िदन । िकतना अबझ ू होता ह ना जीवन ! वह अपने को कभी पूरा य नह करता। िनराशा क ऐसे ण म अ सर अंदर से कोई कहता रहता ह िक िचंता मत करो, सब कछ अ छा होगा। ऐसे पंदन से उचाट मन कभी-कभी सुकन पाता ह। स मान क प ा अपने भाषण म मने कहा था िक, िम , मुझे जीवन म किव शैल क ये पं याँ ाय: संबल दान करती ह ' तू िज़ंदा ह तो िज़ंदगी क जीत पर यक न कर अगर कह ह वग तो उतार ला ज़मीन पर।' इस मं को मने अपना जीवन मं बना िलया ह और चुनौितय क हर मोड़ पर इस मं को जीवन गीत बनाने क कोिशश करता । िम , आज क इस आयोजन क ित म कत ता य करते ए, यह स मान म िस पा को समिपत कर रहा । लोग चिकत हो गए िक यह िस पा कौन ह ! ख़ैर, स मान समारोह समा आ। काय म क अगले ही िदन म अपने होमटाउन गािज़याबाद क ओर रवाना हो गया। न अब पूरी र तार से दौड़ने लगी थी। मन क मुंडर पर ख ी– मीठी याद का िसलिसला पग ले रहा था। वष ल बी िज़ंदगी म कछ बात ही याद रहती ह। सािह यकार क श द म अज़ीब– सा क र मा होता ह। वे िसफ लक र क फ़क र नह होते, ब क जीवन का मम उडलकर रख देते ह। कमोबेश वह पुराना

दोहा मेर िलए पथ दशक बना मील ल बी िज़ंदगी, बरस दौड़ दौड़, बाक सब िव मृत आ, याद रह कछ मोड़। दरअसल िजस िजले म मेरी शाखा थी उस िजले म एक नदी बहती थी। नदी बेछट थी। एक ओर वरदान तो दूसरी ओर अिभशाप। िजस े से बहती वहाँ तो फसल अ छी उगती, िकतु कभी-कभी तबाही मचाते ए बाढ़ भी लाती थी। इस पर बाँध बनाकर पानी को रोकना ज़ री था, तािक सुचा प से पानी खेत तक प चाया जा सक और बाढ़ को रोका जा सक। मेर बक क शाखा िजस े म थी वहाँ िपछले कछ वष से सूखे का आलम था। सूखे क वजह से लोग बदहाली का जीवन जी रह थे। कई कार क किष लोन उस े म बाँट गए थे पर लोन क वसूली नह हो पा रही थी। थानीय नेतागण कज़ माफ़ क रट लगाए ए थे। इससे लोग म ग़लतफ़हमी पैदा हो गई थी, पर कछ लोग इमानदार भी थे। वे कज़ चुकाना चाहते थे, िकतु प र थितय क आगे मजबूर थे। उनक इस ज बे को सलाम करने को िदल चाह रहा था। टारगेट पूरा करने क आसुरी ख़याल ने मुझे स त बना िदया और साम-दाम-दंडभेद क नीित अपनाते ए मने ''िमशन एन.पी.ए.'' (नॉन परफॉिमग असेट- ऐसे बक लोन जो वसूल न हो रह ह ) क तहत येन-कन कारण लोन वसूली को अपना ल य बनाया। 32 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

िवकास क इस स रता क प म म लोकतं का सपना देख रहा था। इस िपछड़ ए इलाक क उपेि त क िलए जाग कता, भागीदारी, और अवसर क सुलभता का िवचार मेर मन म गज ूँ रहा था। लोग क िशकायत सुनसुनकर मेर कान पक गए थे। शाखा म मुझे िमलाकर कल पाँच कमचारी थे, एक – दो तो रोज़ छ ी पर रहते। मुिखया होने क नाते ितज़ोरी क चाबी से लेकर साफ– सफाई और गेट खोलने बंद करने क सारी िज़ मेदारी मेरी थी, य िक........ ख़रै यह िवषय ल बा हो जाएगा....। कछ ही िदन बाद िजला तर पर सरकारी एजिसय क एक बैठक म मुझे िनमंि त िकया गया। े क िवकास और सम या पर चचा होनी थी। उनक िलए ये महज़ खानापूित थी पर मेर िलए िमशन था। सरकारी अिधका रय क सामने मने नदी पर बाँध बनाने और नहर िनकालने क योजना रखी। वहाँ क जीवन क बार म और खेत क उपज क बार म लोग को समझाया। वह मोड़ मने बताया जहाँ बाँध बनाना ज़ री था। इससे एक ओर हमारी शाखा क े क लोग को बाढ़ से राहत िमलने वाली थी, तो दूसरी ओर अ छी फसल। योजना पर लगनेवाली लागत क िलए आव यक बक लोन का ताव बनाने का िज़ मा मने उठाया और इसे अपने बक क धान कायालय से मं री िदलवाने का भरोसा भी िदया। े क मुिखया ने इस योजना क बार म मुझे पहले ही बता िदया था, अत: धान कायालय से इस िवषय पर मेरी चचा हो गई थी। वैसे इसक पहले े क लोग बाढ़ क सम या क समाधान क िलए िजलािधका रय से कई बार िमल चुक थे। हर साल एक बड़ी सभा आयोिजत क जाती और उसम चचा क जाती िक यिद बाढ़ आई तो राहत काय िकस कार िकया जाएगा ! मदद कसे प चाई जाएगी ! मुआवज़े क रािश कसे िवत रत होगी! राहत िशिवर कहाँ लगेगा ! बीमारी म दवाइयाँ कसे प चाई जाएँगी, इ यािद इ यािद! पर इन सभा म बाँध बनाकर चार ओर िसंचाई क िलए नहर बनाने पर कभी कोई


चचा नह उठती थी। इसक कई कारण रह ह गे, शायद वाथ या कछ और.........। आज तक आिथक मु ा ही उनक िलए िसरदद बना था। मने ताव को धान कायालय भेज िदया। साथ म िजला कले टर और े क मं ी जी का िसफा रश प भी जोड़ िदया। यह ोजे ट लोन का एक बड़ा ताव था, जो बेहद ही संवेदनशील था। बक को इस ताव म िच थी। रा य सरकार गारटी देने को तैयार थी। लोन मं री क ि या आरभ ई और लगातार बैठक होने लगी। लोग म खुशी क लहर दौड़ गई। मेरी क ित अब े म चार ओर फल गई थी। लोग को लग रहा था िक नदी पर बाँध मेरी वजह से बन रहा ह। म लोन पास करवा रहा , इसिलए िवकास क नहर उनक घर तक प चने वाली ह। वे ऐसा मान बैठ थे िक े म जो ा त होने जा रही ह उसका सू धार म । इसका लाभ भी मुझे िमलने लगा। लोग दूर–दूर से िमलने आने लगे। अपने बिकग क करोबार को िनपटाने लगे। धीर – धीर बक क काम–काज म गित आने लगी। यापार बढ़ने लगा। नए खाते खुलने लगे। पुराने लोन वसूल होने लगे। नए लोन िदए जाने लगे। शाखा का िडपॉिजट िफगर भी बढ़ गया, िजसक मने कभी उ मीद नह क थी। इ ही ाहक क मदद से मने पुराने लोन वसूलने क िलए स त कदम उठाए। एक िदन वह भी आया जब टारगेट पूरा हो गया। म बेहद खुश था। मेरा टम अब पूरा होने जा रहा था, इसिलए म अपने े म घूमघूमकर लोग से िमल रहा था। अचानक उस दरवाज़े पर भी प चा, िजसका कछ लोन मने समझौता ताव क तहत माफ़ करवाया था। वह िस पा का घर था। बेहद उदासी का आलम था वहाँ। यह घटना मेर िदल म सदा क िलए यादगार बन गई। जीवन म शायद ही कभी म इसे भुला पाऊगा। मुझे देखकर िस पा मेर पैर पर िगर गया और फट-फटकर रोते ए कहने लगा, 'सर ! म ब त गरीब होना जी, पर अपना इ ज़त ब त यारा होना......। िकसी का कज़ बाक

रखना हमको शम क बात होना। आ प वसूली क िलए मेर घर आना तो कज़ चुकाने क िलए मने बेटी क शादी क िलए रखा पैसा आपक बक म जमा कर देना। पर बाद म अचानक मेरी प नी बीमार होना जी, म े सोना (जेवर) बेचकर उसका इलाज करना। बाद म लड़क वाले शादी क वा ते बार-बार मेर घर को आना जी। म मजबूर होना, मेर पास पै सा नह होना। क सा शादी करगा ? िफर शादी टट जाना। मेरी बेटी को बड़ा ध का लगना। घर क लाज बचाने क िलए एक िदन गले म फदा लगाकर वह झू गई जी। मेरी प नी को इसका सद मा लगना, वह भी भगवा को यारी हो गई। म तो लूट गया सर। अब मेर पास खाने को भी कछ नह होना, िकसक सहार जीना ! शायद एक िदन ह म भी फदा लगा लगा सर.........'' उसक इस क ण गाथा ने मुझे झकझोर कर रख िदया। वह आँसु को रोक नह पा रहा था। मेरी बान स हो गई थी। मने उसे धीरज िदया। उसक कधो पर हाथ रखकर कछ देर तक उसे सहलाते रहा और भारी कदम से आगे बढ़ गया। मन ही मन म अपने आपको दोषी मानने लगा। मुझे याद ह िमशन एन.पी.ए. क तहत लोन वसूलने क िलए जब म गाँव- गाँव घूम रहा था तब एक िदन अचानक इस िकसान िस पा क घर प च गया और लोन चुकाने क िलए उस पर दबाव डाला। पहले तो वह अपनी ग़रीबी और अकाल का रोना रोने लगा। पर जब मने उसे समझौता ताव क तहत लोन का कछ िह सा माफ़ करने क बार म बताया और कछ दबाव बनाया तो वह राज़ी हो गया। अकाल क कारण खेती संभव नही थी, िकतु मेहनत मज़दूरी करक वह अपने प रवार का भरण-पोषण कर रहा था। कछ लोन माफ़ हो जाएगा इस लालच म उसने िन त समय म शेष लोन रािश बक म जमा कर दी। समझौता ताव क तहत मने उसे ऋण मु कर िदया। इस तरह कई खात क वसूली उस दौरान मने क । मेरी इस बाज़ीगरी पर मेर आलाकमान बड़ खुश थे, सभी लोग मेरी तारीफ कर रह थे। मेरा उदाहरण पेश कर 33 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

रह थे। इसी का नतीजा था िक मुझे धान कायालय बुलाकर स मािनत िकया गया था। सरपट भागती न अचानक क । एक झटका-सा लगा। म अपनी याद को समेटते ए बाहर आया और बाहर झाँकने लगा, तेज़ हवा क मु कबाज़ी जारी थी। कछ बदूँाबाँदी और िफर अचानक कड़ी धूप, जलती धरती, झुलसते सपने। सामने एक जाना पहचाना – सा आदमी िदखाई िदया। मुझे लगा जैसे सामने काला अधनंगा, लुंगी लपेट िस पा फट–फटकर रो रहा था। याद क टीले पर खड़ा म हाथ जोड़कर उससे कह रहा था – 'िस पा हो सक तो मुझे माफ़ कर देना। मुझे तुम पर दबाव नह डालना चािहए था। पर या क भाई ! म ूटी िनभा रहा था और तुम इ ज़त क ख़ाितर फज़ अदा कर रह थे। आगे जो कछ आ वह तो िनयित का खेल था। काश ! तुम जैसी ईमानदारी उन घाघ पूँजीपितय और नेता म भी होती जो करोड़ पय का लोन आपसी िमलीभगत क चलते डकारकर बैठ जाते ह। उनक िलए यह लाज –ल ा या शरमो हया क बात नह , ब क शान क बात होती ह। इस डबी ई अनिगनत करोड़ क पूँजी से देश क कई िस पा का जीवन आबाद हो सकता ह। कई निदय पर बाँध बनाकर िसंचाई क िलए नहर िनकाली जा सकती ह। िश ा, िबजली, पानी, हाटबाज़ार, प क मकान का इतज़ाम िकया जा सकता ह। अथ क बजाय बेिटय क डोिलयाँ सजाई जा सकती ह.........मुझे माफ़ कर देना मेर भाई.....मुझे माफ़ कर देना....।' शायद यह मेरा म था ! म अभी तक उस सदमे से बाहर नह िनकल पाया था। दूर ि ितज पर सूय पहािड़य क आँचल म दम तोड़ने क तैयारी कर रहा था। न क सीटी बजी। िन:श द होकर म पुन: अपनी सीट पर आकर बैठ गया। काले शीशे से बाहर झाँकने क कोिशश कर रहा था। सफद लुंगी लपेट, काला अधनंगा एक श स बेतहाशा भागा चला जा रहा था। म अपने भीतर पनपते दद क ार को दबाने क कोिशश कर रहा था। 000


कथा-कहानी

सेहर का सगुन कामे र

असलम फफर भाई आफ़ताब क शादी क ज़ न म शािमल होने को लेकर बड़ उ साह म था। सभी नाते- र तेदार से मुलाक़ात हो जाएगी। बरस हो गए िबरादरी क िकसी ज़ न म शािमल ए। ऐसे ज़ न क बचपन क कछ आधी-अधूरी याद थ । कई र तेदार का तो उसने िसफ़ िज़ ही सुना था। ब त को तो वह पहली बार देखेगा। नौकरी क िसलिसले म अ मी और अ बा अिधकतर अलग-अलग ही रहते आए। वह भी बोिडग कल म अलग-थलग ही रहा। और अब नौकरी लगने क बाद तो जैसे वह अपनी िबरादरी से कट ही गया था। वह यार-दो त म ही यादा रहता आया था। उनक प रवार म घुल-िमल जाता था। इतना िक ज न क मौक पर प चते ही इतज़ाम का पूरा कमांड अपने हाथ म इस तरह ले लेता था, मान असली मेज़बान वही हो। ज़ न चाह मुसलमान प रवार का हो या िहदू। ज न क इतज़ामात म उसे उसक सि यता देखकर लोग भ चक हो जाते थे। उसको न जानने वाले र तेदार कहते, यह नया मुिखया कहाँ से आ टपका? इसे कभी देखा तो नह । पर उसक र त क संबोधन और हर काम म उसक त परता देख लोग ज द ही उसक क़ायल हो जाते थे। वैसे भी, अगर कोई काम पर नज़र रखे, िहदायत देता िफर और मौका पड़ने पर काम म हाथ भी बँटाए तो भला िकसे आपि होगी? िफर तो चार तरफ से उसी क पुकार होने लगती थी। अपनी हािज़रज़वाबी और सूझ से वह िकसी भी महिफ़ल म िस का ज़माने म मािहर ह। पर अपनी िबरादरी क िकसी ज़ न म अपनी मौ दगी का इस तरह अहसास कराने का मौका उसे नह िमला था। बचपन म अ मी-अ बा क साथ िबरादरी क कछ ज़ न क उसे याद थी, पर तब वह ब त छोटा था। अ मी-अ बा र तेदार का िजस तरह से िज़ करते थे, लगता था िक अब उसका प रवार नाते- र तेदार से अलग-थलग पड़ गया था। अ मी उ ह जलनखोर और घमंडी कहती थ । उनक बात से तो लगता ह िक र तेदार भी उ ह वैसा ही समझते ह गे। घमंडी और जलनखोर। जबिक यह बात सच नह थी। अ मी आज़ाद ख़याल थ , मुँह पर बोल देती ह, पर जलनखोर और घमंडी तो िब कल नह थ । और अ बा बेचार तो भले आदमी ठहर। डीआईजी, सीआईएसएफ होते ए भी कोई बड़ पन नह , कोई ठसक नह । इस बात को लेकर अ मी उन पर नाराज़ रहती थ । उसे तो लगता था, र तेदार का एक-दूसर को जलनखोर और घमंडी समझने का कारण वा तिवकता से यादा ग़लतफ़हिमयाँ थी और वह उनसे िमलकर अपने यवहार से उनक राय को बदल सकता था। अपनी िबरादरी क ज़ न म भी उसी तरह िस का जमा सकता था, जैसे यार-दो त क िबरादरी म। आफ़ताब क शादी क दावत को उसने एक मौक क तरह कामे र िलया। अ मी से फ़ोन पर बात क तो उ ह ने कहा, नह जाना। बड़ी फफ जान क यहाँ बेइ ज़ती बी-134, आदश नगर, कसमु डा, कोरबा ही होती ह। उसने ज़ोर िदया तो बोल , उसे जाना ह तो हो आए, लेिकन वे नह जाएँगी। अ बा से (छ ग)-495454 पूछने पर उ ह ने अपनी य तता बता दी। अलब ा, उ ह ने भी कहा, वह जाना चाहता ह तो मोबाइल- 8959193470 चला जाए। ईमेल- rajkameshwar@ gmail.com बचपन म वह आफ़ताब क साथ खेला-कदा था। बाद म उसक बोिडग कल चले जाने पर 34 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


मुलाकात बंद हो ग । कभी-कभार फ़ोन पर बात हो जाती थ । िपछले साल से तो वह भी नह ई थी। आफ़ताब उसे ज न म प चा देखकर वह खुश हो जाएगा। बड़ी फफ जान ने जो ग़लतफ़हिमयाँ पाल रखी ह गी वे भी दूर हो जाएँगी। िबरादरी क लड़िकय से मुलाक़ात होने का अपना आकषण तो था ही। र तेदार उसे कवल नाम से ही जानते ह गे। वे भी देख तो सही, िकतना ज़हीन, िदलखुश और नेक बंदा ह वह। ई या, जलन, घमंड जैसी ट ी बात पर यक़ न नह रखता। और िकसी को रखना भी नह चािहए। रा ते म उसने आफ़ताब को उ साह क साथ फ़ोन लगाया। उसने कहा, सीधे होटल लू डायमंड प चो। मेहमान क ठहरने का इतज़ाम वह पर ह। उसका उ साह ठडा पड़ गया। उसने सोचा था, उनक बड़ी-सी हवेली ह। प रवार क मेहमान को घर पर ही ठहराएँगे। सबसे िमलने-जुलने का मौका िमल जाएगा। बड़ा-सा घर ह। मै रज़ हॉल जैसा। िफर भी र तेदार को होटल म ठहरा रह ह! बड़ आदमी ह भई! उसने सोचा। हालािँक, वह खुद अपने-आप को छोटा नह समझता। वह भी एक एमएनसी म मैनेजर था। और उसे िव ास था िक समझदारी म उनसे बीस ही ठहरगा। आज सबसे िमले-जुलेगा तो उनक यह ग़लतफ़हमी भी दूर कर देगा। उनको अपनी समझदारी का क़ायल कर देगा। पर होटल म कवाने क यव था ने उसक उमंग को कछ ठडा कर िदया। होटल क सीिढ़याँ चढ़कर वह गिलयार म प चा। देखा, छोटी फफ जान भी वह थ । बगल क कमर से झाँक रह थ । उसे पहचान नह पा । नज़दीक प चकर उसने कहा, "फफ जान!...मुझे पहचाना?" उ ह ने गौर से देखा, "अर अ शू!" उसने मु करा िदया। वे बोल , "िकतने बड़ हो गए! . . . म तो पहचान ही नह पा रही थी।...और सब कसे ह?...अ मी-अ बा नह आए?" "पापा क नौकरी तो आप जानती ह फफ जान!" उसने सफाई दी, "क मीर क मोच पर तैनात ह अभी। और अ मी आना तो

चाहती थ , पर इन िदन उनक तबीयत नासाज़ चल रही ह।" " अ"् फफ जान ने यूँ कहा, मान वे भी कछ-कछ समझती थ , "बेटा! इ ज़त न िमले, ख़ाितरदारी न हो तो कौन भला आना चाहगा? हम ही देख लो। होटल म ठहरा िदया आपा ने!...खैर, अ छा िकया, तू आ गया। बड़ िदन बाद देखा तु ह बेटा!...जाओ! जाकर श-वैश हो लो। िफर चलगे भई, सेहर क ज़ न म...।" वे मुँह िबचकाते ई मु करा । अशरफ़ अपना सूटकस लेकर बगल क खाली कमर म घुस गया। उसने हाथ-मुँह धोकर चेहर और बाल पर म- वीम लगाया। िफर सूटकस से ांडड पज़ामा-कता िनकाला। इस मौक क िलए कल ही जाकर खरीदा था उसने। बादामी कलर और शानदार कढ़ाई। ऊपर हर िस क का जैकट। चेहर और बाल को कघी करता आ आईने म अपने चेहर को गौर से देखा तो खुद पर मोिहत हो उठा। आज कह वह महिफ़ल न लूट ले! मु कराते ए उसने अपने अगल-बगल डीओ िछड़का और दरवाज़े को बंद कर बाहर िनकल आया। फफ जान का कमरा खुला आ था। वे भी आईने क सामने अपने गले क हीर क हार का मुआयना कर रही थ । एक लड़क सूटकस म कछ ढढ़ रही थी। असलम ने उसे देखा तो सोचा, अर! यह भी तो ह! आइने म असलम का अ श देखकर फफ जान उसक ओर मुड़ , " आओआओ!...हो गए तैयार?" "जी!" बेड पर बैठते ए उसने कहा। "सलाम भाईजान!" शाहीन मु कराई। "शाहीन!...िकतनी बड़ी हो गई...!" उसने कहा। बचपन म घोड़ा बनकर अपनी पीठ पर सवारी कराया था उसे। उसे याद होगा भी! "तुम भी तो िकतने बड़ हो गए बेटा!" फफ जान ने कहा, "िदन जाते देर नह लगती। अब तो इसक शादी क िचंता ह। ह कोई लड़का तु हारी नज़र म?" शाहीन ने शरमा कर मुँह फर िलया। असलम ने कहा, "िफ़ य करती ह 35 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

फफ जान? हमारी शाहीन क िलए लड़क क कमी नह ह। आपने कहा ह तो म देखना शु करता !" "िफ़ होती ह बेटा!" फफ जान ने कहा, "अ छ शौहर का िमलना तक़दीर क बात होती ह...खैर, और बताओ या हाल ह?" "दरअसल, म आपसे एक सलाह लेना चाहता ।" उसने सकचाते ए कहा। "बोल न, या बात ह?" उ ह ने उसे गौर से देखा। असलम उनसे सलाह लेने आया ह! एक ही शहर म रहते बरस बाद िमल रहा ह। इसक म मी से पटती नह । अलग-थलग ही रहती ह वह तो। उनक बड़ी बेटी क शादी म भी नह आई थी। अपनी नौकरी का बड़ा घम ड ह उसे। लेिकन यह लड़का कछ भला लगता ह। अचानक कौन-सी सलाह लेने आ गया! "ख़ालाजान! सोचता , सेहर क सगुन म कश ही दे दूँ!'' "दे दो न बेटा! हम लोग भी कश ही दे रह ह।" फफ जान क उ सुकता फ क पड़ गई। "वैसे िकतना देना ठीक रहगा फफ जान?" उसने साफ ढग से पूछा। फफ जान सोच म पड़ ग , "अब म या बताऊ बेटा!...जैसी िजसक हिसयत।" िफर उ ह ने कहा, "वैसे सगुन देना तु हारा तो बनता नह । आफ़ताब से तुम छोट ही हो। आना था तु हार अ मी-अ बा को!" "हा,ँ वे आ नह पाए" कहकर असलम चुप हो गया। यादा सफाई देने का कोई मतलब नह था। "आपा भी तो नह पूछत ।" उ ह ने बड़ी फफ जान का िज़ िकया, "...कोई ऐसे ही िकसी क यहाँ थोड़ ही चला आता ह, म तो कहती तु ह सगुन देने क कोई ज़ रत नह । देख रहा ह न। लोग शादी- याह म नातेर तेदार को घर म ठहराते ह, पर यहाँ तो होटल म िटका रखा ह।" असलम ने उ ह सनकते देखा तो उठते ए बोला, "ठीक ह फफ जान! आप लोग भी तैयार हो जाइए, िफर िनकलते ह।" वह गिलयार म िनकल आया। इ कदु क लोग कमर म आ-जा रह थे। दो-एक


प रिचत िक म क चेहर िदखे तो उसने दुआसलाम क । सब अपने-अपन म म त थे। कोई नजदीक बंदा नह िदखा तो वह वापस अपने कमर म आ गया। िब तर पर बैठकर ीटर खोल िलया। एक ीट ने उसका यान ख चा। वीिडयो म िकसी िहदू संगठन क लड़क एक मुसलमान बु ग से मार-पीट करते ए उसक दाढ़ी काट रह थे। उससे जबरन 'जय ीराम' और 'वंदे मातर ' कहला रह थे। उस बु ग क अपमान को देखकर वह गु से से भर उठा। यह तो आए िदन क बात हो गई ह। इन दंगाइय क िखलाफ़ कोई कारवाई भी तो नह होती। उसका मन किठत हो गया। िफर पहले जैसा ज़माना आ पाएगा भी िक नह संदेह होता ह। वह अपनी िबरादरी म अपने प रवार क ित फली ग़लतफहिमय को दूर करने आया ह। लेिकन िहदू-मुसलमान क बीच जो ग़लतफ़हिमयाँ जान-बूझकर फलाई जा रही ह उसे कौन दूर करगा! वह िफर गिलयार म िनकल आया। देखा, शाहीन दरवाज़े क बाहर खड़ी अपने सलवारसूट क फ िटग पर नज़र िफरा रही थी। असलम को देखकर वह झप-सी गई, लेिकन तुर त सजग होकर पूछा, "तो आपने तय कर िलया भाईजान?" " या?" असलम समझ नह पाया। "हम लोग तो सगुन म इ क स हज़ार दे रह ह।" उसने बेिहचक बताया। असलम को अचरज नह आ। पैसे तो खूब ह इनक पास। इ क स हज़ार या, एक लाख भी दे सकते ह। देते भी ह। पर सगे भतीजे क सगुन म िसफ इ क स हज़ार! मतलब, छोटी फफ जान अपनी आपा से नाराज़ चल रही ह। कसे र तदेार ह? एकदूसर क यहाँ आते-जाते ह, िमलते-जुलते ह, और भीतर ही भीतर जलते-भुनते रहते ह। आफ़ताब क खे यवहार ने उसे मायूस िकया था। सगुन म वह अपनी हिसयत क मुतािबक कछ यादा पैसा देना चाहता था। पर अब उसने उसक रक़म को घटा देना ही ठीक समझा। लेिकन िकतना? यह वह तय नह कर पा रहा था। वह कोई कजूस आदमी नह था। यार-दो त पर खच करना उसे नह

अखरता। अपने ममेट अक़ ल क सेहर पर एक लाख पये का सगुन देने क सोची ह। पर आफ़ताब क सगुन क रक़म तय करना उसक िलए मु कल हो रहा था। म मी ने फ़ोन पर चेताया भी था, "... सगुन म यादा-कछ देने क ज़ रत नह ह। दे देना इ क स सौ पये।" तब उसने सोचा था, अ मी उनसे ख़ार खाए रहती ह इसीिलए ऐसा कह रही ह गी। इ क स सौ पये तो ब त कम ह। रकम से देने वाले क हिसयत का भी तो पता चलता ह। वह बड़ उ साह क साथ यहाँ प चा था। र तेदार से िमलने-जुलने का ब त मन था। लेिकन यहाँ तो पुछारी ही नह थी। बस, यहाँ होटल म ठहरा िदया। लगता ह, शादी नह , ब क शादी क बाद का रसे शन अटड करने आए ह । ठीक ही बोल रही थ म मी। उसने सोचा। सगुन म इ क स सौ पये ही देना ही ठीक रहगा। िलफ़ाफ़ म तो देना ह। बाद म खोलकर देखते रह। उसक बला से! िबजली क झालर , ल और हड से हवेली जगमगा रही थी। वागत ार ही इतना शानदार बन पड़ा ह तो भीतर तो ज त ही होना चािहए। असलम ने सोचा। पैसे वाले ह भई! सामने शानदार मंच पर गाव-तिकए क सहार लड़िकय क बीच आफ़ताब ब ा बना बैठा मु करा रहा था। अब पहले जैसा स िकया नह रह गया था। ब क मोटा हो गया था। मंच क एक तरफ ढोलक लेकर बैठी मिहलाएँ सेहरा-गीत गाने क तैयारी म थ । बाक शरीक मंच क सामने लगी किसय पर बैठ थे या चहलकदमी कर रह थे। असलम को वहाँ दो-चार नीम पहचान वाले चेहर िदखे। पर वह उनसे मुख़ाितब ए िबना सीधे मंच क तरफ बढ़ गया। ज़नािनय से िघर आफ़ताब क ओर हाथ बढ़ाते ए वह बोला, "पहचाना?" आफ़ताब ने पल भर उसे देखा, िफर मु कराते ए बोला, "कमाल ह भाई! आप तो ईद क चाँद हो रह ह। अब जाकर िदखे ह!" असलम झपते ए मु कराया। मान , अलहदेपन का िज़ मेदार वही हो। खुद तो कट-कट रहते ह और तोहमत दूसर पर लगाते 36 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

ह। बड़ चालाक ह! पर वह भी कम चालाक नह । उसने मज़ािकया लहजे म कहा, "भाईजान! माना, ईद क चाँद ने इतज़ार कराया। पर िनकला तो सही! आफ़ताब का तो दीदार ही नह िमलता। न जाने िकन बादल म छपे रहते ह!" उसक हािज़रजवाबी पर आफ़ताब क साथ लड़िकयाँ िखलिखला पड़ । मौका िमला नह , िक वह लपक लेता था। एक-दो ज़नािनय को पहचान पाया तो उनसे दुआसलाम ई। अ मी-अ बा क बावत पूछने पर उसने वही सफाई दी। लेिकन समझ गया िक र तेदार उ ह घमंडी समझते ह। लड़िकयाँ सेहर क र म पूरी करने क िलए उतावली ई जा रही थ । "अब चलो...बाँधो न जीज!ू" आफताब क छोटी बहन ने सेहर क थाल आगे बढ़ाते ए कहा। "हाँ चलो, ब े को सेहरा बाँध!" जीजू सेहरा लेकर आफ़ताब क पगड़ी म बाँधने लगे। ढोलक क ताल पर सेहर का गीत शु हो गयासेहर म लागे संदल-हार क सेहरा ब ा भ जा इतर म... शीश ब े क सेहरा सौह सेहर म लागे हीर लाल क सेहरा ब ा भ जा इतर म... आफ़ताब क अ मी ने देखा, और सब ज़नािनयाँ तो गा रह ह, पर शाहीन माटी क मूरत बनी बट-बट देख रही ह। गाना भी नह िसखाया होगा इसक माँ ने! खुद मुँह फलाए बैठी ह उधर। मन स कह क ! बचपन से इसक यह गंदी आदत ह! उ ह ने उ ह अनदेखा कर िदया। नाराज़ ह तो रह! मुबारक मौक पर भी मुँह फलाने से बाज़ नह आती। रग म भंग डालना इनक आदत ह। उसने ज़नािनय क आवाज़ म अपनी आवाज़ क ज़ोर भी िमला दीशीश तेर फल का सेहरा किलय म लागे हीर लाल क सेहरा ब ा भ जा इतर म... दोन फिफय क बीच मनमुटाव को


असलम महसूस कर रहा था। पर वह कर ही या सकता था? वह तो अपने प रवार क ित उनक ग़लतफ़हिमयाँ दूर करने आया था। यहाँ तो ये आपस म ही ग़लतफ़हिमय क िशकार थ । इनक साथ वह संबंध को मज़बूत करने चला था। लेिकन इ ह देखकर वह मायूस हो गया। कमर क क ने उसका यान ख चा। वह भी ब े क सामने आ गया और अपनी मोबाइल से शॉ स लेने लगा। नाज़रीन क भी कछ शॉ स लेकर उनका यान अपनी ओर ख चा। उसे लगा, अब जाकर हािज़री दज़ ई ह। उसका हौसला कछ बढ़ा। ढोलक क थाप क साथ लोकगीत का पारप रक लय महिफ़ल को अपने असर म िलए ए था। असलम भी उसक तज़ को पकड़ चुका था। वह लड़िकय क पीछ जाकर खड़ा हो गया और गाने लगा: मैया का यारा बाबा दुलारा सेहर पर अजब बहार क सेहरा ब ा भ जा इतर म... बगल म खड़ी लड़क ने उसे कनिखय से देखा। नज़र िमल तो वह मु कराया। ज़नािनय क साथ उसका गाना शायद उसे अनोखा लग हो। लड़क मु कराती ई गा रही थी: भाभी का यारा भैया दुलारा अनोखा अजब िसंगार क सेहरा ब ा भ जा इतर म "ऐ...शीरीन!" लड़िकय ने असलम क बगल म खड़ी लड़क को बुलाया, "तू भी आ न!" वे आफ़ताब क साथ ुप फ़ोटो ाफ करा रही थ । मु कराने वाली लड़क उनक पास चली गई। जीजू सेहर को छकर पोज़ दे रह थे। मोितय क लिड़य से आफ़ताब का चेहरा ढक गया था। सेहर पर सच म, लाल-हीरमोती जड़ ए थे। असली ह गे! लाल-हीरमोती जड़ाना इनक िलए बड़ी बात नह । थोड़ी देर म सगुन देने वाल का ताँता लग गया। छोटी फफ जान ने अपने पस से िलफ़ाफ़ा िनकाला और फले मुँह िलए उसे आफ़ताब पर वारकर उसक हाथ म थमा िदया और उसक बलइयाँ ली। नाराज़गी तो थी, लेिकन वे अपने फ़ज को तो नह भूल

सकत । असलम मु कराया। उनक पीछ उसने भी अपनी जेब से िलफ़ाफ़ा िनकाला। आफ़ताब को थमाकर गमजोशी से हाथ िमलाया और आगे बढ़ गया। िलफ़ाफ़ को बहन धराती जा रह थ । बाद म खोलगे तो पता चलेगा। इ क स सौ पये। कजूस ही समझगे उसे। समझते रह। उसे तो यहाँ आना ही फ़जूल लग रहा था। ज़नािनयाँ ब े को लेकर गेट क ओर बढ़ने लग । पीछ-पीछ सभी मेहमान भी आने लगे। शीरीन असलम क बगल म ही चल रही थी। ये लड़क र तेदार म से तो नह लगती! उसने पूछा, "आप...कहाँ से...?" वह च क पड़ी। िफर उसक चेहर पर सहज भाव देखकर उसे इ मीनान आ। वह अपने नाम क अनु प शीर ज़बान म बोली, "जी, म तो इसी शहर क । आयशा... आफ़ताब भाईजान क बहन...मेरी ड ह। वैसे आप?" शीरीन से उसे ित न क उ मीद नह थी। लेिकन पूछने पर खुश आ। लड़क क ह। वह बोला, "जी, म असलम...िद ी रहता । आफ़ताब, फफर भाई ह...वैसे या कर रही ह आप?" "जी...?" वह िफर च क । "मेरा मतलब...पढ़ रही ह या...? "जी" उसने हसते ए कहा, "...मने ज़ािमया से जनिल म का कोस िकया ह।" "ओह!" असलम ने उसे नए िसर से देखा। उसक सुंदरता म अब भोलेपन क जगह थोड़ी-सी होिशयारी भी िदखने लगी। ऐसी ही खूबसूरत बीवी तो वह चाहता था। पर जनिल म. . . काफ होिशयार होगी। वह सोचता था, जनिल म या लॉ पढ़ने वाली लड़िकय क साथ िनभाना आसान नह होगा। नौकरी का भी िठकाना नह रहता। वह तो अपनी अ मी क तरह कोई प क नौकरी वाली बीवी चाहता था। पर अ मी क तरह बीवी नह । अ बा क साथ उनक कभी नह पटी। बीवी यादा जानकार और ज़हीन हो तो शायद, ऐसा ही टकराव होता ह। शु म, मतलब होश सँभालने क बाद उसने सोचा था िक वह अ मी-अ बा क बीच ग़लतफ़हिमयाँ 37 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

दूर कर देगा। बस, उ ह इतना समझाना पड़गा िक िजन बात को तूल देकर उ ह ने दू रयाँ बना रखी ह वे ब त मामूली ह। िज़ंदगी को इनम घसीटने का कोई मतलब नह । लेिकन ज द ही उसे समझ म आ गया िक िज ह वह उनक ग़लतफ़हिमयाँ मानता वह उनक िज़ंदगी क सचाई ह। इसम वह कछ नह कर सकता। लेिकन अ मी- अ बा क ग़लतफ़हिमयाँ दूर न कर पाने का मतलब यह नह िक वह र तेदार क ग़लतफ़हिमयाँ दूर न कर सक। घर क बात अलग ह। यहाँ वह अपने बात- यवहार से जता सकता ह िक वह, और इसिलए उसक अ मी-अ बा भी घमंडी और जलनखोर नह ह। पर यहाँ आकर लग रहा ह िक वह इतना भी अ लमंद नह िक सबक ग़लतफ़हिमयाँ दूर कर सक। शायद, कोई कर भी नह सकता। र तेदार से िमलने-जुलने का उ साह जाता रहा था। एक िशरीन ही थी जो उसक िदलच पी को क़ायम रखी ई थी। उससे िमलने क बाद अब वह अपनी क पना क सुंदर, लेिकन घरलू िक म क बीवी म कछ त दीिलयाँ करने को मज़बूर था। उसक बगल म खड़ी शीरीन लैक- ाइट ममड कट म बेहद खूबसूरत लग रही थी। ऊची-पूरी, सुडौल। गोल चेहर पर गहरी चमक ली आँख, सुतवाँ नाक और उभर ए ह ठ। बादल जैसे ल बे, कल , शे स वाले बाल क बीच उसका गोरा चेहरा चाँद-सा चमक रहा था। अपनी क पना क बीवी म िजस िबंदास खुलेपन को वह पसंद नह करता था वही उसे िशरीन म भा रहा था। िफर भी उसे एक बीवी क प म देखने से वह िहचक रहा था। ऐसी फा ट फॉरवड लड़क या एक अ छी बीवी भी सािबत होगी! िफलहाल, लट करने म या बुराई ह! उसने सोचा और कहा, "...तो...ज द ही हम आपको टीवी पर देखने जा रह ह!" वह िखलिखलाई। तब तक वे चलते ए गेट पर प च चुक थे। घोड़ीवाला सड़क क दूसरी तरफ खड़ा था। वह वह से िडवाइडर पार कर सड़क ास करने क कोिशश म था। पर उसे मौका नह िमल रहा था। गािड़य क


रलम-पेल, और पास ही िफक पुिलस। आफ़ताब क अ बा भुनभुनाए। मामूजान ने घोड़ी वाले को ज़ोर से िच ाकर इशारा करते ए कहा, " गोल च कर. . . गोल च कर...वह से ािसंग पार कर क आओ!" घोड़ीवाले ने पता नह , िकतना समझा, नह समझा, झुँझलाते ए घोड़ी को पीछ मोड़कर उस पर बैठ गया और दुलक चाल से गोलच कर क ओर बढ़ गया। पाँच िमनट बीत गए। दस िमनट बीत गए। घोड़ीवाला नह प चा। मेहमान भी बेचैन होने लगे। आफ़ताब क अ बा साले साहब को डाँटने लगे, "सुलेमान!...यही इतज़ाम िकया ह तुम लोग ने?" ज़नािनयाँ भी अधीर होने लग । ब े को दरवाज़े पर खड़ा रखकर इतज़ार कराना अ छी बात नह ! दो-एक लड़क को बाइक पर गोल च कर क तरफ दौड़ाया गया। उ ह ने आकर बताया िक घोड़ीवाले का तो अता-पता नह ह। आफ़ताब क अ बा का पारा चढ़ गया। अब िकसको या बोल? " ह!" उनक मुँह से िनकला, िफर मामूजान को बोले, "...वह आने से रहा। अब जाओ...कार ही ले आओ!" मामूजान ने तो िम ी पलीद करा दी। उ ह मुँह लटकाए जाते देखकर आफ़ताब ने मन ही मन कहा। इस वाक़ये ने छोटी फफ जान क मुरझाए चेहर पर ताज़गी ला दी। अ ाह का करम! सबको अपनी औक़ात का पता चल जाता ह। पैसा ह तो या आ? म रत क समय काम न आया तो िकस काम का? मेहमान को बुलाकर बेइ ज़त करने का नतीज़ा ह! नीयत सही न हो तो काम ऐसे ही िबगड़ते ह! ऐन व पर घोड़ीवाले ने भठा िदया। वे असलम को कनिखया कर मु करा । कनिखयाने का मतलब वह समझ गया, पर उसे अ छा नह लगा। ब े क घोड़ी क बजाय कार से जाने म कोई बेजा बात भी नह थी। पर फफ जान इस पर ही खुश थ । कसी बहन ह? और वह इ ह लोग क ग़लतफ़हिमयाँ दूर करने आया था। उसने सोचा और ऊबकर उसक नज़र िशरीन को खोजने लग । वह पीछ ही खड़ी थी। वह

मु कराते ए उसक बराबर म आ गया। वह भी मु कराई। वह बोला, "तो कह काम शु िकया ह आपने?" "जी, अभी तो ' यूज़ वाइट' म !" उसने एक लोकल यूज़ चैनल का नाम िलया, "...आगे देख रही !" अपने क रयर को लेकर वह सजग िदखी। "अर, आपको तो नेशनल चैनल पर होना चािहए।" उसने उसक हौसला-अफ़जाई करते ए कहा, "िद ी आकर आज़माइए... अ छा कोप ह... वहाँ खुद को अकली न समिझएगा। मीिडया म अपने भी वािक़फ़कार ह। आपक कछ काम आ सक तो अपनी शनसीबी होगी!" उसक नाटक य अंदाज़ को देखकर िशरीन ह क -सी िखलिखला पड़ी। पास खड़ी लड़िकय का यान उधर िखंच गया। उनम से कछ बुक म थ । वे आपस म फसफसा । इतना खुलापन? या लड़िकय क िलए ज़ायज़ ह? बड़-बु ग पास खड़ ह! "जी, म भी यही सोच रही ।" िशरीन उ सुक हो उठी, "...बाहर िनकले िबना अ छ चैनल म जा पाना मु कल ह। म तो अ मीअ बा को कब से बोल रही । मान नह रह ह। लेिकन म मना लगूँी।" िशरीन क हौसले को उसने मन ही मन सराहा। मज़बूत इरादे वाली लगती ह यह लड़क ! ऐसी लड़क से लट करने क बजाय दो ती करना बेहतर ह! उसने हसते ए कहा, "आप ज़ र मना लगी...और आप आएँगी तो बंदा हिज़र रहगा।" दोन हाथ को सामने फलाकर उसने इस अंदाज़ म कहा िक फसफसाने वाली लड़िकयाँ भी िखलिखला पड़ । असलम का िदल बाग-बाग हो गया। मामूजान दस िमनट म कार ले आ गए। कार बक़ायदा फल-माला से सजी ई थी। लेिकन बेचार मामूजान क िकरिकरी तो हो ही गई। घोड़ीवाले ने ऐन व पर धोखा दे िदया तो वे भी भला या कर सकते थे? ऐन सबक सामने आफ़ताब क अ बा क डाँटने पर वे मायूस हो गए थे। बड़ी फफ जान कछ लड़िकय को साथ लेकर उनक पीछ-पीछ गई थ । लड़िकय ने घर म मौ द मालाएँ, 38 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

गजर और फल पि याँ िचपकाकर कार को सजा िदया था। ज़नािनय ने आफ़ताब को कार म बैठाया। ाइिवंग सीट पर मामूजान थे। आफ़ताब क अ मी और बहन भी उसी कार म बैठ ग । र तेदार और मेहमान पीछ क कार म बैठते जा रह थे। छोटी फफ जान और शाहीन मुँह फलाए खड़ी थ । कोई बुलाए तो वे भी बैठ! लेिकन सबको अपन क पड़ी थी। कौन उधर यान दे। आिख़री कार म बैठते समय आफ़ताब क अ बा क नज़र उन पर पड़ी, " क़इया बी! " उ ह ने पुकारा, "...खड़ी य ह? आप लोग भी आइए... बैिठए!" छोटी फफ जान, शाहीन और िशरीन आकर कार म बैठने लग । असलम को खड़ देखकर आफ़ताब क अ बा ने उसे भी बुलाया, "अर, तुम य खड़ हो...आओ बर रदार!...इसी म आ जाओ!" असलम को उनका बर रदार कहना अ छा लगा। इसी तरह क नज़दीक बनाने वह आया था। गाड़ी क पास आकर वह बैठने क जगह देखने लगा। आगे और बीच क सीट भरी थ । पीछ आमने-सामने क एक सीट पर छोटी ख़ालाजान और शाहीन बैठ गई थ । दूसरी पर िशरीन क बगल म सीट खाली थी। दा मेहरबान ह! उसने िशरीन क ओर मु कराते ए देखा। उसने िखसक कर उसक िलए ज़गह बना दी। असलम अपनी शी को दबाते ए बैठ गया, बोला, "चिलए, आप लोग क साथ ही...िकतनी दूर ह फफाजान?" उसने पूछा। "सात िकलोमीटर।" ट सीट से आफ़ताब क अ बा ने बताया, "...हमारा फाम हाऊस तो ह...दो-दो शािदयाँ एक साथ हो जाती ह वहाँ। चलो, देखना भला!" छोटी फफ जान ने उसे िफर कनिखयाया। देख लो, िकतने शेखीबाज ह! धन-दौलत जैसे िसफ इ ह ने ही देखा ह! असलम को भी साथ देने क िलए मु कराना पड़ा। उसक मजबूरी िशरीन ने देख ली और वह भी मु करा पड़ी। 000


कथा-कहानी

वािभमान

सेवक नैयर

सेवक नैयर 801-802, ए 2-ए, मािनकचंद मालाबार िह ज़, वानोवरी, पुणे – 411040 मोबाइल- 8308093028 ई-मेल- sewaknayyar@gmail.com

तीस वष क आयु तक प चते-प चते िशव चरण जीवन क सब उतार-चढ़ाव देख चुका था। िशव चरण का ज म िटहरी-गढ़वाल क एक अ यंत िपछड़ ए गाँव म आ था। उसक माँ उसे ज म देते ही वग िसधार गई थी। िपता गाँव क एक छोट-मोट हलवाई क साथ काम करता था। गाँव म याह-शािदयाँ होती थ या िकसी धािमक व सामािजक काय म का आयोजन िकया जाता था तो दोन को खाना बनाने का काम िमल जाता था। इस कार जो थोड़ी-ब त कमाई होती थी उसी से वे साल भर गुज़ारा करते थे। िशव चरण का िपता उसे पढ़ा-िलखाकर नामी रसोइया बनाना चाहता था। इसिलए उसका दािखला गाँव से दो कोस दूर सरकारी कल म करवा िदया गया था। िशव चरण पढ़ाई-िलखाई म होिशयार था। हर बात िमनट म समझ लेता था। हर काम फटाफट सीख जाता था। दसयारह का आ तो िपता क काम-काज म उसका हाथ भी बटँाने लगा था। लेिकन वािभमानी ऐसा था िक नाक पर म खी नह बैठने देता था। कोई उसक, उसक िपता अथवा उसक गाँव क िखलाफ दो अपश द भी बोल देता था तो वह मरने-मारने पर उता हो जाता था। इसिलए िपता को हर समय िचंता लगी रहती थी िक छोटी जात म ज मा िशव चरण बड़ा होकर जाने या गुल िखलाएगा। िशव चरण अभी पं ह-सोलह का ही आ था िक उसक गाँव म भयानक बाढ़ आ गई। गाँव क ऐन ऊपर एक काली बदली फटी और पूर क पूर गाँव को धराशायी कर गई। उसक आँख क सामने गाँव क गली-मुह े बाढ़ म गक हो गए। िम ी और घास-फस से बने क े मकान एक-एककर ढहने लगे। वह खुद तो िकसी तरह पीपल क एक िवशाल पेड़ पर चढ़कर बच गया परतु अपने िपता को न बचा पाया। गाँव क बीस-तीस लोग क साथ वह भी पहाड़ क गंधली िम ी से सने पानी क तेज़ तूफानी लहर म बह गया। जब तक शहर से एन डी आर एफ क टीम सहायता क िलए गाँव प चती, ब त देर हो चुक थी। कई ह त तक लापता लोग क तलाश चलती रही लेिकन कछ फायदा न आ। दूर-दराज़ क मैदानी इलाक़ म जब कछ शव बरामद ए तो यह पहचानना भी किठन हो चुका था िक उनम िशव चरण क िपता का शव था भी या नह । िशव चरण दो िदन तक भूखा- यासा पीपल क पेड़ पर ही टगा रहा था। एन डी आर एफ क एक जवान अिनल जादव ने जब उसे नीचे उतारने का य न िकया तो वह उसका िवरोध करने लगा था य िक उसका वािभमान आड़ आ रहा था। वह इस बात को क़तई सहन नह कर सकता था िक िकसी क दया अथवा कपा पर आि त होकर िजए। उसक इसी बात से अिनल 39 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


जादव उसका कायल हो गया था। वह शरीर म िशव चरण से तगड़ा था। अत: उसने ज़बरद ती िशव चरण को अपने कध पर बैठाया और नीचे उतार िलया। िशव चरण चीखता-िच ाता रहा लेिकन अिनल जादव ने एक न सुनी। ब क उसने िशव चरण को अपनी बचाव-नौका म बैठाया और अपने कप म ले आया था। कछ ही िदन म िशव चरण एन डी आर एफ क पूरी टीम क साथ घुल-िमल गया था। भोर होते ही उनक साथ काम पर िनकल जाता था और पूरा िदन बाढ़पीिड़त क सेवा म लगा रहता था। बाढ़ का कोप समा आ तो एन डी आर एफ क टीम उसे अपने साथ देहरादून ले आई थी और अपने सटर क मेस क बिनए क पास काम पर रखवा िदया। मेस म िशव चरण जवान और अिधका रय का खाना परोसने से लेकर उनक जूठ बतन साफ करने तक क सब काम करता था। िदमाग से होिशयार तो था ही, शरीर से भी तकड़ा था और प र मी भी था। सूय उगने से पहले ही जग जाता था। बा टी म पानी लेकर अिधका रय क कार व कटर धोया करता था। दोपहर क खाने क बाद खाली समय िमलता तो कॉमन- म से र ी अखबार समेटकर िलफाफ बनाया करता था। ऐसे हर काम म िच लेता था; िजसम उसक आ मस मान का हनन न हो और दो-पैस क कमाई भी हो जाए। देखते ही देखते िशव चरण मेस क रसोई का हर काम समझने लगा था। राशन और स ज़य क खरीद, उनक खपत का िहसाब-िकताब, कारीगर और का रद क हाज़री इ यािद सब सँभालने लगा था। उसक रग म छोट-मोट रसोइये का जो खून दौड़ रहा था अब वह ठाठ मारने लगा था। शाम को चाय क समय ै स-काउटर पर उसक बनाए समोसे और कचौिड़याँ खूब पसंद िकए जाते थे। हाथ -हाथ िबक जाते थे। बिनए से शा बाशी िमलती थी और नए-नए पकवान बनाने का उ साह भी पैदा होता था। अब िशव चरण ने अपनी कमाई से एक महगे वाला ी-जी माट-फ़ोन खरीद िलया

था और उसम असीिमत डटा- लैन डलवा िलया था। कछ ही िदन म अिनल और उसक सािथय ने उसे यू- ूब, ह स- ए प, फसबुक और इ टा ाम चलाने म ए सपट बना िदया था। जब भी खाली समय होता, वह यू- ूब से नए-नए यंजन क रिसिपयाँ डाउनलोड करता और बिनए से आँख बचाकर उन पर अपना हाथ आज़माता था। प रणाम अ छा िनकलता था तो रिसपी बनाने क शु से अंत तक क ि या का वीिडयो बनाकर िटक-टॉक पर पो ट कर देता था। िफर घंट फ़ोन पर नज़र िटकाए देखता रहता िक िकतन ने 'लाइक' िकया, िकतने 'कमे ट' िमले और िकतने नए लोग उसे फॉलो करने लगे ! कछ ही महीन म उसने अ छी-ख़ासी फन- ब तैयार कर ली थी जो उसक जीवन क हर गितिविध म िच लेने लगी थी।पाककला म िशव चरण क अ ुत ितभा क चलते, मेस का धंधा खूब चलने लगा था। कप क प रसर म अिधका रय व जवान क कई प रवार रहते थे। अब वे भी िशव चरण क हाथ क बनी िडिशज़ होम-िडिलवरी ारा मँगवाने लगे थे। बिनए क आमदनी भी खूब बढ़ने लगी थी। वह िशव चरण क आचरण, यवहार, और काय- मता से बेहद खुश था। उसे अपने घर का सद य मानने लगा था। मेस या घर का कोई भी काम होता था, वह िशव चरण क सहार छोड़ देता था। उसपर आँख मूँदकर भरोसा करता था। सम या तो तब खड़ी ई जब एक िदन उसने िशव चरण को अपनी बेटी ेमा क साथ घर क आँगन म आँख-िमचौली करते ए पकड़ िलया। ेमा क डाटँ-फटकार ई तो उसने मान िलया िक वह िशव चरण से यार करती थी। दोन छपछपकर िमलते भी थे। मौका पाकर 'नाज़ िथएटर' म मैिटनी शो भी देखने चले जाते थे। रणवीर िसंह क िफ म 'ग ी बॉय' तो वे तीन बार देख आए थे। कई बार िशव चरण िपछवाड़ क सीिढ़य से आधी-आधी रात को ेमा क घर क छत पर प च जाता था। दोन घंट बाह म बाह डालकर चं मा क शीतल काश क छाँव म बैठ रहते थे, एक साथ जीने-मरने क क़सम खाते थे और 'अपना 40 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

टाइम आएगा' गुनगुनाया करते थे। बिनया िशव चरण और ेमा क इस हरकत से ब त नाराज़ आ था औए दुखी भी। उसे िशव चरण से क़तई ऐसी उ मीद न थी। उसने िव ासघात िकया था। कछ िदन तो वह मन ही मन घुटता रहा। अपमान क कड़वे घूँट पीता रहा। ेमा को और खुद अपनी तक़दीर को कोसता रहा। िफर एक िदन अवसर पाते ही उसने एन डी आर एफ क अिधका रय क सामने िशव चरण क पोल खोल दी। वह चाहता था िक िशव चरण सबक नज़र म िगर जाए। चाहता था िक उसे ध क देकर कप से बाहर िनकाल िदया जाए। या िफर उसक वािभमान को ऐसा ध का लगे िक वह खुद ही कप छोड़कर भाग जाए। वह जानता था िक िशव चरण को िज़ंदगी म अपनी इ ज़त से अिधक कछ भी ि य नह था। उसक ख़ाितर वह कछ भी कर सकता था, िकसी भी ह तक जा सकता था, अपनी जान तक दे सकता था ! और आ भी ऐसा ही ! िशव चरण अपना अपमान बदा त न कर सका। उसने ेमा को फ़ोन लगाया और कहा िक वह अपने च र पर ऐसी लांछन लगवाकर वह कप म नह रह सकता। वह उससे ेम करती ह तो उसक साथ घर से भाग चले अ यथा वह अपनी जान दे देगा। ेमा ने उसे हौसला िदया, उसक ढाढ़स बंधाई। उसने कहा िक वह िशव चरण से स ा यार करती ह। उसक िलए कछ भी करने को तैयार ह। दोन क बीच कछ िगटिमट ई और वे रात -रात कप छोड़कर भाग गए। ेमा और िशव चरण क अचानक गायब हो जाने क खबर कप म जंगल क आग क तरह फल गई। ेमा का िपता तो से से पागल हो उठा। िशव चरण को गािलयाँ देता आ वह सीधा कप-कमांडट क दफ़तर प चा और पुिलस म रपट िलखवाने क माँग करने लगा। लेिकन मामला ब त संवेदनशील था। कप क प रसर म बीिसय प रवार रहते थे, जवान ब -बेिटयाँ रहती थ , लेिकन आज तक कभी ऐसी वारदात नह ई थी िजससे कप क ित ा पर आँच आए। अब ेमा का


मामला पुिलस तक प चता तो पूरी फोस का नाम बदनाम हो सकता था। उन पर लोग का िव ास उठ सकता था। इसिलए कमांडट ने समझ-बूझ से काम िलया। पहले तो उसने ेमा क िपता से िदली हमदद जताई, उसक गु से को शांत िकया, िफर बड़ी गंभीरता से उसे समझाया"पुिलस म जाने से कछ लाभ न होगा। ब क बात और िबगड़ जाएगी। मुझे नह लगता िक यह काम िशव चरण ने अकले ने िकया होगा। िन त तौर पर इसम आपक बेटी का भी हाथ ह। अब ज़रा सोिचए.... आपक बेटी जवान ह, शायद बािलग भी हो चुक ह ! ऐसे म वह पुिलस क हाथ लग भी गई और उसने मान िलया िक िशव चरण िनद ष ह.... िक वह अपनी मज़ से घर छोड़कर भागी ह, तो आपक या इ ज़त रह जाएगी ?" ेमा क िपता क पास इस बात का कोई उ र न था। वह समझ नह पा रहा था िक या कर। उसे खुद यह िचंता सता रही थी िक बात फल गई तो वह िकसी को मुँह िदखाने लायक नह रहगा। उसी क बेटी पर उगिलयाँ उठगी। उसी को लोग दोषी ठहराएँगे। ऐसे म उसक छोटी बेटी का र ता होना भी मु कल हो जाएगा। कछ िदन तक तो वह ब त परशान रहा और अपनी प नी पर गु सा िनकालता रहा। उसे दोष देता रहा िक यह सब उसी क लाड़- यार का नतीजा था। उसी ने ेमा को खुली छट दे-देकर िबगाड़ रखा था, िसर पर चढ़ा रखा था ! िफर य - य व त गुज़रता रहा, ेमा क िपता क ज़ म भी भरने लगे। आिख़र, उसने इस सबको अपनी िनयित मानकर वीकार कर िलया। िशव चरण और ेमा दो-एक महीने तक छपते-छपाते रह.... अपने अतीत से दूर भागने क कोिशश करते रह। पकड़ जाने क भय से आज यहाँ और कल वहाँ...... खानाबदोश का सा जीवन यतीत करते रह। उनक बार म िकसी को कछ पता न चल पाए इसिलए िशव चरण ने िदल पर प थर रखा और अपने सवािधक ि य शौक, सोशल-मीिडया, को भी अ थाई प से ितलांजली दे दी। अब वह

ह स-ए प, फसबुक, इ टा ाम खोलता तो था, अपने फ ज़ ारा अपने बार म पो ट िकए जा रह कम स भी पढ़ता था, लेिकन उनपर अपनी िति या न दे पाता था। बड़ शौक से कभी अपनी, कभी ेमा क साथ अपनी से फयाँ िनकालता था, वीडीओ भी बनाता था, लेिकन पो ट न कर पाता था। यहाँ तक िक उसने ेमा को भी समझा िदया था िक वह सोशल मीिडया का योग शौक से कर परतु ऐसा कछ भी पो ट न कर बैठ िजससे उसक िपता या िकसी और को उनक बार म कोई जानकारी ा हो। अंतत: जब वे छपने-छपाने क रोज़-मरा क कवायत से तंग आ गए तो एक िदन िशव चरण ने एन डी आर एफ क अपने पुराने और िव सनीय िम , अिनल जादव को फ़ोन लगाया और सारा िक सा यान कर िदया। अिनल जादव अलीगढ़ का रहने वाला था। उसने िशव चरण को सुझाव िदया िक वह ेमा को लेकर अलीगढ़ चला जाए और उसक माँ-बाप क साथ उनक घर म रह। यह बात िशव चरण कहाँ मानने वाला था। उसका वािभमान तो उसक नाक क नोक पर िटका रहता था। इसिलए उसने दो-टक इकार कर िदया। अिनल जादव से यहाँ तक कह िदया, "तुम मेर परम िम हो। म तुमसे सुझाव चाहता ..... तु हारा एहसान नह !" अिनल जादव िशव चरण क वभाव से भली-भाँित प रिचत था। उसे िटहरी-गढ़वाल म बाढ़ का वह िदन आज भी अ छी तरह याद 41 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

था जब िशव चरण ने पेड़ से नीचे उतरने म उसक सहायता लेने से साफ इकार कर िदया था। इसिलए उसने िशव चरण क इस बात का बुरा नह मनाया, ब क उसे सुझाव िदया "अलीगढ़ म मेर कल क िदन का एक िम , अलताफ़ सैन, रहता ह। लोग उसे बा बली कहते ह। वह अ यंत साधन-स प य ह। पूर शहर म उसका दबदबा ह। रलवे अिधका रय क साँठ-गाँठ से उसने रलवे क ज़मीन पर 'इिदरा नगर' नाम क एक अनािधकत ब ती बसा रखी ह। म क गा तो वह तु हारी सहायता ज़ र करगा। तु ह िसर छपाने क जगह िदलवा देगा। हो सकता ह कोई काम-धंधा भी करवा दे।" िशव चरण ेमा को लेकर अलीगढ़ चला आया और बा बली से िमला। एन डी आर एफ म इतने वष म उसने जो थोड़ी-ब त धन-रािश कमाई थी उसका बड़ा भाग तो पहले ही यहाँ-वहाँ होटल म कने- काने म खच हो चुका था। जो बचा था, उसने बा बली क हथेली पर रखा और उससे 'इिदरा नगर' म एक खोली एलॉट करवा ली। अब उसक हाथ-प े कछ न बचा था लेिकन उसक आँख म सुनहर कल क सपने तैरने लगे थे। उसक िदल म असीम जोश था, वलवले थे..... उमंग थ ! वह जानता था िक उसक पास पाक-कला का जो अ ुत नर ह, उसक बदौलत उसे अपनी दुिनया बसाने म अिधक समय नह लगेगा। और दुिनया भी ऐसी िजसमे ेमा हर कार क सुखसुिवधा का आनंद ले सक। वह कदािप नह चाहता था िक जीवन म कभी भी उसे िशव चरण क साथ घर से भागने क अपने िनणय पर पछताना पड़। रलवे अिधकारी और बा बली िमलजुलकर 'इिदरा नगर' म हर वष दस-बीस नई खोिलयाँ जोड़ देते थे। िलहाजा, वहाँ क आबादी भी अब अ छी-ख़ासी हो चुक थी। ऐसा वोट-बक तैयार हो चुका था, िजसे नज़र-अंदाज़ करना िकसी भी राजनीितक पाट क वश क बात न थी। बा बली ने नगरिनगम क उस वाड क कॉप रटर से िमलकर शौचालय और पेय-जल क यव था भी


करवा दी थी। िवधान सभा क िपछले चुनाव क दौरान वहाँ क याशी ने अपने 'प लक 'फड' से पूरी ब ती म ीट-लाइट लगवा दी थी, क े रा त को प का करवा िदया था और एक छोटा सा मंिदर भी बनवा िदया था। खोिलय क िडपॉिज़ट और भाड़ से जो आमदनी होती थी, िवभाग क अिधकारी और बा बली आपस म बाँट लेते थे। इतना ही नह , 'इिदरा नगर' क पूव भाग से ऐन सटकर एक टट-हाइवे िनकलता था, जो िफक से खचाखच भरा रहता था। ब ती क पास ही एक रलवे-फाटक भी था जो िदन म बीिसय बार खुलता और बंद होता था। बा बली ने पी ड यू डी क अिधका रय से िमलकर फाटक क दोन ओर सरकारी ज़मीन पर अनािधकत खोखे लगवा िदए थे। फाटक पर तैनात कमचारी से भी उसक पूरी साँठ-गाँठ थी। हर महीने उसे उसका िह सा िमल जाता था और वह हर रलगाड़ी क वहाँ से गुज़रने क समय से पं ह-बीस िमनट पहले फाटक बंद कर देता था। प रणाम- व प, हर आधे-पौने घंट म सड़क पर कार , कटर , बस और क का जमावड़ा लग जाता था िजसे पं ह-बीस िमनट तक वहाँ कना ही होता था। इसी बीच खोखे और फरी वाले अपना धंधा जमा लेते थे। गरमा-गरम चाय, आलू और याज़ क पकौड़, भाँित-भाँित क कट- ट, ग े का रस, पेन-पिसल, टोिपयाँ, च मे, गाड़ी साफ करने क कपड़, ब क बैटरी से चलाने वाले चीनी िखलौने आिद खूब िबकते थे। अिनल जादव क िसफा रश पर बा बली ने िशव चरण को एक खोखे का क जा भी िदलवा िदया। िफर या था ..... अगले ही िदन िशव चरण ने खोखे क साफ-सफाई क , िशव-शंभू भोलेनाथ क शीशे क म म जड़ी एक भ य त वीर लगाई और खोखे क बाहर ' वािद बा बली समोस'े नाम का प ा चमका िदया। िफर 'इिदरा नगर' क मंिदर क पुजारी ने जो शुभ-मु रत बताया था, उस समय बा बली क भारी-भरकम हाथ से एक ना रयल फड़वाया गया और समोस का धंधा चालू हो गया। िशव चरण तो शु से ही प र मी था। अब उसक पास एक ब त बड़ा

रे णा- ोत भी था, अपनी ि य ेमा का ेह और उसका साथ ! इसिलए वह जी-जान से मेहनत करने लगा। िशव चरण बचपन से ही सूय िनकलने से पहले जग जाने का आदी था। अब ेमा क िदनचया भी वैसी ही बन गई थी। दोन मुँहअँधेर उठक शौच को िनकल जाते थे। िफर ान क बाद डबलरोटी और कड़क चाय का ना ता लेकर समोसे बनाने क तैयारी म जुट जाते। िशव चरण उबले ए आलू, मटर, धिनया, अदरक, हरी-िमच आिद का मसाला तैयार करता और ेमा मैदा गूँधकर खोल बनाती। िफर दोन िमलकर समोसे भरने लगते। इमली और पुदीने क चटनी बनाई जाती। सारा सामान तैयार हो जाता तो उसे एक बड़ी टोकरी म रखकर वे काम पर िनकल पड़ते। खोखे म सबसे पहले धूप-ब ी क जाती और िफर भोलेनाथ क आरती। िफर वे गैस क भ ी पर कड़ाई म तेल डालते और समोसे तलने शु कर देते। ेमा ग ी और ग ा सँभालती और िशव चरण प े क डोन म समोसे और चटनी भरकर कार , बस , क म बैठ सैलािनय को बेचने लगता। कई बार तो दोपहर तक ही उनका पूरा सामान िबक जाता। ऐसे म वे खोखे को ताला लगाकर कोई-न-कोई नई िह दी िफ़ म देखने िनकल पड़ते और रात को िकसी मश र ढाबे पर खाना खाकर ही वािपस लौटते। देखते-देखते िशव चरण क जीवन पर भोलेनाथ क अपार कपा बरसने लगी। उसे लगने लगा िक 'ग ी बॉय' क रणवीर िसंह क तरह उसका 'टाइम' भी आ रहा था। उसने स जी- मंडी और बाज़ार जाने क िलए बा बली का पुराना मोटर-साइिकल खरीद िलया था। ेमा गभवती ई तो उसे खोखे पर आने से मना कर िदया गया था। उसक मनोरजन क िलए खोली म एक टलीिवज़न लगवा िदया गया था और दीवार पर एक पु हसते-खेलते ब े का कलडर। कामकाज म हाथ बटँाने क िलए िशव चरण ने एक गढ़वाली लड़क, गणेश को काम पर रख िलया। वह भोर होते ही वह िशव चरण क खोली पर प च जाता था और ेमा क तरह 42 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

समोस क तैयारी म िशव चरण क सहायता करता था। अब िशव चरण ग ी पर बैठकर समोसे तलता था और नकदी सँभालता था और गणेश प े क दोन म समोसे और चटनी भरकर कार , बस , क म बैठ सैलािनय को बेचने िनकल जाता था। िशव चरण क आमदनी क साथ-साथ ेमा क ित उसका यार भी लगातार बढ़ रहा था। समोस क िलए वह बाज़ार करने जाता था तो ेमा क िलए उसक पसंद क कोई न कोई चीज़ अव य लेकर आता था। कभी फल क गजर, कभी लखनवी कत , कभी नेल-पोिलश तो कभी हर काँच क चूिड़याँ। वह उसक सब अरमान पूर करना चाहता था। काम से लौटते समय कभी उसक िलए डोिमनोज़ का िप ज़ा ले आता था और कभी मैकडॉन ड क बगर और च- ाइज़। खोली म वेश करते ही वह ेमा को बाह म भर लेता था, पागल क तरह चूमता था और जब तक वह दस-बीस बार "छोड़ो भी..... छोड़ो भी" नह कह देती थी, वह उसे अपने से अलग नह होने देता था। ेमा उसक िलए कडक चाय बनाकर लाती थी तो वह िदन भर क कमाई उसक झोली म डाल देता था। चाय क चुसिकयाँ लेते ए उससे कहता था-"अब अपना 'टाइम' आने वाला ह। ब ा हो जाने दो.. बस, िफर तु हार माँ-बाप से िमलने देहरादून चलगे। नवासे को देखकर वह फले नह समाएँगे। सार िशकवे-िगले भुलाकर हम गले से लगा लगे। म भी अिनल और कप क दूसर सािथय से िमल आऊगा। िफर हम िकसी से डरने क ज़ रत नह होगा। हम िदल खोलकर ब े क त वीर फसबुक और इ टा ाम पर पो ट िकया करगे। म अपने बा बली समोस क मश री भी क गा। ह दीराम जैसा धंधा जमाऊगा। मेर फन मुझे वापस देखकर ब त खुश ह गे...!" िशव चरण क जीवन म सब अ छाअ छा चल रहा था िक अचानक कोिवड-19 क महामारी चीन से िनकली और पूर िव म फल गई। इ लड और अमे रका जैसे साधनस प देश भी इसक कोप से बच न पाए। कछ ही िदन म ही मरीज और मृतक क


सं या अिव वसनीय ढग से ब ने लगी। इससे पहले िक कोई कछ समझ पाता, एक िदन धान-मं ी ने 'जनता क यू' क घोषणा क और दो िदन बाद पूर देश म क यू जैसा लॉक-डाऊन लगा िदया। सब काम-धंधे ठ प पड़ गए। सड़क, गिलयाँ, मुह े सूने हो गए। कार, कटर, बस. . . . यहाँ तक िक रलगािड़य तक क च क जाम हो गए। बीमार और बीमारी से मरने वाल क सं या आसमान छने लगी। अ पताल म रोिगय क िलए बेड कम पड़ने लगे। वा य सेवाएँ चरमराने लग । शमशान म दाह-सं कार क िलए शव क ढर लगने लगे। मरघट से स ाट म िदन-रात ण-वािहिनय क डरावनी साँय-साँय हर ओर गज ूँ ने लगी। कोरोना क सामने अमीर-गरीब, बूढ़-जवान, पढ़-िलखे और अनपढ़ सब लाचार िदखाई देने लगे थे। 'इिदरा नगर' क खोिलयाँ एक-दूसर से इस कार सटी ई थ िक एक खोली म यिद एक य भी सं िमत हो जाता तो न कवल उस खोली क बाक़ लोग ब क आस-पास क दो-चार खोिलय क सब लोग क सं िमत होने क पूरी संभावना हो सकती थी। ब ती क लोग मा क तो पहनने लगे थे परतु 'दो गज़ क दूरी' बनाए रखना उनक वश म न था। िकसी-िकसी खोली म तो आठ-आठ दस-दस लोग एक साथ रहते थे। उनका खाना-पीना, उठना-बैठना सब एक साथ होता था और वह भी दस बाय दस क छोटी सी खोली म। ब ती म कवल एक शौचालय होने से बीमारी फलने का खतरा और भी बढ़ जाता था। ऊपर से ेमा गभ क अव था म थी। टलीवीज़न पर ितिदन बताया जाता था िक इस महामारी से कसे बचा जाए। बड़-बड़ िव यात डॉ टर मानने लगे थे िक कोरोना क िवषाणु वृ , दूसरी बीमा रय से पीिड़त लोग तथा गभवती मिहला क िलए अिधक हािनकारक हो सकते थे। उ ह और उनक साथ रहने वाले लोग को िवशेष प से सावधान रहने क आव यकता थी। उ ह िकसी सूरत भी घर से बाहर नह िनकलना था। इसिलए िशव चरण और भी परशान रहता था।

खोली से बाहर कदम रखते ए घबराता था। ेमा क साथ क़िदय क तरह िदन-रात खोली म पड़ा रहता था। टलीिवज़न पर अ पताल व मुदाघर क अ यंत िघनौने य देख-देखकर जब िदल दहलने लगता था तो वह अपने मोबाइल पर ह स-ए प, फसबुक या इ टा ाम खोल लेता था। अपने फ ज़ ारा उसक बार म पो ट िकए जा रह कम स पढ़ता था। ती इ छा होती थी िक उनपर अपनी िति या िलखे, अपने फ़ ज़ को अपने, ेमा और अपने होने वाले ब े क बार म बताए, लेिकन ऐसा न कर पाता था। यही सोचकर संतोष कर लेता था िक उसक फ ज़ अब भी उसक साथ ह। उसे िनरतर फॉलो कर रह ह। उसक बार म िचंता करते ह और यिद वह िकसी संकट म ह तो वे हर कार से उसक सहायता करने क इ छा भी रखते ह। लेिकन वह तो अ वल दज का वािभमानी य था। िकसी से िकसी कार क मदद लेकर वष म बनाई अपनी छिव को धूिमल नह कर सकता था। वह मन ही मन सोचा करता था िक कभी ऐसी नौबत आ भी गई तो अपने वािभमान से समझौता करने क बजाए वह अपनी जान देना पसंद करगा ! 'इिदरा नगर' क बीच -बीच एक अहाता था िजसक दि णी भाग म सीमट का एक प का चबूतरा बना िदया गया था। वहाँ नवराि क िदन म रामलीला का आयोजन िकया जाता था। िकसी पीर-पैगंबर का उस 43 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

होता था तो वहाँ क़ वािलयाँ गाई जाती थ । दूसर िदन म ब ती क बूढ़-बु ग लोग सुबहशाम चबूतर पर रखे बच पर आकर बैठा करते थे। अपना सुख-दुख साझा करते थे। अखबार और टलीवीज़न क मा यम से ा खबर पर चचा िकया करते थे। जब से कोरोना क महामारी शु ई थी और देश भर म लॉक-डाउन लगा िदया गया था, चबूतरा और बच दोन िबलकल अकले पड़ गए थे। ह ते म एक िदन कछ सरकारी लोग एक ट पो-नुमा गाड़ी लेकर ब ती म आते थे। गाड़ी म सूखा राशन भरा रहता था। वे चबूतर क बच पर बैठकर ब ती म रहने वाले गरीबी-रखा से िनचले वग क लोग को मु त राशन बाँटते थे। यह सब धान-मं ी ारा घोिषत राहत-योजना अंतगत िकया जाता था। ब ती म कई ऐसे लोग ऐसे भी थे िज ह ने स े-झूठ कागजात बनवाकर गरीबी-रखा क िनचले वग म अपना नाम दज करवा रखा था। राशन क गाड़ी क आते ही वे िभखमंग क तरह पं य म खड़ हो जाते थे और गाड़ी क जाते ही अपना राशन दूसर ज़ रतम द लोग को मुँह-माँगे दाम पर बेचने लगते थे। कभीकभी कई िनजी सं था​ा क गािड़याँ भी भोजन अथवा ज़ रत क दूसरी चीज़ बाँटने क िलए ब ती म आया करती थ । एक िदन सं या क समय िशव चरण क खोखे पर काम करने वाला गढ़वाली लड़का गणेश, छपते-छपाते उसक खोली पर प चा। हज़ार -लाख वासी मजदूर क तरह वह भी अपने गाँव अपने लोग क पास वािपस जाना चाहता था। इसिलए उसे िपछले पाँच महीन क अपनी पगार चािहए थी, जो उसने िशव चरण क पास जमा करवा रखी थी। िशव चरण क पास अब यादा पूँजी नह बची थी। इतने िदन से वह िबना िकसी रोज़गार और िबना िकसी सरकारी मदद क घर-गृह थी चला रहा था। घर का राशन, ेमा क िलए फल- ट, टॉिनक और दवाइयाँ और ज़ रत क दूसरी सारी चीज़ वह दूकान से खरीद कर ही इ तेमाल कर रहा था। लेिकन गणेश को उसक पगार देने म उसने ज़रा भी गुरज नह िकया। उसका जो भी िहसाब बनता था, ेमा


से कहकर तुरत चुकता कर िदया। अपनी गरज़ क िलए िकसी का दूसर का हक़ मारना उसक कती म न था। ऐसा करता तो उसक वािभमान को ठस प च सकती थी। गणेश को ज़रा भी उ मीद न थी िक उसक रकम इतनी आसानी से उसे िमल जाएगी। इसिलए उसने िशव चरण क पाँव छए, दोन हाथ जोड़कर उसका आशीवाद िलया और चलता बना। िशव चरण खोली क दरवाज़े पर न जाने िकतनी देर बुत बना खड़ा रहा। गणेश को शाम क गहराते अँधेर म ओझल होते देखता रहा। सोचता रहा िक अब वह या कर ? ेमा और उसक होने वाले ब े को लेकर वह कहाँ जाए? िटहरी-गढ़वाल म तो न उसका घर बचा था और न ही कोई लोग िज ह वह अपना कह सकता था। देहरादून वह जा नह सकता था। ऐसी हालत म ेमा को उसक िपता क घर ले जाने म उसका वािभमान आड़ आता था। ेमा क सव का समय िदन-ब-िदन नजदीक आ रहा था और िशव चरण क जमा-पूँजी दोएक िदन म ही समा होने वाली थी। सव म पये-पैस क ज़ रत पड़गी तो वह कहाँ से लाएगा ? लॉक-डाऊन क अविध आगे-सेआगे बढाई जा रही थी और समय था िक पर लगाकर उड़ रहा था। शी ही वह िदन आ प चा िजसका डर था। वह नहा-धोकर टलीिवज़न पर कोरोना क समाचार देख रहा था जब ेमा ने िखड़क से बाहर झाँका और िशव चरण क पास आकर कहने लगी, -"देिखए खाना पकाने क िलए घर म ना आटा बचा ह ना चावल। बाहर अहाते म िकसी गैर-सरकारी सं था क ओर से एक ट पो आया ह। वे लोग क ा राशन बाँट रह ह। काग़ज़-प क पड़ताल भी नह कर रह। ब ती क सब लोग लाइन म खड़ ह। देखो..... आप भी थोड़ा राशन ले आओ तो कछ िदन क भोजन क यव था हो जाएगी।" ेमा क बात सुनकर िशव चरण सकते म आ गया था। उसक पैर तले क ज़मीन िखसकने लगी थी। उसने सपने म भी नह सोचा था िक उसे यह िदन देखना पड़गा जब उसक अपनी ेमा उसे भीख म िमल रहा

राशन लाने को कहगी। उससे उसे यह उ मीद हिगज़ न थी। वह तो उसक वभाव से भलीभाँित प रिचत थी। जानती थी िक वह जान दे देगा परतु िकसी क सामने हाथ नह फलाएगा। उसक चेहर क नस कसने लग थ । उसक आँख म खून उतर आया। न जाने िकतनी देर वह जड़ बना वह बैठा अपने गु से पर क़ाबू पाने क चे ा करता रहा। िफर उसने नज़र उठाकर ेमा क ओर देखा। अपनी ि य ेमा क ओर देखा.... िजसक बाह म बाह डालकर वह चं मा क शीतल काश क छाँव म घंट बैठा रहता था। िजसक साथ उसने जीने-मरने क क़सम खाई थ । िजसक सुर म सुर िमलाकर वह गुनगुनाया करता था, 'अपना टाइम आएगा'। िफर जाने या सोचकर वह िख मन से उठ खड़ा आ। उसने खूंटी से एक झोला उतारा। शम से सर झुकाए, छोट-छोट पग भरता आ वह न चाहते ए भी अहाते म खड़ ट पो क ओर बढ़ने लगा। अभी वह थोड़ी ही दूर गया था िक कछ देखकर िठठक गया। राशन बाँटने वाली सं था अपने साथ एक कमरा-मैन लेकर आई थी, जो राशन लेने वाले हर य क राशन लेते ए फ़ोटो ख च रहा था। उसक अंतरा मा जाग उठी और उससे कहने लगी, "िशव चरण .... लौट जा। वना दान म राशन हण करते ए तेरा फ़ोटो भी िखंच जाएगा। संभव ह कल यही फ़ोटो िकसी समाचार-प म छप जाए या िफर हा स-ए प, फ़स-बुक अथवा इ टा ाम पर वायरल हो जाए और हज़ार -लाख लोग तक प च जाए ..... शायद तु हार फन भी इसे देख ल !!" अंतरा मा क इस आवाज़ ने उसे ज़ोर से झकझोरा और आगे बढ़ने से रोक िदया। उसने तुरत अपने क़दम अपनी खोली क ओर घुमा िलए। अब वह खाली हाथ था परतु उसक चेहर पर िनराशा कदािप नह थी। उसने अपने वािभमान को ठस लगने से बचा िलया था। अब वह अपना िसर ऊचा िकए तेज़ तेज़ पग भरता आ खोली क ओर बढ़ रहा था.. ! िशव चरण ने खोली म वेश िकया तो देखा िक ेमा िखड़क क पास खड़ी सुबक44 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

सुबककर रो रही थी। उसने खोली से बाहर िनकलते ए िशव चरण क िझझक और उसक संकोच को ताड़ िलया था। उसक बीच रा ते म िठठकने और तुरत लौट आने का कारण भी वह समझ गई थी। उसने िशव चरण को स े मन से चाहा था। िदल से यार िकया था। उसक अंदर कब या चल रहा होता था, वह भली-भाँित समझने लगी थी। उसक रगरग से वािकफ हो चुक थी। अब उसे िशव चरण क इस ह तक वािभमानी होने पर गव हो रहा था। उसे दुख भी हो रहा था िक उसने अपने ि यतम को पहली बार उसक मज़ क िखलाफ कोई काम करने क िलए िववश िकया था। उसे अपने-आपसे िघन आ रही थी। वह मन-ही-मन अपने-आपको कोस रही थी। उसने िशव चरण को अपनी बाह म भर िलया, अपना िसर उसक कधे पर रखा और फट-फटकर रोने लगी। िशव चरण भी अपने-आपको रोक न पाया। उसने ेमा को िब तर पर बैठाया, उसक गोद म अपना िसर रखा और घंट तक रोता रहा। उसक कोख म पल रह अपने ब े को पागल क तरह चूमता रहा। उस रात िशव चरण क खोली म चू हा नह जला। घर म खाने को अनाज का एक भी दाना न था। वे दोन भूखे पेट सो गए। सोए भी या नह , यह भी नह कह सकते। लेिकन खोली क िखड़क क ऐन ऊपर जो छोटा सा एक रौशनदान था, उसम से रात-भर चं मा का शीतल काश छन-छनकर अंदर आता रहा। अगले िदन जब पड़ोिसय ने काफ देर तक भी िशव चरण और ेमा को शौच क िलए बाहर िनकलते नह देखा तो उ ह हरानी ई। आठ-दस पड़ोिसय ने इक होकर उनक खोली का दरवाज़ा खटखटाया। जब ब त देर तक िकसी ने दरवाज़ा नह खोला तो उनक हरानी िचंता और डर म बदल गई। िकसी तरह से उन लोग ने िखड़क क पाट खोले तो देखा िक िशव चरण और ेमा मर पड़ थे। पूरा फश उनक एक-एक कलाई क कटी ई धमिनय से बहते ए र से लाल हो चुका था ........! 000


कथा-कहानी

देवता

अ ण अणव खर

अ ण अणव खर डी-1/35 दािनश नगर, होशंगबाद रोड, भोपाल (म० ०) 462 026 मोबाइल- 9893007744 ईमेल- arunarnaw@gmail.com

तोरन िसंह आज ब त स था। उसक बेट सूरज िसंह को बारहव पास करते ही बड़ साब ने वकचाज म बाबू बना िदया था, साथ ही यह भरोसा भी िदलाया था िक सूरज जैसे ही क यूटर क परी ा पास कर लेगा, उसे वह रगुलर कर दगे। इस खुशी को सबसे बाँटने तोरन साब से तीन िदन क छ याँ लेकर अपने गाँव आया था। तोरन क ख़ानदान म पहली बार कोई सरकारी बाबू बना था। उसक सार सगे संबंधी या तो खेितहर मज़दूर थे या िफर उसक तरह साब लोग क बँगल पर काम करते थे। उसक प नी पूिनया तो जैसे अपने मोड़ क उपल ध पर बौरा गई थी। िदन म िकतनी ही बार वह सूरज का माथा चूम चुक थी। इसी खुशी म उसने िबरादरी वाल को ाम देवता क चबूतर पर पूड़ी-रायता ज मने का योता तक दे डाला था। बड़ साब ने बोला था सूरज को सोमवार को ही ूटी ाइन कराने क िलए, अतएव तोरन सूरज को लेकर इतवार को ही गाँव से वापस आ गया। सूरज क पो टग साब ने अपने चहते कायपालन यं ी क ऑिफ़स म क थी। सूरज क काग़ज़ प र पलटते ए बड़ बाबू िबंदेसरी यादव ने पहले तोरन और िफर सूरज क ओर इतनी पैनी िनगाह से देखा िक दोन ही िसहर गए। तोरन हाथ जोड़कर लगभग िगड़िगड़ाते वर म बोला - "कोनऊ कमी ह का बाबू जी .. बचवा ह .. आप समझा दो पूरी कर लावेगो .. म तो कछ समझूँ न .. दूसरी जमात तक ही पड़ो ह हमन”े "नह .. नह .. कोई कमी नह ह .. सब काग़ज़ दु त ह .." िबंदेसरी यादव बोले - "तु ह पता ह िक लड़क क िकतने नंबर ह" "नाँय मालूम मोए .. इ ो पता ह िक वाय फ ट कलास आओ ह और इजीन रग को इ तहान भी पास करो ह तब बड़ साब ने ईख बाबू बना दओ" - कहते ए तोरन क आँख गव से दमकने लगी। "तुम लड़क का क रयर बरबाद कर रह हो तोरन .. तु हारा लड़का तो हीरा ह हीरा .. इसे यूँ बाबू बना रह हो .. तुम बताओ सूरज .. कौन सा इजीिनय रग का इ तहान पास िकया ह तुमने " - िबंदेसरी ने उ सुक िनगाह से दोन क ओर बारी-बारी से देखा। "जी, पी.ई.टी. पास िकया ह .. एस.सी. क मे रट िल ट म 133वां नंबर ह, सब कहते ह िक मनचाही ाच ं िमल जाएगी, पर ब त पैसा लगता ह पढ़ाई म। बापू ख़च नह उठा पाएँगे। बड़ साब ने कहा िक तु ह प क नौकरी लगा दगे। ब त इजीिनयर बेरोज़गार घूम रह ह। " सूरज ने बताया। "बड़ साब ने ऐसा कहा तुमसे।" - िबंदेसरी ने आ य से पूछा। 45 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


"हओ" - जवाब तोरन ने िदया - "हम कहाँ से लाख लाते, फ़ स देवे ख , वो तो साब बड़ दयालु ह, हम ग़रीबन पर जो इ ी िकरपा करत ह। " िबंदेसरी बाबू ने सार कागज़ यव थत िकए और सूरज को ऑिफ़स म ाइन कराने क आव यक कायवाही पूण क । िबंदेसरी ने एक बार पुन: सूरज को सोचने क िलए कहा पर कम पढ़ा-िलखा तोरन तो सूरज क बाबू बन जाने से ही सातव आसमान पर जा बैठा था। वह तो बड़ साब क िकरपा क तले वयं को दबा महसूस कर रहा था। उसे समझ म ही नह आया था िक िबंदेसरी बाबू बार-बार यूँ पूछ रहा ह, कह उसका कोई वारथ तो नह ह। िबंदेसरी बाबू ने सूरज को ाइन करवा िलया था। तोरन सूरज को वहाँ छोड़कर चला गया। शाम को जब दोनो िमले तो तोरन क मन म ब त से सवाल थे। उसे कोई परशानी तो नह ई। ईई साब से उसक भट ई िक नह .. कछ काम भी सीखा िक नह .. िबंदेसरी बाबू ने कोई गड़बड़ तो नह क .. ऑिफ़स क बाक लोग कसे लगे उसे .. "बाप,ू िबंदेसरी बाबू जी ने िफर से मुझसे कहा था िक तु हार जब इतने अ छ नंबर ह तो तुम बाबूिगरी करक यूँ अपना क रयर खराब कर रह हो .. वह तो बड़ साब को भी इसका दोष दे रह थे िक उ ह ने जानबूझ कर मेरा क रयर खराब िकया ह .. वह कह रह थे िक मुझे बक से लोन भी िमल जाता और कॉलेज क फ स भी माफ हो जाती"- सूरज जो पहले बड़ा खुश नज़र आ रहा था, तोरन को कछ उदास सा लगा। तोरन को यान आया जब उसने बड़ साब को सूरज क इजीन रग म पास हो जाने क खबर सुनाई थी तो वह ब त खुश नज़र नह आए थे और जब उ ह ने सूरज को बाबू बनाने क िलए तोरन से कहा था तो नीला िबिटया भी बड़ साब पर नाराज़ ई थी। उसे तो सूरज क बाबू बन जाने क इतनी खुशी थी िक उसे नीला क बात से दुख आ था। वह समझ नह पाया था िक नीला िबिटया यूँ बड़ साब पर नाराज़ हो रही ह।

"तुम िबंदेसरी बाबू क बातन ख िदल पे न लो िबटआ... हो सकत ह बड़ साब ने कब ऊख फटकारो हो जासे वो उनसे िचढ़त हो, हमने बड़ साब क बरस सेवा करी तब उ ह ने तुमाओ इतनो यान रखो, हम गरीबन क आज सुनत कौन ह... हमाई िबरादरी म आज तक कोनऊ बाबू नई बनो हतो, तुमने तो हमाओ नाम रोशन कर दओ... तुम अब मन लगा क काम करो...साब कछ िदन म तुमाओ परमोसन भी कर देह। " तोरन ने सूरज को समझाते ए कहा। दो माह गुज़र गए। सूरज ने ऑिफ़स का काम कछ-कछ सीख िलया था। सब उसक काम और लगन से खुश थे। तोरन और पूिनया क भी सारी िबरादरी म अपने िबटआ क उपल ध क कारण इ ज़त बढ़ गई थी। तोरन भी बड़ साब क इस उपकार क बदले दोहर चाव से उनक सेवा म लगा रहता था। बड़ साब क इकलौते बेट ि येश, यािन िक िचंक बाबा का पढ़ने म मन नह लगता था .. बड़ साब इस कारण परशान रहते थे। 12व म वह एक बार फल हो चुका था और इसी साल उ ह ने उसका एडमीशन डोनेशन देकर िकसी इजीिनय रग कॉलेज म कराया था। िबिटया नीला इस बात को लेकर बड़ साब से नाराज़ रहती थी और कभी-कभी उनसे सूरज का उदाहरण देते ए उलझ जाती थी। नीला ारा सूरज का इस तरह प लेना तो तोरन को अ छा लगता था पर बड़ साब से झगड़ा करना उसे नह सुहाता था। उसने एक दो बार 46 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

अकले म उसे समझाने क कोिशश भी क थी तो िबिटया ने "काका तुम नह समझोगे" कहकर चुप करा िदया था। तोरन िसंह िपछले चौबीस साल से बोधराम िनरजन क घर पर काम कर रहा था। उस समय से जब िनरजन नया-नया सहायक यं ी क पद पर भरती आ था। उसक पहली पो टग बु देलख ड क इलाक़ म ई थी जहाँ छआ-छत और ऊच-नीच का भेद उस समय समाज म क रोग सरीखा जमा बैठा था। इस कारण बोधराम क घर पर कोई भी कमचारी काम करने को तैयार नह था। उसक पहले पद थ रह मनोरजन शु क घर पर काम करने वाले छटक रकवार और ह रलाल सा ने साफ़-साफ़ मना कर िदया था - "साब हम घर पर काम नह करगे...हमारी िबरादरी म बात पता चल गई तो हम समाज से ही बाहर कर िदए जाएँगे... हमार बाल-ब क िववाह तक नह हो पाएँगे और हमारा कापानी, आपस म उठना-बैठना तक हराम हो जाएगा।" सुनकर बोधराम स रह गया था। एक झटक म ही उसक अफ़सरी धरातल पर आ गई थी। वह अनुशासनहीनता का दोन क िख़लाफ़ ह टर चलाना चाहता था लेिकन िजले क एक अनुसूिचत जाित क बी.डी.ओ. क समझाने पर उसने अपना इरादा याग िदया था। घर क कामकाज क िलए उसने निनहाल से दूर क एक र तेदार तोरन को बुला िलया था और उसे घर पर ही सव ट ाटर म रहने क जगह दे दी थी। तबसे िनर तर तोरन बोधराम क घर पर काम कर रहा था। बोधराम क कई ांसफ़र ए। शासन क नए बने मोशन-िनयम क तहत ज दी-ज दी उसक तीन मोशन भी हो गए और वह अपने साथ िनयु ए अनेक अफ़सर को पीछ छोड़ते ए चीफ़ इजीिनयर बन गया। ज दी-ज दी िबना बारी क मोशन पा जाने क बाद वह अहकारी हो गया था और अपने साथी अफ़सर तक से बदतमीज़ी करने लगा था। तोरन बोधराम क इस बदलते यवहार का सा ी था। िजनसे बोधराम कभी सर कह कर बात करता था, उनसे ही वह कई बार बुरा


सलूक कर बैठता था। चीफ़ इजीिनयर बनने क बाद अपने पहले दितया दौर पर बोधराम ने छटक और ह रलाल सिहत वृंदावन पटल उपयं ी को भी िनलंिबत कर िदया था। वे दोन वृंदावन क साइट पर ही कायरत थे तथा वृंदावन क कहने पर ही अफ़सर क घर म काम करते थे। अपनी पहली पो टग क समय से ही तीन बोधराम क िनशाने पर थे। पर दो माह क अ दर ही तीन क बहाली क आदेश बोधराम को िनकालने पड़ थे। कमचारी नेता भ चरण ने धमक दी थी यिद चौबीस घ ट क भीतर िनलंबन वािपस नह िलया गया तो उसक बंगले क बाहर त बू लगाकर भूख हड़ताल क जावेगी। नौव म पढ़ने वाली नीला को िपता का प पाती यवहार पस द नह आता था। भ चरण क धमक क बाद जब बोधराम को पीछ हटना पड़ा तो वह ब त आहत था। नीला तीन क बहाली से खुश थी .. उसने बोधराम को थ स बोला। बेटी क मुँह से ये सुनते ही वह िबफर गया। उसे लगा भ चरण क साथ ही उसक बेटी भी उसक मजबूरी का मज़ाक उड़ा रही ह। वह बड़ी ज़ोर से नीला पर िच ाया, िबचारी रोती ई अपने कमर म चली गई। बोधराम क प न शामली ने उसे शा त करने क कोिशश क । बोधराम को भी लगा िक उसने अकारण ही नीला को इतनी ज़ोर से डाँट िदया ह। उसने शामली से कहा - "तुम ही बताओ म या क । नीला हर बात म िवरोध करती ह... वह तो आर ण तक क िवरोधी ह... यिद यह बैसाखी न होती तो म भी इजीिनयर न बन पाता... िचंक क रग-ढग तुम देख ही रही हो... िबना आर ण क वह कछ बन कर िदखा सकता ह या...आर ण क बावजूद भी उसे ढग क नौकरी िमलेगी मुझे स देह ह।" "समय क साथ नीला भी सब समझ जाएगी। इस उमर म ब े ऊच-नीच नह समझते। उसे भी ास म कौन एस.सी. का मानता ह। उसक पिहचान तो एक बड़ अफ़सर क बेटी क ह। ऊची जाित क गरीब

ब को देखती ह तो यिथत हो जाती ह। उसने आप सरीखे गरीबी क िदन ही कहाँ देखे ह। आप उससे यार से बात िकया क िजये। " - शामली ने सलीक से अपनी बात बोधराम क सामने रखी। "तुम ठीक कहती हो शामली" - बोधराम ने कहा - "लेिकन नीला हर बात म हमारा िवरोध करती ह। " "सूरज क ित आपक ख ने उसे आहत िकया था .. उसे लगने लगा ह िक आप वाथ ह.. आप िकसी का िहत नह कर सकते.. मुझे भी लगता ह िक सूरज क िलए आपने सही िनणय नह िलया था.. तोरन समझता ह िक सूरज को बाबू बना कर आपने उस पर ब त बड़ा अहसान िकया ह। वह तो आपको देवता समझता ह" - शामली का वर ब त संयत था। वह नीला का प बोधराम को समझाने का यास कर रही थी, साथ ही उसे यह भी यान रखना पड़ रहा था िक बोधराम उसक बात से आहत महसूस न कर। "शामली तुम भी मुझे ग़लत समझती हो। पर मने जो भी िकया अपने ब क भिव य क िलए िकया। " - बोधराम क वर म कातरता थी -"तु ह याद ह न, दितया म कोई भी हमार घर पर काम करने को तैयार नह था। म तोरन को नह लाया होता तो खाना बनाने से लेकर चौका-बतन भी तु ह ही करना पड़ता। यिद तोरन जैसे लोग क ब े भी अफ़सर बन जाएँगे तो िफर हमार िचंक का या होगा। अफ़सर का बेटा होकर या बाबू बनकर ध क खाने क िलए छोड़ दूँ उसे। िकसी तरह िचंक अफ़सर बन भी गया तो कौन िमलेगा उसक घर पर काम करने क िलए। मने सूरज को लेकर जो भी िकया ब त सोच समझ कर िकया। वह बाबू बनकर खुश ह,और तोरन भी।" शामली को कछ भी नह सूझा िक या बोले। बाहर उसे कछ िगरने क आवाज़ सुनाई दी तो वह बाहर िनकली। हवा क झ क से राधा-क ण क मूित िगरकर टट गई थी। तोरन टकड़ को समेटते ए अपनी झोली म रख रहा था। 000 47 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

लेखक से अनुरोध 'िवभोम- वर' म सभी लेखक का वागत ह। अपनी मौिलक, अ कािशत रचनाएँ ही भेज। पि का म राजनैितक तथा िववादा पद िवषय पर रचनाएँ कािशत नह क जाएँगी। रचना को वीकार या अ वीकार करने का पूण अिधकार संपादक मंडल का होगा। कािशत रचना पर कोई पा र िमक नह िदया जाएगा। ब त अिधक ल बे प तथा ल बे आलेख न भेज। अपनी साम ी यूिनकोड अथवा चाण य फॉ ट म वडपेड क ट ट फ़ाइल अथवा वड क फ़ाइल क ारा ही भेज। पीडीऍफ़ या कन क ई जेपीजी फ़ाइल म नह भेज, इस कार क रचनाएँ िवचार म नह ली जाएँगी। रचना क सा ट कॉपी ही ईमेल क ारा भेज, डाक ारा हाड कॉपी नह भेज, उसे कािशत करना अथवा आपको वापस कर पाना हमार िलए संभव नह होगा। रचना क साथ पूरा नाम व पता, ईमेल आिद िलखा होना ज़ री ह। आलेख, कहानी क साथ अपना िच तथा संि सा प रचय भी भेज। पु तक समी ा का वागत ह, समी ाएँ अिधक ल बी नह ह , सारगिभत ह । समी ा क साथ पु तक क कवर का िच , लेखक का िच तथा काशन संबंधी आव यक जानका रयाँ भी अव य भेज। एक अंक म आपक िकसी भी िवधा क रचना (समी ा क अलावा) यिद कािशत हो चुक ह तो अगली रचना क िलए तीन अंक क ती ा कर। एक बार म अपनी एक ही िवधा क रचना भेज, एक साथ कई िवधा म अपनी रचनाएँ न भेज। रचनाएँ भेजने से पूव एक बार पि का म कािशत हो रही रचना को अव य देख। रचना भेजने क बाद वीकित हतु ती ा कर, बार-बार ईमेल नह कर, चूँिक पि का ैमािसक ह अतः कई बार िकसी रचना को वीकत करने तथा उसे िकसी अंक म कािशत करने क बीच कछ अंतराल हो सकता ह। ध यवाद संपादक vibhom.swar@gmail.com


कथा-कहानी

स ाटा

छाया ीवा तव

छाया ीवा तव 1022, हना टावर, गौढ़ सौ दयम टक जोन IV, ेटर नॉइडा वे ट गौतम बु नगर, यू पी मोबाइल- 9313787497 ईमेल- srivast.chhaya@gmail.com

सारी रात माँ खाँसती रही। कई बार िदया उठ – उठ कर उसे पानी िपलाती रही। न द तो टट ही गई थी – माँ क लाख मना करने पर भी आधी रात से माँ क िसरहाने बैठी–बैठी ऊघती रही। उसे सबेर ऑिफ़स भी जाना ह, बस इसी बात से माँ-बेटी रह-रह कर िवचिलत हो रही थ । माँ को इधर बीमारी क हालत म छोड़ ऑिफ़स जाना िदया को ब त तकलीफ देता था। माँ खाँस–खाँस थक कर सो गई। रात क स ाट म इस दो कमर क छोट से लैट क दीवार से टकरा उसक साँस क आवाज़ गूँज सी रही थी – बंद कमर क दीवार से टकरा मान ची कार कर रही ह जैसे िज़ंदगी मौत क भीख माँग रही हो। माँ क हालत िदन पर िदन िबगड़ती ही जा रही थी। िदया का बदन टट सा रहा था सारा िदन, ऑिफ़स म िदमाग भी थर नह हो पा रहा था। सोचती, फलटाइम मेड रख ले पर आजकल मे स िकतनी िडमांिडग होती ह। िफर बीमार माँ क साथ अकले पूरा घर मेड पर छोड़ा भी तो नह जा सकता। और सच बात तो यह थी िक िदया अफ़ोड भी नह कर सकती थी। माँ क टीिचंग जॉब भी छट गई थी, ूशन क िलए भी ब े आना बंद कर चुक थे।वह तो ब त माट व ऐ टव रह , कपड़ का िसलै शन भी ब त बिढ़या था। ज़रा सा तैयार होत , िनखर जात । उ का असर तो उन पर था ही नह । िदया उनक ब त बड़ी ऐडमायरर थी। माँ एक िसंगल मदर ही थी, पापा क याद िदया को धुँधली सी ही थी। वह काफ़ छोटी थी, चार – वार साल क रही होगी – िजतना भी याद आता, ख़राब – ख़राब सा ही होता। पापा शायद ब त पीते भी थे। ऊची – ऊची आवाज़ म दोन क तक़कार - कछ बुरी सी परछा िदया क मानस पटल पर आती जाती रहती। माँ को पापा क बार म बात करना अ छा नह लगता था, तो िदया भी वह टॉिपक छड़ती नह थी। धीर – धीर पापा क याद भूली कहानी सी हो गई। एक बार पापा कह िनकले तो िफर कभी नह लौट। 000 माँ िफर ज़ोर–ज़ोर से खास ँ ने लगी। अभी तक तो कछ महीने से कोरोना क चलते वक ॉम 48 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


होम से राहत थी। लैपटॉप पर काम तो रहता था पर बीच – बीच म माँ क देखभाल भी हो जाती थी। माँ ब त कमज़ोर होती जा रही थ , िफर भी लगी रहती थ । कोरोना ट ट भी कराया, नैगेिटव िनकला, कछ राहत ई। पर दवाई वगैरह क बावजूद माँ क कमज़ोरी बढ़ती ही जा रही थी। वह बेहद परशान रहती थ , कसे काम चलेगा-उसक बाद िदया का या होगा। शायद यह भी बड़ी वजह थी जो उसे ठीक न होने दे रही थी। वैसे िदया इिडपडट थी, समझदार भी, ब त लड़िकयाँ अकली रहती ह, पर उ भी तो बढ़ती जा रही थी। आराम कस पर बैठ-बैठ, सोते जागते पौ फटने को आई। ज दी-ज दी माँ क िलए कछ बनाया। 'तुम या खाओगी सार िदन िदया?' माँ ने करीब–करीब कराहते ए पूछा। 'अर मा,ँ रोज़ य वही बात दोहराती हो, ऑिफ़स म सब िमलता ह, कछ खा लूँगी'िदया भी अ सर माँ क हर व क नै गंग से झुँझला सी जाती। 'बाय'– माँ का माथा चूम िनकल गई। आज तो रा ते भर िदया बेहद थक व परशान रही। एक तो ऑिफ़स म कोरोना का डर, हर समय मा क लगाए दम घुटने लगता ह। सोशल िड टिसंग, बार– बार हाथ सैनीटाइज़ करो–और हाट नॉट। और िफर भी एक अंजाना सा डर... दूसर पल अपने को सँभालती – हम से बदतर और लोग भी ह – कसे सार अ पताल भर पड़ ह – िकतन का कोई देख भाल करने वाला भी नह , अंत समय भी जैसे कोई बुर कम का फल हो – न कोई अपना न पराया। शायद वो मै ो म कछ सोचते–सोचते ऊचा बड़बड़ाने लगी थी। एक दो लोग को अपनी ओर ताकते देख कॉ शस हो, होश म आई। आज िकसका मुँह देखा था, इतना बुरा िदन बीता। िकसका देखा होगा...माँ–बेटी, दो ही तो ह घर म, एक दूसर को देखना ही िनयित ह। बॉस से, िफर एक कलीग से जाने िकस बात पर बहस सी हो गई–वह ब त थक थी, रात भर सो नह पाई थी- यह तो कोई समझ नह पाएगा। बस अपने को सही ठहराना, ईगो

ॉ लम, ऑिफ़स म अबीर न होता तो शायद इस वातावरण म दम ही घुट जाता। नौकरी भी तो नह छोड़ सकती थी, लगता दुिनया म उससे यादा आिथक मजबूरी िकसी को न थी। वापसी म अबीर उसे समझाता रहा िक इतनी सी रयसली हर बात को नह िलया कर। मै ो से उतर वो लोग घर क पास ही कॉफ़ पीने बैठ गए। चलते-चलते िदया ने धीर से अबीर से कह तो िदया, 'घर चलो... ' पर मन म यही कहा िक वह मना कर दे। या घर का हाल ह, िफर िब तर पर पड़ी माँ... 'िफर कभी ..' अबीर िदया क हथेली धीर से दबा बोला। उसका पश ज़ म पर िकसी मरहम से कम ना था। िदया घर क ओर हो ली। अबीर का साथ कछ यादा िदन का नह था, नया आया था ऑिफ़स म। िदया को हमेशा कछ परशान, थका–थका सा देख वह उसक ओर आकिषत आ। िदया देखने म तो अपनी माँ क तरह 'सुंदर' क कटीगरी म नह आती थी- हाँ, रग ज़ र साफ़ था। पर कछ आकषण था, एक विभमानी सा य व जो अबीर को भा गया। पर िदया हमेशा िखंची–िखंची सी रहती। माँ क िदन पर िदन क िगरती सेहत ने शायद उसका मानिसक संतुलन ही िबगाड़ िदया था। जैसे–जैसे घर नज़दीक आ रहा था, एक अजीब सी मन िसयत उसे घेरने लगी। माँ क पास प चने क बेचैनी होते ए भी घर का बोिझल वातावरण शायद उसे िनगलने को आता। 49 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

माँ उठी थी, शायद पानी–वानी लेने–िदया एकदम भड़क गई' य उठती हो नाहक, िगर पड़ोगी–कछ ह ी–व ी टट गई तो और मुसीबत होगी।' - िदया िबना सोचे समझे माँ पर बरस पड़ी, मान सार िदन क थकान-भड़ास िनकाल रही हो। 'पानी ख म हो गया था, यास लगी थी...' नम आँख से गुनहगार सी माँ िब तर पर लुड़क गई। 'ओ मा-ँ आ रही ...' और हाथ मुँह धो भागती सी माँ क िसरहाने ज़मीन पर ही बैठ गई। 'सॉरी मा,ँ आई एम सो सॉरी...' माँ को कस कर दबोचते, जाने िकतनी बार माथा गाल चूमती रही। दोन क आँख मान िकतने िदन से बह जाने को तड़प रही ह । कसा दद था, बस आँसू ही इस बेबसी को समझ पा रह ह जैसे। खाना खाते ही माँ सो गई। एकदम िन ल-शांत, जैसे आँसु ने सारा दद बहा िदया हो। कई बार िदया ने उसक न ज़ महसूस करने क कोिशश क , एक अजीब सा डर लगा रहता था उसे। बग़ल म आराम कस पर कशन लगाए िदया माँ क मुरझाये चेहर को एकटक देखती रही। या से या हो गया, िकतनी सुंदर िदखती थी माँ कछ िदन पहले तक। कल जाते समय जब तैयार होती तो यह न पता लगता िक साड़ी उस पर फब रही ह या उसने साड़ी म िनखार ला िदया ह। माँ साड़ी ही पहनती, कई बार िदया ने परसुएड िकया िक सूट भी पहना कर, पर वह साड़ी म ही सहज रहती। ब त छोटी थी, तभी से िदया क िसर पर िपता का साया न रहा। माँ वही कल क नौकरी व ूशन से घर चलाती। घर िकराये का था, माँ क ब त इ छा थी िक छोटा ही सही, पर अपना घर हो। माँ ने िदया क हर छोटी-बड़ी इ छा पूरी करने क कोिशश क , उसको छोटी-छोटी ल ज़री म रहने क आदत डाल दी थी, िदया खुश थी। बैठ–बैठ ही िदया क आँख लग गई। िफर नया सवेरा, नया संघष... इसक िसवा कछ नया नह था। ब त थक चुक थी िदया।


माँ क ठीक होने क आसार ही नह िदख रह थे। कभी – कभी मन कहता, ' भगवा या तो माँ को ठीक ही कर दे या िफर...' कह ऐसा कोई बेटी अपनी माँ क िलए ऐसा सोच भी सकती ह ... िछ:। पर कह मजबूर िदया क मन म ऐसे ख़याल पनपने तो नह लगे थे ? माँ ने पापा क जाने क बाद िकतनी मुसीबत से पाला िदया को, यह वो ब समझती थी। बचपन म श िदया को िब कल अ छा नह लगता था, पर माँ क लाचारी थी। भागी–भागी सुबह ही िटिफ़न व लंच बना उसे श छोड़ना, िफर शाम को िदया को ले घर आ, घर क काम म जुट जाना। िदया यही सब देखते कल, कॉलेज और अब जॉब तक आ गई। अब कमाने लग गई थी तो वह भी माँ को जो मन म आता िग ट करती रहती थी। माँ क िसवाय उसका इस दुिनया म था ही कौन .... 000 अबीर का साथ उसे अ छा लगता था। माँ क वजह से उसक लाख कहने पर भी ऑिफ़स क बाद कह नह जाती, जो भी साथ रहता, वही मै ो म, टशन भी इतनी ज दी आ जाता। रात-िबरात अ सर सोते-जागते अबीर क साथ िबताए पल िफर–िफर जीती। उसक बेसबब पश का एहसास अबीर क ना होने पर भी िदया को धीर से सहला जाता। शायद वह दोन ही धीर–धीर एक दूसर क करीब आ रह थे। माँ को िदया िदन भर म घटा सब कछ हमेशा लंबे –चौड़ ांत क साथ बताती पर अबीर का िज़ उसक बान पर न आ पाया। आज अबीर ऑिफ़स नह प चा। फ़ोन भी उसका नह िमल रहा था और ऑिफ़स म कोई लीव ऍ लकश, न कोई ख़बर थी। सार िदन िदया को खाली–खाली सा लगता रहा। मन म बुर-बुर ख़याल आते जाते रह। वो छ ी माँग ज दी ही ऑिफ़स से िनकल पड़ी। और सामने से अबीर आता िदखा। िदया हरान, शी क साथ राहत क एहसास से भर उठी। यकायक उसक बाह ने अबीर को जकड़ िलया– चार तरफ़ लोग का ख़याल िकये बगैर।

'अर–र- र ... ' अबीर िदया क इस िति या क िलए शायद तैयार ना था। 'काम डाउन–काम डाउन िदया.. ' धीर से उसक दोन गाल को यार से थपथपाते िदया को धीरज िदलाया। 'बस अभी अंदर से एक िमनट म आया, यह रहना।’ िदया ने रयलाइज़ िकया िक कई लोग उनको घूर रह थे। वह एक िकनार आड़ म हो गई। 'तुम मुझे बता तो सकते थे िक आज नह आ रह, म िकतनी..' और िदया क आख ँ बरबस छलक आ । धीर से अबीर क कधे पर िसर िटका िदया। ऑिफ़स क पास ही एक छोटा सा पाक था, आज वे दोन वह बैठ गए थे। माँ का ख़याल िदया ने धीर से पर सरका िदया। अबीर ने बताया उसे दूसरी कपनी म यु िटव जॉब िमल गई ह, आज उसी सब का फ़ाइनल होना था–फ़ोन वच ऑफ था िदन भर। िदया क मुँह से एक श द न िनकला– आँसू उसक सारी यथा बयान करते लुढ़क पड़। 'ओहो, पास ही म तो ह नया ऑिफ़स, हम रोज़ िमलते रहगे िदया-, ॉिमस...गॉड' ॉिमस हसते ए िदया को बहलाने क नाकाम कोिशश म दोन कान पकड़ िलए'और अभी एक महीना नोिटस टाइम ह, वी िवल हव फ़न ...' 'मुझसे पीछा छड़ाना चाहते हो – ऊब 50 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

गए?' िदया ने अबीर को सीधे देखते पूछा। िति या म अबीर ने िदया को कस क आिलंगन म बाँध िलया। 'मुझे ज दी घर जाना ह– मा.ँ..' स मोहन का पल फ़ौरन ही िबखर गया। 'ओह मा.ँ..' अबीर क भाव से झुँझलाहट झलक रही थी। आँसू व उलाहने भरी पलक उठा िदया ने अबीर क ओर देखा। 'ओह सॉरी, तु ह हट करने क कोई मंशा नह थी, बस यूँ ही मुँह से िनकल गया...। ' अबीर ने सफ़ाई दी। अबीर असल म िदया क अपनी बीमार माँ क चौबीस घंट क ऑ सेशन से ऊब चुका था। वह कह िदया को ले भी जाना चाहता था तो माँ क वजह से कछ भी संभव न था। मै ो म करीबन दोन अपने – अपने मन क ऊहापोह म उलझे चुप ही थे। अबीर को अपने रा ते जाते देख िदया खड़ी रही – उसे लगा मान वह उससे दूर होता जा रहा ह। अबीर क खोती आकित जैसे िदया क िदल को कचोट सी रही थी। उसक पसनैिलटी म कछ खास आकषण नह था, ल बा, दुबला, कछ पेल सा। कभी जी स वगैरह नह पहनता, ढीली सी पट िजसे वह जब तब ऊपर िखसकाता रहता। िदया से उ म काफ़ बड़ा होने क बावजूद उसका सौ य सा चेहरा, उसक गहरी आँख िदया को अंदर तक िभगो जात । और सबसे अहम बात, अबीर क साथ िदया को एक फ िलंग ऑफ से यो रटी का एहसास होता, िदया उसक साथ िनःसंकोच हो लेती। 'मुझसे बात करो िदया ...' िदया को गुमसुम देख माँ धीर से बोली – 'अब तो मानाओ तु ह मुझसे मु िमले...।' 'अब तुम िफर शु हो ग । ठीक हो जाओगी। सनीचर इतवार को डॉ टर का अपॉइटमट लेती , ज़ र कोई दवा बदलगे – आराम िमलेगा।' 'कछ आराम नह िमलेगा – अब तो िकसी तरह ये ताम – झाम उठ जाए.. ' िदया कछ कहने को ई – देखा माँ सो चुक थ । 000


िदया और अबीर क पास एक महीना था – िदया ने तो अपने को अनपढ़ी िकताब क जैसे अबीर क सामने खोल कर रख िदया था। आज अबीर क रोज़ – रोज़ क िज़द क आगे हार उसक घर हो ली। घर या, एक कमरा था िवद अट ड बाथ म – वह रक पर छोटा – मोटा िकचन, एक पलंग, िब तर उ टा – पु टा िबखरा आ। अबीर को अचानक रयलाइज़ आ िक कहाँ िदया को इस कबाड़खाने म ले आया – शिमदगी सी ई। पर िदया थक सी ध प से िब तर पर अधलेटी सी बैठ गई। 'कछ लोगी ? आज चाय कॉफ़ नह चलेगी – लैट अस सैिल ेट ... ' और एक लास म कोई ि क – शायद ह क ही थी, ले आया। 'एक ही लास काफ़ ह न '- अबीर क आँख म शरारत झलक रही थी। 'नह नह , यह नह – मने कभी नह पी..' िदया घबरा सी गई। 'तो आज से शु आत कर दो, आज सैले ेशन क शाम ह, यूँ ही गुज़र जाने दो..।' िदया क लाख मना करने पर भी अबीर ने उसक होठ से लास लगा िदया। वो दोन कब चादर क िसलवट म खो गए, पता ही नह चला। अबीर क उ मु यार म िदया संपूणतः भीग चुक थी। उसक बाह म उसे असीम सुख क अनुभूित का एहसास आ। जैसे बरस से यासी थी िदया। कब आधा एक घंटा बीत गया, दोन को पता ही नह चला। आज माँ क ख़याल को िदया ने बीच म आने नह िदया। अचानक जैसे गहरी न द से जागी हो, कद कर कपड़, बाल ठीक कर घर भागने क छटपटाहट से िघरी अकले ही घर क िलए िनकल पड़ी। कल माँ को चैकअप क िलए ज़ र ले जाना ह – अपने अंदर क लािन को दबाते बुदबुदाई, 'आज माँ से कसे आँख िमला पाएगी..' िफर बीते पल याद कर शमाती सी मु करा दी। माँ क रपोट आ गई – िदया ने माँ से बात छपा ली। उनको ए स था। िदया का िदल बैठ गया। डॉ टर ने कहा िक इतने इजे श स लगे

ह, न चढ़ा ह, िकसी से भी इ फ शन हो सकता ह। सारी िज़ंदगी इतनी तकलीफ सहने क बाद यह बीमारी भी माँ को ही होनी थी। अबीर को बताया, उसने कछ ख़ास रयै ट नह िकया। 'अब तुम रोना न शु कर देना – होता ह, आज कल सब पॉिसबल ह, टक इट ईज़ी...' िदया अबीर क रलै ड रऐ शन से हरान थी। एक महीना कसे बीत गया पता ही नह चला। अबीर क साथ मान उसक सार स दूर हो जाते। अब तो िदया अबीर क संसग क िलए बेताब रहती। 'आज तु ह घर चल कर माँ से िमलना ही पड़गा।' िदया ने िज़द पकड़ ली। और रा ते अलग होते – होते ज़बरद ती उसे हाथ पकड़ अपने घर क ओर मोड़ िलया। 'अर तुम अबीर ...?' माँ अनायास भौच क सी रह गई। एक पल को अबीर भी हरान हो कभी िदया को तो कभी उसक माँ को देखता रह गया। 'कसी हो मृणािलनी ?' कछ सँभलते ए पूछ बैठा। 'तुम दोन एक दूसर को जानते हो..। ' जवाब सुनते ही िदया क बदन मान सु पड़ गया। 'ब त अ छी तरह स.े.., यह मृणािलनी ह, शहर क रईस म मश र सो कॉ ड कॉल गल। अभी तक अपनी सुंदरता क आड़ म उ को पीछ िखसकाए ए...। ' अबीर एक साँस म कहता चला गया। 'बड़ – बड़ लोग 51 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

इनक मेज़बान थे, म तो उनम से अदना सा एक था – अब यह नतीजा ह...।' माँ को इिगत करते कछ श द म सब कछ कह गया। माँ थक सी िब तर पर बैठी सब आरोप सुनती जा रही थी। 'सी यू िदया...।' अबीर पलटा और दरवाज़े क बाहर िनकल गया। 'म या करती, तु ह अ छी लाइफ़ देने क िलए, मुझे यह सब करना पड़ा-तु ह ल ज़री क आदत थी...।' 'ब त अ छी लाइफ़ दी तुमने मुझे मा.ँ.।' 'मा'ँ कहते भी उसे िघन सी आ रही थी, माँ से भी, खुद से भी। िदया ने कभी सोचने, समझने क कोिशश ही नह क , िक माँ इतना सब कहाँ से करती ह। िदया बेजान सी चुपचाप अपने कमर म बंद हो गई– उस रात न खाना बना, न दोन ने खाया, न माँ ने दवा ली। सबेर माँ क हालत ब त ख़राब थी, एकदम होश नह था। ए बुलस बुलानी पड़ी, कोिवड कस नह था, तो िदया को साथ बैठने िदया गया। लूकोस और ऑ सीजन से लैस माँ से मन ही मन पूछती रही–'तुमने ऐसा य िकया..? ' एडिमट करा घर आ गई। कछ ही घंट म हॉ पटल वाल ने खबर दी – माँ अचानक कोलै स कर गई ह। ट ट म वो कोिवड पॉिजिटव िनकल । घर ले जाने क इजाज़त नह ह। 'आप फ़ौरन आ जाए,ँ सारी फॉमिलटीज़ पूरी करनी ह, ि मेशन भी।' 'अकली , आप ही ि मेशन करवा द – म आ कर बाक सारी फॉमिलटीज़ पूरी कर देती ।’ आिख़री बार माँ का चेहरा भी नह देखा। िकतने अनकह सवाल – जवाब िलए वह चली गई। सब कछ िनबटा कर घर आते ही माँ क िब तर पर िगर पड़ी। िफर िघन से भर झटक से उठ बगल म आराम कस म अधलेटी सी छत क ओर शू य म ताकती चार ओर क चीखते स ाट म धस ँ गई...। 000


भाषांतर

यथाथ क र च

मलयालम कहानी लेिखका - कमला दास अनुवादक - अनािमका अनु

अनिमका अनु अनािमका िव ा, हाउस न बर 31,कावु लेन, ीनगर, व ाकाडावु ि व म, करल, िपन 695008 मोबाइल- 8075845170 ईमेल- anamikabiology248@gmail.com

माँ ने अकलेपन क कड़वे फल को अपने जीवन म थम बार तब खाया जब उसक शादीशुदा बेटी ने धीर-धीर उससे दू रयाँ बढ़ा ली। उसे लगा िक अकलापन िवषमु ी (कािहरा) का वह वृ ह िजसे उसने अपने जीवन म दूर तक इससे पूव इिगत नह िकया था। वह यह देखने म य त थी िक कसे उसक बेटी चली गई और उसक चेहर क आवभाव भी बदल गए। उसक पित उसी वष मृ यु को ा ए िजस वष उसक बेटी का ज म आ था। तब से वह जी तोड़ कोिशश कर रही ह िक वह माता-िपता दोन क दािय व का िनवहन संपूणता से कर सक। बेटी से अपने म यमवग य मूल को िछपाने क िलए वह दो त से पैसे उधार लेती ह तािक वह अपनी बेटी क िलए िस क क कपड़ खरीद सक, शहर क बेहतरीन िश क से अपनी बेटी को ूशन िदला सक और ज मिदन क िदन बाग क पेड़ पर रगीन ब ब जला सक। अंततः उसने अपनी बेटी का िववाह एक धनी और यवहारी लड़क से कर िदया। इन सब क बाबजूद िज़ंदगी उसे िकस ओर ले गई ? उसने अनिगनत बार पड़ोिसय से कहा ह िक इस िववाह से उसे दामाद क प म एक बेटा भी िमल गया ह। मगर वह दामाद शादी क बाद उससे औपचा रक बातचीत भी नह करता ह। उसने बेटी से पूछा भी था िक आिख़र या बात ह? िकतनी ज दी वह यारा सा लड़का िब कल अनजबी म त दील हो गया। या कछ दु लोग ने मेरी िनंदा क ह? ब त से पु ष ने उसे पाप से समोिहत करने क कोिशश क , पित क अनुप थित म उसका सौ दय उसक िलये बोझ बन चुका था। मगर वह िज़ंदा रही तो बस अपनी बेटी म भगवा और भगवती दोन क व प को देखकर, िबना िकसी क माया जाल म फसे। वह रात म लेटकर बेटी को बाँह म भर लेती और न द का इतज़ार करती तब उसने दुः व न म भी इस िदन क क पना नह क थी िक कोई भी िदन उसक बेटी और उसक संिचत ेम क िबना होगा। उसे पूण िव ास था िक वह मृ यु तक अपनी बेटी क साथ ही रहगी। शादी से पहले उसक बेटी को िकसी और लड़क से यार हो गया था। वह नौसेना म अिभयंता था। जब भी वह छ य म आता था तो उसक िलए और उसक बेटी क िलए िवदेशी कपड़, साधन और इ लाता था। कछ ग़लतफहिमय क कारण वह र ता टट गया। लेट कर 52 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


िब तर म मुँह िछपाकर वह ब त समय तक रोती रही, उसक बाद उठी और उससे बोली "म उसक बार म दोबारा कभी नह सोचूँगी।" िजस तरह से र ते म दरार आई, उसक िलए उसक बेटी ही िज़ मेदार थी। लेिकन इस बात क िलए उसने कभी अपनी बेटी को नह कोसा। कभी उसे फटकारने का भी नह सोचा। या वह लड़क जो अभी बीस साल क होने जा रही ह, उससे ैण सुलभ सौ यता क िमसाल होने क उ मीद करना उिचत होगा? या िकसी पु ष को यह अिधकार ह िक वह एक ी को िसफ इसिलए बदचलन कह दे; य िक वह िकसी पु ष क साथ एक आध बार िसनेमा देखने चली गई। या एक पु ष जो हर व त जहाज़ म काम करता ह उसको यह अिधकार ह िक वह िनरकश िज़द कर िक उसक प नी घर से बाहर न जाए। इसी तरह वह अपनी बेटी क हर हरकत क पीछ एक कारण ढढ़ती और उसक िह मत बढ़ाती। शायद इन सबक बदले ही, उसक बेटी उसे उन मौक पर गले लगा कर उसक कान म कहती थी-"मेरी माँ दुिनया क सबसे अ छी माँ ह।" उन ण म उसक पेट क गहर अंदर गव भरी मरोड़ उठती थी। वह उन दो त को दु मन क तरह देखती थी जो उसे उसक बेटी पर लगाम कसने को कहते थे। उन िदन उसे िसफ़ अपनी बेटी का यार चािहए होता था। दामाद क उसक ित उदासीनता का कारण कौन ह? जब उसने बेटी से पूछा तो उसने कध को उठाकर अपनी अनिभ ता ज़ािहर क । "कौन जाने म नह जानती।" वह बोली। उसक शारी रक आव- भाव और श द ने यह िदखा िदया िक वह माँ क वेदना को गंभीरता से नह लेती। जब वह अपनी बेटी क घर िबना सूचना क प ची तो नौकरानी िजसने दरवाज़ा खोला, वह पीली पड़ गई। "आप कपया यहाँ बैठ जाएँ। म ऊपर जाकर उनको बताती ।” " या म ऊपर नह जा सकती?" "िब कल नह , साहब को िकसी का ऊपर आना अ छा नह लगता। वे मुझे

डाँटगे।" नौकरानी ने कहा। "िफर म यहाँ बैठती , तुम जाओ दोन को बुला कर लाओ।” लगभग आधे घंट बाद लड़क उठकर नीचे आई और चेहरा धोया। "तुम इतनी सुबह य आ गई मा?ँ" उसने पूछा। माँ को लगा था िक उसको देखकर बेटी खुश होगी और हर बार क तरह उसक गाल को चूम लेगी। लेिकन उसने िकसी भी कार का ेम दशन नह िकया। "यह बदलाव कसे आया?" माँ ने पूछा। "बदलाव, कसा बदलाव?" बेटी ने पूछा। मेर आने से तुम खुश नह लग रही हो। म तु हार िलए जो कले और स ज़याँ लायी , वह कार म ह। नौकरानी को बोलो िक वह कार म से ले आए।" माँ बोली। "माँ अब से स ज़याँ मत लाना। इ ह अ छा नह लगता ह।" बेटी बोली। "तुम स जय का उपयोग नह करती?" माँ ने पूछा। बेटी चुप रही। "मने या िकया ह ब ा? तुम दोन मेर साथ ऐसा िन ुर यवहार य कर रह हो? या तुम िकसी क बनी बनाई कहािनय म आ गई हो?" माँ ने पूछा। बेटी उस ण भी मौन रही। माँ उ ट पाँव लौट आई, िबना चाय का इतज़ार िकये। उसे लगा िक उसक उप थित दामाद क िलए ही नह ब क उसक अपनी बेटी क िलए भी अ िचकर ह। उस िदन न उसने नहाया और न खाना बनाया। वह िससक-िससक कर रोती रही। अँधेर कमर म पीठ क बल लेट कर, वह अपनी बेटी क बचपन क एक-एक घटना को एक-एक करक याद करने लगी। उसने महसूस िकया िकया, उसक बेटी क बातचीत और यवहार क वे छोट-छोट अंश जो कल उसे खुशी देते थे, आज वही उसे दु:खी कर रह ह। वह मिहला िजसे कभी उसक बेटी ने "दुिनया क सबसे बेहतरीन मा"ँ कहा था। वह माँ आज "मेरा ब ा, मेरा ब ा" कह कर रो रही ह और िससिकयाँ भर रही ह। 53 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

बीतते समय क साथ माँ िनतांत अकली हो गई। उसक बाल सफ़द हो गए। नह सोने क कारण उसका र चाप बढ़ गया और उसक पड़ोसी अब उसे दया क से देखने लगे। " या तु हारी बेटी तु हार पास नह आती?" पड़ोसी पूछते। "हाँ वह आती ह। वे रात म आते ह। दोन िदन म य त होते ह।" माँ बोलती। और इस तरह माँ झूठ बोलने लगी। एक िदन वह बाथ म म बेहोश हो गई। वह सफाई करने वाली मिहला ही थी िजसने पड़ोिसय को बुलाया और उसे अ पताल म भत कराया। अ पताल म जब उसे होश आया तो उस मिहला ने उससे पूछा-"अ मा आप अपनी बेटी को देखना नह चाहती?" "उसे मत बताना।" माँ ने कहा। "जब म घर वापस लौट जाऊगी, तब उसे बताना, उसे बेवजह य घबराना?" स ज़ी वाला, सफाई करने वाली मिहला का पित, दूधवाला और धोबी, सब उसे देखने अ पताल आए। "तु हारी बेटी नह आई?" धोबी ने पूछा। "मने उसे कहा था। आज सबेर म वहाँ गया था और उ ह बताया था, तब साहब ने कहा था िक वे पैस क साथ अ पताल आएँगे।" स जी वाले ने कहा। "अब तो अँधेरा होने वाला ह।" धोबी बोला। "अब वे नह आएँगे।" सफाई करने वाली मिहला ने कहा। "िकस चुगलखोर ने माँ क बार म बेट (दामाद) से झूठ बोला होगा? पापी, अभी तो बेटी क शादी क दो साल भी नह ए ह, तभी तो वह माँ को जान भी नह पाया ह। यह िकतनी क हला गई ह।" स जी वाला बोला। "यह सब तु हारी बेटी का िकया-कराया ह।" सफाई करने वाली मिहला बोली। "वह शायद सोचती होगी िक उसक पुरानी करतूत माँ क मुँह से उसक पित को सुनने को नह िमल।" माँ उन श द को सुनकर त ध रह गई। पर उसे यथाथ क रच को सुनना पड़गा। 000


यं य

लोकापण

ीकांत आ ट

ीकांत आ ट, जी-1/81, गुलमोहर कालोनी, भोपाल, 462039 मोबाइल- 9179990388

िपछले माह मने िजतने दाह सं कार म भाग िलया उतने ही पु तक क िवमोचन काय म म भाग िलया। कछ बार तो यूँ भी आ िक शाम को म िकसी पु तक क िवमोचन काय म म होता और अगली सुबह िव ाम घाट म िकसी क दाह सं कार म। जब-जब ऐसा आ तब-तब मने पता लगाने का यास िकया िक मरने वाला कह कल शाम वाले िवमोचन काय म म तो नह था। मुझे शक होता िक मृतक कल शाम िवमोिचत पु तक पढ़कर ही मरा होगा। पो टमाटम कराया होता तो पो टमाटम रपोट भी यही होती। पर म जानता िक यह शक िनराधार ह। वरना, ब त-सा वो जो सािह य क नाम पर रचा जा रहा ह, वही काफ था आबादी क सम या से िनपटने क िलए। स ाह क अलग-अलग िदन म शहर क अलग-अलग मोह म िजतना िनयमपूवक सा ािहक हाट लगता ह, उतना ही िनयमपूवक शहर म पु तक िवमोचन काय म होते ह। िजधर नज़र उठाओ उधर ही िवमोचन हो रहा ह। एक राक खाली पेट, एक खुराक खाने क बाद और एक खुराक रात सोने से पहले, यह आलम िवमोचन का। च मा लगाए, बाल िबखेर, कधे पर झोला लटकाए कोई दूर से आता िदख जाए तो डर लगने लगता िक ज़ र िवमोचन का िनमं ण लेकर आ रहा होगा। हालात ऐसे िबगड़ िक अपने गुट वाला अपने गुट वाल क हाथ िपटने लगा। गुट वाले ह भाई इसका मतलब यह तो न आ िक िवमोचन म ही बैठ रह। घर-बार वाले भी ह। स ज़ी- भाजी, राशन- पानी भी लाना होता ह। हम तो आप माफ कर। हम न आ पाएँगे। "कमाल करते ह आप। अपने गुट क हो कर ऐसी बात कर रह ह। बताइए भला आप न आएँगे तो भला कौन आएगा।" "अबे तेरी तो... साला गुट गया भाड़ म।" बाज़ार म िवमोचन का िस का खोट िस क-सा िफरने लगा तो नया िस का उछाला गया, 54 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


'लोकापण'। यादा साथक और उिचत ह यह श द। "ह लोक ! यह कड़ा- करकट मने तेर िलए ही रचा था, सो तुझे ही अिपत करता । तेरा तुझको अपण या लागे मेरा।" िवमोचन हो या लोकापण उसक िलए एक अदद पु तक काफ ह। पु तक सािह यक हो यह आव यक नह । संतवाणी, से सवाणी, प रवार िनयोजन क उपाय, गु रोग का इलाज, स ा लगाने क गुर, िववाह यो य कमार- कमा रय क सूची, टलीफ़ोन डायर टरी कछ भी चलेगा पु तकाकार का म। जो अिधक ितभाशाली ह वे कलडर और डाय रय का भी लोकापण करवा लेते ह। हॉल, पंडाल, मेला, द तर, नु कड़, चौराहा, कशकतनालय, सुलभ शौचालय हर थान चलेगा। कह भी करवाइए। िजसक जैसी औक़ात। लेखक अगर अफ़सर हो तो वही करला और नीमचढ़ा वाली िमसाल। अ वल तो इतज़ाम अफ़सर को मु त िमल जाते ह और अगर मु त क जुगाड़ िक ह कारण से न हो सक तो ायोजक िकस िदन काम आएँगे। लेखक अगर चरुकट हो तो घर पर ही करवा लेगा पर करवाएगा ज़ र। लोकापण क िलए खासा टीमटाम जुटाना पड़ता ह। अपने पैस से पु तक तो छपवा ली। अब अपने ही पैस से उस पु तक को लपेटने क िलए खूबसूरत रगीन कागज़ या ज़रीदार कपड़ा, रगीन फ ता, पु तक रखने क िलए खूबसूरत थाली भी खरीदना होगी। अगर सार पैसे पु तक छपवाने म खच हो गए ह तो कोई बात नह । ये आइटम िकराये पर भी िमलते ह। बेहतर तो यही होगा िक आप एक बार खच करने क िह मत जुटाकर इ ह खरीद ल। इसक िलये बक से लोन क संभावना का पता कर। पैसा उधार देने क िलये बक उधार बैठ ह। अपना काय म िनपटाकर सामान को कागज, कपड़ा, फ ता िचंदी-िचंदी हो जाने तक िकराया वसूल। अभी का खच तो िनकल ही आएगा, अगली पु तक क छपाई और उनक लोकापण क जुगाड़ भी हो जाएगी। शहर म रिज टड लोकािप ट क कमी नह ह। रटायड भी ह और नौकरी शुदा भी।

हमेशा लोकापण करने वाली खास स लगाए घूमते रहते ह। लोकापण का कछ ठीक नह । या पता कब, कहाँ करना पड़ जाए। हाँ भाई, अवसर ह, कह भी उप थत हो सकता ह। कधे पर शॉल और पेट म भाषण लेकर ही चलते ह घर से। अ सर तो घर बैठ ही िमल जाते ह लोकापण करवाने वाले। कभी-कभी तो इतने िमल जाते ह िक एक को िनपटाया और चल पड़ दूसर को िनपटाने। कभी मामला उलटा भी पड़ जाता ह। स लाई अिधक िडमांड कम, किठन प र थित हो जाती ह। सुबह से पेट म भाषण िलए बैठ ह। दोपहर बीत गई। शाम हो गई। पर एक भी खुदा का बंदा नह आया जो कह िक सर, मेरी पु तक का लोकापण कर द। लानत ह इस शहर क आयोजक पर। ह या हो गया ह इस शहर को, इसक िफज़ा को। या सार लेखक साले मर गए। किठन प र थित म भी रिज टड लोकािप ट धीरज नह खोते। "उठो व स ! तु ह ही कछ करना होगा। वावलंबी बनना होगा। बन जाते ह वावलंबी। िनकल पड़ते ह तलाश म। च कर लगाते ह इस या उस हॉल क। मन म दोहराते ह, गीता का उपदेश, "तुम कम करो, फल क िचंता मत करो। उ मेन ही िस यंित कायािण, न मनोरथैः ही, निह सु य िसंह य वेशंित मुखे मृग:। िमल जाता ह मृग मुख म वेश करने क िलए। रिज टड लोकािप ट ह। सभी जानते ह िक काय म म घुस आए ह तो कछ न कछ 55 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

तो इनसे करवाना ही पड़गा। ऐसे नह मानगे ये। अ य महोदय नह आए ह। सो अ य ता करवा लेते ह। अर अ य जी हॉल म वेश कर रह ह, कोई बात नह मु य अितिथ बना लेते ह। वैसे भी पया देर हो चुक ह पर साला वह मु य अितिथ नह आया अभी तक। अगर मु य अितिथ और अ य दोन उप थत ह तो िविश अितिथ बना लो भैया। आ गए ह तो भीड़ म तो न बैठगे। जानते ही ह आप। भाई साहब हद करते ह आप, ठीक से देिखए िविश अितिथ भी आ गए ह। तो यार अित िविश अितिथ बना लो। कछ भी बना लो और िपंड छड़ाओ इनसे वरना िपंडदान तक कोसगे ये हम और आपको। इस तरह वे प च जाते ह मंच पर। िनगाह गड़ी रहती ह उनक रगीन कागज़ या कपड़ म िलपटी पु तक पर। लपलपाती रहती ह उनक उगिलयाँ पु तक पर बंधे फ ते को खोलने क िलए। फ ता खोलने का इतना अ यास हो चुका ह इनक उगिलय को िक घर म पाजाम का नाड़ा भी खोलते ह तो उसी अंदाज़ म। रिज टड लोकािप ट क अलावा पुिलस दरोगा, तहसीलदार, पटवारी, सरपंच, आपका बॉस और बीवी क बॉस क उगिलय का इ तेमाल भी आप उस रगीन फ ते को खुलवाने क िलए कर सकते ह। संिवधान या दंड संिहता क धारा म कावट नह बनती। एक साहब ने रल से अप- डाउन क सफ़र म जो रचा उसका लोकापण उ ह रल कड टर महोदय क कर कमल से करवाया िजनक बोगी म वह वष तक िबना नागा, िबना िटकट सफर करते रह। और एक साहब ने 'बला कार क तरीक' पु तक का िवमोचन उ ह थानेदार साहब से करवाया जो कछ िदन पूव यह पिव कम थाने म ही करने क कारण चिचत ए थे। अभी तक यह िवमोचन- कम- लोकापण का धंधा देशी सं था तक सीिमत ह। पर यिद इसम मुनाफ का चार कर िदया जाए तो ब रा ीय कपिनयाँ भी इस धंधे म उतर पड़गी। 000


सं मरण

हम भी कमीने तुम भी कमीने ज़ेबा अ वी

ज़ेबा अ वी बी-105, अफ़नान आकड, लॉक-15, गुिल ताने जौहर, कराँची, पािक तान -75290 ईमेल- zeba.alavi@gmail.com मोबाइल- +92-3350315438, +92-3007031421

यह बात काफ पुरानी ह, लेिकन कछ नई बात, नई अज़ीयते, नए ज़ म, कल िमलाकर यह उन इसानी रवैय क दासतान ह िजनम िसफ़ और िसफ़ ‘तक़सीम’ का दद ह। यह न काई अदबी शहपारह ह न उ कोिट क सािह य का कोई नमूना, न कोई दावा ह। बस यह हम जैसे इसान क कछ कमज़ो रयाँ ह िजन पर द हमारा बस नह - ‘‘हमने उनसे कहा िक इतने कठोर मत बनो मगर दोन तरफ़ से अनसुनी रही।’’ नफ़रत िक जड़ इतनी गहरी होती ह, तब और जब इनक िसंचाई भी दो तरफ़ा हो। हम आपको बीस साल पीछ िलये चलते ह। हमारी छोटी बहन शादी क कवल दो साल बाद ब ी क पैदाइश म मर जाती ह। बड़ भाई और छोटा भाई दोन पािक तानी ह। बड़ भाई लखनऊ आते ह और ग़म से बेहाल बचे-खुचे ख़ानदान, दो छोटी बहन और माँ को साथ ले जाना चाहते ह, मुसतिक़ल तौर पर। दोन बहन साथ चली जाती ह मगर हमारी माँ क पासपोट म िकसी ज़ री कायवाही क कारण अभी कछ िदन उ ह कना पड़ता ह। यह तय होता ह िक तमाम कायवाही क बाद अ मी को वीज़ा क िलए हम िद ी ले जाएँगे। ह ते दो ह ते क बाद हम अपनी पाँच महीने क ब ी को आपा क भरोसे छोड़ िद ी जाने क तैयारी कर रह थे िक फ़ोन क घंटी बजी। फ़ोन राम लाल जी का था। उ ह ने कहा तुम अकली अ मी को लेकर मत जाओ, म भी साथ चलता । वैसे तो रलवेज़ म होने क नाते िद ी उनक िलए कभी दूर नह थी लेिकन राम लाल जी हमार ग़म म अपन क तरह दुखी थे। राम लाल जी से सािह यक संबंध क अलावा एक घरलू संबंध भी था। हमार लगभग सभी दो त, िमलने-जुलने वाले हमारी माँ क यवहार और उनक बात से ब त भािवत थे। राम लाल जी अ मी क ब त इ ज़त और क़ करते थे। िद ी म उ ह ने हम लोग क ब त कहने पर भी िकसी होटल या र तेदार क यहाँ नह ठहरने िदया और अपने उस घर म ठहराया जहाँ अब उनक छोट भाई रहते थे। कभी राम लाल जी ने हम बताया था िक यह घर उ ह ेम म िमला था। जवान बेटी क ग़म म िनढाल न अ मी क आँख म न द, न हमारी। बस आँख ही आँख म सवाल-व-जवाब थे। ितमंिज़ला मकान, लकड़ी क नक़शी दरवाज़े, दर, दालान, ताक, मेहराब, झरोखे, िखड़िकयाँ, रौशनदान, चह चीख़-चीख़ कर बता रह थ िक- ‘‘यह मक (घर म रहने वाले) 56 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


हमार नह ह। यहाँ तो कोई और थे।’’ िकसी बु ग ख़ातून क जाए नमाज़ क चौक रही होगी यहाँ पर। इन ताक म रहल रखी जाती रही ह गी। ब े अपने अपने क़ाएदे थामे, सर पर छोटी-छोटी टोिपयाँ धर म जद क मौलवी साहब से पढ़ कर आते ही अपनी माँ क गले म झूल जाते ह गे शी से। एक िमिडल मुसलमान घराने क छाप वहाँ क दर-वदीवार से टपक रही थी। दा तो उस व त भी वहाँ मौजूद था उन तुग़र क जगह। फ़क़ िसफ़ था तो राम और रहीम का। िदल क स ाट इस घर म पूरी तरह घर कर गए थे। अगर कछ था तो बस- ‘‘कोई आवाज़ आती रही रात भर...’’ सुबह राम लाल जी हम लोग को लेकर पािकसतानी दूतावास प चते ह। यह सच था िक सब हम अकले नह कर सकते थे। एक ज़ रया उ ह ने िनकाल िलया था िजससे हम ‘‘ यू’’ म नह लगना पड़ा। राम लाल जी का ज बा, उनक आँख क चमक, पािक तानी ए बेसी क ओर बढ़ते उनक क़दम एक कॉ फ़डस क साथ, यह बात िसफ़ वही लोग महसूस कर सकते ह जो उनक क़रीब ह । हमारा यह पहला मौक़ा था वहाँ जाने का। न रा त का पता, न यह मालूम कहाँ िकसक पास जाना ह। ऐसे म उनका साथ हम लोग क िलए िकसी नेमत से कम नह था। अ मी को सहारा देकर वह वीज़ा आिफ़सर क कमर म दािख़ल होते ह। सामने एक कर त (ककश) चेहरा िलए अफ़सर बैठा ह। सवाल- य जाना चाहती ह? यह आपक कौन ह? हमारी और इशारा। नाम? िफर राम लाल जी से सवाल- आप इनक कौन ह ? इन बेट का दो त। नाम- राम लाल। आप यूँ आए ह? या आप न आते तो इनको वीज़ा न िमलता? जाइए बाहर बैिठए। िनगाह ऐसी िज़ त भरी िक तौबा। उसक सुख़ सफ़द शोला फ़रोज़ाँ, बूलहबी चेहर पर सुरख़ी कछ और फल गई। काटो तो न नह मुहावर का िज म पर या असर होता ह यह उस ल ह जाना। राम लाल जी िसर झुकाए, भारी क़दम से (शायद आँख म नमी भी हो) बाहर िनकल

जाते ह। एक कर त आवाज़ िफर गूँजी‘‘जाइये बाहर मोहर लगवा लीिजये।’’ हम और अ मी एक दूसर को देखते ह। कसे नज़र िमलाएँगे राम लाल जी से? मआज़रत वाहानी (माफ़ माँगने वाली) नज़र से देखते ह उनक तरफ़। उनका ज़फ़ िक वह इस बात को ख़ामोशी से पी गए। उनक चेहर पर मु कराहट थी। ‘ज़बान’ रग लाई। गेट पर िजस गाड क ूटी थी, कछ ज़बान से और कछ आँख क ज़बान से बात ई होगी। हम लोग क िकसी बात को सुने बग़ैर वह कहने लगे- चलो अ मी को पानीवानी िपलाते ह। वह हम ए बेसी क एक ख़ास कमर म ले गए जो िक एक र शमट म था। दूसर कमर म जहाँ दो नौजवान झल-झल करते सफ़द शलवार सूट, काली वासकट, शादाब चेहर िलये हमार मुंतिज़र थे। िचलिललाती जून क गम और धूप से परशान हम लोग, सुख़-सुख़ तरबूज़ क फाँक ने उस कर त सुख़ चेहर क कर तगी को ठडक म बदल िदया। गेट पर राम लाल जी क िजस गाड से बातचीत ई थी उसका और उन दो नौजवान का संबंध पािक तान क साउथ इलाक़ िमयाँ वाली से था। िम ी क शबू िम ी तक प ची। वह लोग इतनी मोह बत से िमले िक बयान से बाहर। वहाँ संबंध था तो िसफ़ ‘‘ज़मीन’’ का था। हमार कछ आँसू पुँछ। रामलाल जी शायद सब कछ भूल कर उस थोड़ से व त म उन नौजवान से अपनी याद 57 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

शेयर करने लगे। पासपोट पर ठ पा भी फ़ौरन लग गया। वह राम लाल जी जो तक़सीम क बाद पहली मतबा पािक तान आते ह, लखनऊ म बनवाए जाने वाले अपने घर ‘शांित िनकतन’ क िलए िमयाँ वाली क िम ी उसक बुिनयाद म डालने क िलए अपने साथ ले जाते ह, उनक साथ ऐसा सुलूक? उस ज़माने म पािक तानी दूतावास म जो टाफ़ था उसक काफ़ िशकायत थी। ख़ास तौर से वीज़ा क इन हज़रत क , जो वीज़ा अफ़सर (शनवारी पठान) थे। सुना था एक बार उ ह ने एक बूढ़ी मिहला क पाँच उगिलयाँ ज़ मी कर दी थ । वह मिहला अभी बाहर डरी सहमी (शायद इनक यवहार पर) िनकल ही रही थी िक जनाब ने तैश म आकर दरवाज़ा इतनी ज़ोर से ब द िकया िक उसक उगिलयाँ आ गई थ । जो भी हो ऐसी ब त सी नफ़रत क बात कही-सुनी जाती रह । पासपोट का हािसल करना िह दु तान म थोड़ा दु ार था। यह बात 1982 क ह। (अब या सूरत-ए-हाल ह नह मालूम) लखनऊ क एक पॉश इलाक़ म पासपोट ऑिफ़स था। लाइन म तो लगना ही पड़ता था। उस ज़माने म हमार पैर क र का दूसरा आपरशन आ था ओर एक बैसाखी क सहार हम चलिफर सकते थे। लाइन म जो ध कम-पेल होती ह वह हम दोन देश क तहज़ीब, तमीज़ ओर क चर का िह सा ह। एक बाबू को कछ हम पर दया आई और उसने अपने से बड़ यानी बड़ बाबू क कमर क लॉबी म हम िबठा िदया। यहाँ से सीधे दािख़ल होने पर अब वह बड़ बाबू कायवाही मुक मल होने पर हम पासपोट देते। बड़ बाबू को अपने तबे और शान का कछ अिधक ही मान था। बाहर का शोर-वगुल क उनक तबीयत पर भारी था जबिक यह बाहर क बेचैनी भी उ ह क पैदा क ई थी। अगर वह अपने फ़ज़ को ठीक तरह से िनभाते तो यह नह होती। मगर उनक पास बैठ (उ ह क अनुसार) लगवे-भगवे उनक तफ़रीह का सामान ऊटपटाँग बात, क़हक़ह, चाय पानी, पान-त बाक, पच पच थूकने,


दाँत क बार-बार खुदाई जैसे काम म भी उनका साथ दे रह थे। बड़ बाबू िबलकल गंजे तो नह थे। बाल क थोड़ी-थोड़ी झालर से पंखा अठखेिलयाँ कर रहा था। अपने बड़ बाबू होने का एहसास िदलाने क िलए वह अपने छोट बाबु को डाँटने डपटने क िलए कभी-कभी बाहर भी िनकल आते थे। अचानक उनक नज़र हम पर पड़ी-‘‘इनका िहयां काह िबठाए हौ?’’ छोट बाबू बोले- ‘‘अर ई बिहन जी िबकलांग ह। ’’ ‘‘तो का मतलब ह? समैन अंधे, लूले, लंगड़न का िहयैन भर लेहौ का, िबठालो इनका बाहर?’’ हम अफ़सोस नह आ। हम बुरा भी नह लगा। हम लगा राम लाल जी क साथ होने वाले यवहार का बदला आज ले िलया गया। 1981 म हम अपने एक साल क बेट और तीन साल क बेटी को लेकर पािक तान आते ह। आए थे जहाज़ से। वापसी पर चूँिक बड़ भाई और भाभी भी साथ आ रह थे, इसिलए िक दो ब को सँभालना हमार िलए ब त मुशिकल था; यह तय आ िक न से जाएँगे, यूँिक इतने लोग का जहाज़ का िकराया हम अफ़ोड नह कर सकते थे। सबसे बड़ा मसअला ट चज करने का था। इसक िलए िमिन ी आफ़ फ़ॉरन एफ़यज़ से स पक करना ज़ री था, और इ लामाबाद जाना पड़ता। छोट भाई ने ब त दौड़ धूप क तो यह यानी कराची से ट चज होने क कछ आशा ई। रमज़ान शरीफ़ का पावन महीना था। पहले तो एक दाढ़ी वाले मौलाना ने इस को िसर से असंभव कहा। छोटा भाई िचरौ रयाँ करता रहा अगर वह राज़ी नह ए। काफ़ िगड़िगड़ाने क बाद शायद वह कछ िपघले और पूछा-‘‘तेरा रोज़ा ह?’’ भाई ने ‘न’ म जवाब िदया। उस अफ़सर ने िहक़ारत से थूका- ‘‘चल, जवान-जहान होकर रोज़ा भी नह रखता।’’ िफर दूसर िदन आने को कहा। दूसर िदन भाई प चा तो मौलाना ने सीिढ़य क ओर इशारा िकया िक वहाँ से वह पासपोट कले ट कर ले। वहाँ तीन-चार रोज़ेदार क

मौजूद थे िजनसे आँख -आँख म या पहले ही फ़ोन पर बात हो चुक होगी। उ ह ने कोई ‘‘ र त’’ नह ली बस रोज़ा खोलने क िलए कछ ले िलया। इस िसलिसले का अभी कछ साल पहले का एक िदन याद आ गया। हम और हमार भाई बस से िद ी से लाहौर प चे, लाहौर से कराची न का सफ़र था। न लेट पर लेट होती गई जैसा िक यहाँ रलवे का चलन ह। हमारा सेलफ़ोन भी दम तोड़ चुका था। बराबर क कपे म दो नौजवान कराची म घर वाल से बात करा देते थे। उनक बराबर ही एक बावद पुिलस का जवान भी बैठा था जो मुसतिक़ल उन लड़क से हसी-मज़ाक कर रहा था। वह हमसे मुख़ाितब आ- और अ माँ इिडया म कहाँ-कहाँ ग ? िकतने िदन रह आिद। िफर एकदम वह उन लड़क से बोला-‘‘एक बात ह, हम पुिलस वाले यहाँ क हो या वहाँ क, एक ही तरह क ह (वह अपनी एक समान बात पर रौशनी डालने लगा) बस एक अंतर ह, वह सौ पचास म ही श हो जाते ह और हम हज़ार-पान-सौ से कम नह लेते....। ’’ 1994 काफ़ बदले ब क ब त कछ बदले ए िह दु तान जाने का मौक़ा िमलता ह। बाबरी म जद क घटना घट चुक थी। जैसा िक हम पहले ही कह चुक ह, नफ़रत दोन तरफ़ से अपनी चरम सीमा पर थ । पहले िद ी प चे। वहाँ एक स ाह क कर लखनऊ आए। अब दोबारा िजस शादी क िलए आए थे वह िद ी म थी, इसिलए जाना 58 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

था। पुिलस लाएजन ऑिफ़स से िडपाचर लेना था। ऑिफ़स लखनऊ क बेहतरीन इलाक़ जवाहर भवन नाम क िब डग म ह। (इस क़दर बसूरत इमारत, जो हमारी आँख क सामने बनी अब उसक बुरी हालत कर दी थी। हर कोना पान क पीक से ए ट आट का नमूना पेश कर रहा था। ) वहाँ क माहौल म भी बड़ा तनाव था। अपनी नफ़रत को अपनी मस िफ़यत म ढाँपता आ टाफ़। कछ देर बाद पासपोट और पेपज़ देख कर एक साहब बोले- ‘‘अभी तो आप िद ी रह कर आई ह? िफर जाना ह या?’’ बताया िक वहाँ क शादी का वीज़ा ह। लखनऊ और बाराबंक म भी र तेदार ह। एक तरफ़ से आवाज़ आई-‘‘ई साला बजपे या जब से फोरन िमिन टर आ ह(एक और मोटी गाली) धड़ा धड़ बीजा खोल िदिहस ह।’’ लगता था िक वह लोग भरपूर तरीक़ से तैयार बैठ ह िक कोई न कोई ऐसी बात कह िजसम उनक नफ़रत का इज़हार हो। सामने बैठी ई एक टाफ़ क मिहला हमारी बेटी को मु तिक़ल घूर रही थी और बीच-बीच कछ टपु क भी बोल देती थी। स त सद म िसकड़ी, शाल से बार-बार हाथ िनकालती ई, मैली-चीकट फ़ाइल म उलझने से यादा साथ काम करने वाले लोग से ए सचज आफ़ थॉ स पर यादा थी। सुख़ कपड़ , दमकते चेहर क साथ वह हसती िखलािखलाती तेरह चौदह साल क लड़क होश म पहला बार आई थी ‘‘क़सूर’’ शायद उसका यही था। अपनी उ सुकता को िछपा नह पा रही थी। जोश-वलवला टपका पड़ रहा था। एक तो सबसे बड़ी ासदी यह ह िक पािक तानी ब े िह दु तान को अिमताभ ब न, शाह ख़ ख़ान, सलमान ख़ान, माधुरी दीि त फ़लाने-ढमाक से आगे जानने क कोिशश ही नह करते। ब क यह कहना ग़लत न होगा िक उनक शजर-ए-नसब (वह पु तका िजसम पीढ़ी दर पीढ़ी का योरा हो) तक मालूमात म इ ह िदलच पी होती ह। उ ह ने वह िह दु तान न देखा ह, न सुना ह, िजसम हमारी न ल पली-बढ़ी ह। सूर


इनका नह ह, इनक परवा रश का ह। अब हम इन बात पर रोएँ या गाएँ। द हमारी बेटी का अिमताभ से मोह बत का यह हाल ह (और था), इसिलए िक चार साल क वह ब ी सुबह उठते ही, आँख मलती सबसे पहला सवाल यह करती िक‘‘अ माँ अिमताभ कशा ह, पेपल देखा टी.वी. देखा आपने?’’ (यह उस समय क बात ह जब हम िह दु तानी थे) यहाँ हम उदू बोलने वाल का प रचय दो तरह से िदया जाता ह- िह दु तानी, िबहारी आिद। बहस ल बी हो जाएगी अगर हम यह बताएँ िक कहाँ हम लोग को ‘‘भाकड़’’, कहाँ भ यो और कह दूसर हा या पद नाम से पुकारा जाता ह। हम यह कहने म ज़रा भी बाक नह ह िक अ ल रबानी हमने दी ह या िफर उन िह दु ने िजनको यहाँ से ब त कछ रबान करक जाना पड़ा। यहाँ पंजािबय , िसंिधय , और दूसरी क़ौम ने िदल से हम ए से ट नह िकया। बात कहाँ से कहाँ चली गई। पल-पल क रपोट आ रही थी िक अिमत जी अब कसे ह, जब शूिटग क दौरान उ ह चोट आई थी। आज भी जब वह सात आठ साल क ब े क माँ ह कोई झूठ मुँह भी कह दे िक तुम ब बई आओ (मु बई न हम बोल सकते ह न िलख सकते ह) तो तु ह अिमताभ से िमलाएँगे तो खुश हो जाती ह। कहते ह सदी क बेतहरीन ए टर का अवाड जनाब को िमला। वहाँ से एक आवाज़ आई थी िक - िमलना िदलीप कमार को चािहए था िक उस व त िफ़ म म होने क बावजूद, काली सफ़द िफ़ म म अपनी अदाकारी का वह िस का जमाया जो आज भी िदल पर राज कर रहा ह। मगर वह बेचारा मुसलमान जो ठहरा। हमार एक दो त का ख़याल ह िक िफ़ म म गंदी गािलय , नेगेिटव कर टज़ का िसलािसला भी इ ह क देन ह। यादा क़सूर हमारी परवा रश का ह। एक िदन हमारी बेटी आकिमिडज़ क तरह यू रका...यू रका... क सदा गाती ई आ , कहने लग -‘‘अर अ मा, यह वही ‘काकोरी’ जहाँ क आप लोग रहने

वाले ह?’’ हमने पूछा यूँ? तो कहने लग िक आिमर ख़ान कहता ह- ‘‘काकोरी जाएँगे... वहाँ क कबाब खाएँगे...’’ उसक कहने पर िफ़ म ‘रग दे बसंती’ देखी। उसे या बताते िक बचपन म हमारी माँ ने इन हीरोज़ से हम अवगत कराया था। ‘काकोरी कांड’ (िजसको अँ ेज़ ने डकती का नाम िदया। भगत िसंह, अशफ़ाक़ उ ाह ख़ान, राम साद ‘िब मल’... सरफ़रोशी क तम ा अब हमार िदल म ह देखना ह ज़ोर िकतना बा -ए-क़ाितल म ह... ये थे असल हीरोज़ िजनक बार म पढ़ाया गया, बताया गया। अब चूँिक यह बात अिमर ख़ान ने कही ह इस िलए तु ह उसक मह व का अंदाज़ा हो रहा ह। बहरहाल, बात कहाँ से कहाँ िनकला आई। बारहबंक म वह तमाम लोग याद आए िजनसे हम बेपनाह मोह बत थी और वे भी हमसे मोह बत करते थे। एक-एक का हाल पूछते ह। बड़ी बहन से गु ाइन (िमिसज़ गु ा) क बार म पूछते ह- कसी ह कहाँ ह? (िह दु तान क बाज़ क़ ब म आज भी शोहर क नाम या पेशे से औरत क पहचान ह जैसे िक-पेशकार क बीवी पेशकारन, िड टी क बीवी िड टयान, वक ल क बीवी वकलाइन आिद) बाजी ने बताया अब वह नह िमलती ह (यानी बाबरी म जद घटना क बाद)। पड़ोस म रहने वाली िमिसज़ गु ा का बेटा इस घर 59 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

क ‘बड़’ क कबाब खाए बग़ैर रह नह सकता था। अब वह सब ‘‘काय सेवक’’ ह। वही पड़ोसन रात म थाली बजाती और मुसलमान क िख़लाफ़ नार लगाती- ‘‘पािक तान जाओ नह तो क़ि तान’’। वह पड़ोसन जो हमारी भांजी क शादी म ढोल पर लहक-लहक कर गाती थी- ‘‘मदीने से ठडी हवा आ रही ह...’’ बारहबंक क िजस कल म हम पढ़ा चुक थे जहाँ सब साथ बैठ कर खाना खाते थे, हम तीन मुसलमान टीचज़ उनक िलहाज म कभी गो त क कोई िडश नह ले जाते थे िक उनम से अिधकांश को परहज़ था। जबिक वहाँ क हड िम स गो त क ब त शौक़ न थ , वह काए थ थ । उ ह घर ले जाने क िलए हम लोग कभी कबाब कभी कछ पका कर ले जाते थे। वैसे काए य को सुना ह क र िह दू आधे मुसलमान कहते ह। एक तो गो त खाने क कारण (जो िक सही नह ) दूसर जब दीवाली क मौक़ पर आम तौर पर लोग ल मी क पूजा करते ह तो ये क़लम या सर वती क पूजा करते ह। (हम भी करआन का पहला म ह, ‘पढ़ो’ यानी ‘इक़रा’ इ म हािसल करना औरत मद दोन पर फ़ज़ ह। 1981 म िनजी मजबूरी क कारण, लखनऊ, लालबाग क एक विकग हो टल म रहना पड़ा वह टी.वी. पर (एडिमिन शन म) काम करने वाली एक लड़क भी रहती थी (नाम इस व त याद नह आ रहा ह- नजमासलमा, िनगहत जो भी हो, हम उसका नाम िनगहत रख लेते ह) िनगहत हम आपा कहती थी। साँवली थी मगर नैन-न श बेहद सुंदर बड़ी-बड़ी आँख, घने-काले बाल चेहर पर बला क ‘भलाहत’। वहाँ क माहौल से वह भी तंग थी। हमारी म मेट एक वृ मिहला िमिसज़ बोस थी। वह भी िकसी मुसलमान लड़क क साथ अनक फ़टबेल महसूस करती थ । हम उनक मजबूरी थे िक उस समय कोई कमरा ख़ाली नह था। िनगहत क म मेट को भी हमने कहते सुना था िक‘‘आई कांट टड िवद मु लम’’। उसने म भी चज कर िलया था। हालाँिक सार कमर भर ए थे मगर उसे अपनी ही जैसी सोच रखने वाली ने एडज ट कर िलया था।


एक िदन बैठ-बैठ हमने और िनगहत ने तय िकया यूँ न हम लोग दो कमर का एक लैट रट पर ले ल, ख़च उतना ही आएगा। उस समय इ ा नगर नया-नया बसा था और यहाँ आसानी से मुनािसब िकराये पर लैट िमल सकता था। िकसी ने बताया िक फ़लाँ मकान का एक पोशन ख़ाली ह। पता लेकर गए। वहाँ प चे तो एक साहब बाहर िनकले, देखने म भले मानस लग रह थे। अंदर ले गए, पोशन देखा। नाम-पता वग़ैरह सब पूछते रह। थोड़ा-थोड़ा सब कछ तय होता नज़र आ रहा था िक अचानक उ ह ने सवाल दागा िक‘‘ या आप टी.वी. पर काम करती ह?’’ हमने बताया िक हम एक सरकारी द तर म काम करते ह। िफर उ ह ने कहा परस शाम हमने आपको टी.वी. पर देखा था। हमने उ ह बताया िक एक काय म उदू शाएरी का ‘अवध पंच’ नाम से आता ह उसम भाग िलया था। िबना िकसी िहचिकचाहट क वह एक दम खड़ हो गए-‘‘देिखए हम टी.वी. पर काम करने वाली औरत को घर नह देते।’’ वह हज़रत ‘मुसलमान’थे। (लौट क बु ू घर को आए) िनगहत को जो घटा वह बताया। वह कहने लगी आपा परशान न हो, कल संड ह हम लोग साथ िनकलगे। मेरी एक दो त ने यह पता िदया ह। इतवार को हम लोग प चते ह। वह साहब (शमा जी, गु ा जी, वमा जी जो भी रह ह , नाम याद नह आ रहा ह) रफ़रस पर अ छी तरह िबठाते ह। सारी ट ज़ ए ड कडीशंज़ तय हो जाती ह- िकराया व त पर देना होगा, प रवार छोटा होना चािहए आिद। वह चािबय का गु छा िनगहत को थमा देते ह। अभी हम लोग चािबयाँ लेकर उठने ही को थे िक वह महाशय अंदर कमर से हाँफतेकाँपते आते ह और चािबय का गु छा लगभग झपटते ए छीन लेते ह। हम लोग हरान परशान िक आिख़र आ या ह? ‘‘जाइये, जाइये, हम िकसी मुसलमान को घर नह देते।’’ उनक सपाट चेहर पर कोई शम, कोई शिमदगी नह थी। चूँिक पहनावे से अदांज़ा नह होता। िह दू, मुसलमान सभी मिहलाएँ साड़ी बाँधती ह (अंदर जाकर शायद वह िदये

गए रफ़रस से पता करते ह।) िजसने पता िदया था वह भी िह दू ही थी। मगर या िकया जा सकता ह इस सोच पर। हम लोग अपने ‘मुसलमान’ होने पर शिमदा, शिमदा (हालाँिक ऐसा िबलकल नह था) लौट आते ह। बहरहाल कोिशश जारी रही। हम लोग इ ा नगर म ही जहाँ िकसी ने बताया था जा रह थे। थोड़ा झुटपुटा हो चुका था। हम लोग से थोड़ा आगे एक मिहला सफ़द, पतले नारगी बॉडर क साड़ी बाँधे थोड़ा तेज़ चल रही थ । वह मिहला उसी लैट क आगे क कर गेट खोल रही थ जो िकराए क िलए ख़ाली था। जबिक उस पर ‘टलेट’ क कोई तख़ती नह लगी थी। िकसी क बताए ए पते पर ही हम लोग प चे थे। मिहला क चेहर पर मु कराहट थी। वह बोल हम प चने म कछ देर हो गई ह। घर िदखाने लग । छोट से लॉन म बड़ीबड़ी घास और झािड़याँ उगी ई थ । ला टर भी जगह-जगह से उखड़ा। बताने लग अभी थोड़ा ठीक कराना ह। असल बात यह ह िक दो साल से ख़ाली पड़ा ह। आप लोग देख लीिजए। हम लोग ने नाम क साथ अपना प रचय िदया। बात यह ह िक बड़ा बेटा शहर से बाहर ह। काफ़ समय से हम अपनी परशानी म रह, इस ओर यान ही नह िदया। छोट बेट को साँप ने डस िलया वह चल बसा। इसीिलए घर बुरी हालत म पड़ा ह। िफर अचानक वह बोल -‘‘शायद आप लोग ने हम पहचाना नह म िमिसज़ गौतम । 60 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

डॉ.गौतम क प नी।’’ हम एकदम स से रह गए। िनगहत उस व त दूसर शहर म रही होगी। उस समय उसक उमर भी इतनी न रही होगी और न उस समय मीिडया इतना जाग क था। मगर हम लखनऊ वाले उस घटना, घटना या दुघटना को कसे भूल सकते ह? यह बात लगभग 1964 या 65 क ह। ऐसा सनसनी फलाने वाला वाक़या कम से कम हमने अपनी उमर म न देखा न सुना। डा.गौतम बलरामपुर अ पताल का बेहद हडसम, हसमुख िकसी िडपाटमे ट का इचाज, शादी शुदा, दो ब का बाप था। रहमानी साहब एक िमिडल ास से संबंध रखने वाले बु ग नमाज़ी, परहज़गार। बेटी शमीम रहमानी मेिडकल म दािख़ले क तैयारी कर रही थी। इसी िसलिसले म डा.गौतम से मुलाक़ात ई थी शायद। िफर यह मुलाक़ात इ क-व-मोह बत म बदल ग । ब त सी कहािनयाँ ज म लेती ह। शमीम रहमानी कोई बला क हसीना तो नह थी मगर उसक सरापे म उसक घने काले, ब त ल बे बाल थे। (शायद इ ही काली ल बी घनी नागन जैसी फ़ का क़दी आ होगा बेचारा डॉ. गौतम) बहरहाल इनक ेम कथाएँ, जो िक बाद म मंज़र-ए-आम पर आ । दोन एक दूसर से िमलते, एक दूसर क घर जाते रह। एक िदन पूरा लखनऊ इस सनसनीख़ेज़ ख़बर से गूँज उठा। हॉकज़ हाथ म अख़बार िलए- आज क ताज़ा ख़बर... आज क ताज़ा ख़बर देने लगे-डॉ.गौतम का क़ ल हो गया। एक मुसलमान लड़क ने एक िह दू औरत क माँग का िसंदूर छीन िलया। दो मासूम अनाथ हो गए। िफर तो हर सुबह एक नई कहानी। तरह-तरह क ख़बर। शमीम रहमानी िगर तार हो गई। िकसी औरत का सुहाग उजड़ गया था एक लड़क क वजह से। बूढ़ बाप का सर शम से झुक गया यूबरी रोड पर, नानपारा हाउस क पास रहने वाला यह प रवार हर-हर तरह से टारगेट बना रहा। बूढ़ बाप ने घर क बाहर कस डाल कर बैठना छोड़ िदया। यूज़ पेपज़ िमच मसाला लगा कर तरह-तरह क ख़बर छापते।


शमीम रहमानी का कस काफ़ उलझ गया था। क़ ल शमीम ने िकया या ग़ैरतमंद भाई ने। चूँिक क़ ल शमीम रहमानी क घर पर आ था। और शायद भाई को बचाने क िलए न को दूसरा रग िदया जा रहा था, तो यह क़ ल उसने अपने िसर ले िलया। कस क पैरवी लखनऊ क जाने माने एडवोकट स यद हसनैन नक़वी कर रह थे। बहरहाल िजस िदन पेशी होती कचहरी रोड से लेकर दूर-दूर तक लोग क भीड़ होती। नई-नई ख़बर और कहािनय म लोग यह भूल जाते िक कह कोई घर उजड़ा ह और कह िकसी शरीफ़ ख़ानदान क इ ज़त का जनाज़ा िनकला ह। दूसरी और ल बी काली फ़ मुसलमान लड़िकय क िलए अज़ाब बन ग । हमार प रवार म हमारी सारी का किज़ंज़ क पहचान इसी तरह क बसूरत बाल से थी। अलावा सु दरता क। उसी ज़माने म हमार मामा क बेटी जो न कवल सु दर थी ब क आँख और बाल ऐसे िक लोग देखते रह जाएँ। वह िकसी मामूली बीमारी क कारण बलरामपूर अ पताल म दािख़ल थ । हम लोग रोज़ नह तो दूसर िदन उ ह देखने जाते। एक शाम वह ब त उदास थ । बताने लग अभी थोड़ी देर पहले मेिडक़ल टड स लड़क-लड़िकय क पूरी टीम यहाँ थी। जाते-जाते एक दूसर को ठलते, ठहाक लगाते कह रह थे िक देखो अब कौन हम म से डॉ.गौतम होता ह। बहरहाल िजसक पित को नागन फ़ ने डसा और िजसका बेटा साँप क डसने से न रहा, वह औरत अगर मुसलमान से घृणा कर तो सही ह। मगर वह तो इतनी नरमाई से िमली िक हम लोग क समझ म नह आरहा था िक उसक साथ िकस तरह से हमदद का इज़हार कर। हम लोग को ज दी थी इसिलए कोई दूसरा लैट िमल गया (िकसी िह दू का)। कभी-कभी अनजाने म ही िकसी को चोट प च जाती ह। लखनऊ क एक पॉश इलाक म यू.पी. क पठान क इलाक़ का एक प रवार, आला अफ़सर, घर म नौकर-चाकर िह दू भी मुसलमान भी। तीन बेिटय क िपता। छोटी बेटी क उ पाँच या छह साल। घर का वातावरण भी नामल सार दो त िह दू भी

मुसलमान भी। सबसे िमलना, जुलना, आनाजाना। ब ी क माँ ने बताया उनक पित क ब त क़रीबी दो त बि य से बेहद यार करने वाले, ख़ास तौर से छोटी से। ब यारी- यारी बात करती गले म बाह डाले‘‘अंकल आप ब त अ छ ह... आप ब त अ छ ह... बस एक ख़राबी ह आप म?’’ अंकल बेचार हरान ‘‘ या बात िबिटया, यूँ नाराज़ ह, ब त िदन से चॉकलेट नह लाए तेर िलए? इसी िलए तू ख़फ़ा ह? यही ख़राबी ह न?’’ ब ी कहती ह ‘‘बस एक ख़राबी ह िक आप िह दू ह।’’ तीर कमान से िनकल चुका था। ब ी क माँ बता रही थी हम स ाट आ गए। ज़ र िकसी नौकर या आने-जाने वाले से सुना होगा। अब लाख लीपा-पोती कर, सब बेकार। 1980 म ईद क िदन जो ब त बड़ा फ़साद मुरादाबाद म आ था, वह अपने पीछ ब त कहािनयाँ छोड़ गया। वह एक कभी न भुलाई जाने वाली घटना थी। मुरादाबाद म बादल रोए या नह मगर उस ईद पर लखनऊ म इतनी बा रश इ िक बस-‘‘आज क बरखा आप मुसलमानन क ईद स यानास कर िदिहस?’’ ये आवाज़ थी घर म काम करने वाली राधा क। न उसे मालूम न हम मालूम िक आज क ईद मुरादाबाद क मुसलमान क िलए वाक़ई ‘स यानास’ सािबत ई। वह तो दूसर िदन क अख़बार से मालूम आ िक या ख़ाक-व61 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

खून का खेल-खेला गया मुरादाबाद म। अपने बाप, भाई, चाचा, मामा और बड़ क उगिलयाँ पकड़ अपनी जेब म ईदी िलए ब े िक अभी नमाज़ ख़तम होगी तो वह अपनी-अपनी ईदी से अपनी पसंद क िमठाइयाँ, िखलौने, पी...पी.. करते बार ख़रीदगे। सफ़द झल-झल करते करते पाएजाम, सरो पर टोिपयाँ, छोट ब े छोटीछोटी टोिपयाँ पहने छोटी बहन भी साथ, गुलाबी, नारजी, लाल कपड़, छोटी-छोटी उढ़िनयाँ डाले, हाथ म महदी रचाए, भर-भर कलाई चूिड़याँ आँख म न ह-मु े वाब सजाए िक अभी घर जाएँगी। माँ ने सेव याँ तै यार कर ली ह गी, र तेदार आएँगे ढर सारी ‘ईदी’ िमलेगी। रग ही रग ह गे। रग तो िमले उनको एक ख़ाक-व- न म िलपटा ‘मटमैला रग’ दूसरा ‘ल रग’। सैकड़ क तादाद म मद और ब े मार गए। बचपन म सुनी एक कहानी याद आती ह और मश र शाएर इक़बाल क शेर का ये ब द- ‘‘मेर तूफ़ाँ यम ब यम, दरया ब द रया, जू ब जू’’ कहते ह एक मोह े म लोग आपस म ब घुल-िमल कर रहते थे। आपस म भाईचारा था, ेम था। शैतान ने चैलज िकया िक कहो तो म जब चा इनम फट डाल दूँ। मद बु ग ने कहा ऐसा कसे हो सकता ह? यह आपस म ब त िमल-जुल कर रहते ह। शैतान ने कहा तुम देखना। उसने कवल एक उगली शहद क दीवार पर लगा दी। शहद पर म खी बैठी, म खी पर िछपकली लपक , िछपकली पर िब ी झपटी, िब ी पर पड़ोसी ब े का क ा झपटा। ब म आपस म लड़ाई होने लगी। बात यहाँ तक बढ़ी िक बड़ भी कद पड़। िफर तो एक तूफ़ान मच गया। इस आग ने गली, मोह े, पड़ोस म फल कर पूर शहर को अपनी लपेट म ले िलया। कछ ऐसी कहािनयाँ मुरादाबाद क फ़साद म भी सुनने म आ । िकसी ककम ने ईद क िदन ठीक नमाज़ म म जद क अंदर गंदगी म लथड़ सुअर को हकाल िदया। सुअर वैसे ही मुसलमान क िलए अपिव जानवर ह। ऐसे मौक़ पर जब सब सजदे म ह । िफर तो जो


आ वह बयान से बाहर ह। हमार एक बु ग बड़ी मोह बत करने वाले मौलाना इसहाक़ स भ ी एम.पी. थे (क युिन ट पाट क) उनक ज़बानी जो सुना वह एक दद भरी दासतान थी। उसी ज़माने म हमार घर आकर ठहरने वाले पंिडत ओ.पी. मालवीय जी थे। इलाहाद क बुि जीवी वग से िजनका संबंध ह। वह भी इसहाक़ स भ ी जैसे पढ़-िलखे अनबाए ड सोच रखने वाले थे। हर िकसी ने िनंदा क (पंिडत जी उनम ह िजनक टकसाल म ढले िह दू, मुसलमान लड़क आज भारत क आला ओहद पर ह।) उ ह ने भी कहा िक यह कसे हो सकता ह िक लोग अपने छोट-छोट ब क साथ हिथयार लेकर आए ह । य िक यह बात फलाई गई थी िक मुसलमान क पास हिथयार थे। मगर इस सोच का या क िजए जो फल-फल रही ह। दोन तरफ़। जब हम पािक तानी हो गए उसक कछ ही िदन बाद उ र देश उदू आकादमी से ी (जो हमार बॉस भी थे) जनाब सबाह उ ीन उमर साहब अपने बेट से िमलने पिक तान आए। ब त मोह बत से िमले। िज़या उल हक़ का ज़माना था। इधर-उधर क बात हो रही थ । एक पािक तानी महोदय िज़या उल हक़ को गािलयाँ दे रह थे। सबाह उ ीन साहब उनसे बोले- ‘‘जनाब िज़या उल हक़ न होते तो आज स आपक यहाँ बैठा होता।’’ िजस खुले माहौल म वह बोलने क आदी थे वैसा ही वह बोले। िफर हमसे कहने लगे िक- ‘‘तु ह मालूम ह, िजस िदन जमाअत-ए-इ लामी क तु हार काज़ी सैन अहमद ने (अ ाह न कर हमार ह । यह तो कह नह सकते थे िकआपक मुँह म ख़ाक) अपनी िकसी तक़रीर म फ़रमाया था िक िद ी क लाल िक़ले पर पािक तानी परचम लहराएँगे उसी िदन कछ ए स ीिम ट िह दु ने मुसलमान क एक पूरी ब ती जला दी थी।’’ उस ज़माने म जमाअत-ए-इसलामी ब त उछल-कद रही थी। (उस ज़माने म या हर दौर म उछलती कदती रही ह, उस समय उ ह िड टटर बुरा नह लगता था।) जहाँ तक िज़या उल हक़, जुलिफ़क़ार अली भु ो या उनसे भी पहले क मरान

का सवाल ह उनक पािलिसय , उनक नज़ रये, उनक तज़-ए- मरानी से तो मतभेद रखा जा सकता ह मगर यहाँ लोग का बस चले तो उ ह क़ से खोद िनकाल। शम से पानी-पानी कसे होता ह इसान यह उस समय लगा, जब अब से काफ़ पहले िकसी इिडयन चैनल पर हम एक ाइम िमिन टर जनाब वी.पी. िस हा का एक इ टर यू देख रह थे। वे ब त नरमाई से ऐंकर क न क उ र दे रह थे। न मुँह से झाग िनकल रहा था न बॉडी लगुएज म लटकझटक (अपने एक ब त ही आम से घर म) थे। अगला न ‘‘बोफ़ोज़’’ संबंिधत था। उ र था-‘‘देिखये राजीव जी अब इस संसार म नह रह। अब उनक िवषय म कछ कहना म पाप समझता ।’’ अफ़सोस सद अफ़सोस। हम िजस धम को मानने का दावा करते ह, उसम तो िज़ंदा लोग क बैक बाइिटग को अपने मर भाई का मास खाने समान कहा गया ह। ऐसे म मर को कोसना? िजनका मुआमला ऊपर वाले क सुपुद हो। अटल िबहारी जी अ न-व-आशती का पैग़ाम (जंग न होने दगे) लेकर दो ती बस ारा लाहौर आते ह। मीनार-ए-पािक तान पर ब त बड़ा जलसा होता ह। जमाअत-एइ लामी को यह भी नामं र। उनक जाने क बाद वे अपनी जलन मीनार-ए-पािक तान को ‘गुसुल’ दे कर िनकालते ह। कहते ह आगरा स मट क बाद जब परवेज़ मुशरफ िद ी से 62 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

लौट तो वहाँ भी कछ उ वािदय ने उन थान को अशनान देकर ‘पिव ’ िकया जहाँ-जहाँ वह गए थे। जमाअत-ए-इ लामी क करतूत क सज़ा बेचार मुशरफ़ को िमली। सदी अपनी दा तान पीछ छोड़ गई। सोलह साल बाद हम िफर टट िदल ग़मजदा चेहर िलए िह दु तान आते ह िक हमारी जवान भांजी का िमयाँ हाट अटक म ख़तम आ था। ब त मु कल से दो महीने बाद वीज़ा िमला था। अपने पािक तानी भाई भी-‘‘कछ हम खाना ह- कछ उ ह देना ह।’’ पर चलते ह। नफ़रत िफर अपनी चरम सीमा पर थ । अजमल कसाब ने गोिलय क बरसात क थी। सैकड़ बेगुनाह मार गए (जैसा िक दोन मुलक म होता ह) वह य आज भी िज़ंदा ह, त वीर म भी और ‘तस वुर’ म भी। धुँए म फड़फड़ाते कबूतर जो न िह दू न मुसलमान, गोल दर गोल, जो उड़ सक उड़ गए। बाक ताज होटल क सुख़ गु बद पर बैठ जैसे पूछ रह ह , हमारा सूर या था? सुख़ शोल ने नफ़रत क शोल को और हवा दी। यहाँ से जाने वाले हम सब मुज रम, सब आतंकवादी ठहर। दोन तरफ़ का मीिडया िग क तरह इस इशु को ‘मुदार’ क तरह भँभोड़ रहा था। हमार भी एक मश र ऐंकर का फ़रमाना सुिनये-‘‘आप खच कर उनक मुँह पर एक थ पड़ म रये जो यह कहता ह तु हार पािक तान म यह हो रहा ह, वह हो रहा ह। किहए देखो तु हार िह दु तान म या हो रहा ह...।’’ हम जो टकड़ म बँट ह, सहम जाते ह। ज़रा हमार िदल पर हाथ रख कर लोग देख। यह भय िक शायद हम अपने भाई-बहन , र तेदार , अपने दो त (िह दू मुसलमान दोन ) से न िमल सकगे। 1971 क तरह हमार प इगलड, अमे रका होकर प चगे और इससे पहले ही वहाँ रह जाने वाले बूढ़ माँ-बाप दम तोड़ दगे। िफर अपने चचेर, फफर, मामा आिद क बेट से िनकाही लड़िकयाँ रा ते खुलने क ती ा करगी। िफर हम िकस मुँह से उनक मुँह पर थ पड़ मार? द हमार अपने लोग धमाक कर रह ह। लड़िकय क कल जलाए जा रह ह। िजस धम ने औरत


मद दोन पर इ म हािसल करने को ‘फ़ज़’ क़रार िदया ह, उसक मानने वाले ही उसको इस हक़ से वांिचत कर रह ह। ग़ैरत क नाम पर औरत को ‘कारी’ िकया जा रहा ह। नमािज़य और यहाँ तक िक जनाज़ पर भी बम बरसाए जा रह ह। ऐसे मौक पर िह दू न िह दू होता ह, मुसलमान न मुसलमान। िसवाए इसक िक वह एक वहशी द र दा होता ह। हम तीन जगह का वीज़ा िमलता ह। क़ानून बना था िक साठ और साठ से ऊपर को नान रपोिटग वीज़ा िमले िजससे बार-बार इस दौड़-धूप से सीिनयर िसिटज़न बच जाएगा िक सुबह बारहबंक से लखनऊ जाना ह तो आधा िदन एं ी और डपाचर म गुज़ार जाता ह। लेिकन जैसा िक होता ह क़ानून इ पलीमट करने क िलए नह बनाए जाते (दोन ओर)। बारहबंक से लखनऊ क िलए शाम को ही हम डपाचर लेते ह। दुभा य िक हम अ पताल प च जाते ह, तबीयत इतनी ख़राब होती ह। हम और हमारी छोटी बहन इसी अफ़रातफ़री म भूल गए िक ए ज़ट ले चुक ह। छोटी बहन लखनऊ चली जाती ह अनजाने म। वहाँ जब एं ी कराने जवाहर भवन प चती ह, चूँिक तीन िदन गुज़र चुक थे (यक़ नन ग़लती हमारी ओर से ई थी) सार टाफ़ ने एक तूफ़ान खड़ा कर िदया। तेरह हज़ार इधर और तेरह उधर माँगे गए। ‘‘इतने िदन कहाँ रही? हरजाना (बनाम र त) अदा क िजए, वरना जेल क हवा खाइए।’’ मेडीकल सट िफ़कट भी िदया, िगड़िगड़ाए भी इतने पैसे कहाँ से द। ग़लती भी मानी मगर सब बेकार। यह भी डर िक बहन मुसीबत म न पड़ जाएँ। अपने दो त को खटखटाया। िवभूित नारायण राय साहब (वाइस चां लर महा मा गाँधी इ टर नैशनल यूनीविसटी, वधा) को फ़ोन िकया। सारी राम कथा सुनाई। आन िक आन म लाइन खड़खड़ा । हमारी सफ़ाई दी गई होगी (िक हम आंतकवादी नह ह) हम अपनी सफ़ाई म पहले ही ब त कछ कह चुक थे- हम यह पले-बढ़ ह, हमारी जननी ह यह ज़मीन, यहाँ क लोग से हम यार ह, हमार पुरख क ह याँ ह यहाँ, (हमने यह कहा नह , भस क आगे बीन नह बजाई) और या

बताएँ। सार बार क हवा िनकल गई। अब टाफ को यह अफ़सोस िक- ‘‘इतने ऊचे कहाँ प च गई, िहयैन कह-सुन लेत । (मतलब साफ़ था िक हम थोड़ा ब त कम कर देते अब उससे भी गए) िवभूित जी न कवल दो त ह ब क उनक इसान दो ती से इनकार नह िकया जा सकता। शायद यह बात 1994-95 क ह कराची से िनकलने वाली सा ािहक पि का ‘तकबीर’ ने उन िदन इलाहाबाद म होने वाले फ़सादात क एक रपोट छापी, िजसम उस समय क डी.आई.जी. िवभूित नारायण राय क बेहद तारीफ़ क थ िक उ ह ने हालात को िकस तरह क ोल िकया था (िवभूित जी क पो टग इन िदन इलाहाबाद म ह, यह उसी पि का से मालूम आ)। िपछले साल मश र कहानीकार असग़र वजाहत कराची आए। ब त जगह पर उनका वागत आ। ‘आज’ पि का क अजमल कमाल क यहाँ एक बड़ी महािफ़ल सजी। िजसम असग़र वजाहत ने अपनी ब त ही छोटी-छोटी िदल को छ लेने वाला कहािनयाँ सुना । िफर बात िनकली िवभूित जी क । वजाहत ने बताया उनक यं य क िवषय म और यह िक वह आजकल या िलख रह ह। बताने लगे िक जब िवभूित जी क पो टग बी.एस.एफ. म थी, उन िदन हम चार-पाँच दो त उनक पास प चे, उनक ऑिफ़स, जबिक उस समय वह ब त य त थे। मगर उनका सािह य-और फ़ज़ एक साथ चल रहा था। छह-सात फ़ोन म िघर िवभूित जी कभी एक फ़ोन उठाते कभी दूसरा। उधर से जो भी बताया जा रहा हो, नह मालूम मगर िवभूित जी ने कहा- ‘‘सफ़द पताका िदखा दो।’’ और िफर हमार साथ बैठ ए दो त से मुख़ाितब ए- ‘‘हाँ तो आप या बता रह थे ेमचंद क िवषय म?’’ पािक तान म िवभूित नारायण राय को न कवल इ ज़त िमली ब क ेम भी। फ़सादात क िवषय म उनका पहला उप यास ‘शहर म क यू’ आज भी लोग क ज़बान पर ह। शायद ऐसे ही लोग िदल को जोड़ सकते ह। 000 63 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

फाम IV समाचार प क अिधिनयम 1956 क धारा 19-डी क अंतगत वािम व व अ य िववरण (देख िनयम 8)। पि का का नाम : िवभोम वर 1. काशन का थान : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म , 466001 2. काशन क अविध : ैमािसक 3. मु क का नाम : बैर शेख़। पता : शाइन ि ंटस, लॉट नं. 7, बी-2, ािलटी प र मा, इिदरा ेस कॉ लै स, ज़ोन 1, एमपी नगर, भोपाल, म 462011 या भारत क नाग रक ह : हाँ। (यिद िवदेशी नाग रक ह तो अपने देश का नाम िलख) : लागू नह । 4. काशक का नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : पी. सी. लैब, शॉप नं. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म , 466001 या भारत क नाग रक ह : हाँ। (यिद िवदेशी नाग रक ह तो अपने देश का नाम िलख) : लागू नह । 5. संपादक का नाम : पंकज सुबीर। पता : रघुवर िवला, सट ए स कल क सामने, चाण यपुरी, सीहोर, म 466001 या भारत क नाग रक ह : हाँ। (यिद िवदेशी नाग रक ह तो अपने देश का नाम िलख) : लागू नह । 4. उन य य क नाम / पते जो समाचार प / पि का क वािम व म ह। वामी का नाम : पंकज कमार पुरोिहत। पता : रघुवर िवला, सट ए स कल क सामने, चाण यपुरी, सीहोर, म 466001 या भारत क नाग रक ह : हाँ। (यिद िवदेशी नाग रक ह तो अपने देश का नाम िलख) : लागू नह । म, पंकज कमार पुरोिहत, घोषणा करता िक यहाँ िदए गए त य मेरी संपूण जानकारी और िव ास क मुतािबक स य ह। िदनांक 20 माच 2021 ह ता र पंकज कमार पुरोिहत ( काशक क ह ता र)


सं मरण

रामरतन अव थी जी मेर पहले सािह यक गु म थे वीर जैन

वीर जैन 2/1 शालीमार टिलग रायसेन रोड, अ सरा टॉक ज क पास भोपाल म. . 462023 मोबाइल: 9425674629

बचपन म िपता से िमले सािह यक सं कार क बीच जब मने क ा दस म वेश िकया, तब शासक य उ तर मा यिमक िव ालय दितया म मेर क ा अ यापक ी राम रतन अव थी जी थे। उन िदन मेर कल म तीन अ यापक ऐसे थे जो सािह य पढ़ाते ही नह थे अिपतु सािह यक संभावना को तलाश कर उ ह संवारने का काम भी करते थे। इनम ी राधारमण वै क अलावा शेष दो तो चिचत किव भी थे, िजनम अव थी जी क अलावा दूसर थे ी घन याम क यप जो अ यापक क ितिनिध क प म एक ुप म िवदेश या ा भी कर चुक थे। यह 1962-63 का वष था जब चीन क साथ ए सीमा संघष क कारण पूर देश म भावना मक उबाल आया आ था और िजसक सबसे मुखर अिभ य िह दी किवता क मंच पर हो रही थी। उ ह िदन म य देश सरकार क ओर से भी जगह-जगह किव स मेलन आयोिजत करवाये जा रह थे। दितया म ितवष एक अिखल भारतीय किव स मेलन क पर परा थी िजसम, नीरज, सोम ठाकर, मुकट िबहारी सरोज, आन द िम , गोपाल िसंह नेपाली, भवानी साद िम , काका हाथरसी, बालकिव बैरागी, रमानाथ अव थी, रामान द दोषी, त मय बुखा रया, देवराज िदनेश जैसे लोग क अलावा े ीय और थानीय वासुदेव गो वामी, चतुरश, आिद किवय को मने इसी स मेलन क दौरान देखा और सुना था। म इस बात को गव क साथ बताता था िक इस किव स मेलन का संचालन मेर ास टीचर अव थी जी िकया करते ह। इसी वष म म अपनी क ा से क ा ितिनिध चुना गया था, िजससे मेरा संपक उनसे बढ़ गया था। इसी दौरान कल क वािषक फ शन क दौरान ता कािलक भाषण ितयोिगता म थम पुर कार ा आ था िजसक िनणायक भी ी अव थी जी और वै जी थे। औसत से कछ अिधक ल बाई वाले अव थी जी तन कर और ती गित से चलते थे। किव गो य म उनक गीत को िजस यान से सुना जाता था उससे उनक सािह यक क़द का अनुमान लगाना मु कल नह था। उनक गीत म जो पूणता होती थी वही बात उनक पाठ म भी होती थी। यही कारण ह िक मुझे आज भी उनक गीत क मुखड़ और कछ अंश याद ह जैसे यह गीतसौ सौ दीप जलाये इस धरती क ांगण पर िफर भी तम क गहराई का अंत नह िनकला 64 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


सोचा था शायद अवनी क तपन शमन होगी इसीिलए नीला बर ने शबनम बरसाई थी और शूल क पीर अर शायद िमट जाएगी इसीिलए उस पादप पर किलका मु काई थी मधुर िमलन को बाँह क सीमा म बाँध िलया िफर भी िवरहािनल से या िदगंत नह बदला सौ सौ दीप ............................. किव स मेलन क अवसर पर नीरज समेत अ य किवय को देखने क उ सुकता बनी रहती थी और हम िकशोर िकसी तरह तय समय से पूव प च कर दूसर को यह बताने का गौरव ा करना चाहते थे िक कौनकौन आ चुका ह या म िकस-िकस को पहचानता । उस िदन अव थी जी का उ साह भी देखते बनता था। नीरज जी एक खास तरह का कालरदार कता पहनते थे, िजसक बटन गले से ठीक नीचे नह अिपतु दािहने तरफ होते थे। फत ले अव थी जी भी उस िदन वैसा ही कता पहन कर आते थे। िफर 1965-66 म उनका थानांतरण या मोशन नौगाँव हो गया, और वे दितया छोड़ गए। 1971 म मेरी िनयु हरपालपुर म हो गई। तब तक मुझे िलखने का च का लग चुका था और मेरी रचनाएँ कछ रा ीय पि का म छपने लगी थ । उन िदन िह दी क रा ीय पि काएँ सीिमत सं या म ही कािशत होती थ , उससे उनम कािशत रचनाकार क नाम को दूर तक प चने म मदद िमलती थी, भले ही उ ह इसका आभास ना हो। हरपालपुर म भी ितवष एक किव स मेलन आयोिजत होता था और उसम मुझे भी आमंि त िकया जाता था। एक वष कछ यादा यान से सुन िलया गया तो मेरी याित कछ और आगे बढ़ी व बढ़ कर नौगाँव तक प च गई। मुझे पता नह था िक वहाँ क किव स मेलन का संचालन भी अव थी जी ही करते ह। उनका आमं ण िमला और मने आदेश का पालन िकया। अपने नगर से बाहर किवता पाठ का मेरा वह पहला किव स मेलन

था। पहले कल म िमले पुर कार क बाद िजस पहले किव स मेलन म मुझे किवता पाठ क िलए पा र िमक िमला उसका ेय भी अव थी जी को ही जाता ह। इसक बाद तो जब तक म हरपालपुर म रहा, मुझे छतरपुर, टीकमगढ, महोबा आिद आसपास क किव स मेलन क िनमं ण भी िमलते रह। इसी भरोसे म इस दु साहसी िवचार तक भी प चने लगा था िक अगर मंच से आय होने लगे तो म नौकरी न करने क अपनी दबी ई इ छा पूरी कर लूँ। वह तो िववेक ने समय पर साथ िदया और मने यह अितवादी कदम नह उठाया। ार भ म मेरी नौकरी एक छोट बक म थी िजसम अिधका रय क थानांतरण अिखल भारतीय तर पर होते थे। इस नौकरी और मेर कबीर वभाव ने मुझे ब त भटकाया व मेर थानांतरण पाँच रा य क प ह थान म ए। हर बार म अपने सभी प रिचत को प िलख कर अपने ांसफर और पता बदलने क सूचना देता था। सौ से अिधक क इस सूची म आदरणीय अव थी जी का नाम भी रहता था। 1989 से दूिषत राजनीित क दु भाव क चलते देश भर म जो िवषा वातावरण बनता जा रहा था उसने मुझे ब त उ ेिलत कर िदया था। ितवष नववष क ीिटग काड क प म म कछ का य पं याँ िलख कर छपवा कर सभी िम , संपादक , आिद को भेजता था, जो सा दाियक िवषा ता क िखलाफ होती थ । इससे जो फ डबैक िमलता था उससे मुझे पता चलता था िक दूसर भी या सोच रह ह। मुझे खुशी होती थी जब उन पं य क िलए मुझे अव थी जी का आशीवाद िमलता रहता था। यह िसलिसला सन 2001 तक चला। उ ह ने अपनी कािशत किवता पु तक भी मुझे भेजी। जब वे फसबुक से जुड़ तो फसबुक पर उनसे संवाद करने क अवसर िनरतर िमलते रह। 6 िदस बर 1992 को बाबरी म जद तोड़ कर जो वातावरण बनाया गया था तब नववष 1993 क अवसर पर भी मने काड भेजा था, उसक उ र म 11 जनवरी 1993 का उनका जो ल बा प प ा से िमला था उसक कछ अंश इस कार ह"................... यह जानकर अिभभूत 65 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

िक आप जैसे िव वजन, एक अंतराल क प ा भी मुझे मन क िकसी कोने म थान िदये ह। िज़ंदा रहने क िलए इतनी खुशफहमी का टािनक पया ह। नूतन वष पर अ ज होने क नाते आपक िलए सुखद, समृ , और समु त भिव य क परम भु से कामना करता । यह जानकर और खुशी ई िक आपका सािह यकार, गितशील ह, अ यथा मुझ जैसे तथाकिथत सािह यसेिवय को तो हालात और सवालात क भँवर म उलझकर अपनापा भूल जाते ह। आपक यह पं याँ बड़ी साथक और जीवंत लग ;- एक म दर से बड़ा ह आदमी एक म जद से बड़ा ह आदमी .... बधाई हो इन पं य क िलए। आप सािह य सेवा म इसी तरह िनरत रह- यही मेरी कामना ह। आज क हालात पर मने भी कछ मु क िलखे थे िजनम से एक इस तरह हसोये दानव को जगाया- ये या िकया तुमने हसते मानव को लाया- ये या िकया तुमने बीते कल तक तो रह थे आदमी क तरह भेिड़या उनको बनाया – ये या िकया तुमने उनका िनधन कोरोना काल म पटना म आ। उसी दौरान अ य चिचत लेखक का िनधन भी आ। फसबुक पर ांजिल देने का एक दोष मुझे यह िदखायी िदया िक लेखक क सभी िम , पाठक या शंसक गूगल से फ़ोटो डाउनलोड करक एक जैसे जीवन प रचय दे कर अपना संबंध कट करना चाहते ह, इससे एक घटाटोप छा जाता ह और संवेदना क गहराई कम होती जाती ह। इसिलए ऐसे अवसर पर म संगठन ारा य ांजिल क साथ ही होता । यही कारण रहा िक म उ ह िवल ब से याद कर सका। िदल क पूरी गहराइय से उ ह ांजिल। व दना अव थी दुबे जी उनक सभी बहन और माँ जी को नमन। 000


याद क झरोखे से

रिडयो का देशी इलाज करते िपता गोिव द सेन

आकाशवाणी से मेरी किवता का सारण होने वाला था। का यपाठ क सारण क सूचना देते ए मने फसबुक पर िलखा था। नशा नवागत का चढ़ा गए पुराना भूल कहाँ पड़ा ह रिडयो झाड़ो उसक धूल िति या म अनेक िम ने बधाइयाँ द । एक िम ने िलखासबसे भला ह रिडयो, बाक सब ह फल का यपाठ सुनने क िलए, डला िलए ह सेल एक किव िम ने 'रिडयो क मृित' शीषक से 20-25 लाइन क एक किवता ही िलख डाली। का यपाठ क सारण क तुर त बाद एक िश क िम ने नमदा िकनार बसे गाँव अछोदा से मोबाइल िकया। बताया िक उ ह और उनक गु जी को मेर दोह ब त ही पसंद आए। उनक गु जी एक िकताब िलख रह ह। वे कछ दोह को मेर नामो ेख क साथ उदाहरण क प म लेना चाहते ह। म उनक इस ईमानदारी पर मु ध हो गया। आज क इस ल पट युग म जब िबना कह िबना नामो ेख क िकसी क भी मौिलक रचना बेिहचक उड़ा लेने वाले शूरवीर मौजूद ह, तब उनका यह अनुमित माँगना मम को छ गया। साथ ही यह भी पता लगा िक रिडयो आज भी दूर थ इलाक म सुना जाता ह। वह िज़ंदा ह। उसक साँस बराबर चल रही ह। इस सुखद एहसास क साथ रिडयो से जुड़ी अनेक मृितय क परत खुलने लग । यहाँ रिडयो से मेरा आशय बाद म ज म एफएम और िमच रिडयो से नह ह। ये आज भी इस आिदवासी इलाक म नह आए ह। इनका सार इ दौर, देवास और उसक आसपास क इलाक तक ही सीिमत ह। िपताजी को रिडयो सुनने का ब त शौक था। उनक इस शौक का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता ह िक उनक अ तम एक-डढ़ साल तक भी रिडयो हमेशा उनक तिकए क पास रहा, दवाइय क शीिशय और गोिलय क प क साथ। सबने साथ छोड़ा लेिकन रिडयो ने साथ नह छोड़ा था। उ ह ने अपने जीवन म बीिसय रिडयो बदले ह गे। घर म हमने एक लकड़ी क बॉडी वाला रिडयो भी देखा ह। इसका सामने वाला िह सा जालीदार था जो म कलर का था। इस जाली क पीछ अ दर कोयल होती थी। पीकर को वे कोयल कहते थे। एक लकड़ी क खोखे म रिडयो क बैटरी रखी रहती थी। बैटरी म दो िचमट लगे थे। इन िचमट से वायर रिडयो म आते थे। इस तरह िबजली रिडयो को िमलती थी और वह चलता था। रिडयो क भीतरी रग-िबरगे वायर और िविभ आकार- कार क पुज क सघन ब ती को हम बड़ी गोिव द सेन उ सुकता से देखते थे। यह अवसर तब िमलता था जब िपता जी रिडयो को सुधारने क िलए राधारमण कॉलोनी मनावर खोलते थे। अ सर रिडयो म कोई न कोई सम या बनी ही रहती थी। धार म. . िपन.454446 रिडयो म खड़खड़ाहट, िकसी टशन का न लगना या ऐसी ही कोई भी ख़राबी उ ह कतई मोबाइल- 09893010439 ईमेल- govindsen2011@gmail.com बदा त नह थी। ऐसी थित म वे खुद रिडयो खोलकर बैठ जाते थे। जब तक मनमािफक सुधार 66 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


नह कर लेते, उ ह चैन नह िमलता। भले ही गम म पसीने से तर हो रह ह या ठड म िठठर रह ह । वे भूख यास सब भूल जाते। च मा लगाकर वे पचकस या ऐसे ही कछ घरलू औज़ार क साथ रिडयो पर जुट रहते। रिडयो से लगातार घुचुर-घुचुर, घर-घर, खड़-खड़, खरड़-खरड जैसी आवाज़ िनकलती रहत । भीतर छोटी-छोटी िढब रयाँ होती थ । इन िढब रय क बीच एक कट होता थ। इन कट म पचकस डालकर वे दाएँ-बाएँ घुमाघुमाकर सेट करते रहते थे तािक वांिछत टशन साफ-साफ सुना जा सक। सुधारने क इस ि या म िकसी पुज को बाँधने या िहलने से रोकने या ऐसे ही कछ काम क िलए डोर का उपयोग करते थे। वायर क बीच यह डोरा- ड सी हम अजीब और मनोरजक लगती। यह डोरा-ड सी देख हम लगता था मान िपताजी बीमार रिडयो का देशी इलाज कर रह ह । जैसे मरीज को डॉ टर क पास ले जाने से पहले घरलू उपचार करक देख रह ह । यिद इस इलाज से ही मरीज ठीक हो जाए तो िफर फालतू पैसा य िबगाड़ ! इस च कर म उ ह ने कई रिडयो िबगाड़ भी िदये थे। हम मन ही मन कामना करते िक रिडयो ज दी ठीक हो जाए तािक िपताजी को आराम िमले और हम भी रिडयो क िविभ काय म का आन द उठा सक। रिडयो अ थायी प से ही सही, ठीक भी हो जाता। ये अलग बात ह िक कछ िदन बाद रिडयो म िफर कोई ख़राबी िनकल आती। उन िदन न दाजी-भेराजी घर भर का पसंदीदा काय म होता था। यूँ उसका नाम खेती-गृह थी था, लेिकन हम लोग क बीच यह न दाजी-भेराजी क नाम से ही िस था। यह काय म िकसान भाइय क िलए होता था और इ दौर-भोपाल टशन पर आता था। न दाजी- भेराजी का मालवी- िनमाड़ी म बोलना ब त अ छा लगता था य िक यही लोकभाषा हम भी बोलते और आसपास सुनते थे। उनक बोली हमार िदल म उतर जाती। काय म क ार भ म एक धुन बजती थी। यह धुन ब त यारी लगती थी। मान एक बैलगाड़ी गाँव क चौपाल पर आ रही हो।

बैल क गले म घुँघ बज रह ह । छन-छन, छन-छन, छन-छन। इसम खेती-गृह थी क बात क अलावा लोकरस म पगे गीत-भजन और किव-स मेलन भी सुनने को िमलते। बई (मा)ँ को लोक कलाकार ारा त दूर पर गाए जाने वाले मालवी भजन अ छ लगते। बाद म डोलार (झूले) पर झूलते ए वे इन सुने ए भगवा क भजन -गीत को चाव से गाया करत । न दाजी या भेराजी का गाया आ बाराखड़ी गीत सबको अ छा लगता। किवय क मुख से मालवी-िनमाड़ी म किवताएँ सुनकर सुखद आ य होता। वैसा ही कछ िलखने का मन करता। शायद इ ह किवता को सुनकर मन म किवता क बीज पड़ ह गे। बाद म तो किव क प म भी आकाशवाणी इ दौर अनेक बार आना-जाना आ। शायद 82 म पहली बार युववाणी काय म म किवता पढ़ने गया था। आज भी याद ह िक गोल टोपी पहने ए एक श स मुझे टिडयो तक ले गए थे। पता नह वे उ ोषक थे या काय म अिधकारी। जब प लेकर म उनक पास गया था तो वे कस पर बैठ बीड़ी पी रह थे। उनका यह बीड़ी पीना म आज भी नह भूल पाया। िजस आकाशवाणी से बीड़ीिसगरट न पीने क िहदायत सा रत होती थ , वह िकसी का बेधड़क बीड़ी पीना म हजम नह कर पाया था। मुझे यह बेहद असंगत लगा था। यही कारण ह िक आज तक यह य मृित-पटल पर िचपका रह गया ह। यादतर हम इ दौर-भोपाल ही अिधक 67 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

सुनते। य िक यह टशन आसानी से लग जाता था और साफ-साफ चलता था। इस पर अनेक मनोरजक और ानवधक काय म आते थे। जैसे मनभावन, फरमाइशी गीत, कछ बात कछ गीत, मिहला सभा, िमक जग , बाल सभा आिद। सुबह, दोपहर और शाम क तीन सभाएँ होती थ । हर घंट पर समाचार सा रत होते थे। नए िफ मी गीत को सुनने का मज़ा आता था िबनाका गीतमाला म। िबनाका गीतमाला हर ह ते िसलोन पर आता था। हम इसक बेस ी से ती ा रहती। कोई गाना पहली पायदान पर प चता तो कोई नीचे उतर जाता। यह ब त रोचक और िदलच प होता। अमीन सयानी क खनकती आवाज़ क नशे म हम डब जाते। िविवध भारती पर नएपुराने गाने बजते ही रहते। इसम हवा महल म हर रात एक झलक आती थी। देर रात को आने वाले छायागीत क ेम और दद भर नगम सुनकर िदल म क सी उठती। उस समय तक बचपन क पगडडी छट चुक थी और जवानी क सड़क पर पाँव जमे नह थे। िज़ंदगी का ठोस धरातल अभी शु नह आ था। मन ि शंक बना रहता था। न इस पार न उस पारत ा जैसा कछ। भाव -िवचार क बवंडर उठते ही रहते थे। जैसे कोई गाना आता थातेरी आँख क िसवा दुिनया म रखा या ह-तो दो आख ँ िदखायी देने लगत । उन आँख क गहराई म मन डबता-उतराता रहता। मन कहाँ से कहाँ चला जाता। गाने क कोई-कोई लाइन सीधे िदल म उतर जाती। ये लाइन कई िदन तक पीछा करती रहत । गाने सुनते-सुनते सो जाना अ छा लगता। कभी-कभी न द भी उड़ जाती। जैसे अित भोजन से अजीण हो गया हो। रिडयो ने कान को चटोरा बना िदया था। जैसे रोज़ उ ह इस लज़ीज खाने क लत पड़ गई हो। ठ या-असाधारण रिडयो- ेमी ठ या का रिडयो- ेम मुझे आज भी याद ह। वह िकसी िकसान क यहाँ वरसूद था। ढोर चराता था। सुबह ढोर ले जाते समय और गोधूली बेला म लौटते समय उसक कधे पर रिडयो बद तूर टगा बजता रहता। ढोर चरते रहते थे और वह िकसी पेड़ क छाया म बैठा


रिडयो सुनता रहता। शाम को फरसत म ठ या कल क बरामदे म बैठ जाया करता था। उसक आसपास सुनने वाल का जमघट लग जाता था। वे उसे घेर कर बैठ जाते थे। रिडयो क कारण उसक इ ज़त बढ़ गई थी। मुझे उसका नाम और य व ब त आकिषत करता था। लगता था िक उसका असली नाम ठ या नह था। कद उसका बढ़ नह पाया था और बदन था उसका भरा-भरा और कसाकसा। शायद िठगना और भरा बदन होने क कारण उसे ठ या कहा जाने लगा हो और बाद म यही नाम पड़ गया हो। वह ायः अपनेआप म खोया चुप रहता। उसक आँख चमकती रहत । बेहद अ तमुखी था वह। शायद िठगने कद और ग़रीबी क वजह से उसक शादी भी नह हो पाई थी। लेिकन लगता था उसे इस बात का कोई रज नह था। उसने रिडयो क प म एक स ा जीवनसाथी पा िलया था। उसने अपना एक आभासी संसार रच िलया था िजसम वह पूरी तरह डबा आ और म त था। उसक चेहर पर सदा एक शांित और िनिल ता पसरी रहती। वह दूसर से कम ही बोलता था। रिडयो ही उसक आवाज़ था। जीवन रस उसे रिडयो से ही िमलता था। रिडयो उसक जीवन क एक अिनवाय अंग क तरह था। ठ या और रिडयो एक-दूसर क पूरक थे। रिडयो क िबना उसक मुक मल त वीर नह बन पाती थी। मुझे अफसोस ह िक म ठ या क बार म िकतना कम जानता । पता नह आज वह कहाँ होगा! होगा भी या नह । भला एक ढोर चराने वाले मामूली वाले को कौन याद रखेगा! लेिकन मुझे आज भी उस असाधारण रिडयो- ेमी ठ या क िश त से याद आती ह। रिडयो क सार-सँभाल करने वाले काकाजी रिडयो क सार-सँभाल करने म हमार काका जी का कोई सानी नह था। िजतने साफ-सुथर वे रहते थे, उससे अिधक रिडयो को रखते थे। िनयत समय पर अलमारी का ताला खोलकर रिडयो िनकाला जाता। ब त एहितयात से उसे प छा जाता। अ छा-खासा समय रिडयो को प छने म ही खच िकया

समाचार

जाता। िफर उसे िनयत थान पर िहफाज़त से िसलाई मशीन क टॉप पर रखकर चालू िकया जाता। इसी रख-रखाव क कारण रिडयो एकदम चमचमाता और नए जैसा लगता। रिडयो का क हर भी रगजीन का नह , रडीमेड होता। काका जी टल रग करते थे। फालतू बचे ए कपड़ को जोड़कर रिडयो का कवर वे खुद अपने हाथ से बनाते थे। कपड़ का बना कवर भी अनगढ़ कतई नह ब क ब त कला मक होता। उसम खोलने-बंद करने क करीने से बनी ब याँ, बटन वगैरह होते। जब कभी सेल डालने या ऐसे ही िकसी काम क िलए कवर खोला जाता तो हम रिडयो का पूरा बदन देख पाते। मन करता इस कोर बदन को छ ल। लेिकन हम छने क इजाज़त नह थी। हम रिडयो से एक िन त दूरी पर बैठने का स त आदेश था। उनका वह रिडयो सुनने क ही नह , हमार िलए देखने क चीज़ भी आ करता था। सुनने क बाद रिडयो उसी अलमारी म रखकर ताला लगा िदया जाता। आज मनोरजन, ान और संवाद क कई बेहतर य- य साधन मौजूद ह। टीवी ह, नेट ह। डीजे क गगनभेदी आवाज़ ह। लेिकन रिडयो क उस आवाज़ को भुला पाना मु कल ह। वह िदल म बसा आ ह। रिडयो याद क सहार भूले-िबसर नगम क तरह कई उपेि त और भूले ए पा मृित म जीिवत हो उठते ह। इसक आवाज़ क चाबी से हमारी मृित क ताले खुलते रहगे। 000 68 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान, 2021

यात सािह यकार िव णु भाकर क 110 व जयंती पर उनक मृित म युवा को ो सािहत करने क िलए शु क गई स मान योजना क तहत इस बार लंदन म रहने वाली िशखा वा णय को प का रता और सािह य क िलए िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान 2021 देने का िनणय िकया गया ह। पहली बार यह स मान िकसी वासी युवा भारतीय को िदया जाएगा। यह स मान िव णु भाकर ित ान और गाधँी िह दु तानी सािह य सभा क स िध संगो ी क ओर से िदया जाएगा। इस स मान से िपछले दस साल म चालीस से अिधक युवा स मािनत िकए जा चुक ह। यह जानकारी देते ए िव णु भाकर ित ान क मं ी अतुल भाकर ने बताया िक यह स मान जैसे ही सबकछ सामा य होगा तो िद ी म एक समारोह म सभी को स मािनत िकया जाएगा। अतुल कमार क मुतािबक उ र देश क अिभषेक अव थी को सािह य क िलए, छ ीसगढ़ क डॉ. मनीषा पांडय को समाज सेवा क िलए, िद ी क आकाश ि वेदी कला क िलए और िश ा क िलए आलोक िसंह को िव णु भाकर रा ीय ो साहन स मान से स मािनत िकया जाएगा। इन सभी को भी िद ी म होने वाले समारोह म स मािनत िकया जाएगा। 000


याद क झरोखे से

ज मा मी

शोभा र तोगी

शोभा र तोगी सी-158, िस ाथ कज एपाटमट लॉट नंबर 17, से टर 7, ारका नई िद ी 110075 मोबाइल- 9650267277 ईमेल- shobharastogishobha@gmail.com

ब से बचपन... नटखट बचपन क फहार वृ होने तक भी िभगोती ह। फहार -नटखट शैतािनय क , िचरौ रय क , मासूम शरारत क , आपसी न क झ क क । बचपन श द ही अपने आप म िकतना भीगा आ श द ह जो खुद तो गीला ह ही दूसर को भी नहला देता ह। बचपन क सुहानी याद थपक देत ह तो जगजीत जी क गज़ल गुनगुना उठती ह – 'ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो, बचपन का सावन वो कागज़ क क ती, वो बा रश का पानी।' अपार न ह खुिशय का ढर, छोटी-छोटी चाहत क पूरा होने पर सम दर िजतनी उछाल, नीलगगन म दूर पतंग को उड़ाने पर आसमान को मु ी म भरने क िकलकारी, तमाम ऐसी हसरत जो दो चार पैसे म ही सारा जहाँ हमारा होने का हौसला रखती ह – बचपन म ही परवान चढ़ती ह। 'भोला भाला यारा बचपन नटखट चटपट सा था बचपन खाना, पीना, घूमना िन खेलना, झूलना, हसना हर दम अहा! रीत गया वो िनझर झर झर कहाँ गया वो बचपन चकमक।' ऐसे ही नझुन करते, मनते ठते बचपन से याद आती ह ी क ण ज मा मी क । "न द क आन द भयो, जै क हया लाल क घोड़ दी ह हाथी दी ह और दी ही पालक ।" हम ब े ज मा मी पर अपने अपने घर म झाँक सजाते थे। उ र देश क ज े क कोर कहलाने वाले अलीगढ़ िजसे कछ लोग ह रगढ़ भी कहते थे, म मेरा बचपन अपनी तमाम उछल कद, बालपन क शरारत क बीच िसरजा था। एक ब त बड़ मंिदर क पास हमारा घर था। मंिदर क ाय: येक उ सव म हमारा शािमल होना, उछल कद करना तय था। मंिदर था- ब ीनाथ भगवा का िजसम सार योहार क भाव भंिगमा मनोहर थी। राम नवमी हो या िशव राि , अ य तृतीया हो या दीपावली, नव दुग ह या होली, दशहरा हो या कोई और उ सव- हम ब क 69 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


डदंग क िबना कोई भी योहार मु कराता नह था। मंिदर म ितिदन भजन क तन तो चलता ही रहता था। सं या आरती क समय रोज़ ही हम ब म घंटा बजाने हतु न कझ क होती थी। सागर सी िहलोर लेता आ बचपन था हम सब का। एक लहर आई तो इधर दूसरी आई तो उधर। होनी दोन तरफ शरारत ही थी, िजनम वाद था चटखार उठाती इमली का, चटपट गोलग प का, अलीगढ़ क ख ता कचौिड़य का, शु देशी घी क लाजवाब िमठाइय का। बालपन क दो ती भी इन सभी खटिम ी चटकार क वाद से भरी थी। हम सब यानी न ह शैतान -- गुिड़या, टीट, अतुल, साधना, सिवता, प पन, मीरा, कला -िजसका नाम कलाश था -उसे कला ही कहते थे। हम सबक मंडली कल से आने क बाद से रात गए तक धमाल मचाए रहती। मंिदर ांगण खूब बड़ा था और वहाँ खेलने पर कोई मनाही न थी। मंिदर क चार िदशा म चार जीने यािन सीिढ़याँ थ । हम एक से चढ़ते दूसर से उतरते। छपम छपाई खेलने पर सबको तलाश पाना काफ मश कत भरा काम होता। भरी गम हो सद हो या हो बरसात, हमारी मंडली क खेलकद नह कते थे। पहले घर म ब क खेलकद पर इतनी टोका टाक और रोक न थी। अड़ोस-पड़ोस पर भरोसा था, आज क तरह नह । आजकल ब े पड़ोसी को पहचानते तक नह । आज ब क सुर ा खतर म ह। उनका बचपन समय से पहले बीत जाता ह। हाथ म माट फ़ोन, टी वी आिद म ही िबचार ठगे से रह जाते ह। उनक क पना को वो लोक नह िमलता जो उनक िलए अ यंत ज़ री ह। आसपास क घर म िस थी हमारी मंडली। कभी कभार थोड़ी दूर क ब े भी आ जाया करते हमार साथ खेलने। पूरी दोपहर नीचे तल पर ांगण म हमारा ही शोर होता। जब घर म म मय क दोपहर सु ता रही होती, हम बेआवाज़ िखसक लेते और बस मंिदर क खुले आँगन म हमारी अपनी ही सरकार होती। हम सब एक िदन भी एक दूसर से न िमले ऐसा िदन तो कोई उगा ही नह था।

ज े म योहार पर रग िबखर होते। कमोबेश हर तीज यौहार हमारी िखलिखलाहट से गुलज़ार रहता। िफर चाह वह िदवाली, होली हो या राखी, तीज। ऐसा ही एक यौहार हम पूरी ा और जोश से मनाते और वह था ी क ण ज मा मी। कछ िदन पहले से ही उसक तैया रयाँ शु हो जात । आस पास क बाज़ार म िमलने वाले छोट छोट िखलौने हम सब दस बीस पैस म खूब खरीदते। तब पॉिकट मनी यही िमला करता था। दस, बीस पैसे, चव ी या कभी कभार अठ ी। पया तो कोई घर आने वाला मेहमान दे जाता तो ब त समझो। पहले घर म र ते-नातेदार आते रहते थे और ब को छोट उपहार िमल जाया करते थे। वे उनम ही खुिशय का संसार ढढ़ मारते। आजकल क तरह सूखा नह पड़ता था। आजकल जबिक उससे यादा िमलता ह, ऑनलाइन उपहार भेज िदया जाता ह या पैसे पे टी एम कर िदए जाते ह। िक तु जो खु बू अठ ी या एक पये क नोट िमलने पर आती थी, अब वह सुगंध कहाँ? उस पैसे को खच करने क बड़ी बेस ी रहती थी। डर भी लगता था िक कह म मी न ले ल। सो अपना पैसा अलग रख देते छपाकर। गु क म डालने से तो नह हाथ आते। बस इसी तरह छोट खच का यापार चलता और खुिशय क आमद होती। ज मा मी वाले िदन अ सुबह से ही हम सब अपने अपने घर म झाँक सजाने म जुट जाते। बड़-बड़ स दूक म से म मी क पुरानी सािड़याँ िनकाली जात । िजन सािड़य पर पूर जाल क कढ़ाई होती, िजन पर भर-भर छापे होते, वे सािड़याँ हमारी िल ट म शािमल होत । पहले तो अिधकतर सािड़याँ ऐसी ही होती थ । चमचम चमकती सलमा िसतार जड़ी, बनारसी, हाथ क कढाई क , गोटा प ी क वक वाली सािड़य को तरजीह दी जाती। उन िदन क सािड़य पर चाँदी क धागे से कढ़ाई आ करती थी। जब सािड़याँ पुरानी हो जात या पहनने लायक न रहत तो उनक कढ़ाई वाले िह स को साड़ी से अलग कर जला िदया जाता िजससे चाँदी क तार िमल जाते और उ ह बेचकर कछ पैसे हाथ लग 70 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

जाते। मेरी म मी क पास दो-चार ऐसी सािड़याँ थ िज ह बार-बार पहनकर वो पूरी उ शािदयाँ अटड करती रह । आजकल तो एक साड़ी या स एक फ शन म पहन लो तो दुबारा उसे नह पहना जाता। फशन भई फशन! पहले क लोग ब त िमत ययी होते थे। मोटा खाना मोटा पहनना। िजतनी वे टज आज क ज़माने म होती ह बस पूछो मत। रोज़ िनत नए कपड़। घर बैठ कभी लपकाट, अमेजन, िमं ा और न जाने कौन-कौन से बाज़ार दस इच क फ़ोन म खुले पड़ ह। एक क करते ही तु हार घर। हाँ, तो बात हो रही थी ज मा मी क । सुबह से ही म मयाँ त क मेवा पाग, िसंघाड़ का हलवा, कट क पकौिड़याँ, फल चाट, मेवा खीर, धिनया पंजीरी और न जाने या या बनाने म पूर िदन लगी रहती थ । उन िदन हर घर म कमोबेश पाँच या छह भाई बहन तो होते ही थे। सो सार छोट बड़ लग जाते अपने घर क क हया को दुलारने। दो तीन बड़ छोट स दूक ऐसे सेट करते िक सीिढ़याँ सी बन जात । करीबन चार, पाँच फ ट क जगह लेकर उसे दोन साइड से रग िबरगी सािड़य से आ छािदत कर देते। ऊपर साड़ी क छत, दोन तरफ सािड़य क िगरते खुले परदे। तीन तरफ़ से सािड़य से ढक वो पाँच िफट क जगह जहाँ अभी ब त कार तानी होनी होती। सािड़य को ठीक करने क बाद संदूक से बनी सीिढ़य पर चादर िबछाई जात । म मी क हाथ से कढ़ाई क ई चादर। पूरी जगह पर चादर िबछाकर सजावट का काम शु हो जाता। घर म इ तेमाल होने वाले टल, ब से, प सभी क आज ब त पूछ होती। कम से कम चार या तीन सीिढ़याँ तो बनती ही थ । और पास म भी कछ ऐसे सेिटग क जाती िक कछ ऊचा सजा िदया जाए। सबसे ऊपर बीच बीच ठाठ से सजता नटखट का हा का िहडोला। िजसे पालना या झूला भी कहते ह। उधर सभी इसे िहडोला ही कहते। एक गीत भी गाया जाता ह"िहडोला क वन डालो र झूलन आ रािधका यारी र।" िहडोले क ठीक दािहने तरफ महादेव का


कलाश पवत बसाया जाता, िजसम घर क सारी ई काम आ जाती। जब ई कम पड़ती तो तिकए को खोलकर उसम से ई िनकाल लेते। ई को ऐसे सेट िकया जाता िक वहाँ सफद रग ही िदखे। उसक ऐन म य म शंकर भगवा क चव ी म खरीदी िम ी क मूित रख देते और उसक ऊपर रबड़ का साँप उनक गले से िलपटा देते तािक वो असली का भाव दे। बीच म सफद पाइप का ब त छोटा टकड़ा लगा देते िक लगे गंगा का पानी आ रहा ह। रिडओ पर क ण भजन धूम मचा रह होते। क ण क िहडोले को रगीन अबरी से लेई क सहायता से खूब सजाते। उन िदन फिवकोल या लू नह होता था। आट को पकाकर लेई बनाई जाती। नाना तरह क िडज़ाइन पतंगी काग़ज़ क बनाते और झूला मु करा उठता। घर क ल गोपाल को उसम िबठाकर उ ह झूला झुलाने क िलए एक सुंदर सा रबन बाँध देते या सुंदर सी रािखय से बनाई डोरी जो र ाबंधन उपरांत सँभाल कर रख दी जात । बािक सीिढ़य पर घर म रखे दूसर बड़ िखलौने, दूसर भगवा क त वीर, ला टक क फल क गुलदान रखे जाते िज ह माँ, बड़ी बहन बनाया करत । ला टक क रगीन तार तथा फल से बने गुलद ते िजनम रग िबरगे मोती िपरोए जाते। यूज ब ब और टोव म इ तेमाल आने वाली पीतल क कटोरी भी टड का काम करती। ऐसे फलदान अपने सुंदर पु प क साथ हसी ठ ा करते। उन िदन टोव पर भी खूब खाना बना करता। राशन दुकान से करोिसन िमलता जो टोव का धन होता। िफर बारी आती सीिढ़य क नीचे क मैदान क । बीच बीच एक चौराहा बनाया जाता उसक चार िदशा िनकाली जाती और उन पर कटर, साईिकल बस, कार क छोट िखलौने दौड़ पड़ते। चौराह पर ितरगा िफक लाईट खड़ी कर दी जाती। इन चौराह , और चार सड़क को बनाने क िलए आस पास क सड़क पर पड़ िब डग मैिट रयल म से थैली भर बजरी, रोड़ी, लाल ट का टकड़ा ले आते िजसे पीस कर लाल सड़क तैयार होती। नस नस म शरारत भर ब े कब इतनी मेहनत कर

लेते, भान ही न होता। अपने आस-पास क वतावरण को झाँक म ला खड़ा करते। घर क आल म रखे सजावटी सामान जैसे पशु- प ी, कबूतर क जोड़, तोते, िब ी, खरगोश, हाथी आिद भी आज झाँक म म त रहते। घर म कोई भी िखलौना चाह नया हो या पुराना आज शान से यहाँ बैठा अपना रौब झाड़ता। चार िह स म से एक भाग म यु का मैदान बनता िजस पर लकड़ी का बुरादा िबछा कर अलग लुक िदया जाता। उस बुरादे पर ला टक क छोट सैिनक खड़ कर िदए जाते जो अपने हाथ म बंदूक सँभाले होते। अब बारी आती उसक िजसक िलए सारी कवायद हो रही होती। न ह गोपाल को िसर पर रख मथुरा से उफनती यमुना क बीच से होकर गोकल ले जाते वसुदेव। उनक िलए यमुना भी बनानी होती और उसम आ रही बाढ़ भी। सो एक परात म पानी भरा जाता और उसम कपड़ धोने का िडटजट पाउडर िमलाकर उसे हाथ से िहलाकर उसम खूब झाग बनाए जाते। वे यमुना क उठते फिनल बन जाते। परात क ठीक बीच म एक चपट तले क म यम आकार क कटोरी को उ टा कर रख िदया जाता िजस पर वसुदेव क बीस पैसे म खरीदी िम ी क मूित िवराजती। जब झाग थोड़ी देर म बैठने लगते तो हलक से हाथ िहलाकर उ ह िफर से उठाया जाता। इन सबम यिद फल प े नह ह तो या मज़ा! सो अशोक क प े तोड़ कर लाते िजसक ब दनवार बनती। खूब सार गदे क फल से लिड़याँ बनाई जात । इन सब काम म माँ पापा भी हाथ बटँाते। पापा बेिसक काम म हमारी मदद करते जैसे छत बनाना। सािड़य को तरतीब से फलाना, लाइ स लगाना आिद। िदवाली क रगीन लाइ स से पूरी झाँक म चकाच ध हो रहती। इस पूरी ि या म हम ब े फलाहारी पकवान खाते रहते। भगवा का ब जो ठहरा। बीच-बीच म चुपक से एक दूसर क घर म झाँकने जाते िक उ ह ने नया या सजाया ह। कोई भी अपना काम पहले से िदखाना न चाहता था। िक तु देखने से मना भी न करता। 'ये नकल कर लगे', यह सोचकर मसोस कर रह जाता। रिडयो पर 71 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

का हा ज म क भजन अपना अलहदा रग िबखेर रह होते। सब अड़ोसी पड़ोसी आते, झाँक क तारीफ करते और हम शी से शंसा पाकर दोहर ए जाते। हमारी झाँक म आए लोग पैसे चढ़ाते, हम खुश हो जाते। झाँक पूरी लगने क बाद हम मंिदर म चले जाते जहाँ क तन हो रहा होता। वहाँ हम ब क टोली ढोलक, मंजीर, खड़ताल, िचमटा आिद सँभाल लेते। हम सभी को ब त से भजन याद रहते। सब एक-एक भजन तो गाते ही थे। िफर क तन होता। हर क ण हर राम। राधे राधे। हरी बोल पर तो अ ुत नृ य होता। सार ब े खड़ होकर झूम-झूम कर नाचते। बािक क बड़ लोग भी साथ ही होते। पूर िदन िजसका नाम सुिमरते आधी रात उसक ज म क घोषणा पंिडत जी शंख विन से करते। रात 12 बजे क हया को पंचामृत से ान कराया जाता। आरती होती और भोग लगता। और इस तरह सजती हमार बचपन म ज मा मी क झाँक जो अब क ब क सोच म भी नह ह। उसका अतुलनीय आन द उनक िक मत म कहाँ? वह महा आन द तो अिनवचनीय ह। इस आन द म िसफ मौज ही मौज होती िकनार का कोई अ त व नह । गहर खूब गहर उतरते बचपन क िस धु म और हाथ आते मोती, भर भर झोली। मोती ऊजा क, खुिशय क, उ ास से चमकते मुख क, आन द क। अब ब क बचपन म प रवतन आ गया ह। आज क भयावह समय ने उनसे छीन िलया ह उनका मौिलक अिधकार खेलना। बाहर खेलना। ब क टोली म खेलना। िमलजुल कर खेलना, हसना-िखलिखलाना, एक दूजे संग छोटी-छोटी खुिशय को जीना, न ह चाहत को बड़ी जीत म त दील करना। जब वे खेल ही नह पाते तो कसे सजाएँगे ज मा मी क झाँक जो हमार बचपन का एक ज़ री और खुशनुमा द तावेज़ था। बचपन िजसे िफर से जीने क सभी क हसरत रहती ह। िबना समझ क भी हम िकतने स े थे। वो भी या िदन थे, जब हम ब े थे। 000


पहली कहानी

आिख़री ख़त

अिदित िसंह भदौ रया

आज िवनोद बाबू ब त उदास ह। अपनी प नी सं या क तेरहव को अभी-अभी पूण करक अपने कमर म आख ँ मूँद कर कछ देर बैठना चाहते ह, पर जैसे ही आख ँ बंद क , उनक आँख क आगे अपनी बेटी िद या का चेहरा आ गया। आज िवनोद जी को अपने अकलेपन से यादा अपनी बेटी क अकलेपन क िचंता हो रही ह। वह उठ और िद या क कमर म गए, वहाँ जाकर उ ह ने िद या को अपने िब तर म उदास लेट देखा और उसक िसर पर ेम से हाथ फरते ए कहा, "म जानता िक तुम आज या महसूस कर रही हो! यह मेर िलये कह पाना ब त मु कल ह, पर बेटा तुम मेर िलये ब त अनमोल हो। आज तक तु हार साथ जो भी नाइसाफ ई ह, म भी उसक िलए िज़ मेदार । तु हारी माँ ने तुम म और तु हार भाइय म जो दूरी रखी ह, एक तरह से भेदभाव िकया ह, अब म उसका ाय त क गा और तु ह िकसी भी तरह क तकलीफ नह होने दूँगा।” इतना कहकर िवनोद बाबू अपने कमर म लौट आए और आते ही अपनी प नी क त वीर क सामने खड़ होकर कहने लगे, " य िकया तुमने ऐसा, आिख़र या कमी थी मेर यार म.....!" वह अपनी आँख को बंद करक बीते समय म प च गए, जब वह पहली बार अपने मातािपता क साथ सं या को देखने गए थे। सं या क सादगी ने िवनोद बाबू और उनक प रवार का मन मोह िलया और शादी प क हो गई। सं या क प म एक सुशील ब पाकर िवनोद बाबू और उनका प रवार म खुिशयाँ छा गई थ । िवनोद बाबू अपने माता-िपता क एक ही संतान थे। लेिकन सं या क आने क बाद उनक घर म बेटी का भी आगमन आ। दोन ने िमलकर एक सुखी प रवार बनाया। इन खुिशय को चार चाँद लगे, जब घर म िवनोद बाबू और सं या क पहले बेट का ज म आ, और नाम रखा गया, मुकश। प रवार बढ़ रहा था। मुकश क आने क बाद छोट बेट रतन का ज म आ। समय अपनी गित से चल रहा था। जीवन प रवतन शील ह। कभी -कभी बड़ी तेज़ी से करवट बदलता ह। िवनोद बाबू क िपता जी का अचानक देहांत हो गया। पा रवा रक डॉ टर ने बताया शायद हाट फल हो गया। िवनोद बाबू क माता जी का अपने पित से ब त लगाव था। वह अिदित िसंह भदौ रया सािहल िसि िवनायक टावर, लैट न बर यह सदमा सह नह पा । उदास रहने लगी थ और खाना-पीना कम कर िदया। िवनोद बाबू और 404 लॉक A, बांगोळी ायर, मयंक सं या ने उ ह इस दुःख से उभारने क ब त कोिशश क । पर उनक सेहत िगरती ही गई। जब यू वॉटर पाक क करीब, िबचौली मरदाना, जीने क इ छा समा हो जाए, तो डॉ टर भी कछ नह कर सकता। िवनोद बाबू क माता जी अपने पित क िबना जीना ही नह चाहती थ । पित क मृ यु क तीन महीने बाद ही िवनोद बाबू क इदौर, म य देश -452016 माता जी ने ाण याग िदए। मोबाइल- 8959361111 प रवार मु कल समय से गुज़र रहा था और इस मु कल समय म सं या क तीसरी बार माँ ईमेल- aditisingh9977@gmail.com 72 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


बनने क खबर ने ह क सी शी दी। पर सं या का वा य ख़राब हो रहा था। इसिलए सं या अपनी माँ क पास चली गई। कछ महीन क बाद िवनोद बाबू को बेटी क होने का समाचार िमला। वह खुशी-खुशी अपनी बेटी को देखने जब प चे, तो देखा क सं या ब त नाराज़ थी। जब िवनोद बाबू ने कारण पूछा तो सं या ने कहा, ''म बेटी क माँ नह बनना चाहती थी; िकतनी मुसीबत क बात ह।'' सं या क बात सुनकर िवनोद बाबू हरान तो ब त ए पर उनको लगा िक शायद सं या थक ई हो। सं या ने उ ह ब से भी नह िमलने िदया। वे ब से िमले िबना ही लौट आए। जब कछ महीन बाद भी न तो सं या घर वािपस आई और न ही िवनोद बाबू को िमलने आने िदया तो िवनोद बाबू परशान हो गए। उ ह ने कारण जानना चाहा और एक िदन सं या क माँ क घर प च गए। सं या क वभाव म आए प रवतन को िवनोद बाबू समझ ही नह पा रह थे। सं या से कारण पूछा तो उसने कहा, 'मने आगे क पढ़ाई शु कर दी ह, आप तो मुझे ब े पैदा करने क मशीन बना रह ह और हाँ अब म िसफ ब को ही नह पालूँगी, अपने िलए भी कछ क गी।' िवनोद बाबू ने सं या को समझाना चाहा 'सं या, तुम घर तो चलो, हम घर क काम क िलए सहायक रख लगे। तुम जो करना चाहती हो करना।' सं या ने िवनोद बाबू क बात को अनसुना करक भाव रिहत चेहर से कहा-'लड़क को हॉ टल म भेज दीिजये, म बेटी संग अपनी माँ क साथ र गी।' यह सुन िवनोद बाबू का गला भर गया'तलाक चाहती हो।' आँसे होकर उ ह ने पूछा। 'नह अलगाव... ' कह कर सं या ने घर का दरवाज़ा बंद कर िलया। भारी मन से िवनोद बाबू अपने घर लौट आए। माँ-बाप क देहांत क बाद वे पहले ही ब त टट चुक थे, और अब प नी से अलगाव। वह इस मानिसक थित म नह थे

िक, लड़क क देखरख वयं कर सक। अतः लड़क को हॉ टल म डाल िदया गया। कछ ही समय म हसते-खेलते प रवार को नज़र लग गई। सब कछ िबखर गया। सं या अपनी बेटी क साथ माँ क घर म रहने लगी। पहले अपने बेट को वह िमलने जाती थी पर नौकरी लगने क बाद अब समय नह िनकाल पाती। िवनोद बाबू ने भी अब उसे समझाना छोड़ िदया। उ ह ने बेट और काम म वयं को य त कर िलया। काम म बढ़ती िज़ मेदा रय क कारण अपनी बेटी से भी अिधक िमल नह पाते थे। दरअसल सं या को देखते उनका मन दुखी होता। सं या िदन-ब-िदन बदलती जा रही थी। ल बा समय बीत गया। िवनोद बाबू ने अकलेपन से दो ती कर ली थी। दोन बेट पढ़ - िलख गए और उनक अ छी जगह नौक रयाँ लग ग । एक बसूरत सुबह दोन बेट ने अपनी पसंद क लड़िकय से शादी करने का ताव जब िवनोद बाबू क सामने रखा तो वे बेहद खुश ए, पर साथ ही उनक चेहर पर िचंता क रखाएँ भी उभर आ । अगर शादी म सं या और िद या शािमल नह तो? दोन बेट क शािदयाँ ब त सादा तरीक से स प । बेट धूम-धाम क शािदयाँ नह चाहते थे। सं या और िद या आ ज़ र पर बड़ी आ मसंयमी-सी दूर-दूर रह । िद या माँ क साथ ही अिधकतर रही। िपता और भाइय से उसने कम ही बात क । िवनोद बाबू जब भी सं या और िद या क समीपता देखते, तो उ ह ब त दुिवधा होती, असमंजस हो जाते। सं या क श द उनक कान म गूँज जाते- ''म बेटी क माँ नह बनना चाहती थी; िकतनी मुसीबत क बात ह।'' वे सोचने लगते, अगर सं या को बेटी नह चािहए थी, तो वह िद या को पलक पर बैठा कर कसे रख सकती ह? उसे बेट से भी अिधक यार करती ह। िद या क ित उसका यार उसक तन -बदन म झलकता ह। सारी उ िद या को भाइय और िपता से दूर रखने का कारण भी वे समझ नह पाए! समय क गभ म या छपा होता ह, िकसी 73 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

को कछ मालूम नह ...अचानक ख़बर आई, सं या को कसर हो गया ह और ला ट टज ह, अ पताल म ह। सब अ पताल प चे। सं या क हाथ म िद या का हाथ था और दोन क चेहर पर डर था। िवनोद को देखते ही सं या क चेहर पर डर क जगह शांित आ गई। उसने बड़ य न से अपने िसरहाने क नीचे पड़ा एक िलफ़ाफ़ा िनकाला और िवनोद क हाथ म देते ए कहा, 'मेर जाने क बाद पढ़ना।' कह कर सं या ने आँख मूँद ल । िद या अपने म खो गई, माँ का यूँ चले जाना उसक िलए बड़ा आघात था। वह िकसी से बात नह करती। बस सं या क त वीर क पास खामोश बैठी रहती ह। माँ-बेटी सहिलय क तरह रहती थ । िवनोद बाबू को उनका संबंध खटकता भी था, जो यार सं या अपनी बेटी को देती थी, बेट क नसीब म वह यार नह था। यही कारण था वे बेट क ओर अिधक झुक गए। अतीत से छटकर िवनोद बाबू ने ख खोल । उ ह कछ याद आया। वह उठ और अपनी अलमारी क पास प चे। अलमारी खोल कर सं या का िदया िलफ़ाफ़ा िनकाला जो वह वहाँ रख कर भूल गए थे। िलफ़ाफ़ा िनकाल कर उसे देखने लगे। सं या ने अ पताल म उ ह यह कहकर िदया था िक मेर बाद पढ़ना। िवनोद बाबू ने िलफ़ाफ़ा खोला। उसम सं या का िलखा एक प था, प सं या क सुंदर िलखाई म था, वह पढ़ने लगेि य िवनोद, म जानती िक आप मुझसे नाराज़ ह। आपने मुझे सब कछ िदया, िजसक क पना लड़क करती ह। ढर सारा यार और स मान। दोन बेट क बाद जब माँ बनने क ख़बर सुनी तो म भी ब त खुश ई। मेरी तबीयत ठीक नह थी। म माँ क पास आ गई, पर म नह जानती थी िक यह िवधाता क मज़ थी, म इस ब े को माँ क पास ज म दूँ। िद या क ज म क बाद मने आपसे कहा-'म बेटी क माँ नह बनना चाहती थी; िकतनी मुसीबत क बात ह।' और िक म आगे पढ़ना चाहती और बेट को भी दूर कर िदया। िकसी िवशेष कारण से। िद या को भी आपसे या िकसी से भी नह


िमलने िदया। मने िकसी र तेदार से भी अ छा यवहार नह िकया, िजससे सब दूर हो गए। सब मुझे घमंडी, वाथ और न जाने या या समझने लगे। आप भी मेर बार म ग़लत ही सोचते रह। मने सार दोष वीकार। जानना चाहगे य ? मने यह सब अपनी बेटी क िलए िकया, जब मुझे यह पता चला िक िद या न तो हमारी बेटी ह और न ही हमारा बेटा। म डर गई थी िक, कह लोग उसे अपने मनोरजन का साधन न बना ल। मुझे यही सही लगा िक म सबक नज़र म बुरी बन जाऊ, पर अपनी बेटी को बचा लूँ। मेरी माँ ने भी मेर इस वचन को िनभाने म अपना पूरा जीवन लगा िदया। मुझे माफ़ कर दीिजये। मुझे आपसे भी यह बात िछपानी पड़ी, पर म ब त डर गई थी। आप भी इसे िकसी को मत बताना। आप चाह तो इसे ज़हर दे देना। आज जब मुझे पता चला ह, म यादा िदन तक नह बचूँगी, तो मेर अंदर िद या को लेकर असुर ा आ गई, अब इसका या होगा? िवनोद बाबू क हाथ से खत नीचे िगर गया। आज वह अपनी ही नज़र म िगर गए। उ ह ने अपने बेट को बुलाया और सं या का प सबको पढ़ाया। सबक नज़र म अपनी माँ क िलए स मान था। तभी बड़ी ब ने कहा, 'हम माँ क बानी को यथ नह जाने दगे, िद या दीदी हमेशा हमार साथ ही रहगी।' िद या को बुलाया गया। िवनोद बाबू ने िद या क िसर पर हाथ रखकर कहा-' मुझे सब पता चल चुका ह, तुम घबराओ मत बेटा। यह तु हारी माँ क तप या का ही फल ह, आज से तुम कभी उदास नह होगी।’ िवनोद बाबू क छोट बेट ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने बड़ भाई क पास ही आकर अपना कारोबार शु िकया, िजसम िद या को भी शािमल िकया गया। िजससे िद या अपने पैर पर खड़ी हो सक। अब िद या क आँख म उदासी नह ब क उ मीद क एक रोशनी थी। अपनी माँ क ित आदर और ेह था। उसक माँ क आिख़री ख़त ने उसक जीवन क िदशा बदल दी। 000

लघुकथा

खेती

डॉ. वीर कमार भार ाज

"अर वह आदमी िगरकर बेहोश हो या ! " "अर हा.ँ..। देखो-देखो ..... ।" यह भी दौड़ा, वह भी दौड़ा और अगलबगल क लोग भी दौड़। कछ ने अपने-अपने तरीक से होश म लाने का य न िकया। पर असफल। िफर दो आदमी आपस म सलाह लेकर एक गाड़ी से अ पताल ले भागे । "म कहाँ ?" होश म आने क बाद बेहोश बोला। ''जी भाई साहब, आप ......।"और पूरी कहानी बताई दो म से एक आदमी ने। "आप सब का ब त ऋणी र गा भाई साहब .....।" हाथ जोड़कर कत ता जताई उस रोगी ने। िफर आगे बोला, "तो अब हम चलना चािहए ? " "नह भाई साहब, डॉ टर क अनुसार कल तक आपको यहाँ ठहरना होगा। " एक दूसरा आदमी बोला। "तो लीिजए इस न बर पर मेर घर फ़ोन कर दीिजए। लड़का तो नह , पर ब घर पर होगी।" जेब से एक नंबर िनकालकर िदया रोगी ने उस आदमी को। मु कल से 4o- 45 िमनट का रा ता होगा अ पताल से रोगी क घर का, पर लगभग 3 घंट बाद उस घर क बुआ आई एक र शा लेकर। "च ा ....." देखकर फफक पड़ी बूआ। लोग ने समझा - यही पतो ह। "म रो सुिगया। म एकदम से ठीक । पर ब ...?" "घर ही पर ह। फ़ोन तो गया था, बोल - उ ह तो रोज़ कछ-न-कछ होते ही रहता ह। ज द से काम िनपटा लो सुिगया, अ पताल जाना होगा।" इन श द ने बूढ़ क आँख से झर-झर आँसू बहवा िदए । ह ठ फरकने लगे। 000 डॉ. वीर कमार भार ाज, शेखपुरा, खजूरी, नौबतपुर, पटना-801109 मोबाइल:9334884520 74 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


िल यांतरण

ग़ािलब अंड गोएट मूल रचना – हाजी लक़ लक़ अनुवाद – अखतर अली

जहाँ िजस भाषा का कोई जानकार मौजूद न हो, वहाँ उसक िलये भी उस भाषा का िव ान हो जाना आसान काम ह िजसे बोले जाने वाले िवषय का अंश मा भी ान नह ह। िज ह अं ेज़ी िबलकल नह आती उनक सामने ग़लत सलत अं ेज़ी बोल कर भाव पैदा िकया जा सकता ह। िजसे अं ेज़ी ज़रा भी नह आती वह भी अं ेज़ी इस अंदाज़ म सुनता ह मान समझ रहा हो। िक सा यह ह िक बिलन क बार म िमज़ा कािसम और सरदार ीतम िसंह अपने-अपने लास से चु कया ले रह थे। ीतम िसंह ने िमज़ा कािसम से कहा – म इटली जाना चाहता , वहाँ मेर िलये ब त संभावनाए ह ; लेिकन मेर पास इतने पैसे नह ह। िमज़ा कािसम ने कहा – पैसे तो मेर पास भी नह ह वरना म ही दे देता। ीतम िसंह ने िनवेदन िकया – िकसी जमन से कज़ ही िदला दो। िमज़ा ने कहा – इनसे उधारी तो नह िलया जा सकता पर इनसे कछ पैसा कमाया जा सकता ह। ीतम िसंह क आख ँ चमक उठी और उसने पूछा – कसे ? िमज़ा कािसम बोले – यह बताओ तुम िमज़ा ग़ािलब को जानते हो ? ीतम िसंह ने याद करते ए कहा - िमज़ा ग़ािलब िजनक चूने क दुकान थी। अब इसी तरह क िकसी जवाब क उ मीद म िमज़ा कािसम ने पूछा - गोएट को जानते हो ? ीतम िसंह ने याद करते ए – एल.आई.सी. एजट थे या ? िमज़ा कािसम ज़रा भी नाराज़ नह ए और कहा – बिलग म चार िदन बाद तुमको एक काय म म ग़ािलब अंड गोएट क काम क तुलना करना ह, अं ेज़ी का एंड यहाँ प चतेप चते अंड हो जाता ह। ीतम िसंह ने कहा – लेिकन म इन दोन क बार म जानता नह तो बोलूँगा या ? अखतर अली िमज़ा कािसम ने कहा – घबराओ मत, अगर बोलने वाले और सुनने वाले भाषा और िवषय िनकट मेडी ह थ हा पटल, आमानाका, से अनिभ हो तो काय म क सफ़लता िन त ह। तुमको िह दी म बोलना ह और सुनने वाल रायपुर (छ ीसगढ़) को िह दी समझ नह आती वो बस तु हारी भाव भंिगमाएँ समझगे। तु हारा व य पूरी तरह मोबाइल- 9826126781 ईमेल- akhterspritwala@gmail.com तु हारी बॉडी ल वेज क मा यम से सुना जाएगा और अंग क भाषा म याकरण क ुिट नह 75 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021


होती ह। यह सािह य अकादमी का काय म ह इससे सािह य क जानकार दूर ही रहते ह, इसम चंद अफ़सरान अपनी बेगम क साथ बतौर फ़शन आते ह। सजे सवँर ये लोग एक दूसर से हाथ िमलाते ह, नज़र िमलाते ह, एक दूसर का अिभवादन करते ह, काय म को छोड़ इनका यान चार ओर रहता ह िक कौन कहाँ या कर रहा ह। ीतम िसंह ने परशान होकर कहा – लेिकन भाई मेर ग़ािलब एंड गोएट क संबंध म कछ बोलना भी तो होगा ? िमज़ा कािसम ने कहा – सब से पहले तो यह बात अपने यान म िबठा लो िक वह एंड नह अंड ह। ीतम िसंह ने अपनी ग़लती वीकारते ए कहा – ठीक ह अंड को अब अंड ही बोलूँगा पर इसक आगे या बोलूँगा ? िमज़ा कािसम ने कहा – एंड को अंड बोलना ह और िफर अंड बंड संड बोलना ह। अ छा यह बताओ लड़कपन म तु हारा शौक या रहा ह ? ीतम िसंह ने कहा – म शु से िह दी िफ म का शौक न रहा । सुनते ही सम या का समाधान हो गया और िमज़ा कािसम ने कहा मंच से तुम भाषण क अंदाज़ म िफ़ मी गाने गाना िजसक हर लाइन क अंत म बोलना होगा ग़ािलब अंड गोएट। अब यह तय रहा िक रिववार को होमबग हाल म ग़ािलब अंड गोएट पर क त एक आयोजन होगा िजस पर तुम सरदार ीतम िसंह जो िह दी क िस िवचारक ह इसक मुख व ा होगे। रिववार को होमबग हाल लगभग प ीस ोता से खचाखच भरा था। काय म अपने िनयत समय पर आरभ हो गया। उ ोषक महोदय ने एक-एक कर मुख लोग को मंच पर बुलाना आरभ िकया। अ य , मु य अितिथ, िवशेष अितिथ, व र संपादक, मुख प कार, िमिन टर, मेयर, सां कितक सिचव, व ा एक, व ा दो, व ा तीन इस तरह मौजूद प ीस लोग म से प ह लोग तो मंच पर िवराजमान हो गए। हर आयोजक क सम यह ब त गंभीर

संकट ह िक जब तक मंच पर न िबठाओ व र लोग काय म म आते ही नह ह। अब स मान का िसलिसला आरभ आ। सब को बुक देकर स मािनत िकया गया, िफर सबने दो-दो श द कह इसम इतना व ज़ाया हो गया िक जब मुख व ा क बोलने का समय आया तो उ ोषक महोदय ने िनवेदन िकया िक समय ब त हो गया ह इसिलये आज क मुख व ा सरदार ीतम िसंह जी से िनवेदन ह िक वे अपनी बात कम से कम श द म कह। अब तक िकसने िकस भाषा म या- या बोला यह तो ीतम िसंह को समझ म नह आया लेिकन उ ोषक क भाव भंिगमा से वह यह समझने म सफ़ल रह िक अब माइक पर उ ह बुलाया जा रहा ह। अब ग़ािलब अंड गोएट पर बोलने क िलये माइक पर सरदार ीतम जी आ चुक थे, अपने अंदर क पूर आ मिव ास को समेट कर उ ह ने अपनी ज़बान पर रख िदया, सुनने वाले उसी मु ा म पैर पर पैर रख बैठ गए जैसे िकसी बुि जीवी को सुना जाता ह। उ ह ने उस िदन सुना और खूब दाद दी और सािबत कर िदया िक सुनने का समझने से कोई संबंध नह । ीतम िसंह ने माइक सँभालते ही कशल व ा क तरह गंभीर मु ा म कहना शु िकया– भाईयो और बहन – यार आ इकरार आ यार से िफर य डरता ह िदल, कहता ह िदल ग़ािलब अंड गोएट। ग़ािलब अंड गोएट सुन कर ोता खुश हो गए और उ ह ने भरपूर तािलयाँ बजाई। जब ताली बजना क ग तब ीतम िसंह ने उसी अंदाज़ म बात आगे बढ़ाते ए कहा – सौ साल पहले मुझे तुमसे यार था मुझे तुमसे यार आज भी ह और ग़ािलब अंड गोएट कल भी रहगा। यह सुनते ही ोता ने आसमान िसर पर उठा िलया और एक दूसर क तरफ़ देख कर कहने लगे या बात कही ह मज़ा आ गया। ीतम िसंह ने कशल व ा क तरह ोता को शांत होने का इतज़ार िकया और िफ़र उसी वाह म कहने लगे – एक यार का 76 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

नगमा ह, मौज क रवानी ह, िज़ंदगी और कछ भी नह ग़ािलब अंड गोएट क कहानी ह। इस बार तो कमाल हो गया लोग मंच पर जाकर ीतम िसंह से हाथ िमलाने लगे। ीतम िसंह ने भी उनक यार को उनक अिभवादन को वीकारा और बोल पड़ – जो तुमको हो पसंद वही बात कहगे, तुम िदन को अगर रात कहो रात कहगे, देते न आप साथ तो मर जाते हम कभी क, पूर ए ह आप से अरमान िज़ंदगी क, हम िज़ंदगी को ग़ािलब अंड गोएट क सौग़ात कहगे। यह सुनते ही े ागृह म शोर बरपा हो गया िजसका अथ था वाह वाह व स मोर। अब तो ीतम िसंह को भी मज़ा आने लगा था और वह पूर जोश-खरोश क साथ कहने लगे – िकतने आदमी थे ? वो दो थे और तुम तीन िफर भी लौट आए वह भी खाली हाथ, या सोच कर आए िक सरदार खुश होगा, शाबाशी देगा ? वे दो थे और तुम तीन। वे दो थे, वो दो थे, वे दो थे ग़ािलब अंड गोएट। अब तो ोता वयं को रोक नह सक और ीतम िसंह क स मान म लोग अपने थान पर खड़ होकर तािलयाँ बजाने लगे। ीतम िसहं होमबग क मंच से कछ और कहते तभी उ ोषक महोदय माइक पर आए और अपनी मातृ भाषा म कहने लगे – सािथयो ीतम िसंह का ओज वी व य सुनने क अभी और इ छा थी। मन तो यही कह रहा ह िक ये बोलते जाएँ और हम सुनते जाएँ। ग़ािलब अंड गोएट क िवचारधारा का यह तुलना मक अ ययन हमेशा याद रहगा। हम भिव य म एक बार िफर यहाँ ीतम सर को आमंि त करगे और उ ह सुनगे लेिकन अभी समय को देखते ए आज क काय म क समापन क घोषणा करता । दो िदन बाद िमज़ा कािसम सरदार ीतम िसंह को इटली रवाना करने एयरपोट गए। सरदार ीतम िसंह को अकादमी क तरफ़ से बतौर पा र िमक स मानजनक रािश िमली थी इसिलये उनक जेब भारी थी। 000


किवताएँ

जैसे धूप-गम म दोपहर क सड़क, जैसे वायरस क कारण क यूटर, जैसे बेटी क शादी क बाद िपता क हाथ सीट जानना चाहती ह2020 म या आ िक याि य को देखने क िलए तरस ग उनक व थ आँख। 000

खेमकरण 'सोमन' क किवताएँ

ज़रा मुझे भी बता दो

2020

मने पंखे से पूछाेम या ह? मेरी बात सुनकर वह बोला कछ नह बस ज़ोर-ज़ोर से घूमते ए देने लगा ठडी हवाएँ

ब त उदास ह बस क सीट जैसे पाट बदलने क बाद भी न िमला हो िवधायक का िटकट या हो ग ह बुरी तरह बेरोज़गार िछन चुक हो चेहर क रौनक उजड़ गया हो यु म घर-प रवार, आिशयाना जैसे खो गया हो िज़दंगी जीने का पासपोट

पर बात अटक ई थी जैसे अटक ह गले म मछली क काँट इसिलए अब मने िहरनी से पूछाेम या ह? कछ कहो सखी

िफर मने सोचा एक बार धूप से भी पूछ लूँ िक या सोचती ह वह ेम पर तो वह िलपटती चली गई मुझसे! मुझे लगा िकसी लड़क से भी पूछना चािहए तो पूछ बैठा उससे जो पढ़-िलख रही थी समाज को! मने पाया िक उसक िलए तो धम, जाित, ऊच-नीच, ेत-अ ेत का कोई अथ ही नह ेम क सामने! म सोच म पड़ गया बहरहाल...बरस बाद कल एक ब े ने पूछा मुझसेया ह ेम या बता सकते हो तुम मुझे?

मन बेचैन ह इतना िक बार-बार झाँकने लगती ह िखड़िकय से बाहर िक आ सक कोई या ी तो हो जाए उनक जीवन म भोर का आगमन या कछ चहल-पहल, कछ हरीितमा

िहरनी ने ल बी साँस ल िफर ल बी कलाँचे भरती ई खो गई जंगल म

मने उसक िसर पर हाथ रखा, िफर कछ टॉिफयाँ दी, कछ पेन, िब कट कछ िकताब द , कछ घर क िलए उपहार

अब मने पूछा नदी, आकाश और बादल से िक ेम या ह? ज़रा मुझे भी बता दो!

वह मु कराने लगा िफर ध यवाद-ध यवाद कहते ए दौड़ पड़ा अपने घर क ओर

हाथ म हाथ डालकर पूछ रही ह एक-दूसर से िक- सिखयाँ ! कब होगा दूर- दुःख का कालाप कब आएँगे या ी िजनसे हो सक घर-प रवार, समाज-राजनीित क बात

नदी मु कराने लगी तभी उसम से पानी क कछ बूँद िगर पड़ मेर चेहर पर यक न क िजए म तर, बेहतर होता चला गया

जहाँ ेम क अनूभूित नह होती वहाँ अनुभूित होती ह ऊच-नीच, दंगे और यु क । 000

सीट ह खाली जैसे भूख क सामने खाने क खाली थािलयाँ जैसे इन िदन पढ़-िलखे य य का िदमाग, जैसे खेलने-कदने क मैदान,

आकाश भी हस पड़ा तो देखा ब त गहराई ह उसक हसी म बादल ने बा रश करक नहला िदया सबको िक पिव हो गई यह दुिनया लहलहा उठ खेत-खिलहान, जंगल 77 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

खेमकरण 'सोमन' िह दी िवभाग, गोपाल बाबू गो वामी राजक य ातको र महािव ालय चौखुिटया, अ मोड़ा, उ राख ड-263656 मोबाइल- 09045022156 ईमेल- khemkaransoman07@gmail.com


एकता कानूनगो ब ी क किवताएँ लाइमलाइट चकाच ध का अपना ितिल म ह, हर चीज़ चमकने लगती ह रोशनी म, कोयला भी जगमगाता ह हीर क भाँित। रोशनी क चाह ललचाती ह हम, सब कछ पा लेने क असमा इ छा पैदा करती ह। जब िगरती ह कोई रोशनी वयं पर, बैचेन होने लगता ह मन, गौर से देख तो एक अनजान श स नज़र आता ह अपने सामने, आ ममु ध, आ म शंसा का चोगा धारण िकए, घुटने टक ए, डरा आ एक य नज़र आता ह आईने म। च ध और जगमगाहट से पर अपने िह से क अधँेर म, िछटकती चाँदनी तले, कोई अपने संघष शु करता ह, जहाँ से िसतारा बनने क या ा शु होती ह। 000 सरोकारी लेखक नई प रभाषाएँ गढ़ रहा वह अपने श द से

रच रहा एक नई दुिनया प प से िनकल रह श द जैसे जनवाणी, जनघोष म बदलने को आतुर िवचारधारा क गूँज और स यता क खुशबू से भर रोटी क इतज़ाम म संघषरत आदमी क आवाज़ तो कह बन जाते हौसले म पसीने क बूँद बेसुध ह अपने आप से सृजन म लीन सुधी लेखक बदल देगा कई जीवन िचंतन और ान क िवरासत दे जाएगा आने वाली पीढ़ी को वष बाद जब कोई शोध होगा तब िमलेगा फटा धूिमल सा कोई िच कह िकसी जगह छपता िझझकता आ महा श द और िवचार क ओट म जानगे हम तब शायद लेखक क सरोकार। 000 थ िनंग अपनी महगी ' थ िनंग' क पहले िदन अकड़ी ई मांसपेिशय और थकान क बीच तु हारी बड़ी याद आई। तु हारा 'वाम अप' तो उसी व हो जाता होगा जब माँ क साथ-साथ छोटी सी हांडी म बड़ी दूर से पानी लादे अपनी झोपड़ी म लौटती होगी। इस तरह आ ही जाती होगी भिव य म बोझा उठाने लायक थोड़ी सी थ। 78 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

जंगल क ख मीठ फल तु ह देते ह गे ऊजा, बक रय क झुंड और तु हार दो त क िखलिखलाहट तु हार जोश को बनाए रखते ह गे, जैसा मेरा यह काम ' ोटीन ि स' और ' यूिजक बी स' करते ह। कसा महसूस आ होगा तु ह? जब पहली बार उठाई होगी रत से भरी तगारी, िकसी जुलूस को रोशन करते भारी लप का संतुलन बनाया होगा िसर पर, अपने दोन हाथ क मदद से। सोचती पहले थोड़ा ही उठाया होगा तुमने भी बोझ, ' थ िनंग' क िनयमानुसार धीर-धीर ही बढ़ाना पड़ती ह भार क मा ा, यही होता ह मांसपेिशय क मजबूती क िलए लाभदायी। होना तो यही चािहए था िक तुम भी धीर-धीर बढ़ाती अपने ऊपर भार। पर िनयम क उलट तुमने एक साथ ही उठा िलया जीवन का सारा बोझ। हमसे ब त आगे रही तुम खेलते कदते ही ले ली तुमने ' थ िनंग'। 000 एकता कानूनगो ब ी लैट न बर - 3, अथव रिसडसी, आिशयाना पाक लेन 2 ध पुणे 411007 मोबाइल- 7799000940 ईमेल- ektaindia21@gmail.com


न रगा जाए उसक हर श द हर आशय को लाल पीले हर गे आ रग म न लटकाई जाए उसक गले म कोई पागल घंटी कोई फटा ढोल बेसुर नाद का

काश मनु क किवता इन िदन आज सुबह से ही माथा भारी-भारी जैसे प थर जैसे प थर क भीतर चलती हो च क दगड़-दगड़ िपसता आटा गरम-गरम जैसे तपा आ वजूद रशा-रशा झड़ रहा जो झड़ रहा बुरादा प थर पर रगड़ खाता प थर बार-बार एक ही लय म य दोहराता ह— दुर-दुर-दुर... दुर-दुर-दुर... दुर-दुर-दुर...! कौन ह जो च क म िपस रहा लगातार कसी भय क च क िजसम अंदर और बाहर क दुिनया का अब कछ भी नह बचा साबुत

हर सुबह बेशम से हर सुबह काली सँवलाई ई जलती भ ी सी इन िदन खो गए ह सार रा ते खो ग िदशाएँ पैर क नीचे क सड़क तक बेपहचानी म कहाँ जाऊ, िकधर मन-मन भर क हाथ-पैर जैसे जूते ने हो काटा, जैसे िब ी ने हो चाटा ऐसे बजे मुँह पर बारह ऐसा बुरा सा िबगड़ा मुँह लेकर म कहाँ जाऊ कहाँ रख दूँ यह बदरग चौखटा जहाँ मुझे समझा न जाए पागल न उ मादी

म कहाँ जाऊ झूठ झूठ और बस झूठ िकधर अफवाह अफवाह जहाँ इसान को इसान और बस अफवाह बस, और उन पर फक िदए जाते ह अखबार क इसान समझा जाए भारी पुिलंदे अपने स े आवेश म थरथराता 79 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

एक परदा ह झीना सा परदा िजसक अंदर खेल चल रहा ह खु मखु ा और लोग ह जो कठपुतिलय क तरह नाच रह ह नाचे जा रह ह बरस से म िसर उठाकर देखने क कोिशश करता काली नफरत और उपे ा क अंतहीन धुँधलक क उस पार टटोलता संभावनाएँ सादा ब त सादा िन कवच संसार क जहाँ आदमी बस आदमी बनकर िजए न उठ उस पर सवाल न उगिलयाँ न हो उसका आदमी होना एक गाली और मुझे नज़र आता ह गम क जलती दोपहर म यास से हलकान क े का तरलाकर देखना िक जैसे क ण आँख से बेधना और अपनी बेचारगी एक साथ। 000 काश मनु, 545 से टर-29, फरीदाबाद (ह रयाणा), िपन-121008, मोबाइल- 09810602327, ईमेल- prakashmanu333@gmail.com


ितभा चौहान क जंगल और आिदवािसय को समिपत किवताएँ जहाँ आज़ादी क मायने ह कछ और यहाँ आज़ादी क मायने ह कछ और और क़द क मायने जुड़ ह स पूण दुिनया क आज़ादी से जब चलने क उ म उसने सीख िलया दौड़ना और तेज़ गित पकड़ने क समय दे बैठा धड़कन को शांत रहने का आदेश यानी िक वह चाहता कछ और था िकया कछ और भावना क न तर से काट िदए िकतन क पर और ऊची उड़ान क पि य का करता रहा िशकार उसक इस रह य को उजागर करने म पीिढ़याँ नाकाम वह इसानी भेष म कोई जंगली आदमी था हालाँिक वह जंगल म कभी नह रहा... 000 नदी अब न वो नदी ह नदी अब न वो नदी ह न िततिलयाँ न फल क अंबार

नदी को चीरती ई कोई मज़बूत चीख रोक देती ह उस का बहना चलना मचलना एक अ य दीवार देती ह उसे िफ़

गुलाम क तरह िसर झुकाए न ही मोहताज िकसी िनणय क िलए जाने से पूव क समय पर ... 000

वह छपाती ह अपनी आँख का पानी और उमड़ती ह भीतर ही भीतर

झूमता ह जंगल तु हारी तान पर

एक भारी दद क शोक को मनाने से पहले बन जाती ह हर-हर आकाश क पंछी व छद मगन म त तोड़ देती ह गुनाह का िपंजर फटती ह ाला सी बल वेग सी बह उठती ह करती ह तहस-नहस तोड़ती ह सारी बेिड़याँ एक िनरीह मनु य क जोड़ी भर आँख देखती ह बस दम भर तबाही को ... 000 उसका िह सा वह चुनती ह जंगल से अपने िह से का सामान मसलन लकड़ी, प े और अपनी वतं ता वह वतं ह देवदार क प और तदु क प म वह करती ह फ़क़ घर से बाहर तक अपनी मज़ से बनाती ह घर क िनयम वह चलती ह गुनगुनाती ह जीवंत हो उठता ह जंगल सारा उसी क इशार पर वह डरती नह स य समाज क य क तरह न ही ठहरती ह 80 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

कई बार देखना चाहा तु हारा वह प िजसम तुम अपने सबसे स ण म नाचते गाते हो हथेिलय म िलए ए एक भिव य और बाँधे ए गले व िसर पर अपनी सं कित क पहचान तु हारी हाथ क रखाएँ इस जंगल का सौभा य ह िविभ आवाज़ म रची बसी ेम क भाषा सुनाई देती ह जंगल क हर कोने और आठ िदशा हवा से होती ई वापस आती ह

िलखती ह बार-बार तु हारी सं कित क गीत झूमता ह जंगल तु हारी तान पर और िशयाँ महकती ह तुम जानते हो अपनी सीमाएँ माँगते हो बस उतना ही िजतने म होती ह िज़ंदगी क बसर .. 000 हर िदन काली रात ऊचे वृ से आती ई ल बी धूप ज़मीन पर पसर जाती ह अपने रशमी अहसास से बना देती ह हर एक कोने को खुशनुमा ल बी दोपहर काटती ह जीवन शाम क ढलान तक


धीर-धीर होती ह धरती शीतल आने वाली रात से करती ई संवाद ये हर िदन कछ यादा हर और रात कछ यादा काली होती ह रात म बेिफ न द िबना िकसी सपन क जुगलबंदी क साथ ठहरती ह िमटाती ह िदन भर क थकान और घुलती जाती ह काली रात क रोशनाई म कोई अंसतोष ज म नह लेता इस तरह होता ह एक स ी सुबह का आगाज़ अगली सुबह एक नए िदन क साथ करती ह वागत िफर से ह रयाली का ये फलसफा चलता ह उ भर िबना िकसी तंज, भय, ेष क िनःसकोच .अनवरत ... 000 कोई असंतोष नह मील क प थर सरीखे सबसे ाचीन या ह धरा पर दोन ही जंगल और उनक ह रयाली वतं ता और व छदता क म य चलती ह जीवन रखा पूरी होती हर आव यकताएँ जीवन िजसक जड़ ऊ वमुखी और शाखाएँ अधोमुखी ह आ या मक आकाश म सदैव रहती ह उप थत वा तिवकता का ितिबंब ह हमारी उपािधयाँ और अस याँ जो करती ह आस

िजनक जड़ आ बैठती ह भौितक आकाश म जमाती ह खुद को अ यंत गहर तल म कह मानिसक तंतु क बीच रच बस जाती ह या आप जानते ह ? मृग मरीिचकाएँ नह होती जंगल क भीतर... 000

दुिनया क सबसे खूबसूरत लोग दुिनया क सबसे खूबसूरत लोग रहते ह जंगल क म य जहाँ बहती ह ेम क निदयाँ िजनक रग हर और िकनार आसमानी ह... जड़ से सबसे ऊपरी िसर तक पसरा ह आकाश अपने फलाव को कभी नह समेटता जंगल निदयाँ करती ह संवाद एक हरी सी सुगंध घूमती िफरती ह चार ओर... एक मौन का संगीत गुनगुनाता ह हर पेड़ कित करती ह ंगार कित परमे र ह देती ह अशेष झोली भर-भर नह करती िनराश सिदय से मुि य म भरती ह एक पूरा ांड... 000 81 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

जीवंतता का नह लेते कोई िश ण वे सबसे अलग एक पूरी िवकिसत दुिनया से दूर रहते ह अपनी शत पर वे नह मानते िवकास क फ़लसफ़ न ही चाहते ह िकसी का िह सा होना अपनी पहचान को अपनी धड़कन और खामोशी म संजोये खड़ ह मजबूत पैर क साथ उनका मौसम अपना ह बादल अपने ह बा रश भी अपनी ह भाषा और िवधान अपने ह अपनी ह कहानी और किवताएँ नह ह मोहताज िकसी बाहरी आडबर क िव ान से न ही खोखले वाद क चमकती इबारत से न ही रखते ह कोई सरोकार उठते ए झूठ द भ क गुबार और बेशक मती असबाब से कछ ह उनम जो और कह नह ह तुम जो जीने से पहले मर जाते हो या ितल ितल िकसी झूठ डर म िपघलते रहते हो पल-पल या कर सकोगे जीवंत नायक का मुकाबला िजनक नस-नस म बहता ह जीवन और जीवन क नस-नस म जीवंतता जीवन क अंितम साँस तक वे जीवंतता का नह लेते कोई िश ण बस बचाए रखते ह एक पूण जीवन और जीवन जीने क आसार... 000 ितभा चौहान सं ित- िबहार याियक सेवा संपक- 8709755377 cjpratibha.singh@gmail.com


माँ बस ऐसी ही होती ह

चंचला ि यदिशनी क किवताएँ अप रिचत कौन माँ म कौन – कण या अजुन तू कण नह ह – कण सूयपु ज मा और राधेय बन कर पला दानवीर बनकर जीवन जीया और वह परशुराम िश य थािजसक मृ यु ई। तो म अजुन ही ना माँ नह तू अजुन भी नह ह कौ तेय ज मा ोणिश य वह स ससाची एक महायु का बस िनिमत मा था पाँचाली को क कल क वधू बनाने से लेकर अ जहता बनने तक – एक महायु का बस िनिमत मा ही था वह िफर कौन म माँ तू ह वह जो ज म से मृ यु तक बस एक रहा ना िकसी गु क िश ा का अिधकारी तू ना िकसी माँ क नाम का उ रािधकारी तू अतीत, वतमान और भिव य म – बस एक – एकल य। 000

मातृभूिम - क नाम ब त दूर भी और कछ मजबूर भी जानती तुम मुझे माफ़ कर दोगी िकतनी बार जैसे - तुमने कर िदया पहले भी यह समय गुज़र जाएगा िकतु व क गुज़र जाने क बावजूद भी ज़ म क िनशान तो रह ही जाते ह मगर इस बार म अपनी मजबूरी क नाम पर बैठी नह रह जा सकती म तु ह अपना खून नह दे सकती - य िक उसक तो मने िसयाही बना ली ह और अपनी लेखनी म भर िलया ह म अब मजबूर नह महसूस कर रही म तु हारी बेटी 000 82 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

वह ढढ़ लेती हमेर िकडरगाटन क नोटबुक म िखच ं ी आड़ी टढ़ी लक र म -इक सुंदर त वीर और संजो लेती ह उसे अपनी याद क अलमारी म बड़ जतन से िफर दे देती ह मुझे इक िव तृत संसार – मापने को माँ कछ ऐसी ही होती ह वो सुन लेती ह -मेरी खामोशी क कहानी उससे आख ँ चुरा कर जब म चुपचाप दाल म रोिटयाँ िभंगो कर खाने का उप म कर रही होती -तो वो पढ़ लेती ह वो कहानी जो मने िलखा तो नह अभी बस िजया ह और िफर जाने कसे वह सुलझा देती ह मेर उलझे सपन क बेतरतीब धागे िफर उनसे बुन देती ह -इक नरम रजाई िजसम िलपटी म सो जाती – गहरी न द माँ िफर से दे देती ह मुझे इक िव तृत संसार – जोखने को 000 ेमचंद आज क प र े य म मानसरोवर क धरती पर गोदान को गबन िकया नमक क दरोगा ने। बड़ घर क बेटी चली कफ़न ओढ़, सेवासदन को जो थी, आ माराम क रगभूिम। दो बैल क कथा को पंच परमे र ने ऐसे सुलझाया – गु ी डडा क खेल म जो जीते, वो ह – शतरज क िखलाड़ी। 000 Chanchala Priyadarshini 123 Hayward Road, Acton MA 01720 USA chanchalapriyadarshini1000@gmail.com


बना दो दु:ख क यह लुगरी हटा दो अ सरा से कहो आँगन बुहार देवता गाय को जाकर चारा डाल दोन को तकने को इक िचिड़या िबठा दो मुँह-मट का से तिनक दूरी बना दो

दीपक शमा 'दीप' क किवताएँ

े पाल को नह भेजा गया हो पान लाने कह दो भेज च िटयाँ इस िवलंब का भोग िफर भारी पड़गा

मौन मत साधो ह साधो!

ये िगलहरी अब बुलौआ देने जाए टोले भर को यह घड़ी िनमाण क अिनवाय और पावन इ को दौरी थमा दे घड़ी ह हाथ म इक फावड़ा दे मं साधो पोखर क िकस तरफ़ िम ी भली ह यह और उ ारो दस -िद पाल जाग डीह उ और उठकर दूब लाने तुरत भाग बता दे चौक पुरवाएँ िदशाएँ सारी निदयाँ गीत गाएँ काम पर लगवा दे आते ही सुर को और िलपवा दे घर को आज ी- ी मानव-जू क ज म क पहली फल क मालाएँ बनवाएँ िशवाले शती ह म जद गदे िपरोने मुिशद को झट बुलाएँ सार निबय को लगाएँ बोल दो अश-बर से य ह िफर आरती ह ढोल बजवाएँ हवाएँ आज तक क िजतने भी ईसा ए ह सार ऋिष, मुिन, ऋतुराज, वेद क ऋचाएँ आएँ रोट, चरणामृत, फल का काय अब आगे पु प क वषा कराएँ इस तरह संक प बाँधो बढ़ाएँ पवत क चोिटयाँ उ टी ह जाकर खाइय म जो मसाले कटने ह िततिलयाँ लाकर िदखाएँ इस तरह भँवर से बस गलचौर से या रीतना ह इस समय को जीतना ह इस समय से हार जाना हार जाना ह िवषय से यह परी ा क घड़ी ह मु ारा स को बता दो िकस तरफ़ और िकस तरह से भोज को डरा तनेगा िकस तरफ़ तंबू गड़गा िजस जगह पर पाँत बैठ वो जगह सुघरी

मौन मत साधो ह साधो! 000 म चलूँगा अकला ही चलूँगा चलते ए िमलने वाले हरक से जो ँगा हाथ क गा िनवेदन साथ चलने को लड़ने को इसािनयत क िलये बनाऊगा एक दल िजसका सेनापित होगा चूहा चूह क पीछ ह गे कतार म अनिगनत घुन घुन से कधे से कधा िमलाकर चलते ह गे दीमक दीमक क ठीक पीछ ह गे कछ कन तर 83 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

िलये घोड़ िजनम बैठ होगी इ

याँ

म इ य को बतला दूँगा वो सब जो बतलाया ह मुझे उनक पीछ क क़तार म बैठ कबूतर ने जो बैठ ए ह गे कौ क पीठ पे और उनक बगल म िटिटहरी क द ते गा रह ह गे 'हम ह गे कामयाब एक िदन' हम यक नन ह गे कामयाब जब होगी हमार साथ बंदर क टोिलयाँ िटिटिह रय से ठीक न बे क कोण म भालु क साथ चलते खरगोश सबसे पीछ क पं य म शेर, चीते, बाघ, हाथी उसी चूह क साथ खेलते लिड़याते जो ह मेर दल का सेनापित जो िततिलय से कर रहा ह बात बना रहा ह रणनीित और कहगा कनेर क फल से िबगुल फक और आगे बढ़ो आज जीत हमारी ह हम जीतगे और एक ज़ री बात िक कोई जगह नह होगी इस दल म िसयार, िब ी, लोमड़ी और साँप क िलये एवं तथाकिथत इसान तो सोच भी मत इधर आने क नह तो बोल दूँगा िब छ भाईय से देख लगे म चलूँगा अकला ही चलूँगा 000 दीपक शमा 'दीप', 343 - पे टक िसटी कॉलोनी, प ा रोड, सोहावल - 485441, सतना (म य देश) मोबाइल- 9540749166 ईमेल- deepaksharma434@gmail.com


भाषांतर

शंख घोष क किवताएँ

अनुवादक - रोिहत साद पिथक

शंख घोष (5 फरवरी 1932 - 21 अ ैल 2021) एक मुख भारतीय बंगाली किव और सािह यक आलोचक थे। वह एक मुख रवी िवशेष और एक श शाली लेखक थे। बंगला भाषा म िलिखत "िदनगुलीरातगुली", "िनिहत पाताल छाया", "मुख बोड़ो, सामािजक नोय", "बाबरर ाथना" आिद मुख िकताब। पुर कार प भूषण (2011), ानपीठ पुर कार (2018), सािह य अकादमी पुर कार (1977)।

आप क िव तृत मु ी को पकड़कर मने दय क आपा-धापी क म य शाम क समय आप एकदम से " िबखर जाते ह... िबखर जाते ह" जैसे श द से तबाह कर देते हो मेर भगवा ...! 000

बादल क जैसा मनु य

िदन रात क म य पि य क उड़ने क छाया बीच-बीच म याद आता ह हमारा अंितम िमलना-जुलना। 000

मेर सामने से टहलते ए जाता ह वह एक बादल क जैसा मनु य उसक शरीर क भीतर वेश करने पर मालूम पड़ता ह िक सारा पानी धरती पर झड़ जाएगा। मेर सामने से टहलते ए जाता ह वह एक बादल क जैसा मनु य उसक सामने जाकर बैठने पर मालूम पड़ता ह िक पेड़ क छाया आ जाएगी मेर पास वह देगा िक लेगा? वह या आ य चाहता ह? ना िक आ य म ह...? मेर सामने से टहलता आ जाता ह वह एक बादल क जैसा मनु य उसक सामने जाकर खड़ होने पर म भी संभवतः कभी िकसी िदन हो सकता बादल...? 000 तबाह

रोिहत साद पिथक क. एस. रोड, रल पार डीपू पाडा ाटर न बर:(741/सी), आसनसोल-713302 (प म बंगाल) मोबाइल: 8101303434/8167879455 ईमेल: poetrohit2001@gmail.com

ह! भगवा , तबाह हो जाने वाले रा ते पर चला था आप मेर तबाह हो जाने क पूर ऋणी हो जो कटोर म भर कर रखा था लेिकन 84 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

यौवन

ितिहसा युवती कछ नह जानती िसफ ेम क बात बोलती ह शरीर मेरा सजाई भी तुम बीते समय म... मने भी िति या म रखी थी सब बात; शरीर भरकर उड़ल िदया तु हार ऊपर अ न और वणता। 000 मेरी लड़िकयाँ िलख रहा जल क अ र से 'मेरी लड़िकयाँ' हर घर म आज भी भीख माँगने क हाथ म पड़ी ई ह। 000 बात क भीतर बात सभी नह , िफर भी ब त कोई बात क भीतर बात खोजते ह


सहज भाषा तुम भूल गए हो इस मूसलाधार बा रश म आ नहा ल। पानी क भीतर िकतने मु पथ ह...? कभी सोच कर देखो अब बािधत होकर बैठ रहकर, ब त यादा देर बैठ रहकर...िसफ बैठ रहकर दय ब त किठत हो चुका ह मालूम पड़ता ह अब या...? तु हारी कोई िनजी ग रमामई भाषा नह ...? य आज येक समय इतना अपने िव बात बोलते ह । 000 तुम म उड़ता िफ म घूमता िफ म सभी िदनमान रा त पर जलता िफ ... लेिकन मुझे अ छा नह लगता जब घर लौट तो न देख पाऊ तु ह "िक तुम हो...?" 000 देह आ रहा था सनातन मदैान से िनकलकर दय क ऊपर ब त यादा दबाव धीर-धीर सुलगती आग िजसे सामने से हण कर रहा । मेर सामने खड़ ह नगरवासी जो हड़बड़ाकर िच ाए जा रह ह;

"शरीर कहाँ ह ?....शरीर कहाँ ह ?..."

ग़ज़ल

अब म यह सब कछ नह सुन सकता , पॉकट म ह एक धुँधला आइना, टटी कघी, चादर, मुड़ी और नौका च पल (रबड़ हवाई च पल) आ रहा था म तु हार िलए...! 000 तुम बोले थे - 'जय होगा, जय होगा !’

दौलतराम जापित

तुम बोले थे ; 'जय होगा, जय होगा' इस तरह का िदन हमेशा नह होगा यह सुनकर न जाने िकतने धमाक ए आ य से मन ही मन नाचता ।

इतने िफ़तने िदमाग से िनकले रोज़ इक िजन चराग़ से िनकले सारा आलम धुआँ-धुआँ सा ह बफ़ सी सद आग से िनकले कोठरी से जनाब काजल क कौन बेदाग़, दाग़ से िनकले मसअला ह अजीब, हल इसका जोड़ बाक़ न भाग से िनकले िव लवी धुन िकधर गई 'दौलत’ साज! गुणगान राग से िनकले 000

उ सव से भराकर दुःख देखकर वाभािवक ही सोचता भयावह य। यिथत मन से--- हाथ म पकड़ा गए---म पीकर गया ती ज़हर। तुम बोले थे; 'दल होगा, दल होगा’ दल क बाहर नह होगा कछ और िनवेदन होने पर सब कछ बाहर होगा दुलभ चोटी क तरह हर जगह...! भूमंडल क म ी भुरभुरी होकर िगर रही ह हम लोग िकसी ग क नीचे दबने से बचगे। हर िम क दय म िवषाद भरा आ ह, िफर भी कोई हमार पास आने को तैयार नह ! तुम बोले थे; ‘इसका होगा, उसका होगा' तु हार रा ते पर चल पड़ ह संसार यह 'असमय' कभी भी सोचा भी नह था िक जय क भीतर इतना 'गहरा हार' भी होता ह...! 000 85 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

फ़लक धरती िसतार सब, हरक मीज़ान क हद ह कहाँ तक चु पयाँ साधे, अजी इसान क हद ह कहा तुमने-िसयासत ह, सदाएँ आम लोग क तु हार झूठ क हद ह, मेर ईमान क हद ह तुझे िदल म िबठाते ह, तेरा स मान करते ह मगर स ाई ये भी ह, तेर स मान क हद ह सुने ह खूब हम सबने, तु हार मिसये अब तक बग़ावत हो तो हो लेिकन, सुनो गुणगान क हद ह कभी प पू, कभी मौनी, कभी पोपट बुलाते हो रखो शीर बाँ साहब, हरक उ वान क हद ह नए जुमले बनाते हो क मन क बात करते हो हमारी भी सुनो ब धु तु हार ान क हद ह सुनो मेहमान हो, आये हो, इ ज़त से रहो 'दौलत’ न भूलो बात इतनी सी, कहाँ मेहमान क हद ह 000 दौलतराम जापित वाड 05 क हार गली िसर ज रोड लटरी िजला िविदशा म य देश िपन 464114 मोबाइल- 9893388470 ईमेल- daulatramparajapati2017@gmail.com


ग़ज़ल

धम गु

अभी तू और मेरा िकतना इ तहाँ लेगा िक इ तहाँ क बहाने तू मेरी जाँ लेगा मेर बदन का हर इक ज़ म दे रहा ह बयाँ मगर वो िफर भी मेरा हलिफ़या बयाँ लेगा न ब शना तू िकसी को ज़मीन अब यारब ज़मीन दी तो वो थोड़ा सा आसमाँ लेगा ज़म पे मो िसतम कर रह हो िजतने भी कल एक -एक का बदला वो आसमाँ लेगा तुझे भी लग ही गई शायरी क लत आिख़र िक तू भी दद क ब ती म अब मकाँ लेगा 000

कभी मेरी कहानी हो मगर उनक बानी हो कभी वो शादमानी हो मेरी आँख म पानी हो ब त ही नम लहजे म कोई भी सच बयानी हो हो भूरा रग अ बर का धरा का रग धानी हो हो हर पल शे'र क जैसा ग़ज़ल सी िज़ दगानी हो 000

तब हक़ क़त वो मान जाएगा व त जब आईना िदखायेगा डबना चाहता हो जो द ही कोई कसे उसे बचायेगा ज़द मौसम म जा रहा ह वो स ज़ मौसम म लौट आयेगा आज सबको नचाले जी भरक कल तुझे व त ही नचायेगा 000

ज़ म क गहराई देख और मेरी तनहाई देख द को दा कहने वाले देख तू अपनी दाई देख मुझसे शोहरत पाकर अब देख मेरी सवाई देख हर दम दुखड़ा रोने वाले पीर कभी तो पराई देख मेरा अफ़साना सुनक आँख तेरी भर आई देख 000

जब से हम बेवफ़ा हो गए वो वफ़ा क दा हो गए हर तरफ़ ज़ म ही ज़ म ह फल सार वो या हो गए ढक िलया चाँद को अ ने चाँदनी से ख़फ़ा हो गए आप हमसे िमले भी तो कब जब इरादे हवा हो गए आक िमलते ह वो अलसुबह गोया बादे सबा हो गए 000

धूप से िफर छाँव म हम आ गए िज़ंदगी क अथ िफर धुँधला गए आपको बचना था स ाई से जब आईने क सामने य आ गए मु त क बाद वो मुझसे िमला ल ज़ मेर जाने य पथरा गए आये थे सुलझाने को वो उलझन उलझन को और भी उलझा गए कछ तो हम दुिनया से शिम दा रह कछ हम अपने आप से शरमा गए 000

दद मेरा जब गहराया र त को ह का पाया आ तो गया महिफ़ल म पर द को साथ नह लाया कौन भला अब ये सोचे या खोया और या पाया याद क स ज़े उगने लगे बा रश का मौसम आया जब टटा प ा कोई कोई र ता याद आया 000

86 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

आदमी जो ग़म उठाता जा रहा ह अपने होने क सज़ाएँ पा रहा ह याद वो पीरी म िकतना आ रहा ह उ भर िजससे तू कतराता रहा ह तू समझता ह िक उसको पा रहा ह अ ल म तू उसको खोता जा रहा ह आज तक द को ही जो समझा न पाया बात वो और को तू समझा रहा ह भूलक भी भूल ये जीते जी मत कर िमिलिकयत बेट को देने जा रहा ह य न हो तेवर म उसक त ख़याँ ही उ भर जो त ख़याँ पीता रहा ह 000 िदन तम ा क गुज़ार आये फ़क अब या अगर बहार आये वो घड़ी िकतनी पाक होती ह माँ को ब े पे जब दुलार आये दे रह ह दुआ तो बस ये द घर म कछ भी न अब उधार आये सामने बैठ थे वो दरपन क हम भी छपक उ ह िनहार आये यूँ ही चलती रह वफ़ा -क ती आर आये कभी न पार आये 000 सुनहरा उसका पैकर हो गया ह मगर अहसास प थर हो गया ह नए र ते पे म तनहा चला था मगर अब साथ ल कर हो गया ह िलखा हर ट पर ह नाम िजसका वो कसे घर से बेघर हो गया ह कह तो आग पानी हो गई ह कह तो फल प थर हो गया ह भटकता था जो आवारा सा कल तक समय का वो िसक दर हो गया ह तु हारी याद चादर हो गई ह तु हारा दद िब तर हो गया ह अभी आई थ गुलशन म बहार तो कसे ज़द मंज़र हो गया ह िदये ह आज को दुख दद तो या हमारा कल तो बेहतर हो गया ह 000

धम गु क 3/10 ए, माँ शीतला भवन गायघाट, वाराणसी -221001 मोबाइल - 8935065229


ग़ज़ल

सुभाष पाठक 'िज़या' शाम समेट रही ह आँचल मेर पास रहो, फल रहा ह रात का काजल मेर पास रहो चाँद िसतार ने ओढ़ा ह बादल का क बल कक उठी ह िदल म कोयल मेर पास रहो तुम िबन जीना भी मु कल ह मरना भी मु कल, हर मु कल का ह ये इक हल मेर पास रहो व त आ या, यूँ सोचूँ इतवार शनीचर को मुझको ही चाहो तुम हर पल मेर पास रहो ज़ म को सेको साँस से िफर मरहम र खो िफर डालो तुम अपना आँचल मेर पास रहो सब अपने अपने जैस क पास ही बैठ ह तुम पागल हो म भी पागल मेर पास रहो 000 ह कछ अजीब सा आज़ार,िदल धड़कता ह ह रक सदा पे ह रक बार, िदल धड़कता ह कर न िज़ भरी ब म म कोई उसका मेर हबीबो ख़बरदार, िदल धड़कता ह हमारा यार तो रहता ह झील क उस पार सदा जो आती ह इस पार, िदल धड़कता ह कोई िनगाह लगातार देखती ह मुझे सो यूँ समिझये लगातार, िदल धड़कता ह ह आज उससे मुलाक़ात क तम ा भी िक उस पे आज ह इतवार, िदल धड़कता ह िलखा था िजस पे मेरा नाम चॉक से तुमने जो देखता वो, दीवार िदल धड़कता ह नये ख़याल क आमद से ज़ेहन ह रौशन िक ह गे कछ नए अशआर, िदल धड़कता ह 'िज़या' क साथ शजर को उदास रहने दे सो ऐ प रदे न 'पर' मार, िदल धड़कता ह 000

ऐ चाँद माँग तीस िदन को िज़या का साथ जैसे दु हन ने माँगा सदा को िपया का साथ तू माँगना दा से मुझे उस यक़ न से बाती ने िजस यक़ न से माँगा िदया का साथ वनवास म भी साथ रह हम, महल म भी हो साथ यूँ हमारा िक रघुवर िसया का साथ िमसर मेर नसीब क हो जायगे ग़ज़ल बस तू रदीफ़ बनक िनभा क़ािफ़या का साथ हर रोज़ मत बदलना मेर िदल तू वािहश म दे सका नह िकसी बह िपया का साथ जैसे गुल म गंध ह, िततली म रग ह वैसे ही साँस साँस 'िज़या' 'अिज़या' का साथ 000

मह िमय का साथ िनभाना पड़ा मुझे मजबू रयां थ िज़द पे तो जाना पड़ा मुझे म क मकश म सोच न पाया िक या क हाँ रा ते म एक िठकाना पड़ा मुझे ज़ म ए िजगर को देख क हसने लगी थी रात बस इसिलये चराग़ बुझाना पड़ा मुझे वो िततिलयां बना रहा था इक वरक़ पे सो इक फल इक वरक़ पे बनाना पड़ा मुझे िदल साफ़ था मगर ये बाँ जब िफसल गई इ ज़ाम ए बेहयाई उठाना पड़ा मुझे वो कह रहा था वाब वाब का या वजूद िफर यूँ आ िक द को जगाना पड़ा मुझे 000

कछ देर तो क िक अभी गुल नह िखले िततली को रोक लूँ िक अभी गुल नह िखले मौसम बहार का ह चमन म िखज़ां ह पर रो रो क म हसूँ िक अभी गुल नह िखले इक उ म तो आये ह शाख़ पे ख़ार ही इक उ िफर िजयूँ िक अभी गुल नह िखले रगत ह मेरी सुख़ महकता िमज़ाज ह सो वाब ही तो िक अभी गुल नह िखले मु त क बाद बाग़ से माँगी ह खुशबुएँ िफर भी वही सुनूँ िक अभी गुल नह िखले त हाइय म ख़च न क रये 'िज़या' शबाब बाक़ रखो जुनूँ िक अभी गुल नह िखले 000

िततली ने जब से चूम िलये ह ट फल क तब से हरक शाख़ तक झूल झूल क त हा सफ़र क िसफ़ यही यादगार ह दामन से झािड़ये नह ककर ये धूल क िज़ंदा रह ह इ क़ म मर मर क उ भर यानी िक याद करते रह भूल भूल क उसने तो हमसे इ क़ का इज़हार कर िदया हम तीन हफ़ बोल न पाये बूल क सौदा िकया था िदल का मगर जान ले गया वो सूद ले गया ह मुनाफ़ा वसूल क रहमत ई 'िज़या' पे मगर हाय या ई राह म पेड़ आये हमेशा बबूल क 000

हमारा दद ज़रा स त था िक जैसे बफ़ ग़म क आँच से गलने लगा िक जैसे बफ़ बला क आग िजगर म छपाई थी उसने वो श स श से जो सद था िक जैसे बफ़ रखे ह हाथ वो कछ देर हाथ पर हसकर मगर िफर ऐसे उसे छोड़ता िक जैसे बफ़ तू सिदय म िकसी झील का सा आबे सद, म जमअ झील क ऊपर रहा िक जैसे बफ़ हरक मोड़ पे वो रग प बदले ह अभी ह आब कभी संग था िक जैसे बफ़ तु हारा दद था भारी सो िदल म बैठ गया ये ग़म तो आंख म ही तैरता िक जैसे बफ़ 'िज़या' कभी तू चमकता था आइने जैसा मगर अभी आ ह खुरदुरा िक जैसे बफ़ 000

न बैठ चुप तू सुना दद, दद का िक़ सा िकसी बहाने उठा दद, दद का िक़ सा म दा तान तलक ही र तो अ छा ह न कर दे मुझको मुआ दद, दद का िक़ सा बहार ने िलखी ह दा तान िशय क िख़ज़ाँ क त ने िलखा दद, दद का िक़ सा शबे िफ़राक़ उतरने लगी ढलान से जब जवान होने लगा दद, ....दद का िक़ सा अलाव िजस पे गुजार शी शी रात उसी अलाव म था दद, दद का िक़ सा सुना िकसी को इसे बाँट ले िकसी क साथ िक बढ़ गया ह 'िज़या' दद, दद का िक़ सा 000

87 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021

सुभाष पाठक 'िज़या' ाम/ पो ट- समोहा तहसील -कररा िज़ला -िशवपुरी , म य देश, िपनकोड 473660 मोबाइल- 8878355676 ईमेल- subhashpathak817@gmail.com.


आिख़री प ा

धीर-धीर र मना, धीर सब कछ होय

पंकज सुबीर पी. सी. लैब, शॉप नंबर 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क सामने, सीहोर, म , 466001 मोबाइल- 9977855399 ईमेल- subeerin@gmail.com

हालाँिक कोरोना ने हमार जीवन क र तार को कछ धीमा िकया ह, तथा हम भी समझ म आ गया ह िक बढ़ी ई गित से कछ भी हािसल नह होता अगर िदशा ग़लत हो। मगर िफर भी ऐसा लगता ह िक अभी हमार सािह यकार इस कड़वे सच को मानने क िलए िबलकल तैयार नह ह। सािह यकार िपछले दस-प ह साल से ब त ज दी म ह और हड़बड़ी म भी। कभी-कभी तो यह डर भी लगता ह िक ज दी-ज दी म कह ऐसा न हो िक मंिज़ल से भी आगे िनकल जाएँ। यह जो हड़बड़ी ह, यह ह थािपत हो जाने क । सािह य क इितहास म अमर हो जाने क । अमरता ही इन सारी परशािनय का मूल कारण ह। ये चाहते ह िक इनका िलखा आ जो कछ भी ह, वह जाना जाए मील क प थर क नाम से। मील का वह प थर जो इ ह ने ही गाड़ा। कोरोना ने सािह यकार क इस हड़बड़ी को और गित दान कर दी ह। बाक़ दुिनया जहाँ कोरोना म थम गई, वह सािह यकार और तेज़ हो गया। तेज़ इसिलए हो गया िक वह जो कछ काय करता था, उसक िलए उसे कह आने-जाने क ज़ रत ही नह थी। रचनाएँ िलखो और पि का को भेज दो, साथ म सोशल मीिडया पर भी तुरत डाल दो। पि का म जब छपेगी तब छपेगी, मगर सोशल मीिडया पर तो तुरत ही िति याएँ ा होना ारभ हो जाएँगी। अ छा, और एक बात जािनए िक एक ही रचना को भारत से कािशत होने वाली सारी सािह यक पि का को भेज दो। और इस कार भेजो िक संपादक को भी ईमेल खोलते समय ए स बार म ही िदख जाए िक उसक अलावा और िकस-िकस को भेजी गई ह रचना। अब वह पहले वाला स नह ह िक एक पि का म रचना भेजी, वहाँ से वीकत या अ वीकत होने का इतज़ार करते रह। वहाँ से वापस आई तो दूसरी पि का म भेजी। नह , यह तो पुराने ज़माने क बात ह, अब तो एक साथ एक ही मेल म संल न कर सबको भेज दो, िजसक ग़रज़ होगी वह द ही छाप लेगा। मतलब यह िक वह जो एक पहले सबर अली होते थे, वह अब लेखक क अंदर से िवदा ले चुक ह। िफर एक और हड़बड़ी ह, वह हड़बड़ी ह िक अगर िकसी पि का ने आपक रचना कािशत कर दी, तो आपको रा ता िमल गया। संपादक ने आपक रचना कािशत कर जैसे आफ़त ही मोल ले ली ह। उसक बाद िफर आपको चैन नह । लाख कहता रह संपादक िक एक अंक म रचना कािशत होने क बाद कछ समय बाद ही अपनी रचना भेिजए, लेिकन आपको उससे या, जैसे ही पि का का अंक सामने आया, आपने तुरत अगले अंक क िलए रचना भेज दी। और वह भी हर िवधा क रचना। किवता, यं य, कहानी, समी ा, ग़ज़ल, लघुकथा, सं मरण, सब कछ। आशय यह िक यह नह तो वह तो आपका कािशत करनी ही पड़गी। यह जो हड़बड़ी ह, इसका ख़ािमयाज़ा संपादक को और संपादक क मेल बॉ स को भुगतना पड़ता ह। वह मेल बॉ स इसी कार क संदेश से भरा रहता ह। पता यह चलता ह िक एक ही लेखक क क़रीब प ह-बीस मेल पड़ ह मेल बॉ स म। और इस तरह क कई लेखक। िकतनी ज दी ह भाई ? समय का च इतना र होता ह िक वह सब कछ िकनार पर लाकर छोड़ देता ह, समु क लहर क तरह। वह कछ भी अवांिछत को रहने नह देता। और जो वांिछत ह उसे न भी नह होने देता। यिद आपक रचना सचमुच मील का प थर ह, तो समय उसका स मान करगा। और िफर इससे कोई फ़क़ नह पड़ता िक आपने अपने जीवन काल म िकतना िलखा, फ़क़ तो इससे पड़ता ह िक कसा िलखा। गुलेरी क एक कहानी 'उसने कहा था' समय क कई पड़ाव को पार करती ई चली ही आ रही ह। कवल एक कहानी। हालाँिक उनक और भी कहािनयाँ ह, लेिकन ब त यादा भी नह ह। यह तो एक य उदाहरण ह सामने, कम से कम इस पर तो भरोसा क िजए। और अंत म बस यह िक हम बचपन से कछ बात िसखाई गई ह जैसे 'ज दी का काम शैतान का काम' या िफर 'धीर-धीर र मना, धीर सब कछ होय' इ ह याद रिखए। सादर आपका ही

पंकज सुबीर 88 foHkkse&Loj जुलाई-िसत बर 2021




Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.