Shivna sahityiki january march 2021

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गया िक सहार को तलाशती ये आँख िकसी भी अज़नबी म अपनापन ढढ़ने लगती ह।" अपनी जड़ से अलग होकर कह और जड़ ज़माना िफर अगली पीढ़ी का भी उसी राह पर िनकल पड़ना लोग को िनतांत अकला करता जाता ह, तो अपने देश लौटने क इ छा उ प होना वाभािवक ह। बदलते समय क साथ पनपते वाथभाव से र त क बीच पहले जैसे ेम और मयादा का अभाव साफ िदखने लगा ह लेिकन सुधा जी क कहािनय म यह बात साफ़-साफ़ िदखती ह िक न तो िवदेश म बसने वाले सभी बुर ही होते ह न ही वदेश म रहने से सभी सं कार यु ही हो जाते ह। यह बात हम इस कहानी क कड़ी अगली कहानी 'वसूली' से जोड़ती ह जहाँ ह र और सुलभा क मा यम से लेिखका हम िवदेश म बसे भारतीय का अपने देश और बंधु बांधव क ित ेम, लगाव और भावुकता को िदखाती ह वह ह र क भाई और भाभी को वाथ क उस मनोवृि क प म िजनक िलए िवदेश म बसे प रजन िकसी बक बैलस से अिधक कछ नह । भारत म ज मा ह र अपने छह भाई बहन क साथ िनधनता म पला बढ़ा ह। मेहनत से हािसल िकये गए मुकाम ने जहाँ उसे अिधक िवन और भावुक बनाया वह उसी माहौल म पले-बढ़ उसक भाई को समय और संगत क साथ वाथ और आ मकि त। प रवार क सुख क िलए ह र अमे रका म बसना वीकार करता ह िजससे देश म उसक माता-िपता और भाई बहन को बेघर न होना पड़ लेिकन बड़ भाई क संपि क लालच से प रवार को िबखरने से बचाने क यास म वह वापस आता ह। भाई क धोखे से ु ध ह र को समझाते ए सुलभा कहती ह िक-"िदल और िदमाग़, भावना और िववेक का ं मानव क जीवन म हर समय चलता रहता ह। कब िकसका पलड़ा भारी हो जाए, कहा नह जा सकता। भौितकता का आकषण कहाँ कछ देखने देता ह।" यानी एक जैसी प र थितयाँ भी मनु य को अलग-अलग िवचार से जोड़ सकती तथा भािवत कर सकती ह। अगली कहानी ह एक अड ट िलिवंग एंड निसग होम क , जहाँ आए शु ा दंपित

क दो बेट उ ह वहाँ छोड़ गए ह। ब क संवेदनहीनता से वे त ध ह। तीसरा बेटा और उसक प नी जो जाने-माने डॉ टर ह उ ह लेने आते ह। यह वह बेटा ह िजसे वे संक ण पर परा और सं कार क नाम पर बरस पहले याग चुक थे। वजह थी बेट क एक िवदेशी लड़क से िम ता और िववाह क इ छा िजसक िलए वे तैयार नह ए और बेट से संबंध िव छद कर िलया। आज वही बेट ब उ ह अपने साथ ले जाने आए ह। यहाँ तक तो कहानी कछ-कछ िह दी िफ म का सा आभास देती ह लेिकन वा तव म आगे इसक दूसर ही आयाम िदखते ह जब शु ा दंपित बेट-ब क साथ उनक घर जाते ह। ब क प रजन और दो त से िमलकर शु ा दंपित म जीवन को देखने और जीने का एक नया ही कोण िवकिसत होता ह िजसम आि त होने क घुटन नह ब क वछदता से अपना जीवन अपने तरीक और अपनी इ छा से जीने का स देश ह। यह कसे संभव होता ह यही इस कहानी का सार ह जो एक सकारा मक भाव छोड़ती ह। यह कहानी प मी देश म भी सयुं प रवार क मह व, रहन-सहन और िवचार को दिशत करती ह 'ऐसा भी होता ह' कहानी एक िच ी क अपने पते पर िपन क अंक क ग़लत हो जाने क कारण करीब यारह महीने भटकने क बाद प चने क ह। इस बीच िच ी का जवाब नह देने क कारण कथा नाियका दलजीत को उसक माता-िपता तमाम नाराज़गी भरी ऐसी िच याँ िलखते ह िजससे आ यचिकत दलजीत पहले तो समझ नह पाती िक उसक माता-िपता य नाराज़ ह; लेिकन जब िच ी उसे िमलती ह तो आभास होता ह िक माता िपता और भाइय क िलये वह पैसा भेजने क मशीन क अलावा कछ नह । पंजाब म बेिटय क िवदेश म बसे भारतीय लड़क से िववाह क पीछ क स ाई को उकरती यह इस सं ह क एक सश और उ दा कहानी ह। माँ-बेट क भावना मक र ते म िकसी तीसर को लेकर ई ख चतान को दशाती कहानी ह 'कॉ मक क क टडी'। कहानी क सू धार ह फिमली कोट क िड ट

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एडवाईज़र अटन िज ह इस अजीबोगरीब कस को सुनकर फ़सला देना ह िजसक एक तरफ एक माँ ह और दूसरी तरफ बेटा जो एक दूसर को गैर िज़ मेदार ठहराकर कॉ मक क क टडी हािसल करना चाहते ह। खुद को िज़ मेदार और सही ठहराने क दोन क अपने तक ह िजनक बीच-बीच म दोन का एकदूसर से भावना मक लगाव भी िछपता नह । ये लेिखका क सश कलम का कमाल ह िक वे एक बेहद संवेदनशील मु े को भी इतनी सहजता से कहानी म िपरो देती ह िक पाठक खुद को उ ह क बीच खोया महसूस करने लगता ह। अब यह कॉ मक कौन और उसक क टडी क िलए दोन क बीच मनमुटाव य ? यह एक रोचक त य िजसक िलए अंत से पहले कहानी से नज़र हटाना मु कल ह। "यह प उस तक प चा देना" कहानी एक अंतरा ीय फम क ए ज़ी युिटव दीपाली और उसक पित हािदक क कछ िवदेशी मेहमान को एअरपोट ले जाने क साथ शु होती ह। रा ते म अचानक ब त यादा िफक िमलने से वे एक ऐसी सड़क को चुन लेते ह िजसक बार म कई तरह क डरावनी कहािनयाँ कही और सुनी जाती ह। उनक कार म बैठा मनीष नामक युवक उ ह एक िच ी देता ह िजसे िकसी जैनेट गो ड मथ तक प चाने क बात कहता ह। दीपाली और हािदक यह नाम सुनकर सोच म पड़ जाते ह। यह िच ी िवजय नाम क युवक क ह जो मनीष का िम ह। अब उस िच ी का जैनेट और िवजय क साथ या और कसा संबंध तथा आगे उस रा ते पर उन सभी क साथ या आ, यह बेहद रोचक शैली म िलखी कहानी ह। कहानी का मु ा कह -कह अपने झूठ मान स मान क िलए ब क खुिशय क बिल देने का ह। तो आगे कहानी म या मोड़ आता ह और वह िच ी जैनेट तक कसे प चती ह इसक उ सुकता अंत तक बनी रहती ह। "ब त से माँ-बाप उसने ऐसे देखे ह जो अपनी अतृ इ छा को ब से पूरा करना चाहते ह। उससे ब े िकस मानिसक

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