Shivna Sahityiki April June 2021

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यथाथ को कला मकता क साथ अपनी कहािनय म बेिहचक कट करती ह और तथाकिथत नैितकता क आवरण को भेदकर लिगक अ मता क न को अपनी कहािनय क क ीय चेतना बना देती ह।' सं ह क पहली कहानी 'िग ' समाज क उस अिभजा य वग म फली सड़ाँध क िवषय म ह जहाँ ी िकसी भी वयस क हो तर क हो, िसफ भो या क प म ही देखी जाती ह। यह अव य ह िक सम त पु ष लोलुप नह होते कछ स बल दान करने वाले भी होते ह। लेिखका क संतुिलत इस बात का िन पण करने म भी नह चूकती। जहाँ अजीत और खुराना जैसे िग क तरह पंजे गड़ा देने क िलए त पर लोग ह वह अशोक और ईशान जैसे पु ष भी ह जो िकसी भी अि य थित को न आने देने क िलए अपना स पूण यास करते ह। एक संतुिलत कहानी ह 'िग ' िजसम समाज क िविभ तबक म या आिदम भूख अपने िवकत प म िदखाई देती ह। सं ह क दूसरी कहानी 'अ नगभा' एक सामंती ठाकर प रवार क बड़ी ब चंदा क कहानी ह िजसका पित अपनी यौिनक अ मता को िछपाने क िलए वयं को घर क बाहर य त रखता ह और अपनी कठा को मारपीट और अपश द क प म प नी पर उतारता रहता ह, अपनी थित को न मानकर प नी को ही बंजर करार देता ह। आज भी भारतीय लोक का ताना-बाना ऐसी मानिसकता से बना ह िजसम पु ष क कमज़ोरी क िवषय म सोचा भी नही जाता, ी को ही बाँझ-बंजर क तमगे से नवाज़ िदया जाता ह। ी क सार गुण, प-लाव य मातृ व धारण िकये िबना शू य समझे जाते ह। लेिकन उसी मातृ व ा क िलए अगर चंदा दूसरा रा ता अ तयार करती ह तो रडी और िछनाल जैसे श द से उस पर हार होता ह। इस पर चंदा का य व एक अश और ढ़ ी का नज़र आता ह जब वह कहती ह, 'यह पाप नह ह, तु हार मुँह से बाँझ-बंजर सुनते रह, कभी कहा नही। आज सुन लो, धरती कभी बंजर नही होती। बीज नपुंसक

होता ह वरना रिग तान और ऊसर म भी खरपतवार तो उग ही आते ह।' चंदा क देवरानी और सास का ताक़त बनकर उसक साथ खड़ा होना एक सामािजक बदलाव क तरफ इिगत करता ह, जहाँ कहा जाता ह िक ी ही ी क श ु होती ह। आने वाली स तान क वागत म सतवासा पूजने का योता व होने वाला नाचगाना एक सकारा मक बदलाव क राह म कदम क तरह िदखाई देता ह। सं ह क तीसरी कहानी ' क' समाज क ऐसे अनैितक प को सामने रखती ह िजसक िवषय म बात करने और सोचने म दय लरजता ह, कतराया जाता ह, लेिकन गाँव देहात व क़ बाई समाज क बड़ी-बूिढ़याँ साफ-साफ न कहकर भी ब त कछ जता जाती ह। सहानुभूित क साथ ही ोध और घृणा क भाव भी कहानी पढ़ते ए मन म मचलते रहते ह। कहानी का अंितम वा य 'जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो फसल कहाँ जाए?' एक ब त बड़ा सवाल छोड़ जाता ह। 'फसला' सं ह क चौथी कहानी ह अपने ी व क अ मता को बचाये रखने क िलए संघष करती ई ी क प म मेघा का च र और उसक छटपटाहट को ब त बारीक से उकरा गया ह। ी को मनु य मा न मानकर एक कमोिडटी भर मान लेने क सामंती सोच आ मस मान पर िकतनी बड़ी चोट प चा सकती ह, यह कहानी पढ़कर ही समझा जा सकता ह। सं ह क शीषक कहानी 'ठौर' समाज क बु ग क उस अव था क कहानी ह जब उ ह घर क सुखद माहौल, देखभाल और सहायता क ज़ रत होती ह तब उ ह वृ ा म म रहना पड़ता ह। सारा जीवन, धन-दौलत ब पर योछावर करने क प ात जीवन सं या म उपेि त और घर बदर िकये गए अिभश बु ग वृ ा म म ही ठौर पाते ह। कहानी म य पीड़ा, जीवन मू य का िवचलन आने वाले व क िलए मन को संशय म डाल देती ह। 'िच दी िच दी सुख- थान बराबर दुःख' एक ऐसी ी क कहानी ह जो िववाह क दो

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ही वष म िवधवा हो जाती ह ितस पर कोढ़ म खाज एक ब ा, और वह भी बेटी। ऐसी ी िजसक िलए न मायक म थान ह और न ससुराल म। ऐसे म सुंदरता अलग ही बैरी बन जाती ह। उपे ा, शोषण और आिथक अभाव को झेलते ए, जीवन म आये तमाम उतारचढ़ाव को देखते ए कहानी क नाियका अपने जीवन म थािय व लाने क िलए ाण पण से यास करती ह और बेटी दामाद क सहयोग से एक बार िफर सुख क िदन उसक जीवन म आते ह। संघष करते ए उसका अ छ जीवन म पुनः वेश ेरक ह। सं ह क अंितम कहानी 'देह दंश' एक ऐसी ब ी क शोषण क कहानी ह िजसे घरलू सहाियका क प म िकसी प रवार क साथ अपने घर से ब त दूर िद ी चंद पय क िलए भेज िदया जाता ह। जाने िकतनी ऐसी ग़रीब बि याँ अपने घर प रवार से दूर मानिसक और शारी रक शोषण सहती ह। ऐसी घटनाएँ अब सहज वीकाय होती जा रही ह। यिद समाज मुखर नह होता ह तो यह वीकायता ही मानी जाएगी। ऐसे म जान बचाकर भागी बि याँ न जाने िकस पथ क राही बन जाती ह। कोई ही भा यशाली होगी जो सही सलामत घर लौट पाती होगी। कहानी अ त को िझंझोड़ने वाली ह। अपनी कहािनय से िद या जी ने समाज क दोहर मापदंड और छ चेहर पर से नकाब ख ची ह। ी को मा देह समझने क मानिसकता को ब त मािमक श द म िचि त िकया ह। कहािनयाँ सहज और सरल भाषा म होने क वजह से आक करती ह। कहािनय म िजस बोली बानी का इ तेमाल िकया गया ह उससे कहानी क च र और अिधक मौिलक प म िदखाई देते ह। ब त करीब से देखी गई, महसूस क गई ददनाक घटना का लेखा-जोखा ह ये कहािनयाँ। इनम िद या जी क सामािजक सरोकार और प र थितय क िन प िववेचना करने क प रप प रलि त होती ह। िद या जी को अपने पहले कहानी सं ह क िलए हािदक शुभकामनाएँ। 000

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