सुलभ स्वच्छ भारत (अंक - 26)

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12 - 18 जून 2017

सिर्फ उनकी आंखों के लिए शिक्षा मिसाल

पश्चिमी भारत में दृष्टिहीनों के लिए करेंट अफेयर्स की दो पत्रिकाएं निकालने के लिए स्वागत थोराट यानी भरत के ब्रेल मैन को करना पड़ा संघर्ष

इंदिरा सील

सत व्यक्ति जो देख सकता है उसके लिए एक नेत्रहीन व्यक्ति की तरह सोचना मुश्किल है। यह एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना स्वागत थोराट कर रहे हैं – जो पत्रकार, थियेटर पर्सनालिटी, वाइल्ड लाईफ फोटोग्राफर और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता बने, लेकिन अधिकतर लोग उन्हें भारत के ब्रेल मैन के रूप में ही जानते हैं। वह भारत की पहली ब्रेल पत्रिका लॉन्च करना चाहते थे। 1998 में ‘स्पर्शज्ञान' पत्रिका का पहला अंक मराठी में प्रकाशित हुआ था। यह सब 1993 में शुरू हुआ जब थोराट पुणे के दो दृष्टिहीन विद्यालयों पर एक वृत्त फिल्म की परियोजना बना रहे थे। 1997 में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक मराठी नाटक 'स्वातंत्र्याचि यशोगथा' का मंचन किया, जिसमें इन दोनों स्कूलों के 88 दृष्टिहीन कलाकार थे। नेत्रहीनों की सबसे बड़ी संख्या वाले कलाकारों के लिए इस एक्ट ने रिकॉर्ड बनाया। इस एक्ट का उल्लेख

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है। स्वागत थोराट कहते हैं कि उन लोगों ने एक बच्चे की तरह मुझे आकर्षित किया, जो नहीं देख सकते थे। हर दिन स्कूल से वापस जाते समय रास्ते में मुझे दृष्टिहीन ज्योतिषियों के एक समूह का सामना करना पड़ता था। मैं कुछ मिनट के लिए रुकता और उनके साथ बात करता था। उनके अनुभवों ने मुझे मोहित किया। मैं यह जानना चाहता था कि वे अंधेरे के साथ लंबे समय तक कैसे रहते हैं। थोराट कहते हैं कि कभी-कभी मैं खुद अपनी आंखों पर पट्टी बांध देता था। फिर मुझे एहसास हुआ कि हम इतनी सारी इंद्रियों का उपयोग करना ही भूल गए हैं। स्टेज प्रोडक्शन के लिए काम करते समय व्यापक यात्रा की आवश्यकता होती है, तब हमें उन्हें नजदीक से देखने का मौका मिला। वह लोग ज्यादातर उन चीजों पर चर्चा करते थे,

जो उन्होंने पढ़ी थी। लेकिन 1998 में ब्रेल में बहुत कम किताबें ही उपलब्ध हो पाती थीं, जबकि बच्चे और अधिक पढ़ना चाहते थे। थोराट को दृष्टिहीनों की दुनिया ने हमेशा मोहित किया। वहां आपको देखने की जरूरत थी। टेलीविजन और रेडियो वहां थे, लेकिन पढ़ने की सामग्री का अभाव उनके अलगाव का कारण था। थोराट कहते हैं कि वे कल्पनाशील थे, लेकिन इन माध्यमों ने उन्हें सपने या खुद के लिए जगह बनाने की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन नेत्रहीनों के लिए लिखना सबसे बड़ी चुनौती साबित हुई। उन्हें बिना प्रकाश की दुनिया को समझना था और वास्तविक जीवन में दुविधाओं वाले दृष्टिहीन लोगों को भी समझना था। आपको दृष्टिहीनों के लिए लिखने के लिए उन्हीं की तरह सोचना होगा। मैंने दिखाई देने वालों के लिए लिखा था, लेकिन यह एक अलग तरह का

दृष्टिहीनों के लिए लिखने पर आपको उन्हीं की तरह सोचना होगा। मैंने दिखाई देने वालों के लिए लिखा था, लेकिन यह एक अलग तरह की चुनौती थी

एक नजर

1997 में ‘स्पर्शज्ञान' का पहला दिवाली विशेषांक छपा

1998 में मराठी में प्रकाशित हुआ ‘स्पर्शज्ञान' का पहला अंक 2013 में एक और ब्रेल पत्रिका ‘दृष्टि’ का हिंदी में प्रकाशन

खेल था। उनकी दुनिया इंद्रियों से भरी है। हम देखते हैं क्योंकि हम देख सकते हैं। मुझे खुद को फिर से सिखाने की जरूरत थी। मान लीजिए आप उनके लिए नुस्खा लिख रहे हैं। इसीलिए 'सुनहरा भूरा होने तक प्याज को भूनें' इसकी जगह, दो से तीन मिनट के लिए भूनें। रंग, आकार और आकृतियों की अपनी स्वयं की व्याख्याओं के बारे में सीखने के लिए यह एक आश्चर्यजनक तरीका है। प्रकाश पर्व दिवाली में 1997 के दौरान ‘स्पर्शज्ञान' का पहला त्योहार पर आधारित अंक


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