िनराकार परब्रम्ह हे !, िचत्रगुप्त भगवर्ान.
िवर्िध हिर हर त्रय हो तम् ु हीं, कमर दे वर् गण ु वर्ान.. दैव िवर्क - भौतितक शि दक्तयाँ, रं ग रूप रस खान. तुम्हीं बसे चर - अभचर मे , रच संतित मितमान.. जो रहस्य यह जानते, वर्े ही है कायस्थ. कमरदेवर् को पज ू ते, िबना हुए सन्यस्त..
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नमन
िहिन्दी की आधुिनक मीरां महिीयसी महिादे वी वमार
िहन्दी की िबंदी! तवर्, चरणो मे शत वर्न्दन. भावर्ो की अभंजलिी अभिपरत, श्रद्धा का चंदन.. फँू के प्राण गीत मे , किवर्ता मे नवर् जीवर्न.
दीप िशखावर्त जलिीं, श्वर्ास हर िवर्हँ स अभकम्पन.. तीथरराज की लिुप्त सरस्वर्ती, सी तम ु पावर्न. हुई ित्रवर्ेणी पूणर, िमलिी नमरदा लिुभावर्न..