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नवयुग ूवतक

ौी गु जी ( मूल मराठ से अनुवा दत )

चं. प. िभिशकर

लोक हत ूकाशन, लखनऊ www.golwalkarguruji.org


ूकाशक

लोक हत ूकाशन संःकृ ित भवन, राजे ि नगर, लखनऊ – 226004

• तृतीय संःकरण काितक पू णमा, संवत ् 2060 8 नव बर 2003

मू यः . 100.00

मुिकः

नूतन आफसेट मुिण के ि संःकृ ित भवन, राजे ि नगर, लखनऊ – 226004

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ूःतावना ह द भाषी पाठक के िलए मूल मराठ पुःतक ौी गु जी का ह द म अनुवा दत च रऽ ूःतुत करते हए ु वषेश आनंद हो रहा है । पू. गु जी क 51 वीं वषगाँठ मनाते

समय 1956 ईःवी म एक सं गया था।

सा च रऽ य

और काय के नाम से िनकाला

पू. गु जी अपने वषय म कसी भी ूकार का ूचार-ूसार अनुिचत

समझते थे। इसिलए उनके जीवनकाल म कोई वःतृत च रऽ नह ं िलखा जा सका।

उनके िनधन के प ात उनके वषय क समःत साममी इक ठा करने का जो काम कया गया उसी से सात ख ड का मंथ - ौी गु जी समम दशन तै यार हआ। इन ु

ख ड म पू. गु जी क जीवन वषयक बात बहत ु कम ह और वह भी सात ख ड म बखर पड ह। पू. गु जी का च रऽ जानने के िलए इतने वःतृत मंथ का पढना

ःवयंसेवक के िलए क ठन है । पू. डॉ टर जी पर केशवः संघ िनमाता नामक मंथ िलखकर ूिस द ूा

कए हए ु ौी चं. प. िभिशकर ने

पू. बालासाहे ब के ूो साहन से गु जी के जीवन पर 1982 ईःवी म मंथ ूकािशत कया था। बाद म उपल ध साममी को जोडकर ौी िभिशकर जी ने मराठ म पू.

गु जी का एक समम च रऽ छापा है । ह द पाठक क सं या उसके पढने से वंिचत रह जाती अगर नागपुर के कुछ ब धुओं दारा उसका अनुवाद ह द म न कया गया होता। शेष क ठन काय लखनऊ म ःथत लोक हत ूकाशन ने कया है । अपने सभी नये और पुराने ःवयंसेवक एवम ् रा हतिचंतक इस जीवनी को पढगे तो

उ ह पू. गु जी के जीवन से न केवल ूेरणा िमलेगी अ पतु आज क दे श क ज टल प र ःथतीय म भारत के अपने कत य का भी दशन हो सकेगा। ऐसे उ म मंथ को िलखने अनुवा दत करने और ूकािशत करने वाल को अनेकानेक

ध यवाद। - राजि िसंह सरसंघचालक रा ीय ःवयंसेवक संघ

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ूकाशक य सु व यात लेखक ौी चं. प. उपा य बापूराव िभिशकर के

ारा मराठ भाषा म

िल खत एवं भारतीय वचार साधना, पुणे के सहयोग से ूकािशत ौी गु जी क जीवनी ( ितय संःकरण) का यह ह द अनुवाद पाठक के िलए ूःतुत करने म हम अपार हष और स तोष हो रहा है । ह द भाषा पाठक के िलए ौी गु जी क जीवनी ूकािशत करने क आवँयकता ौी शेषा ि जी आ द

थी। तदनुसार रा ीय ःवयंसेवक संघ के

ये

अिधका रय ने ूकट क

ितय सरसंघचालक ौी गु जी क जीवनी

ह द भाषा म ूकािशत करने का सुअवसर लोक हत ूकाशन को ूा ूकाशन ःवयं को गौरवा वत अनुभव कर रहा है । ौी गु जी का जीवन अनेक वध पहलुओं से सुसमृ

था। आ या मक

हआ इसिलए ु ेऽ के वे ौे

ाता थे। संघ कायकताओं के िलए मयादा पु षो म ःवयंसेवक थे। ह द ू रा

उनका जीवन पूणतः सम पत था। उनके जीवन का ू येक

के ूित

ण और उजा का ू येक

कण एकमाऽ संघकाय हे तू ह बीता। कला- व ान क अनेक शाखा-उपशाखाओं के वे

मम

थे। उनके जीवन क अनेक ूेरक घटनाऍ ं और कायकताओं तथा जनता के िलए

उनके

ारा समय-समय कया गया उ -बोधन इस जीवनी म ूभावी ढं ग से ूकट

हआ है । ु उनके जीवनी क अनेक ूेरक घटनाओं क इसम अिभ य संघबंद भारतीय शासन के ौिमक

है । 1948-49 क ूथम

ारा बना शत हटायी जानेका सफल ूयास, व ाथ

ेऽ, वनवासी-िग रवासी, उपे

त ब धुओं का

ेऽ सेवा काय आ द अनेक समाज जीवन के

ेऽ,

ेऽ, राजिनित और अथिनित का

ेऽ म संघ के मौिलक वचार, यवहार

का ूभाव िनमाण करने का ौी गु जी ने सफल ूयास कया। गोवध बंद के बारे म जनजागरण और आ दोलन, संघ िनमाता के नागपुर ःथत ःमृित म दर क िनिमित, दे श- वदे श के ह दओं के िलए सुूित त आधार हे तु व ू

ह द ू प रष

ःथापना, अिधकांश धमाचाय को, जो अपने मठ-मं दर म यःत थे, समाज ूबोधन हे तु जनता से यापक स पक के िलए ूवृ

करना आ द बात उ ह ं के कायकाल म

हई। चीन के आबमण क सूचना अनेक वष पूव दे कर भारतीय शासन को सजगता ु

बरतने हे तु उ ह ने ूे रत कया, 1962,1965 और 1971 के यु

ूसंग म शासन से

पूण सहयोग कया, पा कःतानी और बंगलादे शी घुसपै ठय क भारत वरोधी कायवाह के बारे म शासन को सतक कया, क ँमर का भारत म विधवत ् वलय करने म

सरदार पटे ल को मह वपूण सहयोग कया और चीन के आबमण के प ात नेपाल का

भारतीय गणरा य से धािमक एवं सांःकृ ितक आधार पर संबंध सु ढ करने का ूयास कया।

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ूेरक घटनाओं के साथ-साथ समय-समय पर समःयामःत क ठण प र ःथितय म ौी गु जी ने कायकताओं का जो बहमू ु य ूबोधन कया था उसका वणन भी मंथ म है ।

1942 के भारत छोडो आ दोलन व 1947 के मातृभिू म वभाजन के दघर ूसंग पर ु जहां उ ह ने समयोिचत मागदशन कया था वह ं ौ े य महा मा जी क ह या के

उपरा त संघकाय पर मरणा तक आघात करने के कांमेसी स ाधार और उनके सहूवािसय के ूयास को िनंफल बनाने हे तु भी सफल नेत ृ व ूदान कया था।

उसी ूकार 1949 म नागपुर और जौनपुर म, 1954 म िसंद ( वदभ) म, 1960 म इं दौर म और 1972 म ठाण (महारा ) म भारत के सभी कायकताओं का मागदशन कया था। हम व ास है क अनेक ूेरक जीवनूसंग, समयोिचत उ -बोधक मागदशन और

ू य

संपक के

ारा लोग को संघकाय म ूवृ

पावन ऽवेणी संगम म मु को ूा

करने का उनका अपूव कौशल, इस

अवगाहन करने का सुअवसर इस जीवनी के

होगा। ौी गु जी के आ या मक जीवन के संबंध म उनके

ये

ारा पाठक गु भाई ौी

अिमताभ महाराज से उपल ध जानकार ःव. ौी बाबुराव चौथाईवाले ने िल पब

थी। क जीवनी के संदभ म अ य सा ह य प रौमपूवक एकऽ कर, उनका यथोिचत

उपयोग करने के िलए ौी बापूराव िभशीकर को उपल ध करा दे नेवाले सवौी बापूराव वराडपांडे, राम ब डाले, कौशलि जी आ द कायकताओं के ूित हम कृ त

है । मूल

मराठ मंथ का ह द म धाराूवाह सरल भाषांतर नागपुर के ौी बालासाहे ब सकदे व, ौी प ाकर भाटे और ौी मधुकर हु ार ने कया है । पऽका रता को जीवनवृ

के

म ःवीकारने वाले ौी प ाकर भाटे अनेक वष तक नागपुर के दै िनक युगधम के

ूमुख संपादक रहे तथा रा ीय-अ तरा ीय सामियक ू है । वतमान म व

पर वपुल लेखन काय कया

संवाद के ि नागपुर के ूमुख के नाते काय कर रहे है ।

ौी ू. मु. बालासाहे ब सकदे व अनेक वष उ. ू. व बंगाल म संघ के ूचारक रहकर कुछ दन रा श

व युगधम के स पादन से जुड़े रहे और बाद म नागपुर के

धरमपेठ महा व ालय म ह द के ूा यापक के

प म सेवािनवृ

हए। प. पू. ौी ु

गु जी समम-दशन के ख ड के स पादन म भी उनका योगदान रहा।

मराठ व अंमेजी म ःनातको र ौी मधुकर जयदे व हु ार नागपुर के धरमपेठ उ चतर मा यिमक व ालय म िश क रहे तथा संघ का पंजाब पव नाम क पुःतक िलखी।

वतमान म व उपयु

संवाद के ि नागपुर म कायरत है ।

ितन सु॑द के ूित ऋण-िनदश तथा हा दक कृ त ता य

कत य समझते ह।

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करना हम अपना


कृ त ता दै िनक ःवदे श के पूव स पादक ौी माणकचंि बाजपेयी के ूित भी है

ज ह ने पूर पुःतक को बार क से पढ़कर म थ क भाषा को प रमा जत कया।

ऐितहािसक घटनाओं के ितिथबम एवं त या मकता क

से बहुमू य सुझाव के

ारा हम उपकृ त करने वाले ौी दे वे िःव प अमवाल भी हमारे ध यवाद के पाऽ ह। पू य ौी गु जी के ू य

स पक म आये सह ाविध य

आज भी हमारे बीच

व मान ह। इस जीवनी का अवगाहन करते हए ु य द कोई मह वपूण त य उनके यान म आते ह ज ह स मिलत कर लेने से ौी गु जी के य

ु पहलू पर ूकाश पड़ता हो तो उ ह िभजवाने का क अनछए

व के कसी

कर जससे अगले

संःकरण म स मिलत कर पुःतक क ग रमा को बढ़ाया जा सके। - लोक हत ूकाशन, लखनऊ

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अनुबम णका

ूःतावना ...............................................................................................................३ ूकाशक य.............................................................................................................. १ १

पृ भूिम ......................................................................................................... १०

िश ा और संःकार............................................................................................ १४

२.१

माता क गोद म....................................................................................... १४

२.२

ज मजात ूितभा ......................................................................................१५

२.३

एक मािमक ूसंग .....................................................................................१७

काशी म अ ययन एवं अ यापन ........................................................................ १९ ३.१

असीम

३.२

शार रक साधना........................................................................................२०

जीवन क

ान- पपासा................................................................................... १९

दशा ..............................................................................................२३

४.१

‘ हमालय’ क पुकार’ ................................................................................. २४

४.२

संघ म पदापण ........................................................................................ २७

सारागाछ आौम म.........................................................................................३० ५.१

गु

क खोज म........................................................................................ ३१

५.२

ा महण ............................................................................................. ३४

५.३

कुछ सुखद संःमरण ..................................................................................३८

५.४

कम ेऽ म पदापण .................................................................................... ४१

जीवन काय का िनधारण ................................................................................. ४३ ६.१

संघ-संःथापक .......................................................................................... ४३

६.२

एक अनुपम काय-प ित का वकास ............................................................ ४५

६.३

ौी गु जी – जीवन काय का िन य .............................................................४६

६.४

डा टर जी का यापक आकलन ...................................................................४९

६.५

म जागत-सेवाभाव.................................................................................... ५२

सरसंघचालक क दािय व क ःवीकृ ित ............................................................... ५४ ७.१

उ रािधकार का चयन............................................................................... ५४

७.२

डा टर जी क

वरासत ............................................................................ ५७ www.golwalkarguruji.org


७.३ ८

जीवन काय के अनु प य

व प रवतन ..................................................... ६१

र रं जत दे श वभाजन.....................................................................................६४ ८.१

प र ःथित का आहवान.............................................................................. ६५

८.२

‘१९४२’.................................................................................................... ६७

८.३

ौी गु जी क

८.४

रा

८.५

दे श वभाजन के कगार पर ........................................................................ ७३

८.६

ःवयंसेवक क ऐितहािसक भूिमका .............................................................. ७५

८.७

ौी गु जी का तेजःवी उदाहरण................................................................... ७७

८.८

एक व र

८.९

अ तम स य नह ं : ौी गु जी ...................................................................८०

८.१० ९

यापक सोच ......................................................................... ६९

के संकट क घड़ म ............................................................................७१

सहकार का व ेषण .................................................................. ७९

ौी गु जी क सतकता ............................................................................८०

गांधीजी क ह या: संघ वरोधी अिभयान ............................................................ ८४ ९.१

अमृतभरा

९.२

रा ीय सामंजःय क आवाज........................................................................८८

९.३

अ न पर

९.४

कारागार बना

९.५

‘ वःतृत कारागार’ ..................................................................................... ९५

९.६

याय क माँग......................................................................................... ९७

९.७

सरकार क अ याचार नीित ....................................................................... १०१

१०

दय ........................................................................................ ८४

ा का ूारं भ .............................................................................. ९० यान मं दर ..........................................................................९३

स यामह-पव क साथक फलौुित .................................................................. १०४

१०.१

‘अधम से धम’ का संघष ....................................................................... १०४

१०.२

सरकार क आँख खुलने लगीं...................................................................१०६

१०.३

ूितब ध अचानक

१०.४

सरकार ने भी ःवीकारा...........................................................................११४

१०.५

गृहमंऽी ने भी ःवीकारा ......................................................................... ११५

११

य हटाया गया? ........................................................ १११

ःवागत पव: अचूक मागदशन ....................................................................... ११७ ११.१ ११.२

ूखर रा ीय

..................................................................................... १२०

भीषण घड़ म शांित क मूित................................................................. १२२

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११.३ १२

लआय पर सतत

............................................................................. १२४

आपदमःत के आशा ःतंभ .......................................................................... १२९

१२.१

जनश

१२.२

असम म भूक प .................................................................................. १३३

१२.३

विभ न प र ःथितय म........................................................................ १३४

१२.४

भारतीय जनसंघ का उदय...................................................................... १३५

१२.५

चुनावी कोलाहल से दरू .......................................................................... १३६

१२.६

चुनाव प रणाम के प रूेआय म............................................................... १३८

१२.७

हमारा वोट कसे ?................................................................................ १३९

१२.८

वापस न बुला सकने का दंूभाव ........................................................... १३९ ु

१२.९

दो अ -स य ....................................................................................... १४०

१२.१०

एकदलीय त ऽ कसी भी आवरण म ःवीकाय नह ं ......................................१४१

१२.११

ह द-ू वरोधी थैली के च टे -ब टे ............................................................. 142

१२.१२

उिचत चयन के िलए............................................................................. 142

१३

को आवाहन............................................................................ १२९

ःवदे शी और गो-र ा अिभयान ...................................................................... 144

१३.१

ःवदे शी भाव जागरण ............................................................................ 144

१३.२

बा तका रय के ूित ........................................................................... 148

१३.३

साधुओं के सम

१३.४

ऐितहािसक हःता र संमह ..................................................................... 151

१४

सजग रा

................................................................................. 149

ूहर ......................................................................................... 162

१४.१

चुनावी जय-पराजय के परे ..................................................................... 162

१४.२

भाषावार रा य-रचना............................................................................. 167

१४.३

पंजाब के संदभ म................................................................................ 169

१४.४

गोवा मु

१४.५

कँमीर वलयन ................................................................................... 175

१४.६

डॉ.मुखज का बिलदान .......................................................................... 178

१४.७

ईशा य भारत ...................................................................................... 179

१४.८

राजनीितक

१४.९

के समय ............................................................................. 172

ेऽ म सम वय ................................................................... 181

पतृ- वयोग ......................................................................................... 183

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१५

से बड़ा काय..................................................................................... 185

१५.१

५१व ज म दन का अपूव संदेश ............................................................... 185

१५.२

डॉ. अंबेडकर

१५.३

ॄ दे श के ूमुख से .............................................................................. 194

१५.४

अमे रका से अपे ा ............................................................................... 196

१६

यु

ारा बौ

मत क द

ा ....................................................... 191

कालीन दशा-दशन ............................................................................... 200

१६.१

ूेरणाःथान का िनमाण.......................................................................... 200

१६.२

एक अपूव मधुर िमलन के ि ................................................................. 203

१६.३

चीन के आबमण के स दभ म ............................................................... 206

१६.४

महाराजा का ूेरक स दे श ...................................................................... 215

१६.५

सरकार िनणय क पऽ म ूित बया ....................................................... 217

१६.६

आबामक भूिमका हो............................................................................. 217

१७

रा ीय पुनजागरण के विभ न काय के िलए मागदशन..................................... 223

१७.१

ौिमक

ेऽ म ..................................................................................... 231

१७.२

कुछ ू

व उ र.................................................................................. 233

१७.३

राजनीितक

१७.४

िश ा

१७.५

वै

१७.६

प रष

१७.७

ौी गु जी ने भी जयघोष कया............................................................... 251

१८

ेऽ के कायकताओं के िलए.................................................... 235

ेऽ के बारे म ............................................................................ 237

क ह दमं ु च का शुभारं भ .................................................................. 243 के ूमुख सूऽ ............................................................................ 248

कसर क अशुभ छाया ................................................................................. 256

१८.१

श य बया........................................................................................... 260

१८.२

िन यबम फर से ूार भ ...................................................................... 264

१८.३

पूव पा कःतान म अ याचार के समय..................................................... 271

१९ १९.१

अंितम अ यास वग .................................................................................... 276 यापक िचंतन मंथन............................................................................. 278

२०

महाूयाण ................................................................................................. 287

२१

बादल से िघरा सूय .................................................................................... 299

२१.१

ह द ु व का जागितक दशन ................................................................... 299

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२१.२

सामा जक ववाद से परे ........................................................................ 301

२१.३

सवसमावेशक

२१.४

समम ह द ू जीवन-

२१.५

चुनाव के बारे म चेतावनी .....................................................................३०७

२१.६

वरोिधय के ूित भी स -भाव ............................................................... ३०९

२१.७

स -गुण क उपासना कर...................................................................... ३१२

२२

रा

................................................................................ 302 ......................................................................... 304

क ौ ांजिल ....................................................................................... ३१४

२२.१

नेताओं के ौ ासुमन............................................................................. ३१५

२२.२

समाचार पऽ क ौ ा जिल ................................................................... ३१७

२३

ःने हल मागदशक ......................................................................................३२३

२३.१

समाज के साथ एकरस, एक प ...............................................................३२३

२३.२

मतभेद होने पर भी मनभेद नह ं ............................................................. ३२६

२३.३

प रवार का ह भाव.............................................................................. ३२७

२३.४

अद य आ मचेतना .............................................................................. ३३०

२३.५

आ म व े षण क

२३.६

संघ नेत ृ व क अभंग धारा ....................................................................३३२

२३.७

कायम नता ह जीवन ...........................................................................३३४

२३.८

वळाद प कठोरा ण मृदिन ू कुसुमाद प ....................................................... ३३५

२३.९

िन य-िनयिमत संःकार पर जोर ............................................................. ३३६

२३.१०

जग मऽ ............................................................................................३३८

२३.११

गांधी जी का ौ ापूवक ःमरण ...............................................................३३८

२३.१२

बहमु ु खी ूितभा ....................................................................................३४०

२३.१३

मूल काय पर एकाम

.......................................................................... ३३१

.......................................................................३४३

परम पूजनीय ौी गु जी का जीवनपट .................................................................... ३४४ ौी गु जी क ज मप ऽका .....................................................................................३४८ २४

प रिश -१ .................................................................................................३४९

२५

प रिश -२................................................................................................. ३५१

२५.१

गु जी मेरे मर ज थे.............................................................................. ३५१

२५.२

उ कृ

ह द ...................................................................................... ३५२

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२५.३

दै द यमान गुणावली ............................................................................ ३५३

२५.४

राजनैितक दशनकार............................................................................. ३५४

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१ पृ भूिम रा ीय ःवयंसेवक संघ के जनक ःव. डॉ. केशव बिलराम हे डगेवार ने िनर तर 15 वष तक अ वराम प रौम करके संघ को अ खल भारतीय ःव प दया। 1940 के संघ िश ा वग म भाग लेने हे तु आये कायकताओं के सम डॉ टर जी के उ -गार थे क म यहां ह द ू रा

का लघु

अपना अंितम भाषण दे ते हए ु प दे ख रहा हंू । बाद म 21

जून 1940 को डा टर जी ने ौी माधव सदािशव गोलवलकर उपा य ौी गु जी के कंध पर संघ का सारा दािय व स पकर इहलोक क अपनी याऽा समा

कर सबसे

बदा ली। डा टर जी के बाद ौी गु जी संघ के

ितय सरसंघचालक बने और उ ह ने यह

दािय व 1973 क 5 जून तक अथात लगभग 33 वष तक संभाला। ये 33 वष संघ और रा

के जीवन म अ यंत मह वपूण रहे । 1942 का भारत छोडो आंदोलन, 1947

म दे श का वभाजन तथा ख डत भारत को िमली राजनीितक ःवाधीनता, वभाजन के पूव और वभाजन के बाद हआ भीषण र पात, ह द ू वःथा पत का वशाल ु

सं या म ह दःथान आगमन, कँमीर पर पा कःतान का आबमण, 1948 क 30 ु

जनवर को गांधीजी क ह या, उसके बाद संघ- वरोधी वष-वमन, हं साचार क आंधी

और संघ पर ूितब ध का लगाया जाना, भारत के सं वधान का िनमाण और भारत

के ूशासन का ःव प व िनितय का िनधारण, भाषावार ूांत रचना, 1962 म भारत पर चीन का आबमण, पं डत नेह

का िनधन, 1965 म भारत-पाक यु , 1971 म

भारत व पा कःतान के बच दसरा यु ू

और बंगलादे श का ज म, हं दओं के ु

अ हं दकरण क गित विधयाँ और रा ीय जीवन म वैचा रक मंथन आ द अनेक वध ू

घटनाओं से या

यह कालख ड रहा। इस कालख ड म परम पूजनीय ौी गु जी ने

संघ का पोषण और संवधन कया। भारत भर अखंड ॅमण कर सवऽ काय को गितमान कया और ःथान-ःथान पर य संघकाय का जाल बछाया।

- य

को जोड़कर स पूण भारत म

डा टर जी ने सूऽ प म संघ क

वचार-ूणाली बतायी

थी। उसके समम ःव प को अ यंत ूभावी ढं ग से ौी गु जी ने उ

घा टत कया।

वपुल पठन-अ ययन, गहन िचंतन, आ या मक साधना व गु कृ पा, मातृभिू म के

ूित िनःवाथ समपणशीलता, समाज के ूित असीम आ मीयता, य

य को जोडने

क अनुपम कुशलता आ द गुण के कारण उ ह ने सवऽ संगठन को तो मजबूत बनाया ह , साथ ह हर

ेऽ म दे श का प रर व वैचा रक मागदशन भी कया। भारत

का रा -ःव प, उसका सुिन

त जीवन-काय और आधुिनक काल म उसके पुन

थान

क वाःत वक दशा के स ब ध म उनके ठोस व त यपरक वचार तो इस दे श के

िलए महान वचार-धन ह िस

नवयुग ूवतक ौी गु जी

हए ु ह। इस ूकार उनका जीवन अलौ कक एवं

१०


ऋ षतु य था। अ या मक

ी के महान ् योगी क तु सम

प भगवान क पावन

अचना के िलए जनसामा य के बीच रहकर उनके हत क िचंता करनेवाला यह महापु ष एकांत- ूय तथा मु

होने पर भी अपने दािय व और कत य-बोध से रा

और समाज-जीवन म अ यंत स बयता का प रचय दे नेवाला वल ण ूितभा का धनी था। रा - जीवन के अंगोपांग क आदशवाद था। संघ के वशु

ःथित क टोह लेनेवाला वह य

और ूेरक वचार से रा जीवन के अंगोपांग को अिभभूत कये

बना सश , आ म व ास से प रपूण और सुिन

त जीवन काय पूरा करने के िलए

स म भारत का खड़ा होना असंभव है , इस जद और लगन से उ ह ने अनेक काय ेऽ को ूे रत कया। व

हं द ू प रष , ववेकानंद िशला ःमारक, अ खल

भारतीय व ाथ प रष , भारतीय मजदरू संघ, वनवासी क याण आौम, िशशु मं दर

आ द व वध सेवा संःथाओं के पीछे ौी गु जी क ह ूेरणा रह है । राजनीितक

ेऽ

म भी डॉ. ँयामाूसाद मुखज को उ ह ने पं. दनदयाल उपा याय जैसा अनमोल ह रा स पा। ता कािलक संकट के िनवारणाथ समय-समय पर िभ न-िभ न सिमितय का गठन कर उ ह काय-ूवृ

कया। ःवयं को कसी भी आस

अथवा ईषणा का कभी

कोई ःपश तक नह ं होने दया। इसीिलए ौी गु जी के वैचा रक मागदशन क रा जीवन पर एक यापक एवं अिमट छाप पड़ है । रा ीय वचार, जीवन

ी और

जीवन िन ा का क याणकार वरदान जन लोग ने ौी गु जी के कायकाल म महण

कया ऐसे सह ाविध लोग आज दे श भर म कायरत ह। अरा ीय और दोषपूण वचार

ूणाली से पूवकाल म ूभा वत लोग अपने ॅम का िनवारण होने के कारण संघ क वचारधारा से जुड़ते जा रहे ह। उ चतम शासक य ःतर से संघ के व

लगाये गये

आरोप भी िम या और िनराधार सा बत हए ु ह। वैसे ह ःवाथ स ा ढ़ राजनीित ारा संघ को बदनाम करने हे तु कया जानेवाला अपूचार भी िनंूभावी होकर

िशिथल पड़ता गया है । यह नह ं अपूचार करनेवाले लोग ह जनता क िनगाह से उतरते गये और अपनी व ासाहता खो बैठे। क तु ौी गु जी वरोध क जरा भी परवाह न करते हए ु िनभयता से अपने अित

ूाचीन सांःकृ ितक रा वाद का वचार जनता के बीच ूःतुत करते रहे । ौी गु जी ने केवल कहा ह नह ं ब क वशु

रा िन ा रखने वाले सह

खड़े कये, यह

उनक

वशेषता थी। अपूचार के कारण ौी गु जी अनेक बार ववाद का वषय बने।

उनके

ारा ूितपा दत अनेक मत को वकृ त

उठाने का भी वर िधय

चा

गंधम ् के

प म ूचा रत कर राजनीितक लाभ

ारा ूयास कया गया। कंतु घृ ं घृ ं पुनर प पुनः च दनं

याय से ौी गु जी कभी वचिलत या ू ु ध नह ं हए। उ ह ने अपना ु

ःतर बनाये रखा। उनके िनमल मन म कभी

े षभावना ूवेश नह ं कर सक । उ ह ने

कभी कसी का बुरा नह ं चाहा। ह द ू जीवन- वचार और उस वचार के मूत ूतीक नवयुग ूवतक ौी गु जी

११


ःव प ह दरा ु

के पुन

थान के उ े ँय से वे कभी डगे नह ं। यवहार म अ यंत

ःनेहशील ौी गु जी िस ा त के मामल म अ य त आमह थे। आ म वःमृित अथवा आ म-वंचना क ओर ले जोनेवाला अथवा रा समझौता उ ह ःवीकार नह ं हआ। ु ऐसे य

क ूित ा को ठे स पहँु चाने वाला कोई

व के ूित लोग म ज ासा पैदा हो, यह ःवाभा वक ह है । ौी गु जी को

ककरोग से जजर अपना शर र

यागे लगभग 24 वष हो रहे है , फर भी संघ

ःवयंसेवक के अंतःकरण म ौी गु जी क अनेक ूेरक ःमृितयाँ आज भी ताजा ह। इतना ह नह ं, तो पूजनीय ौी गु जी वचार य

ारा समय-समय पर एक ि ा के

प म जो

कये गये उनका भी उ कटता ले ःमरण कराने वाली प र ःथित आज

दे श म िनमाण हो रह है । ू येक दे श का समाज और उसक गुणव ा ह रा ीय गौरव का आधार माने जाते है । केवल शासन स ा म प रवतन से यह गुणव ा

िनमाण नह ं होती। सात य से चा र य िनमाण करनेवाले गुण का संःकार करानेवाली यवःथा का होना अ यावँयक है , यह वचार ौी गु जी आमहपूवक रखते थे। इसक अनुभिू त हम आपातकाल के बाद के कालखंड म हई। सभी काय और प रवतन का ु के ि ब द ु य

ह है । य

य द अ छा नह ं रहा तो अ छ योजना व यवःथा

भी वह बबाद कर डालता है । भारत के सं वधान के वषय म जो ववाद उठ खड़ा हआ ु

है , उस संदभ म ौी गु जी

ारा मानवी गुणव ा पर बल दये जाने का वचार ह

अ यंत साथक ूतीत होता है । डा टर हे डगेवार और ौी गु जी, इन दो कतृ ववान तथा

येयसम पत महापु ष के उ रािधकार के

प म सरसंघचालक पूजनीय

बालासाहे ब दे वरस ने भी संघ को स पूण समाज के साथ समरस बनाने क

दशा म

सेवाकाय पर अिधक बल दे कर उ लेखनीय काय कया है । संघ के वरोिधय ने इन

तीन म वैचा रक िभ नता का आभास िनमाण कर ॅम फैलाने का ूयास कया कंतु ःवयं बालासाहे ब ने इस ॅामक ूचार का अनेक ूसंग पर ःप

श द म िनराकरण

कया। वे कहा करते क ौी गु जी का चयन डा टर जी ने ःवयं कया था और उसी तरह ौी गु जी ने मेरा चयन कया है , बस यह एक त य हमारे बीच वैचा रक िभ नता का ॅम फैलानेवाल को पूण और सश

उ र है ।

ौी गु जी का समम च रऽ िलखना हो तो वह एक बहत ु बडा मंथ हो जायेगा। उनके

वचार का संकलन ह करना हो अथवा उनके चुने हए ु पऽ को ह ूकािशत करना हो

तो सैकड़ पृ

भी कम पड़गे। वैसे दे खा जाए तो ौी गु जी के संघजीवन म उनका

िनजी अथवा वैय

क कुछ था ह नह ं। जस तरह डा टर जी ने य

गत घर-

गृहःथी बसाने का कोई वचार नह ं कया, उसी ूकार ौी गु जी ने भी अपनी य

गत गृहःथी नह ं बसायी। संघ को, पयाय से रा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

को अपना प रवार माना।

१२


उनके ई र-िन

जीवन म वरा

वे उसी क िनंकाम सेवा भ

समाजपु ष उनका आरा य दे व बना और जीवन भर

भाव से करते रहे । गीता के कमयोग को अपने जीवन

म उतारा। संघ वचार और अपनी मातृभिू म को गौररव ूा ूय

कराने के िलए ूभावी

क पराका ा ह उनके 67 वष य जीवन का अिभ न अंग रहा। जस दे ह से

यह सेवा नह ं हो सकती उस दे ह के ूित मोह उनके मन को कभी ःपश नह ं कर पाया। कक रोग अपना काम करे गा, कंतु मुझे अपना अंगीकृ त काय करते रहना चा हये। ऐसा वे हँ सकर कहा करते थे। ौी गु जी का जीवन वरागी क तु

कत यूवण था। ऐसे रा सम पत महान ् कमयोगी जीवन के बारे म ज ासुओं का समाधान करने तथा रा म िचरं तन ूेरणा

क नयी पीढ़ को य

ोत के

गत तथा समाज जीवन के हर

ेऽ

प म व मान एक महान ् आदश जीवन का प रचय

कराने के उ े ँय से ह यह एक ूयास है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३


२ िश ा और संःकार कई लोग ऐसे होते है ज ह धनी और कितमान प रवार म ज म लेने के कारण ज मतः महानता का प रवेश ूा

होता है । रा ीय ःवयंसेवक संघ के पछले तीन

सरसंघचालक के घरान को इस ूकार क महानता क पृ भूिम ूा

नह ं थी। ौी

गु जी का ज म अ यंत सामा य ःथितवाले प रवार म हआ। ौी गु जी मूलतया ु

क कण के गोलवली नामक गाँव के पा ये घराने के थे। पा ये अथात ् पुरो हत

यवसाय से स ब । यह घराना क कण से ूथम पैठण आया और बाद म नागपुर

ःथानांत रत हआ। पूजनीय ौी गु जी के पतामह ौी बालकृ ंण पंत नागपुर आये। ु

ु गया इसिलये गोलवलकर इस ःथानांतरण से उनका पुरो हती- यवसाय से स ब ध टट पा ये से केवल गोलवलकर उपनाम ह शेष रहा। ौी गु जी के पता ौी सदािशवराव को बचपन से ह

पतृ- वयोग का आघात सहन करना पडा। अतः िश ा अधूर

छोडकर आजी वका चलाने के िलए उ ह बा य होना जड़ा। अनेक वष तक द रिता म गृहःथी चलाने क यातना का उ ह सामना करना पड़ा। नागपुर के कामठ म ह ौी गु जी के पता ौी सदािशवराव को डाक-तार वभाग म नौकर िमली। ौी गु जी क

माताजी नागपुर के ह रायकर घराने क थीं, नाम था लआमीबाई। यवहार म ौी सदािशवराव भाऊजी और ौीमती लआमीबाई ताई नाम से स बोिधत कये जाते थे। ताई- भाऊजी द प ी को कुल चार पुऽ-र

ूा

हए। क तु ूथम दो पुऽ एक-एक ु

वष क आयु म ह काल के मास बने। जब तीसरा पुऽ हुआ तो उसका नाम अमृत

रखा गया। कंतु अमृत भी आयु के प िहव साल म स नपात का िशकार होकर काल का मास बना।

२.१ माता क गोद म ौी गु जी अपने माता- पता क चौथी संतान के कृ ंण एकादशी ( वजया एकादशी) (द

प म ज मे। उनका ज म माघ

ण म अमा त मास होते है ) वबम संवत ्

1962 तथा आं ल ितिथ 19 फरवर 1906 को तड़के साढ़े चार बजे नागपुर के ह ौी रायकर के घर म हआ। उनका नाम माधव रखा गया। परनेतु प रवार के सारे लोग ु

उ ह मधु नाम से ह स बोिधत करते थे। बचपन म उनका यह नाम ूचिलत था।

ताई-भाऊजी क कुल 9 संतान हई ु थीं। उनम से केवल मधु ह बचा रहा और अपने

माता- पता क आशा का के ि बना। मधु जब केवल 2 वष का था तभी उनके पता

ौी सदािशवराव ने डाक-तार वभाग क नौकर छोड़कर िश क का पेशा अपनाया। अ यापक क यह नौकर उ ह छ ीसगढ़ म सरायपाली नामक दे हात म िमली। सरायपाली माम रायपुर से 90 मील और रायगढ़ से 60 मील क दरू पर है । उन

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१४


दन यातायात का कोई साधन न होने से ऐसे ःथान पर जाने के िलये या तो पैदल

चलकर या फर घोड़े पर जाना होता था। आज क प रभाषा म हम जसे अ यंत पछड़ा और आधुिनकता से कटा

ेऽ कहते ह, ऐसे

ेऽ म मधु को बचपन बताना

पड़ा। कंतु य द कसी का जीवन उ म बनाना हो तो ूितकुलता पर मात करनेवाली कुछ अनुकूलता भी ई र उसे ूदान करता है । हाँ, उसे धारण करने क य

म होनी चा हए। यह

मता उस

मता ौी गु जी म बचपन से ह थी। और इसीिलए

माता- पता

ारा कये गये सुसः ं कार को वे शीयता से महण करते गये। भाऊजी जहाँ

ःवािभमानी,

ानदान म आःथा रखनेवाले एक स च रऽ िश क थे, वह ं ताईजी एक

अ यंत धमपरायण सुग ृ हणी और आदश माता थी। मधु जब 2 वष का था तभी से उसक िश ा ूारं भ हो गई। भाउजी पढ़ाते और मधु उसे आसानी से कंठःथ कराता जाता। ताईजी क शालेय िश ा नह ं हो पाई थी कंतु संःकार म कथाओं का वपुल भंडार उनके पास था। उस सारे

ान- भंडार का लाभ उ कृ

उठाया। बचपन म कस ूकार के सुसः ं कार उ ह ूा

ःमरणश

वाले मधु ने

हए ु इसका उ लेख आगे

चलकर सरसंघचालक के नाते पुण म दये अपने एक भाषण म उ ह ने कया था। उस भाषण म उ ह ने कहा था – “बचपन का ःमरण होते ह मेरा मन अनेक मधुर ःमृितय से भर उठता है । वे सार घटनाएँ मनः च ओ ु ं के सामने एक-एक करके उभरने लगती ह। सुबह तड़के मुझे नींद से जगाया जाता। उसी समय मेर माँ एक

ओर अपने हाथ से घर का कामकाज करती थीं और अपने मुह ँ से कोई न कोई ःतोऽ गान करती हई ु ई र का नामःमरण भी करती थीं। ताई के मधुर मंगल ःवर मेरे

कान म गूँजते। ूभात के शांत और ूस न

ण म मधुर ःवर के कान म गूज ँ ने

से मेरे बाल मन पर कतनी गहर और प वऽ छाप पड़ होगी ? ”

२.२ ज मजात ूितभा माधव के बा यकाल क अनेक वध घटनाएँ इस बात का व ास दलाती ह क माधव

म कुशाम बु ,

ान क लालसा, असामा य ःमरण श

, अ य के दःख दद के ु

िनवारणाथ जूझने क वृ , सहनिशलता क पराका ा, िनरहं का रता और मन क िनमलता जैसे गुण का समु चय बचपन से ह

वकिसत हो रहा था। ू येक गुण का

आकषण व सीखने क तीो अिभ िच भी माधव म दखलाई पड़ती थी। रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक पद का दािय व ौी गु जी पर आया तब लोग को उनक अमु य गुण-स पदा क पहचान वशेष

प से हई। कंतु इन सारे गुण का ु

वकास और संवधन उनके छाऽ-जीवन म ह हआ था, यह बात उनके जीवन च रऽ से ु

ःप

होती है । उदारणाथ पठन-पाठन, अ -भुत ःमरण श

और कंठःथ करने क

कला, हं द व अंमेजी भाषाओं पर समान ूभु व जैसे गुण का बजारोपण उनके नवयुग ूवतक ौी गु जी

१५


बा यकाल म ह हो चुका था। ूाथिमक िश ाकाल म ह उनके पठन-पाठन का दायरा

काफ

वःतार पाने लगा था। व वध ूकार क पुःतक को पढ़ने के ूित उनका

काफ लगाव था। जब वे मा यिमक िश ा महण कर रहे थे तभी उनका आं ल नाटककार शे सपीयर के सारे नाटक का पठन हो चुका था। अपने सहपा ठय को वे इन नाटक क कथाएँ अ यंत रोचक ढ़ं ग से सुनाया करते थे। क ा म जब िश क पा य पुःतक पढ़ा रहे होते तब गु जी कोई दसर ह पुःतक पढ़ रहे होते कंतु क ा ू म

या चल रहा है इसक ओर भी उनका

यान रहता। क ा म माधव के हाथ म

अ य पुःतक दे खकर िश क ने सोचा क उसका

यान पढ़ाई क ओर नह ं है । अतः

एक दन क ा म माधव को सबक िसखाने के इरादे से िश क ने पा य पुःतक का पाठ पढ़ रहे छाऽ को बीच म रोक कर आगे का हःसा पढ़ने का आदे श माधव को दया। माधव ने बना हचक पा य पुःतक हाथ म ले ली और अपने वगबंधु ने जहाँ से पढ़ना ब द कया था ठ क उस वा य से अगला हःसा पढ़ना शु

कर दया। यह

दे खकर क ा के छाऽ और िश क च कत रह गये। माधव को सबक िसखाने का िश क का दांव वफल हो चुका था।

ूाथिमक शाला मे ह भाऊजी अपने माधव को अंमेजी भी िसखाने लगे थे। माधव ने

इस वषय म भी इतनी शीयता से ूगित क

क जब ूाथिमक क चौथी क ा म थे

तभी वे अपने नागपुर ःथत मामा को अंमेजी म पऽ िलखा करते थे। पताजी क नौकर

हं द भाषी ूदे श म थी और बार-बार ःथानांतरण के कारण रायपुर, दग ु , खंडवा

आ द अनेक ःथान का पानी माधव को पीने को िमला। इस अविध म वे हं द भाषा से अ छ तरह प रिचत हो गये। मातृभाषा के नाते मराठ का

ान तो उ ह था ह ।

अनेक ःथान पर वाःत य का एक प रणाम यह भी हआ क िभ न-िभ न भाषा-भाषी ु लोग के स पक म वे आये। मन म संकुिचतता नह ं रह और यह मानिसकता बनी क सभी भारतीय भाषाएँ अपनी ह ह। रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक के

नाते ौी गु जी को जीवन भर अनिगनत, असं य भाषण दे ने पड़े । उनका व ृ व अ यंत ओजःवी और ःफूितदायक रहा करता था। इस व ृ व-गुण का वकास भी शालेय जीवन से ह हआ था। वषय क पूण तैयार कर व ृ व-ःपधा म ूथम ु

बमांक का पुरःकार पाने का पराबम भी उ ह ने बचपन म कर दखाया था। खूब खेलना, खूब पढ़ना, िमऽ को यथासंभव मदद करना, नॆता बरतना, अपने ज मे

आनेवाले घरे लू काम खुशी से करना, अ य लोग के सुख-दख से समरस होना, इस ु ूकार शालेय जीवन का काल उ ह ने साथक कर दखाया। भावी कतृ वस प न जीवन क नींव इसी कालखंड म रखी गई।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१६


ौी गु जी के पताजी ने एक बार कहा था क माधव एक बड़ा कतृ वशाली य

बनेगा, यह तो उसके शालेय जीवन म ू

उसक गुणव ा से ह अनुभव होता था।

क तु वह इतना महान ् बनेगा, यह क पना हमने नह ं क थी। संतान म अकेला

माधव ह बचा इसका भी अब मुझे कोई दःख नह ं रहा, ु प म हजार ब चे ह मान हम पुऽ- प म ूा

य क संघ ःवयंसेवक के

हए ु ह। यह कहते समय ौी भाऊजी

के चेहरे पर अपने अलौ कक पुऽ के बारे म अिभमान ूकट होता और नेऽ ध यता के

आँसओ ु ं से भर आते। क तु यह भी धमिन ा, प रौमशीलता और

यान म रखना होगा क िनःपृहता, कत यिन ा,

ान क उपासना आ द सारे गुण जो गु जी म ूकट

हए ु वे उनके आदश माता- पता के

ारा उन पर कये गये सुसः ं कार के कारण ह

संभव हए ु थे। इसका कृ त तापूवक उ लेख ौी गु जी ने अनेक बार कया है । ौी भाऊजी क लगन और

ढ़िन यी वृ

क क पना एक घटना से आ सकती है ।

अ यापन का यवसाय अपनाते समय भाऊजी ने केवल मै शक क पर

ा ह उ ीण

क थी। बीच म काफ कालखंड बीत चुका था। कंतु उ ह ने ःनातक बनने क ठानी। मै शक होने ते बीस साल बाद इं टरमी डएट क पर

ा म वे उ ीण हए ु और ःनातक

क उपािध महण करने के िलए उ ह और सात वष लगे। िश क क नौकर तो उ ह ने पूण ज मेदार के साथ िनभायी कंतु बाक बचे समय म वे

ान-दान का

काय अ वरत करते रहे । माताजी ताईजी तो िन य क इतनी प क थीं क 1934 म उ ह ने ौी बाबाजी महाराज नामक एक स पु ष के साथ ूयाग से आलंद तक

लगभग 1 हजार मील क पदयाऽा क और ऽवेणी संगम के प वऽ गंगाजल से संत ाने र क समािध का अिभषेक कराया। इस ूवास म एक दघटना म उनक सार ु

पीठ जल जाने से दाह वेदना होती रह पर तु उसे सहन करते हए ु भी वे चलती रह ं।

२.३ एक मािमक ूसंग पताजी का जैसे-जैसे ःथानांतरण होता था वैसे-वैसे शालाएँ भी बदलती जाती थीं।

माधव ने 1922 म चांदा (अब चंिपुर) के जु बली हाईःकुल से मै शक क पर

उ ीण क । भाऊजी क इ छा थी क माधव मे डकल कालेज म ूवेश लेकर डा टर बने। इसीिलए भार आिथक तनाव को सहन करते हए ु उ ह ने माधवराव को पुणे ःथत फ युसन कॉलेज क

व ान शाखा म अ ययन हे तु ूवेश दलाया। इं टर साइं स

के बाद ह मे डकल कॉलेज म ूवेश िमल सकता था। कंतु इसी बीच मु बई सरकार ने एक आदे श िनकालकर केवल मुबंई रा य के िनवासी-छाऽ के िलये ह कॉलेज म ूवेश सीिमत करने क घोषणा क । म यूदे श और बेरार उन दन मुबई ं रा य का घटक नह ं था। इसीिलए तीन माह म ह माधवराव को अधूर िश ा छोड़कर पुणे से नागपुर लौटना पड़ा। माधवराव को डा टर बनाने का भाऊजी का सपना साकार नह ं नवयुग ूवतक ौी गु जी

१७


हो सका। नागपुर लौटने पर ईसाई िमशनर

ारा संचािलत हःलॉप कॉलेज क

शाखा म उ ह ने ूवेश िलया और 1924 म इं टर क पर

ा वशेष ूा व य ूा

उ ीण क । कॉलेज जीवन के इन ूथम 2 वष म एक उ कृ छाऽ के

प म उ ह ने

व ान कर

खलाड़ और मेधावी

याित अ जत क । इस काल क एक संःमरणीय घटना है ।

ूाचाय गा डनर ने पढ़ाते समय बाई बल के एक ूसंग का संदभ ूःतुत कया। यह कॉलेज चूँ क ईसाई िमशन रय

ारा संचािलत था, अतः वहाँ बाई बल का अ ययन

अिनवाय था। माधवराव ने बाई बल का बड़े उनक ःमरण श

यानपूवक गहराई से अ ययन कया था।

भी काफ तेज़ थी। सरसंघचालक बनने के बाद भी वे अपने

भाषण तथा वातालाप म बाई बल के अनेक स दभ तथा ईसा मसीह के जीवन क अनेक घटनाओं और वचन को उ -धृत कया करते थे। क ा म ूाचाय गा डनर

ारा

दया गया स दभ गलत है ऐसा ूतीत होते ह माधवराव ने उठकर उ ह टोका और कहा, महाशय आप गलत स दभ दे रहे ह। वहाँ जस स दभ क आवँयकता थी उसे मुह ँ जबानी उ -धृत कर सुनाया तो ूाचाय महोदय ह का-ब का रह गये। क तु

बाई बल का मुझसे अिधक

ान इस व ाथ को है , यह बात ूाचाय

महोदय को

कैसे मंजरू होती ? सो उ ह ने तुर त बाई बल क पुःतक मंगवायी और ःवयं उस स दभ क छान-बीन क । उ ह यह जानने म दे र नह ं लगी क छाऽ माधवराव ने जो कहा था वह ठ क था। पुःतक म मूल स दभ म हू-ब-हू वह िनकला जैसे माधवराव ने उ -धृत कया था। अपनी भूल को खलाड़ -वृ

से ःवीकार कर ूाचाय महोदय ने

माधवराव क पीठ थपथपायी। इन दो वष के कॉलेज जीवन म अनेक बार क ा से अनुप ःथत रहकर भी माधवराव अ य पुःतक का पठन कया करते थे। शाला हो या कॉलेज, केवल पर थी।

ा उ ीण होने के िलए ह अ ययन करने क उनक मनोवृ

नह ं

ानाजन क भूख िमटाने के िलए उनका पठनकाय अहोराऽ चलता रहता था,

क तु इसके बावजूद शालेय अथवा कॉलेज के अ ययन क उपे ा भी उ ह ने कभी

नह ं क । सु व यात अंध वंशीवादक ौी सावलाराम के साथ उनक गाढ़ िमऽता थी। अतः इसी कालखंड म वंशीवादन क कला भी उ ह ने हःतगत कर ली थी। इं टरमी डएट क पर

ा उ ीण होने के बाद माधवराव जी के जीवन म एक नये और

दरगामी प रणाम वाले अ याय का ूारं भ हआ। यह अ याय बनारस हं द ू ू ु व

व ालय म ूवेश के साथ शु

हआ। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१८


३ काशी म अ ययन एवं अ यापन बनारस म महामना पं. मदनमोहन मालवीय ता ूतीक ह द ू व

ारा ःथा पत तथा उनके अनुपम कतृ व

व ालय उन दन दे शभर के युवक को अपनी ओर आक षत

करनेवाला एक अनोखा ूक प था। 1916 म इस व

व ालय क ःथापना हई ु और

ानाजन क भावना से सभी ूांत और विभ न भाषा-भाषी हजार छाऽ ने उसम

ूवेश िलया। यह कहना अनुिचत नह ं होगा क मालवीयजी ने ूाचीन गु कुल प ित के आधार पर ह िश ा का यह आधुिनक आौम खड़ा कया था। मालवीयजी का इस िश ा संःथान क ःथापना के पीछे मूल उ े ँय ह द ू दशन, व ा और कला क

योित पुनः ूकािशत करने और उसका लाभ नयी पीढ़ को िनर तर उपल ध कराने

का ह था। यह व

व ालय सवाग प रपूण हो, इस

से मालवीयजी ने काफ

प रौम कया। ौी माधवराव गोलवलकर ने बी. एस-सी. के छाऽ के व

व ालय म ूवेश िलया। एक लाख मंथ के संमह से यु

प म इस

मंथालय, र य वनौी

से आ छा दत प रवेश, गंगा का प वऽ तट, वातावरण क िनमलता और

ःवाः यूदता, सुस जत ूयोगशाला, वशाल बडांगण, उ कृ यु

यायामशाला आ द से

स पूण प रसर माधवराव जी को खूब भाया। 1926 म उ ह ने बी. एस-सी. क

और 1928 म ूा णशा क ं। व

वषय म एम. एस-सी. क पर

ाएँ ूथम ौेणी म उ ीण

व ालयीन चार वष का कालखंड उ ह ने कस तरह यतीत कया इसे अगर

एक वा य म बताना हो तो यह कहा जा सकता है क इन चार वष म माधवराव ने मनःपूवक अ ययन तो कया ह , क तु साथ ह अपनी अ तःूवृ आ या मक जीवन क ओर अिधक झुके। इस कालखंड म व का जतना उपयोग माधवराव ने कया उतना शायद ह

के अनुसार वे

व ालय के मंथालय

कसी अ य छाऽ ने कया

हो। उ ह ने संःकृ त महाका य , पा ा य दशन, ौी रामकृ ंण परमहं स व ःवामी ववेकानंद क ओजःपूण एवं ूेरक वचार-संपदा, िभ न-िभ न उपासना पंथ के ूमुख मंथ तथा शा ीय वषय के अनेक मंथ का आःथापूवक पठन कया।

३.१ असीम

ान- पपासा

पुःतक पढ़ने के ूित उनका लगाव इतना जबरदःत था क बी. एस-सी. के अ तम वष म एक ल बी बीमार क अवःथा म भी उनके हाथ म सदा कोई न कोई पुःतक बनी रहती थी। शर र म तेज बुखार रहते समय भी उनका पढ़ना जार रहता था।

उनक पढ़ने क गित भी काफ तेज होती थी। बड़े -बड़े मंथ भी एक दन म वे पूरा पढ़ लेते थे। पढ़ने के िलए दे र रात तक जागना तो उनक आदत बन गई थी। अनेक

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१९


बार तो यह दे खा गया क सायंकाल खेल के मैदान से लौटने पर भोजन महण करने

के प ात ् वे पढ़ने के िलए बैठते तो सुबह होते तक पढ़ते रहते। फर थोड़ा सा वौाम

लेकर दसरे दन के सारे बयाकलाप के िलए वे ूस निच ू उठते। उनके कमरे म यऽ-तऽ पुःतक बखर पड़

उ साह के साथ तैयार हो

दखाई दे तीं। उनका झुकाव

आ या मक जीवन क ओर था, इसिलये नागपुर म हःलॉप कॉलेज म पढ़ते समय ह वे ह द ू शा मंथ का अ ययन करने नील िसट हाईःकूल के मु या यापक ौी

मुले के यहाँ जाया करते थे। काशी म अ या म चचा, वेदा त मंथ का पठन-िचंतनमनन और मालवीय जी के सहवास का उनके जीवन पर गहरा ूभाव पड़ा। थोड़ -बहत ु पूजा-अचना,

यान-धारणा, आसन, ूाणायाम, य

उदासीनता, सम

गत ऐ हक जीवन के ूित

के सुख-दःख का आ मीयतापूण वचार आ द के ु

प म यह ूभाव

गोचर होने लगा। यह भी संभव है क इसी कालखंड म अपने भावी जीवन के स ब ध म उनके मन म वचार उठने लगे ह । व

व ालयीन छाऽ-जीवन का यह

कालखंड अ यंत आिथक संकट का सामना करते हए ु उ ह ने यतीत कया क तु

उनके चेहरे पर कभी यमता या िचंता के भाव कसी ने नह ं दे खे।

३.२ शार रक साधना ौी गु जी के संघमय उ रायुंय का ह केवल ज ह प रचय है उ ह उनके पूवायुंय

क कुछ बात बहत ु आ यजनक ूितत ह गी। यह सभी को व दत है क ौी गु जी

का आहार अ यंत अ प था। वह कतना अ प था इसक हम क पना नह ं कर

सकते। एक घटना से इसका अनुमान लगा सकते ह। कलक ा का ूसंग है । वहाँ के एक सुूिस

डॉ टर से ौी गु जी का वै क य पर

ण कराया गया। डॉ टर को

अनुभव हवा क सामा यतः ःवःथ होने पर भी र चाप बहत ु ु कम था। इसिलए

डा टर ने आहार के बारे म पूछताछ क । आहार के ववरण पर उ ह ने कैलर ज़ का

हसाब लगाया और उ ह आ य का ध का लगा। वे एकदम कह उठे , “यह कैसे संभव

है ? इतनी कम कैलर ज पर आप कैसे जी वत रह सकते है ? I can’t believe you are a living man! ” इस पर गु जी व सभी हँ स पड़े । “ौी गु जी यंग से बोले,पर तु म हँू यह तो स य है ना ? ” जीने के िलए जतना आवँयक है उतना ह वे अ न

सेवन करते थे। बलकुल सामा य जन के समान वे सीधा-सादा जीवन बताते थे। वे

िमताहार भी थे। मंगलूर के एक आयुवद पं डत के अनुसार, जो ःवयं भी एक माने हए ु योगसाधक थे, “ौी गु जी के शर र क यौिगक ःथित ऐसी थी क उसे आहार क आवँयकता ह कम लगती थी।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

२०


पर तु कशोरावःथा और त णाई म ौी गु जी ने भरपूर यायाम कया था। उनका आहार भी अ छा रहता था। जब उनका काशी म वाःत य था तब तैरकर गंगा पार

करना उनका अ यंत ूय खेल था। यायाम शाला म जाकर लाठ -काठ , द ड-बैठक आ द यायाम करते थे। मलखंभ पर कये जानेवाले यायाम का उ ह ने अ यास क या था और उसम उ ह ने ू वणता ूा

क थी। एक बार यायामशाला म उ ह ने

एक बंगाली पुवक को मलख भ क ओर दे खते हए ु खड़ा पाया। गु जी ने उससे पूछा, या दे ख रहे हो ? मलख भ सीखना है

या ? ” और लंगोट कसने को कह कर उसे

मलख भ के पाठ िसखाये। कॉलेज म पढ़ानेवाले िश क का यह कौश य दे खकर वह लड़का आ यच कत हो गया। यायाम से ौी गु जी का शर र सु ढ़ बन गया था। आगे संघ-काय के िलए जो अिनयिमत जीवन उ ह जीना पड़ा, उसम पूव आयुंय के इन अ यास और बाद क योगसाधना का उ ह अपने आपको काय म रखने के िलए बहत ु उपयोग हआ। ु एक समय उनका आहार भरपूर था और कभी-कभी वे बाजी लगाकर भी खाना खाते थे, यह कसी को बताया तो उस पर कोई व ास नह ं करे गा। एक बार भरपेट भोजन करने के प ात ् फर से उतना ह भोजन करने क वे ह मत रखते थे। नागपुर के

िनकट के काटोल ःथान क घटना है । वहाँ के एक िमऽ के यहाँ ौी गु जी गये थे।

भोजन करके ह वे बाहर िनकले थे। जस िमऽ के यहाँ गये थे उनके यहाँ भोजन का समय था। िमऽ और उनक प ी ने बहत ु आमह कया तब वे भोजन के प ल पर बैठ गये और स पूण तैयार भोजन समा

कर डाला। ज़ब िमऽ क प ी फर से रोट

बनाने के िलए आटा माँड़ने लगी तब ‘अब नह ं चा हये’ कह कर हाथ धोने के िलए उठ खड़े हए। ु यह कहने क ज रत नह ं क यह घटना एक अपवाद ह थी। ौी गु जी व ािथकाल म

ान के भो ा थे। व ािथय या िश क

ारा ‘कुंजी’ का

उपयोग कया जाना उ ह बलकुल पस द नह ं था। एक बार एक िश क ने ‘कुंजी’

का उपयोग कर जो अथ बतलाया वह गलत था। ौी गु जी उठ खड़े हए ु और उ ह ने िश क के

यान म ला दया क उ ह ने गलत अथ बतलाया है । िश क ने कुंजी का

आधार लेकर अपने को सह ठहराने का ूय

कया। पर तु ौी गु जी ने जोर दे कर

बतलाया क, “ ऐसा हो तो ‘कुंजी’ म दया हआ अथ भी अशु ु वे

है । ” इतना कहकर ह

के नह ं, अ पतु आगे कहा, ‘कुंजी’ से पढ़कर िसखानेवाले िश क के हाथ के िनचे

पढ़ने क मेर

बलकुल इ छा नह ं। ” यह ूकरण मु या यापक के पास ले जाया

गया। अथ गलत बताया गया है यह उनके

नवयुग ूवतक ौी गु जी

यान म आया। उ ह ने उस िश क के

२१


पास से वह वषय हटा िलया पर ौी गु जी को बतलाया क “क ा म िश क का ऐसा अपमान नह ं करना चा हए। ”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

२२


४ जीवन क

दशा

एम.एस-सी. क पर

ा उ ीण करने के प ात ् ौी माधवराव ने शोध-ूब ध िलखने

हे तु ‘म ःय-जीवन ’ का वषय चुना और इस वषय के वशेष अ ययन हे तु वे मिास के म ःय संमहालय म जाकर रहे । कंतु उनका यह शोध-काय पूरा नह ं हो पाया य क उसी समय उनके पता भाऊजी सेवािनवृ

हए। अपने इस पुऽ को मिास ु

वाःत य के खच हे तु पैसा भेजना उनके िलए असंभव हो गया। इसिलए अपना शोध काय अधूरा छोड़कर एक वष म ह उ ह नागपुर लौटना पड़ा। अ ययन का सवाल एक ओर रख द तो भी माधवराव के मन म उस समय जो वचार उफन रहे थे

उनका संदेश मिास के वाःत य म कये गये उनके पऽ- यवहार से िमलता है । उसम

काशी म चार वष के वाःत य म हए ु संःकार, दे श क घटनाओं का त ण मन पर होनेवाला ःवाभा वक प रणाम, जीवन क साथकता के िलए कसी िन

त माग का

चयन हे तु मन म चल रहा संघष आ द बात का ूकट करण हआ है । माधवराव के ु

जीवन का यह मह वपूण अ याय था। इस कावखंड म उनके मन म उठ रहे वैचा रक कोलाहल को उनके भावी जीवन को िमली दशा का आकलन करने क

ी से

समझना होगा। इसम एक मौिलक मह व क बात यह है क एक वशेष शोध-काय म लगे, िश णो र यावहा रक जीवन क दे हलीज पर खड़े इस युवक के मन म य

गत मह वाकां ा अथवा सुख-सु वधाओं से भरा जीवन बताने क भावना

य कंिचत भी ूवेश नह ं कर पायी। सामा यतः यह आयु नौकर , पैसा, घर-गृहःथी

बसाने के सपन म रममाण होने क मानी जाती है । क तु माधवराव ने अपने िमऽ के नाम जो वःतृत पऽ इस कालखंड म िलखे, जो सामा यतः 14-15 पृ थे, उनम अपने ःवयं क

उ लेख नह ं होता था। पऽ क

वाले होते

गत आशा-आकां ाओं के स ब ध म जरा सा भी वषयवःतु मु यतः सै ा तक वचार और जीवन क

साथकता के सह माग स ब धी मन म उठनेवाले वचार के व ेषण से संबंिधत

होती थी। माधवराव के मन म चल रहे वैचा रक संघष और वचार क

दशा जानने

के िलए उन पऽ के कुछ अंश यहाँ उ -घृत करना उिचत होगा। भगतिसंग, सुखदे व और राजगु

पर अपनी ूित बया य

ने अ याचार सांडस क ह या कर द । इस समाचार

करते हए ु माधवराव जनवर 1929 के ूथम स ाह म

अपने िमऽ बाबूराव तेलग ं को स बोिधत पऽ म िलखते ह- “लाहौर का वःफोट सुना। अतीव ध यता अनुभव हई। आंिशक ु

प म

य न हो, उ म

वदे शी शासक

ारा

कये गये रा ीय अपमान का प रमाजन हआ। यह संतोष क बात है । मने आपके ु

साथ अनेक बार व बंधु व, समता, शांित आ द वषय पर चचा क है । मार-काट,

आ द का िनषेध कर आपको दोषी ठहराया है , उपिव, व े ष, बदला लेने क दभावना ु नवयुग ूवतक ौी गु जी

२३


आपसे झगड़ा कया है । वह म इस ूकार का पऽ िलख रहा हँू , यह दे खकर आपको

आ य होगा। एक ओर बदला लेने क कामना और त णाई का जोश तो दसर ओर ू

वेदा त का शांत क तु अचल सूऽ। इन दोन के बीच उस समय इतना भीषण संघष

मन म चल रहा था क म वचिलत हो उठा। मन अशांत हो गया। इसी अवःथा म कापई दन गुजरे और दो-तीन बार शर र म

वर चढ़ आया, खांसी ने जोर पकड़ा,

काफ दबलता महसूस हई ु ु , आँख खंची- खंची रहने लगीं। मेर शार रक यािधयाँ

लोग को नजर आने लगीं तो म ःयालय के िनर

क ने जबरन मुझे डा टर के

सामने इलाज हे तु ूःतुत कर दया। आगर सावधानी नह ं बरती तो रोग गंभीर

धारण कर सकता है , यह चेतावनी मुझे डा टर ने द । म घबराया तो नह ं, पर इ जे श स आ द इलाज तुर त शु

कर दये।”

यह बमार दो माह तक चली। कंतु उससे मु

होते ह माधवराव के मन क बेचैनी

भी शांत हो चुक थी। अब उ ह अपने जीवन-काय का ःप

बोध हो चुका था। उसी

पऽ म उ ह ने िलखा है - “ लोग म रा ीय चेतना जगानी होगी। हं द ू और मुसलमान के बीच वाःत वक स ब ध का

ान करना होगा। ॄा ण-अॄा ण के बीच के वाद

को ख म करना होगा। म कोई बड़ा नेता अथवा कायकता नह ं हँू । कंतु हरे क को इस

काम म सहयोग दे ना ह चा हये। ”

रा ीय ःवयंसेवक संघ से स पक ःथा पत होने से पूव ौी माधवराव गोलवलकर जी के मन को ःवतंऽ

प से दशाबोध हआ था। प र ःथित के िन र ण और िचंतन से ु

एक िनः​ःवाथ, िनरपे , ज ासु यासंगी, िनमलिच , अ या मूवण, सैकड़ मथ को

पढ़कर आधुिनक व ूाचीन शा

के तुलना मक अ येता, महा व ालयीन दे हलीज को

पारकर िनकले इस जागृत युवक को हआ यह क ु यह युवक डा टर हे डगेवार जी

य-बोध था। लगभग 11 वष बाद

ारा ूारं भ रा ीय चेतना जगाने के काय क धुरा

अपने कंध पर लेकर 33 वष तक अखंड-अ याहत कुशलतापूवक संभालता है ; इसम आ य

य होना चा हए ? उसक मनोभूिमका पूव से ह तदनुकूल थी।

४.१ ‘ हमालय’ क पुकार’ ऐसा दखाई दे ता है क महा व ालयीन दे हलीज को पार करने के बाद भी 5-6 वष तक माधवराव के मन म उठा तूफान पूर तरह शांत नह ं हो पाया था। शांत व अ वचल हमालय का आकषण उ ह इस समःयामःत जीवन से दरू एकांत म जाकर

मो

क साधना करने के िलए बार-बार ूे रत कर रहा था। ववाहब

नवयुग ूवतक ौी गु जी

होकर अ य

२४


लोग के समान गाहःथ जीवन बताने क क पना तक उनके मन को ःपश नह ं कर

पाई। वन म केवल यह द ु वधा थी क एकांत म रहकर मो

साधना क जाए अथवा

सामा य जन के बीच रहकर उनक समःयाओं का समाधान कया जाए। अपने भीतर परःपर वरोधी ूतीत होनेवाली वृ य का यह खेल माधवराव एक संशोधक क अिल

भूिमका से दे ख सकते थे, उसका व ेषण कर सकते थे।

उनका ववेक पूणतया जागृत था। अपने िमऽ ौी तेलग ं को द. 20 माच 1929 को वखे एक पऽ म वे कहते ह- “ भौितक मानवी-जीवन के तार के साथ अपना तार िमलाने क मुझे तिनक भी इ छा नह ं है । म तो चाहता हँू क उससे भी अिधक शु

ःवर म वलीन करने के िलए जतना हो सके उतना उसे तान दँ ।ू इसके िलए तनाव

तो सहना ह पड़े गा। इसका अथ यह है क सवसामा य जगत ् से अलग रहना पड़े तो भी उसम कोई आप

नह ं, क तु जीवन का तार उस ःवग य संगीत से बेसरु ा न

हो। ” यह जानते हए ु भी क सुख क ओर ले जाने वाला यह माग कंटकाक ण और बीहड़

है , वे डटे रहे । असफलता क आशंका से आरं भ म ह मत हार जानेवाला लचर मन उनका नह ं था। इसी पऽ म वे आगे िलखते ह- “ इस अिन

त और खतरनाक राह

के िसवा अ य कोई माग नह ं है । रं भा को मात दे कर कोई वजयी शुक ॄ पद ूा कर लेता है और उसी राह पर चलनेवाला एकाध व ािमऽ मेनका से हारकर अधःपितत हो जाता है । यह मामला ऐसा ह है । क तु केवल इतने माऽ से इस माग

को छोड़कर यह कहना क म जनसाधारण के क चड़भरे माग से ह चलूग ँ ा, भी ता होगी। अंितम सुख क साधना करते समय उसके साथ अिनवाय

प से अपने हःसे

म आनेवाले दःख का सामना करने और उन पर वजय पाने के िलए कम से कम ु आमहपूवक उसके साथ दो-दो हाथ करने के िलए भी िस

कम खतरे वाला माग है ह नह ं। ”

रहना चा हए। कोई दसरा ू

ऐ हक बात से िच वृ य को हचा लेने के ूयास म बार-बार उनके मन म सभी बंधन तोड़कर सीधे हमालय क ओर चले जाने का वचार आता था। परं तु दसर के ु

दःख से याकुल होनेवाला उनका मन उ ह इस बात के िलए िध कारता हआ कहता ु ु

था क “अकेले अपने सुख के िलए सब को छोड़कर तुम कहाँ जा रहे हो ? ” कंतु यह

ं को िलखे अपने संघष भी धीरे -धीरे शांत हो गया। द. 28 फरवर 1929 को ौी तेलग

एक पऽ म वे कहते ह, “ म सं यास क

द ा तो ले चुका हँू , पर तु वह अभी पूण

नह ं हई ु है । हमालय चले जाने का मेरा पहले का वचार कदािचत शु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

नह ं था। इस

२५


संसार म रहकर ह दिनयादार के याघात को सहते हए ु ु तथा उसके सभी कत यकम को यव ःथत वृ

को या

प से िनभाते हए ु म अब अपने रोम-रोम म िन य सं यःत

करने का ूयास कर रहा हँू । अब म हमालय नह ं जाऊँगा, हमालय

ह ःवयं मेरे पास आयेगा, उसक शांत िनरवता मेरे ह भीतर रहे गी। उसे ूा

करने

के िलए अब और कह ं जाने क आवँयकता नह ं है । ” उनके जीवन वषयक वचार ने यह जो िन

त मोड़ ूा

कया उसी के अनुसार

उ ह ने अपना स पूण जीवन संघ-मय यतीत कया। ऐसा नह ं है क अ त

के

ूसंग फर कभी आये ह नह ं। क तु उ ह ने जो माग अंगीकृ त कया उससे वे कभी डगे नह ं। मिास म गवेषणा काय प र ःथितवश अधूरा छोड़कर वे नागपुर आये और संयोग ऐसा रहा क जस काशी ह द ू व महण क थी, वह ं उ ह ूा णशा

व ालय म उ ह ने चार वष तक िश ा

के ूा यापक के

प म सेवा ूदान करने का

अवसर िमला। 1930 म ौी माधवराव गोलवलकर अपनी पस द के व ूा यापक के नाते िनयु

व ालय म

हए। यहाँ बताये तीन वष का कालखंड माधवराव जी के ु

जीवन म अ यंत मह वपूण और भावी जीवन क

दशा िनधा रत करने वाला रहा।

ूथम उ लेखनीय बात याने जस ‘गु जी’ नाम से वे आगे जीवन भर जाने गये वह

नाम अथवा उपािध उ ह काशी म ूा यापक के नाते अ यापन करते समय उनक लोक ूयता के कारण छोऽ ने उ ह ूदान क । युवा माधवराव य प ूा णशा

के

ूा यापक थे तथा प आवँयकता पड़ने पर अपने छाऽ तथा िमऽ को अंमेजी, अथशा , ग णत, दशन जैसे अ य वषय भी पढ़ाने को त पर रहते थे। ऊँची क ा म ये वषय पढ़ाने के िलए उ ह ःवतः इनका अ ययन करना पड़ता था; क तु इस

कारण वे इसे न झंझट समझते थे और न कभी टालमटोल ह करते थे अ पतु कसी भी भांित पुःतक उपल ध कर, य द पुःतकालय म नह ं िमलीं तो उ ह खर दकर, उनका विधपूवक अ ययन करते थे। इसके अित र

अपने होनहार छाऽ-िमऽ क

बकाया फ स भर दे ने अथवा उनक पुःतक खर द दे ने म उनके वेतन का बहतां ु श यय हो जाता था। उनके इस िमलनसार, सहायताथ सदा त पर रहने क वृ

कारण िमऽ तथा छोऽ म वे अ यंत लोक ूय और आदर के पाऽ बने थे। इस ःनेहादर के कारण ह उ ह ‘गु जी’ संबोधन ूा

के

हआ था। यह नाम संघ-जीवन म ु

ढ़ हआ और आगे चलकर दे श भर म मा यता ूा ु

कर गया। उनक दाढ़ और जटा

क कहानी अलग और बाद के कालखंड क है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

२६


४.२ संघ म पदापण दसर ूमुख बात याने तीन वष के काल म ौी गु जी को रा ीय ःवयंसेवक संघ का ू ू य

प रचय ूा

हआ। संघ के ःवयंसेवक ने उनके साथ िनकट स ब ध बनाने ु

का ूयास कया। 1929 म नागपुर से काशी अ ययनाथ गये ौी भै याजी दाणी जैसे युवक ने वहाँ शीय ह रा ीय ःवयंसेवक संघ क शाखा खोली। ूा यापक के नाते ौी माधवराव गोलवलकर के गुण से अिधकािधक लाभ ूा

करने का भैयाजी दाणी ने

ूयास कया। प रणामःव प ौी माधवराव भी यदा-कदा शाखा म आने लगे। ये लोग अ ययन म माधवराव क मदद लेते थे और संघःथान पर उनके भाषण का

आयोजन भी करते थे। ौी माधवराव के साथ इन ःवयंसेवक का बताव ऐसा था

मान वे काशी व

व ालय म खुली इस संघ शाखा के पालक और चालक ह ।

भैयाजी दाणी के साथ ौी गु जी के अ यंत घिन दाणी व ह

स ब ध ःथा पत हो गये। भैयाजी

व ालय क अपनी िश ा पूर कर सके इसका अिधकांश ौेय ौी गु जी को

दया जा सकता है । रा ीय ःवयंसेवक संघ म माधवराव का ‘गु जी’ नाम

करने म ौी भैयाजी दाणी का बड़ा योगदान रहा है । ौी गु जी जब संघ के

सरसंघचालक बने तब ौी भैयाजी दाणी कुछ वष तक संघ के सरकायवाह थे। काशी म ौी गु जी का संघ-प रचय केवल सतह था। क तु संघ के ःवयंसेवक क येयिन ा और लगन दे खकर वे दं ग रह जाते। संघ के अनुशासन से भी वे ूभा वत हए। महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी क ौी गु जी पर वशेष कृ पा थी। ौी ु

गु जी भी अनेक बार ःवयंसेवक को मालवीय जी से भट कराने अपने साथ ले जाते और उ ह मालवीय जी का आशीवाद ूा

होता। मालवीय जी के मन म संघकाय के

ूित स -भावना होने के कारण ह उ ह ने व

व ालय के प रसर म शाखा के िलए

आगे चलकर जगह और कायालय हे तु एक छोटा भवन भी उपल ध करा दया था। जब ौी गु जी काशी म ूा यापक थे उ ह ं दन 1932 म डा टर हे डगेवार जी ने

उ ह तथा एक अ य संघूेमी ूा यापक ौी स -गोपाल को नागपुर संघ शाखा का वजयादशमी महो सव दे खने के िलए आमं ऽत कया। इन अितिथय का पुंपहार प हनाकर ःवागत भी कया तथा नागपुर के आसपास क संघ शाखाओं को दखाने क

यवःथा भी क । उनके इस वाःत य म डा टर जी अपने य

उ ह संघकाय क सुःप

क पना करा द । नागपुर से काशी लौटने पर ौी गु जी

काशी ःथत संघशाखा क ओर अिधक आःथापूवक काशी व

गत सहवास म

यान दे ने लगे।

व ालय म अ यापन का काय करते समय ह ौी गु जी को संघकाय का

ूाथिमक प रचय हआ और ह द ू संगठन के काय के ूित उनके मन म आःथा पैदा ु हई। इधर संघ के ु

ेऽ म कायकताओं के मन म यह वचार उठने लगे क य द ऐसा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

२७


संघ से जुड़ जाए तो उसे एक ौे

गुणव ा वाला कायकता उपल ध हो सकेगा।

व ान ् और वपुल मंथ के अ येता होने के नाते उनक

खड़ा करने के िलए चा र य, िनः​ःवाथता, य

याित थी ह , क तु संघठन

य को अपनी ओर सहज आक षत

करने क शैली, सहनशीलता, मन क िनमलता, दसर के सुख-दःख से समरस होने ू ु

क वृ , िस ांत के ूित

ढ़ िन ा, मूलगामी िच तन आ द जन गुण क

आवश◌्​् यकता होती दै उन सारे गुण का आ वंकार भी उनके दै नं दन जीवन म दखलाई पड़ता था। अ या म िचंतन, ु

यान-धारणा य

गत सुखसाधन के ूित

उदासीनता और सादा भोजनऔर रहन- सहन तो उनके जीवन के वशेष पहलू थे ह । हाथ म िलये गये काय के ूित एकामता तो उ ह ने छाऽ-जीवन म ह हःतगत कर ली थी। काशी ह द ू व

व ालय क ह एक घटना है - एक बार पढ़ई करते समय

उनके पैर को ब छू ने काट िलया तो गु जी ने शांत िच

से दं श कये हःसे म

चीरा लगाकर खून बहने दया और बाद म पपोटे िशयम परमगनेट िमिौत जल म पैर रखकर पुनः अपनी पपढ़ई म म न हो गये ! िमऽ ने उनसे पूछा क ‘तु ह ब छू ने काट िलया है फर भी तुम कैसे पढ़े जा रहे हो ? ’ इस पर ौी गु जी ने मजाक म

उ र दया- ‘ ब छू ने पैर को काटा है , िसर को तो नह ं ! तब पढ़ाई म बाधा आने का

या कारण है ? ’

कभी-कभी तो वे मन म ठान लेते क भोजन नह ं क ँ गा तो लगातार अनेक दन तक वे अ न ःपश तक नह ं करते थे। फर भी उनके िन यकम म कोई अंतर नह ं आता था। पढ़ाई करते हए ु रा ऽ म दे र रात तक जागरण का भी उनके ःवाः य पर

कोई असर दखाई नह ं पड़ता था। एक तरह से उ ह ने अपनी इ िय पर वजय ूा कर ली थी। आगे चलकर जब वे संघ के सरसंघचालक बने तब अनेक बार शर र म वर होने पर भी िनयो जत कायबम म वे ूस नता से सहभागी होते थे। अ य सहयोिगय को अपनी अःवःथता क जरा भी क पना न होने पाये इसिलए उ साह और ूस नता से वे कायबम म भाग लेकर उ ह पूण दािय व के साथ िनभाते थे। आ मबन के अ यासपूवक वकास से ह उ ह ने यह वृ

आ मसात क थी। क तु

इसका यह अथ नह ं क वे अपने शर र ःवाः य क उपे ा करते थे। शर र से इ

काय करवाने के ूित वे सदै व त पर रहते थे। इ िय के दास बनने क बजाय ःवामी बनकर कैसे जया जा सकता है , इसका

वल त उदाहरण उ ह ने ःवयं अपने

जीवन म ूःतुत कर दखाया। डॉ टर हे डगेवार जी ने भी इसी सूऽ को अपनाकर अपने शर र के कण-कण को संघकाय के िलए वस जत कया था। काशी व

व ालय के कालखंड म ौी गु जी ने ःवाभा वकतया वशाल िमऽ प रवार

िनमाण कया और इनम से कसी भी िमऽ को वे कभी भूले नह ं। संघकाय के िनिम नवयुग ूवतक ौी गु जी

२८


भारत-ॅमण के दौरान जब कभी कोई पुराना िमऽ िमलता था तो ौी गु जी उसके साथ पुरानी ःमृितय क चचा म म न हो जाते थे। वह िमऽ ःवयं ौी गु जी क ःमरण श

, सौज य और ःनेहपूण यवहार को दे खकर दं ग रह जाता। िनयमपालन

तथा अनुशासन के ूित िनभय आमह भी उनके ूित आदर भाव को बढ़ाता था। जब ौी गु जी शोध-काय के िनिम

मिे स म थे, तब एक बार है दराबाद का िनजामशाह

म ःयालय दे खने के िलए आया। िनयमानुसार शु क दये बना उ ह ूवेश दे ने से ौी गु जी ने इं कार कर दया। काशी म भी एक कायबम म िनयम तोड़कर अ य माग

से भीतर ूवेश करनेवाले एक अहं कार ूा यापक को रोकनेवाले ःवयंसेवक का भी ौी गु जी ने ह साथ दया था। ये सारे गुण संघकाय म उपयोगी िस गु जी क ओर डा टर हे डगेवार जी का ज मेदा रय को संभालने क शु िस

कर दये। डा टर जी क

होनेवाले थे। ौी

यान आक षत हआ और संघकाय क बढ़ती ु

से ौी गु जी को तैयार करने के ूयास उ ह ने य

क परख कतनी यो य थी यह भावी काल ने

कर दखाया।

ौी गु जी केवल तीन वष के िलए ह ू यापक िनयु

कये गये थे। ये मह वपूण

तीन वष बीतते दे र न लगी और काशी छोड़कर 1933 म वे पुनः नागपुर लौट आये। ∗

नवयुग ूवतक ौी गु जी

२९


५ सारागाछ आौम म ूा यापक माधवराव गोलवलकर उपा य ौी गु जी क काशी से नागपुर वापसी के बाद ५ वष के कालखंड मान दो महान ् य

य के बीच कभी परःपर अनुकूल तो

कभी ूितकूल दशा म खींचनेवाली उनक इ छा श

य का, मन को है रान कर

दे नेवाले चढ़ाव-उतार का एक वल ण खेल था। एक य के साथ अ तबा

व रा ीय ःवयंसेवक संघ

एक प बना हआ डॉ. हे डगेवार जी का था, तो दसरा य ू ु

ूकांड पं डत, अ या म ूवण, अपने मत पर

ढ़ रहनेवाले तथा अपनी ःवतंऽ बु

से वचार करने क ूवृ वाले ौी गु जी का था। डा टर जी और ौी गु जी के बीच

प रचय होकर २ वष का काल बत चुका था। अनेक असामा य गुण के धनी ौी गु जी क परख डा टर जी ने कर ली थी और उ ह संघ प बनते दे खने के िलए डा टर जी आतुर थे। एक ःव छ द कलकल िननाद करने वाले व य िनझर को अनुशासनब

करने और तट म बाँधकर रा पु ष क सेवा म लगाने का यह संकिलत

ूयास था। ौी गु जी रा

के श ड म ह कहना हो तो- “उस महापु ष के अ तःकरण म

क ददशा को दे खकर होनेवाली तीो यथा और उनक पूण समपणशीलता ने ह ु

मुझे झुकने के िलए ववश कया। और मेर यह शरणागित अ यंत सुखद थी।”

नागपुर लौटने के बाद ौी गु जी अपने मामा ौी रायकर के यहाँ रहते थे। उन दन

ताईजी और भाउजी नागपुर से २५ मील दरू रामटे क म रहते थे। सेवा-िनवृ

के

प ात ् भाउजी ने रामटे क म ह एक मकान खर द िलया था। अतः ौी गु जी

माता-

पता से िमलने अ सर रामटे क आया जाया करते थे। घर क आिथक ःथित

सामा य थी। अतः आिथक िनभरता के िलए ौी गु जी अपने मामा क कोिचंग लास म छाऽ को पढ़ाने का काम करने लगे। इसी समय उ ह ने वकालत क पर

पास करने हे तु लॉ कॉलेज म ूवेश िलया। ौी गु जी पर संघ-काय का अिधकािधक दािय व स पकर उ ह संघ के अिधक िनकट लाने का डा टर जी का ूयास यथाबम चलता रहा। उन दन नागपुर के तुलसीबाग म संघ क ूमुख शाखा लगती थी। १९३४ म ौी गु जी को शाखा का कायवाह िनयु

कया गया। इसी वष संघकाय के ूचाराथ

डा टर जी ने ौी गु जी को मुब ं ई भेजा। १९४० के पूव अकोला म केवल एक बार स प न १९३५ के संघ िश ा वग के सवािधकार का दािय व भी उन पर स पा गया। ौी गु जी ने इस दािय व का अ यंत कुशलता से िनवाह कया। वग के तेजःवी वातावरण को दे खकर डा टर जी बहत नागपुर म ौी गु जी हमेशा ु आन दत हए। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३०


डा टर जी के पास जाया करते थे और उनक बैठक म भाग लेते थे। १९३५ म उ ह ने वकालत क पर

ा उ च ौेणी म उ ीण क और कुछ दन तक ‘मा.स.

गोलवलकर वक ल’ इस नाम क प टका भी एक मकान को सुशोिभत करती रह । इन दो वष के कायकाल म उनके वृ

माता- पता ने अपने इकलौते पुऽ को ववाह के

िलए अनेक बार मनाना चाहा। ववाह का ू

उप ःथत होते ह ौी गु जी उसे हँ सी

म टाल दे ते। कंतु एक दन पता भाउजी को उ ह ने कहा क “ ववाह करने क मेर कोई इ छा नह ं है । घर-गृहःथी से मुझे सुख िमलेगा ऐसा मुझे नह ं लगता। फर भी य द आपका आदे श हो तो म ववाह करने के िलएतैयार हँू ।” ौी गु जी के इस उ र

पर भाउजी ने अपने पुऽ क मानिसकता को

यान म रखते हए ु फर कभी ववाह का

आमह नह ं कया। कँतु माता ताईजी क मनः ःथित अ यंत नाजुक थी। ‘मधु’ के

ववाह पर ह वंश पर परा का आगे जार रहना संभव था। ताईजी यह नह ं चाहती थीं

वंश यह खं डत हो जाए। ःवािभकतया ववाह स ब धी उनका आमह बना रहा। एक दन ऐसा ह आमह कये जाने पर गोलवलकर वंश के इस एकमाऽ ‘द प’ ने अ यंत ःप

श द म अपने मन क बात कह कर उ ह िन

र कर दया। ौी गु जी ने कहा

क- “ताई, तू मुझसे वंश खं डत होने क बात मत कह। यद मुझ जैसे अनेक के

वंश न

होकर भी समाज का कुछ भला होता हो तो वह आज क प र ःथित म

आवँयक ह है । वंश न

होने क मुझे जरा भी िचंता नह ं है ।” इस उ र को सुनकर

पुऽ-व सल माँ ःत ध रह गई और फर कभी माता- पता ने ौी गु जी से ववाह क बात नह ं छे ड़ ।

५.१ गु

क खोज म

इसी कालखंड म ौी गु जी के जीवन म एक नया मोड़ आ रहा था और उसका प रणाम सभी के िलए िच ता उ प न करनेवाला था। डा टर जी से स पक बढ़ रहा था और संघकाय म अिधकािधक सहभाग भी वे ले रहे थे पर तु ौी गु जी अभी संघकाय से पूणतया समरस नह ं हो पाये थे। उनका अिधक

झान नागपुर के

ध तोली ःथत रामकृ ंण आौम क ओर था। इस आौम के ूमुख ःवामी

भाःकरे रानंद के साथ ौी गु जी का काफ िनकटता का स ब ध ूःथा पत हआ ु

था। दै नं दन जीवन के अ यावँयक काय िनबटाने के बाद का अिधकांश समय उनका आौम म ह बीतता। आौम म अ या म-िचंतन और

यान धारणा के ूित उनका

आकषण दन ूित दन बढ़ता गया। आ मसा ा कार के िलए वे तड़पने लगे। डा टर जी भी उनक यह मनः ःथित दे खकर िचंितत थे। उनक िचंता का कारण यह था क

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३१


एक ओर जहाँ रा

को मु

करने क चुनौती है और सारा समाज गुलामी क

दरवःथा से गुजर रहा ह वह ं दसर ओर ौी गु जी जैसा मेघावी त ण य ु ू

गत

मो -सुख क कामना कर रहा है । डा टर जी ने ःवयं अपना सारा जीवन मातृभिू म क सेवा म

योछावर कर दया था और उ ह ऐसी ह धारणा वाले बु मान, कमवीर

त ण चा हए थे। त ण के सम

उ ह ने अपना जीता-जागता उदाहरण ूःतुत कया

था। क तु वे ौी गु जी को मना नह ं सके थे। इस स ब ध म यह कहा जा सरता

है क कुछ महान य

य के जीवन क इस ूकार क उथल-पुथल म भी शायद

िनयित का ह कोई सूऽ रहता हो! भारतीय ऋ ष-मुिनय , रामकृ ंण- ववेकान द जैसे आधुिनक ि ाओं, महारा िस

क संत पर परा अथवा योगी अर व द, रमण मह ष जैसे

पु ष ने परमो च सुख ूाि

क एक अवःथा बतलायी है । ःवानुभव से उ ह ने

बताया है क इस अवःथा म मन क सार अशांित, खंचाव-तनाव, “ कम ् कम कमकमित” स ब धी स दे ह हमेशा के िलए दरू होकर कसी भी बा

न रहने वाले शा त, ःवयंपूण सुख का अमृतमय अखंड आनंद य

प र ःथित पर

ूा

कर सकता

है । इस अवःथा क अनुभिू त कर लेने के प ात ् ह ौी गु जी का योगी- य

संघकाय म पूणतया सम पत हो, यह िनयित क योजना रह होगी। इतना सच है क कसी अनुभिू त स प न स ु

के चरण म बैठकर, उनके सा न य

म रहकर उनक सेवा म आनंदमय आ मसा ा कार हे तु एकाम साधना करने क ओर ौी गु जी का

झान अ यंत तीो हो चुका था और इसीिलए एक दन अपने माता-

पता, मामा के प रवार, िमऽ , डा टर जी और संघ कायताओं तथा नागपुर म वकालत करनेवाले सभी सहयोगी िमऽ को बना बताये वे स ु

का कृ पा-ूसाद पाने

के िलए चल दये। यह घटना १९३६ के शरदकाल क है ।

ौी गु जी ने जन स पु ष क ओर ूःथान कया उनका नाम था ःवामी अखंडानंद। ौी रामकृ ंण परमहं स ने जन इने-िगने त ण को अपने साथ लेकर उनसे कठोर

साधना करवाई थी तथा एक महान ् जीवनकाय का उ ह बोध कराया था उनम ःवामी अखंडानंद भी थे। ःवामी ववेकान द भी इ ह ं के साथी थे। भारत के आ या मक

जीवनादश क पुनः ूःथापना करना और चार ओर फैले द रिनारायण क भौितक ेऽ म सेवावृ

उपासना करना यह उनका अंगीकृ त काय था। इस भगीरथ ूयास को

भारत के रा ीय ःव प क अनुभिू त और उसके िनयत जीवनकाय के सा ा कार का

सु ढ़ अिध ान ूा

था। ऐसा बताया जाता है क एक बार ःवामी अखंडानंद जब

हमालय क ूवास पर िनकले तब माग म मुिशदाबाद जले म भीषण अकाल के कारण वहाँ के लोग क ददशा उनसे दे खी नह ं गई। उनका मन क णा से भर गया ु

और उनके कदम वह ं पर नवयुग ूवतक ौी गु जी

क गये। उ ह ने सारगाछ म ह अपना डे रा जमाया और ३२


सेवा काय ूारं भ कया। इस सेवाकाय के चलते ह वहाँ आौम का िनमाण हआ। ु सारगाछ का शा दक अथ है - हरे -भरे -घने वृ

क ल बी पं

याँ। इस नाम को

साथक करनेवाला ह यह ःथान था। ूाकृ ितक सौ दय से स प न इस प रसर म ह पहले ‘ वनोद कुट ’ बनी जसम ःवामी जी का वाःत य था। धीरे -धीरे इस आौम का वःतार होकर सेवा के ि, पाठशाला, औषधालय, उपासना ःथली आ द िनिमत होते गये। भगवत ्-ःव प अपने समाज वांधव - ‘द रिनारायण’ क सेवा करने क ूेरणा से बने इस आौम म ौी गु जी पहँु चे। रामकृ ंण आौम, नागपुर म ‘द

ा’ ूा

करने

क इ छा रखनेवाले साधक को, जनम ौी गु जी भी एक थे, ःवामी अखंडानंद जी ने ‘सारगाछ आौम’ म आने के िलये कहा था। नागपुर के आौम म ःवामी अमूतानंद, ज ह अिमताभ महाराज के नाम से जाना जाता था, ौी गु जी के य

व से काफ ूभा वत थे। उनके ह श द म, “ौी गु जी

को दे खकर मुझे ऐसा

लगा मान मेरे सामने एक अ नपुंज खड़ा है जस पर केवल कुछ राख जमी है । वह राख छँ टते ह उनके य

व का तेज अिधक ूखरता से ूकट होगा।”

उ ह ने ौी गु जी को सारगाछ आौम जाने क ूेरणा द । नागपुर आौम के ूमुख ःवामी भाःकरे रानंद ने भी अनुकुलता दशायी। सारगाछ आौम के ःवामी अखंडानंदजी से पऽ- यवहार कर उनक स मित भी ूा

कर ली गई। फर

या था,

एक दन अचानक ौी गु जी आ मसा ा कार के दै वी आकषण से सारगाछ क ओर रवाना हो गये। इसक जानकार उनके केवल दो-तीन िलकटःथ िमऽ को ह थी। बाक सारे अनिभ

थे। नागपुर म चचा चल पड़

क ौी गु जी कहाँ गये ह गे ? ौी

गु जी के इस ूकार अकःमात ् चले जाने से डा टर जी को ध का लगना ःवाभा वक

ह था। उनका मानस ौी गु जी को संघकाय से जोड़ना चाहता था। ौी गु जी के इस अकःमात ् ूःथान के बारे म उनके सहयोगी वक ल िमऽ ौी द ोपंत दे शपांडे को ह

माऽ जानकार थी। अपने इस योजना के बारे म जो वःतृत पऽ ौी गु जी ने अपने

माता- पता के नाम िलखकर रखा था, वह भी ौी दे शपांडे के मा यम से ह उन तक पहँु चाने क

यवःथा क गई थी। तभी ौी गु जी के सारगाछ चले जाने का खुलासा

लोग को हआ। कंतु तब तक काफ दे र हो चुक थी। ौी गु जी सारगाछ पहँु च चुके ु थे। अब इसके बाद वे कैसा माग अपनाते ह इसक ूती ा करने के अित र

और

कोई उपाय नह ं था। डा टर जी भी दे शपांडे जी से जब कभी िमलते तो पूछते- ‘क हये, आपके िमऽ सारगाछ से कब लौटने वाले ह ?’ लगता है , डा टर जी का मन कहता था क ौी गु जी नागपुर अवँय लौटकर आयगे। डा टर जी के घर म िन य चलनेवाली बैठक म भी बीच-बीच म ौी गु जी का वषय अवँय िनकला करता और गु जी क नवयुग ूवतक ौी गु जी

ा ३३


और गुणव ा क ूशंसा डा टर जी के मुख से सुनी जाती। उनके ूित उपहास अथवा आलोचना का एक श द भी डा टर जी के मुख से कभी नह ं िनकला। उनका

व ास था क ौी गु जी अवँय लौटगे और संघकाय म जुटगे।

५.२ द

ा महण

उधर ौी गु जी ने आौम म ूवेश कया और बाहर क सार दिनया को वे भूल गये। ु

गु

क सेवा और एकाम साधना ह उनका जीवन बन गया। भारत क आ या मक

पर परा म गु -िशंय स ब ध बड़ा वल ण होता है । सभी संत ने सदा स -गु म हमा गायी है । ौी गु जी ने तन-मन से गु

सेवा ूारं भ क । आौम क साफ-

सफाई से लेकर ःवामीजी के कपड़े धोने, बतन माँजने आ द कसी भी ूकार के काम को उ ह ने कभी कम नह ं आँका। मनुंय म जरा भी अहं कार क भावना हो तो वह इस ूकार क सेवा से दरू हो जाता है । गु गु

क कृ पा से ह जीवन म साथकता है ।

भी अपने िशंय को हर कसौट पर कसकर परखता है । आौम के वाःत य म ौी

गु जी हर कसौट पर थरे उतरे । ौी गु जी के जीवन का यह अ याय जतना आक ःमक था उतना ह रहःयमय भी था। आगे चलकर ौी गु जी संघकाय से एक प हो गये और उ ह ने अपनी गु सेवा, साधना और आ मानुभिू त के बारे म कभी कोई चचा नह ं क । इसिलए उनके आौम-जीवन के बारे म जो कुछ भी थोड़ -बहत ु डानकार िमल पायी वह उनके गु बंधु ःवामी अिमताभ महाराज के

ारा ह समय-

समय पर हई ु चचा के दौरान िमली। सन ् १९४९ म ौी गु जी मैसरू के रामकृ ंण िमशन तथा व ामं दर को दे खने गये थे।

उस समय ःवामी अिमताभ महाराज ने गु जी के ःवागताथ भाषण म कहा- “ौी गु जी ने अ यंत प रौम और

येयपूक सारगाछ आौम म रहकर साधना क थी।

उस समय उनके सहवास के आधार पर ह म कह सकता हँू क रा ीय ःवयंसेवक

संघ ने ‘नरे ि’ को ह नेता के

प म ूा

कया है ।” ःवामी अिमताभ महाराज ने

म यूदे श म नमदा के कनारे मोह पुरा म आौम ःथा पत कर वनवासी ब धुओं क सेवा के काय हाथ म िलया। वहाँ संघ क शाखा भी लगती है । ौी गु जी के साथ

उनके स ब ध अ यंत आ मीयता के रहे । दोन के बीच पऽ- यवहार भी हआ करता ु था। ौी गु जी

ारा ःवामीजी को िलखे पऽ क भाषा और भाव म अलौ ककता

दखाई दे ती है । द. ३० िसत बर १९६० को अिमताभ महाराज के नाम िलखे पऽ क यह पं

दे खये- “कल रात बोलते-बोलते सारगाछ आौम के वाःत यकाल क

अमृतमय ःमृितयाँ ताजी हो उठ ं। मन क

नवयुग ूवतक ौी गु जी

या अवःथा हई ु , उसे श द म य

नह ं

३४


कर पा रहा हँू । वह असीम भा य मुझे आपके कारण ह ूा

हो सका। उसका ःमरण

होते ह कृ त ता से अ तःकरण भर जाता है । क तु यह वषय कोई कोरे श द म य

करने यो य नह ं होने के कारण कुछ िलख नह ं पा रहा हँू । इन श द म उस

महान भाव-जगत ् क केवल क पना ह क जा सकती है ।” उपल ध जानकार से यह ःवयं को गु

ात होता है क सारगाछ म पहँु चने के बाद ौी गु जी ने

क सेवा म झ क दया। उनका अिधकािधक समय गु

के साथ ह

बीतता और इस बीच उनके कपड़े धोना, उ ह नहलाना, चाय बनाकर पलाना, भोजन क

यवःथा करना, उनका बःतर ठ क करना आ द सब ूकार के काम ौी गु जी

कया करते। ःवामी अखंडानंद जी वयोवृ

थे और ौी गु जी

ारा िनरलस भाव से

क जानेवाली सेवाओं से अ यंत ूस न थे। सेवा करने और उनके अनुभव को सुनने का अवसर उ ह िमलता। वृ ावःथा के कारण ःवामीजी ूायः अःवःथ हो जाते और तब गु जी रात-रात भर उनके िसरहाने बैठकर जागते रहते। इस समय अपने इस ूय िशंय के साथ ःवामीजी का मु

संवाद चलता। आौम म रहते समय ौी गु जी

ने दाढ़ बढ़ा ली थी और िसर के केश भी कटवाये नह ं थे। दाढ़ और जटा उनके मुखकमल क शोभा बढ़ाते थे। ऐसे ह एक दन ःवामीजी ने उनके बखरे हए ु

मुलायम बाल पर अपना ःनेहपूण हाथ फेरते हए ु कहा, “ये बाल खूब फबते है । दे खना, इ ह कभी कटाना नह ं।” अपने गु

क इस इ छा का ौी गु जी ने आजीवन

पालन कया। उनक दाढ़ और जटा का रहःय सारगाछ के महा मा के इस इस आिशवाद म है । सारगाछ आौम म गु गु कृ पा के जस आनंदमय

क अहोराऽ सेवा म ५-६ मास बीत गये।

ण क ौी गु जी बाट जोह रहे थे वह

ण अभी तक

नह ं आ पाया था। ःवामी जी का ःवाः य दन दन बगड़ता जा रहा था। इसी समय ःवामी अखंडानंदजी ने ःवामी अिमताभजी को पऽ भेजकर नागपुर से सारगाछ बुलवा िलया। ौी गु जी और अिमताभ महाराज

ारा गु

बताये दन उनके जीवन का एक ःमरणीय कालखंड रहा है । द

िलए ौी गु जी के मन क

क सेवा म एकऽ

ा महण करने के

यमता अिमताभ महाराज से िछपी नह ं थी और इधर

ःवामी अखंडानंद जी अ सर कहते सुने जाते क ‘अब म कुछ ह

दन का मेहमान

हँू ।’ आ खर एक दन ःवामी अखंडानंदजी के चरण दबाते समय अिमताभ महाराज ने

ःवामीजी से कहा- “गोलवलकर जी के माता- पता काफ वृ शीय मंऽ-द

हो चुके ह, अतः उ ह

ा दे कर वकालत का यवसाय करने दया जाए।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३५


इस पर ःवामी जी ने जो उ र दया उसम एक वा य उनके ि ा होने का प रचय

दे ता है । ःवामी जी ने कहा- “उसे द है क वह वकालत का ह

ा तो दे द जाएगी क तु यह कौन कह सकता

यवसाय करे गा ?”

यह सच है क सारगाछ से लौटने के बाद गु जी ने वकालत का पेशा नह ं अपनाया। उनके जीवन को एक नयी दशा िमल चुक थी। क तु इसम कोई स दे ह नह ं क सारगाछ आौम म ूा

अनुभव से ह उनका जीवन समृ

बना था। गु

क सेवा

और साधना के इस कालखंड म ौी गु जी ने ःवयं ःवामी अखंडानंदजी के जीवन म यान, समािध और साधना का ूा य अितिथय क दे खभाल करते समय य

क दे खा था। आौम म आने वाले दे शी- वदे शी व वध ूित बयाओंको सुनने का अवसर भी

उ ह िमला। वेदा त दशन के अनेक वध पहलुओं को अिधकार पु ष के मुख से सुनने का मौका िमला और ःवयं को भी वाचन, मनन और िचंतन का अवसर िमला। एक दन अिमताभ महाराज ने अपने गु दे व से कहा- “अब मुझे आ ा द जये। नागपुर जाना मेरे िलए आवँयक है ।” इस पर ःवामी जी बोले- “दे खूँ भला तुम कैसे जाते हो ?”

फर कुछ

ककर उ ह ने

कहा, “तु ह यह रहना होगा। अब म अिधक दन नह ं जी पाऊँगा।” अिमताभ जा च क गये। उ ह ने डरते-डरते ह कहा, “माधवराव को अब द

ा दे द

जाए।” तुरंत उ र िमला, “ठ क है , ठाकुर जी से (रामकृ ंण परमहं स से) पूछ लेता हँू ।”

(अिमताभ महाराज के नाम िलखे जानेवाले पऽ म ौी गु जी भी ौी रामकृ ंण परमहं स

का उ लेख ठाकुरजी के नाम से ह

कया करते थे।)

इस संवाद के तीन दन बाद ह ःवामीजी ने ःवयं कहा, “कल गोलवलकर को द

द जाएगी।” िनयो जत कायबमानुसार यह द

ा- विध वनोद कुट म ह स प न हई। द ु

ा ूा

करने के बाद ौी गु जी को दे वदशन के िलए भेजा गया। यह ूभात क वेला थी और अिमताभ महाराज पूजा कर रहे थे। ौी गु जी को समाधान मुिा म मं दर म आता दे खकर उ ह संतोष हआ। अिमताभ जी के अनुसार “ौी गु जी उस समय ूशांत ु

महासागर के समान शांत तथा गंभीर दखाई दे रहे थे।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३६


ा ूा

होने के प ात ् अपने मन म जो भावोिमयाँ उमड़ पड़ ं उनका ौी गु जी ने

िन निल खत श द म वणन कया है , “सुवणा र म अं कत करने यो य मेरे जीवन का वह संःमरणीय दन था

य क असं य ज म के प ात ् ूा

मुझ पर ूस न हआ था। स -गु ु

क असीम कृ पा उस दन मुझ पर हई ु थी।

सचमुच उस दन के अनुभव अ यंत प वऽ ह जो श द म य है । स -गु

होने वाला सौभा य कर पाना संभव नह ं

का वह ःपश, उनका वह ूेम, अपना दै वी ूसाद मुझे दे ते समय उनका

स पूण आ वभाव, इनम से कसी का भी मुझे वःमरण होना असंभव है । मेरा सारा शर र क पत हो रहा था। मुझे अनुभव हआ क म स पूणतः बदल गया हँू । एक ु

िमनट पूव म जो था, वह म नह ं रहा हँू । (“Red letter day for me to be noted down in words of gold! For, did not the fortune of countless millions of births smile upon me and confer upon me the bliss of being graced by the Master? Indeed the experiences of that day are very sacred, too sacred for words. I can never forget the touch, the love, whole bearing of the Master as he conferred upon me this favour of the blessed and all the time I trembled. I feel changed. I am not what I was a minute ago!”) १३ जनवर १९३७ को मकर संबमण के शुभ पव पर ौी गु जी ने द

ा ूा

क।

बाद म २४ जनवर क सं या को पू. बाबा ने सेब मंगवाया और इस वषय म सूचना दे ने लगे। परं तु बीच म

क कर बोले, “तु हारा सब ूकार का क याण हो। तुझे

आ मदशन हो यह मेर ौीगु

महाराज से ूाथना है । मुझ म जो अ छाई है वह म

तुझे दे रहा हँू , तुझ म जो बुराई है वह मुझे दे । मुझे सुख क चाह नह ं है । मुझे दःख ु

चा हए। मुझे तेरा कभी भी वःमरण न हो, यह मेर भगवान से ूाथना है । मेरा तु ह आिशवाद है । आज क सं या का सदा ःमरण करते रहो। सुख अपने िलए भगवान ने कतने क

या है ? दे खो,

सहे ह। ौीकृ ंण का ज म होते ह माँ का दध ू न

पीते हये ु उ ह माँ को छोड़कर वाले के घर म रहना पड़ा। वहाँ वे बड़े हए ु पर तु वहाँ

भी उ ह सुख नह ं िमला। हमेशा असुर उनके दःख के सामने अपने दःख ु ु य

ारा ढाये गये संकट का सामना करना पड़ा।

या है ! इसिलए म दःख क इ छा करता हँू ।” ु

गत सुख क अपे ा बलकुल ह न करते हए ु और संकट से पःत न होते हए ु

ई रशरणता से जीवन जीने का यह जो बोध पू. बाबा ने उ ःफूतता से दया, उसका ौी गु जी को कभी भी वःमरण नह ं हआ। ु द

ा ूाि

के बाद भी ौी गु जी ने सारगाछ आौम म ह िनयमानुसार गु सेवा

जार रखी। इस जीवन से वे पूणतया समरस हो गये। य

गत सुख सु वधा,

क ठणाई आ द का वचार उ ह ःपश तक नह ं कर पाया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३७


५.३ कुछ सुखद संःमरण संयोग से ह ौी गु जी के सारगाछ आौम के कालखंड के संबंध म दो संःमरण कलक ा के संघचालक डॉ. सु जत धर को ूा

म अ खल भारतीय व ाध प रष

हए। घटना इस ूकार हई। कलक ा ु ु

का एक कायबम आयो जत होने वाला था। उसम

ूमुख अितिथ के नाते उप ःथत रहने के िलए ःवामी िनरामयान द जी को आमं ऽत करने डॉ. धर उनके आौम म गये थे। उनसे वातालाप करते समय ःवामीजी के मुख से सहज उ लेख हआ क वे ःवयं सारगाछ आौम म रह चुके ह। तब डॉ. धर ने ु कहा, “ःवामीजी, हमारे गु जी भी कुछ समय वहाँ रहे थे।”

“कौन गु जी ?” “हमारे रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक।” “वे गोलवलकर ? आजकल उनका वाःत य कहाँ है ? मने सुना है क कभी-कभी वे कलक ा भी आते ह। उनसे क हए क उ ह जब फुरसत हो तब म सा ा कार करने आऊँगा।” फर कुछ दन के बाद ूवास म ौी गु जी का कलक ा आगमन हआ। तब डॉ. धर ु

ने ःवामी िनरामयान द क इ छा उ ह बतलायी। ौी गु जी अपने गु ब धु का

उ लेख सुनते ह तोमांिचत हो उठे और बोले, “उ ह सूिचत करो क वे आने क तकिलफ न उठाय, म ह उनके दशनाथ आौम म आ रहा हँू ।” डॉ. धर ने ौी गु जी का स दे श ःवामी िनरामयान दजी को सूिचत कया। ौी गु जी ज द -ज द तैयार

हए। गु ब धु के सा ा कार का दिनवार आकषण उनक हलचल से ूकट हो रहा था। ु ु

हम लोग आौम क ओर चल पड़े । आौम क ओर जानेवाली गली जरा संकर होने

से मोटर आम रःते के कनारे खड़ कर हम लोग पैदल ह आौम क ओर जाने लगे। ःवामी िनरामयान द जी ूवेश

ार के बाहर ःवागत के िलए खड़े थे। उनको

दे खते ह गु जी अ रशः उनक ओर दौड़ने लगे। दसर ओर से ःवामी जी भी दौड़े । ू

दोन का सा ा कार हआ और दोन ने परःपर आिलंगन दया। सब लोग आौम म ु

पहँु चे। दोन गु ब धु भाव- वभोर होकर परःपर बातचीत कर रहे थे, बाबा के संःमरण

कथन कर रहे थे।

ःवामी जी : ःमरण है तु ह ? (एक ःथान क ओर अंगिु ल िनदश कर) “यहाँ बाबा (ौी स -गु

ःवामी अखंडानंदजी) लेटे हए ु थे। उनका िसर मेर गोद म था।”

“बाबा का सारा सामान रहाँ है ? घड़ , कम डलु ... ” ौी गु जी - सब कुछ है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३८


ःवामी जी – बाबा का वःमरण तो नह ं हआ है ? आज तुम जो कुछ हो वह केवल ु

बाबा के कारण हो।

ौी गु जी – हाँ, आज म जो कुछ हँू वह केवल बाबा के कारण ह हँू । ौी ःवामी जी – तुम बाबा के पास से, उनके पास जो कुछ था वह सारा महण कर चुके हो ! डॉ. धर च कत होकर सारा रहःयमय संवाद सुन रहे थे। जो बात ौी गु जी ने कभी पूछने नह ं द , ूकाश म नह ं आने द , उस पर अकःमात थोड़ा-सा ूकाश पड़ रहा था। फर दसर मं जल पर सब लोग गये। ःवामी जी ने कहा, “बाबा क ज मशती आ ू

रह है । उस समय बाबा के जीवन और काय के वषय म जानकार दे नेवाला मंथ तीन खंड म ूकािशत करने का संक प है , उसम तु हारा एक वःतृत लेख अवँय होना चा हए। इसके साथ ह कुछ धन क भी यवःथा करनी पड़े गी। बेलरू मठ धन दे ने

को तैयार नह ं है ।” बाद म डॉ. धर को मालूम हआ क उस मंथ के िलए ौी गु जी ु ने टं किल खत १६ पृ

का एक वाःतृत लेख िलख कर भेज दया। डॉ. धर ने वह लेख

ढँू ढने का ूयास कया, पर तु ौी गु जी का नाम कह ं भी नह ं था। पूछताछ करने

पर ःवामी जी ने कहा, “ह है ज के ट हज वड, इससे अिधक कुछ बतलाऊँगा तो वे मेरे िलर पर डं डा मारगे।” *

*

और एक मािमक घटना ःवामीजी से

*

*

ात हई। ौी गु जी के आौम म ू व ु

होने के

बाद कुछ समय बीता था। ःवामी अख डानंद के चरण म ःवयं को संपूणतः सम पत कर दे ने के बाद क यह घटना है । एक आौमवासी को अपने पता क गंभीर बीमार का समाचार तार

ारा ूा

घर जाने के िलए बाबा से अनु ा लेने का साहस नह ं होने पर भी अ य

हआ। ु

आौमवािसय के आमह के कारण उसने बाबा से घर जाने क अनुमित माँगी। बाबा नाराज हो गये। तब ौी गु जी ने, जो बाबा के पैर दबा रहे थे, कहा- “आप को उसे

डाँटना नह चा हए था। बेचारा वह बहत है ।” बाबा बगड़कर बोले- “तू कौन ु ु दःखी

होता है मुझे बताने वाला ?” क तु गु जी ने अपना वनयपूण िनवेदन जार रखा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

३९


उनक अ वचल ौ ा एओवं िनरलस सेवा का ह प रणाम था क बाबा ने उस िशंय को बुलाकर उससे आ मीयतापूवक पूछताछ क और घर जाने के िलए ि या द क

यवःथा करवा द । परं तु वह िशंय तब तक घर नह ं जाने का िन य कर चुका था। ौी गु जी के सारगाछ के वाःत य म ःवामी अखंडानंदजी ने उनके स ब ध म एक बार जो उ -गार य

कये थे वे कसी भ वंयवाणी के स श लगते ह। एक

आौमवासी ने बाबा से कहा, “वह जो नया एम.एस-सी. िशंय आया है ना, उसने सारे पीतल के बतन ऐसे माँजे है क वे सोने के पाऽ के समान चमक रहे ह।” बाबा बोले, “हाँ, पर तु

यान रखो वह जस केम म हाथ डालेगा उसका सोना ह हो

जाएगा !” बाबा क गु जी ने जो सेवा क उस वषय म ःवामी जी ने कहा, “सोने के पूव बाबा के पैर दबाने पड़ते थे। यह काम गु जी िनयमपूवक करते। बाबा को गहर नींद लगने पर ह अपना ःथान छोड़ते थे। बाबा ूातः ४ बजे जागते थे। त पूव ह गु जी उठ

चुके होते। बाबा के खड़ऊं वे बाबा के चरण के िनकट रख दे ते। हम लोग को आ य होता था यह य ःवामी

कभी सोता भी है या नह ं ?”

अखंडानंद जी ःवाः य दन दन बगड़ता ह जा रहा था। मधुमेह और

दय

रोग से वे मःत थे। और फर एक दन दे र रात तक ःवामी जी अपने दोन िशंय को अ या म के सारे रहःय सुनाते रहे । रात के साढ़े तीन बज चुके थे। अिमताभ

महाराज ने उ ह अब वौाम करने क सलाह द तो वे कहने लगे, “अब अंितम समय आता दखाई दे रहा है । इसके बाद तुम शायद मेर वाणी नह ं सुन पाओगे।” अिमताभ महाराज ने ौी बाबा से पूछा, ‘माधवराव क

हमालय जाने क इ छा अितशय ूबल

है ।‘ ौीमान ् बाबा बोले,’यह डा टर हे डगेवार के साथ रहकर काम करे गा ऐसा लगता है । शु

भाव से समाज सेवा म। वह हमालय का दशन अवँय करे , परं तु एकांतवास न

करे इसका

यान रखना।‘

उस दन के बाद ःवामी

जी का ःवाः य संभल नह ं सका। बीच-बीच म वे

मू छत हो जाते और मू छा दरू होने पर उठकर बैठ जाते। तब उ ह क ठनाई से िलटाया जाता। इस बमार म गु जी ने अपनी भूख- यास- वौाम आ द सब कुछ

भूलकर ःवामी जी क सेवा क । कभी-कभी गु जी को भोजन करने का अवकाश नह ं

नवयुग ूवतक ौी गु जी

४०


िमलता था तथा कभी-कभी दो-तीन दन तक दन-रात जागना पड़ता था। फर भी वे ःवामी म द

जी क सेवा रहते थे। आगे चलकर जब ौी गु जी डा टर जी क बीमार के समय नािसक

से दे वलाली म उनके साथ थे, उस समय भी ौी गु जी ने ऐसा ह त परता और

लगन से डा टर जी क सेवा क थी। डॉ टरजी को उस समय डबल िनमोिनया हो गया था। संघ िश ा वग म भी सामा य ःवयंसेवक क बीमार क अवःथा म उसक सेवा म वे रात-रात भर जागते रहते थे। इस वल ण सेवा भाव के कारण लोग का उनके ूित अित आदर भाव अिधकािधक वृ ं गत होता गया। सम पत सेवाभावना का ू य

उदाहरण उ ह ने दिनया को ूःतुत कया था। ु

५.४ कम ेऽ म पदापण इस सेवा शुौष ु ा और वै क य उपचार के बावजूद ःवामीजी का ःवाः य िनरं तर बगड़ता रहा। उ ह बड़ क ठनाई से कलक ा लाया गया। वहाँ द. ७ फरवर १९३७ को दोपहर ३ बजकर ७ िमनट पर उनका िनवाण हो गया। ःवामी

जी ने अपने इन

ूय िशंय से अ तम बदाई ली। ःवामी अखंडानंद जी के साथ ौी गु जी ने

आ मसा ा कार और आ या मक

ान- पपासा क तृि

के िलए लगभग ५-६ माह

यतीत कये थे। अब वे महापु ष तो नह ं रहे क तु जाने के पूव अपने िशंय के जीवन को आ या मकता का शा त अिध ान ूदान कर गये। ःवामी जी के दे हावसान के बाद वे कुछ दन वह ं रहे । उस समय उनक मनोदशा क क पना नह ं

क जा सकती। अब उ ह भावी माग खोजना था। य वचार तो उनके मन म उठने का ू यह ू

गत घर-गृहःथी बसाने का

ह नह ं था क तु इस जीवन का

या कर ?

उनके मन को उ े िलत कर रहा था। आ खर एक दन गु जी नागपुर लौट

आये। यह १९३७ के माच माह का ूसंग है । ौी अिमताभ महाराज ने ौी गु जी के संबंध म बतलाया क ौीमान ् बाबा के

महासमािधःथ हो जाने के बाद कलक ा म ौी गु जी को ौी रामकृ ंण परमहं स के

िशंय अभेदानंद जी, ःवामी ववेकान द के मंझले भाई ौी उपे िनाथ द

और ौी

रामकृ ंण दे व के समय के प रिचत सभी के पास वे ले गये। ःवामी अभेदानंद ौी

गु जी को दे खकर बहत ु ूस न हए ु और अपने एक िचऽ पर हःता र कर उ ह दे ते हए ु कहा, ‘तुम

यागी के समान जीवन-यापन करोगे।’ ौी गु जी के बचपन के एक

सहपाठ ने, जो सारगाछ आौम म रहते थे, बेलरू मठ म रहने का िन य ूकट कया। ौी गु जी ने भी अपना वह मंत य ूकट कया। तब ौी अिमताभ महाराज ने

नवयुग ूवतक ौी गु जी

४१


उ ह अलग ले जाकर कहा क तु ह रामकृ ंण िमशन म नह ं रहना है । ौी गु जी ने

च क कर कहा, ‘आप सच कह रहे ह ? आपको कैसे मालूम हआ ु ?’ ौी अिमताभ

महाराज ने अखंडानंद जी से हआ वातालाप बताया। ौी गु जी ने कहा, ‘मुझे भी ु

गु दे व ने यह आदे श दया है क जब भी कोई क ठनाई आए, म आपसे परामश िलया क ँ । अब आपक मेरे बारे म

या योजना है ?’ ौी अिमताभ महाराज ने कहा,

‘म तुमको जहाँ से लाया हँू , वह ं ले जाकर स प दँ ग ू ा।’ ौी गु जी को साथ लेकर ौी अिमताभ महाराज नागपुर लौटे । एक मास रामकृ ंण आौम म रहकर ःवामी ववेकानंद के िशकागो या यान का मराठ अनुवाद कराया मानो परम ौ े य बाबा जी के

ारा ूा

हई ु द

ा क यह गु द

णा थी। त प ात

ौी गु जी के मामा ौी रायकर को बुलवाकर उनसे ौी महाराज जी ने कहा क वे

उनको डा टर साहब के पास पहँु चा द। इस तरह डा टर साहब को भावी सरसंघचालक क उपल ध हो गई।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

४२


६ जीवन काय का िनधारण सारगाछ से लौटने के बाद ौी गु जी ूायः उदास रहा करते थे। इस बात म कोई संदेह नह ं लगता क ौी गु जी के मन म अपने काय ेऽ और काय के स ब ध म

वचार का तुफान उठ रहा होगा। डा टर हे डगेवार जी के साथ उनका स पक १९३१ से

ह था। संघकाय भी उ ह ने िनकटता से दे खा था। डा टरजी के साथ चचाएँ भी हई ु थी। अपना दे श, अपना समाज, रा

के सम

उप ःथत चुनौितयाँ तथा उनके िनवारण

के माग के स ब ध म कुछ दशा- ान तो उ ह पहले ह हो चुका था। उ ह ं के श द म कहना हो तो “डा टरजी मेरे तक कठोर, गहन, दगम अंतःकरण म कैसे ूवेश पा ु गये, इसका मुझे पता तक नह ं चल पाया।” वैसे गु जी भले ह अपने आपको तक-

कठोर बु

का तथा गहन अंतःकरण वाला कहते ह तथा प सामा जक दःख को ु

दे खकर ि वत होनेवाला म खन से भी मुलायम अ तःकरण उ ह ने पाया था। और फर रामकृ ंण, ववेकानंद, अखंडानंद और रामकृ ंण आौम क पर परा भी य केवल य

गत मो

को

साधना म ह लगे रहना नह ं िसखाती थी और इस सीख का

अिमट छाप गु जी के अ तःकरण पर भी पड़ थी। ःवामी ववेकानंद ने समाज के

दन-दःखी दिलत को द रिनारायण मानकर उनक सेवा म ह जीवन का होम चढ़ाने ु

का आहवान कया था। इसीिलए ःवामी अखंडानंदजी ने सारगाछ म आौम क ःथापना क थी। यहाँ ूा

ु संःकार ने ह ौी गु जी को समाज से न टटने और

समाज के बीच रहकर ह सेवाभावना से कममय जीवन क ू य

ूेरणा द हो तो

उसे अःवाभा वक नह ं कहा जा सकता। स ा क राजनीित म गु जी को कभी कोई िच नह ं रह । आ या मक अिध ान को सुर व

म गौरवशाली ःथान ूा

त रखकर अपनी मातृभिू म को समूचे

कराने का जो सूऽ ःवामी ववेकानंद ने ूितपा दत

कया था, उसी ओर ौी गु जी का ःवाभा वक

झान था। इस सूऽ से मेल रखनेवाला

समाज को संग ठत तथा संःकार-ूवण बनाने का काय संघ के

प म खड़ा होता हआ ु

उ ह दखाई दे रहा था। इस काय म अपने शर र को चंदन सा िघसते हए ु डा टर जी

के जीवन को भी वे दे ख रहे थे।

६.१ संघ-संःथापक डा टर हे डगेवार जी

ारा ःथा पत और अपना सवःव लगाकर वृ ं गत पो षत व

संविधत रा ीय ःवयंसेवक संघ वाःतव म दे श का कायाक प करने का एक द य

काय है । १९२५म उ ह ने काफ जागरण और रा

वचारपूवक संघ क ःथापना क थी। उसके पूव जन-

को दासता से मु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

कराने क

दशा म चल रहे ूायः सभी काय म

४३


सहभागी हो कर उ ह ने ू य दे शभ

अनुभव ूा

कया था। बचपन से ह उनके

दय म

क ूखर भावना व मान थी। अपने दे श पर वदे शी ॄ टश का चलनेवाला

राज उनके अ तःकरण को सदा यिथत करता था। ःवाधीनता आ दोलन सवऽ फैल रहा था। बा यकाल म ःवाधीनता क ललक कभी नागपुर के सीताबड के कले पर लगा यूिनयन जैक उतारकर वहाँ भगवा

वज फहराने क

कभी शाला म ‘व दे मातरम ्’ के उ -घोष के

वल ण क पना म तो

प म डा टरजी के जीवन म अिभ य

हई ु थी।

बड़े होने पर ःवाधीनता के िलए चलाये जा रहे विभ न आ दोलन म उ ह ने खुलकर हःसा िलया। मूल प म उम-ःवभाव के होने के कारण डा टरजी सवूथम सश बांितकार आ दोलन क ओर आकृ

हए। बंग-भंग के बाद अनेक युवक इस आंदोलन ु

क ओर आक षत हए ु थे। लोकमा य ितलक का ‘केसर ’ और िशवरामपंत परांजपे का

‘काल’ समाचार पऽ इन त ण के ःफूित-के ि थे। बंगाल म कायरत बांितका रय के आंदोलन म सहभागी बनने के उ ेँय से ह डा टर जी ने कलक ा नेशनल मे डकल कालेज म ूवेश िलया था। तन मन से िनः​ःवाथ दे श सेवा करना डा टर जी का ःथायी भाव था। ूथम महायु

के समा

होने तक वे बांितका रय के आंदोलन से

जुड़े रहे । क तु ूद घ अनुभव के बाद उ ह यह समझते दे र नह ं लगी क मु ठ भर लोग के गु को न

संगठन

ारा स पूण दे श म जड़ जमाकर बैठे श

शाली ॄ टश शासन

कया जा सकना संभव नह ं है । इसके िलए स पूण समाज म दे शभ

भावना और ःवाधीनता ूाि

ूखर

क तीो आकां ा जागृत करनी होगी। बांितकार

आ दोलन का दाहक माग समाजश

को जागृत करने म उपयोगी नह ं हो सकता।

डॉ टर जी ने बांितकार आ दोलन का अपने जीवन का अ याय समा

कया और

कांमेस के ःवाधीनता-आ दोलन म वे कूद पड़े । उस समय वे कांमेस म ितलक जी के साथ खड़े रहे । वदभ म ितलक-समथक नेताओं का उ ह ने साथ दया। तदथ अखबार चलाये, दौरे कये और उ ेजक भाषण भी दये। इससे उनका प रचय

ेऽ बढ़ा।

डा टर जी ने अपने सामने लोकसंमह का लआय रखा था। डा टर क पर

ा पास

करने के बाद भी न तो उ ह ने वह पेशा अपनाया और न ह घर-गृहःथी बसाने के च कर म वे पड़े । १९२० क नागपुर कांमेस और बाद म महा माजी के नेत ृ व म ूारं भ हआ असहयोग ु

आंदोलन डा टर जी के जीवन म हो रहे प रवतन का एक मह वपूण चरण था। १९२०

म नागपुर म आयो जत कांमेस अिधवेशन क अ य ता लोकमा य ितलक ःवीकार कर, इस दशा म वदभ म यापक तैया रयाँ हो चुक थीं। क तु ितलकजी के आक ःमक दे हावसान से सार प र ःथित बदल गई। डा टर जी ने डा. मुज ं े के साथ नवयुग ूवतक ौी गु जी

४४


पा डचेर जाकर अर व द बाबू को अ य ता करने के िलए मनाने का ूयास कया। क तु अर व द बाबू

ारा अःवीकार कये जाने से इसम सफलता नह ं िमल सक ।

फर भी डा टर जी ने कांमेस अिधवेशन म उ साह से भाग िलया। ःवयंसेवक दल का दािय व उ ह ने अ छ तरह िनभाया। इतना ह नह ं तो खलाफत आंदोलन के संभा वत प रणाम क क पना से िच तत होते हए ु भी असहयोग आंदोलन म अमणी रहकर हःसा िलया।

यायालय म ओजःवी बयान दया और ‘राजिोह’ के आरोप म

कारावास क सजा भी काट । ःवाधीनता ूाि

का आंदोलन अपने सारे मतभेद को

दरू रखकर चलाया जाना चा हए। उनक यह भूिमका थी। जेल से मु दखाई दया क कांमेस

होने पर उ ह

ारा खलाफत आंदोलन को अपनाये जाने से मु ःलम

सा ूदाियकता को अिधक बढ़ावा ह िमला है । ह द ू समाज पर उनके आबमण बढ़

गये है । मु ःलम के अनुनय क कांमेस क नीित आ मघाती िस असहयोग आंदोलन से ू य

हो रह है ।

प म कोई लाभ तो नह ं िमला, उ टे हं साचार के

कारण उसे अकःमात ् वापस लेने क घोषणा कर द गई। प रणामःव प लोग म घोर िनराशा फैल गई और लोग फर से रा

के िलए

याग क भावना को भूलकर

ःवाथसाधना म म न होने लगे।

६.२ एक अनुपम काय-प ित का वकास डा टर जी को आ दोलन के दौरान जो व वध ूकार के अनुभव आये, नेताओं सतह

वचार करने क जो ूवृ

दे खने को िमली और रा

ारा

के स ब ध म गहराई से

सवागीण मूलगामी िचंतन के अभाव का अनुभव हआ ु - इन सब बात से उ ह ने कुछ

ठोस िनंकष िनकाले और उसके आधार पर ह अ यंत वचारपूवक एक नयी प ित से रा

यापी संगठन खड़ा करने का उ ह ने संक प िलया। उनके िनंकष इितहास तथा

अनुभव पर आधा रत ःप

और असं द ध थे। उनका ूथम िनंकष था, भारत क

पराधीनता के िलए दसर को दोष दे ने क अपे ा रा ीय दबलता को ह ू ु

ज मेदार

माना जाए। हम पर आनेवाली समःत संकट-पर परा क जड़ म हमार अपनी दबलता ु का प रहार करना आवँयकता है । है । अतः समःयाओंके मूल कारण रा ीय दबलता ु इस के िलए समाज म रा ीय चा र य का अभाव दरू कर उ कट दे शभ क

के संःकार

यवःथा करनी होगी। उनका दसरा िनंकष था, अंमेज क स ा का केवल वरोध ू

करना ह दे शभ

नह ं है । लोग के मन म इस रा

क पना को अं कत करना होगा और रा

के मूलःव प क

वधायक

के ूित एका म-भाव जागृत करना होगा !

इसके अभाव म अंमेज के यहाँ से चले जाने के बाद भी समःयाओं का अंत नह ं हो पायेगा;

य क लोग चा र य, अनुशासन और दे शभ

और परःपर कलह म ह लगे रहगे। नवयुग ूवतक ौी गु जी

के अभाव म ःवाथ-साधना

इसिलए उनके सामने वधायक आदशवाद ४५


ूःतुत करना आवँयक है । तीसरा मह वपूण वचार ड़ा टर जी ने अ यंत िनभ कता

के साथ लोग के सामने रखा क अपना यह रा , जसक आ मा ह द ू संःकृ ित है ,

एक इितहासिस

ूाचीन ह द ू रा

म ह द ू समाज िनभयता से, गौरव

है । इस रा

के साथ और अपने सांःकृ ितक आदश का अनुकरण करते हए ु ःवािभमान के साथ रह सके, इतना साम यशाली उसे बनाना होगा ता क कोई भी ह द ू समाज और ह द ू रा

क ओर बुर नजर से न दे ख सके। यह साम य रा भ

संगठन के

ारा ह ूा

उ ेजक भाषण

से ओतूोत

येयवाद

हो सकेगी। वे यह भी अनुभव करते थे क केवल ओजःवी,

ारा अथवा सभाओं म ूःताव पास करने माऽ से ऐसा संगठन खड़ा

नह ं कया जा सकेगा। इसिलए दै नं दन संःकार दे ने वाली शाखा प ित को उ ह ने अपनाया। यह अिभनव प ित तो डा टर हे डगेवार जी क ूितभा क दे श को ूा अमू य दे न ह मानी जाएगी। शाखा प ित के बना इतना बड़ा संगठन खड़ा होना असंभव ह था। काफ

के

वचारमंथन के बाद डा टर जी ने ‘संघकाय को ह जीवन काय’

प म अपनाकर अपना सवःव लगाकर जीवन का एक-एक

ण और श

का

एक-एक कण संघ काय के िलए यतीत कया।

६.३ ौी गु जी – जीवन काय का िन य सं ेप म संघ क ःथापना और उसके वःतार क यह पृ भूिम है । इसके ूेरणा-के ि

और संगठना मक काय के जीवंत आदश के

प म डा टर जी का ह

व सबके

सामने था। ौी गु जी जब सारगाछ से नागपुर लौटे तब डा टर जी ने उ ह उनके जीवन-काय का सा ा कार तकाया। डा टर जी के िनमल और

येय सम पत जीवन

से सुर िमलते गये और दोन जीवन एक प हो गये। यह दे खकर सभी च कत रह गये क केवल तीन वष क अविध म ह इतना दरगामी प रणामकार चम कार कैसे हो ू

गया। गु जी जब वापस लौटे तो सवािधक खुशी डा टर जी को हई। गु जी ने ु सारगाछ म िनर तर

यान-धारणा और अपने गु दे व से द

आ म-बल अ जत कया था, वह डा टरजी क

ा-ूसाद पाकर जो

ी म कम मह वपूण अथवा

उपे णीय नह ं था। उनक इ छा यह थी क गु जी क सार गुण-स पदा, उनका सारा तपोबल, उनके सारे भौितक और आ या मक के

प म दे श क , रा

ान का पूण उपयोग संघ-काय

क सेवा म हो। ौी गु जी संघकाय को ह जीवन-काय के

म अंगीकृ त कर। ौी गु जी के नागपुर लौटने के बाद डा टर जी के साथ उनक भटवाताओं का बम शु गु जी के सम कये हए ु

और रा

हो गया। इन भट-वाताओं म डा टर जी ने पुनः एक बार ौी

यह भूिमका ूःतुत क

ानी य

को केवल य

गत सुखानुभिू त म ह रमने क बजाय समाज

क उ थान म अपनी सार श

नवयुग ूवतक ौी गु जी

क आ या मक जीवन का अनुभव ूा लगानी चा हए। इस बार डा टर जी क यह ४६


भूिमका गु जी के अ तःकरण म पैठ गई। डा टर जी का जीवन तो वे ःवयं दे ख ह रहे थे। संकुिचत ‘म’ का लोप होकर सम

प बना वह वरागी और कमयोगी का

जीवन था। डा टर जी अपने ःवयं के िलए कुछ नह ं चाहते थे। फर भी कुछ दन तक गु जी क ःव छं दता कायम रह । वे कभी रामकृ ंण आौम म जाते, कभी बांसरु -वादन म रमते और कभी िमऽ म डली म गप-शप म लगे रहते तो कभी पुःतक के ढे र के बीच एकांत म पढ़ने अथवा

यान-धारणा म म न रहते। इसके

बावजूद संघ के साथ उनक िनकटता भी बढ़ती जा रह थी। इ ह ं दन ौी गु जी के नाम से ‘वी ऑर अवर नेशनहड ु डफाइ ड’, जसके बारे म ःवातं यवीर सावरकर के ८0 व ज म दवस के उपलआय म आयो जत सैिनक करण स ाह म द. १५ मई १९६३ को बोलते हए ु ौी गु जी ने कहा था क “रा ीय

ःवयंसेवक संघ म ‘वी’ या ‘आ ह कोण’ पुःतक का िनयमपूवक वाचन कया जाता है । ौी बाबाराव सावरकर

ारा िल खत “रा िममांसा” पुःतक को सं

प दे ते हए ु

(we) ‘वी’ पुःतक मने ह िलखी थी। ौी बाबाराव क आ ा से मने उस पुःतक का

हं द भाषांतर* भी कया था और उसे एक गृहःथ को स प दया था। ौी बाबाराव के इस ऋण को कृ त तापूवक ूगट

प म ःवीकार करना मुझे उिचत लगता है ।” गु जी

को धीरे -धीरे संघकाय म लगा कर डा टर जी ने १९३८ म उ ह नागपुर के संघ िश ा वग का सवािधकार बनाया। ौी गु जी

ारा संघकाय

य ःवीकार कया गया, इस वषय पर उ ह ने ब कुल ह

ूकाश नह ं डाला ऐसा नह ं ह। ‘वी ऑर अवर नेशनहड ु डफाइ ड’ मंथ के संबंध म १९३९ म पछली पीढ़ के सुूिस

मराठ लेखक और दै िनक ‘त ण भारत’ (नागपुर)

के संपादक ःव. ग. य. माड खोलकर उपा य भाउसाहे ब के साथ ौी गु जी क ूद घ चचा हई। इस अवसर पर ु

डॉ. हे डगेवार ःवयं उप ःथत थे। मंथ के वषय म चचा पूर होने पर ौी गु जी के अनुमित से भाउसाहे ब ने ौी गु जी से एक य

गत ू

पूछा। ौी गु जी के

महािनवाण के बाद नागपुर के दै िनक त ण भारत म ( दनांक १६/ ६ / ७३) ‘ ऽकोणी

संगम’ शीषक से एक वःतृत लेख भाऊसाहे ब ने िलखा। उसम इस य और उस पर ौी गु जी

गत ू

का

ारा दये गये उ र का उ लेख है । वह मह वपूण होने से

मूल लेख म से वह हःसा

य का

य यहाँ उ त ृ कया जा रहा है ।

माडखोलकर िलखते ह, ‘मने पूछा, ऐसा मने सुना है क आप बीच म संघ का यहाँ का काम छोड़कर बंगाल म रामकृ ंण आौम म गये थे और वहाँ आपने ःवामी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

४७


ववेकान द के गु ब धु से द

ा भी महण क । पर तु फर आप रामकृ ंण आौम

छोड़कर पुनः संघ म कैसे आ पहँु चे ? आपको ऐसा नह ं लगता क आौम क भूिमका से संघ क भूिमका ब कुल िभ न है ?” मेरा यह ू

एकदम ःत ध हो गये। उ ह ने कुछ

ण अध मीिलत

सुनते ह ौी गु जी

से वचार भी कया।

मान वे उस उ मनी अवःथा म पहँु च गये ह । कुछ समय प ात उ ह ने धीरे -धीरे

बोलना ूारं भ कया- ’

उ ह ने कहा, “आपने यह ब कुल अनपे

त ू

पूछा है । परं तु आौम और संघ क

भूिमका म अंतर है या नह ं यह मुझसे अिधक डा टर साहब ह अिधक अिधकार से बतला सकगे,

य क बांितकार आ दोलन के कालखंड म वे कलक ा रह चुके ह और

उनके बांितका रय से घिन

संबंध भी थे। आपने भिगनी िनवे दता का आबामक

ह द ू धम - ‘Aggressive Hinduism’ मंथ पढ़ा भी होगा। उसी ूकार बांितका रय से

उनका कतना िनकट का संबंध था, यह भी आपको मालूम होगा ऐसा म समझता हँू ।

मेरा

झान अ या म के समान ह रा

संघठन के काय क ओर भी ूारं भ से ह है ।

वह काय संघ म रहकर अिधक प रणामका रता से म कर सकूँगा, ऐसा अनुभव बनारस, नागपुर और कलक ा के वाःत य म मुझे हआ। इसिलए मने संघकाय म ह ु ःवयं को सम पत कर दया। मुझे लगता है क ःवामी ववेकानंद के त व

ान,

उपदे श या काय प ित से मेरा यह आचरण सुसग ं त है । मुझ पर उनका जतना ूभाव हआ है उतना दसर ू ु

कसी वभूित के जीवन या उपदे श का नह ं हआ है । मुझे ु

वशवास है क संघ म रहकर उ ह ं का काय म आगे चलाऊँगा।” इस ूकार तक वश

करते समय ौी गु जी क आँख म जो आ म व ास क चमक खेल रह थी

वह म कभी भी नह ं भूलग ूँ ा ।” डा टर साहब भी ब कुल गंभीर हो गये थे। ” िभ न-िभ न दशाओं के बीच झूल रहे जीवन का यह िनणायक संबमण काल था। यह कहना गलत न होगा क १९३८ का संघ िश ा वग ह उनके जीवन क

िनधा रत करनेवाली िनणायक घटना रह । इस वग के िनिम

दशा

ौी गु जी क सार

संघानुकूल गुण-संपदा ूभावी ढं ग से ःवयंसेवक और कायकताओं के सम

ूःतुत

हई ु । संघ िश ा वग म सवािधकार के नाते अनुशासन ूयता, ःवयंसेवक के ूित

वा स य, अनुपम सेवाशीलता, असीम काय मता, सदा ूस न वृ , व व ृ व, गहरा अ ययन व िचंतन आ द गुण का ू य ःवयंसेवक एवं कायकताओं को ूा

ापूण

दशन-अनुभव सभी

हआ और यह सब डा टर जी क अपे ानुसार ह ु

हआ ु खुशी थी। संघ क ु , इसक उ ह बहत

ी से ौी गु जी को वे जैसा बनता

दे खना चाहते थे वह इस संघ िश ा वग से संभव हआ। ूमुख बात तो यह है क ु

इसके बाद उ ह डा टरजी का अखंड सहवास ूा नवयुग ूवतक ौी गु जी

हआ। अपने नेता का जीवन वे ु

४८


अ यंत िनकटता से दे खते और तदनु प अपने जीवन म प रवतन लाते और इस ूकार ःवयं ौी गु जी के जीवन म आवँयक इ

प रवतन होता गया। इसका ूमुख

कारण यह था क भावी जीवन म कौन सा माग अपनाया याए इस स ब ध म अिन

तता क

ःथित अब ख म हो चुक थी। डा टरजी के जीवन को ह आदश

मानकर वे उसका अनुकरण करने का ूयास करते । भारत क सार भौितक समःयाओं और आ मक ू

का हल एकमेव संघकाय म ह है , इस ूकार क ौ ा

उनक सु ःथर हो चुक थी। माग िन

क श

त होने पर उस पर आगे बढ़ने क ौी गु जी

भी वल ण थी और इस श

का प रचय उनक छाऽ दशा, ूा यापक य

सेवा, सारगाछ आौम म साधना- ऐसे अनेक चरण म िमल चुका था। केवल जीवनमाग के चयन और िनधारण का ह ू

शेष रहा था- वह भी हमेशा के िलए हल हो

गया। प रणामःव प अ पाविध म ह ‘डा टर जी के बाद कौन ?’ इस ू

का उ र

भी मन ह मन म सबको िमल गया।

६.४ डा टर जी का यापक आकलन इसका ूथम सा ा कार १९३९ के फरवर माह म डा टर जी

ारा िसंद म आयो जत

कायकताओं क मह वपूण बैठक म हआ। दस दन तक चलनेवाली इस बैठक म ु डा टर जी और उनके ूमुख सहयोगी कायकता उप ःथत थे। संघकाय क ूगित,

संघशाखा क कायप ित, आ ा और ूाथना ओ द अनेक वषय पर खुलकर चचा

और सवस मित से आवँयक िनणय लेना ह इस बैठक का उ े ँय था। डा टर जी के दाय हाथ माने जाने वाले ौी अ पाजी जोशी और ौी बालासाहब दे वरस इस वचारविनमय म शािमल थे। नये सहयोगी के

प म ौी गु जी को इस बैठक म आमं ऽत

कया गया था। बैठक म एक-एक वषय बम से िलया जाता जस पर खुलकर चचा

होती। बैठक म उप ःथत हर कायकता अपनी-अपनी बु -मित और इ छानुसार

स ब धत वषय पर अपने-अपने वचार खुलकर रखता और सुझाव दे ता और अ त म डा टर जी चचा का समापन करते हए ु

या मा

है और

या अमा , इस स ब ध

म अपना िनणय सुनाते। ूित दन आठ-आठ घंट तक चलनेवाली इस बैठक के कामकाज क यह प ित थी। इस बैठक क कायवाह म ौी गु जी ने खुलकर अपने

वचार ूःतुत कये- अनेक वषय पर उनके वचार काफ आबामक और तीआण हआ ु

करते थे। क तु एक बार डा टर जी

ारा समालोचना के बाद जो िनणय दया जाता

उसे वे तथा अ य सभी कायकता शांत-वृ

नवयुग ूवतक ौी गु जी

और मन से ःवीकार करते।

४९


इस बैठक के स ब ध म एक बार चचा के दौरान मा. अ पाजी जोशी ने बताया क“संघःथान पर

वज को ूणाम करने के बाद ःवयंसेवक को और कसे ूणाम करना

चा हये- इस स ब ध म सुिन

त प ित

िनधा रत करने के वषय म ौी गु जी

और मेरे वचार एक दसरे से मेल नह ं खाते थे। ौी गु जी ने जहाँ अ यंत ूङावी ढं ग ू से संवैधािनक संकेत के आधार पर अपने वचार ूःतुत कये वह ं संघ क

पा रवा रक प ित क रचनानुसार कौन सी प ित ठ क रहे गी, इस पर म जोर दे रहा

था। आ खर डा टर जी ने जो िनणय दया वह मेरे वचार के अनुकूल था। गु जी का

सुझाव अःवीकृ त कर दया गया। उस समय म बार क नजर से गु जी के चेहरे क ओर दे ख रहा था कंतु उनके चेहरे पर नाराजी के कोई भी भाव मुझे नजर नह ं आये। ु बाद म परःपर वाता म भी कभी कोई कटता का प रचय नह ं िमला। इतना संयम,

मन का संतुलन और नेता के ूित ौ ा और व ास दे खकर हम सभी मु ध रह गये। िसंद के इस वग म डा टर जी मुझसे पुछा- ‘ य अ पाजी, भावी सरसंघचालक के प म ौी गु जी आपको कैसे ूतीत होते ह ?’ तब म ने बैठक म चचा के समय

अपने िनर

ण के िनंकष क सा

सवथा उिचत।” डा टर जी के मन म यह ू

ूःतुत करते हए ु तुर त कहा-

‘अित उ म,’

उठना ःवाभा वक था क भावी सरसंघचालक कौन रहे

संघ क ःथापना से अब तक कये गये लगातार अ वराम प रौम के कारण वे थक चुके थे। १९३२ से उनका ःवाः य दन दन िगरता जा रहा था। केवल

ढ़ इ छाश

के बल पर ह वे अपने िनधा रत कायबम स प न कर पाते थे। काय-वृ अहोराऽ ूय

हे तु

करते थे, क तु बैठक म कसी को यह महसूस नह ं होने दे ते क

उ ह शार रक यथा के कारण कोई क

हो रहा है । वे हमेशा ूस न और ूफु लत

चेहरे से वचरण करते थे। क तु ःवयं अपनी शार रक- यािध से प रिचत होने के कारण वे काय वःतार क

से भावी यवःथा-योजना क उपे ा नह ं कर सकते

थे। अ यंत प रौमपूवक खड़े कये गये इस संगठन को

य द अपने लआय क ओर

बढ़ाना और वःता रत करना हो तो उसके िलए सम पत और गुण-स प न नेत ृ व क

पर परा आवँयक होती है । य

काम खड़े करते ह क तु उसे

येयवाद

से आगे बढ़ानेवाले लोग नह ं िमले तो वह काय अधूरा ह रह जाता है तथा न

कोण हो

जाता है । ःथान-ःथान पर डा टर जी को यह दे खने को िमला था। संघ का ऐसा न होने पाये, इस

से उनका िच तत होना ःवाभा वक ह था।

ौी गु जी ने १९३८ के बाद संघकाय को ह अपना जीवन-काय ःवीकार कर डा टर जी के साथ रहते हए ु अपना सारा लआय संघकाय क वृ

पर जब के ित कया तो

डा टर जी क िच ता दरू हो गई। िसंद के वग म उनक संक पत योजना को उनके नवयुग ूवतक ौी गु जी

५०


जे

अनुभवी सहयोगी तथा संघकाय के िलए सम पत ौी अ पाजी जोशी जैसे

कायकता से हा दक समथन भी िमल गया। िसंद क इस बैठक म संघ क दै नं दन

शाखाओं म िलये जानेवाले कायबम के ःव प को अ खल भारतीय बनाने क

से

ूाथना से लेकर आ ा तक सभी बात म उिचत प रवतन कया गया। आज क संघ क संःकृ त ूाथना िसंद क बैठक म ह ःवीकार क गई। िसंद बैठक म िलये गये दरगामी मह व के िनणय क इस कड़ म डा टर जी ू

ारा भावी सरसंघचालक का

मन ह मन चयन भी एक मह वपूण ूसंग माना जा सकता है । इसे हम िसंद बैठक क दे न कह सकते है । िसंद क बैठक समा

होने के बाद डा टर जी ने गु जी को बंगाल म संघकाय आरं भ

करने हे तु कलक ा भेजा। ौी गु जी लगभग १ माह तक कलक ा म अखंड ॅमण

करते रहे । वाहन खच अथवा अ य यय के िलये उनके पास अिधक धन नह ं था, अतः वे रोज २०-२५ मील पैदल ह ॅमण करते थे। आ खर १९३९ क वष ूितपदा

को कलक ा म संघ क ूथम शाखा शु

करने म गु जी सफल रहे । गु जी कलक ा

म अिधक दन तक वाःत य नह ं कर पाये। संघ का मींमकालीन िश ा-वग िनकट था। डा टर जी ने अपैल माह म ौी गु जी को नागपुर वापस बुलवा िलया और इस वष भी संघ िश ा वग के सवािधकार का दािय व ौी गु जी पर स पा गया। १९३५

से पुणे म भी संघ िश ा वग का आयोजन ूारं भ हो चुका था और तब ऐसी योजना बनी थी क डा टर जी पहले पखवाड़े म १५ दन पुणे के वग म रहगे और दसरे ू

पखवाड़े म नागपुर के वग म उसके समापन तक रहगे। पर तु उनका ःवाः य साथ नह ं दे रहा था और उ ह वौाम क अ यािधक आवँयकता थी। कंतु नागपुर का

संघ िश ा वग समा

होते ह पुणे म ‘भगवा झडा’ मराठ िचऽ-पट के उ -घाटन हे तु

उप ःथत रहना उ ह ने मा य कर िलया था। अतः यह तय कया गया क पुणे म उ -घाटन कायबम के बाद लौटते समय नािसक के िनकट दे वलाली म डा टर जी कुछ दन तक वौाम करगे। इस ूवास म डा टर जी के साथ गु जी भी थे। पुणे का कायबम शानदार ढं ग से स प न हआ। पुणे से लौटने के पूव डा टर जी को ु बदाई दे ने के िनिम

कायकताओं क एक बैठक आमं ऽत क गई। इस बैठक म

डा टर जी ने ौी गु जी से हं द म बोलने के िलए कहा। त प ात िनधा रत कायबमानुसार वौाम लेने के िलए डा टर जी गु जी के साथ दे वलाली गये।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५१


६.५ म जागत-सेवाभाव कंतु दे वलाली म उ ह बुखार आने लगा और बढ़ने लगी। नािसक के वशेष

वर क तीोता कम होने के बजाय

डा टर ने उनके ःवाः य क जाँच क - औषधोपचार

भी चल रहा था क तु सुधार के कोई ल ण नजर नह ं आने से डा टर वग भी िच तत हो उठा- वे कुछ ूमाण म िनराश हो चुके थे। क तु ौी गु जी बना

वचिलत हए ु ा म लगे रहे । उ ह ने डा टर जी क सेवा म ु डा टर जी क सेवा-शुौष

कोई कसर बाक नह ं रखी। बुखार तेज होने से डा टर जी होश खो बैठते थे- अचेत अवःथा म वे बड़बड़ाते थे। स नपात क अवःथा म रोगी ूायः अंटसंट बड़बड़ाता है । क तु इस अवःथा म भी डा टर जी के मुख से संघकाय के अित र

अ य कसी

वषय का कोई श द नह ं िनकला। गु जी पूरे समय उनके पास बैठे रहते। दो-ढाई वष पूव सारगाछ म अपने गु दे व ःवामी अखंडानंदजी क

जस त मयता से सेवा क थी

वैसे ह सेवा वे डा टर जी क कर रहे थे। उनक सेवा सफल रह और डा टर जी के ःवाः य म सुधार होने लगा। खतरा टल गया और डा टर जी पर असीम ूेम करने वाले हजार ःवयंसेवक के चेहर पर से िचंता के बादल छँ टकर खुशी क लहर दौड़ पड़ । ौी गु जी क

णसेवा के स ब ध

म और भी एक घटना उ लेखनीय है । नागपुर के ध तोली भाग के ौी वामनराव

वाडे गांवकर नाम के अंध स जन से ौी गु जी के इतने िनकट के संबंध थे क उ ह

साइ कल के सामने के डं डे पर बठाकर नागपुर म ःथान-ःथान पर ले जाने हे तु ौी गु जी सदा िस

रहते थे। वाडे गांवकर ने एक अंध व ालय ूारं भ कया था। १९३४-

३५ के आसपास वामनराव पर एक बहत ु बड़ श य बया करवाने क बात आयी। वे

ःवयं अ धे, परावलंबी। ऐसी ःथित म इतनी बड़ श य बया होने पर अपनी शुौष ू ा कौन करे गा ? इसक िचंता उनके मन म िनमाण हई। ब कुल िनकट के िमऽ के ु

नाते उ ह ने ौी गु जी को श य बया के वषय म सूिचत कया। िमऽ ूेम के खाितर

श य बया के पूव ह ौी गु जी वामनराव के यहाँ रहने आ गये। मु बई म श य बया के समय उनके समीप ह रात- दन रहे । वामनराव ग -ग

होकर कहा

करते, “अजी, इस एम.एस-सी. हए ु ा इतनी मृदता ु से क ु महापं डत ने मेर सेवा-शुौष क आमरण म उसे भूल नह ं सकूँगा। वशेष

प से मल-मूऽ- वसजन विध म भी

जब वे मेर सहायता करने लगते तब तो म ल जा से गड़ जाता। जब म हर बार आनाकानी करने लगता तो उनका एक ह उ र रहता, “उसम

या है ?

दे ह क साफ-सफाई नह ं करता हँू ? तु हार और मेर दे ह म

या भेद है ?” यह

या म अपने

ूसंग बतलाते समय वामनराव क आँख से अौु का ूवाह बहने लगता और गला ं ध जाता। वैसे वामनराव को संघ के संबंध म ब कुल ूेम नह ं था। पर तु ौी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५२


गु जी सरसंघचालक हए ु तब से ‘अपना संघ’ ऐसा श द ूयोग अपने आप उनके मुख

से सुनाई दे ने लगा। ौी गु जी म ूारं भ से ह सेवावृ

कैसी रोम-रोम म रमी थी,

यह िनदिशत करने के िलए इस ूसंग का यहाँ िनवेदन कया है । कतने ह सामा य ःवयंसेवक और कायकताओं को भी उनक इस सहज सेवावृ

का अनुभव आ चुका

है । ौी गु जी को डा टर जी क इस बीमार म उनके पर अ तबा

येय-सम पत जीवन क कसौट

प से खरे उतरे डा टर जी के दशन हुए। ौी गु जी ने ःवयं डा टर

जी के अनोखेपन का वणन करते हए ु एक बार बताया था क तेज बुखार म होश गंवाने पर य

या बड़बड़ायेगा, कहा नह ं जा सकता; क तु ऐसी अवःथा म भी

डा टर जी के मुख से संघकाय स ब धी िच ता ूकट होती रह । संघकाय उनके

अ तमन म कतना गहरा पैठ चुका था- इसका दशन अचेतावःथा म उनके मुख से संघ और रा

स ब धी उ -गार से िमला और डा टर जी के ूित ौ ा से उनका

मन ओतूोत हो गया। प रणामःव प संघ, डा टर जी और गु जी म तादा

ःथा पत हआ और संघकाय का अिधकािधक दािय व लेने के िलए गु जी पूण सम पत ु

भाव से स न

हो गये।

ःवाः य म सुधार होते ह डा टर जी गु जी के साथ ७ अगःत को नागपुर लौटे और गु जी पर अिधकािधक दािय व स पने क

दशा म उनक हलचल शु

हो ग ।

कायकताओं क बैठक म इसके संकेत भी वे दे ने लगे और र ाब धनमहो सव पर उ ह ने सरकायवाह के पद पर ौी गु जी क िनयु

क घोषणा भी कर द । डा टर

जी का िगरता ःवाः य तथा काय का वृ ं गत ःव प सहन करने म उनक असमथता से यह ःप

दखाई दे रहा था क अब ौी गु जी को ह नेत ृ व का

स पूण दािय व संभालना होगा। *

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५३


७ सरसंघचालक क दािय व क ःवीकृ ित वैसे दे खा जाए तो सरकायवाह के नाते ौी गु जी का कायकाल काफ छोटा रहाकेवल दस माह ह वे इस दािय व पर रहे । इस समय काय ूगितपथ पर था। वदभ,

म यूदे श और महारा

म तो शाखाओं का वःतार हो चुका था, क तु पंजाब,

द ली, कराची पटना, कलक ा, लखनऊ आ द दरःथ शहर म भी त ण कायकता ू

कसी न कसी िनिम यथाथ

पहँु च चुके थे। वहाँ भी संघकाय आरं भ हो चुका था। संघ को

प म अ खल भारतीय ःव प ूा

होने लगा था। ःवयंसेवक क सं या भी

लाख से ऊपर पहँु च चुक थी। काय को उिचत माग पर आगे बढ़ाने, अिधक ःथान

पर वःता रत करने तथा कायकताओं का उ साह बनाये रखने के िलए डा टर जी का सवऽ संचार आवँयक था। क तु ःवाः य उनका साथ नह ं दे रहा था। भले ह ऊपर से अपने यवहार म वे कसी को इसका अनुभव नह ं होने दे ते थे, क तु िनकटवत कायकताओं क

ी से उनक

यथा िछपी नह ं रह सक । डा टर जी अब अिधक

ूवास नह ं कर सकते थे। एक ओर डा टर जी क ःवाः य क िच थी तो दसर ओर ू

काय वःतार तथा चन रहे काय के

ढ़ करण क िच ता भी थी। इस ूकार ौी गु जी

को दगना उ रदािय व स हालना था। ु ौी गु जी इस सार प र ःथित को समझ रहे थे ऐर अपनी सब श चुनौितय से जूझ रहे थे। कायकताओं के साथ उनका ू य बढ़ते स पक म डा टर जी क ूेरक श

याँ लगाकर

स पक बढ़ने लगा। इस

कतनी महान ् है इसका अिधकाअिधक

आकलन उ ह होने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता चला, डा टर जी क पीठ का दद दःसह होता गया। ु

७.१ उ रािधकार का चयन आ खर कुछ िमऽ ने डा टर जी से आमह कया क वे बहार के राजगीर नामक ःथान पर कुछ दन तक वाःत य कर वहाँ के रोगिनवारक गरम पानी के झरने म ःनान आ द का उपचार महण कर। िमऽ के आमह पर डा टर जी राजगीर गये। वे चाहते थे क गु जी भी उनके साथ चल; क तु नागपुर म बढ़ते हए ु काय को स हालने के िलए ौी गु जी का

संघचालक तथा डा टर जी के जे

कना आवँयक था। इसिलए वधा के जला

सहयोगी मा. अ पाजी जोशी उनके साथ राजगीर

गये। क तु राजगीर का इलाज कोई वशेष लाभदायक नह ं रहा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५४


इस समय

तीय महायु

ूारं भ हो चुका था। दे श क ःवाधीनता के िलए

छटपटानेवाले डा टर जी क आंत रक अःवःथता बढ़ती जा रह थी। रात-रात भर उ ह नींद नह ं आती थी। तीन वष के कालखंड म शहर ममीण

ेऽ म तीन ूितशत और

ेऽ म एक ूितशत गणवेशधार त ण ःवयंसेवक खड़े करने के कालब

कायबम का आहवान डा टर जी ने इसी राजगीर के अपने वाःत य म पऽ िलखकर समःत कायकताओं से कया था। इस ूितशत के पछे उनका

या मानस था इसका

पता चल पाना मु ँकल था, क तु आगे चलकर १९४२ म दे श म जो प र ःथित िनमाण हई ु उसे दे खते हए ु यह वचार मन म उठना ःवाभा वक है क कह ं इस ूच ड युवाश

के मा यम से डा टर जी ःवाधीनता संमाम के अंितम ःव णम पृ

िलखने को आतुर तो नह ं थे ? डा टर जी कायवृ क टब

ारा दये गये कालब

कायबम के अनुसार

के िलए ौी गु जी और डा टर जी के अ य त ण सहयोगी कायकतागण होकर काम म जुट गये। क तु िनयित क योजना कुछ और ह थी।

डा टर जी ने कायवृ

के लआय के संबंध म राजगीर से जो पऽ िलखा था, उसका

कारण था चंिपुर ( वदभ) म होनेवाले ूौढ़ ःवयंसेवक का िश वर। ऐसे िश वर म डा टर जी ःवयं उप ःथत रहकर मागदशन कया करते थे। इस बार इस ूथा का

पालन नह ं हो पा रहा था। इसिलए उ ह ने िश वर के अिधका रय को अपनी असमथता य

करने वाला पऽ िलखा : “इस समय म उप ःथत नह ं रह रकूँगा,

इसका मुझे दःख है । अप सब लोग उ साह से काय बढ़ा रहे ह गे। पर तु इस बैठक ु

म संक प कर क अपने ूांत के मामीण वभाग म एक ूितशत और शहर म तीन ूितशत ःवयंसेवक क सं या होगी। ” यह लआय तीन वष म पूण हो ऐसी अपे ा भी उ ह ने य

क थी। संघ क कायवृ

क क पना का ःप ीकरण दे ते हए ु ौी

गु जी ने कहा क एक ूितशत और तीन ूितशत म िगना जानेवाला ःवयंसेवक

नेत ृ व करने म स म हो ऐसी उससे अपे ा है । उसक गुणव ा ऐसी हो क वह ६०७० लोग को अपने साथ ले जा सके और िमऽ व मागदशक के नाते उनका व ास संपादन कर सके। इससे संघ क योजनानुसार काम करनेवाला अ यंत वशाल

संग ठत साम य यवहारतः खड़ा हो सकेगा और अपने हाथ म पारे सूऽ रखकर लोग क ःवातं यकां ा को सुिन

त मोड़ दे सकेगा। इसीिलए ऐसा कहने क इ छा होती

है क १९४२ तक यह हो सका होता तो १९४२ म कुछ िनणायक कदम संघ व ासपूवक उठा सकता। ऐसी श

न होने कारण ह

तीय महायु

के मह वपूण

कालखंड म भी वदे शी स ा पर िनणायक ूहार करने का कदम सरसंघचालक जी नह ं उठा सके। कायवृ

के िलए संपूण समय दे ने वाले कायकताओं क बहत ु बड़

“ूचारक योजना” माऽ इस समय काया वत हई। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५५


१९४० का अूैल माह आया और डा टरजी संघ िश ा वग के बारे म सोचने लगे। यह

तय हआ क ूितवष क भाँित १५ दन पुणे के वग म रहा जाए और इधर नागपुर ु के वग का दािय व ौी गु जी स हाल। डा टर जी पुणे के वग म गये और वहाँ के सारे कायबम ठ क ढं ग से स प न हए। पुणे वग म आए ःवयंसेवक से भावपूण ु

वदाई लेकर डा टर जी नागपुर लौटे । क तु जस दन वे नागपुर पहँु चे उसी दन

उ ह बुखार चढ़ आया – बुखार काफ तेज था। तुर त उपचार शु

हआ। क तु ु

वर

उतरने का नाम ह न ले रहा था और ःवाः य दन दन अिधक बगड़ता चला गया। ौी गु जी संघ िश ा वग का सारा दािय व स हालते हए ु डा टर जी के औषधोपचार

और सेवा-सुौष ू ा क ओर भी

यान दे ते थे। उनका एक-एक दन अ यंत मानिसक

दबाव म दािय व-वहन क िच ता म बीतता। वग क समाि

के बाद उनका सारा

यान डा टर जी के उपचार पर के ित हो गया। क तु इस बार उनक सेवा और प रौम को सफलता ूदान करना शायद ई र को ःवीकृ त नह ं था। डा टर जी को

पहले मेयो अःपताल म और बाद म नागपुर के संघचालक ौी बाबासाहब घटाटे के िस वल लाइ स ःथत ूासाद म लाया गया। अस

वर क तीोता कायम थी। पीठ का दद

था। अंत म द. २० जून को डा टर ने हताश होकर कहा क ‘ल बर पं चर’

करना होगा। इस समय तेज बुखार के बावजूद डा टर जी सजग थे। वे जान गये थे क उनक अ तम घड़ अब आ चुक है । अपने बाद संघ का दािय व सरसंघचालक

के नाते कौन स हालेगा, यह उ ह ने वहाँ उप ःथत सभी कायकताओं के सम

घो षत

कर दया। उ ह ने ौी गु जी को अपने पास बुलाया और कहा, अब आप ह संघ का काय स हाल। ूथम यह मा य क जये और फर मेरे शर र का जो करना हो क जये। उ रािधकार क यह भाषा सुनकर गु जी ने अ यंत दःु खत ःवर म कहा, “डा टर जी यह आप

या कह रहे ह? आप इस बीमार से शीय अ छे हो जायगे।”

इस पर डा टर जी ने हँ सते हए ु कहा- “यह तो ठ क है , परं तु मने जो कुछ कहा है

उसे अवँय

यान म र खये।”

उस एक ऐितहािसक

ण म डा टर जी ने सरसंघचालक व का उ रािधकार स प

दया। उ ह ने ौी गु जी के हे थ सब सूऽ दे दये। ड़ा टर जी का ल बर पं चर कया

गया। पर बुखार और तेज हो गया और र चाप बढ़ गया। अ यािधक वेदना के कारण डा टर जी अचेत हो गये। उसी अचेतावःथा म दसरे दन शुबवार द. २१ जून को ू

नवयुग ूवतक ौी गु जी

५६


ूातः ६ बजकर २७ िमनट पर डा टरजी क आ मा उस यथा-जजर दे ह को छोड़कर अनंत म वलीन हो गई।

७.२ डा टर जी क

वरासत

रा ीय ःवयंसेवक संघ के िलए यह बहत ु बड़ा आघात था। संघ का काय महारा

म यूदे श के बाहर दरू-दरू तक फैलता जा रहा था। कायवृ

और

से वातावरण

उ साहवधक था। १९४० के संघ िश ा वग म आये िभ न-िभ न भाषा-भाषी ःवयंसेवक को दे खकर डा टर जी ने अपने ९ जून के अंितम उ -गार िनकाले थे- “आज अपने सामने म ह द ू रा

दयःपश भाषण म ये

क छोट सी ूितमा दे ख रहा

हँू । पुणे के संघ िश ा वग म म पं िह दन तक रहा और वहाँ मने ू येक

ःवयंसेवक से ःवयं प रचय कर िलया था। म समझता था क यहाँ भी ऐसा ह कर सकूँगा, क तु आप जानते ह ह क पछले कछ दन से म

ण-श या पर पड़ा हँू ।

इस कारण से म आपक सेवा तिनक भी नह ं कर सका। इसीिलए आप सबके एकऽ दशन करने आज म यहाँ आया हँू । म यहाँ कुछ अिधक बोल नह ं पाऊँगा। मेरा

आपसे इतना ह कहना है क हमम से ू येक ःवयंसेवक को चा हए क वह संघकाय को ह अपने जीवन का ूमुख काय समझे और इसी माग पर चलते-चलते अपने ह द ू समाज को इतना समृ

और श

शाली बनाये क दिनया क कोई श ु

ह द ू समाज क ओर ितरछ नजर से दे खने का साहस न जुटा पाये। ‘संघ काय ह

मेरे जीवन का काय है ’ इस मंऽ को अपने

दय म अं कत कर सारे कायकता अपने-

अपने ःथान पर लौट।” डा टर जी का यह अ वःमरणीय भाषण अपने

दय म अं कत कर सारे कायकता

अपने-अपने ःथान पर लौटे ह थे क केवल दस दन बाद डा टर जी के दे हावसान का दःखद समाचार उ ह ूा ु

हआ। डा टर जी ने अब सदा के िलए सबसे बदाई ले ु

ली थी। डा टर जी के महाूयाण का समाचार सुनकर दे शभर के लाख ःवयंसेवक ःत ध रह गये। उन पर मानो वळाघात हआ था। ु जस

येयवाद संगठन को डा टर जी ने लगातार १५ वष तक अपने खून-पसीने से

सींचकर अहोराऽ अथक प रौम से खड़ा कया था, उस संगठन का दािय व आब ौी

गु जी पर आ पड़ा था। डा टर जी ने अ यंत व ास के साथ काय का दािय व उन पर स पा था। फर भी संघ के िनमाता के िनधन से हए ु वळाघात से संगठन को सँवारना तथा काय को ूगितपथ पर आगे बढ़ाना कोई आसान काम नह ं था

डा टर जी के जीवन क पृ भूिम और ौी गु जी के जीवन क पृ भूिम म मह

नवयुग ूवतक ौी गु जी

य क अंतर

५७


था। डा टर जी का सारा जीवन ह सावजिनक और राजनीितक काय म बीता था।

संघ के बाहर भी उ ह चाहनेवाले िमऽ तथा नेता माननेवाले अनुयाियय क सं या बहत ु बड़ थी। राजनीितक

ेऽ म संघ के ूित ईंया क भावना िनमाण होती दखाई

दे रह थी। स ा क राजनीित म लगे क तु ह दत ु ववाद अनेक लोग चाहते थे क यह संगठन उनक इ छानुसार काय करे । गु जी तो संघ म नये ह थे और वे मूलतया आ या मक ूवृ

के थे। राजनीित अथवा सावजिनक काय के साथ उनका

कभी स ब ध नह ं आया था। संघ के बाहर के

ेऽ म वे अप रिचत ह थे। ऐसी

ःथित म कोई आ य नह ं था क संघ क भावी यवःथा के स ब ध म बन माँगे अनाहत ू परामश दे नेवाले आगे आते। संघ के हतिचंतक समझे जानेवाले अनेक लोग ने यह आमहपूवक सुझाव ूःतुत कया क अब डा टर जी के बाद संघ का सूऽसंचालन कसी एक य

रखने क बजाय कुछ जे

के हाथ म

लोग का एक सलाहकार मंडल बनाया जाए। संघ के ूमुख

कायकता ौी गु जी के नेत ृ व को न ःवकार करइसके िलए कस सीमा तक ूय कये गये इसका एक ू य

अनुभव माननीय ौी अ पाजी जोशी बताया करते थे।

डा टर जी के दे हावसान के बाद उनके चहे ते एक ह द ु ववाद वक ल महाशय

अ पाजी के यहाँ आये और डा टर जी क मृ यु पर गहरा शोक य

करने के बाद

अ पाजी से कहने लगे - “अ पाजी, आप तो डा टर जी के दा हने हाथ थे। अतः संघकाय क धुरा अब आपको ह संभालनी चा हए। यह काम गु जी से नह ं हो पायेगा।” इस पर अ पाजी ने उ ह जो उ र दया वह एक ओर जहाँ उनके

दय क

वशालता

का दशन कराता है वह ं इस बात पर भी ूकाश डालता है क डा टर जी ने कस ूकार का संगठन खड़ा कया था। अ पाजी ने उस वक ल महाशय से कहा, “म अगर डा टर जी का दा हना हाथ था तो गु जी उनके

दय थे। डा टर जी का चयन सवथा

उिचत है । इस स ब ध म उ ह ने मुझसे भी परामश कया था।” डा टर जी क मृ यु के बाद दस-बारह दन म ह ौी गु जी क िनयु

को

ववादाःपद बनाने का यह ूयास हआ ु , उसक दाल नह ं गल पायी। सभी ने अनुभव कया क ौी गु जी को नये सरसंघचालक के

प म अिधकृ त

प से ःवीकार कया

जाना चा हए। इसके पूव अकोला म पांच संघचालक क एक बैठक हई। जसम वधा ु

के ौी अ पाजी जोशी, वदभ के ौी बापू साहब सोहनी, नागपुर के ौी बाबासाहब पा ये, ौी बाबासाहब घटाटे , महारा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

ूांत के संघचालक ौी काशीनाथ प त ने भाग

५८


िलया। बैठक म प र ःथित का आकलन कया गया। डा टर जी

ारा उ रािधकार

स ब धी िलया गया िनणय ह सवथा उिचत होने तथा ूा यापक माधवराव गोलवलकर के

प म कया हआ चुनाव सव कृ ु

होने क बात सभी ने मान ली।

इस सवस मत िनंकष के बाद सभी ने ौी गु जी के नेत ृ व म अपना व ास य कया और तय कया गया क डा टर जी क तेरहवीं के दन ौ ं जिल सभा म नये सरसंघचालक के

प म ौी गु जी के नाम क अिधकृ त घोषणा क जाए।

िनधा रत कायबमानुसार रे शीमबाग ःथत डा टर जी क प वऽ समािध क सा ी म नये सरसंघचालक के नाम क ूकट घोषणा करने तथा दवंगत सरसंघचालक डा टर

जी के ूित ौ ांजिल अ पत करने का कायबम स प न हआ। इस कायबम म ूथम ु नागपुर ूांत के संघचालक माननीय बाबासाहब पा ये ने नूतन सरसंघचालक क

िनयु

क घोषणा करते हए ु भाषण दया। संघ क एकचालकानुवित व क प ित

और २० जून को ःवयं डा टर जी

ारा द गई संघ क भावी यवःथा स ब धी

जानकार ूःतुत करते हए ु उ ह ने अपने भाषण म कहा क “आ

सरसंघचालक क

अंितम इ छानुसार माननीय माधवरावजी गोलवलकर रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक िनयु

कये गये ह और अब वे ह हम सबके िलए डा टर हे डगेवार

जी के ःथान पर ह। म अपने नये सरसंघचालक को अपना ूथम ूणाम सम पत

करता हँू ।” डा टर जी के वयोवृ

चाचा ौी आबाजी हे डगेवार ने अपने सं

, भावनापूण क तु

ूेरक भाषण म कहा क “हमारे डा टर जी हम छोड़कर नह ं गये ह, उ ह हम माधवराव गोलवलकर के

प म आज भी दे ख रहे ह – उनके ू येक आदे श को

डा टर जी का ह आदे श मानकर हम सबको उसका पालन करना है ।” इस कायबम म नये सरसंघचालक के

प म ौी गु जी का भी भाषण हआ। यह ु

भाषण गु जी के आ म व ास, नॆता और डा टर जी के ूित गहर ौ ा का

िनदशक तथा उ साहवधक था। सरसंघचालक के नाते उनका यह ूथम भाषण था। अपने दािय व को वनॆतापूवक ःवीकार करते हए ु ौी गु जी ने अपने भाषण म कहा क “डा टर जी जैसे महापु ष के सामने जो नतमःतक नह ं हो सकता वह जीवन म

कुछ भी नह ं कर सकता। ऐसे महान य

क पूजा करने म म अ यंत गव का

अनुभव करता हँू । चंदन-पूंप आ द से पूजा करना तो घ टया माग है । जसक पूजा करना हो, उसके समान बनने का ूय नवयुग ूवतक ौी गु जी

करना चा हये – यह उसक स ची पूजा है । ५९


‘िशवो भू वा िशवं यजेत ्’ – यह हमारे धम क

वशेषता है । डा टर जी ने

सरसंघचालक व का क ठन दािय व मुझ पर स पा है । क तु यह तो वबमा द य का वह िसंहासन है जस पर य द गड़ रये का लड़का भी बैठा दया जाय तो वह भी उिचत

याय ह करे गा। आज इस िसंहासन पर आ ढ़ होने का ूसंग मुझ जैसे

सामा य य

पर आया है । क तु डा टर जी मुझ जैसे य

से भी वे ह बात

कहलाएँगे जो सवथा उिचत ह गी। हमारे महान ् नेता के पु य ूताप के फलःव प मेरे हाथ से उिचत बात ह ह गी। अब हम पूण व ास के साथ अपने काय म द िच

हो जाय तथा इस संघकाय को पहले जैसी िन ा तथा दने ू उ साह से आगे बढ़ाएँ।” यह कोई कोरा अपदे श नह ं था। डा टर जी क मृ यु के बाद सावजिनक नेताओं के जो शोकसंदेश आये; ःवयंसेवक के शोक और िचंता य उन सभी का उ र भेजते समय ौी गु जी ने अ यंत

करनेवाले जो पऽ आये –

ढ़ता और संयम का प रचय

दया। उनके पऽ का आशय यह होता था क “यह रोते बैठने का समय नह ं है । डा टर जी के अधूरे काय को पूण करने के िलए हम अपने दःख को िनगलकर ु कायवृ

म त पर रहना होगा।”

संघ के वरोिधय क चाल और म सूब से गु जी पूणतया सतक थे और इसिलये उ ह ने सरसंघचालक के नाते ३ जुलाई के अपने ूथम भाषण म ह

वरोिधय को

चेतावनी भी दे डाली। उ ह ने अपने भाषण म कहा- “हमारे डा टर जी ने मतभेद के कोलाहल म डू ब जानेवाला पल पला संगठन हमारे अधीन नह ं कया है । हमारा संगठन एक अभे

कला है । इसक द वार पर चंचु-ूहार करनेवाल क च च वह ं

ु टटकर िगर जाय, इतनी

ढ़ और मजबूत परकोटाबंद ःवयं डा टर जी ने कर रखी

है ।” इसके बाद २१ जुलाई को डा टर जी के मािसक ौा

दवस पर आयो जत कायबम म

भी ौी गु जी का ओजःवी भाषण हआ। संघ पर य ु

-पूजक और ूित बयावाद होने

का आरोप लगानेवाल को मुह ँ तोड़ उ र दे ते हए ु अपने भाषण म ौी गु जी ने कहा-

“कुछ लोग संघ पर यह आरोप लगाते ह क हम ःवयंसेवक य

पूजक ह। परं तु

इसका हम दःख नह ं है । कंतु डा टर जी के प ात ् भी सारे ःवयंसेवक पूववत ् काय ु कर रहे ह, यह इसी बात का ूमाण है क डा टर जी ने हम अंधौ ा नह ं अ पतु त विन ा और रा -िन ा िसखाई है । हम पर जतने जोर से आघात ह गे उतनी ह अिधक श

से रबर क गद क तरह उछलकर हम लोग ऊपर क ओर उठगे। हमार

नवयुग ूवतक ौी गु जी

६०


बाधाओं को चीरकर आगे बढ़ती जायेगी और एक दन वह समूचे रा

म छा

जायेगी।”

७.३ जीवन काय के अनु प य

व प रवतन

ऐसा रहा रा ीय ःवयंसेवक संघ के आ

सरसंघचालक के महाूयाण और ौी गु जी

ारा उनके आदे श का ःवीकार कये जाने का अ याय। भारत के कसी भी संगठन के इितहास म अनोखा तथा अ तीय िस

होनेवाला यह घटना-बम था। इस काल म

संघ का कोई िल खत सं वधान नह ं था और न ह संघ के नये सरसंघचालक क

िनयु

के संबंध म कोई प ित

ढ़ हई ु थी। कंतु डा टर जी जो करगे वह उिचत ह

होगा और संगठन क अंितम सफलता के िलए पोषक ह होगा- यह थी। डा टर जी ने ःवयं १५ वष तक अथक ूयास से य

ढ़ ौ ा सभी म

गत मह वाकां ा,

अहं कार, मतभेद आ द सामा यतया संगठन क एकता म सुरंग लगानेवाली ह न

ूवृ य को कसी भी ूकार अपने जीवन म कोई मह व न दे नेवाले

येयवाद

कायकताओं क मजबूत ौृख ं ला खड़ क थी। इसी का आ यजनक सा ा कार शांितपूण ढं ग से हए ु संबमण के

प म सभी को िमला। ऐसे संगठन को वृ ं गत

और ूभावशाली बनाने का दािय व ौी गु जी के कंध पर आ पड़ा था। डा टर जी का चयन कतना यो य था और १९४० के बाद दे शा तगत बदलती प र ःथित म संघनौका को यो य दशा म सफलतापूवक आगे बढ़ाने क अंगभूत

मता ौी गु जी

म कतनी वल ण थी- यह उनके ततीस वष के कायकाल म बमशः िनणायक म िस

हो गई। यह तो नह ं कहा जा सकता क सरसंघचालक बनते समय ौी गु जी

म कोई ःवभावगत दोष नह ं थे अथवा यावहा रक

से उनम और डा टर जी म

कसी भी ूकार का अंतर नह ं था। कंतु ौी गु जी क महानता इसी बात म है क

उ ह ने डा टर जी के आदश का सतत िचंतन कया और उस आदश के अनु प अपने दोष और किमय को दरू कर अपने जीवन को तदनु प ढालने का ूय उदाहरण के िलए कहना हो तो शु -शु प रल

त होती थी। उनक

कया।

म ौी गु जी क बोल-चाल म कुछ कठोरता

जहवा म कुछ पैनापन था। कुछ ूसंग पर उनके श द

म उमता झलकती थी। दसर के दोष, अ मता अथवा काम म ढलाई को वे सहन ू नह ं कर पाते थे। कंतु धीरे -धीरे उनम वनॆता, मृदलता और मधुरता आने लगी। ु

भाषा अित मधुर बनी। यवहार म उमता का ःथान ःनेहािता और स हंणुता ने ले िलया। ःवाथ तो उ ह कभी ःपश भी नह ं कर पाया था। क तु िनः​ःवाथता के साथ ह संगठन के िलये आवँयक गुण क भी उ ह पूण क पना थी। डा टर जी भी मूलतया उम ःवभाव के थे। कंतु संघकाय को ह अपना जीवनकाय मान लेने के बाद उ ह ने अपने अलौ कक मनोबल से संगठन के िलये आवँयक गुण के साथ-साथ नवयुग ूवतक ौी गु जी

६१


अपने ःवभाव म भी अनुकूल प रवतन लाया था। अपने आपको संघमय जीवन के

जीव त आदश के

प म ूःतुत कया था। ऐसा ह प रवतन ौी गु जी के जीवन म

भी हम दखाई दे ता है । धीरे -धीरे ौी गु जी रा

क याण हे तु सभी को उनके गुण-

दोष स हक आ मसात ् करनेवाले ःनेह के सागर बने। कायकताओं को वे

अिधकारवाणी से बता सकने यो य बने क “म जैसा हँू वैसा ह मुझे ःवीकार करो”

(अथात ् यूज मी ऐज आई एम ्) ऐसा कोई कह न सके। दोष को दरू करना ह होगा

तथा समाज को अपने साथ लेने के िलए आवँयक गुण को धारण करना होगा। संघ का कायकता ऐसा ह गुणस प न होना चा हये। कथनी और करनी म अंतर को उ ह ने कभी कोई ःथान नह ं दया। िस ा त के मामले म डा टर जी क भाँित गु जी भी कसी भी ूकार का समझौता ःवीकार नह ं करते थे। ‘यह अपना ह द ू रा

घोषणा करते थे। यह

है ’- डा टर जी सीना तानकर यह

वचार संघ क काय प ित का मूलाधार है । डा टर जी ने

काफ सतकता से इसका पोषण कया। इस मामले म वे कसी के आगे न दबे, न झुके। बाद म ौी गु जी के कायकाल म अनेक लोग ने अपने राजनीितक ःवाथवश जाितगत-ःवाथ, आबामक रा ीयता, व े ष और ईंया तथा मानवतावाद क थोथी

क पना क आड़ लेकर इस ःवयंिस

स य को झुठलाने का ूयास कया और

अपूचार का सहारा िलया। कंतु ऐसे अपूचार और वरोधी वातावरण क जरा भी िच ता न करते हए ु ौी गु जी दे श भर म िनभयता के साथ ह द ू रा

करते रहे । हरे क मंच से उ ह ने परम वैभवशाली रा ूबल समथन कया।

का उ -घोष

के िलए आधारभूत इस स य का

ढ़ाथ म अ ह दओं के साथ वातालाप म भी उनका समाधान ू

करते समय संघ- वचार का सूऽ उ ह ने अबािधत रखा। उ ह ने सदा इस बात को

आमहपूवक रखा क व वध

ेऽ म काय करनेवाले संघ ःवयंसेवक क

ह द ू रा

ू ौ ा होनी चा हए और उसे अिधकािधक ूखरता के साथ ूकट ःव प पर अटट

के

करना चा हये। इतना ह नह ं, ह द ू जीवन वचार को उसके सभी अंगोपांग क हत

ःप का

करने का महान ् काय भी ौी गु जी ने कया। काल क गित और आवँयकता

यान भी उ ह ने रखा। प र ःथित के अनुसार कभी आबामक तो कभी धीमे ःवर

म रा ीय ःव को ःप

और पु

वचार मन म उठता है क

कया. इन सब बात को

यान म रखने पर यह

या भावी काल के संकेत को समझकर ह कह ं डा टर

जी ने ौी गु जी जैसे अ या म-ूवण, भाषा- व , व ान ् और आयु म त ण का अपने उ रािधकार के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

प म चयन तो नह ं कया था?

६२


ौी गु जी के असामा य वैचा रक तथा संघटना मक नेत ृ व म 1940 के जून माह म संघ का ूवास ूार भ हआ। यह ूवास कैसा रहा, यह हम ौी गु जी के य ु

व,

संघकाय क ूगित और दे श क प र ःथित के स दभ म अगले अ याय म दे खगे। *

नवयुग ूवतक ौी गु जी

६३


र रं जत दे श वभाजन

डा टर हे डगेवार क मृ यु के बाद जब संघ काय का दािय व ौी गु जी के कंध पर आया, तभी भारत ओर स पूण व

के इितहास के इितहास म एक दरगामी प रणाम ू

करनेवाला दशक ूारं भ हआथा। १९३९ म ु महायु

तीय व यु

ूारं भ हो चुका था और

के पाररं ् िभक काल म नाजी तानाशाह एडा फ हटलर क चौतरफा वजय हो

रह थी। ॄ टश साॆा यवाद के िलए यह ूाणघातक संकट मानो भारत जैसे गुलामी क ौृख ं ला से बँधे दे श के िलए उन बंधन को तोड़कर ःवतंऽ होने के िलए एक अ छा अवसर था, इसे भाँपना कोई क ठन बात नह ं थी। डा टर जी ने इसे भाँप

िलया था और इसीिलये जीवन के अ तम काल म इस प र ःथित का लाभ कैसे उठाया जाए इसका वचार उनके मन को बेचैन कये हए ु था। इसीिलये संघश

शीयाितशीय दे श यापी बने, यह उ कट इ छा वे बार-बार य

कया करते थे। दे श

म इस प र ःथित को लेकर यापक वचारमंथन चल रहा था। कंतु इं लै ड क इस संकचमःत अवःथा का लाभ कस ूकार उठाया जाए, इसे लेकर अलग-अलग राय य

क जा रह थी। गांधी, नेह , सुभाष- इन सभी के वचार म िभ नता थी।

य प यह सभी ःवीकार करते थे क इं लै ड क नाक दबाने का यह अ यंत अ छा अवसर है , क तु कौन सा माग अपनाया जाए इस मामले म सवस मत राय नह ं बन पा रह थी। सुभाष बाबू ने इस काल म डा टर जी से भट करने का दो बार ूय

कया क तु डा टर जी का ःवाः य अ यंत खराब होने के कारण दभा ु य से

यह भट न हो सक । डा टर जी यह अ छ तरह जानते थे क इस प र ःथित का िनणायक लाभ उठाने के िलए जतने श

स प न और रा

यापी संगठन क

आवँयकता है वैसा ःव प संध का अभी बना नह ं है । नये सरसंघचालक ौी गु जी को भी इसका

ान था।

संघकाय का फैलाव महारा

के बाहर कुछ अ य ूदे श म भले ह हआ क तु दे श के ु

बहत ु बड़े भाग म अभी तक संघ का वचार पहँु च नह ं पाया था। न तो वहाँ कायकता भेजे जा सके थे और न ह वहाँ संघ क शाखाएँ खड़ हो सक थीं। संघकाय के

वःतार स ब धी डा टर जी क उ कटता और बीमार क अवःथा म राजगीर से

कायवृ

के कालब

कायबम का आहवान भी वाःतव म इस अ तरा ीय प रःथि◌ित ्

के स दभ म ह था। इसिलये नये सरसंघचालक के सम

संघकाय का वःतार और

संगठन क मजबूती का काम ह सवािधक मह व का और आवँयक था। ो टश साॆा यवाद स ा क कुछ ितरछ नजर इस संगठन पर भी पड़ थी। और इसिलये संघ के गणवेश और समता आ द कायबम म प रवतन करना आवँयक हो गया था।

पूण ःथित ता ठ क आकलन कर ौी गु जी ने संघकाय के वःतार को नई गित नवयुग ूवतक ौी गु जी

६४


ूदान क । शासन

ारा काय के बा

ःव प पर डाले गये ूितब ध को अःवीकार

कर उ ह ने अनावँयक संघष को आमं ऽत नह ं कया। ूितब ध को िनरथक बनाने

क लचीली नीित उ ह ने अपनायी। संघ के समता कायबम के गणवेश तथा आ ाओं म जो प रवतन कया गया वह इसी काल म हआ। नये गणवेश के ु

प म सफेद शट,

खाक हाफ पट, काली टोपी और सफेद जूत का ूचलन ूारं भ हआ। पहले समता के ु

िलए संघ म अंमेजी आ ाओं क उपयोग कया जाता था। उनके ःथान पर संःकृ त आ ाओं का ूचलन होने लगा। ःवयंसेवक क रचनाओं के िलए गण, वा हनी,

अनी कनी आ द नये नाम ूचिलत हए। ‘बड’ का नामकरण घोष हआ। उसे नया सुर ु ु िमला। एक तरह से इस अवसर का लाभ उठाकर गु जी ने समता और संचलन

कायबम का ‘भारतीयकरण’ कर डाला। ूितब ध सरकार कागजात म धरे रह गये और संघकाय पर उनका कोई दंप ु रणाम नह ं हो सका। संघ का नेत ृ व ःवीकार कये

जाने के बाद कुछ माह के भीतर ह

ॄ टश स ा क वब

से गु जी का नेत ृ व

पहली बार कसौट पर कसा गया जसम वे आ यजनक ढं ग से सफल रहे ।

८.१ प र ःथित का आहवान ौी गु जी को ऐसी ऊपर क ठनाइय क कभी कोई िच ता नह ं रह । उनके सामने ूमुख चुनौती तो ितगित ,से काय का वःतार करने क थी। इसके िलए उ ह ने ु

दे श यापी ूवास ूारं भ कया। कंतु ःथान-ःथान पर संघ का काय खड़ा हो सके यह कसी अकेले य

के ूवास से कैसे संभव हो पाता? दै नं दन शाखाएँ कौन चलाता?

इसके िलए तो संघ के िन यकम म िनंणात य

य को वहाँ भेजकर ःथानीय

कायकता खड़े करना अ यावँयक था। अतः वचारपूवक काय वःतार क योजना तैयार क गई। इस योजना के अ तगत बड़े पैमाने पर संघ के ूचारक दे श म सवऽ भेजे

जाने थे। इसके पूव भी संघकाय हे तु कायकता बाहर िनकले थे। काय का वःतार भी

उ ह ने कया था। क तु ये कायकता कह ं छाऽ के कह ं अ य िनिम

प म, कह ं िश क के

प म तो

से बाहर गये थे। पूण समय दे कर काम करनेवाले ौी बाबा साहब

आपटे , ौी दादाराव परमाथ जैसे िगनती के थोड़े ह ूचारक थे। अब यह जो योजना बनी थी वह विभ न ूांत म पूरा समय संघ का ह काय करनेवाले ूचारक भेजने क थी। इस योजना को काय प म प रणत करने के िलए १९४१ म ौी गु जी ने

ू वाले अ यंत ःथान-ःथान पर अपने ूवास म त ण ःवयंसेवक के अंतःकरण को छने भावना-ूधान भाषण दये। इनके मा यम से हर ःवयंसेवक के मन म यह बात वे गहराई से पैठाने का ूय

करते क यह काय फुसत म करने का नह है - इसके िलए

अिधकािधक समय दे ना होगा। इस स ब ध म उनके मन क बेचैनी १९४२ म वष ूितपदा के दन कये गये उनके भाषण म य नवयुग ूवतक ौी गु जी

उ -गार म ूकट होती है । ६५


इस समय अपने भाषण म उ ह ने जो आहवान कया था, संघ के इितहास म वह एक वशेष मह व रखता है । अतः भाषण का कुछ अंश यहाँ उ -घृत करना समीचीन होगा। अपने उस भाषण म ौी गु जी ने कहा- “हमारा अहोभा य है क हम आज

जैसी संकटपूण प र ःथित म उ प न हए ु ह। संकटकाल को हम पवकाल ह समझना

चा हए। रा

के इितहास म शता द य के प ात आनेवाला यह सुवण-अवसर आज

हमार ओर बढ़ा आ रहा है । इस समय य द हम सोते रहे तो हम जैसे अभागे दसरे ू

नह ं ह गे। संसार म उसी का नाम अमर होता है जो संकट काल म कुछ कर दखाता है । इसिलए ूस न एवं िनभय होकर संकट से संघष करना होगा। अपने सवौे

स -

गुण को ूकट करने का सव म अवसर यह है ।” “पितत रा

का पुन

हमार अवःथा

थान अिधक से अिधक एक पीढ़ म ह हो जाना चा हए। क तु

या है ? पूरे १७ वष तक प रौम करने के बाद भी आज हमारा काय

छोटा है । स यवाद होने के कारण हमारा संघ अपनी ूित ा अवँय पूण करे गा। एक

बार हमारे मुख से जो श द िनकल गया उसे हम स य करके ह िगखायगे, भले ह हमारा य य

गत जीवन न

हो जाय। उसक हम परवाह नह ं। एक वष के िलए अपने

गत जीवन के सारे वचार ःथिगत कर द जये। इस अिसधारा ोत को अपनाकर

एक वष के िलए सं यासी बन जाइये। अपने ूित चाहे जतना कठोर बनना पड़े ,

इसके िलए तैयार हो जाइये। इस समय घर-बार या धन-दौलत क िच ता न हो। हम

अपना सारा समय, सारा सभी य

यान, सार श

इसी काय पर के ित करना है । अ य

गत बात को भुला द जये। उनको मन के

ार के समीप भी मत आने

द जये। ऐसी द ता रखकर हम सभी को अपूव प रौम तथा काय करने के िलए िस

रहना होगा।”

ौी गु जी का यह आहवान ःवयंसेवक के अंतःकरण को छु गया। इसी समय ौी बालासाहब दे वरस ने भी पूणकािलक ूचारक िनकालने हे तु ूय

क पराका ा क ।

‘अभी नह ं तो कभी नह ं’ – (नाऊ ऑर नैवर) यह उनक घोषणा थी। प रणामःव प ःथान-ःथान पर सैकड़ त ण ःवयंसेवक पूणकािलक ूचारक िनकलने हे तु आगे आये। रा

के िलए

याग करने क भावना का एक द य ूवाह दे खने को िमला।

अनेक ने नौकर , ववाह, रँतेदार आ द का मोह

यागकर काय ेऽ म छलांग लगा

द । अनेक ने अपनी घर-गृहःथी, बाल-ब च का वचार कुछ काल के िलए ःथिगत रखा और पूरा समय संघकाय के िलए दे ने क तैयार दशायी। म यभारत म ूचारक के

प म गये ौी भैयाजी दाणी ऐसे ह घर-गृहःथीवाले थे। १९४२ के जून माह से

नवयुग ूवतक ौी गु जी

६६


िभ न-िभ न ूांत म ूचारक भेजने का काय ूारं भ हआ। इसके साथ ह काय क ु गित भी तेज हो उठ ।

इ ह ं दन दे श म जो घटनाएँ हो रह थीं उनक ओर ौी गु जी का पूरा

यान था।

ॄ टश साॆा य पर संकट अिधक गहराया था। यूरोप म जमनी ने और पूव क ओर जापान ने ॄटे न को भार िशकःत द थी। इसी संकट के समय ॄ टश सरकार ने

सर ःशे फड ब स को भारत भेजा और भारत को अिधक ःवाय ता, जसम दे श वभाजन का ूःताव भी अ तिन हत था, ूदान करने क योजना भारत के राजनीितक नेताओं के सम ःवतंऽता ूाि

रखी। यह योजना काँमेस को ःवीकार नह ं हई ु और

के िलए दे श का वातावरण अिधकािधक गरम होने लगा। नेताजी

सुभाषचंि बोस ने भारत के बाहर से रं गन ू और िसंगापुर म ःवाधीनता-यु

का बगुल

फूँका। आजाद हं द फौज खड़ क और ‘चलो द ली’ का नारा गुज ँ ाया। इधर भारत म गांधी जी ने ‘अंगेजो भारत छोड़ो’ का नारा बुल द कया तथा इस मांग क पूित के िलए आंदोलन शु

कया। ःवाधीनता-ूाि

के िलए िनणायक संघष का वातावरण दे श

भर म तैयार हआ। ु

८.२ ‘१९४२’ क तु ऐसे सुनहरे अवसर का लाभ उठाने के िलए जो रा

यापी संग ठत श

आवँयक होती है वह दे श म कह ं नह ं थी। कांमेस ने गांधीजी के नेत ृ व म आंदोलन क घोषणा तो कर द

क तु आंदोलन के ःव प और कायबम क कोई योजना ःप

नह ं क और नह यह ूयास कया क दे श भर म बखर पड़ श

य को इस

रा ीय आंदोलन म सहभागी बनाकर एक सूऽ म गूथ ँ ा जाय। कहा जाता है क द. ९ अगःत १९४२ को आंदोलन पर वचार करने के िलए कांमेसी नेताओं को एकसाथ बैठने माऽ क क पना ह गांधी जी ने द थी। आंदोलन क ू य छह माह क अविध िन

िस ता के लाए

त करने का उनका वचार था। क तु ॄ टश सरकार ने

गांधी जी को यह अवसर उपल ध नह ं होने दया। अ खल भारतीय कांमेस के ूमुख नेता जैसे ह मुब ं ई पहँु चे उ ह िगर तार कर िलया गया। सरकार के इस कृ य से

उ े जत जनता ने बना कसी तैयार के ःवयंःफूित से आंदोलन छे ड़ दया। सारे नेता तो जेल म बंद थे और आंदोलन बना नेत ृ व के चल पड़ा। बना नेता के दशा हन

आंदोलन भड़क तो सकता है क तु वह अिधक काल तक टक नह ं पाता और अपने आप बना कसी ठोस सफलता के समा

हो जाता है । इस आंदोलन का भी यह हाल

हआ। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

६७


इस बात म कोई संदेह नह ं क ऐसे आंदोलन म शािमल हआ जाय या नह ं तथा ु इसके अ छे बुरे संभा वत प रणाम था। संघ क अ य प श

या ह गे इसका वचार ौी गु जी ने भी कया

, आदोलनकताओं क योजना- वह नता और दशाशू यता

तथा आंदोलन म एकसूऽता के अभाव के कारण रा

यापी संघष के अिधक काल तक

चल पाने क संभावना आ द सभी पहलुओं का उ ह ने वचार कया था। कसी भी विधंणु संगठन का भावना म बहकर कुछ भी कर बैठना और उ वःत हो जाना कोई दरदिशता नह ं मानी जा सकती। और यह ू

वचार प का हो जाने के कारण संघ ने

संगठन के नाते इस आंदोलन म भाग न लेने का िनणय िलया। इसके िलए उस समय अनेक लोग ने उसे दोष भी दया, उसक सवौे

नेता के

ख ली भी उड़ाई। कंतु संगठन के

प म ौी गु जी का िनणय कतना सह और उिचत था यह बाद क

घटनाओं से िस

हो गया। ौी गु जी ने डा टर जी के सूऽ को अपनाकर संघ

ःवयंसेवक को य

ू दे द । तदनुसार अनेक शः आंदोलन म भाग लेने क छट

ःवयंसेवक ने इस आंदोलन म य

शः भाग िलया। इतना ह नह ं, ःथान-ःथान पर

भूिमगत कायकताओं क समुिचत दे ख भाल करने का दािय व भी संघ के ःवयंसेवक ने उ म ढं ग से िनभाया। कह ं भी आंदोलन का तेजोभंग अथवा उसका वरोध करने जैसा कोई काय संघ के ःवयंसेवक ने नह ं कया। िचमूर-का ड म अमणी और फाँसी क सजा ूा

करनेवाले बांितवीर संघ के ःवयंसेवक ह थे। जन अनेक भूिमगत

कायकताओं को सुर

त रखने म संघ के कायकताओं ने मदद क उनम बांितिसंह

नाना पाट ल, कसनवीर, साने गु जी, अ णा आसफअली, अ युतराव पटवधन, कुंदनलाल गु

आ द का समावेश है । ये लोग कोई संघ- वचार को माननेवाले नह ं थे

तथा १९४२ के बाद भी उनक गणना संघ- वरोिधय म ह होती थी। क तु उ ह सुर ा ूदान करते समय वैचा रक मतभेद क िचंता ःवयंसेवक ने नह ं क । संगठना मक श

को बढ़ाना और इसके िलए सवऽ संघ-शाखाओं का जाल बछाना,

यह काय संघ ने मह वपूण माना और उसी पर सारा एक विश

यान के ित कया। उन दन

येय के िलए काम करनेवाले संघ जैसे संगठन के नेताओं को प र ःथित

का मु यांकन कर अ यंत ज मेदार पूण िनणय समय-समय पर लेने पड़ते थे। उनक दे शभ

क ूखरता, साहस तथा

याग क िस ता पर संदेह करते रहना अनुिचत

और िनरथक है । संघकाय म अहोराऽ जुझनेवाले हजार युवक भावना और सम पत बु

वल त दे शभ

से ह काम करते थे। कसी वशेष आंदोलन म भाग लेने

का िनणय त कालीन प र ःथित के अनुसार संघ नेताओं को ह लेना था। लोकश

का जागरण और अनुशासनब ता का मूल उ ेँय आ खर रांे के गौरव को बढ़ाने के िलए ह था। संघ इसी उ ेँय से लोकश

के जागरण और अनुशासनब ता पर जोर

दया करता था। नवयुग ूवतक ौी गु जी

६८


८.३ ौी गु जी क

यापक सोच

१९४२ के आ दोलन के बारे म ौी गु जी क

या सोच थी, इस वषय म व यात

ौिमक नेता ौी द ोपंत ठगड़ जी क अपनी कुछ ःमृितयाँ यहाँ दे ना उपयु

रहे गा।

“१९४२ के िसत बर के अंत म मंगलोर का कायबम संप न कर ौी गु जी मिास जानेवाले थे। १९४२ के आंदोलन के कारण अनेक ःवयंसेवक और ूचारक के भी मन म खलबली मची हई ु थी। सबके मन म यह ू

था क ऐसे आपा काल के

समय भी संघ िन ंबय रहनेवाला हो तो अब तक संिचत श

का उपयोग ह

या?

उन दन म कालीकट म ूचारक था। अतः मुझसे कहा गया क मंगलोर िनकट होने से म वहाँ जाकर ौी गु जी को उन सबके वचार से अवगत कराऊँ। अतः म ौी गु जी से िमला।” उस भट का यौरा दे ते हए ु द ोपंत ठगड़ कहते हमने गु जी को उपयु

वचार अवगत कराए। गु जी ने जो उ र दये वे सार प म

िन ननुसार ह- (१) संघ ने ूारं भ से ह कुछ परहे ज पालन करने का िन य कया है ।

इसीिलए डा टर साहब जब स यामह म भाग लेने के िलए ूःतुत हए ु तब उ ह ने ःवयंसेवक को आदे श दया क वे बाहर रहकर संघशाखा का काम िनयमपूवक चलाएँ। संघ को उ ह ने आंदोलन के बाहर रखा। (२) फर भी आज क आपात ् ःथित म य द उन सारे परहे ज को तोड़ने से ःवातं य

ूाि

िनकट आनेवाली हो तो ये परहे ज तोड़ने म भी कोई आप

संघकाय और ये परहे ज

नह ं

य क

येय के िलए ह और ःवरा य अपना िनकट का लआय है ।

(3) कांमेस ने यह आंदोलन शु

करने के पूव संघ या अ य संगठन को व ास म

िलया होता तो अ छा होता। परं तु उ ह ने वैसा नह ं कया। उसके कारण बोिधत होने का कोई कारण नह ं है । यह आंदोलन जस ःवातं य के िलए है वह केवल कांमेसवाल को ह िमलनेवाला नह ं है , सबका ःवातं य है । इसिलए इस वषय म संःथागत अहं कार रखने का कारण नह ं। (४) परं तु कांमेसी नेताओं ने आंदोलन का आदे श दे ने के पूव अपनी

से भी जो

तैयार करनी चा हए थी, वह भी नह ं क यह िचंता क बात है । इसिलये बना तैयार क (Unprepared) अवःथा म ह जनता को अंमेज सरकार के सामने जाना पड़ा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

६९


कोई भी सु यव ःथत योजना नह ं थी। यह भी नह ं कहा जा सकता क बांितकाल म सब घटनाएँ ब कुल पूव िनयो जत योजना के अनुसार ह ह गी। फर भी कुछ िन

त योजना तो होनी ह चा हये और उसम प रवतन करने क बार आई तो वैसा

करने क पहल (इिनिशए टव) भी नेताओं के हाथ म रहनी चा हए। आज वैसी पहल नेत ृ व के हाथ म नह ं रह है । इसिलये प र ःथित और आंदोलन का दशा-िनदश, जो लोग क ःवयंःफूित से िमलता, उसक श

नेत ृ व म नह ं रह है । बांित

आंदोलन का इतना योजना वह न होना आ मघाती है ।

(५) ऐसा होते हए ु भी संघ

करने से

येय-ूाि

ारा इस ूसंग पर आंदोलन म कूद पड़ने का िन य

होनेवाली हो तो वैसा करने म कोई आप

पर तु इस बारे म बार क से िनर हमारे पूण श

से भाग लेने पर भी हम

(६) संघ क वतमान श वशेषतः जन

ण करने के प ात ् मेरे

नह ं होनी चा हये।

यान म ऐसा आया क

येय के िनकट नह ं पहँु च सकगे।

के बारे म कुछ लोग के मन म अितरं जत क पनाएँ ह।

ेऽ म संघ का काम अ छा है उन लोग को लगता है क दे श के

शेष भाग म भी संघ काय क

ःथित उतनी ह अ छ होगी। पर तु वैसा नह ं है ।

आंदोलन क सफलता के िलये अपनी श

के साथ ह अ य भी कुछ अनुकुल

ःथितयाँ आवँयक ह जैसे, सव साधारण जनता क सहानुभिू त, पुिलस, सेना आ द मह व के वभाग म सरकार के ूित असंतोष आ द। ू य

तो इस बारे म संबंिधत लोग क ूित बया

कृ ित का समय आया

या रहे गी यह बतलाना क ठन है । फर

भी बांित के िलये आवँयक प र ःथितयाँ अपने अनुकूल रहगी ऐसा मान कर चलने पर भी मेरा अनुमान है क हमने सब श

दाँव पर लगाकर आंदोलन कया होता तो

भी यह आंदोलन एक सीिमत भाग म ह सफल हो सकता था। बेलगाँव से ग दया तक का ह

ेऽ उसम आता। पर तु इतना करने के बाद भी हम

येय के िनकट नह ं

पहँु च सकते। वःतु ःथित यह है क अपना ूभाव

ेऽ केवल दे श के म य भाग तक सीिमत है ।

बा त सफल होने पर जो भाग ःवतंऽ होगा उस पर सब ओर से सेना भेजना शऽु के िलए संभव होगा और ऐसी ःथित म सरकार सेना भीतर घुसी तो सवसाधारण

जनता म उनके अ याचार से िनराशा भीषण माऽा म बढ़े गी। सोचे हये ु प रणाम से

ब कुल वपर त प रणाम हो सकता हे । ःवतंऽ होनेवाला भाग अगर एक कनारे पर

रहा तो एक बाजू से तो िनभय रह सकते ह और शऽु-सेना का ूितकार करने के िलए बहत ु समय िमल सकता है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७०


ऐसी अवःथा म संघ के आंदोलन म उतरने से लाभ होनेवाला नह ं ऐसा मुझे लगता है । एक संःथा के नाते हम सुर

त रह यह भावना मेरे मन म नह ं है परं तु रणनीित

का वचार कर तो इस समय आंदोलन करने से जनता म िनराशा के िसवा कुछ हािसल नह ं होगा। यहाँ पर ये अं कत करना अूासंिगक नह ं होगा क ूारं भ से ह ौी गु जी का यह आमह रहा है क रा िनमाण का वचार करनेवाले कायकता भू-राजनीित (Geopolitics) वषय को आमहपूवक पढ़ और इस

से वे ‘हं टं गटन’ नामक लेखक का

उ लेख करते थे।

८.४ रा

के संकट क घड़ म

१९४२ का आंदोलन खलबली मचा कर चला गया। भारतीय जनता म ःवतंऽता क आकां ा कतनी तीो है इसक जानकार भी अंमेज शासक को इस आंदोलन से

िमली। कंतु फर भी आंदोलन के ठं डा पड़ने, नेताओं के जेल म बंद रहने और सामने

ू य

कोई सुिनयो जत कायबम नह ं रहने से ःवाभा वकतया लोग म हताशा और

िनराशा क भावना फैली। इसके अित र था और तथाकिथत िमऽ रा

इस यु

का रागरं ग भी अब बदलने लगा

का पलड़ा भार होने लगा था। सुभाष बाबू को अपनी

सेना के साथ भारत म ूवेश करना और द ली क ओर कूच कर पाना असंभव हो

गया था। इस सार प र ःथित म लोग म नयी आशा और उ साह का संचार करने के िलये संघ का मा यम से अिधकािधक श

जुटाने का भगीरथ ूयास ौी गु जी के

नेत ृ व म चलता रहा। उनके ूयास को जनसमथन भी अ छा िमलने लगा। १९४२ के बाद के काल म ूा त-ूा त म संघ क शाखाओं का तेजी से वःतार होता गया। ौी गु जी ने ःथान-ःथान पर यो य कायकता संघकाय के िलये ूा

कये। सवऽ संघ

शाखाओं म ःवयंसेवक क बाढ़ दखाई दे ने लगी। केवल बंगाल, असम, उड़ सा,

तिमलनाडु जैसे कुछ अपवाद को छोड़कर सभी ूांत म संघकाय म वशेष ूगित हई। ु उ र भारत म संघ श ूाि

का वशेष अनुभव होने लगा। क तु इसी समय ःवतंऽता

के रा ीय उ ेँय के अलग-अलग धाराओं म बँटने के संकेत भी िमलने लगे थे।

१९४० से ह मु ःलम लीग ने भारत म ह द ू और मुसलमान को दो अलग-अलग रा बताकर मुसलमान के िलये पृथक् रा य क माँग उठानी शु

कर द थी। बै रःटर

मोह मद अली ज ना ने ऐसी भूिमका अपनायी क कांमेस ह दओं क संःथा है , उसे ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७१


दे श के करोड़ मुसलमान क ओर से बोलने का कोई अिधकार नह ं है । १९४५ म

महायु

तो थम गया और भले ह तथाकिथत िमऽ रा

वजय हई ु हो फर भी

ॄ टश को भारत म इपनी स ा बनाये रखना असंभव ूतीत होने लगा था। कांमेस के नेता पा कःतान क माँग को ःवकार करने को ब कुल तैयार नह ं थे। इसी मु े पर राजाजी जैसे ूमुख नेता ने कांमेस छोड़ द थी। फर भी कांमेस अपनी पा कःतान- वरोधी भूिमका छोड़ने के िलए तैयार नह ं थी। यु

समा

होने के बाद

कांमेसी नेताओं क जेल से रहाई हो गई और ॄ टश स ा ने फर वाता का दौर शु कया। इन वाताओं म कांमेस, मु ःलम लीग और अंमेज सरकार के ूितिनिध ूमुख प से शािमल कये जाते। कांमेस और मु ःलम लीग म, अथात ् ह द ू और

मुसलमान म एकमत न हो पाने के कारण भारतीय जनता को ःवतंऽता का अिधकार दे ने स ब धी िनणय नह ं हो पा रहा था। वैसे इसके पीछे ॄ टश शासक क भारत के वभाजन क कु टल नीित ह कारणीभूत थी। वे मु ःलम लीग को कांमेस से दरू

रखकर अलग रा रा

क मांग के िलये उकसा रहे थे।

क भ वंय स ब धी इस खींचतान म ौी गु जी ने अ यंत ःप

भूिमका अपनायी। अपने भाषण म वे ःप

और

तौर पर कहते क मातृभिू म अखंड बनीं

रहनी चा हए तथा यह कोई सौदे बाजी का वषय नह ं हो सकता। १९४५-४६ म ौी

गु जी का भाषण सुनने के िलए सभाओं म ूच ड भीड़ जमा होती। शाखाओं का जाल भी तेजी से फैलता जा रहा था। शु -शु

म तो अनेक नेता पा कःतान िनमाण के

सवाल को मज़ाक म उड़ा दे ते और उसक

ख ली उड़ाते थे। कंतु बाद म अंमेज

शासक और मु ःतम लीग के बीच मेल बढ़ने के कारण लोग गंभीरता से सोचने के िलये ववश हए ु क कह ं दे श के वभाजन का खतरा तो मोल नह ं लेना पड़े गा? इस समय तक ौी गु जी क ूेरणा और मागदशन म हजारो कायकताओं के अथक प रौम से दे श म संघ क शखाएं फलने-फूलने लगी थीं। ूच ड माऽा म त ण वग संघ क ओर आक षत हआ। पूरे दे श म मुसलमान के उपिव शु ु

क चचा से खलबली मची हई ु थी। दे श क जनता संघश

के

प म दे खने लगी थी जो रा

ःवाधीनता ूा

हए। दे श- वभाजन ु

को ऐसी समथ, सुसग ं ठत

क अखंडता को बनाए रखते हए ु उसे

कराएगी और बाद म दे श को सह माग पर आगे बढ़ा सकेगी।

मु ःलम दहशतवाद का िनणायक उ र रा ीय भावना का जागरण व रा भ

का

ूबल ूभावी संगठन ह हो सकता है , अनुनय अथवा ता कािलक समझौते से कुछ भी

सा य नह ं होगा – यह बात रा ीय ह द ू समाज के मानस म पैठने म ौी गु जी के

सुःप , िनभय तथा भावो कट ूितपादन ने अपूव सफलता ूा

क थी।

येयवाद

और ूय वाद का वायुमड ं ल सवऽ िनमाण हो गया था। क तु अनेक वष के नवयुग ूवतक ौी गु जी

७२


कारावास से मु

होकर अब चचा के दौर म फँसे, संघष का भरोसा खो बैठे, थके

राजनीितक नेता येनकेन ूकारे ण स ा हिथयाने के िलये अधीर हो बैठे थे। फर भी कांमेस अब तक दे श क अखंडता का आमह रखे हए ु थी। १९४५ के कांमेस-अिधवेशन ु ने वभाजन क क पना को ठकरा दया था। दे श क अखंडता बनाये रखने के िलये

आवँयक हआ तो ूाण- यौछावर करने का आ ासन गांधी जी ने अपने भाषण म ु दया था। उनके इस आ ासन पर लोग को भरोसा था।

इसिलये अपने दे श यापी ूवास म ौी गु जी अपने भाषण म कहा करते थे क दहशतवाद, गुड ं ागद , छोटे -बड़े अ याचार, दं गे आ द कराने क धम कय अथवा ूयास से कसी को वचिलत नह ं होना चा हए। आ मर ा का आिधकार सभी को कानूनन ूा

है । १९४६ म नागपुर के वजयादशमी महो सव म ौी गु जी ने जो भाषण दया

उसम चार ओर क संघषमय प र ःथित के स दभ म उ ह ने कहा था “ूितकार न करने क भाषा मेर काल म

ी म कोई पराबमी वृ

ोतक नह ं है । आज के संघषमय

या ूितकार न करने से दे श का कोई क याण होगा? मुझे तो संघष

अिनवाय दखाई दे ता है । आप भले ह ूितकार न कर, पर तु उतने से ह आप पर आबमण करने के िलए तैयार बैठे लोग अपनी काली-करतूत से बाज थोड़े ह

आनेवाले ह? यह कभी न भूिलये क काली मं दर म बिल के िलए ले जाया जानेवाला अजापुऽ (बकरा) भी अूितकार क ह सा ात ् मूित होता है । हम कोई बिल के बकरे

नह ं बनना है । आ मर ा ू येक य

और समाज का ूकृ ितिस

अिधकार है । अतः

यह कहना क सुर ा का दािय व सरकार का होने से कोई भी कानून को अपने हाथ म न ले, मूलतः अवैध है ।”

८.५ दे श वभाजन के कगार पर इस ूकार क ूेरणा का प रणाम यह हआ क समाज म अ याचार का साहस के ु

साथ सामना करने क मानिसक िस ता होने लगी। ॄ टश शासक के उकसाने से वघटनकार श

याँ भी इस समय िसर उठाने लगी थीं। यु

इं लै ड म स ा-प रवतन हो चुका था। भारत को

म वजय के बाद

ःवतंऽता ूदान करने के िलए

अनुकूल ौिमक दल ( लेबर पाट ) ौी एटली के नेत ृ व म स ा ढ़ हआ था। १९४६ म ु चुनाव क घोषणा हो चुक थी। कांमेस अखंड भारत के समथन म और मु ःलम लीग ने पा कःतान िनमाण के समथन म ये चुनाव लड़े । उस समय केवल मु ःलम के िलये ह सुर

त सीट रखी गई थीं। इनम से अिधकांश सीट मु ःलम लीग ने जीतीं।

दे श भर के मुसलसान ने पा कःतान के समथन म मतदान कया। हं द ू मतदाता पूर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७३


तरह कांमेस के साथ रहे । केवल वाय य सीमा ूांत ह अपवाद रहा। यहाँ यह

यान

म रखना होगा क भारत के भीतर भाग म भी मुसलमान ने पा कःतान का ूच ड समथन कया था। जन ूदे श को पा कःतान म शािमल करने क मु ःलम लीग मांग कर रह थी उनम उ र ूदे श, बहार, केरल अथवा मिास ूेसीडे सी का समावेश नह ं था। क तु इन ूदे श के मुसलमान ने भी लीग का ह सवािधक समथन कया, जब क सीमावत वाय य ूांत म लीग को पराजय सहनी पड़ । वहाँ मु ःलम

मतदाताओं ने कांमेस को समथन दया था। ॄटे न क स ा ढ़ ौिमक दल क सरकार

ने ःवतंऽता ूदान करने का कायबम सुिन

त करने के िलये भारत म के बनेट

िमशन भेजा। इस िमशन क योजना के संदभ म कांमेस तथा लीग क

या याओं म

ु मूलभूत अंतर उभरने से लीग ने इसे ठकराया। के ि क अंत रम सरकार म लीगी

मं ऽय ने हर कदम पर कांमेस मं ऽय के सम

बाधाएँ खड़ क ं। लेबर पाट क

ु सरकार भी भारत को अखंड बनाए रखने क इ छक नह ं थी। बै रःटर ज ना ने पा कःतान के िनमाण हे तु दबाव बढ़ाने तथा वभाजन- वरोिधय को भयिभत करने के उ ेँय से द. १६ अगःत १९४६ को सीधी कायवाह (डायरे ट ए शन) दवस के

प म घो षत कया। इस दन ःथान –ःथान पर दं गे भड़काये

गये। बंगाल म कलक ा, ढाका, नोआखाली आ द ःथान पर सीधी कायवाह के नाम पर जो नृशंस ह याका ड हए ु इसके कारण कह ं घबराहट क तो कह ं ू ोभ क

ूित बयाय िनमाण हई। बहार का ू ोभ कांमेसी नेताओं ने बलपूवक दबा दया। ु सवऽ अ यािधक आतंक और दहशत फैल गयी। गृह-यु

और भीषण र पात को

आमं ऽत करने क बजाय पा कःतान दे दया जाए और इस मुसीबत से बचा जाए,

यह वचार कांमेस के नेताओं के मन म उठने लगा। जहाँ-जहाँ मु ःलम बहसं ु या म थे वहाँ-वहाँ ह दओं पर अ याचार और आबमण बढ़ने लगे। सौभा य से इस समय ु

पंजाब म संघ क श

अ छ थी। ौी गु जी पा कःतान िनमाण के व

बोलते थे ब क उपिव-मःत

न केवल

ेऽ म जाकर जनता का धीरज भी बँधाते रहे । इन

उपिव के दन म ौी गु जी ने पंजाब और िसंध ूदे श का बार-बार दौरा कया। इस ूवास म उनक सभाओं म ूच ड सं या म जनता उप ःथत रहती थी। उनका यह ूयास रहता था क पा कःतान बनने न पाये और लोग घबराकर अपना घर-बार छोड़कर अ यऽ न भाग। इस समय तक तो गांधी जी ने भी पा कःतान के िनमाण और दे श के वभाजन के िलए अपनी सहमित नह ं दशायी थी। कांमेसी नेताओं को गु जी यह सलाह दे ते रहे क कसी भी हालत म वभाजन को ःवीकार न कया

जाए। मु ःलम गुड ं ािगर का सफलता से मुकाबला करने के िलये ह द ू जनता समथ

है । थोड़ा क

सहन करना पड़े गा क तु वभाजन को िन

प से टाला जा सकता

है । गांधी जी अपने वचन से डगगे नह ं यह व ास असं य लोग को था। कंतु नवयुग ूवतक ौी गु जी

७४


आ खर ३ जून १९४७ को वभाजन क ू य

घोषणा हो गई। इसके कुछ ह

दन

पूव गु जी ने पंजाब म अपने एक भाषण म कहा था- “हम पा कःतान को नह ं जानते, न ह हम वह ःवीकार है । हम तो संग ठत

प से आ म व ासपूवक खड़े

रहकर आवँयक संघष करते हए ु अपने-अपने ःथान पर डटे रहना चा हये। य द हम

संघष से डरकर अपनी मातृभिू म को

याग दगे तो इितहास हमारे बारे म यह िलखने

से नह ं हचकेगा क ‘इन लोग को वभाजन का, अपनी ूयतम मातृभिू म के

अंग व छे द का कोई दःख नह ं हआ। इन लोग ने अपने ूाण को अपनी मातृभिू म ु ु

तथा उ

वल, पराबमी परं परा से बढ़कर समझा।’ य द ऐसा हआ तो िन य जािनए ु

क हमारे समाज म यह मनोदबलता सदा के िलये छा जायेगी। इसिलये जी जान से ु

ूितकार करते हए ु हम अंत तक अपने-अपने ःथान पर ह डटे रहने का ूय

करना

चा हए।”

८.६ ःवयंसेवक क ऐितहािसक भूिमका ौी गु जी ने संघ के हजार ःवयंसेवक को ढाल के

प म ूःतुत कर सभी म सुर ा

क भावना और धैय बढ़ाने का ूयास कया। जसका प रणाम िन का मनोबल बढ़ाने म सहायक िस

प से समाज

हआ। क तु लॉड वेवल को हटाकर लाये गये ु

लॉड माउं टबेटन ने ‘फूट डालो और तोड़ो’ क अपनी सरकार क पर परागत नीित अपनाकर मु ःलम लीग का प

िलया और बाद म वभाजन को ःवीकार करने के

िलए कांमेसी नेताओं पर दबाव डालते रहे । वभाजन ःवीकार करने से खं डत भारत क ह

य न हो, ःवतंऽता आँख के सामने खड़

दखाई दे रह थी पर वभाजन को

ु ठकराने से न जाने और कतने समय तक संघष करना पड़ता इसका कोई भरोसा नेताओं को दखाई नह ं दे रहा था। धीरज खो बैठे नेताओं ने संघष टालने क

मानिसकता म वभाजन का वक प मंजरू कर िलया। ौी गु जी अ यंत दःखी हए। ु ु

नेह जी ने डॉ. अ बेडकर क यह सलाह नह ं मानी क वभाजन के साथ ह

अ पसं यक क अदला-बदली भी क जाए। यह आभास भी िनमाण कया गया क

पा कःतान म ह द ू सुर

त रह सकगे। वैसे वभाजन क घोषणा के पूव ह

रावल पंड , अमृतसर, लाहौर आ द ःथान पर माच माह म ह दओं पर होनेवाले ु

अ याचार ने उम

प धारण कर िलया था। कंतु हं दओं ने न केवल इस आघात को ु

सहन कया वरन ् अनेक ःथान पर आबमण का मुह ं तोड़ जवाब भी दया। संघ के

नेत ृ व म ःथान-ःथान पर सुर ा दल खड़े कये गये। जहाँ ह दओ ु ं क सं या केवल २० या ३० ूितशत थी वहाँ पर भी ह दओं ने बड़ तेज ःवता दखाई। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७५


ऐसी दोलायमान प र ःथित म भी पंजाब के फगवाडा और संग र म िनयमानुसार संघ के अिधकार िश ा वग १९४७ म जुलाई के तीसरे स ाह म ूारं भ हए। ौी गु जी ु

दोन ह वग म गये और वहाँ क प र ःथित पर कायकताओं से उ ह ने चचा क ।

दोन वग म कुल िमलाकर ३७०० कायकता आये थे। चलते वग म संघष और अ याचार क खबर भी िमलती रह ं। दनांक ३ जून क घोषणा के पूव जो प र ःथित थी उसम अब एकदम प रवतन हो चुका था। इसिलए ःवयंसेवक को जो मागदशन पहले दया गया था- उसम उिचत प रवतन आवँयक हो गया था। ऐसी ःथित म

वग का समारोप पहले कया गया तथा कायकताओं को यह सूचना भी द गई क वे यथाशीय अपने ःथान पर वापस जाकर अपने ह द ु ब धु, भिगनी और माताओं को

जान-मान के साथ सुर

त ढं ग से भारत पहँु चाने क

यवःथा कर तथा अ खर

ह दू

के रवाना होने तक अपने ःथान पर डटे रह और उसके प ात ् ह ःवयं भारत क

ओर चले आय। कायकता अपने-अपने ःथान पर लौटे । इन कायकताओं म से कई लोग पुनः कभी दखाई नह ं दये- अपने समाज क र ा म वे वीरगित को ूा

उस घोर संकटकाल म संघ के ःवयंसेवक ह सुर ा के एकमेव आशाके ि बने।

हए। ु

वभाजन के इस कालख ड पर लेख, पुःतक आ द िलखनेवाल ने संघ ःवयंसेवक क वीरता, पराबम और समाज क र ा म ूाण के बिलदान क ूशंसा क है । इस काय म ःवयंसेवक ने ‘अपने-पराये’ का कोई भेद नह ं कया। कांमेस के अनेक नेता संघूद

सुर ा- कवच के फलःव प ह ःवतंऽ भारत म सुर

त पहँु च पाए।

संघ ःवयंसेवक क इस वीरता और अ -भुत पराबम-पव का ौी गु जी ने अपने मुख से बखान कभी नह ं कया और न ह इसका ौेय लुटने का कोई ूयास कया। वह

सारा इितहास अभी तक अ ात है । ःवयंसेवक के बिलदान को वे समाज क र ाथ िनभाया गया आवँयक कत य ह मानते थे। संघ क ूेरणा से पंजाब रलीफ कमेट क ःथापना हई ु और उसके मा यम से ह द ू वःथा पत क सब ूकार क

समःयाओं का िनराकरण करने का ूयास कया गया। यह सारा भयानक-पव समा होने के बाद एक बार द ली म पऽकार ने इस स ब ध म ढे र सारे ू

पूछकर ौी

गु जी से ःवयंसेवक के पराबमपूण घटनाओं के बारे म जानना चाहा क तु ौी

गु जी ने उ ह यह उ र दया क- “संघ ने नह ं करना चाहते।

या कया, इसक

व ापनबाजी हम

य क अपनी मातृभिू म और अपने समाज बांधव क सेवा क

व ापनबाजी कैसी? यह हमारा आ

कत य है । कंतु इतना बता दँ ू क उन सार

घटनाओं क य द जानकार जी गई तो हरे क के रोम-रोम से संघ क जय-जयकार क विन के िसवा अ य

नवयुग ूवतक ौी गु जी

विन सुनाई नह ं दे गी।”

७६


८.७ ौी गु जी का तेजःवी उदाहरण गु जी सभी उपिवमःत

ेऽ से िनरं तर स पक बनाये हए ु थे। १५ अगःत को दे श

का वभाजन हो गया। उसके पूव ८ अगःत तक ौी गु जी ने िसंध का ूवास कया था। पंजाब का ूवास भी हो चुका था। पंजाब के उस समय के आतं कत, असुर

और अ ःथर वातावरण म अमृतसर से अंबाला तक सब जला ःथान पर ौी गु जी ने कैसा ूवास कया होगा इसक क पना ह शर र पर र गटे खड़े कर दे नेवाली है । एक ह उदाहरण का यहाँ उ लेख कया तो भी ःवयं के ूाण संकट म डालकर वे ःथान-ःथान पर कैसे पहँु चे ह गे, अपने आप -मःत बंधुओं से िमलने क उ कंठा उनके

दय म रह होगी यह बात

कतनी तीो

यान म आ सकेगी। यह ूवास वषा से

उ वःत हए ु राःत और रे लवे माग से कया गया। कभी इं जन म बऐठना पड़ा तो

कभी मालगाड़ के गाड के साथ बैठकर मं जल पार करनी पड़ । जालंधर से लुिधयाना के माग म चहे डू नाम का पुल था। वहाँ पहँु चने पर ऐसा दखाई दया क आगे का

ूवास असंभव है

ु गया है और रे ल क पटर नीचे झूल रह है । पुल य क पुल टट

के नीचे बाढ़ का पानी ूच ड

विन करता हआ बह रहा था। पुल के िनकट पहँु चने ु

पर ौी गु जी के साथ जो कायकता थे उनके सामने ू करने का धोखा न िलया जाय, ऐसी आम राय य

िच

खड़ा हआ। पुल पार ु

हई। पर तु पल भर का भी ु

वचार न करते हए ु ौी गु जी ने पटर पर पैर रखा और सर-सर कदम बढ़ाते हए ु

उ ह ने दे खते –दे खते पुल तेजी से पार कर िलया। िन पाय हो कर अ य कायकताओं

को भी ह मत बटोर कर यह कड़ कसौट सफलता से पार करनी पड़ । ौी गु जी का सारा

यान था, आगे कैसे पहँु चा जाय। क ठणाइयाँ उनक िगनती म ह नह ं थीं। एक

बार ौी गु जी के िनजी सहायक डॉ. आबाजी थ े ने बतालाया था क उस ूवास का ःमरण होते ह आज भी र गटे खड़े हो जाते ह। १९६० म इं दौर म हए ु कायकताओं के सम

अपने एक भाषण म ौी गु जी ने इस

कालखंड के बारे म कुछ उ लेख कया था। संघ का िन य काय कतना मह वपूण है और ता कािलक समःया अथवा संघष से वचिलत होना कतना अिन कार है इसी स दभ म ौी गु जी ने उ

कालखंड का उदाहरण दया था। उस भाषण के कुछ अंश

ौी गु जी क मानिसकता को ःप

करते ह। उ ह ने ९ माच १९६० को अपने भाषण

म कहा था- “दे श म समय-समय पर िनमाण होनेवाली प र ःथित के कारण मन म तूफान उठता है । १९४२ म भी अनेक के मन म तीो आंदोलन था। उस समय भी संघ का िन य काय चलता रहा। ू य

प से संघ ने कुछ न करने का संक प कया।

परं तु संघ के ःवयंसेवक के मन म उथल-पुथल चल ह रह थी। संघ अकम य लोग

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७७


क संःथा है , इसक बात म कुछ अथ नह ं है , ऐसा केवल बाहर के लोग ने ह नह ं तो कई अपने ःवयंसेवक ने भी कहा। वे बड़े

भी हए। ु ”

“इसके बाद दे श भर म फर से एक अ ःथर-सी प र ःथित लोग अनुभव करने लगे। मुसलमान ने मार-पीट और दं गा-फसाद शु

कर दया था। वभाजन के पूवरं ग क

कृ ंणछाया फैलने लगी थी। उस संकट का

ढ़ता से मुकाबला करने का वचार अपने

लोग के मन म आया और फर काय- वःतार म वे जुट गए। परं तु काफ

वल ब हो

चुका था। जब नाक म पानी घुसने लगे तब तैरना सीखने का वचार मन म आने से या लाभ? पता नह ं, अपने समाज को

या हो गया है । यास लगने पर कुआं खोदने

का वचार करने क खराब आदत अपने समाज को कैसे लगी? उस समय भी लोग बोलने लगे क संगठन होना चा हए। प रणामःव प पंजाब क संघ-शाखाओं म बहत ु

बाढ़ आई थी। मुझे ःमरण है , मने उस समय भी कहा था क पा डु रोग म रोगी मोटा हो जाता है । पर तु उसके ःथूल शर र का बोझ मृ यु का पूविच ह होता है । उसके मुख का गौरवण वाःतव म ववण रहता है । ऐसे पा डु रोगी के पु

दखनेवाले शर र

से मह काय नह ं हो सकता। उस समय भी नह ं हआ। कुछ अ प सा काय हआ और ु ु संकट का यथाश

ूितकार हआ। ” ु

ौी गु जी के उपयु

भाषण से उन अनेक ू

का भी परो

उ र िमल जाता है जो

१९४७ म हए ु वभाजन के संदभ म अनेक लोग ने बाद के कालख ड म खड़े कये। यह पूछा गया क अगर संघ को मातृभिू म क अखंडता अपने ूाण से भी अिधक ूय थी तो संघ ने अपना सवःव दाँव पर लगाकर वभाजन के व य नह ं कया? ःप समय ःवयं क इतनी श

तीोतर संघष

प म कहना हो तो यह कहा जा सकता है क संघ क उस नह ं थी क अपने बलबूते जन-आ दोलन चलाकर

वभाजन रोक पाता। फर भी संघ ने वभाजन टालने क

दशा म यथासंभव ूय

अवँय कया। य द कांमेस के नेताओं और गांधीजी ने वभाजन को ःवीकार कर दे श क ओर से ॄ टश सरकार और मु ःलम लीग के साथ कोई समझौता नह ं कया

होता तो समाज को साथ लेकर संघ दे श के वभाजन को रोकने के संघष म सफलता से जूझ सकता था। क तु वभाजन को सरकार ःतर पर ःवीकार कर िलया गया था और इसिलए अिधक कुछ कर पाना संभव नह ं था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

७८


८.८ एक व र

सहकार का व ेषण

रा ीय ःवयंसेवक संघ के कुछ व र

कायकताओं के वचार इस

हं दओं क र ा और वःथा पत क सेवा पर ह संघ ने संतोष ु

एक बार संघ के द

से मननीय ह। य मान िलया, ऐसा

णांचल ूचारक ौी यादवराव जोशी से पूछा गया। उस समय

क प र ःथित के िन निल खत पहलू ौी यादवराव जी ने रख“(१) वभाजन रोकने लायक संघ क श

, लोग म जागृित और संगठन उस समय

नह ं था। (२) ॄ टश ने भारत छोड़कर जाने के बारे म जो घोषणा क थी वह इतनी ह थी क वे जून १९४८ के अंत तक स ा का हःता तरण कर दगे। इसम दे श- वभाजन का कोई ूःताव नह ं था। माउं टबेटन घो षत योजना के १० माह पूव ह यानी, १५ अगःत १९४७ को ह दे श वभाजन के साथ स ा हःता तरण का िनणय इसिलए कर सका

य क कांमेस ने दे श वभाजन क ःवीकृ ती दे द थी। य द कांमेसी नेता और ८-१०

माह ठहरते तो संघूे रत ह द ू श

दहशत को समा

कर सकती थी और दे श का

वभाजन रोका जा सकता था। परं तु ूारं भ म वभाजन का उ साह से वरोध

करनेवाले नेह , पटे ल आ द नेताओं और अंत म ःवयं गांधीजी ने भी सन ् १९४७ म वभाजन को ःवीकार करने का मन बना िलया था। फर भी वभाजन वरोधी ूचार

ौी गु जी

ारा चालू रखा गया। कांमेस और संघ क श

एकजुट होती तो िचऽ

एकदम बदला हआ दखाई दे ता। दभा ु य से संघ को अपना राजनीितक ूित ु

कर उसे ह न

करने क नीित कांमेस ने अपनायी।

(३) सभी संघ वरोधी श

य को लगता था क संघ वभाजन के वरोध म बगावत

का झ डा फहरायेगा और इस ूखर रा वाद श िमलेगा। य द ूितकार कया होता तो गृहयु

को न

करने का सुअवसर उ ह

और शहादत के िसवा कुछ भी प ले

नह ं पड़ता। कांमेस का ूचार ऐसा था क सैकड़ वष बाद खं डत ःव प म हो ःवतंऽता ूा

मान

हो रह है ; इसके अित र

य न

वभाजन हआ तो भी वह ःथायी ु

प से

टकनेवाला तो है नह ं। यह अःथायी बात है और फर से दे श एक होगा। इसिलए

आज वभाजन का वरोध करनेवाले एक ूकार से ःवातं य-ूाि

का ह

वरोध

करनेवाले ह। संघ ने ूितकार कया होता तो संघ को ःवातं य का वरोधी करार दे कर उसे न

करने का ूयास सरकार ने और कांमेस पर व ास रखनेवाले लोग ने भी

आवेश से कया होता। ःवातं यूाि

का आकषण बहत ु बड़ा था। संघ का वरोध

ःवातं य से नह ं, वभाजन से है , यह आवाज बहत ु रा

ीण िस

हई ु होती। संघ ह द ू

के वचार क अंितम वजय चाहनेवाला और उसके िलए काम करनेवाला संगठन

है । वभाजन ःवीकार करनेवाल का असली नवयुग ूवतक ौी गु जी

प उजागर करने का मह काय संघ के ७९


ारा होना आवँयक था। ू य

वभाजन- वरोधी भूिमका पु

स बय वरोध करना संभव नह ं हआ तो भी ु

करने का ूयास ौी गु जी ने अ वरत चालू रखा था।

संगठन को मजबूत रखना और कायश

बढ़ाना यह माग ौी गु जी को रा हत क

से यो य लगा। मुझे भी लगता है क ौी गु जी क भूिमका पूणतः यो य थी। हं द-ू हं द ू के बीच का उम कलह का संकट भी टल गया। वभाजन क जो वेदना होनी

थी वह तो सहना ह पड़ । क तु उस समय वभाजन रोकने के िलये कुछ नह ं कया जा सका यह ट स ःथायी

प से चुभने-वाली है ।”

उस विचऽ एवं द ु वधापूण प र ःथित का तटःथ वचार करनेवाले कसी भी य

को

ौी यादवराव जी का यह व ेषण सामंजःयपूण लगेगा।

८.९ अ तम स य नह ं : ौी गु जी वभाजन के स ब ध म बोलते समय ौी गु जी के मुख से बार-बार उनक वेदना य

यथा,

होती थी। वभाजन वःतु ःथित बन चुका था क तु ौी गु जी ने उसे

‘अ तम स य’ कदा प नह ं माना। अख ड मातृभिू म ह सदै व उनक उपाःय दे वता रह । मातृभिू म क खं डत ूितमा पुनः अख ड बनाने का ःव न ू येक दे शभ

के

दय म पलता रहे ; इस स दभ म एक घटना काफ उ -बोधक है । १९५५ म जब

परम पूजनीय ौी गु जी से पू य पेशावर मठाधीश ौी व ेशतीथ ःवामी जी ने एक ू

पूछा, ‘भारत

या फर कभी अख ड होगा?’ ौी गु जी ने त काल उ र के

प म-

गंगे च यमुने चैव गोदाव र सरःवित। नमदे िसंधु कावे र जले ःमन ् स निधं कु ।। ोक कहा और कहा क हम अपनी िस धु नद को नह ं भूल सकते। ःवामी जी के

अगले ू

पर क यह कैसे होगा? ौी गु जी ने उ र दया क ह दओं के असंगठन ु

व दबलता के कारण ह ु अख ड हो सकेगा।

वभाजन हआ। उस कारण को दरू करने से दे श फर से ु

८.१० ौी गु जी क सतकता वभाजन क योजना बया वत हई। नेताओं के भरोसे बैठ ल ाविध जनता को ु

जघ य अ याचार सहने पड़े । िचतौड़ का जौहर भी फ का पड़ जाए ऐसा बिलदान हआ। ु ल ाविध लोग को ज मभूिम का

यथा

दय वदारक थी।

उ ह संघ ने यथासंभव दलासा दया। हं द ू समाज के तारणहार के

प म ौी गु जी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

याग करना पड़ा। उनक

८०


के ूित यापक

प म ौ ा िनमाण हई ु , कंतु इसी समय िनयित का घटना-चब

कुछ अलग दशा से घुमने लगा। उन घटनाओं क ओर मुड़ने के पूव ौी गु जी ने भारत सरकार आवँयक है

ारा जो मह वपूण काम करवा िलया उसके संबंध म कुछ कहना य क वभाजन के बाद िसंध म पैदा हई ु अशांत ःथित से उस काम

का संबंध था। सामा यतः अगःत मास म िसंध म वशेष गड़बड़ नह ं हई। पर तु ु

िसत बर मास म भारत से मुसलमान के ज थे पंजाब और िसंध म पहँु चे। उ ह ने

भारत म मुसलमान पर भीषण अ याचार होने क अितशयो

पूण कहािनयाँ ूःतुत

पर अ याचार करना क ं। फलःव प िसतंबर मास म िसंध म मुसलमान ने हं दओं ु ूारं भ कर दया।

इस दं गामःत काल म द. १० िसतंबर को कराची क िशकारपूर कालोनी म एक बमवःफोट हआ। इस घटना का बहाना बनाकर पा कःतानी शासन ने हं दओं क ु ु

िगर ता रय का िसलिसला शु

कर दया। इसी समय अथात द. १२ िसतंबर को

द ली क भंगी कालोनी म महा मा गांधी जी से ौी गु जी क भट हई ु थी।

ःवयंसेवक के स मेलन म गांधीजी का भाषण भी हआ था। बम वःफोट और यह ु

गांधी-गु जी भट इन दोन घटनाओं के भड़क ले और उभाड़नेवाले समाचार कराची के

‘डान’ नामक समाचार पऽ ने बड़े -बड़े शीषक दे कर एकऽ छापे थे। “कराची म बम वःफोट : पा कःतान न

करने का भारत का ूय ” और “महा मा गांधी का संघ के

ःवयंसेवक को मागदशन : य द पा कःतान अपनी इसी नीित पर चलता रहे गा तो भारत-पाक संघष होगा।” ऐसे िशषक इन समाचार को ‘डान’ ने दये थे। बम- वःफोट के बाद अिधव ा खानचंद गोपालदास जी और अ य १९ ःवयंसेवक को िगर तार कया गया। इन संघ कायकताओं क मु उप ःथत हआ। यह ःप ु

कस ूकार क जाय, यह ू

था क भारत सरकार और पा कःतान सरकार के बीच

सामंजःय होने पर ह ःवयंसेवक क मु

संभव है और बना शासक य सहयोग के

कुछ भी कर पाना संभव नह ं है । ौी गु जी ने भारत सरकार के म ऽय और

अिधका रय से संपक साध कर जो परामश दया उससे अंत म यह क ठन काय सफल हो सका। सरदार पटे ल गृहमंऽी थे और गृहमंऽालय के कुछ ूमुख अिधकार भी ौी गु जी के ूित स -भाव रखनेवाले थे ने कतनी क ठनाई से सुर

य क हं द-ू वःथा पत को संघ-कायकताओं

त भारत लाया यह उ ह

ात था। भारत म आये

वःथा पत क जो व वध ूकार से सेवा संघ ने क उसके ूित कृ त ता का भाव

था। दो सरकार परःपर के राजनीितक कै दय क अदला-बदली (exchange of political prisoners) कर सकती ह, इस ूथा का आधार लेकर पा कःतान के हं द ू

कै दय और भारत के मुसलमान कै दय क अदला-बदली करने क योजना ौी गु जी नवयुग ूवतक ौी गु जी

८१


ने सुझायी और वह गृहमंऽालय ने ःवीकार क । अदला-बदली का दन िन और अदला-बदली का ःथान भी फरोजपुर तय हआ। ु

त हआ ु

ऐसा लगा क बै. खानचंद गोपालदास जी के साथ अ य १९ लोग को भी फरोजपुर म लाया गया होगा। परं तु समाचार िमला क केवल बै. खानचंद को ह लाया गया ह य क उस समय ौी कुरे शी नामक केवल एक पा कःतानी कैद भारत सरकार क

हरासत म था। एक के बदले एक को ह छोड़ने का पाक सरकार ने तय कया था। वभाजन के समय यह कुरे शी बड़ा कु यात हआ था। फरोजपुर म इन मु ु

कै दय

के ःवागताथ ौी गु जी के ःवयं क जाने क योजना संघ के कायकताओं ने बनायी थी। अ य ःवयंसेवक भी वहाँ जानेवाले थे। बहत ु भ य कायबम होने वाला था। परं तु एन सौके पर गंभीर समःया उप ःथत हो गयी। कुरे शी के बदले म केनल

ु खानचंद जी क मु ता य द भारत सरकार ने मान ली तो शेष १९ लोग का छटकारा ूायः असंभव होगा इसका

ान ौी गु जी को था। इसिलए कुरे शी के बदले म

खानचंद जी के साथ अ य १९ लोग क मु ता भी पाक को करना चा हए ऐसा

आदे श भारत सरकार के गृह मंऽालय क ओर से भेजे जाने क आवँयकता थी। बहत ु

ह कम समय पास म था। ौी गु जी अ यंत यिथत हो उठे । ःवागत के िलए आये

ःवयंसेवक म ौी लालकृ ंण आडवाणी भी थे। सब के मन िनराशामःत थे, परं तु ऐसा दखाई दया क ौी गु जी के मन को िनराशा ने जरा भी ःपश नह ं कया है । उ ह ने एकदम कहा, “हम अब भी कुछ कर सकते ह” और डॉ. आबाजी थ े क ओर मुड़कर कहा, “आबा, काकासाहब गाडगील को फोन लगाओ, म उनसे बात करता हँू ।” उस समय पंजाब म रा पित का शासन था। ौी िभड़े नामक चीफ सेबेटर थे। सरदार पटे ल कह ं बाहर गये हए ु थे, इसिलए काका साहब गाडगील अःथायी

प से गृहमंऽी

पद संभाल रहे थे। ौी गु जी ने काका साहब से बातचीत क । उसके बाद त काल

पाक-शासन को संदेश भेजा गया क कुरे शी के बदले म खानचंद जी स हत सभी २० लोग क मु ता हई ु तो ह कै दय क अदला-बदली होगी अ यथा नह ं होगी। उस दन के िलए अदला-बदली का कायबम ःथिगत हआ। परं तु भारत सरकार के कड़े ु ख का यो य प रणाम हआ। पाक शासन क तीो इ छा थी क कुरै शी मु ु

हो।

अतः भारत सरकार क मांग के अनुसार कुरे शी के बदले म सभी २० लोग को मु करना पाक शासन को ःवीकार करना पड़ा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८२


इस उथल-पुथल म लगभग एक मास बीत गया। बै. खानचंद जी स हत सारे ःवयंसेवक बंधु सुर

त भारत पहँु चे। उनका भ य ःवागत कया गया।

भारत सरकार का सहयोग संपादन कर इस ूकरण म ौी गु जी ने बहत ु मह वपूण

भूिमका संप न क । सरदार पटे ल, काकासाहब गाडगील और ौी िभड़े से ौी गु जी के य

गत ःनेह संबंध, ःवयंसेवक क मु ता हे तु उनक तीो याकुलता, यो य

समय पर कड़ा

ख ःवीकारने का उनका परामश और काम सफल होगा ह यह

उनका संपूण व ास आ द गुण के दशन इस ूसंग से हए। ौी लालकृ ंण आडवाणी ु ने तो यहाँ तक कहा क ौी गु जी क योजकता और िन य का यह जो अनुभव हआ वह मन पर वल ण प रणाम करनेवाला और कभी मनःपटल से न िमट ु सकनेवाला िस

हआ। ु

िसंध के ह संबंध म ौी लालकृ ंण आडवाणी

ारा बताया गया और एक ूसंग

उ लेखनीय है । वभाजन के पूव द. ५ से ८ अगःत ौी गु जी का िसंध ूांत म ूवास हआ था इसका उ लेख ऊपर कया जा चुका है । इस ूवास के समय काँमेस के ु अ य

आचाय कृ पलानी जी संयोग से कराची म थे। कराची के संघचालक एडवोकेट

खानचंद गोपालदास जी क आचाय कृ पलानी जी से गाढ़ िमऽता थी। ौी गु जी चाहते ह तो कृ पलानी से उनक भट सहज करवायी जा सकती है ऐसा सूिचत कया गया। ौी गु जी क इस सुझाव पर ूित बया अ य त तीखी थी। उ ह ने कहा, “आचाय जी से कहो क अब िमल कर

या करना है ?” यह कहते समय उनके

अंतःकरण क वेदना और वभाजन क ःवीकृ ित के संबंध म ूित बं बत हो रहा था। उनसे और कुछ कहने क अथात ् भट भी नह ं हो पायी।

ोभ ू येक श द म से

ह मत कसी को नह ं हई ु और

इस ूवास के प ात ौी गु जी कँमीर गये। ौी शंकराचाय जी

ारा ःथा पत मं दर

का ौ ापूवक दशन कया। लौटने पर उ ह ने ूधानमंऽी पं. नेह

जी से िमलकर

अपने काँमीर-ूवास क जानकार उ ह द । सरदार पटे ल से भी ौी गु जी िमले। *

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८३


गांधीजी क ह या: संघ वरोधी अिभयान

समाज के सहयोग से संघ के ःवयंसेवक वःथा पत बांधव क सेवा म दन-रात जुटे थे। ौी गु जी ने एक सावजिनक िनवेदन ूकािशत कर समाज को सहयोग हे तु

आवाहन कया। पंजाब सहायता सिमित और बंगाल म वाःतुहारा सहायता सिमित के ारा सैकड़ िश वर चलाये जा रहे थे। सह

बांधव को इन िश वर म सहारा दया

गया। इस अशांत और तनावपूण वायुम डल म दे श को ौी गु जी के उ ुंग य का असाधारण पहलू दे खने को िमला। उनके अंतःकरण क दशन समूचे रा

वशालता का वलोभनीय

को हआ ु । ूित बया मक वचार का जरा भी ःपश न होने दे ते हए ु

भ वंयकालीन िनरामय िनमाण और सु यवःथा ूःथा पत करने क आकां ा से इस महान ् य

व ने कतनी वधायक ःनेहमयता संपा दत क है , इसका ू य

प रचय

वभाजन के बाद के चार-पांच मह न म उनक गित विधय , आचरण- यवहार और

य से रा

क जनता को िमला।

९.१ अमृतभरा

दय

इस संदभ म उनके एक भाषण माऽ का उ लेख करना पया

होगा। वह दन था

मकर संबमण का। १४ जनवर १९४८ को ौी गु जी मुब ं ई म थे। मुब ं ई शाखा क ओर से आयो जत उ सव म वे बोले थे। ख डत भारत क राजनीितक ःवतंऽता और स ा प रवतन का जो नया पव दे श म ूारं भ हआ था, उस संबंध म संघ क भूिमका को ु

उ ह ने अ यंत ःप

श द म ूःतुत कया था। उनके इस भाषण को पछले चार-

पांच माह के अनुभव क पृ भूिम ूा कतना प

थी। उ ह दखाई दे रहा था क वःथा पत म

ोभ है । वे यह दे ख रहे थे क भीषण र पात के कारण भयभीत स ाधार

के लोग म दं ग और हं साचार के िलये संघ पर दोष मढ़ने क वृ

जा रह है । संघ के ूित

तीो होती

े ष-भावना पैदा क जा रह थी। ूधानमंऽी पं. नेह

म संघ के ूित कोई स -भावना नह ं है इसका अनुभव वे ःवयं पं. नेह भटवाता म ले चुके थे। संघ क श

को न

के मन

से एक

करने का वचार स ाधार दल म पनप

रहा था। कांमेस, मु ःलम समाज और क युिनःट सब िमलकर संघ के व

अप-

ूचार तथा झूठे-अनगल आरोप लगाने म जुट गये थे। यह सब जानते हए ु भी ौी

गु जी ने अपने मुब ं ई के भाषण म ःनेहमयता, रा

क याण के िलये सहयोग,

माशीलता और िनवरता का आ ासन दे नेवाला ःवर ूकट कया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८४


ौी गु जी ने कहा, “शांत िच

से वचार करने पर हमारे

यान म आयेगा क मनुंय

के जीवन म अनेक ूकार के ूयोग होते रहते ह। उनम सफलता- वफलता, सुख-दःख ु , वजय-पराजय के ूसंग आना ःवाभा वक ह है । ूयोग क सफलता- वफलता को

िस

होने के िलए कुछ समय तो लगेगा ह - अ यथा ूयोग करनेवाले के साथ

अ याय होगा। जो कुछ हो रहा है , वह उिचत हो या अनुिचत, हम ू ु ध न होते हए ु

अपना काय करते रहना चा हए। समःयाओं के मूल म जाकर वचार करना चा हए। अंतःकरण म कसी भी ूकार के शऽुता क भावना का

े ष अथवा बदले क भावना न रखते हए ु परःपर-

याग करते हए ु शांत िच

से ूगित का माग अपनाना चा हए।”

अपने इस भाषण म ौी गु जी ने कहा, “ ोभ दे नेवाली सभी बात को हजम कर हम आगे बढ़गे। अपने

दय के अमृत म बोध के वष को नह ं घुलने दगे। अपने चार

ओर जो लोग दखाई दे ते ह, वे कैसे भी ह , अपने रा उनक

वचार-ूणाली कैसी भी

के, अपने समाज के ह ह।

य न हो, उ ह ने भी कुछ अ छे काम कये ह,

भी कया है । इसिलये हम शांतिच

याग

से वचार करना चा हए। हम अपनी ःनेहपूण

उदारता और बंधु व क भावना उनके ूित नह ं तो कनके ूित ूकट करगे? कसी के कहने अथवा करने से मन म िनमाण होनेवाले

ोभ को

दय म जरा भी ःथान न

दे ते हए ु फर से िसर उठानेवाले भेद को िमटाकर “वयं पंचािधकं शतं” क आ मीय भावना से एकसूऽ-ब

रा

के िनमाण म अपनी सार श

लगा दे नी चा हए और इस

ूयास म हम अपने ूाण से भी अथ धोना पड़े तो उसक िच ता नह ं करनी चा हए।” अजातशऽु व तथा अमृतमय भावना का आचरण अकेले ौी गु जी का ह नह ं वरन ् उनके चैत यूद नेत ृ व म दे श भर म श

शाली

प म खड़े सूऽब

संगठन का भी

था। स ा-प रवतन का यह कालखंड द ली म भय और शंका से मःत था। इस काल म नाग रक जीवन को सुर सुर

त रखने, इतना ह नह ं तो कांमेस का शासन भी

त रखने के िलए संघ ने सब ूकार का सहयोग दया। द ली क भंगी कालोनी

म गांधी जी के िनवास ःथान क सुर ा का दािय व भी संघ के ःवयंसेवक ने

िनभाया। गांधी जी भी संघःथान पर जाकर ःवयंसेवक से िमले और अपने भाषण म उ ह ने संघकाय क सराहना भी क । गांधी जी को अपना अनशन छोड़ने के िलए राजी कराने हे तु जार संयु

व ि

पर द ली ूांत के संघचालक लाला हं सराज गु

ने खुशी से अपने हःता र कये। संघ के कारण कह ं भी शांित भंग, ू ोभ भड़कने अथवा उ पात होने क कोई घटना नह ं हई। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८५


संघ के भ य कायबम और ौी गु जी के मुख से अमृतमय संगठनमंऽ को सुनने के

िलए उन कायबम म एक ऽत होनेवाली ल ाविध जनता को दे खकर स ाधार

ेऽ म

यह भावना फैली क यह कांमेस के िलये बड़ चुनौती ह खड़ हो रह है । इसिलए संघ को हर ूकार से दबाने के ूय

शु

हए। इसके कुछ कटु अनुभव १९४७ के ु

नव बर मास म िमल चुके थे। ूथम अनुभव पुणे के िनकट िचंचवड म द.१ व २ नव बर को आयो जत लगभग १ लाख ःवयंसेवक के स मेलन पर अचानक ऐन समय पर शासन क ओर से पाबंद लगाने का था। वाःतव म गृहमंऽी सरदार

व लभभाई पटे ल ःवयं इस स मेलन म ूमुख अितिथ के नाते उप ःथत रहनेवाले थे। इसिलये सवऽ वशेष उ साह का वातावरण बन गया था। मुब ं ई सरकार ने ूितबंध का आदे श जार

कया तो अनेक को भार िनराशा हई। इस अनावँयक और अ यायकार ु

रोक से अनेक कायकताओं म

ोभ भी पैदा हआ। क तु शासक य आदे श का ु

उ लंघन कर स मेलन का आयोजन करने का आमह न तो ौी गु जी ने कया और

न ह

कसी ःवयंसेवक कायकता ने। वक प के

प म महारा

म तेरह ःथान पर

ौी गु जी के कायबम आयो जत कये गये और वे सभी कायबम शानदार ढं ग से स प न हए। इन तेरह ःथान पर दये अपने कसी भी भाषण म ौी गु जी ने ु

िचंचवड स मेलन पर पाबंद के व

न तो अपनी नाराजगी य

क और न ह

शासन क कोई आलोचना क । उनके भाषण का ूमुख सूऽ यह रहा क अपना

समाज असंग ठत होने के कारण ह उसे अनेक संकट से गुजरना पड़ रहा है । समाज य द संग ठत नह ं हआ तो ःवतंऽ भारत भी संकट-मःत हो जायेगा। वभाजन के ु िलये समाज क असंग ठत अवःथा और आ म- वःमृित को ह उ ह ने ज मेदार

ठहराया। दसर घटना थी द ली म नव बर के अंत म स प न मु यमंऽी-स मेलन म हई ू ु चचा और वचार- विनमय। इस स मेलन म रा य के मु यमंऽी तथा रा य के गृहमंऽी भी उप ःथत थे। इस स मेलन म चचा का ूमुख वषय मान रा ीय ःवयंसेवक संघ ह था। चचा का ूमुख मु ा यह था क रा ीय ःवयंसेवक संघ

‘ हं सा मक’ गित विधय म िल

है , इसिलये उसे रोकने के िलये कठोर पग उठाये

जाने चा हये। आ खर स मेलन म यह िनणय िलया गया क संघ क सार हलचल पर पाबंद लगाने क बजाय केवल अपराधी य

के व

कारवाई क जाए। इसके

साथ ह संघ क गित विधय पर बार क नजर रखने क बात भी तय क गई। उ स मेलन म हई ु चचा क जानकार समूचे रा

को ४ फरवर १९४८ को संघ पर

ूितबंध लगाने स ब धी जार सरकार आदे श म दये गये यौरे से िमली। इसी माह

क तीसर घटना थी मेरठ म हए ु कांमेस के अिधवेशन म रा ीय ःवयंसेवक संघ

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८६


का ह चचा का ूमुख वषय बना रहना। इस अिधवेशन म अनेक व ाओं ने संघ पर

ूितबंध लगाने क मांग क । इस दशा म शासक य वचार-चब का संकेत दे ने-वाली घटना भी उ लेखनीय है । द. २९ जनवर को ूधानमंऽी पं. नेह सभा म घोषणा क

क ‘हम संघ को जड़मूल से न

ने अमृतसर क

करके ह रहगे।’ इस भाषण का

समाचार पढ़ने के बाद ौी गु जी ने कहा क “संघ पर होनेवाले सभी आघात को हम वफल करगे। हमारा (संघ का) काय कसी क कृ पा से नह ं बढ़ा। कसी क बुर

से वह समा

भी नह ं होगा। यह काय क ह ं कागजी ूःताव से खड़ा नह ं हआ। ु

अतः कागजी आदे श से उसे न

नह ं कया जा सकता।” उनके उ

उ -गार को

परखने का समय अ यंत िनकट आ पहँु चा है , शायद इसक क पना ौी गु जी को भी

न रह हो।

वाःतव म आगे क घटनाओं से यह बात साफ हो जाती है क संघ पर हं सा-दं गा फैलाने तथा जाितवाद आ द होने का जो आरोप लगाया जा रहा था- वह राजनैितक था। कांमेस ने दे श को अख ड बनाये रखने का अिभवचन दया था पर तु दे श वभाजन ःवीकार कर जनता के साथ व ासघात कया था। इस कारण लोग के मन म कांमेस के ूित तीो अस तोष िनमाण हआ था। दे श- वभाजन के भीषण दन म ु ह द ु समाज क र ा करने हे तु संघ

ारा कये गये अूितम साहस और बिलदान के

कारण समाज का संघ पर व ास और उसक जन ूयता बहत ु बढ़ गई थी। दे श के अ य भाग म भी मुसलमान

ारा भड़काये गये दं ग के समय ह द ु समाज क र ा

के िलए संघ के ःवयंसेवक ह ढाल बने थे। पर तु दभा ु य का वषय है क दे श के

ऐसे संबमण काल म संघ

ारा बढ़ाये गये सहयोगी हाथ को ःवीकार करने क बजाय

वह भ वंय म राजनैितक ूितःपध बन सकता है । इस भय से आरोप लगाकर उसे न

करने का ष य ऽ रचा गया।

अखबार म अथवा कांमेसी नेताओं के भाषण म संघ पर जाितवाद , सा ूदाियक,

ूित बयावाद , फैिसःट होने स ब धी जो आरोप लगाये जाते थे उनक िचंता संघ म कोई नह ं करता था। इन आरोप का संघकाय क गित पर भी कोई ूभाव नह ं पड़ा। क तु ३० जनवर को जो दभा ु यपूण घटना हई ु उसका संघ- वरोिधय ने पूरा-पूरा

लाभ उठाया और संघ क अ न-पर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

ा का समय अकःमात ् आ खड़ा हआ। ु

८७


९.२ रा ीय सामंजःय क आवाज उस दन सायंकाल ौी गु जी मिास म संघ

ारा िनमं ऽत ूित त नाग रक क

सभा म उप ःथत थे। नाग रक से वातालाप चल रहा था। चाय क सम

रखी जा रह थीं। ौी गु जी के हाथ म भी चाय क

यािलयां सभी के

याली थी। वे उसे मुह ं से

लगाते इसके पूव ह अकःमात ् यह दःखद समाचार सुनने को िमला क द ली के ु

बड़ला भवन म ूाथना के समय कसी ने गोली चलाकर गांधीजी क ह या कर डाली!

यह खबर सुनते ह गु जी ने चाय क

याली नीचे रख द और कुछ

ण तक

िचंताम न ःथित म ःत ध बैठे रहे । फर उनके मुह ं से यिथत उ -गार िनकले- ‘दे श का दभा ु य है यह।’ अगला सारा ूवास कायबम र

कर वे तुर त वमान

ारा सीधे

नागपुर लौटे । मिास से रवाना होने के पूव ह उ ह ने पं. नेह , सरदार व लभभाई पटे ल व ौी दे वदास गांधी के नाम तार भेजकर अपनी शोक संवेदना य

क । साथ

ह आदरणीय महा मा जी क दःखद मृ यु पर शोक ूकट करने के िलये तेरह दन ु

तक संघ शाखाएँ ब द रखने का आदे श भी गु जी ने सवऽ ूसा रत कया। नागपुर

लौटते ह उ ह ने तुर त ूधानमंऽी पं. नेह

तथा सरदार पटे ल के नाम महा मा जी

क दभा ु यपूण मृ यु पर अपनी यथा को ूकट करनेवाले पऽ भेजे। पं. नेह

के नाम

िलखे पऽ का कुछ अंश इस ूकार है :-

“ विभ न ूवृ य के लोग को एक सूऽ म परोकर उनका सह मागदशन करने वाले एक कुशल कणधार पर कया गया आबमण कसी एक य नह ं, समुचे रा

के ूित व ासघात

के ूित व ासघात है । इसम कोई संदेह नह ं क आप याने वतमान

शासनािधकार उस दे शिोह पर उिचत कायवाह करगे ह । वह कायवाह कठोर

य न हो, उस

कतनी भी

ित क तुलना म सौ य ह होगी जो इस समय उठानी पड़

है । इस वषय म म अिधक

या कह सकता हँू ? आज हम सबके िलए पर

ा क घड़

है । वतमान ू ोभक प र ःथित म संतुिलत ववेकबु , मधुरवाणी और रा हत के ूित एका तक िन ा स हत सावधानी से सारे बयाकलाप करते हए ु रा नौका को पार

ले जाने का उ रदािय व हम सब पर है ।”

सरदार पटे ल के नाम ूे षत अपने पऽ म ौी गु जी ने िलखा- “उस महान संगठक के आक ःमक ितरोधान से अपने कंध पर जो उ रदािय व आ पड़ा है उसे हम कुशलता से वहन करना होगा। तदथ उस आ मा क प वऽ ःमृितय को संजोकर रखना होगा जसने परःपर वरोधी ूकृ ित के लोग को एक सूऽ म गूथ ँ कर उन सब को

पर चलाया। आइये, हम स -भाव, संयतवाणी तथा ॅातृभाव के

ारा श

येयमाग

संिचत कर

िचर तन एका म रा जीवन के िनमाण हे तु ूय शील ह ।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८८


इन पऽ के अंत म ौी गु जी ने िलखा क संघ का गठन भी इसी आःथा और

आधार पर कया गया है और परमदयालु परमे र से ूथना है क वशु श

मान रा जीवन के िनमाण हे तु इस रा

एवं

के सपूत को वह सह मागदशन एवं

ूेरणा दे । इन दोन पऽ क भावना अ यंत िनमल, दवंगत के ूित पूण आदर व ौ ा य

करनेवाली और रा ीय संकटकाल म सहकाय का मनःपूवक आ ासन दे नेवाली है । संघ के ःवयंसेवक के नागपुर तथा अ य ःथान पर शोकसभाओं का आयोजन कर गांधी जी के ूित अपनी वनॆ ौ ांजिलयाँ अ पत क ं। ौी गु जी ने असोिसयेटेड ूेस एक संदेश ूसा रत कया। उसम भी रा

ारा

क एकता, परःपर ःनेह और सेवाभावना को

टकाये रखने क बात ह कह । क तु इस भीषण दघटना के बाद संघ के व ु

अपूचार का बाजार गम हो उठा! ऊल-जलूल अफवाह फैलाई जान लगीं और सवऽ संघ के व

ू ोभक वातावरण बनाने का ूयास कया गया। ौी गु जी क स -

भावना को समादर िमलना तो दरू रहा, उ टे शासन ने संघ को गांधी जी क ह या से

जोड़ने क घृ णत भूिमका अपनायी। ौी गु जी ने अपने एक व

य म संघ के ःवयंसेवक को िनदश दया क

“गलतफहमी से िनमाण होनेवाली सब ूकार क प र ःथित म सभी ःवयंसेवक को अपना यवहार ःनेहपूण ह रखना चा हए। उ ह यह गलतफहमी के िशकार बनकर लोग नाम जगत ् म उ

यान म रखना चा हए क

ारा दया गया ऽास भी अपनी मातृभिू म का

वल करने वाले महापु ष के ूित दे शवािसय म असीम ूेम और

आदर भावना का ह

ोतक है ।”

दभा ु य से ौी गु जी का इतना सा वक िनवेदन भी वृ -पऽ म उिचत ःथान नह ं पा सका। संघ के व

ोभ भड़काने का बम जार रहा। महारा

ॄा ण-अॄा ण ववाद के

म इस का ड को

प म उभाड़ा गया। प रणामःव प असं य लोग के घर

पर हमले हए ु , आगजनी, लुट-पाट का िसलिसला चल पड़ा। भार

ित हई। महारा ु

एवं आसपास के ूदे श म हजार प रवार िनराधार बने एवं कुछ लोग क आहित भी ु हई। दे शभर म संघ ःवयंसेवक और कायकताओं को भार यातनाएं सहनी पड़ ं। फर ु

भी कसी ने कोई ूितकार नह ं कया और न ह

कसी के ूित कटु श द का ूयोग

कया। सब कुछ शांित से सहन कया। इसके पीछे डर या भय क कोई भावना नह ं ब क रा हत म संघ

ारा ूदिशत अभूतपूव संयम का भाव ह था। ौी गु जी ने

ूितकार न करने का आदे श सवऽ भेजा था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

८९


जन ोभ क आंच ू य

ौी गु जी तक पहँु ची। उस समय ौी गु जी ने जस

असामा य धैय, संयम और वशाल

रह समाज परमे र क उपासना क

दयता का प रचय दया, वह उनके

ारा क जा

वशु ता का ह प रचायक था। ूसंग बड़ा

तनावपूण था। १ फरवर १९४८ के दन सुबह ौी गु जी के नागपुर ःथत िनवासःथन

के सामने हजार लोग जमा हो गये और मकान पर प थर पकने लगे, अनगल आरोप स हत अश ्-लील नारे बाजी होने लगी। ूसंग क गंभीरता को दे खते हए ु ौी गु जी क सुर ा के िलए ःवयंसेवक उनके पास आये और हमलावर को ठकाने

लगाने क अनुमित माँगने लगे। इस पर ौी गु जी ने उन ःवयंसेवक से कहा, “मेरे िनवास के सामने मेर सुर ा के िलए अपने ह बांधव का र चाहता। मेर सुर ा के िलए यहाँ कसी को

बहे यह म नह ं

कने क आवँयकता नह ं है , आप सभी

अपने-अपने घर को लौट जाय।”

९.३ अ न पर

ा का ूारं भ

इसी समय ौी गु जी के िनवास पर पुिलस का पहरा लगा दया गया क तु उसे

सायंकाल हटा िलया गया। नागपुर के िचटणीस पाक म हई ु आम सभा म संघ वरोधी वषवमन कया गया। तब पुनः ःवयंसेवक को उपिव भड़कने क आशंका हई। कोई ु

अनहोनी न होने पाये इसिलए ःवयंसेवक ने ौी गु जी को कसी अ य सुर

ःथान पर चलने क सलाह द । इस पर ौी गु जी ने जो उ र दया वह उनक अंतःकरण क थाह दे नेवाला है । बाहर इतना ू ोभजनक उ माद वातावरण होने के

बावजूद ौी गु जी के मन को अपनी सुर ा का वचार य कंिचत भी ःपश नह ं कर

पाया। उ ह ने अपना सवःव समाजपु ष के अधीन कर दया था। उ ह ने कायकताओं से कहा, “ऐसा दखाई दे ता है क चहँु ओर क प र ःथित और संकट को दे खकर आप

सारे वचिलत हो उठे ह। आपके मन व ु ध ह। अतः यह उिचत होगा क आप सब

लोग यहाँ से जाय और मुझे शांितपूवक यह ं रहने द। मेर िचंता आप जरा भी न कर। आपका आमह है क म यहाँ से अ यऽ चलू,ँ पर

य ? आज तक जस समाज

के िलए म काय कर रहा हँू , अगर वह मुझे नह ं चाहता तो म कहाँ और

य जाऊं?

जो कुछ होना होगा होने द जये। अब मेर सं या का समय हो गया ह आप सभी

यहां से अपने-अपने घर लौट जाय।” इतना कहने के बाद ौी गु जी सं या करने के िनिम

भीतर के कमरे म चले गये। क तु जैसी क कायकताओं को आशंका थी,

ऐसा कोई उपिव फर नह ं हो पाया

य क ौी गु जी के िनवास ःथान पर पुनः

पुिलस का पहरा लग चुका था और हमलावर के िलये ौी गु जी के िनवास ःथान क ओर जाना असंभव हो गया था। दोपहर के समय कुछ उपिवका रय ने रे शीमबाग नवयुग ूवतक ौी गु जी

९०


ःथत डॉ टर जी क समािध को

ित पहँु चाई थी। जन डॉ टर जी ने रा

और

ह द ू समाज के उ कष के िलये हँ सते-हँ सते अपना सारा जीवन होम कर दया था

उ ह ं क समािध पर मृ यु के आठ वष बाद कुछ नासमझ ह द ू ब धुओं ने पाशवी हमला कया था।

ौी गु जी के घर पर पुिलस पहरे का अथ द. १ फरवर क म यरा ऽ के बाद ःप

हआ। ौी गु जी रात के १२ बजे तक जाग रहे थे। कहाँ ु

या हआ ु , ःवयंसेवक पर

कैसे-कैसे अ याचार हए ु , इसक जानकार उ ह िमलती रह । शायद वे और कसी

घटना क िचंता म म न थे। जो कुछ घटनाएँ हो रह थीं उनसे वे यिथत तो थे ह । म य रा ऽ के बाद पुिलस क गाड़ उनके मकान के सामने आकर

नाम िगर तार का वारं ट जार

क । ौी गु जी के

कया गया था और रा ीय ःवयंसेवक संघ के

सरसंघचालक को गांधी जी क ह या के आरोप म िगर तार कर िलया गया। इस आरोप को सुनकर ौी गु जी हँ से क तु जरा भी अःवःथ नह ं हए। अ यंत ु

शांितपुवक वे उस पुिलस अिधकार के साथ कारागृह म जाने के िलए तैयार हो गये। वहाँ उप ःथत कायकताओं से वदा लेते समय उ ह ने कहा, “संदेह के बादल छँ ट जायगे और िनंकलंक होकर हम बाहर िनकलगे। तब तक अनेक ूकार के अ याचार ह गे। उ ह अ यंत संयम के साथ सहन करना होगा। मेरा यह व ास है क संघ के ःवयंसेवक इस अ न-पर

ा म िन

प से खरे उतरगे।”

पुिलस क गाड़ चल पड़ । भारतीय दं ड सं हता क धारा ३०२ और १२० के अ तगत

िगर तार ौी गु जी जेल के सींकच म बंद कर दये गये। स ा का ःवाथ जब अिनयं ऽत हो उठता है तब कतनी ववेकशू यता िनमाण होती है तथा

याय और

ई र को पैर तले कुचलने का मोह संवरण करने क सूझ भी नह ं रह पाती, इसका ःवाधीनता ूाि

के आरं िभक काल का यह जीता जागता उदाहरण है । ौी गु जी क

िगर तार क खबर हवा क तरह सवऽ फैलते दे र नह ं लगी। संघ के सरकायवाह ौी

भै याजी दाणी ने सभी शाखाओं को तार भेजकर सुिचत कया क गु जी को

िगर तार कर िलया गया है । हम हर ःथित म शांित और संयम का प रचय दे ना चा हए। (गु जी, इन ्-ट ड, बी काम एट ऑल काःट) इसके बाद सरकार क ओर से संघ के व

कुछ और कदम उठाये गये। द.२

फरवर को के ि सरकार ने संघकाय को अवैध घो षत करने वाला अ यादे श जार कया। के ि सरकार के इस प रपऽक म संघ पर हं सा मक कायवाह करने के आरोप लगाये गये और कहा गया क- “ हं सा के इस उम आ वंकार का कड़ाई से िनयंऽण

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९१


करना सरकार अपना कत य मानती है । इस कत य क पूित के ूथम पग के

प म

संघ को अवैध घो षत कया जा रहा है ।” बाद म ४ फरवर को स पूण दे श म संघ पर ूितब ध लगाये जाने क अिधकृ त घोषणा भी कर द गई। दे श भर म संघ के कायकताओं और ःवयंसेवक क िगर ता रय का दौर चला। तीस हजार से अिधक िगर ता रयां क गई। इस समय

सारे दे श का वातावरण संघ- वरोधी अफवाह , अनगल आर पो तथा वकृ त वष-वमन

ु से भरा जा रहा था। संघ को ख म करने क भाषा सवऽ छटभै ये नेता भी बोलने लगे

थे। इस सीमा तक अफवाह फैलायी ग

क “गु जी का गांधी-ह या म ू य

हाथ

था। मुब ं ई म हई ु िशना त म मदनलाल ने गु जी को पहचान िलया!” कारागार म ौी गु जी को यह समाचार

ात हो चुका था क संघ पर ूितब ध लगा दया गया है ।

द. ५ फरवर को जब उनके वक ल िमऽ ौी द ोपंत दे शपांडे उनसे िमलने गये तो ौी

गु जी ने उनके पास संघ को वस जत कये जाने स ब धी व और कहा क वे इसे ूकािशत करा द। इस व

य िलखकर दया

य म ौी गु जी ने िलखा था- “ूारं भ

से ह रा ीय ःवयंसेवक संघ क यह नीित रह है क सरकार िनयम का पालन करते हए ु ह अपने कायबम कये

जाय। इस समय सरकार ने उसे अवैध घो षत कर दया है , अतः म यह उिचत

समझता हँू क ूितबंध हटाये जाने तक संघ को वस जत कर दँ ।ू तथ प सरकार ने संघ पर जो आरोप लगाय ह उ ह म पूणतया अःवीकार करता हँू ।”

ौी दे शपांडे ने संघ को वस जत कये जाने स ब धी ौी गु जी के आदे श को सवऽ तार

ारा सूिचत करने का ूयास कया। कंतु ये सारे तार नागपुर म ह रोक िलये

गये। फर भी अ य माग से यह आदे श सवऽ पहँु चाया गया और संघ वसजन का समाचार वृ -पऽ म छप गया। इससे भी मजेदार बात यह है क संघ का वसजन

स ब धी समाचार सवूथम ६ फरवर को पा कःतानी अखबार ‘डान’ म ह ूकािशत हआ। बाद म भारत के अखबार ने उसे ूकािशत कया। इस समय कुछ लोग ने ु

समझा क संघ समा क संघ का रा

हो गया। संघ वरोिधय ने यह जानकर चैन क साँस ली होगी

यापी संगठन दफना दया गया है । क तु ौी गु जी क गांधी

ह याका ड म आरोपी के

प म िगर तार एक सरासर मूखतापूण कृ य है इसका

अनुभव सरकार को होते दे र नह ं लगी। ौी गु जी से पूछताछ के िलए त कालीन ड .आई.जी. ह राच द जेल म पहँु चे और जेलर साहब से ौी गु जी को उप ःथत करने

को कहा। ह या और ष यंऽ क धाराओं म िगर तार के कारण ौी गु जी काफ

घबड़ा गये ह गे, ऐसा मानकर उन पर रौब जमाने के िलए वशालकाय ड .आई.जी.

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९२


महोदय टे बल पर जूत स हत पैर रखकर बैठ गये और िसगरे ट फूँकने लगे। ौी

गु जी को जब लाया गया तब उनको दे खकर ड .आई.जी. महोदय ने ताना कसा“ओहो, आप ह गु

गोलवलकर ह! आप सरसंघचालक ह! आप तो बड़े दबले ु -पतले

ू ह।” ौी गु जी ने छटते ह उ र दया- “डा टर हे डगेवार ने सरसंघचालक का कोई

आकार-ूकार िन

त नह ं कया था अ यथा आपको या कसी भसे को सरसंघचालक

के पद पर बठा दे ते।” ौी गु जी का िनभयतापूण हथौड़ामार उ र सुनकर अिधकार महोदय एकदम च के और अपने दोन पैर नीचे उतारकर जेलर साहब से कहने लगे- “अरे जेलर साहब, गु जी के िलए कुस लगाइए।” ौी गु जी के बैठने के बाद ड .आई.जी. महोदय ने पूछा क “गु जी, महा मा गांधी क ह या के बारे म आप

या जानते ह?” ौी गु जी

ने कहा “म आपको

य बताऊँगा? जो कुछ बताना होगा अदालत म बताऊँगा और

अदालत म पं. नेह

और सरदार पटे ल को भी हा जर करवाऊँगा।” तब तक सरकार

भी जान चुक थी क ौी गु जी को या संघ को इस कांड़ म घसीटने का ूयास करने से अपने को अदालत के सामने मुह ँ क खानी पड़े गी। इसिलए सरकार ने ७ फरवर को ह उन पर से गांधी ह या संबंधी अिभयोग अकःमात ् वापस ले िलया और उ ह ह या का ष यंऽकार न मानकर साधारण ःथानब

बंद ह माना जाने लगा। सुर ा-

कानून के अंतगत ६ माह क नजरबंद का नया आदे श सरकार ने जार

९.४ कारागार बना

यान मं दर

कारागार म ौी गु जी क मन ःथित अ यंत शांत थी। ःथानब अिधकार

कया।

कैद के नाते अपने

या ह और कौन सी सु वधाएं माँगी जा सकती ह, यह वचार उ ह ने कभी

मन म नह ं लाया। ूारं भ म कई दन तक उ ह अखबार भी उपल ध नह ं कराये

गये। आगे चलकर वह सु वधा द गई। क तु कारागृह के वाःतव के दौरान अखबार पढ़ने के ूित उनका कभी कोई लगाव नह ं रहा। उसी ूकार ूारं भ म कई दन तक जेल म केवल एक दर , एक चादर और दो क बल से ह उ ह ने अपना काम चलाया। कभी कसी वःतु क मांग नह ं क । सहज िमलनेवाली वःतुओं म ह उ ह ने संतोष माना। एक बार उनका चँमा खराब हो गया तो उ ह पढ़ने म क

फलःव प उ ह िसरदद क

दोने लगा।

बमार लग गई। क तु उ ह ने जेल अिधका रय से न

तो चँमा द ु ःती क मांग क और न ह िसरदद क िशकायत। कारागृह म अपने

कमरे म और आसपास के प रसर म वे अ यंत ःव छता बनाये रखते थे। कागज के ु टकड़े को भी इधर-उधर नह ं िगरने दे ते थे। अपनी सेवा के िलए तैनात कैद को भी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९३


उ ह ने ःव छता का पाठ िसखाया। अपने से पहले वे उसी को नहलाते थे। अ य

कै दय और पहरे दार के साथ भी उनका यवहार आ मीयता पूण होता था। वे उनक घरे लू बात म

ची लेते थे। कारागृह के एकांतवास म उ ह कोई क ठनाई अनुभव

नह ं हई। ब क इसके वपर त पूवकाल म सारगाछ आौम के वाःत य म जस ु तरह

यान-धारणा, उपासना, अ या म मंथ के पठन म वे अिधकांश समय बताया

करते थे वह अवसर ठ क ११ वष बाद सरकार क कृ पा से उ ह ूा

कारागृह म उनक ूात विधसे िनवृ

हआ था। ु

दनचया कुछ इस ूकार होती- वे ूातः ५ बजे जाग उठते,

हो कर कमरे म टहलते हए ु गीता का पाठ करते और त प ात ् वे

कुछ घंटे सं या-वंदन,

यान-धारणा आ द म बताते और भोजन के समय तक

ाने र , तुकाराम क गाथा, वा मी क रामायण और तुलसीकृ त रामच रतमानस, महाभारत, दास-बोध आ द मंथ का पठन करते। ःनान से पूव वे िन य योगासन करते और अपने सहयोिगय को भी यह सब िसखाते क तु उ ह स चा आनंद तो यान-धारणा म ह िमलता। उनक

यान-धारणा के स ब ध म वातालाप के दौरान

ौी अ पाजी जोशी ने बताया क “ौी गु जी को

यानम न अवःथा म बैठे मने ःवयं

अपनी आंख से दे खा है । उस समय उनक मुिा अ यंत ूस न होती और ऐसा ूितत होता मान वे समािध-सुख के सागर म डू ब गये ह । उ ह िन य ह ई र का सा ा कार हआ था। यह तो डा टर जी के सहवास का चम कार था जो उ ह उस ु य

गत सुख के आकषण से हटाकर रा

औप समाज क सेवा म जीवन सम पत

करने के िलए बा य कर सका। संघ का यह मह ौी गु जी

भा य था।”

यान धरणा के समय जस तरह पालथी मारकर एकामिच

से बैठा करते,

उसी तरह वे पढ़ते समय भी बैठा करते । उ ह लेटकर या चहल-कदमी करते हए ु पढ़ते कभी कसी ने दे खा नह ं। ःथानब ता के इस कालख ड म ौी गु जी

ई रिचंतन से शेष समय म मन ह मन विभ न संघ शाखाओं तथा वहाँ के ःवयंसेवक का िचंतन-ःमरण करते। इस स ब ध म ौी गु जी ने ःवयं अपने एक भाषण म इसका उ लेख करते हए ु बताया था क - “मुझे चहारद वार म जाकर

बैठना पड़ा। वहाँ म अकेला था। मेरे सामने ूित दन २४ घ टे होते थे। इनम से कई घ टे म एक-एक ःथान को याद करने, वहाँ के ःवयंसेवक के चेहर को अपनी ओख के स मुख लाने तथा मान बैठक म म उनसे प रचय कर रहा हँू , इस ूकार के

का पिनक िचऽ दे खने म खो जाता था। इस ूकार अ य होता है । मेरे अंतःकरण को भी

कर म इ

का िचंतन

लेशकारक

लेश हआ क तु भावनाओं के इस संघष क उपे ा ु

कत य को ह करता रहा।” संघकाय और ःवयंसेवक के साथ त मयता

का यह अ -भुत उदाहरण है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९४


कारावास म भी ौी गु जी का आ म व ास अद य रहा। द. १५ फरवर के बाद ौी अ पाजी जोशी, बाबासाहे ब घटाटे , ब छराज़ यास, बापू साहब सोहनी आ द ूमुख

कायकताओं को भी उनके साथ लाकर रखा गया। एक बार कसी ने उनसे पूछा- “संघ का काय तो हम लोग ूामा णकता से और वशु पर यह संकट

य आया?”

इस पर ौी गु जी का उ र था- “संघ क श श

भावना से करते ह, फर भी हम

के कारण ह यह संकट आया है और

के ूभाव से ह वह दरू हो जायेगा। संकट क इस कसौट पर य द संघ खरा

उतरता है तो उसक अिधक उ नित होगी।”

उनके इस आ म व ास का दशन एक और उ र से िमलता है । म य ूदे श के कारागृह म ःथानब

अनेक ःवयंसेवक ने अपनी िगर तार के व

उ च

यायालय म ‘बंद ू या ीकरण’ यािचका दायर क । िगर तार के जो कारण सरकार क ओर से ूःतुत कये गये वे िनराधार होने के कारण उ च यायािधश ने उनक ध जयां उड़ाई। ःवयंसेवक क

यायालय के

रहाई का बम चल पड़ा। तब

ौी गु जी के सािथय ने उनसे भी आमह कया क वे ‘बंद ू या ीकरण’ यािचका ारा अपनी रहाई करवा ल परं तु ौी गु जी ने ःप

श द म ऐसा करने से इ कार

कर दया। उ ह ने कहा, “ ज ह ने मुझे िगर तार कया है वे ह जब उ ह उिचत ूतीत होगा ःवयं मुझे रहा करगे। अपनी र हाई के िलये म ःवयं कोई ूय

नह ं

क ँ गा।”

९.५ ‘ वःतृत कारागार’ ६ अगःत १९४८ को उनक िगर तार क अविध समा इसम संदेह था क सरकार उनको रहा करे गी

हो रह थी, परं तु फर भी

य क सरकार य द चाहे तो ६ मास

क अविध और बढ़ा सकती थी। कंतु सरकार क ओर से ऐसा कोई ूयास नह ं हआ ु और आ खर ौी गु जी िनधा रत समय पर रहा कर दये गये और वे पुनः नागपुर

ःथत अपने घर लौटे । यह समाचार पाकर सवऽ ःवयंसेवक और संघ के शुभिचंतक

म आनंद छा गया। अब यह आशा ूकट होने लगी क संघ पर ूितबंध हटावाने का कोई माग िनकाला जायेगा। क तु यह आनंद और आशा अ पकािलक िस य क ौी गु जी क

हई ु

रहाई के तुरंत बाद ह समाचार िमला क सरकार ने उनक

गित विध पर कड़े बंधन लगा दये ह जो इस ूकार थे-

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९५


(१) वे नागपुर नगरपािलका क सीमा के भीतर रह तथा जलािधकार क अनुमित के बना बाहर न जाय। (२) कसी सभा म भाषण न द। (3) कसी भी दै िनक, सा ा हक या मािसक पऽ म जलािधकार क अनुमित के बना ू य

या परो

प से कुछ भी न िलख।

(४) ूा तीय या के ि य सरकार के ूित असंतोष उ प न करनेवाली कोई कारवाई ू य

वग म

या परो

प म न कर तथा ऐसे य

य से स ब ध भी न रख। विभ न

े ष या शऽुता उ प न करके शांित भंग न कर।

सरकार के उ

आदे श पर अपनी ूित बया य

करते हए ु ौी गु जी ने केवल इतना

कहा क “मेर

रहाई से यह हो पाया है क अब म बड़े कारागृह म आ गया हँू । मेरे

िलए कारागृह क द वार अिधक वःता रत कर द गई ह ( only my prison walls

have been extended)।” सरकार गु जी मुःकराए

ारा लगाई पाबं दय म चौथी पाबंद को पढ़कर ौी

य क उसम सरकार के ूित असंतोष उ प न करनेवाले य

य से

स ब ध न रखने क बात कह गयी थी। इस शत म िछपी हाःयाःपदता क ओर यान खींचने के िलये उ ह ने एक पऽ िलखकर सरकार से मांग क

ूित ू य

या अू य

क “सरकार के

ऐसी कारवाईयाँ करनेवाल क सूची मेरे पास भेजी जाए

ता क उनके साथ स ब ध न रखने म सु वधा हो।” इन शत म संभवतः भूल से ह ‘ कसी को पऽ भी न िलख’ क शत िलखना रह गया

था। उसी का लाभ उठाकर ौी गु जी ने ११ अगःत को ूधानमंऽी पं. नेह

तथा

सरदार व लभभाई पटे ल को पऽ िलखकर संघ पर लगाये अकारण ूितबंध पर अपनी िच ता य

क । ौी गु जी ने पं. नेह

के नाम िलखे अपने पऽ म कहा- “यह स य

है क म उस समय यह नह ं समझ पाया क म तथा मेरे असं य िमऽ िगर तार तथा नजरबंद

कये गये। म बाद म क गई उस कायवाह को भी नह ं समझ

पाया जो उस संगठन के स ब ध म क गई जसका म ूितिनिध व करता हँू । म

कई बार ूकट कये गये इस तक से अपने को समझाने का ूय

करता हँू क

अ य त असाधारण प र ःथित के फलःव प वह असंयिमत कायवाह क गई। म इस बात पर व ास नह ं करना चाहता क उ च तथा उ रदायी पद पर ःथत य उ े जत हो सकते ह, ज दबाजी कर सकते ह और मानिसक स तुलन खो सकते ह। कंतु यह िनंकष मुझे बा य हो कर ःवीकार करना पड़ा है

य क छः म हने क

नजरब द क अविध के बाद जब बहत ु से ऐसे ूमाण ूकाश म आ चुके ह जो मुझे या मेरे काय को उन सारे ग भीर आरोप से दोषमु नवयुग ूवतक ौी गु जी

करते ह जो हमारे म थे मढ़े

९६


गये थे अब मेरे व

एक आदे श जार

कया गया जसके

ारा मुझे नागपुर म ह

रहने के िलए बा य कर दया गया।” म सवश

मान ् परमा मा का कृ त

हँू क उसने मेरे मन को कलु षत होने नह ं दया

और म अपने ःनेह, सौहाद तथा आ मीयता क भावना से प रपूण हँू । मुझे आशा

और व ास है क मेरे पुराने सहयोगी कायकताओं क भी यह भावनाएँ ह गी। म

ःनेह के इस संदेश को सभी तक पहँु चा दे ता और सभी से यह कहता क वे क यथा क भावना से

और

दय को मिलन न होने द। कंतु मेरे ऊपर लगाये गये इन

ूितब ध ने मुझे इस आवँयक कत यपालन से रोक दया है । इन अ याय-पूण ूितबंध म डाले जाने के ःथान पर य द मुझे अपनी ःथित ःप

करने और इस

संकट के समय सरकार के साथ सहयोग और ूेम क मेर भावना का आपको व ास दलाने का अवसर दया गया होता तो म उसे उिचत समझता। अपने-अपने राःते पर

चलते हए ु भी हम सब भारत माता क सेवा म एक प हो सकते ह। “इस अविध म हम सदा के िलए हा दक मैऽीपूण स ब ध क आशा कर और उसके बीच कुछ मह न के वे भयंकर दः​ःव न न आने द जो हमारे पारःपा रक ूेम म ु

ु कटता उ प न कर सक।”

९.६

याय क माँग

सरदार पटे ल के नाम िलखे पऽ म भी इसी ूकार ःनेहमय सहयोग क भावना य क गई थी। क तु िसत बर क २४ तार ख तक न तो नेह

क ओर से ह कोई पऽो र ूा

जी से न सरदार पटे ल

हआ। इसिलये द. २४ िसत बर को ौी गु जी ने ु

पुनः दोन के नाम पऽ भेजे। इस कालाविध म भारत सरकार ने है दराबाद के भारतीय संघ म वलय का ू

सफलता से हल कर िलया था। अपने पऽ के ूारं भ म ह इस

घटना का गौरवपूण उ लेख कर ौी गु जी ने पं. नेह

से

याय क सीधी-सीधी माँग

क थी। इस स ब ध म उ ह ने अपने पऽ म िलखा- “संघ पर ूितबंध लगाए लगभग आठ मास यतीत हो चुके ह तथा इस वषय पर सब ूकार क छानबीन क जा

चुक है । मुझे व ास है क अब आपको भलीभाँित अनुभव हो गया होगा क संघ पर लगाये गये आरोप िम या तथा िनराधार ह। अतएव यह वषय तो अब केवल का ह ू

है और अपनी सरकार से

याय

याय क आशा करना हमारा अिधकार है ।” इसी

पऽ म क युिनःट क कु टल एवं हं सक गित विधय क चचा करते हए ु ौी गु जी

ने िलखा- “संघ वस जत कये जाने के कारण इस बीच के समय म बु मान

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९७


नवयुवक क युिन म के जाल म फँसते जा रहे ह। ॄ ा, ह द चीन, जावा तथा

पड़ोस के दसरे रा य म भी कुछ आतंकपूण घटनाएँ हई ू ु ह, उनसे इस आगामी

वभी षका क क पना क जा सकती है । इस संकट का सु ढ़ ूितरोधक संघ आज व मान नह ं है । क युिनःट ने संघ को अपने पथ का सबसे बड़ा रोड़ा समझा और

इसीिलए वे सदा उसके व शा तिच

वषवमन तथा कु सत ूचार करते रहे । आशा है आप

से इस समःया पर वचार करगे और ऐसा वायुमड ं ल िनमाण करने म

सहायक ह गे जसम संघ अपने सांःकृ ितक आधार पर स मानपूवक काय करता हआ ु इस नई वभी षका का मुह ँ तोड़ने म सरकार का हाथ बँटा सके। संघ पर लगाये गये

आरोप को असं द ध

प से वा पस लेने से ह वैसा वातावरण िनमाण हो सकता है ।”

सरदार पटे ल के नाम िलखे अपने पऽ म भी ौी गु जी ने क युिनःट संकट का

उ लेख करते हए ु पऽ के अंत म िलखा क “केवल प र ःथित क पुकार सुनते हए ु

आप िनणय ल। म और मेरे सब साथी प र ःथित को काबू म लाकर अपने दे श को अजेय बनाने के िलए आपसे सहकाय करने के िलए पहले से ह ूय शील ह।”

इसके बाद पं. नेह

और सरदार पटे ल दोन के पऽ आये। सरदार पटे ल का पऽ ११

अगःत के पऽ के उ र म था तो पं. नेह

का पऽ २४ िसत बर के पऽ के जवाब के

प म था। सरदार पटे ल ने अपने पऽ म िलखा-

“रा ीय ःवयंसेवक संघ ने संकट

काल म ह द ू समाज क सेवा क इसम कोई संदेह नह ं। ऐसे सहायता क आवँयकता थी, संघ के नवयुवक ने

ेऽ म, जहाँ उनक

य तथा ब च क र ा क तथा

उनके िलये काफ काम कया। क तु मुझे व ास है क संघ के लोग अपने दे शभ

पूण काय को कांमेस के साथ िमलकर ह कर सकते ह, अलग रहकर या

वरोध करते हए ु नह ं। जहाँ तक आप पर लगे ूितबंध का सवाल है म म य ूा त

क सरकार से पूँछ-ताँछ कर रहा हँू ।”

यह जानना रोचक होगा क है दराबाद म क गई कायवाह के िलए ौी गु जी ूे षत अिभन दन के िलए उ ह ध यवाद दे ते हए ु सरदार पटे ल ने आगे

ारा

या कहा?

उ ह ने कहा क “हमारा असली काय तो अब ूारं भ हआ है । हम शता दय क हािन ु

क भरपाई करना है । हम कोई संदेह नह ं क इस कायवाह के समान ह उस काय म भी आप जैसे िमऽ क स द छा एवं स -भावना हम ूा नेह

होती रहे गी।”

जी ने अपने पऽ म िलखा क- “संघ सा ूदाियक है । संघ के नेता जो कुछ

बोलते ह, वह कृ ित म दखाई नह ं दे ता।” इस पऽ म संघ पर लगाये गये आरोप के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९८


िनराधार और झुठे िस

होने तथा संघ पर से ूितबंध हटाये जाने संबंधी ौी गु जी

क मांग का कोई उ लेख नह ं था। दे श के अनेक ूमुख तथा वचारशील नाग रक भी यह अनुभव करने लगे थे क संघ के साथ अ याय हआ है । संघ- वरोधी तूफान थम चुका था और संघ के िनद ष होने ु

क बात तथा संघ क दे शभ

और

याग भावना क ूशंसा भी खुलकर करने के

िलये लोग सामने आने लगे थे। दे श हत का वचार करने वाले िनंप

लोग सरकार

को संघ पर से ूितबंध हटाने क सलाह दे ने लगे। संघ पर लगी पाबंद हटाने क मांग को लेकर रा पित और ूधानमंऽी के नाम लाख पऽ भेजे गये। कारण चाहे जो ू हो, १३ अ टबर को सरकार ने ौी गु जी क गित विधय पर लगाई गई सार

पाबं दयाँ हटा लीं। ौी गु जी नागपुर से बाहर जा सकते थे। उ ह ने तय कया क राजधानी द ली म जाकर सरकार के ूमुख के साथ ू य

वातालाप कर संघ पर

ू हए को द ली पहँु चे। ु अ याय का िनराकरण कराया जाए। अतः वे द. १७ अ टबर

द ली आगमन पर हजार नाग रक ने उनका भ य ःवागत कया। ौी गु जी द ली

आ रहे ह, यह वाता कसी भी अखबार म ूकािशत न होने के बावजूद द ली रे वे ःटे शन पर उनका उ ःफूत एवं भ य ःवागत हुआ। यह वाःतव म इसी बात का

ोतक था क अपूचार और िनंदनीय आरोप के बावजूद ौी गु जी और संघ के ूित

लोग के ूेम और ौ ाभाव म कोई कमी नह ं आयी थी। ःवाभा वकतया अब सबक नजर द ली क घटनाओं क ओर लगीं। द ली के

वाःत य म पहले ह

दन १७ अ ू बर को ौी गु जी ने गृहमंऽी सरदार पटे ल से भट

क । यह चचा अपूण रहने के कारण २३ अ ू बर को दबारा भट क गई। इन दोन ु

मुलाकात म सरदार पटे ल का यह आमह रहा क “संघ कांमेस म विलन हो जाए।” ौी गु जी ने ःप

श द म इसे अःवीकार कर दया। तब ौी पटे ल ने ूा तीय

सरकार के साथ वचार- विनमय करने क आवँयकता बताते हए ु कुछ और समय

माँगा और अपने मुब ं ई ूवास पर चले गये। ौी गु जी ने नेह जी व सरदार पटे ल के साथ अपने वातालाप व पऽ यवहार म यह भूिमका ली क चूँ क के ि सरकार ने ह संघ पर ूितबंध लगाया है और चूँ क संघ पर लगाये गये सारे आरोप झूठे और िनराधार िस

हए ु ह, अतः यह के ि सरकार का दािय व है क वह या तो संघ पर

से ूितबंध हटाए या

यायालय म आरोप िस

पर अड़े रहे और मूल ू

करे । दोन प

अपनी-अपनी भूिमका

बना हल िनकले अधर म लटका पड़ा रहा।

यायूाि

के

िलये ौी गु जी द ली म ह जमकर बैठे। उनके इस द ली िनवास म द ली, पंजाब, उ र ूदे श, राजःथान आ द से भार सं या म ःवयंसेवक आकर गु जी से

नवयुग ूवतक ौी गु जी

९९


िमलने लगे। संघ के बाहर के य ौी गु जी से िमलकर यह ू

भी आकर गु जी से भट करने लगे। पऽकार भी

पूछते क संघ अब कौन सा कदम उठने जा रहा है ?

इस बीच ३० अ ु बर को सरदार पटे ल ने अचानक ौी गु जी के पास मौ खक संदेश िभजवाकर सुिचत कया क “इससे आगे वचार विनमय संभव नह ं, अतः आप नागपुर वापस चले जाय।” इस संदेश का अथ समझने म ौी गु जी को दे र नह ं

लगी। सरकार संघ पर पाबंद का ू

अधर म लटकाये रखने क नीित अपनाए हई ु

थी। अतः अब सावजिनक तौर पर कुछ हलचल ूारं भ करने क आवँयकता िनमाण हई। ौी गु जी द ली छोड़ने के िलए कतई तैयार नह ं थे। उ ह ने २ नव बर को ु द ली म ह एक पऽकार-प रष

आमं ऽत क और संघ पर लगाये आरोप का

िनराकरण करने वाले दो वःतृत पऽक ूकाशनाथ दये। संघ को राजनीितक दल म पांत रत करने का ू

ु उ ह ने ःप तः ठकरा दया। प वऽ सांःकृ ितक

ेऽ म

कायरत संगठन को बना कसी बाधा के काम करने क सु वधा िमलनी चा हये, यह आमह भी उ ह ने कया। ौी गु जी ने अभी तक

याय-ूाि

क आशा नह ं छोड़ थी

ु और इसिलये उ ह ने द ली छोड़ने क सरकार सलाह भी ठकरा द थी। द. ३ नव बर से १३ नव बर तक पूरे दस दन द ली म ह रहकर ौी गु जी ने सरकार क

यायबु

जागृत करने का भरसक ूयास कया। ूधानमंऽी पं. नेह

और

गृहमंऽी सरदार पटे ल द ली लौट आये। ौी गु जी ने उनके साथ पऽ यवहार जार रखा। द. ३.११.४८ को पं. नेह

को िलखे पऽ म सरकार को उपल ध संघ- वरोघी

तथाकिथत ूमाण को चुनौती दे ते हए ु उनसे भट के िलये समय माँगा। इन पऽ म

ौी गु जी के श द म अब कुछ अिधक तीखापन नजर आने लगा था। बाद म

दनांक ५ नव बर को ौी गु जी ने सरदार पटे ल के नाम भी एक वःतृत पऽ भेजा। इस पऽ म संघ पर लगी पाबंद उठाए जाने के स बंध म सरकार रवैया अपनाए जाने तथा संघ ःवयंसेवक के धीरोदा

ारा टालमटोल का

संयम का उ लेख तो है ह

क तु सरकार क ओर से क गई अपे ा-भंग क गहर वेदना भी झलकती है । इस

बात का उ लेख करना इसिलए मह वपूण ूतीत होता है क खं डत मातृभिू म को ःवतंऽता ूा

होने के बाद दे श को मजबूत नींव पर खड़ा करने के िलये दे शूेम क

खाितर ौी गु जी ने अपने अंतःकरण म कतनी वशालता धारण क थी, इस पर उ कृ

ूकाश पड़ता है । ौी गु जी के श द ह उनके अंतःकरण क

वशालता का बोध

कराते ह। उनके श द ह- “दे श क नाजुक अवःथा को दे खकर और उ के िनमाण के िलए वघटन न

करने क आवँयकता को

वल भ वंय

म रखकर मने शांतता

से चलने क सब ःवयंसेवक ब धुओं को सूचना द और शा तमय माग से समझौता नवयुग ूवतक ौी गु जी

१००


हो इस िनिम

ूय

कया। राजनैितक

शासना ढ़ संःथा कांमेस और सांःकृ ितक

ेऽ म काय म और वतमान काल म ेऽ म असामा य ब धुभाव,

ढ़ रा ूेम

तथा ःवाथशू यता को िनमाण करने म सफलता पाने वाला रा ीय ःवयंसेवक संघ इनके बीच म वैमनःय न हो, वे परःपर पूरक ह और इनका कह ं प वऽ िमलन हो इसिलए मने अपनी पूर श

से ूय

कया। सहकाय का हाथ आगे बढ़ाया। मुझे

अ यंत दःख से कहना पड़ता है क मेर स -भावनाओंक आपक ओर से उपे ा क ु

गई। दोन ूवाह के संयोग क मेर ईचछा अतृ

ह रह है । हो सकता है क परम

क णामय परमा मा मेरे िलए कसी अ य माग क ओर संकेत कर रहा हो और संभवता उसी म इस दे वभूिम भारतवष के भा योदय के बीज ह ।” आज जब पछे मुड़कर दे खते ह तो ऐसा लगता है क काश! दो ूवाह का यह संगम,

यह िमलन उस समय हो पाता तो? ौी गु जी क अपे ा सफल हो पाती तो? क तु क पना करने से

या होगा? ौी गु जी

ारा ‘वयं पंचािधकं शतम ्’ क भावना से

आ मीयतापूण सहयोग का आगे बढ़ाया हआ हाथ नेह -पटे ल जैसे द गज के ु नेत ृ ववाली सरकार ने अ वचार वृ

ु से ठकरा दया और ौी गु जी को दसरा पृथक् ू

माग अपनाने के िलये ववश कर दया। इस अलग माग को अपनाने से पूव एक बार पुनः स ा ढ़ उ च पदःथ नेताओं से खुले दल से वातालाप करने क इ छा भी ौी

गु जी ने य

क । क तु पं. नेह

और पटे ल दोन ह इसके िलये तैयार नह ं हए। ु

द. ८ व द. १२ को ौी गु जी ने पुनः पं. नेह

के नाम दो पऽ और द. १३ को

सरदार पटे ल के नाम एक पऽ िलखा। क तु सरकार क ओर से बार-बार यह रट लगाई जाती रह

क ‘पाबंद हटाना संभव नह ं है । ःवयंसेवक का यवहार नेताओं क

नीित से मेल नह ं खाता। अतः भटवाता से कोई लाभ नह ं होगा। ौी गु जी को

त काल नागपुर वापस लौट जाना चा हये।’ द. १२ को सरकार क ओर से ूसा रत एक ूेस नोट म तो यहां तक धमक द गई क अगर ौी गु जी नागपुर वापस नह ं जायगे तो उ ह िगर तार कर िलया जायेगा।

९.७ सरकार क अ याचार नीित ौी गु जी भी यह जान चुके थे क सरकार क ओर से सारे दरवाजे ूायः बंद हो चुके ह और अगर वे द ली न छोड़ने के अपने िन य पर डटे रहे तो उनक िगर तार कसी भी समय हो सकती है । इस बात म संदेह क कोई गुंजाइश नह ं रह थी क वातालाप से हल िनकालने और

याय ूा

करने का पव अब समा

हो चुका है ।

ु अतः शांितपूण माग से सरकार ूितबंध के आदे श को ठकराकर पुनः कायारं भ करना

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०१


होगा। इसक क पना भी ौी गु जी ने कायकताओं को दे द । इतना ह नह ं तो

ःवयंसेवक के नाम एक खुला पऽ भी उ ह ने िलखकर तैयार रखा। साथ ह सवऽ ूसा रत करने के िलये एक संदेश भी अपने ह हाथ िलखकर रखा। द. १३ को ह रा ऽ म पुिलस क गाड़ लाला हं सराज गु

के िनवास ःथान पर पहँु ची और ौी

गु जी को िगर तार कर ले गई। आ य क बात तो यह है क ःवतंऽता आंदोलन के समय जस कानून को ‘काला-कानून’ कहा जाता था, उसी १८१८ के ‘बंगाल ःटे ट ूजनस ए ट’ का सहारा ःवतंऽ भारत क के ि म ःथत कांमेस सरकार ने

मातृभिू म के एक महान ् सेवक को िगर तार करने के िलए िलया! ौी गु जी को वमान से नागपुर लाकर नागपुर के कारागृह म रखा गया।

सरकार क इस कृ ित के कारण परःपर वातालाप से हल िनकालने का माग बंद हो

गया और संघ क ओर से रा

याय ूाि

के िलये ूितबंध- वरोधी स यामह का

यापी आंदोलन अप रहाय हो गया। *

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०२


नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०३


१० स यामह-पव क साथक फलौुित द ली-वाताएँ वफल हो गई और संघ के व

याय क माँग जानबूझकर उपे

त क गई और

अपूचार करने का बम जार रहा। तब संघ के पास स य का आमह

लेकर आगे बढ़ने के िसवा और कोई चारा नह ं था। ौी गु जी ने ःवयंसेवक के नाम िलखे एक वःतृत पऽ म द ली-वाताओं क समूची पृ भूिम ःप संःथागत अहं कार अथवा य

गत ूित ा के िलए कुछ करने का भाव जरा भी ूकट

नह ं हआ ु , ब क हम जो भी करने जा रहे है वह वशु हत म ह है यह

वचार य

क । इस पऽ म भी

दे शूेम क भावना से दे श-

कये ह। उस पऽ म उ ह ने कहा, “िनरं कुश उ पीड़न

के आगे घुटने टे कना ःवत ऽ भारत के नाग रक के स मान के ूित अपमान है और हमारे स य ःवत ऽ रा य के आदर को एक ध का है । दे शूेमी नाग रक के

प म

यह हमारा प वऽ कत य है क ऐसे िनरं कुश उ पीड़न के आगे झुकने से अःवीकार कर द। इसिलए हम अपने कत य का पालन करना है , खड़े रहना है और रा य और नाग रक के अिधकार और स मान क पु

करना है ।” इस तरह स यामह अिभयान

स ब धी िनणय क पूव सूचना दे ते हए ु ःवयंसेवक को इस अिभयान के समय शांित ु बनाये रखने और कसी भी ःथित म मन म कटता का भाव न आने पाये, इस

से सतक रहने का आवाहन भी ौी गु जी ने कया। इस

के साथ आंदोलन हे तु

जो ‘संदेश’ ौी गु जी ने ूसा रत कया वह तो ‘समर का शंखनाद’-

‘ ले रयन काल’

नाम से इितहास म अं कत हो चुका है । उस संदेश का अंितम अंश हम यहाँ उ -घृत

कर रहे ह ता क पूरे संदेश क क पना आ सके। वह ःफूितूद, ओजःवी और सभी म व ास जागृत करनेवाला अंश इस ूकार है :-

१०.१ ‘अधम से धम’ का संघष “अपना काय ौे

है , महान ् है , ई र य है । इसक पूित म मानवता का उ चतम

आ वंकार है , भगवान का सा ा कार है ।”

“अतः उठो और दस मास से ःथिगत अपने काय का पुनरार भ करो। दस मास क अकम यता क

ित-पूित करो। स य हमारे साथ है । अ याय को सहते रहना उसका

भागी बनकर पाप करना है । अ याय का प रमाजन हम कर। अंतःकरण म

स य के अिध ाता ौी परमा मा को

यायपूण

ढ़ व ास से धारण कर समःत ूाणश

से

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०४


भारत माता का

यान कर, उसक संतान के ूेम से ूे रत होकर उठो, काय उठाओ,

बढ़ाओ और यशः ूाि “यह धम का अधम से,

तक कह ं भी न

कते हए ु आगे बढ़ते चलो।”

याय का अ याय से, वशालता का

द ु ता से सामना है । वजय िन

त है

ि ु ता से तथा ःनेह का

य क धम के साथ ौी भगवान और उनके

साथ वजय रहती है ।” “तो फर

दयाकाश से जगदाकाश तक भारत क जय विन ललकार कर उठो और

काय पूण करके ह रहो।” “भारत माता क जय।” संघ क शाखाएं पुनः आरं भ करने के िलये दे श यापी आंदोलन छे ड़ा जाने-वाला है , इसक भनक सरकार को िमल चुक थी। इस चचा से कांमेस के उ च पदःथ नेता मानो खिसया गये। सरदार पटे ल ने ५ दस बर को वािलयर क एक सभा म कहा, “कुछ लोग बताते ह क संघ स यामह करने जा रहा है । क तु वे लोग कभी

स यामह नह ं कर सकगे। उनका स यामह कसी भी दशा म सफल नह ं हो सकता य क इनके मन वकार से मःत रहते ह। हमने उ ह कांमेस म स मिलत हो जाने क सलाह दे कर उनका

दय-प रवतन करने का ूयास कया, क तु उ ह ने श

आजमाने का माग अपनाया ह। म उ ह चेतावनी दे ता हँू क इस ढ़ं ग क चुनौितय का सामना करने के िलये हम तैयार ह।”

सरकार क ओर से ऐसी धम कयां दे ना जार था क ९ दस बर को सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी के नेत ृ व म दे शभर म शाखाएँ ूारं भ कर स यामह आंदोलन ूारं भ हो गया। ूितबंध संघ शाखा लगाने पर था। अतः ूितबंध का आदे श तोड़कर सवऽ संघ शाखाएँ शु

करना- यह स यामह आ दोलन का ःव प था। ‘भारत माता क जय’

तथा ‘संघ अमर रहे ’ के नारे लगाते हए ु ःवयंसेवक के ज थे ःथान-ःथान पर शाखा लगाने के िलए आगे बढ़ते थे और पुिलस उ ह िगर तार कर लेती। पुिलस का

हःत ेप होने तक शाखा के िन यकायबम चालू रहते। िगर तार के समय ूितकार नह ं करना और शांित बनाए रखने के अनुशासन का कड़ई से पालन कया जाता। स यामह दे खने के िलये असं य जनता उमड़ने लगी। िगर तार ःवयंसेवक को

पुिलस-गाड़ म बठाकर कारागृह रवाना कर दया जाया। इस स याघ3ह के कारण संघ पर लगी पाब द दे शभर म जनचचा का वषय बन गई। हजार द वार “संघ पर आरोप िस

करो या ूितबंध हटाओ” क माँग से रं ग गयीं। उसी ूकार संघ पर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०५


लगाये गये आरोप का खंडन करते हए ु उसक रा ीय भूिमका को ूकट करनेवाले

पऽक ःथान-ःथान पर लाख क सं या म वत रत कये जाने लगे। स यामह

आंदोलन के ूित ःवयंसेवक म वल ण उ साह था। स यामह म सहभागी बनने के िलये माग म आनेवाली सभी बाधाओं को दरू कर हजार क सं या म ःवयंसेवक स यामह म भाग लेने लगे। सैकड़ ने अपनी नौक रय पर लात मार द , असं य

छाऽ ने अ ययन ःथिगत कर दया। कसी ने भी अपनी शा र रक- पा रवा रक और अ य ूकार के क

क िचंता नह ं क । ९ दस बर से ूारं भ इस स यामह के थमने

के कोई िच ह दखाई नह ं दे रहे थे। संघ के ूित जनता का समथन और सहानुभिू त दन दन बढ़ती जा रह थी।

१०.२ सरकार क आँख खुलने लगीं सरकार समझ बैठ थी क अनुभवह न युवक का यह आंदोलन कुछ दन म अपने

आप समा

हो जायेगा। सरकार को यह अपे ा भी नह ं थी क स याम हय क

सं या २-४ हजार तक भी पहंु च पायेगी। संघ के इस स यामह क ओर ःवयं ूधानमंऽी पं. नेह

कस

गये उ -गार से ःप

से दे ख रहे थे, यह उनके एक भाषण म य

कये

होता है । जयपुर म कांमेिसय क एक सभा म उ ह ने कहा

क- “यह संघ के ब च का दरामह ह। सरकार इस आंदोलन को कुचलने के िलये ु

अपनी सार श

लगा दे गी। संघ को फर से िसर नह ं उठाने दगे।” पं. नेह

कथन म माऽ कुछ स चाई थी। यह स यामह ‘संघ के ब च का है !’

के इस

य क स यामह

का सूऽ संचालन करने वाले २० से २५ वष क आयु वाले त ण ह थे। कसी नेता या कसी सुूित त राजनीितक दल का आिशवाद भी उसे ूा भी इस समय तुलना मक

से अ य नेताओं क अपे ा छोट उॆ के ह थे।

क तु ‘इन ब च ने’ जस क पना-श

नह ं था। ःवयं ौी गु जी

, अनुशासन- ूयता और

याग बु

व दे श

का प रचय दया वह असामा य ह था। सरकार ने बल ूयोग से स यामह

आंदोलन को कुचलने का भी ूयास कया। पंजाब और मिास रा य म तो स याम हय के साथ बबरता बरती गई और िनघृण अ याचार कये गये। सरकार बबरता के कुछ नमूने इस ूकार थे। पंजाब म जहाँ स याम हय को कड़ाके क सद

म तालाब , न दय व नहर म फका गया वह ं मिास, हावड़ा, आगरा, जोधपुर, बरे ली,

ब सर, वािलयर आ द ःथान पर बबर लाठ चाज कर अनेक के िसर फोड़े गये! और यह भी खुली जगह म नह ं, ब क कारागृह क बंद कोठ रय म!! सरकार ने यह क पना भी नह ं क थी क सतह र हजार से अिधक स याम हय को जेल म बंद करना पड़े गा! इतनी ूच ड सं या म स याम हय क जेल म यवःथा कर पाना भी नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०६


उसके िलये असंभव सा हो गया। अतः कई ःथान पर तो स यामह ःवयंसेवक को पुिलस गाड़ म बठाकर रा ऽ के घने अंधकार म शहर से ४०-५० मील दरू बीहड़ ु जंगल म ले जाकर ठठरती ठं ड म छोड़ दया जाता था। अनेक ूकार के क

और

अ याचार सहन करते हए ु भी ःवयंसेवक कह ं भी उ े जत या ू ु ध नह ं हए ु , ब क

शांित के साथ सब कुछ सहते रहे । कुछ ःथान पर भूख हड़ताल जैसे आ म लेश के माग को अपनाया। क तु गा धीजी के नाम का दन-रात जप करनेवाले स ाधा रय

और कांमेिसय ने भी कभी क पना नह ं क होगी, इतने सुद ं र, सु यव ःथत और

शांितपूवक ढं ग से स यामह करने का अ -भुत प रचय संघ के ःवयंसेवक ने दया। मिास म शांितपूण ढं ग से स यामह करने वाल पर िनमम लाठ चाज क घटना क खुली िन दा िलबरल पाट के ट .आर. वकटराम शा ी और लोकसभा सदःय ःवामी वकटाचलम ् ने क । आगे चल कर ौी यंकटराम शा ी संघ पर लगी पाबंद उठाने के

िलए म यःथता करने हे तु ूःतुत हए। जनता का संघ के ूित समथन और ु

सहानुभिू त बढ़ती ह जा रह थी। ःथान-ःथान पर ‘बंद हटाओ’ ‘संघ पर से अ याय दरू करो’ आ द मांगो को लेकर जुलूस िनकलने लगे। स यामह थमने का नाम नह ं ले रहा था और ःवयंसेवक म उ साह क कोई कमी

भी नजर नह ं आ रह थी। ऐसे गुणस प न युवक को अकारण सहनी पड़ रह यातनाओं को दे खकर अनेक स ूवृ

लोग के मन यिथत होने लगे। अनेक ऐसे नेता

यह अनुभव करने लगे क कुछ न कुछ सुलह का माग िनकलना चा हए। के ि सरकार के गृह मंऽालय को पऽ भेजकर इस मामले म म यःथता क तैयार दशायी गई। जनवर के ूारं भ म पुणे से ूकािशत मराठ दै िनक ‘केसर ’ के संपादक ौी ग. व. केतकर को सरकार ने िसवनी जेल म जाकर ौी गु जी से भट क अनुमित दे

द । तदनुसार ौी केतकर ने दो बार- १२ व १९ जनवर को ौी गु जी से भटकर दे श क प र ःथित से उ ह अवगत कराया तथा यह सुझाव भी दया क अगर स यामह ःथिगत कर दया जाए तो संघ पर से पाबंद हटाने क

से कुछ हलचल करना

आसान हो जाएगा। ौी गु जी ने इस सुझाव को ःवीकार कर स यामह ःथिगत करने

स ब धी आदे श िलखकर केतकर को दया। स यामह-आंदोलन के सूऽ संचालन

करनेवाले कायकताओं तक वह आदे श पहँु चाया गया और आ खर २२ जनवर १९४९

को स यामह-आंदोलन ःथिगत कर दये जाने क अिधकृ त घोषणा क गई। ९ दसंबर १९४८ को ूारं भ दे श यापी स यामह पव उ बीच सभी लोग के

वल यश-संपादन कर ःथिगत हआ। इस ु

यान म यह बात आ गयी क संघ को आसानी से कुचल डालने

का दं भ िनरथक है और संघ ने जस ववेक और समझदार क भूिमका अपनायी है ,

वह कोई िनबलता के कारण नह ं ब क वशु

दे शूेम के कारण अपनायी है । गांधी नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०७


जी के स यामह-तंऽ का उनके अनुयाियय को भी ल जत कर सकनेवाले ढं ग से

उपयोग कर संघ ने एक बड़ नैितक वजय संपा दत क थी। लगभग दो लाख

ःवयंसेवक स यामह हे तु ूःतुत हए ु जनम ७७०९० ःवयंसेवक िगर तार होकर

विभ न अविध के िलए कारागृह म रहे । ःवाभा वकतः जनमत जागृत होकर संघ के

ूित सहानुभिू त क लहर सवऽ चल पड़ । समाचार पऽ म भी इस लहर का ूित ब ब ूकट होने लगा। दनांक २२ जनवर १९४९ को अ बाला से ूकािशत होनेवाले ‘ द श युन’ ने सरकार क सोच का सामा यतः समथन करते हए ु भी यह कहा क “रा. ःव. संघ के नेता ने

आ दोलन को बना शत ःथिगत कर ूकरण के अंितम िनपटारे के िलए माग ूशःत कया है । अब आगे के कदम उठाने का काय सरकार का है जसे ूितब ध हटा दे ना चा हए....।” कलक ा के ‘ःटे समैन’ ने द. २२ जनवर १९४९ के अपने संपादक य म यह िलखकर क ‘संघष का ढं ग भी संघ के नेताओं को ध यवाद दे ने यो य था’-सरकार को इस

बात क अनुभिू त करा द

क संघ पर लगे ूितबंध के कारण दे श के युवक का बल

कस ूकार यथ जा रहा है । उसने िलखा- “कानून भंग करने के आंदोलन म भाग लेने के कारण आज भारत के अनेक अ छे लोग को जेल म डाल दया गया है । वे सब दे श क उ म सेवा करने म समथ ह। उनके पास आदश है , शारा रक बल है तथा सेवा के ःतु य काय को करने के िलए ःवाथ- याग क भावना भी है । ये सभी दे श

का गौरव बढ़ने क तक उिचत है ?”

मता िलए हए ु ह। ऐसी युवा श

यहाँ इस बात का वशेष

को जेल म सड़ते रखना कहाँ

प से उ लेख करना होगा क ौी गु जी ने म यःथता

ु करने के इ छक महानुभाव को कसी ूकार क क ठनाई न होने पाये, इस स -

भावना से ह स यामह ःथिगत करने के िलए िल खत अनुमित ौी केतकर को स पी थी। यह एक ूकार क सुजनता ह थी। आदरणीय य

य के श द का आदर करने

हे तु अपने आमह को एक ओर रखने म उ ह जरा भी हचक महसूस नह ं हई। ु

स यामह ःथिगत करने के िनणय से म यःथ के िलए माग खुल गया। ौी केतकर के बाद मिास के उदारमतवाद नेता ौी ट .आर. यंकटराम शा ी ने, जो एक

िनंप , िनःपृह, सेवाभावी और व ान ् कायकता के

प म

याितूा

थे, माच १९४९

म कारागृह म ौी गु जी से दो बार भट क । ूथम भट म तय हआ क संघ का एक ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०८


िल खत सं वधान शीय ह तैयार कया जाए। बाहर के कायकताओं ने जस अिल खत यवःथा से संघकाय चल रहा था, उसे िल पब

कर ौी यंकटराम शा ी को स पा।

ौी शा ी जी उस सं वधान को लेकर कारागार म पहँु चे और ौी गु जी को उसे

दखाकर आवँयक संशोधन करने को कहा। ौी गु जी ने बना सं वधान के प ने

खोले उस पर हःता र कर दये जसे दे खकर शा ी जी व ःमत हए ु बना नह ं रहे ।

उनके उ -गार थे क लोकतंऽ क भावना का यह कतना ौे

ूदशन है जहाँ नेता का

अपने अनुयाियय पर यह ूबल व ास है क उ ह ने जो कुछ कया होगा, ठ क ह

कया होगा। संघ का सं वधान तैयार होते ह उसे सरकार के पास भेजने क अनुमित दसर भट म ौी गु जी ने दे द । क तु शा ीजी क म यःथता म ूे षत सं वधान ू को सरकार ने ःवीकृ त नह ं कया। सरकार क ओर से कहा गया क वह सं वधान

ःवयं ौी गु जी ह सरकार को भेज। पऽ को परःपर पहँु चाने म अपनायी गई ढलाई के कारण अूैल-मई- ये दो माह बना कसी ूगित के यूँ ह बीत गये। अपनी

म यःथता शायद सरकार को पसंद नह ं इस वचार से ौी यंकटराम शा ी कुछ काल तक शांत रहे । इस बीच सरकार क ओर से संघ के सं वधान पर अनावँयक आप याँ ूःतुत करते

हए ु कालाप यय क नीित अपनायी गयी। तब सरकार क अ ड़यल-वृ

और उसके

कारण हजार ःवयंसेवक के कारागृह म पड़े रहने से ौी गु जी अःवःथ हो उठे । सं वधान म सरकार क ओर से उठाई गई सभी आप य का िनराकरण करते हए ु

एक वःतृत पऽ ौी गु जी ने सरकार को भेजा। संघ पर लगाए गये आरोप का दो-

ु जवाब दे ने वाला ौी गु जी का मूल पऽ काफ तीखा और चुनौती भरा था। यह टक

पऽ उ ह ने १७ मई को भारत सरकार के गृहमंऽी के नाम अंमेजी म िलखा था। जब

सरकार ने ौी गु जी का यह पऽ ौी शा ी के पास भेज दया तब ौी शा ी जी ने जनता के सम

संपूण वःतु ःथित को ःप

करनेवाला अपना व

य ूकािशत करने

का िन य कया। इस ूकार पऽ- यवहार के चलते ौी गु जी को िसवनी जेल से हटाकर बैतूल के कारागृह म लाया गया। िसवनी के कारागृह म ौी गु जी क नेता के िलए आवँयक सु वधाओं से पूण नह ं थी। वहाँ क केतकर ने ू य

संकुिचत मनोवृ

यवःथा उन जैसे महान ्

यवःथा के बारे म ौी

आँख से जैसा दे खा, वैसा हबह ू ू वणन कया। उससे सरकार के

ह ूकट होती है । उन पर केवल १०

. म हने का ह खच कया

जाता! िनयमानुसार िमलनेवाली सु वधाओंसे उ ह वंिचत रखा गया। बैतूल कारागृह क यवःथा तो और भी क दायी थी। बंद हटाने के िलए म यःथता करनेवाले नवयुग ूवतक ौी गु जी

१०९


मौिलच ि शमा ने उनसे बैतूल कारागृह म ह भट क थी। ौी गु जी के माता- पता भी बैतूल म ह ौी गु जी से िमलने गये थे। इन भट-मुलाकात का जो वृ

ूकािशत

हआ उनसे ौी गु जी के िगरते ःवाः य, कारावास म उनके साथ कया जानेवाला ु

बताव और संघ के स ब ध म सरकार क टालमटोल और दरामह नीित आ द सार ु

बात पर ूकाश पड़ता है । प रणामःव प हतिचंतक क तीो ूित बयाएँ ूकट होने

लगीं। ौी गु जी ने कभी भी य

कारावास म एक बंद को ूा

गत सुख-सु वधाओं क कोई िच ता नह ं क ।

होनेवाले अिधकार का अ ययन कर तदनुसार सुख-

सु वधाओं क मांग भी उ ह ने नह ं क । उनक िच ता का एकमाऽ वषय था- ह द ू

समाज को एकरस सुसग ं ठत बनाकर दे श के साम य को बढ़ानेवाले संघ के खं डत काय को पुनः ूारं भ कया जाये। उनक यह सुिन

त और प क धारणा थी क

संघकाय का अ य कोई वक प नह ं है । संघ का प

याय और स य का होने के

बावजूद सरकार अपना दरामह छोड़ने के िलए तैयार नह ं हो रह है यह दे खकर ु

ःवयंसेवक के मन म कायकता और िनंप

ोभ और संताप क भावना पैदा होने लगी। सावजिनक

समाचार-पऽ संघ का प

लेकर सरकार क अ यायकार

भूिमका के वरोध म खुलकर बोलने और िलखने लगे। वदे श म भी भारत सरकार क िनंदा और आलोचना क जाने लगी। ल दन म ‘वड’ नामक पऽ ने लोकतंऽ म इस ूकार के नाग रक ःवाधीनता के अपहरण क आलोचना करते हए ु िलखा- “ जस

ॄ टश रा य क सब भांित िन दा क जाती थी, उसम भी नाग रक ःवतंऽता का

गला नेह

के इस फािसःट रा य क तरह कह ं भी घ टा गया हो यह हम याद नह ं

आता।” संघ पर पाबंद के वरोध म कोई नया जन आंदोलन ूारं भ करने का वचार भी सरकार नीित क ूित बया के राजनीितक दल के

प म य

कया जाने लगा। संघ को अब

प म सामने आना चा हए, ऐसा सुझाव भी संघ के हतिचंतक

नागपुर से ूकािशत दै िनक ‘ हतवाद’ के संपादक ौी ए.ड .म ण जैसे लोग दे ने लगे। एक नयी तनावपूण ःथित बनती जा रह थी और संघ के ूित जनता क सहानुभिू त दन - दन बढ़ती जा रह थी। भारत सरकार को भी यह आभास होने लगा क जनमत

उसके वरोध म होता जा रहा है । तब अचानक जून माह क समाि भारतीय जनािधकार सिमित के अ य िल खत

प म कुछ मु

पर सरकार ने

पं. मौिलच ि शमा को ौी गु जी से िमलकर

के जवाब लाने के िलए ूवृ

कया। ौी शमा ने पहले

गृहमंऽी सरदार पटे ल, संघ के सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी और ौी बालासाहब दे वरस से भट क और बाद म बैतल ू जाकर सरकार क

ौी गु जी के सम

म आप जनक मु

को पुनः

रखा। अब ौी गु जी अपनी ओर से भारत सरकार को कसी भी

ूकार का कोई िल खत ःप ीकरण दे ने के िलए तैयार नह ं थे। उ ह ने तय कर िलया था क अब आगे सरकार के साथ कोई पऽ- यवहार नह ं करगे। उधर प र ःथित के नवयुग ूवतक ौी गु जी

११०


बढ़ते दबाव के आगे झुककर सरकार पहले जैसे अ ड़यल रवैये अथवा दरामह पर ु

कायम रहना नह ं चाहती थी। सरकार यह जान चुक थी क ूितबंध हटाये बना और कोई चारा नह ं है । अतः इसके िलए वह कोई नया िनिम

१०.३ ूितब ध अचानक

ढँू ढ रह थी।

य हटाया गया?

पं. मौिलच ि शमा क इस भट के बाद ौी गु जी ने उ ह (शमाजी को) एक य

गत पऽ िलखा। इस पऽ म सरकार

संघ क भूिमका को पुनः एक बार ःप

ारा उठायी गयी आप य के स ब ध म

कया गया था। यह पऽ दनांक १० जुलाई

१९४९ का है । इसम रा ीय ःवयंसेवक संघ और भारतीय सं वधान, रा

वज, हं साचार

और गु ता का आरोप, संघ म कायकार मंडल का चुनाव, ूित ा, बाल ःवयंसेवक का ू , सरसंघचालक क िनयु

, संघ म जाित वशेष का वचःव और हसाब रखने

क प ित- इस ूकार आठ मु

पर संघ क भूिमका ःप

क गई है । पं. मौिलच ि

शमा के नाम द. १० जुलाई को िलखे इस पऽ को ह आधार मानकर भारत सरकार ने संघ पर १८ मास से लगे ूितब ध को ःवयं ह वापस ले िलया। इतनी ज द -

ज द म ूितब ध हटाने के सरकार के िनणय के पीछे एक अ यंत मह वपूण कारण रहा। ौी वकटराम शा ी जी ने एक ूद घ व

य तैयार कर समाचार पऽ को दनांक

१३ जुलाई के पहले ूकािशत न करने क सूचना द थी। उस पऽ म सरकार क नीित कस ूकार अ यायपूण एवं मूलभूत नाग रक अिधकार क अवहे लना करनेवाली है -

इसका ःप म यःथ य

द दशन था। ौी वकटराम शा ी जी जैसे दे शमा य, उदारमतवाले का इस ूकार का िनणय दे श के सामने आने से सरकार क तो और

बेइ जती हौनेवाली थी। इससे बचने के िलए दनांक १२ जुलाई को ह ूितब ध हटाने का िनणय िलया गया। फर भी मिास के ‘ द ह द’ू ने 13 जूलाई को शा ी जी के व

य का पूण पाठ छाप ह

दया। इधर ूितब ध भी हट गया। उधर शा ी जी का

य लोग के सामने आने के कारण से सरकार का असली चेहरा भी उजागर हो

गया। अपना अ तम िनंकष दे ने के पूव उ ह ने संघ संबंधी उन अनेक आप य का

ःप ीकरण दया जो सरकार ने ौी गु जी के साथ हए ु पऽ- यवहार म उठाई थीं। अवयःक को संघ म ूवेश तथा रा ीय ितरं गे झ डे के संबंध म ौी गु जी गये ःप ीकरण से ौी शा ी जी ने सहमित य ूमुख

ारा दये

क । बाद म संघ के ूमुख के पूव

ारा चुने जाने के संबंध म, जसे सरकार ने अलोकतां ऽक और ‘फािसःट’

(तानाशाह )

कहा था, ौी शा ी जी ने उ र दया- “ कसी सरकार या रा य को तो

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१११


फािसःट कहा जा सकता है कंतु कसी िनजी संगठन को नह ं जसम ूवेश के िलए

कसी को बा य नह ं कया जा सकता। जसक इ छा हो वह उसम जाये या जाने से

इ कार कर दे अथवा ूवेश लेने के बाद भी

यागपऽ दे कर बाहर आ जाये। इस दे श

म ऐसी अनेक संःथाएँ ह जहाँ के ूमुख अपने उ रािधकार को मनोनीत करते ह। संःथा के सब सदःय

ारा वह िनवािचत नह ं कया जाता। भावजगत ् म सावजिनक

िनवाचन कोई औिच य नह ं रखता।”

सा ूदाियकता के आरोप के संबंध म शा ी जी कहते ह- “संघ म सभी ूकार एवं वग के हं दओं को ूवेश है । उनके विभ न कायबम म सभी समुदाय के लड़के ु

बना कसी भेदभाव के स मिलत होते ह। इस संगठन के उ े ँय और ूकृ ित ह ऐसी

है क उसम अ ह दओं के िलए ूवेश नह ं है ।.....घोर सा ूदाियकता के बीच रहते ु

हए ु मुझे यह कहने म कोई संकोच नह ं है क रा.ःव. संघ इस अनेकधा वभा जत हं द ु समाज को संघब

अिन

करने क

दशा म अ छा काय कर रहा है । यह बात उन

ूवृ य को रोकने म भी सहायक हो सकती ह जो हमार आँख के सामने

पनप रह ह और जसक ओर सरकार

ारा

यान दया जाना आवँयक है ।”

समाचार पऽ क इस ट पणी पर, जो वाःतव म सरकार सूऽ से ह िनकली थी, क “(संघ का) सं वधान तो ठ क है कंतु इस पर व ास नह ं कया जा सकता क संघ के नेता उसका यथावत ् पालन करगे,” ौी शा ी जी ने कहा- “यह तो कसी भी संगठन के ूित

यादती होगी क पहले से ह यह सोचकर क शायद उसके सदःय

आगे चलकर कसी अवैधािनक गित विध म भाग ल, उसे काम ूार भ ह न करने दया जाय।” समाचार पऽ क एक दसर ू

ट पणी के संदभ म क “य प वे अपने

संगठन को अराजनैितक घो षत कर रहे ह क तु एक रात म वे बदल सकते ह,” उ ह ने कहा- “हाँ, वे वैसा कर सकते ह और य द उ ह ने वैसा कया तो वह कोई अपराध नह ं होगा। ब क मुझे व ास है क उनम इतनी समझदार है क वे ऐसी गलती करना ह नह ं चाहगे।” आगे ौी शा ी जी कहते ह- “अपने िनणय पर पहँु चने के पहले मने िन न बात पर यान दया है - यह क पूववत सरकार के काल म बीस वष से अिधक समय तक

उ ह ने खुलेआम बना कसी आप

के काम कया है ; यह क सावजिनक

ेऽ के

गणमा य लोग ने उसके कायबम या उ सव म कम-अिधक ूमाण म खुलकर भाग िलया है ; यह क अनेक सरकार अिधका रय ने भी उनके काय म बना कसी के आप

उठाये भाग िलया है ; यह क हमार सरकार ने भी तब तक उनके व

नवयुग ूवतक ौी गु जी

कोई

११२


कदम उठाना उिचत नह ं समझा जब तक महा मा गांधी क ह या नह ं हो गई और

उसम उन लोग का हाथ होने और अ य के भी जीवन के िलए खतरा होने का संदेह नह ं हआ। मुझे लगता है क उस संदेह के िलए अब कोई आधार शेष नह ं बचा है । ु जो बंद ू या ीकरण यािचका ूःतुत कर सकते थे वे उस मा यम से

सहायता ूा

यायालय क

करने म सफल हए ु ह और कुछ आरोप भी जसम रा.ःव. संघ का हाथ

माना गया था,

यायालय म टक नह ं पाये ह। मुझे लगता है क य द ूितबंध हटा

दया गया और संगठन को उसी तरह काय करने दया गया जैसा वतमान समःया

खड़ होने के पूव पछले बीस वष से अिधक समय से वह करता आ रहा है , तो रा य अथवा सावजिनक सुर ा को कसी भी ूकार का खतरा उ प न नह ं होगा।” “अंत म, इस आशा के साथ म समा

करना चाहँू गा क सरकार यह सोचे क कस

ूकार ूितबंध हटाकर वह रा.ःव. संघ को पूववत ् काय करने दे । मेरे मतानुसार ूितबंध को जार रखना और उसके ूमुख लोग को जेल म िन

रखना न तो

यायसंगत है , न ववेकपूण और न ह लाभदायक।” सरकार

ारा अचानक बंद हटाने के पीछे और एक कारण संभव है । द. २८ मई

१९४९ को ौी गु जी ने बालासाहब दे वरस के नाम एक पऽ अपनी सेवा म रत एक कैद के मा यम से बाहर िभजवाया जो म यूदे श क सरकार के हाथ लग गया। उससे सरकार को यह भनक लग गयी क संघ पुनः एक जन आ दोलन करने क सोच रहा है । इस आ दोलन से ह सरकार क छ व जनता म मिलन हई ु थी, अतः

पुनः आ दोलन का मौका दे ना बु मानी नह ं होगी, ऐसा उ ह लगा होगा। अपने पऽ म ौी गु जी ने िलखा था“सरकार क ओर से यह सब होगा यह मने ौी वकटराम शा ी को पहली भट म बता दया था। कंतु उ ह ने कहा था क ‘वह सब मुझ पर छोड़ द।’ उनके

आ म व ास से लगा क शायद सरकार के कुछ ूमुख य िनणायक बातचीत हई ु होगी। इसिलए, और अ य रखनेवाले इन स पु ष को ूय

य के साथ उनक कोई

से भी, अपने से सहानुभिू त

करने दया जाय और मेर बाधा न रहे यह सोचकर

मने उ ह स मित दे द ।” “ क तु मुझे लगता है क यह मामला तब तक नह ं सुलझेगा जब तक सवऽ सूचना भेजकर पुनः एक बार जोरदार आ दोलन नह ं कया जाता। इसका यह अथ नह ं है क एकदम ज दबाजी क जाय। पहले ऐसी योजना बने जससे आ दोलन ल बे समय

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११३


तक चल सके और फर यो य समय दे खकर आ दोलन आर भ कया जाय। इसके

साथ-साथ अनेक ूकार क हड़ताल भी करवाई जा सक ं तो उ म होगा। एक अ छा

य तैयार हो जसम इस बात का उ लेख कया जाय क कैसे शा ीजी जैसे

म यःथ के परामश एवं स मित से सं वधान तैयार कर सरकार के पास भेजा गया और कैसे सरकार अपनी पुरानी ह बात क रट लगाते हए पर अड़ हई ु ु अपने दरामह ु

है । उस व

य को दे शभर म बँटवाने क यवःथा क जाय और घोषणा क जाय क

जनता के एकऽीकरण के

अित र

यायपूण अिधकार क ूःथापना हे तु ूय

करने के

और कोई माग नह ं बचा है और चूँ क सरकार के अ ड़यल रवैये ने सारे

राःते ब द कर दये ह इसिलए हम पुनः शा तपूण आ दोलन शु अ ात ःथान से डाक के

ारा उस व

कर रहे ह। कसी

य क ूितयाँ के ि य व ूा तीय सरकार को

िभजवा कर पहले के समान आ दोलन करना चा हए, ऐसा मुझे लगता है ।” “यह मेरा मत है क तु आप बाहर रहे अपने ूमुख सहयोिगय से यो य परामश कर जो उिचत हो वह िन

त कर। न इधर के, न उधर के, ऐसी जो ऽशंकुवत ् ःथित

म यःथ के कारण िनमाण हई ु है उसे समा यहाँ यह बात िल खत

कर।”

यान म रखना आवँयक है क रा ीय ःवयंसेवक संघ के सं वधान को

प म दे ने हे तु अपनी ःवीकृ ित दे ने अथवा सं वधान के कुछ मु

पर उठाई

गई आप य का वचार करते समय ौी गु जी ने सरकार क कोई ‘शत’ ःवीकार नह ं क । कुछ लोग ने ःवाथवश इस ूकार का ूचार भी करना चाहा क संघ ने

सरकार को कुछ आ ासन दये ह उन शत पर ह पाब द हटाई गई है । क तु जब ौी गु जी और सरकार तथा म यःथ के बीच हआ सारा पऽ- यवहार ूकािशत हो ु गया तब संघ

ारा सरकार शत को ःवीकार कये जाने स ब धी सारे दंूचार क ु

हवा िनकल गई। संघ का जो काय अिल खत सं वधान के अनुसार चल रहा था उसे ह िल खत का ू

प म दया गया- इसके अलावा अ य कोई भी ‘शत’ ःवीकार कये जाने

ह नह ं था। सरकार ने ःवयं अपनी ओर से बना कसी शत के ूितबंध

हताया, यह बात भी ःप

हो गई।

१०.४ सरकार ने भी ःवीकारा कहावत है क “हाथ कंगन को आरसी

या?” ःवयं सरकार को ह इस स य को खुले

तौर पर ःवीकार करना पड़ा। मुब ं ई वधानसभा म १४ अ ु बर १९४९ को उस सरकार

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११४


के गृह एवं राजःव मंऽी ने सूरत जले के ल लूभाई माखनजी पटे ल के ू

के उ र

म बताया क(१) रा.ःव.संघ का ूितबंध बना कसी ूकार क शत के उठाया गया, और (2)

संघ के नेता के

ारा सरकार को कसी भी ूकार का वचन नह ं दया गया है ।

यहाँ यह बताना त य संगत होगा क अपनी जाँच

ारा यह ःप

हो जाने के बाद क

संघ पर आरो पत अनेक अपराध म संघ का कोई हाथ नह ं है , सरकार सारे अनुिचत एवं अ यायपूण हथक डे अपना रह थी। आँख खोल दे नेवाले इस त य के उपरा त भी क महा मा गांधी क ह या स हत अ य अपराध म भी, जनका जोरदार डम डम पीटा जाता रहा, सारे दे श म कह ं भी कसी भी ःवयंसेवक के व

एक भी

आरोप पऽ ूःतुत नह ं हआ ु , मुकदमा चलाने क बात तो दरू रह । इस संदभ म

सरदार पटे ल

ारा पं. नेह

को २७ फरवर १९४८ को, अथात महा मा जी क ह या

के उपरा त एक माह के अ दर ह जो पऽ िलखा गया वह इस सारे मामले म सरकार के बेईमानी का िन दनीय दःतावेज है । सरदार पटे ल ने िलखा- “बापू क ह या क

जाँच म हो रह ूगित पर मने ूायः ूित दन अपनी गित विधय के ल बे और वःतृत व बात भी ःप

यान दया है ..... सभी अपरािधय ने

य दये ह। ..... उन व

य से यह

प से उभर कर आती है क इस सारे मामले म संघ कह ं भी संिल

नह ं है ।”

१०.५ गृहमंऽी ने भी ःवीकारा संघ पर से ूितबंध हटने के बाद गृहमंऽी सरदार व लभभाई पटे ल ने ौी गु जी के पऽ के उ र म एक पऽ भेजकर अपनी ूस नता और शुभकामना य

क । इस पऽ

का कुछ अंश इस ूकार है :“……..जैसा आपने अपने सावजिनक भाषण म कहा है , दे श क

ःथित वैसी ह है

और घटनाओं का चब इस ूकार चल रहा है क हम सबको वतमान काल और भ वंय पर

रखनी चा हये, न क भूतकाल पर। मुझे आशा है क आप संघ और

काँमेस और सरकार के वषय म इस िनयम पर चलगे।” “संघ पर से पाबंद उठा लेने पर मुझे जतनी खुशी हई ु है इसका ूमाण तो उस समय जो लोग मेरे िनकट थे वह बता सकते ह। मुझे इस बात पर वशेष ूस नता है क

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११५


इस ूकार एक बार फर ई र ने मुझे यह अवसर दे दया है क संघ के भ वंय के वषय म जो वचार मने सालभर पहले जयपुर व लखनऊ क आमसभाओं म ूगट

कये थे, उनको पूरा करने का ूय

कर सकूँ।”

“आशा है , आप ःवःथ ह गे। म आपको अपनी शुभकामना भेजता हँू ।” संघ पर ूितबंध हटाये जाने क घोषणा द. १२ जुलाई को सायंकाल आकाशवाणी से क गई और द. १३ जुलाई को ौी गु जी को बैतूल कारागृह से मु

कया गया। ौी

गु जी म या ह म जब नागपुर रे वे ःटे शन पहँु चे तो वहाँ उप ःथत ३० हजार से

अिधक जनसमूह ने हष विन से उनका ःवागत कया। समूचा वायुमड ं ल भारतमाता

क जय- विन से गूज ँ उठा! अ न-पर

ा म सफल होकर आनेवाले अपने पुऽ का जब

ःवयं पताजी ने पुंपमाला पहनाकर ःवागत कया तो यह

ँय दे खकर उप ःथत क

आँख से आनंदाौु फूट पड़े । ऩागपुर म तीन-चार दन तक

कने के बाद ौी गु जी

ौी ट . आर. यंकटराम शा ी से िमलने हे तु मिास गये और उनके ूित अपनी कृ त ता य

क । ूितबंध हटते ह ौी शा ी जी ने नागपुर के पते पर अिभनंदन-

तार भेजा था- ‘All is well that ends well’ –अ त भला तो सब भला। ौी गु जी के नाम अिभनंदन-पऽ और तार क झड़ लग गई थी। ौी गु जी मिास, पुणे और मुब ं ई का ूवास कर नागपुर लौटे । ूितबंध काल म मदद करनेवाल से ू य उनके ूित अपनी कृ त ता य

भटकर

क । इसम पुण के ौी ग. व. केतकर का भी

समावेश था। इस सारे ूवास म ःथान-ःथान पर जनता ने ौी गु जी का अभूतपूव

ःवागत कया। इस ूवास म ौी गु जी के ूित उ कट ूेम क अिभ य

का

दयःपश दशन हआ। ु

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११६


११ ःवागत पव: अचूक मागदशन ूितब ध काल म पूरे १८ मास ौी गु जी अपने ूय ःवयंसेवक से िमल नह ं पाये थे। जनस पक खं डत हो चुका था। ःवयंसेवक और जनता म भी ौी गु जी का

दशन करने और ूितब ध हटने के बाद वे कौन सा मागदशन करते ह, यह जानने

क उ सुकता थी। अतः दे श यापी संचार आरं भ करना आवँयक ह था। सब के मन म एक ह ू

था क संघ पर ूितबंध के अ याय से कौन सी सीख ली जाये? ौी

गु जी के मन म कांमेस सरकार

ारा अपनाई गई दमन नीित क

या ूित बया है ?

शासनकताओं के ूित ौी गु जी कन श द का ूयोग करगे? आ खर इन सभी ू

का िनवारण ौी गु जी के भाषण म जस ढं ग से हआ ु , उससे उनके अंतःकरण क वशालता, उदारता, उ कट दे शभ

, कसी के भी ूित मन म बैर अथवा

े ष के

अभाव और ह द ू संःकृ ित के आदश के अनु प आचरण का ह सा ा कार हआ। ौी ु

गु जी का भाषण सुनकर ल ाविध ौोताओं के मुख से ौी गु जी के ूित ध यो -गार ह िनकले।

ौी गु जी का यह भारत-ॅमण १९४९ के अगःत माह म ूारं भ हआ तो जनवर ु १९५० तक जार रहा। इस बीच वे जहाँ-जहाँ गये वहाँ-वहाँ जनता

ारा उनका उ ःफूत

ःवागत कया गया। २० अगःत को उ र भारत के ूवास हे तु द ली क ओर ूःथान करने के पूव थोड़ा समय िनकालकर वे मुब ं ई जाकर सरदार पटे ल से भट कर आये। सरदार पटे ल का ःवाः य अ छा नह ं होने क खबर उ ह िमल चुक थी। सरदार पटे ल के साथ लगभग एक घंटा वातालाप होता रहा। इस भट के समय संघ के त कालीन सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी भी ौी गु जी के साथ थे। इस भट म सरदार पटे ल ने ईसाई िमशन रय क गित विधय का उ लेख करते हए ु ह द ू समाज क

पाचन-श

बढ़ाने क आवँयकता ूितपा दत क । पा कःतान बनने के बाद उ प न

समःयाओं और घटनाओं का भी सरसर तौर पर उ लेख करते हए ु उ ह ने कहा,

“बीती को बसारकर अब दे श के भ वंय का

यान रखना चा हये।”

लगभग पाँच माह तक ौी गु जी के भारत-ॅमण म सवऽ उनका जो भ य ःवागत हआ उसका ववरण भले ह ु

कतना रोचक

य न हो, ःथानाभाव के कारण उसे यहाँ

ूःतुत करना संभव नह ं ह। केवल उदाहरण के िलए राजधानी द ली म हए ु ःवागत का वणन ूःतुत करना ह पया

होगा। राजःथान, पंजाब, उ र ूदे श, आंी, मिास,

कनाटक, महारा , गुजरात आ द रा य के ूमुख शहर म भी द ली जैसा ह भ य

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११७


ःवागत कया गया। द ली म हए ु ूच ड एवं शानदार ःवागत का प रणाम यह हआ ु क ःवाभा वकतः सारे व

का

यान ौी गु जी के य

व क ओर आक षत हआ। ु

ॄ टश ॄॉडका ःटं ग काप रे शन (बी.बी.सी.) ने यह अिभमत य गु जी भारतीय आकृ

कया क,- “ौी

ितज पर उ दत एक चमकते िसतारे ह। इतना ूच ड जनसमुदाय

करनेवाले भारत म दसरे ू

पं. नेह

ह ह।” भारतीय समाचार पऽ म भी

ौी गु जी के ःवागत के समाचार सु खय म ूकािशत हए। १९५६ म ौी ना.ह.पालकर ु ारा िल खत ‘ौी गु जी : य

और काय’ नामक पुःतक म द ली म हए ु ःवागत

का ववरण इस ूकार है :-

“ द ली ःटे शन पर तथा उसके बाहर दरू-दरू तक इतनी भीड़ थी मान स पूण

राजधानी ह गु जी के दशनाथ उमड़ पड़ हो। जय-जयकार के घोष से सारा आकाश गूज ँ उठा तथा फूल से माग क सूरत बदल गयी। स पूण राजधानी गु जी के

ःवागताथ सजायी गयी थी। ःथान-ःथान पर ःवागत- ार खड़े कये गये थे। सायंकाल रामलीला मैदान म गु जी के सावजिनक ःवागत समारोह म ५ लाख से अिधक

ी-

पु ष एक ऽत हए ु थे। उस समय नगर म ऐसा लग रहा था क मान सभी माग

रामलीला मैदान क ओर जा रहे ह। मंच क भ यता तथा कायबम का आयोजन भी

अ ितय था। गणवेशधार ःवयंसेवक शांित के साथ जनता का ःवागत करते तथा उ ह यथा-ःथान बैठाते थे। पुिलस क मदद के बना ह सभा म शांित और

अनुशासन बनाये रखने म ःवयंसेवक क सफलता ःपृहणीय थी। दनांक २३ अगःत को द ली क इस सभा म नाग रक क ओर से ौी गु जी को स मान-पऽ भट कया गया। मानपऽ के उ र म ौी गु जी ने वहाँ उप ःथत जनसमुदाय को स बोिधत कया।” ःथान-ःथान पर ौी गु जी का ःवागत इस ूकार अ यंत शानदार ढं ग से हआ। ु अपनी मु

के बाद भारत-ॅमण पर िनकले ौी गु जी का भारत क को ट-को ट

तथा हा दक ःवागत कया, उसका उदाहरण इितहास म िमलना

जनता ने जैसे वरा

क ठन है । ःथान-ःथान पर हए ु ःवागत के उ र म जो उ -गार ौी गु जी ने ूकट कये, वे उनक अितशय उदारता,

दय क

वशालता और स हंणु वृ

के ह

प रचायक ह। लगातार अठारह मास तक अपने तथा लाख ःवयंसेवक के ऊपर होते रहे अपार क

अ य कसी य

तथा अपमान को सहकर भी इस अवसर पर उ ह ने सरकार अथवा के व

ु लेशमाऽ भी कटता य

नह ं क और न ह इस अवसर

को उ ह ने अपने ूचार का साधन बनाया। अ यंत धैयपूवक तथा हमालय स श महानता से उ ह ने अपने व समा

य म कहा,

“संघ बंद के इस मामले को अब यह ं

कर द जये। जनके बारे म लगता हो क उ ह ने आप पर अ याय कया है ,

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११८


ु उनके ूित मन म कटता का अंश भी मत आने द जये। दाँत य द जीभ को काट ले या टाँग टाँग से लड़ पड़े तो हम न तो उन दाँत को उखाड़ फकते ह, और न ह पैर

को काट डालते ह। ज ह ने हम पर अ याय कया वे भी अपने ह ह। अतः बीती को बसारकर हम

माशीलता ूकट करनी चा हये। नींद पूर करके जागने वाला य

और अिधक उ साह से काम म जुट जाता है , उसी भांित हम भी समाज क वभेदकार , संकुिचततापूण तथा अ य प र ःथितय को दरू करने के िलए दने ू उ साह

से उसी काय का ूारं भ करना चा हये जसे हम पहले भी कर रहे थे। यह काय करते समय कसी के ूित अपने मन म सवऽ अपने भाषण म यह

े षबु

उ प न नह ं होने दे ना चा हये।”

वचार उ ह ने ूकट कये। इसके साथ ह दे श क

िच ताजनक प र ःथित का िचऽण करते हए ु संघ को जो काय करना है , उसक ःप

और वधायक भूिमका भी ूःतुत क । ःवयंसेवक पर आघात करनेवाले ःवक यजन ह थे, यह बताते समय वे कहते थे क “अगर यह आघात कसी परक य या वदे शी ने कये होते तो संघ क श

का अनुभव ज र करा दया जाता। अ खर हमने भी

अपनी माँ का दध ू पया है इसक अनुभिू त तो उसे करा द जाती।” समाज और रा का िचऽ बदलना हो तो भारतीय संःकृ ित के गुण को अंगीकृ त कर संग ठत होना

पड़े गा- यह संघ का मूल वचार वे बार-बार ूितपा दत करते रहे । उ ह ने लोग का यान भारत क आ या मक ूकृ ित क ओर आकृ बात ःप कसी य

कया। उनके उ -गार से यह

हो जाती थी क इस सारे ःवागत या स मान को वे गोलवलकर नामक

का ःवागत या स मान नह ं मान रहे ह। वैसा भाव उनके मन को छू

भी नह ं पाया था। ौी गु जी के इस ूवास के दौरान पंजाब के सोनीपत का एक ूसंग उ लेखनीय है । वहाँ एक ःवयंसेवक ने भावावेश म आकर

“ौी गु जी अमर रह”- ‘रा ीय ःवयंसेवक

संघ अमर रहे ’ इस ूकार के नारे लगाये। जस ःवयंसेवक ने ये नारे लगाये उसे

गु जी ने रोका और अपनी नाराजगी य य

क । बाद म ौी गु जी ने कहा, “ कसी भी

अथवा संगठन के स ब ध म ऐसे नारे नह ं लगाये जाने चा हए

भी य

अथवा संगठन कभी अमर नह ं होता, केवल रा

य क कोई

ह िचरं जीवी अथवा अमर

हो सकता है । अतः नारा लगाना हो तो ‘भारत माता क जय’ यह एक माऽ उ -घोष हमारा होना चा हये।” कसी य

या संःथा क नह ं ब क सभी को अपने रा

और सेवा उ कटता से करनी चा हए यह उनक एकमाऽ आकां ा थी। गीता के

तेरहव अ याय म

ेऽ -ल ण का जो ववरण है , उसम पहला ह ल ण-

‘अमािन व’ बताया गया है । ौी गु जी के जीवन म इसी का दशन होता है । कसी ःथान पर य

के नाते अपना ःवागत कया जा रहा है , इसक क पना माऽ से वे

नवयुग ूवतक ौी गु जी

११९


यिथत हो उठते। संघ ूिस

से सदा दरू रहा और इस ूिस

गलत अथ भी लगाया गया। ूिस

परा गमुखता का

से दरू रहनेवाला कोई काय गु

ह हो सकता है -

यह समीकरण बठाने का ूयास होता रहा। तब राजधानी द ली और अ यऽ भी ौी गु जी ने ूिस

परा गमुखता क संःकृ ितक भूिमका लोग को समझाकर बताई।

ःवागत करने हे तु जुट भीड़ को वे यह बताते क ‘यह जो ःनेह आप बरसा रहे ह, वह संघ पर ह है । संघकाय क यह मह ा है । अतः इसी (संघ) काय से दे श का िचऽ बदलेगा इस अपे ा से यह ःनेह अब स बय सहयोग म

पा त रत होना

चा हये।’

११.१ ूखर रा ीय इस ूगट िच तन म ौी गु जी को जनमानस म उभरे और एक नये ू

के कारण

संघ क स पूण वचारधारा को ह नये संदभ म ःप ता के साथ ूःतुत करना पड़ा। ौी गु जी जब कारागृह म थे उ ह ं दन उनसे यह ू

कया गया था क जब

मुसलमान को उपना एक ूदे श काटकर दे दया गया और ह द-ू मु ःलम झगड़ या दं ग का मूल कारण ह न

वःतुतः यह ू िलए िनिम

हो चुका है , तब संघ क

या आवँयकता रह गई है ?

अनावँयक था, फर भी संघ के वाःत वक ःव प को समझाने के

प म ौी गु जी ने इस ू

का उिचत उपयोग कर िलया। संघ के

स ब ध म उस समय और आज भी अनेक बु जीवी- वचारशील माने जानेवाले लोग यह ॅा त धारणा पाले हए ु है क संघ मु ःलम- े ा या मु ःलम- वरोधी है और

मु ःलम का अनावँयक आतंक अपनी श

के बल पर रोकनेवाली संःथा है । दे श

वभाजन के बाद चार ओर अशांित और तनावपूण वातावरण म भी ौी गु जी ने इस

पर अ यंत संतुिलत वचार य वचार ःप

कये थे। ौी गु जी

ारा इस ू

और मूलगामी थे क उनका यहाँ थोड़ा वःतार से उ लेख करना

अनुिचत नह ं होगा। ौी गु जी ने कहा, “ ज ह ने मुझसे यह ू ःप

के उ र म

बताया है क आपका यह

पूछा है उ ह मने

कोण ह पूणतः गलत है । पहली बात तो यह है

क संघ कसी के साथ संघष करने अथवा संघष का ूितकार करने के िलए खड़ा नह ं

हआ। दसर बात यह है क रा ीय चा र य िनमाण करने के संघ के ूमुख काय क ू ु

ओर आपका

यान नह ं गया है । शार रक संघष का मुकाबला करने के िलए साम य

खड़ा करने क जहाँ तक बात है , उसके िलए दे श म अखाड़े , यायामशालाएँ आ द संःथाएँ ह ह । उनके इतना बड़ा रा

ारा वह काय हो सकता है । इस एक मामुली काम के िलए

यापी संगठन खड़ा करने क कोई आवँयकता नह ं थी। पर

या

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२०


अपने समाज का केवल यह दःख है ? अपने समाज का गहराई से िनर ु

बाद अपने

ण करने के

यान म आयेगा क रा ीय-चा र य स प न नाग रक िनमाण करने क

ज मेदार रा ीय ःवयंसेवक संघ ने ूार भ से ह महण क है । यह काय कभी समा नह ं होता। वह अखंड चलता रहता है । वतमान पीढ़ को जैसी उसक आवँयकता होती है उसी ूकार वह आनेवाली पी ढ़य के िलए भी होती है । भारत का ू येक य

अपने दे श के िलए ूय

करने म संल न है ऐसा

चा हये। इसिलये संघ का काय प र ःथित-िनरपे

ँय हमेशा दखाई दे ना

है । हाथ म ला ठयाँ लेकर गुड ं के

समान इधर-उधर घूमना या जातीय दं गे भड़काना कदा प संघकाय नह ं है !” “व

शांित भी हमारे सामने लआय है । वह तो हमारा जीवन-काय है और वह हम पूरा

करना चा हए। आ या मक जीवन के आधार पर व

को शांित का पाठ दे ना और

स पूण मानव-समूह म एकता का भाव िनमाण करना हमारा स चा काय है । परं तु यह कब संभव होगा? जब हम अपने सांःकृ ितक जीवन का त व ान आ मसात ् कर चा र यस प न करोड़ लोग को एक सूऽ म गूथ ँ कर उ ह उ च िलए क टब

येय क ूाि

के

करने म सफल ह गे।”

ॄ टश राजस ा का अंत, दे श का दभा ु यशाली वभाजन, तीन वष म ह ःवतंऽ

भारत क िचंताजनक ःथित और रा ीय ःवयंसेवक संघ क नये संदभ म भूिमका आ द के बारे म बदलती प र ःथित के अनुसार ौी गु जी को काफ कुछ कहना पड़ा। केवल ःवयंसेवक के सम

ह नह ं, स पूण समाज के बीच भी कहना पड़ा। इस

संवाद का ूारं भ हम उनके इस ूवास म ःथान-ःथान पर दये गये भाषण म ह

प रल

त होता है । महा मा गांधी क ह या, दे शभर म हई क ु ु इस दघटना

ूित बया, संघ पर सरकार का अ यायकार रोष, सवऽ बढ़ती हई ु आदशह नता और

इस कारण रा ीय ूगित के माग म उ प न होनेवाली बाधाएँ दे खकर ौी गु जी का मन अ यंत यिथत हो उठा था। य

गत मान-अपमान अथवा गौरव समारोह म

उ ह जरा भी

िच नह ं थी। ूा

अवसर का लाभ उठाकर अपने इस भारत-ॅमण म

लोग के सम

ूखर रा ीय वचार रखने काह उ ह ने ूयास कया। उनके भाषण म

यह व ास ूकट होता था क संघ के माग से ह दे श म ःथरता, वैभव और ूित ा क ूाि

क जा सकेगी।

उ र भारत के ूवास म द. ३० अगःत को द ली के वाःत य म ौी गु जी ने ूधानमंऽी पं. नेह

से भट क । संघ पर से पाब द हटने के बाद ूधानमंऽी के साथ

संघ नेता क यह ूथम भट थी। ःवाभा वकतया उसका ःव प औपचा रक रहा। कंतु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२१


इसके बाद पुनः २३ िसत बर और २९ नव बर को दो बार ौी गु जी पं. नेह

से

िमले। ये दोन भट-वाताएँ ल बी चलीं। दोन नेताओं ने दे श क प र ःथित स ब धी

अपने-अपने वचार का आदान-ूदान कया। ौी गु जी ने संःकृ ित और रा वाद, अ ह दओं का रा जीवन म ःथान, संघकाय का ःव प और उ ेँय, स हंणुता, ु

अ हं सा इ या द वषय पर मु ू

दय से अपने वचार य

कये तथा नेह

के उ र दये। इन भट-वाताओं के बावजूद दभा ु य से पं. नेह

जी के

का मन संघ के

ूित ःव छ नह ं हआ और वे संघ पर हमेशा फािसःट और सा ूदाियकता का आरोप ु

लगाते ह रहे । बाद के कालखंड म पं. नेह आया

य क ःवयं पं. नेह

इ ह ं दन पं. नेह

ह गु जी से िमलना नह ं चाहते थे।

ारा संघ का वरोध य

जो संघ और कांमेस के बीच के स ब ध क य रह

के साथ भट करने का कोई अवसर नह ं

करनेवाली एक मह वपूण घटना हई ु , से सुदरप ू रणामी ,िस

हई। घटना ु

क सरदार पटे ल क इ छानु प कांमेस के ह कुछ नेताओं ने संघ ःवयंसेवक

के िलए कांमेस के

ार खुले करने क

दशा म हलचल ूारं भ क । इस मु े को लेकर

कांमेस म दो गुट िनमाण हए। राज ष टं डन और पं. ु

ा रकाूसाद िमौ ःवयंसेवक के

कांमेस-ूवेश का खुला समथन करने लगे। गुजरात के ौी ओंकारूसाद ठाकुर ने तो

टं डन जी के मत का समथन करते हए ु एक लेख भी ूकािशत कया। इस लेख म उ ह ने कहा था क “अगर संघ के अनुशािसत ःवयंसेवक कांमेस म आ जाय तो

कांमेस क सार गंदगी हट जाएगी।” जस समय यह चचा चल रह थी उन दन पं. नेह

वदे श याऽा पर गये हए ु थे पर तु उनके वापस लौटने पर कांमेस कायका रणी

ने एक ूःताव पा रत कया। इस ूःताव म कहा गया था क “संघ के ःवयंसेवक

य द चाहते ह तो वे कांमेस म शािमल हो सकते ह। क तु कांमेस म शािमल होने के

बाद वे कांमेस सेवादल के अलावा अ य कसी भी ःवयंसेवी संगठन म भाग नह ं ले सकगे।” पं. नेह

क उप ःथित म पा रत इस ूःताव का अथ ःप

था क संघ के

ू द गई हो क वे हं सा म व ास या सं वधान म भले ह ःवयंसेवक को यह छट दे शबा

िन ा न रखनेवाले कसी भी राजनीितक दल म भाग ले सकते ह, फर भी

कांमेस का आमह यह रहा क कांमेस म आना हो तो संघकाय को ितलांजिल दे नी

होगी। इस ूकार संघ ःवयंसेवक के िलए कांमेस के दरवाजे ब द कर दये गये।

११.२ भीषण घड़ म शांित क मूित संघ के ूित

े षभाव रखनेवाले कुछ लोग ने इस ‘ःवागत-पव’ म उपिव मचाने के

ूयास भी कये। िमरज, को हापुर, सांगली आ द

ेऽ म पथराव, हु लड़बाजी और ौी नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२२


गु जी को चोट पहँु चाने के िलए कये गये ूयास का वशेष

प से उ लेख करना

होगा। को हापुर म तो भीषण ूसंग टल गया। ौी गु जी जैसेह को हापुर म पहँु चे

तो संघ वरोिधय ने उनके व

नारे बाजी, पुतले जलाना, उ ह हमलावर भीड़ के घेरे

म फँसाने का ूयास करना आ द कृ य कये। कंतु ौी गु जी क भावमुिा यह थी मान उ ह इसक कुछ भी क पना या जानकार नह ं है । अ यंत तनावपूण वातावरण म भी धीर गंभीर और शांत रहते हए ु वे सारे कायबम िनधा रत समय पर त परता

से पूण करते रहे । को हापुर म दे वी के दशन भी वे कर आये। बाद म को हापुर से

सांगली का ूवास था। शासक य अिधका रय ने ौी गु जी को लोहे क जािलय वाली गाड़ म बठाकर को हापुर क सीमा तक सुर

त पहँु चाया। इस गाड़ पर भी पथराव

हआ जनम बड़े -बड़े प थर का ूयोग कया गया था। ु

को हापुर से सांगली तक का ूवास ौी गु जी ने ूिस

िसने िनमाता एवं िनदशक

ौी भालजी पढ़रकर क गाड़ म कया। हमेशा क भांित वे सामने क ओर साइवर के बाजूवाली सीट पर बैठे। ौी बाबाराव िभड़े भी पछली सीट पर बैठे थे। माग म िमरज क ओर से आनेवाली एक सड़क को हापुर-सांगली माग से आकर िमलती है । वहाँ कुछ ःवयंसेवक साइ कल से यह खबर दे ने के िलए पहँु चे थे क आगे सांगली के

िनकट उपिवकार भार सं या म खेत म िछपकर बैठे ह जनका गु जी क गाड़ रोककर उनपर हमला करने का इरादा है । इन ःवयंसेवक ने यह सुझाव दया क ौी गु जी क गाड़ (कार) को सामने नह ं रहना चा हए। उस कार के आगे ःवयंसेवक से भर एक बस चले और उसके पछे ौी गु जी क कार। क तु ौी गु जी ने इस ु सुझाव को ठकराते हए ु कहा-

“नह ं, कार ह आगे रहे गी, आप लोग यथ म िच ता

कर रहे ह। कुछ नह ं होगा” और ौी गु जी क गाड़ आगे बढ़ । कार आते दे ख

िछपकर बैठे उपिवकार कार को रोकने के िलए सड़क पर आने लगे। क तु ौी बाबाराव ने साइवर को ःप

सूचना दे रखी थी क कार तेजी से चलाना और कसी

भी प र ःथित म रोकना नह ं। उपिवकार भीड़ यह समझ बैठ थी कार भीड़ दे खकर गित धीमी करते हए ु आ खर

कने के िलए ववश होगी। क तु भीड़ को दे खते ह ौी

बाबाराव ने पुनः साइवर को सूचना द आगे बढ़ाओ। साइवर ने वैसा ह

क तेज गित से चलो और बना रोके गाड़ को

कया। गाड़ क गित और तेज कर द । जैसे-जैसे

गाड़ िनकट आने लगी हमलावर भीड़ ूाण बचाने सड़क के दोन और उनके बीच से कार सुर

कनार पर हट गई

प से िनकल गई! हमलावर दे खते ह रह गये। उ ह

हमला करने का मौका नह ं िमल पाया। इस सारे काल म जब कार व बस म बैठे

सभी लोग ःवाभा वक

प से अ य त तनावमःत थे, ौी गु जी शा तता क ूितमूित

बने बैठे रहे । नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२३


सांगली म ौी गु जी क सुर ा क सार तैया रयाँ क गई थीं। जैसे ह वे सांगली पहँु चे, ौी गु जी को सुर

त दे खकर िचंताम न कायकताओं ने राहत महसूस क ।

सांगली म भी पथराव, नारे बाजी क कुछ घटनाएँ हु

क तु सभी कायबम

योजनानुसार स प न हए। सावजिनक सभा म भाषण दे ते हए ु ु ौी गु जी ने तनावपूण प र ःथित और उपिव का उ लेख तक नह ं कया और न ह ं उनके चेहरे पर िचंता क झलक ह

दखाई द । सांगली क ःवागत सभा म भी उ ह ने संघ का वधायक

वचार ूितपा दत कया। ौी गु जी क धीरोदा ता और िनभयता का यह दशन कायकताओं के िलए वल ण प रणामकार तथा संःमरणीय रहा। को हापुर-सांगली क इन घटनाओं से ौी गु जी यिथत अवँय हए ु क तु मन क

शांित और संतुलन को उ ह ने ढहने नह ं दया। मन म कसी के ूित बोध क

भावना ूवेश नह ं कर पायी और न ह इन घटनाओं के िलए उ ह ने कसी पर

दोषारोपण कया। इस घटना पर आगे चल कर ‘पु षाथ’ मािसक म अपने लेख म उ ह ने कहा- “ ज ह अपना मान कर गले से लगाना है , जनक सेवा करना है वह यह अपना समाज है । वह चाहे तो फूल क माला प हनाए या जूत क ! वह ूशंसा

करे या िनंदा, गािलयाँ दे या कुछ भी करे , आ खर है तो वह अपना ह । हमार पर

लेने के िलए वह अनेक बार अ छा-बुरा बताव करता है ; क तु वह तो केवल पर

ह है । वाःतव अंतःकरण से वह अपना ह है । वह अपने साथ आयेगा। इतना ह नह ं

तो अपनी अलौ कक िन ा के कारण अपना अनुयायी बनकर हमेशा हमारे पीछे चलेगा। समाज परमे र का ह

प है और परमे र ने कह रखा है क म अपने भ

का दास हँू । आवँयकता है हम अपने आपको स चे भ

के

प म ूःतुत कर।”

११.३ लआय पर सतत ौी गु जी ने आ या मक पर परा ूा कत यपूित क

ह दओं क भ ु

-भावना को सामा जक-

दशा म मोड़ने का अखंड ूयास कया। इसके िलए उ ह ने अपने

सेवामय जीवन का आदश ूःतुत कया। संघबंद के वपर त कालखंड म अथवा संघबंद हटने के बाद वजयो लास के ‘ःवागत-पव’ म उ ह ने अपने िच

का संतुलन

और सम व कभी भी ढहने नह ं दया। इन ता कािलक बात म न फँसते हए ु संघ के

वाःत वक जीवनकाय क ओर ःवयंसेवक तथा समाज का

यान आक षत करने का

ूयास सभी उपल ध अवसर तथा मा यम से उ ह ने कया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२४


ःवागत समारोह क सवऽ धूम चल रह थी फर भी दै नं दन चलनेवाली शाखाओं

तथा ःवयंसेवक पर उिचत संःकार क

यवःथा पुनः ठ क ढं ग से खड़ करने क

आवँयकता ौी गु जी अनुभव कर रहे थे। साथ ह कायकताओं के मन म उठ रहे ू

पर ौी गु जी ने बहत ु ग भीरता और

गहराई से वचारमंथन कया। वे अनुभव कर रहे थे क कायकताओं के मन म संघवचार एवं संघ क काय-प ित के ूित उ कट ौ ा पुनः ःथा पत करना आज क

पहली आवँयकता है । इसिलए १९४९ के अ ु बर माह म जब कुछ दन तक उनका वाःत य नागपुर म था, तब कायकताओं के सम

लगातार पाँच दन ( द. १९ से

२२) तक उ ह ने अपने मौिलक वचार ूःतुत कये। इस वचार मंथन का ूयोजन बताते हए ु ौी गु जी ने कहा- “अनेक के अ तःकरण म यह शंका आती है क अपने

दे श क प र ःथित को दे खते हए ु पूव-प ित से काम करने क कुछ आवँयकता है या नह ं? इसका हम अवँय वचार करना चा हए।”

नागपुर के कायकताओं का मागदशन करने के प ात ् ौी गु जी उ र भारत के ूवास पर िनकले और वहाँ ूचारक के अनेक िश बर म इन ू

पर अपने वचार खुलकर

रखे। उ र ूदे श म जौनपुर और सीतापुर म आयो जत ूचारक िश बर म ौी गु जी ारा ूःतुत वचार उसी समय लखनऊ से ‘ येय दशन’ नामक पु ःतका के

प म

ूकािशत हए। ु इन बौ क एवं चचा सऽ म राजस ा और राजनीित क सीमाओं को ःप ौी गु जी ने कहा, “राजनीित जीवन का अ पतम अंग है , जीवन को या

करते हए ु

करनेवाला

साधन नह ं। कई लोग के मन म वचार आया क ‘यथा राजा तथा ूजा’ के अनुसार तो जनता के मन के ऊपर ूभाव करने के िलए स ा लेना ह चा हए। क तु

आजकल तो जनतंऽ का जमाना है । अब तो ‘यथा राजा तथा ूजा’ हो गया है । ूजा दबल है तो राजा भी दबल होगा। ूजा य द भयातुर, व ासह न, च रऽह न तथा ु ु

अभारतीय त व से ूेम करनेवाली होगी तो राजा भी वैसा ह होगा। अतः स य तो यह है क ूजा के अिध ान पर राजा का िनमाण हो, न क राजा क स ा के आधार पर ूजा के मागदशन का वचार।” आसेतु हमाचल ह द ु संगठन क आवँयकता पर बल दे ते हए ु ौी गु जी ने कहा क

हमारा समाज अभी भी जाित भेद और ूा त भेद का िशकार है , असंग ठत है , दबल ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२५


है , आ म वःमृित म डू बा हआ है । उसम ःवाथ भरा हआ है । जब तक वह रा भ ु ु

से

ओतूोत और चा रऽवान नह ं होगा तब तक जनतंऽ सफल कैसे होगा? राजस ा ूभावी कैसे होगी?

समाज के िनमाण का काय केवल राजनीित से नह ं होगा।

उ ह ने कहा क रा भ रा

संःकृ ित से बनता है । वशु

तेजःवी बनाकर, शु

संःकृ ित को सामने रखकर उसे अिधक से अिधक

कर, िभ न-िभ न ॅमा मक वचार को हटाकर शु

क पना के आधार पर वशु

रा ीय

कोण से समाज और रा

रा

के उ थान का जो

काय हमने िलया है , उसे ह संःकृ ित कहा है । ःवतंऽता ूाि

के बाद क राजनीित के च रऽ पर ूकाश डालते हए ु ौी गु जी ने कहा

क, “सभी संःथाएँ समाज के भेद को उभाड़ कर अपनी रोट पर ह अिधक घी चुपड़ने क इ छा से िभ

ता को बढ़ाने क कोिशश म लगी ह। नयी-नयी िभ नताएँ

पैदा करती जा रह ह।.... अ खल भारतीय नेत ृ व के दावेदार भी इन भेद से ऊपर नह ं उठ पाये ह।” ौी गु जी ने ू

कया क जब दे श म य

तक प रवतन कैसे होगा? रा

गत और रा ीय चा रऽह नता है , तब

के चा र ऽक पतन के िलए दलगत राजनीित को

उ रदायी ठहराते हए ु उ ह ने कहा क ‘सव साधारण र ित से चा र य जो दखाई नह ं दे ता उसका कारण यह है क लोग वचार करते हए ु कसी न कसी दल क

ी से

मानकर उसको बढ़ाना और उसी के

के

वचार करते ह, चाहे वह राजनीितक हो या आिथक। वे दल क मह ा को ह अिधक

िलए भला-बुरा

ारा रा

का क याण करना चाहते ह। रा

या होगा इसका वचार नह ं करते। लोग चुनाव म दे श का भला

करने के भाव से नह ं, दलगत ःवाथ लेकर आते ह। आज जीवन के सभी

आसेतु हमाचल फैले हए ु रा

ेऽ म

के बारे म पूण क पना नह ं है । सेवा क स पूण ूवृ

भी दलगत ःवाथ म फँस गई है । दलीय ःवाथ और अनुशासन ह स मुख रह जाता

है । ...दल बनाकर दलगत ःवाथ से ऊपर उठने क बात अस भव है ।’ सुसग ं ठत च रऽवान जीवन क आवँयकता को सव प र बताते हए ु ौी गु जी ने कहा,

‘च रऽ या ःनेह का आधार एका मता है ..... एका मता का भाव ह सुसग ं ठत सकेगा। संःकृ ित को रा

प दे

क आ मा जानकर उसे ह हम जगाना चाहते ह। इसके

िलए स ा क आवँयकता नह ं। इितहास बताता है क स ा के कारण बनी एकता

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२६


शीय न

हो जाती है । मनुंय के अ दर ौे

जीवन उ प न करने का काय स ा के

ारा नह ं हो सकता।’ “राजस ा के ऊपर हमारा जीवन िनभर होता तो परक य के आबमण होते ह हम समा

हो जाते। जब तक हम इस सांःकृ ितक धारा को जागृत रख सकगे तब तक

जी वत रहगे।...ूजा य द संःकृ ित को मानती है तो भला और कसका रा य हो

सकता है ? अतः स पूण ूजा को सांःकृ ितक आधार पर सुसग ं ठत करने से काय होगा। हम तो रा

म अपनी संःकृ ित के आधार पर चेतना उ प न करते हए ु उसके

क याण क ह कामना करते ह। हमम से कसी को मंऽी बनने क इ छा तो है नह ं। भारत म चलनेवाले ू येक काय पर य द हम अपना रं ग चढ़ाना चाहते ह तो हम इस ठोस िचरं तन काय को ह अपनाना चा हए। जैसे सूय के ूकाश से च िमा ूकािशत

होता है उसी ूकार ूजा के ूकाश से ह स ा को जीवन, ूकाश और ूभाव िमलता है । सूय के अ दर क ूभावान चैत ययु आशा आकां ा के मूत

के समान हम ूजा के सवःव, उसक

प बन। फर उसके ूकाश से चमकनेवाली स ा और कौन

सा ूकाश दे सकेगी?” संघ काय क मूल भूिमका का ःमरण दलाते हए ु ौी गु जी ने कहा, “अपना काय तो

मूितकार का है जहाँ रा ा मा पूण ूभाव से ूकािशत है । यह काय वघटनकार

प ितय का गुलाम बनकर नह ं हो करता। व छ नता के ःथान पर एका मता उ प न कर, अरा ीयता के ःथान पर रा ीयता जागृत कर, अभारतीयता के ःथान पर भारतीयता का मंऽ पलाकर हम नव चैत य प रपूण समाज का िनमाण करना है । आज हमार सार समःयाएँ ःवाथ के कारण ह।...बड़े -बड़े

भाषा, ूा त, पंथ,

मत का अिभमान रखते ह और अ खल भारतीय नेता कहलाते ह। क तु हमारे यहाँ ब चा भी कहता है क यह सारा भारत मेरा है ।” अपनी ऋ ष कसी

से भ वंय म झाँकते हए ु उ ह ने कहा क, “रा

प म ूगट होगा ह । बीज बो दया है वटवृ

जीवन के ू येक

ेऽ म संघ के ःवयंसेवक

को अनेक शाखा-ूशाखाओंवाले वटवृ

का

का चैत य कसी न

अवँय खड़ा होगा।” अब रा

ारा खड़े कये वशाल संगठन ने संघ प दे दया है । ौी गु जी क भ वंयवाणी

स य हई ु है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२७


ूितबंधकाल के प ात ् संघ क वैचा रक भूिमका को ठ क ढं ग से ूःतुत कर काय के

ूित ूखर ूेरणा जागृत करने का जो क ठन काय कारावास से मु गु जी ने अ यंत दरू-

होने के बाद ौी

के साथ ूारं भ कया, उसका यह ौीगणेश ह है । इस काय

के स ब ध म आगे वःतार से वचार कया जाना है , अतः यहाँ अिधक गहराई म

जाने का मोह हम टालना होगा। हाँ, इतना अवँय कहा जा सकता है क अंमेज क स ा समा

हो जाने के बाद प र ःथित म हए ु प रवतन को

यान म रखते हए ु

ःवतंऽता के स दभ म संघ क जो वचार ूणाली ौी गु जी ने उस कालखंड म असं द ध

प से ूितपा दत क , उसी आधार पर आज संघ खड़ा है । उसी जीवन-रस

का पान कर संघ का वट-वृ

वःता रत हआ है । ु

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२८


१२ आपदमःत के आशा ःतंभ सन ् १९५० का पुवाध। दे श का वभाजन होकर तीन वष बीत चुके थे। इन तीन वष

के कालखंड म प

तथा ू य

म बंगाल रा य का दौरा करते समय ौी गु जी ने जो दे खा, सुना

अनुभव कया, उसके फलःव प वे बहत ु ह

क दखद अवःथा दे खकर उनका ु

यिथत हए ु थे। अपने बंधुओं

दय ि वत हो उठा था। सामा जक समरसता उनके

दय का ःथायी भाव होने के कारण वे बहत हए ु ु ह दःखी ु थे।

भारतीय नेताओं ने पा कःतान के िनमाण क स ध करते समय अपने ह द ू बंधुओं के भ वंय का तिनक भी वचार नह ं कया। अिन

त आशावाद पर ह वे िनभर रहे ।

जो हआ ु , वह कभी होगा नह ं, यह उनक मनोधारणा थी। क तु यह धारणा गलत

िस

हई। प ु

म पा कःतान से वःथा पत ह दओं के वशाल ज थे बाढ़ क भांित ु

आए और उनक संपूण यवःथा म संघ ने भरसक ूय

कर अपना संपूण सहयोग

ूदान कया। पूव पा कःतान म लगभग डे ढ़ करोड़ ह द ू शेष थे। उ ह धोर यातनाएँ

द जा रह ं थीं। प रणामतः ह दओं का जीवन इतना असुर ु

इस हद तक पहँु चा क लाख

त हआ और अ याचार ु

ह द ू बेघर होकर आ मर ा हे तु प

म बंगाल म आ

पहंु चे। असीम यातनाओं से उ ह संघष करना पड़ा।

१२.१ जनश भारत सरकार क उनके िलए दो ह

को आवाहन से वे िनवािसत ‘ वदे शी’ थे, शरणाथ थे। पाक शािसत ूदे श म वक प थे- धमा तर या मृ यु। क तु उ ह ने ह द ू के नाते ह

जीने का िन य कया था। इस कारण आपदाओं से जूझते हए ु वे कसी तरह भारत

म आ पहँु चे। आ य क बात यह थी क अपनी सरकार न तो उनक सुर ा का

ूयास कर रह थी, न ह आबाद क अदला-बदली का वचार उसके मन म उभरता दखाई दे रहा था। कतनी घोर वड़ं बना थी यह!

ये वे लोग थे जनसे ःथाना तरण के बारे म न पूछा गया, न ह उनक कोई िचंता क गयी। बस, कलम क एक नोक से उ ह उनक मातृभिू म से वंिचत कर दया

गया। जो कल ःवदे शीय थे वे आज परदे सी बना दए गये। उनके जान-माल, इ जत तथा ःवािभमान क हमारे नेताओं को कोई परवाह नह ं थी। इस गंभीर तथा उम समःया का िनवारण केवल सरकार ह कर सकती थी। सरकार ःतर पर ह उसका

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१२९


हल संभव था। कंतु केवल सरकार का मुह ँ ताकते हए ु बैठना ौी गु जी को मा य नह ं था। उ ह ने आवाहन कया क समाज का भी उ रदािय व है क वह अपने

वःथा पत-पी ड़त ब धुओं क सहायता हे तु ःवयंूेरणा से अमसर होकर अपना कत य िनभाए। सेवा का यह काय करने के िलए रा ीय ःवयंसेवक संघ के त वावधान म ‘वाःतुहारा

सहायता सिमित’ का गठन कया गया। संघ के अकृ ऽम सामा जक ःनेह भाव का यह एक ःवाभा वक आ वंकार था। वभाजन पूव तथा वभाजन के बाद जब भी

रा जीवन संकटमःत रहा, संघ सदा ह सेवा काय म अमसर रहा है । इस समय यह ूेरणा काया वत हई। ौी गु जी ःवयं इस ूेरणा के ु

ोत बने।

पूव पा कःतान ःथत ह दओं क भीषण अवःथा से संबंिधत एक िनवेदन ौी गु जी ु ने तुर त ूकािशत कया। इस िनवेदन म समाज को अपने कत य का िनवाह करने का आवाहन कया गया। ौी गु जी कलक ा से द ली पहंु चे। समय क पुकार को दे खते हए ु उ ह ने अ वलंब रा

के

के नाम एक संदेश वनॆ िनवेदन

प म ूकाशनाथ दया। ूःतुत िनवेदन म पा कःतान ःथत ह दओं क ु

दरावःथा का वणन कर सहायता ूदान करने का आवाहन कया गया था। ७ माच ु

१९५० को यह िनवेदन ूकािशत कया गया। ‘वाःतुहारा सहायता सिमित’ क ःथापना

८ फरवर को ह हो गयी थी। ौी गु जी ने सिमित के कायकताओं को िनः​ःवाथ सेवा का महामंऽ दया था। प

म बंगाल, असम तथा उड़ सा म संघ काय का ःव प बहत ु सीिमत था। यह

समःया गंभीर तथा रा ीय ःतर क थी और सरकार सहायता क अपे ा रखनेवाली थी। इस कारण द ली से ूकािशत कये गये आवाहन म ःप क सरकार द ु वधा क मनोवृ

प से कहा गया था

याग कर ठोस तथा िनणायक उपाय क योजना

कर। इस आवाहन का एक अंश है “अिन

तता, द ु वधा भर मनोवृ

तथा दबलता ह बढ़ती रहे गी तो डे ढ़ करोड़ ु

िनंूाण िनद ष भारतीय के वनाश का पाप भारत सरकार के माथे पर होगा। सरकार क ूित ा िम ट म िमल जायेगी। अतएव सांूदाियकता के दल-दल म न फँसते हए ु

िनभयता पूवक कदम उठाया जाय, समःया चाहे पुिलस कायवाह क हो या ह द-ू

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३०


मुसलमान क जनसं या क अदला-बदली क । ह दओं और भारत-िनवासी ु

मुसलमान का बराबर से (सं या बल सापे ) ःथाना तरण हो, तदथ सुिन

त उपाय

योजना शीयाितशीय काया वत क जाय जसके फलःव प हमारे सहोदर डे ढ़ करोड़ ह दओं क र ा हो सके तथा भ वंय म वे शांितपूण सुखमय जीवन यतीत कर ु

सक।”

“साथ ह म अपने दे शवािसय से बनती करता हँू क वे अपना संयिमत ढं ग से ूगट कर। जन गित विधय म अड़चन,

ोभ, भावनोिे क

ारा शांित भंग होकर सरकार के माग

कावट पैदा हो सकती ह, उ ह व जत कर। हम चा हए क हम कसी भी

असामा जक, दे श वघातक तथा अवांछनीय कृ य के िशकार न बन।” ौी गु जी के इस संदेशा मक िनवेदन पऽ को अखबार ने खुले दल से ूाथिमकता दे कर ूकािशत कया। इसके प ात ् नागपुर पहंु चने पर द. १४ माच को ौी गु जी ने उपयु

आशय का एक िल खत आवाहन पुनः ूकािशत कया जसम दे शवािसय से

वःथा पत क सहायता के िलए हाथ बंटाने का आमह कया गया था। ौी गु जी के

ू येक श द म उनके

दय क ट स, ममता तथा अपार ःनेह का भाव ूगट हआ ु

था। त कालीन रा ीय समःया क गंभीरता का प रचय इस िनवेदन क

वशेषता थी।

आम जनता को सतक करते हए ु ौी गु जी ने कहा, “यह तो सरकार क

ज मेदार है ऐसा सोचकर िन ंबय बैठे रहना भारतवािसय को

शोभा नह ं दे ता। समाज को चा हए क वह संपूण श

के साथ सरकार का कायभार

हलका करने म अपना हाथ बँटाए।” सरकार कामकाज म बाधा उ प न करना ौी गु जी को कतई मा य नह ं था। उनक भूिमका सदै व सहायता क रह । ू

चाहे वःथा पत का हो या संघ पर लगे ूितबंध

का, रा य पुनरचना का हो या ूाकृ ितक आपदाओं या वदे शी आबमण का, माऽ सरकार का वरोध करने का सूऽ उ ह ने कभी नह ं अपनाया। दे शभ

, लोकक याण

तथा रा ीय एका मता का पोषण- इन िनकष पर आधा रत उनका मागदशन रहा करता था।

पूव पा कःतान से आये िनवािसत क क ण कहािनयाँ दल दहला दे नेवाली थीं। उ ह सुनकर आंत रक पीड़ा का अनुभव होता था और ऐसे समय िच नवयुग ूवतक ौी गु जी

का ू ु ध होना भी

१३१


ःवाभा वक ह था। फर भी ौी गु जी उ े जत नह ं हए। आपे के बाहर क जानेवाली ु आबामक ूित बयाओं को उ ह ने बढ़ावा नह ं दया। वे बार-बार कहा करते थे क हम संयम के साथ वधायक

कोण अपनाते हए ु ू

पूव भारत म रा ीय ःवयंसेवक संघ क श

का हल ढँू ढ़ना चा हए।

कम थी। फर भी संघ के ःवयंसेवक

ने िनः​ःवाथ सेवाकाय का एक अनूठा आदश समाज के सामने रखा। ौी गु जी

ारा

कये गये आवाहन का प रणाम ःव प समूचे दे श के कोने-कोने से धन, व , अनाज

तथा जी वकोपाजन के िलए आवँयक वःतुओं का ूवाह वाःतुहारा सहायता सिमित क ओर बहने लगा। पूव पा कःतान म अ याचार का तांता लगभग सालभर चलता रहा। वःथा पत क बाढ़ प

म बंगाल क

दशा म बढ़ती रह । इन वःथा पत के

िलए िश वर का िनमाण कर उ ह अ न, व , बतन आ द आवँयकताओं क पूित

करना, उनके ःवाः य क ओर

यान दे ना, अथ पादन क सु वधाएँ उपल ध कराना,

बालक क िश ा के िलए पाठशालाएँ चलाना आ द कायकलाप सिमित प से चल रहे थे। प को आौय ूा

ारा अखंड

म बंगाल तथा असम म ःथत िश वर म ८० हजार बंधुओं

हआ ु , डे ढ़ लाख लोग को व

दए गये तथा १ लाख से अिधक लोग

के िलए अनाज और दध ू का ूबंध कया गया। इस काय म संघ के ५ हजार

कायकता दन-रात जुटे हए ु थे। उपयु

कालखंड क एक और उपल ध यहां उ लेखनीय ूतीत होती है । इन दन

संघ पर से ूितबंध हटने के प ात ् गृहमंऽी सरदार व लभभाई पटे ल दे श- ःथित पर वशेष चचा करने हे तु ौी गु जी से वातालाप कया करते थे। ौी गु जी उनके िलए

व ासपाऽ बने हए ु थे। जब भी कोई वशेष घटना दे श म होती, ौी गु जी अपनी

राय तथा संघ क भूिमका से उ ह अवगत कराते थे। जब पूव पा कःतान से आए वःथा पत का ू

उम तथा ू ोभक बना तब सारे दे श

म ूित बयाएँ ूित विनत होने लगीं। ौी गु जी ने सरदार व लभभाई पटे ल को द. ५ अूैल को जो पऽ िलखा उसम उ ह ने कहा, “अपने दे श म शांित भंग होना या प र ःथित का लाभ उठाने के िलए सरकार के व

भावनाएं भड़काना सवथा

अनुिचत होगा। शांित को बनाए रखना यह हमार नीित है तथा इसी भाव को मन म धारण कर हम पी डत क सेवा कर रहे ह।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३२


द. १२ अूैल को ौी गु जी द ली पहंु चे। ःवयं ौी व लभभाई पटे ल से िमलकर

सहायता सिमित के काय से उ ह अवगत कराया।

ौी व लभभाई पटे ल यह सुनकर बहत ु ूस न हए ु और उ ह ने ौी गु जी से पूव भारत म संघकाय का अिधक वःतार करने का मानस य

कया

द. ३० अूैल १९५० को द ली के आन द पवत मैदान पर संघूेमी नाग रक ौी गु जी को १ लाख १ हजार १ सौ १

ारा

. क धनरािश संघकाय के हे तु सम पत क

गयी। ौी महाशय कृ ंण इस कायबम के मनोनीत अ य

थे। उप ःथत गणमा य

नाग रक को संबोिधत करते हए ु ौी गु जी ने कहा, “संघ को केवल पैसा दे कर

आ मसंतु

न रह। ःवयं संघमय बनने का ूयास कर।”

१२.२ असम म भूक प वाःतुहारा सहायता सिमित का काम करने म कायकता गण यःत थे। क तु उनक सेवाशीलता क मान पर

ा लेने क िनसग को इ छा हई। द.१५ अगःत को असम ु

म भूक प का जबरदःत ूकोप हआ। ूकृ ित के इस आक ःमक ूकोप ने ु

असमवािसय को झंझोड़ दया। भूक प के कारण ॄ पुऽ नद का माग ह बदल गया। इसके फलःव प अनिगनत मकान धराशायी हो गये, जमीन म दस-बारह फ ट चौड़ दरार बन गई, नद पर बने पुल करोड़

वःत हो गए। सवऽ ऽा ह-ऽा ह मच गयी।

पय क हािन हई। ु

सदै व के अनुसार अपने ःथायी सेवाभाव का ःमरण कर संघ के कायकता सहायता करने हे तु दौड़ पड़े । ‘भूक प पी ड़त सहायता सिमित’ क ःथापना क गयी। कामा याराम ब आ इस सिमित के अ य को अपनी संपूण श

यायमूित

थे। ौी गु जी ने पऽ भेजकर ःवयंसेवक

दाँव पर लगाकर पी ड़त क सेवा करने के िलए ूो सा हत

कया। िसत बर मास म ौी गु जी सिमित के काय का अवलोकन करने के िलए

असम पहंु चे। इस ूवास के समय उ ह ने ःवावलंबन का संदेश समःत असमवािसय

को दया।

“समाज य द संग ठत तथा अनुशासनब

हो तो

वह कर पाएगा” ौी गु जी के मागदशन क यह

ह अनेक गंभीर संकट का सामना दशा थी। संकट क घड़ आने पर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३३


हर समय सरकार या बाहर सहायता पर िनभर रहने क ूवृ साथ ह ‘एक दल’ के

उ ह पसंद नह ं खी।

प म रहकर काम करना भी उ ह ःवीकार नह ं था। उनक यह

क पना थी क ःवयंसेवक समाज म घुलिमल कर, उसे साथ लेकर काम कर। सिमित के सहायता काय क ौी गु जी ने ूशंसा क । एक वशेष िनवेदन ूकािशत कर जन ःवयंसेवक ने बाढ़ से िघरे गांव तक तैरते हए ु पहँु चकर पी ड़त बंधुओं तक

सहायता पहँु चाई, उसक भू -भू

ूशंसा भी क । अपने ूाण क परवाह न करते हए ु

ःवयंसेवक का जुट जाना, सम पत होना, अ न,व

आ द के वतरण म अनुशासन

का ूदशन करना उ ह बहत ु आ छा लगा। वे ूस न थे।

१२.३ विभ न प र ःथितय म १९५० का वष समा

होने के कगार पर था। इसी समय १५ दसंबर को गृहमंऽी

व लभभाई पटे ल का दःखद िनधन हआ। यह समाचार जब ूा ु ु

हआ तब नागपुर म ु

संघ के के ि य कायकार मंडल क मह वपूण बैठक चल रह थी। ःव. व लभभाई पटे ल के

दय म संघ के ूित जो ःनेहभाव था उससे सभी कायकता प रिचत थे।

बैठक म शोक ूःताव पा रत कर बैठक समा ूित अपना आदरभाव य

क गयी। ौी गु जी इस रा पु ष के

करने तथा उनके अ तम दशन हे तु मुब ं ई जाना चाहते

थे। म यूदे श के मु यमंऽी पं. र वशंकर शु ल के साथ हवाई जहाज से वे मुब ं ई

पहंु चे। संघ क ओर से ौी गु जी ने लौहपु ष व लभभाई पटे ल के पािथव शर र पर पुंपचब चढ़ाया। बाद म उ ह ने अपने शोक संदेश म कहा,

“ौी व लभभाई पटे ल क मृ यु दे श पर हआ एक असहनीय आघात है । हम लोग ु

उनके ूेमभाजन रहे ह। इस कारण यह हमारा कत य है क हम अपने दे श को बलसंप न बनाकर अंतगत कलह तथा बा

आबमण से दे श क र ा कर। ऐसा

संक प करना ह उनके ूित सह ौ ांजिल िस कारावास से मु

होगी।”

पाने के प ात ् डे ढ़ वष का समय सवसामा य

प से बीता। जगह-

जगह स कार होते तो कभी-कभार प थर भी बरसाए जाते। क तु ौी गु जी अ वचल थे। स कार के फूल वे िन वकार तठःथ भाव से ःवीकार करते थे। साथ ह प थर को भी फूल मानकर उनका ःवागत करने म उ ह आनंद आता। ूाकृ ितक आपदाओं

से पी ड़त बांधव क सेवा, संघकाय का ूसार तथा वैचा रक व संघटना मक ूेरणा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३४


दे ने का काय वे करते रहे । इन सभी कायकलाप का सूऽ एक ह था : अपने

सांःकृ ितक आदश क आधारकिशला पर अपने ह द ू रा

को बलशाली, गुणसंप न

तथा परम वैभव के िशखर पर वराजमान करना हमारा कत य है । साथ ह हम द ु खय के दःख का प रहार और रा ीय दािय व के िनवाह क ु को काय ूवृ

मता ूदान कर लोग

करना है ।

१२.४ भारतीय जनसंघ का उदय समाज पु ष को ह केवल ौी गु जी ने अपना उपाःय दे वता माना था। ौी गु जी जो भी करते उसम उनका एक ह िन

त मंत य रहा करता था- ःवयं को तथा संघ को

राजनीित से, स ा ःपधा से दरू रखना। कंतु भारत का सं वधान २६ जनवर १९५० से काया वत हआ। तदनुसार पहला आमचुनाव १९५२ म हआ। ु ु

चुनाव नजद क आने पर दे श का वातावरण गम हो गया। ःवतंऽता ूाि

के साथ ह

राजनीित समूचे सावजिनक जीवन पर छा गयी। संघ के भीतर भी ग भीर अ त ूार भ हो गया। भीतर और बाहर द नो ओर से ौी गु जी पर दबाव पड़ने लगे क संघ को राजनीित म भूिमका िनभानी चा हए। ूितब ध काल म ःवयं सरदार पटे ल ने इस बारे म काफ आमह कया था। क तु गु जी राजनीित से अलग रहने क अपनी

भूिमका पर च टान क तरह अ डग रहे । ूितब ध उठने के बाद संघ के अनेक कायकताओं के मन म भी यह ू

उठा क

या राजनीित से अलग रह पाना संभव

होगा? पछले अ याय म हम बता चुके ह क ौी गु जी ने ऐसे ू तकयु

का बहत ु ह

समाधान करते हए ु स ा और दल क राजनीित से अलग रहकर िनंकाम

सांःकृ ितक संगठन साधना क आवँयकता का ूितपादन कया था।

क तु जीवन म स ा क भूिमका ूभावी होती जा रह थी। कांमेस और के ि य सरकार म पं. नेह कांमेस अ य

और सरदार पटे ल के बीच वैचा रक दरू बढ़ती जा रह थी।

पद के िलए नेह

और पटे ल के बीच छायायु

ू याशी राज ष पु षो मदास ट डन ने नेह

म पटे ल समिथत

समिथत आचाय कृ पलानी को हरा दया।

इसके पूव पूव पा कःतान म ह दओं पर भार अ याचार होने पर लाख क सं या ु म ह द ू शरणाथ प. बंगाल म आ गये। इस ू

पर भी नेह

और पटे ल का मतभेद

उभर कर सामने आ गया। सरदार पटे ल इन शरणािथय के पुनवास के िलए

पा कःतान से भूिम मांगने के प धर थे जब क नेह जी ने पा कःतान के ूधानमंऽी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३५


िलयाकत अली खान के साथ ८ अूैल १९५० को अ य त अपमानजनक समझौते पर

हःता र कर दये जसके वरोध म बंगाल के डॉ. शामाूसाद मुखज और के.सी. िनयोगी ने नेह

मं ऽम डल से

याग पऽ दे दया। ये द नो मंऽी सरदार पटे ल क

नीितय के समथक थे। उनके हटने से सरकार म सरदार क

ःथित थोड़ कमजोर

हई। क तु कांमेस संगठन पर उनक पकड़ मजबूत थी। दसरा ूदशन कांमेस अ य ू ु

के चुनाव म हो गया। सरदार का ःवाः य तेजी से िगर रहा था और १५ दस बर

१९५० को उनके िनधन के साथ सरकार और संगठन दोन पर नेह जी का िनंकंटक वचःव हो गया। नेह जी क हठधम के सामने पु षो मदास ट डन को अ य से

यागपऽ दे ना पड़ा और पं. नेह

बैठे।

ूधानमंऽी के साथ-साथ काँमेस अ य

पद

भी बन

ा रकाूसाद िमौ जैसे कई पटे ल समथक नेता खुले विोह के राःते पर उतर

आये। तेजी से बदलते इस घटनाचब के कारण संघ के कायकताओं का एक वग एवं अ य रा वाद त व एक रा वाद राजनीितक दल क ःथापना क आवँयकता तीोता से अनुभव करने लगे। इसी छटपटाहट म से मई १९५१ म जालंधर म कुछ संघ कायकताओं क पहल पर भारतीय जनसंघ क ःथापना हई। लगभग उसी समय ु

बंगाल म डॉ. शामाूसाद मुखज ने भी जनसंघ क शाखा ःथा पत क । उ ह ने ौी गु जी से बार-बार भट करके आमह कया क संघ को नये राजनीितक दल को पूरा सहयोग दे ना चा हये। ौी गु जी ःवयं कभी इस मत के नह ं थे क संघ राजनीित म

कूदे और संघ के संगठन को राजनीित से पूणतया अलग रखते हए ु कुछ चुने हए ु ौे

कायकताओं को राजनीित के

ेऽ म ूयोग करने के िलए मु

कर दया। ौी गु जी

ू िमलते ह िसत बर से अ ू बर १९५१ म विभ न ूा त म क ओर से यह छट

भारतीय जनसंघ क शाखाओं का जाल बछ गया और १२ अ ू बर १९५१ को द ली म पहले रा ीय स मेलन म अ खल भारतीय जनसंघ का ूादभाव हो गया और वह ु

अपना घोषणा पऽ लेकर चुनाव म उतर गया।

१२.५ चुनावी कोलाहल से दरू क तु ौी गु जी को चुनाव ूचार के कोलाहल म कोई रस नह ं आता था। उ टे वे एक दसरे के व ू

आरोप-ू यारोप को सुनकर यिथत होते थे। उन दन उनका

मन बहत ु अशांत था। इसिलये वे इस स ािभमुखी चुनावी वातावरण से परे रहने का

संक प ले, वे पुणे के पास िसंहगढ़ नामक िशवाजी कालीन दग ु पर िनवास करने चले

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३६


गये। यहां लोकमा य ितलक के िनवास ःथान पर द. २५ दस बर १९५१ से १८ जनवर १९५२ तक, याने २५ दन वे रहे । इस कालाविध का उपयोग ौी गु जी ने गीता, उपिनष

तथा अ य मौिलक मंथ का

पठन करने के िलए कया। िचंतन, मनन, पठन म ह वे यःत रहा करते थे। अपनी सहयोगी मंडली के साथ बैठकर वे िन य ूित गीता के एक अ याय का पठन, तदपरा त चचा मक ववेचन भी करते थे। ु सुबह-शाम कले पर घुमने जाना, प रबमा करना, दन-बम रहा था ूकृ ित के व वधा

प का सा ा कार करना भी उनक

अिभ िच थी। िसंहगढ़ के ऊँचे ट ले पर प ासन क सूयाःत दे खते समय पूव-प का

यान धारणा करना यह उनका वशेष

ःथित म बैठकर सूय दय और

म क ःव णम तथा गुलाल भर आभा म उ ह ॄ ा ड

प शायद दखाई दे ता हो, कह नह ं सकते। क तु ऐसे समय ौी गु जी के

मुखम डल पर ःवण क आभा दखाई दे ती थी। मान सूयतेज ने मुख को आलो कत कर िलया हो। आंत रक आन दानुभिू त के फलःव प वे सदै व ूस निच

दखाई दे ते।

मकर संबमण के उ सव पव पर ौी गु जी ने गढ़ पर रहनेवाले अ य लोग को अपने िनवास पर आमं ऽत कया। अपने हाथ उ ह ल डू बाँटे। पूछताछ क । चुनावी धूमधाम-कोलाहल से परे रहने हे तु ौी गु जी िसंहगढ़ पर रहे ज र, क तु चुनाव क राजनीित म संघ क भूिमका

या होगी? यह ू

पूछा जाने लगा। संघ के

जो ःवयंसेवक अब मतदाता क उॆ के थे, वे चुनाव से परे रह नह ं सकते थे। संघ क भी यह अपे ा नह ं थी। इस कारण संघ के सरकायवाह माननीय भैयाजी दाणी ने इस दशा म मागदशन करते हए ु कहा, “संघ के ःवयंसेवक रा ीय संःकार म पले-बढ़े ह। अतएव उ ह

ूकार लोग

ि ु , संकुिचत तथा सांूदाियक संघष से हटकर रहना होगा। इसी

े षमूलक व वंस म

िच रखते ह, उ ह कसी ूकार क सहायता न द।

संघ का काय िनः​ःवाथ दे शसेवा का है । उसी क ओर हम दे श हत चाहता है उसी के प चुनाव समा

यान द। साथ ह जो प

म मतदान कर।”

होते ह ौी गु जी पुन

भारत-ॅमण कर संघ का वःतार करने तथा

एकता का संदेश सवऽ पहंु चाने के िलए िनकल पड़े । िसंहगढ़ क पथर ली सी ढ़याँ

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३७


उतरते समय भ वंय म संघ को

या करना है , इस क योजना उनके मन म तैयार

थी। ौी गु जी क भारत प रबमा पुनः ूारं भ हई। ु

१२.६ चुनाव प रणाम के प रूेआय म १९५२ के चुनाव म मनःक पत यश न आने के कारण अनेक कायकता अ यािधक िनराशा क मनः ःथित म थे। अपनी िनराशा उ ह ने पऽ के मा यम से ौी गु जी तक पहँु चाई भी। ौी गु जी ने अपने उ र म कायकताओं का जस ूकार मागदशन कया उसके नमूने के

प म एक कायकता को िलखे पऽ का मु यांश यहाँ उ -घृत

है “मुझे व ास है क आप चुनावी राजनीित के ूित मेर अ िच से भिलभाँित प रिचत

ह। जो चुनाव म हारे ह, वे प रणाम को खेल-भावना से महण कर शोक- लेश से ऊपर उठकर, जय-पराजय को समभाव तथा अनास

पूवक काय करने क अपनी

संःकृ ित को स ची भावना से ःवीकार कर। ज ह ने वजयौी का लाभ कया है , उ ह आन द मनाने का अिधकार है , क तु गव से फूलने का नह ं। परा जत लोग को ःवाभा वक

प से दःख होगा, क तु िनराश और हतो सा हत होने का कोई भी कारण ु

नह ं दखता। सदै व क भाँित यह एक ह रा

के विभ न दल के बीच एक खेल है ,

जसे पूण मैऽी एवं ॅातृ व क भावना से ूणो दत होकर खेला जाना चा हए। चुनाव-ूचार म ःवाभा वक

ु प से कुछ उमता व कटता उ प न हो ह जाती है ।

पर तु मेरे वचार से ये सभी अवांिछत भाव त काल समा रा

होने चा हए और ‘हम एक

व एक मातृभिू म क स तान ह’ – यह उ कट भाव िनमाण होना चा हए। सभी

को दलीय भावनाओं से उठकर पारःपा रक सहयोग से समाज हत के काय म जुटने हे तु कृ तसंक प होना चा हए। वःतुतः सहमित का का दायरा अित सीिमत, नग य-सा है इसी इसको ह न

ेऽ बहत वःतृत है और मतभेद ु

के सहारे हमारा लोकतंऽीय ःव प

ु कर दे श म अराजकता िनमाण करने के इ छक त व के समःत

आघात सहकर भी िचरं जीवी रह सकेगा, इसम संदेह नह ं।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३८


१२.७ हमारा वोट कसे ? आगे सन ् १९५७ के चुनाव के पूव जनता को कस ूकार मतदान करना चा हए इस

संबंध म ौी गु जी का एक लेख ‘हमारा वोट कसे?’ इस िशषक से ूकािशत हआ था ु जसका सारांश यहाँ दे ना उपादे य होगा। ौी गु जी ने िलखा था-

आगामी कुछ दन म दे शवासी मतदान

ारा लोकसभा एवं विभ न वधानसभाओं

हे तु ूितिनिधय का चुनाव करगे और पाँच वष के िलए उ ह दे श का शासन स प

दगे। ५ वष का समय एक द घ अविध है , जसम ूितिनिधय क ूवृ य के आधार पर जनता क बड़ हािनयाँ या लाभ हो सकते ह। हमारे सं वधान म ऐसे ूितिनिधय को वापस बुलाने क कोई यवःथा नह ं है , जो मतदाताओं को संतु

न कर सक

अथवा जो चुनाव के समय जनता को दए गए आपातर य आ ासन से मुकर जाय। ऐसी वफलता और कभी-कभी जने छा क मनमानी अवहे लना सामा य बात हो गई

है । इन दोन अपने

ःथितय के बावजूद, ऐसा कोई तंऽ मतदाताओं के पास नह ं है क वे

ारा िनवािचत ूितिनिधय के वचार एवं बया-कलाप से असहमत होने पर

उ ह वापस बुला सक।

१२.८ वापस न बुला सकने का दंूभाव ु एक बार चुन जाने के बाद वे पूरे पाँच साल के िलए सुर आरामदायक ग

प से लाभूद एवं

पर बैठ रह सकते ह- यह जानकर वे और उनका दल अध-िश

एवं अ प- ानी मतदाताओं के स मुख मायाजाल फैलाते ह ह क य द उ ह चुने जाने का ःव णम अवसर ूा यु

हो जाय, तो वे पृ वी पर ःवग उतार लाएँगे। ूेम और

म सब उिचत होता है और चूँ क चुनाव अपने ूित

य के व

यु

भाँित ह लड़े जाते ह, अतः चुनावी वायद क पूित मान उनके उ लंघन म ह

समझी जाती है । इसम कसी को कोई अनैितकता भी दखाई नह ं पड़ती। अतः लुभावने झूठ के जाल म फँसकर मतदाताओं को अपने पाले म लाने क होड़ सभी ू यािशय म लग जाती है । ऐसे य

और दल जनम झूठ का यह अिभयान चलाने

क अिधकतम ूितभा होती है ; अिधकािधक मत को अपनी ओर आक षत कर स ा हिथया लेते ह और उनसे कये गये वायग का पूण ितरःकार कर स ा का मनमाना

उपभोग करते ह। इसके कुछ अपवाद तो हो सकते ह; पर तु पछले अनुभव के आधार पर ऐसे लोग के चुने जाने के अवसर रे िगःतान म हरे टापू क भाँित अ य प ह होते ह।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१३९


अतः मतदाता का दािय व बहत ु बड़ा है ,

य क उसके पास आगामी पाँच वष के िलए

दे श और समाज का भ वंय मुहरब द करने क श

है । एक बार कसी के प

िनणय दे दे ने के बाद अपनी गलती सुधारने, िनणय म प रवतन करने अथवा उससे

उ -भूत सवनाशी ूभाव का िनराकरण करने का कोई माग शेष नह ं रह जाता। अतः

इस अित मह व क समःया के ूित मतदाता को अपने स पूण ववेक से

ढ़तापूवक

वचार करते हए ु चुनाव करना होगा।

१२.९ दो अ -स य दे श के अमणी लोग मतदाताओं को समझाने बुझाने म यःत ह। इस स ब ध म दो

ूमुख िस ा त सामने आ रहे ह। दोन िस ा त उतने ह पुराने ह; जतनी क

वधाियकाओं हे तु आम चुनाव क लोगतां ऽक ूणाली। उनम पुरातन क ह पुनरावृ है , नवीनता कुछ नह ं। समाचार पऽ के अनुसार इनम से एक है प डत नेह ूितपादन क य

का

के गुण-दोष भूलकर दल अथात ् उनक कांमेस को चुना जाय

और दसरा है चबवत राजगोपालाचाय का कथन क दल क उपे ा कर य ू

समी ा एवं उसके च रऽ का आकलन कया जाय। राजाजी ने ठ क ह कहा है , य क अ ततः जनूितिनिधय का च रऽ ह

वधाियका के अ दर और बाहर

सवािधक मह वपूण होता है । क तु उ

दोन

वचार आंिशक

प से ह स य ह;

य क उ म च रऽवान य

से र हत तथा रा हत म िनःवाथ समपण के अभाव म कोई भी दल िसफ ऊँची घोषणाओं, ल बे-चौड़े दाव और जुलस ू के आधार पर एक लकवामःत अनुपयोगी और हािनकारक शर र से अिधक कुछ नह ं हो सकता। दसर ओर, समान लआय और ू

कायबम से परःपर-स ब

च रऽवान, क तु कसी संग ठत दल से न जुड़े हए ु लोग

ऐसे मशीनी पुज के समान ह, जो अपने आप म स म होते हए ु भी कसी सामू हक

काय के िलए अनुपयोगी तथा उपल ध-अजन के िलए अ म होते ह। अतः इन दोन

वचार को एक साथ लेना होगा और रा ीय हत के िलए सम पत,

ःवाथर हत, यो य, सामू हक काया वयन म समथ तथा साम जःयपूण रा ीय वचार से अनुूा णत च रऽवान लोग के दल को चुनना होगा। इन दोन के अ तर को न पहचान पाने पर पछतावा ह हाथ लगेगा। ऐसी ःथित म मतदाता ठ क से समझ ले क वह कस दल का समथन करे और कैसे ू याशी को चुने। नवयुग ूवतक ौी गु जी

१४०


१२.१० एकदलीय त ऽ कसी भी आवरण म ःवीकाय नह ं चुनाव मैदान म उतरे ूमुख दल म से कुछ ने समाजवाद अपना आदशवाद माना है । क तु जमनी का समाजवाद नाजीवाद म और इटली का समाजवाद फासीवाद म बदल गया। इनके उ थान-पतन का इितहास तथा उसके फलःव प एकदलीय

अिधनायकवाद के दंूभाव सव व दत ह। अपने दे श म इसक वह दःखद गाथा नह ं ु ु

दोहरायी जाएगी, इसक कोई गार ट नह ं। ू येक नाग रक को बहमू ु य ःवतंऽता क

सुर ा सतकतापूवक करनी चा हए। उसे न तो अपनी अ ःमता को राजत ऽीय

अिधनायकवाद के हाथ िगरवी रखना चा हए और न ह ःवयं को च द ठ कर पर

ू दे नी चा हए। अतः, तथाकिथत समाजवाद आदश के बीच बका दास बनने क छट

से सावधानीपूवक लआय का स धान करना चा हए जो असामा जक व अरा ीय िस ा त म िल सा यवाद दल

ह। सी खेमे के समथक ह और भारत म उस ूणाली क ःथापना का

ःव न दे ख रहे ह। हाल म हं गर म घट घटनाओं से इस ूणाली क ःप

सकती है । उ ह ने अपने जीवन के चालीस वष म ऐसे र पात व सामू हक

क पना हो

ह याका ड आ द दे खे ह, जनक बराबर मानव स यता के सवािधक अँधेरे एवं बबर काल म भी नह ं िमल सकती। इस आ म-घो षत ूगितशील वचारधारा के भयानक ूभाव औसत आदमी को दास बनाने, संवेदनाओं, भावनाओं व वचार पर कठोर िनयंऽण लाने तथा ःवातं य-दमनकार तर क से मानव को िनज व पुजामाऽ बनाकर रखने म दे खा जा सकता है । यह हम लोग का ूचीनतम वरासत के बलकुल

ूितकुल है । वाःतव म सा यवाद और समाजवाद म हम कोई भी मा य क दोन ह उस ूित बयावाद ू बया क

नह ं है ,

वकृ त स तान ह, जो सभी उ पादन

साधन , स पदा तथा राजस ा को च द हाथ म समेटकर जीवन के सब पहलुओं पर बमशः बढ़ते जाते कठोर िनयंऽण

ारा य

गत जीवन को िनज व एवं िनरान द

बनाना चाहते ह।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

१४१


१२.११ ह द-ू वरोधी थैली के च टे -ब टे ये दल अ ह द ू होने पर गव करते ह। हमारे अ ःत व व समरसता क जड़ को

खोखला कर हमार

ह द ू जीवन-प ित के वरोधी कानून (जो गौ के ूित हमार

स मानपूण भावना, संःकृ ित तथा विश प

धम के वरोधी ह) को मु ःलम समाज के

म लागू करते ह। यह प पातपूण रवैया कांमेस

मु ःलम आर ण के सा ूदाियक

ारा अपने ू याशी-चयन म

कोण, उनके आ दोलन को ूो सा हत करने

इ या द म उनके कु सत ह द-ू वरोध का स पूण वीभ सता के साथ पदाफाश करता है ।

य द स ा क बागडोर ऐसे अ ह दओं (ूायः ह द ू वरोिधय ) के हाथ म चली गयी, ु तो ह द ू समाज, धम व संःकृ ित और ह दओं के अिभला षत मान ब दओ ु ु ं के

समूलो छे दन का संकट पैदा हो सकता है । कभी-कभी कुछ सचमुच अ छे

उनके

ू याशी बनकर चुनाव म उतर सकते ह। मतदाता य द केवल ऐसी अ छाई (!) से ह िनदिशत होगा तो वे ू याशी िन

प से वजय लाभ करगे। क तु, उस दल के

अनुशासन म फँसकर उनके ह द ू वचार, आदश, ौ ा एवं गुण कसी काम नह ं

आएंगे और वे उस दल-त ऽ म पूण पेण अ ःत वह न हो जायगे।

१२.१२ उिचत चयन के िलए म उस महान ् ह द ू समाज का आहवान कर रहा हँू , जसके िलए अथक ूयास करना मेरा धम बन गया है । उस पुरातन-िचर तन ह द ु रा

क स ची अिभ य

के

को जसक आराधना म द य

प म करता हँू , म ूाथना करता हँू क वे सभी

आ मचेतना से अनुूा णत तथा ःवतंऽ व अकुतोभय होकर अपने मतािधकार का ूयोग कर तथा य

एवं दल के समथन हे तु कसी के बहकावे म न आय और पथ

से रं चमाऽ भी डगे बना अपने ूितिनिधय का चुनाव कर। वे सतक एवं ववेकशील बन और संक पब

होकर अपना मत ऐसे दल और य

को द, जो ह द ू समाज

तथा ह द-ू हत के ूित समपण भाव रखनेवाले अनुदारता से मु , ूगितकामी, वशाल दय व उदारवाद , घृणार हत तथा मतभेद रखनेवाले लोग के ूित भी

अ वरोधी ह । अिनवायतः ूभावी ह द,ू उ

वल वैय

क व रा ीय च रऽ-स प न,

पदा ढ़ या पदर हत होकर भी रा -समाज क सेवा के िलए कृ तिन य, पद, ूित ा, पैसे, ूिस

व यश क चाह से िनिल , समरसतापूण सामु हक कायशैली के मह व

के किदान, मातृभिू म व उसक स तान के ूित आःथा व समपण के भाव से नवयुग ूवतक ौी गु जी

142


आ ला वत तथा अपने िनजी सुख-दःख को पुर तरह भुलाकर क ठनतम काय के ु

गु तर दािय व का िनवहन करने म स म हो। ऐसा आचरण करने पर ह मतदाता का वोट यथ नह ं जायेगा। इस सावधानी से ह मतदाता अपनी ूय मातृभिू मभारतमाता के पुंजीभूत वैभव स मानपूण रा सहायक होने का अल य लाभ ूा

जीवन क सु ढ़ आधारिशला रखने म

कर सकगे।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

143


१३ ःवदे शी और गो-र ा अिभयान १९५२ का िसत बर मास। नागपुर म रा ीय ःवयंसेवक संघ क अ खल भारतीय ूितिनिध सभा क बैठक हई। इस म दो मह वपूण ूःताव पा रत कये गये उसम ु

एक ूःताव ‘ःवदे शी’ के वषय म था। वदे शी स ा के िनंकासन के ५ साल के प ात ् संघ

ारा फर से ःवदे शी को ूःताव का ूमुख मु ा बनाना कहाँ तक तक

संगत है ? यह ू

अनेक के मन म उभरना ःवाभा वक ह था। संघ ूारं भ से ह

ःवदे शी का पुरःकार करता आया है । काँमेस ने भी महा माजी के नेत ृ व म ःवदे शी का अिभयान चलाया था। लोकमा य ितलक युग म ःवतंऽता आंदोलन क जो

चतुःसूऽी योजना बनी थी उसम ःवदे शी एक अहम ् मु ा था। डॉ. हे डगेवार जी ने तो

संघ के आचार तथा वचार का आधार ‘ःवदे शी चेतना’ को ह माना था और ःवयं ऐसे सभी आ दोलन म आगे बढ़कर भाग लेते थे।

१३.१ ःवदे शी भाव जागरण संघ का रा

संबंधी वचार ःवदे शी,

वज ःवदे शी, उ सव ःवदे शी, शार रक िश ा

ूणाली भी ःवदे शी थी। डॉ टर जी ःवयं ःवदे शी का पालन करते थे। वदे शी व उ ह ने कभी धारण नह ं कये। साथ ह

वदे श क

वचारधाराओं को उ ह ने कभी नह ं

अपनाया। आचार तथा वचार ूणाली सवथा ःवदे शी हो, यह उनका आमह रहा करता था। संघ के ूारं िभक कालखंड म कुछ अंमेजी प ितय का अनुसरण भले ह गया हो क तु वह ता कािलक था। संघकाय के िलए उपयु

कया

पा ा य प ितय का

ता कािलक अनुसरण करने म वे हचके नह ं क तु ऐसा करते समय उ ह मानिसक गुलामी या ह नताबोध का अनुभव कभी नह ं हआ। कारण ःप ु

था। पा ा य प ितय

के ःथान पर ःवदे शी कायप ित को अपनाने का उनका उ े ँय पूव से ह सुिन

था। हआ भी उसी तरह जैसा क वे मनःपूवक चाहते थे। भ वंय म अंमेजी आ ाओं ु का ःथान संःकृ त आ ाओं ने िलया। घोष भी वशु

भारतीय शा ीय संगीत म ढाला

गया। ौी गु जी ने रा जीवन के संदभ म ःवदे शी वचार का संःकार ह ःवयंसेवक पर कया। क तु ःवतंऽता के प ात ःवदे शी क भावना लु

अितशयो

सी हो गई। ःवदे शी का

या अ यावहा रक आमह नह ं होना चा हए यह ौी गु जी को भी मा य

था। इस कारण य द कोई डम नुमा रे तघड़ को गले म बाँधकर घूमने का आमह करे

नवयुग ूवतक ौी गु जी

144


तो इसे वे अ यावहा रक मानते थे। क तु इसका यह अथ कदा प नह ं था क ःवदे शी

के आमह म पूर ढ ल दे द जाये। ःवदे शी के संबंध म अपनी भूिमका ःप ौी गु जी ने कहा, “ःवाधीनता ूा

करते हए ु

होने के पूव वदे शी शासक के ूित हमारे मन म

घृणा थी, इस कारण ःवदे शी के ूित जनता के मन म ःवाभा वक आकषण था। पर तु अंमेज के जाते ह

वदे शी वःतुओं का अिधक माऽा म ूयोग होने लगा;

य क ःवाधीनता पूव ःवदे शी क भावना अंमेज वरोध दशाने का केवल एक साधन माऽ थी। ःवदे शी के ूेम का आधर वशु इस वचार-ूवण तथा ःवदे शी क सुिन

तथा भावा मक रा ूेम नह ं था।” त प रभाषा करनेवाले भाषण म ौी गु जी

ने लोग म ःवदे शी का ूचार सजग रहकर करने के िलए कहा है । संघ ूःताव म यह भावना य

हई ु है । ूथम हम ःवयं ःवदे शी का

म लोग को इस दशा म ूवृ

ारा पा रत

ढ़ ोत ल और बाद

कर, ऐसा आदे श ःवयंसेवक को दया गया।

ौी गु जी कहा करते थे क ःवदे शी से जुड़ा ूेम रा

का ःथायी भाव होना चा हए।

उनक अपे ा रहा करती थी क सवसामा य छोट -छोट बात म भी यह भाव ूगट

हो। ववाह समारोह म सूट-बूट पहनकर वदे शी ठाठ का ूदशन उ ह पस द नह ं था। ववाह का िनमंऽण, कायबम प ऽका, अिभनंदन संदेश अंमेजी म छापना उ ह कतई

रास नह ं आता था। पराधीन मानिसकता से उ प न पराय का अंधानुकरण करने क ूवृ

से उ ह अ यािधक िचढ़ थी। वदे श म होनेवाली

ी-स दय ःपधा का अनुकरण

कर जब ‘िमस इं डया’ का चयन होने लगा तब उ ह ने एक बार कहा था, “We really miss India in this whole affair.” क तु वदे श म कुछ समय रहकर भारत म लौटनेवाल से उनक यह अपे ा अवँय रहती थी क वहाँ के जीवन म ूगट होनेवाली सामा जक ज दा दली, उ साह, आपसी व ास, ूेम आनंद आ द गुण का प रपोष वे यहाँ अवँय कर। अंधानुकरण को लआय कर एक बार उ ह ने कहा क कतनी अ -भूत बात है क हमने पा ा य स यता के केवल भ े बा गौरव तथा ःवदे श भ ःथितय म समान

हमार

ःव प को ह महण कया है । उनके रा ीय

क भावनाओं क ओर, जो शांितकाल या वप प से प

मी लोग क ू येक बया को अनुूा णत करती ह,

जाती ह नह ं। कुछ दशा दय पूव इं लै ड को सवतोमुखी स प नता और

वैभव के बावजूद आिथक संकट का सामना करना पड़ा। इं लै ड के सभी नेता इस चुनौती का सामना करने के िलए एक-मत और एक- दय होकर जुट गए। इस हे तु नवयुग ूवतक ौी गु जी

145


उ ह ने ःवदे शी क भावना को पुन

जी वत कर आिथक सवनाश से अपने दे श को

बचा िलया। वे ह द ू जीवन-प ित का आमह रखते थे। खान-पान, वेशभूषा, तीज- यौहार बोलचाल

आ द सभी बात म ःवदे शी प ित का आमह उ ह ने अनेक बार य

कया है ।

भोजन के एक ूसंग का संःमरण उनके ःवदे शी एवं ःवािभमानी वृ

पर उ म

ूकाश डालता है । मिास म व

ह द ू प रष

के त वावधान म एक व

आयोजन कया गया था। समारोप के दन सबके एकऽ भोजन क

प रष

का

यवःथा एक मंडल

कायालय म क गई थी। भोजन क तैयार ठ क से हई ु है या नह ं, यह दे खने के िलए

ौी गु जी जरा ज द ह उस मंडल कायालय म पहँु च गये। उ ह ने दे खा क वहाँ तो मेज-कुस लगाकर पा ा य ढं ग से यवःथा क जा रह है । ौी गु जी बड़े नाराज

हए। उ ह ने कायालय यवःथापक से पूछा क “आपके यहाँ पीढ़े आ द नह ं ह?” ु कायालय यवःथापक ने कहा, “ह

य नह ं। एक नह ं अनेक पंगत बैठ सकती ह

इतने पीढ़े हमारे यहाँ ह।” तब ौी गु जी ने सूचना द जंजाल यहाँ से हटाओ और पीढ़े बछाकर पंगत क

क “इन मेज-कुिसय का

यवःथा करो।” सारे ूब धक

तुर त काम म जुट गये। बैठने के िलए पीढ़े , थाली रखने के िलए पीढ़े , अ पना, अगरब ी आ द लगाकर ह द ु ठाठ क

कहा, “अब हई ु सह अथ म व

यवःथा क गई। संतु

होकर ौी गु जी ने

प रष के भोजन क तैयार ।”

भारतीय पोषाक पहनने से अपनी इ जत कम हो जायेगी वह हमारा उपहास होगा ऐसा कहनेवाल को उनका उ र था, “ूित ा कपड़ पर नह ं, अपनी गुणव ा और साम य पर अवल बत होती है । हम अपनी प ितय का अवल बन कर तो वदे िशय म भी हमारे बारे म आदर क भावना ह िनमाण होती है ।” इस संदभ म ौी गु जी अपना ःवयं का एक अनुभव सुनाते थे। वे कहते ह, “म नागपुर म ःकॉ टश िमशन रय

ारा संचािलत एक कालेज म पढ़ता था। एक बार हम व ािथय ने

पूणतः महारा ीय प ित के भोजन का कायबम तय कया। इसके िलए ूाचाय ओर अ य दो यूरोपीय ूा यापक को िनम ऽण दया और उ ह बताया क धोती पहनकर उघाड़े बदन पीढ़े बैठना होगा। ूाचाय का ईसाईयत का अहं कार आड़े आ गया और

उ ह ने हमारा िनमंऽण अःवीकार कर दया। क तु अ य दो वयोवृ

ूा यापक ने

िनमंऽण ःवीकार कया। यह नह ं, ूाचाय को भी उ ह ने बताया क “हमारे व ाथ जब स -हे तु से ूे रत होकर हम बुला रहे ह तो जाने म

या अड़चन है ?” ूाचाय भी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

146


तैयार हो गये। इन तीन यूरो पय ने धोती पहनकर उघाड़े बदन महारा ीय प ित से हम लोग के समान ह हाथ का उपयोग करते हए ु भोजन कया। अपनी प ित का

यो य अिभमान व आमह रखने से उन दन भी ऐसा अ छा अनुभव आ सका।”

ौी गु जी का ःवदे शी संबंधी यह यापक वचार िनजी चचा व बैठक म सदा य हआ करता था। कालेज युवक से चचा म उ ह ने कहा, “त ण म आधुिनक फैशन ु है - आिधकािधक

ण ै दखाई पड़ना।” अंत म ौी गु जी ने एक ह वा य कहा- “All

this must go root and branch.” (ये सभी बात समूल न म

होनी चा हए)। व ािथय

ण ै ता बढ़ना वनाश का ल ण है यह बताकर वे चेतावनी दे ते थे, “जगत ् का

इितहास सा ी है क मनुंय म अपने शर र को कोमल बनाये रखने क ूवृ कारण ह रा

न -ॅ

का वनाश होता है । ृांस, रोम और अ य कतने ह रा

हो गये। िशवाजी

नाच-गान के कारण ह न

के

इसी कारण

ारा ःथा पत साॆा य भी आगे चलकर खेल-तमाश व हआ। ऐसी बात म लोग फँसते ह और पराबम भूल ु

जाते ह।” संघ शाखा का ःवदे शी

प भी उनके बोलने का वषय रहा करता था।

ःवभाषा और सुसः ं कार ःवदे शी जीवन का ह भाग है । ौी गु जी इन दोन के बारे म बड़े संवेदनाशील थे। एक संप न ह द ू गृहःथ ने अपने लड़के को अंमेजी िसखाने के

िलए एक अंमेज

ी क िनयु

क । लड़के को अ छ अंमेजी बोलनी आये, यह उस

स -गृहःथ क इ छा थी। इस संबंध म बोलते हए ु ौी गु जी ने कहा, “अंमेजी बोलने

क और बाद म अंमेजी वचार करने क आदत लग गई तो यह लड़का कभी स चा रा भ

नह ं हो सकेगा। अंतःकरण से अंमेज का गुलाम ह बना रहे गा।”

ौी गु जी जब केरल म थे तब एक शाखा पर बाल ःवयंसेवक को एक खेल खलाया गया। ौी गु जी ने बाद म एक बाल ःवयंसेवक से पूछा, “इस खेल का नाम

है ?” उसने कहा “द प बुझाना।” शाखा म इस नाम का खेल ौी गु जी को

या

चा नह ं।

उ ह ने एक वयःक ःवयंसेवक से पूछा, “इसने खेल का नाम ठ क बताया?” उ र हाँ म आने पर ौी गु जी ने कहा, “खेल का इस ूकार का नाम नह ं होना चा हए। हमार संःकृ ित म द प बुझाना अशुभ माना जाता है । हमारे यहाँ कहते ह ‘ ान का द पक ू

विलत करो।’ संतवाणी है क, ‘ ानद प बुझने मत दो।’ खेल म भी

न हो, नाम संःकार दे ने वाले ह होने चा हए।” दसरे दन खेल का नाम बदलकर ू

‘आहवान’ कर दया गया। ऐसी थी ौी गु जी क ःवदे शी क धारणा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

147


१३.२ बा तका रय के ूित इसी वष मई मह ने म पुणे ःथत ‘अिभनव भारत’ नामक बांितका रय क संःथा का समापन कायबम संप न हआ। ःवातं यवीर सावरकर क ूेरणा से सश ु

संमाम करने हे तु इस संःथा क ःथापना हई ु थी। क तु ःवाधीनता ूा बांितकार संःथा का ूयोजन समा

हो गया। इस कारण उपयु

ःवतंऽता

होते ह इस

समापन समारोह

का आयोजन कया गया था। ःवतंऽता सेनानी वीर सावरकर ःवयं इस अवसर पर उप ःथत थे। ःव. डॉ.हे डगेवार जी का ‘अिभनव भारत’ संःथा के साथ ह बांितकार आंदोलन से गहरा संबंध रहा था। इस कारण ौी गु जी को वशेष

प से आमं ऽत

कया गया था। इस ऐितहािसक समारोह के िलए ूचंड जनसमुदाय इक ठा हआ था। ु

सेनापित ौी बापट अ य पाबंद लगा द

थे। मनोनीत अ य

महोदय ने ूारं भ म ह व ाओं पर

क हर व ा केवल दस िमनट म अपने वचार रखे।

आ य क बात यह क ौी गु जी ने केवल दस िमनट म अपना ओजःवी भाषण समा

कया। ःवतंऽता ूा

होने के प ात ् भी बांित क

रखने क आवँयकता है , यह वचार उ ह ने ूभावी

योित मन म ू विलत

प से ौोताओं के सामने रखा।

ौी गु जी कहा, “अपने समाज म ऐसे भी लोग ह जो ःवतः को अिधक बु मान मानकर ढं ढोरा पीटते ह क ये बांितकार िसर फरे पागल तथा गुमराह ह। वाःत वकता यह है क इन तथाकिथत बु वा दय को बांितका रय क दे शभ है । ज ह ने युवा पीढ़ के

दय म बांित क

क उमता असहनीय होती

वाला ू विलत करने के एक माऽ

येय के िलए अपना संपूण जीवन सम पत कर दया, ऐसे डॉ. हे डगेवार के दशाए

माग पर चलने का सौभा य मुझे ूा

हआ है । इस कारण बांितका रय को ु

आदरपूवक अिभवादन करना मेरा अहोभा य है ।” “सु ःथर बांित क

योित िन य ू विलत रखने क भी िनतांत आवँयकता होती है ।

य द हम द न-द ु खय का जीवन सुख से भरना है , वाःत वक अथ म सुखी और समृ

भारत क िनिमित करनी है , अरा ीय भावनाओं का िनमूलन कर भारत का अथात ह द ू रा

का जीवन प रपूण करना है तो आज के इस पावन अवसर पर हम अपने

मन म संक प कर,

ढ़ िन य कर क याव चंि दवाकरौ इस रा

का प वऽ भगवा

वज हम सदा के िलए फहराते रहगे।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

148


ौी गु जी ह द ु व के बारे म बहत ु आमह रहा करते थे। ह द ु व तो उनके ू विलत ऐसी ूखर

दय म

वाला थी जो बढ़ती, तीो होती, क तु कदा प मिलन नह ं

होती। अपने मींमकालीन संघ िश ा वग म ौी गु जी ने हं द ु व पर अपने वचार

के ित करते हए ु सूऽ

प से कहा क हम ह द ु व से छोटा कुछ भी नह ं चा हए

और अित वशालता के पीछे लगना इस समय अनुिचत होगा, िनरथक होगा। अ याि तथा अित याि

इन दोन छोर को टालते हए ु काम करने म ह

है । इस संसार म िन हत उ म

यावहा रक बु म ा

य म भी मानवता जागृत करने का काय

संग ठत ओर समथ ह द ू समाज ह कर सकेगा। ह द ू संगठन का वचार

मानवतावाद के िनकष पर संकुिचत िस

होगा इस वचार को वे कोई मह व नह ं दे ते

थे। यह वचार उ ह सवथा अमा य था।

१३.३ साधुओं के सम ौी गु जी के एक और भाषण क ओर हम

यान दे ना चा हए। इसका एकमाऽ कारण

यह है क दस वष के बाद जन दे श हतकार योजनाओं का सूऽपात उ ह ने कया, उनके बीज प वचार इस भाषण म हम दखाई दे ते ह। एक सावभौम साधु स मेलन अ ु बर के म हने म कानपुर म आयो जत कया गया था। ौी गु जी वशेष

ने साधु-संत के सम

प से आमं ऽत थे। इस अवसर का लाभ उठाते हए ु ौी गु जी

अपनी एक आंत रक भावना ूगट क ।

अपने समाज म अनिगनत साधु-सं यासी मठ म मठािधपित के नाते रहते है । धारणा, पूजा पाठ, ई र भ

के मा यम से वे य

गत मु

यान-

या उ ार के िलए

साधना करते ह या अ य को मागदशन करते ह। क तु अपने समाज के बारे म वे कभी सोचते दखाई नह ं दे ते। यह समाज सुर

त तथा ूगितशील कस तरह बन

सकता है , यह सोच उनके मन म नह ं होती। आ मो ार और लोको ार इन दोन वषय क सूझबूझ साधु-संत म होना िनतांत आवँयक है , यह वचार बड़े ह ूभावी ढं ग से ौी गु जी ने इस स मेलन म रखा। उ ह ने कहा,

“भगवा

वज हमार

इस भगवे

ह द ू संःकृ ित का महान ूतीक है । साधु-संत को चा हए क वे

वज का संदेश घर-घर पहंु चाएँ। इसे एक रा ीय ोत के

आप समाज म ऐसी जागृित उ प न कर जसके

प म अपनाएँ।

ारा समाज आ मगौरव क पुन

नवयुग ूवतक ौी गु जी

149


अनुभिू त कर सके। भगवा स मुख सब द ु

वज सा वकता का ूतीक है । इसके सा वक साम य के

ूवृ याँ हतबल-िनबल हो जाएंगी।”

इसी भाषण म ौी गु जी ने कहा क, “इस जगत ् म मानव को सुख-शांित के माग पर ले जानेवाला वचार-धन भारत के पास है । उसे दिनया को दे ने क भारत क ु

ई रूद

भूिमका युग -युग से ह रह है । यह काय साधु-संत ह कर सकगे जसे

उ ह ःवीकार करना चा हए।” इस संदभ म उ ह ने प सा यवाद, दोन

मी लोकत ऽ और

स के

वचार ूणािलय क उ -बोधक समी ा करते हए ु इन दोन से

मूलतः ःवत ऽ अ ःत व रखनेवाली भारतीय जीवनूणाली का ववेचन कया। वशेषतः दो श

गुट के शीतयु

के संबंध म बोलते हए ु उ ह ने कहा, “मानव-

क याण के िलए अपने ह त व ान को ौे

समझने वाले दो गुट व शा त क

बात तो करते ह, पर तु स पूण दिनया पर अपना ूभु व ूःथा पत करने के िलए ु

मानव-संहार के साधन जुटाने म लगे हए ु दखाई दे ते ह। मौका दे खकर अणुश

भी उपयोग कर मानव-संहार करने के िलए ये दे श िस तीय महायु

म जापान म अणुबम का ू य

भी था। पर तु इन दोन अ

हए ु ह। अम रका ने तो

ूयोग कया था। इसके वपर त

महाभारत के अजुन का संयम दे ख। इसके पास पाशुपता

ॄ ा

था। अ -भुत ूभावी

का ूयोग उसने नह ं कया

का वनाश उसे करना नह ं था। अजुन को मालुम था क ॄ ा आठ वष तक अकाल पड़ता है , इसिलए उसने इन अ शा ो

जीवनूणाली क यह

का

य क मानवता

का ूयोग करने से

का ूयोग टाल दया।

वशेषता है । इसिलए साधु-संत को उस त व ान का

अिधकारवाणी से कथन करने क आवँयकता है जससे मानव-मानव म स चा बंधुभाव िनमाण हो सके। यह स पूण व ह

ह मेरा घर है ऐसी जनक अनुभिू त है , वे

म शा त का संदेश गुज ँ ा सकते ह। सौभा य से ऐसे साधु, स त और

महा मा आज भी भारतवष म ह।” मनुंय माँ से जो अपे ा रखता है वह अपे ा सवसंग प र यागी साधुजन से है , ऐसा कह कर उ ह ने अपराध म पकड़े गये एक लडके का उदाहरण ूःतुत कया। इस लड़के को माँ ने अ यािधक लाड़- यार से बगाड़ ड़ाला था। वह छोट -मोट चो रयाँ करने लगा। माँ ने उसे टोका नह ं। आगे चलकर वह इतना अ यःत हो गया क डाकू बन गया और पकड़ा गया। उसे फाँसी क सजा सुनाई गई। उसने माँ से िमलने क

अ तम इ छा बतायी। माँ िमलने को आई। कुछ बतलाने का बहाना कर वह अपनी माँ के कान के पास मुह ँ ले गया और दाँत से जोर से कान काट खाया। शोर गुल हआ। तब अपनी कृ ित का समथन करते हए ु ु उसने कहा, “म डाकू बना इसके िलए नवयुग ूवतक ौी गु जी

150


मेर माँ ज मेदार है । माँ ने मेरे दगु ु ण के बारे म समय रहते चेतावनी दे कर मुझे

सावधान कर स माग पर चलने क सीख द होती तो आज मुझे फाँसी पर नह ं जाना पड़ता।” गु जी ने इं िगत कया क आज समाज म व मान व छ नता, फूट और

आपस के

े षभाव के कारण साधु-सं यािसय क समाज जागृित के संबंध म

उदासीनता और िन ंबयता है । ौी गु जी को यह कहने का िनःसं द ध अिधकार था। ौी गु जी तथा डॉ. हे डगेवार जी ने कभी भगवे व

धारण नह ं कए थे। क तु वे

दोन सं यासी थे। ःवयं ौी गु जी ने लोकजीवन से दरू हटकर मो साधना का माग

चुना था। क तु डॉ टर जी के यह कहने पर उ ह ने ःवतः को रा दया। सम

सम पत कर

प ई र क साधना करने म ह अपना जीवन यतीत कया।

ौी गु जी हमेशा समाज और वशेषतः धमपु ष के स मुख यह वचार रखते रहे क

पतनावःथा को दे खते हए ु अपने ई रद प रणामतः एक नया यास पीठ ‘ व

काय क ओर

पात करना चा हए।

ह द ू प रष ’ के नाम से िनिमत हआ। ु

स मेलन म समय-समय पर जो वचार उ ह ने रखे, उसी का मूत, यवहाय व

प है

ह द ू प रष ।

१३.४ ऐितहािसक हःता र संमह िसत बर १९५२ म रा ीय ःवयंसेवक संघ क ूितिनिध सभा म गोह या बंद क माँग का पुन

चार कया गया। साथ ह यह भी िनदश दया गया क इस संबंध म

भारतीय जनता क तीो भावना अपने ूजातां ऽक शासन के से ःवयंसेवक

ारा ूच ड रा

मागदशन म ूितिनिध सभा

यान म लाने के उ े ँय

यापी अिभयान ूार भ कया जाए। ौी गु जी के ारा पा रत इस ूःताव म कहा गया था-

“यह सभा गोसंवधन संबंधी भारत सरकार क अ ःथर नीित के बारे म असंतोष य करती है । अपने दे श म गोवंश-संवधन का वषय न केवल आिथक हमार सांःकृ ितक ौ ा तथा एका मता क गोह या बंद क माँग क भारत सरकार

से ब क

से भी मह वपूण है । वगत ५ वष से

ारा लगातार उपे ा हो रह है । इस सभा क

से यह अ यंत अनुिचत है ।” “दे शभर म जनमत अनुकूल तथा संघ टत कर रा यकताओं को गोवंश संवधन के ूित

अपने प वऽ कत य का ःमरण करा दया जाय, यह

ढ़ िन य यह सभा करती है ।

इसिलए सभी ःवयंसेवक को यह आवाहन कया जाता है क वे सभा, मोच

नवयुग ूवतक ौी गु जी

ारा

151


को ट-को ट भारतीय जनता क यह भावना ऐसी

ढ़ इ छा श

म प रणत कर ता क

भारत सरकार के ूजातां ऽक शासन के िलए गोवंश के वनाश पर कानून

ारा

ूितबंध लगाना अप रहाय हो जाए।” इस ूःताव म समःत भारतीय जनता तथा विभ न राजनीितक दल को सहकाय दे ने का आवाहन कया गया था। साथ ह गोह या बंद क मांग करनेवाले आवेदन पऽ पर जनता के हःता र अं कत कर अ त म दे शभर से ूा

हःता र का यह संमह महाम हम ् रा पित को सम पत

कया जाए, ऐसी कायबम क योजना बनाई गई। यह भी सुझाया गया क हःता र

संकलन करते समय आम सभा, मोचा, ूदशनी, पोःटस, पऽक, लेख आ द ूचार-

ूसार मा यम का उपयोग जनमत जागरण के िलए कया जाय। संघ के ःवयंसेवक आवेदन पऽ लेकर जब घर-घर पहंु चगे तब सभी महानुभाव उ ह अपने हःता र दे कर सहकाय कर, इस अथ का एक िनवेदन भी ौी गु जी ने ूकािशत कया। यह पऽक द. १३ अ ु बर १९५२ को ूकािशत कया गया। यह भी तय कया गया क ू य तः यह अिभयान द. २६ अ ु बर को गोपा मी के मुहू त पर ूारं भ हो और द. २२ नव बर को द ली म उसक समाि वनॆ िनवेदन भी ौी गु जी

क जाय। एक

ारा ूःतुत कया गया क आंदोलन को दे श यापी व

ूभावी बनाने के िलए जो धन लगे उसक पूित भी जनता ःवयं ह करे । इसके अित र

दे श म चल रहे विभ न समाचार पऽ , मा यवर नेतागण, लेखक,

व ान ् वचारक-िचंतक, धमगु , संत-महं त तथा सामा जक कायकताओं को य

ःवतंऽ पऽ भेजकर ौी गु जी ने अपनी भूिमका ःप

शः

क तथा उनके सहकाय क

माँग क । ःवतंऽता सेनानी वीर सावरकर को भी ौी गु जी ने य

गत

प से पऽ िलखकर

उ ह अपने मंत य से अवगत कराया। इस पऽ के कुछ अंश यहाँ उ -घृत करना

उिचत होगा, जससे हम जान सक क गोमाता और भारतमाता के ूित उनक ौ ा व भावना कतनी तीो थी। साथ ह उससे ौी गु जी के तथा रा ीय वषय को उनके

दय क ःप ता, पारदिशता

ारा दये जानेवाले मह व का भी हम यथे

ान हो

सकेगा। ौी गु जी ने िलखाः

नवयुग ूवतक ौी गु जी

152


“अपने ौ ाके द के वषय म अनाःथा तथा गोवंश के समान प वऽ ौ ा के वषय और ौ ा-ःथान का वदे िशय

ारा होनेवाला वनाश िनल जता से सहने क आदत

के फलःव प लोग ने भारत माता का वभाजन होने दया। वह एक घृणाःपद, घोर पाप था। यह पाप आज भी कायम है । इस कलंक को िमटाकर ह समाधान और

शांित का अनुभव ले पाऊँगा ऐसा कहनेवाला कोई ःवािभमानी दखाई नह ं दे ता। इसके वपर त वभाजन के कलं कत पाप का समथन करनेवाले बड़े -बड़े नेता अवँय दखाई दे ते ह। हमार संःकृ ित के अनुसार गोमाता और भारत माता अ वभ

ह, एक ह ह।

इस कारण गोमाता क ह या को ूो साहन दे नेवाले या दलआय करनेवाले वाःत वक ु

अथ म भारतमाता के भ ौी गु जी

भला कैसे बन सकते ह? यह सवथा असंभव है ।”

ारा िलखे गए पऽ, पऽक, ूितवेदन आ द का दे शभर म भरपूर ःवागत

कया गया। यथासमय पूविनयो जत योजना के अनुसार गोपा मी के शुभावसर पर

ःथान-ःथान पर अिभयान ूारं भ हआ। हजार क सं या म सभाओं, याऽाओं म ु गोह या बंद के ूःताव पा रत हए। ु

मुब ं ई के अिभयान का ूारं भ ौी गु जी क सभा से हआ। सह ाविध लोग क ु

उप ःथित म ौी गु जी ने गोह या बंद क मांग को तकसंगत बताते हए ु उसका

रा ीय मह व वश

करनेवाला भाषण दया। इस भाषण म ौी गु जी ने कहा,

“पराधीनता म से उ प न हर बात िमटाकर वदे शी आबामक के नामोिनशान को धो डालना, उनका िनमूलन करना कसी भी ःवतंऽ ःवािभमानयु माना जाना चा हए। इसी

रा

का ूथम कत य

से सोमनाथ मं दर का जीण ार एक उिचत घटना है ।”

“जब तक हमारे रहन-सहन, वचार-प ित, जीवन क ओर दे खने के हमारे

कोण

तथा सोच- वचार पर वदे िशय क छाप रहे गी तब तक हम ःवतंऽ हए ु ह ऐसा नह ं

माना जा सकता। हजार वष क पराधीनता के कारण िनिमत जो भी ू हल कर अपने रा ू येक य

को संसार का सवािधक अमसर रा

ह गे उ ह

बनाने क उ कट आकां ा

के अंतःकरण म जागृत होना ह ःवाधीनता क वाःत वक अनुभिू त

होगी।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

153


आज सामा य य

के

दय म भारत मेर मातृभिू म है यह भाव तथा धमिन ा का

लोप होता दखाई दे ता है । हम अपने गौरवशाली इितहास को भी भूल रहे ह। य द

ऐितहािसक ौ ाःथान का इसी तरह वःमरण होता रहा तो भ वंय म हमारे िलए एक भी ौ ाःथान शेष नह ं रहे गा। य द दभा तो हम कस ु य से ऐसा हआ ु

ू वाली ऊँची उड़ान कैसे आधारिशला पर गगनःपश रा मं दर बना पाएंगे? आकाश छने भर पाएँगे?

“ जस रा

का ौ ाःथान न

यथ होगा। हम अपने रा

हो जाता है उस रा

के अ युदय क कामना करना

क उ नित करना चाहते ह, क तु हम चार ओर मतभेद,

िभ न-िभ न संूदाय, परःपर वरोिध तथा दलगत राजनीित और त ज य वघटन ह दखाई दे ता है । इस कारण हम ने सोचा क रा

म एक सवमा य ौ ा-के ि िनमाण

कर सब को एक ह वैचा रक-भावना मक आधार पर खड़ा करना आवँयक है । अब हम यह योचना है क वह सवमा य ौ ा के ि कौन सा है ? अपने रा

म राजनीितक

या पांिथक िभ नता भले ह हो, एक बात िन ववाद स य है क गोवंश का नाम लेते ह ौ ा क अतुलनीय भावना जागृत हो जाती है । इसिलए ‘गाय (गो)’ हम एकऽ ला सकती है । हम सब इस दशा म वचार कर। अपने

दय म गोमाता के ूित ौ ाभाव

बढ़ाएँ। अपने अंतःकरण तथा रा जीवन म पराको ट क तेज ःवता िनमाण कर।” मुसलमान तथा ईसाइय को भी इस आंदोलन म सहकाय दे ने क आवँयकता है ऐसा ूितपादन ौी गु जी ने इस भाषण म कया। इस कथन के संबंध म संघ क भूिमका

या है ? इस ू

ारा मुसलमान और ईसाइय

का उ र साथ-साथ िमल जाता है । ौी

गु जी कहा, “आप क पना क जए क कसी को अमे रका का नाग रक बनना है और इस

नाग रकता को पाने का उसे अिधकार भी है तो उस प र ःथित म अमे रका जाने पर उसे कस

वज का अिभमान रखना होगा?

या भारत के चबां कत ितरं गे

अिभमान रखकर बात बन सकेगी? कदा प नह ं। उसे अम रका के रा

वज का

वज का

अिभमान ह मन म रखना होगा।” “यह

वज क बात हई। अब हम रा पु ष के बारे म सोच। कस रा पु ष का गौरव ु

उसे करना होगा? जॉज वािशं टन और अॄाहम िलंकन का। अमे रका म हम भगवान

नवयुग ूवतक ौी गु जी

154


राम और कृ ंण क पूजा करने म कोई मनाई नह ं है क तु साथ ह हम उनके रा ीय ौ ा के ि को भी ःवीकार करना पड़े गा। ” “इसी ूकार ईसाइ और मुसलमान को भी भारत के जीवन से समरस होकर रहना होगा। भारत का नाग रक व (Civil Code) के िनयमानुसार ह उ ह चलना होगा, रहना होगा। यहाँ के रा जीवन का आदश अनुकरणीय मानकर रा ीय उ सव को

अपने उ सव मानकर मनाना होगा। भारत के रा पु ष का ह उ ह जयजयकार करना दोगा। म तो चाहता हँू क वे छऽपित िशवाजी महाराज जैसे ौे

रा वीर क

भी जयजयकार कर। उ ह यह करना ह चा हए। भारतीय जीवनूवाह से समरस

होकर तथा ौे

भारतीय वभूितय से ूेरणा पाकर फर चाहे वे अपनी उपासना के

िलए म ःजद म जाएँ और पैगब ं र का नाम ल, ईसाई चच म बायबल पढ़, हम इस म कोई आप

नह ं होगी। य

“सामू हक जीवन क

ू रहे गी।” गत धम के नाते उ ह इसक छट

से यहां के जीवनूवाह का ःवीकार उ ह करना ह होगा।

य द इस वचारधारा को हम सब मान लगे तो अवँय ह ूगितशील रा जीवन संभव हो पाएगा।” आिथक

कोण को सामने रखकर ौी गु जी ने गोह या बंद का समथन कया।

साथ ह रा ीय ौ ाःथान को न

कर डालर क कमाई करनेवाल क उ ह ने कड़

भ सना क । ौी गु जी ने मुब ं ई म जस तरह अिभयान के उ -घाटन का भाषण

दया, उसी तरह द ली म संघ के सरकायवाह ौी भैयाजी दाणी ने अपने वचार रखे। द. 23 नवंबर तक गोह या बंद क मांग करनेवाले पऽक पर लोग के हःता र लेने का काम संघ के ःवयंसेवक बहत ु ह योजनाब

तर के से कर रहे थे। हर नाग रक

तक पहंु चना प रौम तथा लगन का काम था जसे ःवयंसेवक ने बखूबी िनभाया। कह ं भी वरोध नह ं हआ। लोग उ साह और आनंद के साथ धमकम मानकर, ु

सामा जक कत य मानकर हःता र दे ते। क तु पं. नेह क यह संघ का एक राजनीितक ःटं ट है ! बस, पं. नेह

ने बड़ गजना के साथ कहा

के इस वधान को सुनते ह

कांमेसी नेता तथा मुसलमान और ईसाइय ने हःता र दे ने के िलए आगे बढ़ाया हआ ु

हाथ पीछे खींच िलया। न केवल मुह ँ मोड़ने का ूयास हआ ु , ब क कांमेस के सिचव

ौीम नारायण जी ने एक फतवा िनकाल कर इस आ दोलन म सहयोग दे ने से कांमेसजन को मना भी कर दया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

155


फर भी यापक

प से राजनीितक प

के सदःय के हःता र ूा

हो सके।

लगभग ५४ हजार कायकताओं ने ८५ हजार माम म घूमकर लगभग २ करोड़ हःता र ूा

कये। यह हःता र संमह द ली भेजा गया। द. ७ दसंबर को एक

बृहत ् शोभायाऽा के

प म उसे ूदिशत कया गया। यह शोभायाऽा डे ढ़ मील लंबी थी।

रामलीला मैदान पर इस शोभायाऽा का

पांतर एक ूचंड आम सभा म हआ। डॉ. ु

ँयामाूसाद मुखज व ा के नाते इस सभा म उप ःथत थे। ौी गु जी ने उन सभी

का आभार ूदशन कया ज ह ने इस रा ीय आंदोलन को सफल बनाने के िलए हाथ बँटाया था, अपार प रौम कये थे। इस आभार ूदशन के भाषण म ौी गु जी ने पं. नेह

ारा इस आंदोलन को

‘राजलीितक ःटं ट’ घो षत करनेवाले कथन का करारा जवाब दया। उनके श द काफ पैने और धारदार थे। ौी गु जी ने पं. नेह

से ूितू

पुछा। आचाय वनोबाजी के

कथन को उ -घृत करते हए ु उ ह ने कहा‘आचाय वनोबा भावे कहते ह क, ‘सबै भूिम गोपाल क ’। पर म पूछता हँू क यह

भूिम गोपाल क है या गोह या करने वाल क ? मह ष दयानंद ने भी इस काय को अंगीकृ त कया था; अपनाया था। दन पूव साँची म भगवान ् बु

या उ ह भी राजनीितक ःटं ट करना था?’ कुछ

के दो िशंय क अ ःथय को ूित त करनेवाले

कायबम के िलए पं. नेह जी पहँु चे थे। कायबम समा

होते ह नेह जी वहां से ६

मील दरू पर ःथत भेलसा म पहँु चे और गोह या जार रखने क घोषणा कर डाली। भगवान बु

क अ हं सा का गौरव करने के तुर त बाद उ ह ने गो-ह या क घोषणा

क। को अपने मान बंद ु क र ा करनी चाहे सारा संसार वरोध म खड़ा हो जाए, ह दओं ु चा हए ऐसा उ कट भावभीना आवाहन ौी गु जी ने अपने भाषण के अंत म कया।

द. ८ दसंबर को द ली के त कालीन ूा त संघचालक ौी लाला हं सराज को साथ लेकर ौी गु जी ने रा पित से भट क । हःता र संमह रा पित के सुपुद कया। डॉ. राजे ि ूसाद जी ने उ ह आ ःत करते हए ु कहा क वे सरकार से इस संबंध म

सहानुभिू तपूवक वचार करने के िलए कहगे। वाःतव म रा पित ःवयं गोह या के प

नवयुग ूवतक ौी गु जी

156


म थे। पर तु संसार म कसी रा ीय ू

के हल के िलए इतने बड़े पैमाने पर

हःता र एकऽ करने का अपने ढं ग का अनोखा, एकमाऽ ूयास होने के उपरांत भी

सरकार ने इस अिभयान क उपे ा ह क । ःवतः को ूजातां ऽक शासक और शासन को ूजातां ऽक माननेवाल ने रा क याण तथा जनमत को केवल प प रणाम क

के ःवाथ के िलए अपने पैर तले र द डाला। यह अिभयान

से असफल रहा ऐसा कोई सोच सकता है । क तु यह स य नह ं है ।

अनेक ूांत के शासन ने बमशः गोवध बंद के िलए कानून बनाए। क तु के ि सरकार ने ऐसा नह ं कया। यह कमी आज भी अनुभव होती है । अिभयान के अंितम दौर म ौी गु जी ने उसे असफलता के दायरे से बाहर रखने क चे ा क । अिभयान समाि

के प ात इस ू

को उ ह ने शासन के अंधेरे कोने म पड़ने नह ं दया।

रा पित के स मुख हःता र संमह ूःतुत करने के ठ क एक साल बाद २ नवंबर

१९५३ से १४ नवंबर तक पुनः एक बार जनमत क ओर शासन का करने का ूय

यान आक षत

संघ के मा यम से कया गया। फर से सभाओं , जुलस ू और

एकऽीकरण के कायबम का आयोजन कया गया। १९५४ म कुंभ मेला ूयाग म संप न हआ। वह माघ का मह ना था। इस प वऽ ु अवसर पर ‘गोह या िनरोध सिमित’

इस कायबम क

ारा एक वशेष कायबम आयो जत कया गया।

वशेषता यह थी क जस िनवाचन

िलए चुने गये थे उसी

ेऽ से पं. नेह

लोकसभा के

ेऽ के मतदाताओं के हःता र संम हत कर सरकार के

यानाकषण हे तु ूःतुत कए गये। इस काय वशेष का अंतःथ हे तु नेह जी के मतदाताओं क भावना का दशन उ ह कराना था। गोह या बंद क मांग करनेवाले आवेदन पऽ पर नेह जी के िनवाचन कये थे। पं डत जी को चुनाव म ूा ने गोवध बंद के प

ेऽ के कुछ २,५७,५८० मतदाताओं ने हःता र

कुल मत से डे ढ़ लाख से अिधक मतदाताओं

म हःता र कये थे। इस हःता र संमह के साथ ूधानमंऽी के

नाम भेजे गये ूितवेदन म िलखा था क जब संसद म गोवध बंद का वषय चिचत होगा तब वे इस ूःताव का समथन कर। गोह या का समथन करनेवाला य हमारा ूितिनिध व कदा प नह ं कर सकता।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

157


इतना सब कुछ करने के उपरा त भी ूधानमंऽी जी ने अपने मतदाताओं क भावना

क कोई िच ता नह ं क । उनके कान पर जू तक नह ं रगी। इस कुंभ मेले म ौी गु जी वशेष

प से उप ःथत थे। संघ के ःवयंसेवक ने हःता र संक प तथा कुंभ

मेले के कायबम को सफल करने का भरसक ूय

कया था।

१९६६ म पुर के शंकराचाय जी ने गोह या बंद क मांग के ू

पर आमरण अनशन

कया। इस अवसर पर ौी गु जी ने सरकार क नीित पर कठोर ट पणी क । इन

दन ू येक पऽकार प रष , लेख, भाषण और चचा सऽ म इस वषय का बार-बार ःपश हआ दखाई दे ता है । ु भारत सरकार ने अभी तक गोवंश-र ा के हे तु के ि य कानून नह ं बनाया है । वह इस संबंध म नकारा मक भूिमका िनभा रह है । इस कारण ूांतीय सरकार ने भले ह गोवंश बंद कानून पास कया हो, वह काया वत नह ं हो पा रहा है । गोह या वरोध के िलए समय-समय पर सरकार ःतर पर बनी सिमित या आंदोलक ारा बनायी गयी गोर ा महािभयान सिमित के कायकलाप से ौी गु जी अ य त असंतु

थे। सरकार गोर ा सिमित क बैठक म जाना उ ह िनरथक तथा समय का

अप यय लगता था। वे ऽःत होकर कहते थे क “गोह या ब द करने हे तु वाःतव म एक िमनट ह पया

है , छह मास चलनेवाली सिमित क

या आवँयकता है ।”

महािभयान सिमित क चचा करते हए ु उ ह ने एक बार कहा था क “वहाँ ऐसी चचा चलती है क लगता है जैसे हम बाजार म बैठे ह ।”

ौी गु जी नह ं चाहते थे क स यामह या अनशन का माग अवलंबन कर गोह या िनरोध आंदोलन चले। पर तु सन ् १९६६ के अंत म पुर के शंकराचाय जी ने पुर म

और ौी ूभुद

ॄ चार जी ने वृ दावन म अनशन ूारं भ कर दया। इससे प र ःथित

ज टल हो गयी। सन ् १९६६ म राजधानी म ूच ड ूदशन हए ु थे। आंदोलन धधक

उठा था। ऐसी वाताएँ ूःतुत हो रह थीं क गोह या िनरोध का अ यादे श रा पित

जार करने जा रहे ह। पर तु अ यादे श न िनकालने का ह िन य कया गया। इसके िलए कारण दया गया क सव च अवहे लना होगी। सव च

यायालय

ारा इसके पूव दए गये िनणय क

यायालय का िनणय यह था क बुढ़े और खेती के काम के

िलए िन पयोगी बैल क ह या करने म कोई आप

नह ं है । अ यादे श जार

कया

तो इन बैल क ह या का भी वरोध होगा। सव च

यायालय के इस िनणय पर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

158


तीखी ट पणी करते हए ु ौी गु जी ने कहा क ‘गौ’ याने संपूण गोवंश ह अिभूेत है जस ूकार man कहने पर woman भी आती है । पर तु इस सामा य

मानी हई ु बात को

प से सवऽ

यान म न रखते हए ु बैल को गाय से अलग कया गया है । बैल

क ह या के बहाने गाय क ह या करने से कौन रोक सकता है ? यह समाचार

ात

होने पर ौी गु जी ने कहा, “आ खर रा पित कसिलए ह? उनका श द ह ूमाण माना जाना चा हए।” सन ् १९५२ के अगःत मास म ौी गु जी

ारा दया गया संकेत सह िनकला। इस

मास म विभ न ४० संःथाओं के ूितिनिधय क एक बैठक आयो जत क गयी थी। स यामह मु हम के िलए वशेष अनुकूलता बैठक म नह ं दखायी द । इस बैठक म ौी गु जी ने कहा, “गोह या के िनरोध के ूित आज जतना अनुकूल वातावरण

िनमाण हआ है उतना इसके पूव कभी भी िनमाण नह ं हआ था। इस वातावरण म भी ु ु गोह या िनरोध क

दशा म पग उठाने के िलए सरकार को ूवृ

तो आगामी ४-५ वष म गोह या बंद होना संभव नह ं अ य अनेक ू

ूय

यान

क ओर मोड़ना असंभव होनेवाला है ।”

भ वंयवाणी पूणतः सह िनकली। ऐसा नह ं क इस ू नह ं हआ। पर तु उसे जनमानस म और सरकार क ु

नह ं हआ। आ दोलन शा त हो गये। अब तक भी इस ू ु

म नह ं है । गोमांस का िनयात और खेती के उपयु ू

य क आगे दे श के सामने

उप ःथत होनेवाले ह और उनपर से लोग और सरकार का

हटाकर उसे गोर ा के ू उपयु

कया नह ं जा सका

को ूभावी बनाने का से भी अमबम ूा

का अ तम हल

पथ

जानवर क ह या बड़ा गंभीर

बन गया। से युलै र म का डं का बजानेवाले इस ू

पर मुसलमान और ईसाइय

को नाराज करनेवाला कोई भी कदम उठाएँगे, ऐसी संभावना नह ं है । इस अिन छा क जड़ नेह

क नीितय म ह यह ौी गु जी ने ूकट

संदभ म नेह जी

प से ःप

बतलाया था। इस

ारा बै रःटर ज ना को िलखे एक पऽ के कुछ कथन का वे

उ लेख करते थे। गुवाहाट म सन ् १९५५ म ूित त नाग रक क सभा म बोलते

हए ु इस पऽ के वा य को उ ह ने दोहराया था जो इस ूकार थे। “ऐसा दखता है क

गोह या के वषय म कांमेस के व

झूठा और बेबुिनयाद ूचार कया जा रहा है ।

कांमेस गोह या को कानून से बंद करनेवाली है यह कांमेस वरोधी ूचारक बतलाते ह। मुसलमान को उनके कसी भी सुूित त अिधकार से वंिचत करने क कांमेस क इ छा नह ं है ।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

159


गोवंश का वनाश अब भी जार है । आचाय वनोबा भावे के िलए गोवंश-र ा सवािधक ूय वषय रहने के कारण उ ह ने गोह या बंद के िलए स यामह कया, आंदोलन

छे ड़ा। क तु फर भी के ि म आसीन स ाधा रय को गोह या बंद का रा

यापी

कानून बनाकर उसका कठोर पालन करने क इ छा नह ं होती। मत क (votes) असीम लालसा का राजनीित पर वपर त प रणाम हो रहा है । ित

पुर म सन ् १९६७ म पिल काड़

ानाौम के ःवामी पु षो मान दजी के साथ

गोह या वरोधी आ दोलन के बारे म बातचीत करते समय ौी गु जी ने दो मु पर वशेष बल दया। ूथम मु ा यह था क वदे शी शासन भारत म ूःथा पत होने के बाद ह यहाँ गोह या ूारं भ हई। इसिलए अपने रा -जीवन पर वह कलंक है ; गो-ह या ु मुसलमान ने शु

क और मुसलमान ने वह वरासत म आगे चालू रखी। अब हम

ःवतंऽ हए ु ह। ःवतंऽता ूाि

कलंक न

के बाद पूव क राजनीितक गुलामी के काल के सारे

करना हमारा कत य है । य द यह कत य पूरा नह ं कया तो हम मानिसक

दासता के िशकार ह गे। पर तु ःवत ऽता ूा

होने पर गोह या बंद करना तो दरू

रहा, वह अनेक गुना बढ़ है । १९४४-४५ म ह पूव क तुलना म वह ५० से १०० गुना बढ़ थी। अंमेज के समय वदे शी सेना भारत म रहती थी इसिलए यह ूमाण बढ़ा

होगा क तु ःवत ऽता के बाद यह ूमाण घटा नह ं उ टे वदे शी सेना के यहाँ से चले जाने पर भी गाय क ह या २० गुना बढ़ है । ौी गु जी का दसरा मु ा यह था क स पूण भारत म के ि य कानून से गोह या बंद ू होना अ यावँयक है ।

य आवँयक है इसक कारण मीमांसा बताते हए ु उ ह ने कहा,

“अंमेज ने गाय और सुअर के मांस का सेना के िलये उपयोग करना िन ष था, यह

यान म लेना चा हए। १८५७ का ःवात य यु

माना

भड़कने के िलए जो कारण

थे वे भी हम ःमरण करना चा हए। अब सेना म सुअर के मांस पर बंद है पर तु गोमांस का उपयोग मु

प से कया जाता है । उ रूदे श जैसे कुछ रा य म

गोह या पर कानून से बंद है पर तु उसम संशोधन करने का भारत सरकार ने सुझाव दया है । इस संशोधन से अनुपयु

पशु सेना के िलए काटे जा सकगे। इससे उ म

जानवर भी क ल कये जाने का भय िनमाण हआ है । गोह या िनरोध कानून िनरथक ु

िस

होने लगा है । जन कारण से हम भारत सरकार से स पूण दे श के िलए एक

कानून बनाने क मांग कर रहे ह, उनम मह व का कारण यह है क मैसरू रा य जैसे

ूदे श म गोह या बंद का कानून होते हए ु भी रा य क सीमा-पार के भाग म अंधाधुंध पशुह या क जाती है और वह मांस मैसरू

ेऽ म चोर -िछपे लाकर सरे आम

बेचा जाता है । इसिलए संपूण दे श म लागू होनेवाला कानून चा हए। नवयुग ूवतक ौी गु जी

160


उ ह ने यह मु ा भी रखा क गो ह या िनरोध के वरोध म वदे शी स ाओं का दबाव पड़ता हआ दखाई दे ता है । उ ह ने कहा क कुछ नेतागण ऐसा तक दे ते ह क ु

गोमांस िनयात नह ं कया तो हम वदे शी मुिा बड़े पैमाने पर खो बैठगे। इस तक म

वदे शी स ा का दबाव ःप तः दखता है । अमर क लोग को हम से पशुओं का चमड़ा

और सःता गोमांस चा हए। उनक इ छा है क अमर क गाय सुर

त रह और भारत

को द ु ध पाउडर के िलए हमेशा उन पर िनभर रहना पड़े । अमर का इसके िलए भारत

सरकार पर दबाव डाल रहा है । अमर का ने कहा है क य द भारत ने गोह या बंद क तो उसका सहयोग भारत को नह ं िमलेगा। वदे शी मुिा ूा

करने के िलए

या हम

अपने मान ब द ु और आदश के संबंध म समझौता कर सकते ह? ” इस वषय को जन सामा य से लेकर दे श के शीषःथ नेताओं और स ाधा रय तक पहँु चानेवाले एक माऽ नेता के

प म ौी गु जी का नाम ःमरण म रहे गा। ःवतंऽता

के आंदोलन के समय महा मा गांधी जी ने गो र ा तथा गो पूजन को अपने काय

का एक अ वभा य अंग ह माना था। ह द ू संःकृ ित क मह ा के ल ण के नाते गो

माता के ूित ौ ा का उ लेख तो उ ह ने कया था क तु ःवतंऽता ूाि

के प ात

इस वचार को आगे बढ़ाने या जनमत ूभा वत करने का अवसर उ ह ूा

नह ं हो

सका। इसी कमी क पूित ौी गु जी ने क । कहा जा सकता है क गांधीजी क यह उ कट इ छा पूण करने का भरसक ूयास ौी गु जी ने कया।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

161


१४ सजग रा

ूहर

१९४७ म हआ दे श का र रं जत वभाजन, इस दःखद पृ भूिम पर ूा ु ु

राजनैितक

ःवाधीनता, ःवतंऽ रयासत का वलनीकरण, महा माजी क ह या, नये सं वधान क

ःवीकृ ित, तदपरां पहला आम चुनाव आ द घटनाएँ १९४७ से १९५२ ु त १९५२ म हआ ु

तक के पाँच वष म घट ं। इन घटनाओं के दरगामी प रणाम भारतीय समाज म ू

ूित बं बत हए। ूित बयाएं उभरती रह ं। िभ न-िभ न वचार क लहर जनमानस पर ु टकराती रह ं।

रा ीय ःवयंसेवक संघ के िलए इन घटनाओं से अिल

रहना, उनसे हटकर रहना

स भव नह ं था। वभाजन के र रं जत कालखंड म संघ के ःवयंसेवक ने हु द ू

समाज क र ा के िलए अपने ूाण क बाजी लगा द थी। गांधी ह या के प ात

िनद ष होते हए ु भी संघ को जनू ोभ का िशकार होना पड़ा और उसम से संघ झुलस कर िनकला। संघ इस अ नप र ा म खरा उतरा। संघ पर लगा ूितबंध हटाया गया।

संघकाय पुनः ूारं भ हआ। फर भी नये वातावरण के स दभ म संघ क भूिमका ु रहे गी? यह ू

ःवतंऽताूाि

या

अनेक के मन म उ प न होना ःवाभा वक था।

का ू

पीड़ा-भावना समा

हल हो चुका था। स दय से हो चुक थी। अब ू

दय म या

पराधीनता क

था भारत के नविनमाण का। यह नव

िनमाण कैसे होगा? इस ूकार के अनेक ू

एक के बाद एक सामने आते गये। संघ

के अनेक कायकताओं के मन म भी ये ू

बार-बार उभरते रहे । १९५२ के चुनाव का

उदाहरण इस बात को ःप

करने के िलए पया

होगा।

१४.१ चुनावी जय-पराजय के परे १९४७ के संकटमःत कालखंड म संघ के हजार कायकताओं ने अपने ूाण संकट म डालकर पा कःतानी आबमणका रय से ह द ू बंधुओं को बचाया था। संघ उस समय

समाज के िलए ूशंसा का पाऽ बना था। इस कारण अनेक कायकता १९५२ के आम चुनाव म भारतीय जनसंघ के ू याशी के

यह रह

प म खड़े हो गये। क तु आ य क बात

क जब चुनाव के प रणाम घो षत हए ु तब वजेताओं म एक भी कायकता

का नाम नह ं था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

162


सभी ू याशी पराभूत हए। जन लोग ने दे श के वभाजन को मा यता द , दे श का ु

बँटवारा िनःसंकोच ःवीकार कया, िनवािसत क ओर

यान तक नह ं दया, उ ह

बेहाल, बेघरबार, असहाय अवःथा म दे खते हए ु भी ज ह ने न आह भर न अ याय को रोकने के िलए कोई ूयास कया, ऐसे लोग स ा के िसंहासन पर बठाए गये।

संघ के ःवयंसेवक

ारा कया हआ ु

याग, बिलदान, भले ह वह िनरपे

कम इस चुनाव के संदभ म िनराशा उ प न करने के िलए पया

हो, कम से

था।

प रणामतः पंजाब- द ली वभाग म िनराशा और वफलता क भाषा अनेक कायकताओं के मुह ँ से सुनाई दे ने लगी। कायकताओं के मन म िनराशा के काले बादल मँड़राने लगे। इन बादल क काली परछाई

दय पर छाने लगी। दसर ओर ू

कँमीर, भाषानुसार ूांत रचना, से यूलर रा य का आशय और ःवतंऽ भारत का

एका म रा ःव प, ह द ू के अित र

भारत म ःथान, ऐसे अनेक ू

अ य (ईसाई और मुसलमान) समाज का

रा ीय मंच पर चचा और िचंतन-मनन के वषय बने

थे। ःवाधीनता के बाद का ूारं िभक काल रा जीवन के सभी पहलुओं व मा यताओं का वचार कर भ वंय क

से नींव क ःथापना का था। इस कारण वाद-ूितवाद क

धूल से सामा जक और राजनीितक वायुमड ं ल भरा हआ था। इस धूिमल वातावरण म ु सह

दशा क ओर जाते हए ु रा जीवन क मूलभूत समःया पर संघ क

करने तथा संघबा

के ित

जनता को रा ीय भूिमका तथा कत य से अवगत कराने का जो

ूय

ौी गु जी ने कया, उसके िलए वतमान भारतवष को उनके ूित कृ त ता का

भाव

दय म सँजोना चा हए।

मूलतः डॉ. हे डगेवार जी ने संघ क ःथापना ह द ू समाज को संग ठत करने तथा

पराधीनता के िलए कारणीभूत हए ु दोष को दरू कर उसे तेजःवी तथा बलशाली बनाने

के िलए क थी। उनक धारणा थी क ःवतंऽता तो इस योजना का एक अंश माऽ है , एक मं जल है । क तु दभा ु य से खं डत भारत क ःवतंऽता ह हम ःवीकार करनी पड़ ।

दसरे महायु ू

के प ात अंतरा ीय प र ःथित तथा साॆा य संभालने क असमथता

के कारण इ छा न होते हए ु भी ॄ टश को ःवतंऽता भारत क झोली म ड़ाल दे नी

पड़ । फर

या संघ का ूयोजन समा

हआ ु ? ौी गु जी ने इस ू

का उ र ‘नह ं’

नवयुग ूवतक ौी गु जी

163


म दया और ःवतंऽ भारत म संघ को जो काय करना था उसक

वशु

रचना ूःतुत

क । डॉ टर जी के वचार तथा कायप ित के सूऽ को बाधा न पहंु चाते हए ु उ ह ने

यह रचना पुरःकृ त क थी। साथ ह डॉ टर जी के वचार तथा कायप ित पर ौ ा पुन इस

सु ःथर करने म वे सफल रहे । से १९५४ के माच म ौी गु जी के साथ पूरे दे श भर के जला तथा ऊपर

ःतर के ूचारक के खुले और ूद घ वचार-मंथन का कायबम हआ। द. ९ माच से ु

१६ माच, अथात आठ दन का यह आयोजन था। िश वर के िलए नागपुर-वधा माग पर ःथत िसंद नामक गाँव चुना गया था इसका एक वशेष कारण था। संघ

संःथापक डॉ. हे डगेवार जी ने १९३९ म इसी िसंद गाँव म एक बैठक आयो जत कर संघ क नयी संःकृ त ूाथना को ःवीकार कया था, साथ ह संघ क कायप ित तो ःथायी

प ूदान कया था।

अब १५ साल बाद संघ के वचार तथा कायप ित के संबंध म मूलभूत िचंतन करने हे तु इस िश वर का आयोजन कया गया था। ःथान वह -िसंद , क तु संदभ बदली

हई ु प र ःथित का। िसंद म हए ु इस िचंतन-मंथन का समारोप करते समय द. १६

माच १९५४ के दन ौी गु जी ने १९३९ क बैठक का संदभ-ःमरण कराते हए ु कहा, “उस समय (१९३९) हम लोग ने अपने अंतःकरण म अपने काय के ूित व ास

कया था और िन य भी कया था क हम दनरात प रौम कर इस काय को

बढ़ाएँगे। तदपरां ु त सवा वष पूरे होते-न होते डॉ टर साहब क जीवन याऽा समा

हई। ु

क तु फर भी एकामता से काम करते हए ु हमने संघकाय को आगे बढ़ाया। संघकाय वकिसत हआ। य द हमारे चार ओर क प र ःथित के प रणाम-ःव प कुछ शंकाएँ ु

मन म उ प न हई ु ह तो हम पुनः एक बार िन य कर क कसी भी दोष को अपने मन म ूवेश नह ं होने दगे। अपनी सवश

दाँव पर लगाकर, दन-रात प रौम करते

हए ु हम अपने-अपने ौेऽ म संघकाय ूभावो पादक ढं ग से बढाएंगे। हम संघ का ऐसा

ूभाव अ जत करगे क संघ के वातावरण का ःपश जसे नह ं हआ ु , ऐसा एक भी य

न रहे । हमार इ छा माऽ से रा जीवन के िभ न-िभ न

ेऽ कायूवण ह गे

और दे श क ूगित और क याण का उ े ँय हम सफल करगे।” िसंद म हए ु चचासऽ का संपूण यौरा दे ने का यहाँ ूयोजन नह ं है । क तु इस बैठक

म ौी गु जी ने ह द ू जीवनदशन के ूकाश म ःवतंऽ भारत का जीवनो े ँय

या है ?

नवयुग ूवतक ौी गु जी

164


त व

विभ न वचारधाराओं का प रणाम

या हो रहा है ? ह द ू समाज के मूल

या ह? संघ कायप ित क अनुपम यशःवी वशेषताएँ

पर भाषण दये और कायकताओं से मु

या ह? आ द वषय

ू ो र आ द कये। अंत म ौी गु जी ने

कायकताओं के स मुख जो आवाहन कया वह बहत ु ह ूेरक तथा

करनेवाला था। ःवतंऽता ूा

दय को ःपश

होने के प ात ् १९५४ म बढ़ती हई ु समःयाओं के

ूाथिमक कालखंड म ौी गु जी ने अ यािधक लगन तथा

दय क वेदना भर ट स

के साथ कहा, “आज दे श के सामने जो संकट ह और भ वंय म जो समःयाएं

उप ःथत होनेवाली ह, उनम से दे श को उबारने क श

केवल अपने ह काय म

िन हत है । कसी अ य काय के िलए यह संभव नह ं है ।” आगे सभी ूचारक को संबोिधत करते हए ु ौी गु जी ने कहा क वे अपनी य

बात को

गत

दय से हटाकर सवःवापण कर अपना काम कर। कायकताओं को कायूवण

करने तथा

याग और समपण के िलए ूवृ

करने का वल ण साम य ौी गु जी

क वाणी, वचार तथा आचरण म था इसम कोई संदेह नह ं। १९५४ के पहले से ह संघ के कायकता रा

के विभ न

ेऽ म कायरत होने लगे थे।

क तु िसंद के चचा िश वर म ौी गु जी ने ‘शाखाके ित काय’ पर सवािधक दे ने का आमह रखा था। शाखा संघ क श श

यान

तथा संःकार का के ि है । अतः शाखा

शाली होगी तो शाखा के भरोसे होनेवाले बाहर काम भी ूभावी ह गे यह उनके

कथन का मु य आशय था। ौी गु जी ने संघ क कायप ित को रा -पु ष के पूजन का माग कहा। इसी काय म एकाम होने का आमहपूवक ूितपादन उ ह ने कया। इस मागदशन के बाद सभी कायकता अपने-अपने

ेऽ म एक नया उ साह, नयी

उमंग तथा कत यिन ा लेकर लौटे । प रणामतः भारत म संघकाय बढ़ता, पनपता

दखाई दया। ौी गु जी ूारं भ से ह कायकता के काय-कौश य तथा गुण क ओर

अिधक

यान दे ते थे। यह उनका ःवभाव था। कायकता गुणवान हो, काय कुशल हो,

ःवयंूेरणा से यो य िनणय लेने क चचासऽ म वे जोर दे ते,

मता उसम हो, इ ह ं बात पर विभ न

यान आक षत करते थे। समाचारपऽ , िश ा संःथाओं,

व ािथय और मजदरू के संगठन, राजनीितक संगठन आ द

ेऽ म कायकता काम

करने लगे थे। उनक भूिमका का उ लेख ौी गु जी ने कया। उस संबंध म अिधक ववेचन आगे आयेगा ह ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

165


अनेक लोग पूछते ह क रा ीय ःवयंसेवक संघ ने दे शभर म संघकाय का ूचार और

ूसार करने के िलए इतने बड़े ूमाण म कायकता के

प म

यागी ूचारक कहाँ से

पाए? कसी तपःवी क भांित ये ूचारक अपने काय ेऽ म वषानुवष कस बलबूते पर डटे रहे ? इस ू

का उ र हम ूा

होगा उन चचाओं म जसम ौी गु जी सहजता

से वचार- विनमय कया करते थे। ौी गु जी ःवयं एक

वलंत उदाहरण थे। उनके आचार- वचार एक प थे, अिभ न थे।

डॉ टर जी क जीवनी तथा तपःवी ौी गु जी क तपःपूत, तपःवी

येय-वा दता और

वाणी कायकताओं के स मुख ूेरणा ोत थे। इन दो महान ् वभूितय के रा सम पत जीवन को भी हम

यान म रखना होगा। ह द ू जीवन-मू य , अ या म तथा

रा पु ष क परं पराओं के बारे म ौी गु जी का िचंतन सूआम, गहरा तथा मममाह

होने के कारण संघ के कायकताओं ने कस ूकार जीवन के संबंध म वचार करना चा हए, इसका रोचक उदाहरण

ःवतंऽता ूाि

ारा ःफूितूद ववेचन वे सरलता से कया करते थे।

के उपरांत दस वष के कालखंड म संघकाय का वःतार करते हए ु ौी

गु जी अ यािधक कायम न अवँय थे क तु चार ओर हो रह ं घटनाओं क ओर उनका पूरा

यान था। बहत ु पैनी नजर से वे इन गित विधय का सूआम अ यास

कया करते थे। जानकार क बार कयाँ सदै व उनके

यान म रहा करती थीं। इसी

आधार पर वे जनता तथा शासन को आगाह करते थे, सतक रहने क चेतावनी दे ते थे। गलत नीितय पर ूहार कर सह मागदशन करना वे अपना कत य मानते थे।

इन दन ःथान-ःथान पर ौी गु जी ने जो भाषण दये उ ह य द ःमरण कया, छपे हए ु या संकिलत वृ

क छानबीन क तो हम

बारे म कतने सजग थे, सतक थे। वशेष

ात होगा क ौी गु जी दे श हत के

प से हम यह दखाई दे गा क दे श के

वघटन के िलए कारण बनी तथा रा ीय एका मता के िलए हािनकारक घटनाओं का उ लेख उनके भाषण म बार-बार आया है । दे शभ

के ठे केदार ने ह द ू रा

क भाषा बोलनेवाले, सामह ह द ू रा

का समथन

करनेवाले ौी गु जी को ‘सांूदाियक’ करार दया था। इस अहं कार तथा वैचा रक ूदषण के फलःव प दे श के नेताओं ने ौी गु जी क दे श हतकार संक पनाओं को ू

अःवीकृ त कर दया। कुछ उदाहरण से यह बात ःप

होगी।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

166


१४.२ भाषावार रा य-रचना १९५२ के प ात ् दे श म भाषानुसार ूांत रचना क माँग ने जोर पकड़ा। इस ू

उछालकर भावनाएँ भड़काने का काम कुछ नेताओं ने शु

को

कर दया। अपने भारत का

सं वधान संघा मक है । रा यपुनगठन आयोग के ग ठत होते ह तरह-तरह क माँग तथा परःपर वरोधी दाव क बाढ़ सी आ गई। ौी गु जी का ःप

मत था क दे श

का सं वधान संघा मक न हो। वह ‘युिनटर ’ याने एका मक हो अथात ् के ि म एक शासन और बाक सारे ूांत ूशासन क सु वधा के अनुसार। क तु इस वचार क ओर शासक ने

यान नह ं दया। वाद-ूितवाद बढ़ने लगे। भाषा भेद और भाषा का

दरािभमान लेकर कई ूांत एक दसरे के सामने ऐसे खड़े हो गये मान वे शऽु रा ु ू र पात क

ह।

हं सा मक भाषा का भी ूयोग होने लगा।

इस आंदोलन म क युिनःट पाट ने आग म घी डालने का काम कया। क युिनःट

क अिभलाषा थी क कसी तरह रा ीय एका मता भंग हो। इसे पूण करने हे तु पाट के नेताओं ने यह कहना ूारं भ कया क ू येक भाषा आधा रत ूांत एक रा

भारत इन रा

है तथा

का समूह है ।

इस ूकार भूतपूव ॄ टश रा यकताओं के पदिच ह पर चलते हए ु सःती लोक ूयता ूा

ु करने म लगे स ा ूय राजनीितक नेतागण तथा दे श के छोटे -छोटे टकड़े कर

उसे दबल बनाते हए ु ु

सी महास ा का गुलाम बनाने के िलए क टब

का कोलाहल जब प रसीमा पर था तब ौी गु जी ने म बताने का ूय

सा यवा दय

ढ़तम तथा िन या मक ःवर

कया क भाषा के अिभिनवेश का िशकार होने से रा ीय

एका मता के सांःकृ ितक अिध ान के भंग होने का धोखा है । इसी समय मुब ं ई म ूांतीयता के वरोध म एक प रष गु जी इस प रष

के अ य

थे। प रष

के ःवागता य

का आयोजन कया गया। ौी थे ौी जमनादास मेहता

और उ -घाटक थे त कालीन महापौर ौी दा ाभाई पटे ल। इस अवसर पर ौी गु जी ने अ य

पद से जो भाषण दया वह बहत ु ह ूखर तथा वचारूवतक था।

भाषण के ूारं भ म ह उ ह ने कहा, “म एक दे श, एक रा य का समथक हँू । एक ओर

सारे संसार का रा य बने ऐसा कहा जाता है और दसर ओर संपूण भारत एक रा य ू

हो ऐसा वचार कसी ने रखा तो कुछ लोग क भ हे तन जाती ह।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

167


“वाःतव म भारत म एक ह के ि शासन होना चा हए और शासन यवःथा क

से रा य के ःथान पर वभाग होने चा हए। आज हमारे नेतागण महारा ीय, गुजराती

आ द िभ न संःकृ ितय क बात करते ह। क तु हमार तो आसेतु हमाचल एक ह संःकृ ित है तथा संःकृ ित तो रा

क आ मा होती है । इस कारण हम दे श क

संःकृ ित, परं परा, रा धम तथा कुलधम क र ा करनी चा हए। दे श को धमशाला बनाकर काम नह ं चलेगा। सौदे बाजी क भाषा रोककर हम रा

का वचार करना

चा हए।” ौी गु जी ने भाषानुसार ूांत रचना का वरोध कया। इस वरोध को उ ह ने ःप श द म बे हचक जनता के सामने य

कया। इस बारे म महारा

ट पणी हई। क तु ौी गु जी ने ऐसी ट प णय क ओर न ह ं ु

म काफ ट कायान दया, न ह

िचंता क । कसी भी प र ःथित म उ ह ने अपना रा ीय ववेक डगने नह ं दया। सदै व क भांित वे अ जग रहे । ववेकशीलता क अनुभिू त संयु

महारा

के आंदोलन

के समय हई। ूधानमंऽी पं. नेह जी ने आंी का रा य भाषा के आधार पर िनमाण ु करने को मा यता ूदान कर द थी। क तु महारा वशाल

और गुजरात को िमलाकर

भाषी रा य बनाया गया। इस िनणय का वरोध करने के िलए आंदोलन

िछड़े , क तु पुिलस

ारा गोिलयाँ बरसाकर दमननीित का सहारा लेते हए ु आंदोलन

भंग करने का ूयास कया गया। ौी गु जी ने इस दमन ूवृ

का कड़ा वरोध

कया। इस वरोध को अिधक ूखर बनाने हे तु उ ह ने एक पऽक ूसा रत कया जसम उ ह ने कहा, “सरकार गुड ं क सहायता से स यामह को कुचलना चाहती है । सरकार

ारा ूो सा हत गुड ं ाशाह को सहना असंभव है । इस गुड ं ागद का य द मने

वरोध नह ं कया तो माना जाएगा क मने अपने कत य का िनवाह नह ं कया। म

कत य युत नह ं रह सकता।” एक और ूसंग इस संदभ म उ लेखनीय है । ूतापगढ़ पर पं. नेह

ारा ौी छऽपित

िशवाजी महाराज क मूित के अनावरण का कायबम आयो जत कया गया। संयु महारा

सिमित ने पं. नेह

के आगमन तथा अनावरण कायबम का कड़ा वरोध

करने का िन य कया। वरोध ूदशन क तैया रयाँ बड़ गमजोशी से चालू हो गयीं। ौी गु जी को यह बात अनुिचत लगी। रा ीय ूदशन अनुिचत है , यह बात उ ह ने ूगट

कोण से इस ूकार के वरोध

प से कह । य प कांमेस शासन

ारा

यह कायबम राजनैितक उ े ँय से आयो जत कया गया था और मराठ जनमानस के ूित ूेमभाव तथा अपन व का आभास िनमाण करने का एक अंतःथ हे तु भी उसके मूल म था तथा प भारत के ूधानमंऽी छऽपित िशवाजी महाराज का गौरव करने आ नवयुग ूवतक ौी गु जी

168


रहे ह, अतएव उनके आगमन का वरोध करना ौी गु जी सवथा अनुिचत मानते थे। उनके िलए रा ीय गौरव सव प र था। इस अवसर पर ूकािशत एक प रपऽ म ौी गु जी ने कहा, “छऽपित िशवाजी क मूित का अनावरण करने के िलए मा यता दे ते समय पं. नेह तक अपनी ह अहं कार ूवृ

को झुकना पड़ा है । आज

म डू बे रहने के कारण उ ह ने अनेक बार िशवाजी का

अपमान कया था। आज संपूण भारत के शासक-सुऽधार पं. नेह , वलंब से ह न हो, एक असामा य रा पु ष के ूित आदर य महाराज न केवल महारा

करने हे तु पधार रहे ह। िशवाजी

के अ पतु संपूण भारत के वंदनीय महापु ष ह। साथ ह

इस युगपु ष क यथाथ मह ा समूचे व अपूव योग हम ूा

को बताने वाला यह ूसंग है । यह एक

हआ है इसम अपशकुन नह ं होना चा हए। ऐसा ूय ु

कोई न

करे । ऐसी कृ ित करने से िशवाजी के बारे म अनादर तथा अौ ा का भाव ह ूगट होगा। इस कारण म सभी बंधु, भिगनी तथा माताओं से आमहपूवक वनती करता हंू क वे अपनी ववेक बु

से काम ल। अपना ववेक जागृत रख इस कायबम म भाग

ल।” ौी गु जी के इस व इस प रपऽक ने संयु

य के कारण अनुकूल-ूितकूल ूित बयाएँ ूकट हई। क तु ु महारा

के समथक को वचार के िलए बा य कया।

प र ःथित को नया मोड़ लेना पड़ा।

१४.३ पंजाब के संदभ म आगे चलकर पंजाबी सूबे का ववाद िनमाण हआ और उसम से ह पंजाब और ु ह रयाणा, दो शासक य ूांत तैयार हए ु यह सव व दत है । यह वाद जस समय

परमो च िशखर पर पहँु चा था उस समय भी ौी गु जी ने अपनी रा ीय एकता क

और सब भारतीय भाषाएँ रा ीय भाषाएँ ह यह भूिमका कभी नह ं छोड़ । भारतीय जनसंघ के उस भाग के कायकताओं को भी न पस द पड़नेवाली ःप

िनःसं द ध भूिमका उ ह ने महण क । उ ह ने यह मत य

और

कया क जनक

मातृभाषा पंजाबी है वे ूामा णकता से राजनीित का वचार छोड़कर पंजाबी को ह अपनी मातृभाषा िलखवाएँ। पंजाबी मातृभाषा होते हए ु भी ह द को मातृभाषा

िलखवाने क सलाह जो दे ते ह वे बड़ भार भूल कर रहे ह। इस मतूदशन से अनेक

आयसमाजी ौी गु जी पर बहत जनसंघ के लोग को भी अड़चन सी ु नाराज हए। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

169


मालूम होने लगी। पर तु ौी गु जी

थी, यह समय ने िस

ारा जो सलाह द गयी थी वह कतनी हतकारक

कर दया है । आगे पंजाब म उमवाद गित विधय ने

पा कःतान क शह पर जोर पकड़ा। ू य

संघशाखाओं पर हमले होकर अनेक

ःवयंसेवक को ूाण से हाथ धोना पड़ा। फर भी संघ क भूिमका अ य त संयिमत रह । िसख ह द ू ह ह और ह द-ू ह द ू म झगड़ा लगाकर गृहयु

भड़काने का रा -

िोह ष य ऽ सफल नह ं होने दे ना चा हए, इस भूिमका से संघ कायरत रहा। बदला लेने के वचार को उसने कभी भी आौय नह ं दया। इस नीित का पंजाब म शांित लाने क द

से बड़ा लाभदायक प रणाम हआ इसम कोई संदेह नह ं। ु

ण के भाषायी ववाद को सुलझाने हे तु ौी गु जी ने रा ीय एकता क कसौट

सामने रखते हए ु इस आधार पर ूयास कये क समःत भारतीय भाषाओं का

भावजगत ् समान होने से सब रा ीय भाषाएँ ह ह। सन ् ६६-६७ के आस-पास

ू क तिमलनाडु म ह द - वरोधी आ दोलन अपने चरम पर था। तब कोयंबटर

सावजिनक सभा म, जसक अ य ता ःवतंऽ भारत के के ि य मं ऽमंडल म मंऽी रह चुके ौी आर.के. ष मुखम ् चे टयार ने, ज ह ने सं वधान सभा म हं द का वरोध कया था, क थी, ौी गु जी ने कहा- “भारत क सभी भाषाएँ रा भाषाएँ ह

य क वे

सब एक ह रा ीय भाव ूगट करती ह। क तु एक भाषायी समूह के लोग दसरे ू

भाषायी समूह को लोग के साथ कस भाषा म वातालाप करगे? ऐसी स पक भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है । चूँ क ह द दे श म सवािधक बोली और समझी जाती है इसिलए उसे स पक भाषा के

प म चुनना अिधक सु वधा का रहे गा।” बाद

म अपने अ य ीय भाषण म ौी ष मुखम ् चे टयार ने कहा, “If that is the attitude, then I am for Hindi. (अगर ऐसा

कोण है तो म ह द का समथक हँू ।)” अ ूय

स य बतलाने के ूसंग ौी गु जी पर इस कालखंड म अनेक बार आये। महारा -

कनाटक सीमा ववाद तो बहत ु नाजुक था। पर तु ू येक अवसर पर स पूण भारत क सांःकृ ितक एका मता, ह द ू समाज म परःपर ूेम का पोषण और रा ीय

अख डता के सूऽ न

यागते हए ु जो हतकारक था वह ौी गु जी ने बतलाया।

रा हत क छोट -मोट बात म भी ौी गु जी कतने सजग थे इसके चाहे जतने उदाहरण उनके अखंड ूवास के समय ःथान-ःथान के भाषण म से बतलाए जा सकते ह। कुछ ूमुख बात का ह सं ेप म उ लेख यहां कया है । जब उनक इस

सजगता का वचार मन म आता है तब केरल के वाःत य म उनके मुख से सहजता से िनकले उ -गार ःमरण आते ह। घटना इस ूकार हई ु , तैल-ःनान के उपचार के

िलए वे सन ् १९५६ म प टा बी गये थे। ूथम दन तैल-ःनान और बाद म एक

नवयुग ूवतक ौी गु जी

170


घ टा तैल-मदन होकर ऊंण जल से ःनान के िलए ौी गु जी को ःनानगृह क ओर

ले जाया गया। तब वहां के वै राज बोले, “जरा संभल कर कदम बढ़ाएँ। वशेषतः ःनानगृह म सावधानी बरत अ यथा पाँव फसलने क आशंका रहती है ।”

ौी गु जी ःनानगृह के दरवाजे तक पहँु चे थे। पीछे मुड़कर दे खते वै राज से उ ह ने

ब कुल उ ःफूतता से कहा, “आपका इशारा यो य है पर तु गोलवलकर का ज म पैर

फसलकर िगरने के िलए नह ं हआ है , सावधानी से ू येक पग िन यपूवक आगे ु

डालने का ःवभाव बचपन से ह बना है ।” इन उ -गार से ौी गु जी के ःवभाव

वैिशं य पर उनके ह मुख से उ म ूकाश पड़ता है । “हर वषय म सावधानी” यह समथ रामदास

ारा बतलाया गया गुण अ य त वषम प र ःथित म भी उनके

ू येक श द से य भा षक ू

होता दखाई दे ता है ।

हो या रा य पुनगठन का ू ; आंदोलन, हं साचार और लोक ोभ का

वःफोट होने पर ह सरकार माँग को मा य करती है इसका ौी गु जी को दःख ु

होता था। भाषायी आंी क मांग सरकार ने ौी पो ट रामुलु क मृ यु के बाद मा य

क यह उदाहरण था ह । एक ह भाषा के लोग का एक से अिधक रा य होने म ौी

गु जी का वरोध नह ं था। आ ी म तेलग ं ना ःवतंऽ रा य िनमाण करने क माँग ने खूब जोर पकड़ा था। यह सन ् १९७३ के ूारं भ क बात है । हं सा, सावजिनक मालम ा का बड़े पैमाने पर व वंस आ द ूकार क युिनःट

ारा भड़काये गये थे।इस िनिम

कये गये मत ूदशन म ौी गु जी ने कहा, “आंदोलनका रय का उम आंदोलन हआ ु

तो ह एकाध माँग या समःया क ओर

यान दे ने क सरकार नीित के प रणाम

ःव प शांित और सु यवःथा क प र ःथित बगड़ने क संभावना है । इससे कानून वषयक आदर ह न

हो जाता है । हं सा मक वःफोट होने क राह दे खने का

कारण? उ म माग यह है क य द माँग

या

या य और तकसंगत हो तो वह ःवीकार

क जाय। य द आ ी और तेलग ं ना को पृथक् रा य चा हए ह तो वे दये जा सकते

ह। एक ह भाषा के दो रा य रहने म कोई बुर बात नह ं है , सीमा पर ःथत और साम रक

से मह व के ूदे श म नये रा य िनमाण करते समय अिधक सावधान

रहना चा हए। रा - वरोधी श

य के दबाव के नीचे असम का सात रा य म

वभाजन हो सकता है तो आंी के सौहादपूण म दो रा य

य नह ं बनाये जा सकते?

वःतु ःथित यह है क केवल भा षक आधार पर रा य क पुनरचना करना ह गलत

कदम था। अब भी केवल ूशासिनक सु वधा के आधार पर, जसम समान भाषा भी

एक घटक त व हो, रा य क पुनरचना क जाय तो वघटनवाद ूवृ य को रोका जा सकेगा। मेरा मत आज भी कायम है क एका मक (Unitary) रा य प ित ह अपने दे श क ूकृ ित से अिधक मेल खानेवाली है ।” नवयुग ूवतक ौी गु जी

171


१४.४ गोवा मु

के समय

ौी गु जी को दो और ू

के संबंध म अपना मतूदशन करना पड़ा। एक ू

था

गोमांतक का। १९४७ म अंमेज भारत छोड़ गये क तु पोतुगीज शासक तब भी गोवा म डटे हए के वरोध म गोवा म जन आंदोलन शु ु ु थे। इस दरामह

करने का िन य

कया गया। इस काय के िलए पुणे म ‘गोवा वमोचन सिमित’ क ःथापना क गयी।

सिमित म सभी राजनीितक दल तथा दलबा

लोग को भी स मिलत कया गया

था। नीित के बतौर यह तय कया गया क सवूथम भारत सरकार गोवा को पोतुगीज के िशकंजे से मु

कराने का ूयास करे । तदनुसार सिमित

शासन से ूाथना क गयी। बाद म गोवा मु

ारा के ि य

आंदोलन ूारं भ कया गया। १९५५ म

हए ु इस आंदोलन म संघ के ःवयंसेवक ने उ साह से भाग िलया। पोतुगीज

दागी गई गोिलय से राजाभाऊ महं काल नाम का एक ःवयंसेवक मारा गया।

ारा

स याम हय पर अमानु षक अ याचार कये गये। िनमम अ याचार के बावजूद भी स यामह जार रहा। इस गोवा मु

के िलए पोतुगीज के उपिनवेशवाद का वरोध करने के बजाय भारत

सरकार मे स याम हय पर पाबं दयाँ लगा द ं। प रणामतः स यामह जार रखना असंभव सा हो गया। गोवा मु

के िलए चल रहे आंदोलन के साथ ह भारत सरकार

क नीित क ओर ौी गु जी बहत ु बार क से

यान दे रहे थे। द. २० अगःत १९५५

को ौी गु जी ने एक प रपऽ मुब ं ई म ूकािशत कया। इसम उ ह ने कहा, “गोवा म

पुिलस कारवाई (Police action) करने का यह सुनहरा मौका है । इस कृ ित से गोवा तो मु

होगा ह अ पतु हमार ूित ा भी बढ़े गी और जो रा

हम हमेशा धमकाते रहते

ह, उन पर भी धाक जम सकेगी।” ौी गु जी कहा करते थे क “पा ा य रा कारण भारत सरकार गोवा के ू

के, वशेष

प से इं लै ड के दबाव के

को हल करने के िलए स ती से पेश नह ं आ रह

है । चाहे जो हो, हम गोवा लेकर ह रहगे यह पैनी आकां ा मन म धारण कर अंगद सा साहसी कदम आगे बढ़ाना आवँयक है । य द भारत सरकार इं लै ड क इ छा को तूल दे ती है , उसे ूाथिमकता दे ती है तो हम जो ःवतंऽता ूा

हई ु ह उसके कोई

मायने नह ं रह जायगे। वह िनरथक दखावा माऽ होगी। ऐसी राजनीितक ःवाधीनता क कोई क मत नह ं होती।” इस ूकार ौी गु जी अपना मंत य िनःसं द ध

प व

नवयुग ूवतक ौी गु जी

172


संपूण पारदिशता से ःप

कया करते थे। न कसी का भय, न कसी क िचंता। य द

िचंता थी तो केवल समाज और रा हत क । उनका मानना था क गोवा का ू वज हाथ म िलए गोवा मु

वशु

रा ीय ू

है । य द पं. नेह

ःवयं ितरं गा

आंदोलन का नेत ृ व करगे तो चाहे जतने ःवयंसेवक

को स यामह म भाग लेने के िलए भेजने क मेर तैयार है । क तु गोवा के ू

रा ीय ू

मानकर सभी रा वाद श

य को संग ठत करने का ूयास कांमेस के

नेता ने कभी कया ह नह ं। उनक यह मा यता रह

को

क जो स यामह चल रहा है

वह वरोधी दल का ह है । गोवा मु

के ू

पर ौी गु जी क भावना अ य त तीो थी। अपनी आिस धु

िस धु मातृभिू म के एक अ वभा य अंग गोमा तक से इितहास क

कतनी ःमृितयाँ

जुड़ हई ु ह। कंतु भारत सरकार य द श बल का उपयोग कर गोवा मु आगे कदम न बढ़ाती हो तो

के िलए

या करना चा हए? १९५५ के स यामह का अनुभव

यान म लेकर कुछ कृ ित भारत के जनता ने ह क तो उस बात के िलए ौी गु जी

सब तरह से अनुकूल थे। संघ के कुछ तेजःवी त ण ने सश पोतुगीज आिधप य म रहे दादरा-नगर हवेली क मु

ू य

कायवाह

ारा

कर दखायी थी। इस

लड़ाई के युवक म से एक ौी सुधीर फड़के ने अपने संःमरण म िलख रखा है क य प ौी गु जी से ू य

प से वचार विनमय कर यह मु

था फर भी उनक सहमित हम ने गृह त मानी थी। ौी सुधीर फड़के ने कहा है क ू य

गोवा को भी मु

संमाम नह ं हआ ु

करने क एक योजना १९६२

के आसपास उसी त ण गुट ने बनायी थी। ौी सुधीर फड़के और कुछ युवाओं का डॉ. पु डिलक गायतो डे , ौी मोहन रानडे आ द गोम तक य ःवात ऽ वीर से िनकट का संपक था। डॉ. गायतो डे इं लै ड से भारत लौट आये थे और वे भी गोवा मु

के

िलए अतीव याकुल थे। अ त म एक योजना बनी क भारत से लगी हई ु सीमा के

िनकट का कुछ भू भाग सश

संघष

ारा मु

कर वहां डॉ. गायतो डे के नेत ृ व म

ःवत ऽ शासन ूःथा पत कया जाय। इस योजना को ौी गु जी क सहमित थी। मनुंय बल और ि यबल क ओर भी

यान दे ने को वे तैयार थे। उनसे तीन बार ौी

सुधीर फड़के ने भट क । ौी गु जी क सजगता यहां भी दे खने को िमली। डॉ.

गायतो डे और ूधानम ऽी पं. जवाहरलाल जी के बहत ु िनकट के संबंध थे। पं. नेह के वरोध के बाद भी

या वे इस काय म नेत ृ व करगे, इसका िनःसं द घ उ र डॉ.

नवयुग ूवतक ौी गु जी

173


गायतो डे से माँगने का उ ह ने सुधीर फड़के को सुझाव दया। तदनुसार उनका सकारा मक उ र ूा

भी ूा

होने पर ह योजना को हर झ ड

हआ क गोवा के भीतर ू व ु

दखाई गई। यह आ ासन

होने तक भारत सरकार क ओर से

कावट

तो आयेगी नह ं अ पतु सब ूकार का सहयोग और मागदशन भी िमलेगा। पर तु इसके पहले क ःवयंसेवक कुछ करते भारतीय सेना ह गोवा क ओर चल पड़ । कारण यह हआ क सन ् १९६२ के चुनाव म ौी कृ ंणमेनन भी कांमेस के उ मीदवार ु

बन गये और उ ह तथा कांमेस को लाभ दलाने हे तु फौजी कायवाह कर गोवा को मु

करा िलया गया और ःवयंसेवक अपना पराबम दखाने से वंिचत रह गये। क तु

भारत सरकार क कायवाह का, जो भले ह दे र से क गई हो, दे श म ःवागत कया गया। पू. गु जी ने भी उसका ःवागत कया क तु इतना अवँय मानना पड़े गा क भारत सरकार ने इसे रा ीय ू

मानकर हल नह ं कया था।

यह है क ौी गु जी ने इस संघष क योजना म कया और यह बात उनके रा नेत ृ व क गोवा के ःवतंऽ होते ह ूधानमंऽी पं. नेह

यान दे ने यो य बात

िच लेकर उसका उिचत मागदशन

मता क

से ल णीय है ।

के साथ अ य राजनीितक नेताओं ने यह

कहना ूारं भ कया क गोवा क पृथक् संःकृ ित को सुर

त रखगे। गोवा का वलय

समीप के रा य के साथ न करते हए ु उसे के ि शािसत रा य घो षत कया गया। इससे अ पसं यक ईसाई समाज के राजनीितक हतसंबंध िनमाण हए ु और

राजनीितक अ ःथरता बन गयी। यह िभ न संःकृ ित क भाषा, पृथक् संःकृ ित क

संक पना ौी गु जी

को पसंद नह ं थी। उ ह ने डं के क चोट पर कहा, “गोवा म य द

िभ न संःकृ ित होगी तो वह पोतुगीज क ह हो सकती है । गोवा भारत का ह अंग होने के कारण वहाँ क संःकृ ित भी भारतीय संःकृ ित ह होगी, अ य नह ं।” ौी गु जी इस बारे म बहत ु सतक रहा करते थे क रा

क सांःकृ ितक एकता भंग न

होने पाये तथा कसी िन हत ःवाथ के वशीभूत हो ूादे िशक व वधता को अलग

संःकृ ित न मान िलया जाये। उनक इस सजगता का पग-पग पर अनुभव आया करता था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

174


१४.५ कँमीर वलयन ौी गु जी क सतकता क अनुभिू त कँमीर समःया के संदभ म भी हई। कँमीर का ु भारत के साथ जो वलनीकरण हआ उसका आंिशक ौेय ौी गु जी को भी जाता है । ु

ौी गु जी ने इस दशा म भी ूयास कया था।

उस अ य त संकटमःत काल म ये ूयास सरदार पटे ल क इ छानुसार ह ौी गु जी

ु ने सफलतापूवक कये थे। सन ् १९४७ का अ टबर का मह ना था। वलनीकरण के

ु पर कँमीर के महाराजा ह रिसंह के मन क अवःथा ढलमु ल थी। कँमीर हड़पने

क नविनिमत पा कःतान को ज द थी। कँमीर महाराज क सेना का पराभव कर ौीनगर पर क जा करना पा कःतान के िलए सहज सुलभ था। गृहमंऽी पटे ल क

ु ःवाभा वक इ छा थी क ज मु-कँमीर भारत म रहे । अ टबर म ह कबाइिलय के नाम क आड़ लेकर पा कःतानी सैिनक ने क ँमर घाट म आबमण शु ु द. २६ अ टबर को ौीनगर म पा कःतानी

योजना थी। यह गु

वाता भी ूा

कर दे या।

वज फहराकर वजयो सव मनाने क

हई ु थी क महाराजा क सेना के मुसलमान

सैिनक शऽु से जाकर िमलने क सोच रहे ह। ूधानमंऽी पं. नेह

शेख अ द ु ला का प

लेकर अड़े हए ु थे। वलीनीकरण के संिध

पऽ पर हःता र हए ु बना कँमीर म सहायता न भेजने का उनका प का िन य था। इसम कँमीर को पाक

ारा हड़प िलये जाने का धोखा ब कुल ःप

पा कःतानी आबमणकार ौीनगर क

का वह िनणायक

ण था। ू येक

था।

दशा म बढ़ रहे थे और कँमीर के भ वत य

ण मह व का था। मेहरचंद महाजन सहायता क

मांग करने के िलए द ली गये हए ु थे। वहाँ पं. नेह

अपनी जद पर अड़े बैठे थे।

इस परःपर- वरोधी खींचातानी म महाराजा भयंकर असमंजस म पड़ गये, कोई िन य

न कर सके। भारत म शािमल होने के बारे म भी उनके मन म अनेक आशंकाएँ थीं। महाराजा क मन ःथित को समझते हए ू के ु पटे ल ने ौी गु जी को दत

महाराजा के पास भेजा। पटे ल ने ठ क ह सोचा था। ौी गु जी सह

प म

पास नीितकौशल था और उ ह पटे ल और महाराजा का आंत रक व ास ूा

ु , १९४७ को ौी गु जी वमान अ टबर

िस

थे। उनके था। १७

ारा ौीनगर पहँु चे। उ ह ने महाराजा के सामने

कर दया क कँमीर को ःवाधीन रा य के

प म वनाये रखने का वचार

मृगतृंणा है । पा कःतान उसे कदा प नह ं सहन करे गा। वह मुसलमान से आंत रक नवयुग ूवतक ौी गु जी

175


विोह करा दे गा और रा य क मु ःलम सेनाएँ वमुख हो जायगी। ौी गु जी ने

महाराजा को इस बारे म आ ःत कर दया क भारत कँमीर के िलए सभी ूकार क आवँयक साममी जुटा सकता है । उ ह ने कहा क पटे ल कँमी रय के सभी वग के हत का पूरा-पूरा

यान रखगे। अ ततः महाराजा भारत म वलय के स ध-पऽ पर

ु हःता र करने के िलए तैयार हो गये। १६ अ टबर को ौी गु जी द ली लौट आये। उ ह ने पटे ल को सूिचत कया क महाराजा भारत म शािमल होने के िलए तैयार ह। २६ अ टु बर को समझौते पर हःता र हए ु और द. २७ को सुबह से ह भारतीय

सैिनक ौीनगर के हवाई अ डे पर उतरने लगे। क तु वमान उतरने लायक उधर के हवाई अ डे क

ःथित नह ं थी। वह पूरा हमा छा दत था। ौीनगर म तो अराजकता

का भयानक ता डव चल रहा था। महाराजा भी ज मु चले गये थे। एसी ःथित म

भारतीय सैिनक का ःवागत करने के िलए संघ के सकड़ ःवयंसेवक ने हवाई अ डे पर पहले से ह पहँु चकर उसे साफ कया। उपयु

भट और चचा म महाराज ह रिसंह ने संघ के ःवयंसेवक क भू र-भू र ूशंसा

क । उ ह ने कहा, “संघ के ःवयंसेवक ने हम समय-समय पर अ य त मह वपूण

समाचार बताये थे। ूथम तो हम उन पर व ास ह नह ं करते थे। पर तु माऽ संघ के खेमे से ूा

हए ु समाचार ह पूणतः व सनीय थे। पा कःतानी सेना क

गित विधय के बारे म समाचार ूा दखाया, उसक

करते समय संघ के ःवयंसेवक ने जो साहस

जतनी ूशंसा क जाय वह थोड़ ह है ।” यह बात भी ौी गु जी द.

१९ को द ली लौटे और सरदार पटे ल से िमलकर उ ह ौीनगर भट का सब समाचार दया तब बताई। इस अवसर पर संघ के ःवयंसेवक का अ -भूत शौय एवं

मता ूकट हई ु ।

ु पा कःतानी आबांत के ११ अ टबर के आबमण संपूण सीमा पर फैल रहे थे। ज मू क २० हजार मु ःलम आबाद भी उनको सहयोग दे ने क तैयार म थी क तु ःवयंसेवक ने पहले ह उस शरारत पर काबू पा िलया और ज मू क र ा क । ज मू के बना काँमीर के बचने क कोई आशा नह ं रह जाती। एक बार आ त रक ष यंऽ के िनरःत होते ह ःवयंसेवक ौीनगर के समान ह ज मू हवाई अ डे को साफ और

बड़ा करने के अ यंत मह व के काय म जुट गये। ५०० ःवयंसेवक ने ७ दन तक

लगातार चौ बस घंटे काय कर हवाई अ डे को भारतीय डाकोटा के उतरने यो य बना

नवयुग ूवतक ौी गु जी

176


दया। भारतीय सेना के सुर

त आगमन के िलए सड़क क आवँयक मर मत इतने

कम समय म पूण करने का भी क ितमान ःथा पत कया। ौी गु जी क कँमीर वषयक अपे ा पूणतः सफल नह ं हई ु और इस वषय म अपनी यथा उ ह ने बाद म समय-समय पर य

भी क । भारतीय जवान ने

तथाकिथत कबाइिलय को कँमीर सीमा के बाहर मार भगाने क मु हम ितगित से ु

और सफलतापूवक चलाई थी। ऐसा लगता था क संपूण ज मू-काँमीर आबमण-मु होगा। ौी गु जी का मत था क पाक-अिधकृ त कँमीर संपूणतः मु

हए ु बना

कँमीर म सैिनक कायवाह न रोक जाय। पर तु नेह जी ने अचानक एकतरफा यु ब द क घोषणा कर द और कँमीर का ू ू

संयु

तुर त ह

रा

संयु

रा

संघ म ले गये। कँमीर का

संघ म ले जाकर हमने गलती क है ऐसा अिभूाय ौी गु जी ने कया। उनका यह इशारा क ‘यू.एन.ओ.’ बड़े श

हत संबंधी दाँव-पेच का अखाड़ा बना है और भारत को वहाँ समय ने सह ठहराया है । कँमीर का ू क क पना अितशय ःप

संप न रा

के

याय नह ं िमलेगा,

हल करने के संबंध म ौी गु जी

थी। उनका मत था क “भारत को केवल इसी का वचार

करना चा हए क कँमीर अ य सैकड़

रयासत के समान ह भारत म पूणतः वलीन

कैसे हो? अ य ूांत के लोग को वहाँ बसाकर “कँमी रयत” का भूत िमटा डालना चा हए। धारा ३७० र

करने हे तु सरकार का मन अनुकूल बनाना आवँयक है । इससे

अ य ूा त के ःतर पर ज मू-कशमीर को लाया जा सकेगा।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

177


१४.६ डॉ.मुखज का बिलदान अ य रयासत क भांित संपूण कँमीर का भारत म वलय होना आवँयक था। सह राजनीित क यह कालानु प माँग थी। क तु दभा ु यवश दे श का वभाजन होने के

उपरा त भी मु ःलम तु ीकरण क कांमेसी नीित बरकरार रह । शेख अ द ु ला के नेत ृ व म कँमीर को अलग रा य का दजा दया गया, वहाँ के िलए िभ न

वज,

मु यमंऽी के िलए िभ न पदनाम आ द बात मानी ग । कँमीर का मसला हल करने के िलए नेह जी ने ‘जनमत संमह’ क भाषा भी ूारं भ कर द । इसके वरोध म डॉ.ँयामाूसाद मुखज ने कँमीर म आवाज उठाई क ‘एक दे श म दो िनशान, दो वधान, दो ूधान नह ं चलगे।’ यह उनक

सं वधान से धारा ३७० र

यायोिचत, तकसंगत घोषणा थी। साथ ह

कर कँमीर पूणतः भारत म वलीन कर दया जाए, यह

भी उनक माँग थी। डॉ. ँयामाूसाद मुखज को कँमीर पुिलस ने िगर तार कर जेल म रखा जहाँ उनक संदेहपूण ःथितय म मृ यु हई। ु इस दघटना से सारा दे श हल उठा। ौी गु जी को ँयामाूसाद जी क मृ यु के ु

कारण बहत ु बड़ा ध का पहँु चा। उन जैसा ःथतू

भी

णभर के िलए ःतंिभत सा

हो गया। ौी गु जी यह मानकर चले थे क डॉ. ँयामाूसाद मुखज के नेत ृ व म वशु

रा वाद क नीित राजनीित के

ेऽ म पु

होगी। इस हे तु अ छे संःकार म

मँजे हए ु कुछ सहकार भी उ ह ने उनको उपल ध करा दए थे। क तु िनयित के मन

म कुछ और ह था। डॉ.ँयामाूसाद मुखज क अनपे

त तथा असमय मृ यु के

कारण यह आशा ढह गयी। ौी गु जी का ूामा णक मत था क स यामह का नेत ृ व करने के िलए ःवयं डॉ.

मुखज को अमसर होने क आवँयकता नह ं थी। उनके िलए यह कदम धोखादायक िस

हो सकता था। आगे चलकर एक भाषण म डॉ. ँयामाूसाद जी का पु य ःमरण

करते हए ु ौी गु जी ने यह जानकार द । ‘आप न जाइये’ इस अथ का संदेश ौी

गु जी ने डॉ. ँयामाूसाद मुखज को भेजा था। क तु इसके ूा

होने के पूव ह

कायबम क घोषणाएँ हो चुक थीं। कदम आगे बढ़ चुका था। अब इस कदम को पीछे लेना डॉ. मुखज जैसे संक पिन

महान ् दे शभ

के िलए असंभव था।

डॉ. मुखज क बिल चढ़ने के उपरा त भी कँमीर का ू ःथित

य क

हल नह ं हआ। १९५३ तक ु

य बनी रह । १९५३ म शेख अ द ु ला को हरासत म िलया गया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

178


क तु वष बाद स ासूऽ पुनः उ ह ं के हाथ स पे गए। शेख अ द ु ला ने तबला और

ड गा दोन पर हाथ रखते हए ु प रवारवाद और मुसलमान क संग ठत श

िनमाण

करने क दोहर नीित बे हचक जार रखी। जनमत संमह का वचार प र ःथित के दबाव के कारण पीछे चला गया। जनमत क क पना का अरा ीय या रा वरोधी ःव प ौी गु जी ने ूारं भ म ह ूगट कया था। रा

एक जी वत शर र के समान होता है , इस कारण शर र के कसी भाग का

ःवतंऽ प से वचार नह ं कया जा सकता। संपूण शर र का वचार होना आवँयक है । इसिलए य द जनमत लेना ह हो तो केवल कँमीर म नह ं, संपूण भारत म िलया जाना चा हए यह ौी गु जी क ःप ‘कँमीर के भ वंय का ू

धारणा थी।

कँमीर जनता का ू

है ’ पं. नेह

के इस मत का

ूितवाद करते हए ु ौी गु जी ने कहा, “क याकुमार से लेकर कँमीर तक सारा भारत

एक है । इस संपूण ूदे श पर भारतीय का हक है । कँमीर िसफ कँमी रय का है यह कहना सवथा अनुिचत है ।”

१४.७ ईशा य भारत ईशा य भारत का ू

आज भी अित वःफोटक बना हआ है । मेघालय, िमजोरम तथा ु

नागालै ड इन रा य म ईसाइय का साॆा य है । इधर असम म मुसलमान घुसपै ठए बनकर अपना सं याबल बढ़ाने के ूयास म ह। ऽपुरा तथा म णपुर भी अशांत है । अ णाचल के लोग को भी ूलोभन दखाकर बड़े पैमाने पर उनका ईसाईकरण कया

जा रहा है । इन सार बात का वचार कर जनता तथा सरकार को ौी गु जी हमेशा सतक कया करते थे। १९५१ को मकर संबमण के अवसर पर ःवयंसेवक तथा उप ःथत नाग रक को

संबोिधत करते हए ु जो भाषण उ ह ने दया उसम नागालै ड क समःया का उ लेख

िमलता है । असम के घुसपै ठय के बारे म वे बार-बार आगाह कया करते थे। ईशा य सीमा ूदे श म ईसाई िमशनर

कन रा वरोधी गित विधय म जुटे हए ु ह तथा

परं परागत धमिन ाओं को सुरंग लगाकर

वःत करने का ूयास कर रहे ह, इसक

समम जानकार भारत ॅमण के दौरान उ ह ूा

हआ करती थी। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

179


नागपुर के ूधान कायालय म ौी गु जी के साथ बैठकर बातचीत करते समय दे श

क वतमान ःथित का

ान हो जाया करता था। व

ह द ू प रष

के मा यम से

ईशा य ूदे श म अनेक स मेलन का आयोजन हआ ु , जसम ौी गु जी उप ःथत

रहकर समयोिचत मागदशन करते थे। इन स मेलन का एकमाऽ उ े ँय यह था क जो ह द ू बचे हए ु ह वे ह द ू समाज से जुड़े रह। उ ह एकऽ लाकर उनम ह द ू व का

भाव जागृत रखा जाए। क तु रा यकताओं ने इस

से कोई योजना नह ं बनाई,

प रणामतः यह समःया आज भी ज टल बनी हई ु है । वे पूछा करते थे क नागालै ड

य द भारत का अ वभा य घटक है तो उसका शासक य संबंध पररा गृह वभाग से

वभाग से

य?

य नह ं?

ौी गु जी को यह ू

सता रहा था : जनजाितयाँ तो गो-मांस खाती ह, जब क ह हू

गो को माता मानकर उसक पूजा करता है तो उ ह ह द ू कैसे माना जा सकता है ?

जनजाितय के मन म इस संदेह का बीज ईसाई िमशन रय ने कुूचार कर बोया था। ौी गु जी ने १९६७ म जोरहाट म स प न व उप ःथत

ह द ू प रषद के स मेलन म

ा रकापीठ के ौी शंकराचाय और असम के विभ न वैंणव सऽ के अ य

ूमुख सऽािधका रय से वाता क और उ ह इस बारे म संतु

कर दया क

जनजाितयाँ तो सदा-सवदा मूलतः ह द ू ह रह ह, पर द घकाल तक शेष समाज और

ु गया अतः ह द ू धम के समुिचत उसक संःकृ ित से उनका संवाद और संपक टट

बोध से वे वंिचत रहे । इस ूकार उनका कोई दोष नह ं है , य द वे गो-भ

जैसी

हमार धािमक तथा सांःकृ ितक संक पनाओं से कटे रहे , अतः हमारा कत य हो जाता है क हम बना कसी संकोच के जनजाितय को ह द ू समाज का अंग मान ल। सायं के समय एक सावजिनक सभा हई। उसम ु

ा रकापीठाधीश ने घोषणा क

जनजाितयाँ ह द ू ह और उनका गोमांस-भ ण उनक आिथक ववशता रह है , य क उन सुदरू अ तः​ःथ पहाड़ ूदे श म कोई अ य सःता खा

आचाय ने कहा क दोष तो सांःकृ ितक

उपल ध नह ं था।

से तथाकिथत उ नत लोग का है ।

उ ह ने जनजाितय क सुध नह ं ली। द घकाल तक न तो वे इन पहाड़ ूदे श म गये और न ह उ ह ने ह द ू संःकृ ित और ह द ू पर परा के बारे म वहाँ के लोग को

कुछ बताया। जनजाित-नेता और ूितिनिध इस अिधकृ त घोषणा को सुनकर ूस न हो गये और गौरवा वत अनुभव करने लगे। इससे उनक सभी शंकाएँ दरू हो गयी थीं।

ह द ू अ ःमता के बारे म

नवयुग ूवतक ौी गु जी

180


स मेलन म ौी गु जी ने जनजाित-नेताओं के साथ बैठकर भोजन कया। इससे वे ग -ग

हो गये। उ ह वाःत वक जीवन म ह द ू एका मता क भावना को अनुभव

करने का एक और अवसर िमला। इस सबसे हम

ात होता है क ौी गु जी रा ीय समःयाओं का वचार कतनी

ग भीरता से कया करते थे। लोग ौी गु जी से हमेशा यह ू

पूछा करते थे य द

रा ीय ःवयंसेवक संघ राजनीितक संःथा नह ं है तो फर वे राजनीितक समःयाओं पर

ट का- ट पणी कोई

य करते ह? उ र म वे कहा करते थे क ‘स ा संपादन म संघ क

िच नह ं है । क तु जस नीित का प रणाम रा

क सुर ा, उसक सांःकृ ितक

एका मता, ःवािभमान तथा आ म व ास पर वपर त होता दखाई दे , वहां मत ूदशन करना हमारा कत य है ।’ इस कत य का िनवाह ौी गु जी ने द ता पूवक कया। आगे चलकर चीनी आबमण हआ। उस समय सरकार ने जनता को अँधेरे म रखा। ु

कंतु ौी गु जी ने इस समय भी स य जानकार के आधार पर सरकार तथा जनता

को चेतावनी दे ने का अपना कत य भलीभाँित िनभाया।

१४.८ राजनीितक

ेऽ म सम वय

दे श क प र ःथित का ौी गु जी का आकलन सूआम था। वे आगे क सोचकर कुछ योजनाएँ सामने रखते थे। इस वषय म भारतीय मजदरू संघ के संःथापक ौी द ोपंत

ठगड

ारा किथत उनसे संबंिधत एक घटना उ -बोधक है । १९६४ के माच मास म

भारतीय जनसंघ के नेता पं. द नदयाल जी ने द ोपंत को पू. ौी गु जी का एक

संदेश िभजवाया क “त काल लखनऊ जाकर वे रा यसभा के िलए अपना नामांकन पऽ भर।” वाःतव म भारतीय मजदरू संघ का दै नं दन राजनीित या राजनीितक प

से संबंध नह ं था। फर भी अकःमात ् यह सूचना

य आई? इसका रहःय द ोपंत

क समझ म नह ं आया। पर तु उ ह ने लखनऊ जाकर नामांकन पऽ भरा। वे रा य

सभा म चुनकर भी आये। इसके बाद जब द ोपंत क ौी गु जी से नागपुर म भट हई ु तब ःवाभा वकतः रा यसभा का ू

हे तु द ोपंत को ःप

िनकला। तब ौी गु जी ने अपने मन का

प से बताया। ौी गु जी का कथन, जो द ोपंत जी ने िलपीब

कर रखा है , इस ूकार है - “मुझे लगता है क इस दे श म तानाशाह लाने का मोह रा यकताओं को होगा। मेरा अनुमान है क ऐसी वकट प र ःथित िनमाण होगी क जब दे श म एक भी वरोधी प

नवयुग ूवतक ौी गु जी

अकेले ःवयं के बल पर ूितकार करने क

ःथित म

181


नह ं रहे गा, दबाये जाने का डर सबके मन म रहे गा। ऐसी प र ःथित म ववश होकर वरोधी लोग यह वचार करने लगगे क तानाशाह का वरोध करने के िलए सब

वरोधी प

एकऽ आएँ। यह सच है क वरोधी प

म भी आपसी तीो मतभेद ह,

पर तु प र ःथित के कारण सबको लगेगा क एक बार सब के स मिलत ूय तानाशाह को तो ूथम न

से

कर डाला जाय। उसके बाद आपसी ववाद का वचार

कया जा सकेगा। पर तु उस समय सब के सामने यह ू

मंच पर लाने का काम कौन करे ? नाते जाने जाते ह। कसी भी प

रहे गा क सब को एक

य क सब अपने-अपने प

के ऐसे क टर य

व ास नह ं रख सकते।”

के क टर समथक के

पर दसरे प ू

के मनुंय

“मेर ऐसी इ छा है क यह भूिमका िनभाने का काम अपने म से कोई करे । आज

अपने जो लोग राजनीित के

ेऽ म है उन सबके बारे म बाहर ःवाभा वकतः यह

धारणा रहे गी क ये लोग विश

के हमायती ह। इसिलए उनम से कसी के

िलए भी यह भूिमका िनभाना क ठन होगा। तुम अब एम.पी. बन गये हो एवं कसी भी प प

म तुम नह ं हो। अब व र

नेताओं से तु हारा सहजता से प रचय होगा। सब

के नेताओं से बराबर के नाते तुम यवहार कर सकोगे।”

“मुझे जो अपे

त है वह काम तु हारे

ारा सफल होना हो तो यह आवँयक है क

तु हार ूितमा प ातीत रहे । तभी तु हारे विभ न नेताओं से य

गत संबंध

िनमाण हो सकगे और तु हारे श द पर वे व ास रखगे। परं तु यह संप न करने के

िलए तु ह बहत ु बड़ क मत चुकानी पड़े गी। वह क मत होगी ववादाःपद, ू ोभक

राजनीितक ू

पर बोलना ब कुल टालना। अ य वषय पर बोलने का िन य

करना पड़े गा। ये वषय दसर को फ के लगगे, उससे तुम को ूिस ू य

नह ं िमलेगी।

के नाते अपना नाम चमके इस मह वाकां ा का तुम म उदय हो सकता है ।

वैसे गुण तुमम ह। य द यह इ छा तुमम िनमाण हई ू ा। ु तो म तु ह दोष नह ं दँ ग

दोन माग तु हारे सामने ह। कोई भी वक प ःवीकार करने का संपूण ःवातं य

तुमको है । म उस वषय म कुछ भी आदे श दे ना नह ं चाहता। यह सब इसिलए कह रहा हँू क आगामी प र ःथित के संबंध म मेरा अनुमान तु हारे

यान म आये।”

ौी द ोपंत ने वह माग बना हच कचाहट के ःवीकार कया जो ौी गु जी को अपे

त था। उसके लगभग ११ वष बाद दे श म आपात ् ःथित लागू हई ु और उस

समय वरोधी प

को ूितकार के िलए एकऽ लाने के काम म ौी द ोपंत ने

नवयुग ूवतक ौी गु जी

182


अ य त मह व क भूिमका िनभायी। वशेषकर लोकसंघष सिमित

ारा संचािलत

आपा काल वरोधी स यामह के दौरान जब नानाजी दे शमुख और उनके बाद ौी

रवी ि वमा िगर तार हो गये तब सिमित के शेष नेताओं तथा चौधर चरणिसंह स रखे अ य दल के नेताओं से िनर तर स पक बनाए रखने म उ ह उन संबंध का लाभ िमला जो रा यसभा के कायकाल म ःथा पत कये थे। इ ह ं ूय जनता प

गया। य

म से ह

साकार हआ और तानाशाह लादनेवाला कांमेस शासन स ा से ु

युत हो

गत बड़ पन क आकां ा बाजू म रखकर ौी द ोपंत ठगड ने भी ौी

गु जी क इ छा िशरोधाय क । यह भी ौी गु जी का एक ूमाण मानना पड़े गा।

ारा कये हए ु चयन क अचूकता

१४.९ पतृ- वयोग इ ह ं दन म ौी गु जी के य

गत जीवन म एक दःखद घटना घट । वह थी ौी ु

गु जी के पू य पता ौी भाऊजी का

दय रोग के कारण आक ःमक मृ यु। इस

समय ौी भाऊजी क आयु ८२ वष क थी। द. २० जुलाई १९५४ को रात के समय अपने िनधा रत समय पर वे सोए और नींद के आहोश म ह उनक मृ यु हो गई। उस समय ौी गु जी नागपुर म नह ं थे। द. १७ को ह माता- पता का आिशवाद लेकर वे महाकौशल-म यभारत के दौरे पर िनकल पड़े थे। अपने ूय पता क मृ यु का समाचार लानेवाला तार उ ह भोपाल म द. २१ को ूा

हआ। प रणामतः अगला ु

दौरा ःथिगत कर ौी गु जी नागपुर के िलए रवाना हो गये। क तु भोपाल से ह उ ह ने नागपुर के िलए सूचना द

क ौी भाऊजी का अंितम बया-कम द. २२ तक

ःथिगत न करते हए ु यथा विध पूण कया जाय। ौी गु जी क अनुप ःथित म

अं ययाऽा िनकाली गयी। हजार ःवयंसेवक तथा नाग रक क उप ःथित म ःव. भाऊजी के पािथव शर र को प वऽ अ न के अधीन कर दया गया। द. २२ को उषःकाल के समय ौी गु जी नागपुर पहँु चे। ‘नागोबा’ नामक एक गली म

उनका य

गत िनवास ःथान था। ौी भाऊजी तथा ताई (माताजी) वहां रहा करते

थे। ौी गु जी अिधकांश समय तो महाल ःथत संघ कायालय म ह रहते। केवल भोजन के िलए वे घर आया करते थे। ताई के साथ गपशप, हाःय वनोद कर

भोजनोपरांत वे पुनः कायालय क ओर चल पड़ते। ौी गु जी के घर ःवयंसेवक का आना-जाना रहा करता। ौी भाऊजी तथा ताई क दे खभाल ःवयंसेवक ह थे। ताई भी ःवयंसेवक म अपने माधव का

कया करते

प दे खतीं, उनके खाने-पीने क

यवःथा

ःवयं करतीं। भाऊजी बहत ु ह एकांत ूय थे। नवयुग ूवतक ौी गु जी

183


ौी गु जी को दे खते ह ताई क आँख से आँसू झरने लगे। माता का शोक दे खकर ौी गु जी कतने यिथत हए को समझ सकते थे। बचपन से ह ु ु ह गे? वे ताई के दःख

ौी भाऊजी ने जो असीम संःकारधन दया था शायद उनक ःमृितयाँ भी ौी गु जी

के मन म जागी ह । क तु िन या यास के अनुसार उ ह ने अपनी भावनाओं पर काबू पाया। मन शांत हआ। ु सा

वना के िलए आनेवाल क भीड़ तो थी ह , क तु शोक संदेश का आना भी

बहत ु बड़ माऽा म था। पाँच दन नागपुर म रहने के बाद वे नािसक पहँु चे। वहाँ ौी गु जी ने भाऊजी क ऊ र बया यथा विध पूण क । नािसक तीथ ेऽ म अनेक ःवयंसेवक ने ौी गु जी से भट क । ७ अगःत को ौी गु जी नागपुर लौटे और १० अगःत से िन य के अनुसार वे संघ

कायाथ ूवास के िलए चल पड़े । य

गत हािन-लाभ का वचार करने के िलए उनके

पास समय ह कहाँ था?

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

184


१५

से बड़ा काय

१९४० म जब ौी गु जी के कंध पर संघ जैसे रा

यापी तथा

येयवाद से ूे रत

संगठन का भार स पा गया तब वे ३४ वष के थे। संघकाय को अपना सवःव अपण

कर वे संघ के ूचार काय म इतने यःत रहे क १६ वष का समय दे खते ह दे खते बीत गया। संघकाय ित ु गित से बढ़ रहा था। ौी गु जी दे शभर दौरा करते हए ु ह दू

संगठन क मह ा और संघकाय क आवँयकता को ूभावी ढं ग से रख रहे थे। इस कालखंड म समूचा भारत ौी गु जी को महान ् ि ा, मेधावी व ा, सामा जक तथा राजनीितक घटनाओं का यथाथ

ान रखनेवाले दे शभ

नेता के

प म जानने लगा

था। इसी समय ौी गु जी क ५१ वीं वषगांठ संपूण भारत वष म संप न करने का िनणय िलया गया। संघ पर ूितब ध तथा उसके िनवारणाथ वशाल दे श यापी स यामह म वपुल धनरािश का यय हो जाने से संघ पर ऋणभार बढ़ गया था जसका संघ के

नेतव ृ ग पर दबाव बना रहता था। इस ऋणभार से मु रा

के िलए र

का कण-कण और आयु का

क ५१वीं वषगांठ को िनिम क जाय। क तु वैय

होने का एक ह उपाय था क

ण- ण यतीत करनेवाले ौी गु जी

बनाकर सावजिनक सभाओं म उ ह ौ ािनिध सम पत

क मान-स मान एवं ूिस

से सदै व दरू रहनेवाले ौी गु जी

को इसके िलए तैयार करना एक क ठन काय था। कायकता इस दशा म वचार

विनमय करने लगे। स कार समारोह धूमधाम से हो ऐसा सभी ःवयंसेवक चाहते था य क ौी गु जी पर सभी जी जान से ौ ापूवक ूेम करते थे। ौी गु जी क हर इ छा ःवयंसेवक के सर-आँख पर थी। और यह तो ५१वीं वषगांठ का मंगल, भावो कट ूसंग था। एक ओर ौी गु जी का िनम ह ःवभाव और दसर ओर ू

ःवयंसेवक का ूेम। यह भावभीना मीठा-मीठा संघष कौन जीतेगा?

१५.१ ५१व ज म दन का अपूव संदेश ौी गु जी सदा कहा करते थे क ःवयंसेवक को संगठन म पूणतः घुलिमल जाना चा हए। अहं कार क हवा उसके म ःतंक म ूवेश न करे तथा वह आ मूशंसा से कोस दरू रहे । इसी साँचे म ौी गु जी ने ःवतः को ढाला था। उ ह ने अपने दै नं दन

जीवन म कमयोग का पालन कठोरता से कया था। िन य साधना के कारण कमयोग का आचरण करना उनका ःथायी भाव था इस कारण ःवयंसेवक क उनका स कार

नवयुग ूवतक ौी गु जी

185


करने क तीो इ छा और ौी गु जी का कठोर वरोध, इन परःपर वरोधी भाव के बच कई मह न तक रःसा-कशी चलती रह । जे

ःवयंसेवक और ौी गु जी पर

ूेमािधकार रखने वाले कुछ अिधका रय के अथक ूय

के फलःव प ौी गु जी ने

स कार समारोह के िलये मा यता दे द । क तु एक आ ासन ूा कौन सा आ ासन माँगा था उ ह ने? यह

होने के बाद ह ।

क इन स कार कायबम के मा यम से

जो िनिध संकिलत होगी, उसका उपयोग संघकाय क वृ

के िलए ह

कया जाएगा।

कायकताओं ने हामी भर और ःवयंसेवक क इ छापूित का माग ूशःत हो गया। कायबम क

परे खा कुछ इस ूकार क िन

त क गई। कायबम १८ जनवर १९५६

से ूारं भ होगा। ःवयंसेवक घर-घर जाकर ौी गु जी तथा संघ क

वचारधारा तथा

वचारूणाली के वषय म जानकार दगे। त प ात ् ौी गु जी के िलए ौ ािनिध दे ने

क ूाथना करगे। संपूण भारत क जनसं या के एक ूितशत लोग से संपक कया जाय। साथ ह इस अिभयान क अविध ५१ दन क ह होगी। इस योजना से ःवयंसेवक म उ साह का संचार हआ। ु

१९५२ के गोह या िनरोध आंदोलन के प ात ् सारे दे श म जनसंपक अिभयान चलाने का यह पहला ह अवसर था। इस कायबम के िनिम

आवाहन, पऽक, वृ पऽीय लेख,

वशेषांक, पु ःतका आ द वपुल सा ह य ूकािशत कया गया। ःव. ौी नाना पालकर ने इसी अवसर के िनिम

ौी गु जी का जीवन-च रऽ िलखा। इस ूचारकाल म ौी

गु जी का नाम दे श भर म गूज ँ उठा। ौी गु जी के जीवन से प रिचत होते ह समाज के सुबु

नाग रक यह सोचने लगे क लाख युवा तथा ूौढ़ के िलये सरसंघचालक

ौी गु जी एक ूेरणाःथान बने हए ु ह। यह स यानुभिू त भी जनता को हई ु क वे न

केवल संघ का, क तु समूचे दे श का कुशल नेत ृ व करने क अपार

मता के धनी

ह। संपूण भारत लालाियत होकर कायबम क , ौी गु जी के दशन क एवं उनके ओजःवी भाषण क बाट जोहने लगा। िनिध संकलन के समय इस बात का सा ा कार हआ क संघ म डल के बाहर भी ौी ु

गु जी पर ूेमवषा करनेवाले अनिगनत लोग व मान ह। अंत म लेखा-जोखा करने पर पता चला क िनिध संकलन २० लाख से भी अिधक हआ है । ु वजया एकादशी! ौी गु जी क ज म दन! सुबह से ह ौी गु जी के घर म चहलपहल शु

हो गई थी। शा ो

ढं ग से पूजा विध स प न कर होम हवन कया गया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

186


ई र तथा अ य वेदो

धमािधका रय

य का आिशवाद ूा

हो इसिलए िस

ारा संप न हआ। सभी ूस न थे। ौी गु जी ु

मंऽ घोष भी

ारा अपनी माता ताई

के चरण को ःपश करते ह उनके मःतक पर दो अौु बंद ु माँ क आँख से िगर पड़े । यह एक अनुठा आशीवाद था िचरं जीवी, यशःवी होने का। ताई क आंख से झरने

वाले अौु आनंद के थे और दःख के भी ु

य क ौी गु जी के पता ौी भाऊजी अब

जी वत नह ं थे। यह भी हो सकता है क ताई ने अपनी एक आँख से ःवयं के और

दसर आँख से ःव. भाऊजी के आशीवादपूण अौु बहाये ह । सारा वातावरण भावभीना ू था। ःवयंसेवक तथा अिधकार वग खुशी से फूले नह ं समाते थे।

व दनीया ताईजी क अनुमित ूा

होते ह छायािचऽ िलये गये। इस पावन पव सदा

के िलए सँजो िलया गया। सं या समय ौी गु जी अपने िनवास से रे शीमबाग ःथत

सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार जी क समािध पर गये और उस पर पुंपापण कया।

उसी दन ौी गु जी का ूथम सावजिनक स कार समारोह संप न हआ। दे शभर म ु

ःथान-ःथान पर स यनारायण महापूजा, होम-पूजा, होम-हवन, मंऽ जागरण, अिभषेक

अनु ान आ द कायबम वृह

ूमाण म संप न हए। ु

संघ के ःवयंसेवक के साथ ह सह ाविध नाग रक ने भी इन समारोह म भाग िलया। अिभनंदन पऽ तथा शुभे छा संदेश दे नेवाले तार क तो मान वषा ह हो रह थी। पऽ और तार का ढे र लगा हआ था। ु दे श के ू येक ूा त म स कार समारोह हे तु सिमितय क योजना क गयी थी जनम ूित त गणमा य नाग रक को स मिलत कया गया था। ौी गु जी को स कार मूित के नाते एक माह तक ूवास करना था। स कार का िसलिसला द. ८ माच को नागपुर म संप न कायबम से शु

हआ और अंितम समारोह द ८ अूैल ु

को द ली म मनाया गया। ू येक रा य म हए ु कायबम क अ य ता करने के

िलये ःथानीय सिमितय ने ू यात य गु जी

का अभी

य का चयन कया था। िनिध समपण, ौी

िचंतन तथा अंत म ौी गु जी

ारा स कार के उपलआय म दया

गया उ र- इस ूकार क कुल योजना बनाई गयी थी। नागपुर के स कार कायबम के अ य

व यात इितहासत

तथा संसद सदःय डॉ.

राधाकुमुद मुखज थे तथा द ली के वशाल कायबम क अ य ता भारत के पा कःतान म िनयु

भूतपुव उ चायु

डॉ. ौी सीताराम जी ने क थी। अ य ःथान

नवयुग ूवतक ौी गु जी

187


पर डॉ. ध डो केशव कव, ौी. सोनोपंत दांडेकर जैसे महापं डत को अ य ता करने के िलये चुना गया था। संघ तथा समाज म संघ के ूित सहानुभिू त और ौी गु जी क् ूित ूेमभाव

दय म

रखनेवाले बंधु, भिगिन तथा माताओं के सहकाय से स प न विभ न कायबम म स कार के उ र म ौी गु जी ने जो भाषण दये, उनम ःवतः को गौण बताकर

संघकाय को महान ् तथा सव प र बताया। नागपुर के कायबम म बड़ नॆता से

उ ह ने कहा, “ वगत कुछ दन म मेर ूशंसा-सराहना करनेवाले समाचार, लेख अखबार म ूकािशत हए संघ क भांित एक महान ् संगठन ु दे खकर मुझे आ य हआ। ु का ौेय कसी एक य

को भला कैसे िमल सकता है ? संघ क ूगित म अनिगनत

कायकताओं का सहभाग है । म आपका ूेमभाजन अवँय हँू क तु संपूण ौेय का

नह ं। भारत का ू येक ःवयंसेवक तथा कायकता संघ के वकास म समान

प से

सहभागी है । आप मुझ पर ूेम करते ह इसका अथ म मानता हँू क आप संघ पर

ूेम करते ह। म आपसे ूाथना करता हँू क आप इस ूेम के साथ ह संघकाय को अपने जीवन का एक अंग बनाएँ। समाज को संघमय बनाने क है

य क संघ का वचार रा

अपनी मातृभिू म के वषय म

का ह

से यह आवँयक

वचार है , भारतमाता के गौरव का वचार है ।

दय म जो ौ ा का भाव है उसका पुनजागरण करने

क आज आवँयकता है । यह तभी संभव होगा जब ू येक के मन म अपनी भारतमाता के पुऽ प ह द ू समाज तथा अित ूाचीन काल से चल रहे सांःकृ ितक रा ीय जीवन का िचऽ अं कत होगा। अपने

दय म य द भारतमाता के ूित द य

अिभमान होगा तो उसके आधार पर ह िन ा और चा र ऽक गुण का अपने जीवन म

संचार हो पाएगा। इन गुण से यु

या संप न य

जब िनिमत होगा तब

रा क याण क सभी योजनाएं सफल ह गी। इसी ूकार सम पत, कत यपरायण तथा अनुशासनब

जीवन से ह प वऽ रा ीय श

करना ह संघ का एक माऽ “अपने रा है ?

या है ?

ःथित का वचार क जए। या रा

या हमार मातृभिू म अखंड तथा एका म

या हम पता है क हमार रा ीयता का

का अथ एक दजे ू से िभ न और बेमेल गुट क गठर होता

है ? अपने दे श के बारे म िचंतन करनेवाले हर य

ह। इन ू भाषा, प

का िनमाण

येय है ।”

या हमार रा ीय एकता सु ढ़ है ?

ःव प

िनमाण होती है । इसी श

का उ र संघ ने ूारं भ म ह

के मन म यह ू

दया है । संघ का काय य

उ प न होते

, ूा त, पंथ,

और जाित से परे तथा इन भेद से ऊपर उठकर चलता है । इन सारे भेद

से संघ पूणतः अनिभ

है । मातृभिू म के ूित एक समान भ

क भावना जगाकर नवयुग ूवतक ौी गु जी

188


सबको एक सूऽ म गूथ ँ ना ह संघ का उ े ँय है । इसिलये आप सभी महानुभाव इन

ि ु भेद से ऊपर उठकर संघ के समावेशक यासपीठ पर एकऽ आय, यह संघ क

अपे ा है ।” “ य

से काय बड़ा होता है । य द कोई सोचे क यह काय केवल मुझ पर ह िनभर

है तो यह िनरथक अहं कार होगा। इस संसार म य

हआ काय ह शेष रहता है । आज अनेक य ु बाद

आते ह और जाते ह। कया

ऐसे है जो सोचते रहते ह क उनके

या होगा? इसी िचंता से वे मःत ह। ॄ टश रा यकता भी यह बोला करते थे

क उनके भारत छोड़ने के प ात ् इस दे श का कारोबार कैसे चलेगा? क तु अपने

समाज म ौे , बु मान तथा गुणसंप न य य

य क कोई कमी नह ं है । य द कोई

ओझल हो जाय, काय से हट जाय या भगवान को यारा हो जाय तो अ य

लोग आगे आकर काय को आगे बढ़ाते ह। डॉ. हे डगेवार जी क मृ यु के प ात हम सभी िमलकर उनका काय आगे चला रहे ह। इस कारण मेर य

बनती है क आप

क ओर नह ं काय क ओर दे ख।”

“कायकताओं ने आपसे कहा होगा क ये गु जी के वचार ह। ले कन ये वचार मेरे नह ं ह। अपनी भारतीय परं परा

ान का महासागर है । इस महासागर म से मने चंद

बूँद उठाई ह। भारत के दे हात म रहनेवाला अनपढ़ साधारण आदमी भी त व पा ा य वचारक और व ान को भ च का कर दे ने क वचार धन तो परं परा से ह उसे ूा “संघ क नींव म हजार

ान-

होता है ।”

यागी, िन ावान कायकताओं क तप या के प थर जड़े हए ु

ह। संघ काय का यह संबल है । संघ हमेशा रा य

मता रखनेवाला

है ।

का ह

वचार करता है और म उसे

करता हँू । कसी मामोफोन से अिधक मेरा ौेय नह ं है ।”

“संघ का वचार एकतरफा है । संघ कसी राजनीितक प केवल रा दल या प

का वरोध नह ं करता संघ

का तथा ह द ू समाज का भावा मक वचार करता है । आप चाहे कसी भी म काय कर, क तु यह न भूल क आप ह द ू समाज के एक अिभ न

अंग तथा भारतमाता के सुपुऽ ह। सौ साल पहले काँमेस का अ ःत व नह ं था पर तु उस समय भी अपने रा

कालांतर म उनका ह एक बात ःप

का अ ःत व था। विभ न प

य हो जाता है । य

क भांित प

है क कसी का ज म कसी प

िनमाण होते ह और

आते ह और जाते ह। साथ

(पाट ) म नह ं होता, ू युत

नवयुग ूवतक ौी गु जी

189


समाज म होता है । इस कारण हमारा ूथम कत य समाज और रा अपने जीवन का पॅ येक

के ूित चा हए।

ण इस कत य भावना से ओतूोत हो ऐसा ूय

“संघ का काय दे श म परःपर सामंजःय, िनः​ःवाथ सेवावृ

कर।”

तथा शील संवधन करने

का है । यह आजीवन चलनेवाला काय है । इस वचार ूणाली का आप ःवागत कर। यह बात कस के

ारा कह जा रह है , यह बात मह व क नह ं है ।

या और कस

संबंध म कहा जा रहा है , यह वचार करने का मु य वषय हो। भारतवष म अनुशासनब

तथा संग ठत रा जीवन का िनमाण हो, इसके िलए संघ आप के

सहकाय क अपे ा करता है ।” इस ूकार स कार समारोह म ःतुित गान कये जाने पर या

ये

महानुभाव

ारा

भू र-भू र ूशंसा सुनने के प ात ् भी ौी गु जी क भाषा मृद,ु मधुर, नॆता से भर हई ु रहा करती थी। म कुछ हँू , इस भावना का ःपश भी उनके यवहार म कभी

दखाई नह ं दे ता था। वह संयिमत, वनॆ, िमऽता और हाःयरस से प रपूण सामा य

सा यवहार लोग के मन जीत कर उनके ूित आदर-ौ ा-यु

जाता था। स कार समारोह तो ूसंग वशेष के िनिम

आकषण उ प न कर

होनेवाले उपबम माऽ हआ ु

करते ह। क तु इन ूासंिगक कायबम का उपर उ े ँय भले ह ता कािलक हो, हम उनका उपयोग दै नं दन संघकाय वःतार के िलये ूेरक तथा पोषक मानकर करना चा हए यह उनक धारणा थी। ौी गु जी ःवयं शाखा वःतार तथा कायकताओं से संपक बढ़ाने और बनाए रखने क ओर अिधक

यान दया करते थे। बाक कायबम वे प र ःथितज य आवँयकता तथा

काय वःतार क

से ह पूण कया करते थे। १९४९ म दे शभर म संप न हए ु

अिभनंदन समारोह तथा १९५६ म हए ु वषगांठ के कायबम दोन ह ूिस

ारा ौी गु जी तथा संघ

के ूकाश म इस तरह आलो कत हए ु क संपूण भारत संघ वचार से

सुप रिचत होता दखाई दया। अिधकािधक लोग तक संघ क

वचारधारा पहँु च सक ।

संघ समाज के िलये आशापूित का ःथान बन गया। १९६२ तक जो ६ वष का कालखंड बीता उसम ौी गु जी केवल संघ वःतार तथा संगठन के म ह म न रहे । इस कालखंड म उनके य

ढ़ करण के काय

गत जीवन म कोई वशेष घटना नह ं

हई। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

190


१५.२ डॉ. अंबेडकर

ारा बौ

मत क द

१९५६ म वजयादशमी के अवसर पर एक ऐसी घटना अवँय हई ु जसके समाज

जीवन पर दरगामी प रणाम हए। ,माज म खलबली सी मच गयी। डॉ. बाबासाहब ू ु अ बेडकर के नेत ृ व म लाख अनुसिू चत वग य बंधुओं ने बौ

मत को ःवीकार

कया। इस वष िन य क प रपाट के अनुसार धंतोली ःथत पटवधन मैदान पर (नागपुर का एक भाग) एक ओर रा ीय ःवयंसेवक संघ का वजयादशमी महो सव संप न हे रहा था तो दसर ओर यहां से 5 क.मी. के अंतर पर ःथत ‘द ू पर डॉ. अ बेडकर क उप ःथित म महार ब धु बौ मत क द

यह बात नह ं थी क बौ ू रहे थे। बौ टट

ा मैदान’

ा ले रहे थे।

मत को ःवीकार करनेवाले बंधु ह द ू परं परा व संःकृ ित से

समाज ह द ू समाज का ह एक अंग ह, यापक वृह

ह द ू समाज

का एक छोटा सा अंश। डॉ. अ बेडकर ने जब अपने वंिचत समाज का मता तर करने का िन य घो षत कया था तभी से ईसाई और इःलाम मजहबी नेताओं ने इस समाज को अपने मत म समा लेने हे तु भरसक ूय बौ मत को ःवीकारा, यह बात उनके रा ीय द

ा महण करने के पूव पऽकार प रष

कए। क तु डॉ. अ बेडकर ने

कोण को ह दशाती है । बौ

मत क

म बोलते हए ु डॉ. अ बेडकर ने कहा था-

“एक बार मने महा मा गांधी से कहा था क य प अःपृँयता के मु े पर म उनसे

िभ न मत रखता हँू पर जब समय आयेगा तब म वह राःता चुनूँगा जो दे श के िलए

यूनतम हािनकारक होगा। और बौ मत का अंगीकार कर आज म दे श को अिधकतम

लाभ पहँु चा रहा हँू

य क बौ मत भारतीय संःकृ ित का अंग है । मने इस बात क

सावधानी बरती है क मेरा मता तर इस भूिम क संःकृ ित और इितहास क पर परा को हािन न पहँु चा सके।” सकड़ वष से ह द ू समाज

ारा इन तथाकिथत अःपृँय पर बहत ु अ याय कये गए

थे। उ ह अपमािनत कया गया था। इसके वरोध म आंदोलन, संघष, यु आवाहन के भरसक ूय

वाद तथा

हए था। समाज ु थे। क तु इसका कोई प रणाम नह ं हआ ु

मानस म प रवतन के कोई ल ण दखाई नह ं दे रहे थे। समाज का एक अंग उसके

ू मूल, से टटना चाहता है , इसक कोई वेदना भी शेष ह द ू समाज म होती दखाई नह ं दे ती थी।

ू मानने क ूवृ ) को अवैध माना गया है । भारत के सं वधान म अःपृँयता (अछत क तु लोग के ू य

लोग को अब भी िनकृ नवयुग ूवतक ौी गु जी

यवहार म से वह न

नह ं हई ु थी। समाज के दिलत- प ड़त

मानकर अपमािनत होना पड़ रहा था। इस अवांछनीय

191


प र ःथित क ूित बया के

प म अपने परं परागत ह द ू धम का

याग करने का

िन य डॉ. बाबा साहब अ बेडकर ने कया था। इस िनणय का प रणामकार ःव प १९५६ के वजयादशमी के महो सव के समय दखाई दया। डॉ. बाबा साहब का वचार साकार

प धारण कर गया।

इस घटना

ारा ह द ू समाज म जागृित आयेगी ऐसी अपे ा थी, क तु ऐसा कुछ

नह ं हआ। अःपृँयता का यह कलंक धो डालने क आवँयकता है यह वचार करना ु

समाज के िलये आवँयक था। क तु दभा ु य से ऐसा न हो पाया। इस घटना के ूित ौी गु जी क

या ूित बया थी? ू येक समःया का रा ीय,

ःतर पर वचार करनेवाले ौी गु जी को सामु हक मता तरण कतई मा य नह ं था। इस तरह समूह म मता तरण करने क क पना पर उनका व ास ह नह ं था। द. १२ नवंबर १९५६ के ‘पांचज य’ सा ा हक म ूकािशत एक लेख म ौी गु जी ने इस सामू हक मत प रवतन के संबंध म अपनी राय य

क है । वे िलखते ह, “ या

कसी स चे धम म सामू हक धमा तरण जैसी भी बात हो सकती है ? एक धम को

छोड़कर दसरे को अंगीकार करना एक मनोवै ािनक ू बया ू िलए आ मिनर

ारा ह संभव है ।...उसके

ण क आवँयकता है । मूल धम के तथा उसे छोड़कर जस धम को

अंगीकार कया जानेवाला है , उसके आ या मक, नैितक व यावहा रक

ेऽ म जीवन

के जो आदश बताये गये ह उनका पूव व ेषण करना आवँयक है । इसका अथ एक ऐसा आमूलाम प रवतन है जसम नये धम क सजीव अनुभूित हो। उसका प रणाम यह होता है क सभी

ेऽ म जीवन का एक नया

प दखाई दे ता है ।

या सामु हक

धमा तरण म इस ूकार का यापक एवं आमूलाम प रवतन संभव है ?” डॉ. बाबा साहब क ौे ता से ौी गु जी अ छ तरह प रिचत थे। बाबा साहब के

धमचब ूवतन के सात वष प ात, ौी गु जी

ारा िलखे हए ु लेख म ौी अ बेडकर

के काय के संबंध म उनक धारणा का प रचय िमलता है । ौी गु जी ने िलखा है ,

“भारत के धम-संःकृ ित के द य संदेश के गजन से ज ह ने सारे संसार को हला दया. झंझोड़ दया, उन ौीम

ववेकान द जी ने भी यह कहा था क द न, दबल ु ,

गर ब और अ ानमःत भारतवासी को ह म ई र मानता हँू । ऐसे पी ड़तो क सेवा

करना तथा उनके सु

चैत य को जागृत कर उनका भौितक जीवन सुखपूण और

ू उ नत करना ह स ची ई र सेवा होगी।” ौी ववेकान द जी ने ‘छना मत’ क अ यायपूण ूवृ य पर तथा उनसे संल न गलत

ढ़य पर कठोर ूहार कये।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

192


समाज क नई रचना करने का आवाहन कया। ववेकानंद क इ ह ं भावनाओं को डॉ.

अ बेडकर जी ने िभ न श द म राजनीितक तथा सामा जक संदभ म कहा। अ ान और दःख म सड़ रहे समाज के एक बृह ु

ु ध होकर

भाग को अपमािनत अवःथा

से ऊपर उठाकर उ ह आ मस मान ूदान करने का असामा य काय उ ह ने कया।

अपने रा

को अ बेडकर जी ने उपकृ त कर रखा है । इन उपकार के ऋण को उतारना

क ठन बात है । “ौीमत ् शंकराचाय जी क कुशाम बु

तथा भगवान बु

के

दय क क णा का मेल

होने से भारत का उ ार होगा,” ऐसा ःवामी ववेकान द ने मागदशन के

प म कहा

था। कहना पड़े गा क बौ धम का ःवीकार तथा पुरःकार कर इस मागदशन को पूणता क ओर ले जाने क ूेरणा डॉ. अ बेडकर ने द । उनको यह भी लगा क यवहार म समानता, शुिचता, क णामय ःनेह, इन सब गुण म से ूा

सेवा करने क

वशु

ूेरणा यह बौ मत क ौ ा से उ प न लाभ रा

के क याण हे तु आवँयक है , इस त य को पहचानकर ह उ ह ने बौ

मानवता क

तथा मानवता मत का

आमहपूवक पुरःकार कया दखाई दे ता है । “ूारं भ म भगवान बु

ने त कालीन ऽु टपूण धारणाओं पर ट का- ट पणी कर ूहार

कये और समाज सुधारने तथा धम का ःव प शु

करने क कोिशश क थी, धम से

अलग होने क नह ं। वतमान काल म डॉ. अ बेडकर ने समाज तथा धम हत के िलये समाज िचरं जीवी, दोषर हत और सु ढ़ बनाने के िलए आजीवन काय कया।

ु समाज से टटकर अलग होने तथा िभ न पंथ िनमाण करने का उनका वचार नह ं था, ऐसी मेर ौ ा है । इसी कारण इस युग के भगवान ् बु

उनक प वऽ ःमृित को

के वा रस के नाते म

अिभवादन करता हँू ।”

अःपृँयता िनवारण के िलए गांधी जी ने भी सराहनीय ूयास कया। अःपृँय या दिलत वग को ह द ू समाज से अलग करने के ॄ टश ूयास को वफल करने के

िलए गांधी जी ने १९३२ म आमरण अनशन कया। उनके िलए ॄ टश सरकार क

ओर से कोई नाम फके जाने के पूव ह गांधी जी ने ‘ह रजन’ श द सामने रखा जसे उस समय पूरे समाज ने िशरोधाय कया। सन ् १९३३ म उ ह ने दे श यापी अःपृँयता वरोधी आ दोलन ूार भ कया। क तु इतना सब करने पर भी समःया हल नह ं

हई। कानून बनाने पर भी अःपृँयता बनी रह । ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

193


इस संदभ म ौी गु जी तथा संघ ने जो भूिमका ःवीकार क उसका वचार करना उिचत होगा। संघ ने समाज प रवतन के िलए एक अलग माग अपनाया। संघ का मानना है क समाज का िनरं तर तेजोभंग कर, ूाचीन परं पराओं को

या य तथा

िनरथक मानकर या केवल विभ न भेद पर ूहार कर समाज को सुधारा नह ं जा

ु सकता। इससे सम वय के ःथान पर संघष और कटता ह बढ़े गी। एकता के ःथान पर वलगता ह

दखाई दे गी।

संघ ने यह वचार सामने रखा क सब ह द ू ह ह, एक परं परा म पले-बढ़े ह। अतः

हम सब एक ह यह भाव जागृत कर सबके साथ समान यवहार करना तथा ऊँच-नीच क भाषा का न ूयोग करना और न उ चारण! आ मयता क इस वशाल भूिमका को यावहा रकता क समतल भूिम पर लाने का सफल ूयास ौी गु जी ने अपने आचरण

ारा ूःतुत कया।

१९५० क एक घटना है । पुणे म संघ िश ा वग चल रहा था। भोजन के िलए सभी ःवयंसेवक पं

य म बैठे हए ु थे। भोजन परोसने का काम एक गट को दया हआ ु

था। जब भोजन परोसने क बार आई तब एक ःवयंसेवक आगे आकर परोसने के िलए संकोच कर रहा था, हच कचा रहा था। ौी गु जी के पूछने पर भी वह मौन

रहा। बाद म पता चला क वह एक चमकार था। ौी गु जी ःवयं उठ खड़े हए ु और

उ ह ने अ न साममी से भरा हआ बतन उसके हाथ म थमाया और कहा, “पहले मेर ु प ल पर परोसो।” उस चमकार ःवयंसेवक क

हचक गायब हो गयी। वह परं परा से

चल रहे जात-पाँत क भावना को एकदम भूल गया। एक नया व ास, नया आयाम, एका मता क नयी अनुभिू त उस म जाग उठ और ूस नता से वह परोसने म समरस हो गया। ौी गु जी के ःनेहयु

ू य ाचरण से यह संभव हो सका। ूेम,

स -भावना तथा एका मता के ूवाह म भेद को डु बो दे ना, वस जत कर दे ना ह संघ का माग है । यह माग संघ म तो सफल िस पर उसक पूणता अभी बाक है ।

हआ ु , क तु समाज के व वध ःतर

१५.३ ॄ दे श के ूमुख से ॄ दे श के सव च

यायालय के एक

ु ् दसंबर १९५६ तक यायमूित ौी उछान ् ठन

भारत म थे। ‘व ड बु ःट कॉ फरे स’ के ूितिनिध के नाते उनका द ली आगमन हआ था। उ ह ने ौी गु जी से भट क और संघ का िनकट प रचय ूा ु

कया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

194


नवबौ

अित र

मंडली से वातालाप करने क उनक इ छा थी। तदनुसार उ ह ने द ली के आगरा, मु बई, पुणे, नािशक, औरं गाबाद, नागपुर आ द ःथान क याऽा

क । ौी गु जी से वःतार से चचा क , संघ शाखाएँ दे खी। संघ के कुछ कायबम म उनके भाषण भी हए। उनके भाषण का सार यह था क सनातन धम वशाल है । ु भगवान बु

ने सनातन धम का ह उपदे श कया था। इस सनातन धम के ूकाश को

जगत ् म फैलाने का काय संघ को पुनः एक बार करना ची हए। मुझे व ास है क

आनेवाले समय म आ नेय एिशया म सनातन धम का स दे श ूसृत करने का काय रा ीय ःवयंसेवक संघ

ारा होगा। ऐसा दखाई दया क ौी गु जी क भट सा उ ह

बहत ु आन द हआ। ु मु बई के मकर संबमणो सव म वे स मिलत हए ु और ौी गु जी का भाषण उ ह ने यानपूवक सुना। य

गत भट रा ऽ को ौी गु जी के िनवासःथान पर हई। ितल-गुड़ ु

दया गया। आ नेय एिशया म धम-संःकृ ित के र ण और ूसार के िलए संगठन क आवँयकता इन वषय पर मु य

प से चचा हई। मु बई और नागपुर म नव बौ ु

ु ् के ूकट भाषण हए। क ओर से आयो जत जनसभाओं म उछान ् ठन ‘व ड फेलोिशप ु ऑफ बु ः स ्’ संःथा के अ य

होने से बौ

ु ् ने नव बौ थे। नागपुर म उछान ् ठन

मंडली ने उनके भाषण आयो जत कये

कायकताओं के स मेलन म बोलते समय संघ

के कायकताओं क शैली से काम करने क सलाह द । संघ कायकताओं का

एकऽीकरण संघचालक जी के िनवासःथान पर हआ था। इन कायकताओं के स मुख ु बोलते हए ु उ ह ने संघकाय पर अपना व ास य के बारे म भी अ य त संतोषजनक उ -गार य

कया और ौी गु जी से हई ु भट

कये। मिास म भी संघ क ओर

से आयो जत एक ःवागत समारोह म उ ह ने भाषण दया। भारत से ौीलंका क ओर ूःथान करते समय पऽकार उ र म क भारत ॅमण के संबंध म आपका

ारा पूछे गये इस ू

के

या अिभूाय है और आपका स दे श

या है , उ ह ने जो कहा उस पर ौी गु जी से हई ु चचा और संघ के काय के िनकट

से कये गये दशन का ूभाव ःप

ूतीत होता था। उ ह ने कहा, “भारत म आने के

पूव म समझता था क पूवकाल म भारत से वदे श म धमूचारक जाते रहे , पर तु वह श

अब भारत म नह ं रह है । पर तु मेरे भारत ूवास म अनेक

कायकताओं से िमलने का सौभा य ूा स मिलत होने का अवसर ूा

ये

हआ ु , अनेक कायबम दे खने और उनम

हआ। अब म इस िनणय पर पहँु चा हँू क भारत म ु

वह साम य आज व मान है । अपना सब कुछ समाज सेवा म सम पत करनेवाले अनेक कायकताओं से मेर भट हई ु है । व

ा और यो यता म वे ब कुल कम नह ं नवयुग ूवतक ौी गु जी

195


ह। उ ह ने िनः​ःवाथ भावना से ःवयं को समाज और धम क सेवा म सम पत कर दया है । जगत ् के संबंध म अपना कत य वे अवँय संप न करगे।” इसम स दे ह नह ं है क उनके

ारा नव बौ

कायकताओं को राजनीितक उ े ँय से

ूे रत न होकर संघ के सहयोग से काम करने का परामश और ‘सनातन धम’ क प रिध म बौ

मत का ःथान रहने का ूितपादन ौी गु जी क भट का ह

सुप रणाम था।

१५.४ अमे रका से अपे ा सन ् १९६० म भारतीय जनसंघ के नेता ौी अटल बहार वाजपेयी को अमे रका आने

का िनम ऽण ूा

हआ। अटल जी ने उसे ःवीकारने का िनणय कया। जॉन केनेड ु

और रचड िन सन के बीच अ य

पद के िलए होनेवाले चुनाव का वह समय था।

अटल जी संघ के पुराने ःवयंसेवक और ूचारक भी थे। उ ह ने ौी गु जी को अपने अमे रका जाने के बारे म बताया तब उनके साथ अमे रक जनता के नाम एक संदेश भेजने का िन य हआ। यह क पना थी क एकाध बड़े सावजिनक कायबम म अटल ु जी उसे पढ़कर सुनाएँ। आधुिनक जगत ् म धम क मह ा सुूित त करने के ौी

गु जी के ूय

का ह वह एक अंश था। अटलजी ने िसत बर १९६० म वॉिशं टन म

आयो जत एक भ य समारोह म वह स दे श अम र कय को पढ़कर सुनाया। इस संदेश

म ौी गु जी कहते ह“ःवामी ववेकान द ने अपने स -गु

ौी रामकृ ंण के जीवन म ूकट हए ु शा त

स य का ूकट उ -घोष लोकम ऽ और मानव ूित ा को माननेवाले अमे रका म कया, यह परमे र क ह योजना रह होगी। जागितक घटना चब के प रणाम

ःव प ःवतंऽ जगत ् का नेत ृ व अमे रका क ओर आया है । ःवामी ववेकान द के

स - वचार का ःमरण और उनके अनुसार आचरण कर अमे रका वह दािय व िनभा सकता है ।” “आज सार दिनया दो गुट म वभा जत है । सतह ु

से दे खनेवाल को लगता है

क इन गुट का संघष लोकत ऽ और सा यवाद म है , पर तु यह सच नह ं है ।

युगानुयुग से िनकृ

ःतर के भौितकवाद और धम के बीच संघष चलता आ रहा है ।

वह संघष आज भी चल रहा है । सा यवाद भौितकवाद का पृ

पोषक है । सा यवाद

नवयुग ूवतक ौी गु जी

196


का ूितकार कामचलाऊ भौितक यवःथा या सा ूदाियक मत से नह ं हो सकता।

सनातन धम के सुिन

त और शा त अिध ान पर आधा रत व

धम के

ारा ह

सा यवाद का सफलतापूवक सामना कया जा सकता है । दिनया के सभी पंथ और ु

व ास म सामंजःय रहना और उनम सुसव ं ाद िनमाण होना इस समय आवँयक है ।

इसका अथ यह नह ं है क य िन ाओं का शा त से ूय लगे ऐसी वै

गत िन ाओं को ितलांजली दे द जाय। उ टे उन

प म उदा करण उसम अिभूेत रहता है , यह सबको समान

क वचारधारा है ।”

“वतमान कालीन भारत अ य अनेक दे श के समान भौितक

से समृ

भले ह न

हो, पर तु ूद घ कालीन जीवन के चढ़ाव-उतार म भी वह अ ै त के शा त िस ांत पर अटल रहा है । वह एक बार फर अपने पैर पर खड़ा है और अपने उस िनयत

काय का सा ा कार करने म लगा है जसके अ तगत ःवतंऽ दे श को एक ऐसी वै

क ूणाली ूदान कर सकेगा जसके भरोसे सब िमलकर दिनया को िनगलने जा ु

रहे वतमान के संकट को मात दे सकगे।”

“मेर ऐसी इ छा है क अमे रक जनता को ःवामी ववेकान द के अमर संदेश का ःमरण करना चा हए। भारत के साथ अभे दिनया क धमश ु

िमऽता के सूऽ म ःवयं को बाँध ले।

वजयी होगी और हमेशा चलनेवाले सैिनक संघष से दिनया मु ु

होगी, मानव को शा त और समृ रा ीय ःवयंसेवक संघ क

का लाभ होगा।”

से एक मह वपूण कायकता िश वर का कायबम म य

ूदे श के इं दौर शहर म १९६० के माच म हने म आयो जत कया गया। इसके पूव १९५४ म वधा के िनकट िसंद म हए ु ूचारक के िश वर म ौी गु जी ने संघ का वचार, त व ान तथा रा

के संदभ म संघ क भूिमका के संदभ म िनःसं द ध

से अपने वचार ूगट कए थे, इसक जानकार पूवा याय म द गयी है । इं दौर का यह िश वर अिधक यापक था। संघ के वभाग ःतर य कायकताओं के साथ ह

विभ न

ेऽ म काय करने वाले ूमुख कायकता भी इस िश वर म उप ःथत थे।

बीते ६ वष म हए ु संघ काय का िसंहावलोकन करना, कायकताओं के मन म उभरने

वाली शंकाओं का िनवारण करना तथा संघ का भ वंय म बनने जा रह

वकास

योजना के संबंध म वचार करना, यह सब इस िश वर का उ े ँय था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

197


संघकाय ूारं भ होकर ३५ वष क कालाविध बीत चुक थी। इस कालखंड म संघ को

अनेक भले-बुरे ूसंग म से गुजरना पड़ा था, अनेक संकट का सामना करना पड़ा

था। अतः कायकताओं के बीच खुली चचा का यह आयोजन कया गया था। ौी गु जी ूारं भ से अंत तक इस िश वर म ःवयं उप ःथत रहे । िन य वचार का आदान-ूदान होता, चचाएँ होतीं, ू

पुछे जाते और ौी गु जी कायकताओं का मागदशन करते।

िश वर क योजना सफल रह । ूायः ऐसे िश वर या अ यास वग म कायकताओं से ःप

तथा िनःसं द ध

प से

खुली चचा करना ौी गु जी का ःवभाव था। इसी प ित को अपना कर वे सम वय क प ित का अवलंबन कर शंकाओं का समाधान करते। बाहर क प र ःथित भले ह वपर त या संकट मःत हो, हम समाज और दे श के िलए

या करना चा हए यह ौी

गु जी के इ दौर म दए भाषण का ूधान सूऽ रहा था। िन य कम तथा नैिम क कम- इस ूकार काम के

वध ःव प को सुःप

करते हए ु ौी गु जी ने

आमहपूवक तथा िन या मक ढं ग से बताया क कसी भी प र ःथित म अपनी दै नं दन शाखा के कायबम म िशिथलता न आने पाए। पूर द ता के साथ संःकार म शाखा उ साह के साथ चलाना काय क

से िनतांत आवँयक है । दे श को समःत

संकट से तारने का वह सवािधक व सनीय साधन है । इ दौर के भाषण क और एक वशेषता यह रह

क ह द ू धम तथा परं परा के अनुसार ह हमारा जीवन यतीत

हो; ह द ू संःकार को जागृत कये बना काय क िनरं तरता तथा रा ीय चैत य क

अनुभिू त सवथा असंभव है , इस बात को उ ह ने नह ं, संःकार का ःव प दो ू

या हो इसका भी बड़े वःतार से वणन कया। उस समय

के उपर संघ क भूिमका के बारे म ौी गु जी ने ूकाश डाला। प हला ू

यह था क ह द ू संःकृ ित के पुन

है

ढ़तापूवक ूितपा दत कया। यह

या? और दसरा ू ू

था क

जीवन म वण यवःथा का पुन

जीवन अिभूेत

या वण यवःथा को ह द ू समाज जीवन का एक

आवँयक और अप रहाय अंग समझना चा हए? ौी गु जी का उ र िनःसं द ध था। उ ह ने कहा- “सांःकृ ितक पुन

थान से वण यवःथा का पुन

जीवन जुड़ा हआ नह ं ु

है । जाित के हम न वरोधी और न प धर ह। हम इतना ह जानते है क समाज पर

आये गंभीर संकट के समय म एक मह व क भूिमका उस यवःथा ने िनभायी थी। आज य द समाज को वह प ित नह ं चा हए तो वह न

हो जायेगी और इसके बारे

म कसी को भी दःुख नह ं होगा। वैसे ह वण यवःथा के बारे म कहना होगा क

वह समाज क ‘अवःथा’ न हो कर केवल एक ‘ यवःथा’ है । य द वह िन पयोगी हो

गयी है तो उसका

याग करने म हच कचाने का ब कुल कारण नह ं है । आवँयकता

नवयुग ूवतक ौी गु जी

198


और सु वधा के अनुसार यवःथा म प रवतन हो सकता है ; उपयु ता पर वह िनभर है ।” संघ के ःवयंसेवक से जस अनुशासन क अपे ा क जाती है , उस के अंग ू यंग का ववेचन ौी गु जी ने इतने वःतार तथा गहराई से कया क उसम ह द ू संःकृ ित के कई अ ात पहलुओं के संबंध म कायकताओं को

ान ूा

हआ ु ।

ौी गु जी के ववेचन का आधार आ या मक था तथा कायकताओं को संघ-काय के ःव प क सवकष क पना भी उ ह ने आ या मक प रभाषा म ह कराई। अ त म ौी गु जी ने सबका आवाहन कया क रा

के पुन

थान के िलए असीम

यागमय

जीवन का ोत आनंद के साथ हम ःवीकार करना होगा। इ दौर के िश वर म हए ु इन

सभी भाषण ने कायकताओं को न केवल अंतमुख कया अ पतु ःवतः के य गुणावगुण को परख ने के िलए भी ूवृ ह ूभावो पादक तथा संःकार म था।

गत

कया। ौी गु जी का यह मागदशन बहत ु

१९६० का वष खं डत भारत क ःवाधीनता ूा

करने के साथ एक तप के प ात ् का

मह वपूण काल था। चीनी आबमण के संभा य संकट के साथ ह अनेक संकट और सामा जक पतन के

ँय ल ण का सा ा कार ौी गु जी ने कराया। “हमार परं परा

ने संकट पर मात करने का, उ ह पराःत करने का साम य हम दया है , इस कारण

भारत का जागितक (वै

क) ‘िमशन’ पूण करने के हे तु हम जी-जान से, सवःवापण

करते हए ु य द ूय शील रहे तो सफलता के बारे म मन म कोई संदेह नह ं बचेगा”,

इस व ास के साथ ौी गु जी ने कायकताओं को ूे रत कया। िश वर समा कायकता शंकार हत हो ूच ड उ साह से अपने-अपने काय क बात यह है क इस वग के समा

हआ। ु

ेऽ क ओर बढ़े । आ य

होने के ठ क दो वष के बाद, जैसा क ौी

गु जी ने पूवानुमान लगाया था, वदे शी आबमण का हं

आघात अपने दे श पर

हआ। ु

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

199


१६ यु

कालीन दशा-दशन

रा ीय ःवयंसेवक संघ के आ

सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार जी का अं यसंःकार नागपुर

के रे शीमबाग मैदान पर हआ था। जस ःथान पर उनका पािथव शर र अ न को ु सम पत कया गया था वहाँ एक साधारण सी समािध बनी हई ु थी।

संघ का काय दन दना ू रात चौगुना बढ़ता गया। दे शभर के ःवयंसेवक इस पावन

समािध के दशन करने आने लगे। इस कारण कायकताओं के मन म यह इ छा जागी क इस समािध पर एक मं दर स श वाःतु का िनमाण कया जाय जो ःवयंसेवक

तथा अ य लोग के िलए ूेरणाःथान बने। इस काय के िलए ‘डॉ. हे डगेवार ःमृित सिमित’ का गठन कया गया। ौी गु जी इस सिमित के अ य

थे।

१६.१ ूेरणाःथान का िनमाण ःमृित मं दर के िनमाण के िलए िनिध संकलन कया गया। योजना के अनुसार ःमृित मं दर का िनमाण काय पूण हआ। ःवयं ौी गु जी ने इस वाःतु िनमाण क ओर ु बहत ु बार क से

एक नया पहलू क तु स दय

यान दया। इस समय ौी गु जी क बु म ा तथा कला मकता ता

यान म आया। उ ह भारतीय वाःतुशा

का सूआम

ान तो था ह ,

, कला मक िचंतन तथा ःमृित मं दर क ओर दे खने क उनक

भूिमका क अनुपम अनुभिू त इस समय हई। अिभयंता से लेकर प थर तराशनेवाल ु तक को वे आवँयकतानुसार मागदशन दया करते थे।

९ अूैल १९६२ वषूितपदा के शुभमुहु त पर ःमृित मं दर का उ -घाटन कया गया। वष ूितपदा डॉ टर जी का ज म दवस होने के कारण इस अवसर का चयन होना

उिचत ह था। अपने आरा य डॉ टर जी के ःमृितमं दर के िलए भारत के लगभग

सभी ःवयंसेवकओं ने ौ ापूवक िनिध सम पत क थी। इस कारण यह िनणय िलया गया क अ खल भारतीय ःतर पर इसका उ -घाटन समारोह मनाया जाए। भारत के सभी ःवयंसेवक तथा संघ ूेमी जनता का

यान इस ःमृित मं दर के िनमाण क

ओर लगा हआ था। ु जब ःमृित मं दर के उ -घाटन के िलए कसी ौे

आ या मक वभूित के नाम क

चचा होने लगी तो कांची कामको ट पीठ के परमाचाय का नाम ःवाभा वक

प से

नवयुग ूवतक ौी गु जी

200


सामने आया। यह तो सव व दत है क परमाचाय संघ को कतना चाहते थे और हम

सब यह भी जानते ह क ौी गु जी क उनके ूित कतनी ौ ा थी। जब परमाचाय के पास यह िनवेदन पहँु चा तो वे नागपुर जाने के िलए तुरंत तैयार हो गये। उ ह ने

यह संदेश िभजवाया क वे लोग लगभग दो मास पूव नागपुर के िलए ूःथान करगे जससे पैदल चलकर समय से वहाँ पहँु च सके। ौी गु जी को पता था क परमाचाय

पैदल ह चला करते ह क तु उ ह यह उिचत नह ं लगा क वे इतना शार रक क

उठाएँ। अतः ौी गु जी उ ह वैसा सूिचत करते हए ु उनसे अ य त वनॆतापूवक

िनवेदन कया क अपने आिशवाद ःव प वे मंऽा त िभजवाने क कृ पा कर जससे समािध पर चढ़ाकर ःमृित मं दर के उ -घाटन को ऋ ष हाथ क पावनता ूदान क जा सके। ौी परमाचाय ने ौी गु जी के िनवेदन के अनुसार ह मंऽा त भेजा। वष ूितपदा के दन सूय दय से सूयाःत तक रे शीमबाग म सह डॉ टर जी के बारे म अन य ौ ाभाव

ःवयंसेवक तथा

दय म रखनेवाले नाग रक क उप ःथित थी।

ःमृित मं दर का सु दर िश प तो दे खते ह बनता था। व त ु ् दप से आलो कत

ःमृित मं दर के अ दर भूतल से कुछ नीचे समािधःथल संगमरमर से मं डत कया गया था। फूल क कलाकार से समािध क प वऽता तथा शोभा को दे खकर, एक ओर

मन पुल कत होता तो दसर ओर दशक अंतमुख होकर मन म सोचता क यह वह ू

ःथल है जहाँ परम पूजनीय डॉ टर जी ने अपने संपूण जीवन को सिमधा के रा य

प म

म सम पत कर दया था और वे िचरिनिा म समािधःथ हो गये थे। अथक,

अ वौांत, िनम ह,

ण- ण ूितपल ह द ू रा

के नवो थान के िलए यथाथ

प से

खून का पानी होते तक-अंितम सांस पयत, शर र क िच ता न कर साधना करनेवाले

महान ् साधक क यह िचर वौाम ःथली है , यह भावना

वार-भाटे क भाँित अंतस ् म

उमड़कर आँख म आँसू छलकाती थी। इसी समािध के ठ क ऊपर ूःतर के

कमानीदार गुज ं नधार मंडप म काले चमक ले वशेष ूःतर से बनाई गयी डॉ टर जी क अध-चंिाकार आसन पर बैठ ूितमा तो ऐसी जीवंत ूतीत होती मान ःवयं डॉ टर जी अपने स मुख बैठे ह ; काले चमक ले प थर क बनी सी ढ़य से चढ़ते ह

दशक डॉ टर जी क ूितमा तक पहंु चता था। यहां से दे खने पर चार ओर मानव

समुि ठाठ मारता दखाई दे ता था। दशनो सुक जनता बहते हए ु ूवाह क भांित आती

और ःथरिच

हए ु जनसागर म वलीन होती दखाई दे ती थी।

कायबम क भ यता व मह ा को श दां कत करना स भव नह ं। सार अनुशासनब

यवःथा

थी। सभी लोग ौी गु जी के भाषण को सुनने के िलए उ सुक थे,

लालाियत था। इस अवसर पर ौी गु जी ने डॉ टर जी के जीवनकाय तथा उनक नवयुग ूवतक ौी गु जी

201


असामा यता पर वःतार से तथा व वधांगी ूकाश डाला। ौी गु जी ने भाषण के

ूारं भ म ह कहा, “ःमृित मं दर के िनमाण तथा उ -घाटन का यह अथ कदा प नह ं होता क हम य

पूजक ह। संघकाय म संघ के िनमाता सवािधक आदरणीय य

थे। क तु हमने उनका कभी जय-जयकार नह ं कया। जय-जयकार तो रा का तथा मातृभिू म का कया जाता है ; कसी य “सामा य य

का, ई र

वशेष का नह ं।”

के िलए त विचंतन हे तु कसी ःफूितूद अवलंबन क आवँयकता

होती है । त व प बने पािथव शर र के िचंतन से त व का ह िचंतन होता है । रा अमर बनानेवाली असामा य कायप ित डॉ टर जी ने हम द और रा भ से प रपूण, अंतबा सह

वशु

को

क भावना

जीवन का आदश उ ह ने हमारे स मुख ूःतुत कया।

युवा ःवयंसेवक को उनके जीवन से ूेरणा ूा

हई। ऐसे वशु ु

जीवन का

ःमरण जागृत रहे , इस ूेरणा से यह ःमृित मं दर बनाया गया है ।”

द. १० अूैल १९६२ को ूातः काल ौी गु जी का बौ क वग ःवयंसेवक के िलए हआ। उ ह ने कहा, ु “इस मं दर को केवल पूजा का ःथान न बनाइये। हम अपने ौ ाःथान के जीतने िनकट रहगे, उसके समान बनने का ूयास करगे, उतने प रमाण म हमार पूजा सफल होगी। पूजा के इस वाःत वक वचार करना होगा। डॉ टर जी

प को

यान म रखते हए ु हम अपने जीवन का

ारा दए गये आदश के अनुसार हम अपने जीवन

को ढ़ालना होगा। एक पूजाःथान िनमाण कर हम कसी महं त क भांित ग

पर बैठे

रहे ; इस भूिमका से यह मं दर नह ं बनाया गया है । ईट और प थर को जोड़कर बनाए गये मं दर म मुझे कोई

िच नह ं है । यह हमारे िलए ूेरणाःथान बने, इसी

से हम इस ःमृित मं दर क ओर दे ख।” इस संदभ म हम एक और बात का ःमरण होता है । डॉ टर जी क समािध पर मं दर बनाने म ौी गु जी अगुवा थे, अमसर थे। उ -घाटन हे तु स पूण भारतवष से ःवयंसेवक को आमं ऽत कया गया था। क तु अपने ःवयं के बारे म ौी गु जी ने कस ूकार वचार कया था, इस को जानने के िलए उनके तीन अंितम पऽ म से

दसरे पऽ का वचार करना होगा। इस पऽ म उ ह ने कहा, “संघ का ू येय का दशन करानेवाले संघ िनमाता इनके अित र

और कसी य

येय और उस का य

इस नाते से मह व बढ़ाना- उनके ःमारक बनाना आवँयक नह ं है ।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

202


इस पऽ का आशय यह था क उनक दे ह शांत होने के उपरा त ौी गु जी का कोई ःमारक न बनाया जाए। ौी गु जी नह ं चाहते थे क ःमारक बनाने क पर परा िनमाण हो। अपने जीवनकाल म वे डॉ टर जी क ःमृित के स मुख सदै व नतमःतक

रहे , शरणागत रहे , क तु दे हावसान के प ात ् कोई दसरा मं दर िनमाण न हो, इसक ू

ओर भी ौी गु जी ने

यान दया। अहं कार को समूल न

कर अपने सवःव का

समपण डॉ टर जी के चरण म करना एक प रपूण समपण ह माना जाएगा। ौी गु जी ने भले ह अू य

प से आ ा द हो क कोई अ य ःमारक या समािध न

बने, क तु ूेम-ौ ा-ःनेह का भी अपना िनजी अिधकार होता है । इस अिधकार म कसी आ ा क अव ा भी

य मानी जाती है । इसी कारण लाख ःवयंसेवक के

ौ ा ःथान डॉ टर जी के पदिच ह पर चले सवःव ूितभा से संप न ओजःवी व ृ व तथा आकषक य

यागी- वरागी, वल ण बु

व के धनी ौी गु जी के

दे हावसान के प ात ् संघ के कायकताओं ने डॉ टर जी के समािध के चरण के

स मुख ौी गु जी के य - प जीवन का ःमरणिच ह य कुंड के

गु जी से मन ह मन

प म बनाया। ौी

मा माँगते हए ु संचार के ु िनिमत यह य कु ड जब व त

प ात ् सं या समय ू विलत होता है , तब दशक को ऐसी अनुभिू त होती है मान

ू य

अ नकुंड

वालाओं से जी वत हो उठा हो। दन के ूकाश म

सं या समय अंतगत व त ु ् ूवा हत

ेतवण क तु

वालाओं क लपट के समान दखाई दे नेवाला

यह ःमृितिच ह एक अनोखा ह आकषण है । ौी गु जी का कोई य

गत जीवन था ह नह ं। प रवार से जोड़नेवाला एक ह बंधन

शेष था, पू य माता-ताई का। पू य पता ौी भाऊजी का १९५४ म ह दे हावसान हो चुका था। पता के ःवगःथ होने के प ात ् ौी गु जी ताई के बारे म अिधक संवेदनाशील हो गए थे। ताई भी कत यिन प रवार के बंधन म पड़ने क अपे ा रा

मां थी। अपने इकलौते पुऽ ने य

गत

प रवार के उ थान का बोझ अपने कंध पर

िलया है , इस त य को वे भली भाँित जानती थीं। अब केवल माधव ह नह ं अ पतु संघ के सभी ःवयंसेवक उनके िलए पुऽ समान ह थे।

१६.२ एक अपूव मधुर िमलन के ि ौी गु जी का जब नागपुर म वाःत य रहाता था तब उनका न चूकनेवाला एक िन य बम रहता था- मो हते संघःथान पर ूाथना संप न होते ह ूमुख कायकताओं तथा बाहर गाँव से य द कोई अितिथ आए ह तो उनके साथ पैदल चलते हए ु नागोबा क नवयुग ूवतक ौी गु जी

203


गली के अपने घर जाना। नीचे बरामदे म ौी गु जी क माता जी ताई बैठ रहती

थीं। वह ं सब लोग बैठ जाते। ताई के पास ह ौी गु जी बैठते। फर ताई जी क

अ य ता म गपशप का रं ग जमा करता। हास-प रहास होता। बीच-बीच म हाःय का ू फ वारा छटता। ौी गु जी क

वनोद-बु

उनक एक अन य वशेषता थी। पर तु

उनका वनोद कसी को चुभनेवाला नह ं होता था, कुछ िश ा दे नेवाला ह रहता था। इस

से एक ूसंग का उ लेख करना उिचत रहे गा। एक दन एक ःवयंसेवक

सप ीक ौी गु जी से िमलने आया। उसी दन ौी गु जी उसके घर होकर आये थे। वह ःवयंसेवक घर पर नह ं था। उसके पता ने बताया क वह िसनेमा गया हआ है । ु

गपशप के दौरान अिथक खींचातानी और गु द

णा का वषय िनकला। इस

नव ववा हत ःवयंसेवक से ौी गु जी ने पुछा, “आज कल िसनेमा के टकट के दाम कतने ह? प ी को साथ ले जाना है तब तो िन न ौेणी का टकट नह ं चलेगा? जाने-आने का वाहन खचा एवं साथ चाय-पानी का खच भी होता होगा? मह ने म एक

िसनेमा के हसाब से साल भर म कतना खच होता होगा? और फर तंगी के नाम पर कची लगती है बेचार गु -द

णा पर!” उस ःवयंसेवक को जो समझना चा हए था

वह समझ गया। सभी को अपने-अपने खच क ओर दे खने क एक

ूा

हई। ु

ऐसे कतने ह ूसंग ह। शाखा, ःवयंसेवक का यवहार, शाखा के संःकार का िन य के जीवन म आ वंकार ऐसे नाना वषय िनकलते थे। अनेक बार लगता था क ताई क अ य ता म इस घ टे भर क गपशप, चाय-पानी, खान-पान आ द को

कायकताओं के िनमाण का कतना प रणामकारक मा यम ौी गु जी ने बनाया था। ौी गु जी के िलए ताई के मन म कतना मम व और अिभमान था इसके जैसे दशन इन बैठक म होते थे वैसे ह इस बात के भी दशन होते थे क ताई के ूित ौी गु जी के मन म कतनी आ मीयता व पू य भाव था। ताई क अ तम बीमार के समय उ ह लकवा मार गया था। ःवाः य नाजुक था। ौी गु जी को ूवास पर जाना था। उ ह ने ताई से पूछा, “ूवास पर जाऊँ?” उ ह ने मना कया। दसरे दन कुछ अ छा लगने पर उ ह ने जाने क अनुमती द । ूवास म ौी ू

कृ ंणराव मोहर ल पऽ

ारा ताई के ःवाः य के बारे म सूिचत करते रहते थे। ौी

गु जी का ताई को हमेशा यह आ ासन रहता था क “मेरे िनकट न रहने क म तू जाएगी नह ं! जब ताई अ यंत अःवःथ थीं तब ौी गु जी नागपुर म ह

ःथित के। वे

सुबह-शाम ताई के पास बैठते, बोलते, धीरज दलाते थे। ताई क मृ यु के प ात ्

ूित दन सायंकाल का घर के बरामदे का वह संःकारद प बंद हो गया। फर ौी गु जी कायालय म ह ठहरते थे। वह ं िमलनेवाले आते। रा ऽ तक बैठक चलती।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

204


ताई जी के जीवन तक ौी गु जी नागपुर म रह या न रह, ःवयंसेवक का उनके घर आना जाना बना रहता था। माता के

दय म अपने पुऽ या संतान के ूित जो

ममता, ूेम या वा स य का भाव ःवाभा वक

प से होता है , उसका िसंचन ताई सभी

ःवयंसेवक पर िनरं तर कया करती थीं। एक नह ं अनेक माधव घर म रहा करते। ताई सबक पूछताछ करतीं। क तु दभा ु य से यह मातृछऽ द. १२ अगःत १९६२ को ःवग िसधार गया। ताई वयोवृ

थी, थक चुक थीं। फर भी वह एक ूेमछऽ था ौी

गु जी के िलए। इस छऽ क छाया म ह ौी गु जी भारत भर घुमा करते थे।

संघकाय पर पड़नेवाली संकट क गम म यह छऽ उन पर छाया कया करता था। ताई का यह छऽ उ ह शांती ूदान करता था। ू ूवास हे तु मागःथ होने से पूव वे ताई के चरण छकर आिशवाद क कामना कया

करते थे। इस कारण ताई के दे हा त का उ ह बहत ु गहरा आघात पहँु चा। ौी गु जी

के जे

गु बंधु ौी अिभताभ महाराज इस समय नागपुर म ह थे।

माता ौी ताई के दे हावसान के प ात ् ौी गु जी के

भावना का कसी य ा न क

वाला क भांित ूखर

दय म वर

व वैरा य क

प धारण करना अःवाभा वक

नह ं था। हमालय के प वऽ प रसर म जाकर एकांत वास क तीो इ छा उनके मन म फर जाग उठ । कंतु तभी ौी ःवामी अख डानंद क बताई हई ु घटना का ौी अिभताभ महाराज को ःमरण हो आया। ौी गु जी के वरागी मन को परावृ

करने

हे तु उ ह ने कहा, “संघ का काय अभी अपूण है । इस काय क पूित के िलए आप को

कायालय के अपने कमरे म ह जाना पड़े गा। हमालय क गोद म जाने क अपे ा साधना के िलए अपना शेष जीवन इसी कमरे म यतीत करना उपयु

होगा। म ःवयं

कायालय म ह रहता हँू । इस कारण आप भी वहाँ चिलए।” ौी अिभताभ महाराज के

कहने पर ौी गु जी कायालय क ओर चल पड़े ।

ऐसा ूितत होता है क ौी अखंडानंद जी ने ौी अिभताभ महाराज को अपनी मृ यु के पूव ौी गु जी के भ वंयकालीन जीवन के संबंध म सजग रहने क सूचना दे रखी थी। ौी बाबा ने अिभताभ महाराज से कहा था, “यह डॉ. हे डगेवार के साथ काम करे गा ऐसा लगता है । समाज सेवा के काय म वशु क सेवा का कममय जीवन वह अखंड़

भाव से कायरत रहकर जनता जनादन

प से करता रहे गा। एकाध बार उसे हमालय

क ओर जाने क ूबल इ छा होगी। ऐसे अवसर पर तुझे उसक ओर

यान दे ना

होगा।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

205


“ब िकाौम जा कर दे वता मा हमालय का दशन लेने म कोई आप क तु इस

नह ं होगी।

ेऽ म एकांतवास म रहने क य द उसे इ छा हई ु तो उसे परावृ

करने

ज मेदार तुझे िनभानी होगी।”

इसी का ःमरण कर ौी अिभताभ महाराज ने अपने कत य को बखूबी िनभाया। इसी समय कांची कामको ट पीठाधीश ौ े य शंकराचाय ौी परमाचाय जी का शोकसंदेश ौी गु जी को ूा गु जी के वचिलत िच

हआ। इस पऽ म सा ु

वना के साथ िलखे वचार ने ौी

को पुनः ःथर होने तथा संघकाय क ओर लगाने म बहत ु

सहायता क । ौी शंकराचाय जी ने िलखा था,

“आपक अ ःथचममयी माता का दे हावसान हआ। क तु आप क भांित को ट-को ट ु

स पुऽ क न केवल आज क तु अना द-काल से अनंत काल तक ज मदाऽी परम मंगलमयी ऐसी यह अपनी भारतमाता है । आप तो सवःव का समपण कर िनरपे

भाव से भारतमाता क सेवा म रत ह ह । इस कारण आपको मातृ वयोग होना असंभव है ।” ौी गु जी ने हमालय जाने का वचार

याग दया। मन म उभरे वैरा य क तीोतम

भावना का शमन होते ह वे पुनः काय म रम गये। अब उनके जीवन म संघकाय के

अित र

कोई आकषण शेष नह ं था। इस के प ात ् जब कभी अवसर आता, वे

कामको ट पीठ के शंकराचाय के पऽ का बहत ु ह भावभीना वणन कया करते।

१६.३ चीन के आबमण के स दभ म १९६२ का वष भारत के इितहास म बहत ु ह संघषमय रहा। इस वष अ ू बर मास म

चीन ने भारत पर आबमण कया और दे श का वातावरण ह बदल गया। लगभग दस

वष पूव ह ौी गु जी ने इस संभा य चीनी आबमण क चेतावनी द थी। लोग और रा यकताओं को यह क पना ह नह ं थी क चीन भारत पर आबमण करे गा। इस कारण उ ह वह अक पत आक ःमक ूतीत हआ। कनाटक ःथत िशमोगा से १९५१ ु

म ौी गु जी ने िलखा था, “चीन क ूकृ ित वःतारवाद है तथा िनकट भ वंय म ह

उसके भारत पर आबमण करने क संभावना है ।” इस चेतावनी का संदभ था चीन क

ित बत म चल रह सैिनक कायवाह । इन दन ौी गु जी ने अनेक बार चेतावनी के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

206


प म कहा था क भारत ने चीन को ित बत क भूिम भट कर आपरािधक भूल क

है । जो गलती अंमेज ने नह ं क , वह अदरदिशता भारतीय शासन ने क है । वशेष ू प से चीन म हई ु क युिनःट बांित व भारत के पंचमांगी तथा क युिनःट

आबमणका रय से हम सतक रहना चा हए, ऐसा वे हमेशा कहा करते थे।

दनांक १८.५.५६ को ूकािशत ‘पा चज य’ सा ा हक म ौी गु जी ने अपने ‘ित बत

का मास और क युिनःट का मु

काय’ इस शीषक से अं कत उ -बोधक लेख म न

केवल भारत को अ पतु एिशया को भी सतक रहने का इशारा कया था। ौी गु जी क भ वंयवाणी कतनी खर उतर इसका यह एक उदाहरण है । द. २ अूैल १९६० को महारा

के पऽकार से ौी गु जी का जो वातालाप हआ उसका ु

मु य वषय भारत-चीन संघष ह था। साथ ह २३ दस बर १९६२ को द ली के

रामलीला मैदान पर एक आमसभा म भाषण दे ते हए ु ौी गु जी ने कहा, “मुझे खेद है क शासन को बार-बार चेतावनी दे ने पर भी कसी ने इस गंभीर समःया क ओर

यान नह ं दया। लगभग वगत दो म हन से चीन ने भारत पर आबमण कर रखा

है । यह ‘आबमण’ है इस बात को शासन अब ःवीकार करता है । वाःतव म यह

आबमण तो १०-१२ वष पुराना है । मुझ जैसे सामा य मनुंय ने लगभग १० वष पूव चीन के भारत ूवेश तथा भारतीय ूदे श म अपनी ःथित मजबूत बनाने हे तु उसके ारा कये जानेवाले भरसक ूय

का उ लेख कया था। साथ ह अ य कुछ जानकार

लोग ने भी इस संबंध म सचेत कया था। क तु हमारे नेता व बंधु व क भावना

म इतने डू बे हए ु थे क इस समःया क ओर

यान दे ने का वचार तक हमारे मन म

नह ं आया।”

चीन का तु ीकरण करने से वह भारत से खुश रहे गा, इस क पना को मन म संजोए

चीन को द । ित बत पर चीन भारत ने एक के बाद एक-अनेक सहिलयत ू

ारा

बला कार का ूितकार करना तो दरू रहा, वरन ् ित बत को, जो हमार सुर ा के िलए

अ यंत मह वपूण घिन

िमऽरा

था, ‘चीन क भूिम’ कहकर हमने उसके साथ

व ासघात कया। ल ाख म हआ चीनी आबमण एक लंबे अरसे तक गु ु

ह रखा

गया और चीन ने १२००० वगमील का ूदे श अपने अधीन कर िलया और यह बात

ूकाश म आई तब यह कहा गया क वह ूदे श तो बंजर है , अनुपजाऊ है । वहाँ तो घास का एक ितनका तक नह ं उगता। यह बात सवथा तकह न थी। भाई-भाई कहते हए ु जन चीनी नेताओं को हमने गले लगाया, उ ह ने ह हमारा गला काटा। अंततः

नवयुग ूवतक ौी गु जी

207


इस ःव न क दिनया से चीनी आबमण ने शासन को जागृत कर स य का मान ु

कराया। ले कन बदनामी टली नह ं। दे श क संर ण-िस ता क दरवःथा चौराहे पर ु

आ गई। तेजपुर क घटना ने तो शासन क िगर हई ु नीितम ा तथा धीरज के अभाव को ल जाःपद र ित से उजागर कर दया।

जब चीनी सेनाएँ अ णाचल ूदे श म बोम डला पार कर चार ार तथा िमसामार क

ु गया। जलाधीश आ द ओर बढ़ने लगीं तो तेजपुर के पुरे ूशासनतंऽ का मनोबल टट कुछ उ च पदःथ अिधकार जनता को शहर छोड़ने क सलाह दे ःवयं भाग खड़े हए। ु

जेल तथा पागलखाने के दरवाजे खोल दये गये तथा ःटे ट बक के नोट के बंडल जलाये और िस के और िच हर तालाब म फके जाने लगे। असम के त कालीन राजःव मंऽी ौी फक

न अली अहमद ने एन.सी.सी. के जवान के सामने

असहायता ूगट क और बजलीघर को डायनामाइट से उड़ दे ने का आदे श भी दे दया। उसी रात आकाशवाणी पर पं. जवाहरलाल नेह गार िनकले क “मेरा मुखर और ःप

के मुख से वे दभा ु यपूण उ -

ु दय तो असम के लोग के साथ पीछे छटा जा रहा है ।” संदेश

था क भारत ने हर हालत म असम को बचाने क अपनी ज मेदार

से मुह ँ मोड़ िलया है और वहाँ क जनता को शऽु क दया पर खुला छोड़ दया है ।

असम क जनता आज भी पं. नेह

के उस मनहस ु वा य को भूली नह ं है और

शं कत रहती है क आगे भी कभी ऐसी ह तो नह ं दे गी? भारत के िलए मह मौके पर उसका नेत ृ व इतना

ःथती आई तो भारत सरकार उ ह धोखा

दभा ु य और ल जा क बात रह

क ऐसे नाजुक

लीब िनकला।

बिलहार है कानू डे का, प ूसाद दास तथा प जाका त सेनापित नाम के संघ के ःवयंसेवक व उसके कुछ अ य सािथय क

ज ह ने युवक

क एक टोली ग ठत कर

सेना के अिधका रय से संपक कया तथा उनक सहायता से रात दन पहरे दार कर खाली हए ु घर को बां लादे शी घुसपै ठय के हाथ लुटने से बचाया। यह नह ं, तालाब

म फक गई संप

को बटोरने के िलए बैलगा ड़यां ले कर आ रहे अरा ीय त व से

भी धन क र ा करवाई। दसर ओर सवौी पूणनारायण िसंह, डॉ. दास, हरका त ू

दास, व दे व शमा तथा नगरा य

दलाल भ टाचाय आ द लोग ने एक सिमित ु

ग ठत कर यह िन य कया क वे हार नह ं मानगे और समाना तर सरकार ग ठत कर नेत ृ व ूदान करगे।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

208


ौी गु जी ने चीनी आबमण शु

ःवयंसेवक यु

ूय

होते ह जो मागदशन दया, उसके प रूेआय म

म जनता का समथन जुटाने तथा उनका मनोबल

जुट गये। उनके इस सामाियक सहयोग का मह व पं. नेह

ढ़ करने म

को भी ःवीकार करना

पड़ा और उ ह ने सन ् १९६३ म गणतंऽ दवस के जनसंचलन म कुछ कांमेिसय क आप य के बाद भी संघ के ःवयंसेवक को भाग लेने हे तु िनम ऽण िभजवाया।

कहना न होगा क संघ के तीन हजार गणवेशधार ःवयंसेवक का घोष क ताल पर कदम िमला कर चलना उस दन के कायबम का एक ूमुख आकषण रहा। इस आबमण के बाद पं. नेह

ने कहा, “हमारे

ारा ह िनिमत ःव न-संसार म से

चीन ने हम वाःत वक जगत ् म ला खड़ा कया।” इस ‘ःव न-संसार’ का नाम

‘पंचशील’ था। हम सबको पराजय का यह ल जाःपद इितहास याद है । इस चीनी

आबमण ने द ली के शासन को दहला दया। घबराहट पैदा कर द । क तु थोड़े समय के बाद चीन

ारा एकतरफा यु बंद घो षत कर द गई।

इस कालखं ड म चीनी आबमण, भारत-सरकार क आ मघाती नीित तथा रा ीय

साम य को बढ़ाने क आवँयकता- यह ूायः ौी गु जी के ू येक भाषण का वषय

रहा करता था। केवल आबमण का ूितकार ह नह ं, अ पतु हमालय क संर क ूाकृ ितक द वार सुर

त रखने हे तु हम ित बत को मु

कराना चा हए ऐसा ूितपादन

भी ौी गु जी कया करते थे। सभी भाषण म ौी गु जी ने चीन क सा यवाद राज-स ा,

स-चीन स ब ध क

अःप ता, भारतीय क युिनःट क दगाबाज़ी, चीन और पाक से िमऽता का खोखलापन, नेपाल से िनमल िमऽ व के संबंध बनाए रखने क आवँयकता, अंतरा ीय राजनीित म ःवसाम य के बलबूते पर गुटबंद से अिल होनेवाले लाभ आ द अनेक वषय पर अपने वचार य

तक कहा क य द रा बागडोर उपयु

यु ूय

रहने से ूा

कये। ौी गु जी ने यहां

के नेताओं म साहस का अभाव हो तो वे स ा

यागकर उसक

ाऽतेज रखनेवाल के हाथ स प द। ट का- ट पणी करते हए ु भी उ ह ने लोग से अनुरोध कया क वे शासन के म सहायता कर। शासन को सहकाय दे ने क ूाथना से ह वे भाषण का

अ त कया करते थे। इसी आशय का एक ूितवेदन ौी गु जी ने दनांक २९.१०.१९६२ को ूकाशनाथ ूःतुत कया था।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

209


शासन क गलितय पर परदा न डालते हए ु उन पर कठोर आघात करना, शासन को

प र ःथित क वाःत वकता तथा उसके कत य से अवगत कराना और अंत म ू येक भारतीय का आवाहन करना क इस संकट के समय शासन क सहायता करना उसका रा ीय कत य है , यह ौी गु जी क नीित थी। ौी गु जी ने हमेशा रा दे शभ

क िन यिस

क िनिमित पर अिधक जोर दया।

क भावना जागृत कर भारत माता के उ

उ ह सवौे

वल गौरव के संपादन का

ूतीत होता था। ौी गु जी सदै व कहा करते थे क

उ ेजना राषश को हमेशा के िलये सुर

येय

णक ता कािलक

त नह ं रख सकती। ‘नेह

के हाथ मजबूत

करो’ ऐसी घोषणा ूायः क युिनःट के खेमे से हआ करती थी। इस घोषणा क कड़ ु आलोचना करते हए ु एक बार ौी गु जी ने कहा, “पहले नेह

जी का

दय बलवान ्

बनाइये, उनके हाथ म आप ह बल आ जाएगा।” केवल शांती सैिनक भेजने या

एकतरफा अ छा बताव करने से चीनी आबमण का ू

हल हो सकेगा, इस क पना

पर उनका कतई व ास नह ं था। इस एकतरफा शांित तथा सौज य क अनावँयक नीित को नकारते हए ु ौी गु जी ने चीन का इितहास, ःवभाव, अस हंणुता और

बुरता का बहत ु ह मािमक व ेषण कया। १९६२ म चीन

ु आबमण जार थे। जस ारा यु वराम कये जाने के बाद भी छपे

भारतीय ूदे श को चीन ने अपने क जे म िलया था वह चीन के अिधकार म ह रहा। आज भी वह भूिम पुनः ूा

करने के बारे म के िय शासन द ु वधा म है । भारत-

चीन के बीच म मैऽीपूण संबंध ूःथा पत करने के ूय को चीिनय के चंगल ु से मु

भी कये जा रहे ह। ित बत

कराने क भाषा तो मौन सी हो गयी है ।

दलाई लामा को भारत ने राजनीितक आौय तो दया क तु उ ह भारत म रहकर ित बत को मु

कराने के िलये कोई भी हलचल करने क आजाद नह ं ह । चीन को

पराःत करने, उसके कारनामे असफल कराने क

से भारत कुछ नह ं कर पाया।

सीमाओं का संकुचन होता दे ख मुह ँ क खाने के अलावा अपना शासन कुछ भी न कर

सका। इसके वपर त चीन ने आ वक श

को धारण करनेवाले रा

ःथान तो पाया ह , अ पतु

एक और महास ा के

स के अित र

के सूची म प म सार दिनया ु

चीन क ओर दे खने लगी। इस त य को पहचान कर ौी गु जी ने अिधक ूखरता से अपने वचार य

कये। रा ीय सुर ा, स मान तथा पौ षसंप न रा

जीवन के बारे

म कसी भी ूकार के ह नभाव (Inferiority complex) क भाषा ौी गु जी के िलए

नवयुग ूवतक ौी गु जी

210


असहनीय थी। रा

म वजय का आ म व ास जगाने हे तु वे ओजःवी आहवान कया

करते। ौी गु जी ने जनश

को जागृत करने का माग शासन को सुझाया था।

इस वनाशकार पृ भूिम पर एक ह बात ूशंसनीय रह । अपनी सुर ा यवःथा म िन हत कमजो रयाँ शासन तथा कांमेसी नेताओं के मेनन को इःतीफा दे ना पड़ा। भ वंय म सेना क यु

यान म आयीं और फलतः कृ ंण स जा क ओर वशेष प से

यान दया गया। इस िस ता के फलःव प १९६५ म पा कःतानी आबमण का

मुह ँ तोड़ उ र दया जा सका। भारत सरकार क नीित रा ीय ःवयंसेवक संघ के बारे म कतनी भी नकारा मक और अपने राजनीितक ःवाथ के िलए यापक रा हत क घोर उपे ा करनेवाली

रह हो, सरकार से सहयोग कर दे श के क याण-साधन का ह ूय

य न

ौी गु जी सदा

करते रहे । नेपाल और भारत के संबंध सामंजःय और सहयोग के बने रहना ौी गु जी को अ य त आवँयक लगता था ूित प है

य क सांःकृ ितक

से नेपाल भारत का ह

य क उसने आमह-पूवक अपना ह द ु व टकाए रखा है ।

नेपाल से भाव बंधन

ढ़ बनाने हे तु

संयोग से ौी गु जी २६ जनवर १९६३ को िशवराऽी के पावन दवस पर भगवान पशुपितनाथ के दशन के िलए काठमांडु गए हए ु थे। ऐसा िन

त हआ क दशन आ द ु

स प न होने पर ौी गु जी नेपाल नरे श महाराजािधराज महे ि वबमशाह से भट कर। तदनुसार भट का समय िन

त कया गया। उसके अनुसार ौी गु जी ने

महाराजा से भट क । इस भट के समय नेपाल के त कालीन ूधानमंऽी ौी तुलसी िग र भी उप ःथत थे। डॉ. तुलसी िग र के कारण ह यह भट िन

त करने म संघ

के कायकताओं को कोई क ठनाई नह ं हई। डॉ टर क िश ा के िलए जब ौी तुलसी ु

िग र बहार के दरभंगा म और बाद म कलक ा म िनवास करते थे तब संघ के संपक म आये थे। नेपाल नरे श को धािमक और सांःकृ ितक काय के िलए भारत म कह ं भी जाने म रोक-टोक नह ं थी इसिलये ौी गु जी क इ छा थी क भारत म ह द ू संगठन का काय करनेवाले रा ीय ःवयंसेवक संघ से उनका घिन

प रचय हो, वे संघ

का काय िनकट से दे ख। यह भट अ यंत सौहादपूण वातावरण म लगभग घंटा भर चली। उस समय नेपाल और भारत के संबंध म कुछ तनाव िनमाण हआ था। नेपाल और चीन क सीमा ु

परःपर लगी हई ु है । १९६२ के चीनी आबमण और भारत क करार हार क छाया नवयुग ूवतक ौी गु जी

211


भारत-नेपाल संबंध पर मँडरा रह थी। उसके कारण नेपाल का चीन क ओर अिधक

झुकाव हो गया था। नेपाल म उपिव िनमाण कर उपिवी लोग भारत म आौय लेते ह ऐसी नेपाल क िशकायत थी। ऐसा लगता था क नेपाल नरे श के मन म यह भी शंका ूवेश कर चुक थी क नेह जी के मन म ह द ू रा य कहलानेवाले नेपाल के

ु वषय म कटता िनमाण हई ु है । ौी गु जी क ःवाभा वक इ छा थी क सांःकृ ितक से एक होने के कारण भारत और नेपाल परःपर अिधक िनकट आय और वह

उ ह ने नेपाल नरे श के िनकट ूकट भी क । उस पर उनक अनुकूल ूित बया

दखायी द । ौी गु जी ने नेपाल नरे श क इस अनुकूल मनोभूिमका क सूचना द ली के ौे

अिधका रय तक पहँु चाने का भी आशंवासन दया। भारत सरकार के गृहमंऽी

ौी लालबहादरु शा ी द. १ माच १९६३ को काठमांडु जानेवाले थे। यह कायबम प हले

ह घो षत हो चुका था। उनसे खुले मन से वातालाप करने और िमऽता के संबंध

करने क आमहपूवक वनती ौी गु जी ने नेपाल नरे श से क । अ य त ूस न

वातावरण म यह भट संप न हई। तब ौी गु जी ने ऐसी इ छा य ु

ःवयंसेवक संघ का काय नेपाल नरे श ःवयं ू य

क रा ीय

दे खने के िलए संघ के

पूविनयो जत एकाध कायबम म उप ःथत रह। यह वनती महाराजा को मा य हई। ु काठमांडु से काशी लौटते ह ौी गु जी ने ौी लालबहादरु शा ी और ूधानमंऽी पं. नेह

को पऽ िलखकर नेपाल नरे श से हई ु भट का वृ

और अपना िनंकष उ ह

सूिचत कया। ौी लालबहादरु को िलखे पऽ म ौी गु जी ने कहा था, “अपनी ओर से

होनेवाले यवहार म कुछ सुधार कर, उिचत स मान दे कर सौहादपूण संबंध ूःथा पत करने और नेपाल क आिथक, शै

क आ द आवँयकताएँ

यान म लेकर उिचत

नीितय का अवलंब करने से नेपाल शीय ह एक समथ, अिभ न दय िमऽ, सीमा संर क बंधु के नाते खड़ा हो सकता है । भारत और नेपाल के हत परःपर संबंिधत ह, इसिलये अपनी सुर ा क

से भी दोन दे श के संबंध म सुधार होना और

िनंकपट िमऽता ूःथा पत होना आवँयक है ।” ौी गु जी ने यह भी सूिचत कया क, “अब तक भारतीय अिधका रय के

खे, आ मीयताशू य आचरण के कारण जो

ु कटता िनमाण हई ु है उसे दरू कया जाय और तदथ आवँयक हो तो उन अिधका रय के ःथान पर, ज ह ने जानबूझकर या असावधानी से ऐसा आचरण कया है , अिधक

ःनेहभावपूण य

य क िनयु

क जाय। मुझे व ास है क इस ूकार संपूण

ू ःनेह और परःपरपूरकता के संबंध िनमाण वचार कर नेपाल के भारत के साथ-अटट

करने म आप सफल ह गे।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

212


ूधानमंऽी पं. नेह

को िलखे गये पऽ म भी उपयु

क गयी थीं। इसके अित र

भावनाएँ ौी गु जी

ारा य

चीन, क युिनःट वःतारवाद और नेपाल का वशेष

उ लेख इस पऽ म है । ौी गु जी ने िलखा था, “मुझे लगता है क नेपाल सरकार को चीन के ूित बहत ु आकषण नह ं है । अंतरा ीय साॆा यवाद सा यवाद के ूित तो

उसे ब कुल ूेम नह ं है । इसिलये चीनी वःतारवाद के वरोध म एक ूबल श नाते नेपाल िस

के

हो सकता है , िसफ हम भारतवािसय को नेपाल क अनेक ूकार से

सहायता करनी होगी। अपने उ े ँय और नीितय के संबंध म नेपाल के मन म

व ास िनमाण करना आवँयक है ।” इस पऽ का त काल द. १ माच को पं. नेह क ओर से उ र ूा

हआ और उसम ौी गु जी के अिधकांश वचार से सहमित ु

ूकट क गयी थी। पं. नेह पर तु रा हत क

जी

और ौी गु जी के बीच ता वक मतभेद अवँय थे,

से एकाध रा ीय समःया पर परःपर आदर रखकर वचार का

आदान-ूदान करने क मन क उदारता भी थी। नेपाल वषयक पऽ यवहार से यह दखाई दे ता है । आगे १९६५ के उ राध म ौी अटल बहार वाजपेयी लालबहादरु शा ी जी से िमले थे।

उस समय ौी गु जी के नेपाल वषयक दौरे क खुलकर ूशंसा शा ी जी ने क थी।

उ ह ने कहा था, “अनुकूल पृ भूिम तैयार कर नेपाल-भारत मैऽी

ढ़ करने का मेरा

तीन चौथाई काम ौी गु जी प हले ह कर चुके थे।” परं तु नेपाल नरे श क ौी गु जी से हई ु भट का वषय यह ं पर समा

नह ं होता।

उसका और एक पहलू है और वह भारत सरकार को शोभा दे नेवाला नह ं है । नेपाल नरे श ने ौी गु जी के साथ हई ु बात-िचत म रा ीय ःवयंसेवक संघ के एकाध

कायबम म उप ःथत रहने क अनुकूलता ूकट क थी। इसिलए महाराजािधराज क सु वधानुसार उ ह संघ के कायबम के िलए आमं ऽत करने का ूय

संघ क ओर से

ूारं भ हो चुका था। १९६३ के अ ु बर मास म वदे श का ूवास पूरा कर नेपाल नरे श

मु बई पहँु चने वाले थे। उस समय मु बई म उनका सावजिनक स कार करने क

योजना संघ-कायकताओं ने बनायी। पर तु वह समय नरे श को सु वधाजनक नह ं था। इसिलये वह वचार साकार नह ं हो सका। बाद म १९६४ के मकर संबमण उ सव के ूमुख अितिथ के नाते महाराज उप ःथत रह ऐसी वनती उनसे क गयी। परं तु उसी समय पं. नेह जी क नेपाल याऽा िन

त होने से महाराज को काठमांडु म रहना

आवँयक हो गया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

213


अ त म १९६५ क १४ जनवर को नागपुर के संघ के मकर संबमणो सव के िलए

महाराज पधार ऐसी वनती क गयी और महाराज ने वह ःवीकार कर ली। दसंबर १९६४ के ूारं भ म यह ःवीकृ ित ूा

होते ह ौी गु जी द ली गये। वहाँ रा पित

और ूधानमंऽी से भट कर संपूण कायबम के वषय म चचा करने क उनक इ छा थी। रा पित के साथ द.९ दस बर को भट हई ु , पर तु ूधानमंऽी से भट नह ं हई। ु

बाद म नेपाल नरे श ने अपने कायबम का पूरा यौरा नागपुर को सूिचत कया। तब

ौी गु जी फर से द ली गये। पर तु इस बार भी ूधानमंऽी जी से भट नह ं हो

सक । इसिलये ौी गु जी ने ूधानमंऽी के नाम पऽ िलखकर नेपाल नरे श के कायबम क स पूण जानकार उ ह द । इस पऽ ूाि

क सूचना भी िमली। इसी बीच महारा

के मु यमंऽी ौी वसंतराव नाईक से भट कर उ ह भी पूरा कायबम ौी गु जी ने बतलाया और पूछा क सरकार

या सहयोग दे गी? इस पर मु यमंऽी क ओर से

आ ासन दया गया क भारत सरकार क ओर से ूा

होनेवाली सूचनाओं के

अनुसार सब यवःथा क जाएगी। ौी गु जी २५ दसंबर से ०५ जनवर तक बहार के ूवास पर थे। उसी समय कुछ तथाकिथत ूगितवाद या वामपंथी वचार के ह द ु वरोधी समाचार पऽ म नेपाल नरे श क संक पत याऽा के वषय म अ यंत

ूितकूल समाचार ूकािशत हए। इसके अित र ु

ूधानमंऽी का भी एक व

ूकािशत हआ जसम कहा गया क नेपाल नरे श क याऽा के वषय म उ ह कुछ भी ु मालुम नह ं है । दे श के ूधानमंऽी क ओर से कतनी अस य भाषा!

महाराजा महे ि

ारा संघ का िनमंऽण ःवीकार कया जाना और संघ के कायबम के

िलये भारत म पधारना कांमेसी सरकार को पसंद नह ं आया, यह ःप

प से दखाई

दे ने लगा। इधर ौी गु जी घो षत कर चुके थे क नेपाल नरे श मकर संबमण के

कायबम के िलये नागपुर म आनेवाले ह और उससे नागपुर म नवचैत य का संचार हो चुका था। ःवागत क कई ूकार से तैयार शु

हो चुक थीं। इस संपूण उ साह

पर पानी फर गया। नेपाल नरे श क इस भारत याऽा के ूित भारत सरकार का ूितकूल

ख रहते हए ु भी उनका पधारना अंतरा ीय नीित के व

उ ह ने ःवाभा वक क

प से आने म अपनी असमथता य

होता, अतः

क । अ तम ूय

करने

से ौी गु जी ने रा पित डॉ. राधाकृ ंणन ् को त काल एक पऽ िलखा। इस

पऽ म कहा गया था क, “नेपाल के साथ अपने संबंध अिधक अ छे आधार पर

कायम करने क आवँयकता जानकर हम लोग यह जो काय कर रहे ह, उसके संबंध म आपको व ास होगा ह । अपनी अ यंत मह व क उ र सीमा पर नेपाल क ःथित दे खते हए ु ूाचीन काल से चले आ रहे इन संबंध को अिधक

ढ़ करना

आवँयक है ।” पर तु इस पऽ का कुछ भी उपयोग नह ं हआ। भारत सरकार का ु नवयुग ूवतक ौी गु जी

214


वरोध िमटा नह ं। केवल नागपुरवासी ह नह ं, अ पतु अपना स पूण भारतदे श एक

ऐितहािसक अवसर से वंिचत हआ। अपनी असमथता को सूिचत करनेवाला जो पऽ ु वशेष दत ू से नेपाल नरे श

ारा नागपुर भेजा गया, उस पऽ के साथ ह उ ह ने अपना

उ सव का संक पत भाषण भी िल खत

प म भेजा था।

१६.४ महाराजा का ूेरक स दे श महाराज महे ि ने ौी गु जी के नाम भेजे गये अपने पऽ म अ य त खेद ूगट करते

हए ु सूचना द

क नागपुर के प वऽ मकर संबमण के कायबम म वे स मिलत नह ं

मानिसक क

को समझ सकते ह जो एक ह द ू होने के नाते उप ःथत न हो सकने

हो पा रहे है । आगे अ यंत वेदना के साथ िलखा क “आप मेर क ठनाइय व

से मुझे है ।”

भारत के ह दओं को एक संदेश दे ते हए ु ु ( जो उ सव के अवसर पर पढ़ा गया)

महाराजा ने कहा, “नेपाल सदा से ह भारत के हं दओं के िलए अख ड ूेरणा का ु

रहा है । यह नह ं, नेपाल को इस बात पर गव है क हं दओं पर जब-जब आप ु

ोत आई

तब-तब उसने उ ह अपनी यहाँ शरण द है । नानासाहे ब पेशवा सर खे भारत के पहले

ःवातं यसमर के सेनािनय को नेपाल म आौय िमला है ।....नेपाल ने सदा भारत के

ूहर क भूिमका अदा क है । दोन क संःकृ ित ूायः एक ह है और दोन समान

जीवनादश से ह ूेरणा पाते ह।.....यह हम सब हं दओं के िलए आनंद का वषय है । ु

यह समःत हं द ु व

के िलए गौरवाःपद बात है ।”

“ हं द ु धम दिनया का ूाचीनतम धम है । सृ ु

अपनी ौे तम

क उ प

ू बया के संबंध म उसक

है । उसम वे सारे आवँयक सूऽ व मान ह जो सबको शांित,

क याण और सुख ूा

करा दे ने क

मता रखते ह, साथ ह इस भूपटल पर से

संघष के सारे िच ह को िमटाने क पाऽता भी उनम है । ह द ु व हम सबके िलए, जो

ूाचीन, ौे

और गौरवयु

हं द ु धम के अनुयायी ह, गव एवं गौरव का वषय है ।”

“दभा ु यवशात ् मानवता आज वनाश क ओर भाग रह है और आपसी व े श और

संघष म रत है । हं द ु धम के उ चतम िस ा त ह मनुंय को इस भयानक ःथित से उबार सकते ह।..... इसके िलए यह आवँयक है क सब जगह के हं द ु संग ठत ह

नवयुग ूवतक ौी गु जी

215


और अ वभा य श

के

प म खड़े ह । यह नह ं कहा जा सकता क संघ इस

आंदोलन म अपनी उपयोगी भूिमका अदा नह ं कर रहा है ।” “हम इस बात से ःवाभा वक

प से ूस नता है क यह स मेलन इसी स य के

आधार पर भारत के िनवािसय को सुसग ं ठत एवं अनुशािसत

प दे ने हे तु ूय रत

है ।...... दिनया के एकमाऽ ःवतंऽ और सावभौम हं द ु रा य नेपाल के हम नेपाली भी, ु

जो एक श

से दिनया के सारे हं दओं का ूितिनिध व करते ह, सभी गितशील हं द ु ु ु

ु य के साथ सहयोग करने के इ छक ह। हम भगवान ् पशुपितनाथ और भगवती

ाने र से ूाथना करते ह क इस उिचत काय के िलए हम शुभाशीवाद दे एवं आदश हं द ु समाज एवं मानव जीवन को वाःत वकता म प र णत करे ।”

ौी गु जी के भाषण म भी वःतु ःथित का खुलासा कया गया था। संघ के इस उ सव म नेपाल नरे श पधारे होते तो भारत-नेपाल सांःकृ ितक संबंध अिधक होते। पर तु यह वःतुिन वचार स ा ढ़ प

ढ़ हए ु

और रा हत का वचार छोड़कर केवल दलीय ःवाथ का

ने कया। इससे उसक अदरू

ह ूकट हई। ौी गु जी ने एक ु

वःतृत पऽक ूकािशत कर स पूण घटनाबम क जानकार ःवदे श बांधव को द ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

216


१६.५ सरकार िनणय क पऽ म ूित बया भारत सरकार

ारा महाराजा नेपाल को रा ीय ःवयंसेवक संघ के कायबम म

स मिलत न होने के िलए बा य कये जाने क कृ ित पर दे श के कई ूमुख पऽ ने तीखी ूित बया य

करते हए ु सरकार क कड़े श द म भ सना क ।

द ली के दै िनक ‘ ह दःतान ’ ने िलखा “ ह द ु व के ूित उपे ापूण शुंक व घोर ु

उदासीनता का

ख अपना कर भी सरकार

या उस नेपाल से िमऽता क आशा करती

है जहाँ के अिधकांश िनवासी क टर ौ ालु ह द ू ह? यह तो जड़ काटकर पेड़ से फूल

क आशा करने जैसा है ।”

द ली से ह ूकािशत ‘वीर अजुन ’ ने िलखा “वाःतव म यह बहत ु ह आ य क

बात है क हमार सरकार के ूव ा इतनी बेशम से अपमानजनक झूठ म िल (पहले सावजिनक र ित से महाराजा के कायबम म जाने क ःवीकारो उससे अःवीकार)

ह।

और बाद म

या भारत सरकार यह समझ सकेगी क हमार सेना म स मिलक

गोरखा ब धुओं के मन को उनके महाराजा के साथ इस यवहार से कतना ध का लगेगा!” पुणे के ‘केसर ’ ने िलखा “जब मु बी म पोप आते ह तब तो रा पित से लेकर नीचे तक का पूरा सरकार तंऽ दौड़ कर उनका ःवागत करता है क तु वह सरकार महाराजा नेपाल के नागपुर जाने पर रोक लगाती है । से कसी कारण से बदला लेने पर तुली है ? ” ये अनपे

या हमार सरकार ह द ू समाज

त घटनाएँ कुछ वःतार के साथ इसिलए यहाँ द गई ह जससे यह

ात

हो सके क कांमेस का नेत ृ व कतनी गहराई से ह द ु व वरोधी वशेषकर संघ

ु ू के भाव से मिसत था। यहाँ तक क सावजिनक झूठ का वरोधी राजनीितक छआछत

सहारा लेकर रा

के यापक हत को

ित पहँु चाने म भी वह नह ं हच कचाया।

१६.६ आबामक भूिमका हो १९६५ म जब भारत-पाक यु

िछड़ा तब ौी लालबहादरु शा ी भारत के ूधानमंऽी थे।

कँमीर के छ ब नामक ूदे श म घुसकर पा कःतान ने यु

ूारं भ कया था। इस

नवयुग ूवतक ौी गु जी

217


समय खुले दल से सबका सहकाय ूा

करने क भूिमका ौी शा ी जी ने अपनाई

थी। ौी गु जी को, कसी भी राजनीितक दल से संबंिधत न होते हए ु भी, सवप ीय

मंऽणा सिमित म स मिलत कया गया।

इस बैठक का आयोजन द ली म कया गया। ौी गु जी ूवास के िनिम

महारा

के

सांगली नगर म थे। शासन क सुचनानुसार उनसे संबंध ूःथा पत कर ूधानमंऽी का संदेश उ ह दया गया। ौी गु जी तुर त द ली पहँु चे। इस बैठक म ौी गु जी ने कौन सी भूिमका िनभायी, इसका सावजिनक ूकट करण उ ह ने बैठक समा

प ात ८ माच १९७० को विभ न

होने के

ेऽ म काम करनेवाले कायकताओं का उ -बोधन

करते समय पहली बार कया। ौी गु जी ने कहा, “इस बैठक म एक स जन ने यु

का हे तु ःप

करने का अनुरोध

कया- (लेट अस डफाईन अवर वार एमस ्)। एक नेता तो बार-बार ‘युवर आम ’

(आपक सेना) श द का ूयोग कर रहे थे। मने हर बार उ ह रोककर सुझाया ‘अवर आम ’ - (अपनी सेना) क हए। क तु जब तीसर बार उ ह ने वह बात दहराई तब ु

मने उनसे कहा, “आप यह

या बोल रहे ह?” तब उ ह अपनी गलती का अनुभव हआ ु

और उ ह ने ‘अवर आम ’ कहकर अपनी गलती को सुधारा।”

“इस बैठक म मने कहा क कसी भी क मत पर हम यह यु

जीतना होगा। इस

वजय के िलये जो भी प रौम करने पड़गे, हम करने ह गे। यह ू

का नह ं, समूचे दे श का है । इस कारण दलगत

कसी एक दल

कोण को कोई न उठाए। ‘युवर

आम ’ जैसा श द ूयोग करने का अथ अपने दे श क र ा करनेवाली सेना को ‘ वदे श क सेना’ मानने के समान होगा। हम दे श क र ा के िलये शऽु से यु बात ःप

करना है , यह

होते हए ु भी ‘लेट अस डफाईन अवर वार एमस ्’, ऐसा कहना आ यजनक

है । जो दसर पर आबमण करते ह उ ह अपने एमस ्, को ‘ डफाईन’ करना चा हये। ू हम यु

का हे तु बताने का यहाँ कोई ूयोजन नह ं है । हमारा ‘एम’ (लआय) िन

है । वह है यु और वजय ूा उ साहपूण ूय

म अपने स मान क र ा कर आबामक को करारा सबक िसखाना करना। ‘वार एमस ्’ को ‘ डफाईन’ करने क भाषा बोलना तो यु

के

म बाधा उ प न करना ह होगा।”

“मुझे तो ऐसा ूतीत हो रहा था क बैठक म उप ःथत लोग मान िभ न दे श के, रा

के तथा अलग-अलग हतसंबंध के लोग ह और वे सभी एक दजे ू के मानो

नवयुग ूवतक ौी गु जी

218


वरोधी बनकर बैठे ह। मुझे ऐसा लगा क उनम मान कोई समान सूऽ ह नह ं। इस

िचऽ का अवलोकन करने के प ात ् ऐसा कहना पड़े गा क संसार के विभ न दे श के लोग राजनीितक

ेऽ म काय करते समय जन सामंजःयपूण त व का ःवयं िस

मानकर चलते ह। वे सवमा य बात भी हमारे दे श म अनुकरणीय नह ं मानी जातीं। ऐसी प र ःथित म संघ का काय कतना मह वपूण है , यह ःप

करने क कोई

आवँयकता नह ं है ।” इसी बैठक म ौी गु जी ने एक और मह वपूण सुझाव दया था और वह यह था क ज मू-कँमीर व क छ क सीमा पर पा कःतान के बढ़ते चरण को रोकने के िलए भारतीय सेना को लाहोर पर आबमण करना चा हए। यह धारणा भारतीय सेनानायक क भी थी। यु

ूा

के समय संघ के ःवयंसेवक तथा जनता का सहयोग सरकार को

हो, सरकार और सीमा पर रहनेवाले बंधुओं का मनोबल कस ूकार टका रहे

आ द क िचंता ौी गु जी ने क । संघ के ःवयंसेवक ने सेना को जै सहयोग दया और जनता ने सेना को जो स बय सहायता ूदान क , उसे दे ख कर ौी गु जी बहत ु

ह ूस न थे। दँमन के ूदे श म घुसकर उस पर मात करने क यु नीित उ ह ने ु

सुझाई थी। सेना क लगातार हो रह गौरवशाली वजय के कारण दे शभर म दे शभ क लहर उमड़ आई थी। अमे रका और ॄटे न

ारा पा कःतान को जो यु

साममी द

गयी थी उसे भारतीय सेना ने तहस-नहस कर डाला था। १९६२ म चीन के साथ हए ु यु

म भारत क सेना को कलं कत और अपमािनत होना

पड़ा था, उस कलंक को इस वजय पव ने साफ धो डाला और अपने पराबम का ऐसा डं का बजाया क पा कःतान के पा ा य सहायक दे श भ च के रह गये। इस कारण ौी गु जी इतने ूस न थे क उनक यह ूस नता उन दन

दये गये उनके हर भाषण

म झलकती थी। ू ’ नह ं मानते थे। फलतः सौभा यवशात ् ूधानमंऽी ौी लालबहादरु शा ी संघ को ‘अछत संघ, सेना के जवान क

उ साह और

पछाड़ स भालने म मह वपूण योगदान दे सका, जनता म

याग भाव जगा सका। य प यह स य ःथित थी फर भी प

सी सरकार के दबाव म आकर द ली के शासक ने भारतीय सेना क

मी और

वजयशाली

ूगित बीच म ह रोक द । शासन के इस अू यािशत िनणय के कारण ौी गु जी दःखी हए। भारत के ु ु

े ष पर पलनेवाले पा कःतान को सबक िसखाने और कमर तोड़

दे ने का सुनहरा मौका खो दे ना बहत ु भार भूल है ऐसा ःप

ूितपादन ौी गु जी ने

नवयुग ूवतक ौी गु जी

219


कया। जब यु - वराम क घोषणा क गई तब भी उ ह ने कहा क यह तो पा कःतान को श

से पुनः तैयार होने के िलए दया गया अवसर है , म यांतर है ।

यु - वराम क पैरवी करते हए ु द ली के शासन ने कहा क भारत का उ े ँय तो केवल पा कःतान क यु

मता (वॉर पोटे शयल) न

करने का था, न क

पा कःतान क भूिम हिथयाने का। भारत के शासन क ऐसी अिभलाषा नह ं है । इस व

य पर ौी गु जी ने अ यंत तीखी ट पणी क । उ ह ने कहा, “केवल यु

मता न

करने क नीित-िनधा रत करते समय मनुंय ःवभाव का एक मौिलक

पहलू नजरअंदाज कया गया। इस ओर

यान नह ं दया क कोई मनुंय हं सक या

आबामक इसिलए नह ं बनता क उसके पास श ा है क उसके मन म िन हत द ु -बूर ूवृ जब तक यह बूर ूवृ

क िस ता है , क तु स य यह

उसे इस दशा म ूवृ

करती है । इसीिलए

व मान है तब तक मनुंय बार-बार श

संमह करता रहे गा

और दसर का अ हत सोचता रहे गा। संसार के सभी आबामक रा ु

अ ययन करने पर यह स य उजागर होता है । इस द ु

यह द ु

ूवृ

कोई जड़ वःतु नह ं जसे पकड़कर न

ूवृ

के इितहास का

का वनाश कैसे होगा?

कया जा सके। द ु

ूवृ

का

आ वंकार मनुंय के या मनुंय समूह के मा यम से ह हआ करता है । इसिलए य द ु

हम इस द ु ता का वनाश करना हो तो इस ूवृ मनुंय समूह को ह न

करना आवँयक है ।”

साथ ह ौी गु जी ने इस बात क ओर भी

का आधार-अथात ् द ु

ूवृ

के

यान आक षत कया क पा कःतान का

यु

साम य इं लड और अमे रका पर िनभर है और इन रा

करना तो भारत क

का ‘वार पोटिशअल’

मता के बाहर क बात है । वदे शी भूिम क अिभलाषा

भारत को नह ं है - इस वधान का िनषेध करते हए ु ौी गु जी ने कहा क जस भूिम

को आज पा कःतान कहा जाता है , वह अठारह वष पूव भारत का एक अिभ न अंग थी। कँमीर के एक ितहाई भूभाग पर पा कःतान

ारा बलात ् क जा कया गया था।

इस कारण पा कःतान को पराःत करना याने अपनी भूमी फर से वापस लेना ह है । हम जब संपूण पा कःतान मु

कर लगे तभी कहा जा सकेगा क ःवतंऽता संमाम

वाःत वक अथ म पूण हआ। उ ह ने ःप ु अ य लोग

या कहगे? व

मत

प से कहा क इस संबंध म ‘संसार के

या होगा?’ इस बात का हौ वा बनाने म कोई

अरे थ नह ं है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

220


“य द ऐसा नह ं हो पाता हो तो कम से कम भारत क सेना पा कःतान म जहां तक घुसी थी, वह ं पर यु

जो

वराम रे खा िन

त क जाय, और संयु

रा

संघ ने १९४९ म

याय कँमीर पर लागू कया था, वह भारत को भी लागू करने दे ।” ऐसा

ूितपादन ौी गु जी ने कया। भारत सरकार ने इनम से एक भी सलाह नह ं मानी। प रणामतः ौी लालबहादरु शा ी के िलए वदे शी दबाव को सहन करना अिनवाय सा हो गया। ौी गु जी का सुझाव था क शा ी जी को समझौता वाता के िलए

ताशक द जाने क आवँयकता नह ं है । फर भी वे गये और वहां

सी दबाव के तहत

संिधपऽ बनाया गया। तथाकिथत ‘आझाद कँमीर’ से भारतीय सेना को वापस लेने के ू

पर भी वे अ डग नह ं रह सके।

दभा भारत ने ःवदे शी ु यवश ताशकंद म ह शा ी जी क रहःयमय मृ यु हई। ु

ःवतंऽ ूितभा और जीवन का ःवािभमानयु

भारतीय ताना बाना रखनेवाला एक

दय,

महान ् नेता खो दया। रणभूिम म महान ् पराबमी सैिनक ने अपना बिलदान दे कर जो पाया-कमाया, अ जत कया उसे समझौता वाता क मेज पर म टयामेट कर दया

गया। उस इितहास का व ेषण करने का यहाँ कोई ूयोजन नह ं है । ले कन जो हआ ु

उससे ौी गु जी अ यािधक दःखी हए। ु ु

पा कःतानी आबमण के कालखंड म स पूण दे श एक वशालकाय सामु हक य

ववाले वरा

रा पु ष के

प म खड़ा रहा, यह बात असं द ध

प से आनंद

ूदान करनेवाली थी। क तु ौी गु जी के मन म इस ता कािलक एकता के ःथायी

प से टके रहने के बारे म संदेह था। उ ह ने पूछा, “ या यह िचऽ भ वंय म इसी

तरह बना रहे गा? अपने समाज को खोकला बनानेवाली वलगता क ूवृ अवगुण सदा के िलए न ने यह ू

और

हो जाएंगे ऐसा हम व ास के साथ कह पाएँगे?” ौी गु जी

इसिलये छे ड़ा था क इसी समय संदेह पैदा करनेवाली कुछ घटनाएँ भारत

म हो रह थीं। मिास म हो रहा ह द - वरोधी आंदोलन, पंजाब का आपसी संघष आ द कुछ घटनाओं के संदभ म ौी गु जी ने कहा, “संकट के दरू होते ह

तथा िन ंबयता क कोख म जा बैठने क हमार ूवृ

फर से अपनी आ म वःमृित अपने वनाश का एक ूमुख

कारण रह है । यह स य हमारे इितहास म अं कत है । अपना समाज कुंभकण क नींद

सोता है । इसिलये रा ीय भावना तथा एका मता क ज़ड़े केवल आबमण-कालीन ता कािलक एकता म नह ं, अ पतु अिधक गहर

कसी भावा मक त वभूिम म प क

नवयुग ूवतक ौी गु जी

221


करना रा हत क

का अिध ान

से आवँयक है । इस ूकार क िचरं तन रा ीय एका मता और

या हो सकता है ? वशु

रा ीयता क भावना ह वाःत वक अथ

म शा त ूेरणा का ज मःथान है । हाल ह म संकट के समय समाज के जस अजेय साम य का सा ा कार हम हआ ु , उसका प रपूण अ वंकार भी हम इसी ूेरणा से

होगा।”

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

222


१७ रा ीय पुनजागरण के विभ न काय के िलए मागदशन १९४९ के जुलाई मास म संघ पर लगा ूितबंध हटने के बाद ौी गु जी ने नई प र ःथित के संदभ म ह द ू संगठन के वचार को अिधक ठोस, सु ःथर और प रप वता से प रपूण करने हे तु कस तरह भगीरथ ूय

कये, यह हमने विभ न

घटनाओं के प रूेआय म दे खा। चाहे संघ कायकताओं का अ यास वग हो या गोह या वरोधी आंदोलन अथवा यु

के समान गंभीर ूसंग, वे ‘ ह द’ू श दो चारण से

म जागृत होनेवाले रा ीय व तथा उसके यथाथ

प क ओर

दय

यान आक षत कया

करते थे। ह द ू परं परा क ूेरणा तथा एका मता का प रपोष करनेवाला अथ वे

सुलझा कर बताया करते थे। ौी गु जी क यह

ढ़ धारणा थी क रा ीय जीवन के हर

मानवता के क याणकार जीवनमू य का श जीवन क रचना होने पर ह रा

ेऽ म ह द ु व ह

शाली आधार है । इसी आधार पर ह द ू

सह अथ म तेजःवी होगा और ःवािभमान से जी

सकेगा। इसी तेजोमय धारणा से रा जीवन के विभ न इसिलये वे सदै व ूय शील रहे । संघ के य

ेऽ या

ह , ूभा वत ह

िनमाण के काय को उ ह ने एक नया

आयाम ूदान कया। हमने अनुभव कया है क संघ का काय नैसिगक ढं ग से उ बांत होता गया। संघ का वचार संघःथान के बाहर यापक ःवाभा वक

प से पहंु चाने का काम भी अनायास और

प से होता गया। डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने राजनीितक दल का काय

करने के िलए कुछ कायकताओं क माँग क । ौी गु जी ने सुयो य कायकता दे कर

इस माँग क पूित क । क तु संघ राजनीित से दरू रहा। राजनीित के

ेऽ म पहंु चे

संघ संःका रत कायकताओं ने राजनीित म रा ीय मू य के ूित िन ा ूःथा पत

करने का ूयास कया। इसी समय ौिमक, िश ा, कृ षी, सहका रता तथा वनवासी ेऽ और समाचार

ेऽ म भी सेवाकाय करने हे तु संघ के ःवयंसेवक अपनी-अपनी

िच के अनुसार गए। ःवयंसेवक चाहे जस काय ेऽ म हो, वहाँ उ ह ने रा ीय मनोभूिमका और संःकार िनमाण करने का ह ूय

कया।

इन सब काय म संघ क भूिमका अपनी ूभुस ा (डॉिमनेशन) या मोचा (ृ ट) बनाने क न कभी थी, न है । अपे ा केवल यह है क ू येक ःवयंसेवक अपने जीवन म संघ- वचार को वहन करे और अपने मूल श

के ि से उसका संबंध बना रहे ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

223


संघ का ःवयंसेवक जहाँ भी हो वहाँ उसे अपना िमऽ प रवार बढ़ाने तथा उसे संघ

वचार से संःका रत करने का ूयास करना चा हये। साथ ह वह ःवयं अनुशासनह न

न बने। संघ इस बात क अपे ा नह ं करता क संघ के कायकता संघ के अिधकार

ारा संचािलत

ेऽ

ेऽ या िनयंऽण म रह।

२ जुलाई १९५६ के सा ा हक ‘पा चज य’ म ौी गु जी का डॉ. ँयामाूसाद मुखज के

संबंध म एक लेख ूकािशत हआ था। इस लेख म ौी गु जी ने डॉ. ँयामाूसाद ु

मुखज के साथ हए ु वातालाप पर ूकाश डाला है । डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने जनसंघ क ःथापना क थी और सहकाय के िलये सुयो य संघ कायकताओं क मांग भी क थी। इस कारण ौी गु जी ने राजनीितक दल और संघ के परःपर संबध ं तथा इस वषय को लेकर मन म उ प न होनेवाले संॅम आ द का ःप ीकरण इस मह वपूण लेख म कया है । ौी गु जी ने िलखा है :

“डॉ. ँयामाूसाद मुखज क संघ संबंधी अपे ाओं का वचार कर मुझे उ ह ःवाभा वक

प से सतक करना पड़ा। मने उ ह ःप

ःवयंसेवक संघ को राजनीित म नह ं घसीटना चा हए,

प से बताया क रा ीय य क वह कसी भी

राजनीितक दल के आधीन रहकर काय नह ं कर सकता। उसका वाःत वक काय रा के स चे सांःकृ ितक जीवन को प ल वत करना है । उ ह ने इस ःथित को समझा और इस त य को ःवीकार कर िलया, पर साथ ह यह स मित ूकट क

क नये

राजनीितक दल को भी कसी अ य संःथा के आधीन नह ं रखा जा सकता। उसके उिचत पोषण और वकास के िलए उसका पृथक् अ ःत व आवँयक है ।” रा ीय ःवयंसेवक संघ और ूःता वत दल के आपसी स ब ध के िसलिसले म इन मूलभूत बात पर एक मत हो गया। एक अ य ू आवँयक था- वह था दल का आदश स ब ध है - उसके िन का सहयोग ूा

जस पर सोच- वचार करना

या हो? जहाँ तक रा ीय ःवयंसेवक संघ का

त आदश और ढं ग ह। इसिलए य द संघ के कसी ःवयंसेवक

करना हो तो यह तभी िमल सकता है जब राजनैितक दल भी उसी

आदश के अनुसार काय करने को तैयार हो। डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने भी कहा क वे ह द ु रा और ह द ु रा

क पना के व

के आदश से पूणतः सहमत ह

को वैभव के उ च िशखर पर ले जाना कसी लोकतंऽ क आधुिनक नह ं समझते,

य क ह द ु रा

ह दओं और अ ह दओं को पूण ु ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

224


नाग रक, राजनीितक और सांःकृ ितक ःवत ऽता का व ास दलाता है , जब तक वे

रा

वरोधी हलचल म भाग न ल, अनुिचत ढं ग से स ा हिथयाने का ूय

और रा

को उसके वैभव और महानता के उ च िशखर से िगराने का ूय

न कर

न कर।

जब इन बात का िनणय हो गया तब मने अपने कुछ सहयोिगय को जो बड़े व ःत और अनुभवी थे- चुना। ये सहयोगी ऐसे थे जो नवीन दल क ःथापना का बोझ

उठाने और अपनी िनः​ःवाथ सेवाओं को अपण करने के िलए तैयार थे और इस नये दल को श

शाली तथा संग ठत आधार पर ःथा पत करके इसे लोक ूय अ खल

भारतीय राजनीितक दल बनाने क यो यता रखते थे।” संघ के युवा तथा ूौढ़ ःवयंसेवक आज अनेक संःथाओं म कायरत ह। उनम से कुछ तो जनाधा रत संगठन (mass organisations) ह तथा कुछ

ेऽ या काय वशेष के

िलए सीिमत ह। कुछ नये संगठन खड़े भी हो सकते ह। इन नयी या पुरानी संःथाओं म काम करते समय य द कसी ने ऐसा ू का

या संबंध है तो ौी गु जी

उप ःथत कया क संघ और इस काम

ारा दये गये उपयु

उ र क ओर अंगुिलिनदश

कया जा सकता है । ौी गु जी उन ःवयंसेवक क सदा सराहना कया करते थे जो

विभ न

ेऽ म संघ क अपे ानुसार काम कर रहे थे। उदाहरण के तौर पर डॉ.

ँयामाूसाद मुखज के सहकार तथा सु व यात िचंतक पं. द नदयाल उपा याय तथा भारतीय मजदरू संघ के ूितभाशाली िश पी ौी द ोपंत ठगड़ के नाम

उ लेखनीय

ह। साथ ह जशपुर म वनवासी क याण आौम क ःथापना करनेवाले ौी बालासाहे ब

दे शपांडे तथा ववेकान द िशला ःमारक का भ य िनमाण करनेवाले ौी एकनाथजी रानडे का भी ःमरण हो आता है । संघ के ज ह जहाँ भेजा वहाँ वे डटकर खड़े हो गये और नविनमाण कया।

ःवयंसेवक का ऐसा यवहार पहले भी रहा है और आज भी है । संघ के ःवयंसेवक जस कसी काय ेऽ म पहँु चे वहाँ क प र ःथित, य

कायूणाली को संघ के

, संःथाओं, उनके उ े ँय तथा

येय के अनु प नींव से कलश तक उस संःथा वशेष के

गठन और उसक ूगित का वचार उ ह ने कया। िचंतन, मनन, अ यास, ूयोग, क पकता तथा ूितभा के

ारा माग बनाया, संःथा वकिसत क और सामा जक

मा यता अ जत क । इसे ह संघ क मौिलक संक पना तथा रा ो थान के उ े ँय का वकासो मुख तथा यावहा रक ःव प कहा जा सकता है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

225


समाज का ू येक य

संघ शाखा म आएगा या आना चा हए ऐसी क पना डॉ.

हे डगेवार जी और ौी गु जी ने न कभी क , न ूगट क ू येक य

संःका रत, दे शभ

अपना जीवन यतीत करे ।

प से कहा। उनका मानना था

पूण तथा ूचीन ह द ू परं परा से ूेरणा लेकर

उनक कामना थी क ू येक हं द ू ःवतः को दे शभ

के साँचे म ढाले और संग ठत

रहे । इन सारे िन य बढ़नेवाले और संघ-ूेरणा से चलनेवाले काम क ओर दे खने क संघ क भूिमका

या है यह ू

अनेक के मन म बार-बार उठता है । १९५० के बाद

जैसे-जैसे समाज जीवन के विभ न काय से संघ का

या िन

ेऽ म ःवयंसेवक पहँु चने लगे थे वैसे-वैसे इन

त संबंध है और उसका ःव प

या है इसक चचा

समाचार पऽ करने लगे थे। वशेषतः समाचार पऽ क अिधक

िच दे श क

राजनीितक स ा-ःपधा के समाचार म होने से भारतीय जनसंघ और संघ के बारे म वे बार-बार िलखा करते थे। उनक धारणा रह है क जनसंघ संघ का एक राजनीितक मोचा (Front) है । ौी गु जी के समय जनसंघ के बारे म यह ूचार कया जाता था क उसम संघ के ूित िन ा रखनेवाले व संघ का िनयंऽण न चाहनेवाले ऐसे दो गुट ह। इसिलये इस ू

पर ौी गु जी ने समय-समय पर जो कहा या उ ह ने मागदशन

कया, उस पर सरसर

डालना उिचत होगा।

भाषावार ूांतरचना के पूव के म यूदे श के मु यमंऽी पं. र वशंकर शु ल से ौी गु जी के घरे लू और आ मीयता के संबंध थे। उ ह ौी गु जी ने एक भट म ःप प से कहा था क छोटे ब च को खेल खलाने के िलये इतना बड़ा दे श यापी

संगठन हमने नह ं खड़ा कया है । इसके पीछे हमारा विश

उ े ँय अवँय है । अपने

रा जीवन के ू येक अंगोपांग पर संघ के रा ीय वचार का स पूण ूभाव डालना हमारे संघकाय का मु य अ े ँय है और वह

हमने कभी भी िछपा कर नह ं रखा है ।

अनेक ूसंग पर बड़े -बड़े कायबम म भी “Yes, we want to dominate every aspect of our national life with our ideology”- ऐसे सरल व ःप

गु जी संघ क आकां ा य

श द म ौी

कया करते थे।

इस संदभ म १९५४ म िसंद म कायकताओं क जो ूद घ ऐितहािसक बैठक संप न हई ु उसम ौी गु जी

ारा य

कये गये वचार मूलगामी और हमेशा के िलए

मागदशक ह। द. १४ माच क रा ऽ म यह भाषण हआ था। इस भाषण म शाखा ु

काय और िभ न-िभ न

ेऽ के नवीन काय के परःपर संबध ं क ौी गु जी ने

नवयुग ूवतक ौी गु जी

226


या या क थी और साथ-साथ शाखा काय क प रपूण

मता पर व ास ूकट

कया था। इसिलए इस भाषण के मह व का भाग यहाँ ौी गु जी के ह श द म उ घृत करना समीचीन होगा। “ पछले कुछ वष से संघ काय के साथ-साथ और भी कुछ बात चल रह ह। उदाहरणाथ कुछ वष पूव अपने ूय हए ु ह। यह कोई धंधे क

से वृ -पऽ, पाठशालाएँ, दवाखाने आ द आर भ

से नह ं कए गए अ पतु अपने काय के ूचार के

साधन के ह ःव प या उससे ह िनकलनेवाले उपांग ह। अनेक ःथान पर जनसेवा के काय भी कए ह। वचार आता है क यह सब काय शाखा के

कए?

या दै नं दन

प म जो काय चलता है उसम कसी ऽु ट का अनुभव करके यह काय कए

ह? हम तो कहते थे क हम वृ पऽीय ूचार से मतलब नह ं। तथाकिथत रचना मक

काय म व ास नह ं। फर इन सब ूकार के काय का अपने मूल काय से सामंजःय या? िस ांत के

प म यह म अवँय कहँू गा क संघकाय ःवत ऽ एवं सवागपूण है ,

उसक पूित के िलए इन बात क आवँयकता नह ं। इस स ब ध म कोई वशेष यु

वाद दे ने क ज रत नह ं। हम तो इसी व ास के आधार पर काय कर रहे ह।”

“ क तु ू सब

पैदा होता है क फर नवीन

ेऽ म यह पदापण

य ? हम जीवन के

ेऽ पर वैचा रक आबमण करके काबू पाना है । संघकाय म कोई ऽु ट मान कर

पराभव के

प म ःवीकार कये गये काम नह ं ह। य द यह सब पराभव म से

उ प न हआ है तो इ हे चलाने क आवँयकता नह ं, ु

नह ं कर सकता, फर उसका लाभ भी

य क पराभूत अ तःकरण कुछ

या होगा? क तु स य तो यह है क यह

हमारे कसी ूकार के पराभव का प रणाम नह ं। य द हम थोड़ा पीछे दे ख तो

ात

होगा क हमने वृ पऽ तो तब चलाये जब संघकाय जोर-शोर से बढ़ रहा था, ूितब ध के

प म कोई ख ड नह ं पड़ा था। उस समय तो ऐसी ःथित थी क जहाँ कह ं खड़

ह वह ं शाखा ःथा पत हो जाती थी। िम ट को हाथ म िलया तो वह सोना हो जाता

था। अतः काय क असफलता का अनुभव करके वृ पऽ नह ं चलाए, ब क सफलता क

कसी माऽातक अनुभिू त के बाद आबमण क

गया। हमारा ह द ू रा

,से ह उ ह आर भ कया

है । इसका संवधन और संर ण ह हमारे काय क

अ पतु उसका वकास और वःतार भी हमारा लआय है । आ मर ा कोई बड़ा

नह ं येय

नह ं। य द आ मर ा भी करनी हो तो उसका सव म उपाय आबमण ह है । िभ निभ न

ेऽ म भेजे गये कायकता एक-एक

ेऽ को जीतने हे तु ूे षत सेनापित के

समान ह ज ह संघ के दै नं दन काय से जीव त संबंध रख कर अपने

याग, तपःया,

नवयुग ूवतक ौी गु जी

227


ौम तथा कौशल से हर क पूित करना है ।” “वृ पऽीय

ेऽ म नया आदष उप ःथत करते हए ु काय के महान ् लआय

ेऽ को ह ल। कस ूकार आदश वह न होकर वे चल रहे ह! उनम कतनी

ग दग़ी तथा कतना िन नःतर है ! चार ओर चलनेवाली इस बुराई पर आबमण करने के िलए ह हमने उसम ूवेश कया है । हमारे उन

ेऽ म काम करनेवाले कायकताओं

को जनम कई ूचारक ह और कई जीवन-िनवाह यो य अ पतम वेतन लेकर काय करते ह, उनको इसी

से वचार करना चा हए। कई बार जब मनुंय कोई काय

आर भ करता है तो उसे उसक धुन सवार हो जाती है । बाक क बात वह भूल जाता है । तो अपना आदश,

येयवाद, जीवन क प ित संघ के सवसामा य काय के

अनुकूल बना कर ह उस काय को चलाना होगा। उसे ह संघ-काय मानकर चलना

ठ क न होगा। य द कोई स पादन करते हए सोच ले क मेरा तो यह एक काय है तो वह यो य है जैसे क कसी को र क का काय दया तो उसे वहाँ डटकर खड़े रहना है ; फर यहाँ बौ क म

या चल रहा है यह सोचने क आवँयकता नह ं।

क तु जब तक कोई आक ःमक कारण न हो या इस ूकार का िनदश न दया जाय तब तक, यह सब काम हम िन य चलनेवाले संघकाय के साथ ह करने चा हए। यह

तो संघकाय का Addition (स पूरक) है : Substitution (पयाय) नह ं। बीमार म मनुंय को बना भोजन रखा जा सकता है या प य के सकता है । क तु ःवःथ य

प म उसे दिलया दया जा

को भोजन के ःथान म दिलया नह ं अ पतु भोजन के

साथ-साथ दिलया दे ना चा हए। जो अपनी वचार पर परा का मूल

ोत है उसके साथ

स ब ध व छे द करके य द कोई कदे गा क म उसका ूचार क ँ गा तो यह स भव नह ं। मूल

ोत के साथ जीता जागता सौ

स ब ध रखना होगा। और फर जहाँ

भी जाय वहाँ यह सोच कर काम कर क वहाँ संघकाय के अनु प उ चता, ौे ता, प वऽता एवं आदशवा दता ूकट हो जस से हम उस और संघ के ूित जमे हए ु जन व ास म वृ

ेऽ म भी कुछ बांित कर सक

कर सक। इसी से अ य लोग भी

अपना ःतर ऊंचा उठाने को बा य ह गे। कोई य द यह सोचे क वृ पऽ संघ का ूचार

करगे तो वह ूवास के कायबम को ूकािशत करने के अित र ह? जहाँ तक संघ के वचार का ू

और

या कर सकते

है उस म तो कोई िन य बदलनेवाली बात नह ं।

यह हमारा समाज है स हम इसको वैभवशाली बनाना है और इसके िलए संगठन करना है , यह स य है इसिलए हम बार-बार कहते ह। इस म नवीनता कहाँ से लाएँ? इस ूकार ूचार क आवँयकता मालूम न होने पर भी हमने फर इन काम म

इतने कायकता लगाए?

य इतना ौम, ि य तथा समय लगा रहे ह? केवल इसी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

228


व ास से क अपने दन ूित दन के काय को चलाते हए ु , उसम वृ

बढ़कर अ य

करते हए ु आगे

ेऽ म अिधकार कर सक और वहाँ आदश ःथा पत कर सक।”

“इतना समझा तो संघकाय के अित र

अ य काय का यथाथ ःव प भलीभाँित

समझा जा सकेगा। जनसंघ भी संघकाय क

कसी ऽु ट के पूण करने के िलए नह ं या

उसका ऐसा मह व नह ं क संघकाय को कुछ कम करके भी उसे चलाया जाय। वह

तो उसी

से चला है क राजनैितक

ेऽ म ऐसे काय का िनमाण कया जाय जो

परःपर ईंया, ःपधा वह न एवं ःनेहपूण र ित से, उ कृ जीवन के शु

आदश को यवहार म लाकर उस

प से चलते हए ु हमारे

ेऽ के ऊपर संगठन का ूभु व

ःथा पत करे , यहाँ तक क उसके जैसा संगठन स पूण शासन को भी अंगिु ल-िनदश से चला सके। वह यह न समझे क चलो अब तो म आजाद हो गया तथा अ य

नेताओं के समान थोड़ा बहत ु अपना डम ्- डम ् बजवा कर नाम कर लूँ तथा सुखचैन से अपना जीवन बताऊँ। उ ह ने तो उस

ेऽ म प रवतन करने का

महनीय काय

अपने उपर िलया है । उस िन य को भुला कर य द राजनीित के आकषण म अपने जीवनादश को ॅ

करने क गलती क तो बहत ु बड़ हािन होगी।”

“लोग यह भी पूछते ह क इनका संघ से स ब ध विभ न

या होगा? ःप

ह उ ह हमने

ेऽ को पादाबा त करने के िलए भेजा है । दसरे दे श म रहनेवाला अपना ू

राजदत ू जस नीित को अपने काय और यवहार का आधार बनाता है वह उनका भी

होना चा हये। वह वहाँ जाकर शाद - ववाह करके घर नह ं बसा लेता है , न अपने रा

से स ब ध व छे द ह करता है , ब क अपने रा

के आदश क छाप उस दे श पर

कैसे पड़े तथा रा

के हत का संर ण एवं संवधन कैसे हो इसी का ूय

रहता है । वह रा

का ूितिनिध होकर जाता है । इसिलए अपने यवहार के स ब ध

म सतक रहता है क क हं उसके रा

करता

के स ब ध म उसके यवहार से कोई अनुिचत

धारणा न बन जाय। यहाँ भी संघकाय क दै नं दन उपासना म ख ड नह ं पड़ना

चा हए। संघ के साथ अनेक राजनीितक कायकताओं का स ब ध आया और उसने उन सबसे यह अपे ा क

क वह हमार िन य चलनेवाली शाखाओं म उप ःथत रह।

आज भी उस अवःथा म प रवतन नह ं आया। बाहर चाहे जतनी गजना और नेत ृ व कर क तु हमार द

आरम ् करने क पाऽता नह ं जानी चा हए। ःवयंसेवक व के

भाव से छोटे से छोटा काय करने क अपनी तैयार चा हए और उसके िलए और कोई कारण ढँू ढ़ने क आवँयकता नह ं होनी चा हए। रा

का भाव, उसक ूखर भावना,

इसके संःकार, िश ा और गुण क उपासना क आवँयकता सदै व बनी रहती है । यह तो हमारे जीवन का आधार है । हम कतना भा राजनीितक काय कर क तु अपना नवयुग ूवतक ौी गु जी

229


स बंध संघ से नह ं छोड़ना चा हए ब क यह दे खना चा हए क व वध

ेऽ म काम

लाएँ क बढ़ते-बढ़ते हम कह सक क रा ीय ःवयंसेवक संघ ह

है । जनको

करने के प रणामःव प संघकाय का ू य

वःतार कतना हआ। हम वह अवःथा ु ह द ू रा

जनसंघ म काय करने के िलए दया गया है , उनको जनसंघ का काय करने के िलए नह ं अ पतु जनसंघ के

ारा राजनीितक

ेऽ पर संघ का ूभाव पैदा करने के िलए

दया गया है । सेनापित बाहर भेजा गया तो वह जो कुछ करता है उसका ौेय

भेजनावाले को है और उसका पोषण तथा िनयंऽण करने का काय भी भेजनेवाले का ह है । यह अ यो य स बंध रहना चा हए। हम चाहे जहाँ रह, हमारा जीवन संगठन के िलए सम पत है और जतना ह हम इस ःवयंपूण काय को बढ़ायगे उतनी ह माऽा म अपने जीवन के आदश सभी

ेऽ म ूकट करने म सफल ह गे। यह हमारे

जीवन का यापक काय है और शाखा ह उस सब का मूल है । शाखा है तो सब कुछ है , शाखा नह ं तो जीवन सवःव

या होगा?

य क रा

योछावर करने क श

िनमाण का िचरं तन काय और उस पर और कहाँ है ?”

“संघ ने जीतना कया है उसम ह सब ूकार के

ेऽ समा

हो गए ऐसी बात नह ं।

हम आगे भी बहत ु कुछ करगे। म तो कई बार अपने गाँव के

ेऽ म चलने-वाली

शाखाओं के ःवयंसेवक के स ब ध म यह पूछता हँू क उनम अपने सहका रय क अपे ा अ तःकरण क भावना, दे श प र ःथित का

ान, सबको लेकर चलने क

यो यता तथा नेत ृ व क पाऽता अिधक है या नह ं। समाज के िभ न-िभ न कए जानेवाले आबमण क यह पूव सूचना है । य द समाज के सभी आबमण करना है तो सुसऽ ू काय क

इसक पूित के साधन बन कर ह हम सभी

चाहता है । म पूछता हँू क

या संघ सभी

ेऽ म हम

रखनेवाली कतनी वशाल मानव श

हमारे पास होनी चा हए इसका हम वचार कर। इस

“कई बार लोग पूछते है क

ेऽ म

को अपने स मुख रखकर

ेऽ म काम कर।” ेऽ पर अंकुश (Domination) रखना

या कुछ लोग को अपने क ध पर चढ़ा कर उनक जय-

जयकार करने और उनके चरण चूमने के िलए इतना प रौम कया गया है ? िभ निभ न

ेऽ म भेजे गए कायकता एक-एक

ेऽ को जीतने के िलए भेजे गए सेनापित

के समान है ज ह संघ के दै नं दन काय से जीवंत स ब ध रखकर अपने तपःया, ौम तथा कौशल से हर महान ् लआय क पूित करनी है ।”

याग-

ेऽ म नया आदश उप ःथत करते हए ु संघ के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

230


“रा जीवन के विभ न

ेऽ म चल रहे कायकलाप को सफल बनाने के िलए

मागदशन करने तथा मूलत व क जड़ तक पहँु च कर ूभावी शर-संधान करने क

ूितभा, बु अवःथा

तथा

या थी,

मता ौी गु जी म थी। ूाचीन, वतमान तथा भूतकाल म दे श क

या है और

चम का रक ूतीत होती है

या रहे गी, इसके संबंध म उनक

ूायः

य क जैसा वे कहते वैसे ह घटनाएँ घटती थीं। ौी

गु जी का मागदशन सह अथ म भ वंय सूचक हआ करता था। ौी गु जी क बु ु

इतनी पैनी, मममाह तथा पारदश थी क कायकता उनके दशािनदश का पालन कर अवँय ह सफल होते थे।”

१७.१ ौिमक ौिमक

ेऽ म

ेऽ क ओर हम गौर करे । ौी द ोपंत ठगड़ १९५० म ‘इं टक’ म शािमल हए। ु

इसके प ात ् ौी गु जी का समय-समय पर उ ह जो मागदशन ूा सारांश बताते हए ु ौी द ोपंत ठगड़ ने इस ूकार कहा:-

हआ उसका ु

“(१) जस संःथा म आप काय हे तु जा रहे हो वहाँ के अनुशासन का पूणतः पालन क जये। संःथागत अनुशासन का पालन आपका ूथम कत य होना चा हए। यदा-कदा अनुशासन और आपक

ववेक बु

म संघष के आसार दखाई द तो अ वलंब

इःतीफा द। (२) शे ड यूिनयन के आंदोलन के वषय म महा मा गांधी और मा स के वचार का तुलना मक अ ययन कर। काम और अ ययन साथ-साथ होना आवँयक है । इस समय मानिसक संतुलन बनाये रखना तो आवँयक है ह , क तु अ ययन का अभाव ू अनुिचत होगी। या छट (३) क युिनःट शे ड यूिनयन क कायप ित का भी अ ययन कर। (४) काय के िनिम क

होनेवाले ूवास म अपने मजदरू कायकता के घर म ह िनवास

यवःथा कर। इसे ूथा का

कताबी जानकार के

प द। हम य द गर ब प रवार म न रहे तो केवल

ारा उनके सुख-दःख क यथाथ क पना हम नह ं हो पाएगी। ु

ऐसी ःथित म मानिसक एक पता का होना असंभव होगा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

231


(५) ३० हजार मँगनीज मजदरू के ूितिनिध के नाते इं टक के जनरल कौ सल के

सदःय के द।

प म आपका चयन हआ है । अब आप एक ू ु

का सीधा और सह उ र

या आप इन तीस हजार मजदरू पर उसी तरह ूेम करते ह जैसे आपक माँ

आप पर करती है ?

(६) बुनकर काँमेस क सहायता करते समय राजनीितक लाभ तथा सौदे बाजी का वचार कतई मन म न आने द। अपना संपक

समःयाओं क सह जानकार ूा

ेऽ वःतृत करते हए ु बुनकर क

करना ह अपना उ े ँय रहे । बुनकर को एक

आिथक इकाई या अंग मानकर चल। बुनकर चाहे सवण हो या ह रजन या मुसलमान, उसके जाित-धम का कतई वचार न करे । बुनकर और उसक समःयाएँ इसी प रिध म हम वचार कर तथा काय क (७) आिथक

ेऽ क

दशा तय कर।

से शे यू ड काःटस ् फेडरे शन तथा अ खल भारतीय खेतीहर

(भूिमह न) संघ भी है । इस आिथक पहलू को य द

यान म रखा तो बाक के

भूिमह न मजदरू के साथ समरस होने क इ छा उनम जागृत होगी और साथ ह

ु सामा जक कटता भी कम होगी।” कसी नये काय

ेऽ म ूवेश करते समय कौन सी सावधािनयाँ बरतनी पड़ती ह,

कस अनुशासन तथा चा र य क आवँयकता रहती है इस संबंध म ौी गु जी

ारा

कये गये मागदशन का यह ूाितिनिधक उदाहरण है । भ वंय म संघ क योजनाओं के फलःव प काय ेऽ क सं या बढ़ती गयी। कायकता मागदशन ूा

करने हे तु ौी गु जी के पास आते थे और समःया का उिचत

तथा समयानुकूल हल ूा

कर नये उ साह के साथ अपने काय ेऽ क ओर अमसर

होते थे। ौी गु जी के पास संघ बा

ेऽ से अ य लोग भी आया करते थे। व ाथ

और िश ा यह तो ौी गु जी के ूय वषय थे ह । ौी गु जी के ूवास म आयो जत संघ कायकताओं क बैठक और वचार विनमय म वशेषतः राजनीितक

ेऽ के काम का ूभाव अनेक बार ूगट होता था। उन ूसंग

के अनु प सौ य या कठोर श द म ौी गु जी मतूदशन करते थे। एक उदाहरण उ लेखनीय है । सन ् १९६७ के जून मास म पंजाब ूांत के ूमुख कायकताओं और

ूचारक क एक बैठक हई। इस बैठक के समारोप के भाषण म ौी गु जी ने कहा ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

232


क हाल ह म संप न हए ु चुनाव के प ात ् उ र भारत म अपनी ह म डली शासन

म उ च और मह व के पद पर आसीन है । िभ न-िभ न काम के िलए उनके पास जाने क अपनी इ छा होना ब कुल ःवाभा वक है । पर तु मेरा ऐसा सुझाव है क कसी भी संघकायकता को अपने य जाना चा हए। संघ-काय सवौे

गत काम के िलए उनके पास ब कुल नह ं

है , सव प र है , ई र य काय है । उसके कायकता का

ि ु बात के िलए राजनीितक कायकताओं के सामने हाथ पसारना िन दनीय है और

अपने य

गत काम के िलए उनके गले पड़ने से उनक ूामा णकता और िनंप ता

को आँच पहँु चने क भी संभावना रहती है । अपना कौश य, यो यता और ूामा णकता

का व ास जनता को दलाने के िलए उ ह पूरा अवसर िमलना चा हए। य द उसम उनक कुछ कमी रह तो होनेवाले प रणाम भी उ ह भुगतने दे ना चा हए। रा ीय हत के सभी-ू

पर, उदाहरणाथ असम, न सलवाद , कशमीर आ द के

वभेदकार आंदोलन, वदे श का अनुकरण, रा ीय िश ा, रा ीय एका मता आ द वषय पर जनसंघ के िनवािचत वधानसभा सदःय को अ य त

ढ़ता से बोलना

चा हए ऐसी सलाह ौी गु जी दे ते थे। जब ूवास म ःथान-ःथान पर जनसंघ के कायकता िमलने के िलए आते थे तब भी ूचिलत समःयाओं के संबंध म मागदशन मु

प से वे करते थे। अ य

ेऽ म काम करनेवाल म मन का संॅम दरू कर

संघ के मूलभूत काय और कायप ित का

ान उनको करा दे ते थे। ःवयंसेवक क

बैठक म जो ू ो र ःथान-ःथान पर हआ करते थे उनम से कुछ नमूने के तौर पर ु

यहाँ उ -घृत कये जा रहे ह। उससे आज भी ःवयंसेवक और कायकताओं को उ म मागदशन ूा

१७.२ कुछ ू

होगा।

व उ र

ू :- व ाथ प रष

का काय करते समय हम कन बात क ओर वशेष

यान दे ना

चा हए? ौी गु जी- व ाथ प रषद के कायकता को अपने संगठन का काय करते हए ु अपनी

संःथा को संघ का वैचा रक व संगठना मक ‘ रबू टं ग सटर’ मानना चा हए। व ाथ प रष

म काम करनेवाल को अपने संपक म आनेवाले व ािथय और अ य को भी

िन ावान ःवयंसेवक बनाने का ूय

करना चा हए।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

233


ू :- अ या य ऐसे समय

ेऽ म काम करते समय कभी-कभी संघकाय से मेल नह ं बैठता है ।

या कया जाय?

ौी गु जी- य द अपने को मूलकाय का मह व समझ म आया हो और वह दसर को समझाने का ूय ू

हमने कया हो तो वरोध को टाल सकते ह और

सम वय साध सकते ह। We should capture all fields but we ourselves should not be captives. ू :- अ य नह ं होता है ।

ेऽ म काम करने के कारण बहत ु बार शाखा म जाना संभव

ौी गु जी- अनुप ःथत रहने का मौका आ सकता है पर तु अपने अिधका रय क अनुमित ली जाय और फर उिचत काम कया जाय पर तु कसी भी प र ःथित म संघकाय क ओर दल ु

नह ं होना चा हए। वह काय अ वचल मानकर अ य सब

काम कये जायँ। फर काम कोई भी हो िसनेमा या नाटक कंपनी का खेल भी, वह हो

सकता है , पर तु काम संघ का ह करना चा हए। अ य

ेऽ म काम करते समय कई

बार लगाव पैदा हो जाता है और लगता है क वहाँ तो बहत ु आराम है और फर संघकाय से दरू रहने के िलए बहाना ढँू ढा जाता है ।

ू :- आंदोलन करते समय विभ न संगठन को कौन सा वचार करना चा हए? ौी गु जी- आंदोलन करने के पूव हम त व िन यह है क हम अिधकार क ओर अमे रका

त करना चा हए। क ठनाई

यान दे ते ह, कत य क ओर नह ं। कलक ा म

ारा संचािलत शे ड यूिनयन कॉलेज

ारा ूकािशत एक पु ःतका मुझे

भारतीय मजदरू संघ के एक कायकता ने द थी। उस पु ःतका म सब बात क चचा

है पर तु ौिमक काम के घ ट म ईमानदार से काम करे गा ऐसा कह ं भी उ लेख नह ं है । अपना आधार तो कत य ह है । अपनी परं परा ने अपने को केवल एक ह

अिधकार दया है और वह है अपने कत य के पालन का। व ाथ गु जन के ूित आदर ूकट कर इसके िलए कभी

या कसी ने आ दोलन कया है ?

नवयुग ूवतक ौी गु जी

234


“सावजिनक कायबम का एक ूकार का नशा चढ़ता है , पर तु ऐसे कायबम अ छे

हए ु तो भी ऐसा नह ं समझना चा हए क उससे अपनी श णक आवेश पैदा होता है , पर तु श

बढ़ है । म पान से

नह ं बढ़ती।”

सन ् १९६६ के अूैल मास म ौी गु जी लालाहं सराज जी के साथ ौी गुलजार लाल न दा से िमलने के िलए गये थे। न दा जी ने ौी गु जी पर आरोप कया क वे

राजनीितक वषय पर बोलते ह। इस पर ौी गु जी ने उ र दया, “अपनी रा ीय एका मता पर आघात करनेवाला जो भी वचार या काय होगा उसक आलोचना करना मेरा कत य है । य द शासक य काय रा ीय एका मता को बाधा पहँु चाने क प ित से

चलता हो तो म अवँय उसक आलोचना क ँ गा।” अ या य

ेऽ म काम करनेवाले अपने ःवयंसेवक का यवहार कोसा हो और वे

ू रह, यह वषय ौी गु जी बार-बार उठाया करते थे। अहं कारा द अवगुण से कैसे अछते सन ् १९५४ क बात है । एक बैठक म ौी गु जी ने कहा, “अ या य

ेऽ म काम

करते समय जब गले म माला पड़ने लगती है और जय-जयकार सुनने को िमलता है ,

तब कायकता क छाती फूल जाती है । उसे लगता है क वह लीडर बन गया! मन को मो हत करनेवाले अहं कार का यह ूाथिमक ःव प है । संघ का कहना है क अपनेअपने

ेऽ म अवँय नेत ृ व संपादन कर पर तु ौे

नतमःतक होने का

यान रख। यह अपने य

साधु-स त के सामने अवँय

गत और सामा जक जीवन का

आदश है । सावजिनक जीवन म नाम कमाओ पर तु संघ के प रवार म एक वनॆ

ःवयंसेवक के नाते सदा अनुशासन क मयादा म रहो। अपना आचरण संत और महा माओं के संबंध म अनुशासनह न रहा तो उससे हम रा स बनगे। कंस और जरासंध इसी कारण से रा स ूवृ

के बने। िनरोगी समाजजीवन को उ ह ने ःवीकार

नह ं कया। िनरोगी समाजजीवन म ू येक को अनुशासन का पालन करना चा हए, अपने कत य का ःमरण रखकर यो य र ित से आचरण करना चा हए। इसके िलए

संघशाखा म सब ःवयंसेवक का क धे से क धा िमलाकर खड़े रहना और अपनी दै नं दन ूाथना कहना आवँयक है ।”

१७.३ राजनीितक सन ् १९५४ म ह

ेऽ के कायकताओं के िलए वदभ के अकोला नगर म बोलते समय राजनीितक

ेऽ म पाँव

कैसे फसलते ह इसका ववेचन करते हए ु ौी गु जी ने कहा, “आजकल लोग के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

235


म ःतंक म चुनाव और स ा-ःपधा क राजनीित घुस गयी है । इस राजनीित के

ूभाव से मनुंय मनुंय न रहकर एक राजनीितक पशु (Political animal) बनता जा रहा है । राजनीित का आज का अथ हो गया है िनर तर समझौता और जोड़-तोड़ करना। ऐसी ःथित म

येयिन

जीवन जीना राजनीितक कायकता को असंभव सा

लगता है । ौ े य महा मा जी ने कहा था क य द गोह या जार रह तो ऐसे ःवात य क मुझे इ छा नह ं है । इतने िनःसं द ध श द म गाय के वषय म अपनी

ौ ा उ ह ने य

क थी। पर तु राजनीित करते समय पं. जवाहरलाल नेह

जी ने

कहा क गोह या मुसलमान का सुूित त अिधकार है (Well established right)। इसिलए कानून से गोह या रोक नह ं जा सकती। राजनीित म मत-ूाि

के िलए

अिधकािधक लोग को अनुकूल कर लेने क नीित को ूधानता िमलती है और अपनी ौ ा और

येय को गौण ःथान ूा

होता है । मत के िलए ौ ाःपद बात क

अवहे लना भी राजनीितक खेल म लोग सहन करते ह। इसीिलए अपने ौे

पु ष ने

“वारांगनैव नृपनीितरनेक पा” कहा है ।” राजनीितक ौेऽ म काम करनेवाले ःवयंसेवक के ू िनःसं द ध और संघ क

“ ज ह राजनीितक ःवयंसेवक क

बाद “ःवयंसेवक क

ेऽ म

को ःप

को ौी गु जी

ारा बहत ु

करनेवाले उ र समय-समय पर दये गये ह।

िच है उ ह उस

लेकर हम कसी भी

ेऽ म ईमानदार से काम करना चा हए।

ेऽ म काम कर सकते ह।” यह बतलाने के

या है ” इसका मूलभूत वचार उ ह ने बतलाया। उ ह ने

कहा, “अपना संघ-काय इस वचार से शु

नह ं हआ है क लोग जो चाहते ह वह हम ु

करे । उ टे समाज जीवन म जो ऽु टयां ह, वे लोग को समझा कर उनका िनराकरण करने के िलए संघ का ज म हआ है । अपने ःवयं के जीवन म िनभयता से ह द ू ु

जीवन का आ वंकार करते हए ु लोग म भी वे आदश संबा त करने के िलए संघ का

िनमाण हआ है । लोग क इ छानुसार नाचने क अपे ा लोग का जीवन संघ- वचार ु से ूभा वत करने और उसम प रवतन लानो का काय संघ कर रहा है । यह वाःतव

म वधायक काय है । इस ूकार के काम म समय अिधक लगना ब कुल ःवाभा वक है । मनुंय जीवन म यो य प रवतन लाने के िलए समय तो लगने ह वाला है । य द

काम शीय हो ऐसी अपनी इ छा हो तो कायकताओं क सं या बढ़नी चा हए और ू येक कायकता अिधक समय दे कर काम करनेवाला होना चा हए।” ौी गु जी आमहपूवक कहा करते थे क ॅ ाचार का ू उसका संघकाय ह उपचार है । उनका सुिन

बहत ु ज टल हो गया है ,

त मागदशन था क “स ाधा रय क

ॅ ता रोकने का िनणायक बल केवल सुसग ं ठत, शु

रा भ

से ओत-ूोत लोकश नवयुग ूवतक ौी गु जी

236


म ह रह सकता है । वह श

ूगट

िनणायक होती है । प हले जसे धम कहते थे उसी का

प संघ है । हम स ािभलाषा नह ं है । संपण ू रा

जीवन सुखी, समृ

करने क

अपनी इ छा है । राजनीितक ःपधा म एक गुट बनाकर संघष करते हए ु बैठने के िलए अपना काय नह ं है । िनमह-अनुमह म ूबल लोकश

१७.४ िश ा

का िनमाण अपना काय है ।”

ेऽ के बारे म

व ािथय म बढ़ती हई ु अनुशासनह नता क समःया का अ ययन करने हे तु ःथा पत

एक उ च-ःतर य सिमित

ारा ौी गु जी को एक ू ावली भेजी गयी थी। ौी गु जी

ने बड़ ह त परतासे उ र िलखे और अपन व के भाव से सिमित क ओर भेजे। इस िनिम

िश ा क पुनरचना के वषय म उनके मौिलक तथा मूलमाह रचना मक

वचार ःप संगठन व

हो सके। ौी गु जी ने इस ू ावली के उ र म िलखा क व ाथ व ालय के ःतर पर काय कर तथा राजनीितक हःत ेप से दरू रह।

ौी छागला के ि य िश ा मंऽी थे। ौी गु जी क मुब ं ई म उनसे भट हई ु थी। इस भट के समय िश ासुधार क

दशा

या हो? इस वषय पर उनके बीच वातालाप हआ। ु

ौी. छागला महा व ालय म से व ामहण कर बाहर िनकलने वाले व ािथय से असंतु

थे। ौी गु जी ने उ ह बताया क व ािथय म जो ऽु टयां, चा र य का

अभाव, ःवािभमानशू यता, अनुशासनह नता आ द दोष दखाई दे ते ह, उसका कारण यह है क उ ह अपने दे श का वाःत वक या स य इितहास पढ़ाया नह ं जाता। यह आदशह नता का तथा पेट-पानी हे तु ःवाथ एवम ् दशाह न बनने का एक माऽ कारण

है । नौकर िश ा का ूधान लआय माना जाता है । इितहास के यो य अ यापन से

मातृभिू म के ूित गौरव क भावना उ प न हो सकती है । साथ ह अपने दे श को

गौरवशाली बनाने के िलए

यागपूवक प रौम करने क आकां ा युवक म िनमाण हो

सकती है । क तु यह भी उ ह ने ःप

कर दया क आप जस शासन के मंऽी ह वह

व ािथय को स य इितहास पढ़ने के प

म नह ं है ।

रा ीय अनुशासन योजना के सूऽधार ौी. जग नाथराव भ सले से भी इसी ूकार ौी गु जी का वातालाप हुआ था। इस चचा के दौरान ौी जग नाथराव ने ू िचंता य

क “हमारे पास साधन ह, पैसा है , शासन क श

के साथ काम करनेवाले िनः​ःवाथ ूवृ के पास अपया

के लोग-कायकता

पूछ कर

है , फर भी लगन

य ूा

नह ं होते? संघ

साधन ह। ‘स शन’ कुछ नह ं है । स ाधा रय का वरोध वपुल ूमाण

नवयुग ूवतक ौी गु जी

237


म है । फर भी ःवाथ याग कर अनेक वष तक या आजीवन,

काय करनेवाल का

ूचंड समुदाय वह कैसे जुटा पाता है ?” ौी गु जी ने उ र म कहा क “संघ अपने कायकताओं के मन म दे शूेम क उ कट भावना जगाता है । अपनी मातृभिू म के संबंध म वशु िनिमित तथा

क भावना जागृत कये बना य

व म स -गुण क

याग क ूेरणा युवक म िनमाण होना असंभव है ।”

इन दो महानुभाव

ारा ौी गु जी से क गयी पूछताछ और ौी गु जी

ारा उ ह दये

गये उ र का केवल उदाहरण के नाते उ लेख कया गया है । ौी गु जी के दे श यापी ूवास म अनेक िश ा संःथाओं म जाने और िश क , िश ािधका रय , पऽकार और अ य भी ज ासुओं से वातालाप के अनेक ूसंग उ ह ूा

होते थे। उनसे यह ःप

दखता है क भारत म ूचिलत िश ा प ित और कुल िश ा वषयक शासक य नीित

के संबंध म वे अ य त असंतु

थे। विभ न ःथान पर उनके

ारा य

िश ा

वषयक मतूदशन म साधारणतः िन निल खत ब द ु ूमुखता से रहते थे। (१) आजकल जो िश ा द जाती है इसम आधुिनक पा ा य िश ा ूणाली के उ म

अंश नह ं है या ूाचीन भारतीय प ित का भावा मक आशय ( Positive content) भी नह ं है । हमारा एक गौरवशाली ूाचीन इितहास है और जीवन के व वध उ कृ ता ूा

ेऽ म हम

कर चुके थे, यह भी त ण व ाथ को मालूम नह ं रहता। व ािथय के

सामने कुछ भी सकारा मक या भावा मक

येय न रखे जाने के कारण वह समय

काटने के िलये ह न ःव प का कुछ तो भी पढ़ता रहता है इसका आ य लगना चा हए। (२) ब कुल ूाथिमक ःतर से ह

व ािथय म यो य आकां ा और

संःकार दया जाना चा हए। अपने अ यंत ौे

कोण का

रा पु ष के जीवन और ऐितहािसक

ूसंग का िचऽण करनेवाला वशाल ूाचीन औप आधुिनक सा ह य भ डार अपने िलए उपल ध है । उसका िश क को इन संःकार के िलए उपयोग करना चा हए। ऋ षय और योिगय क महान ् परं परा म पैदा होने का अिभमान ब च के मन म पैदा करना चा हए। हम ह द ू नाम से जीना चा हए, ह द ू दखना चा हए और दिनया हं द ू ु

कहकर अपने को पहचाने, ऐसा ूय

मानगे तभी दिनया क ु

करना चा हए। जब अपनी परं परा का गौरव

म भी गौरव के वषय बनगे। हम कसी क ूितिल प-

‘काबन कॉपी’ – बन यह जगत ् क भी अपने से अपे ा नह ं है । जसक जड़ ह

उखाड़ डाली गयी ह उस समाज का कोई भ वंय नह ं रहता है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

238


(३) रा भ

के सु ढ़ आधार के बना मानवता और अंतररा ीयता क बात करना,

दोन से ह वंिचत होना है । अपने रा ीय त व ान और वरासत का वचार कया तो दखाई दे गा क मानवता का परमो च क याण उसम समा व

है । इसिनए व ािथय

को राषश यता के पाठ दे ना याने मानवी मू य को ह सु ढ़ बनाना है । (४) ऐसा ूचार कया जाता है क (Earn while you learn) पढ़ते समय कमाओ।

पर तु भारतीय वचार ब कुल उलटा है । हम कहते है ‘कमाते समय भी सीखो’ (Learn even while you earn) मनुंय जीवन भर व ाथ होता है यह हमार

संक पना जीवन- येय से संल न है । दभा ु य से प र ःथित ऐसी है क पा ा य जगत ्

जब धीरे -धीरे वशु और ौे

जड़वाद से अ या म- वचार क ओर मुड़ रहा है तब हम उ च

जीवन से माऽ जड़वाद जीवन क

दशा म फसलते जा रहे ह।

(५) उपासना-स ूदाय कोई भी हो व ािथय को चा र ऽक और यम-िनयम क िश ा दे ने पर जोर दे ना चा हए।वैसे ह िच

एकाम करने के िलए योग क भी थोड़

बहत ु िश ा आवँयक है । वतमान िश ा ूणाली म कुछ जानकार और रोट कमाने क िश ा ह केवल द जाती है ।

(६) संःकृ त भाषा क िश ा क घोर उपे ा वतमान िश ा ूणाली क एक बहत ु बड़

कमी है । रा ीय एका मता के िनमाण म संःकृ त भाषा का जो योगदान है , उसका यो य

ान कह ं दखाई नह ं दे ता है । ःवक य भाषा ( विभ न भारतीय भाषाएँ) के

वषय म ूेम और उसका वकास करने क उ कट इ छा ता अभाव सरकार नीित म दखाई दे ता है । संःकृ त मृतभाषा न होकर जीव त भाषा है , यह स य

यान म रहना

चा हए। (७) ह द ू िश ा प ित मनुंय म व मान व वध गुणव ाओं के आ वंकार म ह

संतोष नह ं मानती। वह और आगे जाती है । अपने म जो एक शा त िशव त व है उसका है ।

ू ान और उसका ूगटकरण ह द ू िश ा प ित का मूलभूत उ

माना गया

िश ा और संःकार के बारे म ौी गु जी को दो बात बहत ु अिन कार और

िच ताजनक लगती थीं। प हली बात थी घर के अिभभावक का आचरण और दसर ू

बात, ईसाई िमशन रय क शालाओं म ह द ू बालक के मन पर ह द ू परं परा क ौे

नवयुग ूवतक ौी गु जी

239


वभूितय या दे वी-दे वताओं के ूित पैदा क जानेवाली घृणा क भावना। एक अ छे

सुिश

त घर क त ण गृ हणी को रसोई घर म अपने न ह ब चे को सुलाते समय

ब कुल अभि गाना गाते हए ु उ ह ने सुना था। यह घटना बतलाकर वे पूछते थे,

“ब चे अपने माता- पता का ऐसा अिश

यवहार य द दे खते ह गे और ःवाभा वकतः

उनका अनुकरण करते ह गे तो नयी पीढ़ अपने जीवनादश से ईसाई िश ा संःथाओं क

य नह ं ॅ

होगी?”

वकृ त िश ा का दंप ु रणाम ब च के मन पर कस ूकार

होता है इसका उदाहरण ौी गु जी दे ते थे। आठ-नौ साल का एक लड़का छु टय म घर आया हआ था। ज मा मी का उपवास करने को जब उसके माता- पता ने उससे ु

कहा, तब उसने कहा, “ऐसे यिभचार मनुंय का ज म दन आप ईसामसीह का ज म दन

से ऐसे ू

पूछेगा इसक

उपाय है , ह द ू साधु-संत

य मनाते ह? हम

य न मनाएँ?” आठ-नौ साल का एक लड़का अपने पताजी

या आप क पना भी कर सकते ह? इसे रोकने का एक ह ारा सुसः ं कार ूदान करनेवाली िश ा-संःथाएँ ूारं भ

करना। पर तु सरकार नीित के कारण उन ूय

पर जो ब धन आते ह उससे ौी

गु जी को दःख होता था। एक बार उ ह ने कहा, “ऐसी िश ा संःथाएँ काम कर रह ु

ह, पर तु उ ह ऐ हक िश ा दे ने को बा य कया जा रहा है । व ािथय म ऐ हकता

का वातावरण पु

करने के िलए ह ूो साहन दया जाता है । अपनी धािमक संःथाएँ

बहत ु ह, पर तु उनका

कोण अ यािधक उदार है । हम लगता है क रा भ

ूे रत होकर काम करना िश ा क ूथम आवँयकता है ।

म आ सकती है । ब कुल चुने हए य ु

से

कोण म वशालता बाद

ह ऐसी संःथाएँ चलाने के िलए उपयोिग

सा बत हो सकते ह। अ यथा थोड़े अिधक पैसे अ यऽ ूा

होने के लोभ से य

संःथा छोड़कर चले जायगे। सेवा-भावी संःथाएँ चलाने के िलए उ कट रा भ

से

ूे रत मनुंय ह चा हए जनके िलए पैसे के लआय गौण ह । स ची िचंता ऐसे कायकता ूा

होने के संबंध म ह रहती है ।”

ौी गु जी के सवःपश तथा समुि समान गहरे -अथाह

ान और िचंतन का लाभ

सभी को हआ करता था। क तु ौी गु जी के स मुख तो ू य ु

संघ क शाखा का

काय ह था। एक बार रा जीवन के अंतगत जो काय चलते ह उनसे संघ का संबंध है यह ःप

करते समय उ ह ने ौीम -भगव

ोक उ -घृत कये थे। वे

या

गीता के नौव अ याय के दो

ोक थे-

मया ततिमदं सव जगद य मूितना

नवयुग ूवतक ौी गु जी

240


म ःथािन सवभूतीिन न चाहं तेंवव ःथतः ।।४।। अ.९ अथ:- मुझ िनराकार परमा मा से यह सब जगत ् (जल से बरफ के स श) प रपूण है

और सब भूत मेरे अ तगत संक प के आधार पर ःथत ह क तु वाःतव म म उनम ःथत नह ं हँू ।

न च म ःथािन भूतािन पँय म योगमै म।् भूतभृ न च भूतःथो ममा मा भूतभावनः ।।५।। अ.९ अथ:- वे सब भूत मुझम ःथत ह; क तु मेर ई र य योगश

को दे ख क भूत का

धारण-पोषण करनेवाला और भूत को उ प न करनेवाला भी मेरा आ मा वाःतव म भूत म ःथत नह ं है । इनके साथ ह ,

सव ियगुणाभासं, सव िय वव जतम।् अस ं सवभृ चैव िनगुणं गुणभो ृ च ।।१४।।

अ.१३

अथ:- वह स पूण इ िय के वषय को जाननेवाला है , पर तु वाःतव म सब इ िय से र हत है तथा आस

र हत होने पर भी सबका धारण-पोषण करनेवाला और िनगुण

होने पर भी गुण को भोगनेवाला है । यह

ोक भी उ -घृत कया करते थे। संघ के ‘योगै य’ का आकलन ज ह नह ं हो

पाता, वे गलतफहमी के कारण संघ के अंतः​ःथ हे तु को न समझते हए ु आरोप मढ़ते

जाते ह।

ौी गु जी का मानना था क राजनीित का अिधकार जीवन के सभी

ेऽ पर न रहे ।

राजनीित समाज क धारणा करनेवाले धम से, अथात ् समाज धारणा तथा मानवी

संबंध के शा त िनयम से जुड़ रहे और ू येक

ेऽ से सुसव ं ाद बनाए रखे। संघ का

ःवयंसेवक चाहे जहाँ भी कायरत हो, उसे रा धम क जागृित का वःमरण न हो, यह उनक सामह अपे ा रहा करती थी। ौी गु जी कसी भी संघबा

ेऽ के बंधन म

नवयुग ूवतक ौी गु जी

241


जकड़े जाना पसंद नह ं करते थे। संघ के अित र

कसी भी अ य काय क गु थी म

अटके रहना उनका ःवभाव नह ं था। ूथम संघ काय, बाद म अ य वचार। संघ का िन यकाय करते हए ु भी ौी गु जी रा ीय महापु ष का ःमरण करानेवाले

ूसंग या ह द ु व का ःवािभमान जागृत करनेवाले कायकलाप म बड़े उ साह से भाग

लेते थे। आ या मक स -गुण के आधार पर ह भारत का पुन

थान संभव है ऐसी

ौी गु जी क ौ ा होने के कारण ववेकानंद ज म शता द , ववेकानंद िशला ःमारक

सिमित क ःथापना, अर वंद ज म शता द आ द काय म भाग लेकर उ ह ने अपना दािय व िनभाया। ौी गु जी के

दय म ःवामी ववेकानंद और उनके स -गु

ौी

रामकृ ंण परमहं स के वषय म असीम आ मीयता और ौ ा थी। ःवामी ववेकानंद के गु बंधु ौी ःवामी अखंडानंद से ह ौी गु जी ने द

ा महण क थी। अतएव

के पुन रामकृ ंण िमशन से उनके द घकालीन संबंध थे। प रणामतः ह दओं ु

थान का

यह काय आगे हढ़ने क तीो इ छा उनके अंतमन म होना ःवाभा वक ह था। इसी

कारण १९६३ म ववेकानंद ज मशता द के कालखंड म ःवामी ववेकानंद क जीवनी का वतमान दे श ःथित के संहभ म नया अथ ूितपा दत कर उनके जीवनकाय को ूकािशत करनेवाले भाषण ौी गु जी ने दये। क याकुमार के िनकट जस च टान

पर ववेकानंद को अपने जीवनकाय का सा ा कार हआ था, वहाँ एक भ य ःमारक ु

खड़ा करने क एक सु दर क पना उन दन के संघ के तिमलनाडु के ूांत ूचारक ौी द ाजी डडोलकर के मन म ःफु रत हई। ौी गु जी को यह योजना ःवाभा वक ु

प से जँच गई और शीय ह वहाँ पर एक भ य ःमारक के िनमाण क योजना तैयार

हई। संक प घो षत हआ और इस योजना को काया वत करने क ु ु

ज मेवार रा ीय

ःवयंसेवक संघ के त कालीन सरकायवाह ौी एकनाथ जी रानडे पर स पी गई। दे श भर म हजार ःवयंसेवक ने ःवामी जी के ूखर ह द ु ववाद

वचार का ूचार

कया। सकड़ सावजिनक कायबम व सा ह य वतरण के साथ-साथ ःमारक िनमाण

हे तु आवँयक धनसंमह भी कया गया। ववेकानंद िशला ःमारक का भ य िनमाण पूण व क सीमा पर पहँु चते तक ौी

गु जी का बहत ु बार क से उस ओर

यान था। जब कभी द

ण के दौरे पर वे जाते,

इस िनमाण काय क ूगित दे खने उनके चरण इस पावन िशला क ओर चल पड़ते।

वे विभ न

ेऽ से लाये गए ूःतर क कला मक गढ़ई को िनहारते और सूचना

दे कर आगे बढ़ते। समुि क लहर का संगीत सुनते हए ु वे हर वभाग को बड़े चाव से

दे खते और ूस न दखाई दे ते। ौी गु जी के अंतमन का खंचाव आ या मकता क ओर ह होने के कारण इस सु

भाव को

ँय ःव प ूा

होते दे ख ौी गु जी का नवयुग ूवतक ौी गु जी

242


मुखमंडल अंतर म उ दत अ या म सूय के तेज से आलो कत हो उठता था। एक ःव न को साकार होते धेख आनंद वभोर होना उनके िलए ःवाभा वक बात थी। संघ के बौ क वग म ौी गु जी रामकृ ंण- ववेकानंद के जीवन के उ -बोधक ूसंग बड़ रोचकता से परोते थे। जब और जहां संभव हो साधु, संत, संूदाय ूमुख, महं त या मठाधीश से वे भट करते। ह द ू समाज क प र ःथित के संबंध म उनसे वे चचा कया करते थे। ऐसे अवसर पर ौी गु जी इन साधु-समत-महं त से सानुमह कहते क वे य

या संःथागत अहं कार का

याग कर एकऽ आने क चे ा कर

य क

युगानुकूल धम-जागृित करने क आज आवँयकता है । वे इन महानुभाव को उनके धािमक और सामा जक दािय व से अवगत करा दे ते। ौृग ं ेर कामको ट के शंकराचाय पू. च िशेखर भारती याने अ या मक

ेऽ क महान ् वभूित का ौी गु जी पर ूेम

था। इसका एक सूचक उदाहरण है क जब ौी गु जी के माता- पता शंकराचाय जी के

दशनाथ मठ म पहँु चे तब एका त और मौन को भंग कर उ ह ने ौी भाऊजी और

ौीमती ताई क आःथापूवक पूछताछ क । पेजावर मठ के ौी व ेश तीथ ौी गु जी क ूेरणा से ह

ह द ू जागरण के काय ेऽ म उतरे । आज के वातावरण म पेजावर के

पीठािधपित ह द ू समाज म चैत य ूदान करनेवाली एक श

१७.५वै

माने जाते ह।

क ह दमं ु च का शुभारं भ

ौी गु जी का धािमक

ेऽ से िनकटतम संबंध था। धमभाव के जागरण क अिनवाय

आवँयकता के स मिलत ूभाव तथा ूेरणा से ौी गु जी के मन म एक क पना साकार हई। ु इस क पना को मूत ःव प दे ने का दािय व संघ के ौे

ूचारक ौी िशवराम शंकर

उपा य दादासाहब आपटे के कमध पर स पा गया। ौी आपटे जी के सहकाय से आगे क

परे खा बनाकर ूय

शु

ज मा मी के मुहू त पर ‘ व

हए। इन ूय ु

के फलःव प १९६४ म कृ ंण

ह द ू प रष ’ क ःथापना करने का िनणय िलया गया।

मु बई म पवई ःथत ःवामी िच मया द के सा द पिन आौम म आयो जत ूाथिमक बैठक म व

ह द ू प रषद क अःथायी सिमित क घोषणा क गयी। िसख पंथ के

नेता माःटर तारािसंह तथा वदभ के लोक ूय संतपु ष तुकडो जी महाराज भी इस बैठक म उप ःथत थे।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

243


ौी गु जी ने ौी दादा साहब आपटे को व

ह द ू प रष

के कायभार के िलए िनयु

करते समय कौम सी सूचनाएं द ं इसका वचार करना उिचत होगा। ौी गु जी ने कहा, “दे श- वदे श म सवऽ अनेक ह द ू प रवार बसे हए ु ह। संसार म यऽ-तऽ बखरे हए ु इन ह द ू बंधूओं के िलए भारत म एक सांःकृ ितक अिध ान के

प म कसी

संःथा का होना िनता त आवँयक है । भारत के ूमुख, ूित त, धम-संःकृ ित पर

ौ ा रखनेवाले सत ्-पु ष से आप िमिलये। उनसे वचार वमश क जए। उ ह इस नये संक पत काय के अनुकूल बनाइये। कन महानुभाव से िमलना, चचा करना,

इसक सूची बनाइये। कुछ नाम म भी सुझाऊंगा। आप ह द ू महासभा के ौी व.घ.

दे शपांडे जी से भी संपक कर।” “व

के ह दओं के िलये आवँयक इस काय को राजनीित से सवथा दरू ह रख। ू

साथ ह

ह द ू महासभा या अ य कसी भी दल के मंच का इस काय के िलये उपयोग

न करने क सावधानी बरत। य द ये दोन शत ौी. दे शपांडे जी को मा य ह तो ह

उनका इस संक पत काय क

से उपयोग हो सकेगा।”

द. 29 अगःत १९६४ को सां दपनी आौम म संप न हई ु इस बैठक म नई संःथा के

संबंध म सभी अंग पर वःतार से वचार कया गया। संःथा का नाम

या हो? यह

वचार ूाथिमक चचा का वषय रहा। ‘ व ’ श द पर सबक सहमित थी। क तु

‘सनातन’, ‘आय’, ‘धम’, ‘ ह द’ू , ‘स मेलन’ और ‘प रष ’ आ द श द संःथा के नाम

रखे जायँ या नह ं, इस मु े पर मतिभ नता ूगट हई। इस संबंध म ौ े य ौी तुकडो ु

जी महाराज

ारा ूगट कया हआ वचार सवमा य हआ। ौी तुकडो जी महाराज ने ु ु

कहा, “भारत म हम सनातन, ह द,ू आय आ द नाम लेकर आपस म झगड़ते ह ह।

इस कारण ‘ व

ह द’ू श द का ूयोग यथाथ तथा मा

माना जाय।” सभी ने इस

मत से सहमित दशाई। ौी गु जी

यानपूवक सुन रहे थे। अ त म आमं ऽत को संबोिधत करते हए ु ौी

गु जी ने कहा,

“य द हम संःथा के नाम म ‘धम’ श द का अंतभाव करते ह तो हमारे काय क मयादा केवल धम से संबंिधत वचार तथा उसके अनुसरण तक ह सीिमत रह जायेगी। हम तो धम, अथ, काम और मो

चार पु षाथ का यापक वचार तथा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

244


पुरःकार करना है । ह द ू समाजजीवन को सभी

से सु ढ़-बलसंप न कर उ ह

ह द ू जीवन के आदश से ूे रत करने क अपना इ छा है । इस कारण अपनी

संक पत संःथा के नाम म ‘धम’ श द का ूयोग न हो। उसी ूकार ‘स मेलन’ श द से काय का यथाथ बोध नह ं होता। ब क ‘प रष ’ श द मुझे यो य ूतीत होता है ।” ौी गु जी के इन वचार , सुझाव से सभी सहमत हए। फलतः ‘ व ु

ह द ू प रष ’

नामकरण सवस मित से ःवीकृ त होकर इस संक पत संःथा का ूथम चरण पूण कया गया। वशव के सभी ह दओं ु के िलये आधारभूत िस

होनेवाली इस व

यापी

संःथा के कायारं भ म ह ू येक छोट -बड़ बात क ओर ौी गु जी का कतनी बार क से

यान था, अपने अंतःकरण के भाव को अ य सहकार कायकताओं तक

संबिमत करने क उनक हआ। ौी गु जी ु ‘व

मता थी, इसका प रचय उप ःथत महानुभाव को

क अलौ कक ूेरणा से सभी ूभा वत हए ु थे।

ह द ू प रष ’ का नामकरण बोने के प ात सवस मित से यह िनणय िलया

गया क प रष ‘वै

कतनी

विधवत ् ःथापना १९६६ म कुंभ मेले के पावन अवसर पर एक

क ह द ू स मेलन’ का तीथराज ूयाग म आयोजन कर क जाय। ह द ू इितहास

म इस घटना का असाधारण मह व है । आधुिनक इितहास म व

ह द ू प रष

ःथापना धम, संःकृ ित, संःकार सामा जकता और संसार के समःत ह दओं को ु

अपना भावा मक तथा सांःकृ ितक मंच ूा

कराने क

से अ यंत मह वपूण

घटना मानी जाती है । जस समाज म िभ न-िभ न संूदाय, जाित-उपजाित ते लोग व मान ह तथा जो संसार म बखरा हआ है , अिभसरण शू य बना हआ है , ऐसे ु ु ह द ू समाज को ‘ व

ह द ू प रष ’ के

प म एक समान मंच उपल ध हआ। ु

द. २२, २३, २४ जनवर १९६६ के ऽ- दवसीय स मेलन के अवसर पर व

भर से

ूयाग म आये ह दओं ु के िलए यह स मेलन अभूतपूव उ साह और ह द ू एका मता

क अनुभिू त दे नेवाला िस इस प रष

हआ। ु

के ःथापना के पूव ौी दादा साहब आपटे ने यापक

था। ौी आपटे जी ने विभ न ःथान पर अपने-अपने मया दत

धमगु , मठाधीश, महं त तथा धािमक, सामा जक व

ह द ू प रष

प से ूवास कया ेऽ म कायरत

ेऽ के कायकताओं से भट कर उ ह

के उ े ँय और कायकलाप से अवगत कराया था। ौी गु जी भी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

245


अपने िन य ूवास म मा यवर तथा विभ न प रष

ेऽ के कायकताओं से वातालाप कर

क सफलता के िलए ूय शील थे।

ौी गु जी ने प रष संपूण व

क सफलता का ौेयभाजन ःवतः को न मानते हए ु बताया क

के ह द ू ूितिनिधय को एक प रष

के

प म आमं ऽत करने क

क पना मूलतः ह द ू महासभा के एक कायकता ने ूगट क थी। कंतु इस संबंध म ौी गु जी का अिभूाय था क इस ूकार क प रष दल के

का गठन कसी भी राजनीितक

ारा न हो। राजनीित से परे और ह द ू समाज के हताथ कायरत संःथा ह

इसे मूत प ूदान करे , यह उनक धारणा थी।

आ य क बात है क ज ह ने इस क पना को ूथम ूःतुत कया, उनसे कोस आगे ौी गु जी क ूितभा का वःतार हआ। मूल क पना बहत ु ु बड़े पैमाने पर हं द ु स मेलन करने क थी। पर ौी गु जी क इ छा थी क इस प रष

ता कािलक न हो। स मेलन क सफलता से ूस निच उ ह पसंद नह ं था। ौी गु जी ने इसी बात को

का अ ःत व

होकर बाद म िन ंबय होना

यान म रखा और इसी दशा म

शीयता से कायकता आगे बढ़ ऐसी ूेरणा उ ह द । व

ह द ू प रष

का यह मंच सचमुच अतीव भा यशाली था। संघ तथा ौी गु जी

क ूेरणा से दे श म अनेक काय ूारं भ हए ु , फले फूले, क तु ूेरणा श

चैत यमूित के प रष

प म ौी गु जी य

शः जहाँ उप ःथत रहे वह केवल व

का मंच ह था। वहाँ भी नेता के

अिधक यो यता ूा

ह, यह

ह दू

प म नह ं अ पतु वनॆ कायकता के

म रहे । सांद पिन आौम क बैठक के समय ौी गु जी ने य मा यवर क सु वधाओं क ओर

और

शः हर उप ःथत

यान दया था। आमं ऽत महानुभाव मुझसे बड़े और

वनॆ भाव उनके मन म था। ःवतः के य

व के

संपूण-िनःशेष वलय का इससे अिधक ूभावशाली अनुभव या उदाहरण दलभ ह ु होगा।

ूयाग म अपने समारोप के भाषण म ौी गु जी ने ःवतः के बारे म जो कहा उसे सुनकर सह

ौोतागण ग -ग

हो उठे थे। ौी गु जी ने कहा था, “वःतुतः मुझे यहां

आकर कुछ बोलने का कोई ूयोजन नह ं था। क तु दो माह पूव ौीमत ् ारका पीठाधी र ौी शंकराचाय महाराज ने मुझे आ ा द

बोलना आवँयक है । मने

क मुझे इस अवसर पर कुछ

मा याचना करते हए ु उनसे कहा था क मेरा काम तो

नवयुग ूवतक ौी गु जी

246


मंडप को बुहारना और उसे साफ सुथरा रखना ह है । म बड़ रहंु गा

िच से यह काम करता

य क म एक ःवयंसेवक हँू । मेरा इससे अिधक कुछ करना धृ ता होगी।

क तु ौी शंकराचाय महाराज क अव ा भी कैसे करता? उनक आ ा का पालन

करने के अित र

कोई चारा नह ं था। कुछ ूसंग, कुछ बात ऐसी होती ह, जनका

पयाय नह ं होता। इसी कारण म आप जैसे महानुभाव क सेवा करने हे तु यहां उप ःथत हआ हँू ।” ु इन वनॆ भाव-भीने उ -गार को सुनकर कसी को पांडव के राजसूय य पर भोजनो र प ल उठानेवाले तथा महाभारत यु

के पव

के समय अजुन के घोड़ का

खरारा करनेवाले ‘माधव’ (ौीकृ ंण) का ःमरण हआ हो तो कोई आ य नह ं। ु उप ःथत साधु-संत के मनः पटल पर यह िचऽ सं कत हआ होगा। ु

इस प रष

क संपूण यवःथा क ओर ौी गु जी का

यान के ित था। मंडप म

उनक चहल-पहल चैत य िनमाण करती। कहां कोई ऽु ट न रह पाए इसिलए अ य कायकताओं को सूचना दे ना, ःवयं दसरे के काम म हाथ बँटाना, साथ ह एक ह मंच ू

पर आसीन जग -गु ओं, महं त तथा धमाचाय के बीच सामंजःय बना रहे , इस ओर भी वशेष

यान दे ना, यह उनका आचरण-परखनेवाल के िलए आदश था। ौी गु जी

तो सवसाधारण ःवयंसेवक क भांित ह कायरत थे। ौी गु जी क एक और वशेषता इस प रष

गोचर हई। कसी ू ु

या ूःताव

पर मतभेद होता हआ दखाई दया तो ौी गु जी वनॆता से सम वय साध लेते थे। ु धमपीठ के मूध य आचाय के उपदे श पर यथोिचत भांय करते हए ु िभ न मत-

मतांतर म भी समानता का अंतःथ सूऽ कस तरह व मान है , यह वे ःप

कर दे ते

थे। ौी गु जी क द ता, ूेमामह वनॆता और सम वय साधने क कला के कारण

प रष

को एक वधायक दशा ूा

उप ःथत आचाय के

हई। एक आयाम ूा ु

हआ जसके सा ा कार से ु

यान म यह बात भी आई क धमम थ म रा पु ष क सेवा

ह अिभूेत है । युगानुकूल धम वचार के एकमत से मा कसी हु ष

होने का आन द सब ओर ूकट हआ। अ य ु

ारा यह काय हो पाना क ठन था। संसार म यऽ-तऽ बखरे हए ु

आ म वःमृत और िनंूभ जीवन जीनेवाले, ह द ू धम क ज मभूिम भारत से आधार तथा मागदशन क ूाि

से ूद घ काल तक वंिचत और ह न भाव से मिसत

नवयुग ूवतक ौी गु जी

247


भारतवासी ह दओं म एक तेजोमय प रवतन क संजीवनी का संचार करने क ु

उ कटतम आकां ा य द ौी गु जी के मन म न होती, साथ ह इस ई र य काय म वे अपने ‘अहं ’ क भावना को िनःशेष विलन म कर पाते तो यह ूयाग का स मेलन ऐसा अनुपम यश शायद ह ूा व

ह द ू प रष

क ःथापना एक नवयुग िनमाण करनेवाली घटना है । यह प रष

याने संघ काय का व ह द ू पुन

कर पाता।

यापी ूःतुतीकरण ह था, ऐसा कहना अनुिचत नह ं होगा।

थान के िलए न केवल भारत म अ पतु भारत के बाहर भी कोई छोटा-

मोटा काम करना हो तो उसके िलए वै करने के िलए एक असीम सु वधा प रष

क ह द ू परं परा का सूऽ महण कर काम के

संघप ित से ह हो ऐसा आमह नह ं था। प रष

प म उपल ध हई। प रष ु

का काय

कन काय को करे इस संबंध म ौी

गु जी ने ूयाग के उपने भाषण म मागदशन कया दै । सूऽ

प से उस भाषण का

सार यहां उ -घृत कया जाता है ।

१७.६ प रष

के ूमुख सूऽ

(१) ूद घ पराधीनता, आ म व ास शू यता, परानुकरण और ह नताबोध के फलःव प ‘न ह दःु न यवनः’ ऐसी संःकारह न अवःथा को ूा

समाज को धीरे -धीरे अपने

धम, त व ान तथा आचरण परं परा क ौे ता का बोध कराकर धम क पुनः ूित ापना का ूय

कया जाय। ूारं िभक

यवःथा क जाय। इन

प म

यूनतम संःकार ूदान करने क

यूनतम संःकार का ःव प व ान ् मंडली तय करे ।

(२) वदे श म बसे ह द ू बंधू ह द ू ह रहना चाहते ह। क तु

ान तथा संःकार क

उिचत यवःथा न होने कारण इस भावना क पूित नह ं हो पाती। संःकारह नता के

फलःव प अवछनीय प

मी स यता के आद होने का भय उ प न हे रहा है । अतः

हमारे इन वदे शी प रवार के िलए संःकार तथा

ान ूदान करने क

यवःथा हो।

(३) हम तो अपने दे श म ह ःवतः को ह द ू कहने से कतराते ह। ह नभाव से हम

मःत ह। ‘म ह द ू हँू । एक ह द ू होने के नाते भारत क पु य पावन परं परा क र ा, संवधन तथा ूसार-ूचार करना मेरा परम प वऽ कत य है और इसे पूण करने के

िलये म अमसर रहँू गा,’ ऐसा कहने का साहस सवऽ िनमाण होना आवँयक है । वदे श

म बसे ह द ू बंधूओं के मन म व ास िनमाण हो और वे गव से कह सक क अपना

नवयुग ूवतक ौी गु जी

248


एकमाऽ आधार भारत का ह द ू समाज है । इसके िलए अपने दे श म वैसा वातावरण

िनमाण करना होगा। इस

से गोह या बंद होना आवँयक है । इसके साथ ह हम

चा हए क हम ह द ु व का और ह द ू होने का अिभमान रख। हम ह द ू के नाते

सारे संसार म ॅमण कर।

(४) हम कसी भी संूदाय का वरोध नह ं करते। इसका अथ है क हम जो कुछ

करना है वह ूामा णकता, ूेम तथा च रऽ क शु ता के बलबूते पर तथा मानवता के ूित मम व और ूेम भाव से करना होगा। संूदाय के नाम पर ःवाथ क ूवृ

को

बढ़वा दे ना ठ क न होगा। यिभचार और वनाश का दामन हम न पकड़ यह मेरा आमह है । ह द ू धम सवसंमाहक है , इसको हम न भूल। (५) सनातन धम के मायने ह हमारा महान ्, िचरं जीवी, िस ा तमय आचार धम।

अपनी परं परा म िनिमत बौ , जैन, िसख आ द सभी पंथ इसक प रिध म अंतभूत ह। जैन संूदाय के एक ौे

मुिन ने अपना मत य

करते हए ु जो कहा क, “जो

ःवयं को ह द ू नह ं कहता, वह जैन भी कैसे रह सकता है ,” वह स य है । अपने सभी

संूदाय एक ह परं परा से िनिमत हए ु है । इन संूदाय के बीच सामंजःय क भावना िनमाण कर समम समाज को वैभवसंप न बनाना हमारा कत य है ।

(६) पहाड़ और जंगल म रहनेवालो हमारे वनवासी बंधु दःखी ह। उनके दःख का ु ु

कारण हमारा वह समाज है जो ःवतः को समझदार तथा उ चवग य मानता है । इस वनवासी समाज पर अनेक वष से अ याय होता रहा है । अपने समाज का अिभ न संग होने के कारण हम हर ूकार से उनक सहायता कर अपनी भूल का प रमाजन करना चा हए। व

ह द ू प रष

के अिधवेशन के सफलतापूवक समा

ने जो भावना अपने भाषण म य

होने के फलःव प ौी गु जी

क , उसे उ ह ं के श द म िलखना उिचत होगा।

ौी गु जी ने कहा था, “ढाई दन का यह ूसंग ःवणा र म अं कत करने यो य है ऐसा म मानता हंू । हम सभी के िलए यह अवसर अ यंत भा यशाली है । वगत अनेक

वष से सोया हआ हमारा भा य अब जाग उठा है । अब सारे व ु बजेगा और ऊँचाई पर उसका

म उसका डं का

वज लहराएगा। ःवामी ववेकानंद के समान महापु ष

ने सारे संसार म संचार कर कहा था क वह दन दरू नह ं जब व हमारा

के मःतक पर

वज लहराएगा। ऐसा होगा इसम कोई संदेह नह ं।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

249


ूयाग म संप न अिधवेशन क सफलता के प ात ् गुजरात, महारा , असम आ द

रा य म व

ह द ू प रष

के ूादे िशक स मेलन संप न हए। ौी गु जी इन सभी ु

अवसर पर उप ःथत थे। १९७० म असम के जोरहट नामक नगर म जो महास मेलन हआ था, उसम म हलाओं के िलये एक वशेष कायबम क योजना क गयी थी। नाग ु

ूदे श क रानी गाइ डं यू इस कायबम म वशेष

प से उप ःथत थीं। ौी गु जी ने

इस अवसर पर उप ःथत म हलाओं को संबोिधत करते हए ु बताया क मातृश

समाज को अपना संःकारधन दे ने हे तु ूय शील रहे । ौी गु जी का मागदशन म हलाओं क

ौी गु जी

से बहत ु ह ूभावशाली रहा।

ारा दया गया भाषण पूव र

ेऽ (असम, मेघालय, िमजोरम, नागालै ड,

म णपुर, ऽपुरा और अ णाचल के समावेश से बना घटनाओं क पूवसूचना दे नेवाला िस

ेऽ) म होनेवाली संभा य

हआ। साथ ह इन संकट का सामना कस ु

ूकार कया जाय, इस संबंध म भी मागदशन कया गया। घुसपैठ के

ारा असम को

मुसलमान क सवािधक सं यावाला ूा त बनाने का ष यंऽ रचा जा रहा है , के ि का एक मु ःलम हतिचंतक मंऽी इन घुसपै ठय को फुसला रहा है , ऐसी चेतावनी भी उ ह ने द । यह भी बताया क हाल ह म िनिमत ‘मेघालय’ ूा त म ईसाइय

ारा

उपिव खड़ा हो सकता है । ौी गु जी ने मेघालय क िनिमित न क जाय ऐसी सूचना

शासन को द थी क तु कसी के दबाव म आकर मेघालय का िनमाण हआ। ौी ु गु जी ने जो भ वंयवाणी क थी वह स य िस

हई। ु

इस ू यािशत संकट का मुकाबला करते समय ह द ू समाज को

इसे ःप

या करना होगा,

करते हए ु ौी गु जी ने कहा-

(१) जनगणना के समय मुसलमान अपनी सं या बढ़ाचढ़ाकर बताते ह। ऐसा न हो, इसके िलए सतक रहकर सावधानी बरत। हर ह द ू को चा हए क वह अपनी गणना

ह द ू के नाते ह करे । शायबल, वशेषपंथ या पहाड़ जाित के नाम से अपना बोध न

कराएँ, केवल ‘ ह द’ू ह िलख।

(२) मेघालय म रहनेवाले सभी पहाड़ तथा वनवासी ह द ू संग ठत होकर अपना नेत ृ व िनमाण कर। ह दओं का अ हत चाहनेवाले त व अपने समाज म दरार ु

िनमाण कर अ पसं यक ईसाइय को अपने से अिधक ूभावशाली बनाने क चे ा कर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

250


रहे ह; इसिलये हम चा हए क हम इस ष यंऽ क ध जयां उड़ा द और िनयंऽण के

सूऽ अपने हाथ म ल। इस क ठन समःया का िनवारण सुसऽ ू हं द ु एकता पर ह

िनभर है । (३) व

ह द ू प रष

के एक कायकता के नाते हम एक ‘गाँव’ चुने। त प ात ् इस

गाँव से िनरं तर संपक बनाए रख। इस गाँव म बसनेवाले अपने समाज बंधुओं क

िश ा, धम जागृित और उनक पा रवा रक समःयाओं को हल करने के िलए सहायता कर। उनके साथ हलिमल कर रह। उनके साथ बैठकर खाना-पीना कर। ऐसा करने से उनम व ास का भाव जागेगा और समरसता क भावना िनमाण होगी। (४) ूा

धन का यय समाजको ौे तम अवःथा ूा

इस ूकार सवकष ूय श

होने पर अ ह द ु श

कराने के िलए ह

कया जाय।

पराःत होगी और भारतमाता के

शाली अंग के नाते अपना यह ूदे श साम य के साथ खड़ा रहे गा।

इस ूकार ौी गु जी ने एक ऐसा व ास कायकताओं के

दय म उ प न कया

जसके सुप रणाम वगत अनेक वष के प रौम के फलःव प आज ू य

दखाई दे रहे ह।

१७.७ौी गु जी ने भी जयघोष कया व

ह द ू प रष

के समावेशक यासपीठ का उपयोग ह द ू समाज के विभ न गुट

म बढ़ हई ु दरार पाट कर ःनेहमय समरसता क भावना जगाने म होने लगा है , यह दे ख कर ौी गु जी को बहत ु आन द होता था। एक बार द के सहसरकायवाह ौी यादवराव जोशी जी से यह ू

णांचल ूचारक और संघ

पूछा गया क, “ौी गु जी ३३

वष तक सरसंघचालक थे। उनके इस कायकाल का एकाध ूसंग सकगे जब उ ह िनरितशय आनंद ूा

या आप बतला

हआ ु ?” इस पर यादवराव जी ने त काल उ र

दया क सन ् १९६९ म उडु पी म कनाटक ूदे श व

स मेलन हआ था। इस स मेलन म समःत धमाचाय ु सवस मित से पा रत कया गया क धमशा

ह द ू प रष

का दो दवसीय

ारा इस आशय का ूःताव

म अःपृँयता या अ य कसी ूकार

ऊँच-नीच भाव का य कंिचत भी समथन नह ं है , सब ह द ू भाई-भाई ह, कोई भी

पितत नह ं है । यह ूःताव पा रत होते ह ौी गु जी का वे कह उठे , ध य है ! ध य है ! यह ऐितहािसक

दय आनंद से उमड़ पड़ा।

ण ध य है । उसका ःवागत ूच ड

नवयुग ूवतक ौी गु जी

251


जयघोष और तािलय क गड़गड़ाहट से हो ऐसी सूचना उ ह ने कायवाह का संचालन करनेवाले कायकता ौी सूयनारायण राव को द । भाषण का बम अ पकाल के िलए

ख डत हआ और अपने को न रोक पाते हए ु ु ौी गु जी ने स मेलन के संचालक से

कहा क सभी ूितिनिधय से कहो, “तािलयाँ बजाओ”। जय घोष का आवाहन करने के

िलए ौी गु जी ने ःवयं तािलयाँ बजायीं और जयघोष कया। उनका चेहरा उस समय आन द से खल उठा था। ऐसी आनंद वभोर अवःथा म उ ह मने कभी नह ं दे खा था। मुझे लगता है क वह उनके संघजीवन के (Finest hour) आन द का सव म

था। स मेलन संप न होने पर हम लोग वमान तल पर गये। वहाँ पर भी मुझे एक ओर ले जाकर उ ह ने मुझसे कहा, “यादवरावस यह स मेलन और इस स मेलन क कायवाह ऐितहािसक माननी पड़े गी। इस स मेलन म हए ु वचार विनमय और

भाषण का वःतृत यौरा भारत क अपनी सभी भाषाओं म ूिस

होना चा हए।

उसक हजार ूितयाँ छपवाकर उ ह सवऽ ूसृत करना चा हए।” उडु पी म, “अःपृँयता को धम म ःथान नह ं है ” इस आशय का जो िनःसं द ध ूःताव व वध पंथ के

धमाचाय और शंकराचाय क सहमित से स मत हआ ु , वह स मत होने के िलए ौी

गु जी कम से कम ६-७ वष से ूय शील थे। जैन, बौ , िसख, वीर शैव धमगु ओं से और धमाचाय से उ ह ने ूद घ चचा क थी। उन सब ूय

के सफल होने क

सा ी उडु पी स मेलन ने द । पू य पेजावर मठाधीश ने सभी को एक नया मंऽ दया‘ ह दवः सोदराः सव’। उनके बाद के पऽ और व

य म भी उ ह जो अतीव संतोष

हआ ु , उसका ूित ब ब दखाई दे ता है । था। वे ह रजन थे, वे सेवािनवृ यह सऽ ौी भरण या क अ य ता म स प न हआ ु अिधकार भावावेग से ग -ग

सऽ समाि

हो गये।

के बाद मंच से नीचे उतरते ह ौी भरण या ने ौी गु जी को अपने

बाहपाश म बाँध िलया। उनक आँख से आँसओ ु ं क धारा बह चली। कुछ ु

ण बाद

ँ धे ःवर से उ ह ने कहा, “यह बड़े सौभा य क बात है क हम लोग के िलए आपने

यह काय अपने हाथ म िलया है ।” ौी गु जी ने कहा, “मुझ अकेले ने नह ं स पूण ह द ू समाज ने इस समःया का भार िलया है ।” ौी गु जी के जीवन काल म ह चुका था। अब तो यह काय

ह द ू प रष

ढ़मूल हो कर व

का काय अनेक दे श म ूारं भ हो

भर फैल चुका है । इसका आधार है

अपने वे ःवयंसेवक जो यापार या नौकर के कारण वदे श म बसे हए ु ह। ौी गु जी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

252


चाहते थे क व

अ पतु संघ या व

म फैले अपने ःवयंसेवक का न केवल परःपर “संपक बना रहे ह द ू प रष

के संःकार के अनुकूल और अनुसार ह उनक

जीवन शैली रहे ।” कसी अ य संःथा का गठन कर य द यह संभव हो तो तदथ ौी गु जी क स मित अवँय रहे गी। आकां ा एक ह है क वदे शःथ ह दओं का सूऽ ु

अखंड रहे । ौी गु जी ने वदे श म बसे ह दओं से संपकसाधन का कायभार द ली ू संघ कायालय के जे

ूचारक ौी चमनलाल जी के कंध पर स पा। पऽ- यवहार तो

पहले से ह िनरं तर होता था। ॄ दे श से ौी गु जी को अितिथ के नाते आमंऽण ूा

हआ था क तु शासक य ु

नेताओं क इ छा ूितकूल होने के कारण ौी गु जी वहाँ न जा सके। ौी दादा साहब आपटे उन सभी दे श का दौरा कर आए जहाँ अपने ह द ू बसे हए ु ह। कालांतर म

संघ के एक ूचारक ौी लआमणराव िभडे क

वशेष िनयु

का काय करने के िलए क गयी।

वदे श म ह द ू संगठन

वदे श म बसे ह द ू बंधओ ु ं से िनरं तर संबंध, ह द ू आदश और वदे शी जीवन शैली का

ूभाव आ द वषय के संबंध म उ -बोधक तथा बृह ह द ू प रष

पऽ यवहार कया गया। व

वदे श म चल रहे अनेक ह द ू संःथाओं एवं ह द ू जागृित के काय का

एकमाऽ मंच था। लंदन म १९७० म ज मा मी के अवसर पर गोपाल कृ ंण मं दर का उ -घाटन संप न हआ। ौी गु जी ने इस ूसंग पर एक वःतृत संदेश भेजा था। ु

वदे श म बसे ह दओं का मागदशन ह इस संदेश का मु य सार था। नागपुर म इस ू

संदेश का

विनमुिण ौी गु जी क आवाज म कया गया था और लंदन म कायबम

के अवसर पर उसे उप ःथत ौोताओं को सुनाया गया। वदे श म व का काम सुचा

तथा विधंणु

ह द ू प रष

प से चल रहा था। साथ ह भारत म इस वधायक,

रचना मक काय के सैकड़ के ि खोले गये थे। १९७९ म दसरा जागितक स मेलन ू ूयाग म आयो जत कया गया और बहत ु बड़े पैमाने पर उसे ूो साहन भी ूा

१९८२ म स प न रा

यापी ह द ू स मेलन व

ह द ू प रष

हआ। ु

के त वाधान म ह

सफल हए को वापस लेने के धािमक कत य का ःमरण ु ु थे। इनम मतांत रत ह दओं दलानेवाला मंऽ ‘न ह द ू पिततो भवेत ्’ गूज ँ उठा। १९६६ म व

ःथापना कर ौी गु जी ने ह द ू जगत ् क

ह द ू प रष

जस आवँयकता क पूित क थी, भ वंय

ने काल क कसौट पर उस िनणय को सह िस

कर दखाया।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

253


ह द ू प रष

क भाँित अ य संःथागत तथा संगठना मक काय ौी गु जी क

ूेरणा से ह गितशील हो पाए। इन काय क वृ

म ौी गु जी का अथक प रौम ह है यह बात तब ारा िलखे गए सह

हई ु , ूभाव बढ़ा क तु इसके मूल

यान म आती है जब हम उनके

पऽ को पढ़ते ह। ौी गु जी ने अनिगनत लोग को पऽ िलख

कर धािमक, सांःकृ ितक तथा सामा जक काय करने हे तु ूवृ

कया। अनेकानेक

गुणवान कायकताओं को अपने गुण का उपयोग समाज हत म करने क ूेरणा द , कायश

को दशा ूदान क ।

मंथ लेखक, मंथालय संचालक, क व, दै िनक, सा ा हक ूकािशत करने क इ छा रखनेवाले, सेवाकाय म

िच रखनेवाले, अ या म के माग पर चलने के िलए उ सुक

वरागी, भजन पूजन करनेवाले, सेवा से िनवृ

ू य

भट कर या पऽ यवहार

कमचार , राजनीित

आ द अनेक लोग

ारा ौी गु जी से मागदशन क अपे ा कया करते

थे। ौी गु जी से प रिचत हर य

जानता था क वे कोई स ाधार नह ं ह ू युत

ःवयं अप रमह का ोत िलए हए ु ूचारक ह। ौी गु जी ःवयं अपने आप म मूितमान ्

त व थे। उनक कथनी और करनी एक प थी। इसीिलये लोग ौी गु जी से मागदशन क अपे ा करते थे। भौितक

था। जो था वह असीम-अथाह

प से उनके पास दसर को दे ने के िलए कुछ भी नह ं ू ान, ूेम, दे शभ

अ या मक, सामा जक तथा सांःकृ ितक क असीम श

, धम-ूवणता और धािमक,

ेऽ म पारदश , िनरपे

दशादशन कराने

ौी गु जी भी अपना दािय व समझकर समाज और रा

का हत-अ हत दे ख कर

उपाय और परहे ज बताया करते थे। कभी-कभी कड़वा सच कहने म भी वे हच कचाते

ु य का दशन कराते समय उनके नह ं थे। कटस

दय म ःथत ःनेहभाव का भी

अनुभव होता था। संॅमावःथा म पड़े अनेक लोग ू

पूछकर ौी गु जी से मागदशन

क अपे ा रखते थे। सामा जक समःयाओं के साथ ह पा रवा रक समःयाएँ भी उनके सामने रखी जातीं और प रवार के मागदशक बुजुग के नाते वे हल बताते और उसका

स मान भी रखा जाता। ौी गु जी के संभाषण और पऽाचार म कभी िनराशा दखाई नह ं द । उनक धारणा थी क प रौम, व ास, समभाव और सम वचार के

ारा

संकट दरू कया जा सकता है । ौी गु जी के पऽ का य द अवलोकन कर तो हम ू व ास था, भ दखाई दे गा क उनका ई र पर अटट

थी। भगवान पर ौ ा,

मानिसक संतुलन, ह द ू जीवनधारा के अमर व पर व ास ये गुण उनके पऽां कत अ र म कूट-कूट कर भरे हए ु ह। यःततम कायबम म से समय िनकाल कर

समाज क स जन श

को फूल क भाँित खलाने का जो महान ् काय भट-मुलाकात नवयुग ूवतक ौी गु जी

254


और पऽ के मा यम से उ ह ने कया, वह बेजोड़ है । उनक

म न कोई य

मामुली या उपे णीय था, न ह कोई स काय! पऽ भी उनके ह हःता र म िलखे जाने के कारण पाठक के

दय को उनक आ मीयता छू जाती।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

255


१८ कसर क अशुभ छाया ौी गु जी अनुशासन के बहत ु ह पाबंद थे। पूव िनयो जत कायबम अःवःथता के

कारण ःथिगत कये जाने या वलंब से ूार भ होने क कोई घटना १९४० से १९७०

के तीस वष के ू दघ कालखंड म नह ं घट । एक बार तेलग ं ना के आंदोलन के कारण सभी राःते बंद कर दये जाने से बड़ मु ँकल से वे कार से है दराबाद के बाहर िनकल पाये। कंतु ने लूर के संघ िश ा वग म पहँु च पाना फर भी संभव नह ं हो पाया।

वषा के कारण रे ल बंद थीं। अनेक वैक पक माग भी सोचे गए क तु कोई राःता नह ं िनकल पाया। इसका ौी गु जी के मन पर बहत ु असर रहा। बाद म जुलाई क बैठक म उ ह ने कहा क, “एक राःता बाद म

यान आया। य द उससे जाता तो

शायद पहँु च जाता। म नह ं पहँु च पाया, यह मेर अ मता का

ोतक है ।” वे िनरं तर

ूवास कर ःवयंसेवक तथा जनसभाओं का उ -बोधन कया करते थे अखंड कायरत सम पत जीवन ह ौी गु जी क साधना थी। ऐसी ःथित म य द उ ह वौाम करने के िलए बा य कया जाता तो उनका ःवाः य बगड़ने लगता था। शार रक यथा शांित से सहना, कसी को इस क

का पता भी

न चलने दे ना, शर र म बुखार चाहे जतना हो फर भी िनयो जत कायबम सुचा से संप न करना ौी गु जी का िन य ःवभाव बन गया था। शार रक क

को भी

साधना का फल था। ऐसा ूतीत होता था मान कोई अद य आंत रक श

उनक

ूकृ ित मानकर ूस निच

रहना और चैत य से वायुमड ं ल भर दे ना, यह उनक

दे ह से सारे कम करवा रह है । ौी गु जी शर र से छरहरे बदन के थे, आहार सीिमत, क तु दन भर चलते रहते थे। कायबम का ताँता लगा रहता। फर भी कायबम के फलःव प या अ य कसी कारण से थकावट का नाम भी उनके होठ पर नह ं आता था। सदै व ूस न, वनोद बु

जागृत तथा ःमरण श

ओर संपूण आंत रक य

यान, क तु य

आ यकारक। संघकाय ठ क चल रहा है या नह ं इस गत सुख-दःख क ओर से आँख बंद, मान उनका ु

व और शर र िभ न हो। हर समय अ य के सुख-दःख क पूछताछ ु

क तु ःवतः के बारे म सवथा मौन!

ौी गु जी के दै िनक आचरण से सभी अवगत थे। क तु द. ७ अूैल १९७० (शक संवत ् १८९२) क वष ूितपदा के अवसर पर नागपुर म उप ःथत होते हए ु भी ौी

नवयुग ूवतक ौी गु जी

256


गु जी उ सव म ःवाः य ठ क न होने के कारण भाषण न दे सके। यह सुनकर सभी यिथत हए। वगत ३० वष म जो बात नह ं हई ु ु थी, उसे होते दे ख लोग के मन म

भय क अशुभ भावना ःपश कर गई। द. ६ अूैल को ौी गु जी असम तथा केरल

का दौरा पूण कर नागपुर लौटे थे। क तु उनका ःवाः य ठ क नह ं था। ूितपल उ ह दे खनेवाल को ऐसा लगता क ौी गु जी शर र का संतुलन खो रहे ह। कह ं वे िगर न जाय। डॉ टर

ारा क गई पर

ा से भी कोई िन

त अनुमान नह ं िनकल पाया।

दै िनक कायबम िन य के अनुसार ह चलते रहे । द. २८ अूैल से दे श के १९ संघ

िश ा वग के िलए ूद घ दौरा ूारं भ होनेवाला था। ू येक वग म तीन बौ क तथा ःवयंसेवक क बैठक क िन य क प रपाट थी। ौी गु जी ने ूवास करने क ठान ली थी। िन य अटल था। तीस वष क अनुशािसत परं परा िनभानी थी। ौी गु जी िनयो जत कायबम के अनुसार दौरे पर चल पड़े । एक ूा त से दसरे ूांत ू क ओर दौरा होता रहा। सभी कायबम सुचा

प से चलते रहे । क तु कसी के

यान म एक बात आयी क ौी गु जी क छाती पर एक गाँठ उभर आयी है । बाद म पता चला क यह गाँठ तो अगःत १९६९ से ह थी। एक ूसंग वशेष के कारण इस त य का पता चला। ौी गु जी क एक पुराने सं यासी िमऽ से भट हई। इन िमऽ ु

महोदय ने जब ौी गु जी को ःनेहभरा आिलंगन दया तब अिधक जोर दे कर छाती से दबाते समय जेब म रखी फाउ टन पेन ौी गु जी क छाती पर बनी गाँठ पर ऐसी चुभी क उ ह इस आक ःमक वेदना को सहना क ठन हो गया। अपार सहनश

के

धनी होते हए ु भी ौी गु जी िसहर उठे । इस गाँठ पर ूाथिमक उपचार के हे तु एक लेप लगाया गया। इसके पूव भी एक गाँठ आई थी, क तु होिमओपैथी के उपचार से वह दब चुक थी। इस कारण दबारा ूगट ु

हई ु यह गाँठ भी ठ क हो जाएगी ऐसा व ास था क तु ऐसा न हो पाया। संघ िश ा वग के िनिम

जब ौी गु जी ूवास कर रहे थे तब उनक बगल म भी एक गाँठ

उभर आई। द. २ मई को इस गाँठ के अ ःत व का पता चला। बार-बार गाँठ का उभरना कोई अ छा ल ण नह ं था। इस समय ौ ाभाव

दय म संजोनेवाले पुणे के

सु व यात ध वंतर डॉ. नामजोशी मे उनक डॉ टर जाँच करवाई। सभी वै क य पर

ण के सार प िनणय ने डॉ. नामजोशी के मन म व मान अशुभ आशंका क

पु

कर द । रोग था कै सर याने ककरोग।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

257


डा टर

वै

ारा कै सर का पता लगाए जाने के कुछ वष पहले क बात है । मंगलूर के

ौी ौीिनवास ूभु ने, जो ःवयं योगसाधक भी थे, ौी गु जी क छाती का िचऽ

बनाकर बाय कंधे से छाती के दसरे कोने तक रे खा खींचकर कहा क इस जगह ू

कै सर हो सकता है ! आगे चलकर इसी जगह पर वह हआ। पूरे शर र म ौी गु जी ु

को दद हआ करता था, उसका मूल उ ह ने कुंभक ूाणायाम म दोष होना बताया। ौी ु गु जी बादम कहा, “पहली बार इ ह ने ह रोग के मूल का संकेत दया था।” पर तु

इस स भा वत कसर को रोकने क न ह वै

जी के पास दवा थी और न ह डा टर

को इस रोग के ल ण दखाई दये। कायकता डॉ. नामजोशी क ओर दे खकर मन ह मन अपे ा कर रहे थे क वे कहगे, “िचंता करने का कोई कारण नह ं है । सब ठ क हो जाएगा।” क तु डा टर साहब का

सहमा हआ चेहरा दे खकर िनराशा के काले बादल उनके मन पर मंडराने लगे। ःवयं ु ौी नामजोशी अःवःथ से हो गए। उ ह ने ककरोग क आशंका य

क इसिलए

उनका आमह था क ौी गु जी को मु बई ले जाकर उनक और अिधक गहराई से जाँच क जाय। क तु ौी गु जी ने अपना

ढ़संक प य

करते हए ु कहा क संघ

िश ा वग के कायबम म उनके ःवाः य के कारण कोई व न आना उिचत नह ं है , ूवास तथा वग के सभी कायबम म वे पूविनयो जत योजना के अनुसार ह भाग लगे। फलहाल िनजी ःवाः य क ओर

यान दे ने के िलए उनके पास समय नह ं था।

ौी गु जी अगले ूवास के िलए पुण से चल पड़े । वदाई के समय कायकताओं के मन म फर से िचंता के बादल िघर आए। ौी गु जी सदा के भाँित अ वचल रहे ।

उनके मुखमंडल पर उभरा हाःय मान ःवयंसेवक व कायकताओं से कह रहा था, “अरे भाई, शर र क िचंता छोड़ो, संघकाय को बढ़ाओ।” कायबमानुसार ौी गु जी द. १८ मई को मु बई पहंु चे। कायकताओं ने चुपके से टाटा मेमो रयल हॉ ःपटल के व यात कै सर त

डॉ. ूफु ल दे साई को फोन

ारा सूचना द । कायकताओं और

डॉ. दे साई के अनुरोध पर राजी होते ह ौी गु जी क पुनः जाँच कराई गयी। बहत ु

तक- वतक, सोच- वचार और पुनरावलोकन के प ात ् डॉ. दे साई ने भी कै सर क ह शंका य

क । इस िनणय को सुनकर भी ौी गु जी शांत ह रहे । कोई आंत रक

यथा चेहरे पर ूगट नह ं हई। ु “यह कै सर का रोग कस हद तक फैला हआ है और वह ठ क भी होगा या नह ं?” ु

ौी गु जी ने डॉ. दे साई से पूछा। डॉ. दे साई ने कहा, “यह तो श य बया के समय ह

नवयुग ूवतक ौी गु जी

258


पता चल सकेगा। श य बया न कराना याने धोखा मोल लेना होगा, हािनकारक होगा। म चाहता हँू क आप श य बया के िलए स मित द।” डॉ. दे साई का

ानगिभत िनणय सुनकर, ौी गु जी ने कुछ

श य बया के िलए स मित इस शत के साथ द

ण सोचा और

क वह संघ िश ा क समाि

पर

जून के अंितम स ाह म होगी। द. १ जुलाई का दन श य बया के िलए िन

कया गया। संघ िश ा वग का ूवास चल रहा था। सभी कायबम संघ प रपाट के अनुसार आनंदमय वातावरण म चलते रहे - बौ क, चचा संघ हतै षय से भट, हाःय वनोद

आ द। ये कायबम होते दे ख कोई सोच भी नह ं सकता था क ौी गु जी कै सर जैसे जानलेवा रोग से मःत ह। ऐसा आभास भी ौी गु जी के यवहार म

गोचर नह ं

होता था। जससे माना जा सके क जन पर कै सर के िलए श य बया होने जा रह है , जो मृ यु क कृ ंण छाया से िघरे हए ु ह, वे यह ह। इस समय सामा जक वातावरण भी ःवःथ नह ं था। राजनीितक उथलपुथल के कारण समाज आंदोिलत था। काँमेस का वभाजन होकर ौीमती इं दरा गांधी के हाथ म स ा सूऽ आ चुके थे। स ा का श

हाथ म आते ह संघ पर ूितबंध लगाने क भाषा

जोश-खरोश के साथ बोली जाने लगी। संघ पर ूितबंध के िलए वातावरण का गम

होना आवँयक था। िनयित ने शासन का साथ दया। ःथान-ःथान पर मुसलमान ने

दं गे-फसाद शु

कर दये। क तु ूचार यह कया गया क इन दं ग क जड़ म संघ

का हाथ है । इस गलत ूचार क आग को संघ वरोधी नेताओं ने हवा द । उनका ूय था क आग जलती रहे और लोग संघ से घृणा करने लग। क तु ौी गु जी अ वचिलत रहे और ःवयंसेवक के सम इन असामा जक घटनाओं का अ वयाथ ःप संगठन अिधक वशाल, सु ढ़ तथा श

दये गये अपने भाषण म

करते रहे । उ ह ने कहा क अपना

शाली बनाना ह इस गलत ूचार का सह

उ र दोगा। क तु बाहर समाज म ूकट

प से उ ह ने कोई ूित बया य

नह ं

क। ूवास के बम म ौी गु जी द. ११ जून १९७० को द ली पहँु चे। द ली म आते ह

उ ह ने उपयु

अपूचार क

ट का जवाब प थर से दे ने क ठान ली। इस हे तु एक

नवयुग ूवतक ौी गु जी

259


पऽकार प रष

प रष

का आयोजन कया गया। दे श- वदे श के पऽकार इस मह वपूण पऽकार

म उप ःथत थे। वातावरण ज ासा से ओतूोत था। पऽकार ने आड़े -टे ढ़े ूँऩ

पूछे क तु सभी ू

के सुलझे हए ु उ र शांत रहकर ौी गु जी ने दये। संघ पर

लगनेवाले ूितबंध क संभावना से जुड़े ू

का उ र दे ते हए ु ौी गु जी ने कहा, “जो

लोग संघ पर ूितबंध लगाना चाहते ह उ ह म बताना चाहँु गा क यह कदम उनके हत म कदा प नह ं होगा।”

आवँयक ूित बयाएँ य

कर समाज और सरकार को सतक करने के प ात ् ौी

गु जी ने संघ िश ा वग के िलए ूयाण कया। २७ जून को कलक ा का वग समा हआ। अपने आ ासन के अनुसार वे कलक ा से सीधे मु बई पहंु चे। द. २९ जून को ु पुनः पर

ण करने के बाद द. ३० को उ ह टाटा मेमो रयल हॉ ःपटल म श य बया

के हे तु भरती कर िलया गया।

१८.१ श य बया द. १ जुलाई। ूातः ९-४५ का समय। ौी गु जी को ऑपरे शन िथएटर म ू व

ु गया। डॉ. दे साई ने गाँठ का टकड़ा काटा, पर

कया

णाथ भेजा। कै सर है या नह ं? अनंत

कुशंकाएं. आशाएं िथएटर के अ दर और बाहर खड़े िचंितत कायकताओं के मुख पर

दखाई दे रह थीं। जीवनदाता श यकम एक ओर तैयार तथा बाहर आशा-िनराशा का

संघष। कुछ समय बीता और पर

ण क

रपोट डॉ. ूफु ल दे साई को दखाई गयी।

रपोट ने कहा, ‘कसर है ’। और डा टर दे साई ने शर र का कै सरमःत भाग श य बया कर समूल न

करने क

से अिधक कै सर क

बया ूारं भ क । काट-छाँट क गित बहत ु तेज थी। अपे ा

याि

थी। सभी गाँठे समूल िनकाल द ग । ौी गु जी के

ु दय म छपी और कई वष से उनक छाती को कुतरने और असहनीय वेदना दे नेवाली

ये गाँठ श यकम के श

के आघात होते ह बगल क शे म िगर पड़ । लगभग तीन

घंटे तक यह ऑपरे शन चलता रहा। पसिलय के नीचे कतनी गहराई तक छाती को कै सर ने कुरे दा था इसक क पना करना असंभव था। डॉ. दे साई ह इस अंदर क बात को आ य वमूढ़ होकर जान पाए थे। दोपहर १ बजे ौी गु जी उनके कमरे म लाया गया। उस समय वे लगभग बेहोशी क अवःथा म थे। सामा य रोिगय को श य बया के बाद जी मचलाना या असहनीय वेदना का क

होता है । क तु ौी गु जी को ऐसा कोई क

नह ं हआ। दोपहर ३.३० ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

260


बजे उ ह ने चाय पी। दसरे दन भोजन भी कया। िव पदाथ बह जाने के िलए जो ू

निलयां शर र म लगाई गई थीं, वे भी तीसरे दन िनकाल द गयीं।

ःवाः य क पूछताछ के िलए लोग का आना-जाना ूारं भ हो गया। चंद दन म ह अःपताल के अ य रोिगय क पूछ-ताछ हे तु ौी गु जी िनकल पड़े । अ य को दलासा दे ना, आ ःत करना, हौसला बढ़ना यह उनका उ े ँय था। ूाथना के िलए ौी गु जी समीप ह लगनेवाली शाखा म भी जाने लगे। ूितवष जुलाई म नागपुर म होनेवाली कायका रणी क बैठक इस वष १० से १२ जुलाई तक मु बई म संप न हई। द. ११ को ौी गु जी कुछ समय के िलए बैठक म ु आए। इस तरह तीन स ाह बीते। श य बया के कारण हआ घाव तेजी से ठ क हो ु

रहा था।

अःपताल म रहने का ूयोजन अब समा

हो गया था। डॉ टर मंडली भी समाधान

और खुशी का अनुभव कर रह थी। द. २६ जुलाई को ौी गु जी ने

णालय से बदाई ली।

णालय के वाःत य काल

म उ ह ने अनेक को अपना बना िलया था। मनुंय जुटाने का काय यहाँ भी जार था। जो भी डॉ टर, सेवक प रचारक तथा अ य कमचार उनके पास आते, ौी गु जी उनके सुख-दःख क पूछताछ कया करते थे। अपने बारे म कुछ भी न कहने या ु िचंता करनेवाले ौी गु जी

ारा समीप के कमचा रय और अ य अनजान लोग क

पतृतु य वा स यभाव से िचंता कये जाते दे खकर वे लोग भाव वभोर हो जाते थे। अःपताल से बदाई लेकर जब ौी गु जी िनकले तब दे खनेवाल क आँख म आंसू टपक पड़े । इतने अ पकाल म ौी गु जी ू येक संप कत

ण के प रवार के अंग

बन चुके थे। ज ह ने जीने क आशा ह छोड़ द थी उनम भी जी वत रहने क आशा िनमाण कर वे धीर गंभीर कदम से बाहर जगत ् म आए। ौी गु जी क अनुप ःथित

म हर कसी को लग रहा था मान उसका अपना उनसे दरू चला गया है ।

डॉ. ूफु ल दे साई, ज ह ने ौी गु जी पर श यिच क सा क थी, संघ से प रिचत नह ं थे। क तु ौी गु जी ने जस सहजता के साथ श य बया के समय सानंद सहकाय दया, उसे दे खकर तो वे आ यच कत हो गये। डॉ. दे साई ने अपने वचार और भावनाओं को लेख म श दब

कर रखा है । वे िलखते ह, “ौी गु जी क ६५ वष

नवयुग ूवतक ौी गु जी

261


क आयु का वचार करने पर वे इतनी गहर और ूद घ श य बया का सामना कैसे

कर पाएंगे यह ू

मेरे मन म था। क तु जस शांित, साहस और सहकाय से

उ ह ने सार बात हँ समुख रहकर सह ं, वह एक अ -भूत घटना थी। दसरे ह ू

दन वे

चलने फरने लगे। वे तीन स ाह अःपताल म रहे । इस कालखंड म मुझे उनके य

व तथा मानिसकता या मन का अ ययन करने का अवसर िमला। ौी गु जी

मुझसे यह जानना चाहते थे क कै सर ने उनके शर र म कतनी जगह या

रखी है और श य बया के उपरा त वे कतने वष जी पाएंगे। इस संबंध म वे

कर

ु वाःत वकता जानने के िलए इ छक थे। मने उ ह वाःत वकता से अवगत कराया। साथ ह वे कतने काल तक जी वत रहगे यह भी बताया।” “मेर ःप ो

सुनकर ौी गु जी ने कहा, “वाह! बहत ु अ छा! इसका अथ है क मेरे

पास काफ समय है जसम मुझे बहत ु सारे काम िनपटाने ह।” डॉ टर को सव प र

सहकाय दे नेवाले वे एक असामा य रोगी थे। अ यंत बूर, िनदय तथा जानलेवा

शार रक और मानिसक वेदनाओं का ज ह ने धीरज से और संतुलन न खोते हए ु

संघष कर सामना कया, अपने दे शवािसय के संबंध म जनक धारणाएँ और

िन ाभाव उ कट थे और जनक पूित के िलए वे अंत तक अ वचिलत रहे , कृ श तथा

दबल शर र रचना होते हए ु ु भी एक ूचंड कायश

के जो धनी थे, जनका जूझने का

साहस, ह मत तथा अनुशासन आ द बेजोड़ थे, ज ह ने अिन शुभ श

क पूव क पना कर

जागृत क , ऐसे ौी गु जी एक असामा य पु ष थे। ऐसे महापु ष के

स संग का, अ पकालीन ह मानता हँू ।”

य न हो, मुझे लाभ हआ असे म अपना अहोभा य ु

अःपताल के बाहर आने पर ौी गु जी लगभग एक स ाह तक मु बई म ह रहे । द. ३ अगःत को रे ल से वे नागपुर के िलए रवाना हए। ौी गु जी पर क गयी श य ु िच क सा तथा उनके ःवाः य म हो रहा सुधार क वाता सवऽ फैल चुक थी।

ौी गु जी को कै सर क बाधा हई ु है , इसका जब लोग को पता चला था तब से ह

सारे िचंितत थे। ःवयंसेवक , अिधका रय तथा संघूेमी जनता के िलए यह एक भार

सदमा था। क तु ौी गु जी के ःवाः य पर मँड़राने वाली मृ यु क छाया के काले

बादल छँ ट चुके ह और वे नागपुर क ओर ूःथान कर रहे ह, यह सुनकर ःवयंसेवक म आनंद क लहर दौड़ गयी। लोग फूले नह ं समाए। अपने-अपने ढं ग से ःवयंसेवक ने आनंद य

कया। मु बई से नागपुर क ओर ूयाण करने के पूव वहाँ

नवयुग ूवतक ौी गु जी

262


ौीस यनारायण पूजा का भ य आयोजन कया गया। लगभग २० हजार लोग तीथूसाद महण करने के िलए पधारे थे। नागपुर क ओर जब रे लगाड़ चली तब ूायः हर ःटे शन पर ःवयंसेवक तथा नाग रकगण ौी गु जी को जी भर कर दे खने हे तु आँखो म आनंदाौु लेकर उप ःथत थे। नागपुर पहंु चने पर ौी गु जी माननीय बाबासाहब घटाटे के बंगले पर ह कुछ

समय तक ठहरे । द. १३ अगःत को र ाबंधन का उ सव हआ। इस उ सव म ौी ु

गु जी ने खड़े रहकर ४५ िमनट तक ओजःवी भाषण दया। वह मँजी हई ु जलूपात

सी अखंड, ओजपूण, वचार , जानका रय से प र लुत भाषा! कोई सोच भी नह ं सकता

था क डे ढ़ माह पूव जनके कै सर जैसे जानलेवा रोग से मःत शर र पर गंभीर श य बया का सफल ूयोग कया गया, वे यह ौी गु जी ह। सभी ौोता ःतंिभत से रह गये। अभूतपूव वाणी और अ वःमरणीय

ँय!

द. २२ अगःत को मु बई म डॉ. दे साई ने ौी गु जी क पुनः जांच क और समाधान य

कया। क तु द. २१ और २२ को ौी गु जी के शर र म बुखार था।

बुखार भरे शर र से काम करने और करवाने का उनका पुराना अ यास था। फर वह रवैया। ौी गु जी ने बुखार क ओर

यान नह ं दया। द. २२ को सं या समय

गोरे गांव (मु बई का एक उपनगर) म ःवयंसेवक का एकऽीकरण पूव िनयो जत था। ौी गु जी ूाथना के िलए पहँु चे। वःतुतः खार (उपनगर) के रामकृ ंण िमशन म ौी गु जी का िनवास था क तु िनकट क

कसी शाखा म जाने से उ ह ने इ कार कया।

गोरे गांव शाखा म ूाथना ूारं भ हई। कुछ ह ु

णोपरा त ऐसा दखाई दया क ौी

गु जी शर र संतुलन खो रहे ह, थोड़े डगमगा रहे ह। डॉ. आबाजी थ े और एक

ःवयंसेवक ने दे खा क वे द वार का आधार ढँू ढ रहे ह। पलाध म वे दोन दौड़े और ौी गु जी को स हाल िलया। ूाथना के बाद वे बेहोश हो गये। ःवयंसेवक िचंितत हो गये। इस समय यह पता चला क ौी गु जी क एक बगल म छे द बन गया है और उसम से पानी और मवाद बह रहा है । इस ‘अ सर’ पर उपचार कया गया। फलःव प द. २४ को बुखार भी उतर गया। ौी गु जी इसी दन इ दौर जाना था। न जाने क

सूचना द गयी क तु ौी गु जी कायबम पर अ डग थे। द. २५ को वे इ दौर पहंु चे।

इ दौर म ूांत संघचालक तथा आयुवद

पं. रामनारायण शा ी क दे खभाल म ौी

गु जी एक मास तक रहे । उनके गु बंधु ौी. अमूतानंदजी महाराज भी उनके साथ थे।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

263


ौी गु जी का बायाँ हाथ सूजन के कारण फूला हआ है यह बात हर कसी के ु

म आती थी। ौी गु जी िचंितत थे, हाथ क सूजन के िलये नह ं, अ पतु जस

यान

ववेकानंद िशला ःमारक क िनिमित के ूेरणा ोत वे ःवयं थे, वह पूण होकर अब उ -घाटन क घड़ िनकट आ चुक थी। द. ४ िसतंबर १९७० को क याकुमार म महाम हम रा पित ौी िग र

ारा इस अनुपमेय ःमारक का उ -घाटन होनेवाला था।

ौी गु जी इस समारोह म स मिलत होना चाहते थे। क तु यह संभव न हो पाया। द. २४ िसतंबर को ौी गु जी मु बई पहंु चे और डॉ. ूफु ल दे साई से अपने शर र

ःवाः य क जाँच करवाई। डॉ टर ने समाधान य

कया। डॉ. दे साई ने बताया,

“हाथ पर आई सूजन, श य बया क सफलता का िच ह है । इस कारण िचंता न करे । यथासमय मु बई आकर अपने ःवाः य क जाँच कराना और िनयिमत

प से ज म

का से िसंग करवाना अ यंत आवँयक है ।”

१८.२ िन यबम फर से ूार भ ौी गु जी ने ूवास के बारे म पूछा। डॉ. दे साई ने कहा क अब ूवास तथा अ य कायबम वे कर सकते ह, केवल सावधानी बरतना आवँयक है । अपने ःवाः य क ःथित स हालते हए ु ह यह सब करना ठ क होगा। ौी गु जी इसी स मती क ूित ा म थे। अपने काय के िलए कतना समय शेष है यह वे जानते थे। उ ह ज द थी एक- एक काम समा

करने क । मृ यु के साथ

अब उनक ःपधा ूारं भ हो चुक थी। ौी गु जी ने अपने शर र क िचंता कभी नह ं क , न ह वे मृ यु से भयभीत थे। उ ह िचंता केवल संघकाय क थी। डॉ. दे साई ने

ौी गु जी के ःवाः य के संबंध म जो मत य

कया उसे सुनकर कायकता ूस न

थे। वे ौी गु जी के पुनरागमन का आनंद मना रहे थे। ौी गु जी २९ िसतंबर को नागपुर आए। िन यानुसार पऽ लेखन, शाखा, लोग से िमलना-जुलना आ द कायबम म उनका समय बीतने लगा। कसी ने य द ःवाः य संबंधी पूछताछ क तो वे एक ह वा य कहा करते, ‘मेरा ःवाः य ठ क है । आप िचंता न कर।’ पऽो र म भी वे यह वा य िलखा करते थे। इस वष का वजयादशमी ू महो सव द. ९,१० अ टबर को सरदार व लभभाई पटे ल के सेवा िनवृ

सिचव ौी.

वी. शंकर क अ य ता म संप न हआ। हमेशा क तरह वदे शी आबमण क ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

264


संभावना तथा अंतगत

से रा

को बलवान बनाने क आवँयकता उ ह ने

ूितपा दत क । नागपुर के सभी काम िनपटाकर द. २३ को वे ूवास के िलए िनकल पड़े । इस समय वे अित ूस न और शांत थे। सामा यतः हम दे खते ह क लोग त व ान बहत ु बताते ह क तु उसे आचरण म

उतारते समय ःवतः को मा हर समझनेवाले भी आपबीती के समय हतबल हो जाते

ह। भय से मःत हो अपने जी वत रहने क िचंता करते दखाई दे ते ह। ौी गु जी इस िनयम के अपवाद िस

हए। उ ह ने अपना ूय वेदा त जीवन म उतारा। त व ान ु

और यवहार म अंतर तो दरू रहा, उ ह ने संपूण एका म समरसता ूगट कर दखाई, वह भी अनायास, ःवाभा वक

प म। श य िच क सा के उपरा त

णालय से बदाई

लेते समय ौी गु जी ने डॉ टर दे साई से कहा था, “म य मानव को चा हए क वह

अपने ःवाः य क अनावँयक िचंता न करे । हर जी वत ूाणी कभी न कभी जाने ह वाला है । इसिलए मनुंय कतने काल तक जी वत रहा, इससे भी अिधक मह व इस बात का है क उसने कस तरह जीवन यतीत कया। मेरे सामने एक काय है । मुझे इस काय को पूण करना है । इस कारण मेर ई र से ूाथना है क वह मुझे अ त तक ःवःथ रखे।” इसके बाद ौी गु जी के जीवन का अंितम पव शु

हआ। मृ यु का ःमरण कर, उसके ु

कदम क आहट सुनकर भी उ ह ने अपना समय ‘काम समा ’ करने म ह कया। ौी गु जी को ऐसे शर र के ूित कोई आस

यतीत

नह ं थी जो काम करने यो य

न हो। श य बया के त काल बाद ौी गु जी ने जो िनरं तर ूवास जार रखा उससे हम होता है क उ ह काय क गित बढ़ने क

ात

कतनी और कस िलए िचंता थी। २३

ू अ टबर से ७ दस बर तक के ४५ दन के ूवास क ओर हम

यान द तो हम यह

स यानुभिू त होगी। तीन दन मु बई, तीन दन बंगलौर-ूांत ूचारक क बैठक, तीन दन नािसक, तीन दन पुणे, पुनः चार दन मु बई, नागपुर म अ पकाल िनवास, तुर त द ली, यहाँ से मु बई होते हए ु कनाटक के ूांतीय अिधवेशन के िलए जाना, बाद म पंढरपूर। सोलापुर से मु बई और नागपुर वापस। इस ूवास म सवऽ बैठक,

सभा संबोधन, कायकताओं से भट, काय के बारे म पूछताछ, मागदशन, भ वंय म होने जा रहे कायबम का ूा प तैयार करना आ द बात होती रह ं।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

265


१२ नवंबर को द ली म रामलीला मैदान पर २० हजार गणवेशधार ःवयंसेवक के

स मुख ौी गु जी का भाषण हआ। शाम को डे ढ़ हजार ूित त नाग रक के समुदाय ु ारा ौी गु जी का ःवागत कया गया। इस समय तक ौी गु जी के कै सर को

लेकर क युिनःट ने अपने ूचार मा यम से एक समाचार हवा म उछाल दया था क गु जी कै सर से बीमार ह और उनके अनुचर म सरसंघचारक के पद के वए ःपधा शु

वनोद के

हो गई है । इस कारण मा यवर नाग रक से बातचीत करते समय हाःय

प म ौी गु जी ने कहा, “म जी वत हँू । संघ वरोिधय क इ छापूित नह ं

हो सक इस का मुझे खेद है , दःख है ।” श यिच क सा के बाद हई ु ु ौी गु जी क यह भट द लीवािसय के िलए बहत ु ह आनंदूद रह । बहत ु लोग ौी गु जी से य

गत

िमले। इस डे ढ़ मास के िनरं तर ूवास तथा कायबम का यौरा दे ने का एक माऽ

कारण यह है क ौी गु जी के कायकलाप क तूफानी गित हमारे

यान म आवे। डॉ.

दे साई ने ौी गु जी को साधारणतः तीन वष का समय बतलाया था। अतः कन

योजनाओं को पूण करने क आवँयकता है इसका ूा प बनाकर उसे पूण करने म १९७३ तक वे अ वरत जुटे रहे और पूव िनयो जत ूवास तथा कायबम पूण कये। अपवाद ःव प एक घटना १९७२ क है । १९७२ के उ राध म महाकौशल, महारा

और

वदभ इन तीन ूांत का ूवास करना संभव नह ं हआ। इस समय कारण भी ूबल ु

था।

उपचार क ूित बया के फलःव प गले म दद, खाना-पीना असंभव, बोलना भी क ठन, फर ूवास करना तो िनरथक ह था। इस संबंध म महारा

के ूांत

संघचालक ौी. बाबाराव िभडे को िलखे एक पऽ म ौी गु जी ने िलखा, “म तीन ूांत का ूवास नह ं कर पाया। यह

ितपूित कस तरह और कब हो पाएगी इसके बारे म

सोचने के िलए डॉ. आबा थ े को कहा है । अ य ूांत के कायबम क पुनरचना कर इन तीन ूांत के िलए समय िनकालना होगा।” पूव िनयो जत ूवास न करना ौी गु जी को कतई पसंद नह ं था। क तु इस समय ूवास करना असंभव ह था। ूवास ःथिगत करने के अित र

कोई चारा नह ं था।

ौी गु जी मृ यु क य कंिचत भी िच ता न करते हए ु जीवन का ू येक

ण काय

क ूगित के िलए यतीत करना चाहते थे। क तु िनयित ने उनपर एक के बाद एक आघात करना शु

कर दया था। ौी गु जी के पुराने सहकार एक के बाद एक संसार

छोड़ कर जाने लगे थे। असहनीय िचर वयोग का दःख उ ह सहना पड़ता था। ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

266


सह

ऐसे प रवार थे जनसे ौी गु जी के घरे लू संबंध थे। इन प रवार म जस

कसी क मृ यु हो जाती तो ौी गु जी को पऽ

ारा पता चल जाता। ौी गु जी

सवािधक यिथत हए ु ौी. बाबासाहब आपटे क आक ःमक मृ यु के कारण। ौी. बाबासाहब आपटे संघसम पत

ये तम कायकता थे। संघ के पहले ूचारक, ूकांड

पं डत, महान ् कमयोगी बाबासाहब आपटे डॉ. हे डगेवार के साथ ह कायारं भ करनेवाले ये

कायकता थे। दे शभर संचार कर संघकाय क वृ

करना ह उनका

येय था।

द. २७ जुलाई १९७२ रात म, बःतर पर नींद के आहोश म ह वे परलोक िसधार गये। इस दःखद घटना के समय ौी गु जी नागपुर म नह ं थे। वे इ दौर म थे। ु ूय

करने के उपरा त भी वे अ

य दशन करने म सफल नह ं हो पाए। यह आघात

ौी गु जी के िलए असहनीय था। ू य

संघकाय म रत ौी. बाबासाहब आपटे , ौी भैयाजी शहादाणी और पं. ब छराज

जी यास जैसे मोहरे एक के बाद एक खो दे ने का दःख शायद कम था इसीिलए ु

िनयित ने एक और गहरा आघात ौी गु जी पर कया। जन पर ौी गु जी का अूितम ूेम था उन धािमक

ेऽ म कायरत ौी हनुमानूसाद पो ार क मृ यु। ौी

गु जी उ ह भाईजी कहा करते थे। भाईजी ‘क याण’ मािसक तथा गोरखपुर के गीता ूेस के

ये

चालक थे। ौी गु जी पर भाई जी क मृ यु का प रणाम बहत ु ह गहरा

रहा। ौी गु जी ने ऐसे सभी साथ छोड़कर चल बसे सहयोिगय के रँतेदार , प रवार को पऽ िलखकर या भट दे कर उ ह सा

वना द । सकड़ क सं या म पऽ िलखे

गये। ौी गु जी ःवयं अपनी आयु का एक-एक दन िगन रहे थे, जीते जी अिधकािधक कायवृ

कर सफलता का कलश दे खना चाहते थे और उ ह ह इतने

आघात सहने पड़े । कस तरह सहा होगा इतना दख ु -भार ौी गु जी ने? अपनी दे ह के बारे म एक वल ण अिल ता का भाव ौी गु जी के मन म था। जो दे ह िनःशेष होने वाला है , जस का अंततोग वा

वे मन से वलग हो गए थे। केवल एक साधन के

य होना िन

त है , शर र के बारे म

प म काय क पु

के िलए वे

शर र का उपयोग कर रहे थे। एक समय पंजाब ूांत के सहसंघचालक ौी धमवीरजी ने ौी गु जी को पऽ िलखकर भावभीनी भाषा म उनके ःवाः य के संबंध म पूछताछ क । पऽो र म ौी गु जी ने िलखा, “आपका मुझ पर जो असीम ूेम है , उसी के फलःव प आप िचंितत दखाई दे ते ह। कृ पया अपनी उ कट भावनाओं पर काबू

र खए। मन को संयिमत कर, िचंता को मन म ःथान न द। शीय ह म ूवासाथ बाहर िनकल रहा हँू । आप के सुखद सहवास का लाभ मुझे ूा

होगा ऐसी म अपे ा

करता हँू ।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

267


इसी कालखंड म ौी गु जी कसी न कसी िनिम

हए ु ूवास क अविध म अनेक

तीथ ेऽ व दे वःथान के दशन कर आए। अनेक स पु ष व साधु संत से वे िमले। १९६८ म कै सर क श य बया के पूव जब वे बि नारायण ःथत संक तन भवन के

उ -घाटन के िनिम

वहाँ पहँु चे तब झूस ं ी आौम के ूमुख ौी ूभुद

गु जी के साथ थे। ौी ूभुद

ॄ चार जी ौी गु जी को

ॄ चार भी ौी

दय से चाहते थे, ूेम

करते थे। उनका ौी गु जी से पऽ यवहार भी सतत होता रहता था। द. ५ मई १९७३ को ौी गु जी ने ॄ चार जी को एक

दयःपश तथा भावो कट पऽ िलखा।

बि नारायण के इस ूवास म ह ौी गु जी ने ॄ कपाल तीथ पर ःवतः का ौा कम अपने हाथ कर िलया था। ौी गु जी क

ौी ूभुद

से उ ह आनंद वभोर होने का अवसर

ॄ चार जी के मुखार व द से भागवत कथा सुनने का

भा यलाभ होने पर ह ूा

हआ। भागवत कथा सुनते समय उनक आँख से ूेमाौु ु

झरने लगते थे। इस संःमरणीय घटना का वणन एक सा ी के नाते ौी र जु भैया ने

ू िलख रखा है । १९७१ के अ टबर म महारा

ूदे श का दौरा करते समय ौी गु जी ने

को हापुर, तुलजापुर, जालना के िनकट ःथत ौीराम, वे ल ःथत घृंणे र आ द दे वी-दे वताओं के दशन िलए। साथ ह ःवामी ःव पानंद, नाना महाराज आव कर, ौी

बाबा महाराज तराणेकर आ द स पु ष से भट क । ःवामी ःव पानंद से भट होने के उपरांत ौी गु जी के मुखमंडल पर कृ ताथता का आनंद, तेज आलो कत हआ था, ऐसा ु

उनके साथ उप ःथत मंडली बताती ह।

गोवा ःथत दे वःथान के साथ ह ौी गु जी ने ११ माच १९७२ को पां डचेर के अर वंदाौम को जाकर माताजी के दशन कए। यह भट िनःश द थी। अनूठ । वाचा के बना मौन संभाषण। इस भट का बहत ु ह भावभीना वणन ौी गु जी ने इ दौर के

वाःत य म दया था। द. २३ माच १९७२ को एक ल णीय धािमक कायबम कानपुर के द नदयाल ःमारक व ालय म संप न हआ। ौी गु जी के हाथ छह फ ट ऊँची ु

ताँबे क धातु से बनी ौी हनुमान जी क खड़ मूित विधवत ् ूित ा पत क गयी।

इस समय संपूण विध-पूजा, होम हवना द के समय ौी गु जी पीतांबर पहने हए ु थे।

इसी उ सव म ौी गु जी का ‘प रपूण मानव’ वषय पर बहत ु ह संःमरणीय भाषण हआ। इस भाषण को सुनकर एक वृ ु

मा यवर ने कहा, ‘आज मुझे

ान के

महासागर का दशन हआ ु ’।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

268


इस वष ११ माच को ह

वजया एकादशी का मुहू त आया। यह तो ौी गु जी क

वषगाँठ का दन था! ौी गु जी ने इस दन अपना सारा समय मिास के रामकृ ंण आौम म

यान, नामःमरण तथा ूाथना करने म यतीत कया। संघ सम पत

जीवन ूारं भ होने के बाद ौी गु जी को कभी हो सका था। वे केवल सम

यान धारणा हे तु एकांत का लाभ नह ं

प भगवान ् क अचना अहिनश कया करते थे। क तु

लगता है क जीवना त के इस कालखंड म उनका मौिलक आ या मक आकषण

अनंत ई र क ओर अिधकािधक बढ़ता जा रहा था। जस काय को करने का आदे श

उ ह दया गया था वह काय तो ौी गु जी ने अपना सवःव अपण कर त व ान और यवहार के परःपरावलंबी पूरक गुण से खरे िस के क भाँित िनभाया था। अब तो शर र का अ त होने का समय उनके

पथ म था। आ मा अपने न र चोले को

छोड़ने क तैयार कर रह थी। इसीिलए उनक गित तेज हो गयी थी। हर मनोनीत काम िनपटाने या सबल हाथ म स पने के िलए समय से दस कदम आगे ितगित से ु वे चल रहे थे। काल उनका पीछा कर रहा था। क तु ौी गु जी ने पीछे मुड़कर

उसक ओर दे खा तक नह ं! उ ह बहत ु सारे काम िनपटाने थे। नये काम का

बीजारोपण करना था! ई र भी उ ह अंगिु लिनदश कर बुला रहा था। क तु ौी गु जी आ मानंद म इतने लीन थे क शार रक पीड़ा होते हए ु भी वे उस ओर

यान नह ं

दे ते थे। उनक यह अनुभिू त अ विछ न थी, अभंग थी। योग स मेलन के िलए

शुभसंदेश दे ने हे तु उ ह ने जो पऽ भेजा था वह बहत ु कुछ कह जाता है । वे िलखते ह – “सवौे ूा

बात यह है क जब मन को िन वकार और सव

होती है तब

से र

करने क श

दय म िन य उ साहपूण और स म रहकर थकान या उबासी

उ प न न होने दे ते हए ु ूचंड काय करने क

का दे वदलभ लआय ूा ु

मता ूा

होती है तथा मानव जीवन

कर असीम ूस नता और अखंड आनंद क उपल ध होती

है ।” यह ववेचन तो उनके य

गत अनुभिू त का ह िनचोड़ है । दे ह याग करने के

एक माह पूव जो पऽ ौी गु जी ने ौी ूभुद

ॄ चार को िलखा था उसम उनके

अंितम दन क मानिसकता का ूगट करण होता है । ौी गु जी ने िलखा है , “म

इतना भा यवान ् नह ं हँू क आपके मुख से भगवान ौीकृ ंण का लीला च रऽ संपूणतः ौवण कर पाऊँ। क तु मन ह मन म भगवान का ःमरण करता रहता हँू । यह मेरा

अहोभा य है क इसके अित र

मुझे कोई अ य काम नह ं है । आराम कुस पर पड़े -

पड़े भगव नाम ःमरण का आनंद लेता रहता हँू । य द ऐसा न कया तो ‘ूयाणकाले कफवात प ः, कंठावरोधे ःमरणं कुतःते’ ऐसी अवःथा म जीवन नौका डू ब जाएगी।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

269


अ या मवाद, जसके बारे म उनके मन म अपार ौ ा थी, ह द ू पुन शा त आधार है ऐसा उनका मानना था। कसी क ई रभ

थान का

के वषय म य द कोई

ःवयंसेवक अनुदार उ -गार िनकाले, मखौल उड़ाए, तो ौी गु जी नाराज़ हो जाते। एक छोट सी घटना से यह बात ःप

होगी।

१९७२ क घटना है । मथुरा म मींमकालीन संघ िश ा वग चल रहा था। अनौपचा रक

वातालाप के बम म कसी ने मत ूदशन कया क ौीमती इं दरा गांधी का ित पित जाकर दशन करना महज़ मत (वोट) आक षत करने का दखावा माऽ है । यह आरोप ‘अनुदार’ (अनचै रटे बल) है , ऐसा तुर त ू यु र दे कर ौी गु जी ने कहा, “ौीमती गांधी पर इस ूकार के उदा

संःकार हए ु ह। उनक माता ौीमती कमला नेह

तो

अतीव ौ ावान थीं। वे िन य िनयमानुसार बेलरू मठ म न हं इं दरा को साथ लेकर

जाया-करती थीं। अनेक

ये

ःवािमय को यह बात

ात है । अपना समाज धमूवण

है , और ौीमती गांधी ने ित पित के मं दर म जाकर दे वता क परं परागत प ित से जो अचना क उस बया से उ ह ने जनता क अ या मक ौ ा

ढ़कर लोकनेता का

कत य ह तो िनभाया है ।” राजनीितक ःपधा का जसे ःपश भी नह ं हआ हो ऐसे ु अजातशऽु तथा िनमल मन से ह ऐसे उ -गार िनकल सकते ह। पं. नेह

वदे श जाते

समय इं दरा गांधी को साथ ले जाते ह यह आ ेप भी अनुदार है ऐसा कहकर उ ह ने बताया क पं. नेह

के जीवन म उनका िनकटतम ःनेह और कौन बचा है ? अतः

य द वे अपनी पुऽी को साथ ले जाते ह तो

या गलत करते ह?

ौी गु जी पर हई ु श य िच क सा के ढ़ई साल बाद के कालखंड म जो ऐितहािसक घटनाएँ दे श म हई ु उनके बारे म भी ौी गु जी सतक थे। अपने ूवास म वे रा

ःथित से ःवयंसेवक . कायकताओं और नाग रक को अवगत कराते रहते और

संघकाय क आवँयकता पर जोर दे ते। कसी गुट वशेष के वरोध से वचिलत न होते हए म स -भाव, आ मौ ा वे अपनी वाणी से जागृत करते थे। ौी ु ु ह दओं

गु जी ने संघ पर ूितबंध लगाने क भाषा बोलनेवाल का मुह ँ अपने तकशु

वचार

से बंद कर दया था। उसी ूकार अनेक वप ी वचारक ने संघ के अनुकूल पैरवी करते हए ु सरकार नीित क ध जयां उड़ा द थीं। ऐसे मा यवर म भूतपूव सेनापित

जनरल क रअ पा, ह दःथानी आंदोलन के ौी मधु मेहता, फायने शअल ए सूेस के ु

ौी गो. म. लाड ूभूित का समावेश है । ौी लाड ने कहा, ‘संघ तो सौ नंबर सोना है ’

(R.S.S. is pure gold)। इस कारण ूितबंध क भाषा मौन हो गयी। दसंबर १९७० म संसद वस जत कर चुनाव क घोषणा कर द गयी।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

270


इस चुनाव म इं दरा काँमेस को अभूतपूव सफलता ूा

छा गई। चुनाव म पराभूत होने के कारण वप

हई। वरोधी प ु

म िनराशा

य का मन बेजान सा हो गया था।

ौी गु जी का इस जय-पराजय से कोई सरोकार नह ं था। उ ह इस बात का खेद हआ ु करता था क चुनाव ूचार बहत ु ह िनचले ःतर पर कया जाता है और प रणामतः ु कटता बढ़ जाती है । र त लेने-दे ने पर कोई िनबध नह ं रह पाता। अनुिचत,

असै ा तक, असामा जक तौर तर क को नाहक बढ़ावा िमलता है । ौी गु जी यिथत

होकर कहते, “चुनाव म होनेवाली इन अनैितक बात के कारण रा

क श

,

नैितकता तथा रा भावना का वनाश होता है । केवल चुनाव के समय ःवाथवश होनेवाला यह यवहार तो िनरा रा िोह, दे शिोह है । इस दशा म कोई वचार करता दखाई नह ं दे ता।” इस द ू षत चुनावी वातावरण क ओर इं िगत कर संघकाय क आवँयकता िस

करने

हे तु एक कायकता को उ ह ने िलखा, “यह सारा अनुिचत, अनैितक घटते दे खकर अपनी ज मेदार का अनुभव अिधक तीोता से होता है । इस वषा शु

कर दे श को एकसंघ तथा समथ बनाने क

वातावरण को

मता अपने संघ काय म ह है ।

इसिलए अपना सवःव अपण कर वातावरण िनद ष बनाने के िलए घर-घर पहँु चकर

शु

रा ीय भाव जागृत करते हए ु रा

है , इसे

को एक सूऽ म गूथ ँ ना अपना ूाथिमक कत य

यान म रखना आवँयक है ।”

१८.३ पूव पा कःतान म अ याचार के समय चुनाव के समय उड़ धूल अब जमीन पर ःथर हो चुक थी। वातावरण शांत था। क तु पा कःतानी संकट के बादल सर पर मँडराना बमशः शु

हो गया था। पाक

सेनापित या ाखान ने पूव पा कःतान (आज का बांगला दे श) म पशुवत ् अ याचार का कहर मचा दया था। प रणामतः लाख

वःथा पत आौय पाने के िलए भारत

आने लगे। िनरािौत का भारत पर बोझ दन ूित दन बढ़ने लगा। अवामी लीग के सश

ूितकार के फलःव प गृह-यु

ःथित पूव पा कःतान म िनिमत हो गयी।

इस पृ भूिम पर संघ िश ा वग का ूवास करते समय ौी गु जी ने अपने ू येक

भाषण म पूव से हो रहे आबमण के कारण उप ःथत प र ःथित के बारे म सतकता का इशारा दया। २८ जून १९७१ को अपना ूवास पूण कर ौी गु जी नागपुर लौटे । इस समय तक प र ःथित बहत ु ह गंभीर बन चुक थी। िनवािसत क सं या ३० लाख तक पहँु च चुक थी। संघ क ूेरणा से सहायता काय ‘वाःतुहारा सहायता

नवयुग ूवतक ौी गु जी

271


सिमित’ के मा यम से पहले ह ूारं भ हे चुका था। संघ ने सहायता आंदोलन चलाकर, िश वर म अनाज, व -ूावरण तथा औषिधय का यापक ूबंध कया। द. ८, ९, १० जुलाई १९७१ को नागपुर म हई ु के ि य कायका रणी क बैठक म ौी

गु जी ने बांगला दे श क प र ःथित के संबंध म एक ूःताव पा रत करवाकर शासन को आ ासन क पूित करने का आवाहन कया। सेना का ूयोग (िमिलटर ऍ शन)

कर अवामी लीग को सहयोग दे ते हए ु से मु ु पूव पा कःतान या ाखान के चंगल

करवाने तथा वःथा पत को पुनः पूव पा कःतान म वापस भेजने क मांग दे श म

जोर पकड़ रह थी। ौी गु जी ने ःवयंसेवक को सतक रहकर दे शर ा के काय म जुट जाने और अ य ूय

म सहायता दे ने के िलए कहा। इस सूचनानूसार सभी

ेऽ

म ःवयंसेवक सतक रहे और जनता का मनोबल बढ़ने का काय उ ह ने कया।

अ ू बर म जब ौी गु जी पंजाब गए तब उ ह

ात हआ क जनता का मनोबल ु

उ म है , ःवयंसेवक बार क से हर छोट -मोट जानकार रखते हए ु सेवाकाय म रत ह, और सेना भी तैयार खड़ है ।

अंततोग वा ३ दसंबर १९७१ को पा कःतान का आबमण शु

हआ। इस समय ु

नागपुर म त ण ःवयंसेवक का िश वर चल रहा था। ौी गु जी ने पा कःतान कये गये आबमण और नाग रक के दािय व के संबंध म एक व ूकािशत कया। इस व यु

ूय

के इस व “यह यु

ारा

य तुर त

य क लाख ूितयाँ ःवयंसेवक ने घर-घर जाकर बाँट और

के संबंध म लोग को सजग रखने का काय कया। द. ४ दसंबर १९७१ य म ौी गु जी ने कहाक घड़ है । आबामक शऽु सेना अपनी सीमा पर आ धमका है । इस संकट

क गंभीरता को सोचकर शासनकता और विभ न प ोपप

के नेता परःपर मतभेद

से ऊपर उठकर एक रा ीय व क भावना से संग ठत हो इस आबमण को पराःत कर अपने रा

को वजय ूा

करा द। आज इसी ूमुख वषय को ूाथिमकता दे ने क

आवँयकता है , इस बात को हम समझ। प

िनरपे

से रा हत का ह सदै व

िचंतन करनेवाले संघ के ःवयंसेवक को भी मेरा यह आवाहन है ।” नाग रक को कस तरह यु

ूय

म सहायता करनी चा हए इसका भी ौी गु जी ने

इस पऽक म मागदशन कया था। यु

ूारं भ होने के कारण इस ूकार का व

िनकालना आवँयक था। क तु इस घटना के पूव ह १९७० क

वजयादशमी से ह वे

नवयुग ूवतक ौी गु जी

272


नाग रक और ःवयंसेवक को जागृत रहने का आवाहन कर रहे थे। द. १० अ ु बर

को नागपुर के वजयादशमी के महो सव म, द. २२ नवंबर को द ली के ःवयंसेवक के एकऽीकरण म, ८ जुलाई १९७१ को नागपुर के गु पौ णमा उ सव म, द. २४ अ ू बर को ज मू क सावजिनक सभा म, २६ नवंबर को जयपुर के सावजिनक कायबम म ौी गु जी ने जो भाषण दये उनका ठ क अ ययन करने पर एक बात ःप

हो जाती है क ौी गु जी ने भावी आबमण का संकेत एक ि ा के नाते जान

िलया था। उनक भ वंयवाणी खर उतर । दे श भर से २ लाख ःवयंसेवक सहायता काय म सेना क

पछाड़ स हाल रहे थे और जनता क सुर ा म भी जुटे थे।

सहायता के इस काय म ःवयंसेवक ने कोई कसर बाक नह ं रखी। बांगला दे श ःवतंऽ होने पर ौी गु जी ने इस घटना का ःवागत अवँय कया था

क तु इससे खुश होकर सावधान न रहने पर धोखा हो सकता है , ऐसी चेतावनी भी

द थी। इस चेतावनी म हम उनक दरदिशता का सा ा कार होता है । संयोग क बात ू

है क जब पाक सेना ने बांगलादे श म शरणागित ःवीकार क , उस समय ौी गु जी बंगलौर म एक पऽकार प रषद म वातालाप कर रहे थे। पऽकार ने यु

के बारे म

तथा भ वंय म संभवनीय घटनाओं के संबंध म लगभग एक घंटे तक ू भरमार क । ौी गु जी ने इन ू उ र ःप

क बौछार का बड़ ूस नता से उ र दया। सभी

और िनःसं द ध थे। दे शभर िनरं तर ॅमण, लोग से भट, चचा, सूऽ से

जानकार , ू य

घटनाःथन से संप कत जनता से सीधा संपक और ःथान-ःथान पर

कायरत ःवयंसेवक से ूा

समाचार के कारण ौी गु जी क जानकार अनुभव-िस

थी और ि ा तथा मातृभिू म से समरसता के कारण ू

चाहे कतना भी पैना

य न

हो, ौी गु जी का उ र सट क और स य जानकार से प रपूण रहता था। अ यऽ एक ःथान पर ौी गु जी ने कहा क पा कःतान का वभाजन हआ ु , इस

कारण हष म

होने का कोई कारण नह ं। इितहास म हमने पढ़ा है क हमारे दे श म

ु बहमनी रा य के पाँच टकड़ म बँट जाने के बावजूद भी उनका व

ख ह द ू स ा के

ह था। १९७१ के बाद बांगला दे श म हए ु प रवतन इस बात के प रचायक ह

क वहाँ ूजातंऽ तथा सै युलै रजम क कॄ पर सेना क तानाशाह चली। बांगलादे श से िनवािसत का लगातार आना और मुसलमान क घुसपैठ अब भी शु बांगलादे श का यु

समा

है ।

होने पर द. २२ दस बर को ौी गु जी ने ौीमती इं दरा

गांधी का अिभनंदन करने हे तु उ ह पऽ िलखा था। इस पऽ के अ त म उ ह ने िलखा था, “दे श क एका मता, प र ःथित का यथाथ संक प इसी तरह सदै व रहना चा हए।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

273


केवल आपा कालीन ःथित म ह नह ं अ पतु रा ो थान के हर काय के समय इस संक प क आवँयकता है ।” “अपने दे श क गौरवशाली एका म श

िनमाण करने म संल न रा ीय ःवयंसेवक

संघ इस काय म सदै व आपके साथ है और हमेशा रहे गा। रा समय आप इन आवँयकताओं क ओर

का ूितिनिध व करते

यान दगी और अपनी रा ीय तथा आंतरा ीय

नीित का िनधारण करगी, ऐसा मुझे व ास है । आपके नेत ृ व म भारत क इसी तरह समृ

होती रहे , गौरव क अिभवृ

होती रहे यह मेर कामना है ।”

माच म हई ु अ खल भारतीय कायकार म डल क सभा म यु

म ूा

वजय के बारे

म एक ूःताव भी पा रत कया गया। बांगला दे श के गौरवशाली वजय पव के

प रणामःव प १९७२ म संप न वधान सभा चुनाव म ौीमती इ दराजी के प सवािधक यश ूा

ने

कया।

यु बंद के प ात ् ौी गु जी का मत था क प

मी सीमा पर सेना को पया

ू छट

नह ं िमल पाई। १९७२ क जुलाई म पा कःतान के साथ जो ‘िशमला समझौता’ हआ ु ,

वह तो ूा सेना

वजय पर पानी फेरनेवाला ह था। इस समझौते के अनुसार भारतीय

ारा जीता हआ सारा ूदे श भारत-सरकार ने छोड़ दया। सेना को वापस आना ु

पड़ा। आजाद काँमीर का ूदे श भारत का अ वभा य अंग है , ऐसी आवेशयु

घोषणा

र ा मंऽी ने क थी। एक इं च भी सेना पीछे नह ं हटे गी ऐसा आ ासन भी उ ह ने दया था। क तु राजनीित का पाँसा पलट गया और िशमला म समझौता कया।

१९६५ क अपे ा भारत का यह वजयपव अिधक मह वपूण था। इस वजय का लाभ समझौता वाता के समय रा हत म उठाया होता तो कहा जा सकता था क सेना के वीर जवान को

याय ूा

हआ ु , उनके बिलदान का स मान रखा गया। क तु ऐसा

नह ं हआ। भारतीय सेना को सभी जीता ूदे श छोड़कर लौटना पड़ा। ौी गु जी ने इस ु

िशमला समझौते पर तीखी ट पणी क । यु ब द क घोषणा करते समय जो अपे ाएँ

थीं उनम से एक भी पूण न हो पायीं। कँमीर का ू

भी खुला रहा और पा कःतान

क अकड़ भी बनी रह । एक बार इस संदभ म बोलते समय ौी गु जी ने स ाधार नेताओं क अ ववेक पूण नीित क कड़ आलोतना करते हए ु कहा, “शऽु को शेष नह ं

रखना चा हए, इस रणनीित के सूऽ के अनुसार भारत का आचरण नह ं है । प रणामतः दे श को संकट क खाई म बार-बार िगरना पड़ता है । जीतकर भी मुह ँ क खानी पड़ती है ।”

नवयुग ूवतक ौी गु जी

274


इस तरह १९७१ का मसला समा दशा हन िस

ूयास अखंड

हआ। शासन क राजनीित, उसके तौर तर के ु

हए। फर भी ौी गु जी अपनी ओर से भारत को एका म रखने का ु

प से कर ह रहे थे। ह द ू आदशवाद ह ूेरणा का

का उ चार, पुन

ोत बने- इस मंऽ

चार करते हए ु दे शभर ॅमण करते रहे । भारत के राजनीितक जीवन

म उथल-पुथल मची हई ु थी। इस कारण ौी गु जी क आ ासक, ूेरक वाणी लोग

ौ ा से सुनते थे। क तु यह वाणी और कतने काल तक सुनने को िमलेगी? इस ू

का उ र तो िनयित के गभ म ह था।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

275


१९ अंितम अ यास वग ौी गु जी का ूवास िनरं तर चल रहा था। संघ क प रपाट के अनुसार आयो जत सभी कायबम म वे भाग ले कर ःवयंसेवक का मागदशन करने, रा

म उ -बोधन करने आ द सारे कायबम सुचा

ःथित के बारे

प से चला रहे थे। ौी गु जी का

उ साह दे खते ह बनता था। यह उनका ःवभाव था। जब भी वे नागपुर म होते तो वौाम करने के ःथान पर अहिनश कायरत रहा करते थे। मु बई के डॉ. दे साई के ारा ौी गु जी के ःवाः य क जाँच िन

त अंतराल से होती रहती। क तु ौी

गु जी दन दन दबल होते जा रहे थे। कभी-कभी उ ह कमजोर का भी अनुभव ु होता।

डॉ. ूफु ल दे साई एलोपॅथी क दवाइयाँ और पं. रामनारायण शा ी म शा ी आयुवद क दवाइयाँ दे कर ौी गु जी का शर रयंऽ काय म बनाए रखने का ूयास कर ह रहे

थे। क तु ौी गु जी वाःत वकता से अवगत थे। १९७२ क बात है । ौी गु जी

जनवर के माह म उ र ूदे श का दौरा कर रहे थे। ूवास और कायबम क भरमार, फर ूवास! वौाम का नाम नह ं। इन अ यािधक यःत कायबम के फलःव प वे थकावट का अनुभव कर रहे थे। सेरठ से अलीगढ़ तक मोटर के ूवास-काल म ौी गु जी ने कायकताओं से कहा, “अरे भाई, कुछ तो सोचो। मुझे इधर से उधर दौड़ा रहे हो।” अपना शर रबल दन ूित दन

ीण होता जा रहा है , ऐसी भावना उ ह ने य

क । गोवा के ूवास म भी उ ह ने कहा, “ ‘म थकान का अनुभव कर रहा हँू ।” २५

जुलाई से १८ अगःत तक ौी गु जी को इ दौर म पं. रामनारायण शा ी के िनवास ःथान पर वौाम करना पड़ा। इस के बाद िसत बर के अ त म वे राजःथान गये। ू वहाँ ४ अ टबर को उ ह बुखार आया। क तु बुखार को साथ लेकर उ ह ने अजमेर का कायबम संप न कया और जोधपुर होते हए ु ौी गु जी जयपुर पहँु चे। जयपुर म ौी गु जी का ःवाः य इतना बगड़ा क कायकता िचंितत हो गये। ौी गु जी को नींद नह ं आती थी। खाँसी तो थी, शौच के िलए भी बार-बार जाना पड़ता था। थकावट बढ़ रह थी। द.९ दस बर को वे अिधक अःवःथ दखाई दये। १०३

डमी बुखार था। फर भी पूविनयो जत बैठक ःथिगत न करने क सूचना ौी गु जी

ने द । अब तो उनके िलए बोलना भी दभर हो गया था। श दो चार ठ क से नह ं हो ू पाता था। अ ततः ूाथना के प ात बैठक समा

क गयी।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

276


ौी गु जी का बुखार १०५ डमी तक बढ़ गया था। ौी गु जी क यह अवःथा दे खकर

डॉ टर ने कायकताओं को डाँट फटकार करते हए ु कहा, “आप उनके ःवाः य पर इतना अ याचार

य कर रहे ह?” अथात ् इस ू

का उ र कौन दे पाता?

सौभा यवश द. १० दस बर को बुखार उतर गया। सुबह क चाय लेते समय ौी गु जी ने कायकताओं से कहा, “अपने मन और म ःतंक का स तुलन खोने का यह मेरा पहला अवसर है । इसके पूव जीवन म ऐसा कभी नह ं हआ। ” ौी गु जी का ु

ःवाः य अब संतुिलत था। सुबह के समय ूचारक क बैठक िन व नता से संप न हई। ःथानीय कायकता मे ौी गु जी को दो दन वौाम करने के िलए कहा क तु ु

उ ह ने इस आमह को वनॆता से नकारते हए ु अगले ूवास क तैयार क । िनयो जत

समय पर हवाई जहाज से वे मु बई पहँु चे। बदाई के समय जयपुर के संघचालक को

ूेमािलंगन दे कर कायकताओं से भी उ ह ने पूछतीछ क । इसके बाद ौी गु जी के

चरण राजःथान क भूिम को कभी ःपश नह ं कर पाए! जयपुर म जो बैठक ूकृ ित

ठ क न होने के कारण वे ले नह ं पाए थे उसके कारण ौी गु जी बहत ु ह

थे। बाद म िलखे पऽ म उ ह ने इस यथा को य

यिथत

कया।

क तु इस ूकार ःवाः य के कारण कब तक अवरोध सहा जा सकेगा? यह ू

गु जी के मन म बार-बार उठता। िनरं तर ूवास कर कायबम पूण करने क श

ौी

अब उनम शेष नह ं थी। डॉ. दे साई क द हई ु ःवाः य क काल मयादा अब समा

होने जा रह थी। तब ौी गु जी ने िन य कया क ह द ू परं परा के अनुसार अपने

ूमुख कायकताओं से आ खर बार बातचीत कर ली जाय। यह वचार मन म अंकु रत होते ह ौी गु जी ने महारा

के ठाणे नगर म अ खल भारतीय कायकताओं का एक

अ यास वग आयो जत करने का िन य कया। ू य अिधकार तथा रा

जीवन के सभी

संघकाय म रत ूचारक,

ेऽ म काय कर रहे ःवयंसेवक को भी इस

अ यास वग के िलए आमं ऽत कया गया था। द. २८ अ ू बर से ३ नवंबर तक संप न हए ु इस वग म उप ःथत कई कायकता ौी गु जी क अवःथा दे खकर

अ य त दःखी हए ु ु थे। मन अशुभ क पना से कं पत हो उठा था। ौी गु जी जस

मानिसक पीड़ा और याकुलता से संघ क कायपूित के संबंध म अपने वचार रखते

उसे सुनकर ऐसा ूितत हआ मान ये उनके अंितम वचार ह! यह उनका दे ह प ु

अंितमं दशन है ! यह अमृत वाणी, यह दे वदलभ नेत ृ व अब मन के ःमृितमं दर म ु समािधःथ होने जा रहा है । कायकताओं के

दय को हला दे नेवाली यह बैठक थी।

सभी यिथत थे।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

277


१९.१ यापक िचंतन मंथन ठाणे का वग, जो पू य पांडुरं ग शा ी आठवले जी के त व ान व ापीठ म स प न हआ था, मानो कसी गु ु

ने पािथव दे ह का

याग कर अनंत म वलीन होने के पूव

अपने िशंय को त वबोध, दशाबोध तथा शंकाओं का अंितम िनराकरण करने हे तु ह

िलया था। संघ का ह द ू जीवनादश पर अिध त शा त वचार ह ौी गु जी ने

ःप

प से रखा। आधुिनक कहलानेवाली वचारधारा तथा वै

क संदभ म ह द ू

जीवन वचार कतना मह वपूण, आचरणीय, शा त, बलशाली तथा सव प र सुख संपदा ूदान करनेवाला है , यह बात तुलना मक प ित से उदाहरण और संदभ दे ते हए ु ौी

गु जी ने इतनी पारदिशता से समझाई क ौोता आ यमु ध होकर रह गये। ह द ू जीवन प ित म िन हत मानव क याण क

मता के बारे म कोई संदेह शेष नह ं

रहा। कायकता िनःशंक हो गये। ौी गु जी ने ूितपादन कया क इसी त व क नींव पर आधा रत जीवन के हर काय ेऽ का ूा प बनाया जाय। इस वग म सवूथम ू

जो उप ःथत कया गया वह यह था क हम ‘ ह द’ू ‘ ह द’ू

का िनरं तर उ -घोष कस िलए करते ह? दे श क प र ःथित तथा वातावरण क ओर दे खते हए ु ‘ ह द’ू श द का को हम

याग

य न कर? ‘भारतीय’ या अ य कसी अनु प श द

य न अपनाएं? ऐसा करने से संघ पर सांूदाियकता का आरोप नह ं लग

पाएगा। संकुिचत और सांूदाियक इन वशेषण का ूयोग समाज म हमेशा सुनाई दे ता है , इस कारण यह शंका वचाराथ रखी गयी। ौी गु जी ने ःवयं इस ू उठाया और परामश के

को

प म कहा, “यह स य है क ‘ ह द’ू के संबंध म अनेक

ूकार के ॅम िनमाण करने के ूयास कये गये ह। कुछ ूे रत होकर ह द ू को मु ःलम वरोधी, ब

ेऽ म विभ न ःवाथ से

यन वरोधी, जैन और ह रजन वरोधी

मानकर अपूचार कया जाता है । यह ूचार कसी ठोस जानकार पर आधा रत नह ं होता। धम, संःकृ ित, इितहास का अ ययन कर सोचा होता तो ऐसे अस य आरोप नह ं मढ़े जाते। इःलाम और ईसाई पंथ पैदा होने के पूव से ह

ह द ू वचारधारा और

जीवनप ित का अ ःत व है । फर ह द ू का अथ मु ःलम- वरोधी कैसे हो सकता ह?

िसख, जैन आ द मत तो ‘ ह द’ू क् अंतगत ह ह। ःवतः को ह द ू न माननेवाले

लोग के बारे म तो यह कहना पड़े गा क वे ःवयं को ह द ू न मानकर अपने ह

हाथ-पाँव काटने पर तुले हए ु ह। ह द ू कसी का भी वरोधी नह ं है , ह द ू वचार ूणाली पूणतः भावा मक (Positive) ूणाली है , न क िनषेधा मक (Negative)।”

इस दे श के रा

जीवन के िलए ‘ ह द’ू के ःथान पर कोई अ य पयायवाची नवयुग ूवतक ौी गु जी

278


श द ूयु

कया जाय ऐसा कुछ लोग का मानना है । इस संबंध म ौी गु जी ने

कहा, “मान िल जए क कोई पयायवाची श द ढँू ढ़ भी िलया। क तु कारँ मूल अथ म प रवतन हो जाएगा?

या इस श द के

या ह द ू के मूलाथ म बदलाव आएगा?

‘आय’ श द का अथ भी वह है जो ‘ ह द’ू श द से

विनत होता है । कुछ लोग कहते

ह क ‘भारतीय’ श द का ूयोग हो, क तु इस श द को चाहे जैसा झुकाओ, मरोड़ो, िनचोड़ वह िनकलेगा जो ‘ ह द’ू श द म है । फर िनःसं द ध होकर हम ‘ ह द’ू श द का ह ूयोग

य न करे ? ‘ ह द’ू श द अब ूचिलत हो गया है । हम जब अपने रा

क सवागीण उ नित का वचार करते ह तब वह ह द ू धम, ह द ू संःकृ ित तथा ह द ू समाज के संर ण का ह अथबोध कराता है । य द हमने ‘ ह द’ू श द को

याग

दया तो ‘रा ’ नाम क कोई चीज, कोई अ ःमता शेष नह ं रहे गी। अपना समाज दो

पाँव पर चलनेवाले मनुंय ूा णय का समूह ह रह जाएगा। य द ह द ू श द के बारे

म कसी के मन म शंका हो तो उसक वाणी म बल नह ं रहे गा। इस कारण संपूण

िन य के साथ हम कहना है क “हम ह द ू ह। यह हमारा ह द ू धम, संःकृ ित और

समाज है ।” इसी नींव पर हमारा रा

स दय से खड़ा है । इसी रा

का जीवन भ य,

द य, ःवतंऽ तथा समथ बनाने के िलए ह हमारा ज म हआ है । इस वषय म हम ु

कोई समझौता नह ं करना चाहते।”

संघकाय के ःव प का वणन करते हए ौी गु जी ने कहा, “संघ का काय सव यापी है । क तु सव यापकता कसे कहते ह? ूकाश सव यापक होता है क तु ूकृ ित के सभी काय वह स प न नह ं करता। ूकाश अंधःकार का नाश कर माग दखाता है । हम इस त व को भलीभांित समझ लेना चा हए। अ यथा गड़बड़ होगी। ू येक काय

म य द हम संघ के नाते हःत ेप करने लगे तो हम जीवन के ू येक

ेऽ के िलए

एक-एक ूबंध िलखना पड़े गा। य द ऐसा हआ तो समाज को संग ठत करने का जो ु

मूलभूत काय है , वह बंद पड़ जाएगा। हम केवल ूबंध के धनी बने रहगे।इस कारण हमने रा जीवन का एक यापक िस ा त सामने रखा है । और इस िस ा त के आधार पर ह हर

ेऽ के कायकता ू येक काय क रचना कर।”

भारतीय संःकृ ित के मूलभूत िस ांतो क चचा करते हए ु ौी गु जी ने कहा, “अपनी संःकृ ित म संपूण समाज को एक जीवमान (जै वक) शर र के

प म माना गया है ।

सह शीषा पु षः सह ा ः सह पा ” – याने हजार मःतक, हजार आँख, हजार

पाँववाला पु ष, ऐसा वणन कया है । मूलतः यह ई र का ह वणन है । क तु हमारे

िलए तो समाज ह परमे र है । यह एक वरा

समाजपु ष है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

279


“इस समाजपु ष के अनेक मुख, अनेक हाथ, आँख, पाँव ह। इसी वरा

समाजपु ष

क आराधना करने के िलए हम बताया गया है । दसर बात यह है क इस वरा ू

मानव शर र के ू येक अंश म एक ह चैत य ूवा हत होता है । इस चेतना श

को

चाहे जो नाम दो, कोई फक नह ं पड़ता। सवािधक मह वपूण बात उसक अनुभिू त क है । इस चैत य क अनुभिू त का सा ा कार होने से ह हमारे यवहार-कामकाजबयाकलाप अपे ानुसार सुचा

क साममी इस वरा

प से चल सकगे। आिथक

से उ पा दत उपभोग

पु ष के िलए ह है , ऐसा हम सोच। समाज क

वरा

पु ष के

प क पना कर उसम ओतूोत िचरं तन अ ःत व क अनुभिू त करना हमारे भारतीय िचंतन क “िचंतन क

वशेषता है ।” दशा से य द हम भटक गए तो संपूण मानव जाित के सुख क क पना

सफल नह ं होगी। एक सीधा ू को ूा

हो ऐसा वचार भला

पूछा जा सकता है क जो कुछ उपल ध है वह सब

कया जाय? केवल अपने तक सीिमत वचार

न कर? दसरे को सुख िमले या दख ू ु , हम िचंता करने का

दःु खय का हमसे

या कारण है ? इन

या संबंध है ? भारत के बाहर दे श क भौितक वचारूणाली के

अनुसार य द हम यह मान ल क हम पंचमहाभूत से बने िभ न-िभ न पंड माऽ ह,

मुझम और अ य जीव म कोई आंत रक संबंध महां है , तब ऐसी ःथित म दसर के ू

सुख-दःख क भावना अपने मन म उ प न होने का कोई कारण नह ं।” ु अ य दे श म से ूचिलत वचार ूणािलय म िन हत अपूणता ःप गु जी मे कहा, “आधुिनक व

करते हए ु ौी

वचार ूणािलयाँ भी यह मानती ह क संपूण

समाज के क याण का वचार हम करना चा हए। उ ह यह पूछने क आवँयकता है क उनके िचंतन म एक व क जो क पना है , उसका आधार म वे कस ूकार का नाता मानते ह? उनका परःपर संबंध

या है ? य

या, कैसा और

य है ?

दसर के सुख-दःख क समान अनुभिू त का कौन सा आधार है ? मह व का आधार ू ु

दे नेवाला वह सूऽ कौन सा है ? वदे श क या प

मी दे श क

प से इस वषय म कोई ठोस वचार नह ं है । भारतबा

वचारधारा म सै ाितक

दे श म एक ह त व मा य

कया गया है क सब लोग अलग-अलग उ प न हए ू का कोई ु ह और एक-दजे

आंत रक संबंध नह ं है । इस कारण एक के

ारा दसरे क िचंता करने का कोई कारण ू

नह ं है । जब हर कोई िभ न हो तो भला एक दजे ू क िच ता वचारधारा म ‘समाज’ श द का ूयोग अवँय कया गया है

य कर? इस

क तु ‘समाज’ का अथ,

अनेक लोग का ःवाथ का एकऽीकरण ह माना गया है । इसी मया दत ःवाथपूित के िलए परःपर समझौता हआ और समाज बना। वदे श क ु

कोण से वचारधारा म

नवयुग ूवतक ौी गु जी

280


समझौता है , क तु आंत रक

से सब को एक सूऽ म गूथ ँ नेवाला, समान सुख-

दःख क चेतना का अनुभव करा दे नेवाला सूऽ उनके पास नह ं है ।” ु “यह सूऽ ह अपना अ ःत व है । अपने अ ःत व म ह यह सूऽ िन हत है । हमारे शर र, इ छा-आकां ाएँ, चाहे िभ न-िभ न

य न ह , सब के अंदर एक ह िचरं तन

अ ःत व है । मूलगामी एकता ता वह ूमुख कारण है । इसी मौिलक त व के कारण

ह संबंध के भाव जागते ह। ूेम तथा

े ष क भावना भी इसी एका म भाव के

आ वंकार ह। सबका िमलकर एक अ ःत व-‘समाज’ का ह हम

प है ता है , इस बात को

यान म रख।”

ौी गु जी ने आगे कहा, “इस एका मता या एक व क भावना के

दय म वराजमान

होते ह ‘समाज’ का अ ःत व बनता है और यह लमाज िसखी कैसे हो सकेगा यह वचार जागृत होता है । इसी भाव के फलःव प हम ऐसी ‘ यवःथा’ िनमाण करने का ूयास करते ह जीसम सबका समान ःवाथ हो। इस ू बया म हम ःवतः का ःवाथ छोड़ना पड़े गा। अपने संपूण अ ःत व

के व

कारण ःवाथसंमह करना आ मह या के समक

तथा ःव व के वपर त होने के पाप ह होगा। इसिलए हम

ःवाथ याग करना होगा। ःवाथ याग म ह हमारा हत है ।” “यह वचार जस जीवन िस ा त म अंतभूत ह उस जीवनूणाली का नाम ‘ ह द’ू

जीवन ूणाली है । संपूण जगत ् म इतनी गहराई से य

वशेष के अ ःत व के

आधार क खोज अ यऽ कह ं दखाई नह ं दे ती। ह द ु व क यह व मानव को द

हई ु दे न है । इसी आधार पर संपूण समाज क धारणा होती है । य

- य

के

अंतःकरण म इस एका मता को जागृत करना हमारा पहला कत य है ।” “सकड़ वष के इितहास ने यह िस

कर दखाया है क इसी ूकार क

वचारूणाली

म ःथरता है । संसार म मानवक याण के िलए जो िभ न-िभ न वचार चल रहे ह वे लंबे समय तक टकनेवाले नह ं ह। जागितक प र ःथित म बदलाव आते ह कालूवाह क ूबल लहर के थपेड़ के ूहार जब आघात करते ह तब वे या तो बदल जाते ह या न

है जाते ह। ह द ू जीवनप ित यह मानती है क सभी म एक सत ् त व

वराजमान है और सबको जोड़नेवाली वह कड़ है । एक ह अ ःत व िभ न-िभ न

म अिभ य

होता है , इस कारण ू येक य

माऽ को उसक पस द और चाह के

अनु प उ म जीवन जीने क सु वधाएँ, साधन आ द ूा

करा दे ना हमारा कत य है ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

281


यह हमारा ःथायी वचार है । इसी कत य भावना के प रणामःव प मनुंय वचार

करे गा क हम आवँयकता से अिधक जीवनावँयक वःतुओं का संमह न कर,

य क

आवँयकता पूित से अिधक साधन पर हमारा अिधकार नह ं है , समाज का अिधकार है । जो अिधक संमह होगा वह समाज के हताथ ह होगा। इस धारणा को ह

ढ़ करना

ह द ू वचार जागृित का दसरा नाम है ।” ू

“अ य राजनीितक तथा आिथक यवःथा प ितय का वचार इसी िनकष पर हम करना होगा। समाज जीवन क मूल रचना का आधार भी यह है । यवःथा चाहे जो हो, समाज जीवन क धारणा ह उलका उ े ँय है । क तु दभा ु य से हमने इस

मूलभूत िस ांत को

याग दया और उसके दंप ु रणाम हमारे सामने ह। द रिता चार

ओर फैली दखाई दे ती है । लोग ॅम के िशकार होकर इस का दोष ह द ू जीवन

प ित के म थे मढ़ते ह। क तु यह स य नह ं है । ह द ू जीवन प ित का वःमरण

ू वृ होने के कारण ह यह प र ःथित िनमाण हई ु है । अछत

(ःपृँयाःपृँय भाव) को

ह द ू जीवनप ित का प रणाम मानना गलत बात है । ह द ू द वन प ित का

याग

तथा वःमरण इन दोष क जड़ है , मूल कारण है ।”

“समाज यवःथा का वचार बु मान ् िचंतक के िलए चचा और वाद ववाद का वषय है । संघ का अथात ् ह दओं का इस संबंध म ू

या वचार है , इसका ववेचन करते हए ु

ौी गु जी ने कहा, “ऐसी सामा य धारणा दखाई दे ती है क जसे आधुिनक (मॉडन)

जीवन कहा जाता है वह सुखपूण है । साथ ह इस सुख को अिधकािधक माऽा म पाने क ःपधा भी बयाशील है । सुख दे नेवाले साधन को ूा

करने क होड़ लगी हई ु हम

दे खते ह। इन सुखोपभोिगय को अिनबिधत, िनरं कुश समाज जसे ‘ःवैर समाज’ कहते ह, चा हए। इसे उ नत समाज का ल ण माना जाता है । क तु हम यह समझ लेना चा हए क ‘परिमिसव’ वचार क छाया म ‘समाज’ नाम क वःतु ह समा

हो जाती

है । शेष बचती है केवल ‘ूितःपधा िस ा त’। इसे हम िनरं कुश उपभोग के िलए

एकऽीकरण हे तु कया हआ समझौता कह सकते ह। अथात ् ‘समाज’ समझौते का फल ु

ह माना जाएगा।”

“इस सामा जक समझौते के साथ ःपधा जुड़ हई ु है । लोग का मानना है क ःवःथ

ःपधा के कारण ूगित होती है । क तु मेर

से कोई ःपधा ःवःथ (Healthy)

नह ं होती। िनः​ःवाथ ःपधा का होना असंभव है । ूारं भ म वशु ःपधा म शीय ह

ूतीत होनेवाली

वकृ ितयाँ दखाई दे ने लगती ह। ःवःथ ःपधा अपने को अ छा

नवयुग ूवतक ौी गु जी

282


बनने क ूेरणा दे ती है क तु ःवतः को अ छा बनाने क अपे ा दसर को बुरा ू

बनाने का ूय ःपधा शु “आज व

होता है । ःवतः को ऊँची बनाने क बजाय दसर को नीचे खींचने क ू

हो जाती है । इस ःपधा का अ त परःपर संघष म होता है ।”

म जो संघष हो रहे ह, उनक जड़ म यह ःपधा क भावना ह है । दसर ू

का सुख छ नकर, न कर, ःवतः को समृ

करने क इ छा ह इन संघष का मूल

कारण है । पा ा य दे श म उ प न ‘ःवैराचरण’ और ‘ूितःपधा’ क त वह न भावनाओं से मनुंय को सुख ूा

होना असंभव है ।”

“इसिलए हम मूलगामी वचार करना पड़े गा क आ खर मनुंय जीवन का लआय का है ?

या ऐशोआराम, भौितक सुखोपभोग ह मनुंय जीवन के एक माऽ लआय ह?

सामा यतः सबका एक ह मत है क सुख क ूाि क तु सुख

ह मनुंय का ूधान लआय है ।

ीण हआ क वह दख ु का कारण बन जाता है । इसिलए मनुंय चाहता है ु

क सुख िचरं तन हो। सुखपूण जीवन का भी कभी अ त न हो। िचरं तन सुख क यह इ छा मनुंय को आक षत करती रहती है ।” “मनुंय शर रधार होने के कारण शार रक आवँयकताओं क पूित उसे करनी ह पड़ती है । इन आवँयकताओं म ऐसे अनेक उपभोग ह ज ह अमा य या ितरःकृ त नह ं माना जा सकता। वचारक कामत ह क शर र तथा मन

ारा उपभोग क ूवृ

को नकारने क आवँयकता नह ं है । आवँयक यह है क इस ूवृ

का समाधान

करने म ह मनुंय ःवतः को डु बो न दे । यह सुख सव प र नह ं है और

या य भी

नह ं है ।” “सुखी होना ह मनुंय का लआय है । ू येक जीव माऽ ःथर सुख क कामना करता है । सुख के अमर व का ःव न वह संजोता है । क तु िचरं तन सुख क क पना सामा य मनुंय नह ं कर पाता। अपनी इं िय क वसना तृ

करने म ह सुख िन हत

है , ऐसा मानकर मनुंय इस सुख के पीछे भागता रहता है । मनुंय वचारशील ूाणी

होने के कारण इं िय सुख के समाधान के िलए वह नये-नये उपाय , साधन क खोज करता रहता है । मनुंय का पहला ूय

अ य ूा णय के समान ह होता है । इं िय

का सुख। ई र ने इं िय क रचना ह ऐसी क है क वे सुख के िलए बाहर क ओर दौड़ती रहती ह। इस कारण अंदर मुड़कर, अंतमुख होकर स चे सुख क खोज करने के िलए वह तैयार नह ं होता। वचार करने पर ऐसा दखाई दे ता है क इं ियज य सुख दःखा त होते ह। इसीिलए मनुंय वचार करता है क चूं क मुझम िचरं तनु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

283


शा त सुख क इ छा व मान है तो फर वह कह ं न कह ं होना ह चा हए। य द वह

बाहर न हो तो भीतर होगा ह । जसे स चा सुख माना गया है , शर रांतगत है ? मन या

दय म है ? ऐसा ू

या वह मनुंय के

उसके मन म उ प न होता है । मनुंय

अनुभव करता है क अनेक चीज ह जो ता कािलक

प म उपभोग क इ छा तो

अवँय पूण करती ह क तु कुछ समय बाद ह उ ह पाने क भावना पुनः उ प न होती है । ता कािलक तृि

और अन त इ छा, यह इ िय सुख का ल ण है । यह

सुख ता कािलक होता है । बढ़ते हए ु उपभोग के साथ सुख क आकां ा-अिभलाषा भी वृ ं गत होती है और जहाँ अिभलाषा है , कामना है , वह ं सुख कैसे िमलेगा? मनुंय पुनः वचार करता है क य द अिभलाषा क तृि

म सुख नह ं तो आ खर वह है

कहाँ? ” “इस संबंध म भारतीय वचारक का मत है क सुख अपने अंदर ह है । अपने भीतर य

व म िन हत है । बा

वःतुओं म सुख नह ं है । वाःत वक सुख ूा

करने हे तु

अपने पूवज ने गंभीर िचंतन तथा आ मानुभव के आधार पर कुछ मागदशक बात बताई ह। सवूथम एक त व िन

प से सामने रखते हए ु उ ह ने कहा क जो

मन अःवःथ और अ ःथर है , उसे सुख का अनुभव कभी नह ं होगा। सुख ूाि

के

िलए मन का शांत, ःथर होना आवँयक है । मन क सतह पर उठनेवाली तरं ग को उठने से रोकना होगा। पानी पर जब तरं ग उठती ह, लहर िनमाण होती ह, तब उसम हमारा चोहरा दखाई नह ं दे ता। पानी क सतह पर जब कोई तरं ग नह ं उठती तब हम सब कुछ दखाई दे ता है । मन क भी यह अपना मूल

ःथित है । मन के ःथर होने पर ह

प उसम दखाई दे ता है । मन य द अ ःथर हो तो सुख क अनुभिू त

असंभव है । इसिलए ूथम मन को शांत करना आवँयक है ।” “इस आधार पर हम वचार कर क उन ूगितशील दे श म, जहाँ ःपधा, ईंया, ु कटता तथा दसर के सुख को दे खकर उ प न होती शऽुता व मान है , ू

ेष

या वहाँ

मनुंय का मन शांत और ःथर रह सकता है ? ऐसी ःथित म वासनाओं का

वारभाटा रोका नह ं जा सकता? फर सुख कैसे िमलेगा? इसिलए हम भारत म िश ा द जाती है क दसरे का सुख-ऐ य दे ख कर उसके बारे म मन म ईंया का ू भाव उ प न न हो। उसका अिभनंदन करते हए ु हम अपनी ूगित का ूय

कर।

दसर को दःखी कर ःवयं सुखी बनने का वचार हमारे मन को अशांत बना दे गा। ू ु

शर र के सुख के िलए भौितक साममी जुटाते समय अ य दे श का अंधानुकरण करना

उिचत न होगा। साथ ह दसर के दःख म ःवतः का सुख ढँू ढ़ना भी गलत है । दसरे ू ु ू

का दःख दे खकर अपने मन म क णा उ प न होनी चा हए, दःखी को सुखी बनाने का ु ु नवयुग ूवतक ौी गु जी

284


ूय ूा

होना चा हए। ऐसा करने से एक वशेष संतु

का अनूठा अनुभव और सुख तो

होता ह है , क तु साथ ह सुख क िनः​ःत ध अवःथा भी ूा

ःपधा मक जीवन म यह वशु ‘ःवैर समाज’ तो सभी

होगी।

सुख नह ं िमल सकता।”

से हािनकारक है । िनयम वह न अवःथा का वणन तो

हमारे पुराण म भी है । क तु पौरा णक काल म ऐसा अनुभव हआ क िनयमह नता ु

से अनाचार-दराचार ह बढ़ा। इसीिलए ऐसा सोचा गया क िनयम बनाकर उन िनयम ु के अनुसार ह मनुंय को चलाना चा हए। ‘ःवैर समाज’ अनाचार को बढ़ावा दे नेवाली और मनुंय को मनुंय का शऽु बनानेवाली है ।

“इसीिलए हमारे शा

और पूवज ने बताया है क असीम उपभोग क लालसा और

उसके तु ीकरण के िलए ःपधा या होड़ से सुख ूा म संयम क आवँयकता है । य

नह ं होता। इस के िलए जीवन

और समाज के नाते भी संयम आवँयक है ।

समाज को संयिमत रखना आसान काम नह ं है । इसके िलए अपने यहाँ चार पु षाथ क क पना क गयी है । य

और समाज क

कत य का वचार कया गया है । धम य

से संयमशील जीवन तथा

और समाज का िनयंऽण करता है । धम

ारा िनयं ऽत होने से ह अथ और काम क आराधना होती है और इसीिसए उपभोग, स ा, धन, संप

तथा ऐशो-आराम क साधना धम

और यह िनयंऽण ूःथा पत करते समय मो

ारा ह िनयं ऽत रहनी चा हए

क कामना िनरं तर मन म रहने से

अपने को सुखमय ःव प क मूल अनुभिू त होगी। इस कामना का अथ है , चौथा

पु षाथ मो । पहले और चौथे पु षाथ के िनयंऽण म ह हमारा जीवन यतीत हो। उपभोग के साधन इन दो पु षाथ के िनयंऽण म रहने चा हए। नद का पानी दो कनार के बीच से बहता है , इसी कारण हम उसका उपयोग कर पाते ह; और नद

जब कनारे क मयादा को लाँघकर बहने लगती है तब वह व वंस का कारण बनती है । उसी ूकार उपभोग क नद का भी धम और मो

दो कनार के बीच से बहना

ह सुखकारक होगा। इसीिलए ूथम और चतुथ पु षाथ के बीच से बहनेवाली जीवनधारा िन

त कर य

गत तथा सामा जक जीवन से संबंिधत भौितक उपभोग

का वचार करना चा हए। साथ ह उसके अनुसार सामा जक यवःथा होनी चा हए।” “यह क पना संपूण मानव जाित को सुख दे नेवाली है । ःपधा से उ प न अिन ता पर रोक लगाकर तथा भौितक सुख पर संयम का अंकुश रखते हए ु अंितम लआय क ओर यान के ित कर हमने अपना जीवन यतीत कया तो ह हम वाःत वक सुख के

नवयुग ूवतक ौी गु जी

285


धनी हो सकते ह। य

गत तथा सामा जक जीवन म संतोष और सुख पाने का यह

एक यो य माग है । यह वचार य द हम मा य है तो ह हम आज क प र ःथित म रा ीय ःवयंसेवक संघ का काय समूचे संसार के स मुख रखने म समथ हो सकगे।”

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

286


२० महाूयाण ठाणे का अ यास वग सुचा

प से चल रहा था। ौी गु जी ःवाः य ठ क न होते

हए ु भी कायकताओं का मागदशन कर रहे थे। कायकता मंऽमु ध होकर ौी गु जी क अमृतवाणी सुनते और चाहते क यह मेधावी

ानूपात अपने म ःतंक पर इसी करह

बरसता रहे । क तु ौी गु जी क शार रक अःवःथता और पीड़ा का वचार मन म आते ह कायकताओं के

दय दःख से भर जाते थे। वे मन ह मन ूाथना करते क ु

ौी गु जी को ःवाः यलाभ हो और दे श को उनके मागदशन से लाभा वत होने का भा य ूा

हो। क तु इ छा और इ छाओं क पूित के बीच िनयित का अ ँय खेल

चलता रहता है । इस खेल के िनयम मनुंय के िनयंऽण म नह ं होते। ई रे छा

बलीयसी! जो स य है उसे मानते, ःवीकारते हए ु मनुंय को स य क ओर ह चलना

पड़ता है ।

ठाणे का अ यासवग जब चल रहा था तब ौी गु जी ूित दन मु बई जाकर चाचा णालय म ड प ए स-रे का उपचार भी ले रहे थे। बैठक म बोलते समय ौी गु जी

को गले म बहत ु पीड़ा होती थी। असहनीय दद होता था। वे जानते थे क उनके पास समय कम और काम य

यादा है । इस धरती से उठने के पूव उ ह अिधकािधक वचार

करने का अवसर िमलना आवँयक है यह जानकर उ ह ने शार रक वेदनाओं को

िनगलकर जो कहना था सो कह डाला। ठाणे का वग समा तक वे मु बई म ह रहे ।

होने के प ात ् द. ११

ड प ए स-रे के उपचार के प रणामःव प ौी गु जी का गला भुज ँ सा गया था। बोलना और भोजन करना क ठण हो गया था। डॉ टर ने सलाह द

क ौी गु जी

‘मौन’ धारण कर। भला यह कैसे संभव था? ौ ालु प रिचत गण, कायकता अ य

ःथान से आएँ तो उ ह बोलना पड़ता था। ौी गु जी भट करने हे तु आए कायकताओं, अ यागत क पूछताछ करते थे। यह उनक प ित थी। ऐसे समय वे अपनी य

गत वेदनाओं क ओर दल ु

कया करते थे। इसी कालखंड म तीन ूांत के

ूवास ःथिगत कर दये गये थे। बोल नह ं पाते, िलख तो सकते ह। इस कारण ौी गु जी ने दे श के कोने-कोने तक, दरदराज ःथान तक पहँु चनेवाले अनिगनत पऽ ू िलखे।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

287


ौी गु जी ‘डॉ. मुज ं े ज म शता द सिमित’ के अ य

थे। ःवतः के हःता र म

िलखे प रपऽक भेज कर काय को ौी गु जी ने गित ूदान क । डॉ. मुज ं े क मूित का

अनावरण करने क ूाथना करनेवाला पऽ जनरल क रआ पा को भेजा। ःमारक सिमित म स मिलत होने के िलए जन- जन लोग से ूाथना क गई थी उनम से एक ूमुख नाम ौी राजाजी का था। ौी राजाजी ने ूथम यह कहते हए ु

इ कार कर दया क धनसंमह के मामल म उनके अब तक के अनुभव बहत ु कटु रहे ह। कंतु

य ह उ ह ौी गु जी का य

गत पऽ दया गया

य ह उ ह ने अपनी

ःवीकृ ित ूदान करते हए ु कहा क “य द ौी गोलवलकर उस सिमित म ह तो मुझे

पूरा व ास है क धन के यया द क

यवःथा उिचत ढं ग से ह क जायेगी।” यह

घटना ःवयं इतना कुछ कह जाती है क उसके वशेष मह व को अलग से समझाने क कोई आवँयकता नह ं। गले का क

धीरे -धीरे कम हआ। भोजन भी बना वेदना के होने लगा। ःवाः य म ु

गोचर इस सुधार को दे खते ह ौी गु जी का मन ूवास करने के िलए तैयार हो गया। वे ूस न हए ु , मान ूवास ह उनका जीवन हो! ौी गु जी ने एक बार वनोद म कहा था, “रे ल का ड बा ह मेरा पता और मेरे चार ओर फैला समाज ह मेरा घर है ।” वनोद म कह बात भी उनके जीवन म स य का ूतीक थीं। िन य ूवास, िन य जनसंपक तथा राषश हतकार उ -बोधन ह उनका

जीवनकाय था। ौी गु जी का ूवास पुनः ूारं भ हआ। द. २ दसंबर से १३ दसंबर तक ौी गु जी ु इ दौर म पं. रामनारायण शा ी के िनवास ःथान पर गु बंधु ौी अमूतानंदजी

महाराज के सहवास म रहे । वौाम कया। वौाम करते हए ु भी कौन सा काम ज द

से िनबटाना है , ूारं भ कये गये काय म से कौन सा अभी अधूरा है इसका ौी गु जी

ने िचंतन कया। त प ात ् नागपुर लौटकर डॉ. मुज ं े क मूित के अनावरण समारोह म

भाग िलया। जनरल क रआ पा के रवाना होते ह ौी गु जी कणावती म आयो जत

िश वर के िलए चल पड़े । द. २ को ौेऽ ूचारक क बैठक के िलए वे वापस नागपुर

आए। द. ८ के बाद महाकोशल, वदभ, ह रयाणा, पंजाब, कनाटक, तिमलनाडु और आ ी का ूवास तथा संघ के अित र

अ य कायबम को भलीभांित समा

कर ौी

गु जी द. २० फरवर के नागपुर लौटे ।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

288


योजना के दसरे खंड म बंगाल, असम तथा बहार रा य का ूवास िन ू बंगाल का ूवास समा

होते ह ौी ूभुद

त हआ था। ु

जी ॄ चार के आमह पर एक वशेष

कायबम हे तु वे काशी गये। वह फा गुन कृ ंण एकादशी का दन था। ौी गु जी का

ज म दवस। इसी िनिम

अनेक ूमुख कायकता काशी म उप ःथत थे। कायबम का

ःव प बड़ा ह मनभावन था। अपने नेता क वषगांठ! जसने अपने हाथ ःवयं का ौा कम भी संप न कर डाला हो, उस िनम ह क वषगांठ और वह भी ौी ूभुद जी ॄ चार और पं. राजे र शा ी ि वड़ जैसे दो

ये . महान ् य

व क उप ःथित

म। ौी गु जी के ःवाः य के बारे म तो सभी जानते थे। इस कारण वातावरण म गंभीरता के साथ ह भावुकता चरम सीमा पर थी। ौी गु जी ने ौी ूभुद

जी तथा

पं. राजे र जी के चरण पर मःतक रख उनका आशीवाद महण कया। ौी माधवराव दे शमुख ने ौी गु जी के ःवाः य लाभ हे तु अनुरोध था क इस

ियाग क समाि

ियाग का आयोजन कया था। सभी का

ौी गु जी

ारा पूणाहित डाल कर हो। इस ु

ूेमामह का ौी गु जी ने आदर कया। लगभग दो घंटे तक ौी गु जी विध संप न करवायी गयी। ौी गु जी को ऐसे कायबम म वशेष

ारा पूणाहित ु

िच नह ं रहती थी। ः ः य के िलए ऐसे

ूयोजन संभवतः उ ह िनरथक लगते थे। कंतु कायकताओं क भावनातु

मान जाया करते थे। मान भले ह जाते ह

क तु मन को बाहर से अिल

के िलए वे रखकर।

इस समय ौी गु जी क िगरती हआ ःवाः य दे खकर कायकता यिथत हए। ौी ु ु

गु जी अगले ूवास के िलए चल पड़े । उ ह भला कौन रोकता? उ ह रोकने क श

,

साहस कसी म भी नह ं था। ूवास दगम ूदे श म होने से क ठन था। ौी गु जी मन ु ह मन जान चुके थे क अब फर से ूवास व कायकताओं से भट शायद ह हो पाये! यह ूवास समा

कर वे नागपुर आए। और लग गया ूवास को पूण वौाम! इसके

बाद नागपुर के बाहर उनके कदम नह ं पड़े । कालपु ष ने राँची म ह ौी गु जी को आगाह कर दया था। इशारा िमल चुका था। साँस फूलने के कारण उ ह राँची ःटे शन पर ड बे म ह

वौाम करना पड़ा था। फरवर मास म बंगलूर म सावजिनक सभा म

पूरे एक घंटे खड़े होकर उ ह ने अंमेजी म भाषण दया था। यह जानते हए ु क यह

मेरा अंितम ूवास है - उ ह ने फोटो आ द का भी कोई वरोध नह ं कया।

वदाई

नवयुग ूवतक ौी गु जी

289


नागपुर आते ह पुनः उपचार ूारं भ कये गए। वायुमड ं ल िच ता से भर गया था। यह

जानते हए ु भी क अब कोई लाभ नह ं है , ौी गु जी कायकताओं क इ छा का आदर

रखा। डॉ टर इलाज को उ ह ने मा यता द । डॉ. ूफु ल दे साई क सलाह के अनुसार इं जे शन लगाये गये। १४ माच को ौी गु जी का अंितम ूवास समा

हआ। उसी ु

तरह उनका अंितम भाषण २५ माच को हआ। ूसंग था अ खल भारतीय ूितिनिध ु सभा क बैठक का। ौी गु जी बैठकर ह बोले। सार श

बटोर कर वे बोलने का

ूयास कर रहे थे। दे खने, सुननेवाल से ौी गु जी क यह दशा दे खी नह ं जा रह

थी। सारे ह अःवःथ, ःतंिभत और भाव व हल थे। ूायः सभी क आँख म आँसू थे। ौी गु जी ४० िमनट तक बोले। अपने इस अंितम भाषण म उप ःथत कायकताओं को आ ःत करते हए ौी गु जी ने कहा, “संगठन क

ःथित का हम अब और भी वचार करना पड़े गा। विभ न काय ेऽ

जैसे- व ाथ , राजनीित, मजदरू आ द म अपने कायकता काय कर रहे ह। इन काय क रचना, सं वधान, िनयम, यवहार आ द िभ न ूकार के ह, फर भी अपना

ःवयंसेवक वहाँ संगठन क धारणा लेकर जाता है और उसे वहाँ ूःथा पत करने का ूय ू य

करता है । हम सभी को इस बात का वचार करना चा हए क इस ूकार क चे ा वहाँ होती है या नह ं।”

“ये सब जो िभ न-िभ न काम ह, उन सबका उ यह समाज अपना है , यह रा

के िलए विभ न

एक ह है क यह दे श अपना दै ,

अपना है तथा इस रा

का ौे

ेऽ के ये सब काय ह। अपने सामने यह रा

यवहार से भला हम

जीवन िनमाण करने न हो तो बाक के

या करना है ?”

“कुछ लोग कहगे क य द हमने अपना ह द ू रा

का वचार कहा तो सभी लोग उसे

मानगे। पर तु इस स य क उ -घोषणा को कुछ लोग आज मान या न मान उससे

कुछ बगड़ता नह ं। हमारा

कोण ःप

हो और उसके स ब ध म अपने मन का

पूण व ास हो तो आमहपूवक ूितपादन करने पर सच बात को लोग मानने लग जावगे। हम सभी का अनुभव है और मुझे भी ऐसा व ास है क लोग मानते ह।” “साथ ह हम

यान रखना चा हए क शाखा के बना हम िभ न-िभ न काय नह ं कर

पायगे। जहाँ अपनी शाखा अ छ ूकार से चलती है वहाँ पर कोई भी काय उठाया तो हम उसे िन यपूवक सफल कर सकते ह। अतः संघ शाखा के कायबम, उलक आचार

नवयुग ूवतक ौी गु जी

290


प ित, ःवयंसेवक का यवहार, ःवयंसेवक का ःवभाव तथा उनका गुणो कष आ द

बात क ओर हम ूय

यान द और उनका ूसार तथा

ढ़ करण करने का एकाम िच

से

कर।”

“इतना य द हम करगे तो सब

ेऽ म वजय ूा

करगे और जतना यह काय

सु ढ़ता से चलेगा और उसे हम एक अ तःकरण से करगे उतना अपने िलए सवदरू वजय ह

वजय है ।”

इसी भाषण म ौी गु जी ने आगे कहा- वह दो वष बाद ह सामने आ गया। जब १९७५ म दे श म आपा काल लगाकर सभी नाग रक के मूलािधकार को िनल बत कर, रा ीय ःवयंसेवक संघ पर भी ूितब ध लगाकर दे श म तानाशाह लाने का

कुचब रचा गया था। ौी गु जी

ारा कया गया मागदशन आगे क प र ःथितय म

कैसा उपयोगी हआ ू ु - इससे ौी गु जी क दरदिशता

यान म आती है । अपने भाषण

म ौी गु जी ने कहा था-

“आज दे श म ऐसी प र ःथित िनमाण क जा रह है जसके अ तगत कुछ मु ठ भर स ाधार ह और शेष स पूण समाज गुलाम बन कर रहे । मानव क ूित ा का जो भाव रहना चा हए था वह अब कहाँ रहा है ? वह तो गुलाम याने पालतू कु ा हआ जा ु

रहा है । उसके अ दर कोई नैितकता नह ं रह है । मार भी पड़ तो उस ःथित म रोट के िलए लार भी टपकायेगा। इस ःथित म मनुंय तथा रा

क अ ःमता और च रऽ जागृत करने तथा रा

ूित ा को सब ूकार से अ ु ण रखने म समथ समाज क संग ठत श

खड़ करने

का बहत ु बड़ा दािय व हमार ओर आया है । यह अपने काय के वःतार और

ढ़ करण

से ह संभव है ।”

इस भाषण के समा

होते ह अनेक कायकता आँख म आँसू िलए ौी गु जी के

िनकट आए। ौी गु जी उन के मन क अवःथा जानते थे, क तु हाःय- वनोद के

साथ बातचीत कर कायकताओं के आँसओ ू ं से बो झल मन को शांत करने का ह उनका ूयास रहा। संभवतः इसी बैठक के समय ौी गु जी ने

ये

कायकताओं क

सलाह लेकर मा. बालासाहब दे वरस का नाम सरसंघचालक के नाते िन

त कया

होगा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

291


द. २६ माच को ौी गु जी महाल कायालय के िनकट ःथत मो हते संघःथान पर ूाथना के िलए गए। वगत 33 वष म ौी गु जी बना ूाथना कए कभी रहे नह ं। द. २६ माच क यह ूाथना अंितम ह िस

हई। द. २७ से अपने कमरे के िनकट ु

बनी छत पर खड़े होकर ह ूाथना करने को उ ह ववश होना पड़ा। द. २६ से तो वे ःवतः के हाथ ःनान भी नह ं कर पा रहे थे। द. ३ अूैल १९७३ को अमावस थी। इसके पूव द. २ को ौी गु जी ने ःवतः के हःता र म तीन पऽ िलखे और कायालय ूमुख ौी. पांडुरं ग

ीरसागर जी के हाथ स प दये। ःवाः य कभी िगरता, कभी ठ क

रहता था। ौी गु जी दवाइयाँ लेते क तु उनका मन इन उपचार से परे था। अिल ता

क भावना से वे सब कुछ ःवीकार कर रहे थे, अ य क मनःशांित व समाधान के िलए।

कलक ा के ःवयंसेवक डॉ. सु जत धर पखवाड़े म एक बार ौी गु जी का ःवाः य-

प र ण करने हे तु आया करते थे। द. २६ को ौी गु जी ने डॉ. सु जत धर से कहा, “इस शर र को टकाये रखने का ूय पाओगे?” डॉ. धर भला

य करते हो? और कतने दन उसे रख

या कहते? द. ३० को फर से ए स-रे िनकाला गया। डॉ.

धर को यह ए स-रे िनद ष लगा। सब क आशाएं प ल वत हई। ौी गु जी भी बहत ु ु ूस न दखाई दे रहे थे। कुछ दन बाद वे चलने लगे। कमरे म टहलने लगे। शर र

का संतुलन भी ठ क था। कदम डगमगाते नह ं थे। यह सुधार १९ मई तक टका रहा। ौी गु जी को फर से साँस फूलने का क

होने लगा। डॉ टर तथा वै

से

दवाइय क योजना उ म थी, क तु ौी गु जी का शर र दवाइय का साथ नह ं दे रहा था। दवाइय का कोई असर दखाई नह ं दे रहा था। संभवतः अंतःथ आ मक चैत य अब शर र म बंद बनकर रहने के िलए उ सुक नह ं था। नागपुर का संघ िश ा वग ूारं भ हो चुका था। दे श म अ यऽ भी वग चल रहे थे। ौी गु जी का वग म जाना असंभव था। इसी कारण वे िच तत थे। ःवयंसेवक से वे िमलना चाहते थे। अ ततः ऐसी योजना बनाई गयी क द. १६ से वग म तृतीय वष के िलए आए हए ु ःवयंसेवक ूा तशः ौी गु जी से िमल। यह बैठक २०-२५ िमनट

तक चला करती थी। प रचय तथा ौी गु जी का पाँच िमिनट तक बोलना, यह बैठक

का ःव प था। ौी गु जी अपने पाँच िमिनट के भाषण म ःवयंसेवक को जी जान से,

ढ़ता से संघकाय करने का भावभीना आवाहन कया करते। उनका ू येक श द

ःवयंसेवक के

दय को ःपश कर जाता था। द. २६ तक ौी गु जी को वशेष क

नह ं हआ। क तु बाद म पुनः साँस फूलने लगी। ु नवयुग ूवतक ौी गु जी

292


ौी गु जी के ःवाः य के बारे म पूछताछ करने के िलए विभ न ूा त से संघ के कायकता तथा अ य

ेऽ म काय करनेवाले महानुभाव का आना ूारं भ हआ। ु

अनिगनत लोग आते और अपना ौ ाभाव य

करते। ौी गु जी का जनसंपक

वशाल था। कतने प रवार, कतने लोग, िगनती करना असंभव! ौी गु जी के बारे म

जो ौ ाभाव सु

था वह अब ूगट हो रहा था। संघ के बाहर भी अनेक व यात

मा यवर से उनका प रचय था। इस सु

ौ ा-सरःवती क धारा अब

ँयमान हो

रह थी। ौी गु जी एक-दो वा य से अिधक बोल नह ं पाते थे। सारा दे श ौी गु जी के ःवाः य के संबंध म िचंितत था। न जाने कतने लोग ने य

कये, मं दर म

ूाथनाएँ क ं, जपजाप कये, ोत रखे। भावना एक ह थी, ौी गु जी हमारे बीच ःवःथ हो कर रह, उनक ओजःवी वाणी का मागदशन सारे दे श को ूा

होता रहे ।

ँ से सूचक उ -गार . ३१ मई को ौी गु जी क सांस भार चलने लगी। उनके मुह

िनकल ने लगे। रा भट करने आ ःप

से वका सिमित क संचािलका वंदनीय मौसी केलकर ३ जून को

तब ौी गु जी ने उनसे कहा, “म अब पूण

प से तैयार हँू ।” अथ

था। अब म ई र के बुलावे क बाट जोह रहा हँू , अपनी ओर से म तैयार बैठा

हँू । इस के अित र

इन श द का दसरा भाव और ू

या हो सकता था?

द. ४ जून का रा ऽ का समय। ौी बाबूराव चौथाईवाले मािलश के िलए तेल क बोतल लेकर आए। बोतल हाथ पर औ ंधाई क तु तेल न िगरा। बोतल म तेल ह नह ं था। ौी गु जी ने, जो यह

ँय दे ख रहे थे, हँ सते हए ु कहा, “तेल ख म हआ ु ? ठक

ह है । अब कल कौन तेल लगानेवाला है ?” इसका गिभत अथ जानकर ौी चौथाईवाले च क गये। ौी गु जी उ रािभमुख होकर कुस म बैठा करते। इस समय इनक कमल सी सुद ं र आँख अधखुले फूल सी, अध मीिलत दखाई दे तीं। ई र के िनजधाम का यान करनेवाले योगी के समान वे दखाई दे ते। द. ४ को बःतर पर न सोते हए ु वे कुस पर ह बैठे रहे । शर र के कवच से मु

होने का दन उनक

से िन

त हो चुका था।

ये

शु ल पंचमी द. ५ जून

१९७३। ौी गु जी ने ूातःकाल ःनान कया। आसन पर बैठकर सं या क । साँस लेना दभर होने के कारण डॉ. आबाजी थ े ने ऑ सीजन दे ने का ूयास कया। क तु ौी ू

गु जी ने एक हाथ ऊपर करते हए ु कहा, “अरे आबा, आज घंट बज रह है । यह रहने

दो।” ौी आबाजी थ े आवाक् रह गये। असमंजस म पड़े वे ौी गु जी का मानसरोवर सा शांत मुख मंडल िनहारते रहे । ौी गु जी ने अपने हाथ-पाँव के नाखून िनकाले।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

293


बाद म वे कुस पर बैठे, क तु इसके पूव ह हमेशा उनके साथ रहनेवाला कमंडलु उ ह ने दा

ओर रखा। ौी गु जी हमेशा यह कमंडलु बा

के िलए ूःथान करते समय ह वह दा

ओर रखा करते थे। ूवास

ओर रखा जाता था। डॉ. थ े जी को यह

संकेत बहत ु वेदनादायक लगा। ौी गु जी को वेदना हो रह थी। वे बहत ु ह बेचैन थे।

डॉ. थ े जी के आधार से वे लघुशंका (पेशाब) के िलए गये। हाथ पाँव धोए। शायद उ ह लगा हो क भगवान के पास साफ सुथरा शर र लेकर ह जाना चा हए। डॉ टर ने दोपहर को ह बतला दया था क ौी गु जी का ःवाः य िनयंऽण के

बाहर हो गया है । सुधार होना क ठन ह। ौी बालासाहब दे वरस को संदेश भेजा गया। सं या समय ौी गु जी को कुस म बैठाकर ह ूाथना करने के िलए कहा गया। ७३० बजे चाय आई क तु ौी गु जी ने मना कर दया। रात को आठ बजे वे ौी

बाबूराव चौथाईवाले का आधार लेते हए ु लघुशंका के िलए ःनानगृह म गए। हाथ पाँव

धोकर ौी गु जी ने ११ बार कु ले भरे । वे लगातार कु ले भरते गए। यह दे खकर ौी बाबूरावजी ने ौी गु जी के हाथ से पानी भरा लोटा लेकर बगल म रख दया और

उ ह उठाया। क तु लौटते समय एकाएक ौी गु जी ने अपनी गदन ौी बाबूरावजी के कंध पर टका द । एक हाथ से उ ह आधार दे ते हए हाथ से बाबूरावजी ने ू ु दसरे

दरवाजा खोला। ौी गु जी एक कदम भी आगे बढ़ा न सके। ौी गु जी क िनरं तर सेवा म रहनेवाले ौी वंणुपंत मुठाल ने यह दे खा और वे दौड़कर ौी गु जी के पास आए। दोन ने उ ह उठाया और कुस पर बठा दया। आँख बंद, हलचल बंद, केवल मंद

सन बया चालू।

डॉ. थ े दौड़ कर आए। अ य डॉ टर को फोन कये गए। डॉ टर ने सलाह द , “अब कोई लाभ नह ं हो सकता। उ ह शांत िच

से बदा होने द।” धीरे -धीरे बया मंद,

मंदतर होने लगी। मुिा ूस न दखाई द । रात के ९ बजकर ५ िमनट हए ु ह थे क

एक ूद घ अंितम साँस बाहर िनकली। ौी गु जी क आ मा दे ह के कारावास से मु हो गई थी।

चार ओर कायकता थे। सभी क आँख म आँसओ ु ं क बाढ़। इस बाढ़ को रोक पाना सवथा असंभव था। कायकताओं ने ौी गु जी का पािथव शर र सी ढ़य से नीचे लाकर एक बड़े कमरे म सावधानी से रखा।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

294


ौी गु जी अब अपने बीच नह ं रहे , यह वाता तेज हवा क भाँित नागपुर नगर म

फैल गई। आकाशवाणी के ि ने ौी गु जी के दे हा त का दःखद समाचार ूमुखता से ु

ूसा रत कया। अब तो सारे दे श म यह समाचार व दत हो चुका था। रा ऽ ९.३० बजे कायालय के बाहर भार भीड़ इक ठा हई। जसे पता चलता वह दौड़ा आता अपने ु

ूय नेता के अंितम दशन के िलए। बाहर के गाँव से हजार क सं या म ःवयंसेवक

आने लगे। द. ६ को नागपुर के महाल वभाग ःथत डॉ. हे डगेवार भवन के अहाते म

शोकाकुल, ौ ालु नाग रक, ःवयंसेवक सह

क सं या म उप ःथत थे। सभी मौन,

गंभीर। अपने दःख को रोक पाना सभी को असंभव सा हो गया था। ौी बालासाहब ु दे वरस दोपहर को पहंु चे। ौी गु जी को दे खते ह वे

कंठ हो उठे । पुंपमाला अपण

करते समय तो वे बेकाबू होकर रो पड़े । ौी गु जी के पािथव शर र पर पुंपमालाओं का अंबार लग गया था। एक ओर गीता पाठ अखंड ौी गु जी

ारा ौी पांडुरं गप त

प से चल रहा था।

ीरसागर को दये गये तीन पऽ सब के स मुख खोले

गये। िलफाफे म बंद पऽ म अं कत ौी गु जी का भाव व

सभी को अंतमुख करता

हआ ूगट होने लगा। वातावरण म नीरव शांित भर हई ु ु थी। एक पऽ म ौी गु जी ने संघ के सरसंघचालक के नाते नेत ृ व का भार ौी बालासाहब दे वरस के कंध पर स पा था। महारा

ूा त संघचालक ौी बाबासाहब िभडे ने यह पऽ दरू

विन ेपक पर

गंभीर आवाज म पढ़ा। अ य दो पऽ ःवयं ौी बालासाहब दे वरस ने पढ़कर सुनाए। एक पऽ म ौी गु जी ने आ ा द थी क उनका कोई ःमारक न बनाया जाय। और दसरे पऽ म ौी गु जी ने अ यंत वनॆता से भावभीने श द म, दोन हाथ जोड़कर ू

ूाथना क थी, जसे सुनकर तो उप ःथत जनसमुदाय का आँख म आँसू भर गए। सह

दय व हल हो उठा।

कंठ से िसस कय क क ण

विन िनकल पड़ ।

या िलखा था ौी गु जी ने? असामा य होते हए ु भी एक सामा य य

िनभाई थी।

मा याचना क थी। ौी गु जी ने अित वनॆ भाव से िलखा था, “मुझ

से जाने अनजाने म य द कसी के

जोड़कर सबसे

क भूिमका

दय को ठे स पहँु ची हो, दःख हआ हो तो म हाथ ु ु

मा माँगता हँू ।” अपने भाव अिधक ःप

करने हे तु ौी गु जी ने संत

तुकाराम का एक अभंग िलखा था:

शेवटची वनवणी। संतजनी प रसावी वसर तो न पड़ावा। माझा दे वा तु हासी।। आता फार बोलो कायी। अवघे पायी व दत नवयुग ूवतक ौी गु जी

295


तुका

हणे पड़तो पाया। करा छाया कृ पेची।।

भावाथ:ौी तुकाराम महाराज अंितम समय म पंढरपुर म जाकर वठोबा के दशन करने म असमथ थे। अतः पंढरपुर जा रहे संत से वे िनवेदन करते ह-

अंितम ये ूाथना। संतजन सुने सभी।। वःमरण न हो मेरा। कह ूभु से सभी।। अिधक और

या कहँू । व दत सभी ौीचरण म।।

तुका कहे पैर पडू ँ । रहँू सदा कृ पा क छाँह म।। भावाथ:-

हे संतगण, मेर यह अंितम वनती कृ पया ूभु तक पहँु चाय क उ ह मेरा वःमरण न हो। अिधक

या कहँू ? सभी तो ौीचरण म व दत है ।

तुकाराम ूभुचरण म माथा टे ककर कहता है क तेर कृ पा क छाँह मुझ पर सदा बनी रहे । ौी बालासाहब दे वरस का कंठ यह अभंग पढ़ते-पढ़ते अव

हो गया था। एक-एक

श द वे क ठनाई से पढ़ पा रहे थे। वनॆता तथा क ण रस क यह प रसीमा थी। इस समसार के अनेक महापु ष अपने अहं को साथ ले चल बसे। क तु ौी गु जी का यह उदाहरण सादगी क अनुपम गाथा है । ‘म नह ं, तू ौे ’ यह पऽ से

वनॆ भाव इस

विनत हो रहा था।

कायालय के बाहर खड़े सह बालासाहब दे वरस के समान ह

ःवयंसेवक तथा नाग रक क मानिसक अवःथा ौी दःख से ओतूोत थी। महायाऽा क तैयार हो चुक

थी। एक शक पर ौी गु जी का पािथव शर र रखा गया। नूतन सरसंघचालक ौी बालासाहब दे वरस

ारा पुंपमाना अपण करने के बाद महायाऽा ूारं भ हई। ौी ु

नवयुग ूवतक ौी गु जी

296


बालासाहब और ौी गु जी पर असीम ूेम करनेवाले सह

कंठ से

दन क

विन

फूट पड़ । अं ययाऽा रे शीमबाग क ओर चलने लगी। रामधुन, ‘भारत माता क जय’, ‘ौी गु जी अमर रह’ इन धीर गंभीर घोषणाओं से आकाश गूज ँ उठा। ौी गु जी के पािथव शर र के पीछे अपार जनसागर उमड़ पड़ा था। सभी पैदल चल रहे थे, भार कदम से। ौी गु जी का पािथव दे ह वहन करनेवाला माऽ एक शक ह इस महायाऽा म था। तीन

लाख से अिधक लोग इस महापु ष को बदाई दे ने इस महायाऽा म स मिलत हए ु थे। ५-४५ बजे िनकली यह महायाऽा ७-४५ को रे शीमबाग पहँु ची।

संघ के ूथम सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार के ःमृितमं दर के स मुख चंदन क िचता रची गयी थी। ौी गु जी का पािथव शर र चंदन क िचता पर रखा गया। पुणे के ौी वासुदेवराव गोलवलकर ने मंऽा न द । चंदन क िचता से

वालाएँ आकाश क ओर

उठने लगीं। दे खते ह दे खते चंदन क भगवे रं ग क लपट ने ौी गु जी के पािथव शर र को अपने अंक म लपेट िलया। िनरं तर ३३ वष तक संघकाय के िलए सम पत

एक दधीिच का दे ह साथ लेकर

वालाएँ द यलोक म केशवधाम क ओर चल पड़ ।

ःमृित मं दर भी इन लपट से आलो कत हो गया। डॉ, हे डगेवार जी क ूितमा क सा ी से उनके चरण के पास जलती अ न गु जी क आ मा को िन

वालाओं म एक सिमधा बनकर ौी

प से शांित िमली होगी।

इस समय वातावरण शांत, गंभीर, शोकम न था। बीच-बीच म िसस कय क आवाज सुनाई दे ती थीं। कुछ ह दे र बाद भगवा

वज फहराया गया। संघ क ूाथना अव

कंठ से कह गई। ‘भारत माता क जय’ क घोषणा हुई। शाखा व कर होने क आ ा। और अपने ूय नेता को अ न के अधीन कर भार

दय से ःवयंसेवक तथा

नाग रक अपने-अपने घर क ओर लौटे । अब रे शीमबाग म दो चैत य पी महापु ष थे। एक पू. डॉ. हे डगेवार ःमृितमं दर के ऊपर भाग पर मूित प म बैठे हए ू , चंदन क िचता पर सिमधा बन जले ु और दसरे दधीिच ौी गु जी पािथव दे ह के अवशेष के

प म। डॉ टरजी के मुख मंडल पर भाव

था क मेरा चयन साथक हआ। मेधावी माधव ने संघ क ग रमा व ु

और दे श के िलए िनरपे

यापी बनायी

याग कर ःवयं त व प हो गये।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

297


और संभवता ौी गु जी को भी ौी केशव के चरण को ःपश कर िनजधाम क ओर

अमसर होने म समाधान ूा

हआ होगा। िचता धू-धूकर जल रह थी। ूाथना के ु

ःवर अभी भी वातावरण म गूज ँ रहे थे।

ऐसा लग रहा था मान ौी गु जी संघगीत क पं

गा रहे ह –

“माँ तेर पावन पूजा म, म केवल इतना कर पाया”।

*

नवयुग ूवतक ौी गु जी

298


२१ बादल से िघरा सूय ौी गु जी जब तक जी वत थे तब तक उनके य

व को ववाद म घेरने का

िनर तर ूयास होता रहा। वाःतव म उनका जीवन च रऽ इतना पारदश था क कोई भी उनके जीवन क खुली कताब को पढ़ सके। ौी गु जी के अित र

दय म रा हत के

कुछ भी नह ं था। सब कुछ रा ापण, ‘म नह ं, तू ह ’ भाव मन- दय म

धारण कर वे कायरत रहे । क तु राजनीित या दलगत ःवाथ क

से ह

जन

लोग ने ौी गु जी को दे खा उ ह वे सांूदाियक, जाितवाद , ूितगामी, स ा के भूखे या उ पाती और हं साचार घोर वरोधी के

दखाई दये। मुसलमान और ईसाइय के

े ा तथा उनके

प म उनक ूितमा िनमाण करने का भी भरसक ूयास कया गया।

२१.१ ह द ु व का जागितक दशन ू

यह है क ौी गु जी के वचार म ववादाःपद मु े या त व कौन से थे? उन

त व या वचार को ववादाःपद कसने बनाया? और आज य द उ हं ववादाःपद वचार क धार

पैनी हो गई हो, तो उसका

या कारण हो सकता है ? इस सभी ू

के मुह ँ तोड़ जवाब काल ने दे दये ह। हम इन उ र के मा यम से यह अनुभव होगा क ौी गु जी के अथक प रौम के फलःव प भारतवष म एक आवँयक प रवतन हो सका। इस पवतन को ू य इस दे श को उ ह ने न

म लाकर, उसम िन हत मौिलक वचार सुूित त कर

होने से बचाया है । अपनी आ या मक गुण संपदा, व

ूखर बु म ा, ओजःवी व ृ व और अपनी समःत श

ा,

दाँव पर लगाकर भारतीय

मन संःका रत करने का जो काय ौी गु जी ने कया वह सवथा अतुलनीय है , बेजोड़

है । उनके जीवन क हर हलचल इसी एकमेव उ े ँय से ूे रत रहा करती थी। पराधीनता के कालखंड म ॄ टश से लड़ना ह एक ूमुख ूेरणा थी। इस ूेरणा के

ु जाती थीं। संपूण समाज के स मुख एक ह शऽु (One आवरण म कई बात छप common enemy) था, अंमेज! इस कारण समाज म िन हत आंत रक भेद महां हो पाते थे। क तु ःवाधीनता ूा

गोचर

होते ह एक जबरदःत ूवाह बह िनकला।

यह ूवाह था ह दओ का। यह ूवाह मतांतरण का नह ं था क तु ु ं के अ ह दकरण ू ह द ू होकर भी ःवतः को ह द ू मानने म ल जाबोध क ूवृ

का था। ह द ू तथा

संःकृ ित को दोष दे ना, पा ा य का अंधानुकरण करने क ूवृ

को बढ़ावा दे ना,

ह द ु व से संबंिधत बात को ितरःकरणीय मानना, दे श क अवनित के िलए ह द ू

नवयुग ूवतक ौी गु जी

299


ऊपर भेद को मह व दे कर एका म ह द ु व के अंतःथ स य सूऽ को नग य मानना,

राजनीितक ःवाथ हे तु अ ह द ू अ पसं यक समाज का अमयाद अनुनय करना,

ू संःकार क परं परा का टटना आ द त य से यह ूवाह बना था। आज भी यह ूवाह अ ःत व म है । क तु तब तो ह द ू या हु द ु व से संबंिधत त व का उपहास करते

हए ु ह द ू होकर भी ह द ु व को नकारने क ूवृ

को ूित ा ूा

हई ु थी। ‘हर हर

न ह दन ु यवनः’ जैसी ऽशंकु अवःथा धारण कर ह द ु व के ःवािभमान से

युत

होने को पंथिनरपे ता कहा जाने लगा था।

ह द ू अ ःमता िछ न विछ न करने के इस वघातक काय म ईसाइ िमशनर ,

क युिनःट ूचारक, समाजवाद के अिभिनवेशी पुरःकता, आधुिनक िश ा ूा गण तथा स ा के भूखे राजनीित

-

िभ न-िभ न हे तुओं से एक ऽत होकर ह द ु व का

वरोध करने म जुटे हए ु य से िनभय होकर दे श क ु थे। दभा

वशु

रा ीयता का उ -

घोष करनेवाला तथा अपनी ूाचीन ह द ू परं परा क महानता को आ म व ास से बतानेवाला अमणी नेता सावजिनक जीवन म व मान नह ं था। संघ क

याि

काफ

सीिमत थी। ऐसी सवथा वप रत प र ःथितम ौी गु जी खं डत भारत के सामा जक जीवन के मंच पर ूगट हए। ौी गु जी ने इस अरा ीय ूवृ ु

उसे ह द ु व के ःवािभमान क

के ूवाह को न केवल रोका अ पतु

दशा दे ने म वे सफल रहे । इस समय दे श के

अ ह दकरण , अरा ीयकरण और वघटना मक (de-Hindunisation, deू

nationalisation and disintegration) ूवृ य क अनथकार ू बया कायरत थी। ौी गु जी ूितपा दत कया करते थे क इस वघटना मक अवःथा म दे श न

हो

जाएगा। ौी गु जी के ओजःवी ूितपादन म ूायः भावा मक (Positive) अिभिनवेश ूमुखता से रहा करता था। ह द ू परं परा क गौरवशाली वशेषताएँ, आधुिनक जगत ्

को भी दशाबोध कराने क

के वै

मता, ह द ू जीवनादश क बेजोड़ उ ग ुं ता तथा भारतवष

क जीवनकाय (World Mission) के संबंध म जब वे तकसंगत और ूभावकार

ववेचन कया करते तब सुननेवाले मंऽमु ध हो जाते। ौी गु जी के भाषण म

दय

क ट स के साथ ह ओजःवी व ृ व, तकसंगत तथा सभी वषय को ःपश करनेवाली गहन क

ान से भर जानकार तथा ठोस सबूत और ूजातंऽ से लेकर तानाशाह तक

वचारधाराओं का संपूण

ान रहने के कारण उनके ूितपादन क ूभावो पादकता

ौोताओं को वचार करने के िलए बा य कर दे ती थी। ौी गु जी क वाणी ौोताओं म ःव व क भावना जागृत करती थी।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

300


ौी गु जी ने रा

के पुन

म गुं जत कया वह िन

थान का जो मंऽ नगर , माम तथा दगम पहाड़ घा टय ु

त ह अमोघ था, असाधारण था। हताश ह द ू मन म

चैत य का संचार करनेवाला था। आज ‘म ह द ू हँू ’ इस ःवािभमानपूण अनुभिू त से ूे रत लाख लोग ज मु- द ली से कोचीन-क याकुमार तक आसानी से एकऽ आ सकते ह, यह बात ौी गु जी के उस ूयास का ह प रणाम है जसम उ ह ने अ ह दकरण का ूितकार कर ह द ु व का वधायक ःवािभमान जागृत कया था। ू

२१.२ सामा जक ववाद से परे आ -सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार ने जब कहा था क “यह अपना ह द ू रा

है ” तब

लोग ने उ ह पागल कहा था। १९४७ म दे श ॄ टश क पराधीनता से मु

प ात ् ःवतः को

ये

होने के

वचारक तथा शीषःथ नेता मानने वाल ने संघ क ‘ ह द ू

रा ’ क भाषा को जाितवातक, सांूदाियक, ूितगामी, दे श को तोड़ने एवं वभ

करनेवाली तथा अंध पुन

थानवाद बताकर घोर अपूचार कया गया। संघ को न

करने का ूयास भी कया गया। परं तु ह द ू रा जीवनश

क यह भाषा स य, रा

को

ूदान करनेवाली तथा दे श का मःतक गव से उ नत करनेवाली है , ऐसा

ह मत से कहनेवाल का एक ूचंड संग ठत ःव प ौी गु जी ने अपने जीवनकाल म ह आसेतु हमाचल िनमाण कर दखाया। इस काय क मह ा केवल श द म ूगट

करना श दश

के िलए असंभव है । वह अवणनीय है । अखंड, अ वरत ूवास कर दे श

के च पे-च पे म ह द ु व का तेजःवी भाव केवल एक य

ारा जागृत कया जाना

अपने आप म एक अनोखा और एकमाऽ उदाहरण है । ह द ू सा ूदाियकता और ूितगािमता जैसे गालीसूचक श द ौी गु जी क महान ् कतृ वश

के कारण

िनरथक, बेतक ु ा होकर ूित ूहार क तरह उ ह ं पर उलटे पड़े ज ह ने इन श द को ह द ु व को न

करने हे तु ू े पत कया था।

ौी गु जी का य

व ववादाःपद बनानेवाल ने यह दखाने का ूय

गु जी जाितभेद, वणभेद तथा ह द ू समाज क पुरानी कालबा

कया ौी

ढ़य और

कमका ड के क टर समथक ह, पुरःकता ह। ौी गु जी को सनातन धमािभिनवेश के फलःव प आधुिनक समाज रचना व समान आकां ाओं का न तो

अनुभिू त। आज भी अनेक लोग ौी गु जी संदभ-र हत

ान है , न

ारा ूितपा दत वधान को तोड़ मरोड़ कर

प म ूःतुत करते दखाई दे ते ह। संघ पर आरोप-ू यारोप करते रहना

इन वरोिधय का कायबम है । क तु संघ एक ऐसी गद है जसे जतना दबाओं उतनी ह वह ऊँची उछलती है । सरकार ने तीन ूितबंध के कदम से संघ को न नवयुग ूवतक ौी गु जी

301


करना चाहा क तु संघ क जड़ दे शभ

पैठ होने के कारण संघ का वृ गया। इस वटवृ

को

के अमृत म भीगी और मातृभिू म म गहर

तो हआ नह ं, क तु एक वशाल वटवृ ु

ढ़मूल करने का काय ौी गु जी ने ह

बन

कया यह अका य

स य है । समाचार पऽ म जो धूल उड़ाई गयी उसम एकमाऽ हे तु यह िस

करना था क ौी

गु जी पुराण-मतवाद है और संघ उसी पुरानी वःमृत संःकृ ित को पुनः ःथा पत

करना चाहता है । ौी गु जी का केवल इतना ह कहना था क मनुंय का मनो व ान, इसक शार रक, बौ क, भाविनक तथा आ या मक आवँयकताओं तथा मानव जीवन के चरम लआय का अवधान रखकर ह हमारे पूवज ने अपने समाज क रचना क थी। वह ूद घ काल तक चली। फलःव प भारत म अ यंत ौे

तथा सुसः ं कृ त

जीवन का िनमाण हआ। काल-अथात ् समय के साथ य द यह समाज रचना वकृ त ु बनी हो तो हम कालसंगत नई रचना िनमाण करनी होगी। इस नव-िनमाण का

दािय व हमारा होगा। हम उसे िनभाना पड़े गा। ‘युगानुकूल’ इस श द का उपयोग उसके अ वयाथ के साथ ह वे कया करते थे। वे कहा करते थे क भगव -गीता ने भी कमका ड के वषय म युगानुकूल, बांितकार

वचार ूगट कया है । अपने पूवज

पर अकारण घृणाःपद आरोप करना वे उिचत नह ं मानते थे। ौी गु जी पुराण-

मतवाद अथात ् पुराने वचार का आमह रखनेवाले थे यह कहा गया। क तु ये सारे आरोप बेिसर-पैर के और त यह न थे। उ ह ने एक बात आमहपूवक अवँय कह

जो नयी रचना हम समाज हत के िलए काया वत करनी हो उसका आधार परं परा से चल रहे जीवनमू य ह ता क मनुंय अख ड आनंद तथा अंितम मो

का लआय ूा

कर सके।

२१.३ सवसमावेशक ठाणे के अ यासवग म उ ह ने समाजवाद, सा यवाद, पूँजीवाद, ूजातंऽ आ द वतमान वाद का व ेषण कर अ त म बताया था क ह द ू वचार ह मानव को सुख-

समृ पूण जीवन ूदान कर सकता है । अःपृँयता क क पना तो इमके मन को ःपश भी नह ं कर पाती थी। ौी गु जी ने प रपूण मानव क

ह द ू क पना को

अ यंत ूभावो पादक श द म आधुिनक जगत ् के सामने रखा। आ या मक आधार

पर मानव संबंध का वचार भारत क मानवता को ूद

िचरं तन तथा मह वपूण दे न

है तथा वतमान जगत ् क समःया अ य क ह ं भी उपाय से हल नह ं हो सकती,

नवयुग ूवतक ौी गु जी

302


इस िस ांत पर वे अ डग थे, िनःशंक थे। ह द ू समाज म इसी मूलभूत ूेरणा को

जागृत करने म वे जीवनभर कायरत रहे ।

‘सब म एक ह आ मा’ क अनुभिू त करना ह वह भला कसी का केवल ूेम था,

ेष

जसके जीवनकाय क मंगल ूेरणा हो

य करे ? कसी का बुरा

य चाहे ? ौी गु जी के मन म

े ष नह ं। ईसामसीह, मोह मद पैगब ं र आ द बाहर संूदाय िनमाताओं

के वषय म वे अतीव आदर भाव से बोला करते थे। ौी गु जी क ट का- ट पणी उनके व वंसक, पशुवत ्, अस हंणु और रा वघातक ूवृ

पर ह हआ करती थी। ु

ू यात पऽकार डॉ. जीलानी तथा सरदार खुशव त िसंह के साथ हआ ौी गु जी का ु

वातालाप सवप रिचत है । ‘मु ःलम तथा ब न ूॉ लेम’ या ‘मायना र ट ूॉ लेम’ को हल करने का उनका माग और स ा को हिथयाने हे तु तु ीकरण क नीित अपनानेवाल का माग, इनम मूलभूत अंतर था। खलाफत आंदोलन के समय से ह ु रता क नीित अपनाई गई उसका दंप जो चाटका ु रणाम दे श वभाजन के

प म ूगट

हआ। ौी गु जी का मानना था क दे श के रा ीय अथात ् ह द ू जीवनूवाह म सबको ु एक प होना चा हए।

पं. जवाहरलाल नेह िमिौत संःकृ ित के प धर थे। उनका मानना था क भारत क संःकृ ित को केवल ह द ू संःकृ ित कहने से सबके साथ लेकर चलना क ठन हो

जाएगा। १९५७-५८ के कालख ड म ौी नेह

जी से भट होने पर वातालाप के समय

गंगा के ूवाह का उदाहरण दे ते हए ु ौी गु जी ने कहा क गंगा के ूवाह म अनेक

छोटे -छोटे ूवाह आकर िमल जाते ह क तु ूवाह गंगा का ह रहता है , उसका नाम नह ं बदलता। ह द ू संःकृ ित का एक वरा

ूवाह समािन

ूवाह है । उसम अनेक मत-मतांतर के

ह। उ ह ह द ू संःकृ ित से िभ न नह ं माना जा सकता। नेह

जी के

उदार मत क जड़ ह द ू संःकृ ित म ह है । ौी गु जी ने यह सार बात ूस निच हो नेह

ु जी से कह थीं। मतभेद के कारण ौी गु जी के मन म कटता लेशमाऽ भी

नह ं रहा करती थी। कायकताओं को इस भटवाता का ववरण दे ते समय ौी गु जी ने कहा था, “नेह

जी शु

ह द बोलते ह। मुझे लग रहा था क कह ं म उद ू या अंमेजी

श द का ूयोग न कर बैठू ँ ।” इस ूकार गुण को सराहने का उनका ःवभाव था। संघ ह द ू समाज का ह संगठन

य है ? इस ू

का अनेक बार दया गया उनका

उ र बहत ु ह मममाह है । ौी गु जी का उ र है क पहले हम अपना घर ठ क कर

नवयुग ूवतक ौी गु जी

303


य क वह हमार पहली आवँयकता है । अ य लोग को शािमल करने का ू

ःवाभा वक

प से भ वंय के वकास का (Evolution) है । ऐसा एक भी उदाहरण

अपल ध नह ं है जब ौी गु जी के संबंध म आए ईसीई या मु ःलम बंधुओं ने उ ह धमा ध या फेने टक कहकर अपनी नाराजी य

क हो। उपासना पंथ क

पर ौी गु जी ने कभी आ ेप नह ं कया। इस

से ह द ू ह वाःत वक

‘से यूलर’ है , इसी त य को वे सामने रखते। अ य लोग उसी

ऐसा ूितपादन वे हमेशा कया करते थे। मानवता क ौी गु जी ने पांिथक पृथकता को सदै व

व वधता प से

कोण को अपनाएँ,

से सेवाकाय करते समय

या य माना। सेवाकाय का संबंध वःथा पत,

अकालपी ड़त, बाढ़गःत, भूचाल-मःत. द नदखी या रोिगय से था, उपासना पंथ या ु

जाित, धम को ूाथिमकता दे कर सेवाकाय कया गया हो ऐसी एक भी घटना उ -घृत नह ं क जा सकती। मानवता क सेवा का अथ, केवल मानवताक

वशु

धम-पंथ

र हत भावना से क गयी सेवा है , यह उनक भावना थी। संकटकालीन अवःथा म

धम, पंथ दे खकर सेवा करना अमानवीय होगा।डू बनेवाला ह द ू है या ईसाइ या

मुसलमान, ऐसा न सोचकर वह मनुंय है , मानव है , यह सोचना आवँयक है । ह द ू

संःकृ ित क यह सीख है । ौी गु जी का मन सवाथ से ह द ू था। उनका चा र य

ू य -मूितमंत ह द ू चा र य था। ऐसे उ ग ुं मनुंय को ःवाथ के िलए ववादाःपद

िस

करने का ूय

भला कैसे टक पाएगा?

२१.४ समम ह द ू जीवनरा ीय अ ःमता के जागरण

ारा दे श का पुन

थान करने का ौी गु जी के ूयास

का िनरं तर वकृ तीकरण करने का काम ःवतः को मा सवाद कहलानेवाले सांूदाियक लोग ने ह ूमुखता से कया। वैचा रक तथा ता वक ःतर पर इस जड़वाद संूदाय क ट का- ट पणी करते समय ौी गु जी ने कभी दयाभाव नह ं दशाया। तक का

कठोर कुठाराघात कर उ ह पराःत करने म वे संकोच नह ं करते थे। इसका एक मह वपूण कारण है । अपने दे श म इहवाद , समाजवाद या काँमेसवाद कहलानेवाले लोग भले ह रहे ह

फर भी भारतीयता से सवथा वलग वचारदशन दे ने का दावा

कसी ने नह ं कया। उनका काय ेऽ आिथक या प र ःथितज य कायपूित तक ह

मया दत था। ता कािलक उपाय सुझाने के अित र

उनके पास कोई िचंतन नह ं था।

धम कम घर के बाहर मामल म दखल न दे इतना ह वे लोग कहा करते थे। से लायी गयी सा यवाद

वचारधारा अपनानेवाल का ऐसा दावा था क उनका वचार

जागितक ःतर का है तथा सभी ूकार के सामा जक रोग का वह रामबाण-उपाय है । मा सवाद एक संपूण जीवनदशन है । इस जीवन-दशन को मा यता दे ने और अपनाने नवयुग ूवतक ौी गु जी

304


का अथ था भारत

ारा अ या म पर आधा रत जीवनमू य का

एक आिथक ूाणी के

याग और मनुंय क

प म मा यता। मा सवाद का िस ांत भारतीय जीवनदशन के

सवथा वपर त है । ौी गु जी का कहना था क रा

को अ य दे श के लोग का

गुलाम बनाकर परावल बी बनाने से यह ह द ू रा

नह ं रह पाएगा।

धम वरोधी, जड़वाद , हं साचार , तानाशाह का समथन करने वाला अस हंणु

मा सवाद भारत के िलए कस तरह घातक हो सकता है और उसके कारण शा त ह द ू वचार क

कस तरह घुटन होगी, यह बात ौी गु जी अिधकारपूवक दे श भर म

बताया करते थे। उ ह ने सा यवाद का खोखलापन िस सा यवाद क ज मभूिम

स म ह वह असफल िस

वरोधी ूवाह फूट रहे ह।

करते हए ु यह भी बताया क

हआ है और उसम से परःपर ु

मानव के ःवभावधमानुसार सहिलयत दे ने के िलए अब क युिनःट दे श को बा य ू

होना पड़ रहा है । रा ीयता का आधार वे भी छोड़ नह ं पाए। रा ूेम ह सवागीण वकास का मूल आधार हो सकता है इस त य को अब कया है ।

तीय महायु

होने के ल ण ःप

के समय जमनी ने

दखाई दे रहे थे। पर

कसी रा

के

स मे ःवीकार

स पर आबमण कया।

स के पराःत

स अपने सैिनक तथा जनता म रा

चेतना उ प न कर सका। अपनी पतृभिू म के िलए (Fatherland) कया हआ उसका ु आवाहन सफल रहा। ौी गु जी यह उदाहरण दे कर क युिनःट को िन

थे। पर १९६२ म जब चीन का भारत पर आबमण हआ था तब प ु क युिनःट ने उसका परो

र कर दे ते

म बंगाल म

ढ़ं ग से ःवागत कया था।

ौी गु जी सरकार और समाज को सावधान करने हे तु हमेशा कहा करते क अंतरा ीय ेऽ म भारत को चा हए क वह कसी भी स ा गुट म खींचे जाने से ःवतः को

बचाए। वे कहा करते क सा यवाद तो अपने को

स के खूँटे से बांधने क कोिशश

करे गा, इस कारण हम सावधानी बरतनी चा हए। साथ ह एक और स य वे सामने रखते थे। समाज का ‘ौिमक ’ और ‘अ य’ ऐसा संघषा मक वग करण ह द ू दशन के व

है ।

े ष भावना उभाड़कर-भड़काकर सुख-शांितपूण समाज-रचना नह ं हो सकती।

संपूण समाज के सुख का या समाज के संपूण सुख का वचार वभ

ू युत संयु

प म नह ं

प म ह करना चा हए। व वधता को नकारना ठ क नह ं है । व वधता

को मानते हए ु ू येक य

के िलए वकास का अवसर ूदान करनेवाला ह द ू

नवयुग ूवतक ौी गु जी

305


वचार ह ौे

है , इस ूकार का मौिलक तथा समथ ूितपादन मा सवाद क

ध जयाँ उड़ते समय ौी गु जी ने कया। मानना होगा क भारत म मा सवाद को िनंूभ करने म ौी गु जी के ता वक तथा रा ीयता पर आधा रत वैचा रक आबमण का योगदान मह वपूण तथा मौिलक था। उनका कहना था क ू येक य

क ज रत पूर ह , वषमता क खाई को पाटा

जाय तथा अिनबध संचय करने पर रोक लगाई जाय। यह पृ भूिम होने पर भी य द क युिनःट ौी गु जी पर नाराज ह या उन पर आरोप-ू यारोप करते रह तो यह मानना पड़े गा क उनका सोच क युिनःट पोथीवाद से ऊपर नह ं उठ सका।

नवयुग ूवतक ौी गु जी

306


२१.५ चुनाव के बारे म चेतावनी ौी गु जी को ववादाःपद बनाने के िलए चुनाव को भी एक अ ःवाधीनता ूा

बनाया गया।

होते ह अपने संपूण जीवन पर चुनाव बुर तरह छा गये। राजनीित

और स ा ःपधा का रं ग पूरे समाज पर चढ़ गया। चु हे तक राजनीित का ूवेश हो ू गया। समाज़ का कोई अंग राजनीित से अछता नह ं रहा। छोटे -छोटे दे हात म भी

राजनीित ने लोग के बीच म मतभेद क द वार खड़ कर द ं। गाँव गुट म बँट गये। लोग आवँयकताओं क पूित के िलए सरकार का मुह ँ ताकने लगे। प रणामतः ःवयंूेरणा बमशः

ीण होती गयी। कायकता और नेताओं क

िनरपे ’ ऐसा कुछ बचा ह नह ं। ‘सेवा’ भी मतसापे

से तो ‘राजनीित

बनकर रह गयी। इस

प र ःथित के कारण संघ के समान बलशाली संगठन क सहायता ूा

हो ऐसी इ छा

अनेक के मन म िनमाण हई। इस कालखंड म ौी गु जी ने संघ को राजनीित क ु

दलदल से संपूणतः अलग रखा। राजनीित से अलग रहने के कारण ह संघ सुचा से टका रह सका और बढ़ता गया। संघ के आ

ूारं भ से ह दो ूमुख सूऽ परहे ज के

सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार जी ने

प म अपनाए थे और कायकताओं तथा अ य

ःवयंसेवक को इन सूऽ का कठोरता से पालन करने का आमह रखा था। ये दो सूऽ थे ह द ू रा

का ूखरता से ूितपादन तथा कसी भी प र ःथित म इस वषय के

बारे म समझौता नह ं करना और स ा ःपधा और दै नं दन राजनीित से अलग रहना।

ौी गु जी ने न केवल इन सूऽ को अबािधत रखा अ पतु उनके समथन म समथ भांयकार क भूिमका िनभाई। अनेक ने संघ और भारतीय जनसंघ का संबंध जोड़कर दोन के एक प और परःपरपूरक होने का ूय पूवक ूचार कया। एकाध बार अखबार क सु खय म ऐसी खबर छापी ग क तु ौी गु जी

ढ़ता से यह ूितपादन करते रहे क िन य प रवतनशील दै िनक

राजनीित से जुड़ा कोई भी संगठन रा ू य

क ौी गु जी चुनाव म खड़े हो रहे ह।

िनमाण का शा त काम नह ं कर सकता।

जनसंघ के नेताओं को भी ौी गु जी ने सचेत करते हए ु कहा था क य द वे

सोचते ह क संघ के ःवयंसेवक वालं टयर क तरह जनसंघ का काम करगे तो वे इस अपे ा को अपने मन से िनकाल द। जो ःवयंसेवक अ या य वे यह समझ ल क उनका यवहार संघ का वचार ौी गु जी का काय मूलतः रा

ेऽ म कायरत ह

यान म रखकर ह हो।

पुनिनमाण का था। राजनीित

और रा

नविनमाता

ऐसा दहरा ःव प उनका कदा प नह ं था। फलःव प िनभयता से स य बोलने, स य ु

कटु होने पर भी दे श हत के िलए उसे उजागर करने और समाज को यो य मागदशन

३०७


करने के िलए वे ःवतंऽ थे। ौी गु जी ने राजनीितक दबाव से समझौता कभी कया

ह नह ं। रा

के िलए हािनकारक नीितय पर ट का- ट पणी करते समय तथा रा

के

हत म कोई पयाय सुझाते समय उ ह ने काँमेस या जनसंघ, क युिनःट मजदरू

आंदोलन या भारतीय मजदरू संघ ऐसा वचार कभी मन म आने ह नह ं दया। ःव. लाल बहादरु शा ी जी जब के ि म गृहमंऽी थे, तब ौी गु जी क उनसे भट हई। ु इस मुलाकात के पूव शा ी जी के स मुख ूदशनका रय ने ‘ ह दओ जागो’ ऐसे ु

बैनस दखाये थे। असम म हो रहे घुसपै ठय के अवैध ूवेश के वरोध म हजार आंदोलनका रय ने यह ूदशन कया था। ःवाभा वक

प से असम का ू

चचा म

उप ःथत हआ। शा ीजी ने सरकार क ओर से अपनी अड़चने बताई। शा ीजी का ु कहना था क असम म अवैध ूवेश करनेवाले मुसलमान घुसपै ठये ःथानीय

मुसलमान म घुलिमल जाते ह। फलतः उ ह खोज कर वापस भेजना क ठन हो जाता है । ौी गु जी ने इस अड़चन को दरू करने हे तु उपाय सुझाते हए ु कहा क असम के

मूल नाग रक को सूिचत कया जाय क जो इन घुसपै ठय को आौय दगे उनसे स ती से िनपटा जाएगा। शासन उ ह माफ नह ं करे गा। य द वे न मान तो उ ह

खदे ड़ दया जाय। साथ ह उनसे मतदान का अिधकार छ न िलया जाए। ौी गु जी ने शा ी जी को सलाह तो द , क तु यह भी कहा क आप यह काम शायद नह ं कर सकगे

य क कांमेस पाट के चुनाव ग णत म हजम होनेवाली यह बात नह ं है ।

आ खर वह हआ। इस समःया क उमता िनरं तर बढ़ती ह गई। मुसलमान के िलए ु समान नाग रक कानून (कॉमन िस वल कोड) के संबंध म अपनी मतिभ नता ौी गु जी ने ःप

प से य

क थी। उसी ूकार भारतीय मजदरू संघ के नेता से

बातचीत करते हए ु ौी गु जी ने

ढ़तापूवक कहा था क “सामू हक सौदे बाजी खुली

राहजनी ह है (कले टव बागिनंग इज़ हायवे राबर )”। ौी गु जी ने ःवतः को तथा संघ को राजनीित से अिल

रखा। पृथकता से भरे

भेदभाव के वचार को तिनक भी मन म न रखते हए ु एकरसता क भावना से रा

का वचार कया। इसी कारण रा ीय एका मता के द य सा ा कार से अनुूा णत हई ु सुवा श क

का वे िनमाण कर सके। जसे रा

वचार करना पड़ता है , मनुंय को ॅ

िनमाण करना है उसे सवूथम मनुंय

कर कुस हिथयाने का नह ं! इसीिलए ौी

गु जी ने आजीवन िनः​ःवाथ, चा र य संप न, मातृभिू म क अिभमं ऽत तथा क याणकार करने हे तु भगीरथ ूय

वशु

से

ह द-ू गुण से संप न मनुंय ःथान-ःथान पर िनमाण

कया। ह द ू परं परा म िन हत उदा

वचार और भावनाओं

को फूल क तरह खलाया। साथ ह ःवाथ, भोगवाद क वासनाओं के क चड़ से बाहर आने का पु षाथ से भरा आवाहन कया, जजी वषा (जीना और वजय ूा

करने क

इ छा) जागृत क । य द ऐसा न होता तो संघ के सैकड़ ूचारक, तन-मनधन अपण ३०८


कर काय म जुटे गृहःथाौमी, व वध

कायकता अपने दे श को भला कैसे ूा

ेऽ म वधायक सेवाकाय करनेवाले गुणसंप न

होते? िनराधार समाज आधार के िलए कसका

मुह ँ ताकता?

२१.६ वरोिधय के ूित भी स -भाव अपने ःवाथपूण स ा क राजनीित म ौी गु जी एक अड़ं गा ह, संघ कसी भी ूलोभन का िशकार नह ं होता, कोई आतंक या दहशत संघ के मन को नह ं डराता,

यह सब दे खकर ौी गु जी तथा संघ को ववादाःपद िस

करने का ूय

िन हत

ःवाथवाले लोग कर तो आ य क बात नह ं है । यह कहना पड़े गा क ौी गु जी के समान महापु ष के अंतःकरण म िन हत मातृभिू म क

द यता तथा ह द ू आदशवाद

से अनुूा णत आकाश सी वशालता उ ह ववादाःपद बनानेवाल को दख न सक या दखाई दे ते हए ु भी ःवाथवश इन लोग ने इस गुणसागर क अनदे खी क । मतभेद

भले ह ह , फर भी ‘वयं पंचािधकं शतम ्’ ये इस महान ् जग मऽ क आ मा के श द थे। गांधीजी क दभा ु यपूण ह या के प ात ् संघ को न

करने के िलए हं सक भावना

से संघ पर आबमण हआ तब ‘ कसी भी प र ःथित म शांत रहो’ यह ौी गु जी का ु आदे श था। संघ पर लगा ूितबंध हटने के प ात ् भी उ ह ने कहा, ‘वे भी अपने ह ह। भूल जाओ। उ ह

मा करो।’ रा

पर बीते हर संकट क घड़ म ौी गु जी

अमसर रहा करते थे। सहायता ूदान करने के िलए उनका हाथ सबसे प हले आगे रहा करता था। कत य भावना क ूबलता के कारण सेवा करने के िलए सदा त पर रहने क बात वे कहा करते थे। सेवा भी मूक, ढं ढ़ोरा पीटकर या व ापन बाजी करके नह ं। कये हए ु याग क क मत वसूल करने क बात भी नह ं। इस संबंध म एक संःमरणीय ूसंग

वािलयर म हआ। ु मई १९७२ क घटना है । ‘रा ीय सुर ा मोचा’ नामक एक पुःतक ौी गु जी को भट क गयी। भारत-पाक यु

के समय रा ीय ःवयंसेवक संघ के ःवयंसेवक

ारा कए

गए काय क जानकार इस पुःतक म संम हत क गयी थी। पुःतक के प ने उलटकर ौी गु जी ने कहा, “इस ूकार क पुःतक को म ःवीकार नह ं कर सकता। य द कोई पुऽ अपनी माता क सेवा करने के प ात ् कहे क म इस स ब ध म व ापन दे ना चाहता हँू , तो

या यह उिचत होगा? ःवयंसेवक ने अपनी मातृभिू म क सेवा के िलए

जो कुछ कया वह तो उनका ःवाभा वक कत य था। फर ऐसी सेवा का ूचार

३०९


कसिलए?” भारत वभाजन के समय तथा दे श म समय-समय पर उ प न

संकटकालीन अवःथाओं म संघ के ःवयंसेवक ने असीम

याग कर अपना कत य

िनभाया, बिलदान भी कया। सब को सहायता द । जाने माने उ चपदःथ को भी सहायता पहँु चाई। क तु इस सेवा से लाभ उठाने का ूय कया। संघ

ौी गु जी ने कभी नह ं

ारा क गयी सेवा का मू यांकन कसी ने कया है या नह ं इसक संघ

ने कभी िचंता नह ं क । सेना के अिधका रय ने संघ

ारा क गई सेवा क सराहना

क । सेनािधका रय के पूछे जाने पर ौी गु जी ने उ ह बताया, “संघ ने जो कुछ भी कया वह केवल कब ड खेलकर।” ौी गु जी का उ र सादगी भरा था। ह द ू व का र जनीित के िलए लाभ उठाने का वचार ौी गु जी ने कभी नह ं कया।

उनका मानना था क व

ह द ू प रष

भी कसी राजनीितक दल से अपने को न

जोड़े । सरदार व लभ भाई पटे ल ने ौी गु जी व संघ को काँमेस म आने क ूाथना क थी क तु ौी गु जी ने उसे नकार दया था। रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक ौी गु जी और ःवाधीनता ूा

अखंड

होने के प ात ्

प से स ा म रह काँमेस के बीच मैऽीपूण, खुले मन के सामंजःयपूण तथा

परःपर पूरक संबंध नह ं रहे , यह दे श का सबसे बड़ा दभा ु य रहा। इसम एक ह अपवाद था ौी लाल बहादरु शा ी का, जो अ प काल ह रहा।

ौी शा ी और ौी पटे ल से ौी गु जी के सामंजःयपूण संबंध थे कंतु इसका अथ यह नह ं था क उनम पूण मतै य था, ब क यह मानना अिधक उिचत होगा क ौी गु जी क दे शभ

, सामा जक वचार का उदार करण तथा भ वंय म आनेवाले

संभा वत संकट का पूवानुमान और रा

को सचेत करने के उनके ूय

म जो

ूामा णकता दखाई द उससे ौी. शा ी तथा ौी पटे ल ूभा वत थे। १९४९ म संघ पर से लगा ूितबंध उठने के प ात ् ौी गु जी ने जब ूवास कया तब वे िभ न-िभ न मत के अमणी महानुभाव या नेताओं से िमले। इनम थे डा.

बाबासाहब आंबेडकर, ौी. गोपाल ःवामी अ यंगार, ौी काका साहब गाडगील, डॉ. एम. के. दर और अ य अनेक। सुख-दःख के ूसंग म पऽ यवहार करते समय मतभेद ु का वचार उनके मन म कभी उठा ह नह ं। संघ ःवयंसेवक के प रवार म कोई दःखद घटना होने पर ौी गु जी जस आ मीयता से पऽ िलखा करते थे उसी ु

आ मीयता से ौी फरोज गाँधी क मृ यु के प ात ् स -भावना से भरा एक पऽ

३१०


उ ह ने पं. जवाहरलाल नेह भावना से ब क ू य

को भी िलखा था। ौी गु जी जग मऽ थे, न केवल

कृ ित से भी।

ौी गु जी क मत था क य द दे शसेवा क ूामा णक भावना हो और मन शु

तथा

साफ हो तो सहकाय के िलए भूिमका उपल ध हो सकती है । ूधानमंऽी पं. नेह

ने

संघ वरोधी ूचार बहत कया और स ा म आने के बाद ौीमती इं दरा गाँधी ने तो ु

संघ का वरोध करने म पं. नेह

को भी पीछे छोड़ दया। ौीमती इ दरा गाँधी अपने

पताजी से संघ वरोध म दो कदम आगे ह थीं। क तु ौी गु जी ने संयम नह ं खोया। ःवािभमान और िनणय- ःवातं य गँवाकर स ाधा रय से ौी गु जी कभी नह ं बोले। १९४८ म संघ पर ूितबंध लगा था। इस ूितबंध से संबंिधत जो पऽ यवहार ौी गु जी ने सरकार से कया था वह इस त य का सा ी है । कसी क झूठ ूशंसा

करना उनका ःवभाव नह ं था। य प ौी गु जी क ूधानमंऽी ौीमती इं दरा गाँधी से भट होने का संयोग कभी नह ं आया फर भी इं दराजी के बारे म ौी गु जी हमेशा आदरभाव रखकर ह बोलते थे। १९७१ म यु

के प ात ् ौी गु जी ने ौीमती इं दरा गाँधी के वषय म एक उ लेख

कया था जो उनक उदारता तथा आदरयु

भावना का ौे

उदाहरण है । ूसंग था ४

फरवर १९७३ का, जस दन ौी गु जी बंगलौर म आयो जत एक वशाल जनसभा को संबोिधत कर रहे थे। ौी गु जी ने, “हमार समाजवाद और पंथिनरपे

ूधानमंऽी”

ऐसा इं दराजी का उ लेख कर आगे कहा, “उ ह और अ य लोग को ऐसा कहना पड़ा

क हमारे दे श क पाँच हजार वष पुरानी परं परा है और हम कसी क धमक के आगे

झुकनेवाले नह ं।” “हम भी तो यह कहते ह। संघ क सदःयता पु ष तक ह मया दत है क तु हमार ूधानमंऽी इं दराजी ने एकदम ऐसा कुछ कहा मान वे संघ क ह एक घटक ह, सदःया ह। ता पय, संघ जस भावना को जागृत करने का वगत अनेक वष से ूय

कर रहा है उ ह ं भावनाओं का ूगट करण ूधानमंऽी ने कया

और इन वचार को सुनकर मुझे बहत है ।” ु आनंद हआ ु मिास क एक म हला का मत था क ौी गु जी

य से नह ं िमलते। उनसे बोलते

तक नह ं। इस संबंध म बोलते समय ौी गु जी ने कहा, “उनका कहना ठ क ह है ।

म न कसी िमलता हँू

ी से िमलता हँू और न बोलता हँू । यह वाःत वकता है । म बोलता हँू ,

ी म अिभ य

होनेवाले मातृ व से।” ऐसे वशु

दय से सांःकृ ितक

उ थान के िलए कया गया आवाहन य द भारतीय जनमानस को छू जाय, उसे

३११


संःका रत करे और ह द ू जीवन क ओर दे खने का यताथ

कोण ूा

हो जाए तो

या यह ःवाभा वक नह ं है ?

ौी गु जी जनसभाओं म बोलते थे और उनका श द ूभावो पादक रहा करता था। क तु रा

जागरण का उनका मु य मा यम रा ीय ःवयंसेवक संघ, उसके कायकता

और ःवयंसेवक ह थे। संघ के अ यास वग, संघ िश ा वग तथा ःवयंसेवक के

एकऽीकरण के अवसर पर ौी गु जी

ारा दये गये भाषण वपुल ूमाण म उपल ध

ह। इन भाषण म ूायः उन गुण का ववरण रहा करता है जो हर कसी ःवयंसेवक या कायकता म होने आवँयक ह। अपनी परं परा म गुण को कस तरह मह वपूण माना गया है , इसका रोचक ववरण ौी गु जी कया करते थे। ौी गु जी का एक सूऽ था क कायकता य द गुण संप न ह तो काम सुचा

प से हो सकता है ।

२१.७ स -गुण क उपासना कर ‘राजनीितक’ या ‘ूित बयावाद ’ ह द ू रहने म कोई अथ नह ं है । ह द ू परं परा ने जो

गुण-संपदा भूषणाःपद व गौरवशाली मानी है स उसे अपना कर वाःत वक ह द ू बनने का ूय

प म

हम करना चा हए इस बात पर उनका आमह रहा करता था।

ौी गु जी को संघ क जो ूितमा अपे

त थी वह थी गुणसंप न ःवयंसेवक का

ूभावशाली संघ। ौी गु जी क मातृभिू म के संबंध म धारणा थी क वह सम

परमे र और समःत स -गुण क जननी जग माता है । वे हमेशा कहा करते थे क हर कायकता तो ह द ू जीवनधारा के संबंध म वशेष क

ान होना चा हए। साथ ह

से कायकता िनरहं कार , वनॆ, प रौमी, िनभय, अ य के सुख-दःख ु

से एक प होनेवाला, शर र से बलवान, सबके मन,

दयको भानेवाला, त वपालन म

ढ़, व ासपाऽ, ःनेह से प रपूण, स च रऽ तथा नेत ृ व करने म पाऽता का धनी

होना चा हए। गुणसंप नता के बारे म यह उनक धारणा थी। अपनी ूाचीन परं परा म से उदाहरण दे कर कथाएँ सुनाकर इन गुण का मह व वे ःवयंसेवक को बताया करते थे, उनके मन को संःका रत कया करते थे। ौी गु जी कहते थे क अपने भारत के हजारो वष के इितहास म जो असं य ौे पु ष हो चुके ह उनक जीवन कथाओं म संःकार का समृ

भ डार है । बचपन से

ऐसे च रऽ का वःतृत पठन होने से और ू येक ूसंग का यो य बोध महण करने क तीआण बु म ा रहने से इन कथाओं का भरपूर उपयोग ौी गु जी के भाषण म

दे खा जाता था। ौी गु जी का व ृ व ौोताओं क

से िनराला अनुभव रहता था।

३१२


उनक तकशु ता, ओज ःवता, भावनो कटता और उदा

स -गुण के आवाहन का

वल ण संगम ौोताओं पर प रणाम कर जाता था। ल ाविध लोग म ऽमु ध होकर

रा ीय समःयाओं को ःपश करनेवाले और एक नयी व

ूदान करनेवाले अमोघ

य का ौवण करते रहते।

अब तो ौी गु जी को ववादाःपद िस

करनेवाले श द हवा म वलीन हो गए ह।

जन महान ् स य का िनभय ूितपादन ौी गु जी ने आजीवन कया वे आज नह ं तो

कल ूःथा पत होते दखाई दगे, यह बात प थर क लक र क तरह ःप

है । इसके

साथ ह यह व ास भी है क ौी गु जी का कृ त तापूण ःमरण भ वंय म पीढ़ दर पीढ़ होता रहे गा।

*

३१३


२२ रा

क ौ ांजिल

ौी गु जी के िनधन के प ात ् उनके च रऽ एवं य

एवं ूशंसा क जो वषा हई ु - उससे यह बात ःप

व को उजागर करनेवाली ौ ा

हो गई क उनके पािथव शर र के

भःमीभूत होने के साथ ह इनक तेज ःवता को आ छा दत कये हए ु वाद- ववाद के बादल हटकर उनका उ

वल च रऽ एवं रा जीवन के िलए कया गया उनका योगदान

पूर ग रमा के साथ चमक उठा। ौी गु जी एक महान ् रा ीय दशन एवं जीवनो े ँय

के ूभावी ूव ा थे। उनके य

व के विभ न पहलुओं को ूकट करनेवाले

रा जीवन के अनेक ूमुख स त , राजनैितक व अ य नेताओं तथा समाचार पऽ के

ौ ासुमन बहत ु कुछ कह जाते ह। अपनी प रपाट से हटकर संसद के दोन सदन ने

संसद के कसी भी सदन के सदःय न रहनेवाले ौी गु जी को ौ ा जिल अ पत क ।

संत को स त क ौ ा जिल आचाय वनोबा भावे ने अपनी भावनाएँ य

करते हए ु कहा क उनका

यापक, उदार और रा ीय था, वे हर चीज पर रा ीय

कोण

से वचार करते थे। उनका

ू आ या म म अटट व ास था, और सभी धम के िलए उनके

दय म आदर भाव

था। उनम संक णता लेश-माऽ नह ं थी, वे हमेशा उ च रा ीय वचार से काय करते थे। वे इःलाम, मसीह आ द धम को बड़े आदर क

से दे खते थे और यह अपे ा

करते थे क भारत म कोई अलग न रह जाय। पुर के जग -गु

शंकराचाय ःवामी िनर जन दे व ितथ ने कहा क ौी गोलवलकर

जी ने धमूाण भारत से गोह या के कलंक को िमटाने के िलए सदै व आगे रहकर ूयास कया। ह द ू संगठन के वे आकां ी थे तथा हम उनके इस महान ् लआय क पूित कर उनक आकां ा को साकार

प दे ना चा हए। का चीकाम को ट पीठ के

शंकराचाय ःवामी जये ि सरःवती ने कहा क ौी गोलवलकर जी जीवन के अ तम ण तक ह द ू धम, ह द ू संःकृ ित तथा रा

क सेवा के िलए अथक ूय

करते

रहे । वे सफेद कपड़े म एक तपःवी संत थे। धमसंघ के संःथापक ःवामी करपाऽी जी ने कहा क उनक उ कृ

रा भ

तथा सम पत भाव से रा

और समाज-सेवा के

ेऽ म कये गये काय ूेरणादायी रहगे। जैन संत आचाय तुलसी ने अपनी ौ ा जिल म कहा क उनम स बयता, संगठन श

और भारतीय संःकृ ित का अनुराग था। वे समालोचक और गुणमाह दोन एक

साथ थे। वे रा ीय च रऽ पर बल दे ते थे। जैन आचाय मुिन सुशील कुमार जी ने ३१४


गु जी को ‘संःकृ ित के महामानव’ के

प म वणन करते हए ु कहा क आज दे श जस

क ठन प र ःथित से गुजर रहा है उसम ौी गोलवलकर गु जी का रहना अ य त आवँयक था। समूचा रा

अपने दे श और संःकृ ित के िलए क गई उनक सेवा के

िलए सदै व ऋणी रहे गा।

२२.१ नेताओं के ौ ासुमन रा पित ौी वी.वी. िग र ने कहा क ौी गोलवलकर अपने ढं ग से अ य त िन ापूवक आजीवन दे श क सेवा करते रहे । वे धम म िन ा रखनेवाले य संगठन क अपूव

मता थी। लोकसभा अ य

ौी गु जी अपने य

व, व

ा एवं अपने

जनजीवन म, वचारक के बीच ूमुख

थे और उनम

ौी गु दयाल िसंह ढ ल ने कहा क येय के ूित अथाह िन ा के बल पर

प से माने जाते थे। रा यसभा अ य

तथा

उपरा पित ौी गोपालःव प पाठक ने कहा क ौी गु जी ने अपना स पूण जीवन

रा सेवा म लगाया। वे गहर धािमकता वाले य

थे और ह द ू संःकृ ित और

स यता म सुधार के िलए उ ह ने त लीन होकर काय कया। दे श क ूधानमंऽी और सदन क नेता ौीमती इ दरा गांधी ने अपने भाव ूकट करते हए ु कहा, “जो सदन

के सदःय नह ं थे ऐसे एक ूित त य श

शाली आःथावाले य

ौी गोलवलकर जी नह ं रहे । वे व ान ् थे,

थे। अपने ूभावी य

ू व और वचार के ूित अटट

िन ा के कारण रा जीवन म उनका मह वपूण ःथान था।” संगठन कांमेस के ौी ँयामन दन िमौ ने कहा क वे बड़े मनीषी थे, िच तक थे, तपःपूत थे। भारतीय वा -मय के बड़े

ाता थे और मुझे ऐसा लगता है क वे बड़े

कमयोगी और आ म ानी थे। उनका च रऽ और य

सोशािलःट पाट के ौी समरगुहा ने कहा क वे दे शभ म दे शभ

व ूेरणा का

ोत था।

थे और उ ह ने रा ीय काय

, समपण और सेवा के भाव हजार त ण म वगत ४० वष तक संचा रत

कए। समाजवाद नेता ौी एस.एम. जोशी ने कहा क ौी गोलवलकर के िनधन से एक तपःवी क जीवन

योित बुझ गयी।

र ामंऽी ौी जगजीवन राम ने कहा क भारत ने सरसंघचालक ौी गोलवलकर क मृ यु से एक ऐसा नेता खो दया है जो संगठन क यो यता रखता था तथा जसम रा ीय हत को लेकर क

उठाने क

मता थी। अकाली दल के नेता तथा ज थेदार

ौी संतोष िसंह ने कहा क ौी गु जी एक महापु ष थे। उनके जैसे य ह। ौी गु जी के दे हावसान से िस ख स ूदाय को भार

अमर होते

ित हई ु है । उनके सामने

३१५


खड़े होकर ह द-ू िसख का भेद-भाव ख म हो जाता था। िशवसेना के ौी बाल ठाकरे ने कहा क कसी जहाज का नायक क भाँित ौी गोलवलकर जी संघ को अनेक संकट से कुशलतापूवक आगे बढ़ाते ह गये। मा सवाद क युिनःट पाट के कामरे ड ौी तक रहमान ने कहा क य प मने ौी गु जी के दशन कभी नह ं कये तथा प दे श के उ व ास रखनेवालो म ौी गु जी क ूेरणाश

वल भ वंय के उनके आदश म

को मने अनुभव कया है । पटना के

एक कांमेसी नेता ौी हाफ जु न कुरै शी ने कहा, “वे वाःतव म महापु ष थे। दरू से

दे खनेवाले लोग उनके बारे म गलत धारणा बना लेते थे। वे सा ूदाियक नह ं थे, वे मु ःलम वरोधी भी नह ं थे। मु ःलम वरोध के नाम पर आज तक मुसलमान को संघ के नाम पर बरगलाया जाता रहा है । ौी गु जी समान अिधकार और धािमक ःवत ऽता के प धर थे।” रा ीय से वका सिमित क संचािलका ौीमती मावशी केलकर ने कहा क भारत क ह द ु विन

का मान ब द ु चला गया है , ह द ु रा

हई ु है । भारतीय जनसंघ के अ य

क इससे अप रिमत

ित

ौी लालकृ ंण आडवाणी ने अौुपू रत ौ ा जिल

अ पत करते हए ु कहा क गु जी आधुिनक युग के ःवामी ववेकान द थे। जो महान ्

व वशाल भारत के िनमाण के िलए

ढ़संक प व िन ा के साथ ूय शील थे। दे श के

लाख युवक के िलए गु जी अटल दे शभ

और िनः​ःवाथ

याग के ूेरणादायक

ूतीक थे। ौी अटल बहार वाजपेयी ने ौी गु जी को अपनी ौ ा जिल य

करते

हए ु कहा क आ म वःमृत ह द ू समाज को ःव व का सा ा कार कराके ौी गु जी

ने उसे संग ठत, श

शाली तथा आ म व ास से प रपूण बनाने के रा काय के िलए

अपने शर र का कण-कण और जीवन का

ण- ण सम पत कर दया। यह उनक

अख ड साधना तथा अ तीय संगठन कुशलता का ह प रणाम है क ह द ू समाज

आज जागृत हो गया है और अपने ऊपर होनेवाले कसी भी आबमण का ूितकार करने म स म है । पटना क शोक सभा म अपने उ -गार य

करते हए ु लोकनायक ौी जयूकाश

नारायण ने कहा क ौी गु जी आ या मक वभूित थे। यह एक बड़ा बोध है क हम भारतीय ह, हमार हजार वष पुरानी पर परा है , भारत का िनमाण भारतीय आधार पर ह होगा। चाहे हम कतने ह माडन

य न हो जायं, हम अमर क , ृच, इं लश,

जमन नह ं कहला सकते, हम भारतीय ह रहगे। यह ‘बोध’ है रा ीयता का बोध, जसे सह

नवयुवक म जगाया था पू य गु जी ने।

३१६


२२.२ समाचार पऽ क ौ ा जिल दे शभर के अंमेजी व ह द के ह नह ं वरन ् विभ न भाषा-भाषी पऽकार के भी लगभग इसी ूकार के वचार लेख व अमलेख

ारा ूकट कये गये। उनम से

कितपय लेख म यह बात ज र सामने आई थी क वे ौी गु जी के वचार से िभ न

मत रखते थे क तु रा जीवन के िलए ौी गु जी के विभ न ूकार के योगदान क उ ह ने मु

क ठ से ूशंसा क थी।

लखनऊ के दै िनक ‘पायिनयर’ ने िलखा क ौी गु जी का सम पत जीवन था। दे शभ

ौी गु जी को संकुिचत अथवा सा ूदाियक कहना उनके साथ अ याय करना

है । यह उनका ह िस ा त था क आबमण का सामना करने म समथ और श

शाली रा

तब ह बन सकता है जब रा

मायावती ःथत रामकृ ंण आौम के ‘ूबु

दे ह याग के बाद उनके ूित ववाद समा

को एकसूऽ म गूथ ँ ा जाए।

भारत’ ने िलखा क ौी गु जी के

होकर राख म िमल गया और उनका

िनमल च रऽ उस राख म से उठकर दमक उठा। गोलवलकर जी का जीवन एक खुला हआ म थ है जसे सभी पढ़ सकते ह। हो सकता है आप कई मु ु

पर उनसे सहमत

न ह पर तु आज इसका कोई मह व नह ं रहा। मह व इस बात का है क आज आप उनम एक ऐसे य

और च रऽ का दशन कर रहे ह जो िनंकलंक, िनःवाथ और

िनभय रहा। वे अपने िलए नह ं, पूणतः सबके िलए जए। भला ऐसी बात इस व

कतने लोग के िलए कह जा सकती है ? इससे भी अिधक ौी गोलवलकर जी ने जो सबसे बड़ सेवा भारत और उसके लोग क क , वह है उनके और यवहार म उन वशेष मू य का संर ण, जनक रा

ारा कया हआ वाणी ु

के अ ःत व और उसके

सु यव ःथत वकास के िलए आवँयकता है । जब क जाने माने राजनीितक नेतागण,

नद -योजनाओं, औ ोगीकरण, प रवार-िनयोजन, जीवन-ःतर आ द क बात कर रह थे, तब वे अनुशासन, श

, िनभयता, च रऽ, िनः​ःवाथ सेना, गितशील दे शभ

िश ा दे रहे थे जसके बना उपयु

आधुिनक लआय भारत को उ

वल भ वंय

कदा प ूदान नह ं कर सकते। वाराणसी के दै िनक ‘आज’ ने िलखा क रा ीय ःवयंसेवक संघ पर संक ण सा ूदाियकता का आरोप नह ं लगाया जा सकता। संघ को स बय राजनीित से दरू

रखने का ौेय ौी गोलवलकर के य

व तथा रा -सेवा-संबंधी उ च आदश को ह

३१७


है । गु जी अपने बा ह द ू रा

और अ तः​ःव प दोन

य से ऋ षतु य ूतीत ह गे। जब वे

क चचा करते थे तब ह द ु व क उनक धारणा ःवामी ववेकान द,

ःवामी रामकृ ंण तथा ौी अर व द घोष क

ह द ु व क क पना से ओतूोत हआ ु

करती थी।

ऽवे िम ् के मलयालम दै िनक मातृभिू म के अनुसार ौी गु जी का काय इस बात का

ूमाण है क केवल नारे बाजी से कह ं अिधक ऊँचे ःतर पर युवक को वःतृत उ च सेवा के लआय क ओर ूे रत कया जा सकता है । जो उनक

वचारधारा को ःवीकार

नह ं करते तथा उसक आलोचना करते ह, उ ह भी उनके जीवन क शु ता, समपण भाव, लगन और ूामा णकता के सम

नतमःतक होना पड़ता है ।

मलयालम पऽ मनोरमा दै िनक ने िलखा क ौी गु जी क मृ यु से एक श य

भारतीय जीवन म काल के परदे के पीछे लु

तथा सु ढ़ नवयुवक क पं

शाली

हो गया है । उ ह ने अनुशासनब

याँ िनमाण क ं।

ऽवे िम के ह दै िनक मलयालम ए सूेस के अनुसार ......... ‘सवसंग प र याग ह िस

और वनॆता ह उ थान’ इस

येय पर अ वचल िन ा रखनेवाली अपने दे श म

एक परं परा है । इस ऋ ष-परं परा का यह भी ःथान पर समाज-श

ढ़ संक प है क राजस ा ूा

करने के

को संग ठत करके दे श को आगे बढ़ाया जाना चा हए। वतमान

आधुिनक युग म भी यह परं परा आबाध गित से चल रह है यह बात राजा राममोहन राय, ौी रामकृ ंण दे व, ःवामी ववेकान द, गांधी जी और ौी गोलवलकर जी के जीवन से ःप

प से िस

हो जाती है ।

रांची के सा ा हक ‘रांची ए सूेस’ ने िलखा क आधुिनक काल म दे श म गाँधी जी के बाद ौी गोलवलकर ह ऐसे य

थे जनके य

व व कृ ित व ने लाख लोग

को ूभा वत कया। मिास के दै िनक तिमल ‘ दनम ण’ के अनुसार उ ह ने संघ ूमुख के नाते जो सेवा क वह अ तीय है । ई र भ

, रा भ

,

याग भावना, अनुशासन का भाव भरने

तथा द ु खय का दख ु दरू करने तथा समाज के जाग क ूहर के नाते कत य द

रहने का भाव जामत करने का जो काय उ ह ने कया है वह अतुलनीय है । क क सा ा हक ने िलखा क गु जी अपने

येय के िलए संघष करनेवाले महापु ष थे तथा

उसके िलए उ ह ने अपना सवःव अपण कर दया था। ३१८


मिास के द मेल ने िलखा क संःकार, मातृभिू म के ूित ूेम तथा ःवािभमान पर उनका ह द ू रा

आधा रत था।

है दराबाद के दै िनक ‘ द डे कन बािनकल’ ने िलखा क ‘ौी गोलवलकर जी के अनेक आदश एक साथ अिभ य

हए ु थे। उनम ह द ु व अपने ौे तम

प म

प म ूकट

हआ था। ःवामी ववेकान द के समान ह वे भारत क आ मा क साकार मूित थे। वे ु

स चे रा वाद थे जो पा ा य मतवाद एवं ूेरणा के िलए वदे श क ओर नह ं ताकते थे।’ बंगलौर के क नड़ दै िनक ‘ूजावाणी’ के अनुसार उनके

ारा ूितपा दत ‘ ह द ू रा ’

संूदायवाचक नह ं रा वाचक था। उनक धारणा थी क भारत को अपनी मातृभिू म मानकर उसक संःकृ ित, परं पराओं के ूित ौ ा, गौरव रखनेवाले सभी भारतीय ह द ू

ह।

म णपाल, कनाटक के दै िनक ‘उदयवाणी’ ने िलखा क रा धम हे तु संःकृ ित के िलए अपना जीवन ह सम पत कर इस उ े ँय क पूित के िलए कसी भी

याग के िलए

मान शता दय म एक बार ूकािशत होनेवाली चेतना है । ऐस से रा

जीवन ध य

ूःतुत एक पीढ़ का िनमाणकर ई र के साथ ई र बने माधव सदािशव गोलवलकर होता है , इितहास चमकता है ।

मु बई के दै िनक ‘टाई स ऑफ इ डया’ के अनुसार ँमौुयु

ौी गु जी अपने

जीवनकाल म जहाँ अपने लोख अनुयाियय के िलए ह द ु व के ऽाता एवं ववेकान द के

प म पू य थे वहाँ उनके असं य आलोचक उ ह ह द ु व के तानाशाह के

दे खते थे। फर भी इतना तो स य है क ौी गु जी एक श और संग ठत भारत चाहते थे जो अपने उ

प म

दत ू थे जो ऐसा सश

वल भूतकाल के गौरवबोध से यु

और

अपनी ऐितहािसक अ ःमता को न खोते हए ु आगे बढ़ने हे तु त पर हो। मु बई के ह मराठ दै िनक ‘महारा तो संघ क श

टाई स’ के अनुसार गोलवलकर गु जी के पीछे

थी परं तु उसका राजनैितक सौदे बाजी करने के िलए उपयोग करने

क क पना उ ह ःव न म भी नह ं आई। कांमेस म स मिलत होने का सरदार पटे ल का आवाहन गु जी ने वनॆतापूवक अःवीकार कर दया था। अपनी िन ा के ूित ूामा णक रहकर आजीवन समाजसेवा करनेवाले य

अब कहाँ ह?

३१९


मु बई के सा ा हक ‘ ल ज’ के अनुसार उनक जातीयवाद , यह ववा

थानवाद थी या

वषय है परं तु जस एकाम भाव से उ ह ने संघ का संगोपन

कया उस पर कोई भी य

आ ेप नह ं कर सकता। उनका वैय

स यःत था तथा उनक संगठन उनके

वचार ूणाली पुन

मता अ तीय थी। अपने

क जीवन

येय पथ पर चलते हए ु

दय म आलःय नह ं था, श द क कमजोर नह ं थी तथा भौह पर थकान

नह ं थी। यह उिचत होगा क अ या य राजनैितक नेतागण उनके उदाहरण को अपनाएँ जो पूणतया समपण भाव का रहा है । मु बई के लोकस ा ने िलखा क राजस ा का मोह छोड़ना बड़े -बड़े लोग के िलए अस भव है । इसिलए स ा स पादन क ःपधा म कसी भी दे श के दल और विभ न रा

रस लेते ह। सरसंघचालक ने स ा से मुह ँ मोड़ िलया था और उसके अनुसार

ःवयं आचरण कर रा ीय ःवयंसेवक संघ के काय क

दशा िन

त क थी।

मु बई के ह मािसक ‘मदर इ डया’ के अनुसार यास, वा म क, रामदास, तुकाराम, ववेकान द एवं हजार ऋ षय के ढाँचे म यह य या ऐसे य

व ढला था।

क मृ यु हो सकती है ? नह ं! अपने ितरोधान से उनक ःमृित से

अपने जीवन म हमारे

दय म दे व व का भाव जागृत होता है । ऐसे ऋ ष हमसे कभी

अलग नह ं होते। वे सदै व जी वत रहते ह तथा दन-ूित दन हमारे और िनकट आते रहते ह। अ य ऋ षय के समान ह ौी गु जी भी सनातन ह द ू धम के ह पुऽ थे, जनका तादा

को सदै व ूा

य ौी परमे र के साथ है - और जनका शुभािशवाद इस पुरातन भूिम

है । ऐसे य

समय-समय पर हम उ चादश क ूेरणा दे ने हे तु हमारे

बीच आते रहते ह। पुणे के दै िनक ‘केसर ’ के अनुसार भगवान को उ ह ने रा

ारा बताये गये आ मा के भगवत ् ःव प

क आ मा से एक प और उसी सनातन रा

के चरण पर अपना

शर र पुंप अ पत कया। गंगा अंत म जाकर जस ूकार सागर म िमलती ह ठ क उसी तरह उनक

वशु

कायगंगा जनसागर म समा गई और उससे एकाकार हो गई।

पुणे के ह सा ा हक ‘माणूस’ के अनुसार स ा से अिल

रहकर राजस ा पर अंकुश

रखनेवाला यित वग है , ऐसी भारतीय क राजनीित तथा समाज रचना के संबंध म अित ूाचीन काल से चली आ रह अ यंत ूय क पना रह है । य प इस क पना

३२०


का अवाचीन काल म गांधीजी ने उ -घोष कया था तथा प उस क पना को साकार करने हे तु कसी ने ूय

क पराका ा क हो तो वे ौी गोलवलकर गु जी थे।

सकाल पुणे ने िलखा क उनक कायिन ा, समाज हत क लगन, दे शभ म उनके ूित

भी संदेह नह ं कर सकते ह।

के वषय

यागपूण और सम पत जीवन का

आदश उ ह ने सामने रखा है । असा य रोग से जूझते हए ु भी उ ह ने अपना कठोर

ोत अ त तक िनभाया।

अहमदाबाद के दै िनक ‘गुजरात समाचार’ के अनुसार ौी गोलवलकर जी के दे हावसान से दे श ने रा वाद का एक ूबल पुरःकता खो दया है । जनस ा अहमदाबाद ने िलखा क मालवीय तथा ःवामी ववेकान द ने भारतीय व के वषय म जस ूकार के

उपदे श दये थे उसी धरोहर क ौृख ं ला को चालू रखनेवाले तथा ःवदे शी और भारतीय व के स ब ध म दे श के वतमान नेताओं म वे ह अकेले एक

योितधर थे।

जयपुर क ‘राजःथान प ऽका’ ने उनका उ लेख ‘एक अ -भुत और ूखर य

व’ के

नाते से करते हए ु िलखा क उनका अपना एक दशन था और इस ूयास म उनका दे श क एक बड़ सं या ने साथ दया। ह द ू रा वाद का क टरता से वरोध

करनेवाले भी उनक

ा के ूशंसक थे।

जयपुर के नव योत हे रा ड ने िलखा क कुछ राजनीितक दल

ारा कये गये

अपूचार के ःथान पर ौी गु जी पा थक क टरवाद तथा अ ध जाितवाद से एकदम अलग थे। उ ह ने जीवन पय त सनातन ह द ू धम क अमू य िनिधय के ूसार हे तु अथक प रौम कया। उनक इ छा थी क भारतवासी यह समझ क वे ऐसे नैितक,

आ या मक तथा धािमक पर पराओं के उ रािधकार ह जो स यताओं क

से

सबसे पुरानी है । चंढ गढ़ ःथत ‘ द श यून’ के अनुसार ‘य द य

व मनुंय के िलए पुंप क सुगध ं

के समान है तो ःवग य ौी गोलवलकर जी का य

व िन

त ह असामा य था।’

द ली के दै िनक ‘नवभारत टाइ स’ के अनुसार ‘ वगत दो वष के अंतगत सामा जक, सांःकृ ितक एवं राजनैितक

से हमारे दे श म ऐसे य

जनक मह यता का आभास पाने के िलए वरा उ ह ं वरा

य का उदय हआ है ु

श द जुड़ता है । गु

गोलवलकर

य म से एक थे।’ ३२१


द ली के इ डयन ए सूेस ने िलखा क वे भारतीय इितहास के ूगाढ़ अ येता थे तथा दे श क उ र तथा प

मी सीमाओं क सुर ा के स ब ध म अ य त िचंितत

रहते थे। वे उन इने-िगने य

य म से थे जो भारत- वभाजन क क पना को

आ मसात नह ं कर सके। वे चाहते थे क भारत के मुसलमान भारत क मु य

जीवनधारा से एक प हो जाय। प जाब केसर - जालंधर ने िलखा क संघ के काय म गु जी क आःथा का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है क दे हा त के पहले साढ़े सात बजे तक वह ःवयं

को ःवःथ अनुभव कर रहे थे और उ ह ने ःवयंसेवक के साथ दै िनक ूाथना भी क । सा ा हक दनमान ने िलखा क अपने जीवन म उ ह ने इस बात का ूयास कया था क ह द ू समाज म विभ न पंथ के आचाय िमलकर एक रस समाज के िलए

सवस मत माग तय कर।

कलक े के दै िनक स माग ने िलखा- “वःतुतः उनक मृ यु से भारत ने एक महान ्

नेता, उपदे ा और पथदशक खो दया। द द ू धम और संःकृ ित क र ा के िलए

उनक सेवाओं क बहत ु बड़ आवँयकता थी। रा ीयता के सजग ूहर के

प म वे

सदै व रा ीय भावनाओं को जगाने क चे ा म संल न रहे ।”

समाज दै िनक, कटक का कथन था, “भारत का अतीव गौरवमय िचऽ आँख के सामने

रखकर वतमान प र ःथित म उसक जो ददशा हई ु ु है उससे उसे ऊपर उठाकर पुनः उस गौरवपूण ःथान पर ःथा पत कराना, यह था उनके जीवन का महान ् ोत।...... अभूतपूव संगठन-श

होने के कारण िशवाजी के समान भारत को

ढ़, बिल

और

शाली बनाने का ःव न उ ह ने हमेशा अपने सामने रखा।”

‘आलोक’ सा ा हक, गुवाहा ट के अनुसार “आ म वःमृत ह द ू समाज को जगाने के

िलए उ ह ने जागरण क जो अख ड धारा ूवा हत क वह भारत म िचरकाल ूवा हत होती रहे गी।”

*

३२२


२३ ःने हल मागदशक रा ीय ःवयंसेवक संघ के सरसंघचालक के नाते ौी गु जी को जो सफलता ूा वह िनःसंदेह अलौ कक है । क तु इस सफलता का िन

त रहःय

या है ?

गु जी का मेधावी, ओजपूण व ृ व इस यश का मूल कारण है ? या लोख भारतवासीय के अंतःकरण को ूभा वत करने क भाँित असीम और अथाह उनका

हई ु

या ौी

मता रखनेवाला, महासागर क

ान भंडार? या उनके मुखमंडल पर आलो कत

आ या मतेज क आभा? गहराई से सोचने के प ात ् हम इस त य का

ान होता है क इन गुण म से एक

या अनेक गुण धारण करनेवाले अनिगनत लोग समाज म व मान ह या भूतकाल म हए ु ह। ह द ु व का ःवािभमान रखनेवाले या ह द ू रा

क भाषा बोलनेवाले भी बहत ु

लोग थे। यह ह द ु व का वचार कोई नयी खोज नह ं थी। ौी गु जी म कौन सी बात थी जसके प रणामःव प लोग उ ह जी-जान से चाहते थे,

थे? इन सब ू

का एक ह उ र है जो आ

गु जी पर समान

दय से ूेम करते

सरसंघचालक डॉ. हे डगेवार तथा ौी

प से लागू होता है ।

२३.१ समाज के साथ एकरस, एक प एक वा य म य द कहा जाय तो ौी गु जी ने भारतभर ॅमण कर समाज के

दय

पर ःनेहामृत का िसंचन कया और इसी कारण उनके संपक म आए लोग ने उ ह ूेम दया, उनके बारे म भ

भाव रखा, उ ह अपना ौ ाःथान बनाया। ौी गु जी के

अ य अलौ कक गुण के कारण इसक शोभा और बढ़ गई, बस! ौी गु जी क मूल ूवृ

एकांतवास तथा

यान-धारणा क ओर थी। हमालय क पहा ड़य , गुफाओं क

ओर उनका अ या म ूवण मन आक षत हुआ करता था। अ या म के गूढ़तम वातावरण म रहकर

यान-धारणा, योगा द बयाओं से आ मा क मु

प से उ ह ने न केवल ूयास कया क तु यौिगक-आ या मक श

का य

गत

भी अ जत क

थी। क तु िनयित के गभ म माधव का नह ं, अ पतु संपूण ह द ू समाज और समःत व

के भी उ ार का माग उनके मा यम से ूदिशत होता था। इसी कारण डॉ.

हे डगेवार जी के संपक म आते ह ौी गु जी ने य

गत मु

क ओर से पूणतः

पीठ फेर ली।

३२३


संघकाय के िलए अपना सवःवापण कर ौी गु जी ने संघकाय का ोत िलया था और

उसे दे ह शांत होने तक िनभाया। अब सम -समाज ह उनका भगवान बना, मातृभिू म आरा य दे वता बनी और संपक म आनेवाले ू येक य अंश)

प म दे खने लगे, उसे सेवाभाजन मानने लगे। भ

को वे िचदं श के (ई र का और साधना क सीढ़

‘आ मिनवेदन’ या ‘सवःव समपण’ वे पहले ह पार कर चुके थे। अब वह समपण मातृभिू म के चरण म हआ। आ मिनवेदन होने पर भ ु रहता। दोन एकरस, एक

भगवान से िभ न नह ं

प हो जाते ह। अभेद िनमाण हो जाता है । ौी गु जी

समाज से अलग नह ं रहे । उनका य

व समाज म वलीन हो चुका था। एक बार

‘धमयुग’ सा ा हक ने ौी गु जी से अपने हःता र यु

येयवा य दे ने का अनुरोध

कया। ौी गु जी ने उ ःफूत होकर केवल चार श द िलखे- ‘म नह ं, तू ह !’ बस! चार श द म व

क याण का महामंऽ था! मनुंय जब ःवतः को पूणतः िमटाकर समाज

से एकरस, समरस हो जाता है , अहं कार स हत सभी य

आरा य

येय से एक

गत वकार न

प हो जाता है तब वह आकाश के समक

कर अपने

वशाल बनता है ।

वह ःवयं ह आकाश बन जाता है । इस मानिसकता म उसे ःवतः के िलए कोई अपे ा शेष नह ं रहती। वह ःवतः के िलए कुछ भी नह ं चाहता। वह ई र का ह काम करता है । ःवाथ का लोप होने के कारण काम, बोधा द वकार क बिल वह नह ं होता। िनभय िनवर बनने के फलःव प ूेम और क णा के वशाल अथाह सागर का

प उस के अंतःकरण को ूा

होता है ।

‘ःनेह झरे आगे, अ र चले पीछे ’ (पुढा ःनेह पाझरे , मागुता येती अ रे ) ऐसा इस अवःथा का वणन संत

ाने र जी ने कया है । इसी अवःथा का ू ययकार अनुभव

ौी गु जी के जीवन म आता है । एक बार ौी गु जी ने ःवतः के ूारं िभक जीवन के बारे म कहा था क उनम व

ा का अहं कार था। उनक वाणी भी बहत ु तीखी और

पैनी थी। वाद ववाद करते समय अनेक ूमाण दे कर अपने ूितःपध को यु

वाद से

पराभूत करने म उ ह बहत ु आनंद आया करता था। क तु जब ौी गु जी डॉ टर जी के स मुख वनॆता से नतमःतक हए ु और एक कुशल संगठक के नाते

येयिन

ूय पूवक बदला। ‘ःवभावो द ु रतबमः’ यह मत डॉ टर जी ने झूठा िस

कर दखाया

डॉ टर जी के अ तीय गुण को िनकट से िनहारा तब उ ह ने ःवतः के ःवभाव को था। ौी गु जी ने भी इसी आदश को दहराया। ये दोन महापु ष ःवतः के बारे म ु

अ यंत कठोर थे। अपनी दे ह क ओर उ ह ने लाड़- यार और मोह से कभी दे खा ह नह ं। शार रक यथा तथा ौम क कभी परवाह तक नह ं क । शर र म बुखार होता,

शर र थका हआ होता, क तु चुं क डॉ टर जी संघकाय को ह ूाथिमकता दे कर उसम ु

इतने समरस हो जाया करते थे क शर र क ओर

यान दे ने के िलए उनके पास

समय ह नह ं रहता था। खून का पानी होते तक वे संघकाय म जुटे रहे । बुखार क ३२४


बेहोशी म भी उनके मुह ँ से ‘संघ’ के, दे श के बारे म ह श द िनकला करते थे। ःवयं

ौी गु जी इस के सा ी थे। इसी बम को ौी गु जी ने भी च रताथ कया। ौी गु जी ने तो कै सर क श य बया के प ात ् अपने शर र से संघ के ई र य काय के िलए

िन ु रता से काय करवाया। क तु अ य के संबंध म ‘मृदिन ू कुसुमाद प’ सा यवहार हआ करता। लाभ क अपे ा न करते हए ु ु ूेम करना उनका ःथायी भाव था। ौी

गु जी ने ूचंड लोक संमह कया इस ूेमभाव के सहारे और उ ह ःवतः के और संघ

के साथ बाँध रखा इसी वशु

ूेम बंधन से। ूेम से संसार जीता जा सकता है , यह

डॉ टर जी और ौी गु जी ने िस उ ह ने लोग के

कर दखाया है । वे लोग को ढाल सके

दय म ूवेश कर िलया था। तक और बु

कर वे ूेम क िस ावःथा को ूा

क सीमाओं को लाँघ

कर सके थे, जसके सहारे एक-एक के

उ ह ने ई र भाव, ौ ा तथा समःत सत ् श

य क दय म

यां जागृत करने म सफलता पाई।

ू ःनेह सूऽ इसिलए कहना पड़ता है क ौी गु जी ने लोग को जीता उ ह अपने अटट म बांधकर। ौी गु जी ूितवष दो बार संपूण भारत का दौरा कया करते थे। यह बम 33 वष तक अखंड प से चलता रहा। नये-नये लोग उनके संपक म आते और उनके ह होकर रह जाते थे। य

गत भट और प रचय पर उनका

यान अिधक रहा करता

था। केवल भाषण दे ने या वाद ववाद करने से कसी को काय ूवृ

करना संभव नह ं

यह वे जानते थे। मनुंय ूेम और संपक से गढ़ा जा सकता है । इसका जीता जागता आदश

दय पर अिधकार करने क

ौी गु जी का य

मता रखनेवाला उनका ःनेहपूंज य

व था।

व एक आ ासक छाया थी जसम उनके ूेमभाजन लोग शा त

का अनुभव करते थे। ौी गु जी ने लगभग 75 बार कँमीर से क याकुमार और मु बई से गुवाहाट तक ूवास कया था। इस ूवास के समय अनेक लोग के घर उनका िनवास रहा। वे कभी आलीशान होटल म नह ं रहे । जस घर म वे रहे वह उनका ह होकर रह जाता। ौी

गु जी न कभी उस घर को भूलते, न ह घर वाले आबाल वृ

उ ह। न ह ब चे उ ह

अपना बुजग ु मानते, उनके साथ खेलते थे। इतना व ान, जसका ःवतः का कोई प रवार नह ं, जो एक वशाल संगठन का नेता है , अपने बड पन को भुल कर ब च के साथ खेलता है यह दे ख कर बड़ को सुखद आ य लगता था। ऐसे अवसर पर ता वक चचा को कोई ःथान नह ं रहता। सुख-दःख क चचा होने लगती। इस समय ु वाणी म मधुरता, खलाड़ वृ ,कभी नटखटपन भी होता था। बहत ु मशहर ू मेहमान

आए ह इस कारण घर म कोई तनाव, दबाव नह ं रहता था। अपने कारण कसी को

असु वधा न हो इसक ओर द तापूवक वे

यान रखा करते थे। गर ब क झ पड़ और

धनवान का ूासाद उनके िलए एक से ह थे। दोन ःथान पर वे एक ह समभावना ३२५


ु से रहे । जब वे ूःथान करते तब बड़ के चरण को छकर उनके आशीवाद क कामना करते। ऐसे अवसर पर बड़ क आँख म आँसू न छलक तो ह आ य। ौी गु जी एक बार म यूदे श म नमदा के तट पर ःथत मोह पुरा नामक वनवासी दे हात म गए थे। उनके गु बंधु ौी अमूतानंद महाराज का वहाँ आौम था। आौम के नाम पर एक छोट सी कु टया थी। इस कु टया म ौी गु जी ठहरे थे। भोजन का

समय हआ। इ दौर से पं. रामनारायण शा ी जी भोजन के उ मो म यंजन लाए थे। ु इसम मेवा-िमठाई भी थी। क तु अमूतानंद महाराज ने कहा क यहाँ मामवािसय का आित य ह ःवीकारना होगा। ौी गु जी ने इस सूचना को मा य करते हए ु ौी शा ी

जी

ारा लाए गए पदाथ वनवासी बंधुओं म बाँटने के िलए कहा। एक मामीण के घर

भोजन के िलए एक पं

म बैठे। आंगन गोबर से लीपा गया था, साफ सुथरा था।

जमीन पर ह सब लोग बैठे। ौी गु जी बड़े ूेम से वनवासी बंधुओं

ारा परोसा हआ ु

साधारण भोजन आनंदपूवक सेवन कर रहे थे, प ल पर परोसे हए ु पदाथ क ूशंसा कर रहे थे। वदरु के घर

राम जैसे तृ

खा-सूखा खाकर ौीकृ ंण और शबर

ारा दये बेर खाकर

हए ौी गु जी जब उस गाँव से बदा हए ु थे वैसे ह ौी गु जी भी हए। ु ु

तब सभी मामवािसय क आँख से वयोग के आँसू बह रहे थे। ौी गु जी क आ मीयता ह वह वल ण श

थी जो स पक म आनेवाल के

दय

म ःनेह भाव जगा दे ती थी। यह आ मीयता ह उनके अमयाद लोकसंमह का एक ूभावी क तु सहज-साधारण मा यम था, िनरा ःवदे शी, एका मता क ू य अनुभिू त म से िस

और दखावट भेद के ऊपर उठने क

मता रखनेवाला।

जबलपुर म ौी गु जी के एक िमऽ थे। वे सा यवाद (क युिनःट) दल म थे। कसी ने ौी गु जी से पूछा, “आप इस सा यवाद िमऽ के घर

य िनवास करते ह?” ौी

गु जी ने कहा “वह मेरा पुराना िमऽ है जब म संघ म नह ं था और यह िमऽ क युिनःट नह ं था। ःनेह के संबंध कभी भंग नह ं करने चा हए। मनुंय म प रवतन हो सकता है ।

य न हम आशा कर क एक दन मेरा यह िमऽ भी संघ के वचार

का होगा?”

२३.२ मतभेद होने पर भी मनभेद नह ं ौी गु जी का कहना रहता था क मतभेद रहे तो भी परःपर के संबंध म शऽुता का ु या कटता का भाव न रहे और वैसा ह उनका यवहार भी रहता था। एक बार लाल

कले के मैदान पर सरदार पटे ल जय ती समारोह क सभा थी। डॉ. राधाकृ ंणन ् सभा

३२६


के अ य

थे। सभा म ौी गु जी का भाषण हआ। अ य व ाओं म डॉ. राम मनोहर ु

लो हया भी एक थे। कायबम समा

होने पर डॉ. लो हया जी से उनक भट हई ु तब

उ ह ौी गु जी ने दोन भुजाओं म समेट कर ःनेहपूण आिलंगन दया। फर दोन का ःनेहयु

संभाषण शु

हआ। दे खनेवाल को ऐसा लगा क दो जानी दोःत बहुत दन ु

के बाद परःपर गले िमल रहे ह। “आप से िमलने क बहत दन क इ छा आज पूर ु हो रह है ” ऐसा कहकर और हाथ म हाथ डालकर दोन ने मागबमण कया। यह

दे खकर लोग को बहत ु आ य लग रहा था

य क सबको

ँय

ात था क ौी गु जी

और डॉ लो हया के वचार और मत परःपर िमलते नह ं। कसी ने इस वषय म डॉ. लो हया को छे ड़ा तब लो हया जी बोले, “ौी गु जी के संबंध म मने ब कुल गलत धारणा बना ली थी पर तु आज उनसे ू य

भट होने के प ात ् मुझे बहत ु आनंद हो

रहा है ।” करपाऽी जी महाराज का उदाहरण भी ल णीय है । जब-जब महाराज से भट होती थी तब उन काषायव धार सं यासी को ौी गु जी सा ांग द डवत ् करते थे। ौी गु जी क

यवहारनीित इस तरह भेद को लाँघकर दसर के ू

दय म ूवेश

करनेवाली, ःनेहमयी, ूेम संबंध को ूाण से भी अिधक ूय माननेवाली थी। त व

और यवहार उनके जीवन म एक प हो गए थे। ौी गु जी ने ‘वसुधैव कुटंु बकम ्’ क

भावना को अपने जीवन म च रताथ कया था। ूायः बड़े -बड़े नेता त व को मंथ तक ह सीिमत कर दे ते ह, मानो उनका य

गत जीवन से संबंध ह न हो। परं तु ौी

गु जी क गणना उन नेताओं म होती है जो त व जए और त व से एक प हो गये। त व के मूितमंत उदाहरण ःवयं बन गए।

२३.३ प रवार का ह भाव एक बार एक दं पित ौी गु जी से भट करने आए। ौी गु जी ने उनके पुऽ के ःवाः य के बारे म पूछताछ क और कहा, “उसका ऑपरे शन जमनी म हआ था ना?” ु यह सुनकर कसी ने उनसे पूछा, “आप इतनी छोट -छोट बात

यान म कैसे रख पाते

ह?” हम शायद क पना भी नह ं कर पाएँगे ऐसा उ र ौी गु जी ने दया। वे अपनी अ -भूत ःमरणश

का बखान कर सकते थे। क तु नह ं! ौी गु जी ने ःवाभा वक

सहजभाव से कहा, “मेरे प रवार क ऐसी घटना भला म कैसे भूल सकता हँू ? चाहे जतनी पुरानी

के जीवन का,

य न ह ।” इस उ र म िन हत, ‘मेरा प रवार’ इन श द ने ौी गु जी

दय का यथाथ दशन करा दया। सुननेवाले

णभर के िलए अंतमुख

हो गए। हर प रवार उनका था और वे उस प रवार के। हर एक के साथ उनके संबंध ूेमभाव से प रपूण थे। यह ःनेह, ूेम अथाह था। इस ःनेह के महासागर म जात-

३२७


पाँत, ूांत, भाषा, प , पंथ आ द सारे भेद डू ब जाते थे। केवल ःनेह के तेजःपुंज

मोती सतह पर हाथ लगते! ौी गु जी के बारे म ौ ाभाव उ प न हो जाता था अनायास बना ूयास। ौी गु जी के जीवन का यह अंश इतना बोधूद था क जो

, आकषक और

ान श द से िमलना असंभव है वह अनायास उनके आचरण से

िमल जाता था। ौी गु जी जहाँ भी िनवास करते उनके इद िगद य द कोई वीमार हो तो उसक पूछताछ वे अवँय करते थे। औषधोपचार के संबंध म भी वे जानकार ूा करते थे। ौी गु जी को होिमयोपैथी का अ छा खासा

कया

ान था। कभी-कभार वे

होिमयोपैथी क दवा भी सुझाते थे। ौी गु जी जस मकान म ठहरते वहाँ ूस नता से वातावरण भर जाता था। उनक हँ सी मु थ रहा करती थीं। कंठ विन तो िसतार क ःवर लह रय

जतनी ूभावकार थी। हाःय- वनोद के

या कहने, वह एक ःवतंऽ

वषय है । वातावरण को ठहाके क हँ सी से हलका-फुलका बनाना ौी गु जी क एक और वशेषता थी। ौी गु जी चाहते थे क ू येक गाँव के संघचालक इस मम व को अपनाएं और दे ख क संघ का काय कैसे नह ं बढ़ता। उनका आ म व ास था क काय बढ़े गा ह । ौी गु जी ने एक बार एक गाँव के सुूित त और वयोवृ पद ःवीकार करने क ूाथना क । वृ मुझसे

स जन से संघचालक का

स जन ने पूछा, “संघचालक के नाते आपक

या अपे ाएँ रहगी?”

“आप क पना क जए क आप एक संयु

प रवार के ूमुख ह। आपके प रवार म

लड़के, लड़क , नाती, पोते ह, तो प रवार ूमुख के नाते आप का कत य या काम या होगा?” ौी गु जी ने सहज भाव से उनसे ू “म उनके पालन-पोषण क ओर

यान दँ ग ू ा।” वृ

पूछा। ने कहा।

“ या आप उनसे आपस म झगड़ने दगे?” ौी गु जी का ू । “नह ं, कदा प नह ं। म उ ह आपस म झगड़ने नह ं दँ ग ू ा।” वृ

ने कहा।

“अपने प रवार के लड़के-लड़ कयाँ पढ़ िलखकर बड़े ह , इस ओर आप

यान दगे या

नह ं?” ौी गु जी ने पूछा। ३२८


“अवँय। म उनके भ वंय क िचंता क ँ गा।” वृ “ या आप इस ओर भी

स जन।

यान दगे क उनके जीवन म ःथैय ूा

हो?” ौी गु जी का

एक और ू । यान दँ ग ू ा।” वृ

“जी हाँ, इस ओर भी म

का उ र।

“आप के लड़के गुणवान ह , इस ओर भी आप “जी, यह मेरा कत य बनता है ,” वृ

यान दगे न?” ौी गु जी।

ने उ र म कहा।

“संघ को आप अपना प रवार ह समझ। आपको यह सब संघ के िलए करना होगा।” ौी गु जी ने अ त म कहा। यह संवाद काफ कुछ कह जाता है । संघ के प रवार के ूमुख के नाते कौन-सी नैितक ज मेदा रयाँ िनभानी पड़ती ह और इस संबंध म ौी गु जी क अपे ाएं, मा यताएँ या थीं, इस बात का

ान उपयु

ूसंग से ःप

है जाता है । संघ म अिधकार पद

का अथ है ज मेदार िनभाना। प रवार को ूस न, सुखी और ूगितशील बनाना। यहाँ शार रक क

और समय का हसाब नह ं रखा जाता। आ मयता व ःनेह से

मनुंय को जोड़ना और उ ह संःका रत करने के िलए ःवयं को चंदन सा िघसना,

यह संघ काय है । जो सुख-दःख म भागीदार बनता है , वाद ववाद के झंझट म न ु

पड़ते हए ु अपने द

यवहार से लोग के

ौी गु जी ने अपने ःवतः के उदाहरण

दय जीतना जानता है , वह कायकता है ।

ारा सभी ू

के उ र दे रखे ह। ःवयंसेवक

क पूछताछ करना, संदेश पहँु चाना, समःयाओं का समाधान करना तो ौी गु जी का

ःवभाव था। समाज क भ

, समाजपु ष क सेवा, इन श द म ौी गु जी ने

कतना अथ भर रखा था, यह बात हमारे

यान म आती है । उनके मन म

उपकारकता का भाव कभी नह ं रहता था। ग रब, दःखी पी ड़त के ु

प म भगवान अपने को सेवा का मौका दे ता है , इस अवसर

का लाभ उठाते समय हम भगवान का ऋणी बनकर रहना चा हए यह रामकृ ंण परमहं स

ारा िसखाया हवा ु भाव ौी गु जी ने अपनाया था। िनयित ने ौी गु जी क

योजना शायद इसीिलए क थी क वे अपने आचरण का आदश ूःतुत करते हए ु

३२९


अपने संग ठत ूयास से धम जागृित कर और आधुिनक

ान- व ान को हजम

करते हए ु अ या म क नींव पर समथ भारत के िनमाण का अपना ःव न साकार कर

सक। ववेकान द के मान वे मूत ूित प थे। भारत के िनयत जीवन कत य का वह बोध, िन वक प से सगुण मूत ःव प क ओर मुड़ा हआ वह जीवन ूवाह, वह ु

योगा ढ़ अवःथा, वह बु

क धारणा श

, वह वैरा य,वह सादगी, वह ूस नता,

तेज ःवता, अमृत पुऽ को वह आवाहन! फक केवल इतना क ौी गु जी ने सं यासी के भगवे व कया

कभी नह ं पहने तथा चतुथाौम दशानेवाला दसरा नाम भी धारण नह ं ू

य क संघ सं यािसय का संगठन नह ं है । वह तो संपूण समाज को ह द ू

अ ःमता के सूऽ म गूथ ँ कर समग ठत

प म खड़ा करने क आकां ा संजोनेवाला

काय है । वह सवःपश है ।

२३.४अद य आ मचेतना ौी गु जी म संकट को सहने क ू -लाद जैसी श के बारे म अनुभिू तज य ौ ा थी। ‘उ

थी, आ म समपण था।

येय

त, जामत, ूा य वरा नबोधत’ यह पु षाथ

ौी गु जी ने च रताथ कर दखाया था। ू येक कायकता इस भावना से ूे रत होकर य द काय करे तो सम

प भगवान िन

प से ूस न होगा, यह व ास ौी

गु जी ने जगाया था। इस कारण ूितकूल प र ःथित के नाम से रोना-धोना उ ह

िनरथक लगता था। हम काम नह ं करते इसिलए भगवान को दोषी ठहराना उ ह

महापाप लगता था। समाज ह बुरा है ऐसा य द कोई कहे तो वे कहा करते, “अरे भाई, इस समाज के िलए तुमसे कोई काम नह ं होगा। जरा अंतमुख होकर दे खो।” एक पऽ म ौी गु जी ने िलखा, “अनेक लोग से िमलते समय हम समाज क बुराईय

दखाई दगी। कुछ अ छ बात का भी दशन होगा। क तु बुर बात के

कारण समाज से घृणा करनेवाला

या सोच पाएगा क वह इसी समाज का एक अंग

है , घटक है ? इस वाःत वकता को भूलने पर भला समाज बंधुओं के िलए

दय म

अपन व क भावना कैसे रह पाएगी? साथ ह समाज क किमय और दोष का अमुभव करते समय भगवान को दोष दे ना कहाँ तक उिचत है ? इसका वचार हम करना होगा। इस ूवृ

को

याग कर हम ई र पर भरोसा रख

समाज सेवा क ूेरणा दे ता है । संपूण ौ ा से यह भाव

य क वह हम

दय म रखने पर ह हम

िनद ष काम कर सकगे।”

३३०


ौी गु जी क जीवन

संपूणतः आ या मक थी। चार ओर क सृ

दशन करनेवाली थी। उनक

म चैत य का

ि ु या तु छ कुछ भी नह ं था। जन- जन बात

से अपना जीवन खड़ा होता है , उन-उन बात के ूित कृ त ता क भावना उनम थी और यह कृ त ता उनक कृ ित म य

हआ करती थी। एक बार वे पंजाब के दौरे पर ु

थे, तब क घटना है । एक दन ूातः बाहर जाने के िलए वे अपने कमरे से िनकले। ःवयंसेवक उनक ूती ा म खड़े थे। ौी गु जी क च पल दरवाजे के बाहर थी।

उ ह ने च पल पैर म डालने के प हले उन च पल को दोन हाथ जोड़ कर नमःकार कया। ःवयंसेवक आ य से दे खने लगे। तब ौी गु जी ह बोले, “अरे , ये च पल

या

मेर र ा नह ं करती ह? बेचार ःवयं िघसती ह और मेर सेवा करती ह। म उनके ूित कृ त

हँू । इसीिलए च पल पैर म डालने के पूव म उ ह नमःकार करता हँू ।”

वःतुएँ छोट लगती ह , पर तु उनका भी मह व होता ह। जहाँ मामुली पादऽाण के संबंध म ौी गु जी इतने कृ त

थे, वहाँ अपना सारा जीवन चलानेवाले परमे र के

आगे वह संपूण शरणागत हए ु ह तो उसम आ य

या? ू येक घटना म वे ई र

क इ छा दे खते थे। वह बात अ ूय हो तो भी परमे र क इ छा अपने क याण क

ह होनी चा हए, इस ौ ा म कभी भी दरार नह ं पड़ । इसका एक अ य त उ -बोधक उदाहरण यहाँ उ -घृत करने यो य है ।

२३.५ आ म व ेषण क चे नई क एक संःथा का कुछ काम विश

अविध म संप न करने का दािय व ौी

गु जी ने ःवीकार कया था। ौी गु जी ने ःथानीय कायकता ओं को उस काम के संबंध म आवँयक सूचनाएँ द ं और वे आगे के ूवास के िलए चल पड़े । आगे इस संःथा क ओर से ौी गु जी को पऽ भेजा गया क अविध समा

हो चु क है पर तु

काम कुछ नह ं हआ है । ौी गु जी अपने वचन के प के थे। इसिलए उनक एक ु

संपूणतः व ासाह ूितमा सवऽ िनमाण हई ु थी। लोग का अनुभव था क ौी गु जी दये हए ु वचन का पालन करते ह। उनके ूवास, बैठक, सभाएँ, मेल-िनलाप आ द

कायबम िनयो जत ःथान पर और समय पर होते थे। ौी गु जी समय पर पहँु चगे

या नह ं, कायबम होगा क नह ं, ऐसी शंका भी कसी के मन म नह ं आती थी। यह सा य करने के िलए कई ूसंग पर ौी गु जी को कतनी दौड़धूप करनी पड़ती थी

इसके कई उदाहरण ःथान-ःथान के कायकता बतला सकगे। कभी-कभी तो अ य त ूितकूल वातावरण म कतने ह मील संकटाप न माग से पैदल चलने का वबम उ ह ने कया है । चार ओर ू ोभ भड़क रहा हो या ूकृ ित ने रौि

प धारण कया

हो, अितशय शांित से वे बोले ह और िनभयता से आगे बढ़े ह।

३३१


इसिलए िन

त कया हआ काम नह ं हआ इसका ौी गु जी को दःख होना बलकुल ु ु ु

ःवाभा वक था। उ ह ने पूछताछ, जाँच पड़ताल क और उनके

यान म आया क

ःथानीय कायकताओं ने इस काम के बारे म कुछ टालमटोल क है पर तु उ ह ने इस संःथा के ूमुख को जो पऽ िलखा उसम कायकताओं पर दोषारोपण कर ःवयं का बचाव नह ं कया। उनका यह पऽ उनके च रऽ क ौे ता दशानेवाला है । उ ह ने िलखा क यह सच है क समय पर काम नह ं हआ। इसके िलए ु

माूाथ हँू । यह तो

औपचा रकता हई। पर तु उ ह ने और िलखा क “मेरा वचन सच नह ं हआ ु ु , इसम भी कोई ई र योजना रह होगी। शायद म कथनानुसार करता हँू , ऐसा अहं कार मेरे मन

म िनमाण होने क संभावना परमे र को ूतीत हई ु होगी। इसिलए वह संभावना िनमूल करने के िलए यह लांछन परमे र अपयश क ओर इस

ारा मुझे दया गया होगा।” अपने कसी

से कतने नेता दे ख सकगे? जसे एक महान ् येय क

साधना करनी होती है उसको ःवाथ और अहं कार आ द अवगुण के िशकार होने से

अ य त सावधान रहना चा हए। वैसे ौी गु जी ःवयं सावधान थे और कायकताओं को- वशेषतः ूचारक को सावधान रखने का ूय

बैठक , चचाओं और ू ो र

कया करते थे। पऽ यवहार का भी उपयोग इस

से उ ह ने कया था।

ारा

२३.६ संघ नेत ृ व क अभंग धारा यह सच है क ौी गु जी

ारा संघ के यासपीठ पर से

यान-धारणा, य

गत

उपासना या धािमक कमका ड क बड़ाई नह ं क गई। पर तु यह भी सच है क रा ीय ःवयंसेवक संघ के काय को उ ह ने एक ऐसी ौे म दे खा जो मनुंय अपने को अपने य

और प रपूण साधना के

गत जीवन म भी सफलता क अंितम सीढ़

तक पहँु चा सकती है । उनका व ास था क जो शाखा का काम तन-मन-धनपूवक,

ःवतः को भूलकर करे गा उसे और अलग साधना करने क आवँयकता नह ं है । उनके मुख से सहज ःफूत उ -गार क “शाखा ह मेरा भगवान है ” दे वता के नाते मातृभिू म का उ ह ने कया हआ भावपूण वणन या सम ु िनः​ःवाथ भ

क उनके

प परमे र क िनंकाम और

ारा व णत म हमा ौवण करने पर तो यह क पना सहज

होती है क संघकाय और अ या म को उ ह ने कस ूकार एक प माना था। तृतीय सरसंघचालक ौी बालासाहब दे वरस के ितरोधान के प ात ् वचारवान

कहलानेवाले कुछ लोग ने यह मत ूदशन कया क संघ संःथापक डॉ. हे डगेवार, तीय सरसंघचालक ौी गु जी और तृतीय सरसंघचालक ौी बालासाहब दे वरस क

भूिमकाओं म अंतर था। डॉ टर जी का बल राजनीितक जागृित पर था तो ौी गु जी

३३२


ारा संघ के वचार को आ या मक रं ग दे ने का ूय

कया गया। ौी बालासाहब ने

सामा जक एकता, समरसता का आमह ऐ हक भूिमका पर से कया और उस दशा क ओर संगठन को मोड़ना चाहा। पर तु थोड़ा वचार कया तो दखाई दे गा क इस ूकार का ूितपादन वःतु ःथित के संपूणतः वपर त है । वःतु ःथित यह है क

संघकाय के राजनीितक, अ या मस और सामा जक आयाम संघ के ब कुल ूारं भ से ह अिभूेत थे और वगत ७४ वष म संघ उससे कभी भी वचिलत नह ं हआ है । ु ौी गु जी के बारे म वचार करने पर ऐसा दखाई दे ता है क उनम से कसी भी अंग क उ ह ने उपे ा नह ं क । १९४७ के पूव और बाद म भी ौी गु जी के सावजिनक भाषण म रा ीय नेताओं क राजनीितक नीितय क चचा हमेशा दखाई दे ती है । मु ःलम तु ीकरण, कँमीर का ू , ईशा य भारत का ईसाईकरण के ूय ,

रा यकताओं

ारा फूट डालने के ूयास का पोषण, वःथा पत क उपे ा, यु काल

क नीितयाँ, संिधयाँ और समझौते, मातृभिू म के ूित भ

भाव का अभाव, चा र य

ॅ ता, राजनीित क मू यह नता और असंःकृ तता आ द क उ ह ने हमेशा आलोचना क है । रा ीय एकता और एका मता पु

करने का ‘ ह द’ू वचार उ ह ने अ य त

ःप ता से ूितपा दत कया। रा ीय ःव व याने ह द ु व और ःवतंऽता और रा

िनमाण का मेल उ ह अ य त ूाण ूय लगता था। समय-समय पर उनके पऽकार या संघ के बाहर के नेताओं और कायकताओं से हए ु ू ो र पढ़ तो दखाई दे ता है क उ ह ने कतने ह राजनीितक ू

के िनभ क उ र दये ह। अ तरा ीय राजनीित

या आिथक समःयाओं के बारे म भी उ ह ने भांय कया है । वशेषतः डॉ. ँयामाूसाद मुखज ने संघानुकूल वचार के राजनीितक प

‘भारतीय

जनसंघ’ को ःथा पत करने का जब िन य कया तब संघ के कुछ अ य त गुणवान कायकता उ ह ने डॉ. ँयामाूसाद को दये। राजनीितक

ेऽ म भी रा वाद संघ

वचार का ूभाव िनणायक ःथित तक पहँु चना चा हए, यह उनक इ छा उ ह ने

िछपाकर नह ं रखी थी। पर तु उनका ऐसा िन

त मत था क केवल राजनीित के

मा यम से दे श खड़ा नह ं कया जा सकता। ह द ू रा

को अपने सांःकृ ितक वैभव के

साथ पुनः जगत ् के गु ःथान पर आ ढ़ होना हो तो जीवन के ू येक

ेऽ को ह द ू

जीवनमू य का आ वंकारक बनना होगा। सार नीितय और यवहार का समान

मू य के अिध ान पर पुनिनधारण होना चा हए। संघ क शाखाओं म जो संःकार दये जाते ह, उ ह ं संःकार से संपूण समाजजीवन ूभा वत होना चा हए।

३३३


सामा जक और सेवाकाय के अंग क उपे ा ौी गु जी ने ब कुल नह ं क । कतने ह

सामा जक वचार और काय को उ ह ने ूेरणा द । आज संघ क ूेरणा से जो अनेक सेवाकाय चलते ह, उनम से अिधकांश ौी गु जी के समय म ह उनक ूेरणा से ह ूारं भ हए ु ह। हम यह जानते ह क ौी गु जी ने व

भारतीय मजदरू संघ, वनवासी क याणाौम, कु

ह द ू प रष , व ािथ प रष ,

रोग िनवारण आ द कतनी ह

संःथाओं को ूेरणा द और उनका मागदशन कया। ये सारे काम आज बहत ु बढ़ गये

ह। उनका वःतार भी हो रहा है ।

अ या म, धम और संःकृ ित तो संघकाय के

येय का एक आवँयक अंग ब कुल

ूथम दन से ह रहा है । संघ क ूित ा और ूाथना दोन म ह इन उ ःप

का

ूित बंब अपने को दखाई दे ता है । ‘ वधायाःय धमःय संर णम ्’, ‘समु कष

िनःौेयःयैकमुमम ्’ ये ूाथना क ह पं

याँ ह। ूित ा म भी ‘ हं द ू धम, ह द ू

संःकृ ित और ह द ु समाज क र ा कर ह द ू रा

संक प ूथम था जसके ःथान पर ‘ हं द ु रा

को ःवात य ूा

करा दे ने का

का सवागीण वकास’ ये श द बाद म

आये। यह बात सबको व दत है । इन सब श द ूयोग का आशय है क संघ को दे श

का रा ीय ःवातं य तो अिभूेत था ह पर तु वह धम और संःकृ ित क र ा स हत

हो और ःवतंऽ दे श ‘परम वैभवशाली’ हो यह उसे अभी

था। सुसग ं ठत, समथ,

ःनेहपूण और प रौमशील समाजजीवन ह दे श को परम लैभवशाली बना सकता है । उसके िलए रा भ

क ूबल ूेरणा जागृत रहनी चा हए।

ता पय यह है क अमुक सरसंघचालक

ारा अमुक बात गौण मानी गयीं और अमुक

बात को आगे बढ़या गया यह सोचने क प ित ह समीचीन नह ं। राजनीितक, सामा जक और सांःकृ ितक तीन अंग से रा जीवन पु

करनेवाला संघ-काय ूारं भ से

ह रहा है और आज भी वैसा ह है ।

२३.७ कायम नता ह जीवन ौी गु जी क अखंड कायम नता, उनक ूस नता, चैत य और ह द ू समाज के ूित अथाह ूेम बहत ु बार चम का रक लगता है । इस चम कार का थोड़ा सा ःप ीकरण

एक बार ौी गु जी ने ह

दया। काशी क घटना है । वहाँ डॉ. पी. के. बैनज से ौी

गु जी ने दाँत िनकलवाए थे। उसके बाद डॉ. बैनज ने ौी गु जी को कुछ दन तक संपूण वौाम करने को कहा। ौी गु जी क दे खभाल कर रहे कायकताओं को भी उ ह ने सूचना द

क ौी गु जी को पूण वौा त िमले, इस ओर वे वशेष

यान द।

३३४


कायकताओं क भी मन से यह इ छा थी क ौी गु जी को पूण वौाम िमले। इसिलए उ ह ने दसरे दन से उनके सभी कायबम-बैठक, मेल-िमलाप, वातालाप ू आ द- बंद कर दये। कायकताओं ने ौी गु जी के पूण वौाम क प क

यवःथा

क , पर तु उसका प रणाम उ टा ह हआ। दनभर के वौाम से ौी गु जी को रा ऽ ु

को आराम आना तो दरू रहा, जोर क खाँसी आने लगी और खाँसते-खाँसते रा ऽ

बीती। भोर होते-होते तो यह पीड़ा बहत ु बढ़ गयी। आसपास के कायकता गण िचंितत हो उठे । खांसी क पीड़ा रोकने के िलए

था। होनेवाले क

या उपाय कया जाय यह उ ह सूझ नह ं रहा

भी उनसे दे खे नह ं जा रहे थे।

उनक अवःथा असहाय होकर दे खनेवाले कायकताओं को ौी गु जी ने कहा, “तुम सब लोग क जो इ छा है उसका पालन म कर रहा हँू ।” ःवयंसेवक कुछ समझ नह ं

पाये। उ ह

आँसी आ गयी। तब ौी गु जी ने ह कहा, “आपको मालूम नह ं, यह

शर र तो कभी का समा

हो चुका है । इस ःथूल शर र म रोग के अलावा अ य कुछ

भी नह ं है । संघकाय बढ़ने क तीो इ छा और काय का संक प, रात- दन ःवयंसेवक से और कायकताओं से काय के वषय म बातचीत व कायबम म सहभागी होना ह मेरा जीवन है । कायबम ह जीवन हो गया है । इस ूकार क

दनचया ने ह मेरा यह

पािथव शर र एकऽ बांध रखा है । पर तु चूँ क अब आपने मेरे ूित अपने ूेम के

खाितर

य न हो- सब कायबम बंद कर दये ह, कायकताओं से भट और उनसे

वातालाप रोक दया है तो शर र अपनी ःवाभा वक रोगजजर अवःथा क और लौट रहा है । य द मेरा ःवाः य आप चाहते ह तो ऐसी यवःथा कर क मेर ःवाभा वक दनचया पुन

शु

हो जाय।”

सब लोग ःत ध होकर सुन रहे थे। ौी गु जी सब के

ारा कया गया यह रहःयो -घाटन

दय को छू गया। ौी गु जी को आराम दे ने के िलए

या करना चा हए यह

ात हो गया था। तुर त सब िनब ध दरू कर दये गये। ःवयंसेवक और कायकता

पहले जैसे िमलने के िलए आने लगे। बैठक म रं ग भरने लगा। ौी गु जी ःवयं हं सने लगे और दसर को हँ साने लगे। खाँसी कहाँ गायब हो गयी इसका पता भी नह ं चला। ू

२३.८ वळाद प कठोरा ण मृदिन ू कुसुमाद प तुकाराम महाराज ने वंणुदास का याने ई रचरण म संपूणतः शरणागत हए ु भ

का एक वशेष गुण बतलाते हए ु कहा है , “मोम से मुलायम हम वंणुदास क ठन वळ

३३५


को भेद सक।” ौी गु जी के जीवन म यह गुण सदै व ूगट हआ है । ौी गु जी क ु

माताजी ताई बतलाती थीं, “मधु ूाथिमक चौथी क ा म पढ़ता था तब “केवढ़े बौय हे ।” ( कतनी बूरता है यह) क वता उसके पढ़ने म आयी। िशकार प

ारा व

क हई ु

णी का, “ णो णी उठे प र पड़े बापुड़ ” (बार-बार उठती है पर तु बेचार िगर

पड़ती है ) इस ूकार अ य त क णाजनक वणन कया गया था वह पढ़ते समय मधु के नेऽ से अ वरल अौुधारा बहने लगती। इतना कोमल उसका अंतःकरण था।” पर तु १९४२ म उ ह ने गुहार लगायी क संघ के काम के िलए घर-बार छोड़कर ूचारक के

नाते बाहर िनकल पड़ो। उसी वष संघ िश ा वग म बोलते समय ौी गु जी भी अ यंत कठोरता से बोले क “आय हॅ व कम हु टे क िच से न ृॉम द लॅ स ऑफ दे अर मदस।” उसका आशय यह था क माता- पता का मोह

याग कर पुऽ को संघकाय म

अपने आपको झ क दे ना चा हए। वे घर- ार छोड़ कर दे श के विभ न भाग म जाय इसके िलए म उ ह ूवृ

करता हँू । इस ूकार बाहर िनकले हए ु कुछ पुऽ क माताएँ

रोयीं, ौी गु जी के पास अपने पुऽ क आंचल फैलाकर भीख माँगी। पर तु, “बाबा रे

घर लौट जाओ” ऐसा उ ह ने कसी को नह ं कहा। अपने बारे म भी वे ऐसे ह कठोर थे। वे अपना मन

ढ़ कर

णश यामःत माता को छोड़कर संघकाय के िलए ूवास

पर जाते थे। ई र पर उ ह ने सब कुछ स प दया था। पर तु अंतःकरण का कोमल भाव अ य के क

दे खकर जागृत हो जाता था।

रा िनमाण का काम मूलतः मनुंय को जुटाने, उ ह अनुशािसत करने, संःकार के साँचे म ढ़ालने तथा रा हत के िलए उ ह ूवृ

करने का काम है । इस काय को

करते समय ता कािलक लाभ तथा सःती या सामा य लोकेषणा के पीछे भागम ्-भाग करने का मोह हम टालना पड़ता है । संघ एकामता से

येय साधना कर सके इसी

कारण ौी गु जी ने उसे स ा क राजनीित से दरू रखा। उसी तरह ूलोभनकार आंदोलन क राजनीित से भी अिल

रखा। ौी गु जी के जीवन-काल म संघ के

ारा

दो ह आंदोलन छे ड़े गये थे। ूितबंध के काल म स यामह का और १९५२ म गोह या िनरोध का। इनके अित र

बाक काय म ःवयंसेवक ने समाज के नाग रक के नाते

भाग िलया था। वैसा करते समय न तो उ ह ने संःथा का अिभिनवेश रखा और न ह कसी ौेय क कामना क ।

२३.९ िन य-िनयिमत संःकार पर जोर ता कािलक उ ेजना से संगठना मक काय सफल नह ं हो सकता समा

होते ह काय के ूय

य क उ ेजना के

म िशिथलता पहले से कह ं अिधक आ जाती है । काय

३३६


क ओर से

यान उचट जाता है और मन म वक प आने लगते ह। इसिलए जो

रा िनमाता या ‘नेशन ब डर’ होता है उसे दरू

से सोचने क आवँयकता होती है ।

नैिम क काम के कारण िन य के काम को हािन न पहँु चे, उसका मह व गौण न हो, इसके िलए सतकता बरतना आवँयक रहता है । संघ का पोषण और संवधन करते

समय डॉ टर जी ने यह सावधानी बरती थी और ौी गु जी ने उ ह ं पदिच ह पर चलते हए ु संघ के पौधे को वटवृ उसम िम हत

क महानता ूदान क । मनुंय को ढालते समय

मता को धीरे -धीरे बढ़ना पड़ता है इसे वे जानते थे। वे ःवयंसेवक को

बताया करते थे क उ साह व जोश म एकदम बहत ु बड़े काय कर दखाने क भाषा यथ है । उसी ूकार समय आने पर हम यह कर दखाएंगे यह उ

भी खोखली ह

होती है । सवूथम हम छोट -छोट और साधारण बात को ठ क ढं ग से करने क आदत डाल। शार रक िश ा दे नेवाले कायकताओं से ौी गु जी ने कहा था क ू येक ःवयंसेवक ‘द ’, ‘आरम’ और ‘ःवःथ’ इन आ ाओं का सह ढं ग से पालन कर रहा है स ऐसी ःथित य द वषभर म िनमाण हो सक तो उनके िलए बड़ उपल ध होगी। ौी गु जी हर बात क ओर बहुत बार क से

यान दे ते थे। समय का बंधन, भोजन करते समय

थाली म शेष कुछ न रहे , साफ सुथरा भारतीय पोशाक, ूित दन संघ क ूाथना करना, िनयो जत समय पर भाषण समा कर ूणाम करना, ूा

करना, स पु ष और बुजग ु को चरण ःपश

पऽ के उ र अ वलंब दे ना आ द िन यजीवन क साधारण

दखनेवाली बात . द हम सुचा

प से, िन ा से आचरण म लाव तो इ ह ं छोट

बात म भ वंय के बड़े काय क सफलता के बीज हम दखाई दगे, ऐसा उनका मानना था। इ ह ं िनयम के पोषण से आदर भाव तथा श द म ूभाव उ प न हो सकता है । ौी गु जी ने इन सभी िनयम का

था यह हम जानते ह। बड़

ढ़ता से पालन कर अपने य

व को उ नत बनाया

ज मेदा रयाँ हमेशा नह ं िनभानी पड़तीं। कभी कभार ऐसे

ूसंग आते ह। क तु उ ह ठ क ढं ग से िनभाने क तैयार िन यकाय क आदत या अ यास से होती रहती है । िन य के अ यास से ूा

मता और श

अचानक बड़ा

काय सामने आने पर कम नह ं पड़ती। ौी गु जी इस आचार-सं हता के बारे म बहत ु

आमह भूिमका रखा करते थे। उनका य

गत जीवन इस आदश का दपण है , ऐसा

कहना ह उिचत होगा ! समथ रामदास ःवामी ने, जो छऽपित िशवाजी महाराज के

गु

थे, कहा है , ‘जो जैसा बोलता है वैसा ह य द आचरण करता है तो उसी के श द

को समाज म मा यता ूा

होती है ’। अथात ् ‘कथनी और करनी’ म जब एक पता

३३७


ूगट होती है , उनम अंतर दशानेवाली रे खा भी दखाई नह ं दे ती तब समाज के िलए वह य

आदरणीय बन जाती है ।

२३.१० जग मऽ ौी गु जी क इस तरह क िनमल, ःनेहभर

वशाल जीवन

होने से चार ओर क

प र ःथित और मनुंयमाऽ म जो कुछ उ ह समाज हत क

से अ छा लगा उसे

आ मसात ् करते गए। इसके िलए वे सदा ह त पर रहा करते थे। कसी विश

मनुंय के गुण के बारे म उनका भांय बहत ु ह मममाह रहा करता था। आ य क

बात यह है क कसी महापु ष के अनुयायी भी इतनी मािमकता से अपने मागदशक के गुण को नह ं जानते ह गे। महा मा गांधी जी का ह उदाहरण ली जए। गांधीजी से ौी गु जी अनेक बार िमले थे। दे श वभाजन के भयानक वातावरण म ःवयंसेवक के सामने महा मा गांधीजी का भाषण भी हआ था। एक बार ूाथना समा ु

होने के

प ात गांधीजी ने ौी गु जी का सराहना करनेवाले श द म उ लेख कया था। ौी गु जी को गांधीजी के गुण क अ छ जानकार थी। राजनीित के मंच से ूचार करनेवाले रहा करते थे क संघ गांधीजी का

े ष करता है । १९४८ म तो गांधीजी ह या

के ष यंऽ म संघ के शािमल होने के आरोप म ौी गु जी को बंद बना िलया गया था। अ त म सरकार को यह आरोप वापस लेना पड़ा था। आ हे डगेवार जी के मन म गांधीजी के ूित कोई ूितकूल या गांधी

सरसंघचालक डॉ.

े ष भाव नह ं था महा मा

ारा ूे रत आंदोलन म वे दो बार भाग ले चुके थे। खलाफत आंदोलन के संबध ं

म मतभेद अवँय थे। महा मा गांधी तथा पं. नेह

के मु ःलम तु ीकरण क नीित

ौी गु जी को भी पसंद नह ं थी। ौी गु जी ने इन गलत नीितय का ूगट

प से

कड़ा वरोध अवँय कया क तु महा मा गांधी म िन हत लोको र गुण क ूशंसा भी क ।

२३.११ गांधी जी का ौ ापूवक ःमरण गांधी जी के ज मशता द वष १९६९ म ौी गु जी ने रा िनमाण एवं ःवातं य आ दोलन म गांधी जी के महती योगदान का ौ ापूवक ःमरण कया। नागपुर से

ू ूकािशत होने वाली ‘युगवाणी’ नाम क मराठ मािसक प ऽका के अ टबर १९६९ के

संक म ौी गु जी ने िलखा, ‘इन पचास पचह र वष म अपने दे श म जो ौे वभूितयाँ हई ु ह और जनका यावाहा रक राजनीितक

ेऽ म जनमानस पर बहत ु

अिधक ूभाव पड़ा है उनम महा मा गांधी अमणी थे, इस स य को कोई अःवीकार

३३८


नह ं कर सकता। उनका बहु वध य

व था। उनके जीवन के धािमक, सामा जक,

आिथक आ द विभ न पहलू उनके असाधारण व को ःप

प से ूकट करते ह।

साधारण जनमानस पर उनके समान कसी अ य क पकड़ नह ं थी।’ इसी लेख म ौी गु जी ने आगे कहा, ‘उनक

ह द ू धम पर ौ ा थी। ह द ू जीवन म मान ब द ु

गोवंश का संर ण तथा उसक ह या सवथा ब द हो, इसिलए अपना शासन ूभावी कानून बनाए, इसके िलए उ ह ने ूयास कया। अपने अःपृँय रहे गए उपे

बांधव को स मान का ःथान दलाने के िलए उनक आिथक, सामा जक, शै आ द सब

से उ नित करने का उ ह ने ूय

कया। अिश

णक

त, सरल और

आिथक क ठनाइय म जीवन बतानेवाले वनवासी, दिलत बांधव को परधिमय धमॅ

ारा

कये जाने के काय का तीो िनषेध कया समाज को सु यव ःथत, संयिमत

और सुसः ं कृ त जीवन से वमुख कर समाजवाद, सा यवाद औ द नाम से केवल भौितकता का ूचार करनेवाले वचार एवं कायप ितय का उ ह ने ःप

वरोध ूकट

कया। उनके इन गुण के कारण जनमानस म उनके स ब ध म अपार ूीित व ौ ा

बनी रहे गी व रहनी चा हए।’ इसी अवसर पर ८ नव बर १९५९ को बंगलूर क रा ो थान सा ह य

ारा पु ःतका के

प म ूकािशत एक अंमेजी लेख म ौी गु जी ने गांधीजी के ूित ौ ांजिल अ पत

करते हए ु कहा क वे एक सामा य मनुंय क तरह धरती पर ज मे पर अपनी कठोर

जीवन साधना एवं सबके ूित असीम ूेम भाव के कारण महानता के िशखर पर पहँु च

गये। सह अथ म महा मा बन गये।... िनधन और दिलत के ूित क णा भाव का उदाहरण ूःतुत करते हए ु उ ह ने ःवयं खाद का एक व

पहना।... नैितक मू य और ौे

ह अपने शर र पर

च रऽ के वे मूित मंत ूतीक थे। ... उ ह ने ह द ू

दशन के आ मसंयम त व का ःवयं आचरण कया और अ य को भी उस राःते पर चलाने क कोिशस क । ... स पूण मानवता के िलए ूेमभाव रखते हए ु भी उ ह ने मातृभिू म ती ःवतंऽता के िलए संघष और

याग क भावना जगाई, दे शवािसय को

आ म व ास और ःवािभमान का मंऽ िसखाया। महारा

म सांगली जला महा मा गांधी ज मशता द सिमित के मंच से कांमेसी

कायकता ौी घ ड राम ना पा टल क अ य ता म आयो जत समारोह म गांधीजी क ूितमा को पुंपमाला और ूणाम अ पत करने के बाद ौी गु जी ने कहा, ‘हमारे यहाँ

ल बे समय से ूातः​ःमरण करने क ूथा चली आ रह है । इसम हम िन य

ूातःकाल अपने दे श के प वऽ ःथल और महापु ष का ःमरण करते ह। ूातः​ःमरण म नये नाम का समावेश करने का काय शता दय से ब द पड़ा हआ था। संघ ने ु इस काय को फर से शु

करने का बीड़ा उठाया और आज पय तसभी महान ् य

३३९


का समावेश कर ‘भारत भ य

ःतोऽ’ तैयार कया है । इसम ूातः​ःमरणीय व दनीय

य क सूची म गांधीजी का नाम भी आदरपुवक स मिलत कया गया है ।’

न केवल गांधीजी अ पतु अपने समकालीन नेताओं के बारे म ौी गु जी ने ूसंगोिचत गौरवपूण उ लेख कया है । ौ ांजिल सभाओं म मृत नेता के बारे म भाषण दे ते हए ु या लेख िलखते समय ःवगःथ नेता म िन हत गुण क सराहना करने का उनका

ःवाभा वक धम था। उदाहरण के तौर पर कुछ नाम का उ लेख कया जा सकता है ।

डॉ. राजे ि ूसाद, सरदार पटे ल, पं. नेह , ःवा. सावरकर, डॉ. ँयामाूसाद मुखज , पं. द नदयाल उपा याय, पं. सातवलेकर, ौी लालबहादरु शा ी, ौी हनुमानूसाद

पो ार, चबवत राजगोपालाचार आ द। इन नेताओं और संघ के दवंगत कायकताओं के बारे म ौी गु जी ने अपने

दय क भावनाएँ य

क ह। उनके कथन और पऽ

या लेख के सृजन म मूलामाह गुणा वेषण का ह प रचय िमलता है । ौी गु जी अपने ःवतः क यो यता के संबंध म सदा ह मौन रहते क तु अ य के गुण का बखान करने म वे मुखर रहा करते। इसी म उनक महानता थी। संघकाय का ौेय वे अपने कायकताओं क झोली म डाल दे ते थे। ‘म नह ं, तू ह ’ का भाव वे जीते थे। ःवयंसेवक व ह उनका भूषण था। अपने सहका रय के साथ वे ूेम और आदर क

भावना रखते थे। दे श भर म फैले कायकताओं, संघसंचालक , ूचारक , ःवयंसेवक को एक ट म के

प म स हालना कोई सामा य बात नह ं है । अपने ःनेहभरे

और संपक से ौी गु जी ने इस असामा य काय को कर दखाया। इतना अनुपमेय गुण-स मु चय होते हए भी न कोई अहं कार, न आस

२३.१२ बहमु ु खी ूितभा ौी गु जी क बु म ा का उ लेख इसके पूव आ चुका है । उनका अथाह अचंिभत करनेवाला था। अन त वषय का अ याधुिनक

ान सबको

ान उ ह था। ौी गु जी

शा ीय संगीत के अ छे जानकार था। घोष (बै ड) वभाग के वा वृद ं के िलए शा ीय संगीत क रागदार पर विभ न रचनाओं का सृजन हआ तब ौी गु जी ने बहत ु ु

बार क से जो सुझाव दये उ ह सुनकर तो सभी दं ग रह गए थे। मंथ का

ान ठ क

है क तु संगीत म भी ौी गु जी क ूितभा का आ वंकार दे खकर आ य वभोर होना ःवाभा वक ह था। उनके पऽलेखन म बहमु ु खी ूितभा और बु म ा का हम प रचय

िमलता है । कसी भी वषय पर जब वे अपना मत ूदशन करते तब वह मौिलक रहा करता। बना शा ीय आधार के वे कसी बात को मा यता भी नह ं दे ते। ौी गु जी क ःमरण श

, ूा

त य को

दयंगम करने क

मता, ूितपादन करते समय

३४०


अनेकानेक मंथ से उ -घृत करने क ूितभा तथा शैली बहत ु ह ूभावशाली थी। ूजनन शा

और ‘सायबरनै ट स’,

पयावरण शा

योितष और खगोल शा , भूगभ शा

और

(इकालाजी), अंतराल तथा अणु व ान, आयुवद, होिमओपैथी तथा

एलोपैथी इन व वध वषय के साथ योगा द शा

म तो वे पारं गत थे ह । शायद ह

ू एकाध वषय अछता रह गया हो, क तु मानव जीवन से संबंिधत लगभग सभी

वषय म उनक गित थी। कुछ लोग क यह धारणा थी क ौी गु जी को केवल

संघ, धम तथा संःकृ ित का ह समाज-शा

के

ान है । क तु चचा के समय जब वे व ान और

ान का सा ा कार कराते तब इन वषय के

ानी पं डत भी

भ च के रह जाते थे। क तु वनोद म ौी गु जी कहा करते- आ खर म एक वक ल हँू । जैसे वक ल कसी भी वषय पर उसका पूरा

वैसा ह म भी करता हँू ।

विभ न शा ीय शाखाओं के बारे म उनका

ान न होते हए ु भी तक दे सकता है

ान कतना अथाह और अ ावत था यह

दशानेवाला जो संःमरण वतमान सरसंघचालक मा. र जू भ या ने बताया, वह बहत ु

उ -बोधक है । एक बार इलाहाबाद व िलए विभ न

व ालय म ौी गु जी के एक कायबम के

ान शाखाओं के व ान ् ूा यापक को िनमं ऽत कया गया था। एक-

एक टे बल को घेरकर एक-एक फेक ट के ूा यापक बैठकर थोड़ा समय ौी गु जी से बातचीत कर ऐसी योजना थी। उसके अनुसार कायबम स प न हआ। उसके प ात ् ु ौी गु जी ने एम.एस.सी. उपािध कस सब ूा यापक म चचा शु

ान शाखा म ूा

हो गयी। ू येक

वे उनके ह ‘फेक ट ’ के होने चा हए

क होगी इस वषय म

ान शाखा के ूा यापक कहने लगे क

य क चचा म ू येक शा

म ौी गु जी क

अिभ ता दखाई द थी। ब कुल आधुिनकतम म थ और िस ा त के संबंध म उ ह ने चचा क थी। अंत म जब उ ह अिधकृ त

प से बताया गया क ूा णशा

उनका वषय था तब सबको बहत इसी तरह का अनुभव कतने ह ु अचंभा हआ। ु

वषय के संबंध म उनसे बातचीत करते समय अनेक को आता था। फर चचा

िच क सा शा

क हो, वंश शा

क हो या मंऽ शा

क।

वै ािनक ूगित क मह ा और आवँयकता का स यक्

ान होते हए भी ौी गु जी

का मानना था क व ान को धमानुकुल ह होना चा हए. धम से ःवतः को समायो जत कर लेना चा हए

य क धम के आधारभूत िस ांत ह शा त होते ह।

वै ािनक अनुसध ं ान के िनयम-िनंकष बदलते रहते ह। व ान मानव को भौितक सुख साधन ूदान कर सकता है । मनुंय उनका उपयोग सुख ूाि

के िलए अवँय

करे क तु व ान के साथ धम भी बदलना चा हए यह अपे ा गलत है । धमूवण जीवन ह वाःत वक मनुंय जीवन है । धम और मो

क मयादाओं म अथ और काम ३४१


के पु षाथ तृ

होने पर ह समाज सु ःथर, संप न और सुखी होता है । चतु वध

पु षाथ पर आधा रत ‘संपूण मानव ’ का वचार ह इस आधुिनक जगत ् को भारत क मौिलक दे न है । वतमान समःयामःत संसार म यह वचार ूःतुत करने क ूथम संपादन कर। इस तरह एक भ य

मता

येयदशन ौी गु जी ने लआय के नाते अपने

सामने रखा था। ौी गु जी के सवःपश , सवगामी, बहमु ु खी, अथाह और असीम

अ ययन और ई रद

ूितभा का समःत वलास भौितक सुखवाद के िलए नह ं

अ पतु ह द ू जीवनादश क इस

यावहा रक पु

के िलए था।

से समाज म वातावरण िनिमत करने के उ े ँय से ौी गु जी अनेक मनुंय

और संःथाओं को संपक

ारा िनकट लाए। अनेक को उनके गुण और पाऽता क

परखकर समाजकाय के िलए ूवृ

कया। ःव. महामहोपा याय बालशा ी हरदास, जो

रामायण, महाभारत और अ य पौरा णक मंथ के ूकांड पं डत और महान ् व ा था,

या यान माला, पुणे के ौी व नाथ नरवणे का कोष काय, डॉ. ौी. भा. वणकर

का संःकृ त भाषा ूचार का उपबम, ौी. हनुमान ूसाद जी पो ार क ‘गीता ूेस’

ारा

धमसेवा, ौी. सुधीर फडके. एक व यात संगीतकार और गीतरामायण के गायक क संगीत साधना, ौी. गो नी. दांडेकर का लिलत सा ह य लेखन, ौी अमरे ि गाडगील का सांःकृ ितक ूकाशन काय, चाँपा के महारोग कु धाम क

ण सेवा, ःथान-ःथान

पर कायरत संःकार म िश ा संःथाएँ इन सब क यश ःवता क जड़ म ौी गु जी का ूो साहन, मागदशन और दशादशन तथा संपूण सहायता का हाथ था। संघकाय करते-करते उसक समांतर रे खा म संघ के िलए पोषक य

-संमह और

मता ूा

लोग को बढ़वा दे ने का काय, जो ौी गु जी ने कर दखाया, उसे असाधारण ह मानना होगा। द ली के द नदयाल शोध संःथान का काय, ूाकृ ितक और मानव िनिमत आपदाओं के समय सहायताथ ःथा पत व वध संःथाएं, सिमितयाँ और ूित ान, उसी तरह

योगी अर वंद तथा ःवामी ववेकानंद क ज मशता दय के काम क ूेरक श

ौी

गु जी ह थे। डॉ. मुज ं े ःमारक सिमित का काम तो उ ह ं के नेत ृ व म हआ था। ु सांःकृ ितक पुन

थान का वचार और उसका ूसार- इनका लाभकार मेल उ ह ने

बैठाया था।

३४२


२३.१३ मूल काय पर एकाम संघ का काय रा वृ

क जड़ को पानी से िसंिचत करने का मौिलक काय है ।

संःथा मक या आंदोलना मक काम के कारण संघकाय क उपे ा हो, यह बात उ ह

पसंद नह ं थी। एक-एक वषय लेकर काम करनेवाल को ौी गु जी ने अवँय

ूो साहन दया, परं तु समाज म उप ःथत अनेक वध समःयाओं का िनराकरण करने क उनक भूिमका

या थी यह एक संःकृ त ूेमी कायकता को िलखे पऽ म ःप

होती है । ौी गु जी िलखते ह, “आज के वातावरण म आधुिनकता और ूगितशीलता क मृग मार िचका म पड़कर यहाँ क प वऽ भावनाओं का िनमूलन करने म सब

नेतागण परमपु षाथ का अनुभव करते ह। ऐसे समय पढ़ने-पढ़ाने के संबंध म जो शासक य नीित दखाई दे ती है वह तो अपे

त ह है । इसम य द प रवतन लाना हो

तो एक-एक वषय लेकर आंदोलन करने से वह संभव होगा या नह ं इसका वचार करना होगा। स य तो यह है क, ‘मूले कुठारः’ प से फैले हए ु अरा ीय, परमुखापे ी ूवृ

वशु , रा भ

ूवाह शु

पूण सुसग ं ठत श

करने क ओर

याय के अनुसार जीवन म यापक

को जड़मूल समेत न कर, जनसाधारण

खड़ करना, और उसके

ारा जीवन के सब

यान दे ना आवँयक है । जड़-मूल को िसंिचत करने से

शाखा-प लव क र ा होती है , उनका भरण-पोषण होता है । जन सामा य क भावनाशु

तथा संग ठत, प रणामकारक ःथित सब समःयाओं का समाधान करने

म समथ हो सकेगी। तब तक पृथक् हमारा लआय मूल ूेरणा

ोत, श

प से ूय

होते रहना आवँयक है । क तु

के मूल अिध ान क ओर ह रहे ।” इस पऽ म

ौी गु जी ने जीवन भर कए गए भगीरथ ूय

के संबंध म दशा दशन ह

कया

है । यह उनका जीवनसंदेश है । प रवतन के ूसादिच ह

गोचर हो रहे ह। आज नह ं तो कल इ

प रवतन होता

हआ अवँय दखाई दे गा। इस प रवतन के िलए ूेरक हई ु ु एक अद य ऋ षश

के

नाते ौी गु जी क यो यता, महानता कृ त तापूवक सव मा य होगी।

*

३४३


परम पूजनीय ौी गु जी का जीवनपट १९०६

द.१९ फरवर (सोमवार माघ व

११ शक १८२७) ूातः ४-३४

को नागपुर म ज म। १९१५

ूाथिमक चौथी क पर

ा उ ीण। नमदा वभाग से

(ःवातं यपूव म य ूदे श) ूथम बमांक। छाऽवृ १९२४

संपादन।

इं टरिम जएट पर

ा उ ीण। अंमेजी वषय म ूथम पा रतो षक।

बनारस ह द ू व

व ालय म ूवेश।

१९२६

बी.एस-सी. उ ण।

१९२८

एम.एस-सी. उ ण।

१९२९

मिास के म ःयालय म अनुसध ं ान।

१९३१

संघ ूवेश।

१९३०-३३

बनारस ह द ू व

१९३३

जून नागपुर म कानून क अ ययन।

१९३४

नागपुर क तुलसीबाग संघशाखा के कायवाह पद पर िनयु

व ालय म ूा यापक।

संघ काय के िलए कुछ समय मुब ं ई म वाःत य। अकोला

( वदभ) संघ िश ा वग म सवािधकार । १९३५ १९३६ १९३७

एल.एल.बी. उ ीण। दवाली के पूव सारगाछ (बंगाल) को ूःथान। रामकृ ंण संघ के अ य

ौी अख डानंद के सा न य म।

द. १३ जनवर मकर संबमण पव के दन द

ा-महण।

द. ७ फरवर को ौी अखंडानंद जी का महािनवाण। माच के अंत म नागपुर पुनरागमन। १९३८

नागपुर के संघ िश ा वग के सवािधकार ।

१९३९

फरवर के अंत म िसंद (वधा जला वदभ ूदे श) म कायकताओं के बैठक म उप ःथत। द. २२ माच को संघकाय के िलए कलक ा ूःथान। वषूितपदा पर संघशाखा का शुभार भ।

३४४


नागपुर संघ िश ा वग के सवािधकार । द. १३ अगःत को र ाब धन पर सरकायवाह पद पर िनयु १९४०

द. २१ जन. पू. डॉ टर हे डगेवार जी क मृ यु। द. ३ जुलाई सरसंघचालक पद पर िनयु द. २१ जुलाई मािसक ौा

दन पर अ खल भारतीय कायकता

स मेलन। द. ४ अगःत संघ के गणवेष, संचालन आ द कायबम पर शासक य आदे श से ूितबंध। १९४२-४७

संघकाय क

यापक वृ ।

१९४६

रावल पंड , झेलम (पंजाब) तथा पेशावर (सीमा ूांत) म भ य सावजिनक कायबम।

१९४७

माच म पंजाब ूांत म वःतृत ूवास। ‘पंजाब रलीफ कमेट ’ क ःथापना। तीन हजार सहायता िश वर का यवःथापन। द. ५-८ अगःत है दराबाद तथा करांची (िसंध ूांत) म भ य कायबम। द. १५ अगःत ःवातं य ूाि । द. १२ िसतंबर गृहमंऽी सरदार पटे ल और महा मा गांधी से भट। ू द. १७-१९ अ टबर ौीनगर (कँमीर) म महाराजा ह रिसंह से भट। ूधानमंऽी नेह

१९४८

से भट।

द. १ फरवर को नागपुर म िगर तार । द. ४ फरवर शासन

ारा संघ पर ूितबंध।

द. ५ फरवर संघ का वसजन। हजार कायकताओं क िगर तार । द. ६ अगःत कारागृह से मु

ू द. १७ अ टबर द ली को ूयाण। द. १२ नव बर को सरकायवाह मा. भ याजी दाणी के आदे श ३४५


से संघकाय ूारं भ करने क

से िल खत आ -वान, द ली

म पुनः िगर तार । द. १४ नव बर को द ली से नागपुर कारागृह म लाया गया। बाद म िसवनी कारागृह म रखा गया। द. ९ दस बर मा. भ याजी दाणी के नेत ृ व म संघ-शाखा ूारं भ कर दे शभर म स यामह। १९४९

द. २१ जनवर स यामह ःथिगत। ौी ग. व. केतकर और ट .आर.वी. शा ी

ारा म यःथता।

द. १२ जुलाई संघ पर से ूितबंध हटा। द. १३ जुलाई बैतूल कारागृह से बना शत मु

, नागपुर

आगमन। द. १९ जुलाई ौी ट .आर.वी. शा ी से भट करने मिास को ूःथान। दे श यापी ूवास ूारं भ। बंबई म सरदार पटे ल से भट। द. २१ अगःत द ली म अभूतपूव ःवागत। १९५०

द. ८ फरवर कलक ा म ‘वाःतुहारा सिमित’ क ःथापना। द. ११ अगःत असम के भूकंप पी ड़त क सहायाथ सेवाकाय का ूारं भ।

१९५१ १९५२

बहार म ‘अकालमःत सहायता सिमित’ क ःथापना। गोह या िनरोध आ दोलन। द. ७ दस बर लगभग २ करोड़ हःता र का िनवेदन रा पित डॉ. राजे ि ूसाद को सम पत।

१९५४

माच-अूैल िसंद (वधा जले) म लगऊग २५० ूमुख ूचारक क ूद घ बैठक। द. २१ जुलाई पताजी का िनधन।

१९५६

इ यावनवीं वषगांठ, दे शभर म समारोह।

१९६०

माच इं दौर म अ खल भारतीय कायकताओं क बैठक।

१९६२

द. ९ अूैल वष ूितपदा पर नागपुर म रे शीमबाग म ःमृित मं दर का उ -घाटन, ःवयंसेवक का अ खल भारतीय भ य स मेलन।

३४६


१९६२

द. १२ अगःत माता क मृ यु। ववेकानंद ज मशता द समारोह। ववेकानंद िशला ःमारक सिमित क ःथापना।

१९६४

कृ ंण ज मा मी पर मुब ं ई के सांद पनी आौम म ‘ व प रष ’ क ःथापना।

१९६५ १९६६

ह दू

द. ६ िसत बर भारत-पाक यु । ूधानमंऽी ौी लालबहादरु

शा ी

ारा आमं ऽत रा ीय नेताओं क बैठक म योगदान।

द. २२, २३, २४ जनवर ूयाग म व

ह द ू प रष

जागितक स मेलन।

१९६७

िसत बर ॄ कपाल म पूवज तथा ःव ौा

१९७०

द. १ जुलाई मुब ं ई म कसर का ऑपरे शन।

का

विध।

द. २२ जुलाई को अःपताल से वा पस। १९७१

ू द. २९ अ टबर से २ नव बर तक ठाणे म भारत के लगभग ४५० कायकताओं क बैठक। द. १९ दस बर जनरल क रअ पा

ारा नागपुर म डॉ. मु जे

क ूितमा का अनावरण। १९७२

द. २० अगःत को द ली म “द नदयाल शोध संःथान” का उ -घाटन।

१९७३

द. ४ फरवर बंगलौर म अंितम सावजिनक कायबम। द. १४ माच ूवास पूण कर नागपुर वा पस। द. २४-२५ माच नागपुर म अ खल भारतीय ूितिनिध सभा क बैठक। ‘ वजय ह

वजय है ’ यह अंितम भाषण।

द. २ अूैल आगामी यवःथा के संबंध म तीन पऽ िलखकर सीलबंद कर रखे। द. १९ से ३१ मई तक संघ िश ा वग के िश ािथय के साथ गटशः वातालाप। द. ५ जून रा ऽ ९.०५ पर महािनवाण। द. ६ जून सायंकाल रे शीमबाग म अ

य संःकार।

३४७


ौी गु जी क ज मप ऽका

३४८


२४ प रिश -१ प.पू. ौी गु जी का संघ काय हे तु समपण और तदनु प समाज के य अथवा य “ॄ

-समूह के ूित अपार ःनेह स हत तादा

प दे ख फर हं , के ह सन कर हं वरोध ” वाली उ

इस ौे

- य

य इतना प रपूण था क

पूणतः च रताथ होती थी।

दाशिनक धरातल क िश ा हर छोटे -बड़े ूसंग म उनसे िमलती रहती थी।

ऐसा ह एक सुअवसर आगनाइजर के यशःवी स पादक ौी केवलरामानी मलकानी को ूा

हआ। ौी गु जी को कुछ मु ःलम समाचारपऽ ने “काला नाग” कहकर िच ऽत ु

कया था। ौी मलकानी ने इस पर रोषपूण ट पणी िल ख थी। आगनाइजर म छपी

वह ट पणी ौी गु जी ने पढ़ और पूरे दाशिनक स दभ म नाग महा

य ह बताते

हए ु उ ह ने मु ःलम समाचारपऽ पर ःनेह क वषा क और उ ह भारत क सनातन

एकता के पूजक के

प म वकिसत होने का माग िन निल खत पऽ म दखाया है ।

दनांक १८-११-१९६९ ूय मलकानी जी, आपके “आगनाइजर” के नवीनतम अंक (१६ नव बर, १९६९) म यह पढ़कर मुझे सुखद आ य हआ क कुछ मु ःलम समाचार पऽ ने मुझे “काले नाग” क सं ा से वभू षत ु कया है । लगता है क आप मेरे िलए ूयु

कोई कारण नह ं दखता।

इस वशेषण के कारण दःखी ह। इसका ु

हमारे दशन और धम म नाग को अ य त पू य माना गया है । भगवान िशव अ य त वषधर नाग से अपने आपको वभू षत कये हए ु ह। जग जननी माँ भगवती नाग को जनेऊ के

“नागय ोपवीितनी” भी है ।

प म धारण क हई ु ह और इस कारण उनका एक नाम

ान और ववेक के दाता भगवान गणेश का तो उसके

बना काम ह नह ं चलता और जगत ् के पालनहार भगवान वंणु तो आ दशेष क

गोद म ह के

प म सु

वौाम पाते ह। योग म कु डिलनी को, जो ू येक य

म वरा

पड़ रहती है , कु डली सारे नाग क ह उपमा द गई है जो यम-

िनयम और यो य साधना के

ारा जागृत होकर मे द ड के माग से ऊपर उठती हई ु ,

एक-एक चब को स बय करती हई ु तथा योगश

और

ान के

ार खोलती हई ु

अ त म म ःतंक के उस अ तम कमल सहॐार तक पहँु च कर अपना ग त य ूा

करती है और परॄ

के साथ एकाकार हो जाती है । जो य

उस ःथित को ूा

३४९


करता है उसे परमान द क ूाि मो

को ूा

होती है और वह ज म-मरण के च कर से मु

हो

करता है , जो मनुंय का अ तम लआय है ।

ह दओं म नाग के ूित व मान ौ ा अकारण नह ं है । उसे वनवािसय , िग रवािसय ु

तथा पुरे ह द ू समाज म, वशेष कर नागपंचमी के दन, पूजा जाता है । द भगवान सुॄ

यम के

प म नाग दे वता श

, समृ

ण म

तथा िचदान द के दाता बन

जाते है । वाःतव म तो नाग समःत सृ

क एकता का ूतीक है । उसक पूँछ का कुंडली

मारते हए ु फन तक पहँु चने का ूयास करना यह दशाता है क समम सृ

परॄ

उस

से ह पैदा होकर उसी म वलीन हो जाती है ।

नागपूजा क सव यापकता उसे समःत ह दओं क , अपनी रा ीय अ ःत व क ु मूलभूत एकता का ूतीक बना दे ती है ।

मु ःलम पऽका रता ने मुझे यह वशेषण दे कर, अनजाने ह

य न हो, मुझे ऐसा

स मान दे दया है जसका म पाऽ नह ं हँू । उ ह ने मुझे भारत और दिनया के सामने ु रा ीय एकता के ूतीक, उसक अिभ य

तथा उसके उ -गाता के

प म ूःतुत

कया। म माँ भगवती से ूाथना करता हँू क वह मेरे इन ूशंसक िमऽ क अपे ा

को पूण करने क श म उनका बड़ा कृ त

मुझे दे ।

हँू क ज ह ने इतना बड़ा स मान मुझे ूदान कया और आशा

करता हँू क वे भी शीयाितशीय भारत क सनातन एकता के इस ूतीक के पूजक के प म वकिसत ह गे।

कृ पया मेरा वनॆ ध यवाद उन तक पहँु चाएँ। (ह.) मा. स. गोलवलकर

*

३५०


२५ प रिश -२ ौी गु जी अपने स पक म आनेवाले य इसके उ कृ

उदाहरण के

पर कस ूकार क छाप छोड़ जाते थे

प म उनके श य िच क सक डॉ. ूफु ल दे साई का

अंमेजी सा ा हक ‘ऑगनायजर’ म छपा यह लेख है जो ौी गु जी के दे हावसान के बाद छपा था। ूःतुत है उसका ह द

पा तर-

२५.१ गु जी मेरे मर ज थे आज क तार ख के ठ क तीन वष पूव एक रात जब तूफानी वषा हो रह थी, मेरे एक यवसाियक सहकम ने मुझसे स पक कर जानना चाहा क गोलवलकर से उनका क

या म गु जी

दे रह ःवाः य स ब धी एक समःया के स दभ म िमल

सकता हँू ? दसरे दन ूातः म कार म बैठा उ ह दे खने के िलए जा रहा था। मेरे म ःतंक म ू

वचार उतनी ह गित से दौड़ रहे थे जतनी गित से कार। म सदा गोलवलकर जी के वषय म सुनता और पढ़ता रहता था। हम जानते थे क वे अपने वचार के बड़े

प के ह और ह द ु व और ह द ु रा य के स ब ध म उनक धारणाएँ क टर

अप रवतनीय ह। (अ तम मु े पर म कतना गलत सोचता था।) इ ह ं सब कारण

से म उनसे िमलने के िलए बड़ा उ सुक था। मेर धारणा थी क िच क सक य मामल म रोग क ग भीरता को समझाने क

से मेरा एक क ठन य

व से पाला

पड़ने जा रहा है । उनके कृ श और कोमल शर र को दे खने के बाद मुझे लगा क अब तक उनके बारे म म जो कुछ जानता, सुनता या समझता था उससे वे ब कुल वपर त ह। उनसे हई ु

अपनी पहली भट म ह मुझे व ास हो गया क म एक अ य त वेधक ज ासु य

से िमल रहा हँू जनके य

वाले

व म एक ःवाभा वक लचीलापन है ।

कसी भी वषय पर तकपूण ढं ग से वचार करने के िलए वे सदै व अपना

ार खुला

रखते ह। उनके साथ अपने ूथम वातालाप म ह मने उनको अ छ तरह नाप िलया था।

३५१


२५.२ उ कृ

ह द

“अ छा डॉ टर! आप मेर शार रक अःवःथता के वषय म आप उ ह ने वशु

ह द म पूछा। गु जी जैसी शु

या सोचते ह?”

ह द म वातालाप क िनपुणता न

होने के कारण मने कामचलाऊ क तु िच क सा शा

से सह उ र दे ते हए ु

कहा- “जी, म सोचता हँू हम ऐसी ःथित का सामना कर रहे ह जसम कसर क

अ यािधक स भावना लग रह है । अतः पर

ा करने और आवँयक हआ तो उसे दरू ु

करने के िलए श य बया करने क आवँयकता ूतीत हो रह है ।” मेरे िनदान ने उ ह जरा भी वचिलत नह ं कया जैसा सामा यतः साधारण य

य के साथ होता है ।

ण भर वचार करने के बाद उ ह ने उ र दया, “अ छा! अगर यह कसर ह है तो

मेरे मतानुसार उसे वैसे ह

य न छोड़ दया जाय? और डॉ टर,

या आपको जरा

भी आशा है क आप उसको ठ क कर सकगे?” ःप

था क वे इस बीमार के वषय म पया

मनुंय के शर र पर

ान रखते थे और जानते थे उसका

या- या दंूभाव पड़ता है । “ या वह शर र म कह ं आगे भी ु

फैल चुका है ?” यह था उस मनःवी का दसरा ू ू

जसका मुझे त काल ऐसा तकपूण

उ र दे ना था जो उस कुशाम म ःतंक का समाधान कर सके। अतः उनका ू समा

होने के पूव ह मने उ र दया- “यह तो अपने-अपने मत क बात है , सामा य

लोग का मत और म इस बात से सहमत नह ं हो सकता क इसे यूँ ह छोड़ दया

जाय। रोग के ठ क होने न होने क बात तो तभी बतायी जा सकती हो जब पता चले क रोग शर र म कतना फैल चुका है और इसका सह अनुमान तो श य बया के बाद ह हो सकता है । उसी पर अनुवत िच क सा भी िनभर करे गी। उसे खाली छोड़ दे ने का अथ होगा हमख ड से भरे समुि म कसी जहाज को खुला छोड़ दे ना।

आपक िच क सा करने का अथ होगा प र ःथित को िनय ऽण म लेना और कम से कम जो

ँयमान खतरे ह उनसे बचना। वह अ य

ेऽ म नह ं फैला है क तु जस

ःथान पर वह है वहाँ भी उसका याप कतना है यह तो श य बया के बाद ह जाना जा सकेगा।” गु जी ने ःथित क ग भीरता को भाँप िलया और थोड़ दे र के िलए गहन मौन म चले गये, शायद आ म व ेषण कर रहे ह । बाद म शा त ःवर म बोले, “अ छा! तो मुझे यह (श य बया) करानी ह पड़े गी।” पर तु दसरे ह ू

ण वे अपने पूव िनधा रत

भट, ूवासा द कायबम का हसाब लगाने लगे। तुर त उ ह ने िनणय िलया और सं

क तु ःप

आदे श अपने सिचव एवं समःत सहायक को दये। ३० जून

३५२


१९७० को गु जी अःपताल म भत हए ु तथा १ जुलाई १९७० को श य बया हई ु जो

सफल रह ।

२५.३ दै द यमान गुणावली इस ूाथिमक घटनाबम म ह उनक अनेक उ उनका गहरा

वल वशेषताएँ प रल

त हु

जैसे,

ान और व ान स मत िनदश का अनुपालन करने क िस ता, अपने

ःवाः य से स ब धत उनके कितपय क तु त यवेधक ू

जो उनक

ज ासु मेधा

का प रचय कराते थे, वपर त प र ःथितय का साहस, शा त और दरदिश ता से ू सामना करने क

मता और अंगीकृ त काय के ूित िन ा और उसके समुिचत िनवाह

क त परता। मुझे लगा क जस एक तक ने उ ह सवािधक ूभा वत कया। वह था मेरे

ारा यह कहा जाना क “आपको श य बया करवा ह लेनी चा हए जससे आप

अपने ःवीकृ त काय म पुनः जुट सक।” इसके बाद और कोई बहस नह ं हई। ु ऐसी बड़ श य बया को उन जैसे ६५ वष य वयोवृ

ने आ यजनक र ित से सहन

कर िलया। दसरे दन तो वे उठकर चलने भी लगे। अःपताल म उनके तीन स ाह के ू

वाःत य म मुझे उनके मन-म ःतंक का अ ययन करने का पया उनके साथ हए ु वातालाप से मुझ जैसे सामा य य

अवसर िमला।

को बहत ु कुछ सीखने को

िमला। यहाँ म कुछ उदाहरण दे ना चाहता हँू जो उनके आ त रक च रऽ को ूकष से ूगट करते ह।

वे अपने रोग के फैलाव के बारे म पूर स चाई जानना चाहते थे और यह भी क

उनके िलए कतनी आशा बची है । इस पर मने ःथित क यथावत ् जानकार दे ते हए ु

जब उ ह बताया क उनके िलए कतना समय बचा है तो उनक ूित बया थी- “वाह! अित उ म ! पया

ल बा समय है और मेरे पास िनपटाने के िलए अभी बहत ु से

काय शेष ह।” उ ह ने एक कायबम म भाग लेने के िलए डॉ टर अनुमित माँगी। उस समय तक श य बया होकर केवल सात दन ह हए ु थे। मने कहा क “म आपको

एक ह शत पर अनुमित दँ ग ू ा क आप अःपताल से गायब न हो जाय।” अपनी सहज वनोदबु

से उ ह ने तुर त उ र दया- “ या म आपको डाकू लगता हँू ?” अःपताल

म वे जब तक रहे तब तक वातावरण हाःय, वनोद और आन द से प रपूण रहा।

३५३


२५.४ राजनैितक दशनकार ऐसा कोई वशेषण, जो उनके य

व को पूर तरह अिभ य

कर सके, खोज पाना

अ य त क ठन है । वे एक राजनैितक दशनकार, ूगाढ़ अ येता और मनुंय , घटनाओं

व वषय के स ब ध म जानकार दे नेवाले चलते- फरते श दकोश थे। उनके वचार

म व ान, धम और संःकृ ित का एक सु दर स मौण था। उ ह ने एक बार मुझसे कहा क “ व ान के वकास पर ह मानव क ूगित िनभर है ।” एक गहर धािमक िन ावाले य

के मुह ँ से यह सुनकर मुझे आ य हआ। वे उन लोग म से नह ं थे ु

जो अपना दशन और अपने वचार दसर पर थोपते ह। क तु जो कुछ वे कहते थे ू

या जस पर चचा करते थे उस पर पूर िन ा रखते थे। उनका यह कथन क “ जसको म सह समझता हँू उस पर पूर तरह

ढ़ रहता हँू ,” उनक आ त रक श

और साहस का प रचायक है और यह भी बताता है क उनका अनुयायी वग इतना वशाल

य है ।

अःपताल म जतने थोड़े समय वे रहे अपनी गित विधयाँ चलाते रहे । अनुवत िच क सा को भी उ ह ने अ छ तरह सहन कया। िच क सा पूर हो जाने के बाद अःपताल से वदा लेते समय उनके उ -गार थे- “मरणधमा मनुंय को मृ यु क िच ता नह ं करनी चा हए। सभी जी वत य

य को एक न एक दन मौत के मुह ँ म

जाना ह है । वह कतने दन जया इससे अिधक मह वपूण यह है क उसने उ ह

कैसे जया? मेरा एक जीवन लआय है और म ई र से ूाथना करता हँू क वह मुझे अ तम

ण तक कायशील रखे।” मुझे अनुभव हआ क उ ह अपना जीवनो े ँय पूरा ु

करने क ज द है ।

त प ात दो वष तक मने उनको अ य त स बय व ःवःथ दे खा। मेर अपे ा से कह ं अिधक वे स बय थे। पहली श य बया के बाद ह रोग के वःतार को दे खकर म होनी के बारे म आशं कत था। वे एक आदश रोगी थे जो िच क सक को सब ूकार का सहयोग दे ते थे। जब कभी वे मु बई आते थे तो अनुवत जाँच व िनंकष के िलए िमलने आया करते थे। ऐसी ह एक िनयिमत याऽा म मने उनसे पूछा, “हमारे त ण का

या हालचाल है ?” उ र था, “और अिधक त ण बन रहा है ।”

काल तो कसी को छोड़ता नह ं सो वह गु जी के पीछे भी लगा। इसी वष फरवर या माच से वे पुनः अःवःथता का अनुभव करने लगे। य प वे अपने काय म स बय

रहे पर तु काल क काली परछाइयाँ उनको घेरने लगी थीं। अूैल म उनका जो ए स-

३५४


रे िलया गया उसम अिन सूचक िच

दखायी दये। बाद क घटनाएँ इतनी ताजी ह

क उनका ववरण दे ने क आवँयकता नह ं है । अपने जीवनकाल म वे जैसे थे मरणोपरा त उ ह उससे अिधक बढ़ा-चढ़ाकर या आदशवान दखाना इस लेख का हे तु नह ं है । पर वे ऐसे य

अवँय थे ज ह ने

एक िनमम रोग के कारण उ प न शार रक और मानिसक तनाव को साहस और

स तुिलत भाव से सहा, जनके अपने दे श के बारे म

ढ़ िन ाएँ थीं और जो सदा उन

पर डटे रहे , सुकोमल और कृ शगाऽ होते हए ु भी वे असीिमत ऊजा, गितशीलता और

अनुशासन के धनी थे और अनुिचत को पहचानकर उसे ठ क करने का ूय

करते

थे। यह अ य त दःख क बात है क अब वे नह ं रहे क तु मुझे इस बात का गव है क ु थोड़े समय के िलए ह

य न हो, म उ ह जान सका और मुझे इस बात का आन द

है क वे इस यार मातृभिू म म जए और इस पर वचरे ।

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