khirkee Voice (Issue 10) Hindi

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खिड़की आवाज़

पतझड़ संस्करण 2019

अंक #10

कलाकार की अफ्रीकी महाद्वीप की गज़ब की यात्रा

जहाजी की गाथा जारी है...

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अ क्टू ब र से द ि सं ब र 2 0 1 9

फ ो ट ो : क न ा ल ए य र ड ले

आबिजान, ऐवेरी कोस्ट

ए प ि ड ए मे ल ि प ो न ि न ा

ए प ि स मे ल ि फे र ा

स्त ्रो त : यू न ि वे र्सि ट ी ऑ फ़ कें स स

सुहाना और गर्म, बीच-बीच में बारिश और आं धी

दिल्ली, भारत

गर्मी और उमस, दिसंबर तक ठं ड

फ ो ट ो : क्ले ब ो ल्ट

काबुल, अफगानीस्तान

ऑ स् मि य ा फे ड ्स चें क ी सुहाना और गर्म, दिसंबर तक ठं ड और बारिश

लेगोस, नाइजीरिया

फ ो ट ो : क्ले ब ो ल्ट

ए प ि स मे ल ि फे र ा अ द न स ो न ी

सुहाना और गर्म, बीच-बीच में बारिश और आं धी

फ ो ट ो : क्ले ब ो ल्ट

मोगदिशु, सोमालिया

न ो मि य ा क् रो क स ि स् पि ड ि य ा

गर्म, उमस और बीच-बीच में बारिश

यूनडे, कैमरून स्टेन ो प्ले स् ट् रि न ी फ ो ट ो : क्ले ब ो ल्ट

मधुमक्खियों का संसार - शोध और संकलन: कुणाल सिंह

धुप और हल्की बारिश दिसंबर में ठं डा

स्त ्रो त : यू न ि वे र्सि ट ी ऑ फ़ कें स स

पटना, भारत ए प ि स से र ा न ा

ज्यादातर बादल, छिटपुट बारिश और आं धी

दूसरों को जानना

फोटो एस्से: अदृश्य कामगार लोग

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के सहयोग से

कचरे से नए रास्ते

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म कै सै वे ज / फ् लि क र

मौसम की रिपोर्ट

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12 पन्ने

अन पे क्षि त मु ल ा क ातें

महावीर सिंह बिष्ट

हर अंत र और विविधता के गु च ्छे की तरह होते हैं, अक्सर गलतफहमी को जन्म दे ते हैं। ऐसे बाँ ट दे ने वाले विचारों से वर्ग, जाति, धर्म, सं स ्कृति, रंग और अन्य खं ड ो में विभाजित हो जाते हैं। हम अपनी उदासीनता या जिज्ञासा की कमी के कारण, इन अंत रों के बारे में बात नहीं करते । पर शहर ही ऐसी जगह हैं, जो अलग-अलग समु द ायों के लोगों का एक द स ू रे से मिलने की सं भ ावनायें पैद ा करते हैं। कभी-कभी ये मु ल ाकातें , हमारे जटिल विचारों और मान्यताओं को ध्वस्त कर, कभी ना भु ल ाने वाली यादें छोड़ जाते हैं। इस तरह के क्षणिक पलों की खोज में , हम ऐसे अनु भ वों और घटनाओं की बात करना चाहते थे जब ‘द स ू रों’ ने हमें हैर ान किया हो, और हमें रूककर सोचने को मज़बू र किया हो। बचपन का ऐसा ही एक अनु भ व मु झे याद है। हम गर्मियों की छुट्टियों में अक्सर उत्तराखं ड के अपने गाँ व जाते थे । गाँ व ‘बीठ’ (ऊँ ची जाति) और ‘डोम’ (अछू त) के दो भागों में बसा है। डोम जाति के लोगों का घर अक्सर गाँ व के बाहर के क्षेत्र में होता था। हम कभीकभी ग्वालों के साथ वहाँ जाते थे । एक दिन वापस आते हु ए हम ओलों के तू फ ़ान में फँ स गए। द रू सिर्फ एक घर

नज़र आ रहा था। वहाँ जाने से हमें हमे श ा मना किया गया था। पर इस तू फ ़ान में , उस घर के दरवाज़े से किसी को पु क ारते और हाथ हिलाते दे ख , जान में जान आई। किसी तरह मैं वहाँ पहुँ च ा, तो एक औरत ने मु झे घर के भीतर लिया, तौलिया दिया, चाय पिलाई और मे र ा ख्याल रखा। मुश ्किल वक़्त में , हमारे समु द ाय के लोगों द्वारा उनके साथ भे द भाव किये जाने के बावजू द , उन्होंने मे री मदद की। उस दिन के बाद, मैं उन्हें ताई कहकर पु क ारने लगा, चाहे मे रे रिश्तेदारों ने कितना भी विरोध क्यों ना किया। हमने अपने कु छ दोस्तों से इस तरह के किस्से बताने को कहा। तैयबा अली, 24 साल जब मैं दिल्ली के रामजस कॉले ज में अंगरे् जी साहित्य पढ़ने आई, तो मैं ने पू रे दे श से दोस्त बनाये । उन लोगों से भी, जिन्हें मैं ने सिर्फ किताबों या तस्वीरों में दे ख ा था। ऐसा ही एक इंस ान था तेंज िन,एक तिब्बती रेफ ्यूजी, जो दिल्ली पढ़ने आया था। हम घर से द रू रहने के अपने अनु भ वों की वजह से दोस्त बन गए थे । उस साल मे र ा जन्मदिन से मे स ्टर के एग्जाम के आसपास पड़ा, तो मनाने का तो सवाल ही नहीं था। मैं वैसे तो जन्मदिन मनाना पसं द नहीं करती, लेकि न हर साल दोस्त और परिवार मे रे लिए के क लाते थे । परीक्षा खत्म

होने पर तेंज िन मे रे पास आया और बोला कि वह मे रे जन्मदिन के उपलक्ष्य में मु झे बाहर ले जाना चाहता है। वह मु झे मजनू का टीला ले गया, पारम्परिक तिब्बती खाना खिलाने के लिए। खाते हु ए , उसने खाने के इतिहास और महत्त्व के बारे में बताया। बाद में उसने मु झे तिब्बतन कॉलोनी दिखाई और तिब्बती अगरबत्ती खरीद कर दी। तबसे मजनू का टीला मे रे लिए आरामदायक और परिचित जगह बन गया। मैं ने और भी तिब्बती दोस्त बनाये , जो बहु त ही उदार और मे ह माननवाज लोग हैं। रतन सिं ह, 55 साल मैं दिल्ली 70 के दशक में बे ह तर ज़िन्दगी की तलाश में आया था। मैं सरोजिनी नगर के एक छोटे से ढाबे में काम करने लगा और गाँ व के एक द स ू रे दोस्त के साथ एक छोटे से कमरे में रहने लगा। मैं तब महीने के मात्र 200 रुपये कमाता था, जिसका 120 रुपैय ा मैं घर भे ज ता । मे र ा बॉस काफी खड़ू स आदमी था। वह बनिया था। कोई भी उसे पसं द नहीं करता था। जब भी हम छु ट्टी ले ते , वह पैस ा काट ले त ा था। एक दिन मैं सु ब ह उठा तो मे र ा बदन बु ख ार से तप रहा था। मैं ने दवाई ली और पैसे कटने के डर से काम पर चला गया। मु झे चक्कर आ रहे थे और कमज़ोरी महसू स हो रही थी। लेकि न

मैं ने किसी को नहीं बताया। मे री हालात बिगड़ने लगी और अगले दिन से काम पर नहीं जा पाया। तीसरे दिन ढाबे का एक दोस्त हालचाल पू छ ने आया। उसने पू छ ा कि पैसे हैं कि नहीं। मे रे पास सिर्फ 15-20 रुपये बचे थे । उसने खाना बनाने में मदद की और चला गया। उस रात मु झे लगा, मैं मर ही जाऊं गा। अगली सु ब ह वह दोस्त फिर आया और मु झे 150 रुपये थमा गया। ढाबे के मालिक ने अस्पताल जाने के लिए दिए थे । मैं थोड़ा हैर ान था। डॉक्टर ने कहा कि ज़रा भी दे री करता तो लाइलाज हो जाता। मु झे डिस्चार्ज तो कर दिया, लेकि न पू री तरह ठीक नहीं हु आ और काम पर लौटा। मालिक अभी भी सख्त लहजे में बैठ ा हु आ था। मैं ने शुक्रि या अदा किया और पैसे लौटाने का वादा किया। उसने मु झे घर जाने को कहा ताकि पू री तरह स्वस्थ हो जाऊं। साथ ही उसने कहा जब पैसे हों, दे दे न ा। फिर ज़िन्दगी आगे बढ़ी और मैं उसे दोबारा नहीं मिल पाया। लेकि न उसकी उदारता ने मे री ज़िन्दगी बचा ली। इस घटना को मैं कभी भू ल नहीं पाया। हम सभी के साथ ऐसे अनु भ व और घटनाएं होती हैं। शायद हमें इस तरह की कहानियाँ ढू ँ ढ नी चाहिए, जिसमें अं त र खोजने की बजाय हम एक द स ू रे का ख्याल रख सकें।

एपिडए मेलिपोनिना आइवरी कोस्ट में पाई जाने वाली एक डंक-रहित मधुमक्खी है। यह आमतौर पर खोखले लकड़ी के लठ्ठों, भूमिगत सुराखों और चट्टानों की दरारों में छत्ते बनाती हैं। इनके छत्ते पुराने कूड़े के डिब्बों और पानी के मीटरों में भी पाए गए हैं। यह केवल अपनी जरूरतों के लिए कम मात्रा में शहद का उत्पादन करते हैं। एपिस मेलिफेरा, जिसे पश्चिमी मधुमक्खी या यूरोपीय मधुमक्खी भी कहा जाता है, दनि ु या भर में पाई जाने वाली मधुमक्खियों की प्रजातियों में सबसे आम है। ये मधुमक्खियां अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर पाई जा सकती हैं, और मधुमक्खी पालकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं। वे विश्व स्तर पर कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं। ऑस्मिया फेड्सचेंकी मधुमक्खियां

अफगानिस्तान में पाई जाती हैं और बांस के खोखले तनों, पहले से मौजूद सुराखों में अपना घोंसला बनाना पसंद करती हैं।इनके छत्तों के से ल चबाई हुई पत्तियों और मिट्टी से बनी होती हैं। एपिस मेलिफेरा अदनसोनी मधुमक्खियों की एक किस्म है जो ब्राजील की मधुमक्खियों के साथ आक्रामक अफ्रीकी मधुमक्खियों की नस्ल को पैदा करने के लिए एक वैज्ञानिक प्रयोग के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ है। वे अपनी आक्रामकता और झुंड की प्रवृत्ति से अलग हैं,और उन्हें किलर बीज़ भी कहा जाता है सोमालिया की मूल निवासी नोमिया प्रजाति के नोमिया क्रोकसिस्पिडिया मध्यम आकार की मधुमक्खियां हैं, जो जमीन में अपने छत्ते बनाना पसंद करती हैं। इस प्रजाति की अधिकांश मधुमक्खियां एकांत में छत्ते बनाना पसंद करती हैं, लेकिन कुछ

साथ में मिलकर भी छत्ता बनाना पसंद करती हैं, जहाँ मादा एक घोंसला साझा करती हैं, लेकिन इस छत्ते में कोई रानी या श्रमिक मधुमक्खी वर्ग नहीं होता। एपिस से राना को पूर्वी मधुमक्खी या एशियाटिक मधुमक्खी भी कहा जाता है और यह दक्षिण, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया की मूल निवासी है। से राना मधुमक्खी की कॉलोनियां घुसपैठियों को दरू रखने के लिए, एक छोटे से प्रवेश द्वार वाले सुराखों में कई रोटियां(हनीकोम्ब्स) से मिलकर छत्ते बनाने के लिए जानी जाती हैं। इनको अत्यधिक सामाजिक व्यवहार के लिए भी जाना जाता है। स्टेनोप्लेस्ट्रि नी अपनी छोटी जीभ, और टांगो पर छोटे ब्रुश जैसे रोओं के गुच्छे, जो पराग को इकट्ठा करने और ले जाने के लिए सबसे अनुकूलित हैं,के लिए जानी जाती है। यह पश्चिम अफ्रीकी देशों में पाए जाते हैं।

मधु म क्खियों का सं स ार

म में से अधिकांश के लिए, मधुमक्खियों के साथ हमारी जान-पहचान,इस तथ्य तक सीमित है कि वे शहद बनाते हैं, जिससे हम बहुत प्यार करते हैं- और उनके डंक के नाम से ही काँप जाते हैं! अगर हम किसी मधुमक्खी को हमारे पास आते हुए देखते हैं तो हम बेतहाशा भागते हैं, और हमारे पड़ोस में बने छत्ते को तोड़ने के लिए इंतजार भी नहीं करते । कहीं ऐसा न हो कि वो आप पर हमला न कर दें। लेकिन मधुमक्खी एक अद्त भु प्राणी हैं, जो शहद के अलावा, एक परागणकर्ता होने के अलावा, अपने स्वभाव और विशेषताओं के साथ आकार, रंग और आकार की विस्तृत विविधता में आते हैं। हमारे द्वारा खाए जाने वाले लगभग 80% खाद्य पदार्थों के लिए जिम्मेदार, मधुमक्खियाँ मानवता के लिए प्रकृति का उपहार हैं।

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2019

खास पेशकश

द ग्रेट अफ्रीकन कारवाँ एक कोलैबोरे टिवे आर्ट और ट्रे वल प्रोजेक्ट है , जिसमें सात अलग-अलग देशों के 12 कलाकार केप टाउन से कैरो, अफ़्रीकी महद्वीप के 10 देशों से 16000 किलोमीटर का सफर ‘अनबोर्डे र’ के फलसफे के साथ; चर्चा, साझेदारी, कलाकारों और समुदायों की सहभागिता और शान्ति का सन्देश देते हुए आगे बढे।

अफ्रीकन कारवाँ के किस्से -तुम अफ्रीका जा रहे हो ? -हाँ -रोडट्रिप पर ? -हाँ -और खर्चे का क्या ? पैसा है तुम्हारे पास ? -नहीं -तुम बेवकूफ हो ? -हाँ

मेरे दोस्तों और परिवार ने सवालों की बौछार कर दी जब उन्हें पता चला कि मैं अफ्रीका में रोडट्रिप पर जा रहा हूँ । हम उत्सुक और प्रेरित लोगों का एक समूह थे, जो केप टाउन से कैरो तक यात्रा करना चाहते थे। मुझे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि क्या होगा। हम इसे 2 साल से प्लान कर रहे थे। और अब हम साउथ अफ्रीका की फ्लाइट में बैठे थे और धीरे -धीरे घबराहट मन में घर कर रही थी...।

सबसे पहली बात जिसपर आप गौर करें गे, वो था एयरपोर्ट पर लोगों का आपको संदेह की नज़र से देखना। लेकिन हमारे लिए सबसे मुश्किल चुनौती ठण्ड थी:

आपको किसने कहा कि अफ्रीका गर्म है !

कुछ दिनों बाद बाकी की टीम भी आ गयी और हमने काम शुरू किया। यात्रा शुरू करने से पहले बहुत सी चीज़ों का ख्याल रखना था। हमें पता भी नहीं था कि हम केप टाउन से निकल भी पायेंगे या नहीं! टीम के बाकी सदस्य*

हम पिछले दो सालों से अफ्रीका में प्लानिंग और नेटवर्किंग कर रहे हैं । कारवां का महत्व तभी है जब उसमें लोग हों। बिना लोगों के कोई कारवाँ संभव ही नहीं है । है क्या ?

हम अफ्रीका के सारे अनुभव अपनी आँखों से देखना चाहते थेसंस्कृति, लोग और खाने सम्बन्धी। इस महाद्वीप के बारे में ज़्यादातर खबरें और सूचना एक तरफ़ा होती हैं , और ये अक्सर तीन बातों पर केंद्रित होती हैं :

स्थानीय जनजातियाँ

हे लेन (जर्मनी)

ईदाग (नीदरलैंड्स)

लेकिन हमें इतनी परे शानी क्यूँ झेलनी पड़ रही थी?

जीव-जंतु

सफर करना, बातचीत और खोजने का सबसे बेहतर तरीका होता है । हम सिर्फ यात्रा नहीं कर रहे थे, हम स्थानीय कलाकारों और लोगों के साथ भी काम कर रहे थे। मैंने इस यात्रा के किस्सों, कहानियों और बातचीत का चित्रण किया।

इफे (इं ग्लैंड)

(कोसोवो)

अलग (अर्जेंटीना)

इलबर्ट (यूगांडा)

युद्ध

इस सफर का मुश्किल होना तय था। पहले दिन से ही हमें लगातार चुनौतियों का सामना करना पड रहा था।

और भारतीय होने के नाते, मुझे ऐसी चुनौतियों की आदत है । मुझे है रानी होती है कि हमारी संस्कृति कितनी एक सी और अलग भी है । शायद कुछ ऐसी अदृश्य दीवारें हैं जो हमें बहका रही हैं ।

ह ंदरगा का ब गाडी ा टकन ा में में अ ीस के व म टी त दिक्क टना की घ चोरी

इन सब चुनौतियों के बावजूद, जिस काम के लिए हम यहाँ आये थे, हमने शुरू किया,हमारी कलात्मक साझेदारी पूरे ज़ोर पर थी!

केप टाउन की और बहुत सी कहानियाँ हैं जिन्हें मैं अपनी यात्रा की अगली किश्त में बताऊंगा। अधिक जानकारी के लिए बने रहें ।

फिर हम सड़क पर निकल पड़े , आने वाले रोमांच का सामना करने के लिए

अकरम और इफे ने समुदाय गाला ने स्थनीय स्कूल के छात्रों मैंने समाज में महिलाओं की के लोगों के साथ अपराध और स्टाफ के साथ संगीत को भूमिका और लैंगिक समानता और ड्रग के सेवन सरीखे कलात्मक अभिव्यक्ति और जैसे विषयों को लेकर स्ट्रीट विषयों पर थिएटर वर्क शॉप अहिं सा जैसे विषयों से जोड़कर आर्ट साझेदारी की। की। साझेदारी की। मुझे महसूस हो गया था कि ये प्रोजेक्ट मेरी ज़िन्दगी की कहानी में अहम पड़ाव होगा। ये अफ़्रीकी अनुभव हम सभी को भीतर तक बदल रहा था। जैसे इफे ने कहा: “ये बाहरी दुनिया का शूक्ष्म रूप है ।” हम इस समूह में ये नई दुनिया रच रहे थे।

इलका

लेकिन हमारे दक्षिण अफ़्रीकी पार्ट नर काफी मददगार थे और इस तरह की साझेदारी और विमर्श के महत्त्व को बखूबी लोगों का हमें दिल से मदद करना समझते थे। केप टाउन के हमारे दोस्तों मन को हौसला देता था। जब हम ने हमें हर स्तर पर मदद दी- चाहे वो बिलकुल टू ट चुके होते तो इन वीसा सम्बन्धी दिक्कत हो या कोई छोटा बातों से हिम्मत मिलती थी। सा काम हो।

लेकिन हमने जो अनुभव किया वो काफी दिलचस्प और विविधताओं भरा था। सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में ही 10 से ज्यादा जनजातीय समूह हैं । केप टाउन व्यापर का एक बड़ा बंदरगाह है और ऐतिहासिक काल से ही दुनियाभर के लोगों को आकर्षि त करता है । इसके हाल के इतिहास में ही स्थानीय बंटूस, यूरोपीय और भारतीय समुदाय के मिलन की अनोखी कहानियाँ नज़र आ जायेंगी।

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फिरोज़

चरण जीपी

बाद में अकरम ने हमें केप टाउन में बिताये दिनों के बारे में बताया और हमने आगे की योजना बनायी। दोस्तों! ये घर वुडस्टॉक के घर से बहुत बेहतर है । वो जगह तो भारतियों से भरी हुई और थोड़ी डरावनी भी थी। वहाँ के लोगों ने हमें चोरी और डकैती से सावधान रहने को कहा था। अब उन बातों को छोड़कर हम आगे की चुनौतियों के बारे में सोच सकते हैं । हमारी गाड़ियाँ अभी भी केप टाउन बंदरगाह पर फँसी हुई हैं , मुझे नहीं पता कि हमारी क्राउड फंडिं ग वेबसाइट काम कर रही या नहीं। जैसे ही पूरी टीम पहुँ च जाएगी हम आगे के दिनों की योजना बना पायेंगे।

अकरम और चरण सबसे पहले केप टाउन पहुँ चे,वे रहने का बंदोबस्त करने लगे और टीम के लिए यहाँ की रे की करने लगे। हम सभी यहाँ पहली बार आ रहे थे।

शिवि

अकरम

सत्या

हे लेन

चरण आईदा

इफे

गाला

शिखांत

ज़्यादा जानकारी के लिए द ग्रेट अफ्रीकन कारवां को फेसबुक पर फॉलो करें या वेबसाइट पर देखें: www.thegreatafricancaravan.com

मेरे काम को

www.choorma.com

पर देखें।

हमारा अगला पड़ाव, हरारे , जिम्बावे था!

हरारे

जिम्बाव


कोलाज़:मालिनी कोचुपिल्लै

पतझड़ अंक 2019 • खिड़की आवाज़

फु टबॉल और काला जाद ू

उपासना शर्मा

मैं

संपादकीय

इस साल अगस्त में टायो से मिली थी। वो मेरे एक प्रोजेक्ट के लिए, मुझसे, भारत में रह रहे नाइजीरियाई समुदाय के बारे में बोलने के लिए सहमत हो गया था। टायो ग्रेटर नोएडा में रहता है, जहां वह एक भारतीय विश्वविद्यालय के एक कोर्स में दाखिल है, जो मैकेनिकल इंटेलिजेंस सिखाता है। मैंने उसे नाइजीरियाई स्टू डेंट्स कलेक्टिव और कॉलेज के अधिकारियों के बीच विवाद के दौरान पकड़ा था, फिर भी वह मुझसे मिलने और दिल्ली में अपने जीवन को साझा करने के लिए राज़ी हुआ । जब भी हम मिले, हमारी बातचीत मूल रूप से एक-दस ू रे के समुदायों के बीच बढ़ते भेदभाव के ऊपर घूमती रही, जो की हाल के वर्षों में एक उफान तक पहुच ं गया है।यह कोई नयी खबर नहीं है की अफ्रीकियों को दिल्ली और अन्य शहरों में गलत नज़रिये से देखा जाता है, और उनके बारे में कई अवधारणाएँ फैलाई जाती हैं।बातचीत के दौरान हमने नाइजीरियाई समुदाय की सच्चाई और हर तरफ फैली हुई अवधारणाओं को स्वीकार करते हुए कुछ विशिष्ट कहानियों पर गौर किया। टायो ने अफ्रीकियों के नरभक्षण की मान्यताओं पर अविश्वास व्यक्त किया जो की अक्सर उनके “अरबपति” ड्रग डीलर होने की अवधारणा के साथ जोड़ा जाता है।अपने ही देश में नस्लवाद और ज़ेनोफोबिया के बारे में खुलकर

पि

बोलते हुए, टायो ने तब एक अनसुनी कहानी के बारे में बताना शुरू किया, जिसने दशकों से नाइजीरिया में भारतीयों की एक अलग साख बना रखी है। कहानी कुछ इस तरह है नाइजीरियाई ग्रीन ईगल्स और भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम को फीफा द्वारा आयोजित एक दोस्ताना मैच खेलना था। कोई भी वर्ष के बारे में सुनिश्चित नहीं है, पर सब का मानना है की मैच लागोस में था। यह देखते हुए कि भारतीय फुटबॉल ने अभी तक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कोई पहचान नहीं बनाई है, इस मैच की शर्तें भारत द्वारा निर्धारित की गई थीं, जहां उन्होंने मांग की थी कि उनके द्वारा किए गए प्रत्येक गोल को 3 गोल के बराबर गिना जाएगा- जिसके लिए नाइजीरिया सहमत था। भारतीय टीम ने नंगे पैर खेला और इस मैच के दौरान 99 गोल किए। नाइजीरिया ने एक भी नहीं किया था। मैच समाप्त होने में 5 मिनट शेष थे, भारतीय टीम ने यह घोषणा की, कि यदि नाइजीरिया एक गोल भी करता है, तो वे हार मान लेंगे। आखिरकार, नाइजीरिया के सैम ओकवारजी ने एक गोल किया, जिसके कुछ ही समय बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। नाइजीरिया ने 99-1 के अंतिम स्कोर के साथ जीत हासिल की और उसके बाद फीफा से भारत को 100 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रतिबंध और बेतुके स्कोर का

कारण काले जाद ू या “जूजू” को माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भी नाइजीरियाई खिलाड़ियों ने गेंद को किक करने का प्रयास किया या उनके गोलकीपर ने बचाव करने की कोशिश की, तो गेंद शेर या बाघ या आग की गेंद के रूप में दिखाई देती, जिसने गोलकीपर को डराकर, भारतीय टीम को कई, आसान गोल करने में सक्षम बनाया। इस कहानी के रूपांतरों में इस तथ्य का भी उल्लेख है कि भारतीय खिलाड़ी नंगे पांव खेलना पसंद करते थे ताकि अपने काले जाद ू को और अधिक शक्तिशाली बना सकें। असल में, इस कहानी का समर्थन करती हुई, 1940 के दशक से भारतीय टीम की कई तस्वीरें, इंटरनेट ब्लॉग्स और स्पोर्ट्स वेबसाइटों पर भरी पड़ीं हैं। कई लोग यह भी कहते हैं कि जब ओकवारजी ने उग्र शेर के सिर को नजरअंदाज कर उसे लात मारने वाले थे, तो गेंद पत्थर में बदल गई। फिर भी, ओकवारजी ने इस किक का प्रयास किया और अपना जीवन खो दिया। जैसा टायो बताता है, यह कहानी उसके देश में लगभग हर घर में सुनाई जाती है। अब भी 2019 में, अगर कोई इसे खारिज करने की कोशिश करता है, तो तर्क दो बिंदओ ु ं पर आकर टिक जाता है - नंगे पांव खिलाड़ी और ओकवारजी की अचानक मौत। इस कहानी को मिथक और बकवास के रूप में घोषित करने वाली वेबसाइटों के कमैंट्स सेक्शन, उन नाइजीरियाई लोगों के तर्क -वितर्क से भरे पड़ें हैं, जो

sportsvillagesquare.com

हमने दूस रे समु द ायों, जो हमसे अलग दिखते , खाते और प्रार्थ न ा करते हैं, के बारे में अजीबो-गरीब कहानियाँ सु न ी हैं। कभी-कभी ये कहानियाँ शहरी मिथक बन जाते हैं, और बार-बार दोहराये जाने पर सच का सा रूप ले ले ते हैं। की इस कहानी के किसी अन्य रूपांतर को मानने से इंकार करते हैं। उनका मुख्य प्रश्न होता है कि अगर ऐसा नहीं है तो भारत अभी तक फीफा विश्व कप में क्यों नहीं खेल पाया?लेकिन सच्चाई में भारत और नाइजीरिया ने कभी मैच नहीं खेला और 1989 में अंगोला के खिलाफ खेलने के बाद सैम ओकवारजी की मृत्यु हुई थी।यह सच है कि फीफा ने भारत पर नंगे पैर खेलने पर प्रतिबंध लगाया था; हालांकि विश्व कप में भारतीय टीम की अनुपस्थिति उनकी विशेषज्ञता की कमी के कारण रही है। मेरे जाने से पहले टायो ने मुझसे पूछा कि भारतीय महिलाएं बिंदी क्यों लगाती हैं? मैंने उत्तर दिया कि यह तीसरी आँ ख का प्रतिनिधित्व करता है, हालांकि वर्तमान समय में यह केवल एक सौंदर्य रूप बन गया है। टायो के लिए यह नया ज्ञान था। उसने कहा कि,

नाइजीरिया में लोग खेल में भारत की दृढ़ता से डरते हैं और उसकी काले जाद ू से बराबरी करते हैं। 80 और 90 के दशक की कई बॉलीवुड फ़िल्मों के ज़रिए शुरू हुई जाद ू टोने और सपेरों की छवि ने छाप छोड़ी है। टायो ने बताया की उसके देश में भारतीयों को एक ऐसे गुप्त ज्ञान का रखवाला माना जाता है, जिससे दनि ु या अभी अपरिचित है। मुझे हंसी आई, लेकिन हाल ही की एक खबर याद आई, जहां 2016 में मैदान पर काले जाद ू का उपयोग करने के लिए रवांडा फुटबॉल टीम को अनुशासित किया गया था। फुटबॉल और काला जाद ू कोई बेमेल नहीं है; एक खेल जो कि भाग्य पर इतना निर्भर करता है, शायद उसमे जूजू को आश्वासन के रूप में लाया जा सकता है।

1980 में, नाइजीरिया और अंगोला के मैच के बीच सैम ओकवाराजी मैदान में बेहोस हो गए थे।

अलग करें या ना करें

छले दिनों, एक [जन्म से पुरुष] दोस्त ने मुझे बताया कि जब भी उनकी कोई करीबी [जन्म से] महिला मित्र को महावारी आने वाली होती थी, तो उन्हें भी कमर के निचले हिस्से में दर्द होता है। उन्होंने कहा कि जब वे अपने दोस्त के साथ रह रहे थे, उन्होंने इस दर्द को हर बार महसूस किया। उनकी दोस्त महावारी की प्रतीक्षा कर रही थी। अब, हम सभी ने सुना है कि जो महिलाएं एक साथ रहती हैं, उनकी महावारी अक्सर एक साथ शुरू होती है, लेकिन मर्दों के साथ ऐसा होना एक नयी खबर थी। पहले तो यह आश्चर्यजनक था और कुछ अविश्वसनीय था, लेकिन आकर्षक भी था, और इसने मुझे सोच में डाल दिया, कि आखिर क्यों

नहीं? यदि महिलाओं के शरीर रहस्यमय तरीके से निकटता से सिंक्रोनाइज कर सकते हैं। तो शायद सभी शरीर सिंक्रोनाइज कर सकते हों, हो सकता है कि यह एक दस ू रे के लिए हम कितने अच्छे हैं, एक दस ू रे से कितनी सहानुभूति और कितनी देखभाल करते हैं, से जुडी हो? हो सकता है यह इस पर निर्भर करता हो की हम दस ू रे से कितनी गहराई से जुड़े हैं? जीवन में हम जो अक्सर देखते, जानते और अनुभव करते हुए, हम मानने लेते हैं कि हम सब जान गए हैं-यह हमारे विश्व के प्रति दृष्टिकोण, हमारी राय, हमारी बातचीत को आकार देता है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि कितना अधिक है, जो हमें पता नहीं है, जो हमने

कभी सुना या देखा नहीं है, और जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह ‘अज्ञानता’ हमें सभी प्रकार की गलतफहमियों, अनुमानों और भविष्यवाणियों की ओर ले जाता है। खिड़की आवाज के इस दसवें संस्करण में, हमने इनमें से कुछ अज्ञात तथ्यों पर ध्यान दिया है, जिससे कुछ नए ज्ञान और विचारों के बारे में नई समझ पैदा होती है, जिनका सामना शायद हमने कभी नहीं किया होगा। दनि ु या के विभिन्न हिस्सों के निडर कलाकारों का एक समूह दक्षिण अफ्रीका से मिस्र तक की एक कल्पनीय पर लगभग असंभव सड़क यात्रा पर गया था। इन पृष्ठों में, उनमें से एक हमें अपने कारनामों के बारे में बताना शुरू करता है

और विभिन्न देशों, संस्कृतियों, इतिहासों और एक अंतहीन आकर्षक महाद्वीप के लोगों के साथ उनके सामने के अनुभव को बयान करता है। इस संस्करण के विषय को संबोधित करते हुए, एक लेखक “अदरिंग” ’के रोजमर्रा के उदाहरणों में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए, एक सरल सवाल पूछता है- इस भेदभाव की सीमा क्या है? एक फोटोग्राफर हमारे शहर को चलाने वाले कुछ अदृश्य श्रम बल के रहने और काम करने की स्थितियों को उस समय प्रकट करता है, जब हम उनके अस्तित्व की ओर पूरी तरह आं खें मूद ं े खड़े हैं। एक ग्राफिक डिजाइनर हमें पुरुषों को संवारने में अपना हास्यप्रद दृष्टिकोण देती है। एक जेंडर-फ्लुईड ट्रांस व्यक्ति अपने जीवन और चुनौतियों के

बारे में खुलता है, यहां तक ​​कि वह हमें गैर-अनुरूपता को समझने का एक ज़रिया देता है। इस संस्करण को अपने अंतिम रूप में लाते हुए हम हैरान थे, कि हम एक दज ू े मत्तभेव क्यों करते है? हम केवल परिचित में ही संतुष्टि क्यों चाहते हैं? हम ‘अन्य’ को जानने और समझने के लिए अधिक उत्सुक और खुले कैसे हो सकते हैं?आपसी मतभेदों की तलाशने के बजाय क्या हम उन चीजों की तलाश कर सकते हैं जो हमारे बीच समान हैं? हमें प्रकृति से, और विस्तार से, एक दस ू रे से जुड़ने के लिए क्या करना ज़रूरी है? हम आपको इन्हीं सवालों के साथ छोड़ते हैं, शायद आप अपने जवाबों के साथ हमें लिखेंगे?

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2019

ख़ास शृंखला

समुद्र में जबरन ले जाया गया एक कलाकार की अपनी परदादी के जबरन प्रवास की 10वीं क़िस्त

एक मुलाकात

शब्द + कलाकृ ति एं ड्रू अनं द ा वू गे ल

TEXT + ARTWORK ANDREW ANANDA VOOGEL

समय हमारे साथ जो खेल खेलता है, दिल सबका हिसाब रखता है।

सु

बह की गर्म धुप में गालियाँ, शोरगुल से चहक उठती। हर सोचे हुए कदम के साथ माला छोटी बस से उतरती और उसके माथे से पसीने की मोती जैसे दिखने वाली बूँदे टपकने लगती। पेरामरिबो की गलियों में तेज़ी से बढ़ते हुए, पतली ड्रेस उसके शरीर पर लिपट सी जाती। उसकी शादी को छः महीने बीत चुके हैं। इस नियति से वह बच सकती थी। परिवार ने उसे जल्द ही नौकरी ढू ँ ढने को कहा और उसे माई फैमिली स्टोर में नौकरी मिल भी गयी। पेरामरिबो के पूर्व में सदियों और अन्य फैशन सामग्री का यह छोटासा बुटीक था। एक पडोसी ने यहाँ खाली पद के बारे में बताया, और वह शुक्रगुज़ार थी कि नौकरी मिलने से वह परिवार से थोड़ा दरू समय बिता पायेगी। माला इस नौकरी में पिछले छः महीने से थी और उसे रोज़ नौकरी आने और काम की आदत हो गयी थी। स्टोर देर से खुलता था, लेकिन वो सुबह की शिफ्ट लेती थी। उसे सुबह का माहौल अच्छा लगता था और दिन फूटते ही अपने परिवार से दरू जाने का बहाना मिल जाता था। शादी के दिन से ही उसे अपनी ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी, लेकिन वो अपने लिए अस्तित्व के कुछ क्षण खोज ही लेती थी, जो उसे ख़ुशी देते थे। जैसे, गर्म उमस 4

भरी शामों में, झींगुरों की आवाज़ें, बारिश के बाद रुके हुए पानी में बादलों की परछाई और अपने झोले में किताबों के एक गुच्छे से , घर से निकलते वक़्त ये कुछ सामान उसे ज़िंदा रखते थे। सुबह की हवा काफी उमस भरी थी। वह दक ु ान की तरफ बढ़ी और ताला खोला। आमतौर पर वह सबसे पहले आ जाती थी और ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन की रेडियो की आवाज़ पर लगन के साथ, पिछले दिन की धुल को झाड़ती। उसका सुबह का यह सबसे पसंदीदा काम था। दक ु ान ज़्यादातर शांत होती और उसकी झाड़ू से उठा हुआ धुआँ, फूटती रौशनी में चमकने लगता। देश और दनि ु या की खबरें उसे खुद की वर्तमान स्तिथि से कुछ समय के लिए राहत देते। जब वो स्टोर में झाड़ू लगाती तो उसके कदम बिरले ही, लकड़ी के नम फर्श को छूते। माला सुबह की सफाई की निरंतरता में खो जाती। अचानक रेडियो बज उठता है। वे स्ट इंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को 17 रन से हराकर विश्वकप जीत लिया है। कप्तान, क्लीवे लॉयड, गुयाना के निवासी हैं, एक लम्बे कद के मिडिल आर्डर बल्लेबाज़। उसे पता था कि उसके गाँव के लोग जश्न मना रहे होंगे और वह अपने परिवार के साथ ख़ुशी साझा नहीं कर


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सपना था कि वो इस जगह को छोड़कर वहाँ की यात्रा करेगी। जहाँ उसकी भाषा, संस्कृति और इतिहास का जन्म हुआ। लेकिन अभी उसकी किस्मत कैरिबियाई द्वीप की गर्मी में ज़िन्दगी काटना है। उसके हाथ हर साडी को ध्यान से डिस्प्ले रैक में सजाते। वो रंगों को एक के बाद एक ऐसे पंक्ति में लगाती, मानो किसी शादी के हॉल को सजा रही हो। जब भी कोई कपडा स्टोर में आता और फिर बिक जाता, उसे ना जाने क्यों दःु ख होता। वो सोचती अब ये कैसी ज़िन्दगी जियेंगे। इन ख्यालों में खोये हुए, उसने दरवाज़े के खुलने की आवाज़ सुनी। पहला ग्राहक, उसने सोचा। जैसे उसने मुड़कर देखा, रौशनी में एक जाना पहचाना चे हरा नज़र आया। एक लम्बे कद के, सुनहरे बालों वाले आदमी ने प्रवेश किया।”क्या मिस्टर कान हैं ?”, आदमी ने पूछा। माला ने आदमी को देखा और ऊपर जाकर देखा की बॉस हैं या नहीं। उसने अजनबी की तरफ नीचे देखा। वह ज़रूर डच होगा, उसके बात करने का लहज़ा और सरलता, नीदरलैंड के लोगों जैसे नहीं थे।” मिस्टर कान, कोई आगंतुक आये हैं”, माला बोली। मिस्टर कान ने उसे ऊपर भेजने को कहा। माला नीचे गयी और उस आदमी को ऊपर जाने को कहा। उसने माला की तरफ हाथ बढ़ाया और उसे कुछ सूझा नहीं। माला ने धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसने आत्मविश्वास से हाथ मिलाया। “आपसे मिलकर अच्छा लगा, मैं एलेग्जेंडर”, वो बोला। •

पेरामरिबो, सूरीनाम, लगभग 1970, आर्काइवल पिग्मेंट प्रिंट मीरा मोटर बाइक के साथ, लगभग 1970, आर्काइवल पिग्मेंट प्रिंट कॉस्मिक मैप II, मिक्स मीडिया, 2017

शहर की कहानियाँ

पायेगी। उसने झाड़ू रखा और डस्टर उठा लिया। जैसे ही उसने डस्टिंग शुरू की, उसका मन पिछले कुछ सालों की अनगिनत सफर की यादों में डू ब गया। अपने गाँव से निकलकर, बॉर्डर पार छिपा कर लाया जाना और जबरन शादी जैसी घटनाएं उसकी आँ खों के सामने सभी दृश्य चलने लगे। वो सोचने लगी कि आगे क्या होगा? 19 साल की उम्र में इतना कुछ हो जायेगा, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। उसने डस्टिंग ख़त्म की और स्टोर के शटर खोलने लगी। कॅरीबीयन की तेज़ धूप ने छत्त पाटने वाली पट्टियों से गुजरते ही उसकी आँ खों को कुछ क्षणों के लिए अँ धा कर दिया था। जैसे ही उसे नज़र आने लगा, दरवाज़ा खुला। उसने दरवाज़े की तरफ झाँका। वे मिस्टर खान थे, दक ु ान के मालिक। वे छोटे कद के, मोटे व्यक्ति थे, जो अपने कर्मचारियों के साथ संबंध रखने के लिए चर्चा में रहते थे। उसने माला पर कभी कोशिश नहीं की और माला चाहती थी कि ऐसा ही रहे। मिस्टर कान सुबह हमेशा अखबार के साथ प्रवेश करते। वे बिना बोले सीढ़ियों पर चढ़कर अपने दफ्तर में घुसते। माला बनारस से आये नए सामान के नए डिब्बों को खोलकर साफ़ करने लगी, वहीँ दस ू री तरफ रेडियो वे स्ट इंडीज़ की जीत को याद कर रहा था। माला हमेशा नए सामान को देखकर खुश होती थी, खासतौर पर जो भारत से आया हो। महीम रेशम की साड़ियाँ और बारीकी से बनी हुई साड़ियों को देखकर वह सोचती कि उसकी मातृभूमि में जाने कितनी वास्तविकताएं छुपी होंगीं। उसका

महावीर सिंह बिष्ट

पतझड़ अंक 2019 • खिड़की आवाज़

भ्रमण सु

महावीर सिंह बिष्ट

बह-सुबह घर से सैर के निकलते वक़्त मुझे नुक्कड़ पर चाय पीते हुए लोगों का एक झुण्ड नज़र आया।वे चुपचाप खड़े थे। दिल्ली में अक्सर आप ऐसा दृश्य देखते हैं, तो ऊँची आवाज़ में बात करते हुए लोगों का शोर सुनाई देता है। करीब जाकर देखा तो ये लोग सांकेतिक भाषा में बात कर रहे थे। खिले हुए चेहरे एक दस ू रे के सवालों के जवाब फुर्ती से उँ गलियों को हवा में अलग-अलग आकार बना कर दे रहे थे। मैंने ऐसा दृश्य पहली बार देखा और मंत्रमुग्ध होकर देखने लगा। मैंने भी एक चाय ली और बगल में खड़ा हो गया। अक्सर बस या मेट्रो में आप इक्का-दक्का मूक-बाधिर ु लोगों को बात करते देखते हैं। पर इतने सारे लोगों को एक साथ देखने का अनुभव ही अलग है।वे मुझे देखकर मुस्करा देते। ऐसे में मैं सोचने लगा कि समाज इन्हें सामान्य क्यों नहीं मानता? ये कितनी खूबसूरती से अपनी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो भी बिना शोर मचाये। इसी अद्त भु दृश्य की छवि के साथ मैं घर की तरफ वापस लौट गया। मेट्रो स्टेशन पहुँचने से पहले आजादपुर का एक छोटा बाजार पड़ता है। जिसमें रेडीमेड कपड़ों की छोटी दक ु ानें एक कतार में नज़र आ जाएँ गी। जैसे ही में आगे बढ़ रहा था तो, लोगों के तेज़-तेज़ चिल्लाने की आवाज़ें सुनायीं दे रही थीं। दाहिनी तरफ एक छोटी लोहार बस्ती है। जिसमें बीस-पचीस लोहार परिवार रहते हैं। दो गुट आपस में बहस कर रहे थे। धीरे-धीरे वहाँ भीड़ इकठ्ठा हो रही थी। में एक तरफ खड़े होकर मसले को समझने की कोशिश करने लगा। एक-दो लोगों से पूछकर पता चला कि बस्ती से एक लगभग बीस साल की लड़की गायब हो गयी है। ऐसे में पहला गुट कह रहा है कि उसकी जबरन शादी कराई जा रही थी, इसलिए लड़की भाग गई है। और लड़की के परिवार का मानना है कि पारिवारिक रंजिश की वजह की वजह से पहले गुट ने गायब करवाया है। पर दोनों गुटों में बहस बढ़ती जा रही थी। तभी एक पुलिस वाला आया और दोनों गुटों को शांत कराने लगा। लोग

थोड़े शांत हुए और में आगे बढ़ गया। आगे बढ़ते हुए, दाहिनी तरफ आज़ादपुर कमर्शियल काम्प्लेक्स है। इसमें कई कंपनियों के दफ्तर हैं और बीच में आकाश सिनेमा है, जो कई सालों से बंद पड़ा हुआ । एक ज़माने में, इस सिंगल स्क्रीन पर हर हफ्ते फिल्में लगा करतीं और लोग दरू -दरू से फिल्में देखने आते। मल्टीप्लेक्स के ज़माने में आसपास के कई सिंगल स्क्रीन थिएटर बंद हो गए हैं। नज़दीक ही मॉडल टाउन में ‘अम्बा सिनेमा’ भी पिछले कुछ सालों से बंद पड़ा है। पिछले एक महीने से आकाश सिनेमा में कंस्ट्रक्शन चल रहा है, चारों तरफ नीले रंग की स्टील चादर की एक दीवार खड़ी कर दी गई है । शायद इसे भी मल्टीप्लेक्स में तब्दील किया जा रहा है। यहाँ से आगे बढ़ते हुए किराने की कुछ दक ु ाने हैं। जिन्हें पार करते ही आप मेन रोड पर पहुँच जाते हैं। रोड के दस ू री तरफ आज़ादपुर गाँव हैं, जो दिल्ली के दस ू रे शहरी गाँव की तरह सटे हुए मकानों से गुथा हुआ है। बचपन में मेरे बहुत से स्कूली दोस्त आज़ादपुर गाँव से आते थे।यहाँ से आगे बढ़ते हुए एक पैदल पार से आप मेट्रो में दाखिल हो जाते हैं। ---शाम को काम से लौटे वक्त दफ्तर के एक दोस्त ने कहा कि लायन किंग थिएटर में लगी है, देखने चलते हैं। ‘लायन किंग’ सुनते ही बचपन की यादें ताज़ा होने लगीं। इतनी सुंदरता से जंगल की कहानी को मानवीय ढंग से सिम्बा, मुफासा, नाला, स्कार और अन्य किरदारों के माध्यम से दर्शाया है। एक पूरी पीढ़ी इन्हें देखकर बड़ी हुई है। अफ्रीका की सरज़मीं पर लायन किंग मुफासा का शांतिपूर्ण राज है और रानी सराबी, भावी राजा सिम्बा को जन्म देती है, जिसे रफ़ीकी बन्दर ‘प्राइड रॉक’ की ऊँची चट्टान से, बाँहों में उठाकर जानवरों के समूह को दिखाता है। सभी उत्साह से भरे हुए हैं। लेकिन धूर्त चाचा स्कार खुश नहीं है और एक मायाजाल बुनते हैं। परिवार, त्याग, दोस्ती और सत्ता की इस सुन्दर कहानी को फिर से देखने का अपना ही मज़ा है। हम नेहरू प्लेस के एक मल्टीप्लेक्स में गए। वहाँ सिक्योरिटी कुछ ज़्यादा ही थी। हम थिएटर के अंदर पहुँच गए। नयी

एनीमेशन और लाइव-एक्शन तकनीक वाली फिल्म काफी दिलचस्प लग रही थी। इंटरवल हुआ। मैं पॉप-कॉर्न के लिए बाहर निकलने लगा तो मेरी नज़र पीछे की पंक्ति की तरफ पड़ी। वहाँ एक जाना पहचाना चेहरा नज़र आ रहा था। ध्यान से देखा तो मेरी हँसी छूट गई। पर खुद को संभालकर मैं सिर्फ मुस्कराया। ये तो कांगरे्स नेता राहुल गाँधी थे। राहुल गाँधी अपने फ़ोन में व्यस्त थे। मानो लोगों से नज़रें बचा रहे हों। उनकी एक सीट छोड़कर एक हट्टा-कट्टा गार्ड बैठा हुआ था। एक दो-लोग उनसे बात करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन राहुल गाँधी फ़ोन से नज़रे उठाकर उन्हें देखते और मुक़रा देते और वापस फ़ोन को घूरने लगते। मेरे मन में भी राहुल गाँधी के लिए काफी सवाल थे। पर मैंने सोचा क्या ही पूछें। इलेक्शन की हार के बाद राजनेताओं को भी ब्रेक लेना चाहिए। मैं पॉप-कॉर्न के लेने के लिए बढ़ा। मेरे दिमाग में हमारे प्रधान मंत्री के एक चैनल पर जानेमाने सर्वाइवल एक्सपर्ट बेयर ग्रिल्स के साथ आने वाले एक शो की तस्वीरें चल रही थीं। शो के ट्रेलर में हमारे प्रधान मंत्री बाघों के लिए मशहूर जिम कॉर्बेट पार्क में घूमते नज़र आ रहे थे। एक ओर राहुल गाँधी और दस ू री तरफ माननीय प्रधान मंत्री, हमारे आसपास एक अलग ही ‘लायन किंग’ फिल्म चल रही थी। मैं वापस आया, फिल्म शुरू होने वाली थी। मेरे बगल में बैठे एक भाई साहब ने चुपके से राहुल गाँधी की एक तस्वीर ली। मैंने वो तस्वीर मुझे भी मेल करने को कहा। फिर राहुल गाँधी को भूलकर हम फिल्म में खो गए। रात को घर वापस आते हुए मैंने वही रास्ता तय किया। फुटओवर ब्रिज से आज़ादपुर गाँव नज़र आ रहा था। बाजार सुनसान था। लोहार बस्ती के पास कुछ बच्चे खेल रहे थे। मैंने अपनी गली में प्रवेश किया। वहीँ गोलचक्कर के पास वाली पतली गली में एक मकान के नीचे एक युवा लड़की बैठी हुई थी। उसने सिर उठाकर मेरी तरफ देखा। मैंने नज़रें हटा लीं। वह लगभग बीस साल की रही होगी। कुछ कुत्त्तों की भोंकने की आवाज़ सुनकर मैं तेज़ी से घर की तरफ बढ़ने लगा।

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खिड़की आवाज़ आवाज़••पतझड़ पतझड़ अंअंक क 2019 2019 खिड़की

पूरे अफ्रीका में बॉलीवुड की मौजूदगी को देखना एक अजीब अनुभव था। ज़िम्बावे के जिस घर में हम ठहरे थे, वहाँ पृष्ठभूमि में हर समय बच्चे, वयस्क और हर कोई हिं दी फिल्मों और टी.वी. शो का लुत्फ उठाता नज़र आ जाता।

शिवि भटनागर

पैप, सीमा, ये सब एक इससे थक चाहता

ा क री अफ् ें म

एक फिल्मकार होने के नाते, बॉलीवुड के पागलपन को यूँ सरहद पार देखना काफी मज़ेदार था। ऐसा लग रहा था मानो हम अपनी फिल्मों से मानो ब्रिटिश शासकों की तरह यहाँ के लोगों के दिमाग पर कब्ज़ा कर रहे हैं । मैं मज़ाक में नहीं कह रहा हूँ , दरअसल में कई महिलाओं से मिला जो बॉलीवुड फिल्मों में अदाकारा बनना चाहती हैं । वे मेहँदी, टैटू और अन्य तरीकों से खुद को सजाती हैं । ये सब सिर घुमा देने वाला दृश्य था!

आशंकित? चिन्तित? आपको यूगांडा में ऐसा ही महसूस होगा। काम्पाला के तो क्या कहने! यहाँ की गालियाँ दूसरे शहरों की तरह नहीं हैं । ये व्यस्त, भीड़-भाड़ वाली। आपको हर वक़्त चौकस रहना पड़े गा। अफ़्रीकी महाद्वीप को अक्सर एक ही रं ग में देखा जाता है और कुछ ही बिंदुओं में सीमित कर दिया जाता है । पर असल में यहाँ की विविधता में बहुत सीखने और समझने के लिए मौजूद है ।

वुड ी ॉल

शब्द और चित्रण शिख

कलाकारों के एक समूह ने, प सड़क के रास्ते साउथ अ तय किय वे यहाँ की ज़िन्दगी और स अनुभवों को साझ

दक्षिण

पोर्षो, उगाली- आप इसे जो भी कहें , सा है , उबले हुए मकई का व्यंजन। मैं गया हूँ । मैं खाने में कुछ अलग खाना हूँ । मुझे सिर्फ निराशा हाथ लगी।

मेरे जैसे शाकाहारी के लिए दक्षिण अफ्रीकी देशों में ज़्यादा विकल्प नहीं हैं । यहाँ सिर्फ मकई मिलेगा बिना सूप और कढ़ी के। मैं कम से कम इसमें चीनी डालकर इसे हलवे की तरह खा सकता हूँ ।

एक झ अफ्रीक

सत्या स्वरूप

ज़्यादतर पूर्वी अफ्रीका देशों में में एक ही तरह का खाना होता है । पड़ताल करने पर पता चला कि इसकी जड़ें गुलामी के इतिहास में छुपी हैं । मालिक लोग गुलामों को उतना ही खाना देते थे, जितना खेत में काम करने लिए ऊर्जा दे सके। जानबूझकर पोषण में कमी करना गुलामों का मानसिक विकास धीमा कर देता था। अगर आप अफ्रीका के गुलामी के इतिहास में तह तक जाएं गे तो दिमाग घूम जायेगा।

जिम्बाव

ज़ाम्बिय

एक कलाकार होने की है सियत से मैं खुद को समझाने की कोशिश नहीं करती, मैं चाहती हूँ की दूसरे लोग मेरे काम को अपने नज़रिये से देखें और समझें। एक पैन-अफ़्रीकनिस्ट होने के नाते मैं चाहती हूँ की दूसरे भी एक साथ मिलकर काम करें और ज्ञान को साझा करें ।

तंज़ानि रवांडा यूगांडा

इफे पियांखी मैं इथियोपिया जाने के लिए तड़प रहा था। मूल पूर्वी अफ़्रीकी देशों से बाहर की यह मेरी पहली यात्रा थी। यह उन कुछ देशों में से है जो कभी भी किसी देश का उपनिवेश नहीं रहा है । यहाँ अफ़्रीकी यूनियन का मुख्यालय है । ये पैन-अफ्रीकिनिस्म का घर है , सांस्कृतिक और राजनैतिक तौर पर एकजुट अफ्रीका। यहाँ पहुँ चने पर एक बड़ा बिलबोर्ड हमारा स्वागत करता है ”द लैंड ऑफ़ ओरिगिन्स” (उत्पति की जन्मभूमि ), बिलकुल! कोई वाकांडा का संगीत चला दे।

सूडान जो भी हो रहा है , काफी दुखद है । लोग सरकार परिवर्तन के लिए खार्तूम की सडकों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं । यह देखना दिलचस्प था कि ये प्रदर्शन कितने सुनियोजित ढंग से आयोजित किये जाते हैं । लोग सिर्फ वृहस्पति वार को प्रदर्शन करते और बाकी दिन रोजमर्रा की ज़िन्दगी जीते। हमें लगा काफी अफरा तफरी होगी, लेकिन यहाँ पागलपन में भी विधि थी । *साल की शुरुआत में तख्तापलट से सूडान में नयी सरकार का गठन हुआ है ।

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हम जिन रास्टाफ़ारियन से शाशामने में मिले, फिर भी मुझे पूरी उनका मानना है कि वे यहाँ कैरिबिया से उम्मीद है कि इथियोपिया, आकर बसे हैं । ‘पैन-अफरकिनिस्म’ की यह सुनकर दिल पसीज जाता है कि उम्मीदों पे खरा उतरे गा! इथियोपिया के कुछ लोगों को लगता है कि वे अफ्रीका का हिस्सा नहीं हैं । इस द्वंद से दिल टू ट जाता है । यहाँ इरीट्रिया से संघर्ष का लम्बा इतिहास रहा है । देश के भीतर भी प्रमुख जनजातियाँ में अक्सर लड़ाई होती रही है ।

केन्या

इथियोप सूडान

रोलैंड बायागाबा

गाला सालार

मुझे इन लोगों के योजनाबद्ध तरीके से किये प्रदर्शन पर गर्व हो रहा था। मैंने अपने देश में प्रदर्शन और राजनैतिक उथल-पुथल देखी है , लेकिन ज़्यादातर इन्हें राजनैतिक दल ही उकसाते हैं । लेकिन यहाँ लोग खराब सरकार से थक चुके हैं और इसके लिए वे रचनात्मक तरीके अपना रहे हैं ।

मिस्त्र इस दिलचस्प यात्रा के बारे

www.thegreatafri

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और फेसबुक पर

@ The Great Afi


खांत सबलानिया

केप टाउन के लोग काफी मिलनसार और अच्छे हैं । लेकिन इस शहर को डरावने तरीके से बसाया और बनाया गया है । पूरे शहर को ऐसे प्लान किया गया है कि रं ग के आधार पर लोगों को अलग रखा जाए।

पूरे अफ़्रीकी महाद्वीप को अफ्रीका से मिश्र तक या। संस्कृति से जुड़े अपने झा करते हुए।

इस शहर को उपनिवेश से बाहर निकालने की ज़रुरत है ।

आप केंद्र से जितना दूर जाते हैं , जनसांख्यिकी में अंतर साफ़ नज़र आने लगता है । गोरे से काले की तरफ। उन्हें शहर की सीमाओं की तरफ धकेला गया है । लोगों की सँख्या

झलक का...

पतझड़ अंक 2019 • खिड़की आवाज़

आईडा सिमोनसेन

श्वेत

लोग

या ँख्

स जन

शहर से दूरी

अफ्रीका

आखिरकर मुझे इस सफर में स्वादिस्ट खाना खाने का मौका मिला, चलो इसमें कुछ मसाले तो हैं ! प्राचीन व्यापार मार्गों की बदौलत पूरे महाद्वीप में मसाले मिल जाते हैं । मैं तंज़ानिया में भारतीय समुदाय का शुक्रगुज़ार हूँ कि जाने पहचाने व्यंजन गलियों में खाने को मिले। तंज़ानिया का भोजन अरबी, भारतीय और स्वाहिली का मिश्रण है और खा कर मज़ा ही आ गया!

वे

या

अरब लोगों का शुक्रिया जिन्होंने एशिया और अफ्रीका को कई क्ष्रत्रों में जोड़ा। खास तौर पर मसालों के व्यापार में। दरअसल भारत और अफ़्रीकी महाद्वीप के बीच का इतिहास यूरोपीय औद्योगिक काल से भी पुराना है !

अकरम फिरोज़

किगाली, रवांडा में पहले दिन पहुँ चने पर हम जेनोसाइड मुजेयम गए। हमारे लिए ज़रूरी था कि हम वहाँ जायें और अपनी आँखों से देखें कि 1994 के नरसंहार में वहाँ क्या हुआ था।

िया

वहाँ की प्रदर्शनी से मैं काफी प्रभावित हुआ। ये जानना अजीब लगा कि वहाँ जनजातियाँ गुलामी के काल में दो हिस्सों में बंटी हुई थी। बिना किसी तर्क के हुतु और तुत्सी गुटों में। इस तरह नफरत और अविश्वास के बीज बोये गए और एक पूरे समुदाय का निर्मम सफाया किया गया।

इलका लोटा

पिया

लोग अपने पड़ोसियों की हत्या करने तक क्रू र कैसे हो सकते हैं ? उस वक़्त में अपने देश के युद्ध के बारे में सोच रहा था। बचपन में मैंने कोसोवो और सर्बिया के बीच युद्ध की कहानियाँ सुनीं थी। म्यूजियम मानवता के पतन की कहानी को अच्छे से बता रहा था, ताकि इसे दोहराया न जा सके!

मैं अब धार्मि क तो नहीं हूँ , लेकिन मुझे जब मेरी माँ मुझे संडे चर्च की मास पर ले ये बात परे शान करती है कि ईसाई धर्म जाती थी, वहीँ से संगीत में मेरी रूचि जागी। अफ्रीका में इतना ज़्यादा प्रचलित है और फिर मेरी दिलचस्पी और बढ़ी तो मैं सवाल लोग सच्चाई से इतने दूर क्यों हैं । करने लगी: अगर येसु मर चुके हैं तो आज भी हम उनकी पूजा क्यों करते हैं ? येसु अश्वेत क्यों नहीं हैं ? धर्म उपदेश देने वाले, मैं तो उनसे मेरी माँ पूरी तरह मानती हैं नफरत करती हूँ । लोग उनके पास जाते कि मैं नरक में जाऊँगी! हैं और ज़िन्दगी भर की जमा पूँजी उन्हें दे देते हैं और शुरू होता है क़र्ज़ के बोझ का चक्र और गरीबी। ये कमज़ोर लोगों को यूँ बहलाते फुसलाते हैं ।

अचियेंग ओटीयेनो

में ज़्यादा जानने के लिए

जैसे ही हमने नक़्शे को गलत पढ़ा, हम एक नो-एं ट्री वाले क्षेत्र में पहुँ च गए, हम रोमांच के लिए तैयार थे! कुछ वर्दी वाले लोग ए और हमसे पासपोर्ट माँगा। हमें समझ नहीं आ रह रहा था कि हो क्या रहा है । इसके तुरंत बाद बिना कोई सवाल पूछे, उन्होंने हमें कैरो की हमारी मंज़िल तक पीछे चलने को कहा।

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हे लेन हास्लर

पूरी रात हम अपनी गाडी उनके पीछे चलाते रहे , हमारे दिमाग में तरह-तरह के सवाल चल रहे थे,”हमारे साथ अब क्या होगा? क्या हमें हिरासत में लिया गया है ? क्या हमने कोई गुनाह किया है ? हमे मालूम नहीं था कि हमारे साथ क्या होने वाला है !

अगली सुबह साफ़ हो गया कि वे हमें सुरक्षित स्थान तक पहुँ चा रहे हैं ! ऐसा लग रहा था कि वे किसी भी अकेली टू रिस्ट गाडी को ऐसे ही मदद करते हैं । हम सभी ने एक साथ चैन की सांस ली, पर अपने संशय पर हमें हँ सी भी आ रही थी!

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ओ ट ो स्टै न िं जे र / गे ट् टी इ मे जे स

खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2019

दस ू रापन महसूस कराने के गुपचुप तरीके ज्योत्स्ना सिद्धार्थ

टकराते हैं और आप का उपनाम क्या हाई और आप कहाँ से हैं ? कई मौक़ों पर, आप अपने जीवन के बारे में बात नहीं कर पातेख़ासतौर पर शहरी अपर क्लास वातावरण में, क्योंकि ये आपके अनुभव में नहीं था। ​जब आप कोलेजों और रिसर्च सेमिनार, आप महसूस करते है कि पिछड़ा मानकर सारी नज़रें आप पर हैं। आप स्कालरशिप के लिए संघर्ष करते हैं और विदेशी यूनिवर्सिटी में आपकी संस्कृति के लिये बहुत सी सोसायटी हैं, लेकिन एक भी नहीं जो आपके लोगों का प्रतिनिधित्व करे। आप अपने देश को छोड़कर एक अच्छी जिंदगी की तलाश में अपनी पहचान उजागर नहीं करते, क्यूँ कि इस सबसे आपको आराम चाहिए। आप बिना किसी छाप के इंसान की तरह देखे जाना चाहते हैं। लेकिन ये सुविधा आपके लिए नहीं है। ख़ासतौर पर जब आप ओहदे,

जाति, लिंग, यौनिकता, धर्म और संस्कृति के सबसे निचले पायदान पर हों। आख़िरी बार आपकी जाति के बारे में आपसे - फ़ील्ड वर्क में, ट्रेन में, दोस्त के घर, किसी इवेंट, वर्क शोप या बिस्तर पर पूछा गया था। ये बहुत पुरानी बात नहीं है कि आपको स्कूल में परेशान किया जाता था, आपके काले रंग की वजह से या आपकी अंगरेज ् ी अच्छी न होने की वजह से या आपकी ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण या आपको खाने के समय अलग बिठाया जाता था, या आप अपने परिवार में शिक्षा पाने वाले पहले इंसान हैं या आपकी सिंगल पैरट ें आपको सारी सुविधाएं नहीं दे सकती थीं और आप अपने दोस्तों को समझा नहीं पाते थे, क्यों! आप पूरी दनि ु या और अपने भीतर के राक्षशों से लड़ते रहते हैं, जब आपकी जाती और यौनिकता हिंसा और शोषण का कारण बनती हैं।

पारिवारिक जमावड़े में जब आपकी की ज़िन्दगी को बचकाना, छोटा या खराब रिश्तों का परिणाम माना जाता है। आप अकेला महसूस करते हैं। आपको पहली बार तब अलग महसूस कराया गया था, जब आप अपने पिता से मिले और आपको बताया गया कि आप अनचाहे बच्चे थे। आप किसी तरह स्थिति में ढल जाते हैं और अध्यापकों और साथियों की हँसी को नज़रअंदाज़ करना सीख जाते हैं, क्यूंकि आप स्कूल काम आते हो। आप अपने परिवार की आपकी यौनिकता पर मज़ाक को सुन लेते हैं और आपको बताया जाता है कि आप किसी भी संबध ं के लिए गंभीर नहीं हो सकते। आपको बताया जाता है कि आपके विचार और आपकी ज़िन्दगी किसी ऊँची जाती के इंसान की तरह है, मानो किसी अँगरेज़ की तरह। आपके चुने हुए रास्ते अनिश्चित और अस्थिर हैं। आपको हैरानी नहीं होती जब आप

देखते हैं लोग अपने टॉयलेट साफ़ करने के लिए किसी को काम पर रखते हैं और अलग बर्तन में उन्हें पानी देते हैं। आपकी रूह काँप जाती है, जब किसी दस ू री जाति या धर्म में शादी करने पर प्रेमी जोड़ी का बहिष्कार या हत्या कर दी जाती है। या पहचान बताने पर लिंचिंग की जाती है। आप कहानियाँ सुनते हैं कि बच्चों से स्कूल में टॉयलेट साफ़ कराया जाता है और कहा जाता है कि आरक्षण की वजह से सब कितनी आसानी से मिल जाता है। या सिर्फ आपके उपनाम की वजह से आपको काम मिलता है। इसमें सामाजिक पूँजी या सकरात्मक कार्यवाई बाकी लोगों लागू नहीं होती। जब आपको कहा जाता है कि हम दोनों दस ू री जाति या धर्म की वजह से डेट नहीं कर सकते। ये सारे कृत्य और दस ू रापन की घटनायें कब रुकेंगी ? आप सवाल कीजिये।

रात पर हमारा भी हक

मिली। एक दस ू रे को परिचय देने के बाद, 16 महिलाओं ने वॉक की शुरुआत की। कुछ और लोग रास्ते में जुड़ते चले गए। रात गर्म और उमस भरी थी, लेकिन ये हमारे उत्साह को कम नहीं कर पाए। मुझे ये जानकार हैरानी हुई कि कुछ लड़कियों के साथ उनकी माँ भी आई थी। मैंने एक महिला से पुछा कि यहाँ आने के लिए वो क्यों तैयार हुई।ं वे बोलीं,” मुझे सैर पर जाना हमेशा पसंद था। जब भी मेरे पास वक़्त होता है, मैं वॉक पर निकल पड़ती हूँ। शायद ही कभी रात में वॉक करने का मौका मिलता है। जब मेरी बेटी ने इस वाक के बारे में बताया, मैं ना नहीं कर पाई।” हमारा पहला पड़ाव लाजपत नगर रेलवे स्टेशन था। हम गलियों से गुज़र रहे थे तो कुछ आदमी हैरानी से हमें घूर रहे थे, जो समझ नहीं पा रहे थे कि इतनी साड़ी औरतें इतनी ररात को सडकों पर क्या कर रहीं हैं। सौम्या, जो इस वॉक के आयोजकों में से एक थी, हमें जंगपुरा के इतिहास के बारे में बताने लगीं,”जंगपुरा को कर्नल यंग के नाम पर यंगपुरा के नाम पर जाना जाता था। उन्होंने इस कॉलोनी की नींव राखी। आज़ादी के बाद हुए बंटवारे के बाद दिल्ली में 1950-51 में आये प्रवासियों के आने से इसका विस्तार हुआ। आज यहाँ बहुत से अफगानी और ईरानी लोग भी रहते हैं।” स्टेशन पहुँचने पर हमने थोड़ा विश्राम किया। कुछ लोग, जो यहीं रहते हैं, के अलावा, स्टेशन पूरा खाली था। हममें से कुछ पुल पर चढ़कर नीचे जाती ट्रेनों को देखने लगे। ऐसा लग रहा था मानो हम किसी कहानी में हों। अचानक वहाँ एक गार्ड आया और हमें जाने को कहने लगा। वह नहीं चाहता था कि किसी भी अनहोनी की स्थिति में उसका नाम आये। निराश होकर हम आगे बढे । हम भोगल की अफगानी प्रवासी वाली गली की

तरफ बढे । वहाँ बहुत सी अफगानी बेकरी और खाने की जगहें थीं।सुन्न पड़ी गलियों में “फेमस अफगानी बर्गर” के ठे लों को हमने पीछे छोड़ा। मैंने संगठन के बारे में जानना चाहा। वहाँ “वी वॉक एट मिडनाइट” की मेंबर मेघना मौजूद थी। वह बताने लगी “ वी वॉक एट मिडनाइट की कल्पना 2012 में हुई, जब इसकी संस्थापक मलिका तनेजा ने ज्योति पांडेय के क्रूर बलात्कार और हत्या के लिए वॉक किया। तबसे 2018 तक उन्होंने सात वॉक का आयोजन किया। इसके बाद दिल्ली की अलग-अलग जगहों में हम हर महीने वॉक का आयोजन करते हैं। अगले महीने अगस्त की 14 और 15 तारिख को हम बारह घंटे लम्बी रिले वॉक का आयोजन कर रहे हैं।” जब मैंने उनसे पूछा कि इन वॉक से वे क्या हासिल करना चाह रहे हैं, तो उन्होंने बताया,” सब इन वॉक से कुछ न कुछ ले जाते हैं, कईयों के लिए ये एक आध्यात्मिक अनुभव होता है। दस ू रों के लये ये आज़ादी और हक जमाने का तरीका है।” मैं उनकी बात से सहमत थी। मेरे लिए ये आज़ादी और ख़ुशी का अनुभव था। मैंने कभी भी दिल्ली की गलियों में चलते हुए इतनी शांत और निर्भीक महसूस नहीं किया। दिन में भी नहीं। ये आज़ादी का अनुभव था। असुरक्षित होने के कारण, दिल्ली को अक्सर रेप कैपिटल कहा जाता है। 2012 की दख ु द घटना के बाद ज़्यादा कुछ बदला नहीं है। जबकि बहुत से विरोध प्रदर्शन के बाद, सत्ताधरी लोगों ने बहुत से वादे किये थे। गीतिका, जो वॉक में हमारे साथ थीं, ने इस अनुभव के बारे में कहा कि.” इस वॉक से मुझे सशक्त महसूस हुआ। दिल्ली में तो दिन में बाहर निकलकर चलना मुश्किल है, रात की बात तो छोड़ ही दें। औरतों का इस तरह रात में निकलना गज़ब का अनुभव है। रात

में बहुत से पुरुष हमें देख रहे थे, लेकिन हमारी सँख्या ज्यादा होने से हमें हिम्मत मिल रही थी। दःु ख की बात तो ये थी कि पुलिसवाला हमें यहाँ से जाने को बोल रहा था, क्योंकि कोई अगर हमें परेशान करे तो वो जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था।” आदमियों की घूरती नज़रों और कुछ सीटियों की आवाज़ों के बीच हम निजामुद्दीन की दरगाह की तरफ बढे । बाकि जगहों के मुकाबले, दरगाह में इस समय भी चहलपहल थी। चाय की दक ु ान के आसपास बात करते हुए आदमियों का एक झुण्ड खड़ा था।जैसे ही हम वहाँ गुज़रे, वे रूककर हमें देखने लगे। एक दो चक्कर काटने के बाद हम, दरगाह के नज़दीक फर्श पर बैठ गए। हमारे आसपास यात्री अपने सामान को तकिये की तरह इस्तेमाल करके सो रहे थे। ऐसे लग रहा था मानो पूरी दरगाह दिन की थकान से सो रही हो। वहाँ के लोगों ने हमें चाय दी और थकान मिटने लगी और मन शांत हो गया। हमने लोगों को चाय के लिए धन्यवाद दिया और बावली देखने के बाद हम दरगाह से निकल गए। हमने कबाब और टिक्के खाये और एक दस ू रे को घर पहुँचने के बाद मैसेज करने का वादा कर विदा ली। वॉक से मैं थक गयी थी, लेकिन मैं संतुष्ट थी। मुझे लगा मैंने कोई बड़ा काम किया है और मेरे सिर से मानो एक बड़ा बोझ उतर गया है। हो सकता है वॉक में आये मेरे साथियों के नाम भूल जाऊँ, लेकिन मैं कभी नहीं भूलँूगी कि मुझे कैसा महसूस हुआ- खुश, आज़ाद और ज़िंदा। रात में गलियों में घूमने के बाद भी मुझे सुरक्षित महसूस हुआ। मेरे साथ चल रही सभी महिलाओं को भी ऐसा ही महसूस हुआ। कितना अच्छा होगा कि दनि ु या भर के हर शहर की महिलाओं को भी ऐसा ही महसूस हो!

दू

सरापन और अलग महसूस कराना चुपचाप, उकसाकर या आपको असहाय महसूस कराकर किया जा सकता है। इसका हमला कहीं भी हो सकता है, किसी पार्टी में, या जब आप पूर्व जों की ज़मीन, धरोहर या पारिवारिक रीतिरिवाजों की बात कर रहे हों, तब भी। आप अपनी कम आय वाली गली के बारे में सोचते हैं, तो ख़याल आता है कि बाक़ी लोग कहाँ रहते हैं और आप कहाँ। आपको बार बार बोला जाता है कि आप निचले तबके के नहीं लगते और उसके तुरत ं बाद कि ये आपकी अच्छी क़िस्मत है। आप कैफ़े, सामूहिक आयोजनों और सड़कों पर सामान्य नैन नक़्श वाले लोगों को भंगी, चूड़ा या चमार कहा जाता है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में चलते हुए आप अचानक किसी अजनबी से

वीमेन वॉक एट मिडनाइट के 14-15 अगस्त, 2019 की 12 घंटे लम्बी वॉक का पोस्टर

है। मैंने यहाँ के गली-कूचों, प्रियशि बुबना बाज़ारों, मॉल और सिनेमा ज़रूर देखे हैं, लेकिन भरी दोपहरी में। क मैं बार इस बर्बाद शहर से मेरा कई बार मन होता है कि शहर होकर गुज़री को रात में देखँू, लेकिन अनजान एक अकेले पक्षी से मैंने पूछा डर से कभी कदम बाहर रखने की ’इस जंगल को तू क्या जानता है? हिम्मत नहीं हुई। कभी सोचा भी ‘ नहीं। उसने उत्तर दिया: ‘मैं इसे दो मुझे एक दोस्त से ‘वी वॉक ऐट शब्दों में समेट सकता हूं: मिडनाइट’, नाम के एक संगठन के हाय हाय!’ बारे में पता चला, जो शहर में दिल्ली सुबह से ही, पूरे दिन, महिलाओं के लिए रात में वॉक का चहल-पहल और गतिविधियों से आयोजन करते हैं। इस बार वे इस कदर भरी होती है कि एक पल जंगपुरा में , वॉक का आयोजन कर साँस लेना मुश्किल हो जाए। पर रहे थे। मैंने झट से रजिस्टर किया। शाम का सूरज ढलते ही, खुद को वॉक की रात के लिए मैंने- एक रहस्य की चादर में ढक लेती है। स्कार्फ़ , एक पानी की बोतल एं ड गलियों का सन्नाटा ऐसा कि आत्मा सुरक्षा दृष्टि से पेप्पर स्प्रे भी साथ को चीर दे। पिछले कुछ साल यहाँ रख लिया। मैं 20 जुलाई की रात रहते हुए मैंने शहर को ऐसे ही देखा को ग्रुप से जंगपुरा मेट्रो स्टेशन पर

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क ही दिन ने सत्या के जीवन में कोलाहल मचा दिया था। उसके शरीर का तापमान अपने चरम पर था और उनका दिमाग रसातल में था। कई श्रम िकों को खाली पे ट काम पर जाना पड़ा। दो दिनों से , कोई चाय नहीं थी, इसलिए कोई बातचीत नहीं हु ई । सत्या अब कमरे में नहीं रह सकता था, वहाँ किराया और अन्य खर्च लंबि त थे । तीसरे दिन वह फिर से उठा, यह हमदर्द से सड़कों के लिए पु न र्ज न्म का क्षण था।

व्यक्ति 1: वाह, खिड़की की विश्व प्रसिद्ध चाय। व्यक्ति 2: हम आपको याद कर रहे थे , आप बहु त गै र जिम्मेदार हैं । सत्या (मु स ्कु राते हु ए ): नहीं, नहीं, मैं अछू त हूं । आप मु झ से चाय क्यों पी रहे हैं ? क्या यह मना नहीं है ? व्यक्ति 2: इसके लिए क्षमा करें। मे र ा दिमाग खराब हो गया था। व्यक्ति 1: इतना आसान नहीं है , आपको पहले हमें एक उपहार दे न ा होगा। व्यक्ति 2: बिल्कुल! आपको क्या चाहिए, सम् राट सत्य? सत्य: एक गरिमापू र्ण जीवन। इसे छोड़ो। क्या आपने अशफाक के बारे में कु छ सु न ा है ? व्यक्ति 1: पुल िस द स ू रे दिन यहां थी, उन्होंने उसके कमरे पर छापा मारा और बे त रतीब ढं ग से लोगों से सवाल पू छे । सत्या: क्या सवाल? व्यक्ति 2: ओह, वे सिर्फ स्थिति को नियंत्रि त करने की कोशिश कर रहे थे और सभी को सवालों के साथ परेश ान कर रहे थे । वह तु म ्हारे बारे में भी पू छ रहा था। सत्या: क्यों? क्या पू छ रहा था? व्यक्ति १: यह छोड़ो, सत्य। मे रे पास बताने के लिए कु छ और है । तु म ्हें पता है कि मैं कल एक शरणार्थी व्यक्ति से मिला था। व्यक्ति 2: आप कै से जानते हैं कि वह एक शरणार्थी है ? व्यक्ति 1: क्या मतलब? व्यक्ति 2: आप कै से जानते हैं कि वह एक अवै ध अप्र व ासी नहीं है ? व्यक्ति 1: मु झे नहीं पता यह सब, बात सु न ो! उसका नाम है …।

चार एक्ट का अंतिम भाग, स्टीवन एस जॉर्ज द्वारा रचित। प्रवासी समुदाय के अनुभवों पर आधारित।

उसका नाम छोड़ दो। वह म्यांमार से हैं । वह एक कवि होने का दावा करता है और इस कविता में अपनी कहानी साझा करता है । “मैं के वल दो चीजें सिखाता हूं , हे शिष्यों, दख ु की प्र कृति और दख ु की समाप्ति। ” हे गौतम, आपके शिष्यों ने के वल दो चीजें सीखीं, दस ू रों को कष्टों की प्र कृति, दस ू रों का अं त अर्हत बनने के लिए, आत्मा को सफाई की आवश्यकता होती है । म्यांमार में अरहत ने , राखीन के सं पू र्ण मु स ्लमान आत्माओं का सफाया किया। लोगों का शासन लोकतं त्र है , लिबर्टी। समानता। भाईचारा। हमने लोकतं त्र की प्र तीक्षा की, हमने सै न ्य तानाशाही के अं त की प्र तीक्षा की।

दिया व्यक्ति 2: मु झे नहीं पता था कि इतनी बु री स्थिति होती है , जब कोई अपने दे श से भागता है । व्यक्ति 1: अब आप समझ गए हैं कि अगर यह अवै ध अप्र व ासी या

पुल िस (चाय की चु स ्की ले ते हु ए ): यह तो वास्तव में बहु त बढ़िया है । इसके लिए कितना? सत्या: 6 रुपए। पुल िस: यह 150 रुपए और यह मे रे 6 रुपए।

के दोस्त स्टॉल पर आते हैं और सत्या को बर्तन साफ ​​करते हु ए पाते हैं । व्यक्ति 2: तु म ्हें पता है क्या! व्यक्ति 1: आज, जब सफाई कर्मचारी फर्श की सफाई कर रहा था, तो उसे

सत्या: सर, आप मु झे ये 150 रुपए क्यों दे रहे हैं ? पुल िस: वह आदमी जिसे हमने पकड़ा था, उसने मु झ से यह निवे द न किया था कि मैं यह पै से तु म ्हें दँ ।ू मैं सख्त आदमी हूं और आमतौर पर ऐसा नहीं करता, लेकि न मैं उसे मन नहीं कर पाया। अब मैं चलता हूँ । सत्या: लेकि न सर, उसका क्या हु आ ? पुल िस: वह बां ग ्लादे श से नहीं था, वह बां ग ्लादे श से यहां आया था। वह वास्तव में म्यांमार से हैं । सत्या: और अब? पुल िस: अगले सप्ताह उसे उसके दे श भे ज दिया जाएगा। पुल िस अधिकारी बिना पीछे दे खे चला जाता है । सत्य अं द र से लगभग मृ त है । अपने जीवन में कभी भी सत्या ने कु छ इस तरह की कल्पना नहीं की थी। शाम ठलते ही , सत्या

एक घड़ी मिली! सत्या (बोझिल और उदास आवाज़ में ) : लेकि न समय निकल गया। सत्या ने सभी बर्तनों को रगड़ रगड़ के ऐसे साफ किया, जै से कि उन्होंने उसके साथ कु छ गलत किया हो। खिड़की की सड़कें एक लम्बे दिन के बाद सोने की तै य ारी कर रही थीं। कु छ बच्चे दौड़ रहे थे , द क ु ानदार बही-खाते बना रहे थे , कु त्ते भौंक रहे थे , लोग शराब पी रहे थे , आदमी और औरत लड़ रहे थे । लोगों की उदासीनता से सत्या को चिढ़ हो रही थी। अपनी पीड़ा को शां त करने का एकमात्र तरीका, उसका बह्र म ास्त्र, बीड़ी था। बिना तारों के आकाश की ओर दे ख ते हु ए , उसने उस कविता को पड़ना शु रू किया जो शायद अशफाक ने लिखी होगी।

वैचारिक चित्रण : स्टीवन एस जॉर्ज

न्याय

पतझड़ अंक 2019 • खिड़की आवाज़

लिबर्टी, निर्वाचित सरकार ने हमारा सब कु छ जला दिया, समानता, अल्पसं ख ्यक समु द ाय नरसं ह ार का सामना करते हैं पु रु ष, महिलाओं और बच्चों के बलात्कार और हत्या की। लोकतं त्र ने एक और नोबे ल शांति पु र स्कार जीता। मां की भू ख से मौत हो गई जं ग ल में बहन का बलात्कार बाजार में भाई की हत्या पिता कहीं नहीं मिले कई दिनों तक दौड़ने , तै र ने के बाद, मैं रहने के लिए द स ू री जमीन पर पहुँ च जाता हूँ वहां कहीं पर्याप्त भोजन नहीं था, ड्र ग्स और गोलियाँ बर्फ की तरह नसों को ठं ड ा करती हैं रस्सी से लटकने के लिए छत नहीं मैं अपनी नसें दो बार काट चू क ा हूँ , हे गौतम मैं तु म से रोता हूँ , यह द ख ु कब भागे ग ा? (सत्या की द क ु ान पर एक तरफ चाय उबल रही है और द स ू री तरफ दक ु ान में बै ठे तीन आदमियों की आं खों से आं सूं निकल रहे हैं ) व्यक्ति 1: सत्या,दे ख दे ख ! चाय! चाय!!! सत्या: ओह धत्त! मैं ने ध्यान नहीं

शरणार्थी है तो इससे कोई फर्क क्यों नहीं पड़ता? सत्या: क्या यह अशफाक द्वारा लिखा गया था? व्यक्ति 2: यह कै से सं भ व है , वह बां ग ्लादे श से था। व्यक्ति 1 (जल्दी में झिझकता और उठता है ) : हम काम पर निकलते हैं अन्यथा हमें दे र हो जाएगी। सत्या ने अपनी चाय बे च ना जारी रखा। सत्या का शरीर चाय परोस रहा है और पै से ले रहा है , जबकि उसका दिमाग एक तबाही में है । उनके स्टाल पर पुल िस कां स ्टेबल आता है । पुल िस: तु म रो रहे हो? सत्या: नहीं, यह प्र द ष ू ण की वजह से है । पुल िस: ओह। मे रे लिए एक चाय बनाओ, मैं ने तु म ्हारी चाय के बारे में बहु त सु न ा है ।

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लेखनी 9


खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2019

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अदृश्य कामगार लोग तस्वीर: अं क ित चटर्जी शब्द: मालिनी कोचु प िल्लै

ब हम सभी अपनी रोज़ाना की ज़िन्दगी भौतिक सु खों और एयर कं डीशनर की हवा में गु ज़ा र रहे होते हैं , तब हर समय शहर के अँ धे रे कोन, काम करते हु ए लोगों की ऐसी भीड़ से भरे हु ए होते हैं , जो हमारी ज़िन्दगी को जीने लायक बनाते हैं - निर्माण, सफाई, छँ टाई, वेल्डिं ग, व्यापार, व्यापक, छं ट ाई, वितरण, खाना पकाने , धु ल ाई करते हु ए लोग.... ये सू ची बहु त लम्बी है । वे पौ फू टते ही अपनी भारी भरकम रेहड़ियों में ताज़े फल और सब्ज़ी हमारे दरवाज़े तक लाते हैं । वे घनी आबादी वाली बस्तियों में छोटे - छोटे कमरों में रहते हैं । ताकि पै से बचाकर अपने घर भे ज सकें । वे गर्म और कठिन परिस्थियों में काम करते हैं , ताकि हमारे घर और दफ्तर साफ़ और नये दिख सकें । शहर के प्र व ासी कामगार लोग इसकी धड़कन हैं , जो शहर को चलाते और ज़िंदा रखते हैं । अंकि त चटर्जी की पोट्रैट श्रंखल ा इनकी ज़िन्दगी और जीविकि की कहानियों को दर्शा रही 3 है । उन्हें ये तस्वीरें खींचते हु ए पता चला कि पू रे दे श से रोज़गार की तलाश में लोग शहरों की तरफ रुख करते हैं । काम मिलने पर भी मु शील से ही गु ज़ा रा हो पाता है । कु छ मज़द रू ों से बात करने पर, आजादपु र इं डस्ट्रि यल एरिया में काम कर रहे जगदीश ने बताया,” फै क्ट्री के मालिक ने हमें एक कमरा दिया है , जिसमें 15 से 20 लोग रहते हैं । ये बहु त छोटा कमरा है । हम यहीं खाना बनाते हैं , आराम करते हैं और ज़िन्दगी का गु ज़ा रा करते हैं । ” बाकियों ने भी बताया कि कभी-कभी हमारा शोषण होता है और काम करने में दिक्कत भी आती है , पर कोई और चारा नहीं है । ज्यादातर अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य हैं और कमाकर पै स ा घर भे ज ते हैं । सोचने और विरोध करने का तो विचार भी नहीं आता। अंकि त आज़ादपु र , मायापु री और जी.टी. करनाल रोड में इनकी ज़िन्दगियों को कै द करते हु ए बहु त सी कड़वी सच्चाईयों से रूबरू हु ए । मुश ्किल काम के हालात के बावजू द वे आराम के लिए वक़्त निकाल ही ले ते हैं । उनके हाशिये और उपेक् षित अस्तित्व में से जो भी बन पाता है , वे उम्मीद ढू ं ढ ले ते हैं । ये तस्वीरें शहरों के लिए इस अथक से व ा के लिए अहमियत दे ने का एक छोटा सा कदम हैं ।

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1. मायापुरी की एशिया की सबसे बड़ी कबाड़ मार्किट में सुरेश। वह गाड़ी के छोटे पुर्ज़े निकालकर अलग करता है। इसके बाद कार को काट कर धातु निकाला जाता है। मार्च, 2018 2. तापस दास, जो कोलकाता से हैं, आज़ादपुर इं डस्ट्रियल एरिया में 2016 से काम कर रहे हैं। मार्च 2018 3. मज़दूर दिन के खाने के बाद आज़ादपुर इं डस्ट्रियल एरिया में आराम करते हुए। मार्च 2018 4. अरुण एल्युमीनियम की पट्टी को चपटा करते हुए, ताकि उससे बर्तन बनाये जा सकें। अप्रैल 2018 5. जगदीश की आज़ादपुर इं डस्ट्रियल एरिया में अपनी मैकेनिक की वर्क शॉप है। अप्रैल, 2018 6. मायापुरी के कबाड़ मार्किट में दिन की मेहनत के बाद कामगार आराम करते हुए। मार्च 2018

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वक़्त में पिरोया एक धागा

पतझड़ अंक 2019 • खिड़की आवाज़

खिड़की एक्सटेंशन के नए सोशल एं टरप्राइज ने, कबाड़ को ख़ुशी के पुलिंदों में बदल कर, नए उदाहरण स्थापित किये हैं। साथ ही रोज़गार और आजीविका के नए द्वार खोले हैं।

लैंडफिल से बचाये गए बेकार कपड़े से बनी हुई अपसाईकिल की हुई गुड़िया

सिलाईवली एक सामाजिक उद्यम है जो लगभग आठ महीने पहले खिड़की एक्सटेंशन में शुरू हुआ था, जो सरप्लस वेस्ट मटेरियल से हस्तनिर्मित गुड़िया बनता है। गुज ं न की अगुवाई में टीम में 12 महिलाएं हैं। सिलाईवाली में काम करने वाली महिलाएँ अफगानी शरणार्थी हैं, जिनमें से अधिकांश पड़ोस में अपने परिवारों के साथ रहती हैं। इस पहल की स्थापना आइरिस स्ट्रिल और बिश्वदीप मोइत्रा ने की थी, जो सामाजिक उद्यम को ऐसे व्यवसाय के रूप में परिभाषित करते हैं जिसमें “लाभ है और नैतिकता है, हम पर्यावरण, लोगों और मजदरू ी की परवाह करते हैं।” दिल्ली-एनसीआर कपड़ा निर्माताओं के लिए एक प्रमुख स्थान है, और यहाँ भारी मात्रा में कपडे की कतरनें उत्पन्न करता है। सिलवाईवाली इन कतरनों को खरीद कर इन्हें पुन: उपयोग में लाती हैं, जिससे यह कचरे में जाने से बच जाती हैं। अफगानी शरणार्थी महिलाऐं ने इन डिजाइनर उत्पादों को बनाने के लिए ज़रूरी कौशल हासिल करने के लिए 1 महीने की एक गहन कार्यशाला से गुजरीं। यह सामाजिक उद्यम खुशी, मानव विकास और अर्थव्यवस्था पर अमर्त्य सेन की रिपोर्ट से प्रेरित होकर काम के

वातावरण को खुशहाल बनाने का प्रयास करता है। महिलाऐं 1 घंटे के लंच ब्रेक के साथ सोमवार से शनिवार तक 7 घंटे काम करती हैं, और उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन, प्रति माह 14,000 रुपये, का भुगतान किया जाता है। आइरिस स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने और एक डिजाइन उत्पाद में विभिन्न आयामों की खोज करने में विश्वास करती हैं। इनके द्वारा बनायीं गयी गुड़ियाँ, हल्की चमड़ी वाली, सुनहरे बालों वाली गुड़िया की सर्वव्यापकता और आधिपत्य को तोड़ने का एक प्रयास है। इनके द्वारा बनायीं गयी गुड़ियाँ विशेष रूप से भारतीय या अफगानी पारंपरिक गुड़िया नहीं हैं, वे दनि ु या भर के विभिन्न समुदायों और जातीयताओं को दर्शाती हैं। हर गुड़िया को विशिष्ट रूप से विभिन्न प्रकार के कपड़ों के साथ तैयार किया जाता है। गुड़िया की लागत श्रमिकों के वेतन का 55% कवर करती है। यह उद्यम सामाजिक उद्यम के लिए संयक्त ु राष्ट्र द्वारा निर्धारित लागत और मानदंडों का पालन करता है। मेड 51, और UNHCR इसके विपणन सहयोगी हैं, और फेयर ट्रेड फोरम इंडिया इनका कार्यान्वयन भागीदार है। यह सामाजिक उद्यम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मानदंडों का पालन करता है। यह गुड़ियाँ भारत और दनि ु या भर में विभिन्न

पुरुषों के लिए ग्रूमिंग स्कूल

आज ही दाखिला लें

किच

लेवल 1: नौसिखिया

न मैनेजमेंट

निभायें

अपनी ड्यूटी

लम

ारी मैनेजमेंट

खुद खोजें

क्योंकि आपकी रोटी भी यहीं से आती है

साफ -

जी नि

मोज़े

जहाँ से मिला वहीँ रखें

ियर चॉइस कर

बच्

पाल ना चे

समझौता करें

अपने

ब्रश करें क्योँकि ये आपने फैलाया है

कौन है वो जो एक जिम्मेदार पति है एक अच्छा पिता है एक सुशील दामाद है

ाई

करें साफ कचरा

मर्द बनें

सभी संस्

ें ीख

े मेंट मनै ज

द सीलाईवाली स्टू डियो में गुड़िया बनाती महिलायें

सफ

होम

के जीवन में एक संघर्ष है, जिसमें संगीत, हंसी, और एक दज ू े का साथ दर्द और पीड़ा को कुछ देर के लिए नजरअंदाज करने में मदद करता है।” बिश्वदीप ने हमें अपने उद्यम के विस्तार की उनकी भावी योजनाओं के बारे में बताया, जिससे और अधिक अफगानी शरणार्थी महिलाओं को रोजगार मिलेगा। 12 महिलाओं के पहले समूह ने 30 और महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और वे कपड़े से जानवर , घर की सजावट, आभूषण और बेकार कपड़ों से बने की-बोर्ड जैसे नई चीज़ों का उत्पादन करने जा रही हैं। बिश्वदीप के मार्गदर्शन में, कुछ युवा लड़कियां स्टूडियो में फोटोग्राफी और डिजाइनिंग भी सीख रही हैं।

कार

औरतों की ग्रूमिंग के लिए बहुत से स्कूल हैं, सब कुछ सिखाया जाता है, घर-गृहस्ती संभालना, संस्कार, अच्छी बहु बनना, खाना और बातचीत के तरीके आदि। अगर आप मर्दों के लिए ऐसा स्कूल ढूँ ढना भी चाहें तो नहीं मिलेगा।’मर्दों को लिए ग्रूमिंग स्कूल’ के लिए आज का समय बिलकुल उचित है। लेकिन शुरुआत कहाँ से करें ?तो हम पेश करते हैं, मर्द खुद को एक वेल ग्रूम्ड महिला से शादी के लिए खुद को कैसे तैयार करे ताकि उन्हें कभी पीछे न रहना पड़े।

पुरुषों के लिए ग्रूमिंग

दक ु ानों में उपलब्ध हैं, और इन्हें विभिन्न फण्डरेजिंग कार्यक्रमों में भी प्रदर्शित किया गया है। 19 साल की मुस्कान, जिसने सिलवाईवाली में अपनी पहली नौकरी ली है, अफगानिस्तान की स्थिति के बारे में कहती है, “अफगानिस्तान में किसी को भी कभी पता नहीं होता कि घर से बाहर निकलने पर क्या होगा।” भारत में शरणार्थियों के लिए संघर्ष का एक अलग सेट है। “अफगानी शरणार्थियों को दिल्ली में लोग बहुत अमीर मानते हैं, जिसके कारण वे हमसे ऊँचे किराये मांगते हैं।” समुदाय को उनके गोरे रंग के कारण एक अमीर विदेशी माना जाता है। उन्हें उचित पारिश्रमिक के साथ नौकरी खोजने में विभिन्न कठिनायिओं का सामना करना पड़ता है। शबनम, एक 21 वर्षीय लड़की, जो तीन कम तनख्वाह वाली नौकरियों के बाद सिलवाईवाली में शामिल हुई है, एक शरणार्थी के रूप में अपने जीवन को काफी कठिन बताती है। लेकिन इस नई नौकरी में काम करने से उसे मदद मिली है। वह हमें सिलवाईवाली स्टूडियो में माहौल के बारे में बताती है- संगीत और हँसी से भरपूर। महिलाएं अफगानी गीतों-लोकप्रिय संगीत, लोकगीतों और शादी की बोलियों को सुनती हैं, और चुटकुले सुनाती हुई उनकी याद ताजा करती हैं। वह कहती हैं, “शरणार्थियों

तस्वीर: सुनीता सिं ह

स्टीवन एस जॉर्ज और सुनीता सिंह

शबनम ने यह कहते हुए बातचीत को समाप्त कर दिया कि “हम यहाँ सुरक्षित हैं लेकिन हम अभी भी अपने घरों को याद करते हैं”, वे बिना किसी अधिकार के, एक शरणार्थी के रूप में रहते हुए, ऊँचे किराए दे देकर थक गए हैं। उथल-पुथल के बीच, सिलवाईवाली इन महिलाओं के लिए आशा और स्थायी आय की किरण बन गई है, जिससे उन्हें एक विदेशी देश में जीवन का सामना करने में मदद मिलती है। यह भारत में उत्पादित कतरनों के बढ़ते कचरे को पुन: उपयोग कर, संघर्षरत शरणार्थियों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक असाधारण प्रयास है। शरणार्थियों के जीवन में अनिश्चितता एक निरंतर तत्व है- सिलवाईवाली जैसे कुछ संगठन इन के जीवन में आत्मविश्वास और सामान्य स्थिति लाने के लिए प्रयासरत हैं।

और

नहायें

च्युइंग गम और एक्स डीयो काफी नहीं

डकार क्योंकि बीवी भी काम करती है

और

मल

क्योंकि सिर्फ शुक्राणु देना काफी नहीं

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खिड़की आवाज़ • पतझड़ अंक 2019

लिं ग के ध्रु व ों से परे

पावेल सगोलसेम खुद की पहचान जेंडर फ्लूइड, नॉन-कन्फोर्मिंग, नॉन-बाइनरी ट्रांस पर्सन बताते हैं। उन्होंने खिड़की आवाज़ से अपने सफर, खुद को समझने और स्वीकारने और उम्मीदों और सपनों के बारे में विस्तार से बताया। वेदिका: पावे ल, आपका नाम काफी दिलचस्प और अलग है, इसका मतलब क्या है ? पावे ल: शुक्रि या! मे री माँ ने मुझे ये नाम दिया है - यह एक आम रुसी नाम है, जिसका मतलब है “द लिटिल वन” (छोटा बच्चा)। मे री माँ को पढ़ना पसंद है, उन्होंने मुझे मैक्सिम गोर्की के उपन्यास के एक वर्किंग क्लास एक्टिविस्ट के नाम पर रखा है। मैं माँ से कभी-कभी मज़ाक में कहती हूँ कि उन्होंने मे री किस्मत भी तय कर दी है। म: अपने बचपन और बड़े होने के बारे में कुछ बताइये । पा: मैं मणिपुर में बड़ी हुई, एक बड़े जॉइंट फैमिली में । मे री माँ एक मज़बूत महिला हैं और मे रे पिता काफी तर्क वाले व्यक्ति। मे रे मन में उनके लिए काफी इज़्ज़त है, क्योंकि

वे एक ईमानदार और सच्चे इंसान हैं। लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा दादी और नानी पसंद हैं, वे दोनों हमे शा मे रे साथ खड़े रहे, मे रे खुलकर बाहर आने के बाद भी। उन्होंने मे रे स्त्रीत्व को ले कर कभी कुछ नहीं कहा। मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूँ, पर कभी उनके ज़्यादा करीब नहीं थी- शायद मे रे स्त्रीत्व व्यवहार को ले कर वे खुश नहीं थे । मैंने सोचा कि मुझे अपनाये ना जाने से मैं निराश नहीं हूँगी, बल्कि साथ देने वाले और सवाल न करने वाले दोस्तों का समूह ढू ं ढ लूँगी। इस तरह दोस्त मे रा दस ू रा परिवार बन गए थे । पढाई में अच्छा होने से काफी मदद मिली। मणिपुर एक ऐसी जगह है, जहाँ लोगों का रुझान पढाई की तरफ ज्यादा नहीं रहता, जिससे मुझे फायदा हुआ।

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पावेल मणिपुर में अपनी नानी के साथ।

मौका था कि मैं लीडरशिप रोल अपनाऊँ। सीनियर बाकी लोगों को मे रे जैसा बनने के लिए कहते । कॉले ज में लोकप्रिय होना अच्छा अनुभव था, इससे मुझे काफी आत्मविश्वास मिला। म: बड़ौदा में निजी ज़िन्दगी कैसी थी ? पा: बचपन में मुझे लगता था कि सब क्वीयर होते हैं और कोई भी एक दस ू रे के साथ से क्स कर सकते हैं। मुझे स्कूल में पता लगा कि समलैंगिक से क्स को अच्छा नहीं समझा जाता। इस तरह मर्दों से बात करने में शर्म आती थी। बड़ौदा में , मुझे एक सीनियर से लगाव हो गया और हम प्यार में पड़ गए। किसी औरत की बजाय पुरुष के साथ जीवन बिताने की सोचना गज़ब का अनुभव था। म: आपको क्वीयरने स और उसकी अभिव्यक्ति के बारे में कैसे पता चला? पा: क्वीयरने स की मे री समझ सोशल मीडिया से बढ़ी। मैंने बहुत से ऐसे ऑनलाइन ग्रुप ज्वाइन किये । ऐसा लग रहा था मानो मैंने खुद को ही ढू ँ ढ लिया हो। फिर मैं हैदराबाद में मास्टर्स करने के लिए गई। पहली बार मुझे बिना किसी डर के, अपने जन्म के लिंग को अभिनीत करने का मौका मिला। हमारे कैंपस में बहुत से अंतराष्ट्रीय, जो क्वीयर थे । इससे मुझे खुद को अभिव्यक्त करने का मौका मिला।

वे : आप कौनसे सर्वनाम इस्तेमाल में लाते हैं ? पा: मुझे ‘ज़ी’ सर्वनाम अच्छा लगता है। ये ‘ही’ और ‘शी’ का मिश्रण है। मैं इससे खुद को जोड़ पाती हूँ, क्यूँकि मैं ‘ट्रांस पर्सन’ हूँ, लेकिन ‘ट्रांस वुमन’ नहीं। मैं ‘जें डर नॉनकन्फोर्मिंग, नॉन-बाइनरी और जें डर फ्लूइड पर्सन हूँ- मैं पुरुष और औरत दोनों रहना चाहती हूँ। मुझे लगता है, स्त्री मे री प्रकृति है और पुरुष जिंदा रहने की सीखी हुई प्रवृति। मै चाहता हूँ कि मे रे भीतर की औरत फले फूले , लेकिन मैं पुरुष को मारना नहीं चाहती। वे :अब हमारे देश के समलैंगिगता को ले कर कानून बदल रहे हैं, क्या आप भी सर्जरी से खुद को बदलेंगी? पा: मैं हॉर्मोन ज़रूर इस्तेमाल करुँ गी, लेकिन मैं अपना से क्स नहीं बदलूँगी। मुझे खुद की क्वीयरने स को स्वीकार करने और समझने में बहुत वक्त लगा है। मैंने सोचा है कि जैसी मैं पैदा हुई हूँ, अब मैं छोटा महसूस नहीं करुँ गी। इसलिए मैंने ठान लिया है कि मुझे महिला का शरीर नहीं चाहिए। मे रे बदलाव की प्रक्रि या धीमी रही है। पहले मैंने जे वेलरी पहनना शुरू किया, फिर मे कअप किया। पहले मुझे पब्लिक में बोलने में दिक्कत और घबराहट होती थी, लेकिन साडी पे हेनते ही सब छूमंतर हो जाता है! अब मुझे डर नहीं लगता, मुझे साडी पे हनते ही सशक्त महसूस होता है।

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बदलाव के दौर से गुजरती पावेल का एक चित्र।

वे : अपने नानी और दादी के बारे में और बताइये - वे काफी प्रगतिशील मालुम होते हैं! पा: मुझे लगता है उनका प्यार सभी सीमाओं से परे है, उन्होंने मुझे कभी ‘अलग’ महसूस नहीं होने दिया। मुझे लगता है लोग दस ू रों के लिंग और व्यक्तित्व को इसलिए तवज्जो नहीं देते क्यूँकि, वे लोगों के रहने और सोचने के तरीकों पर पावर चाहते हैं। मे री नानी और दादी आज़ाद ख्याल और दयालु रही हैं, जिनमें मुझे अपनापन महसूस होता है। म+वे : बड़े होते हुए लिंग सम्बन्धी आपका अनुभव कैसा रहा है? पा: जब मैं बड़ी हो रही थी, मे रे बहुत से दोस्तों और परिवार वालों को लगता था कि मैं बड़ी होकर ‘होमो’ बनूँगी। मणिपुर में ये शब्द ट्रांस लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, लिंग को ले कर मे रा विचार हमे शा बंटा हुआ रहता था। मैं पुरुष के चिन्ह जैसे दाढ़ी-मूँछ रखती थी और मुझे फुटबॉल खे लना और प्रतियोगिताओं में भाग ले ना अच्छा लगता था। इस तरह मे रे स्त्रीत्व को ले कर लोगों के ख्यालों को मैं ध्वस्त करती थी। म: घर छोड़कर दनि ु या देखने के अपने अनुभव के बारे में बताइये । पा: मैं पढाई के लिए बड़ौदा चली गई। मे रे लिए ये बिलकुल नया अनुभव था। मैंने पहली बार लिंग के अभिनयात्मक पहलू को अलगअलग संस्कृतियों में देखा। मैंने महसूस किया कि गुजरती पौरष काफी नरम होता है, इसलिए मे री क्वीयरने स उनके लिए अजीब नहीं थी। म: कॉले ज की ज़िन्दगी कैसी थी ? पा: दस ू रे मणिपुरी लोगों से ज़्यादा होशियार होने का मुझे फायदा मिला। मैं लिंग्विस्टिक्स की पढाई कर रही थी और हमारे एच.ओ.डी. में मुझे डिपार्टमें ट को लोकप्रिय बनाने के लिए इवें ट और चर्चायें आयोजित करने के लिए कहा। मे रे लिए यह

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ले आउट और डिज़ाइन: मालिनी कोचुपिल्लै

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संपादन: मालिनी कोचुपिल्लै और महावीर सिं ह बिष्ट [khirkeevoice@gmail.com]

खोज इं टरनेशनल आर्टि स्ट एसोसिएशन द्वारा सहयोग और प्रकाशन


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